बहुरुपिया: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

हर्ष से मेरी मुलाकात एक आर्ट गैलरी में हुई थी. 5 मिनट की उस मुलाकात में बिजनैस कार्ड्स का आदानप्रदान भी हो गया.

‘‘मेरी खुद की वैबसाइट भी है, जिस में मैं ने अपनी सारी पेंटिंग्स की तसवीरें डाल रखी हैं, उन के विक्रय मूल्य के साथ,’’ मैं ने अपने बिजनैस कार्ड पर अपनी वैबसाइट के लिंक पर उंगली रखते हुए हर्ष से कहा.

‘‘जी, बिलकुल, मैं जरूर आप की पेंटिंग देखूंगा. फिर आप को टैक्स मैसेज भेज कर फीडबैक भी दे दूंगा. आर्ट गैलरी तो मैं अपनी जिंदगी में बहुत बार गया हूं पर आप के जैसी कलाकार से कभी नहीं मिला. योर ऐवरी पेंटिंग इज सेइंग थाउजैंड वर्ड्स,’’ हर्ष ने मेरी पेंटिंग पर गहरी नजर डालते हुए कहा.

‘‘हर्ष आप से मिल कर बड़ा हर्ष हुआ, स्टे इन टच,’’ मैं ने उस वक्त बड़े हर्ष के साथ हर्ष से कहा था. इस संक्षिप्त मुलाकात में मुझे वह कला का अद्वितीय पुजारी लगा था.

बात तो 5 मिनट ही हुई थी पर मैं आधे घंटे से दूर से उस की गतिविधियां देख रही थी. वह हर पेंटिंग के पास रुकरुक कर समय दे रहा था, साथ ही एक छोटी सी डायरी में कुछ नोट्स भी लेता जा रहा था.

‘लगता है यह कोई बड़ा कलापारखी है,’ उस वक्त उसे देख कर मैं ने सोचा था.

हर्ष से हुई इस मुलाकात को 6 महीने बीत चुके थे. इस दौरान न उस ने मुझ से कौंटैक्ट करने की कोशिश की न ही मैं ने उस से. मेरी वैबसाइट से मेरी पेंटिंग्स की बिक्री न के बराबर हो रही थी. मैं हर तरह से उन के प्रचार की कोशिश कर रही थी. मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी वैबसाइट का लिंक भेज रही थी. मुझे मतलब नहीं था कि वे मुझे ज्यादा जानते हैं या कम. मुझे तो बस एक जनून था कला जगत में एक पहचान बनाने और नाम कमाने का. इस जनून के चलते मैं ने एक टैक्स मैसेज हर्ष को भी भेज दिया.

‘‘क्या आज मेरे साथ कौफी पीने आ सकती हो?’’ तत्काल ही उस का जवाब आया.

मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं था. 5 मिनट की संक्षिप्त मुलाकात के बाद कोई 6 महीने तक गायब था और जब किसी वजह से मैं ने उसे एक मैसेज भेजा तो सीधे मेरे साथ कौफी पीना चाहता है.

‘अजीब दुनिया है यह,’ मैं मन ही भुनभुनाई और फिर टैक्स मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिन यों ही आने वाली कला प्रदर्शनी की तैयारी में निकल गए और बाद में भी मैं हर्ष के मैसेज को भुला कर अपने स्तर पर अपनी कला को बढ़ावा देने में जुटी रही. कुछ दिनों के बाद अचानक उस का फोन आया फिर से मेरे साथ कौफी पीने के आग्रह के साथ.

‘‘न तुम मुझे जानते हो और न ही मैं तुम्हें, फिर यह बेवजह कौफी पीने का क्या मतलब है? मैं ने तुम्हें किसी वजह से एक मैसेज भेज दिया, इस का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि मैं फालतू में तुम्हारे साथ टाइम पास करने के लिए इच्छुक हूं,’’ मेरा दो टूक जवाब था.

‘‘मैं ने तुम्हारी कला और उस की गहराई को समझा है और उस जरीए से तुम्हें भी जाना है. मैं तुम्हारी उतनी ही इज्जत करता हूं जितनी दुनिया एमएफ हुसैन की करती है. मैं ने जब तुम्हारा नाम पहली बार अपने मोबाइल में डाला था तो उस के आगे पेंटर सफिक्स लिख कर डाला था. अभी भी तुम मानो या न मानो एक दिन तुम कला के क्षेत्र में एमएफ हुसैन को मात दे दोगी. रही बात हमारी जानपहचान की तो वह तो बढ़ाने से ही बढ़ेगी न?’’

अपनी तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता? हर्ष के शब्दों का मुझ पर असर होने लगा. अपनी तारीफों के सम्मोहन में जकड़ी हुई मैं अब उस से घंटों फोन पर बातें करती. हर बार वह मेरी और मेरी कला की जम कर प्रशंसा करता. उस की बातें मेरे ख्वाबों को पंख दे रही थीं. मन में बरसों से पड़े शोहरत की चाहत के बीज में अंकुर फूटने लगा था.

‘‘मैं तुम्हारी इतनी इज्जत करता हूं, जितनी कि हिंदुस्तान के सवा करोड़ हिंदुस्तानी मिल कर भी नहीं कर सकते. महीनों हो गए तुम्हें कौफी पर आने के लिए कहतेकहते… इतने पर तो कोई पत्थर भी चला आता,’’ एक दिन हर्ष ने कहा.

आखिर किस पत्थरदिल पर ऐसी बातों का असर न होता? मैं उस से अकसर मिलने लगी. अब इन मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो चुका था और परिचय गहरी दोस्ती में बदल चुका था. ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान हर्ष ने बताया कि वह विवाहित है और उस की 3 साल की बेटी भी है. उस की पत्नी मीनाक्षी लोकल विश्वविद्यालय में संस्कृत प्रवक्ता थी और वह स्वयं कोई काम नहीं करता था.

‘‘मुझे कुछ करने की क्या जरूरत है? मेरे एमएलए पिता ने काफी कुछ कमा रखा है. अगली बार मुझे भी एमएलए का टिकट मिल ही जाएगा. क्या रखा है दोचार कौड़ी की नौकरी में? हर्ष ने बड़ी अकड़ के साथ कहा.’’

‘‘जब नौकरी से इतना ही परहेज है तो फिर मीनाक्षी जैसी नौकरीशुदा से क्यों शादी कर ली तुम ने?’’ मैं ने दुविधा में पड़ कर पूछा.

‘‘बेवकूफ है वह, अपनी ढपली अपना राग अलापती है. शादी से पहले उस ने और उस के परिवार वालों ने वादा किया था कि वह शादी के बाद नौकरी छोड़ देगी, लेकिन बाद में उस का रंग ही बदल गया और उस ने अपनी बहनजी वाली नौकरी नहीं छोड़ी. वह नहीं जानती कि एमएलए परिवार में किस तरह रहा जाता है,’’ हर्ष का चेहरा अंधे अभिमान से दपदपा रहा था.

उस के जवाब को सुन कर मैं हत्प्रभ रह गई. मेरी चेतना मुझ से कह रही थी कि मेरा मन एक गलत आदमी के साथ जुड़ने लगा है. मगर चाहेअनचाहे मैं इस डगर पर आगे बढ़ती जा रही थी. उस की बातों में मेरी तारीफों के पुल और उस के एमएलए पिता के ताल्लुकात में मुझे अपनी शोहरत में दीए को तेल मिलता सा लगता था. इस दीए की टिमटिमाहट की चमक हर्ष के सच की कालिमा को ठीक से नहीं देखने दे रही थी.

‘‘तुम मेरे लिए मंदिर में रखी एक मूर्ति के समान हो. मैं जो कहूं वह बस सुन लिया करो, मगर उसे ज्यादा दिल से लगाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं एक शादीशुदा आदमी हूं और इस रास्ते पर तुम्हारे साथ ज्यादा लंबा नहीं जा सकता,’’ उस ने साफसाफ कहा.

‘‘मुझे पता है हर्ष तुम शादीशुदा हो. मैं भी तुम से उस तरह की कोई उम्मीद नहीं कर रही हूं. मगर समझ में नहीं आता कि अब हम दोनों जानते हैं कि हम इस रास्ते पर आगे नहीं जा सकते तो ये बेवजह की मुलाकातें किस लिए हैं?’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी, मैं तुम्हें सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहता हूं. मैं अपने लिए तुम से किसी तरह की उम्मीद नहीं करता. बस एक सच्चा दोस्त बन कर तुम्हें आगे बढ़ाना चाहता हूं. अगले साल थाईलैंड में होने वाली प्रदर्शनी के लिए तुम्हें ललित कला ऐकैडमी स्कौलरशिप दिलवाऊंगा. मेरे डैडी के बड़ेबड़े कौंटैक्ट्स हैं, इसलिए ऐसा कर पाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है. बस तुम्हारी 2-4 इंटरनैशनल प्रदर्शनियां हो गईं तो फिर तुम्हें मशहूर होने में देर नहीं लगेगी.’’

यह सुन कर मैं मन ही मन गद्गद हो रही थी. मैं अकसर सोचा करती कि मैं मशहूर हो पाऊं  या न हो पाऊं, पर कम से कम मेरे पास एक इतना बड़ा प्रशंसक तो है. देखा जाए तो क्या कम है. अब हमारी मुलाकात रोज होने लगी थी. हर्ष की मेरे प्रति इबादत अब किसी और भाव में बदलने लगी थी. जो हर्ष पहले मुझे अपने सामने बैठा कर मुझे देखने मात्र की और मेरी पेंटिंग्स के बारे में बातें करने की चाहत रखता था. वह अब कुछ और भी चाहने लगा था.

‘‘एक चीज मांगू तुम से?’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या मैं तुम्हें अपनी बांहों में ले सकता हूं?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘सिर्फ 1 बार प्लीज. पता है मुझे क्या लगता है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘कि मैं तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं और वक्त बस वहीं ठहर जाए. तुम सोच भी नहीं सकतीं कि मैं तुम्हारा कितना सम्मान करता हूं.’’

‘‘और मैं कठपुतली सी उस की बांहों में समा गई.’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी और तुम्हें आकाश की बुलंदियों को छूते हुए देखना चाहता हूं,’’ मेरे बालों को सहलाते हुए उस का पुराना एकालाप जारी रहा.

‘‘हर्ष, प्लीज अब घर जाने दो मुझे. 1-2 पेंटिंग्स पूरी करनी हैं कल शाम तक.’’

‘‘ठीक है, जल्दी फिर मिलूंगा. इस हफ्ते मौका मिलते ही डैडी से तुम्हारे लिए ललित कला ऐकैडमी की स्कौलरशिप के बारे में बात करूंगा.’’

कुछ दिनों के बाद हम फिर से अपने पसंदीदा रेस्तरां में आमनेसामने बैठे थे. डिनर खत्म होतेहोते रात की स्याही बढ़ने लगी थी. कई दिनों की लगातार बारिश के बाद आज दिन भर सुनहली धूप रही थी. हर्ष ने रेस्तरां के पास के पार्क में टहलने की इच्छा व्यक्त की. मौसम मनभावन था. पार्क में टहलने के लिए बिलकुल परफैक्ट. इसलिए बिना किसी नानुकुर के मैं ने हामी भर दी.

‘‘जरा उधर तो देखो, क्या चल रहा है,’’ हर्ष ने पार्क के एक कोने में लताओं के झुरमुट पर झूलते हुए कतूबरकतूबरी के जोड़े की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘क्या चल रहा है… कुछ भी नहीं,’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘‘देखो यह एक प्राकृतिक भावना है. कोई भी जीव इस से अछूता नहीं है, फिर हम ही इस से कैसे अछूते रह सकते हैं?’’

‘‘हर्ष, तुम जो कहना चाहते हो साफसाफ कहो, पहेलियां न बुझाओ.’’

‘‘कहना क्या है, तुम्हें तो पता है कि मैं शादीशुदा हूं और शहर भर में मेरे एमएलए पिता की बड़ी इज्जत है, इसलिए मैं तुम्हारे साथ ज्यादा आगे तो जा ही नहीं पाता. मगर जैसी गहरी दोस्ती तुम्हारे और मेरे बीच में है उस में मेरा इतना हक तो बनता है कि मैं कभीकभार तुम्हारा चुंबन ले लूं और फिर इस में हर्ज ही क्या है. यह भावना तो प्रकृति की देन है और हर जीव में बनाई है.’’

मेरे कोई प्रतिक्रिया करने से पहले ही वह मुझे एक बड़े से पेड़ की आड़ में खींच चुका था और कुछ कहने को खुलते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों से सिल चुका था.

‘‘एक दिन तुम दुनिया की सब से अच्छी चित्रकार बनोगी. तुम्हारी पेंटिंग्स दुनिया की हर मशहूर आर्ट गैलरी की शान बढ़ाएंगी. कई महीनों  से डैडी बहुत व्यस्त हैं, इसलिए मैं उन से तुम्हारी स्कौलरशिप के बारे में बात नहीं कर पाया. मगर आज घर पहुंचते ही सीधा उन से यही बात करूंगा.’’ चंद पलों की इस अवांछित समीपता के बाद उस ने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद करते हुए अपना एकालाप दोहराया.

‘‘मैं ने बिना कुछ कहे अपना सिर उस कठपुतली की तरह हिलाया जिस की डोर पर हर्ष की पकड़ दिनबदिन मजबूत होती जा रही थी.’’

‘‘रिलैक्स डार्लिंग, जल्द ही तुम एमएफ हुसैन की श्रेणी में खड़ी होगी. चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे फ्लैट पर छोड़ता हुआ निकल जाऊंगा.’’ उस ने अपनी कार का दरवाजा मेरे लिए खोलते हुए कहा.

फ्लैट पर आतेआते काफी रात हो चुकी थी. हर्ष बाहर से गुडबाय कह कर चला गया. मेरे मन में अजीब सी ऊहापोह मची थी. जानेअनजाने एक ऐसे रास्ते पर चल रही थी जिस पर चल कर मुझे कुछ भी हासिल नहीं होना था. इस रास्ते पर चलते हुए दूरदूर तक कोई मंजिल नजर नहीं आ रही थी. यह सफर तो शायद एक भूलभुलैया ही सिद्ध होना था, तो फिर क्या हो रहा था मेरे साथ? क्या यह रास्ता मेरी नियति था या फिर मेरी कमजोरी?

ढेरों बातें मनमस्तिष्क में प्रश्नचिह्न अंकित कर रही थीं. हर्ष और मेरी पहचान को अब करीबकरीब 2 साल हो चुके थे. क्या वह वाकई मेरी इबादत करता है? अगर हां तो यह किस तरह की इबादत है? क्या वह सचमुच ऐसा सोचता है कि मैं एक दिन कलाजगत के शिखर पर पहुंचूंगी और मुझे आगे बढ़ाने में सच्चे मित्र की तरह मेरी मदद करना चाहता है? यदि हां तो इन 2 सालों में उस ने मेरी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए कौन सा प्रयत्न किया है?

सवालों के बोझ से दबी हुई आखिर मैं नींद के आगोश में खो गई. दूसरे दिन भी मन उन्हीं सवालों के जवाब ढूंढ़ने में लगा रहा. मगर ये सारे सवाल बारबार बिना जवाब के ही रह जाते. पिछले 2 सालों में मैं हर्ष में इतनी मशगूल थी कि मेरे अन्य मित्र भी मुझ से दूर हो चुके थे. आज अकेले बैठेबैठे मुझे उन सब की बड़ी याद आ रही थी. अंत में मैं ने श्रेया के यहां जाने का फैसला किया.

‘‘बहुत दिनों के बाद आई हो बेटी? कहां गुम हो गई थीं इतने दिनों से? कोई खोजखबर ही नहीं थी तुम्हारी,’’ श्रेया के घर में घुसते ही उस की मां ने मुझे अपने गले से लगा कर पूछा. उन का प्यार भरा स्वर मेरी आंखों को नम कर गया.

‘‘बस यों ही आंटी कुछ बड़े पेंटिंग्स प्रोजैक्ट्स पर काम कर रही थी, इसलिए जरा वक्त नहीं मिल पाया, पर विश्वास करिए ऐसा कोई दिन नहीं जब मैं ने आप को याद न किया हो,’’ मैं ने आंखों के कोरों को रूमाल से पोंछते हुए कहा.

‘‘चलो, यह सब छोड़ो और बताओ चाय लोगी या कौफी?’’आंटी ने मेरे दोनों कंधे पकड़ कर मुझे सोफे पर बैठाते हुए पूछा.

‘‘चायकौफी छोडि़ए आंटी, यह बताइए श्रेया कहां है… कहीं दिखाई नहीं दे रही.’’

‘‘इतने दिन बाद आई हो कुछ खाओपीओ तो सही तब तक श्रेया भी आ जाएगी. आज उस का सितारवादन का बहुत बड़ा मंच प्रदर्शन है. बड़ी उम्मीदें हैं उसे अपने प्रदर्शन से. कई महीनों से तैयारी में जुटी थी,’’ अपनी बेटी के बारे में बतातेबताते आंटी भावुक हो गई थीं.

‘मेरी सब से प्रिय मित्र का इतना बड़ा मौका है और मुझे इस बात की कोई खबर ही नहीं,’ सोचते हुए मन ही मन ग्लानि महसूस हो रही थी.

आंटी से गपशप करने में 1 घंटा पास हो चुका था. तभी घंटी बजी, आंटी के दरवाजा खोलते ही श्रेया आंधीतूफान की तरह घर में घुसती हुई अपनी मां से लिपट गई. उस का चेहरा उत्साह से दमक रहा था.

‘‘मम्मीमम्मी पता है आज मेरे मंच प्रदर्शन के दौरान क्या हुआ?’’ श्रेया खुशी से चहक रही थी. मां के कुछ कहने के पहले ही वह फिर से चहकने लगी, ‘‘अपने शहर के एमएलए साहब अपने परिवार के साथ आए थे, वहां प्रमुख अतिथि बन कर. पता है उन का बेटा तो प्रदर्शन खत्म होने के बाद अलग से मुझ से मिलने आया था. हर्ष नाम है उस का. उस ने कहा मेरे सितारवादन में बहुत दम है, योर म्यूजिक इज द फूड औफ द सोल. इतना ही नहीं, उस ने यह भी कहा कि मैं एक दिन पंडित रविशंकर की तरह हिंदुस्तान की सब से मशहूर सितारवादक होऊंगी. वह अपने डैडी से भी बात करेगा मुझे कोई अच्छी स्कौलरशिप दिलवाने के लिए.’’

अचानक श्रेया की नजर मुझ पर पड़ी और वह खुशी से मेरी तरफ लपकी. मैं दूर बैठी अपने मन के भावों को छिपाने का प्रयास कर रही थी. श्रेया कुछ कह पाती. उस के पहले ही मैं खड़ी हो चुकी थी. मैं किसी से कुछ नहीं कहना चाहती थी, बस जल्दी से जल्दी अपने फ्लैट पर वापस जाना चाहती थी. अब मैं सिर्फ और सिर्फ, 2 साल से चल रही हर्ष और अपनी कहानी का सही अंत ढूंढ़ना चाहती थी.

‘‘श्रेया, प्लीज मुझे अभी अपने घर जाने दो. तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है. घर जा कर पूरी तरह से आराम करना चाहती हूं. जल्दी ही फिर किसी और दिन तुम से मिलने आऊंगी. तब जम कर गपशप करेंगी हम दोनों. मैं ने श्रेया के चेहरे को दोनों हाथों में लेते हुए कहा.’’

‘‘हां तुम्हारा चेहरा कुछ पीला सा लग रहा है. बेहतर होगा तुम अपने घर जा कर आराम करो. मैं तुम्हें जबरदस्ती नहीं रोकूंगी. अब श्रेया की आंखों में मेरे लिए चिंता साफ झलक रही थी.’’

सुरमुई शाम अब तक अंधेरे की चादर ओढ़ चुकी थी. मगर मेरे मन पर 2 बरसों से छाया अंधेरा खत्म हो चुका था. मैं अब हर्ष के व्यक्तित्व में छिपे बहुरुपिए को साफसाफ देख पा रही थी, जो व्यक्ति अपने घर में बैठी कालेज प्रवक्ता ब्याहता को बेवकूफ समझता हो, तो उस से किसी और स्त्री के सम्मान की उम्मीद कैसे की जा सकती है. कैसे कद्र कर सकता है वह किसी दूसरे की कला की? मैं ने अब तक जो भी थोड़ाबहुत नाम कमाया था वह अपनी खुद की मेहनत और प्रतिभा के बूते कमाया था. किसी अनपढ़ एमएलए के बिगड़ैल बेटे की सिफारिश से नहीं.

मेरी और हर्ष की कहानी की शुरुआत ही गलत थी. वक्त के साथसाथ इस में जितने ज्यादा अध्याय जुड़ते जा रहे थे वह उतनी ही घटिया होती जा रही?थी. मेरे मन के दर्पण पर छाई धुंध साफ हो चुकी थी और इस में बसे हुए हर्ष के चेहरे की हकीकत खुल कर नजर आने लगी थी. वह मेरी जिंदगी में आया था मुझे पतन की फिसलन पर ले जाने के लिए, शोहरत की बुलंदियों पर ले जाने नहीं. इस से पहले कि यह कहानी घटिया से घिनौनी हो जाए इसे तुरंत खत्म कर देना जरूरी है. अत: मैं ने उसी समय उस से कभी न मिलने का पक्का फैसला कर लिया और फिर इसी निश्चय के साथ मैं ने हैंडबैग से अपना मोबाइल निकाला और हर्ष का फोन नंबर हमेशा के लिए ब्लौक कर दिया.

जीवन लीला: भाग 1- क्या हुआ था अनिता के साथ

लेखकसंतोष सचदेव

जीवन के आखिरी पलों में न जाने क्यों आज मेरा मन खुद से बातें करने को हो गया. सोचा अपनी  जिंदगी की कथा या व्यथा मेज पर पड़े कोरे कागजों पर अक्षरों के रूप में अंकित कर दूं.

यह मैं हूं. मेरा नाम अनिता है. कहां पैदा हुई, यह तो पता नहीं, पर इतना जरूर याद है कि मेरे पिता कनाडा में भारतीय दूतावास में एक अच्छे पद पर तैनात थे. उन का औफिस राजधानी ओटावा में था. मां भी उन्हीं के साथ रहती थीं. मैं और मेरा भाई मांट्रियल में मौसी के यहां रहते थे. मेरी पढ़ाई की शुरुआत वहीं से हुई. मेरा भाई रोहन मुझ से 5 साल बड़ा था.

स्कूल घर के पास ही था, मुश्किल से 3-4 मिनट का रास्ता था. तमाम बच्चे पैदल ही स्कूल आतेजाते थे. लेकिन हमारे घर और स्कूल के बीच एक बड़ी सड़क थी, जिस पर तेज रफ्तार से कारें आतीजाती थीं. इसलिए वहां के कानून के हिसाब से स्कूल बस हमें लेने और छोड़ने आती थी.

घर में हम हिंदी बोलते थे, जबकि स्कूल में फ्रेंच और अंग्रेजी पढ़नी और बोलनी पड़ती थी. वहां की भाषा फ्रेंच थी. वहां सभी फ्रेंच में बातें करते थे. दुकानों के साइन बोर्ड, सड़कों के नाम, सब कुछ फ्रेंच में थे. जबकि मुझे फ्रेंच से बड़ी चिढ़ थी. स्कूल की कोई यूनीफार्म नहीं थी, फीस भी नहीं, किताबकापियां सब फ्री में मिलती थीं.

सर्दी में भी सभी लड़कियां छोटेछोटे कपड़े पहनती थीं. हम भारतीयों को यह सब बड़ा अजीब लगता था. बचपन के लगभग 10 साल वहीं बीते. मांट्रियल के बारे में सुना था कि वहां बहुत बड़ा पहाड़ था, जिसे माउंट रायल कहते थे. बोलतेबोलते वह माउंट रायल मांट्रियल बन गया. ऊंचे पहाड़ से बहते झरने की तरह मेरी जीवनधारा भी कभी कलकल करती, कभी हिलोरें भरती, कभी गहरी झील की गहराई सी समेटे आगे बढ़ रही थी. वह मधुरिम समय आज भी मेरे जीवन की जमापूंजी है.

मैं थोड़ा बड़ी हो गई. भारतीय परंपराओं के बंधनों से मेरा परिचय कराया जाने लगा. लड़कियां मित्र हो सकती हैं, लड़के नहीं. स्कूल सीमा के बाहर किसी लड़के के साथ न बोलना, न घूमना. पिता नए जमाने के साथ चलने के पक्षधर थे, पर मौसी ने जो बचपन में सिखाया था, उसे तब तक भूली नहीं थीं. वह उस परंपरा को आगे भी जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्प थीं. मैं स्कर्ट नहीं पहन सकती थी. कमीज भी पूरी बाहों की, जिसे गले तक बंद करना पड़ता था. भले ही स्कूल में दूसरे बच्चों के बीच हंसी का पात्र बनूं, लेकिन मौसी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी.

मैं दसवीं में पढ़ रही थी, तभी अचानक पिताजी का तबादला हो गया. हम अपने देश भारत आ गए. रहने को दिल्ली के आरकेपुरम में सरकारी मकान मिला. वह काफी खुला इलाका था, मां बहुत खुश थीं. क्योंकि उन्हें चांदनी चौक के पुराने कटरों की तंग गलियों वाले अपने पुश्तैनी मकान में नहीं जाना पड़ा था.

दिल्ली के स्कूलों में दाखिला कोई आसान काम नहीं था. पर पिताजी की सरकारी नौकरी और तबादले का मामला था, इसलिए घर के पास ही सर्वोदय स्कूल में दाखिला मिल गया. बारहवीं की परीक्षा मैं ने अच्छे नंबरों से पास की, जिस से दिल्ली विश्वविद्यालय में बीए में एडमिशन में कोई परेशानी नहीं हुई. इंगलिश औनर्स से बीए कर के मैं युवावस्था की दहलीज तक पहुंच गई.

मां बीमार रहने लगी थीं, भाई रोहन डाक्टरी की ऊंची शिक्षा के लिए लंदन चले गए. जैसा कि भारतीय हिंदू परिवारों में होता है, उसी तरह घर में मेरी शादी की चिंता होने लगी. मेरे पिताजी के एक बड़े पुराने मित्र थे सुंदरदास अरोड़ा. वह ग्रेटर कैलाश में एक बड़ी कोठी में रहते थे.

कनाडा से आने के बाद हम अकसर उन के यहां आयाजाया करते थे. एक दिन उन्होंने मेरे पिताजी से कहा, ‘‘हम दोनों अच्छे मित्र हैं, हमारे परिवार एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं. क्यों न हम इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दें. मैं चाहता हूं कि डा. वरुण की शादी अनिता से कर दी जाए.’’

वरुण उन दिनों अमेरिका में रह रहा था. वह वहीं अपनी क्लिनिक चलाता था. उन्होंने डा. वरुण को बुला लिया. उस ने मुझे पसंद कर लिया. मेरी पसंद, नापसंद के कोई मायने नहीं थे. बात आगे बढ़ी और मैं मिस अनिता मेहरा से मिसेज अनिता अरोड़ा हो गई.

शादी के बाद मैं वरुण के साथ अमेरिका के कैलीफोर्निया में रहने लगी. एक साल में ही मैं एक बेटे की मां बन गई. बेटे का नाम रखा गया रोहित. वक्त के साथ रोहित 3 साल का हो गया और स्कूल जाने लगा. पति ने उस की देखभाल के लिए एक आया रख ली थी. इसी बीच दिल्ली में मेरी सास सुमित्राजी के गंभीर रूप से बीमार होने की सूचना मिली. वरुण ने कहा कि रोहित को आया संभाल लेगी, इसलिए मैं सास की देखभाल के लिए दिल्ली चली जाऊं.

दिल्ली आ कर पता चला कि सास को कैंसर था. ससुर और मैं उन्हें ले कर अस्पतालों के चक्कर काटने लगे. उन की देखभाल के लिए घर पर नर्स रख ली गई थी. लेकिन मेरा मौजूद रहना जरूरी था.

6 महीने से ज्यादा बीत गए. सास की हालत में काफी सुधार आ गया तो मैं ने कैलीफोर्निया जाने की तैयारी शुरू कर दी. शुरूशुरू में वरुण लगभग रोज ही फोन कर के मां का हालचाल पूछता रहा. मैं भी अकसर फोन कर के रोहित के बारे में जानकारी लेती रहती थी. लेकिन अचानक वरुण के फोन आने बंद हो गए. मैं फोन करती तो उधर से फोन नहीं उठता. मुझे चिंता होने लगी.

वरुण से बात किए बगैर वहां कैसे जा सकती थी. जब वरुण से बात नहीं हो सकी तो मेरे ससुर ने अपने दूर के किसी रिश्तेदार से वरुण के बारे में पता करने को कहा. उन्होंने पता कर के बताया कि वरुण किसी डा. मारिया से शादी कर के नाइजीरिया चला गया है. उस के बाद वरुण का कुछ पता नहीं चला.

हम सभी हैरान रह गए. रोहित के बारे में पता करने मैं कैलीफोर्निया गई. पर उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. न परिचितों को न आसपड़ोस वालों को. मैं अकेली होटलों में कितने दिन रुक सकती थी. थकहार कर लौट आई.

मेरे ससुर और पिता की तमाम कोशिशों के बाद भी न वरुण का पता चला, न रोहित का. एक गहरा घाव भीतर ही भीतर रिसता रहा. कुछ दिन बीते थे कि मेरे मातापिता की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. भाई रोहन एक अंग्रेज महिला से शादी कर के लंदन में बस गया था. मातापिता की मौत पर दोनों दिल्ली आए थे. वे लोग चांदनी चौक का पुश्तैनी मकान बेच कर वापस चले गए. मुझे सांत्वना देने के सिवाय और वे कर भी क्या सकते थे.

ग्रेटर कैलाश की उस विशाल कोठी में मेरे दिन गुजरने लगे. समय बिताने और मानसिक तनाव से बचने के लिए मैं एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी. स्कूल से घर लौटती तो मेरे सासससुर दरवाजे पर मेरी बाट जोहते मिलते. उन्होंने मुझे मांबाप से कम प्यारदुलार नहीं दिया. मेरे ससुर की उदास आंखें सदा मेरे चेहरे पर कुछ खोजती रहतीं. वह अकसर कहते, ‘‘मैं तुम्हारे पिता और तुम्हारा अपराधी हूं. मेरे बेटे ने मेरे हाथों न जाने किस जन्म का पाप करवाया है.’’

सास भी अकसर अपनी कोख को कोसती रहतीं, ‘‘मेरे बेटे ने जघन्य पाप किया है. इतनी सुंदर पत्नी के रहते उस ने बिना बताए दूसरी शादी कर ली. मेरे पोते को भी ले गया. जिंदा भी हो तो मैं कभी उस का मुंह न देखूं.’’

आगे पढ़ें- अरुण मेरे पति का छोटा भाई था, जो…

अवैध संतान: क्या था मीरा का फैसला

मीरा कन्या महाविद्यालय के गेट से बाहर आते ही विमला मैडम ने अपनी चाल तेज कर दी. वे लगभग दौड़ रही थीं, इसलिए उन की बिटिया सीमा को भी दौड़ लगानी पड़ रही थी. विमला मैडम सीमा के उस सवाल से बचना चाहती थीं जो उस ने गेट से बाहर आते ही दाग दिया था, ‘‘मम्मी, मैं आप की और विमल सर की अवैध संतान हूं?’’

वे बिना कोई उत्तर दिए चली जा रही थीं. इसलिए जब उन के बगल से एक आटो गुजरा तो उसे रोक कर अपनी बेटी सीमा को लगभग खींचते हुए आटो में बैठ गईं. उन्हें पता था, उन की बेटी आटोचालक के सामने कुछ नहीं बोलेगी.

आज जो कुछ घटा उस की उम्मीद उन को सपने में भी नहीं थी. आज उन के स्कूल की छुट्टी जल्दी हो गई थी तब उन्होंने अपनी बेटी को भी छुट्टी दिला कर बाजार जाने की सोची थी. इसलिए, वे उस की बड़ी मैडम से अपनी बेटी की छुट्टी स्वीकृत करा कर, स्टाफरूम में बैठी थीं. तभी विमल सर स्टाफरूम में आए. विमला मैडम विमल सर से बात कर रही थीं. उसी समय सीमा स्टाफरूम में घुसी. उसे देख कर विमल सर बोले, ‘‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’’ उन के बात आगे बढ़ाने से पूर्व ही विमला मैडम ने इशारे से उन्हें रोक दिया. परंतु सर के ये शब्द सीमा के कान में पड़ गए. उस समय तो सीमा कुछ नहीं बोली परंतु गेट से बाहर आते ही मम्मी से पूछे बिना नहीं रही.

आटो में चुप बैठी रही सीमा घर पहुंचते ही बोल पड़ी, ‘‘मम्मी, आप जवाब नहीं दे रही हो जबकि मेरी सहेलियां मुझे चिढ़ाती हैं. कहती हैं, ‘तू भी कानपुर की और सर भी कानपुर के, और तेरे में सर का अक्स दिखाई देता है. कहीं तेरी मम्मी और सर के बीच अफेयर तो नहीं था?’ और आज उन के शब्द ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी’. तब क्या, मैं आप की और सर की अवैध संतान हूं?’’

विमला उस की बात को टालते हुए बोलीं, ‘‘जब तू पेट में थी तब तेरे सर के परिवार का घर में बहुत आनाजाना था, इसीलिए.’’

‘‘मम्मी, आप ने मुझे बच्चा समझा है. मैं सर से ही पूछ लूंगी,’’ कह कर सीमा वहां से उठ गई.

विमला ने उसे रोका नहीं क्योंकि उन को पता था, वह जो सोच लेती है, करती है. सीमा चायनाश्ता कर अपने कमरे में आ कर लेट गई. टीवी चला लिया परंतु उस का प्रिय प्रोग्राम भी उस को शांति नहीं दे रहा था. ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’, ये ही शब्द उस के कानों में बारबार गूंज रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, उधर उस की सहेली मधु थी, ‘‘तू भी घर आ गई पागल, घड़ी देख, 4 से ज्यादा बज गए हैं.’’

इधरउधर की बातें करने के बजाय सीमा ने सीधे ही पूछ लिया, ‘‘तू विमल सर का घर जानती है?’’

‘‘क्यों? क्या तू भी सर से ट्यूशन पढ़ना चाहती है? हां, वह बहुत अच्छा पढ़ाते हैं. अरे हां, तेरा विषय तो सर पढ़ाते नहीं हैं. फिर तू…?’’

‘‘तुझ से जितना पूछा है उतना बता. मैं खुद चली जाऊंगी, तू केवल पता बता.’’

‘‘ऐसा कर, गांधी चौक की ओर से मेरे घर की ओर आएगी, तो पहले ही मोड़ पर अंतिम मकान है. उन के नाम की प्लेट लगी है.’’

उस ने फोन रख दिया और मम्मी से बोल दिया, ‘‘मैं मधु के घर जा रही हूं, जल्दी घर आ जाऊंगी.’’

कुछ ही देर में सीमा सर के घर पहुंच गई. वह पहले झिझकी, फिर घंटी बजा दी. दरवाजा सर ने ही खोला. एक पल को वह सर को देखती ही रही क्योंकि आज उसे सर दूसरे ही रूप में दिख रहे थे और फिर उसे अपना मकसद ध्यान आया और सर के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘सर, क्या मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

सर को शायद ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी.

इसलिए सर ने कहा, ‘‘देखो बेटे, ऐसे प्रश्न दरवाजे पर नहीं किए जाते. अंदर आओ. मैं तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर दूंगा.’’

वह अंदर आ गई. अंदर सर ने अपनी मम्मी से उस का परिचय कराया, ‘‘मम्मी, यह विमला की बेटी है.’’

सर की मम्मी पुलकित हो उठीं, ‘‘मम्मी को भी ले आती.’’

उन के और कुछ बोलने से पूर्व ही सर ने मम्मी को कहा, ‘‘मम्मी, बाकी बातें बाद में हो जाएंगी. इसे चायनाश्ता कराओ. पहली बार घर आई है,’’ उन के चले जाने के बाद सर बोले, ‘‘हां, अब बोलो.’’

‘‘सर, मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

‘‘देखो बेटे, संतान अवैध नहीं होती, बल्कि संबंध अवैध होते हैं. और फिर मेरे और तुम्हारी मम्मी के संबंधों को तो तुम्हारे पापा की स्वीकृति थी.’’

यह सुनते ही सीमा का मुंह खुला का खुला रह गया. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना नीचे भी गिर सकता है. उसे यह समझ नहीं आया कि पापा की क्या मजबूरी थी.

उस की परेशानी भांप कर सर बोले, ‘‘शांत हो कर बैठो, मैं सब बताता हूं. तुम्हारी मम्मी की शादी आम हिंदुस्तानी शादी थी. पहले 2 साल शादी की खुमारी में  निकल गए और फिर कानाफूसी शुरू हो गई कि घर में किलकारी क्यों नहीं गूंजी. पहले घर से और फिर आसपास. तुम्हारे पापा के दोस्त ताना मारने से नहीं चूकते. उधर, उन की मर्दानगी पर चुटकुले बनने लगे. साथ ही, डाक्टरी रिपोर्ट ने आग में घी का कार्य किया. कमी तुम्हारे पापा में मिली. ‘‘तुम्हारे पापा औफिस का गुस्सा घर में निकालने लगे. उन्हीं दिनों हमारा परिवार तुम्हारे पड़ोस में आ गया. तुम्हारी मम्मी हमारे घर आ जातीं. मैं तुम्हारी मम्मी के बाजार के काम कर देता. तुम्हारी मम्मी कोई बच्चा गोद लेने को कहतीं तो तुम्हारे पापा नाराज हो जाते. उन को अपनी मर्दानगी दिखानी थी. मेरे और तुम्हारी मम्मी के बीच निकटता बढ़ने लगी. तुम्हारे पापा ने हमारी निकटता को इग्नोर किया. फलस्वरूप, हमारी निकटता और बढ़ती गई और उस मुकाम तक पहुंच गई जिस के फलस्वरूप तुम अपनी मम्मी के पेट में आ गईं.

‘‘वह दिन मुझे आज भी याद है, मैं जब तुम्हारे घर पहुंचा तब तुम्हारी मम्मी के शब्द कान में पड़े, उन शब्दों को सुनते ही अंदर जा रहे मेरे कदम रुक गए. तुम्हारी मम्मी कह रही थीं, ‘लो, अब तुम भी मर्द बन गए. मैं गर्भवती हो गई. अब दोस्तों के सामने तुम्हारी गरदन नहीं झुकेगी.’ मुझे लगा कि मैं सिर्फ एक टूल था, जो तुम्हारे पापा को मर्द साबित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था. मुझे तुम्हारी मम्मी पर गुस्सा आया. सोचा कि वहां जा कर अपनी नाराजगी जाहिर करूं लेकिन फिर मुझे तुम्हारी मम्मी पर तरस आ गया. मैं वापस घर आ गया. उस के बाद मैं कभी तुम्हारे घर नहीं गया.

‘‘उसी दौरान मेरे पापा का तबादला हो गया. जिस दिन हम जा रहे थे उस दिन तुम्हारी मम्मी हमें छोड़ने आई थीं. वे कुछ नहीं बोलीं लेकिन उन की चुप्पी भी बहुतकुछ कह गई. मैं ने उन को माफ कर दिया.’’

सर की मम्मी, जो वहां आ गई थीं, ने सब सुन लिया था, बोल पड़ीं, ‘‘बेटा, इस ने खुद को माफ नहीं किया और अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी की खबरें शोभा आंटी से मिलती रहीं. तुम्हारा जन्म हुआ. तुम्हारे पिता ने पार्टी दी. लेकिन बताते हैं कि उन के चेहरे पर वह खुशी नहीं दिखाई दी जो एक बाप के चेहरे पर दिखाई देनी चाहिए थी. तुम्हारी मम्मी और पापा में झगड़ा और बढ़ गया. तुम्हारा चेहरा देख कर उन को पता नहीं क्या हो जाता, शायद उन को अपनी नामर्दी ध्यान आ जाती या वे हीनभावना से ग्रस्त हो गए थे. तुम्हारी ओर ध्यान नहीं देते. तुम्हारी मम्मी के लिए तुम सबकुछ थीं. शायद वे तुम्हारे कारण अपने को भूल जातीं.

‘‘एक दिन तुम्हारी मम्मी बाथरूम में नहा रही थीं. तुम जोरजोर से रो रही थीं. तुम्हारे पापा वहीं खड़े थे परंतु उन्होंने तुम्हें चुप नहीं कराया. उसी समय शोभा आंटी आ गईं. तुम्हें जोरजोर से रोते देख कर वे तुम्हारे पापा से बोलीं, ‘कैसा बाप है? लड़की रोए जा रही है और तू अपनी टाई बांधने में लगा है, जैसे यह तेरी बेटी नहीं है.’ आंटी के बोलते ही वे आगबबूला हो उठे. वे चीखे, ‘हांहां, यह मेरी बेटी नहीं है. मैं तो नपुंसक हूं.’

‘‘इतना कह कर वे घर से निकल गए और फिर केवल उन की मौत की सूचना आई कि उन्होंने रेलगाड़ी के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली थी. बस, एक ही बात उन्होंने अच्छी की, अपनी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया.

‘‘कुछ दिन के बाद तुम्हारे मामा, तुम्हारी मम्मी और तुम को ले कर चले गए.’’

बात गंभीर हो गई थी. एक तरह से वहां चुप्पी छा गई. चुप्पी सीमा ने ही तोड़ी, ‘‘सर, मेरी शादी के बाद मेरी मम्मी अकेली रह जाएंगी. आप भी कभी अकेले हो जाओगे. इसलिए आप और  मम्मी अपने उन अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘पगली, अब हमारी शादी की उम्र थोड़े ही है, अब तो तेरी शादी करनी है.’’

‘‘लेकिन सर, आप से मिलने के बाद मैं ने मम्मी के चेहरे पर अलग चमक देखी थी. और अब जब आप ने घर के दरवाजे पर मुझे देखा तो आप के चेहरे पर भी वही चमक मैं ने महसूस की.’’

‘‘बहुत बड़ी हो गई है तू और लोगों को पढ़ना भी जानती है.’’

‘‘प्लीज, सर.’’

‘‘तू एक तरफ तो मुझे पापा बनाना चाहती है और दूसरी ओर सरसर भी करे जा रही है. पापा नहीं कह सकती.’’

‘‘सौरी, पापा,’’ कहती हुई वह सर से लिपट गई. दादी ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘चल बेटा, अपनी बहू के पास चलते हैं.’’

सीमा ने उन को रोक दिया, ‘‘पहले मैं मम्मी से बात कर लूं.’’

‘‘मैं तेरी मम्मी को जानती हूं. वह भी राजी हो ही जाएगी.’’

‘‘हां, दादी, मम्मी मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं.’’

सीमा वापस घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई तब विमल सर उसे छोड़ने आ गए. उधर, विमला सीमा के लिए चिंतित हो रही थीं. दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोलने पर सामने सीमा ही थी. विमला चीखीं, ‘‘कहां गई थी?’’

‘‘पापा के पास.’’

‘‘तेरे पापा तो मर चुके हैं.’’

‘‘वे मेरे पापा नहीं थे. वे आप के पति थे. और फिर वे तो पति कहलाने लायक भी नहीं क्योंकि वे तन से ही नहीं मन से भी नपुंसक थे, जो अपनी पत्नी को पराए मर्द के साथ सोने को प्रेरित करता है मात्र इसलिए कि दुनिया के सामने अपने को मर्द दिखा सके. अपने को मर्द दिखाने के लिए पत्नी द्वारा बच्चा गोद ले लेने के विचार को भी न सुने.’’

‘‘तो इतना जहर भर दिया उस ने. मुझे उस से यह उम्मीद नहीं थी. मैं इसीलिए चुप थी कि यह सुन कर तू मुझ से भी घृणा करने लगती.’’

‘‘मम्मी, मैं आप से घृणा करूंगी? आप ने जिस तरह मेरी परवरिश की है उस पर मुझे गर्व है कि तुम मेरी मां हो. पापा भी ऐसे नहीं हैं. दरवाजे पर मुझे देख कर उन की नजर इधरउधर घूम रही थी. वे शायद आप को खोज रहे थे.’’

फिर कुछ समय तक चुप्पी छाई रही. दोनों एकदूसरे को देखती रहीं. फिर सीमा ही बोली, ‘‘मम्मी, आप और सर अपने अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘नहीं बेटा, अब मुझे तेरी शादी करनी है, अपनी नहीं.’’

‘‘मम्मी, पापा को पता है मैं उन की बेटी हूं परंतु मुझे बेटी नहीं कह सकते. मैं जानते हुए भी उन को पापा नहीं कह सकती. और आप मेरे सामने खोखली हंसी हंसोगी और अकेले में रोओगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘उन की चिंता नहीं है. मुझे आप की चिंता है. मेरी शादी के बाद आप अकेली रह जाओगी और उधर, दादी कितने दिन की मेहमान हैं. बाद में पापा भी अकेले हो जाएंगे.’’

विमला विचारमग्न हो गईं. फिर अचानक बोल पड़ीं, ‘‘तू अकेली आई, कैसा पिता है? जवान लड़की को रात में अकेला भेज दिया.’’

‘‘नहीं, मम्मी, पापा आए थे.’’

‘‘फिर अंदर क्यों नहीं आए?’’

‘‘मम्मी, मैं ने मना कर दिया था. मैं चाहती थी कि पहले मैं आप से बात कर लूं.’’

‘‘ओह, क्या बात है. बड़ी समझदार हो गई है मेरी लाड़ली.’’

तभी फोन की घंटी बजी. सीमा ने फोन उठाया, उधर दादी थीं. उस ने फोन मम्मी को दे दिया. मम्मी बोलीं, ‘‘नमस्ते, आंटी.’’

‘‘अरे, मैं अब तेरी आंटी नहीं, बल्कि अब तेरी सास हूं.’’ इस के बाद की कहानी भी छोटी सी रह गई है. सीमा के मम्मीपापा के अवैध संबंध वैध बन गए. सब बहुत खुश थे. सब से ज्यादा कौन खुश था, बताने की जरूरत नहीं.

आज जब मैं यह कहानी लिख रहा हूं तब सीमा मेरे पास बैठी है, पूछ रही है, ‘पापा, मैं ने सही किया या गलत?’

अब आप लोग ही बताएं सीमा ने सही किया या गलत?

हमसफर: पूजा का राहुल से शादी करने का फैसला क्या सही था

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अंधविश्वास की बेड़ियां: पाखंड में अंधी सास को क्या हुआ बहू के दर्द का एहसास?

‘‘अरे,पता नहीं कौन सी घड़ी थी जब मैं इस मनहूस को अपने बेटे की दुलहन बना कर लाई थी. मुझे क्या पता था कि यह कमबख्त बंजर जमीन है. अरे, एक से बढ़ कर एक लड़की का रिश्ता आ रहा था. भला बताओ, 5 साल हो गए इंतजार करते हुए, बच्चा न पैदा कर सकी… बांझ कहीं की…’’ मेरी सास लगातार बड़बड़ाए जा रही थीं. उन के जहरीले शब्द पिघले शीशे की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे.

यह कोई पहला मौका नहीं था. उन्होंने तो शादी के दूसरे साल से ही ऐसे तानों से मेरी नाक में दम कर दिया था. सावन उन के इकलौते बेटे और मेरे पति थे. मेरे ससुर बहुत पहले गुजर गए थे. घर में पति और सास के अलावा कोई न था. मेरी सास को पोते की बहुत ख्वाहिश थी. वे चाहती थीं कि जैसे भी हो मैं उन्हें एक पोता दे दूं.

मैं 2 बार लेडी डाक्टर से अपना चैकअप करवा चुकी थी. मैं हर तरह से सेहतमंद थी. समझाबुझा कर मैं सावन को भी डाक्टर के पास ले गई थी. उन की रिपोर्ट भी बिलकुल ठीक थी.

डाक्टर ने हम दोनों को समझाया भी था, ‘‘आजकल ऐसे केस आम हैं. आप लोग बिलकुल न घबराएं. कुदरत जल्द ही आप पर मेहरबान होगी.’’

डाक्टर की ये बातें हम दोनों तो समझ चुके थे, लेकिन मेरी सास को कौन समझाता. आए दिन उन की गाज मुझ पर ही गिरती थी. उन की नजरों में मैं ही मुजरिम थी और अब तो वे यह खुलेआम कहने लगी थीं कि वे जल्द ही सावन से मेरा तलाक करवा कर उस के लिए दूसरी बीवी लाएंगी, ताकि उन के खानदान का वंश बढ़े.

उन की इन बातों से मेरा कलेजा छलनी हो जाता. ऐसे में सावन मुझे तसल्ली देते, ‘‘क्यों बेकार में परेशान होती हो? मां की तो बड़बड़ाने की आदत है.’’

‘‘आप को क्या पता, आप तो सारा दिन अपने काम पर होते हैं. वे कैसेकैसे ताने देती हैं… अब तो उन्होंने सब से यह कहना शुरू कर दिया है कि वे हमारा तलाक करवा कर आप के लिए दूसरी बीवी लाएंगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. मैं न तो तुम्हें तलाक दूंगा और न ही दूसरी शादी करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम में कोई कमी नहीं है. बस कुदरत हम पर मेहरबान नहीं है.’’

एक दिन हमारे गांव में एक बाबा आया. उस के बारे में मशहूर था कि वह बेऔलाद औरतों को एक भभूत देता, जिसे दूध में मिला कर पीने पर उन्हें औलाद हो जाती है.

मुझे ऐसी बातों पर बिलकुल यकीन नहीं था, लेकिन मेरी सास ऐसी बातों पर आंखकान बंद कर के यकीन करती थीं. उन की जिद पर मुझे उन के साथ उस बाबा (जो मेरी निगाह में ढोंगी था) के आश्रम जाना पड़ा.

बाबा 30-35 साल का हट्टाकट्टा आदमी था. मेरी सास ने उस के पांव छुए और मुझे भी उस के पांव छूने को कहा. उस ने मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. आशीर्वाद के बहाने उस ने मेरे सिर पर जिस तरह से हाथ फेरा, मुझे समझते देर न लगी कि ढोंगी होने के साथसाथ वह हवस का पुजारी भी है.

उस ने मेरी सास से आने का कारण पूछा. सास ने अपनी समस्या का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया कि ढोंगी बाबा मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरने लगा. उस ने मेरी आंखें देखीं, फिर किसी नतीजे पर पहुंचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बहू पर एक चुड़ैल का साया है, जिस की वजह से इसे औलाद नहीं हो रही है. अगर वह चुड़ैल इस का पीछा छोड़ दे, तो कुछ ही दिनों में यह गर्भधारण कर लेगी. लेकिन इस के लिए आप को काली मां को खुश करना पड़ेगा.’’

‘‘काली मां कैसे खुश होंगी?’’ मेरी सास ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम्हें काली मां की एक पूजा करनी होगी. इस पूजा के बाद हम तुम्हारी बहू को एक भभूत देंगे. इसे भभूत अमावास्या की रात में 12 बजे के बाद हमारे आश्रम में अकेले आ कर, अपने साथ लाए दूध में मिला कर हमारे सामने पीनी होगी, उस के बाद इस पर से चुड़ैल का साया हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाएगा.’’

‘‘बाबाजी, इस पूजा में कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं 7-8 हजार रुपए.’’

मेरी सास ने मेरी तरफ ऐसे देखा मानो पूछ रही हों कि मैं इतनी रकम का इंतजाम कर सकती हूं? मैं ने नजरें फेर लीं और ढोंगी बाबा से पूछा, ‘‘बाबा, इस बात की क्या गारंटी है कि आप की भभूत से मुझे औलाद हो ही जाएगी?’’

ढोंगी बाबा के चेहरे पर फौरन नाखुशी के भाव आए. वह नाराजगी से बोला, ‘‘बच्ची, हम कोई दुकानदार नहीं हैं, जो अपने माल की गारंटी देता है. हम बहुत पहुंचे हुए बाबा हैं. तुम्हें अगर औलाद चाहिए, तो जैसा हम कह रहे हैं, वैसा करो वरना तुम यहां से जा सकती हो.’’

ढोंगी बाबा के रौद्र रूप धारण करने पर मेरी सास सहम गईं. फिर मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखते हुए चापलूसी के लहजे में बाबा से बोलीं, ‘‘बाबाजी, यह नादान है. इसे आप की महिमा के बारे में कुछ पता नहीं है. आप यह बताइए कि पूजा कब करनी होगी?’’

‘‘जिस रोज अमावास्या होगी, उस रोज शाम के 7 बजे हम काली मां की पूजा करेंगे. लेकिन तुम्हें एक बात का वादा करना होगा.’’

‘‘वह क्या बाबाजी?’’

‘‘तुम्हें इस बात की खबर किसी को भी नहीं होने देनी है. यहां तक कि अपने बेटे को भी. अगर किसी को भी इस बात की भनक लग गई तो समझो…’’ उस ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मेरी सास ने ढोंगी बाबा को फौरन यकीन दिलाया कि वे किसी को इस बात का पता नहीं चलने देंगी. उस के बाद हम घर आ गईं.

3 दिन बाद अमावास्या थी. मेरी सास ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया और फिर पूजा के इंतजाम में लग गईं. इस पूजा में मुझे शामिल नहीं किया गया. मुझे बस रात को उस ढोंगी बाबा के पास एक लोटे में दूध ले कर जाना था.

मैं ढोंगी बाबा की मंसा अच्छी तरह जान चुकी थी, इसलिए आधी रात होने पर मैं ने अपने कपड़ों में एक चाकू छिपाया और ढोंगी के आश्रम में पहुंच गई.

ढोंगी बाबा मुझे नशे में झूमता दिखाई दिया. उस के मुंह से शराब की बू आ रही थी. तभी उस ने मुझे वहीं बनी एक कुटिया में जाने को कहा.

मैं ने कुटिया में जाने से फौरन मना कर दिया. इस पर उस की भवें तन गईं. वह धमकी देने वाले अंदाज में बोला, ‘‘तुझे औलाद चाहिए या नहीं?’’

‘‘अपनी इज्जत का सौदा कर के मिलने वाली औलाद से मैं बेऔलाद रहना ज्यादा पसंद करूंगी,’’ मैं दृढ़ स्वर में बोली.

‘‘तू तो बहुत पहुंची हुई है. लेकिन मैं भी किसी से कम नहीं हूं. घी जब सीधी उंगली से नहीं निकलता तब मैं उंगली टेढ़ी करना भी जानता हूं,’’ कहते ही वह मुझ पर झपट पड़ा. मैं जानती थी कि वह ऐसी नीच हरकत करेगा. अत: तुरंत चाकू निकाला और उस की गरदन पर लगा कर दहाड़ी, ‘‘मैं तुम जैसे ढोंगी बाबाओं की सचाई अच्छी तरह जानती हूं. तुम भोलीभाली जनता को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से न केवल लूटते हो, बल्कि औरतों की इज्जत से भी खेलते हो. मैं यहां अपनी सास के कहने पर आई थी. मुझे कोई भभूत भुभूत नहीं चाहिए. मुझ पर किसी चुड़ैल का साया नहीं है. मैं ने तेरी भभूत दूध में मिला कर पी ली थी, तुझे यही बात मेरी सास से कहनी है बस. अगर तू ने ऐसा नहीं किया तो मैं तेरी जान ले लूंगी.’’

उस ने घबरा कर हां में सिर हिला दिया. तब मैं लोटे का दूध वहीं फेंक कर घर आ गई.

कुछ महीनों बाद जब मुझे उलटियां होनी शुरू हुईं, तो मेरी सास की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि वे उलटियां आने का कारण जानती थीं.

यह खबर जब मैं ने सावन को सुनाई तो वे भी बहुत खुश हुए. उस रात सावन को खुश देख कर मुझे अनोखी संतुष्टि हुई. मगर सास की अक्ल पर तरस आया, जो यह मान बैठी थीं कि मैं गर्भवती ढोंगी बाबा की भभूत की वजह से हुई हूं.

अब मेरी सास मुझे अपने साथ सुलाने लगीं. रात को जब भी मेरा पांव टेढ़ा हो जाता तो वे उसे फौरन सीधा करते हुए कहतीं कि मेरे पांव टेढ़ा करने पर जो औलाद होगी उस के अंग विकृत होंगे.

मुझे अपनी सास की अक्ल पर तरस आता, लेकिन मैं यह सोच कर चुप रहती कि उन्हें अंधविश्वास की बेडि़यों ने जकड़ा हुआ है.

एक दिन उन्होंने मुझे एक नारियल ला कर दिया और कहा कि अगर मैं इसे भगवान गणेश के सामने एक झटके से तोड़ दूंगी तो मेरे होने वाले बच्चे के गालों में गड्ढे पड़ेंगे, जिस से वह सुंदर दिखा करेगा. मैं जानती थी कि ये सब बेकार की बातें हैं, फिर भी मैं ने उन की बात मानी और नारियल एक झटके से तोड़ दिया, लेकिन इसी के साथ मेरा हाथ भी जख्मी हो गया और खून बहने लगा. लेकिन मेरी सास ने इस की जरा भी परवाह नहीं की और गणेश की पूजा में लीन हो गईं.

शाम को काम से लौटने के बाद जब सावन ने मेरे हाथ पर बंधी पट्टी देखी तो इस का कारण पूछा. तब मैं ने सारी बात बता दी.

तब वे बोले, ‘‘राधिका, तुम तो मेरी मां को अच्छी तरह से जानती हो.

वे जो ठान लेती हैं, उसे पूरा कर के ही दम लेती हैं. मैं जानता हूं कि आजकल उन की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी हुई है, जिस की वजह से वे ऐसे काम भी रही हैं, जो उन्हें नहीं करने चाहिए. तुम मन मार कर उन की सारी बातें मानती रहो वरना कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो वे तुम्हारा जीना हराम कर देंगी.’’

सावन अपनी जगह सही थे, जैसेजैसे मेरा पेट बढ़ता गया वैसेवैसे मेरी सास के अंधविश्वासों में भी इजाफा होता गया. वे कभी कहतीं कि चौराहे पर मुझे पांव नहीं रखना है.  इसीलिए किसी चौराहे पर मेरा पांव न पड़े, इस के लिए मुझे लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. इस से मैं काफी थकावट महसूस करती थी. लेकिन अंधविश्वास की बेडि़यों में जकड़ी मेरी सास को मेरी थकावट से कोई लेनादेना न था.

8वां महीना लगने पर तो मेरी सास ने मेरा घर से निकलना ही बंद कर दिया और सख्त हिदायत दी कि मुझे न तो अपने मायके जाना है और न ही जलती होली देखनी है. उन्हीं दिनों मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. वे बेहोशी की हालत में मुझ से मिलने की गुहार लगाए जा रहे थे. लेकिन अंधविश्वास में जकड़ी मेरी सास ने मुझे मायके नहीं जाने दिया. इस से पिता के मन में हमेशा के लिए यह बात बैठ गई कि उन की बेटी उन के बीमार होने पर देखने नहीं आई.

उन्हीं दिनों होली का त्योहार था. हर साल मैं होलिका दहन करती थी, लेकिन मेरी सास ने मुझे होलिका जलाना तो दूर उसे देखने के लिए भी मना कर दिया.

मेरे बच्चा पैदा होने से कुछ दिन पहले मेरी सास मेरे लिए उसी ढोंगी बाबा की भभूत ले कर आईं और उसे मुझे दूध में मिला कर पीने के लिए कहा. मैं ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसा करूंगी तो मुझे बेटा पैदा होगा.

अपनी सास की अक्ल पर मुझे एक बार फिर तरस आया. मैं ने उन का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मैं ने आप की सारी बातें मानी हैं, लेकिन आप की यह बात नहीं मानूंगी.’’

‘‘क्यों?’’ सास की भवें तन गईं.

‘‘क्योंकि अगर भभूत किसी ऐसीवैसी चीज की बनी हुई होगी, तो उस का मेरे होने वाले बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.’’

‘‘अरी, भूल गई तू कि इसी भभूत की वजह से तू गर्भवती हुई थी?’’

उन के लाख कहने पर भी मैं ने जब भभूत का सेवन करने से मना कर दिया तो न जाने क्या सोच कर वे चुप हो गईं.

कुछ दिनों बाद जब मेरी डिलीवरी होने वाली थी, तब मेरी सास मेरे पास आईं और बड़े प्यार से बोलीं, ‘‘बहू, देखना तुम लड़के को ही जन्म दोगी.’’

मैं ने वजह पूछी तो वे राज खोलती हुई बोलीं, ‘‘बहू, तुम ने तो बाबाजी की भभूत लेने से मना कर दिया था. लेकिन उन पहुंचे बाबाजी का कहा मैं भला कैसे टाल सकती थी, इसलिए मैं ने तुझे वह भभूत खाने में मिला कर देनी शुरू कर दी थी.’’

यह सुनते ही मेरी काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई. मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही मुझे अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता दिखाई देने लगा. फिर मुझे किसी चीज की सुध नहीं रही और मैं बेहोश हो गई.

होश में आने पर मुझे पता चला कि मैं ने एक मरे बच्चे को जन्म दिया था. ढोंगी बाबा ने मुझ से बदला लेने के लिए उस भभूत में संखिया जहर मिला दिया था. संखिया जहर के बारे में मैं ने सुना था कि यह जहर धीरेधीरे असर करता है. 1-2 बार बड़ों को देने पर यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. लेकिन छोटे बच्चों पर यह तुरंत अपना असर दिखाता है. इसी वजह से मैं ने मरा बच्चा पैदा किया था.

तभी ढोंगी बाबा के बारे में मुझे पता चला कि वह अपना डेरा उठा कर कहीं भाग गया है.

मैं ने सावन को हकीकत से वाकिफ कराया तो उस ने अपनी मां को आड़े हाथों लिया.

तब मेरी सास पश्चात्ताप में भर कर हम दोनों से बोलीं, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. पोते की चाह में मैं ने खुद को अंधविश्वास की बेडि़यों के हवाले कर दिया था. इन बेडि़यों की वजह से मैं ने जानेअनजाने में जो गुनाह किया है, उस की सजा तुम मुझे दे सकती हो… मैं उफ तक नहीं करूंगी.’’

मैं अपनी सास को क्या सजा देती. मैं ने उन्हें अंधविश्वास को तिलांजलि देने को कहा तो वे फौरन मान गईं. इस के बाद उन्होंने अपने मन से अंधविश्वास की जहरीली बेल को कभी फूलनेफलने नहीं दिया.

1 साल बाद मैं ने फिर गर्भधारण किया और 2 स्वस्थ जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. मेरी सास मारे खुशी के पागल हो गईं. उन्होंने सारे गांव में सब से कहा कि वे अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि अंधविश्वास बिना मूठ की तलवार है, जो चलाने वाले को ही घायल करती है.

Valentine’s Day 2024: अनोखी- भाग 3- प्रख्यात से मिलकर कैसा था निष्ठा का हाल

‘‘अरे रुकिए तो वकील साहब. मेरे जूते मिलेंगे तभी तो,’’ सिकंदर जूते ढूंढ़ते हुए बोला.

प्रख्यात कीचड में खड़ा कभी खुद को, तो कभी अपने गंदे हो रहे पांवों को खीज कर देख रहा था. पैसे निकाल कर उसे देने ही पड़े.

‘‘हैलो पैसे मिल गए?’’ सखी का फोन था.

‘‘हां, जल्दी बता कहां हैं जूते?’’

‘‘सच बोल रही है न?’’

‘‘हां भई, अब बता न.’’

‘‘जा जूते सिकंदर की गाड़ी में रखे हैं.’’

‘‘वादा किया था कोई शरारत नहीं करेगी पर मानी नहीं शैतान… इस की शादी में सारा बदला लूंगी अच्छी तरह,’’ सुदीपा ने मुसकराते हुए कार की ओर इशारा किया.

सभी तुरंत भाग कर गाड़ी में जा बैठे. गाड़ी वकील को 33 सैक्टर छोड़ने चल पड़ी.

‘‘अनोखी सखी है आप की… कोई अनोखा ही मिलना चाहिए उन्हें,’’ प्रख्यात जूते पहनते हुए बोला.

‘‘सही में… मैं तो उस के लिए यही

कामना करती हूं… शुक्र करो बहुत कम शरारत ही की उस ने… अरे मैं तो कालेज से देख रही

हूं. कभी किसी के सीट पर गोंद चिपकाना, तो कभी किसी की चोटी चेयर से बांधना… टीचरों के अपने ही नामकरण किए थे. इंगलिश वाली मैडम को सूर्पणखा तो बौटनी वाली को मां

शारदे, कैमिस्ट्री वाली को काली खप्परवाली, फिजिक्स टीचर को दुर्गति दुर्गा… अपने बचपन के तो तमाम शरारती किस्से मजे ले कर सुनाते नहीं थकती.’’

सिकंदर और सुदीपा को कोर्ट मैरिज के बाद घर वालों के बड़े गुस्से का सामना करना पड़ा. काफी समय नाराजगी रही, खूब डांट पड़ी. प्रख्यात ने अपनी तरफ से उन्हें काफी सम झाने की कोशिश की. फिर सही में मातापिता दोबारा शादी के बाद ही उन्हें पतिपत्नी के रूप में स्वीकारने के लिए तैयार

हो गए. सब के मन में खुशी की लहर दौड़ने लगी. पूछ कर शादी की तारीख 3 महीने बाद तय की गई.

रात को प्रख्यात घर पहुंचा तो मां ने उसे उस की सगाई का कार्ड दिखाया जो अभीअभी छप कर आया था.

‘‘देख प्रख्यात कितना सुंदर है तेरी सगाई का कार्ड… दे आ अपने दोस्तों को भी.’’

‘‘आयुष्मति निष्ठा…’’ वह चौंका. उसे लाली याद आ गई. उस का नाम भी…’’

‘‘अब तो यह फोटो देख ले उस का… कितनी प्यारी है. तभी तो रिश्ता आते ही हम ने हां कर दी… तूने हमेशा मना किया देखने को, अब बाद में न कहना. देख ले अभी भी…’’ मम्मी अपनी सही और सुंदर पसंद दिखाने को बेचैन हो उठी थीं.

कुतूहलवश एक नजर उस ने देख ही लिया.

शुक्र है शक्ल उस लाली निष्ठा की नहीं. नाम से तो मैं तो घबरा ही गया था. लाली के पीछे से बौयकट, आगे से माथे को पूरा ढकते साधना कट हेयर, उस की हलकी सी भूरी आंखें… जुड़ी हुई भवें, सामने दांतों के बीच गैप… स्लाइड सी चल पड़ी प्रख्यात के दिमाग में.

‘‘क्या सोच रहा है. अच्छी नहीं लगी क्या?’’

‘‘नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं. आप ने

पसंद की है तो अच्छी कैसे नहीं होगी,’’ वह मुसकराया.

सिकंदर के मातापिता ने थाईलैंड डैस्टिनेशन वैडिंग का निश्चय किया. वे सभी सहमत हुए तो उन की तैयारी शुरू हो गई. इधर रिसर्च पूरा होने के पहले ही प्रख्यात की जौब प्लेसमैंट के लिए मेल आ गया कि जल्दी थीसिस अप्रूव होते ही जौइन करें. मुंबई की नामी मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब मिल गई थी. निष्ठा तो उस के लिए सही रही, यह खुशखबरी कैसे बताए उसे एक  िझ झक मन में लिए वह निकल पड़ा अपने होस्टल अपनी थीसिस जल्दी पूरी कर सबमिट करने के लिए.

‘‘मेरी सखी अंतर्ध्यान हो गई… किसी रिश्तेदार की शादी में गई है हाऊ बोरिंग… उस के साथ हर पल रोचक रहता मेरा.’’

‘‘अब मेरा सखा भी चला गया रिसर्च सबमिशन के लिए… अपनी सगाई के समय ही आएगा.’’

सही ही कहा था सिकंदर ने. प्रख्यात वाकई अपनी सगाई के दिन ही पहुंचा था.

‘‘कमाल करता है यार इतना बिजी था… अभी तक लड़की को न देखा न बात की होगी… क्या सोचती होगी वह… मम्मापापा का संस्कारी बौय,’’ सिकंदर ने थोड़ा गुस्सा किया.

‘‘अच्छा चल पहले जल्दी सैलून चल अच्छी तरह तैयार हो कर आ. फिर यह आंटी की लाई शानदार ड्रैस पहनना.’’

प्रख्यात तैयार हो कर सब के साथ वेन्यू पहुंचा तो निष्ठा के पिता व भाइयों ने स्वागत किया. निष्ठा की प्रतीक्षा में स्टेज पर बैठे प्रख्यात के दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं. निष्ठा आई तो चेहरे पर घूंघट डाल रखा था. सिकंदर और सुदीपा ने उसे थाम लिया, बधाई दी.

सुदीपा गले मिल कर बोली, ‘‘बहुत बधाई सखी, पर ज्यादा तंग न करना बेचारे को. बात पच नहीं रही थी फिर भी हम दोनों ने कुछ नहीं बताया इसे,’’ सुदीपा ने मुसकराते हुए उस की हथेली दबा दी.

‘‘हां, बिना मु झे पहले देखे मिले. मंगनी करने का फल तो भुगतना होगा जनाब को… न कौल की न मिले,’’ वह घूंघट में हंसी.

लड़कियां तो शादी के समय भी आजकल घूंघट नहीं करतीं यह तो… मम्मी तो बता रही थीं कि बड़े मौर्डन खयालात के हैं ये लोग… प्रख्यात सोचे जा रहा था.

सखी पास आ कर बैठ गई. सब ने तालियां बजाईं.

‘‘प्रख्यात घूंघट उठा. फिर सगाई की रस्म शुरू की जाए,’’ मम्मी की आवाज थी.

‘‘मगर मम्मी…’’

‘‘यहां भी तु झे मम्मी की हैल्प चाहिए?’’ वातावरण में ठहाका गूंज उठा.

प्रख्यात ने जब घूंघट उठाया तो हैरान हो उठा. निष्ठा ने उसे चिढ़ाने के

लिए अपनी आंखें पूरी स्क्विंट कर ली थीं. उस की भवें लाली जैसी ही जुड़ी थीं. वह पसीने से नहा गया. मम्मी को देखने लगा.

दूसरे ही पल निष्ठा ने आंखें ठीक कर लीं, तो राहत हुई. सुदीपा टिशू से उस की काजल से बनी भवें साफ कर हंसने लगी.

‘‘यही सखी है, लाली भी और आप की निष्ठा भी… बोला था न शादी करूंगी तो तुम

से. पूरी नजर रख रही हूं तब से ही… बैठी रही तुम्हारे इंतजार में… आंटीअंकल को सब पता

था, पार्क में भी उस दिन मैं ही थी. जब दिल

नहीं माना तो जंगली घास की बाली घुसा दी तुम्हारी शर्ट में. मम्मी को तो पहचान लिया

होगा. बुद्धू सिंह. तुम्हें सरप्राइज का जबरदस्त  झटका देना था. इसीलिए कोर्ट में चेहरा छिपाते हुए जल्दी ही भाग गई थी. तुम्हें तंग करने

का अलग ही मजा है. अब तो जिंदगी भर ये

मजे लूंगी,’’ और फिर हंसते हुए बड़ी नजाकत

से रिंग सेरेमनी के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

प्रख्यात हैरान हो अनोखी लाली का

बदला रूप मंत्रमुग्ध हो देखे जा रहा था.

बचपन में वह अनोखी की अनोखी शरारतों से डरता भी था पर रोज इंतजार भी करता था.

शायद उस की नित नई रंगभरी शरारतों का

इंतजार उसे अच्छा भी लगता था. इसीलिए तो आज वह पूरा जीवन इस जीवंत रंग में रंगने

के लिए अपने को बिना डर के सहर्ष तैयार पा रहा था.

‘‘अब पहना भी दो कहां खो गए? जल्दी करो, निहारते ही रहोगे क्या?’’

‘‘पहनाओ प्रख्यात वरना अनोखी फिर

कोई शरारत न कर दे,’’ एकसाथ कई आवाजें गूंजीं.

फिर ठहाकों और तालियों के बीच

आखिर मुसकराते हुए निष्ठा को मंगनी रिंग

पहना दी.

एक सांकल सौ दरवाजे: भाग 5- सालों बाद क्या अजितेश पत्नी हेमांगी का कर पाया मान

‘समय के साथ हम में एक सहज सी दोस्ती हो गई थी. हम दोनों एकदूसरे के साथ जब कभी बैठते या 2 कप कौफी के लिए कैंटीन ही जाते, हम अच्छा सा महसूस करते, जैसे एकदूसरे के लिए हम कोई टौनिक थे.

‘कालेज से निकलते वक्त पल्लव मुझे अपना फोन नंबर और पता दे गए थे.

यह छोटा सा आदानप्रदान लगातार जारी रहा. और हम जैसेतैसे इस महीने से संपर्कसूत्र को बनाए रखने में सफल हुए. कह लो, एक सीधीसादी, अच्छी दोस्ती जहां कुछ न हो कर भी बहुतकुछ… चलो छोड़ो, तुम लोग अपनी खबर सुनाओ.’

मेरा दिल धुकपुक कर रहा था. भाई के चेहरे पर डर, कुंठा, असमंजस सब झलक आया था.

आखिर ममा हमें क्या कहते रुक गई थी.

हम दोनों मां की खुशियां चाहते थे. लेकिन कहीं यह खुशी परिवार टूटने से ही जुड़ी हो, तो?

परिवार टूटने का ग़म कम तो नहीं होता.

ममा इस बीच पल्लव जी के पास गई और रसोइए ने जो खाना पहुंचाया, उसे उन्हें खिला कर हमारे पास आ गई.

हम तीनों आज बड़े दिनों बाद साथ खाना खा रहे थे और पुराने दिनों से कहीं बेहतर मनोदशा में.

तब तो खाने पर मां के बैठते ही पापा की कटूक्ति और ताने शुरू हो जाते.

आज हमारा खाना हम दोनों भाईबहनों की अपनी पसंद का था. भाई की पसंद का छोलेभटूरे, मेरी पसंद की वेज बिरयानी, पनीर दोप्याजा.

‘ममा, यह मकान तो पल्लव जी का होगा, है न?’ मेरे इतना पूछते ही ममा ने कहना शुरू किया-

‘मेरे बच्चे, मैं अभी यहां फिलहाल 25 हजार रुपए प्रतिमाह की नौकरी करती हूं. तुम्हें लगता है कि सालभर में मैं 2 करोड़ रुपए का यह दोमंजिला मकान खरीद पाऊंगी? बच्चे, यह पल्लव जी का ही मकान है.’

‘ममा, इन की पत्नी? परिवार…?’

‘इन की कोई संतान नहीं. पत्नी है, लेकिन…’

‘लेकिन, क्या ममा?’

‘शायद इन की पत्नी के बारे में मेरा कुछ भी कहना सही नहीं होगा.’

एक कशमकश सी भर रही थी मेरी सांसों में.

आखिर पल्लव जी और मेरी मां का रिश्ता कैसा था? हमारा भविष्य क्या था? क्या हमें पापा के पास लौट कर फिर से उन्हीं जिल्लतों में जीना होगा? पल्लव जी और ममा साथ हों, तो क्या यह सही निर्णय होगा?

मैं यही सब सोच रही थी. ममा हमारे पास वाले कमरे में सोने चली गई. कुंदन ने पूछा धीरे से- ‘दीदी, ममा अगर पल्लव जी से शादी कर लें तो तुम्हें कैसा लगेगा?’

‘देख भाई, ममा को कभी वह प्यार व सम्मान मिला नहीं, जिन की वह हकदार थी. आज अगर पल्लव जी से मां को वह सब मिल सकता है जिस से उस की बाकी जिंदगी सुख से बीते, तो इस में हमें भी खुश ही होना चाहिए. हमारी ममा ऐसी नहीं कि वह हमारी फिक्र न करे.’

‘ममा तो कुछ बताएंगी नहीं. क्या कल जब ममा कालेज चली जाएं तो हम पल्लव जी से बात करें?’

सुबह ममा के कालेज जाने के बाद हम दोनों को पल्लव जी ने अपने साथ नाश्ते पर बुलाया. उन की देखभाल में शुभा और रसोइए के साथ एक और लड़का था जो शायद रात को उन के कमरे में देखभाल के लिए रहता था.

पल्लव जी उसे कविराज बुला रहे थे. मैं ने पूछा- ‘अंकल, यह कैसा नाम है?’

‘यह नाम मैं ने दिया है बेटा. वह, दरअसल, बहुत बढ़िया कविता लिखता है. मैं ने सोचा है यह मन भर कर लिख ले, फिर इस की कविताओं की किताब छपवा दूंगा. इस का नाम तो वैसे रतन है.’

‘वाकई, आप सभी का बहुत ख़याल रखते हैं अंकल. ममा आप की बहुत तारीफ कर रही थी.’

‘अच्छा, किस बारे में?’ पल्लव जी के चेहरे पर सौ दीए एकसाथ जल उठे जैसे.

‘वही, शुभा और उन की मां के बारे में,’ मैं ने अपनी झिझक संभाली.

पल्लव जी ने कुछ और सुनने की उम्मीद रखी थी शायद. उन्होंने ‘अच्छा’ कह कर अपने नाश्ते की प्लेट पर खुद को केंद्रित किया.

भाई ने अपनी कुहनी से मुझ पर दबाव बनाते हुए मुझे संकेत देना चाहा कि मैं इस मौके का जल्द सदुपयोग करूं.

‘अंकल, दरअसल, मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं. समझ नहीं आता इतनी सारी बातें आप से…’

‘अरे बेटा, आप लोग मुझे अपने पापा की जगह पर रख कर कहो. मतलब, अंकल हूं न?’ पल्लव जी अपनी बात का मर्मार्थ समझ कर झेंपते हुए संभल से गए.

भाई का सब्र जाता रहा था. वह बिना देर किए तुरंत कह पड़ा- ‘अंकल, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा. हम तो पापा से बिना कुछ कहे ही यहां आ गए. बाद में पापा के दीदी को संदेश भेजने पर दीदी ने कहा कि हम ममा के पास चले आए हैं. पापा ने हमें दोबारा न लौटने की धमकी दी. इधर ममा ठीक से कुछ बता नहीं रही हैं. हम बहुत परेशान हैं.’

पल्लव जी अत्यंत कुशाग्र थे. वे समझ रहे थे हम कहना क्या चाहते हैं, जानना क्या चाहते हैं.

उन्होंने शांत स्वर में कहना शुरू किया और हम उन की कहानी में डूबते चले गए.

‘मैं कई सारी बातें आप को साफ ही कहूंगा. आप अब बड़े हो गए हो, चिंतित होना वाजिब है. जिंदगी को आप समझते हो.

‘मैं अकेला अब भी हूं, तब भी था जब मेरी शादी हुई थी.’

हम दोनों की चौड़ी हुई आंखों को देख पल्लव जी कुछ पल को रुक गए. वे समझ गए थे कि हम क्यों उत्सुक हैं.

उन्होंने फिर बोलना शुरू किया- ‘मेरी पूर्व पत्नी ने मेरी खानदानी धनसंपत्ति देख मुझ से शादी की और मेरे मातापिता की मृत्यु के बाद मेरा ही अकेला वारिस रह जाना उसे बड़ा आल्हादित किया.

‘लेकिन कुछ समय बाद से ही उसे महसूस होने लगा कि उस ने अपने क्लर्क प्रेमी को छोड़ मुझ से शादी कर के बड़ी गलती कर दी है. उस का क्लर्क प्रेमी भले ही उस की शादी से पहले छोटी सी नौकरी की वजह से वर की लिस्ट से निकाला गया था, लेकिन उस की मेरे साथ 4 साल की शादी में जब मैं दुनियाभर के लोगों की मदद में उस की समझ से पैसे उड़ा रहा था, उस के प्रेमी ने अपनी नौकरी के सदुपयोग द्वारा लोगों के काम कर देने के बदले यानी पब्लिक सर्विस के एवज में उलटे हाथ से न सिर्फ दोगुने पैसे कमाए, बल्कि खुद का फ्लैट और गाड़ी भी ले ली.

‘मेरी पत्नी को खुद के ठगे जाने का ज्ञान हुआ और अपनी ग़लती सुधारने के लिए उस ने अपने पूर्व प्रेमी से धीरेधीरे संपर्क बढ़ाया. उस का प्रेमी क्लर्क कह कर दुत्कारे जाने से अब गजब की इच्छाशक्ति से भर गया था. और जब उस की पूर्व प्रेमिका ने उस के आगे नाक रगड़ी, तो मेरी पत्नी को दोबारा जीत ले जाने का लोभ वह न संभाल सका. जबकि, मैं ऐसी प्रतियोगिता वाले दृश्य में कभी था ही नहीं. मेरी पूर्व पत्नी और उस के प्रेमी को एक बार फिर से साथ हो कर मुझे सबक सिखाने का बराबर का आंनद आया. प्रेमी ने अपने चोट खाए अहं पर मलहम लगा सा लिया. और पत्नी ने मेरे पैसे उड़ाने जैसी गलत आदत के एवज में मुझे सबक सिखाया. वैसे, मैं ने सीखा नहीं सबक, मेरे लिए मेरे पैसे मेरे अकेले के सुखभोग के लिए नहीं हैं. जब भी मैं ऐसे किन्हीं को देखूंगा जिन्हें मेरी या मेरे पैसों की जरूरत होगी, मैं नहीं रुकूंगा.

मैं खुश हूं कि हेमा, माफ़ करना तुम्हारी ममा, मुझे समझती है. और वह खुद भी वैसी ही स्त्री है जिसे मैं चाह सकता हूं. मतलब…’

मौन : एक नए रिश्ते की अनकही जबान

सर्द मौसम था, हड्डियों को कंपकंपा देने वाली ठंड. शुक्र था औफिस का काम कल ही निबट गया था. दिल्ली से उस का मसूरी आना सार्थक हो गया था. बौस निश्चित ही उस से खुश हो जाएंगे.

श्रीनिवास खुद को काफी हलका महसूस कर रहा था. मातापिता की वह इकलौती संतान थी. उस के अलावा 2 छोटी बहनें थीं. पिता नौकरी से रिटायर्ड थे. बेटा होने के नाते घर की जिम्मेदारी उसे ही निभानी थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी रहा है. मल्टीनैशनल कंपनी में उसे जौब पढ़ाई खत्म करते ही मिल गई थी. आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक तो वह था ही, बोलने में भी उस का जवाब नहीं था. लोग जल्दी ही उस से प्रभावित हो जाते थे. कई लड़कियों ने उस से दोस्ती करने की कोशिश की लेकिन अभी वह इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहता था.

श्रीनिवास ने सोचा था मसूरी में उसे 2 दिन लग जाएंगे, लेकिन यहां तो एक दिन में ही काम निबट गया. क्यों न कल मसूरी घूमा जाए. श्रीनिवास मजे से गरम कंबल में सो गया.

अगले दिन वह मसूरी के माल रोड पर खड़ा था. लेकिन पता चला आज वहां टैक्सी व बसों की हड़ताल है.

‘ओफ, इस हड़ताल को भी आज ही होना था,’ श्रीनिवास अभी सोच में पड़ा ही था कि एक टैक्सी वाला उस के पास आ कानों में फुसफुसाया, ‘साहब, कहां जाना है.’

‘अरे भाई, मसूरी घूमना था लेकिन इस हड़ताल को भी आज होना था.’

‘कोई दिक्कत नहीं साहब, अपनी टैक्सी है न. इस हड़ताल के चक्कर में अपनी वाट लग जाती है. सरजी, हम आप को घुमाने ले चलते हैं लेकिन आप को एक मैडम के साथ टैक्सी शेयर करनी होगी. वे भी मसूरी घूमना चाहती हैं. आप को कोई दिक्कत तो नहीं,’ ड्राइवर बोला.

‘कोई चारा भी तो नहीं. चलो, कहां है टैक्सी.’

ड्राइवर ने दूर खड़ी टैक्सी के पास खड़ी लड़की की ओर इशारा किया.

श्रीनिवास ड्राइवर के साथ चल पड़ा.

‘हैलो, मैं श्रीनिवास, दिल्ली से.’

‘हैलो, मैं मनामी, लखनऊ से.’

‘मैडम, आज मसूरी में हम 2 अनजानों को टैक्सी शेयर करना है. आप कंफर्टेबल तो रहेंगी न.’

‘अ…ह थोड़ा अनकंफर्टेबल लग तो रहा है पर इट्स ओके.’

इतने छोटे से परिचय के साथ गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर ने बताया, ‘सर, मसूरी से लगभग 30 किलोमीटर दूर टिहरी जाने वाली रोड पर शांत और खूबसूरत जगह धनौल्टी है. आज सुबह से ही वहां बर्फबारी हो रही है. क्या आप लोग वहां जा कर बर्फ का मजा लेना चाहेंगे?’

मैं ने एक प्रश्नवाचक निगाह मनामी पर डाली तो उस की भी निगाह मेरी तरफ ही थी. दोनों की मौन स्वीकृति से ही मैं ने ड्राइवर को धनौल्टी चलने को हां कह दिया.

गूगल से ही थोड़ाबहुत मसूरी और धनौल्टी के बारे में जाना था. आज प्रत्यक्षरूप से देखने का पहली बार मौका मिला है. मन बहुत ही कुतूहल से भरा था. खूबसूरत कटावदार पहाड़ी रास्ते पर हमारी टैक्सी दौड़ रही थी. एकएक पहाड़ की चढ़ाई वाला रास्ता बहुत ही रोमांचकारी लग रहा था.

बगल में बैठी मनामी को ले कर मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे. मन हो रहा था कि पूछूं कि यहां किस सिलसिले में आई हो, अकेली क्यों हो. लेकिन किसी अनजान लड़की से एकदम से यह सब पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

मनामी की गहरी, बड़ीबड़ी आंखें उसे और भी खूबसूरत बना रही थीं. न चाहते हुए भी मेरी नजरें बारबार उस की तरफ उठ जातीं.

मैं और मनामी बीचबीच में थोड़ा बातें करते हुए मसूरी के अनुपम सौंदर्य को निहार रहे थे. हमारी गाड़ी कब एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुंच गई, पता ही नहीं चल रहा था. कभीकभी जब गाड़ी को हलका सा ब्रेक लगता और हम लोगों की नजरें खिड़की से नीचे जातीं तो गहरी खाई देख कर दोनों की सांसें थम जातीं. लगता कि जरा सी चूक हुई तो बस काम तमाम हो जाएगा.

जिंदगी में आदमी भले कितनी भी ऊंचाई पर क्यों न हो पर नीचे देख कर गिरने का जो डर होता है, उस का पहली बार एहसास हो रहा था.

‘अरे भई, ड्राइवर साहब, धीरे… जरा संभल कर,’ मनामी मौन तोड़ते हुए बोली.

‘मैडम, आप परेशान मत होइए. गाड़ी पर पूरा कंट्रोल है मेरा. अच्छा सरजी, यहां थोड़ी देर के लिए गाड़ी रोकता हूं. यहां से चारों तरफ का काफी सुंदर दृश्य दिखता है.’

बचपन में पढ़ते थे कि मसूरी पहाड़ों की रानी कहलाती है. आज वास्तविकता देखने का मौका मिला.

गाड़ी से बाहर निकलते ही हाड़ कंपा देने वाली ठंड का एहसास हुआ. चारों तरफ से धुएं जैसे उड़ते हुए कोहरे को देखने से लग रहा था मानो हम बादलों के बीच खड़े हो कर आंखमिचौली खेल रहे हों. दूरबीन से चारों तरफ नजर दौड़ाई तो सोचने लगे कहां थे हम और कहां पहुंच गए.

अभी तक शांत सी रहने वाली मनामी धीरे से बोल उठी, ‘इस ठंड में यदि एक कप चाय मिल जाती तो अच्छा रहता.’

‘चलिए, पास में ही एक चाय का स्टौल दिख रहा है, वहीं चाय पी जाए,’ मैं मनामी से बोला.

हाथ में गरम दस्ताने पहनने के बावजूद चाय के प्याले की थोड़ी सी गरमाहट भी काफी सुकून दे रही थी.मसूरी के अप्रतिम सौंदर्य को अपनेअपने कैमरों में कैद करते हुए जैसे ही हमारी गाड़ी धनौल्टी के नजदीक पहुंचने लगी वैसे ही हमारी बर्फबारी देखने की आकुलता बढ़ने लगी. चारों तरफ देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़ दिखने लगे थे जो बर्फ से आच्छादित थे. पहाड़ों पर ऐसा लगता था जैसे किसी ने सफेद चादर ओढ़ा दी हो. पहाड़ एकदम सफेद लग रहे थे.

पहाड़ों की ढलान पर काफी फिसलन होने लगी थी. बर्फ गिरने की वजह से कुछ भी साफसाफ नहीं दिखाई दे रहा था. कुछ ही देर में ऐसा लगने लगा मानो सारे पहाड़ों को प्रकृति ने सफेद रंग से रंग दिया हो. देवदार के वृक्षों के ऊपर बर्फ जमी पड़ी थी, जो मोतियों की तरह अप्रतिम आभा बिखेर रही थी.

गाड़ी से नीचे उतर कर मैं और मनामी भी गिरती हुई बर्फ का भरपूर आनंद ले रहे थे. आसपास अन्य पर्यटकों को भी बर्फ में खेलतेकूदते देख बड़ा मजा आ रहा था.

‘सर, आज यहां से वापस लौटना मुमकिन नहीं होगा. आप लोगों को यहीं किसी गैस्टहाउस में रुकना पड़ेगा,’ टैक्सी ड्राइवर ने हमें सलाह दी.

‘चलो, यह भी अच्छा है. यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को और अच्छी तरह से एंजौय करेंगे,’ ऐसा सोच कर मैं और मनामी गैस्टहाउस बुक करने चल दिए.

‘सर, गैस्टहाउस में इस वक्त एक ही कमरा खाली है. अचानक बर्फबारी हो जाने से यात्रियों की संख्या बढ़ गई है. आप दोनों को एक ही रूम शेयर करना पड़ेगा,’ ड्राइवर ने कहा.

‘क्या? रूम शेयर?’ दोनों की निगाहें प्रश्नभरी हो कर एकदूसरे पर टिक गईं. कोई और रास्ता न होने से फिर मौन स्वीकृति के साथ अपना सामान गैस्टहाउस के उस रूम में रखने के लिए कह दिया.

गैस्टहाउस का वह कमरा खासा बड़ा था. डबलबैड लगा हुआ था. इसे मेरे संस्कार कह लो या अंदर का डर. मैं ने मनामी से कहा, ‘ऐसा करते हैं, बैड अलगअलग कर बीच में टेबल लगा लेते हैं.’

मनामी ने भी अपनी मौन सहमति दे दी.

हम दोनों अपनेअपने बैड पर बैठे थे. नींद न मेरी आंखों में थी न मनामी की. मनामी के अभी तक के साथ से मेरी उस से बात करने की हिम्मत बढ़ गई थी. अब रहा नहीं जा रहा था,  बोल पड़ा, ‘तुम यहां मसूरी क्या करने आई हो.’

मनामी भी शायद अब तक मुझ से सहज हो गई थी. बोली, ‘मैं दिल्ली में रहती हूं.’

‘अच्छा, दिल्ली में कहां?’

‘सरोजनी नगर.’

‘अरे, वाट ए कोइनस्टिडैंट. मैं आईएनए में रहता हूं.’

‘मैं ने हाल ही में पढ़ाई कंप्लीट की है. 2 और छोटी बहनें हैं. पापा रहे नहीं. मम्मी के कंधों पर ही हम बहनों का भार है. सोचती थी जैसे ही पढ़ाई पूरी हो जाएगी, मम्मी का भार कम करने की कोशिश करूंगी, लेकिन लगता है अभी वह वक्त नहीं आया.

‘दिल्ली में जौब के लिए इंटरव्यू दिया था. उन्होंने सैकंड इंटरव्यू के लिए मुझे मसूरी भेजा है. वैसे तो मेरा सिलैक्शन हो गया है, लेकिन कंपनी के टर्म्स ऐंड कंडीशंस मुझे ठीक नहीं लग रहीं. समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’

‘इस में इतना घबराने या सोचने की क्या बात है. जौब पसंद नहीं आ रही तो मत करो. तुम्हारे अंदर काबिलीयत है तो जौब दूसरी जगह मिल ही जाएगी. वैसे, मेरी कंपनी में अभी न्यू वैकैंसी निकली हैं. तुम कहो तो तुम्हारे लिए कोशिश करूं.’

‘सच, मैं अपना सीवी तुम्हें मेल कर दूंगी.’

‘शायद, वक्त ने हमें मिलाया इसलिए हो कि मैं तुम्हारे काम आ सकूं,’ श्रीनिवास के मुंह से अचानक निकल गया. मनामी ने एक नजर श्रीकांत की तरफ फेरी, फिर मुसकरा कर निगाहें झुका लीं.

श्रीनिवास का मन हुआ कि ठंड से कंपकंपाते हुए मनामी के हाथों को अपने हाथों में ले ले लेकिन मनामी कुछ गलत न समझ ले, यह सोच रुक गया. फिर कुछ सोचता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

सर्दभरी रात. बाहर गैस्टहाउस की छत पर गिरते बर्फ से टपकते पानी की आवाज अभी भी आ रही है. मनामी ठंड से सिहर रही थी कि तभी कौफी का मग बढ़ाते हुए श्रीनिवास ने कहा, ‘यह लीजिए, थोड़ी गरम व कड़क कौफी.’

तभी दोनों के हाथों का पहला हलका सा स्पर्श हुआ तो पूरा शरीर सिहर उठा. एक बार फिर दोनों की नजरें टकरा गईं. पूरे सफर के बाद अभी पहली बार पूरी तरह से मनामी की तरफ देखा तो देखता ही रह गया. कब मैं ने मनामी के होंठों पर चुंबन रख दिया, पता ही नहीं चला. फिर मौन स्वीकृति से थोड़ी देर में ही दोनों एकदूसरे की आगोश में समा गए.

सांसों की गरमाहट से बाहर की ठंड से राहत महसूस होने लगी. इस बीच मैं और मनामी एकदूसरे को पूरी तरह कब समर्पित हो गए, पता ही नहीं चला. शरीर की कंपकपाहट अब कम हो चुकी थी. दोनों के शरीर थक चुके थे पर गरमाहट बरकरार थी.

रात कब गुजर गई, पता ही नहीं चला. सुबहसुबह जब बाहर पेड़ों, पत्तों पर जमी बर्फ छनछन कर गिरने लगी तो ऐसा लगा मानो पूरे जंगल में किसी ने तराना छेड़ दिया हो. इसी तराने की हलकी आवाज से दोनों जागे तो मन में एक अतिरिक्त आनंद और शरीर में नई ऊर्जा आ चुकी थी. मन में न कोई अपराधबोध, न कुछ जानने की चाह. बस, एक मौन के साथ फिर मैं और मनामी साथसाथ चल दिए.

Valentine’s Day 2024: अनोखी- भाग 2- प्रख्यात से मिलकर कैसा था निष्ठा का हाल

‘‘अबे चल कोई फिल्म है क्या? मैं आंटी से बात करता हूं अगर तू वाकई सीरियस है तो,’’ प्रख्यात हंसा था.

‘‘अच्छा इतना ही सयाना है तो मेरी आंटी से लड़की से मिलने देने को क्यों नहीं कहता… ये पुरातनपंथी मानने वाले नहीं…’’

‘‘अरे कुछ ही दिनों की बात है. रहने देते हैं न उन्हें सुख से अपने संस्कारों में, अपनी मान्यताओं में. 15 को तो मिल ही लूंगा…’’

‘‘पसंद न आई तो?’’ सिकंदर अभी भी नहीं पचा पा रहा था कि प्रख्यात बिना देखे शादी के लिए कैसे मान रहा है.

‘‘अरे घर वाले ही हैं अच्छा ही सोचा होगा,’’ कह प्रख्यात मुसकराया.

‘‘फिर भी… कमाल है तू… हद ही है… अच्छा सुन अगले सोमवार कर लेते हैं शादी… वह कह रही थी कि हम सीधा कोर्ट आ जाएंगे… तू वहां का सब संभाल लेना. तेरे दोस्त वहां हैं न. फिर घर जा कर सब का आशीर्वाद ले लेंगे. उन्हें देना ही पड़ेगा घर वाले जो हैं,’’ वह प्रख्यात की बात दोहराते हुए हंसा था.

‘‘कमाल है, तू उलटापलटा काम करेगा और मेरी नकल उतारेगा… मैं इन बातों में साथ नहीं देने वाला… आंटीअंकल से मु झे डांट नहीं खानी… मेरा रैपो क्यों खराब करना चाहता है?’’

‘‘अबे यार उस की दोस्त सखी तो उस की मदद को साथ आ रही है,’’ सिकंदर बोला.

‘‘दोस्तसखी एक ही बात है. नाम नहीं कह सकता?’’

‘‘यही नाम मालूम है मु झे. वह हमारी शादी तक में सब संभाल लेगी. उस के बाद काम तेरा, तू कैसा दोस्त है यार… अच्छा चल किसी दोस्त को ही बोल दे वहां सब तैयारी रखे.’’

‘‘अरे यार आंटी से बात करने दे. ऐसे बिलकुल ठीक नहीं लगता,’’ प्रख्यात फिर हिचकिचाया.

‘‘अरे तब तो वे बिलकुल नहीं होने देंगी. दादी की सारी मान्यताएं उन्हें सिर ओढ़नी हैं… मान ले मेरा कहा यार… लड़के की तरफ से विटनैस तो तू ही होगा वरना मैं तेरी सगाई में नहीं आऊंगा सम झ ले,’’ वह छोटे बच्चे की तरह रूठ कर बोला तो प्रख्यात हंस दिया.

‘‘चल डन. तू मिला न मिला अपनी से मु झे बट मैं तु झे आज ही मिला दूंगा. शाम को 7 बजे क्वालिटी में. अभी उस से बात करता हूं… हम रोज ही मिलते हैं. तेरा बता देता हूं कि आज तू भी साथ होगा.’’

शाम को प्रख्यात मिला तो सुदीपा के व्यवहार से काफी इंप्रैस हुआ. फिर सोचने लगा कि हां फिट बैठेगी इस के घर में पर इस फंटूश को कैसे पसंद कर लिया इस ने. पर फिर थोड़ी देर में ही उसे पता चल गया कि आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है.

‘‘भाई प्लीज, आप हमारी शादी में हमारे साथ रहना, गवाह बनना कोर्ट में… बहुत डर लग रहा है. मांपापा की मरजी के बिना कभी कोई काम नहीं किया. मेरी दोस्त भी आएगी… उसी ने तो मु झे हिम्मत दिलाई है. बड़ी दिलेर है. किसी भी बात का उसे डर नहीं. एकदम बिंदास है. आप मिलना उस से, हम ग्रैजुएशन से दोस्त हैं… आप अपने दोस्त को वहां बोल देना सारी तैयारी, औपचारिकताएं पूरी रखे. मांपापा पहले तो नहीं मान रहे पर यकीन है बाद में मान जाएंगे,’’ सुदीपा बोली.

सुदीपा की मासूमियत भरी अनुनय देख कर प्रख्यात पिघल गया, ‘‘ओके फिर… आना ही पड़ेगा विवाह में, लड़के वाला जो बन रहा हूं…’’

वे सब रैस्टोरैंट से बाहर निकल आए.

सुदीपा की दोस्त सखी की बात सुन कर प्रख्यात को लाली फिर याद हो आई. वह भीतो ऐसी ही दबंग थी. कभी डेस्क में ब्लेड खोंस कर, चलती क्लास में बाजा बजाती. टीचर चिल्लाती कि कौन बजा रहा है, पर उस के डर से कोई नहीं बताता. शांति छा जाती. कभी पूरी क्लास की छुट्टी कराने का मन हो तो उस के निर्देश पर सभी किताब न लाने का बहाना बताते. पूरी क्लास को बैंचों पर खड़े रहने की सजा दे कर मैडम चली जातीं. बस पढ़ाई बंद और सीढ़ीनुमा क्लास की बैंचों पर चुपकेचुपके पकड़मपकड़म के मजे शुरू… कई दिनों से न जाने क्यों बारबार उस अनोखी शैतान की याद आ रही है. जिस के पल्ले पड़ी होगी उस का भला हो.

कोर्ट पहुंच कर प्रख्यात अचरज में था. सुदीपा को जींसटौप के

ऊपर ही चुन्नी ओढ़ा कर उस की दोस्त माथा ढकी साथ बैठी थी. सिकंदर भी सिंपल जींसटीशर्ट में था.

‘‘अरे यार तेरी शेरवानी कहां गई जो तूने उस दिन ली थी? मेरे साथ आज पहनी

क्यों नहीं?’’

‘‘लास्ट मोमैंट पर सखी ने तय किया.

मना किया कि बहुत खूबसूरत है ड्रैस पर कौन देख रहा है यहां, उस पर यह गरमी में क्या

तुक है भई… पक्की बात है दोनों के पेरैंट्स दोबारा धूमधाम से शादी करेंगे ही तब पहनना बेकार अभी वेस्ट क्यों करना. इसे ब्यूटीपार्लर

भी न जाने दिया. न दुलहन सी ड्रैसिंग करने दी कि यहां से सीधा कोर्ट जाना है. हमें भी लगा सही है.’’

‘‘तो मैं ही उल्लू बन गया, जो सूट कर आया हूं,’’ प्रख्यात पूरे सूट में था. न जाने क्यों उस ने कोर्ट में भी बाहर जूते उतारे और पास ही कुरसी पर बैठ गया. सब में तेज खिलखिलहट

जो उभरी थी वह सखी की ही थी, ‘‘नमस्ते’’.

मगर प्रख्यात खिसयाया सा नजरें नहीं

मिला पाया. न ही चेहरा ठीक से देख पाया

उस का. फिर एक ओर देखते हुए उस ने जवाब दिया, ‘‘नमस्ते.’’

फिर चोरी से देखना भी चाहा पर दिखी नहीं. न जाने कहां गायब हो गई.

थोड़ी देर बाद ही कैमरा चेहरे पर चढ़ाए फोटोशूट करती हुई नजर आई. प्रख्यात को उस का चेहरा अब और भी नहीं दिख रहा था.

‘‘जल्दी शुरू करो.’’

ज्यादा समय नहीं लगा, 1 घंटे में विवाह के सारे दस्तावेज, प्रमाणपत्र ले लिए गए. बधाई दे कर गले मिलने के बाद जब सब चलने को हुए तो कोर्ट के कमरे के बाहर से प्रख्यात के चमकते जूते गायब थे. सखी हैलमेट पहन अपनी स्कूटी स्टार्ट कर चुकी थी. अगेन कौंग्रैट्स सुदी सिक… मतलब सिकंदर भाई, मैं चली ड्यूटी बाय. थोड़ा ढूंढ़ो तुम. मिल जाएंगे… कोर्ट में सभी रिकौर्ड लेने में अभी बहुत टाइम है. थोड़ी मेहनत करो,’’ हंसते हुए वह फुर्र से निकल गई. रिम िझम बारिश होने लगी थी.

‘‘हैलो,’’ सुदीपा ने उस का फोन उठाया. सखी का ही था.

‘‘सुदीपा जरा दोनों से क्वहजारहजार जूता चुराई के मेरे वसूल लो फिर बताती हूं कहां छिपाए हैं… नो चीटिंग… पैसे दो जूते लो.’’

‘‘ओह तो यह कारगुजारी करने के लिए गायब हुई थी मैडम. अभी साली बन गई कोर्ट में ही,’’ सुदीपा हंसी.

‘‘तो अब दोनों नेग देने को भी तैयार हो जाओ. पैसे दे दो जूते ले लो. निकालिए आप हजारहजार रुपए.’’

‘‘वकील साहब हलकी फुहार में भी हैरानपरेशान पसीने से तर हो रहे थे. उन्हें अगले किसी मामले की तैयारी पर पहुंचने की जल्दी जो थी. वे उतावले थे जाने को. बारबार कहे जा रहे थे, ‘‘भैया पहले मु झे छोड़ दो 33 सैक्टर… देर हो रही है. वहां समय से क्लाइंट से मकान की राजस्ट्री के कागज तैयार कराने न पहुंचा तो मेरा नुकसान हो जाएगा.’’

आगे पढ़ें- अरे रुकिए तो वकील साहब. मेरे जूते…

दूसरी औरत : अब्बू की जिंदगी में कौन थी वो औरत

मैं मोटरसाइकिल ले कर बाहर खड़ा था. अम्मी अंदर पीर साहब के पास थीं. वहां लोगों की भीड़ लगी थी.

भीतर जाने से पहले अम्मी ने मुझ से भी कहा था, ‘आदिल बेटा, अंदर चलो.’ ‘मुझे ऐसी फालतू बातों पर भरोसा नहीं है,’ मैं ने तल्खी के साथ कहा था.

‘ऐसा नहीं कहते बेटा,’ कह कर अम्मी पर्स साथ ले कर अंदर चली गई थीं. न जाने बाबाबैरागियों के पीछे ये नासमझ लोग क्यों भागते हैं? मैं देख रहा था कि कोई नारियल तो कोई मिठाई ले कर वहां आया हुआ था. पिछले जुमे पर भी जब अम्मी यहां आई थीं, तो 5 सौ रुपए दे कर अपना नंबर लगा गई थीं. फोन से ही आज का समय मिला था, तो वे मुझे साथ ले कर आ गई थीं. मैं घर का सब से छोटा हूं, इसलिए सब के लिए आसानी से मुहैया रहता हूं. मैं ने अम्मी को कई बार समझाया भी था, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं थीं. यह बात आईने की तरह साफ थी कि पिछले 2-3 सालों में हमारे घर की हालत बहुत खराब हो गई थी. इस के पहले सब ठीकठाक था.

मेरे अब्बा सरकारी ड्राइवर थे और न जाने कहां का शौक लगा तो एक आटोरिकशा खरीद लिया और उसे किराए पर दे दिया. कुछ आमदनी होने लगी, तो बैंक से कर्ज ले कर 2-3 आटोरिकशा और ले लिए और उसी हिसाब से आमदनी बढ़ गई थी. अब्बा घर में मिठाई, फल लाने लगे थे. 1-2 दिन छोड़ कर चिकन बिरयानी या नौनवेज बनने लगा था. फ्रिज में तो हमेशा फल भरे ही रहते थे. अम्मी के लिए चांदी के जेवर बन गए थे और फिर हाथ के कंगन. गले में सोने की माला आ गई थी. मेरी पढ़ाई के लिए अलग से कोचिंग क्लास लगा दी गई थी. मेरी बड़ी बहन यानी अप्पी भी हमारे शहर में ही ब्याही गई थीं. उन की ससुराल में अम्मी कभी भी खाली हाथ नहीं जाती थीं. बड़ी अप्पी के बच्चे तो नानानानी का मानो इंतजार ही करते रहते थे.

फिर अब्बा परेशान रहने लगे. वे किसी से कुछ बात नहीं कहते थे. मुझे कभी कपड़ों की या कोचिंग के लिए फीस की जरूरत होती, तो वे झिड़क देते थे, ‘कब तक मांगोगे? इतने बड़े हो गए हो. खुद कमओ…’

अब्बा के मुंह से कड़वी बातें निकलने लगी थीं. नए कपड़े दिलाना बंद हो गया था. अम्मी अब बड़ी अप्पी के यहां खाली हाथ ही जाने लगी थीं. अम्मी घरखर्च के लिए 3-4 बार कहतीं, तब अब्बा रुपए निकाल कर देते थे. आखिर ऐसा क्यों हो रहा था? अम्मी कहतीं कि घर पर किसी की नजर लग गई या किसी शैतान का बुरा साया घर में आ गया है. हद तो तब हो गई, जब अब्बा ने अम्मी से सोने के कड़े उतरवा कर बेच दिए और जो रुपए आए उस का क्या किया, पता नहीं? अम्मी को भरोसा हो गया था कि कुछ न कुछ गलत हो रहा है. वे मौलाना से पानी फुंकवा कर ले आईं, कुछ तावीज भी बनवा लिए. अब्बा के तकिए के नीचे दबा दिए, लेकिन परेशानियां दूर नहीं हुईं. एक दिन शाम को अम्मी ने एक पीर साहब को बुलवाया. वे पूरा घर घूम कर कहने लगे, ‘कोई बुरी शै है.’

इसे दूर करने के लिए पीर साहब ने 2 हजार रुपए मांगे. अम्मी ने जो रुपए जोड़ कर रखे थे, वे निकाल कर दे दिए और तावीज ले लिया. घर में पानी का छिड़काव कर दिया. दरवाजों के बीच में सूइयां ठुंकवा लीं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. अब्बा ने अम्मी से चांदी के जेवर भी उतरवा लिए. अम्मी ने मना किया, तो बहुत झगड़ा हुआ. अब तो मुझे भी यकीन होने लगा था कि मामला गंभीर है, क्योंकि ऐसी खराब हालत हमारे परिवार की कभी नहीं हुई थी. अम्मी ने यह बात अपनी बहनों से भी की और कोई बहुत पहुंचे हुए पीर बाबा के बारे में मालूम किया. अम्मी ने पिछले जुमे को पैसा दे कर अपना नंबर लगवा लिया था.

मैं अपनी यादों से लौट आया. मैं ने घड़ी में देखा. रात के 9 बज रहे थे. तभी देखा कि अम्मी बाहर बदहवास से आ रही थीं. मैं घबरा गया और पूछा, ‘‘क्या बात है अम्मी?’’ ‘‘कुछ नहीं बेटा, घर चल,’’ घबराई सी आवाज में अम्मी ने कहा और कहतेकहते उन का गला भर आया.

‘‘आखिर माजरा क्या है? पीर साहब ने कुछ कहा क्या?’’ मैं ने जोर दे कर पूछा.

‘‘तू घर चल, बस… अम्मी ने गुस्से में कहा.

बड़ी अप्पी घर पर आई हुई थीं. अम्मी तो अंदर आते ही अप्पी के गले लग कर रोने लगीं. आखिर दिल भर रो लेने के बाद अम्मी ने आंसुओं को पोंछा और कहा, ‘‘मैं जो सोच रही थी, वह सच था.’’

‘‘क्या सोच रही थीं? कुछ साफसाफ तो बताओ,’’ बड़ी अप्पी ने पूछा.

‘‘क्या बताऊं? हम तो बरबाद हो गए. पीर साहब ने साफसाफ बताया है कि इन की जिंदगी में दूसरी औरत है, जिस की वजह से यह बरबादी हो रही है…’’ अम्मी जोर से रो रही थीं. मैं ने सुना, तो मैं भी हैरान रह गया. अब्बा ऐसे लगते तो नहीं हैं. लेकिन फिर हम बरबाद क्यों हो गए? इतने रुपए आखिर जा कहां रहे हैं?

अम्मी को अप्पी ने रोने से मना किया और कहा, ‘‘अब्बा आज आएंगे, तो बात कर लेंगे.’’ हम सब ने आज सोच लिया था कि अब्बा को घर की बरबादी की पूरी दास्तां बताएंगे और पूछेंगे कि आखिर वे चाहते क्या हैं? रात के तकरीबन साढ़े 10 बजे अब्बा परेशान से घर में आए. वे अपने कमरे में गए, तो अम्मी वहीं पर पहुंच गईं. अब्बा ने उन्हें देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है बेगम, बहुत खामोश हो?’’

अम्मी चुप रहीं, तो अब्बा ने दोबारा कहा, ‘‘कोई खास बात है क्या?’’

‘‘जी हां, खास बात है. आप से कुछ बात करनी है,’’ अम्मी ने कहा.

‘‘कहो, क्या बात है?’’

‘‘हमारे घर के हालात पिछले 2 सालों से बद से बदतर होते जा रहे हैं, इस पर आप ने कभी गौर किया है?’’ ‘‘मैं जानता हूं, लेकिन कुछ मजबूरी है. 1-2 महीने में सब ठीक हो जाएगा,’’ अब्बा ने ठंडी सांस खींच कर कहा. ‘‘बिलकुल ठीक नहीं होगा, आप यह जान लें, बल्कि आप हमें भिखारी बना कर ही छोड़ेंगे,’’ अम्मी की आवाज बेकाबू हो रही थी. हम दरवाजे की ओट में आ कर खड़े हो गए थे, ताकि कोई ऊंचनीच हो, तो हम अम्मी की ओर से खड़े हो सकें.

‘‘ऐसा नहीं कहते बेगम.’’

‘‘क्यों? क्या कोई कसर छोड़ रहे हैं आप? आप को एक बार भी अपने बीवीबच्चों का खयाल नहीं आया कि हम पर क्या गुजरेगी,’’ कह कर अम्मी रोने लगी थीं.

‘‘मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं कि हम इन बुरे दिनों से पार निकल जाएं.’’ ‘‘लेकिन निकल नहीं पा रहे, यही न? उस औरत ने आप को जकड़ लिया है,’’ अम्मी ने अपनी नाराजगी जाहिर कर तकरीबन चीखते हुए कहा.

‘‘खामोश रहो. तुम्हारे मुंह से ऐसी बेहूदा बातें अच्छी नहीं लगतीं.’’

‘‘क्यों… मैं सब सच कह रही हूं, इसलिए?’’

‘‘कह तो तुम सच रही हो, लेकिन बेगम मैं क्या करूं? पानी को कितना भी तलवार से काटो, वह कटता नहीं है,’’ अब्बा ने अपना नजरिया रखा.

‘‘आज आप फैसला कर लें.’’

‘‘कैसा फैसला?’’ अब्बा ने हैरत से सवाल किया.

‘‘आखिर आप चाहते क्या हैं? उस औरत के साथ रहना चाहते हैं या हमारे साथ जिंदगी बसर करना चाहते हैं?’’ अम्मी ने गुस्से में कहा.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? साफसाफ कहो?’’ अब्बा भी नाराज होने लगे थे.

‘‘मैं आज बड़े पीर साहब के पास गई थी. उन्होंने मुझे सब बता दिया है,’’ अम्मी ने राज खोलते हुए कहा.

‘‘क्या सब बता दिया है?’’ अब्बा ने हैरत से सवाल किया.

‘‘आप किसी दूसरी औरत के चक्कर में सबकुछ बरबाद कर रहे हैं. लानत है…’’ अम्मी ने गुस्से में कहा.

‘‘चुप रहो. जानती हो कि वह दूसरी दूसरी औरत कौन है?’’ अब्बा ने गुस्से में कांपते हुए कहा.

‘‘कौन है?’’ अम्मी ने भी उतनी ही तेजी से ऊंची आवाज में पूछा.

‘‘तुम्हारी ननद है, मेरी बड़ी बहन. उस की मेहनत की वजह से ही मैं पढ़ाई कर पाया और अपने पैरों पर खड़ा हो सका और उस की एक छोटी सी गलती की वजह से हमारे पूरे परिवार ने उसे अपने से अलग कर दिया था, क्योंकि उस ने अपनी मरजी से शादी की थी. ‘‘मुझे पिछले एक साल पहले ही मालूम पड़ा कि उस के पति को कैंसर है, जिस की कीमोथैरैपी और इलाज के लिए उसे रुपयों की जरूरत थी. उस के बच्चे भी ऊंचे दर्जे में पढ़ रहे थे. उन्होंने तो तय किया था इलाज नहीं कराएंगी, लेकिन जैसे ही मुझे खबर लगी, तो मैं ने इलाज और पढ़ाई की जिम्मेदारी ले ली, ताकि वह परिवार बरबाद होने से बच सके. ‘‘मेरी बहन के हमारे सिर पर बहुत एहसान हैं. अगर मुझे जान दे कर भी वे एहसान चुकाने पड़ें, तो मैं ऐसा खुशीखुशी कर सकता हूं,’’ कहतेकहते अब्बा जोर से रो पड़े. अम्मी हैरान सी सब देखतीसुनती रहीं.

‘‘मुझ से कैसा बड़ा गुनाह हो गया,’’ अम्मी बड़बड़ाईं. हम भी दरवाजे की ओट से बाहर निकले और अब्बा के गले से लिपट गए. ‘‘अब्बा, हमें माफ कर दो. अगर हमें  और भी मुसीबतें झेलना पड़ीं, तो हम झेल लेंगे, लेकिन आप उन्हें बचा लें,’’ मैं ने कहा. अब्बा ने आंसू पोंछे और कहा, ‘आदिल बेटा, उन का पूरा इलाज हो गया है. वे ठीक हो गए हैं और भांजे को नौकरी भी लग गई है. ‘‘यह सब तुम लोगों की मदद की वजह से ही सब हो पाया. तुम लोग खामोश रहे और मैं उस परिवार की मदद कर के उन्हें जिंदा रख पाया,’’ अब्बा की आवाज में हम सब के प्रति शुक्रिया का भाव नजर आ रहा था. अम्मी ने शर्म के मारे नजरें नीची कर ली थीं. अब्बा ने कहा, ‘‘कल सुबह मेरी बहन यहां आने वाली हैं. अच्छा हुआ, जो सब बातें रात में ही साफ हो गईं.’’

‘‘हम सब कल उन का बढि़या से इस्तकबाल करेंगे, ताकि बरसों से वे हम से जो दूर रहीं, सारे गम भूल जाएं,’’ अम्मी ने कहा.

‘‘क्यों नहीं,’’ अब्बा ने कहा, तो हम सब हंस दिए. रात में हमारी हंसी से लग रहा था, मानो रात घर में बिछ गई हो और खुशियों के सितारे उस में टंग गए हों.

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