अंशिका: भाग 3- क्या दोबारा अपने बचपन का प्यार छोड़ पाएगी वो?

समय की गति और तेज हो चली थी. देखते ही देखते 4 वर्ष बीत गए. शांत कोलकाता में अपना पीजी भी पूरा करने जा रहा था. इस बीच उस ने हम लोगों से लगातर संपर्क बनाए रखा था. खासकर मेरे और संजय के जन्मदिन पर और शादी की सालगिरह पर बधाई और तोहफा देना कभी नहीं भूलता था. शांत ने अभी तक शादी नहीं की थी.

इन दिनों मेरे मातापिता और सासससुर काफी चिंतित रहते थे. हम दोनों पतिपत्नी भी, क्योंकि अभी तक हमारी कोई संतान न थी. मैं ने दिन भर के अकेलेपन से बचने के लिए पास का एक प्राइवेट स्कूल जौइन कर लिया था.

एक दिन शांत पटना आया था, तो हम लोगों से भी मिलने आया. बातोंबातों में संजय ने हमारी चिंता का कारण बताते हुए कहा, ‘‘अरे डाक्टर, कुछ हम लोगों का भी इलाज करो यार. यहां तो डाक्टरों ने जो भी कहा वह किया पर कोई फायदा नहीं हुआ. यहां के डाक्टर ने हम दोनों का टैस्ट भी लिया और कहा कि मैं पिता बनने में सक्षम ही नहीं हूं…इस के बाद से हम से ज्यादा दुखी हमारे मातापिता रहते हैं.’’

मैं भी वहीं बैठी थी. शांत ने हम दोनों को कोलकाता आने के लिए कहा कि वहां किसी अच्छे स्पैशलिस्ट की राय लेंगे.

संजय ने बिना देर किए कहा, ‘‘हां, यह ठीक रहेगा. तनुजा ने अभी तक कोलकाता नहीं देखा है.’’

अगले हफ्ते हम कोलकाता पहुंच गए. अगले दिन शांत हमें डाक्टर के पास ले गया.

एक बार फिर से दोनों के टैस्ट हुए. यहां भी डाक्टर ने यही कहा कि संजय संतान पैदा करने में सक्षम नहीं है. शांत ने डाक्टर दंपती से अकेले में कुछ बात की, फिर संजय से कहा कि बाकी बातें घर चल कर करते हैं.

उसी शाम जब हम तीनों शांत के यहां चाय पी रहे थे, तो उस ने मुझे और संजय दोनों की ओर देख कर कहा, ‘‘अब तो समस्या का मूल कारण हम सब को पता है, किंतु चिंता की बात नहीं है, क्योंकि  इस का भी हल मैडिकल साइंस में है. दूसरा विकल्प किसी बच्चे को गोद लेना है.’’

संजय ने कहा, ‘‘नहीं, तनु किसी और के बच्चे को गोद लेने को तैयार नहीं है…जल्दी से पहला उपाय बताओ डाक्टर.’’

‘‘तुम दोनों ध्यान से सुनो. तनु में मां बनने के सारे गुण हैं. उसे सिर्फ सक्षम पुरुष का वीर्य चाहिए. यह आजकल संभव है, बिना परपुरुष से शारीरिक संपर्क के. उम्मीद है तुम ने सैरोगेसी के बारे में सुना होगा…इस प्रक्रिया द्वारा अगर सक्षम पुरुष का वीर्य तनु के डिंब में स्थापित कर दिया जाए तो वह मां बन सकती है,’’ शांत बोला.

यह सुन कर मैं और संजय एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

तभी शांत ने आगे कहा, ‘‘इस में घबराने की कोई बात नहीं है. डाक्टर विजय दंपती के क्लीनक में सारा प्रबंध है. तुम लोग ठीक से सोच लो…ज्यादा समय व्यर्थ न करना. अब आए हो तो यह शुभ कार्य कर के ही जाना ठीक रहेगा. सब कुछ 2-3 दिन के अंदर हो जाएगा.’’

थोड़ी देर सब खामोश रहे, फिर संजय ने शांत से कहा, ‘‘ठीक है, हमें थोड़ा वक्त दो. मैं पटना अपने मातापिता से भी बात कर लेता हूं.’’

मैं ने और संजय दोनों ने पटना में अपनेअपने मातापिता से बात की. उन्होंने भी यही कहा कि कोई और विकल्प नहीं है तो सैरोगेसी में कोई बुराई नहीं है.

उस रात शांत ने जब पूछा कि हम ने क्या निर्णय लिया है तो मैं ने कहा, ‘‘हम ने घर पर बात कर ली है. उन को कोई आपत्ति नहीं है. पर मेरे मन में एक शंका है.’’

शांत के कैसी शंका पूछने पर मैं फिर बोली, ‘‘किसी अनजान के वीर्य से मुझे एक डर है कि न जाने उस में कैसे जीन्स होंगे और जहां तक मैं जानती हूं इसी पर बच्चे का जैविक लक्षण, व्यक्तित्व और चरित्र निर्भर करता है.’’

‘‘तुम इस की चिंता छोड़ दो. डाक्टर विजय और उन के क्लीनिक पर मुझे पूरा भरोसा है. मैं उन से बात करता हूं. किसी अच्छे डोनर का प्रबंध कर लेंगे,’’ कह शांत अपने कमरे में जा कर डाक्टर विजय से फोन पर बात करने लगा. फिर बाहर आ कर बोला, ‘‘सब इंतजाम हो जाएगा. उन्होंने परसों तुम दोनों को बुलाया है.’’

अगले दिन सुबह शांत ने कहा था कि उसे अपने अस्पताल जाना है. पर मुझे बाद में पता चला कि वह डाक्टर विजय के यहां गया था. डाक्टर विजय को उस ने मेरी चिंता बताई थी. उन्होंने शांत को अपना वीर्य देने को कहा था. पहले तो वह तैयार नहीं था कि तनु न जाने उस के बारे में क्या सोचेगी. तब डाक्टर विजय ने उस से कहा था कि इस बात की जानकारी किसी तीसरे को नहीं होगी. फिर शांत का एक टैस्ट ले कर उस का वीर्य ले कर सुरक्षित रख लिया.

अगले दिन मैं, संजय और शांत तीनों डाक्टर विजय के क्लीनिक पहुंचे. उन्होंने कुछ पेपर्स पर मेरे और संजय के हस्ताक्षर लिए जो एक कानूनी औपचारिकता थी. इस के बाद मुझे डाक्टर शालिनी अपने क्लीनिक में ले गईं. उन्होंने मेरे लिए सुरक्षित रखे वीर्य को मेरे डिंब में स्थापित कर दिया. वीर्य के डोनर का नाम गोपनीय रखा गया था. सारी प्रक्रिया 2 घंटों में पूरी हो गई.

देखते ही देखते 9 महीने बीत गए. वह दिन भी आ गया जिस का हमें इंतजार था. मैं एक सुंदर कन्या की मां बनी. पूरा परिवार खुश था. पार्टी का आयोजन भी किया गया. शांत भी आया था.

6 महीने ही बीते थे कि संजय को औफिस के काम से 1 हफ्ते के लिए सिक्किम जाना पड़ा. इन के जाने के 3 दिन बाद सिक्किम में आए भूंकप में इन की मौत हो गई. शांत स्वयं सिक्किम से संजय के पार्थिव शरीर को ले कर आया. अब चंद मास पहले की खुशी को प्रकृति के एक झटके ने गम में बदल डाला था. पर वक्त का मलहम बड़े से बड़े घाव को भर देता है. संजय को गुजरे 6 माह बीत चुके थे. शांत जब भी पटना आता बेबी के लिए ढेर सारे खिलौने लाता और देर तक उस के साथ खेलता था. अब बेबी थोड़ा चलने लगी थी.

एक दिन शांत लौन में बेबी के साथ खेल रहा था. मैं भी 2 कप चाय ले कर आई और कुरसी पर बैठ गई. मैं ने एक कप उसे देते हुए पूछा, ‘‘बेबी तुम्हें तंग तो नहीं करती? तुम इसे इतना वक्त देते हो…शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

शांत ने तुरंत कहा, ‘‘तुम्हारी जैसी अब तक दूसरी मिली ही नहीं.’’

मैं ने सिर्फ, ‘‘तुम भी न,’’ कहा.

इधर शांत मेरे मातापिता एवं सासससुर से जब भी मिलता पूछता कि तनु के भविष्य के बारे आप लोगों ने क्या सोचा है? मैं अभी भी उस से प्यार करता हूं और सहर्ष उसे अपनाने को तैयार हूं. एक बार उन्होंने कहा कि तुम खुद बात कर के देख लो.

तब शांत ने कहा था कि वह इस बात की पहल खुद नहीं कर सकता, क्योंकि कहीं तनु बुरा मान गई तो दोस्ती भी खटाई में पड़ जाएगी.

एक बार मेरी मां ने मुझ से कहा कि अगर मैं ठीक समझूं तो शांत से मेरे रिश्ते की बात करेगी. पर मैं ने साफ मना कर दिया. इस के बाद उन्होंने शांत पर मुझ से बात करने का दबाव डाला.

इसीलिए शांत ने आज फिर कहा, ‘‘तनु अभी बहुत लंबी जिंदगी पड़ी है. तुम शादी क्यों नहीं कर लेती हो? बेबी को भी तो पिता का प्यार चाहिए?’’

मैं ने झुंझला कर कहा, ‘‘कौन देगा बेबी को पिता का प्यार?’’

‘‘मैं दूंगा,’’ शांत ने तुरंत कहा.

इस बार मैं गुस्से में बोली, ‘‘मैं बेबी को सौतेले पिता की छाया में नहीं जीने दूंगी, फिर चाहे तुम ही क्यों न हो.’’

‘‘अगर उस का पिता सौतेला न हो सगा हो तो?’’

‘‘क्या कह रहे हो? पागल मत बनो,’’ मैं ने कहा.

शांत ने तब मुझे बताया, ‘‘डाक्टर विजय के क्लीनिक में जब तुम ने वीर्य के जींस पर अपनी शंका जताई थी, तो मैं ने डाक्टर को यह बात कही थी. तब उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं तो यह काम मैं ही करूं. तुम ने अपनी कोख में 9 महीने तक मेरे ही अंश को संभाला था. अगर संजय जिंदा होता तो यह राज कभी न खुलता.’’

मैं काफी देर तक आश्चर्यचकित उसे देखती रही. फिर मैं ने फैसला किया कि मेरी बेबी को पिता का भी प्यार मिले…मेरी बेबी जो हम दोनों के अंश से बनी है अब अंशिका कहलाती है.

अंशिका: भाग 2- क्या दोबारा अपने बचपन का प्यार छोड़ पाएगी वो?

समय के भी पंख होते हैं. देखते ही देखते मेरी फाइनल परीक्षा भी खत्म हो गई. आखिरी पेपर के दिन शांत ने दोपहर को एक रैस्टोरैंट में मिलने को कहा. वहां हम दोनों कैबिन में बैठे और शांत ने कुछ स्नैक्स और कौफी और्डर की.

शांत ने कहा, ‘‘तनु, तुम ने ग्रैजुएशन के बाद क्या सोचा है? आगे पीजी करनी है?’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी कुछ तय नहीं है. वैसे मातापिता को कहते सुना है कि तनुजा की अब शादी कर देनी चाहिए. शायद किसी लड़के से बात भी चल रही है.’’

मैं ने महसूस किया कि शादी शब्द सुनते ही उस के चेहरे पर एक उदासी सी छा गई थी.

फिर शांत बोला, ‘‘तुम्हारे मातापिता ने तुम से राय ली है? तुम्हारी अपनी भी तो कोई पसंद होगी? तुम्हें यहां बुलाने का एक विशेष कारण है. याद है एक दिन मैं ने कहा था कि तुम्हें इलू का मतलब बताऊंगा. आज मैं ने तुम्हें इसीलिए बुलाया है.’’

‘‘तो फिर जल्दी बताओ,’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरे इलू का मतलब आई लव यू है,’’ शांत ने कहा.

मैं बोली, ‘‘तुम्हारे मुख से यह सुन कर खुशी हुई. पर हमेशा अव्वल रहने वाले शांत ने प्यार का इजहार करने में इतनी देर क्यों कर दी? मेरे आगे की पढ़ाई और शादी के बारे में अपने मातापिता का विचार जानने की कोशिश करूंगी, फिर आगे बात करती हूं. मुझे तो तुम्हारा साथ वर्षों से प्यारा है,’’ इस के बाद मैं ने उस का हाथ दबाते हुए घर ड्रौप करने को कहा.

मेरे मातापिता शांत को पसंद नहीं करते थे. मेरे गै्रजुएशन का रिजल्ट भी आ गया था और मैं अपने रिजल्ट से खुश थी. इस दौरान मां ने मुझे बताया कि मेरी शादी एक लड़के से लगभग तय है. लड़के की ‘हां’ कहने की देरी है. इसी रविवार लड़का मुझे देखने आ रहा है. मैं ने मां से कहा भी कि मुझे पीजी करने दो, पर वे नहीं मानीं. कहा कि मेरे पापा भी यही चाहते हैं. लड़का सुंदर है, इंजीनियर है और अच्छे परिवार का है. मैं ने मां से कहा भी कि एक बार मुझ से पूछा होता… मेरी पसंद भी जानने की कोशिश करतीं.

अभी रविवार में 4 दिन थे. पापा ने भी एक दिन कहा कि संजय (लड़के का नाम) 4 दिन बाद मुझे देखने आ रहा था. मैं ने उन से भी कहा कि मेरी शादी अभी न कर आगे पढ़ने दें. पर उन्होंने सख्ती से मना कर दिया. मै ने दबी आवाज में कहा कि इस घर में किसी को मेरी पसंद की परवाह नहीं है. तब पापा ने गुस्से में कहा कि तेरी पसंद हम जानते हैं, तेरी पसंद प्रशांत है न? पर यह असंभव है. प्रशांत बंगाली बनिया है और हम हिंदी भाषी ब्राह्मण हैं.

मैं ने एक बार फिर विरोध के स्वर में पापा से कहा कि आखिर प्रशांत में क्या बुराई है? उन का जवाब और सख्त था कि मुझे प्रशांत या मातापिता में से किसी एक को चुनना होगा. इस के आगे मैं कुछ नहीं बोल सकी.

अगले दिन मैं ने शांत से उसी रैस्टोरैंट में मिलने को कहा. मैं ने घर की स्थिति से उसे अवगत कराया.

शांत ने कहा, ‘‘देखो तनु प्यार तो मैं तुम्हीं से करता हूं और आगे भी करता रहूंगा. पर नियति को हम बदल नहीं सकते. अभी मेरी पढ़ाई पूरी करने में समय लगेगा…और तुम जानती हो आजकल केवल एमबीबीएस से कुछ नहीं होता है…मुझे एमएस करना होगा…मुझे सैटल होने में काफी समय लगेगा. अगर इतना इंतजार तुम्हारे मातापिता कर सकते हैं, तो एक बार मैं उन से मिल कर बात कर सकता हूं…मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे मातापिता को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद मैं ने कहा, ‘‘मुझे कोई फायदा नहीं दिखता, बल्कि मुझे डर है कि कहीं वे तुम्हारा अपमान न करें जो मुझे गंवारा नहीं.’’

इस पर शांत ने कहा था कि मेरे प्यार के लिए वह यह रिस्क लेने को तैयार है. आखिर वही हुआ जिस का डर था. पापा ने उसे दरवाजे से ही यह कह कर लौटा दिया कि उस के आने की वजह उन्हें मालूम है, जो उन्हें हरगिज स्वीकार नहीं. अगले दिन शांत फिर मुझ से मिला. मैं ने ही उस से कहा था कि मेरे घर कल उस के साथ जो कुछ हुआ उस पर मैं शर्मिंदा हूं और उन की ओर से मुझे माफ कर दे. शांत ने बड़ी शांति से कहा कि इस में माफी मांगने का सवाल ही नहीं है. सब कुछ समय पर छोड़ दो. मातापिता के विरुद्ध जा कर इस समय कोर्ट मैरिज करने की स्थिति में हम नहीं हैं और न ही ऐसा करना उचित है.

मैं भी उस की बात से सहमत थी और फिर अपने घर चली आई. भविष्य को समय के हवाले कर हालात से समझौता कर लिया था.

रविवार के दिन संजय अपने मातापिता के साथ मुझे देखने आए. देखना क्या बस औपचारिकता थी. उन की तरफ से हां होनी ही थी. संजय की मां ने एक सोने की चेन मेरे गले में डाल कर रिश्ते पर मुहर लगा दी. 1 महीने के अंदर मेरी शादी भी हो गई.

संजय पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे और पटना में ही पोस्टेड थे. चंद हफ्तों बाद मेरा जन्मदिन था. संजय ने एक पार्टी रखी थी तो मुझ से भी निमंत्रण पाने वालों की लिस्ट दिखाते हुए पूछा था कि मैं किसी और को बुलाना चाहूंगी क्या? तब मैं ने प्रशांत का नाम जोड़ दिया और उस का पता और फोन नंबर भी लिख दिया था. शांत अब होस्टल में रहने लगा था. संजय के पूछने पर मैं ने बताया कि वह मेरे बचपन का दोस्त है.

संजय ने चुटकी लेते हुए पूछा था, ‘‘ओनली फ्रैंड या बौयफ्रैंड…’’

मैं ने उन की बातचीत काट कर कहा था, ‘‘प्लीज, दोबारा ऐसा न बोलें.’’

संजय ने कहा, ‘‘सौरी, मैं तो यों ही मजाक कर रहा था.’’

खैर, संजय ने शानदार पार्टी रखी थी. शांत भी आया था. संजय और शांत दोनों काफी घुलमिल कर बातें कर रहे थे. बीचबीच में दोनों ठहाके भी लगा रहे थे. मुझे भी यह देख कर खुशी हो रही थी और मेरे मन में जो डर था कि शांत को ले कर संजय को कोई गलतफहमी तो नहीं, वह भी दूर हो चुकी थी.

अंशिका: भाग 1- क्या दोबारा अपने बचपन का प्यार छोड़ पाएगी वो?

प्रशांत और मैं पटना शहर के एक ही महल्ले में रहते थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे. यह भी इत्तफाक ही था कि दोनों अपने मातापिता की एकलौती संतान थे. एक ही गली में थोड़ी दूरी के फासले पर दोनों के घर थे. प्रशांत के पिता रेलवे में गोदाम बाबू थे तो मेरे पिता म्यूनिसिपल कौरपोरेशन में ओवरसियर. दोनों अच्छेखासे खातेपीते परिवार से थे. पर एक फर्क था वह यह कि प्रशांत बंगाली बनिया था तो मैं हिंदी भाषी ब्राह्मण थी. पर प्रशांत के पूर्वज 50 सालों से यहीं बिहार में थे.

हम एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. प्रशांत मेधावी विद्यार्थी था तो मैं औसत छात्रा थी. हमारा स्कूल आनाजाना साथ ही होता था. हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे.

ऐसा नहीं था कि मेरी कक्षा में और लड़कियां नहीं थीं, पर मेरी गली से स्कूल में जाने वाली मैं अकेली लड़की थी. हमारा स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. करीब पौना किलोमीटर दूर था, इसलिए हम पैदल ही जाते थे. मैं प्रशांत को शांत बुलाया करती थी, क्योंकि वह और लड़कों से अलग शांत स्वभाव का था. प्रशांत मुझे तनुजा की जगह तनु ही पुकारता था. हमारी दोस्ती निश्छल थी. पर स्कूल के विद्यार्थी कभी छींटाकाशी भी कर देते थे. उन की कुछ बातें उस समय मेरी समझ से बाहर थीं तो कुछ को मैं नजरअंदाज कर देती थी.

जब मैं 9वीं कक्षा में पहुंची तो एक दिन मां ने मुझ से कहा कि तू अब प्रशांत के साथ स्कूल न जाया कर. तब मैं ने कहा कि इस में क्या बुराई है? वह हमेशा कक्षा में अव्वल रहता है… पढ़ाई में मेरी मदद कर देता है.

जब मैं 10वीं कक्षा में पहुंची थी तो एक दिन शांत ने पूछा था कि आगे मैं क्या पढ़ना चाहूंगी तब मैं ने कहा था कि इंजीनियरिंग करने का मन है, पर मेरी मैथ थोड़ी कमजोर है. उस दिन से शांत गणित के कठिन सवालों को समझने में मेरी सहायता कर देता था. कभीकभार नोट्स या किताबें लेनेदेने मेरे घर भी आ जाता, पर घर के अंदर नहीं आता था, बाहर से ही चला जाता था. मेरी मां को वह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मैं चाह कर भी अंदर आने को नहीं कहती थी. पर मुझे उस का साथ, उस का पास आना अच्छा लगता था. मन में एक अजीब सी खुशी होती थी.

देखते ही देखते बोर्ड की परीक्षा भी शुरू हो गई. 3 सप्ताह तक हम इस बीच काफी व्यस्त रहे. शांत की सहयाता से मेरा मैथ का पेपर भी अच्छा हो गया. अब स्कूल आनाजाना बंद था तो शांत से मिले भी काफी दिन हो गए थे. अब तो बोर्ड परीक्षा के परिणाम का बेसब्री से इंतजार था.

परीक्षा परिणाम भी घोषित हो गया. मैं अपनी मार्कशीट लेने स्कूल पहुंची. वहां मुझे प्रशांत भी मिला. जैसे कि पूरे स्कूल को अपेक्षा थी शांत अपने स्कूल में अव्वल था. मैं ने उसे बधाई दी. मुझे भी अपने मार्क्स पर खुशी थी. आशा से अधिक ही मिले थे. जब प्रशांत ने भी मुझे बधाई दी तो मैं ने उस से कहा कि इस में तुम्हारा भी सहयोग है. तब शांत ने कहा था कि मुझे भी इसी स्कूल में प्लस टू में साइंस विषय मिल जाना चाहिए.

अब मैं 11वीं कक्षा में थी. मुझे भी साइंस विषय मिला पर मैं ने मैथ चुना था, जबकि शांत ने बायोलौजी ली थी. वह डाक्टर बनना चाहता था. अब मेरे और शांत के सैक्शन अलग थे. फिर भी ब्रेक में हम अकसर मिल लेते थे. कभीकभी प्रयोगशाला में भी मुलाकात हो जाती थी.

उस की बातों से अब मुझे ऐसा एहसास होता कि वह मुझ में कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहा है. इस बात से मैं भी मन से आनंदित थी पर दोनों में ही खुल कर मन की बात कहने का साहस न था. पर शांत कहा करता था कि हमारे विषय भिन्न हैं तो पता नहीं 12वीं कक्षा के बाद हम दोनों कहां होंगे. एक बार मुझे जो नोटबुक उस ने दिया था उस के पहले पन्ने पर लिखा था तनु ईलू. मैं ने भी उस के नीचे ‘शांत…’ लिख कर लौटा दिया था. देखते ही देखते हम दोनों की बोर्ड की परीक्षा खत्म हो गई. शांत ने मैडिकल का ऐंट्रेंस टैस्ट दिया और मैं ने इंजीनियरिंग का. 12वीं कक्षा का परिणाम भी आ गया था. प्रशांत फिर अव्वल आया था. मुझे भी अच्छे मार्क्स मिले थे. शांत मैडिकल के लिए कंपीट कर चुका था. मैं ने उसे बधाई दी, परंतु मैं इंजीनियरिंग में कंपीट नहीं कर सकी थी. शांत ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है. मुझे अपने मनपसंद विषय में औनर्स ले कर गै्रजुएशन की पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी थी. कुदरत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया. मुझे पटना साइंस कालेज में फिजिक्स औनर्स में दाखिला मिल गया और शांत ने पटना मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. दोनों कालेज में कुछ ही दूरी थी. यहां भी हम लौंग बे्रक में मिल कर साथ चाय पी लेते थे.

मुझे याद है एक बार शांत ने कहा था, ‘‘तनु, चलो आज तुम्हें कौफ्टी पिलाता हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘शांत यह कौफ्टी क्या बला है? कभीकभी तुम्हारी बातें मुझे मिस्ट्री लगती हैं बिलकुल वैसे ही जैसे ईलू.’’

उस ने कहा, ‘‘तो तनु मैडम को अभी तक ईलू समझ नहीं आया…कोई बात नहीं…उस पर बाद में बात करते हैं. फिलहाल कौफ्टी से तुम्हारा परिचय करा दूं,’’ और मुझे मैडिकल कालेज के गेट के सामने फुटपाथ पर एक चाय वाले ढाबे पर ले गया. फिर 2 कौफ्टी बनाने को कहा. ढाबे वाले ने चंद मिनटों में 2 कप कौफ्टी बना दिए. सच, गजब का स्वाद था. दरअसल, यह चाय और कौफी का मिश्रण था, पर बनाने वाले के हाथ का जादू था कि ऐसा निराला स्वाद था.

कुछ दिनों तक शांत और मैं एक ही बस से कालेज आते थे. वह तो शांत का संरक्षण था जो बस की भीड़ में भी सहीसलामत आनाजाना संभव था वरना बस में पटना के मनचले लड़कों की कमी न थी. फिर भी उन के व्यंग्यबाण के शिकार हम दोनों थे पर हम नजरअंदाज करना ही बेहतर समझते थे. चूंकि बस में आनेजाने में काफी समय बरबाद होता था, इसलिए शांत के पिता ने उस के लिए एक स्कूटर ले दिया. अब तो दोनों के वारेन्यारे थे. रास्ते में पहले मेरा कालेज पड़ता था. शांत मुझे ड्रौप करते हुए अपने कालेज जाता था. हालांकि लौटने में कभी मुझे अकेले ही बस या रिकशा लेना पड़ता था. ऐसा उस दिन होता था जब मेरे या शांत की क्लास खत्म होने के बीच का अंतराल ज्यादा होता था.

लिव इन धोखा है: भाग 3- आखिर क्यों परिधि डिप्रेशन में चली गई

एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले वे दोनों मस्ती में थिरकते रहे. कुछ नशे का सुरूर और कुछ खुशी की मस्ती… दोनों होश खो बैठे थे. उस खास दिन के लिए परिधि ने होटल में हनीमून सूट बुक किया हुआ था. आज की रात को वह अपने जीवन की मधुरयामिनी की तरह जी लेना चाहती थी.रूम के बाहर डू नौट डिस्टर्ब का कार्ड लगा दिया था.

परिधि की जब आंख खुली तो दोपहर के 11 बज गए थे. उस ने अपने चारों

तरफ नजरें दौड़ाईं तो विभोर कहीं नहीं दिखाई पड़ा, उस का सिर दर्द से फट रहा था. परंतु रात के सुखद पलों को याद कर के उस के चेहरे पर मुसकान की रेखा खिंच गई. वाशरूम देखा खाली था.  उस के कपड़े भी कहीं नहीं दिखे तो जल्दी से वह अपने कपडे़ पहन तैयार हुई, इस बीच वह बारबार विभोर का नंबर मिलाती रही लेकिन नंबर नहीं मिला. वह परेशान हो उठी. कमरे में आई तो वहां विभोर का बैग न देख कर मन आशंकाओं से घिर गया. उस ने विभोर के फ्रैंड कार्तिक को फोन लगाया तो असलियत सुनते ही वह गश खा कर गिर गई.

‘‘विभोर तो आस्ट्रेलिया की फ्लाइट में बैठ चुका होगा,’’ यह सुनते ही सहसा विश्वास ही नहीं कर पाई. कार्तिक ने बताया कि उस का वीजा बन कर आ चुका था. यह सारा प्रोसैस तो काफी दिनों से चल रहा था. क्या विभोर ने तुम्हें कुछ भी नहीं बताया था?

ये सब सुन कर उस के हाथ से मोबाइल गिर गया. वह क्रोधित हो कर अपना सामान उठाउठा कर फेंकने लगी थी. फिर निराश हो कर अपने बैड पर बदहवास गिर और फूटफूट कर रोने लगी. लेकिन क्षणभर में ही वह क्रोधित हो कर चीखने लगी.

अब यह तो वह सम?ा गई थी कि विभोर ने अपने प्यार की मीठीमीठी बातों के जाल में फंसा कर उसे धोखा दिया. विभोर जालसाज है… उस अपने चारों तरफ अंधकार छाया दिखाई पड़ रहा था. उस ने अपना सामान पैक किया और छुट्टी का मेल लिख कर फ्लाइट में बैठ अपने घर मेरठ पहुंच गई.

जब उस की मां सविताजी ने अचानक किसी पूर्व सूचना के उसे आया देखा तो सोचा यह उस लड़के को ले कर आई है. लेकिन जब सविताजी ने उस के उदास व उतरे चेहरे को देखा तो उस पर बरस पड़ीं, ‘‘तेरा आशिक तुझे छोड़ कर भाग गया. मैं तो पहले से ही जानती थी,’’ अब रो अपने कर्मों पर…

‘‘तेरी बेवकूफी के कारण जानेबूझे परिवार का इतना अच्छालड़का हाथ से निकल गया. मेरे तो कर्म ही फूटे हैं जो ऐसी नालायक लड़की पैदा हुई. तुम नौकरी करने गई थी कि इश्क लड़ाने?’’

‘‘हम ने पहले ही कह दिया था कि पैसा जोड़ कर रखो… शादी में काम आएगा… तेरी पढ़ाई में ही लाखों खर्च हो गए… 2 साल से नौकरी कर रही हो, कितना पैसा है तुम्हारे अकाउंट में?’’

‘‘बस चुप हो जाओ मां…’’

‘‘तुम इतने दिन से नौकरी कर रही थी कि घास काट रही थी?’’

उस ने अपना कमरा जोर से बंद कर लिया और फिर फफक पड़ी कि वह क्या करे?

कहां जाए? अपना दर्द किससे साझ करे? उस ने रात में खाना भी नहीं खाया, लेकिन जब पापा ने उसे समझया कि जीवन रुक जाने का नाम नहीं है… चलते  रहना ही जीवन है… जैसे सुबह के बाद शाम अवश्य आती है वैसे ही जीवन में सुख और दुख तो आतेजाते रहते हैं. पापा की बातों से मन को तसल्ली मिली परंतु रात आते ही विभोर के आलिंगन की तड़प से उस की आंखों की नींद रूठ गई.. उस ने लैपटौप से टिकट बुक किया और बैग पैक कर के फिर से बैंगलुरु के अपने कमरे में आ गई. वह विभोर को भूल कर दोबारा अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करना चाहती थी.

निराशाहताशा के कुहासे से जल्द ही उस ने अपने को आजाद कर लिया. परंतु उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि जैसे विभोर ने उसे धोखा दिया है. अब वह भी इसी तरह से लड़कों के साथ प्यार का नाटक कर के उन के पैसों पर ऐश कर के उन्हें चीट किया करेगी. उन के संग बड़े रैस्टोरैंट में डिनर करेगी, डांस करेगी और उन के पैसों पर ऐश किया करेगी. उस ने नित नए लड़कों के साथ दोस्ती कर के संबंध बनाना शुरू कर दिया. वह बड़ीबड़ी गाडि़यों वाले रईसजादों को देख कर उन से दोस्ती करती. उन के साथ बार में बैठ कर जाम छलकाती फिर बांहों में बांहें डाल कर डांस करती.

दूसरों को धोखा देतेदेते वह कब खुद नशे की शिकार बनती चली गई. यह जान ही नहीं पाई. सुबह आंख खोलते ही चाय की जगह जाम की तलब लगने लगी. यही वजह थी कि वह दिनभर नशे में धुत्त रहने लगी.

नित नए साथियों के साथ मस्ती करते हुए भी विभोर की यादें उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं. उस के जीवन में जो खालीपन था वह नहीं भर पा रहा था.

उस के जीवन का सूनापन दूर नहीं हो पा रहा था. उस का मन हर घड़ी बेचैन रहता. विभोर के साथ बिताए हुए खुशनुमा लमहें उस की आंखों के सामने नाचने लगते.

औफिस के काम में उस का मन नहीं लगता. वह अकसर गलतियां कर बैठती. बौस नाराज होते. उसे वार्निंग मिल चुकी थी. वह हर समय खोईखोई सी रहती… गहरे अवसाद की शिकार हो चुकी थी. अब उस की नौकरी भी छूट गई. फ्लैट का किराया कहां से दे? अब क्या करे? कहां जाए?

मां का तो कोई सहारा ही नहीं था. वे कभी उसे समझ ही नहीं पाई थीं… वे तो उस की  नौकरी के ही खिलाफ थीं. इसीलिए हमेशा डांटतीडपटती रहतीं.

हंसतीखिलखिलाती परिधि अब अवसाद के अंधेरे में डूब कर मानसिक रोगी बनती जा रही  थी. एक गलत निर्णय ने उस के जीवन को पतन के गर्त में पहुंचा दिया था. जब वह कई दिनों से कमरे से बाहर नहीं निकली, दूध की कई थैलियां बाहर रखी देख कर फ्लैट की मालकिन ने जब पुलिस को बुलाया तो वह अपने बैड पर नशे में धुत्त बेहोश पड़ी थी, उस के चारों तरफ खाली बोतलें रखी थीं. पुलिस ने उस के मोबाइल से उस के पापा के नंबर पर कौल की. उन्होंने निया का नंबर निकाल कर उसे बुलाया. वह भागती हुई आई और अपनी हंसतीखिलखिलाती फ्रैंड की दशा देख उस की आंखें बरस पड़ीं.

परिधि को जब होश आया तो वह निया को देख कर लड़खड़ाती आवाज में बोली, ‘‘तू सही कह रही थी कि लिव इन धोखा है.’’

अनुत्तरित प्रश्न: प्रतीक्षा और अरुण के प्यार में कौन बन रहा था दीवार

सोफे पर अधलेटी सी पड़ी आभा की आंखें बारबार भीग उठती थीं. अंतर्मन की पीड़ा आंसुओं के साथ बहती जा रही थी. उस के पति आकाश भी भीतरी वेदना मन में समेटे मानो अंगारों पर लोटते सोच में डूबे थे. ‘यह क्या हो गया? क्या अतीत की वह घटना सचमुच हमारी भूल थी? कितनी आसानी से प्रतीक्षा ने सारे संबंध तोड़ डाले. एक बार भी मांबाप की उमंगों, सपनों के बारे में नहीं सोचा. उस का दोटूक उत्तर किस तरह कलेजे को बींध गया था, देखो मम्मी, अब तुम्हारा जमाना नहीं रहा. मैं अपना भलाबुरा अच्छी तरह समझती हूं. वैसे भी अपने जीवन का यह महत्त्वपूर्ण फैसला मैं किसी और को कैसे लेने दूं?’

‘पर प्रतीक्षा, मैं और तुम्हारे पापा कोई और नहीं हैं. हम ने तुम्हें जन्म दिया है,’ आभा ने कहा तो प्रतीक्षा चिढ़ गई, ‘यही तो मुसीबत है, जन्म दे कर जो इतना बड़ा उपकार कर दिया है, उस का ऋण तो मैं इस जन्म में चुका ही नहीं सकती… क्यों?’

‘बेटा, तुम हमारी बात को गलत दिशा में मोड़ रही हो. शादी का फैसला जीवन का अहम फैसला होता है, इस में जल्दबाजी ठीक नहीं. दिल से नहीं दिमाग से निर्णय लेना चाहिए,’ आभा ने समझाया तो प्रतीक्षा बोली, ‘मैं ने कोई जल्दबाजी नहीं की है, मैं अरुण को 2 वर्षों से जानती हूं. आप दोनों अच्छी तरह समझ लें, मैं अरुण से ही शादी करूंगी.’

‘मुझे अरुण पसंद नहीं है, प्रतीक्षा. वह अभी ठीक से कोई जौब भी नहीं पा सका है और मुझे लगता है कि वह एक जिम्मेदार जीवनसाथी नहीं बन पाएगा. तुम दोनों अभी कल्पना की उड़ान भर रहे हो, जब धरातल से सिर टकराएगा तो बहुत पछताओगी, बेटी,’ आकाश ने कहा.

‘आप अगर अरुण को पसंद नहीं करते तो मैं भी ऐसे पिता को पसंद नहीं करती जो बच्चों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं.’

‘प्रतीक्षा…’ आभा सन्न रह गई थी.

आकाश कुछ देर  चुप रहे फिर उन्होंने बेटी से कहा, ‘शादी को ले कर हमारे भी कुछ अरमान हैं.’

‘बी प्रैक्टिकल पापा, डोंट बी इमोशनल और आप ने भी तो प्रेमविवाह ही किया था न?’ प्रतीक्षा पांव पटकती कमरे से बाहर चली गई पर उस का तर्क मुंह चिढ़ा रहा था.

आभा ने कुछ कहना चाहा तो आकाश ने उसे रोक दिया, ‘मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो.’

आकाश अकेले बैठे सोच के अथाह सागर में डूब गए. उन्होंने और आभा ने भी तो प्रेमविवाह किया था. आज जिस स्थान पर वे खड़े हैं कल उसी स्थान पर उन के मांबाप खड़े थे.

‘आकाश, यह तू क्या कह रहा है? अभी तो तू ने गे्रजुएशन भी नहीं किया है. यह कैसे संभव है?’ मां ने अवाक् हो कर पूछा था.

‘क्यों संभव नहीं है, मां? रही ग्रेजुएट होने की बात, तो मात्र 4 महीने बाद मुझे बीकौम की डिगरी मिल ही जाएगी.’

‘बेटा, केवल डिगरी मिल जाने से क्या होगा? क्या तू अभी परिवार संभालने के योग्य है? वैसे भी तेरे पिताजी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगे.’

मां ने समझाया तो आकाश चिढ़ कर बोला, ‘पिताजी नहीं मानते तो मत मानें, मुझे उन की परवा नहीं. मैं आभा के सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगा.’

आकाश और आभा एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों ने विवाह का फैसला किया था. पर दोनों के परिवार वाले इस विवाह के सख्त खिलाफ थे. आभा के परिवार वाले पढ़ालिखा कमाऊ वर चाहते थे और आकाश के मातापिता पुत्र को उच्च पद पर पहुंचते हुए देखने के अभिलाषी थे. उस समय दोनों परिवारों के बच्चे उम्र की उस परिधि पर खड़े थे जहां केवल अपना निर्णय, अपनी भावनाएं और अपनी सोच ही अंतर्मन पर हावी होती हैं.

आकाश के पिता सबकुछ जान कर क्रोध से फट पड़े थे, ‘आकाश की मां, समझाओ इस नालायक को, शादी के लिए तो उम्र पड़ी है, अभी पढ़ाई पर ध्यान दे. कहां तो मैं इस के लिए सोच रहा हूं, बीकौम के बाद ये आगे पढ़े, चार्टर्ड अकाउंटैंट बने, खूब नाम कमाए, और यह है कि लैलामजनूं का नाटक कर रहा है.’

‘आप शांत रहिए, मैं उसे समझाऊंगी,’ मां बेहद दुखी थीं.  पर बगल के कमरे में बैठा, अब तक सबकुछ चुपचाप सुन रहा आकाश तमतमा कर कमरे में चला आया था, ‘पिताजी, यह लैलामजनूं… नाटक, आप क्याक्या बोलते जा रहे हैं? क्या प्यार करना गुनाह है? और अगर है भी, तो मैं यह गुनाह कर के ही रहूंगा, मैं आभा से कल ही कोर्टमैरिज करने वाला हूं, आप से जो बन पड़ता है कर लीजिए.’

पिताजी सन्न रह गए थे और मां ने एक तमाचा जड़ दिया था आकाश के मुंह पर, ‘नालायक, तू इन्हें भलाबुरा कह रहा है. बेटा, मांबाप हर परिस्थिति में बच्चों का भला ही सोचते हैं. तू पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर, अपने पांव पर खड़ा हो, तब आभा से ही शादी करना पर अभी नहीं. क्यों पांव पर कुल्हाड़ी मार रहा है?’

पर उस वक्त न जाने आकाश की सोच को क्या हो गया था? क्रोध में विवेक खो बैठे आकाश ने आभा से कोर्टमैरिज कर ली.

‘मेरे घर में तुम्हारा कोई स्थान नहीं. निकल जाओ मेरे घर से, फिर कभी अपना मुंह मत दिखाना. कल जब पछताओगे तो केवल मैं ही याद आऊंगा. आज मेरी बातें बुरी लग रही हैं न, कल यही तीर सी चुभेंगी.’

पिता के कहे शब्दों को आकाश आज भी महसूस करते हैं. कम उम्र में सोच कितनी ‘अपरिपक्व’ होती है? इस बात को वे धीरेधीरे समझने लगे थे. बिना सोचेसमझे भावावेश में आ कर उन्होंने आभा से विवाह तो कर लिया पर जल्द ही दोनों को अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था.

आकाश ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली थी और एक छोटे से किराए के घर से जीवन शुरू कर दिया था. छोटीछोटी चीजों के लिए भी तरसता जीवन. आकाश लाख चाह कर भी पत्नी की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था. नमकहल्दी का जुगाड़ करने में ही पूरा महीना बीत जाता था. इसी बीच, आभा गर्भवती हो गई. खर्च बढ़ता जा रहा था और आमदनी सीमित थी. भीतरी कुंठा अब आकाश का सुखचैन जैसे लीलती जा रही थी. बातबात पर भड़कना जैसे उस की आदत में शुमार होता जा रहा था.

‘मैं जब भी कुछ मांगती हूं तुम इतना भड़क क्यों जाते हो? कहां गए तुम्हारे वादे? मुझे हर हाल में खुश रखने का तुम ने वादा किया था न?’ एक दिन आभा ने पूछ ही लिया था.

‘मैं अभी इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता,’ आकाश ने चिढ़ कर कहा तो आभा बोली, ‘काश, हम अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद शादी करते तो शायद जीवन कितना सुखमय होता.’

‘तुम ठीक कह रही हो, आभा. न जाने मुझे उस वक्त क्या हो गया था? मुझे कैरियर बनाने के बाद ही विवाह के लिए सोचना चाहिए था,’ एक ठंडी सांस भरते हुए आकाश ने कहा.

समय धीरेधीरे सरकता जा रहा था. दोनों पतिपत्नी ने विचार किया कि वे अभी किसी तीसरे की जिम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए गर्भपात ही एकमात्र उपाय है. और एक अजन्मा शिशु इस दुनिया में आंखें खोलने से रोक दिया गया. उस रात दोनों पतिपत्नी की आंखों में नींद नहीं असंख्य प्रश्न थे.

चुपचाप बैठा आकाश सोच रहा था, किशोरावस्था और यौवन की दहलीज पर खड़ा व्यक्ति कितना असहाय होता है. निर्णय लेने की क्षमता से रहित. पर फिर भी स्वयं को परिपक्वता से भरा समझ कर भूल करता जाता है. ऐसे में मातापिता का सहयोग, विचार, सहमति, निर्णय और प्रेम कितना महत्त्वपूर्ण होता है. ठीक ही तो कहा था पिताजी ने, ‘पछताओगे एक दिन तब केवल मैं ही याद आऊंगा. अभी मेरी बातें कड़वी लग रही हैं न? पर एक दिन, यही सोचने पर विवश कर देंगी.’

उधर, आभा परकटे पंछी की तरह बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. मांबाप का दिल दुखा कर कोई भी खुश नहीं रह सकता. प्रेम एक नैसर्गिक अनुभूति है. इसे अनुभव कर के खुशहाल जीवन बिताना ही जीवन की सार्थकता है. प्रेम कभी पलायन का कारण नहीं बन सकता. सच्चा प्रेम तो संबंधों में दृढ़ता प्रदान करता है, एक व्यापक सोच प्रदान करता है. प्रेम के कारण परिजनों से मुख मोड़ने वाले कभी सच्चा सुख नहीं पा सकते. आभा ने जैसे अपनेआप से कहा, ‘मेरा और आकाश का प्रेम एक आकर्षण था. जो धीरेधीरे एकदूसरे के प्रति आसक्ति में बदलता गया. आसक्ति विचारधाराओं को स्वयं में समेटती गई. हम परिवार से दूर होते गए और आखिरकार अकेले रह गए. काश, थोड़ा सा विचार किया होता तो आज सारे सुख हमारी मुट्ठियों में होते.’

अगली सुबह आभा ने आकाश से कहा, ‘मैं टीचर की ट्रेनिंग करना चाहती हूं. तब हम ने विवाह में जल्दबाजी की थी, यह हमारी भूल थी, पर अब मैं अपने पांव पर खड़ी हो कर तुम्हारा हाथ बंटाना चाहती हूं.’

‘तुम बिलकुल ठीक सोच रही हो. मैं भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहता हूं. सफल होने के बाद हम दोनों अपने परिवारों के साथ फिर से जुड़ जाने का प्रयास करेंगे. परिवार से अलग रह कर कोई खुश नहीं रह सकता,’ आकाश का स्वर भीग उठा था.

समय अपनी धुरी पर सरकता रहा. प्रकृति ने प्रत्येक इंसान को यह शक्ति दी है कि अगर वह मन से कुछ ठान लेता है तो कर के ही रहता है. समय के साथ आभा और आकाश ने भी इच्छित मंजिल पा ली. आकाश बैंक में पीओ हो गए और आभा एक स्कूल में शिक्षिका बन गई. 2 प्यारे बच्चों की किलकारी से घर गूंज उठा. सुखमय जीवन तो जैसे क्षणों में बीत जाता है. बेटा निलय इंजीनियरिंग पढ़ रहा था और बेटी प्रतीक्षा मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रही थी. मातापिता की नजरों में बच्ची, प्रतीक्षा उस दिन सहसा बड़ी लगने लगी जब उस ने अरुण के बारे में उन्हें बताया.

‘मां, अरुण मेरा सीनियर है. एक बार मिलोगी तो बारबार मिलना चाहोगी,’ प्रतीक्षा ने चहकते हुए कहा था.

‘यह अरुण कौन है?’

‘बताया न, मेरा सीनियर है.’

‘अरे नहीं, हमारी जातिधर्म का तो है न?’ आभा ने हठात पूछ लिया था.

‘उस से क्या फर्क पड़ता है?’ प्रतीक्षा ने मुंह बना लिया था.

‘फर्क पड़ता है, सब की अपनीअपनी संस्कृति होती है.’

‘डोंट बी सिली, मां, प्रेम के सामने इन ओछी बातों की कोई अहमियत

नहीं होती. वैसे भी मैं बेकार ही इस बहस में पड़ रही हूं. मुझे अरुण पसंद है, दैट्स आल.’

प्रतीक्षा, मां को अवाक् छोड़ कर कमरे से बाहर जा चुकी थी. आभा के कलेजे में अपने ही कहे कुछ शब्द चुभ रहे थे, जो उस ने अपनी मां से कहे थे, ‘आप लोगों ने अपना जीवन जी लिया है, अब मुझे भी चैन से अपना जीवन जीने दो. जिस से प्रेम है, उस से शादी की है, घर छोड़ कर भागी नहीं हूं. जो तुम लोगों को समाज का भय सता रहा है.’

आकाश को जब सबकुछ पता चला तो उन्होंने भी बेटी से बात की. पर प्रतीक्षा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘पापा, आप ने मुझे उच्च शिक्षा दी है, तो भलाबुरा समझने की बुद्धि भी दी है. आप ही बताइए, मैं कभी गलत निर्णय ले सकती हूं?’

आकाश सोच में पड़ गए. इसे कहते हैं परिवर्तन, पहले प्रेमविवाह की जड़ में होती थी जिद और अब…? आज की पीढ़ी तो आत्मस्वाभिमान को ही ढाल बना कर मनचाहा निर्णय ले रही है. अभिभावक तब भी असहाय थे और आज भी मूक रहने को विवश हैं.

‘बताइए न पापा, क्या प्रेम करने से पहले जाति, धर्म सबकुछ पूछ लेना ही सही है? आप ने भी तो मां से…’

प्रतीक्षा की बात बीच में ही काट कर आकाश बोले, ‘हमारी जाति एक थी, प्रतीक्षा. दूसरी जाति में विवाह से कई सामाजिक मुश्किलें आती हैं. फिर भी तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो, अरुण को भी सही जौब मिल जाने दो. फिर हम धूमधाम से तुम्हारी शादी करवा देंगे.’

‘मुझे और अरुण को तो कोर्टमैरिज पसंद है, तामझाम के लिए आज किस के पास वक्त है?’ प्रतीक्षा ने मुंह बना कर कहा तो आकाश क्रोधित हो उठे, ‘जब तुम ने सारे निर्णय स्वयं ही ले लिए हैं तो हमारी जरूरत क्या है? तुम्हें और अरुण को यह पसंद नहीं, वह पसंद नहीं, और हमारी पसंद? मुझे अरुण अपने दामाद के रूप में पसंद नहीं.’

‘मैं भी ऐसे पिता को पसंद नहीं करती जो मेरी भावनाएं न समझे,’ कह कर प्रतीक्षा मांबाप को सकते की हालत में छोड़ कर चली गई.

‘‘चाय ले आऊं?’’ आभा ने पूछा तो आकाश की सोच पर विराम लग गया.

‘‘प्रतीक्षा कहां है?’’ उन्होंने पूछा तो आभा ने बताया कि वह बाहर गई है.

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ आभा बोली.

‘‘यही कि एकमात्र बेटी का विवाह भी हम अपने रीतिरिवाज और परंपरा के अनुसार नहीं कर सकेंगे. वह जिद्दी लड़की कोर्टमैरिज ही करेगी, देखना.’’

‘‘पता नहीं बच्चे मांबाप की भावनाओं का खयाल क्यों नहीं रखते? बच्चों की उद्दंडता उन्हें कितनी चोट पहुंचाती है.’’

‘‘यह एक कटु सत्य है.’’

‘‘हां, पर उस से बड़ा एक सच और है,’’ आभा ने ठहरे हुए स्वर में कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि जब अभिभावक स्वयं बच्चे होते हैं, युवावस्था की दहलीज पर पांव रखते हैं तो अपने मांबाप की कद्र नहीं करते और जब अपना समय आता है तो बच्चों की उद्दंडता, निर्लिप्तता आहत करती है. बबूल के पेड़ पर आम का फल नहीं लगता.’’

‘‘तुम सच कह रही हो, आभा. मांबाप बनने के बाद ही उन की वेदना का सही साक्षात्कार हो पाता है, और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. आज मैं भी बाबूजी और मां की पीड़ा का सहज अनुमान लगा पा रहा हूं,’’ आकाश के शब्द आंतरिक पीड़ा से भीग उठे थे.

‘‘अगर दोनों पीढि़यां एकदूसरे की भावनाओं को समझ कर परस्पर सामंजस्य बिठाएं तो ऐसी जटिल परिस्थिति कभी उत्पन्न ही नहीं होगी. कभी मांबाप अड़ जाते हैं तो कभी बच्चे. थोड़ाथोड़ा दोनों झुक जाएं तो खुशियों का वृत्त पूरा हो जाए, है न?’’ आभा ने कहा.

‘‘खुशियों का वृत्त जरूर पूरा होगा मां,’’ तभी अचानक प्रतीक्षा कमरे में आ गई.

मातापिता की प्रश्नवाचक दृष्टि देख कर वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘मैं आप लोगों की इस बात से सहमत हूं कि हमें फ्लैक्सिबल होना चाहिए. अगर आप को मेरे निर्णय पर एतराज नहीं तो चलिए, मानती हूं आप की बात. अरुण की जौब के बाद ही मैं शादी करूंगी और कोर्टमैरिज नहीं, पारंपरिक विवाह जैसा कि आप लोग चाहते हैं. ठीक है?’’

‘‘हां बेटी,’’ आकाश ने बेटी का कंधा थपथपा दिया था. प्रतीक्षा के जाने के बाद आभा ने देखा आकाश का चेहरा अब भी गंभीर था.

‘‘अब तो ठीक है न?’’ आभा ने पूछा तो आकाश ने कहा, ‘‘हां, ऊपरी तौर पर. सोच रहा हूं, 2 पीढि़यों का यह द्वंद्व क्या कभी समाप्त हो पाएगा?’’

एक प्रश्न कमरे में गूंजा और अनुत्तरित रह गया. पर दोनों का मौन बहुत कुछ कह रहा था.

लिव इन धोखा है: भाग 2- आखिर क्यों परिधि डिप्रेशन में चली गई

‘‘विभोर, कुछ खाओगे?’’

‘‘नहीं, मुझे सोने दो.’’

सुबह जब वह सो कर उठी तो उसे किचन में आमलेट बनाता देख बोली, ‘‘बबिता आ रही होगी.’’

‘‘प से प्यारी परिधि आज बबिता नहीं आएगी, अपने फोन पर मैसेज बौक्स में देखो… डौंट वरी माई लव योर फैवरिट आमलेट इज रैडी.’’

परिधि विभोर के संग मन ही मन सुखद भविष्य के मीठे सपने बुनती रहती.

‘‘परिधि मैं तो बिलकुल मध्य परिवार से ताल्लुक रखता हूं, मेरी एक बहन भी है, जिस की शादी पापा ने अपने खेत गिरवी रख कर की थी. छोड़ो मैं भी बेकार में अपना दुखड़ा तुम्हें सुनाने बैठ गया. समय को साथ सब ठीक हो जाएगा, कुछ महीनों की बात है.’’

परिधि ने संवेदना जताते हुए कहा, ‘‘तुम  परेशान मत हो, अपने पापा के पास पैसे भेज दो. उन के खेत छूट जाएं. अब हम दोनों मिल कर कमाएंगे तो घर की सारी समस्या दूर हो जाएगी,’’ कहते हुए परिधि ने प्यार से उसे अपनी बांहों में लिपटा कर चूम लिया. फिर दोनों जीवन की रंगीनियों में डूब गए.

परिधि घर का पूरा खर्च खुशीखुशी उठा रही थी. किसी महीने में तो उसे सेविंग अकाउंट से भी पैसे निकालने पड़ते थे, लेकिन वह अंतरंग रिश्तों के आनंद में आकंठ डूबी हुई अपने सुनहरे भविष्य के सपने देख रही थी.

सैटरडे औफ था, उस की प्रोमोशन हुई थी. वह मैनेजर बन गई थी. उस के टीम मैंबर्स पार्टी मांग रहे थे. उस ने अपने टीम मैंबर्स के लिए कौकटेल पार्टी अरेंज की. वह विभोर को ले कर पार्टी में गई तो अपनी शादी की पार्टी के सपनों में खोई हुई सब के साथ उस ने भी एक पैग ले लिया. वहां डांस फ्लोर पर बांहों में डाल कर दोनों बहुत देर तक डांस करते रहे. यहां तक कि प्रीशा ने तो उसे चुपचाप विभोर जैसे बौयफ्रैंड के लिए मुबारकवाद भी दी. वह खिलखिला कर हंसते हुए थैंक्यू बोली.

तभी विभोर ने आ कर उस की हथेलियों पर चुंबन ले कर उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया.

परिधि तो ऐसा प्रेमी पा कर अभिभूत हो उठी थी. जब विभोर ने अपने घुटनों पर बैठ कर उस की हथेलियां पकड़ कर कहा, ‘‘मेरी जीवनसंगिनी बनोगी?’’

पूरा हौल तालियों से गूंज उठा. वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि विभोर जैसा परफैक्ट जीवनसाथी इतनी आसानी से उसे हासिल हो सकता है.

वह विभोर के सीने से लग गई. पूरा हौल तालियों से गूंज रहा था. वह खुशी से अभिभूत हो रही थी. पार्टी समाप्त हो गई थी. वह गहरी नींद के आगोश में चली गई थी.

कुछ नशे की खुमारी, सपने सच होने का एहसास होने की खुशी में डूबी वह सपनों की दुनिया में खोई हुई थी.

वह और विभोर बहुत ऊंचे पहाड़ पर गए हुए हैं और विभोर उसे अकेला छोड़ कर कहीं चला जा रहा है… वह जोरजोर से चीख रही है. विभोर… विभोर… मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ… प्लीज… विभोर…

तभी विभोर ने उसे जगा दिया, परिधि कोई बुरा सपना देख रही थीं?

‘‘हां विभोर मुझे छोड़ कर तुम कभी मत जाना,’’ कहते हुए उस ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया.

‘‘कैसी बात करती हो? मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. तुम तो मेरी जान हो मेरा लव हो,’’ कहते हुए उस पर चुंबनों की बौछार कर दी.

प्यार में डूबी परिधि की आंखें छलछला उठीं. दोनों को साथ रहते लगभग 6 महीने हो गए थे. परिधि अब विभोर से शादी कर सैटल होना चाहती थी.

एक दिन विभोर अनमना सा औफिस से लौट कर आया और अपना सामान समेटने लगा. उस की आंखें छलछला रही थीं. उस ने डिनर तैयार किया और परिधि का इंतजार करने लगा. जब से वह मैनेजर बनी थी, वह शाम को लेट आने लगी थी.

परिधि जब लौट कर आई तो अचानक विभोर को पैक सामान के साथ देख वह चौंक पड़ी. सुबह तो सब ठीक था. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मैं अपने घर जा रहा हूं, मेरी मां को कैंसर का शक है, इसलिए उन्हें ले कर टाटा कैंसर हौस्पिटल जाना पड़ेगा… परिधि जिस स्टार्टअप के लिए मैं रातदिन मेहनत कर रहा था. उस के फाइनैंसर ने हाथ खड़े कर दिए. हम लोगों की सैलरी भी मारी गई. ऐसा मन कर रहा है कि पंखें से लटक जाऊं,’’ कहते हुए अपना मुंह फेर लिया. शायद वह अपने आंसू छिपाना चाहता था, ‘‘मैं पापा के सामने किस मुंह से जाऊंगा. मेरे पास तो कुछ भी नहीं है.

‘‘मैं तुम्हारे पैसे भी नहीं लौटा पाया. मैं बहुत नालायक हूं… पापा आस लगाए बैठे  हैं कि बेटा कमा कर पैसा ले कर आएगा तो मां का इलाज बड़े हौस्पिटल में करवाएंगे.’’

‘‘परिधि, यदि मैं जीवित रहा तो तुम्हारे पैसे जरूर लौटाऊंगा नहीं तो अगले जन्म में,’’ यह कहते हुए वह तेजी से उठ खड़ा हुआ.

परिधि असमंजस की स्थिति में विभोर की बातों पर सहसा विश्वास नहीं कर पा रही थी. यह कैसी दुविधा की घड़ी उस के जीवन में आ खड़ी हुई है. विभोर के लिए उस के दिल में अप्रतिम प्यार था. वह उस के प्यार में आकंठ डूबी हुई थी. उस के बिना अपने जीवन की कल्पना करते ही घबरा उठी.

कुछ क्षणों तक सोचने के बाद बोली, ‘‘विभोर, तुम पैसे के लिए मेरातेरा क्यों कर रहे हो? तुम्हारी मां आखिर मेरी भी तो मां हुईं. जो कुछ भी मेरा है. वह हम दोनों का ही है… मां बीमार हैं तो मेरा भी तो तुम्हारे साथ चलना बनता है. मैं छुट्टी के लिए अप्लाई करती हूं.’’

विभोर घबरा कर बोला, ‘‘इस समय तुम्हारा जाना क्या उचित होगा? सब लोग वैसे ही परेशान हैं, तुम नई मुसीबत खड़ी करने की बात कर रही हो… मेरी जान तो वैसे ही हलक में अटकी हुई है. एक हफ्ते से अपने पैसे मिलने के लिए हर तरह से कोशिश कर रहा था लेकिन सारी मेहनत बेकार हो गई. 3 महीने से एक पैसा नहीं मिला परंतु मिलने की आस तो बनी हुई थी. आज तो वह आस भी टूट गई,’’ विभोर के चेहरे पर निराशा, हताशा और मायूसी छाई हुई थी, ‘‘परिधि, मैं ने तुम्हारे लिए डिनर बना दिया है,’’ कहते हुए अपना बैग उठाते वह रोंआसा हो उठा.

‘‘बाय…’’ कहते हुए बैग उठा कर चलने लगा तो परिधि को लगा कि जैसे उस का सबकुछ लुटता जा रहा है. वह दौड़ती हुई आई और उस के गले में अपनी बांहें डाल कर उस के सीने से लिपट कर बोली, ‘‘मेरे अकाउंट में केवल 1 लाख रुपए हैं. मैं ट्रांसफर कर देती हूं. तुम मां के इलाज के लिए पैसे भेज दो. मैं आज अपने यहां हायरिंग के लिए तुम्हारे नाम को रिकमैंड कर दूंगी.’’

‘‘मेरा जाना जरूरी है परिधि… मैं तुम्हारा यह एहसान सारी जिंदगी नहीं भूल सकता,’’ कहते हुए उसे अपने आलिंगन में समेट कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए फिर बैग उठा कर डबडबाई आंखों से तेजी से बाहर चला गया.

परिधि ने निया को फोन मिलाया और काफी देर तक बात करती रही? लेकिन विभोर के जाने की बात नहीं बताई. उस की आंखों की नींद उड़ गई थी. एक ओर विभोर चला गया था तो दूसरी ओर उस ने भावुकता में आ कर अपनी बचत के सारे पैसे भी उसे दे दिए थे.

कुछ दिनों पहले जब पापा ने उस से पूछा था कि परिधि तुम्हारी शादी के लिए लड़का

देख रहे हैं तो उस ने बोल दिया था, ‘‘आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है, मेरे औफिस में एक लड़का मुझे पसंद है. मैं जल्द ही आप लोगों के पास उसे ले कर आऊंगी.’’

वह फोन मिलाती तो उस का फोन बंद आता. उस की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. वह उस के गांवघर के बारे में कुछ नहीं जानती थी. न ही उस का औफिस में मन लगे न ही अपने फ्लैट में. वह रातदिन बिन पानी के मछली की तरह तड़प रही थी. बारबार फोन मिलाती, लेकिन उस का फोन बंद आता.

वह अपनी बेवकूफी पर कभी रोती तो कभी नाराज हो कर अपने पैर पटकती, ‘‘आने दो… इतना सुनाऊंगी कि वह भी याद करेगा कि उस का भी किस से पाला पड़ा है.’’

अब उस के चेहरे पर मुसकराहट छा गई थी. लेकिन तुरंत ही उस के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं.

वह हताशानिराशा के गर्त में डूब गई. ऐसा तो नहीं कि विभोर उसे धोखा दे कर कहीं चला गया है. फिर वह स्वत: कहती नहीं ऐसा नहीं हो सकता. वह उसे बहुत प्यार करता है… धोखा नहीं दे सकता…

पूरे 5 दिनों के बाद रात के 10 बजे उस का फोन आया, ‘‘परिधि, हम लोगों का सपना पूरा होने वाला है.’’

वह छूटते ही बोली, ‘‘पहले यह बताओ तुम्हारा फोन क्यों बंद आ रहा था? मैं बहुत नाराज हूं… मुझे कुछ नहीं सुनना.’’

‘‘मैं कान पकड़ कर माफी मांग रहा हूं. पहले खुशखबरी सुन लो फिर नाराजगी दिखा लेना.’’

‘‘ मां को कैंसर नहीं है. दूसरी खुशखबरी मेरी जौब आस्ट्रेलिया में फाइनल हो गई है अब हम दोनों साथसाथ आस्ट्रेलिया जाएंगे.’’

‘‘मैं कैसे जाऊंगी…’’

‘‘मैं कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं. मैं ने कोर्ट में शादी की एप्लिकेशन लगा रखी है. तुम मेरी पत्नी बन कर मेरे साथ चलोगी.’’

‘‘तुम कब आ रहे हो?’’

‘‘दरवाजा तो खोलो,’’ अंदर आते ही उसने परिधि को अपने आलिंगन में ले कर चुंबनों की बौछार कर दी और फिर दोनों एकदूसरे में समा गए. परिधि के सारे गिलेशिकवे बादल के टुकड़ों की तरह हवा के ?ांके में उड़ गए.

‘‘माई लव, तुम्हारे रुपयों ने मेरी इज्जत बचा ली नहीं तो पापा से मुझे बहुत गालियां मिलतीं…’’

‘‘अरे यार पैसा तो हाथ का मैल है.’’

‘‘आई एम सो लकी माई डियर,’’ कहते हुए अपने बैग से लाल रेशमी कपड़े में बंधे हुए एक जोड़ी कंगन निकाल कर उस की सूनी कलाइयों में पहना दिए, ‘‘ये कंगन चुपके से अम्मां ने अपनी बहू के लिए दिए हैं.’’

परिधि कंगन पहन कर भावुक हो उठी और फिर अपने प्रियतम के गले से लग गई.

‘‘परिधि, माई डियर, डोंट वरी मैं तुम्हारा पूरा पैसा चुका दूंगा.’’

परिधि ने उस के होंठों पर अपनी ऊंगली रख दी. फिर दोनों एकदूसरे में खो गए.

1-2 दिन ही बीते थे वह बोला, ‘‘अच्छी मुसीबत है, सब फ्रैंड्स पार्टी मांग रहे हैं.’’

‘‘सही तो कह रहे हैं… पार्टी तो बनती ही है… चलो तुम भी क्या कहोगे… मैं तुम्हारे लिए पार्टी स्पौंसर कर देती हूं.’’

जल्द ही पार्टी हुई. जम कर धमाल हुआ… पार्टी को यादगार बनाने के लिए परिधि ने जाने मानें सिंगर कृष्णन को बुलाया था. संगीत की धुन पर शोरशराबा, डांस और ड्रिंक की मस्ती में सब डूबे हुए थे. आधी रात तक प्रोग्राम चलता रहा.

लिव इन धोखा है: भाग 1- आखिर क्यों परिधि डिप्रेशन में चली गई

इतवार का दिन था. रात से ही बादल खूब बरस रहे थे. मौसम सुहावना था. निया ने अपने मनपसंद मूली के परांठे बनाए थे और नाश्ता कर के छुट्टी मनाने के मूड से गहरी नींद में सो गई थी. जब लगभग

3 बजे उस की आंख खुली तो परिधि को तैयार होते देख उस ने पूछा, ‘‘परिधि क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही सजधज रही हो? यह डार्क लिपस्टिक, शोल्डर कट ड्रैस  किसी के साथ डेट पर जा रही हो क्या?’’

‘‘निया आज तू अपनी फ्रैंड के घर नहीं जा रही है क्या?’’

‘‘नहीं यार, आज तो मैं पूरा दिन सोऊंगी या फिर अपना नौवेल गौन विद द विंड पूरा करूंगी. वैरी इंट्रैस्टिंग नौवेल है.’’

‘‘लेकिन आज तो तुझे रूम से 4 बजे जाना ही पड़ेगा,’’ कहते हुए उस के चेहरे पर  मुसकराहट छा गई.

‘‘क्यों किसी के साथ डेट कर रही है?’’

‘‘यस माई डियर.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘यह नहीं बताऊंगी.’’

परिधि और निया दिल्ली के आसपास की हैं. एक गाजियाबाद से तो दूसरी मेरठ से है. दोनों ने एमबीए किया है और 1 साल से बैंगलुरु में रह रही हैं. दोनों ही मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हैं. पहले एक वूमंस लाउंज में रहती थीं. वहीं पर दोनों में दोस्ती हो गई थी. डोसा, इडली और सांभर खातेखाते परेशान हो गई थीं. फिर वहां के रूल्स… रूम में खाना ले कर नहीं जा सकतीं… देर हो जाने पर चायनाश्ता नहीं मिलता. फिर प्याजलहसुन की भी समस्या थी. उन लोगों को वहां का खाना अच्छा नहीं लगता था. 6 महीने किसी तरह झेलने के बाद दोनों ने फ्लैट ले कर रहना तय किया.

दोनों ही सारा खर्च आधाआधा बांट लेतीं. काम भी बांट कर करती. कोई झगड़ा नहीं. साथ में मूवी देखतीं, एकदूसरे के कपड़े शेयर करतीं, अपनेअपने बौस की बातें कर के खूब हंसतीखिलखिलातीं… औफिस की दिनभर की गौसिप करतीं.

निया को पढ़ने का शौक था. फुरसत के समय उस के हाथ में नौवेल होता तो परिधि के हाथ में मोबाइल. वह  तरहतरह के वीडियो देखा करती.

आज पहली बार उसे परिधि की बात पसंद नहीं आ रही थी. उस ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘वही तेरा चश्मिशपोपू आ रहा है क्या?’’

‘‘परिधि तू गलत रास्ते पर कदम बढ़ा रही है. यदि तेरे घर वालों को पता लगा तो?’’

‘‘निया तू भी बूढ़ी दादी जैसी बात कर रही है. चल जल्दी निकलने की तैयारी कर 4 बजने वाले हैं… मुझे कमरा भी तो ठीक करना है.’’

‘‘तेरा इरादा शादीवादी का तो नहीं है?’’

वह निया का हाथ पकड़ कर उठाती हुई

बोली, ‘‘शादी माई फुट… मैं तो लाइफ को ऐंजौय कर रही हूं.’’

‘‘तुम भी एक बौयफ्रैंड बना लो, जीवन हसीन हो जाएगा.’’

‘‘बस कर अपनी सीख अपने पास रख… मैं तुझ से सीरियसली कह रही हूं. आज तो मैं मौल  में जा कर भटक लूंगी, लेकिन मेरे साथ रहना है तो रूम से बाहर चाहे जो करो रूम के अंदर कुछ नहीं.’’

‘‘निकल, आज तो जा… फिर बाद में जो होगा वह देखेगें.’’

‘‘यह तो बता कि मुझे कितनी देर में लौट कर आना है?’’

‘‘आज संडे है, डिनर तो बाहर ही करना है.’’

निया ने अपने बैग में बुक रखी और सोचने लगी कि कहां जाऊं. वह मौल में गई. वहां मल्टीप्लैक्स में ‘अवेंजर’ का पोस्टर देख टिकट लिया और हौल में चली गई. पिक्चर देख कर बाहर आई, तो भूख लगी थी. उस ने पिज्जा और कोल्ड ड्रिंक और्डर की.

उस के बाद जब वह अपने कमरे में पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद था क्योंकि परिधि का बौयफ्रैंड अभी भी रूम में था. उस ने नौक किया तो परिधि ने अपने कपड़ों को ठीक करते हुए दरवाजा खोला, लेकिन बिस्तर की हालत वहां पर जो कुछ हो रहा था उस की गवाही दे रहीं थी.

उस के बौयफ्रैंड ने परिधि को पहले हग किया फिर किस. उस के बाद निया को गहरी नजरों से देखा और बोला, ‘‘हैलो… आई एम विभोर. निया, यू आर वैरी स्मार्ट ऐंड ब्यूटीफुल.’’

‘‘थैंक्स फौर कंप्लिमैंट ऐंड विभोर नाइस टू मीट यू.’’

दोनों के चेहरे पर मुस्कान छा गई थी. परिधि के चेहरे पर फैला हुई प्रसन्नता का अतिरेक उस के रोमरोम से फूट रहा था. निया थकी हुई थी. अपने बैड पर जा कर लेट गई. परिधि उस के पास आ कर लेट गई और विभोर की बातें  करने लगी.

विभोर प्राइवेट कालेज से इंजीनियरिंग कर के आया था. वह मध्यवर्गीय परिवार से था. लेकिन सपने बड़े ऊंचे देखता था. एक स्टार्टअप कंपनी में काम कर रहा था. 6 फुट लंबा, गोराचिट्टा स्मार्ट आकर्षक युवक. उस का बात करने का स्टाइल रईस परिवार जैसा था. वह अमेरिकन एसेंट में फर्राटेदार इंग्लिश बोल कर सब को प्रभावित कर लेता था. परिधि भी उस की प्यार भरी मीठीमीठी बातों के जाल में फंस गई थी.

‘‘निया मैं बता नहीं सकती कि आज कितना मजा आया… तू इतनी जल्दी क्यों आ गई… विभोर तो रात में यहीं रुकना चाह रहा था,’’ कहते हुए वह उस से लिपट गई.

निया ने उस के हाथों को अपने ऊपर से हटा दिया और करवट बदल ली, ‘‘परिधि तुझे घर वालों का डर नहीं रहा क्या? जब उन्हें तेरी हरकत पता चलेगी तो सोचा है कि क्या होगा?’’

‘‘तू चिंता मत कर, यहां की बात भला उन लोगों को कौन है बताने वाला…’’

परिधि की खुशी से निया को थोड़ी जलन सी हो रही थी परंतु उस छोटे शहर वाले संस्कार वह अभी भूल नहीं पाई थी.

परिधि अपने बैड पर लेटी हुई लगातार चैटिंग में बिजी थी शायद यह उस के आनंद का आफ्टर इफैक्ट चल रहा था. निया की आंखों से नींद ने दूरी बना ली थी. उसे  कुछ अजीब सी फीलिंग हो रही थी.

अब निया जब औफिस से आती दोनों आपस में गुटुरगूं करते मिलते. उस के आते ही कौफी या खाने की बात होने लगती या फिर विभोर कहता, ‘‘चलो आइसक्रीम खा कर आते हैं.’’

1 महीने से ज्यादा तक यह नाटक चलता रहा. फिर एक दिन परिधि ने कह दिया, ‘‘मैं ने दूसरा फ्लैट देख लिया है मैं उस में शिफ्ट कर रही हूं.’’

‘‘परिधि मैं तुझे वार्न कर रही हूं. लिव इन धोखा है.’’

‘‘तू 18वीं सदी की बातें मत कर. मुझे लाइफ को ऐंजौय करने दे. तुम किसी दूसरे के साथ रूम शेयर कर लेना.’’

निया को गुस्सा तो आया, लेकिन इस रोजरोज के फिल्मी लव सीन से तो उसे नजात मिली. प्यार में डूबी परिधि ने ब्रोकर से बात कर के जल्दी में 1 लाख सिक्युरिटी मनी दे कर वन रूम फ्लैट ले लिया. उस ने सोचा था कि विभोर सिक्युरिटी मनी तो देगा ही लेकिन  अंतिम समय में वह बोला, ‘‘सौरी यार मेरा तो कार्ड रूम में ही रह गया.’’

अब दोनों प्रेमी लिव इन में रहने लगे थे. विभोर सुबह उस के लिए बैड टी बना कर ले आता और वह उस की गोद में बैठ कर चाय का मजा लेती. दोनों मिल कर नाश्ता बनाते फिर अपनेअपने औफिस चले जाते.

विभोर को कुकिंग का शौक था और वह अच्छा खाना बना लेता था. इसलिए वह कुछकुछ बनाता रहता.

एक दिन परिधि औफिस से आ कर बोली, ‘‘आज बहुत भूख लगी है.’’

‘‘डार्लिंग, फिकर नौट मैं आज डिनर में तुम्हें  लच्छा परांठे और शाहीपनीर खिलाने वाला हूं,’’ और ऐक्सपर्ट कुक की तरह उस ने डिनर बनाना शुरू कर दिया. वह हैल्प के लिए गई तो उस ने प्यार से उसे अपनी बांहों के घेरे में ले चुंबन ले कर कहा, ‘‘माई लविंग शोना, आज नो ऐंट्री का बोर्ड लगा है. तुम आराम से मूवी देखो… बस तुम्हारा शैफ हाजिर है.

परिधि तो अपने निर्णय पर खुशी से झमी जा रही थी कि विभोर के साथ लिव इन के लिए उस ने पहले क्यों नहीं सोचा. वह विभोर की बाहों के झाले में खुशी के गोते लगा रही थी.

समय को तो जैसे पंख लगे हुए थे. वह नाश्ता बनाती तो विभोर कौफी बना देता, जब तक वह औफिस के लिए तैयार होती वह फटाफट किचन की सफाई और बरतन भी धो देता. परिधि को उस का इतना काम करना कई बार अच्छा नहीं लगता और वह भी परेशान हो जाती, इसलिए उस ने वाचमैन से कह कर बबिता (सहायिका) को रख लिया.

अब दोनों जब बबिता कौलबैल बजाती तब ही उठते. वह झाड़ूबरतन कर के उन दोनों के लिए नाश्ता बना देती. दोपहर में दोनों ही औफिस में लंच लेते थे.

परिधि मन ही मन सोच रही थी कि घर के खर्च में विभोर ज्यादा कुछ नहीं करता. ज्यादातर सबकुछ उसे ही करना पड़ रहा है लेकिन वह उस से कुछ कह नहीं पाती. निया का साथ था तो बराबर खर्च कर के उस के पास अच्छा बैंक बैलेंस इकट्ठा हो गया था. लेकिन विभोर की मीठीमीठी बातों में वह सबकुछ भूल जाती और सोचती कि विभोर ग्रोसरी तो जबतब और्डर कर ही देता है. ज्यादातर मोटा खर्च तो वही करती. वह फल और नाश्ता लाती तो विभोर ब्रैड या सब्जी ले आता. किराया,बिजली का बिल, बाहर डिनर या थियेटर वगैरह के समय विभोर कहीं पर कुछ भी नहीं खर्च करता.

महीना पूरा होते ही किराया देना था. विभोर अनमना सा उदास चेहरे के साथ औफिस से लौट कर आया था.

‘‘डियर, मेरे सिर में बहुत दर्द है, हरारत सी लग रही है.’’

स्वाभाविक था कि परिधि ने उस के सिर में  बाम लगाया, टैबलेट खिला कर कौफी बना कर पिलाई. तब तक रात के 9 बज गए थे. वह थक गई थी, इसलिए उस ने खाना और्डर कर दिया.

तीज स्पेशल: लाइफ पार्टनर- क्या थी अवनि के अजीब व्यवहार की वजह?

अवनि की शादी को लगभग चार महीने बीत चुके थे, परंतु अवनि अब तक अभिजीत को ना मन से और ना ही‌ तन‌ से‌ स्वीकार कर पाई थी. अभिजीत ने भी इतने दिनों में ना कभी पति होने का अधिकार जताया और ना ही अवनि को पाने की चेष्टा की. दोंनो एक ही छत में ऐसे रहते जैसे रूम पार्टनर .

अवनि की परवरिश मुंबई जैसे महानगर में खुले माहौल में हुई थी.वह स्वतंत्र उन्मुक्त मार्डन विचारों वाली आज की वर्किंग वुमन (working woman) थी. वो चाहती थी कि उसकी शादी उस लड़के से हो जिससे वो प्यार करे.अवनि शादी से पहले प्यार के बंधन में बंधना चाहती थी और फिर उसके बाद शादी के बंधन में, लेकिन ऐसा हो ना सका.

अवनि जिसके संग प्यार के बंधन में बंधी और जिस पर उसने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, वो अमोल उसका लाइफ पार्टनर ना बन सका लेकिन अवनि को इस बात का ग़म ना था.उसे इस बात की फ़िक्र थी कि अब वो अमोल के संग अपना संबंध बिंदास ना रख पाएगी.वो चाहती थी कि अमोल के संग उसका शारीरिक संबंध शादी के बाद भी ऐसा ही बना रहे.इसके लिए अमोल भी तैयार था.

अवनि अब तक भूली‌ नही ‌अमोल से उसकी वो पहली मुलाकात.दोनों ऑफिस कैंटीन में मिले थे.अमोल को देखते ही अवनि की आंखों में चमक आ गई थी.उसके बिखरे बाल, ब्लू जींस और उस पर व्हाईट शर्ट में अमोल किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था.उसके बात करने का अंदाज ऐसा था कि अवनि उसे अपलक निहारती रह गई थी. उसे love at first sight वाली बात सच लगने लगी. सुरभि ने दोनों का परिचय करवाया था.

अवनि और अमोल ऑफिस के सिलसिले में एक दूसरे से मिलते थे.धीरे धीरे दोनों में दोस्ती हो गई और कब दोस्ती प्यार में बदल गई पता ही नही चला.प्यार का खुमार दोनों में ऐसा ‌चढ़ा की सारी मर्यादाएं लांघ दी गई.

अमोल  इस बात से खुश था की अवनि जैसी खुबसूरत लड़की उसके मुठ्ठी में है‌ और अवनि को भी इस खेल में मज़ा आ रहा  था.मस्ती में चूर अविन यह भूल ग‌ई कि उसे पिछले महीने पिरियड नहीं आया है जब उसे होश आया तो उसके होश उड़ गए.वो ऑफिस से फौरन लेडी डॉक्टर के पास ग‌ई. उसका शक सही निकला,वो प्रेग्नेंट थी.

अवनि ने हास्पिटल से अमोल को फोन किया पर अमोल का फोन मूव्ड आउट आफ कवरेज एरिया बता रहा था.अवनि घर आ गई.वो सारी रात बेचैन रही. सुबह ऑफिस पहुंचते ही वो अमोल के सेक्शन में ग‌ई जहां सुरभि ने उसे बताया कि अमोल तो कल‌ ही अपने गांव के लिए निकल गया.उसकी पत्नी का डीलीवरी होने वाला है,यह सुनते ही अवनि के चेहरे का रंग उड़ गया.अमोल ने उसे कभी बताया नहीं कि वो शादीशुदा है. इस बीच अवनि के आई – बाबा ने अभिजीत से अवनि की शादी तय कर दी.अवनि यह शादी नहीं करना चाहती थी.

पंद्रह दिनों बाद अमोल के लौटते ही अवनि उसे सारी बातें बताती हुई बोली-“अमोल मैं किसी और से शादी नहीं करना चाहती तुम अपने बीबी,बच्चे को छोड़ मेरे पास आ जाओ हम साथ रहेंगे ”

अमोल इसके लिए तैयार नही हुआ और अवनि को पुचकारते हुए बोला-“अवनि तुम  एबार्शन करा लो और जहां तुम्हारे आई बाबा चाहते हैं वहां तुम शादी कर लो और बाद में तुम कुछ ऐसा करना कि कुछ महीनों में वो तुम्हें  तलाक दे दे और फिर हमारा संबध यूं ही बना रहेगा”.

अवनि मान गई और उसने अभिजीत से शादी कर ली.शादी के बाद जब अभिजीत ने सुहाग सेज पर अवनि के होंठों पर अपने प्यार का मुहर लगाना‌ चाहा तो अवनि ने उसी रात अपना मंतव्य साफ कर दिया कि जब ‌तक वो अभिजीत को दिल से स्वीकार नही कर लेती, उसके लिए उसे शरीर से स्वीकार कर पाना संभव नही होगा.उस दिन से अभिजीत ने अविन‌ को कभी छूने का प्रयास नही किया.केवल दूर से उसे देखता.ऐसा नही था की अभिजीत देखने में बुरा था.अवनि जितनी खूबसूरत ‌थी.अभिजीत उतना ही सुडौल और आकर्षक व्यक्तित्व का था.

अभिजीत वैसे तो माहराष्ट्र के जलगांव जिले का रहने वाला था,लेकिन अपनी नौकरी के चलते नासिक में रह रहा था.शादी के ‌बाद अवनि को भी अपना ट्रांसफर नासिक के ब्रान्च ऑफिस में परिवार वालों और अमोल  के कहने पर करवाना पड़ा.अमोल ने वादा किया था कि वो नासिक आता रहेगा.अवनि के नासिक‌ पहुंचने की दूसरी सुबह,अभिजीत ने चाय‌ बनाने से पहले अवनि से कहा-” मैं चाय बनाने जा रहा हूं क्या तुम चाय पीना पसंद करोगी .

अवनि ने बेरुखी से जवाब दिया-“तुम्हें तकल्लुफ करने की कोई जरुरत नहीं.मैं अपना ध्यान स्वयं रख सकती हूं.मुझे क्या खाना‌ है,पीना है ,ये मैं खुद देख लुंगी”.

अवनि के ऐसा कहने पर अभिजीत वहां से बिना कुछ कहे चला गया.दोनों एक ही छत में ‌रहते हुए एक दूसरे से अलग ‌अपनी‌ अपनी‌ दुनिया में मस्त थे.

शहर और ऑफिस दोनों ही न‌ए होने की वजह से अवनि ‌अब तक ज्यादा किसी से घुलमिल नहीं पाई थी.ऑफिस का काम और ऑफिस के लोगों को समझने में अभी उसे  थोड़ा वक्त चाहिए था.अभिजीत और अवनि दोनों ही सुबह अपने अपने ऑफिस के लिए निकल जाते और देर रात घर लौटते.सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना दोनों अपने ऑफिस कैंटीन में खा लेते.केवल रात का खाना ही घर पर बनता.दोंनो में से जो पहले घर पहुंचता खाना बनाने की जिम्मेदारी उसकी होती.ऑफिस से आने के बाद अवनि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर देती या फिर अपनी क्लोज  फ्रैंड सुरभि को,जो उसकी हमराज भी थी और अभिजीत को अवनि का room partner संबोधित किया करती थी. अभिजीत अक्सर न्यूज या फिर  एक्शन-थ्रिलर फिल्में देखते हुए बिताता.

अवनि और अभिजीत दोनों मनमौजी की तरह अपनी जिंदगी अपने-अपने ढंग से जी रहे थे, तभी अचानक एक दिन अवनि का पैर बाथरूम में फिसल गया और उसके पैर में मोच आ गई. दर्द इतना था ‌कि अवनि के लिए हिलना डुलना मुश्किल हो गया. डॉक्टर ने अवनि को पेन किलर और कुछ दवाईयां दी साथ में पैर पर मालिस करने के लिए लोशन भी, साथ ही यह हिदायत भी दी कि वो दो चार दिन घर पर ही रहे और ज्यादा चलने फिरने से बचे.

अवनि को इस हाल में देख अभिजीत ने भी अवनि के साथ अपने ‌ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली और पूरे दिन अवनि की देखभाल करने लगा.उसकी हर जरूरतों का पूरा ध्यान रखता.अवनि के मना करने के बावजूद दिन में दो बार उसके पैरों की मालिश करता.अभिजीत जब उसे छूता ‌अवनि को अमोल के संग बिताए अपने अंतरंग पलों की याद ताज़ा हो जाती और वो रोमांचित हो उठती.अभिजीत भी तड़प उठता लेकिन फिर संयम रखते हुए अवनि से दूर हो जाता.अभिजीत सारा दिन अवनि को खुश रखने का प्रयास करता उसे हंसाता उसका दिल बहलाता.

इन चार दिनों में अवनि ने यह महसूस किया की अभिजीत देखने में जितना सुंदर है उससे कहीं ज्यादा खुबसूरत उसका दिल है.वो अमोल से ज्यादा उसका ख्याल रखता है. अभिजीत ने अपने सभी जरूरी काम स्थगित कर दिए थे.इस वक्त अवनि ही अभिजीत की प्रथमिकता थी. इन्हीं सब के बीच ना जाने कब अवनि के मन में अभिजीत के लिए प्रेम का पुष्प पुलकित होने लगा पर इस बात ‌से अभिजीत बेखबर था.

अवनि अब ठीक हो चुकी थी.एक हफ्ते गुजरने को थे.अवनि अपने दिल की बात  कहना चाहती थी, लेकिन कह‌ नही पा रही थी.अवनि चाहती थी अभिजीत उसके करीब आए उसे छूएं लेकिन अभिजीत भूले से भी उसे हाथ नहीं लगाता बस ललचाई आंखों से उसकी ओर देखता.एक सुबह मौका पा अवनि, अभिजीत से बोली-“मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं”

” हां कहो,क्या कहना है ?”अभिजीत न्यूज पेपर पर आंखें गढ़ाए अवनि की ओर देखे बगैर ही बोला.

अवनि गुस्से में अभिजीत के हाथों से न्यूज पेपर छीन उसके दोनों बाजुओं को पकड़ अपने होंठ उसके होंठों के एकदम करीब ले जा कर जहां दोनों को एक-दूसरे की गर्म सांसें महसूस होने लगी अवनि बोली-“मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं मुझे तुम से प्यार हो गया है”.

यह सुनते ही अभिजीत ने अवनि को अपनी बाहों में भर लिया और बोला-“तुम मुझे अब प्यार करने लगी हो,मैं तुम्हें उस दिन से प्यार करता हूं जिस दिन से तुम मेरी जिंदगी में आई हो और तब से तुम्हें पाने के लिए बेताब हूं. तभी अचानक अवनि का मोबाइल बजा.फोन पर सुरभि थी.हाल चाल पूछने के बाद सुरभि ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा-“and what about your room partner”

यह सुनते ही अवनि गम्भीर स्वर में बोली- “No सुरभि he is not my room partner.now he is my life partner”.

ऐसा कह अवनि अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर सब कुछ भूल अभिजीत की बाहों में समा गई.

कबूतरों का घर: क्या जूही और कृष्णा का प्यार पूरा हो पाया

चांद की धुंधली रोशनी में सभी एकदूसरे की सांसें महसूस करने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें तो यह भरोसा भी नहीं हो रहा था कि वे जीवित बचे हैं. पर ऊपर नीला आकाश देख कर और पैरों के नीचे जमीन का एहसास कर उन्हें लगा था कि वह बाढ़ के प्रकोप से बच गए. बाढ़ में कौन बह कर कहां गया, कौन बचा, किसी को कुछ पता नहीं था.

इन बचने वालों में कुछ ऐसे भी थे जिन के अपने देखते ही देखते उन के सामने जल में समाधि ले चुके थे और बचे लोग अब विवश थे हर दुख झेलने के लिए.

‘‘जाने और कितना बरसेगा बादल?’’ किसी ने दुख से कहा था.

‘‘यह कहो कि जाने कब पानी उतरेगा और हम वापस घर लौटेंगे,’’ यह दूसरी आवाज सब को सांत्वना दे रही थी.

‘‘घर भी बचा होगा कि नहीं, कौन जाने.’’ तीसरे ने कहा था.

इस समय उस टापू पर जितने भी लोग थे वे सभी अपने बच जाने को किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे थे और सभी आपस में एकदूसरे के साथ नई पहचान बनाने की चेष्टा कर रहे थे. अपना भय और दुख दूर करने के लिए यह उन सभी के लिए जरूरी भी था.

चांद बादलों के साथ लुकाछिपी खेल रहा था जिस से वहां गहन अंधकार छा जाता था.

तानी ने ठंड से बचने के लिए थोड़ी लकडि़यां और पत्तियां शाम को ही जमा कर ली थीं. उस ने सोचा आग जल जाए तो रोशनी हो जाएगी और ठंड भी कम लगेगी. अत: उस ने अपने साथ बैठे हुए एक बुजुर्ग से माचिस के लिए पूछा तो वह जेब टटोलता हुआ बोला, ‘‘है तो, पर गीली हो गई है.’’

तानी ने अफसोस जाहिर करने के लिए लंबी सांस भर ली और कुछ सोचता हुआ इधरउधर देखने लगा. उस वृद्ध ने माचिस निकाल कर उस की ओर विवशता से देखा और बोला, ‘‘कच्चा घर था न हमारा. घुटनों तक पानी भर गया तो भागे और बेटे को कहा, जल्दी चल, पर वह….’’

तानी एक पत्थर उठा कर उस बुजुर्ग के पास आ गया था. वृद्ध ने एक आह भर कर कहना शुरू किया, ‘‘मुझे बेटे ने कहा कि आप चलो, मैं भी आता हूं. सामान उठाने लगा था, जाने कहां होगा, होगा भी कि बह गया होगा.’’

इतनी देर में तानी ने आग जलाने का काम कर दिया था और अब लकडि़यों से धुआं निकलने लगा था.

‘‘लकडि़यां गीली हैं, देर से जलेंगी,’’ तानी ने कहा.

कृष्णा थोड़ी दूर पर बैठा निर्विकार भाव से यह सब देख रहा था. अंधेरे में उसे बस परछाइयां दिख रही थीं और किसी भी आहट को महसूस किया जा सकता था. लेकिन उस के उदास मन में किसी तरह की कोई आहट नहीं थी.

अपनी आंखों के सामने उस ने मातापिता और बहन को जलमग्न होते देखा था पर जाने कैसे वह अकेला बच कर इस किनारे आ लगा था. पर अपने बचने की उसे कोई खुशी नहीं थी क्योंकि बारबार उसे यह बात सता रही थी कि अब इस भरे संसार में वह अकेला है और अकेला वह कैसे रहेगा.

लकडि़यों के ढेर से उठते धुएं के बीच आग की लपट उठती दिखाई दी. कृष्णा ने उधर देखा, एक युवती वहां बैठी अपने आंचल से उस अलाव को हवा दे रही थी. हर बार जब आग की लपट उठती तो उस युवती का चेहरा उसे दिखाई दे जाता था क्योंकि युवती के नाक की लौंग चमक उठती थी.

कृष्णास्वामी ने एक बार जो उस युवती को देखा तो न चाहते हुए भी उधर देखने से खुद को रोक नहीं पाया था. अनायास ही उस के मन में आया कि शायद किसी अच्छे घर की बेटी है. पता नहीं इस का कौनकौन बचा होगा. उस युवती के अथक प्रयास से अचानक धुएं को भेद कर अब आग की मोटीमोटी लपटें खूब ऊंची उठने लगीं और उन लपटों से निकली रोशनी किसी हद तक अंधेरे को भेदने में सक्षम हो गई थी. भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई.

कृष्णा के पास बैठे व्यक्ति ने कहा, ‘‘मौत के पास आने के अनेक बहाने होते हैं. लेकिन उसे रोकने का एक भी बहाना इनसान के पास नहीं होता. जवान बेटेबहू थे हमारे, देखते ही देखते तेज धार में दोनों ही बह गए,’’ कृष्णा उस अधेड़ व्यक्ति की आपबीती सुन कर द्रवित हो उठा था. आंच और तेज हो गई थी.

‘‘थोड़े आलू होते तो इसी अलाव में भुन जाते. बच्चों के पेट में कुछ पड़ जाता,’’ एक कमजोर सी महिला ने कहा, उन्हें भी भूख की ललक उठी थी. इस उम्र में भूखा रहा भी तो नहीं जाता है.

आग जब अच्छी तरह से जलने लगी तो वह युवती उस जगह से उठ कर कुछ दूरी पर जा बैठी थी. कृष्णा भी थोड़ी दूरी बना कर वहीं जा कर बैठ गया. कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोला, ‘‘आप ने बहुत अच्छी तरह अलाव जला दिया है वरना अंधेरे में सब घबरा रहे थे.’’

‘‘जी,’’ युवती ने धीरे से जवाब में कहा.

‘‘मैं कृष्णास्वामी, डाक्टरी पढ़ रहा हूं. मेरा पूरा परिवार बाढ़ में बह गया और मैं जाने क्यों अकेला बच गया,’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद कृष्णा ने फिर युवती से पूछा, ‘‘आप के साथ में कौन है?’’

‘‘कोई नहीं, सब समाप्त हो गए,’’ और इतना कहने के साथ वह हुलस कर रो पड़ी.

‘‘धीरज रखिए, सब का दुख यहां एक जैसा ही है,’’ और उस के साथ वह अपने आप को भी सांत्वना दे रहा था.

अलाव की रोशनी अब धीमी पड़ गई थी. अपनों से बिछड़े सैकड़ों लोग अब वहां एक नया परिवार बना रहे थे. एक अनोखा भाईचारा, सौहार्द और त्याग की मिसाल स्थापित कर रहे थे.

अगले दिन दोपहर तक एक हेलीकाप्टर ऊपर मंडराने लगा तो सब खड़े हो कर हाथ हिलाने लगे. बहुत जल्दी खाने के पैकेट उस टीले पर हेलीकाप्टर से गिरना शुरू हो गए. जिस के हाथ जो लग रहा था वह उठा रहा था. उस समय सब एकदूसरे को भूल गए थे पर हेलीकाप्टर के जाते ही सब एकदूसरे को देखने लगे.

अफरातफरी में कुछ लोग पैकेट पाने से चूक गए थे तो कुछ के हाथ में एक की जगह 2 पैकेट थे. जब सब ने अपना खाना खोला तो जिन्हें पैकेट नहीं मिला था उन्हें भी जा कर दिया.

कृष्णा उस युवती के नजदीक जा कर बैठ गया. अपना पैकेट खोलते हुए बोला, ‘‘आप को पैकेट मिला या नहीं?’’

‘‘मिला है,’’ वह धीरे से बोली.

कृष्णा ने आलूपूरी का कौर बनाते हुए कहा, ‘‘मुझे पता है कि आप का मन खाने को नहीं होगा पर यहां कब तक रहना पड़े कौन जाने?’’ और इसी के साथ उस ने पहला निवाला उस युवती की ओर बढ़ा दिया.

युवती की आंखें छलछला आईं. धीरे से बोली, ‘‘उस दिन मेरी बरात आने वाली थी. सब शादी में शरीक होने के लिए आए हुए थे. फिर देखते ही देखते घर पानी से भर गया…’’

युवती की बातें सुन कर कृष्णा का हाथ रुक गया. अपना पैकेट समेटते हुए बोला, ‘‘कुछ पता चला कि वे लोग कैसे हैं?’’

युवती ने कठिनाई से अपने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘कोई नहीं बचा है. बचे भी होंगे तो जाने कौन तरफ हों. पता नहीं मैं कैसे पानी के बहाव के साथ बहती हुई इस टीले के पास पहुंच गई.’’

कृष्णा ने गहरी सांस भरी और बोला, ‘‘मेरे साथ भी तो यही हुआ है. जाने कैसे अब अकेला रहूंगा इतनी बड़ी दुनिया में. एकदम अकेला… ’’ इतना कह कर वह भी रोंआसा हो उठा.

दोनों के दर्द की गली में कुछ देर खामोशी पसरी रही. अचानक युवती ने कहा, ‘‘आप खा लीजिए.’’

युवती ने अपना पैकट भी खोला और पहला निवाला बनाते हुए बोली, ‘‘मेरा नाम जूही सरकार है.’’

कृष्णा आंसू पोंछ कर हंस दिया. दोनों भोजन करने लगे. सैकड़ों की भीड़ अपना धर्म, जाति भूल कर एक दूसरे को पूछते जा रहे थे और साथसाथ खा भी रहे थे.

खातेखाते जूही बोली, ‘‘कृष्णा, जिस तरह मुसीबत में हम एक हो जाते हैं वैसे ही बाकी समय क्यों नहीं एक हो कर रह पाते हैं?’’

कृष्णा ने गहरी सांस ली और बोला, ‘‘यही तो इनसान की विडंबना है.’’

सेना के जवान 2 दिन बाद आ कर जब उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले कर चले तो कृष्णा ने जूही की ओर बहुत ही अपनत्व भरी नजरों से देखा. वह भी कृष्णा से मिलने उस के पास आ गई और फिर जाते हुए बोली, ‘‘शायद हम फिर मिलें.’’

रात होने से पहले सब उस स्थान पर पहुंच गए जहां हजारों लोग छोटेछोटे तंबुओं में पहले से ही पहुंचे हुए थे. उस खुले मैदान में जहांजहां भी नजर जाती थी बस, रोतेबिलखते लोग अपनों से बिछुड़ने के दुख में डूबे दिखाई देते थे. धीरेधीरे भीड़ एक के बाद एक कर उन तंबुओं में गई. पानी ने बहा कर कृष्णा और जूही  को एक टापू पर फेंका था लेकिन सरकारी व्यवस्था ने दोनों को 2 अलगअलग तंबुओं में फेंक दिया.

मीलों दायरे में बसे उस तंबुओं के शहर में किसी को पता नहीं कि कौन कहां से आया है. सब एकदूसरे को अजनबी की तरह देखते लेकिन सभी की तकलीफ को बांटने के लिए सब तैयार रहते.

सरकारी सहायता के नाम पर वहां जो कुछ हो रहा था और मिल रहा था वह उतनी बड़ी भीड़ के लिए पर्याप्त नहीं था. कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी मदद करने के काम में जुटी थीं.

वहां रहने वाले पीडि़तों के जीवन में अभाव केवल खानेकपड़े का ही नहीं बल्कि अपनों के साथ का अभाव भी था. उन्हें देख कर लगता था, सब सांसें ले रहे हैं, बस.

उस शरणार्थी कैंप में महामारी से बचाव के लिए दवाइयों के बांटे जाने का काम शुरू हो गया था. कृष्णा ने आग्रह कर के इस काम में सहायता करने का प्रस्ताव रखा तो सब ने मान लिया क्योंकि वह मेडिकल का छात्र था और दवाइयों के बारे में कुछकुछ जानता था. दवाइयां ले कर वह कैंपकैंप घूमने लगा. दूसरे दिन कृष्णा जिस हिस्से में दवा देने पहुंचा वहां जूही को देख कर प्रसन्नता से खिल उठा. जूही कुछ बच्चों को मैदान में बैठा कर पढ़ा रही थी. गीली जमीन को उस ने ब्लैकबोर्ड बना लिया था. पहले शब्द लिखती थी फिर बच्चों को उस के बारे में समझाती थी. कृष्णा को देखा तो वह भी खुश हो कर खड़ी हो गई.

‘‘इधर कैसे आना हुआ?’’

‘‘अरे इनसान हूं तो दूसरों की सेवा करना भी तो हमारा धर्म है. ऐसे समय में मेहमान बन कर क्यों बैठे रहें,’’ यह कहते हुए कृष्णा ने जूही को अपना बैग दिखाया, ‘‘यह देखो, सेवा करने का अवसर हाथ लगा तो घूम रहा हूं,’’ फिर जूही की ओर देख कर बोला, ‘‘आप ने भी अच्छा काम खोज लिया है.’’

कृष्णा की बातें सुन कर जूही हंस दी. फिर कहने लगी, ‘‘ये बच्चे स्कूल जाते थे. मुसीबत की मार से बचे हैं. सोचा कि घर वापस जाने तक बहुत कुछ भूल जाएंगे. मेरा भी मन नहीं लगता था तो इन्हें ले कर पढ़नेपढ़ाने बैठ गई. किताबकापी के लिए संस्था वालों से कहा है.’’

दोनों ने एकदूसरे की इस भावना का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आखिर हम कुछ कर पाने में समर्थ हैं तो क्यों हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें?’’

अब धीरेधीरे दोनों रोज मिलने लगे. जैसेजैसे समय बीत रहा था बहुत सारे लोग बीमार हो रहे थे. दोनों मिल कर उन की देखभाल करने लगे और उन का आशीर्वाद लेने लगे.

कृष्णा भावुक हो कर बोला, ‘‘जूही, इन की सेवा कर के लगता है कि हम ने अपने मातापिता पा लिए हैं.’’

एकसाथ रह कर दूसरों की सेवा करते करते दोनों इतने करीब आ गए कि उन्हें लगा कि अब एकदूसरे का साथ उन के लिए बेहद जरूरी है और वह हर पल साथ रहना चाहते हैं. जिन बुजुर्गों की वे सेवा करते थे उन की जुबान पर भी यह आशीर्वाद आने लगा था, ‘‘जुगजुग जिओ बच्चों, तुम दोनों की जोड़ी हमेशा बनी रहे.’’

एक दिन कृष्णा ने साहस कर के जूही से पूछ ही लिया, ‘‘जूही, अगर बिना बराती के मैं अकेला दूल्हा बन कर आऊं तो तुम मुझे अपना लोगी?’’

जूही का दिल धड़क उठा. वह भी तो इस घड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी. नजरें झुका कर बोली, ‘‘अकेले क्यों आओगे, यहां कितने अपने हैं जो बराती बन जाएंगे.’’

कृष्णा की आंखें खुशी से चमक उठी. अपने विवाह का कार्यक्रम तय करते हुए उस ने अगले दिन कहा, ‘‘पता नहीं जूही, अपने घरों में हमारा कब जाना हो पाए. तबतक इसी तंबू में हमें घर बसाना पडे़गा.’’

जूही ने प्यार से कृष्णा को देखा और बोली, ‘‘तुम ने कभी कबूतरों को अपने लिए घोसला बनाते देखा है?’’

कृष्णा ने उस के इस सवाल पर अपनी अज्ञानता जाहिर की तो वह हंस कर बताने लगी, ‘‘कृष्णा, कबूतर केवल अंडा देने के लिए घोसला बनाते हैं, वरना तो खुद किसी दरवाजे, खिड़की या झरोखे की पतली सी मुंडेर पर रात को बसेरा लेते हैं. हमारे पास तो एक पूरा तंबू है.’’

कृष्णा ने मुसकरा कर उस के गाल पर पहली बार हल्की सी चिकोटी भरी. उन दोनों के घूमने से पहले ही कुछ आवाजों ने उन्हें घेर लिया था.

‘‘कबूतरों के इन घरों में बरातियों की कमी नहीं है. तुम तो बस दावत की तैयारी कर लो, बराती हाजिर हो जाएंगे.’’

उन दोनों को एक अलग सुख की अनुभूति होने लगी. लगा, मातापिता, भाईबहन, सब की प्रसन्नता के फूल जैसे इन लोगों के लिए आशीर्वाद में झड़ रहे हैं.

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