मीरा: अंगद ने क्या धोखा किया

बचपन में मीरा जब भी उड़ते हुए विमान को देखती थी तो उस की नन्ही सी आंखों में विस्मय छलक उठता. इतने छोटे से विमान में लोग कैसे बैठते होंगे, डर नहीं लगता होगा? और बड़ी होने तक विमान में बैठने का तो सपना भी कभी नहीं आया था.

लेकिन जिस बात का कभी सपना भी नहीं देखा था वह बात आज सच हो गई थी. वक्त ने कुछ ऐसी करवट ली थी कि आज वह विमान में बैठ कर सात समंदर पार जा रही थी. यही एकमात्र सत्य था बाकी सब झूठ. वैसे ऐसा तो कहानियों में या फिर फिल्मों में होता है कि कोई राजकुमार आ कर किसी गरीब घर की लड़की को ब्याह कर ले जाए लेकिन यहां तो वास्तव में उस के जीवन में यही हुआ था.

कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही अंगद उस की जिंदगी में कहीं से आ धमका था. उस की एक दूर की रिश्तेदार ने अंगद को दिखाया था और अंगद को वह पसंद आ गई थी. सब काम इतनी शीघ्रता से हुआ था कि सोचने का कुछ मौका ही न मिला. घर वालों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. बिना किसी लेनदेन के बेटी को ऐसा घर और ऐसा वर मिला था. किसी भी गरीब मांबाप को इस से ज्यादा क्या चाहिए? बेटी राज करेगी. एक हफ्ते में ही चट मंगनी पट ब्याह हो गया.

अंगद ज्यादा रुक नहीं सकता था. शादी के दूसरे दिन ही उसे जाना पड़ा. मीरा के सब पेपर तैयार करने थे, वीजा जो लेना था. जाने में थोड़ा समय तो लगना ही था. मीरा उतने दिन सासससुर के पास ही रही. बुजुर्ग सासससुर, दोनों ही बहुत अच्छे थे. और फिर थोड़े ही दिनों में मीरा का जाना भी हो गया. आंखों में सपने संजोए मीरा आज विमान में उड़ रही थी. उस ने जो सपना देखा भी नहीं था आज वह हकीकत बन गया था.

विमान में बैठेबैठे मीरा की आंखों ने आज पहली बार कुछ रंगीन सपने देखने शुरू किए थे.

शिकागो के ओहेर एअरपोर्ट पर अंगद उसे लेने आया था. उस के साथ उस की एक दोस्त भी थी. अंगद ने उस की पहचान कराई, ‘‘मीरा, यह मेरी दोस्त, मेरियन. और मेरियन, ये है मीरा.’’

विदेश में तो ये सब सहज है. ऐसा मीरा ने सुन रखा था, इसलिए उसे कुछ बुरा न लगा. हंस के उस ने मेरियन से हाथ मिलाया. मेरियन मीरा का अनूठा सौंदर्य देख कर चकित हो गई थी. तीनों साथ ही घर आए.

नई दुलहन का स्वागतसत्कार तो यहां कौन करे? मीरा ने ऐसे ही घर में प्रवेश किया.

अंगद ने बाहर से कुछ मंगवा कर रखा था. तीनों ने साथ खाया. मीरा को अंगद की बातों में ऊष्मा की कमी महसूस हुई. लेकिन शायद किसी तीसरे व्यक्ति की मौजूदगी के कारण होगा, ऐसा सोच कर मीरा कुछ बोली नहीं. खाना खाने के बाद अंगद ने मीरा को एक कमरा दिखा कर कहा, ‘‘मीरा, आज से यह तुम्हारा कमरा.’’

‘‘मेरा?’’ मीरा कुछ समझी नहीं. उस ने अंगद की ओर देखा.

मीरा की आंखों में तैरता प्रश्न अंगद समझ रहा था. अब स्पष्टता करने की घड़ी आ पहुंची थी.

‘‘देखो मीरा, मेरियन मेरी दोस्त ही नहीं बल्कि मेरी प्रेमिका भी है. हम दोनों 1 साल से साथ रहते हैं. मुझे पता है, तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा, पर क्या करूं? तुम से शादी करना मेरी मजबूरी थी. मेरे मातापिता ने शर्त रखी थी कि अगर मैं किसी भारतीय लड़की से शादी करूंगा तभी उन की मिल्कियत मुझे मिलेगी, इसीलिए तुम से शादी करनी पड़ी. उन्हें मेरियन के बारे में कुछ पता नहीं. वैसे तो मुझे पहले दिन ही तुम्हें ये सब बताना नहीं था, लेकिन मेरियन ने बोला था कि मुझे आज ही बोलना पड़ेगा. सौरी. लेकिन मेरे पास और कोई चारा नहीं था.’’

मेरियन सामने बैठ कर सब सुन रही थी. अंगद के साथ रहने से वह हिंदी समझने लगी थी और थोड़ाबहुत बोल भी लेती थी.

मेरियन मीरा के सामने ही बैठी सब देख रही थी, अब मीरा क्या करेगी?

थोड़ी देर मीरा कुछ बोल नहीं पाई. एक सन्नाटा सा रहा. मीरा का वैसे तो जोरजोर से चीखने का जी हो रहा था लेकिन कौन सुनेगा यहां? कौन था अपना यहां? जिस को अपना मान कर, जिस के सहारे आई थी वह खुद ही…

रोने का कोई मतलब ही नहीं दिख रहा था. इस आदमी ने पैसों के लिए एक नारी की जिंदगी दांव पर लगा दी थी. क्या कर सकती है वह?

थोड़ी देर चुप्पी छाई रही.

फिर मीरा ने धीरे से पूछा, ‘‘अब मुझे क्या करना है?’’

‘‘देखो मीरा, मैं कोई ऐसा बुरा आदमी नहीं हूं. तुम्हें दुख पहुंचाने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है और मैं यह भी अच्छी तरह जानता हूं कि इस से ज्यादा दुख की बात तुम्हारे लिए और कोई नहीं होगी. मुझे माफ करना. मेरा प्यार मेरी मजबूरी है. तुम यहां आराम से रह सकती हो. तुम्हें यहां कोई तकलीफ नहीं होगी. पर हमारे बीच पतिपत्नी का कोई संबंध नहीं होगा. तुम भूल जाओ कि मैं तुम्हारा पति हूं और मैं भूल जाऊंगा कि तुम मेरी पत्नी हो. हम दोस्त की हैसियत से साथसाथ रहेंगे.

2 साल के बाद तुम स्वदेश वापस जाना चाहोगी तो जा सकती हो. मेरे मातापिता की शर्त सिर्फ 2 साल के लिए ही है. फिर मुझे उन की संपत्ति मिल जाएगी. और तब अगर तुम चाहो तो दूसरी शादी भी कर सकती हो.’’

मीरा के मन में प्रश्न आया, ‘शादी के बाद एक रात जो हम ने साथ बिताई थी, उस का क्या?’

उस का मन हुआ कि अंगद को झंझोड़ कर इस बात का जवाब मांगे, क्या मुझे मेरा कौमार्य वापस दे सकते हो? लेकिन कोई फायदा नहीं था. उस ने धैर्य रख कर पूछा, ‘‘और यहां रह कर मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘कुछ नहीं. मैं और मेरियन. हम दोनों भी यहीं रहेेंगे. क्योंकि मेरियन के पास अपना खुद का कोई घर नहीं है. तुम अपने तरीके से यहां रह सकती हो. जो जी में आए, करो और खुश रहो,’’ अंगद ने उदारता दिखाते हुए कहा.

मीरा 2-3 मिनट मौन रही. फिर एकाएक जोरों से हंस पड़ी.

अंगद बुत की तरह उसे हंसते हुए देखता रह गया. यह औरत पागल तो नहीं है? रोने के बजाय हंसती है? उस ने तो सोचा था कि मेरियन की बात सुनते ही वह एक आम भारतीय नारी की तरह रोनेधोने लगेगी. उस को भलाबुरा बोलेगी. मेरियन को भी कुछ सुनाएगी. पर इसे तो मानो कुछ असर ही नहीं है. मेरियन को भी आश्चर्य हुआ. अंगद ने तो उस से कुछ और ही कहा था.

अंगद से रहा न गया. उस ने पूछा, ‘‘तुम्हें ये बात सुन कर दुख नहीं हुआ? हंसी क्यों आई?’’

‘‘सच बात बताऊं?’’

अंगद मीरा को देखता रहा.

‘‘अरे, आप ने तो मेरी प्रौब्लम हल कर दी. अंगद, सच बात यह है कि मैं भी शादी से पहले किसी और से प्यार करती थी. यह शादी मेरी भी इच्छा के खिलाफ हुई थी. मेरे प्रेमी माधव की पढ़ाई पूरी होने में अभी 2 साल बाकी हैं. इसीलिए कैसे भी कर के मुझे 2 साल तक प्रतीक्षा करनी थी. मैं उलझन में फंसी हुई थी, लेकिन तुम ने तो मेरी मुश्किल आसान कर दी, थैंक्स अंगद. यह तो बहुत अच्छी बात हुई. हम दोनों एक ही नाव के यात्री निकले.’’

‘‘क्या? क्या तुम सच कहती हो?’’ अंगद को जैसे विश्वास नहीं हुआ.

न जाने क्यों उसे यह सुनना अच्छा नहीं लगा.

‘‘अरे, इस में हैरान होने की क्या बात है? अगर ऐसा नहीं होता तो पहले ही दिन पति की ऐसी बात सुन कर कौन पत्नी आंसू न बहाती?’’

‘‘चलो, हम दोनों की प्रौब्लम सौल्व हो गई,’’ अंगद ने कहा तो सही लेकिन उस की आवाज में वास्तविक खुशी नहीं थी.

ये सब बातें सुन कर मेरियन बहुत खुश हो रही थी. चलो, एक बला टली. उसे डर था कि पता नहीं मीरा क्या करेगी? अब कुछ नहीं होगा. उस ने राहत की सांस ली.और फिर एक ही छत के नीचे, एक ही घर में ‘पति, पत्नी और वो’ का सिलसिला शुरू हुआ.

सुबह अंगद और मेरियन दोनों ही अपनी जौब पर चले जाते. मीरा तीनों के लिए खाना बनाती. घर के सब काम करती. थोड़े दिन सब ठीक ही चला.

1 महीने में मीरा यहां के तौरतरीके, रहनसहन सब सीख गई थी.

एक दिन जब अंगद और मेरियन शाम को घर आए तो खाना नहीं बना था.

मीरा से पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सौरी अंगद, आज मुझे भूख नहीं थी, इसलिए कुछ नहीं बनाया. रोज अपने लिए बनाती थी तो साथ में आप दोनों के लिए भी बना लेती थी.’’

‘‘तो आज खाना कौन बनाएगा?’’

‘‘क्यों? मेरे आने से पहले आप लोग बनाते ही होंगे न?’’

‘‘हां, लेकिन तब तो घर में दूसरा कोई था नहीं, इसीलिए.’’

‘‘अभी ऐसा ही सोच लो.’’

‘‘क्यों? अभी तो तुम हो न?’’

‘‘तो मैं क्या आप की खाना बनाने वाली हूं?’’

‘‘अगर यहां रहना है तो काम भी करना पड़ेगा.’’

‘‘तो मुझे यहां रहने का कहां शौक था? 2 साल की शर्त आप की ओर से थी. अगर आप को पसंद नहीं है तो मैं चली जाऊंगी,’’ मीरा ने शांति से उत्तर दिया.

अंगद को बहुत गुस्सा आया लेकिन कुछ बोल नहीं पाया.

वैसे दूसरे दिन जब वे दोनों आए तब खाना तैयार था. मीरा ने आज तरहतरह का बहुत बढि़या खाना बनाया था. अंगद को आश्चर्य हुआ. उस ने पूछा, ‘‘आज क्या कुछ खास बात है?’’

‘‘ओह, हां अंगद, आज मैं बहुत खुश हूं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, आज मेरा माधव भी यहां आ गया है. और आज वह मुझे यहां मिलने आने वाला है. ओह, अंगद टुडे आई ऐम सो हैप्पी. माधव की पढ़ाई पूरी हो जाएगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे. अब तो हम दोनों भी मिल पाएंगे. ठीक आप की तरह. है न खुशी की बात?’’

तभी मीरा का मोबाइल बजा.

‘‘ओह, माधव, सौरी, अंगद. आप दोनों खा लो, मेरा फोन तो लंबा चलेगा,’’ खुश होती हुई मीरा अपने कमरे में चली गई.

आज खाना तो बहुत अच्छा बना था लेकिन अंगद को मजा न आया. उस का ध्यान खाने के बजाय मीरा के कमरे से आती हंसी की आवाज पर ज्यादा था. न जाने क्यों आज वह बेचैन हो उठा था.

मेरियन ने एकदो बार पूछा पर अंगद ने कुछ जवाब नहीं दिया.

दूसरे दिन जब अंगद और मेरियन काम पर जा रहे थे तब मीरा ने घर की चाबी अंगद के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘लो, यह एक चाबी तुम अपने पास भी रखो. मुझे आज आने में शायद देर हो जाएगी.’’

मीरा के चेहरे पर खुशी झलक रही थी.

‘‘क्यों? तुम कहीं जाने वाली हो?’’

‘‘क्यों, कल बोला तो था कि माधव भी यहां आया है. आज मैं उसी से मिलने जा रही हूं. कितने लंबे अरसे के बाद हम दोनों मिल पाएंगे. अंगद, आज मैं बहुत खुश हूं. अच्छा है आप के जीवन में मेरियन है, वरना मुझे भी पूरी जिंदगी आप के साथ बितानी होती. तब मेरे प्रेम का क्या होता?’’

‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती अपने पति के सामने पराए मर्द की बातें करते?’’

‘‘पति?’’ हंसते हुए मीरा ने कहा, ‘‘भूल गए? आप ने ही तो कहा था, हम दोनों पतिपत्नी नहीं हैं. क्यों, सही बात है न, मेरियन?’’

‘‘या, राइट, इट्स क्वाइट ओके. फाइन, नाउ कमऔन, अंगद. वी आर गेटिंग लेट,’’ अंगद का हाथ खींचती मेरियन बोली.

उस शाम अंगद आया तब मीरा घर में नहीं थी. मेरियन साथ में ही थी, फिर भी न जाने क्यों अंगद को कुछ अच्छा नहीं लगा. आज वह मेरियन के साथ भी ठीक से बात नहीं कर पाया. बारबार उस का ध्यान घड़ी की सूई पर जाता रहा.

मीरा जब आई तब रात हो चुकी थी. उस का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

मीरा को देखते ही अंगद बरस पड़ा, ‘‘समय क्या हुआ है, पता भी है? कहां थीं इतनी देर?’’

‘‘अरे, अंगद, आप तो ऐसे डांट रहे हो जैसे मैं आप की पत्नी हूं.’’

‘‘तो क्या, तुम मेरी पत्नी नहीं हो?’’

‘‘आप भी क्या मजाक कर लेते हो? मैं कब से आप की पत्नी हो गई?’’

‘‘हमारी शादी हुई है, भूल गईं?’’

‘‘हां, शादी हुई थी. लेकिन तुम्हारी पत्नी मेरियन है, मैं नहीं. यह बात आप ने ही तो पहले ही दिन मुझे बताई थी न? हम दोनों पतिपत्नी नहीं हैं, यह बात आप ने कही थी, मैं ने नहीं.’’

‘‘तुम भी तो किसी और से प्यार करती हो, ऐसा कहा था न?’’

‘‘यह तो आप के कहने के बाद कहा था. वरना मैं तो अपने प्यार का बलिदान दे चुकी थी. पूरा जीवन आप के साथ बिताने, सिर्फ आप के भरोसे ही इतनी दूर आई थी.’’

‘‘देखो मीरा, मुझे तुम्हारे साथ कोई बहस नहीं करनी है. लेकिन तुम इतनी रात तक किसी के साथ बाहर रहो, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘आप को जो अच्छा लगे वह ही करना मेरी ड्यूटी में नहीं आता. आप की कई बातें मुझे भी पसंद नहीं आतीं. मैं ने कभी कुछ बोला?’’

‘‘तुम भी बोल सकती हो.’’

‘‘अंगद, ऐसा कोई हक आप ने मेरे पास रहने नहीं दिया है. अब प्लीज, आप जाओ, मैं भी थक गई हूं. गुडनाइट.’’

और मीरा अपने कमरे में चली गई. अंगद उसे देखता रह गया.

1 महीना बीत गया. मीरा अब पूरी तरह बदल चुकी है. वह कभीकभी काफी देर से आती है. अंगद के पूछने पर अंटशंट जवाब देती है.

अंगद को कुछ चुभता रहता है. वह अब मेरियन पर गुस्सा करता रहता है. मेरियन के साथ छोटीछोटी बातों में झगड़ा होता रहता है.

अंगद को खुद को पता नहीं चलता कि उस को क्या हो रहा है? मीरा कब आती है, कब जाती है, इसी बात पर उस का ध्यान लगा रहता है.

और आज तो मानो हद हो गई. आज मीरा के साथ माधव भी घर पर आया था. अंगद के आने पर मीरा ने माधव के साथ उस का परिचय करवाया.

अंगद क्या बोलता? खा जाने वाली नजर से बस माधव को देखता रहा.

‘‘माधव, अब चलो, मेरे कमरे में बैठते हैं.’’

माधव उठ कर मीरा के कमरे में चला गया. पूरी रात माधव वहीं रुका था. सुबह जब माधव गया तो अंगद मीरा पर बरस पड़ा, ‘‘यह क्या चालू किया है तुम ने?’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘क्या हुआ? जैसे कुछ हुआ ही नहीं.’’

‘‘पर, मुझे हकीकत पता नहीं कि क्या हुआ है? कोई प्रौब्लम?’’

‘‘तुम्हारे कमरे में कल पूरी रात कोई गैर मर्द रुका था और पूछती हो कि क्या हुआ?’’

‘‘माधव कोई गैर मर्द थोड़े ही है? मेरा होने वाला पति है.’’

‘‘होने वाला होगा, अभी हुआ नहीं है. अभी मैं तुम्हारा पति हूं.’’

‘‘सौरी अंगद, लेकिन आप मेरियन के पति हो. मेरियन तो रोज पूरी रात आप के कमरे में रहती है. मैं तो कुछ नहीं बोलती.’’

‘‘मैं मेरियन का पति नहीं हूं. मैं ने अभी मेरियन के साथ शादी नहीं की है.’’

‘‘ओह, तो आप दोनों बिना शादी किए ही…उफ, मैं भूल गई. यह अमेरिका है. बाय द वे, अब शादी कब कर रहे हो?’’

अंगद मौन साधे मीरा की ओर देख रहा था. बोला, ‘‘मीरा, याद है, शादी के बाद हम ने एक रात साथ बिताई थी?’’ अंगद की आवाज में न जाने कहां से भावुकता छा गई थी.

‘‘हां, याद है, मैं जीवन की उस काली रात को कैसे भूल सकती हूं?’’

‘‘काली रात?’’

‘‘हां, और क्या कह सकती हूं?’’

‘‘मीरा, सौरी, मुझे लगता है कि मैं ने कहीं कोई गलती की है.’’

‘‘अंगद, अब ये सब सोचने का कोई अर्थ कहां रहा है?’’

‘‘मीरा, तुम अगर मानो तो अभी भी अर्थ हो सकता है.’’

‘‘कैसे, मुझे भी तो पता चले?’’

‘‘मीरा, मुझे एहसास हो गया है कि मेरियन मेरे जीवन की मंजिल नहीं है. वह मेरे जीवन की एक भूल थी.’’

‘‘अंगद, जीवन में हर भूल ठीक नहीं हो सकती. अब हम पौइंट औफ नो रिटर्न पर खड़े हैं.’’

‘‘मीरा, प्लीज, मुझे एक मौका चाहिए.’’

‘‘सौरी, मैं माधव को धोखा नहीं दे सकती.’’

‘‘मीरा, तुम कुछ भी कहो पर पवित्र अग्नि के सात फेरे ले कर सामने हमारी शादी हुई है. हम ने जीवनभर साथ निभाने का प्रण लिया था.’’

‘‘ये सब आज याद आया?’’

‘‘मैं ने कहा न कि वह मेरी गलती थी. और मैं नहीं मानता कि कोई गलती सुधारी नहीं जाती.’’

‘‘अच्छा? कैसे सुधरेगी यह गलती? आप के कमरे में बैठी हुई मेरियन को क्या जवाब देंगे आप?’’

‘‘मेरियन के लिए मैं अकेला नहीं हूं. उस के पास दोस्तों की फौज है.’’

‘‘ओह, तो ये बात है? इसीलिए आज मेरे लिए प्यार उमड़ आया है.’’

‘‘नहीं मीरा, यह बात नहीं है. पर मुझे लगता है मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं.’’

‘‘अभी पता चला?’’

‘‘शायद, हां, माधव के साथ मैं तुम्हें देख नहीं सकता. मेरी पत्नी किसी के साथ है, यह भावना…’’

‘‘अंगद, यह प्रेम नहीं है. यह पुरुष वर्ग की सहज ईर्ष्या है.’’

‘‘तुम जो भी कहो, पर मीरा, आज से मेरी जिंदगी में तुम्हारे सिवा किसी और स्त्री का कोई स्थान नहीं होगा.’’

‘‘पर मेरा प्यार माधव है. उस का क्या?’’

‘‘मीरा, हमारी शादी तो हो चुकी थी न? और अगर मेरियन न होती तो तुम यह शादी निभाने वाली भी थीं न? तब माधव को तुम भूलने वाली ही थीं न?’’

‘‘पर…’’

‘‘मीरा, प्लीज फौरगेट इट, फौरगेट ऐवरीथिंग. हम दोनों ही सब भूल जाते हैं. नए सिरे से जिंदगी शुरू करेंगे.’’

‘‘मैं देखूंगी, मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए. वैसे भी जब तक मेरियन घर में है तब तक तो सोचने का कुछ सवाल भी नहीं है.’’

‘‘ये सब मुझ पर छोड़ दो. मुझे मेरी गलती का पूरा एहसास हो गया है.’’

और अगले 2 दिनों में मेरियन अंगद की जिंदगी से सदा के लिए चली गई.

‘‘मीरा, अब क्या सोचा?’’

‘‘मैं आप को कल जवाब दूंगी.’’

दूसरे दिन अंगद को मीरा का जवाब मिल गया था, एक पत्र के रूप में-

‘‘अंगद, सौरी, पर मैं हमेशा के लिए चली जाती हूं. कहां? यह जानने का कोई हक आप को नहीं है. हां, जाने से पहले, एक और बात.

‘‘मेरी जिंदगी में कभी कोई माधव था ही नहीं. कितने सपने सजाए मैं आई थी. मेरे दिल में दूरदूर तक अंगद के सिवा किसी और का अस्तित्व नहीं था. पर आप ने जो आघात दिया उसी आघात ने एक काल्पनिक माधव का सृजन किया, बस इतना ही.

‘‘आप ने जिस माधव को देखा था वह वास्तव में मेरा ममेरा भाई था. वह यहां अमेरिका में ही था. मुझे उस की मदद मिल गई और हमारे नाटक में हम सफल भी रहे. अंगद, जीवन में सब भूल हम सुधार नहीं सकते. क्या आप मेरा कौमार्य वापस दे सकते हो? उस रात एक नारी ने पूरी श्रद्धा से अपने पति को अपना सर्वस्व अर्पण किया था. श्रद्धा का टूटना क्या होता है, यह आप कभी नहीं समझ पाओगे. मेरे पूरे अस्तित्व में से उठे चीत्कार को क्या आप कभी सुन सके? आज की नारी बदल चुकी है. यह एहसास दिलाने के लिए ही मुझे यह नाटक करना पड़ा.

‘‘और एक दूसरा प्रश्न.

‘‘ऐसी कोई भूल मैं ने की होती तो? तो आप क्या करते? सिर्फ एक गलती समझ कर मुझे माफ कर पाते? दे सकते हो सच्चा जवाब? ऐसी कितनी ही मीरा समाज में होंगी? और हर मीरा को

कोई माधव नहीं मिलता. आप को और आपजैसे सभी पुरुषों को अपनी भूल का एहसास हो, इसी इच्छा के साथ, अलविदा.’’

अंगद, किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर पत्र को देखता रह गया.

नसीहत: उस रात अरुण संगीता के बीच क्या हुआ

लेखक- नंदेश्वर

कालबेल की आवाज सुन कर दीपू ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर एक औरत खड़ी थी. उस औरत ने बताया कि वह अरुण से मिलना चाहती है. औरत को वहीं रोक कर दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.

‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता साहब, लेकिन देखने में भली लगती है,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो उसे. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.

दीपू उस औरत को अंदर बुला लाया.अरुण उसे देखते ही हैरत से बोला, ‘‘अरे संगीता, तुम हो. कहो, कैसे आना हुआ? आओ बैठो.’’

संगीता सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘बहुत मुश्किल से तुम्हें ढूंढ़ पाई हूं. एक तुम हो जो इतने दिनों से इस शहर में हो, पर मेरी याद नहीं आई.

‘‘तुम ने कहा था कि जब कानपुर आओगे, तो मुझ से मिलोगे. मगर तुम तो बड़े साहब हो. इन सब बातों के लिए तुम्हारे पास फुरसत ही कहां है?’’

‘‘संगीता, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, मैं हाल ही में कानपुर आया हूं. औफिस के काम से फुरसत ही नहीं मिलती. अभी तक तो मैं ने इस शहर को ठीक से देखा भी नहीं है.

‘‘अब छोड़ो इन बातों को. पहले यह बताओ कि मेरे यहां आने की जानकारी तुम्हें कैसे मिली?’’ अरुण ने संगीता से पूछा.

‘‘मेरे पति संतोष से, जो तुम्हारे औफिस में ही काम करते हैं,’’ संगीता ने चहकते हुए बताया.

‘‘तो संतोषजी हैं तुम्हारे पति. मैं तो उन्हें अच्छी तरह जानता हूं. वे मेरे औफिस के अच्छे वर्कर हैं,’’ अरुण ने कहा.

अरुण के औफिस जाने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता जल्दी ही अपने घर आने की कह कर लौट गई.

औफिस के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से बैठा था. उस के मन में अचानक संगीता की बातें आ गईं.5 साल पहले की बात है. अरुण अपनी दीदी की बीमारी के दौरान उस के घर गया था. वह इंजीनियरिंग का इम्तिहान दे चुका था.

संगीता उस की दीदी की ननद की लड़की थी. उस की उम्र 18 साल की रही होगी. देखने में वह अच्छी थी. किसी तरह वह 10वीं पास कर चुकी थी. पढ़ाई से ज्यादा वह अपनेआप पर ध्यान देती थी.

संगीता दीदी के घर में ही रहती थी. दीदी की लंबी बीमारी के कारण अरुण को वहां तकरीबन एक महीने तक रुकना पड़ा. जीजाजी दिनभर औफिस में रहते थे. घर में दीदी की बूढ़ी सास थी. बुढ़ापे के कारण उन का शरीर तो कमजोर था, पर नजरें काफी पैनी थीं.

अरुण ऊपर के कमरे में रहता था. अरुण को समय पर नाश्ता व खाना देने के साथसाथ उस के ज्यादातर काम संगीता ही करती थी.

संगीता जब भी खाली रहती, तो ज्यादा समय अरुण के पास ही बिताने की कोशिश करती.

संगीता की बातों में कीमती गहने, साडि़यां, अच्छा घर व आधुनिक सामानों को पाने की ख्वाहिश रहती थी. उस के साथ बैठ कर बातें करना अरुण को अच्छा लगता था.

संगीता भी अरुण के करीब आती जा रही थी. वह मन ही मन अरुण को चाहने लगी थी. लेकिन दीदी की सास दोनों की हालत समझ गईं और एक दिन उन्होंने दीदी के सामने ही कहा, ‘अरुण, अभी तुम्हारी उम्र कैरियर बनाने की है. जज्बातों में बह कर अपनी जिंदगी से खेलना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है.’

दीदी की सास की बातें सुन कर अरुण को अपराधबोध का अहसास हुआ. वह कुछ दिनों बाद ही दीदी के घर से वापस आ गया. तब तक दीदी भी ठीक हो चुकी थीं.

एक साल बाद अरुण गजटेड अफसर बन गया. इस बीच संगीता की शादी तय हो गई थी. जीजाजी शादी का बुलावा देने घर आए थे.

लौटते समय वे शादी के कामों में हाथ बंटाने के लिए अरुण को साथ लेते गए. दीदी के घर में शादी की चहलपहल थी. एक शाम अरुण घर के पास बाग में यों ही टहल रहा था, तभी अचानक संगीता आई और बोली, ‘अरुण, समय मिल जाए, तो कभी याद कर लेना.’संगीता की शादी हो गई. वह ससुराल चली गई. अरुण ने भी शादी कर ली.

आज संगीता अरुण के घर आई, तो अरुण ने भी कभी संगीता के घर जाने का इरादा कर लिया. पर औफिस के कामों में बिजी रहने के कारण वह चाह कर भी संगीता के घर नहीं जा सका. मगर संगीता अरुण के घर अब रोज जाने लगी.

कभीकभी संगीता अरुण के साथ उस के लिए शौपिंग करने स्टोर में चली जाती. स्टोर का मालिक अरुण के साथ संगीता को भी खास दर्जा देता था.

एकाध बार तो ऐसा भी होता कि अरुण की गैरहाजिरी में संगीता स्टोर में जा कर अरुण व अपनी जरूरत की चीजें खरीद लाती, जिस का भुगतान अरुण बाद में कर देता.अरुण संगीता के साथ काफी घुलमिल गया था. संगीता अरुण को खाली समय का अहसास नहीं होने देती थी.

एक दिन संगीता अरुण को साथ ले कर साड़ी की दुकान पर गई. अरुण की पसंद से उस ने 3 साडि़यां पैक कराईं.काउंटर पर आ कर साड़ी का बिल ले कर अरुण को देती हुई चुपके से बोली, ‘‘अभी तुम भुगतान कर दो, बाद में मैं तुम्हें दे दूंगी.’’अरुण ने बिल का भुगतान कर दिया और संगीता के साथ आ कर गाड़ी में बैठ गया.

गाड़ी थोड़ी दूर ही चली थी कि संगीता ने कहा, ‘‘जानते हो अरुण, संतोषजी के चाचा की लड़की की शादी है. मेरे पास शादी में पहनने के लिए कोई ढंग की साड़ी नहीं है, इसीलिए मुझे नई साडि़यां लेनी पड़ीं.

‘‘मेरी शादी में मां ने वही पुराने जमाने वाला हार दिया था, जो टूटा पड़ा है. शादी में पहनने के लिए मैं एक अच्छा सा हार लेना चाहती हूं, पर क्या करूं. पैसे की इतनी तंगी है कि चाह कर भी मैं कुछ नहीं कर पाती हूं. मैं चाहती थी कि तुम से पैसा उधार ले कर एक हार ले लूं. बाद में मैं तुम्हें पैसा लौटा दूंगी.’’अरुण चुपचाप संगीता की बातें सुनता हुआ गाड़ी चलाए जा रहा था.

उसे चुप देख कर संगीता ने पूछा, ‘‘अरुण, तो क्या तुम चल रहे हो ज्वैलरी की दुकान में?’’

‘‘तुम कहती हो, तो चलते हैं,’’ न चाहते हुए भी अरुण ने कहा.

संगीता ने ज्वैलरी की दुकान में 15 हजार का हार पसंद किया.अरुण ने हार की कीमत का चैक काट कर दुकानदार को दे दिया. फिर दोनों वापस आ गए.

अरुण को संगीता के साथ समय बिताने में एक अनोखा मजा मिलता था.आज शाम को उस ने रोटरी क्लब जाने का मूड बनाया. वह जाने की तैयारी कर ही रहा था, तभी संगीता आ गई.

संगीता काफी सजीसंवरी थी. उस ने साड़ी से मैच करता हुआ ब्लाउज पहन रखा था. उस ने अपने लंबे बालों को काफी सलीके से सजाया था. उस के होंठों की लिपस्टिक व माथे पर लगी बिंदी ने उस के रूप को काफी निखार दिया था.

देखने से लगता था कि संगीता ने सजने में काफी समय लगाया था. उस के आते ही परफ्यूम की खुशबू ने अरुण को मदहोश कर दिया. वह कुछ पलों तक ठगा सा उसे देखता रहा.

तभी संगीता ने अरुण को फिल्म के 2 टिकट देते हुए कहा, ‘‘अरुण, तुम्हें आज मेरे साथ फिल्म देखने चलना होगा. इस में कोई बहाना नहीं चलेगा.’’अरुण संगीता की बात को टाल न सका और वह संगीता के साथ फिल्म देखने चला गया.

फिल्म देखते हुए बीचबीच में संगीता अरुण से सट जाती, जिस से उस के उभरे अंग अरुण को छूने लगते.फिल्म खत्म होने के बाद संगीता ने होटल में चल कर खाना खाने की इच्छा जाहिर की. अरुण मान गया.

खाना खा कर होटल से निकलते समय रात के डेढ़ बज रहे थे. अरुण ने संगीता को उस के घर छोड़ने की बात कही, तो संगीता ने उसे बताया कि चाची की लड़की का तिलक आया है. उस में संतोष भी गए हैं. वह घर में अकेली ही रहेगी. रात काफी हो चुकी है. इतनी रात को गाड़ी से घर जाना ठीक नहीं है. आज रात वह उस के घर पर ही रहेगी.

अरुण संगीता को साथ लिए अपने घर आ गया. वह उस के लिए अपना बैडरूम खाली कर खुद ड्राइंगरूम में सोने चला गया. वह काफी थका हुआ था, इसलिए दीवान पर लुढ़कते ही उसे गहरी नींद आ गई.

रात गहरी हो चुकी थी. अचानक अरुण को अपने ऊपर बोझ का अहसास हुआ. उस की नाक में परफ्यूम की खुशबू भर गई. वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा कि संगीता उस के ऊपर झुकी हुई थी.

उस ने संगीता को हटाया, तो वह उस के बगल में बैठ गई. अरुण ने देखा कि संगीता की आंखों में अजीब सी प्यास थी. मामला समझ कर अरुण दीवान से उठ कर खड़ा हो गया.

बेचैनी की हालत में संगीता अपनी दोनों बांहें फैला कर बोली, ‘‘सालों बाद मैं ने यह मौका पाया है अरुण, मुझे निराश न करो.’’

लेकिन अरुण ने संगीता को लताड़ते हुए कहा, ‘‘लानत है तुम पर संगीता. औरत तो हमेशा पति के प्रति वफादार रहती है और तुम हो, जो संतोष को धोखा देने पर तुली हुई हो.

‘‘तुम ने कैसे समझ लिया कि मेरा चरित्र तिनके का बना है, जो हवा के झोंके से उड़ जाएगा.

‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मेरा शरीर मेरी बीवी की अमानत है. इस पर केवल उसी का हक बनता है. मैं इसे तुम्हें दे कर उस के साथ धोखा नहीं करूंगा.

‘‘संगीता, होश में आओ. सुनो, औरत जब एक बार गिरती है, तो उस की बरबादी तय हो जाती है,’’ अपनी बात कहते हुए अरुण ने संगीता को अपने कमरे से बाहर कर के दरवाजा बंद कर लिया.

सुबह देर से उठने के बाद अरुण को पता चला कि संगीता तो तड़के ही वहां से चली गई थी.अरुण ने अपनी समझदारी से खुद को तो गिरने से बचाया ही, संगीता को भी भटकने नहीं दिया.

विश्वास: नीता की बीमारी जानने के बाद क्या था समीर का फैसला

उसरात नीता बहुत खुश थी. जब वह घर लौटी तो पुरानी यादों में ऐसी खोई कि उस की आंखों की नींद न जाने कहां गायब हो गई. उसे समीर ही समीर दिखाई दे रहा था. जब वह पहली बार समीर से मिली थी, तब उसे देखते ही उस का दिल धड़क उठा था. समीर एम. टैक. फाइनल ईयर का छात्र था और नीता फाइन आर्ट्स की. दोनों एक अनजाने आकर्षण से एकदूसरे की ओर खिंचे चले जा रहे थे. दोनों रोज मिलते. प्रेम के सागर में डूबे दोनों को एकदूसरे के बिना जीवन निरर्थक लगने लगा था. समीर नीता के सौंदर्य और उस के मधुर स्वभाव पर मुग्ध था और नीता… नीता तो समीर की दीवानी थी. जब कभी अपने सपनों के शहजादे की कल्पना करती तो उस की आंखों में समीर का ही चेहरा आता.

नीता समीर से रोज मिलती थी. एक दिन नीता समीर के प्यार में सराबोर हो ऐसी बही की सारी सीमाएं ही भूल गई. मगर समझदार थे दोनों, इसलिए पूरी सावधानी बरती थी.

नीता की प्रेम के रंग में रंगी पतंग आसमान में ऊंची उड़ती जा रही थी. तभी एक दिन वह पतंग अचानक धम से नीचे आ गिरी. दरअसल, हुआ यह कि नीता को नहाते समय शीशे में अपनी पीठ पर एक सफेद दाग दिखा. वह उस दाग को देखते ही विचलित हो उठी कि यदि यह बीमारी फैल गई तो कैसे जीवित रहेगी वह? समीर का खयाल आते ही उस के मधुर सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए. उस ने रोतेरोते मां से कहा, ‘‘देखो न मां, मेरी पीठ पर यह कैसा दाग दिखाई दे रहा है.’’

नीता की मां शांति ने जैसे ही दाग देखा तो वे भी परेशान हो गईं.

फिर एक दिन शांति ने अपनी सहेली से कंकड़ बाबा का पता ले कर नीता से कहा, ‘‘चल नीता बेटी, तैयार हो जा. मैं तुझे कंकड़ बाबा के पास ले चलती हूं… कुछ दिन पहले मेरी सहेली सुजाता की भानजी को भी ऐसे ही दाग हो गए थे. सुजाता उसे 2-4 बार कंकड़ बाबा के पास ले कर गई और उस के दाग गायब हो गए.’’

नीता को मां से ऐसी बात की कतई आशा नहीं थी. अत: झुंझलाते हुए बोली, ‘‘मां, आप पढ़ीलिखी हो कर कैसी बातें कर रही हैं? ये बाबा लोग धर्म और आस्था के नाम पर लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बना कर उन्हें ठगते हैं.’’

यह सुन कर मां गुस्सा हो कर कहने लगीं, ‘‘बस यही तो इस नई जैनरेशन की परेशानी है… बच्चे अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं. अरे भई, मंत्र में भी बड़ी शक्ति होती है. चल, जल्दी से तैयार हो जा.’’

नीता को न चाहते हुए भी उस कंकड़ बाबा के पास जाना पड़ा. कंकड़ बाबा के पास बहुत सारे लोग इलाज के लिए आए थे. कुछ ही देर में काले वस्त्र पहने वहां ‘जय मां काली, जय मां काली’ कहते हुए कंकड़ बाबा पहुंच गया. भक्तों ने भी ‘जय मां काली’ के जयकारे लगाने शुरू कर दिए. फिर बाबा ने बड़े ही विचित्र ढंग से लोगों का उपचार करना शुरू किया.

एक औरत के पेट में पथरी थी. बाबा ने कोई मंत्र फूंका और फिर उस के पेट में से पत्थर को चूस कर बाहर निकालने का दावा किया. नीता ये सब देख कर डर गई. जब उस का नंबर आया तब बाबा ने नीता का कुरता उठाया और कमर पर मोरपंख की झाड़ू घुमाते हुए मंत्र फूंका. फिर नीता को अजीब नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘यह दाग किसी ऊपरी शक्ति का प्रकोप है. इस के लिए तो बड़े उपाय करने होंगे.’’

‘‘बताइए न बाबा,’’ शांति ने बड़ी श्रद्धा से कहा.

‘‘बाबा ने नीता को एक लाल कपड़े की पोटली देते हुए कहा, ‘‘लड़की,

इस लाल कपड़े की पोटली को रोज अपने तकिए के नीचे रख कर सोना. और हां, एक काले कुत्ते को हर शनिवार को इमरती खिलाना.’’

शांति ने स्वीकृति में सिर हिलाया. फिर बाबा कोई पेयपदार्थ देते हुए बोला, ‘‘ले, यह दिव्य पेय अभी पी ले और अंदर कुटिया में एक शिला है, उस पर जा कर लेट जा. कोई लेप लगाना होगा.’’

नीता की मां शांति भी उस के साथ कुटिया में जाने के लिए उठने लगीं तो बाबा ने कहा, ‘‘अरेअरे रुक… वहां इसे अकेले ही जाना होगा.’’

नीता वहां का माहौल देख कर बुरी तरह डर गई थी. वह उठी और भागने लगी. पीछेपीछे उस की मां शांति भी भागीं.

बाबा के चेले चिल्लाते रह गए, ‘‘रुको… रुको…’’

नीता ने किसी की नहीं सुनी. वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘मुझे नहीं दिखाना किसी बाबा को. इन पाखंडी, ठग बाबाओं के नित नए कारनामे सुन कर भी क्या मां आप को डर नहीं लगता? चलो, घर चलो.’’

जब नीता के पापा दिनेशजी ने ये सब सुना तो वे शांति पर बहुत गुस्सा हुए. बोले, ‘‘शांति, तुम किस पचड़े में पड़ी हो? ये बाबा, ओझा आदि तंत्रमंत्र और दैवीय शक्ति के नाम पर सीधेसादे लोगों को मूर्ख बनाते हैं. न जाने अकेले में वह बदमाश क्याक्या करता. ये पाखंडी लोगों की अंधश्रद्धा का फायदा उठाते

हैं… नीता बेटा, मैं कल तुझे डाक्टर के पास ले चलूंगा.’’

नीता के पिता उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने चैकअप कर कहा, ‘‘यह ल्यूकोडर्मा जैसी बीमारी की शुरुआत है. समय पर इलाज करा लेने से ठीक हो जाती है वरना इस के परिणाम खतरनाक भी हो सकते हैं.’’

नीता पूरे मनोयोग से इलाज करा रही थी. मगर उसे यह चिंता भी

सता रही थी कि यदि सफेद दाग के बारे में जान कर समीर ने शादी से इनकार कर दिया तो? इस कल्पना मात्र से उस का दिल क्यों दुखाऊं? मगर शादी के बाद जब उसे दाग दिखाई देगा, तब उस का क्या हाल होगा? वह क्या सोचेगा?

ऐसे ही खयालों में डूबी नीता रोज परेशान रहती थी. उस का दिल और दिमाग दोनों ही अलगअलग दिशाओं में जा रहे थे. वह समीर को खोने के डर से सच छिपाने की कोशिश करती रहती थी.

नीता का मन उसे ऐसा करने से धिक्कारता. मन की आवाज की अवहेलना करतेकरते वह परेशान हो उठी थी. नीता यह समझ गई थी कि सफेद दाग की बात छिपाना समीर को बहुत बड़ा धोखा देना होगा. वह यह भलीभांति जानती थी कि विवाह जैसे पावन, मधुर रिश्ते की नींव विश्वास और प्रेम पर ही टिकी होती है. यदि प्रेम और विश्वास न हो तो सफल विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती. अत: उस ने मन ही मन यह निर्णय कर लिया कि जो भी होगा वह सह लेगी, पर समीर से सच नहीं छिपाएगी.

इसी बीच एक दिन समीर का फोन आया. बोला, ‘‘शहर में एक नया रेस्तरां खुला है… कल चलोगी न?’’

समीर ने इतने आग्रहपूर्वक कहा कि नीता तुरंत मान गई.

अगले दिन यूनिवर्सिटी जाने के बजाय वह समीर के साथ नए रेस्तरां पहुंच गई.

रेस्तरां का वह कोना रंगबिरंगी रोशनी से खूब चमक रहा था. वातावरण में अनोखी चमक थी.

समीर घुटनों के बल बैठ कर धरती, आकाश, जल, पवन और अग्नि को साक्षी मान कर नीता को प्रोपोज करने ही वाला था कि तभी नीता बोल पड़ी, ‘‘समीर, मुझे तुम से कुछ कहना है.’’

उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. उस ने अपने दिल को कड़ा कर लिया था. वह समीर के हर उत्तर के लिए तैयार थी. फिर उस ने समीर को अपने सफेद दाग के बारे में बता दिया.

सुन कर समीर ने नीता का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से कहा, ‘‘मैं हर स्थिति में तुम्हारे साथ हूं. तुम मेरी धड़कन हो… करोगी न मुझ से शादी?’’ नीता की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. उस के मन में उमड़ा तूफान पूरी तरह शांत हो चुका था. सारी शंकाएं दूर हो चुकी थीं. उसे पवित्र प्रेम का उपहार मिल चुका था.

नीता जीवन की इन्हीं खट्टीमीठी यादों को याद करते हुए न जाने कब नींद के आगोश में चली गई.

सुबह उस की मां ने उसे उठाते हुए कहा, ‘‘उठो बेटा, यूनिवर्सिटी जाने का समय हो गया है.’’

नीता के चेहरे पर अद्भुत तेज और सुकून दिखाई दे रहा था. वह मां से बोली, ‘‘मां, बैठो न मेरे पास,’’ नीता मां की गोद में सिर रख कर लेट गई फिर प्यार से बोली, ‘‘मां, मैं आप को कुछ बताना चाहती हूं.’’

मां ने उस के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘बोल बेटी, क्या कहना चाहती है?’’

‘‘मां, आप समीर से तो मिल चुकी हैं. मैं उस से बहुत प्यार करती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘यह तो ठीक है बेटी, पर क्या वह तेरी बीमारी के बारे में जानता है?’’ मां ने पूछा.

‘‘हां मां, मैं ने उसे सब बता दिया है.’’

नीता के मातापिता उस का रिश्ता ले कर समीर के घर गए. सब की रजामंदी से समीर और नीता का रिश्ता तय हो गया. अब तक जो प्रेम छिपछिप कर चल रहा था, अब जग उजागर हो चुका था. कुछ ही दिनों में बड़ी धूमधाम से दोनों का विवाह हो गया.

अपने कमरे में नईनवेली दुलहन नीता रिश्तेदारों से घिरे समीर का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर में नीता की प्रतीक्षा की घडि़यां समाप्त हुईं. समीर को देखते ही वह खुशी से झूम उठी. पतिपत्नी अपनी न्यारी, प्यारी दुनिया में खोए रहे. बहुत देर हंसतेबतियाते रहे.

नीता ने कहा, ‘‘समीर, तुम ने मुझे मेरे दाग के साथ अपना कर मेरा जीवन सफल कर दिया.’’

समीर ने नीता का चुंबन लेते हुए कहा, ‘‘तुम्हें याद है वह दिन, जब तुम उस मदमाती बेल की तरह मुझ से लिपट गई थी और सारी सीमाओं को भूल गई थी?’’

समीर की बात सुनते ही नीता शर्म से लाल हो गई.

समीर बोला, ‘‘सच बताऊं तो मैं ने तुम्हारा दाग उसी दिन देख लिया था. मैं तो तुम्हारीझ्र भोली सूरत, समझदारी और मधुर स्वभाव पर हमेशा से मुग्ध था. नीता, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, पर मेरे मन के किसी कोने में यह इच्छा दबी थी कि तुम अपने जीवन का सत्य मुझे स्वयं बताओ. नीता उस रेस्तरां

की रंगबिरंगी रोशनी में तुम ने सच बोल कर मेरे विश्वास को हमेशा के लिए जीत लिया. नीता तुम मेरी जिंदगी हो… मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं.’’

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दर्द आसना: आजर ने जोया और सना में से किसे चुना

‘तुम गई नहीं..?’’

‘‘कहां?’’

‘‘आजर भाई को देखने…’’

‘‘मैं क्यों जाऊं?’’‘‘घर के सब लोग जा चुके हैं लेकिन तुम हो कि अभी तक नहीं गई. आखिर वह तुम्हारे मंगेतर हैं.’’

‘‘मंगेतर…मंगेतर थे. लेकिन अब नहीं. एक अपाहिज मेरा मंगेतर नहीं हो सकता. मुझे उस की बैसाखी नहीं बनना.’’

वह आईने के सामने खड़ी बाल संवार रही थी और अपनी बहन के सवालों के जवाब लापरवाही से दे रही थी. जब बाल सेट हो गए तो उस ने आईने में खुद को नीचे से ऊपर तक देखा और पर्स नचाती हुई दरवाजे से बाहर निकल गई.

आजर के यहां का दस्तूर था कि रिश्ते आपस में ही हुआ करते थे. और शायद इसी रिवायत को जिंदा रखने के लिए मांबाप ने बचपन में उस का रिश्ता उस के चाचा की बेटी से तय कर दिया था.

आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था. जबकि जोया को मां के बेजा लाड़प्यार ने जिद्दी और खुदसर बना दिया था. शायद यही वजह थी कि दोनों साथसाथ खेलतेखेलते झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

उस दिन तो हद हो गई. आजर पुरानी कौपी का उधड़ा हुआ कवर लिए था. कवर पर कोई तसवीर बनी थी, शायद उसे पसंद थी. जोया की नजर पड़ गई, वह चिल्लाने लगी, ‘‘वह मेरा है…उसे मैं लूंगी.’’

आजर भी बच्चा था. बजाए उसे देने के दोनों हाथ पीछे करके छिपा लिए. वह चीखती रही, चिल्लाती रही यहां तक कि बड़े लोग आ गए.

‘‘तौबा है दफ्ती के टुकड़े के लिए जिद कर रही थी. अभी ये आजर के हाथ में न होता तो रद्दी होता. क्या लड़की है, कयामत बरपा कर दी.’’ बड़ी अम्मी बड़बड़ाईं और अपने बेटे आजर को ले कर चली गईं.

यूं ही लड़तेझगड़ते दोनों बड़े हो गए. बचपन पीछे छूट गया. दोनों उम्र के उस मुकाम पर थे, जहां जागती आंखें ख्वाब देखने लगती हैं. और जब आजर ने जोया की आंखों में देखा तो हया की लाली उतर आई.

नजर अपने आप झुकती चली गई. शायद उसे मंगेतर का मतलब समझ आ गया था. अब वह आजर की इज्जत करती, उस की बातों में शरीक होती, उस के नाम पर हंसती. घर वालों को इत्मीनान हो गया कि चलो सब कुछ ठीक हो गया है.

बड़ी अम्मी इन दिनों मायके गई हुई थीं और जब लौटीं तो उन के साथ एक दुबलीपतली सी लड़की थी. जिस की मां बचपन में गुजर चुकी थी. बाप ने दूसरी शादी कर ली थी. अब उस के भी 4 बच्चे थे. बेचारी कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती. बिस्तर पर जाती तो बिस्तर बिछाने का होश न रहता. पता नहीं कब सुबह हो जाती.

दादा से पोती की हालत देखी न जाती. दादा बड़ी अम्मी के रिश्ते के चचा थे, जब बड़ी अम्मी उन से मिलने गईं तो पोती का दुखड़ा ले कर बैठ गए.

‘‘अल्ला न करे किसी की मां मरे.’’ बड़ी अम्मी ने ठंडी सांस ली.

‘‘आप उसे हमारे साथ भेज दीजिए.’’ बड़ी अम्मी ने कुछ सोच कर कहा.

अंधा क्या चाहे दो आंखें, वह खुशीखुशी राजी हो गए. लेकिन बहू का खयाल आते ही उन की सारी खुशी काफूर हो गई. वह ले जाने देगी या नहीं. और जब नजर उठी तो वह दरवाजे में खड़ी थी. उस ने सारी बातें सुन ली थीं.

बड़ी अम्मी कब हारने वाली थीं. उन्होंने अपने तरकश से एक तीर छोड़ा, जो सही निशाने पर बैठा. उन्होंने हर महीने कुछ रकम भेजने का वादा किया और उसे अपने साथ ले आईं.

सना ने आते ही पूरा घर संभाल लिया था. इतना काम उस के लिए कुछ नहीं था. वह घर का काम आंखें बंद कर के कर लेती. उसे सौतेली मां के जुल्म व सितम से निजात मिल गई थी. अर्थात वह यहां आ कर खुश थी.

अगर कभी घर में गैस खत्म हो जाती तो लकडि़यों के चूल्हे पर सेंकी हुई सुर्खसुर्ख रोटियां और धीमीधीमी आंच पर दम की हुई हांडी की खुशबू फैलती तो भूख अपने आप लग जाती.

चाची की तरफ मातम बरपा होता. अरे गैस खत्म हो गई…अब क्या करें…भाभी सिलेंडर वाला आया क्या? फिर बाजार से पार्सल आते तब जा कर खाना नसीब होता.

और अगर कभी मिरची पाउडर खत्म हो जाता, सना साबुत मिर्च निकालती. सिलबट्टे पर पीस कर खाना तैयार कर देती. सालन देख कर अम्मी को पता चलता कि मिरची खत्म हो गई है.

और चाची की तरफ ऐसा होता तो जोया कहती, ‘‘न बाबा न मेरे हाथ में जलन होने लगती है. हया तुम पीस लो.’’ हया भी साफ मना कर देती.

सना तुम कौन हो…कहां से आई हो…सादगी की मूरत…वफा का पैकर…जिंदगी का आइडियल, सना तुम्हारी सना (तारीफ) किन लफ्जों में करूं. आजर का दिल बिछबिछ जाता. फिर उसे जोया का खयाल आता.

वह तो उस का मंगेतर है. कल को उस से उस की शादी हो जाएगी, फिर ये कशिश क्यों. मैं सना की तरफ क्यों खिंचा जा रहा हूं. अकसर तनहाई में वह उस के बारे में सोचता रहता.

आजर एक दिन लौंग ड्राइव से लौट रहा था. उस का एक्सीडेंट हो गया. अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये अपने पैरों पर नहीं चल सकेंगे.’’

सारा घर जमा था. सब का रोरो कर बुरा हाल था.

जब से आजर का एक्सीडेंट हुआ था, जोया ने अपने कालेज के दोस्तों से मिलना शुरू कर दिया था. आज भी वह तैयार हो कर किसी से मिलने गई थी. हया के लाख समझाने पर भी उस पर कोई असर न हुआ था.

आजर अस्पताल के बैड पर दोनों पैरों से माजूर लेटा हुआ था. हर आहट पर देखता, शायद वह आ जाए, जिस से दिल का रिश्ता जुड़ा है. वफा के सिलसिले हैं, जीने के राब्ते हैं, जो उस का मुस्तकबिल है, लेकिन दूर तक उस का कहीं पता न था.

एक आहट पर उस के खयालात बिखर गए. अम्मी आ रही थीं. उन के पीछे सना थी. अम्मी ने इशारा किया तो वह सामने स्टूल पर बैठ गई.

अम्मी रात का खाना ले कर आई थीं. आजर खाना खा रहा था और कनखियों से उसे देख रहा था. फुल आस्तीन की जंपर, चूड़ीदार पजामा, सर पर पल्लू डाले वह खामोश बैठी थी. काश! इस की जगह जोया होती, उस ने सोचा.

फिर जल्दी से नजरें झुका लीं. कहीं उस के चेहरे से अम्मी उस का दर्द न पढ़ लें. वह मुंह में निवाला रख कर चबाने लगा. जब खाने से फारिग हो गया तो अम्मी बरतन समेटने लगीं.

‘‘अम्मी, आप रहने दीजिए मैं कर लूंगी.’’ उस की महीनमहीन सी आवाज आई.

उस ने बरतन समेट कर थैले में रखे और खड़ी हो गई. जब वह बरतन उठा रही थी तो खुशबू का झोंका उस के पास से आया और आजर को महका गया. अम्मी उसे अपना खयाल रखने की हिदायत दे कर चली गईं.

आज आजर को डिस्चार्ज मिल गया था. बैसाखियों के सहारे जब वह अंदर आया तो अम्मी का कलेजा मुंह को आने लगा. लेकिन होनी को कौन टाल सकता है. सना आजर का पहले से ज्यादा खयाल रखती. बहरहाल दिन गुजरते रहे.

एक दिन देवरानीजेठानी दरम्यानी बरामदे में बैठी हुई थीं. देवरानी शायद बात का सिरा ढूंढ रही थी.

‘‘भाभी, हम आप से कुछ कहना चाहते हैं.’’ उन्होंने उन की आंखों में देखा.

‘‘जोया ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. वह आजर से रिश्ता नहीं करना चाहती, क्योंकि आजर तो…’’ उन्होंने जुमला अधूरा छोड़ दिया. वह जबान से कुछ न बोलीं और उठ कर चली आईं.

आजर ने नोटिस किया था, अम्मी बहुत बुझीबुझी सी रहती हैं. आखिर वह पूछ बैठा, ‘‘अम्मी क्या बात है, आप बहुत उदास रहती हैं.’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, जरा तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं जानता हूं आप क्यों परेशान हैं, जोया ने इस रिश्ते से मना कर दिया है.’’

अम्मी ने चौंक कर बेटे की तरफ देखा.

‘‘हां अम्मी, मुझे मालूम है. वह मुझे देखने तक नहीं आई. अगर रिश्ता नहीं करना था, तो न सही. लेकिन इंसानियत के नाते तो आ सकती थी, जिस का इंसानियत से दूरदूर तक वास्ता न हो, मुझे खुद उस से कोई रिश्ता नहीं रखना.’’

‘‘मेरे बच्चे…’’ अम्मी की आंखों से बेअख्तियार आंसू निकल पडे़. उन्होंने उसे गले से लगा लिया.

‘‘अम्मी मेरी शादी होगी…उसी वक्त पर होगी..’’ अम्मी ने उसे परे करते हुए उस की आंखों में देखा. जिस का अर्थ था अब तुझ से कौन शादी करेगा.

‘‘अम्मी, मैं सना से शादी करूंगा. सना मेरी शरीकेहयात बनेगी…मैं ने सना से बात कर ली है.’’ यह सुन कर अम्मी ने फिर उसे गले से लगा लिया.

शादी की तैयारियां होने लगीं. और जो वक्त जोया के साथ शादी के लिए तय था, उसी वक्त पर आजर और सना का निकाह हो गया. आजर को याद आया, एक बार जोया ने बातोंबातों में कहा था, शादी के बाद वह हनीमून के लिए स्विटजरलैंड जाएगी. आजर ने ख्वाहिश जाहिर की तो अम्मी ने उसे जाने की इजाजत दे दी.

आज वह हनीमून से लौट रहा था. सना अंदर दाखिल हुई तो कितनी निखरीनिखरी, कितनी खुश लग रही थी. फिर उस ने दरवाजे की ओर मुसकरा कर देखा, ‘‘आइए न…’’

इतने पर आजर अंदर दाखिल हुआ.

उसे देख कर अम्मी की आंखें हैरत से फैलती चली गईं. वह अपने पैरों पर चल कर आ रहा था.

‘‘बेटे, ये सब क्या है?’’ उन्होंने बढ़ कर उसे थाम लिया.

‘‘बताता हूं…पहले आप बैठिए तो सही.’’ उस ने दोनों बांहें पकड़ कर उन्हें बिठा दिया.

‘‘आप वालिदैन अपने बच्चों के फैसले तो कर देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि बड़े हो कर उन की सोच कैसी होगी. उन के खयालात कैसे होंगे. उन का नजरिया कैसा होगा.

‘‘और मुझे सच्चे दर्द आशना की तलाश थी. जिस के अंदर कुरबानी का जज्बा हो, एकदूसरे के लिए तड़प हो. …और ये सारी खूबियां मुझे सना में नजर आईं, इसलिए मैं ने डाक्टर से मिल कर एक प्लान बनाया.

‘‘वह एक्सीडेंट झूठा था. मेरे पैर सहीसलामत थे. ये मेरा सिर्फ नाटक था, नतीजा आप के सामने है. जोया ने खुद इस रिश्ते से इनकार कर दिया. सना ने मुझ अपाहिज को कबूल किया. मैं सना का हूं, सना मेरी है.’’

जोया ने सारी बातें सुन ली थीं. उस का जी चाह रहा था सब कुछ तोड़फोड़ डाले.

शुभचिंतक: सविता के पति पर शक का क्या था अंजाम

राकेश से झगड़ कर सविता महीने भर से मायके में रह रही थी. उन के बीच सुलह कराने के लिए रेणु और संजीव ने उन दोनों को अपने घर बुलाया.

यह मुलाकात करीब 2 घंटे चली पर नतीजा कुछ न निकला.

‘‘अब साक्षी के साथ मेरा कोई संबंध नहीं है,’’ राकेश बोला, ‘‘अतीत के उस प्रेम को भुलाने के बाद ही मैं ने सविता से शादी की है. अब वह मेरी सिर्फ सहकर्मी है. उसे और मुझे ले कर सविता का शक बेबुनियाद है. हमारे विवाहित जीवन की सुरक्षा व सुखशांति के लिए यह नासमझी जबरदस्त खतरा पैदा कर रही है.’’

अपने पक्ष में ऐसी दलीलें दे कर राकेश बारबार सविता पर गुस्से से बरस पड़ता था.

‘‘मैं नहीं चाहती हूं कि ये दोनों एकदूसरे के सामने रहें,’’ फुफकारती हुई सविता बोली, ‘‘इन्हें किसी दूसरी जगह नौकरी करनी होगी. इन की उस के साथ ही नौकरी करने की जिद हमारी गृहस्थी के लिए खतरा पैदा कर रही है.’’

‘‘तुम्हारे बेबुनियाद शक को दूर करने के लिए मैं अपनी लगीलगाई यह अच्छी नौकरी कभी नहीं छोडूंगा.’’

‘‘जब तक तुम ऐसा नहीं करोगे, मैं तुम्हारे पास नहीं लौटूंगी.’’

दोनों की ऐसी जिद के चलते समझौता होना असंभव था. नाराज हो कर राकेश वापस चला गया.

‘‘हमारा तलाक होता हो तो हो जाए पर राकेश की जिंदगी में दूसरी औरत की मौजूदगी मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’’ सविता ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुनाया तो उस की सहेली रेणु का दिल कांप उठा था.

रेणु के पति संजीव ने सविता के पास जा कर उस का कंधा पकड़ हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘सविता, मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं. राकेश की नौकरी न छोड़ने की जिद यही साबित कर रही है कि दाल में कुछ काला है. तुम अभी सख्ती से काम लोगी तो कई भावी परेशानियों से बच जाओगी.’’

राकेश की इस सलाह को सुन कर सविता और रेणु दोनों ही चौंक पड़ीं. वह बिलकुल नए सुर में बोला था. अभी तक वह सविता को राकेश के पास लौट जाने की ही सलाह दिया करता था.

‘‘मैं अभी भी कहती हूं कि राकेश पर विश्वास कर के सविता को वापस उस के पास लौट जाना चाहिए. उसे उलटी सलाह दे कर आप बिलकुल गलत शह दे रहे हैं,’’  रेणु की आवाज में नाराजगी के भाव उभरे.

‘‘मेरी सलाह बिलकुल ठीक है. राकेश को अपनी पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. यह यहां रहती रही तो जल्दी ही उस की अक्ल ठिकाने आ जाएगी.’’

संजीव को अपने पक्ष में बोलते देख सविता की आवाज में नई जान पड़ गई, ‘‘रेणु, तुम मेरी सब से अच्छी सहेली हो. कम से कम तुम्हें तो मेरी मनोदशा को समझ कर मेरा पक्ष लेना चाहिए. मुझे तो आज संजीव अपना ज्यादा बड़ा शुभचिंतक नजर आ रहा है.’’

‘‘लेकिन यह समझदारी की बात नहीं कर रहे हैं,’’ रेणु ने नाराजगी भरे अंदाज में उन दोनों को घूरा.

‘‘मेरा बताया रास्ता समझदारी भरा है या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा रेणु. फिलहाल लंच कराओ क्योंकि भूख के मारे अब पेट का बुरा हाल हो रहा है,’’ संजीव ने प्यार से अपनी पत्नी रेणु का गाल थपथपाया, पर वह बिलकुल भी नहीं मुसकराई और नाराजगी दर्शाती रसोई की तरफ बढ़ गई.

आगामी दिनों में संजीव का सविता के प्रति व्यवहार पूरी तरह से बदल गया. इस बदलाव को देख रेणु हैरान भी होती और परेशान भी.

‘‘सविता, तुम जैसी सुंदर, स्मार्ट और आत्मनिर्भर युवती को अपमान भरी जिंदगी बिलकुल नहीं जीनी चाहिए…

‘‘तुम राकेश से हर मामले में इक्कीस हो, फिर तुम क्यों झुको और दबाव में आ कर गलत तरह का समझौता करो?

‘‘तुम जैसी गुणवान रूपसी को जीवनसंगिनी के रूप में पा कर राकेश को अपने भाग्य पर गर्व करना चाहिए. तुम्हें उस के हाथों किसी भी तरह का दुर्व्यवहार नहीं सहना है,’’ संजीव के मुंह से निकले ऐसे वाक्य सविता का मनोबल भी बढ़ाते और उस के मन की पीड़ा भी कम करते.

अगर रेणु सविता को बिना शर्त वापस लौटने की बात समझाने की कोशिश करती तो वह फौरन नाराज हो जाती.

धीरेधीरे सविता और संजीव एक हो गए और रेणु अलगथलग पड़ती चली गई. राकेश की चर्चा छिड़ती तो उस के शब्दों पर दोनों ही ध्यान नहीं देते. सविता संजीव को अपना सच्चा हितैषी बताती. अब रेणु के साथ अकसर उस का झगड़ा ही होता रहता था.

सविता के सामने ही संजीव अपनी पत्नी रेणु से कहता, ‘‘यह बेचारी कितनी दुखी और परेशान चल रही है. इस कठिन समय में इस का साथ हमें  देना ही होगा.

‘‘अपने दुखदर्द के दायरे से निकल कर जब यह कुछ खुश और शांत रहने लगेगी तब हम जो भी इसे समझाएंगे, वह इस के दिमाग में ज्यादा अच्छे ढंग

से घुसेगा. अभी हमें इस का मजबूत सहारा बनना है, न कि सब से बड़ा आलोचक.’’

संजीव, सविता का सब से बड़ा प्रशंसक बन गया. उस के हर कार्य की तारीफ करते उस की जबान न थकती. उसे खुश करने को वह उस के सुर में सुर मिला कर बोलता. उस के लतीफे  सुन सविता हंसतेहंसते दोहरी हो जाती. अपने रंगरूप की तारीफ सुन उस के गाल गुलाबी हो उठते.

‘‘तुम कहीं सविता पर लाइन तो नहीं मार रहे हो?’’ एक रात अपने शयनकक्ष में रेणु ने पति संजीव से यह सवाल पूछ ही लिया.

‘‘इस सवाल के पीछे क्या ईर्ष्या व असुरक्षा का भाव छिपा है, रेणु?’’ संजीव उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराया.

‘‘अभी तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है न?’’

‘‘जिस दिन मैं अपनी आंखों से कुछ गलत देख लूंगी उस दिन तुम दोनों की खैर नहीं,’’ रेणु ने नाटकीय अंदाज में आंखें तरेरीं.

संजीव ने हंसते हुए उसे छाती से लगाया और कहा, ‘‘पति की जिंदगी में दूसरी औरत के आने की कल्पना ऐसा सचमुच हो जाने की सचाई की तुलना में कहीं ज्यादा भय और चिंता को जन्म देती है डार्लिंग. मैं सविता का शुभचिंतक हूं, प्रेमी नहीं. तुम उलटीसीधी बातें न सोचा करो.’’

उस वक्त संजीव की बांहों के घेरे में कैद हो कर रेणु अपनी सारी चिंताएं भूल गई पर सविता व अपने पति की बढ़ती निकटता के कारण अगले दिन सुबह से वह फिर तनाव का शिकार हो गई थी.

संजीव का साथ सविता को बहुत भाने लगा था. वह लगभग रोज शाम को उन के घर चली आती या फिर संजीव आफिस से लौटते समय उस के घर रुक जाता. सविता के मातापिता व भैयाभाभी उसे भरपूर आदरसम्मान देते थे. उन सभी को लगता कि संजीव से प्रभावित सविता उस के समझाने से जल्दी ही राकेश के पास लौट जाएगी.

सविता ने एक शाम ड्राइंगरूम में सामने बैठे संजीव से कहा, ‘‘यू आर माई बेस्ट फ्रेंड. तुम्हारा सहारा न होता तो मैं तनाव के मारे पागल ही हो जाती. थैंक यू वेरी मच.’’

‘‘दोस्तों के बीच ऐसे ‘थैंक यू’ कानों को चुभते हैं, सविता. हमारी दोस्ती मेरे जीवन में भी खुशियों की महक भर रही है. तुम्हारे शानदार व्यक्तित्व से मैं भी बहुत प्रभावित हूं,’’ संजीव की आंखों में प्रशंसा के भाव उभरे.

‘‘तुम दिल के बहुत अच्छे हो, संजीव.’’

‘‘और तुम बहुत सुंदर हो, सविता.’’

संजीव ने उस की प्रशंसा आंखों में गहराई से झांकते हुए की थी. उस की भावुक आवाज सविता के बदन में अजीब सी सरसराहट दौड़ा गई. वह संजीव की आंखों से आंखें न मिला सकी और लजाते से अंदाज में उस ने अपनी नजरें झुका लीं.

संजीव अचानक उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘मेरे होते हुए तुम किसी बात की चिंता न करना. मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं. कल रविवार को नाश्ता हमारे साथ करना, बाय.’’

आगे जो हुआ वह सविता के लिए अप्रत्याशित था. संजीव ने बड़े भावुक अंदाज में उस का हाथ पकड़ कर चूम लिया था. संजीव की इस हरकत ने सविता की सोचनेसमझने की शक्ति हर ली. उस ने नजरें उठाईं तो संजीव की आंखों में उसे अपने लिए प्रेम के गहरे भाव नजर आए.

संजीव को सविता अपना अच्छा दोस्त और सब से बड़ा शुभचिंतक मानती थी. उस दोस्त ने अब प्रेमी बनने की दिशा में पहला कदम उस का हाथ चूम कर उठाया था.

संजीव की आंखों में देखते हुए सविता पहले शर्माए से अंदाज में मुसकराई और फिर अपनी नजरें झुका लीं. उस ने संजीव को अपना प्रेमी बनने की इजाजत इस मुसकान के रूप में दे दी थी.

बिना और कुछ कहे संजीव अपने घर चला गया था. उस रात सविता ढंग से सो नहीं पाई थी. सारी रात मन में संजीव व राकेश को ले कर उथलपुथल चलती रही थी. सुबह तक वह न राकेश के पास लौटने का निर्णय ले सकी और न ही संजीव से निकटता कम करने का.

मन में घबराहट व उत्तेजना के मिलेजुले भाव लिए वह अगले दिन सुबह संजीव और रेणु के घर पहुंच गई. मौका मिलते ही वह संजीव से खुल कर ढेर सारी बातें करने की इच्छुक थी. नएनए बने

प्रेम संबंध को निभाने के लिए बड़ी गोपनीयता व सतर्कता की जरूरत को वह रेखांकित करने के लिए आतुर थी.

‘‘रेणु नाराज हो कर मायके चली गई है,’’ घर में प्रवेश करते ही संजीव के मुंह से यह सुन कर सविता जोर से चौंक पड़ी थी.

‘‘क्यों नाराज हुई रेणु?’’ सविता ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘कल शाम तुम्हारा हाथ चूमने की खबर उस तक पहुंच गई.’’

‘‘वह कैसे?’’ घबराहट के मारे सविता का चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘शायद तुम्हारी भाभी ने कुछ देखा और रेणु को खबर कर दी.’’

‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ, संजीव. मैं रेणु का सामना कैसे करूंगी? वह मेरी बहुत अच्छी सहेली है,’’ सविता तड़प उठी.

सविता को सोफे पर बिठाने के बाद उस की बगल में बैठते हुए संजीव ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘कल शाम जो घटा वह गलत था. मुझे अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए था.’’

‘‘दोस्ती को कलंकित कर दिया मैं ने,’’ सविता की आंखों से आंसू बहने लगे.

एक गहरी सांस छोड़ कर संजीव बोला, ‘‘रेणु से मैं बहुत प्यार करता हूं. फिर भी न जाने कैसे तुम ने मेरे दिल में जगह बना ली है…तुम से भी प्यार करने लगा हूं मैं…रेणु बहुत गुस्से में थी. मुझे समझ नहीं आ रहा है, अब क्या होगा?’’

‘‘हम से बड़ी भूल हो गई है,’’ सविता सुबक उठी.

‘‘ठीक कह रही हो तुम. तुम्हारे दुखदर्द को बांटतेबांटते मैं भावुक हो उठता था. तुम्हारा अकेलापन दूर करने की कोशिश मैं शुभचिंतक बन कर रहा था और अंतत: प्रेमी बन बैठा.’’

‘‘कुसूरवार मैं भी बराबर की हूं, संजीव. जो पे्रम अपने पति से मिलना चाहिए था, उसे अपने दोस्त से पाने की इच्छा ने मुझे गुमराह किया.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो, सविता,’’ संजीव सोचपूर्ण लहजे में बोला, ‘‘तुम अगर राकेश के साथ होतीं…उस के साथ प्रसन्न व सुखी होतीं, तो हमारे बीच अच्छी दोस्ती की सीमा कभी न टूटती. तुम्हारा अकेलापन, राकेश से बनी अनबन और मेरी सहानुभूति व तुम्हारा सहारा बनने की कोशिशें हमारे बीच अवैध प्रेम संबंध को जन्म देने का कारण बन गए. अब क्या होगा?’’

‘‘मुझे राकेश के पास लौट जाना चाहिए…अपनी सहेली के दिल पर लगे जख्म को भरने का यही एक रास्ता है, बाद में कभी मैं उस से माफी मांग लूंगी,’’ सविता ने कांपते स्वर में समस्या का हल सामने रखा.

‘‘तुम्हारा लौटना ही ठीक रहेगा, सविता, फिर मेरे दिमाग में एक और बात भी उठ रही है.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘यही कि तुम राकेश से दूर हो कर अगर मेरी सहानुभूति व ध्यान पा कर गुमराह हो सकती हो, तो आजकल राकेश भी तुम से दूर व अकेला रह रहा है. उस लड़की साक्षी के साथ उस का आज संबंध नहीं भी है, तो कल को वह ऐसी ही सहानुभूति व अपनापन तुम्हारे पति से जता कर उस के दिल में अवैध प्रेम संबंध का बीज क्या आसानी से नहीं बो सकेगी?’’

संजीव की अर्थपूर्ण नजरें सविता के दिल की गहराइयों तक उतर गईं. देखते ही देखते आंसुओं के बजाय उस की आंखों में तनाव व चिंता के भाव उभर आए.

‘‘यू आर वेरी राइट, संजीव,’’ सविता अचानक उत्तेजित सी नजर आने लगी, ‘‘राकेश से अलग रह कर मैं सचमुच भारी भूल कर रही हूं. खुद भी मुसीबत का शिकार बनी हूं और उधर राकेश को किसी साक्षी की तरफ धकेलने का इंतजाम भी नासमझी में खुद कर रही हूं. आई मस्ट गो बैक.’’

‘‘हां, तुम आज ही राकेश के पास लौट जाओ. मैं भी रेणु को मना कर वापस लाता हूं.’’

‘‘रेणु मुझे माफ कर देगी न?’’

‘‘जब मैं कहूंगा कि आज तुम ने मुझे यहां आ कर खूब डांटा, तो वह निश्चित ही तुम्हें कुसूरवार नहीं मानेगी. तुम दोनों की दोस्ती बनाए रखने को…एकदूसरे की इज्जत आंखों में बनाए रखने को मैं सारा कुसूर अपने ऊपर ले लूंगा.’’

‘‘थैंक यू, संजीव. मैं सामान पैक करने जाती हूं,’’ सविता झटके से उठ खड़ी हुई.

‘‘मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ संजीव भावुक हो उठा.

‘‘तुम बहुत अच्छे दोस्त…बहुत अच्छे इनसान हो.’’

‘‘तुम भी, अपना और राकेश का ध्यान रखना. गुडबाय.’’

सविता ने हाथ हिला कर ‘गुडबाय’ कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

उस के जाने के बाद दरवाजा बंद कर के संजीव ड्राइंगरूम में लौटा तो मुसकराती रेणु ने उस का स्वागत किया. वह अंदर वाले कमरे से निकल कर ड्राइंगरूम में आ गई थी.

‘‘तुम ने तो कमाल कर दिया. सविता तो राकेश के पास आज ही वापस जा रही है,’’ रेणु बहुत प्रसन्न नजर आ रही थी.

‘‘मुझे खुशी है कि मेरी योजना सफल रही. सविता को यह बात समझ में आ गई है कि जीवनसाथी से, उस की जिंदगी में दूसरी औरत की उपस्थिति के भय के कारण दूर रहना मूर्खतापूर्ण भी है और खतरनाक भी.’’

‘‘मैं फोन कर के राकेश को पूरे घटनाक्रम की सूचना दे देता हूं,’’ संजीव मुसकराता हुआ फोन की तरफ बढ़ा.

‘‘आप ने अपनी योजना की जानकारी मुझे आज सुबह से पहले क्यों नहीं दी?’’

‘‘तब तुम्हारी प्रतिक्रियाओं में बनावटीपन आ जाता, डार्ल्ंिग.’’

‘‘योजना समाप्त हुई, तो अब सविता को भुला तो दोगे न?’’

‘‘तुम अकेला छोड़ कर नहीं जाओगी तो उस का प्रेम मुझे कभी याद नहीं आएगा जानेमन,’’ उसे छेड़ कर संजीव जोर से हंसा तो रेणु ने पहले जीभ निकाल कर उसे चिढ़ाया और फिर उस की छाती से जा लगी.

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घोंसले के पंछी: क्या मिल पाए आदित्य और ऋचा

आदित्य गुमसुम से खड़े थे. पत्नी की बात पर उन्हें विश्वास नहीं हुआ. वे शब्दों पर जोर देते हुए बोले, ‘‘क्या तुम सच कह रही हो ऋचा?’’

‘‘पहले मुझे विश्वास नहीं था लेकिन मैं एक नारी हूं, जिस उम्र से अंकिता गुजर रही है उस उम्र से मैं भी गुजर चुकी हूं. उस के रंगढंग देख कर मैं समझ गई हूं कि दाल में कुछ काला है.’’

आदित्य की आंखों में एक सवाल था, ‘वह कैसे?’

ऋचा उन की आंखों की भाषा समझ गई. बोली, ‘‘सुबह घर से जल्दी निकलती है, शाम को देर से घर आती है. पूछने पर बताया कि टाइपिंग क्लास जौइन कर ली है. इस की उसे जरूरत नहीं है. उस ने इस बारे में हम से पूछा भी नहीं था. घर में भी अकेले रहना पसंद करती है, गुमसुम सी रहती है. जब देखो, अपना मोबाइल लिए कमरे में बंद रहती है.’’

‘‘उस से बात की?’’

‘‘अभी नहीं, पहले आप को बताना उचित समझा. लड़की का मामला है. जल्दबाजी में मामला बिगड़ सकता है. एक लड़का हम खो चुके हैं, अब लड़की को खो देने का मतलब है पूरे संसार को खो देना.’’

आदित्य विचारों के समुद्र में गोता लगाने लगे. यह कैसी हवा चली है. बच्चे अपने मांबाप के साए से दूर होते जा रहे हैं. वयस्क होते ही प्यार की डगर पर चल पड़ते हैं, फिर मांबाप की मरजी के बगैर शादी कर लेते हैं. जैसे चिडि़या का बच्चा पंख निकलते ही अपने जन्मदाता से दूर चला जाता है, अपने घोंसले में कभी लौट कर नहीं आता, उसी प्रकार आज की पीढ़ी के लड़के तथा लड़कियां युवा होने से पहले ही प्यार के संसार में डूब जाते हैं. अपनी मरजी से शादी करते हैं और अपना घर बसा कर मांबाप से दूर चले जाते हैं.

आदित्य और ऋचा के एकलौते पुत्र ने भी यही किया था. आज वे दोनों अपने बेटे से दूर थे और बेटा उन की खोजखबर नहीं लेता था. इस में गलती किस की थी? आदित्य की, उन की पत्नी की या उन के बेटे की कहना मुश्किल था.

आदित्य ने पहले ध्यान नहीं दिया था, इस के बारे में सोचा तक नहीं था परंतु आज जब उन की एकलौती बेटी भी किसी के प्यार में रंग चुकी है, किसी के सपनों में खोई है, तो वे विगत और आगत का विश्लेषण करने पर विवश हैं.

प्रतीक एम.बी.ए. कर चुका था. बेंगलूरु की एक बड़ी कंपनी में मैनेजर था. एम.बी.ए. करते समय ही उस का एक लड़की से प्रेम हुआ था. तब तक उस ने घर में बताया नहीं था. नौकरी मिलते ही मांबाप को अपने प्रेम से अवगत कराया. आदित्य और ऋचा को अच्छा नहीं लगा. वह उन का एकलौता बेटा था. उन के अपने सपने थे. हालांकि वे आधुनिक थे, नए जमाने के चलन से भी वाकिफ थे परंतु भारतीय मानसिकता बड़ी जटिल होती है.

हम पढ़लिख कर आधुनिक बनने का ढोंग करते हैं, नए जमाने की हर चीज अपना लेते हैं, परंतु हमारी मानसिकता कभी नहीं बदलती. हमारे बच्चे किसी के प्रेम में पड़ें, वे प्रेमविवाह करना चाहें, हम इसे बरदाश्त नहीं कर पाते. अपनी जवानी में हम भी वही करते हैं या करना चाहते हैं परंतु हमारे बच्चे जब वही सब करने लगते हैं, तो सहन नहीं कर पाते हैं. उस का विरोध करते हैं.

प्रतीक उन का एकलौता बेटा था. वे धूमधाम से उस की शादी करना चाहते थे. वे उसे कामधेनु गाय समझते थे. उस की शादी में अच्छा दहेज मिलता. इसी उम्मीद में अपने एक रिश्तेदार से उस की शादी की बात भी कर रखी थी. मामला एक तरह से पक्का था. मांबाप यहीं पर गलती कर जाते हैं. अपने जवान बच्चों के बारे में अपनी मरजी से निर्णय ले लेते हैं. उन को इस से अवगत नहीं कराते. बच्चों की भावनाओं का उन्हें खयाल नहीं रहता. वे अपने बच्चों को एक जड़ वस्तु समझते हैं, जो बिना चूंचपड़ किए उन की हर बात मान लेंगे. परंतु जब बच्चे समझदार हो जाते हैं तब वे अपने जीवन के बारे में वे खुद निर्णय लेना पसंद करते हैं. वे अपना जीवन अपने तौर पर जीना चाहते हैं.

जब प्रतीक ने अपने प्यार के बारे में उन्हें बताया तो उन के कान खड़े हुए. चौंकना लाजिमी था. बेटे पर वे अपना अधिकार समझते थे. आदित्य और ऋचा ने पहले एकदूसरे की तरफ देखा, फिर प्रतीक की तरफ. वह एक हफ्ते की छुट्टी ले कर आया था. मांबाप से अपनी शादी के बारे में बात करने के लिए. प्रेम उस ने अवश्य किया था परंतु वह उन की सहमति से शादी करना चाहता था. अगर वे मान जाते तो ठीक था, अगर नहीं तब भी उस ने तय कर रखा था कि अपनी पसंद की लड़की से ही शादी करेगा. जिस को प्यार किया था, उसे धोखा नहीं देगा. मांबाप माने या न मानें.

ऋचा ने ही बात का सिरा पकड़ा था, ‘‘परंतु बेटे, हम ने तो तुम्हारी शादी के बारे में कुछ और ही सोच रखा है.’’

‘‘अब वह बेकार है. मैं ने अपनी पसंद की लड़की देख ली है. वह मेरे अनुरूप है.

हम दोनों ने एकसाथ एम.बी.ए. किया था. अब साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं, साथ ही जीवन व्यतीत करेंगे.’’

‘‘परंतु हमारे सपने…’’ ऋचा ने प्रतिवाद करने की कोशिश की परंतु प्रतीक की दृढ़ता के सामने वह कमजोर पड़ गईं. ऋचा की आवाज में कोई दम नहीं था. उसे लगा, वह हार जाएगी.

‘‘मम्मी, आप समझने की कोशिश कीजिए. बच्चे ही मांबाप का सपना होते हैं. अगर मैं खुश हूं तो आप के सपने साकार हो जाएंगे, वरना सब बेकार है.’’

‘‘बेकार तो वैसे भी सब कुछ हो चुका है. मैं बंसलजी को क्या मुंह दिखाऊंगा?’’ आदित्य ने पहली बार मुंह खोला, ‘‘उन के साथसाथ सारे नातेरिश्तेदार हैं. वे भी अलगथलग पड़ जाएंगे.’’

‘‘कोई किसी से अलग नहीं होता. आप धूमधाम से शादी आयोजित करें. रिश्तेदार 2 दिन बातें बनाएंगे, फिर भूल जाएंगे. प्रेमविवाह अब असामान्य नहीं रहे,’’ प्रतीक ने बहुत धैर्य से अपनी बात कही.

‘‘बेटे, तुम नहीं समझोगे. हम वैश्य हैं और हमारे समाज ने इस मामले में आधुनिकता की चादर नहीं ओढ़ी है. कितने लोग तुम्हारे लिए भागदौड़ कर रहे हैं. अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहते हैं. जिस दिन पता चलेगा कि तुम ने गैर जाति की लड़की से शादी कर ली है, वे हमें समाज से बहिष्कृत कर देंगे. तुम्हारी छोटी बहन की शादी में तमाम अड़चनें आएंगी.’’

‘‘उस का भी प्रेमविवाह कर देना,’’ प्रतीक ने सहजता से कह दिया. परंतु आदित्य और ऋचा के लिए यह सब इतना सहज नहीं था.

‘‘बेटे, एक बार तुम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करो. शायद तुम्हारा निश्चय डगमगा जाए. हम उस से सुंदर लड़की तुम्हारे लिए ढूंढ़ कर लाएंगे.’’

ये भी पढ़ें- बेईमानी का नतीजा: क्या हुआ बाप और बेटे के साथप्रतीक हंसा, ‘‘मम्मी, यह मेरा आज का फैसला नहीं है. पिछले 3 सालों से हम दोनों का यही फैसला है. अब यह बदलने वाला नहीं. आप अपने बारे में बताएं. आप हमारी शादी करवाएंगे या हम स्वयं कर लें.’’

किसी ने प्रतीक की बात का जवाब नहीं दिया. वे अचंभित, भौचक और ठगे से बैठे थे. वे सभ्य समाज के लोग थे. लड़ाईझगड़ा कर नहीं सकते थे. बातों के माध्यम से मामले को सुलझाने की कोशिश की परंतु वे दोनों न तो प्रतीक को मना पाए, न प्रतीक के निर्णय से सहमत हो पाए. प्रतीक अगले दिन बेंगलूरु चला गया. बाद में पता चला, उस ने न्यायालय के माध्यम से अपनी प्रेमिका से शादी कर ली थी.

वे दोनों जानते थे कि प्रतीक ने भले अपनी मरजी से शादी की थी. परंतु वह उन के मन से दूर नहीं हुआ था. बस उन का अपना हठ था. उस हठ के चलते अभी तक बेटे से संपर्क नहीं किया था. बेटे ने पहले एकदो बार फोन किया था. आदित्य और ऋचा ने उस से बात की थी, हालचाल भी पूछा परंतु उस को दिल्ली आने के लिए कभी नहीं कहा. फिर बेटे ने उन को फोन करना बंद कर दिया.

अब शायद वह हठ टूटने वाला था. अंकिता के साथ वह पहले वाली गलती नहीं दोहराना चाहते थे.

आदित्य ने शांत भाव से कहा, ‘‘ऋचा, हमें बहुत समझदारी से काम लेना होगा. लड़की का मामला है. प्रेम के मामले में लड़कियां बहुत नासमझी और भावुकता से काम लेती हैं. अगर उन्हें लगता है कि मांबाप उन के प्रेम का विरोध कर रहे हैं, तो बहुत गलत कदम उठा लेती हैं. या तो वे घर से भाग जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं. हमें ध्यान रखना है कि अंकिता ऐसा कोई कदम न उठा ले.’’

ऋचा बेचैन हो गई, ‘‘क्या करें हम?’’

‘‘कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, बस उस से बात करो. उस की सारी बातें ध्यान से सुनो. उस के मन को समझने का प्रयास करो. शायद हम उस की मदद कर सकें. अगर वह समझ गई तो बहकने से बच जाएगी. उस के पैर गलत रास्ते पर नहीं पड़ेंगे. ये रास्ते बहुत चिकने होते हैं. फिसलने में देर नहीं लगती.’’

‘‘ठीक है,’’ ऋचा ने आश्वस्त हो कर कहा.

ऋचा ने देर नहीं की. जल्दी ही मौका निकाला. अंकिता से बात की. वह अपने कमरे में थी. ऋचा ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘बेटा, क्या कर रही हो?’’

अंकिता हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. वह बिस्तर पर लेटी मोबाइल पर किसी से बातें कर रही थी. अंकिता के चेहरे के भाव बता रहे थे, जैसे वह चोरी करते हुए पकड़ी गई थी. ऋचा सब समझ गई, परंतु उस ने धैर्य से कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

अंकिता बी.ए. के दूसरे साल में थी.

‘‘ठीकठाक चल रही है,’’ अंकिता ने अपने को संभालते हुए कहा. उस की आंखें फर्श की तरफ थीं.

वह मां की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पा रही थी.

अंकिता जिन मनोभावों से गुजर रही थी, ऋचा समझ सकती थी. उस ने बेटी को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘बैठो और मेरी बात ध्यान से सुनो.’’

वह भी बेटी के साथ पलंग पर एक किनारे बैठ गई. उसे लग रहा था किसी लागलपेट की जरूरत नहीं, मुझे सीधे मुद्दे पर आना होगा.

अंकिता का हृदय तेजी से धड़क रहा था. पता नहीं क्या होने वाला था? मम्मी क्या कहेंगी उस से? उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था परंतु उस के मन में अपराधबोध था. मम्मी ने उसे फोन करते हुए देख लिया था.

ऋचा ने सीधे वार किया, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी मनोदशा समझ रही हूं. मैं तुम्हारी मां हूं. इस उम्र में सब को प्रेम होता है,’’ प्रेम शब्द पर ऋचा ने अधिक जोर दिया, ‘‘तुम्हारे साथ कुछ नया नहीं हो रहा है. परंतु बेटी, इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. बाद में लड़कियों के पास बदनामी के सिवा कुछ नहीं बचता. वे बदनामी का दाग ले कर जीती हैं और मन ही मन घुलती रहती हैं.’’

अंकिता का दिल और जोर से धड़क उठा.

‘‘बेटी, अगर तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हो रहा है, तो हमें बताओ. हम नहीं चाहते तुम्हारे कदम गलत रास्ते पर पड़ें. तुम नासमझी में कुछ ऐसा न कर बैठो, जो तुम्हारी बदनामी का सबब बने. अभी तुम्हारी पढ़ाई की उम्र है लेकिन यदि तुम्हारे साथ प्रेम जैसा कोई चक्कर है, तो हम शादी के बारे में भी सोच सकते हैं. तुम खुल कर बताओ, क्या वह लड़का तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है? वह तुम को ले कर गंभीर है या बस खिलवाड़ करना चाहता है.’’

अंकिता सोचने लगी पर उस के मन में दुविधा और शंका के बादल मंडरा रहे थे.

बताए या न बताए. मम्मी उस के मन की बात जान गई हैं. कहां तक छिपाएगी? नहीं बताएगी तो उस पर प्रतिबंध लगेंगे. उस ने आगे आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचा. उसे लगा कि मां जब इतने प्यार और सहानुभूति से पूछ रही हैं, तो उन को सब कुछ बता देना ही उचित होगा.

अंकिता खुल गई और धीरेधीरे उस ने मम्मी को सारी बातें बता दीं. गनीमत थी कि अभी तक अंकिता ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था. लड़के ने कोशिश बहुत की थी, परंतु वह उस के साथ होटल जाने को तैयार नहीं हुई. डर गई थी, इसलिए बच गई. मम्मी ने इतमीनान की गहरी सांस ली और बेटी को सांत्वना दी कि वह सब कुछ ठीक कर देंगी. अगर लड़का तथा उस के घर वाले राजी हुए तो इसी साल उस की शादी कर देंगे.

अंकिता ने बताया था कि वह अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के के साथ प्यार करती है. उस के घरपरिवार के बारे में वह बहुत कम जानती है. वे दोनों बस प्यार के सुनहरे सपने देख रहे हैं. बिना पंखों के हवा में उड़ रहे थे. भविष्य के बारे में अनजान थे. प्रेम की परिणति क्या होगी, इस के बारे में सोचा तक नहीं था. वे बस एकदूसरे के प्रति आसक्त थे. यह शारीरिक आकर्षण था, जिस के कारण लड़कियां अवांछित विपदाओं का शिकार होती हैं.

ऋचा ने आदित्य को सब कुछ बताया. मामला सचमुच गंभीर था. अंकिता अभी नासमझ थी. उस के विचारों में परिपक्वता नहीं थी. उस की उम्र अभी 20 साल थी. वह लड़का भी इतनी ही उम्र का होगा. दोनों का कोई भविष्य नहीं था. वे दोनों बरबादी की तरफ बढ़ रहे थे. उन्हें संभालना होगा.

स्थिति गंभीर थी. ऋचा और आदित्य का चिंतित होना स्वाभाविक था. परंतु ऋचा और आदित्य को कुछ नहीं करना पड़ा. मामला अपनेआप सुलझ गया. संयोग उन का साथ दे रहा था. समय रहते अंकिता को अक्ल आ गई थी. उस की मम्मी की बातों का उस पर ठीक असर हुआ था.

ये भी पढ़ें- सनक: नृपेंद्रनाथ को हुआ गलती का एहसासअंकिता ने जब शिवम को बताया कि उस की मम्मी को उस के प्रेम के बारे में सब पता चल गया है तो वह घबरा गया.

‘‘इस में घबराने की क्या बात है? मम्मी ने तुम्हारे डैडी का फोन नंबर व पता मांगा है. वह तुम्हारे घर वालों से हमारी शादी की बात करना चाहती हैं.’’

‘‘अरे मर गए, क्या तुम्हारे पापा को भी पता है?’’ उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.

‘‘जरूर पता होगा. मम्मी ने बताया होगा उन को. परंतु तुम इतना परेशान क्यों हो रहे हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं, शादी करने में क्या हरज है? कभी न कभी करते ही, कल के बजाय आज सही,’’ अंकिता बहुत धैर्य से यह सब कह रही थी.

‘‘अरे, तुम नहीं समझतीं. यह कोई शादी की उम्र है. मेरे डैडी जूतों से मेरी खोपड़ी गंजी कर देंगे. शादी तो दूर की बात है,’’ वह हाथ मलते हुए बोला.

‘‘अच्छा,’’ अंकिता की अक्ल ठिकाने आ रही थी. वह समझने का प्रयास कर रही थी. बोली, ‘‘तुम मुझ से प्रेम कर सकते हो तो शादी क्यों नहीं. प्रेम मांबाप से पूछ कर तो किया नहीं था. अगर वे हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होते, तो शादी भी उन से बिना पूछे कर लो. आखिर हम बालिग हैं.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो, शादी कैसे कर सकते हैं?’’ वह झल्ला कर बोला, ‘‘अभी तो हम पढ़ रहे हैं. मांबाप से पूछे बगैर हम इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं?’’

‘‘अच्छा, मांबाप से पूछे बगैर तुम जवान कुंआरी लड़की को बरगला सकते हो. उस को झूठे प्रेमजाल में फंसा सकते हो. शादी का झांसा दे कर उस की इज्जत लूट सकते हो. यह सब करने के लिए तुम बालिग हो परंतु शादी करने के लिए नहीं,’’ वह रोंआसी हो गई.

उसे मम्मी की बातें याद आ गईं. सच कहा था उन्होंने कि इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. शिवम भी तो उस के साथ यही कर रहा था. समय रहते उस की मम्मी ने उसे सचेत कर दिया था. वह बच गई. अगर थोड़ी देर होती तो एक न एक दिन शिवम उस की इज्जत जरूर लूट लेता. कहां तक अपने को बचाती. वह तो उस के लिए पागल थी.

शिवम इधरउधर ताक रहा था. अंकिता ने एक प्रयास और किया, ‘‘तुम अपने घर का पता और फोन नंबर दो. तुम्हारे मम्मीडैडी से पूछ तो लें कि वे इस रिश्ते के लिए राजी हैं या नहीं.’’

‘‘क्या शादीशादी की रट लगा रखी है,’’ वह दांत पीस कर बोला, ‘‘हम कालेज में पढ़ने के लिए आए हैं, शादी करने के लिए नहीं.’’

‘‘नहीं, प्यार करने के लिए…’’ अंकिता ने उस की नकल की. वह भी दांत पीस कर बोली, ‘‘तो चलो, नाचेगाएं और खुशियां मनाएं,’’ अब उस की आवाज में तल्खी आ गई थी, ‘‘कमीने कहीं के, तुम्हारे जैसे लड़कों की वजह से ही न जाने कितनी लड़कियां अपनी इज्जत बरबाद करती हैं. मैं ही

बेवकूफ थी, जो तुम्हारे फंदे में फंस गई. थू है तुम पर.. भाड़ में जाओ. सब कुछ खत्म हो गया. अब कभी मेरे सामने मत पड़ना. गैरत हो तो अपना काला मुंह ले कर मेरे सामने से चले जाओ.’’

उस दिन शाम को अंकिता जल्दी घर पहुंच गई. बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ था. ऋचा और आदित्य ने भेदभरी नजरों से एकदूसरे की तरफ देखा. अंकिता चुपचाप अपने कमरे में चली गई थी. आदित्य ने ऋचा को इशारा किया. वह पीछेपीछे अंकिता के कमरे में पहुंची. आदित्य भी बाहर आ कर खड़े हो गए थे.

‘‘आज बहुत जल्दी आ गईं बेटी,’’ ऋचा अंकिता से पूछ रही थी.

‘‘हां मम्मी, आज मैं अपने मन का बोझ उतार कर आई हूं. बहुत हलका महसूस कर रही हूं,’’ फिर उस ने एकएक बात मम्मी को बता दी.

मम्मी ने उसे गले से लगा लिया. उसे पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, मुझे तुम पर गर्व है. तुम्हारी जैसी बेटी हर मांबाप को मिले.’’

‘‘मम्मी यह सब आप की समझदारी की वजह से हुआ है. समय रहते आप ने

मुझे संभाल लिया. मैं आप की बात समझ गई और पतन के गर्त में जाने से बच गई. आप थोड़ा सी देर और करतीं तो मेरी बरबादी हो चुकी होती. मैं आप से वादा करती हूं कि मन लगा कर पढ़ाई करूंगी. आप की नसीहत और मार्गदर्शन से एक अच्छी बेटी बन कर दिखाऊंगी.’’

‘‘हां बेटी, तुम्हारे सिवा हमारा और कौन है? तुम चली जातीं तो हमारे जीवन में क्या बचता?’’

‘‘मम्मी, ऐसा क्यों कह रही हैं? मैं आप के साथ हूं और भैयाभाभी भी तो हैं.’’

ऋचा ने अफसोस से कहा, ‘‘वे अब हमारे कहां रहे? हम ने एकदूसरे को नहीं समझा और वे हम से दूर हो गए.’’

‘‘ऐसा नहीं है मम्मी, वे पहले भी हमारे थे और आज भी हमारे हैं.’’

‘‘ये क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘मम्मी, मैं आप को राज की बात बताती हूं. भैया और भाभी से मैं रोज बात करती हूं. भाभी खुद फोन करती हैं. मैं ने उन्हें देखा नहीं है परंतु वे बातें बहुत प्यारी करती हैं. वे हम सब को देखना चाहती हैं. भैया तो एक दिन भी बिना मुझ से बात किए नहीं रह सकते. वे और भाभी यहां आना चाहते हैं लेकिन डैडी से डरते हैं, इसीलिए नहीं आते. मम्मी, आप एक बार…सिर्फ एक बार उन से कह दो कि आप ने उन्हें माफ किया, वे दौड़ते हुए आएंगे.’’

‘‘सच…’’ ऋचा ने उसे अपने सीने से लगा लिया, ‘‘बेटी, आज तू ने मुझे दोगुनी खुशी दी है,’’ वह खुशी से विह्वल हुई जा रही थी.

‘‘हां, मम्मी, आप उन्हें फोन तो करो,’’ अंकिता चहक रही थी, ‘‘मैं भाभी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘अभी करती हूं. पहले उन को बता दूं. सुन कर वे भी खुशी से पागल हो जाएंगे. हम लोगों ने न जाने कितनी बार उन को बुलाने के बारे में सोचा. बस हठधर्मिता में पड़े रहे. बेटे के सामने झुकना नहीं चाहते थे परंतु आज हम बेटे के लिए और उस की खुशी के लिए छोटे बन जाएंगे. उसे फोन करेंगे.’’

वह बाहर जाने के लिए मुड़ी. कमरे के बाहर खड़े आदित्य अपनी आंखों से आंसू पोंछ रहे थे. आज उन्हें खोई हुई खुशी मिल रही थी. बेटी भी वापस अंधेरी गलियों में भटकने से बच गई थी. वह सहीसलामत घर लौट आई थी. बेटा भी मिल गया था. आज उन की हठधर्मिता टूट गई थी. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था.

ऋचा ने आदित्य को बाहर खड़े देखा. वे समझ गईं कि अब कुछ कहने की जरूरत नहीं थी. वे सब सुन चुके थे. उन के पास जा कर भरे गले से बोली, ‘‘चलिए, बेटे को फोन कर दें और बहू के स्वागत की तैयारी

करें. आज हमें दोगुनी खुशी मिल रही है.

ऐसा लग रहा है, जैसे घोंसले के पंछी वापस आ गए हैं. अब हमारा आशियाना वीरान

नहीं रहेगा.’’

‘‘हां, ऋचा,’’ आदित्य ने उसे बांहों के घेरे में लेते हुए कहा, ‘‘घोंसले के पंछी घोंसले में ही रहते हैं, डाल पर नहीं. प्रतीक को वापस आना ही था. हमारी बगिया के फूल यों ही हंसतेमुसकराते रहें. उन की सुगंध चारों ओर फैले और वे अपनी महक से सब के जीवन को गुलजार कर दे.

 

सरहद पार से : अपने सपनों की रानी क्या कौस्तुभ को मिल पाई

‘इंडोपाक कल्चरल मिशन’ के लिए जिन 5 शिक्षकों का चयन हुआ है उन में एक नाम कौस्तुभ का भी है. अभी 2 साल पहले ही तो आई.आई.टी. कानपुर से एम. टेक. करने के बाद प्रवक्ता के पद पर सीधेसीधे यहीं आया था. स्टाफ रूम के खन्ना सर किसी न किसी बहाने लाहौर की चर्चा करते रहते हैं. वह आज तक इतने और ऐसे ढंग से किस्से सुनाते रहे हैं कि लाहौर और खासकर अनारकली बाजार की मन में पूरी तसवीर उतर गई है. इस चयन से कौस्तुभ के तो मन की मुराद पूरी हो गई.

सुनयनाजी बेटे कौस्तुभ की शादी के सपने देखने लगी हैं. ठीक भी है. सभी मातापिता की इच्छा होती है बेटे को सेहरा बांधे, घोड़ी पर चढ़ते देखने की. छमछम करती बहू घर में घूमती सब को अच्छी लगती है. सुबहसुबह चूडि़यां खनकाती जब वह हाथ में गरमागरम चाय का प्याला पकड़ाती है तो चाय का स्वाद ही बदल जाता है. फिर 2-3 साल में एक बच्चा लड़खड़ाते कदम रखता दादी पर गिर पड़े तो क्या कहने. बस, अब तो सुनयनाजी की यही तमन्ना है. उन्होंने तो अभी से नामों के लिए शब्दकोष भी देखना शुरू कर दिया है. उदयेशजी उन के इस बचकानेपन पर अकसर हंस पड़ते हैं, ‘क्या सुनयना, सूत न कपास जुलाहे से लट्ठमलट्ठा वाली कहावत तुम अभी से चरितार्थ कर रही हो. कहीं बात तक नहीं चली है, लड़का शादी को तैयार नहीं है और तुम ने उस के बच्चे का नाम भी ढूंढ़ना शुरू कर दिया. लाओ, चाय पिलाओ या वह भी बहू के हाथ से पिलवाने का इरादा है?’

‘आप तो मेरी हर बात ऐसे ही मजाक में उड़ा देते हैं. शादी तो आखिर होगी न. बच्चा भी होगा ही. तो नाम सोचने में बुराई क्या है?’

यह बोल कर सुनयना किचन में चली गईं और 2 कप चाय ले कर आईं. एक कप उन्हें पकड़ाया और दूसरा अपने सामने की तिपाई पर रखा. प्याला होंठों से लगाते हुए उदयेशजी ने फिर चुटकी ली, ‘अच्छा बताओ, क्या नाम सोचा है?’

‘अरे, इतनी जल्दी दिमाग में आता कहां है. वैसे भी मैं नाम रखने में इतनी तेज कहां हूं. तेज तो सुमेघा थी. उस ने तो मेरी शादी तय होते ही मेरे बेटे का नाम चुन लिया था. उसी का रखा हुआ तो है कौस्तुभ नाम.’

‘अच्छा, मुझे तो यह बात पता ही नहीं थी,’ उदयेशजी की आवाज में चुहल साफ थी, ‘हैं कहां आप की वह नामकर्णी सहेलीजी. आप ने तो हम से कभी मिलवाया ही नहीं.’

‘क्यों, मिलवाया क्यों नहीं, शादी के बाद उस के घर भी हो आए हैं आप. कितनी बढि़या तो दावत दी थी उस ने. भूल गए?’ उलाहना दिया सुनयनाजी ने.

‘अरे हां, वह लंबी, सुंदर सी, बड़ीबड़ी आंखों वाली? अब कहां है? कभी मिले नहीं न उस के बाद? न फोन न पत्र? बाकी सहेलियों से तो तुम मिल ही लेती हो. विदेश में कहीं है क्या?’ उदयेशजी अब गंभीर थे.

‘वह कहां है, इस की किसी को खबर नहीं.’

बचपन की सहेली का इस तरह गुम हो जाना सुनयनाजी की जिंदगी का एक बहुत ही दुखदायी अनुभव है. वह अकसर उन की फोटो देख कर रो पड़ती हैं.

कौस्तुभ समेत 5 शिक्षकों और 50 छात्रों का यह दल लाहौर पहुंच गया है. लाहौर मुंबई की तरह पूरी रात तो नहीं पर आधी रात तक तो जागता ही रहता है. शहर के बीचोबीच बहती रोशनी में नहाई नहर की लहरें इस शहर की खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं. एक रात मेहमानों का पूरा दल अलमहरा थिएटर में नाटक भी देख आया.

लाहौर घूम कर यह दल पाकिस्तान घूमने निकला. हड़प्पा देखने के बाद दल ननकाना साहब भी गया. गुजरांवाला की गलियां और कराची की हवेलियां भी देखी गईं. पाकिस्तान का पंजाब तो उन्हें भारत का पंजाब ही लगा. वही सरसों के लहलहाते खेत और तंदूर पर रोटी सेंकती, गाती हुई औरतें. वही बड़ा सा लस्सी भर गिलास और मक्के की रोटी पर बड़ी सी मक्खन की डली. 55 भारतीयों ने यही महसूस किया कि गुजरे हुए 55 सालों में राजनेताओं के दिलों में चाहे कितनी भी कड़वाहट आई हो, आम पाकिस्तानी अब भी अपने सपनों में अमृतसर के गलीकूचे घूम आता है और हिंदू दोस्तों की खैरखबर जानने को उत्सुक है.

कौस्तुभ की अगवाई में 10 छात्रों ने लाहौर इंजीनियरिंग कालिज के 25 चुने हुए छात्रों से मुलाकात की. भारतपाक विद्यार्थी आपस में जितने प्रेम से मिले और जिस अपनेपन से विचारों का आदान- प्रदान किया उसे देख कर यही लगा कि एक परिवार के 2 बिछुड़े हुए संबंधी अरसे बाद मिल रहे हों. और वह लड़की हाथ जोड़ सब को नमस्ते कर रही है. कौस्तुभ के पूछने पर उस ने अपना नाम केतकी बताया. गुलाबी सूट में लिपटी उस लंबी छरहरी गोरी युवती ने पहली नजर में ही कौस्तुभ का दिल जीत लिया था.

 

रात में कौस्तुभ बड़ी देर तक करवटें बदलता रहा. उस की यह बेचैनी जब डा. निरंजन किशोर से देखी नहीं गई तो वह बोल पड़े, ‘‘क्या बात है, कौस्तुभ, लगता है, कहीं दिल दे आए हो.’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं है पर न जाने क्यों उस लड़की के खयाल मात्र से मन बारबार उसी पर अटक रहा है. मैं खुद हैरान हूं.’’

‘‘देखो भाई, यह कोई अजीब बात नहीं है. तुम जवान हो. लड़की सुंदर और जहीन है. तुम कहो तो कल चल पड़ें उस के घर?’’ डा. किशोर हलके मूड में थे.

वह मन ही मन सोचने लगे कि ये तो इस लड़की को ले कर सीरियस है. चलो, कल देखते हैं. हालीडे इन में सभी पाकिस्तानी छात्रछात्राओं को इकट्ठा होना ही है.

डा. किशोर गंभीर हो गए. उन्होंने निश्चय कर लिया कि इस प्रकरण को किसी न किसी तरह अंजाम तक जरूर पहुंचाएंगे.

दूसरे दिन डा. किशोर तब सकते में आ गए जब कौस्तुभ ने उन्हें केतकी से सिर्फ मिलवाया ही नहीं बल्कि उस का पूरा पता लिखा परचा उन की हथेली पर रख दिया. डा. किशोर भी उस लड़की से मिल कर हैरान रह गए. उस की भाषा में शब्द हिंदी के थे. वह ‘एतराज’ नहीं ‘आपत्ति’ बोल रही थी. उन्होंने आग्रह किया कि वह उस के मातापिता से मिलना चाहेंगे.

अगले दिन वे दोनों केतकी के घर पहुंचे तो उस ने बताया कि पापा किसी काम से कराची गए हैं. हां, ममा आ रही हैं. मिलने तब तक नौकर सत्तू की कचौड़ी और चने की घुघनी ले कर आ चुका था.

लेखिका- उषा रानी

केतकी की ममा आईं तो उन को देख कर दोनों आश्चर्य में पड़ गए. सफेद सिल्क की चौड़े किनारे वाली साड़ी में उन का व्यक्तित्व किसी भारतीय महिला की तरह ही निखर रहा था. वह मंदमंद हंसती रहीं और एक तश्तरी में कचौड़ी- घुघनी रख कर उन्हें दी. उन्हें देख कर दोनों अभिभूत थे, जितनी सुंदर बेटी उतनी ही सुंदर मां.

‘‘देखिए मैडम, मेरे दोस्त को आप की केतकी बेहद पसंद है,’’ डा. किशोर बोले, ‘‘पता नहीं इस के घर वाले मानेंगे या नहीं, लेकिन आप लोगों को एतराज न हो तो मैं भारत पहुंच कर कोशिश करूं. आप कहें तो आप के पति से मिलने और इस बारे में बात करने के लिए दोबारा आ जाऊं?’’

‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है,’’ केतकी की ममा बोलीं, ‘‘मुझे केतकी ने सबकुछ बता दिया है और हम दोनों को कोई एतराज नहीं, बल्कि मैं तो बहुत खुश होऊंगी अगर मेरी बेटी का ब्याह भारत में हो जाए.’’

‘‘क्यों? क्या आप लोग उधर से इधर आए हैं?’’ कौस्तुभ ने पूछा.

‘‘हां, हम बंटवारे के बहुत बाद में आए हैं. मेरे मातापिता तो अभी भी वहीं हैं.’’

‘‘अच्छा, कहां की हैं आप?’’

वह बहुत भावुक हो कर बोलीं, ‘‘पटना की.’’

डा. किशोर को लगा कि उन्हें अपने अतीत में गोता लगाने के लिए अकेले छोड़ देना ही ठीक होगा. अत: कौस्तुभ का हाथ पकड़ धीमे से नमस्ते कह कर वे वहां से चल दिए.

घर में पूरा हंगामा मच गया. एक मुसलमान और वह भी पाकिस्तानी लड़की से कौस्तुभ का प्रेम. सुनयना ने तो साफ मना कर दिया कि एक संस्कारी ब्राह्मण परिवार में ऐसी मिलावट कैसे हो सकती है? डा. किशोर की सारी दलीलें बेकार गईं.

‘‘आंटी, लड़की संस्कारी है,’’

डा. किशोर ने बताया, ‘‘उस की मां आप के पटना की हैं.’’

‘‘होगी. पटना में तो बहुत मुसलमान हैं. केवल इसलिए कि वह मेरे शहर की है, उस से मैं रिश्ता जोड़ लूं. संभव नहीं है.’’

डा. किशोर मन मार कर चले गए. सुनयनाजी ने यह सोच कर मन को सांत्वना दे ली कि वक्त के साथ हर जख्म भर जाता है, उस का भी भर जाएगा.

उस दिन शाम को उदयेशजी ने दरवाजा खोला तो उन के सामने एक अपरिचित सज्जन खड़े थे.

‘‘हां, कहिए, किस से मिलना है आप को?’’

‘‘आप से. आप कौस्तुभ दीक्षित के वालिद हैं न?’’ आने वाले सज्जन ने हाथ आगे बढ़ाया. उदयेशजी आंखों में अपरिचय का भाव लिए उन्हें हाथ मिलाते हुए अंदर ले आए.

‘‘मैं डा. अनवर अंसारी,’’  सोफे पर बैठते हुए आगंतुक ने अपना परिचय दिया, ‘‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फिजिक्स का प्रोफेसर हूं. दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित सेमिनार में सिर्फ इसलिए आ गया कि आप से मिल सकूं.’’

‘‘हां, कहिए. मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?’’ उदयेश बहुत हैरान थे.

‘‘मैं अपने चचेरे भाई अहमद की बेटी का रिश्ता ले कर आया हूं. ये रही उस की फोटो और बायोडाटा. मैं परसों फोन करूंगा. मेरा भाई डाक्टर है और उस की बीवी कैमिस्ट्री में रीडर. अच्छा खातापीता परिवार है. लड़की भी सुंदर है,’’ इतना कह कर उन्होंने लिफाफा आगे बढ़ा दिया.

नौकर मोहन तब तक चायनाश्ता ले कर आ चुका था. हक्केबक्के उदयेश को थोड़ा सहारा मिला. सामान्य व्यवहार कर सहज ढंग से बोले, ‘‘आप पहले चाय तो लीजिए.’’

‘‘तकल्लुफ के लिए शुक्रिया. बेटी का रिश्ता ले कर आया हूं तो आप के यहां खानापीना बेअदबी होगी, इजाजत दें,’’ कह कर वह उठ खड़े हुए और नमस्कार कर के चलते बने.

सुनयना भी आ गईं. उन्होंने लिफाफा खोला. अचानक ध्यान आया कि कहीं ये वही पाकिस्तान वाले लोग तो नहीं हैं. फिर सीधे सपाट स्वर में उदयेश से कहा, ‘‘उन का फोन आए तो मना कर दीजिएगा.’’

तभी कौस्तुभ आ गया और मेज पर चायनाश्ता देख कर पूछ बैठा, ‘‘पापा, कौन आया था?’’

‘‘तेरे रिश्ते के लिए आए थे,’’ उदयेशजी ने लिफाफा आगे बढ़ाया.

फोटो देख कर कौस्तुभ एकदम चौंका, ‘‘अरे, यह तो वही लाहौर वाली केतकी है. लाहौर से आए थे? कौन आया था?’’

‘‘नहीं, इलाहाबाद से उस के चाचा आए थे,’’ उदयेशजी बेटे की इस उत्कंठा से परेशान हुए.

‘‘अच्छा, वे लोग भी इधर के ही हैं. कुछ बताया नहीं उन्होंने?’’

‘‘बस, तू रहने दे,’’ सुनयना देवी बोलीं, ‘‘जिस गली जाना नहीं उधर झांकना क्या? जा, हाथमुंह धो. मैं नाश्ता भेजती हूं.’’

दिन बीतते रहे. दिनचर्या रोज के ढर्रे पर चलती रही, लेकिन 15वें दिन सुबहसुबह घंटी बजी. मोहन ने आने वाले को अंदर बिठाया. सुनयनाजी आईं और नीली साड़ी में लिपटी एक महिला को देख कर थोड़ी चौंकी. महिला ने उन पर भरपूर नजर डाली और बोली, ‘‘मैं केतकी की मां…’’

सुनयना ने देखा, अचानक दिमाग में कुछ कौंधा, ‘‘लेकिन आप…तु… तुम…सुमे…’’ और वह महिला उन से लिपट गई.

‘‘सुनयना, तू ने पहचान लिया.’’

‘‘लेकिन सुमेधा…केतकी…लाहौर… सुनयना जैसे आसमान से गिरीं. उन की बचपन की सहेली सामने है. कौस्तुभ की प्रेयसी की मां…लेकिन मुसलमान…सिर चकरा गया. अपने को मुश्किल से संभाला तो दोनों फूट कर रो पड़ीं. आंखों से झरते आंसुओं को रोकने की कोशिश करती हुई सुनयना उन्हें पकड़ कर बेडरूम में ले गईं.

‘‘बैठ आराम से. पहले पानी पी.’’

‘‘सुनयना, 25 साल हो गए. मन की बात नहीं कह पाई हूं किसी से, मांपापा से मिली ही नहीं तब से. बस, याद कर के रो लेती हूं.’’

‘‘अच्छाअच्छा, पहले तू शांत हो. कितना रोएगी? चल, किचन में चल. पकौड़े बनाते हैं तोरी वाले. आम के अचार के साथ खाएंगे.’’

सुमेधा ने अपनेआप को अब तक संभाल लिया था.

‘‘मुझे रो लेने दे. 25 साल में पहली बार रोने को किसी अपने का कंधा मिला है. रो लेने दे मुझे,’’ सुमेधा की हिचकियां बंधने लगीं. सुनयना भी उन्हें कंधे से लगाए बैठी रहीं. नयनों के कटोरे भर जाएंगे, तो फिर छलकेंगे ही. उन की आंखों से भी आंसू झरते रहे.

बड़ी देर बाद सुमेधाजी शांत  हुईं. मुसकराने की कोशिश की और बोलीं, ‘‘अच्छा, एक गिलास शरबत पिला.’’

दोनों ने शरबत पिया. फिर सुमेधा ने अपनेआप को संभाला. सुनयना ने पूछा, ‘‘लेकिन तू तो उस रमेश…’’

‘‘सुनयना, तू ने मुझे यही जाना? हम दोनों ने साथसाथ गुडि़या खेल कर बचपन विदा किया और छिपछिप कर रोमांटिक उपन्यास पढ़ कर यौवन की दहलीज लांघी. तुझे भी मैं उन्हीं लड़कियों में से एक लगी जो मांबाप के मुंह पर कालिख पोत कर पे्रमी के साथ भाग जाती हैं,’’ सुमेधा ने सुनयना की आंखों में सीधे झांका.

‘‘लेकिन वह आंटी ने भी यही…’’ सुनयना उन से नजर नहीं मिला पाईं.

‘‘सुन, मेरी हकीकत क्या है यह मैं तुझे बताती हूं. तुझे कुलसुम आपा याद हैं? हम से सीनियर थीं. स्कूल में ड्रामा डिबेट में हमेशा आगे…?’’

‘‘हां, वह जस्टिस अंसारी की बेटी,’’ सुनयना को जैसे कुछ याद आ गया, ‘‘पापा पहले उन्हीं के तो जूनियर थे.’’

‘‘और कुलसुम आपा का छोटा भाई?’’

‘‘वह लड्डन यानी अहमद न… हैंडसम सा लड़का?’’

‘‘हां वही,’’ सुमेधा बोलीं, ‘‘तू तो शादी कर के ससुराल आ गई. मैं ने कैमिस्ट्री में एम.एससी. की. तब तक वह लड्डन डाक्टर बन चुका था. कुलसुम आपा की शादी हो चुकी थी. उस दिन वह मुझे ट्रीट देने ले गईं. अंसारी अंकल की कार थी. अहमद चला रहा था. मैं पीछे बैठी थी. लौटते हुए कुलसुम आपा अचानक अपने बेटे को आइसक्रीम दिलाने नीचे उतरीं और अहमद ने गाड़ी भगा दी. मुझे तो चीखने तक का मौका नहीं दिया. एकदम एक दूसरी कार आ कर रुकी और अहमद ने मुझे खींच कर उस कार में डाल दिया. 2 आदमी आगे बैठे थे.’’

‘‘तू होश में थी?’’

‘‘होश था, तभी तो सबकुछ याद है. मुझे ज्यादा दुख तो तब हुआ जब पता चला कि सारा प्लान कुलसुम आपा का था. मैं शायद इसे अहमद की सफाई मान लेती लेकिन अंसारी अंकल ने खुद यह बात मुझे बताई. उन्हें अहमद का यहां का पता कुलसुम आपा ने ही दिया था. वह भागे आए थे और मुझे छाती से लगा लिया था.

‘‘यह सच है, अहमद मुझे पाना चाहता था पर उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह मुझे भगाता. एक औरत हो कर कुलसुम आपा ने मेरा जीवन नरक बना दिया. क्या बिगाड़ा था मैं ने उन का. हमेशा मैं ने सम्मान दिया उन्हें लेकिन…’’ और सुमेधा ऊपर देखने लगीं.

‘‘जज अंकल गए थे तेरे पास तो अहमद को क्या कहा उन्होंने?’’ बात की तह में जाने के लिए सुनयना ने पूछा.

‘‘उन्होंने पहले मुझ से पूछा कि अहमद ने मेरे साथ कोई बदतमीजी तो नहीं की. मेरे ‘न’ कहने पर वे बोले, ‘देखो बेटा, यह जीवन अल्लाह की दी हुई नेमत है. इसे गंवाने की कभी मत सोचना. इस के लिए सजा इस बूढ़े बाप को मत देना. तुम कहो तो मैं तुम्हें अपने साथ ले चलता हूं.’ लेकिन मैं ने मना कर दिया, सुनयना. मेरा तो जीवन इन भाईबहन ने बरबाद कर ही दिया था, अब मैं नवनीत, गरिमा और मम्मीपापा की जिंदगी क्यों नरक करती. ठीक किया न?’’ सुमेधा की आंखें एकदम सूखी थीं.

‘‘तो तू ने अहमद से समझौता कर लिया?’’

‘‘जज अंकल ने कहा कि बेटा, मैं तो इसे कभी माफ नहीं कर पाऊंगा, हो सके तो तू कर दे. उन्होंने अहमद से कहा, ‘देख, यह मेरी बेटी है. इसे अगर जरा भी तकलीफ हुई तो मैं तुम्हें दोनों मुल्कों में कहीं का नहीं छोड़ूंगा.’ दूसरी बार वह केतकी के जन्म पर आए थे, बहुत प्यार किया इसे. यह तो कई बार दादादादी के पास हो भी आई. दो बार तो अंसारी अंकल इसे मम्मी से भी मिलवा लाए.

‘‘जानती है सुनयना, अंसारी अंकल ने कुलसुम आपा को कभी माफ नहीं किया. आंटी उन से मिलने को तरसती मर गईं. आंटी को कभी वह लाहौर नहीं लाए. अंकल ने अपने ही बेटे को जायदाद से बेदखल कर दिया और जायदाद मेरे और केतकी के नाम कर दी. शायद आंटी भी अपने बेटेबेटी को कभी माफ नहीं कर सकीं. तभी तो मरते समय अपने सारे गहने मेरे पास भिजवा दिए.’’

सुमेधा की दुखभरी कहानी सुन कर सुनयना सोचती रहीं कि एक ही परिवार में अलगअलग लोग.

अंकल इतने शरीफ और बेटाबेटी ऐसे. कौन कहता है कि धर्म इनसान को अच्छा या बुरा बनाता है. इनसानियत का नाता किसी धर्म से नहीं, उस की अंतरात्मा की शक्ति से होता है.

‘‘लेकिन यह बता, तू ने अहमद को माफ कैसे कर दिया?’’

‘‘हां, मैं ने उसे माफ किया, उस के साथ निभाया. मुझे उस की शराफत ने, उस की दरियादिली ने, उस के सच्चे प्रेम ने, उस के पश्चात्ताप ने इस के लिए मजबूर किया था.’’

‘‘अहमद और शराफती?’’ सुनयना चौंक कर पूछ बैठीं.

‘‘हां सुनयना, उस ने 2 साल तक मुझे हाथ नहीं लगाया. मैं ने उसे समझने में बहुत देर लगाई. लेकिन फिर ठीक समझा. मैं समझ गई कि कुलसुम आपा इसे न उकसातीं, शह न देतीं तो वह कभी भी ऐसा घिनौना कदम नहीं उठाता. मैं ने उसे बिलखबिलख कर रोते देखा है.

‘‘अहमद ने एक नेक काम किया कि उस ने मेरा धर्म नहीं बदला. मैं आज भी हिंदू हूं. मेरी बेटी भी हिंदू है. हमारे घर में मांसाहारी भोजन नहीं बनता है. बस, केतकी के जन्म पर उस ने एक बात कही, वह भी मिन्नत कर के, कि मैं उस का नाम बिलकुल ऐसा न रखू जो वहां चल ही न पाए.’’

‘‘तू सच कह रही है? अहमद ऐसा है?’’ सुनयना को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था.

‘‘हां, अहमद ऐसा ही है, सुनयना. वह तो उस पर जुनून सवार हो गया था. मैं ने उसे सचमुच माफ कर दिया है.’’

‘‘तो तू पटना क्यों नहीं गई? एक बार तो आंटी से मिल आ.’’

‘‘मुझ में साहस नहीं है. तू ले चले तो चलूं. मायके की देहली के दरस को तरस गई हूं. सुनयना, एक बार मम्मी से मिलवा दे. तेरे पैर पड़ती हूं,’’ कह कर सुमेधा सुनयना के पैरों पर गिर पड़ी.

‘‘क्या कर रही है…पागल हो गई है क्या…मैं तुझे ले चलूं. क्या मतलब?’’

‘‘देख, मम्मी ने कहा है कि अगर तू केतकी को अपनाने को तैयार हो गई तो वह अपने हाथों से कन्यादान करेंगी. बेटी न सही, बेटी की बेटी तो इज्जत से बिरादरी में चली जाए.’’

‘‘तू लाहौर से अकेली आई है?’’

‘‘नहीं, अहमद और केतकी भी हैं. मेरी हिम्मत नहीं हुई उन्हें यहां लाने की.’’

‘‘अच्छा, उदयेश को आने दे?’’ सुनयना बोलीं, ‘‘देखते हैं क्या होता है. तू कुछ खापी तो ले.’’

सुनयना ने उदयेश को फोन किया और सोचती रही कि क्या धर्म इतना कमजोर है कि दूसरे धर्म के साथ संयोग होते ही समाप्त हो जाए और फिर  क्या धार्मिक कट्टरता इनसानियत से बड़ी है? क्या धर्म आत्मा के स्नेह के बंधन से ज्यादा बड़ा है?

उदयेश आए, सारी बात सुनी. सब ने साथ में लंच किया. सुमेधा को उन्होंने कई बार देखा पर नमस्ते के अलावा बोले कुछ नहीं.

उदयेशजी ने गाड़ी निकाली और दोनों को साथ ले कर होटल पहुंचे. सब लोग बैठ गए. सभी चुप थे. अहमद ने कौफी मंगवाई और पांचों चुपचाप कौफी पीते रहे. आखिर कमरे के इस सन्नाटे को उदयेशजी ने तोड़ा :

‘‘एक बात बताइए डा. अंसारी, आप की सरकार, आप की बिरादरी कोई हंगामा तो खड़ा नहीं करेगी?’’

अहमद ने उदयेश का हाथ पकड़ा, ‘‘उदयेशजी, सरकार कुछ नहीं करेगी. बिरादरी हमारी कोई है नहीं. बस, इनसानियत है. आप मेरी बेटी को कुबूल कर लीजिए. मुझे उस पाप से नजात दिलाइए, जो मैं ने 25 साल पहले किया था.

‘‘सरहद पार से अपनी बेटी एक हिंदू को सौंपने आया हूं. प्लीज, सुनयनाजी, आप की सहेली 25 साल से जिस आग में जल रही है, उस से उसे बचा लीजिए,’’ कहते हुए वह वहीं फर्श पर उन के पैरों के आगे अपना माथा रगड़ने लगा.

उदयेश ने डा. अंसारी को उठाया और गले से लगा कर बोले, ‘‘आप सरहद पार से हमें इतना अच्छा तोहफा देने आए हैं और हम बारात ले कर पटना तक नहीं जा सकते? इतने भी हैवान नहीं हैं हम. जाइए, विवाह की तैयारियां कीजिए.’’

सुनयनाजी ने अपने हाथ का कंगन उतार कर केतकी की कलाई में डाल दिया.

जब ऐसा मिलन हो, दो सहेलियों का, दो प्रेमियों का, दो संस्कृतियों का, दो धर्मों का तो फिर सरहद पर कांटे क्यों? गोलियों की बौछारें क्यों?

पटाक्षेप: क्या पूरी हुई शरद और सुरभि की प्रेम कहानी

‘‘मां, मैं नेहा से विवाह करना चाहता हूं,’’ अनंत ने सिडनी से फोन पर सुरभि को सूचना दी. ‘‘कौन नेहा?’’ सुरभि चौंक उठी, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था. अनंत तो अभी

25 वर्ष का ही था. उस ने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया. सुरभि के दिमाग में तो उस का अनंत अभी वही निर्झर हंसी से उस के वात्सल्य को भिगोने वाला, दौड़ कर उस के आंचल में छिपने वाला, नन्हामुन्ना बेटा ही था. अब देखते ही देखते इतना बड़ा हो गया कि विवाह करने का मन ही नहीं बनाया, बल्कि लड़की भी पसंद कर ली.

पति अवलंब की मृत्यु के बाद उस ने कई कठिनाइयों को झेल कर ही उस की परवरिश की और जब अनंत को अपने प्रोजैक्ट के लिए सिडनी की फैलोशिप मिली तब उस ने अपने दिल पर पत्थर रख कर ही अपने जिगर के टुकड़े को खुद से जुदा किया. वह समझती थी कि बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी ममता का त्याग करना ही होगा. आखिर कब तक वह उसे अपने आंचल से बांध कर रख सकती थी. अब तो उस के पंखों में भी उड़ान भरने की क्षमता आ गई थी. अब वह भी अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण फैसले लेने में समर्थ था. उस ने अपने बेटे की पसंद को वरीयता दी और फौरन हां कर दी.

अनंत को अपनी मां पर पूरा यकीन था कि वे उस की पसंद को नापसंद नहीं करेंगी. नेहा भी सिडनी में उसी के प्रोजैक्ट पर काम कर रही थी. वहीं दोनों की मुलाकात हुई जो बाद में प्यार में बदल गई और दोनों ने विवाह करने का मन बना लिया. नेहा के पेरैंट्स ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

सुरभि ने अनंत से नेहा की फोटो

भेजने को कहा जो उसे जल्द ही

मिल गई. फोटो देख कर वह निहाल हो गई, कितनी प्यारी बच्ची है, भंवरें सी कालीकाली आंखें, आत्मविश्वास से भरी हुई, कद 5 फुट 5 इंच, होंठों पर किसी को भी जीत लेने वाली हंसी, सभीकुछ तो मनभावन था.

नेहा की हंसी ने सुरभि के बिसरे हुए अतीत को जीवंत कर दिया था, कितनी प्यारी पहचानी हुई हंसी  है. यह हंसी तो उस के खयालों से कभी उतरी ही नहीं. इसी हंसी ने तो उस के दिन का चैन, रातों की नींद छीन ली थी. इसी हंसी पर तो वह कुरबान थी. तो क्या नेहा शरद की बेटी है? नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है. हो सकता है यह मेरा भ्रम हो. उस ने फोटो पलट कर देखा, नेहा कोठारी लिखा था, उस का शक यकीन में बदल गया.

वह अचंभित थी. नियति ने उसे कहां से कहां ला कर खड़ा कर दिया. किस प्रकार वह प्रतिदिन नेहा के रूप में शरद को देखा करेगी? लेकिन वह अनंत को मना भी तो नहीं कर सकती थी क्योंकि नेहा शरद का प्यार है जिसे छीनने का उसे कोई हक भी नहीं है. सो, इस शादी को मना करने का कोई समुचित आधार भी तो नहीं था. वह बेटे को क्या कारण बताती. धोखा तो शरद ने उसे दिया था. उस का बदला नेहा से लेने का कोई औचित्य भी नहीं बनता था. आखिर उस का अपराध भी क्या है? नहींनहीं. अनंत और नेहा एकदूसरे के लिए तड़पें, यह उसे मंजूर नहीं था.

शादी के बाद पता ही न चला कि शरद कहां है और उस ने कभी जानने का प्रयास भी नहीं किया. अब उस का मन उस से छलावा कर रहा था. नेहा की फोटो देखते ही लगता मानो शरद ही सामने खड़े मुसकरा रहे हों.

शरद ने न जाने कब चुपके से उस के जीवन में प्रवेश किया था. शरद जिस ने उस की कुंआरी रातों को चाहत के कई रंगीन सपने दिखाए थे. कैसे भूल सकती थी वह दिन जब उस ने विश्वविद्यालय में बीए (प्रथम वर्ष) में ऐडमिशन लिया था.

भीरु प्रवृत्ति की सहमीसहमी सी लड़की जब पहले दिन क्लास अटैंड करने पहुंची तो बड़ी ही घबराई हुई थी. जगहजगह लड़केलड़कियां झुंड बना कर बातें कर रहे थे. वह अचकचाई सी कौरिडोर में इधरउधर देख रही थी. उसे अपने क्लासरूम का भी पता नहीं था. कोई भी ऐसा नहीं दिख रहा था, जिस से वह पूछ सके. तभी एक सौम्य, दर्शनीय व्यक्तित्व वाला युवक आता दिखा.

उस ने तनिक हकलाते हुए पूछा, रूम नंबर 40 किधर पड़ेगा? उस लड़के ने उसे अचंभे से देखा, फिर तनिक मुसकराते हुए बोला, ‘आप रूम नंबर 40 के सामने ही खड़ी हैं.’ ‘ओह,’ वह झेंप गई और क्लास में जा कर बैठ गई.

‘हाय, आई एम नीमा कोठारी.’ उस ने पलट कर देखा. उस की बगल में एक प्यारी सी उसी की समवयस्क लड़की आ कर बैठ गई. उस ने सुरभि की ओर मैत्री का हाथ बढ़ाया. कुछ ही देर में दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

क्लास समाप्त होते ही दोनों एकसाथ बाहर आ गईं. ‘दादा,’ नीमा चिल्ला उठी. सुरभि ने चौंक कर देखा, वही युवक उन की ओर बढ़ा चला आ रहा था. ‘क्यों रे, क्लास ओवर हो गईर् थी या यों ही बंक कर के भाग रही है?’ उस ने नीमा को छेड़ा.

‘नहीं दादा, क्लास ओवर हो गई थी. और आप ने यह कैसे सोच लिया कि हम क्लास बंक कर के भाग रहे हैं?’

उस के स्वर में थोड़ी नाराजगी थी.

‘सौरी बाबा, अब नहीं कहूंगा,’ उस ने अपने कान पकड़ने का नाटक किया. नीमा मुसकरा उठी. फिर उस ने पलट कर सुरभि से उसे मिलवाया, ‘दादा, इन से मिलो, ये हैं सुरभि टंडन, मेरी क्लासमेट. और सुरभि, ये हैं मेरे दादा, शरद कोठारी, सौफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु में पोस्टेड हैं.’ उस ने दोनों का परिचय कराया.

सुरभि संकोच से दोहरी हुई जा रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े.

‘मैं इन से मिल चुका हूं. क्यों, है न?’ उस ने दृष्टता से मुसकराते हुए सुरभि की ओर देखा. ‘अच्छा,’ नीमा ने शोखी से कहा.

घर आ कर सुरभि उस पूरे दिन के घटनाक्रम में उलझी रही. ‘यह क्या हो रहा है, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ, न जाने कितने लोगों से प्रतिदिन मुलाकात होती रहती थी लेकिन इतनी बेचैनी तो पहले कभी नहीं हुई.’ मन में कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे.

नीमा तो कह रही थी कि शरद बेंगलुरु में है तो फिर यहां क्या कर रहा है, फौरन ही उस का मन जवाब देता, हो सकता है आजकल यहीं हो और अपनी बहन को पहले दिन यूनिवर्सिटी छोड़ने आया हो. रहरह कर शरद का मुसकराता चेहरा उस की आंखों के सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता था, क्यों, झकझोर दिया न मैं ने तुम को, हो रही हो न मुझ से मिलने को बेचैन?

‘हांहां, मैं बेचैन हो रही हूं तुम से मिलने के लिए, क्या तुम भी?’ वह अनायास ही बुदबुदा उठी.

‘क्या हुआ दीदी, तुम नींद में क्या बुदबुदा रही हो?’ बगल में सोई हुई उस की छोटी बहन ऋ तु ने पूछा.

‘क्या हुआ, कुछ भी तो नहीं. तूने कोई सपना देखा होगा,’ सुरभि ने खिसिया कर चादर में अपना मुंह ढांप लिया और सोने की कोशिश करने लगी.

दूसरे दिन हजारों मनौतियां मनाते हुए वह घर से निकली, काश कि आज भी शरद से मुलाकात हो जाए तो कितना अच्छा होगा. पूरे दिन दोनों सहेलियां साथ ही रहीं किंतु वह नहीं आया. चाह कर भी वह  नीमा से कुछ भी नहीं पूछ सकी, शर्म ने उसे जकड़ रखा था. उस का मन शरद से मिलने को बेचैन हो रहा था पर संस्कारों के चाबुक की मार से उस ने खुद को साधे रखा था. इन्हीं विचारों में डूबउतर रही थी कि तभी शरद आता दिखा.

‘क्या बात है दादा, आज आप फिर यहां. आज तो मेरा दूसरा दिन है और मैं कोई अकेली भी नहीं हूं,’ नीमा ने शरद को छेड़ा.

‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कल सुबह की फ्लाइट से वापस चला जाऊंगा, सोचा आज तुझे थोड़ा घुमाफिरा दूं, इत्मीनान से बातें करते हैं, तुझे कोई प्रौब्लम तो नहीं. फिर तो अरसे बाद ही मुलाकात होगी,’ शरद ने सुरभि की ओर देखते हुए कहा.

नीमा मन ही मन में मुसकरा रही थी, जबकि सुरभि का चेहरा आरक्त हो रहा था और बड़ी ही सरलता से उस के मन के भावों की चुगली कर रहा था. ‘अच्छा दादा, आप सुरभि से बातें करिए, मैं अभी कौमन हौल से हो कर आती हूं.’ नीमा यह कहने के साथ सुरभि की ओर देख कर मुसकराती हुई चली गई.

सुरभि की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले, तभी शरद बोल उठा, ‘तुम्हें कुछ कहना तो नहीं है, मैं कल सुबह चला जाऊंगा.’

‘नहीं, मुझे क्या कहना है,’ सुरभि नर्वस हो रही थी.

‘ठीक है, फिर यह न कहना कि मैं ने तुम्हें कुछ कहने का मौका नहीं दिया,’ शरद ने तनिक ढिठाई से कहा. तभी नीमा आते हुए दिखी. नीमा ने आ कर बताया, ‘आज क्लासेज सस्पैंड हो गई हैं.’ यह कहने के साथ उस ने आगे कहा, ‘चलो न दादा, कहीं घूमफिर आएं, तू चलेगी न सुरभि?’

सुरभि पसोपेश में पड़ गई, क्या करे, जाने का मन तो है पर यदि घर में यह बात पता चली, तब? मांपापा कुछ गलत न समझ बैठें. वैसे भी जब उस के दाखिले की बात हुई, तभी मामाजी ने टोका था, ‘जीजाजी, लड़की को विश्वविद्यालय भेज कर आप गलती कर रहे हैं, कहीं हाथ से निकल न जाए.’ लेकिन उस का मन चंचल हो रहा था, क्या हुआ यदि थोड़ी देर और शरद का साथ मिल जाए…और वह तैयार हो गई. तीनों ने खूब घुमाईफिराई की. शाम को नीमा और शरद ने अपनी कार से उसे उस के घर छोड़ा. उस के मांपापा भी उन दोनों से मिल कर बहुत प्रभावित हुए.

दूसरे दिन उस का मन बहुत अशांत

था. आज शरद चला जाएगा, न

जाने अब कब मुलाकात हो. वह बड़े ही अनमने ढंग से क्लासेज के लिए तैयार हो कर यूनिवर्सिटी के लिए निकल गई. सामने से नीमा आते दिखी. सुरभि को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘पता है, दादा आज भी नहीं गए. एक माह के लिए अपनी छुट्टियां बढ़ा ली हैं. असल मे दादा के जाने के नाम से ही मम्मी परेशान होने लगती हैं. बस, दादा को रुकने का बहाना मिल गया. उन्होंने अपना जाना कैंसिल कर दिया.’ लेकिन सुरभि अच्छी तरह समझती थी कि वह क्यों नहीं गया.

अब अकसर ही दोनों की मुलाकातें होने लगीं और उस ने अपना दिल शरद के हवाले कर दिया बिना यह जाने कि शरद भी उस को प्यार करता है या नहीं. लेकिन जब शरद ने बिना किसी लागलपेट के सीधेसादे शब्दों में अपने प्यार का इजहार कर दिया तो वह झूम उठी. ऐसा लग रहा था मानो पूरा सतरंगी आसमान ही उस की मुट्ठी में सिमट आया हो. वह अरमानों के पंखों पर झूला झूलने लगी.

एक रविवार को शरद अपने पेरैंट्स और नीमा को ले कर उस के घर आ धमका. उस ने अपने कमरे की खिड़की से देखा. उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हा रहा था. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. ‘चलो दीदी, मां ने तुम्हें ड्राइंगरूम में बुलाया है,’ ऋ तु ने आ कर उसे चौंका दिया. वह अचकचाई सी मां के बुलाने पर सब के बीच पहुंच गई. शरद के पेरैंट्स उस के पेरैंट्स से बातों में मग्न थे. उसे देखते ही शरद की मां ने उस के दोनों हाथों को पकड़ कर अपनी बगल में बिठा लिया, ‘हमें आप की बेटी बहुत ही पसंद है. हम इसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं अगर आप को एतराज न हो.’

वह शर्म से लाल हो रही थी. मांपापा इसी बात पर निहाल थे कि उन्हें घर बैठे ही इतना अच्छा रिश्ता मिल गया. उन्होंने फौरन हां कर दी. उस की भावी सास ने पर्स से अंगूठी निकाली और शरद से उसे पहनाने के लिए कहा. शरद ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया और उस की अनामिका में अंगूठी पहना कर अपने प्यार की मुहर लगा दी. उस ने भी मां द्वारा दी गई अंगूठी शरद को पहना कर अपनी स्वीकृति दे दी.

उसे यह सब स्वप्न सा महसूस हो रहा था. आखिर इतनी जल्दी उस का प्यार उसे मिलने वाला था. वह इस अप्रत्याशित सगाई के लिए तैयार न थी. क्या सच में जो प्यार उस के दिल के दरवाजे पर अब तक दस्तक दे रहा था, वह उस की झोली में आ गिरा. तभी, ‘भाभी’, कह कर नीमा उस से लिपट गई. लज्जा के मारे उस से वहां बैठा भी नहीं जा रहा था. वह नीमा को ले कर अपने कमरे में आ गई.

सगाई के बाद तो शरद अकसर ही उस के घर आनेजाने लगा था, अब उसे अपनी ससुराल में कभी भी आने का परमिट जो मिल गया था. इस एक महीने में वह सुरभि के साथ एक पूरा जीवन जीना चाहता था. अधिक से अधिक समय वह अपनी मंगेतर के साथ बिताना चाहता था. दोनों कभी मूवी देखने चले जाते, कभी दरिया के किनारे हाथों में हाथ डाले घूमते नजर आते, भविष्य के सुंदर सपने संजोते अपनी स्वप्नों की दुनिया में विचरण करते थे. पहले तो सुरभि को शर्म सी आती थी लेकिन अब घूमनेफिरने का लाइसैंस मिल गया था. सभी लोग बेफ्रिक थे कि ठीक भी है, दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लेंगे तो जिंदगी आसान हो जाएगी.

वह दिन भी आ गया जब शरद को बेंगलुरु वापस जाना था. वह भावविह्वल हो रही थी. शरद उसे अपने से लिपटाए दिलासा दे रहा था. बस, कुछ ही दिनों की तो बात है, फिर हम दोनों एक हो जाएंगे. जहां मैं वहां तुम. हमारे ऊपर कोई बंधन नहीं होगा. और सुरभि ने उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. शरद उस का मुंह ऊपर उठा कर बारबार उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर अंकित कर रहा था. शरद चला गया उसे अकेला छोड़ कर यादों में तड़पने के लिए.

विवाह जाड़े में होना था और अभी तो कई माह बाकी थे. फोन पर बातों में वह अपने विरह का कुछ इस प्रकार बखान करता था कि सुरभि के गाल शर्म से लाल हो उठते थे. वह उस की बातों का उत्तर देना चाहती थी किंतु शर्म उस के होंठों को सी देती थी. नीमा अकसर उसे छेड़ती और वह शरमा जाती.

अक्तूबर का महीना भी आ गया था. घर में जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. मांपापा पूरेपूरे दिन, उसे इस मौल से उस मौल टहलाते थे. उस की पसंद की ज्वैलरी और साडि़यां आदि खरीदने के चलते क्लासेज छूट रही थीं. जब वह कुछ कहती तो मां बोलतीं, ‘अब ससुराल में जा कर ही पढ़ाई करना.’ वह चुप रह जाती थी.

नवंबर का महीना भी आ गया. तैयारियों में और भी तेजी आ गई थी. निमंत्रणपत्र भी सब को जा चुके थे कि तभी उन पर गाज गिरी. शरद ने अपने पापा को सूचना दी कि उस ने अपने साथ ही कार्यरत किसी सोमा रेड्डी से विवाह कर लिया है.

सुरभि टूट गई. उसे शरद पर बेहद यकीन था. शरद उसे इस प्रकार धोखा देगा, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. वह शरद, जो उसे अपनी आंखों से ओझल भी नहीं होने देना चाहता था. उस के बालों से अठखेलियां करता, कभी कहता, तुम्हारी झील सी गहरी आंखों में मैं डूबडूब जाता हूं, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा बदन मुझे अपने में समेटे लिए जा रहा है. ऐसे कैसे धोखा दे सकता है वह उसे? वह खुद से ही सवाल करती.

शरद के पापा बहुत ही लज्जित थे और हाथ जोड़ कर सुरभि के परिवार से अपने बेटे के धोखे की माफी मांग रहे थे. और नीमा…वह तो सुरभि से नजरें मिलाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी. लेकिन अब इन बातों से फायदा भी क्या था? निराशा के अंधकार में वह नई राह तलाशने की कोशिश करती, लेकिन हर राह शरद की ओर ही जाती थी. उस के आगे तो सड़क बंद ही मिलती थी. और वह अंधेरों में भटक कर रह जाती थी.

कहीं से प्रकाश की एक भी किरण नजर नहीं आती थी. अब वह नातेरिश्तेदारों व मित्रों से नजरें चुराने लगी थी. जबकि मां उसे समझाती थी, ‘बेटा, तेरा कोई दोष नहीं है, दोष तो हमारा है जो हम ने उस धोखेबाज को पहचानने में भूल की.’

2 माह बाद ही पापा ने उस का विवाह अवलंब से कर दिया. अवलंब इनकम टैक्स औफिसर थे और बहुत ही सुलझे हुए व्यक्तित्व के थे. पापा ने उन से शरद और सुरभि की कोई भी बात नहीं छिपाई थी और परिवार के सम्मान की खातिर ही उस ने इस विवाह को स्वीकार कर लिया था. अवलंब सही माने में अवलंब थे. उन्होंने कभी भी उसे इस बात का आभास तक न होने दिया कि वे उस के अतीत से परिचित हैं और उन्होंने उसे अपने प्यार से लबरेज कर दिया. अब उसे शरद की याद भी न के बराबर ही आती थी. वह अवलंब का साया बन गई थी.

2 वर्षों बाद ही उस के जीवन की बगिया में अवलंब के प्यार का एक फूल खिला, अनंत, उस का बेटा. वह अपनेआप को दुनिया की सब से खुशनसीब स्त्री समझने लगी थी. अवलंब का बेशुमार प्यार और अनंत की किलकारियों से वह अपने अतीत के काले अध्याय को भूल चुकी थी, लेकिन नियति उस पर हंस रही थी. तभी तो 2 दिनों के दिमागी बुखार से अवलंब उसे अलविदा कह कर उस के जीवन से बहुत दूर चला गया और अब वह अपने बेटे के साथ अकेली रह गई.

अवलंब के औफिस में ही उसे नौकरी मिल गई. वह अकेली ही चल पड़ी उस डगर पर जो नियति ने उस के लिए चुनी थी. उसे अपने पति के हर उस सपने को पूरा करना था जो उन्होंने अनंत के लिए देखे थे. उसे अनंत का भविष्य संवारना था. उसे आकाश की अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचाना था. अनंत था भी बड़ा ही मेधावी, सदा अव्वल रहने वाला. पीछे पलट कर उस ने कभी देखा ही नहीं और लगातार तरक्की की ओर बढ़ता गया.

सिडनी में अनंत को फैलोशिप मिल गई थी और उस के उज्जवल भविष्य के लिए सुरभि ने बिना नानुकुर किए उसे विदेश भेज दिया, वहां उसे नेहा मिली, जिस से वह विवाह करना चाहता था. और जिस की मंजूरी सुरभि ने फौरन ही दे दी. उस का मन उसे भटका रहा था. यदि वास्तव में नेहा शरद की ही बेटी हुई, तो क्या वह शरद का सामना कर सकेगी? क्यों उस ने यह रिश्ता स्वीकार कर लिया, अब क्या वह अनंत को मना कर दे इस शादी के लिए, लेकिन सबकुछ इतना आसान भी तो नहीं था. अब यदि अनंत ने इनकार का कारण पूछा तब क्या वह अपने ही मुंह से अपने अतीत को बयां कर सकेगी जिस ने उस के जीवन के माने ही बदल दिए थे, शरद की बेटी को क्या वह दिल से स्वीकार कर सकेगी, कहीं ऐसा न हो कि शरद के प्रति उस के प्रतिकार का शिकार वह मासूम बच्ची बने. नहींनहीं, शरद का बदला वह नेहा से कैसे ले सकती थी. वह बेटे का दिल भी तो नहीं तोड़ सकती थी. वरना, वह भी नेहा की नजरों में शरद के समान ही गिर जाएगा.

उस ने अनंत को फोन किया. ‘‘हैलो,’’ दूसरी तरफ से अनंत का स्वर उभरा.

‘‘बेटा, तुम नेहा से वहीं शादी कर के इंडिया आ जाओ. मैं यहां एक ग्रैंड रिसैप्शन दे दूंगी ताकि सभी रिश्तेदारों से बहू का परिचय भी हो जाए और हां, नेहा के मांपापा को विशेष निमंत्रण दे देना.’’

अनंत और नेहा का रिसैप्शन सचमुच बड़ा ही शानदार था. सभी नातेरिश्तेदार व सगेसंबंधी इकट्ठे हुए थे. सुरभि गेट पर सभी का स्वागत कर रही थी. तभी शरद अपनी पत्नी के साथ आता दिखा. उस ने हाथ जोड़ कर दोनों का स्वागत किया. उस के होंठों पर मुसकराहट थी, वह ऐसा प्रदर्शित कर रही थी मानो वह शरद को पहचानती ही नहीं है. लेकिन शरद उसे देख कर अचकचा गया, धीरे से बोला, ‘‘सुरभि, तुम?’’ वह शरद की बात को अनसुना कर के दूसरे मेहमानों की ओर बढ़ चली. खिसियाया हुआ शरद उसे बराबर आतेजाते देख रहा था. लेकिन वह उस से किनारा कर रही थी. शरद को बात करने का वह कोई मौका ही नहीं दे रही थी.

अनंत नेहा के साथ घूमफिर कर सभी मेहमानों से मिल रहा था. सुरभि भी सब से अपनी बहू का परिचय करा रही थी, साथ ही, उस की तारीफों के पुल भी बांधती जा रही थी. सभी मेहमान विदा हो गए. रह गए बस शरद और उस की पत्नी सोमा. अब वह उन की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कहिए, कैसा लगा सारा इंतजाम आप लोगों को? अपनी ओर से तो मैं ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी.’’

‘‘बहुत ही अच्छा प्रबंध था. आप को देख कर ऐसा लगता है कि मेरी बेटी को बहुत ही समझदार सास मिली है. आइए हम लोग गले तो मिल लें,’’ कह कर सोमा उस के गले लग गई.

सुरभि ने कनखियों से शरद को देखा, उस का चेहरा सियाह हो रहा था. शायद उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि सुरभि उसे न पहचानने का बहाना कर रही है, उसे इस बात का तो अंदाजा था कि वह नाराज है किंतु उसे कुछ कहने का मौका तो दे, कहीं ऐसा न हो कि उस की बेवफाई का बदला नेहा से ले, वह इन्हीं विचारों में डूबउतरा रहा था. उन लोगों के रुकने की व्यवस्था सुरभि ने अपने घर के गैस्टरूम में ही की थी.

रात्रि के 2 बज रहे थे. सुरभि की आंखों में नींद नहीं थी. वह अतीत के सागर में गोते लगा रही थी,  क्यों किया शरद ने मेरे साथ ऐसा और इन 25 वर्षों में उस ने एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की, कि मेरा हश्र क्या हुआ, मैं जीवित भी हूं या नहीं. जिस प्रकार समाज में मेरा अपमान हुआ था उस से तो मर जाना ही उचित था. वह तो पापा की सूझबूझ से अवलंब जैसे पति मिले, तो जीवन में फिर एक बार आशा का संचार हुआ. लेकिन शरद की यादें हमेशा ही तो मन में उथलपुथल मचाती रहीं. अपने अतीत को अपने सामने पा कर वह विह्लल हो रही थी. इतना गहरा रिश्ता बन गया है, कैसे निभेगा, अब तो बारबार ही शरद से आमनासामना होगा. तब?

वह बेचैन हो कर अपने घर के लौन में टहल रही थी. तभी, ‘‘सुरभि,’’ शरद ने पीछे से आ कर उसे चौंका दिया. ‘‘आप यहां, इस समय, क्यों आए हैं?’’ वह पलटी, उस का स्वर कठोर था.

‘‘सुरभि, एक बार, बस एक बार मुझे अपना पक्ष साफ करने दो, फिर मैं कभी भी तुम से कुछ भी नहीं कहूंगा. मैं तुम से क्षमा भी नहीं मांगूगा क्योंकि जो मेरी मजबूरी थी उसे मैं अपना अपराध नहीं मानता हूं.’’

‘‘कैसी मजबूरी? कौन सी मजबूरी? मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहती हूं. जो हुआ, अच्छा ही हुआ. आप के इनकार ने मुझे अवलंब जैसा पति दिया जो वास्तव में अवलंब ही थे और इस के लिए मैं आप की आभारी हूं,’’ सुरभि ने अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाए.

‘‘रुको सुरभि, एक बार मेरी बात तो सुन लो, मेरे सीने पर जो ग्लानि का बोझ है वह उतर जाएगा. हमारे रास्ते तो अलग हो ही चुके हैं, एक मौका, बस, एक मौका दे दो,’’ शरद ने सुरभि की राह रोकते हुए कहा.

सुरभि ठिठक कर खड़ी हो गई, ‘‘कहिए, क्या कहना है?’’

‘‘कहां से शुरू करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है,’’ शरद झिझक रहा था.

‘‘देखिए, आप को जो भी कहना हो, जल्दी से कह दीजिए, कोई आ जाएगा तो आप की किरकिरी हो जाएगी,’’ सुरभि ने कदम आगे बढ़ाने का उपक्रम किया.

‘‘हूं, तो सुनो, यहां से जाने के बाद मैं बहुत ही उल्लसित था. स्वप्न में मैं हर रोज तुम्हारे साथ अपना जीवन बिता रहा था. हर ओर मुझे तुम ही तुम नजर आती थीं. मेरे सभी सहयोगी बहुत ही खुश थे. मेरे एमडी मिस्टर अनिल रेड्डी ने भी ढेरों मुबारकबाद दीं. जब विवाह के 15 दिन ही बचे थे, मेरे साथियों ने एक फाइवस्टार होटल में बड़ी ही शानदार पार्टी का आयोजन किया. मिस्टर रेड्डी भी अपनी पत्नी व बेटी सोमा, जो मेरी सहयोगी भी थी, के साथ मेरी पार्टी में शामिल हुए. डिं्रक्स के दौर चल रहे थे. किसी को कुछ भी होश नहीं था.

‘‘डांसफ्लोर पर सभी थिरक रहे थे कि अचानक मैं लड़खड़ा कर गिरने लगा. सोमा, जो उस समय मेरी ही डांस पार्टनर थी, ने मुझे संभाल लिया. नशा गहरा रहा था और उस पर उस के शरीर की मादक सुगंध में मैं खोने लगा. एक पल को मुझे ऐसा लगा जैसे तुम ही मुझे अपनी ओर आमंत्रण दे रही हो. मैं ने सोमा को अपनी बांहों में भर लिया और सामने वाले कमरे में ले कर चला गया.

‘‘सोमा ने भी कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उन्हीं नाजुक पलों में संयम के सारे बांध टूट गए और वो हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम दोनों एकदूसरे की आगोश में लिपटे पड़े थे कि अचानक, ‘‘व्हाट हैव यू डन रास्कल? यू हैव स्पौएल्ड माई डौटर्स लाइफ, नाऊ यू आर सैक्ड फ्रौम योर जौब,’’ चीखते हुए मिस्टर रेड्डी अपनी पुत्री सोमा को एक तरह से घसीटते हुए ले कर चले गए. मैं परेशान भी था और शर्मिंदा भी. यह मैं ने क्या कर दिया. तुम्हें पाने को मैं इतना आतुर था कि सोमा को तुम समझ बैठा और पतन के गर्त में जा गिरा.

दूसरे दिन मिस्टर रेड्डी ने मुझे

दोबारा जौब, इस शर्त पर वापस

की कि मैं सोमा से शादी कर लूं क्योंकि इस घटना का सभी को पता चल चुका था. सोमा के सम्मान का भी सवाल था. बस, मैं मजबूर हो गया और इस प्रकार उस से मुझे विवाह करना ही पड़ा. मैं तुम लोगों को क्या मुंह दिखाता. बस, एक इनकार की सूचना अपने पापा को दे दी. बाद में मिस्टर रेड्डी ने मुझे अपना पार्टनर बना लिया. अब तुम जो भी चाहो, समझो. मैं ने तुम्हें सबकुछ हूबहू बता दिया. हो सके तो क्षमा कर देना.

‘‘नेहा मेरी एकलौती बेटी है, उसे अपनी बेटी ही समझना. मेरा बदला उस से न लेना.’’ इतना कह कर शरद चुप हो गया.

‘‘ठीक है शरद, जो हुआ सो हुआ. नेहा आप की बेटी ही नहीं, मेरी बहू भी है. मेरी कोई बेटी नहीं है, उस ने मेरी यह साध पूरी की है. अब आप अपने कमरे में सोने जाइए. सोमाजी जाग जाएंगी, आप को न पा कर परेशान हो जाएंगी. मैं भूल चुकी हूं कि कभी आप से मिली भी थी और आप भी भूल जाइए,’’ कह कर सुरभि अपने कमरे की ओर मुड़ गई. शरद भी चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया.

इस प्रकार एक बिसरी हुई कहानी का पटाक्षेप हो गया. पर शरद के मन में आज भी अपराधबोध था. सुरभि 25 वर्षों से जिस हलकी आंच पर सुलग रही थी, वह आज बुझ गई. शरद नहीं तो क्या, उस की बेटी तो अब उस ने बहू के रूप में पा ही ली न.

अजंता: आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

लेखक- सुधीर मौर्य

अजंता को इस बात की बिलकुल भी उम्मीद नहीं रही होगी कि शशांक उस के फ्लैट पर आ जाएगा. डोरबैल बजने पर अजंता ने जब दरवाजा खोला तो सामने शशांक खड़ा था. उसे यों वहां आया देख कर अजंता सोच ही रही थी कि वह कैसे रिएक्ट करे तभी शशांक मुसकराते हुए बोला, ‘‘नमस्ते मैम, यहां से गुजर रहा था तो याद आया इस एरिया में आप रहती हैं. बस दिल में खयाल आया कि आप के साथ चाय पी लूं.’’

‘‘बट अभी मैं कल क्लास में देने वाले लैक्चर की तैयारी कर रही हूं, चाय पीने के लिए नहीं आ सकती,’’ अजंता ने शशांक को दरवाजे से लौटा देने की गरज से कहा.

‘‘अरे मैम, इतनी धूप में आप बाहर आ कर चाय पीएं यह तो हम बिलकुल न चाहेंगे. चाय तो हम यहां फ्लैट में बैठ कर पी सकते हैं. चाय मैं बनाऊंगा आप लैक्चर की तैयारी करते रहना और हां एक बात बता दूं हम चाय बहुत अच्छी बनाते हैं,’’ शशांक ने दरवाजे से फ्लैट के अंदर देखने की कोशिश करते हुए कहा मानो वह यह तहकीकात कर रहा हो कि इस वक्त अजंता फ्लैट में अकेली है या कोई और भी वहां है.

शशांक की कही बात का अजंता कोई जवाब न दे सकी. एक पल चुप रहने के बाद वह बिना कुछ कहे फ्लैट के भीतर आ गई. शशांक भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. शशांक ने दरवाजा बंद किया तो उस की आवाज से अजंता ने पलट कर जब उसे देखा तो शशांक ने झट से पूछा, ‘‘मैम, किचन किधर है?’’

‘‘इट्स ओके,’’ अजंता सोफे की ओर इशारा कर के शशांक से बोली, ‘‘तुम वहां बैठो चाय मैं बना कर लाती हूं.’’

‘‘एज यू विश,’’ शशांक ने मुसकरा कर कहा और फिर सोफे पर यों बैठ गया जैसे वह वहां मेहमान न हो, बल्कि यह फ्लैट उसी का हो.

शशांक को वहां बैठा देख कर अजंता किचन में चली गई. शशांक जाती हुई अजंता की लचकती कमर और रोमहीन पिंडलियां देखता रहा. अजंता नौर्मली जब घर पर होती है ढीलाढाला कुरता और हाफ पाजामा पहनती है. यही उस की स्लीपिंग ड्रैस भी है. इस में वह काफी कंफर्ट महसूस करती है.

‘‘मैम, क्या एक गिलास ठंडा पानी मिल सकता है,’’ गैस जला कर अजंता ने चाय बनाने के लिए पानी चढ़ाया ही था कि अपने बेहद करीब शशांक की आवाज सुन कर चौंक पड़ी. हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा हाथ से गिरतेगिरते बचा.

अपनी आवाज से अजंता को यों चौंकते देख कर शशांक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैम, बाहर बहुत धूप है… प्यास से गला सूख गया है.’’

अजंता ने हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा एक ओर रख फ्रिज से पानी की बोतल निकाल शशांक को पकड़ा दी. हाथ में पानी की बोतल लिए शशांक ने खुद गिलास लिया. गिलास लेते समय शशांक का जिस्म अजंता के जिस्म से तनिक छू गया. अजंता ने इस टच पर कोई रिएक्शन नहीं दिया. गिलास में पानी डाल कर पीने के बाद शशांक ने कहा, ‘‘मां कहती हैं कि पानी हमेशा गिलास से पीना चाहिए, सीधे बोतल से कभी नहीं.’’

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तुम्हारी मां यह नहीं कहतीं कि एक अकेली लड़की से मिलने उस के घर नहीं जाना चाहिए, अजंता यह कहने ही वाली थी कि उस से पहले ही शशांक ड्राइंगरूम में चला गया. चाय पीते हुए शशांक ने अजंता से ढेरों बातें करने की कोशिश की, लेकिन अजंता उन के जवाब में सिर्फ हां, हूं, नहीं आदि बोल उसे इग्नोर करने का प्रयास करती रही. चाय खत्म होने के बाद शशांक को टालने की गरज से अजंता ने कुछ पेपर उठा लिए और उन्हें मन ही मन पढ़ने का बहाना करने लगी. अजंता को यों अपनेआप में बिजी देख सोफे पर से उठते हुए शशांक ने कहा, ‘‘तो फिर मैं चलता हूं मैम.’’

‘‘हांहां ठीक है. तुम्हें ऐग्जाम की तैयारी भी करनी होगी,’’ कह वह सोच में पड़ गई कि छुट्टी का दिन है और उस से मिलने के लिए प्रशांत कभी भी आ सकता है. एक लड़के को मेरे फ्लैट में देख कर न जाने वह कौन सा सवाल कर बैठे. अजंता खुद चाहती थी कि शशांक जल्दी से जल्दी वहां से चला जाए. इसीलिए उस ने शशांक से पढ़ने की बात कह कर उसे जाने को कहा था पर उसे क्या पता था कि उस की कही बात उस के गले पड़ जाएगी.

‘‘मैम वह सच तो यह है कि मैं इसीलिए यहां आप के पास आया था कि आप से स्टडी में कुछ हैल्प ले सकूं,’’ सोफे पर वापस बैठते हुए शशांक बोला, ‘‘मैम, आप करेंगी न मेरी मदद?’’

‘‘हांहां ठीक है, पर आज नहीं. अभी तुम जाओ. मुझे अभी अपने लैक्चर की तैयारी करनी है,’’ कहतेकहते अजंता की बात में रिक्वैस्ट का पुट आ गया था.

अजंता को रिक्वैस्ट के अंदाज में बोलते देख शशांक को अच्छा लगा और फिर सोफे से उठ कर एहसान करने वाले अंदाज में बोला, ‘‘ओके मैम, आप कह रही हैं तो हम चले जाते हैं पर आप अपना वादा याद रखना.’’

‘‘कैसा वादा?’’ अजंता ने घबराते हुए पूछा.

‘यही कि आप स्टडी में मेरी हैल्प करेंगी,’ शशांक ने हंस कर कहा और फिर दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

अजंता दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि शशांक पलट कर बोल पड़ा, ‘‘मैम, आप के पैर बहुत खूबसूरत हैं. जी करता है इन्हें देखता ही रहूं. क्या मेरे लिए आप किसी ओपन लैग्स वाली ड्रैस में आ सकती हैं?’’

शशांक की इस बेहूदा बात पर अजंता चुप रह गई. शशांक ने एक गहरी नजर अजंता की रोमहीन चमकती पिंडलियों पर डाली और फिर मुसकराते हुए चला गया. उस के जाते ही अजंता ने झट से दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ली.

अजंता 23-24 साल की बेहद खूबसूरत युवती थी. इतनी खूबसूरत कि उस के चेहरे को देख कर दुनिया की सब से हसीन लड़की भी शरमा जाए, उस के जिस्म के रंग के आगे सोने का रंग मटमैला लगे. कंधे तक बिखरी जुल्फों का जलवा ऐसा मानो वह जुल्फियां नाम की मुहब्बत की कोई अदीब हो. उस के उन्नत उरोज, पतली कमर, भरेभरे नितंब और मस्तानी चाल यकीनन अजंता की खूबसूरती बेमिसाल थी और आज शशांक के कमैंट ने उसे यह भी बता दिया था कि उस की पिंडलियां भी किसी को आकर्षित कर सकने का दम रखती हैं.

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अजंता न सिर्फ जिस्मानी रूप से बेहद खूबसूरत थी, बल्कि बहुत ही कुशाग्रबुद्धि भी थी. बैंगलुरु के एक मशहूर इंजीनियरिंग कालेज से उस ने मैकैनिकल इंजीनियरिंग में बीटैक की डिग्री ली थी और लखनऊ के एक पौलिटैक्निक कालेज में अस्थाई रूप से जौब कर रही थी. रहने वाली कानुपर की थी. लखनऊ के इंदिरानगर में किराए के फ्लैट में रहती थी.

प्रशांत, अजंता के पापा के दोस्त का लड़का है. उस के पापा राजनीति में हैं, विधायक रह चुके हैं. अब प्रशांत उन का उत्तराधिकार संभाल रहा है. अजंता की उस के साथ इंगेजमैंट हो चुकी है. प्रशांत की मदद से उसे एक अच्छा फ्लैट किराए पर मिल गया था. प्रशांत की फैमिली लखनऊ में रहती थी, इसलिए अजंता के लखनऊ में अकेले रहने से उस की फैमिली उस की तरफ से बेफिक्र थी.

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अजंता के और प्रशांत के पापा आपस में दोस्त थे. अत: अजंता और प्रशांत भी एकदूसरे को बचपन से जानते थे. हालांकि दोनों के परिवार अलगअलग शहरों में रहते थे फिर भी साल में 1-2 बार जब भी एकदूसरे के शहर जाते तो मुलाकात हो जाती थी. वैसे भी कानपुर और लखनऊ शहर के बीच की दूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है.

अजंता और प्रशांत की शादी का फैसला जब उन के मां और पिता ने लिया तो प्रशांत और अजंता ने कोई ऐतराज नहीं जताया. अजंता जैसी बेहद सुंदर और उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की से तो कोई भी लड़का शादी करने को उतावला हो सकता था, इसलिए प्रशांत ने फौरन हामी भर दी. अजंता ने प्रशांत से शादी करने के लिए अपनी सहमति देने में 1 दिन का वक्त लिया था. शादी के लिए सहमति देने के लिए अजंता ने जो समय लिया उसे दोनों परिवारों ने लड़की सुलभ लज्जा समझा.

अजंता द्वारा लिए गए समय को भले ही दोनों परिवारों ने उस की लज्जा समझा हो पर अजंता सच में शादी जैसे मुद्दे पर सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहती थी. अजंता का यह वक्त लेना लाजिम भी था. भले ही अजंता प्रशांत को बचपन से जानती हो पर उस के मन में कभी प्रशांत के लिए प्यार जैसी किसी भावना ने अंगड़ाई नहीं ली थी.

प्रशांत क्लोज फ्रैंड भी नहीं था. मतलब वह प्रशांत से अपनी निजी बातें शेयर करने में कंफर्ट फील नहीं करती थी न ही उस ने कभी प्रशांत से अंतरंग बातें की थीं. हालांकि जब से उन की इंगेजमैंट हुई थी तब से प्रशांत उस से कभीकभी अंतरंग बातें करता था, जिन का अजंता इस अंदाज में जवाब देती थी जैसे वह इस तरह की बातें करने में ईजी फील नहीं कर रही हो.

प्रशांत न सिर्फ एक नेता का बेटा था, बल्कि खुद भी युवा नेता था, बावजूद इस के उस में कोई खास बुरी आदतें नहीं थीं. कभीकभार किसी फंक्शन के अलावा प्रशांत ड्रिंक भी नहीं लेता था न ही लड़कियों के पीछे भागने वाला लड़का था.

हालांकि कुछ लड़कियां प्रशांत की दोस्त रही थीं. 1-2 लड़कियों से उस के अफेयर के चर्चे भी रहे थे, पर अजंता ने इसे एक सामान्य बात के तौर पर लिया. आजकल के जमाने में लड़कों और लड़कियों का अफेयर होना सामान्य सी बात हो गई है.

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अजंता खुद एक बार एक लड़के के प्रति आकर्षित हुई थी. जब वह बैंगलुरु में बीटैक फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रही थी तो फाइनल ईयर के स्टूडैंट राजीव की ओर आकर्षित हो गई थी. राजीव हैंडसम और खुशमिजाज लड़का था. वह कानपुर का रहने वाला था. शायद इसीलिए अजंता जल्द ही उस के ओर आकर्षित हो गई. जल्दी ही दोनों दोस्त बन गए और फिर क्लोज फ्रैंड.

अजंता उस समय समझ नहीं पाती थी कि वह सिर्फ राजीव की ओर आकर्षित भर है या फिर उसे प्यार करने लगी है. राजीव लास्ट ईयर का स्टूडैंट था. कालेज कैंपस से उसे एक बड़ी कंपनी में जौब मिल गई और वह ऐग्जाम देते ही दिल्ली चला गया.

कुछ दिनों तक तो राजीव को अजंता ने याद किया और फिर धीरेधीरे उस की स्मृतियां दिल के किसी कोने में खो गईं. राजीव ने भी कभी अजंता को कौंटैक्ट नहीं किया. अब अजंता को समझ में आ गया कि वह राजीव की ओर सिर्फ आकर्षित भर थी, उसे उस से प्यार नहीं हुआ था.

अजंता की जिंदगी में कोई लड़का नहीं था. उस की उम्र भी 23-24 साल की हो रही थी. प्रशांत में कोई कमी भी नहीं थी, इसलिए एक दिन सोचने के बाद उस ने प्रशांत से शादी करने की स्वीकृति दे दी. अजंता के स्वीकृति देते ही दोनों परिवारों ने दोनों की मंगनी कर दी.

अब अजंता अपनी जौब के सिलसिले में लखनऊ में रहती थी, इसलिए प्रशांत और वह एकदूसरे से अकसर मिल लेते थे. हालांकि अजंता कई बार प्रशांत से तनहाई में मिली थी पर अब तक उस ने शारीरिक संबंध नहीं बनाया था. ऐसा नहीं कि प्रशांत ने शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास न किया हो पर अजंता ‘प्लीज ये सब शादी के बाद’ कह कर मना करती आई.

अजंता के मना करने के बाद प्रशांत भी उसे ज्यादा फोर्स नहीं करता था. भले ही अजंता और प्रशांत के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने थे पर उन दोनों ने एकदूसरे के शरीर को छुआ था, एकदूसरे को किस किया था. वे लड़केलड़की जिन की इंगेजमैंट हो चुकी हो उन के बीच ऐसा होना लाजिम भी है. अजंता को प्रशांत ने कई बार अपने सीने में भी भींचा था, उस का चुंबन लिया था पर न जाने क्यों अजंता को ये सब सतरंगी दुनिया में नहीं ले जा पाते.

करीब 20 साल का शशांक कोई बहुत कुशाग्रबुद्धि का नहीं था. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद उस ने बीटैक में एडमिशन के लिए कोचिंग ली पर 2 साल तैयारी करने के बाद उसे किसी भी कालेज में दाखिला नहीं मिला. शशांक अपनी क्षमताओं को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उस ने दूसरे साल पौलिटैक्निक का भी ऐंट्रैंस ऐग्जाम दिया और उसे राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ में मैकैनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया.

कालेज में पढ़ाई से ज्यादा शशांक अन्य ऐक्टिविटीज में ज्यादा दिलचस्पी लेता. खेलकूद में आगे रहता. हमेशा अलमस्त रहने वाला शशांक न जाने क्यों पहले दिन से ही अजंता पर कुछ न कुछ कमैंट करता. अजंता ऐलिमैंट औफ मैकैनिकल इंजीनियरिंग जैसे सब्जैक्ट पढ़ाती थी. इन विषयों से संबंधित सवालों के जवाब शशांक भलीभांति नहीं दे पाता पर वह अजंता से बड़ी डेयरिंग से अन्य बातें कर लेता.

शशांक की कुछ बातें तो ऐसी होतीं कि जिन्हें सुन कर कोई भी लड़की भड़क जाए. बातें अजंता को भी अच्छी नहीं लगतीं पर वह न जाने क्यों वह कभी शशांक पर भड़की नहीं न ही उस की कालेज मैनेजमैंट से कोई शिकायत की. यहां तक कि जब शशांक एक दिन बातों ही बातों में उस के उरोजों और नितंबों की तारीफ कर बैठा तब भी उस ने कोई शिकायत नहीं की पर यह बात सुन कर उस ने रिएक्ट जरूर ऐसे किया जैसे उसे यह बात बेहद नागवार गुजरी हो.

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शशांक ने जब एक दिन हंस कर शादी के लिए प्रपोज किया तब भी उस ने ऐसे ही रिएक्ट किया पर उस रात जब उस की आंख अचानक खुल गई तो शशांक की कही बात सुन कर वह मन ही मन मुसकरा पड़ी.

न जाने क्या था शशांक की आंखों और उस की बातों में कि अजंता ने अपने से करीब 3-4 साल छोटे अपने स्टूडैंट की उन बातों को, जिन्हें लोग अश्लील कहते हैं, पुरजोर विरोध नहीं किया. कभीकभी तो जब अजंता तनहाई में होती तो शशांक उस के खयालों में आ जाता और कोई न कोई ऐसी बात कहता जिसे सुन कर अजंता बाहर से तो गुस्सा दिखाती पर मन में एक गुदगुदी सी महसूस करती.

उस दिन जब शशांक डेयरिंग करते हुए अजंता से मिलने उस के फ्लैट पर आ गया तो अजंता उस के जाने तक सिर्फ यही सोचती रही कि कहीं उसे अकेली देख वह उस के साथ गलत हरकत न करे दे. पर शशांक ने ऐसा कुछ नहीं किया. हालांकि उस ने 1-2 अशिष्ट बातें जरूर कीं. शशांक के जाने के बाद अजंता दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ले ही रही थी कि वापस डोरबैल बज उठी.

अजंता ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला तो समाने प्रशांत खड़ा था. बोली, ‘‘आइए, भीतर आ जाइए.’’

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लेखक- सुधीर मौर्य

भले ही अजंता के दिल में अब भी प्रशांत के लिए मुहब्बत के जज्बात न जगे हों पर वह उस का होने वाला पति था, इसलिए उस का मुसकरा कर स्वागत करना लाजिम था. भीतर आ कर प्रशांत उसी सोफे पर बैठ गया जहां कुछ देर पहले शशांक बैठा था. प्रशांत के लिए फ्रिज से पानी निकालते हुए अजंता सोच में पड़ गई कि अगर प्रशांत कुछ देर पहले आ जाता और शशांक के बारे में पूछता तो वह क्या जवाब देती.

‘‘बाहर तो काफी धूप है?’’ अजंता ने पानी देते हुए प्रशांत से जानना चाहा.

पानी पीते हुए प्रशांत ने अजंता को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर गिलास उस के हाथ में देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें मना किया था न ये शौर्ट कपड़े पहनने के लिए.’’

‘‘ओह हां, बट घर में पहनने को तो मना नहीं किया था,’’ अजंता ने कहा और फिर बात बदलने की गरज से झट से बोली, ‘‘आप चाय लेंगे या कौफी?’’

‘‘चाय,’’ प्रशांत सोफे पर पसर और्डर देने के अंदाज में बोला. अजंता किचन की ओर जाने लगी तो प्रशांत ने कहा, ‘‘अजंता मैं चाहता हूं तुम इस तरह के कपड़े घर पर भी मत पहनो.’’

‘‘अरे, घर में इस ड्रैसिंग में क्या प्रौब्लम है और फिर आजकल यह नौर्मल ड्रैसिंग है. ज्यादातर लड़कियां पहनना पसंद करती हैं,’’ चाय बनाने जा रही अजंता ने रुक कर प्रशांत की बात का जवाब दिया.

‘‘नौर्मल ड्रैसिंग है, लड़कियां पसंद करती हैं इस का मतलब यह नहीं कि तुम भी पहनोगी?’’ प्रशांत के स्वर में थोड़ी सख्ती थी.

‘‘अरे, इस तरह की ड्रैसिंग में मैं कंफर्ट फील करती हूं और मुझे भी पसंद है ये सब पहनना,’’ अजंता ने अपनी बात रखी.

‘‘पर मुझे पसंद नहीं अजंता… तुम नहीं पहनोगी आज के बाद यह ड्रैस, अब जाओ चाय बना कर लाओ,’’ और्डर देने वाले अंदाज में प्रशांत के स्वर में सख्ती और बढ़ गई थी.

‘‘तुम्हारी पसंद… क्या मेरी कोई पसंद नहीं?’’ प्रशांत की सख्त बात सुन कर अजंता की आवाज भी थोड़ी तेज हो गई.

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अजंता की तेज आवाज ने प्रशांत के गुस्से को बढ़ा दिया. वह चिल्लाते हुए बोला, ‘‘मैं ने जो कह दिया वह कह दिया और तुम इतने भी मैनर नहीं जानती कि जब पति बाहर से थक कर आता है तो पत्नी उस के साथ बहस नहीं करती.’’

अजंता स्वभाव से सीधीसादी थी. वह समझती थी पति से तालमेल बैठाने के लिए उसे अपनी कुछ इच्छाएं कुरबान करनी ही पडे़ंगी. मगर आज जो प्रशांत कह रहा था वह उसे बुरा लगा. वह पढ़ीलिखी सैल्फ डिपैंडैंट लड़की थी. अत: प्रशांत की बात का विरोध करते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, यह तो कोई बात नहीं कि मैं आप की बैसिरपैर की बात मानूं… मुझे इस ड्रैसिंग में कोई दिक्कत नजर नहीं आती और हां आप मेरे होने वाले पति हैं, पति नहीं.’’

अजंता की बात सुन प्रशांत का गुस्सा 7वें आसमान पर जा पहुंचा. लगभग दहाड़ते हुए बोला, ‘‘अजंता, मेरे घर में आने के बाद ये सब नहीं चलेगा. तुम्हें मेरे अनुसार खुद को ढालना ही पड़ेगा. वरना…’’ प्रशांत ने अजंता को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया पर फिर रुक गया.

प्रशांत का यह रूप अंजता के लिए एकदम नया था. कुछ देर वह हैरानी खड़ी रही, फिर बोली, ‘‘वरनावरना क्या करोगे… मुझे पीटोगे?’’

प्रशांत को लगा उस से गलती हो गई है. अत: अपनी आवाज को ठंडा करते हुए बोला, ‘‘सौरी अजंता वह बाहर धूप है शायद उस की वजह से मेरे सिर में पागलपन भर गया था… मैं गुस्से में बोल गया. चलो अब तो अपने नर्मनर्म हाथों से चाय बना कर लाओ डियर.’’

‘‘धूप से घर आने वाले व्यक्ति को क्या इस बात का सर्टिफिकेट मिल जाता है कि वह अपनी पत्नी को डांटे, उसे पीटे?’’ अजंता की बात में भी अब गुस्सा था.

प्रशांत कुछ देर अजंता को देखता रहा. फिर मन ही मन कुछ सोच कर बोला, ‘‘अच्छा ठीक है जो मेरी होने वाली बीवी मेरी थकान उतारने के लिए मुझे अपने कोमल हाथों से बना कर चाय नहीं पिला सकती तो मैं अपनी प्यारी खूबसूरत पत्नी का गुस्सा उतारने के लिए उसे चाय बना कर पिलाता हूं,’’ कह कर प्रशांत किचन की ओर बढ़ गया.

वह भले ही उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की थी पर थी तो फीमेल, नौर्मल फीमेल, अचानक उस के मन में खयाल जागा कि कहीं सही में बाहर की धूप और थकान की वजह से प्रशांत ने गुस्से में तो उस पर हाथ उठाना नहीं चाहा… केवल हाथ ही तो उठाया, मारा तो नहीं… और अब

वह जब गुस्से में है तो उसे मनाने के लिए खुद किचन में चाय बनाने गया है… उस की खुद भी तो गलती है जब प्रशांत ने उस से कहा था वह थक कर आया है उसे 1 कप चाय बना के पिला दो तो वह क्यों उस से बहस करने लगी?

ये सब सोचते हुए अजंता किचन में आ गई. प्रशांत हाथ में लाइटर ले कर गैस जलाने जा रहा था.

‘‘आप चल कर पंखे में बैठिए मैं चाय बना लाती हूं,’’ अजंता प्रशांत से लाइटर लेने की कोशश करते हुए बोली.

‘‘नहीं अब तो मैं ही चाय बनाऊंगा,’’

प्रशांत ने अजंता का हाथ हटा कर गैस जलाने की कोशिश की. अजंता ने फिर लाइटर लेने की कोशिश की. पर प्रशांत ने फिर मना किया. अजंता ने गैस जला रहे प्रशांत का हाथ पकड़ लिया. प्रशांत ने अजंता का हाथ छुड़ाने की कोशिश की. इस छीनाझपटी में अजंता फिसल कर प्रशांत की बांहों में गिर गई. प्रशांत ने उसे बांहों में भर लिया.

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‘‘छोडि़ए चाय बनाने दीजिए,’’ अजंता कसमसाई.

‘‘नहीं अब तो तुम्हारे होंठों को पीने के बाद ही चाय पी जाएगी,’’ कह प्रशांत ने अजंता के होंठों पर होंठ रख दिए. एक लंबे किस ने अजंता को निढाल कर दिया. इतना निढाल कि प्रशांत ने बिना किसी विरोध के उसे ला कर बिस्तर पर लिटा दिया.

कुछ देर बाद जब प्रशांत ने अजंता की कमर से पाजामा खिसकाने की कोशिश की तो अजंता ने विरोध करते हुए कहा, ‘‘नहीं प्रशांत ये सब शादी के बाद.’’

प्रशांत अजंता की बात सुन कर कुछ देर इस अवस्था में रहा जैसे खुद को संयत करने की कोशिश कर रहा हो और फिर अजंता के ऊपर से उठते हुए बोला, ‘‘ओके डियर ऐज यू विश.’’

अजंता ने उठ कर अपने कपड़े सही किए और फिर चाय बनाने के लिए किचन में आ गई.

‘‘जानती हो अजंता तुम्हारी इसी अदा का

तो मैं दीवाना हूं,’’ प्रशांत ने किचन में आ कर कहा.

‘‘कौन सी?’’ अजंता ने बरतन में पानी डाल कर गैस पर चढ़ाते हुए पूछा.

‘‘यही कि ये सब शादी के बाद,’’ प्रशांत ने मुसकरा कर कहा.

प्रशांत की इस बात पर अजंता भी मुसकरा कर रह गई.

‘‘मैं भी यही चाहता हूं कि मैं तुम्हारे

जिस्म को अपनी सुहागरात में पाऊं,’’

प्रशांत ने अजंता के पीछे आ कर उस के गले में बांहें डाल कर कहा.

अजंता कुछ नहीं बोली. उबलते पानी में चायपत्ती और शक्कर डालती रही.

‘‘हर व्यक्ति अपने मन में यह अरमान पालता है,’’ प्रशांत अपनी उंगलियों से अजंता के गालों को धीरेधीरे सहलाते हुए बोला.

‘‘कैसा अरमान?’’ अजंता ने पूछा.

‘‘यही कि उस की बीवी वर्जिन हो और सुहागरात को अपनी वर्जिनिटी अपने पति को तोहफे में दे.’’

कह कर प्रशांत प्लेट से बिस्कुट उठा कर खाने लगा.

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को धक्का लगा कि और अगर लड़की ने शादी से पहले अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो और फिर प्रशांत पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘अगर लड़की वर्जिन न हो एक इंसान कैसे उसे प्यार कर सकता है. तुम्हीं बताओ अजंता, कोई व्यक्ति किसी ऐसी लड़की के साथ पूरी जिंदगी कैसे रह पाएगा जिस ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो?

क्या उस का दिल ऐसी लड़की को कभी कबूल कर पाएगा? और सोचो तब क्या होगा जब किसी दिन वह इंसान सामने आ जाए जो उस लड़की का प्रेमी रहा हो. बोलो अजंता उस व्यक्ति पर यह सोच कर क्या गुजरेगी कि यही वह आदमी है जिस की वजह से उस की बीवी ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी खो दी. ऐसी लड़की से शादी के बाद तो जिंदगी नर्क बन जाएगी, नर्क.’’

प्रशांत बोले जा रहा था, अजंता पत्थर की मूर्त बने सुनते जा रही थी. चाय उबल कर नीचे फैलती जा रही थी…

आगे पढ़ें- अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन…

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तुम्हारे बिना देर शाम औफिस से लौट कर, घर आना और फिर अपने ही हाथों से अपार्टमैंट का ताला खोलना, वही ड्राइंगरूम, वही बैडरूम वही बालकनी, वही किचन सबकुछ तो वही है, मगर एक तुम्हारे बिना सबकुछ वैसा ही क्यों नहीं लगता? बेशकीमती कालीन, सुंदर परदे, रंगीन चादर, चमकते झालर, सुनहरा टीवी स्क्रीन, सुंदर हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ सुंदर क्यों नहीं लगता? क्षितिज तक फैला नीला सागर, उस पर उठती ऊंचीऊंची लहरें, सुनहरा रेत, ढलती शाम, सबकुछ सुहाना हो कर भी तुम्हारे बिना सुहाना क्यों नहीं लगता? पर्वत की चोटियों पर झूमती काली घटाएं पहाड़ों से आती सरसराती ठंडी हवाएं, स्वर्ग सा सुंदर, पहाड़ों का दामन, हसीन वादियां, खूबसूरत नजारे बहुत खूबसूरत हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ खूबसूरत क्यों नहीं लगता?

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी अजंता को प्रशांत की असलियत का पता चलता जा रहा था. एक दिन तो प्रशांत ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं…

अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे उस की जिंदगी में जद्दोजहद बढ़ती जा रही थी. शशांक की बेबाकियां बदस्तूर जारी थीं और अजंता ने न जाने क्यों कभी उस की बेबाकियों पर कोई प्रतिबंध लगाने की कोशिश नहीं की. शशांक, स्टूडैंट और टीचर के रिश्ते से हट कर अपने से करीब 3-4 साल बड़ी अपनी टीचर अजंता से प्रेमीप्रेमिका का संबंध बनाना चाहता था. अजंता का भी दिल कभी कहता कि अजंता यह शशांक तुझे बहुत प्यार करेगा, यही लड़का है जो तेरी इच्छाओं का सम्मान कर के तेरी जिंदगी में मुहब्बत के फूल खिलाएगा. पर अगले ही पल उस के दिमाग पर प्रशांत छा जाता. प्रशांत यद्यपि गाहेबगाहे अजंता के ऊपर अपनी इच्छाएं लादने का प्रयास करता पर जब कभी अजंता इस का विरोध करती तो वह अपनी गलती मान कर अजंता को खुश करने के लिए कुछ भी करता.

सच कहें तो अजंता की जिंदगी शशांक और प्रशांत के बीच उलझ रही थी. कभीकभी उस का दिल कह उठता कि अजंता ये लड़के शशांक और प्रशांत दोनों ही तेरे लायक नहीं. तू हिम्मत कर के इन दोनों को अपनी जिंदगी से बाहर कर दे. पर अजंता जानती थी वह इतनी सख्त दिल की नहीं. इसलिए न ही वह शशांक को कुछ कह पाती और प्रशांत तो उस के परिवार की पसंद था. इसलिए उसे मना करने वाला जिगर, बेहद कोशिश करने के बाद भी अजंता अपने भीतर कहीं भी ढूंढ़ नहीं पाती.

ऊपर से अजंता का अतीत कभीकभी उस के सामने किसी डरवाने सपने की तरह आ कर खड़ा हो जाता. राजीव, हां जो कभी प्रशांत से शादी करने के बाद किसी दिन उस के सामने आ गया और प्रशांत को पता लग गया कि इस व्यक्ति के साथ उस की पत्नी के अंतरंग संबंध रहे हैं. उस की पत्नी वर्जिन नहीं है तो क्या कयामत टूटेगी… अजंता और प्रशांत दोनों की जिंदगी नर्क बन जाएगी.

अजंता ने शशांक और प्रशांत से दूर होने की कोशिश भी की. वह जब प्रशांत से मिलने जाती तो वे कपड़े पहनती जो शशांक को पसंद होते और जब उसे लगता आज उसे शशांक मिल सकता है तो प्रशांत की पसंद के कपड़े पहनती.

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अजंता को ऐसी ड्रैस में देख कर प्रशांत का मूड खराब हो जाता. वह अजंता को शौर्ट कपड़ों में देख कर डांटने के अदांज में अच्छाखासा लैक्चर झाड़ता और आगे से ऐसे कपड़े न पहनने की हिदायत भी देता और शशांक वह अजंता को सलवारसूट आदि में देख कर कहता कि मैम बहुत खूबसूरत लग रही हो पर अगर आज आप ने स्कर्ट पहनी होती तो और खूबसूरत लगतीं.

शशांक की इन्हीं बातों ने अजंता को अपनी ओर थोड़ाबहुत खींचा भी था. उस की इच्छाओं का सम्मान करने वाला शशांक अजंता के दिल में जगह बनाने लगा. पर प्रशांत उस का मंगेतर था. कुछ समय बाद उन की शादी होने वाली थी. दोनों परिवार वालों के सारे जानने वाले और रिश्तेदारों को इस होने वाली शादी की खबर थी. अगर यह शादी टूटी तो कितनी बदनामी होगी, कितनी बातें उठेंगी.

शशांक की ओर बढ़ते अपने कदम तथा अपनी ओर बढ़ते शशांक के कदमों को रोकने के लिए अजंता ने एक दिन शशांक को प्रशांत के बारे में बता दिया. वह उस की मंगेतर है और जल्द ही उन की शादी होने वाली है. सुन कर शशांक के चेहरे पर कुछ देर के लिए उदासी छा गई पर फिर तुरंत ही खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘मैम, किसी कवि ने कहा है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’’

शशांक के चेहरे पर आई उदासी से उदास हुई अजंता ने उस की हंसी देख कर रिलैक्स होते हुए पूछा,‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह मैम कि हम तो तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक आप मेरे इश्क में गिरफ्तार नहीं हो जातीं.’’

‘‘नो चांस,’’ अजंता के यह कहने पर शशांक ने तपाक से कहा, ‘‘मैम, अगर इश्क में आप के गिरफ्तार होने के कोई चांस नहीं तो मुझे ही अपने इश्क में गिरफ्तार कर लीजिए.’’

शशांक की बात सुन कर न चाहते हुए भी अजंता हंस पड़ी और फिर उस ने महसूस किया कि उस का दिल शशांक की ओर थोड़ा और खिंच गया.

आगे के दिनों में अजंता की जिंदगी में 2 घटनाएं ऐसी घटीं जिन्होंने उस की सोच की धारा को बदलने में अहम रोल अदा किया.

पहली घटना…

फाइनल ऐग्जाम से पहले राजकीय पौलिटैक्निक लखनऊ में ऐनुअल स्पोर्ट्स गेम होते थे. पूरे प्रदेश के पौलिटैक्निक के लड़केलड़कियां जिन की खेल में रुचि होती इस इवेंट में हिस्सा लेते. हर कालेज अपने चुने स्टूडैंट्स का एक दल ले कर लखनऊ आता. उन के रहने एवं खेल को सुचारु रूप से संपन्न करवाने के लिए कालेज स्टाफ की सहायता राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ के सीनियर स्टूडैंट्स करते. उन्हें वालेंटियर का एक पास इशू किया जाता.

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उस पास से स्टूडैंट्स किसी भी कैंप में आजा सकते थे. जूनियर लड़कों को कालेज के इतिहास में कभी वालेंटियर का पास इशू नहीं किया गया था. अजंता भी स्पोर्ट्सपर्सन थी, इसलिए वह इस इवेंट में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अजंता उस समय यह देख कर चौंक पड़ी जब उस ने शशांक को वालेंटियर का पास अपने सीने पर लगाए झांसी से आए गु्रप को हैंडल करते देखा.

‘‘मैम, हर शहर से बहुत प्यारीप्यारी लड़कियां आई हैं खेलने के लिए पर उन में कोई भी आप सी प्यारी नहीं,’’ शशांक ने अजंता के पास से गुजरते हुए जब यह कहा तो उस के मन ने सोचा काश वह आज शशांक की टीचर न हो कर स्टूडैंट होती तो शायद शशांक की बात का पौजिटिव रिप्लाई देती.

बाद में जब अजंता ने शशांक से पूछा कि उसे यह पास कैसे मिल गया तो उस ने अलमस्त अंदाजा में कहा, ‘‘बड़ी सरलता से, वार्डन के घर पर उस की पसंदीदा चीज के साथ गया और यह पास ले आया.’’

यद्यपि शशांक का यह काम गलत था, पर अजंता को यह अच्छा लगा. सच तो यह था कि शशांक अब उसे अच्छा लगने लगा था.

हालांकि अजंता को वार्डन की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. पहले उस ने सोचा कि इस प्रकरण की शिकायत प्रधानाचार्य से करे, पर इस से शशांक का पास छिन जाने का डर था, इसलिए अजंता चुप रह गई. यह इस बात का प्रमाण था कि वह शशांक की ओर आकर्षित हो चुकी है.

खेल समाप्त हो चुके थे. अगले दिन रंगारंग कार्यक्रम के बाद पार्टिसिपेट करने आए स्टूडैंट्स को अपनेअपने शहर लौट जाना था. पूरे कालेज कैंपस में खुशी का माहौल था. पर अचानक इसी खुशी के माहौल में एक घिनौनी हरकत ने कुहराम मचा दिया.

झांसी से आई स्टूडैंट पूजा जिस ने 100 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था, वह फटे कपड़ों एवं खरोंची गई देह के साथ रोबिलख रही थी. वह शायद शौपिंग के लिए मार्केट गई थी. आते समय तक रात हो चुकी थी. उस के साथ 2 और लड़कियां थीं. कालेज के पिछले गेट पर औटो से उतर कर पूजा औटो वाले को पैसे देने लगी. उस की दोनों सहेलियां कालेज कैंपस की ओर बढ़ गईं. कालेज के पिछले गेट वाले रास्ते पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी कम थी.

पूजा जब पैसे दे कर कालेज के अंदर आई तब तक उस की सहेलियां आगे निकल गई थीं. तभी अचानक किसी ने पूजा को दबोच लिया. उस ने चीखने की कोशिश की तो तुरंत मुंह को मजबूत हाथों ने चुप कर दिया. पूजा की अस्मत लूटने से पहले लोगों ने उसे नहीं छोड़ा. वे 2 थे. जब पूजा इस हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कैंपस में पहुंची तो उस की यह हालत देख कर वहां कुहराम मच गया. अजंता भी वहां पहुंच गई. सभी पूजा को सांत्वना दे रहे थे.

कुछ आवाजें उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हुआ उसे दबा दिया जाए अन्यथा इस से पूजा के ही भविष्य पर असर पड़ेगा. पर एक आवाज थी जिस ने पूजा से कहा कि उठे और अभी पुलिस स्टेशन चले. उसे अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ पूरी ताकत लगा कर लड़ना चाहिए. यह आवाज शशांक की थी.

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‘‘यह लड़का क्या बकवास कर रहा है?’’ अजंता ने पहचानी हुई आवाज की ओर देखा तो प्रशांत खड़ा था.

‘‘आप यहां?’’

‘‘हां, तुम्हारे फ्लैट पर गया तो बंद था,’’ अजंता के सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत ने कहा, ‘‘मुझे लगा कालेज में चल रहे इवेंट की वजह से तुम शायद अब तक कालेज में होगी, सो यहां चला आया. यहां देखा तो यह कांड हुआ है. जरूर इस लड़की ने जो यह शौर्ट स्कर्ट पहनी हुई है वह इस की इस हालत की जिम्मेदार है.’’

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लेखक- सुधीर मौर्य

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को तेज धक्का लगा. अजंता कुछ कह पाती उस से पहले ही प्रशांत फिर बोल उठा, ‘‘और यह लड़का क्या उलटी बात कर रहा है. अरे जो हुआ सो हुआ. अब इस लड़की की इज्जत इसी में है कि चुप रहे.’’

‘‘और इस के साथ जो अपराध हुआ उस का क्या और अपराधियों को क्या खुला छोड़ दिया जाए?’’

‘‘अरे नेता तुम हो या मैं, यह क्या नेताओं सी बातें कर रही हो,’’ प्रशांत का लहजा तल्ख हो गया.

‘‘अरे हां याद आया, आप तो नेता हैं, तो क्या आप इस पीडि़त लड़की को न्याय दिलाने में मदद नहीं करेंगे?’’ अजंता ने भी तल्ख लहजे में पूछा.

‘‘देखो अजंता, मैं आज की शाम तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, इस के लिए तुम्हें ढूंढ़ता हुआ यहां तक आया. चलो कहीं बैठ कर डिनर करते हैं.’’

‘‘प्रशांत यह तो संवेदनहीनता है. हमें यहां रुकना चाहिए और पूजा के साथ पुलिस स्टेशन भी चलना चाहिए.’’

‘‘हमारे घर की औरतें पुलिस स्टेशन नहीं जातीं, इसलिए इस लड़की के साथ मैं तुम्हें पुलिस स्टेशन जाने की इजाजत नहीं दूंगा.

‘‘पर प्रशांत?’’

‘‘परवर कुछ नहीं अजंता, तुम मेरे साथ चलो.’’

अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि तभी शशांक, पूजा को वरदान सर की गाड़ी में बैठा कर 2-3 अन्य लोगों के साथ पुलिस स्टेशन निकल गया.

‘‘मुहतरमा वे लोग गए हैं पुलिस स्टेशन. वे मामला हैंडल कर लेंगे. चलो हम लोग चलते हैं,’’ प्रशांत ने कोमल अंदाज में कहा.

अजंता थकी चाल चल कार में बैठ गई. पूरा रास्ता प्रशांत बोलता रहा. उस ने कहा कलपरसों में दोनों फैमिली वाले मिल कर शादी की डेट फिक्स करने वाले हैं. अजंता पूरा रास्ता चुप रही या फिर हां हूं करती रही.

एक शानदार रैस्टोरैंट के सामने प्रशांत ने गाड़ी रोकी. अंदर आ कर उस ने खाने का और्डर दिया. अजंता क्या खाना पसंद करेगी, उस ने यह तक न पूछा. सब अपनी पसंद की डिश मंगवा लीं.

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वेटर खाना सर्व कर गया.

पहला कौर खाते हुए अजंता ने कहा, ‘‘बेचारी लड़की के साथ बड़ा अपराध हुआ है.’’

‘‘अपराध तो उस लड़के के साथ होगा जिस से इस लड़की की शादी होगी और जब उसे पता चलेगा कि कभी उस की बीवी का बलात्कार हुआ था.’’

प्रशांत की यह बात सुन कर अजंता को ऐसा लगा जैसे उस के मुंह में खाना नहीं, बल्कि कीचड़ रखा हो और उसे अभी उलटी हो जाएगी.

दूसरी घटना…

अजंता और प्रशांत की शादी की डेट फिक्स हो गई थी. दोनों परिवारों में

शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं. इन्विटेशन कार्ड छपने चले गए थे. प्रशांत, अजंता पर और ज्यादा अधिकार जताने लगा था. अजंता के मन में न जाने क्यों अपनी शादी को ले कर उल्लास की कोई भावना जन्म नहीं ले पा रही थी.

अपनी शादी के कार्ड अजंता ने कालेज में बांटे पर न जाने क्या सोच कर उस ने शशांक को कार्ड नहीं दिया. अजंता की शादी की डेट जानने के बाद भी शशांक पर कोई असर नहीं हुआ. वह मस्तमौला बना रहा. उसे यों मस्तमौला देख कर अजंता ने सोचा उस के प्रति शशांक के प्यार का दावा केवल आकर्षण और टाइमपास भर था.

शशांक ने पूजा की हैल्प की. उस की लड़ाई में सहायक बना. उस की कोशिशों से कालेज में ही पढ़ने वाला एक लड़का हेमंत और उस का एक दोस्त पूजा के बलात्कार के जुर्म में पकड़े गए.

एक दिन शशांक कालेज कैंटीन में अजंता को मिला तो उस ने पूछा, ‘‘क्यों मुझ से शादी करने का खयाल दिल से बायबाय हो गया?’’ अजंता ने भीतर से गंभीर हो कर किंतु बाहर से ठिठोली के अंदाज में उस से पूछा.

‘‘आप से शादी करने का खयाल तो तब भी दिल में रहेगा जब आप की शादी हो चुकी होगी मैम,’’ शशांक ने चाय मंगवाने के बाद अजंता के सवाल का जवाब दिया.

‘‘ओह, इतना प्यार करते हो मुझ से, तो मेरे बिना कैसे रह पाओगे?’’ अजंता ने चाय का घूंट भर कर पूछा.

‘‘रह लेंगे?’’ शशांक ने संक्षिप्त जवाब दिया.

‘‘बिना सहारे के?’’ अजंता ने फिर सवाल किया.

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‘‘बिना सहारे के तो मुश्किल होगा.’’

‘‘फिर किस के सहारे?’’

‘‘पूजा से शादी कर लूंगा,’’ शशांक ने गंभीरता से कहा. अजंता ने शशांक को पहली बार इतना गंभीर देखा था.

‘‘ये जानते हुए भी कि उस की इज्जत लुट चुकी है?’’ शशांक की आंखों में देखते हुए अजंता ने पूछा, ‘‘क्या ऐसी लड़की से शादी कर के तुम्हें तकलीफ नहीं होगी जो वर्जिन न हो.’’

‘‘तकलीफ कैसी? यह तो गर्व की बात होगी मैम कि एक ऐसी बहादुर लड़की मेरी बीवी है जिस ने एक सामाजिक अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद की.’’

शशांक की बात सुन कर अजंता की आंखें शशांक के सम्मान में झुक गईं.

यह वह दौर था जब बस मोबाइल फोन लौंच ही हुए थे. प्रशांत ने शादी से एक दिन पहले ही अजंता को फोन गिफ्ट किया था. शादी लखनऊ में होने वाली थी. अजंता की फैमिली और रिश्तेदार लखनऊ आ चुके थे. दोनों फैमिली एक ही होटल में रुकी हुई थीं. शादी के लिए पूरा होटल बुक किया गया था.

शादी वाले दिन जैसेजैसे शादी की घड़ी नजदीक आ रही थी अजंता के मन में

एक कसक उठती जा रही थी. अचानक उसे खयाल आया कि उसे कम से शशांक को शादी का इन्विटेशन कार्ड तो देना ही चाहिए था.

शशांक को कार्ड न देना असल में अब अजंता को कचोट रहा था. उसे लग रहा था उस ने गलती की है. फिर अचानक उस ने अपनी गलती सुधारने का फैसला किया. अपने लेडीज पर्स में एक इन्विटेशन कार्ड रखा और होटल से बाहर निकल कर टैक्सी में बैठ गई.

प्रशांत यों ही अजंता से मिलने के लिए उस के रूम में गया. वह वहां नहीं थी. उस के मम्मीपापा से पूछा. उन्हें भी पता नहीं था. होटल में अजंता को न पा कर प्रशांत ने अजंता को

फोन किया.

पर्स से निकाल कर अजंता ने ज्यों ही फोन रिसीव किया दूसरी ओर से प्रशांत ने अधिकारपूर्वक पूछा, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘एक जानने वाले को इन्विटेशन कार्ड देने जा रही हूं.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं, वापस आ जाओ,’’ प्रशांत बोला.

‘‘अरे उसे नहीं बुलाया तो उसे बुरा लगेगा,’’ अजंता ने समझाना चाहा.

‘‘लगता है बुरा तो लगे… मैं कह रहा हूं तुम लौट आओ.’’

‘‘उसे कार्ड दे कर तुरंत आती हूं.’’

‘‘नो… जहां हो वहीं से वापस आ जाओ.’’

‘‘अरे मैं बस पहुंचने ही वाली हूं वहां.’’

‘‘यू बिच… मैं ने तुम्हारी बहुत हरकतें बरदाश्त कर लीं… अब शादी के बाद ऐसी हरकतें नहीं चलेंगी. चलो, तुरंत वापस आओ.’’

प्रशांत की गाली सुन कर अजंता को ऐसे लगा जैसे उस के कानों में किसी ने पिघला शीशा डाल दिया हो. लाइफ में पहली बार उसे किसी ने गाली दी थी और वह भी उस के होने वाले पति ने. ग्लानि से अजंता का दिल बैठ गया. उस ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया. प्रशांत ने फोन किया तो अजंता ने फिर काट दिया. उस ने फिर फोन किया तो अजंता ने फोन स्विचऔफ कर दिया. अजंता ने सोचा अगर उस ने अब एक भी शब्द इस शख्श का और सुना तो उस का वजूद ही खत्म हो जाएगा. धड़कते दिल के साथ अजंता शशांक के रूममें पहुंची.

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‘‘अरे मैम आप यहां? आज तो आप की शादी है,’’ अजंता को अपने यहां आया देख कर शशांक ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘आप के बिना मेरी शादी कैसे हो सकती है,’’ कह कर अजंता उस के रूम के भीतर आ गई.

‘‘आज सरकार कुछ बदलेबदले नजर आ रहे हैं,’’ शशांक ने शरारत से कहा तो अजंता ने पूछ लिया, ‘‘कैसे बदलेबदले?’’

‘‘आज मुझे ‘तुम’ की जगह ‘आप’ कह रही हैं आप?’’

‘‘और अगर मैं कहूं कि मैं आप को ताउम्र ‘आप’ कहना चाहती हूं तो?’’ कह अजंता ने शशांक की गहरी आंखों में झांका.

‘‘इस के लिए तमाम उम्र साथ रहना पड़ेगा मैम. क्या आप के होने वाले पति रहने देंगे?’’ शशांक की शरारत जाग उठी.

‘‘यकीनन रहने देंगे.’’

‘‘इतना यकीन?’’ शशांक ने अजंता की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘ठीक है उन से पूछ लो फिर.’’

शशांक की बात सुन कर कुछ देर के लिए खामोश रह गई अजंता. फिर उस के करीब आते हुए बोली, ‘‘क्या मुझे अपने शशांक के पास रहने देंगे आप?’’

अजंता की बात कुछ समझते, कुछ न समझते हुए शशांक ने पूछा, ‘‘मतलब मैम?’’

‘‘मतलब मैं सबकुछ छोड़ कर आई हूं आप के पास…  आज आप

की कोशिश कामयाब हो गई है, शशांक. आज मैं आप को अपने इश्क में गिरफ्तार करने आई हूं.’’

‘‘मैं तो कब से आप के इश्क में गिरफ्तार हूं मैम,’’ शशांक ने अजंता को कंधों से पकड़ कर तनिक करीब खींचा.

‘‘मैम नहीं अजंता कहो,’’ अजंता ने शशांक के सीने में मुंह छिपा कर कहा.

‘‘अजंता,’’ शशांक ने जब एक लंबी सांस ले कर कहा तो अजंता पूरी तरह से उस के गले लग गई और फिर उस के होंठों से मद्धिम स्वर में निकला, ‘‘लव यू शशांक.’’

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