अग्निपरीक्षा: क्या कामयाब हो पाया रंजीत

रंजीत 9 बजे कालेज के गेट के नजदीक बैठ जाता. कालेज परिसर में जाने के लिए विद्यार्थियों को पहचान पत्र दिखाना होता है, जो उस के पास नहीं था. जब वह कालेज में पढ़ता ही नहीं है तो उस का पहचान पत्र कैसे बनता? सारा दिन कालेज के आसपास लड़कियों के आगेपीछे घूमता.

रंजीत के 2 चेलेचपाटे भी उस के साथ रहते. रंजीत के मातापिता अमीर थे, जिस कारण उसे मुंह मांगा जेब खर्च मिल जाता था, जिसे वह रोब डालने के लिए अपने मित्रों पर खर्च करता था. कालेज के कुछ लड़केलड़कियां भी मौजमस्ती के लिए उस के दल में शामिल हो गए. बाइक पर सवार हो कर सारा दिन मटरगश्ती करता रंजीत एकदम स्वतंत्रत जीवन व्यतीत कर रहा था.

एक दिन रंजीत कालेज के बाहर बस स्टौप पर बैठा लड़कियों को देख रहा था. बस से उतरती एक लड़की पर उस की नजर अटक गई.

‘‘गुरू कहां गुम हो गए हो. एकटक कालेज के गेट को देखे जा रहे हो?’’

‘‘देख वह लड़की कालेज के अंदर गई है. गजब की सुंदर है. जरा उस का बदन तो देख, उस के आगे माशाअल्लाह अप्सरा भी पानी भरेगी.’’

‘‘गुरू कौन से वाली?’’ कालेज के गेट पर खड़ी लड़कियों के समूह को देख कर उस के चमचे ने पूछा.

‘‘वह लड़की सीधे कालेज के अंदर चली गई है. इस समूह में नहीं है. आज पहली बार यहां देखा है. आज कहीं नहीं जाना है जब तक वह कालेज से बाहर नहीं निकलती है. आज गेट पर ही धरना देना है.’’

‘‘जो हुक्म गुरू.’’

कुछ देर बाद कालेज में पढ़ाई से मन चुराने वाले लड़केलड़कियों का झुंड भी रंजीत के इर्दगिर्द जमा हो गया और रंजीत से बर्गर खाने की फरमाइश होने लगी.

‘‘देखो, बर्गर पार्टी तब होगी जब मुझे वह दिखेगी.’’

‘‘कौन?’’ एकसाथ कई स्वर बोले.

‘‘शायद मैं उसे पहली बार देख रहा हूं. तुम्हारी मदद चाहिए… उस से दोस्ती करनी है.’’

‘‘ठीक है गुरू. हम सब तुम्हारे साथ हैं,’’ सब कालेज के गेट की तरफ देखने लगे.

दोपहर के 2 बजे वह लड़की कालेज के गेट पर नजर आई.

‘‘देखो, उस लड़की को देखो. उस का नाम बताओ.’’

‘‘गुरू इस का नाम दिशा है और यह दूसरे वर्ष की छात्रा है.’’

‘‘पुरानी छात्रा है… परंतु मैं ने इसे पहली बार देखा है.’’

‘‘दिशा बहुत पढ़ाकू लड़की है. यह सुबह 8 बजे आ जाती है. आज थोड़ी देर से आई है इस कारण तुम्हें पहली बार नजर आई.’’

‘‘मुझे दिशा से मिलवा दो… दोस्ती करवा दो.’’

‘‘यह मुश्किल है. वह पढ़ने वाली लड़की है. हमारी तरह मौजमस्ती करने वाली नहीं है. तुम्हारे इतने मित्र बन चुके हैं… किसी के साथ

भी मौजमस्ती कर लो… दिशा तो हमें भी डांट देती है.’’

‘‘उस की अकड़ तो तोड़नी ही होगी. वह मेरे दिल में उतर चुकी है. उस की जगह कोई और लड़की नहीं ले सकती… मेरा काम तो तुम्हें करना ही होगा.’’

2 दिन बाद रंजीत के समूह की 2 लड़कियों ने उस से साफ कह दिया कि दिशा की उस में कोईर् रुचि नहीं है. वह सिर्फ पढ़ने वाले लड़कों से ही दोस्ती रखना चाहती है. वह रंजीत को गुंडा, मवाली समझती है जो सारा दिन कालेज के इर्दगिर्द आवारागर्दी करता रहता है. दिशा ने उन्हें भी रंजीत से दूर रहने की सलाह दी है.

यह सुन कर रंजीत आगबबूला हो गया कि ये दोनों लड़कियां उस के पैसों से मौजमस्ती

कर रही हैं और साथ दिशा का दे रही हैं. जब समूह की लड़कियों ने रंजीत का साथ नहीं दिया तब रंजीत ने एक दिन कालेज के गेट पर दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और अपने रास्ते चल दी.

रंजीत ने हौसला नहीं छोड़ा. अगले दिन दोबारा दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने फिर प्रस्ताव ठुकरा दिया. 20 बार के असफल प्रयास के बाद एक दिन रंजीत ने दिशा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ दिशा ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

‘‘मैं इतने दिनों से सिर्फ दोस्ती का हाथ मांग रहा हूं और तुम नखरे दिखा रही हो?’’

‘‘मैं तुम जैसे आवारा, गुंडे से कोई दोस्ती नहीं करना चाहती हूं. मेरा हाथ छोड़ो.’’

दिशा और रंजीत के बीच बहस देख कर कालेज के बहुत छात्रछात्राएं एकत्रित हो गए. कुछ प्रोफैसर भी बीचबचाव करने लगे. भीड़ देख कर रंजीत ने दिशा का हाथ छोड़ दिया.

‘‘खटाक… खटाक,’’ हाथ छूटते ही दिशा ने खींच कर 2 करारे थप्पड़ रंजीत के गाल पर जड़ दिए और फिर तेजी से अपने घर चल दी.

प्रोफैसरों ने रंजीत को चेतावनी दी कि आइंदा कालेज परिसर के पास नजर नहीं आना चाहिए वरना पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी जाएगी.

लुटेपिटे जुआरी की तरह रंजीत घर लौट आया. उस दिन के बाद कालेज के छात्रों ने उस का समूह छोड़ दिया. अब रंजीत अकेला अपने 2 चेलों के संग कालेज से थोड़ी दूर चहलकदमी करता रहता. अमीर परिवार के बिगड़े लड़के रंजीत ने इस किस्से को अपनी तौहीन समझा और फिर बदले की भावना से जलने लगा. कालेज के छात्रों से उस का संपर्क छूट गया. कालेज के गेट पर रंजीत पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी.

रंजीत के मन में दिशा रचबस गई थी. उस के प्रेम और मित्रता का प्रस्ताव दिशा ने ठुकरा दिया था और सब के सामने 2 थप्पड़ भी रसीद कर दिए थे. बदले की भावना ने उस के विवेक को जला दिया.

रंजीत ने एक दिन अपने चेलों को अपनी योजना बताई, ‘‘कान खोल कर सुनो… उस लौंडिया को उठाना है.’’

रंजीत की योजना को सुन कर दोनों चेले सन्न हो गए. बड़ी मुश्किल से गला साफ कर के कहने लगे, ‘‘गुरू, आप क्या कह रहे हो?’’

‘‘उसे जबरदस्ती उठाना है?’’

‘‘बहुत खतरनाक योजना है. तुम पहले से ही कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों की नजरों में हो, सीधेसीधे समझो गुरू कि दिशा को उठाने

का मतलब है जेल. सब पुलिस को तुम्हारा नाम बता देंगे.’’

‘‘मुझे कोईर् फर्क नहीं पड़ता… उसे कहीं का नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘गुरू बात को समझो… इस योजना को छोड़ो. कुछ और सोचो.’’

‘‘तुम मेरा साथ दोगे?’’

‘‘नहीं,’’ दोनों कह कर भाग गए.

‘‘नामर्द हैं दोनों. फालतू में दोनों को खिलातापिलाता रहा… किसी काम नहीं आए. कोई बात नहीं. इस काम को मैं अकेला कर लूंगा.’’

अब रंजीत अकेला ही दिशा को उठाने की योजना बनाने लगा. उस ने अपना

हुलिया बदला, दाढ़ी बढ़ा ली और दिशा का पीछा कर के उस की दिनचर्या की पूरी खबर लेने के बाद उस के अपहरण की योजना बनाई.

दिशा जिस जगह रहती थी वह दोपहर के समय थोड़ी सुनसान रहती थी. कालेज से घर आने की बस पकड़ी. बस स्टौप से पैदल घर जा रही थी. रंजीत आज कार में था. रंजीत ने कार उस के आगे अचानक रोकी. दिशा घबरा गई. दिशा साइड से कार के पार जाने की कोशिश करने लगी. रंजीत ने फुरती से क्लोरोफार्म में डूबा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, रंजीत ने कार का पिछला दरवाजा खोल कर उसे कार के अंदर धकेला.

क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा होने के कारण वह कोई प्रतिरोध नहीं कर पाई. कार की पिछली सीट पर बेसुध पड़ गई. रंजीत ने कार को वहां से तेजी से भगाया.

शहर से दूर अपने पैतृक गांव के मकान के पास रंजीत ने कार रोकी. गांव में एक बड़ा मकान था, जिस की देखभाल चमन करता था. चमन अपनी पत्नी चंपा और 2 बच्चों के संग मकान के पीछे वाले हिस्से के एक कमरे में रहता था. चमन बहुत भरोसेमंद और पुराना नौकर था. मकान एक तरह से छोटा फार्महाउस था.

अपने पैतृक मकान पहुंच कर रंजीत ने हौर्न बजाया, तो चमन ने मकान का गेट खोला. रंजीत ने कार को मकान के अंदर पार्क किया और फिर चमन की मदद से दिशा को कमरे में लिटाया. दिशा अभी भी बेसुध थी. रंजीत ने कमरे को बाहर से बंद कर दिया और चमन को सख्त हिदायत दी कि दिशा को मकान से बाहर नहीं जाने देना है और फिर दूसरे कमरे में जा कर आराम करने लगा.

रंजीत कमरे में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ आगे की रणनीति बना रहा था.

दिशा को कमरे में बंद करता देख चंपा स्थिति को भांप चमन से पूछने लगी, ‘‘यह लड़की कौन है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘लड़की बेहोश लग रही है.’’

‘‘हां, लग तो बेहोश ही रही है.’’

‘‘सुनो मुझे हालात सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘हां चंपा, कोई बात तो अवश्य है… खास नजर रखने को कहा है कि लड़की मकान से बाहर नहीं जाने पाए.’’

‘‘कुछ उलटासीधा तो नहीं कर दिया इस लड़की के साथ?’’

‘‘लगता तो नहीं है… अभी तक तो लड़की के कपड़े सहीसलामत हैं… लड़की होश में आए तब पता चले.’’

चमन के साथ बात करने के बाद चंपा कमरे के बाहर बैठी सब्जी काटती रही.

फिर साफसफाई में लग गई. लेकिन दिशा को क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा दी गई थी, जिस कारण वह शाम तक बेसुध रही.

थोड़ी देर बाद रंजीत कमरे से बाहर आया और चंपा को कमरे के बाहर डेरा जमाए देख कर बोला, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? अपने कमरे में जाओ… यहां मैं हूं… कुछ चाहिए होगा तब मैं आवाज दे दूंगा.’’

‘‘साहबजी, यह लड़की कौन है और कमरे को बाहर से बंद क्यों कर दिया है?’’

चंपा के इस प्रश्न से रंजीत का माथा भन्ना उठा और फिर गुस्से से चंपा पर बरस पड़ा, ‘‘देखो, तुम अपने काम से मतलब रखो… जिस काम के लिए तुम्हें नौकरी पर रखा है वह करो. मेरे से उलझने की जरूरत नहीं है.’’

रंजीत को गुस्से में देख कर चंपा खामोश रही. चमन उसे अपने कमरे में ले गया.

‘‘चंपा, तुम साहब से क्यों उलझ रही हो?’’ चमन बोला.

‘‘सुनो, यह गड़बड़ मामला है…मुझे पक्का शक है कि इस लड़की को जबरदस्ती उठा कर लाया गया है. लड़की बेहोश है… मुझे साहबजी के लक्षण सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘चंपा हम नौकर हैं. हमें अपने दायरे में रह कर साहब लोगों से बात करनी चाहिए.’’

‘‘फिर भी एक लड़की की इज्जत का सवाल है. अगर इस लड़की के साथ साहब ने जबरदस्ती की तब मैं सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘अगर वह लड़की अपनी मरजी से आई हो तब?’’

‘‘वह लड़की अपनी मरजी से नहीं आई है. अगर अपनी मरजी से आई होती तब वह बेहोश नहीं होती और कमरा भी बाहर से बंद नहीं होता. वह साहब के साथ हंसबोल रही होती.’’

चंपा की बात सुन कर चमन चुप हो गया कि उस की बात में वजन है. लेकिन वह एक नौकर है. उस के हाथ बंधे हुए हैं. वह मालिक के विरुद्ध नहीं जा सकता.

शाम के समय चमन रंजीत से रात के खाने का पूछने लगा, ‘‘साहबजी, रात को खाने में क्या लेंगे?’’

‘‘दालचावल और रोटी बना देना.’’

रात 8 बजे चमन रंजीत को खाना देने गया तो पूछा, ‘‘साहबजी, वह लड़की क्या खाएगी?’’

‘‘तुम मियांबीवी को उस की बहुत चिंता सता रही है… जब मैं ने कह दिया है कि उसे मैं देख लूंगा…’’

रंजीत ने अभी अपना वाक्य पूरा नहीं किया था कि साथ वाले कमरे से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दिशा को होश आ गया था. स्वयं को अनजान जगह देख कर परेशान हो गई. कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था. रंजीत ने तुरंत गोली की रफ्तार से उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘कौन?’’ दिशा के इस प्रश्न पर रंजीत की क्रूर हंसी गूंज उठी.

रंजीत की हंसी सुन कर चंपा भी दौड़ी चली आई.

‘‘दिशा मुझे पहचाना नहीं… अपने रंजीत को नहीं पहचाना?’’

रंजीत नाम सुन कर दिशा चौंक गई. 5 घंटे बाद वह होश में आईर् थी. रंजीत को सामने देख वह एकदम भयभीत हो उठी. उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं. रंजीत ने दिशा को अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूमने के लिए होंठ आगे किए कि तभी चुंबन लेने से पहले एक हाथ उस के होंठों और दिशा के होंठों के बीच आ गया.

उधर दिशा जब घर नहीं आई तब उस के परिवार वाले चिंतित हो गए. दिशा के मित्रों से संपर्क किया. सभी मित्रों ने एक ही बात बताई कि दिशा तो दोपहर को ही कालेज से घर रवाना हो गईर् थी. दिशा का परिवार सकते में आ गया. दिशा कहां जा सकती है…वह तो कालेज से सीधी घर आती है…अब तो रात के 9 बज रहे हैं. अंत में थाने जाना ही उचित समझा.

रंजीत के होंठों और दिशा के होंठों के बीच चंपा का हाथ था, ‘‘साहबजी, जुल्म मत कीजिए.’’

‘‘तू आगे से हट जा.’’

‘‘जबरदस्ती नहीं साहबजी, यदि लड़की हां कह देती है

तब मैं यहां से चली जाऊंगी,’’ चंपा दृढ़ता से दिशा को पकड़ कर अपने पीछे कर सुरक्षा कवच बन गई.

दिशा की गुमशुदा होने की रिपोर्ट पुलिस ने लिख ली. लेकिन रात के समय कोई काररवाई नहीं हुई. थाने में तैनात पुलिस अधिकारी ने कहा कि यदि कोई फोन आए तब तुरंत सूचित करें.

रंजीत की आंखों में खून उतर आया, ‘‘दिशा के आगे से हट जा, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

‘‘साहबजी, हम ने आप का नमक खाया है, इसलिए आप से विनती करती हूं कि दिशा को छोड़ दो.’’

‘‘तू ऐसे नहीं मानेगी,’’ रंजीत ने चंपा को पकड़ कर दिशा के आगे से हटाने की कोशिश की.

कोशिश को असफल बनाने के लिए चंपा ने दिशा को मजबूती से पकड़ लिया. रंजीत चंपा से उलझा तब चंपा ने अपनी हैसियत को भूल कर रंजीत को एक लात जमा दी. हालांकि चंपा दुबलीपतली छोटे कद की महिला थी, लेकिन उस की लात का प्रहार जोर से लगा और रंजीत का संतुलन बिगड़ गया. असंतुलन के कारण रंजीत लड़खड़ा गया.  लड़खड़ाते रंजीत को चमन ने संभाला.

‘‘साहबजी, आप दिशा को छोड़ दीजिए. आप को यह काम शोभा नहीं देता. हम 20 सालों से आप के नौकर हैं, लेकिन ऐसा काम बड़े साहबजी ने भी कभी नहीं किया.’’

दिशा के पक्ष में चमन और चंपा को देख रंजीत पीछे हट गया और फिर अपने कमरे में चला गया. जाते हुए चमन और चंपा को धमका गया, ‘‘दिशा को इस मकान से भागने नहीं देना है वरना तुम दोनों को भून दूंगा.’’

पूरी रात दिशा का परिवार सो नहीं सका. कालेज की सहेलियों के घर जा कर जानकारी जुटाते रहे. जब दोपहर को रोज की तरह कालेज से घर के लिए निकली तब वह कहां जा सकती है. इस प्रश्न का कोईर् उत्तर नहीं था. दिशा का फोन भी बंद या कवरेज क्षेत्र से बाहर आ रहा था, इसलिए संपर्क नहीं हो पा रहा था.

‘‘दिशा कुछ खा लो, दालचावल बने हैं.’’

‘‘नहीं खाया जाएगा… मुझे बहुत डर लग रहा है,’’ दिशा बुरी तरह डरी हुई थी.

डरी दिशा को चंपा अपने कमरे में ले गई. रंजीत चंपा और चमन के दिशा के बीच आने पर क्षुब्ध था, लेकिन बेबस था.

दिशा की एक सहेली ने रंजीत का जिक्र किया कि वह उसे परेशान करता था, लेकिन उस के पास रंजीत का कोईर् नंबर या घर का पता नहीं है.

पूरी रात दिशा भयभीत रही. चंपा और चमन दिशा को दिलासा देते रहे, लेकिन दिशा आशंकित रही. अगली सुबह दिशा का परिवार कालेज पहुंचा. कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों से रंजीत के विषय में मालूम हुआ. रंजीत के समूह से जुड़े छात्रों से रंजीत के 2 चेलों का पता चला, जिन्होंने रंजीत का फोन नंबर और घर का पता दे दिया.

दिशा के गायब होने पर कालेज के छात्र एकत्रित हो कर मार्च निकाल कर पुलिस स्टेशन तक गए. छात्रों का समूह देख कर पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. पुलिस के जांच दल ने पहले बस स्टौप से दिशा के घर तक जांच आरंभ की. दिशा का मोबाइल फोन गली की नाली में गिरा मिला.

जब रंजीत ने कार दिशा के आगे अचानक रोकी थी और क्लोरोफार्म लगा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा तब फोन दिशा के हाथ से छूट कर नाली में गिर गया था और पानी में गिरने के कारण खराब हो गया, जिस कारण दिशा से संपर्क नहीं हो सका. पुलिस दल फिर रंजीत के घर पहुंचा.

अमीर मांबाप को नहीं मालूम था कि रंजीत कल से घर नहीं आया. पुलिस को देख कर रंजीत का परिवार सकते में आ गया कि रंजीत कहां है और घर पर एक कार भी नहीं है. कोठी में 4 कारें हैं. उन में से एक कार नहीं है. रंजीत सुबह ही घर से निकल जाता था. उस के मांबाप ने यह सोचा कि रंजीत रोज की तरह गया होगा. अब दिशा के गायब होने पर शक की सूई रंजीत पर घूम रही थी.

पुलिस ने रंजीत के चेलों से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से उन्होंने रंजीत

के बारे में बता दिया कि रंजीत दिशा का अपहरण कर सकता है, लेकिन वे दोनों इस में शामिल नहीं हैं. पुलिस ने रंजीत के चेलों से फोन लगवाया. रंजीत ने फोन उठाया तो चेलों ने रोते हुए रंजीत को हालात से अवगत कराया. रंजीत को यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन में पुलिस केस बन जाएगा और ये दोनों भी 2 मिनट में पुलिस के सामने सब बक देंगे.

पुलिस ने दिशा के मांबाप और रंजीत के चेलों के साथ रंजीत के गांव के पुश्तैनी मकान पर दबिश की. रंजीत कुछ नहीं बोला. उस की योजना तो पिछले दिन ही चंपा और चमन ने असफल कर दी थी. पुलिस ने रंजीत को हिरासत में लिया.

रंजीत के मांबाप उस की हरकत पर शर्मिंदा थे. उन्होंने पुलिस से केस रफादफा करने की पेशकश की, पर पुलिस ने असमर्थता व्यक्त की.

दिशा अपनी मां से मिल कर फूटफूट कर रो पड़ी. चंपा ने दिशा के मातापिता को उस के सकुशल होने का यकीन दिलाया.

दिशा की मां दिशा के पिता को एक कोने में ले जा कर कहने लगीं कि लड़की एक रात अनजान लड़के के घर रही, समाज और लोग तरहतरह की बातें करेंगे. हम किसकिस को जवाब देते फिरेंगे. दिशा का पिता निरुत्तर था.

यह बात चंपा के कान में पड़ गई, ‘‘आप कैसे मांबाप हैं जो अपनी लड़की पर शक कर रहे हैं? जब मैं उस के संपूर्ण सुरक्षित और सकुशल होने की गारंटी दे रही हूं तब आप किस बात की चिंता कर रहे हैं?’’

‘‘तुम समझ नहीं रही हो, हम ने समाज में रहना है… लोग तरहतरह की बातें बनाएंगे.’’

‘‘जब मैं ने दिशा को सुरक्षित रखा है तब आप चिंता क्यों कर रहे हैं? लोगों का काम तो तमाशा देखना है. लड़की कालेज जाती है, वहां लड़के भी पढ़ते हैं. लोग उलटासीधा कुछ भी

कह सकते हैं. जब लोग सीता पर उंगली उठा सकते हैं तो किसी के भी बारे में कुछ भी कह सकते हैं… जब कुछ गलत हुआ ही नहीं है तब क्यों घबरा रहे हो?’’ कह चंपा बड़बड़ाती हुई वहां से चली गई.

पुलिस ने चंपा की बातें सुन ली थीं. अत: बोली, ‘‘अब चलो वापस…आप की लड़की सहीसलामत सुरक्षित मिल गई है. चंपा की बात में दम है. खुद को देखो, समाज को नहीं.’’

फिर पुलिस की जीप में बैठ सभी चले गए. दिशा स्थितियों का अवलोकन करने लगी कि सीता से ले कर दिशा तक लोगों की मानसिकता नहीं बदली है. कब तक अग्नि परीक्षा देनी होगी? धर्म की गलत बातों से निकम्मे हो चुके समाज से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है?

Holi 2024: गुलाब यूं ही खिले रहें- क्या हुआ था रिया के साथ

शादी की शहनाइयां बज रही थीं. सभी मंडप के बाहर खड़े बरात का इंतजार कर रहे थे. शिखा अपने दोनों बच्चों को सजेधजे और मस्ती करते देख कर बहुत खुश हो रही थी और शादी के मजे लेते हुए उन पर नजर रखे हुए थी. तभी उस की नजर रिया पर पड़ी जो एक कोने में गुमसुम सी अपनी मां के साथ चिपकी खड़ी थी. रिया और शिखा दूर के रिश्ते की चचेरी बहनें थीं. दोनों बचपन से ही अकसर शादीब्याह जैसे पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलती थीं. रिया को देख शिखा ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘रिया…रिया…’’

शायद रिया अपनेआप में ही खोई हुई थी. उसे शिखा की आवाज सुनाई भी न दी. शिखा स्वयं ही उस के पास पहुंची और चहक कर बोली, ‘‘कैसी है रिया?’’

रिया ने जैसे ही शिखा को देखा, मुसकरा कर बोली, ‘‘ठीक हूं, तू कैसी है?’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, कितने साल हुए न हम दोनों को मिले, शादी क्या हुई बस, ससुराल के ही हो कर रह गए.’’

शिखा ने कहा, ‘‘आओ, मैं तुम्हें अपने बच्चे से मिलवाती हूं.’’

रिया उन्हें देख कर बस मुसकरा दी. शिखा को लगा रिया कुछ बदलीबदली है. पहले तो वह चिडि़या सी फुदकती और चहकती रहती थी, अब इसे क्या हो गया? मायके में है, फिर भी गम की घटाएं चेहरे पर क्यों?

जब वह सभी रिश्तेदारों से मिली तो उसे मालूम हुआ कि रिया की उस के पति से तलाक की बात चल रही है. वह सोचने लगी, ‘ऐसा क्या हो गया, शादी को इतने वर्ष हो गए और अब तलाक?’ उस से रहा न गया इसलिए मौका ढूंढ़ने लगी कि कब रिया अकेले में मिले और कब वह इस बारे में बात करे.

शिखा ने देखा कि शादी में फेरों के समय रिया अपने कमरे में गई है तो वह भी उस के पीछेपीछे चली गई. शिखा ने कुछ औपचारिक बातें कर कहा, ‘‘मेरी प्यारी बहना, बदलीबदली सी क्यों लगती है? कोई बात है तो मुझे बता.’’

पहले तो रिया नानुकर करती रही, लेकिन जब शिखा ने उसे बचपन में साथ बिताए पलों की याद दिलाई तो उस की रुलाई फूट पड़ी. उसे रोते देख शिखा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, पति से तलाक क्यों ले रही है, तुझे परेशान करता है क्या?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं, वे तो बहुत नेक इंसान हैं.,’’ रिया ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर क्या बात है रिया, तलाक क्यों?’’ शिखा ने पूछा.

रिया के नयनों की शांत धारा सिसकियों में बदल गई, ‘‘कमी मुझ में है, मैं ही अपने पति को वैवाहिक सुख नहीं दे पाती.’’ मुझे पति के पास जाना भी अच्छा नहीं लगता. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं, लेकिन मेरा अतीत मेरा पीछा ही नहीं छोड़ता.’’

‘‘कौन सा अतीत?’’

आज रिया सबकुछ बता देना चाहती थी, वह राज, जो बरसों से घुन की मानिंद उसे अंदर से खोखला कर रहा था. जब उस ने अपनी मां को बताया था तो उन्होंने भी उसे कितना डांटा था. उस की आधीअधूरी सी बात सुन कर शिखा कुछ समझ न पाई और बोली, ‘‘रिया, मैं तुम्हारी मदद करूंगी, मुझे सचसच बताओ, क्या बात है?’’

रिया उस के गले लग खूब रोई और बोली, ‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के दादा हैं न गांव वाले, किसी शादी में हमारे शहर आए थे और एक दिन हमारे घर भी रुके थे. मां को उस दिन डाक्टर के पास जाना था. मां को लगा कि दादा हैं इसलिए मुझे भाई के भरोसे घर में छोड़ गईं. जब भैया खेलने गए तो दादा मुझे छत पर ले गए और…’’ कह कर वह रोने लगी.

उस की बात सुन कर शिखा की आंखों में मानो खून उतर आया. उस के मुंह से अनायास ही निकला, ‘‘राक्षस, वहशी, दरिंदा और न जाने कितनी युवतियों को उस ने अपना शिकार बनाया होगा. तुम्हें मालूम है वह बुड्ढा तो मर चुका है. उस ने सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी अपना शिकार बनाया था. मैं एक शादी में गई थी. वह भी वहां आया हुआ था. मेरी मां मुझे शादी के फेरों के समय कमरे में अकेली छोड़ गई थीं. सभी लोग फेरों की रस्म में व्यस्त थे. उस ने मौका देख मेरे साथ बलात्कार किया. मात्र 15 वर्ष की थी मैं उस वक्त, जब मेरे चीखने की आवाज सुनाई दी तो मेरी मां दौड़ कर आईं और पिताजी ने उन दादाजी को खूब भलाबुरा कहा, लेकिन रिश्तेदारों और समाज में बदनामी के डर से यह बात छिपाई गईं.’’

‘‘वही तो,’’ रिया कहने लगी, ‘‘मेरी मां ने तो उलटा मुझे ही डांटा और कहा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो गया. बिन ब्याहे ही यह संबंध. न जाने अब कोई मुझ से विवाह करेगा भी या नहीं.

‘‘जैसे कुसूर मेरा ही हो, मैं क्या करती. उस समय सिर्फ 15 वर्ष की थी, इस लिए समझती भी नहीं थी कि बलात्कार क्या होता है, लेकिन शादी के बाद जब भी मेरे पति नजदीक आए तो मुझे बारबार वही हादसा याद आया और मैं उन से दूर जा खड़ी हुई. जब वे मेरे नजदीक आते हैं तो मुझे लगता है एक और बलात्कार होने वाला है.’’

शिखा ने पूछा, ‘‘तो फिर वे तुम से जबरदस्ती तो नहीं करते?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ रिया बोली.

‘‘तब तो तुम्हारे पति सच में बहुत नेक इंसान हैं.’’

‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण वे दुख की जिंदगी जिएं इसलिए मैं ने ही उन से तलाक मांगा है. मैं तो उन्हें वैवाहिक सुख नहीं दे पाती पर उन्हें तो आजाद करूं इस बंधन से.’’

‘‘ओह, तो यह बात है. मतलब तुम मन ही मन उन्हें पसंद तो करती हो?’’

‘‘हां,’’ रिया बोली, ‘‘मुझे अच्छे लगते हैं वे, किंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तुम ने मुझे अपना सब से बड़ा राज बताया है, तो क्या तुम मुझे एक मौका नहीं दोगी कि मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं. देखो रिया, मेरे साथ भी यह हादसा हुआ लेकिन मांपिताजी ने मुझे समझा दिया कि मेरी कोई गलती नहीं, पर तुम्हें तो उलटा तुम्हारी मां ने ही कुसूरवार ठहरा दिया. शायद इसलिए तुम अपनेआप को गुनाहगार समझती हो,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम कहो तो मैं तुम्हारे पति से बात करूं इस बारे में?’’

‘‘नहींनहीं, तुम ऐसा कभी न करना,’’ रिया ने कहा.

‘‘अच्छा नहीं करूंगी, लेकिन अभी हम 3-4 दिन तो हैं यहां शादी में, तो चलो, मैं तुम्हें काउंसलर के पास ले चलती हूं.’’

‘‘वह, क्यों?’’ रिया ने पूछा

‘‘तुम मेरा विश्वास करती हो न, तो सवाल मत पूछो. बस, सुबह तैयार रहना.’’

अगले दिन शिखा सुबह ही रिया को एक जानेमाने काउंसलर के पास ले गई. काउंसलर ने बड़े प्यार से रिया से सारी बात पूछी. एक बार तो रिया झिझकी, लेकिन शिखा के कहने पर उस ने सारी बात काउंसलर को बता दी. यह सुन कर काउंसलर ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘देखो बेटी, तुम बहुत अच्छी हो, जो तुम ने अपनी मां की बात मान कर यह राज छिपाए रखा, लेकिन इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं. तुम अपनेआप को दोषी क्यों समझती हो? क्या हो गया अगर किसी ने जोरजबरदस्ती से तुम से संबंध बना भी लिए तो?’’

रिया बोली, ‘‘मां ने कहा, मैं अपवित्र हो गई, अब मुझे अपनेआप से ही घिन आती है. इसलिए मुझे अपने पति के नजदीक आना भी अच्छा नहीं लगता.’’

काउंसलर ने समझाते हुए कहा, ‘‘लेकिन इस में अपवित्र जैसी तो कोईर् बात ही नहीं और इस काम में कुछ गलत भी नहीं. यह तो हमारे समाज के नियम हैं कि ये संबंध हम विवाह बाद ही बनाते हैं.

‘‘लेकिन समाज में बलात्कार के लिए तो कोई कठोर नियम व सजा नहीं. इसलिए पुरुष इस का फायदा उठा लेते हैं और दोषी लड़कियों को माना जाता है. बेचारी अनखिली कली सी लड़कियां फूल बनने से पहले ही मुरझा जाती हैं. अब तुम मेरी बात मानो और यह बात बिलकुल दिमाग से निकाल दो कि तुम्हारा कोई दोष है और तुम अपवित्र हो. चलो, अब मुसकराओ.’’

रिया मुसकरा उठी. शिखा उसे अपने साथ घर लाई और बोली, ‘‘अब तलाक की बात दिमाग से निकाल दो और अपने पति के पास जाने की पहल तुम खुद करो, इतने वर्ष बहुत सताया तुम ने अपने पति को. अब चलो, प्रायश्चित्त भी तुम ही करो.’’

रिया विवाह संपन्न होते ही ससुराल चली गई. उस ने अपने पति के पास जाने की पहल की और साथ ही साथ काउंसलर ने भी उस का फोन पर मार्गदर्शन किया. उस के व्यवहार में बदलाव देख उस के पति भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने रिया को एक दिन अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘क्या बात है रिया, आजकल तुम्हारा चेहरा गुलाब सा खिला रहता है?’’

वह जवाब में सिर्फ मुसकरा दी और बोली, ‘‘अब मैं सदा के लिए तुम्हारे साथ खिली रहना चाहती हूं, मैं तुम से तलाक नहीं चाहती.’’

उस के पति ने कहा, ‘‘थैंक्स रिया, लेकिन यह मैजिक कैसे?’’

वह बोली, ‘‘थैंक्स शिखा को कहो. अभी फोन मिलाती हूं उसे,’’ कह कर उस ने शिखा का फोन मिला दिया.

उधर से शिखा ने रिया के पति से कहा, ‘‘थैंक्स की बात नहीं. बस, यह ध्यान रखना कि गुलाब यों ही खिले रहें. ’’

Holi 2024: आहत- शालिनी के प्यार में डूबा सौरभ उसके स्वार्थी प्रेम से कैसे था अनजान

हैवलौक अंडमान का एक द्वीप है. कई छोटेबड़े रिजोर्ट्स हैं यहां. बढ़ती जनसंख्या ने शहरों में प्रकृति को तहसनहस कर दिया है, इसीलिए प्रकृति का सामीप्य पाने के लिए लोग पैसे खर्च कर के अपने घर से दूर यहां आते हैं.

1 साल से सौरभ ‘समंदर रिजोर्ट’ में सीनियर मैनेजर के पद पर काम कर रहा था. रात की स्याह चादर ओढ़े सागर के पास बैठना उसे बहुत पसंद था. रिजोर्ट के पास अपना एक व्यक्तिगत बीच भी था, इसलिए उसे कहीं दूर नहीं जाना पड़ता था. अपना काम समाप्त कर के रात में वह यहां आ कर बैठ जाता था. लोग अकसर उस से पूछते कि वह रात में ही यहां क्यों बैठता है?

सौरभ का जवाब होता, ‘‘रात की नीरवता, उस की खामोशी मुझे बहुत भाती है.’’

अपनी पुरानी जिंदगी से भाग कर वह यहां आ तो गया था, परंतु उस की यादों से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं था. आज सुबह जब से प्रज्ञा का फोन आया है तब से सौरभ परेशान था.

अब रात के सन्नाटे में उस की जिंदगी के पिछले सारे वर्ष उस के सामने से चलचित्र की तरह गुजरने लगे थे…

4 साल पहले जब सौरभ और शालिनी की शादी हुई थी तब उसे लगा था जैसे उस का देखा हुआ सपना वास्तविकता का रूप ले कर आ गया हो. शालिनी और सौरभ गोवा में 2 हफ्ते का हनीमून मना कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने दिल्ली आ गए. इतनी अच्छी नौकरी, शालिनी जैसी सुंदर और समझदार लड़की को अपनी पत्नी के रूप में पा कर सौरभ जैसे बादलों पर चल रहा था.

मगर सौरभ भूल गया था कि बादल एक न एक दिन बरस जाते हैं और अपने साथ सब कुछ बहा ले जाते हैं. शादी के पहले 1 साल में ही सौरभ को उस के और शालिनी के बीच के अंतर का पता चल गया. शालिनी खूबसूरत होने के साथसाथ बहुत ही खुले विचारों वाली भी थी, सौरभ के विचारों के बिलकुल विपरीत. उसे

खुले हाथों से खर्च करने की आदत थी, परंतु सौरभ मितव्ययी था. छोटीमोटी नोकझोंक उन के बीच चलती रहती थी, जिस में जीत हमेशा शालिनी की ही होती थी. शालिनी के व्यक्तित्व के सामने जैसे सौरभ का व्यक्तित्व गौण हो गया था.

रात के अंतरंग पलों में भी शालिनी को सौरभ से कई शिकायतें थीं. उस के अनुसार सौरभ उसे संतुष्ट नहीं कर पाता.

शालिनी जहां पार्टियों में जाना बहुत पसंद करती थी वहीं सौरभ का वहां दम घुटता था, परंतु शालिनी की जिद पर उस ने सभी पार्टियों में जाना शुरू कर दिया था. पार्टी में जाने के बाद शालिनी अकसर यह भूल जाती थी कि वह यहां सौरभ के साथ आई है.

ऐसी ही एक पार्टी में सौरभ की कंपनी का एक क्लाइंट विमल भी आया था. वह शालिनी के कालेज का मित्र था तथा एक बहुत बड़े उद्योगपति घराने का इकलौता चिराग था. उस से मिलने के बाद तो शालिनी जैसे यह भी भूल गई कि पार्टी में और लोग भी हैं.

बातें करते हुए विमल के हाथों का शालिनी के कंधों को छूना सौरभ को अच्छा नहीं लग रहा था, परंतु वहां पार्टी में उस ने शालिनी को कुछ नहीं कहा.

घर आने पर जब सौरभ ने शालिनी से बात करनी चाही तो वह भड़क उठी, ‘‘कितनी छोटी सोच है तुम्हारी… सही में, कौन्वैंट स्कूल में पढ़ने से अंगरेजी तो आ जाती है, पर मानसिकता ही छोटी हो तो उस का क्या करेंगे?’’

‘‘शालू, वह विमल बहुत बदनाम आदमी है. तुम नहीं जानती…’’

‘‘मैं जानना भी नहीं चाहती… जो स्वयं सफल नहीं हो पाते न वे औरों की सफलता से ऐसे ही चिढ़ते हैं.’’ सौरभ बात आगे नहीं बढ़ाना चाहता था, इसलिए चुप हो गया.

अगले दिन शालिनी की तबीयत ठीक नहीं थी तो सौरभ ने उसे परेशान करना ठीक नहीं समझा और बिना नाश्ता किए औफिस चला गया.

दोपहर में शालिनी की तबीयत के बारे में जानने के लिए लैंडलाइन पर सौरभ लगातार फोन करता रहा, परंतु शालिनी ने फोन नहीं उठाया. मोबाइल भी शालिनी ने बंद कर रखा था. काफी प्रयास के बाद शालिनी का फोन लग गया.

‘‘क्या हुआ शालिनी? ठीक तो हो न तुम? मैं कितनी देर से लैंडलाइन पर फोन कर रहा था… मोबाइल भी बंद कर रखा था तुम ने.’’

‘‘हां, मैं ठीक हूं. विमल ने लंच के लिए बुलाया था… वहां चली गई थी… मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई थी.’’

‘‘क्या…विमल के साथ…’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘मुझे बता तो सकती थी…’’

‘‘अब क्या इतनी छोटी सी बात के लिए भी तुम्हारी इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

‘‘बात इजाजत की नहीं है, सूचना देने की है. मुझे पता होता तो इतना परेशान नहीं होता.’’

‘‘तुम्हें तो परेशान होने का बहाना चाहिए सौरभ.’’

‘‘खैर, छोड़ो शालिनी… घर पर बात करेंगे.’’

रिसीवर रखने के बाद सौरभ सोच में पड़ गया कि सुबह तक तो शालिनी

उठने की भी हालत में नहीं थी और दोपहर तक इतनी भलीचंगी हो गई कि बाहर लंच करने चली गई. फोन पर भी उस का व्यवहार सौरभ को आहत कर गया था. रात में उस ने शालिनी से इस विषय पर बात करने का मन बना लिया.

मगर रात में तो शालिनी का व्यवहार बिलकुल ही बदला हुआ था. पूरे घर में सजावट कर रखी थी उस ने. टेबल पर एक केक उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘शालिनी, यह सब क्या है? आज किस का जन्मदिन है?’’

‘‘केक काटने के लिए उपलक्ष्य का इंतजार क्यों करना…अपने प्यार

को सैलिब्रेट करने के लिए केक नहीं काट सकते क्या?’’ शालिनी अपनी नशीली आंखों का जाल सौरभ पर डाल चुकी थी.

दोनों ने साथ केक काटा, फिर शालिनी ने अपने हाथों से सौरभ को डिनर कराया. शालिनी ने पहले से ही सब कुछ तय कर रखा था. धीमा संगीत माहौल को और खूबसूरत बना रहा था. उस रात दोनों ने एकदूसरे से खुल कर प्यार किया.

बहुत तड़के ही शालिनी उठ कर नहाने चली गई. अभी वह ड्रैसिंगटेबल के पास पहुंची ही थी कि सौरभ ने उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बौछार कर दी.

‘‘अरे छोड़ो न, क्या करते हो? रात भर मस्ती की है, फिर भी मन नहीं भरा तुम्हारा,’’ शालिनी कसमसाई.

‘‘मैं तुम्हें जितना ज्यादा प्यार करता हूं, उतना ही और ज्यादा करने का मन करता है.’’

‘‘अच्छा… तो अगर मैं आज कुछ मांगूं तो दोगे?’’

‘‘जान मांगलो, पर अभी मुझे प्यार करने से न रोको.’’

‘‘उफ, इतनी बेचैनी… अच्छा सुनो मैं ने नौकरी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘अरे, मैं तो खुद ही कह चुका हूं तुम्हें… घर बैठ कर बोर होने से तो अच्छा ही है… अच्छा समझ गया. तुम चाहती हो मैं तुम्हारी नौकरी के लिए किसी से बात करूं.’’

‘‘नहीं… मुझे नौकरी मिल गई है.’’

‘‘मिल गई, कहां?’’

‘‘विमल ने मुझे अपने औफिस में काम करने का औफर दिया और मैं ने स्वीकार लिया.’’

सौरभ समझ गया था विरोध बेकार है. शालिनी उस से पूछ नहीं रही थी, उसे अपना निर्णय बता रही थी. सौरभ ने गले लगा कर शालिनी को बधाई दी और उस के बाद एक बार फिर दोनों एकदूसरे में समा गए.

शालिनी ने विमल के औफिस में काम करना शुरू कर दिया था. औफिस के काम से दोनों को कई बार शहर से बाहर भी जाना पड़ता था, परंतु सौरभ को कभी उन पर शक नहीं हुआ, क्योंकि शक करने जैसा कुछ था ही नहीं.

विमल के हर टूअर में उस की पत्नी रमा उस के साथ जाती थी. शालिनी तो अकसर

सौरभ से विमल और रमा के प्रेम की चर्चा भी करती थी. ऐसे ही एक टूअर पर विमल और रमा के साथ शालिनी भी गई. वैसे तो यह एक

औफिशियल टूअर था पर मनाली की खूबसूरती ने उन का मन मोह लिया. तय हुआ अभी तीनों ही जाएंगे. सौरभ बाद में उन के साथ शामिल होने वाला था.

मीटिंग के बाद विमल और शालिनी लौट रहे थे. विमल को ड्राइविंग पसंद थी, इसलिए अकसर वह गाड़ी खुद ही चलाता था. अचानक एक सुनसान जगह पर उस ने गाड़ी रोक दी.

‘‘क्या हुआ विमल, गाड़ी खराब हो गई क्या?’’

‘‘गाड़ी नहीं मेरी नियत खराब हो गई है और उस का कारण तुम हो शालिनी.’’

‘‘मैं… वह भला कैसे?’’ शालिनी ने मासूमियत का नाटक करते हुए पूछा.

‘‘तुम इतनी खूबसूरत हो तो तुम्हारे प्यार करने की अदा भी तो उतनी ही खूबसूरत होगी न?’’ कह विमल ने शालिनी का हाथ पकड़ लिया.

‘‘मुझे अपने करीब आने दो… इस में हम दोनों का ही फायदा है.’’

‘‘तुम पागल हो गए हो विमल?’’ शालिनी ने हाथ छुड़ाने का नाटक भर किया.

‘‘नहीं शालिनी अभी पागल तो नहीं हुआ, लेकिन यदि तुम्हें पा न सका तो जरूर हो जाऊंगा.’’

‘‘न बाबा न, किसी को पागल करने का दोष मैं अपने ऊपर क्यों लूं?’’

‘‘तो फिर अपने इन अधरों को…’’ बात अधूरी छोड़ विमल शालिनी को अपनी बांहों में लेने की कोशिश करने लगा.

‘‘अरेअरे… रुक भी जाओ. इतनी जल्दी क्या है? पहले यह तो तय हो जाए इस में मेरा फायदा क्या है?’’

‘‘तुम जो चाहो… मैं तो तुम्हारा गुलाम हूं.’’

शालिनी समझ गई थी, लोहा गरम है और यही उस पर चोट करने का सही वक्त है. अत: बोली, ‘‘मुझे नए प्रोजैक्ट का हैड बना दो विमल. बोलो क्या इतना कर पाओगे मेरे लिए?’’

‘‘बस, समझो बना दिया.’’

‘‘मुझे गलत मत समझना विमल, परंतु मैं ऐसे ही तुम्हारी बात पर भरोसा…’’

‘‘ऐसा है तो फिर यह लो,’’ कह उसी समय उसी के सामने औफिस में फोन कर शालिनी की इच्छा को अमलीजामा पहना दिया.

जब शालिनी के मन की बात हो गई तो फिर विमल के मन की बात कैसे अधूरी रहती.

उस दिन के बाद विमल और शालिनी और करीब आते गए. दोनों एकसाथ घूमते, खातेपीते और रात भर खूब मस्ती करते. रमा होटल के कमरे में अकेली पड़ी रही, पर उस ने विमल से कभी भी कुछ नहीं पूछा.

2 हफ्ते बाद वे लोग दिल्ली लौट आए थे. सौरभ को औफिस से छुट्टी नहीं मिल पाई थी, इसलिए उस का मनाली का टूअर कैंसिल हो गया था. इसी बात को बहाना बना कर शालिनी ने सौरभ से झूठी नाराजगी का ढोंग भी रचाया था.

‘‘वहां विमल और रमा एकसाथ घूमते… मैं अकेली होटल में कमरे में करवटें बदलती रह जाती.’’

सौरभ बेचारा मिन्नतें करता रह जाता और फिर शालिनी को मनाने के लिए उस की पसंद के महंगेमहंगे उपहार ला कर देता रहता… फिर भी शालिनी यदाकदा उस बात को उठा ही देती थी.

मनाली से लौट कर शालिनी के रंगढंग और तेवर लगातार बदल रहे थे.

अब तो वह अकसर घर देर से लौटने लगी और कई बार तो उस के मुंह से शराब की गंध भी आ रही होती.

शालिनी अकसर खाना भी बाहर खा कर आती थी. कुक सौरभ का खाना बना कर चला जाता था. जब वह घर लौटती उस के बेतरतीब कपड़े, बिगड़ा मेकअप भी खामोश जबान से उस की चुगली करते थे. मगर सौरभ ने तो जैसे अपनी आंखें मूंद ली थी. उसे तो यही लगता था कि वह शालिनी को समय नहीं दे पा रहा. इसीलिए वह उस से दूर हो रही.

एक दिन शालिनी ने उसे बताया विमल और रमा घूमने आगरा जा रहे हैं और उन से भी साथ चलने को कह रहे हैं. सौरभ को इस बार भी छुट्टी मिलने में परेशानी हो रही थी. उस के कई बार समझाने पर शालिनी विमल और रमा के साथ चली गई. सब कुछ शालिनी के मनमुताबिक ही हो रहा था, फिर भी उस ने अपनी बातों से सौरभ को अपराधबोध से भर दिया था.

गाड़ी में आगे की सीट पर विमल की बगल में बैठी शालिनी सौरभ की बेवकूफी पर काफी देर तक ठहाका लगाती रही थी.

‘‘अब बस भी करो शालिनी डार्लिंग… बेचारा सौरभ… हाहाहा’’

‘‘चलो छोड़ दिया. तुम यह बताओ तुम्हें गाड़ी से जाने की क्या सूझी?’’

‘‘दिल्ली और आगरा के बीच की दूरी है ही कितनी और वैसे भी लौंग ड्राइव में रोमांस का अपना मजा है मेरी जान,’’ और फिर दोनों एकसाथ हंस पड़े थे. रमा पीछे की सीट पर बैठी उन की इस बेहयाई की मूक दर्शक बनी रही.

सौरभ को छुट्टी अगले दिन ही मिल गई थी, परंतु वह शालिनी को सरप्राइज देना चाहता था. इसलिए शालिनी को बिन बताए ही आगरा पहुंच गया.

लंबेलंबे डग भरता वह होटल में शालिनी के कमरे की तरफ बढ़ा. खूबसूरत फूलों का गुलदस्ता उस के हाथों में था. दिल में शालिनी को खुश करने की चाहत लिए उस ने कमरे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठाया ही था कि अंदर से आती शालिनी और किसी पुरुष की सम्मिलित हंसी ने उसे चौंका दिया.

बदहवास सा सौरभ दरवाजा पीटने लगा. अंदर से आई एक आवाज ने उसे स्तब्ध कर दिया था.

‘‘कौन है बे… डू नौट डिस्टर्ब का बोर्ड नहीं देख रहे हो क्या? जाओ अभी हम अपनी जानेमन के साथ बिजी हैं.’’

परंतु सौरभ ने दरवाजा पीटना बंद नहीं किया. दरवाजा खुलते ही अंदर का नजारा देख कर सौरभ को चक्कर आ गया. बिस्तर पर पड़ी उस की अर्धनग्न पत्नी उसे अपरिचित निगाहों से घूर रही थी.

जमीन पर बिखरे उस के कपड़े सौरभ की खिल्ली उड़ा रहे थे. कहीं किसी कोने में विवाह का बंधन मृत पड़ा था. उस का अटल विश्वास उस की इस दशा पर सिसकियां भर रहा था और प्रेम वह तो पिछले दरवाजे से कब का बाहर जा चुका था.

‘‘शालिनी….’’ सौरभ चीखा था.

परंतु शालिनी न चौंकी न ही असहज हुई, बस उस ने विमल को कमरे से बाहर जाने का इशारा कर दिया और स्वयं करवट ले कर छत की तरफ देखते हुए सिगरेट पीने लगी.

‘‘शालिनी… मैं तुम से बात कर रहा हूं. तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो?’’ सौरभ दोबारा चीखा.

इस बार उस से भी तेज चीखी शालिनी, ‘‘क्यों… क्यों नहीं कर सकती मैं तुम्हारे साथ ऐसा? ऐसा है क्या तुम्हारे अंदर जो मुझे बांध पाता?’’

‘‘तुम… विमल से प…प… प्यार करती हो?’’

‘‘प्यार… हांहां… तुम इतने बेवकूफ हो सौरभ इसलिए तुम्हारी तरक्की इतनी स्लो है… यह लेनदेन की दुनिया है. विमल ने अगर मुझे कुछ दिया है तो बदले में बहुत कुछ लिया भी है. कल अगर कोई इस से भी अच्छा औप्शन मिला तो इसे भी छोड़ दूंगी. वैसे एक बात बोलूं बिस्तर में भी वह तुम से अच्छा है.’’

‘‘कितनी घटिया औरत हो तुम, उस के साथ भी धोखा…’’

‘‘अरे बेवकूफ विमल जैसे रईस शादीशुदा मर्दों के संबंध ज्यादा दिनों तक टिकते नहीं. वह खुद मुझ से बेहतर औप्शन की तलाश में होगा. जब तक साथ है है.’’

‘‘तुम्हें शर्म नहीं आ रही?’’

‘‘शर्म कैसी पतिजी… व्यापार है यह… शुद्घ व्यापार.’’

‘‘शालिनी…’’

‘‘आवाज नीची करो सौरभ. बिस्तर में चूहा मर्द आज शेर बनने की ऐक्टिंग कर रहा है.’’

सौरभ रोते हुए बोला ‘‘शालिनी मत करो मेरे साथ ऐसा. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘सौरभ तुम मेरा काफी वक्त बरबाद कर चुके हो. अब चुपचाप लौट जाओ… बाकी बातें घर पर होंगी.’’

‘‘हां… हां… देखेंगे… वैसे मेरा काम आसान करने के लिए धन्यवाद,’’ कह बाहर निकलते सौरभ रमा से टकरा गया.

‘‘आप सब कुछ जानती थीं न’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, मैं वह परदा हूं, जिस का इस्तेमाल वे दोनों अपने रिश्ते को ढकने के लिए कर रहे थे.’’

‘‘आप इतनी शांत कैसे हैं?’’

‘‘आप को क्या लगता है शालिनी मेरे पति के जीवन में आई पहली औरत है? न वह पहली है और न ही आखिरी होगी.’’

‘‘आप कुछ करती क्यों नहीं? इस अन्याय को चुपचाप सह क्यों रही हैं?’’

‘‘आप ने क्या कर लिया? सुधार लिया शालिनी को?’’

‘‘मैं उसे तलाक दे रहा हूं…’’

‘‘जी… परंतु मैं वह नहीं कर सकती.’’

‘‘क्यों, क्या मैं जान सकता हूं?’’

‘‘क्योंकि मैं यह भूल चुकी हूं कि मैं एक औरत हूं, किसी की पत्नी हूं. बस इतना याद है कि मैं 2 छोटी बच्चियों की मां हूं. वैसे भी यह दुनिया भेडि़यों से भरी हुई है और मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं स्वयं को और अपनी बेटियों को उन से बचा सकूं.’’

‘‘माफ कीजिएगा रमाजी अपनी कायरता को अपनी मजबूरी का नाम मत दीजिए. जिन बेटियों के लिए आप ये सब सह रही हैं उन के लिए ही आप से प्रार्थना करता हूं, उन के सामने एक गलत उदाहरण मत रखिए. यह सब सह कर आप 2 नई रमा तैयार कर रही हैं.’’

औरत के इन दोनों ही रूपों से सौरभ को वितृष्णा हो गई थी. एक अन्याय करना अपना अधिकार समझती थी तो दूसरी अन्याय सहने को अपना कर्तव्य.

दिल्ली छोड़ कर सौरभ इतनी दूर अंडमान आ गया था. कोर्ट में उस का केस चल रहा था. हर तारीख पर सौरभ को दिल्ली जाना पड़ता था. शालिनी ने उस पर सैक्स सुख न दे पाने का इलजाम लगाया था.

सौरभ अपने जीवन में आई इस त्रासदी से ठगा सा रह गया था, परंतु शालिनी जिंदगी में नित नए विकल्प तलाश कर के लगातार तरक्की की नई सीढि़यां चढ़ रही थी.

आज सुबह प्रज्ञा, जो सौरभ की वकील थी का फोन आया था. कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी थी, परंतु इस के बदले काफी अच्छी कीमत वसूली थी शालिनी ने. आर्थिक चोट तो फिर भी जल्दी भरी जा सकती हैं पर मानसिक और भावनात्मक चोटों को भरने में वक्त तो लगता ही है.

सौरभ अपनी जिंदगी के टुकड़े समेटते हुए सागर के किनारे बैठा रेत पर ये पंक्तियां लिख रहा था:

‘‘मुरझा रहा जो पौधा उसे बरखा की आस है,

अमृत की नहीं हमें पानी की प्यास है,

मंजिल की नहीं हमें रास्तों की तलाश है.’’

फौरगिव मी: भाग 3- क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

मैं गाउन ले कर बाथरूम में गई. मेरा दिल उसे माफ करना चाहता था. मैं गाउन पहनने लगी. अचानक मु झे लगा यह उस की जीत होगी. उस की ही नहीं यह उन सारी दूसरी औरतों की जीत होगी जो बच्चों को मौम या डैड किसी एक के पास रहने को मजबूर कर देती हैं. मेरा मुंह का स्वाद कसैला हो गया. मैं ने गाउन पर कैंची चलानी शुरू कर दी. पाइपिंग लेस और गुलाब के फूल सब बिखर गए. पर शायद गाउन ही नहीं कटा उस दिन से बहुत कुछ कट गया. बहुत से फूल बिखर गए. मैं ने तमतमाते हुए उसे वह गाउन वापस करते हुए कहा, ‘‘लो अपना गाउन. तुम इस से मु झे नहीं खरीद सकती. मैं बिकाऊ नहीं हूं.’’

इस बार मोनिका की आंखें डबडबाई नहीं. वह फूटफूट कर रोने लगी. उस ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘आखिर मेरी गलती क्या है? आखिर तुम मु झे किस अपराध की सजा दे रही हो? अगर तुम्हें कुछ गलत लगता भी है तो क्या तुम उस बात को भूल कर मु झे माफ कर फिर से आगे नहीं बढ़ सकती?’’

‘‘तुम मेरी मां के आंसुओं का कारण हो. तुम ने मेरी हैपी फैमिली को तहसनहस किया. मौमडैड को अलग किया, फिर डैड को मु झ से अलग किया. अब ओछी हरकतों से मु झे खरीदने की कोशिश कर रही हो,’’ मैं चिल्लाती जा रही थी. अपनी सारी नफरत एक बार में निकाल देना चाहती थी.

मैं ने आरोपों की  झड़ी लगा दी. मैं उसे रोता छोड़ कर अपने कमरे में चली गई. उस के बाद से हमारे बीच बातचीत बहुत कम हो गई. मोनिका ने मु झे मनाने की सारी कोशिशें बंद कर दीं. मैं खुश थी. मु झे लगा मैं ने अपनेआप को बिकने नहीं दिया. यह मेरी जीत थी.

समय आगे बढ़ता गया और मैं अपने कमरे में और कैद होती गई. कमरा जहां

लैपटौप था, जो मु झे सोशल मीडिया के हजारों लोगों से जोड़े रखता… काल्पनिक ही सही पर मैं ने भी अपनी एक फैमिली बना ली थी. एक बड़ी फैमिली जहां दर्द और खुशियां भले ही न बंटती हों पर इस से पहले कि मु झे काटने को दौड़े वह बेदर्द समय जरूर कट जाता था.

तभी अलार्म बजा और मैं अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आई. वर्तमान, जहां मैं जीत के बाद हार का सामना कर रही थी. मैं बारबार उसे हर्ट करने के लिए, उस का दिल दुखाने के लिए अपराधबोध महसूस कर रही थी. मैं ने सोच लिया था कि अब मैं जब भी उस से मिलने जाऊंगी उसे बांहों में भर कर कहूंगी, ‘‘मैं ने उसे माफ किया.’’

अब मैं अमेरिका में पलीबढ़ी 15 साल की किशोर लड़की थी या यों कह सकते हैं कि मैं एक होने वाली नवयुवती थी. नई जैनरेशन और आजाद खयाल होने के नाते अब मैं जानती थी कि किसी भी खत्म हो चुके रिश्ते के टूटने की वजह हमेशा दूसरी औरत ही नहीं होती. उस रिश्ते को तो टूटना ही होता है. मैं ने मोनिका को हमेशा दोषी माना क्यों? इस का उत्तर खुद मेरे पास नहीं था.

़वह भी जानती थी कि वह मेरी मां नहीं है और न ही कभी हो सकती है पर ‘हैपी फैमिली’ के अपने सपने को पूरा करने की उस ने बहुत कोशिश की. परंतु उस के सारे प्रयास मु झे उस की चाल लगते और उसे विफल करने में अपनी जीत. मैं हर साल उम्र में तो बड़ी हो रही थी, पर पता नहीं क्यों इस बात को सम झने में बड़ी नहीं हो पाई. काश, वक्त मु झे थोड़ा और वक्त दे और मैं अतीत को भूल कर आगे जी सकूं. क्या ऐसा होगा? मैं अधीर हो उठी.

1 हफ्ते तक कीमो व रैडीऐशन के चलते उसे उसी शीशे के कैबिन में रहना था. मैं उस से मिल नहीं सकती थी. पर मैं यह वक्त बरबाद नहीं करना चाहती थी. मैं ने बाजार जा कर वैसे ही गाउन का और्डर दे दिया, जो 1 हफ्ते बाद मिलना था. मैं मोनिका के सामने उसी गाउन में जाना चाहती थी. मोनिका की हालत बिगड़ने लगी थी. उस पर ट्रीटमैंट का कोई असर नहीं हो रहा था. रैडीऐशन की हीट से उस का सारा शरीर जल रहा था. मैं चिंतित थी पर उस के वार्ड में जाने और ठीक होने का इंतजार करने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

मेरी आशा के विपरीत शीशे के कैबिन से निकाल कर उसे वार्ड में शिफ्ट नहीं

किया गया, बल्कि उसे होस्पिक केयर के लिए हौस्पिटल में ही बने एक विशेष कक्ष में भेज दिया गया. डैड ने ही मु झे बताया कि होस्पिक केयर उन मरीजों को दी जाती है जो अपने जीवन की अंतिम अवस्था में होते हैं. यहां कोई ट्रीटमैंट नहीं होता. केवल मरीज का दर्द कम करने और उसे शांतिपूर्वक मृत्यु के आगोश में जाने देने की कोशिश भर होती है. मरीज के साथ यहां उन का परिवार भी रह सकता है. जो स्प्रिचुअल हीलिंग के वातावरण में अपने प्रियजन को फाइनल गुडबाय कह सके. डैड और जौन मोनिका के साथ रहने के लिए हौस्पिटल शिफ्ट हो गए. पर मैं मोनिका का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. मैं घर पर ही रह गई. यह हिम्मत जुटाने में मु झे 2 दिन लग गए. पर उस रैड गाउन को मैं नहीं पहन पाई. साधारण सा

मोनिका को इतनी कमजोर अवस्था में बैड पर

लेटे देख कर मैं भीतर तक कांप गई. मेरी आंखों में आंसू भर आए. मोनिका ने मु झे अपने करीब बुलाया. हम दोनों को कमरे में छोड़ कर डैड और जौन बाहर चले गए. मोनिका ने मु झे उठाने का इशारा किया.

मैं ने उसे सहारा दे कर उठाया. उस ने दूसरी बार मु झे प्यार से गले लगा लिया. मैं आंसुओं का वेग नहीं रोक पाई.  झर झर आंसू बहते ही जा रहे थे. मैं अपने दिल की बात कहना ही चाहती थी कि मु झे महसूस हुआ कि मोनिका ने मु झे कुछ ज्यादा ही कस के पकड़ा है. मैं ने सप्रयास उसे अपने से अलग किया. उस की आंखें मुझे ही घूर रही थीं. मु झे उस समय तक पता नहीं था कि मरना क्या होता है. पर किसी अनिष्ट की आशंका से मैं डाक्टरडाक्टर चिल्लाई. मोनिका हमें छोड़ कर सदा के लिए जा चुकी थी.

मोनिका के जाने के बाद हमारे जीवन में एक खालीपन सा भर गया. अब मैं ने महसूस किया कि उस ने न सिर्फ इस घर में, बल्कि

मेरे मन में भी एक जगह बना ली थी. जबजब उस पल को सोचती हूं एक टीस से उठती है. काश, मैं वह कह पाती जो मैं कहना चाहती थी. पर क्या वह उस समय सुन पाती? क्या कोई इंसान जब वह मृत्युशैया पर होता है, तो उस के लिए उन शब्दों का कोई महत्त्व होता है, जिन्हें वह जीवनभर सुनना चाहता है? क्यों हम जीवन को हमेशा चलने वाला मानते हैं. क्यों हमसमय रहते अपनी बात नहीं कह देते?

हम अपने क्रोध, नफरत, गुस्से को सहेजने के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि जिस थाली को हम बड़ी शान से अगले पल को सौंप देना चाहते वह अगला पल 2 लोगों के जीवन में रहता भी है या नहीं. मु झे अपनी ही बातों से घबराहट होने लगी. मैं बालकनी में चली आई.

नीले आकाश में सफेद बादल तेजतेज घूम रहे हैं. मु झे चक्कर सा आ रहा है. मेरे मन में कोई चिल्ला रहा है मोनिका… मोनिका… मैं फिर ऊपर देखती हूं. घूमते बादलों को देख कर मैं जोर से चीखने लगती हूं, ‘‘मोनिका, प्लीज… प्लीज फौरगिव मी.’’

मगर मैं जानती हूं, इस बार अनसुना करने की बारी मोनिका की है.

फौरगिव मी: भाग 2- क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

वैसे मोनिका की पर्सनैलिटी बहुत चार्मिंग थी. वह एमएनसी में सौफ्टवेयर इंजीनियर होने के साथसाथ चुस्तदुरुस्त महिला भी थी. वह इतनी हैल्थ कौंशस थी कि सुबह 5 बजे उठ कर मौर्निंग वाक और ऐक्सरसाइज करती और बैलेंस डाइट पर बहुत जोर देती. हैल्दी फूड, हैल्दी ड्रिंक, हैल्दी लाइफस्टाइल… बस हैल्दी, हैल्दी, हैल्दी. उस के सिर पर अच्छी हैल्थ का भूत सवार रहता. उस के इतने गुणों के बावजूद मेरे मन में उस के लिए सिर्फ और सिर्फ नफरत थी. मु झे लगता था मोनिका मेरी मौम के आंसुओं का कारण है. हालांकि जहां तक मु झे याद है मैं ने कभी अपनी खुद की मौम और डैड के  झगड़े के बीच कभी मोनिका का नाम नहीं सुना था.

‘‘अरे, कहां खो गई?’’ रीता की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी और मैं फिर से कोक और चिप्स में मगन हो गई.

अगले 4 5 दिन मेरी जिंदगी के सब से अच्छे बीते. मैं खुद में खुश थी. इयर प्लग लगा कर गाने सुनती और अपने में मस्त रहती. घर

में क्या चल रहा है, इस का मु झे अंदाजा भी नहीं था. करीब हफ्ताभर बीत जाने के बाद जौन ने बताया कि मौम हौस्पिटल में हैं. अरे हां, कुछ दिनों से मु झे मोनिका घर में दिखी भी नहीं थी. पर मेरी नफरत इतनी ज्यादा थी कि मैं उसे होते हुए भी नहीं देखती थी तो उस के न होने पर

क्या खाक ध्यान देती? खैर, हौस्पिटल में है तो भी मु झे क्या?

फिर भी औपचारिकता के नाते मैं ने जौन से पूछ ही लिया, ‘‘क्या हुआ है उन्हें?’’

जौन सुबक पड़ा, ‘‘मौम को लंग कैंसर है… टर्मिनल स्टेज.’’

‘‘व्हाट,’’ मैं चीखी, ‘‘अभी पता चला और इतनी जल्दी टर्मिनल स्टेज कैसे?’’

दरअसल, कैंसर शुरू में लंग्स में ही था पर अब ब्रेन तक फैल गया है,’’ जौन ने आंसू पोंछते हुए कहा.

मुझे  झटका सा लगा. फिर बोली, ‘‘तुम चिंता मत करो जौन, एवरीथिंग विल बी फाइन,

कह कर मैं अपने कमरे में चली गई.

 

अब मु झे डैड की बात का मतलब सम झ में आया कि वे मु झे क्यों कह रहे थे कि उसे माफ कर दो. वह हमें छोड़ कर जाने वाली है. तो क्या छोड़ कर जाने का मतलब यह था? ओह नो. मैं मोनिका से मिलने के लिए अधीर हो उठी. शाम को मैं डैड के साथ हौस्पिटल गई पर उस से मिल न सकी. उसे शीशे के कैबिन में सब से दूर रखा गया था.

‘‘पर क्यों डैड?’’ मैं ने डैड से पूछा.

‘‘बेटा, मोनिका को कीमो के बाद शरीर कमजोर होने के कारण सीवियर चैस्ट इन्फैक्शन ने घेर लिया है. उसे सब से अलग इसलिए रखा गया है कि आगे उसे कोई इन्फैक्शन न लगे.’’

मैं शीशे के पार मोनिका के शरीर में लगी तमाम ट्यूब्स को देख रही थी. यह सच है कि मैं मोनिका को डैड से दूर देखना चाहती थी पर ऐसे नहीं. मैं उस से नफरत करती थी पर इतनी भी नहीं कि उसे इस हालत में देखूं. उस समय मैं बस कहना चाहती थी कि मैं ने उसे माफ किया. पर शीशे के उस पार वह क्या सुन पाती? मेरी आखें छलक पड़ीं.

उस रात मैं सो नहीं पाई और उस दिन को याद करने लगी जिस दिन मोनिका मेरे डैड की पत्नी बन कर मेरे घर आई थी और मैं ने उस

के बारे में एक बुरी औरत होने का विचार बना लिया था. मैं उस की सुंदरता, उस की काबिलीयत, उस के हैल्दी लाइफस्टाइल को

वह अवगुण मानने लगी जिस के कारण मेरी मौम मु झ से दूर हो गईं. ऐसा नहीं है कि मोनिका ने मु झ से प्यार जताने की कभी कोशिश नहीं की. पिछले 6 सालों में उस ने मेरा दिल जीतने के लाखों प्रयास किए. कितनी बार उस ने आंखों में आंसू भर कर मु झ से प्लीज, फौरगिव मी कहा पर मैं ने उस के हर प्रयास को एक साजिश सम झा, जिस के द्वारा वह मेरे मन से मेरी मौम की जगह छीन सके.

मु झे याद है कि अकसर ब्रेकफास्ट मोनिका ही बनाती थी. ज्यादातर वही बनता जो जौन को पसंद था. उस के लाख पूछने के बावजूद मैं ने उसे अपनी पसंद नहीं बताई. पर शायद उस ने डैड से पूछा लिया और अगली सुबह ब्रेकफास्ट के समय चहकते हुए यह कह कर परोसा कि आज मैं ने अपनी बेटी प्रिया की पसंद का ब्रेकफास्ट बनाया है. बस इतना सुनना था कि मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं ने उस के सामने ही ब्रेकफास्ट डस्टबिन में फेंक दिया और फ्रिज से ब्रैडबटर निकाल कर खा लिया. मोनिका मु झे देखती रही, पर मैं ने पलट कर नहीं देखा.

उस के बाद उस ने मु झे तोहफे देने शुरू किए. मेरी पसंद के

कपड़े, मेरी पसंद के जूते, खिलौने या कुछ और महंगे से महंगा. इतने महंगे उस ने कभी जौन के लिए भी नहीं लिए थे. पर मैं ने हर बार यह कहते हुए कि मेरा प्यार बिकाऊ नहीं है. तुम मु झे सारी दुनिया की दौलत से भी खरीद नहीं सकती उस के तोहफे लौटा दिए.

हर बार वह दुखी होते हुए कहती, ‘‘प्लीज, फौरगिव मी.’’

हर बार उस की आंखें डबडबातीं. कभीकभी एक पल के लिए मेरा दिल पिघलता भी, पर मैं तुरंत संयत हो जाती. वह मेरी मां के आंसुओं का कारण थी, इसलिए मैं बिना परवाह किए सिर  झटक कर चल देती.

वह हमारे रिश्तों को सुधारने के लिए कभी मौल, कभी पार्क, कभी मूवी चलने का प्रोग्राम बनाती, पर मैं सिर या पेट दर्द का बहाना बना कर अपने बिस्तर पर पड़ी रहती.

सचाई तो यह थी कि मैं उसे एक मौका नहीं देना चाहती थी कि वह मु झे खरीद सके. मु झे लगता था इसी में उस की हार है. हां, एक वक्त था, जब मैं काफी कमजोर पड़ गई थी. मु झे कई दिनों से बुखार था. मोनिका मेरा ध्यान रखने में कोई कमी नहीं रखना चाहती थी. वह मु झे अपने हाथ से दवा देती, जबकि मैं चाहती कि डैड

मु झे दवा दें. मैं दवा खाती नहीं थी. अगर उस ने मुंह में डाल दी तो निगलनी बिलकुल नहीं थी. गाल के बीच में फंसा लेती. उस के जाने के बाद थूक देती. इसी कारण बुखार बहुत बढ़ गया. मैं शायद अर्धबेहोशी की अवस्था में ‘मौममौम’ बड़बड़ा रही थी, जब मोनिका मेरे कमरे में आई. वह मेरे बिस्तर पर बैठ गई और मेरे तपते सिर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखने लगी. मु झे बहुत अच्छा लगा. मौम के होने का एहसास हुआ और मैं धीरे से उठ कर उस से लिपट गई. मोनिका ने भी मु झे गले से लगा लिया. दिल को बहुत सुकून मिला.

अचानक मु झे एहसास हुआ कि वह मेरी मौम नहीं है. मैं ने जल्दी से अपने को उस की बांहों से छुड़ाया. माथे से ठंडे पानी की पट्टी

हटा कर पानी का जग फेंक दिया. पानी फर्श पर फैल गया. उस पानी के बीच मु झे मोनिका की आंखों का पानी दिखाई नहीं दिया. बस शब्द सुनाई पड़े, ‘‘आर यू ओ के? प्लीज फौरगिव मी, प्लीज’’

उस के बाद डैड ने ही मु झे दवा दी. तन से मैं ठीक हो गई पर मन पहले से अधिक बीमार हो गया. मु झे लगा यह मेरी बहुत बड़ी हार थी और उस की बहुत बड़ी जीत. मैं कई दिनों तक उस से आंखें चुराती रही. मु झे लगता वह मुसकरा रही होगी, जश्न मना रही होगी. नहीं मैं उसे माफ नहीं कर सकती. मु झे और कठोर होना पड़ेगा.

शायद वह मोनिका की मु झे मनाने की आखिरी कोशिश थी. मेरे स्कूल में फैंसी ड्रैस कंपीटिशन था और मु झे परी बनना था. वह जानती थी कि महंगे गिफ्ट मु झे नहीं रि झा सकते, इसलिए उस ने अपनी व्यस्तताओं से समय निकाल कर खुद मेरा गाउन डिजाइन किया. सुनहरी पाइपिंग व लेस से सजा मेरा रैड गाउन और साथ में हैट पर लगे रैड रोज. मैं देखती ही रह गई.

मेरी सहमति देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘प्रिया, प्लीज मु झे अभी पहन कर दिखाओ. जिस दिन तुम्हारा फंक्शन है मेरा टूर है. तब मैं देख नहीं पाऊंगी.’’

 

 

असली चेहरा: अवंतिका से क्यों नफरत करने लगी थी उसकी दोस्त

नई कालोनी में आए मुझे काफी दिन हो गए थे. किंतु समयाभाव के कारण किसी से मिलनाजुलना नहीं हो पाता था. इसी वजह से किसी से मेरी कोई खास जानपहचान नहीं हो पाई थी. स्कूल में टीचर होने के कारण मुझे घर से सुबह 8 बजे निकलना पड़ता और 3 बजे वापस आने के बाद घर के काम निबटातेनिबटाते शाम हो जाती थी. किसी से मिलनेजुलने की सोचने तक की फुरसत नहीं मिल पाती थी.

मेरे घर से थोड़ी दूर पर ही अवंतिका का घर था. उस की बेटी योगिता मेरे ही स्कूल में और मेरी ही कक्षा की विद्यार्थी थी. वह योगिता को छोड़ने बसस्टौप पर आती थी. उस से मेरी बातचीत होने लगी. फिर धीरेधीरे हम दोनों के बीच एक अच्छा रिश्ता कायम हो गया. फिर शाम को अवंतिका मेरे घर भी आने लगी. देर तक इधरउधर की बातें करती रहती.

अवंतिका से मिल कर मुझे अच्छा लगता था. उस की बातचीत का ढंग बहुत प्रभावशाली था. उस के पहनावे और साजशृंगार से उस के काफी संपन्न होने का भी एहसास होता था. मैं खुश थी कि एक नई जगह अवंतिका के रूप में मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई है.

योगिता वैसे तो पढ़ाई में ठीक थी पर अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी. जब पहले दिन मैं ने उसे डांटते हुए होमवर्क न करने का कारण पूछा, तो उस ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘‘पापा ने मम्मा को डांटा था, इसलिए मम्मा रो रही थीं और मेरा होमवर्क नहीं करा पाईं.’’

योगिता आगे भी अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी और पूछने पर कारण हमेशा मम्मापापा का झगड़ा ही बताती थी. वैसे तो मात्र एक शिक्षिका की हैसियत से घर पर मैं अवंतिका से इस बारे में बात नहीं करती पर वह चूंकि मेरी सहेली बन चुकी थी और फिर प्रश्न योगिता की पढ़ाई से भी संबंधित था, इसलिए एक दिन अवंतिका जब मेरे घर आई तो मैं ने उसे योगिता के बारबार होमवर्क न करने और उस के पीछे बताने वाले कारण का उस से उल्लेख किया. मेरी बात सुन उस की आंखों में आंसू आ गए और फिर बोली, ‘‘मैं नहीं चाहती थी कि आप के सामने अपने घर की कमियां उजागर करूं, पर जब योगिता से आप को पता चल ही गया है हमारे झगड़े के बारे में तो आज मैं भी अपने दिल की बात कह कर अपना मन हलका करना चाहूंगी… दरअसल, मेरे पति का स्वभाव बहुत खराब है. उन की बातबात पर मुझ में कमियां ढूंढ़ने और मुझ पर चीखनेचिल्लाने की आदत है. लाख कोशिश कर लूं पर मैं उन्हें खुश नहीं रख पाती. मैं उन्हें हर तरह से बेसलीकेदार लगती हूं. आप ही बताएं आप को मैं बेसलीकेदार लगती हूं? क्या मुझे ढंग से पहननाओढ़ना नहीं आता या मेरे बातचीत का तरीका अशिष्ट है? मैं तो तंग आ गई हूं रोजरोज के झगड़े से… पर क्या करूं बरदाश्त करने के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है मेरे पास.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति से 2-4 बार बसस्टौप पर मिली हूं. उन से मिल कर तो नहीं लगता कि वे इतने बुरे मिजाज के होंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘किसी के चेहरे से थोड़े ही उस की हकीकत का पता चल सकता है… हकीकत क्या है, यह तो उस के साथ रह कर ही पता चलता है,’’ अवंतिका बोली.

मैं ने उस की लड़ाईझगड़े वाली बात को ज्यादा महत्त्व न देते हुए कहा, ‘‘तुम ने बताया था कि तुम्हारे पति अकसर काम के सिलसिले में बाहर जाते रहते हैं… वे बाहर रहते हैं तब तो तुम्हारे पास घर के काम और योगिता की पढ़ाई दोनों के लिए काफी समय होता होगा? तुम्हें योगिता की पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए.’’

‘‘किसी एक के खयाल रखने से क्या होगा? उस के पापा को तो किसी बात की परवाह ही नहीं होती. बेटी सिर्फ मेरी ही तो नहीं है? उन की भी तो है. उन्हें भी तो अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए. समय नहीं है तो न पढ़ाएं पर जब घर में हैं तब बातबात पर टोकाटाकी कर मेरा दिमाग तो न खराब करें… मैं तो चाहती हूं कि ज्यादा से ज्यादा दिन वे टूअर पर ही रहें…कम से कम घर में शांति तो रहती है.’’

अवंतिका की बातें सुन कर मेरा मन खराब हो गया. देखने में तो उस के पति सौम्य, सुशिक्षित लगते हैं, पर अंदर से कोई कैसा होगा, यह चेहरे से कहां पता चल सकता है? एक पढ़ालिखा उच्चपदासीन पुरुष भी अपने घर में कितना दुर्व्यवहार करता है, यह सोचसोच कर अवंतिका के पति से मुझे नफरत होने लगी.

अब अकसर अवंतिका अपने घर की बातें बेहिचक मुझे बताने लगी. उस की बातें सुन कर मुझे उस से सहानुभूति होने लगी कि इतनी अच्छी औरत की जिंदगी एक बदमिजाज पुरुष की वजह से कितनी दुखद हो गई… पहले जब कभी योगिता को बसस्टौप पर छोड़ने अवंतिका की जगह योगिता के पापा आते थे, तो मैं उन से हर विषय पर बात करती थी, किंतु उन की सचाई से अवगत होने के बाद मैं कोशिश करती कि उन से मेरा सामना ही न हो और जब कभी सामना हो ही जाता तो मैं उन्हें अनदेखा करने की कोशिश करती. मेरी धारणा थी कि जो इनसान अपनी पत्नी को सम्मान नहीं दे सकता उस की नजरों में दूसरी औरतों की भला क्या अहमियत होगी.

एक दिन अवंतिका काफी उखड़े मूड में मेरे पास आई और रोते हुए मुझ से कहा कि मैं 2 हजार योगिता के स्कूल टूअर के लिए अपने पास से जमा कर दूं. पति के वापस आने के बाद वापस दे देगी. चूंकि मैं योगिता की कक्षाध्यापिका थी, इसलिए मुझे पता था कि स्कूल टूअर के लिए बच्चों को 2 हजार देने हैं. अत: मैं ने अवंतिका से पैसे देने का वादा कर लिया. पर उस का रोना देख कर मैं पूछे बगैर न रह सकी कि उसे पैसे मुझ से लेने की जरूरत क्यों पड़ गई?

मेरे पूछते ही जैसे अवंतिका के सब्र का बांध टूट पड़ा. बोली, ‘‘आप को क्या बताऊं मैं अपने घर की कहानी… कैसे जिंदगी गुजार रही हूं मैं अपने पति के साथ… बिलकुल भिखारी बना कर रखा है मुझे. कितनी बार कहा अपने पति से कि मेरा एटीएम बनवा दो ताकि जब कभी तुम बाहर रहो तो मैं अपनी जरूरत पर पैसे निकाल सकूं. पर जनाब को लगता है कि मेरा एटीएम कार्ड बन गया तो मैं गुलछर्रे उड़ाने लगूंगी, फुजूलखर्च करने लगूंगी. एटीएम बनवा कर देना तो दूर हाथ में इतने पैसे भी नहीं देते हैं कि मैं अपने मन से कोई काम कर सकूं. जाते समय 5 हजार पकड़ा गए. कल 3 हजार का एक सूट पसंद आ गया तो ले लिया. 1 हजार ब्यूटीपार्लर में खत्म हो गए. रात में 5 सौ का पिज्जा मंगा लिया. अब केवल 5 सौ बचे हैं. अब देख लीजिए स्कूल से अचानक 3 हजार मांग लिए गए टूअर के लिए तो मुझे आप से मांगने आना पड़ गया… क्या करूं 2 ही रास्ते बचे थे मेरे पास या तो बेटी की ख्वाहिश का गला घोट कर उसे टूअर पर न भेजूं या फिर किसी के सामने हाथ फैलाऊं. क्या करती बेटी को रोता नहीं देख सकती, तो आप के ही पास आ गई.’’

अवंतिका की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गई. अगर 2 दिन के लिए पति 5 हजार दे कर जाता है, तो वे कोई कम तो नहीं हैं पर उन्हीं 2 दिनों में पति के घर पर न होते हुए उन पैसों को आकस्मिक खर्च के लिए संभाल कर रखने के बजाय साजशृंगार पर खर्च कर देना तो किसी समझदार पत्नी के गुण नहीं हैं? शायद उस की इसी आदत की वजह से ही उस के पति एटीएम या ज्यादा पैसे एकसाथ उस के हाथ में नहीं देते होंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि पैसे हाथ में रहने पर अवंतिका इन्हीं चीजों पर खर्च करती रहेगी. पर फिर भी मैं ने यह कहते हुए उसे पैसे दे दिए कि मैं कोई गैर थोड़े ही हूं, जब कभी पैसों की ऐसी कोई आवश्यकता पड़े तो कहने में संकोच न करना.

कुछ ही दिनों बाद विद्यालय में 3 दिनों की छुट्टी एकसाथ पड़ने पर मेरे पास कुछ खाली समय था, तो मैं ने सोचा कि मैं अवंतिका की इस शिकायत को दूर कर दूं कि मैं एक बार भी उस के घर नहीं आई. मैं ने उसे फोन कर के शाम को अपने आने की सूचना दे दी और निश्चित समय पर उस के घर पहुंच गई.

पर डोरबैल बजाने से पहले ही मेरे कदम ठिठक गए. अंदर से अवंतिका और उस के पति के झगड़े की आवाजें आ रही थीं. उस के पति काफी गुस्से में थे, ‘‘कितनी बार समझाया है तुम्हें कि मेरा सूटकेस ध्यान से पैक किया करो, पर तुम्हारा ध्यान पता नहीं कहां रहता है. हर बार कोई न कोई सामान छोड़ ही देती हो तुम… इस बार बनियान और शेविंग क्रीम दोनों ही नहीं रखे थे तुम ने. तुम्हें पता है कि गैस्टहाउस शहर से कितनी दूर है? दूरदूर तक दुकानों का नामोनिशान तक नहीं है. तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती हो कि मुझे कितनी परेशानी और शर्म का सामना करना पड़ा वहां पर… इस बार तो मेरे सहयोगी ने हंसीहंसी में कह भी दिया कि भाभीजी का ध्यान कहां रहता है सामान पैक करते समय?’’

‘‘देखो, तुम 4 दिन बाद घर आए हो… आते ही चीखचिल्ला कर दिमाग न खराब करो. तुम्हें लगता है कि मैं लापरवाह और बेसलीकेदार हूं तो तुम खुद क्यों नहीं पैक कर लेते हो अपना सूटकेस या फिर अपने उस सहयोगी से ही कह दिया करो आ कर पैक कर जाया करे? मुझे क्यों आदेश देते हो?’’ यह अवंतिका की आवाज थी.

‘‘जब मुझे पहले से पता होता है कि मुझे जाना है तो मैं खुद ही तो पैक करता हूं अपना सूटकेस, पर जब औफिस में जाने के बाद पता चलता है कि मुझे जाना है तो मेरी मजबूरी हो जाती है कि मैं तुम से कहूं कि मेरा सूटकेस पैक कर के रखना. मैं तुम्हें कार्यक्रम तय होते ही सूचित कर देता हूं ताकि तुम्हें हड़बड़ी में सामान न डालना पड़े. इस बार भी मैं ने 3 घंटे पहले फोन कर दिया था तुम्हें.’’

‘‘जब तुम्हारा फोन आया था उसी समय मैं ने चेहरे पर फेस पैक लगाया था. उसे सूखने में तो समय लगता है न? जब तक वह सूखा तब तक तुम्हारा औफिस बौय आ गया सूटकेस लेने, बस जल्दी में चीजें छूट गईं. इस में मेरी इतनी गलती नहीं है जितना तुम चिल्ला रहे हो.’’

‘‘गलती छोटी है या बड़ी यह तो नतीजे पर निर्भर करता है. 3 दिन मैं ने बिना बनियान के शर्ट पहनी और अपने सहयोगी से क्रीम मांग कर शेविंग की. इस में तुम्हें न शर्म का एहसास है और न अफसोस का.’’

‘‘तुम्हें तो बस बात को तूल देने की आदत पड़ गई है. कोई दूसरा पति होता तो बीवीबच्चों से मिलने की खुशी में इन बातों का जिक्र ही नहीं करता… और तुम हो कि उसी बात को तूल दिए जा रहे हो.’’

‘‘बात एक बार की होती तो मैं भी न तूल देता, पर यह गलती तो तुम हर बार करती हो… कितनी बार चुप रहूं?’’

‘‘नहीं चुप रह सकते हो तो ले आओ कोई दूसरी जो ठीक से तुम्हारा खयाल रख सके. मुझ में तो तुम्हें बस कमियां ही कमियां नजर आती हैं.’’

टूअर पर गए पति के पास पहनने को बनियान नहीं थी, दाढ़ी करने के लिए क्रीम नहीं थी अवंतिका की गलती की वजह से. फिर भी वह शर्मिंदा होने के बजाय उलटा बहस कर रही है. कैसी पत्नी है यह? अवंतिका का असली रूप उजागर हो रहा था मेरे सामने. अंदर के माहौल को सोच कर मैं ने उलटे पांव लौट जाने में ही भलाई समझी. पर ज्यों ही मैं ने लौटने के लिए कदम बढ़ाया. अंदर से गुस्से में बड़बड़ाते उस के पति दरवाजा खोल कर बाहर निकल आए.

दरवाजे पर मुझे खड़ा देख उन के कदम ठिठक गए. बोले, ‘‘अरे, मैम आप? आप बाहर क्यों खड़ी हैं? अंदर आइए न,’’ कह कर दरवाजे के एक किनारे खड़े हो कर उन्होंने मुझे अंदर आने का इशारा किया साथ ही अवंतिका को आवाज दी, ‘‘अवंतिका देखो नेहा मैम आई हैं.’’

मुझे देखते ही अवंतिका खुश हो गई. उस के चेहरे पर कहीं भी शर्मिंदगी का एहसास न था कि कहीं मैं ने उन की बहस सुन तो नहीं ली है. किंतु उस के पति के चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव साफ नजर आ रहा था.

अवंतिका के घर के अंदर पहुंचने से पहले ही पतिपत्नी के झगड़े को सुन खिन्न हो चुका मेरा मन अंदर पहुंच कर अवंतिका के बेतरतीब और गंदे घर को देख कर और खिन्न हो गया. अवंतिका के हर पल सजेसंवरे व्यक्तित्व के ठीक विपरीत उस का घर अकल्पनीय रूप से अस्तव्यस्त था. कीमती सोफे पर गंदे कपड़े और डाइनिंगटेबल पर जूठे बरतनों के साथसाथ कंघी और तेल जैसी वस्तुएं भी पड़ी हुई थीं. योगिता का स्कूल बैग और जूते ड्राइंगरूम में ही इधरउधर पड़े थे. आज तो स्कूल बंद था. इस का मतलब यह सारा सामान कल से ही इसी तरह पड़ा है. बैडरूम का परदा खिसका पड़ा था. अत: न चाहते हुए वहां भी नजर चली ही गई. बिस्तर पर भी कपड़ों का अंबार साफ नजर आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि धुले कपड़ों को कई दिनों से तह कर के नहीं रखा गया. उस के घर की हालत पर अचंभित मैं सोफे पर कपड़े सरका कर खुद ही जगह बना कर बैठ गई.

‘‘आप आज हमारे घर आएंगी यह सुन कर योगिता बहुत खुश थी. बेसब्री से आप का इंतजार कर रही थी पर अभीअभी सहेलियों के साथ खेलने निकल गई है,’’ कहते हुए अवंतिका मेरे लिए पानी लेने किचन में गई तो पीछेपीछे उस के पति भी चले गए.

मुझे साफ सुनाई दिया वे कह रहे थे, ‘‘जब तुम्हें पता था कि मैम आने वाली हैं तब तो घर को थोड़ा साफ कर लिया होता…क्या सोच रही होंगी वे घर की हालत देख कर?’’

‘‘मैम कोई मेहमान थोड़े ही हैं… कुछ भी नहीं सोचेंगी… तुम उन की चिंता न

करो और जरा जल्दी से चायपत्ती और कुछ खाने को लाओ,’’ कह उस ने पति को दुकान पर भेज दिया.

उस के घर पहुंच कर मुझे झटके पर झटका लगता जा रहा था. मैं अवंतिका की गृहस्थी चलाने का ढंग देख कर हैरान हो रही थी. 2 दिन पहले ही अवंतिका मेरे घर से चायपत्ती यह कह कर लाई थी कि खत्म हो गई है और तब से आज तक खरीद कर नहीं लाई? बारबार कहने और बुलाने के बाद आज पूर्व सूचना दे कर मैं आई हूं फिर भी घर में चाय के साथ देने के लिए बिस्कुट तक नहीं?

उस के पति के जाने के बाद मैं ने सोचा कि अकेले बैठने से अच्छा है अवंतिका के साथ किचन में ही खड़ी हो जाऊं. पर किचन में पहुंचते ही वहां जूठे बरतनों का अंबार देख और अजीब सी दुर्गंध से घबरा कर वापस ड्राइंगरूम में आ कर बैठने में ही भलाई समझी.

मेरा मन बुरी तरह उचट चुका था. मैं समझ गई थी कि अवंतिका उन औरतों में से है, जिन के लिए बस अपना साजशृंगार ही महत्त्वपूर्ण होता है. घर के काम और व्यवस्था से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं होता और उन पर कोई उंगली न उठा पाए, इस के लिए वे सब के सामने अपने को बेबस और लाचार सिद्ध करती रहती हैं और सारा दोष अपने पति के मत्थे मढ़ देती हैं. उस के घर आने के अपने निर्णय पर मुझे अफसोस होने लगा था. हर समय सजीसंवरी दिखने वाली अवंतिका के घर की गंदगी में घुटन होने लगी थी. चाय के कप पर जमी गंदगी को अनदेखा कर जल्दीजल्दी चाय का घूंट भर कर मैं वहां से निकल ली.

वहां से वापस आ कर मेरी सोच पलट गई. उस के घर की तसवीर मेरे सामने स्पष्ट हो गई थी. अवंतिका उन औरतों में से थी, जो अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने पति को दूसरों के सामने बदनाम करती हैं. अवंतिका के पति एक सौम्य, सुशिक्षित और सलीकेदार व्यक्ति थे. निश्चित ही वे घर को सुव्यवस्थित और आकर्षक ढंग से सजाने के शौकीन होंगे तभी तो अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने घर में कीमती फर्नीचर, परदों और शो पीस पर खर्च किया था. पर उन के रखरखाव और देखभाल की जिम्मेदारी तो अवंतिका की ही होगी. पर अवंतिका के स्वभाव में घर की सफाई और सुव्यवस्था शामिल नहीं थी. इसी वजह से उस के पति नाखुश और असंतुष्ट हो कर उस पर अपनी खीज उतारते होंगे.

सुबहसवेरे घर छोड़ कर काम पर गए पतियों के लिए घर एक आरामगाह होता है. वहां के लिए शाम को औफिस से छूटते ही पति ठीक उसी तरह भागते हैं जैसे स्कूल से छूटते ही छोटे बच्चे भागते हैं. बाहर की आपाधापी, भागदौड़ से थका पति घर पहुंच कर अगर साफसुथरा घर और शांत माहौल पाता है, तो उस की सारी थकान और तनाव खत्म हो जाता है. पर अवंतिका के अस्तव्यस्त घर में पहुंच कर तो किसी को भी सुकून का एहसास नहीं हो सकता है. जिस घर के कोनेकोने में नकारात्मकता विद्यमान हो वहां रहने वालों को सुकून और शांति कैसे मिल सकती है?

सुबह से शाम तक औफिस में खटता पति अपनी पत्नी के ही हाथों दूसरों के बीच बदनाम होता रहता है. अवंतिका के घर से निकलते वक्त मेरी धारणा पलट चुकी थी. अब मेरे अंदर उस के पति के लिए सम्मान और सहानुभूति थी और अवंतिका के लिए नफरत.

फौरगिव मी: भाग 1- क्या मोनिका के प्यार को समझ पाई उसकी सौतेली मां

रात के 12 बजे थे. मैं रोज की तरह अपने कमरे में पढ़ रही थी. तभी डैड मेरे कमरे में आए. मु झे देख कर बोले, ‘‘पढ़ रही हो क्या, प्रिया?’’

मैं ने उन की तरफ बिना देखे कहा, ‘‘आप को जो कहना है कहिए और जाइए.’’

मैं जानती थी कि डैड इस समय मेरे कमरे में सिर्फ तुम पढ़ रही हो क्या, पूछने तो नहीं आए होंगे. जरूर कुछ और कहने आए होंगे और भूमिका बांध रहे हैं. भूमिकाओं से मु झे खासी नफरत है. यह वजह काफी थी मु झे क्रोध दिलाने के लिए.

डैड ने सिर  झुका कर कहा, ‘‘अब उसे माफ कर दो प्रिया… वैसे भी वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’

‘‘माफ… माई फुट, मैं उसे कभी माफ नहीं कर सकती,’’ मैं ने गुस्से को रोकते हुए कहा.

‘‘आखिर वह तुहारी मौम है.’’

डैड के ये शब्द मु झे अंदर तक तोड़ गए. मैं गुस्से में चीख पड़ी, ‘‘डैड, वह आप की वाइफ हो सकती है. मेरी मौम नहीं है और न ही वह कभी मेरी मौम की जगह ले सकती है. दुनिया की कोई भी ताकत ऐसा नहीं करवा सकती है.’’

‘‘पर प्रिया…’’

डैड का वाक्य पूरा होने से पहले ही मैं ने अपनी किताब जमीन पर फेंक दी, ‘‘जाइए… जाइए यहां से… जस्ट लीव मी अलोन.’’

डैड मेरा गुस्सा देख कर चले गए और मैं देर तक सुबकती रही. मैं भले ही सिर्फ 15 साल की थी पर परिस्थितियों ने मु झे अपनी उम्र से काफी बड़ा कर दिया था. रोतेरोते अचानक मु झे डैड के शब्द ध्यान आए कि वह हमें छोड़ कर जाने वाली है… और मेरे दिमाग ने इस का सीधासादा मतलब निकाल लिया कि डैड और मोनिका का तलाक होने वाला है. क्या सच? क्या इसीलिए डैड दुखी थे? मेरे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मैं अपने दोनों कानों पर हाथ रख कर चिल्लाई, ‘‘ओह, ग्रेट.’’

दूसरे दिन मैं खुशीखुशी स्कूल गई. मैं ने अपनी सहेलियों को कैंटीन में ले जा कर ट्रीट दी. हालांकि सब खानेपीने में मस्त थीं पर नैन्सी ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रिया, आखिर यह ट्रीट किस खुशी में दी जा रही है?’’

मैं ने चहकते हुए कहा, ‘‘फाइनली… फाइनली ऐंड फाइनली मोनिका और मेरे डैड में तलाक होने वाला है और वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’

अपनी स्टैप मौम मोनिका के लिए मेरे मन में इतनी नफरत थी कि मैं ने उसे कभी मौम नहीं कहा. मैं हमेशा उसे मोनिका ही कहती रही, डैड के लाख सम झाने के बावजूद. वैसे भी खुली संस्कृति वाले अमेरिका में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

तभी रीता ने कोक का घूंट गटकते हुए पूछा, ‘‘प्रिया, क्या तुम्हारे डैड और स्टैप मौम में काफी  झगड़े होते हैं?’’

‘‘नहीं तो?’’

इस बात का उत्तर देने के साथ ही मैं अतीत में पहुंच गई…

जब मैं छोटी थी तब मेरी मौम और डैड में बहुत  झगड़े होते थे. उन को  झगड़ता देख कर मैं रोने लगती. थोड़ी देर के लिए दोनों चुप हो जाते पर फिर  झगड़ना शुरू कर देते. उन के  झगड़े में बारबार मेरा नाम भी शामिल होता. दोनों कहते कि अगले की वजह से मेरा जीवन खराब हो

रहा है. मैं बहुत सहम जाती थी. मैं मौम या डैड में से किसी एक को चुनना नहीं चाहती थी. इसी कारण कई बार नींद खुल जाने के कारण भी मैं आंखें बंद किए पड़ी रहती कि कहीं मु झे रोता देख कर दोनों एकदूसरे पर मु झे रुलाने का कारण न थोपने लगें.

कई बार भय से मेरा टौयलेट बिस्तर पर ही छूट जाता और मौम मु झे बाथरूम में ले जा कर शावर के नीचे बैठा देतीं. रात में ही बैडशीट बदली जाती. मु झे थोड़ा पुचकार कर फिर दोनों  झगड़ने लगते. पर बात संभलते न देख कर दोनों की सहमति से मु झे दूसरे कमरे में सुलाया जाने लगा. अफसोस,  झगड़े की आवाजों ने यहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा. मैं कानों पर तकिया रख कर जोर से दबाती पर आवाजें मेरा पीछा न छोड़तीं. मैं रोज कामना करती कि मेरे मौमडैड

के बीच सब ठीक हो जाए. हम भी ‘हैपी फैमिली’ की तरह रहें. मगर मेरी कामना कभी पूरी नहीं हुई.

मु झे आज भी वे दिन अच्छी तरह याद हैं. मैं 6 साल की थी. मौम ने मु झे गुलाबी रंग का फ्रौक पहनाया और खूब प्यार किया. मौम बहुत रोती जा रही थीं. रोतेरोते ही उन्होंने मु झ से कहा, ‘‘प्रिया, मैं केस हार गई हूं, तुम्हारी कस्टडी पापा को मिली है. मैं वापस इंडिया जा रही हूं. तुम्हें यहां अमेरिका में रहना है, अपने पापा के साथ. हो सकता है आगे तुम्हारी कोई स्टैप मौम आए, पर तुम संयत रहना. बड़ा होने पर मैं कैसे भी तुम्हें ले जाऊंगी.’’

मौम चली गईं और मैं रह गई डैड के साथ अकेली. पहले 2 सालों में डैड मु झे इंडिया ले कर गए. मौम से भी मिलाया, पर उस के बाद यह संपर्क टूट गया. हां, कभीकभी मौम से फोन पर बात होती. उन के आंसू मु झे अंदर तक चीर देते थे. मैं इमोशनल सपोर्ट के लिए डैड पर निर्भर होती जा रही थी.

मेरा 8वां बर्थडे था जब मोनिका डैड की जिंदगी में आई. वह पार्टी में इनवाइटेड

गैस्ट्स में थी. डैड उस से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहे थे. मु झे उस का डैड के साथ इस तरह घुलमिल कर बातें करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. अलबत्ता उस के बेटे जौन के साथ मेरी अच्छी जमी. हम ने कई खेल साथ खेले. उस के बाद मोनिका अकसर हमारे घर आने लगी. डैड का टाइम जो मेरे लिए था उस पर वह कब्जा जमाने लगी. उसे डैड के साथ देख कर मेरे मन में न जाने कैसे आग सी लग जाती. मु झे लगता डैड के इतने पास कोई नहीं बैठ सकता. वह जगह मेरी मौम की थी, जिसे कोई नहीं ले सकता. मैं तरकीबें सोचती कि कैसे डैड को उस से दूर रखूं. पर डैड और मोनिका के प्रेम के बहाव के आगे मेरी छोटी नादान सारी तरकीबें बह गईं. प्रेम अंधा होता है और स्वार्थी भी. डैड को मोनिका को अपनी प्राथमिकताओं की लिस्ट में पहला स्थान देते समय मेरी बिलकुल याद नहीं आई. कुछ ही महीनों में दोनों ने शादी कर ली.

मोनिका के साथ उस का बेटा जौन भी हमारे घर आ गया. जौन के रूप में मु झे सौतेला ही सही पर छोटा भाई तो मिल ही गया. मगर मोनिका को मैं कभी माफ नहीं कर सकी. न ही कभी अपनी मौम की जगह दे सकी.

वैडिंग गाउन में जब मोनिका ने हमारे घर में प्रवेश किया था तो मेरा गुस्से से भरा चेहरा देख कर उस के पहले शब्द यही निकले थे, ‘‘प्रिया, जिंदगी एक बहाव है. जीवननदी कैसे बहती है कोई नहीं जानता. यह नदी कभी पत्थरों को साथ बहा ले जाती है, तो कभीकभी बड़े पर्वत को काट देती है, तो कभी मन बना लेती है कि उसे पर्वत से नहीं टकराना और फिर चुपचाप अपना रास्ता बदल लेती है. अब यह पता नहीं कि नदी ये सब अपनी इच्छा से करती है या सबकुछ पूर्वनियोजित होता है. फिर भी हम किसी सूरत से नदी को दोष नहीं दे सकते. तुम्हारे जीवन में मैं आ गई हूं. मैं जानती हूं तुम मु झे पसंद नहीं करती हो. सबकुछ अचानक हुआ, यह पूर्व नियोजित नहीं था. फिर भी अगर तुम मु झे गलत सम झती हो तो प्लीज फौरगिव मी. अब हम एक फैमिली हैं और मैं कोशिश करूंगी कि हम एक अच्छी फैमिली के रूप में आगे बढ़ें.’’

मु झे उस की बात में दम लगा था. मैं भी एक अच्छी जिंदगी जीना चाहती थी. शायद मैं उसे माफ कर देती पर मेरी मां के आंसू मु झे ऐसा करने से रोक रहे थे. मैं ने अपनेआप को संयत किया. ‘ओह, कितनी चालाक है, अपना ज्ञान बघार रही है, पर मु झे इंप्रैस नहीं कर सकती,’ सोचते हुए मैं ने उस का हाथ  झटक दिया और अपने कमरे में चली गई.

 

Women’s Day 2024: मर्यादा- क्या हुआ था स्वाति के साथ

रात के 12 बज रहे थे, लेकिन स्वाति की आंखों में नींद नहीं थी. वह करवटें बदल रही थी. उस की बगल में लेटा पति वरुण गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. स्वाति दिन भर की थकान के बाद भी सो नहीं पा रही थी. आज का घटनाक्रम बारबार उस की आंखों में घूम रहा था. आज ऐसा कुछ हुआ कि वह कांप कर रह गई. जिसे वह सिर्फ खेल समझती थी वह कितना गंभीर हो सकता है, उसे इस बात का भान नहीं था. वह मर्दों से हलकाफुलका मजाक और फ्लर्टिंग को सामान्य बात समझती थी. स्वाति अपनी फ्रैंड्स और रिश्तेदारों से कहती थी कि उस की मार्केट में इतनी जानपहचान है कि कोई भी सामान उसे स्पैशल डिस्काउंट पर मिलता है.

स्वाति फोन पर अपने मायके में भाभी से कहती कि आज मैं ने वैस्टर्न ड्रैस खरीदी. इतनी बढि़या और अच्छे डिजाइन में बहुत सस्ती मिल गई. मैं ने साड़ी बिलकुल नए कलर में खरीदी. 1000 की है पर मुझे सिर्फ 500 में मिल गई. डायमंड रिंग अपनी फ्रैंड से और्डर दे कर बनवाई. ऐसी रिंग क्व2 लाख से कम नहीं, परंतु मुझे क्व11/2 लाख में मिल गई. भाभी की नजरों में स्वाति की छवि बहुत ही समझदार और पारखी महिला के रूप में थी. वह जब भी कोई सामान खरीद कर भेजने को कहती, स्वाति खुशीखुशी भिजवा देती. पूरे परिवार में उस के नाम का डंका बजता था.

स्वाति आकर्षक नैननक्श वाली पढ़ीलिखी महिला थी. बचपन से ही उसे खरीदारी का बेहद शौक था. लाखों रुपए की खरीदारी इतने कम दाम और चुटकियों में करती कि हर कोई हैरान रह जाता. स्वाति का मायका मिडल क्लास फैमिली से था. 15 साल पहले एक बड़े उद्योगपति परिवार में उस की शादी हुई. शादी भले ही करोड़पति घर में हो गई, लेकिन संस्कार वही मिडल क्लास फैमिली वाले ही थे. 1-1 पैसे की कीमत वह जानती थी. घर खर्च में पैसा बचाना और उस पैसे से स्वयं के लिए खरीदारी करने में उसे बहुत मजा आता. पति से भी पैसे मारना स्वाति को अच्छा लगता था. अच्छे संस्कार, पढ़ीलिखी और समझदार स्वाति को एक बात बड़ी आसानी से समझ आ गई थी कि पुरुषों की कमजोरी क्या है. कैसे कम रेट पर खरीदारी करनी है. वह उस दुकान या शोरूम में ही खरीदारी करती जहां पुरुष मालिक होते. वह सेल्समैन से बात नहीं करती. सेल्समैन से वह कहती, ‘‘आप तो सामान दिखा दो, रेट मैं अपनेआप भैया से तय कर लूंगी.’’

और जब हिसाबकिताब की बारी आती, तो वह सेठ की आंखों में आंखें डाल कर कहती, ‘‘भैया सही रेट बताओ. आज की नहीं 10 सालों से आप की शौप पर आ रही हूं.’’

‘‘भाभी, आप को रेट गलत नहीं लगेगा, क्यों चिंता करती हैं?’’ सेठ कहता.

‘‘नहीं, इस बार ज्यादा लगा रहे हो. मुझे तो स्पैशल डिस्काउंट मिलता है, आप की शौप पर,’’ कहते हुए स्वाति काउंटर पर खड़े सेठ के हाथों को बातोंबातों में स्पर्श करती या फिर कहती, ‘‘भैया, आप तो मेरे देवर की तरह हो. देवरभाभी के बीच रुपएपैसे मत लाओ न.’’

अकसर दुकानदार स्वाति की मीठीमीठी बातों में आ कर उसे 10-20% तक स्पैशल डिस्काउंट दे देते थे. एक ज्वैलर से तो स्वाति ने जीजासाली का रिश्ता ही बना लिया था. ज्वैलरी आमतौर पर औरतों की कमजोरी होती है, स्वाति की भी कमजोरी थी. वह अकसर इस ज्वैलर के यहां पहुंच जाती. क्याक्या नई डिजाइनें आई हैं, देखने जाती तो कुछ न कुछ पसंद आ ही जाता. तब जीजासाली के बीच हंसीमजाक शुरू हो जाता.

स्वाति कहती, ‘‘साली आधी घरवाली होती है जीजाजी, इतने ही दूंगी.’’

ज्वैलर स्वाति का स्पर्शसुख पा कर निहाल हो जाता. उस के मन में स्पर्श को आगे बढ़ाने की प्लानिंग चलती रहती, पर स्वाति थी कि काबू में ही नहीं आती थी. सामान खरीदा और उड़न छू. उस दिन भतीजी की शादी के लिए सामान व ज्वैलरी खरीदने स्वाति ज्वैलर के यहां पहुंच गई. उसे भाभी ने बताया था कि क्याक्या खरीदना है.

स्वाति ने घर से निकलने से पहले ही ज्वैलर को फोन किया, ‘‘भतीजी की शादी के लिए ज्वैलरी खरीदने आ रही हूं. आप अच्छीअच्छी डिजाइनों का चयन करा कर रखना. मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं होगा.’’

‘‘आप आइए तो सही साली साहिबा. आप के लिए सब हाजिर है,’’ ज्वैलर ने कहा. ज्वैलरी की यह दुकान कोई बड़ा शोरूम नहीं था, लेकिन वह खुद अच्छा कारीगर था और और्डर पर ज्वैलरी तैयार करता था. शहर की एक कालोनी में उस की दुकान थी जहां कुछ खास लोगों को और्डर पर तैयार ज्वैलरी भी दिखा कर बेच देता था और और्डर देने वाले को कुछ दिन बाद सप्लाई दे देता. स्वाति की एक फ्रैंड रजनी ने उस ज्वैलर्स से उस की मुलाकात कराई थी. लेकिन रजनी कभी यह बात समझ नहीं पाई थी कि आखिर यह ज्वैलर स्वाति पर इतना मेहरबान क्यों रहता है. उसे नईनई डिजाइनें दिखाता है और अतिरिक्त डिस्काउंट भी देता है.

‘‘जीजाजी, कुछ और डिजाइनें दिखाओ. ये तो मैं ने पिछली बार देखी थीं,’’ स्वाति ने ज्वैलर की आंखों में झांकते हुए कहा.

स्वाति को ज्वैलर की आंखों में शरारत नजर आ रही थी. वह बारबार सहज होने की कोशिश कर रहा था. अपनी आदत के मुताबिक स्वाति ने बातोंबातों में ज्वैलर के हाथों पर इधरउधर स्पर्श किया. उस का यह स्पर्श ज्वैलर को बेचैन कर रहा था. उस ने भी स्वाति की हरकतें देख हौसला दिखाना शुरू कर दिया. वह भी बातोंबातों में स्वाति के हाथों पर स्पर्श करने लगा. यह स्पर्श स्वाति को कुछ बेचैन कर रहा था, लेकिन वह सहज रही. उसे कुछ देर की हरकतों से स्पैशल डिस्काउंट जो लेना था. स्वाति ने देखा कि आज दुकान पर सिर्फ एक लड़का ही हैल्पर के तौर पर काम कर रहा था बाकी स्टाफ न था. ज्वैलर ने उसे एक सूची थमाते हुए कहा कि यह सामान मार्केट से ले आओ. और जाने से पहले फ्रिज में रखे 2 कोल्ड ड्रिंक खोल कर दे जाओ.’’

‘‘आप और नई डिजाइनें दिखाइए न,’’ स्वाति ने कहा.

‘‘हां, अभी दिखाता हूं. कल ही आई हैं. आप के लिए ही रखी हुई हैं अलग से.’’

‘‘तो दिखाइए न,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘आप ऐसा करें अंदर वाले कैबिन में आ कर पसंद कर लें. अभी अंदर ही रखी हैं… लड़का भी जा चुका है तो…’’

स्वाति ने देखा लड़का सामान की सूची ले कर जा चुका था. अब दुकान पर सिर्फ ज्वैलर और स्वाति ही थे. स्वाति को एक पल के लिए डर लगा कि अकेली देख ज्वैलर कोई हरकत न कर दे. वह ऐसा कुछ चाहती भी नहीं थी. वह तो सिर्फ कुछ हलकीफुलकी अदाएं दिखा कर दुकानदारों से फायदा उठाती आई थी. आज भी ऐसा कुछ कर के ज्वैलर से स्पैशल डिस्काउंट लेने की फिराक में थी. उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी खरीदारी कर के निकल ले. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था कि क्या करे. वह अपनेआप को संभाल कर कैबिन में ज्वैलरी देखने घुस गई. उस ने अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘जीजाजी, आज कुछ सुस्त लग रहे हो क्या बात है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘कोई तो बात है, मुझ से छिपाओगे क्या?’’

‘‘आप नैकलैस देखिए, साथसाथ बातें करते हैं,’’ ज्वैलर ने कहा. स्वाति गजब की सुंदर लग रही थी. वह बनठन कर निकली थी. ज्वैलर के मन में हलचल थी जो उसे बेचैन कर रही थी. उस ने सोचा कि हिम्मत दिखाई जा सकती है. अत: उस ने स्वाति के हाथ को स्पर्श किया तो वह सहम गई. लेकिन उस ने सोचा कि अगर थोड़ा छू लिया तो उस से क्या फर्क पड़ेगा. स्वाति के रुख को देख ज्वैलर का हौसला बढ़ गया. उस ने स्वाति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा. ज्वैलर की इस आकस्मिक हरकत से वह हड़बड़ा गई.

‘‘क्या कर रहे हो?’’ स्वाति ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

ज्वैलर ने अपनी हरकत जारी रखी. स्वाति घबरा गई. ज्वैलर की हिम्मत देख दंग रह गई वह. मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने की सोच उसे भारी पड़ती नजर आ रही थी. वह कैसे ज्वैलर के चंगुल से बचे, सोचने लगी. फिर उस ने हिम्मत दिखाई और ज्वैलर के गाल पर थप्पड़ों की बारिश कर दी. स्वाति क्रोध से कांप रही थी. उस का यह रूप देख ज्वैलर हड़बड़ा गया. इसी हड़बड़ी में वह जमीन पर गिर गया. स्वाति के लिए यही मौका था कैबिन से बाहर निकल भागने का. अत: वह फुरती दिखाते हुए तुरंत कैबिन से बाहर निकल अपनी कार में जा बैठी. फिर तुरंत कार स्टार्ट कर वहां से चल दी. उस के अंदर तूफान चल रहा था. उसे आत्मग्लानि हो रही थी. लंबे समय से स्वाति जिसे खेल समझती आ रही थी, वह कितना गंभीर हो सकता है, उस ने यह कभी सोचा भी नहीं था.

वही खुशबू: आखिर क्या थी भैरों सिंह की असलियत

बहुत दिनों से सुनती आई थी कि भैरों सिंह अस्पताल के चक्कर बहुत लगाते हैं. किसी को भी कोई तकलीफ हो, किसी स्वयंसेवक की तरह उसे अस्पताल दिखाने ले जाते. एक्सरे करवाना हो या सोनोग्राफी, तारीख लेने से ले कर पूरा काम करवा कर देना जैसे उन की जिम्मेदारी बन जाती. मैं उन्हें बहुत सेवाभावी समझती थी. उन के लिए मन में श्रद्धा का भाव उपजता, क्योंकि हमें तो अकसर किसी की मिजाजपुरसी के लिए औपचारिक रूप से अस्पताल जाना भी भारी पड़ता है.

लोग यह भी कहते कि भैरों सिंह को पीने का शौक है. उन की बैठक डाक्टरों और कंपाउंडरों के साथ ही जमती है. इसीलिए अपना प्रोग्राम फिट करने के लिए अस्पताल के इर्दगिर्द भटकते रहते हैं. अस्पताल के जिक्र के साथ भैरों सिंह का नाम न आए, हमारे दफ्तर में यह नामुमकिन था.

पिछले वर्ष मेरे पति बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा. तब मैं ने भैरों सिंह को उन की भरपूर सेवा करते देखा तो उन की इंसानियत से बहुत प्रभावित हो गई. ऐसा लगा लोग यों ही अच्छेखासे इंसान के लिए कुछ भी कह देते हैं. कोई भी बीमार हो, वह परिचित हो या नहीं, घंटों उस के पास बैठे रहना, दवाइयों व खून आदि की व्यवस्था करना उन का रोज का काम था. मानो उन्होंने मरीजों की सेवा का प्रण लिया हो.

उन्हीं दिनों बातोंबातों में पता चला कि उन की पत्नी भी बहुत बीमार रहती थी. उसे आर्थ्राइटिस था. उस का चलनाफिरना भी दूभर था. जब वह मेरे पति की सेवा में 4-5 घंटे का समय दे देते तो मैं उन्हें यह कहने पर मजबूर हो जाती, ‘आप घर जाइए, भाभीजी को आप की जरूरत होगी.’

पर वे कहते, ‘पहले आप घर हो आइए, चाहें तो थोड़ा आराम कर आएं, मैं यहां बैठा हूं.’

यों मेरा उन से इतनी आत्मीयता का संबंध कभी नहीं रहा. बाद में बहुत समय तक मन में यह कुतूहल बना रहा कि भैरों सिंह के इस आत्मीयतापूर्ण व्यवहार का कारण क्या रहा होगा? धीरेधीरे मैं ने उन में दिलचस्पी लेनी शुरू की. वे भी किसी न किसी बहाने गपशप करने आ जाते.

एक दिन बातचीत के दौरान वे काफी संकोच से बोले, ‘‘चूंकिआप लिखती हैं, सो मेरी कहानी भी लिखें.’’मैं उन की इस मासूम गुजारिश पर हैरान थी. कहानी ऐसे हीलिख दी जाती है क्या? कहानी लायक कोई बात भी तो हो. परंतु यह सब मैं उन से न कह सकी. मैं ने इतना ही कहा, ‘‘आप अपनी कहानी सुनाइए, फिर लिख दूंगी.’’

बहुत सकुचाते और लजाई सी मुसकान पर गंभीरता का अंकुश लगाते हुए उन्होंने बताया, ‘‘सलोनी नाम था उस का, हमारी दोस्ती अस्पताल में हुई थी.’’

मुझे मन ही मन हंसी आई कि प्यार भी किया तो अस्पताल में. भैरों सिंह ने गंभीरता से अपनी बात जारी रखी, ‘‘एक बार मेरा एक्सिडैंट हो गया था. दोस्तों ने मुझे अस्पताल में भरती करा दिया. मेरा जबड़ा, पैर और कूल्हे की हड्डियां सेट करनी थीं. लगभग 2 महीने मुझे अस्पताल में रहना पड़ा. सलोनी उसी वार्ड में नर्स थी, उस ने मेरी बहुत सेवा की. अपनी ड्यूटी के अलावा भी वह मेरा ध्यान रखती थी.

‘‘बस, उन्हीं दिनों हम में दोस्ती का बीज पनपा, जो धीरेधीरे प्यार में तबदील हो गया. मेरे सिरहाने रखे स्टील के कपबोर्ड में दवाइयां आदि रख कर ऊपर वह हमेशा फूल ला कर रख देती थी. सफेद फूल, सफेद परिधान में सलोनी की उजली मुसकान ने मुझ पर बहुत प्रभाव डाला. मैं ने महसूस किया कि सेवा और स्नेह भी मरीज के लिए बहुत जरूरी हैं. सलोनी मानो स्नेह का झरना थी. मैं उस का मुरीद बन गया.

‘‘अस्पताल से जब मुझे छुट्टी मिल गई, तब भी मैं ने उस की ड्यूटी के समय वहां जाना जारी रखा. लोगों को मेरे आने में एतराज न हो, इसीलिए मैं कुछ काम भी करता रहता. वह भी मेरे कमरे में आ जाती. मुझे खेलने का शौक था. मैं औफिस से आ कर शौर्ट्स, टीशर्ट या ब्लेजर पहन कर खेलने चला जाता और वह ड्यूटी के बाद सीधे मेरे कमरे में आ जाती. मेरी अनुपस्थिति में मेरा कमरा व्यवस्थित कर के कौफी पीने के लिए मेरा इंतजार करते हुए मिलती.

‘‘जब उस की नाइट ड्यूटी होती तो वह कुछ जल्दी आ जाती. हम एकसाथ कौफी पीते. मैं उसे अस्पताल छोड़ने जाता और वहां कईकई घंटे मरीजों की देखरेख में उस की मदद करता. सब के सो जाने पर हम धीरेधीरे बातें करते रहते. किसी मरीज को तकलीफ होती तो उस की तीमारदारी में जुट जाते.

‘‘कभी जब मैं उस से ड्यूटी छोड़ कर बाहर जाने की जिद करता तो वह मना कर देती. सलोनी अपनी ड्यूटी की बहुत पाबंद थी. उस की इस आदत पर मैं नाराज भी होता, कभी लड़ भी बैठता, तब भी वह मरीजों की अनदेखी नहीं करती थी. उस समय ये मरीज मुझे दुश्मन लगते और अस्पताल रकीब. पर यह मेरी मजबूरी थी क्योंकि मुझे सलोनी से प्यार था.’’

‘‘उस से शादी नहीं हुई? पूरी कहानी जानने की गरज से मैं ने पूछा.’’

भैरों सिंह का दमकता मुख कुछ फीका पड़ गया. वे बोले, ‘‘हम दोनों तो चाहते थे, उस के घर वाले भी राजी थे.’’

‘‘फिर बाधा क्या थी?’’ मैं ने पूछा तो भैरों सिंह ने बताया, ‘‘मैं अपने मांबाप का एकलौता बेटा हूं. मेरी 4 बहनें हैं. हम राजपूत हैं, जबकि सलोनी ईसाई थी. मैं ने अपनी मां से जिद की तो उन्होंने कहा कि तुम जो चाहे कर सकते हो, परंतु फिर तुम्हारी बहनों की शादी नहीं होगी. बिरादरी में कोई हमारे साथ रिश्ता करने को तैयार नहीं होगा.

‘‘मेरे कर्तव्य और प्यार में कशमकश शुरू हो गई. मैं किसी की भी अनदेखी करने की स्थिति में नहीं था. इस में भी सलोनी ने ही मेरी मदद की. उस ने मुझे मां, बहनों और परिवार के प्रति अपना फर्ज पूरा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया.

‘‘मां ने मेरी शादी अपनी ही जाति में तय कर दी. बड़ी धूमधाम से शादी हुई. सलोनी भी आई थी. वह मेरी दुलहन को उपहार दे कर चली गई. उस के बाद मैं ने उसे कभी नहीं देखा. विवाह की औपचारिकताओं से निबट कर जब मैं अस्पताल गया तो सुना, वह नौकरी छोड़ कर कहीं और चली गई है. बाद में पता चला कि  वह दूसरे शहर के किसी अस्पताल में नौकरी करती है और वहीं उस ने शादी भी कर ली है.’’

‘‘आप ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ भैरों सिंह ने जवाब दिया, ‘‘पहले तो मैं पगला सा गया. मुझे ऐसा लगता था, न मैं घर के प्रति वफादार रह पाऊंगा और न ही इस समाज के प्रति, जिस ने जातपांत की ये दीवारें खड़ी कर रखी हैं. परंतु शांत हो कर सोचने पर मैं ने इस में भी सलोनी की समझदारी और ईमानदारी की झलक पाई. ऐसे में कौन सा मुंह ले कर उस से मिलने जाता. फिर अगर वह अपनी जिंदगी में खुश है और चाहती है कि मैं भी अपने वैवाहिक जीवन के प्रति एकनिष्ठ रहूं तो मैं उस के त्याग और वफा को धूमिल क्यों करूं? अब यदि वह अपनी जिंदगी और गृहस्थी में सुखी है तो मैं उस की जिंदगी में जहर क्यों घोलूं?’’

‘‘अब अस्पताल में इतना क्यों रहते हैं? और यह कहानी क्यों लिखवा रहे हैं?’’ मैं ने उत्सुकता दिखाई.

भैरों सिंह ने गहरी सांस ली और धीमी आवाज में कहा, ‘‘मैं ने आप को बताया था न कि मैं उस का अधिक से अधिक साथ पाने के लिए उस की ड्यूटी के दौरान उस की मदद करता था, पर दिल में उस की कर्मनिष्ठा और सेवाभाव से चिढ़ता था. अब मुझे वह सब याद आता है तो उस की निष्ठा पर श्रद्धा होती है, खुद के प्रति अपराधबोध होता है. अब मैं मरीजों की सेवा, प्यार की खुशबू मान कर करता हूं और मुझे अपने अपराधबोध से भी नजात मिलती है.’’

भैरों सिंह की आवाज और धीमी हो गई. वह फुसफुसाते हुए से बोले, ‘‘अब मैं सिर्फ एक बात आप को बता रहा हूं या कहिए कि राज की बात बता रहा हूं. इस अस्पताल के समूचे वातावरण में मुझे अब भी वही खुशबू महसूस होती है, सलोनी के प्यार की खुशबू. रही बात कहानी लिखने की, तो मेरे पास उस तक अपनी बात पहुंचाने का कोई जरिया भी तो नहीं है. अगर वह इसे पढ़ेगी तो समझ जाएगी कि मैं उसे कितना याद करता हूं. उस की भावनाओं की कितनी इज्जत करता हूं. यही प्यार अब मेरी जिंदगी है.’’

संतुलन: क्या रोहित को समझाने में कामयाब हो पाई उसकी पत्नी?

झगड़ा शुरू कराने वाली बात बड़ी नहीं थी, पर बहसबाजी लंबी खिंच जाने से रोहित और उस के पिता के बीच की तकरार एकाएक विस्फोटक बिंदु पर पहुंच गई.

‘‘जोरू के गुलाम, तुझे अपनी मां और मेरी जरा भी फिक्र नहीं रही है. अब मुझे भी नहीं रखना है तुझे इस घर में,’’ ससुरजी की इस बात ने आग में घी का काम करते हुए रोहित के गुस्से को इतना बढ़ा दिया कि वे उसी समय अपने जानकार प्रौपर्टी डीलर से मिलने चले गए.

मैं बहुत सुंदर हूं और रोहित मेरे ऊपर पूरी तरह लट्टू हैं. मेरी ससुराल वालों के अलावा उन के दोस्त और मेरे मायके वाले भी मानते हैं कि मैं उन्हें अपनी उंगलियों पर बड़ी आसानी से नचा सकती हूं.

मेरे सासससुर ने अपनी छोटी बहू यानी मुझे कभी पसंद नहीं किया. वे दोनों हर किसी के सामने यह रोना रोते कि मैं ने उन के बेटे को अपने रूपजाल में फंसा कर मातापिता से दूर कर दिया है.

वैसे मुझे पता था कि रोहित की घर से अलग हो जाने की धमकी से घबरा कर मेरी सास बिगड़ी बात संभालने के लिए जल्दी मुझे से मिलने मेरे कमरे  में आएंगी. गुस्से में घर से अलग कर देने की बात मुंह से निकालना अलग बात है, पर मेरे सासससुर जानते हैं कि हम दोनों के अलावा उन की देखभाल करने वाला और कोई नहीं है. ऊपरी मंजिल पर रह रहे बड़े भैया और भाभी मुझ से तो क्या, घर में किसी से भी ढंग से नहीं बोलते हैं.

मैं बहुत साधारण परिवार में पलीबढ़ी थी. इस में कोई शक नहीं कि अगर मैं बेहद सुंदर न होती, तो मुझ से शादी करने का विचार अमीर घर के बेटे रोहित के मन में कभी पैदा न होता.

मेरे मातापिता ने बचपन से ही मेरे दिलोदिमाग में यह बात भर दी थी कि हर तरह की खुशियां और सुख पाना उन की परी सी खूबसूरत बेटी का पैदाइशी हक है. अपनी सुंदरता के बल पर मैं दुनिया पर राज करूंगी, किशोरावस्था में ही इस इच्छा ने मेरे मन के अंदर गहरी जड़ें जमा ली थीं.

रोहित से मेरी पहली मुलाकात अपनी एक सहेली के भाई की शादी में हुई थी.वे जिस कार से उतरे उस का रंग और डिजाइन मुझे बहुत पसंद आया था. सहेली से जानकारी मिली कि वे अच्छी जौब कर रहे हैं. इस से उन से दोस्ती करने में मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी.

उन की आंखों में झांकते हुए मैं 2-3 बार बड़ी अदा से मुसकराई, तो वे फौरन मुझ में दिलचस्पी लेने लगे. मौका ढूंढ़ कर मुझ से बातें करने लगते, तो मैं 2-4 वाक्य बोल कर कहीं और चली जाती. मेरे शर्मीले स्वभाव ने उन्हें मेरे साथ दोस्ती बढ़ाने के लिए और ज्यादा उतावला कर दिया.

उस रात विदा लेने से पहले उन्होंने मेरा फोन नंबर ले लिया. अगले दिन से ही हमारे बीच फोन पर बातें होने लगीं. सप्ताह भर बाद हम औफिस खत्म होने के बाद बाहर मिलने लगे.

हमारी चौथी मुलाकात एक बड़े पार्क में हुई. वहां एक सुनसान जगह का फायदा उठाते हुए उन्होंने अचानक मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़ कर मुझे चूम लिया.

अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण मैं बहुत जोर से उन से लिपट गई. बाद में उन की बांहों के घेरे से बाहर आ कर जब मैं सुबकने लगी, तो उन की उलझन और बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई.

बहुत पूछने पर भी न मैं ने उन्हें अपने आंसू बहाने का कारण बताया और न ही ज्यादा देर उन के साथ रुकी. पूरे 3 दिनों तक मैं ने उन से फोन पर बात नहीं की तो चौथे दिन शाम को वे मुझे मेरे औफिस के गेट के पास मेरा इंतजार करते नजर आए.

उन के कुछ बोलने से पहले ही मैं ने उदास लहजे में कहा, ‘‘आई ऐम सौरी पर हमें अब आपस में नहीं मिलना चाहिए, रोहित.’’

‘‘पर क्यों? मुझे मेरी गलती तो बताओ?’’ वे बहुत परेशान नजर आ रहे थे.

‘‘तुम्हारी कोई गलती नहीं है.’’

‘‘तो मुझ से मिलना क्यों बंद कर रही हो?’’

उन के बारबार पूछने पर मैं ने नजरें झुका कर जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो रही हूं…तुम्हारे साथ नजदीकियां बढ़ती रहीं तो मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सकूंगी.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ उन की आंखों में उलझन के भाव और ज्यादा बढ़ गए.

‘‘हम ऐसे ही मिलते रहे तो किसी भी दिन कुछ गलत घट जाएगा…तुम मुझे चीप लड़की समझो, यह सदमा मुझ से बरदाश्त नहीं होगा. साधारण से घर की यह लड़की तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारने के सपने नहीं देख सकती है. तुम मुझ से न मिला करो, प्लीज,’’ भरे गले से अपनी बात कह कर मैं कुछ दूरी पर इंतजार कर रही अपनी सहेली की तरफ चल पड़ी.

बाद में रोहित ने बारबार फोन कर के मुझे फिर से मिलना शुरू करने के लिए राजी कर लिया. मेरी हंसीखुशी उन के लिए दिनबदिन ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती चली गई. मेरे रंगरूप का जादू उन के सिर चढ़ कर ऐसा बोला कि महीने भर बाद ही उन के घर वाले हमारे घर रिश्ता पक्का करने आ पहुंचे.

उस दिन हुई पहली मुलाकात में ही मुझे साफ एहसास हो गया कि यह रिश्ता उन के परिवार वालों को पसंद नहीं था. मेरी शादी को करीब 6 महीने हो चुके हैं और अब तक मेरे सासससुर और जेठजेठानी की मेरे प्रति नापसंदगी अपनी जगह कायम है.

अपने पिता से झगड़ा करने के बाद रोहित को घर से बाहर गए 5 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि सासूमां मेरे कमरे में आ पहुंचीं. उन की झिझक और बेचैनी को देख कर कोई भी कह सकता था कि बात करने के लिए मेरे पास आना उन्हें अपमानित महसूस करा रहा है.

मेरे सामने झुकना उन की मजबूरी थी.

उन का अपनी बड़ी बहू नेहा से 36 का आंकड़ा था, क्योंकि बेहद अमीर बाप की बेटी होने के कारण वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी.

मेरे सामने बैठते ही सासूमां मुझे समझाने लगीं, ‘‘ घर में छोटीबड़ी खटपट, तकरार तो चलती रहती है, पर तू रोहित को समझाना कि वह घर छोड़ कर जाने की बात मन से बिलकुल निकाल दे.’’

मैं ने बेबस से लहजे में जवाब दिया, ‘‘मम्मी, आप तो जानती ही हैं कि वे कितने जिद्दी इनसान हैं. मैं उन्हें घर से अलग होने से कब तक रोक सकूंगी? आप पापा को भी समझाओ कि वे घर से निकाल देने की धमकी तो बिलकुल न दिया करें.’’

‘‘उन्हें तो तब तक अक्ल नहीं आएगी जब तक गुस्से के कारण उन के दिमाग की कोई नस नहीं फट जाएगी.’’

‘‘ऐसी बातें मुंह से न निकालिए, प्लीज,’’ मेरा मन ससुरजी के अपाहिज हो जाने की बात सोच कर ही बेचैनी और घबराहट का शिकार हो उठा था.

कुछ देर तक अपनी व ससुरजी की गिरती सेहत के दुखड़े सुनाने के बाद सासूजी चली गईं. हम घर से अलग नहीं होंगे, मुझ से ऐसा आश्वासन पा कर उन की चिंता काफी हद तक कम हो गई थी.

उस रात मुझे साथ ले कर रोहित अपने दोस्त की शादी की सालगिरह की पार्टी में जाना चाहते थे. उन का यह कार्यक्रम खटाई में पड़ गया, क्योंकि ससुरजी को सुबह से 5-6 बार उलटियां हो चुकी थीं.

औफिस से आने के बाद जब उन्होंने मेरे जल्दी तैयार होने के लिए शोर मचाया, तो घर में क्लेश शुरू हो गया और बात धीरेधीरे बढ़ती चली गई.

सचाई यही है कि कुछ कारणों से मैं खुद भी रोहित के दोस्त द्वारा दी जा रही कौकटेल पार्टी में नहीं जाना चाहती थी. आज मैं जिंदगी के उसी मुकाम पर हूं जहां होने के सपने मैं हमेशा देखती आई हूं. संयोग से मैं ने जिस ऐशोआराम भरी जिंदगी को पाया है, उसे नासमझी के कारण खो देने का मेरा कोई इरादा नहीं था.

रोहित की एक निशा भाभी हैं, जिन के अपने पति सौरभ के साथ संबंध बहुत खराब चल रहे हैं. उन के बीच तलाक हो कर रहेगा, ऐसा सब का मानना है. मैं ने पिछली कुछ पार्टियों में नोट किया कि फ्लर्ट करने में एक्सपर्ट निशा भाभी रोहित को बहुत लिफ्ट दे रही हैं. यह सभी जानते हैं कि एक बार बहक गए कदमों को वापस राह पर लाना आसान नहीं होता है. रोहित को निशा से दूर रखने के महत्त्व को मैं अपने अनुभव से बखूबी समझती हूं, क्योंकि अपने पहले प्रेमी समीर को मैं खुद अब तक पूरी तरह से नहीं भुला पाई हूं.

वह मेरी सहेली शिखा का बड़ा भाई था. मैं 12वीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी करने उन के घर पढ़ने जाती थी. मेरी खूबसूरती ने उसे जल्दी मेरा दीवाना बना दिया. उस की स्मार्टनैस भी मेरे दिल को भा गई.

उन के घर में कभीकभी हमें एकांत में बिताने को 5-10 मिनट भी मिल जाते थे. इस छोटे से समय में ही उस के जिस्म से उठने वाली महक मुझे पागल कर देती थी. उस के हाथों का स्पर्श मेरे तनमन को मदहोश कर मेरे पूरे वजूद में अजीब सी ज्वाला भर देता था.

एक रविवार की सुबह जब उस की मां बाजार जाने को निकलीं. मां के बाहर जाते ही समीर बाहर से घर लौट आया. हमें कुछ देर की मौजमस्ती करने के लिए किसी तरह का खतरा नजर नहीं आया, तो हम बहुत उत्तेजित हो आपस में लिपट गए.

फिर गड़बड़ यह हुई कि उस की मां पर्स भूल जाने के कारण घर से कुछ दूर जा कर ही लौट आई थीं. दरवाजा खोलने के बाद समीर और मैं अपनी उखड़ी सांसों और मन की घबराहट को उन की अनुभवी नजरों से छिपा नहीं पाए थे.

उन्होंने मुझे उसी वक्त घर भेज दिया और कुछ देर बाद आ कर मां से मेरी शिकायत कर दी. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि मेरी शिखा से दोस्ती टूट गई और अपने मातापिता की नजरों में मैं ने अपनी इज्जत गंवा दी.

कच्ची उम्र में समीर के साथ प्यार का चक्कर चलाने की मूर्खता कर मैं ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी. मेरे सजनेसंवरने पर भी पूरी तरह से पाबंदी लग गई. मां की रातदिन की टोकाटाकी और पापा का मुझ से सीधे मुंह बात न करना मुझे बहुत दुखी करता था.

उन कठिन दिनों से गुजरते हुए एक सबक मैं अच्छी तरह सीख गई कि अगर मेरी ऐशोआराम की जिंदगी जीने की इच्छा और सारे सपने पूरे नहीं हुए तो जीने का मजा बिलकुल नहीं आएगा. घुटघुट कर जीने से बचने के लिए मुझे फौरन अपनी छवि सुधारना बहुत जरूरी था.

‘‘केवल सुंदर होने से काम नहीं चलता है. सूरत के साथ सीरत भी अच्छी होनी चाहिए,’’

मां से रातदिन मिलने वाली चेतावनी को मैं ने हमेशा के लिए गांठ बांध कर अपने को सुधार लेने का संकल्प उसी समय कर लिया. तभी से अपने जीवन में आने वाली हर कठिनाई, उलझन और मुसीबत से सबक ले कर मैं खुद को बदलती आई हूं.

रोहित के विवाहेत्तर संबंध न बन जाएं, इस डर के अलावा एक और डर मुझे परेशान करता था. उन्हें सप्ताह में 1-2 बार ड्रिंक करने का शौक है. आज भी उन के गुस्से को बहुत ज्यादा बढ़ाने का यही मुख्य कारण था कि दोस्तों के साथ शराब पीने का मौका उन के हाथ से निकल गया. मेरे लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि अगर हम अलग मकान में रहने चले गए, तो दोस्तों के साथ उन का पीनापिलाना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा.

समीर वाले किस्से के बाद मेरी मां मेरे साथ बहुत सख्त हो गई थीं. उन की उस सख्ती के चलते मेरे कदम फिर कभी नहीं भटके थे. यहां मेरे सासससुर मां वाली भूमिका निभा रहे थे. रोहित और मुझे नियंत्रण में रख कर वे दोनों एक तरह से हमारा भला ही कर रहे थे. अब मुझे यह बात समझ में आने लगी थी.

पिछले दिनों तक मैं घर से अलग हो जाने की जरूर सोचती थी, पर अब इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैं ने ऐसा करने का इरादा बदल दिया है.

रोहित 2 घंटे बाद जब लौटे, तब भी उन की आंखों में तेज गुस्सा साफ झलक रहा था. फिर भी मैं ने रोहित को अपनी बात कहने का फैसला किया.

उन्हें कुछ कहने का मौका दिए बिना मैं ने आंखों में आंसू भर कर भावुक लहजे में पूछा, ‘‘तुम मुझे सब की नजरों में क्यों गिराना चाहते हो?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है?’’ उन्होंने गुस्से से भर कर पूछा.

‘‘टैंशन के कारण पापा को ढंग से सांस लेने में दिक्कत हो रही है. आपसी लड़ाईझगड़े की वजह से उन्हें कभी कुछ हो गया, तो मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर कभी नहीं जी सकूंगी.’’

‘‘वे लोग बात ही ऐसी गलत करते हैं…पार्टी में न जाने दे कर सारा मूड खराब कर दिया.’’

‘‘पार्टी में जाने का गम मत मनाओ, मैं हूं न आप का मूड ठीक करने के लिए,’’ मैं ने उन के बालों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया.

‘‘तुम तो हो ही लाखों में एक जानेमन.’’

‘‘तो अपनी इस लाखों में एक जानेमन की छोटी सी बात मानेंगे?’’

‘‘जरूर मानूंगा.’’

मेरी सुंदरता मेरी बहुत बड़ी ताकत है और अब इसी के बल पर मैं सारे रिश्तों के बीच अच्छा संतुलन और घर में हंसीखुशी का माहौल बनाना चाहती हूं. इस दिशा में काफी सोचविचार करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि सासससुर के साथ अपने रिश्ते सुधार कर उन्हें मजबूत बनाना मेरे हित के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है.

अपने इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मैं ने रोहित के कान के पास मुंह ले जा कर प्यार भरे लहजे में पूछा, ‘‘क्या मैं तुम्हें कभी किसी भी बात से नाराज हो कर सोने देती हूं?’’

‘‘कभी नहीं और आज भी मत सोने देना,’’ उन के होंठों पर एक शरारती मुसकान उभरी.

‘‘आज आप भी मेरी इस अच्छी आदत को अपनाने का वादा मुझ से करो.’’

‘‘लो, कर लिया वादा.’’

‘‘तो अब चलो मेरे साथ.’’

‘‘कहां?’’

‘‘अपने मम्मीपापा के पास.’’

‘‘उन के पास किसलिए चलूं?’’

‘‘आप उन के साथ कुछ देर ढंग से बातें कर लोगे, तो ही वे दोनों चैन से सो पाएंगे.’’

‘‘नहीं,’’ यह मैं नहीं…

मैं ने झुक कर पहले रोहित के होंठों पर प्यार भरा चुंबन अंकित किया और फिर उन की आंखों में प्यार से झांकते हुए मोहक स्वर में बोली, ‘‘प्लीज, मेरी खुशी की खातिर आप को यह काम करना ही पड़ेगा. आप मेरी बात मानेंगे न?’’

तुम्हारी बात कैसे टाल सकता हूं ब्यूटीफुल चलो,’’ रोमांटिक अंदाज में मेरा हाथ चूमने के बाद जब वे फौरन अपने मातापिता के पास जाने को उठ खड़े हुए, तो मैं मन ही मन विजयीभाव से मुसकराते हुए उन के गले लग गई.

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