रंजीत 9 बजे कालेज के गेट के नजदीक बैठ जाता. कालेज परिसर में जाने के लिए विद्यार्थियों को पहचान पत्र दिखाना होता है, जो उस के पास नहीं था. जब वह कालेज में पढ़ता ही नहीं है तो उस का पहचान पत्र कैसे बनता? सारा दिन कालेज के आसपास लड़कियों के आगेपीछे घूमता.

रंजीत के 2 चेलेचपाटे भी उस के साथ रहते. रंजीत के मातापिता अमीर थे, जिस कारण उसे मुंह मांगा जेब खर्च मिल जाता था, जिसे वह रोब डालने के लिए अपने मित्रों पर खर्च करता था. कालेज के कुछ लड़केलड़कियां भी मौजमस्ती के लिए उस के दल में शामिल हो गए. बाइक पर सवार हो कर सारा दिन मटरगश्ती करता रंजीत एकदम स्वतंत्रत जीवन व्यतीत कर रहा था.

एक दिन रंजीत कालेज के बाहर बस स्टौप पर बैठा लड़कियों को देख रहा था. बस से उतरती एक लड़की पर उस की नजर अटक गई.

‘‘गुरू कहां गुम हो गए हो. एकटक कालेज के गेट को देखे जा रहे हो?’’

‘‘देख वह लड़की कालेज के अंदर गई है. गजब की सुंदर है. जरा उस का बदन तो देख, उस के आगे माशाअल्लाह अप्सरा भी पानी भरेगी.’’

‘‘गुरू कौन से वाली?’’ कालेज के गेट पर खड़ी लड़कियों के समूह को देख कर उस के चमचे ने पूछा.

‘‘वह लड़की सीधे कालेज के अंदर चली गई है. इस समूह में नहीं है. आज पहली बार यहां देखा है. आज कहीं नहीं जाना है जब तक वह कालेज से बाहर नहीं निकलती है. आज गेट पर ही धरना देना है.’’

‘‘जो हुक्म गुरू.’’

कुछ देर बाद कालेज में पढ़ाई से मन चुराने वाले लड़केलड़कियों का झुंड भी रंजीत के इर्दगिर्द जमा हो गया और रंजीत से बर्गर खाने की फरमाइश होने लगी.

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