Twins: सिमरन के 2 जुड़वा बेटे हैं। 1 मिनट के अंतर पर पैदा हुए दोनों बेटों में एक की ग्रोथ दूसरे से कम है, मसलन ढाई साल का एक बच्चा पूरी बातें कर लेता है, जबकि दूसरा बीचबीच में कभी 1-1 शब्द बोलता है. इस से बच्चों के पेरैंट्स हमेशा चिंता में रहते हैं कि आखिर दोनों की ग्रोथ एकजैसी होगी या नहीं? क्या डाक्टर से परामर्श ले लेनी चाहिए या नहीं? इस पर वे सोचतेसोचते डाक्टर के पास गए, जहां उन्हें स्पीच थेरैपी करने के बारे में कहा गया, ताकि उस के बोलने की आदत बने. अब दूसरा बच्चा भी कुछ बोलने और समझने लगा है, जो तकरीबन 1 साल बाद हो पाया.

असल में जुड़वा बच्चों के विकास में अंतर हो सकता है और यह गर्भावस्था के दौरान ही शुरू हो सकता है. इस के कारण निम्न हैं :

 

  • प्रत्येक जुड़वा बच्चे को गर्भ में रक्त और पोषक तत्त्वों की अलगअलग मात्रा मिलती है, भले ही वे आनुवंशिक रूप से समान हों. यह विकासात्मक भिन्नता, जिस का बाद में स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है, जन्म के समय के वजन में अंतर और जीवनभर अन्य विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है.

 

  • ऐसा देखा गया है कि गर्भाशय में प्रत्येक जुड़वा बच्चे को रक्त और पोषण की अलगअलग मात्रा मिल सकती है, जो जुड़वा बच्चा कम पोषक तत्त्व प्राप्त करता है, उसे विकास संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

 

  • कुछ जुड़वा गर्भधारण में, प्लेसेंटा (गर्भनाल) दोनों जुड़वा भ्रूणों में असमान रूप से वितरित होता है, जिस से एक को अधिक और दूसरे को कम पोषण मिलता है.

आईवीएफ से जुड़वा बच्चे

इस के अलावा आजकल आईवीएफ से भी बच्चे जुड़वा या ट्रिप्लेट होते हैं, जिस का प्रभाव इन बच्चों के विकास पर हो सकता है. दिल्ली एनसीआर के नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी की फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट डा.अस्वति नायर कहती हैं कि जुड़वा और ट्रिप्लेट बच्चे आईवीएफ में हो सकते हैं, क्योंकि कभीकभी एक ही ऐंब्रियो 2 हिस्सों में बंट कर जुड़वा बना देता है, लेकिन यह बहुत कम होता है. वे कहती हैं कि एक ही बच्चे वाली प्रैगनैंसी सब से सुरक्षित मानी जाती है. जुड़वा में रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है और ट्रिपलेट्स में जटिलताओं का खतरा काफी ज्यादा होता है.

क्लिनिकली देखा गया है कि सिंगल ऐंब्रियो ट्रांसफर से सब से अच्छे नतीजे मिलते हैं। जुड़वा में जोखिम मध्यम रहता है और ट्रिपलेट्स में जटिलताओं का खतरा काफी ज्यादा होता है. अगर एक ऐंब्रियो 2 में बंट कर जुड़वा बनता है, मसलन (मोनोएम्नियोटिक ट्विंस), तो इस में विशेष तरह के रिस्क हो सकते हैं, जैसे ट्विन टू ट्विन ट्रांसफ्यूजन सिंड्रोम यानि एक बच्चे में अधिक ग्रोथ का रुकना और क्रोमोसोमल गड़बड़ी का खतरा, जो आगे जा कर विकास को प्रभावित कर सकते हैं.

आईवीएफ और नैचुरल बच्चों के विकास में फर्क 

डाक्टर आगे कहती हैं कि आईवीएफ और नैचुरल प्रैगनैंसी से जन्मे बच्चों में अंतर बहुत ही मामूली और लगभग न के बराबर होता है. फर्क सिर्फ गर्भधारण की प्रक्रिया का है. एक बार जब स्वस्थ ऐंब्रियो गर्भाशय में लग जाता है और गर्भावस्था सामान्यरूप से चलती है, तो बच्चों की ग्रोथ, विकास और माइलस्टोन नैचुरल बच्चों जैसे ही रहते हैं.

आनुवंशिक रूप से समान जुड़वा

बच्चों के भी अलगअलग रूपरंग और व्यक्तित्व हो सकते हैं, क्योंकि पर्यावरण और रैंडम संयोग जीन की अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं. कम पोषक तत्त्व प्राप्त करने वाले जुड़वा बच्चे का जन्म वजन दूसरे की तुलना में कम हो सकता है.

इस के अलावा भले ही जुड़वा बच्चे आनुवंशिक रूप से बहुत करीब हों, हर बच्चा अपने अनूठे तरीके से बढ़ता है, इसलिए वे विकासात्मक रूप से धीमा हो सकते हैं.

साथ ही गर्भ में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण कुछ जुड़वां बच्चों को जीवनभर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

क्या करें

जुड़वा बच्चों को 1-1 करके पेरैंट्स को समय देना उन के बीच व्यक्तिगत जुड़ाव को बढ़ावा दे सकता है, जो उन के भाषा विकास और अन्य क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण है.

इस के अलावा जुड़वा बच्चों के विकास पर लगातार नजर रखने के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच महत्त्वपूर्ण है.

इस प्रकार आप के बच्चे में आए किसी भी कमी को नजरअंदाज न करें, किसी से छिपाए नहीं, झाड़फूंक या पूजापाठ का सहारा न लें, क्योंकि समय रहते इलाज करने पर उस की इस कमी को दूर किया जा सकता है और वह एक स्वस्थ और विकसित बच्चा हो सकता है.

Twins

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...