‘‘किरन, तुम अंदर जाओ,’’ बेलाजी किरन को अपने मंगेतर सोमेश के साथ जाने को तैयार खड़ा देख कर बोलीं.

किरन सकपका गई पर मां का आदेश टाल नहीं सकी. सोमेश की समझ में भी कुछ नहीं आया पर कुछ उलटासीधा बोल कर बेलाजी को नाराज नहीं करना चाहता था वह.

‘‘मम्मी, रवींद्रालय में एक नाटक का मंचन हो रहा है. बड़ी कठिनाई से 2 पास मिले हैं. आप आज्ञा दें तो हम दोनों देख आएं,’’ वह अपने स्वर को भरसक नम्र बनाते हुए बोला.

‘‘देखो बेटे, हम बेहद परंपरावादी लोग हैं. विवाह से पहले हमारी बेटी इस तरह खुलेआम घूमेफिरे, यह हमारे समाज में पसंद नहीं किया जाता. किरन के पापा बहुत नाराज हो रहे थे,’’ बेलाजी कुछ ऐसे अंदाज में बोलीं मानो आगे कुछ सुनने को तैयार ही न हों.

‘‘मम्मी, बस आज अनुमति दे दीजिए. इस के बाद विवाह होने तक मैं किरन को कहीं नहीं ले जाऊंगा,’’ सोमेश ने अनुनय किया.

‘‘कहा न बेटे, मैं किरन के पापा की

इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकती,’’ वे बेरुखी से बोलीं.

सोमेश दांत पीसते हुए बाहर निकल गया. बड़ी कठिनाई से उस ने नाटक के लिए पास का प्रबंध किया था. उसे बेलाजी से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी.

किरन से उस की सगाई 2 माह पूर्व हुई थी. तब से वे दोनों मिलतेजुलते रहे थे. उन के साथ घूमनेफिरने पर कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की थी. फिर आज अचानक परंपरा की दुहाई क्यों दी जाने लगी? सोमेश ने क्रोध में दोनों पास फाड़ दिए और घर जा पहुंचा.

‘‘क्या हुआ, नाटक देखने नहीं गए

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...