Story in hindi

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काले सघन बरसते बादलों के बीच मचलती हुई दामिनी के साथ शिव ने जया की कलाई को क्या थामा कि बेटेबहू के साथ अमेरिका में रह रही जया के भीतर मानो सालों सूखे पर सावन की बूंदें बरस उठीं. शिव के अपनेपन से उस की आंखें ऐसे छलकीं कि कठिनाइयों व दुखों से भरे उस के पहले के सारे बरस बह गए.
जया को सियाटल आए 2 हफ्ते हो गए थे. जब तक जेटलैग था, दिनभर सोती रहती थी. जब तक वह सो कर उठती, बहू, बेटा, पोतापोती सभी आ तो जाते पर रात के 8 बजते ही वे अपने कमरों में चले जाते. वे भी क्या करें, औफिस और स्कूल जाने के लिए उन्हें सुबह उठना भी तो पड़ता था.
जब से जेटलैग जाता रहा, उन सबों के जाते ही उतने बड़े घर में वह अकेली रह जाती. अकेलेपन से ही तो उबरने के लिए 26 घंटे की लंबी यात्रा कर वह अपने देश से इतनी दूर आई थी. अकेलापन तो बना ही रहा. बस, उस में सन्नाटा आ कर जुड़ गया जिसे उन का एकाकी मन झेल नहीं पा रहा था. सूई भी गिरे तो उस की आवाज की अनुगूंज उतने वृहत घर में फैल जाती थी.
कितना यांत्रिक जीवन है यहां के लोगों का कि आसपास में ही संवादहीनता बिखरी रहती है. नापतोल कर सभी बोलते हैं. उस के शैया त्यागने के पहले ही बिना किसी शोर के चारों जन अपनेअपने गंतव्य की ओर निकल जाते हैं. जाने के पहले बहू अणिमा उस की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर जाती थी. अपनी दिनचर्या के बाद पूरे घर में घूम कर सामान को वह इधरउधर ठीक करती. फिर घर के सदस्यों की असुविधा का खयाल कर यथावत रख देती. हफ्तेभर की बारिश के बाद बादलों से आंखमिचौली करता हुआ उसे आज सूरज बहुत ही प्यारा लग रहा था.
अपने देश की चहलपहल को याद कर उस का मन आज कुछ ज्यादा ही उदास था. इसलिए अणिमा के मना करने के बावजूद वह लेक समामिस की ओर निकल गई. ऊंचीनीची पहाड़ी से थक कर कभी वह किसी चट्टान पर बैठ कर अपनी चढ़तीउतरती सांसों पर काबू पाती तो कभी आतीजाती गाडि़यों को निहारते हुए आगे बढ़ जाती. कहीं गर्व से सिर उठाए ऊंचेऊंचे पेड़ों की असीम सुंदरता उसे मुग्ध कर देती. सड़क के इस पार से उस पार छलांग लगाते हिरणों का झुंड देख कर डर जाती.
झुरमुटों से निकल कर फुदकते हुए खरगोश को देख कर वह किसी बच्ची की तरह खुश हो रही थी. झील के किनारे कतारों में बने घरों की सुंदरता को अपलक निहारते हुए वह अपनी धुन में आगे बढ़ती जा रही थी. उसे इस का आभास तक नहीं हुआ कि कब आसमान में बादल छा गए और तेज हवाओं के साथ बारिश होने लगी थी. अचानक इस आई मुसीबत से निबटने के लिए वह एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई.
अपना देश रहता तो भाग कर किसी घर के अहाते में खड़ी हो जाती. पर इस देश में यह बहुत बड़ा जुर्म है. आएदिन लालपीलीनीली बत्तियों वाली कौप की गाडि़यां शोर मचाती गुजरती थीं. पर आज इस मुसीबत की घड़ी में उन का भी कोई पता नहीं है.‘‘अरे आप तो पूरी तरह से भीग गई हैं,’’ अचानक उस के ऊपर छतरी तानते हुए किसी ने कहा तो जया चौंक कर मुड़ गई. सामने 60-65 वर्ष के व्यक्ति को देख कर वह संकुचित हो उठी.
‘‘मैं, शिव, पटना, बिहार से हूं. शायद आप भी भारत से ही हैं. आइए न, सामने ही मेरी बेटी का घर है. बारिश रुकने तक वहीं रुकिए.’’मंत्रमुग्ध सी हुई जया शिव के साथ चल पड़ी. पलभर को उसे ऐसा लगा कि इस व्यक्ति से उस की पहचान बहुत पुरानी हो. बड़े सम्मान व दुलार के साथ शिव ने उसे बैठाया. जया को टौवेल थमाते हुए वे तेजी से अंदर गए और
2 कप कौफी बना कर ले आए.‘‘अभी घर में बेटी नहीं है, वरना उस से पकौड़े तलवा कर आप को खिलाता. पकौड़े तो मैं भी बहुत करारे बना सकता हूं. साथ छोड़ने से पहले मेरी पत्नी पद्मा ने मु झे बहुत काबिल कुक बना दिया था,’’ कहते हुए शिव की पलकों पर स्मृतियों के बादल तैर गए.
शिव अपने बारे में कहते गए और मौन बैठी जया आभासी आकर्षण में बंधी उन के दुखसुख को आत्मसात करती रही. अचानक शिव का धाराप्रवाह वार्त्तालाप पर विराम लग गया. हंसते हुए वे बोले, ‘‘आप को तो कुछ बताने का अवसर ही नहीं दिया मैं ने, अपने ही विगत को उतारता रहा. क्या करूं, बेटी की जिद से आ गया. आराम तो यहां बहुत है पर किस से बात करूं.
यहां तो किसी को फुरसत ही नहीं है जो पलभर के लिए भी पास बैठ जाए. पटना में बातचीत करने के लिए जब कोई नहीं मिलता है तो नौकर के परिवार से ही इस क्षुधा को शांत कर लेता हूं. जातेजाते पद्मा ने उन सबों को कह दिया था कि बाबूजी को भले ही नमकरोटी दे देना खाने के लिए, लेकिन बातचीत हमेशा करते रहना. बालकनी में उन का किचन बनवा कर फ्लैट का एक रूम रामू को दे दिया था जिस में वह अपनी पत्नी और
2 बच्चों के साथ रहता है.’’शिव कुछ आगे कहते कि जया ने रोक लगाते हुए कहा, ‘‘मेरी सम झ से बारिश रुक गई है और मु झे चलना चाहिए.’’‘‘क्यों नहीं, चलिए मैं आप को छोड़ आता हूं. इसी बहाने आप का घर भी देख लूंगा. जब भी अकेलापन महसूस करूंगा, आप को परेशान करने चला आऊंगा,’’ कहते हुए शिव साथ हो लिए तो जया उन्हें मना न कर सकी. रास्तेभर शिव अपनी रामकहानी कहते रहे और जया मूक श्रोता बनी सुनती रही.
शिव पटना के बिजली विभाग के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर हैं. पिछले साल ही कैंसर से इन की पत्नी की मृत्यु हुई है. बातोंबातों में ही जया कब अपने घर पहुंच गई, उसे पता ही न लगा. यह बात और थी कि ऊंचेनीचे कटाव पर जब भी वह लड़खड़ाती, शिव उस की बांहों को थाम लेते. एक दशक बाद किसी पुरुष और स्पर्श उस के तनमन को भले ही कंपित कर के रख देता रहा पर अपनेपन के खूबसूरत सुखद एहसास को उन में भरता भी रहा.
औपचारिकता निभाते हुए जया ने शिव को अंदर आ कर एक कप चाय पी कर जाने को कहा तो प्रत्युत्तर में उन्होंने अपनी बच्चों सी मुसकान से उसे मोहते हुए कहा, ‘‘नहीं जयाजी. अब आप को और बोर नहीं करूंगा. किसी और दिन आ कर चाय के साथ पकौड़े भी खाऊंगा.’’ यह कहते हुए शिव जाने के लिए मुड़ गए. जब तक वे दिखते रहे, सम्मोहित हुई जया उसी दिशा में ताकती रही.
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एक दिन लंच में मैं आराम कर रहा था. महेश केबिन में आ कर सामने कुरसी खींच कर बैठ गया.
‘‘सर, आप ने नई खबर सुनी?’’
‘‘मुझे पुरानी की खबर नहीं, तुम नई की बात कर रहे हो. तुम्हारी शक्ल से लगता है कि कोई सनसनीखेज खबर है.’’
‘‘सर, आप के लिए सनसनी होगी. आप आफिस आते हैं, काम कर के चले जाते हैं. आप को दीनदुनिया की कोई खबर नहीं होती है. हम तो परदा उठने की फिराक में कब से टकटकी लगाए बैठे हैं.’’
‘‘लेखकों की तरह भूमिका मत बांधो, महेश, सीधे बात पर आओ.’’
‘‘सीधी बात यह है सर कि विपुल और श्वेता का प्रेम एकदम परवान चढ़ चुका है. बस, अब तो शहनाई बजने की देरी है. सर, आप को मालूम नहीं, विपुल आजकल नवगांव न जा कर श्वेता के घर पर ही रह रहा है. हफ्ते में 1 या 2 दिन ही नवगांव जाता है. अंदर की खबर बताता हूं कि शादी की घोषणा होते ही श्वेता नौकरी छोड़ देगी. इतने अमीर घर जा रही है. नौकरी की क्या जरूरत है, सर.’’
‘‘क्या श्वेता के घर वाले एतराज नहीं करते? शादी से पहले घर आनाजाना तो आजकल आम बात है, लेकिन रात को सोना क्या वाकई हो सकता है? कहीं तुम लंबी तो नहीं छोड़ रहे हो?’’
‘‘कसम लंगोट वाले की, एकदम सच बोल रहा हूं.’’
‘कसम लंगोट वाले की,’ यह महेश का तकिया कलाम था. मैं समझ गया कि बात में कुछ सचाई तो है, ‘‘महेश, लगता है आजकल हम लोग आफिस में काम कम और इधरउधर की बातों में अधिक ध्यान दे रहे हैं,’’ मैं ने बात पलटते हुए कहा.
‘‘सर, आप ऐसी बातें मुझ से नहीं कर सकते हैं. आप को मालूम है कि सारा काम समाप्त करने के बाद ही मैं आप से गपशप करता हूं,’’ महेश मेरी बात का बुरा मान गया.
‘‘महेश, मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा हूं. मैं विपुल की सोच रहा हूं कि आजकल जब देखो, वह श्वेता के इर्दगिर्द ही मंडराता नजर आता है. अपना काम कब करता है?’’ मैं ने कुछ हैरान हो कर पूछा.
महेश हंसते हुए बोला, ‘‘सर, आप इस बात की फिक्र मत कीजिए. उस का काम जब तक समाप्त नहीं हो जाता, उसे शाम को घर जाने नहीं देता हूं, श्वेता के प्यार से उस के काम की रफ्तार गोली की तरह हो गई है. शाम तक सारा काम निबटा देता है.’’
चूंकि आफिस के काम में मुझे कोई शिकायत नहीं मिली, इसलिए विपुल और श्वेता के आपसी रिश्तों में मैं ने विशेष महत्त्व देना छोड़ दिया. दिन बीतते गए और विपुल और श्वेता के प्रेमप्रसंग के किस्से कुछ और अधिक सुनाई देने लगे. एक दिन लंच टाइम में मैं कौफी पी रहा था. तभी विपुल और महेश ने केबिन में प्रवेश किया.
‘‘सर, बधाई हो, विपुल की बहन की शादी है. आप का निमंत्रणपत्र,’’ महेश ने शादी का कार्ड मुझे दिया.
‘‘विपुल, बहुतबहुत बधाई हो,’’ मैं ने विपुल से हाथ मिलाते हुए कहा.
‘‘सर, सूखी बधाई से काम नहीं चलेगा. शादी में आप को अवश्य आ कर रौनक करनी है,’’ विपुल ने आग्रह किया.
‘‘जरूर शादी में रौनक करेंगे,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.
शादी से 1 दिन पहले महेश ने लंच समय में कहा, ‘‘सर, कल विपुल की बहन की शादी है, पूरा स्टाफ शादी में जाएगा, कल लंच के बाद आफिस की छुट्टी. आप ने भी चलना है, कोई बहाना नहीं चलेगा.’’
‘‘देखो, महेश, शादी नवगांव में है, रात को वापस आने में देर हो सकती है, वहां से आने के लिए कोई सवारी भी नहीं मिलेगी,’’ मैं ने आशंका जताई.
‘‘सर, इस की चिंता आप मत कीजिए, वापसी का सारा प्रबंध विपुल ने कर दिया है. नवगांव के सब से अमीर परिवार में विवाह बहुत ही भव्य तरीके से हो रहा है, इसीलिए तो सारा स्टाफ जा रहा है. वहां पहुंचते ही एक चमचमाती कार हमारे और सिर्फ हमारे लिए होगी. हम उसी कार से वापस आएंगे. इसलिए आप बिलकुल चिंता न कीजिए,’’ महेश ने बहुत आराम से कहा, ‘‘ऐसी शादी देखने का मौका जीवन में केवल एक बार मिलता है, पूरे नवगांव में कारपेट बिछे होंगे, एक पुरानी हवेली में शादी का भव्य समारोह होगा.’’
विवरण सुन कर मैं ने हामी भर दी. मना किस तरह करता, आखिर इतनी भव्य शादी हम जैसे मध्यम वर्ग के लोगों को नसीब से ही देखने का मौका मिलेगा.
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‘‘मु झे ‘सू’ कह कर पुकारो, पापा. कालिज में सभी मुझे इसी नाम से पुकारते हैं.’’ ‘‘अरे, अच्छाभला नाम रखा है हम ने…सुगंधा…अब इस नाम मेें भला क्या कमी है, बता तो,’’ नरेंद्र ने हैरान हो कर कहा.
‘‘बड़ा ओल्ड फैशन है…ऐसा लगता है जैसे रामायण या महाभारत का कोई करेक्टर है,’’ सुगंधा इतराती हुई बोली.
‘‘बातें सुनो इस की…कुल जमा 19 की है और बातें ऐसी करती है जैसे बहुत बड़ी हो,’’ नरेंद्र बड़बड़ाए, ‘‘अपनी मर्जी के कपड़े पहनती है…कालिज जाने के लिए सजना शुरू करती है तो पूरा घंटा लगाती है.’’
‘‘हमारी एक ही बेटी है,’’ नरेंद्र का बड़बड़ाना सुन कर रेवती चिल्लाई, ‘‘उसे भी ढंग से जीने नहीं देते…’’
‘‘अरे…मैं कौन होता हूं जो उस के काम में टांग अड़ाऊं ,’’ नरेंद्र तल्खी से बोले.
‘‘अड़ाना भी मत…अभी तो दिन हैं उस के फैशन के…कहीं तुम्हारी तरह इसे भी ऐसा ही पति मिल गया तो सारे अरमान चूल्हे में झोंकने पड़ेंगे.’’
‘‘अच्छा, तो आप हमारे साथ रह कर अपने अरमान चूल्हे में झोंक रही हैं…’’
‘‘एक कमी हो तो कहूं…’’
‘‘बात सुगंधा की हो रही है और तुम अपनी…’’
‘‘हूं, पापा…फिर वही सुगंधा…सू कहिए न.’’
‘‘अच्छा सू बेटी…तुम्हें कितने कपड़े चाहिए…अभी 15 दिन पहले ही तुम अपनी मम्मी के साथ शापिंग करने गई थीं… मैचिंग टाप, मैचिंग इयर रिंग्स, हेयर बैंड, ब्रेसलेट…न जाने क्याक्या खरीद कर लाईं.’’
‘‘पापा…मैचिंग हैंडबैग और शूज
भी चाहिए थे…वह तो पैसे ही खत्म हो गए थे.’’
‘‘क्या…’’ नरेंद्र चिल्लाए, ‘‘हमारे जमाने में तुम्हारी बूआ केवल 2 जोड़ी चप्पलों में पूरा साल निकाल देती थीं.’’
‘‘वह आप का जमाना था…यहां तो यह सब न होने पर हम लोग आउटडेटेड फील करते हैं…’’
‘‘और पढ़ाई के लिए कब वक्त निकलता है…जरा बताओ तो.’’
‘‘पढ़ाई…हमारे इंगलिश टीचर
पैपी यानी प्रभात हैं न…उन्होंने हमें अपने नोट्स फोटोस्टेट करने के लिए दे दिए हैं.’’
‘‘तुम्हारे इस पैपी की शिकायत मैं प्रिंसिपल से करूंगा.’’
‘‘पिं्रसी क्या कर लेगा…वह तो खुद पैपी के आगे चूहा बन जाता है…आखिर, पैपी यूनियन का प्रेसी है.’’
‘‘प्रेसी…तुम्हारा मतलब प्रेसीडेंट…’’ नरेंद्र ने उस की बात समझ कर कहा, ‘‘बेटा, बात को समझो…हम मध्यवर्गीय परिवार के सदस्य हैं…इस तरह फुजूलखर्ची हमें सूट नहीं करती.’’
‘‘बस…शुरू हो गया आप का टेपरिकार्डर,’’ रेवती चिढ़कर बोली, ‘‘हर वक्त मध्यवर्गीय…मध्यवर्गीय. अरे, कभी तो हमें उच्चवर्गीय होने दिया करो.’’
‘‘रेवती…तुम इसे बिगाड़ कर ही मानोगी…देख लेना पछताओगी,’’ नरेंद्र आपे से बाहर हो गए.
‘‘क्यों, क्या किया मैं ने? केवल उसे फैशनेबल कपड़े दिलवाने की तरफदारी मैं ने की…आप तो बिगड़ ही उठे,’’ सुगंधा की मां ने थोड़ी शांति से कहा.
‘‘मैं भी उसे कपड़े खरीदने से कब मना करता हूं…लेकिन जो भी करो सीमा में रह कर करो…जरा इसे कुछ रहनेसहने का सही सलीका समझाओ.’’
‘‘लो, अब कपड़े की बात छोड़ी तो सलीके पर आ गए…अब उस में क्या दिक्कत है, पापा,’’ सुगंधा ठुनकी.
‘‘तुम जब कालिज चली जाती हो तो तुम्हारी मां को घंटा भर लग कर तुम्हारा कमरा ठीक करना पड़ता है.’’
‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरे पीछे मेरा कमरा ठीक करें…मेरा कमरा जितना बेतरतीब रहे वही मुझे अच्छा लगता है…यही आजकल का फैशन है.’’
‘‘और साफसफाई रखना…सलीके से रहना?’’
‘‘ओल्ड फैशन…हर वक्त नीट- क्लीन और टाइडी जमाने के लोग रहते हैं…नए जमाने के यंगस्टर तो बस, कूल दिखना चाहते हैं…अच्छा, मैं चलती हूं…नहीं तो कालिज के लिए देर हो जाएगी.’’
अपने मोबाइल को छल्ले की तरह नचाती हुई वह चलती बनी. रेवती ने भी चिढ़ कर नाश्ते के बरतन उठाए और किचन में चली गई.
‘कहां गलती कर दी मैं ने इस बच्ची को संस्कार देने में,’ नरेंद्र अपनेआप से बोले, ‘नई पीढ़ी हमेशा फैशन के हिसाब से चलना पसंद करती है…इसे तो कुछ समझ ही नहीं है…एक बार मन में ठान ली उसे कर के ही मानती है. ऊपर से रेवती के लाड़प्यार ने इसे कामचोर और आरामतलब अलग बना दिया है. मैं रेवती को समझाता हूं कि पढ़ाई के साथ घर के कामकाज व उठनेबैठने, पहनने का सलीका तो इसे सिखाओ वरना इस की शादी में बड़ी मुश्किल होगी, तब वह तमक कर कहती है कि मेरी इतनी रूपवती बेटी को तो कोई भी पसंद कर लेगा…’
‘‘क्या बड़बड़ा रहे हैं अकेले में आप?’’ रेवती नरेंद्र से बोली.
‘‘तुम्हारी लाड़ली के बारे में सोच रहा हूं,’’ नरेंद्र ने चिढ़ कर कहा.
‘‘ओहो, अब आप शांत हो जाओ… कितना खून जलाते हो अपना…’’
‘‘सब तुम्हारे ही कारण जल रहा है…तुम उसे दिशाहीन कर रही हो.’’
‘‘आप ऐसा क्यों समझते हो जी, कि मैं उसे दिशाहीन कर रही हूं,’’ रेवती रहस्यमय ढंग से कहने लगी, ‘‘मुझे तो लगता है कि आप ने अपनी सुविधा के लिए उस से बहुत सी आशाएं लगा रखी हैं.’’
‘‘अब इकलौती संतान है तो उस से आशा करना क्या गलत है…बोलो, गलत है.’’
‘‘देखो,’’ रेवती समझाने के ढंग से बोली, ‘‘पुरानी पीढ़ी अकसर परंपरागत मान्यताओं, रूढि़यों और अपने तंग नजरिए को युवा पीढ़ी पर थोपना चाहती है जिसे युवा मन सहसा स्वीकार करने में संकोच करता है.’’
‘‘ठीक है, मेरा तंग नजरिया है… तुम लोगों का आधुनिक, तो आधुनिक ही सही,’’ नरेंद्र के बोलने में उन का निश्चय झलकने लगा था, ‘‘जब सारे समाज में ही परिवर्तन हो रहा है तो मेरा इस तरह से पिछड़ापन दिखाना तुम दोनों को गलत ही महसूस होगा.’’
‘‘ये हुई न समझदारी वाली बात,’’ रेवती ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आप की और सू की लड़ाइयों से आजकल घर भी महाभारत बना हुआ है…आप उसे और उस की पीढ़ी को दोष देते हो…वह आप को और आप की पुरानी पीढ़ी को दोष देती है…’’
‘‘तुम ही बताओ, रेवती,’’ नरेंद्र ने अब हथियार डाल दिए, ‘‘क्या सुगंधा और उस की पीढ़ी के बच्चे दिशाहीन नहीं हैं?’’
रेवती चिढ़ कर बोली, ‘‘आप को तो एक ही रट लग गई है…अरे भई, दिशाहीनता के लिए युवा वर्ग दोषी नहीं है…दोषी समाज, शिक्षा, समय और राजनीति है.’’
नरेंद्र फिर चुप हो गए. लेकिन गहन चिंता में खो गए. ‘जैसे भी हो आज इस समस्या का हल ढूंढ़ना ही होगा,’ वह बड़बड़ाए, ‘सच ही है, हमारा भी समय था. मुझे भी पिताजी बहुत टोकते थे, ढंग के कपड़े पहनो…करीने से बाल बनाओ…समय पर खाना खाओ…रेडियो ज्यादा मत सुनो…बड़ों से अदब से बोलो…पैसा इतना खर्च मत करो. सही भाषा बोलो…ओह, कितनी वर्जनाएं होती थीं उन की, किंतु मैं और छुटकी उन की बातें मान जाते थे…यहां तो सुगंधा हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं.
‘उस से यही सुनने को मिलता है कि ओहो पापा, आप कुछ नहीं जानते. लेकिन मैं भी उसे क्यों दोष दे रहा हूं… जरूर मेरे समझाने का ढंग कुछ अलग है तभी उसे समझ नहीं आ रहा…उस की फुजूलखर्ची और फैशनपरस्ती से ध्यान हटाने के लिए मुझे कुछ न कुछ करना ही होगा.’
नरेंद्र अब उठ कर कमरे में चहलकदमी करने लगे. रेवती ने उन्हें कमरे में टहलते देखा तो चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं. अचानक नरेंद्र की आवाज आई, ‘‘रेवती, दरवाजा बंद कर लो. मैं अभी आता हूं.’’
रेवती दौड़ कर बाहर आई. दरवाजे से झांक कर देखा तो नरेंद्र कालोनी के छोर पर लंबेलंबे डग भरते नजर आए… उस ने गहरी सांस भर कर दरवाजा बंद किया.
अब उन्हें दुख तो होना ही है जब सुगंधा ने उन के द्वारा रखे अच्छेखासे नाम को बदल कर सू रख दिया.
वह भी घर में शांति चाहती है इसलिए विभिन्न तर्क दे दे कर दोनों को
चुप कराती रहती है…यह सही है
कि बेटी के लिए उस के मन में बहुत ज्यादा ममता है…वह नरेंद्र की
कही बात पर कांप उठती है, ‘रेवती, तुम्हारी अंधी ममता सुगंधा को कहीं बिगाड़ न दे.’
‘कहीं सचमुच सुगंधा दिशाहीन हो गई तो वह क्या करेगी…’ रेवती स्वयं से सवाल कर उठी, ‘सुगंधा जिस उम्र में पहुंची है वहां तो हमारा प्यार और धैर्य ही उसे काबू में रख सकता है. सुगंधा को उस की गलती का एहसास बुद्धिमानी से करवाना होगा…जिस से वह सोचने पर मजबूर हो कि वह गलत है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए.’ सुगंधा का बिखरा कमरा समेटते हुए रेवती सोचती जा रही थी.
शाम घिर आई थी…सुबह 11 बजे के निकले नरेंद्र अभी तक नहीं लौटे थे… अचानक बजी कालबेल ने उस का ध्यान खींचा. दरवाजा खोला तो नरेंद्र थे…हाथों में 4 बडे़बडे़ पैकेट लिए.
‘‘सुगंधा आ गई क्या?’’ नरेंद्र ने बेसब्री से पूछा.
‘‘नहीं…’’
‘‘आप कहां रह गए थे?’’
उस के प्रश्न को अनसुना कर के नरेंद्र बोले, ‘‘रेवती, जरा पानी ले आओ… बड़ी प्यास लगी है.’’
गिलास में पानी भरते समय उस के मन में कई प्रश्न घुमड़ रहे थे.
‘‘क्या है इन पैकेटों में?’’ गिलास पकड़ाते हुए उस ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘तुम खुद देख लो,’’ नरेंद्र ने संक्षिप्त उत्तर दिया, ‘‘और सुनो, मेरा सामान दे दो…मैं जरा उन्हें ट्राई कर लूं… फिर तुम भी अपना सामान ट्राई कर लेना.’’
रेवती की हंसी कमरे में गूंज गई, ‘‘ये क्या, अपने लिए आसमानी रंग की पीले फूलों वाली शर्ट लाए हो क्या?’’ वह हंसती हुई बोली.
नरेंद्र ने उस के हाथ से शर्र्ट खींच कर कहा, ‘‘हां भई, हमारी लाड़ली फैशनपरस्त है. अब तो उस के पापा भी फैशनपरस्त बनेंगे तभी काम चलेगा.’’
‘‘और यह मजेंटा कलर का बरमूडा…यह भी आप का है?’’ रेवती के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ रहे थे.
‘‘यह हंसी तुम संभाल कर रखो… अभी कहीं और न हंसना पडे़…ये देखो… तुम अपनी डे्रस देखो.’’
‘‘ये…ये क्या?’’ रेवती चौंक कर बोली, ‘‘आप का दिमाग खराब तो नहीं हो गया…खुद तो चटकीले ऊलजलूल कपडे़ ले आए, अब मुझे ये मिडी पहनाओगे….’’
‘‘क्यों भई, फैशनपरस्त बेटी की फैशनपरस्ती को तो खूब सराहती हो. अब मैं भी तो तुम्हें सराह लूं. चलो, जरा ये मिडी पहन कर दिखाओ.’’
‘‘आप का दिमाग तो सही है…इस उम्र में मैं मिडी पहनूंगी…मुझे नहीं पहननी,’’ रेवती भुनभुनाई.
‘‘चलो, जैसी तुम्हारी मर्जी. तुम्हें नहीं पहननी, न पहनो. मैं तो पहन रहा हूं,’’ कहते हुए नरेंद्र कपड़ों को हाथ में लिए बाथरूम में घुस गए.
‘‘अब समझ आया,’’ रेवती बोली, ‘‘देखें, आज पितापुत्री का युद्ध कहां तक खिंचता है…’’ वह मुसकराई किंतु साथ ही उस के दिमाग में विचार आया…उस ने फटाफट सामान समेटा और किचन में घुस गई.
‘‘ममा…ममा…’’ सुगंधा के चीखने की आवाज उसे सुनाई दी.
‘‘आ गई मेरी लाडली…’’ वह मुसकराती हुई कमरे में आई. सुगंधा की पीठ उस की ओर थी, ‘‘ममा, मेरा पिंक टाप नहीं दिखाई दे रहा. आप ने देखा… और आज आप ने मेरा रूम भी ठीक नहीं किया,’’ कहतेकहते सुगंधा मुड़ी तो हैरानी से उस का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘ममा, आप मिडी में…वह भी स्लीवलेस मिडी में.’’
क्यों, ‘‘क्या हुआ…क्या तुम ही फैशन कर सकती हो…हम नहीं,’’ नरेंद्र ने पीछे से आ कर कहा.
‘‘ऐं…पापा, आप बरमूडा में…क्या चक्कर है. पापा, आप तो ये ड्रेस चेंज कीजिए. कैसे अजीब लग रहे हैं…और मम्मी आप भी…कोई देखेगा तो क्या कहेगा.’’
‘‘क्यों, क्या कहेगा…यही कि हम 21वीं सदी के पेरेंट्स हैं…तुम्हें इन ड्रेसेस में क्या खराबी नजर आ रही है?’’
‘‘इन ड्रेसेस में कोई खराबी नहीं है,’’ सुगंधा ने सिर झटका, ‘‘कैसे दिख रहे हैं इन ड्रेसेस को पहन कर आप लोग.’’
‘‘मुझे पापा मत कहो, डैड कहो,’’ नरेंद्र बोले.
‘‘ऐं, डैड…’’ सुगंधा चौंकी, ‘‘क्या हो गया है आप को…ममा, पानी ले कर आओ…पापा की तबीयत वाकई खराब है.’’
तब तक रेवती कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर पहुंच गई…सुगंधा ने कोल्डडिं्रक देख कर कहा, ‘‘हां, ममा, ये मुझे दो…आप पापा के लिए पानी ले कर आओ.’’
‘‘अरी हट….ये कोल्डडिं्रक तेरे पापा के लिए ही है…कह रहे हैं पानीवानी सब बंद, ओल्ड फैशन है…पीऊंगा तो केवल कोल्डडिं्रक या हार्डडिं्रक…’’
‘‘ऐं… ममा,’’ सुगंधा रोंआसी हो गई, ‘‘यह पापा को क्या हो गया है…’’
‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र ने फिर बीच में टोका.
‘‘अरे, छोड़ अपने पापा को,’’ रेवती बोली, ‘‘बोल, आज डिनर में क्या बनाऊं? पिज्जा, बर्गर, सैंडविच, मैगी…या…’’
‘‘ममा, सचमुच आज आप यह सब बनाओगी…’’ सुगंधा खुश हो कर बोली.
‘‘आज ही नहीं, हमेशा ही बनाऊंगी,’’ रेवती ने पलंग पर बैठते हुए कहा.
‘‘क्या मतलब ?’’ सुगंधा फिर चौंकी.
‘‘मतलब यह कि आज से मैं ने और तेरे पापा ने निर्णय लिया है कि जो तुझे पसंद है वही इस घर में होगा…तुझे अपने पापा से शिकायत रहती है न कि वे तुझे टोकते रहते हैं.’’
‘‘ममा, आज क्या हो गया है आप लोगों को.’’
‘‘हमें कुछ नहीं हुआ है, बेटा,’’ नरेंद्र ने प्यार से कहा, ‘‘हम तो अपनी बेटी के रंग में रंगना चाहते हैं ताकि घर में शांति बनी रहे.’’
‘‘हां, हां…ये बरमूडा और मिडी पहन कर आप लोग घर में शांति जरूर करवा दोगे लेकिन बाहर अशांति छा जाएगी…लोग क्या कहेंगे कि…’’
‘‘यही तो मैं कहता हूं…आज तुम्हें भी समझ आ गई, सू…’’
‘‘हां, आप लोगों को देख कर मुझे यह बात समझ आ रही है कि फैशन उतना ही अच्छा लगता है जो दूसरों की निगाह में न खटके.’’
‘‘मेरी समझदार बच्ची,’’ रेवती भावविह्वल हो कर बोली.
‘‘बेटा…क्या हमारे पास एकमात्र यही रास्ता रह गया है कि बदलते हुए परिवेश से समझौता कर लें या पुराणपंथी दकियानूसी लकीर के फकीर कहलाएं…’’
सुगंधा अवाक् अपने पिता को देख रही थी.
नरेंद्र कह रहे थे, ‘‘तुम लोगों के पास जोश तो है बेटा लेकिन होश नहीं…तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि तुम्हारी पीढ़ी भी कल पुरानी हो जाएगी…तुम्हें भी नई पीढ़ी से ऐसा ही व्यवहार मिलेगा तब तुम्हारी बात कोई सुनने को तैयार नहीं होगा…’’
‘‘ठीक कहते हैं आप…युवा वर्ग और बुजुर्ग आपस में एकदूसरे के पूरक हैं…केवल दृष्टिकोण और कार्यों में दोनों एकदूसरे से बिलकुल विपरीत हैं,’’ सुगंधा ने कहते हुए सिर हिलाया.
‘‘और इन दोनों में जब आपसी समझदारी हो तो दोनों वर्गों के कार्यों और परिणामों में सफलता मिलनी ही निश्चित है.’’
‘‘आज से मेरा उलटीसीधी बातों पर जिद करना बंद. मुझे पता होता
कि आप मुझे इतना प्यार करते हैं तो मैं आप को कभी दुखी नहीं करती, पापा.’’
‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र की इस बात पर तीनों खुल कर हंस पडे़ और हंसतेहंसते रेवती की आंखें बरस पड़ी यह सोच कर कि उस के समझदार पति ने उसे और उस की बेटी को दिशाहीन होने से बचा लिया.
अजीत ने एक नजर उस प्रौस्टिट्यूट बुनसृ को ऊपर से नीचे तक देखा. वह वाकई बहुत खूबसूरत थी. औसतन थाई लड़कियों से लंबी वह अमेरिकी या पश्चिमी देश की लग रही थी. अजीत को उस के साथ बिताई रात भूले नहीं भूलती थी. अजीत छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, मुंबई से कोलकाता मेल ट्रेन से पत्नी के साथ धनबाद जा रहा था. अभी 2 साल पहले ही उन की शादी हुई थी. अजीत बर्थ के नीचे सूटकेस रख कर उन्हें चेन से बांध रहा था. अंतरा बोली, ‘‘मैं ऊपर सो जाती हूं. तुम तो सुबह 5 बजतेबजते उठ जाते हो. मैं आराम से सोऊंगी 7-8 बजे तक.’’ थोड़ी देर में वह कौफी ले कर आया.
कौफी पीतेपीते ट्रेन भी खुल चुकी थी. कौफी पी कर अंतरा ऊपर की बर्थ पर सोने चली गई. अजीत बैडलाइट औन कर फिर मैगजीन पढ़ने लगा और इसी बीच उस को नींद भी आ गई थी. जब उस की नींद खुली, सवेरा हो चुका था. ट्रेन मुगलसराय प्लेटफौर्म पर खड़ी थी. बाहर चाय, समोसे, पूरी, अंडे व फल वाले वैंडर्स का शोर था. सामने वाली बर्थ के सज्जन उतर गए थे. वह बर्थ खाली थी. अजीत ने घड़ी में समय देखा, 6 बज रहे थे. उस ने अंदाजा लगाया कि ट्रेन लगभग 4 घंटे लेट चल रही थी. उस ने कंडक्टर से पूछा तो वह बोला, ‘‘उत्तर प्रदेश में आतेजाते ट्रेन लेट हो चली है क्योंकि दिसंबर में कोहरे के चलते दिल्ली से आने वाली सभी ट्रेनें लेट चल रही हैं.’’ तभी उस ने देखा कि एक लड़की दौड़ीदौड़ी आई और उसी कोच में घुसी. ठंड के चलते उस ने शौल से बदन और चेहरा ढक रखा था.
सिर्फ आंखें भर खुली थीं. वह लड़की सामने वाली बर्थ पर जा बैठी. तब तक पैंट्री वाला कोच में चाय ले कर आया. अजीत ने उस से एक कप चाय मांगी और सामने वाली लड़की से भी पूछा, ‘‘मैडम, चाय लेंगी?’’ उस लड़की ने अजीत की ओर बहुत गौर से देखा और चाय वाले से कहा, ‘‘हां, एक कप चाय मु झे भी देना.’’ चाय पीने के लिए उस ने अपने चेहरे से शौल हटाई, तो अजीत उसे देर तक देखता रह गया. वह लड़की भी अजीत को देखे जा रही थी. फिर सहमती हुए बोली, ‘‘आप, अजीत सर हैं न. वाय थान, खा (हैलो सर).?’’ ‘‘और तुम बुनसृ? वाय खाप (हैलो)’’ उसे अपनी थाईलैंड यात्रा की यादें तसवीर के रूप में आंखों के सामने दिखने लगीं. वह लगभग 5 साल पहले अपने एक दोस्त के साथ थाईलैंड घूमने गया था. अजीत का थाईलैंड में एक सप्ताह का प्रोग्राम था. 4 दिनों तक दोनों दोस्त बैंकौक और पटाया में साथसाथ घूमे. दोनों ने खूब मौजमस्ती की थी. इस के बाद उस के दोस्त को कोई लड़की मिल गई और वह उस के साथ हो लिया. उस ने अजीत से कहा, ‘हम लोग इंडिया लौटने वाले दिन उसी होटल में मिलते हैं जहां पहले रुके थे.’ थाईलैंड में प्रौस्टिट्यूशन अवैध तो है पर प्रौस्टिट्यूट वहां खुलेआम उपलब्ध हैं.
वहां की अर्थव्यवस्था में टूरिज्म का खासा योगदान है. यहां तक कि लड़कियों की फोटो, जिन में अकसर लड़कियां टौपलैस होती हैं, स्क्रीन पर देख कर मनपसंद लड़की चुनी जा सकती है. इसी के चलते अनौपचारिक रूप से वहां यह धंधा फलफूल रहा है. अजीत के पीछे भी एक लड़की पड़ गई थी. उस ने अजीत से कहा, ‘वाय खा, थान (हाय सर, नमस्कार).’ फिर इंग्लिश में कहा, ‘आप को थाईलैंड की खूबसूरत रातों की सैर कराऊंगी मैं. ज्यादा पैसे नहीं लूंगी, आप को जो ठीक लगे, दे देना.’ ‘नहीं, मु झे कुछ नहीं चाहिए तुम से.’ ‘सर, बहुत जरूरत है पैसों की. वरना आप से इतना रिक्वैस्ट न करती.’ अजीत ने इस बार एक नजर उसे ऊपर से नीचे तक देखा. लड़की वाकई बहुत खूबसूरत थी. औसतन थाई लड़कियों से लंबी, चेहरा भी थाई लड़की जैसा नहीं लग रहा था.
कुछ अमेरिकी या पश्चिमी देश की लड़की जैसी लग रही थी. अजीत को वह लड़की भा गई बल्कि उस पर दया आ गई. उस ने पूछा, ‘तुम्हारा क्या नाम है?’ ‘मेरा नाम बुनसृ है सर. वैसे, नाम में क्या रखा है?’ ‘बुनसृ का अर्थ इंग्लिश में क्या हुआ?’ ‘ब्यूटीफुल,’ उस ने कुछ शरमा कर, कुछ मुसकरा कर कहा. ‘देखा नाम में क्या रखा है. जितनी सुंदर हो वैसा ही सुंदर नाम है. अच्छा, तुम क्या दिखाओगी मु झे? यहां तो लड़कियों की लाइन लगी है.’ ‘आप जैसा चाहें, रात साथ गुजारना या सैरसपाटा या फिर फुल मसाज.’ ‘मु झे यहां के कैसीनो ले चलोगी?’ ‘यहां जुआ गैरकानूनी है पर चोरीछिपे सब चलता है. चलिए, मैं आप को ले चलती हूं.’ अजीत बुनसृ के साथ कैसीनो गया. इत्तफाक से वह जीतने लगा और बुनसृ उसे और खेलने को कहती रही. उस ने करीब 10 हजार भाट जीते. रात के 2 बज चुके थे.
वह बोला, ‘बहुत हुआ, अब चलें?’ ‘हां, अब बाकी रात भी आप की सेवा में हाजिर हूं. कहां चलें, होटल?’ ‘हां होटल जाऊंगा पर सिर्फ मैं. तुम अपने पैसे ले कर जा सकती हो,’ और अजीत ने उसे 200 भाट देते हुए पूछा, ‘इतना ठीक है न?’ बुनसृ ने हां बोल कर फोन पर किसी से बात की, फिर कहा, ‘आधे घंटे में मेरा आदमी आ जाएगा, तब तक आप के साथ रहूंगी.’ ‘वह आदमी कौन था, तुम्हारा दलाल?’ ‘छी, सर, प्लीज. ऐसा न कहें. वह मेरा हसबैंड है. मु झे शाम को छोड़ जाता है और जब फोन करती हूं, आ कर ले जाता है. हम यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव में रहते हैं. मेरे पति को बिजनैस में बहुत घाटा हुआ था. उस का एक पैर भी खराब है. मेरी मां भी बीमार रहती है. हमारे चावल के खेत हैं पर सिर्फ उस से गुजारा नहीं हो पाता है. मजबूरी में उन लोगों की मरजी से यह सब करती हूं.’ थोड़ी देर में बुनसृ का आदमी आ गया. उस ने बुनसृ से कुछ कहा और बुनसृ ने अजीत से कहा, ‘आप का शुक्रिया अदा कर रहा है.
बोलता है, इतनी जल्दी छुट्टी दे दिया सर ने.’ चलतेचलते बुनसृ ने कहा, ‘आज आप का लकी डे था. कल कहें तो आप की सेवा में आ जाऊं. कुछ और आजमा सकते हैं टोटे में.’ ‘वह क्या है?’ ‘हौर्स रेस में बैटिंग.’ ‘ओके, आ जाना, देखें तुम्हारा साथ कितना लकी होता है.’’ दूसरे दिन बुनसृ अजीत को रेस कोर्स ले गई. जिस घोड़े पर अजीत ने बाजी लगाई वह जीत गया. उसे जैकपौट मिला था. उसे 8 हजार भाट मिले. बुनसृ बोली, ‘यू आर वैरी लकी सर.’ ‘पता नहीं मेरा समय अच्छा था या तुम्हारे साथ का असर है यह.’ ‘अब कहां चलें, सर?’ ‘मेरे होटल चलोगी?’ ‘मेरा तो काम ही है यह.’ ‘नहीं, थोड़ी देर साथ बैठेंगे. डिनर के बाद तुम जा सकती हो.’ ‘क्यों सर, मैं अच्छी नहीं लगी आप को, कल भी आप ने यों ही जाने दिया था?’ ‘अरे नहीं, तुम तो बहुत अच्छी हो. अच्छा बताओ, तुम थाई से ज्यादा अमेरिकी क्यों लगती हो?’ ‘यह भी एक कहानी है. विएतनाम वार के समय 1975 तक अमेरिकी फौजें यहां थीं.
हमारी जैसी मजबूर औरतों को पैसा कमाने के लिए उन फौजियों का मन बहलाना पड़ता था. उस के बाद भी हर साल यहां खोरात एयरबेस पर अमेरिकी, थाई, सिंगापुर और जापान से आए मैरीन का सा झा अभ्यास होता है. उस में भी थाई औरतें कुछ कमा ही लेती हैं. मेरी मां भी उन में से एक रही होगी. उस का जीवन भी गरीबी में बीता है. इसीलिए देखने में मैं आम थाई लड़कियों से अलग हूं,’ बुनसृ बेबाक बोली. रास्ते में लौटते समय अजीत ने बुनसृ के लिए कुछ अच्छे ड्रैस खरीद कर उसे गिफ्ट किए. फिर वे होटल पहुंचे. कुछ देर दोनों ऐसे ही बातें करते रहे थे. फिर अजीत ने डिनर रूम में ही लाने का और्डर दिया. इसी बीच उस के दोस्त का फोन आया. उस ने बताया कि देररात वह आ रहा है. ‘अब तुम जाने के लिए फ्री हो,’ डिनर के बाद अजीत ने बुनसृ से कहा. ‘सच, इतनी जल्दी तो कोई ग्राहक मु झे छुट्टी नहीं देता है.’
‘पिछले 2 दिनों से मैं तुम्हारे साथ हूं. कभी मैं ने ग्राहक जैसा बरताव किया है?’ ‘सौरी, सर.’ ‘अच्छा, आज निसंकोच बोलो, तुम्हें कितने पैसे दूं.’ ‘आप जो चाहें दे दें, मु झे सहर्ष स्वीकार होगा. वैसे, मेरा हक तो कुछ भी नहीं बनता है.’ अजीत ने बुनसृ को पूरे 18,000 भाट दिए. बुनसृ आश्चर्य से उसे देखे जा रही थी. ‘ऐसे क्या देखे जा रही हो. ये पैसे मैं इंडिया से नहीं लाया हूं. ये तुम ने मु झे जितवाए हैं. इन्हें तुम ही रख लो. ना मत कहना वरना मैं नाराज हो जाऊंगा.’ बुनसृ अचानक अजीत से लिपट पड़ी और रोने लगी. अजीत ने उसे अलग कर कहा, ‘रोना बंद करो. यहां से हंसते हुए जाओ. और हो सके तो यह पेशा छोड़ देना.’ ‘सर, आप ने मु झे फर्श से अर्श पर बिठा दिया है. इन पैसों से अपना बिजनैस शुरू करूंगी.’ अगले दिन एयरपोर्ट पर बुनसृ अपने पति के साथ अजीत को विदा करने आई थी. उस समय दोनों में से किसी ने एकदूसरे का फोन नंबर लेने की जरूरत न महसूस की होगी शायद. आज कई सालों बाद वह दिखी तो भी भारत में.
चाय टेबल पर रख वह उठ खड़ी हुई और अजीत से लिपट पड़ी थी. कोच में हलचल और अपने पास की आहट सुन कर ऊपर की बर्थ पर अजीत की पत्नी अंतरा की नींद खुल गई थी. दोनों को आलिंगनबद्ध देख कर वह आश्चर्यचकित थी. अंतरा भी नीचे उतर आई. बुनसृ ने अपने को अलग किया. अजीत ने परिचय कराया, ‘‘यह मेरी पत्नी अंतरा है.’’ फिर अंतरा से बोला, ‘‘यह वही थाई लड़की है. मैं ने तुम से कहा था न कि इस के साथ जितने पैसे मैं ने जुए में जीते थे, सब इसी को दे दिए थे.’’ ‘‘वाय, स्वासदी का हम्म (हैलो, गुड मौर्निंग मैडम),’’ बुनसृ ने अंतरा को कहा. बुनसृ ने पैंट्रीबौय से अंतरा को भी चाय देने को कहा. फिर काफी देर तक तीनों में बातें होती रहीं. अजीत ने बुनसृ से पूछा, ‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’ ‘‘मैं पहले बैंकौक से सीधे वाराणसी आई. सारनाथ गई. अब मु झे बोधगया जाना है. मेरे जीवन की यह बड़ी इच्छा थी, आज साकार होने जा रही है.’’ ‘‘और तुम्हारा पति क्यों नहीं आया?’’ ‘‘आप के चलते,’’ और वह हंस पड़ी थी.
अजीत और अंतरा दोनों चकित हो उसे देखने लगे थे. ‘‘हां सर, आप से मिलने के बाद मेरे समय ने गजब का पलटा खाया है. आप के पैसों से हम ने छोटा सा टूरिस्ट सेवा केंद्र खोला था. उस समय बस एक पुरानी कार थी हमारे पास. अब बढ़तेबढ़ते आधा दर्जन कारें हैं हमारे पास. टूरिस्ट सीजन में मैं औरों से भी रैंट पर कार ले लेती हूं. हम दोनों एकसाथ थाईलैंड से बाहर नहीं निकलते हैं ताकि हमारे ग्राहकों को परेशानी न हो. सर, आप के स्नेह से हमारे दिन बदल गए. हम लोगों के पास आप का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं हैं.’’ वे बातें करते रहे. तब तक ट्रेन गया पहुंचने वाली थी. अजीत ने कहा, ‘‘बोधगया के बाद क्या प्रोग्राम है?’’ ‘‘कल शाम कोलकाता से मेरी बैंकौक की फ्लाइट है.’’ ‘‘मेरे यहां धनबाद एक दिन रुक नहीं सकती हो?’’ अंतरा ने पूछा.
‘मु झे खुशी होगी आप लोगों के साथ कुछ समय रह कर. अगली बार कोशिश करूंगी. पर आप लोग एक बार बैंकौक जरूर जाएं और सर. इस बार आप को थाईलैंड-कंबोडिया बौर्डर ले कर चलूंगी.’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘वहां अच्छे कैसिनोज हैं. विदेशियों के लिए गैंबलिंग लीगल है. शायद इस बार फिर लक साथ दे और आप ढेर सारा पैसा जीतें.’’ ‘‘पर इस बार उस में मेरा भी हिस्सा होगा,’’ अंतरा बोली. सभी एकसाथ हंस पड़े थे. ट्रेन गया प्लेटफौर्म पर थी. बुनसृ अपना सामान ले कर उतर पड़ी. अजीत और अंतरा दोनों कोच के दरवाजे पर खड़े थे. अंतरा बोली, ‘‘सुनो, गया में किसी पर आंख मूंद कर भरोसा न करना. प्लेटफौर्म पर ही टूरिज्म डिपार्टमैंट का बूथ है. वे लोग तुम्हारी मदद कर सकते हैं.’’ ‘‘ओके, थैंक्स. मैं आप की बात का खयाल रखूंगी. आप लोग थाईलैंड जरूर आना. बायबाय.’’ 5 मिनट में ट्रेन खुल पड़ी. बुनसृ गीली आंखों से हाथ हिला कर अजीत और अंतरा को विदा कर रही थी. जब तक आखिरी डब्बा आंखों से ओ झल नहीं हुआ, वह हाथ हिलाती रही. फिर अपनी शौल से ही गीली आंखों को पोंछती हुई गेट की ओर चल पड़ी थी.