मारिया: भारतीय परंपराओं में जकड़ा राहुल क्या कशमकश से निकल पाया

दिल्ली का इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. जहाज से बाहर निकल कर इस धरती पर पांव रखते ही सारे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई. लगा यहां कुछ तो ऐसा है जो अपना है और बरबस अपनी तरफ खींच रहा है. यहां की माटी की सौंधीसौंधी खुशबू के लिए तो पूरे 2 साल तक तरसता रहा है.

ट्राली पर सामान लादे एअरपोर्ट से बाहर निकला. दर्शक दीर्घा में मेरी नजर चारों तरफ घूमने लगी. लंबी कतारों में खड़ी भीड़ में मैं अपनों को तलाश रहा था. मेरे पांव ट्राली के साथसाथ धीरेधीरे आगे बढ़ रहे थे कि पास से ही चाचू की आवाज आई.

मेरी नजर आवाज की ओर घूम गई.

‘‘अरे, नेहा तू?’’ मैं ने हैरानी से उस की ओर देखा.

‘‘हां, चाचू, इधर से आ जाइए. सभी लोग आए हुए हैं,’’ नेहा बोली.

‘‘सब लोग?’’ मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी. अपनों से मिलने के लिए मन एकदम बेचैन हो उठा. सामने दीदी, मांबाबूजी को देखा तो मन एकदम भावुक हो गया. मेरी आंखें छलछला आईं. मां ने कस कर मुझे अपने सीने में भींच लिया. भाभी के हाथ में आरती की थाली थी.

‘‘मारिया कहां है,’’ भाभी ने इधरउधर झांकते हुए पूछा.

‘‘भाभी, अचानक उस की तबीयत खराब हो गई इसलिए वह नहीं आ सकी. वैसे आखिरी समय तक वह एकदम आने को तैयार थी.’’

मेरा इतना कहना था कि भाभी का चेहरा उतर गया जिसे मैं ने बड़े करीब से महसूस किया.

‘‘हम लोग तो यह सोच कर यहां आए थे कि बहू को सबकुछ अटपटा न लगे. पर चलो…’’ कहतेकहते मां चुप हो गईं.

‘‘चलो, मारिया न सही तुम ही तिलक करा लो,’’ भाभी ने कहा तो मैं झेंप गया.

‘‘नहीं भाभी, मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता. सब लोग क्या सोचेंगे.’’

‘‘यही सोचेंगे न कि कितने प्यार से भाभी देवर का स्वागत कर रही है. आखिर हमारा भरापूरा परिवार है. भारतीय परंपराएं हैं…’’ बाबूजी बोले.

सच, ऐसे घर को तो मैं तरस गया था. सभी घर आ गए.

‘‘मारिया नहीं आई कोई बात नहीं, तू तो आ गया न,’’ मां ने कहा.

‘‘राहुल क्यों नहीं आता? आखिर अपना खून है, फिर बहन की शादी है. तब तक तो मारिया भी आ जाएगी क्यों बाबू…’’ भाभी ने चुहल की.

‘‘हां भाभी,’’ मैं ने यों ही टालने के लिए कह दिया. बातों का सिलसिला मारिया से आगे बढ़ ही नहीं रहा था फिर उठ कर अनमने मन से सोफे पर लेट गया और सोने का प्रयास करने लगा. तब तक भाभी चाय बना कर ले आईं.

मुझे ऐसे लेटा देख कर बोलीं, ‘‘भैया, आप बहुत थक गए होंगे. भीतर कमरे में चल कर लेट जाइए. बातें तो सुबह भी हो जाएंगी.’’

मेरी आंखों में नींद कहां. परिवारजनों का इतना स्नेह उस विदेशी लड़की के लिए जिस को मैं ने चुना था. मांबाबूजी कितने दिन मुझ से नाराज रहे थे. महीनों तक फोन भी नहीं किया था. आखिर मां ने ही चुप्पी तोड़ी और बेमन से ही सही सबकुछ स्वीकार कर लिया था. स्नेह को बटोरने के लिए वह नहीं थी जिस के लिए यह सबकुछ हुआ था. मुझे रहरह कर बीते दिन याद आने लगे.

मेरी कंपनी ने मुझे अनुभव और योग्यता के आधार पर यूनान भेजने का निर्णय लिया था. मैं भरसक प्रयास करता रहा कि मुझे वहां न जाना पड़े क्योंकि एक तो मुझे विदेशी भाषा नहीं आती थी दूसरे वहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या नहीं के बराबर थी. अत: शाकाहारी भोजन मिलने की कोई संभावना न थी. मेरे स्थान पर कोई  और व्यक्ति न मिल पाने के कारण वहां जाना मेरी मजबूरी बन गई थी.

मुझे एथेंस आए 15 दिन हो चुके थे. खाने के नाम पर उबले हुए चावल, ग्रीक सलाद, फ्राई किए टमाटर और गोल सख्त डबलरोटी थी जिन को 15 दिनों से लगातार खा कर मैं पूरी तरह से ऊब चुका था.

भारतीय रेस्तरां मेरे आफिस से 20 किलोमीटर दूर एअरपोर्ट के पास था जहां हर रोज खाने के लिए जाना आसान नहीं था. मेरे आफिस वाले भी इस मामले में मेरी कोई ज्यादा मदद नहीं कर पाए क्योंकि मैं उन्हें ठीक से यह समझा नहीं पाया कि मैं शाकाहारी क्यों हूं.

एथेंस यूरोप का प्रसिद्घ टूरिस्ट स्थान होने के कारण लोग यहां अकसर छुट्टियां मनाने आते हैं. यही वजह है कि यहां के हर चौराहे पर, सड़क के किनारे रेस्तरां तथा फास्टफूड का काफी प्रचलन है. घंटों बैठ कर ठंडी ग्रीक कौफी पीना तथा भीड़ को आतेजाते देखना भी यहां का एक फैशन और लोगों का शौक है.

उस दिन मैं यहां के मशहूर फास्टफूड चेन ‘एवरेस्ट’ के बाहर बिछी कुरसियों पर बैठा वेटर के आने का इंतजार कर ही रहा था कि लालसफेद ड्रेस में लिपटी एक महिला वेटर ने आ कर मुझे मीनू कार्ड पकड़ाना चाहा.

मैं ने उसे देखते ही कहा, ‘मुझे यह कार्र्ड नहीं, बस, एक वेज पिज्जा और कोक चाहिए.’

‘आप कुछ नया खाना नहीं खाना चाहेंगे. कल भी आप ने खाने के लिए यही मंगाया था. यहां का चिकन सूप, क्लब सैंडविच…’

उस महिला वेटर की बात को काटते हुए मैं ने कहा, ‘माफ कीजिए, मैं सिर्फ शाकाहारी हूं.’

‘तो शाकाहारी में वेजचीज सैंडविच, नूडल्स, मैश पोटेटो, फ्रेंच फाइज क्यों नहीं खाने की कोशिश करते?’ वह मुसकरा कर बोलती रही और मैं उस का मुंह देखता रहा कि कब वह चुप हो और मैं ‘नो थैंक्स’ कह कर उस को धन्यवाद दूं्.

मेरे चेहरे को देख कर शायद उस ने मेरे दिल की बात जान ली थी. इसलिए और भीतर आर्डर दे कर मेरे पास आ कर खड़ी हो गई.

‘आप कहां से आए हैं?’

‘इंडिया से,’ मैं ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘पर्यटक हैं? ग्रीस घूमने अकेले

ही आए हैं.’

‘नहीं, मैं यहां वास निकोलस में काम करता हूं और कुछ दिन पहले ही यहां आया हूं…और आप?’

‘मैं पढ़ती हूं. यहां पार्र्ट टाइम वेटर  का काम करती हूं, शाम को 4 से 10 तक.’

तब तक भीतर के बोर्ड पर मेरे आर्डर का नंबर उभरा और वह बातों का सिलसिला बीच में ही छोड़ कर चली गई. मैं ने महसूस किया कि यूरोप के बाकी देशों से यूनान के लोग ज्यादा सुंदर, हंसमुख और मिलनसार होते हैं. खाने के साथ यहां भी भारत की तरह पीने को पानी मिल जाता है जिस की कोई कीमत नहीं ली जाती.

उस ने बड़ी तरतीब से मेरी मेज पर कांटे, छुरियों और पेपर नेपकिन के साथ पिज्जा सजा दिया, जिसे देखते ही मेरा मन फिर से कसैला सा हो गया. न जाने क्यों मैं यहां की चीज की गंध को बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

‘क्या हुआ, ठीक नहीं है क्या?’ मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए वह बोली.

‘नहीं यह बात नहीं है. 5 दिन से लगातार जंक फूड खातेखाते मैं बोर हो गया हूं. यहां आसपास कोई भारतीय रेस्तरां नहीं है क्या?’

‘नहीं, पर एक और शाकाहारी भोजनालय है, हरे रामा हरे कृष्णा वालों का, एकदम शुद्घ शाकाहारी. अंडा और चाय भी नहीं मिलती वहां.’

‘वह कहां है?’ मैं ने बड़ी उत्कंठा से पूछा.

‘मुझे उस का पता तो नहीं पर जगह मालूम है. आज मेरी ड्यूटी के बाद तक रुको तो मैं तुम को ले चलूंगी या फिर कल 4 बजे से पहले आना.’

‘मैं कल आऊंगा. क्या नाम है तुम्हारा?’ मैं ने पूछा.

‘मारिया.’

‘और मेरा राहुल.’

इस तरह हमारे मिलने का सिलसिला शुरू हुआ. अब हर शनिवार को हम साथ घूमते और खाते. वह सालोनीकी की रहने वाली थी जो एथेंस से 500 किलोमीटर दूर था. उस के पिता का वहां सिलेसिलाए वस्त्रों का स्टोर था. वह वहां पर अपनी एक सहेली के साथ किराए पर कमरा ले कर रहती थी जिस का खर्च दोनों ही मिलजुल कर वहन करती थीं.

एक दिन बातोंबातों में मारिया ने बताया कि उस के पिता भी मूलत: भारतीय हैं जो बरसों पहले यहां आ कर बस गए थे. परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई क्रिस्टोस भी है जो उन के पास ही रहता है. अपने पिता से उस ने भारत के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. उस की मां उस के पिता की भरपूर प्रशंसा करती हैं और कहा करती हैं कि भारतीय व्यक्ति से विवाह कर के मैं ने कोई भूल नहीं की. परिवार के प्रति संजीदा, व्यवहारकुशल, बेहद केयरिंग पति कम से कम यूनानी लोगों में तो कम ही होते हैं.

इस बार एकसाथ 4 छुट्टियां मिलीं तो मारिया बेहद खुश हुई और कहने लगी, ‘चलो, तुम को सैंतारीनी द्वीप ले चलती हूं. यहां के सब से खूबसूरत द्वीपों में से एक

है. वहां का सनसेट और

सन राईज देखने दुनिया भर से लोग आते हैं.’

मेरे तो मन में लाखों घंटियां एकसाथ बजने लगीं कि अब कई दिन एकसाथ रहने और घूमनेफिरने को मिलेगा. चूंकि साथ रहतेरहते वह अब मेरे बारे में बहुत कुछ जान चुकी थी इसलिए रेस्तरां में खुद ही आर्र्डर कर के सामान बनवाती और मुझे उस व्यंजन के बारे में विस्तार से समझाती. मेरी तो जैसे दुनिया ही बदल गई थी. हर चीज इतनी आसान हो गई थी कि मुझे अब एथेंस में रहना अच्छा लगने लगा था.

मारिया के साथ गुजारी गई उन छुट्टियों को मैं कभी नहीं भूल सकता. मैं ने यह भी महसूस किया कि उस को भी मेरा साथ अच्छा लगने लगा था. होटल में हम ने अलगअलग कमरे लिए थे पर उस शाम मारिया मेरे कमरे में आ कर मुझ से बुरी तरह लिपट गई और चुंबनों की बौछार कर दी. मैं भी उसे चाहने लगा था इसलिए सारा संकोच त्याग कर उसे कस कर पकड़ लिया और वह सबकुछ हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम एकदूसरे के और करीब आ गए.

दिन बीतते गए. एक दिन मारिया ने बताया कि उस की रूमपार्टनर वापस अपने शहर जा रही है. मारिया अकेली उस फ्लैट का किराया नहीं दे सकती थी और मुझे भी एक रूम की तलाश थी सो मैं होटल से सामान ले कर उस के साथ रहने लगा.

एक दिन मारिया ने कहा कि वह मुझ से शादी करना चाहती है. नैतिक तौर पर यह मेरी जिम्मेदारी थी क्योंकि मैं भी उसे अब उतना ही चाहने लगा था जितना कि वह. पर तुरंत मैं कोई फैसला नहीं कर सका.

मैं ने कहा, ‘मारिया, मैं तुम्हें चाहता हूं फिर भी एक बार अपने घर वालों से इजाजत ले लूं तो…’

‘इजाजत,’ वह थोड़ा माथे पर त्योरियां चढ़ाते हुए बोली, ‘तुम सब काम उन की इजाजत ले कर करते हो. मेरे साथ घूमने और रहने के लिए भी इजाजत ली थी क्या? खाना खाने, रहने, सोने के लिए भी उन की इजाजत लेते हो क्या?’

‘ऐसी बात नहीं है मारिया, मैं भारतीय हूं. इजाजत न भी सही पर उन को बताना और आशीर्वाद लेना मेरा कर्तव्य है.’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘यह हमारी परंपराएं हैं.’

‘ये परंपराएं तुम्ही निभाओ,’ मारिया बोली, ‘मेरी बात का सीधा उत्तर दो क्योंकि मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनना चाहती हूं.’

एकदम सीधासीधा वाक्य उस ने मेरे ऊपर थोप दिया. मुझे उस से इस तरह के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी.

‘मैं ने मम्मीपापा को यह सब बताया तो वे नाराज हो गए और मैं कितने ही दिन तक उन के रूठनेमनाने में लगा रहा. फिर जब मैं ने बताया कि लड़की के पिता भारतीय मूल के हैं तो उन्होंने बड़े अनमने मन से इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

कुछ ही दिनों बाद पता चला कि मेरी छोटी बहन की शादी तय हो गई है. मेरा मन भारत जाने के लिए एकदम विचलित हो गया. इसी बहाने मुझे छुट्टी भी मिल गई और भारत जाने को टिकट भी.

मैं ने यह सब मारिया को बताया तो वह भी साथ चलने की तैयारी करने लगी लेकिन जाने से ठीक एक दिन पहले मारिया को न जाने क्या सूझा कि उस ने मेरे साथ जाने से मना कर दिया. मैं ने नाराज हो कर मारिया को कहा कि ऐसे कैसे तुम मना कर रही हो.

‘राहुल मैं अब भारत नहीं जाना चाहती, बस…’

‘परंतु मारिया, मैं ने वहां सब को बता दिया है कि तुम मेरे साथ आ रही हो. सब लोग तुम से मिलने की राह देख रहे हैं. सच तुम भी वहां चल कर बहुत खुश होगी.’

‘मुझे नहीं जाना तो जबरदस्ती क्यों कर रहे हो,’ वह उत्तेजित हो कर बोली.

मैं मायूस हो कर रह गया. मैं यह बात अच्छी तरह जानता था कि मारिया अब मेरे साथ नहीं जाएगी क्योंकि जिस बात को वह एक बार मन में बैठा ले उस पर फिर से विचार करना उस ने सीखा नहीं था.

सुबह काम करने वालों के शोर के साथ ही मेरी निद्रा टूटी. बहन की शादी की घर पर चहलपहल तो थी ही.

बहन को विदा करने के साथसाथ मैं भी पूरा थक चुका था. जब से यहां आया ठीक से मांबाबूजी के पास बैठ भी नहीं सका. मां का पुराना कमर दर्द फिर से उभर कर सामने आ गया और मां बिस्तर पर पड़ गईं.

जैसेजैसे मेरे जाने के दिन करीब आते गए मांबाबूजी की उदासी बढ़ती गई. मेरा भी मन भारी हो आया और मैं ने छुट्टी बढ़वा ली. सभी लोग मेरे इस कुछ दिन और रहने से बहुत खुश हो गए परंतु मारिया नाराज हो गई.

‘‘राहुल तुम वापस आ जाओ. मेरा मन अकेले नहीं लग रहा है.’’

‘‘मारिया, अभी तो सब से मैं ठीक से मिला भी नहीं हूं. शादी की भागदौड़ में इतना व्यस्त रहा कि…फिर अचानक मां की तबीयत खराब हो गई. मैं ने छुट्टी 15 दिन के लिए बढ़वा ली है फिर न जाने कब यहां आना हो सके…’’ यह कह कर मैं ने फोन काट दिया.

कुछ दिनों बाद मारिया का फिर फोन आया. वह थोड़ा गुस्से में थी.

‘‘अब क्या हुआ?’’ मैं ने थोड़ा खीज कर पूछा.

‘‘पापा ने रविवार को मेरे और तुम्हारे लिए एक पार्टी रखी है और उस में तुम को आना ही पड़ेगा,’’ वह निर्णायक से स्वर में बोली.

‘‘मारिया, तुम समझती क्यों नहीं हो,’’ मैं ने थोड़ा गुस्से से कहा, ‘‘यह सब हठ छोड़ दो. मैं जल्दी ही वहां पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘नहीं राहुल, जब पापा को पता चलेगा कि तुम नहीं आ रहे हो तो उन्हें कितना बुरा लगेगा. मैं ने ही जिद की थी कि आप पार्टी रख लो, राहुल तब तक आ जाएगा. उन के मन में तुम्हारे प्रति कितनी इज्जत है…’’

‘‘यही बात जब मैं ने तुम से कही थी कि मेरे घर वाले…’’

‘‘वह बात और थी डार्ल्ंिग…’’ मारिया बात को टालने की कोशिश करती रही.’’

‘‘नहीं, वह भी यही बात थी. सिर्फ सोच का फर्क है. हमारी परंपराएं इसीलिए तुम से अलग हैं. संयुक्त परिवारों की परंपराएं और एकदूसरे की भावनाओं का आदर करना ही हमारी सब से बड़ी धरोहर है.’’

‘‘देखो राहुल, तुम जानते हो कि यह सब मुझे बरदाश्त नहीं है. एक बार फिर सोच लो कि रविवार तक यहां आ रहे हो या नहीं.’’

‘‘मैं नहीं आ रहा हूं,’’ मैं ने स्पष्ट कहा.

‘‘फिर इस ढंग से तो यह रिश्ता नहीं निभ सकता. मुझे अब तुम्हारी जरूरत नहीं है,’’ मारिया तेज स्वर में बोली.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मारिया कि जो लड़की परिवार में घुलमिल नहीं सकती, मुझे भी उस की जरूरत नहीं है. मैं उन में से नहीं हूं कि विदेशी नागरिकता लेने के लिए अपनी आजादी खो दूं. अच्छा है मेरी तुम से शादी नहीं हुई.’’

मुझे आज लग रहा है कि उस से अलग हो कर मैं ने कोई गलती नहीं की है. मांबाबूजी की आंखों में मैं ने अजीब सी चमक देखी है. अपनी कंपनी से मैं ने अपने देश में ही ट्रांसफर करा लिया है.

अपनाअपना नजरिया : शादी के बाद अदिति और मिलिंद के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

पिछले हफ्ते ही मिलिंद का चेन्नई वाली एडवरटाइजिंग एजेंसी की ब्रांच से नई दिल्ली वाली ब्रांच में ट्रांसफर किया गया था. बचपन से ही मिलिंद चेन्नई में अपने मामा के पास ज्यादा रहा था इसलिए उस की हिंदी भाषा पर ज्यादा पकड़ नहीं थी. दिल्ली में जब औफिस में अदिति से नजदीकियां बढ़ीं तो वह कई बार मजाक में उस की हिंदी सुधारती रहती थी.

जल्द ही दोनों की दोस्ती प्रेमपथ पर चलने लगी और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. कंपनी में दोनों ही सेल्स डिपार्टमैंट में ऐग्जिक्यूटिव थे पर जल्द ही अदिति की रीजनल मैनेजर की पोस्ट पर प्रमोशन हो गई.

हालांकि मिलिंद को इस बात से रती भर भी फर्क नहीं पड़ा था परंतु औफिस में उस के दोस्त और अन्य स्टाफ उस की पीठ पीछे इस बात पर मुंह दबाए हंसना अपना हक सम?ाते थे और मिलिंद को समयसमय पर यह एहसास दिलवाना भूलते नहीं थे कि शादी से पहले ही अब तो अदिति से मिलने की उस की इजाजत लेनी पड़ती है तो शादी के बाद तो उसे जोरू का गुलाम बनने से कोई नहीं रोक सकता.

उन सब की ये बातें मिलिंद एक कान से सुनता था और दूसरे से निकाल देता था. दीवाली की छुट्टियों में उस ने अपने मातापिता को इंदौर से बुलवा लिया और अदिति के मातापिता से मिलवाया.

दोनों के ही मातापिता ने थोड़ी नानुकुर के बाद इस रिश्ते को मंजूरी दे दी. दिसंबर के मध्य में विवाह हुआ तो दोनों नववर्ष की संध्या हनीमून मनाने के बाद वापस लौटे.

जिंदगी रोजमर्रा के ढर्रे पर चलने लगी तो कुछ ही महीनों बाद दोनों के परिवारों में दोनों की सासू मांओं ने अदिति से चुहल करना शुरू कर दिया और कोई गुड न्यूज सुनाओ, खुशखबरी कब दे रही हो? तुम दोनों के बीच सब ठीक तो है? पहले तो अदिति ने इन बातों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि इन बातों को सुन कर हंस दिया करती थी पर साल बीतते न बीतते यही बातें अब तानेबाजी में बदलने लगी थीं.

अदिति पर पद की जिम्मेदारियां अधिक थीं और मिलिंद भी तरक्की चाहता था. हालफिलहाल उसे 1-2 अन्य कंपनियों में भी इंटरव्यू देना था. अत: अभी दोनों ही अपनेअपने कैरियर को ले कर व्यस्त थे इसलिए उन्होंने अभी अभिभावक बनने के फैसले को टाला हुआ था परंतु यह बात उन के परिवार वाले न सम?ा रहे थे और न ही समझना चाहते थे.

मिलिंद की बहन जब कनाडा से भारत आई तो मिलिंद की मां के साथ वह कुछ दिनों के लिए मिलिंद के घर भी रहने आई.

‘‘अरे मम्मी, मन्नू तो कब का औफिस से आ कर कमरे में पड़ा है और तुम्हारी बहुरानी अभी तक नदारद है, लगता है भाई ने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है.’’

‘‘भाई क्या करेगा तेरा, औफिस में भी उस से नीचे काम करता है. हम दोनों भी इंदौर वाला घर किराए पर चढ़ा कर दिल्ली वाले फ्लैट में आ गए कि अब तो इस बच्ची से सेवाभाव पा कर बाकी की जिंदगी आराम से गुजारेंगे पर इन दोनों ने तो अपना अलग ही फ्लैट ले लिया. यह तो तू आई है तो मैं कुछ दिन यहां रहने चली आई वरना तो इस घर में बहू होने के बाद भी खुद ही रसोई में खटना होगा यह सोच कर हम तो यहां रहने आते ही नहीं हैं.’’

‘‘ठीक ही कहती हो मम्मी, मन्नू भी न जाने कैसे आप के हाथ का स्वाद भूल कर यहां कच्चापक्का खा रहा है.’’

मिलिंद की आंख खुल चुकी थी और कानों में उसे रश्मि और मां की बातें अच्छी तरह से सुनाई दे रही थीं. वह बाहर आया और बोला, ‘‘दीदी, कैसी बातें कर रही हो. आप समझ सकती हो कि जब हम दोनों ही नौकरीपेशा है तो घर के कामों में बाहर वालों की मदद तो लेनी होगी न और वैसे भी श्यामा खाना बहुत अच्छा बनाती है और घर का भी काफी अच्छे से ध्यान रखती है. आजकल ऐसी हैल्पर मिलती कहां है.’’

‘‘अब अगर इतनी ही वकालत कर रहा है अपने रिश्ते की तो यह भी बता कि अब तक तेरी बीवी घर क्यों नहीं आई? तू तो उस से पहले का आया हुआ है?’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘उफ मम्मी, जरूरी मीटिंग है, नए प्रोजैक्ट की डैडलाइन सिर पर है, सभी काम में लगे हुए हैं मु?ो भी रुकना था पर सिर इतनी जोर से फट रहा था कि चाह कर भी रुकने की हालत नहीं थी मेरी. अब सोच रहा हूं कि अगर मैं भी औफिस में ही रहता तो ज्यादा अच्छा रहता.’’

‘‘चलो मम्मी, इतनी आजादी तो विदेश में नहीं जितनी यहां देख रही हूं, पर हमें क्या, भविष्य में खुद ही पछताएगा. आज अदिति को कुछ नहीं कह रहा न. कल देखना इस के सिर पर सवार होगी वह.’’

‘‘तभी तो बच्चा भी नहीं कर रही. वह क्या होता है रश्मि आजकल की लड़कियों में कि हमारी फिगर न खराब हो जाए, यही सोच इस की मैडम ने भी पाल रखी होगी.’’

‘‘कोई बात नहीं है मम्मी, बच्चे का पालनपोषण सही तरीके से करने के लिए सिर्फ सही टाइम का वेट है हम दोनों को,’’ मिलिंद चाह कर भी यह बात कभी अपने परिवार वालों को नहीं सम?ा पाता.

‘‘हां, हम ने तो जैसे बच्चे बेवक्त ही पैदा कर दिए. ये सही वक्तजैसी बातें बस आजकल की पीढ़ी के चोंचले भर हैं.’’

‘‘अब मम्मी आप की सोच कैसे बदलू मैं,’’ इतना कह कर मिलिंद वापस अपने कमरे में चला गया.

15 दिन बाद आशा और रश्मि चले गए तो लगभग सप्ताह भर बाद अदिति की मां सुधा और छोटा भाई वरुण 4-5 दिनों के लिए रहने आए.

‘‘अदिति, तू अपने पैसों का हिसाब तो अच्छे से रखती है न, कहीं प्रेम विवाह के चक्कर में अपने दोनों हाथ मत खाली कर लेना, सुधा ने अपनी शिक्षा का पिटारा खोला.

‘‘अरे मम्मी, दीदी को तो आप कुछ भी सम?ाना रहने ही दो, इन्हें सम?ा कर आप अपना टाइम ही बरबाद कर रही हो,’’ वरुण चिप्स चबाता हुआ बोला.

‘‘ऐसा क्यों कहता है. हम नहीं समझाएंगे तो कौन समझाएगा इसे?’’

‘‘इसलिए कह रहा हूं कि पिछले महीने जब मैं ने दीदी से अपने लिए क्रिकेट किट और खंडाला ट्रिप के लिए पैसे मांगे तो इन्होंने साफ मना कर दिया. कहा कि इस महीने कार की आखिरी ईएमआई भरनी है तो पैसे अगले महीने ले लेना पर देख लो उस अगले महीने को 3 महीने बीत चुके हैं अभी तक दीदी ने पैसों के दर्शन भी नहीं करवाए.’’

‘‘हां भई, बेटी को यों ही पराया धन नहीं कहते. पराई भी हो गई और धन भी परायों को ही सौंप रही है,’’ सुधा का ताना सुन कर अदिति का मन कसैला हो उठा.

‘‘मम्मी, ये कैसी बातें कर रही हो? मेरा अपना पति, मेरे ससुराल वाले मेरे लिए पराए कैसे हो सकते हैं? वे भी मेरे लिए उतने ही अपने हैं जितने आप लोग. मुझे कोई दिक्कत नहीं है वरुण को कुछ भी दिलवाने में पर ईएमआई भरनी जरूरी थी और उस के बाद आप जानती हैं कि मिलिंद के पापा की हार्ट सर्जरी हुई थी और कुछ पैसा उन्हें घर के ऊपर लगाने के लिए भी चाहिए था.’’

‘‘हां तो सारी जिम्मेदारियां तू ही निभा, मिलिंद के मातापिता हैं तो क्या उस का उन के प्रति कोई फर्ज नहीं है और रश्मि, उस के पास पैसों की क्या कमी है. वहां बैठी डौलर कमा रही है और यहां कुछ मदद नहीं होती उस से अपने मांबाप की,’’ सुधा तमतमाए स्वर में बोली.

‘‘मम्मी, उन्होंने ने भी मिलिंद के लिए बहुत किया है और अपने मम्मीपापा के लिए भी करती हैं. जबान की थोड़ी कड़वी जरूर हैं पर मैं यह नहीं भूल सकती कि हमारी शादी के लिए उन्होंने ही मम्मीपापा को मनाया था और मम्मी, शादी में यह तेरामेरा नहीं होता बल्कि विवाह तो वह खूबसूरत नैनों की जोड़ी होती है जो साथ ही भोर का सवेरा देखती हैं और एकसाथ ही सपनों में खोती हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा रहता है सदा और क्या मुझे यह याद दिलवाने की जरूरत है कि 7 महीने पहले जब जीजाजी की कंपनी से उन की छंटनी कर दी गई थी तब मिलिंद ने कितनी भागदौड़ कर के उन की दूसरी नौकरी लगवाई थी और दीदी के लाडले का स्कूल में एडमिशन करवाया था?

रही बात रश्मि दीदी की तो अगर इस बार किसी कारणवश वे मदद नहीं कर सकीं तो क्या हम भी मम्मीपापा की तरफ से मुंह मोड लें?’’

‘‘चल वरुण, कल ही घर वापस चलते हैं, अपनी ही औलाद दूसरों का पक्ष ले रही है.’’

अदिति ने भी लैपटौप बंद किया और आंखें मूंद कर सिर पीछे सोफे पर टिका दिया.

आखिरकार मिलिंद की मेहनत रंग लाई. अपने वर्षों के अनुभव और बेहतरीन इंटरव्यू के कारण वह जल्द ही एक नामी कंपनी में मैनेजर बना दिया गया. उस की जौब को 6 महीने हुए थे कि एक दिन उसे औफिस में अदिति का फोन आया.

‘‘हैलो अदिति क्या बात है, घबराई हुई सी क्यों बोल रही हो?’’ मिलिंद उस की भर्राई सी आवाज सुन कर बेचैन हो उठा.

उस दिन अदिति अपनी गर्भ की जांच की रिपोर्ट्स ले कर हौस्पिटल गई थी. वहां उस की सहेली किरण गाइनेकोलौजिस्ट के पद पर नियुक्त हुई थी.

मिलिंद जब तक हौस्पिटल पहुंच नहीं गया वह पूरा रास्ता असहज ही रहा.

डाक्टर के कैबिन में पहुंचा तो उस ने देखा कि अदिति की आंखें भरी हुई थीं और चेहरा मुरझाया हुआ था. मिलिंद को देखते ही उस की रुलाई फूट पड़ी. किसी तरह से मिलिंद ने उसे संभाला और किरण से सारी बात पूछी.

अदिति की फैलोपियन ट्यूब्स बिलकुल खराब हो चुकी थीं जिस वजह से उस का मां बनना अब नामुमकिन था. जब मिलिंद को यह बात पता चली तो वह भी एकबारगी भीतर तक हिल गया पर सब से पहले इस वक्त उसे अदिति को संभालना था इसलिए अपना मन पत्थर समान मजबूत कर लिया था उस ने.

‘‘पर आजकल तो आईवीएफ की मदद से महिलाएं बच्चा पैदा करने में सफल होती हैं न,’’ मिलिंद ने किरण से पूछा.

‘‘हां, आजकल यह काफी नौर्मल है पर अदिति के केस में एक और प्रौब्लम है और वह यह है कि अदिति के पीरियड्स कभी रैग्युलर नहीं रहे और पीसीओडी की वजह से अदिति को ओव्यूलेशन भी नहीं होता.

‘‘ओव्यूलेशन क्या होता है?’’ मिलिंद ने पूछा.

‘‘महिलाओं के शरीर में हर महीने ओवरी से अंडे निकलते हैं जोकि अदिति के केस में नहीं हो रहा.’’

‘‘तो फिर अब क्या हो सकता है?’’

‘‘फिलहाल तुम दोनों इस विषय पर ज्यादा कुछ मत सोचो, कुछ वक्त गुजरने दो, मैं अदिति से मिलती रहूंगी,’’ किरण ने बहुत प्यार और अपनेपन से दोनों को दिलासा दिया.

गाड़ी में घर वापस जाते हुए अदिति के चेहरे पर मायूसी ही मायूसी थी. मिलिंद उसे इस तरह से देख नहीं पा रहा था.

अगले दिन सुधा अदिति से मिलने आई, ‘‘मैं ने तुझे समझाया था न कि अपनी नौकरी के चक्कर में कोई फैमिली प्लानिंग मत करना पर तूने कभी घर वालों की सुनी है? अब कल को मिलिंद का मन तु?ा से भर गया तो?’’

‘‘मम्मी,’’ चीख सी पड़ी अदिति, ‘‘आप जानती भी हैं कि आप क्या कह रही हैं?’’

‘‘हां, अच्छी तरह से जानती समझती हूं कि मैं क्या कह रही हूं. पहले जैसे हालात अब नहीं हैं. जब मिलिंद कुछ नहीं था तब तो तेरे आगेपीछे घूमघूम कर तुझ से शादी कर ली और अब तो मिलिंद भी मैनेजर है, तेरे फ्लैट, तेरी गाड़ी सब की किश्तें पूरी हो चुकी हैं और अब तू मां बन नहीं सकती तो तुझ से पीछा छुड़वाने में उसे कौन सी देर लगेगी?’’

‘‘पर मिलिंद को ऐसा करने की क्या

जरूरत है? बहुत प्यार करता है वह मुझे,’’ सुधा की बातों ने अदिति का मन बिलकुल अशांत कर दिया.

‘‘यह प्यारव्यार सब हवा हो जाएगा जब उस के घर वाले बच्चे के लिए शोर मचाएंगे, तेरी सासननद से तो वैसे ही कुछ खास नहीं बनती.’’

‘‘तो पसंद तो आप लोग भी मिलिंद को नहीं करते,’’ अदिति धीमे स्वर में बोली.

‘‘कुछ कहा क्या तूने?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं मम्मी.’’

इधर मिलिंद अपनी मम्मी से मिलने आया था.

‘‘अब आगे की सोच मन्न, हमें भी मरने से पहले तेरी औलाद देखनी है,’’ आशा अपनी आवाज में मिठास घोलते हुई बोली.

‘‘अब मम्मी जो हो रहा है उस में हम दोनों का तो कोई फाल्ट नहीं है.’’

‘‘कैसी बातें कर रहा है, तुझ में क्या कमी है, कमी तो अदिति में है, तू तो उसे छोड़ दे,’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘अच्छा, फिर उसे छोड़ कर क्या करूं?’’ मिलिंद सब समझते हुए भी आशा से सुनना चाहता था.

‘‘देख यह बात इतनी छोटी नहीं है कि जितना तू इसे इतने हलके में ले रहा है, अपने भविष्य का सोच, क्या तू पापा नहीं बनना चाहता? दूसरी शादी का सोच,’’ आशा जैसे एक ही सांस में यह बोल गई.

यह सुन कर मिलिंद ने कुछ पल आशा को देखा और फिर बोला, ‘‘और अगर कमी मु?ा में होती तो भी क्या आप अदिति को यही एडवाइज देतीं?’’

आशा ने कोई जवाब नहीं दिया

‘‘मम्मी, मैं तो आप के पास आया था कि आप हमारे पास कुछ दिनों के लिए रहने आए, पिछली बार रश्मि दीदी की कुछ बातों की वजह से सब का मूड कुछ बुझ सा गया था. आप और अदिति की मम्मी उसे कुछ हौसला दें क्योंकि इस वक्त उसे प्यार और अपनेपन की बेहद जरूरत है पर आप तो बिलकुल अलग बात कर रही हैं,’’ मिलिंद के स्वर में गुस्सा नहीं दुख झलक रहा था. वह उठ कर जाने को हुआ तो तभी उस के पापा उसे दरवाजे पर मिले.

‘‘अरे मन्नू कितने दिनों बाद आया है, आ बैठ तो सही, जा कहां रहा है,’’ सुनील उसे देख कर खुशी से बोले.

‘‘बस पापा, आज थोड़ी जल्दी है, मैं आता हूं 1-2 दिन में फिर,’’ मिलिंद उदास स्वर में बोलता हुआ घर से बाहर निकल गया.

‘‘कोई अपनी सम?ादारी भरी बात तो

नहीं कर दी अदिति के लिए?’’ सुनील ने आशा से पूछा.

‘‘लो मैं ने भला क्या कहा होगा यही न कि तू दूसरी शादी के बारे में सोच, अब इस में क्या गलत है? क्या अपने बच्चे का भला भी न सोचे एक मां,’’ यह कह कर आशा बिना कुछ सुनील से सुने वहां से उठ कर चली गईं.

सुनील का आशा की बातों पर कोई ध्यान नहीं था. वे बस एक ठंडी सांस ले कर रह गए. मिलिंद घर आया तो अदिति का चेहरा देख कर ही भांप गया कि सवेरे अदिति की मम्मी आई हुई थीं और यह यहां भी उस की गलतफहमी ही साबित हुई कि उन्होंने भी अदिति को प्यार से कुछ सम?ाया होगा, उस से उस के दिल की बातें सुनी होंगी, कुछ उसे दिलासा दिया होगा. जरूर आज उसे हताश करने वाली बातें कर के गई होंगी.

‘‘क्या कहा मम्मी ने? क्यों उदास हो उन की बातें सोचसोच कर?’’  मिलिंद ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

अदिति ने एक पल को चौंक कर उस की तरफ देखा. मिलिंद ने आंखों के हावभाव से ही उस से दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने कहा कि अब तुम मु?ो छोड़ कर दूसरी शादी कर लोगे,’’ इतना कह कर वह रोने लग गई.

यह सुन कर मिलिंद ठहाका लगा कर हंस पड़ा, ‘‘देखो, मु?ो नहीं पता था कि मम्मी वह क्या कहते हैं अंतर्यामी भी हैं.’’

‘‘क्या मतलब, क्या कहना चाह रहे हो?’’ अदिति उलझे से स्वर में बोली.

‘‘मतलब सच में मेरी मम्मी मेरी दूसरी शादी करवाना चाह रही हैं.’’

यह सुन कर तो अदिति और जोर से रोने लग गई.

‘‘और सुनो, मम्मी ने तो लड़की भी देख ली है,’’ मिलिंद पूरी तरह से अदिति के साथ आज मजाक के मूड में था.

‘‘हांहां कर लो, अब तुम्हारा दिल जो भर गया है मु?ा से,’’ कह कर अदिति उस के पास से उठ कर जाने लगी.

‘‘अरेअरे, कहां जा रही हो,’’ मिलिंद ने उस की बांह खींच कर अपने करीब कर लिया.

‘‘अच्छा, अब रोना बंद करो, सुनो अदिति, तुम्हारी मैंटली और फिजिकली सेहत खराब हो इस कीमत पर मम्मीपापा बनना मेरा सपना नहीं है, बच्चे के लिए और भी औप्शंस हैं, हम आईवीएफ ट्राई कर सकते हैं. हम बच्चा गोद

ले सकते हैं, सब ठीक हो जाएगा बस तुम थोड़ा धैर्य रखो.’’

‘‘पर हम दोनों के घर वाले, क्या वे लोग भी…’’ अदिति कुछ आशंकित सी हो कर बोली.

अदिति की बात बीच में ही काट कर मिलिंद बोला, ‘‘देखो अदिति वे अपने हिसाब से लाइफ को देखते हैं. यह चीज हम सिर्फ बदलने की कोशिश कर सकते हैं पर इस में हम पूरी तरह कामयाब होंगे या नहीं इस की गारंटी नहीं है और आखिर में हमें भी अपनी लाइफ अपने तरीके से जीने का हक है, लाइफ के लिए यह मेरा पेस्पैक्टिव है मतलब परिशेप है सम?ा,’’ मिलिंद ने प्यार से उस का चेहरा पकड़ कर कहा.

‘‘परिशेप नहीं परिप्रेक्ष्य,’’ अदिति ने हंसते हुए कहा.

‘‘टीचरजी,’’ मिलिंद भी अपने कान पकड़ कर हंस दिया.

‘‘वैसे नजरिया भी कहा जा सकता है,’’ अब अदिति भी खिले स्वर में बोली.

‘‘बिलकुल, अपनीअपनी सोच,

अपनाअपना नजरिया,’’ मिलिंद अब हर प्रकार से संतुष्ट था.

लियो: क्या जोया से दूर हुआ यश

राधा यश पर खूब बरसीं, धर्म, जाति, समाज की बड़ीबड़ी बातें कीं लेकिन जब यश भी उखड़ गया, तो रोने लगीं. ये कैसी मां हैं, क्या इन्हें अपने इकलौते व योग्य बेटे की खुशी पसंद नहीं? इंसानों ने अपनी खुशियों के बीच इतनी दीवारें क्यों खड़ी कर ली हैं? अपनों की खुशी इन दीवारों के आगे माने नहीं रखती क्या? राधा जोया को इतने अपशब्द क्यों कह रही हैं? आखिर, ऐसा क्या किया है उस ने?

अहा, जोया आ रही है. उस के परफ्यूम की खुशबू को मैं पहचानता हूं और वह मेरे लिए मटन ला रही है, मुझे यह भी पता चल गया है. अब आई, अब आई और यह बजी डोरबैल. यश लैपटौप पर कुछ काम कर रहा था, जिस फुरती से उस ने दरवाजा खोला, हंसी आई मुझे. प्यार करता है जोया से वह और जोया भी तो जान देती है उस पर. दोनों साथ में कितने अच्छे लगते हैं जैसे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

जैसे ही यश ने दरवाजा खोला, जोया अंदर आई. आते ही यश ने उस के गाल पर किस कर दिया. वह शरमा गई. मैं ने लपक कर अपनी पूंछ जोरजोर से हिला कर अपनी तरह से जोया का स्वागत किया. वह मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए नीचे ही बैठ गई. पूछा, ‘‘कैसे हो, लिओ? देखो, तुम्हारे लिए क्या लाई हूं.’’

मैं ने और तेजी से अपनी पूंछ हिलाई. फिर जोया ने आंगन की तरफ मेरे बरतनों के पास जाते हुए कहा, ‘‘आओ, लिओ.’’ मैं मटन पर टूट पड़ा, कितना अच्छा बनाती है जोया. उस के हाथ में कितना स्वाद है. राधारानी तो अपने मन का कुछ भी बनाखा कर अपनी खाली सहेलियों के साथ सत्संग, भजनों में मस्त रहती हैं. यश बेचारा सीधा है, मां जो भी बना देती है, चुपचाप खा लेता है. कभी कोई शिकायत नहीं करता. अच्छे बड़े पद पर काम करता है, पर घमंड नाम का भी नहीं. और जोया भी कितनी सलीकेदार, पढ़ीलिखी नरम दिल लड़की है. मैं तो इंतजार कर रहा हूं कि कब वह यश की पत्नी बन कर इस घर में आए.

यश के पापा शेखर भी बहुत अच्छे स्वभाव के हैं. घर में क्लेश न हो, यह सोच कर ज्यादातर चुप रहते हैं. राधा की जिदों पर उन्हें गुस्सा तो खूब आता है पर शांत रह जाते हैं. शायद इसी कारण से राधारानी जिद्दी और गुस्सैल होती चली गई हैं. यश का स्वभाव बिलकुल अपने पापा पर ही तो है. घर में मुझे प्यार तो सब करते हैं, राधारानी भी, पर मुझे उन का अपनी जाति पर घमंड करना अच्छा नहीं लगता. उन की बातें सुनता हूं तो बुरा लगता है. बोल नहीं पाता तो क्या हुआ, सुनतासमझता तो सब हूं.

मैं यश और जोया को बताना चाहता हूं कि राधारानी यश के लिए लड़कियां देख रही हैं, यह अभी यश को पता ही नहीं है. वह तो सुबह निकल कर रात तक ही आता है. वह घर आने से पहले जब भी जोया से मिल कर आता है, मैं समझ जाता हूं क्योंकि यश के पास से जोया के परफ्यूम की खुशबू आ जाती है मुझे. एक दिन जोया यश को बता रही थी कि उस का भाई समीर फ्रांस से यह परफ्यूम ‘जा दोर’ लाया था. जब घर में शेखर और राधा नहीं होते, यश जोया को घर में ही बुला लेता है. मैं खुश हो जाता हूं कि अब जोया आएगी, यश की फोन पर बात सुन लेता हूं न. जोया मुझे बहुत प्यार करती है, इसलिए हमेशा मेरे लिए कुछ जरूर लाती है.

यश जोया को अपने बैडरूम में ले गया तो मैं चुपचाप आंगन में आ कर बैठ गया. इतनी समझ है मुझ में. दोनों को बड़ी मुश्किल से यह तनहाई मिलती है. शेखर और राधा को, बस, इतना ही पता है कि दोनों अच्छे दोस्त हैं. दोनों एकदूसरे को बेइंतहा प्यार करते हैं, इस की भनक भी नहीं है उन्हें. मैं जानता हूं, जिस दिन राधारानी को इस बात का अंदाजा भी हो गया, जोया का इस घर में आना बंद हो जाएगा. एक विजातीय लड़की से बेटे की बाहर की दोस्ती तो ठीक है पर इस के आगे राधारानी कुछ सह न पाएंगी. धर्मजाति से बढ़ कर उन के जीवन में कुछ भी नहीं है, पति और बेटे की खुशी भी नहीं.

थोड़ी देर बाद जोया ने अपने और यश के लिए कौफी बनाई. फिर दोनों ड्राइंगरूम में ही बैठ कर बातें करने लगे. अब मैं उन दोनों के पास ही बैठा था.  कौफी पीतेपीते अपने पास बिठा कर मेरे  सिर पर हाथ फेरते रहने की यश की आदत है. मैं भी खुद ही कौफी का कप देख कर उस के पास आ कर बैठ जाता हूं. मुझे भी यही अच्छा लगता है. उस के स्पर्श में इतना स्नेह है कि मेरी आंखें बंद होने लगती हैं, ऊंघने भी लगता हूं. पर अचानक जोया के स्वर में उदासी महसूस हुई तो मेरे कान खड़े हुए.

जोया कह रही थी, ‘‘यश, अगर मैं ने अपने मम्मीपापा को मना भी लिया तो तुम्हारी मम्मी तो कभी राजी नहीं होंगी, सोचो न यश, कैसे होगा?’’

‘‘तुम चिंता मत करो जो, अभी टाइम है, सब ठीक हो जाएगा.’’

जो, यश भी न. जोया के पहले से ही छोटे नाम को उस ने ‘जो’ में बदल दिया है, हंसी आती है मुझे. खैर, मैं यश को कैसे बताऊं कि अब टाइम नहीं है, राधारानी लड़कियां देख रही हैं. मैं ने अपने मुंह से कूंकूं तो किया पर समझाऊं कैसे. मुझे जोया के उतरे चेहरे को देख कर तरस आया तो मैं जोया की गोद में मुंह रख कर बैठ गया.

जोया की आंखें भर आई थीं, बोली, ‘‘यश, मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकती.’’

‘‘ठीक है जो, मैं मम्मी से जल्दी ही बात करूंगा. तुम दुखी मत हो.’’

फिर यश अपने हंसीमजाक से जोया को हंसाने लगा. दोनों हंसते हुए कितने प्यारे लगते हैं. जोया की लंबी सी चोटी पकड़ कर यश ने उसे अपने पास खींच लिया था. वह हंस दी. मैं भी हंस रहा था. फिर जोया ने अपने फोन से हम तीनों की एक सैल्फी ली. वाह, ‘हैप्पी फैमिली’ जैसा फील हुआ मुझे. फिर जोया टाइम देखती हुई उठ खड़ी हुई, ‘‘अब आंटीअंकल के आने का टाइम हो रहा है, मैं चलती हूं.’’

‘‘हां, ठीक है,’’ कहते हुए यश ने खड़े हो कर उसे बांहों में भर लिया, फिर उस के होंठों पर किस कर दिया. मैं जानबूझ कर इधरउधर देखने लगा था.

जोया के जाने के 20 मिनट बाद शेखर और राधा आ गए. मैं ने सोचा, अच्छा हुआ, जोया टाइम से चली गई. जोया के परफ्यूम की जो खुशबू पूरे घर में आती रहती है, उसे शेखर और राधा महसूस नहीं करते. घंटों तक रहती है यह खुशबू घर में. कितनी अच्छी खुशबू है यह. पर आज शायद घर में मटन और परफ्यूम की अलग ही खुशबू राधारानी को महसूस हो ही गई, पूछा, ‘‘यश, कैसी महक है?’’

‘‘क्या हुआ, मम्मी?’’

‘‘कोई आया था क्या?’’

‘‘हां मम्मी, मेरे कुछ फ्रैंड्स आए थे.’’

शक्की तो हैं ही राधारानी, ‘‘अच्छा? कौनकौन?’’

‘‘अमित, महेश, अंजलि और जोया. जोया ही लिओ के लिए मटन ले आई थी.’’

शेखर ने जोया के नाम पर जिस तरह यश को देखा, मजा आ गया मुझे. बापबेटे की नजरें मिलीं तो यश मुसकरा दिया, वाह. बापबेटे की आंखोंआंखों में जो बातें हुईं, उन से मुझे मजा आया. दोनों का बढि़या दोस्ताना रिश्ता है. शेखर गरदन हिला कर मुसकराए, यश मुंह छिपा कर हंसने लगा. अचानक राधा ने कहा, ‘‘यश, अगले वीकैंड का कुछ प्रोग्राम मत रखना. फ्री रहना.’’

‘‘क्यों, मम्मी?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे लिए एक लड़की पसंद की है, ज्योति, उसे देखने चलेंगे.’’

‘‘नहीं मम्मी, मुझे नहीं देखना है किसी को.’’

‘‘क्यों?’’ राधारानी के माथे पर त्योरियां उभर आईं.

‘‘बस, नहीं जाना मुझे.’’

‘‘कारण बताओ.’’

यश ने पिता को देखा, शेखर ने सस्नेह पूछा, ‘‘तुम्हारी कोईर् पसंद है?’’

यश साफ बात करने वाला सच्चा इंसान है. उसे लागलपेट नहीं आती, बोला, ‘‘मम्मी, मुझे जोया पसंद है, मैं उसी से मैरिज करूंगा.’’

जोया के नाम पर जो तूफान आया, पूरा घर हिल गया. राधा यश पर खूब बरसीं, धर्म, जाति, समाज की बड़ीबड़ी बातें कीं. जब यश भी उखड़ गया, तो रोने पर आ गईं. वैसा ही दृश्य हो गया जैसा फिल्मों में होता है. यश जब घर में कोई मूवी देखता है, मैं भी देखता हूं उस के साथ बैठ कर, ऐसा दृश्य तो खूब घिसापिटा है पर अब तो मेरे यश से इस का संबंध था तो मैं बहुत दुखी हो रहा था. मुझे बारबार जोया की आज की ही आंसुओं से भरी आंखें याद आ रही थीं.

मैं चुपचाप शेखर के पास बैठ कर सारा तमाशा देख रहा था और सोच रहा था, ये कैसी मां हैं, क्या इन्हें अपने इकलौते व योग्य बेटे की खुशी अजीज नहीं?

इंसानों ने अपनी खुशियों के बीच इतनी दीवारें क्यों खड़ी कर ली हैं? अपनों की खुशी इन दीवारों के आगे माने नहीं रखती? राधा जोया को इतने अपशब्द क्यों कह रही हैं? ऐसा क्या किया उस ने?

यश अपने बैडरूम की तरफ बढ़ गया तो मैं झट उठ कर उस के पीछे चल दिया. वह बैड पर औंधेमुंह पड़ गया. मैं ने उस के पैर चाटे. अपना मुंह उस के पैरों पर रख कर उसे तसल्ली दी. वह मुझे अपनी गोद में उठा कर वापस अपने पास लिटा कर एक हाथ अपनी आंखों पर रख कर सिसक उठा तो मुझे भी रोना आ गया. यश को तो मैं ने आज तक रोते देखा ही नहीं था. ये कैसी मां हैं? इतने में शेखर यश के पास आ कर बैठ गए.

यश के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,  ‘‘बेटा, तुम्हारी मां जोया को किसी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगी.’’

‘‘और मैं उस के सिवा किसी और से विवाह नहीं करूंगा, पापा.’’

घर का माहौल अजीब हो गया था. अगले कई दिन घर का माहौल बेहद तनावपूर्ण रहा. राधा और यश दोनों अपनी बात पर अड़े थे. शेखर कभी राधा को समझा रहे थे, कभी यश को. यश कभी घर में खाता, कभी बाहर से खा कर आता और चुपचाप अपने कमरे में बंद हो जाता. वह जोया से तो बाहर मिलता ही था, मुझे तो जोया के परफ्यूम की खुशबू अकसर यश के पास से आ ही जाती थी.

मैं ने जोया को बहुत दिनों से नहीं देखा था. मुझे जोया की याद आती थी. यश का उदास चेहरा देख कर भी राधा का हठ कम नहीं हो रहा था और मेरा यश तो मुझे आजकल बिलकुल रूठारूठा फिल्मी हीरो लगता था.

एक दिन राधा यश के पास आईं, टेबल पर एक लिफाफा रखती हुई बोलीं, ‘‘यह रही ज्योति की फोटो. एक बार देख लो, खूब धनी व समृद्ध परिवार है.  ज्योति परिवार की इकलौती वारिस है. तुम्हारा जीवन बन जाएगा और एक बात कान खोल कर सुन लो, यह इश्क का भूत जल्दी उतार लो, वरना मैं अन्नजल त्याग दूंगी.’’

मैं ने मन ही मन कहा, झूठी. आप तो भूखी रह ही नहीं सकतीं. व्रत में भी आप का मुंह पूरा दिन चलता है. मेरे यश को झूठी धमकियां दे रही हैं राधारानी. झूठी बातें कर के यश को परेशान कर रही हैं, बेचारा फंस न जाए. अन्नजल त्यागने की धमकी से सचमुच यश का मुंह उतर गया.

अब मैं कैसे बताऊं कि यश, इस धमकी से डरना मत, तुम्हारी मां कभी भूखी नहीं रह सकतीं. जोया को न छोड़ना, तुम दोनों साथ बहुत खुश रहोगे. पिछली बार जो मेरे फेवरेट पौपकौर्न तुम मेरे लिए लाए थे, आधे तो राधारानी ने ही खा लिए थे. 4 अपने मुंह में डाल रही थीं तो एक मेरे लिए जमीन पर रख रही थीं. एक बार भी नहीं सोचा कि मेरे फेवरेट पौपकौर्न हैं और तुम मेरे लिए लाए थे. तुम ने जोया के साथ मूवी देखते हुए खरीदे थे और आ कर झूठ बोला था कि एक दोस्त के साथ मूवी देख कर आए हो. हां, ठीक है, ऐसी मां से झूठ बोलना ही पड़ जाता है. गपड़गपड़ सारे पौपकौर्न खा गई थीं राधारानी. ये कभी भूखी नहीं रहतीं, तुम डरना मत, यश.

फोटो पटक कर राधा शेखर के साथ कहीं बाहर चली गई थीं. यश सिर पकड़ कर बैठ गया था. मैं तुरंत उस के पैरों के पास जा कर बैठ गया. इतने दिनों से घर में तूफान आया हुआ था. यश के साथ मैं भी थक चुका था. मैं ने उसे कभी अपने मातापिता से ऊंची आवाज में बात करते हुए भी नहीं सुना था. उसे अपनी पसंद की जीवनसंगिनी की इच्छा का अधिकार क्यों नहीं है? इंसानों में यह भेदभाव करता कौन है और क्यों? क्यों एक इंसान दूसरे इंसान से इतनी नफरत करता है? मेरा मन हुआ, काश, मैं बोल सकता तो यश से कहता, ‘दोस्त, यह तुम्हारा जीवन है, बेकार की बहस छोड़ कर अपनी पसंद का विवाह तुम्हारा अधिकार है. राधारानी ज्यादा दिनों तक बेटे से नाराज थोड़े ही रहेंगी. तुम ले आओ जोया को अपनी दुलहन बना कर. जोया को जाननेसमझने के बाद वे तुम्हारी पसंद की प्रशंसा ही करेंगी.’ यश मुझे प्यार करने लगा तो मैं  भी उस से चिपट गया.

मैं बेचैन सा हुआ तो यश ने कहा, ‘‘लिओ, क्या करूं? प्लीज हैल्प मी. बताओ, दोस्त. मां की पसंद देखनी है? मुझे भी पता है तुम्हें भी जोया पसंद है, है न?’’

मैं ने खूब जोरजोर से अपनी पूंछ हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया. वह भी समझ गया. हम दोनों तो पक्के दोस्त हैं न. एकदूसरे की सारी बातें समझते हैं, फिर उसे पता नहीं क्या सूझा, बोला, ‘‘आओ, तुम्हें मां की पसंद दिखाता हूं.’’

यश ने मेरे आगे उस लड़की की फोटो की. मुझे धक्का लगा, मेरे हीरो जैसे हैंडसम दोस्त के लिए यह भीमकाय लड़की. पैसे व जाति के लिए राधारानी इसे बहू बना लेंगी. छिछि, लालची हैं ये. यश को भी झटका लगा था. वह चुपचाप अपनी हथेलियों में सिर रख कर बैठ गया. उस की आंखों की कोरों से नमी सी बह गई. मैं ने उस के घुटनों पर अपना सिर रख कर उसे प्यार किया. मुंह से कुछ आवाज भी निकाली. वह थके से स्वर में बोला.

‘‘लिओ, देखा? मां कितनी गलत जिद कर रही हैं. बताओ दोस्त, क्या करना चाहिए अब?’’

मेरा दोस्त, मेरा यार मुझ से पूछ रहा था तो मुझे बताना ही था. राधारानी को पता नहीं आजकल के घर के दमघोंटू माहौल में चैन आ रहा था, यह तो वही जानें. यश की उदासी मुझे जरा भी सहन नहीं हो रही थी. मेरा दोस्त अब मुझ से पूछ रहा था तो मुझे तो अपनी राय देनी ही थी. क्या करूं, क्या करूं, ऐसे समय न बोल पाना बहुत अखरता है. मैं ने झट न आव देखा न ताव, उस फोटो को मुंह में डाला और चबा कर जमीन पर रख दिया. यश को तो यह दृश्य देख हंसी का दौरा पड़ गया. मैं भी हंस दिया, खूब पूंछ हिलाई. दोनों पैरों पर खड़ा भी हो गया. यश तो हंसतेहंसते जमीन पर लेट गया था. मैं भी उस से चिपट गया. हम दोनों जमीन पर लेटेलेटे खूब मस्ती करने लगे थे.

अब यश की हंसी नहीं रूक रही थी. मैं भांप गया था, अब यश जोया से दूर नहीं होगा. वह फैसला ले चुका था और मैं इस फैसले से बहुत खुश था. मुझ पर अपना हाथ रखते हुए यश कह रहा था, ‘‘ओह लिओ, आई लव यू.’’

‘मी टू,’ मैं ने भी उस का हाथ चाट कर जवाब सा दिया था.

नया रिश्ता : पार्वती-विशाल ने किसे चुना अपना जीवनसाथी

अमित की मम्मी पार्वती ने शरमाते हुए विशाल कुमार को अंगूठी पहनाई तो अमित की पत्नी शिवानी और उन के बच्चे अनूप व अतुल ने अपनी दादी पर फूलों की बरसात करनी शुरू कर दी. बाद में विशाल कुमार ने भी पार्वती को अंगूठी पहना दी. माहौल खुशनुमा हो गया, सभी के चेहरे खिल उठे, खुशी से झूमते बच्चे तो अपने नए दादा की गोद में जा कर बैठ गए.

यह नज़ारा देख कर अमित की आंखें नम हो गईं. वह अतीत की यादों में खो गया. अमित 5 वर्षों से शहर की सब से पौश कालोनी सनराइज सोसाइटी में रह रहा था. शिवानी अपने मिलनसार स्वभाव के कारण पूरी कालोनी की चहेती बनी हुई थी. कालोनी के सभी कार्यक्रमों में शिवानी की मौजूदगी अकसर अनिवार्य होती थी.

अमित के मातापिता गांव में रहते थे. अमित चाहता था कि वे दोनों उस के साथ मुंबई में रहने के लिए आ जाएं मगर उन्होंने गांव में ही रहना ज्यादा पसंद किया. वे साल में एकदो बार 15-20 दिनों के लिए जरूर अमित के पास रहने के लिए मुंबई आते थे. मगर मुंबई आने के 8-10 दिनों बाद ही गांव लौटने का राग आलापने लग जाते थे.

वक्त बीत रहा था. एक दिन रात को 2 बजे अमित का मोबाइल बजा.

‘हैलो, अमित बेटा, मैं तुम्हारे पिता का पड़ोसी रामप्रसाद बोल रहा हूं. बहुत बुरी खबर है, तुम्हारे पिता शांत हो गए है. अभी घंटेभर पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था. हम उन्हें अस्पताल ले कर जा रहे थे, रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया.’

अपने पिता की मृत्यु के बाद अमित अपनी मम्मी को अपने साथ मुंबई ले कर आ गया. बतौर अध्यापिका सेवानिवृत्त हुई पार्वती अपने पति के निधन के बाद बहुत अकेली हो गई थी. पार्वती को पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था. अमित और शिवानी के नौकरी पर जाने के बाद वह अपने पोते अनूप और अतुल को पढ़ाती थी. उन के होमवर्क में मदद भी करती थी.

पार्वती को अमित के पास आए 2 साल हो गए थे. अमित के पड़ोस में विशाल कुमार रहते थे. वे विधुर थे, नेवी से 2 साल पहले ही रिटायर हो कर रहने के लिए आए थे. उन का एक ही बेटा था जो यूएस में सैटल हो गया था. एक दिन शिवानी ने पार्वती की पहचान विशाल कुमार से करवाई. दोपहर में जब बच्चे स्कूल चले जाते थे तब दोनों मिलते थे. कुछ दिनों तक दोनों के बीच औपचारिक बातें होती थीं. धीरेधीरे औपचारिकता की दीवार कब ढह गई, उन्हें पता न चला. अब दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई. पार्वती और विशाल कुमार का अकेलापन दूर हो गया.

एक दिन शिवानी ने अमित से कहा- ‘अमित, पिछले कुछ दिनों से मम्मी में आ रहे बदलाव को तुम ने महसूस किया क्या?’

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, उस ने विस्मय से पूछा- ‘मैं कुछ समझा नहीं, शिवानी, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे अमित, मम्मी अब पहले से ज्यादा खुश नज़र आ रही हैं, उन के रहनसहन में भी अंतर आया है. पहले मम्मी अपने पहनावे पर इतना अधिक ध्यान नहीं देती थीं, आजकल वे बहुत ही करीने से रह रही हैं. उन्होंने अपने संदूक से अच्छीअच्छी साड़ियां निकाल कर वार्डरोब में लटका दी हैं. आजकल वे शाम को नियमितरूप से घूमने के लिए जाती हैं…’

अमित ने शिवानी की बात बीच में काटते हुए पूछा- ‘शिवानी, मैं कुछ समझा नहीं, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे भई, मम्मी को एक दोस्त मिल गया है. देखते नहीं, आजकल उन का चेहरा खिला हुआ नज़र आ रहा है.’

‘व्हाट…कैसा दोस्त, कौन दोस्त, शिवानी. प्लीज पहेली मत बुझाओ, खुल कर बताओ.’

‘अरे अमित, आजकल हमारे पड़ोसी विशाल अंकल और मम्मी के बीच याराना बढ़ रहा है,’ यह कहती हुई शिवानी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है. मम्मी वैसे भी अकेली पड़ गई थीं. वे हमेशा किताबों में ही खोई रहती थीं. कोई आदमी दिनभर किताबें पढ़ कर या टीवी देख कर अपना वक्त भला कैसे गुजार सकता है. कोई तो बोलने वाला चाहिए न. चलो, अच्छा हुआ मगर यह सब कब से हो रहा है, मैं ने तो कभी महसूस नहीं किया. तुम्हारी पारखी नज़रों ने यह सब कब भांप लिया? शिवानी, यू आर ग्रेट…’ अमित ने विस्मय से कहा.

‘अरे अमित, तुम्हें अपने औफिस के काम, मीटिंग, प्रोजैक्ट्स आदि से फुरसत ही कहां है, मम्मी अकसर मुझ से तुम्हारी शिकायत भी करती हैं कि अमित को तो मुझ से बात करने का वक्त भी नहीं मिलता है,’ शिवानी ने शिकायत की तो अमित तुरंत बोला, ‘हां शिवानी, तुम सही कह रही हो, आजकल औफिस में इतना काम बढ़ गया है कि सांस लेने की फुरसत तक नहीं मिलती है. मगर मुझे यह सुन कर अच्छा लगा कि अब मम्मी बोर नहीं होंगी. साथ ही, हमें कभी बच्चों को ले कर एकदो दिन के लिए बाहर जाना पड़ा तो मम्मी घर पर अकेली भी रह सकती हैं.’ अमित ने अपने दिल की बात कह दी.

‘मगर अमित, मैं कुछ और सोच रही हूं,’ शिवानी ने धीरे से रहस्यमयी आवाज में कहा तो अमित ने विस्मयभरी आंखों से शिवानी की सूरत को घूरते हुए कहा- ‘हां, बोलो, बोलो, तुम क्या सोच रही हो?’

‘मैं सोच रही हूं कि तुम विशाल अंकल को अपना पापा बना लो,’ शिवानी ने तुरुप का पता फेंक दिया.

‘क्या…तुम्हारा दिमाग तो नहीं खिसक गया,’ अमित लगभग चिल्लाते हुए बोला.

‘अरे भई, शांत हो जाओ, पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मम्मी अकेली हैं, उन के पति नहीं हैं. और विशाल अंकल भी अकेले हैं व उन की पत्नी नहीं हैं. जवानी की बनिस्पत बुढ़ापे में जीवनसाथी की जरूरत ज्यादा होती है. मम्मी और विशाल अंकल दोनों सुलझे हुए विचारों के इंसान हैं, दोनों सीनियर सिटिजन हैं और अपनी पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त हैं.

‘विशाल अंकल का इकलौता बेटा है जो यूएस में सैटल है. विशाल अंकल के बेटे सुमित और उस की पत्नी तान्या से मेरी अकसर बातचीत भी होती रहती है. वे दोनों भी चाहते हैं कि उन के पिता यूएस में हमेशा के लिए आ जाएं मगर उन्हें तो अपने वतन से असीम प्यार है, वे किसी भी कीमत पर वहां जाने को राजी नहीं, सेना के आदमी जो ठहरे. फिर उन का तो कहना है कि वे आखरी सांस तक अपने बेटे और बहू को भारत लाने की कोशिश करते रहेंगे. मगर वे अपनी मातृभूमि मरते दम तक नहीं छोडेंगे.’ अमित बड़े ध्यान से शिवानी की बात सुन रहा था.

शिवानी ने किंचित विश्राम के बाद कहा, ‘अमित, अब मैं मुख्य विषय पर आती हूं. तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ का नाम तो सुना ही होगा.’

शिवानी की बात सुन कर अमित के चेहरे पर अनभिज्ञता के भाव तेजी से उभरने लगे जिन्हें शिवानी ने क्षणभर में पढ़ लिया और अमित को समझाते हुए बोली- ‘अमित, आजकल हमारे देश में विशेषकर युवाओं और बुजुर्गों के बीच एक नए रिश्ते का ट्रैंड चल रहा है जिसे ‘लिवइन रिलेशनशिप’ कहते हैं. इस में महिला और पुरूष शादी के बिना अपनी सहमति के साथ एक ही घर में पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं. आजकल शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र लोग इस तरह की रिलेशनशिप को अधिक पसंद करते है क्योंकि इस में विवाह की तरह कानूनी प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता है. भारतीय कानून में भी इसे स्वीकृति दी गई है.

‘शादी के टूटने के बाद आप को कई तरह की कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पडता है मगर इस रिश्ते में इतनी मुश्किलें नहीं आती हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला आप को सामाजिक व पारिवारिक दायित्वों से मुक्ति देता है. इस रिश्ते में सामाजिक व पारिवारिक नियम आप पर लागू नहीं होते हैं. अगर यह रिश्ता टूट भी जाता है तो आप इस में से आसानी बाहर आ सकते हैं. इस में कोई कानूनी अड़चन भी नहीं आती है. इसलिए मैं चाहती हूं कि…’ बोलती हुई शिवानी फिर रुक गई तो अमित अधीर हो गया और झल्लाते हुए बोला- ‘अरे बाबा, लगता है तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ विषय में पीएच डी कर रखी है. पते की बात तो बता नहीं रही हो, लैक्चर दिए जा रही हो.’

‘अरे यार, बता तो रही हूं, थोड़ा धीरज रखो न,’ शिवानी ने मुसकराते हुए कहा.

‘ठीक है, बताओ,’ अमित ने बात न बढ़ाने की मंशा से कहा.

‘अमित, मैं चाहती हूं कि हम मम्मी और विशाल अंकल को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने के लिए राजी कर लेते हैं ताकि दोनों निश्चिंत और स्वच्छंद हो कर साथसाथ घूमफिर सकें,’ शिवानी ने अपने मन की बात कह दी.

‘मगर शिवानी, क्या मम्मी इस के लिए तैयार होंगी?’ अमित ने संदेह व्यक्त किया.

‘क्यों नहीं होंगी, वैसे भी आजकल दोनों छिपछिप एकदूसरे से मिल रहे हैं, मोबाइल पर घंटों बात करते हैं. लिव इन रिलेशनशिप के लिए दोनों तैयार हो जाएंगे तो वे दुनिया से डरे बगैर खुल कर मिल सकेंगे, साथ में भी रह सकेंगे,’ शिवानी ने अमित को आश्वस्त करते हुए कहा.

‘इस के लिए मम्मी या विशाल अंकल से बात करने की मुझ में तो हिम्मत नहीं है बाबा,’ अमित ने हथियार डालते हुए कहा.

‘इस की चिंता तुम न करो, अमित. अपनी ही कालोनी में रहने वाली मेरी एक खास सहेली रेणू इस मामले में मेरी सहायता करेगी. वह इस प्रेमकहानी से भलीभांति वाकिफ भी है. हम दोनों मिल कर इस शुभकार्य को जल्दी ही अंजाम दे देंगे. हमें, बस, तुम्हारी सहमति का इंतजार है,’ शिवानी ने विश्वास के साथ यह कहा तो अमित की व्यग्रता कुछ कम हुई.

उस ने शांत स्वर में कहा, ‘अगर मम्मी इस के लिए तैयार हो जाती हैं तो भला मुझे क्यों एतराज होगा. उन्हें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का हक तो है न.’

अमित की सहमति मिलते ही शिवानी और रेणु अपने मिशन को अंजाम देने में जुट गईं. शिवानी को यह विश्वास था कि पार्वती और विशाल अंकल पुराने जमाने के जरूर हैं मगर उन्हें आधुनिक विचारधारा से कोई परहेज नहीं है. दोनों बहुत ही फ्लैग्जिबल है और परिवर्तन में यकीन रखते हैं. एक संडे को शिवानी और रेणू गुलाब के फूलों के एक सुंदर गुलदस्ते के साथ विशाल अंकल के घर पहुंच गईं.

विशाल कुमार ने अपने चिरपरिचित मजाकिया स्वभाव में उन का स्वागत करते हुए कहा- ‘वाह, आज सूरज किस दिशा में उदय हुआ है, आज तो आप दोनों के चरण कमल से इस गरीब की कुटिया पवित्र हो गई है.’

शिवानी और रेणू ने औपचारिक बातें समाप्त करने के बाद मुख्य बात की ओर रुख किया. रेणू ने कहना शुरू किया-

‘अंकल, आप की और पार्वती मैडम की दोस्ती से हम ही नहीं, पूरी कालोनी वाकिफ है. इस दोस्ती ने आप दोनों का अकेलापन और एकांतवास खत्म कर दिया है. कालोनी के लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर अकसर आप दोनों छिपछिप कर मिलते हैं. अंकल, हम चाहते हैं कि आप दोनों ‘औफिशियली’ एकदूसरे से एक नया रिश्ता बना लो और दोनों खुल कर दुनिया के सामने आ जाओ…’

कुछ गंभीर बने विशाल कुमार ने बीच में ही पूछा, ‘मैं समझा नहीं, रेणू. तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘अंकल, आप और पार्वती मैडम ‘लिवइन रिलेशनशिप’ बना लो, फिर आप को दुनिया का कोई डर नहीं रहेगा. आप कानूनीरूप से दोनों साथसाथ रह सकते हैं और घूमफिर सकते हैं,’ यह कहती हुई शिवानी ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के बारे में विस्तृत जानकारी विशाल अंकल दे दी.

विशाल अंकल इस के लिए तुरंत राजी होते हुए बोले-

‘यह तो बहुत अच्छी बात है. दरअसल, मेरे और पार्वती के बीच अब तो अच्छी कैमिस्ट्री बन गई है. हमारे विचारों में भी बहुत समानता है. हम जब भी मिलते हैं तो घंटों बाते करते हैं. पार्वती को हिंदी साहित्य की अकूत जानकारी है. उस ने अब तक मुझे हिंदी की कई प्रसिद्ध कहानियां सुनाई हैं.’

‘अंकल, अब पार्वती मैडम को लिवइन रिलेशनशिप के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी आप की होगी.’

‘यस, डोन्ट वरी, आई विल डू इट. मगर जैसे आप दोनों ने मुझ से बात की है, वैसे एक बार पार्वती से भी बात कर लो तो ज्यादा ठीक होगा, बाकी मैं संभाल लूंगा.’

विशाल अंकल को धन्यवाद दे कर शिवानी और रेणू खुशीखुशी वहां से विदा हुईं. अगले संडे दोनों ने पार्वती से बात की. पहले तो उन्होंने ना नू, ना नू किया, मगर शिवानी और रेणू जानती थीं कि पार्वती दिल से विशाल कुमार को चाहती हैं और वे इस रिश्ते के लिए न नहीं कहेंगी, फिर उन दोनों की बेहतर कन्विन्सिंग स्किल के सामने पार्वती की ‘ना’ कुछ ही समय के बाद ‘हां’ में बदल गई.

शिवानी ने दोनों की ‘लिव इन रिलेशनशिप’ की औपचारिक घोषणा के लिए एक दिन अपने घर  पर एक छोटी पार्टी रखी थी, जिस में अमित, शिवानी और विशाल कुमार के बहुत करीबी दोस्त ही आमंत्रित थे. विशाल और पार्वती ने एकदूसरे को अंगूठियां पहना कर इस नए रिश्ते को सहर्ष स्वीकर कर लिया.

“अरे अमित, कहां खो गए हो, अपनी मम्मी और नए पापा को केक तो खिलाओ,” शिवानी ने चिल्ला कर यह कहा तो अमित अतीत से वर्तमान में लौटा.

इस नए रिश्ते को देख अमित की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी.

तेरी देहरी : अनुभव पर क्यों डोरे डाल रही थी अनुभा

लेखक- आनंद बिल्थरे

क्लासरूम से बाहर निकलते ही अनुभा ने अनुभव से कहा, ‘‘अरे अनुभव, कैमिस्ट्री मेरी समझ में नहीं आ रही है. क्या तुम मेरे कमरे पर आ कर मुझे समझा सकते हो?’’

‘‘हां, लेकिन छुट्टी के दिन ही आ पाऊंगा.’’

‘‘ठीक है. तुम मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना नंबर दे दो. मैं इस रविवार को तुम्हारा इंतजार करूंगी. मेरा कमरा नीलम टौकीज के पास ही है. वहां पहुंच कर मुझे फोन कर देना. मैं तुम्हें ले लूंगी.’’

रविवार को अनुभव अनुभा के घर में पहुंचा. अनुभा ने बताया कि उस के साथ एक लड़की और रहती है. वह कंप्यूटर का कोर्स कर रही है. अभी वह अपने गांव गई है.

अनुभव ने अनुभा से कहा कि वह कैमिस्ट्री की किताब निकाले और जो समझ में न आया है वह

पूछ ले. अनुभा ने किताब निकाली और बहुत देर तक दोनों सूत्र हल करते रहे.

अचानक अनुभा उठी और बोली, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

अनुभव मना करना चाह रहा था लेकिन तब तक वह किचन में पहुंच गई थी. थोड़ी देर में वह एक बडे़ से मग में चाय ले कर आ गई. अनुभव ने मग लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी मग की चाय उस की शर्टपैंट पर गिर गई.

‘‘सौरी अनुभव, गलती मेरी थी. मैं दूसरी चाय बना कर लाती हूं. तुम्हारी शर्टपैंट दोनों खराब हो गई हैं. ऐसा करो, कुछ देर के लिए तौलिया लपेट लो. मैं इन्हें धो कर लाती हूं. पंखे की हवा में जल्दी सूख जाएंगे. तब मैं प्रैस कर दूंगी.’’

अनुभव न… न… करता रहा, लेकिन अनुभा उस की ओर तौलिया उछाल कर भीतर चली गई.

अनुभव ने शर्टपैंट उतार कर तौलिया लपेट लिया. तब तक अनुभा दूसरे मग में चाय ले कर आ गई थी. वह शर्टपैंट ले कर धोने चली गई.

अनुभव ने चाय खत्म की ही थी कि अनुभा कपड़े फैला कर वापस आ गई. उस ने ढीलाढाला गाउन पहन रखा था. अनुभव ने सोचा शायद कपड़े धोने के लिए उस ने ड्रैस बदली हो.

अचानक अनुभा असहज महसूस करने लगी मानो गाउन के भीतर कोई कीड़ा घुस गया हो. अनुभा ने तुरंत अपना गाउन उतार फेंका और उसे उलटपलट कर देखने लगी.

अनुभव ने देखा कि अनुभा गाउन के भीतर ब्रा और पैंटी में थी. वह जोश और संकोच से भर उठा. एकाएक हाथ बढ़ा कर अनुभा ने उस का तौलिया खींच लिया.

अनुभव अंडरवियर में सामने खड़ा था. अनुभा उस से लिपट गई. अनुभव भी अपनेआप को संभाल नहीं सका. दोनों वासना के दलदल में रपट गए.

अगले रविवार को अनुभा ने फोन कर अनुभव को आने का न्योता दिया. अनुभव ने आने में आनाकानी की, पर अनुभा के यह कहने पर कि पिछले रविवार की कहानी वह सब को बता देगी, वह आने को तैयार हो गया.

अनुभव के आते ही अनुभा उसे पकड़ कर चूमने लगी और गाउन की चेन खींच कर तकरीबन बिना कपड़ों के बाहर आ गई. अनुभव भी जोश में था. पिछली बार की कहानी एक बार फिर दोहराई गई. जब ज्वार शांत हो गया, अनुभा उसे ले कर गोद में बैठ गई और उस के नाजुक अंगों से खेलने लगी.

अनुभा ने पहले से रखा हुआ दूध का गिलास उसे पीने को दिया. अनुभव ने एक ही घूंट में गिलास खाली कर दिया.

अभी वे बातें कर ही रहे थे कि भीतर के कमरे से उस की सहेली रमा निकल कर बाहर आ गई.

रमा को देख कर अनुभव चौंक उठा. अनुभा ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है. वह उस की सहेली है और उसी के साथ रहती है.

रमा दोनों के बीच आ कर बैठ गई. अचानक अनुभा उठ कर भीतर चली गई.

रमा ने अनुभव को बांहों में भींच लिया. न चाहते हुए भी अनुभव को रमा के साथ वही सब करना पड़ा. जब अनुभव घर जाने के लिए उठा तो बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था. दोनों ने चुंबन ले कर उसे विदा किया.

इस के बाद से अनुभव उन से मिलने में कतराने लगा. उन के फोन आते ही वह काट देता.

एक दिन अनुभा ने स्कूल में उसे मोबाइल फोन पर उतारी वीडियो क्लिपिंग दिखाई और कहा कि अगर वह आने से इनकार करेगा तो वह इसे सब को दिखा देगी.

अनुभव डर गया और गाहेबगाहे उन के कमरे पर जाने लगा.

एक दिन अनुभव के दोस्त सुरेश ने उस से कहा कि वह थकाथका सा क्यों लगता है? इम्तिहान में भी उसे कम नंबर मिले थे.

अनुभव रोने लगा. उस ने सुरेश को सारी बात बता दी.

सुरेश के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. सुरेश ने अनुभव को अपने पिता से मिलवाया. सारी बात सुनने के बाद वे बोले, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

‘‘18 साल.’’

‘‘और उन की?’’

‘‘इसी के लगभग.’’

‘‘क्या तुम उन का मोबाइल फोन उठा कर ला सकते हो?’’

‘‘मुझे फिर वहां जाना होगा?’’

‘‘हां, एक बार.’’

अब की बार जब अनुभा का फोन आया तो अनुभव काफी नानुकर के बाद हूबहू उसी के जैसा मोबाइल ले कर उन के कमरे में पहुंचा.

2 घंटे समय बिताने के बाद जब वह लौटा तो उस के पास अनुभा का मोबाइल फोन था.

मोबाइल क्लिपिंग देख कर इंस्पैक्टर चकित रह गए. यह उन की जिंदगी में अजीब तरह का केस था. उन्होंने अनुभव से एक शिकायत लिखवा कर दोनों लड़कियों को थाने बुला लिया.

पूछताछ के दौरान लड़कियां बिफर गईं और उलटे पुलिस पर चरित्र हनन का इलजाम लगाने लगीं. उन्होंने कहा कि अनुभव सहपाठी के नाते आया जरूर था, पर उस के साथ ऐसीवैसी कोई गंदी हरकत नहीं की गई.

अब इंस्पैक्टर ने मोबाइल क्लिपिंग दिखाई. दोनों के सिर शर्म से झुक गए. इंस्पैक्टर ने कहा कि वे उन के मातापिता और प्रिंसिपल को उन की इस हरकत के बारे में बताएंगे.

लड़कियां इंस्पैक्टर के पैर पकड़ कर रोने लगीं. इंस्पैक्टर ने कहा कि इस जुर्म में उन्हें सजा हो सकती है. समाज में बदनामी होगी और स्कूल से निकाली जाएंगी सो अलग. उन के द्वारा बारबार माफी मांगने के बाद इंस्पैक्टर ने अनुभव की शिकायत पर लिखवा लिया कि वे आगे से ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगी.

अनुभव ने वह स्कूल छोड़ कर दूसरे स्कूल में दाखिला ले लिया. साथ ही उस ने अपने मोबाइल की सिम बदल दी.

इस घटना को 7 साल गुजर गए.

अनुभव पढ़लिख कर कंप्यूटर इंजीनियर बन गया. इसी बीच उस के पिता नहीं रहे. मां की जिद थी कि वह शादी कर ले.

अनुभव ने मां से कहा कि वे अपनी पसंद की जिस लड़की को चुनेंगी, वह उसी से शादी कर लेगा.

अनुभव को अपनी कंपनी से बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐन फेरों के दिन वह घर आ पाया. शादी खूब धूमधाम से हो गई.

सुहागरात के दिन अनुभव ने जैसे ही दुलहन का घूंघट उठाया, वह चौंक पड़ा. पलंग पर लाजवंती सी घुटनों में सिर दबाए अनुभा बैठी थी.

‘‘तुम…?’’ अनुभव ने चौंकते हुए कहा.

‘‘हां, मैं. अपनी गलती का प्रायश्चित्त करने के लिए अब जिंदगीभर के लिए फिर तुम्हारी देहरी पर मैं आ गई हूं. हो सके तो मुझे माफ कर देना,’’ इतना कह कर अनुभा ने अनुभव को गले लगा लिया.

प्यार का विसर्जन : क्यों दीपक से रिश्ता तोड़ना चाहती थी स्वाति

अलसाई आंखों से मोबाइल चैक किया तो देखा 17 मिस्ड कौल्स हैं. सुबह की लाली आंगन में छाई हुई थी. सूरज नारंगी बला पहने खिड़की के अधखुले परदे के बीच से झंक रहा था. मैं ने जल्दी से खिड़कियों के परदे हटा दिए. मेरे पूरे कमरे में नारंगी छटा बिखर गई थी. सामने शीशे पर सूरज की किरण पड़ने से मेरी आंखें चौंधिया सी गई थीं. मिचमिचाई आंखों से मोबाइल दोबारा चैक किया. फिर व्हाट्सऐप मैसेज देखे पर अनरीड ही छोड़ कर बाथरूम में चली गई. फिर फै्रश हो कर किचन में जा कर गरमागरम अदरक वाली चाय बनाई और मोबाइल ले कर चाय पीने बैठ गई.

ओह, ये 17 मिस्ड कौल्स. किस की हैं? कौंटैक्ट लिस्ट में मेरे पास इस का नाम भी नहीं. सोचा कि कोई जानने वाला होगा वरना थोड़े ही इतनी बार फोन करता. मैं ने उस नंबर पर कौलबैक किया और उत्सुकतावश सोचने लगी कि शायद मेरी किसी फ्रैंड का होगा.

तभी वहां से बड़ी तेज डांटने की आवाज आई, ‘‘क्या लगा रखा है साक्षी, सारी रात मैं ने तुम को कितना फोन किया, तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया? हम सब कितना परेशान थे. मम्मीपापा तुम्हारी चिंता में रातभर सोए भी नहीं. तुम इतनी बेपरवाह कैसे हो सकती हो?’’

‘‘हैलो, हैलो, आप कौन, मैं साक्षी नहीं, स्वाति हूं. शायद रौंग नंबर है,’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया और कालेज जाने के लिए तैयार होने चली गई.

आज कालेज जल्दी जाना था. कुछ प्रोजैक्ट भी सब्मिट करने थे, सो, मैं ने फोन का ज्यादा सिरदर्द लेना ठीक नहीं समझ. बहरहाल, उस दिन से अजीब सी बातें होने लगीं. उस नंबर की मिस्ड कौल अकसर मेरे मोबाइल पर आ जाती. शायद लास्ट डिजिट में एकदो नंबर चेंज होने से यह फोन मुझे लग जाता था. कभीकभी गुस्सा भी आता, मगर दूसरी तरफ जो भी था, बड़ी शिष्टता से बात करता, तो मैं नौर्मल हो जाती. अब हम लोगों के बीच हाय और हैलो भी शुरू हो गई. कभीकभी हम लोग उत्सुकतावश एकदूसरे के बारे में जानकारी भी बटोरने लगते.

एक दिन मैं क्लास से बाहर आ रही थी. तभी वही मिस्ड कौल वाले का फोन आया. साथ में मेरी फ्रैंड थी, तो मैं ने फोन उठाना उचित न समझ. जल्दी से गार्डन में जा कर बैठ कर फोन देखने लगी कि कहीं फिर दोबारा कौल न आ जाए. मगर अनायास उंगलियां कीबोर्ड पर नंबर डायल करने लगीं. जैसे ही रिंग गई, दिल को अजीब सा सुकून मिला. पता नहीं क्यों हम दोनों के बीच एक रिश्ता सा कायम होता जा रहा था. शायद वह भी इसलिए बारबार यह गलती दोहरा रहा था. तभी गार्डन में सामने बैठे एक लड़के का भी मोबाइल बजने लगा.

जैसे मैं ने हैलो कहा तो उस ने भी हैलो कहा. मैं ने उस से कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘गार्डन में खड़ा हूं और तुम से बात कर रहा हूं और मेरे सामने एक लड़की भी किसी से बात कर रही है.’’ दोनों एकसाथ खुशी से चीख पड़े, ‘‘स्वाति, तुम?’’ ‘‘दीपक, तुम?’’

‘‘अरे, हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ते हैं. क्या बात है, हमारा मिलना एकदम फिल्मी स्टाइल में हुआ. मैं ने तुम को बहुत बार देखा है.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम्हें फर्स्ट टाइम देखा है. क्या रोज कालेज नहीं आती हो?’’

‘‘अरे, ऐसा नहीं. मैं तो रोज कालेज आती हूं. मैं बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट हूं.’’

‘‘और मैं यहां फाइन आर्ट्स में एमए फाइनल ईयर का स्टूडैंट हूं.’’

‘‘ओह, तब तो मुझे आप को सर कहना होगा,’’ और दोनों हंसने लगे.

‘‘अरे यार, सर नहीं, दीपक ही बोलो.’’

‘‘तो आप को पेंटिंग का शौक है.’’

‘‘हां, एक दिन तुम मेरे घर आना, मैं तुम्हें अपनी सारी पेंटिंग्स दिखाऊंगा. कई बार मेरी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लग चुकी है.’’

‘‘कोई पेंटिंग बिकी या लोग देख कर ही भाग गए.’’

‘‘अभी बताता हूं.’’ और दीपक मेरी तरफ बढ़ा तो मैं उधर से भाग गई.

कुछ ही दिनों में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए. कभीकभी दीपक मुझे पेंटिंग दिखाने घर भी ले जाया करता. मेरे मांबाप तो गांव में थे और मेरा दीपक से यों दोस्ती करना अच्छा भी न लगता. कभी हम दोनों साथ फिल्म देखने जाते तो कभी गार्डन में पेड़ों के झरमुट के बीच बैठ कर घंटों बतियाते रहते और जब अंधेरा घिरने लगता तो अपनेअपने घोंसलों में लौट जाते.

एक जमाना था कि प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत मुश्किल हुआ करती थी. ज्यादातर बातें इशारों या मौन संवादों से ही समझ जाती थीं. तब प्रेम में लज्जा और शालीनता एक मूल्य माना जाता था. बदलते वक्त के साथ प्रेम की परिभाषा मुखर हुई. और अब तो रिश्तों में भी कई रंग निखरने लगे हैं. अब तो प्रेम व्यक्त करना सरल, सहज और सुगम भी हो गया है. यहां तक कि फरवरी का महीना प्रेम के नाम हो गया है.

इस मौसम में प्रकृति भी सौंदर्य बिखेरने लगती है. आम की मजरिया, अशोक के फल, लाल कमल, नव मल्लिका और नीलकमल खिल उठते हैं. प्रेम का उत्सव चरम पर होता है. कुछ ही दिनों में वैलेंटाइन डे आने वाला था और मैं ने सोच लिया था कि दीपक को इस दिन सब से अच्छा तोहफा दूंगी. इस दोस्ती को प्यार में बदलने के लिए इस से अच्छा कोई और दिन नहीं हो सकता.

आखिर वह दिन भी आ गया जब प्रकृति की फिजाओं के रोमरोम से प्यार बरस रहा था और हम दोनों ने भी प्यार का इजहार कर दिया. उस दिन दीपक ने मुझसे कहा कि आज ही के दिन मैं तुम से सगाई भी करना चाहता था. मेरे प्यार को इतनी जल्दी यह मुकाम भी मिल जाएगा, सोचा न था.

दीपक ने मेरे मांबाप को भी राजी कर लिया. न जैसा कहने को कुछ भी न था. दीपक एक अमीर, सुंदर और नौजवान था जो दिनरात तरक्की कर रहा था. आखिर अगले ही महीने हम दोनों की शादी भी हो गई. अपनी शादीशुदा जिंदगी से मैं बहुत खुश थी.

तभी 4 वर्षों के लिए आर्ट में पीएचडी के लिए लंदन से दीपक को स्कौलरशिप मिल गई. परिवार में सभी इस का विरोध कर रहे थे, मगर मैं ने किसी तरह सब को राजी कर लिया. दिल में एक डर भी था कि कहीं दीपक अपनी शोहरत और पैसे में मुझे भूल न जाए. पर वहां जाने में दीपक का भला था.

पूरे इंडिया में केवल 4 लड़के ही सलैक्ट हुए थे. सो, अपने दिल पर पत्थर रख कर दीपक  को भी राजी कर लिया. बेचारा बहुत दुखी था. मुझे छोड़ कर जाने का उस का बिलकुल ही मन नहीं था. पर ऐसा मौका भी तो बहुत कम लोगों को मिलता है. भीगी आंखों से उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने गई. दीपक की आंखों में भी आंसू दिख रहे थे, वह बारबार कहता, ‘स्वाति, प्लीज एक बार मना कर दो, मैं खुशीखुशी मान जाऊंगा. पता नहीं तुम्हारे बिना कैसे कटेंगे ये 4 साल. मैं ने अगले वैलेंटाइन डे पर कितना कुछ सोच रखा था. अब तो फरवरी में आ भी नहीं सकूंगा.’मैं उसे बारबार समझती कि पता नहीं हम लोग कितने वैलेंटाइन डे साथसाथ मनाएंगे. अगर एक बार नहीं मिल सके तो क्या हुआ. खैर, जब तक दीपक आंखों से ओझल नहीं हो गया, मैं वहीं खड़ी रही.

अब असली परीक्षा की घड़ी थी. दीपक के बिना न रात कटती न दिन. दिन में उस से 4-5 बार फोन पर बात हो जाती. पर जैसे महीने बीतते गए, फोन में कमी आने लगी. जब भी फोन करो, हमेशा बिजी ही मिलता. अब तो बात करने तक की फुरसत नहीं थी उस के पास.

कभी भूलेभटके फोन आ भी जाता तो कहता कि तुम लोग क्यों परेशान करते हो. यहां बहुत काम है. सिर उठाने तक की फुरसत नहीं है. घर में सभी समझते कि उस के पास काम का बोझ ज्यादा है. पर मेरा दिल कहीं न कहीं आशंकाओं से घिर जाता.

बहरहाल, महीने बीतते गए. अगले महीने वैलेंटाइन डे था. मैं ने सोचा, लंदन पहुंच कर दीपक को सरप्राइज दूं. पापा ने मेरे जाने का इंतजाम भी कर दिया. मैं ने पापा से कहा कि कोईर् भी दीपक को कुछ न बताए. जब मैं लंदन पहुंची तो दीपक को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. मैं पापा (ससुर) के दोस्त के घर पर रुकी थी. वहां मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए अंकलआंटी मेरा बहुत ही ध्यान रखते थे.

वैसे भी उन की कोई संतान नहीं थी. शायद इसलिए भी उन्हें मेरा रुकना अच्छा लगा. उन का मकान लंदन में एक सामान्य इलाके में था. ऊपर एक कमरे में बैठी मैं सोच रही थी कि अभी मैं दीपक को दूर से ही देख कर आ जाऊंगी और वैलेंटाइन डे पर सजधज कर उस के सामने अचानक खड़ी हो जाऊंगी. उस समय दीपक कैसे रिऐक्ट करेगा, यह सोच कर शर्म से गाल गुलाबी हो गए और सामने लगे शीशे में अपना चेहरा देख कर मैं मन ही मन मुसकरा दी.

किसी तरह रात काटी और सुबहसुबह तैयार हो कर दीपक को देखने पहुंची. दीपक का घर यहां से पास में ही था. सो, मुझे ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ी.

सामने से दीपक को मैं ने देखा कि वह बड़ी सी बिल्ंडिंग से बाहर निकला और अपनी छोटी सी गाड़ी में बैठ कर चला गया. उस समय मेरा मन कितना व्याकुल था, एक बार तो जी में आया कि दौड़ कर गले लग जाऊं और पूछूं कि दीपक, तुम इतना क्यों बदल गए. आते समय किए बड़ेबड़े वादे चंद महीनों में भुला दिए. पर बड़ी मुश्किल से अपने को रोका.

तब से मुझ पर मानो नशा सा छा गया. पूरा दिन बेचैनी से कटा. शाम को मैं फिर दीपक के लौटने के समय, उसी जगह पहुंच गई. मेरी आंखें हर रुकने वाली गाड़ी में दीपक को ढूं़ढ़तीं. सहसा दीपक की कार पार्किंग में आ कर रुकी तो मैं भौचक्की सी दीपक को देखने लगी. तभी दूसरी तरफ से एक लड़की उतरी. वे दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े मंदमंद मुसकराते, एकदूसरे से बातें करते चले जा रहे थे. मैं तेजी से दीपक की तरफ भागी कि आखिर यह लड़की कौन है. देखने में तो इंडियन ही है. पांव इतनी तेजी से उठ रहे थे कि लगा मैं दौड़ रही हूं. मगर जब तक वहां पहुंची, वे दोनों आंखों से ओल हो गए थे.

मैं पागलों सी सड़क पर जा पहुंची. चारों तरफ जगमगाते ढेर सारे मौल्स और दुकानें थीं. आते समय ये सब कितने अच्छे लग रहे थे, लेकिन अब लग रहा था कि ये सब जहरीले सांपबिच्छू बन कर काटने को दौड़ रहे हों. पागलों की तरह भागती हुई घर वापस आ गई और दरवाजा बंद कर के बहुत देर तक रोती रही. तो यह था फोन न आने का कारण.

मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई कि दीपक ने इतना बड़ा धोखा दिया. मैं भी एक होनहार स्टूडैंट थी. मगर दीपक के लिए अपना कैरियर अधूरा ही छोड़ दिया. मैं ने अपनेआप को संभाला. दूसरे दिन दीपक के जाने के बाद मैं ने उस बिल्ंिडग और कालेज में खोजबीन शुरू की. इतना तो मैं तुरंत समझ गई कि ये दोनों साथ में रहते हैं. इन की शादी हो गई या रिलेशनशिप में हैं, यह पता लगाना था. कालेज में जा कर पता चला कि यह लड़की दीपक की पेंटिंग्स में काफी हैल्प करती है और इसी की वजह से दीपक की पेंटिंग्स इंटरनैशनल लैवल में सलैक्ट हुई हैं. दीपक की प्रदर्शनी अगले महीने फ्रांस में है. उस के पहले ये दोनों शादी कर लेंगे क्योंकि बिना शादी के यह लड़की उस के साथ फ्रांस नहीं जा सकती.

तभी एक प्यारी सी आवाज आई, लगा जैसे हजारों सितार एकसाथ बज उठे हों. मेरी तंद्रा भंग हुई तो देखा, एक लड़की सामने खड़ी थी.

‘‘आप को कई दिनों से यहां भटकते हुए देख रही हूं. क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकती हूं.’’  मैं ने सिर उठा कर देखा तो उस की मीठी आवाज के सामने मेरी सुंदरता फीकी थी. मैं ने देखा सांवली, मोटी और सामान्य सी दिखने वाली लड़की थी. पता नहीं दीपक को इस में क्या अच्छा लगा. जरूर दीपक इस से अपना काम ही निकलवा रहा होगा.

‘‘नो थैंक्स,’’ मैं ने बड़ी शालीनता से कहा.

मगर वह तो पीछे ही पड़ गई, ‘‘चलो, चाय पीते हैं. सामने ही कैंटीन है.’’ उस ने प्यार से कहा तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं चुपचाप उस के पीछेपीछे चल दी. उस ने अपना नाम नीलम बताया. मु?ो बड़ी भली लगी. इस थोड़ी देर की मुलाकात में उस ने अपने बारे में सबकुछ बता दिया और अपने होने वाले पति का फोटो भी दिखाया. पर उस समय मेरे दिल का क्या हाल था, कोई नहीं समझ सकता था. मानो जिस्म में खून की एक बूंद भी न बची हो. पासपास घर होने की वजह से हम अकसर मिल जाते. वह पता नहीं क्यों मुझ से दोस्ती करने पर तुली हुई थी. शायद, यहां विदेश में मुझ जैसे इंडियंस में अपनापन पा कर वह सारी खुशियां समेटना चाहती थी.

एक दिन मैं दोपहर को अपने कमरे में आराम कर रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला. सामने वह लड़की दीपक के साथ खड़ी थी. ‘‘स्वाति, मैं अपने होने वाले पति से आप को मिलाने लाई हूं. मैं ने आप की इतनी बातें और तारीफ की तो इन्होंने कहा कि अब तो मु?ो तुम्हारी इस फ्रैंड से मिलना ही पड़ेगा. हम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने जा रहे हैं. आप को इनवाइट करने भी आए हैं. आप को हमारी शादी में जरूर आना है.’’

दीपक ने जैसे ही मुझे देखा, छिटक कर पीछे हट गया. मानो पांव जल से गए हों. मगर मैं वैसे ही शांत और निश्च्छल खड़ी रही. फिर हाथ का इशारा कर बोली, ‘‘अच्छा, ये मिस्टर दीपक हैं.’’ जैसे वह मेरे लिए अपरिचित हो. मैं ने दीपक को इतनी इंटैलिजैंट और सुंदर बीवी पाने की बधाई दी.

दीपक के मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं. लज्जा और ग्लानि से उस के चेहरे पर कईर् रंग आजा रहे थे. यह बात वह जानता था कि एक दिन सारी बातें स्वाति को बतानी पड़ेंगी. मगर वह इस तरह अचानक मिल जाएगी, उस का उसे सपने में भी गुमान न था. उस ने सब सोच रखा था कि स्वाति से कैसेकैसे बात करनी है. आरोपों का उत्तर भी सोच रखा था. पर सारी तैयारी धरी की धरी रह गईर्.

नीलम ने बड़ी शालीनता से मेरा परिचय दीपक से कराया, बोली, ‘‘दीपक, ये हैं स्वाति. इन का पति इन्हें छोड़ कर कहीं चला गया है. बेचारी उसी को ढूंढ़ती हुई यहां आ पहुंची. दीपक, मैं तुम्हें इसलिए भी यहां लाई हूं ताकि तुम इन की कुछ मदद कर सको.’’ दीपक तो वहां ज्यादा देर रुक न पाया और वापस घर चला गया. मगर नींद तो उस से कोसों दूर थी. उधर, नीलम कपड़े चेंज कर के सोने चली गई. दीपक को बहुत बेचैनी हो रही थी. उसे लगा था कि स्वाति अपने प्यार की दुहाई देगी, उसे मनाएगी, अपने बिगड़ते हुए रिश्ते को बनाने की कोशिश करेगी. मगर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. मगर क्यों…?

स्वाति इतनी समझदार कब से हो गई. उसे बारबार उस का शांत चेहरा याद आ रहा था. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. आज उसे स्वाति पर बहुत प्यार आ रहा था. और अपने किए पर पछता रहा था. उस ने पास सो रही नीलम को देखा, फिर सोचने लगा कि क्यों मैं बेकार प्यारमोहब्बत के जज्बातों में बह रहा हूं. जिस मुकाम पर मु?ो नीलम पहुंचा सकती है वहां स्वाति कहां. फिर तेजी से उठा और एक चादर ले कर ड्राइंगरूम में जा कर लेट गया.

दिन में 12 बजे के आसपास नीलम ने उसे जगाया. ‘‘क्या बात है दीपक, तबीयत तो ठीक है? तुम कभी इतनी देर तक सोते नहीं हो.’’ दीपक ने उठते ही घड़ी की तरफ देखा. घड़ी 12 बजा रही थी. वह तुरंत उठा और जूते पहन कर बाहर निकल पड़ा. नीलम बोली, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो?’’

‘‘प्रोफैसर साहब का रात में फोन आया था. उन्हीं से मिलने जा रहा हूं.’’

दीपक सारे दिन बेचैन रहा. स्वाति उस की आंखों के आगे घूमती रही. उस की बातें कानों में गूंजती रहीं. उसी के प्यार में वह यहां आई थी. स्वाति ने यहां पर कितनी तकलीफें ?ोली होंगी. मु?ो कोई परेशानी न हो, इसलिए उस ने अपने आने तक का मैसेज भी नहीं दिया. क्या वह मु?ो कभी माफ कर पाएगी.

मन में उठते सवालों के साथ दीपक स्वाति के घर पहुंचा. मगर दरवाजा आंटी ने खोला. दीपक ने डरते हुए पूछा, ‘‘स्वाति कहां है?’’

आंटी बोलीं, ‘‘वह तो कल रात 8 बजे की फ्लाइट से इंडिया वापस चली गई. तुम कौन हो?’’

‘‘मैं दीपक हूं, नीलम का होने वाला पति.’’

‘‘स्वाति नीलम के लिए एक पैकेट छोड़ गई है. कह रही थी कि जब भी नीलम आए, उसे दे देना.’’

दीपक ने कहा, ‘‘वह पैकेट मुझे दे दीजिए, मैं नीलम को जरूर दे दूंगा.’’

दीपक ने वह पैकेट लिया और सामने बने पार्क में बैठ कर कांपते हाथों से पैकेट खोला. उस में उस के और स्वाति के प्यार की निशानियां थीं. उन दोनों की शादी की तसवीरें. वह फोन जिस ने उन दोनों को मिलाया था. सिंदूर की डब्बी और एक पीली साड़ी थी. उस में एक छोटा सा पत्र भी था, जिस में लिखा था कि 2 दिनों बाद वैलेंटाइन डे है. ये मेरे प्यार की निशानियां हैं जिन के अब मेरे लिए कोई माने नहीं हैं. तुम दोनों वैलेंटाइन डे के दिन ही थेम्स नदी में जा कर मेरे प्यार का विसर्जन कर देना…स्वाति.

कद्दू फूला मेरे अंगना: मीनाक्षी और गौतम का अनोखा हनीमून

कद्दूजैसी बेडौल और बेस्वाद चीज भी क्या चीज है यह तो सोचने वाला ही जाने, पर हमारी छोटी सी बालकनी की बाटिका में भी कद्दू कभी फलेगा, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था. पर ऐसा होना था, हुआ.

बागबानी का शौक मेरे पूरे परिवार को है. मेरी 12वीं माले की बालकनी में 15-20 पौट्स हमेशा लगे रहते हैं. इस छोटी सी बगिया में फूलफल और सब्जी की खूब भीड़ है. इसी

भीड़ में एक सुबह देखा कि सेम की बेल के पास ही एक और बेल फूट आई है, गोलगोल पत्तों की. थोड़ा और बढ़ने पर हमें संदेह हुआ कि हो न हो पंपकिन यानी कद्दू महाराज तशरीफ ला रहे हैं.

अपने व्हाट्सऐप गु्रप में आप किसी से कद्दू पसंद है पूछो तो यही जवाब मिलेगा कि अजी, कद्दू भी कोई पसंद करने वाली चीज है…

एक ने हतोत्साहित किया कि उन्होंने बड़े चाव से कद्दू का बीज बोया था, बेल भी बहुत फली. सारी छत पर पैर पसारे पड़ी है, पर कद्दू का अब तक कहीं नाम नहीं है. वैसे भी सुन रखा था कि कद्दू की बेल फैल तो जाती है, पर फल बड़ी मुश्किल से आता है. सो उन की भी यही राय थी कि अपनेआप उगे बीज में फल किसी भी हालत में नहीं आएगा.

मगर मैं ने बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख कहावत की सचाई परखने का निश्चय कर ही लिया. अब मेरी हर सुबहशाम उस बेल की खातिरदारी में लग जाती. सेम की बेल के पास ही एक रस्सी के सहारे उस को दीवार पर चढ़ा दिया गया. शाम को एक फ्रैंड आई. देखा तो बोली, ‘‘कद्दू कोई सेम थोड़े ही है जो बेल में लटके रहेंगे. एक कद्दू का बो झा भी नहीं सह पाएगी तुम्हारी यह बेल.’’

मगर हमारी छोटी सी बगिया में बेल को फैलने की जगह कहां मिलती, सो हम ने उस को ऐसे ही छोड़ दिया. हमारे कौंप्लैक्स में बालकनियां एकदूसरे से सटी हैं और प्राइवेसी के लिए बीच में ऊंची दीवार है. मैं ने दीवार के ऊपर बेल को चढ़ाने का फैसला किया.

बेल अभी दीवार के ऊपर पहुंची ही थी कि एक सुबह उस में हाथ के बराबर गहरे पीले रंग का फूल खिला दिखा. सच सुंदरता में वह फूल मु झे कमल के फूल से कम नहीं लगा. वैसे तो वह नर फूल था, पर मादा फूल की कलियां भी अब उस में आ रही थीं. अब रोज 2-4 फूल बेल में खिलने लगे. कद्दू निकलें न निकलें, फूल तो खा लें यह सोच कर रैसिपी ढूंढ़ कर 2-4 पकौडि़यां भी बनाईं.

धीरेधीरे बेल में मादा फूल भी खिलने लगे. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा कि लोग यों ही निरुत्साह कर रहे थे. पर बेल में तो अब कद्दू नहीं दिख रहे थे. बेल दीवार के ऊपर चली गई थी हरीभरी थी. मैं उस में खादपानी डाल रही थी पर कद्दू का पता नहीं था. बेल न जाने वहां से कहां चली गई थी. ग्रुप में एक ने कहा, ‘‘मैं ने पहले ही कहा था कि आप की बेल में कद्दू हरगिज नहीं आएगा.’’

मैं भी हिम्मत हार चुकी थी. सोचा अब बेल की परवरिश करने से कोई फायदा नहीं. सोचा 2-4 दिन साहस बटोर कर मैं बेल उखाड़ दूंगी. उस दिन रविवार था. सिर्फ टौप और बेहद पोर्ट शौर्ट पहने बालगानी कर रही थी. इस कौप्लैक्स में कोई किसी के घर आताजाता नहीं था. लिफ्ट में सिर्फ हायहैलो होती थी. यह जरूर लगा था कि बराबर वाले फ्लैट में कोई नया शिफ्ट हुआ है.

मैं अपने दूसरे पौधों को पानी दे रही थी कि घंटी बजी. न जाने कब से यह घटी नहीं बजी थी. इसलिए लपक कर जैसी थी, वैसे ही खोल दिया. सामने एक बांका 5 फुट 8 इंच का सांवला, जिम जाने वाला 35 साल का लाल टीशर्ट और काले शौर्ट में एक बेहद आकर्षक युवक था. हाथ में बास्केट.

मैं ने आश्चर्य से देखा तो वह बोला, ‘‘जी मैं आप का नैक्स्ट डोर. परसों ही शिफ्ट हुआ हूं. आज सुबह बालकनी में बैठा तो कुछ ऐसा देखा कि आप से शेयर करने का मन हुआ. बेटे को गौतम नागदेव कहते हैं,’’ यह कहते हुए उस ने एक बास्केट आगे बढ़ाई.

अब यह तो बनता ही है. मैं ने दरवाजा पूरा खोला, उसे अंदर आने का न्योता देते हुए बोली, ‘‘मैं मीनाक्षी, वैलकम…’’ तब तक मैं ने यह सोचा नहीं था कि मैं क्या पहने हूं. पर जैसे ही उस की आंखें मेरे चेहरे से नीचे पहुंचीं, मु झे एहसास हुआ कि मैं तो स्लीवलैस टौप और शौर्ट में हूं. मैं ने कहा कि ऐक्स्यूज मी मैं अभी चेंज कर आती हूं.

वह आगे बढ़ा. फिर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और बोला, ‘‘अजी छोडि़ए ऐसे ही अच्छी हैं. कद्दू लेना है तो काफी पिलाइए.’’ ऐसे ही मैं कौन से थ्री पीस सूट में हूं. अब दोनों के पास हंसने के अलावा कोई चारा नहीं था.

अब तो हमारे दोनों घरों का वातावरण ही कद्दूमय हो गया था. आलम यह है कि दोनों को जब मिलने की इच्छा हुई, घंटी बजाई. कभी मैं कद्दू तोड़ने के बहाने उस के फ्लैट में घुसती तो कभी वह कद्दू तोड़ कर मेरी किचन में खड़ा होता. दोनों दफ्तर से आते ही कद्दू के हालचाल फोन पर.

एक दिन वह कद्दू को ऐसे सहला रहा था जैसे मु झे सहला रहा हो… यह तो अति होने लगी थी. मेरा पूरा बदन सुन सा करने लगा था. बड़ी मुश्किल से दोनों ने अपनेआप को रोका.

हम ने इस बीच पत्रिकाओं में से कद्दू के व्यंजनों की विधि खोजनी शुरू कर दीं. कद्दू का हलवा, कद्दू के कोफ्ते, कद्दू का अचार. यहां तक कि कद्दू के परांठे तक बनाने की विधि हम ने सीख ली.

इकलौते लाड़ले बिचौलिए की तरह कद्दू की सार संभाली होने लगी और बेल दिनदूना रात चौगुना बढ़ने लगी. हमारी आंखों में कुछ और ही सपने तैरने लगे. मां का फोन आता तो कद्दू की ज्यादा बात करती, बजाय अपना हाल बताने के या उन का पूछने के. उन्हें शक होने लगा कि कद्दू के पीछे कुछ राज है. मां अकसर सुनाती थी कि बचपन में उन के घर में इतने कद्दू फले थे कि पड़ोस में बांटने के बाद भी छत की कडि़यों में कद्दू लटकते रहते थे.

दोनों हर नए कद्दू का इंतजार करने लगे. कद्दू के बहाने हमारे दिल और तन दोनों मिलने लगे थे. बराबर खड़े हो कर जब कद्दू काट कर सब्जी बनती और साथ टेबल पर खाई जाती तो पूरा मन  झन झना उठता.

मां को लगता कि जो लड़की कद्दू की सब्जी के नाम से नाक भी चढ़ाती थी, उस का ध्यान अब उस के गुणों की तरफ कैसे जाने लगा. जैसे कद्दू में विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ होता है, यह पेट साफ करता है आदि.

इस बीच वे कद्दू बड़े खरबूजे का आकार लेने लगे और उन के बो झे से बेल गौतम की पूरी बालकनी में छा गई थी. एक रात तेज आंधी आई. आवाज सुन कर आंख खुली तो डर लगा कि कहीं कद्दू की बेल टूट न जाए. नाइटी में ही गौतम ने प्लैट की घंटी बजा दी. वह भी जागा हुआ था. दोनों ने मिल कर आंधी से कद्दुओं को बचाया पर इस चक्कर में हमारा कौमार्य फूट गया. दोनों रातभर गौतम के बिस्तर पर ही सोए.

पता नहीं क्यों उस सुबह उठ कर कुछ डर सा लगा. हमारा दिल दहल उठा. 2 दिन में हम दोनों के मातापिता हमारे फ्लैटों में थे. दोनों के मातापिताओं ने कद्दू की बेलों की जड़ें और कद्दू देख लिए. अब जब बेल इधर से उधर हो चुकी थी और कद्दुओं की सब्जियां बन चुकी हैं तो शादी के अलावा क्या बचा था.

सारे दोस्तों को कद्दू प्रकरण पता चल गया. एक बड़ी पार्टी की गई. कद्दू की शक्ल का केक बना और हमारी सगाई की रस्म पूरी हो गई. न जाति बीच में आई और न कोई रीतिरिवाज. कददुनुमा केक पर चाकू चलाते समय हमारे हाथ खुशी से भरे थे.

शादी के बाद हम ने फैसला किया कि हम हनीमून वहीं मनाएंगे जहां कद्दुओं की खेती होती है. आप भी शुभकामना करें कि हमारी बेल फूलेफले और हमारे घर का आंगन हमेशा कद्दुओं से भरा रहे. फिर हम कद्दुओं से तैयार विविध व्यंजन आप को भी खिलाना नहीं भूलेंगे. हमारे दोस्तों ने हमारा नया नामकरण कर दिया है कद्दूकद्दू.

कभी नीमनीम कभी शहदशहद : शिव से क्यों प्यार करने लगी अपर्णा

इतनी गरमी में अपर्णा को किचन में खाना पकाते देख शिव को अपनी पत्नी पर प्यार हो आया. वह पास पड़ा तौलिया उठा कर उस के चेहरे का पसीना पोंछने लगा तो अपर्णा मुसकरा उठी.

‘‘मुसकरा क्यों रही हो? देखो, गरमी कितनी है? मैं ने कहा था बाहर से ही खाना और्डर कर मंगवा लेंगे. लेकिन तुम सुनती कहां हो.

चलो, अब लाओ, सब्जी मैं काट देता हूं, तुम जा कर थोड़ी देर ऐसी में बैठो,’’ उस के हाथ से चाकू लेते हुए शिव बोला.

‘‘अरे नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है पति देव. मैं कर लूंगी,’’ शिव के हाथ से चाकू लेते हुए अपर्णा बोली, ‘‘आप दीदी को फोन लगा कर पूछिए वे लोग कब तक आएंगे. अच्छा, रहने दीजिए. मैं ही पूछ लेती हूं. आप एक काम करिए, वह हमारे घर के पास जो ‘राधे स्वीट्स’ की दुकान है न वहां से

1 किलोग्राम अंगूर रबड़ी ले आओ. ‘राधे स्वीट्स’ की मिठाई ताजा होती है. और हां बच्चों के लिए चौकलेट आइसक्रीम भी लेते आइएगा.’’

‘‘राधे स्वीट्स से मिठाई पर उस की दुकान की मिठाई तो उतनी अच्छी नहीं होती. एक काम करता हूं बाजार चला जाता हूं वहीं से मिठाई लेता आऊंगा मैं,’’ शिव ने कहा. लेकिन अपर्णा कहने लगी कि क्यों बेकार में उतनी दूर जा कर टाइम बेस्ट करना, जब यहीं घर के पास ही अच्छी मिठाई की दुकान है.

‘‘कोई अच्छी दुकान नहीं है उस की. पिछली बार याद नहीं, कितनी खराब मिठाई दी थी उस ने? फेंकनी पड़ी थी.’’

‘‘अब एक ही बात को कितनी बार रटते रहोगे तुम? मैं कह रही हूं न अच्छी मिठाई मिलती वहां,’’ अपर्णा थोड़ी इरिटेट हो गई.

‘‘अच्छा भई ठीक है. मैं वहीं से मिठाई ले आता हूं,’’ अपर्णा का मूड भांपते हुए शिव बोला. लेकिन उस का मन बाजार से जा कर मिठाई लाने का था, ‘‘और भी कुछ सामान मंगवाना है तो बोल दो वरना बाद में कहोगी यह रह गया वह

रह गया.’’

‘‘नहीं और कुछ नहीं मंगवाना. बस जो कहा है वह ले आओ,’’ बोल कर अपर्णा अपनी दीदी को फोन लगाने लगी. पता चला कि उन्हें आने में अभी घंटा भर तो लग जाएगा. ‘ठीक ही है चलो’ फोन रख बड़बड़ाते हुए वह किचन में चली गई. तब तक शिव मिठाई और आइसक्रीम ले कर आ गया तो अपर्णा ने उसे फ्रिज में रख दिया ताकि गरमी की वजह से वह खराब न हो जाए.

दरअसल, आज अपर्णा के घर खाने पर

उस की दीदी और जीजाजी आने वाले हैं.

इसलिए वह सुबह से ही किचन में बिजी है. अपर्णा की दीदी बैंगलुरु में रहती है. बच्चों की छुट्टियों में वह यहां अपने मायके आई हुई है. इसलिए शिव और अपर्णा ने आज उन्हें अपने घर खाने पर इन्वाइट किया और उन के लिए ही ये सारी तैयारियां हो रही हैं. अपर्णा का मायका यहीं दिल्ली में ही है. 75 साल के उस के पापा और 70 साल की उस की मां दिल्ली के आनंद विहार में 2 कमरों के घर में रहते हैं. अपर्णा का एक भाई भी है जो अपने परिवार के साथ कोलकाता में रहता है और साल में एक बार यहां अपने मांपापा से मिलने आता है लेकिन अकेले. अपर्णा का भाई रेलवे में गार्ड है. वहां ही उस ने एक बंगाली लड़की से शादी कर ली और फिर वहीं का हो कर रह गया.

अपर्णा का पति शिव सरकारी विभाग में ऊंची पोस्ट पर कार्यरत है. उसे औफिस की तरफ से ही रहने के लिए घर और गाड़ी सब मिला हुआ है. इन के 2 बच्चे हैं.

13 साल की बेटी रिनी और 8 साल का बेटा रुद्र. दोनों बच्चे दिल्ली में पढ़ते हैं. अभी अपर्णा के बच्चों का भी वेकेशन चल रहा है इसलिए दोनों बच्चे इस बात को ले कर खुश हैं कि उन के मौसीमौसा आने वाले हैं और उन के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स भी ले कर आएंगे. अब बच्चे तो बच्चे ही हैं. लालहरी पन्नी में बंधा गिफ्ट्स देख कर खुशी से उछल पड़ते हैं.

मेहमानों के आने का टाइम हो चुका था. वैसे खाना भी तैयार ही था. अपर्णा ने सारा खाना अच्छे से डाइनिंगटेबल पर सजा दिया और सलाद काट कर फ्रिज में रख दिया. पूरा घर खाने की खुशबू से महक रहा था. घर में खाने की बहुत सारी प्लेटें हैं, पर शिव ने जिद पकड़ ली कि आज नए डिनर सैट में मेहमानों को खाना खिलाया जाए. आखिर उस ने इतना महंगा डिनर सैट खरीदा किसलिए है? सजा कर रखने के लिए तो नहीं?

शिव कहीं गुस्सा न हो जाए इसलिए अपर्णा ने वह नया डिनर सैट निकाल लिया. अपर्णा के मायके वालों के आने से शिव बहुत खुश था.

वैसे भी शिव को मेहमाननवाजी करना बहुत पसंद है. अपर्णा तो इस बात को ले कर बहुत खुश थी कि इतने दिनों बाद उस की दीदी से उस का मिलना होगा.

अपर्णा सुबह उठ कर पहले पूरे घर की डस्टिंग कर अच्छे से सब व्यवस्थित कर खाना पकाने में लग गई थी. मगर हाल में अभी भी इधर अखबार, उधर किताबें फैली हुई थीं. सोफा और कुशन भी अस्तव्यस्त थे. उस ने रिनी से कहा भी कि वह जरा सोफा, कुशन सही कर दे. किताबें, अखबार समेट कर उन्हें अलमारी में रख दे. मेहमान आएंगे तो क्या सोचेंगे. मगर उसे तो अपने मोबाइल से ही फुरसत नहीं है.

आज के बच्चों में मोबाइल फोन की ऐसी लत लग गई है कि पूछो मत. आलतूफालतू रील देख कर ‘हाहा’ करते रहते हैं. लेकिन यह नहीं सम  झते कि ये सब उन की शारीरिक और मानसिक सेहत पर कितना बुरा प्रभाव डाल रहा है. अब रुद्र को ही देख लो. कैसे छोटीछोटी

बातों पर चिड़ जाता है और रिनी मैडम को तो कुछ याद ही नहीं रहता. कुछ भी पूछो, जबाव आता है मु  झे नहीं पता. ये सब मोबाइल फोन का ही तो असर है.

खैर, अपर्णा   झटपट खुद ही हाल समेटने लगी. मन तो किया उस का रिनी को कस कर डांट लगाए और कहे कि जब देखो मोबाइल से चिपकी रहती हो. जरा मदद नहीं कर सकती मेरी? लेकिन यह सोच कर चुप रह गई कि

बेकार में शिव का पारा गरम हो जाएगा. शिव की आदत है छोटीछोटी बातों को ले कर चिल्लाने लगते हैं. पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं जैसे न जाने क्या हो गया.

‘‘अरे, अब ये क्या करने लग गई तुम. रिनी कहां है? कहो उस से कर देगी,’’ अपर्णा को सोफा ठीक करते देख शिव बोला, ‘‘रुको, मैं बुलाता हूं उसे. रिनी… इधर आओ,’’ शिव ने जोर की दहाड़ लगाई, तो रिनी भागीभागी आई.

‘‘चलो, हौल अच्छे से ठीक कर दो और देखो फ्रिज में पानी की सारी बोतलें भरी हुई हैं या नहीं? और अपर्णा तुम जा कर जल्दी से तैयार हो जाओ. मेरा मतलब है कपड़े चेंज कर लो न. अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘अब इन कपड़ों में क्या खराबी है,’’ शिव की बातों से अपर्णा को चिड़ हो आई कि यह

पति है या उस की सास? जब देखो पीछे ही पड़ा रहता है.

‘‘अब सोचने क्या लग गई. जाओ न. आते ही होंगे वे लोग,’’ शिव ने फिर टोका.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ कह कर अपर्णा कमरे में चली गई और शिव खाने की व्यवस्था देखने लगा कि सबकुछ ठीक तो है न. कभीकभी शिव का औरताना व्यवहार अपर्णा के मन में चिड़चिड़ाहट पैदा कर देता.

छुट्टी के दिन शिव पूरी किचन की तलाशी लेगा कि फ्रिज में बासी खाना तो नहीं पड़ा है? किचन में कोई चीज बरबाद तो नहीं हो रही है? आटा, दाल, तेल, मसाला वगैरह का डब्बा खोलखोल कर देखेगा कि कोई चीज कम तो नहीं हो गई है? मन करता है अपर्णा का कि कह दे कि जो काम तुम्हारा नहीं है उस में क्यों घुस रहे हो लेकिन वही लड़ाई  झगड़े के डर से कुछ बोलती नहीं है.

दरवाजे की घंटी बजी तो शिव ने ही दरवाजा खोला और आदर के साथ मेहमानों को घर के अंदर ले आया. तब तक अपर्णा सब के लिए गिलासों में ठंडा ले आई और सब के हाथ में गिलास पकड़ाते हुए वह भी अपना गिलास ले कर अपनी दीदी की बगल में बैठ गई. दोनों बहनें कितने दिनों बाद मिली थीं तो बातों का सिलसिला चल पड़ा.

उधर शिव और अपर्णा के जीजाजी भी यहांवहां की बातें करने लगें. बच्चे एक कमरे में बैठ कर टीवी का मजा ले रहे थे और बीच में आआ कर फ्रिज से कभी आइसक्रीम तो कभी ठंडा और आलू चिप्स ले कर चले जाते. बातों में लगी अपर्णा रिनी और रुद्र को इशारे से मना करती कि बस अब ज्यादा नहीं. खाना भी तो खाना है न? उस की दीदी उसे टोकती कि जाने दो न बच्चे हैं. ऐंजौय करने दो उन्हें. खूब हाहाहीही चल रही थी. घर का माहौल काफी खुशनुमा बना हुआ था. शिव ने इशारे से अपर्णा से कहा कि अब खाना लगा दो. भूख लगी होगी सब को.

सब लोगों ने खाना खाया. खाने के बाद अपर्णा सब के लिए अंगूर रबड़ी ले आई.

सब से पहले अंगूर रबड़ी का कटोरा शिव ने उठाया. लेकिन पहला चम्मच मुंह में डालते हुए उस का मूड खराब हो गया. उस ने अंगूर रबड़ी का कटोरा इतनी जोर से टेबल पर पटका कि छलक कर मिठाई टेबल पर फैल गई. अपर्णा ने सहमते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘पूछ रही हो क्या हुआ? तुम से कहा था

न जा कर बाजार से मिठाई ले आता हूं लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस अपनी ही चलानी होती है. किसी की सुनती हो? लो अब तुम्हीं खाओ यह घटिया मिठाई,’’ मिठाई का पूरा डोंगा अपर्णा की तरफ बढ़ाते हुए शिव जोर से चीखते हुए कहने लगा कि यह औरत कभी मेरी बात नहीं सुनती. अनपढ़गंवार की तरह किसी की भी बातों में आ जाती है.

अपर्णा को जिस बात का डर था वही हुआ. उस ने मेहमानों के सामने ही अपना रंग दिखा दिया. शिव के अचानक से ऐसे व्यवहार से अपर्णा की दीदी और जीजाजी दोनों अवाक रह गए. बच्चे भी डर कर कमरे में भाग गए और अपर्णा को सम  झ नहीं आ रहा था अब वह क्या करे? कैसे संभाले बात को?

‘‘वह दीदी गलती मेरी ही है. शिव ने कहा था कि बाजार से मिठाई ले आते हैं लेकिन मैं ने ही…’’  दांत निपोरते हुए अपर्णा को सम  झ नहीं आ रहा था कि क्या बोले. किस तरह शिव को शांत कराए.

अपर्णा ने इशारे से शिव को कई बार सम  झाना चाहा कि मेहमान क्या सोचेंगे. चुप हो जाओ. मगर शिव कहां कुछ सुनने वाला था. उसे तो जब गुस्सा आता है, पूरा घर सिर पर उठा लेता है. यह भी नहीं सोचता कि सामने बैठे लोग क्या सोचेंगे. गुस्से पर तो उस का कंट्रोल ही नहीं रहता. लेकिन हां गरजते बादल की तरह वर्षा कर वह शांत भी हो जाता है. लेकिन ऐसी शांति किस काम की जो सब तहसनहस कर जाए. मेहमान सारे चले गए लेकिन अब अपर्णा का खून खौल रहा था.

गुस्सा शांत होते ही शिव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उस के लिए उस ने अपर्णा से माफी भी मांगी लेकिन अपर्णा ने उस की बातों का कोई जवाब दिए बिना कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया. अब गुस्सा तो आएगा ही न? इतनी गरमी में बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और इस शिव ने उस की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. उस के मायके वालो के सामने उसे जलील कर दिया. क्या अच्छा किया उस ने?

शिव की आदत है राई का पहाड़ बनाने की. छोटीछोटी बातों पर वह चीखनेचिल्लाने लगता है कि ऐसा क्यों हुआ. वैसा क्यों नहीं हुआ. अब तो बच्चे भी सम  झने लगे हैं अपनी पापा की आदत को कि पता नहीं कब वे किस बात पर, कहां, किस के सामने चिल्ला पड़ेंगे. माना अपर्णा से गलती हुई लेकिन शिव को इतना बोलने की क्या जरूरत थी? बाद में भी तो वह अपर्णा पर गुस्सा निकाल सकता था?

अपर्णा ने क्याक्या नहीं सोच रखा था कि खाना खाने के बाद शाम को सब मिल कर पास ही जो वाटरफौल है, वहां जाएंगे. फिर ईको पार्क चलेंगे. अभी नया जो आइसक्रीम पार्लर खुला है, वहां जा कर आइसक्रीम खाएंगे. खूब मस्ती करेंगे लेकिन इस शिव ने सब गुड़गोबर कर के रख दिया. ऐसा उस ने कोई पहली बार नहीं किया है. पहले भी कई बार वह ऐसा कर चुका है जब लोगों के सामने अपर्णा को शर्मिंदा होना पड़ा है.

कुछ दिन की ही बात है जब अपर्णा शिव के साथ मौल में अपने लिए कपड़े खरीदने गई थी. वह भी शिव के जिद्द करने पर वरना तो वह औनलाइन ही सूटसाड़ी वगैरह खरीद कर पहनना पसंद करती है. इस से समय तो बचता ही है,

दाम भी रीजनेबल होता है. सब से अच्छी बात यह कि अगर आप को चीजें पसंद न आएं तो आप लौटा भी सकते हैं. पैसा तुरंत आप के अकाउंट में आ जाता है. लेकिन मौल में

10 चक्कर लगवाएंगे अगर कोई चीज लौटानी हो तो. लेकिन यह बात शिव को सम  झासम  झा कर वह थक चुकी थी.

मौल में उस ने अपने लिए एक कुरती पसंद कर जब उसे पहन कर वह शिव को दिखाने आई तो सब के सामने ही उस ने उसे   झाड़ दिया यह कह कर कि अपर्णा में कलर सैंस जरा भी नहीं है. गंवारों की तरह लालपीलाहरा रंग ही पसंद आता है इसे.

शिव की बात पर वहां खड़े सारे लोग अपर्णा को देखने लगे जैसे वह सच में गंवार महिला हो. उफ, कितना बुरा लगा था. उसे उस वक्त रोना आ रहा था जब चेंजिंग रूम के बाहर खड़ी दोनों लड़कियां उसे देख कर हंसने लगीं. शर्म के मारे अपर्णा कुछ बोल नहीं पाई पर उसी वक्त वह गुस्से में मौल से बाहर निकल आई और जा कर गाड़ी में बैठ गई.

वह भी तो पलट कर जवाब दे सकती थी कि शिव के काले रंग पर कोई कलर सूट नहीं करता पर वह उस की जैसी नहीं है. ‘दिमाग से पैदल इंसान’ अपर्णा ने दांत भींच लिए. गुस्से के मारे उस के तनबदन में आग लग रही थी. मन कर रहा था पैदल ही घर चली जाए. लेकिन बाहर वह कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी इसलिए पूरे रास्ते खिड़की से बाहर देखती रही और अपने आंसू पोंछती हुई सोचती रही कि आखिर शिव अपनेआप को सम  झता क्या है. पति है तो कुछ भी बोलेगा? क्या उस की कोई इज्जत नहीं है?

इधर शिव को अपनी बात पर बहुत पछतावा हो रहा था कि सब के सामने उसे अपर्णा से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी, ‘‘अपर्णा, सुनो न, मेरे कहने का वह मतलब नहीं था. मैं तो बस यह कह रहा था कि तुम पर…’’ शिव ने सफाई देनी चाही पर अपर्णा उस की बात सुने बिना बालकनी में चली गई. शिव उस के पीछेपीछे गया पर उस ने जोर से दरवाजा लगा लिया यह कहते हुए कि अगर उस ने ज्यादा परेशान किया तो वह यह घर छोड़ कर कहीं चली जाएगी.

उस दिन के बाद आज फिर उस ने मेहमानों के सामने अपनी मूर्खता का प्रदर्शन दे दिया. अरे, क्या सोच रहे होंगे वे लोग उस के बारे में यह भी नहीं सोचा शिव ने. ऐसे तो घर में वह बहुत केयरिंग और लविंग पति बन कर घूमता है. घर के कामों में भी वह अपर्णा की मदद कर दिया करता है, पत्नी व बच्चों को बाहर घुमाने और होटल में खिलाने का भी वह शौकीन है, मगर कभीकभी पता नहीं उसे क्या हो जाता है. अपनेआप को बहुत महान, ज्ञानवान सम  झने लगता और अपर्णा को मूर्खगंवार. लोगों के सामने डांट कर कहीं वह यह तो साबित नहीं करना चाहता कि वह मर्द है और अपर्णा औरत.

अपर्णा की दीदी का फोन आया लेकिन उस ने उस का फोन नहीं उठाया क्योंकि उस का मूड पूरी तरह से खराब हो चुका था, सो वह कमरे की लाइट औफ कर के सो गई.

खाना तो सुबह का ही कितना सारा बचा हुआ था तो बनाना तो कुछ था नहीं और अपर्णा की भूख वैसे भी मर चुकी थी. दोनों बच्चे भी अपने कमरे में एकदम शांत, चुपचाप बैठे थे. डर के मारे दोनों मोबाइल भी नहीं चला रहे थे कि पापा डांटेंगे.

इधर शिव अकेले हौल में सोफे पर अधलेटा न जाने क्या सोच रहा था. यही सोच रहा होगा कि बेकार में ही उस ने अपर्णा का मूड खराब कर दिया. बेचारी सुबह से कितनी मेहनत कर रही थी और जरा सी बात के लिए उस ने सब के सामने उसे क्या कुछ नहीं सुना दिया. शिव के मन ने उसे धिक्कारा.

अब अपर्णा के सामने जाने की तो शिव की हिम्मत नहीं थी इसलिए उस ने बच्चों के कमरे में   झांक कर देखा. रिनी लेटी हुई थी और रुद्र कुरसी पर बैठा खिड़की से बाहर   झांक रहा था. अपर्णा के कमरे में जब   झांक कर देखा तो वह उधर मुंह किए सोई हुई थी. शिव को पता

है वह सोई नहीं है. शायद रो रही होगी या कुछ सोच रही होगी. यही कि शिव कितना बुरा इंसान है. ‘हां, बहुत बुरा हूं मैं. बेकार में मैं ने अपनी बीवी का मूड खराब कर दिया,’ अपने मन में सोच शिव अपर्णा का मूड ठीक करने का उपाय सोचने लगा.

‘‘रिनी, बेटा, जरा 1 कप चाय बनाओ तो,’’ अपर्णा के कमरे की तरफ मुंह कर के शिव बोला ताकि वह सुन सके कि शिव को चाय पीनी है. लेकिन डाइरैक्ट अपर्णा से बोलने की उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी इसलिए बेटी को आवाज लगाई, ‘‘बेटा, चाय में जरा चीनी डाल देना, लगता है शुगर कम हो गई. सिर में दर्द हो रहा है मेरे,’’ यह बात भी उस ने अपर्णा को सुना कर कही ताकि वह दौड़ी चली आए और पूछे कि क्या हुआ. सिरदर्द क्यों कर रहा है तुम्हारा? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? लेकिना ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि अपर्णा को सब पता था कि शिव सिर्फ नाटक कर रहा है.

इधर शिव मन ही मन छटपटा रहा था अपर्णा से बात करने के लिए. वह उस से माफी मांगने के लिए भी तैयार था. आज अपर्णा का गुस्सा 7वें आसमान पर था.

अपर्णा ने फोन कर रिनी को चुपके से सम  झा दिया कि वह और रुद्र खाना खा लें. उसे उठाने न आएं. इधर शिव इस बात से परेशान हो रहा था कि अपर्णा अब तक भूखी है. वैसे भूख तो उसे भी लगी थी. मगर अकेले खाने की उस की आदत नहीं है. शिव खुद को ही कोसे जा रहा था कि उस ने ऐसा क्यों किया. रिनी से कहा कि वह जा कर मम्मी को खाने के लिए उठाए पर रिनी कहने लगी कि मम्मी बहुत गुस्से में हैं इसलिए वह उठाने नहीं जाएगी.

अब शिव क्या करे सम  झ नहीं आ रहा था उसे. उसे पता है अपर्णा को जल्दी गुस्सा नहीं आता. लेकिन जब आता है, फिर वह किसी के बाप की नहीं सुनती. लेकिन शिव इस के एकदम उलट है. जितनी जल्दी उसे गुस्सा आता है उतनी जल्दी भाग भी जाता है. उस की एक खूबी यह भी है कि भले ही वह अपर्णा से कितना भी लड़  झगड़ ले पर कभी उस से बात बंद नहीं करता. लेकिन अपर्णा कईकई दिनों तक शिव से बात नहीं करती. शिव का कहना होता है कि भले ही उस की गलती के लिए अपर्णा और कुछ भी करे पर बात बंद न करे. उसे जिंदगी वीरान लगने लगती है अपर्णा के बिना.

बहुत प्यार करता है वह अपनी पत्नी से. मगर उस का अपने गुस्से पर ही कंट्रोल नहीं रहता तो क्या करे बेचारा. खैर, अब जो है सो है. गलती हुई शिव से. मगर अब वह उस बात को पकड़े बैठा तो नहीं रह सकता न और कई बार माफी तो मांगी न उसने अपर्णा से? अब क्या करे जान दे दे अपनी? अपने मन में सोच शिव ने अपना माथा   झटका और अपने रोज की दिनचर्या में लग गया.

मगर अपर्णा के दिमाग में अब भी वही सब बातें चल रही थीं कि शिव ने ऐसा क्यों किया? उस की दीदी, जीजाजी क्या सोचा रहे होंगे उन के बारे में वगैरहवगैरह.

यह बात बिलकुल सही है कि पुरुषों के मुकाबले औरतें ज्यादा टैंशन लेती हैं. ऐसा क्यों हुआ? वैसा क्यों नहीं हुआ, जैसी बातें उन के दिलोदिमाग से जल्दी गायब नहीं होतीं. बारबार उन्हीं बातों में उल  झी रहती हैं, जबकि पुरुष फाइट या फ्लाइट यानी लड़ो या फिर भाग जाओ पर यकीन रखते हैं. अब शिव में इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि अपर्णा से लड़ पाता. इसलिए वह दूसरे कमरे में जा कर सो गया ताकि उसे देख कर अपर्णा का गुस्सा और न भड़क जाए. मगर अपर्णा बारबार कभी किचन में बरतन पटक कर, कभी फोन पर किसी से गुस्से में बात कर के या कभी बच्चों को डांट कर यह दर्शाने की कोशिश कर रही थी कि वह उस बात के लिए शिव को माफ नहीं  करेगी.

अर्पणा की मां का फोन आया तो मन तो किया उस का शिव की खूब बुराई

करे और कहे कि कैसे इंसान के साथ उन्होंने उसे बांध दिया लेकिन क्या फायदा क्योंकि उस की मां तो अपने दामाद का ही पक्ष लेंगी. घड़ी में देखा तो रात के 11 बच रहे थे. गुस्सा आया अपर्णा को कि ऐसे तो तुरंत 11-12 बज जाता है और आज घड़ी भी जैसी ठहर गई है. नींद भी नहीं आ रही थी उसे, सो उठ कर उस ने बच्चों के कमरे में   झांक कर देखा. दोनों गहरी नींद में सो रहे थे. जब शिव के कमरे में   झांक कर देखा तो फोन देखतेदेखते चश्मा पहने ही वह सो गया. मन किया अपर्णा का उस का चश्मा उतार कर टेबल पर रख दे, मगर उस का गुस्सा अभी भी उस के सिर पर सवार था.

भूख के मारे पेट में वैसे ही जलन हो रही थी. किचन में गई भी, मगर उस का गुस्सा उस की भूख से ज्यादा तेज था. सो एक गिलास पानी पी कर वह कमरे में आ कर सोने की कोशिश करने लगी. मगर नींद भी नहीं आ रही थी उसे. ‘देखो, कैसे आराम से खापी कर सो गया. कोई चिंता है मेरी? एक बार पूछने तक नहीं आया खाने के लिए’ बैड पर लेटीलेटी अपर्णा बड़बड़ाए जा रही थी. गुस्से में तो थी ही, भूख के मारे और तिलमिला रही थी.

अब शिव ने माफी तो मांगी न तुम से?

फिर इतना क्या गुस्सा दिखा रही हो? हां, माना कि उसे मेहमानों के सामने तुम से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए थी और उस की छोटीछोटी बातों पर एकदम से चीखनेचिल्लाने लगना तुम्हें जरा भी पसंद नहीं. लेकिन उस की कुछ अच्छी आदतें भी तो हैं न? उन्हें भूल गई तुम? अभी पिछले महीने ही जब तुम्हारे पापा को हार्ट अटैक आया था, तब कैसे अपना सारा कामकाज छोड़ कर शिव उन की सेवा में लग गया था.

पैसे से ले कर क्या कुछ नहीं किया उस ने तुम्हारे पापा के लिए? रातरातभर जाग कर उस ने तुम्हारे पापा की सेवा की थी, तब जा कर वे अस्पताल से ठीक हो कर घर आ पाए थे और आज भी जब भी उन्हें कोई जरूरत पड़ती है शिव एक पैर पर खड़ा रहता है उन की सेवा में.

हर 3 महीने पर वह तुम्हारे मांपापा को शुगरबीपी चैक कराने ले कर जाता है. डाक्टर

को दिखाता है. कितना भी बिजी क्यों न हो लेकिन उन से यह पूछना नहीं भूलता कि उन्होंने समय पर दवाई ली या नहीं वे रोज सुबह वाक

पर जाते हैं या नहीं? कौन करता है इतना.

बोलो न? दामाद हो कर वह बेटे जैसा कर रहा है, कम है क्या? अरे, किसीकिसी इंसान की आदत होती है छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने की. इस का मतलब वह बुरा इंसान नहीं हो गया.

शिव थोड़ा सख्त और गुस्सैल मिजाज

का है, मानता हूं मैं पर इंसान वह कितना अच्छा है, यह भूल गईं तुम? और यह भूल गईं कि

कैसे तुम्हारे मांपापा के जन्मदिन पर सब से

पहले बधाई शिव ही देता है उन्हें? उन के जन्मदिन पर हंगामेदार पार्टी रखता है. और यह

भी भूल गई जब तुम औफिस से थकीहारी घर आती हो कैसे वह तुम्हें प्यार से निहारता है?

तुम्हें तो अपने पति पर निछावर होना चाहिए? अपर्णा के दिल से आवाज आई तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी.

‘हां, यह बात कैसे भूल गई मैं कि शिव

ने मेरे पापा के लिए क्या कुछ नहीं किया?

अगर उस दिन शिव न होते तो जाने क्या अनर्थ

हो जाता. उस ने रातदिन एक कर के मेरे पापा

की जान बचाई. यहां तक कि अस्पताल में उस

ने पापा के पैर भी दबाए. नर्स ने उसे पापा के

पर दबाते देख कर कहा भी था कि कैसा श्रवण बेटा पाया है पापा ने. लेकिन जब उस नर्स को पता चला कि शिव उन के बेटे नहीं दामाद है, तो वह हैरत से शिव को देखने लगी थी.

मैं भले भूल जाऊं पर शिव रोज एक बार मांपापा का हालचाल लेना नहीं भूलता है. कभी शिव ने मु  झ पर किसी बात की बंदिशें नहीं लगाईं. मु  झे जो मन किया करने दिया और मैं उस की एक छोटी सी बात पर इतना नाराज हो गई कि उस से बात करना छोड़ दिया. ‘ओह, मैं भी न. बहुत बुरी हूं’ अपने मन में सोच अपर्णा खुद को ही कोसने लगी.

खिड़की से   झांक कर देखा तो बाहर जोर की बारिश हो रही थी. चिंता हो आई उसे कि कल शिव को औफिस के काम से 2 दिन के लिए दूसरे शहर जाना है. ‘बेचारा, कितनी मेहनत करता है अपने बीवीबच्चों के लिए. हमारी हर सुखसुविधा का ध्यान रखता है और मैं उस की एक छोटी सी बात का तिल का ताड़ बना देती हूं’ अपर्णा अपने मन गिलटी महसूस करने लगी.

‘कभी नीमनीम कभी शहदशहद पिया मोरे पिया मोरे पिया…’ मन में गुनगुनाती हुई अपर्णा मुसकरा उठी. उस का सारा गुस्साकाफूर हो चुका था. देखा तो शिव उधर मुंह कर सोए हुए था. वह भी जा कर उस के बगल में

लेट गई. शिव ने चेहरा घुमा कर देखा और मुसकराते हुए अपर्णा को अपनी बांहों में कैद कर लिया. अपर्णा भी मुसकरा कर सुकून से अपनी आंखें बंद कर लीं.

दर्द का एहसास : क्या हुआ मृणाल की बेवफाई का अंजाम

‘‘हैलो,एम आई टौकिंग टु मिस्टर मृणाल?’’ एक मीठी सी आवाज ने मृणाल के कानों में जैसे रस घोल दिया.

‘‘यस स्पीकिंग,’’ मृणाल ने भी उतनी ही विनम्रता से जवाब दिया.

‘‘सर, दिस इज निशा फ्रौम होटल सन स्टार… वी फाउंड वालेट हैविंग सम मनी,

एटीएम कार्ड ऐंड अदर इंपौर्टैंट कार्ड्स विद

योर आईडैंटिटी इन अवर कौन्फ्रैंस हौल. यू

आर रिक्वैस्टेड टु कलैक्ट इट फ्रौम रिसैप्शन,

थैंक यू.’’

सुनते ही मृणाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह कल अपनी कंपनी की तरफ से एक सेमिनार अटैंड करने इस होटल में गया था. आज सुबह से ही अपने पर्स को ढूंढ़ढूंढ़ कर परेशान हो चुका था. निशा की इस कौल ने उस के चेहरे पर सुकून भरी मुसकान ला दी.

‘‘थैंक यू सो मच निशाजी…’’ मृणाल ने कहा, मगर शायद निशा ने सुना नहीं, क्योंकि फोन कट चुका था. लंच टाइम में मृणाल होटल सन स्टार के सामने था. रिसैप्शन पर बैठी खूबसूरत लड़की को देखते ही उस के चेहरे पर एक बार फिर मुसकान आ गई.

‘‘ऐक्सक्यूज मी, माइसैल्फ मृणाल… आप शायद निशाजी हैं…’’ मृणाल ने कहा तो निशा ने आंखें उठा कर देखा.

‘‘ओ या…’’ कहते हुए निशा ने काउंटर के नीचे से मृणाल का पर्स निकाल कर उस का फोटो देखा. तसल्ली करने के बाद मुसकराते हुए उसे सौंप दिया.

‘‘थैंक्स अगेन निशाजी… इफ यू डोंटमाइंड, कैन वी हैव ए कप औफ कौफी प्लीज…’’ मृणाल निशा का यह एहसान उतारना चाह रहा था.

‘‘सौरी, इट्स ड्यूटी टाइम… कैच यू लेटर,’’ कहते हुए निशा ने जैसे मृणाल को भविष्य की संभावना का हिंट दे दिया.

‘‘ऐज यू विश. बाय द वे, क्या मुझे आप

का कौंटैक्ट नंबर मिलेगा? ताकि मैं आप को कौफी के लिए इन्वाइट कर सकूं?’’ मृणाल ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा तो निशा ने अपना विजिटिंग कार्ड उस की तरफ बढ़ा दिया. मृणाल ने थैंक्स कहते हुए निशा से हाथ मिलाया और कार्ड को पर्स में डालते हुए होटल से बाहर आ गया.

‘‘कोई मिल गया… मेरा दिल गया… क्या बताऊं यारो… मैं तो हिल गया…’’ गुनगुनाते हुए मृणाल ने घर में प्रवेश किया तो उषा को बड़ा आश्चर्य हुआ. रहा नहीं गया तो आखिर पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, बड़ा रोमांटिक गीत गुनगुना रहे हैं? ऐसा कौन मिल गया?’’

‘‘लो, अब गुनगुनाना भी गुनाह हो गया?’’ मृणाल ने खीजते हुए कहा.

‘‘गुनगुनाना नहीं, बल्कि आप से तो आजकल कुछ भी पूछना गुनाह हो गया,’’ उषा ने भी झल्ला कर कहा.

‘‘जब तक घर से बाहर रहते हैं, चेहरा 1000 वाट के बल्ब सा चमकता रहता है, घर

में घुसते ही पता नहीं क्यों फ्यूज उड़ जाता है,’’ मन ही मन बड़बड़ाते हुए उषा चाय बनाने

चल दी.

चाय पी कर मृणाल ने निशा का कार्ड

जेब से निकाल कर उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया. फिर उसे व्हाट्सऐप पर

एक मैसेज भेजा, ‘हाय दिस इज मृणाल…

हम सुबह मिले थे… आई होप कि आगे भी मिलते रहेंगे…’

रातभर इंतजार करने के बाद अगली सुबह रिप्लाई में गुड मौर्निंग के साथ निशा की एक स्माइली देख कर मृणाल खुश हो गया.

औफिस में फ्री होते ही मृणाल ने निशा को फोन लगाया. थोड़ी देर हलकीफुलकी औपचारिक बातें करने के बाद उस ने फोन रख दिया. मगर यह कहने से नहीं चूका कि फुरसत हो तो कौल कर लेना.

शाम होतेहोते निशा का फोन आ ही गया. मृणाल ने मुसकराते हुए कौल रिसीव की, ‘‘कहिए हुजूर कैसे मिजाज हैं जनाब के?’’ मृणाल की आवाज में रोमांस घुला था.

निशा ने भी बातों ही बातों में अपनी अदाओं के जलवे बिखेरे जिन में एक बार फिर मृणाल खो गया. लगभग 10 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. दोनों एकदूसरे से अब एक हद तक खुल चुके थे.

आज मृणाल ने हिम्मत कर के निशा के सामने एक बार फिर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा जिसे निशा ने स्वीकार लिया. हालांकि मन ही मन वह खुद भी उस का सान्निध्य चाहने लगी थी. अब तो हर 3-4 दिन में कभी निशा मृणाल के औफिस में तो कभी मृणाल निशा के होटल में नजर आने लगा था.

2 महीने हो चले थे. निशा मृणाल की बोरिंग जिंदगी में एक ताजा हवा के झौंके की तरह

आई और देखते ही देखते अपनी खुशबू से उस के सारे वजूद को अपनी गिरफ्त में ले लिया. मृणाल हर वक्त महकामहका सा घूमने लगा. पहले तो सप्ताह या 10 दिन में वह अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए उषा के नखरे भी उठाया करता था, मगर जब से निशा उस की जिंदगी में आई है उसे उषा से वितृष्णा सी होने लगी थी. वह खयालों में ही निशा के साथ अपनी जरूरतें पूरी करने लगा था. बस उस दिन का इंतजार कर रहा था जब ये खयाल हकीकत में ढलेंगे.

दिनभर पसीने से लथपथ, मुड़ेतुड़े कपड़ों और बिखरे बालों में दिखाई देती उषा उसे अपने मखमल से सपनों में टाट के पैबंद सी लगने लगी. उषा भी उस के उपेक्षापूर्ण रवैए से तमतमाई सी रहने लगी. कुल मिला कर घर में हर वक्त शीतयुद्ध से हालात रहने लगे. उषा और मृणाल एक बिस्तर पर सोते हुए भी अपने बीच मीलों का फासला महसूस करने लगे थे. मृणाल का तो घर में जैसे दम ही घुटने लगा था.

अब मृणाल और निशा को डेटिंग करते हुए लगभग 3 महीने हो चले थे. आजकल मृणाल कभीकभी उस के मैसेज बौक्स में रोमांटिक शायरीचुटकुले आदि भी भेजने लगा था. जवाब

में निशा भी कुछ इसी तरह के मैसेज भेज देती थी, जिन्हें पढ़ कर मृणाल अकेले में मुसकराता रहता. कहते हैं कि इश्क और मुश्क यानी प्यार और खुशबू छिपाए नहीं छिपते. उषा को भी मृणाल का यह बदला रूप देख कर उस पर कुछकुछ शक सा होने लगा था. एक दिन जब मृणाल बाथरूम में था, उषा ने उस का मोबाइल चैक किया तो निशा के मैसेज पढ़ कर दंग रह गई.

गुस्से में तमतमाई उषा ने फौरन उसे आड़े हाथों लेने की सोची, मगर फिर कुछ दिन और इंतजार करने और पुख्ता जानकारी जुटाने का खयाल कर के अपना इरादा बदल दिया और फोन वापस रख कर सामान्य बने रहने का दिखावा करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

एक दिन मृणाल के औफिस की सालाना गैटटुगैदर पार्टी में उस की सहकर्मी रजनी ने उषा से कहा, ‘‘क्या बात है उषा आजकल पति को ज्यादा ही छूट दे रखी है क्या? हर वक्त आसमान में उड़ेउड़े से रहते हैं.’’

‘‘क्या बात हुई? मुझे कुछ भी आइडिया नहीं है… तुम बताओ न आखिर क्या चल रहा

है यहां?’’ उषा ने रजनी को कुरेदने की

कोशिश की.

‘‘कुछ ज्यादा तो पता नहीं, मगर लंच टाइम में अकसर किसी का फोन आते ही मृणाल औफिस से बाहर चला जाता है. एक दिन मैं ने देखा था… वह एक खूबसूरत लड़की थी,’’ रजनी ने उषा के मन में जलते शोलों को हवा दी.

उषा का मन फिर पार्टी से उचट गया. घर पहुंचते ही उषा ने मृणाल से सीधा सवाल किया, ‘‘रजनी किसी लड़की के बारे में बता रही थी… कौन है वह?’’

‘‘है मेरी एक दोस्त… क्यों, तुम्हें कोई परेशानी है क्या?’’ मृणाल ने प्रश्न के बदले प्रश्न उछाला.

‘‘मुझे भला क्या परेशानी होगी? जिस का पति बाहर गुलछर्रे उड़ाए, उस पत्नी के लिए तो यह बड़े गर्व की बात होगी न…’’ उषा ने मृणाल पर ताना कसा.

‘‘कभी तुम ने अपनेआप को शीशे में देखा है? अरे अच्छेभले आदमी का मूड खराब करने के लिए तुम्हारा हुलिया काफी है. अब अगर मैं निशा के साथ थोड़ा हंसबोल लेता हूं तो तुम्हारे हिस्से का क्या जाता है?’’ मृणाल अब आपे से बाहर हो चुका था.

‘‘मेरे हिस्से में था ही क्या जो जाएगा… जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो किसी और को क्या दोष दिया जाए…’’ उषा ने बात आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा और कमरे की लाइट बंद कर के सो गई.

इस शनिवार को निशा का जन्मदिन था. मृणाल ने उस से खास अपने लिए

2-3 घंटे का टाइम मांगा था जिसे निशा ने इठलाते हुए मान लिया था. सुबह 11 बजे होटल सन स्टार में ही उन का मिलना तय हुआ. उत्साह और उत्तेजना से भरा मृणाल निर्धारित समय से पहले ही होटल पहुंच गया था. निशा उसे एक वीआईपी रूम में ले कर गई. बुके के साथ मृणाल ने उसे ‘हैप्पी बर्थडे’ विश किया और एक हलका सा चुंबन उस के गालों पर जड़ दिया. मृणाल के लिए यह पहला अवसर था जब उस ने निशा को टच किया था. निशा ने कोई विरोध नहीं किया तो मृणाल की हिम्मत कुछ और बढ़ी. उस ने निशा को बांहों के घेरे में कस कर होंठों को चूम लिया. निशा भी शायद आज पूरी तरह समर्पण के मूड में थी. थोड़ी ही देर में दोनों पूरी तरह एकदूसरे में समा गए.

होटल के इंटरकौम पर रिंग आई तो दोनों सपनों की दुनिया से बाहर आए. यह रूम शाम को किसी के लिए बुक था, इसलिए अब उन्हें जाना होगा. हालांकि मृणाल निशा की जुल्फों की कैद से आजाद नहीं होना चाह रहा था, क्योंकि आज जो आनंद उस ने निशा के समागम से पाया था वह शायद उसे अपने 10 साल के शादीशुदा जीवन में कभी नहीं मिला था. जातेजाते उस ने निशा की उंगली में अपने प्यार की निशानीस्वरूप एक गोल्ड रिंग पहनाई. एक बार फिर उसे किस किया और पूरी तरह संतुष्ट हो दोनों रूम से बाहर निकल आए.

अब तो दिनरात कौल, मैसेज, व्हाट्ऐप, चैटिंग… यही सब चलने लगा. बेकरारी

हद से ज्यादा बढ़ जाती थी तो दोनों बाहर भी मिल लेते थे. इतने पर भी चैन न मिले तो महीने में 1-2 बार होटल सन स्टार के किसी खाली कमरे का उपयोग भी कर लेते थे.

निशा के लिए मृणाल की दीवानगी बढ़ती ही जा रही थी. हर महीने उस की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा निशा पर खर्च होने लगा था. नतीजतन घर में हर वक्त आर्थिक तंगी रहने लगी. उषा ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, समाज में रहने के कायदे भी बताए, मगर मृणाल तो जैसे निशा के लिए हर रस्मरिवाज तोड़ने पर आमादा था. ज्यादा विरोध करने पर कहीं बात तलाक तक न पहुंच जाए, यही सोच कर पति पर पूरी तरह से आश्रित उषा ने इसे अपनी नियति मान कर सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और मृणाल की हरकतों पर चुप्पी साध ली.

सालभर होने को आया. मृणाल अपनी दोस्ती की सालगिरह मनाने की

प्लानिंग करने लगा. मगर इन दिनों न जाने क्यों मृणाल को महसूस होने लगा था कि निशा का ध्यान उस की तरफ से कुछ हटने सा लगा है. आजकल उस के व्यवहार में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही थी. कई बार तो वह उस का फोन भी काट देती. अकसर उस का फोन बिजी भी रहने लगा है. उस ने निशा से इस बारे में बात करने की सोची, मगर निशा ने अभी जरा बिजी हूं, कह कर उस का मिलने का प्रस्ताव टाल दिया तो मृणाल को कुछ शक हुआ.

एक दिन वह उसे बिना बताए उस के होटल पहुंच गया. निशा रिसैप्शन पर नहीं थी. वेटर से पूछने पर पता चला कि मैडम अपने किसी मेहमान के साथ डाइनिंगहौल में हैं. मृणाल उधर चल दिया. उस ने जो देखा वह उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसकाने के लिए काफी था. निशा वहां सोफे पर अपने किसी पुरुष मित्र के कंधे पर सिर टिकाए बैठी थी. उस की पीठ हौल के दरवाजे की तरफ होने के कारण वह मृणाल को देख नहीं पाई.

मृणाल चुपचाप आ कर रिसैप्शन पर बने विजिटर सोफे पर बैठ कर निशा का इंतजार करने लगा. लगभग आधे घंटे बाद निशा अपने दोस्त का हाथ थामे नीचे आई तो मृणाल को यों अचानक सामने देख कर सकपका गई. फिर अपने दोस्त को विदा कर के मृणाल के पास आई.

‘‘मैं ये सब क्या देख रहा हूं?’’ मृणाल ने अपने गुस्से को पीने की भरपूर कोशिश की.

‘‘क्या हुआ? ऐसा कौन सा तुम ने दुनिया का 8वां आश्चर्य देख लिया जो इतना उबल रहे हो?’’ निशा ने लापरवाही से अपने बाल झटकते हुए कहा.

‘‘देखो निशा, मुझे यह पसंद नहीं… बाय द वे, कौन था यह लड़का? उस ने तुम्हारा हाथ क्यों थाम रखा था?’’ मृणाल अब अपने गुस्से को काबू नहीं रख पा रहा था.

‘‘यह मेरा दोस्त है और हाथ थामने

से क्या मतलब है तुम्हारा? मैं क्या तुम्हारी

निजी प्रौपर्टी हूं जो मुझ पर अपना अधिकार जता रहे हो?’’ अब निशा का भी पारा चढ़ने

लगा था.

‘‘मगर तुम तो मुझे प्यार करती हो न?

तुम्हीं ने तो कहा था कि मैं तुम्हारा पहला प्यार हूं…’’ मृणाल का गुस्सा अब निराशा में बदलने लगा था.

‘‘हां कहा था… मगर यह किस किताब में लिखा है कि प्यार दूसरी या तीसरी बार नहीं किया जा सकता? देखो मृणाल, यह मेरा निजी मामला है, तुम इस में दखल न ही दो तो बेहतर है. तुम मेरे अच्छे दोस्त हो और वही बने रहो

तो तुम्हारा स्वागत है मेरी दुनिया में अन्यथा तुम कहीं भी जाने के लिए आजाद हो,’’ निशा ने

उसे टका सा जवाब दे कर उस की बोलती बंद कर दी.

‘‘लेकिन वह हमारा रिश्ता… वे ढेरों बातें… वह मिलनाजुलना… ये तुम्हारे हाथ में मेरी अंगूठी… ये सब क्या इतनी आसानी से एक ही झटके में खत्म कर दोगी तुम? तुम्हारा जमीर तुम्हें धिक्कारेगा नहीं?’’ मृणाल अब भी हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था.

‘‘क्यों, जमीर क्या सिर्फ मुझे ही धिक्कारेगा? जब तुम उषा को छोड़ कर मेरे

पास आए थे तब क्या तुम्हारे जमीर ने तुम्हें धिक्कारा था? वाह, तुम करो तो प्यार… मैं

करूं तो बेवफाई… अजीब दोहरे मानदंड हैं तुम्हारे… क्या अपनी खुशी ढूंढ़ने का अधिकार सिर्फ तुम पुरुषों के ही पास है? हम महिलाओं को अपने हिस्से की खुशी पाने का कोई हक नहीं?’’ निशा ने मृणाल को जैसे उस की औकात दिखा दी.

आज उसे उषा के दिल के दर्द का एहसास हो रहा था. वह महसूस कर पा रहा

था उस की पीड़ा को. क्योंकि आज वह खुद भी दर्द के उसी काफिले से गुजर रहा था. मृणाल भारी कदमों से उठ कर घर की तरफ चल दिया जहां उषा गुस्से में ही सही, शायद अब भी उस के लौटने का इंतजार कर रही थी.

एक मुलाकात: क्या नेहा की बात समझ पाया अनुराग

लेखक- निर्मला सिंह

नेहा ने होटल की बालकनी में कुरसी पर बैठ अभी चाय का पहला घूंट भरा ही था कि उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. बगल वाले कमरे की बालकनी में एक पुरुष रेलिंग पकडे़ हुए खड़ा था जो पीछे से देखने में बिलकुल अनुराग जैसा लग रहा था. वही 5 फुट 8 इंच लंबाई, छरहरा गठा बदन.

नेहा सोचने लगी, ‘अनुराग कैसे हो सकता है. उस का यहां क्या काम होगा?’ विचारों के इस झंझावात को झटक कर नेहा शांत सड़क के उस पार झील में तैरती नावों को देखने लगी. दूसरे पल नेहा ने देखा कि झील की ओर देखना बंद कर वह व्यक्ति पलटा और कमरे में जाने के लिए जैसे ही मुड़ा कि नेहा को देख कर ठिठक गया और अब गौर से उसे देखने लगा.

‘‘अरे, अनुराग, तुम यहां कैसे?’’ नेहा के मुंह से अचानक ही बोल फूट पड़े और आंखें अनुराग पर जमी रहीं. अनुराग भी भौचक था, उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की नेहा इतने सालों बाद उसे इस तरह मिलेगी. वह भी उस शहर में जहां उन के जीवन में प्रथम पे्रम का अंकुर फूटा था.

दोनों अपनीअपनी बालकनी में खड़े अपलक एकदूसरे को देखते रहे. आंखों में आश्चर्य, दिल में अचानक मिलने का आनंद और खुशी, उस पर नैनीताल की ठंडी और मस्त हवा दोनों को ही अजीब सी चेतनता व स्फूर्ति से सराबोर कर रही थी.

अनुराग ने नेहा के प्रश्न का उत्तर मुसकराते हुए दिया, ‘‘अरे, यही बात तो मैं तुम से पूछ रहा हूं कि तुम 30 साल बाद अचानक नैनीताल में कैसे दिख रही हो?’’

उस समय दोनों एकदूसरे से मिल कर 30 साल के लंबे अंतराल को कुछ पल में ही पाट लेना चाहते थे. अत: अनुराग अपने कमरे के पीछे से ही नेहा के कमरे में चले आए. अनुराग को इस तरह अपने पास आता देख नेहा के दिल में खुशी की लहरें उठने लगीं. लंबेलंबे कदमों से चलते हुए नेहा अनुराग को बड़े सम्मान के साथ अपनी बालकनी में ले आई.

‘‘नेहा, इतने सालों बाद भी तुम वैसी ही सुंदर लग रही हो,’’ अनुराग उस के चेहरे को गौर से देखते हुए बोले, ‘‘सच, तुम बिलकुल भी नहीं बदली हो. हां, चेहरे पर थोड़ी परिपक्वता जरूर आ गई है और कुछ बाल सफेद हो गए हैं, बस.’’

‘‘अनुराग, मेरे पति आकाश भी यही कहते हैं. सुनो, तुम भी तो वैसे ही स्मार्ट और डायनैमिक लग रहे हो. लगता है, कोई बड़े अफसर बन गए हो.’’

‘‘नेहा, तुम ने ठीक ही पहचाना. मैं लखनऊ  में डी.आई.जी. के पद पर कार्यरत हूं. हलद्वानी किसी काम से आया था तो सोचा नैनीताल घूम लूं, पर यह बताओ कि तुम्हारा नैनीताल कैसे आना हुआ?’’

‘‘मैं यहां एक डिगरी कालिज में प्रैक्टिकल परीक्षा लेने आई हूं. वैसे मैं बरेली में हूं और वहां के एक डिगरी कालिज में रसायन शास्त्र की प्रोफेसर हूं. पति साथ नहीं आए तो मुझे अकेले आना पड़ा. अभी तक तो मेरा रुकने का इरादा नहीं था पर अब तुम मिले हो तो अपना कार्यक्रम तो बदलना ही पडे़गा. वैसे अनुराग, तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

अनुराग ने हंसते हुए कहा, ‘‘नेहा, जिंदगी में सब कार्यक्रम धरे के धरे रह जाते हैं, वक्त जो चाहता है वही होता है. हम दोनों ने उस समय अपने जीवन के कितने कार्र्यक्रम बनाए थे पर आज देखो, एक भी हकीकत में नहीं बदल सका… नेहा, मैं आज तक यह समझ नहीं सका कि तुम्हारे पापा अचानक तुम्हारी पढ़ाई बीच में ही छुड़वा कर बरेली क्यों ले गए? तुम ने बी.एससी. फाइनल भी यहां से नहीं किया?’’

नेहा कुछ गंभीर हो कर बोली, ‘‘अनुराग, मेरे पापा उस उम्र में  ही मुझ से जीवन का लक्ष्य निर्धारित करवाना चाहते थे. वह नहीं चाहते थे कि पढ़ाई की उम्र में मैं प्रेम के चक्कर में पड़ूं और शादी कर के बच्चे पालने की मशीन बन जाऊं. बस, इसी कारण पापा मुझे बरेली ले गए और एम.एससी. करवाया, पीएच.डी. करवाई फिर शादी की. मेरे पति बरेली कालिज में ही गणित के विभागाध्यक्ष हैं.’’

‘‘नेहा, कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

‘‘2 बेटे हैं. बड़ा बेटा इंगलैंड में डाक्टर है और वहीं अपने परिवार के साथ रहता है. दूसरा अमेरिका में इंजीनियर है. अब तो हम दोनों पतिपत्नी अकेले ही रहते हैं, पढ़ते हैं, पढ़ाते है.’’

‘‘अनुराग, अब तक मैं अपने बारे में ही बताए जा रही हूं, तुम भी अपने बारे में कुछ बताओ.’’

‘‘नेहा, तुम्हारी तरह ही मेरा भी पारिवारिक जीवन है. मेरे भी 2 बच्चे हैं. एक लड़का आई.ए.एस. अधिकारी है और दूसरा दिल्ली में एम्स में डाक्टर है. अब तो मैं और मेरी पत्नी अंशिका ही घर में रहते हैं.’’

इतना कह कर अनुराग गौर से नेहा को देखने लगा.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो अनुराग?’’ नेहा बोली, ‘‘अब सबकुछ समय की धारा के साथ बह गया है. जो प्रेम सत्य था, वही मन की कोठरी में संजो कर रखा है और उस पर ताला लगा लिया है.’’

‘‘नेहा…सच, तुम से अलग हो कर वर्षों तक मेरे अंतर्मन में उथलपुथल होती रही थी लेकिन धीरेधीरे मैं ने प्रेम को समझा जो ज्ञान है, निरपेक्ष है और स्वयं में निर्भर नहीं है.’’

‘‘अनुराग, तुम ठीक कह रहे हो,’’ नेहा बोली, ‘‘कभी भी सच्चे प्रेम में कोई लोभ, मोह और प्रतिदान नहीं होता है. यही कारण है कि हमारा सच्चा प्रेम मरा नहीं. आज भी हम एकदूसरे को चाहते हैं लेकिन देह के आकर्षण से मुक्त हो कर.’’

अनुराग कमरे में घुसते बादलों को पहले तो देखता रहा फिर उन्हें अपनी मुट्ठी में बंद करने लगा. यह देख नेहा हंस पड़ी और बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो बच्चों की तरह?’’

‘‘नेहा, तुम्हारी हंसी में आज भी वह खनक बरकरार है जो मुझे कभी जीने की पे्ररणा देती थी और जिस के बलबूते पर मैं आज तक हर मुश्किल जीतता रहा हूं.’’

नेहा थोड़ी देर तक शांत रही, फिर बेबाकी से बोल पड़ी, ‘‘अनुराग, इतनी तारीफ ठीक नहीं और वह भी पराई स्त्री की. चलो, कुछ और बात करो.’’

‘‘नेहा, एक कप चाय और पियोगी.’’

‘‘हां, चल जाएगी.’’

अनुराग ने कमरे से फोन किया तो कुछ ही देर में चाय आ गई. चाय के साथ खाने के लिए नेहा ने अपने साथ लाई हुई मठरियां निकालीं और दोनों खाने लगे. कुछ देर बाद बातों का सिलसिला बंद करते हुए अनुराग बोले, ‘‘अच्छा, चलो अब फ्लैट पर चलें.’’

नेहा तैयार हो कर जैसे ही बाहर निकली, कमरे में ताला लगाते हुए अनुराग उस की ओर अपलक देखने लगा. नेहा ने टोका, ‘‘अनुराग, गलत बात…मुझे घूर कर देखने की जरूरत नहीं है, फटाफट ताला लगाइए और चलिए.’’

उस ने ताला लगाया और फ्लैट की ओर चल दिया.

बातें करतेकरते दोनों तल्लीताल पार कर फ्लैट पर आ गए और उस ओर बढ़ गए जिधर झील के किनारे रेलिंग बनी हुई थी. दोनों रेलिंग के पास खड़े हो कर झील को देखते रहे.

कतार में तैर रही बतखों की ओर इशारा करते हुए अनुराग ने कहा, ‘‘देखो…देखो, नेहा, तुम ने भी कभी इसी तरह तैरते हुए बतखों को दाना डाला था जैसे ये लड़कियां डाल रही हैं और तब ठीक ऐसे ही तुम्हारे पास भी बतखें आ रही थीं, लेकिन तुम ने शायद उन को पकड़ने की कोशिश की थी…’’

‘‘हां अनुराग, ज्यों ही मैं बतख पकड़ने के लिए झुकी थी कि अचानक झील में गिर गई और तुम ने अपनी जान की परवा न कर मुझे बचा लिया था. तुम बहुत बहादुर हो अनुराग. तुम ने मुझे नया जीवन दिया और मैं तुम्हें बिना बताए ही नैनीताल छोड़ कर चली गई, इस का मुझे आज तक दुख है.’’

‘‘चलो, तुम्हें सबकुछ याद तो है,’’ अनुराग बोला, ‘‘इतने वर्षों से मैं तो यही सोच रहा था कि तुम ने जीवन की किताब से मेरा पन्ना ही फाड़ दिया है.’’

‘‘अनुराग, मेरे जीवन की हर सांस में तुम्हारी खुशबू है. कैसे भूल सकती हूं तुम्हें? हां, कर्तव्य कर्म के घेरे में जीवन इतना बंध जाता है कि चाहते हुए भी अतीत को किसी खिड़की से नहीं झांका जा सकता,’’  एक लंबी सांस लेते हुए नेहा बोली.

‘‘खैर, छोड़ो पुरानी बातों को, जख्म कुरेदने से रिसते ही रहते हैं और मैं ने  जख्मों पर वक्त का मरहम लगा लिया है,’’ अनुराग की गंभीर बातें सुन कर नेहा भी गंभीर हो गई.

‘यह अनुराग कुछ भी भूला नहीं है,’ नेहा मन में सोचने लगी, पुरुष हो कर भी इतना भावुक है. मुझे इसे समझाना पड़ेगा, इस के मन में बंधी गांठों को खोलना पडे़गा.’

नेहा पत्थर की बैंच पर बैठी कुछ समय के लिए शांत, मौन, बुत सी हो गई तो अनुराग ने छेड़ते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी बातें बुरी लगीं? तुम तो बेहद गंभीर हो गईं. मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था नेहा. सौरी.’’

‘‘अनुराग, यौवनावस्था एक चंचल, तेज गति से बहने वाली नदी की तरह होती है. इस दौर में लड़केलड़कियों में गलतसही की परख कम होती है. अत: प्रेम के पागलपन में अंधे हो कर कई बार दोनों ऐसे गलत कदम उठा लेते हैं जिन्हें हमारा समाज अनुचित मानता है. और यह तो तुम जानते ही हो कि हम भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर

हर शनिवाररविवार खूब घूमतेफिरते थे. नैनीताल का वह कौन सा स्थान है जहां हम नहीं घूमे थे. यही नहीं जिस उद्देश्य के लिए हम मातापिता से दूर थे, वह भी भूल गए थे. यदि हम अलग न हुए होते तो यह सच है कि न तुम कुछ बन पाते और न मैं कुछ बन पाती,’’ कहते हुए नेहा के चेहरे पर अनुभवों के चिह्न अंकित हो गए.

‘‘हां, नेहा तुम बिलकुल ठीक कह रही हो. यदि कच्ची उम्र में हम ने शादी कर ली होती तो तुम बच्चे पालती रहतीं और मैं कहीं क्लर्क बन गया होता,’’ कह कर अनुराग उठ खड़ा हुआ.

नेहा भी उठ गई और दोनों फ्लैट से सड़क की ओर आ गए जो तल्लीताल की ओर जाती है. चारों ओर पहाडि़यां ही पहाडि़यां और बीच में झील किसी सजी हुई थाल सी लग रही थी.

नेहा और अनुराग के बीच कुछ पल के लिए बातों का सिलसिला थम गया था. दोनों चुपचाप चलते रहे. खामोशी को तोड़ते हुए अनुराग बोला, ‘‘अरे, नेहा, मैं तो यह पूछना भूल ही गया कि खाना तुम किस होटल में खाओगी?’’

‘‘भूल गए, मैं हमेशा एंबेसी होटल में ही खाती थी,’’ नेहा बोली.

अपनेअपने परिवार की बातें करते हुए दोनों चल रहे थे. जब दोनों होटल के सामने पहुंचे तो अनुराग नेहा का हाथ पकड़ कर सीढि़यां चढ़ने लगा.

‘‘यह क्या कर रहे हो, अनुराग. मैं स्वयं ही सीढि़यां चढ़ जाऊंगी. प्लीज, मेरा हाथ छोड़ दो, यह सब अब अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘सौरी,’’ कह कर अनुराग ने हाथ छोड़ दिया.

दोनों एक मेज पर आमनेसामने बैठ गए तो बैरा पानी के गिलास और मीनू रख गया.

खाने का आर्डर अनुराग ने ही दिया. खाना देख कर नेहा मुसकरा पड़ी और बोली, ‘‘अरे, तुम्हें तो याद है कि मैं क्या पसंद करती हूं, वही सब मंगाया है जो हम 25 साल पहले इसी तरह इसी होटल में बैठ कर खाते थे,’’ हंसती हुई नेहा बोली, ‘‘और इसी होटल में हमारा प्रेम पकड़ा गया था. खाना खाते समय ही पापा ने हमें देख लिया था. हो सकता है आज भी न जाने किस विद्यार्थी की आंखें हम लोगों को देख रही हों. तभी तो तुम्हारा हाथ पकड़ना मुझे अच्छा नहीं लगा. देखो, मैं एक प्रोफेसर हूं, मुझे अपना एक आदर्श रूप विद्यार्थियों के सामने पेश करना पड़ता है क्योंकि बातें अफवाहों का रूप ले लेती हैं और जीवन भर की सचरित्रता की तसवीर भद्दी हो जाती है.’’

मुसकरा कर अनुराग बोला, ‘‘तुम ठीक कहती हो नेहा, छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना जरूरी है.’’

‘‘हां, अनुराग, हम जीवन में सुख तभी प्राप्त कर सकते हैं जब सच्चे प्यार, त्याग और विश्वास को आंचल में समेटे रखें, छोटीछोटी बातों पर सावधानी बरतें. अब देखो न, मेरे पति मुझे अपने से भी ज्यादा प्यार करते हैं क्योंकि मेरा अतीत और वर्तमान दोनों उन के सामने खुली किताब है. मैं ने शाम को ही आकाश को फोन पर सबकुछ बता दिया और वह निश्ंिचत हो गए वरना बहुत घबरा रहे थे.’’

बातों के साथसाथ खाने का सिलसिला खत्म हुआ तो अनुराग बैरे को बिल दे कर बाहर आ गए.

अनुराग और नेहा चुपचाप होटल की ओर चल रहे थे, लेकिन नेहा के दिमाग में उस समय भी कई सुंदर विचार फुदक रहे थे.  वह चौंकी तब जब अनुराग ने कहा, ‘‘अरे, होटल आ गया नेहा, तुम आगे कहां जा रही हो?’’

‘‘ओह, वैरी सौरी. मैं तो आगे ही बढ़ गई थी.’’

‘‘कुछ न कुछ सोच रही होगी शायद…’’

‘‘हां, एक नई कहानी का प्लाट दिमाग में घूम रहा था. दूसरे, नैनीताल की रात कितनी सुंदर होती है यह भी सोच रही थी.’’

‘‘अच्छा है, तुम अपने को व्यस्त रखती हो. साहित्य सृजन रचनात्मक क्रिया है, इस में सार्थकता और उद्देश्य के साथसाथ लक्ष्य भी होता है…’’ होटल की सीढि़यां चढ़ते हुए अनुराग बोला. बात को बीच में ही काटते हुए नेहा बोली, ‘‘यह सब लिखने की प्रेरणा आकाश देते हैं.’’

नेहा अपने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर जाने लगी तो अनुराग ने पूछा, ‘‘क्या अभी से सो जाओगी? अभी तो 11 बजे हैं?’’

‘‘नहीं अनुराग, कल के लिए कुछ पढ़ना है. वैसे भी आज बातें बहुत कर लीं. अच्छी रही हम लोगों की मुलाकात, ओ. के. गुड नाइट, अनुराग.’’

और एक मीठी मुलाकात की महक बसाए दोनों अपनेअपने कमरों में चले गए.

नेहा अपने कमरे में पढ़ने में लीन हो गई लेकिन अनुराग एक बेचैनी सी महसूस कर रहा था कि वह जिस नेहा को एक असहाय, कमजोर नारी समझ रहा था वह आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की जीतीजागती प्रतिरूप है. एक वह है जो अपनी पत्नी में हमेशा नेहा का रूप देखने का प्रयास करता रहा. सदैव उद्वेलित, अव्यवस्थित रहा. काश, वह भी समझ लेता कि परिस्थितियों के साथ समझौते का नाम ही जीवन है. नेहा ने ठीक ही कहा था, ‘अनुराग, हमें किसी भी भावना का, किसी भी विचार का दमन नहीं करना चाहिए, वरन कुछ परिस्थितियों को अपने अनुकूल और कुछ स्वयं को उन के अनुकूल करना चाहिए तभी हमारे साथ रहने वाले सभी सुखी रहते हैं.’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें