Breakup Story : धोखेबाज गर्लफ्रैंड

Breakup Story: ड्राइंगरूममें सोफे पर बैठ पत्रिका पढ़ रही स्मिता का ध्यान डोरबैल बजने से टूटा. दरवाजा खोलने पर स्मिता को बेटे यश का उड़ा चेहरा देख धक्का लगा. घबराई सी स्मिता बेटे से पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ यश? सब ठीक तो है?’’

बिना कुछ कहे यश सीधे अपने बैडरूम में चला गया. स्मिता तेज कदमों से पीछेपीछे भागी सी गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ यश?’’

यश सिर पकड़े बैड पर बैठा सिसकने लगा. जैसे ही स्मिता ने उस के पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ रखा वह मां की गोद में ढह सा गया और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

स्मिता ने बेहद परेशान होते हुए पूछा, ‘‘बताओ तो यश क्या हुआ?’’

यश रोए जा रहा था. स्मिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस का 25 साल का बेटा आज तक ऐसे नहीं रोया था. उस का सिर सहलाती वह चुप हो गई थी. समझ गई थी कि थोड़ा संभलने पर ही बता पाएगा. यश की सिसकियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. कुछ देर बाद फिर स्मिता ने पूछा, ‘‘बताओ बेटा क्या हुआ?’’

‘‘मां, नविका से ब्रेकअप हो गया.’’

‘‘क्या? यह कैसे हो सकता है? नविका को यह क्या हुआ? बेटा यह तो नामुमकिन है.’’

यश ने रोते हुए कहा, ‘‘नविका ने अभी फोन पर कहा कि अब हम साथ नहीं हैं. वह यह रिश्ता खत्म करना चाहती है.’’

स्मिता को गहरा धक्का लगा. यह कैसे हो सकता है. 4 साल से वह, यश के पापा विपुल, यश की छोटी बहन समृद्धि नविका को इस घर की बहू के रूप में ही देख रहे हैं. इतने समय से स्मिता यही सोच कर चिंतामुक्त रही कि जैसी केयर नविका यश की करती है, वैसी वह मां हो कर भी नहीं कर पाती. इस लड़की को यह क्या हुआ? स्मिता के कानों में नविका का मधुर स्वर मां…मां… कहना गूंज उठा. बीते साल आंखों के आगे घूम गए. बेटे को कैसे चुप करवाए वह तो खुद ही रोने लगी. वह तो खुद ही इस लड़की से गहराई से जुड़ चुकी है.

अचानक यश उठ कर बैठ गया. मां की आंखों में आंसू देखे, तो उन्हें पोंछते हुए फिर से रोने लगा, ‘‘मां, यह नविका ने क्या किया?’’

‘‘उस ने ऐसे क्यों किया, यश? कल रात तो वह यहां हमारे साथ डिनर कर के गई. फिर रातोंरात ऐसी कौन सी बात हो गई?’’

‘‘पता नहीं, मां. उस ने कहा कि अब वह इस रिश्ते को और आगे नहीं ले जा पाएगी. उसे महसूस हो रहा है कि वह इस रिश्ते में जीवनभर के लिए नहीं बंध सकती. वह भी हम सब को बहुत मिस करेगी, उस के लिए भी मुश्किल होगा पर वह अपनेआप को संभाल लेगी और कहा कि मैं भी खुद को संभाल लूं और आप सब को उस की तरफ से सौरी कह दूं.’’

स्मिता हैरान व ठगी से बैठी रह गई थी. यह क्या हो रहा है? लड़कों की

बेवफाई, दगाबाजी तो सुनी थी पर यह लड़की क्या खेल खेल गई मेरे बेटे के साथ… हम सब की भावनाओं के साथ. दोनों मांबेटे ठगे से बैठे थे. स्मिता ने बहुत कहा पर यश ने कुछ नहीं खाया. चुपचाप बैड पर आंसू बहाते हुए लेटा रहा. स्मिता बेचैन सी पूरे घर में इधर से उधर चक्कर लगाती रही.

शाम को विपुल और समृद्धि भी आ गए. आते ही दोनों ने घर में पसरी उदासी महसूस कर ली थी. सब बात जानने के बाद वे दोनों भी सिर पकड़ कर बैठ गए. यह कोई आम सी लड़की और एक आम से लड़के के ब्रेकअप की खबर थोड़े ही थी. इतने लंबे समय में नविका सब के दिलों में बस सी गई थी.

इस घर से दूर नविका तो खुद ही नहीं रह सकती थी. घर में हर किसी को खुश करती थकती नहीं थी. विपुल के बहुत जोर देने पर यश ने सब के साथ बैठ कर मुश्किल से खाना खाया, डाइनिंगटेबल पर अजीब सा सन्नाटा था. समृद्धि को भी नविका के साथ बिताया एकएक पल याद आ रहा था. नविका से कितनी छोटी है वह पर कैसी दोस्त बन गई थी. कुछ भी दिक्कत हो नविका झट से दूर कर देती थी.

विपुल को भी उस का पापा कह कर बात करना याद आ रहा था. सब सोच में डूबे हुए थे कि यह हुआ क्या? कल ही तो यहां साथ में बैठ कर डिनर कर रही थी. आज ब्रेकअप हो गया. यह एक लड़के से ब्रेकअप नहीं था. नविका के साथ पूरा परिवार जुड़ चुका था. सब ने बहुत बेचैनी भरी उदासी से खाना खत्म किया. कोई कुछ नहीं बोल रहा था.

स्मिता से बेटे की आंसू भरी आंखें देखी नहीं जा रही थीं. उस के लिए बेटे को इस हाल

में देखना मुश्किल हो रहा था. रात को सोने

से पहले स्मिता ने पूछा, ‘‘यश, मैं नविका से

बात करूं?’’

‘‘नहीं मां, रहने दो. अब वह बात ही नहीं करना चाहती. फोन ही नहीं उठा रही है.’’

स्मिता हैरान. दुखी मन से बैड पर लेट तो गई पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर विपुल के सोने के बाद बालकनी में रखी कुरसी पर आ कर बैठ गई. पिछले 4 सालों की एकएक बात आंखों के सामने आती चली गई…

यश और नविका मुंबई में ही एक दोस्त की पार्टी में मिले थे. दोनों की दोस्ती हो गई थी. नविका यश से 3 साल बड़ी थी, यह जान कर भी यश को कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह नविका से बहुत प्रभावित हुआ था. नविका सुंदर, आत्मनिर्भर, आधुनिक, होशियार थी. अपनी उम्र से बहुत कम ही दिखती थी. स्मिता के परिवार को भी उस से मिल कर अच्छा लगा था.

चुटकियों में यश और समृद्धि के किसी भी प्रोजैक्ट में हैल्प करती. बेटे से बड़ी लड़की को भी उस की खूबियों के कारण स्मिता ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था. स्मिता और विपुल खुले विचारों के थे. नविका के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक भाई था. एक दिन नविका ने स्मिता से कहा कि मां आप मुझे कितना प्यार करती हैं और मेरी मम्मी तो बस मेरे भाई के ही चारों तरफ घूमती रहती हैं. मैं कहां जा रही हूं, क्या कर रही हूं, मम्मीपापा को इस से कुछ लेनादेना नहीं होता. भाई ही उन दोनों की दुनिया है. इसलिए मैं जल्दी आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं.

सुन कर स्मिता ने नविका पर अपने स्नेह की बरसात कर दी थी.

उस दिन से तो जैसे स्मिता ने मान लिया कि उस के 2 नहीं 3 बच्चे हैं. कुछ भी होता

नविका जरूर होती. कहीं जाना हो नविका साथ होती. यह तय सा ही हो गया था कि यश के सैटल हो जाने के बाद दोनों का विवाह कर दिया जाएगा.

एक दिन स्मिता ने कहा, ‘‘नविका, मैं सोच रही हूं कि तुम्हारे पेरैंट्स से मिल लूं.’’

इस पर नविका बोली, ‘‘रहने दो मां. अभी नहीं. मेरे परिवार वाले बहुत रूढि़वादी हैं. जल्दी नहीं मानेंगे. मुझे लगता कि अभी रुकना चाहिए.’’

यश तो आंखें बंद कर नविका की हर बात में हां में हां ऐसे मिलाता था कि कई बार स्मिता हंस कर कह उठती थी, ‘‘विपुल, यह तो पक्का जोरू का गुलाम निकलेगा.’’

विपुल भी हंस कर कहते थे, ‘‘परंपरा निभाएगा. बाप की तरह बेटा भी जोरू का

गुलाम बनेगा.’’

कई बार स्मिता तो यह सोच कर सचमुच मन ही मन गंभीर हो उठती थी कि यश सचमुच नविका के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. अपनी हर चीज के लिए उस पर निर्भर रहता है. कोई फौर्म हो, कहीं आवेदन करना हो, उस के सब काम नविका ही करती और नविका यश को खुश रखने का हर जतन करती. उसे मुंबई में ही अच्छी जौब मिल गई थी.

जौब के साथसाथ वह घर के हर सदस्य की हर चीज में हमेशा हैल्प करती. स्मिता मन ही मन हैरान होती कि यह लड़की क्या है… इतना कौन करता है? किसी को कोई भी जरूरत हो, नविका हाजिर और उस का खुशमिजाज स्वभाव भी लाजवाब था जिस के कारण स्मिता का उस से रोज मिलने पर भी मन नहीं भरता था. जितनी देर घर में रहती हंसती ही रहती. स्मिता नविका को याद कर रो पड़ी. रात के 2 बजे बालकनी में बैठ कर वह नविका को याद कर रो रही थी.

स्मिता का बारबार नविका को फोन कर पूछने का मन हो रहा था कि यह क्या किया तुम ने? यश के मना करने के बावजूद स्मिता यह ठान चुकी थी कि वह यह जरूर पूछेगी नविका से कि उस ने यह इमोशनल चीटिंग क्यों की? क्या इतने दिनों से वह टाइमपास कर रही थी? अचानक बिना कारण बताए कोई लड़की ब्रेकअप की घोषणा कर देती है, वह भी यश जैसे नर्म दिल स्वभाव वाले लड़के के साथ जो नविका को खुश देख कर ही खुश रहता था.

इतने में ही अपने कंधे पर हाथ  का स्पर्श महसूस हुआ तो स्मिता चौंकी. यश था, उस की गोद में सिर रख कर जमीन पर ही बैठ गया. दोनों चुप रहे. दोनों की आंखों से आंसू बहते रहे.

फिर विपुल भी उठ कर आ गए. दोनों को प्यार से उठाते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जो हो गया, सो हो गया, अब यही सोच कर तुम लोग परेशान मत हो. आराम करो, कल बात करेंगे.’’

अगले दिन भी घर में सन्नाटा पसरा रहा. यश चुपचाप सुबह कालेज चला गया. स्मिता ने उस से दिन में 2-3 बार बात की. पूछा, ‘‘नविका से बात हुई?’’

‘‘नहीं, मम्मी वह फोन नहीं उठा रही है.’’

उदासीभरी हैरानी में स्मिता ने भी दिन बिताया. वह बारबार

अपना फोन चैक कर रही थी. इतने सालों में आज पहली बार न नविका का कोई मैसेज था न ही मिस्ड कौल. स्मिता को तो स्वयं ही नविका के टच में रहने की इतनी आदत थी फिर यश को कैसा लगा रहा होगा. यह सोच कर ही उस का मन उदास हो जाता था.

3 दिन बीत गए, नविका ने किसी से संपर्क नहीं किया. घर में चारों उदास थे, जैसे घर का कोई महत्त्वपूर्ण सदस्य एकदम से साथ छोड़ गया हो. सब चुप थे. अब नविका का कोई नाम ही नहीं ले रहा था ताकि कोई दुखी न हो. मगर बिना कारण जाने स्मिता को चैन नहीं आ रहा था. वह बिना किसी को बताए बांद्रा कुर्ला कौंप्लैक्स पहुंच गई. नविका का औफिस उसे पता था.

अत: उस के औफिस चल दी. औफिस के बाहर पहुंच सोचा एक बार फोन करती. अगर उठा लिया तो ठीक वरना औफिस में चली जाएगी.

अत: नविका के औफिस की बिल्डिंग के बाहर खड़ी हो कर स्मिता ने फोन किया. हैरान हुई जब नविका ने उस का फोन उठा लिया, ‘‘नविका, मैं तुम्हारे औफिस के बाहर खड़ी हूं, मिलना है तुम से.’’

‘‘अरे, मां, आप यहां? मैं अभी

आती हूं.’’

नविका दूर से भागी सी आती दिखी तो स्मिता की आंखें उसे इतने दिनों बाद देख भीग सी गईं. वह सचमुच नविका को प्यार करने लगी थी. उसे बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी. उस पर अथाह स्नेह लुटाया था. फिर यह लड़की अचानक गैर क्यों

हो गई?

नविका आते ही उस के गले लग गई. दोनों रोड पर यों ही बिना कुछ कहे कुछ पल खड़ी रहीं. फिर नविका ने कहा, ‘‘आइए, मां, कौफी हाउस चलते हैं.’’

नविका स्मिता का हाथ पकड़े चल रही थी. स्मिता का दिल भर आया. यह हाथ, साथ, छूट गया है. दोनों जब एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गईं तो नविका ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘मां, आप कैसी हैं?’’

स्मिता ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया, मैं जानने आई हूं?’’

नविका ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां, मैं थकने लगी थी.’’

‘‘क्यों? किस बात से? हम लोगों के प्यार में कहां कमी देखी तुम ने? इतने साल हम से जुड़ी रही और अचानक बिना कारण बताए यह सब किया जाता है? यह पूरे परिवार के साथ इमोशनल चीटिंग नहीं है?’’ स्मिता के स्वर में नाराजगी घुल आई.

‘‘नहीं मां, आप लोगों के प्यार में तो कोई कमी नहीं थी, पर मैं अपने ही झूठ से थकने लगी थी. मैं ने आप लोगों से झूठ बोला था. मैं यश से 3 नहीं, 7 साल बड़ी हूं.’’

स्मिता बुरी तरह चौंकी, ‘‘क्या?’’

‘‘हां, मैं तलाकशुदा भी हूं. इसलिए मैं ने आप को कभी अपनी फैमिली से मिलने नहीं दिया. मैं जानती थी आप लोग यह सुन कर मुझ से दूर हो जाएंगे. मैं इतनी लविंग फैमिली खोना नहीं चाहती थी. इसलिए झूठ बोलती थी.’’

‘‘शादी कहां हुई थी? तलाक क्यों हुआ था?’’

‘‘यहीं मुंबई में ही. मैं ने घर से भाग कर शादी की थी. मेरे पेरैंट्स आज तक मुझ से नाराज हैं और फिर मेरी उस से नहीं बनी तो तलाक हो गया. मैं मम्मीपापा के पास वापस आ गई. उन्होंने मुझे कभी माफ नहीं किया. मैं ने आगे पढ़ाई

की. आज मैं अच्छी जौब पर हूं. फिर यश मिल गया तो अच्छा लगा. मैं ने अपना सब सच छिपा लिया. यश अच्छा लड़का है. मुझ से काफी छोटा है, पर उस के साथ रहने पर उस की उम्र के हिसाब से मुझे कई दिक्कतें होती हैं. उस की उम्र से मैच करने में अपनेआप पर काफी मेहनत करनी पड़ती है. आजकल मानसिक रूप से थकने लगी हूं.

‘‘यश कभी अपनी दूसरी दोस्तों के साथ बात भी करता है तो मैं असुरक्षित

महसूस करती हूं. मैं ने बहुत सोचा मां. उम्र के अंतर के कारण मैं शायद यह असुरक्षा हमेशा महसूस करूंगी. मैं ने भी दुनिया देखी है मां. बहुत सोचने के बाद मुझे यही लगा कि अब मुझे आप लोगों की जिंदगी से दूर हो जाना चाहिए. मैं वैसे भी अपनी शर्तों पर, अपने हिसाब से जीना चाहती हूं. आत्मनिर्भर हूं, आप लोगों से जुड़ कर समाज का कोई ताना, व्यंग्य भविष्य में मैं सुनना पसंद नहीं करूंगी.

‘‘मैं ने बहुत मेहनत की है. अभी और ऊंचाइयों पर जाऊंगी, आप लोग हमेशा याद आएंगे. लाइफ ऐसी ही है, चलती रहती है. आप ठीक समझें तो घर में सब को बता देना, सब आप के ऊपर है और हम कोई सैलिब्रिटी तो हैं नहीं, जिन्हें इस तरह का कदम उठाने पर समाज का कोई डर नहीं होता. हम तो आम लोग हैं. मुझे या आप लोगों को रोजरोज के तानेउलाहने पसंद नहीं आएंगे. यश में अभी बहुत बचपना है. यह भी हो सकता है कि समाज से पहले वही खुद बातबात में मेरा मजाक उड़ाने लगे. मुझे बहुत सारी बातें सोच कर आप सब से दूर होना ही सही लग रहा है.’’

कौफी ठंडी हो चुकी थी. नविका पेमैंट कर उठ खड़ी हुई. कैब आ गई तो स्मिता के गले लगते हुए बोली, ‘‘आई विल मिस यू, मां,’’ और फिर चल दी.

स्मिता अजीब सी मनोदशा में कैब में बैठ गई. दिल चाह रहा था, दूर जाती हुई नविका को आवाज दे कर बुला ले और कस कर गले से लगा ले, पर वह  जा चुकी थी, हमेशा के लिए. उसे कह भी नहीं पाई थी कि उसे भी उस की बहुत याद आएगी. 4 सालों से अपने सारे सच छिपा कर सब के दिलों में जगह बना चुकी थी वह. सच ही कह रही थी वह कि सच छिपातेछिपाते थक सी गई होगी. अगर वह अपने भविष्य को ले कर पौजिटिव है, आगे बढ़ना चाहती है, स्मिता को भले ही अपने परिवार के साथ यह इमोशनल चीटिंग लग रही हो, पर नविका को पूरा हक है अपनी सोच, अपने मन से जीने का.

अगर वह अभी से इस रिश्ते में मानसिक रूप से थक रही है, अभी से यश और अपनी उम्र के अंतर के बोझ से थक रही है तो उसे पूरा हक है इस रिश्ते से आजाद होने का. मगर यह सच है कि स्मिता को उस की याद बहुत आएगी. मन ही मन नविका को भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे कर स्मिता ने गहरी सांस लेते हुए कार की सीट पर बैठ कर आंखें मूंद लीं.

Old Fashion: ओल्ड इज गोल्ड विद मौडर्न टच

Old Fashion: फैशन की असली खूबसूरती यही है कि यह बारबार बदलता है और हर बार कुछ नया ले कर आता है. लेकिन आजकल का सब से बड़ा ट्रेंड है पुराने को नए रूप में पहनना. अलमारी में रखे पुराने फैब्रिक और प्रिंट अब आउटडेटेड नहीं माने जाते, बल्कि इन्हें नए कट्स और स्टाइल्स के साथ पहनना आज की स्मार्ट चौइस है.

पुराने प्रिंट का नया अंदाज

आप को पता होना चाहिए कि ब्लौक प्रिंट, पोलका डौट्स या फ्लोरल प्रिंट आदि सदाबहार डिजाइन हैं. फर्क बस इतना है कि इन्हें पहले पारंपरिक रूप में पहना जाता था, लेकिन आज इन्हीं से बन रहे हैं मौडर्न ड्रैसेज, जैसे क्रौप टौप और स्कर्ट.

श्रग और जैकेट्स

वनपीस ड्रैस : यानी प्रिंट वही है, लेकिन कटिंग और स्टाइलिंग बिलकुल नया.

पारंपरिक फैब्रिक, वैस्टर्न टच

भारत के पारंपरिक फैब्रिक जैसे खादी, सिल्क, कौटन और लिनेन कभी पुराने नहीं होते. फर्क सिर्फ इन के यूज का है.

खादी से बना ओवरसाइज कोट

सिल्क से डिजाइनर स्कर्ट, कौटन से स्टाइलिश जंपसूट सब पुराने फैब्रिक को भी एकदम मौडर्न और ग्लैमरस बना देते हैं.

साड़ी और दुपट्टे से नया फैशन

हर घर में पुरानी साड़ियां और दुपट्टे पड़े रहते हैं. इन्हें फेंकने की बजाय अगर आप थोड़ी क्रिएटिविटी दिखाएं तो साड़ी से बन सकता है स्टाइलिश गाउन या इंडो वैस्टर्न ड्रैस.

दुपट्टे से तैयार हो सकती है ट्रेंडी स्कर्ट या कुरता ड्रैस, पुराने चुनरी से बन सकता है श्रग या केप स्टाइल जैकेट. इस से न केवल नया फैशन तैयार होता है, बल्कि उस में इमोशंस  की खूबसूरती भी जुड़ी रहती है.

ऐक्सैसरीज का कमाल

कपड़ों को नया लुक देने के लिए ऐक्सैसरीज सब से आसान तरीका है. एक बेल्ट से ढीली ड्रैस को फिगर फिटिंग लुक दें. मौडर्न ज्वैलरी के साथ पारंपरिक फैब्रिक और प्रिंट और भी आकर्षक लगता है.

स्टाइलिश बैग और फुटवियर पुराने डिजाइन को भी ट्रेंडी बना देते हैं.

सस्टेनेबल फैशन समय की जरूरत

आज जब पूरी दुनिया में सस्टेनेबल फैशन की बात हो रही है, तो पुराना फैब्रिक इस्तेमाल करना एक समझदारी भरा कदम है. इस से पर्यावरण को नुकसान नहीं होता.

नए कपड़े बनाने में लगने वाला खर्च और संसाधन बचते हैं. आप अपनी वार्डरोब में यूनिक और पर्सनलाइज्ड स्टाइल जोड़ पाते हैं.

अपनी पहचान खुद बनाएं

फैशन का असली मतलब सिर्फ नया पहनना नहीं, बल्कि खुद की पहचान को स्टाइल में पेश करना है. जब आप पुराने फैब्रिक और प्रिंट से नए कपड़े बनवाते हैं, तो यह आप की क्रिएटिविटी, पर्सनैलिटी और स्मार्ट चौइस दोनों को दिखाता है.

पुराना फैब्रिक और प्रिंट कभी आउटडेटेड नहीं होता. फर्क सिर्फ इतना है कि आप उसे किस तरह पहनते और स्टाइल करते हैं. इसलिए अब पुराने कपड़ों को बेकार समझ कर अलमारी में न रखें, बल्कि उन्हें नया रूप दे कर अपने फैशन में शामिल करें. यही है आज का असली ट्रेंड- ओल्ड इज गोल्ड विद मौडर्न टच.

Old Fashion

Glamour World Reality: सैक्स और संबंध- परदे के पीछे की मिस्ट्री

Glamour World Reality: ग्लैमर वर्ल्ड में आएदिन कोई डाइरैक्टर हो, ऐक्टर हो या कोई और, लड़कियों द्वारा बैडटच, रेप, मौलेस्टेशन आदि घिनौने आरोप लगते रहते हैं, जिन के चलते इस मामले से जुड़े कुछ लोग जहां हवालात पहुंच गए, कुछ पर केस चल रहा है, तो वहीं कई लोगों का कैरियर भी बरबाद हो चुका है.

इतना ही नहीं, इसी मामले से जुड़ी कई लड़कियों ने आत्महत्या तक कर ली है और इस के लिए इंडस्ट्री से जुड़े मर्दों को जिम्मेदार ठहराया गया है.

ऐसी हीरोइनों की आत्महत्या के पीछे क्या ठोस वजह थी, वह भी साफ नहीं हो पाता क्योंकि आत्महत्या करने वाली लड़कियां अपने ऊपर हुए अत्याचार का कोई पुख्ता सुबूत नहीं छोड़तीं.

सवाल गंभीर है

ऐसे में सवाल यह उठता है कि 21वीं सदी में समानता का हक मांगने वाली, आजाद खयालों की लङकियां पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में दया की पात्र क्यों बनी हुई हैं? अत्याचार पीड़ित ऐसी सभी महिलाएं जो ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी हैं सिवाय कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के और सोशल मीडिया पर अपने ऊपर हुए अत्याचार की बयानबाजी कर के तमाशा करने के अलावा कुछ और क्यों नहीं कर रहीं? क्या इस के पीछे छिपा हुआ कोई स्वार्थ है जो बदले की भावना, बदनामी का डर दिखा कर सामने वाले इंसान से काम पाना है या खुद की बदनामी का डर और कमजोर होना है.

ग्लैमर वर्ल्ड जहां पर स्त्री और पुरुष में आमतौर पर कोई भेदभाव नहीं माना जाता, अंग प्रदर्शन से ले कर प्रेम संबंधों तक नैतिक हो या अनैतिक कोई रोकटोक नहीं है, काम के दौरान भी महिलाओं से भी उतना ही काम करवाया जाता है जितना कि पुरुष करते हैं, तो ऐसे में क्या वजह है कि ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी स्त्रियां चाहे वे भोजपुरी इंडस्ट्री की हों, बौलीवुड या साउथ इंडस्ट्री की, आएदिन पुरुषों द्वारा हुए अत्याचार, बलात्कार के इल्जाम सोशल मीडिया पर लगाती रहती हैं.

बवाल होना स्वाभाविक

ऐसे में सवाल यह उठता है कि ग्लैमर वर्ल्ड में एकसाथ काम करने वाले स्त्रीपुरुष, जो सैक्सी सीन से ले कर इंटिमेट सीन, किसिंग सीन धड़ल्ले से करते हैं, महीनों एकसाथ फिल्म या सीरियल के लिए काम करते हैं, कई बार इंडिया के बाहर जा कर भी साथ शूटिंग करते हैं, वे सारे हीरोहीरोइन इतने मतभेद से कैसे गुजर रहे हैं?

हालांकि अगर किसी और क्षेत्र की बात करें तो वहां जहां पर स्त्री और पुरुष एकसाथ काम करते हैं, वहां दोनों के बीच कुछ सीमाएं तय रहती हैं. उन के बीच कुछ सीमित दूरी रहती है, बावजूद इस के अगर कुछ गलत होता है तो बवाल होना स्वाभाविक है, लेकिन ग्लैमर वर्ल्ड जहां पर मर्द और औरत एकसाथ काम करते हैं, उन के बीच इतना अच्छा रिश्ता तो बन ही जाता है जो दोस्ती या दुश्मनी जैसी भले हो, लेकिन कोई किसी से कमजोर नहीं होता.

आरोप में दम या फिर कुछ और

औरत होने की वजह से मजबूर या मर्द होने की वजह से ताकतवर वाला कम से कम ग्लैमर वर्ल्ड में कम ही देखने को मिलता है. अगर कोई कमजोर रिश्ता होता है तो वह सामने वाले का पावरफुल होना यानि ऊंची पोस्ट पर होना और दूसरी तरफ काम न मिलने वाला और संघर्ष करने वाला इंसान होना, जो लड़का या लड़की कोई भी हो सकता है.

ग्लैमर वर्ल्ड ही एक ऐसी जगह है जहां सभी को समान समझा जाता है. साथ काम करने वालों के बीच प्यार तो कभी दोस्ती का रिश्ता होता है. मगर फिर ऐसा क्या हो जाता है कि इस इंडस्ट्री से जुड़ी लड़कियां इंडस्ट्री के मर्दों पर बैडटच, रेप, अश्लीलतापूर्ण जबरदस्ती करने का आरोप लगाती नजर आती हैं?

समानता का पाठ पढ़ाने वाला ग्लैमर वर्ल्ड के मर्द औरतों का फायदा उठाने वाले श्रेणी में आ जाते हैं. मगर सवाल यह उठता है कि ग्लैमर वर्ल्ड मे छिपे इस चमक के पीछे काले साए में लिप्त लोग कौन हैं? ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी वे लड़कियां जो शोषण का शिकार होती हैं या वे हीरो, फिल्ममेकर या पावरफुल लोग जो काम देने के बहाने अपने से कमजोर लोगों का फायदा उठा कर मौके पर चौका मार कर इंडस्ट्री से जुड़ी लड़कियों का शोषण करते हैं, उन की असली मानसिकता क्या है?

कङवा सच

शुरू से ही औरत व आदमी एकदूसरे के पूरक रहे हैं क्योंकि यह एक कड़वा सच है कि बिना आदमी के औरत और बिना औरत के आदमी अधूरा है. घर हो या बाहर, दोनों को ही एकदूसरे की जरूरत शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर रहती ही है, जैसे कि गाड़ी भी एक पहिए पर नहीं चलती 2 पहिए  जरूरी होते हैं, इसी तरह आदमीऔरत की जिंदगी एकदूसरे के सहारे के बगैर नहीं चलती. बावजूद इस के तकरीबन हर क्षेत्र में आदमी के बीच सम्मानित तौर पर एक सीमा है जिस के तहत दोनों अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए निश्चित दूरी रखते हैं.

लेकिन ग्लैमर वर्ल्ड एक ऐसी जगह है, जहां पर औरतआदमी में ज्यादा फर्क नहीं देखा जाता. अगर शुरुआत से बात करें तो जिन दिनों सर्कस हुआ करता था उस दौरान भी स्त्री और पुरुष सर्कस में काम करने की वजह से हीनों तक एकसाथ अलगअलग शहरों और देश में घूमा करते थे. ऐसे ही खेल हो, ओलिंपिक हो, स्त्री और पुरुष साथ में ट्रैवल ही नहीं करते हैं बल्कि कई दिनों और महीनों तक साथ में भी रहते हैं. ऐसे में आदमीऔरत नहीं बल्कि कलीग यानि साथ में काम करने वाले कहलाते हैं, जिस के तहत आपस में लगाव, दोस्ती, आत्मीयता आम बात है.

दोस्ती और सैक्स संबंध

कई बार यह दोस्ती शारीरिक संबंधों में भी बदल जाती है, जब दोस्ती से ज्यादा रिश्ते में करीबी आ जाती है. लेकिन यह सब खुल कर सामने नहीं आता. इस के विपरीत ग्लैमर वर्ल्ड में साथ काम करने वाले लड़का या लड़की अपनी सीमाएं खुद तय करते हैं. उन के बीच शारीरिक संबंध या गहरी दोस्ती आम बात है क्योंकि वे सिर्फ काम ही नहीं करते काम खत्म होने के बाद साथ घूमतेफिरते भी हैं और पार्टी भी करते हैं. ऐसे में खुलापन और स्वतंत्र विचारों के चलते साथ काम करने वालों के बीच संबंध बन जाना, इंटिमेट होना आम बात है.

ग्लैमर वर्ल्ड से प्रभावित कई लड़कियां अपनी जगह बनाने के लिए, काम पाने के लिए अपनी मरजी से न सिर्फ समझौता करती हैं, बल्कि यातनाएं भी सहती हैं, जिस के एवज में उन को काम, पैसा और शोहरत भी मिलता है. लेकिन वे हीरोइन जो उस वक्त अपने साथ हुए अन्याय को झेल कर चुप रहती हैं, सफलता पाने के बाद उन दिनों को याद कर के उन हीरो और डाइरैक्टर के चेहरे से शराफत का नकाब हटा कर अपने साथ हुए अन्याय को दुनिया तक पहुंचा देती हैं. फिर चाहे हीरोइन रेखा हो, मुमताज हो या फिर कंगना रनौत, इन सभी ने अपने ऊपर हुए अन्याय और जबरदस्ती किए गए इंटीमेट सीन अपने इंटरव्यू के दौरान बताए हैं.

फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े ऐक्टर डाइरैक्टर, म्यूजिक डाइरैक्टर मी टू  के आरोप के बाद प्रोफैशनली बरबाद हो गए हैं फिर चाहे वे साजिद खान हों या हीरो शाइनी आहूजा, बदनामी के चलते ऐसे कई लोगों को फिल्म इंडस्ट्री में काम मिलना बंद हो गया.

क्या है खास वजह

ग्लैमर वर्ल्ड में भले ही रिश्तो में खुलापन हो, अंग प्रदर्शन के नाम पर नग्नता हो, फैशन के नाम पर शराब और सिगरेट का सेवन ही क्यों न हो, लेकिन यह सब कुछ वे अपनी मरजी से करते हैं, लेकिन अगर बिना मरजी के उन्हीं के क्षेत्र से जुड़ा इंसान जबरदस्ती कर के या यों कहें कि बलात्कार कर के शरीफ बनने की कोशिश करे, तो वह उस लड़की की नजर में ही नहीं, पूरी दुनिया की नजर में गुनहगार होता है.

पिछले दिनों अमिताभ बच्चन की एक फिल्म आई थी जिस का नाम था ‘पिंक.’ उस में कोर्ट सीन में वकील बने अमिताभ बच्चन ने अपनी क्लाइंट तापसी पन्नू को ले कर एक डायलाग बोला था कि अगर कोई लड़की किसी के साथ संबंध बनाना नहीं चाहती और उस के साथ जबरदस्ती होती है तो वह गुनाह ही है और ऐसा करने वाला गुनहगार है. अगर लड़की नो बोल रही है तो नो का मतलब नो ही होता है.

इस से यही निष्कर्ष निकलता है ग्लैमर वर्ल्ड हो या कोई और फील्ड, अगर लड़की नहीं चाहती और उस के साथ जबरदस्ती होती है तो वह उस के खिलाफ आवाज जरूर उठाएगी, फिर चाहे वह आज हो या कुछ सालों बाद ही क्यों न क्योंकि शरीरिक चोट सही जा सकती है, लेकिन दिलोदिमाग पर लगी चोट का हिसाब देना ही पड़ता है.

Glamour World Reality

Twins: बच्चे के विकास के अंतर को न करें नजरअंदाज, झाड़फूंक नहीं डाक्टर को दिखाएं

Twins: सिमरन के 2 जुड़वा बेटे हैं। 1 मिनट के अंतर पर पैदा हुए दोनों बेटों में एक की ग्रोथ दूसरे से कम है, मसलन ढाई साल का एक बच्चा पूरी बातें कर लेता है, जबकि दूसरा बीचबीच में कभी 1-1 शब्द बोलता है. इस से बच्चों के पेरैंट्स हमेशा चिंता में रहते हैं कि आखिर दोनों की ग्रोथ एकजैसी होगी या नहीं? क्या डाक्टर से परामर्श ले लेनी चाहिए या नहीं? इस पर वे सोचतेसोचते डाक्टर के पास गए, जहां उन्हें स्पीच थेरैपी करने के बारे में कहा गया, ताकि उस के बोलने की आदत बने. अब दूसरा बच्चा भी कुछ बोलने और समझने लगा है, जो तकरीबन 1 साल बाद हो पाया.

असल में जुड़वा बच्चों के विकास में अंतर हो सकता है और यह गर्भावस्था के दौरान ही शुरू हो सकता है. इस के कारण निम्न हैं :

 

  • प्रत्येक जुड़वा बच्चे को गर्भ में रक्त और पोषक तत्त्वों की अलगअलग मात्रा मिलती है, भले ही वे आनुवंशिक रूप से समान हों. यह विकासात्मक भिन्नता, जिस का बाद में स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है, जन्म के समय के वजन में अंतर और जीवनभर अन्य विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है.

 

  • ऐसा देखा गया है कि गर्भाशय में प्रत्येक जुड़वा बच्चे को रक्त और पोषण की अलगअलग मात्रा मिल सकती है, जो जुड़वा बच्चा कम पोषक तत्त्व प्राप्त करता है, उसे विकास संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

 

  • कुछ जुड़वा गर्भधारण में, प्लेसेंटा (गर्भनाल) दोनों जुड़वा भ्रूणों में असमान रूप से वितरित होता है, जिस से एक को अधिक और दूसरे को कम पोषण मिलता है.

आईवीएफ से जुड़वा बच्चे

इस के अलावा आजकल आईवीएफ से भी बच्चे जुड़वा या ट्रिप्लेट होते हैं, जिस का प्रभाव इन बच्चों के विकास पर हो सकता है. दिल्ली एनसीआर के नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी की फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट डा.अस्वति नायर कहती हैं कि जुड़वा और ट्रिप्लेट बच्चे आईवीएफ में हो सकते हैं, क्योंकि कभीकभी एक ही ऐंब्रियो 2 हिस्सों में बंट कर जुड़वा बना देता है, लेकिन यह बहुत कम होता है. वे कहती हैं कि एक ही बच्चे वाली प्रैगनैंसी सब से सुरक्षित मानी जाती है. जुड़वा में रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है और ट्रिपलेट्स में जटिलताओं का खतरा काफी ज्यादा होता है.

क्लिनिकली देखा गया है कि सिंगल ऐंब्रियो ट्रांसफर से सब से अच्छे नतीजे मिलते हैं। जुड़वा में जोखिम मध्यम रहता है और ट्रिपलेट्स में जटिलताओं का खतरा काफी ज्यादा होता है. अगर एक ऐंब्रियो 2 में बंट कर जुड़वा बनता है, मसलन (मोनोएम्नियोटिक ट्विंस), तो इस में विशेष तरह के रिस्क हो सकते हैं, जैसे ट्विन टू ट्विन ट्रांसफ्यूजन सिंड्रोम यानि एक बच्चे में अधिक ग्रोथ का रुकना और क्रोमोसोमल गड़बड़ी का खतरा, जो आगे जा कर विकास को प्रभावित कर सकते हैं.

आईवीएफ और नैचुरल बच्चों के विकास में फर्क 

डाक्टर आगे कहती हैं कि आईवीएफ और नैचुरल प्रैगनैंसी से जन्मे बच्चों में अंतर बहुत ही मामूली और लगभग न के बराबर होता है. फर्क सिर्फ गर्भधारण की प्रक्रिया का है. एक बार जब स्वस्थ ऐंब्रियो गर्भाशय में लग जाता है और गर्भावस्था सामान्यरूप से चलती है, तो बच्चों की ग्रोथ, विकास और माइलस्टोन नैचुरल बच्चों जैसे ही रहते हैं.

आनुवंशिक रूप से समान जुड़वा

बच्चों के भी अलगअलग रूपरंग और व्यक्तित्व हो सकते हैं, क्योंकि पर्यावरण और रैंडम संयोग जीन की अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं. कम पोषक तत्त्व प्राप्त करने वाले जुड़वा बच्चे का जन्म वजन दूसरे की तुलना में कम हो सकता है.

इस के अलावा भले ही जुड़वा बच्चे आनुवंशिक रूप से बहुत करीब हों, हर बच्चा अपने अनूठे तरीके से बढ़ता है, इसलिए वे विकासात्मक रूप से धीमा हो सकते हैं.

साथ ही गर्भ में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण कुछ जुड़वां बच्चों को जीवनभर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

क्या करें

जुड़वा बच्चों को 1-1 करके पेरैंट्स को समय देना उन के बीच व्यक्तिगत जुड़ाव को बढ़ावा दे सकता है, जो उन के भाषा विकास और अन्य क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण है.

इस के अलावा जुड़वा बच्चों के विकास पर लगातार नजर रखने के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच महत्त्वपूर्ण है.

इस प्रकार आप के बच्चे में आए किसी भी कमी को नजरअंदाज न करें, किसी से छिपाए नहीं, झाड़फूंक या पूजापाठ का सहारा न लें, क्योंकि समय रहते इलाज करने पर उस की इस कमी को दूर किया जा सकता है और वह एक स्वस्थ और विकसित बच्चा हो सकता है.

Twins

Emotional Story: सीलन- उमा बचपन की सहेली से क्यों अलग हो गई?

Emotional Story: बचपन से ही वह हमेशा नकाब में रहती थी. स्कूल के किसी बच्चे ने कभी उस का चेहरा नहीं देखा था. हां, मछलियों सी उस की आंखें अकसर चमकती रहती थीं. कभी शरारत से भरी हुई, तो कभी एकदम शांत और मासूम. लेकिन कभीकभी उन आंखों में एक डर भी दिखाई देता था. हम दोनों साथसाथ पढ़ते थे. पढ़ाई में वह बेहद अव्वल थी. जोड़घटाव तो जैसे उस की जबां पर रहता था. मुझे अक्षर ज्ञान में मजा आता था. कहानियां, कविताएं पसंद आती थीं, जबकि गणित के समीकरण, विज्ञान, ये सब उस के पसंदीदा सब्जैक्ट थे.

वह थोड़ी संकोची, किसी नदी सी शांत और मैं एकदम बातूनी. दूर से ही मेरी आवाज उसे सुनाई दे जाती थी, बिलकुल किसी समुद्र की तरह. स्कूल में अकसर ही उसे ले कर कानाफूसी होती थी. हालांकि उस कानाफूसी का हिस्सा मैं कभी नहीं बनता था, लेकिन दोस्तों के मजाक का पात्र जरूर बन जाता था. मैं रिया के परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता था. वैसे भी बचपन की दोस्ती घरपरिवार सब से परे होती है. बचपन से ही मुझे उस का नकाब बेहद पसंद था, तब तो मैं नकाब का मतलब भी नहीं जानता था. शक्लसूरत उस की अच्छी थी, फिर भी मुझे वह नकाब में ज्यादा अच्छी लगती थी.

बड़ी क्लास में पहुंचते ही हम दोनों के स्कूल अलग हो गए. उस का दाखिला शहर के एक गर्ल्स स्कूल में हो गया, जबकि मेरा दाखिला लड़कों के स्कूल में करवा दिया गया. अब हम धीरेधीरे अपनीअपनी दिलचस्पी के काम के साथ ही पढ़ाई में भी बिजी हो गए थे, लेकिन हमारी दोस्ती बरकरार रही. पढ़ाईलिखाई से वक्त निकाल कर हम अब भी मिलते थे. वह जब तक मेरे साथ रहती, खुश रहती, खिली रहती. लेकिन उस की आंखों में हर वक्त एक डर दिखता था. मुझे कभी उस डर की वजह समझ नहीं आई. अकसर मुझे उस के परिवार के बारे में जानने की इच्छा होती. मैं उस से पूछता भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती.

हालांकि अब मुझे समझ आने लगा था कि नकाब की वजह कोई धर्म नहीं था, फिर ऐसा क्या था, जो उसे अपना चेहरा छिपाने को मजबूर करता था? मैं अकसर ऐसे सवालों में उलझ जाता. कालेज में भी मेरे अलावा उस की सिर्फ एक ही सहेली थी उमा, जो बचपन से उस के साथ थी. मेरे मन में उसे और उस के परिवार को करीब से जानने के कीड़े ने कुलबुलाना शुरू कर दिया था. शायद दिल के किसी कोने में प्यार के बीज ने भी जन्म ले लिया था. मैं हर मुलाकात में उस के परिवार के बारे में पूछना चाहता था, लेकिन उस की खिलखिलाहट में सब भूल जाता था. अकसर मैं अपनी कहानियों और कविताओं की काल्पनिक दुनिया उस के साथ ही बनाता और सजाता गया.

बड़े होने के साथ ही हम दोनों की मुलाकात में भी कमी आने लगी. वहीं मेरी दोस्ती का दायरा भी बढ़ा. कई नए दोस्त जिंदगी में आए. उन्हें मेरी और रिया की दोस्ती की खबर हुई. एक दिन उन्होंने मुझे उस से दूर रहने की नसीहत दे डाली. मैं ने उन्हें बहुत फटकारा. लेकिन उन के लांछन ने मुझे सकते में डाल दिया था. वे चिल्ला रहे थे, ‘जिस के लिए तू हम से लड़ रहा है. देखना, एक दिन वह तुझे ही दुत्कार कर चली जाएगी. गंदी नाली का कीड़ा है वह.’ मैं कसमसाया सा उन्हें अपने तरीके से लताड़ रहा था. पहली बार उस के लिए दोस्तों से लड़ाई की थी. मैं बचपन से ही अकेला रहा था. मातापिता के पास समय नहीं होता था, जो मेरे साथ बिता सकें. उमा और रिया के अलावा किसी से कोई दोस्ती नहीं. पहली बार किसी से दोस्ती हुई और

वह भी टूट गई. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह एक सर्द दोपहर थी. सूरज की गरमाहट कम पड़ रही थी. कई महीनों बाद हमारी मुलाकात हुई थी. उस दोपहर रिया के घर जाने की जिद मेरे सिर पर सवार थी. कहीं न कहीं दोस्तों की बातें दिल में चुभी हुई थीं.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मातापिता से मिलना है.’’

‘‘पिता का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरी बहुत सी मांएं हैं. उन से मिलना है, तो चलो.’’ मैं ने हैरानी से उस के चेहरे की ओर देखा. वह मुसकराते हुए स्कूटी की ओर बढ़ी. मैं भी उस के साथ बढ़ा. उस ने फिर से अपने खूबसूरत चेहरे को बुरके से ढक लिया. शाम ढलने लगी थी. अंधेरा फैल रहा था. मैं स्कूटी पर उस के पीछे बैठ गया. मेन सड़क से होती हुई स्कूटी आगे बढ़ने लगी. उस रोज मेरे दिल की रफ्तार स्कूटी से भी ज्यादा तेज थी. अब स्कूटी बदनाम बस्ती की गलियों में हिचकोले खा रही थी.

मैं ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘रास्ता भूल गई हो क्या?’’

उस ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल सही रास्ते पर हूं.’’ उस ने वहीं एक घर के किनारे स्कूटी खड़ी कर दी. मेरे लिए वह एक बड़ा झटका था. रिया मेरा हाथ पकड़ कर तकरीबन खींचते हुए एक घर के अंदर ले गई. अब मैं सीढि़यां चढ़ रहा था. हर मंजिल पर औरतें भरी पड़ी थीं, वे भी भद्दे से मेकअप और कपड़ों में सजीधजी. अब तक फिल्मों में जैसा देखता आया था, उस से एकदम अलग… बिना किसी चकाचौंध के… हर तरफ अंधेरा, सीलन और बेहद संकरी सीढि़यां. हर मंजिल से अजीब सी बदबू आ रही थी. जाने कितनी मंजिल पार कर हम लोग सब से ऊपर वाली मंजिल पर पहुंचे. वहां भी कमोबेश वही हालत थी. हर तरफ सीलन और बदबू. बाहर से देखने पर एकदम छोटा सा कमरा, जहां लोगों के होने का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था. ज्यों ही मैं कमरे के अंदर पहुंचा, वहां ढेर सारी औरतें थीं. ऐसा लग रहा था, मानो वे सब एक ही परिवार की हों.

मुझे रिया के साथ देख कर उन में से कुछ की त्योरियां चढ़ गईं, लेकिन साथ वालियों को शायद रिया ने मेरे बारे में बता रखा था, उन्होंने उन के कान में कुछ कहा और फिर सब सामान्य हो गईं.

एकसाथ हंसनाबोलना, रहना… उन्हें देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं किसी ऐसी जगह पर आ गया हूं, जो अच्छे घर के लोगों के लिए बैन है. वहां छोटेछोटे बच्चे भी थे. वे अपने बच्चों के साथ खेल रही थीं, उन से तोतली बोली में बातें कर रही थीं. घर का माहौल देख कर घबराहट और डर थोड़ा कम हुआ और मैं सहज हो गया. मेरे अंदर का लेखक जागा. उन्हें और जानने की जिज्ञासा से धीरेधीरे मैं ने उन से बातें करना शुरू कीं.

‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘बस आ गई… मजबूरी थी.’’

‘‘क्या मजबूरी थी?’’

‘‘घर की मजबूरी थी. अपना, अपने बच्चों का, परिवार का पेट पालना था.’’

‘‘क्या घर पर सभी जानते हैं?’’

‘‘नहीं, घर पर तो कोई नहीं जानता. सब यह जानते हैं कि मैं दिल्ली में रहती हूं, नौकरी करती हूं. कहां रहती हूं, क्या करती हूं, ये कोई भी नहीं जानता.’’

मैं ने एक और औरत को बुलाया, जिस की उम्र 45 साल के आसपास रही होगी.

मेरा पहला सवाल वही था, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘मजबूरी.’’

‘‘कैसी?’’

‘‘घर में ससुर नहीं, पति नहीं, सिर्फ बच्चे और सास. तो रोजीरोटी के लिए किसी न किसी को तो घर से बाहर निकलना ही होता.’’

‘‘अब?’’

‘‘अब तो मैं बहुत बीमार रहती हूं. बच्चेदानी खराब हो गई है. सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए गई. डाक्टर का कहना है कि खून चाहिए, वह भी परिवार के किसी सदस्य का. अब कहां से लाएं खून?’’

‘‘क्या परिवार में वापस जाने का मन नहीं करता?’’

‘‘परिवार वाले अब मुझे अपनाएंगे नहीं. वैसे भी जब जिंदगीभर यहां कमायाखाया, तो अब क्यों जाएं वापस?’’

यह सुन कर मैं चुप हो गया… अकसर बाहर से चीजें जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं. उन लोगों से बातें कर के एहसास हो रहा था कि उन का यहां होना उन की कितनी बड़ी मजबूरी है. रिया दूर से ये सब देख रही थी. मेरे चेहरे के हर भावों से वह वाकिफ थी. उस के चेहरे पर मुसकान तैर रही थी. मैं ने एक और औरत को बुलाया, जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर थी. मैं ने कहा, ‘‘आप को यहां कोई परेशानी तो नहीं है?’’

उस ने मेरी ओर देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘जब तक जवान थी, यहां भीड़ हुआ करती थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी. लेकिन अब कोई पूछने वाला नहीं है. अब तो ऐसा होता है कि नीचे से ही दलाल ग्राहकों को भड़का कर, डराधमका कर दूसरी जगह ले जाते हैं. बस ऐसे ही गुजरबसर चल रही है. ‘‘आएदिन यहां किसी न किसी की हत्या हो जाती है या फिर किसी औरत के चेहरे पर ब्लेड मार दिया जाता है. ‘‘अब लगता है कि काश, हमारा भी घर होता. अपना परिवार होता. कम से कम जिंदगी के आखिरी दिन सुकून से तो गुजर पाते,’’ छलछलाई आंखों से चंद बूंदें उस के गालों पर लुढ़क आईं और वह न जाने किस सोच में खो गई.मुझे अचानक वह ककनू पक्षी सी लगने लगी. ऐसा लगने लगा कि मैं ककनू पक्षियों की दुनिया में आ गया हूं. मुझे घबराहट सी होने लगी. धीरेधीरे उस के हाथों की जगह बड़ेबड़े पंख उग आए. ऐसा लगा, मानो इन पंखों से थोड़ी ही देर में आग की लपटें निकलेंगी और वह उसी में जल कर राख हो जाएंगी. क्या मैं ऐसी जगह से आने वाली लड़की को अपना हमसफर बना सकता हूं? दिमाग ऐसे ही सवालों के जाल में फंस गया था.

अचानक ही मुझे बुरके में से झांकतीचमकती सी रिया की उदास डरी हुई आंखें दिखीं. मुझे अपने मातापिता  की भागदौड़ भरी जिंदगी दिख रही थी, जिन के पास मुझ से बात करने का वक्त नहीं था और साथ ही, वे दोस्त भी दिखे, जो अब भी कह रहे थे, ‘निकल जा इस दलदल से, वह तुम्हारी कभी नहीं होगी.’ मेरा वहां दम घुटने लगा. मैं वहां से बाहर भागा. बाहर आते ही रिया की अलमस्त सुबह सी चमकती हंसी ने हर सोच पर ब्रेक लगा दिया. मैं दूर से ही उसे खिलखिलाते देख रहा था. उफ, इतने दमघोंटू माहौल में भी कोई खुश रह सकता है भला क्या?

Emotional Story

Family Story in Hindi: अब बस पापा

Family Story in Hindi; आशा का मन बहुत परेशान था. आज पापा ने फिर मां के ऊपर हाथ उठाया था. विमला, उस की मां 70 साल की हो चली थी. इस उम्र में भी उस के 76 वर्षीय पिता जबतब अपनी पत्नी पर हाथ उठाते थे. अभीअभी मोबाइल पर मां से बात कर के उस का मन आहत हो चुका था. पर उस की मजबूरी यह थी कि वह अपनी यह परेशानी किसी को बता नहीं सकती थी. अपने पति व बच्चों को भी कैसे बताती कि इस उम्र में भी उस के पिता उस की मां पर हाथ उठाते हैं.

मां के शब्द अभी भी उस के दिमाग में गूंज रहे थे, ‘बेटा, अब और नहीं सहा जाता है. इन बूढ़ी हड्डियों में अब इतनी जान नहीं बची है कि तुम्हारे पापा के हाथों से बरसते मुक्कों का वेग सह सकें. पहले शरीर में ताकत थी. मार खाने के बाद भी लगातार काम में लगी रहती थी. कभी तुम लोगों पर अपनी तकलीफ जाहिर नहीं होने दी. पर अब मार खाने के बाद हाथ, पैर, पीठ, गरदन पूरा शरीर जैसे जवाब दे देता है. दर्द के कारण रातरात भर नींद नहीं आती है. कराहती हूं तो भी चिल्लाते हैं. शरीर जैसे जिंदा लाश में तबदील हो गया है. जी करता है, या तो कहीं चली जाऊं या फिर मौत ही आ जाए ताकि इस दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए. पर दोनों ही बातें नहीं हो पातीं. चलने तक को मुहताज हो गई हूं.’

आशा मां के दर्द, पीड़ा और बेबसी से अच्छी तरह वाकिफ थी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. मां को अपने घर ले आना भी तो समस्या का समाधान नहीं था, और आखिर कब तक मां को वह अपने घर रख सकती थी? अपनी घरगृहस्थी के प्रति भी तो उस की कोई जिम्मेदारी थी. ऊपर से भाइयों के ताने सुनने को मिलते, सो अलग. उस के दोनों भाई अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त थे. अलग रह रहे मांबाप की भी कभीकभी टोह ले लिया करते थे.

वैसे तो बचपन से उस ने अपनी मां को पापा से मार खाते देखा था. घर के हर छोटेबड़े निर्णय पर मां की चुप्पी व पिता के कथन की मुहर लगते देखा था. वह दोनों के स्वभाव से परिचित थी. वह जानती थी कि सदा से ही घरगृहस्थी के प्रति बेपरवाह व लापरवाह पापा के साथ मां ने कितनी तकलीफें सही हैं और बड़ी मेहनत से तिनकातिनका जोड़ कर अपनी गृहस्थी बसाई व बच्चों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाया. वरना पापा को तो यह तक नहीं मालूम था कि कौन सा बच्चा किस क्लास में पढ़ रहा है. वे तो अपनी मौजमस्ती में ही सदा रमे रहे.

उन दोनों के व्यक्तित्व व व्यवहार में जमीनआसमान का फर्क था. एक तरफ जहां मां आत्मविश्वासी, ईमानदार, मेहनती, कुशल और सादगीपसंद महिला थीं, वहीं दूसरी ओर उस के पिता मस्तमौला, स्वार्थी, लालची और रसिया किस्म के इंसान थे, जो स्थिति के अनुसार अपना रंग बदलने में भी माहिर थे. आज भी दोनों के व्यक्तित्व में इंचमात्र भी अंतर नहीं आया था. हां, शारीरिक रूप से अस्वस्थ व कमजोर होने के कारण मां थोड़ी चिड़चिड़ी अवश्य हो गई थीं. इसलिए अब जब भी उन के बीच वादविवाद की स्थिति बनती थी तो वे प्रत्युत्तर में पापा को बुराभला जरूर कहती थीं. यह बात पापा को कतई बरदाश्त नहीं होती थी. आखिर सालों से वे उन होंठों पर चुप्पी की मुहर देखते आए थे, सो, इस बात को हजम करने में उन्हें बहुत मुश्किल होती थी कि उन की पत्नी उन से जबान लड़ाती है. दोनों भाई भी यों तो मां को बहुत प्यार करते थे लेकिन उन की आपसी लड़ाई में अकसर पापा का ही पक्ष लिया करते थे.

आशा को मालूम था कि पिछली बार जब पापा ने मां पर हाथ उठाया था तो अत्यधिक आवेश व क्षोभ में मां ने भी उन का हाथ पकड़ कर उन्हें झिंझोड़ दिया था, और सख्त ताकीद की थी कि वे अब ये सब नही सहेंगी. तब आननफानन पापा ने सभी बच्चों को फोन लगा कर उन्हें उन की मां द्वारा की गई इस हरकत के बारे में बताया था. तब छोटे भैया ने घर पहुंच कर मां को खूब लताड़ लगाई थी और यह तक कह दिया था कि आप की बहू आप से सौ गुना अच्छी है, जो अपने पति से इस तरह का व्यवहार तो नहीं करती है. पता नहीं, पर शायद उन की भी पुरुषवादी सोच मां के इस कृत्य से आहत हो गई थी.

आशा को बहुत बुरा लगा था, आखिर इन मर्दों को यह क्यों नहीं समझ आता कि औरत भी हाड़मांस से बनी एक इंसान है, वह कोई मशीन नहीं जिस में कोई संवेदना न हो. उसे भी दर्द और तकलीफ होती है, वह भी कितना और कब तक सहे? और आखिर सहे भी क्यों?

भैया ने उस से भी फोन कर मां की शिकायत की थी, इस उद्देश्य से कि वह मां को समझाए कि इस उम्र में ये बातें उन्हें शोभा नहीं देतीं. बोलना तो वह भी बहुतकुछ चाहती थी, पर इस डर से कि बात कहीं और न बिगड़ जाए, सिर्फ हांहूं कर के फोन रख दिया था. काश, उस वक्त उस ने भी सचाई बोल कर भाई का मुंह बंद कर दिया होता, कि भैया, मां से तो आप की पत्नी की तुलना हो भी नहीं सकती है. क्योंकि न ही वे भाभी जैसे झूठ बोलने में यकीन रखती हैं और न अपना आत्मसम्मान कभी गिरवी रख सकती हैं. उन्होंने तो सदा सिर्फ अपनी जिम्मेदारियां ही निभाई हैं, बिना अपने अधिकारों की परवा किए. पर आप की पत्नी तो हमेशा से ही मस्त व बिंदास रही हैं, जबजब आप ने उन की मरजी के खिलाफ कोई भी काम किया है तबतब उन्होंने क्याक्या तांडव किए हैं, क्या आप को याद नहीं है? और अब जबकि आप उन की जीहुजूरी में हमेशा ही लगे रहते हो तो वे आप का विरोध करेंगी ही क्यों? भाभी की याद करतेकरते आशा के मुंह में जैसे कड़वाहट सी घुल गई.

विचारों के भंवर में इसी तरह गोते लगाती हुई आशा की तंद्रा दरवाजे की घंटी की आवाज से टूट गई. घड़ी की ओर निगाहें घुमा कर वह मन ही मन बुदबुदा उठी, ‘अब कैसे होगा काम, बच्चे आ गए, आज उस का सारा काम पड़ा हुआ है.’ भारी मन से उठते हुए उस ने दरवाजा खोला, तो चहकते हुए दोनों बच्चों ने घर में प्रवेश किया, ‘‘ममा, पता है, आज ड्राइंग टीचर को मेरी ड्राइंग बहुत अच्छी लगी, पूरी क्लास ने मेरे लिए क्लैप किया. टीचर ने मुझे टू स्टार्स भी दिए हैं. देखो,’’ नन्हीं परी ने मां को अपनी ड्राइंग शीट दिखाते हुए कहा.

‘‘ओहो, मेरी रानी बिटिया तो बड़ी होशियार है, आई एम प्राउड औफ यू,’’ कहते हुए उस ने नन्हीं परी को गले लगा लिया. परी अभी 7 साल की थी व दूसरी कक्षा में पड़ती थी. उस से बड़ा सौरभ था. जो कि 7वीं क्लास में पढ़ता था.

‘‘ममा, बहुत भूख लगी है, मेरे लिए पहले खाना लगा दो प्लीज,’’ सौरभ अपना बैग रखते हुए बोला.

‘‘ओके, बच्चो, आप फ्रैश हो कर आओ, तब तक मैं जल्दी से आप के लिए खाना परोसती हूं,’’ कह कर आशा किचन की तरफ चल दी. उस ने अभी तक कुछ भी खाने को नहीं बनाया था. बस, कामवाली काम कर के जा चुकी थी, लेकिन उस ने घर भी नहीं समेटा था. बच्चों की पसंद ध्यान में रखते हुए उस ने जल्दी से गरमागरम परांठे और आलू फ्राई बना कर सौस के साथ परोस दिया. बच्चों को खिलातेखिलाते भी उस के दिमाग में कुछ उधेड़बुन चल रही थी.

कुछ देर बाद उस ने दोनों बच्चों को तैयार कर अपनी पड़ोसिन सीमा के पास छोड़ा. और खुद सीधा अपनी मां के घर चल दी. वहां पहुंच कर पता चला कि पापा कहीं बाहर गए हैं. मां की हालत देख उस की रुलाई फूट पड़ी, पर अपने आंसुओं को जब्त कर वह बड़े ही शांत स्वर में बोली, ‘‘मां, चलो तैयार हो जाओ, हमें पुलिस स्टेशन चलना है.’’

‘‘लेकिन बेटा, एक बार और सोच

ले. अभी बात ढकी हुई है, कल को आसपड़ोस, समाजबिरादरी, नातेरिश्तेदारों तक फैल जाएगी. लोग क्या कहेंगे? बहुत बदनामी होगी हमारी. सब क्या सोचेंगे?’’ मां ने कुछ अनुनयपूर्वक कहा.

‘‘जिस को जो सोचना है सोच ले, मगर अब मैं आप को और जुल्म सहने नहीं दूंगी. मां, तुम समझती क्यों नहीं हो, जुल्म सहना भी एक बहुत बड़ा अपराध है और आज तक आप सब सहती आई हो. आप की इसी सहनशीलता ने पापा को और प्रोत्साहित किया. मगर अब, पापा को यह बात समझनी ही होगी कि आप पर हाथ उठाना उन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.’’

मां को तैयार कर आटो में उन का हाथ थाम कर उन के साथ बैठती आशा ने जैसे मन ही मन ठान लिया था, अब बस, पापा.

Family Story in Hindi

Hindi Fictional Story: हाय सैक्सी- डेजी से दूर हुआ रोहित

Hindi Fictional Story: कालेज के गेट में ऐंटर करते ही मृणालिनी ने रोहित को देखा तो अचंभे से चिल्लाई, ‘‘हाय रोहित,’’ लेकिन रोहित का ध्यान कहीं और था. उस ने मृणालिनी की ओर देखा भी नहीं और डेजी के पास पहुंच कर बोला, ‘‘हाय डेजी, माई स्वीट हार्ट.’’

मृणालिनी ने देखा तो चौंकी. कितना बदल गया है रोहित. कहां तो स्कूल में मुझे कनखियों से देखता शर्माता था और कहां यह बदला रूप. मृणालिनी और रोहित दिल्ली के एक नामी कालेज में पढ़ते थे. स्कूल में मृणालिनी रोहित से एक क्लास पीछे थी. दोनों साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई कर रहे थे. रोहित मृणालिनी के घर से थोड़ी दूरी पर ही रहता था सो कभीकभी नोट्स आदि लेने व पढ़ाई में हैल्प के लिए वह रोहित के घर चली जाती थी. रोहित शर्माता हुआ उस से बात करने में भी हिचकता था. लेकिन कभीकभी उन दिनों भी वह मृणालिनी की सुंदरता की तारीफ करता तो वह सिहर उठती. मन ही मन वह उसे चाहने लगी थी. कई सपने देख बैठी थी रोहित से मिलन के. लेकिन कालेज में ऐडमिशन के बाद से ही रोहित का उस से संपर्क कम होने लगा था. जब मृणालिनी ने भी 12वीं पास कर ली और उसी कालेज में ऐडमिशन लिया तो वह इस बात से अनजान  थी कि रोहित उसे यहीं मिल जाएगा. मृणालिनी ने कालेज में प्रवेश किया तो उसे किसी अन्य लड़की से बतियाते देख जैसे अपना सपना टूटता लगा.

रोहित जिस से बात कर रहा था वह गजब की थी. गोरा रंग, तीखे नयन, लंबे बाल तिस पर धूप का चश्मा और ड्रैस ऐसी कि कोई भी शरमा जाए. फंकी टीशर्ट के साथ निकर में से निकलती उस की सुडौल टांगें और टीशर्ट व निकर के बीच में झांकती आकर्षक नाभि उसे सैक्सुअली अट्रैक्शन दे रही थी. मृणालिनी मन मार कर उस के पास गई और रोहित को पुकारा. रोहित ने मुड़ कर देखा तो पूछने लगा, ‘‘अरी मृणालिनी तुम. इसी कालेज में ऐडमिशन लिया है क्या?’’

‘‘हां,’’ वह इतना ही कह पाई थी कि रोहित डेजी का हाथ पकड़ जाते हुए बोला, ‘‘यह है डेजी, मेरी क्लासमेट. अच्छा, मिलते हैं फिर,’’ और चला गया. ‘कहां तो रोहित उसे देख चमक जाता था और कहां अब इग्नोर करता उस सैक्सी बाला के साथ चला गया. ऐसा क्या जादू है इस में,’ वह सोचने लगी. तभी अमिता ने उसे पुकारा, ‘‘अरे मृणालिनी, क्लास में नहीं चलना क्या?’’

‘‘हां, चलो.’’ कह कर वह अमिता के साथ चल दी. रास्ते में अमिता ने पूछा, ‘‘तुम रोहित को जानती हो क्या?’’

‘‘हां…’’ कुछ रुकते हुए मृणालिनी ने अपनी स्कूली दोस्ती की बात उसे बता दी. अमिता बोली, ‘‘कहां तुम और कहां डेजी, देखा है उस के लुक को, उस की सैक्स अपील को. एक तुम हो मोटा नजर का चश्मा लगा कर सलवारकुरते में बहनजी बन कर आ जाती हो. मैं ने तो तुम्हें कभी जींस में भी नहीं देखा. आजकल पर्सनैलिटी बनाने के लिए सैक्सी लुक चाहिए. रोहित तो वैसे ही फ्लर्ट किस्म का लड़का है. सैक्सुअली अट्रैक्शन के पीछे भागने वाला.

‘‘उस के साथ जो लड़की थी, पता है मिस कालेज है वह. दोनों एक ही क्लास में हैं. पहले रोहित भी शर्मीला था पर धीरेधीरे इतना खुल गया कि फ्लर्ट करने लगा.’’ आज मृणालिनी का मन क्लास में न लगा. उस के मन में एक ही बात कौंध रही थी कि वह कैसे रोहित को पाए. कैसे रोहित के दिल में जगह बनाए. ‘‘चलो, सब चले गए,’’ अमिता ने कहा तो जैसे मृणालिनी नींद से जागी. उस की डबडबाई आंखें उस के दिल का हाल बयां कर रही थीं. अमिता को समझते देर न लगी. वह बोली, ‘‘अभी तक रोहित के बारे में सोच रही हो, छोड़ो उसे बिंदास जिओ.’’

‘‘नहीं अमिता मेरा मन नहीं मानता,’’ मृणालिनी रोंआसी हो गई.

‘‘मृणालिनी, अगर तुम रोहित को पाना चाहती हो तो मौडर्न बनो, खुद में अट्रैक्शन पैदा करो, तुम किसी भी तरह से डेजी से कम नहीं हो. विद्या बालन वाला बहनजीनुमा लुक छोड़ो, आज बिपाशा बनने में कोई हर्ज नहीं देखना, रोहित ही नहीं पूरा कालेज तुम्हारे पीछेपीछे भागेगा.’’ मृणालिनी उदास सी घर पहुंची. हाथमुंह धोते समय बाथरूम में लगे शीशे में खुद को निहारा तो अमित के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे. ‘वाकई बहनजी ही तो लगती हूं मैं. ठीक कह रही थी अमिता. सैक्सुअली अट्रैक्शन तो जैसे मुझ में है ही नहीं. इस उम्र में देह आकर्षण ही तो विपरीतलिंगी को अट्रैक्ट करता है. मैं भी बदलूंगी अपने लुक को.’ लंच करते समय उस ने मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मी, क्या मैं अपने लिए दोचार अच्छी ड्रैसेज खरीद लूं.’’ मां ने भी मना नहीं किया और शाम को खुद उस के साथ मार्केट गईं. मृणालिनी को सलवारकमीज, पाजामी, लैगिंग्स के बजाय जींसटौप, ट्यूब ड्रैस, शौर्ट्स, निकर जैसी स्टाइलिश ड्रैसेज खरीदते देख मम्मी हैरान हुईं. लेकिन मृणालिनी ने कह दिया, ‘‘आजकल यही सब चलता है. बोल्ड अंदाज न हो तो मम्मी कोई नहीं पूछता कालेज में.’’ मम्मी शांत हो गईं. घर आ कर मृणालिनी एकएक ड्रैस ट्राई करने लगी. शौर्ट ड्रैस ट्राई करते समय उस का ध्यान टांगों के बालों पर गया तो उसे खुद से ही घिन हुई. फिर उस ने कल के लिए जींस और टौप पहनना ही उचित समझा और निर्णय किया कि कल कालेज से आ कर ब्यूटी पार्लर भी जाएगी. मृणालिनी को जींस और टौप में देख उस की सहेलियां हतप्रभ रह गईं. अमिता ने भी देखा तो बोली, ‘‘वाउ, क्या फिगर है यार.’’

मृणालिनी तारीफ सुन फूली न समाई. जब उस ने कालेज के लड़कों को एकटक अपनी तरफ देखते हुए देखा तो उस का हौसला बढ़ा. वह बड़े चाव से रोहित के क्लासरूम के बाहर गई, लेकिन वह कुछ लड़कियों से बातचीत में मशगूल था. जब बहाने से बुलाया तो वह उसे एकटक देखता रह गया. फिर बहाना बनाती मृणालिनी बोली, ‘‘मुझे फर्स्ट ईयर के तुम्हारे नोट्स चाहिए. दोगे क्या?’’ ‘‘हां, ले लेना पर अभी जाओ,’’ उसे इग्नोर करता रोहित बोला तो मृणालिनी को बहुत बुरा लगा. उस ने आ कर अमिता को बताया तो वह भी नाराज हुई.

‘‘अरे, तुम्हें कालेज में भी नोट्स मांगने थे. उसे कौफी पीने चलने को कहती. कैंटीन में खाने चलने को कहती ताकि अपने दिल की बात कह सके,’’ अमिता ने समझाया. ‘‘ठीक है अगली बार देखूंगी,’’ कह वह वहां से चली गई. लेकिन उस ने सोच लिया था कि वह अपने लिए अट्रैक्शन पैदा कर के ही रहेगी. घर आ कर लंच किया और ब्यूटी पार्लर चल दी. टांगबांहों की वैक्सिंग और मैनीक्योरपैडिक्योर करवाया, साथ ही थ्रैडिंग भी. अगले दिन रैड ट्यूब ड्रैस के साथ सीधेसीधे बालों का हेयरस्टाइल बना, साथ में हाईहील सैंडिल पहन कर वह गजब ढाती दिखी. कालेज पहुंची तो दूर से ही उस की चाल, मखमली टांगें, सुंदर बांहें देख सभी दिल थाम बैठे. अमिता ने देखा तो टोक दिया, ‘‘यह क्या हुलिया बना लिया तुम ने,’’ फिर उस का चश्मा उतारती हुई बोली, ‘‘कम से कम इसे तो उतार लेती. ऐसे लगता है जैसे मखमली चादर में टाट का पैबंद लगा दिया हो.’’

‘‘क्या करूं अमिता. इस के बिना ब्लैकबोर्ड पर कुछ दिखेगा नहीं. मैं पढ़ूंगी कैसे? मुझे कालेज की पढ़ाई भी तो करनी है,’’ मृणालिनी बोली.

‘‘तो कौंटैक्ट लैंस लगा लो. जरूरी है मोटा चश्मा लगाना और हां, अगर लगाना ही है तो धूप का चश्मा लगाओ न ताकि देखते ही हर कोई बोले, ‘गोरे गोरे मुखड़े पे कालाकाला चश्मा…’’’ यह बात मृणालिनी की समझ में आ गई थी. अब मृणालिनी ने चश्मे को भी बाय कह दिया. रोज तरहतरह की अटै्रक्टिव ड्रैसेज पहन उस की इमेज भी सैक्सुअल अट्रैक्ट करने वाली बन गई थी. हर कोई उसे मुड़मुड़ कर देखता. उस दिन मृणालिनी रैड ड्रैस में थी. सभी उस की प्रशंसा कर रहे थे. वह खुशीखुशी रोहित के पास गई तो वह भी उसे देखता रह गया. फिर हायहैलो के बाद मृणालिनी बोली, ‘‘रोहित, आज शाम कौफी पीते हुए घर चलें. वहीं से तुम मुझे घर छोड़ देना.’’

रोहित कुछ कहता, इस से पहले ही पास खड़ी डेजी ने उस की बांहों में बांह डाल दी तो वह चुप रह गया. इस पर मृणालिनी को काफी ईर्ष्या हुई. रोहित के लिए उस के दिल में जो प्यार था वह धुंधला पड़ रहा था, अब वह सिर्फ रोहित को डेजी जैसा बन कर दिखाना चाहती थी. रोहित और डेजी को झुकाने का यह अवसर भी उसे जल्द ही मिल गया. दरअसल, मृणालिनी ने अपनी हर ड्रैस में सैल्फी खींचखींच कर कई बार अपनी डीपी चेंज की व फेसबुक पर अपना हर पोज अपलोड किया जिसे काफी लाइक भी मिले. उस दिन उस का फेसबुक पर लाइक के साथ एक कमैंट भी था. ‘तुम मिस कालेज के लिए ट्राई क्यों नहीं करतीं. छा जाओगी.’ मृणालिनी को यह बात जंच गई. उस ने झट से अमिता को फोन किया और मिस कालेज प्रतियोगिता में भाग लेने की इच्छा जताई. अमिता ने बताया, ‘‘इस प्रतियोगिता का सारा अरेंजमैंट तो रोहित ही देख रहा है. तुम उसी से बात करो. हां, अगर डांस में भाग लेना हो तो मैं तुम्हारी हैल्प कर सकती हूं क्योंकि इस बार डांस ग्रुप को कोरियोग्राफ करने वाली हूं मैं.’’

अगले दिन मृणालिनी रोहित से मिली और मिस कालेज कंपीटिशन में भाग लेने की इच्छा बताई. तभी वहां खड़ी डेजी बोल पड़ी, ‘‘अब कौए भी हंस की चाल चलेंगे,’’ और उस की सहेलियां हंस पड़ीं. मृणालिनी को बात चुभ गई. रोहित ने भी इस कंपीटिशन में भाग लेने से मना किया कि यह तुम्हारे बस का नहीं. लेकिन इरादे की पक्की मृणालिनी नाम लिखवा कर ही मानी. फिर वह अमिता के पास गई और डांस प्रोग्राम भी करना चाहा. अब मृणालिनी रोज 2 घंटे डांस की रिहर्सल करती. फिर रैंप पर चलने की प्रैक्टिस और रात को पढ़ाई. साथ ही अपने खानपान, व्यायाम का भी ध्यान रखती. कालेज फैस्टिवल का दिन था. पहले डांस प्रोग्राम था और मृणालिनी का ही पहला कार्यक्रम था. दिल पक्का कर वह स्टेज पर उतरी और डांस शुरू किया, ‘सैक्सी सैक्सी सैक्सी मुझे लोग बोलें, हाय सैक्सी, हैलो सैक्सी क्यों बोलें…’ गाने के साथ उस के स्टैप्स और ड्रैस ने ऐसा धमाल मचाया कि स्टेज से उतरते ही लोग उसे सैक्सी…सैक्सी कहने लगे.

उस के डांस पर पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. कालेज के फैस्टिवल में अंतिम कार्यक्रम ‘मिस कालेज’ का कंपीटिशन था. सो उसे थोड़ा आराम करने का समय भी मिल गया. उस ने रैंप पर आने के लिए वही रैड ट्यूब ड्रैस चुनी जिस पर सब से ज्यादा लाइक मिले थे. वह इस ड्रैस में गजब की सैक्सुअली अट्रैक्टिव लग रही थी. जब वह रैंप पर उतरी तो उस के गाने व नृत्य के कायल स्टूडैंट्स सैक्सी…सैक्सी… कह उठे. सारा वातावरण हाय सैक्सी… की धुन से सराबोर हो गया. जितनी तालियां मृणालिनी के अट्रैक्शन पर बजीं उतनी किसी अन्य पर नहीं. लिहाजा, उसे ही ‘मिस कालेज’ का ताज पहनाया गया. अगले ही पल जब उसे मिस कालेज की ट्रौफी दी गई तो डेजी देखदेख कर जलन के मारे गढ़ी जा रही थी और ट्रौफी व ताज के साथ अनूठे अंदाज में खड़ी मृणालिनी सब पर बिजलियां गिरा रही थी.

अगले दिन मृणालिनी ने कालेज गेट से ऐंटर किया ही था कि आवाज आई, ‘‘हाय सैक्सी…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर मृणालिनी रुकी तो देख दंग रह गई. उस के पीछे रोहित था.

‘‘अरे, रोहित तुम.’’

‘‘हां, आज तक मैं तुम्हें इग्नोर करता रहा पर तुम ने सिरमौर बन कालेज में नाम कमा मुझे बता दिया कि मैं गलत था. आज शाम कालेज के बाद मेरे साथ कौफी पीने चलोगी. वहीं से साथ घर चलेंगे.’’ ‘‘नहीं, मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं रोहित. कल तक जब तुम एक शर्मीले लड़के थे ठीक था. फिर तुम फ्लर्टी हो गए और कभी इस की बगल तो कभी उस की बगल. मेरी दोस्ती भी भूल गए. याद है सब से पहले तुम्हीं ने मुझे खूबसूरत कहा था लेकिन कालेज में आ कर तुम्हें सिर्फ सैक्सुअल अट्रैक्शन में रुचि रही सो मुझे इग्नोर करते रहे. मैं तुम्हारे पीछे भागती फिरती थी और तुम मेरी ओर देखते भी न थे…’’

अभी मृणालिनी ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय सैक्सी…’’

‘‘ओह, कपिल तुम,’’ फिर एक नजर रोहित पर डाल कपिल से बोली, ‘‘चलो, आज कौफी हाउस चलते हैं अमिता को भी बुला लेते हैं,’’ कहती हुई मृणालिनी कपिल के साथ चली गई अमिता का धन्यवाद करने जिस ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया था. रोहित ठगा सा दोनों को जाता हुआ देख रहा था.

Hindi Fictional Story

गरबा नाइट में चुराना चाहती हैं लाइमलाइट, जाह्नवी और सानया से लें इंस्पिरेशन

Garba Outfit: गरबा नाइट आते ही हर लड़की का दिमाग एक ही चीज में लग जाता है कि क्या पहनें? किस तरह का लुक दिखने में अच्छा होगा स्टाइलिश या ट्रेडिशनल? इन सब सवालों का जवाब पाने लिए बॉलीवुड एक्ट्रेसेस से इंपास्पिरेशन लेना सबसे बेस्ट औप्शन है. क्योंकि जब हम उन्हें किसी इवेंट या फेस्टिवल में देखते हैं, तो उनके आउटफिट्स, मेकअप और एक्सेसरीज हमेशा ट्रेंड्स सेट करते हैं.

बात गरबा की हो या डांडिया की, अंबानी परिवार हर त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाता है. गरबा के दिन आप अंबानी परिवार की छोटी बहू राधिका मर्चेंट के लुक्स से आसानी से इंस्पिरेशन ले सकती हैं. राधिका ने मल्टीकलर लहंगे को जिस तरह पिनअप स्टाइल में पहना है, वो गरबा में डांस करते समय आपको बहुत आरामदायक महसूस कराएगा.

जाह्नवी कपूर का फैशन हमेशा चर्चा में रहता है, इस बार अगर आप डांडिया नाइट में कुछ ग्रेस फुल और ट्रेडिशनल पहनने का सोच रही हैं तो जाह्नवी कपूर के इस लुक को अपना सकते हैं. जाह्नवी का ये मल्टीकलर हैवी एंब्रॉयडेड वाला चनिया चोली डांडिया नाइट के लिए परफेक्ट है.

अपनी अपकमिंग फिल्म ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ के प्रोमोशन के दौरान जाह्नवी ने इस लुक को कैरी किया है. यही नहीं सानया मल्होत्रा ने भी गुजराती थीम को ध्यान में रखते हुए वाइब्रैंट और अट्रैक्टिव लुक लिया है. सानया ने मैरून कलर का लहंगी चोली पहनी है, उन्होंने इसमें हैवी वर्क वाला दुपट्टा कैरी किया है. बड़े बड़े झुमकों और सिंपल बन के साथ सानया लाइमलाइट चुराती दिखीं.

वहीं शिल्पा शेट्टी ने भी इस फेस्टिव सीजन ट्रेडिशनल आउटफिट को मौडर्न टच देते हुए वियर किया है. हैवी वर्क वाले मौडर्न ब्लाउज के साथ शिल्पा ने बालों में कलरफुल ब्रेड्स लगाए हुए हैं. इससे उनके लुक में चार चांद लग गए हैं.

इन बातों का ख्याल रखें

सिंपल मेकअप
गरबा नाइट में ज्यादा भारी मेकअप करना आपके लुक को ओवर कर सकता है और जब आप खुले एरिया में डांस करेंगी तो पसीने से आपका हैवी मेकअप केकी भी हो सकता है. नैचुरल ग्लो, हल्का आईलाइनर और लिप कलर काफी होगा. इससे आप स्टाइलिश भी दिखेंगी और डांस करते समय आराम भी महसूस होगा.

हेयरस्टाइल आसान रखें
लंबी चोटी, हल्का वेव्स या बन स्टाइल में बाल बांधना बेहतर रहता है. ये आपके लुक को क्लासिक बनाता है और डांस करते समय बाल चेहरे में नहीं आते. अगहर आपप बाल खुले रख रही हैं तो साथ में एक रबर बैंड भी रख लें ताकि गर्मी में आप उसे टाइ कर सकें.

मैचिंग ज्वेलरी
भारी गहने पहनने से बचें. छोटे झुमके, चूड़ियां और हल्का नेकपीस ही काफी है. इससे लुक स्टाइलिश रहेगा और आप आसानी से मूव कर पाएंगी.

आरामदायक फुटवियर
गरबा में घंटों डांस करना होता है, इसलिए हाई हील्स छोड़कर फ्लैट सैंडल या जूती पहनें. स्टाइल और कम्फर्ट दोनों बनाए रखना जरूरी है.

Garba Outfit

Drama Story: वरमाला- सोमेश-किरन की जिंदगी में खलनायक कौन बन के आया

Drama Story: ‘‘किरन, तुम अंदर जाओ,’’ बेलाजी किरन को अपने मंगेतर सोमेश के साथ जाने को तैयार खड़ा देख कर बोलीं.

किरन सकपका गई पर मां का आदेश टाल नहीं सकी. सोमेश की समझ में भी कुछ नहीं आया पर कुछ उलटासीधा बोल कर बेलाजी को नाराज नहीं करना चाहता था वह.

‘‘मम्मी, रवींद्रालय में एक नाटक का मंचन हो रहा है. बड़ी कठिनाई से 2 पास मिले हैं. आप आज्ञा दें तो हम दोनों देख आएं,’’ वह अपने स्वर को भरसक नम्र बनाते हुए बोला.

‘‘देखो बेटे, हम बेहद परंपरावादी लोग हैं. विवाह से पहले हमारी बेटी इस तरह खुलेआम घूमेफिरे, यह हमारे समाज में पसंद नहीं किया जाता. किरन के पापा बहुत नाराज हो रहे थे,’’ बेलाजी कुछ ऐसे अंदाज में बोलीं मानो आगे कुछ सुनने को तैयार ही न हों.

‘‘मम्मी, बस आज अनुमति दे दीजिए. इस के बाद विवाह होने तक मैं किरन को कहीं नहीं ले जाऊंगा,’’ सोमेश ने अनुनय किया.

‘‘कहा न बेटे, मैं किरन के पापा की

इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकती,’’ वे बेरुखी से बोलीं.

सोमेश दांत पीसते हुए बाहर निकल गया. बड़ी कठिनाई से उस ने नाटक के लिए पास का प्रबंध किया था. उसे बेलाजी से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी.

किरन से उस की सगाई 2 माह पूर्व हुई थी. तब से वे दोनों मिलतेजुलते रहे थे. उन के साथ घूमनेफिरने पर कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की थी. फिर आज अचानक परंपरा की दुहाई क्यों दी जाने लगी? सोमेश ने क्रोध में दोनों पास फाड़ दिए और घर जा पहुंचा.

‘‘क्या हुआ, नाटक देखने नहीं गए

तुम दोनों?’’ सोमेश को देखते ही उस की मां ने पूछा.

‘‘नहीं, उन के घर की परंपरा नहीं है यह.’’

‘‘कौन सी परंपरा की बात कर रहा है तू?’’

‘‘यही कि विवाहपूर्व उन की बेटी अपने मंगेतर के साथ घूमेफिरे.’’

‘‘किस ने कहा तुम से यह सब?’’

‘‘किरन की मम्मी ने.’’

‘‘पर तुम दोनों तो कई बार साथ घूमने

गए हो.’’

‘‘परंपराएं बदलती रहती हैं न मां.’’

‘‘बहुत देखे हैं परंपराओं की दुहाई देने वाले. उन्हें लगता होगा जैसे हम कुछ जानते ही नहीं. जबकि सारा शहर जानता है कि किरन की बड़ी बहन ने घर से भाग कर शादी कर ली थी. तुम ने किरन को पसंद कर लिया, नहीं तो ऐसे घर की लड़की से विवाह कौन करता.’’

‘‘छोड़ो न मां, हमें उस की बहन से क्या लेनादेना. वैसे मुझे ही क्यों, किरन तो आप को भी बहुत भा गई है,’’ कह कर सोमेश हंसा.

‘‘यह हंसने की बात नहीं है, सोमू. मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है. नहीं तो इस तरह के व्यवहार का क्या अर्थ है? किरन से साफ पूछ ले. कोई और तो नहीं है उस के मन में?’’

‘‘मां, दोष किरन का नहीं है. वह तो मेरे साथ आने को तैयार थी. पर उस की मम्मी

के व्यवहार से मुझे बहुत निराशा हुई. उन से मुझे ऐसी आशा नहीं थी,’’ सोमेश उदास स्वर में बोला.

‘‘समझ क्या रखा है इन लोगों ने. जैसे चाहेंगे वैसे व्यवहार करेंगे?’’ बेटे की उदासी देख कर रीनाजी स्वयं पर नियंत्रण खो बैठीं.

‘‘शांति मां, शांति. पता तो चलने दो कि माजरा क्या है.’’

‘‘कब तक शांति बनाए रखें हम. हमारा कुछ मानसम्मान है या नहीं. मुझे तो लगता है कि हमें इस संबंध को तोड़ देना चाहिए. तभी इन लोगों की अक्ल ठिकाने आएगी.’’

‘‘ठीक है मां. पापा को आने दो. उन से विचार किए बिना हम कोई निर्णय भला कैसे ले सकते हैं,’’ सोमेश ने मां को शांत करने का प्रयत्न किया.

‘‘वे तो अगले सप्ताह ही लौटेंगे. आज ही फोन आया था. वे घर में रहते ही कब हैं,’’ रीना ने अपना पुराना राग अलापा.

‘‘क्या करें मां, पापा की नौकरी ही ऐसी है,’’ सोमेश ने कंधे उचका दिए थे और रीनाजी चुप रह गईं.

अगले दिन सोमेश अपने औफिस पहुंचा ही  था कि किरन का फोन आया.

‘‘कहो, इस नाचीज की याद कैसे आ गई?’’ सोमेश हंसा.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है. यहां मेरी जान पर बनी है,’’ किरन रोंआसी हो उठी.

‘‘कल मेरा घोर अपमान करने के बाद अब तुम्हारी जान को क्या हुआ?’’ सोमेश ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘इसीलिए तो फोन किया है तुम्हें. अभी गेलार्ड चले आओ. बहुत जरूरी बात करनी है,’’ किरन ने आग्रह किया.

‘‘मैं यहां काम करता हूं. तुम्हारी तरह कालेज में नहीं पढ़ता हूं कि कालेज छोड़ कर गेलार्ड में बैठा रहूं.’’

‘‘पता है, यह जताने की जरूरत नहीं है कि तुम बहुत व्यस्त हो और मुझे कोई काम नहीं है. बहुत जरूरी न होता तो मैं तुम्हें कभी फोन नहीं करती,’’ किरन का भीगा स्वर सुन कर चौंक गया सोमेश.

‘‘ठीक है, तुम वहीं प्रतीक्षा करो मैं

10 मिनट में वहां पहुंच रहा हूं.’’

सोमेश को देखते ही किरन फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ? कुछ बोलो तो सही,’’ सोमेश किरन को सांत्वना देते हुए बोला था.

‘‘मां ने मुझे आप से मिलने को मना

किया है.’’

‘‘यह तो मैं कल ही समझ गया था. पर उन्हें हुआ क्या है?’’

‘‘वे यह मंगनी तोड़नी चाहती हैं.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘पापा को कोई और पसंद आ गया है, कहते हैं कि मंगनी ही तो हुई है कौन सा विवाह हो गया है.’’

‘‘ऐसी क्या खूबी है उन महाशय में.’’

‘‘सरकारी नौकरी में हैं वे महाशय.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘पापा कहते हैं कि सरकारी नौकरी वाले की जड़ पाताल में होती है.’’

‘‘तो जाओ रहो न पाताल में, किस ने रोका है,’’ सोमेश हंसा.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है. यहां मेरी जान पर बनी है.’’

‘‘पहेलियां बुझाना छोड़ो और यह बताओ कि तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘मुझे लगा तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं क्या चाहती हूं. मैं तो किसी और से विवाह की बात सोच भी नहीं सकती,’’ किरन रोंआसी हो उठी.

‘‘फिर भला समस्या क्या है? अपने मम्मीपापा को बता दो कि और किसी के चक्कर में न पड़ें.’’

‘‘सब कुछ कह कर देख लिया पर वे कुछ सुनने को तैयार ही नहीं हैं. अब तो तुम ही कुछ करो तो बात बने.’’

‘‘फिर तो एक ही राह बची है. हम दोनों भाग कर शादी कर लेते हैं.’’

‘‘नहीं सोमेश, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी. दीदी ने ऐसा ही किया था. तब हम ने इतनी बदनामी और शर्म झेली थी कि आज वह सब याद कर के मन कांप उठता है.’’

‘‘पर हमारे सामने और कोई राह नहीं बची किरन.’’

‘‘सोचो सोमेश, कोई तो राह होगी. नहीं तो मैं जीतेजी मर जाऊंगी.’’

‘‘इतनी सी बात पर इस तरह निराश होना अच्छा नहीं लगता. मेरा विश्वास करो, हमें कोई अलग नहीं कर सकता. तुम बस इतना करो कि अपने इन प्रस्तावित भावी वर महोदय का नाम और पता मुझे ला कर दो.’’

‘‘यह कौन या कठिन कार्य है. जगन नाम है उस का. यहीं सैल्स टैक्स औफिस में कार्य करता है. तुम्हें दिखाने के लिए फोटो भी लाई हूं. किरन ने अपने पर्स में से फोटो निकाली.’’

‘‘अरे, यह तो स्कूल में मेरे साथ पढ़ता था. तब तो समझो काम बन गया. मैं आज ही जा कर इस से मिलता हूं. यह मेरी बात जरूर समझ जाएगा.’’

‘‘इतना आशावादी होना भी ठीक नहीं है. मेरी सहेली नीरा इन महाशय से मिल कर उन्हें सब कुछ बता चुकी है. पर वे तो अपनी ही बात पर अड़े रहे. कहने लगे कि सगाई ही तो हुई है, कौन सा विवाह हो गया है. अभी तो बेटी बाप के घर ही है.’’

‘‘बड़ा विचित्र प्राणी है यह, पर तुम चिंता मत करो. मैं इसे समझाऊंगा,’’ सोमेश ने आश्वासन दिया.

‘‘पता नहीं, अब तो मुझे किसी पर विश्वास ही नहीं रहा. मातापिता ही मेरी बात नहीं समझेंगे यह मैं ने कब सोचा था,’’ किरन सुबक उठी.

‘‘चिंता मत करो. कितनी भी बाधाएं क्यों न आएं हमारे विवाह को कोई रोक नहीं सकता,’’ सोमेश का दृढ़ स्वर सुन कर किरन कुछ आश्वस्त हुई.

समय मिलते ही सोमेश जगन से मिलने जा पहुंचा था.

‘‘पहचाना मुझे?’’ सोमेश बड़ी गर्मजोशी से जगन के गले मिलते हुए बोला.

‘‘तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. तुम तो हमारी क्लास के हीरो हुआ करते थे. कहो आजकल क्या कर रहे हो?’’ जगन अपने विशेष अंदाज में बोला.

‘‘एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करता हूं.’’

‘‘कितना कमा लेते हो.’’

‘‘20 लाख रुपए प्रति वर्ष का पैकेज है. तुम अपनी सुनाओ.’’

‘‘अपनी क्या सुनाऊं, मित्र. तुम्हारे 20 लाख रुपए मेरी कमाई के आगे कुछ नहीं हैं. यह फ्लैट मेरा ही है और ऐसे 3 और हैं. मुख्य बाजार में 3 दुकानें हैं. घर में कितना पैसा कहां पड़ा है, मैं स्वयं भी नहीं जानता,’’ जगन ने बड़ी शान से बताया. तभी नौकर ने सोमेश के सामने मिठाई, नमकीन, मेवा आदि सजा दिया.

‘‘साहब, चाय लेंगे या ठंडा?’’ उस ने प्रश्न किया.

‘‘ठंडा ले आओ. साहब चाय नहीं पीते,’’  उत्तर जगन ने दिया.

‘‘तुम्हें अब तक याद है?’’ सोमेश ने अचरज से उसे देखा.

‘‘मुझे सब भली प्रकार याद है. तुम लोग किस प्रकार मेरा उपहास करते थे, मैं तो यह भी नहीं भूला. दोष तुम लोगों का नहीं था. मैं था ही फिसड्डी, खेल में भी और पढ़ाई में भी. पर मौसम कुछ ऐसा बदला कि जीवन में वसंत

छा गई.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया, जो तुम मंत्रमुग्ध हुए जा रहे हो?’’

‘‘तुम तो मेरे बचपन के मित्र हो, तुम से क्या छिपाना. पापा ने जोड़तोड़ कर के मुझे सैल्स टैक्स औफिस में क्लर्क क्या लगवाया, मेरे लिए तो सुखसंपन्नता का द्वार ही खोल दिया. अब मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. पर अब भी मैं सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास करता हूं. क्या करूं दीवारों के भी कान होते हैं, इसलिए सावधान रहना पड़ता है.’’

‘‘तुम कुछ भी कहो पर ईमानदारी से जीवनयापन का अपना ही महत्त्व है,’’ सोमेश ने तर्क दिया.

‘‘अब मैं स्कूल का छात्र नहीं हूं सोमेश, कि तुम मुझे डांटडपट कर चुप करा दोगे. सत्य और ईमानदारी की बातें अब खोखली सी लगती हैं. मेरी भेंट तो किसी ईमानदार व्यक्ति से हुई नहीं आज तक. तुम्हें मिले तो मुझ से भी मिलवाना. जिस समाज में पैसा ही सब कुछ

हो, वहां इस तरह की बातें बड़ी हास्यास्पद लगती हैं.’’

‘‘छोड़ो यह सब, मैं तो एक जरूरी

काम से आया हूं,’’ सोमेश बहस को आगे बढ़ाने के मूड में नहीं था, इसलिए बात को बदलते हुए बोला.

‘‘कहो न, सैल्स टैक्स औफिस में किसी मित्र या संबंधी का केस फंस गया क्या? मेरी पहुंच बहुत ऊपर तक है.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो एक व्यक्तिगत काम से आया हूं.’’

‘‘कहो न, मुझ से जो बन पड़ेगा मैं करूंगा.’’

‘‘तुम कल एक लड़की देखने जा रहे

हो न?’’

‘‘देखने नहीं, मिलने जा रहा हूं. पहली बार कोई लड़की मुझे बहुत भा गई है.’’

‘‘मेरी बात तो सुनो पहले, अपनी राम कहानी बाद में सुनाना. उस लड़की से मेरा संबंध पक्का हो गया है, अत: तुम उस से मिलने का खयाल अपने दिमाग से निकाल दो.’’

‘‘यह आदेश है या प्रार्थना?’’

‘‘तुम जो भी चाहो समझने के लिए स्वतंत्र हो, पर तुम्हें मेरी यह बात माननी ही पड़ेगी.’’

‘‘तुम भी मेरी बात समझने की कोशिश करो मित्र. मेरा किरन के घर जाने का कार्यक्रम

तय हो चुका है. अब मना करूंगा तो बुरा लगेगा. क्यों न हम यह निर्णय कन्या के हाथों में ही छोड़ दें. स्वयंवर में वरमाला तो उसी के हाथ में होगी. है न,’’ जगन ने अपना पक्ष सामने रखा.

‘‘तो तुम मुझे चुनौती दे रहे हो? बहुत पछताओगे, बच्चू. तुम लाख प्रयत्न कर लो, किरन कभी तुम से विवाह करने को तैयार

नहीं होगी.’’

‘‘यह तो समय ही बताएगा,’’ जगन हंसा.

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करता हूं. जाओ मिल लो उस से पर तुम्हारे हाथ निराशा ही लगेगी,’’ सोमेश जगन से विदा लेते हुए उठ खड़ा हुआ.

ऊपर से शांत रहने का प्रयत्न करते हुए भी सोमेश मन ही मन तिलमिला उठा था. समझता क्या है अपने को. ऊपर की कमाई के बल पर इठला रहा है. किरन इसे कभी घास नहीं डालेगी.

सोमेश ने जगन से मिलने के

बाद किरन को फोन नहीं किया. वह व्यग्रता से किरन के फोन की प्रतीक्षा कर रहा था.

 

2 दिन बाद वह घर पहुंचा ही था कि किरन

का फोन आया, ‘‘समझ में नहीं आ रहा

कि तुम्हें कैसे बताऊं,’’ वह बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोली.

‘‘कह भी डालो, जो कहना चाहती हो.’’

‘‘क्या करूं, मातापिता की इच्छा के सामने झुकना ही पड़ा. मैं उन का दिल दुखाने का साहस नहीं जुटा सकी. आशा है, तुम मुझे क्षमा कर दोगे.’’

उत्तर में सोमेश ने क्या कहा था, अब

उसे याद नहीं है. पर उस घटना की टीस कई माह तक उस के मनमस्तिष्क पर छाई रही. भ्रष्टाचार का दानव उस के निजी जीवन को भी लील जाएगा, ऐसा तो उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था. कौन कहेगा कल तूफान गुजरा था यहां से.

कई साल बाद जब अनायास एक पार्टी में गहनों से लदीफदी किरन से मुलाकात हुई तो उस ने बताया कि उस दिन जगन कोई 4 लाख रुपयों का सैट ले कर आया था. जहां लड़के वाले दहेज मांगते हैं, वहां लड़का पहली मुलाकात में महंगा सैट देगा तो कौन सौफ्टवेयर इंजीनियर से शादी करेगा. किरन पार्टी की भीड़ में इठलाती हुई गुम हो गई.

Drama Story

Best Hindi Story: 16वें साल की कारगुजारियां

Best Hindi Story; कैफेकौफी डे में पहुंच कर सौम्या, नीतू और मिताली कौफी और स्नैक्स का और्डर दे कर आराम से बैठ गईं. नीतू ने सौम्या को टोका, ‘‘आज तेरा मूड कुछ खराब लग रहा है… शौपिंग भी तूने बुझे मन से की. पति से झगड़ा हुआ है क्या?’’

‘‘नहीं यार… छोड़, घर से निकल कर भी क्या घर के ही झमेलों में पड़े रहना? कोई और बात कर… मेरा मूड ठीक है.’’

‘‘ऐसा तो है नहीं कि तेरा खराब मूड हमें पता न चले. हमेशा खुश रहने वाली हमारी सहेली को क्या चिंता सता रही है, बता दे? मन हलका हो जाएगा,’’ मिताली बोली.

म्या ने फिर टालने की कोशिश की, लेकिन उस की दोनों सहेलियों ने पीछा नहीं छोड़ा. तीनों पक्की सहेलियां थीं. शौपिंग के बाद कौफी पीने आई थीं. तीनों अंधेरी की एक सोसायटी में रहती थीं. सौम्या ने उदास स्वर में कहा, ‘‘क्या बताऊं, निक्की के तौरतरीकों से परेशान हो गई हूं… हर समय फोन… हम लोगों से बात भी करेगी तो ध्यान फोन में ही रहेगा. पता नहीं क्या चक्कर है… सोएगी तो फोन को तकिए के पास रख कर सोएगी. 16 साल की हो गई है. चिंता लगी रहती है कि कहीं किसी लड़के के चक्कर में तो नहीं पड़ गई.’’

‘‘अरे, इस बात ने तो मेरी भी नींद उड़ाई हुई है… सोनू का भी यही हाल है. टोकती हूं तो कहता है कि चिल मौम, टेक इट इजी. मैं बड़ा हो गया हूं. बताओ, वह भी तो 16 साल का ही हुआ है. कैसे छोड़ दूं उस की चिंता. कितना समझाया… हर समय मैसेज में ध्यान रहेगा तो पढ़ेगा कब? पता नहीं क्या होगा इन बच्चों का?’’ नीतू बोली. तभी वेटर कौफी और स्नैक्स रख गया. कौफी का 1 घूंट पी कर नीतू मिताली से बोली, ‘‘हमारा तो 1-1 ही बच्चा है… तू तो पागल हो गई होगी 2 बच्चों की देखरेख करते… तेरी तानिया और यश भी तो इसी उम्र से गुजर रहे हैं.’’ मिताली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, यश 16वां साल पूरा करने वाला है. तानिया उस से 2 ही साल छोटी है.’’

‘‘दोनों पागल कर देते होंगे तुझे? मैं तो निक्की पर नजर रखतेरखते थक गई हूं. रात में कई बार उठ कर चैक करती हूं कि क्या कर रही है. पता नहीं इतनी रात तक क्या करती रहती है, कब सोती है. आजकल तो बच्चनजी की यह पंक्ति बारबार याद आती है कि कुछ अवगुन कर ही जाती है चढ़ती जवानी…’’ सौम्या ने कहा. नीतू ठंडी सांस लेते हुए बोली, ‘‘सोनू का तो फोन चैक भी नहीं कर सकती. लौक लगाए रखता है. देख लो, अभी 16-16 साल के ही हैं ये बच्चे और नाच नचा देते हैं मांबाप को.’’ मिताली के होंठों पर मुसकराहट देख कर नीतू ने कहा, ‘‘तू लगातार क्यों मुसकरा रही है? क्या तू परेशान नहीं होती?’’

‘‘परेशान? मैं? नहीं, बिलकुल नहीं.’’

‘‘क्या कह रही हो, मिताली?’’

‘‘हां, माई डियर फ्रैंड्स. मैं तो यश और तानिया के साथ मन ही मन 16वें साल में जी रही हूं.’’

‘‘मतलब?’’ दोनों एकसाथ चौंकी.

‘‘मतलब यह कि बच्चों के साथ फिर से जी उठी हूं मैं… मैं बच्चों की हरकतें देखती हूं तो मन ही मन 16वें साल की अपनी कारगुजारियां याद कर हंसती हूं.’’

सौम्या मुसकरा दी, ‘‘मिताली ठीक कह रही है. अब हम मांएं बन गई हैं तो हमारा सोचने का ढंग कितना बदल गया है. मां बनते ही हम अपनी साफसुथरे चरित्र वाली मां की छवि बनाने में लग जाती हैं.’’

मिताली हंसी, ‘‘मैं तो यह सोचती हूं कि मेरे पास तो आज के बच्चों जितनी सुविधाएं भी नहीं थीं, फिर भी उस उम्र का 1-1 पल का भरपूर लुत्फ उठाया.’’

‘‘तेरा कोई बौयफ्रैंड था?’’ सौम्या ने अचानक पूछा.

‘‘हां, था.’’

नीतू चहकते हुए बोली, ‘‘यार थोड़ा विस्तार से बता न.’’

‘‘ठीक है, हम तीनों उस उम्र की अपनीअपनी कारगुजारियां शेयर करती हैं और हां, ये बातें हम तीनों तक ही रहें.’’ थोड़ी देर रुक कर मिताली ने बताना शुरू किया, ‘‘मेरे सामने वाली आंटी का बेटा था. खूब आनाजाना था. मम्मी घर पर ही रहती थीं. जब वे बाहर जाती थीं तो मैं घर पर अकेली होती थी. बस उस समय के इंतजार में दिनरात बीता करते थे. वह भी अकेले मिलने का मौका देखता रहता था.’’ सौम्या ने बेताबी से पूछा, ‘‘बात कहां तक पहुंची थी?’’

‘‘वहां तक नहीं जहां तक तू सोच रही है,’’ मिताली ने प्यार से झिड़का.

‘‘मम्मी के घर से बाहर जाते ही एक लवलैटर वह पकड़ाता था और एक मैं. थोड़ी देर एकदूसरे को देखते थे और बस. उफ, जिस दिन मम्मी घर से बाहर नहीं जाती थीं वह पूरा दिन बेचैनी में बीतता था.’’

‘‘फिर क्या हुआ? शादी नहीं हुई उस से?’’ सौम्या ने पूछा.

मिताली हंसी, ‘‘नहीं, जब पापा ने मेरा विवाह तय किया तब वह पढ़ ही रहा था. मैं उस समय उदास तो हुई थी, लेकिन शादी के बाद अपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गई पर

बेटे यश के हावभाव, रंगढंग देख कर अपनी पुरानी बातें जरूर याद कर लेती हूं. फिर मुझे बच्चों पर गुस्सा नहीं आता. जानती हूं एक उम्र है जो सब के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है. बच्चों पर नजर तो रखती हूं, लेकिन उन की रातदिन जासूसी नहीं करती,’’ फिर नीतू से पूछा, ‘‘तेरा क्या हाल था?’’

‘‘सच बताऊं? तुम लोग हंसेंगी तो नहीं?’’

‘‘जल्दी बता… नहीं हंसेंगी,’’ सौम्या ने पूछा.

‘‘मुझे तो उस उम्र में बहुत मजा आया था. जब मैं स्कूल से साइकिल पर निकलती थी, स्कूल के बाहर ही एक लड़का मेरे इंतजार में रोज खड़ा रहता था. अपनी साइकिल पर मेरे पीछेपीछे हमारी गली तक आ कर मुड़ जाता था. कड़ाके की ठंड, घना कुहरा और मेरे इंतजार में खड़ा वह लड़का… आज भी कुहरे में उस का पीछेपीछे आना याद आ जाता है.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं. 2 महीनों तक साथसाथ आता रहा, फिर मुड़ जाता. मुझे बाद में पता चला उस का लड़कियों को पटाने का यही ढंग था. मैं अकेली नहीं थी जिस के पीछे वह साइकिल पर आता था. तब मैं ने उसे देखना एकदम छोड़ दिया. कभी रास्ता बदल लेती, कभी किसी सहेली के साथ आती. धीरेधीरे उस ने आना छोड़ दिया. मजेदार बात यह है कि फिर मुझे उस का एक दोस्त अच्छा लगने लगा, जिस के साथ मैं ने कई दिनों तक आंखमिचौली खेली. उस के बाद भी मेरा एक और गंभीर प्रेमप्रसंग चला.’’

सौम्या हंस पड़ी, ‘‘मतलब 16वां साल बड़ी हलचल मचा कर गया… 1 साल में 3 अफेयर.’’

‘‘हां यार, तीसरा कुछ दिन टिका, फिर मेरी संजीव से शादी हो गई,’’ और फिर तीनों हंस दीं. कौफी और स्नैक्स खत्म हो गए थे. तीनों का उठने का मन नहीं हो रहा था. फिर कौफी का और्डर दे दिया.

मिताली ने कहा, ‘‘सौम्या, चल अब तेरा नंबर है.’’

सौम्या ने ठंडी सांस ली और फिर बोलना शुरू किया, ‘‘अब सोच रही हूं कि बहुत कुछ किया है उस उम्र में शायद इसीलिए निक्की पर ज्यादा पहरे लगाती हूं मैं… आकर्षण था, प्यार था, जो भी था, मैं भी उस उम्र के एहसास से बच नहीं पाई थी. हां, प्यार ही तो समझी थी मैं उसे, जो मेरे और उस के बीच था. काफी बड़ा था  से. मेरी एक सहेली का रिश्तेदार था. जब भी आता मैं बहाने से उस के घर जाती. वह भी समझ गया था. बातें होने लगीं. मैं उस से शादी के सपने देखती, मेरी सहेली को अंदाजा नहीं हुआ. कभीकभी बाहर अकेले आतेजाते… बातें होने लगीं. संस्कारों की दीवार, मर्यादा की लक्ष्मणरेखा सब कुछ सलामत था. पर कुछ था जो बदल गया था और वह अच्छा लगता था. लेकिन जब एक दिन सहेली ने बातोंबातों में बताया कि वह शादीशुदा है, तो मैं घर आ कर खूब रोई थी. बड़ी मुश्किल से संभाला था खुद को,’’ फिर सौम्या कुछ पल चुप रही और फिर जोर से हंस पड़ी, ‘‘फिर मुझे 1 महीने बाद ही कोई और अच्छा लगने लगा.’’ वेटर खाली कप उठाने आ गया था. सौम्या ने बिल मंगवाया.

मिताली ने कहा, ‘‘देखा, इसीलिए मुझे अपने बच्चों पर गुस्सा नहीं आता. हम सब इस उम्र से गुजरी हैं. इस उम्र के उन के एहसास, शोखियों, चंचलता का आनंद उठाओ, उन्हें बस अच्छाबुरा समझा कर चैन से जीने दो. आजकल के बच्चे समझदार हैं, जब भी उन पर गुस्सा आए अपनी यादों में खो कर देखो, बिलकुल गुस्सा नहीं आएगा. एक बार नौकरी, घरगृहस्थी के झंझट शुरू हो गए तो जीवन भर वही चलते रहेंगे, बाद में उम्र के साथ दुनिया कब आप को बदल देती है, पता भी नहीं चलता. इस उम्र में बच्चे दूसरी दुनिया में ही जीते हैं. उसी दुनिया में जिस में कभी हम भी जीए हैं, उन्हें इस समय संसार के दांवपेचों की न तो कोई जानकारी होती है और न ही परवाह. उन्हें चैन से जीने दें और खुद भी चैन से जीएं, यही ठीक है.’’

‘‘हां, ठीक कहती हो मिताली,’’ नीतू ने कह कर पर्स निकाला.

वेटर बिल ले आया था. तीनों ने हमेशा की तरह बिल शेयर किया. फिर उठ गईं. बाहर आ कर सौम्या अपनी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गई. मिताली और नीतू भी बैठ गईं. तीनों चुप थीं. शायद अभी तक अपनेअपने 16वें साल की कुछ कही कुछ अनकही कारगुजारियों में खोई हुई थीं.

Best Hindi Story

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें