वियाग्रा: राइट चौइस है

कई हिंदी फिल्मों के सुहागरात के दृश्यों में दिखाया गया है कि दुलहन बनी नायिका रात को दूध का गिलास ले कर कमरे में दाखिल होती है. रोमांटिक मूड में बैठा बैचेन नायक गटागट दूध पीता है और फिर कमरे की बत्ती बुझा कर नायिका को आगोश में ले कर बिस्तर पर लुढ़क जाता है. कुछ फिल्मों में प्रतीकात्मक रूप से दिखाया गया है कि सुहागरात मन रही है. तब दर्शक मान लेता था कि हो न हो सहवास से पहले दूध पीने से सैक्स पावर बढ़ती है. समाज में फैली यह धारणा एकदम बेवजह भी नहीं है.

समाज बदल गया तो धारणाएं भी बदलीं. लेकिन दूध की महत्ता कम नहीं हुई पर यह शादी के शुरुआती दिनों तक ही सिमटी है शादी के कुछ साल बाद लोग सैक्स पावर बढ़ाने के लिए क्या लेते हैं इस सवाल का एक जबाब इंटरनैट पर भी मौजूद है. एक कंपनी की वैबसाईट में एक महिला पहले अपना दुखड़ा रोते बता रही है कि शादी के 8 साल बाद पिछले कुछ दिनों से पति के ढीलेपैन के चलते उसे सैक्स में पहले सा मजा नहीं आ रहा था जिस के चलते वह उदास व दुखी रहने लगी थी और चिड़चिड़ी भी हो गई थी.

फिर एक दिन उसे फलां टैबलेट के बारे में पता चला कि इस के सेवन से सैक्स घंटों चलता है और दुर्लभ जड़ीबूटियों से बने होने के कारण इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं है पोर्न फिल्मों वाले कलाकार भी इसे लेते हैं. इसे लेने के बाद लंबे समय तक सैक्स कर पाते हैं. उस ने बिना वक्त गवाए तुरंत ये गोलियां और्डर कर दीं. छठे दिन कूरियर से कैश औन डिलिवरी पर आ गईं. उसी रात उस ने पति को यह खिला भी दी.

बस उस रात से उस विज्ञापनीय महिला की जिंदगी बदल गई. अब वह बहुत खुश है क्योंकि पति की शीघ्रपतन, अरुचि और कमजोरी जैसी कमियां इस गोली के सेवन से दूर हो गई हैं. उस का सैक्स ड्राइव न्यूट्रल से टौप गियर में आ गया है. इसे देख लगता ऐसा है कि सड़क छाप खानदानी नीमहकीम और कंपनियां स्क्रीन पर अपना धंधा चला रही हैं क्योंकि दौर डिजिटल है और इस के बिना आप नमक भी नहीं बेच सकते.

उक्त महिला अपने दुखड़े में यह तक कहते देखीसुनी जा सकती है कि विभिन्न उत्तेजक क्रियाओं से बात नहीं बनी तो उस ने पति को वियाग्रा तक खिलाई, लेकिन उस का भी कोई खास असर नहीं हुआ.

पत्नियां करें पहल

ऐसे लोगों के लिए वियाग्रा वरदान है. विज्ञापनीय महिला की तरह आम पत्नियां पतियों के ढीलेपन को ले कर इस हद तक चिंतित और दुखी नहीं हैं और न ही उन्हें होना चाहिए कि नीमहकीमी करने लगें क्योंकि इस के नुकसान आए दिन गुल खिलाते रहते हैं. पत्नियों को चाहिए कि वे पति को वियाग्रा दें क्योंकि यह सुरक्षित है बशर्ते इसे कुछ सावधानियों के साथ लिया जाए तो अच्छी बात यह भी है कि इस की लत नहीं पड़ती. अधिकतर पतियों का आत्मविश्वास 1-2 बार में लौट आता है.

भोपाल के पौश इलाके शाहपुरा की मनीषा मार्केट के एक कैमिस्ट अनिल लालवानी बताते हैं कि दौर जागरूकता का है. कई युवतियां अपने बौयफ्रैंड के लिए वियाग्रा खरीदती हैं, लेकिन महिलाओं की तादाद न के बराबर है. हां 30 पार के पुरुष जरूर वियाग्रा निस्संकोच ले जाते हैं. मुमकिन है उन की पत्नियों की सहमति इस में रहती हो. वैसे यह भी सच है कि दवाओं के

75 फीसदी कस्टमर पुरुष ही होते हैं. अनिल इस बात में सहमति दिखाते हैं कि अगर जरूरत महसूस हो तो पत्नियों को वियाग्रा खरीदने में हिचकना नहीं चाहिए.

अनिल की बात की पुष्टि करते और उसे विस्तार देते हुए सरकारी कालेज की एक अधेड़ उम्र की प्रोफैसर कहती हैं कि आमतौर पर भारतीय पत्नियां पति की सैक्स कमजोरियों से समझौता कर लेती हैं. उन्हें डर रहता है कि शिकायत करने या कहने पर पति इसे अन्यथा लेगा और हर्ट भी हो सकता है. अगर वह बुरा मान गया और एक सामान्य सी बात को उस ने आरोप समझा तो जिंदगी और गृहस्थी पर इस का बुरा असर पड़ेगा. एक पति हजार तरीकों से पत्नी को परेशान करने के अधिकार रखता है वैसे भी एक उम्र के बाद महिलाएं तमाम दूसरी परेशानियों के साथसाथ पति की सैक्स कमजोरी से भी समझौता कर लेती हैं और जो मिल जाता है उसी से संतुष्ट रहती हैं.

राइट औफ क्वालिटी सैक्स

मगर यह गलत नहीं तो सही भी नहीं है. ये प्रोफैसर आगे कहती हैं कि अच्छी गुणवत्ता बाला सैक्स किसी भी पत्नी का हक है और यह अगर वियाग्रा से मिले तो हरज क्या? सैक्स लाइफ में बोझिलता 40 के बाद आनी शुरू हो जाती है. इस में हैरानी की बात यह होती है कि कमी पतिपत्नी दोनों में ही नहीं रहती. दफ्तर और घर के काम का बोझ, जिम्मेदारियां उलटासुलटा खानपान, व्यायाम न करना आदि शरीर को पहले सा ऐक्टिव नहीं रहने देता फिर सैक्स के नाम पर क्या होगा, वही होगा जो इफरात से हो रहा है कि थोड़ी देर कोशिश की और जो भी बना कर के सो गए. न पहले सा रोमांस होता है न डायलोग होते, न फोर प्ले होता और न ही उसी अवस्था में लिपट कर दोनों सुबह तक सोते.

बात सच है क्योंकि एक उबाऊ सैक्स न केवल दिन बल्कि पूरी जिंदगी को नीरस बना देता है खासतौर से महिलाएं इस से ज्यादा प्रभावित होती हैं जो अर्ध को ही पूर्ण सुख मानने को मजबूर हो जाती हैं. लेकिन उन की खीज और अधूरापन. कोई नहीं समझ पाता कई बार तो वे खुद भी नहीं समझ पातीं कि वे बातबात में झल्ला क्यों रही हैं.

अधूरे सैक्स की वजह से झल्लाहट

यह झल्लाहट होती है अधूरे सैक्स की वजह से जिसे वे कोशिश करें तो नीना की तरह दूर कर सकती है. नीना पति अमन के ढीलेपन से आजिज आ गईं थीं. उन्होंने वियाग्रा के बारे में पढ़ासुना

था सो एक दिन हिम्मत कर कैमिस्ट से नीले रंग की 2 गोलियां खरीदे लाई. फिर पति को पूरे प्यार से बताया कि अब शादी के बाद वाले दिनों सा मजा नहीं आता, इसलिए आप के लिए वियाग्रा ले आई हूं. ट्राई कर के देखें. अमन उम्मीद के मुताबिक गुस्सा नहीं हुए बल्कि बोले कि मैं खुद कई दिनों से लाने का सोच रहा था पर लाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. चल अब जब तू ले ही आई है तो आज सालों बाद सालों पहले सा लुत्फ उठाते हैं और फिर दोनों ने वही लुत्फ उठाया भी.

यानी जरूरी नहीं कि वियाग्रा लाने और खाने की बात पर पति वही प्रतिक्रिया दे जो पत्नियों के दिलोदिमाग में बैठी हो. मुमकिन है पति पत्नी की इस पहल का स्वागत करे और यह बात मन में ही दबा जाए कि मैं तो कब से इसे खाने की सोच रहा था कि देखें इस से कुछ होता है या नहीं.

उलट इस के न्यू कपल्स इस झंझट में नहीं पड़ते. 26 वर्षीय श्वेता अपने पति को हर शनिवार वियाग्रा देती क्योंकि यह वीकैंड उन का सैक्स डे होता है. श्वेता ने वियाग्रा से संबंधित सारा लिटरेचर पढ़ रखा है और पति अपूर्व को भी पढ़ा रखा है. अभी तक इन दोनों को कोई परेशानी नहीं आई है.

सावधानी भी है जरूरी

अगर सावधानियों के साथ पति को वियाग्रा ला कर दी जाए तो ध्यान बस इतना रखना पड़ता है कि उस की सेहत का नुकसान न हो. अगर पति को शुगर हो, दिल की बीमारी हो, ब्लड प्रैशर रहता हो तो वियाग्रा डाक्टर से लाह कर खानी चाहिए. इस की 1 गोली पुरुष के प्राइवेट पार्ट में रक्तसंचार बढ़ा देती है जिस से वह इरेक्टाइल डिसफंक्शन से बच जाता है. उस का आत्मविश्वास वापस आ जाता है और फिर यह जरूरी नहीं कि वह हर बार इसे ले. कुछ जिम्मेदारी पत्नियों की भी बनती है कि वे पति के जोश को ठंडा न पड़ने दें जैसे पति के कपड़ों, सेहत और दूसरी चीजों का ध्यान रखती हैं वैसे ही पति के सैक्स का भी ध्यान रखें.

ऐसा होना निहायत मुमकिन है कि पत्नी पति के लिए वियाग्रा खरीद कर लाए. इस प्रतिनिधि ने 4 महिलाओं से यह सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि हां वे पति को वियाग्रा ला सकती हैं लेकिन पति से चर्चा के बाद. अगर पति एतराज जताएगा तो यह आइडिया वहीं ड्रौप हो जाएगा. लेकिन चोरीछिपे भी वियाग्रा दी जा सकती है. यह कोई हरज की बात नहीं. पति समझाने को तैयार हो जाए तो बात बहारों के लौटने जैसी होगी और लगेगा भी कि हम जिंदगी के एक बड़े सुख को पूरे मन से ऐंजौय कर रहे हैं.

छाई रहेगी एक खुमारी

आखिर में एक या कई उन जैसी पत्नियों की बात जिन्हें मालूम है कि सहवास से पहले पति वियाग्रा लेता है और कई बार तो उन्हें इस की खूबियां गिनाते लेता है, लेकिन वह सावधानियों का भी पालन करता है. ऐसे पतियों पर पत्नियां बलिहारी जाती हैं क्योंकि कोई रिस्क इस में नहीं हैं. मगर इश्क सौ फीसदी है. तो देर और झिझक किस बात की जाइए अनिल जैसे किसी कैमिस्ट के पास और ले आइए 2 गोलियां वियाग्रा की, फिर पति से अन्तरंग क्षणों में इसे खाने को कहिए और आनंद लीजिए. दूध वाली रात को याद करते गिलास के साथ प्लेट में एक गोली वियाग्रा की रखिए और आधा घंटे बाद बत्तियां बुझा दीजिए. अगली सुबह आप का जिस्म मीठे दर्द के साथ मुसकरा रहा होगा, होंठ पहले की तरह थरथरा रहे होंगे, आंखें मुंद रही होंगी. शरीर में एक अजीब सी खुमारी होगी.

फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स : दोस्त से सेक्स या सेक्स से दोस्ती?

पश्चिमी देशों में ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ का चलन कोई नया नहीं है. लेकिन भारत में जरूर इस टर्म को अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल और निभाया जाता है. जब साल 2011 में जस्टिन टिम्बरलेक और मिल्ला कुनिस की फिल्म ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ आई थी तो इस टर्म का मोटामोटी अर्थ यही निकला गया कि जब दो दोस्त अपने रिश्ते का इस्तेमाल सेक्सुअल रिलेशन के तौर पर करते हैं तो वो फ्रेंडशिप ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ के दायरे में आ जाती है. यानी जब दोस्ती से अन्य फायदे लिए जाने लगे तो यह फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स वाला रिश्ता बन जाता है.

अब आप सोचेंगी कि दोस्ती में क्या फायदा उठाना. लेकिन अगर आप मैरिड या एंगेज्ड होने के बावजूद अपनी बेस्टफ्रेंड के साथ सेक्स करना चाहती हैं तो यह दोस्ती से बेनिफिट लेने जैसा ही है. क्योंकि उक्त लड़की आपकी फ्रेंड हैं तो फिर बिस्तर पर जाने से पहले उसके साथ न तो किसी भी तरह की रोमांटिक इन्वोल्व्मेंट की जरूरत है और न भरोसा कायम रखने की. आप दोनों एकदूसरे को पहले से जानते हैं और आपसी सहमति है तो अपनी फ्रेंडशिप को बेनिफिट के साथ कायम रख सकती हैं.

ज्यादा बेनिफिट किसका

यों तो यह वेस्टर्न कौन्सेप्ट है. वहां कैजुअल सेक्स को लेकर एस्कौर्ट से लेकर फ्रेंड्स तक, वन नाइट स्टैंड से लेकर हुक अप्स तक सब खुलेख्याली के साथ कुछ डौलर्स में अवेलेबल है. लेकिन इस तरह के संबधों में पुरुष ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं. कारण वही सेक्स वाला है. लंदन की विस्कौन्सिन-यू क्लेयर यूनिवर्सिटी द्वारा 400 वयस्कों पर किए गए एक शोध से पता चला कि महिला और पुरुष के बीच दोस्ती में अगर किसी एक के द्वारा आकर्षण की भावना या सेक्स करने की चाहत की अभिव्यक्ति होती है, तो वह ज्यादातर पुरुष मित्र की ओर से ही होती है. यह स्वाभाविक भी है.

पुरुष ईजी सेक्स और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की चाहत में औफिस, पड़ोस और औनलाइन हर जगह सेक्सुअल फेवर वाला रिश्ता ढूंढ़ते हैं. और जब कभी उन गलियों में वो चाहत पूरी नहीं होती तो अपने दोस्त से फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स के तहत सेक्स संबंधों की मांग कर लेते हैं. अब इसमें दांव लगने की बात है क्योंकि इस डील में कुछ फ्रेंड नाराज हो जाते हैं तो कुछ राजी.

फ्रेंडजोंड बिरादरी का भला

ऐसा नहीं है कि इस तरह के रिलेशनशिप का इस्तेमाल सिर्फ पुरुष ही करते हैं. महिलाएं भी फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स की आड़ में अपनी सेक्सुअल फ्रीडम खोज लेती हैं. इनमें अक्सर वो महिलाएं होती हैं जो या तो बिखरती शादी का शिकार होती हैं या तलाक के दौर से गुजर रही होती हैं. कुछ विडोज भी ही सकती हैं. सेक्स की चाहत में ये किसी अजनबी के साथ डेट पर जाने के बजाए अपने दोस्तों, या कहें जो दोस्त कभी उन पर क्रश रखते थे लेकिन मुकम्मल रिश्ते तक नहीं पहुंच पाए, को तरजीह देती हैं.

ये अक्सर वही फ्रेंड होते हैं जो कभी इन महिलाओं द्वारा फ्रेंडजोंड कर दिए गए होते हैं. ऐसे में जब कैजुअल सेक्स की बात आती हैं तो पुरानी फीलिंग्स काम आती हैं और इस तरह से फ्रेंडजोंड बिरादरी का भला हो जाता है. दरअसल इस फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स वाले रिश्ते में आप किसी रिश्ते में होते हुए या न होते हुए भी किसी इंसान के साथ समय बिताने या शारीरिक संबंध बनाने के लिए आजाद हैं. लेकिन इसमें किसी तरह का कोई वादा या प्रतिबद्धता नहीं होती है.

दोस्ती-प्यार के बीच वाला सेक्स

आमतौर पर ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ का चलन सबसे ज्यादा सिंगल कौलेज गोअर्स लड़के या लड़कियों में देखा जाता है. ये ‘नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड’ वाले फलसफे पर चलते हैं. जब तक पढ़ाई की, कैम्पस में रहे, दोस्त के साथ सेक्स किया, बाद में करियर के लिए मूव औन कर गए. इसमें दोनों की मूक सहमति होती है लिहाजा कोई किसी के साथ सीरियस रिलेशनशिप के फेर में नहीं पड़ता. कई बार यह दोस्ती से ज्यादा और प्यार से कम वाला रिश्ता बन जाता है. इस तरह की स्थिति में दोनों में किसी एक के मन में सामने वाले के लिए फीलिंग्स आने लगती हैं. और बात ‘इट्स कौम्प्लीकेटेड’ तक पहुंच जाती है.

पहले पहल सुनने में एक रोमांचक चीज शायद जरूर लगे, लेकिन इंसानी तौर खासतौर पर भारत में अक्सर ईर्ष्या कहीं न कहीं बीच में आ ही जाती है और अंत में कड़वाहट कि वजह बन जाती है. इसलिए जरा सोच समझकर उतरें फेवर वाले रिश्ते में.

जब हो इट्स कौम्प्लीकेटेड

अपने देश में आप लड़के और लड़की की दोस्ती पर कुछ पूछेंगे तो वे इसमें सेक्स संबंधों की घुसपैठ को अनैतिक बताएंगे. इनके हिसाब से दोस्ती और प्यार दो अलग अलग चीजें हैं. हालांकि अक्सर लड़का लड़की की दोस्ती को प्यार में बदलते देखा जाता है. एक फिल्मी कहावत भी है, कि एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते. इस आशय पर कई फिल्में भी बनी हैं. लेकिन यहां मामला दोस्ती और प्यार का नहीं बल्कि सीधे तौर पर सेक्स का है. इसलिए इसे ‘इट्स कौम्प्लीकेटेड’ न बनाएं, तो खुश रहेंगे.

कुल मिलाकर ‘फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स’ वाला जुमला कई अलग लग अर्थों में फैल चुका है. अगर कोई लड़की या लड़का किसी से सिर्फ इसलिए दोस्ती करता है कि वो हर वक्त खर्च करने को तैयार रहता है तब यह भी ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’ के दायरे में आएगा. ऐसी ही दोस्ती जब भी किसी फेवर की आड़ में की जाए तो यह असली दोस्ती नहीं होगी. बाकि आजकल बेनेफिट्स तो बेटे बेटी भी पैरेंट्स से उठा रहे हैं तो यह ‘संस/ डौटर विद बेनिफिट्स’ कहा जाए?

घर टूटने की वजह, महत्त्वाकांक्षी पति या पत्नी

निर्देशक गुलजार की 1975 में आई फिल्म ‘आंधी’ ने सफलता के तमाम रिकौर्ड तोड़ डाले थे. इस फिल्म पर तब तो विवाद हुए ही थे, यदाकदा आज भी सुनने में आते हैं, क्योंकि यह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी पर बनी थी. संजीव कुमार इस फिल्म में नायक और सुचित्रा सेन नायिका की भूमिका में थीं, जिन का 2014 में निधन हुआ था. ‘आंधी’ का केंद्रीय विषय हालांकि राजनीति था. लेकिन यह चली दरकते दांपत्य के सटीक चित्रण के कारण थी, जिस के हर फ्रेम में इंदिरा गांधी साफ दिखती थीं, साथ ही दिखती थीं एक प्रतिभाशाली पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह पति को भी त्याग देती है और बेटी को भी. लेकिन उन्हें भूल नहीं पाती. पति से अलग हो कर अरसे बाद जब वह एक हिल स्टेशन पर कुछ राजनीतिक दिन गुजारने आती है, तो जिस होटल में ठहरती है, उस का मैनेजर पति निकलता है.

दोबारा पति को नजदीक पा कर अधेड़ हो चली नायिका कमजोर पड़ने लगती है. उसे समझ आता है कि असली सुख पति की बांहों, रसोई, घरगृहस्थी, आपसी नोकझोंक और बच्चों की परवरिश में है न कि कीचड़ व कालिख उछालू राजनीति में. लेकिन हर बार उसे यही एहसास होता है कि अब राजनीति की दलदल से निकलना मुश्किल है, जिसे पति नापसंद करता है. राजनीति और पति में से किसी एक को चुनने की शर्त अकसर उसे द्वंद्व में डाल देती है. ऐसे में उस का पिता उसे आगे बढ़ने के लिए उकसाता रहता है. इस कशमकश को चेहरे के हावभावों और संवादअदायगी के जरीए सुचित्रा सेन ने इतना सशक्त बना दिया था कि शायद असल किरदार भी चाह कर ऐसा न कर पाता.

आरती बनीं सुचित्रा सेन दांपत्य के दूसरे दौर में खुलेआम अपने होटल मैनेजर पति के साथ घूमतीफिरती और रोमांस करती नजर आती है, तो विरोधी उस पर चारित्रिक कीचड़ उछालने लगते हैं.

स्वभाव से जिद्दी और गुस्सैल आरती इस पर तिलमिला उठती है, क्योंकि उस की नजर में वह कुछ भी गलत नहीं कर रही थी. चुनाव प्रचार के दौरान जब उस से यह सवाल हर जगह पूछा जाता है कि होटल मैनेजर जे.के. से उस का क्या संबंध है, तो वह हथियार डालती नजर आती है. ऐसे में पति उसे संभालता है. चुनाव प्रचार की आखिरी पब्लिक मीटिंग में वह पति को साथ ले कर जाती है और सच बताते हुए कहती है कि ये उस के पति हैं. अगर इन के साथ घूमनाफिरना गुनाह है, तो वह गुनाह उस ने किया है. आखिर में रोतीसुबकती आरती भावुक हो कर जनता से अपील करती है कि वह वोट नहीं इंसाफ मांग रही है.

जनता उसे जिता कर इंसाफ कर देती है. फिल्म के आखिरी दृश्य में जब वह हैलिकौप्टर में बैठ कर दिल्ली जा रही होती है तब संजीव कुमार उस से कहता है कि मैं तुम्हें हमेशा जीतते हुए देखना चाहता हूं

फिल्म इसी सुखांत पर खत्म हो जाती है. लेकिन बुद्धिजीवी दर्शकों के सामने यह सवाल छोड़ जाती है कि क्या कल कैरियर के लिए छोड़े गए पति को सार्वजनिक रूप से स्वीकारना भी राजनीति का हिस्सा नहीं था? यह जनता के साथ भावनात्मक ब्लैकमेलिंग नहीं थी?

साबित यह होता है कि राजनीति में सब कुछ जायज होता है. साबित यह भी होता है कि एक महत्त्वाकांक्षी पत्नी, जिसे हार पसंद नहीं, जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

इंदिरा गांधी: मिसाल व अपवाद

फिल्म से हट कर देखें तो इंदिरा गांधी भारतीय महिलाओं की आदर्श रही हैं. वजह एक निकाली जाए तो वह यह होगी कि 70 के दशक में औरतों पर बंदिशें बहुत थीं. उन का महत्त्वाकांक्षी होना गुनाह माना जाता था और इस महत्त्वाकांक्षा की हत्या तब बड़ी आसानी से प्रतिष्ठा, इज्जत और समाज के नाम के हथियारों से कर दी जाती थी. चूंकि इंदिरा गांधी इस का अपवाद थीं, इसलिए उन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षा को जिंदा रखा और दांपत्य व गृहस्थी के झंझट में ज्यादा नहीं पड़ीं तो वे मिसाल और अपवाद बन गईं. नई पीढ़ी उन के बारे में यही जानती है कि वे एक सफल और लोकप्रिय नेत्री थीं. पर यह सब उन्होंने किन शर्तों पर हासिल किया था, इस की झलक फिल्म ‘आंधी’ में दिखाई गई है.

इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी का पत्नी पर कोई जोर नहीं चलता था. इसीलिए इंदिरा अपने अंतर्जातीय प्रेम विवाह पर कभी पछताई नहीं न ही उन्होंने कभी सार्वजनिक तौर पर पति की निंदा या चर्चा की. इस खूबी ने भी जिसे पति का सम्मान समझा गया था उन्हें ऊंचे दरजे पर रखने में बड़ा रोल निभाया.

लेकिन जब पत्नी इतनी महत्त्वाकांक्षी हो कि घर तोड़ने पर ही आमादा हो जाए तब पति को क्या करना चाहिए ताकि गृहस्थी भी बनी रहे और पत्नी का नुकसान भी न हो? इस सवाल का एक नहीं, बल्कि अनेक जवाब हो सकते हैं, जो मूलतया सुझाव होंगे, क्योंकि स्पष्ट यह भी है कि पत्नी का महत्त्वाकांक्षी होना समस्या नहीं है, समस्या है पति द्वारा उसे मैनेज न कर पाना.

इसी कड़ी में गत अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान के मशहूर 63 वर्षीय क्रिकेटर इमरान खान का भी नाम आता है, जिन्होंने अपनी पत्नी रेहम खान को तलाक दे दिया. उल्लेखनीय है कि रेहम खान और इमरान दोनों की यह दूसरी शादी थी. रेहम को पहले पति से 3 बच्चे हैं और इमरान को भी पहली पत्नी से 2 बच्चे हैं. उम्र में रेहम इमरान से 20 साल छोटी हैं. इस तलाक की वजह दोनों की दूसरी शादी या बेमेल शादी नहीं, बल्कि इमरान खान की मानें तो रेहम की बढ़ती राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं. इमरान पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दल तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के संस्थापक और मुखिया हैं. चर्चा यह भी रही कि रेहम पीटीआई पर कब्जा जमाना चाहती थीं. वे नियमित पार्टी की मीटिंग में जाने लगी थीं और कार्यकर्ताओं की पसंद भी बनती जा रही थीं. पीटीआई का दखल पाकिस्तान की सत्ता में हो या न हो, लेकिन वहां की सियासत में खासा दखल है, जिस की वजह पाकिस्तान में इमरान के चाहने वालों की बड़ी तादाद है.

इस तनाव पर पेशे से कभी बीबीसी में टीवी ऐंकर रहीं रेहम ने यह बयान दे कर जता दिया कि इस तलाक की वजह वाकई उन की महत्त्वाकांक्षा है. रेहम का कहना है कि पाकिस्तान में उन्हें गालियां दी जाती थीं. वहां का माहौल औरतों के हक में नहीं है. वे तो पूरे देश भर की भाभी हो गई थीं. जो भी चाहता उन्हें गालियां दे सकता था. तलाक के बाद रेहम ने यह भी कहा कि इमरान चाहते थे कि वे रोटियां थोपती रहें यानी एक परंपरागत घरेलू बीवी की तरह रहें, जो उन्हें मंजूर नहीं था. जाहिर है, वाकई रेहम की महत्त्वाकांक्षाएं सिर उठाने लगी थीं और इमरान को यह मंजूर नहीं था.

एक फर्क शौहर होने का

क्या सभी पतियों से ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वे पत्नि की महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करने के रास्ते में अड़ंगा नहीं बनेंगे? तो इस सवाल का जवाब साफ है कि नहीं, क्योंकि पुरुष का अपना अहम होता है. वह पत्नी को खुद से आगे बढ़ने का, अपनी अलग पहचान बनाने का और लोकप्रिय होने का मौका नहीं देता. इस बाबत पूरी तरह से उसे ही दोषी ठहराया जाना उस के साथ ज्यादती होगी. जब पत्नी कह सकती है कि वह ही क्यों झुके और समझौता करे, तो पति से यह हक नहीं छीना जा सकता. सवाल गृहस्थी और बच्चों के साथसाथ अघोषित विवाह नियमों का भी होता है.

1973 में अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी द्वारा अभिनीत फिल्म ‘अभिमान’ ने भी बौक्स औफिस पर झंडे गाड़े थे. इस फिल्म में पतिपत्नी दोनों गायक होते हैं. लेकिन पूछपरख पत्नी की ज्यादा होने लगती है, तो पति झल्ला उठता है. नौबत अलगाव तक की आ जाती है. पत्नी मायके चली जाती है और गर्भपात हो जाने से गुमसुम रहने लगती है. बाद में पति उसे मना कर स्टेज पर ले आता है और उस के साथ गाना गाता है. लेकिन ऐसा तब होता है जब पत्नी हार मान चुकी होती है. इस फिल्म की खूबी थी मध्यवर्गीय पति की कुंठा, जो पत्नी की सफलता और लोकप्रियता नहीं पचा पाता, इसलिए दुखी और चिड़चिड़ा रहने लगता है. उसे लगता है पत्नी के आगे बढ़ने पर दुनिया उस की अनदेखी कर रही है. पत्नी के कारण उस की प्रतिभा का सही मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है और लोग उस का मजाक उड़ा रहे हैं. अब नजर रील के बजाय रियल लाइफ पर डालें, तो अमिताभ शीर्ष पर हैं और हर कोई जानता है कि इस में जया भादुड़ी का योगदान त्याग की हद तक है. जिन्होंने पति के डूबते कैरियर को संवारने के लिए ‘सिलसिला’ फिल्म में काम करना मंजूर किया था.

ऐसा आम जिंदगी में होना और हर कहीं दिख जाना आम बात है कि प्रतिभावान महत्त्वाकांक्षी पत्नी का पति अकसर हीनभावना और कुंठा का शिकार रहने लगता है. वजह उस की कमजोरी उजागर करता एक सच उस के सामने आ खड़ा होता है. यहां से शुरू होता है द्वंद्व, कशमकश, चिढ़ और कुंठा. पति जानतासमझता है कि वह पत्नी से पीछे है और यह सच सभी समझ रहे हैं. दांपत्य का यह वह मुकाम होता है जिस पर वह पत्नी को नकार भी नहीं सकता और स्वीकार भी नहीं सकता. जबकि पत्नी की इस में कोई गलती नहीं होती. इधर सफलता और लोकप्रियता की सीढि़यां चढ़ रही पत्नी पति की कुंठा और परेशानी नहीं समझ पाती. लिहाजा, अपना सफर जारी रखती है. उधर पति को लगता है कि वह जानबूझ कर उसे चिढ़ाने और नीचा दिखाने के लिए ऐसा कर रही है. ऐसे में जरूरत ‘अभिमान’ फिल्म की बिंदु, असरानी और डैविड जैसे शुभचिंतकों की पड़ती है, जो पतिपत्नी को समझा पाएं कि दरअसल में गलत दोनों में से कोई नहीं है. जरूरत वास्तविकता को स्वीकार लेने की है, जिस में किसी की कोई हेठी नहीं होने वाली. पर ऐसे शुभचिंतक फिल्मों में ही मिलते हैं, हकीकत में नहीं. इसलिए पति की कुंठा हताशा में बदलने लगती है और वह कई बार क्रूरता दिखाने लगता है.

इस कुंठा से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि  पति पत्नी की हैसियत और पहुंच को दिल से स्वीकार करे और पत्नी को चाहिए कि वह पति को यह जताती रहे कि ये तमाम उपलब्धियां उस की वजह और सहयोग से हैं. इस में कोई शक नहीं कि महत्त्वाकांक्षी पत्नी की पहली प्राथमिकता उस की अपनी मंजिल होती है, गृहस्थी, बच्चे या पति नहीं. पर इस का मतलब यह भी कतई नहीं कि उसे इन की चिंता या परवाह नहीं होती. इस का मतलब यह है कि वह अपनी प्रतिभा पहचानती है, लक्ष्य तक पहुंचना उसे आता है और वह कोई समझौता करने में यकीन नहीं करती.

याद रखें

– पतिपत्नी में किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा गृहस्थी और दांपत्य दोनों के लिए सुखद नहीं है, इसलिए इस से बचें. एकदूसरे की भावनाओं और इच्छाओं के सम्मान से ही दोनों वे सब पा सकते हैं, जो वे पाना चाहते हैं.

– पत्नी जिंदगी में कुछ बनना या हासिल करना चाहती है, तो कुछ गलत नहीं है. यह उस का हक है. लेकिन पत्नियों को यह देखसमझ लेना चाहिए कि वे जो पाना चाहती हैं उस से आखिरकार हासिल क्या होगा और पति की भावनाओं को जरूरत से ज्यादा ठेस तो इस से नहीं लग रही.

– पति का प्रोत्साहन और प्रशंसा पत्नी की प्रतिभा को निखारती है. उस की मंशा पति को नीचा दिखाने की नहीं होती. यह नौबत तब ज्यादा आती है जब पति कुढ़ने लगता है और पत्नी की उपलब्धियों में से खुद की भागीदारी खत्म कर लेता है.

– पत्नी कमाऊ हो, सार्वजनिक जीवन जी रही हो तो पति को चाहिए कि वह बजाय हीनभावना से ग्रस्त होने के पत्नी पर गर्व करे.

कुछ यों मनाएं मैरिड लाइफ का जश्न

पिछले एक विश्व पुस्तक मेले में पोलैंड गैस्ट औफ औनर देश रहा. पोलैंड पैवेलियन पर हिंदी बोलते लोग बहुत आकर्षित कर रहे थे. ऐसा नहीं था कि कुछ शब्द ही उन्होंने याद कर रखे थे, बल्कि वे दिल से धाराप्रवाह हिंदी बोल रहे थे. वहीं की एस कुमारी याहन्ना ने बताया कि भारत की परंपराओं और पारिवारिकता का पोलैंड में बहुत सम्मान है. भारत ने पोलैंड को द्वितीय विश्व युद्ध में इस का परिचय भी दिया. इस विश्व युद्ध में अनाथ हुए 500 बच्चों को भारत ने अपने यहां पाला. इस बात का बहुत सम्मान है. पोलैंडवासी जब भी कभी बलात्कार, भू्रण हत्या, दरकते दांपत्य या ऐसे ही पारिवारिक मूल्य विघटन की भारतीय खबर पढ़तेसुनते या देखते हैं तो उन्हें बहुत दुख होता है.

सुदीर्घ दांपत्य का जश्न

60 के दशक से पोलैंड में वैवाहिक जीवन की स्वर्ण जयंती मनाने वाले जोड़ों को राष्ट्रपति मैडल से सम्मानित किया जाता है. यह आयोजन पोलैंड की राजधानी में होता है परंतु पोलैंड के और भी कई शहरों में इस प्रकार के आयोजन की परंपरा है.

इस अवसर पर पोलैंड की राजधानी में काफी गहमागहमी रहती है. रुपहले रंग के मैडल पर, प्यार के प्रतीक गुलाब के परस्पर लिपटे और गुलाबी रिबन से बंधे फूल होते हैं, जो दंपती के प्यार के प्रतीक होते हैं. रैड कारपेट पर चलते दंपती इस सम्मान को ग्रहण कर के बहुत गौरवान्वित अनुभव करते हैं.

आसान नहीं इतना लंबा साथ

अर्द्ध शताब्दी का साथ कम नहीं होता. इस के लिए स्नेह, सम्मान, स्वस्थता, समर्पण आदि तमाम गुणों की आवश्यकता होती है.

रिलेशनशिप काउंसलर निशा खन्ना से जब हम ने पूछा कि जोड़ों में तालमेल कैसे आए कि हर जोड़ा इस तरह का सफल दांपत्य जीवन पा सके? तो इस पर उन का कहना था कि बच्चों का पालनपोषण अच्छी पेरैंटिंग से हो. वे बच्चों को होशियार, इंटैलिजैंट बनाने के साथ ही परिपक्व बनाएं. आजकल हर कोई अपने फायदे से रिश्ते बनाता है. पहले यह बात बाहर वालों के लिए थी, परंतु अब निजी, आपसी तथा घरेलू संबंधों में भी यह बहुत घर करती जा रही है. इस से रिश्तों में छोटीछोटी बातों को ले कर तनाव, क्रोध, खीज, टूटन, तलाक आदि बातें कौमन होती जा रही हैं. पहले औरतें दब जाती थीं. पति को परमेश्वर मान लेती थीं पर अब बदलते जीवनमूल्यों में उन्हें दबाना आसान नहीं रहा.

हमारे यहां भी है यह परंपरा

शादी की रजत जयंती एवं स्वर्ण जयंती मनाने का चलन पिछले कुछ वर्षों से काफी जोर पकड़ता जा रहा है. नडियाद, गुजरात के एक दंपती ने बताया कि 52 साल पहले गांव में हमारी शादी हुई. हमें पुराने रीतिरिवाजों का पालन करना पड़ा. परंतु शादी की स्वर्ण जयंती में हम ने अपनी नई हसरतें पूरी कीं. हम शादी के रिसैप्शन में नए जोड़ों की तरह बैठे और खूब फोटो खिंचवाए. एकदूसरे को वरमाला भी पहनाई. दूरदूर के रिश्तेदार तथा मित्रगण आए. हम उत्साह से भर गए. नईपुरानी पीढ़ी के अंतर मिट गए. पर हमारे यहां ऐसे आयोजनों में दिखावा बढ़ रहा है, इस पर लगाम कसनी जरूरी है.

कौरपोरेट हाउस का एक जोड़ा कहता है कि हम ने आपस में ही दोबारा विवाह किया. हम अपनी पहले की तलाक लेने की गलती पर शर्मिंदा हैं. हम ने आपसी सहमति से तलाक ले तो लिया, परंतु दोनों ही बिना शादी लंबे समय तक रहे. एक वक्त ऐसा आया कि एकदूसरे को मिस करना शुरू किया. न हमारे पास पैसे की कमी थी, न घर वालों का दखल और न ही निजी संबंधों की दूरी, फिर भी छोटीछोटी टसल, क्रोध प्रतिशोध जैसी भावनाएं हावी थीं. फिर दोनों सोचते थे जब कमाते हैं किसी पर निर्भर नहीं, तो क्यों झुकें और सहें? इसी में हम भूल गए कि सिर्फ कागजी रुपयों या सुख के साधनों से खुशी नहीं आती. तब हम औपचारिक तौर पर मिले फिर काउंसलिंग ली और दोबारा ब्याह किया. घर वालों ने खूब खरीखोटी सुनाई. हम ने शादी के 26वें साल का फंक्शन किया और उस में अपनेअपने अनुभव सुझाए. इतना ही नहीं हम ने अपनी गलतियां कबूलीं और एकदूसरे की खूबियां भी मन से बखानीं. जोड़ों से अनुभव सुने.

एक कर्नल कहते हैं कि हम ने जीवन में बहुत जोखिम व रिस्क देखे. 2 युद्धों में सीमा पर गया. अत: जीवन में परिवार और खुशियों का मोल बेहतर तरीके से जान सका. मेरी पत्नी ने शुरुआती दौर में मेरे बच्चे अकेले पाले. मैं ने हमेशा उन को सामाजिक फंक्शंस में थैंक्स कहा.

इन की पत्नी कहती हैं कि ये उत्सवप्रिय हैं. मांबाप की शादी की 50वीं सालगिरह में 50 जोड़ों को आमंत्रित किया था. मैं 40 की हुई तो ‘लाइफ बिगिंस आफ्टर पार्टी’ शीर्षक से पार्टी दी. हाल ही में अपने गांव व खेत में इन्होंने गंवई स्टाइल में अपना 60वां जन्मदिन ‘साठा सो पाठा’ शीर्षक से मनाया.

परिपक्वता का दौर

शादी के शुरुआती दिन व्यस्तता, अपरिपक्वता और अलगअलग स्वभाव से भरे होते हैं. पर बाद के दिन काफी सैटलमैंट वाले होते हैं. सिंघल दंपती कहते हैं कि एक समय हम मुंबई में स्टोव पर मां से रैसिपीज पूछपूछ कर खाना बनाते थे. 50वीं सालगिरह तक हमारे सब बच्चे सैटल हो गए तो हम ने पूरे यूरोप का ट्रिप किया. कहां तो कूलर तक के पैसे न थे. हम चादर गीला कर के गरमी की रातें काटते थे. अत: हम ने पुराने दिनों का जश्न जरूरत की चीजें डोनेट कर के भी मनाया. शादी की 50वीं सालगिरह के जश्न ने हमें यह बोध कराया कि असली जीवन क्या है. हम ने जीवन में क्या पाया, क्या खोया. अच्छी मेहनत, प्यार भरा साथ, दुख, संघर्ष, दूरी आदि जीवन को कितना कुछ देते हैं. सच पूछो तो हम ने अपने जीवन की खुशियों का इस फंक्शन के माध्यम से अभिनंदन किया.

तनमनधन का तालमेल जरूरी

दांपत्य जीवन में उम्र के साथ जरूरतें और भावनाएं भी अलग रुख लेती हैं. एक जोड़ा कहता है कि शुरूशुरू में बहुत झगड़ते थे. शायद ही कोई ऐसी बात हो जिस पर बिना लड़ाई हमारी सहमति बन जाती रही हो. एक बार पत्नी गुस्से में 5 दिन तक बच्चे को मेरे पास छोड़ कर चली गई. तब मैं ने बच्चे को पाला तो मेरी हेकड़ी ठिकाने आ गई. मैं ईगो भूल कर इन के घर चला गया तो मैं ने पाया ये भी सब भूल गई हैं. तब से हम ने सोचा हम लड़ेंगे नहीं. वह दिन है और आज का दिन है, मन के प्यार के बिना तन के प्यार का मजा नहीं और धन के बिना दोनों ही स्थितियां अधूरी हैं. अत: मैं ने घर की शांति से बिजनैस भी ढंग से किया. पैसा भी सुखशांति के लिए जरूरी है पर सुखशांति को दांव पर लगा कर कमाया पैसा निरर्थक लगता है. यही बात हम हर जोडे़ को समझाते हैं. छोटीछोटी खुशियां पाना सीखना चाहिए. बड़ी खुशियों का रास्ता बनाने में छोटीछोटी बातों का कारगर योगदान रहता है.

अन्य देशों में भी है ऐसी परंपरा

विवाह संस्था सभ्य समाज की सब से पुरानी संस्था है, जो सम्यक रूप से सृष्टि और दुनिया को चलाती है. आमतौर पर अच्छे दांपत्य संबंधों को हम अपने या एशियाई देशों की धरोहर मानते हैं परंतु अच्छी बात, परंपरा व संस्कारों का पूरी दुनिया खुले मन से स्वागत करती है.

हमारे यहां पाश्चात्य देशों के पारिवारिक मूल कमजोर माने जाते हैं. फ्री सैक्स के चलते समाज को मुक्त एवं उच्छृंखल समाज मान लेते हैं. परंतु वहां ऐसा नहीं है कि उन की पारिवारिक मूल्यों में आस्था न हो. हां, यह जरूर है कि वहां शादी को निभाने का आग्रह, दुराग्रह अथवा थोपन नहीं है, न ही अन्य रिश्तेदारों का इतना दखल कि उन की चाहत, अनचाहत का शादी के चलने, न चलने पर असर पड़े. वहां 7 पुश्तों के लिए धन जोड़ना और अपना पेट काट कर औलाद को मौज उड़ाने देने का रिवाज नहीं है, लेकिन वहां भी अच्छी शादी चलना प्रशंसनीय कार्य माना जाता है. चुनावी उम्मीदवार का पारिवारिक निभाव उस की इमेज बनाता है. जो घर न चला सका वह देश क्या चलाएगा की मान्यता पगपग पर देखी जाती है. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा अपनी पत्नी व बच्चों के साथ छुट्टियां बिताते देखे जाते हैं.

अमेरिका में शादी का गोल्डन जुबली मनाने पर जोड़ों को व्हाइट हाउस (राष्ट्रपति भवन) से बधाई संदेश भेजा जाता है. इंगलैंड में भी शादी के 60 वर्ष पूरे होने पर महारानी की ओर से बधाई भेजी जाती है.

यदि जरूरी हो

यकीनन विदेशों में राष्ट्र के प्रथम नागरिक और गणमान्यों द्वारा दांपत्य का यह अभिनंदन देखसुन कर हमारी भी इच्छा होती है. कि हमारे देश में भी ऐसा हो. लेकिन यह सब हमारे यहां राष्ट्रपति चाहें तब भी इतना आसान नहीं है, क्योंकि विवाह का पंजीकरण पूरी तरह नहीं होता. कई जोड़े तो ऐसे हैं जिन्हें अपने विवाह तथा जन्म की सही तिथि तक पता नहीं है.

यदि विधिवत पंजीकरण किया जाए तो संबंध विभाग ऐसे जोड़ों का अपनेअपने शहर में अभिनंदन कर सकता है. इसी तरह मृत्यु पंजीकरण भी पुख्ता हो ताकि सही सूचना के अभाव में स्थिति गड्डमड्ड न हो जाए. इसी प्रकार स्वस्थ और चलताफिरता जीवन भी ऐसे मौकों को ज्यादा ऊर्जा व जोश से भरता है, जिस में जीवन बोझिल तथा पीड़ादायक न हो. अन्यथा मजबूरी या सिर्फ दिनों की संख्या उस का उतना तथा वैसा लुत्फ नहीं उठाने देती, जिस के लिए मन मचलता है या उत्साही रहता है.

कुछ इस तरह से बनाएं पहले मिलन को यादगार

अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास:

वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग:

पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

प्यार भरा उपहार:

पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए आप एकदूसरे के लिए गिफ्ट भी खरीद सकते हैं. जो आप दोनों का पर्सनलाइज्ड फोटो फ्रेम, की रिंग या सैक्सी इनरवियर भी हो सकता है. ऐसा कर के आप माहौल को रोमांटिक और उत्तेजक बना सकती हैं.

खुल कर बात करें:

पहले मिलन को रोमांचक और यादगार बनाने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करें. अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें. अपने मन में उठ रहे सवालों के हल पूछें. एकदूसरे की पसंदनापसंद पूछें. जितना हो सके पौजिटिव रहने की कोशिश करें.

सैक्स सुरक्षा:

संबंध बनाने से पहले सैक्सुअल सुरक्षा की पूरी तैयारी कीजिए. सैक्सुअल प्लेजर को ऐंजौय करने से पहले सैक्स प्रीकौशंस पर ध्यान दें. आप का जीवनसाथी कंडोम का प्रयोग कर सकता है. इस से अनचाही प्रैगनैंसी का डर भी नहीं रहेगा और आप यौन रोगों से भी बच जाएंगी.

सैक्स के दौरान

 – सैक्सी पलों की शुरुआत सैक्सी फूड जैसे स्ट्राबैरी, अंगूर या चौकलेट से करें.

– ज्यादा इंतजार न कराएं.

– मिलन के दौरान कोई भी ऐसी बात न करें जो एकदूसरे का मूड खराब करे या एकदूसरे को आहत करे. इस दौरान वर्जिनिटी या पुरानी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड के बारे में कोई बात न करें.

– संबंध के दौरान कल्पनाओं को एक तरफ रख दें. पोर्न मूवी की तुलना खुद से या पार्टनर से न करें और वास्तविकता के धरातल पर एकदूसरे को खुश करने की कोशिश करें.

– बैडरूम में बैड पर जाने से पहले अगर आप घर में या होटल के रूम में अकेली हों तो थोड़ी सी मस्ती, थोड़ी सी शरारत आप काउच पर भी कर सकती हैं. ऐसी शरारतों से पहले सैक्स का रोमांच और बढ़ जाएगा.

– सैक्स संबंध के दौरान उंगलियों से छेड़खानी करें. पार्टनर के शरीर के उत्तेजित करने वाले अंगों को सहलाएं और मिलन को चरमसीमा पर ले जा कर पहले मिलन को यादगार बनाएं.

– मिलन से पहले फोरप्ले करें. पार्टनर को किस करें. उस के खास अंगों पर आप की प्यार भरी छुअन सैक्स प्लेजर को बढ़ाने में मदद करेगी.

– सैक्स के दौरान सैक्सी टौक करें. चाहें तो सैक्सुअल फैंटेसीज का सहारा ले सकती हैं. ऐसा करने से आप दोनों सैक्स को ज्यादा ऐंजौय कर पाएंगे. लेकिन ध्यान रहे सैक्सुअल फैंटेसीज को पूरा के लिए पार्टनर पर दबाव न डालें.

– संयम रखें. यह पहले मिलन के दौरान सब से ज्यादा ध्यान रखने वाली बात है, क्योंकि पहले मिलन में किसी भी तरह की जल्दबाजी न केवल आप के लिए नुकसानदेह होगी, बल्कि आप की पहली सैक्स नाइट को भी खराब कर सकती है.

सैक्स के दौरान बातें करते हुए सहज रह कर संबंध बनाएं. तभी आप पहले मिलन को यादगार बना पाएंगे. संबंध के दौरान एकदूसरे के साथ आई कौंटैक्ट बनाएं. ऐसा करने से पार्टनर को लगेगा कि आप संबंध को ऐंजौय कर रहे हैं.

दिल का नया रिश्ता: वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड

आप को उस के दोस्तों के नाम पता हैं. आप उस की पसंदीदा फिल्मों के नाम जानती हैं. आप उस की जिंदगी में घटी तमाम खास घटनाएं जानती हैं. आप उस पर आंख मूंद कर भरोसा करती हैं. कभीकभी वह आप को डांटता है, फिर भी आप उस की शिकायत किसी और से नहीं करतीं, न ही आप को यह सब बुरा लगता है. आप को उस के बोलने के अंदाज का पता है. उस के मन में क्या चलता रहता है, आप को इस का भी अंदाजा रहता है.

सवाल- आखिर आप का वह कौन है?

आप उस से उम्मीद करते हैं कि वह आप के पसंदीदा कपड़े पहने. आप चाहते हैं जब आप दोनों लंच करने बैठें तो खाना वह परोसे. आप चाहते हैं जब आप कुछ बोल रहे हों, भले गुस्से में तो भी वह चुपचाप सुन ले, पलट कर उस समय जवाब न दे, बाद में भले उलटे आप को डांट दे. आप उसे अपने फ्यूचर के प्लान बताते हैं, यात्राओं के दौरान घटी दिलचस्प घटनाएं बताते हैं. आप उस के साथ बैठ कर काम करने की बेहतर रणनीति पर विचार करते हैं.

सवाल- आखिर वह आप की कौन है?

जी हां पहले सवाल का जवाब है पति और दूसरे सवाल का जवाब है पत्नी. लेकिन रुकिए ये सामान्य जीवन के पतिपत्नी नहीं हैं. ये वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ हैं. वर्क हसबैंड यानी कार्यस्थल या दफ्तर का पति. इसी तरह वर्क वाइफ का भी मतलब है कार्यस्थल या दफ्तर की पत्नी. सुनने में यह भले थोड़ा अटपटा लगे या झेंप जाएं, मगर हकीकत यही है. कामकाज की नई संस्कृति के फलनेफूलने के साथ ही दुनिया भर में ऐसे पतिपत्नियों की संख्या दफ्तरों में काम करने वाले कुल लोगों के करीब 40 फीसदी है.

1950 के दशक में अमेरीका में ऐसे रिश्तों के लिए बड़ी शिद्दत से एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता था- वर्कस्पाउस. ये वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड वास्तव में उसी शब्द के विस्तार हैं. कहने का मतलब यह है कि कामकाजी दुनिया में यह कोई नया रिश्ता नहीं है. बस, नया है तो इतना कि अब इस रिश्ते को दुनिया के ज्यादातर देशों में साफसाफ शब्दों में स्वीकार किया जाने लगा है.

इसलिए हमें इस रिश्ते को ले कर आश्चर्य प्रकट करने की कोई जरूरत नहीं है. सालों से दुनिया में इस तरह के संबंधों की मौजूदगी है और हो भी क्यों न? यह बिलकुल स्वाभाविक है कि जब हम दिन का ज्यादातर समय साथसाथ गुजारते हैं तो आखिर भावनात्मक रिश्ते क्यों नहीं विकसित होंगे?

औस्कर वाइल्ड ने कहा था, ‘‘औरत और आदमी बहुत कुछ हो सकते हैं, मगर सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते. दोस्त होते हुए भी उन में औरत और आदमी का रिश्ता विकसित हो जाता है.’’

मनोविद भी कहते हैं कि जब 2 विपरीत सैक्स के लोग एकदूसरे के साथ लगाव महसूस करते हैं, तो उन का यह लगाव उन की स्वाभाविक भूमिकाओं वाला आकार ले लेता है यानी पुरुष, पुरुष हो जाता है और औरत, औरत हो जाती है.

पहले भी रहे ऐसे रिश्ते

ऐसे रिश्ते हमेशा रहे हैं और जब भी औरत और आदमी साथसाथ होंगे हमेशा रहेंगे. ऐसे रिश्ते पहले भी थे, पर उन की संख्या बहुत कम थी. इस की वजह थी औरतों का घर से बाहर निकलना मुश्किल था, दफ्तरों में आमतौर पर पुरुष ही पुरुष होते थे. मगर अब जमाना बदल चुका है. आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनों ही घर से बाहर निकल कर साथसाथ काम कर रहे हैं. दोनों का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथसाथ मिल कर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा, एक ही दफ्तर में काम करते हुए 2 विपरीत सैक्स के बीच प्रोफैशनल के साथसाथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी भी बहुत स्वाभाविक है.

एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था सिर्फ 8 घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज 8 घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट कौलर जौब वाले प्रोफैशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिस में हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभीकभी लगातार 24 से 36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथसाथ रहने वाले 2 लोग अपने सुखदुख भी साझा करेंगे, क्योंकि जब 2 लोग साथसाथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बौस की बुराई भी मिल कर करते हैं और एकदूसरे को तरोताजा रखने के लिए एकदूसरे को चुटकुले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से कैबिन में संपन्न होता है, जहां 2 सहकर्मी बिलकुल पासपास होते हैं.

ऐसी स्थिति में वे एकदूसरे को चाहेअनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्यूजिक पसंद है यह आप को भी पता होता है और उसे भी. उसे चौकलेट पसंद है या आइसक्रीम यह बात दोनों सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.

जब साथ काम करतेकरते काफी वक्त गुजर जाता है, तो हम एकदूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, बल्कि मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में 2 विपरीत सैक्स के सहकर्मी एकदूसरे के लिए अपनेआप को कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन जाते हैं. उन में आपस में झगड़ा नहीं होता. दोनों मिल कर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनों साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं यानी ऐसे सहकर्मी मियांबीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ की श्रेणी में रखा जाता है.

हो रही बढ़ोतरी

पहले इसे सैद्धांतिक तौर पर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कैरिअर वैबसाइट वाल्ट डौटकौम ने एक सर्वे किया और पाया कि 2010 में ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ करीब 30 फीसदी थे, जो 2014 में बढ़ कर 44 फीसदी हो गए हैं.

इस स्टडी के लेखकों ने एक बहुत ही जानासमझा उदाहरण दे कर दुनिया को समझाने की कोशिश की है कि वर्क वाइफ और वर्क हसबैंड कैसे होते हैं? उदाहरण यह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जौर्ज बुश व उन की विदेश मंत्री व राष्ट्रीय सलाहकार रहीं कोंडालिजा राइस के बीच जो कामकाजी कैमिस्ट्री थी, वह वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ के दायरे में आने वाली कैमिस्ट्री थी.

कितना जायज है यह रिश्ता

सवाल है क्या यह रिश्ता जायज है? क्या यह रिश्ता विश्वसनीय है? वाल्ट डौटकौम का सर्वेक्षण निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करता है कि लोग इसे एक जरूरी और मजबूत रिश्ता मानते हैं. इस सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने कहा कि दफ्तर में पसंदीदा सहकर्मी के साथ जो रिश्ते बनते हैं, वे ज्यादा विश्वसनीय और ज्यादा मजबूत होते हैं. लोग इन रिश्तों को बखूबी निभाते हैं. करीब वैसे ही जैसे कोई शादीशुदा जोड़ा अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से निभाने की कोशिश करता है. इस रिश्ते को पश्चिम में समाजशास्त्रियों ने व्यावहारिकता की कई कसौटियों में रख कर देखा है और उन्होंने पाया है कि यह रिश्ता न सिर्फ बेहद खास, बल्कि बहुत ही समझदारी भरा भी होता है.

इस रिश्ते में रोमांस नहीं होता, बस जोड़े एकदूसरे के साथ जज्बाती लगाव रखते हैं और एकदूसरे की परेशानियों और हकीकतों को बेहतर समझते हुए उस रिश्ते के लिए जमीन तलाशते हैं. हालांकि ज्यादातर ऐसे जोड़े जो ऐसे रिश्तों के दायरे में आते हैं, गहरे जिस्मानी रिश्ते नहीं रखते. लेकिन थोड़े बहुत रिश्ते तो सभी के होते हैं, मगर समाजशास्त्रियों ने अपने व्यापक विश्लेषणों में पाया है कि जिन जोड़ों के बीच जिस्मानी रिश्ते भी होते हैं, वे भी एकदूसरे की वास्तविक स्थितियों का सम्मान करते हैं और मौका पड़ने पर बहुत आसानी से एकदूसरे से दूरी बना लेते हैं, बिना किसी झगड़े, मनमुटाव के.

प्रोफैसर मैकब्राइट जिन्होंने इस सर्वे का वृहद विश्लेषण किया, उन के मुताबिक बहुत कम लोगों के बीच इन कामकाजी रिश्तों के साथ रोमानी रिश्ता होता है.

सवाल है आखिर इस रिश्ते का फायदा क्या है? इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों की मानें और सर्वेक्षण के दौरान लोगों से किए गए साक्षात्कारों से निकले निष्कर्षों पर भरोसा करें तो जब 2 सहकर्मियों के बीच वर्क वाइफ या वर्क हसबैंड का रिश्ता बन जाता है, तो वे दोनों कर्मचारी अपने काम के प्रति ज्यादा ईमानदार हो जाते हैं. उन्हें काम से ज्यादा लगाव हो जाता है और ज्यादा काम भी होता है. यही वजह है कि दुनिया की तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती हैं कि उन के कर्मचारियों के बीच वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड का रिश्ता बने तो बेहतर है.

आज दुनिया की तमाम कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए जिस किस्म का आरामदायक कार्य माहौल प्रदान कर रही हैं और दफ्तरों में जिस तरह महिलाओं और पुरुषों को करीब समान अनुपात में रख रही हैं, उस के पीछे एक सोच यह भी रहती है कि तमाम कर्मचारी अपनेअपने जोड़े तय कर के काम करें.

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक जब पुरुष और महिला एकसाथ बैठ कर काम करते हैं, तो उन में बिना किसी वजह के भी 10 फीसदी खुशी की भावनाएं होती हैं यानी जब अकेलेअकेले पुरुष या अकेलेअकेले महिलाएं काम करती हैं, तो वे काम से जल्द ऊब जाते हैं. उन का कार्य उत्पादन भी कम होता है और काम करने के प्रति कोई लगाव या रोमांच भी नहीं रहता.

मगर जब महिला और पुरुष मिल कर साथसाथ काम करते हैं, तो उन्हें एक आंतरिक खुशी का एहसास होता है, भले ही इस खुशी का कोई मतलब न हो. वास्तव में 2 विपरीत सैक्स के लोग एकसाथ समय गुजारते हुए एकदूसरे से चार्ज होते रहते हैं.

बढ़ती है काम की गुणवत्ता

तमाम सर्वेक्षणों और शोधों में यह भी पाया गया है कि जब महिला और पुरुष मिल कर काम करते हैं, तो वे न केवल ज्यादा काम करते हैं, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला काम भी करते हैं. साथ ही नएनए आइडियाज भी विकसित करते हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसी रणनीति के तहत अपने कर्मचारियों को आपस में घुलनेमिलने हेतु माहौल प्रदान करने के लिए अकसर पार्टियां आयोजित करती हैं. कर्मचारियों को एक खुशगवार माहौल में रखती हैं ताकि सब एकदूसरे की कमजोरियों और खूबियों को पहचान सकें ताकि कर्मचारियों को अपनेअपने अनुकूल साथी चुनने में दिक्कत न आए.

वर्क हसबैंड और वर्कवाइफ का चलन तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि हिंदुस्तान जैसे समाज में ही नहीं अमेरिका और यूरोप जैसे समाजों में कर्मचारी इस शब्द के इस्तेमाल से झिझकते हैं. शादीशुदा या गैरशादीशुदा दोनों ही किस्म के कर्मचारी अपने परिवार और दोस्तों के बीच इस शब्द का इस्तेमाल भूल कर भी नहीं करते. यहां तक कि आपस में भी वे कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करते या एकदूसरे को नहीं जताते कि हां, ऐसा है. मगर वे एकदूसरे से इस भावना से जुड़े हैं, यह बात दोनों जानते हैं.

ये रिश्ते टूटते हैं

जिस तरह शादीशुदा जोड़ों के बीच तलाक होता है या कईर् बार रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं अथवा कई बार उन में अलगाव हो जाता है, उसी तरह ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ के बीच भी अलगाव होता है. कई बार आप की वर्क वाइफ किसी दूसरी कंपनी में चली जाती है और आप को नए सिरे से नए साथी की तलाश करनी पड़ती है. ठीक ऐसे ही उसे भी नए सिरे से वर्क हसबैंड की तलाश करनी पड़ती है. लेकिन ऐसे मौकों पर इस तरह के अलगाव को दिल से नहीं लेना चाहिए और न ही इस का अपने कामकाज पर प्रभाव पड़ने देना चाहिए.

कई बार कुछ वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ एकदूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और वे एकदूसरे का साथ पाने के लिए अपनी उन्नतितरक्की को भी दांव पर लगा देते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक यह व्यावहारिक कदम नहीं है. इस तरह के रिश्तों के भावनात्मक जाल में फंस कर अपनी बेहतरी के मौके को गंवा देना ठीक नहीं. अगर कामयाबी की सीढि़यां चढ़ने का मौका मिला है तो हर हाल में चढ़ें, क्योंकि क्या मालूम ऊपर की सीढि़यों में कोई और बेहतर साथी आप का इंतजार कर रहा हो, जो आप की प्रोफैशनल और भावनात्मक दोनों ही किस्म की जरूरतों को पहले साथी से बेहतर ढंग से पूरा कर सकता हो.

आखिर कहां खींचें लक्ष्मणरेखा

विशेषज्ञ कहते हैं कि कार्यस्थल पर किसी के साथ प्रोफैशनल झुकाव होना यानी वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना अनैतिकता नहीं है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह रिश्ता हमेशा हमारी वास्तविक यानी घरेलू जिंदगी के लिए चिंता का विषय बना रहता है. सवाल है ऐसा क्या करें जिस से इस तरह के डर या इस तरह की चिंताओं से दूर रहा जा सके?

– कार्यस्थल पर वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना तो ठीक है लेकिन यह अक्लमंदी नहीं है कि आप घर जा कर पूरे दिन की दफ्तर की गतिविधियों की कौमैंट्री करें और सुबह दफ्तर पहुंच कर अपने विपरीतलिंगी सहकर्मी के साथ पूरी रात की गतिविधियों पर डिस्कस करें. घर और दफ्तर के बीच एक स्पष्ट सीमारेखा तय होनी चाहिए.

– यह बात हमेशा याद रखें कि न आप के वास्तविक पति का विकल्प वर्क हसबैंड हो सकता है और न ही आप के वर्कहसबैंड का विकल्प आप का वास्ततिक पति का हो सकता है. दोनों के बीच अपनीअपनी जगह, जरूरतें हैं और दोनों का अपनाअपना महत्त्व है. यही बात वर्क वाइफ और वास्तविक वाइफ के संदर्भ में भी लागू होती है. आप दोनों के बीच जिस दिन तुलना करने लगते हैं और दोनों को दोनों में तलाशने लगते हैं, उसी दिन से तनाव शुरू हो जाता है, क्योंकि कोईर् एक कमतर हो जाता है और दूसरा बेहतर.

– अपने वर्क हसबैंड के साथ कुछ मामलों में बिलकुल स्पष्ट रहें उस के साथ जितना हो सके. उस के साथ गुजारे गए समय को ही शेयर करें. न तो उसे जानबूझ कर नीचा दिखाने की कोशिश करें और न ही उस की अपने वास्तविक पति से तुलना करें. तुलना करें भी तो कभी भी यह बात उसे न बताएं. दरअसल, पुरुषों की यह कमजोर नस है कि वे खुद को सब से ऊपर ही मानना और देखना चाहते हैं. ऐसे में विशेष कर वर्क वाइफ के लिए यह दिक्कत पैदा हो सकती है. अगर वह दोनों के बारे में दोनों से बताती है. भले ही वह अलगअलग समय पर अलगअलग पुरुषों को दूसरे से बेहतर ही क्यों ने बताती हो?

Monsoon Special: रिमझिम फुहार जगाए प्यार

जेठ महीने की चिलचिलाती गरमी ने किरण के स्वभाव में इतना चिड़चिड़ापन भर दिया था कि उस का किसी से बात करने का मन नहीं करता था. लेकिन मौसम ने करवट क्या ली, सब कुछ बदलाबदला महसूस होने लगा. एक ओर जहां बादलों ने सूरज की तपिश को छिपा लिया, वहीं दूसरी ओर बारिश की बूंदों ने महीनों से प्यासी धरती को शीतलता प्रदान कर दी. बारिश की बूंदों ने किरण के तनमन को छुआ तो मानो उस के बेजान जिस्म में जान आ गई और स्वभाव का चिड़चिड़ापन भी जाता रहा. रात को औफिस से किरण के पति सुनील घर लौटे तो दरवाजे पर उसे सजधज कर इंतजार करते हुए खड़ा पाया. वे कमरे में दाखिल हुए, तो सब कुछ रोमांटिक अंदाज में सजा कर रखा हुआ पाया. फ्रैश हो कर डिनर पर बैठे तो देखा रोमांटिक कैंडल लाइट डिनर का आयोजन था और किरण की आंखों में रोमांस और प्यार साफ नजर आ रहा था. खाना परोसा गया तो उन्हें प्लेट में सारी अपनी पसंद की डिशेज नजर आईं. सुनील को समझते देर नहीं लगी कि ये सब बारिश की बूंदों का असर है. उस ने भी पौकेट से खूबसूरत फूलों का गजरा निकाला और किरण के लंबे, घने और काले खुले केशों पर बड़े प्यार से सजा दिया. दरअसल, सुनील के औफिस से निकलते ही जब बारिश होने लगी, तो रिमझिम फुहारों ने उसे भी रोमांटिक बना दिया. तभी किरण के लिए उस ने गजरा खरीद लिया था.

जब रिमझिम बरसा पानी

कैंडल लाइट डिनर को अभी दोनों ऐंजौय कर ही रहे थे कि बादलों ने एक बार फिर से रिमझिम बरसना शुरू कर दिया. किरण तो मानो इस पल के इंतजार में थी. उस ने हौले से सुनील की कलाई थामी और आंखों में आंखें डाल कर सुनील को बगीचे तक ले गई. बारिश की रिमझिम फुहारें, हाथों में उन का हाथ और ‘रिमझिम से तराने ले के आई बरसात…’, ‘ये रात भीगीभीगी ये मस्त फिजाएं…’, ‘एक लड़की भीगीभागी सी…’, ‘आज रपट जाएं तो हमें न…’, ‘रिमझिम गिरे सावन उलझउलझ जाए मन…’ जैसे रोमांटिक गानों का साथ मिल जाने पर भला कौन ऐसा प्रेमी होगा, जो खुद को थिरकने से रोक सकेगा. दोनों खूब थिरके. कुछ ऐसा ही मौका एक प्रेमी युगल को भी मिला. लंबे समय बाद इस बार दोनों को एकांत में मिलने का मौका मिला था. उन की ग्रैजुएशन की पढ़ाई के दौरान किसी ने कभी भी उन्हें अलग नहीं देखा था. दोनों ने तभी तय कर लिया था कि जौब मिलते ही वे शादी कर लेंगे, लेकिन एक कांपिटीशन क्लीयर करने के बाद टे्रनिंग के लिए जब दोनों को अलग होना पड़ रहा था, तो उन के दोस्त उन का रोनाधोना देख कर बाहर निकल गए थे.

अब जब 2 साल बाद दोनों मिले हैं, तो बस एकदूसरे को देखे ही जा रहे हैं. न तो सचिन की आवाज निकल रही है और न ही स्मिता की. दोनों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या पूछें, कैसे पूछें. तभी बाहर बिजली के कड़कने की आवाज हुई और पल भर में ही पड़ने लगीं फुहारें. बाहर धरती गीली हो रही होती है तो अंदर मन भी भीगता है, तभी तो स्मिता के जड़ पड़े होंठ कह उठे, ‘‘आज भी नहीं बदले, बिलकुल वैसे ही हो. सारा सामान बिखेर कर रखा हुआ है. हटो, मैं ठीक कर देती हूं.’’ सचिन भी कहां खामोश रहना चाहता था. बारिश की बूंदों ने उसे भी तो गीला कर दिया था. मन से भी और तन से भी. उसे याद आने लगा था वह मंजर, जब दोनों पहली बार बारिश में मतवाले हो कर भीगे थे और हाथों में हाथ थामे एकदूसरे पर रीझे थे. आज एक बार फिर उसी अंदाज में भीगने को आतुर हो रहे हैं दोनों. ऐसे में सचिन ने भूख का बहाना बना कर स्मिता से बाहर जाने के लिए पूछा. स्मिता कहां मना करने वाली थी. वह भी तो उन यादों का हिस्सा थी. बाहर निकलते ही पल भर में ही दोनों पूरी तरह से भीग चुके थे, लेकिन खानेवाने की बात दोबारा किसी ने नहीं की.

दरअसल, भूख का तो महज बहाना था. असल में तो उन्हें एकदूसरे के करीब आना था. हुआ भी वही. बारिश की बूंदों में फूट पड़े दोनों के पुराने प्यार के अंकुर. अब तो एकदूसरे की बांहों में समाने की इच्छा भी जोर मारने लगी थी. लगातार तेज होती जा रही बारिश में दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था, तो दोनों लिपट पड़े एकदूसरे से.

जगाता तनमन में प्यार

सचमुच, सावन चीज ही ऐसी है. कमबख्त इश्क की तरह मन पर छा जाए तो तन भी अपने बस में नहीं रहता, मचलने लगता है. तभी तो रचनाकारों की रचनाओं और गीतकारों के गीतों में सावन और रिमझिम फुहारों को अलगअलग भाव, अंदाज और ढंग से पेश किया जाता रहा है. एक दार्शनिक की नजर से देखें तो धरती और आसमान के खूबसूरत समागम का प्रतीक है सावन का मौसम और अन्य प्राणियों के लिए यह संदेश कि सृजन का मौसम आ गया. धरती यानी स्त्री और आसमान यानी पुरुष, जब तक दोनों पास नहीं आते, सृजन का आधार अधूरा रहता है. तभी तो गरमी और लू के थपेड़ों से फटी धरती आसमान से बूंदों की बौछार पाते ही नवयौवना सी खिल उठती है. मानो कह रही हो कि सृजन के लिए अब वह पूरी तरह से तैयार है. ये रिमझिम फुहारें ही तो हैं, जो पुरुष और स्त्री के बीच भी ऐसे भाव जगाती हैं. समाजशास्त्री अमित कुमार कहते हैं, ‘‘हर मौसम का अपना महत्त्व और मिजाज है. जेठ की दोपहर न हो तो सावन की रिमझिम बेमानी है. आज हम कहते हैं कि ताउम्र प्यार बनाए रखना है, तो बीचबीच में एकदूसरे से दूर रहने की आदत डाल लो. न रिश्ते बासी होंगे, न प्यार फीका होगा, क्योंकि दूरियों के बाद ही एकदूसरे के प्रति मुहब्बत और उस की जरूरत का एहसास हो पाता है. कुछ ऐसी ही फिलौसफी प्रकृति की भी है. तभी तो लू के थपेड़ों के बाद होती है मीठी रिमझिम और यही कुदरती तालमेल प्रेमी युगलों को उन्मादी बनाता है.’’

दांपत्य और प्रेम के रिश्तों पर खास पकड़ रखने वाली मैरिज काउंसलर विनीता महापात्रा बताती हैं, ‘‘अजीब इत्तफाक है, मगर एक खूबसूरत सच लिए. मैरिज काउंसलिंग के दौरान हम ने अकसर पाया है कि उलझे हुए रिश्तों को सुलझाने या पार्टनर के दिल में प्यार जगाने में सावन का महीना या यों कहें कि रिमझिम फुहारें बेहद कारगर साबित होती हैं. मनोविज्ञान से जुड़ा है यह मौसम. ‘‘आप ही बताइए, प्यार और रोमानियत के लिए किन बुनियादी चीजों की जरूरत होती है. खूबसूरत माहौल, खुशगवार मौसम, आसपास खिले रंगबिरंगे फूल, भीनीभीनी खुशबू और तरंगित मन, है न. लेकिन रिमझिम फुहारों के बीच बिना कुछ किए ही स्वत: सब कुछ हो जाता है. कई बार हम ने पाया है कि जिन रिश्तों की आग आपसी तकरार से ठंडी पड़ने लगी थी, उन्हें जब हम ने सावन के मौसम में किसी खूबसूरत इलाके में चंद दिन एकांत में गुजारने की सलाह दी, तो उम्मीद से बढ़ कर परिणाम आए. उन जोड़ों ने माना कि मौसम में इतनी कशिश होती है, यह अब जाना.’’

क्या कहता है शोध

सावन के महीने को ले कर भले पहले जैसी कशिश न रह गई हो, लेकिन मौसम और मन का संबंध तो आज भी नहीं बदला. जरा सी बारिश होते ही हम आज भी खुशी से गुलफाम हो जाते हैं. यदि प्यार में गिरफ्तार हैं तो मन मचलने लगता है, क्योंकि प्यार करने वालों को प्यार के लिए ऐसे ही किसी मौके की तलाश रहती है. प्यार पर शोध करने वाले मानते हैं कि रिमझिम फुहारों और हारमोनल स्राव का गहरा रिश्ता है. प्यार का हारमोन फूलों की मादक खुशबू, खूबसूरत माहौल या किसी खास तरह का खाना खाने के बाद स्रावित होता है, जो प्यार करने को उकसाता है. ऐसे ही यह हारमोन सावन के मौसम में भी सक्रिय हो जाता है. गरमियों में यह जितना सुस्त होता है, बरसात में उतना ही चुस्त. इंसानों का ही नहीं, बाकी जीवों के लिए भी है यह ‘मेटिंग सीजन’ यानी सहवास का मौसम. अब तो आप मानेंगे न कि रिमझिम फुहारें जगाती हैं तनमन में प्यार.

पति-पत्नी के बीच जब वो आ जाए

अमृता प्रीतम ऐसी पहली साहित्यकार हैं जिन के साहित्य से ज्यादा उन से जुड़े प्रेमप्रसंग पढ़े जाते हैं. आज का युवा यह जान कर हैरत में पड़ सकता है कि घोषित तौर पर लिविंग टूगैदर का चलन दरअसल में अमृता प्रीतम ने ही शुरू किया था जो अपने एक प्रेमी इमरोज के साथ 40 साल एक छत के नीचे रहीं.

लेकिन वे अपने ही दौर के अपने ही जितने मशहूर गजलकार साहिर लुधियानवी से भी प्यार करती थीं और इस के भी और पहले वे अपने शादीशुदा कारोबारी पति प्रीतम सिंह से प्यार करती थीं इसीलिए उन्होंने अपना तखल्लुस यानी उपनाम प्रीतम कभी हटाया नहीं वरना तो शादी के पहले उन का नाम अमृता कौर हुआ करता था. प्रीतम से उन्हें 2 बच्चे भी हुए थे, लेकिन तलाक के बाद लोग इमरोज जो पेशे से चित्रकार थे को ही उन का पति समझते थे. प्रीतम का रोल तो तलाक के साथ ही खत्म हो गया था.

कहने का मतलब यह नहीं कि अमृता प्रीतम नाम की साहित्यकार जिन्हें अपनी रचनाओं के लिए ढेरों छोटेबड़े  पुरस्कार और सम्मान देशविदेश से मिले ने प्यार और व्यभिचार में फर्क ही खत्म कर दिया था बल्कि सच तो यह है कि उन्होंने प्यार के असल माने उस दौर में समझए थे जब किसी तलाकशुदा या शादीशुदा और विवाहित महिला का प्यार करना पाप और किसी अविवाहिता का प्यार में पढ़ना चरित्रहीनता अपराध, नादानी, बहकना या गलती समझ जाता था.

आज का युवा अमूमन अमृता इमरोज और साहिर जैसा ही प्यार कर रहा है जिस में घर और समाज के दखल के लिए कोई स्पेस ही न हो और प्यार में हमेशा बंधे रहने की कसमेंरस्में यानी वर्जनाएं भी न हों. 2019 में अमृता प्रीतम की जन्मशताब्दी पर गूगल पर सब से ज्यादा उन के प्रेमप्रसंग सर्च किए गए थे. इन में भी युवाओं की खासी तादाद थी जिस के मद्देनजर कहा जा सकता है कि उन में से अधिकांश इस ट्राइऐंगुलर में अपनी किसी परेशानी का हल ढूंढ़ रहे थे.

बहुत बड़ी चुनौती

अब न अमृता हैं, न साहिर हैं और न ही प्रीतम और इमरोज हैं, लेकिन उन के प्यार के किस्से मिसाल और सबक नई पीढ़ी के लिए बन रहे हैं तो उस की खासीयत यह है कि कोई कभी किसी के लिए न तो पजैसिव हुआ और न ही किसी ने जरूरत से ज्यादा त्याग किया. चारों किरदारों ने जो कुछ भी था उसे सहज रूप से स्वीकार लिया था जिस से लगता है कि सच्चा प्यार करने की पहली शर्त बहुत बड़ा दिल और उदारता है जिस में आप अपनी पत्नी के ऐक्स प्रेमी या पति को सहज स्वीकार लें.

एक भारतीय पति के लिए यह सिचुएशन बहुत बड़ा चैलेंज होती है कि वह अपनी पत्नी के पूर्व पति या प्रेमी के सामने पड़ने पर कैसे रिएक्ट करे. हरकोई इमरोज या साहिर लुधियानवी तो नहीं हो सकता जो कबीर दास के दोहे- प्रेम गली अति सांकरी जा में दो न समाय… बाला मिथक तोड़ दे. हरकोई प्रीतम भी नहीं हो सकता जो यह जानतेसमझते कि पत्नी किसी और से प्यार करने लगी है इसलिए सहूलियत से तलाक दे दे.

दिलचस्त बात

हालांकि एक बड़ी दिलचस्प बात देशभर से पिछले दिनों में यह सामने आनी है कि कुछ पतियों ने दीनदुनिया की परवाह न करते हुए अपनीअपनी पत्नी की शादी उस के प्रेमी से करवा कर एक नई मिसाल कायम कर दी नहीं तो रोजरोज ऐसी खबरें आना भी आम बात है जिन में पति ने पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी क्योंकि वह उस का कहीं और अफेयर बरदाश्त नहीं कर पा रहा था या फिर यह कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ठिकाने लगा डाला.

इन में समझदार कौन? इस सवाल का जवाब बहुत स्पष्ट है कि वे पति जिन्होंने अपनी पत्नी का हाथ उस के प्रेमी के हाथों में सौंप कर खुद की चैन की नींद और सुकून भरी जिंदगी का इंतजाम कर लिया. वे शक और बदले की आग में नहीं जले और न ही होश या नशे में पत्नी को कुलटा कहा या उस से मारपीट की यानी उस के प्रति हिंसा नहीं की जो कई परेशानियों और कलह की वजह बनती है और इस से किसी को कुछ हासिल नहीं होता.

‘वो’ के चक्कर में तबाही

पत्नी के पूर्व पति या प्रेमी से सामना होने पर क्या करें यह सवाल ही किसी भी पति को असहज कर देने वाला है. सभ्य और आधुनिक होते समाज का यह वह दौर है जिस में इस वो को ले कर आए दिन हंसतेखेलते घर उजड़ रहे हैं. अभी तक प्यार करना पुरुष का ही अधिकार माना जाता था, लेकिन अब उलटी गंगा बहने लगी है जो अपने साथ तबाही का तूफान ले कर आती है और हैरत की बात यह कि इस का खमियाजा अकसर पति को ही भुगतना पड़ता है. ऐसे हादसे रोजमर्रा की बात हो चले हैं जिन में पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी.

बीती 25 फरबरी को राजस्थान के बीकानेर जिले के महाजन नाम के कसबे में नहर के पास

22 वर्षीय आमिर की लाश मिली. पुलिस की जांच में उजागर हुआ कि हत्या आमिर की पत्नी सुलताना और उस के प्रेमी समीर ने की थी. 19 वर्षीय सुलताना को बीती 16 मार्च को गिरफ्तार किया गया.

आमिर और उस के परिवारजनों को सुलताना के प्रेमप्रसंग की भनक शादी के वक्त से ही थी, लेकिन इज्जत के चलते वे खामोश रहे. पतिपत्नी में कलह इस बात को ले कर होती रहती थी. तंग आ कर समीर ने सुलताना से कहा कि जब तक तुम्हारा पति जिंदा है तब तक हम एक नहीं हो पाएंगे फिर दोनों ने मिल कर आमिर को ठिकाने लगा दिया पर अब जेल में हैं यानी एक नहीं हो पाए.

खतरनाक अंजाम

दिल्ली के बेगमपुर इलाके के 35 वर्षीय करोड़पति डेयरी कारोबारी प्रदीप की लाश 21 फरवरी को मिली थी. पुलिस जांच में पता चला कि यह साजिश पत्नी सीमा और उस के प्रेमी गौरव ने रची थी जो सीमा और प्रदीप की शादी के पहले से ही एकदूसरे को प्यार करते थे और इतना करते थे कि गौरव ने उत्तर प्रदेश से दिल्ली आकर प्रदीप के मकान में एक कमरा ही किराए पर ले लिया था. एक होने के लिए प्रदीप को रास्ते से हटाने के लिए इन्होने प्लानिंग कर भाड़े के हत्यारों को 20 लाख रुपए दिए थे.

होते हैं विवाद

यानी पत्नी के ‘वो’ को ले कर फसाद अब ऊंची सोसायटी में भी आम होने लगे हैं. एक दिलचस्प मामला भोपाल के पौश इलाके कटारा हिल्स का है. पत्नी संगीता और उस के सौफ्टवेयर इंजीनियर प्रेमी आशीष पांडे ने पति धनराज मीणा की अपने फ्लैट में डंडे से पीटपीट कर हत्या कर दी और दूसरे दिन लाश को ठिकाने लगाने की गरज से दिनभर शहर में घूमते रहे? लेकिन कोई मौका या एकांत जगह नहीं मिली तो दोनों कटारा हिल्स थाने पहुंचे और कार की डिग्गी खोल कर धनराज की लाश खुद पुलिस वालों को बरामद करवा दी.

यहां संगीता ने बड़ी मासूमियत से स्वीकारा कि उस ने प्रेमी के सहयोग से अपने पति की हत्या कर दी. आशीष को ले कर धनराज और संगीता में आए दिन विवाद होता था.

ऐसे 90 फीसदी मामलों में मारा पति ही गया तो जाहिर है इस की वजह पत्नी के वो को सहज स्वीकार न कर पाना है जिस की बहुत ज्यादा उम्मीद भी नहीं करने चाहिए. खुद महिलाएं भी इस बात को जानतीसमझती हैं कि पति उन के विवाह पूर्व पति या प्रेमी को बहुत ज्यादा दरियादिली से नहीं ले पाएगा क्योंकि शादी की पहली रात उस का पहला सवाल यही होता है कि देखो तुम्हारा पहले कभी कहीं अफेयर रहा हो तो अभी बता दो.

मगर अब पूरी तरह ऐसा नहीं है. बैंगलुरु में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब कर रहे भोपाल के आर्यमान का कहना है कि अधिकांश युवा जानते हैं कि लगभग सभी लड़कियां शादी के पहले प्यार करती ही हैं क्योंकि आजकल आजादी और प्यार के मौके उन्हें भी बराबर मिल रहे हैं.

बदलता नजरिया

आजकल लड़कियां अपने अफेयर छिपाती नहीं हैं जो भविष्य के लिहाज से अच्छी बात है. आर्यमान अपने 2 दोस्तों का हवाला देते बताते हैं कि उन्हें पत्नी के अफेयर के बारे में मालूम था. इन में से एक तो बाकायदा पत्नी के पहले प्रेमी से मिला भी था और उसे घर पर डिनर के लिया इनवाइट भी किया था. तो क्या नए दौर के पतियों ने इस मसले पर रोना, कल्पना, चिढ़ना छोड़ दिया है और उन्हें पत्नी की बेवफाई से कोई गिलाशिकवा नहीं रह गया है? क्या भारतीय समाज अंगरेजी दां हो गया है?

इन सवालों पर आर्यमान के मुंबई के एक बड़े मल्टीनैशनल बैंक में काम कर रहे सारांश (बदला नाम) कहते हैं कि नहीं ऐसा नहीं है पत्नी का अफेयर पूरी दुनिया में कहीं सहज स्वीकार नहीं किया जाता.

मैं ने अपनी पत्नी के प्रेमी को डिनर पर आमंत्रित इसलिए किया था कि दोनों को समझ आ जाए कि अब उन के बीच मामूली दोस्ती भर रह गई है और पत्नी नेहा (बदला नाम) भी मुझ पर पूरा भरोसा कर सके क्योंकि उस ने मुझे शादी के पहले ही सब बता दिया था. हां अचानक यह सब हुआ होता तो जरूर मुझे तनाव होता.

जब हटता है राज पर से परदा

मगर आमतौर पर सभी युवा इतने समझदार नहीं होते. भोपाल की 28 वर्षीय वर्तिका (बदला नाम) को उन के पति ने 3 साल पहले शादी के 4 महीने बाद ही छोड़ दिया था क्योंकि एक दिन उन का प्रेमी घर आ धमका था. तब दोनों पुणे में नौकरी करते हुए किराए के फ्लैट में रहते थे.

पति पहले तो अचकचाया और सामान्य होने की कोशिश या यों कह लें कि सच का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर ही रहा था कि प्रेमी ने अपने और वर्तिका के नैनीताल ट्रिप का जिक्र कर डाला. इस ट्रिप के कुछ अंतरंग पलों के बारे में वह कुछ बोला ही था कि पति ने आपा खोते हुए भद्दी गालियां बकते हुए उसे घर से निकाल दिया. जातेजाते गुस्से में प्रेमी ने भी कह दिया कि मैं तो अच्छी दोस्ती और रिलेशन की उम्मीद ले कर आया था, लेकिन तुम तो निहायत घटिया इंसान निकले जो इत्तफाक से वर्तिका जैसी सुंदर और प्रतिभावान लड़की का पति बन गया. अब जिंदगीभर मेरी जूठन चाटते मुझे याद करते रहना.

उस के जाने के बाद पति ने वर्तिका की तुलना वेश्याओं से कर डाली. यह सीन मानसिकता और व्यवहार के मामले में ठीक झग्गीझेंपड़ी सरीखा था. फर्क इतना भर था कि किरदार साफ सुथरे कपडे़ पहने थे, अंगरेजी स्कूलकालेज में पड़े थे, अच्छी नौकरियां कर रहे थे और सभ्य व आधुनिक समाज का हिस्सा माने जाते. उस के जाने के बाद तो मेरी घरगृहस्थी बसने के पहले ही उजड़ गई.

वर्तिका बताती है कि पति ने एक बार फिर मुझे केरैक्टरलैस कहते घर से बाहर कर दिया. वह रात मैंने एक होटल में बिताई और दूसरे दिन की फ्लाइट से भोपाल आ कर मम्मीपापा को सारी बात बताई. दुख तो तब और बढ़ा जब उन दोनों ने भी मुझे गलत ठहराया, लेकिन मुझे चिंता न करने की भी हिदायत दी कि कभीकभी ऐसा होता है और वे पति से बात कर उसे समझ लेंगे.

क्या करें जब कोई हल न निकले

मगर आज तक कोई हल नहीं निकला. दोनों के तलाक का मामला अदालत में चल रहा है. पति ने उस के पिता से साफ कह दिया कि अब कुछ नहीं हो सकता. मैं किसी और की झठन चाट कर स्वाभिमान के साथ जिंदा नहीं रह सकता. आप ने और आप की लड़की ने मुझे धोखा दिया है.

अगर वह पहले बता देती कि वह शादी के पहले किसी और के साथ नैनीताल के एक होटल में 2 रातें गुजार चुकी है तो मैं शायद एडजैस्ट कर लेता, लेकिन उस के ऐक्स ने मेरी बेइज्जती की है, मेरी मर्दानगी को ललकारा है. मैं आत्महत्या नहीं कर रहा हूं यही बहुत है. अब आप तलाक के बाद उस के प्रेमी से ही उस की शादी करवा दें तभी सब सुखी और खुश रहेंगे.

अप्रत्याशित घटना

इस मामले में सब से बड़ी गलती वर्तिका के ‘वो’ की है. शक उस की मंशा और नीयत पर भी किया जा सकता है. इस के बाद खुद वर्तिका की गलती है जिस ने पति को अल्ट्रामाडर्न समझ और प्रेमी को घर आने दिया वह भी शादी के तुरंत बाद जब दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह समझ भी नहीं पाए थे.

वर्तिका के पति ने वही रिएक्ट किया जो कोई भी पति करता लेकिन उसने बहुत बड़े दिल से काम नहीं लिया. अगर बारीकी से देखें तो उस के गुस्से की वजह पत्नी के ऐक्स की वे बातें ज्यादा थीं जो इस वक्त में करना गैरजरूरी था. सामान्य बातचीत होती तो यह नौबत नहीं आती.

खुद वर्तिका अब यह मानने लगी है कि जो भी उस शाम हुआ वह अप्रत्याशित था और एकदम कुछ न सोच पाने के कारण वह प्रेमी को टरका नहीं पाई और इस से भी ज्यादा अहम बात यह कि उसे पति को शादी के पहले सबकुछ बता देना चाहिए था. लेकिन प्रौस्टीट्यूट कहने और घर से निकालने के फैसले पर सोचना उसे भी चाहिए था. किसी को भी इस तरह पत्नी तो क्या किसी भी औरत का अपमान करने का हक नहीं. ऐसे गंवार के साथ कोई लड़की जिंदगी नहीं गुजार सकती. मैं ने और लड़कियों की तरह प्यार किया था कोई गुनाह नहीं किया था.

महंगा पड़ता है सच बताना

ठीक ऐसी ही परिस्थिति से डेढ़ साल पहले कानपुर के युवा पिंटू को दोचार होना पड़ा था जब शादी के चंद दिनों बाद ही खुमारी उतरने से पहले ही उसे लगा कि पत्नी कोमल मोबाइल फोन पर किसी से कुछ ज्यादा ही बतियाती रहती है. उस ने इस बाबत उस से पूछा तो शुरुआती नानुकुर के बाद कोमल ने सच बता दिया कि यह शादी तो उस ने घर वालों के दबाव में की नहीं तो वह तो स्कूल के दिनों से ही पंकज नाम के लड़़के से प्यार करती है और उसे कभी भूल नहीं पाएगी.

सुन कर पिंटू को जोर का झटका लगा, लेकिन उस ने खुद को संभाल लिया और अपने ‘सौत’ से खुद मिला.

पिंटू जलाभुना नहीं, न ही उस ने पत्नी व ससुराल वालों पर धोखा देने का आरोप लगाया और न ही वर्तिका के पति की तरह पत्नी के चरित्र पर ऊंगली उठाई बल्कि कोमल और पंकज के सच्चे प्यार का कायल हो गया. इस के पहले उस ने पति का फर्ज निभाते हुए कोमल को समझया पर उस ने अपना दिल खोल कर रख दिया तो वह पसीज उठा और पत्नी की शादी प्रेमी से करवा दी.

इस के लिए पहले उस ने बाकायदा कोमल को तलाक दिया और खुद की मौजूदगी में पत्नी के 7 फेरे प्रेमी से पड़वा दिए. कोई अनहोनी या अड़ंगा पेश न आए इस के लिए उस ने पुलिस की मदद भी ली. इस त्याग और समझ की चर्चा देश भर में हुई जिस का असर भी हुआ था. इस के बाद से ऐसी खबरें भी आने लगीं जिन में पति ने पत्नी के प्रेमी को सहज स्वीकार लिया.

पौराणिक मानसिकता

यह भी सच है कि अमृता, इमरोज और साहिर जैसे आभिजात्य कलाकार अपना एक अलग समाज बना लेते हैं, जिस में स्वतंत्रता और उच्छृंखलता में कोई खास फर्क नहीं रह जाता, लेकिन औसत समाज अपने ही बनाए कायदेकानूनों के मकड़जाल में फंसा छटपटाता रहता है. यह पौराणिक मानसिकता है कि कोई पति, पत्नी के ‘वो’ को ले कर तिलमिला उठता है और उस का सामना आमतौर पर सहज दिखने की कोशिश करता हुआ करता है, लेकिन बाद में उस की मर्दानगी हिंसा और शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना की शक्ल में पत्नी पर उतरती है.

यहां से अकसर एक अपराध कथा की स्क्रिप्ट का भी जन्म होता है. जितना पति पत्नी को अपनी दासी और जायदाद मानते हुए परेशान और प्रताडि़त करता है पत्नी उतनी ही शिद्दत से प्रेमी के और नजदीक पहुंचती जाती है और फिर एक दिन अखबार की सुर्खी इस तरह के शीर्षक के साथ बनती है कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी.

कानपुर का पिंटू भी यही सब करता तो मुमकिन है उस का हश्र भी भोपाल के धनराज या दिल्ली के प्रदीप जैसा होता, इसलिए पत्नी के प्रेमी से पेश आने के पहले बहुत सोचसमझ लेना चाहिए. किसी भी तरह की हिंसा या पत्नी को किश्तों में कल्पा कर सजा देना और खुद भी घुटते रहना इस समस्या का हल नहीं.

बौयफ्रेंड का परिवार उसकी शादी कहीं और करना चाहता है, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 24 साला अनाथ हिंदू लड़की हूं और स्टेज शो करती हूं, मैं तलाकशुदा हूं. 30 साल के मुसलिम लड़के के साथ मैं डेढ़ साल से सेक्स कर रही हूं. मैं पेट से भी हुई, पर बच्चा अपने आप गिर गया. लड़के के घर वाले उस की कहीं और शादी करना चाहते हैं, पर वह नहीं चाहता. मैं क्या करूं?

जवाब

अगर वह लड़का कहीं और शादी नहीं करना चाहता, तो फिर दिक्कत क्या है? जब वह आप के साथ डेढ़ साल से सो रहा है, तो अब तक उसे आप से शादी कर लेनी चाहिए थी. आप अपने प्रेमी को जल्दी से जल्दी शादी करने के लिए कहें. अगर वह आनाकानी करे, तो समझ जाएं कि वह आप का फायदा उठा रहा था, तब उसे पूरी तरह छोड़ दें.

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वर्जिनिटी या कौमार्य के बारे में क्या आप को सही जानकारी है

वर्जिनिटी (कौमार्य) को व्यक्ति के संभोग से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जिस व्यक्ति ने पहले कभी भी सेक्स नहीं किया हैं वह वर्जिन है. इस विषय को लेकर लोगों में कई तरह की बातें प्रचलित है. किसी के साथ सेक्स करना और वर्जिनिटी को खोना, दो अलग-अलग बातें हैं, जिस पर विशेषज्ञ कई तर्क रखते हैं. कई लोगों का मानना है कि महिला के साथ योनि सेक्स करने से वर्जिनिटी खो जाती है, जबकि कई बार योनि सेक्स न करके भी कई अन्य यौन गतिविधि (ओरल सेक्स व एनल सेक्स) करने से भी वर्जिनिटी खो जाती है.

एक महिला में वर्जिनिटी पूरी तरह से हाइमन के सही होने या न होने पर निर्भर करती है. विशेषज्ञों का कहना है कि वर्जिनिटी को हाइमन से जोड़कर देखना बेहद ही गलत है, क्योंकि इसके खोने की कई अन्य वजह भी होती हैं.

हाइमन झिल्ली क्या है?                 

हाइमन योनि मुख के पास ऊतकों से बनी एक पतली झिल्ली होती है. हाइमन के बारे में लोग मानते हैं कि योनि जब तक पूरी तरह से नहीं खुलती तब तक हाइमन (योनिद्वार) सुरक्षित रहती है. वहीं योनि के खुलते ही हाइमन झिल्ली टूट जाती है. वैसे देखा जाए तो हाइमन में प्राकृतिक रूप से इतना बड़ा छिद्र होता है, जिससे माहवारी के दौरान आपको कोई परेशानी नहीं होती है. इसके अलावा आप टैम्पोन भी आसानी से इस्तेमाल कर सकती हैं.

कुछ महिलाएं जन्म से ही बहुत ही छोटे हाइमन ऊतकों के साथ पैदा होती हैं, जिसे पहली नजर में देखने पर यह लगता है कि उनकी योनि में हाइमन की झिल्ली मौजूद नहीं है, जबकि कुछ दुर्लभ मामलों में हाइमन की झिल्ली महिलाओं की योनि को पूरी तरह से आवरण में लिए होती है, इन मामलों में डॉक्टरों की मदद से इसके अतिरिक्त ऊतकों को हटा दिया जाता है.

सामान्यतः पहली बार सेक्स करने के दौरान हाइमन की झिल्ली पर दबाव व खिंचाव पड़ता है. जिससे हाइमन के टूटने पर योनि में दर्द के साथ ही खून भी निकलता है, लेकिन ऐसा हर महिला के साथ हो, यह जरूरी नहीं है. हाइमन की झिल्ली के टूटने के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं. साइकिल चलाने, दौड़ने व घुड़सवारी से भी कई बार हाइमन की झिल्ली टूट जाती है. एक बार महिलाओं की हाइमन की झिल्ली टूट जाए तो यह प्राकृतिक रूप में दोबारा विकसित नहीं हो पाती है.

वर्जिनिटी टेस्ट कैसे होता है

वर्जिनिटी या कौमार्य को जांचने के लिए जो परीक्षण किया जाता है उसमें हाइमन (योनिद्वार की झिल्ली) की मौजूदा स्थिति को ही जांचा जाता है. इस परीक्षण (Test/ टेस्ट) में यह माना जाता है कि हाइमन संभोग के बाद ही टूट या फट सकती है. इस टेस्ट को दो उंगलियों का परीक्षण (Two fingers Test) भी कहा जाता है. बताया जाता है इस तरह के टेस्ट को करने की प्रक्रिया की खोज सन 1898 में की गई थी. इस तरह की जांच के परिणामों की सटिकता न होने के कारण यह टेस्ट आज भी विवादस्पद विषय बना हुआ है. कई देशों ने इस परीक्षण को मानवीय कानूनों का उल्लघंन मानते हुए अवैध करार दिया है.

कई देशों में दो अंगुलियों के टेस्ट से ही किसी रेप पीड़िता की भी जांच की जाती है. इसमें अंदर प्रवेश करने वाली अंगुलियों के आधार पर डॉक्टर अपने विचार देता है और बताता है कि महिला के साथ किसी तरह की घटना हुई है या नहीं. एक रिपोर्ट में इस बात को बताया गया है कि महिला के योनिद्वार के लचीला होने का संबंध किसी भी तरह से बलात्कार से नहीं होता है. इसके साथ ही इस रिपोर्ट में दो अंगुलियों से किए जाने वाले टेस्ट को भी न करने की सलाह दी गई है.

क्या हाइमन झिल्ली का सही होना ही आपकी वर्जिनिटी को बताता है?

इस विषय पर लंबे समय से बहस चल रही है, जबकि साइंस और चिकित्सा जगत इस बारे में अपने अलग ही तर्क समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि जिन महिलाओं की योनि में हाइमन झिल्ली टूटी हुई होती है, वह वर्जिन यानि की कौमार्य नहीं हैं. वहीं हाइमन से जुड़े कुछ मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि यह महिलाओं में जन्म से ही अधिक खुली हुई होती है, जबकि कई खेलों में हिस्सा लेने के दौरान भी हाइमन झिल्ली टूट जाती है, ऐसे में हाइमन को किसी महिला की वर्जिनिटी से जोड़ कर देखना बेहद गलत है.

हाइमन को ठीक करने की सर्जरी

हाइमन यानि योनिद्वार पर बनी ऊतकों की झिल्ली सेक्स या अन्य कारण से भी फट सकती है. कई बार तो कुछ महिलाओं के योनिद्वार पर इस प्रकार की झिल्ली होती ही नहीं हैं, ऐसे में उन महिलाओं के लिए अपनी वर्जिनिटी को साबित करने में मुश्किल हो सकती हैं. लेकिन लोगों में वर्जिनिटी टेस्ट के बढ़ते चलन के कारण हाइमन को ठीक करने वाली सर्जरी की शुरुआत हो चुकी है. हाइम्नोप्लास्टी (Hymenoplasty) नाम की यह सर्जरी किसी भी कॉस्मेटिक सर्जन से करवाई जा सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बेहद कम साइड इफेक्ट होते हैं और इस सर्जरी के बाद महिलाओं की हाइमन दोबारा पहले की तरह ही हो जाती है.

वर्जिनिटी (कौमार्य) खोने की सही उम्र क्या है?

किसी के साथ सेक्स करने का फैसला आपका अपना निजी निर्णय होता है, आप कब और किसके साथ अपनी वर्जिनिटी को खोते हैं इसका लोगों से कोई लेना देना नहीं है. किसी भी उम्र में आप पहली बार सेक्स कर सकते हैं. कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में वर्जिनिटी को खोने की उम्र दुनिया के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक है. माना जाता है कि भारत में इसकी औसत आयु 19.8 हैं, जबकि दुनिया भर में पहली बार सेक्स कर वर्जिनिटी को खोने वालों की औसत आयु 17.8 है.

वर्जिनिटी को खोने की उम्र आपके प्यार भरे संबंधों के आधार पर भी निर्भर करती है. यदि कोई व्यक्ति या आपका कोई दोस्त अपनी वर्जिनिटी खो चुका है, तो इसका यह मतलब बिलकुल नहीं हैं कि पहली बार सेक्स करने के लिए आप भी तैयार हैं. अगर आप केवल सेक्स करने के नजरीये से अपनी वर्जिनिटी को खोना चाहते हैं, तो यह जरूरी नहीं कि इसमें आपको अच्छा ही महसूस हो. इससे बेहतर यह होगा कि आप पहले खुद को सेक्स के लिए तैयार कर लें, इसके बाद ही इस क्रिया को करें.

इसके साथ ही आपको सेक्स करने से पूर्व इससे होने वाले यौन संक्रमणों, एसटीडी (यौन संचारित रोग) व उनसे बचावों के बारे में जानकारी लेना बेहद ही जरूरी होता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कमजोर न पड़ जाएं मैरिड लाइफ

आज अदीति अपनी जिस शादी को बचाने के लिए काउंसलर के चक्कर काट रही थी, उस के पीछे एक बहुत ही साधारण सा मगर जटिल कारण है. अदीति और उस के पति की सैक्स लाइफ में कई जटिलताएं थीं, जो अभिव्यक्ति की असफलता से शुरू हो कर घुटन और निराशा में तबदील हो गई थीं.

आखिर ऐसी क्या बात हुई जो सैक्स जैसा मनोरंजक विषय घुटन का कारण बन गया? पतिपत्नी के बीच सैक्स लाइफ प्रगाढ़ संबंध की निशानी है. इस में सुरक्षा का एहसास, नाजुक अनुभूतियां, आपसी तालमेल, प्रेम की गहराई वह सब कुछ होना चाहिए, जो स्थाई और ऊर्जावान संबंध के लिए जरूरी है. पर इस के लिए कुछ जुगत भी करनी पड़ती है. अच्छे सैक्स जीवन और गहरे रिश्ते के एहसास के लिए अभिव्यक्ति की आजादी को स्वीकारना पड़ता है.

दोनों पतिपत्नी का रूटीन की तरह सैक्स को निभाते जाना न सिर्फ सैक्स लाइफ में उबाने वाली शिथिलता ला देता है, बल्कि रिश्ते के असफल हो जाने में भी कोई कसर नहीं रहती. शहर कहें या गांव, भारतीय और इसलामिक समाज में स्त्रियों के लिए सैक्स पर चर्चा तथा इस मामले में अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति को नीच मानसिकता कह कर अनुत्साहित किया जाता है. वैसी स्त्रियां जो अपने पार्टनर से सैक्स के बारे में अपनी इच्छाएं खुल कर कहना चाहती हैं सभ्य और सुसंस्कृत नहीं मानी जातीं. बड़े शहरों की बिंदास लड़कियों को छोड़ दें, तो बाकी सैक्स को पति की सेवा का ही अहम हिस्सा मान कर चलती हैं तथा अपनी इच्छाअनिच्छा पति से बोलने की जरूरत महसूस नहीं करतीं.

भेदभाव क्यों

थोड़ा गहराई में जाएं तो पाएंगे कि सैक्स की इच्छा और क्षमता को मानव जीवन का प्रधान तत्त्व समझा जा सकता है. सैक्स जीवन को नियंत्रित करने में जीववैज्ञानिक, नैतिक, सांस्कृतिक, कानूनी, धार्मिक आदि विभिन्न दृष्टिकोणों का योगदान होता है यानी सैक्स जीवन और इस की अभिव्यक्ति पर इन बातों का बहुत प्रभाव रहता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने व्यक्ति के सैक्स जीवन की महत्ता पर बल देते हुए इस के प्रति सकारात्मक और सम्माननीय दृष्टिकोण अपनाने की बात कही है. इस संगठन ने माना कि अपने साथी के साथ सैक्स संबंध बिना किसी भेदभाव, हिंसा और शारीरिक, मानसिक शोषण के पूरी ऊर्जा और भावनात्मक संतुलन के साथ होना चाहिए.

सवाल अहम है कि हमारे देश में जहां स्त्रियों पर सैक्स से संबंधित बलात्कार, मानसिक शोषण, घरेलू हिंसा बदस्तूर जारी है, स्त्री के सैक्स संबंधी अधिकार और सैक्स के प्रति खुली राय क्या स्वीकार्य है?

अगर जागरूकता आ जाए और स्त्रियां भी इस मामले में अपनी भावनाओं को पूरा महत्त्व दें व पार्टनर से खुली बातचीत करें तो बहुत फायदे मिल सकते हैं.

आपस में दोस्ती का रिश्ता: अगर पतिपत्नी के बीच दोस्ती की भावना विकसित हो जाए तो इन के बीच ऊंचनीच, बड़ेछोटे का अहंकारपूर्ण भेद अपनेआप मिट जाए. दोनों का आपस में एकदूसरे की सैक्स इच्छाओं के बारे में बताने से यह आसानी से हो सकता है.

व्यक्तित्व का विकास: अगर स्त्री सैक्स के मामले में सिर्फ समर्पिता न रह कर पसंदनापसंद को जाहिर करे, तो वह पुरुष पार्टनर के दिल में आसानी से अपने लिए रुचि जगा सकती है, जो व्यक्तित्व विकास में सहायक है.

आत्मविश्वास की बढ़ोत्तरी: सिर्फ पुरुष की इच्छा पर चलना सैक्स जीवन में एक मशीनी प्रभाव उत्पन्न करता है, लेकिन स्त्री भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाए तो जीवन में फिर से नई ऊर्जा का संचार हो जाए.

वैसे तो भारतीय परिवेश को अभी भी लंबा वक्त लगेगा कुसंस्कारों के बंधनों से मुक्त होने में, लेकिन उन कारकों के बारे में बातें कर पिछड़ी मानसिकता को कुछ हद तक कम करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं.

बचपन से ही पारिवारिक माहौल में लड़कियों को यह शिक्षा मिलती है कि सैक्स निकृष्ट है और इस से लड़कियों को दूर रहना चाहिए.

चरित्र को भी सैक्स के साथ जोड़ा जाता है. सैक्स की इच्छा को दबा कर या इस के बारे में अपनी राय को छिपा कर ही सद्चरित्र रहा जा सकता है.

चरित्र को परिवार की इज्जत के साथ जोड़ा जाता है. लड़की परिवार की इज्जत मानी जाती है यानी सैक्स के बारे में निजी खुली सोच दुष्चरित्र होने की निशानी है, जिस से परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है.

शादी के बाद यही संस्कार स्त्री में मूलरूप से जमे होते हैं और वह सैक्स के बारे में पति से स्वयं अपनी इच्छा बताने में भारी संकोच महसूस करती है. इस मामले में आम पुरुषों की सोच भी परंपरावादी सामंती प्रथा से प्रभावित लगती है. उन्हें अपनी पत्नी का सैक्स मामले में खुलना और इच्छा जाहिर करना स्त्री सभ्यता के विपरीत लगता है. इस सोच के साथ पुरुष स्त्रियों का कई बार मजाक भी उड़ाते हैं या उन की भावनाओं की कद्र नहीं करते. तब स्त्री के पास भी अपनी खोल में सिमट जाने के अलावा और कोई चारा नहीं होता. बाद में यही पुरुष सैक्स के वक्त स्त्री के मृत जैसा पड़े रहने के उलाहने भी देते हैं, जो संबंध में भ्रम की स्थिति पैदा कर देते हैं.

स्त्री जब इन सारी बाधाओं को पार कर समान मूल्य और अधिकार का आनंद ले पाएगी तभी वह एक भोग्या की तरह नहीं एक सही साथी की तरह जिंदगी के इन खुशगवार पलों का उपभोग कर पाएगी.

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