अकेले हम अकेले तुम

कलशाम औफिस से आ कर हर्ष ने सूचना दी कि उस का ट्रांसफर दिल्ली से चंडीगढ़ कर दिया गया है. यह खबर सुनने के बाद से तान्या के आंसू रोके नहीं रुक रहे हैं. उस ने रोरो कर अपना हाल बुरा कर लिया है.

‘‘हर्ष मैं अकेले कैसे सबकुछ मैनेज कर पाऊंगी यहां… क्षितिज और सौम्या भी इतने बड़े नहीं हैं कि मेरी मदद कर पाएं… अब घर, बाहर, बच्चों की पढ़ाई सबकुछ अकेले मैं कैसे कर पाऊंगी, यही सोचसोच कर मेरा दिल बैठा जा रहा है,’’ तान्या बोली.

तान्या के मुंह से ऐसी बातें सुन कर हर्ष का मन और परेशान होने लगा. फिर बोला, ‘‘देखो तान्या हिम्मत तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी. क्या करूं जब कंपनी भेज रही है तो जाना तो पड़ेगा ही… प्राइवेट नौकरी है. ज्यादा नानुकुर की तो नोटिस भी थमा सकती है हाथ में और फिर भेज रही है तो सैलरी भी तो बढ़ा रही है… आखिर हमारा भी तो फायदा हो रहा है जाने में. सैलरी बढ़ जाएगी तो घर का लोन चुकाने में थोड़ी आसानी हो जाएगी.’’

थोड़ी देर चुप रहने के बाद तान्या का तनाव थोड़ा और कम करने के लिए हर्ष फिर बोला, ‘‘देखो तान्या, महीने का राशन मैं खरीद कर रख ही जाऊंगा… सब्जी वाले रोज घर के सामने से जाते हैं. उन से ले लिया करना. अगर वक्तबेवक्त कोई और जरूरत पड़ती है तो आसपास के लोग हैं ही… इतना रिश्ता तो हम ने बना रखा ही है हरेक से कि एक फोन करने पर कोई भी आ खड़ा होगा.’’

मगर हर्ष के समझाने का तान्या पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ रहा था. दरअसल, 10 सालों के वैवाहिक जीवन में यह पहला अवसर आया था जब तान्या को हर्ष से अलग रहने की जरूरत आ पड़ी थी. पहले तो तान्या ने भी साथ ही चंडीगढ़ चलने की बात कही पर दिल्ली से चंडीगढ़ जाने का मतलब बच्चों का नए स्कूल में ऐडमिशन कराना, नई यूनीफौर्म खरीदना, वहां किराए का घर ले कर रहना और फिर उस का किराया देना और यहां लोन की किस्त चुकानी किसी भी तरह से संभव नहीं होगा.

फिर इस बात की भी तो कोई गारंटी नहीं थी कि वहां सारी व्यवस्था कर लेने के बाद

10-12 साल वहीं रहेंगे. क्या पता अगले ही साल फिर कंपनी दिल्ली वापस बुला ले तो कब तक बच्चों को ले कर ऐसे फिरते रहेंगे? इसलिए हर्ष ने तान्या को समझाते हुए कहा कि उस का अकेले जाना ही उचित होगा.

हर्ष को अगले ही सोमवार को चंडीगढ़ औफिस जौइन करना था, इसलिए वह बुझे मन से जाने की तैयारी करने लगा.

हर्ष भी पहली बार अकेला रहने जा रहा था, इसलिए मन ही मन घबराहट उसे भी बहुत हो रही थी. बचपन से आज तक अपने हाथ से

1 गिलास पानी तक ले कर नहीं पीया था उस ने. पहले मां और बहनें और फिर शादी के बाद तान्या उस के सारे काम कर दिया करती थी.

हर्ष मन ही मन सोच कर परेशान हो रहा था कि कैसे वह अपने कपड़े धोएगा, बैडशीट बदलेगा, कमरे की सफाई करेगा…? खाना, नाश्ता तो बाहर कर लेगा या टिफिन लगवा लेगा पर कभी चाय पीने का मन हुआ या बीच में भूख लगी तो क्या करेगा? मगर तान्या और बच्चों की चिंता में वह अपनी परेशानी के बारे में कोई चर्चा नहीं कर पा रहा था और न ही तान्या का ध्यान इस पर जा रहा था कि उस का पति उस के बिना अकेले कैसे रह पाएगा.

इतवार की सुबह से ही हर्ष की व्यस्तता बढ़ी हुई थी. अपने सामान की

पैकिंग के साथसाथ वह इस बात का भी खयाल रख रहा था कि उस के जाने के बाद घर में किसी चीज की कमी न रह जाए जिस के लिए तान्या को बच्चों को ले कर बाजार के चक्कर लगाने पड़ें. राशन, सब्जी, फल, मिठाई आदि 1-1 चीज वह घर में ला कर रखता जा रहा था. शाम होतेहोते तान्या का उतरा चेहरा देख कर उस का दिल यह सोच कर घबराने लगा कि कहीं उस के जाने के बाद तान्या की तबीयत न खराब हो जाए.

‘‘तान्या कुछ दिनों के लिए मम्मी को आने के लिए कहूं क्या? तुम्हें देख कर मुझे चिंता हो रही है कि तुम अकेले रह पाओगी या नहीं?’’

‘‘हर्ष, सोच तो मैं भी रही थी कि मम्मीजी आ जातीं कुछ दिनों के लिए मेरे पास तो ठीक रहता, पर वहां भी तो रिंकी और पापाजी को परेशानी होगी उन के बिना. यही सोच कर मैं ने कुछ कहा नहीं.’’

‘‘हां वह तो है, फिर भी एक बार बात कर के देखता हूं. मम्मी से कहता हूं कि 4-5 दिनों के लिए आ जाएं. फिर शनिवार को मैं आ ही जाऊंगा. आगे की आगे देखेंगे.’’

हर्ष ने अपनी मां से बात की तो बेटेबहू की समस्या सुन कर विचलित हो गईं. बोलीं कि वे यहां की व्यवस्था समझा कर कल ही दिल्ली आ जाएंगी. रिंकी और उस के पापा मिल कर 1 सप्ताह गुजार लेंगे किसी तरह से.

मम्मीजी आ जाएंगी, यह सुन तान्या ने राहत की सांस ली और फिर उस ने हर्ष की बची तैयारी करा कर नम आंखों से दूसरे दिन उसे चंडीगढ़ के लिए विदा किया.

बात नौकरी और जीवनयापन की थी, इसलिए न आने का कोई विकल्प नहीं था हर्ष के पास पर सही माने में मन ही मन वह बहुत परेशान था. एक तरफ तान्या और बच्चों की चिंता तो दूसरी तरफ अपने बारे में सोचसोच कर परेशान हो रहा था कि बिना तान्या के कैसे रहेगा.

1 सप्ताह तक तो कंपनी के गैस्ट हाउस में रहना था तब तक तो खैर कोई समस्या नहीं होनी थी, पर इसी 1 सप्ताह में उसे अपने लिए किराए का घर ले कर रहने की पूरी व्यवस्था करनी होगी. दसियों झंझट होने थे उस में…घर खोजो, कामवाली खोजो, समय पर कपड़े धो कर प्रैस करने को दो. तान्या के होते ये सब काम इतने कठिन होते हैं उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ था.

अपने घर में तो आज तक उस ने कभी कामवाली से बात  तक नहीं की थी. अब कैसे उस से बात करेगा. कौन से कपड़े गंदे हैं और कौन से साफ इस का फर्क तक आज तक नहीं कर पाया था वह. अब ये सारी चीजें खुद करनी पड़ेंगी, यह सोच कर पसीना छूट रहा था.

1 सप्ताह जैसेतैसे गुजार कर अगले शनिवार की रात को जब हर्ष एक दिन के लिए चंडीगढ़ से दिल्ली आया तो घर में त्योहार जैसा माहौल बन गया. बच्चे उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे और तान्या के पास तो हर्ष को बताने के लिए इतनी सारी बातें इकट्ठी हो गई थीं मानो वह सालों बाद हर्ष से मिल रही हो. 1 सप्ताह तक हर्ष के बिना उस ने 1-1 पल कैसे बिताया इस का वर्णन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

पर मम्मीजी की निगाह हर्ष के चेहरे पर अटक गईर् थी, ‘‘बेटा तू 1 ही सप्ताह में कितना दुबला हो गया है,’’ कहते हुए उन की आंखें भर आईं. उन का बस चलता तो वे एक ही दिन में हर्ष को अपने हाथों से उस के पसंद की सारी चीजें बना और खिला कर पूरे सप्ताह की कमी पूरी कर देतीं, लेकिन शाम को उन का वापस जाना भी जरूरी था, क्योंकि रिंकी के पेपर शुरू होने वाले थे. उन की अनुपस्थिति से उस की पढ़ाई बाधित हो रही थी.

मम्मीजी को शाम की ट्रेन में बैठा कर आने के बाद बच्चों ने जिद पकड़ ली पिज्जा खाने की. तान्या ने भी उन का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘जब से तुम गए हो तब से ही ये पिज्जा खाने की जिद कर रहे हैं. मैं ने समझा रखा था कि पापा के आने के बाद चलेंगे. अब चल कर खिला दो वरना तुम्हारे जाने के बाद फिर मुझे परेशान करेंगे.’’

हर्ष का मन न ही इस समय बाहर जाने का हो रहा था और न ही बाहर का कुछ खाने का. उस का दिल कर रहा था कि बचाखुचा समय वह सब के साथ सुकून से घर में बिताए और तान्या के हाथ का बना घर का गरमगरम खाना खाए, पर बच्चों और तान्या की बात न मान कर वह अपराधभावना से घिरना नहीं चाह रहा था. अत: बेमन से ही वह सब को साथ ले कर पिज्जा हट चला गया.

दूसरे दिन फिर सुबहसुबह ही वह चंडीगढ़ के लिए निकल गया. ट्रेन में बैठते ही हर्ष ने सोचना शुरू कर दिया कि कहीं कुछ ऐसा रह तो नहीं गया जिस की वजह से तान्या को परेशान होना पड़े. पर जब उसे ऐसी कोई बात याद नहीं आई तो उस ने सुकून के साथ सीट पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं.

चंडीगढ़ जाने के साथ ही हर्ष की जिंदगी से आराम और सुकून शब्द गायब हो गए. अब तक शनिवार की शाम से ले कर सोमवार की सुबह तक जो सुकून के पल हुआ करते थे अब तो वही पल सब से ज्यादा भागदौड़ वाले बन गए. औफिस से छूटते ही वह स्टेशन की ओर भागता फिर ट्रेन से उतर कर औटो पकड़ कर घर पहुंचता. तब तक बच्चे तो सो चुके होते थे, इसलिए बच्चों के साथ वक्त बिताने की खुशी में वह सुबह जल्दी उठ जाता. फिर सारा दिन साप्ताहिक खरीदारी या बच्चों को घुमानेफिराने में निकल जाता. फिर सोमवार की सुबह शताब्दी पकड़ने के लिए सुबह 5 बजे ही नहाधो कर तैयार हो कर उसे घर से निकलना पड़ता था.

तान्या अकेली है यह सोच कर बीचबीच में उस के सासससुर चक्कर लगा जाते थे, पर चूंकि वे भी अभी नौकरी करते थे, इसलिए ज्यादा दिन रुकना संभव नहीं हो पाता था.

एक शनिवार जब हर्ष घर आया तो घर पर तान्या की मां सारिकाजी उस के साथ रहने के लिए आई हुई थीं. तान्या के मुंह से उस की परेशानी सुन कर वे कुछ दिनों के लिए उस के पास रहने को आ गई थीं.

हर्ष को देखते ही उन के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं, ‘‘हर्ष बेटा आप का स्वास्थ्य इतना गिर कैसे गया है? चेहरे से रौनक ही गायब हो गई है. अभी 2 महीने पहले जब आप से मिली थी तब तो आप ऐसे नहीं थे? क्या खानेपीने का सही इंतजाम नहीं है वहां पर?’’

‘‘नहीं मम्मीजी खानापीना तो सब ठीक है वहां पर बस घर से दूर हूं तो बच्चों की याद सताती रहती है. बस इसी वजह से आप को ऐसा लग रहा होगा. अब आज घर आया हूं तो कल देखिएगा मेरा चेहरा भी चमकने लगेगा.’’

दूसरे दिन सुबह से ही हर्ष फिर घर की व्यवस्था और बच्चों की फरमाइशें पूरी करने में जुट गया. डिनर के लिए जब फिर सब ने बाहर का प्रोग्राम बनाया तो सारिकाजी ने रोकते हुए कहा कि कल सुबह ही हर्ष को निकलना है तो इस समय सब घर पर ही रहो, घर पर ही बनाओ खाओ.

मगर बच्चे नहीं माने तो सारिकाजी ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम सब जाओ मैं नहीं जाऊंगी. मैं अपने लिए यहीं कुछ बना लूंगी.’’

निकलतेनिकलते हर्ष ने कहा, ‘‘मम्मीजी, आप अपने लिए जो भी बनाइएगा उस में 2 रोटियां मेरी भी बना दीजिएगा. मैं भी घर आ कर ही खा लूंगा, बाहर का खाना खाखा कर मन भर गया है मेरा.’’

सारिकाजी ने उस समय तो कुछ नहीं कहा, लेकिन दूसरे दिन हर्ष के जाने के बाद तान्या को आड़े हाथों लिया, ‘‘तान्या, तुझे क्या लगता है हर्ष की पोस्टिंग दूसरे शहर में हो गई है तो उस में उस का कोई गुनाह है? तुझे यहां अकेले रहना पड़ रहा है तो इस में उस का कोई कुसूर है? क्या सोचती है तू? क्या अकेले रहने से परेशानियों का सामना केवल तुझे ही करना पड़ रहा है? हर्ष बड़ा ऐश कर रहा है वहां पर? कैसी बीबी है तू कि तुझे उस का खराब हो रहा स्वास्थ्य और ढलता जा रहा चेहरा नहीं दिख रहा है? देख रही हूं एक दिन के लिए इतनी दूर से बेचारा भागाभागा बीवीबच्चों के पास रहने के लिए आया और सारा दिन तुम लोगों की जरूरतें और फरमाइशें पूरी करने में लगा रहा. 1 पल भी चैन से नहीं बैठ पाया. क्या उस के शरीर को आराम की जरूरत नहीं है?’’

‘‘पर मां मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो आप इतना नाराज हो रही हैं मुझ पर? आप को ऐसा क्यों लगने लगा कि मुझे हर्ष की चिंता नहीं है? ऐसा क्या देख लिया आप ने जो मुझे इतना डांट रही हैं?’’

‘‘देख तान्या जब से हर्ष चंडीगढ़ गया है तब से मैं तेरे मुंह से बस यही सुनती आ रही हूं कि मैं अकेले कैसे रह रही हूं यह मैं ही जानती हूं. मुझे कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है कि क्या बताऊं? यह बात तू अपने मायके, ससुराल के 1-1 इंसान को बता चुकी है… अकेले रहने की वजह से तुझे कितनी तरह की परेशानियां हो रही हैं… पर एक बार भी मैं ने तुम्हें हर्ष की चिंता करते नहीं सुना. एक बार भी मैं ने तेरे मुंह से यह नहीं सुना कि हर्ष वहां क्या खाता होगा? पता नहीं मनपसंद खाना मिलता भी होगा उसे या नहीं… उस के कपड़े कैसे धुलते और प्रैस होते होंगे? शाम को थकाहारा घर आता होगा तो 1 कप चाय की जरूरत होती होगी तो क्या करता होगा?

‘‘बेचारा एक दिन के लिए घर आता है और उस एक दिन भी तू उसे एक पल भी आराम से बैठने नहीं देती. सारा दिन किसी न किसी काम के लिए दौड़ाए रहती है उसे… क्या इतनी पढ़ीलिखी होने के बावजूद तू हर्ष के बिना घरगृहस्थी के अपने छोटेबड़े काम नहीं कर सकती?’’

‘‘मां मैं कर तो लेती पर आप तो देख ही रही हैं कि क्षितिज और सौम्या इतने छोटे हैं कि इन्हें ले कर बाजार जाना खतरे से खाली नहीं है… और बाहर खाना और घूमनाघुमाना तो बच्चों की फरमाइश पर करना पड़ता है… मैं थोड़े ही कहती हूं जाने को,’’ तान्या ने रोंआसे होते हुए कहा.

इस पर सारिकाजी ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, मैं समझ रही हूं कि हर्ष के जाने की वजह से तुझे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है पर तू केवल अपनी ही परेशानियों के बारे में क्यों सोचती रहती है? क्या यह खुदगर्जी नहीं है तेरी? मेरी नजर में तो तुझ से ज्यादा परेशानी हर्ष को उठानी पड़ रही है. तुझ से तो केवल हर्ष दूर गया है पर हर्ष से तो घर, बीवीबच्चे, घर का खाना, घर का सुकून सबकुछ छिन गया है. एक दिन के लिए आता भी है तो तुम सब के लिए ऐसे परेशान होता है जैसे कोई गुनाह कर के लौटा है.

‘‘तू पढ़ीलिखी और समझदार है. तुझे चाहिए कि बच्चों को स्कूल भेजने के बाद बाजार जा कर सारा सामान ला कर रख ले ताकि कम से कम रविवार को तो दिनभर हर्ष आराम से रह सके… और तुझे शुरू से पता है कि हर्ष को तेरे हाथ का बना खाना ही पसंद है बाहर के खाने से वह कतराता है. फिर भी तू रविवार को भी उसे बजाय अपने हाथों से बना कर खिलाने के बाहर ले जाती है. बच्चों को पिज्जाबर्गर खाना हो तो तू ही ले जा कर खिला आया कर.’’

मां की बात सुन कर तान्या को एहसास हुआ कि सचमुच वह बहुत बड़ी गलती कर रही थी कि हर्ष के जाने से समस्या केवल उसे हो रही है. हर्ष की परेशानियों के बारे में न सोच कर वह इतनी खुदगर्ज कैसे बन गई उसे खुद ही समझ में नहीं आ रहा था.

अगले शुक्रवार को बच्चों को स्कूल भेज कर घर के सारे छोटेबड़े कामों की लिस्ट बना कर तान्या घर से निकल गई. उस ने तय कर लिया था कि अब आगे से हर्ष के आने पर उसे किसी काम के लिए बाहर नहीं भेजेगी, बल्कि अब पूरा रविवार वे सब हर्ष के साथ घर पर ही बिताएंगे ताकि उसे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से आराम मिल सके.

बाजार की तरफ जाते समय अचानक तान्या की नजर सड़क के किनारे छोलेचावल के ठेले के पास खड़े एक युवक पर पड़ी जो जल्दीजल्दी छोलेचावल खा रहा था. उसे देखते ही न जाने क्यों तान्या की आंखों से आंसू गिरने लगे. वह सोचने लगी कि हर्ष भी तो आखिर भूख लगने पर ऐसे ही जहां कहीं भी जो कुछ भी मिल जाता होगा खा कर अपना पेट भर लेता होगा. मनपसंद चीजों की फरमाइश कर के बनवाना और खाना तो भूल ही गया होगा हर्ष.

अपने आंसू पोंछतेपोंछते तान्या जल्दीजल्दी घर चली जा रही थी, साथ ही सोचती भी जा रही थी कि अपने परिवार वालों को भरपेट भोजन देने और उन के लिए सुखसुविधा जुटाने के लिए घर से दूर रह कर दिनरात खटने वाले हमारे पतियों को भूख लगने पर मनपसंद भोजन तक मुहैया नहीं होता और हम पत्नियां यही जताती रह जाती हैं कि हम ही उन के बिना बड़ी कठिनाइयों का सामना कर रही हैं.

मलमल की चादर

आज फिर बरसात हो रही है. वर्षा ऋतु जैसी दूसरी ऋतु नहीं. विस्तृत फैले नभ में मेघों का खेल. कभी एकदूसरे के पीछे चलना तो कभी मुठभेड़. कभी छींटे तो कभी मूसलाधार बौछार. किंतु नभ और नीर की यह आंखमिचौली तभी सुहाती है जब चित्त प्रसन्न होता है. मन चंगा तो कठौती में गंगा. और मन ही हताश, निराश, घायल हो तब…? वैदेही ने कमरे की खिड़की की चिटकनी चढ़ाई और फिर बिस्तर पर पसर गई.

उस की दृष्टि में कितना बेरंग मौसम था, घुटा हुआ. पता नहीं मौसम की उदासी उस के दिल पर छाईर् थी या दिल की उदासी मौसम पर. जैसे बादलों से नीर की नहीं, दर्द की बौछार हो रही हो. वैदेही ने शौल को अपने क्षीणकाय कंधों पर कस कर लपेट लिया.

शाम ढलने को थी. बाहर फैला कुहरा मन में दबे पांव उतर कर वहां भी धुंधलका कर रहा था. यही कुहरा कब डूबती शाम का घनेरा बन कमरे में फैल गया, पता ही नहीं चला. लेटेलेटे वैदेही की टांगें कांपने लगीं. पता नहीं यह उस के तन की कमजोरी थी या मन की. उठ कर चलने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी उस की. शौल को खींच कर अपनी टांगों तक ले आई वह.

अचानक कमरे की बत्ती जली. नीरज थे. कुछ रोष जताते हुए बोले, ‘‘कमरे की बत्ती तो जला लेतीं.’’ फिर स्वयं ही अपना स्वर संभाल लिया, ‘‘मैं तुम्हारे लिए बंसी की दुकान से समोसे लाया था. गरमागरम हैं. चलो, उठो, चाय बना दो. मैं हाथमुंह धो आता हूं, फिर साथ खाएंगे.’’

एक वह जमाना था जब वैदेही और नीरज में इसी चटरमटर खाने को ले कर बहस छिड़ी रहती थी. वैदेही का चहेता जंकफूड नीरज की आंख की किरकिरी हुआ करता था. उन्हें तो बस स्वास्थ्यवर्धक भोजन का जनून था. लेकिन आज उन के कृत्य के पीछे का आशय समझने पर वह मन ही मन चिढ़ गई. वह समझ रही थी कि समोसे उस के खानेपीने के शौक को पूरा करने के लिए नहीं थे बल्कि यह एक मदद थी, नीरज की एक और कोशिश वैदेही को जिंदगी में लौटा लाने की. पर वह कैसे पहले की तरह हंसेबोले?

वैदेही तो जीना ही भूल गई थी जब डाक्टर ने बताया था कि उसे कैंसर है. कैंसर…पहले इस चिंता में उस का साथ निभाने को सभी थे. केवल वही नहीं, उस का पूरा परिवार झुलस रहा था इस पीड़ाग्नि में. वैदेही का मन शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक ग्लानि के कारण और भी झुलस उठता था कि सभी को दुखतकलीफ देने के लिए उस का शरीर जिम्मेदार था. बारीबारी कभी सास, कभी मां, कभी मौसी, सभी आई थीं उस की 2 वर्र्ष पुरानी गृहस्थी संभालने को. नीरज तो थे ही. लेकिन वही जानती थी कि सब से नजरें मिलाना कितना कठिन होता था उस के लिए. हर दृष्टि में  ‘मत जाओ छोड़ कर’ का भाव उग्र होता. तो क्या वह अपनी इच्छा से कर रही थी? सभी जरूरत से अधिक कोशिशें कर रहे थे. शायद कोई भी उसे खुश रखने का आखिरी मौका हाथ से खोना नहीं चाहता था.

अब तक उस की जिंदगी मलमल की चादर सी रही थी. हर कोई रश्क करता, और वह शान से इस मलमल की चादर को ओढ़े इठलाती फिरती. लेकिन पिछले 8 महीनों में इस मलमल की चादर में कैंसर का पैबंद लग गया था. इस की खूबसूरती बिगड़ चुकी थी. अब इसे दूसरे तो क्या, स्वयं वैदेही भी ओढ़ना नहीं चाहती थी. आजकल आईना उसे डराता था. हर बार उस की अपनी छवि उसे एक झटका देती.

‘‘धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. देखो न, तुम्हारे बाल फिर से आने लगे हैं. और आजकल तो इस तरह के छोटे कटे बाल लेटेस्ट फैशन भी हैं. क्या कहते हैं इस हेयरस्टाइल को…हां, याद आया, क्रौप कट,’’ आईने से नजरें चुराती वैदेही को कनखियों से देख नीरज ने कहा.

क्यों समझ जाते हैं नीरज उस के दिल की हर बात, हर डर, हर शंका? क्यों करते हैं वे उस से इतना प्यार? आखिर 2 वर्ष ही तो बीते हैं इन्हें साथ में. वैदेही के मन में जो बातें ठंडे छींटे जैसी लगनी चाहिए थीं, वे भी शूल सरीखी चुभती थीं.

समोसे और चाय के बाद नीरज टीवी देखने लगे. वैदेही को भी अपने साथ बैठा लिया. डाक्टरों के पिछले परीक्षण ने यह सिद्ध कर दिया था कि अब वैदेही इस बीमारी के चंगुल से मुक्त है. सभी ने राहत की सांस ली थी और फिर अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए थे. रिश्तेदार अपनेअपने घर लौट गए थे. नीरज सारा दिन दफ्तर में व्यस्त रहते. लेकिन शाम को अब भी समय से घर लौट आते थे. डाक्टरी राय के अनुसार, नीरज हर मुमकिन प्रयास करते रहते वैदेही में सकारात्मक विचार फूंकने की.

परंतु कैंसर ने न केवल वैदेही के शरीर पर बल्कि उस के दिमाग पर भी असर कर दिया था. सभी समझाते कि अकेले उदासीन बैठे रहना सर्वथा अनुचित है. बाहर निकला करो, लोगों से मिलाजुला करो. लेकिन वह जब भी घर के दरवाजे तक पहुंचती, उस का अवचेतन मन उसे देहरी के भीतर धकेल देता. घर की चारदीवारी जैसे सिकुड़ गई थी. मन में अजीब सी छटपटाहट बढ़ने लगी थी.

दिल बहलाने को कुछ देर सड़क पर टहलने के इरादे से गई. मगर यह इतना आसान नहीं था. सड़क पर पहुंचते ही लगा जैसे सारा वातावरण इस स्थिति को घूरने को एकत्रित हो गया हो. आसमान में उस के अधूरे मन सा अधूरा चांद, आसपास के उदास पत्थर, फूलपत्ते, गहराती रात…सभी उस के अंदर की पीड़ा को और गहरा रहे थे. इस अकेली ठंडी सांध्य में वैदेही घर लौट कर बिस्तर पर निढाल हो लेट गई. दिल कसमसा उठा. नयनों के पोरों से बहते अश्रुओं ने अब कान के पास के बाल भी गीले कर दिए थे.

उस की सूरत से उस की मनोस्थिति को भांप कर नीरज बोले, ‘‘वैदू, आगे की जिंदगी की ओर देखो. अभी हमारी गृहस्थी नई है, उग रही है. आगे इस में नूतन पुष्प खिलेंगे. क्या तुम भविष्य के बारे में कभी भी सकारात्मक नहीं होगी?’’

पर वैदेही आंखें मूंदे पड़ी रही. एक बार फिर वह वही सब नहीं सुनना चाहती थी. उस को नहीं मानना कि उस के कारण सभी के सकारात्मक स्वप्न धूमिल हो रहे हैं. अन्य सभी की भांति वह यह मानने को तैयार नहीं थी कि अब वह पूरी तरह स्वस्थ है. कैंसर के बारे में उस ने जो कुछ भी पढ़ासुना था, उस से यही जाना था कि कैंसर एक ढीठ, जिद्दी बीमारी है. यदि उस के अंदर अब भी इस का कोई अंश पनप रहा हो तो? मन में यह बात आ ही जाती.

अगली सुबह वैदेही रसोई में गई तो पाया कि नीरज ने पहले ही चाय का पानी चढ़ा दिया था. प्रश्नसूचक नजरों के उत्तर में वे बोले, ‘‘आज शाम मेरे कालेज का जिगरी दोस्त व उस की पत्नी आएंगे. तुम दिन में आराम करो ताकि शाम को फ्रैश फील करो. और हां, कोई अच्छी सी साड़ी पहन लेना.’’

दिन फिर उसी खिन्नता में गुजरा. किंतु सूर्यास्त के समय वैदेही को नीरज का उत्साह देख मन ही मन हंसी आई. भागभाग कर घर साफसुथरा किया, रैस्तरां से मंगवाई खानेपीने की वस्तुओं को करीने से डाइनिंग टेबल पर सजाया.

वैदेही अपने कक्ष में जा साड़ी पहन कर जैसे ही बिंदी लगाने को आईने की ओर मुड़ी, सिर पर छोटेछोटे केश देख फिर हतोत्साहित हो गई. क्या फायदा अच्छी साड़ी, इत्र या सजने का जब शक्ल से ही वह… तभी दरवाजे पर बजी घंटी के कारण उसे कक्ष से बाहर आना पड़ा.

‘‘इन से मिलो, ये है मेरा लंगोटिया यार, सुमित, और ये हैं साक्षी भाभी,’’ कहते हुए नीरज ने वैदेही का परिचय मेहमानों से करवाया. हलकी मुसकान लिए वैदेही ने हाथ जोड़ दिए किंतु उस की अपेक्षा से परे साक्षी ने आगे बढ़ फौरन उसे गले से लगा लिया. ‘‘इन दोनों को अपना शादीशुदा गम हलका करने दो, हम बैठ कर इन की खूब चुगली करते हैं,’’ साक्षी हंस कर कहने लगी.

लग ही नहीं रहा था कि पहली बार मिल रहे हैं. इतनी घनिष्ठता से मिले दोनों मियांबीवी कि उन के घर में अचानक रौनक आ गई. धूमिल से वातावरण में मानो उल्लास की किरणें फूट पड़ीं. साक्षी पुरानी बिसरी सखी समान बातचीत में मगन हो गई थी. वैदेही भी आज खुद को अपने पुराने अवतार में पा कर खुश थी.

दोनों की गपबाजी चल रही थी कि नीरज लगभग भागते हुए उस के पास आए और बोले, ‘‘वैदेही, सुमित को पिछले वर्ष कैंसर हुआ था, अभी बताया इस ने.’’ इस अप्रत्याशित बात से वैदेही का मुंह खुला रह गया. बस, विस्फारित नेत्रों से कभी सुमित, तो कभी साक्षी को ताकने लगी.

‘‘अरे यार, वह बात तो कब की खत्म हो गई. अब मैं भलाचंगा हूं, तंदुरुस्त तेरे सामने खड़ा हूं.’’

‘‘हां भैया, अब ये बिलकुल ठीक हैं. और इस का परिणाम यहां है,’’ अपनी कोख की ओर इशारा करते हुए साक्षी के कपोल रक्ताभ हो उठे. नीरज और वैदेही ने अचरजभाव से एकदूसरे को देखा, फिर फौरन संभलते हुए अपने मित्रों को आने वाली खुशी हेतु बधाई दी.

‘‘दरअसल, कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो आज आम सी बनती जा रही है. बस, डर है तो यही कि उस का इलाज थोड़ा कठिन है. परंतु समय रहते ज्ञात हो जाने पर इलाज भी भली प्रकार संभव है. अब मुझे ही देख लो. स्थिति का आभास होते ही पूरा इलाज करवाया और फिर जब डाक्टर ने क्लीनचिट दे दी तो एक बार फिर जिंदगी को भरपूर जीना आरंभ कर डाला,’’ सुमित के स्वर से कोई नहीं भांप सकता था कि वे एक जानलेवा बीमारी से लड़ कर आए हैं.

‘‘हमारा मानना तो यह है कि यह जीवन एक बार मिलता है. यदि इस में थोड़ी हलचल हो भी जाए तो कोशिश कर इसे फिर पटरी पर ले आना चाहिए. शरीर है तो हारीबीमारी लगी ही रहेगी, उस में हताश हो कर तो नहीं बैठा जा सकता न? जो समय मिले, उसे भरपूर जियो.’’

साक्षी ने अपनी बात सुमित की बात से जोड़ी. ‘‘अरे यार, वह कौन सा डायलौग था ‘आनंद’ मूवी का जो अपने कालेज में बोला करते थे…हां, जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं, हा हा…’’ और सचमुच वे सब हंसने लगे.

नीरज हंसे, वैदेही हंसी. सारा वातावरण, जो अब तक वैदेही को केवल घायल किए रहता था, अचानक बेहद खुशनुमा हो गया था. वैदेही के चक्षु खुल गए थे, वह देख पा रही थी कि उस ने अपनी और अपनों की जिंदगी के साथ क्या कर रखा था अब तक.

सुमित और साक्षी के लौटने के बाद वैदेही ने अलमारी के कोने से अपनी लाल नाइटी निकाली. उसे भी आगे बढ़ना था अब नए सपने सजाने थे. अपनी मलमल की चादर को आखिर कब तक तह कर अलमारी में छिपाए रखेगी जबकि पैबंद तो कब का छूट कर गिर चुका था.

हाट बाजार- भाग 4: दो सरहदों पर जन्मी प्यार की कहानी

जमाल ने रुखसार की पूरी बात नहीं सुनी. वह अंधेरे की आड़ में गायब हो गया. शाहिद लौटा तो रुखसार ने उसे सारी बात विस्तार से बता दी.

‘‘मैं जमाल का नापाक इरादा पूरा नहीं होने दूंगा. अपने सुखचैन के लिए मैं अपने मुल्क से गद्दारी नहीं करूंगा. मैं कप्तान मंजीत को सब कुछ सचसच बता दूंगा. भले ही इस का अंजाम कुछ भी क्यों न हो,’’ शाहिद ने मानो पक्का फैसला कर लिया और जीरो लाइन के करीब पोस्ट की तरफ चल पड़ा.

‘‘साहब तो कहीं फौरवर्ड एरिया में गए हैं,’’ संतरी ने बताया.

‘‘अच्छा कप्तान साहब आएं तो कहना मैं आया था. कोई जरूरी काम है. मैं सुबह फिर आऊंगा.’’

पौ फटते ही शाहिद फिर मंजीत से मिलने के लिए निकला, तो सामने से आती बीएसएफ और बंगलादेशी गार्ड्स की संयुक्त टुकड़ी को अपनी ओर आते हुए देख कर ठिठक गया. अनिष्ट की आशंका को इनसान की परेशानी पर पसीने के रूप में आने से ठंडी और बर्फीली हवा भी नहीं रोक सकती. शाहिद चाह कर भी पसीना पोंछ नहीं पाया.

‘‘हमें तुम्हारे स्टोर की तलाशी लेनी है. इन्हें शक है कि इस जगह का इस्तेमाल आईएसआई के एजेंट अपने उन हथियारों को रखने के लिए करते हैं, जो भारत में गड़बड़ी के इरादे से भेजे जाते हैं,’’ मंजीत ने बंगलादेशी कप्तान की ओर इशारा करते हुए कहा.

शाहिद को काटो तो खून नहीं, ‘‘यह एक लंबी कहानी है कप्तान साहब. मैं कल रात को सब सच बयां करने के लिए आप की पोस्ट पर गया था. मगर आप वहां नहीं थे. यह सारा सामान रुखसार के भाई जमाल का है.’’

‘‘रुखसार कौन, वही बंगलादेशी लड़की न, जिसे आप ने डूबने से बचाया था? उस का आप से क्या रिश्ता है?’’ मंजीत ने सवाल दागा.

‘‘मैं बताती हूं,’’ रुखसार ने बाहर निकल कर आत्मविश्वास के साथ कहना शुरू किया, ‘‘यह अमन है मेरा बच्चा. यह यहीं इसी बियाबान जंगल में पैदा हुआ है. मैं शाहिद की ब्याहता हूं, हमारा बाकायदा निकाह हुआ है.’’

कप्तान मंजीत और बंगलादेशी गार्ड दोनों हतप्रभ हो कर एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

‘‘क्या तुम दोनों नहीं जानते कि तुम मुख्तलिफ मुल्कों के बाशिंदे हो और जो तुम ने किया वह गैरकानूनी है,’’ मंजीत बोले.

‘‘शादी के अलावा हम ने कोई भी काम गैरकानूनी नहीं किया है,’’ शाहिद ने आहिस्ता से कहा, ‘‘हम ने सिर्फ प्यार किया है. इस के अलावा कोई गुनाह नहीं किया है. न हम ने कोई कानून तोड़ा है, न कोई गद्दारी की है.’’

‘‘इस का फैसला कानून करेगा,’’ मंजीत ने कहा फिर शाहिद को अपनी जीप में बैठा लिया. बंगलादेशी गार्ड ने बच्चा रुखसार की गोद से छीन लिया और उस को जीप में धकेल दिया. जीप जब चलने को हुई तो रुखसार चीख उठी, ‘‘मेरा बच्चा…’’

रुखसार की चीख का बंगला गार्ड पर कोई असर नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘तुम्हारा बच्चा न इंडियन है न बंगलादेशी, इसलिए वह कहीं और रहेगा. और तुम बंगलादेश की जेल में सड़ोगी और तुम्हारा खाविंद हिंदुस्तानी जेल में हवा खाएगा.’’

‘‘यह अन्याय है, एक मासूम पर जुल्म है. हमारे जुर्म की सजा इसे क्यों दी जा रही है? यह कहां रहेगा किस के पास रहेगा? अगर बच्चा दोनों मुल्कों के बीच की धरती में पैदा हुआ है तो क्या वह इनसान नहीं है?’’ रुखसार चीखती जा रही थी और जीप उसी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी.

कप्तान मंजीत ने शाहिद के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘तुम बेफिक्र रहो. मैं तुरंत रैडक्रौस को वायरलैस भिजवा कर उन की नर्स को बुलवाता हूं और बाकी इंतजाम करवाता हूं.’’

शाहिद को भारतीय जेल में डाल दिया गया और रुखसार बंगलादेश की जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दी गई. ‘नो मैन लैंड’ में जन्मा मासूम अमन रैडक्रौस के हवाले कर दिया गया और मीडिया के कैमरों की मेहरबानी से दोनों ओर की सीमा पर अमन को दूर से देखने वालों का तांता लग गया. वह समाचार, नेताओं और एनजीओ के सदस्यों के लिए चाय के प्याले पर चलने वाली बहस का एक मुद्दा भी बन गया. टीआरपी बढ़ाने के लए इस विषय पर टीवी चैनलों में होड़ सी लग गई और अमन को इंसाफ दिलाने की मुहिम हर शहर, हर गांव तक पहुंच गई.

यह बात कि अमन नाम का एक बच्चा दोनों सरहदों के बीच जन्म लेने के जुर्म की सजा पा रहा है और दोनों देशों के बीच अपनी पहचान ढूंढ़ रहा है, दोनों देशों की सरकारों के कानों तक भी पहुंच चुकी थी. नन्हा अमन रैडक्रौस की नर्सों से इठलाते हुए कभी भारत की सीमा की ओर मुंह कर लेता, तो कभी बंगलादेश की सरहद की तरफ इशारा कर देता मानो अपने वजूद की तलाश कर रहा हो या याचना कर रहा हो कि मेरा कुसूर क्या है?

जमाल में शायद कुछ इंसानियत जिंदा रह गई थी. उस ने ऐसा बयान दिया कि रुखसार पर कोई आंच नहीं आई. उधर कप्तान मंजीत और गांव वालों ने शाहिद को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सजा के तौर पर शाहिद का ठेका रद्द कर दिया गया और हाटबाजार का काम रोक दिया गया.

धीरेधीरे बेबस शाहिद, रुखसार और अमन का मामला अंतर्राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया और कोलकाता एवं ढाका दोनों के न्यायालयों में याचिकाएं दायर हो गईं. दोनों ही देशों के मानवाधिकार आयोग भी सक्रिय हो गए. दोनों ही न्यायालयों ने सख्त रवैया अपनाते हुए लगभग एकजैसा फैसला सुनाया कि अमन के बालिग होने तक उसे रैडक्रौस के संरक्षण में रखा जाए. उस के बाद ही मामला फिर सुना जाए. शाहिद और रुखसार टूट गए. लगा वक्त ठहर गया है और इस गहरी भयानक काली रात का कोई अंत नहीं है. लेकिन तभी आशा की एक किरण से ऐसा प्रकाश फूटा जिस ने तीनों की जिंदगी को पूर्णतया रोशन कर दिया. हताशा और बेबसी की लहरों के बीच कुदरत ने अपना करतब दिखाया और उफनती लहरों के शांत होने की उम्मीद जाग उठी.

भारत और बंगलादेश की सीमा पर कुछ गांवों की अदलाबदली का मामला दसियों सालों से निलंबित था. सरकारें बदलती गईं मगर इस प्रक्रिया की कोई शुरुआत नहीं हो पाई. नियति ने मानो इस मामले को शाहिद, रुखसार और अमन के लिए ही बचा कर रखा हुआ था. दोनों सरकारों ने नई अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखाएं तय कीं और अदलाबदली किए जाने वाले इलाकों को चिहिन्त किया. इसी समझौते के अंतर्गत जिंजराम नदी के मुहाने के कई बंगलादेशी गांव भारत में शामिल हो गए और वहां के नागरिकों को यह अख्तियार और विकल्प दिया गया कि वे भारत अथवा बंगलादेश की नागरिकता का स्वेच्छा से चुनाव करें.

वह दिन किसी मेले से कम नहीं था. रैडक्रौस ने भारतीय और बंगलादेशी अधिकारियों की उपस्थिति में अमन को रुखसार की गोद में डाल दिया. जिस की आंखों से आंसू अविरल और अनवरत बहते जा रहे थे. रुखसार और शाहिद के अलावा न सिर्फ मानसी मां, बल्कि पूरे गांव वाले भी अपने आंसू छिपा नहीं पा रहे थे और सब के हाथ स्वत: ही आशीर्वाद स्वरूप उठ गए थे. दूर कहीं से नगाड़ों के बजने की आवाज पूरे वातावरण में गूंज रही थी. देशों की राजनीति से बिछड़ा प्यार फिर मिल रहा था.

हाट बाजार- भाग 3: दो सरहदों पर जन्मी प्यार की कहानी

रुखसार रात को वहीं रुक गई और हाटबाजार के अगले पड़ाव तक वहीं रही. 4 दिन बाद जब बाजार में गई तो जमाल गुस्से से लालपीला हो रहा था, ‘‘तुम आखिर चाहती क्या हो? क्यों अपने साथ मेरी जिंदगी भी खतरे में डाल रही हो. अगर इश्क किया है तो या तुम भारत जाओ या उसे बंगलादेश ले जाओ. यों चूहेबिल्ली का खेल बंद करो.’’

‘‘जमाल तुम जानते हो कि यह मुमकिन नहीं है. शाहिद कोशिश कर रहा है, लेकिन इस में समय कितना लगेगा यह हमें भी नहीं पता. पता नहीं ऐसा हो भी पाएगा या नहीं.’’

‘‘तो तब तक तुम…’’ जमाल कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘मेरी राय है कि यहीं रहो. जब तक तुम्हें भारत की नागरिकता नहीं मिल जाती यहां तुम पूरी तरह से महफूज हो. बस तुम्हें इन चारदीवारी में रहना होगा. मैं सब से कह दूंगा कि तुम चटगांव में किसी कारखाने में काम कर रही हो.’’

‘‘लेकिन…’’ रुखसार कुछ कहना चाह रही थी मगर जमाल ने उसे इशारे से रोक दिया और कहा, ‘‘देखो रुखसार, यह थोड़े दिनों की ही परेशानी है. कप्तान साहब और अन्य गांव वालों की मदद से तुम्हें जल्दी ही भारत की नागरिकता मिल जाएगी. फिर सब ठीक हो जाएगा.’’ समय अपनी गति से बढ़ता गया और हाटबाजार का काम भी अपनी गति से बढ़ता गया. सरकार काम में हो रही प्रगति से संतुष्ट थी और इंसपैक्शन के दौरान सरकार ने काम में आ रही बाधाओं के मद्देनजर 6 महीने की अवधि और बढ़ा दी. उधर रुखसार को मानो एकाकी जीवन जीने की आदत सी पड़ गई थी. कभीकभी जमाल स्टोर में सामान लेने व रखने आता, तो वह उत्कंठा से गांव का हालचाल पूछती. इस के अलावा तो वह बिलकुल तनहा थी. शाहिद के आने से उस के होंठों पर मुसकान फैल जाती. शाहिद रुखसार को देखता तो उसे बहुत दुख होता. कई बार उसे आत्मग्लानि भी होती. उसे लगता कि जो कुछ भी हुआ सब का कुसूरवार वही है. एक दिन उस के चेहरे के भाव देख कर रुखसार ने उस से कहा, ‘‘तुम खुद को दोषी क्यों मानते हो? यही हमारा जीवन है, यही हमारी नियति है.’’

‘‘लेकिन सारा दिन तुम अकेली वक्त गुजारती हो. यह जिंदगी मैं ने दी है तुम्हें. मैं बता नहीं सकता कि मुझे कैसा लगता है. मैं कभी भी खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘तुम खुद को बिलकुल कुसूरवार मत समझो. यह फैसला सिर्फ तुम्हारा ही नहीं था. मैं भी इस में बराबर की हिस्सेदार थी. और मैं अकेली कहां हूं? दिन भर मूर्तियां बनाती हूं, उन्हें सजाती हूं, संवारती हूं, जिस से मानसी मां को 4 पैसे मिल जाते हैं.’’ फिर कुछ सोच कर धीरे से बोली, ‘‘क्या हुआ मेरी भारत की नागरिकता का?’’

‘‘मैं कोशिश कर रहा हूं, लेकिन सरकारें अभी बहुत सख्त हो गई हैं. थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है.’’

‘‘मैं तो इंतजार कर सकती हूं, शायद तुम भी कर सकते हो मगर वह जो आने वाला मेहमान है उस के बारे में सोचती हूं तो रूह कांप जाती है कि क्या होगा उस का?’’

एक रात सायंसायं करती हवा और हिंसक पशुओं की तरह झूमते पेड़ों की कर्कश आवाज से रुखसार की घबराहट से आंख खुली. शाहिद अभी नहीं आया था, लेकिन एक साया स्टोर की तरफ जा रहा था. रुखसार का दिल बैठ गया. चीख मानो हलक में ही अटक गई. धीरेधीरे साया कुछ साफ हुआ…वह जमाल था.

‘‘तुम…तुम इस वक्त यहां क्या कर रहे हो?’’ रुखसार की आवाज में तल्खी थी.

‘‘कुछ नहीं… तुम सो जाओ, मैं कुछ सामान रख कर चला जाऊंगा.’’

‘‘मगर आज तो कोई हाट नहीं था. क्या सामान रखने आए हो तुम?’’ रुखसार की आवाज और सख्त हो गई थी.

जमाल ने भी लगभग उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘तुम चुपचाप यहां अपने दिन गुजारो. समझ लो यह मेरी खामोशी की कीमत है. मैं जब चाहूं बिना रोकटोक के यहां आ जा सकता हूं. अगर तुम ने कोई चालाकी दिखाने की कोशिश की तो, भयानक अंजाम के लिए तैयार रहना.’’ रुखसार को काटो तो खून नहीं, ‘‘जमाल, तो इसलिए तुम ने मुझे यहां रहने के लिए उकसाया था और मैं अनाड़ी नादान अब तक यह समझ रही थी कि मेरा भाई अपना प्यार मुझ पर उड़ेल रहा है. तुम ने मेरी हालत का, मेरे भरोसे का गलत फायदा उठाने की कोशिश की है. लेकिन मैं तुम्हारे मंसूबे कामयाब नहीं होने दूंगी. मेरे लिए दोनों मुल्क मेरे अपने हैं. तुम जानते हो मैं अगर कोई फैसला करती हूं तो अंजाम का सामना करने को तैयार रहती हूं.’’

‘‘तुम तो नाहक ही परेशान हो रही हो,’’ जमाल ने पैतरा बदला.

‘‘मैं कल सुबह सारा सामान यहां से ले जाऊंगा. तुम बेफिक्र हो कर सो जाओ.’’

‘‘इसी में तुम्हारी भलाई है और मेरी भी,’’ रुखसार ने धीरे से कहा.

रुखसार की आंखों में नींद का नाम न था. आने वाली विपत्तियों के बारे में सोचसोच कर वह परेशान हो रही थी. किसी अनिष्ट की आशंका से भयभीत रुखसार को थोड़ा चैन तब मिला जब उस ने शाहिद को आते देखा. आते ही वह बोला, ‘‘मानसी मां यहां आने की जिद पकड़े बैठी हैं और अगर वे यहां आती हैं तो खतरा और बढ़ जाएगा. बीएसएफ वाले तो शायद फिर भी मान जाएं मगर बंगलादेशी गार्ड्स मौके को हाथ से जाने नहीं देंगे. मगर और कोई उपाय भी नहीं नजर आ रहा. ऐसी परिस्थिति में अगर सरेंडर भी करते हैं, तो भी समस्या का कोई हल नहीं निकलेगा, बल्कि जेल की सलाखों के पीछे एक गुमनाम मौत मरना होगा.’’

इसी उधेड़बुन में रात बीत गई और इसी तरह कई दिन और कई रातें बीत गईं. कुदरत मेहरबान थी कि मानसी की उपस्थिति का अभी तक किसी को आभास नहीं हुआ. काम की गहमागहमी में सब कुछ छिपा रह गया. कहते हैं, जब हालात विपरीत हों तो कुरदत को भी हालात के शिकार लोगों पर तरस आ ही जाता है. बच्चे का जन्म समय से पहले हो गया था. इस के बावजूद बच्चा स्वस्थ और सुंदर हुआ था. मानसी ने सारा इंतजाम और व्यवस्थाएं धीरेधीरे कर ली थीं ताकि ऐन मौके पर किसी चीज के लिए परेशानी न हो और मन ही मन दुआ कर रही थी की कुदरत का रहम बना रहे और सब कुछ ठीकठाक हो जाए.

दिन भर तो काम के शोर में बच्चे के रोने की आवाज दब जाती मगर रात के सन्नाटे में यह काम मुश्किल हो जाता. शाहिद और रुखसार ने यह फैसला किया की किसी भी तरीके से गैरकानूनी ढंग से ही सही शिलौंग या अगरतला से होती हुई दिल्ली की तरफ चली जाएगी और अवैध रूप से रह रहे बंगलादेशियों की भीड़ का एक हिस्सा बन जाएगी. लेकिन तभी वह हुआ जिस का रुखसार को डर था. जमाल ने धीरेधीरे अपनी गतिविधियां और भी तेज कर ली थीं और रुखसार को समझ में आ रहा था कि जमाल किसी बड़े गैरकानूनी गिरोह के लिए काम कर रहा है.

‘‘क्या है इस गट्ठर में?’’ रुखसार ने एक दिन सामान उतरवाते हुए जमाल से सख्ती से पूछा, तो जमाल की त्योरियां चढ़ गईं.

‘‘सूखी मछलियां हैं. तुम तो शाकाहारी हो. नहीं तो तुम्हारे लिए 5-10 छोड़ देता.’’

‘‘मैं खाती नहीं पर इतना तो जानती हूं की सूखी मछलियां इतनी भारी नहीं होतीं कि उन का गट्ठर आदमियों से भी मुश्किल से उठे.’’

‘‘हां इस में कुछ और भी है. लेकिन जो भी है वह भारत को अंदर तक खोखला कर देगा और इसलाम को मजबूत.’’

‘‘चुप रहो,’’ रुखसार गरजी, ‘‘इसलाम इतना कमजोर नहीं कि वह पाकिस्तान का बाजू थामे. पाकिस्तान एक कुंठित मुल्क है. भारत से मिल रही लगातार हार से परेशान हो कर वह यह सब कर रहा है. मगर तुम तो एक बंगलादेशी हो. भूल गए कि भारत के हम पर कितने एहसान हैं. पाकिस्तान के दबाव में आ कर एहसान फरामोश बंगलादेशियों की भीड़ में अपनेआप को शामिल मत करो मेरे भाई. आज अगर हम जिंदा हैं तो इन्हीं हिंदुस्तानियों की बदौलत वरना पाकिस्तान ने तो हमें गुमनामी के गर्त में धकेलने में कोई कमी नहीं रखी थी.’’

हाट बाजार- भाग 2: दो सरहदों पर जन्मी प्यार की कहानी

रुखसार ने सामान पर एक नजर डाली और बोली, ‘‘परेशानी इधर की नहीं इंजीनियर बाबू उधर की है. हमारा घर जिंजीराम नदी के किनारे से 2-3 मील के फासले पर है. कोई कुली या ठेले वाला वहां नहीं मिलता, जो हमारी मदद करे.’’

‘‘एक उपाय है रुखसारजी, आप को अगर हम पर विश्वास हो तो यह सामान आप हमारे क्वार्टर में रखवा दें. शुक्रवार को आइएगा तो ले लीजिएगा.’’

उस रोज के बाद सामान रखने का जो सिलसिला शुरू हुआ, उस के साथ ही शुरुआत हुई उस रिश्ते की जिस ने न सीमा देखी न राष्ट्रीयता. रुखसार और शाहिद एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर चुके थे, जिस में दूर तक सिर्फ अंधेरा ही नजर आता था. शाहिद का बदला रूप और रंगढंग गांव वालों से छिप न सका. मानसी मां ने तो बस एक ही जिद कर रखी थी कि किसी भी तरीके से शाहिद रुखसार को घर ले आए. शाहिद कई दिन तक टालमटोल करता रहा और एक दिन रुखसार से मानसी मां की इच्छा कह दी.

संतरियों से बच कर और सब की आंखों में धूल झोंक कर शाहिद एक दिन रुखसार को घर ले आया. मानसी से मिलवाने के बाद शाहिद रुखसार को वापस ले कर जा ही रहा था कि मिहिर ने आ कर यह खबर दी कि बंगलादेशी गार्ड्स की एक टुकड़ी किसी खास मकसद से कोनेकोने में फैल गई है और बीएसएफ के सिपाहियों के साथ मिल कर किसी आतंकवादी दल की तलाश में जुट गई है. शाहिद असमंजस में पड़ गया. सब ने राय दी कि ऐसे बिगड़े माहौल में रुखसार को ले जाना खतरे से खाली न होगा. अंधेरा बढ़ता जा रहा था और सन्नाटा सारे इलाके में पसर गया था. रुखसार का दिल घबराहट के मारे बैठा जा रहा था, लेकिन उसे अपने प्यार पर पूरा विश्वास था. शाहिद का साथ पाने के लिए वह किसी भी मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार थी. बीचबीच में सिपाहियों के बूट की आवाज सन्नाटे को चीर कर गांव वालों के कानों को भेद रही थी. ऐसा लग रहा था कि हर घर की तलाशी ली जा रही हो.

‘‘रुखसार आप के घर में रह सकती है, मगर तभी जब उस का निकाह आप के साथ अभी हो जाए,’’ सभी गांव वालों की यह राय थी. शाहिद के समझानेबुझाने का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा था. न ही कोई रुखसार को अपने घर में रखने को तैयार था. मानसी का घर भी 2 गांव छोड़ कर था. लिहाजा वहां भी पहुंचना उन परिस्थितियों में नामुमकिन था. शाहिद बिना समय गंवाए किसी फैसले तक पहुंचना चाहता था. उस ने एक नजर रुखसार पर डाली, जो बुत बनी खड़ी थी. उसे भरोसा था कि शाहिद जो भी करेगा ठीक ही करेगा. अंतत: वही हुआ जो सब ने एक सुर में कहा था, काजी ने दोनों का निकाह करवाया. इस शादी में न बरात थी, न घोड़ी, न बैंड न बाजा बस दिलों का मिलन था.

मानसी ने दिल से कई तरह के पकवान बनाए, जो गांव वालों ने मिलजुल कर मगर छिप कर ऐसे खाए मानो अंधरे में अपराध की किसी घटना को अंजाम दे रहे हों. 4 दिन बाद जब रुखसार की रुखसत का वक्त आया तो उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. रुखसार ने रुंधे गले से कहा, ‘‘तुम कहीं मुझे बीच राह में छोड़ तो नहीं दोगे? मैं अनाथ हूं. आगेपीछे मेरा एक चचेरा भाई जमाल है या फिर पड़ोसी. बस इतनी सी है मेरी दुनिया.’’ ‘‘कुदरत को शायद हमें मिलाना ही था और शायद उसे यही तरीका मंजूर होगा. अब तुम हाट में जा कर अपने लोगों में यों घुलमिल जाओ मानो तुम आज ही उन के साथ आई हो. किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि तुम 4 दिन यहां रही हो,’’ शाहिद उस से बोला.

रुखसार फुरती से चल कर हाट तक पहुंच गई और अपनी झोंपड़ीनुमा दुकान पर जा कर ही दम लिया. मिहिर ने पहले ही वहां सामान रख दिया था. रुखसार ने सामान सजाना शुरू किया और स्वयं को संयत रखने का प्रयत्न कर ही रही थी कि किसी के आने की आहट ने उसे चौंका दिया. देखा तो सामने जमाल था. वह बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम 4 दिन कहां थीं. तुम भूल गई हो रुखसार कि तुम एक बंगलादेशी हो और वह एक हिंदुस्तानी. कैसे तुम उस के प्यार के चक्कर में पड़ गईं? अपनेआप को संभालो रुखसार. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. वापस लौट चलो.’’

‘‘मैं बहुत दूर निकल आई हूं जमाल. अब तो सिर्फ मौत ही मुझे उस से जुदा कर सकती है. सिर्फ मौत,’’ रुखसार का जवाब था.

शाहिद अपने प्रोजैक्ट की प्रगति के बारे में कप्तान मंजीत और दिल्ली से आए मंत्रालय के अफसरों से मीटिंग कर के घर लौटा तो परेशान था. मंत्रालय ने 1 साल से ज्यादा समयसीमा बढ़ाने की अर्जी नामंजूर कर दी थी. मानसी ने शाहिद को परेशान देख कर सवाल दागे तो उसे बताना ही पड़ा, ‘‘लगता है मां कि अब दिनरात काम करना पड़ेगा, रोशनी का पूरा इंतजाम होने के बाद हो सकता है मैं रात को भी वहीं रहूं.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता कि रुखसार भी मेरे साथ वहीं रह जाए, उसी जगह?’’

शाहिद मानसी मां की मासूमियत पर मुसकरा दिया, ‘‘कोशिश करूंगा कि रुखसार को भारत की नागरिकता जल्दी ही मिल जाए.’’

शाहिद सारी रात सो नहीं पाया. अगले दिन उसे काम के सिलसिले में पैसों व अन्य साजोसामान के इंतजाम के लिए शिलौंग, अगरतला और कोलकाता जाना था. सारे रास्ते वह रुखसार के बारे में ही सोचता रहा. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी उसे कभी ऐसे मुकाम पर भी ला कर खड़ा कर देगी. शाहिद जब वापस लौटा तो इलाका फिर बरसात की गिरफ्त में था. जीरो लाइन की तरफ जाते हुए उसे रास्ते में कप्तान मंजीत मिल गए और बोले, ‘‘क्या बात है शाहिद, आजकल तू कम ही नजर आता है,’’ काम की वजह है या कोई और चक्कर है?

‘‘आप भी सरदारजी खिंचाई करने का कोई मौका हाथ से गंवाते नहीं हो. एक तो उबड़खाबड़ जमीन, उस पर भयानक जंगल, जंगली जानवरों का खौफ, कयामत ढाती बरसात और उड़ाने को तैयार हवाएं, ऐसे हालात में रह कर भी आप देश की रक्षा करते हो, यह काबिलेतारिफ है.’’

‘‘एक काम कर शाहिद, यहां कोई चंगी सी कुड़ी देख कर उस से ब्याह कर ले. खबर है कि ऐसे और भी कई छोटेबड़े हाटबाजार खुलने वाले हैं. फिर तो बड़े आराम से जिंदगी गुजरेगी यहां.’’ शाहिद कप्तान की बात पर झेंप गया.

‘‘हां, शाहिद एक बात और. खबर है कि इस बौर्डर के रास्ते पाकिस्तानी आईएसआई भारत में आतंकवादी गतिविधियां करने की फिराक में है, इसलिए सावधान रहना. और कोई ऐसीवैसी बात नजर आए तो फौरन खबर देना,’’ मंजीत ने जातेजाते कहा. शाहिद जब हाट पहुंचा तो उस ने रुखसार को बेकरारी से इंतजार करते हुए पाया. चाह कर भी वे दोनों वहां मिल नहीं पाए. दफ्तर में जब मिले तो रुखसार को एहसास हो गया कि शाहिद की तबीयत बहुत खराब है. बड़ी मुश्किल से दोनों शाहिद के छोटे से घर में पहुंचे और वहां रुखसार ने उसे जबरदस्ती दवा खिला कर सुला दिया. शाहिद की जब आंख खुली तो बहुत देर हो चुकी थी. आखिरी नाव भी जा चुकी थी और दोनों ही तरफ के लोग अपनीअपनी सीमाओं की तरफ जा चुके थे. अंधेरे और सन्नाटे ने पूरा इलाका घेर लिया था. मिहिर को आता देख रुखसार की जान में जान आई. रुखसार ने जमाल से हुई सारी बात मिहिर को बताई. रुखसार की घबराहट भांप कर मिहिर भी सोच में पड़ गया. उस पर दोनों तरफ ही गार्ड किसी वजह से ज्यादा ही सख्ती दिखा रहे थे. ऐसे में रुखसार का वहां से निकलना बहुत मुश्किल था. लिहाजा वहां रहने के अलावा रुखसार के पास कोई चारा नहीं था.

हाट बाजार- भाग 1: दो सरहदों पर जन्मी प्यार की कहानी

भारत बंगलादेश की सीमा. घने जंगल, ऊंचेऊंचे वृक्ष, कंटीली झाडि़यां, किनारा तोड़ कर नदियों में समाने को आतुर पोखर और ऊंचीनीची पथरीली, गीली धरती. इसी सीमा पर विपरीत परिस्थितियों में अपनीअपनी सीमाओं की रक्षा करते हुए बीएसएफ और बंगलादेश राइफल्स के जवान. सीमा पर बसे लोगों की शक्लसूरत, कदकाठी, रूपरंग और खानपान एक ही था और दोनों तरफ के रहने वालों के एकदूसरे की तरफ दोस्त थे, रिश्तेदार थे और आपसी मेलजोल था.

दोनों ही तरफ के बाशिंदों की एक पैंडिंग मांग थी कि सीमा पर एक हाट हो जहां दोनों ही ओर के छोटेबड़े व्यापारी अपनेअपने माल की खरीदफरोख्त कर सकें. उन का दावा था कि ऐसा हाट बनाने से गैरकानूनी ढंग से चल रही कार्यवाहियां रुक जाएंगी और किसान एवं खरीदारों को सामान की असली कीमत मिलेगी. राजनैतिक स्तर पर वार्त्ताओं के लंबेलंबे कई दौर चले. कई बार लगा कि ऐसा कोई हाट नहीं बन पाएगा और योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित हो कर रह जाएगी. लेकिन अंतत: दोनों सरकारों को जनता की मांग के सामने झुकना ही पड़ा और दोनों सीमाओं के बीच वाले इलाके पर हाट के लिए जगह का चुनाव कर दिया गया. तय यह भी हुआ कि उस जगह पर एक पक्का बाजार बनेगा जहां सीमा के दोनों तरफ के लोग एक छोटी सी प्रक्रिया के बाद आराम से आ जा सकेंगे और जब तक पक्का हाट नहीं बनता तब तक वहीं एक कच्चा बाजार चलता रहेगा.

टैंडर की औपचारिकता के बाद कोलकाता की एक कंपनी ‘शाहिद ऐंड कंपनी’ को काम का ठेका सौंप दिया गया और कंपनी का मालिक शाहिद अपने साथी मिहिर के साथ भारतबंगलादेश सीमा पर तुरुगांव तक पहुंच गया, जहां से बीएसएफ के जवानों की एक टुकड़ी उन्हें वहां ले गई जहां हाटबाजार का निर्माण करना था. जगह देख कर शाहिद और मिहिर दोनों ही चक्कर खा गए.

‘‘क्या बात है बड़े मियां, किस सोच में पड़ गए?’’ शाहिद को यों हैरान देख कर टुकड़ी के कमांडर ने पूछा और फिर उस के मन की बात जान कर खुद ही बोल पड़ा, ‘‘काम मुश्किल जरूर है मगर नामुमकिन नहीं. बस आप को इस उफनती जिंजीराम नदी का ध्यान रखना है और जंगली जानवरों से खुद को बचाना है, जो यदाकदा आप के सामने बिन बुलाए मेहमानों की तरह टपक पड़ेंगे.’’

‘‘मेहमान वे नहीं हम हैं कप्तान साहब. हम उन के इलाके में बिना उन की इजाजत के अपनेआप को उन पर थोप रहे हैं. खैर, वर्क और्डर के मुताबिक यहां 50 दुकानें, एक मीटिंग हौल, एक छोटा सा बैंक काउंटर और एक दफ्तर बनना है,’’  शाहिद ने नक्शे पर नजर गड़ाते हुए कहा.

‘‘बिलकुल ठीक कहा आप ने इंजीनियर साहब. मगर काम शुरू करने से पहले एक जरूरी बात आप को बता दूं,’’ कप्तान मंजीत ने बड़ी संजीदगी से कहा, ‘‘इस इलाके को जहां हम सब खड़े हैं, ‘नो मैन लैंड’ कहते हैं यानी न भारत न बंगलादेश. काफी संवेदनशील जगह है यह. बंगलादेशियों की लाख कोशिशों के बावजूद हम ने यहां उन के गांव बसने नहीं दिए. इसे वैसे ही रखा जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून में उल्लेखित है. इसलिए यहां आप और आप के मजदूर सिर्फ अपने काम से काम रखेंगे और भूल कर भी आगे जाने की कोशिश नहीं करेंगे. बंगलादेशी यों तो हमारे दोस्त हैं, लेकिन कभीकभी दुश्मनों जैसी हरकतें करने से गुरेज नहीं करते हैं. शक ने अभी भी उन के दिमाग से अपना रिश्ता नहीं तोड़ा है. तभी तो इस काम के लिए फौज का महकमा होते हुए भी समझौते के तहत हमें आप जैसे सिविलियंस की सेवाएं लेनी पड़ीं.’’

शाहिद ने अगले दिन से ही अपना काम शुरू कर दिया. लेकिन सप्ताह में 2 दिन काम की गति तब कम हो जाती जब वहां कच्ची दुकानों में दुकानदारों और ग्राहकों का हुजूम इकट्ठा हो जाता. भारतीय दुकानदार जहां कपड़े, मिठाइयां और बांस के बने खिलौने वगैरह बेचते, वहीं बंगलादेशी व्यापारी मछली और अंडे इत्यादि अधिक से अधिक मात्रा मेें ला कर बेचते. लेनदेन दोनों तरफ की करैंसी में होता. शाहिद ने वहीं पास के गांव में एक छोटा सा घर ले लिया और अपने अच्छे व्यवहार से धीरेधीरे लोगों का दिल जीत लिया. घर के कामकाज के लिए उस ने एक बुजुर्ग महिला मानसी की सेवाएं ली थीं. मानसी दाईमां का काम करती थी. मगर उम्र के तकाजे की वजह से उस ने वह काम बंद कर दिया था. मानसी को शाहिद प्यार से मानसी मां कहता.

एक दिन बरसात ने पूरे इलाके को अपनी आगोश में जकड़ लिया. उस वक्त नदी पूरे उफान पर थी और उस का पानी लकड़ी के बने पुल तक पहुंच रहा था. बंगलादेशी व्यापारियों में चिंता बढ़ती जा रही थी. शाहिद की नजरें बेबस लोगों को देख रही थीं कि अचानक उस की नजरें ठिठक गईं. एक लड़की अपने सामान और पैसों को बरसात के पानी और तेज हवा से बचाने का असफल प्रयास कर रही थी. देखते ही देखते हवा का एक तेज झोंका आया, तो लड़की का संतुलन बिगड़ा और उस के हाथ का थैला और सामान की गठरी छिटक के दूर जा गिरी. शाहिद को न जाने क्या सूझा. उस ने पल भर में उफनते पानी में छलांग लगा दी और इत्तफाक से बिना ज्यादा मशक्कत के दोनों ही चीजें हासिल करने में सफल हो गया.

‘‘ये लीजिए अपना सामान,’’ शाहिद ने सामान लड़की को थमाते हुए कहा.

‘‘जी धन्यवाद,’’ लड़की ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा. कुछ देर के इंतजार के बाद बरसात का प्रकोप कम हुआ, तो एकएक कर के सभी बंगलादेशी शुक्र मनाते हुए अपनी सीमा की ओर बढ़ने लगे. लड़की जातेजाते कनखियों से शाहिद को देखती जा रही थी. धीरेधीरे लड़की की नाव शाहिद की आंखों से ओझल होने लगी, लेकिन शाहिद एकटक जाती हुई नौका को तब तक निहारता रहा जब तक मिहिर की कर्कश आवाज ने उस की तंद्रा भंग नहीं कर दी.

उस दिन के बाद हर मंगलवार और शुक्रवार को शाहिद अपना सारा कामकाज छोड़ कर हाट में उस लड़की को ढूंढ़ता रहता. एक दिन वह अपना सामान बेचती हुई दिखी तो तुरंत उस के पास पहुंचा. उस ने नजरें उठा कर देखा तो वह तुरंत उस से बोला, ‘‘आज आप सिंदूर नहीं लाईं. मेरी मानसी मां ने मंगवाया था,’’ ऐसा उस ने बातचीत का सिलसिला शुरू करने के उद्देश्य से कहा था.

‘‘हां, लीजिए न,’’ लड़की ने शर्माते हुए कहा.

‘‘ये लीजिए क्व100. कम हों तो बता दीजिए.’’

‘‘मैं आप से पैसे कैसे ले सकती हूं. आप ने उस दिन मेरी कितनी मदद की थी.’’

‘‘अच्छा तो एक शर्त है. मैं खाने का डब्बा लाया हूं. मेरी मानसी मां ने बड़े प्यार से बनाया है. आप को भी थोड़ा खाना होगा.’’

‘‘खाना तो हम भी घर से लाए हैं,’’ लड़की ने हौले से कहा.

‘‘ठीक है. फिर हमारी मां का बनाया खाना आप खाइए और आप का लाया खाना मैं खाऊंगा,’’ शाहिद ने प्रसन्न होते हुए कहा.

‘‘ये क्या कर रही हो रुखसार?’’ एक भारीभरकम आवाज ने दोनों को खाना खाते देख कर टोका, ‘‘किस के साथ मिलजुल रही हो? जानती नहीं यह उस तरफ का है. जल्दी से खाना खत्म कर बाकी बचा माल बेचो. मुझ से इतना माल ढोने की उम्मीद मत करना.’’

‘‘माल तो तुम्हें ही ढोना पड़ेगा जमाल भाईजान. अब मैं तो उठाने से रही.’’ शाम को हूटर बजते ही सभी व्यापारी अपनाअपना माल समेटने लगे और देखते ही देखते सब की गठरियां तैयार हो गईं. रुखसार ने बड़े सलीके से गठरियां बांधीं और अपने भाई की राह देखने लगी. थोड़ी देर में एकएक कर के सभी जाने लगे. लेकिन जमाल का कहीं पता न था. तभी दूर खड़ा शाहिद रुखसार की परेशानी भांपते हुए करीब आया और बोला, ‘‘अगर जमाल नहीं आया तो कोई बात नहीं आप का सामान नाव में मैं रखवा देता हूं, आप परेशान न हों.’’

फूल सी दोस्ती : विराट की गर्लफ्रैंड क्यों उस रिश्ते का मजाक बनाने लगी?

आजकल मंजरी का मन घर में बिलकुल भी नहीं लग रहा था. उस के पति शिशिर बिजनैस के सिलसिले में ज्यादातर बाहर रहा करते थे और बेटा अतुल एमएस करने अमेरिका गया, तो वहीं का हो कर रह गया. साक्षी से ही वह अपने मन की बातें कर लिया करती थी. साक्षी भी मंजरी को मां नहीं सहेली समझती थी. तभी तो पिछले सप्ताह उसे एअरपोर्ट तक छोड़ते समय मन बहुत उदास हो गया था मंजरी का. हालांकि इस बात से वह बहुत खुश थी कि मिलान से फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने के लिए स्कौलरशिप मिली साक्षी को.

शिशिर ने उसे सोसाइटी की महिलाओं का क्लब जौइन करने का सुझाव दिया. पर मंजरी ने सोचा कि पहले की तरह फिर उसे क्लब छोड़ना पड़ गया तो वह सब की आंखों की किरकिरी बन जाएगी. उस की दिलचस्पी औरों की तरह लोगों की कमियां निकालने, गहनों की चर्चा करने और साडि़यों की सेल के बारे में जानने की नहीं थी. किट्टी पार्टी में महंगी क्रौकरी के प्रदर्शन और ड्राइंगरूम में नित नए शो पीसेज से अपना रुतबा बढ़ाचढ़ा कर दिखाने का स्वांग रचना भी नहीं जानती थी वह. उसे कुछ अच्छा लगता था तो बस देर तक प्रकृति की गोद में बैठे रहना या फिर बच्चों के साथ हंसतेखिलखिलाते हुए बचपन को फिर से महसूस करना. उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह 50 वर्ष पार चुकी है.

साक्षी के चले जाने के बाद मंजरी अकसर किसी पार्क में जा कर बैठ जाया करती थी. एक दिन पार्क में बैंच पर बैठी हुई वह व्हाट्सऐप पर मैसेज पढ़ने में तल्लीन थी कि ‘एक्सक्यूज मी’ सुन कर उस का ध्यान भंग हुआ. सामने एक 28-29 वर्षीय लंबा, हैंडसम युवक उसे बैंच पर रखा उस का पर्स हटाने को कह रहा था. मुसकराते हुए उस ने पर्स उठा लिया और वह युवक बैंच पर बैठ गया. लगभग 5 मिनट यों ही बीत गए. युवक बेचैन सा कभी पार्क के गेट की

ओर देखता तो कभी अपने मोबाइल को. ऐसा लग रहा था कि वह किसी की प्रतीक्षा कर रहा है. मंजरी ने पूछ लिया, ‘‘किसी का इंतजार कर रहे हो क्या?’’ लेकिन प्रश्न पूछते ही उसे लगा कि उस से गलती हो गई. एक अजनबी, वह भी नवयुवक….अब जरूर यह खीज उठेगा.

परंतु उस की आशा के विपरीत युवक ने मुसकरा कर उस की ओर देखा और कहा, ‘‘मैं… हां… इतंजार कर रहा हूं… आप… अकेली बैठीं हैं?’’

‘‘हां…जब बोर होती हूं तो यहां आ कर बैठ जाती हूं. मेरे अलावा घर के सब लोग बिजी हैं…लगता है यह बैंच उन लोगों के लिए ही बनी है जो अपनों का साथ पाने को बेचैन हैं,’’ वह निराश, पर थोड़े से मजाकिया लहजे में बोली.

‘‘हां… शायद… मेरी गर्लफ्रैंड… नहीं, हाफ गर्लफ्रैंड भी बिजी रहती है. वह ऐसे बच्चों के हौस्टल में औफिसर इन चार्ज है जो देख नहीं सकते. काफी काम रहता है उसे वहां. शायद इसीलिए टाइम पर नहीं पहुंच पाती मेरे पास.’’ निराशा छिपाते हुए एक सांस में ही नवयुवक ने सब कह डाला.

फिर अपना परिचय देते हुए उस ने मंजरी को अपना नाम बताया, ‘‘जी, मेरा नाम विराट है. और आप?’’

‘‘मैं मंजरी,’’ थोड़ा हिचकिचाते हुए मंजरी ने भी अपना परिचय दिया.

‘‘काम तो अच्छा कर रही हैं आप की साहिबा. नाम क्या है और हाफ गर्लफ्रैंड क्यों?’’

‘‘रिया नाम है मैडम का… हम दोनों मुंबई में 5वीं क्लास तक एकसाथ पढ़ते थे, फिर उस के पापा का ट्रांसफर हो गया और वे लोग दिल्ली आ गए. 3 महीने पहले एक दिन अचानक ही उस से मुलाकात हो गई. उस के बाद से ही हमारा मिलनाजुलना शुरू हो गया. हम दोनों एकदूसरे को पसंद भी बहुत करते हैं. बस…वो ‘3 वर्ड्स’ अभी तक नहीं कह पाए एकदूसरे को,’’ विराट ने शरमाते हुए कहा.

‘‘फिर तो तुम भी हाफ बौयफ्रैंड हुए न उस के,’’ मंजरी ने विराट की बातों में दिलचस्पी लेते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, रिया तो कब की मेरे मन की बात जान चुकी होगी, क्योंकि मेरे वाट्सऐप और फेसबुक के स्टेटस मेरे मन के राज खोल देते हैं. पर रिया…वह तो इस मामले में पूरी साइलैंट मूवी की हीरोइन है,’’ और विराट होंठों पर उंगली रख, चुप्पी का इशारा करते हुए मुसकराने लगा.

और फिर मंजरी के ‘‘ओह…नौटी गर्ल’’ कहते ही दोनों हंस पड़े.

‘‘आप से एक बात पूछूं?… पुरानी हिंदी फिल्मों में हीरो हमेशा हीरोइन के पीछे भागता दिखाई देता था. क्या सच में ऐसा तब भी होता था? आजकल की लड़कियां तो अपने पीछे भगाभगा कर थका ही देती हैं. अब मुझे ही देख लीजिए,’’ कह विराट ने अपना निचला होंठ बाहर निकालते हुए मंजरी की ओर इस तरह देखा कि उस की मासूमियत पर स्नेह बरस पड़ा मंजरी के मन में.

‘‘विराट, यह जमाने पर नहीं व्यक्ति पर निर्भर करता है. मैं ने तो किसी को अपने पीछे भागने का मौका ही नहीं दिया कभी. शिशिर के लिए प्यार महसूस करते ही बिना समय गंवाए उसे बता दिया था मैं ने तो. जब मिलती थी तब भी पटरपटर बोलती रहती थी. वैसे शिशिर क्या मैं तो किसी के सामने छिपा ही नहीं सकती अपनी फीलिंग्स. चाहे फिर वे मेरे बच्चे हों या दोस्त,’’ थोड़ा भावुक हो कर मंजरी बोली.

‘‘वही तो, मैं भी नहीं रह सका चुप. अपरोक्ष रूप से ही सही बता ही दिया रिया को कि कितना बेताब हूं उस के लिए मैं. अब मैं भी तो सुनना चाहता हूं कि मेरे लिए वह क्या महसूस करती है?’’ बेचैन सा होता हुआ वह बोला.

‘‘मैं ने बहुत कुछ सीखा है अपने बड़बोले स्वभाव से. मैं तुम्हें बता दूंगी कि रिया से कैसे उस के दिल की बात उगलवानी है तुम्हें… ठीक?’’

‘‘डील?’’

‘‘डील.’’

और दोनों ने हंसते हुए एकदूसरे से हाथ मिलाया. मोबाइल नंबरों के आदानप्रदान के बाद मंजरी घर की ओर चल पड़ी.

विराट दिल्ली में स्थित एक इंटरनैशनल कंपनी में वाइस प्रैसिडैंट था. उस के मातापिता मुंबई में रहते थे. यों तो विराट बहुत बातूनी था, पर कम ही लोग उस के दिल को छू पाते थे. मंजरी के अपनेपन और दोस्ताना व्यवहार ने विराट के दिल में जगह बना ली और दोनों के बीच फोन और व्हाट्सऐप के द्वारा बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. कुछ ही दिनों में वे इतना घुलमिल गए कि अपनी रोज की बातें शेयर करने लगे.

विराट जब भी मंजरी से मिलता, अपने मन में हलचल मचा रहे कई सवाल पूछ डालता. मंजरी भी आराम से उस के सवालों का जवाब देती. जब कभी वह मंजरी से अपने और रिया के संबंधों को ले कर कोई सवाल करता तो मंजरी की प्रेम के विषय में इतनी गहरी समझ देख कर हैरान रह जाता.

वह जान गया था कि 60 की उम्र के आसपास पहुंच कर भी प्यार जैसे शब्द बेमानी नहीं होते. यह अलग बात है कि उस सोच में एक परिपक्वता आ जाती है. मंजरी से मिला स्नेह और मार्गदर्शन जहां विराट को बेहद सुखद अनुभूति देता, वहीं मंजरी भी विराट के उत्साह से प्रभावित हो कर एक नई शक्ति महसूस करती. धीरेधीरे वे दोनों एक अनाम से रिश्ते में बंध गए थे.

लगभग एक महीने की बिजनैस टूअर से शिशिर जब घर लौटे तो मंजरी बदलीबदली सी लगी. पहले की तुलना में वह काफी खुश दिख रही थी. लाल कैप्री के साथ क्रीम कलर का लंबा सा कुरता पहन, अपनी फैवरिट परफ्यूम लगाए घर में फुदकती हुई वह 25 साल पुरानी मंजरी लग रही थी.

शिशिर सूटकेस रखने जब अपने कमरे में पहुंचा तो बैड पर अधलेटा विराट

मंजरी के लैपटौप पर कुछ करने में व्यस्त था. इस से पहले कि उन की कुछ बात होती, मंजरी सब के लिए कौफी ले कर आ गई और विराट का अपने दोस्त के रूप में शिशिर से परिचय करवा दिया.

‘‘मंजरीजी मेरी हमउम्र न सही, पर यह रिश्ता मुझे भी दोस्ती जैसा ही लगता है. आप को ऐतराज न हो तो मैं भी इन्हें अपनी दोस्त कह कर बुला सकता हूं?’’ विराट ने शिशिर से बड़ी आत्मीयता से पूछा.

‘‘सिर्फ दोस्त कह कर बुलाओगे? अरे भई, दोस्त समझो इन्हें. लगता है तुम में इन्हें एक ऐसा साथी मिल गया कि हमारी मैडम किट्टी और पड़ोस की सहेलियों से मिलने तक नहीं जा पातीं. अब बाहर जाया करूंगा तो मंजरी की चिंता नहीं होगी मुझे. वैलडन यंग मैन,’’ शिशिर ने विराट की पीठ थपथपा दी.

कौफी की चुसकियों के साथ तीनों की बातचीत का शोर घर में सुनाई देने लगा.

रिया को ले कर विराट का उतावलापन देख मंजरी कभीकभी खूब हंसती. विराट चाहता था कि रिया जल्द से जल्द उसे अपने मन की बात कह दे और यह रिश्ता किसी मंजिल तक पहुंच जाए. मंजरी ने विराट को रिया के सामने थोड़ा सीमित रहने का सुझाव दिया, ताकि रिया स्वयं को टटोलना शुरू करे. मंजरी की बात मान विराट ने अब बारबार रिया को फोन और मैसेज करना बंद कर दिया. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी वह सोचसमझ कर स्टेटस डालने लगा. अपने मन की बात मन ही में रखने से विराट को थोड़ी मुश्किल जरूर हुई, पर इस का परिणाम वैसा ही निकला जैसा वह चाहता था.

उस दिन कौफी शौप में विराट जानबूझ कर रिया को औफिस की बोझिल बातें सुनाने लगा. कुछ देर चुपचाप सुनने के बाद बोर होते हुए रिया बोली, ‘‘बस करो न अब… प्लीज, हमेशा की तरह अपने शौक, अपने बचपन और कालेज की शैतानियों की बात करो न.’’

‘‘क्यों?’’ अनजान बनते हुए विराट ने पूछा.

‘‘क्यों क्या? अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में जानना.’’

‘‘रियली… पर कुछ तो वजह होगी इस की?’’  विराट को मंजिल करीब लग रही थी.

‘‘विराट… बड़े खराब हो तुम…’’

‘‘अरे, मुझ पर गुस्सा? ‘लव यू’ तुम से नहीं बोला जा रहा और नाराजगी मुझ पर.’’

‘‘सब बातें कहने की नहीं होतीं. क्या मैं ने कभी तुम्हें प्यार कबूलने को कहा? तुम्हारे स्टेटस से आइडिया लगा लिया न? और तुम हो कि…’’

‘‘पर तुम तो स्टेटस भी हमेशा अपने मम्मीपप्पा की नन्ही सी गुडि़या बन कर डालती हो, एकदम बच्चों की तरह. कभी इशारा भी दिया कि मैं पसंद हूं तुम्हें?’’

‘‘ओके बाबा… लो…अभी व्हाट्सऐप पर तुम्हारे लिए स्टेटस डालती हूं.’’

और रिया ने तभी सुंदर सी रेशमी डोर की इमेज वाला स्टेटस डाला, जिस पर एक गीत की पंक्ति लिखी थी, ‘‘ये मोहमोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उलझे…’’

स्टेटस पढ़ते ही विराट की खुशी का ठिकाना न रहा और उस ने रिया का हाथ पकड़ कर चूम लिया. मन ही मन वह मंजरी का धन्यवाद करना भी नहीं भूला. अगला दिन उस ने लोधी गार्डेन में सैलिब्रेशन डे के रूप में मंजरी के साथ मनाने का निश्चय किया.

घर पहुंच कर विराट के कई बार काल करने पर भी जब मंजरी ने फोन नहीं उठाया तो एक छोटा सा मैसेज भेज कर वह सो गया. सुबह होते ही वह फिर मंजरी को फोन करने लगा, पर कोई उत्तर न मिला. व्हाट्सऐप पर भी उस का लास्ट सीन रात का ही था. शिशिर लंदन गए हुए थे, इसलिए मंजरी कहीं दूर भी नहीं गई होगी. विराट बेहद चिंतित था. इसी तरह काफी समय बीत गया. इधर रिया से मिलने का टाइम हो रहा था, उधर मंजरी को ले कर चिंता.

इसी बीच दोपहर के 2 बज गए. कुछ सोचते हुए वह अपनी कार की चाबी ले कर घर से निकला ही था कि मंजरी का फोन आ गया. उस ने बताया कि रात से उसे तेज बुखार है, सुबह से चक्कर भी आ रहे हैं. बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही उस की.

‘‘मैं अभी आता हूं,’’ कह विराट मंजरी के घर की ओर निकल पड़ा. रिया को फोन कर उस ने बता दिया कि आज वह नहीं आ पाएगा क्योंकि एक फ्रैंड की तबीयत ठीक नहीं है, वह उस के घर जा रहा है.

मंजरी के घर पहुंचते ही विराट उसे ले कर हौस्पिटल गया. वहां मंजरी को दवा दी गई. घर वापस आ कर भी विराट तब तक मंजरी के पास बैठा रहा जब तक उस का बुखार कम नहीं हो गया.

घर लौटते ही उस ने रिया को फोन कर मंजरी के बारे में बताना शुरू किया. सुन कर रिया बोली, ‘‘तुम ने तो कहा था कि एक फ्रैंड की तबीयत खराब है.’’

‘‘हां, मंजरीजी फ्रैंड हैं मेरी.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब तुम भी यही सोचती हो कि एक मेल और फीमेल कभी फ्रैंड नहीं हो सकते?’’

‘‘मैं क्या उस जमाने की लगती हूं तुम्हें? पर 50 की उम्र के पार की आंटी से फ्रैंडशिप? हाहाहा… आई कांट बिलीव इट.’’

‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ विराट गुस्से से बोला. जवाब में रिया ने फोन काट दिया.

रात होतेहोते मंजरी की तबीयत में काफी सुधार आ गया. विराट को थैंक्स बोलने के लिए जब उस ने फोन किया तो ‘हैलो’ के साथ ही विराट की निराशा और गुस्से में भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘आई हेट रिया.’’

‘‘क्यों क्या हुआ?’’ चिंतित सी मंजरी इतना ही बोल पाई. और विराट ने पूरी घटना उसे सुना दी.

‘‘विराट, इस में रिया की कोई गलती नहीं. हमें संस्कार ही ऐसे दिए जाते हैं कि हम भावनाओं को जीना जानते ही नहीं. अपनी संकीर्ण सोच से कुछ लोगों द्वारा बनाए गए

नियमों के इर्दगिर्द ही घूमती रहती है हमारी पूरी जिंदगी. रिया को बस थोड़ा समझाने की जरूरत है. तुम परेशान मत होना, प्लीज…मैं देखती हूं अब क्या करना है.’’ मंजरी के कहने से विराट आश्वस्त हुआ और दोनों की बात वहीं समाप्त हो गई.

अगले दिन मंजरी ने बहुत सी चौकलेट्स खरीदीं और नेत्रहीन बच्चों के छात्रावास की ओर चल दी. वहां जा कर उस ने वे चौकलेट्स बच्चों में बांटने की इच्छा व्यक्त की. जैसा कि वह उम्मीद कर रही थी, उसे वहां की इंचार्ज यानी रिया के पास भेज दिया गया.

गोरे रंग की लंबी, स्लिम बौडी की खूबसूरत रिया का फोटो भी विराट ने उसे अभी तक नहीं दिखाया था, क्योंकि वह दोनों को आमनेसामने मिलवाना चाहता था. मंजरी ने रिया को अपना नाम नहीं बताया. वह जानती थी कि चेहरे से रिया उसे नहीं पहचानती होगी.

रिया के साथ वह ग्राउंड में खेल रहे बच्चों के पास पहुंच गई. उन सब की उम्र लगभग 5-10 वर्ष के बीच थी. रिया ने बताया कि उसे इन बच्चों से बहुत लगाव है. यहां इन के पढ़ने, रहने, खानेपीने और कपड़ों आदि का प्रबंध एक एनजीओ की मदद से होता है.

‘‘इन बच्चों का साथ मुझे हिम्मत, हौसला और जीने की नई ताकत देता है,’’ कह कर रिया मुसकराने लगी.

बच्चों के प्रति रिया का समर्पण मंजरी को बहुत अच्छा लगा. दोनों की बातचीत

चल ही रही थी एक मासूम सा बच्चा मंजरी द्वारा दी गई चौकलेट रिया के पास ले कर आया और बोला, ‘‘आधी आप खाओ न मैम.’’ रिया ने थोड़ी सी चौकलेट तोड़ी और उस के गाल चूम कर उसे खेलने भेज दिया.

‘‘यह साहिल है. इस के मातापिता एक बम विस्फोट में मारे गए थे. साहिल भी उसी दुर्घटना के कारण अपनी आंखें गंवा बैठा. मुझे बहुत अच्छा लगता है साहिल. मैं इसे दुखी नहीं देख सकती और यह भी मुझे छू कर ही मेरा दुख समझ लेता है. जब कभी मैं उदास होती हूं तो मुझे खुश करने की कोशिश करता है.’’

‘‘ओहो… बहुत दुखभरी है साहिल की कहानी. पर अच्छा हुआ कि उसे तुम्हारे जैसी दोस्त मिल गई.’’ मंजरी ने कहा.

‘‘आप इन भावनाओं को कितना समझती हैं… साहिल और मैं सचमुच एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. वह मेरा प्यारा सा दोस्त है और मैं उस की,’’ मंजरी से सहमति जताती हुई रिया चहक उठी.

‘‘तो क्या तुम नहीं चाहोगी कि ये दोस्ती आज से 20-25 साल बाद भी ऐसी ही रहे? क्या तब तुम इसे इसलिए दोस्त नहीं कहोगी कि तुम 50 के पार हो जाओगी? क्या एक उम्र के बाद भावनाओं को दबा देना चाहिए? अगर उस समय साहिल आज की तरह ही तुम से लगाव महसूस करे तो क्या तब उम्र के अंतर को ध्यान में रखते हुए उसे तुम्हारे प्रति अपने प्यार को कम कर लेना होगा? या फिर तब रिश्ते का नाम दोस्ती से बदल कर कुछ और रखोगी? क्या नाम होगा उस रिश्ते का? शायद कोई नाम नहीं. तब क्या होगा रिया, बता सकती हो तुम?’’ रिया की ओर देख कर मंजरी लगातार मुसकराने की कोशिश कर रही थी.

‘‘प्यार तो ऐसा ही होगा शायद दोनों में. और नाम… नाम तो दोस्ती ही होगा रिश्ते का. अब भी. और तब भी…’’ सोचती हुई सी रिया बोली.

‘‘अगर साहिल और तुम्हारे रिश्ते को दोस्ती का नाम दिया जा सकता है, तो विराट और मंजरी के रिश्ते को क्यों नहीं…?’’ मंजरी के सब्र का बांध टूट गया और आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

रिया जैसे सोते से जागी हो, ‘‘आप मंजरीजी हैं न?’’ कह कर वह मंजरी से लिपट गई. उस की आंखों से भी आंसू निकल पड़े.

कुछ देर तक दोनों चुपचाप बैठी रहीं. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मंजरी बोली, ‘‘अब मैं चलती हूं रिया. कल तुम मेरे घर आना. विराट को भी वहीं बुला लूंगी. खूब बातें करनी हैं मुझे तुम दोनों से.’’

रिया हामी में सिर हिला कर मुसकरा दी.

आज रिश्तों का नया पाठ पढ़ा था रिया ने. सच ही तो है कि लगाव, परवाह, त्याग और प्यार जैसे शब्द मन की कोमल भावनाओं के नाम हैं और जब ये एकसाथ मिल जाएं तो बन जाती है दोस्ती. तो फिर दोस्ती का रिश्ता पूरी तरह मन का हुआ. और मन तो सदा एक सा ही रहता है… तो फिर दोस्ती क्यों हो उम्र की मुहताज?

अपने मन की बात विराट तक पहुंचाने के लिए रिया ने उसे व्हाट्सऐप पर मैसेज किया ‘‘विराट… रिश्तों की गहराई को मैं समझ नहीं पाई थीं. अपनेपन की सुगंध से भरे किसी भी रिश्ते को उम्र के अंतिम पड़ाव तक भी मुरझाना नहीं चाहिए. मेरी ख्वाहिश है कि तुम्हारी और मंजरीजी की दोस्ती हमेशा महकती रहे. सचमुच बहुत सुंदर है ये फूल सी दोस्ती.’’

अपशकुनी: अवनि को पहली नजर में ही दिल दे बैठा था अनन्य

अनन्य पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर के उतर ही रहा था कि सामने से स्कूटी से उतरती लड़की को देख कर ठगा सा रह गया. उस लड़की ने बड़ी अदा से हैलमेट उतार कर बालों को झटका तो मानो बिजली सी कौंध गई.

उस के स्कूटी खड़ा कर आगे बढ़ने तक वह बड़े ध्यान से उसे देखता रहा. सलीके से पहनी हैंडलूम की साड़ी, कंधों तक लहराते काले बाल और एकएक कदम नापतौल कर रखती गरिमा से भरी चाल उस के व्यक्तित्व को अद्भुत आभा प्रदान कर रहे थे.

अपनी मौसेरी बहन के बेटे चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने के लिए अनन्य उत्सव रिजोर्ट आया था. वह लड़की भी उत्सव की ओर जा रही थी. अनन्य को कुछ और देर तक उसे निहारने का सुख मिल गया.

उत्सव के गेट में घुसते ही वह लपक कर लिफ्ट की ओर दौड़ गई. जब तक अनन्य को होश आता, लिफ्ट ऊपर जा चुकी थी. अनन्य के पास अब इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं था. पहली बार उसे धीमी गति से चलने के कारण खुद पर गुस्सा आया.

जब वह तीसरी मंजिल पर पार्टी वाले हौल में पहुंचा तो उसी लड़की को अपनी बहन सुजाता से बात करते देख हैरान रह गया. उसे देखते ही सुजाता खिलखिला कर हंस दी.

‘‘तुम शायद इसी की शिकायत कर रही हो. यही पीछा कर रहा था न तुम्हारा? ठहरो, अभी इस के कान पकड़ती हूं,’’ सुजाता नाटकीय अंदाज में बोली थी.

‘‘मैं खुद कान पकड़ता हूं, दीदी. मैं किसी का पीछा नहीं कर रहा था. मैं तो चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में आ रहा था. कोई मेरे आगे चल रहा हो तो मैं क्या करूं.’’

‘‘मैं ऐसे दिलफेंक लड़कों के लटके- झटके खूब समझती हूं. जरा पूछिए इन से कि ये महाशय मेरे पीछे ही क्यों चल रहे थे? तेज कदमों से चल कर मेरे आगे क्यों नहीं निकल गए थे?’’

‘‘अनन्य, तुम्हें अवनि के इस सवाल का जवाब तो देना ही पड़ेगा. अब बोलो, क्या कहना है तुम्हारा?’’ सुजाता को न्यायाधीश बनने में आनंद आने लगा था.

‘‘ऐसा कोई नियम है क्या दीदी कि सड़क पर किसी लड़की के पीछे नहीं चल सकते?’’ अनन्य ने जवाब में सवाल खड़ा कर दिया.

‘‘नियम तो नहीं है, पर इसे पीछा करना कहते हैं, बच्चू. और इस के लिए दंड भुगतना पड़ता है,’’ सुजाता मुसकराते हुए बोली.

‘‘ठीक है, आप का यही निर्णय है तो मैं दंड भुगतने के लिए तैयार हूं,’’ अनन्य जोर से हंसा, पर तभी चिरायु आ धमका था और बात बीच में ही रह गई थी.

‘‘मामा, कितनी देर से आए हो. मेरा गिफ्ट कहां है?’’ चिरायु अनन्य की बांहों में झूल गया.

अनन्य ने छोटा सा पैकेट निकाल कर चिरायु को थमा दिया था.

‘‘इतना छोटा सा  गिफ्ट?’’ चिरायु ने मुंह बनाया.

‘‘खोल कर तो देख. आंखें खुली की खुली रह जाएंगी.’’

चिरायु ने बड़े यत्न से कागज में लपेटा हुआ पैकेट एक झटके में फाड़ा तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

‘‘ओह, वाह वीडियो गेम? मामा, आप सचमुच ग्रेट हो. पापा, देखो, अनु मामा मेरे लिए क्या लाए हैं.’’

ध्रुव वीडियो गेम को देखने में व्यस्त हो गए. सुजाता भी दूसरे मेहमानों की आवभगत में जुट गई.

अनन्य का ध्यान फिर पास ही बैठी अवनि की ओर आकर्षित हो गया. उस के लिए मानो अन्य अतिथि वहां हो कर भी नहीं थे. उस का मन कर रहा था कि वह बस अवनि को निहारता रहे. एकदो बार कनखियों से देखते हुए उस की दृष्टि अवनि से मिली तो लगा जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.

जन्मदिन का उत्सव समाप्त होते ही उस ने सुजाता से पूछा, ‘‘दीदी, कौन है वह? पहले तो उसे कभी नहीं देखा.’’

‘‘किस की बात कर रहा है तू?’’ सब कुछ समझते हुए भी सुजाता मुसकराई.

‘‘वही जो आप से मेरी शिकायत कर रही थी,’’ अनन्य भी मुसकरा दिया.

‘‘तुझे क्या करना है? तू तो विवाह के नाम से ही दूर भागता है. कैरियर बनाना है. जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते में तो विवाह तो सब से बड़ी बाधा है न?’’ सुजाता ने अनन्य के ही शब्द दोहरा दिए थे.

‘‘पर दीदी अवनि को देखते ही मैं ने अपना खयाल बदल दिया है. पता नहीं क्या जादू है उस के व्यक्तित्व में. कुछ बताइए न उस के बारे में.’’

‘‘यही तो रोना है…जिस अवनि को देख कर तुम सम्मोहित हुए हो उस ने अपने चारों तरफ वैराग्य और वासनारहित ऐसा आवरण ओढ़ रखा है कि उस तक पहुंचना कठिन ही नहीं असंभव है. और क्यों न हो, इस संसार ने भी तो उस के साथ ऐसा ही व्यवहार किया है,’’ सुजाता का दर्दीला स्वर सुन कर अनन्य चौंक उठा.

‘‘ऐसा क्या कर दिया संसार ने अवनि के साथ?’’ क्षणमात्र में ही अब तक की सुनी हुई समस्त अनहोनी घटनाएं अनन्य के मानसपटल पर कौंध गई.

‘‘पता नहीं तुम्हें याद है या नहीं, हमारे पुराने गौलीगुड़ा वाले घर के सामने डा. निशीथ राय रहा करते थे…’’

‘‘खूब याद है,’’ अनन्य सुजाता की बात पूरी होने से पहले ही बोल उठा, ‘‘हां, बचपन में बीमार पड़ने पर मां उन्हीं के पास इलाज के लिए ले जाती थीं.’’

‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के चाचा थे. अवनि उन की बहन सुनंदा की छोटी बेटी है.’’

‘‘लेकिन हुआ क्या उस के साथ?’’ अनन्य उतावला हो बैठा. वह उस के बारे में सब कुछ जान लेना चाहता था.

‘‘5 वर्ष पहले की बात है. अवनि का विवाह एक बड़े संपन्न परिवार में तय हुआ था. गोदभराई की रस्म के बाद जब वर पक्ष के लोग वापस लौट रहे थे तो उन की कार को सामने से आते ट्रक ने टक्कर मार दी. उस दुर्घटना में भावी वर और उस के पिता दोनों की मौत हो गई.’’

‘‘ओह, कितना अप्रत्याशित रहा होगा यह सब?’’

‘‘अप्रत्याशित? यह कहो कि बिजली गिरी थी अवनि और उस के परिवार पर. अवनि तो पत्थर हो गई थी यह सब देख कर. उस के मातापिता सांत्वना देने गए थे पर वर पक्ष ने उन का मुंह भी देखना पसंद नहीं किया, बैठने के लिए पूछना तो दूर की बात है,’’ सुजाता ने बताया.

‘‘कितना संताप झेलना पड़ा होगा बेचारी को,’’ अनन्य बुझे स्वर में बोला.

‘‘2-3 वर्ष इलाज करवाया गया अवनि का तब कहीं जा कर वह सामान्य हुई. अब भी छोटी सी बात से डर जाती है. जैसे तुम उस के पीछे चल रहे थे पर उस को लगा कि तुम उस का पीछा कर रहे थे. कोई जोर से बोल दे या रात के सन्नाटे के उभरते स्वर, सब से वह छोटी बच्ची की तरह डर जाती है.’’

‘‘मातापिता ने फिर से विवाह की कोशिश नहीं की?’’

‘‘की थी, पर उस के अपशकुनी होने की बात कुछ ऐसी फैल गई थी कि कोई तैयार ही नहीं होता था. मातापिता ने उसे बहुत प्रोत्साहित किया, ढाढ़स बंधाया तब कहीं जा कर फिर से उस ने पढ़ाई प्रारंभ की. अर्थशास्त्र में एमफिल करते ही यहां महिला कालेज में व्याख्याता बन गई. मुश्किल से 6 माह हुए हैं यहां आए. कालेज के छात्रावास में ही रहती है. कहीं खास आनाजाना भी नहीं है. कभी बहुत आग्रह करने पर हमारे यहां चली आती है.’’

‘‘कितने दुख की बात है. जीवन ने उस के साथ बड़ा क्रूर उपहास किया है,’’ अनन्य को उस से हमदर्दी हो आई थी.

‘‘जीवन से अधिक क्रूर मजाक तो उस के अपनों ने किया है. 2 बड़े भाई हैं, एक बड़ी बहन है. तीनों अपनी गृहस्थी में इतने मगन हैं कि छोटी बहन के संबंध में सोचते तक नहीं. मेरी बूआ यानी अवनि की मां बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. एक ओर बीमार पति की तीमारदारी तो दूसरी ओर अवनि की समस्या. उन का हाल पूछने वाला तो कोई है ही नहीं,’’ सुजाता का गला भर आया. आंखें भीग गईं.

‘‘जो हुआ, बहुत दुखद था, पर दीदी, इस का अर्थ यह तो नहीं कि पूरा जीवन एक दुर्घटना की भेंट चढ़ा दिया जाए,’’ अनन्य को अपनी बात कहने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे.

‘‘तुम सही कह रहे हो अनन्य, पर यह सब उसे बताएगा कौन? अभी तक तो सब ने उस के घावों पर नमक छिड़कने का ही काम किया है.

एक दिन अचानक वह मुझ से मिलने चली आई. बातों ही बातों में पता चला कि तैयार हो कर कालेज के लिए निकली तो कुछ छात्राएं उस के सामने पड़ गईं.

अवनि को देखते ही वे आपस में ऊंचे स्वर में बातें करने लगीं कि आज सवेरेसवेरे अवनि मैडम का मुंह देख लिया है, पता नहीं दिन कैसा गुजरेगा. यह बताते हुए वह रो पड़ी,’’ सुजाता ने बताया.

‘‘इस तरह कमजोर पड़ने से काम कैसे चलेगा. उन छात्राओं को तभी इतनी खरीखोटी सुनानी चाहिए थी कि फिर से ऐसी बेहूदा बात कहने का साहस न कर पाएं,’’ अनन्य क्रोध से भर उठा.

‘‘कहना बहुत सरल होता है, अपनी ही बात ले लो. कुछ ही देर पहले तुम अवनि के व्यक्तित्व से पूर्णतया अभिभूत लग रहे थे. पर मुझे नहीं लगता कि यह सब कुछ जानने के बाद भी तुम्हारे मन में उस के प्रति वही भावनाएं होंगी?’’ सुजाता व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘आप के इस प्रश्न का उत्तर अभी तो मेरे पास नहीं है. सबकुछ जाननेसमझने के लिए समय तो चाहिए न दीदी,’’ अनन्य के हर शब्द में गहराई थी, अवनि के प्रति सहानुभूति थी.

सुजाता बस मुसकरा कर रह गई थी. अनन्य के जाने के बाद सुजाता सोच में डूब गई.

उस के मन में विचारों का तेजी से मंथन चल रहा था. कभी वह अनन्य के बारे में सोचती तो कभी अवनि के बारे में.

‘‘कब तक यों ही बैठी रहोगी? ढेरों काम पड़े हैं,’’ तभी ध्रुव ने उस की तंद्रा भंग की.

‘‘क्या करूं, फिर वही कहानी दोहराई जा रही है. पता नहीं अवनि को कोई सहारा देने का साहस जुटा पाएगा या नहीं?’’ निराश स्वर में बोल सुजाता उठ खड़ी हुई.

‘‘इस चिंता में घुलना छोड़ दो सुजाता. अवनि पढ़ीलिखी है, समझदार है, आत्मनिर्भर है. धीरेधीरे अपने बलबूते जीना सीख जाएगी,’’ ध्रुव ने समझाना चाहा था.

कुछ माह भी नहीं बीते थे कि एक दिन अचानक ही शुभदा मौसी का फोन आ गया. इधरउधर की बात करने के बाद वे बोलीं, ‘‘क्या कहूं सुजाता, मन रोने को हो रहा है. पर सोचा पहले तुम से बात कर लूं. शायद तुम्हीं कोई राह सुझा सको.’’

‘‘क्या हुआ, मौसी? सब खैरियत तो है?’’ सुजाता बोली.

‘‘मेरी कुशलता की इतनी चिंता कब से होने लगी तुम्हें? काश, तुम ने मुझे समय से सचेत कर दिया होता.’’

‘‘क्या कह रही हो मौसी? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,’’ सुजाता परेशान हो उठी.

‘‘मैं उस मुई अवनि की बात कर रही हूं. पता नहीं कब से प्रेमलीला चल रही है दोनों की. अब अनन्य जिद ठाने बैठा है कि विवाह करेगा तो अवनि से ही, नहीं तो कुंआरा रहेगा.’’

‘‘मेरा विश्वास करो मौसी. मुझे तो इस संबंध में कुछ भी पता नहीं है.’’

‘‘पर अनन्य तो कह रहा था कि वह अवनि से पहली बार चिरायु के जन्मदिन पर ही मिला था.’’

‘‘उस समारोह में तो बहुत से लोग आमंत्रित थे. कहां क्या चल रहा था, मैं कैसे बता सकती हूं.’’

‘‘ठीक है, मान ली तुम्हारी बात. पर अब तो कुछ करो, सुजाता. मेरा तो एक ही बेटा है. उसे कुछ हो गया तो मैं बरबाद हो जाऊंगी,’’ शुभदा फोन पर ही रो पड़ीं.

‘‘ऐसा मत बोलो मौसी, ऐसा कुछ नहीं होगा. क्या पता इस में भी कोई अच्छाई ही हो,’’ सुजाता ने उन्हें ढाढ़स बंधाया.

‘‘इस में क्या अच्छाई होगी. मेरी तो सारी उमंगों पर पानी फिर गया. इस से तो अनन्य कुंआरा ही रह जाता तो मैं संतोष कर लेती. सुजाता, वादा कर कि तू अनन्य को समझा लेगी.’’

‘‘ठीक है, मैं प्रयत्न करूंगी मौसी. पर कोई वादा नहीं करती. तुम तो जानती ही हो, आजकल कौन किस की सुनता है. जब अनन्य तुम्हारी बात नहीं मान रहा तो मेरी क्या मानेगा,’’ सुजाता ने अपनी विवशता जताई थी.

‘‘प्रयत्न करने में क्या बुराई है? तुझे तो बहुत मान देता है. शायद मान जाए. अपनी मौसी के लिए तू इतना भी नहीं करेगी?’’ शुभदा ने जोर डालते हुए कहा था.

‘‘क्यों शर्मिंदा करती हो, मौसी. मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगी.’’

सुजाता ने शुभदा को आश्वस्त तो कर दिया पर अति व्यस्तता के कारण अगले 2 महीने तक अवनि और अनन्य से मिलने तक का समय नहीं निकाल पाई. पर एक दिन अचानक शुभदा मौसी को आया देख उस के आश्चर्य की सीमा न रही.

‘‘आओ मौसी, तुम्हारा फोन आने के बाद व्यस्तता के कारण अनन्य से मिलने का समय ही नहीं निकाल पाई. मैं आज ही अनन्य से मिलने की कोशिश करूंगी,’’ सुजाता मौसी को अचानक आया देख वह अचकचा कर बोली.

‘‘अब उस की कोई आवश्यकता नहीं, बेटी. मैं तो उन दोनों के विवाह का निमंत्रण देने आई हूं. अनन्य को बहुत समझायाबुझाया, लेकिन वह माना ही नहीं. पता नहीं उस जादूगरनी ने क्या जादू कर दिया. बेटे की जिद के आगे झुकना ही पड़ा,’’ शुभदा मौसी भरे गले से बोलीं और निमंत्रणपत्र दे कर उलटे पांव लौट गईं.  बहुत प्रयत्न करने पर भी उन्हें रोक नहीं पाई सुजाता. शायद वे अनन्य और अवनि के विवाह के लिए सुजाता को भी दोषी मान रही थीं.

शुभदा मौसी तो निमंत्रणपत्र दे कर चली गईं पर सुजाता के मन में बेचैनी हो रही थी कि आखिर अनन्य क्यों अवनि के बारे में सबकुछ जानने के बाद विवाह के लिए राजी हो गया और अवनि कैसे अपनी पुरानी यादों को भूल कर विवाह के लिए तैयार हो गई? सुजाता ने अनन्य और अवनि से बात की तो दोनों ने ही कहा, ‘‘दीदी, हम दोनों ने एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लिया है. साथ ही हम यह भी समझ गए हैं कि शकुनअपशकुन कुछ नहीं होता. जीवनसाथी अगर अच्छा हो तो जिंदगी अच्छी गुजरती है. अत: एकदूसरे को समझने के बाद ही हम ने शादी का फैसला लिया है.

सुजाता ने अपने में कई ताजगी का अनुभव किया.

अनन्य और अवनि का विवाह बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ था. य-पि शुभदा मौसी किसी अशुभ की आशंका से सोते हुए भी चौंक जाती थीं.

अनन्य और अवनि के विवाह को अब 5 वर्ष का समय बीत चुका है. 2 नन्हेमुन्नों के साथ दोनों अपनी गृहस्थी में कुछ ऐसे रमे हैं कि दीनदुनिया का होश ही नहीं है उन्हें. पर शुभदा मौसी हर परिचित को यह समझाना नहीं भूलतीं कि शकुनअपशकुन कुछ नहीं होता. यह तो केवल पंडों का फैलाया वहम है.

इजहार: सीमा के लिए गुलदस्ता भेजने वाले का क्या था राज?

मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

‘‘यह कैसी दिल तोड़ने वाली बात कर दी तुम ने, सीमा? मैं तो अपनी पूरी पगार हर महीने तुम्हारे चरणों में रख देता हूं,’’ मैं ने अपनी आवाज में दर्द पैदा करते हुए शिकायत करी.

‘‘और पाईपाई का हिसाब न दूं तो झगड़ते हो. मेरी पगार चली जाती है फ्लैट और कार की किस्तें देने में. मुझे अपनी मरजी से खर्च करने को सौ रुपए भी कभी नहीं मिलते.’’

‘‘यह आरोप तुम लगा रही हो जिस की अलमारी में साडि़यां ठसाठस भरी पड़ी हैं. क्या जमाना आ गया है. पति को बेटी की नजरों में गिराने के लिए पत्नी झूठ बोल रही है.’’

‘‘नाटक करने से पहले यह तो बताओ कि उन में से तुम ने कितनी साडि़यां आज तक खरीदवाई हैं? अगर तीजत्योहारों पर साडि़यां मुझे मेरे मायके से न मिलती रहतीं तो मेरी नाक ही कट जाती सहेलियों के बीच.’’

‘‘पापा, मम्मी को खुश करने के लिए 2-4 दिन कहीं घुमा लाओ न,’’ मनीषा ने हमारी बहस रोकने के इरादे से विषय बदल दिया.

‘‘तू चुप कर, मनीषा. मैं इस घर के चक्करों से छूट कर कहीं बाहर घूमने जाऊं, ऐसा मेरे हिस्से में नहीं है,’’ सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना माथा ठोंका.

‘‘क्यों इतना बड़ा झूठ बोल रही हो? हर साल तो तुम अपने भाइयों के पास 2-4 हफ्ते रहने जाती हो,’’ मैं ने उसे फौरन याद दिलाया.

‘‘मैं शिमला या मसूरी घुमा लाने की बात कह रही थी, पापा,’’ मनीषा ने अपने सुझाव का और खुलासा किया.

‘‘तू क्यों लगातार मेरा खून जलाने वाली बातें मुंह से निकाले जा रही है? मैं ने जब भी किसी ठंडी पहाड़ी जगह घूम आने की इच्छा जताई, तो मालूम है इन का क्या जवाब होता था? जनाब कहते थे कि अगर नहाने के बाद छत पर गीले कपड़ों में टहलोगी तो इतनी ठंड लगेगी कि हिल स्टेशन पर घूमने का मजा आ जाएगा.’’

‘‘अरे, मजाक में कही गई बात बच्ची को सुना कर उसे मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही हो?’’ मैं नाराज हो उठा.

मेरी नाराजगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए सीमा ने अपनी शिकायतें मनीषा को सुनानी जारी रखीं, ‘‘इन की कंजूसी के कारण मेरा बहुत खून फुंका है. मेरा कभी भी बाहर खाने का दिल हुआ तो साहब मेरे हाथ के बनाए खाने की ऐसी बड़ाई करने लगे जैसे कि मुझ से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता.’’

‘‘पर मौम, यह तो अच्छा गुण हुआ पापा का,’’ मनीषा ने मेरा पक्ष लिया. बात सिर्फ बाहर खाने में होने वाले खर्च से बचने के लिए होती है.

‘‘उफ,’’ मेरी बेटी ने मेरी तरफ ऐसे अंदाज में देखा मानो उसे आज समझ में आया हो कि मैं बहुत बड़ा खलनायक हूं.

‘‘जन्मदिन हो या मैरिज डे, अथवा कोई और त्योहार, इन्हें मिठाई खिलाने के अलावा कोई अन्य उपहार मुझे देने की सूझती ही नहीं. हर खास मौके पर बस रसमलाई खाओ या गुलाबजामुन. कोई फूल, सैंट या ज्वैलरी देने का ध्यान इन्हें कभी नहीं आया.’’

‘‘तू अपनी मां की बकबक पर ध्यान न दे, मनीषा. इस वैलेंटाइनडे ने इस का दिमाग खराब कर दिया है, जो इस जैसी सीधीसादी औरत का दिमाग खराब कर सकता हो, उस दिन को मनाने की मूर्खता मैं तो कभी नहीं करूंगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुनाया तो मांबेटी दोनों ही मुझ से नाराज नजर आने लगीं.

दोनों में से कोई मेरे इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, उस से पहले ही किसी ने बाहर से घंटी बजाई.

मैं ने दरवाजा खोला और हैरानी भरी आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘‘देखो, कितना सुंदर गुलदस्ता आया है.’’

‘‘किस ने भेजा है?’’ मेरी बगल में आ खड़ी हुई सीमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘और किस को भेजा है?’’ मनीषा उस पर लगा कार्ड पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘इस कार्ड पर लिखा है ‘हैपी वेलैंटाइनडे, माई स्वीटहार्ट,’ कौन किसे स्वीटहार्ट बता रहा है, यह कुछ साफ नहीं हुआ?’’ मेरी आवाज में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मनीषा, किस ने भेजा है तुम्हें इतना प्यारा गुलदस्ता?’’ सीमा ने तुरंत मीठी आवाज में अपनी बेटी से सवाल किया.

मेरे हाथ से गुलदस्ता ले कर मनीषा ने उसे चारों तरफ से देखा और अंत में हैरानपरेशान नजर आते हुए जवाब दिया, ‘‘मौम, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘क्या इसे राजीव ने भेजा?’’

‘‘न…न… इतना महंगा गुलदस्ता उस के बजट से बाहर है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘वह तो आजकल रितु के आगेपीछे दुम हिलाता घूमता है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘नो मम्मी. वी डौंट लाइक इच अदर वैरी मच.’’

‘‘फिर किस ने भेजे हैं इतने सुंदर फूल?’’

‘‘जरा 1 मिनट रुकोगी तुम मांबेटी… यह अभी तुम किन लड़कों के नाम गिना रही थी, सीमा?’’ मैं ने अचंभित नजर आते हुए उन के वार्त्तालाप में दखल दिया.

‘‘वे सब मनीषा के कालेज के फ्रैंड हैं,’’ सीमा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें इन सब के नाम कैसे मालूम हैं?’’

‘‘अरे, मनीषा और मैं रोज कालेज की घटनाओं के बारे में चर्चा करती रहती हैं. आप की तरह मैं हमेशा रुपयों के हिसाबकिताब में नहीं खोई रहती हूं.’’

‘‘मैं हिसाबकिताब न रखूं तो हर महीने किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत आ जाए, पर इस वक्त बात कुछ और चल रही है… जिन लड़कों के तुम ने नाम लिए…’’

‘‘वे सब मनीषा के साथ पढ़ते हैं और इस के अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘मनीषा, तुम कालेज में कुछ पढ़ाई वगैरह भी कर रही हो या सिर्फ अपने सोशल सर्कल को बड़ा करने में ही तुम्हारा सारा वक्त निकल जाता है?’’ मैं ने नकली मुसकान के साथ कटाक्ष किया.

‘‘पापा, इनसान को अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करना चाहिए या नहीं?’’ मनीषा ने तुनक कर पूछा.

‘‘वह बात तो सही है पर यह गुलदस्ता भेजने वाले संभावित युवकों की लिस्ट इतनी लंबी होगी, यह बात मुझे थोड़ा परेशान कर रही है.’’

‘‘पापा, जस्ट रिलैक्स. आजकल फूलों का लेनादेना बस आपसी पसंद को दिखाता है. फूल देतेलेते हुए ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और अब सारी जिंदगी साथ गुजारने की तमन्ना है,’ ऐसे घिसेपिटे डायलौग आजकल नहीं बोले जाते हैं.’’

‘‘आजकल तलाक के मामले क्यों इतने ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, पर फिलहाल यह बताओ कि क्या तुम ने यह गुलदस्ता भेजने वाले की सही पहचान कर ली है?’’

‘‘सौरी, पापा. मुझे नहीं लगता कि यह गुलदस्ता मेरे लिए है.’’

उस का जवाब सुन कर मैं सीमा की तरफ घूमा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, ‘‘जो तुम्हें पसंद करते हों, उन चाहने वालों के 10-20 नाम तुम भी गिना दो, रानी पद्मावती. ’’

‘‘यह रानी पद्मावती बीच में कहां से आ गई?’’

‘‘अब कुछ देरे तुम चुप रहोगी, मिस इंडिया,’’ मैं ने मनीषा को नाराजगी से घूरा तो उस ने फौरन अपने होंठों पर उंगली रख ली.

‘‘मुझे फालतू के आशिक पालने का शौक नहीं है,’’ सीमा ने नाकभौं चढ़ा कर जवाब दिया.

‘‘पापा, मैं कुछ कहना चाहती हूं,’’ मनीषा की आंखों में शरारत के भाव मुझे साफ नजर आ रहे थे.

‘‘तुम औरतों को ज्यादा देर खामोश रख पाना हम मर्दों के बूते से बाहर की बात है. कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘पापा, हो सकता है मीना मौसी की बेटी की शादी में मिले आप के कजिन रवि चाचा के दोस्त नीरज ने मौम के लिए यह गुलदस्ता भेजा हो.’’

‘‘तेरे खयाल से उस मुच्छड़ ने तेरी मम्मी पर लाइन मारने की कोशिश की है?’’

‘‘मूंछों को छोड़ दो तो बंदा स्मार्ट है, पापा.’’

‘‘क्या कहना है तुम्हें इस बारे में?’’ मैं ने सीमा को नकली गुस्से के साथ घूरना शुरू कर दिया.

‘‘मैं क्यों कुछ कहूं? आप को जो पूछताछ करनी है, वह उस मुच्छड़ से जा कर करो,’’ सीमा ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘अरे, इतना तो बता दो कि क्या तुम ने अपनी तरफ से उसे कुछ बढ़ावा दिया था?’’

‘‘जिन्हें पराई औरतों पर लार टपकाने की आदत होती है, उन्हें किसी स्त्री का साधारण हंसनाबोलना भी बढ़ावा देने जैसा लगता है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि उस मुच्छड़ ने तेरी मां को ज्यादा प्रभावित किया होगा. किसी और कैंडिडेट के बारे में सोच, मनीषा.’’

‘‘मम्मी के सहयोगी आदित्य साहब इन के औफिस की हर पार्टी में मौम के चारों तरफ मंडराते रहते हैं,’’ कुछ पलों की सोच के बाद मेरी बेटी ने अपनी मम्मी में दिलचस्पी रखने वाले एक नए प्रत्याशी का नाम सुझाया.

‘‘वह इस गुलदस्ते को भेजने वाला आशिक नहीं हो सकता,’’ मैं ने अपनी गरदन दाएंबाएं हिलाई, ‘‘उस की पर्सनैलिटी में ज्यादा जान नहीं है. बोलते हुए वह सामने वाले पर थूक भी फेंकता है.’’

‘‘गली के कोने वाले घर में जो महेशजी रहते हैं, उन के बारे में क्या खयाल है.’’

‘‘उन का नाम लिस्ट में क्यों ला रही है?’’

‘‘पापा, उन का तलाक हो चुका है और मम्मी से सुबह घूमने के समय रोज पार्क में मिलते हैं. क्या पता पार्क में साथसाथ घूमते हुए वे गलतफहमी का शिकार भी हो गए हों?’’

‘‘तेरी इस बात में दम हो सकता है.’’

‘‘खाक दम हो सकता है,’’ सीमा एकदम भड़क उठी, ‘‘पार्क में सारे समय तो वे बलगम थूकते चलते हैं. प्लीज, मेरे साथ किसी ऐरेगैरे का नाम जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. अगर यह गुलदस्ता मेरे लिए है, तो मुझे पता है भेजने वाले का नाम.’’

‘‘क…क… कौन है वह?’’ उसे खुश हो कर मुसकराता देख मैं ऐसा परेशान हुआ कि सवाल पूछते हुए हकला गया.

‘‘नहीं बताऊंगी,’’ सीमा की मुसकराहट रहस्यमयी हो उठी तो मेरा दिल डूबने को हो गया.

‘‘मौम, क्या यह गुलदस्ता पापा के लिए नहीं हो सकता है?’’ मेरी परेशानी से अनजान मनीषा ने मेरी खिंचाई के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करी.

‘‘नहीं,’’ सीमा ने टका सा जवाब दे कर मेरी तरफ मेरी खिल्ली उड़ाने वाले भाव में देखा.

‘‘मेरे लिए क्यों नहीं हो सकता?’’ मैं फौरन चिढ़ उठा, ‘‘अभी भी मुझ पर औरतें लाइन मारती हैं.. मैं ने कई बार उन की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़े हैं.’’

‘‘पापा की पर्सनैलिटी इतनी बुरी भी नहीं है…’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी… पर्सनैलिटी बुरी नहीं है से तुम्हारा मतलब क्या है?’’ मैं ने अपनी बेटी को गुस्से से घूरा तो उस ने हंस कर जले पर नमक बुरकने जैसा काम किया.

‘‘बात पर्सनैलिटी की नहीं, बल्कि इन के कंजूस स्वभाव की है, गुडिया. जब ये किसी औरत पर पैसा खर्च करेंगे नहीं तो फिर वह औरत इन के साथ इश्क करेगी ही क्यों?’’

‘‘आप को किसी लेडी का भी नाम ध्यान नहीं आ रहा है, जिस ने पापा को यह गुलदस्ता भेजा हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘पापा, आप की मार्केट वैल्यू तो बहुत खराब है,’’ मेरी बेटी ने फौरन मुझ से सहानुभूति दर्शाई.

‘‘बिटिया, यह घर की मुरगी दाल बराबर समझने की भूल कर रही है,’’ मैं ने शान से कौलर ऊपर कर के छाती फुला ली तो सीमा अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी.

‘‘अब तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि इस गुलदस्ते को भेजा किस ने है और यह है किस के लिए?’’ मनीषा के इन सवालों को सुन कर उस की मां भी जबरदस्त उलझन का शिकार हो गई थी.

उन की खामोशी जब ज्यादा लंबी खिंच कर असहनीय हो गई तो मैं ने शाही मुसकान होंठों पर सजा कर पूछा, ‘‘सीमा, क्या यह प्रेम का इजहार करने वाला उपहार मैं ने तुम्हारे लिए नहीं खरीदा हो सकता है?’’

‘‘इंपौसिबल… आप की इन मामलों में कंजूसी तो विश्वविख्यात है,’’ सीमा ने मेरी भावनाओं को चोट पहुंचाने में 1 पल भी नहीं लगाया.

मेरे चेहरे पर उभरे पीड़ा के भावों को उन दोनों ने अभिनय समझ और अचानक ही दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

‘‘मेरे हिस्से में ऐसा कहां कि ऐसा खूबसूरत तोहफा मुझे कभी आप से मिले,’’ हंसी का दौरा थम जाने के बाद सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में उदास गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मेरे खयाल से फूल वाला लड़का गलती से यह गुलदस्ता हमारे घर दे गया है और जल्द ही इसे वापस लेने आता होगा,’’ मनीषा ने एक नया तुर्रा छोड़ा.

‘‘इस कागज को देखो. इस पर हमारे घर का पता लिखा है और इस लिखावट को तुम दोनों पहचान सकतीं,’’ मैं ने एक परची जेब से निकाल कर मनीषा को पकड़ा दी.

‘‘यह तो आप ही की लिखावट है,’’ मनीषा हैरान हो उठी.

‘‘आप इस कागज को हमें क्यों दिखा रहे हो?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘इसी परची को ले कर गुलदस्ता देने वाला लड़का हमारे घर तक पहुंचा था. लगता है कि तुम दोनों इस बात को भूल चुके हो कि मेरे अंदर भी प्यार करने वाला दिल धड़कता है… मैं जो हमेशा रुपएपैसों का हिसाबकिताब रखने में व्यस्त रहता हूं, मुझे पैसा कम कमाई और ज्यादा खर्च की मजबूरी ने बना दिया है,’’ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के बाद मैं थकाहारा सा उठ कर शयनकक्ष की तरफ चलने लगा तो वे दोनों फौरन उठ कर मुझ से लिपट गईं.

‘‘आई एम सौरी, पापा. आप तो दुनिया के सब से अच्छे पापा हो,’’ कहते हुए मनीषा की आंखें भर आईं.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, स्वीटहार्ट,’’ सीमा की आंखों में भी आंसू छलक आए.

मैं ने उन के सिरों पर प्यार से हाथ रख और भावुक हो कर बोला, ‘‘तुम दोनों के लिए माफी मांगना बिलकुल जरूरी नहीं है. आज वैलेंटाइनडे के दिन की यह घटना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण सबक बननी चाहिए. भविष्य में मैं प्यार का इजहार ज्यादा और जल्दीजल्दी किया करूंगा. मैं नहीं बदला तो मुझे डर है कि किसी वैलेंटाइनडे पर किसी और का भेजा गुलदस्ता मेरी रानी के लिए न आ जाए.’’

‘‘धत्, इस दिल में आप के अलावा किसी और की मूर्ति कभी नहीं सज सकती है, सीमा ने मेरी आंखों में प्यार से झांका और फिर शरमा कर मेरे सीने से लग गई.’’

‘‘मुझे भी दिल में 1 ही मूर्ति से संतोष करने की कला सिखाना, मौम,’’ शरारती मनीषा की इस इच्छा पर हम एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते हुए ठहाका मार कर हंस पडे़.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें