समय की गति और तेज हो चली थी. देखते ही देखते 4 वर्ष बीत गए. शांत कोलकाता में अपना पीजी भी पूरा करने जा रहा था. इस बीच उस ने हम लोगों से लगातर संपर्क बनाए रखा था. खासकर मेरे और संजय के जन्मदिन पर और शादी की सालगिरह पर बधाई और तोहफा देना कभी नहीं भूलता था. शांत ने अभी तक शादी नहीं की थी.
इन दिनों मेरे मातापिता और सासससुर काफी चिंतित रहते थे. हम दोनों पतिपत्नी भी, क्योंकि अभी तक हमारी कोई संतान न थी. मैं ने दिन भर के अकेलेपन से बचने के लिए पास का एक प्राइवेट स्कूल जौइन कर लिया था.
एक दिन शांत पटना आया था, तो हम लोगों से भी मिलने आया. बातोंबातों में संजय ने हमारी चिंता का कारण बताते हुए कहा, ‘‘अरे डाक्टर, कुछ हम लोगों का भी इलाज करो यार. यहां तो डाक्टरों ने जो भी कहा वह किया पर कोई फायदा नहीं हुआ. यहां के डाक्टर ने हम दोनों का टैस्ट भी लिया और कहा कि मैं पिता बनने में सक्षम ही नहीं हूं…इस के बाद से हम से ज्यादा दुखी हमारे मातापिता रहते हैं.’’
मैं भी वहीं बैठी थी. शांत ने हम दोनों को कोलकाता आने के लिए कहा कि वहां किसी अच्छे स्पैशलिस्ट की राय लेंगे.
संजय ने बिना देर किए कहा, ‘‘हां, यह ठीक रहेगा. तनुजा ने अभी तक कोलकाता नहीं देखा है.’’
अगले हफ्ते हम कोलकाता पहुंच गए. अगले दिन शांत हमें डाक्टर के पास ले गया.
एक बार फिर से दोनों के टैस्ट हुए. यहां भी डाक्टर ने यही कहा कि संजय संतान पैदा करने में सक्षम नहीं है. शांत ने डाक्टर दंपती से अकेले में कुछ बात की, फिर संजय से कहा कि बाकी बातें घर चल कर करते हैं.
उसी शाम जब हम तीनों शांत के यहां चाय पी रहे थे, तो उस ने मुझे और संजय दोनों की ओर देख कर कहा, ‘‘अब तो समस्या का मूल कारण हम सब को पता है, किंतु चिंता की बात नहीं है, क्योंकि इस का भी हल मैडिकल साइंस में है. दूसरा विकल्प किसी बच्चे को गोद लेना है.’’
संजय ने कहा, ‘‘नहीं, तनु किसी और के बच्चे को गोद लेने को तैयार नहीं है…जल्दी से पहला उपाय बताओ डाक्टर.’’
‘‘तुम दोनों ध्यान से सुनो. तनु में मां बनने के सारे गुण हैं. उसे सिर्फ सक्षम पुरुष का वीर्य चाहिए. यह आजकल संभव है, बिना परपुरुष से शारीरिक संपर्क के. उम्मीद है तुम ने सैरोगेसी के बारे में सुना होगा…इस प्रक्रिया द्वारा अगर सक्षम पुरुष का वीर्य तनु के डिंब में स्थापित कर दिया जाए तो वह मां बन सकती है,’’ शांत बोला.
यह सुन कर मैं और संजय एकदूसरे का मुंह देखने लगे.
तभी शांत ने आगे कहा, ‘‘इस में घबराने की कोई बात नहीं है. डाक्टर विजय दंपती के क्लीनक में सारा प्रबंध है. तुम लोग ठीक से सोच लो…ज्यादा समय व्यर्थ न करना. अब आए हो तो यह शुभ कार्य कर के ही जाना ठीक रहेगा. सब कुछ 2-3 दिन के अंदर हो जाएगा.’’
थोड़ी देर सब खामोश रहे, फिर संजय ने शांत से कहा, ‘‘ठीक है, हमें थोड़ा वक्त दो. मैं पटना अपने मातापिता से भी बात कर लेता हूं.’’
मैं ने और संजय दोनों ने पटना में अपनेअपने मातापिता से बात की. उन्होंने भी यही कहा कि कोई और विकल्प नहीं है तो सैरोगेसी में कोई बुराई नहीं है.
उस रात शांत ने जब पूछा कि हम ने क्या निर्णय लिया है तो मैं ने कहा, ‘‘हम ने घर पर बात कर ली है. उन को कोई आपत्ति नहीं है. पर मेरे मन में एक शंका है.’’
शांत के कैसी शंका पूछने पर मैं फिर बोली, ‘‘किसी अनजान के वीर्य से मुझे एक डर है कि न जाने उस में कैसे जीन्स होंगे और जहां तक मैं जानती हूं इसी पर बच्चे का जैविक लक्षण, व्यक्तित्व और चरित्र निर्भर करता है.’’
‘‘तुम इस की चिंता छोड़ दो. डाक्टर विजय और उन के क्लीनिक पर मुझे पूरा भरोसा है. मैं उन से बात करता हूं. किसी अच्छे डोनर का प्रबंध कर लेंगे,’’ कह शांत अपने कमरे में जा कर डाक्टर विजय से फोन पर बात करने लगा. फिर बाहर आ कर बोला, ‘‘सब इंतजाम हो जाएगा. उन्होंने परसों तुम दोनों को बुलाया है.’’
अगले दिन सुबह शांत ने कहा था कि उसे अपने अस्पताल जाना है. पर मुझे बाद में पता चला कि वह डाक्टर विजय के यहां गया था. डाक्टर विजय को उस ने मेरी चिंता बताई थी. उन्होंने शांत को अपना वीर्य देने को कहा था. पहले तो वह तैयार नहीं था कि तनु न जाने उस के बारे में क्या सोचेगी. तब डाक्टर विजय ने उस से कहा था कि इस बात की जानकारी किसी तीसरे को नहीं होगी. फिर शांत का एक टैस्ट ले कर उस का वीर्य ले कर सुरक्षित रख लिया.
अगले दिन मैं, संजय और शांत तीनों डाक्टर विजय के क्लीनिक पहुंचे. उन्होंने कुछ पेपर्स पर मेरे और संजय के हस्ताक्षर लिए जो एक कानूनी औपचारिकता थी. इस के बाद मुझे डाक्टर शालिनी अपने क्लीनिक में ले गईं. उन्होंने मेरे लिए सुरक्षित रखे वीर्य को मेरे डिंब में स्थापित कर दिया. वीर्य के डोनर का नाम गोपनीय रखा गया था. सारी प्रक्रिया 2 घंटों में पूरी हो गई.
देखते ही देखते 9 महीने बीत गए. वह दिन भी आ गया जिस का हमें इंतजार था. मैं एक सुंदर कन्या की मां बनी. पूरा परिवार खुश था. पार्टी का आयोजन भी किया गया. शांत भी आया था.
6 महीने ही बीते थे कि संजय को औफिस के काम से 1 हफ्ते के लिए सिक्किम जाना पड़ा. इन के जाने के 3 दिन बाद सिक्किम में आए भूंकप में इन की मौत हो गई. शांत स्वयं सिक्किम से संजय के पार्थिव शरीर को ले कर आया. अब चंद मास पहले की खुशी को प्रकृति के एक झटके ने गम में बदल डाला था. पर वक्त का मलहम बड़े से बड़े घाव को भर देता है. संजय को गुजरे 6 माह बीत चुके थे. शांत जब भी पटना आता बेबी के लिए ढेर सारे खिलौने लाता और देर तक उस के साथ खेलता था. अब बेबी थोड़ा चलने लगी थी.
एक दिन शांत लौन में बेबी के साथ खेल रहा था. मैं भी 2 कप चाय ले कर आई और कुरसी पर बैठ गई. मैं ने एक कप उसे देते हुए पूछा, ‘‘बेबी तुम्हें तंग तो नहीं करती? तुम इसे इतना वक्त देते हो…शादी क्यों नहीं कर लेते?’’
शांत ने तुरंत कहा, ‘‘तुम्हारी जैसी अब तक दूसरी मिली ही नहीं.’’
मैं ने सिर्फ, ‘‘तुम भी न,’’ कहा.
इधर शांत मेरे मातापिता एवं सासससुर से जब भी मिलता पूछता कि तनु के भविष्य के बारे आप लोगों ने क्या सोचा है? मैं अभी भी उस से प्यार करता हूं और सहर्ष उसे अपनाने को तैयार हूं. एक बार उन्होंने कहा कि तुम खुद बात कर के देख लो.
तब शांत ने कहा था कि वह इस बात की पहल खुद नहीं कर सकता, क्योंकि कहीं तनु बुरा मान गई तो दोस्ती भी खटाई में पड़ जाएगी.
एक बार मेरी मां ने मुझ से कहा कि अगर मैं ठीक समझूं तो शांत से मेरे रिश्ते की बात करेगी. पर मैं ने साफ मना कर दिया. इस के बाद उन्होंने शांत पर मुझ से बात करने का दबाव डाला.
इसीलिए शांत ने आज फिर कहा, ‘‘तनु अभी बहुत लंबी जिंदगी पड़ी है. तुम शादी क्यों नहीं कर लेती हो? बेबी को भी तो पिता का प्यार चाहिए?’’
मैं ने झुंझला कर कहा, ‘‘कौन देगा बेबी को पिता का प्यार?’’
‘‘मैं दूंगा,’’ शांत ने तुरंत कहा.
इस बार मैं गुस्से में बोली, ‘‘मैं बेबी को सौतेले पिता की छाया में नहीं जीने दूंगी, फिर चाहे तुम ही क्यों न हो.’’
‘‘अगर उस का पिता सौतेला न हो सगा हो तो?’’
‘‘क्या कह रहे हो? पागल मत बनो,’’ मैं ने कहा.
शांत ने तब मुझे बताया, ‘‘डाक्टर विजय के क्लीनिक में जब तुम ने वीर्य के जींस पर अपनी शंका जताई थी, तो मैं ने डाक्टर को यह बात कही थी. तब उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं तो यह काम मैं ही करूं. तुम ने अपनी कोख में 9 महीने तक मेरे ही अंश को संभाला था. अगर संजय जिंदा होता तो यह राज कभी न खुलता.’’
मैं काफी देर तक आश्चर्यचकित उसे देखती रही. फिर मैं ने फैसला किया कि मेरी बेबी को पिता का भी प्यार मिले…मेरी बेबी जो हम दोनों के अंश से बनी है अब अंशिका कहलाती है.