सपनों की राख तले

दौड़भाग, उठापटक करते समय कब आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह गश खा कर गिर पड़ी, याद नहीं.

आंख खुली तो देखा कि श्वेता अपने दूसरे डाक्टर सहकर्मियों के साथ उस का निरीक्षण कर रही थी. तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी. श्वेता ने पलट कर देखा तो डा. तेजेश्वर का सहायक मधुसूदन था.

‘‘मैडम, आप के लिए दवा लाया हूं. वैसे डा. तेजेश्वर खुद चेक कर लेते तो ठीक रहता.’’

आंखों की झिरी से झांक कर निवेदिता ने देखा तो लगा कि पूरा कमरा ही घूम रहा है. श्वेता ने कुछ देर पहले ही उसे नींद का इंजेक्शन दिया था. पर डा. तेज का नाम सुन कर उस का मन, अंतर, झंकृत हो उठा था. सोचनेविचारने की जैसे सारी शक्ति ही चुक गई थी. ढलती आयु में भी मन आंदोलित हो उठा था. मन में विचार आया कि पूछे, आए क्यों नहीं? पर श्वेता के चेहरे पर उभरी आड़ीतिरछी रेखाओं को देख कर निवेदिता कुछ कह नहीं पाई थी.

‘‘तकदीर को आप कितना भी दोष दे लो, मां, पर सचाई यह है कि आप की इस दशा के लिए दोषी डा. तेज खुद हैं,’’ आज सुबह ही तो मांबेटी में बहस छिड़ गई थी.

‘‘वह तेरे पिता हैं.’’

‘‘मां, जिस के पास संतुलित आचरण का अपार संग्रह न हो, जो झूठ और सच, न्यायअन्याय में अंतर न कर सके वह व्यक्ति समाज में रह कर समाज का अंग नहीं बन सकता और न ही सम्माननीय बन सकता है,’’ क्रोधित श्वेता कुछ ही देर में कमरा छोड़ कर बाहर चली गई थी.

बेटी के जाने के बाद से उपजा एकांत और अकेलापन निवेदिता को उतना असहनीय नहीं लगा जितना हमेशा लगता था. एकांत में मौन पड़े रहना उन्हें सुविधाजनक लग रहा था.

खयालों में बरसों पुरानी वही तसवीर साकार हो उठी जिस के प्यार और सम्मोहन से बंधी, वह पिता की देहरी लांघ उस के साथ चली आई थी.

उन दिनों वह बी.ए. फाइनल में थी. कालिज का सालाना आयोजन था. म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता में निवेदिता और तेजेश्वर आखिरी 2 खिलाड़ी बचे थे. कुरसी 1 उम्मीदवार 2. कभी निवेदिता की हथेली पर तेजेश्वर का हाथ पड़ जाता, कभी उस की पीठ से तेज का चौड़ा वक्षस्थल टकरा जाता. जीत, तेजेश्वर की ही हुई थी लेकिन उस दिन के बाद से वे दोनों हर दिन मिलने लगे थे. इस मिलनेमिलाने के सिलसिले में दोनों अच्छे मित्र बन गए. धीरेधीरे प्रेम का बीज अंकुरित हुआ तो प्यार के आलोक ने दोनों के जीवन को उजास से भर दिया.

अंतर्जातीय विवाह के मुद्दे को ले कर परिवार में अच्छाखासा विवाद छिड़ गया था. लेकिन बिना अपना नफानुकसान सोचे निवेदिता भी अपनी ही जिद पर अड़ी रही. कोर्ट में रजिस्टर पर दस्तखत करते समय, सिर्फ मांपापा, तेजेश्वर और निवेदिता ही थे. इकलौती बेटी के ब्याह पर न बाजे बजे न शहनाई, न बंदनवार सजे न ही गीत गाए गए. विदाई की बेला में मां ने रुंधे गले से इतना भर कहा था, ‘सपने देखना बुरा नहीं होता पर उन सपनों की सच के धरातल पर कोई भूमिका नहीं होती, बेटी. तेरे भावी जीवन के लिए बस, यही दुआ कर सकती हूं कि जमीन की जिस सतह पर तू ने कदम रखा है वह ठोस साबित हो.’

विवाह के शुरुआती दिनों में सुंदर घर, सुंदर परिवार, प्रिय के मीठे बोल, यही पतिपत्नी की कामना थी और यही प्राप्ति. शुरू में तेज का साथ और उस के मीठे बोल अच्छे लगते थे. बाद में यही बोल किस्सा बन गए. निवि को बात करने का ढंग नहीं है, पहननाओढ़ना तो उसे आता ही नहीं है. सीनेपिरोने का सलीका नहीं. 2 कमरों के उस छोटे से फ्लैट को सजातेसंवारते समय मन हर पल पति के कदमों की आहट को सुनने के लिए तरसता. कुछ पकातेपरोसते समय पति के मुख से 1-2 प्रशंसा के शब्द सुनने के लिए मन मचलता, लेकिन तेजेश्वर बातबात पर खीजते, झल्लाते ही रहते थे.

निवेदिता आज तक समझ नहीं पाई कि ब्याह के तुरंत बाद ही तेज का व्यवहार उस के प्रति इतना शुष्क और कठोर क्यों हो गया. उस ने तो तेज को मन, वचन, कर्म से अपनाया था. तेज के प्रति निवेदिता को कोई गिलाशिकवा भी नहीं था.

कई बार निवेदिता खुद से पूछती कि उस में उस का कुसूर क्या था कि वह सुंदर थी, स्मार्ट थी. लोगों के बीच जल्द ही आकर्षण का केंद्र बन जाती थी या उस की मित्रता सब से हो जाती थी. वरना पत्नी के प्रति दुराव की क्षुद्र मानसिकता के मूल कारण क्या हो सकते थे? शरीर के रोगों को दूर करने वाले तेजेश्वर यह क्यों नहीं समझ पाए कि इनसान अपने मृदु और सरल स्वभाव से ही तो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनता है.

दिनरात की नोकझोंक और चिड़- चिड़ाहट से दुखी हो उठी थी निवेदिता. सोचा, क्या रखा है इन घरगृहस्थी के झमेलों में?

एक दिन अपनी डिगरियां और सर्टिफिकेट निकाल कर तेज से बोली, ‘घर में बैठेबैठे मन नहीं लगता, क्यों न मैं कोई नौकरी कर लूं?’

‘और यह घरगृहस्थी कौन संभालेगा?’ तेज ने आंखें तरेरीं.

‘घर के काम तो चलतेफिरते हो जाते हैं,’ दृढ़ता से निवेदिता ने कहा तो तेजेश्वर का स्वर धीमा पड़ गया.

‘निवेदिता, घर से बाहर निकलोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’

‘क्यों…’ लापरवाही से पूछा था उस ने.

‘लोग न जाने तुम्हें कैसीकैसी निगाहों से घूरेंगे.’

कितना प्यार करते हैं तेज उस से? यह सोच कर निवेदिता इतरा गई थी. पति की नजरों में, सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में वह तेजेश्वर की हर कही बात को पूरा करती चली गई थी, पर जब टांग पर टांग चढ़ा कर बैठने में, खिड़की से बाहर झांक कर देखने में, यहां तक कि किसी से हंसनेबोलने पर भी तेज को आपत्ति होने लगी तो निवेदिता को अपनी शुरुआती भावुकता पर अफसोस होने लगा था.

निरी भावुकता में अपने निजत्व को पूर्ण रूप से समाप्त कर, जितनी साधना और तप किया उतनी ही चतुराई से लासा डाल कर तेजेश्वर उस की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही बाधित करते चले गए.

दर्द का गुबार सा उठा तो निवेदिता ने करवट बदल ली. यादों के साए पीछा कहां छोड़ रहे थे. विवाह की पहली सालगिरह पर मम्मीपापा 2 दिन पहले ही आ गए थे. मित्र, संबंधी और परिचितों को आमंत्रित कर उस का मन पुलक से भर उठा था लेकिन तेजेश्वर की भवें तनी हुई थीं. निवेदिता के लिए पति का यह रूप नया था. उस ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि इस खुशी के अवसर को तेज अंधकार में डुबो देंगे और जरा सी बात को ले कर भड़क जाएंगे.

‘मटरमशरूम क्यों बनाया? शाही पनीर क्यों नहीं बनाया?’

छोटी सी बात को टाला भी जा सकता था पर तेजेश्वर ने महाभारत छेड़ दिया था. अकसर किसी एक बात की भड़ास दूसरी बात पर ही उतरती है. तेज का स्वभाव ही ऐसा था. दोस्ती किसी से करते नहीं थे, इसीलिए लोग उन से दूर ही छिटके रहते थे. आमंत्रित अतिथियों से सभ्यता और शिष्टता से पेश आने के बजाय, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही उन्होंने वह हंगामा खड़ा किया था. यह सबकुछ निवेदिता को अब समझ में आता है.

2 दिन तक मम्मीपापा और रहे थे. तेज इस बीच खूब हंसते रहे थे. निवेदिता इसी मुगालते में थी कि मम्मीपापा ने कुछ सुना नहीं था पर अनुभवी मां की नजरों से कुछ भी नहीं छिपा था.

घर लौटते समय तेज का अच्छा मूड देख कर उन्होंने मशविरा दिया था, ‘जिंदगी बहुत छोटी है. हंसतेखेलते बीत जाए तो अच्छा है. ज्यादा ‘वर्कोहोलिक’ होने से शरीर में कई बीमारियां घर कर लेती हैं. कुछ दिन कहीं बाहर जा कर तुम दोनों घूम आओ.’

इतना सुनते ही वह जोर से हंस दी थी और उस के मुंह से निकल गया था, ‘मां, कभी सोना लेक या बटकल लेक तक तो गए नहीं, आउट आफ स्टेशन ये क्या जाएंगे?’

मजाक में कही बात मजाक में ही रहने देते तो क्या बिगड़ जाता? लेकिन तेज का तो ऐसा ईगो हर्ट हुआ कि मारपीट पर ही उतर आए.

हतप्रभ रह गई थी वह तेज के उस व्यवहार को देख कर. उस दिन के बाद से हंसनाबोलना तो दूर, उन के पास बैठने तक से घबराने लगी थी निवेदिता. कई दिनों तक अबोला ठहर जाता उन दोनों के बीच.

उन्हीं कुछ दिनों में निवेदिता ने अपने शरीर में कुछ आकस्मिक परिवर्तन महसूस किए थे. तबीयत गिरीगिरी सी रहती, जी मिचलाता रहता तो वह खुद ही चली गई थी डा. डिसूजा के क्लिनिक पर. शुरुआती जांच के बाद डा. डिसूजा ने गर्भवती होने का शक जाहिर किया था, ‘तुम्हें कुछ टैस्ट करवाने पड़ेंगे.’

एक घंटा भी नहीं बीता था कि तेज घर लौट आए थे. शायद डा. डिसूजा से उन की बात हो चुकी थी. बच्चों की तरह पत्नी को अंक में भर कर रोने लगे.

‘इतनी खुशी की बात तुम ने मुझ से क्यों छिपाई? अकेली क्यों गई? मैं ले चलता तुम्हें.’

आंख की कोर से टपटप आंसू टपक पड़े. खुद पर ग्लानि होने लगी थी. कितना छोटा मन है उन का…ऐसी छोटीछोटी बातें भी चुभ जाती हैं.

अगले दिन तेज ने डा. कुलकर्णी से समय लिया और लंच में आने का वादा कर के चले गए. 10 सालों तक हास्टल में रहने वाली निवेदिता जैसी लड़की के लिए अकेले डा. कुलकर्णी के क्लिनिक तक जाना मुश्किल काम नहीं था. डा. डिसूजा के क्लिनिक पर भी वह अकेली ही तो गई थी. पर कभीकभी अपना वजूद मिटा कर पुरुष की मजबूत बांहों के घेरे में सिमटना, हर औरत को बेहद अच्छा लगता है. इसीलिए बेसब्री से वह तेज का इंतजार करने लगी थी.

दोपहर के 1 बजे जूते की नोक से द्वार के पट खुले तो वह हड़बड़ा कर खड़ी हो गई थी. तेज बुरी तरह बौखलाए हुए थे. शायद थके होंगे यह सोच कर निवेदिता दौड़ कर चाय बना लाई थी.

‘पूरा दिन गंवारों की तरह चाय ही पीता रहूं?’ तेज ने आंखें तरेरीं तो साड़ी बदल कर, वह गाउन में आ गई और घबरा कर पूछ लिया, ‘आजकल काम ज्यादा है क्या?’

‘मैं आलसी नहीं, जो हमेशा पलंग पर पड़ा रहूं. काम करना और पैसे कमाना मुझे अच्छा लगता है.’

अपरोक्ष रूप से उस पर ही वार किया जा रहा है. यह वह समझ गई थी. सारा आक्रोश, सारी झल्लाहट लिए निवेदिता अंदर ही अंदर घुटती रही थी. उस ने कई किताबों में पढ़ा था कि गर्भवती महिला को हमेशा खुश रहना चाहिए. इसीलिए पति के स्वर में छिपे व्यंग्य को सुन कर भी मूड खराब करने के बजाय चेहरे पर मुसकान फैला कर बोली, ‘एक बार ब्लड प्रैशर चेक क्यों नहीं करवा लेते? बेवजह ही चिड़चिड़ाते रहते हो.’

इतना सुनते ही तेजेश्वर ने घर के हर साजोसामान के साथ कई जरूरत के कागज भी यत्रतत्रसर्वत्र फैला दिए थे. निवेदिता आज तक इस गुत्थी को सुलझा नहीं पाई कि क्या पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास पर नहीं टिका होना चाहिए. वह जहां जाती तेजेश्वर के साथ जाती, वह जैसा चाहते वैसा ही पहनती, ओढ़ती, पकाती, खाती. जहां कहते वहीं घूमने जाती. फिर भी वर्जनाओं की तलवार हमेशा क्यों उस के सिर पर लटकती रहती थी?

अंकुश के कड़े चाबुक से हर समय पत्नी को साध कर रखते समय तेजेश्वर के मन में यह विचार क्यों नहीं आया कि जो पति अपनी पत्नी को हेय दृष्टि से देखता है उस औरत के प्रति बेचारगी का भाव जतला कर कई पुरुष गिद्धों की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराने लगते हैं. इस में दोष औरत का नहीं, पुरुष का ही होता है.

यही तो हुआ था उस दिन भी. श्वेता के जन्मदिन की पार्टी पर वह अपने कालिज की सहपाठी दिव्या और उस के पति मधुकर के साथ चुटकुलों का आनंद ले रही थी. मां और पापा भी वहीं बैठे थे. पार्टी का समापन होते ही तेज अपने असली रूप में आ गए थे. घबराहट से उन का पूरा शरीर पसीनेपसीने हो गया. लोग उन के गुस्से को शांत करने का भरसक प्रयास कर रहे थे पर तेजेश्वर अपना आपा ही खो चुके थे. एक बरस की नन्ही श्वेता को जमीन पर पटकने ही वाले थे कि पापा ने श्वेता को तेज के चंगुल से छुड़ा कर अपनी गोद में ले लिया था.

‘मुझे तो लगता है कि तेज मानसिक रोगी है,’ पापा ने मां की ओर देख कर कहा था.

‘यह क्या कह रहे हैं आप?’ अनुभवी मां ने बात को संभालने का प्रयास किया था.

‘यदि यह मानसिक रोगी नहीं तो फिर कोई नशा करता है क्योंकि कोई सामान्य व्यक्ति ऐसा अभद्र व्यवहार कभी नहीं कर सकता.’

उस दिन सब के सामने खुद को तेजेश्वर ने बेहद बौना महसूस किया था. घुटन और अवहेलना के दौर से बारबार गुजरने के बाद भी तेज के व्यवहार की चर्चा निवेदिता ने कभी किसी से नहीं की थी. कैसे कहती? रस्मोरिवाज के सारे बंधन तोड़ कर उस ने खुद ही तो तेजेश्वर के साथ प्रेमविवाह किया था पर उस दिन तो मम्मी और पापा दोनों ने स्वयं अपनी आंखों से देखा, कानों से सुना था.

पापा ने साथ चलने के लिए कहा तो वह चुपचाप उन के साथ चली गई थी. सोचती थी, अकेलापन महसूस होगा तो खुद ही तेज आ कर लिवा ले जाएंगे पर ऐसा मौका कहां आया था. उस के कान पैरों की पदचाप और दरवाजे की खटखट सुनने को तरसते ही रह गए थे.

श्वेता, पा…पा…कहना सीख गई थी. हुलस कर निवेदिता ने बेटी को अपने आंचल में छिपा लिया था. दुलारते- पुचकारते समय खुशी का आवेग उस की नसों में बहने लगा और अजीब तरह का उत्साह मन में हिलोरें भरने लगा.

‘कब तक यों हाथ पर हाथ धर कर बैठी रहेगी? अभी तो श्वेता छोटी है. उसे किसी भी बात की समझ नहीं है लेकिन धीरेधीरे जब बड़ी होगी तो हो सकता है कि मुझ से कई प्रकार के प्रश्न पूछे. कुछ ऐसे प्रश्न जिन का उत्तर देने में भी मुझे लज्जित होना पड़े.’

घर में बिना किसी से कुछ कहे वह तेज की मां के चौक वाले घर में पहुंच गई थी. पूरे सम्मान के साथ तेजेश्वर की मां ने निवेदिता को गले लगाया था बल्कि अपने घर आ कर रहने के लिए भी कहा था. लेकिन बातों ही बातों में इतना भी बता दिया था कि तेज कनाडा चला गया है और जाते समय यह कह गया है कि वह निवेदिता के साथ भविष्य में कोई संबंध नहीं रखना चाहता है.

निवेदिता ने संयत स्वर में इतना ही पूछा था, ‘मांजी, यह सब इतनी जल्दी हुआ कैसे?’

‘तेज के दफ्तर की एक सहकर्मी सूजी है. उसी ने स्पांसर किया है. हमेशा कहता था, मन उचट गया है. दूर जाना है…कहीं दूर.’

सारी भावनाएं, सारी संवेदनाएं ठूंठ बन कर रह गईं. औरत सिर्फ शारीरिक जरूरत नहीं है. उस के प्रेम में पड़ना, अभिशाप भी नहीं है, क्योंकि वह एक आत्मीय उपस्थिति है. एक ऐसी जरूरत है जिस से व्यक्ति को संबल मिलता है. हवा में खुशबू, स्पर्श में सनसनी, हंसी में खिलखिलाहट, बातों में गीतों सी सरगम, यह सबकुछ औरत के संपर्क में ही व्यक्ति को अनुभव होता है.

समय की झील पर जिंदगी की किश्ती प्यार की पाल के सहारे इतनी आसानी से गुजरती है कि गुजरने का एहसास ही नहीं होता. कितनी अजीब सी बात है कि तेज इस सच को ही नहीं पहचान पाए. शुरू से वह महत्त्वाकांक्षी थे पर उन की महत्त्वाकांक्षा उन्हें परिवार तक छोड़ने पर मजबूर कर देगी, ऐसा निवेदिता ने कभी सोचा भी नहीं था. कहीं ऐसा तो नहीं कि बच्ची और पत्नी से दूर भागने के लिए उन्होंने महत्त्वाकांक्षा के मोहरे का इस्तेमाल किया था?

इनसान क्यों अपने परिवार को माला में पिरोता है? इसीलिए न कि व्यक्ति को सीधीसादी, सरल सी जिंदगी हासिल हो. निवेदिता ने विवेचन सा किया. लेकिन जब वक्त और रिश्तों के खिंचाव से अपनों को ही खुदगर्जी का लकवा मार जाए तो पूरी तरह प्रतिक्रियाविहीन हो कर ठंडे, जड़ संबंधों को कोई कब तक ढो सकता है?

मन में विचार कौंधा कि अब यह घर उसे छोड़ देना चाहिए. आखिर मांबाप पर कब तक आश्रित रहेगी. और अब तो भाई का भी विवाह होने वाला था. उस की और श्वेता की उपस्थिति ने भाई के सुखद संसार में ग्रहण लगा दिया तो? उसे क्या हक है किसी की खुशियां छीनने का?

अगले दिन निवेदिता देहरादून में थी. सोचा कि इस शहर में अकेली कैसे रह सकेगी? लेकिन फौरन ही मन ने निश्चय किया कि उसे अपनी बिटिया के लिए जीना होगा. तेज तो अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर विदेश जा बसे पर वह अपने दायित्वों से कैसे मुंह मोड़ सकती है?

श्वेता को सुरक्षित भविष्य प्रदान करने का दायित्व निवेदिता ने अपने कंधों पर ले तो लिया था पर वह कर क्या सकती थी? डिगरियां और सर्टि- फिकेट तो कब के तेज के क्रोध की आग पर होम हो चुके थे.

नौकरी ढूंढ़ने निकली तो एक ‘प्ले स्कूल’ में नौकरी मिल गई, साथ ही स्कूल की प्राध्यापिका ने रहने के लिए 2 कमरे का मकान दे कर उस की आवास की समस्या को भी सुलझा दिया, पर वेतन इतना था कि उस में घर का खर्चा चलाना ही मुश्किल था. श्वेता के सुखद भविष्य को बनाने का सपना वह कैसे संजोती?

मन ऊहापोह में उलझा रहता. क्या करे, कैसे करे? विवाह से पहले कुछ पत्रिकाओं में उस के लेख छपे थे. आज फिर से कागजकलम ले कर कुछ लिखने बैठी तो लिखती ही चली गई.

कुछ पत्रिकाओं में रचनाएं भेजीं तो स्वीकृत हो गईं. पारिश्रमिक मिला, शोहरत मिली, नाम मिला. लोग प्रशंसात्मक नजरों से उसे देखते. बधाई संदेश भेजते, तो अच्छा लगता था, फिर भी भीतर ही भीतर कितना कुछ दरकता, सिकुड़ता रहता. काश, तेज ने भी कभी उस के किसी प्रयास को सराहा होता.

निवेदिता की कई कहानियों पर फिल्में बनीं. घर शोहरत और पैसे से भर गया. श्वेता डाक्टर बन गई. सोचती, यदि तेज ने ऐसा अमानवीय व्यवहार न किया होता तो उस की प्रतिभा का ‘मैं’ तो बुझ ही गया होता. कदमकदम पर पत्नी की प्रतिभा को अपने अहं की कैंची से कतरने वाले तेजेश्वर यदि आज उसे इस मुकाम पर पहुंचा हुआ देखते तो शायद स्वयं को उपेक्षित और अपमानित महसूस करते. यह तो श्वेता का संबल और सहयोग उन्हें हमेशा मिलता रहा वरना इतना सरल भी तो नहीं था इस शिखर तक पहुंचना.

दरवाजे पर दस्तक हुई, ‘‘निवेदिता,’’ किसी ने अपनेपन से पुकारा तो अतीत की यादों से निकल कर निवेदिता बाहर आई और 22 बरस बाद भी तेजेश्वर का चेहरा पहचानने में जरा भी नहीं चूकी. तेज ने कुरसी खिसका कर उस की हथेली को छुआ तो वह शांत बिस्तर पर लेटी रही. तेज की हथेली का दबाव निवेदिता की थकान और शिथिलता को दूर कर रहा था. सम्मोहन डाल रहा था और वह पूरी तरह भारमुक्त हो कर सोना चाह रही थी.

‘‘बेटी के ब्याह पर पिता की मौजूदगी जरूरी होती है. श्वेता के विवाह की बात सुन कर इतनी दूर से चला आया हूं, निवि.’’

यह सुन कर मोम की तरह पिघल उठा था निवेदिता का तनमन. इसे औरत की कमजोरी कहें या मोहजाल में फंसने की आदत, बरसों तक पीड़ा और अवहेलना के लंबे दौर से गुजरने के बाद भी जब वह चिरपरिचित चेहरा आंखों के सामने आता है तो अपने पुराने पिंजरे में लौट जाने की इच्छा प्रबल हो उठती है. निवेदिता ने अपने से ही प्रश्न किया, ‘कल श्वेता ससुराल चली जाएगी तो इतने बड़े घर में वह अकेली कैसे रहेगी?’

‘‘सूजी निहायत ही गिरी हुई चरित्रहीन औरत निकली. वह न अच्छी पत्नी साबित हुई न अच्छी मां. उसे मुझ से ज्यादा दूसरे पुरुषों का संसर्ग पसंद था. मैं ने तलाक ले लिया है उस से. मेरा एक बेटा भी है, डेविड. अब हम सब साथ रहेंगे. तुम सुन रही हो न, निवि? तुम्हें मंजूर होगा न?’’

बंद आंखों में निवेदिता तेज की भावभंगिमा का अर्थ समझ रही थी.

बरसों पुराना वही समर्थन, लेकिन स्वार्थ की महक से सराबोर. निवेदिता की धारणा में अतीत के प्रेम की प्रासंगिकता आज तक थी, लेकिन तेज के व्यवहार ने तो पुराने संबंधों की जिल्द को ही चिंदीचिंदी कर दिया. वह तो समझ रही थी कि तेज अपनी गलती की आग में जल रहे होंगे. अपनी करनी पर दुखी होंगे. शायद पूछेंगे कि इतने बरस उन की गैरमौजूदगी में तुम ने कैसे काटे. कहांकहां भटकीं, किनकिन चौखटों की धूल चाटी. लेकिन इन बातों का महत्त्व तेजेश्वर क्या जानें? परिवार जब संकट के दौर से गुजर रहा हो, गृहकलह की आग में झुलस रहा हो, उस समय पति का नैतिक दायित्व दूना हो जाता है. लेकिन तेज ने ऐसे समय में अपने विवेक का संतुलन ही खो दिया था. अब भी उन का यह स्पर्श उसे सहेजने के लिए नहीं, बल्कि मांग और पूर्ति के लिए किया गया है.

पसीने से भीगी निवेदिता की हथेली धीरेधीरे तेज की मजबूत हथेली के शिकंजे से पीछे खिसकने लगी, निवेदिता के अंदर से यह आवाज उठी, ‘अगर सूजी अच्छी पत्नी और मां साबित न हो सकी तो तुम भी तो अच्छे पिता और पति न बन सके.  जो व्यक्ति किसी नारी की रक्षा में स्वयं की बलि न दे सके वह व्यक्ति पूज्य कहां और कैसे हो सकता है? 22 बरस की अवधि में पनपे अपरिचय और दूरियों ने तेज की सोच को क्या इतना संकुचित कर दिया है?’

जेहन में चुभता हुआ सोच का टुकड़ा अंतर्मन के सागर में फेंक कर निवेदिता निष्प्रयत्न उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘तेज, दूरियां कुछ और नहीं बल्कि भ्रामक स्थिति होती हैं. जब दूरियां जन्म लेती हैं तो इनसान कुछ बरसों तक इसी उम्मीद में जीता है कि शायद इन दूरियों में सिकुड़न पैदा हो और सबकुछ पहले जैसा हो जाए, पर जब ऐसा नहीं होता तो समझौता करने की आदत सी पड़ जाती है. ऐसा ही हुआ है मेरे साथ भी. घुटनों चलने से ले कर श्वेता को डाक्टर बनाने में मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं पड़ी. रुकावटें आईं पर हम दोनों मांबेटी एकदूसरे का संबल बने रहे. आज श्वेता के विवाह का अनुष्ठान भी अकेले ही संपूर्ण हो जाएगा.’’

एक बार निवेदिता की पलकें नम जरूर हुईं पर उन आंसुओं में एक तरह की मिठास थी. आंसुओं के परदे से झांक कर उन्होंने अपनी ओर बढ़ती श्वेता और होने वाले दामाद को भरपूर निगाहों से देखा. श्वेता मां के कानों के पास अपने होंठ ला कर बुदबुदाई, ‘जीवन के मार्ग इतने कृपण नहीं जो कोई राह ही न सुझा सकें. मां, जिस धरती पर तुम खड़ी हो वह अब भी स्थिर है.’

Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के- भाग 3

लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

मां को खांसी आनी शुरू हो गई थी, इसलिए उस का ध्यान अकसर मां के स्वास्थ्य की तरफ चला जाता. उन्हें कफ सिरप पिला कर कुछ देर उन के पास बैठ कर उन का मन बहलाती. फिर जब वे नौवल हाथ में उठा लेतीं तो वह वहां से उठ कर अपने कमरे में चली आती.

पिता के मरने के बाद उन के अपने कमरे में विंग कमांडर सुंदर बहादुर की यादें हर तरफ मौजूद थीं. मां ने अपने पलंग के सामने एक आकर्षक युगल चित्र लगवा लिया था, जिस में वे वरदी पहने पति के साथ एक आकर्षक बनारसी साड़ी में सजीधजी खड़ी थीं.

शुरू में तो कई बार उस चित्र को देख कर किन्हीं यादों में डूब जातीं, फिर रोने लगतीं, पर तान्या की उम्र बढ़ने के साथ सब सामान्य हो गया. पति की यादों से जुड़ा दूसरा तैल चित्र, ड्राइंगरूम की दीवार पर उन्होंने लगवा ही रखा था, जिस के सामने पड़े सोफे पर बैठ कर उन्हें न जाने क्यों बड़ी तसल्ली मिलती थी.

लौकडाउन का आज 7वां दिन था. सवेरे जब तान्या मां के

कमरे में रोज की तरह चाय पीने बैठी तो मां की तरफ देख कर हैरान रह गई.

मां से चाय का घूंट सटका नहीं जा रहा था, तान्या ने अपने हाथ में पकड़ा चाय का प्याला स्टूल पर रखा और उन के करीब पहुंच कर उन की पीठ पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ मम्मा.’’

‘‘गले में खराश हो रही है और चाय का घूंट सटका नहीं जा रहा है,’’ अनिला बड़ी मुश्किल से बोल पाईं.

अगले ही पल अपने हाथ में पकड़ा कप नीचे रखते हुए अपना माथा दबाते हुए बोलीं, ‘‘तान्या, सिर में बहुत तेज दर्द शुरू हो गया है. लगता है बुखार आ जाएगा.’’

कुछ देर बाद उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ महसूस होने लगी. तकलीफ की अधिकता के कारण वे बेचैन होने लगी थीं.

ऐसी स्थिति देख कर तान्या ने निंदिया को आवाज दी. उस की आवाज सुन कर तान्या के साथ किचन में काम करती रानी भी कमरे में आ गई.

तान्या ने निंदिया को देखते ही कहा, ‘‘तुम अपने क्वार्टर जा कर, अपने पिता को तुरंत बुला लाओ,’’ फिर वह रानी की तरफ मुड़ते हुए बोली, ‘‘तुम चाय के कप यहां से उठा ले जाओ, फिर आ कर मां के पास 2 मिनट बैठो. मैं अपने कमरे में रखा अपना मोबाइल ला कर डाक्टर को फोन करती हूं.’’

इस समय उस ने डाक्टर नितिन से ही बात करना उचित समझ. एक बार तो पूरी रिंग बज गई नितिन ने फोन नहीं उठाया. दोबारा भी वही हुआ. उस ने बिना हिम्मत हारे तीसरी कौल लगाई. इस बार काल कनैक्ट हो गई.

‘‘डाक्टर नितिन मैं तान्या बोल रही हूं.’’

‘‘हां मैं पहचान गया, तुम्हारी आवाज तो मेरे जेहन में बस चुकी है.’’

उस ने अपनी मम्मी का सारांश में हाल बताया फिर बोली, ‘‘मैं अपने ड्राइवर के साथ आप के हौस्पिटल आ रही हूं.’’

‘‘तुम्हें हौस्पिटल आने की आवश्यकता नहीं है. यहां के वातावरण में सारे स्टाफ को घंटों पीपीई किट पहन कर रहना पड़ता है. तुम अपना पता मुझे एसएमएस कर दो मैं तुरंत ऐंबुलैंस भिजवाता हूं.’’

‘‘डाक्टर मैं भी मां के साथ आना चाहती हूं.’’

‘‘तान्या यह महामारी बहुत खतरनाक स्टेज पर है. संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है. तुम्हारा आना उचित नहीं है. मुझ पर विश्वास रखो. मेरे रहते तुम्हारी मम्मी का विशेष खयाल रखा जाएगा, उन के सारे टैस्ट करवाए जाएंगे… जैसा तुम ने बताया सिमटम्स तो सारे कोविड वाले हैं. मैं अडवाइज करूंगा प्लीज तुम जोखिम न लो… मम्मी को एडमिट कराने के बाद जब उन का ट्रीटमैंट शुरू हो जाएगा तो उन की पूरी रिपोर्ट देने मैं अपनी शिफ्ट खत्म होते ही तुम्हारे घर आता हूं. ओके.’’

तान्या फोन कर के पलटी तो सामने गोपाल खड़ा था, ‘‘क्या आदेश है बिटिया? मैं ने कार सैनिटाइजर कर के बाहर खड़ी कर दी है.’’

‘‘ठीक है मुझे हौस्पिटल की ऐंबुलैंस का इंतजार करना होगा. लौकडाउन के कारण प्राइवेट वाहन का मूवमैंट भी रिस्ट्रिक्टेड है,’’ कहती हुई वह मास्क लगा कर ग्लब्ज पहनती हुई मां के सामने पहुंची.

मां का बुखार पहले से तेज हो गया था. उन की हालत देखी नहीं जा रही थी. वे खांसना

चाह रही थीं पर खांस नहीं पा रही थीं. उन का हाथ बारबार गले पर जा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उन का दम घुट रहा हो.

तान्या उन्हें गरम पानी पिलाने का प्रयास कर रही थी. गोपाल समझ गया था कि यह कोविड का ही अटैक है.

करीब 30 मिनट के अंदर ऐंबुलैंस अपना सायरन बजाती हुई बंगले के मेन गेट के सामने आ खड़ी हुई. ऐंबुलैंस के अंदर सक्रिय स्टाफ ने अनिला को अपने कब्जा में ले कर फर्स्टऐड देनी शुरू कर दी. चेहरे पर औक्सीजन मास्क किट लगा दी. नर्सें अपने काम में जुट गईं और उसी ऐंबुलैंस से आए स्टाफ में से एक ने घर से बाहर हाउस अंडर आईसोलेशन का पोस्टर चिपका दिया और दूसरी नर्स ने तान्या समेत गोपाल और उस के परिवार के सुआब टैस्ट के बाद रैपिड कोरोना टैस्ट सैंपल लिए. कुछ देर बाद ऐंबुलैंस सायरन बजाती चली गई.

तान्या ने घरों की खिड़कियों से झंकते लोगों पर नजर डाली. उसे अपनी ओर देखता पा कर सब अपने स्थान से ऐसे हट गए मानो तान्या से नजर भी मिल गई तो उन्हें भी कोरोना जकड़ लेगा.

इस बीमारी ने तो सभी संबंधों पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था. ये वही पड़ोसी थे जो पिता के न रहने पर कई दिनों तक मां को सांत्वना देने आते रहे थे.

तान्या ने एक नजर अपने दरवाजे पर चिपका दिए गए पोस्टर पर डाली. पूरे घर को आइसोलेशन में रख दिया गया था और घर के सदस्यों के मूवमैंट पर पूरी तरह पाबंदी थी.

उस ने गोपाल को कार गैरेज में खड़ी कर के अपने क्वार्टर में जाने के निर्देश दिए. अपने लिए रानी से पुन: चाय बना कर लाने को कहा. फिर निंदिया के साथ मां के कमरे की हर चीज को सैनिटाइज करने में जुट गई.

कुछ देर बाद उस ने ड्राइंगरूम में बैठ कर चाय पीते हुए परिस्थितियों का आंकलन किया. जाने क्यों उसे नितिन पर विश्वास था. वह

जानती थी कि नितिन के रहते मां को सही इलाज मिल जाएगा.

कुछ सोच कर उस ने मामाजी को मां के कोरोना संक्रमित होने की खबर देने के लिए फोन लगा दिया,

उधर से मामाजी की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो तान्या कैसी हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं मामाजी पर मां को कोरोना का संदेह होने के कारण अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा. डाक्टर नितिन ने ऐंबुलैंस भिजवा दी थी.’’

‘‘डाक्टर नितिन का नाम तो मेरे कानों में पहली बार पड़ा है.’’

‘‘हां, इस बार प्लेन में उस से मुलाकात हुई थी. अच्छी हाइट का हैंडसम डाक्टर है. बहुत स्मार्ट है. यह तो अच्छा हुआ कि मुंबई एअरपोर्ट पर बिछड़ते समय उस ने अपना विजिटिंग कार्ड मुझे दे दिया था. इसलिए मम्मी की तबीयत बिगड़ते देख मैं उसे फोन लगा कर बात की तो उस ने आधे घंटे के भीतर ही अपने हौस्पिटल की ऐंबुलैंस भिजवा दी.’’

उधर से कोई आवाज नहीं आई तो तान्या बोली, ‘‘मामा मेरी आवाज सुनाई दे रही है?’’

‘‘हां यह लो मामी से बात करो और डाक्टर का मोबाइल नंबर मामी को नोट करा देना, मैं जरा तुम्हारी नानी को ये अनिला के बारे में सूचित कर दूं.

तान्या ने अपने दिल का सारा हाल अपनी दोस्त सरीखी मामी को बता दिया. बोली, ‘‘मामी, तुम कहा करती थीं न कि लंबी लड़कियों को शादी के लिए लंबे लड़के मुश्किल से मिलते हैं, पर मुझे तो आराम से सुंदर लड़का मिल गया वह भी डाक्टर.’’

कुछ देर और बातें करने के बाद डाक्टर नितिन का कौल अपने मोबाइल पर

फ्लैश होते देख कर उस ने मामी वाली कौल डिसक्नैक्ट कर  दी और नितिन की कौल रिसील करी.

नितिन ने बताया, ‘‘तान्या, तुम्हारी मां की रिपोर्ट पौजिटिव आई है, उन्हें एडमिट कर के ट्रीटमैंट शुरू कर दिया गया है. मैं ड्यूटी औफ होते ही अपने घर जा कर नहाधो कर तुम से मिल कर मां का बाकी हाल बताऊंगा. कौफी तो पीने को मिलेगी न?’’

‘‘औफ कोर्स… तुम आओ मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी और हां शायद रुड़की से मेरे निकुंज मामा का फोन तुम्हारे पास आए, मां का हालचाल पूछेंगे… तुम डिटेल से सब बता देना.’’

‘‘ठीक है बता दूंगा, लेकिन मामा को चिंता में डालने की क्या जरूरत थी? इस लौकडाउन में कोई भी आ जा तो सकता नहीं है बस अपने लोग सुन कर परेशान जरूर हो जाते हैं. चलो कोई बात नहीं मैं उन की कौल अटैंड कर लूंगा. तुम उन का नेम कार्ड मुझे एसएमएस कर देना.’’

‘‘ओके,’’ तान्या ने फोन काट दिया.

फोन काट मामा को नितिन का नेम कार्ड सैंड कर के वह डाक्टर नितिन के बारे में सोचने लगी, ‘‘कितनी जिम्मेदारी से डाक्टर अपना रोल निभाते हैं. वह तो यह जानती थी कि आजकल डाक्टर इतने प्रोफैशनल हो गए हैं कि पैसे के आगे मानवीयता को भी उन्होंने ताक पर रख

दिया है.

हौस्पिलटल का तो हाल और भी बुरा है. मर चुके आदमी को भी वैंटिलेटर पर रख कर कृत्रिम सांस के द्वारा सीना फूलतापिचकता दिखा कर हौस्पिटल बिल को बढ़ा दिया जाता है.

मगर नितिन के व्यवहार से तो ऐसा कुछ प्रतीत नहीं हुआ. उस ने खुद ही ऐंबुलैंस की व्यवस्था कर समय से मां को हौस्पिटल में एडमिट कर दिया. अब शीघ्र इलाज मिलने पर मां ठीक भी हो जाएंगी.

मान लो किसी कारण मां को कुछ हो गया तब वह क्या करेगी? इस विचार ने भी उस को घेरा, परंतु उस ने तुरंत अपने सिर को झटका और रानी को मंचूरियन और जीरा राइस बनाने के निर्देश देती हुई, एक बार और शावर बाथ लेने के लिए बाथरूम में घुस गई.

आगे पढ़ें- कुछ देर बाद उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ महसूस होने लगी. तकलीफ की अधिकता के कारण वे बेचैन होने लगी थीं…

Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के- भाग 1

लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

इसबार जब गरमी की छुट्टियों में तान्या अपनी मम्मी के साथ नानी के घर रुड़की आई तो उन्हीं दिनों उस के बड़े मामामामी भी छुट्टी ले कर आए हुए थे, इसलिए उन के साथ घूमनेफिरने और बातों में ही सारा समय बीत गया.

छुट्यिं खत्म हुईं तो दिल्ली तक तान्या के बड़े मामा निकुंज और मामी शिवाली उन्हें अपनी कार से दिल्ली एअरपोर्ट छोड़ने आए. दिल्ली से मुंबई की फ्लाइट के टाइम से 2 घंटे पहले वे पहुंच गए.

मम्मी के साथ एअरपोर्ट में प्रवेश से पहले तान्या मामी से गले मिलते हुए बोली, ‘‘देखो मामी मेरी हाइट आप के बराबर हो गई है, मुझे मामा जैसी हाइट पकड़नी है.’’

‘‘मामा तो 6 फुट के हैं और मैं उन से केवल 4 इंच छोटी हूं तेरी मम्मी की और मेरी हाइट लगभग बराबर है. तुझे पता है हम जैसी लंबी हाइट की लड़कियों को शादी के लिए लड़के बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. तू 6 फुट की हो जाएगी तो हम सब के लिए लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा.’’

‘‘मामी एक बात बताओ, नानी को, मम्मी को और आप को भी, मेरी शादी की इतनी फिक्र क्यों रहती है? मैं ने अभी तो एमएससी एविएशन पूरा किया है और अब मैं ऐविशन अफसर बनने का एडवांस कोर्स कर रही हूं. मुझे हर हालत में अपना सपना पूरा करना है और आर्मी जौइन करनी है.’’

‘‘ठीक है तेरी पढ़ाई कौन रोक रहा है तू जितना चाहती है पढ़ ले. पायलट अफसर भी बन जा पर एक समय तो आएगा जब तेरा मन किसी को लाइफपार्टनर बनाना चाहेगा… आर्मी जौइन कर भी लेगी तो शादी तो तेरी हमें करनी ही है… तेरी मामी यह कहना चाह रही है.’’ मामा ने मुसकराते हुए तान्या का समझना चाहा.

अपने पर्स से चैकिंग हेतु, एअर टिकट निकालते हुए तान्या बोली, ‘‘मामा, आप मामी की बात छोड़ो, आप तो मिलिटरी में कैप्टन हो आप बताओ आप क्या चाहते हो? क्या मैं अपना विजन बदल दूं? शादी की सोचने लगूं?’’

‘‘अब तू बड़ी हो गई है… हम सब की एक ही तो लाडली है, इसलिए हम सब हमेशा तेरे अच्छे के लिए ही सोचते हैं,’’ कहते हुए मामा ने तान्या को गले से लगा लिया.

समय हो रहा था. मामामामी को बायबाय करते हुए तान्या ने अपनी मम्मी के साथ एअरपोर्ट के अंदर प्रवेश किया. लगेज चैक इन के बाद अपने बोर्डिंग पास ले कर दोनों वेटिंग लाउंज में डिसप्ले बोर्ड के सामने सीट पर बैठ गए.

बैठते ही तान्या बोली, ‘‘मम्मा, काश हमारे रेलवे प्लेटफौर्म भी इतने नीट ऐंड क्लीन होते?’’

‘‘एक दिन वह भी आ जाएगा बेटी…’’ मां ने बड़ी तसल्ली से कहा.

पता नहीं कब आएगा वह दिन,’’ तान्या मन ही मन बुदबुदाई.

इंडिगो फ्लाइट नंबर 232 ए की उड़ान के लिए गेट नंबर 2 से ऐरोप्लेन में ऐंट्री शुरू हो गई थी.

मां के साथ चलती हुई तान्या ने ऐरोप्लेन के भीतर अपनी निर्धारित सीटों के पास पहुंच कर नंबर देखने के बाद मां को विंडो वाली सीट पर बैठा दिया.

वह जानती थी कि 3 सीटों में से विंडो वाली सीट किसी और को ऐलौट है और मां को

विंडो सीट ही पसंद है, इसलिए उस ने मां को विंडो सीट पर बैठा दिया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गई. उस ने सोच लिया था कि जो भी तीसरी सीट पर आएगा उस से रिक्वैस्ट कर लेगी कि वह किनारे वाली सीट पर बैठ जाए.

तभी स्मार्ट, 6 फुट हाइट के बेहद आकर्षक तथा हैंडसम लड़के ने किनारे वाली खाली सीट के पास रुक कर पहले तो ऊपर के कैबिन में अपना हैंडबैग रखा, फिर एक नजर सीट नंबर पर डाली और बारीबारी से तान्या और उस की मम्मी को देखने के बाद अपनी उंगली से तान्या की मम्मी को इंगित करते हुए बुदबुदाया, ‘‘मम्मी ऐंड डौटर.’’

उस की बुदबुदाहट सुन कर तान्या बोल पड़ी, ‘‘यस शी इज माई मौम अनिला, ऐंड माइसैल्फ तान्या.

‘‘तान्या, लैट मी गो टु माई अलौटेड सीट,’’ कहते हुए अनिला उठने को हुई तभी तान्या ने उन्हें बैठे रहने का इशारा कर के उस हैंडसम से कहा, ‘‘आई फील ग्लैड इफ यू कैन एडजस्ट…’’

तान्या की बात पूरी होने से पहले ही वह बोला, ‘‘लैट हर सिट औन दैट सीट तान्या,’’ इतना कह कर वह किनारे वाली सीट पर बैठ गया और बीच वाली सीट पर बैठी तान्या से बोला, ‘‘आई एम डाक्टर नितिन.’’

‘‘ओह नाइस, आर यू बिलौंग्स टु मुंबई.’’

‘‘नहीं मैं दिल्ली का रहने वाला हूं. मुंबई के नानावटी हौस्पिटल में इंटर्नशिप कर रहा हूं, मां संसार में हैं नहीं, डैडी की तबीयत बिगड़ जाने के कारण 1 हफ्ते की छुट्टी ले कर दिल्ली गया था पर तीसरे ही दिन लौटना पड़ा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि यह लास्ट फ्लाइट है. कोविड 19 के प्रकोप के कारण आज रात 12 बजे से सारी ट्रेन्स, फ्लाइट्स, इंटर स्टेट बसेज सब की गतिविधियां बंद हो रही हैं. पूरी कंट्री में आज रात 12 बजे से कंप्लीट लौकडाउन लगा दिया गया है.

‘‘मेरी छुट्टियां भी कोविड-19 की गंभीरता को देखते हुए कैंसिल कर दी गई हैं.’’

तान्या अब तक चुप थी. अचानक पूछ बैठी, ‘‘न्यूज मैं भी सुन रही थी डाक्टर, पर यह वायरस क्या इतना गंभीर है कि कंप्लीट लौकडाउन लगाना और ट्रैवलिंग तथा मूवमैंट रोक देना जरूरी था क्या?’’

‘‘हां बीमारी स्प्रैड न हो, इसलिए स्टैप तो सही है, लेकिन कितना सफल रहेगा यह आने वाला समय ही बताएगा…’’

तभी यात्रियों से अपनीअपनी सीट बेल्ट बांध लेने का अनुरोध हुआ, साथ ही एअर होस्टेज ने आवश्यक निर्देशों का प्रैक्टिकल डिस्प्ले कर के बताया और उस के बाद उस फ्लाइट ने कुछ देर रनवे पर दौड़ने के बाद उड़ान भरी. कैबिन कू्र के ऐनाउंसमैंट से पता चला कि कुल 1 घंटे 55 मिनट का दिल्ली से मुंबई तक का सफर है.

फ्लाइट ने ठीक 19:20 पर टेक औन किया. आसमान में पहुंच कर ऐरोप्लेन के एक लेबल पर आने के बाद सीट बैल्ट खोलने की इंस्ट्रंक्शन दे दी गई. रिलैक्स हो कर बैठने के बाद तान्या ने 2-3 बार मुंह घुमा कर डाक्टर नितिन की तरफ देखा. वह कानों में इयर प्लग लगाए संगीत सुनने में व्यस्त हो गया था.

हृष्टपुष्ट शरीर का मालिक, चेहरे पर तेज, निश्चिंत चेहरा, बड़ी आंखें, चौड़ा माथा, घुंघराले बाल, डैनिम की शर्ट और पैंट पहने, आंखों पर महंगा चश्मा पहने एक प्रभावशाली व्यक्तित्त्व डाक्टर नितिन.

तान्या सोचने लगी कि हौस्पिटल में सफेद कोट पहने वह कैसा लगता होगा. उस ने पहली बार एक अच्छी हाइट वाले स्मार्ट और यंग डाक्टर को देखा था. अभी इंटर्नशिप कर रहा है तो शादी तो हुई नहीं होगी हां यह हो सकता है कि अपने साथ पढ़ने वाली किसी लेडी डाक्टर से उस का अफेयर हो.

सच तो यह था कि जीवन में पहली बार तान्या को महसूस हुआ कि उस के दिल की धड़कनों के सुर बदल गए हैं. अगर कभी उस का मन शादी को राजी होगा तो ऐसा ही लड़का वह चाहेगी.

वह अपने साथ उस को ले कर पेयर मैचिंग करने लगी. उसे लगा मामी सही तो कहती हैं कि लंबे लड़के बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. इस उड़ान के साथसाथ वह अपना कल्पना की भी उड़ान भरने लगी.

मगर तान्या के विचारों से बेखबर नितिन कानों में इयर प्लग ठूंसे आंखें बंद कर के संगीत सुनने में व्यस्त था.

कहते हैं कि जब अपने को बहुत आकर्षक समझने वाली किसी खूबसूरत लड़की की तरफ स्मार्ट और हैंडसम दिखने वाला लड़का कोई विशेष तवज्जो नहीं देता है तो उस लड़की के अहं को ठेस सी लगती है.

उस ने वहां से ध्यान हटा कर दूसरी तरफ लगाना चाहा. अनिला तो चाहे ट्रेन हो या फ्लाइट, हमेशा की तरह गति पकड़ते ही नींद के झेंके लेने लगी थीं. इसीलिए उन्हें किनारे की विंडो वाली सीट पसंद थी.

एक दिन वह भी पायलट सीट पर बैठ कर इस से भी तेज गति से फाइटर प्लेन

चलाएगी. उस का ध्यान अपने सहपाठी तेजस की तरफ चला गया. उस का किसी से कंपीटिशन था तो तेजस से. क्लास में वही उस से 1 इंच ऊंची हाइट का था. अपने को उस ने ऊंची हाइट का दिखने के लिए 2 इंच ऊंची हील के सैंडल या चप्पलें पहनती थी.

तेजस के बुद्धिकौशल की वे कायल थी. अपने मन को पूरे नियंत्रण में रखते हुए वह उस से बातें तो खूब घुलमिल कर करती थी, पर कभी सीमा पार करने की हिम्मत न कर सके, ऐसा तान्या ने अपना स्वभाव बना रखा था.

इसीलिए उस के सहपाठी जो अपना दिल उसे देना तो चाहते थे पर देने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे. उन्होंने तान्या को बंद किताब की उपमा दे रखी थी. एक ऐसी किताब जिसे केवल तान्या ही खोल सकती थी.

एक बार तान्या ने ऐविएशन के एडवांस कोर्स की क्लास में अपने करीब बैठे तेजस की, उस के मुंह पर ही तारीफ कर दी, ‘‘आज तुम बहुत स्मार्ट लग रहे हो. यह बताओ कि ऐसा क्या खाते हो जिस से तुम्हारा ब्रेन एक बार में ही सब ग्रेस्प कर लेता है?’’

तेजस इतना सुनते ही उस के करीब खिसकते हुए बोला, ‘‘क्या वास्तव में आज मैं तुम्हें जंच रहा हूं?’’

‘‘यस इट इज फैक्ट. तुम पर स्माल चेक वाली ब्लैक शर्ट और औफ वाइट ट्राउजर बहुत जमता है, फिर मैचिंग  टाई पहन कर तुम बहुत अच्छे लगते हो.’’

उस दिन तेजस तान्या के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर पगला सा गया. अचानक बोल पड़ा, ‘‘तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मैं तुम से…’’

उस की बात को काटते हुए तान्या बोली, ‘‘मुझे पता है कि आगे तुम क्या कहने वाले हो, इसलिए मैं पहले से ही तुम्हें बता दे रही हूं कि मेरा यह शरीर तुम्हारे लिए नहीं बना है… यह किसी और के लिए है, कह कर वह जोर से हंसी.

तेजस जितना तान्या की तरफ खिसका था उतना ही वापस खिसक कर बैठ गया.

अचानक तान्या का ध्यान फिर नितिन की तरफ चला गया. उसे अपनी ही दुनिया में खोया देख कर इस बार उस से रहा नहीं गया. उस ने जानबूझ कर अपनी कुहनी से उस की कुहनी जोर से टकरा दी.

तान्या चाहती थी वही हुआ. नितिन का ध्यान भंग हुआ. उस ने ईयर प्लग कानों से

हटाए और फिर तान्या को देखते हुए बोला,

‘‘ऐनी प्रौब्लम?’’

तान्या ने समझ लिया था कि अगर उस ने ‘नो’ कह दिया तो यह फिर कानों में इयर प्लग लगा कर म्यूजिक सुनने में व्यस्त हो जाएगा और यह सफर भी कोई लंबा नहीं है, इसलिए वह बोली, ‘‘हां, प्रौब्लम है.’’

कानों में लगे दोनों इयर प्लग हटा कर नितिन बोला, ‘‘ओह क्या प्रौब्लम है? मुझे खुशी होगी तुम्हारी प्रौब्लम को सौल्व कर के.’’

यह सुनते ही तान्या को मौका मिल गया. वह अपनी मुसकान को जितना कातिलाना

बना सकती थी उतना बनाती हुई बोली, ‘‘छोटा सा सफर है. बाएं मम्मी तो निद्रा की गोद में चली गई हैं और आप संगीत सुनने में व्यस्त हो गए. बीच में फंसी बैठी मैं बोर हो रही हूं, आखिर करूं तो क्या करूं?’’

‘‘यदि तुम्हें भी संगीत का शौक है तो यह लो एक इयर प्लग तुम अपने कान में लगा लो. एक मैं लगा लेता हूं. दोनों मिल कर संगीत सुनते हैं.’’

‘‘अरे संगीत तो मैं घर में भी सुनती रहती हूं. मुझे तो बातें करना अच्छा लगता है और इस से समय भी अच्छा कट जाता है.

‘‘तो लो मैं इयर प्लग जेब में रख लेता हूं, मोबाइल का म्यूजिक औफ कर देता हूं… बातें करना तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है. बोलो क्या बातें करनी हैं?’’

‘‘आप अपने बारे में कुछ बताएं, फिर मुझ से मेरे बारे में कुछ पूछें.’’

‘‘ऐसा क्यों.’’

‘‘बस ऐसे ही ताकि सफर बातोंबातों में कट जाए और बोरियत भी न हो.’’

तान्या की नजरों की भाषा और भावनाएं समझते हुए नितिन मुसकराया और बोला, ‘‘प्यार भरी बातें करना चाह रही हो तो यह तभी संभव है जब मुझे अपनत्व से पुकारो.’’

‘‘अपनत्व से मतलब?’’ तान्या ने थोड़ा उस की तरफ झकते हुए पूछा?

‘‘मतलब मुझे ‘आप’ कहना छोड़ कर ‘तुम’ कहो. जैसे तुम मुझ से पूछ सकती हो कि नितिन क्या तुम्हारी शादी हो गई है. तब मैं कहूंगा, नहीं मुझे अभी कोई सूटेबल लड़की नहीं मिली है या मेरा यह भी उत्तर हो सकता है कि अभी तो मेरा कैरियर शुरू हुआ है शादी के बारे में नहीं सोचा है.’’

तान्या को उस की बातों में रस आना शुरू हो गया था, इसलिए जब बोलतेबोलते नितिन ने चुप हो कर तान्या के नयनों में अपनी नजरें समा दीं तो प्रेम के रहस्यमयी जादू ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया.

तान्या के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘डाक्टर, तुम चुप क्यो हो गए? मुझे तुम्हारा बोलना अच्छा लग रहा था.’’

‘‘तुम्हें तो अच्छा लगना शुरू हो गया, पर तुम शांत और चुप हो, तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. अब तुम कुछ अपने बारे में बताओ… अपनी शादी वगेहरा के बारे में.’’

तान्या जो अभी तक तो चाह रही थी कि नितिन उस से खूब सारी बातें करे पर जब उस ने बातें शुरू करीं तो उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अपने मन के उद्गारों को कैसे व्यक्त करे. अपने मन के विचारों की बंद किताब एकदम से कैसे खोल कर कह डाले कि वह उसे चाहने लगी है. यह भी बात ठीक नहीं रहेगी.

मगर जब नितिन ने उसे बोलने के लिए बाध्य किया तो उस ने बताना शुरू किया, ‘‘उस के पिता फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे और प्लेनक्रैश हो जाने के कारण उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. तब से मेरा सपना भी फ्लाइट अफसर बनने का है. आजकल मैं एमएससी ऐविएशन करने के बाद ऐविएशन का एडवांस कोर्स कर रही हूं. रही शादी की बात तो इस बारे में बस इतना ही जानती है कि जब भी शादी करूंगी तो तुम्हारी जैसी हाइट वाले लड़के से.’’

‘‘मेरे जैसी हाइट वाले लड़के से? इस का अर्थ हुआ कि शादी करोगी पर मुझ से नहीं. ठीक है मैं फिर किसी और को ढूंढ़ लूंगा,’’ कह कर नितिन हंसा.

उस के इतना कहते ही तान्या की हथेली स्वत: ही उस की भुजाओं से जा चिपकी और आंखें अपने कहानी कह बैठीं.

‘‘देखो तान्या, इन दिनों कोरोना का प्रकोप अपने चरम पर है और डाक्टर होने के नाते मेरा अभी तो केवल एक ही उद्देश्य है. अस्पताल पहुंच कर अपने स्टाफ के साथ संक्रमितों के

प्राणों की रक्षा करना, उस के बाद शादी के बारे

में सोचूंगा. अभी तो मैं इतना ही कह सकता हूं कि तुम्हारी जैसी हाइट की लड़कियां कम ही दिखती हैं और अगर तुम से शादी हो जाती तो हमारी जोड़ी सभी को अच्छी लगेगी,’’ कह

कर नितिन अपने बाजू को थामे तान्या की

हथेली को अपने दूसरे हाथ की हथेली से

सहलाने लगा.

तान्या को उस का सहलाना अच्छा लग रहा था. वह कुछ बोलने जा ही रही थी कि अचानक प्लेन के भीतर की सभी लाइट्स औन हो गईं और ऐनाउंसमैंट होने लगी कि शीघ्र ही हम मुंबई के छत्रपति शिवाजी एअरपोर्ट के डोमैस्टिक टर्मिनल 1 में लैंड करने वाले हैं. कृपया अपनीअपनी सीट बैल्ट बांध लें.

ऐनाउंसमैंट में उपजे शोर से अनिला की भी आंख खुल गई थी. सभी यात्री अपनीअपनी सीट बैल्ट कसने में जुट गए.

प्लेन लैंड होने के बाद जब गंतव्य पर रुका तो सभी ने उतरना शुरू किया. डाक्टर नितिन के चेहरे पर आनंद के भाव थे. तान्या उसे पसंद आ गई थी. अपना बैग कैबिन से निकाल कर वह पहले निकल गया, क्योंकि पीछे से यात्रियों ने प्लेन के ऐक्जिट गेट की तरफ खिसकना शुरू कर दिया था.

प्लेन से निकल कर तान्या अपनी मम्मी के साथ उसी ऐक्जिट गेट से बाहर लौबी में आई तो नितिन तान्या के इंतजार में रुका हुआ था. तीनों लगभग साथसाथ चलते हुए लगेज कलैक्शन कैरोसेल के घूमते पट्टे के पास आए.

अनिला वहीं पीछे वेटिंग बैंचों में से एक खाली बैंच पर बैठ गई थीं. उन्हें पता था कि चक्कर खाते कैरोसेल पर अपने सूटकेस सामने आने में समय लगता ही है. उस के पास बैठी विदेशी महिला लगातार खांस रही थी और बीचबीच में उसे 1-2 छींकें भी आ चुकी थीं.

लगातार खांसने और छींकने की आवाज सुन कर डाक्टर नितिन लपक

कर पीछे गया और अपनी जेब से एक फेस मास्क निकाल कर अनिला को देते हुए बोला, ‘‘मम्मीजी, आप इसे पहन लीजिए और यहां से हट कर उस खाली बैंच पर बैठ जाइए.’’

अनिला उठ कर उस विदेशी औरत से दूर एक खाली चेयर पर बैठ गई और नितिन अपना ब्रीफकेस लेने के लिए तान्या के पास आ कर खड़ा हो गया.

नितिन और तान्या ने अपनेअपने लगेज संभाले. दोनों की आंखें एक बार फिर मिलीं. दोनों ही मुसकराए. फिर एअरपोर्ट के एक्जिट गेट की तरफ बढ़ते हुए नितिन तान्या से बोला, ‘‘मुझे यह जर्नी हमेशा याद रहेगी. सी यू अगेन,’’ कहते हुए नितिन ने अपनी जेब से विजिटिंग कार्ड निकाला और तान्या की तरफ बढ़ाते हुए बोला, ‘‘तान्या कीप माई विजिटिंग कार्ड फौर एनी मैडिकल असिस्टैंस, इन केस औफ नीड.’’

तान्या ने हाथ बढ़ा कर कार्ड ले लिया और फिर मुसकराते हुए आंखों में एक सपना लिए नितिन को अपने से दूर जाते देखने लगी.

आगे पढ़ें- अनिला उठ कर उस विदेशी औरत से दूर एक खाली चेयर पर बैठ गई और नितिन अपना ब्रीफकेस लेने के लिए तान्या के पास आ कर खड़ा हो गया…

Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के- भाग 2

लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

नितिनने अपना ब्रीफकेस उठाया और पीछे वेटिंग बैंच पर बैठी अनिला की तरफ हाथ वेव करता हुआ तेजी से एअरपोर्ट के ऐक्जिट गेट की तरफ बढ़ गया.

सैल्फ सर्विस ट्रौली पर अपने दोनों सूटकेस और हैंड बैग लिए जब अनिला के साथ तान्या बाहर निकली तो सफेद ड्रैस में ड्राइवर गोपाल उन्हें रिसीव करने खड़ा था.

गोपाल ने लपक कर तान्या के हाथ से ट्रौली ले ली और कार पार्किंग की तरफ बढ़ गया. अपनेअपने पर्स कंधे पर लटकाए दोनों गोपाल को फौलो करते हुए पार्किंग में खड़ी कार में बैठ गईं. अनिला ने मास्क निकाल कर पर्स में रख लिया था. उन्हें मास्क पहनने में घुटन सी हो रही थी.

एअरपोर्ट से बाहर निकल कर नवी मुंबई के पलवल एरिया की पौश लोकैलिटी में बने खूबसूरत प्राइवेट बंगलौ की तरफ जाने वाली सड़क पर नीली हौंडा सिटी कार ने मुड़ कर जैसे ही गति पकड़ी, तान्या ने पूछा, ‘‘गोपाल, सुना है कि कोरोना वायरस महाराष्ट्र में तेजी से फैल रहा है. हमारे एरिया की पोजीशन क्या है?’’

आप की हाउसिंग सोसाइटी में तो अभी कोई केस नहीं निकला है पर हां आसपास की दूसरी सोसाइटियों में केसेज हैं.

‘‘मैडम आप तो जानती ही हैं कि मेरा परिवार धारावी क्षेत्र में रहता है वहां कोरोना ने कहर बरपा रखा है. उसे कंटेनमैंट जोन घोषित कर दिया गया है. 4 डैथ भी हो चुकी हैं.

‘‘मेरे बड़े भाई और भाभी भी कोरोना पौजिटिव होने के कारण हौस्पिटल में भरती हैं. कहते हैं कि इस में मास्क पहनना, सैनिटाइजर इस्तेमाल करते रहना, दूरी बना कर रखना और कुछ भी छूने के बाद लगातार 20 सैकंड तक हाथ धोने बहुत जरूरी है.

‘‘हम तो डर के मारे अपनी फैमिली को आप के दिए हुए सर्वैंट क्वार्टर में ले आए थे. सुनते हैं बड़ा खतरनाक वायरस है पहले गले को जकड़ता है फिर फेफड़ों को, आदमी तेज बुखार से परेशान हो कर दम तोड़ देता है,’’ कहतेकहते गोपाल एकदम चुप हो कर ड्राइव करता रहा.

कुछ देर खामोश ड्राइविंग के बाद गोपाल बोला, ‘‘मैडम, अभी 45 मिनट के बाद मुंबई ही नहीं पूरा भारत अपनेअपने घर में कैद हो जाएगा. सब का मूवमैंट बंद, मौल, थिएटर्स, रैस्टोरैंट, यूनिवर्सिटी, सारे कालेज और सभी ट्रेनिंग सैंटर बंद.’’

ट्रेनिंग सैंटर की बात सुनते ही उस ने तेजस को फोन लगाया, ‘‘उधर से खुशी भरा स्वर उभरा,’’ हैलो तान्या, वैलकम बैक टु मुंबई, आई वाज मिसिंग यू.’’

तान्या ने सीधे मतलब की बात पूछी, ‘‘क्या अपना ऐविएशन एडवांस स्टडी सैंटर भी क्लोज रहेगा?’’

‘‘हां, टिल फरदर इंस्ट्रक्शन.’’

‘‘ओह,’’ तान्या के मुंह से निकला.

उधर से तान्या की तरफ की खामोशी को समझते हुए तेजस बोला, ‘‘ओके तान्या, जैसे ही मुझे कोई सूचना मिलेगी मैं तुम्हें तुरंत कौल करूंगा और हां इस लौकडाउन में बहुत सावधानी से रहना. अपना ध्यान रखना. बाहर निकलने की सोचना भी नहीं. महाराष्ट्र में यह वायरस बहुत तेजी से स्प्रैड हो रहा है. सी यू गुड नाइट,’’ और फोन कट गया.

चिरपरिचित बंद शौपिंग कौंप्लैक्स के सामने से कार गुजरते देख वह समझ गई कि अभी 15 मिनट घर पहुंचने में और लगेंगे. बाइ रोड कोई 37 किलोमीटर की ड्राइव थी एअरपोर्ट से ‘पलवल’ तक की.

वह अपने ऐंड्रौयड मोबाइल फोन गूगल खोल कर कोविड-19 वायरस से संबंधित जानकारी जुटाने में लग गई. कुछ बातों ने उसे थोड़ा विचलित कर दिया.

चीन से चले इस वायरस ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है. असावधानी के कारण लोगों के जीवन को यह लील रहा है. छींकनेखांसने से जो मुंह और नाक से निकलने वाले सुआब के छींटे पड़ने या संक्रमित व्यक्ति द्वारा छुई गई किसी सतह, वस्तु, कपड़े आदि को छू लेने मात्र से यह वायरस 5 दिन बाद अपना असर दिखाना शुरू कर देता है.

इस के अलावा उस ने गूगल से अन्य जानकारी भी इकट्ठी की जैसे किस सतह पर यह वायरस कितने घंटे जीवित रहता है, इस के प्रारंभिक लक्षण क्या हैं, तुरंत उपचार के लिए क्या करना चाहिए आदि.

घर पहुंचतेपहुंचते तान्या यह समझ चुकी थी कि यह महामारी बहुत खतरनाक है.

बंगले के मेन गेट के ठीक सामने गोपाल ने कार रोकी. उतर कर पहले अनिला वाली साइड का डोर खोला.

अनिला के उतरते ही लपक कर तान्या वाली साइड का डोर खोला. दोनों उतर कर

खड़ी हुईं तो उन की नजर गोपाल की पत्नी और 14 साल की लड़की पर पड़ी. साफसुथरे कपड़ों में. गोपाल जानता था कि मालकिन से ज्यादा तान्या को साफसफाई से रहना बेहद पसंद है.

वे दोनों कार से कुछ दूर पर आ कर खड़ी हो गई थीं. गोपाल ने परिचय कराया यह मेरी पत्नी रानी और यह मेरी बेटी निंदिया,’’ फिर उस ने रानी और निंदिया को आदेश दिया कि अरे टुकुरटुकुर क्या देख रहीं यह हमारी मालकिन हैं. वह तान्या बिटिया… बढ़ कर दोनों के पैर छूओ.’’

अनिला ने तो पैर छुआ लिए पर तान्या पीछे हटते हुए बोली, ‘‘मेरे पैर छूने की जरूरत नहीं बस नमस्ते करो,’’ कह कर वह मेन गेट खुलवा कर घर के अंदर प्रवेश कर गई, रानी पीछेपीछे थी.

गोपाल ने डिक्की से पहिएदार सूटकेस निकाल कर निंदिया को अंदर ले चलने को कहा और बाकी सामान खुद लाया.

तान्या तो सीधी फ्रैश होने चली गई थी. अनिला ड्राइंगरूम में अपने उस चिरपरिचित सोफे पर बैठ गई थीं जहां से उन्हें अपने पति का बड़ा सा तैल चित्र लगातार दिखता रहता.

गोपाल सूटकेसों को उन के निर्धारित स्थान पर रख कर अनिला के

सामने आया और अपने दोनों हाथों की हथेलियां आगे फंसा कर खड़ा होते हुए बोला, ‘‘मालकिन, आप के और बिटिया के लिए गरमगरम चाय बनवाऊं या कौफी? रानी सब बनाना जानती है.’’

गोपाल की बात का उत्तर देते हुए अनिला बोलीं, ‘‘तान्या को आने दो उस की जो इच्छा होगी वह बना लेना,’’ फिर उन्होंने रानी और निंदिता पर एक गहरी नजर डाली और गोपाल से पूछा, ‘‘क्यों गोपाल, बरतन माजने वाली मंजरी और झड़ूपोंछे वाली कामिया आ रही है न?’’

‘‘नहीं मैडम, संक्रमण को देखते हुए प्रत्येक बाई का घर के अंदर आना प्रतिबंधित कर दिया गया है. पिछले 4 दिनों में मैं ने इन दोनों को सारे काम सिखा और बता दिए हैं. अपने क्वार्टर में गरम पानी से सवेरे शाम नहाना… हर काम करने से पहले और बाद में हाथ धोना मैं ने सिखा दिया है.’’

‘‘लेकिन अभी तो इन्होंने हाथ नहीं धोए हैं, निंदिया ने हमारा सूटकेस उठाया, रानी ने मेन डोर का लौक खोला, दरवाजा हाथ से धकेला और तुम ने भी एअरपोर्ट पर ट्रौली छुई, हमारा लगेज छूआ पर हाथ कहां धोए?’’ तान्या शावर बाथ लेने के बाद फ्रैश हो कर बाथरूम से निकल कर अनिला के पास आ कर बैठती हुई बोली.

तान्या की बात सुनते ही गोपाल सकपका गया. वह बाहर बगीचे वाले नल पर जा कर हाथ धोने के लिए निंदिया का हाथ पकड़ कर लपका. रानी भी पीछेपीछे जाने लगी तो तान्या सर्विस वाशबेसिन की तरफ इशारा करते हुए तीनों से बोली, ‘‘अभी तो वहां रखे साबुन से हाथ धो लो और सभी करीब 20 सैकंड तक साबुन से हाथ रगड़रगड़ कर धोएंगे.’’

वे तीनों जब हाथ धोने चले गए तो तान्या मां के सामने बैठती हुई बोली, ‘‘मां, आप भी फ्रैश हो लो, मैं ने गीजर औन कर दिया है… शावर बाथ ले लोगी तो अच्छा लगेगा. मन न करे तो गरम पानी से हाथमुंह धो लेना.’’

मां की वहां से उठने की इच्छा तो नहीं थी वह कुछ देर और अपने पति की तसवीर से मौन बातें कर लेना चाहती थीं, पर तान्या की बात थी, सफर की थकान भी थी इसलिए वे जल्दी फ्रैश हो कर आ गईं.

तान्या की कौफी पीने की इस समय इच्छा नहीं थी. उस का ग्रीन टी पीने का मन था, इसलिए रानी को उस के लिए बोल कर उस ने मां से पूछा, ‘‘आप को भूख तो नहीं लगी है?’’

अनिला ने घड़ी देखी 12:30 बज चुके थे. वे तान्या से बोली, ‘‘समय बहुत हो गया है… स्नैक चाय के साथ ले लेते हैं.’’

चाय के साथ थोड़े से स्नैक ले कर तान्या आज अनिला वाले कमरे में ही सो गई. उन के कमरे में जाते ही गोपाल ने घर का मेन डोर लोक किया और अंदर के बरामदे से होता हुआ रानी तथा निंदिया के साथ अपने क्वार्टर में जा कर लेट गया. कार उस ने गैरेज में खड़ी कर दी थी.

सवेरे वातावरण खामोश था. लौकडाउन का पहला दिन. पक्षियों ने भी मानो चहकना बंद कर दिया था. तान्या ने पूरी सतर्कता के साथ रानी और निंदिया को पूरा दिन कोविड 19 की सावधानियों के साथसाथ कई बार हाथ धोने के निर्देश दिए.

गोपाल का पूरा दिन घरबाहर के सारे उपयोग में आने वाले सर्फेस और अपने क्वार्टर के भीतर की वस्तुओं को सैनिटाइजर करने में बीता.

लौकडाउन के 5 दिन ऐसे ही बीते. इस बीच तान्या ने 2 बार तेजस से यूनिवर्सिटी के हालचाल लिए. यह पता चलते ही कि यूनिवर्सिटी अनिश्चित काल के लिए बंद कर दी गई है, वह थोड़ी निराश और उदास हो गई.

कर भी क्या सकती थी रोज न्यूज चैनल पर भारत और विदेशों में संक्रमण के बढ़ते आंकड़े देखदेख कर चिंतित होने के.

घर के बाहर जाने का सवाल ही नहीं था. अपने कमरे से निकल कर दिन में कई बार मां के पास भी जा कर बैठी, अपनी कोर्स की किताबों में भी उस का मन नहीं लगा. उस ने कई बार ऐरोप्लेन में नितिन के साथ गुजरे पलों को याद किया.

आगे पढ़ें- पिता के मरने के बाद उन के अपने कमरे में….

सावित्री और सत्य: त्याग और समर्पण की गाथा

सावित्री को नींद नहीं आ रही थी. अभी पिछले साल ही उस के पति की मौत हुई थी. उस की शादीशुदा जिंदगी का सुख महज एक साल का था. सावित्री ससुराल में ही रह रही थी. उस का पति ही बूढ़े सासससुर की एकलौती औलाद था. ससुराल और मायका दोनों ही पैसे वाले थे. सावित्री अपने मायके में 4 बच्चों में सब से छोटी और एकलौती लड़की थी. मांबाप और भाइयों की दुलारी… मैट्रिक पास होते ही सावित्री की शादी हो गई थी. पति की मौत के बाद उस का बापू उसे लेने आया था, पर वह मायके नहीं गई. उस ने बापू से कहा था कि आप के तो 3 बच्चे और हैं, पर मेरे सासससुर का तो कोई नहींहै. पहाड़ी की तराई में एक गांव में सावित्री का ससुराल था. गांव तो ज्यादा बड़ा नहीं था, फिर भी सभी खुशहाल थे. उस के ससुर उस इलाके के सब से धनी और रसूखदार शख्स थे. वे गांव के सरपंच भी थे.

पहाडि़यों पर रात में ठंडक रहती ही है. थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी. सावित्री कंबल ओढ़े लेटी थी, तभी अचानक ही जोर के धमाके की आवाज से वह चौंक पड़ी थी.

वह बिस्तर से नीचे उतर आई. शाल से अपने को ढकते हुए बगल में सास के कमरे में गई. वहां उस ने देखा कि सासससुर दोनों ही जोरदार धमाके की आवाज से जाग गए थे.

उस के ससुर स्वैटर पहन कर टौर्च व छड़ी उठा कर बाहर जाने के लिए निकलने लगे, तो सावित्री ने कहा, ‘‘बाबूजी, मैं आप को रात में अकेले नहीं जाने दूंगी. मैं भी आप के साथ चलूंगी.’’

काफी मना मरने के बावजूद सावित्री भी उन के साथ चल पड़ी थी. जब सावित्री बाहर निकली, तो थोड़ी दूरी पर ही खेतों के बीच उस ने आग की ऊंची लपटें देखीं. गांव के कुछ और लोग भी धमाके की आवाज सुन कर जमा हो चुके थे. करीब जाने पर देखा कि एक छोटे हवाईजहाज के टुकड़े इधरउधर जल रहे थे. लपटें काफी ऊंची और तेज थीं. किसी में पास जाने की हिम्मत नहीं थी. देखने से लग रहा था कि सबकुछ जल कर राख हो चुका है.

तभी सावित्री की नजर मलबे से दूर पड़े किसी शख्स पर गई, जिस के हाथपैरों में कुछ हरकत हो रही थी. वह अपने ससुर के साथ उस के नजदीक गई. कुछ और लोग भी साथ हो लिए थे.

उस नौजवान का चेहरा जलने से काला हो गया था. हाथपैरों पर भी जलने के निशान थे. वह बेहोश पड़ा था, पर रहरह कर अपने हाथपैर हिला रहा था.

तभी एक गांव वाले ने उस की नब्ज देखी और फिर नाक के पास हाथ ले जा कर सावित्री के ससुर से बोला, ‘‘सरपंचजी, इस की सांसें चल रही हैं. यह अभी जिंदा है, पर इस की हालत नाजुक दिखती है. इस को तुरंत इलाज की जरूरत है.’’

सरपंच ने कहा, ‘‘हां, इसे जल्द ही अस्पताल ले जाना होगा. प्रशासन को अभी इस की सूचना भी शायद न मिली हो. सूचना मिलने के बाद भी सुबह के पहले यहां पर किसी के आने की उम्मीद नहीं है. तुम में से कोई मेरी मदद करो. मेरा ट्रैक्टर ले कर आओ. इसे शहर के अस्पताल ले चलते हैं.’’

थोड़ी देर में ही 2-3 नौजवान ट्रैक्टर ले कर आ गए थे. उस घायल नौजवान को ट्रैक्टर से ही शहर के बड़े अस्पताल ले गए. सावित्री भी सरपंचजी के साथ शहर तक गई थी.

अस्पताल में डाक्टर ने देख कर कहा कि हालत नाजुक है. पुलिस को भी सूचित करना होगा. यह काम सरपंच ने खुद किया और डाक्टर को तुरंत इलाज शुरू करने को कहा.

इमर्जैंसी वार्ड में चैकअप करने के बाद डाक्टर ने उसे इलाज के लिए आईसीयू में भेज दिया. पर उस शख्स के पास से कोई पहचानपत्र या बोर्डिंग पास भी नहीं मिला.

हादसे की जगह के पास से एक बुरी तरह जला हुआ पर्स मिला था. उस पर्स में ऐसा कुछ भी सुबूत नहीं मिला था, जिस से उस की पहचान हो सके.

डाक्टर ने इलाज तो शुरू कर दिया था. सरपंचजी खुद गारंटर बने थे यानी इलाज का खर्च उन्हें ही उठाना था.

सुबह होते ही इस हादसे की खबर रेडियो और टैलीविजन पर फैल चुकी थी.

पुलिस भी आ गई थी. पुलिस को सारी बात बता कर उस की सहमति ले कर सरपंचजी अपनी बहू सावित्री के साथ अपने घर लौट आए थे.

शहर के एयरपोर्ट पर अफरातफरी का सा माहौल था. एयरपोर्ट शहर से 20 किलोमीटर दूर और गांव की विपरीत दिशा में था. लोग उस उड़ान से आने वाले अपने रिश्तेदारों का हाल जानने के लिए बेचैन थे.

एयरलाइंस के मुलाजिमों ने तो सभी सवारियों और हवाईजहाज के मुलाजिमों की लिस्ट लगा रखी थी, जिस में सब को ही मरा ऐलान किया गया था.

थोड़ी ही देर में टैलीविजन पर एक ब्रेकिंग न्यूज आई कि एक मुसाफिर इस हादसे में बच गया है, जिस की हालत नाजुक है, पर उस की पहचान नहीं हो सकी है. सब के मन में उम्मीद की एक किरण जग रही थी कि शायद वह उन्हीं का सगा हो.

अस्पताल में भीड़ उमड़ पड़ी थी. डाक्टर ने कहा कि अभी वह वैंटिलेटर पर है और हालत नाजुक है. मरीज के पास तो अभी कोई नहीं जा सकता है, उसे सिर्फ बाहर से शीशे से देखा जा सकता है. लोग बाहर से ही उस को देख कर पहचानने की कोशिश कर रहे थे, पर यह मुमकिन नहीं था. उस का चेहरा काफी जला हुआ था. उस पर दवा का लेप भी लगा था.

इधर सरपंच रोज सुबह अस्पताल आते थे, अकसर सावित्री भी साथ होती थी. वह उन को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, क्योंकि सरपंच खुद दिल के मरीज थे.

कुछ दिनों के बाद डाक्टर ने सरपंच से कहा, ‘‘मरीज खतरे से बाहर तो है, पर वह कोमा में जा चुका है. कोमा से बाहर निकलने में कितना समय लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है. कुछ ही दिनों में उसे आईसीयू से निकाल कर स्पैशल वार्ड में भेज देंगे.

‘‘दूसरी बात यह कि उस का चेहरा बहुत खराब हो चुका है. अगर वह कोमा से बाहर भी आता है, तो आईने में अपनेआप को देख कर उसे गहरा सदमा लगेगा.’’

सरपंच ने पूछा, ‘‘तो इस का इलाज क्या है?’’

डाक्टर बोला, ‘‘उस के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करनी होगी, पर इस में काफी खर्च होगा. अभी तक के इलाज का खर्च तो आप देते आए हैं.’’

सरपंच ने कहा, ‘‘आप पैसे की चिंता न करें. अगर यह ठीक हो जाता है, तो मैं समझूंगा कि मेरा बेटा मुझे दोबारा मिल गया है.’’

कुछ दिनों के बाद उस मरीज को स्पैशल वार्ड में शिफ्ट किया गया था. वहां उस की देखभाल दिन में तो अकसर सावित्री ही किया करती थी, लेकिन रात में सरपंच के कहने पर गांव से भी कोई न कोई आ जाता था.

तकरीबन 2 महीने बाद उस की प्लास्टिक सर्जरी भी हुई. उस आदमी को नया चेहरा मिल गया था.

इसी बीच सरपंच के ट्रैक्टर की ट्रौली पर एक बैल्ट मिली. हादसे के बाद उस नौजवान को इसी ट्रौली से अस्पताल पहुंचाया गया था. शायद किसी ने उसे आराम पहुंचाने के लिए बैल्ट निकाल कर ट्रौली के एक कोने में रख दी थी, जिस पर अब तक किसी की नजर नहीं पड़ी थी. बैल्ट पर 2 शब्द खुदे थे एसके. उस बैल्ट को देख कर सरपंच को लगा कि उस आदमी की पहचान में यह एक अहम कड़ी साबित हो.

इस की सूचना उन्होंने पुलिस को दे दी. साथ ही, लोकल टैलीविजन चैनल और रेडियो पर भी इसे प्रसारित किया गया.

अगले ही दिन एक बुजुर्ग दंपती उसे देखने अस्पताल आए थे. उन का शहर में काफी बड़ा कारोबार था, पर चेहरा बदल जाने के चलते वे उसे पहचान नहीं पा रहे थे. बैल्ट भी पुलिस को दे दी गई थी.

वहां पर उन्होंने सावित्री को देखा, जो मन लगा कर मरीज की सेवा कर रही थी. अस्पताल से निकल कर वे सीधे पुलिस स्टेशन गए और वहां उस बैल्ट को देख कर कहा कि ऐसी ही एक बैल्ट उन के बेटे की भी थी, जिस पर एसके लिखा था. यह बैल्ट जानबूझ कर उन के बेटे ने खरीदी थी, क्योंकि एसके उस के नाम ‘सत्य कुमार’ से मिलती थी. फिर भी संतुष्ट हुए बिना उसे अपना बेटा मानने में कुछ ठीक नहीं लग रहा था. फिलहाल वे अपने घर लौट गए थे. पर सरपंच का मन कह रहा था कि यह सत्य कुमार ही है.

तकरीबन एक महीना गुजर चुका था. सरपंच और सावित्री दोनों ही सत्य कुमार की देखभाल कर रहे थे.

एक दिन अचानक सावित्री ने देखा कि सत्य कुमार के होंठ फड़फड़ा रहे थे और हाथ से कुछ इशारा कर रहा था. उस ने तुरंत डाक्टर को यह बात कही.

डाक्टर ने कहा कि दवा अपना काम कर रही है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि अब वह बिलकुल ठीक हो जाएगा.

कुछ दिन बाद सावित्री उसे जब अपने हाथ से खाना खिला रही थी, सत्य कुमार ने उस का हाथ पकड़ कर कुछ बोलने की कोशिश की थी.

उसी शाम जब सावित्री अपने घर जाने के लिए उठी, तो सत्य कुमार ने उस का हाथ पकड़ कर बहुत कोशिश के बाद लड़खड़ाती जबान में बोला, ‘‘रुको, मैं यहां कैसे आया हूं? मैं तो हवाईजहाज में था. मैं तो कारोबार के सिलसिले में बाहर गया हुआ था.’’

फिर अपने बारे में उस ने कुछ जानकारी दी थी. सरपंच और सावित्री दोनों की खुशी का ठिकाना न था. उन्होंने डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने उसे चैक कर कहा, ‘‘मुबारक हो. अब यह होश में आ गया है. इस के मातापिता को सूचना दे दें.’’

सावित्री और सरपंच अस्पताल में ही रुक कर सत्य कुमार के मातापिता का इंतजार कर रहे थे. वे लोग भी खबर मिलते ही दौड़े आए थे. सत्य कुमार ने अपने मातापिता को पहचान लिया था और हादसे के पहले तक की बात बताई. उस के बाद का उसे कुछ याद नहीं था.

सत्य कुमार के पिता ने सरपंच और सावित्री का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, ‘‘आप के उपकार के लिए हम लोग हमेशा कर्जदार रहेंगे. यह लड़की आप की बेटी है न?’’

सरपंच बोले, ‘‘मेरे लिए तो बेटी से भी बढ़ कर है. है तो मेरी बहू, पर शादी के एक साल के अंदर ही मेरा एकलौता बेटा हम लोगों को अकेला छोड़ कर चला गया, पर सावित्री ने हमारा साथ नहीं छोड़ा.

‘‘मैं तो चाहता था कि यह अपने मांबाप के पास चली जाए और दूसरी शादी कर ले, पर यह तैयार नहीं थी.’’

सत्य कुमार के पिता ने कहा, ‘‘अगर आप को कोई एतराज नहीं है, तो मैं सावित्री को अपनी बहू बनाने को तैयार हूं, क्यों सत्य कुमार? ठीक रहेगा न?’’

सत्य कुमार ने सहमति में सिर हिला कर अपनी हामी भर दी थी. फिर सेठजी ने सत्य कुमार की मां की ओर देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘अरे सेठानी, तुम भी तो कुछ कहो.’’

सेठानी बोलीं, ‘‘आप लोगों ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मेरे बोलने को कुछ बचा ही नहीं है.’’

फिर वे सावित्री की ओर देख कर बोलीं, ‘‘तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’

सावित्री की आंखों से आंसू की कुछ बूंदें छलक कर उस के गालों पर आ गई थीं. वह बोली, ‘‘मैं आप लोगों की भावनाओं का सम्मान करती हूं, पर मैं अपने सासससुर को अकेला छोड़ कर नहीं जा सकती.’’

सरपंच ने सावित्री को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम सभी लोगों की खुशी इसी में है. और हम लोगों को अब जीना ही कितने दिन है, जबकि तुम्हारी सारी जिंदगी आगे पड़ी है.’’

सेठजी ने भी सरपंच की बातों को सही ठहराते हुए कहा, ‘‘तुम जब भी चाहो और जितने दिन चाहो, सरपंचजी के यहां बीचबीच में आती रहना.’’

सावित्री सेठजी से बोली, ‘‘सत्यजी को आप ने जन्म दिया है और बाबूजी ने इन्हें दोबारा जन्म दिया है, तो इन की भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है मेरे ससुरजी के लिए.’’

सेठजी बोले, ‘‘मैं मानता हूं और मेरा बेटा भी इतनी समझ रखता है. सत्य कुमार को तो 2-2 पिताओं का प्यार मिलेगा. सत्य कुमार सरपंचजी का उतना ही खयाल रखेगा, जितना वह हमारा रखता है.’’

सावित्री और सत्य दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. उन लोगों की बातें सुन कर वह कुछ संतुष्ट लग रही थी.

उस दिन सारी रात लोगों ने अस्पताल में ही बिताई थी. सावित्री के मायके में भी सरपंच ने यह बात बता दी थी. सभी को यह रिश्ता मंजूर था. सरपंच ने धूमधाम से अपने घर से ही सावित्री की शादी की थी.

खामोशी की दीवार: बेटे ने कैसे जोड़ा माता-पिता का रिश्ता

रेखा और रमन की शादीशुदा जिंदगी को पूरे पैंतीस बरस हो गए थे. एक आम गृहस्थ जिस तरीके से जीवनभर रिश्तों में बंध कर अपनी गृहस्थी चाहेअनचाहे खींचते हैं, उसी तरह से उन्होंने भी अपनी जिंदगी घसीटी. कहने को तो वे  दोनों स्वभाव से सीधे और सरल थे, लेकिन जब भी वे एकसाथ होते पता नहीं क्यों उन दोनों को एकदूसरे में कोई अच्छाई दिखाई ही नहीं देती और वे एकदूसरे की कमियां गिनाने लगते. अन्य लोगों के साथ उन का व्यवहार बहुत अच्छा रहता.

रमन को शुरू से ही रेखा का हर किसी से खुल कर बात करना बहुत खटकता. किसी भी बाहर वाले से वह  जब इतमीनान से बात करती तो रमन को बहुत  बुरा लगता. वह अपनी मंशा उसे कई बार जता भी चुके थे, लेकिन रेखा अपनी आदत से मजबूर थी. जो कोई घर आता, वह उस के साथ आराम से बतियाने  लगती.

रमन इस बात को ले कर बहुत कुढ़ते और नाराज होते. रेखा थी कि उन की एक न सुनती. लोगों से बातें करने में उसे बहुत रस आता था. यही वजह थी कि वह जीवन में अपने लिए तनाव कम लेती और दूसरों को  देती ज्यादा थी.

रमन स्वभाव से अंतर्मुखी थे. उन्हे किसी से ज्यादा बोलना पसंद न था. वे अपने काम से काम रखना ज्यादा पसंद करते. एक रेखा ही थी, जिस से वह पहले दिल की बात कह लेते थे. अब पता नहीं क्यों उन्हें उस के किरदार पर शक होने लगा था. जब भी वे उन के सामने पड़ती अच्छी बात भी बहस पर जा कर खत्म होती. यह बात उन का बेटा आशु और बेटी रिया छुटपन में ही समझ गए थे कि मम्मीपापा दोनों स्वभाव से अच्छे होते हुए भी अपनीअपनी आदतों से मजबूर हैं.

वक्त गुजर रहा था. आशु और रिया बड़े हो गए. एमएससी करते ही रिया के लिए अच्छा रिश्ता आया तो रमन ने उस के हाथ पीले कर दिए. बी. टैक कर के आशु नौकरी के लिए शहर से बाहर चला गया था.

बिटिया के ससुराल जाते ही घर सूना हो गया. घर पर रेखा से बात करने वाला  अब कोई नहीं रह गया था. पहले वह रिया से बात कर मन हलका कर लेती थी. उन का घर ज्यादा बड़ा न था. कुल मिला कर इस घर में तीन बैडरूम थे. जब कोई घर पर आता तो आशु या रिया में से किसी को अपना बेडरूम उस के साथ साझा करना पड़ता.

रोज सुबह उठने से रात  सोतेसोते तक रेखा और रमन में नोंकझोंक होती ही रहती. कुछ समय बाद आशु की शादी हो गई और वह भी परिवार के साथ बेंगलुरु शिफ्ट हो गया.

अब घर पर केवल रेखा और रमन रह गए थे. उम्र के साथ उन की आदतें भी और पक्की हो गई थीं. आशु ने अपने कमरे में एक बड़ा सा टीवी लगा रखा था. दोपहर में उस की अनुपस्थिति में रमन उसी टीवी पर अपने पसंदीदा कार्यक्रम देखना पसंद करते.

जब आशु घर पर रहता तो रेखा और रमन को एकसाथ एक ही कमरे में बैठ कर टीवी देखना पड़ता. यहां पर भी अपने पसंद के प्रोगाम को ले कर दोनों में अकसर बहस हो जाती. रेखा को धारावाहिक देखना पसंद था तो रमन को खबरें. किसी तरह से बहुत बहस  करने के बाद आपस में सामंजस्य बिठा कर उन दोनों ने टीवी देखने का समय निश्चित कर लिया था कि रात 9 बजे तक रमन खबरें देखेंगे और उस के बाद रेखा अपने मनपसंद धारावाहिक.

आशु के बैंगलुरू जाने के बाद सूने घर में अब केवल दोनों की नोंकझोंक की आवाजें सुनाई देतीं. एक दिन रेखा बोली, “घर पर बच्चे  नहीं हैं. अब तुम आशु के कमरे में बैठ कर आराम से टीवी देख सकते हो.”

रमन ने घूर कर रेखा को देखा, तो वह बोली, “ऐसे क्यों घूर रहे हो?” “तुम से ऐसी समझदारी वाली बात की उम्मीद नहीं थी. वैसे, तुम यह इसीलिए कह रही हो, जिस से तुम्हें भी टीवी देखने में परेशानी न हो और मुझे भी.”

रमन उसी दिन से आशु के कमरे में बैठ कर आराम से टीवी देखने लगे और रेखा अपने कमरे में धारावाहिकों का आनंद लेती. धीरेधीरे रमन ने आशु के कमरे में अपना और  सामान भी व्यवस्थित कर दिया. कई बार टीवी देखतेदेखते वे वहीं सो जाते. रेखा रात ठीक 10 बजे टीवी और लाइट बंद कर के लेट जाती.

एक दिन रमन बोले, “मैं ने सोच लिया है कि अब मैं टीवी वाले कमरे में ही सोया करूंगा.” “क्यों ऐसी क्या बात हो गई, जो नौबत यहां तक आ गई?” रेखा ने पलट कर पूछा. “कई बार रात को देर तक क्रिकेट मैच चलता रहता है. उसे देखने में मुझे सोने में देर हो जाती है.”

“जैसा तुम्हें ठीक लगे. तुम ने जो सोच लिया है, वह तो कर के रहोगे,” रेखा बोली. रमन ने इस समय उस से उलझना ठीक नहीं समझा और अपना बिस्तर आशु के कमरे में शिफ्ट कर दिया.

इस घर पर रहने वाले दो लोगों ने अब अपने को अलगअलग कमरे में व्यवस्थित कर लिया था. इस की वजह से अब दोनों का एकदूसरे से सामना कम ही होता. रमन चाय नहीं पीते थे. रेखा सुबह उठ कर पहले अपने लिए चाय बनाती और आध्यात्मिक प्रवचन सुनते हुए उस का आनंद लेती और रमन बरामदे में बैठ कर मजे से अखबार पढ़ते.

सुबह मेज पर नाश्ता करने के लिए दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करते. अब रमन ने रेखा के बनाए खाने में मीनमेख निकालना कम कर दिया था. रेखा नाश्ता करने के बाद अपने कामों में लग जाती और रमन टीवी पर व्यस्त हो जाते. दोपहर में खाने की मेज पर लंच करते हुए उन में कभी किसी बात को ले कर थोड़ीबहुत नोंकझोंक जरूर हो जाती, लेकिन अब उस में उतना तीखापन  नहीं रह गया था, जितना पहले हुआ करता था.

लंच के बाद वे फिर अपनेअपने कमरे में आ कर इतमीनान से टीवी देखते और आराम करते. कुछ ही महीने में उन दोनों को एकदूसरे से दूरी बना कर जिंदगी जीने की आदत सी पड़ गई. रेखा ज्यादा सुकून में थी. अब रमन उस की हर बात में दखलअंदाजी नहीं करते.  उन्हें अब इस बात से भी ज्यादा मतलब नहीं था कि वह अपने कमरे में बैठ कर फोन पर किस से बातें करती है? रमन को भी घर पर अपने लिए एक अलग जगह मिल गई थी जिस में वह अखबार पढ़ने, टीवी देखने और मोबाइल फोन के साथ बहुत खुश थे. पूरे सात महीने बाद आशु घर आया. उस ने देखा कि पापा ने उस का सामान ऊपर की मंजिल में दीदी के कमरे में शिफ्ट कर दिया था और खुद उस के कमरे में रह रहे थे.

यह देख कर आशु बोला, “पापा, आप ने बहुत अच्छा किया. कम से कम इसी बहाने इस घर के 2 कमरे तो आबाद रहते हैं.” “हां बेटा, मुझे भी लगा कि कमरे खाली पड़े हैं, तो क्यों न उस का सदुपयोग कर खुल कर रहा जाए?”

आशु ऊपर कमरे में जा कर सो गया. सुबह उठ कर उस ने महसूस किया कि घर में एकदम शांति थी. पहले जैसी बात होती तो सुबह उठते ही मम्मीपापा की जोरजोर की आवाजें सुनाई देतीं. आज पहली बार सुबह के समय घर पर एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था. बचपन से ले कर हमेशा इस घर में सुबह उठते ही  मम्मीपापा की आवाज सुनाई देने लगती थी. सो कर उठते ही वे दोनों बहस पर उलझे रहते. उन्होंने कभी किसी की परवाह नहीं  की कि कोई उन के बारे में क्या सोचता है? लेकिन इस बार माहौल बिलकुल बदला हुआ था. मेज पर नाश्ता करते हुए भी मम्मीपापा एकदूसरे से उलझने के बजाय उसी से बात कर रहे थे. अब उन के लिए एकदूसरे की उपस्थिति कोई मायने नहीं रख रही थी.

आशु को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक इतना बड़ा परिवर्तन कैसे आ गया? नाश्ता करने के बाद पापा कमरे में जा कर टीवी देखने लगे. मम्मी भी थोड़ी देर उस से बात करने के बाद घर के कामों में व्यस्त हो गईं. जब उन्हें फुरसत मिली, तो वे अपनी पसंद का धारावाहिक देखने लगीं.

दोपहर में खाने पर वे तीनों साथ बैठे थे. आशु बोला, “मम्मी, अब घर कितना सूना लगता है.””हां बेटे, घर पर रौनक तो बच्चों से रहती है. तुम दोनों अब बाहर चले गए हो, तो घर भी सूना हो गया.” आशु के जी में आया कि कह दे, ‘मम्मी रौनक तो आप दोनों की बहस से रहती थी. अब आप लोग शांत हो गए हैं, तो घर की रौनक ही चली गई.’

असली बात मन में दबा कर वह बोला, “मैं और दीदी तो वैसे भी पढ़ाई में लगे रहते थे. हमें इतना सब बोलने की फुरसत कहां थी?” इस बार घर आ कर आशु ने महसूस किया कि पहले आपसी मतभेदों के बावजूद मम्मीपापा के मध्य हमेशा एक आत्मीयता का रिश्ता बना रहता था. नोंकझोंक के बावजूद आत्मीयता अपनी जगह पर बनी रहती थी.  इस सन्नाटे में वह भी कहीं गुम हो  गई थी. अब दोनों को एकदूसरे से ज्यादा।मतलब न था. केवल खाना खाने और किसी से मिलने जाने के लिए दोनों साथ उठतेबैठते, वरना वे दोनों अपनी अलग जिंदगी जी रहे थे और उसी में खुश भी लग रहे थे.

आशु ने होश संभालने पर कई बार महसूस किया था कि मम्मी के मन में हमेशा इस तरह की ही जिंदगी जीने की तमन्ना थी. आज  वह उसी जिंदगी का मजा ले रही थीं, पर उन्हें इस की कीमत भी चुकानी पड़ रही थी. इन सब में वह पापा से काफी दूर होती जा रही थीं.  दोनों अपने में खोए हुए थे. एकदूसरे की भावनाओं से अब उन्हें ज्यादा मतलब न था. पहले वह साथ बैठ कर बहस करते हुए आत्मीयता की बातें भी कर लिया करते थे. भले ही उन दोनों की बातों मे छत्तीस का आंकड़ा रहता, लेकिन वे एकदूसरे का भी पूरा खयाल रखते थे. मम्मी को जरा सा कुछ हो जाता, तो पापा बड़े परेशान हो जाते. पापा की तबीयत थोड़ा भी खराब होती, तो मम्मी बड़बड़ करते हुए भी उन्हें ढेरों नसीहतें दे डालती और उन की पूरी देखभाल करती थी.

अब उन के रिश्ते की ताजगी और गरमाहट कहीं खो गई थी और उस में बहुत ठंडापन आ गया था. जीवन के इस पड़ाव में जब उन्होंने एकदूसरे के सुखदुख का सब से ज्यादा खयाल रखना था, तब वे अपनीअपनी दुनिया में ज्यादा व्यस्त हो कर एकदूसरे के प्रति उदासीन हो गए थे.

आशु को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था. उस ने यह बात रोमा को भी बताई. दोनों ने इस बारे में विचार किया. बहुत सोचसमझ कर वह बोला, “मम्मी, मैं चाहता हूं कि आप दोनों कुछ दिन के लिए हमारे साथ रहें.”

“लेकिन बेटा, यहां घर छोड़ कर जाना भी तो ठीक नहीं है.””घर कौन से कोई उठा कर ले जाएगा. थोड़ा सामान है उस की देखभाल के लिए बगल में शर्मा आंटी से कह देंगे. वे कभीकभी घर खोल कर देख लेंगी. बाकी यहां ऐसा है भी क्या ?”

“अपना घर तो अपना होता है बेटे.””आप की बात सही है मम्मी. मेरा घर भी तो आप का ही घर है. बच्चे भी आप को मिस कर रहे हैं. मैं चाहता हूं कि कुछ समय के लिए मेरे साथ चलें. मैं आप को ले जाने आया हूं.”

“यह बात तुम पहले बता देते, तो अच्छा रहता बेटे.””मैं आप को सरप्राइज देना चाहता था.”रेखा और रमन बेटे की बात को न टाल सके. उस ने एक हफ्ते की छुट्टी और बढ़ा ली और उस के बाद घर को ताला डाल कर आशु मम्मीपापा को ले कर बैंगलुरू आ गया. वहां  उस के पास 3 बैडरूम वाला फ्लैट था. एक कमरे में वह और उस की पत्नी रीमा, तो दूसरे में बच्चे ऊधम मचाते. आशु ने तीसरे बैडरूम में मम्मीपापा की व्यवस्था कर दी थी.

महीनों से खुले घर में स्वछंद रहने की आदत के बाद रेखा और रमन को यह कमरा बहुत छोटा लगा. पर यहां मजबूरी थी. वे बेटे से कुछ कह भी नहीं सकते थे. वे  अपने को इस कमरे में  किसी तरह एडजस्ट कर रहे थे. आशु ने  पूछा, “मम्मी कोई तकलीफ तो नहीं है?”

” नहीं बेटा. अपनों के बीच में कैसी तकलीफ? बच्चों के साथ बहुत अच्छा लग रहा है.””उन्हें भी आप का साथ बहुत अच्छा लगता है मम्मी.””बेटा, एक बात कहनी थी.””कहो ना पापा, यहां कोई परेशानी है?””मैं चाहता था कि एक टीवी इस कमरे में भी लगा देते. समय काटना आसान हो जाता.”

“पापा, यहां पर समय काटने की दिक्कत कहां है? बच्चे हैं, मैं और रीमा हैं और साथ में मम्मी. इतने लोगों के साथ कमरे में टीवी की जरूरत क्या है? बैठक में लगा तो है. आप जब मरजी हो, वहां पर बैठ कर टीवी देख सकते हैं.”

“वहां पर बच्चे अपने पसंद के कार्टून देखते रहते हैं.” “तो क्या हुआ? दिनभर आप टीवी देख लेना. शाम को बच्चे अपनी पसंद के प्रोगाम देख लेंगे. हम भी तो बचपन में ऐसा ही किया करते थे. क्यों मम्मी?”आशु बोला.

“तुम ठीक कहते हो बेटा. उस के बाद रमन ने आगे कुछ नहीं कहा. यही परेशानी रेखा को भी हो रही थी. वह रात को अपने पसंद के धारावाहिक बहुत मिस करती, लेकिन कुछ कह नहीं पा रही थी.

समय काटने के लिए शाम होते ही वे दोनों थोड़ी देर नीचे टहलने चले जाते और उस के बाद खाना खा कर रात को अपने कमरे में आ जाते. शुरुआत में दोनों को एक ही बैड पर एकदूसरे से काफी परेशानी हो रही थी. कभी रमन के खर्राटे तो कभी पेट की गैस रेखा को  परेशान कर रहे थे, लेकिन मजबूरी थी यहां पर इतनी जगह नहीं थी कि वह कहीं और जा कर सो पाती. यह बात वह बहू को भी नहीं कह सकती थी.

शाम के समय रमन को टीवी के बिना समय काटना मुश्किल हो रहा था. मजबूरन अब वे एकदूसरे से बातें कर के अपना समय गुजारने की कोशिश करने लगे. वर्षों की चिकचिक और आपसी बहस कुछ महीनों पहले लगभग खत्म हो गई थी. बेटेबहू के सामने वह फिर से उसी राह पर नहीं जा सकते थे. अब वे नए सिरे से शुरुआत कर एकदूसरे से अच्छी तरह बात करने की कोशिश कर रहे थे. बेटे के घर पर  लड़ने के लिए कोई मुद्दा भी न था.

रमन यहां बहू के बनाए खाने में कोई कमी भी नहीं निकाल सकते थे. बेटे के घर पर रहते हुए उन्हें काम की भी कोई परेशानी नहीं थी. आशु और रीमा उन्हें यहां कुछ काम न करने देते. बस यहां परेशानी एक ही बात की थी, वह थी समय काटने की. बच्चे दिन में थोड़ी देर उन के साथ बातें करते और खेलते. उस के बाद वे अपना होमवर्क निबटाते. आशु शाम को थकाहारा घर लौटता. थोड़ी देर मम्मीपापा के साथ बात कर के फिर वह अपने बीवीबच्चों के साथ अपना वक्त गुजारता.

रेखा और रमन को यहां आए हुए एक महीना हो गया था. उन्हें अपने पुराने घर की याद सताने लगी थी. एक दिन रमन ने दबी जबान में यह बात आशु से कह भी दी, “बेटा, हमें यहां आए बहुत समय हो गया है.” “कहां पापा… अभी एक महीना ही तो हुआ है.” “बेटा, एक महीने का समय कम नहीं होता भला.”

“जानता हूं पापा, पर इतना ज्यादा भी नहीं होता कि आप यहां हमारे साथ न रह सकें.” अब आगे बोलने की कोई गुंजाइश न थी. मजबूरन रमन और रेखा को यहां पर एक महीना और रहना पड़ा. इतने समय में रमन और रेखा आपसी मनमुटाव भुला कर एकसाथ एक कमरे में रहने के अभ्यस्त हो गए.

वे शाम को एकसाथ टहलते और साथ बैठ कर अपनी सुखदुख की बातें किया करते. यह देख कर आशु को बहुत अच्छा लगता. खाना खाने के बाद भी वे आपस में देर तक बतियाते रहते.

2 महीने बाद आशु उन्हें छोड़ने खुद घर आया. इतने समय बाद बच्चों और बेटेबहू से दूर जाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था. आशु के पास ज्यादा छुट्टी नहीं थी. 2 दिन घर की साफसफाई में बीत गए थे. मम्मीपापा के साथ मिल कर उस ने सारा घर व्यवस्थित कर दिया था. जाने से पहले उस ने दोपहर में उन के लिए टीवी भी चालू करवा दिए थे. उन से विदा लेते समय उसे बहुत बुरा लग रहा था. आशु के परिवार के साथ 2 महीने बिताने के बाद अब रमन और रेखा को यहां अकेले रहने का अवसर मिल रहा था.

आशु की रात की ट्रेन थी. वह घर से खाना खा कर निकला था. आशु के जाते ही रमन अपने कमरे में आ गए और रेखा अपने. इतने समय बाद उन्होंने अपनेअपने कमरे में टीवी चलाए. आज अकेले टीवी देखने में रमन का मन नहीं लगा. जरा देर बाद टीवी बंद कर के वे रेखा के कमरे में आ गए और बोले, “आज बच्चों के बगैर बड़ा खराब लग रहा है.”

“तुम ठीक कह रहे हो. इस उम्र में परिवार का साथ बहुत जरूरी होता है. अब हमें उन के साथ ही रहना चाहिए.””तुम्हारी बात सही है, लेकिन जब तक हाथपैर चल रहे हैं, तब तक हमें उन के ऊपर पूरी तरह आश्रित नहीं होना चाहिए. उन्हें भी जिंदगी अपने ढंग से जीने का मौका देना चाहिए,” रमन बोले.

वे दोनों साथ बैठ कर आपस में बातें करने लगे, तो टीवी देखने का खयाल ही दिमाग से उतर गया. रेखा बोली, “घड़ी देखो, 10 बजने वाले हैं. अब हमें सो जाना चाहिए.”रमन उठ कर दूसरे कमरे में आ गए. थोड़ी देर में वे वापस रेखा के कमरे में आ गए.

” क्या हुआ?””अकेले कमरे में अच्छा नहीं लगा. क्या मैं भी यहीं सो जाऊं?””कैसी बातें करते हो? यह घर तुम्हारा है. इस में पूछने की क्या जरूरत है ?” रेखा बोली, तो रमन खुश हो गए और वहीं लेट गए. कुछ ही देर में उन के खर्राटे गूंजने लगे. अब रेखा को उन के खर्राटे जरा भी नहीं अखर रहे थे.

बैंगलुरू वापस आ कर आशु भी आश्वस्त हो गया था. उस ने मम्मीपापा के बीच खड़ी हो रही खामोशी की दीवार को तुरंत गिरा दिया. रेखा और रमन को अब एकदूसरे से कोई शिकायत न थी. इस उम्र में एकदूसरे से नजदीकियां उन्हें नई ऊर्जा दे रही थी.

प्यार पर पूर्णविराम: जब लौटा पूर्णिमा का अतीत

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कौन जाने: व्यर्थ की पीड़ा, द्वेष से क्यों छिनता है सुख चैन?

कितना क्षणिक है मानव जीवन. अगर मनुष्य जीवन का यह सार जान ले तो व्यर्थ की पीड़ा, द्वेष में अपने आज का सुखचैन न गंवाए. कितनी चिंता रहती थी वीना को अपने घर की, बच्चों की. लेकिन न वह, न कोई और जानता था कि जिस कल की वह चिंता कर रही है वह कल उस के सामने आएगा ही नहीं.

घर में मरघट सी चुप्पी थी. सबकुछ समाप्त हो चुका था. अभी कुछ पल पहले जो थी, अब वो नहीं थी. कुछ भी तो नहीं हुआ था, उसे. बस, जरा सा दिल घबराया और कहानी खत्म.

‘‘क्या हो गया बीना को?’’

‘‘अरे, अभी तो भलीचंगी थी?’’

सब के होंठों पर यही वाक्य थे.

जाने वाली मेरी प्यारी सखी थी और एक बहुत अच्छी इनसान भी. न कोई तकलीफ, न कोई बीमारी. कल शाम ही तो हम बाजार से लंबीचौड़ी खरीदारी कर के लौटे थे.

बीना के बच्चे मुझे देख दहाड़े मार कर रोने लगे. बस, गले से लगे बच्चों को मैं मात्र थपक ही रही थी, शब्द कहां थे मेरे पास. जो उन्होंने खो दिया था उस की भरपाई मेरे शब्द भला कैसे कर सकते थे?

इनसान कितना खोखला, कितना गरीब है कि जरूरत पड़ने पर शब्द भी हाथ छुड़ा लेते हैं. ऐसा नहीं कि सांत्वना देने वाले के पास सदा ही शब्दों का अभाव होता है, मगर यह भी सच है कि जहां रिश्ता ज्यादा गहरा हो वहां शब्द मौन ही रहते हैं, क्योंकि पीड़ा और व्यथा नापीतोली जो नहीं होती.

‘‘हाय री बीना, तू क्यों चली गई? तेरी जगह मुझे मौत आ जाती. मुझ बुढि़या की जरूरत नहीं थी यहां…मेरे बेटे का घर उजाड़ कर कहां चली गई री बीना…अरे, बेचारा न आगे का रहा न पीछे का. इस उम्र में इसे अब कौन लड़की देगा?’’

दोनों बच्चे अभीअभी आईं अपनी दादी का यह विलाप सुन कर स्तब्ध रह गए. कभी मेरा मुंह देखते और कभी अपने पिता का. छोटा भाई और उस की पत्नी भी साथ थे. वो भी क्या कहते. बच्चे चाचाचाची से मिल कर बिलखने लगे. शव को नहलाने का समय आ गया. सभी कमरे से बाहर चले गए. कपड़ा हटाया तो मेरी संपूर्ण चेतना हिल गई. बीना उन्हीं कपड़ों में थीं जो कल बाजार जाते हुए पहने थी.

‘अरे, इस नई साड़ी की बारी ही नहीं आ रही…आज चाहे बारिश आए या आंधी, अब तुम यह मत कह देना कि इतनी सुंदर साड़ी मत पहनो कहीं रिकशे में न फंस जाए…गाड़ी हमारे पास है नहीं और इन के साथ जाने का कहीं कोई प्रोग्राम नहीं बनता.

‘मेरे तो प्राण इस साड़ी में ही अटके हैं. आज मुझे यही पहननी है.’

हंस दी थी मैं. सिल्क की गुलाबी साड़ी पहन कर इतनी लंबीचौड़ी खरीदारी में उस के खराब होने के पूरेपूरे आसार थे.

‘भई, मरजी है तुम्हारी.’

‘नहीं पहनूं क्या?’ अगले पल बीना खुद ही बोली थी, ‘वैसे तो मुझे इसे नहीं पहनना चाहिए…चौड़े बाजार में तो कीचड़ भी बहुत होता है, कहीं कोई दाग लग गया तो…’

‘कोई सिंथेटिक साड़ी पहन लो न बाबा, क्यों इतनी सुंदर साड़ी का सत्यानास करने पर तुली हो…अगले हफ्ते मेरे घर किटी पार्टी है और उस में तुम मेहमान बन कर आने वाली हो, तब इसे पहन लेना.’

‘तब तो तुम्हारी रसोई मुझे संभालनी होगी, घीतेल का दाग लग गया तो.’

किस्सा यह कि गुलाबी साड़ी न पहन कर बीना ने वही साड़ी पहन ली थी जो अभी उस के शव पर थी. सच में गुलाबी साड़ी वह नहीं पहन पाई. दाहसंस्कार हो गया और धीरेधीरे चौथा और फिर तेरहवीं भी. मैं हर रोज वहां जाती रही. बीना द्वारा संजोया घर उस के बिना सूना और उदास था. ऐसा लगता जैसे कोई चुपचाप उठ कर चला गया है और उम्मीद सी लगती कि अभी रसोई से निकल कर बीना चली आएगी, बच्चों को चायनाश्ता पूछेगी, पढ़ने को कहेगी, टीवी बंद करने को कहेगी.

क्याक्या चिंता रहती थी बीना को, पल भर को भी अपना घर छोड़ना उसे कठिन लगता था. कहती कि मेरे बिना सब अस्तव्यस्त हो जाता है, और अब देखो, कितना समय हो गया, वहीं है वह घर और चल रहा है उस के बिना भी.

एक शाम बीना के पति हमारे घर चले आए. परेशान थे. कुछ रुपयों की जरूरत आ पड़ी थी उन्हें. बीना के मरने पर और उस के बाद आयागया इतना रहा कि पूरी तनख्वाह और कुछ उन के पास जो होगा सब समाप्त हो चुका था. अभी नई तनख्वाह आने में समय था.

मेरे पति ने मेरी तरफ देखा, सहसा मुझे याद आया कि अभी कुछ दिन पहले ही बीना ने मुझे बताया था कि उस के पास 20 हजार रुपए जमा हो चुके हैं जिन्हें वह बैंक में फिक्स डिपाजिट करना चाहती है. रो पड़ी मैं बीना की कही हुई बातों को याद कर, ‘मुझे किसी के आगे हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता. कम है तो कम खा लो न, सब्जी के पैसे नहीं हैं तो नमक से सूखी रोटी खा कर ऊपर से पानी पी लो. कितने लोग हैं जो रात में बिना रोटी खाए ही सो जाते हैं. कम से कम हमारी हालत उन से तो अच्छी है न.’

जमीन से जुड़ी थी बीना. मेरे लिए उस के पति की आंखों की पीड़ा असहनीय हो रही थी. घर कैसे चलता

है उन्होंने कभी मुड़ कर भी नहीं देखा था.

‘‘क्या सोच रही हो निशा?’’ मेरे पति ने कंधे पर हथेली रख मुझे झकझोरा. आंखें पोंछ ली मैं ने.

‘‘रुपए हैं आप के घर में भाई साहब, पूरे 20 हजार रुपए बीना ने जमा कर रखे थे. वह कभी किसी से कुछ मांगना नहीं चाहती थी न. शायद इसीलिए सब पहले से जमा कर रखा था उस ने. आप उस की अलमारी में देखिए, वहीं होंगे 20 हजार रुपए.’’

बीना के पति चीखचीख कर रोने लगे थे. पूरे 25 साल साथ रह कर भी वह अपनी पत्नी को उतना नहीं जान पाए थे जितना मैं पराई हो कर जानती थी. मेरे पति ने उन्हें किसी तरह संभाला, किसी तरह पानी पिला कर गले का आवेग शांत किया.

‘‘अभी कुछ दिन पहले ही सारा सामान मुझे और बेटे को दिखा रही थी. मैं ने पूछा था कि तुम कहीं जा रही हो क्या जो हम दोनों को सब समझा रही हो तो कहने लगी कि क्या पता मर ही जाऊं. कोई यह तो न कहे कि मरने वाली कंगली ही मर गई.

‘‘तब मुझे क्या पता था कि उस के कहे शब्द सच ही हो जाएंगे. उस के मरने के बाद भी मुझे कहीं नहीं जाना पड़ा. अपने दाहसंस्कार और कफन तक का सामान भी संजो रखा था उस ने.’’

बीना के पति तो चले गए और मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी सोचती रही. जीवन कितना छोटा और क्षणिक है. अभी मैं हूं  पर क्षण भर बाद भी रहूंगी या नहीं, कौन जाने. आज मेरी जबान चल रही है, आज मैं अच्छाबुरा, कड़वामीठा अपनी जीभ से टपका रही हूं, कौन जाने क्षण भर बाद मैं रहूं न रहूं. कौन जाने मेरे कौन से शब्द आखिरी शब्द हो जाने वाले हैं. मेरे द्वारा किया गया कौन सा कर्म आखिरी कर्म बन जाने वाला है, कौन जाने.

मौत एक शाश्वत सचाई है और इसे गाली जैसा न मान अगर कड़वे सत्य सा मान लूं तो हो सकता है मैं कोई भी अन्याय, कोई भी पाप करने से बच जाऊं. यही सच हर प्राणी पर लागू होता है. मैं आज हूं, कल रहूं न रहूं कौन जाने.

मेरे जीवन में भी ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं जिन्हें मैं कभी भूल नहीं पाती हूं. मेरे साथ चाहेअनचाहे जुड़े कुछ रिश्ते जो सदा कांटे से चुभते रहे हैं. कुछ ऐसे नाते जिन्होंने सदा अपमान ही किया है.

उन के शब्द मन में आक्रोश से उबलते रहते हैं, जिन से मिल कर सदा तनाव से भरती रही हूं. एकाएक सोचने लगी हूं कि मेरा जीवन इतना भी सस्ता नहीं है, जिसे तनाव और घृणा की भेंट चढ़ा दूं. कुदरत ने अच्छा पति, अच्छी संतान दी है जिस के लिए मैं उस की आभारी हूं.

इतना सब है तो थोड़ी सी कड़वाहट को झटक देना क्यों न श्रेयस्कर मान लूं.  क्यों न हाथ झाड़ दूं तनाव से. क्यों न स्वयं को आक्रोश और तनाव से मुक्त कर लूं. जो मिला है उसी का सुख क्यों न मनाऊं, क्यों व्यर्थ पीड़ा में अपने सुखचैन का नाश करूं.

प्रकृति ने इतनी नेमतें प्रदान की हैं  तो क्यों न जरा सी कड़वाहट भी सिरआंखों पर ले लूं, क्यों न क्षमा कर दूं उन्हें, जिन्होंने मुझ से कभी प्यार ही नहीं किया. और मैं ने उन्हें तत्काल क्षमा कर दिया, बिना एक भी क्षण गंवाए, क्योंकि जीवन क्षणिक है न. मैं अभी हूं, क्षण भर बाद रहूं न रहूं, ‘कौन जाने.’

हैप्पी न्यू ईयर: नए साल में आखिर क्या करने जा रही थी मालिनी

दिसंबर का महीना था. किट्टी पार्टी इस बार रिया के घर थी. अपना हाऊजी का नंबर कटने पर भी किट्टी पार्टी की सब से उम्रदराज 55 वर्षीय मालिनी हमेशा की तरह नहीं चहकीं, तो बाकी 9 मैंबरों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे से पूछा कि आंटी को क्या हुआ है? फिर सब ने पता नहीं में अपनाअपना सिर हिला दिया. सब में सब से कम उम्र की सदस्या थी रिया. अत: उसी ने पूछा, ‘‘आंटी, आज क्या बात है? इतने नंबर कट रहे हैं आप के फिर भी आप चुप क्यों हैं?’’

फीकी हंसी हंसते हुए मालिनी ने कहा, ‘‘नहींनहीं, कोई बात नहीं है.’’

अंजलि ने आग्रह किया, ‘‘नहीं आंटी, कुछ तो है. बताओ न?’’

‘‘पवन ठीक है न?’’ मालिनी की खास सहेली अनीता ने पूछा.

‘‘हां, वह ठीक है. चलो पहले यह राउंड खत्म कर लेते हैं.’’

हाऊजी का पहला राउंड खत्म हुआ तो रिया ने पूछा, ‘‘अरे, आप लोगों का न्यू ईयर का क्या प्लान है?’’

सुमन ने कहा, ‘‘अभी तो कुछ नहीं, देखते हैं सोसायटी में कुछ होता है या नहीं.’’

नीता के पति विनोद सोसायटी की कमेटी के मैंबर थे. अत: उस ने कहा, ‘‘विनोद बता रहे थे कि इस बार कोई प्रोग्राम नहीं होगा, सब मैंबर्स की कुछ इशूज पर तनातनी चल रही है.’’ सारिका झुंझलाई, ‘‘उफ, कितना अच्छा प्रोग्राम होता था सोसायटी में… बाहर जाने का मन नहीं करता… उस दिन होटलों में बहुत वेटिंग होती है और ऊपर से बहुत महंगा भी पड़ता है. फिर जाओ भी तो बस खा कर लौट आओ. हो गया न्यू ईयर सैलिब्रेशन. बिलकुल मजा नहीं आता. सोसायटी में कोई प्रोग्राम होता है तो कितना अच्छा लगता है.’’

रिया ने फिर पूछा, ‘‘आंटी, आप का क्या प्लान है? पवन के पास जाएंगी?’’

‘‘मुश्किल है, अभी कुछ सोचा नहीं है.’’

हाऊजी के बाद सब ने 1-2 गेम्स और खेले, फिर सब खापी कर अपनेअपने घर आ गईं.मालिनी भी अपने घर आईं. कपड़े बदल कर चुपचाप बैड पर लेट गईं. सामने टंगी पति शेखर की तसवीर पर नजर पड़ी तो आंसुओं की नमी से आंखें धुंधलाती चली गईं…

शेखर को गए 7 साल हो गए हैं. हार्टअटैक में देखते ही देखते चल बसे थे. इकलौता बेटा पवन मुलुंड के इस टू बैडरूम के फ्लैट में साथ ही रहता था. उस के विवाह को तब 2 महीने ही हुए थे. जीवन तब सामान्य ढंग से चलने ही लगा था पर बहू नीतू अलग रहना चाहती थी. नीतू ने उन से कभी इस बारे में बात नहीं की थी पर पवन की बातों से मालिनी समझ गई थीं कि दोनों ही अलग रहना चाहते हैं. जबकि उन्होंने हमेशा नीतू को बेटी जैसा स्नेह दिया था. उस की गलतियों पर भी कभी टोका नहीं था. बेटी के सारे शौक नीतू को स्नेह दे कर ही पूरे करने चाहे थे.

पवन का औफिस अंधेरी में था. पवन ने कहा था, ‘‘मां, आनेजाने में थकान हो जाती है, इसलिए अंधेरी में ही एक फ्लैट खरीद कर वहां रहने की सोच रहा हूं.’’ मालिनी ने बस यही कहा था, ‘‘जैसा तुम ठीक समझो. पर यह फ्लैट किराए पर देंगे तो सारा सामान ले कर जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों मां, किराए पर क्यों देंगे? आप रहेंगी न यहां.’’

यह सुन मालिनी को तेज झटका लगा, ‘‘मैं यहां? अकेली?’’

‘‘मां, वहां तो वन बैडरूम घर ही खरीदूंगा. वहां घर बहुत महंगे हैं. आप यहां खुले घर में आराम से रहना… आप की कितनी जानपहचान है यहां… वहां तो आप इस उम्र में नए माहौल में बोर हो जाएंगी और फिर हम हर हफ्ते तो मिलने आते ही रहेंगे… आप भी बीचबीच में आती रहना.’’

मालिनी ने फिर कुछ नहीं कहा था. सारे आंसू मन के अंदर समेट लिए थे. प्रत्यक्षत: सामान्य बनी रही थीं. पवन फिर 2 महीने के अंदर ही चला गया था. जाने के नाम से नीतू का उत्साह देखते ही बनता था. मालिनी आर्थिक रूप से काफी संपन्न थीं. उच्चपदस्थ अधिकारी थे शेखर. उन्होंने एक दुकान खरीद कर किराए पर दी हुई थी, जिस के किराए से और बाकी मिली धनराशि से मालिनी का काम आराम से चल जाता था. मालिनी को छोड़ बेटाबहू अंधेरी शिफ्ट हो गए थे. मालिनी ने अपने दिल को अच्छी तरह समझा लिया था. यों भी वे काफी हिम्मती, शांत स्वभाव वाली महिला थीं. इस सोसायटी में 20 सालों से रह रही थीं. अच्छीखासी जानपहचान थी, सुशिक्षित थीं, हर उम्र के लोग उन्हें पसंद करते थे. अब खाली समय में वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी थीं. उन का अच्छा टाइम पास हो जाता था.

नीतू ने बेटे को जन्म दिया. पवन मालिनी को कुछ समय पहले ही आ कर ले गया था. नीतू के मातापिता तो विदेश में अपने बेटे के पास ही ज्यादा रहते थे. नन्हे यश की उन्होंने खूब अच्छी देखरेख की. यश 1 महीने का हुआ तो पवन उन्हें वापस छोड़ गया. यश को छोड़ कर जाते हुए उन का दिल भारी हो गया था. पर अब कुछ सालों से जो हो रहा था, उस से वे थकने लगी थीं. त्योहारों पर या किसी और मौके पर पवन उन्हें आ कर ले जाता था. वे भी खुशीखुशी चली जाती थीं. पर पवन के घर जाते ही किचन का सारा काम उन के कंधों पर डाल दोनों शौपिंग करने, अपने दोस्तों से मिलने निकल जाते. जातेजाते दोनों उन से कह चीजें बनाने की फरमाइश कर जाते. सारा सामान दिखा कर यश को भी उन के ही पास छोड़ जाते. यश को संभालते हुए सारे काम करते उन की हालत खराब हो जाती थी. काम खत्म होते ही पवन उन्हें उन के घर छोड़ जाता था. यहां भी वे अकेले ही सब करतीं. उन की वर्षों पुरानी मेड रजनी उन के दुखदर्द को समझती थी. उन की दिल से सेवा करती थी. इस दीवाली भी यही हुआ था. सारे दिन पकवान बना कर किचन में खड़ेखड़े मालिनी की हिम्मत जवाब दे गई तो नीतू ने रूखे धीमे स्वर में कहा पर उन्हें सुनाई दे गया था, ‘‘पवन, मां को आज ही छोड़ आओ. काम तो हो ही गया है. अब वहां अपने घर जा कर आराम कर लेंगी.’’

जब उन की कोख से जन्मा उन का इकलौता बेटा दीवाली की शाम उन्हें अकेले घर में छोड़ गया तो उन का मन पत्थर सा हो गया. सारे रिश्ते मोहमाया से लगने लगे… वे कब तक अपने ही बेटेबहू के हाथों मूर्ख बनती रहेंगी. अगर उन्हें मां की जरूरत नहीं है तो वे क्यों नहीं स्वीकार कर लेतीं कि उन का कोई नहीं है अब. वह तो सामने वाले फ्लैट में रहने वाली सारिका ने उन का ताला खुला देखा तो हैरान रह गई, ‘‘आंटी, आज आप यहां? पवन कहां है?’’ मालिनी बस इतना ही कह पाई, ‘‘अपने घर.’’ यह कह कर उन्होंने जैसे सारिका को देखा था, उस से सारिका को कुछ पूछने की जरूरत नहीं थी. फिर वही उन की दीवाली की तैयारी कर घर को थोड़ा संवार गई थी. बाद में थाली में खाना लगा कर ले आई थी और उन्हें जबरदस्ती खिलाया था.

उस दिन का दर्द याद कर मालिनी की आंखें आज भी भर आई हैं और आज जब वे किट्टी के लिए तैयार हो रही थीं, तो पवन का फोन आया था, ‘‘मां, इस न्यू ईयर पर मेरे बौस और कुछ कुलीग्स डिनर र घर आएंगे, आप को लेने आऊंगा.’’दीवाली के बाद पवन ने आज फोन किया था. वे बीच में जब भी फोन कर बात करना चाहती थीं, पर पवन बहुत बिजी हूं मां, बाद में करूंगा, कह कर फोन काट देता था.

नीतू तो जौब भी नहीं करती थी. तब भी महीने 2 महीने में 1 बार बहुत औपचारिक सा फोन करती थी. अचानक फोन की आवाज से ही वे वर्तमान में लौट आईं. वे हैरान हुईं, नीतू का फोन था, ‘‘मां, नमस्ते. आप कैसी हैं?’’

‘‘ठीक हूं, तुम तीनों कैसे हो?’’

‘‘सब ठीक हैं, मां. आप को पवन ने बताया होगा 31 दिसंबर को कुछ मेहमान आ रहे हैं. 15-20 लोगों की पार्टी है, मां. आप 1 दिन पहले आ जाना. बहुत सारी चीजें बनानी हैं और आप को तो पता ही है मुझे कुकिंग की उतनी जानकारी नहीं है. आप का बनाया खाना सब को पसंद आता है, आप तैयार रहना, बाद में करती हूं फोन,’’ कह कर जब नीतू ने फोन काट दिया तो मालिनी जैसे होश में आईं कि बच्चे इतने चालाक, निर्मोही क्यों हो जाते हैं और वे भी अपनी ही मां के साथ? इतनी होशियारी? कोई यह नहीं पूछता कि वे कैसी हैं? अकेले कैसी रहती हैं? बस, अपने ही प्रोग्राम, अपनी ही बातें. बहू का क्या दोष जब बेटा ही इतना आत्मकेंद्रित हो गया. मालिनी ने एक ठंडी सांस भरी कि नहीं, अब वे स्वार्थी बेटे के हाथों की कठपुतली बन नहीं जीएंगी. पिछली बार बेटे के घरगृहस्थी के कामों में उन की कमर जवाब दे गई थी. 10 दिन लग गए थे कमरदर्द ठीक होने में. अब उतना काम नहीं होता उन से.

अगली किट्टी रेखा के घर थी. न्यू ईयर के सैलिब्रेशन की बात छिड़ी, तो अंजलि ने कहा, ‘‘कुछ प्रोग्राम रखने का मन तो है पर घर तो वैसे ही दोनों बच्चों के सामान से भरा है मेरा. घर में तो पार्टी की जगह है नहीं. क्या करें, कुछ तो होना चाहिए न.’’

रेखा ने पूछा, ‘‘आंटी, आप का क्या प्रोग्राम है? पवन के साथ रहेंगी उस दिन?’’

‘‘अभी सोचा नहीं,’’ कह मालिनी सोच में डूब गईं.

उन्हें सोच में डूबा देख रेखा ने पूछा, ‘‘आंटी, आप क्या सोचने लगीं?’’

‘‘यही कि तुम सब अगर चाहो तो न्यू ईयर की पार्टी मेरे घर रख सकती हो. पूरा घर खाली ही तो रहता है… इसी बहाने मेरे घर भी रौनक हो जाएगी.’’

‘‘क्या?’’ सब चौंकी, ‘‘आप के घर?’’

‘‘हां, इस में हैरानी की क्या बात है?’’ मालिनी इस बार दिल खोल कर हंसीं.

रिया ने कहा, ‘‘वाह आंटी, क्या आइडिया दिया है पर आप तो पवन के घर…’’

मालिनी ने बीच में ही कहा, ‘‘इस बार कुछ अलग सोच रही हूं. इस बार नए साल की नई शुरुआत अपने घर से करूंगी और वह भी अच्छे सैलिब्रेशन के साथ. डिनर बाहर से और्डर कर मंगा लेंगे, तुम लोगों में से जो बाहर न जा रहा हो वह सपरिवार मेरे घर आ जाए… कुछ गेम्स खेलेंगे, डिनर करेंगे… बहुत मजा आएगा. और वैसे भी हमारा यह ग्रुप जहां भी बैठता है, मजा आ ही जाता है.’’

यह सुन कर रिया ने तो मालिनी के गले में बांहें ही डाल दीं, ‘‘वाह आंटी, क्या प्रोग्राम बनाया है. जगह की तो प्रौब्लम ही सौल्व हो गई.’’ सारिका ने कहा, ‘‘आंटी, आप किसी काम का प्रैशर मत लेना. हम सब मिल कर संभाल लेंगे और खर्चा सब शेयर करेंगे.’’

मालिनी ने कहा, ‘‘न्यू ईयर ही क्यों, तुम लोग जब कोई पार्टी रखना चाहो, मेरे घर ही रख लिया करो, तुम लोगों के साथ मुझे भी तो अच्छा लगता है.’’

‘‘मगर आंटी, पवन लेने आ गया तो?’’

‘‘नहीं, इस बार मैं यहीं रहूंगी.’’

फिर तो सब जोश में आ गईं और फिर पूरे उत्साह के साथ प्लान बनने लगा. कुछ दिनों बाद फिर सब मालिनी के घर इकट्ठा हुईं. सुमन, अनीता, मंजू और नेहा तो उस दिन बाहर जा रही थीं. नीता, सारिका, रिया, रेखा और अंजलि सपरिवार इस पार्टी में आने वाली थीं. सब के पति भी आपस में अच्छे दोस्त थे. मालिनी का सब से परिचय तो था ही… जोरशोर से प्रोग्राम बन रहा था. 30 दिसंबर को सुबह पवन का फोन आया, ‘‘मां, आज आप को लेने आऊंगा, तैयार रहना.’’

‘‘नहीं बेटा, इस बार नहीं आ पाऊंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कुछ प्रोग्राम है मेरा.’’

पवन झुंझलाया, ‘‘आप का क्या प्रोग्राम हो सकता है? अकेली तो हो?’’

‘‘नहीं, अकेली कहां हूं. कई लोगों के साथ न्यू ईयर पार्टी रखी है घर पर.’’

‘‘मां आप का दिमाग तो ठीक है? इस उम्र में पार्टी रख रही हैं? यहां कौन करेगा सब?’’

‘‘उम्र के बारे में तो मैं ने सोचा नहीं. हां, इस बार आ नहीं पाऊंगी.’’

पवन ने इस बार दूसरे सुर में बात की, ‘‘मां, आप इस मौके पर क्यों अकेली रहें? अपने बेटे के घर ज्यादा अच्छा लगेगा न?’’

‘‘अकेली तो मैं सालों से रह रही हूं बेटा, उस की तो मुझे आदत है.’’

पवन चिढ़ कर बोला, ‘‘जैसी आप की मरजी,’’ और गुस्से से फोन पटक दिया. पवन का तमतमाया चेहरा देख कर नीतू ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मां नहीं आएंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उन्होंने अपने घर पार्टी रखी है.’’

‘‘क्या? क्यों? अब क्या होगा, मैं तो इतने लोगों का खाना नहीं बना पाऊंगी?’’

‘‘अब तो तुम्हें ही बनाना है.’’

‘‘नहीं पवन, बिलकुल नहीं बनाऊंगी.’’

‘‘मैं सब को इन्वाइट कर चुका हूं.’’

‘‘तो बाहर से मंगवा लेना.’’

‘‘नहीं, बहुत महंगा पड़ेगा.’’

‘‘नहीं, मुझ से तो नहीं होगा.’’

दोनों लड़ पड़े. जम कर बहस हुई. अंत में पवन ने सब से मां की बीमारी का बहाना कर पार्टी कैंसिल कर दी. दोनों बुरी तरह चिढ़े हुए थे. पवन ने कहा, ‘‘अगर तुम मां के साथ अच्छा संबंध रखतीं तो मुझे आज सब से झूठ न बोलना पड़ता. अगर मां को यहां अच्छा लगता तो वे आज अलग वहां अकेली क्यों खुश रहतीं?’’ नीतू ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘मुझे क्या समझा रहे हो… तुम्हारी मां हैं, बिना मतलब के जब तुम ही उन्हें फोन नहीं करते तो मैं तो बहू हूं.’’

दोनों एकदूसरे को तानेउलाहने देते रहे. दूसरे दिन भी दोनों एकदूसरे से मुंह फुलाए रहे.

हाऊजी, गेम्स, म्यूजिक और बढि़या डिनर के साथ न्यू ईयर का जश्न तो मना, पर कहीं और.

बड़बोला: भाग-1

‘‘गुडमार्निंग सर,’’ केबिन में  प्रवेश करते हुए विपुल ने कहा और मुझे अपना नियुक्तिपत्र दिया. अकाउंट विभाग का हैड होने के नाते मैं ने उसे कुरसी पर बैठने का संकेत किया और इंटरकौम पर अपने सहायक महेश को केबिन में आने को कहा.

महेश ने केबिन में आते ही नमस्ते की और कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘सर, आज 2 घंटे पहले मुझे जाना है. श्रीमतीजी शाम की टे्रन से मायके से वापस आ रही हैं.’’

‘‘चले जाना पर पहले इन से मिलो,’’ मैं ने महेश को इशारा करते हुए कहा, ‘‘विपुल, तुम्हारे सहायक रहेंगे. काफी दिनों से तुम शिकायत कर रहे थे कि काम अधिक है, एक आदमी की जरूरत है. विपुल अब तुम्हारे अधीन काम करेंगे. विपुल के अलावा सुरेश को भी अगले सप्ताह ज्वाइन करना है. आफिस में स्टाफ पूरा हो जाएगा, जिस के बाद पेंडिंग काम पूरा हो जाएगा. अच्छा विपुल, तुम अब से महेश के साथ काम करोगे. अब तुम अपनी सीट पर जा कर काम शुरू कर दो.’’

20 साल का विपुल बी.काम. करने के बाद पिछले सप्ताह जब इंटरव्यू देने आया था तो उस को काम का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन एक गजब का आत्मविश्वास उस में जरूर था, जिस को देख कर मैं ने उसे नौकरी पर रखा था. मझले कद का गोराचिट्टा, हंसमुख नौजवान विपुल नवगांव में रहता था.

नवगांव नवयुग सिटी से लगभग 80 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कसबा है. बस से एक तरफ का सफर लगभग ढाई घंटे में पूरा होता है. आफिस का समय सुबह 10 से शाम 6 बजे है. 8 घंटे की ड्यूटी के बाद बस पकड़ने के लिए आधा घंटा और फिर लगभग 5 घंटे बस में, यानी लगभग 14 घंटे की ड्यूटी देने की बात जब इंटरव्यू में विपुल को मैं ने बताई और पूछा कि किस तरह वह समय को मैनेज कर पाएगा. कहीं कुछ दिन काम करने के बाद नौकरी तो नहीं छोड़ देगा तो उस के आत्मविश्वास और जवाब देने के ढंग ने मुझे निरुत्तर कर दिया. उस ने कहा कि हर हालत और मौसम में सुबह 10 बजने से 10 मिनट पहले ही आफिस पहुंच जाएगा. और यही हुआ, बिना नागा आफिस खुलने से पहले विपुल पहुंच जाता और 2 महीने के छोटे से समय के अंदर सभी कार्यों में निपुण हो गया. आफिस का पेंडिंग काम समाप्त हो गया और काम रुटीन पर आ गया.

विपुल काम में तेज, स्वभाव में विनम्र लेकिन उस की एक बात मुझे पसंद नहीं थी. वह बात उस के अधिक बोलने की थी. वह चुप नहीं रह सकता था. कई बार मुझे लगता था कि वह बात को बढ़ाचढ़ा कर करता था. विपुल ने अपनी बातों से धीरेधीरे पूरे आफिस को यकीन दिला दिया कि वह एक अमीर घर से ताल्लुक रखता है. अच्छे और महंगे कपड़े, जूते अपनेआप में उस के अमीर होने का एहसास कराते थे. आफिस में अपने सहयोगियोेंको अकसर दावत देना उस का नियम बन गया था.

आफिस में कंप्यूटर आपरेटर श्वेता और टेलीफोन आपरेटर सुषमा के आसपास उसे मंडराते देख कर मुझे ऐसा लगा था कि आफिस की लड़कियों में विपुल की कुछ खास रुचि थी. लंच वह सुषमा और श्वेता के साथ ही करता था. उन दोनों को प्रभावित करने में उस का खाली समय व्यतीत होता था. इन सब बातों को देख कर मैं ने विपुल को कभी टोका नहीं, क्योंकि आफिस का काम उस ने कभी पेंडिंग नहीं किया. इसलिए बाकी सब हरकतों को उस का निजी मामला समझ कर नजरअंदाज करता रहा क्योंकि वह कंपनी के काम में सदा आगे रहता था.

एक दिन मैं आफिस में रिपोर्ट देख रहा था. शाम के 4 बजे चाय के साथ चपरासी समोसा, गुलाबजामुन और पनीर पकौड़ा मेज पर रखता हुआ बोला, ‘‘सर, समोसा पार्टी विपुल की तरफ से है.’’

‘‘किस खुशी में दावत हो रही है?’’ मैं चपरासी से पूछ रहा था, तभी महेश केबिन में आता हुआ बोला, ‘‘सर, विपुल तो छिपा रुस्तम निकला. मोटा असामी है. यह दावत तो कुछ नहीं, बड़ी पार्टी लेनी पड़ेगी विपुल से. ऐसे नहीं छूट सकता. आज उस ने 2 ट्रक खरीदे हैं, 16 ट्रक पहले से ही नवगांव की दाल मिल में चल रहे हैं. टोटल 18 ट्रकों का मालिक है. समोसा पार्टी तो शुरुआत है, फाइव स्टार दावत पेंडिंग है, सर.’’

‘‘महेश, एक बात समझ में नहीं आती कि 18 ट्रकों के मालिक को एक क्लर्क की नौकरी करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘सर, मुझे लगता है कि अनुभव लेने के लिए विपुल नौकरी कर रहा है. साल दो साल के बाद नौकरी छोड़ कर वह अपने व्यापार में पिता का हाथ बटाएगा.’’

‘‘मेरा अनुभव यह कहता है कि अमीर घराने के बच्चे कभी नौकरी नहीं करते हैं, पढ़ाई के बाद अपने घर के व्यापार में जुट जाते हैं. आई.ए.एस. की नौकरी या मैनेजमेंट डिगरी के बाद किसी मैनेजर के पद पर नौकरी तो समझ में आती है, लेकिन एक क्लर्क की नौकरी कोई बड़ा व्यापारी अपने बच्चों से नहीं करवाता है.’’

‘‘आप के कहने में वजन है, सर,’’ महेश बोला, ‘‘लेकिन हमें इस से क्या मतलब, अपन तो दावत का मजा लेते हैं.’’

महेश के जाने के बाद मेरी नजर रिसेप्शन पर गई तो देखा, विपुल श्वेता और सुषमा के साथ हंसहंस कर अपनी दी हुई पार्टी के मजे ले रहा था. मैं सोचने लगा कि कहीं यह दावत लड़कियों को प्रभावित करने के लिए तो नहीं कर रहा.

एक दिन आफिस से घर जाते हुए सामान खरीदने के लिए बाजार गया. शाम के समय बाजार में बहुत भीड़ रहती है, बाजार में सामान खरीदते समय मुझे एहसास हुआ कि विपुल श्वेता के साथ हंसता हुआ हाथ में हाथ डाले टहल रहा था. दोनों एकदूसरे से चिपके हुए अपने में मस्त दुनिया से बेखबर मुझे भी नहीं देख सके. 2 हंसों का जोड़ा पे्र्रम की गहराई में उतर चुका था. युवा प्रेमी को डिस्टर्ब करना मैं ने उचित नहीं समझा. मैं सामान खरीद कर घर आ गया.

घर आ कर मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि विपुल कब नवगांव जाता होगा और कैसे टाइम मैनेज करता होगा. आफिस में विपुल और श्वेता की नजदीकियां अधिक बढ़ने लगीं. चाय ब्रेक में दोनों एकसाथ चाय पीते नजर आते और लंच टाइम में एकसाथ खाना खाते. काम के बीच में विपुल झट से किसी न किसी बहाने श्वेता से चंद बातें कर आता. धीरेधीरे विपुल और श्वेता का प्रेम परवान चढ़ गया. आफिस में सब की जबान पर सिर्फ विपुल और श्वेता के प्रेम प्रसंग के चर्चे थे.

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