ईस्टर्न डिलाइट: आखिर क्यों उड़े समीर के होश?

सीमा रविवार की सुबह देर तक सोना चाहती थी, लेकिन उस के दोनों बच्चों ने उस की यह इच्छा पूरी नहीं होने दी.

‘‘आज हम सब घूमने चल रहे हैं. मुझे तो याद ही नहीं आता कि हम सब ने छुट्टी का कोई दिन कब एकसाथ गुजारा था,’’ उस के बेटे समीर ने ऊंची आवाज में शिकायत की.

‘‘बच्चो, इतवार आराम करने के लिए बना है और…’’

‘‘और बच्चो, हमें घूमनेफिरने के लिए अपने मम्मी पापा को औफिस से छुट्टी दिलानी चाहिए,’’ शिखा ने अपने पिता राकेशजी की आवाज की बढि़या नकल उतारी तो तीनों ठहाका मार कर हंस पड़े.

‘‘पापा, आप भी एक नंबर के आलसी हो. मम्मी और हम सब को घुमा कर लाने की पहल आप को ही करनी चाहिए. क्या आप को पता नहीं कि जिस परिवार के सदस्य मिल कर मनोरंजन में हिस्सा नहीं लेते, वह परिवार टूट कर बिखर भी सकता है,’’ समीर ने अपने पिता को यह चेतावनी मजाकिया लहजे में दी.

‘‘यार, तू जो कहना चाहता है, साफसाफ कह. हम में से कौन टूट कर परिवार से अलग हो रहा है?’’ राकेशजी ने माथे पर बल डाल कर सवाल किया.

‘‘मैं ने तो अपने कहे में वजन पैदा करने के लिए यों ही एक बात कही है. चलो, आज मैं आप को मम्मी से ज्यादा स्मार्ट ढंग से तैयार करवाता हूं,’’ समीर अपने पिता का हाथ पकड़ कर उन के शयनकक्ष की तरफ चल पड़ा.

सीमा को आकर्षक ढंग से तैयार करने में शिखा ने बहुत मेहनत की थी. समीर ने अपने पिता के पीछे पड़ कर उन्हें इतनी अच्छी तरह से तैयार कराया मानो किसी दावत में जाने की तैयारी हो.

‘‘आज खूब जम रही है आप दोनों की जोड़ी,’’ शिखा ने उन्हें साथसाथ खड़ा देख कर कहा और फिर किसी छोटी बच्ची की तरह खुश हो कर तालियां बजाईं.

‘‘तुम्हारी मां तो सचमुच बहुत सुंदर लग रही है,’’ राकेशजी ने अपनी पत्नी की तरफ प्यार भरी नजरों से देखा.

‘‘अगर ढंग से कपड़े पहनना शुरू कर दो तो आप भी इतना ही जंचो. अब गले में मफलर मत लपेट लेना,’’ सीमा की इस टिप्पणी को सुन कर राकेशजी ही सब से ज्यादा जोर से हंसे थे.

कार में बैठने के बाद सीमा ने पूछा, ‘‘हम जा कहां रहे हैं?’’

‘‘पहले लंच होगा और फिर फिल्म देखने के बाद शौपिंग करेंगे,’’ समीर ने प्रसन्न लहजे में उन्हें जानकारी दी.

‘‘हम सागर रत्ना में चल रहे हैं न?’’ दक्षिण भारतीय खाने के शौकीन राकेशजी ने आंखों में चमक ला कर पूछा.

‘‘नो पापा, आज हम मम्मी की पसंद का चाइनीज खाने जा रहे हैं,’’ समीर ने अपनी मां की तरफ मुसकराते हुए देखा.

‘‘बहुत अच्छा, किस रेस्तरां में चल रहे हो?’’ सीमा एकदम से प्रसन्न हो गई.

‘‘नए रेस्तरां ईस्टर्न डिलाइट में.’’

‘‘वह तो बहुत दूर है,’’ सीमा झटके में उन्हें यह जानकारी दे तो गई, पर फौरन ही उसे यों मुंह खोलने का अफसोस भी हुआ.

‘‘तो क्या हुआ? मम्मी, आप को खुश रखने के लिए हम कितनी भी दूर चल सकते हैं.’’

‘‘तुम कब हो आईं इस रेस्तरां में?’’ राकेशजी ने उस से पूछा.

‘‘मेरे औफिस में कोई बता रहा था कि रेस्तरां अच्छा तो है, पर बहुत दूर भी है,’’ यों झूठ बोलते हुए सीमा के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं.

‘‘वहां खाना ज्यादा महंगा तो नहीं होगा?’’ राकेशजी का स्वर चिंता से भर उठा था.

‘‘पापा, हमारी खुशियों और मनोरंजन की खातिर आप खर्च करने से हमेशा बचते हैं, लेकिन अब यह नहीं चलेगा,’’ समीर ने अपने दिल की बात साफसाफ कह दी.

‘‘भैया ठीक कह रहे हैं. हम लोग साथसाथ कहीं घूमने जाते ही कहां हैं,’’ शिखा एकदम से भावुक हो उठी, ‘‘आप दोनों हफ्ते में 6 दिन औफिस जाते हो और हम कालेज. पर अब हम भाईबहन ने फैसला कर लिया है कि हर संडे हम सब इकट्ठे कहीं न कहीं घूमनेफिरने जरूर जाया करेंगे. अगर हम ने ऐसा करना नहीं शुरू किया तो एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अजनबी से हो जाएंगे.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम सब समझते क्यों नहीं हो कि यों बेकार की बातों पर ज्यादा खर्च करना ठीक नहीं है. अभी तुम दोनों की पढ़ाई बाकी है. फिर शादीब्याह भी होने हैं. इंसान को पैसा बचा कर रखना चाहिए,’’ राकेशजी ने कुछ नाराजगी भरे अंदाज में उन्हें समझाने की कोशिश की.

‘‘पापा, ज्यादा मन मार कर जीना भी ठीक नहीं है. क्या मैं गलत कह रहा हूं, मम्मी?’’ समीर बोला.

‘‘ये बातें तुम्हारे पापा को कभी समझ में नहीं आएंगी और न ही वे अपनी कंजूसी की आदत बदलेंगे,’’ सीमा ने शिकायत की और फिर इस चर्चा में हिस्सा न लेने का भाव दर्शाने के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

‘‘प्यार से समझाने पर इंसान जरूर बदल जाता है, मौम. हम बदलेंगे पापा को,’’ समीर ने उन को आश्वस्त करना चाहा.

‘‘बस, आप हमारी हैल्प करती रहोगी तो देखना कितनी जल्दी हमारे घर का माहौल हंसीखुशी और मौजमस्ती से भर जाएगा,’’ शिखा भावुक हो कर अपनी मां की छाती से लग गई.

‘‘अरे, मैं क्या कोई छोटा बच्चा हूं, जो तुम सब मुझे बदलने की बातें मेरे ही सामने कर रहे हो?’’ राकेशजी नाराज हो उठे.

‘‘पापा, आप घर में सब से बड़े हो पर अब हम छोटों की बातें आप को जरूर माननी पड़ेंगी. भैया और मैं चाहते हैं कि हमारे बीच प्यार का रिश्ता बहुतबहुत मजबूत हो जाए.’’

‘‘यह बात कुछकुछ मेरी समझ में आ रही है. मेरी गुडि़या, मुझे बता कि ऐसा करने के लिए मुझे क्या करना होगा?’’

उन के इस सकारात्मक नजरिए को देख कर शिखा ने अपने पापा का हाथ प्यार से पकड़ कर चूम लिया.

इस पल के बाद सीमा तो कुछ चुपचुप सी रही पर वे तीनों खूब खुल कर हंसनेबोलने लगे थे. ईस्टर्न डिलाइट में समीर ने कोने की टेबल को बैठने के लिए चुना. अगर कोई वहां बैठी सीमा के चेहरे के भावों को पढ़ सकता, तो जरूर ही उस के मन की बेचैनी को भांप जाता.

वेटर के आने पर समीर ने सब के लिए और्डर दे दिया, ‘‘हम सब के लिए पहले चिकन कौर्न सूप ले आओ, फिर मंचूरियन और फिर फ्राइड राइस लाना. मम्मी, हैं न ये आप की पसंद की चीजें?’’

‘‘हांहां, तुम ने जो और्डर दे दिया, वह ठीक है,’’ सीमा ने परेशान से अंदाज में अपनी रजामंदी व्यक्त की और फिर इधरउधर देखने लगी.

सीमा ने भी सब की तरह भरपेट खाना खाया, लेकिन उस ने महसूस किया कि वह जबरदस्ती व नकली ढंग से मुसकरा रही थी और यह बात उसे देर तक चुभती रही.

रेस्तरां से बाहर आए तो समीर ने मुसकराते हुए सब को बताया, ‘‘आप सब को याद होगा कि फिल्म ‘ब्लैक’ मम्मी को बहुत पसंद आई थी. इन के मुंह से इसे दोबारा देखने की बात मैं ने कई बार सुनी तो इसी फिल्म के टिकट कल शाम मैं ने अपने दोस्त मयंक से मंगवा लिए, जो यहां घूमने आया हुआ था. मम्मी, आप यह फिल्म दोबारा देख लेंगी न?’’

‘‘हांहां, जरूर देख लूंगी. यह फिल्म है भी बहुत बढि़या,’’ अपने मन की बेचैनी व तनाव को छिपाने के लिए सीमा को अब बहुत कोशिश करनी पड़ रही थी.

फिल्म देखते हुए अगर सीमा चाहती तो लगभग हर आने वाले सीन की जानकारी उन्हें पहले से दे सकती थी. अगर कोई 24 घंटों के अंदर किसी फिल्म को फिर से देखे तो उसे सारी फिल्म अच्छी तरह से याद तो रहती ही है.

फिल्म देख लेने के बाद वे सब बाजार में घूमने निकले. सब ने आइसक्रीम खाई, लेकिन सीमा ने इनकार कर दिया. उस का अब घूमने में मन नहीं लग रहा था.

‘‘चलो, अब घर चलते हैं. मेरे सिर में अचानक दर्द होने लगा है,’’ उस ने कई बार ऐसी इच्छा प्रकट की पर कोई इतनी जल्दी घर लौटने को तैयार नहीं था.

समीर और शिखा ने अपने पापा के ऊपर दबाव बनाया और उन से सीमा को उस का मनपसंद सैंट, लिपस्टिक और नेलपौलिश दिलवाए.

घर पहुंचने तक चिंतित नजर आ रही सीमा का सिर दर्द से फटने लगा था. उस ने कपड़े बदले और सिर पर चुन्नी बांध कर पलंग पर लेट गई. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इस के लिए उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

उसे पता भी नहीं लगा कि कब उस की आंखों से आंसू बहने लगे. फिर अचानक ही उस की रुलाई फूट पड़ी और वह तकिए में मुंह छिपा कर रोने लगी.

तभी बाहर से समीर ने दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे आराम करने दो.’’

‘‘मम्मी, आप कुछ देर जरूर आराम कर लो. शिखा पुलाव बना रही है, तैयार हो जाने पर मैं आप को बुलाने आ जाऊंगा,’’ समीर ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘मैं सो जाऊं तो मुझे उठाना मत,’’ सीमा ने उसे रोआंसी आवाज में हिदायत दी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद समीर का जवाब सीमा के कानों तक पहुंचा, ‘‘मम्मी, हम सब आप को बहुत प्यार करते हैं. पापा में लाख कमियां होंगी पर यह भी सच है कि उन्हें आप के सुखदुख की पूरी फिक्र रहती है. मैं आप को यह विश्वास भी दिलाता हूं कि हम कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिस के कारण आप का मन दुखे या कभी आप को शर्म से आंखें झुका कर समाज में जीना पड़े. अब आप कुछ देर आराम कर लो पर भूखे पेट सोना ठीक नहीं. मैं कुछ देर बाद आप को जगाने जरूर आऊंगा.’’

‘तू ने मुझे जगा तो दिया ही है, मेरे लाल,’ उस के दूर जा रहे कदमों की आवाज सुनते हुए सीमा होंठों ही होंठों में बुदबुदाई और फिर उस ने झटके से उठ कर उसी वक्त मोबाइल फोन निकाल कर अपने सहयोगी नीरज का नंबर मिलाया.

‘‘स्वीटहार्ट, इस वक्त मुझे कैसे याद किया है?’’ नीरज चहकती आवाज में बोला.

‘‘तुम से इसी समय एक जरूरी बात कहनी है,’’ सीमा ने संजीदा लहजे में कहा.

‘‘कहो.’’

‘‘समीर को उस के दोस्त मयंक से पता लग गया है कि कल दिन में मैं तुम्हारे साथ घूमने गई थी.’’

‘‘ओह.’’

‘‘आज वह हमें उसी रेस्तरां में ले कर गया, जहां कल हम गए थे और खाने में वही चीजें मंगवाईं, जो कल तुम ने मंगवाई थीं. वही फिल्म दिखाई, जो हम ने देखी थी और उसी दुकान से वही चीजें खरीदवाईं, जो कल दिन में तुम ने मेरे लिए खरीदवाई थीं.’’

‘‘क्या उस ने तुम से इस बात को ले कर झगड़ा किया है?’’

‘‘नहीं, बल्कि आज तो सब ने मुझे खुश रखने की पूरी कोशिश की है.’’

‘‘तुम कोई बहाना सोच कर उस के सवालों के जवाब देने की तैयारी कर लो, स्वीटहार्ट. हम आगे से कहीं भी साथसाथ घूमने जाने में और ज्यादा एहतियात बरतेंगे.’’

कुछ पलों की खामोशी के बाद सीमा ने गहरी सांस खींची और फिर दृढ़ लहजे में बोली, ‘‘नीरज, मैं अकेले में काफी देर रोने के बाद तुम्हें फोन कर रही हूं. जिस पल से आज मुझे एहसास हुआ है कि समीर को हमारे प्रेम संबंध के बारे में मालूम पड़ गया है, उसी पल से मैं अपनेआप को शर्म के मारे जमीन में गड़ता हुआ महसूस कर रही हूं.

‘‘मैं अपने बेटे से आंखें नहीं मिला पा रही हूं. मुझे हंसनाबोलना, खानापीना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है. बारबार यह सोच कर मन कांप उठता है कि अगर तुम्हारे साथ मेरे प्रेम संबंध होने की बात मेरी बेटी और पति को भी मालूम पड़ गई, तो मुझे जिंदगी भर के लिए सब के सामने शर्मिंदा हो कर जीना पड़ेगा.

‘‘आज एक झटके में ही मुझे यह बात अच्छी तरह से समझ आ गई है कि अपने बड़े होते बच्चों की नजरों में गिर कर जीने से और दुखद बात मेरे लिए क्या हो सकती है नीरज. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मेरे गलत, अनैतिक व्यवहार के कारण वे समाज में शर्मिंदा हो कर जिएं.

‘‘यह सोचसोच कर मेरा दिल खून के आंसू रो रहा है कि जब समीर के दोस्त मयंक ने उसे यह बताया होगा कि उस की मां किसी गैरमर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाती घूम रही थी, तो वह कितना शर्मिंदा हुआ होगा. नहीं, अपने बड़े हो रहे बच्चों के मानसम्मान की खातिर आज से मेरे और तुम्हारे बीच चल रहे अवैध प्रेम संबंधों को मैं हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर रही हूं.’’

‘‘मेरी बात तो…’’

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना है, क्योंकि मैं ने इस मामले में अपना अंतिम फैसला तुम्हें बता दिया है,’’ सीमा ने यह फैसला सुना कर झटके से फोन का स्विच औफकर दिया.

सीमा का परेशान मन उसे और ज्यादा रुलाना चाहता था, पर उस ने एक गहरी सांस खींची और फ्रैश होने के लिए गुसलखाने में घुस गई.

हाथमुंह धो कर वह समीर के कमरे में गई. अपने बेटे के सामने वह मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाल पाई. बस, अपने समझदार बेटे की छाती से लग कर खूब रोई. इन आंसुओं के साथ सीमा के मन का सारा अपराधबोध और दुखदर्द बह गया.

जब रो कर मन कुछ हलका हो गया, तो उस ने समीर का माथा प्यार से चूमा और सहज मुसकान होंठों पर सजा कर बोली, ‘‘देखूं, शिखा रसोई में क्या कर रही है… मैं तेरे पापा के लिए चाय बना देती हूं. मेरे हाथों की बनी चाय हम दोनों को एकसाथ पिए एक जमाना बीत गया है.’’

‘‘जो बीत गया सो बीत गया, मम्मी. अब हम सब को अपनेआप से यह वादा जरूर करना है कि एकदूसरे के साथ प्यार का मजबूत रिश्ता बनाने में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे,’’ समीर ने उन का माथा प्यार से चूम कर अपने मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘हां, जब सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते हैं,’’ सीमा ने मजबूत स्वर में उस की बात का समर्थन किया और फिर अपने पति के साथ अपने संबंध सुधारने का मजबूत इरादा मन में लिए ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

अपनाअपना नजरिया : शादी के बाद अदिति और मिलिंद के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

पिछले हफ्ते ही मिलिंद का चेन्नई वाली एडवरटाइजिंग एजेंसी की ब्रांच से नई दिल्ली वाली ब्रांच में ट्रांसफर किया गया था. बचपन से ही मिलिंद चेन्नई में अपने मामा के पास ज्यादा रहा था इसलिए उस की हिंदी भाषा पर ज्यादा पकड़ नहीं थी. दिल्ली में जब औफिस में अदिति से नजदीकियां बढ़ीं तो वह कई बार मजाक में उस की हिंदी सुधारती रहती थी.

जल्द ही दोनों की दोस्ती प्रेमपथ पर चलने लगी और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. कंपनी में दोनों ही सेल्स डिपार्टमैंट में ऐग्जिक्यूटिव थे पर जल्द ही अदिति की रीजनल मैनेजर की पोस्ट पर प्रमोशन हो गई.

हालांकि मिलिंद को इस बात से रती भर भी फर्क नहीं पड़ा था परंतु औफिस में उस के दोस्त और अन्य स्टाफ उस की पीठ पीछे इस बात पर मुंह दबाए हंसना अपना हक सम?ाते थे और मिलिंद को समयसमय पर यह एहसास दिलवाना भूलते नहीं थे कि शादी से पहले ही अब तो अदिति से मिलने की उस की इजाजत लेनी पड़ती है तो शादी के बाद तो उसे जोरू का गुलाम बनने से कोई नहीं रोक सकता.

उन सब की ये बातें मिलिंद एक कान से सुनता था और दूसरे से निकाल देता था. दीवाली की छुट्टियों में उस ने अपने मातापिता को इंदौर से बुलवा लिया और अदिति के मातापिता से मिलवाया.

दोनों के ही मातापिता ने थोड़ी नानुकुर के बाद इस रिश्ते को मंजूरी दे दी. दिसंबर के मध्य में विवाह हुआ तो दोनों नववर्ष की संध्या हनीमून मनाने के बाद वापस लौटे.

जिंदगी रोजमर्रा के ढर्रे पर चलने लगी तो कुछ ही महीनों बाद दोनों के परिवारों में दोनों की सासू मांओं ने अदिति से चुहल करना शुरू कर दिया और कोई गुड न्यूज सुनाओ, खुशखबरी कब दे रही हो? तुम दोनों के बीच सब ठीक तो है? पहले तो अदिति ने इन बातों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि इन बातों को सुन कर हंस दिया करती थी पर साल बीतते न बीतते यही बातें अब तानेबाजी में बदलने लगी थीं.

अदिति पर पद की जिम्मेदारियां अधिक थीं और मिलिंद भी तरक्की चाहता था. हालफिलहाल उसे 1-2 अन्य कंपनियों में भी इंटरव्यू देना था. अत: अभी दोनों ही अपनेअपने कैरियर को ले कर व्यस्त थे इसलिए उन्होंने अभी अभिभावक बनने के फैसले को टाला हुआ था परंतु यह बात उन के परिवार वाले न सम?ा रहे थे और न ही समझना चाहते थे.

मिलिंद की बहन जब कनाडा से भारत आई तो मिलिंद की मां के साथ वह कुछ दिनों के लिए मिलिंद के घर भी रहने आई.

‘‘अरे मम्मी, मन्नू तो कब का औफिस से आ कर कमरे में पड़ा है और तुम्हारी बहुरानी अभी तक नदारद है, लगता है भाई ने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है.’’

‘‘भाई क्या करेगा तेरा, औफिस में भी उस से नीचे काम करता है. हम दोनों भी इंदौर वाला घर किराए पर चढ़ा कर दिल्ली वाले फ्लैट में आ गए कि अब तो इस बच्ची से सेवाभाव पा कर बाकी की जिंदगी आराम से गुजारेंगे पर इन दोनों ने तो अपना अलग ही फ्लैट ले लिया. यह तो तू आई है तो मैं कुछ दिन यहां रहने चली आई वरना तो इस घर में बहू होने के बाद भी खुद ही रसोई में खटना होगा यह सोच कर हम तो यहां रहने आते ही नहीं हैं.’’

‘‘ठीक ही कहती हो मम्मी, मन्नू भी न जाने कैसे आप के हाथ का स्वाद भूल कर यहां कच्चापक्का खा रहा है.’’

मिलिंद की आंख खुल चुकी थी और कानों में उसे रश्मि और मां की बातें अच्छी तरह से सुनाई दे रही थीं. वह बाहर आया और बोला, ‘‘दीदी, कैसी बातें कर रही हो. आप समझ सकती हो कि जब हम दोनों ही नौकरीपेशा है तो घर के कामों में बाहर वालों की मदद तो लेनी होगी न और वैसे भी श्यामा खाना बहुत अच्छा बनाती है और घर का भी काफी अच्छे से ध्यान रखती है. आजकल ऐसी हैल्पर मिलती कहां है.’’

‘‘अब अगर इतनी ही वकालत कर रहा है अपने रिश्ते की तो यह भी बता कि अब तक तेरी बीवी घर क्यों नहीं आई? तू तो उस से पहले का आया हुआ है?’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘उफ मम्मी, जरूरी मीटिंग है, नए प्रोजैक्ट की डैडलाइन सिर पर है, सभी काम में लगे हुए हैं मु?ो भी रुकना था पर सिर इतनी जोर से फट रहा था कि चाह कर भी रुकने की हालत नहीं थी मेरी. अब सोच रहा हूं कि अगर मैं भी औफिस में ही रहता तो ज्यादा अच्छा रहता.’’

‘‘चलो मम्मी, इतनी आजादी तो विदेश में नहीं जितनी यहां देख रही हूं, पर हमें क्या, भविष्य में खुद ही पछताएगा. आज अदिति को कुछ नहीं कह रहा न. कल देखना इस के सिर पर सवार होगी वह.’’

‘‘तभी तो बच्चा भी नहीं कर रही. वह क्या होता है रश्मि आजकल की लड़कियों में कि हमारी फिगर न खराब हो जाए, यही सोच इस की मैडम ने भी पाल रखी होगी.’’

‘‘कोई बात नहीं है मम्मी, बच्चे का पालनपोषण सही तरीके से करने के लिए सिर्फ सही टाइम का वेट है हम दोनों को,’’ मिलिंद चाह कर भी यह बात कभी अपने परिवार वालों को नहीं सम?ा पाता.

‘‘हां, हम ने तो जैसे बच्चे बेवक्त ही पैदा कर दिए. ये सही वक्तजैसी बातें बस आजकल की पीढ़ी के चोंचले भर हैं.’’

‘‘अब मम्मी आप की सोच कैसे बदलू मैं,’’ इतना कह कर मिलिंद वापस अपने कमरे में चला गया.

15 दिन बाद आशा और रश्मि चले गए तो लगभग सप्ताह भर बाद अदिति की मां सुधा और छोटा भाई वरुण 4-5 दिनों के लिए रहने आए.

‘‘अदिति, तू अपने पैसों का हिसाब तो अच्छे से रखती है न, कहीं प्रेम विवाह के चक्कर में अपने दोनों हाथ मत खाली कर लेना, सुधा ने अपनी शिक्षा का पिटारा खोला.

‘‘अरे मम्मी, दीदी को तो आप कुछ भी सम?ाना रहने ही दो, इन्हें सम?ा कर आप अपना टाइम ही बरबाद कर रही हो,’’ वरुण चिप्स चबाता हुआ बोला.

‘‘ऐसा क्यों कहता है. हम नहीं समझाएंगे तो कौन समझाएगा इसे?’’

‘‘इसलिए कह रहा हूं कि पिछले महीने जब मैं ने दीदी से अपने लिए क्रिकेट किट और खंडाला ट्रिप के लिए पैसे मांगे तो इन्होंने साफ मना कर दिया. कहा कि इस महीने कार की आखिरी ईएमआई भरनी है तो पैसे अगले महीने ले लेना पर देख लो उस अगले महीने को 3 महीने बीत चुके हैं अभी तक दीदी ने पैसों के दर्शन भी नहीं करवाए.’’

‘‘हां भई, बेटी को यों ही पराया धन नहीं कहते. पराई भी हो गई और धन भी परायों को ही सौंप रही है,’’ सुधा का ताना सुन कर अदिति का मन कसैला हो उठा.

‘‘मम्मी, ये कैसी बातें कर रही हो? मेरा अपना पति, मेरे ससुराल वाले मेरे लिए पराए कैसे हो सकते हैं? वे भी मेरे लिए उतने ही अपने हैं जितने आप लोग. मुझे कोई दिक्कत नहीं है वरुण को कुछ भी दिलवाने में पर ईएमआई भरनी जरूरी थी और उस के बाद आप जानती हैं कि मिलिंद के पापा की हार्ट सर्जरी हुई थी और कुछ पैसा उन्हें घर के ऊपर लगाने के लिए भी चाहिए था.’’

‘‘हां तो सारी जिम्मेदारियां तू ही निभा, मिलिंद के मातापिता हैं तो क्या उस का उन के प्रति कोई फर्ज नहीं है और रश्मि, उस के पास पैसों की क्या कमी है. वहां बैठी डौलर कमा रही है और यहां कुछ मदद नहीं होती उस से अपने मांबाप की,’’ सुधा तमतमाए स्वर में बोली.

‘‘मम्मी, उन्होंने ने भी मिलिंद के लिए बहुत किया है और अपने मम्मीपापा के लिए भी करती हैं. जबान की थोड़ी कड़वी जरूर हैं पर मैं यह नहीं भूल सकती कि हमारी शादी के लिए उन्होंने ही मम्मीपापा को मनाया था और मम्मी, शादी में यह तेरामेरा नहीं होता बल्कि विवाह तो वह खूबसूरत नैनों की जोड़ी होती है जो साथ ही भोर का सवेरा देखती हैं और एकसाथ ही सपनों में खोती हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा रहता है सदा और क्या मुझे यह याद दिलवाने की जरूरत है कि 7 महीने पहले जब जीजाजी की कंपनी से उन की छंटनी कर दी गई थी तब मिलिंद ने कितनी भागदौड़ कर के उन की दूसरी नौकरी लगवाई थी और दीदी के लाडले का स्कूल में एडमिशन करवाया था?

रही बात रश्मि दीदी की तो अगर इस बार किसी कारणवश वे मदद नहीं कर सकीं तो क्या हम भी मम्मीपापा की तरफ से मुंह मोड लें?’’

‘‘चल वरुण, कल ही घर वापस चलते हैं, अपनी ही औलाद दूसरों का पक्ष ले रही है.’’

अदिति ने भी लैपटौप बंद किया और आंखें मूंद कर सिर पीछे सोफे पर टिका दिया.

आखिरकार मिलिंद की मेहनत रंग लाई. अपने वर्षों के अनुभव और बेहतरीन इंटरव्यू के कारण वह जल्द ही एक नामी कंपनी में मैनेजर बना दिया गया. उस की जौब को 6 महीने हुए थे कि एक दिन उसे औफिस में अदिति का फोन आया.

‘‘हैलो अदिति क्या बात है, घबराई हुई सी क्यों बोल रही हो?’’ मिलिंद उस की भर्राई सी आवाज सुन कर बेचैन हो उठा.

उस दिन अदिति अपनी गर्भ की जांच की रिपोर्ट्स ले कर हौस्पिटल गई थी. वहां उस की सहेली किरण गाइनेकोलौजिस्ट के पद पर नियुक्त हुई थी.

मिलिंद जब तक हौस्पिटल पहुंच नहीं गया वह पूरा रास्ता असहज ही रहा.

डाक्टर के कैबिन में पहुंचा तो उस ने देखा कि अदिति की आंखें भरी हुई थीं और चेहरा मुरझाया हुआ था. मिलिंद को देखते ही उस की रुलाई फूट पड़ी. किसी तरह से मिलिंद ने उसे संभाला और किरण से सारी बात पूछी.

अदिति की फैलोपियन ट्यूब्स बिलकुल खराब हो चुकी थीं जिस वजह से उस का मां बनना अब नामुमकिन था. जब मिलिंद को यह बात पता चली तो वह भी एकबारगी भीतर तक हिल गया पर सब से पहले इस वक्त उसे अदिति को संभालना था इसलिए अपना मन पत्थर समान मजबूत कर लिया था उस ने.

‘‘पर आजकल तो आईवीएफ की मदद से महिलाएं बच्चा पैदा करने में सफल होती हैं न,’’ मिलिंद ने किरण से पूछा.

‘‘हां, आजकल यह काफी नौर्मल है पर अदिति के केस में एक और प्रौब्लम है और वह यह है कि अदिति के पीरियड्स कभी रैग्युलर नहीं रहे और पीसीओडी की वजह से अदिति को ओव्यूलेशन भी नहीं होता.

‘‘ओव्यूलेशन क्या होता है?’’ मिलिंद ने पूछा.

‘‘महिलाओं के शरीर में हर महीने ओवरी से अंडे निकलते हैं जोकि अदिति के केस में नहीं हो रहा.’’

‘‘तो फिर अब क्या हो सकता है?’’

‘‘फिलहाल तुम दोनों इस विषय पर ज्यादा कुछ मत सोचो, कुछ वक्त गुजरने दो, मैं अदिति से मिलती रहूंगी,’’ किरण ने बहुत प्यार और अपनेपन से दोनों को दिलासा दिया.

गाड़ी में घर वापस जाते हुए अदिति के चेहरे पर मायूसी ही मायूसी थी. मिलिंद उसे इस तरह से देख नहीं पा रहा था.

अगले दिन सुधा अदिति से मिलने आई, ‘‘मैं ने तुझे समझाया था न कि अपनी नौकरी के चक्कर में कोई फैमिली प्लानिंग मत करना पर तूने कभी घर वालों की सुनी है? अब कल को मिलिंद का मन तु?ा से भर गया तो?’’

‘‘मम्मी,’’ चीख सी पड़ी अदिति, ‘‘आप जानती भी हैं कि आप क्या कह रही हैं?’’

‘‘हां, अच्छी तरह से जानती समझती हूं कि मैं क्या कह रही हूं. पहले जैसे हालात अब नहीं हैं. जब मिलिंद कुछ नहीं था तब तो तेरे आगेपीछे घूमघूम कर तुझ से शादी कर ली और अब तो मिलिंद भी मैनेजर है, तेरे फ्लैट, तेरी गाड़ी सब की किश्तें पूरी हो चुकी हैं और अब तू मां बन नहीं सकती तो तुझ से पीछा छुड़वाने में उसे कौन सी देर लगेगी?’’

‘‘पर मिलिंद को ऐसा करने की क्या

जरूरत है? बहुत प्यार करता है वह मुझे,’’ सुधा की बातों ने अदिति का मन बिलकुल अशांत कर दिया.

‘‘यह प्यारव्यार सब हवा हो जाएगा जब उस के घर वाले बच्चे के लिए शोर मचाएंगे, तेरी सासननद से तो वैसे ही कुछ खास नहीं बनती.’’

‘‘तो पसंद तो आप लोग भी मिलिंद को नहीं करते,’’ अदिति धीमे स्वर में बोली.

‘‘कुछ कहा क्या तूने?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं मम्मी.’’

इधर मिलिंद अपनी मम्मी से मिलने आया था.

‘‘अब आगे की सोच मन्न, हमें भी मरने से पहले तेरी औलाद देखनी है,’’ आशा अपनी आवाज में मिठास घोलते हुई बोली.

‘‘अब मम्मी जो हो रहा है उस में हम दोनों का तो कोई फाल्ट नहीं है.’’

‘‘कैसी बातें कर रहा है, तुझ में क्या कमी है, कमी तो अदिति में है, तू तो उसे छोड़ दे,’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘अच्छा, फिर उसे छोड़ कर क्या करूं?’’ मिलिंद सब समझते हुए भी आशा से सुनना चाहता था.

‘‘देख यह बात इतनी छोटी नहीं है कि जितना तू इसे इतने हलके में ले रहा है, अपने भविष्य का सोच, क्या तू पापा नहीं बनना चाहता? दूसरी शादी का सोच,’’ आशा जैसे एक ही सांस में यह बोल गई.

यह सुन कर मिलिंद ने कुछ पल आशा को देखा और फिर बोला, ‘‘और अगर कमी मु?ा में होती तो भी क्या आप अदिति को यही एडवाइज देतीं?’’

आशा ने कोई जवाब नहीं दिया

‘‘मम्मी, मैं तो आप के पास आया था कि आप हमारे पास कुछ दिनों के लिए रहने आए, पिछली बार रश्मि दीदी की कुछ बातों की वजह से सब का मूड कुछ बुझ सा गया था. आप और अदिति की मम्मी उसे कुछ हौसला दें क्योंकि इस वक्त उसे प्यार और अपनेपन की बेहद जरूरत है पर आप तो बिलकुल अलग बात कर रही हैं,’’ मिलिंद के स्वर में गुस्सा नहीं दुख झलक रहा था. वह उठ कर जाने को हुआ तो तभी उस के पापा उसे दरवाजे पर मिले.

‘‘अरे मन्नू कितने दिनों बाद आया है, आ बैठ तो सही, जा कहां रहा है,’’ सुनील उसे देख कर खुशी से बोले.

‘‘बस पापा, आज थोड़ी जल्दी है, मैं आता हूं 1-2 दिन में फिर,’’ मिलिंद उदास स्वर में बोलता हुआ घर से बाहर निकल गया.

‘‘कोई अपनी सम?ादारी भरी बात तो

नहीं कर दी अदिति के लिए?’’ सुनील ने आशा से पूछा.

‘‘लो मैं ने भला क्या कहा होगा यही न कि तू दूसरी शादी के बारे में सोच, अब इस में क्या गलत है? क्या अपने बच्चे का भला भी न सोचे एक मां,’’ यह कह कर आशा बिना कुछ सुनील से सुने वहां से उठ कर चली गईं.

सुनील का आशा की बातों पर कोई ध्यान नहीं था. वे बस एक ठंडी सांस ले कर रह गए. मिलिंद घर आया तो अदिति का चेहरा देख कर ही भांप गया कि सवेरे अदिति की मम्मी आई हुई थीं और यह यहां भी उस की गलतफहमी ही साबित हुई कि उन्होंने भी अदिति को प्यार से कुछ सम?ाया होगा, उस से उस के दिल की बातें सुनी होंगी, कुछ उसे दिलासा दिया होगा. जरूर आज उसे हताश करने वाली बातें कर के गई होंगी.

‘‘क्या कहा मम्मी ने? क्यों उदास हो उन की बातें सोचसोच कर?’’  मिलिंद ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

अदिति ने एक पल को चौंक कर उस की तरफ देखा. मिलिंद ने आंखों के हावभाव से ही उस से दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने कहा कि अब तुम मु?ो छोड़ कर दूसरी शादी कर लोगे,’’ इतना कह कर वह रोने लग गई.

यह सुन कर मिलिंद ठहाका लगा कर हंस पड़ा, ‘‘देखो, मु?ो नहीं पता था कि मम्मी वह क्या कहते हैं अंतर्यामी भी हैं.’’

‘‘क्या मतलब, क्या कहना चाह रहे हो?’’ अदिति उलझे से स्वर में बोली.

‘‘मतलब सच में मेरी मम्मी मेरी दूसरी शादी करवाना चाह रही हैं.’’

यह सुन कर तो अदिति और जोर से रोने लग गई.

‘‘और सुनो, मम्मी ने तो लड़की भी देख ली है,’’ मिलिंद पूरी तरह से अदिति के साथ आज मजाक के मूड में था.

‘‘हांहां कर लो, अब तुम्हारा दिल जो भर गया है मु?ा से,’’ कह कर अदिति उस के पास से उठ कर जाने लगी.

‘‘अरेअरे, कहां जा रही हो,’’ मिलिंद ने उस की बांह खींच कर अपने करीब कर लिया.

‘‘अच्छा, अब रोना बंद करो, सुनो अदिति, तुम्हारी मैंटली और फिजिकली सेहत खराब हो इस कीमत पर मम्मीपापा बनना मेरा सपना नहीं है, बच्चे के लिए और भी औप्शंस हैं, हम आईवीएफ ट्राई कर सकते हैं. हम बच्चा गोद

ले सकते हैं, सब ठीक हो जाएगा बस तुम थोड़ा धैर्य रखो.’’

‘‘पर हम दोनों के घर वाले, क्या वे लोग भी…’’ अदिति कुछ आशंकित सी हो कर बोली.

अदिति की बात बीच में ही काट कर मिलिंद बोला, ‘‘देखो अदिति वे अपने हिसाब से लाइफ को देखते हैं. यह चीज हम सिर्फ बदलने की कोशिश कर सकते हैं पर इस में हम पूरी तरह कामयाब होंगे या नहीं इस की गारंटी नहीं है और आखिर में हमें भी अपनी लाइफ अपने तरीके से जीने का हक है, लाइफ के लिए यह मेरा पेस्पैक्टिव है मतलब परिशेप है सम?ा,’’ मिलिंद ने प्यार से उस का चेहरा पकड़ कर कहा.

‘‘परिशेप नहीं परिप्रेक्ष्य,’’ अदिति ने हंसते हुए कहा.

‘‘टीचरजी,’’ मिलिंद भी अपने कान पकड़ कर हंस दिया.

‘‘वैसे नजरिया भी कहा जा सकता है,’’ अब अदिति भी खिले स्वर में बोली.

‘‘बिलकुल, अपनीअपनी सोच,

अपनाअपना नजरिया,’’ मिलिंद अब हर प्रकार से संतुष्ट था.

स्वर्ण मृग : झूठ और फरेब के रास्ते पर चल पड़ी दीपा

लेखक-  आदर्श मलगूरिया

स्मिता और दीपा मौल में बने सिनेमाहौल से निकलीं तो अंधेरा छा चुका था. दोनों को पिक्चर खूब पसंद आई थी. साइंस फिक्शन की पिक्चर थी. हीरो के साथ दूरदराज के किसी ग्रह पर भटकते, स्पोर्स पर बने तिलिस्मी महल में खलनायक के मशीनी दैत्यों से जूझते और मौत के चंगुल से निकलते हीरो को 3डी में देख कर स्मिता जैसे अपने को हीरो की प्रेमिका मान बैठी थी. बत्तियां जलीं तो उस के पांव यथार्थ के ठोस धरातल पर आ टिके. स्वप्न संसार जैसे कपूर सा उड़ गया.

स्मिता और दीपा सोच रही थीं कि अब टैक्सी के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी या फिर डलहौजी स्क्वेयर या मैट्रो तक पैदल चलना पड़ेगा. वह भी दूर ही था. ऊपर से काले बादल गहराते जा रहे थे. यदि कहीं तेज बारिश हो गई तो ट्रैफिक जाम हो जाएगा और फिर सड़कों पर जमे पानी के दर्पण में कितनी

देर तक भवनों, बत्तियों के प्रतिबिंब झिलमिलाते रहेंगे.

रात को देर से घर पहुंचने पर मौमडैड को ही नहीं बल्कि बिल्डिंग के गार्ड्स की तेज आंखों को भी कैफियत देनी पड़ेगी. स्मिता के मन में यही विचार घुमड़ रहे थे. उस की बिल्डिंग क्या थी, एक अंगरेजों के जमाने का खंडहर था जिस में 20 परिवार रहते थे. एक गार्ड जरूर रखा गया था ताकि चंदा मांगने वाले या पार्टी के लोगों को आने से रोका जा सके.

दीपा निश्चिंत हो कर 2 पैकेट मिक्स खरीद चुकी थी. एक पैकेट स्मिता की ओर बढ़ाती हुई वह हंस दी, ‘‘लो, यही चबा जब तक कार नहीं आती.’’

‘‘तुझे तो कोई चिंता नहीं है न. यहां मेरे घर पर पहुंचने पर ही कितनी पूछताछ शुरू हो जाएगी. यह शो देखना जरूरी था क्या? कितनी बार कहा था कि इतवार को दिन के शो में चलेंगे पर तु?ा पर तो इस साइंस फिक्शन का भूत चढ़ा था,’’ स्मिता चिल्लाई.

‘‘अरे भई, शुक्रवार को यह पिक्चर बदल न जाती?’’ दीपा ने अपना तर्क पेश किया.

‘‘पर अब घर पहुंचना मुश्किल हो जाएगा. तुझे तो कोई चिंता नहीं है पर मुझे कितनी जगह कैफियत देनी पड़ती है,’’ स्मिता चिंतित हो उठी थी.

किंतु दीपा इस तरह की चिंताओं से दूर थी. वह अपने परिवार से अलग रहती थी इसलिए पूरी तरह स्वतंत्र थी. दीपा के मांबाप अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के एक कसबे में रहते थे. दीपा यहां कोलकाता में पहले एक महिला होस्टल में कई वर्षों तक  रहती रही. फिर एक पुरुष मित्र के साथ दोस्ती होने पर दोनों ने आपस में एक लिव इन में रहना तय कर लिया था. वे स्वेच्छा से इस संबंध को समाप्त भी कर सकते थे परंतु दीपा को विश्वास था कि उस का पार्टनर कभी उस के मोहपाश से नहीं निकल पाएगा.

दीपा अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट थी. वह नौकरी करते हुए अपने परिवार व छोटे भाईबहनों की पढ़ाई के लिए अपने वेतन का बड़ा भाग भेज देती थी. स्वयं भी मजे से रह रही थी. उस के पार्टनर ने उसे एक कमरे का सुंदर फ्लैट किराए पर ले कर दे रखा था. सप्ताह में लगभग 3 बार वह उस के साथ रहता था.

स्मिता ने इसी बात की ओर संकेत किया था. कभीकभी दीपा के उन्मुक्त तथा अंकुश रहित जीवन पर उसे बड़ी ईर्ष्या होती थी. दोनों की स्थितियों में कितना अंतर था. दीपा की स्थितियों में कितना अंतर था. दीपा को आर्थिक दृष्टि से कोई चिंता नहीं थी और वह एक समर्थ पुरुष की प्रेमिका और एक तरह से उस की पत्नी थी. इस तरह वह स्वतंत्र अस्तित्व की स्वामिनी थी. रोकटोक रहित जीवन व्यतीत करती हुई वह हर तरह से सुखी थी. दूसरी ओर स्मिता जैसे कुंआरी भावनाओं की उमंगों की लाश मात्र रह गई थी.

कारखाने की एक दुर्घटना में हाथ कटने पर स्मिता के पिताजी जैसे जीतेजी मृत से हो गए थे. अधूरी पढ़ाई छोड़ कर टाइपिंग तथा शौर्टहैंड सीख कर उस ने परिवार का जो जुआ कंधे पर उठाया था, वह छोटी बहन व भाई की शादी के बाद भी नहीं उतरा था. अब वह हांफते और मुंह से लार गिराते थके टूटे बैल की तरह हो रही थी, जिस पर रोज छोटे भाई गैरी के तानों, मां की ग्रौसरी की चिंता, छोटी भाभी की नए कपड़ों की मांगों व निरीह पिता को दवाइयों के लिए कांपते बढ़ते हाथों के कोड़े बरसते थे.

स्मिता इसी में संतुष्ट रहना चाहती थी परंतु कभीकभी दीपा व अन्य सहेलियों को देख कर सांसारित सुख के सागर से कुछ पीने के लिए ललचा उठती थी पर उसी शहर में अपने परिवार वालों की आंखों के आगे रहते यह संभव नहीं था.

अचानक किसी कार के हौर्न की तीखी आवाज से उस के खयालों को झटका लगा. परिचित नंबर वाली एक एसयूवी सामने आ कर रुकी. रमेश स्टियरिंग पर बैठा उन्हें कार में आने का इशारा कर रहा था. स्मिता पहले तो सकुचाई, फिर घिरते हुए अंधेरे, वर्षा की रिमझिम और दीपा की कड़ी दृष्टि के संकेत ने उसे लिफ्ट स्वीकार करने पर विवश कर दिया. वैसे भी डर क्या था? वह तो है ही घोंचू सी. दीपा की खिलखिलाहट ने  उसे इस बात का एहसास करवा दिया.

रमेश उसी की फैक्टरी का असिस्टैंट मैनेजर था. सुना जाता था कि गांव की जमीनजायदाद से भी उसे काफी आमदमी होती थी. हंसमुख, सहृदय व लोकप्रिय होना शायद उच्च पद व धनी होने से संबंध रखता है. तभी तो रमेश इतने खुले दिल का और खुशमिजाज था, नहीं तो स्मिता के तबके के लोग कैसे डरेडरे, दयनीय लगते थे.

दीपा का घर पहले पड़ता था. उसे उतार कर रमेश स्मिता से उस के घरपरिवार तथा इधरउधर की बातें करता रहा. उस के अपनत्व के कारण उस के संकोच की गांठें धीरेधीरे खुलती गईं. अपना घर करीब आने से पहले ही उस ने कार रुकवा ली.

रमेश हाथ हिलाता चला गया. घुटनेघुटने तक पानी में वह घर पहुंची. मां ने चायनाश्ता बन कर सामने रखा. भाभी दांतों तले होंठ दबा कर यह कहने से बाज नहीं आई. ‘‘बड़ी देर कर दी, स्मिता दी.’’

‘‘हां, बारिश में फंस गई थी.’’

स्मिता भला और क्या कहती? मगर आधे घंटे बाद जैरी, जिस का असली नाम जैमिनी रौय था ने आ कर पूछा, ‘‘गाड़ी मोड़ पर ही क्यों रुकवा दी, दीदी? घर तक क्यों नहीं ले आईं. पैदल आने की क्या जरूरत थी?’’

स्मिता के तनबदन में आगे लग गई. उसे क्या हर छोटेबड़े के आगे सफाइ देनी पड़ेगी? क्या यही सिला है इस घर के लोगों के लिए मरनेखटने का?

चाय छोड़ कर वह अपने कमरे में चली गई. पीछे से मां की आवाज आती रही. मां जैरी को डांट रही थी, ‘‘क्यों आते ही उस के पीछे पड़ गया? बड़ेछोटे का भी लिहाज नहीं है?’’

‘‘वह भी तो मुझे टोकती रहती है,’’ जैरी इस तरह उस से बदला ले रहा था.

‘‘मुझे क्या, जो मरजी हो करे,’’ स्मिता ने जैरी की बात सुन कर मन ही मन सोचा. उस का हृदय कड़वाहट से भर गया था. उस ने तय कर लिया कि वह आज के जमाने के साथ चलेगी.

धीरेधीरे स्मिता के व्यवहार में अंतर आने लगा, जिसे दफ्तर के लोगों ने भी लक्ष्य किया. अब वह पहले वाली संकोची स्मिता नहीं रह गई थी. अपने सहकर्मियों से वह खुल कर गपशप लगाती थी. बातबात पर हंसतीखिलखिलाती थी. सब को पता था कि वह परिवर्तन रमेश की बदौलत है.

अब स्मिता की शामें अकसर रमेश के साथ गुजरतीं. कभी रात का भोजन, कभी चाय, कभी पार्क स्ट्रीट के एक से एक महंगे रेस्तरां में प्रोग्राम रहता. उस ने घर वालों की परवाह करना ही छोड़ दिया था.

धीरेधीरे रमेश उसे अपने दुखी पारिवारिक जीवन की कहानियां सुनाने लगा, उस ने बताया कि उस की पत्नी बिलकुल अनपढ़, झगड़ालू तथा गंवार औरत है. घर में पैर रखते ही उस का सिर भन्ना जाता है क्योंकि वह दिनरात चखचख लगाए रखती है. फिर रमेश धीरे से उस का हाथ दवा कर कहता, ‘‘तुम से वर्षों पहले मुलाकात क्यों नहीं हो गई?’’

‘‘मुलाकात होने से भी क्या होगा? मैं तो तब भी अपनी सलीब ढो रही थी,’’ स्मिता फीकी हंसी हंस देती. वह बीते वर्षों के बारे में सोचती तो उसे सबकुछ गलत लगता. अब शायद भागते समय से मुट्ठीभर प्रसन्नता छीन कर जी सके.

आखिर एक दिन रमेश ने चाय पीते समय उस के सामने लिव इन करने का प्रस्ताव रख दिया. रमेश उसे शहर के आधुनिक इलाके में एक छोटा सा फ्लैट ले देगा. स्मिता की आंखों के सामने सुखी गृहस्थी, बच्चे और अपने घर के इंद्रधनुषी रंग छितराने लगे. वह अपनी पत्नी को छोड़ देगा पर थोड़े दिन बाद क्योंकि तलाक में टाइम लगता है.

उस के अपने परिवार वालों को उस की आवश्यकता नहीं रह गई थी. पीछा छूट जाने पर वे भी प्रसन्न ही होंगे. और वह अब कहीं जा कर स्वयं अपने ढंग से जीवन जी सकेगी. जीवन के इस मोड़ पर आ कर कौन उस की मांग भर कर विधिविधान से 7 फेरे ले कर उसे दुलहन बनाएगा? जो मिल रहा है, वही सही. उस की जानपहचान की कितनी ही लड़कियां इस तरह लिव इन में रह कर प्रसन्न थीं. अगर वह भी ऐस कर ले तो क्या हरज है?

रमेश जैसा भला आदमी उसे फिर कहां मिलेगा और फिर वह अपने परिवार के दुखों से भी छुटकारा पा लेगी. एक पल में स्मिता यह सब सोच गई.

रमेश ने उस की आंखों में आंखें डाल दीं, ‘‘देख लो, तुम्हारा गुलाम बन कर रहूंगा. बच्चों के कारण पत्नी से पीछा नहीं छुड़ा सकता, नहीं तो किसी तरह उसे तलाक दे कर आज ही तुम्हारे साथ विवाह कर लेता. उस गंवार से मुझे अशांति के सिवा और मिलता ही क्या है? सुख के लिए सिर्फ तुम्हारे आगे ही हाथ फैला सकता हूं.’’

सुख से उस का आशय मानसिक था या शारीरिक, स्मिता समझ नहीं पाई. उस समय वह उसे सम?ाना भी नहीं चाहती थी.

‘‘न्यू अलीपुर में मेरे एक दोस्त का फ्लैट खाली है. 1 वर्ष के लिए वह विदेश गया हुआ है. उस की चाबी मेरे पास ही है. फिलहाल तुम उसी में रह लेना. बाद में तुम्हारे लिए कोई अच्छा फ्लैट ले लूंगा.’’

रमेश ने बिल चुकाया और दोनों बाहर आ गए. उसे उस की गली के मोड़ पर छोड़ कर वह चला गया. लेकिन उस दिन घर पहुंचने पर जैरी के कटाक्ष करने पर भी उसे क्रोध नहीं आया. सोचा, बस थोड़े दिन और कह ले जो भी मन में आए, अब उसे क्या परवाह है?

शनिवार को छोटी बहन इमामी मौल में चल रही एक नई फिल्म के 2 टिकट ले आई. दोनों दोपहर का शो देखने चली गईं. शो शुरू होने में अभी कुछ देर थी. दोनों पास की दुकानों में कुछ खरीदारी करने निकल गईं.

‘‘क्यों दीदी, जो कुछ मैं ने सुना है वह ठीक है?’’ छोटी बहन पूछ बैठी.

स्मिता कुछ नहीं बोली. मुसकरा भर दी. उस ने सोचा कि अब धीरेधीरे इन लोगों को बता ही दे कि वह बेचारी स्मिता नहीं रह गई. तभी उस की दृष्टि सामने के कार पार्क पर जा पड़ी.

रमेश कार का शीशा बंद कर रहा था. पास ही आधुनिक वेशभूषा में सुसज्जित कोई महिला खड़ी थी. रमेश के साथ ही शायद उस के कोई मित्र दंपती थे. स्मिता ओट में हो गई. रमेश के मित्र हंस कर कह रहे थे, ‘‘आज आप कैसे पकड़ में आ गए?’’

‘‘भई, आशा ने टिकट बुक कर रखे थे

सो आना ही पड़ा. मुझ से अगर बुक कराने को कहती तो…’’

‘‘तो यह रमेश की पत्नी है? आधुनिकता के अभिमान से भरीपूरी. वह पति को उलाहना दे रही थी और मानसिक अशांति की दुहाई देने वाला स्मिता का अधेड़ प्रेमी खीसें निपोर रहा था.

‘उफ, इतना झूठ,’ सोच स्मिता ने माथा थाम लिया.

‘‘क्या हुआ, दी?’’  छोटी बहन घबरा गई.

‘‘कुछ नहीं, यों ही चक्कर सा आ गया था,’’ स्मिता ने अपनेआप को संभाला. फिर पिक्चर में क्या दिखाया गया है, उसे कुछ याद नहीं रहा. वह तो किसी और ही उधेड़बुन में पड़ी थी.

सोमवार को दफ्तर पहुंचने पर पता चला कि रमेश दौरे पर चला गया है. स्मिता को राहत मिली. वह अभी उस का सामना नहीं करना चाहती थी. साथ ही समाचार मिला कि दीपा नर्सिंगहोम में भरती है. दीपा पास के ही एक दफ्तर में काम करती थी. शाम को स्मिता रजनीगंधा के फूल खरीद कर उसे देखने पहुंची. दीपा का मुख एकदम पीला पड़ चुका था.

‘‘क्या हो गया अचानक?’’ स्मिता उसे देख कर घबरा गई.

‘‘कुछ नहीं, अपनी भूल का दंड भुगत रही हूं.’’

स्मिता का दिल जोरों से धड़कने लगा. दीपा के ‘मैत्री करार’ का क्या यही परिणाम था?

‘‘पहेलियां मत बुझा, साफसाफ बता?’’

कमरे में अब कोई और नहीं था. नर्स दवा दे कर चली गई थी. दीपा धीरेधीरे बताने लगी कि लिव इन की ओट में उस के साथ कितना भयानक खिलवाड़ किया गया. वह अपने पुरुष मित्र की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर अपना सर्वनाश कर बैठी. प्रारंभ में तो सब ठीकठाक चलता रहा. बचपन में खेले घरघर का सपना साकार हो गया. परंतु धीरेधीरे मन भर जाने पर उस के मित्र की उकताहट साफ जाहिर होने लगी. वह तो पैसों के बल पर महज एक खेल चल रहा था जो जल्द ही खत्म हो गया.

‘‘मुझे 3-4 महीने पुरुष संसर्ग का सुख मिला परंतु इस के लिए कितना भारी मूल्य चुकानी पड़ी. जब मैं प्रैगनैंट हो गई तो वह पल्ला झाड़ कर अलग हो गया.’’

‘‘परंतु यह लिव इन भी हो तो कानूनी हो जाता है. वह इस की जिम्मेदारी से कैसे इनकार कर सकता है?’’ स्मिता गुस्से में उबल पड़ी.

‘‘अब मैं कहां कचहरी के चक्कर लगाती फिरूं? इस में मेरी ही बदनामी होगी. वैसे ये कहने की बातें हैं. कानून की दृष्टि में हमारा लिव इन अरेंजमैंट टैंपरेरी है जिस की कोई अहमियत नहीं है. कोई कोर्ट रलीफ दे देता है, कोई खड़ूस जज भगा देता है. जब मुझे गर्भ ठहर गया तो वह मुझे इस से जान छुड़ाने को कहने लगा. माना हम कानूनी तौर पर पतिपत्नी नहीं थे, केवल मित्र थे पर मेरी तो यह पहली संतान थी. मैं कैसे राजी हो जाती परंतु वह कहने लगा कि अभी बच्चों का झंझट क्यों पालती हो? एक बार मैं अपने ?ामेले से निकल लूं, फिर तुम्हारे साथ बच्चे होंगे तो उन का जन्मदिन मनाएंगे.

‘‘ऐसे में तो तुम काम पर भी नहीं जा पाओगी और वेबी बीमार पड़ जाए तो डाक्टरों के यहां चक्कर कैसे काटेगी? फिर आजकल बच्चे को स्कूल में दाखिल कराना कितना उठिन है, सिंगल मदर के लिए तो और मुश्किल होता है. जानती हो न? नहीं, भई, मैं ये सब मुसीबतें फिर अपने सिर पर लेने को तैयार नहीं. तुम्हारे साथ खुशियां बटोरने के लिए हम ने तय किया था कि इस सब झमेले में नहीं पड़ेंगे.’’

‘‘उफ,’’ स्मिता दीपा की बात सुन कर इतना ही कह सकी.

‘‘अब मैं क्या करती? अपने मातृत्व का

मुझे गला घोंटना पड़ा. सिंगल पेंरैंट कैसे बन जाती? बच्चे को बाप का नाम कौन देता? दीपा तकिए में मुंह गड़ा कर सुबकने लगी थी. स्मिता उस के सिर पर हाथ फेरने लगी. अचानक उसे लगा कि दीपा के स्थान पर वह स्वयं सुबक रही है. वह भी तो उसी की तरह बिना आगापीछा सोचे क्षणिक सुख के पीछे अंधी खाई में कूदने जा रही थी. 4 दिन की चांदनी रातें ढलने के बाद वह भी इसी तरह किसी नर्सिंगहोम में सिसकेगी, अधूरे मातृत्व के कारण तड़पेगी.

‘नहीं… नहीं, उसे मांगा या छीना हुआ

या भीख में मिला गृहस्थ सुख नहीं चाहिए.

यह तो कुएं से निकल कर खाई में कूदने वाली बात होगी. उस के घर और परिवार के लोग

जैसे भी हों, उस के अपने तो हैं,’ उस ने मन ही मन कहा.

जाने कैसे अपने पैरों को घसीट कर वह घर तक पहुंची. गली में बहुत भीड़ जमा थी. घर पहुंच कर उस ने देखा कि जैरी घबराया सा अंदर के कमरे में बैठा था. पता चला कि उस के दोस्तों ने मामूली गहने छीनने के लिए किसी भद्र महिला के घर में घुस कर आक्रमण कर दिया था. वह स्त्री शोर मचा कर लोगों को जमा करने में सफल हो गई थी नहीं तो शायद वह अपनी जान से भी हाथ धो बैठती.

वे लड़के जैरी को भी साथ ले जाना चाहते थे परंतु उस ने साफ इनकार कर दिया था. अब पुलिस उस के दोस्तों से पूछताछ कर रही थी. जैरी डर रहा था कि कहीं शक में वह भी न पकड़ लिया जाए. अब वह पहले वाला झगड़ालू और बातबात पर बड़ों का अपमान करने वाला जैरी नहीं रह गया था. वह डरा, सहमा सा एक छोटा बच्चा लग रहा था.

स्मिता ने धैर्य बंधाया, ‘‘तू क्यों बेकार डर रहा है? कह देना कि मुझे कुछ नहीं पता. बस.’’

दीदी की इस बात से जैरी कुछ संभला. आखिर वह था तो अभी किशोर ही. उस ने जैसे रोते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, दी. अब बुरी संगत में कभी नहीं बैठूंगा. रोज स्कूल जाऊंगा और मन लगा कर पढ़ूंगा.’’

स्मिता उसे प्यार से एक चपत लगा कर कपड़े बदलने चली गई. यही उस का अपना घर था, अपना संसार था. यहां जिम्मेदारियां थीं तो अपनत्व का सुख भी. स्वर्ण मृग के पीछे वह कहां पगली सी भाग रही थी. अच्छा हुआ जो जल्दी होश आ गया.

रिश्ते की धूल : आखिर खुले मिजाज की सीमा के साथ क्या हुआ ?

लेखक- डा. के.  रानी

प्रियांक  औफिस के लिए घर से बाहर निकल रहा था कि पीछे से सीमा ने आवाज लगाई, ‘‘प्रियांक, 1 मिनट रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं.’’

‘‘मुझे देर हो रही है सीमा.’’

‘‘प्लीज 1 मिनट की तो बात है.’’

‘‘तुम्हारे पास अपनी गाड़ी है तुम उस से चली जाना.’’

‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई. मेरी गाड़ी सर्विसिंग के लिए वर्कशौप गई है और मुझे 10 बजे किट्टी पार्टी में पहुंचना है. प्लीज, मुझे रिच होटल में ड्रौप कर देना. वहीं से तुम औफिस चले जाना. होटल तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही तो पड़ता है.’’

सीमा की बात पर प्रियांक झुंझला गए और बड़बड़ाया, ‘‘जब देखो इसे किट्टी पार्टी की ही पड़ी रहती है. इधर मैं औफिस निकला और उधर यह यह भी अपनी किट्टी पार्टी में गई.’’

प्रियांक बारबार घड़ी देख रहा था. तभी सीमा तैयार हो कर आ गई और बोली, ‘‘थैंक्यू प्रियांक मैं तो भूल गई थी कि मेरी गाड़ी वर्कशौप गई है.’’

प्रियांक ने सीमा की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. उसे औफिस पहुंचने की जल्दी थी. आज उस की एक जरूरी मीटिंग थी. वह तेज गाड़ी चला रहा था ताकि समय से औफिस पहुंच जाए. उस ने जल्दी से सीमा को होटल के बाहर छोड़ा और औफिस के लिए आगे बढ़ गया.

सीमा समय से होटल पहुंच कर पार्टी में अपनी सहेलियों के साथ मग्न हो गई थी. 12 बजे उसे याद आया कि उस के पास गाड़ी नहीं है. उस ने वर्कशौप फोन कर के अपनी गाड़ी होटल ही मंगवा ली. उस के बाद अपनी सहेलियों के साथ लंच कर के वह घर चली आई. यही उस की लगभग रोज की दिनचर्या थी.

सीमा एक पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाली महिला थी. उसे सजनेसंवरने और पार्टी वगैरह में शामिल होने का बहुत शौक था. उस ने कभी नौकरी करने के बारे में सोचा तक नहीं. वह एक बंधीबंधाई, घिसीपिटी जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. वह तो खुल कर जीना चाहती थी. उस के 2 बच्चे होस्टल में पढ़ते थे. सीमा ने अपनेआप को इतने अच्छे तरीके से रखा हुआ था कि उसे देख कर कोई भी उस की उम्र का पता नहीं लगा सकता था.

प्रियांक और सीमा अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. शाम को प्रियांक के औफिस से घर आने पर वे अकसर क्लब या किसी कपल पार्टी में चले जाते. आज भी वे दोनों शाम को क्लब के लिए निकले थे. उन की अपने अधिकांश दोस्तों से यहीं पर मुलाकात हो जाती.

आज बहुत दिनों बाद उन की मुलाकात सौरभ से हो गई सौरभ ने हाथ उठा कर

अभिवादन किया तो प्रियांक बोला, ‘‘हैलो सौरभ, यहां कब आए?’’

‘‘1 हफ्ता पहले आया था. मेरा ट्रांसफर इसी शहर में हो गया है.’’

‘‘सीमा यह है सौरभ. पहले यह और मैं

एक ही कंपनी में काम करते थे. मैं तो प्रमोट हो कर पहले यहां आ गया था. अब यह भी इसी शहर में आ गया है और हां सौरभ यह है मेरी पत्नी सीमा.’’

दोनों ने औपचारिकतावश हाथ जोड़ दिए. उस के बाद प्रियांक और सौरभ आपस में बातें कर लगे.

तभी अचानक सौरभ ने पूछा, ‘‘आप बोर तो नहीं हो रहीं?’’

‘‘नहीं आप दोनों की बातें सुन रही हूं.’’

‘‘आप के सामने तारीफ कर रहा हूं कि आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं.’’

सौरभ ने उस की तारीफ की तो सीमा ने मुस्करा कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

‘‘कब तक खड़ेखड़े बातें करेंगे? बैठो आज हमारे साथ डिनर कर लो. खाने के साथ बातें करने का अच्छा मौका मिल जाएगा,’’ प्रियांक बोला तो सौरभ उन के साथ ही बैठ गया. वे खाते हुए बड़ी देर तक आपस में बातें करते रहे. बारबार सौरभ की नजर सीमा के आकर्षक व्यक्तित्व की ओर उठ रही थी. उसे यकीन नहीं हो पा रहा था इतनी सुंदर, स्मार्ट औरत के 10 और 8 साल के 2 बच्चे भी हो सकते हैं.

काफी रात बीत गई थी. वे जल्दी मिलने की बात कह कर अपनेअपने घर चले गए. लेकिन सौरभ के दिमाग में सीमा का सुंदर रूप और दिलकश अदाएं ही घूम रही थीं. उस दिन के बाद से वह प्रियांक से मिलने के बहाने तलाशने लगा. कभी उन के घर आ कर तो कभी उन के साथ क्लब में बैठ कर.

प्रियांक कम बोलने वाला सौम्य स्वभाव का व्यक्ति था. उस के मुकाबले सीमा खूब बोलनेचालने वाली थी. अकसर सौरभ उस के साथ बातें करता और प्रियांक उन की बातें सुनता रहता. सौरभ के मन में क्या चल रहा है सीमा इस से बिलकुल अनजान थी.

एक दिन दोपहर के समय सौरभ उन के घर पहुंच गया. सीमा तभी किट्टी पार्टी से घर लौटी थी. इस समय सौरभ को वहां देख कर सीमा चौंक गई, ‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘मैं पास के मौल में गया था. वहां काउंटर पर मेरा क्रैडिट कार्ड काम नहीं कर रहा था. मैं ने सोचा आप से मदद ले लूं. क्या मुझे 5 हजार रुपए उधार मिल सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं मैं अभी लाती हूं.’’

‘‘कोई जल्दबाजी नहीं है. आप के रुपए देने से पहले मैं आप के साथ 1 कप चाय तो पी ही सकता हूं,’’ सौरभ बोला तो सीमा झेंप गई.

‘‘सौरी मैं तो आप से पूछना भूल गई. मैं अभी ले कर आती हूं,’’ इतना कह कर सीमा

2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों साथ बैठकर बातें करने लगे.

‘‘आप को देख कर कोई नहीं कह सकता आप 2 बच्चों की मां हैं.’’

‘‘हरकोई मुझे देख कर ऐसा ही कहता है.’’

‘‘आप इतनी स्मार्ट हैं. आप को किसी अच्छी कंपनी में जौब करनी चाहिए.’’

‘‘जौब मेरे बस का नहीं है. मैं तो जीवन को खुल कर जीने में विश्वास रखती हूं. प्रियांक हैं न कमाने के लिए. इस से ज्यादा क्या चाहिए? हमारी सारी जरूरतें उस से पूरी हो जाती हैं,’’ सीमा हंस कर बोली.

‘‘आप का जिंदगी जीने का नजरिया औरों से एकदम हट कर है.’’

‘‘घिसीपिटी जिंदगी जीने से क्या फायदा? मुझे तो लोगों से मिलनाजुलना, बातें करना, सैरसपाटा करना बहुत अच्छा लगता है,’’ कह कर सीमा रुपए ले कर आ गई और बोली, ‘‘ये लीजिए. आप को औफिस को भी देर हो रही होगी.’’

‘‘आप ने ठीक कहा. मुझे औफिस जल्दी पहुंचना था. मैं चलता हूं,’’ सौरभ बोला. उस का मन अभी बातें कर के भरा नहीं था. वह वहां से जाना नहीं चाहता था लेकिन सीमा की बात को भी काट कर इस समय अपनी कद्र कम नहीं कर सकता था. वहां से उठ कर वह बाहर आ गया और सीधे औफिस की ओर बढ़ गया. उस ने सीमा के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए उस से झूठ बोला था कि वह मौल में खरीदारी करने आया था.

अगले दिन शाम को फिर सौरभ की मुलाकात प्रियांक और सीमा से क्लब में हो गई. हमेशा की तरह प्रियांक ने उसे अपने साथ डिनर करने के लिए कहा तो वह बोला, ‘‘मेरी भी एक शर्त है कि आज के डिनर की पेमैंट मैं करूंगा.’’

‘‘हम दोनों ने भी तो डिनर करना है.’’

‘‘तो क्या हुआ आज का डिनर मेरी ओर

से रहेगा.’’

‘‘जैसे तुम्हारी मरजी,’’ प्रियांक बोला.

सीमा ने डिनर पहले ही और्डर कर दिया था. थोड़ी देर तक वे तीनों साथ बैठ कर डिनर के साथ बातें भी करते रहे. सौरभ महसूस कर रहा था कि सीमा को सभी विषयों की बड़ी अच्छी जानकारी थीं. वह हर विषय पर अपनी बेबाक राय दे रही थी. सौरभ को यह सब अच्छा लग रहा था. घर पहुंच कर भी उस के ऊपर सीमा का ही जादू छाया रहा. बहुत कोशिश कर के भी वह उस से अपने विचारों को हटा न सका. उस का मन हमेशा उस से बातें करने का करता. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वह अपनी भावनाएं सीमा के सामने कैसे व्यक्त करे? उसे इस के लिए एक उचित अवसर की तलाश थी.

एक दिन उस ने बातों ही बातों में सीमा से उस का हफ्ते भर का कार्यक्रम पूछ लिया. सौरभ को पता चल गया था कि वह हर बुधवार को खरीदारी के लिए स्टार मौल जाती है. वह उस दिन सुबह से सीमा की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था.

सीमा दोपहर में मौल पहुंची तो सौरभ

उस के पीछेपीछे वहां आ गया. उसे देखते ही अनजान बनते हुए बोला, ‘‘हाय सीमा इस समय तुम यहां?’’

‘‘यह बात तो मुझे पूछनी थी. इस समय आप औफिस के बजाय यहां क्या कर रहे हैं?’’

‘‘आप से मिलना था इसीलिए कुदरत ने मुझे इस समय यहां भेज दिया.’’

‘‘आप बातें बहुत अच्छी बनाते हैं.’’

‘‘मैं इंसान भी बहुत अच्छा हूं. एक बार मौका तो दीजिए.’’

उस की बात सुन कर सीमा झेंप गई.

सौरभ ने घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘दोपहर का समय है क्यों न हम साथ लंच करें?’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोई बहाना नहीं चलेगा. आप खरीदारी कर लीजिए. मैं भी अपना काम निबटा लेता हूं. उस के बाद इत्मीनान से सामने होटल में साथ बैठ कर लंच करेंगे,’’ सौरभ ने बहुत आग्रह किया तो सीमा इनकार न कर सकी.

सौरभ को यहां कोई खास काम तो था नहीं. वह लगातार सीमा को ही देख रहा था. कुछ देर में सीमा खरीदारी कर के आ गई. सौरभ ने उस के हाथ से पैकेट ले लिए और वे दोनों होटल में आ गए.

सौरभ बहुत खुश था. उसे अपने दिल की बात कहने का आखिरकार मौका मिल गया. वह बोला, ‘‘प्लीज आप अपनी पसंद का खाना और्डर कर लीजिए.’’

सीमा ने हलका खाना और्डर किया. उस के सर्व होने में अभी थोड़ा समय था. सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘आप बहुत स्मार्ट और बहुत खुले विचारों की हैं. मुझे ऐसी लेडीज बहुत अच्छी लगती हैं.’’

‘‘यह बात आप कई बार कह चुके हैं.’’

‘‘इस से आप को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मैं आप का कितना बड़ा फैन हूं.’’

‘‘थैंक्यू. सौरभ आप ने कभी अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया?’’ सीमा बात बदल कर बोली.

‘‘आप ने कभी पूछा ही नहीं. खैर, बता देता हूं. परिवार के नाम पर बस मम्मी और एक बहन है. उस की शादी हो गई है और वह अमेरिका में रहती है. मम्मी लखनऊ में हैं. कभीकभी उन से मिलने चला जाता हूं.’’

बातें चल ही रही थीं कि टेबल पर खाना आ गया और वे बातें करते हुए लंच करने लगे.

सौरभ अपने दिल की बात कहने के लिए उचित मौके की तलाश में था. लंच खत्म हुआ और सीमा ने आइसक्रीम और्डर कर दी. उस के सर्व होने से पहले सौरभ उस के हाथ पर बड़े प्यार से हाथ रख कर बोला, ‘‘आप मु?ो बहुत अच्छी लगती हैं. क्या आप भी मुझे उतना ही पसंद करती हैं जितना मैं आप को चाहता हूं?’’

मौके की नजाकत को देखते हुए सीमा ने धीमे से अपना हाथ खींच कर अलग किया और बोली, ‘‘यह कैसी बात पूछ रहे हैं? आप प्रियांक के दोस्त और सहकर्मी हैं इसी वजह से मैं आप की इज्जत करती हूं, आप से खुल कर बात करती हूं. इस का मतलब आप ने कुछ और समझ लिया.’’

‘‘मैं तो आप को पहले दिन से जब से आप को देखा तभी से पसंद करने लगा हूं. मैं दिल के हाथों मजबूर हो कर आज आप से यह सब कहने की हिम्मत कर रहा हूं. मुझे लगता है आप भी मुझे पसंद करती हैं.’’

‘‘अपनी भावनाओं को काबू में रखिए अन्यथा आगे चल कर यह आप के लिए भी और मेरे परिवार के लिए भी मुसीबत खड़ी कर सकती हैं.’’

‘‘मैं आप से कुछ नहीं चाहता बस कुछ समय आप के साथ बिताना चाहता हूं,’’ सौरभ बोला.

तभी आइसक्रीम आ गई. सीमा बड़ी तलखी से बोली, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’

‘‘प्लीज पहले इसे खत्म कर लो.’’

सीमा ने उस के आग्रह पर धीरेधीरे आइसक्रीम खानी शुरू की लेकिन अब उस की इस में कोई रुचि नहीं रह गई थी. किसी तरह से सौरभ से विदा ले कर वह घर चली आई. सौरभ की बातों से वह आज बहुत आहत हो गई थी. वह समझ गई  कि सौरभ ने उस के मौडर्न होने का गलत अर्थ समझ लिया .वह उसे एक रंगीन तितली समझने की भूल कर रहा जो सुंदर पंखों के साथ उड़ कर इधरउधर फूलों पर मंडराती रहती है.

सीमा इस समस्या का तोड़ ढूंढ़ रही थी जो अचानक उस के सामने आ खड़ी हुई थी और कभी भी उस के जीवन में तूफान खड़ा कर सकती है. वह जानती थी  इस बारे में प्रियांक से कुछ कहना बेकार है. अगर वह उसे कुछ बताएगी तो वह उलटा उसे ही दोष देने लगेगा, ‘‘जरूर तुम ने उसे बढ़ावा दिया होगा. तभी उस की इतना सब कहने की हिम्मत हुई है.’’

1-2 बार पहले भी जब किसी ने उस से कोई बेहूदा मजाक किया तो प्रियांक की यही प्रतिक्रिया रही थी. उसे सम?ा नहीं आ रहा था वह सौरभ की इन हरकतों को कैसे रोके? बहुत सोचसम?ा कर उस ने अपनी छोटी बहन रीमा को फोन मिलाया. वह भी सीमा की तरह पढ़ीलिखी और मौडर्न लड़की थी. उस ने अभी तक शादी नहीं की थी क्योंकि उसे अपनी पसंद का लड़का नहीं मिल पाया था. मम्मीपापा उस के लिए परेशान जरूर थे लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह शादी उसी से करेगी जो उसे पसंद होगा.

दोपहर में सीमा का फोन देख कर उसने पूछा, ‘‘दी, आज जल्दी फोन करने की फुरसत कैसे लग गई? कोई पार्टी नहीं थी

इस समय?’’

‘‘नहीं आज कोई पार्टी नहीं थी. मैं अभी मौल से आ रही हूं. तू बता तेरे कैसे हाल हैं कोई मिस्टर परफेक्ट मिला या नहीं?’’

‘‘अभी तक तो नहीं मिला.’’

‘‘मेरी नजर में ऐसा एक इंसान है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘प्रियांक के साथ कंपनी में काम करता है. तुम चाहो तो उसे परख सकती हो.’’

‘‘तुम्हें ठीक लगा तो हो सकता है मु?ो भी पसंद आ जाए.’’ रीमा हंस कर बोली.

‘‘ठीक है तुम 1-2 दिन में यहां आ जाओ. पहले अपने दिल में उस के लिए जगह तो बनाओ. बाकी बातें तो बाद में होती रहेंगी.’’

‘‘सही कहा दी. परखने में क्या जाता है. कुछ ही दिन में उस का मिजाज सम?ा में आ जाएगा कि वह मेरे लायक है कि नहीं.’’

सीमा अपनी बहन रीमा से काफी देर तक बातें करती रही. उस से बात कर के उस का मन बड़ा हलका हो गया था और काफी हद तक उस की समस्या भी कम हो गई थी. दूसरे दिन रीमा वहां पहुंच गई. प्रियांक ने उसे देखा तो चौंक गया, ‘‘रीमा, तुम अचानक यहां?’’

‘‘दी की याद आ रही थी. बस उस से मिलने चली आई. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’ रीमा बोली.

‘‘कैसी बात करती हो? तुम्हारे आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सौरभ सीमा की प्रतिक्रिया की परवाह किए बगैर अपने मन की बात कह कर आज अपने को बहुत हलका महसूस कर रहा था. उसे सीमा के उत्तर का इंतजार था. 2 दिन हो गए थे. सीमा ने उस से फिर इस बारे में कोई बात नहीं की.

सौरभ से न रहा गया तो शाम के समय वह सीमा के घर पहुंच गया. ड्राइंगरूम में रीमा बैठी थी. उसी ने दरवाजा खोला. सामने सौरभ को देख कर वह सम?ा गई कि दी ने इसी के बारे में उस से बात की थी.

‘‘नमस्ते,’’ रीमा बोली तो सौरभ ने भी औपचारिकतावश हाथ उठा दिए. उसे इस घर में देख कर वह चौंक गया.

रीमा ने अजनबी नजरों से उस की ओर देखा. बोली, ‘‘अगर मेरा अनुमान सही है तो आप सौरभजी हैं.’’

‘‘आप को कैसा पता चला?’’

‘‘दी आप की बहुत तारीफ करती हैं. उन के बताए अनुसार मुझे लगा आप सौरभजी ही होंगे.’’

उस के मुंह से सीमा की कही बात सुन कर सौरभ को बड़ा अच्छा लगा.

‘‘बैठिए न आप खड़े क्यों हैं?’’

रीमा के आग्रह पर सौरभ वहीं सोफे पर

बैठ गया.

‘‘मैं प्रियांक से  मिलने आया था. इसी बहाने आप से भी मुलाकात हो गई.’’

‘‘मेरा नाम रीमा है. मैं सीमा दी की छोटी बहन हूं.’’

‘‘मेरा परिचय तो आप जान ही  गई हैं.’’

‘‘दी ने जितना बताया था आप तो उस से भी कहीं अधिक स्मार्ट हैं.’’

लगातार रीमा के मुंह से सीमा की उस के बारे में राय जान कर सौरभ का मनोबल ऊंचा हो गया. उस लगा कि सीमा भी उसे पसंद करती है लेकिन लोक लाज के कारण कुछ कह नहीं पा रही है.

‘‘आप की दी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘वे काम में व्यस्त हैं. उन्हें शायद आप के आने का पता नहीं चला. अभी बुलाती हूं,’’ कह कर रीमा दी को बुलाने चली गई.

कुछ देर में सीमा आ गई. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा तो सौरभ का दिल अंदर ही अंदर खुशी से उछल गया. उसे पक्का विश्वास हो गया था कि सीमा को भी वह पसंद है. उसे उस की बात का जवाब मिल गया था. उस ने पूछा, ‘‘प्रियांक अभी तक नहीं आया?’’

‘‘आते होंगे. आप दोनों बात कीजिए मैं चाय का इंतजाम करवा कर आती हूं,’’ कह कर सीमा वहां से हट गई.

‘‘कुछ समय पहले कभी दी से आप का जिक्र नहीं सुना. शायद आप को यहां आए ज्यादा समय नहीं हुआ है?’’

‘‘ मैं अभी कुछ दिन पहले ट्रांसफर हो कर यहां आया हूं.’’

‘‘आप की फैमिली?’’

‘‘मैं सिंगल हूं. मेरी अभी शादी नहीं हुई.’’

‘‘लगता है आप को भी अभी अपना मनपसंद साथी नहीं मिला.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं. कुछ को ही अच्छे साथी मिलते हैं.’’

‘‘आप अच्छेखासे हैंडसम और स्मार्ट हैं. आप को लड़कियों की क्या कमी है?’’

बातों का सिलसिला चल पड़ा और वे आपस में बातें करने लगे. रीमा सौरभ को

बहुत ध्यान से देख रही थी. सौरभ की आंखें लगातार सीमा को खोज रही थीं लेकिन वह

बहुत देर तक बाहर उन के बीच नहीं आई. रीमा भी शक्लसूरत व कदकाठी में अपनी बहन की तरह थी. बस उन के स्वभाव में थोड़ा अंतर लग रहा था.

कुछ देर बाद प्रियांक भी आ गया. सौरभ को देख कर चौंक गया और फिर उस के साथ बातों में शामिल हो गया. प्रियांक बोली, ‘‘आप हमारी सालीजी से मिल लिए होंगे. अभी तक इन को अपनी पसंद का कोई साथी नहीं मिला है.’’

‘‘मैं ने सोचा ये भी अपनी बहन की तरह होंगी जिन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि वे शादीशुदा हैं.’’

‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है. अभी खोज जारी है.’’

प्रियंका के आने पर सीमा थोड़ी देर के लिए सौरभ के सामने आई और फिर प्रियांक के पीछे कमरे में चली आई. वह रीमा और सौरभ को बात करने का अधिक से अधिक मौका देना चाहती थी. बातोंबातों में रीमा ने सौरभ से उस का फोन नंबर भी ले लिया था.सौरभ को लगा सीमा आज उस के सामने आने में ?ि?ाक रही है और उस के सामने अपने दिल का हाल बयां नहीं कर पा रही है. कुछ देर वहां पर रहने के बाद सौरभ अपने घर लौट आया.

प्रियांक ने आग्रह किया था कि खाना खा कर जाए लेकिन आज सीमा की स्थिति को देखते हुए उस ने वहां पर रुकना ठीक नहीं सम?ा और वापस चला आया.

रीमा ने अगले दिन दोपहर में सौरभ को फोन किया, ‘‘आज आप शाम को क्या कर रहे हैं?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘शाम को घर आ जाइएगा. हम सब को अच्छा लगेगा.’’

‘‘क्या इस तरह किसी के घर रोज आना ठीक रहेगा?’’

‘‘दी चाहती थीं कि मैं आप को शाम को घर बुला लूं.’’

‘‘कहते हैं रोजरोज किसी के घर बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए. जब आप लोग चाहते हैं तो मैं जरूर आऊंगा,’’ सौरभ बोला. उसे लगा जैसे उस के अरमानों ने मूर्त रूप ले लिया है और उसे मन की मुराद मिल गई. वह औफिस के बाद सीधे सीमा के घर चला आया.

रीमा उस का इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही बोली, ‘‘थैंक्यू आप ने हमारी बात मान ली.’’

‘‘आप हमें बुलाएं और हम न आएं ऐसा कभी हो सकता है?’’

आज भी उस की आशा के विपरीत

उसे सीमा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. थोड़ी देर बाद वह 3 कप चाय और नाश्ता ले कर

आ गई.

‘‘आप को पता चल गया कि मैं आ रहा हूं?’’

‘‘रीमा ने बताया था इसलिए मैं ने चाय और स्नैक्स की तैयारी पहले ही कर ली थी,’’ सीमा मुसकरा कर बोली.

सौरभ सीमा के बदले हुए रूप से अंचभित था. कल तक उस के सामने मौडर्न दिखने और बेझिझक बोलने वाली सीमा उस की रोमांटिक बातें सुनने के बाद से एकदम छुईमुई सी हो गई थी. वह अब उस की हर बात में नजर का लेती थी. उस का इस तरह शरमाना सौरभ को बहुत अच्छा लग रहा था. वह समझ गया कि वह भी उसे उतना ही पसंद करती है लेकिन खुल कर स्वीकार करने में झिझक उन के बीच आ रही है.

अब सौरभ के सामने एक ही समस्या थी वह कि वह सीमा की झिझक को कैसे दूर करे? उसे तो वही खूब बोलने वाली मौडर्न सीमा पसंद थी. मुश्किल यह थी कि रीमा की उपस्थिति में उसे सीमा से मिल कर उस की झिझक दूर करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था. वह चाहता था कि वह सीमा से ढेर सारी बातें करे पर वह उस के सामने ही बहुत कम आ रही थी.

सौरभ रीमा के साथ बहुत देर तक बातें करता रहा. तभी प्रियांक आ गया. उन दोनों को बातें करते देख कर वह बड़ा आश्वस्त लगा.

रात हो गई थी.सौरभ जैसे ही जाने लगे रीमा बोली, ‘‘डिनर तैयार हो रहा है. आज खाना खा कर ही जाइएगा.’’

‘‘आप बनाएंगी तो जरूर खाऊंगा.’’

‘‘ऐसी बात है तो मैं किसी दिन बना दूंगी. वैसे भी दी ने पहले से ही खाने की तैयारी कर ली होगी.’’

‘‘अगर आप दोनों बहनों का इरादा मुझे खाना खिलाने का है तो मैं मना कैसे कर सकता हूं?’’

रीमा वहां से उठ कर किचन में आ गई. प्रियांक सौरभ से बातें करने लगा. सीमा की मदद के लिए रीमा उस का हाथ बंटाने लगी. अब सौरभ को जाने की कोई जल्दी न थी. यहां पर सीमा की उपस्थिति का एहसास ही उस के लिए बहुत था. वैसे उसे अब रीमा की बातें भी अच्छी लगने लगी थीं. एकजैसे संस्कारों में पलीबढ़ी दोनों बहनों में काफी समानताएं थीं.

रीमा ने डाइनिंगटेबल पर खाना बड़े करीने से लगा दिया. सब खाना खाने लगे. सौरभ बीचबीच में चोर नजरों से सीमा को देख रहा था. वह  सिर झुकाए चुपचाप

खाना खा रही थी. गलती से कभी नजरें

टकरा जातीं तो सौरभ से निगाहें मिलते ही

वह झट से अपनी नजरें नीची कर लेती.

सौरभ को उस का यह अंदाज अंदर तक रोमांचित कर जाता.

रीमा को यहां आए हफ्ताभर हो गया

था. वह अब सौरभ से खुल कर बात करने लगी थी.

‘‘आज सुबहसुबह रीमा ने सौरभ को फोन किया, ‘‘आज शाम आप फ्री हो?’’

‘‘कोई खास काम था?’’

‘‘हम सब आज पिक्चर देखने का प्रोगाम बन रहे हैं. आप भी चलिए हमारे साथ.’’

‘‘नेकी और पूछपूछ मैं जरूर आऊंगा.’’

‘‘तो ठीक है आप सीधे सिटी मौल में ठीक 5 बजे पहुंच जाइए. हम आप को वहीं मिल जाएंगे.’’

सौरभ की मानो मन की मुराद पूरी हो गई थी. वह समय से पहले ही मौल पहुंच

गया. तभी उस ने देखा कि रीमा अकेली ही

आ रही है.

‘‘ प्रियांक और सीमा कहां रह गए?’’

‘‘अचानक जीजू की तबीयत कुछ खराब हो गई. इसी वजह से वे दोनों नहीं आ रहे और मैं अकेले चली आई. मु?ो लगा प्रोग्राम कैंसिल करना ठीक नहीं.आप वहां पर हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘इस में क्या था? बता देतीं तो प्रोग्राम कैंसिल कर किसी दूसरे दिन पिक्चर देख लेते.’’

‘‘हम दोनों तो हैं. आज हम ही पिक्चर का मजा ले लेते हैं,’’ रीमा बोली.

सौरभ का मन थोड़ा उदास सा हो गया लेकिन वह रीमा को यह सब नहीं जताना चाहता था. वह ऊपर से खुशी दिखाते हुए बोला, ‘‘इस से अच्छा मौका हमें और कहां मिलेगा साथ वक्त बिताने का.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं,’’ कह कर वे सिनेमाहौल में आ गए. वहां सौरभ को सीमा की कमी खल रही थी लेकिन वह यह भी जानता था कि सीमा प्रियांक की पत्नी है. उस का फर्ज बनता है वह अपने पति की परेशानी में उस के साथ रहे. यही सोच कर उस से सब्र कर लिया और रीमा के साथ आराम से पिक्चर देखने लगा.

समय कैसे बीत गय पता ही नहीं चला. पिक्चर खत्म हो गई थी. सौरभ रीमा को

छोड़ने सीमा के घर आ गया. सामने प्रियांक दिखाई दे गया.

‘‘क्या बात है आप दोनों पिक्चर देखने

नहीं आए?’’

‘‘अचानक मेरे सिर मे बहुत दर्द हो गया था. अच्छा महसूस नहीं हो रहा था. इसीलिए नहीं आ सके. फिर कभी चलेंगे. तुम बताओ कैसी रही मूवी?’’

‘‘बहुत अच्छी. आप लोग साथ में होते तो और अच्छा लगता,’’ सौरभ बोला. उस ने चारों और अपनी नजरें दौड़ाईं पर उसे सीमा कहीं दिखाई नहीं दी. वह रीमा को छोड़ कर वहीं से वापस हो गया.

अब तो यह रोज की बात हो गई थी. रीमा सौरभ के साथ देर तक फोन पर बातें करती रहती और जबतब उसे घर बुला लेती. वे कभीकभी घूमने का प्रोग्राम भी बना लेते.

इतने दिनों में रीमा की सौरभ से अच्छी दोस्ती हो गई थी और सौरभ के सिर से भी सीमा का भूत उतरने लगा था.

एक दिन सीमा ने रीमा को कुरेदा, ‘‘तुम्हें सौरभ कैसा लगा रीमा?’’

‘‘इंसान तो अच्छा है.’’

‘‘तुम उस के बारे में सीरियस हो तो बात आगे बढ़ाई जाए?’’

‘‘दी अभी कुछ कह नहीं सकती. मुझे कुछ और समय चाहिए. मर्दों का कोई भरोसा नहीं होता. ऊपर से कुछ दिखते हैं और अंदर से कुछ और होते हैं.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रही है. तुम उसे अच्छे से जांचपरख लेना तब कोई कदम आगे बढ़ाना. जहां तुम ने इतने साल इंतजार कर लिया है वहां कुछ महीने और सही,’’ सीमा हंस कर बोली.

रीमा को दी की सलाह अच्छी लगी.

1 महीना बीत गया था. सौरभ और रीमा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. अब सीमा उस के दिमाग और दिल दोनों से उतरती चली जा रही थी और उस की जगह रीमा लेने लगी थी.

सीमा ने भी इस बीच सौरभ से कोई बात नहीं की और न ही वह उस के आसपास ज्यादा देर तक नजर आती. सौरभ को भी रीमा अच्छी लगने लगी. उस की बातें में बड़ी परिपक्वता थी और अदाओं में शोखी.

एक दिन उस ने रीमा के सामने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘रीमा तुम मुझे अच्छी लगती हो मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’

‘‘इंसान तो तुम भी भले हो लेकिन मर्दों पर इतनी जल्दी यकीन नहीं करना चाहिए?’’

रीमा बोली तो सौरभ थोड़ा घबरा गया. उसे लगा कहीं सीमा ने तो उस के बारे में कुछ नहीं कह दिया.

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो? मुझसे कोई गलती हो गई है क्या?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इतने लंबे समय तक तुम ने भी शादी नहीं की हैं. तुम भी आज तक अपनी होने वाली जीवनसाथी में कुछ खास बात ढूंढ़ रहे होंगे.’’

‘‘पता नहीं क्यों आज से पहले कभी कोई जंची ही नहीं. तुम्हारे साथ वक्त बिताने का मौका मिला तो लगा तुम ही वह औरत हो जिस के साथ मैं अपना जीवन खुशी से बिता सकता हूं. इसीलिए मैंने अपने दिल की बात कह दी.’’

सौरभ की बात सुन कर रीमा चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘इस के बारे में मुझे अपने दी और जीजू से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है. तुम चाहो जितना समय ले सकती हो,’’ सौरभ बोला.

थोड़ी देर बाद रीमा घर लौट आई. उस के चेहरे से खुशी साफ ?ालक रही थी. उसे देखते ही सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है आज बहुत खुश दिख रही हो?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है. आज मुझे सौरभ ने प्रपोज किया.’’

‘‘तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने कहा मुझे अभी थोड़ा समय दो. मैं मम्मीपापा, दीदीजीजू से बात कर के बताऊंगी.’’

उस की बात सुन कर सीमा को बहुत तसल्ली हुई. आज सौरभ ने एक नहीं 2 घर बरबाद होने से बचा लिए थे. उसे लगा भावनाओं में बह कर कभी इंसान से भूल हो जाती है तो इस का मतलब यह नहीं कि उस की सजा वह जीवन भर भुगतता रहे.

रीमा जैसे ही अपने कमरे में आराम करने के लिए गयी सीमा ने पहली बार सौरभ को फोन मिलाया.

सीमा का फोन देख कर सौरभ चौंक गया. उस ने किसी तरह अपने को संयत

किया और बोला, ‘‘हैलो सीमा कैसी हो?’’

‘‘मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज रीमा को प्रपोज कर के मेरे दिल का बो?ा हलका कर दिया. सौरभ कभीकभी हम से अनजाने में कोई भूल हो जाती है तो उस का समय रहते सुधार कर लेना चाहिए.’’

‘‘सच में मेरे दिल में भी डर था कि मैं ने रीमा को प्रपोज कर तो दिया लेकिन इस पर आप की प्रतिक्रिया क्या होगी?

‘‘मैं एक आधुनिक महिला हूं. मेरे विचार संकीर्ण नहीं हैं. मेरे व्यवहार के खुलेपन का आप ने गलत मतलब निकाल लिया था. आज तुम ने अपनी गलती सुधार कर 2 परिवारों की इज्जत रख ली.’’

‘‘आप ने भी मेरे दिल से बड़ा बोझ उतार दिया. यह सब आप की समझदारी के कारण ही संभव हो सका है. मैं तो पता नहीं भावनाओं में बह कर आप से क्या कुछ कह गया? मैं ने आप की चुप्पी के भी गलत माने निकाल लिए थे.’’

‘‘सौरभ इस बात का जिक्र कभी भी रीमा से न करना और इस मजाक को यहीं खत्म कर देना.’’

‘‘मजाक,’’ सौरभ ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां मजाक, अब आप मेरे बहनोई बनने वाले हो. इतने से मजाक का हक तो आप का भी बनता है,’’ सीमा बोली तो सौरभ जोर से हंस पड़ा. उस की हंसी में उन के बीच के रिश्ते पर पड़ी धूल भी छंट गई.

कभी नीमनीम कभी शहदशहद : शिव से क्यों प्यार करने लगी अपर्णा

इतनी गरमी में अपर्णा को किचन में खाना पकाते देख शिव को अपनी पत्नी पर प्यार हो आया. वह पास पड़ा तौलिया उठा कर उस के चेहरे का पसीना पोंछने लगा तो अपर्णा मुसकरा उठी.

‘‘मुसकरा क्यों रही हो? देखो, गरमी कितनी है? मैं ने कहा था बाहर से ही खाना और्डर कर मंगवा लेंगे. लेकिन तुम सुनती कहां हो.

चलो, अब लाओ, सब्जी मैं काट देता हूं, तुम जा कर थोड़ी देर ऐसी में बैठो,’’ उस के हाथ से चाकू लेते हुए शिव बोला.

‘‘अरे नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है पति देव. मैं कर लूंगी,’’ शिव के हाथ से चाकू लेते हुए अपर्णा बोली, ‘‘आप दीदी को फोन लगा कर पूछिए वे लोग कब तक आएंगे. अच्छा, रहने दीजिए. मैं ही पूछ लेती हूं. आप एक काम करिए, वह हमारे घर के पास जो ‘राधे स्वीट्स’ की दुकान है न वहां से

1 किलोग्राम अंगूर रबड़ी ले आओ. ‘राधे स्वीट्स’ की मिठाई ताजा होती है. और हां बच्चों के लिए चौकलेट आइसक्रीम भी लेते आइएगा.’’

‘‘राधे स्वीट्स से मिठाई पर उस की दुकान की मिठाई तो उतनी अच्छी नहीं होती. एक काम करता हूं बाजार चला जाता हूं वहीं से मिठाई लेता आऊंगा मैं,’’ शिव ने कहा. लेकिन अपर्णा कहने लगी कि क्यों बेकार में उतनी दूर जा कर टाइम बेस्ट करना, जब यहीं घर के पास ही अच्छी मिठाई की दुकान है.

‘‘कोई अच्छी दुकान नहीं है उस की. पिछली बार याद नहीं, कितनी खराब मिठाई दी थी उस ने? फेंकनी पड़ी थी.’’

‘‘अब एक ही बात को कितनी बार रटते रहोगे तुम? मैं कह रही हूं न अच्छी मिठाई मिलती वहां,’’ अपर्णा थोड़ी इरिटेट हो गई.

‘‘अच्छा भई ठीक है. मैं वहीं से मिठाई ले आता हूं,’’ अपर्णा का मूड भांपते हुए शिव बोला. लेकिन उस का मन बाजार से जा कर मिठाई लाने का था, ‘‘और भी कुछ सामान मंगवाना है तो बोल दो वरना बाद में कहोगी यह रह गया वह

रह गया.’’

‘‘नहीं और कुछ नहीं मंगवाना. बस जो कहा है वह ले आओ,’’ बोल कर अपर्णा अपनी दीदी को फोन लगाने लगी. पता चला कि उन्हें आने में अभी घंटा भर तो लग जाएगा. ‘ठीक ही है चलो’ फोन रख बड़बड़ाते हुए वह किचन में चली गई. तब तक शिव मिठाई और आइसक्रीम ले कर आ गया तो अपर्णा ने उसे फ्रिज में रख दिया ताकि गरमी की वजह से वह खराब न हो जाए.

दरअसल, आज अपर्णा के घर खाने पर

उस की दीदी और जीजाजी आने वाले हैं.

इसलिए वह सुबह से ही किचन में बिजी है. अपर्णा की दीदी बैंगलुरु में रहती है. बच्चों की छुट्टियों में वह यहां अपने मायके आई हुई है. इसलिए शिव और अपर्णा ने आज उन्हें अपने घर खाने पर इन्वाइट किया और उन के लिए ही ये सारी तैयारियां हो रही हैं. अपर्णा का मायका यहीं दिल्ली में ही है. 75 साल के उस के पापा और 70 साल की उस की मां दिल्ली के आनंद विहार में 2 कमरों के घर में रहते हैं. अपर्णा का एक भाई भी है जो अपने परिवार के साथ कोलकाता में रहता है और साल में एक बार यहां अपने मांपापा से मिलने आता है लेकिन अकेले. अपर्णा का भाई रेलवे में गार्ड है. वहां ही उस ने एक बंगाली लड़की से शादी कर ली और फिर वहीं का हो कर रह गया.

अपर्णा का पति शिव सरकारी विभाग में ऊंची पोस्ट पर कार्यरत है. उसे औफिस की तरफ से ही रहने के लिए घर और गाड़ी सब मिला हुआ है. इन के 2 बच्चे हैं.

13 साल की बेटी रिनी और 8 साल का बेटा रुद्र. दोनों बच्चे दिल्ली में पढ़ते हैं. अभी अपर्णा के बच्चों का भी वेकेशन चल रहा है इसलिए दोनों बच्चे इस बात को ले कर खुश हैं कि उन के मौसीमौसा आने वाले हैं और उन के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स भी ले कर आएंगे. अब बच्चे तो बच्चे ही हैं. लालहरी पन्नी में बंधा गिफ्ट्स देख कर खुशी से उछल पड़ते हैं.

मेहमानों के आने का टाइम हो चुका था. वैसे खाना भी तैयार ही था. अपर्णा ने सारा खाना अच्छे से डाइनिंगटेबल पर सजा दिया और सलाद काट कर फ्रिज में रख दिया. पूरा घर खाने की खुशबू से महक रहा था. घर में खाने की बहुत सारी प्लेटें हैं, पर शिव ने जिद पकड़ ली कि आज नए डिनर सैट में मेहमानों को खाना खिलाया जाए. आखिर उस ने इतना महंगा डिनर सैट खरीदा किसलिए है? सजा कर रखने के लिए तो नहीं?

शिव कहीं गुस्सा न हो जाए इसलिए अपर्णा ने वह नया डिनर सैट निकाल लिया. अपर्णा के मायके वालों के आने से शिव बहुत खुश था.

वैसे भी शिव को मेहमाननवाजी करना बहुत पसंद है. अपर्णा तो इस बात को ले कर बहुत खुश थी कि इतने दिनों बाद उस की दीदी से उस का मिलना होगा.

अपर्णा सुबह उठ कर पहले पूरे घर की डस्टिंग कर अच्छे से सब व्यवस्थित कर खाना पकाने में लग गई थी. मगर हाल में अभी भी इधर अखबार, उधर किताबें फैली हुई थीं. सोफा और कुशन भी अस्तव्यस्त थे. उस ने रिनी से कहा भी कि वह जरा सोफा, कुशन सही कर दे. किताबें, अखबार समेट कर उन्हें अलमारी में रख दे. मेहमान आएंगे तो क्या सोचेंगे. मगर उसे तो अपने मोबाइल से ही फुरसत नहीं है.

आज के बच्चों में मोबाइल फोन की ऐसी लत लग गई है कि पूछो मत. आलतूफालतू रील देख कर ‘हाहा’ करते रहते हैं. लेकिन यह नहीं सम  झते कि ये सब उन की शारीरिक और मानसिक सेहत पर कितना बुरा प्रभाव डाल रहा है. अब रुद्र को ही देख लो. कैसे छोटीछोटी

बातों पर चिड़ जाता है और रिनी मैडम को तो कुछ याद ही नहीं रहता. कुछ भी पूछो, जबाव आता है मु  झे नहीं पता. ये सब मोबाइल फोन का ही तो असर है.

खैर, अपर्णा   झटपट खुद ही हाल समेटने लगी. मन तो किया उस का रिनी को कस कर डांट लगाए और कहे कि जब देखो मोबाइल से चिपकी रहती हो. जरा मदद नहीं कर सकती मेरी? लेकिन यह सोच कर चुप रह गई कि

बेकार में शिव का पारा गरम हो जाएगा. शिव की आदत है छोटीछोटी बातों को ले कर चिल्लाने लगते हैं. पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं जैसे न जाने क्या हो गया.

‘‘अरे, अब ये क्या करने लग गई तुम. रिनी कहां है? कहो उस से कर देगी,’’ अपर्णा को सोफा ठीक करते देख शिव बोला, ‘‘रुको, मैं बुलाता हूं उसे. रिनी… इधर आओ,’’ शिव ने जोर की दहाड़ लगाई, तो रिनी भागीभागी आई.

‘‘चलो, हौल अच्छे से ठीक कर दो और देखो फ्रिज में पानी की सारी बोतलें भरी हुई हैं या नहीं? और अपर्णा तुम जा कर जल्दी से तैयार हो जाओ. मेरा मतलब है कपड़े चेंज कर लो न. अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘अब इन कपड़ों में क्या खराबी है,’’ शिव की बातों से अपर्णा को चिड़ हो आई कि यह

पति है या उस की सास? जब देखो पीछे ही पड़ा रहता है.

‘‘अब सोचने क्या लग गई. जाओ न. आते ही होंगे वे लोग,’’ शिव ने फिर टोका.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ कह कर अपर्णा कमरे में चली गई और शिव खाने की व्यवस्था देखने लगा कि सबकुछ ठीक तो है न. कभीकभी शिव का औरताना व्यवहार अपर्णा के मन में चिड़चिड़ाहट पैदा कर देता.

छुट्टी के दिन शिव पूरी किचन की तलाशी लेगा कि फ्रिज में बासी खाना तो नहीं पड़ा है? किचन में कोई चीज बरबाद तो नहीं हो रही है? आटा, दाल, तेल, मसाला वगैरह का डब्बा खोलखोल कर देखेगा कि कोई चीज कम तो नहीं हो गई है? मन करता है अपर्णा का कि कह दे कि जो काम तुम्हारा नहीं है उस में क्यों घुस रहे हो लेकिन वही लड़ाई  झगड़े के डर से कुछ बोलती नहीं है.

दरवाजे की घंटी बजी तो शिव ने ही दरवाजा खोला और आदर के साथ मेहमानों को घर के अंदर ले आया. तब तक अपर्णा सब के लिए गिलासों में ठंडा ले आई और सब के हाथ में गिलास पकड़ाते हुए वह भी अपना गिलास ले कर अपनी दीदी की बगल में बैठ गई. दोनों बहनें कितने दिनों बाद मिली थीं तो बातों का सिलसिला चल पड़ा.

उधर शिव और अपर्णा के जीजाजी भी यहांवहां की बातें करने लगें. बच्चे एक कमरे में बैठ कर टीवी का मजा ले रहे थे और बीच में आआ कर फ्रिज से कभी आइसक्रीम तो कभी ठंडा और आलू चिप्स ले कर चले जाते. बातों में लगी अपर्णा रिनी और रुद्र को इशारे से मना करती कि बस अब ज्यादा नहीं. खाना भी तो खाना है न? उस की दीदी उसे टोकती कि जाने दो न बच्चे हैं. ऐंजौय करने दो उन्हें. खूब हाहाहीही चल रही थी. घर का माहौल काफी खुशनुमा बना हुआ था. शिव ने इशारे से अपर्णा से कहा कि अब खाना लगा दो. भूख लगी होगी सब को.

सब लोगों ने खाना खाया. खाने के बाद अपर्णा सब के लिए अंगूर रबड़ी ले आई.

सब से पहले अंगूर रबड़ी का कटोरा शिव ने उठाया. लेकिन पहला चम्मच मुंह में डालते हुए उस का मूड खराब हो गया. उस ने अंगूर रबड़ी का कटोरा इतनी जोर से टेबल पर पटका कि छलक कर मिठाई टेबल पर फैल गई. अपर्णा ने सहमते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘पूछ रही हो क्या हुआ? तुम से कहा था

न जा कर बाजार से मिठाई ले आता हूं लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस अपनी ही चलानी होती है. किसी की सुनती हो? लो अब तुम्हीं खाओ यह घटिया मिठाई,’’ मिठाई का पूरा डोंगा अपर्णा की तरफ बढ़ाते हुए शिव जोर से चीखते हुए कहने लगा कि यह औरत कभी मेरी बात नहीं सुनती. अनपढ़गंवार की तरह किसी की भी बातों में आ जाती है.

अपर्णा को जिस बात का डर था वही हुआ. उस ने मेहमानों के सामने ही अपना रंग दिखा दिया. शिव के अचानक से ऐसे व्यवहार से अपर्णा की दीदी और जीजाजी दोनों अवाक रह गए. बच्चे भी डर कर कमरे में भाग गए और अपर्णा को सम  झ नहीं आ रहा था अब वह क्या करे? कैसे संभाले बात को?

‘‘वह दीदी गलती मेरी ही है. शिव ने कहा था कि बाजार से मिठाई ले आते हैं लेकिन मैं ने ही…’’  दांत निपोरते हुए अपर्णा को सम  झ नहीं आ रहा था कि क्या बोले. किस तरह शिव को शांत कराए.

अपर्णा ने इशारे से शिव को कई बार सम  झाना चाहा कि मेहमान क्या सोचेंगे. चुप हो जाओ. मगर शिव कहां कुछ सुनने वाला था. उसे तो जब गुस्सा आता है, पूरा घर सिर पर उठा लेता है. यह भी नहीं सोचता कि सामने बैठे लोग क्या सोचेंगे. गुस्से पर तो उस का कंट्रोल ही नहीं रहता. लेकिन हां गरजते बादल की तरह वर्षा कर वह शांत भी हो जाता है. लेकिन ऐसी शांति किस काम की जो सब तहसनहस कर जाए. मेहमान सारे चले गए लेकिन अब अपर्णा का खून खौल रहा था.

गुस्सा शांत होते ही शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उस के लिए उस ने अपर्णा से माफी भी मांगी लेकिन अपर्णा ने उस की बातों का कोई जवाब दिए बिना कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया. अब गुस्सा तो आएगा ही न? इतनी गरमी में बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और इस शिव ने उस की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. उस के मायके वालो के सामने उसे जलील कर दिया. क्या अच्छा किया उस ने?

शिव की आदत है राई का पहाड़ बनाने की. छोटीछोटी बातों पर वह चीखनेचिल्लाने लगता है कि ऐसा क्यों हुआ. वैसा क्यों नहीं हुआ. अब तो बच्चे भी सम  झने लगे हैं अपनी पापा की आदत को कि पता नहीं कब वे किस बात पर, कहां, किस के सामने चिल्ला पड़ेंगे. माना अपर्णा से गलती हुई लेकिन शिव को इतना बोलने की क्या जरूरत थी? बाद में भी तो वह अपर्णा पर गुस्सा निकाल सकता था?

अपर्णा ने क्याक्या नहीं सोच रखा था कि खाना खाने के बाद शाम को सब मिल कर पास ही जो वाटरफौल है, वहां जाएंगे. फिर ईको पार्क चलेंगे. अभी नया जो आइसक्रीम पार्लर खुला है, वहां जा कर आइसक्रीम खाएंगे. खूब मस्ती करेंगे लेकिन इस शिव ने सब गुड़गोबर कर के रख दिया. ऐसा उस ने कोई पहली बार नहीं किया है. पहले भी कई बार वह ऐसा कर चुका है जब लोगों के सामने अपर्णा को शर्मिंदा होना पड़ा है.

कुछ दिन की ही बात है जब अपर्णा शिव के साथ मौल में अपने लिए कपड़े खरीदने गई थी. वह भी शिव के जिद्द करने पर वरना तो वह औनलाइन ही सूटसाड़ी वगैरह खरीद कर पहनना पसंद करती है. इस से समय तो बचता ही है,

दाम भी रीजनेबल होता है. सब से अच्छी बात यह कि अगर आप को चीजें पसंद न आएं तो आप लौटा भी सकते हैं. पैसा तुरंत आप के अकाउंट में आ जाता है. लेकिन मौल में

10 चक्कर लगवाएंगे अगर कोई चीज लौटानी हो तो. लेकिन यह बात शिव को सम  झासम  झा कर वह थक चुकी थी.

मौल में उस ने अपने लिए एक कुरती पसंद कर जब उसे पहन कर वह शिव को दिखाने आई तो सब के सामने ही उस ने उसे   झाड़ दिया यह कह कर कि अपर्णा में कलर सैंस जरा भी नहीं है. गंवारों की तरह लालपीलाहरा रंग ही पसंद आता है इसे.

शिव की बात पर वहां खड़े सारे लोग अपर्णा को देखने लगे जैसे वह सच में गंवार महिला हो. उफ, कितना बुरा लगा था. उसे उस वक्त रोना आ रहा था जब चेंजिंग रूम के बाहर खड़ी दोनों लड़कियां उसे देख कर हंसने लगीं. शर्म के मारे अपर्णा कुछ बोल नहीं पाई पर उसी वक्त वह गुस्से में मौल से बाहर निकल आई और जा कर गाड़ी में बैठ गई.

वह भी तो पलट कर जवाब दे सकती थी कि शिव के काले रंग पर कोई कलर सूट नहीं करता पर वह उस की जैसी नहीं है. ‘दिमाग से पैदल इंसान’ अपर्णा ने दांत भींच लिए. गुस्से के मारे उस के तनबदन में आग लग रही थी. मन कर रहा था पैदल ही घर चली जाए. लेकिन बाहर वह कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी इसलिए पूरे रास्ते खिड़की से बाहर देखती रही और अपने आंसू पोंछती हुई सोचती रही कि आखिर शिव अपनेआप को सम  झता क्या है. पति है तो कुछ भी बोलेगा? क्या उस की कोई इज्जत नहीं है?

इधर शिव को अपनी बात पर बहुत पछतावा हो रहा था कि सब के सामने उसे अपर्णा से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी, ‘‘अपर्णा, सुनो न, मेरे कहने का वह मतलब नहीं था. मैं तो बस यह कह रहा था कि तुम पर…’’ शिव ने सफाई देनी चाही पर अपर्णा उस की बात सुने बिना बालकनी में चली गई. शिव उस के पीछेपीछे गया पर उस ने जोर से दरवाजा लगा लिया यह कहते हुए कि अगर उस ने ज्यादा परेशान किया तो वह यह घर छोड़ कर कहीं चली जाएगी.

उस दिन के बाद आज फिर उस ने मेहमानों के सामने अपनी मूर्खता का प्रदर्शन दे दिया. अरे, क्या सोच रहे होंगे वे लोग उस के बारे में यह भी नहीं सोचा शिव ने. ऐसे तो घर में वह बहुत केयरिंग और लविंग पति बन कर घूमता है. घर के कामों में भी वह अपर्णा की मदद कर दिया करता है, पत्नी व बच्चों को बाहर घुमाने और होटल में खिलाने का भी वह शौकीन है, मगर कभीकभी पता नहीं उसे क्या हो जाता है. अपनेआप को बहुत महान, ज्ञानवान सम  झने लगता और अपर्णा को मूर्खगंवार. लोगों के सामने डांट कर कहीं वह यह तो साबित नहीं करना चाहता कि वह मर्द है और अपर्णा औरत.

अपर्णा की दीदी का फोन आया लेकिन उस ने उस का फोन नहीं उठाया क्योंकि उस का मूड पूरी तरह से खराब हो चुका था, सो वह कमरे की लाइट औफ कर के सो गई.

खाना तो सुबह का ही कितना सारा बचा हुआ था तो बनाना तो कुछ था नहीं और अपर्णा की भूख वैसे भी मर चुकी थी. दोनों बच्चे भी अपने कमरे में एकदम शांत, चुपचाप बैठे थे. डर के मारे दोनों मोबाइल भी नहीं चला रहे थे कि पापा डांटेंगे.

इधर शिव अकेले हौल में सोफे पर अधलेटा न जाने क्या सोच रहा था. यही सोच रहा होगा कि बेकार में ही उस ने अपर्णा का मूड खराब कर दिया. बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और जरा सी बात के लिए उस ने सब के सामने उसे क्या कुछ नहीं सुना दिया. शिव के मन ने उसे धिक्कारा.

अब अपर्णा के सामने जाने की तो शिव की हिम्मत नहीं थी इसलिए उस ने बच्चों के कमरे में   झांक कर देखा. रिनी लेटी हुई थी और रुद्र कुरसी पर बैठा खिड़की से बाहर   झांक रहा था. अपर्णा के कमरे में जब   झांक कर देखा तो वह उधर मुंह किए सोई हुई थी. शिव को पता

है वह सोई नहीं है. शायद रो रही होगी या कुछ सोच रही होगी. यही कि शिव कितना बुरा इंसान है. ‘हां, बहुत बुरा हूं मैं. बेकार में मैं ने अपनी बीवी का मूड खराब कर दिया,’ अपने मन में सोच शिव अपर्णा का मूड ठीक करने का उपाय सोचने लगा.

‘‘रिनी, बेटा, जरा 1 कप चाय बनाओ तो,’’ अपर्णा के कमरे की तरफ मुंह कर के शिव बोला ताकि वह सुन सके कि शिव को चाय पीनी है. लेकिन डाइरैक्ट अपर्णा से बोलने की उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी इसलिए बेटी को आवाज लगाई, ‘‘बेटा, चाय में जरा चीनी डाल देना, लगता है शुगर कम हो गई. सिर में दर्द हो रहा है मेरे,’’ यह बात भी उस ने अपर्णा को सुना कर कही ताकि वह दौड़ी चली आए और पूछे कि क्या हुआ. सिरदर्द क्यों कर रहा है तुम्हारा? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? लेकिना ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि अपर्णा को सब पता था कि शिव सिर्फ नाटक कर रहा है.

इधर शिव मन ही मन छटपटा रहा था अपर्णा से बात करने के लिए. वह उस से माफी मांगने के लिए भी तैयार था. आज अपर्णा का गुस्सा 7वें आसमान पर था.

अपर्णा ने फोन कर रिनी को चुपके से सम  झा दिया कि वह और रुद्र खाना खा लें. उसे उठाने न आएं. इधर शिव इस बात से परेशान हो रहा था कि अपर्णा अब तक भूखी है. वैसे भूख तो उसे भी लगी थी. मगर अकेले खाने की उस की आदत नहीं है. शिव खुद को ही कोसे जा रहा था कि उस ने ऐसा क्यों किया. रिनी से कहा कि वह जा कर मम्मी को खाने के लिए उठाए पर रिनी कहने लगी कि मम्मी बहुत गुस्से में हैं इसलिए वह उठाने नहीं जाएगी.

अब शिव क्या करे सम  झ नहीं आ रहा था उसे. उसे पता है अपर्णा को जल्दी गुस्सा नहीं आता. लेकिन जब आता है, फिर वह किसी के बाप की नहीं सुनती. लेकिन शिव इस के एकदम उलट है. जितनी जल्दी उसे गुस्सा आता है उतनी जल्दी भाग भी जाता है. उस की एक खूबी यह भी है कि भले ही वह अपर्णा से कितना भी लड़  झगड़ ले पर कभी उस से बात बंद नहीं करता. लेकिन अपर्णा कईकई दिनों तक शिव से बात नहीं करती. शिव का कहना होता है कि भले ही उस की गलती के लिए अपर्णा और कुछ भी करे पर बात बंद न करे. उसे जिंदगी वीरान लगने लगती है अपर्णा के बिना.

बहुत प्यार करता है वह अपनी पत्नी से. मगर उस का अपने गुस्से पर ही कंट्रोल नहीं रहता तो क्या करे बेचारा. खैर, अब जो है सो है. गलती हुई शिव से. मगर अब वह उस बात को पकड़े बैठा तो नहीं रह सकता न और कई बार माफी तो मांगी न उसने अपर्णा से? अब क्या करे जान दे दे अपनी? अपने मन में सोच शिव ने अपना माथा   झटका और अपने रोज की दिनचर्या में लग गया.

मगर अपर्णा के दिमाग में अब भी वही सब बातें चल रही थीं कि शिव ने ऐसा क्यों किया? उस की दीदी, जीजाजी क्या सोचा रहे होंगे उन के बारे में वगैरहवगैरह.

यह बात बिलकुल सही है कि पुरुषों के मुकाबले औरतें ज्यादा टैंशन लेती हैं. ऐसा क्यों हुआ? वैसा क्यों नहीं हुआ, जैसी बातें उन के दिलोदिमाग से जल्दी गायब नहीं होतीं. बारबार उन्हीं बातों में उल  झी रहती हैं, जबकि पुरुष फाइट या फ्लाइट यानी लड़ो या फिर भाग जाओ पर यकीन रखते हैं. अब शिव में इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि अपर्णा से लड़ पाता. इसलिए वह दूसरे कमरे में जा कर सो गया ताकि उसे देख कर अपर्णा का गुस्सा और न भड़क जाए. मगर अपर्णा बारबार कभी किचन में बरतन पटक कर, कभी फोन पर किसी से गुस्से में बात कर के या कभी बच्चों को डांट कर यह दर्शाने की कोशिश कर रही थी कि वह उस बात के लिए शिव को माफ नहीं  करेगी.

अर्पणा की मां का फोन आया तो मन तो किया उस का शिव की खूब बुराई

करे और कहे कि कैसे इंसान के साथ उन्होंने उसे बांध दिया लेकिन क्या फायदा क्योंकि उस की मां तो अपने दामाद का ही पक्ष लेंगी. घड़ी में देखा तो रात के 11 बच रहे थे. गुस्सा आया अपर्णा को कि ऐसे तो तुरंत 11-12 बज जाता है और आज घड़ी भी जैसी ठहर गई है. नींद भी नहीं आ रही थी उसे, सो उठ कर उस ने बच्चों के कमरे में   झांक कर देखा. दोनों गहरी नींद में सो रहे थे. जब शिव के कमरे में   झांक कर देखा तो फोन देखतेदेखते चश्मा पहने ही वह सो गया. मन किया अपर्णा का उस का चश्मा उतार कर टेबल पर रख दे, मगर उस का गुस्सा अभी भी उस के सिर पर सवार था.

भूख के मारे पेट में वैसे ही जलन हो रही थी. किचन में गई भी, मगर उस का गुस्सा उस की भूख से ज्यादा तेज था. सो एक गिलास पानी पी कर वह कमरे में आ कर सोने की कोशिश करने लगी. मगर नींद भी नहीं आ रही थी उसे. ‘देखो, कैसे आराम से खापी कर सो गया. कोई चिंता है मेरी? एक बार पूछने तक नहीं आया खाने के लिए’ बैड पर लेटीलेटी अपर्णा बड़बड़ाए जा रही थी. गुस्से में तो थी ही, भूख के मारे और तिलमिला रही थी.

अब शिव ने माफी तो मांगी न तुम से?

फिर इतना क्या गुस्सा दिखा रही हो? हां, माना कि उसे मेहमानों के सामने तुम से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए थी और उस की छोटीछोटी बातों पर एकदम से चीखनेचिल्लाने लगना तुम्हें जरा भी पसंद नहीं. लेकिन उस की कुछ अच्छी आदतें भी तो हैं न? उन्हें भूल गई तुम? अभी पिछले महीने ही जब तुम्हारे पापा को हार्ट अटैक आया था, तब कैसे अपना सारा कामकाज छोड़ कर शिव उन की सेवा में लग गया था.

पैसे से ले कर क्या कुछ नहीं किया उस ने तुम्हारे पापा के लिए? रातरातभर जाग कर उस ने तुम्हारे पापा की सेवा की थी, तब जा कर वे अस्पताल से ठीक हो कर घर आ पाए थे और आज भी जब भी उन्हें कोई जरूरत पड़ती है शिव एक पैर पर खड़ा रहता है उन की सेवा में.

हर 3 महीने पर वह तुम्हारे मांपापा को शुगरबीपी चैक कराने ले कर जाता है. डाक्टर

को दिखाता है. कितना भी बिजी क्यों न हो लेकिन उन से यह पूछना नहीं भूलता कि उन्होंने समय पर दवाई ली या नहीं वे रोज सुबह वाक

पर जाते हैं या नहीं? कौन करता है इतना.

बोलो न? दामाद हो कर वह बेटे जैसा कर रहा है, कम है क्या? अरे, किसीकिसी इंसान की आदत होती है छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने की. इस का मतलब वह बुरा इंसान नहीं हो गया.

शिव थोड़ा सख्त और गुस्सैल मिजाज

का है, मानता हूं मैं पर इंसान वह कितना अच्छा है, यह भूल गईं तुम? और यह भूल गईं कि

कैसे तुम्हारे मांपापा के जन्मदिन पर सब से

पहले बधाई शिव ही देता है उन्हें? उन के जन्मदिन पर हंगामेदार पार्टी रखता है. और यह

भी भूल गई जब तुम औफिस से थकीहारी घर आती हो कैसे वह तुम्हें प्यार से निहारता है?

तुम्हें तो अपने पति पर निछावर होना चाहिए? अपर्णा के दिल से आवाज आई तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी.

‘हां, यह बात कैसे भूल गई मैं कि शिव

ने मेरे पापा के लिए क्या कुछ नहीं किया?

अगर उस दिन शिव न होते तो जाने क्या अनर्थ

हो जाता. उस ने रातदिन एक कर के मेरे पापा

की जान बचाई. यहां तक कि अस्पताल में उस

ने पापा के पैर भी दबाए. नर्स ने उसे पापा के

पर दबाते देख कर कहा भी था कि कैसा श्रवण बेटा पाया है पापा ने. लेकिन जब उस नर्स को पता चला कि शिव उन के बेटे नहीं दामाद है, तो वह हैरत से शिव को देखने लगी थी.

मैं भले भूल जाऊं पर शिव रोज एक बार मांपापा का हालचाल लेना नहीं भूलता है. कभी शिव ने मु  झ पर किसी बात की बंदिशें नहीं लगाईं. मु  झे जो मन किया करने दिया और मैं उस की एक छोटी सी बात पर इतना नाराज हो गई कि उस से बात करना छोड़ दिया. ‘ओह, मैं भी न. बहुत बुरी हूं’ अपने मन में सोच अपर्णा खुद को ही कोसने लगी.

खिड़की से   झांक कर देखा तो बाहर जोर की बारिश हो रही थी. चिंता हो आई उसे कि कल शिव को औफिस के काम से 2 दिन के लिए दूसरे शहर जाना है. ‘बेचारा, कितनी मेहनत करता है अपने बीवीबच्चों के लिए. हमारी हर सुखसुविधा का ध्यान रखता है और मैं उस की एक छोटी सी बात का तिल का ताड़ बना देती हूं’ अपर्णा अपने मन गिलटी महसूस करने लगी.

‘कभी नीमनीम कभी शहदशहद पिया मोरे पिया मोरे पिया…’ मन में गुनगुनाती हुई अपर्णा मुसकरा उठी. उस का सारा गुस्साकाफूर हो चुका था. देखा तो शिव उधर मुंह कर सोए हुए था. वह भी जा कर उस के बगल में

लेट गई. शिव ने चेहरा घुमा कर देखा और मुसकराते हुए अपर्णा को अपनी बांहों में कैद कर लिया. अपर्णा भी मुसकरा कर सुकून से अपनी आंखें बंद कर लीं.

दोबारा : पति की मौत के बाद जसप्रीत के साथ क्या हुआ ?

जसप्रीत की सांस बहुत तेजी से चल रही थी. 65 साल की उम्र में कोई उन्हें प्रपोज करेगा, उन्होंने कभी नहीं सोचा था. जसप्रीत को सम  झ नहीं आ रहा था कि मानव की बात का वह क्या जवाब दे?

क्या यह कोई उम्र है उस की अपने बारे में सोचने की? कुछ ही वर्षों में तो उस के पोते, पोतियों की शादी की उम्र हो जाएगी. मगर जसप्रीत फिर भी अपनेआप को रोक नहीं पा रही थी. बरसों बाद जसप्रीत को लग रहा था कि वह भी एक औरत है जिसे कोई पुरुष पसंद कर सकता है. मगर क्या एक उम्र के बाद औरत औरत रह जाती है या उसे एक बेजान समान मान लिया जाता है जैसेकि घर में पड़ा हुआ फालतू फर्नीचर जिस के न होने से घर खालीखाली लगता है मगर उस का घर में कितना योगदान है किसी को पता नहीं होता है.

जसप्रीत को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. शोख रंग जसप्रीत के गोरे रंग पर बेहद फबता था. आज भी जसप्रीत को ऐसा लगता है मानो वह पिछले जन्म की बात हो. हर साल लोहड़ी और बैसाखी पर जसप्रीत आबकारी के सलमासितारों वाले दुप्पटे लेती थी. सिल्क, शिफौन, क्रेब और भी न जाने कितनी तरह के सूट जसप्रीत के पास थे. सूट ही नहीं, इस सिखनी को साडि़यों का भी बेहद शौक था. घर की हर अलमारी जसप्रीत के कपड़ों से भरी हुई थी.

पति महेंद्र सिंह को भी जसप्रीत को सजाने का बेहद शौक था. मगर जब कुलवंत 13 वर्ष का था और ज्योत 10 वर्ष की तभी महेंद्र सिंह की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. 2 महीने तक तो जसप्रीत को अपना भी होश नहीं था. मगर फिर बच्चों का मुंह देख कर जिंदगी की तरफ लौटना पड़ा.

लगभग 2 महीने बाद जब जसप्रीत ने अलमारी खोली तो उस का मन रोंआसा हो गया. कितने शौक से उस ने सब कपड़े बनवाए थे. जसप्रीत खड़ेखड़े रोने लगी.

तभी जसप्रीत की सास नवाब बोली, ‘‘पुत्तर कुदरत के आगे किस की चलती है?’’

‘‘तू दिल छोटा मत कर तू नहीं तो तेरी देवरानी, भाभियां ये कपड़े पहन लेंगी.’’

जसप्रीत बोलना चाह रही थी कि उस का पति मरा है मगर वह अभी जिंदा है.’’

देखते ही देखते जसप्रीत के कपड़े बांट दिए गए. उस की जिंदगी की तरह उस के कपड़े भी बेरंग हो गए थे.

देवर और देवरानी ने एहसान जताते हुए कहा, ‘‘भाभी, बीजी को आप के पास छोड़े जा रहा हूं, आप को सहारा भी हो जाएगा और आप का मन भी लगा रहेगा.’’

जसप्रीत को सम  झ ही नहीं आ रहा था कि सास नवाब उस का सहारा बनेगी या जसप्रीत को उन का सहारा बनना पड़ेगा.

नवाब के साथ रहने से जसप्रीत को उन के हिसाब से और बच्चों के हिसाब से 2 अलग तरह का खाना बनाना पड़ता था. जसप्रीत जरा भी हंसबोल लेती तो नवाब की त्योरियां चढ़ जाती थीं. लगता जैसे जसप्रीत बेहयाई कर रही हो. घर से दफ्तर जाते हुए और दफ्तर से घर आ कर जसप्रीत को सारा काम करना पड़ता. सास की दवा का भार और अलग से था.

1 वर्ष के भीतर ही जसप्रीत मुर  झा गई. उस की सांसें तो चल रही थीं मगर जिंदगी कहीं पीछे छूट गई थी. तभी जसप्रीत की जिंदगी में विपुल का पदार्पण हुआ. विपुल जसप्रीत के भाई का दोस्त था. वह कभीकभी जसप्रीत के छोटेमोटे काम कर देता था. ऐसे ही जसप्रीत और विपुल करीब आ गए. कभीकभी जसप्रीत विपुल के घर भी चली जाती. जसप्रीत अब फिर से जिंदगी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. उस ने विपुल की जिंदगी में अपना दोयम दर्जा स्वीकार कर लिया था. मगर एक दिन जब जसप्रीत और विपुल को जसप्रीत के देवर ने देख लिया तो जसप्रीत को लानतसलामत दी गई. जसप्रीत के देवर ने कहा, ‘‘भाभी, आप को शर्म नहीं आती इस उम्र में ये सब करते हुए?’’

उधर जसप्रीत की सास लगातार बोल रही थी, ‘‘औरतें तो अपने सुहाग के साथ सती हो जाती हैं और एक यह है.’’

‘‘अरे 40 साल की उम्र में कौन सी जवानी चढ़ी हुई है तुम्हें?’’

जसप्रीत के पास इन बातों का कोई जवाब नहीं था. उधर विपुल भी सब बातों के बाद जसप्रीत से कन्नी काटने लगा था. इस घटना के बाद जसप्रीत की सास अधिक चौकनी हो गई थी.

जसप्रीत का परिवार भी उसे उस की जिम्मेदारियों से अवगत कराता था. कैसे एक मां बन कर उसे अपने बच्चों के लिए रोल मौडल बनना है. जसप्रीत ने अपने अंदर की औरत का गला घोट दिया था.

जसप्रीत की सास के साथसाथ जसप्रीत के अपने मातापिता भी उस की ही जिम्मेदारी बनते जा रहे थे. जब भी भाईभाभियों को कहीं घूमने जाना होता तो जसप्रीत के मातापिता महीनों उस के साथ रहते.

जसप्रीत का भी मन करता था बाहर घूमनेफिरने का. मगर न तो हालात ने कभी इस बात की इजाजत दी और न ही उस के आसपास वालों को इस की कभी जरूरत लगी.

जसप्रीत की सास और बाकी परिवार उसे बचत और हाथ रोक कर खर्च करने की ही सलाह देता था.

विपुल की घटना के पश्चात भी जसप्रीत की जिंदगी में पुरुषों का सिलसिला चलता रहा. बस अब जसप्रीत पहले से ज्यादा सतर्क हो गई थी. कभीकभी उसे लगता जैसे वह खुद को औरत  साबित करने के लिए इधरउधर रेगिस्तान में भटक रही है. जहां भी उसे लगता कि पानी है वह मिराज निकलता. उसे लगने लगा था कि वह इंसान नहीं एक समान है. जब तक वह पुरुष को दैहिक सुख दे सकती है तब तक ही पुरुष उस के आसपास बने रहेंगे. जल्द ही उसे यह बात सम  झ आ गई कि आंतरिक प्यास इधरउधर के अफेयर से कभी नहीं बु  झ पाएगी. वह अपनेआप में सिमट गई थी.

जसप्रीत को कुदरत ने एक बेटा दिया हुआ है. थोड़े दिनों की बात और है जब उस के दुख खत्म हो जाएंगे. उन दिनों जसप्रीत ने भी इन बातों पर विश्वास कर लिया था. उस के जीवन की धुरी अब कुलवंत और ज्योत बन गए थे. मगर फिर भी न जाने क्यों जसप्रीत के अंदर का खालीपन बढ़ता ही जा रहा था. देखते ही देखते वह 55 वर्ष की हो गई थी. कुलवंत अब परिवार में मुखिया की भूमिका निभा रहा था.

कुलवंत का विवाह हो गया. वह अपनी पत्नी में डूब गया और ज्योत ने भी जल्द ही अपनी पसंद से विवाह कर लिया. जसप्रीत की सास और मातापिता का निधन हो गया था. कुलवंत बराबर अपनी मां जसप्रीत पर पैतृक घर बेचने का दबाव डाल रहा था. जसप्रीत अब 62 वर्ष की हो गई थी. नौकरी प्राइवेट थी, इसलिए पेंशन नही थी.लोगो की सलाह पर उसे लगा, बेटे से बिगाड़ना ठीक नहीं हैं इसलिए उस ने घर बेच दिया. कुलवंत ने एक शानदार सोसायटी में फ्लैट ले लिया. उस फ्लैट में जसप्रीत एकाएक बूढ़ी और अकेली हो गई थी. सारा दिन वह घर के कामों में लगी रहती और अपनी पोती   झलक को संभालती. उस की जिंदगी बेरंग हो गई थी.

जब   झलक का 10वां बर्थडे था तब जसप्रीत की बहू अजीत की मम्मी हरप्रीत भी आई हुई थी. रंगों और शोखी से भरपूर हरप्रीत को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उन की इतनी बड़ी नातिन है. हरप्रीतजी ने ही जबरदस्ती उस रोज जसप्रीत को गुलाबी रंग का सूट पहनाया जो उन के रंग में घुल सा गया था.

जाने से पहले हरप्रीत ने जसप्रीत से कहा, ‘‘आप खुद के लिए खड़ा होना सीखिए. आप बस 62 साल की हुई हैं. अभी भी आप के पास जिंदगी है.’’

जसप्रीत धीरेधीरे ऐक्सरसाइज करने लगी. सोसायटी के क्लब में जाने से जसप्रीत को अपने हमउम्र मिले और कुछ ऐसे रास्ते भी मिले जिन से वह अपने लिए कमा भी सकती थी. जसप्रीत ने धीरेधीरे अपने हमउम्र लोगों की सहायता से औनलाइन ट्रक्सैक्शन, इनवैस्टमैंट और बैंकिंग  सीखी. उस ने अपने आर्थिक फैसले खुद लेने आरंभ किए.

जैसे ही जसप्रीत आर्थिक रूप से स्वावलंभी हुई उस के पंख खुलने लगे. बच्चों की जिम्मेदारी भी पूरी हो गई थी. इसलिए जसप्रीत ने अब देश घूमने का फैसला किया. उस के बाहर घूमने का फैसला उस के बेटे को पसंद नहीं आया क्योंकि जसप्रीत अपने पैसे से जा रही थी इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाया.

फन एट सिक्स्टी नामक ग्रुप के साथ जसप्रीत घूमने जा रही थी.62 साल की उम्र में पहली बार उसे 16 वर्ष के भांति उत्साहित हो रही थी.पूरे जोरशोर के साथ बहुत वर्षों के बाद उस ने शौपिंग करी.

बेटेबहू सामने से तो कुछ कह नहीं पाए मगर उन के भावों में नाराजगी   झलक रही थी. जसप्रीत का एक बार तो मन हुआ कि न जाए मगर फिर उस ने अपना मन कड़ा कर लिया. जब जसप्रीत अपने समान के समेत बस में चढ़ी तो उसे इस बात का बिलकुल भान नहीं था कि यह सफर उस की जिंदगी का सफर की दिशा ही बदल देगा.

एक मिनी बस थी. सभी लोग जसप्रीत को अपने हमउम्र दिख रहे थे. करीब 20 लोग बैठे हुए थे, जिन में से 8 जोड़े थे और 3 महिलाएं और 1 पुरुष था. शुरूशुरू में तो जसप्रीत को थोड़ी  ि झ  झक हो रही थी मगर फिर वह सहज हो गई.

जब सां  झ के धुंधलके में वह गु्रप वाराणसी पहुंचा तो जसप्रीत को थकान के बजाय बेहद ताजा महसूस हो रहा था.

जसप्रीत जब अपने कमरे से बाहर निकली तो सभी लोग अपने कमरों में दुबके हुए थे. उस ने देखा बाहर लौबी में बस मानव बैठे हुए थे. जसप्रीत को देख कर उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘चलो, मेरी तरह कोई और भी है जो कमरे से बाहर तो निकला है बाकी सभी लोग तो आज थकान उतारेंगे.’’

जसप्रीत ने कहा, ‘‘आप घाट पर चलना चाहेंगे?’’

मानव हंसते हुए बोला, ‘‘चलना नहीं दौड़ना चाहूगा.’’

दोनों ने एक रिकशा कर लिया और पूरे जोश के साथ घाट पहुंच गए. एक अलग सा माहौल था घाट का. दोनों ही करीब 2 घंटे तक वहीं बैठ कर घाट को निहारते रहे. मानव की तंद्रा तब भंग हुई जब होटल से उन के ग्रुप का फोन आया. पूरा ग्रुप दोनों के लिए चिंतित था.घड़ी देखी तो रात के 9 बज गए थे.

वापसी में मानव और जसप्रीत ने कचौरी और टमाटर की चाट का आनंद लिया.

जसप्रीत शुरू में थोड़ी  ि झ  झकी मगर मानव ने यह कहते हुए उस का डर काफूर कर दिया, ‘‘मैं डाक्टर हूं कुछ हुआ तो देख लूंगा. बिंदास खाइए और जिंदगी का आनंद लीजिए.’’

जब रात के 10 बजे मानव और जसप्रीत होटल पहुंचे तो मैत्री की डोर में बंध गए थे.

4 दिन ऐसा लगा मानो 4 पल के समान उड़ गए हों. जसप्रीत ने जिस तरह अपने पति को युवावस्था में खो दिया था वैसे ही मानव का अपनी पत्नी के साथ विवाह के 5 वर्ष बाद ही अलगाव हो गया था. पहले विवाह का अनुभव इतना अधिक कसैला था कि मानव ने दोबारा विवाह नही किया. दोनों ने अपनी युवावस्था अकेलेपन में गुजारी थी इसलिए दोनों ही एकदूसरे के साथ बेहद सहज थे. दोनों की किसी के प्रति जवाबदेही नहीं थी.

जसप्रीत को ऐसा लग रहा था मानो वह दोबारा से एक औरत की तरह सांस ले रही हो. मानव ने बातों ही बातों में जसप्रीत से कहा, ‘‘अरे, आप को देख कर लगा ही नहीं कि आप 62 साल की हैं. मु  झे तो आप 55 से अधिक की नहीं लगी थी.’’

न जाने क्यों जसप्रीत को मानव की ये बातें अंदर से गुदगुदा रही थीं. पूरे ट्रिप के दौरान जसप्रीत और मानव एकसाथ ही बने रहे. दोनों को एकदूसरे का साथ बहुत भा रहा था.

वापसी यात्रा में मानव और जसप्रीत दोनों को यह लग रहा था कि यह सफर कभी खत्म न हो. फोन के द्वारा मानव और जसप्रीत के बीच बातचीत चलती रही. जिस दिन दोनों की बातचीत नहीं होती ऐसा लगता मानो वह दिन कुछ अधूरेपन के साथ समाप्त हुआ हो. 62 साल की उम्र में जसप्रीत अपने मन की थाह को नहीं पा रही थी. यह जीवन उस ने पहले भी जीया था मगर तब उस के अपने परिवार ने उसे सामाजिक और नैतिक रूप से गलत साबित किया था. क्या ये भाव उसे शोभा देते हैं? क्यों मानव का एक फोन उसे खुशी से भर देता है? जसप्रीत को पहली बार अपने पति के जाने के बाद ऐसा कोई पुरुष मिला था जो उस से व्यापार नहीं कर रहा था. मानव ने जसप्रीत के साथ एक साथी की तरह ही व्यवहार किया था. यह सच था कि जसप्रीत और मानव उम्र के उस मोड़ पर थे जहां पर दैहिक व्यापार का प्रश्न गौण हो जाता है. मगर पुरुष फिर भी उम्र के हर पड़ाव पर स्त्री से किसी न किसी चीज की उम्मीद ही रखता है.

जसप्रीत और मानव को बात करतेकरते पूरा 1 साल बीत गया. इस 1 साल में मानव जसप्रीत को बहुत अच्छे से जान गया था. आज मानव का जन्मदिन था. जसप्रीत ने जैसे ही रात के 12 बजे उस को कौल किया तो मानव ने जसप्रीत को प्रपोज कर दिया.

मानव ने जसप्रीत से कहा, ‘‘जसप्रीत, जीवन की इस संध्या में कब जीवन का सूर्य अस्त हो जाएगा, मालूम नहीं? मगर अब आगे की यात्रा में तुम्हारे साथ तय करना चाहता हूं.’’

जसप्रीत यही तो सुनना चाहती थी. मगर उस के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह इतना बड़ा फैसला ले पाए.

जसप्रीत को अच्छे से पता था कि अगर वह मानव का यह प्रस्ताव अपने घर वालों के समक्ष रखेगी भी तो उस के बच्चे ही उस के अतीत को कुरेदने लगेंगे.

जसप्रीत के अंदर हिम्मत का अभाव देख कर मानव एक दिन खुद ही जसप्रीत के घर पहुंच गया.

जसप्रीत से कोई पुरुष मिलने आया है, यह बात जसप्रीत के बेटेबहू को पसंद नहीं आई. मगर प्रत्यक्ष रूप से वे कुछ कह नहीं पाए. मानव को आए हुए 2 घंटे हो गए थे.

जाने से पहले मानव ने जसप्रीत के बेटे से कहा, ‘‘बेटा, सम  झ नहीं आ रहा ये बात में कैसे करूं? मगर मैं आप की मम्मी से विवाह करना चाहता हूं.’’

मानव की यह बात सुनते ही जसप्रीत का बेटा आग बबूला हो उठा, ‘‘मम्मी इस उम्र में भी आप यह गुल खिला रही हैं.’’

उधर जसप्रीत की बहू बोली, ‘‘आप ऐसा करोगी तो कौन   झलक से विवाह करेगा? उम्र है अपना जन्म सुधारने की… ध्यान में ध्यान लगाएं.’’

जसप्रीत शर्म से जमीन में गढ़ी जा रही थी. उसे लग रहा था कि उस से फिर से गलती हो गई है. क्यों उसे एक साथी की दरकार रहती है? क्यों वह कुदरत में ध्यान नहीं लगा पाती हैं?

मानव ने जसप्रीत से कहा, ‘‘जसप्रीत मु  झे तुम्हारे फैसले का इंतजार रहेगा.’’

मगर उस दिन के बाद से जसप्रीत और मानव के बीच कोई बात नहीं हुई. कुलवंत ने यह बात अपनी बहन ज्योत को भी बता दी थी. ज्योत भी घर आ गई थी. जसप्रीत के बेटे और बेटी ने साफसाफ शब्दों में कह दिया था कि अगर जसप्रीत को मां का दर्जा चाहिए तो दूसरे विवाह की बात दिमाग से निकाल दे.

जसप्रीत फिर से सम  झौता करने को तैयार हो गई थी. वह घर की शांति और समाज के रिवाजों के हिसाब से खुद को ढालने के लिए तैयार हो गई थी. कैसी होती है एक 62 वर्ष की महिला की जिंदगी, एक फालतू फर्नीचर जिस के होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. हां यदि वह न हो तो घर का एक कोना खाली हो जाता है. 62 साल की महिला या वृद्धा को अपनी जिंदगी के बाकी दिन नातीपोतों की देखभाल में बिताने चाहिए. जिंदगी के इस पड़ाव में किसे घूमनेफिरने की, इधरउधर मित्रता करने की ललक होती है?

जसप्रीत ने मानव से बातचीत लगभग बंद कर दी थी. बहू ने फूल टाइम मेड की छुट्टी कर दी. उस के अनुसार मम्मीजी घर के कामकाज में बिजी रहेंगी तो उन के दिमाग में फालतू बात नहीं आएगी.

जसप्रीत ने खुद को घर के कार्यों में व्यस्त तो कर लिया मगर मानसिक रूप से टूट गई थी. पहले सासससुर और मातापिता ने उसे बच्चों की दुहाई दे कर कठपुतली की तरह नचाया और अब उस के अपने बच्चे उसे समाज की दुहाई दे कर नचा रहे हैं.

1 हफ्ते बाद दीवाली थी. घर में जोरशोर से तैयारियां चल रही थीं. जसप्रीत के बेटे ने जसप्रीत से कहा, ‘‘मम्मी, मैं इस बार बच्चों के साथ दीवाली पर घूमने जा रहा हूं. आप को भी ले चलते मगर आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती और फिर दीवाली पर घर भी बंद नहीं कर सकते हैं.’’

जसप्रीत को बुरा लगा मगर उस ने खुद को ही दोष दिया, उस की क्या उम्र है घूमनेफिरने की?

बच्चे नियत समय पर दुबई के लिए रवाना हो गए थे. जसप्रीत को अगले ही दिन बुखार हो गया. उस ने फोन पर बच्चों को बताया तो उसे डाक्टर से मिलने की सलाह दे दी गई.

बेटी ज्योत भी दीवाली पर अपने परिवार के साथ घूमने गई हुई थी. दीवाली की रात पर चारों ओर रोशनी से आकाश सजा हुआ था मगर जसप्रीत के अंदर इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह खड़ी हो जाए.

बुखार की दवाई कोई असर नहीं कर रही थी. सुबह से कुछ खाया भी नहीं था. तभी जसप्रीत को फोन पर मानव का मैसेज दिखा. जसप्रीत ने बुखार की घुमेरी में उसे कुछ लिखा और फिर जब जसप्रीत को होश आया तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया.

मानव वहीं जसप्रीत के सामने बैठा हुआ था. वह मन ही मन सोच रही थी कि अब समाज उस के बच्चों से कुछ क्यों नहीं पूछ रहा है जब वे लोग उसे अकेले छोड़ कर दीवाली मनाने चले गए. जसप्रीत ने फिर मानव को अपनी पूरी कहानी सुना दी. जसप्रीत ने अपनी जिंदगी का वह पन्ना भी मानव के समक्ष बेपरदा कर दिया जिस के कारण वह खुद को माफ नहीं कर पाई थी.

मानव ने सुना और बस जसप्रीत से इतना कहा, ‘‘न तुम कल गलत थी और न ही आज गलत हो. उस समय अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन परिस्थितियों में तुम्हें वह ही ठीक लगा होगा. हमारा अतीत हमारे वर्तमान को नियंत्रित नहीं कर सकता है. मैं आज भी तुम्हारे फैसले की प्रतीक्षा में हूं.’’

जसप्रीत की अस्पताल से छुट्टी हुई तो उस ने खुद ही मानव से कहा, ‘‘जब तक बच्चे नहीं आते मैं तुम्हारे घर पर ही रहूंगी.’’

बिना कुछ बोले जसप्रीत के मन की बात मानव को सम  झ आ गई थी.

अपने दोनों बच्चों को अपने फैसले से अवगत कराते हुए जसप्रीत ने सूचित कर दिया था. उस ने दोबारा से एक महिला की तरह फैसला ले लिया था.

जसप्रीत समाज को जवाब देने के लिए तैयार थी. कोर्ट में विवाह की तिथि के लिए पंजीकरण करवा दिया था. खुद को माफ करते हुए जसप्रीत ने दोबारा से जिंदगी की तरफ कदम बढ़ाया था.

जसप्रीत के इस फैसले के बाद उस के  परिवार ने उस का बहिष्कार कर दिया. वह अपने परिवार के इस बरताव से आहत थी. वह चाहती थी कम से कम उस की बेटी ज्योत तो उसे सम  झेगी.

पहले 1 महीने तक तो जसप्रीत इसी ऊपोपोह में रही कि क्या वह मानव के साथ रहे या फिर वापस अपने घर चली जाए. मगर मानव ने जसप्रीत को इतना विश्वास और प्यार दिया कि जसप्रीत का मन मानव के घर में रम गया.

मानव सुबह सवेरे जब ऐक्सरसाइज करता तो जसप्रीत को भी अपने साथ करवाता. दोनों साथसाथ नाश्ता करते, फिर मानव हौस्पिटल चला जाता और जसप्रीत अपना औनलाइन बिजनैस देखती. पैसे की कोई कमी नहीं. मानव जसप्रीत का साथ पा कर पूर्ण महसूस करता था. जसप्रीत भी बेहद खुश थी मगर अपने बच्चों और परिवार की कसक उसे रहरह कर टीस देती. मानव को जसप्रीत के दर्द का आभास था मगर उसे सम  झ नहीं आ रहा था कि वह कैसे जसप्रीत और उस के परिवार को एक कर दे.

दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में परिवर्तित हो गए थे. आज जसप्रीत बेहद खुश थी. बरसों बाद उस के जीवन में करवाचौथ इतनी सारी रोशनी और मिठास ले कर आई थी. उस ने आज सुनहरे रंग की कांजीवरम साड़ी पहन रखी थी. साथ में उस ने बेहद शोख रंग की चूडि़यां और मेकअप कर रखा था. मानव तो आज जसप्रीत को देख कर पलक   झपकाना भूल गया.

जसप्रीत शरमाते हुए बोली, ‘‘बहुत ओवर हो गया लगता है. इस उम्र में इतना शोख मेकअप अच्छा नहीं लगता है.’’

मानव जसप्रीत का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘खूबसूरती की कोई उम्र नहीं होती है जसप्रीत. तुम आज बेहद सुंदर लग रही हो.’’

चांद को देखने के बाद मानव और जसप्रीत ने खाने का पहला निवाला ही तोड़ा था कि अस्पताल से फोन आ गया. मानव बिना खाने खाए कार निकल कर अस्पताल चला गया. वहां जा कर मानव को पता चला कि ऐक्सीडैंट केस है. खून से लथपथ एक जोड़ा अस्पताल के गलियारे में कराहा रहा था. मानव जैसे ही उन के करीब पहुंचा जसप्रीत के बेटे कुलवंत और उस की पत्नी को देख कर उस के होश उड़ गए. बिना पुलिस की प्रतीक्षा करे मानव ने जूनियर डाक्टर्स को इलाज करने के लिए बोल दिया. मानव को सम  झ नहीं आ रहा था कि वह कैसे जसप्रीत को यह बात बताए. तभी मानव को जसप्रीत की पोती   झलक की याद आई कि वह कहां है?

मानव बिना देर करे जसप्रीत को ले कर उस के बेटे कुलवंत के घर पहुंचा.   झलक दादी को देखते ही गले लग कर रोने लगी.

‘‘दादी पिछले 4 घंटो से मम्मीपापा का फोन बंद आ रहा है.’’

जसप्रीत ने मानव की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तुम दोनों हौसला रखो, उन का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे मेरे ही हौस्पिटल में भरती हैं.’’

झलक और जसप्रीत के साथ मानव जब अस्पताल पहुंचा तो कुलवंत और अजीत तब भी औपरेशन थिएटर में ही थे.

मानव ने बड़ी मुश्किल से   झलक और जसप्रीत को कुछ खिलाया और वहीं हौस्पिटल के एक कमरे में आराम करने की व्यवस्था कर दी.

जसप्रीत को बारबार यही लग रहा था कि वह मनहूस है. मगर काली रात के बाद जब सूरज की पहली किरण आई तो कुलवंत खतरे से बाहर था. दोपहर होतेहोते अजीत को भी होश आ गया. जसप्रीत की बेटी ज्योत भी आ गई थी.

पूरे 4 दिन बाद जब दोनों को डिस्चार्ज मिला तो जसप्रीत भी अपने बेटे और बहू के साथ उन के घर चली गई.

मानव ने घर से नौकर और अस्पताल से एक नर्स भी भेज दी थी. कुलवंत और ज्योत

आज पहली बार अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहे थे.

कुलवंत को अच्छे से पता था कि अगर वह मानव का अस्पताल न होता तो वे दोनों पतिपत्नी वहीं अस्पताल में पुलिस की प्रतीक्षा में मर जाते. मानव ने अपनी जिम्मेदारी पर ही दोनों का इलाज करा था.

पूरे 1 हफ्ते तक जसप्रीत वहां रही और खूब अच्छे से पूरे घर को संभाला.

जसप्रीत रोज रात मानव को फोन करती मगर न तो कुलवंत ने और न ही अजीत ने कभी मानव से बात करने की इच्छा जाहिर करी. जसप्रीत को थोड़ा बुरा भी लगा, मगर वह चुप लगा गई.

दीवाली से 2 दिन पहले जब जसप्रीत ने अपने घर जाने की इच्छा जाहिर करी तो   झलक बोली, ‘‘दादी, इस बार तो बूआ भी दीवाली पर यहीं हैं. आप भी प्लीज रुक जाए.’’

बहू अजीत भी बोली, ‘‘मम्मी, मान जाएं. पूरा परिवार कबकब साथ होता है? चाचाजी और चाचीजी भी यहीं पर दीवाली मनाएंगे.’’

जसप्रीत का मन किया बोलने का कि मानव के बिना यह परिवार कैसे पूरा हो सकता है? मगर वह फीकी हंसी हंस दी.

छोटी दीवाली पर अजीत की मम्मी भी आ गई थी. जसप्रीत ने मानव को जब इस प्रोग्राम के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘कोई बात नही जसप्रीत, तुम्हारे परिवार का तुम पर हक है.’’

दीवाली पर चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था. जसप्रीत ने सब की पसंद के पकवान बनाए मगर रहरह कर उस का मन मानव को याद कर रहा था.

सब के कहने पर न चाहते हुए भी जसप्रीत ने महरून सिल्क की साड़ी पहन ली थी. बहू अजीत ने सोने का सैट जबरदस्ती पहना दिया था.

बेटी ज्योत हुलसते हुए बोली, ‘‘मम्मी, सच में आज आप कमाल की लग रही हो.’’

तभी दरवाजे की घंटी बजी. मानव मिठाई के डब्बों और उपहारों के साथ खड़ा था.

जसप्रीत एकाएक घबरा गई. तभी कुलवंत ने आगे बढ़ कर मानव के पैर छू लिए, ‘‘अंकल, आप ने हमारे लिए वही किया है जो हमारे पापा जिंदा होते तो करते.’’

जसप्रीत का देवर भी बोल उठा, ‘‘भाभीजी को हम ने हमेशा गलत ही सम  झा, मगर हम ही गलत थे.’’

हंसीखुशी पटाखे छुड़ाते हुए मानव ने ही बताया, ‘‘पूरा प्लान ज्योत और अजीत का ही था.’’

देर रात को जब जसप्रीत और मानव अपने घर के लिए निकलने लगे तो मानव ने   झलक को पास बुला कर कहा, ‘‘बेटे, अब तुम्हारे इस शहर में 2 घर हैं, एक यह और एक दादी का.’’

ज्योत मुंह फुला कर बोली, ‘‘अंकल, क्या हम आप के परिवार का हिस्सा नहीं हैं?’’

मानव खुशी से बोला, ‘‘उठाओ सामान और अब कुछ दिन हमारे घर को भी गुलजार करो.’’

जसप्रीत आज मन ही मन कुदरत का धन्यवाद कर रही थी. देर से ही सही जसप्रीत को भी मुकम्मल जहां मिल गया था.

उम्र भर का रिश्ता : एक अनजान लड़की से कैसे जुड़ा एक अटूट बंधन

शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ दिन तन्हा प्रकृति के बीच बिताने के ख्याल से मैं हर साल करीब 15 -20 दिनों के लिए मनाली, नैनीताल जैसे किसी हिल स्टेशन पर जाकर ठहरता हूं. मैं पापा के साथ फैमिली बिजनेस संभालता हूं इसलिए कुछ दिन बिजनेस उन के ऊपर छोड़ कर आसानी से निकल पाता हूं.

इस साल भी मार्च महीने की शुरुआत में ही मैं ने मनाली का रुख किया था  मैं यहां जिस रिसॉर्ट में ठहरा हुआ था उस में 40- 50 से ज्यादा कमरे हैं. मगर केवल 4-5 कमरे ही बुक थे. दरअसल ऑफ सीजन होने की वजह से भीड़ ज्यादा नहीं थी. वैसे भी कोरोना फैलने की वजह से लोग अपनेअपने शहरों की तरफ जाने लगे थे. मैं ने सोचा था कि 1 सप्ताह और ठहर कर निकल जाऊंगा मगर इसी दौरान अचानक लॉक डाउन हो गया. दोतीन फैमिली रात में ही निकल गए और यहां केवल में रह गया.

रिसॉर्ट के मालिक ने मुझे बुला कर कहा कि उसे रिसॉर्ट बंद करना पड़ेगा. पास के गांव से केवल एक लड़की आती रहेगी जो सफाई करने, पौधों को पानी देने, और फोन सुनने का काम करेगी. बाकी सब आप को खुद मैनेज करना होगा.

अब रिसॉर्ट में अकेला मैं ही था. हर तरफ सायं सायं करती आवाज मन को उद्वेलित कर रही थी. मैं बाहर लॉन में आ कर टहलने लगा.सामने एक लड़की दिखी जिस के हाथों में झाड़ू था. गोरा दमकता रंग, बंधे हुए लंबे सुनहरे से बाल, बड़ीबड़ी आंखें और होठों पर मुस्कान लिए वह लड़की लौन की सफाई कर रही थी. साथ ही एक मीठा सा पहाड़ी गीत भी गुनगुना रही थी. मैं उस के करीब पहुंचा. मुझे देखते ही वह ‘गुड मॉर्निंग सर’ कहती हुई सीधी खड़ी हो गई.

“तुम्हें इंग्लिश भी आती है ?”

“जी अधिक नहीं मगर जरूरत भर इंग्लिश आती है मुझे. मैं गेस्ट को वेलकम करने और उन की जरूरत की चीजें पहुंचाने का काम भी करती हूं.”

“क्या नाम है तुम्हारा?” मैं ने पूछा,”

“सपना. मेरा नाम सपना है सर .” उस ने खनकती हुई सी आवाज़ में जवाब दिया.

“नाम तो बहुत अच्छा है.”

“हां जी. मेरी मां ने रखा था.”

“अच्छा सपना का मतलब जानती हो?”

“हां जी. जानती क्यों नहीं?”

“तो बताओ क्या सपना देखती हो तुम? मुझे उस से बातें करना अच्छा लग रहा था.

उस ने आंखे नचाते हुए कहा,” मैं क्या सपना देखूंगी. बस यही देखती हूं कि मुझे एक अच्छा सा साथी मिल जाए.  मेरा ख्याल रखें और मुझ से बहुत प्यार करे. हमारा एक सुंदर सा संसार हो.” उस ने कहा.

“वाह सपना तो बहुत प्यारा देखा है तुम ने. पर यह बताओ कि अच्छा सा साथी से क्या मतलब है तुम्हारा?”

“अच्छा सा यानी जिसे कोई गलत आदत नहीं हो. जो शराब, तंबाकू या जुआ जैसी लतों से दूर रहे. जो दिल का सच्चा हो बस और क्या .” उस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.

फिर मेरी तरफ देखती हुई बोली,” वैसे मुझे लगता है आप को भी कोई बुरी लत नहीं.”

“ऐसा कैसे कह सकती हो?” मैं ने उस से पूछा.

“बस आप को देख कर समझ आ गया. भले लोगों के चेहरे पर लिखा होता है.”

“अच्छा तो चेहरा देख कर समझ जाती हो कि आदमी कैसा है.”

“जी मैं झूठ नहीं बोलूंगी. औरतें आदमियों की आंखें पढ़ कर समझ जाती हैं कि वह क्या सोच रहा है. अच्छा सर आप की बीवी तो बहुत खुश रहती होगी न.”

“बीवी …नहीं तो. शादी कहां हुई मेरी?”

“अच्छा आप की शादी नहीं हुई अब तक. तो आप कैसी लड़की ढूंढ ढूंढते हैं?”

उस ने उत्सुकता से पूछा.

“बस एक खूबसूरत लड़की जो दिल से भी सुंदर हो चेहरे से भी. जो मुझे समझ सके.”

“जरूर मिलेगी सर. चलिए अब मैं आप का कमरा भी साफ कर दूं.” वह मेरे कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

सपना मेरे आगेआगे चल रही थी. उस की चाल में खुद पर भरोसा और अल्हड़ पन छलक रहा था.

मैं ने ताला खोल दिया और दूर खड़ा हो गया. वह सफाई करती हुई बोली,” मुझे पता है. आप बड़े लोग हो और हम छोटी जाति के. फिर भी आप ने मेरे से इतने अच्छे से बातें कीं. वैसे आप यहां के नहीं हो न. आप का गांव कहां है ?”

“मैं दिल्ली में रहता हूं. वैसे हूं बिहार का ब्राम्हण .”

“अच्छा जी, आप नहा लो. मैं जाती हूं. कोई भी काम हो तो मुझे बता देना. मैं पूरे दिन इधर ही रहूंगी.”

“ठीक है. जरा यह बताओ कि आसपास कुछ खाने को मिलेगा?”

“ज्यादा कुछ तो नहीं सर. थोड़ी दूरी पर एक किराने की दुकान है. वहां कुछ मिल सकता है. ब्रेड, अंडा तो मिल ही जाएगा. मैगी भी होगी और वैसे समोसे भी रखता है. देखिए शायद समोसे भी मिल जाएं.”

“ओके थैंक्स.”

मैं नहाधो कर बाहर निकला. समोसे, ब्रेड अंडे और मैगी के कुछ पैकेटस ले कर आ गया. दूध भी मिल गया था. दोपहर तक का काम चल गया मगर अब कुछ अच्छी चीज खाने का दिल कर रहा था. इस तरह ब्रेड, दूध, अंडा खा कर पूरा दिन बिताना कठिन था.

मैं ने सपना को बुलाया,” सुनो तुम्हें कुछ बनाना आता है?”

“हां जी सर बनाना तो आता है. पर क्या आप मेरे हाथ का बना हुआ खाएंगे?”

“हां सपना खा लूंगा. मैं इतना ज्यादा कुछ ऊंचनीच नहीं मानता. जब कोई और रास्ता नहीं तो यही सही. तुम बना दो मेरे लिए खाना.”

मैं ने उसे ₹500 का नोट देते हुए कहा, “चावल, आटा, दाल, सब्जी जो भी मिल सके ले आओ और खाना तैयार कर दो.”

“जी सर” कह कर वह चली गई.

शाम में दोतीन डब्बों में खाना भर कर ले आई,” यह लीजिए, दाल, सब्जी और चपाती. अचार भी है और हां कल सुबह चावल दाल बना दूंगी.”

“थैंक्यू सपना. मैं ने डब्बे ले लिए. अब यह रोज का नियम बन गया. वह मेरे लिए रोज स्वादिष्ट खाना बना कर लाती. मैं जो भी फरमाइश करता वही तैयार कर के ले आती. अब मैं उस से और भी ज्यादा बातें करने लगा. उस से बातें करने से मन फ्रेश हो जाता. वह हर तरह की बातें कर लेती थी. उस की बातों में जीवन के प्रति ललक दिखती थी. वह हर मुश्किल का सामना हंस कर करना जानती थी. अपने बचपन के किस्से सुनाती रहती थी. उस के घर में मां, बाबूजी और छोटा भाई है. अभी वह अपने घर में अकेली थी. घरवाले शादी में पास के शहर में गए थे और वहीं फंस गए थे.

वह बातचीत में जितनी बिंदास थी उस की सोच और नजरिए में भी बेबाकी झलकती थी. किसी से डरना या अपनी परिस्थिति से हार मानना उस ने नहीं सीखा था. किसी भी काम को पूरा करने या कोई नया काम सीखने के लिए अपनी पूरी शक्ति और प्रयास लगाती. हार मानना जैसे उस ने कभी जाना ही नहीं था.

उस की बातों में बचपन की मासूमियत और युवावस्था की मस्ती दोनों होती थी. बातें बहुत करती थी मगर उस की बातें कभी बोरियत भरने वाली नहीं बल्कि इंटरेस्ट जगाने वाली होती थीं. मैं घंटों उस से बातें करता.

उस ने शहर की लड़कियों की तरह कभी कॉलेज में जा कर पढ़ाई नहीं की. गांव के छोटे से स्कूल से पढ़ाई कर के हाल ही में 12वीं की परीक्षा दी थी. पर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा हुआ था. दिमाग काफी तेज था. कोई भी बात तुरंत समझ जाती. हर बात की तह तक पहुंचती. मन में जो ठान लेती वह पूरा कर के ही छोड़ती.

शिक्षा और समझ में वह कहीं से भी कम नहीं थी. अपनी जाति के कारण ही उसे मांबाप का काम अपनाना पड़ा था.

उस की प्रकृति तो खूबसूरती थी ही दिखने में भी कम खूबसूरत नहीं थी. जितनी देर वह मेरे करीब बैठती मैं उस की खूबसूरती में खो जाया करता. वह हमेशा अपनी आंखों में काजल और माथे पर बिंदिया लगाती थी. उन कजरारी आंखों के कोनों से सुनहरे सपनों की उजास झलकती रहती. लंबी मैरून कलर की बिंदी हमेशा उस के माथे पर होती जो उस की रंगबिरंगी पोशाकों से मैच करती. कानों में बाली और गले में एक प्यारा सा हार होता जिस में एक सुनहरे रंग की पेंडेंट उभर कर दिखती.

“सपना तुम्हें कभी प्यार हुआ है ?” एक दिन यूं ही मैं ने पूछा.

मेरी बात सुन कर वह शरमा गई और फिर हंसती हुई बोली,” प्यार कब हो जाए कौन जानता है? प्यार बहुत बुरा रोग है. मैं तो कहती हूं यह कोरोना से भी बड़ा रोग है.”

उस के कहने का अंदाज ऐसा था कि मैं भी उस के साथ हंसने लगा. हम दोनों के बीच एक अलग तरह की बौंडिंग बनती जा रही थी. वह मेरी बहुत केयर करती. मैं भी जब उस के साथ होता तो पूरी दुनिया भूल जाता.

एक दिन शाम के समय मेरे गले में दर्द होने लगा. रात भर खांसी भी आती रही. अगले दिन भी मेरी तबीयत खराब ही रही. गले में खराश और खांसी के साथ सर दर्द हो रहा था. मेरी तबीयत को ले कर सपना परेशान हो उठी. वह मेरे खानपान का और भी ज्यादा ख्याल रखने लगी. मुझे गुनगुना पानी पीने को देती और दूध में हल्दी डाल कर पिलाती.

तीसरे दिन मुझे बुखार भी आ गया. सपना ने तुरंत मेरे घरवालों को खबर कर दी. साथ ही उस ने रिसोर्ट के डॉक्टर को भी फोन लगा लिया. डॉक्टर की सलाह के अनुसार उस ने मुझे बुखार की दवा दी. रिसोर्ट के ही इमरजेंसी सामानों से मेरी देखभाल करने लगी. उस ने मेरे लिए भाप लेने का इंतजाम किया. तुलसी, काली मिर्च, अदरक,सौंठ मिला कर हर्बल टी बनाई. एलोवेरा और गिलोय का जूस पिलाया. वह हर समय मेरे करीब बैठी रहती. बारबार गुनगुना कर के पानी पिलाती.

कोई और होता तो मेरे अंदर कोरोना के लक्षण का देख कर भाग निकलता. मगर वह बिल्कुल भी नहीं घबड़ाई. बिना किसी प्रोटेक्टिव गीयर के मेरी देखभाल करती रही. मेरे बहुत कहने पर उस ने दुपट्टे से अपनी नाक और मुंह ढकना शुरू किया.

इधर मेरे घर वाले बहुत परेशान थे. मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती थी मगर सपना ही वीडियो कॉल करकर के पूरे हालातों का विवरण देती रहती. मेरी बात करवाती. खानपान के जरिए जो भी उपाय कर रही होती उस की जानकारी उन्हें देती. मां भी उसे समझाती कि और क्या किया जा सकता है.

इधर पापा लगातार इस कोशिश में थे कि मेरे लिए अस्पताल के बेड और एंबुलेंस का इंतजाम हो जाए. इस के लिए दिन भर फोन घनघनाते रहते. मगर इस पहाड़ी इलाके में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी. आसपास कोई अच्छा अस्पताल भी नहीं था. इन परिस्थितियों में मैं और मेरे घरवाले सपना की सेवा भावना और केयरिंग नेचर देख कर दंग थे. मम्मी तो उस की तारीफ करती नहीं थकतीं.

मैं भी सोचता कि वह नहीं होती तो मैं खुद को कैसे संभालता. इस बीच मेरा कोरोना टेस्ट हुआ और रिपोर्ट नेगेटिव आई.

सब की जान में जान आ गई. सपना की मेहनत रंग लाई और दोचार दिनों में मैं ठीक भी हो गया.

एकं दिन वह दोपहर तक नहीं आई. उस दिन मेरे लिए समय बिताना कठिन होने लगा. उस की बातें रहरह कर याद आ रही थीं. मुझे उस की आदत सी हो गई थी. शाम को वह आई मगर काफी बुझीबुझी सी थी.

“क्या हुआ सपना ? सब ठीक तो है ? मैं ने पूछा तो वह रोने लगी.

“जी मैं घर में अकेली हूं न. कल शाम दो गुंडे घर के आसपास घूम रहे थे. मुझे छेड़ने भी लगे. बड़ी मुश्किल से जान छुड़ा कर घर में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया. सुबह में भी वह आसपास ही घूमते नजर आए. तभी मैं घर से नहीं निकली.”

“यह तो बहुत गलत है. तुम ने आसपास वालों को नहीं बताया ?”

“जी हमारे घर दूरदूर बने हुए हैं. बगल वाले घर में काका रहते हैं पर अभी बीमार हैं. इसलिए मैं ने जानबूझ कर नहीं बताया. मुझे तो अब घर जाने में भी डर लग रहा है. वैसे भी गुंडों से कौन दुश्मनी मोल ले.”

“तुम घबराओ नहीं. अगर आज रात भी वे गुंडे तुम्हें परेशान करें तो कल सुबह अपने जरूरी सामान ले कर यहीं चली आना. अभी कोई है भी नहीं रिसॉर्ट में. तुम यहीं रह जाना. रिसॉर्ट के मालिक ने कुछ कहा तो मैं बात कर लूंगा उस से.”

“जी आप बहुत अच्छे हैं. उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे. अगले दिन सुबह ही वह कुछ सामानों के साथ रिसॉर्ट आ गई. वह काफी डरी हुई थी. आंखों से आंसू बह रहे थे.

“जी अब मैं घर में अकेली नहीं रहूंगी. कल भी गुंडे आ कर मुझे परेशान कर रहे थे. मैं सामान ले आई हूं.”

“यह तुम ने ठीक किया सपना. तुम यहीं रहो. यहां सुरक्षित रहोगी तुम.” मैं ने भरोसा दिलाते हुए अपना हाथ उस के हाथों पर रखा.

उस के हाथों के स्पर्श से मेरे अंदर एक सिहरन सी हुई. मैं ने जल्दी से हाथ हटा लिया. मेरी नजरों में शायद उस ने सब कुछ भांप लिया. उस के चेहरे पर शर्म की हल्की सी लाली बिखर गई.

उस दिन उस ने रिसॉर्ट के किचन में ही खाना बनाया.

मेरे लिए थाली सजा कर वह अलग खड़ी हो गई तो मैं ने सहज ही उस से कहा, “तुम भी खाओ न मेरे साथ.”

“जी अच्छा.”उस ने अपनी थाली भी लगा ली.

खाने के बाद भी बहुत देर तक हम बातें करते रहे. उस की सुलझी हुई और सरल बातें मेरे दिल को छू रही थीं. उस के अंदर कोई बनावटीपन नहीं था. मैं उसे बहुत पसंद करने लगा था.

मेरे जज्बात शायद उसे भी समझ आने लगे थे. एक दिन रात में बड़ी सहजता से उस ने मेरे आगे समर्पण कर दिया. मैं भी खुद को रोक नहीं सका. पल भर में वह मेरी जिंदगी का सब से जरूरी हिस्सा बन गई. धीरेधीरे सारी ऊंचनीच और भेदभाव की सीमा से परे हम दोनों दो जिस्म एक जान बन गए थे. लॉक डाउन के उन दिनों ने अनायास ही मुझे मेरे जीवनसाथी से मिला दिया था और अब मुझे यह स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं थी.

यह बात मैं ने अपने पैरंट्स के आगे रखी तो उन्होंने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया.

मम्मी ने बड़ी सहजता से कहा,” जब सोच लिया है तो शादी भी कर लो बेटा. पता नहीं लौकडाउन कब खुले. जब यहां आओगे तो तुम्हारा रिसेप्शन धूमधाम से करेंगे. मगर देखो शादी ऑनलाइन रह कर ही करना.”

सपना यह सब बातें सुन कर बहुत शरमा गई. अगले दिन ही हम ने शादी करने का फैसला कर लिया. सपना ने कहा कि वह अपने परिचित काका को ले कर आएगी जो गांव में शादियां कराते हैं. साथ ही अपने मुंहबोले भाई को भी लाएगी जो कुछ दूर रहता है. हम ने सारी प्लानिंग कर ली थी. वह अपनी मां की शादी के समय के गहने और कपड़े पहन कर आने वाली थी. मैं ने भी अपना सफारी सूट निकाल लिया. अगले दिन हमारी शादी थी. हम ने रिसॉर्ट में रखे सामानों का उपयोग शादी की सजावट के लिए कर लिया. रिजोर्ट का एक बड़ा हिस्सा सपना और मैं ने मिल कर सजा दिया था.

अगले दिन सपना अपने घर से सजसंवर कर काका और भाई साथ आई. वह जानबूझ कर घूंघट लगा कर खड़ी हो गई. मैं ने घूंघट हटाया तो देखता ही रह गया. सुंदर कपड़ों और गहनों में वह इतनी खूबसूरत लग रही थी जैसे कोई परी उतर आई हो.

हम ने मेरे मम्मीपापा और परिवार वालों की मौजूदगी में ऑनलाइन शादी कर ली. अब बारी आई शादी की तस्वीरें लेने की. सपना के भाई ने रिसॉर्ट के खास हिस्सों में बड़ी खूबसूरती से तस्वीरें ली. अलगअलग एंगल से ली गई इन तस्वीरों को देख कर एक शानदार शादी का अहसास हो रहा था. रिसॉर्ट किसी फाइव स्टार होटल का फील दे रहा था.

हम ने तस्वीरें घरवालों और रिश्तेदारों को फॉरवर्ड कीं तो सब पूछने लगे कि कौन से होटल में इतनी शानदार शादी रचाई और वह भी लौकडाउन में.

हमारी शादी को 3 महीने बीत चुके हैं. आज हमारा रिसेप्शन हो रहा है. सारे रिश्तेदार इकट्ठे हैं. रिसेप्शन पूरे धूमधाम के साथ संपन्न हो रहा है. खानेपीने का शानदार इंतजाम है. इस भीड़ और तामझाम के बीच मुझे अपनी शादी का दिन बहुत याद आ रहा है कि कैसे केवल 2 लोगों की उपस्थिति में हम ने उम्रभर का रिश्ता जोड़ लिया था.

एक ही आग में : क्या एक विधवा का किसी से संबंध रखना है गुनाह

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं सुगंधा?’’ मीना ने जब यह बात कही, तब सुगंधा बोली, ‘‘क्या सुन रही हो मीना?’’

‘‘तुम्हारा पवन के साथ संबंध है…’’

‘‘हां है.’’

‘‘यह जानते हुए भी कि तुम विधवा हो और एक विधवा किसी से संबंध नहीं रख सकती,’’ मीना ने समझाते हुए कहा. पलभर रुक कर वह फिर बोली, ‘‘फिर तू 58 साल की हो गई है.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ सुगंधा ने कहा, ‘‘औरत बूढ़ी हो जाती है तब उस की इच्छा नहीं जागती क्या? तू भी तो

55-56 साल के आसपास है. तेरी भी इच्छा जब होती होगी तो क्या भाई साहब के साथ हमबिस्तर नहीं होती होगी?’’

मीना कोई जवाब नहीं दे पाई. सुगंधा ने जोकुछ कहा सच कहा है. वह भी तो इस उम्र में हमबिस्तर होती है, फिर सुगंधा विधवा है तो क्या हुआ? आखिर औरत का दिल ही तो है. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

तब सुगंधा बोली, ‘‘जवाब नहीं दिया तू ने?’’

‘‘तू ने जो कहा सच कहा है,’’ मीना अपनी रजामंदी देते हुए बोली.

‘‘औरत अगर विधवा है तो उस के साथ यह सामाजिक बंधन क्यों?’’ उलटा सुगंधा ने सवाल पूछते हुए कहा. तब मीना पलभर के लिए कोई जवाब नहीं दे पाई.

सुगंधा बोली, ‘‘अगर किसी की पत्नी गुजर जाती है तो वह इधरउधर मुंह मारता फिरे, तब यह समाज उसे कुछ न कहे, क्योंकि वह मर्द है. मगर औरत किसी के साथ संबंध बनाए, तब वह गुनाह हो जाता है.’’

‘‘तो फिर तू पवन के साथ शादी क्यों नहीं कर लेती?’’ मीना ने सवाल किया.

‘‘आजकल लिव इन रिलेशनशिप का जमाना है,’’ सुगंधा बोली, ‘‘क्या दोस्त बन कर नहीं रह सकते हैं?’’

‘‘ठीक है, ठीक है, तेरी मरजी जो आए वह कर. मैं ने जो सुना था कह दिया,’’ नाराज हो कर मीना बोली, ‘‘मगर तू 3 बच्चों की मां है. वे सुनेंगे तब उन पर क्या गुजरेगी, यह सोचा है?’’

‘‘हां, सब सोच लिया है. क्या बच्चे नहीं जानते हैं कि मां के दिल में भी एक दिल छिपा हुआ है. उस की इच्छा जागती होगी,’’ समझाते हुए सुगंधा बोली, ‘‘देखो मीना, इस बारे में मत सोचो. तुम अपनी लगी प्यास भाई साहब से बुझा लेती हो. काश, ऐसा न हो, मगर तुम मुझ जैसी अकेली होती तो तुम भी वही सबकुछ करती जो आज मैं कर रही हूं. समाज के डर से अगर नहीं भी करती तो तेरे भीतर एक आग उठती जो जला कर तुझे भीतर ही भीतर भस्म करती.’’

‘‘ठीक है बाबा, अब इस बारे में तुझ से कुछ नहीं पूछूंगी. तेरी मरजी जो आए वह कर,’’ कह कर मीना चली गई.

मीना ने जोकुछ सुगंधा के बारे में कहा है, सच है. सुगंधा पवन के साथ संबंध बना लेती है. यह भी सही है कि सुगंधा 3 बच्चों की मां है. उस ने तीनों की शादी कर गृहस्थी भी बसा दी है. सब से बड़ी बेटी शीला है, जिस की शादी कोटा में हुई है. सुगंधा के दोनों बेटे सरकारी नौकरी में हैं. एक सागर में इंजीनियर है तो दूसरा कटनी में तहसीलदार.

सुगंधा खुद अपने पुश्तैनी शहर जावरा में अकेली रहती है. अकेले रहने के पीछे यही वजह है कि मकान किराए पर दे रखा है.

सुगंधा के दोनों बेटे कहते हैं कि अम्मां अकेली मत रहो. हमारे साथ आ कर रहो, तब वह कभीकभी उन के पास चली जाती है. महीने दो महीने तक जिस बेटे के पास रहना होता है रह लेती है. मगर रहतेरहते यह एहसास हो जाता है कि उस के रहने से वहां उन की आजादी में बाधा आ रही है, तब वह वापस पुश्तैनी शहर में आ जाती है.

यहां बड़ा सा मकान है सुगंधा का, जिस के 2 हिस्से किराए पर दे रखे हैं, एक हिस्से में वह खुद रहती है. पति की पैंशन भी मिलती है. उस के पति शैलेंद्र तहसील दफ्तर में बड़े बाबू थे. रिटायरमैंट के सालभर के भीतर उन का दिल की धड़कन रुकने से देहांत हो गया.

आज 3 साल से ज्यादा समय बीत गया है, तब से वह खुद को अकेली महसूस कर रही है. अभी उस के हाथपैर चल रहे हैं. सामाजिक जिम्मेदारी भी वह निभाती है. जब हाथपैर चलने बंद होंगे, तब वह अपने बेटों के यहां रहने चली जाएगी. फिर किराएदारों से किराया भी समय पर वसूलना पड़ता है. इसलिए उस का यहां रहना भी जरूरी है.

ज्यादातर सुगंधा अकेली रहती है, मगर जब गरमी की छुट्टियां होती हैं तो बेटीबेटों के बच्चे आ जाते है. पूरा सूना घर कोलाहल से भर जाता है. अकेले में दिन तो बीत जाता है, मगर रात में घर खाने को दौड़ता है. तब बेचैनी और बढ़ जाती है. तब आंखों से नींद गायब हो जाती है. ऐसे में शैलेंद्र के साथ गुजारी रातें उस के सामने चलचित्र की तरह आ जाते हैं. मगर जब से वह विधवा हुई है, शैलेंद्र की याद और उन के साथ बिताए गए पल उसे सोने नहीं देते.

पवन सुगंधा का किराएदार है. वह अकेला रहता है. वह पौलीटैक्निक में सिविल मेकैनिक पद पर है. उस की उम्र 56 साल के आसपास है. उस की पत्नी गुजर गई है. वह अकेला ही रहता है. उस के दोनों बेटे सरकारी नौकरी करते हैं और उज्जैन में रहते हैं. दोनों की शादी कर के उन का घर बसा दिया है.

रिटायरमैंट में 6 साल बचे हैं. वह किराए का मकान तलाशने आया था. धीरेधीरे दोनों के बीच खिंचाव बढ़ने लगा. जिस दिन चपरासी रोटी बनाने नहीं आता, उस दिन सुगंधा पवन को अपने यहां बुला लेती थी या खुद ही वहां बनाने चली जाती थी.

पवन ऊपर रहता था. सीढि़यां सुगंधा के कमरे के गलियारे से ही जाती थीं. आनेजाने के बीच कई बार उन की नजरें मिलती थीं. जब सुगंधा उसे अपने यहां रोटी खाने बुलाती थी, तब कई बार जान कर आंचल गिरा देती थी. ब्लाउज से जब उभार दिखते थे तब पवन देर तक देखता रहता था. वह आंचल से नहीं ढकती थी.

अब सुगंधा 58 साल की विधवा है, मगर फिर भी टैलीविजन पर अनचाहे सीन देखती है. उस के भीतर भी जोश पैदा होता है. जोश कभीकभी इतना ज्यादा हो जाता है कि वह छटपटा कर रह जाती है.

एक दिन सुगंधा ने पवन को अपने यहां खाना खाने के लिए बुलाया. उसे खाना परोस रही थी और कामुक निगाहों से देखती भी जा रही थी. वह आंचल भी बारबार गिराती जा रही थी. मगर पवन संकेत नहीं समझ पा रहा था. वह उम्र में उस से बड़ी भी थी. उस की आंखों पर लाज का परदा पड़ा हुआ था.

सुगंधा ने पहल करते हुए पूछ लिया, ‘‘पवन, अकेले रहते हो. बीवी है नहीं, फिर भी रात कैसे गुजारते हो?’’

पवन कोई जवाब नहीं दे पाया. एक विधवा बूढ़ी औरत ने उस से यह सवाल पूछ कर उस के भीतर हलचल मचा दी. जब वह बहुत देर तक इस का जवाब नहीं दे पाया, तब सुगंधा फिर बोली, ‘‘आप ने जवाब नहीं दिया?’’

‘‘तकिया ले कर तड़पता रहता हूं,’’ पवन ने मजाक के अंदाज में कहा.

‘‘बीवी की कमी पूरी हो सकती है,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन हैरान रह गया, ‘‘आप क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘मैं हूं न आप के लिए,’’ इतना

कह कर सुगंधा ने कामुक निगाहों से पवन की तरफ देखा.

‘‘आप उम्र में मुझ से बड़ी हैं.’’

‘‘बड़ी हुई तो क्या हुआ? एक औरत का दिल भी है मेरे पास.’’

‘‘ठीक है, आप खुद कह रही हैं तो मुझे कोई एतराज नहीं.’’

इस के बाद तो वे एकदूसरे के बैडरूम में जाने लगे. जल्दी ही उन के संबंधों को ले कर शक होने लगा. मगर आज मीना ने उन के संबंधों को ले कर जो बात कही, उसे साफसाफ कह कर सुगंधा ने अपने मन की सारी हालत बता दी. मगर एक विधवा हो कर वह जो काम कर रही है, क्या उसे शोभा देता है? समाज को पता चलेगा तब सब उस की बुराई करेंगे. उस पर ताने कसेंगे.

मीना ने तो सुगंधा के सामने पवन से शादी करने का प्रस्ताव रखा. उस का प्रस्ताव तो अच्छा है, शादी समाज का एक लाइसैंस है. दोनों के भीतर एक ही आग सुलग रही है.

मगर इस उम्र में शादी करेंगे तो मजाक नहीं उड़ेगा. अगर इस तरह से संबंध रखेंगे तब भी तो मजाक ही बनेगा.

सुगंधा बड़ी दुविधा में फंस गई. उस ने आगे बढ़ कर संबंध बनाए थे. इस से अच्छा है कि शादी कर लो. थोड़े दिन लोग बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. उस ने ऐसे कई लोग देखे हैं जो इस उम्र में जा कर शादी भी करते हैं. क्यों न पवन से बात कर के शादी कर ले?

‘‘अरे सुगंधा, आप कहां खो गईं?’’ पवन ने आ कर जब यह बात कही, तब सुगंधा पुरानी यादों से आज में लौटी, ‘‘लगता है, बहुत गहरे विचारों में खो गई थीं?’’

‘‘हां पवन, मैं यादों में खो गई थी.’’

‘‘लगता है, पुरानी यादों से तुम परेशानी महसूस कर रही हो.’’

‘‘हां, सही कहा आप ने.’’

‘‘देखो सुगंधा, यादों को भूल जाओ वरना ये जीने नहीं देंगे.’’

‘‘कैसे भूल जाऊं पवन, आप से आगे रह कर जो संबंध बनाए… मैं ने अच्छा नहीं किया,’’ अपनी उदासी छिपाते हुए सुगंधा बोली. फिर पलभर रुक कर वह बोली, ‘‘लोग हम पर उंगली उठाएंगे, उस के पहले हमें फैसला कर लेना चाहिए.’’

‘‘फैसला… कौन सा फैसला सुगंधा?’’ पवन ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘हमारे बीच जो संबंध है, उसे तोड़ दें या परमानैंट बना लें.’’

‘‘मैं आप का मतलब नहीं समझा?’’

‘‘मतलब यह कि या तो आप मकान खाली कर के कहीं चले जाएं या फिर हम शादी कर लें.’’

सुगंधा ने जब यह प्रस्ताव रखा, तब पवन भीतर ही भीतर खुश हो गया. मगर यह संबंध कैसे होगा. वह बोला, ‘‘हम शादी कर लें, यह बात तो ठीक है सुगंधा. मगर आप की और हमारी औलादें सब घरगृहस्थी वाली हो गई हैं. ऐसे में शादी का फैसला…’’

‘‘नहीं हो सकता है, यही कहना चाहते हो न,’’ पवन को रुकते देख सुगंधा बोली, ‘‘मगर, यह क्यों नहीं सोचते कि हमारी औलादें अपनेअपने घर में बिजी हैं. अगर हम शादी कर लेंगे, तब वे हमारी चिंता से मुक्त हो जाएंगे. जवानी तो मौजमस्ती और बच्चे पैदा करने की होती है. मगर जब पतिपत्नी बूढ़े हो जाते हैं, तब उन्हें एकदूसरे की ज्यादा जरूरत होती है. आज हमें एकदूसरे की जरूरत है. आप इस बात को क्यों नहीं समझते हो?’’

‘‘आप ने ठीक सोचा है सुगंधा. मेरी पत्नी गुजर जाने के बाद मुझे अकेलापन खूब खलने लगा. मगर जब से आप मेरी जिंदगी में आई हैं, मेरा वह अकेलापन दूर हो गया है.’’

‘‘सच कहते हो. मुझे भी अपने पति की रात को अकेले में खूब याद आती है,’’ सुगंधा ने भी अपना दर्द उगला.

‘‘मतलब यह है कि हम दोनों एक ही आग में सुलग रहे हैं. अब हमें शादी किस तरह करनी चाहिए, इस पर सोचना चाहिए.’’

‘‘आप शादी के लिए राजी हो गए?’’ बहुत सालों के बाद सुगंधा के चेहरे पर खुशी झलकी थी. वह आगे बोली, ‘‘शादी किस तरह करनी है, यह सब मैं ने सोच लिया है.’’

‘‘क्या सोचा है सुगंधा?’’

‘‘अदालत में गुपचुप तरीके से खास दोस्तों की मौजूदगी में शादी करेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मगर, इस की हवा किसी को भी नहीं लगनी चाहिए. यहां तक कि अपने बच्चों को भी नहीं.’’

‘‘मगर, बच्चों को तो बताना ही पड़ेगा,’’ पवन ने कहा, ‘‘जब हमारे हाथपैर नहीं चलेंगे, तब वे ही संभालेंगे.’’

‘‘शादी के बाद एक पार्टी देंगे. जिस का इंतजाम हमारे बच्चे करेंगे,’’ जब सुगंधा ने यह बात कही, तब पवन भी सहमत हो गया.

इस के ठीक एक महीने बाद कुछ खास दोस्तों के बीच अदालत में शादी कर के वे जीवनसाथी बन गए. सारा महल्ला हैरान था. उन्होंने अपनी शादी की जरा भी हवा न लगने दी थी. 2 बूढ़ों की अनोखी शादी पर लोगों ने उन की खिल्ली उड़ाई. मगर उन्होंने इस की जरा भी परवाह नहीं की.

कोई खुश हो या न हो, मगर उन की औलादें इस शादी से खुश थीं, क्योंकि उन्हें मातापिता की नई जोड़ी जो मिल गई थी.

खाली हाथ : जातिवाद के चलते जब प्रेमी अनुरोध पहुंचा पागलखाने

आगरापूरी दुनिया में ‘ताजमहल के शहर’ के नाम से मशहूर है. इसी शहर में स्थित है मानसिक रोगियों के उपचार के लिए मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय. इस संस्थान को कई भारतीय हिंदी फिल्मों में प्रमुखता से दिखाया गया है, हालांकि सच्चाई यह है कि न जाने कितनी भयानक और दुखद कहानियां दफन हैं इस की दीवारों में. आरोही को इस संस्थान में आए 2 महीने ही हुए थे. वह मनोचिकित्सक थी. इस के पहले वह कई निजी अस्पतालों में काम कर चुकी थी. अपनी काबिलीयत और मेहनत के बल पर उस का चयन सरकारी अस्पताल में हो गया था. उस से ज्यादा उस का परिवार इस बात से बहुत खुश था. वैसे भी भारत में आज भी खासकर मध्य वर्ग में सरकारी नौकरी को सफलता का सर्टिफिकेट माना जाता है. आरोही अपना खुद का नर्सिंगहोम खोलना चाहती थी. इस के लिए सरकारी संस्थान का अनुभव होना फायदेमंद रहता है. इसी वजह से वह अपनी मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर यहां आ गई थी.

वैसे आरोही के घर से दूर आने की एक वजह और भी थी. वह विवाह नहीं करना चाहती थी और यह बात उस का परिवार समझने को तैयार नहीं था. यहां आने के बाद भी रोज उस की मां लड़कों की नई लिस्ट सुनाने के लिए फोन कर देती थीं. जब आरोही विवाह करना चाहती थी तब तो जातबिरादरी की दीवार खड़ी कर दी गई थी और अब जब उस ने जीवन के 35 वसंत देख लिए और उस के छोटे भाई ने विधर्मी लड़की से विवाह कर लिया तो वही लोग उसे किसी से भी विवाह कर लेने की आजादी दे रहे हैं. समय के साथ लोगों की प्राथमिकता भी बदल जाती है. आरोही उन्हें कैसे समझाती कि-

‘सूखे फूलों से खुशबू नहीं आती, किताबों में बंद याद बन रह जाते हैं’ या ‘नींद खुलने पर सपने भी भाप बन उड़ जाते हैं.’

‘‘मैडम,’’

‘‘अरे लता, आओ.’’

‘‘आप कुछ कर रही हैं तो मैं बाद में आ जाती हूं.’’

आरोही ने तुरंत अपनी डायरी बंद कर दी और बोली, ‘‘नहींनहीं कुछ नहीं. तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘216 नंबर बहुत देर से रो रहा है. किसी की भी बात नहीं सुन रहा. आज सिस्टर तबस्सुम भी छुट्टी पर हैं इसलिए…’’

‘‘216 नंबर… यह कैसा नाम है?’’

‘‘वह… मेरा मतलब है बैड नंबर 216.’’

‘‘अच्छा… चलो देखती हूं.’’

चलतेचलते ही आरोही ने जानकारी के लिए पूछ लिया, ‘‘कौन है?’’

‘‘एक प्रोफैसर हैं. बहुत ही प्यारी कविताएं सुनाते हैं. बातें भी कविताओं में ही करते हैं. वैसे तो बहुत शांत हैं, परेशान भी ज्यादा नहीं करते हैं, पर कभीकभी ऐसे ही रोने लगते हैं.’’

‘‘सुनने में तो बहुत इंटरैस्टिंग कैरेक्टर लग रहे हैं.’’

कमरे में दाखिल होते ही आरोही ने देखा कोई 35-40 वर्ष का पुरुष बिस्तर पर अधलेटा रोए जा रहा था.

‘‘सुनो तुम…’’

‘‘आप रुकिए मैडम, मैं बोलती हूं…’’

‘‘हां ठीक है… तुम बोलो.’’

‘‘अनुरोध… रोना बंद करो. देखो मैडम तुम से मिलने आई हैं.’’

इस नाम के उच्चारण मात्र से आरोही परेशान हो गई थी. मगर जब वह पलटा तो सफेद काली और घनी दाढ़ी के बीच भी आरोही ने अनुरोध को पहचान लिया. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह चेतनाशून्य हो कर वहीं गिर गई. होश आने पर वह अपने क्वार्टर में थी. उस के आसपास हौस्पिटल का स्टाफ खड़ा था. सीनियर डाक्टर भी थे.

‘‘तुम्हें क्या हो गया था आरोही?’’ डाक्टर रमा ने पूछा.

‘‘अब कैसा फील कर रही हो?’’ डाक्टर सुधीर के स्वर में भी चिंता झलक रही थी.

‘‘हां मैडम, मैं तो डर ही गई थी… आप को बेहोश होता देख वह पेशैंट भी अचानक चुप हो गया था.’’

‘‘मुझे माफ करना लता और आप सब भी, मेरी वजह से परेशान हो गए…’’

‘‘डोंट बी सिली आरोही. तुम अब

आराम करो हम सब बाद में आते हैं,’’ डाक्टर सुधीर बोले.

‘‘जी मैडम, और किसी चीज की जरूरत हो तो आप फोन कर देना.’’

उन के जाने बाद आरोही ने जितना सोने की कोशिश की उतना ही वह समय उस के सामने जीवंत हो गया, जब आरोही और अनुरोध साथ थे. आरोही और अनुरोध बचपन से साथ थे. स्कूल से कालेज का सफर दोनों ने साथ तय किया था. कालेज में भी उन का विषय एक था- मनोविज्ञान. इस दौरान उन्हें कब एकदूसरे से प्रेम हो गया, यह वे स्वयं नहीं समझ पाए थे. घंटों बैठ कर भविष्य के सपने देखा करते थे. देशविदेश पर चर्चा करते थे. समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने की बात करते थे. मगर जब स्वयं के लिए लड़ने का समय आया, सामाजिक आडंबर के सामने उन का प्यार हार गया. एक दलित जाति का युवक ब्राह्मण की बेटी से विवाह का सपना भी कैसे देख सकता था. अपने प्रेम के लिए लड़ नहीं पाए थे दोनों और अलग हो गए थे.

आरोही ने तो विवाह नहीं किया, परंतु 4-5 साल के बाद अनुरोध के विवाह की खबर उस ने सुनी थी. उस विवाह की चर्चा भी खूब चली थी उस के घर में. सब ने चाहा था कि आरोही को भी शादी के लिए राजी कर लिया जाए, परंतु वे सफल नहीं हो पाए थे. आज इतने सालों बाद अनुरोध को इस रूप में देख कर स्तब्ध रह गई थी वह. अगले दिन सुबह ही वह दोबारा अनुरोध से मिलने उस के कमरे में गई.

आज अनुरोध शांत था और कुछ लिख भी रहा था. हौस्पिटल की तरफ से उस की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे लिखने के लिए कागज और कलम दे दी गई थी. आज उस के चेहरे से दाढ़ी भी गायब थी और बाल भी छोटे हो गए थे.

‘‘अनु,’’ आरोही ने जानबूझ कर उसे उस नाम से पुकारा जिस नाम से उसे बुलाया करती थी. उसे लगा शायद अनुरोध उसे पहचान ले.

उस ने एक नजर उठा कर आरोही को देखा और फिर वापस अपने काम में लग गया. पलभर को उन की नजरें मिली अवश्य थीं पर उन नजरों में अपने लिए अपरिचित भाव देख कर तड़प गई थी आरोही, मगर उस ने दोबारा कोशिश की, ‘‘क्या लिख रहे हो तुम?’’

उस की तरफ बिना देखे ही वह बोला-

‘सपने टूट जाते हैं, तुम सपनों में आया न करो, मुझे भूल जाओ और मुझे भी याद आया न करो.’

अनुरोध की दयनीय दशा और उस की अपरिचित नजरों को और नहीं झेल पाई आरोही और थोड़ा चैक करने के बाद कमरे से बाहर निकल गई. मगर वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और बाहर आते ही रो पड़ी. अचानक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘आप अनुरोध को जानती हैं मैडम?’’

पीछे पलटने पर आरोही ने पहली बार देखा सिस्टर तबस्सुम को, जिन के बारे में वह पहले सुन चुकी थी. वे इकलौती थीं जिन की बात अनुरोध मानता भी था और उन से ढेर सारी बातें भी करता था. कई सालों से वह सिस्टर तबस्सुम से काफी हिलमिल गया था.

‘‘मैं… मैं और अनुरोध…’’

‘‘शायद आप वही परी हैं जिस का इंतजार यह पगला पिछले कई सालों से कर रहा है. पिछले कई सालों में आज पहली बार मुसकराते हुए देखा मैं ने अनुरोध को. चलिए मैडम आप के कैबिन में चल कर बात करते हैं.’’

दोनों कैबिन में आ गईं. तबस्सुम का अनुरोध के प्रति अनुराग आरोही देख पा रही थी.

‘‘अनुरोध… ऐसा नहीं था. उस की ऐसी हालत कैसे हुई? क्या आप को कुछ पता है?’’ सिर हिला कर सिस्टर ने अनुरोध की दारुण कहानी शुरू की…

‘‘अनुरोध का चयन मेरठ के कालेज में मनोविज्ञान के व्याख्याता के पद पर हुआ था. इसी दौरान वह एक शादी में हिस्सा लेने मोदी नगर गया था, परंतु उसे यह नहीं पता था कि वह शादी स्वयं उसी की थी.

‘‘उस के मातापिता ने उस के लगातार मना करने से तंग आ कर उस का विवाह उस की जानकारी के बिना ही तय कर दिया था. शादी में बहुत कम लोगों को ही बुलाया गया था. मोदी नगर पहुंचने पर उस के पास विवाह करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने मातापिता के किए की सजा वह एक मासूम लड़की को नहीं दे सकता था और उस का विवाह विनोदिनी से हो गया.

‘‘विवाह के कुछ महीनों बाद ही विनोदिनी ने पढ़ाई के प्रति अपने लगाव को अनुरोध के सामने व्यक्त किया. अनुरोध सदा से स्त्री शिक्षा तथा स्त्री सशक्तीकरण का प्रबल समर्थक रहा था. खासकर उस के समुदाय में तो स्त्री शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय थी. इसीलिए जब उस ने अपनी पत्नी के शिक्षा के प्रति लगाव को देखा तो अभिभूत हो गया.

‘‘विनोदिनी कुशाग्रबुद्धि तो नहीं थी, परंतु परिश्रमी अवश्य थी और उस की इच्छाशक्ति भी प्रबल थी. उस के मातापिता बहू की पढ़ाई के पक्षधर नहीं थे. विनोदिनी के मातापिता भी उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे, परंतु सब के खिलाफ जा कर अनुरोध ने उस का दाखिला अपने ही कालेज के इतिहास विभाग में करा दिया. विनोदिनी को हर तरह का सहयोग दे रहा था अनुरोध.

‘‘शादी के 1 साल बाद ही अनुरोध की मां ने विनोदिनी पर बच्चे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, परंतु यहां भी अनुरोध अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहा. जब तक विनोदिनी की ग्रैजुएशन पूरी नहीं हुई, उन्होंने बच्चे के बारे में सोचा तक नहीं.

‘‘विनोदिनी प्रथम श्रेणी में पास हुई और उस के बाद उस ने पीसीएस में बैठने की अपनी इच्छा अनुरोध को बताई. उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था. अनुरोध ने उस का दाखिला शहर के एक बड़े कोचिंग सैंटर में करा दिया. घर वालों का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था. पहले 2 प्रयास में सफल नहीं हो पाई थी विनोदिनी.

‘‘मगर अनुरोध उसे सदा प्रोत्साहित करता रहता. इसी दौरान विनोदिनी 1 बेटे की मां भी बन गई. परंतु बच्चे को दूध पिलाने के अलावा बच्चे के सारे काम अनुरोध स्वयं करता था. घर के काम और जब वह कालेज जाता था तब बच्चे को संभालने के लिए उस ने एक आया रख ली थी. कभीकभी उस की मां भी गांव से आ जाती थीं. बेटे के इस फैसले से सहमत तो वे भी नहीं थीं, परंतु पोते से उन्हें बहुत लगाव था.

‘‘चौथे प्रयास के दौरान तो विनोदिनी को जमीन पर पैर तक रखने नहीं दिया था अनुरोध ने. अनुरोध की तपस्या विफल नहीं हुई थी. विनोदिनी का चयन पीसीएस में डीएसपी के पद पर हो गया था. वह ट्रेनिंग के लिए मुरादाबाद चली गई. उस समय उन का बेटा अमन मात्र 4 साल का था.

‘‘अनरोध ने आर्थिक और मानसिक दोनों तरह से अपना सहयोग विनोदिनी को दिया. लोगों की बातों से न स्वयं आहत हुआ और न अपनी पत्नी को होने दिया. उस ने विनोदिनी के लिए वह किया जो उस के स्वयं के मातापिता नहीं कर पाए. सही मानों में फैमिनिस्ट था अनुरोध. स्त्रीपुरुष के समान अधिकारों का प्रबल समर्थक.

‘‘जब विनोदिनी की पहली पोस्टिंग अलीगढ़ हुई तो लगा कि उस की समस्याओं का अंत हुआ. अब दोनों साथ रह कर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ेंगे, परंतु वह अंत नहीं आरंभ था अनुरोध की अंतहीन पीड़ा का.

‘‘विनोदिनी के जाने के बाद अनुरोध अपना तबादला अलीगढ़ कराने में लग गया. अमन को भी वह अपने साथ ही ले गई थी. अनुरोध को भी यही सही लगा था कि बच्चा अब कुछ दिन मां के साथ रहे और फिर उस का तबादला भी 6 महीने में अलीगढ़ होने ही वाला था. सबकुछ तय कर रखा था उस ने परंतु नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था उस के लिए.

‘‘विनोदिनी का व्यवहार समय के साथ बदलता चला गया. पद के घमंड में अब वह अनुरोध का अपमान भी करने लग गई थी. उस ने तो मेरठ आना बंद ही कर दिया था, इसलिए अनुरोध को अपने बेटे से मिलने अलीगढ़ जाना पड़ता था. विनोदिनी के कटु व्यवहार का तो वह सामना कर लेता था, परंतु इस बात ने उसे विचलित कर दिया था कि उन के बीच के झगड़े का विपरीत असर उन के बेटे पर हो रहा था.

अब वह शीघ्र ही मेरठ छोड़ना चाहता था. डेढ़ साल बीत गया था, पर उस का तबादला नहीं हो पा रहा था.

‘‘‘प्रिंसिपल साहब, आखिर यह हो क्या रहा है? 6 महीनों में आने वाली मेरी पोस्टिंग, डेढ़ साल में नहीं आई. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?’

‘‘‘अनुरोध तुम्हें तो पता है सरकारी काम में देर हो ही जाती है.’

‘‘‘जी सर… पर इतनी देर नहीं. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे आप जानबूझ कर ऐसा नहीं होने दे रहे?’

‘‘‘अनुरोध…’

‘‘‘आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं सर? क्या हमारा रिश्ता आज का है?’

‘‘‘अनुरोध… कोई है जो जानबूझ कर तुम्हारी पोस्टिंग रोक रहा है.’

‘‘‘कौन?’

‘‘‘तुम्हें तो मैं बहुत समझदार समझता था, जानबूझ कर कब तक आंखें बंद रखोगे?’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘गिरिराज सिंह और विनोदिनी…’

‘‘‘प्रिंसिपल साहब…’ चीख पड़ा अनुरोध.

‘‘अनुरोध के कंधे पर हाथ रख कर प्रिंसिपल साहब बोले,…

‘बेटा, विश्वास करना अच्छी बात है, परंतु अंधविश्वास मूर्खता है. अपनी नींद से जागो.’

‘‘विनोदिनी के बारे में ऐसी बातें अनुरोध ने पहली बार नहीं सुनी थीं, परंतु वह ऐसी सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करता था. उसे लगता था कि विनोदिनी बददिमाग, बदतमीज और घमंडी हो सकती है परंतु चरित्रहीन नहीं.

‘‘2 महीने की छुट्टी ले कर जिस दिन वह अलीगढ़ पहुंचा, घर पर ताला लगा था. वहां पर तैनात सिपाही से पता चला कि मैडम नैनीताल घूमने गई हैं. मगर विनोदिनी ने अनुरोध को इस बारे में कुछ नहीं बताया था.

‘‘7 दिन बाद लौटी थी विनोदिनी परंतु अकेले नहीं, उस के साथ गिरिराज सिंह भी था.

‘‘‘कैसा रहा आप का टूर मैडम?’

‘‘‘उसे देख कर दोनों न चौंके न ही शर्मिंदा हुए. बड़ी बेशर्मी से वह आदमी सामने रखे सोफे पर ऐसे बैठ गया जैसे यह उस का ही घर हो.’

‘‘‘तुम कब आए?’

‘‘विनोदिनी की बात अनसुनी कर अनुरोध गिरिराज सिंह से बोला, ‘मुझे अपनी पत्नी से कुछ बात करनी है. आप इसी वक्त यहां से चले जाएं.’

‘‘‘यह कहीं नहीं जाएगा…’

‘‘‘विनोदिनी चुप रहो…’

‘‘मगर उस दिन गिरिराज सिंह नहीं अनुरोध निकाला गया था उस घर से. विनोदिनी ने हाथ तक उठाया था उस पर.

‘‘गिरिराज और विनोदिनी को लगा था कि इस के बाद अनुरोध दोबारा उन के रिश्ते पर आवाज उठाने की गलती नहीं करेगा, परंतु वे गलत थे.

‘‘टूटा जरूर था अनुरोध पर हारा नहीं था. वह जान गया था कि अब इस रिश्ते

में बचाने जैसा कुछ नहीं था. उसे अब केवल अपने अमन की चिंता थी. इसलिए वह कोर्ट में तलाक के साथ अमन की कस्टडी की अर्जी भी दायर करने वाला था. इस बात का पता लगते ही विनोदिनी ने पूरा प्रयास किया कि वह ऐसा न करे. उन के लाख डरानेधमकाने पर भी अनुरोध पीछे नहीं हटा था. एक नेता और अधिकारी का नाम होने के कारण मीडिया भी इस खबर को प्रमुखता से दिखाने वाली है. इस बात का ज्ञान उन दोनों को था.

‘‘गिरिराज सिंह को अपनी कुरसी और विनोदिनी को अपनी नौकरी की चिंता सताने लगी थी. इसीलिए कोर्ट के बाहर समझौता करने के लिए विनोदिनी ने उसे अपने घर बुलाया.

‘‘जब अनुरोध वहां पहुंचा घर का दरवाजा खुला था. घर के बाहर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. जब बैल बजाने पर भी कोई नहीं आया तो उस ने विनोदिनी का नाम ले कर पुकारा. थोड़ी देर बाद अंदर से एक पुरुष की आवाज आई, ‘इधर चले आइए अनुरोध बाबू.’

‘‘अनुरोध ने अंदर का दरवाजा खोला तो वहां का नजारा देख कर वह हैरान रह गया. बिस्तर पर विनोदिनी और गिरिराज अर्धनग्न लेटे थे. उसे देख कर भी दोनों ने उठने की कोशिश तक नहीं की.

‘‘‘क्या मुझे अपनी रासलीला देखने बुलाया है आप लोगों ने?’

‘‘‘नहींजी… हा… हा… हा… आप को तो एक फिल्म में काम देने बुलाया है.’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘हर बात जानने की जल्दी रहती है तुम्हें… आज भी नहीं बदले तुम,’ विनोदिनी ने कहा.

‘‘‘मतलब समझाओ भई प्रोफैसर साहब को.’’

‘‘इस से पहले कि अनुरोध कुछ समझ पाता उस के सिर पर किसी ने तेज हथियार से वार किया. जब उसे होश आया उस ने स्वयं को इसी बिस्तर पर निर्वस्त्र पाया. सामने पुलिस खड़ी थी और नीचे जमीन पर विनोदिनी बैठी रो रही थी.

‘‘कोर्ट में यह साबित करना मुश्किल नहीं हुआ कि विनोदिनी के साथ जबरदस्ती हुई है. इतना ही नहीं यह भी साबित किया गया कि अनुरोध एक सैक्सहोलिक है और उस का बेटा तक उस के साथ सुरक्षित नहीं है, क्योंकि अपनी इस भूख के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. विनोदिनी के शरीर पर मारपीट के निशान भी पाए गए. अनुरोध के मोबाइल पर कई लड़कियों के साथ आपत्तिजनक फोटो भी पाए गए.

‘‘उस पर घरेलू हिंसा व महिलाओं के संरक्षण अधिनियम कानून के अनुसार केस दर्ज किया गया. उस पर बलात्कार का भी मुकदमा दर्ज किया गया. मीडिया ने भी अनुरोध को एक व्यभिचारी पुरुष की तरह दिखाया. सोशल नैटवर्किंग साइट पर तो बाकायदा एक अभियान चला कर उस के लिए फांसी की सजा की मांग की गई. कोर्ट परिसर में कई बार उस के मातापिता के साथ बदसुलूकी भी की गई.

‘‘अनुरोध के मातापिता का महल्ले वालों ने जीना मुश्किल कर दिया था. जिस दिन कोर्ट ने अनुरोध के खिलाफ फैसला सुनाया उस के काफी पहले से उस की मानसिक हालत खराब होनी शुरू हो चुकी थी. लगातार हो रहे मानसिक उत्पीड़न के साथ जेल में हो रहे शारीरिक उत्पीड़न ने उस की यह दशा कर दी थी. फैसला आने के 10 दिन बाद ही अनुरोध के मातापिता ने आत्महत्या कर ली और अनुरोध को यहां भेज दिया गया. एक आदर्शवादी होनहार लड़के और उस के खुशहाल परिवार का ऐसा अंत…’’

कुछ देर की खामोशी के बाद तबस्सुम फिर बोलीं, ‘‘मैडम, मैं मानती हूं कि घरेलू हिंसा का सामना कई महिलाओं को करना पड़ता है. इसीलिए स्त्रियों की रक्षा हेतु इस कानून का गठन किया गया था.

‘‘परंतु घरेलू हिंसा से पीडि़त पुरुषों का क्या? उन पर उन की स्त्रियों द्वारा की गई मानसिक और शारीरिक हिंसा का क्या?

‘‘अगर पुरुष हाथ उठाए तो वह गलत… नामर्द, परंतु जब स्त्री हाथ उठाए तो क्या? हिंसा कोई भी करे, पुरुष अथवा स्त्री, पति अथवा पत्नी, कानून की नजरों में दोनों समान होने चाहिए. जिस तरह पुरुष द्वारा स्त्री पर हाथ उठाना गलत है उसी प्रकार स्त्री द्वारा पुरुष पर हाथ उठाना भी गलत होना चाहिए. परंतु हमारा समाज तुरंत बिना पूरी बात जाने पुरुष को कठघरे में खड़ा कर देता है.

‘‘ताकतवार कानून स्त्री की सुरक्षा के लिए बनाए गए परंतु आजकल विनोदिनी जैसी कई स्त्रियां इस कानून का प्रयोग कर के अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगी हैं.

‘‘वैसे तो कानून से निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है, परंतु इस तरह के केस में ऐसा हो नहीं पाता. वैसे भी कानून तथ्यों पर आधारित होता है और आजकल पैसा और रसूख के बल पर तथ्यों को तोड़ना और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना आम बात हो गई है. जिस के पास पैसा और ताकत है कानून भी उस के साथ है.

‘‘हां, सही कह रही हैं आप तबस्सुम. अनुरोध जैसे मर्द फैमिनिज्म का सच्चा अर्थ जानते हैं. वे जानते हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकसमान है. न कोई बड़ा, न कोई छोटा. इसलिए गलत करने पर सजा भी एकसमान होनी चाहिए.

‘‘मगर विनोदिनी जैसी कुछ स्त्रियां नारीवाद का गलत चेहरा प्रस्तुत कर रही हैं,’’ लता के अचानक आ जाने से दोनों की बातचीत पर विराम लग गया.

‘‘माफ कीजिएगा वह बैड नंबर 216 को खाना देना था.’’

‘‘अरे हां… तुम चलो मैं आती हूं. चलती हूं मैडम अनुरोध को खाना खिलाने का समय हो गया है.’’

‘‘मैं भी चलती हूं…’’

जब वे दोनों वहां पहुंचीं तो देखा अनुरोध अपने दोनों हाथों को बड़े ध्यान से निहार रहा  था. आरोही उस के पास जा कर बैठ गई. फिर पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो? प्लीज कुछ तो बोलो.’’

कुछ नहीं बोला अनुरोध. उस की तरफ देखा तक नहीं.

सिस्टर तबस्सुम अनुरोध के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘बोलो बेटा, बताओ… तुम चिंता न करो कुदरत ने चाहा तो अब सब ठीक हो जाएगा.’’

इस बार वह उन की तरफ पलटा और फिर अपनी खाली हथेलियों को उन की तरफ फैलाते हुए बोला-

‘ऐ प्यार को मानने वालो, इजहार करना हमें भी सिखाओ. बंद करें हथेली या खोल लें इसे, खो गई हमारी छाया से हमें भी मिलवाओ…

जब सगी बहन ही बीवी हो

अभी कुछ ही देर पहले ट्रेन लंदन के पैडिंगटन स्टेशन से औक्सफोर्ड रेलवे स्टेशन पर आई थी. सोफिया ने अपना बैग पीठ पर डाला और सूटकेस के साथ कोच से नीचे आई. कुछ

देर प्लेटफौर्म पर इधरउधर देखा फिर दिए गए दिशानिर्देश के अनुसार टैक्सी स्टैंड की ओर

चल पड़ी.

उस दिन औक्सफौर्ड में मूसलाधार बारिश हो रही थी. टैक्सी स्टैंड पर पहले से ही काफी लोग टैक्सी की कतार में खड़े थे. औक्सफोर्ड

एक छोटा शहर है जो अपनी यूनिवर्सिटी के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. वहां स्टूडैंट्स पैदल

या साइकिल से चलते हैं. सोफिया के आगे एक हमउम्र लड़का भी सामान के साथ खड़ा था. उसे लगा कि यह लड़का भी जरूर यूनिवर्सिटी जा

रहा होगा.

करीब 20-30 मिनट पर एक टैक्सी आई. उस ने लड़के से पूछा, ‘‘अगर मैं गलत नहीं तो तुम भी औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जा रहे हो? हम लोग बहुत देर से खड़े हैं टैक्सी के लिए. अगर तुम्हें एतराज न हो तो हम दोनों टैक्सी शेयर

कर लें.’’

‘‘मु झे कोई एतराज नहीं बशर्ते टैक्सी वाला भी मान जाए,’’ लड़के ने कहा और कुछ पल उसे घूरने लगा.

‘‘क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो? तुम्हें प्रौब्लम है तो रहने दो, मैं टैक्सी का इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘सौरी. मु झे कोई प्रौब्लम नहीं होगा. उम्मीद है तुम फेयर शेयर करोगी तो मु झे फायदा ही है . फेयर नहीं शेयर करोगी तब भी मु झे कोई प्रौब्लम नहीं है,’’ बोल कर लड़का मुसकरा पड़ा.

फिर दोनों टैक्सी में सवार हुए. लड़के ने कहा, ‘‘मैं सैंडर हूं. मैं सैंडर सिट्रोएन नीदरलैंड से हूं पर इंग्लिश मेरा विषय रहा है और मैं वहां के इंग्लिश स्पीकिंग क्षेत्र से हूं. बाद में हम लोग स्कौटलैंड चले आए पर अब मेरे पेरैंट्स नहीं हैं.’’

‘‘सौरी टू हियर अबौउट योर पेरैंट्स.  मैं सोफिया डी वैन. शायद मेरी मम्मी भी डच ही थीं पर मु झे किसी और ने गोद लिया था. हम लोग आयरलैंड में सैटल्ड हैं पर मेरी मम्मी भी अब नहीं रही हैं.’’

रास्ते में सोफिया और सैंडर दोनों बातें करते रहे. इसी दौरान उन्हें पता चला कि दोनों को एक ही पते पर जाना था. दोनों ने एक ही अपार्टमैंट में एक रूम का स्टूडियो पहले से ही बुक करा रखा था और वह भी एक ही फ्लोर पर. हालांकि सोफिया का ईस्टर्न विंग में था तो सैंडर का वैस्टर्न विंग में. थोड़ी ही देर में दोनों अपार्टमैंट पहुंच गए. वहां लिफ्ट की सुविधा नहीं थी. उन्हें पहली मंजिल पर जाना था इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. सीढि़यां चढ़ने के बाद सोफिया पूरब की तरफ मुड़ गई और सैंडर पश्चिम की.

वन रूम स्टूडियो बड़े सलीके से बनाया गया था. अंदर प्रवेश करने पर एक तरफ छोटा बाथरूम और उस के आगे 12?12 फुट का एक कमरा था. इसी कमरे में 12 फुट लंबा एक वार्डरोब था जिसे खोलने पर उसी के अंदर किचन, सिंक और एक स्टोरेज रैक था. किचन के नाम पर एक तरफ इलैक्ट्रिक स्टोव था और दूसरी तरफ नीचे एक छोटा सा फ्रिज. रूम से सटी 4 फुट की बालकनी थी जहां कपड़े सुखाने के लिए एक स्टैंड था. रूम में एक फर्निश्ड सिंगल बैड, 1 छोटी टेबल और 1 चेयर थी. यह छोटा सा स्टूडियो किसी स्टूडैंट के लिए परिपूर्ण था.

2 दिन बाद यूनिवर्सिटी की ओर से नए विद्यार्थियों के लिए एक गाइडेड टूर का प्रबंध था. इस से नए विद्यार्थी को यूनिवर्सिटी की भिन्न विभागों की जानकारी मिलती है. सोफिया और सैंडर दोनों का टूर एक ही दिन था. इस के बाद वीकैंड था और फिर सैमैस्टर की शुरुआत. सैंडर भूगोल में मास्टर करने आया था और सोफिया इंग्लिश में. सैंडर ने बीए स्कौटलैंड में ही पूरी कर ली थी और यहां एमफिल करने आया था जबकि सोफिया को 3 साल की इंग्लिश में बीए और फिर 1 साल का मास्टर कोर्स करना था. दोनों को 4 वर्ष वहां पढ़ना था.

सोफिया और सैंडर दोनों साइकिल से कालेज आतेजाते. अपार्टमैंट के ग्राउंड फ्लोर पर मालिक ने एक कवर्ड साइकिल स्टैंड  बना रखा था. विद्यार्थी अकसर साइकिल से या पैदल चल कर कालेज जाते. यूनिवर्सिटी में दोनों को एकसाथ देख कर अकसर उन के दोस्त कहते कि दोनों के चेहरे कुछ हद तक मिलते हैं. अब सोफिया को भी लगा कि उस के और सैंडर के चेहरे में कुछ समानता है. शायद इसी कारण पहली ही मुलाकात में वह उसे घूरने लगा था. औक्सफोर्ड आए अभी 2 साल ही हुए थे कि सोफिया के पापा का निधन हो गया. वे

पत्नी के निधन के बाद ज्यादा शराब पीने लगे थे. जब तक सोफिया साथ थी उन्हें ज्यादा पीने से रोकती. बेटी के जाने के बाद वे बिलकुल अकेले पड़ गए और अब उन्हें रोकने वाला कोई न था. नतीजतन उन्हें लिवर सिरोसिस हुआ और वे चल बसे.

दुख की इस घड़ी में सैंडर सोफिया के साथ खड़ा रहा और उस का साहस बढ़ाते रहा. दोनों एकदूसरे के और नजदीक हो गए और उन में प्यार का बीज फूट पड़ा. दोनों एकदूसरे को चाहने लगे, एकदूसरे की भावनाओं की इज्जत करते. उन्होंने मिल कर फैसला किया कि फिलहाल हम शादी नहीं करेंगे. अपनीअपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद और अपने पैरों पर खड़े होने के बाद ही शादी होगी.

करीब 2 वर्ष बाद वह समय भी आ गया जब उन की पढ़ाई पूरी हुई. शादी की 2 शर्तों में से एक पूरी हुई. अब उन्हें नौकरी की तलाश थी. सैंडर के कहने पर सोफिया भी उस के साथ स्कौटलैंड आई. कुछ ही दिनों के बाद सैंडर को एडिनबरा के एक कालेज में ट्यूटर की नौकरी मिल गई.

तब सैंडर ने सोफिया से कहा, ‘‘तुम शादी के बारे में क्या सोच रही हो? क्या हम अब शादी कर सकते हैं?’’

‘‘नहीं, कुछ दिन और इंतजार कर लेते हैं. इस बीच मु झे जौब मिल जाती है तब ठीक है, नहीं तो मैं आयरलैंड चली जाऊंगी. वहां मेरे बहुत कौंटैक्ट्स हैं.’’

‘‘तुम अगर आयरलैंड चली गई तब हमारी शादी का क्या होगा?’’

‘‘मेरी शादी होगी तो तुम्हीं से होगी,

डौंट वरी.’’

‘‘देखो आयरिश लोगों को हमारे यहां सैटल करने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं है और न ही कोई समयसीमा है इसलिए तुम यहीं रुक जाओ. नौकरी आज नहीं तो कल मिलेगी ही. आयरलैंड जाने का इरादा छोड़ दो.’’

‘‘एक बार जाना तो पड़ेगा. वहां जा कर घर को लंबी अवधि के लिए लीज पर दे दूंगी और जरूरत पड़ी तो बाद में उसे बेच दूंगी.’’

‘‘तुम फिलहाल कुछ दिनों के लिए आयरलैंड जा कर घर को लीज रैंट कर दो.’’

‘‘ठीक है, मैं 1-2 दिन में जाने की कोशिश करती हूं.’’

‘‘सिर्फ तुम नहीं, हम दोनों जाएंगे. मैं भी बहुत दिनों से आयरलैंड जाने की सोच रहा था. ज्यादा तैयारी भी नहीं करनी है. यहां से करीब

1 घंटे की फ्लाइट है. हम लोग 2 दिन बाद वीकैंड में चलते हैं.’’

सोफिया और सैंडर दोनों आयरलैंड के डब्लिन शहर आए. सोफिया का घर काफी बड़ा था. सोफिया ने अपना कुछ सामान गैराज और उस से सटे एक कमरे में शिफ्ट कर दिया. बाकी फर्नीश्ड घर को उस ने लीज पर दे दिया और

कार को भी किराएदार को बेच दिया. दोनों करीब 1 सप्ताह डब्लिन में रहे. इसी दौरान सोफिया को भी नौकरी मिल गई. उसे ईमेल से जौब औफर मिला. उन दोनों की समस्या का समाधान हो गया. दोनों खुशीखुशी एडिनबरा लौट आए.

सोफिया को स्काटलैंड के दूसरे शहर ग्लासगो के एक कालेज में नौकरी मिली. एडिनबरा से ग्लास्गो जाने में ट्रेन या कार दोनों से करीब 1 घंटे का समय लगता था. फिलहाल मजबूरी थी इसलिए सोफिया ने वहां जौइन कर लिया. उस ने एक सैकंड हैंड कार खरीदी और उसी से आनाजाना होता.

अब दोनों ने जल्द ही शादी करने का फैसला लिया. 1 महीने बाद दोनों की शादी हुई. दोनों अपने हनीमून के लिए इटली में वेनिस गए. दोनों पहली बार वेनिस आए थे और 1 सप्ताह वहां रुके. इस के बाद रोम और वैटिकन घूमने गए और फिर रोम से वापस स्कौटलैंड लौट आए.

करीब 2 महीने बाद सोफिया ने पति से कहा, ‘‘लगता है घर में नया मेहमान आने वाला है.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है, बहुत दिन

हुए कोई गैस्ट नहीं आया हमारे घर और भला आएगा कौन. हम दोनों का कोई निकट संबंधी भी तो नहीं है. अच्छा बताओ कौन आ रहा है, तुम्हारा कोई फ्रैंड?’’

‘‘नहीं, हमारा बहुत नजदीकी संबंधी आने वाला है.’’

‘‘ऐसा कौन निकट संबंधी पैदा हो गया है?’’

‘‘पैदा नहीं हुआ है पर 9 महीने बाद पैदा हो जाएगा. तुम डैड बनने वाले हो.’’

‘‘ओह, व्हाट ए प्लीजैंट सरप्राइज,’’ बोल कर सैंडर ने सोफिया को चूमते हुए गोद में उठा लिया.

‘‘पर तुम्हें इतनी जल्दी क्या पड़ी थी? हम ने सोचा था कि 1-2 साल कुछ मौजमस्ती करने के बाद बच्चे की जिम्मेदारी लेते. खैर, जो हुआ अच्छा ही हुआ.’’

‘‘जल्दी तुम्हें पड़ी थी. मैं ने हनीमून में तुम्हें चेताया था प्रिकौशन लेने को पर तुम माने ही नहीं.’’

‘‘मैं ने यों ही कहा था. बहुत खुशी की बात है बल्कि मैं तो कहूंगा दूसरा बच्चा भी जल्द ही प्लान कर लेंगे ताकि हमारे बच्चे हमारे रिटायरमैंट के पहले वैल सैटल्ड हो जाएं.’’

करीब 3 महीने बाद सैंडर ने सोफिया से कहा, ‘‘मेरे कालेज में इंग्लिश ट्यूटर की वैकेंसी बहुत जल्द निकालने जा रही है. एक ट्यूटर ने रिजाइन कर दिया है. वह लंदन जा रहा है. तुम अपना एक रिज्यूम बना कर मु झे दे दो. जैसे ही नोटिफिकेशन होगा मैं तुम्हारी ऐप्लिकेशन दे दूंगा.’’

करीब 1 महीने के अंदर ही सोफिया को एडिनबरा कालेज से औफर मिला. उस ने ग्लास्गो कालेज से इस्तीफा दे कर एडिनबरा कालेज जौइन करने में कोई देरी नहीं की. अब पतिपत्नी दोनों की नौकरी एक ही शहर और एक ही कालेज में थी. दोनों बहुत खुश थे. सोफिया की डिलिवरी भी निकट थी. उस ने मैटरनिटी लीव ले ली थी.

समय पर उन दोनों को 1 बेटा हुआ. उस का नाम ओलिवर रखा गया. प्रसव के बाद सोफिया करीब 9 महीने तक छुट्टी पर रही. स्कौटलैंड में मैटरनिटी लीव 1 साल तक होती है. इस के अतिरिक्त पिता को भी शिशु के जन्म के बाद 2 सप्ताह की छुट्टी मिलती है. सोफिया और सैंडर दोनों ने मिल कर करीब 1 साल तक ओलिवर की देखभाल स्वयं की. इस के बाद वे ओलिवर को डे केयर में छोड़ कर जाते. 2 साल बाद ओलिवर ईएलसी यानी अर्ली लर्निंग चाइल्ड केयर जाने लगा.

इसी बीच सोफिया एक बार फिर गर्भवती हुई. इस बार उन्हें बेटी हुई ईवा. बेटी होने से दोनों बहुत खुश थे.

सैंडर बोला, ‘‘हमें बेटा और बेटी दोनों मिल गए, अब हम अपनी फैमिली प्लान कर सकते हैं.’’

अब ईवा और ओलिवर दोनों ही अर्ली लर्निंग चाइल्ड केयर जाने लगे थे. समय के साथ उन के बच्चे बड़े होने लगे. सैंडर एक अच्छा सर्फर था. उस ने बहुत दिनों से सर्फिंग नहीं की थी. उस ने सोफिया से कहा, ‘‘अब हमारे बच्चे कुछ बड़े हो चले हैं. बहुत दिन हुए सर्फिंग किए. अगला वीकैंड लौंग वीकैंड है, सोमवार भी औफ है. क्यों न हम पीज बे चलें. ज्यादा दूर भी नहीं 45 मिनट में पहुंच जाएंगे.’’

‘‘थोड़ी बहुत सर्फिंग तो मैं भी कर लेती हूं पर बहुत दिनों से आदत छूट गई है.’’

वीकैंड में सभी पीज बे के लिए निकल पड़े. सैंडर ने सर्फिंग बोर्ड को एक बैग में रखा और उसे अपनी गाड़ी की छत पर सौफ्ट रैक पर बांध लिया. पौने घंटे में ही वे बीच पर थे.

सैंडर सर्फ एक हाथ में बोर्ड लिए था और दूसरे हाथ में फोल्डिंग बीच चेयर. सोफिया ने भी एक हाथ में फोल्डिंग चेयर और दूसरे हाथ से बेटी को पकड़ रखा था. अन्य खानेपीने का सामान सैंडर, सोफिया और ओलिवर के बैग में था.

सैंडर अपने दोनों बच्चों को ले कर समुद्र के पानी में गया. कुछ देर उन के साथ बौल खेलने के बाद उन्हें सोफिया के पास छोड़ कर सर्फिंग बोर्ड ले कर वापस समुद्र में गया. वह करीब 40 मिनट तक लहरों पर सर्फ करता रहा. उस के आने के बाद सोफिया सर्फिंग बोर्ड ले कर जाने लगी. तब सैंडर ने पूछा, ‘‘आर यू श्योर? सर्फ कर सकोगी?’’

‘‘तुम ने मु झे क्या सम झ रखा है? मैं ने कुछ वर्षों से सर्फिंग नहीं की है तो बिलकुल भूल गई हूं. एक बार तैरना या सर्फिंग सीख लेने के बाद कोई इसे भूलता नहीं है,’’ इतना बोल कर सोफिया पानी में चली गई.

सोफिया करीब 20-25 मिनट बाद लौट आई. बीच पर चेंजरूम में जा कर सभी ने फ्रैश वाटर से स्नान कर ड्रैस चेंज की. फिर वापस कार में बैठ कर सब ने खाना खाया और वापस एडिनबरा के लिए चल पड़े. 1 घंटे बाद सभी लोग अपने घर में थे.

समय का कालचक्र अपनी गति से गतिमान था. सैंडर और सोफिया के दोनों बच्चे भी बड़े हो चले थे. दोनों बच्चे स्कूल में थे. दोनों मातापिता से अकसर पूछते, ‘‘न्यू ईयर और क्रिसमस पर सभी बच्चों के घर बहुत गैस्ट आते हैं जिन में उन के ग्रैंड पेरैंट्स भी होते हैं या सभी परिवार के लोग खुद ग्रैंड पेरैंट्स के पास जाते हैं. पूरा सप्ताह साथ रहते हैं. हमारे यहां कोई नहीं आता है न हम लोग  ही ग्रैंड पेरैंट्स के पास जाते हैं.’’

‘‘सौरी, बेटे तुम्हारे ग्रैंड पेरैंट्स इस दुनिया में नहीं रहे. अगर होते तो हम जरूर मिलने जाते या वे लोग ही आते हमारे यहां. तुम्हारे नाना का निधन हमारी शादी के कुछ समय पहले हो गया था. तुम्हारे दादादादी तुम्हारे पापा के बचपन में ही चल बसे थे,’’ सोफिया ने कहा.

औलिवर बोला, ‘‘फिर भी दादादादी और नानानानी कौन थे. उन का अपना घर तो होगा. आप दोनों के सिवा और कोई उन की संतान होगी. वे उन के घर में रहते होंगे.’’

ईवा भी भाई के समर्थन में बोली, ‘‘यस मम्मा. हम लोग उन के बारे में जानना चाहेंगे और अपने पुश्तैनी घर या गांव के बारे में जानना चाहेंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम लोग कुछ और बड़े हो जाओ तब दादाजी का घर देखने चलेंगे.’’

‘‘मम्मी बड़े हो जाएंगे तो हम लोग खुद पता लगा लेंगे.’’

दोनों बच्चे अकसर पापामम्मी से अपने पूर्वजों के बारे में पूछा करते. एक दिन

सोफिया ने सैंडर से कहा, ‘‘हम लोगों को बच्चों की इच्छा पूरी करनी चाहिए. मैं तो गोद ली गई थी. मेरे पेरैंट्स अपना देश छोड़ कर आयरलैंड में आ बसे. अब तो वे रहे नहीं और उन का घर भी मैं ने बेच दिया है. तुम्हें कुछ पता है अपने नेटिव प्लेस के बारे में?’’

‘‘मुझे नीदरलैंड जाना होगा. मेरे पेरैंट्स भी नहीं रहे. मु झे जहां तक याद है मेरे अंकलआंटी हम लोगों के साथ रहते थे. डैड और मौम की डैथ के बाद मैं अपनी विधवा मौसी के पास स्कौटलैंड आ गया और मेरा संपर्क वहां से टूट गया. अब तो मौसी भी नहीं रहीं. मु झे भी कोई दिलचस्पी नहीं रही थी इन सब बातों में सो मैं भी सब भूल कर यहीं रम गया.’’

‘‘तुम ने सुना न बच्चे क्या कह रहे थे. वे बोल रहे हैं हम खुद ही पता लगा लेंगे. ओलिवर तो 15 साल का हो गया है, कुछ साल में दोनों बच्चे एडल्ट हो जाएंगे. फिर तो हम न भी पता करें तो वे अपना रूट्स जानने के लिए आजाद हैं. उन्हें हम रोक नहीं सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, अगले महीने ईवा भी बोर्डिंग स्कूल जा रही है. उस के बाद हम लोग नीदरलैंड चलते हैं. घूमना भी हो जाएगा और अपनी जड़ें भी खोजेंगे. एक पंथ दो काज.’’

1 महीने बाद सैंडर और सोफिया दोनों नीदरलैंड की राजधानी एमस्टरडम पहुंचे. दोनों वहां के एक होटल में ठहरे थे. थोड़ी देर आराम करने के बाद सैंडर ने टेलीफोन डायरैक्टरी खगालनी शुरू की. सिट्रोएन सरनेम के जितने नाम थे सब के नाम, फोन नंबर और पता नोट किया. इस के बाद डी वालेन और जोर्डान रिहायशी इलाके के नंबर अलग कर लिए. सैंडर की आंटी ने उसे बताया था कि उस के मातापिता दोनों इसी क्षेत्र के निवासी थे. सैंडर ने सोचा फोन न कर सीधे उन से बात करना ठीक रहेगा.

अगले दिन सैंडर और सोफिया दोनों डी वालेन गए वहां सिट्रोएन सरनेम के सिर्फ 3 परिवार रहते थे. तीनों से उन्हें अपने पेरैंट्स का कोई क्लू नहीं मिला. फिर भोजनोपरांत वे जौर्डन महल्ला गए. वहां सिट्रोएन सरनेम के 5 परिवार थे. 4 जगहों से उन्हें निराशा ही मिली. 5वां परिवार कहीं बाहर गया था. सैंडर ने उन्हें फोन कर बताया कि मैं ब्रिटेन से आया हूं और आप से मिलना चाहता हूं. फोन पर जवाब मिला कि वे शहर से बाहर हैं और अगले दिन शाम तक एमस्टरडम लौटेंगे. वे दोनों अपने होटल लौट गए. उन के पास सिट्रोएन के इंतजार करने के सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं था.

अगले दिन शाम को सैंडर ने उन्हें फोन किया तो वे बोले, ‘‘तुम अभी या कल सुबह जब चाहो मिल सकते हो.’’

सैंडर ने सुबह मिलने का फैसला किया.

उस ने सोचा सिट्रोएन से मिले क्लू के बाद उसे कुछ और लोगों से भी संपर्क करना पड़ सकता है. यही सोच कर उस ने सुबह का प्रोग्राम बनाया.

अगली सुबह वे दोनों सिट्रोएन के घर पहुंचे. सैंडर ने अपना परिचय दिया. फिर सोफिया की तरफ देख कर सिट्रोएन ने पूछा, ‘‘और ये तुम्हारी सिस्टर हैं?’’

‘‘नो, माइ वाइफ सोफिया.’’

‘‘ओह, सौरी.’’

इस के बाद बिना देर किए अपने मातापिता का नाम बताया. फिर अपने और मातापिता के बारे में जितना जानता था बताया.

सिट्रोएन ने कहा, ‘‘मैं सीधे तौर पर तुम्हारे पेरैंट्स को नहीं जानता पर यह घर किसी सिट्रोएन फैमिली का ही था जिसे मेरे डैड ने खरीदा था. 1 मिनट रुको मैं कुछ दस्तावेज देख कर उन का पूरा नाम बताता हूं.’’

कुछ देर बाद सिट्रोएन ने कहा, ‘‘इस घर को किसी विलेन सिट्रोएन नाम के आदमी से मेरे डैड ने खरीदा था.’’

‘‘हां, यही तो मेरे छोटे अंकल का नाम था, मेरी मौसी ने बताया था.’’

‘‘तुम ने अपने डैड का क्या नाम बताया था?’’

‘‘ब्रेम, आई मीन ब्रेम सिट्रोएन.’’

‘‘और, मां का क्या नाम था?

‘‘फेना डी वैन सिट्रोएन.’’

सोफिया ने कहा, ‘‘मौम फेना डी वैन थीं. शादी के बाद फेना सिट्रोएन बनी होंगी. मेरी मौसी का भी सरनेम डी वैन था शादी के पहले.’’

‘‘डी वैन का मतलब फ्राम माउंटेन होता है और यहां एक ही डी वैन नाम सुना है मैं ने.’’

सिट्रोएन ने कहा सैंडर के मातापिता का नाम सुन कर वह व्यक्ति कभी सैंडर तो कभी सोफिया को गौर से देखने

लगा. कुछ देर सिर खुजलाता रहा फिर बोला, ‘‘मेरी मौम

और तुम्हारी मौम दोनों एकदूसरे को जानती थीं पर पता नहीं

क्यों मौम ने बाद में फेना से दूरी बना ली. जहां तक मु झे याद है मौम से सुना था कि फेना को

2 बच्चे थे.’’

सैंडर आश्चर्य से पूछ बैठा ‘‘2 बच्चे, और क्या जानते हैं मेरे पेरैंट्स के बारे में?’’

‘‘मैं सम झ नहीं पा रहा हूं तुम्हें कैसे बताऊं या बताऊं भी कि नहीं.’’

‘‘आप निस्संदेह जो भी जानते हों फ्रैंकली बता सकते हैं, अच्छाबुरा जो भी.’’

कुछ देर सिट्रोएन को खामोश देख कर सोफिया से नहीं रहा गया, ‘‘सिट्रोएन, क्या हुआ? आप ने हमारी जिज्ञासा बड़ा दी है. अब तो बिना जाने हम यहां से जाएंगे भी नहीं.’’

सिट्रोएन ने कहना शुरू किया, ‘‘आई एम सौरी. मैं जो कहने जा रहा हूं वह सुनी बात है, इस की सचाई का दावा मैं नहीं करता. हो सकता है गलत बात हो तो मु झे माफ  करना पर हो सकता है इस बात से तुम्हारे मकसद में मदद मिले.’’

‘‘हांहां, आप अवश्य कहें.’’

‘‘मैं ने सुना है कि आप की मौम की शादी आप के डैड सिट्रोएन से हुई थी. पर उन के चालचलन से आप के डैड बहुत नाराज थे और उन्होंने फेना को छोड़ दिया था.’’

‘‘अगर आप कुछ और स्पष्ट करें तो बेहतर होगा.’’

‘‘आप की मौम लैस्बियन थीं. हालांकि बाद में उन्हें मां बनने की इच्छा हुई. उन्हें 2 बच्चे हुए थे और दोनों सरोगेसी से, आई मीन आईवीएफ तकनीक से. एक बेटा उन के साथ रहा था कुछ दिन. बाद में उन्हें एक बेटी हुई. सुना है उसे किसी ने गोद ले लिया था.’’

‘‘क्या आप किसी खास फर्टिलिटी क्लीनिक के बारे में जानते हैं जहां से मौम प्रैगनैंट हुई थीं?’’

‘‘यह मैं कैसे बता सकता हूं? वैसे भी यह कानूनन मना है. हां दोनों पार्टी यानी डोनर और रिसीवर सहमत हों तो यह संभव है.’’

‘‘ठीक है, आप ने जितना कुछ बताया वह बहुत है हमारे लिए. बहुतबहुत धन्यवाद.’’

सैंडर और सोफिया दोनों वहां से निकल पड़े. उन्होंने शहर के फर्टिलिटी क्लीनिक के

नंबर गूगल कर निकाले. सैंडर ने शहर के कुछ पुराने फर्टिलिटी क्लीनिक के नंबर और पता नोट किया. एक सब से मशहूर क्लीनिक के एम्सटरडम और उस के आसपास 3 ब्रांचें थे. अगले दिन वे उस क्लीनिक में गए. सैंडर ने अपना पासपोर्ट दिखा कर अपनी मां के नाम का सुबूत दिखा कर फेना की डिलिवरी के बारे में रिसैप्शन पर पूछा.

रिसैप्शनिस्ट ने कहा, ‘‘एक तो आप के अनुसार यह केस 3 दशक से भी ज्यादा पुराना है. वैसे भी इस की जानकारी इंचार्ज के पास होगी. भला हो कंप्यूटर का कि सारे रिकौर्ड्स को हम लोगों ने कंप्यूटर के डेटा बेस में ले लिया है.’’

वे दोनों इंचार्ज से मिलने गए और पूरी बात बताई तो उस ने अपने कंप्यूटर में चैक कर

कहा, ‘‘हां, आज से करीब 35 साल पहले यहां फेना की सरोगेसी हुई थी और उन्हें एक बेटा

हुआ था.’’

‘‘आप स्पर्म डोनर का नाम बता सकते हैं?’’

‘‘सौरी, मैं उन की बिना सहमति के नहीं बता सकता हूं.’’

‘‘आप प्लीज, बता दें. मैं पिछले कई वर्षों से अपने पेरैंट्स के बारे में जानना चाहता हूं.’’

‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘आप उन से फोन पर मेरी बात करा दें तो मैं उन का कंसैंट ले लूंगा.’’

बहुत मिन्नत करने के बाद क्लीनिक

इंचार्ज तैयार हुआ और बोला, ‘‘1 मिनट मु झे

चैक करने दीजिए. उस समय उन का पुराना लैंड लाइन का नंबर था. अगर उन्होंने अपडेट किया है तब तो आसानी होगी वरना क्या पता नंबर बदल गया हो.’’

कुछ देर बाद क्लीनिक इंचार्ज ने बताया ‘‘हां, नंबर भी अपडेट कराया है उन्होंने. दरअसल वे फ्रीक्वैंट डोनर हैं.’’

क्लीनिक वाले ने उस डोनर से सैंडर की बात कराई. सैंडर ने अपना और मां के बारे में पूरी बात बताई. डोनर ने क्लीनिक वाले को फोन पर अपनी सहमति दे दी. पर क्लीनिक ने उसे ईमेल या व्हाट्सऐप पर कन्फर्म करने को कहा. थोड़ी ही देर में डोनर का मैसेज आया.

क्लीनिक वाले ने थोड़ी देर में सैंडर से कहा, ‘‘फेना उस दिन रिक वर्हिस के स्पर्म से प्रैगनैंट हुई थीं और उन्होंने एक बेटे को इसी क्लीनिक में जन्म दिया था. रिक

ही उस दिन पैदा हुए बच्चे का बायोलौजिकल फादर है.’’

अगले दिन सैंडर रिक से मिलने गया. उस ने कहा, ‘‘मु झे उम्मीद है कि आप ही मेरे बायोलौजिकल फादर हैं. इस उम्मीद को मैं यकीन में बदलना चाहता हूं. इस के लिए हम दोनों को डीएनए टैस्ट कराना होगा. प्लीज, आप मेरा साथ दें.’’

‘‘तुम बचकानी हरकत कर रहे हो बल्कि पागल जैसी बात कर रहे हो. मैं क्यों अपना डीएनए दूं और तुम्हें इस से क्या मिलेगा?’’

‘‘मैं कुछ लेने के लिए ऐसा नहीं कह रहा हूं. वैसे भी मु झे पता है कानूनन हम दोनों का एकदूसरे पर कोई हक नहीं है. बस मेरी तस्सली के लिए. आप से और कुछ नहीं चाहिए मु झे मैं लिखित दे सकता हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे कहने पर इतना भर कर सकता हूं. तुम अपना डीएनए टैस्ट कराओ और वहीं पर मैं भी सैंपल दूंगा. लैब वाले मेरी सहमति से तुम्हें बता देंगे डीएनए का रिजल्ट पर मैं अपनी रिपोर्ट तुम्हें नहीं दूंगा.’’

‘‘इतना ही काफी है मेरे लिए.’’

4  दिनों के बाद दोनों के डीएनए रिपोर्ट मिलनी थी. इन 4 दिनों के अंदर सैंडर और सोफिया दोनों कुछ और क्लीनिक में पता लगाने गए कि फेना की दूसरी संतान किस क्लीनिक

में हुई थी. एक क्लीनिक शहर से दूर था. वहां उन्होंने रिक की रिपोर्ट मिलने के बाद जाने का फैसला किया.

4 दिनों के बाद दोनों की डीएनए रिपोर्ट मिलें. रिक ही सैंडर का बायोलौजिकल फादर था.

दूसरे दिन वे जब एक क्लीनिक गए तो पता चला कि फेना ने किस क्लीनिक में सरोगेसी डिलिवरी कराई थी. यहां क्लीनिक से पता

चला कि फेना की दूसरी सरोगेसी डिलिवरी यहीं हुई थी. उसे एक बेटी हुई थी. यहां भी क्लीनिक वाले ने बहुत अनुरोध करने पर डोनर से बात कराई. यह डोनर भी रिक ही था. सैंडर और सोफिया दोनों कुछ पल एकदूसरे को देखने लगे. दोनों ने एक बार फिर रिक से अनुरोध किया कि वह सोफिया की डीएनए रिपोर्ट से अपनी रिपोर्ट मैच कराए.

सोफिया ने अपना डीएनए टैस्ट कराया. उस का और रिक का डीएनए मैच कर रहा था. रिक ही सोफिया का भी बायोलौजिकल फादर निकला. सैंडर और सोफिया दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. दोनों ने अपना डीएनए मैच कराया तो देखा कि उन का डीएनए भी 55% मैच कर रहा था. उन्होंने डीएनए ऐक्सपर्ट से भी बात की तो उस ने कहा तुम दोनों की मौम एक ही हैं, फेना और स्पर्म डोनर भी एक ही है रिक तो इस में शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है. तुम दोनों के सिबलिंग होने में कोई शक नहीं है. तुम दोनों सगे भाईबहन हो.’’

सैंडर और सोफिया दोनों पर जैसे बिजली गिर पड़ी, सोफिया बोली, ‘‘कुदरत हमें माफ करें, ये हम ने क्या किया. अनजाने में ही हम से गुनाह हो गया.’’

‘‘यह गुनाह कुदरत की मरजी से हुआ है. हम ने खुद जानबू झ कर कोई गुनाह नहीं किया

है. हम लोग तो 4-5 दिन पहले तक इस बारे

में कुछ नहीं जानते थे. हमें कोई पछतावा नहीं करना चाहिए.’’

सैंडर और सोफिया दोनों औक्सफोर्ड में

हुई मुलाकात से पहले एकदूसरे से बिलकुल अनजान थे और वर्षों से पतिपत्नी रहे हैं और उन के 2 बच्चे भी हुए. वे दोनों नीदरलैंड से वापस एडिनबरा आए. वहां उन्होंने वकील से राय ली कि ऐसे में क्या करना चाहिए.

उस ने कहा, ‘‘आप ने जानबू झ कर ऐसा नहीं किया है. पर अब पतिपत्नी के रूप में रहना कानूनन अपराध है. बेहतर है आप लोग खामोश रहें पर आप खुद सम झदार हैं कि अब आप भाईबहन हैं  और रहेंगे, पतिपत्नी नहीं. बच्चों से भी इस की चर्चा न करें.’’

सोफिया और सैंडर दोनों काफी उदास और चिंतित थे. उन्हें देख कर वकील ने कहा, ‘‘आप पहले ऐसे दंपती नहीं हैं. पहले भी ऐसे मामले मु झे देखने और सुनने को मिले हैं. रिक जैसे कुछ प्रोफैसनल डोनर्स हैं जिन्हें खुद पता नहीं कि दुनिया में उन की कितनी औलादें हैं. कुछ दिन पहले मु झे पढ़ने को मिला था कि किसी डोनर ने 150 से भी ज्यादा बार स्पर्म डोनेट किया है. ऐसे में इस तरह की समस्या का होना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है.’’

‘‘बच्चों को क्या बताया जाण्?’’ सैंडर ने पूछा.

वकील ने कहा, ‘‘सचाई छोड़ कर उन्हें कुछ भी बातएं मसलन कोई मनगढ़ंत कहानी बता कर इस मुद्दे को हमेशा के लिए खत्म कर दें. पूरे परिवार की भलाई इसी में है.’’

सोफिया और सैंडर दोनों ने सिर हिला कर अपनी सहमति जताई. अब उन्हें भी बात सम झ में आने लगी थी कि क्यों लोग अकसर हम दोनों को साथ देख कर कुछ पल घूरा करते थे. हमारे चेहरों का मिलना मात्र संयोग नहीं था. हमारे चेहरे बायोलौजिकल फादर रिक से मिलते थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें