बरसात की काई: भाग 2- क्या हुआ जब दीपिका की शादीशुदा जिंदगी में लौटा प्रेमी संतोष?

संतोष के आग्रह को दीपिका ठुकरा न सकी. कुछ घंटों की असहजता के बाद दोनों पहले की तरह घुलमिल गए. वही हंसीमजाक, वही मधुर स्वरलहरी भरा अभ्यास.

‘‘अपने अतीत में घटे हादसों पर शोकाकुल होने से अब क्या लाभ? जो होना था वह हो चुका. अब आगे की सुध लेने में ही समझदारी है,’’ अगले दिन अभ्यास के बाद उदास संतोष को दीपिका समझा रही थी. उसे संतोष का उदास चेहरा देख कर पीड़ा होती थी.

‘‘तुम्हें अपने सामने किसी और को देख मुझे जो पीड़ा होती है शायद तुम समझ नहीं सकतीं. तुम मेरी थीं और अब…’’ कहते हुए संतोष ने दीपिका की बांहें कस कर पकड़ लीं.

कुंआरी लाज को बचाए रखना हर लड़की को धरोहर में सिखाया जाता है.

लेकिन अब दीपिका कुंआरी नहीं थी, शादीशुदा थी. अब वह इस सीमा को लांघ चुकी थी. शादी के बाद उस ने मजबूरी में इस सीमा को लांघा, तो क्या अब अपनी खुशी के लिए नहीं लांघ सकती और फिर घर की चारदीवारी में किसी को क्या खबर लगेगी. फिर उस के पति ने स्वयं ही संतोष को उस के कमरे में धकेल दिया था. संतोष और दीपिका स्वयं को नहीं रोक सके. उन के प्यार का सागर उमड़ा और फिर बांध को तोड़ते चला गया.

इस घटना के बाद दीपिका का उन्मुक्त व्यवहार लौट आया था. उदय इस से काफी प्रसन्न था. उसे लग रहा था कि दीपिका संगीत में डूब कर इतनी खुश है.

‘‘कभी कोई स्वैटर हमारे लिए भी बना दो,’’ आसमानी रंग का स्वैटर देख उदय के मुंह में पानी आ गया, ‘‘क्या लाजवाब डिजाइन डाली है इस बार तुम ने.’’

‘‘अगली बार आप के लिए बना दूंगी, पक्का. यह तो अपने चचेरे भाई के लिए बना रही हूं. दरअसल, अगले महीने उस का जन्मदिन आ रहा है.’’

‘‘तो हो क्यों नहीं आतीं तुम अपने मायके? काफी अरसे से गई नहीं.’’

‘‘नहीं, नहीं, मुझे नहीं जाना. आप के खानेपीने का क्या होगा और फिर…’’

‘‘मैं कोईर् दुधमुंहा बच्चा हूं, जो इतनी चिंता करती हो? मायके जाने में भला कौन लड़की मना करती है? तुम तसल्ली से जाओ और सब से मिल कर आओ. मैं अपनी देखभाल खुद कर लूंगा,’’ उदय ने जोर दिया तो दीपिका मना न कर सकी.

‘‘अब क्या होगा, अब हम कैसे मिलेंगे? उस शहर में मिलना असंभव है, किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा,’’ आज दोपहरी में दीपिका का अभ्यास में बिलकुल मन नहीं लग रहा था.

‘‘तुम चिंता मत करो. तुम से मिले बिना मैं भी नहीं रह सकता हूं. कुछ सोचता हूं…’’ संतोष ने आखिर एक उपाय निकाल लिया, ‘‘तुम और मैं यहीं इसी शहर में किसी होटल में रह लेंगे 3-4 दिन. उदय को तुम खुद ही फोन करती रहना अपने मोबाइल से. होटल के कमरे से बाहर ही नहीं निकलेंगे तो कोई हमें देखेगा कैसे? हंस कर कहते हुए संतोष दीपिका के बदन पर अठखेलियां करने लगा.’’

टे्रन के टिकट हाथ में लिए उदय को बाय करती दीपिका ट्रेन में सवार हो गई. अगले स्टेशन पर संतोष उस की प्रतीक्षा कर रहा था. वहां से दोनों होटल चले गए. रिसैप्शन पर गलत नाम बताने की सोची, किंतु आजकल आईडैंटिटी पू्रफ, घर का पता, पैन कार्ड आदि की कौपी रखी जाती है, इसलिए असली नामपता बताते हुए दोनों की हालत खराब हो रही थी. हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जिन से मुंह छिपाते दीपिका को किसी कालगर्ल वाली अनुभूति हो रही थी.

‘‘मुझे पता होता कि ऐसा अनुभव रहेगा तो मैं कभी नहीं आती,’’ दीपिका को खुद पर गिलानी हो रही थी.

‘‘अब तो कमरे में आ गए हैं… छोड़ो न बातों को और आ जाओ मेरी बांहों में,’’ संतोष ऐसे लालायित था जैसे आज उस की सुहागरात हो.

‘‘ठहरो, पहले उदय को फोन कर के बता तो दूं कि मैं पहुंच गई हूं.’’

‘‘अरेअरे, यह क्या कर रही हो? अभी नहीं, तुम कल सवेरे पहुंचोगी. भूल गईं कि अभी तुम ट्रेन में सफर कर रही हो.’’

संतोष का अट्टहास दीपिका को जरा भी अच्छा नहीं लगा. एक ही कमरे में, बिना किसी लोकलाज के बावजूद दीपिका का यौवन संतोष की बांहों को टालने लगा. सिरदर्द का बहाना बना कर वह जल्दी सो गई.

अगली सुबह जब दीपिका ने चाय का और्डर दिया तो 2-3 वेटरों को उस ने अपनी ओर देख फुसफुसाते हुए पाया. ‘हो न हो ये हम दोनों के भिन्न नाम और पते के बारे में बात कर रहे होंगे… क्या सोच रहे होंगे ये मेरे बारे में… छि…’ दीपिका के मन का चोर बारबार सिर उठा रहा था.

‘‘अब तो फोन कर लूं उदय को? अब तक तो ट्रेन पहुंच गई होगी,’’ थोड़ीथोड़ी देर में यही राग अलापती दीपिका से संतोष भी परेशान हो उठा. बोला ‘‘हां, कर लो.’’

‘‘तुम्हारे चायपानी का इंतजाम तो ठीक है न? पता नहीं कैसे यह ट्रेन लेट हो गई. अकसर तो समय पर पहुंचती है,’’ उदय के सुर में चिंता घुली थी. शुक्र है दीपिका ने फोन उठाते ही यह नहीं कहा कि मैं ठीक से पहुंच गई. एक बार फिर वह बच गई. वह बहुत घबरा गई. बोली, ‘‘यदि मेरे मुंह से निकल जाता कि मैं ठीकठाक पहुंच गई तो क्या होता, संतोष?’’

‘‘कहा तो नहीं न. मत घबराओ इतना. कल वैसे ही तुम्हारे सिर में दर्द था. आज सोचसोच कर और सिरदर्द कर लोगी,’’ इस चोरीछिपे की पिकनिक से न तो दीपिका खुश थी और न ही संतोष को चैन था.

‘‘चलो, आज नीचे रेस्तरां में चल कर नाश्ता कर के आते हैं. तुम्हारा थोड़ा मन बहल जाएगा,’’ संतोष बोला.

उदय के साथ रहने से दीपिका को स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता करने की आदत हो गईर् थी. उस ने ओट्स और आमलेट लिया. संतोष ने कालेज के दिनों की तरह आलू के परांठे और रायता मंगवाया.

‘‘दीपू, इतना हलका नाश्ता क्यों? पेट ठीक नहीं है क्या?’’ संतोष ने पूछा.

‘‘अब हम कालेज में पढ़ते लड़केलड़की नहीं रहे, संतोष. उम्र के साथ हमें अपना खानपान और मात्र भी बदलनी चाहिए. उदय कहते हैं कि…’’ पर फिर दीपिका संभल कर चुप हो गई.

यह क्या हो रहा था उसे… बारबार उदय का खयाल, उदय की बात. उदय का नाम सुन संतोष के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. दोनों ने चुपचाप नाश्ता किया और फिर कमरे में लौट आए.

‘‘मैं बहुत बोर हो रही हूं, चलो कहीं घूम आएं,’’ दीपिका के अनुरोध पर संतोष मान गया. कमरे में पड़ेपड़े टीवी देख कर वह भी उकता रहा था. देर शाम तक दोनों ने आसपास के बाजार की खाक छानी और रात को कमरे में लौट आए. कपड़े बदल कर दीपिका बिस्तर पर लेट तो गई, किंतु जैसे वह उदय को टालती थी, वैसे आज उस का हृदय संतोष को टालने को कर रहा था. यह अजीब अपराधबोध की भावना क्यों जकड़ रही थी उसे आज?

संतोष को वह टाल नहीं पाई. मगर उस की ठंडी प्रतिक्रिया पर संतोष ने शिकायत अवश्य की, ‘‘यह क्या यंत्रचालित सी व्यवहार कर रही हो आज? क्या हुआ है?’’

दीपिका ने कोई उत्तर नहीं दिया. उस का मन स्वयं नहीं समझ पा रहा था कि जिन घडि़यों के लिए वह तरसती रही, आज जब वे सामने हैं, तो क्यों वह भाग कर उन्हें नहीं पकड़ लेना चाहती?

उधार का रिश्ता: लिव इन रिलेशन के सपने देख रही सरिता के साथ क्या हुआ?

टैलीफोन की घंटी लगातार बजती जा रही थी. मैं ने उनीदी आंखों से घड़ी की ओर देखा. रात के 2 बजे थे. ‘इस समय कौन हो सकता है?’ मैं ने स्वयं से ही सवाल किया और जल्दी से टैलीफोन का रिसीवर उठाया, ‘‘मेजर रंजीत दिस साइड.’’

‘‘सर, कैप्टन सरिता ने आत्महत्या कर ली है’’ औफिसर्स मैस के हवलदार की आवाज थी. वह बहुत घबराया हुआ लग रहा था.

‘‘क्या?’’

‘‘सर, जल्दी आइए.’’

‘‘घबराओ मत, मैं तुरंत आ रहा हूं. किसी को भी मेरे आने तक किसी चीज को हाथ मत लगाने देना.’’

‘‘जी सर.’’

मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि कैप्टन सरिता ऐसा कर सकती है. वह एक होनहार अफसर थी. मैं नाइट सूट में था और उन्हीं कपड़ों में औफिसर्स मैस की ओर भागा. वहां पहुंचा तो कैप्टन नीरज और कैप्टन वर्मा पहले से मौजूद थे. कैप्टन नीरज ने सरिता के कमरे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘सर, इस ओर.’’

‘‘ओके,’’ हम सब कैप्टन सरिता के कमरे की ओर बढ़े. नाइलौन की रस्सी का फंदा बना कर वह सीलिंग फैन से झूल गई थी.

‘‘सब से पहले कैप्टन सरिता को इस अवस्था में किस ने देखा?’’  मैस स्टाफ से मैं ने पूछा.

‘‘सर, 10 बजे मैम ने गरम दूध मंगवाया था. मैं दूध देने आया तो मैम लैपटौप पर काम कर रही थीं. मैं ने दूध का गिलास रख दिया. उन्होंने कहा, ‘आधे घंटे में गिलास ले जाना.’ मैं ‘जी’ कह कर लौट आया. आ कर कुरसी पर बैठा तो मेरी आंख लग गई. आंख खुली तो देखा कि मैम के कमरे की लाइट जल रही थी. सोचा, खाली गिलास उठा लाता हूं. मैम के कमरे में आया तो उन को पंखे से लटके देखा. मैं ने उन का चेहरा देख कर अनुमान लगाया था कि वे मर चुकी हैं. तुरंत आप को सूचित किया.’’

‘‘क्या तुम्हें इस बात का ध्यान नहीं रहा कि इतनी रात गए किसी महिला अफसर के कमरे में नहीं जाना चाहिए?’’ मैं ने मैस हवलदार को घूरते हुए कहा.

‘‘सर, मुझे समय का ध्यान नहीं रहा. मैं ने घड़ी की ओर देखा ही नहीं. मैं ने सोचा, मेरी आंख लगे अधिक देर नहीं हुई है. इसलिए चला गया, सर.’’

मैं ने देखा, मैस हवलदार एकदम डर गया है. शायद उसे लग रहा था कि इस छोटी सी गलती के लिए उसे ही न फंसा दिया जाए.

‘‘कैप्टन नीरज, देखो कोई सुसाइड नोट है या नहीं? तब तक मैं मिलिटरी पुलिस को इस की सूचना दे देता हूं,’’ यह कहते हुए मैं टैलीफोन की ओर बढ़ा. मैं ने नंबर डायल किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सर, मैं डेस्क एनसीओ हवलदार राम सिंह बोल रहा हूं.’’

इधर से मैं ने कहा, ‘‘मैं ओएमपी से मेजर रंजीत सिंह बोल रहा हूं. मुझे आप के ड्यूटी अफसर से तुरंत बात करनी है.’’

‘‘सर, एक सेकंड होल्ड करें, मैं लाइन ट्रांसफर कर रहा हूं,’’ राम सिंह ने कहा.

कुछ समय बाद दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘ड्यूटी अफसर कैप्टन डोगरा स्पीकिंग, सर, इतनी रात गए कैसे याद किया?’’

‘‘एक बुरी खबर है कैप्टन डोगरा. कैप्टन सरिता कमीटैड सुसाइड,’’ मैं ने उसे बताया.

‘‘ओह, सर, यह तो बहुत बुरी खबर है. सर, किसी को बौडी से छेड़छाड़ न करने दें. मैं अभी टीम भेज रहा हूं. प्लीज मेजर साहब, डू इनफौर्म टू ब्रिगेड मेजर इन ब्रिगेड हैडक्वार्टर. आई विल आलसो इनफौर्म हिम.’’ यह कह कर कैप्टन डोगरा ने फोन काट दिया.

मैं ने तुरंत बीएम साहब को फोन लगाया. दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘यस, मेजर बतरा स्पीकिंग.’’

‘‘मेजर रंजीत दिस साइड,’’ मैं ने कहा.

‘‘इन औड औवर्स? इज देयर ऐनी इमरजैंसी, मेजर रंजीत?’’

‘‘यस, कैप्टन सरिता कमीटैड सुसाइड.’’

‘‘ओह, सैड न्यूज, मेजर. हैव यू इनफौर्म मिलिटरी पुलिस?’’

‘‘यस, मेजर.’’

‘‘ओके, प्लीज डू नीडफुल.’’

‘‘राइट, मेजर.’’

मैं अभी फोन कर के हटा ही था कि मिलिटरी पुलिस की टीम आ गई. उस टीम में 1 सूबेदार और 2 हवलदार थे. उन्होंने मुझे सैल्यूट किया और चुपचाप अपने काम में लग गए. इतने में कैप्टन नीरज मेरे पास आया और कहा, ‘‘सर, और कुछ तो मिला नहीं, लेकिन यह डायरी मिली है. मैं मिलिटरी पुलिस की टीम से बचा कर ले आया हूं. सोचा, टीम के देखने से पहले शायद आप देखना चाहें.’’

‘‘गुड जौब, कैप्टन नीरज.’’

‘‘थैंक्स, सर.’’

‘‘कैप्टन नीरज, हैडक्लर्क को मेरे पास भेजो.’’

‘‘राइट, सर.’’

थोड़ी देर बाद हैडक्लर्क साहब आए, सैल्यूट किया और चुपचाप आदेश के लिए खड़े हो गए. मैं ने उन्हें गहराई से देखा और कहा, ‘‘यू नो, व्हाट हैज हैपेंड?’’

‘‘यस सर.’’

‘‘गिव टैलीग्राम टू हर पेरैंट्स. जस्ट राइट डाउन, कैप्टन सरिता एक्सपायर्ड, गिव नियरैस्ट रेलवे स्टेशन ऐंड माई सैल नंबर. डोंट राइट वर्ड सुसाइड.’’

‘‘राइट, सर.’’

‘‘मेक दिस टैलीग्राम मोस्ट अरजैंट.’’

‘‘सर, हम सैल से भी इनफौर्म कर सकते हैं.’’

‘‘कर सकते हैं, पर इस समय हम इस अवस्था में नहीं हैं कि उन से बात कर सकें. जस्ट डू इट, इट इज माई और्डर.’’

‘‘यस, सर,’’ हैडक्लर्क साहब ने सैल्यूट किया और चले गए.

हैडक्लर्क साहब गए तो मेरे सेवादार ने आ कर कहा, ‘‘सर, ब्रिगेड कमांडर साहब आप को याद कर रहे हैं. उन्होंने कहा है, जिस अवस्था में हों, आ जाएं.’’

‘‘उन के साथ और कोई भी है?’’

‘‘सर, बीएम साहब हैं.’’

‘‘ठीक है, तुम उन को औफिस में ले जा कर बैठाओ. उन्हें पानी वगैरह पिलाओ, तब तक मैं आता हूं.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह चला गया लेकिन मैं खुद पिछली यादों में खो गया.

अभी पिछले सप्ताह की ही तो बात है, ब्रिगेड औफिसर्स मैस की पार्टी में कैप्टन सरिता ब्रिगेडियर यानी ब्रिगेड कमांडर साहब से चिपक कर डांस कर रही थी. मुझे ही नहीं बल्कि पूरी यूनिट के सभी अफसरों को यह बुरा लगा था. मैं उस का कमांडिंग अफसर था. मेरा फर्ज था, मैं उसे समझाऊं. दूसरे रोज औफिस में बुला कर उसे समझाने की कोशिश भी की थी.

‘यह सब क्या था, कैप्टन सरिता?’

‘क्या था, सर?’ उलटे उस ने मुझ से सवाल किया था.

‘कल रात पार्टी में ब्रिगेडियर साहब के साथ इस तरह डांस करना क्या अच्छी बात थी?’ मैं ने उसे डांटते हुए कहा. कुछ समय के लिए वह झिझकी फिर बड़े साफ शब्दों में बोली, ‘सर, मैं उन के साथ रिलेशन में हूं.’

‘क्या बकवास है यह? जानती हो तुम क्या कह रही हो? तुम कैप्टन हो, वे ब्रिगेडियर हैं. तुम्हारे और उन के स्टेटस में जमीनआसमान का फर्क है. वे शादीशुदा हैं, 2 बच्चे और एक सुंदर बीवी है. तुम उन के साथ कैसे रिलेशन रख सकती हो? थोड़ा सा भी दिमाग है तो जरा सोचो.’

‘सर, उन्होंने कहा है, वे मेरे साथ लिव इन रिलेशन में रहेंगे. वे अपने बीवीबच्चों को भी खुश रखेंगे और मुझे भी.’

‘माइ फुट. वह तुम्हें यूज करेगा और छोड़ देगा. वह मर्द है, सरिता, मर्द. उस को कुछ फर्क नहीं पड़ता, वह चाहे 10 के साथ संबंध रखे. तुम लड़की हो, एक कुंआरी लड़की, तुम्हारा ब्राइट कैरियर है. जरा सोचो, लोग, तुम्हारे मांबाप, समाज, सब तुम्हें उस की रखैल कहेंगे और रखैल को समाज में अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता.’

मैं ने उसे हर तरह से समझाने की कोशिश की थी. उस ने मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया था, केवल सैल्यूट किया और मेरे औफिस से बाहर चली गई थी. मैं सोचने लगा कि ‘लिव इन रिलेशन’ कैसा रिश्ता है जो धीरेधीरे समाज की युवा पीढ़ी में फैलता जा रहा है, बिना इस के परिणाम सोचे. मैं दूरदूर तक इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रहा था. मैं खुद को असहाय महसूस कर रहा था. इसी स्थिति में मैं औफिस पहुंचा. हालांकि मुझ से कहा गया था कि मैं जिस स्थिति में हूं वैसे ही आ जाऊं लेकिन मैं यूनीफार्म में पहुंचा. मुझे नाइट सूट में जाना अच्छा नहीं लगा, वह भी अपने सीनियर अधिकारी के समक्ष.

औफिस में आते ही मैं ने ब्रिगेडियर साहब व बीएम साहब को सैल्यूट किया और अपनी कुरसी पर आ कर बैठ गया. सुबह के 8 बज चुके थे. सभी जवान और अधिकारी काम पर आ चुके थे. अर्दली मेरे औफिस के बाहर आ कर खड़ा हो गया था.

‘‘आस्क अर्दली टू क्लोज द डोर ऐंड नौट अलाऊ ऐनीबडी टू कम इन,’’ ब्रिगेडियर साहब ने कहा.

मैं ने अर्दली को बुला कर वैसा ही करने को कहा.

‘‘मेजर रंजीत, नाऊ टैल मी व्हाट इज योर ऐक्शन प्लैन?’’ बीएम साहब ने सीधे सवाल किया.

‘‘सर, मैं ने कैप्टन सरिता के पेरैंट्स को इनफौर्म कर दिया है, जिस में केवल उस की मौत की बात लिखी है. सुसाइड के बारे में कुछ नहीं कहा है. मिलिटरी पुलिस ने बौडी उतार कर पोस्टमौर्टम के लिए भेज दी है. और मामले की जांच कराने के लिए मैं ने अपने सहायक को निर्देश दे दिया है कि वह ब्रिगेड हैडक्वार्टर को निवेदन कर दे.’’

‘‘ओके, फाइन,’’ बीएम ने कहा.

‘‘अब आगे, सर?’’ बीएम साहब ने अब ब्रिगेड कमांडर साहब से कहा.

कमांडर साहब बोले, ‘‘मेजर रंजीत, यह आप के हाथ में कैप्टन सरिता की डायरी है?’’

‘‘जी सर.’’

‘‘आप ने पढ़ा इसे?’’

‘‘नहीं सर, मैं पढ़ नहीं पाया.’’

‘‘मैं मानता हूं, जो कुछ हुआ, गलत हुआ. कैप्टन सरिता जैसी होनहार अफसर इस कदर भावना में बह कर अपनी जान गंवा देगी, मैं ने इस का अंदाजा नहीं लगाया था.’’

ब्रिगेड कमांडर साहब के चेहरे से दुख साफ झलक रहा था, लगा जैसे उस की मौत में कहीं न कहीं वे स्वयं को भी दोषी मानते हों.

‘‘रंजीत, क्या कैप्टन सरिता को औन ड्यूटी शो नहीं किया जा सकता?’’

मैं ब्रिगेड कमांडर साहब को कैप्टन सरिता का हत्यारा मानता था. कैप्टन सरिता तो बच्ची थी लेकिन वे तो बच्चे नहीं थे. वे उसे समझाते तो संभवत: यह नौबत न आती. लेकिन आज वे एक अच्छा काम करने जा रहे थे. मन के भीतर अनेक प्रकार के विरोध होने पर भी, कैप्टन सरिता के परिवार वालों के लिए मैं इस का विरोध नहीं कर पाया और कहा, ‘‘सर, ऐसा हो जाए तो बहुत अच्छा होगा.’’

‘वैसे भी इस आत्महत्या को हत्या साबित करना बहुत कठिन था,’ मैं ने सोचा.

‘‘ओके, मेजर बतरा, मेरे औफिस में एक मीटिंग का प्रबंध करो. ओसी प्रोवोस्ट यूनिट (मिलिटरी पुलिस), कमांडैंट मिलिटरी अस्पताल और इंक्वायरी करने वाली कमेटी के चेयरमैन को बुलाओ. मेजर रंजीत तुम भी जरूर आना, प्लीज.’’

‘‘राइट सर. एट व्हाट टाइम, सर?’’

‘‘11 बजे और कोर्ट औफ इंक्वायरी के लिए जो आप लैटर लिखें उस में सुसाइड शब्द का इस्तेमाल मत करें, जस्ट यूज डैथ औफ कैप्टन सरिता.’’

‘‘सर’’ मेरे इतना कहते ही सब उठ कर चले गए. मैं ने असिस्टैंट साहब को बुलाया और कैप्टन सरिता की डैथ के संबंध में ब्रिगेड हेडक्वार्टर को लिखे जाने वाले लैटर के लिए आदेश दिए. मैं ने अर्दली को बुला कर चायबिस्कुट लाने के लिए कहा. वह ले आया तो धीरेधीरे चाय की चुसकियां लेने लगा. मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं बंगले पर जा कर नाश्ता करता और फिर मीटिंग पर जाता. मैं कैप्टन सरिता की डायरी को भी एकांत में पढ़ना चाहता था, इसलिए उसे औफिस के लौकर में बंद कर दिया.

11 बजने में 10 मिनट बाकी थे जब मैं ब्रिगेड हैडक्वार्टर के मीटिंग हौल में पहुंचा. सभी अधिकारी, जिन्हें बुलाया गया था,आ चुके थे, केवल बीएम साहब और कमांडर साहब का इंतजार था. मैं ने सभी अधिकारियों को सैल्यूट किया और अपने लिए निश्चित कुरसी पर जा कर बैठ गया.

ठीक 11 बजे बीएम साहब और ब्रिगेड कमांडर साहब आए. सभी ने उठ कर उन का अभिवादन किया. सभी के बैठ जाने के बाद कमांडर साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘जैंटलमेन, आप सब जानते हैं, हम यहां क्यों इकट्ठे हुए हैं? मैं आप का अधिक समय न लेते हुए सीधी बात पर आ जाता हूं. कैप्टन सरिता अब हमारे बीच नहीं है. शी हैज कमीटेड सुसाइड.’’

कुछ समय रुक कर कमांडर साहब ने अपनी बात की प्रतिक्रिया जानने के लिए सभी के चेहरों को गौर से देखा, ‘‘मैं मानता हूं, आत्महत्या को भारतीय सेना में अपराध माना गया है और ऐसा अपराध करने वालों के परिवार वालों को सेना और सरकार किसी प्रकार की सुविधा नहीं देती. वे सड़क पर आ जाते हैं जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया होता. इसलिए मैं चाहता हूं, कैप्टन सरिता की डैथ को औन ड्यूटी शो किया जाए जिस से उस के परिवार वालों को सभी सुविधाएं मिलें. आप लोगों के क्या विचार हैं, इसे जानने के लिए हम यहां एकत्रित हुए हैं.’’

काफी समय तक खामोशी छाई रही फिर प्रोवोस्ट यूनिट के ओसी कर्नल राजन बोले, ‘‘सर, ऐसा हो जाए तो इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. इसलिए नहीं कि कैप्टन सरिता एक अफसर थी बल्कि पिछले दिनों हवलदार जिले सिंह के केस में भी ऐसा किया गया.’’

‘‘और कर्नल सुरेश?’’ कमांडर साहब ने ओसी एमएच से पूछा.

‘‘सर, मुझे कोई एतराज नहीं है, केवल मिलिटरी पुलिस की इनीशियल रिपोर्ट को समझदारी से बदलना होगा.’’

कर्नल सुरेश के सवाल का जवाब कर्नल राजन ने दिया, ‘‘वह सब मैं बदल दूंगा.’’

‘‘फिर, पोस्टमौर्टम रिपोर्ट को मैं देख लूंगा.’’

‘‘कर्नल सुब्रामनियम, आप कोर्ट औफ इंक्वायरी की अध्यक्षता कर रहे हैं, आप को पता है, आप को क्या करना है?’’ कमांडर साहब ने पूछा.

‘‘सर.’’

‘‘तो जैंटलमैन, यह तय रहा कि कैप्टन सरिता के केस में क्या करना है?’’ कमांडर साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘कर्नल सुरेश, पोस्टमौर्टम रिपोर्ट में कारण ऐसा होना चाहिए जिसे कहीं भी चैलेंज न किया जा सके.’’

‘‘सर, ऐसा ही होगा.’’

‘‘ओके जैंटलमेन, मीटिंग अब खत्म. एक सप्ताह में सारा काम हो जाए.’’

मीटिंग समाप्त होने पर सभी अपनेअपने कार्यालय में चले गए. गाड़ी में बैठते ही मुझे कैप्टन सरिता की डायरी की याद आई. ड्राइवर ने जब इस आशय से मेरी ओर देखा कि अब कहां जाना है तो मैं ने उसे औफिस चलने के लिए कहा. औफिस पहुंच कर मैं ने डायरी निकाली और पढ़ने लगा :

‘‘मेरे सपनों के राजकुमार, सर, मैं मानती हूं, किसी कुंआरी लड़की का एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से प्यार करना सुगम नहीं है. इस का कोई औचित्य भी नहीं है परंतु मैं जिस माहौल में पल, पढ़ कर बड़ी हुई, उस में अधेड़ उम्र के व्यक्ति को पसंद किया जाता है. मेरे दादा मेरी दादी से बहुत बड़े थे, मेरी मां भी मेरे पिताजी से बहुत छोटी थीं. शायद यही कारण था, आप को जब पहली बार देखा तो आप की ओर आकर्षित हुए बिना न रह पाई. आप ने मुझे सब बताया कि आप के 2 बच्चे हैं, एक सुंदर बीवी है जिसे आप किसी भी तरह छोड़ नहीं सकते. मैं तो ‘लिव इन रिलेशन’ की बात कर रही थी जिसे आप ने मन की गहराइयों से माना और स्वीकार किया. यह रिलेशन एक लंबे समय तक चलता रहा.

‘‘सोचा था, किसी को कानोंकान खबर नहीं होगी लेकिन उस रोज आप की बीवी आईं और हमें रंगे हाथों पकड़ लिया. उन्होंने मुझे इतना बुराभला कहा कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई, इसलिए भी कि आप चुपचाप सुनते रहे. आप की कातर नजरों ने इस बात की घोषणा कर दी कि जिसे मैं ने ‘लिव इन रिलेशन’ का रिश्ता समझा था, वह तो उधार का रिश्ता था, जो अब टूट चुका है. सो, मैं ने सोचा कि मेरे जीने का अब कोई औचित्य नहीं है, इसीलिए मैं ने स्वयं को खत्म करने का निर्णय लिया है.’’

मैं ने डायरी बंद कर दी और इस सोच में डूब गया कि 1 सप्ताह के भीतर सबकुछ ठीक हो जाएगा. सरकार की ओर से कैप्टन सरिता के परिवार वालों को सारी सुविधाएं मिल जाएंगी यानी जब तक उस की सर्विस रहती तब तक के लिए पूरा वेतन, उस के बाद पैंशन भी. परंतु अब भी मेरे सामने अनेक सवाल मुंहबाए खड़े हैं. क्या किसी कुंआरी लड़की अथवा किसी ब्याहता का इस तरह ‘लिव इन रिलेशन’ में रहना और अपनी जान गंवाना ठीक है? मैं इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ़ पा रहा हूं.

बरसात की काई: भाग 1- क्या हुआ जब दीपिका की शादीशुदा जिंदगी में लौटा प्रेमी संतोष?

शाम ढलते देख कर दीपिका ने बिस्तर समेटना शुरू किया. उस के हलके भूरे रेशम से बाल बारबार उस के गुलाबी गालों पर गिर रहे थे और वह उन्हें बारबार अपनी कोमल उंगलियों से कानों के पीछे धकेल रही थी.

‘‘अब उठो भी… यह चादर समेटने दो,’’ कहते हुए दीपिका ने संतोष को हिलाया, जो अब भी बिस्तर पर लेटा था.

‘‘रहने दो न इन जुल्फों को अपने सुंदर मुखड़े पर… जैसे चांद को बादल ढकने की कोशिश कर रहे हों,’’ संतोष ने दीपिका को अपनी जुल्फें पीछे करते देख कहा.

‘‘शाम होने को आई है, जनाब. अब भी इन बादलों को घर नहीं भेजा तो आज तुम्हारे इस चांद को घरनिकाला मिल जाएगा, समझे?’’

‘‘तुम्हें किस बात का डर है? न घर की कमी है और न घर ले जाने वाले की… जिस दिन तुम हां कह दो उसी दिन मैं…’’

‘‘बसबस, हां कर तो चुकी हूं… अब जाओ भी. उदय घर आते ही होंगे… तब तक मैं सब ठीकठाक कर लूं,’’ दीपिका फटाफट हाथ चलाते घर व्यवस्थित करते हुए बोली, ‘‘कल कितने बजे आएंगे, गुरुदेव?’’

‘‘वही, करीब 12 बजे,’’ कहते ही संतोष कुछ सुस्त हो गया, ‘‘अब यों चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता मानो हम प्यार नहीं कोई गुनाह कर रहे हों.’’

‘‘गुनाह तो कर ही रहे हैं हम, संतोष.

यदि हमारी शादी हो गई होती तब अलग बात थी पर अब मैं उदय की पत्नी हूं… तुम मेरे घर में मेरे संगीत अध्यापक की हैसियत से आते हो. इस स्थिति में हमारा यह रिश्ता गुनाह ही तो हुआ न?’’

‘‘ऐसा क्यों भला? पहले हम दोनों ने प्यार किया… उदय तुम्हारी जिंदगी में बाद में आया. अगर तुम्हारे और मेरे घर वाले जातबिरादरी के चक्कर में न पड़ कर हमारे प्यार के लिए राजी हो गए होते और आननफानन में तुम्हारी शादी दूसरे शहर में न करवा दी होती तो…’’

‘‘छोड़ो पुरानी बातों को. यह क्या कम है कि दूसरे शहर में भी हम एकदूसरे से टकरा गए और एक बार फिर मिल गए. शायद प्रकृति को भी मेरे मन में तुम्हारे लिए इतना प्यार देख मुझ पर दया आ गई और उस ने हमारे समीप्य का रास्ता सुझा दिया.’’

दफ्तर से लौटने के बाद शाम ढले उदय बरामदे में बैठा शाम की चाय की  चुसकियां ले रहा था. दीपिका वहीं बैठी स्वैटर बुन रही थी. संतोष को दीपिका के हाथ से बनी चीजें बहुत भाती थीं. इसीलिए वह संतोष के लिए कभी स्वैटर तो कभी दस्ताने बुनती रहती. उदय के पूछने पर कह देती कि अपनी किसी सहेली या छोटे भाई के लिए बना रही है. फिर बनाने के बाद खुशी से अपने पहले प्यार संतोष को उपहारस्वरूप दे आती.

दीपिका और उदय की शादी को 2 वर्ष बीत चुके थे. इन 2 वर्षों की शुरुआत में दीपिका बेहद उदासीन रही. उदय सोचता कि नया शहर, नया साथी और नई जिंदगी के चलते वह अपने पुराने जीवन को याद कर उदास रहती है. किंतु असली वजह थी उस का प्यार संतोष का उस से बिछड़ जाना. दीपिका बारबार उस शाम को कोसती जब वह और संतोष मूवी देख कर बांहों में बांहें डाले लौट रहे थे कि बड़े भाई साहब से उन का अचानक सामना हो गया. बिजली ही टूट पड़ी थी. वहीं बाजार से घसीटते हुए उसे घर लाया गया था. अब उस का कमरा ही उस का संसार बना दिया गया था. न कोई मिलने आएगा, न वह किसी से मिलने जा सकेगी. ढाई दिन भूख हड़ताल भी की दीपिका ने, किंतु कोई न पिघला. पेट की ज्वाला ने उसे ही पिघला दिया. संतोष से मिलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. घर वाले पुराने विचारों के थे और ऊपर से संतोष विजातीय भी था.

‘अगर उस लड़के की जान की सलामत चाहती है, तो भूल जा उसे’, ‘एक बार आप आज्ञा दे दो भाई साहब उस कमीने के टुकड़े भी नहीं मिलेंगे,’ ‘मेरा मन करता है कि इस निर्लज्ज को ही जहर दे कर मार डालूं’ जैसे कठोर वाक्यों से उस की सुबह और शाम होने लगी थी. धीरेधीरे उस का मनोबल टूटने लगा था. फिर 15 दिनों के भीतर उस की शादी तय कर दी गई. उस की अपने होने वाले पति या आने वाली जिंदगी के बारे में कुछ भी जानने की लालसा नहीं थी. वह एक मुरदे की भांति वही करती गई, जो उस के घर वालों ने उस से करने को कहा. विवाहोपरांत वह दूसरे शहर में पहुंच गई जहां उदय की नौकरी थी. घर में केवल उस का पति और वह ही रहती थी. ससुराल वाले दूसरे शहर में रहते थे.

उदय बहुत अच्छा व्यक्ति था. किंचित गंभीर किंतु सरल. किसी भी लड़की के लिए ऐसा जीवनसाथी मिलना बेहद खुशी की बात होती. वह अपनी पत्नी की हर खुशी का ध्यान रखता. यहां तक कि सुहागरात पर दीपिका के चेहरे पर दुख की छाया देख उदय ने उसे जरा भी तंग नहीं किया. सोचा पहले वह अपने नए परिवेश में समा जाए.

कुछ दिन उदास रहने के बाद दीपिका ने भी अपना मन लगाने में ही भलाई समझी. वह अपने नए घर, अपने नए रिश्तों में अपनी खुशी तलाशने लगी.

उस शाम घर में एक छोटी सी पार्टी थी. उदय के सभी मित्र आमंत्रित थे. उदय के जिद करने पर दीपिका ने एक छोटा सा गीत सुनाया. सारी महफिल उस के सुरीले गायन पर झूम उठी थी. सभी वाहवाह करते नहीं थक रहे थे. उदय मंत्रमुग्ध रह गया था.

‘‘मुझे पता नहीं था कि मेरी बीवी ने इतना अच्छा गला पाया है. तुम संगीत की शिक्षा क्यों नहीं लेतीं? तुम्हारा मन भी लगा रहेगा और शौक भी पूरा हो जाएगा,’’ उस रात सब के जाने के बाद उदय ने कहा था.

दीपिका चुप रही थी. वह संगीत की कक्षा ही तो थी जहां उस की मुलाकात संतोष से हुईर् थी. दोनों के सुर इतनी अच्छी तरह से मेल खाते थे कि उन के गुरु ने स्वत: ही उन की जोड़ी बना दी थी. फिर साथ अभ्यास करतेकरते कब संगीत ने उन दोनों के दिल के तार आपस में जोड़ दिए, उन्हें पता ही नहीं चला. गातेगुनगुनाते दोनों एक उज्ज्वल संगीतमय भविष्य के सपने संजोने लगे थे. लेकिन उस एक शाम ने उन के सभी सपनों को चकनाचूर कर दिया था और आज फिर उदय संगीत का विषय ले बैठा था.

दीपिका के चुप रहने के बावजूद उस की इच्छाओं का ध्यान रखने वाले उस के पति ने इधरउधर से पता कर उस के लिए एक संगीत अध्यापक का इंतजाम कर दिया, ‘‘आज से रोज तुम्हें नए सर संगीत का अभ्यास करवाने आया करेंगे.’’

संतोष को अपने संगीत अध्यापक के नए रूप में देख कर दीपिका हैरान रह गई. विस्फारित आंखों उसे ताकती वह कुछ न बोल सकी. हकीकत से अनजान उदय ने दोनों की मुलाकात करवाई और फिर ‘आल द बैस्ट’ कहता हुआ दफ्तर चला गया.

‘‘तुम यहां कैसे? क्या मेरा पीछा करते हुए…?’’ दीपिका के मुंह से पहला वाक्य निकला.

‘‘नहीं दीपू, मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा. मैं तो इस शहर में रोजगार ढूंढ़ने आया और किसी के कहने पर यहां नौकरी की तलाश में पहुंच गया.’’

‘‘मुझे दीपू कहने का हक अब तुम खो चुके हो, संतोष. अब मैं शादीशुदा हूं. तुम्हारे लिए एक पराई स्त्री.’’

पता नहीं नियति को क्या मंजूर था, जो संतोष और दीपिका को एक बार फिर एकदूसरे के समक्ष खड़ा कर दिया था. अपनीअपनी जिंदगी में दोनों आगे बढ़ने को प्रयासरत थे, परंतु इस अप्रत्याशित घटना से दोनों को एक बारगी फिर धक्का लगा था.

‘‘मुझे तुम संगीत सिखाने आने दो दीपू. नहींनहीं दीपिका. फीस के पैसों से मेरी मदद हो जाएगी. उदय के सामने मैं कोई बात नहीं आने दूंगा, यह मेरा वादा रहा.’’

रिश्ता एहसासों का: क्या हो पाई नताशा और आदित्य की शादी?

चाइल्ड स्पैशलिस्ट पूरे रोहतक में डंका बजता. बच्चे को कोई भी तकलीफ हो बस उन्होंने अगर बच्चे को छू भी लिया तो सम झो वह ठीक. उन का एक ही बेटा था आदित्य. स्कूलिंग के लिए देहरादून में दून स्कूल में एडमिशन कराया.

डाक्टर रवि का सपना कि मेरा बेटा मु झ से भी काबिल डाक्टर बने. लेकिन आदित्य को तो कहीं और ही उगना था. उस का सपना था कि वह वर्ल्ड फेमस कोरियोग्राफर बनेगा.

खैर, स्कूल के बाद इसलिए कालेज की पढ़ाई करने मुंबई गया ताकि पढ़ाई भी पूरी हो जाए और शौक भी. पढ़ाई तो पूरी न हो सकी अलबत्ता शौक पूरा हो गया. कोरियोग्राफी सीखने लगा.

वहां पर किसी से मुहब्बत हो गई. मातापिता को बताया तो पापा बोले, ‘‘आदित्य, तेरी खुशी से बढ़ कर हमारे लिए इस जहां में और कुछ नहीं, अगर तु झे लगता है कि वह लड़की तेरे लिए सही है तो हमें क्या एतराज हो सकता है.’’

‘‘लेकिन पा… पा वो… वो… नताशा खान है,’’ आदित्य थोड़ा सा   झिझकते और हकलाते हुए बोला.

‘‘अरे तो क्या हुआ बेटा? तुम घबरा क्यों रहे हो. ये हिंदूमुसलिम हम इनसानों ने बनाए? कुदरत ने नहीं. उस ने तो केवल इनसान बनाया था… हम उस के मातापिता से बात करते हैं.’’

‘‘थैंक्यू पापा, थैंक्यू मम्मी…’’ वह खुश हो कर मांपापा के गले लग गया.

मगर उधर नताशा ने अपने घर में आदित्य के बारे में बताया तो भूचाल आ गया.

‘‘कान खोल कर सुन लो नताशा, आदित्य से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती और आज के बाद इस घर में मु झे आदित्य का नाम सुनाई नहीं देना चाहिए,’’ नताशा के डैड ने फरमान सुना दिया.

बात न बनती देख एक दिन नताशा ने

ठोस कदम उठाया और घर छोड़ कर चली आई आदित्य के पास.

बालिंग लड़की है, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. कोर्ट मैरिज कर ली. आदित्य के मातापिता को भी इस शादी को मानना ही था.

कैसा है आपसी तालमेल किसी को कुछ नहीं पता. या तो आदित्य जाने या वह जिस के साथ रहना है अर्थात आदित्य की पत्नी नताशा.

नताशा को कभी खाना तो दूर चाय तक बनानी नहीं आती थी. आदित्य बचपन से ही घर से दूर रहा. पहले देहरादून और फिर मुंबई. अकसर खाना बाहर का ही खाता. कभी जब घर आता तो मां के हाथ का खाना खा कर खुश हो जाता.

नताशा का कभी अगर घर में ही चाय पीने का मन होता तो वह भी आदित्य ही बना कर देता. नताशा को बनानी नहीं आती. आदित्य ने बहुत कहा, ‘‘नताशा, तुम थोड़ाबहुत मां से खाना बनाना सीख लो या कोई कुकिंग कोर्स कर लो.’’

नताशा का एक ही जवाब होता, ‘‘मु झ से यह तो होगा नहीं… मैं खाना बनाने के लिए नहीं पैदा हुई… ये इतने होटल किसलिए हैं?’’ रोज का यही काम तीनों समय खाना बाहर से ही आता.

 

एक बार बर्ड फ्लू फैला हर तरफ… न तो आदित्य को कुछ बनाना आता, न ही

नताशा बनाती. तब भी खाना बाहर से और्डर किया जाता.

आखिर शरीर है, कब तक बाहर का अनहाइजीनिक खाना सहन करता. मशीन में भी अगर तेल की जगह पानी या अन्य कोई गंदा तेल डालोगे तो वह भी खराब हो जाएगी.

आखिरकार आदित्य का शरीर भी अनहाइजैनिक खाना और अधिक सहन नहीं कर पाया. जवाब देने लगा. उस खाने को खा कर आदित्य अधिकतर बीमार रहने लगा. एक दिन बहुत बुरी तरह से पेट में दर्द उठा. तब डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया कि फूड पौइजनिंग हो गई है.

फूड पौइजनिंग इस हद तक हो गई कि

3 महीने तक इलाज चला तब जा कर ठीक हुआ, अभी ठीक हुआ ही था कि फिर से आदित्य को लगा कि उसे कुछ प्रौब्लम है क्योंकि उस के पेशाब में मवाद सा उसे महसूस हुआ और साथ ही अकसर कमजोरी रहने लगी. कामधाम सब बंद हो गया. डाक्टर को दिखाने पर पता चला कि दोनों गुरदे खराब हो चुके हैं.

आदित्य ने मातापिता को तब जा कर अपनी बीमारी के बारे में बताया. नताशा ने अब तक सोच लिया था कि वह आदित्य को छोड़ देगी. वह इस बीमार और लाचार व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती. आदित्य के मातापिता ने जब उस की बीमारी का सुना तो  झट से टैक्सी बुलाई और पहुंच गए बेटे के पास. डाक्टर से किडनी बदलने के लिए बात की. लेकिन किडनी दे कौन.  मातापिता दोनों ही शुगर और हार्ट पेशैंट हैं, अब रही नताशा, सो नताशा से कहा गया तो उस ने साफ शब्दों में कहा, ‘‘पापाजी मैं आदित्य को तलाक दे रही हूं. मैं अब इस व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती,’’ कह कर उस ने अपने मायके के लिए गाड़ी पकड़ी और चली गई.

अगले ही दिन कोर्ट से तलाक के कागज आदित्य के पास पहुंच गए. आदित्य ने चुपचाप उन पर हस्ताक्षर कर दिए और मातापिता आदित्य को अपने साथ ले लाए.

आदित्य अब डायलिसिस पर है, लेकिन वह खुश है, वह मां के पास है, वह खुश है कि वह घर का साफसुथरा मां के हाथों का बना खाना खाता है. वह चहक उठता है जब मां उस के लिए दलिया या खिचड़ी भी बना देती हैं. वह खुश है नताशा की हर पल की चिकचिक नहीं सुननी पड़ती.

इधर नताशा कुछ दिन मुंबई अपनी सहेली के घर पर रही. लेकिन उस ने महसूस किया कि सहेली उसे बो झ सम झती है, उस पर उस का पति किसी न किसी बहाने से उसे छूता रहता. कभी जब उस की सहेली घर पर न होती और वह अकेली होती तो घर आ जाता और उसे परेशान करने लगता. आखिर उसे अलग से किराए का घर ले कर रहना पड़ा.

मगर यह क्या वह तो यहां भी सुरक्षित नहीं. अकसर बौस घर तक छोड़ने के बहाने आते और घंटों उस के घर बैठे रहते. कभी चाय, कभी कौफी लेते. कभी बहाने से नितंबों पर तो कभी गालों पर चपत मार कर बात करते.

एक बार तो कस कर सीने को पकड़ लिया. दर्द से उस की चीख निकल गई, जिस से ऊपर के फ्लैट वाली रूबी ने पूछा लिया, ‘‘क्या हुआ नताशा, फिर से छिपकली देख ली क्या?’’

‘‘उफ, हां भाभी, हां बहुत बड़ी छिपकली है, चली गई अब,’’  झूठ बोलना पड़ा. बौस जो ठहरे और तब बौस भी चले गए.

मगर नताशा सम झ चुकी थी कि अकेले रहना आसान नहीं. आदित्य को तलाक दे चुकी है, अब मायके के सिवा कोई जगह नजर नहीं आ रही थी.

आखिर मायके का रुख किया. सोचा वहीं पर कोई छोटीमोटी नौकरी कर के गुजारा कर लेगी. मगर घर पर सुरक्षित तो रहेगी, मगर बोया बबूल तो आम कहां से पाओगे.

वही हाल नताशा का था. घर में कदम रखते ही वह सम झ गई कि उस की यहां किसी को जरूरत नहीं. बिन बुलाया मेहमान है वह. डैड ने तो आते ही कह दिया, ‘‘आ गई न फिर से मेरे घर, क्या दिया आदित्य ने? उस की औकात ही नहीं थी, जो तु झे रखता. अब यहां क्या लेने आई है? जहां से आई है वहीं वापस जा. यह मेरा घर है धर्मशाला नहीं.

मातापिता हर समय तिरस्कार करते. भाईभाभी भी नौकरों की तरह काम लेते. उस पर भी तिरस्कृत होती रहती. आखिर एक स्कूल में नौकरी लगी. सोचा कुछ कमाएगी तो कोई कद्र भी करेगा.

यहां भी नजरों से नताशा के रूप का रस पीने वाले हजारों कीड़े थे. एक टीचर ने तो एक दिन सरेआम हथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘नताशा डार्लिंग उस लौंडे से कुछ नहीं मिला क्या जो उसे छोड़ आई है?’’

उस पर दूसरा बोला, ‘‘अरे तो हम हैं न, इस की हर ख्वाहिश पूरी कर देंगे. एक बार हमें सीने से तो लगाए, हम तो कब से तड़प रहे हैं. नताशा डियर बोलो कब और कहां मिलें?’’

नताशा की आंखें भर आईं. आज उसे आदित्य की बेहद याद आने लगी. उस ने फिर से एक ठोस कदम उठाया. घर आई, अपना सामान पैक किया और चल पड़ी मुंबई वापस उन्हीं गलियों की तरफ.

 

रास्ते में ही आदित्य के नंबर पर फोन मिलाया. लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. नताशा

लगातार रोए जा रही थी और अपनेआप से ही बोलती जा रही थी कि आदी प्लीज एक बार फोन उठाओ, मु झे तुम से माफी मांगनी है, मु झे वापस अपने घर आना है, मु झे तुम्हारे पास आना है. प्लीज आदी एक बार फोन उठा लो मेरा.

3-4 कौल के बाद आदित्य के पापा ने फोन उठाया. कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो, पापाजी, पापाजी मैं नताशा बोल

रही हूं.’’

‘‘हां बेटा मैं जानता हूं, कहो, कुछ काम था?’’

‘‘हां पापाजी, मु झे आदित्य से, आप सब से मिलना है, पापाजी मैं बहुत बुरी हूं, लेकिन फिर भी आप की बेटी हूं, मु झे माफ कर दीजिए, पापाजी आदित्य से भी कहें मु झे माफ कर दे और एक बार मु झ से बात कर ले. मैं वापस आ रही हूं पापाजी, मैं अपने घर वापस आ रही हूं. आप सब से माफी मांगने और आप सब का प्यार लेने,’’ नताशा बोले जा रही थी और रोए भी जा रही थी.

‘‘किस से माफी मांगेगी बेटा, वह तो चला गया हमें छोड़ कर हमेशाहमेशा के लिए, अभीअभी उस का क्रिमिशन कर के आ रहे हैं.’’

‘‘क्या, नहीं पापाजी, ऐसा नहीं हो सकता, कह दो यह  झूठ है, कह दो, एक बार कह दो कि यह  झूठ है,’’ और फोन हाथ से छूट गया और वह जारजार रोने लगी.

अगली बार कब

उफ, कल फिर शनिवार है, तीनों घर पर होंगे. मेरे दोनों बच्चों सौरभ और सुरभि की भी छुट्टी रहेगी और अमित भी 2 दिन फ्री होते हैं. मैं तो गृहिणी हूं ही. अब 2 दिन बातबात पर चिकचिक होती रहेगी. कभी बच्चों का आपस में झगड़ा होगा, तो कभी अमित बच्चों को किसी न किसी बात पर टोकेंगे. आजकल मुझे हफ्ते के ये दिन सब से लंबे दिन लगने लगे हैं. पहले ऐसा नहीं था. मुझे सप्ताहांत का बेसब्री से इंतजार रहता था. हम चारों कभी कहीं घूमने जाते थे, तो कभी घर पर ही लूडो या और कोई खेल खेलते थे. मैं मन ही मन अपने परिवार को हंसतेखेलते देख कर फूली नहीं समाती थी.

धीरेधीरे बच्चे बड़े हो गए. अब सुरभि सी.ए. कर रही है, तो सौरभ 11वीं क्लास में है. अब साथ बैठ कर हंसनेखेलने के वे क्षण कहीं खो गए थे.

मैं ने फिर भी जबरदस्ती यह नियम बना दिया था कि सोने से पहले आधा घंटा हम चारों साथ जरूर बैठेंगे, चाहे कोई कितना भी थका हुआ क्यों न हो और यह नियम भी अच्छाखासा चल रहा था. मुझे इस आधे घंटे का बेसब्री से इंतजार रहता था. लेकिन अब इस आधे घंटे का जो अंत होता है, उसे देख कर तो लगता है कि यह नियम मुझे खुद ही तोड़ना पड़ेगा.

दरअसल, अब होता यह है कि हम चारों की बैठक खत्म होतेहोते किसी न किसी का, किसी न किसी बात पर झगड़ा हो जाता है. मैं कभी सौरभ को समझाती हूं, कभी सुरभि को, तो कभी अमित को.

सुरभि तो कई बार यह कह कर मुझे बहुत प्यार करती है कि मम्मी, आप ही हमारे घर की बाइंडिंग फोर्स हो. सुरभि और मैं अब मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं.

जब सप्ताहांत आता है, तो अमित फ्री होते हैं. थोड़ी देर मेल चैक करते हैं, फिर कुछ देर टीवी देखते हैं और फिर कभी सौरभ तो कभी सुरभि को किसी न किसी बात पर टोकते रहते हैं. बच्चे भी अपना तर्क रखते हुए बराबर जवाब देने लगते हैं, जिस से झगड़ा बढ़ जाता और फिर अमित का पारा हाई होता चला जाता है.

मैं अब सब के बीच तालमेल बैठातेबैठाते थक जाती हूं. मैं बहुत कोशिश करती हूं कि छुट्टी के दिन शांति प्यार से बीतें, लेकिन ऐसा होता नहीं है. कोई न कोई बात हो ही जाती है. बच्चों को लगता है कि पापा उन की बात नहीं समझ रहे हैं और अमित को लगता है कि बच्चों को उन की बात चुपचाप सुन लेनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि अमित बहुत रूखे, सख्त किस्म के इंसान हैं. वे बहुत शांत रहने और अपने परिवार को बहुत प्यार करने वाले इंसान हैं. लेकिन आजकल जब वे युवा बच्चों को किसी बात पर टोकते हैं, तो बच्चों के जवाब देने पर उन्हें गुस्सा आ जाता है. कभी बच्चे सही होते हैं, तो कभी अमित. जब मेरा मूड खराब होता है, तीनों एकदम सही हो जाते हैं.

वैसे मुझे जल्दी गुस्सा नहीं आता है, लेकिन जब आता है, तो मेरा अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता है. वैसे मेरा गुस्सा खत्म भी जल्दी हो जाता है. पहले मैं भी बच्चों पर चिल्लाने लगती थी, लेकिन अब बच्चे बड़े हो गए हैं, मुझे उन पर चिल्लाना अच्छा नहीं लगता.

अब मैं ने अपने गुस्से के पलों का यह हल निकाला है कि मैं घर से बाहर चली जाती हूं. घर से थोड़ी दूर स्थित पार्क में बैठ या टहल कर लौट आती हूं. इस से मेरे गुस्से में चिल्लाना, फिर सिरदर्द से परेशान रहना बंद हो गया है. लेकिन ये तीनों मेरे गुस्से में घर से निकलने के कारण घबरा जाते हैं और होता यह है कि इन तीनों में से कोई न कोई मेरे पीछे चलता रहता है और मुझे पीछे देखे बिना ही यह पता होता है कि इन तीनों में से एक मेरे पीछे ही है. जब मेरा गुस्सा ठंडा होने लगता है, मैं घर आने के लिए मुड़ जाती हूं और जो भी पीछे होता है, वह भी मेरे साथ घर लौट आता है.

एक संडे को छोटी सी बात पर अमित और बच्चों में बहस हो गई. मैं तीनों को शांत करने लगी, मगर मेरी किसी ने नहीं सुनी. मेरी तबीयत पहले ही खराब थी. सिर में बहुत दर्द हो रहा था. जून का महीना था, 2 बज रहे थे. मैं गुस्से में चप्पलें पहन कर बाहर निकल गई. चिलचिलाती गरमी थी. मैं पार्क की तरफ चलती गई. गरमी से तबीयत और ज्यादा खराब होती महसूस हुई. मेरी आंखों में आंसू आ गए. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि इतनी बहस क्यों करते हैं ये लोग. मैं ने मुड़ कर देखा. सुरभि चुपचाप पसीना पोंछते मेरे पीछेपीछे आ रही थी. ऐसे समय में मुझे उस पर बहुत प्यार आता है, मैं उस के लिए रुक गई.

सुरभि ने मेरे पास पहुंच कर कहा, ‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है, मम्मी. क्यों आप अपनेआप को तकलीफ दे रही हैं?’’

मैं बस पार्क की तरफ चलती गई, वह भी मेरे साथसाथ चलने लगी. मैं पार्क में बेंच पर बैठ गई. मैं ने घड़ी पर नजर डाली. 4 बज रहे थे. बहुत गरमी थी.

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी, कम से कम छाया में तो बैठो.’’

मैं उठ कर पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठ गई. सुरभि ने मुझ से धीरेधीरे सामान्य बातें करनी शुरू कर दीं. वह मुझे हंसाने की कोशिश करने लगी. उस की कोशिश रंग लाई और मैं धीरेधीरे अपने सामान्य मूड में आ गई.

तब सुरभि बोली, ‘‘मम्मी, एक बात कहूं मानेंगी?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मम्मी, आप गुस्से में यहां आ कर बैठ जाती हैं… इतनी धूप में यहां बैठी हैं. इस से आप को ही तकलीफ हो रही है न? घर पर तो पापा और सौरभ एयरकंडीशंड कमरे में बैठे हैं… मैं आप को एक आइडिया दूं?’’

मैं उस की बात ध्यान से सुन रही थी, मैं ने बताया न कि अब हम मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं. अत: मैं ने कहा, ‘‘बोलो.’’

‘‘मम्मी, अगली बार जब आप को गुस्सा आए तो बस मैं जैसा कहूं आप वैसा ही करना. ठीक है न?’’

मैं मुसकरा दी और फिर हम घर आ गईं. आ कर देखा दोनों बापबेटे अपनेअपने कमरे में आराम फरमा रहे थे.

सुरभि ने कहा, ‘‘देखा, इन लोगों के लिए आप गरमी में निकली थीं.’’ फिर उस ने चाय और सैंडविच बनाए. सभी साथ चायनाश्ता करने लगे. तभी अमित ने कहा, ‘‘मैं ने सुरभि को जाते देख कर अंदाजा लगा लिया था कि तुम जल्द ही आ जाओगी.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सौरभ ने मुझे हमेशा की तरह ‘सौरी’ कहा और थोड़ी देर में सब सामान्य हो गया.

10-15 दिन शांति रही. फिर एक शनिवार को सौरभ अपना फुटबाल मैच खेल कर आया और आते ही लेट गया. अमित उस से पढ़ाई की बातें करने लगे जिस पर सौरभ ने कह दिया, ‘‘पापा, अभी मूड नहीं है. मैच खेल कर थक गया हूं… थोड़ी देर सोने के बाद पढ़ाई कर लूंगा.’’

अमित को गुस्सा आ गया और वे शुरू हो गए. सुरभि टीवी देख रही थी, वह भी अमित की डांट का शिकार हो गई. मैं खाना बना रही थी. भागी आई. अमित को शांत किया, ‘‘रहने दो अमित, आज छुट्टी है, पूरा हफ्ता पढ़ाई ही में तो बिजी रहते हैं.’’

अमित शांत नहीं हुए. उधर मेरी सब्जी जल रही थी, मेरा एक पैर किचन में, तो दूसरा बच्चों के बैडरूम में. मामला हमेशा की तरह मेरे हाथ से निकलने लगा तो मुझे गुस्सा आने लगा. मैं ने कहा, ‘‘आज छुट्टी है और मैं यह सोच कर किचन में कुछ स्पैशल बनाने में बिजी हूं कि सब साथ खाएंगे और तुम लोग हो कि मेरा दिमाग खराब करने पर तुले हो.’’

अमित सौरभ को कह रहे थे, ‘‘मैं देखता हूं अब तुम कैसे कोई मैच खेलते हो.’’

सौरभ रोने लगा. मैं ने बात टाली, ‘‘चलो, खाना बन गया है, सब डाइनिंग टेबल पर आ जाओ.’’

सौरभ ने कहा, ‘‘अभी भूख नहीं है. समोसे खा कर आया हूं.’’

यह सुनते ही अमित और भड़क उठे. इस के बाद बात इतनी बढ़ गई कि मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा.

‘‘तुम लोगों की जो मरजी हो करो,’’ कह लंच छोड़ कर सुरभि पर एक नजर डाल कर मैं निकल गई. मैं मन ही मन थोड़ा चौंकी भी, क्योंकि मैं ने सुरभि को मुसकराते देखा. आज तक ऐसा नहीं हुआ था. मैं परेशान होऊं और मेरी बेटी मुसकराए. मैं थोड़ा आगे निकली तो सुरभि मेरे पास पहुंच कर बोली, ‘‘मम्मी, आप ने कहा था कि अगली बार मूड खराब होने पर आप मेरी बात मानेंगी?’’

‘‘हां, क्या बात है?’’

‘‘मम्मी, आप क्यों गरमी में इधरउधर भटकें? पापा और भैया दोनों सोचते हैं आप थोड़ी देर में मेरे साथ घर आ जाएंगी… आप आज मेरे साथ चलो,’’ कह कर उस ने अपने हाथ में लिया हुआ मेरा पर्स मुझे दिखाया.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा पर्स क्यों लाई हो?’’

सुरभि हंसी, ‘‘चलो न मम्मी, आज गुस्सा ऐंजौय करते हैं,’’ और फिर एक आटो रोक कर उस में मेरा हाथ पकड़ती हुई बैठ गई.

मैं ने पूछा, ‘‘यह क्या है? हम कहां जा रहे हैं?’’ और मैं ने अपने कपड़ों पर नजर डाली, मैं कुरता और चूड़ीदार पहने हुए थी.

सुरभि बोली, ‘‘आप चिंता न करें, अच्छी लग रही हैं.’’

वंडरमौल पहुंच कर आटो से उतर कर हम  पिज्जा हट’ में घुस गए.

मैं हंसी तो सुरभि खुश हो गई, बोली, ‘‘यह हुई न बात. चलो, शांति से लंच करते हैं.’’

तभी सुरभि के सैल पर अमित का फोन आया. पूछा, ‘‘नेहा कहां है?’’

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी मेरे साथ हैं… बहुत गुस्से में हैं… पापा, हम थोड़ी देर में आ जाएंगे.’’

फिर हम ने पिज्जा आर्डर किया. हम पिज्जा खा ही रहे थे कि फिर अमित का फोन आ गया. सुरभि से कहा कि नेहा से बात करवाओ.

मैं ने फोन लिया, तो अमित ने कहा, ‘‘उफ, नेहा सौरी, अब आ जाओ, बड़ी भूख लगी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी नहीं, थोड़ा और चिल्ला लो… खाना तैयार है किचन में, खा लेना दोनों, मैं थोड़ा दूर निकल आई हूं, आने में टाइम लगेगा.’’

कुछ ही देर में सौरभ का फोन आ गया, ‘‘सौरी मम्मी, जल्दी आ जाओ, भूख लगी है.’’

मैं ने उस से भी वही कहा, जो अमित से कहा था.

‘पिज्जा हट’ से हम निकले तो सुरभि ने कहा, ‘‘चलो मम्मी, पिक्चर भी देख लें.’’

मैं तैयार हो गई. मेरा भी घर जाने का मन नहीं कर रहा था. वैसे भी पिक्चर देखना मुझे पसंद है. हम ने टिकट लिए और आराम से फिल्म देखने बैठ गए. बीचबीच में सुरभि अमित और सौरभ को मैसज देती रही कि हमें आने में देर होगी… आज मम्मी का मूड बहुत खराब है. जब अमित बहुत परेशान हो गए तो उन्होंने कहा कि वे हमें लेने आ रहे हैं. पूछा हम कहां हैं. तब मैं ने ही अमित से कहा कि मैं जहां भी हूं शांति से हूं, थोड़ी देर में आ जाऊंगी.

फिल्म खत्म होते ही हम ने जल्दी से आटो लिया. रास्ता भर हंसते रहे हम… बहुत मजा आया था. घर पहुंचे तो बेचैन से अमित ने ही दरवाजा खोला. मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘ओह नेहा, इतना गुस्सा, आज तो जैसे तुम घर आने को ही तैयार नहीं थी, मैं पार्क में भी देखने गया था.’’

सुरभि ने मुझे आंख मारी. मैं ने किसी तरह अपनी हंसी रोकी. सौरभ भी रोनी सूरत लिए मुझ से लिपट गया. बोला, ‘‘अच्छा मम्मी अब मैं कभी कोई उलटा जवाब नहीं दूंगा.’’

दोनों ने खाना नहीं खाया था, मुझे बुरा लगा.

अमित बोले, ‘‘चलो, अब कुछ खिला दो और खुद भी कुछ खा लो.’’

सुरभि ने मुझे देखा तो मैं ने उसे खाना लगाने का इशारा किया और फिर खुद भी उस के साथ किचन में सब के लिए खाना गरम करने लगी. हम दोनों ने तो नाम के कौर ही मुंह में डाले. मैं गंभीर बनी बैठी थी.

अमित ने कहा, ‘‘चलो, आज से कोई किसी पर नहीं चिल्लाएगा, तुम कहीं मत जाया करो.’’

सौरभ भी कहने लगा, ‘‘हां मम्मी, अब कोई गुस्सा नहीं करेगा, आप कहीं मत जाया करो… बहुत खराब लगता है.’’

और सुरभि वह तो आज के प्रोग्राम से इतनी उत्साहित थी कि उस का मुसकराता चेहरा और चमकती आंखें मानो मुझ से पूछ रही थीं कि अगली बार आप को गुस्सा कब आएगा?

पर्सनल स्पेस- क्यों नेहा के पास जाने को बेताब हो उठा मोहित?

आज औफिस में मैं बिलकुल भी ढंग से काम नहीं कर सका था. इस कारण बौस से तो कई बार डांट खानी पड़ी ही, सहयोगियों के साथ भी झड़प हो गई थी.

आखिर में तंग आ कर मैं ने औफिस से1 घंटा पहले जाने की अनुमति बौस से मांगी, तो उन्होंने तीखे शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मोहित, आज सारा दिन तुम ने कोई भी काम ढंग से नहीं किया है. मुझे छोटीछोटी बातों पर

किसी को डांटना अच्छा नहीं लगता. मुझे उम्मीद है कि कल तुम्हारा चेहरा मुझे यों लटका हुआ नहीं दिखेगा.’’

‘‘बिलकुल नहीं दिखेगा, सर,’’ ऐसा वादा कर मैं उन के कक्ष से बाहर आ गया.

औफिस से निकल कर मैं मोटरसाइकिल से बाजार जाने को निकल पड़ा. मुझे अपनी पत्नी नेहा के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट लेना था.

हमारी शादी को अभी 4 महीने ही हुए हैं. वह मेरे सुख व खुशियों का बहुत ध्यान रखती है. मेरी पसंद पूछे बिना मजाल है वह कोई काम कर ले.

पिछले गुरुवार को उस का यही प्यार भरा व्यवहार मुझे ऐसा खला कि मैं ने उसे शादी के बाद पहली बार बहुत जोर से डांट दिया था.

उस दिन हमें रवि की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाना था. जगहजगह टै्रफिक जाम मिलने के कारण मुझे औफिस से घर पहुंचने में पहले ही देर हो गई थी. ऊपर से ये देख कर मेरा गुस्सा बढ़ने लगा कि नेहा समय से तैयार होना शुरू करने की बजाय मेरे घर पहुंचने का इंतजार कर रही थी.

‘‘इन में से मैं कौन सी साड़ी पहनूं, यह तो बता दो?’’ आदत के अनुरूप उस ने इस मामले में भी मेरी पसंद जाननी चाही थी.

‘‘नीली साड़ी पहन लो,’’ अपना व उस का मूड खराब करने से बचने के लिए मैं ने अपनी आवाज में गुस्से के भाव पैदा नहीं होने दिए थे.

‘‘मुझे लग रहा है कि मैं ने इसे तब भी पहना था, जब हम रवि के घर पहली बार डिनर करने गए थे.’’

‘‘तो कोई दूसरी साड़ी पहन लो.’’

‘‘आप प्लीज बताओ न कि कौन सी पहनूं?’’

इस बार मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं उस पर जोर से चिल्ला उठा, ‘‘यार, तुम जल्दी तैयार होने के बजाय फालतू की बातें करने में समय बरबाद क्यों कर रही हो? हर काम करने से पहले मेरी जान खाने की बजाय तुम अपनेआप फैसला क्यों नहीं करतीं कि क्या किया जाए, क्या न किया जाए? मुझे ऐसा बचकाना व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगता है.’’

पार्टी में पहुंच कर उस का मूड पूरी तरह से ठीक हो गया, पर मेरा मूड उस के चिपकू व्यवहार के कारण खराब बना रहा.

रवि मेरा कालेज का दोस्त है. उस पार्टी में शामिल होने कालेज के और भी बहुत से दोस्त आए थे. मैं कुछ समय अपने इन पुराने दोस्तों के साथ बिताना चाहता था, पर नेहा मेरा हाथ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी.

कुछ देर के लिए जब वह फ्रैश होने गई, तब मैं अपने दोस्तों के पास पहुंच गया था. मेरे दोस्त मौका नहीं चूके और नेहा का चिपकू व्यवहार मेरी खिंचाई का कारण बन गया था.

मुंहफट सुमित ने मेरा मजाक उड़ाते हुए कह भी दिया, ‘‘अबे मोहित, ऐसा लगता है कि तू ने तो किसी थानेदारनी के साथ शादी कर ली है. नेहा भाभी तो तुझे बिलकुल पर्सनल स्पेस नहीं देती हैं.’’

‘‘शायद मोहित शादी के बाद भी हर सुंदर लड़की के साथ इश्क लड़ाने को उतावला रहता होगा, तभी भाभी इस की इतनी जबरदस्त चौकीदारी करती हैं,’’ कुंआरे नीरज के इस मजाक पर सभी दोस्तों ने एकसाथ ठहाका लगाया था.

अपने मन की खीज को काबू में रखते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘वह थानेदारनी नहीं बल्कि बहुत डिवोटिड वाइफ है. तुम सब अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कितनी केयरिंग और घर संभालने में कितनी कुशल है.’’

‘‘अपना यार तो बेडि़यों को ही आभूषण समझने लगा है,’’ नीरज के इस मजाक पर जब दोस्तों ने एक और जोरदार ठहाका लगाया, तो मैं मन ही मन नेहा से चिढ़ उठा था.

पार्टी में हमारे साथ पढ़ी सीमा भी मौजूद थी. वह कुछ दिनों के लिए मुंबई से यहां मायके में अकेली रहने आई थी. पति के साथ न होने के कारण वह खूब खुल कर कालेज के पुराने दोस्तों से हंसबोल रही थी. मेरे मन में उस के ऊपर डोरे डालने जैसा कोई खोट नहीं था, पर कुछ देर उस के साथ हलकेफुलके अंदाज में फ्लर्ट करने का मजा मैं जरूर लेना चाहता था.

नेहा के हर समय चिपके रहने के कारण मैं उस के साथ कुछ देर भी मस्ती भरी गपशप नहीं कर सका. अपने सारे दोस्तों को उस के साथ खूब ठहाके लगाते देख मेरा मन खिन्न हो उठा.

मुझे थोड़ा सा भी समय अपने ढंग से जीने के लिए नहीं मिल रहा है, मेरे मन में इस शिकायत की जड़ें पलपल मजबूत होती चली गई थीं.

मैं खराब मूड के साथ पार्टी से घर लौटा था. मेरे माथे पर खिंची तनाव की रेखाएं देख कर नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘क्या सिर में दर्द हो रहा है?’’

‘‘हां, मुझे भयंकर सिरदर्द हो रहा है, पर तुम सिर दबाने की बात मुंह से निकालना भी मत,’’ मैं ने रूखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं सिर दबा दूंगी तो आप की तबीयत जल्दी ठीक हो जाएगी,’’ मेरी रुखाई देख कर उस का चेहरा फौरन उतर सा गया था.

‘‘मुझे सिरदर्द जल्दी ठीक नहीं करना है. अब तुम मेरा सिर खाना बंद करो, क्योंकि मैं कुछ देर शांति से अकेले बैठना चाहता हूं. मुझे खुशी व सुकून से जीने के लिए पर्सनल स्पेस चाहिए, यह बात तुम जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा,’’ मैं उस के ऊपर जोर से गुर्राया, तो वह आंसू बहाती हुई मेरे सामने से हट गई थी.

अगले दिन मैं ने उस के साथ ढंग से बात नहीं की. वह रात को मुझ से लिपट कर सोने लगी, तो मैं ने उसे दूर धकेला और करवट बदल ली. मुझे उस का अपने साथ चिपक कर रहना फिलहाल बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रहा था.

अगले दिन शनिवार की सुबह मैं जब औफिस जाने को घर से निकलने लगा, तब उस ने मुझ से दुखी व उदास लहजे में कहा था, ‘‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है. आज अपने भाई के साथ मैं कुछ दिनों के लिए मायके रहने जा रही हूं. मेरी अनुपस्थिति में आप जी भर कर पर्सनल स्पेस का मजा ले लेना.’’

मैं ने उसे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा, क्योंकि मैं सचमुच कुछ दिनों के लिए अपने ढंग से अकेले जीना चाहता था.

नेहा से मिली आजादी का फायदा उठाने के लिए मैं ने उस दिन औफिस खत्म होने के बाद अपने दोस्त नीरज को फोन किया. उस ने फौरन मुझे अपने घर आने की दावत दे दी, क्योंकि वह मुफ्त की शराब पीने को हमेशा ही तैयार रहता था.

हम दोनों ने उस के ड्राइंगरूम में बैठ कर शराब पी. हमारी महफिल सजने के कारण उस की पत्नी कविता का मूड खराब नजर आ रहा था, पर हम दोनों ने अपनी मस्ती के चलते इस बात की फिक्र नहीं की.

शराब खत्म हो जाने के बाद मुझे मालूम पड़ा कि मेरा दोस्त बदल चुका था. नीरज ने कविता के डर के कारण मुझे डिनर कराए बिना ही घर से विदा कर दिया.

मैं ने बाहर से बर्गर खाया और घर लौट कर नीरज को मन ही मन ढेर सारी गालियां देता पलंग पर ढेर हो गया.

पार्टी के दिन सीमा से खुल कर हंसीमजाक न कर पाने की बात अभी भी मेरे मन में अटकी हुई थी. इतवार की सुबह मैं ने रवि से उस का फोन नंबर ले कर उस के साथ लंच करने का कार्यक्रम बना लिया.

हम 12 बजे एक चाइनीज रेस्तरां में मिले. पहले मैं ने उसे बढि़या लंच कराया और फिर हम बाजार में घूमने लगे. उस की खनकती हंसी और बातें करने का दिलकश अंदाज लगातार मेरे मन को गुदगुदाए जा रहा था.

कुछ देर बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या हम मैटनी शो देखने चलें?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर जवाब दिया.

‘‘क्यों मना कर रही हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘हाल के अंधेरे में तुम अपने हाथों को काबू में नहीं रख पाओगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं कि बिलकुल शरीफ बच्चा बन कर फिल्म देखूंगा.’’

‘‘सौरी मोहित, शादी के बाद तुम्हें नेहा के प्रति वफादार रहना चाहिए.’’

उस का यह वाक्य मेरे मन को बुरी तरह चुभ गया. मैं ने उस से चिढ़ कर पूछा, ‘‘क्या तुम अपने पति के प्रति वफादार हो?’’

‘‘मैं उन के प्रति पूरी तरह से वफादार हूं,’’ उस का इतरा कर यह जवाब देना मेरी चिढ़ को और ज्यादा बढ़ा गया.

‘‘फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि अगर मैं जरा सी भी कोशिश करूं, तो तुम मेरे साथ सोने को राजी हो जाओगी.’’

‘‘शटअप.’’ उस ने मुझे चिढ़ कर डांटा, तो मैं उस का मजाक उड़ाने वाले अंदाज में हंस पड़ा था.

मेरे खराब व्यवहार के लिए उस ने मुझे माफ नहीं किया और कुछ मिनट बाद जरूरी काम होने का बहाना बना कर चली गई. मुझे उस के चले जाने का अफसोस तो नहीं हुआ, पर मन अजीब सी उदासी का शिकार जरूर हो गया.

मैं ने अकेले ही फिल्म देखी और बाद में देर रात तक बाजार में अकारण घूमता रहा. उस रात भी मैं ढंग से सो नहीं सका, क्योंकि नेहा की याद बहुत सता रही थी. बारबार उस से फोन पर बातें करने की इच्छा हो रही थी, पर उस के साथ गलत व्यवहार करने के अपराधबोध ने ऐसा नहीं करने दिया.

सोमवार को औफिस में दिन गुजारना मेरे लिए मुश्किल हो गया था. काम में मन न लगने के कारण बौस से कई बार डांट खाई. जब वहां रुकना बेहद कठिन हो गया, तो बौस से इजाजत ले कर मैं घंटा भर पहले औफिस से बाहर आ गया था.

औफिस से निकलने के घंटे भर बाद मैं ने नेहा को फोन कर के उलाहना दिया, ‘‘तुम इतनी ज्यादा निर्मोही कैसे हो गई हो? आज दिन भर फोन कर के मेरा हालचाल क्यों नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने तो आप की नाराजगी व डांट के डर से फोन नहीं किया,’’ उस की आवाज का कंपन बता रहा था कि मेरी आवाज सुन कर वह भावुक हो उठी थी.

‘‘तुम्हारा फोन आने से मैं नाराज क्यों होऊंगा?’’

‘‘मैं फोन करती तो आप जरूर डांट कर कहते कि मैं मायके में रह कर भी आप को चैन से जीने नहीं दे रही हूं.’’

‘‘मैं पागल हूं, जो तुम्हें अकारण डांटूंगा. मुझे लगता है कि मायके पहुंच कर तुम्हें मेरा ध्यान ही नहीं आया.’’

‘‘जिस के अंदर मेरी जान बसती है, उस का ध्यान मुझे कैसे नहीं आएगा?’’

‘‘तो वापस कब आओगी?’’

‘‘आप आज लेने आ जाओगे, तो आज ही साथ चल चलूंगी.’’

‘‘मैं तो आ गया हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है, पगली?’’

‘‘क्या बारबार घंटी आप बजा रहे हो?’’

‘‘दरवाजा खोल कर देख लो न मेरी जान.’’

‘‘मैं अभी आई.’’

उस की उतावलेपन व खुशी से भरी आवाज सुन कर मैं जोर से हंस पड़ा था.

दरवाजा खोल कर जब नेहा ने मुझे फूलों का बहुत सुंदर सा गुलदस्ता हाथ में लिए खड़ा देखा, तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. अपना उपहार स्वीकार करने के बाद वह मेरी छाती से लिपट कर खुशी के आंसू बहाने लगी.

मुझे इस समय उस की वह बात ध्यान आ रही थी, जो उस ने मायके आने से पहले कही थी, ‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है.’

मैं ने उस का माथा चूम कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ में यह आ गया

है कि तुम्हारे अलावा मेरी जिंदगी में खुशियां भरने की किसी के पास फुरसत नहीं है. मुझे अपनी जिंदगी में पर्सनल स्पेस नहीं, बल्कि तुम्हारा प्यार भरा साथ चाहिए. भविष्य में मेरी बातों का बुरा मान कर फिर कभी मुझे अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं छोड़ूंगी.’’ अपनी मम्मी की उपस्थिति की परवाह न करते हुए उस ने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित किया और फिर शरमा भी गई.

उस ने कुछ देर बाद ही मेरे साथ सट कर बैठते हुए ढेर सारे सवाल पूछने शुरू कर दिए. मुझे उस के सवालों का जवाब देने में अब कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही थी. उस से दूर रहने के मेरे अनुभव इतने घटिया रहे थे कि मेरे सिर से पर्सनल स्पेस में जीने का भूत पूरी तरह से उतर गया था.

नो गिल्ट ट्रिप प्लीज

नेहा औफिस से निकली तो कपिल बाइक पर उस का इंतज़ार कर रहा था. वह इठलाती हुई उस की कमर में हाथ डाल कर उस के पीछे बैठ गई फिर मुंह पर स्कार्फ बांध लिया.

कपिल ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की. सड़क के ट्रैफिक से दूर बाइक पर जब कुछ खाली रोड पर निकली तो नेहा ने कपिल की गरदन पर किस कर दिया. कपिल ने सुनसान जगह देख कर बाइक एक किनारे लगा दी. नेहा हंसती हुई बाइक से उतरी और  कपिल ने जैसे ही हैलमेट उतार कर रखा, नेहा ने कपिल के गले में बांहें डाल दीं. कपिल ने भी उस की कमर में हाथ डाल उसे अपने से और सटा लिया. दोनों काफी देर तक एकदूसरे में खोए रहे.

उतरतीचढ़ती सांसों को काबू में करते हुए नेहा बोली,” सुनो, अभी मेरे घर चलना चाहोगे?”

”क्या?” कपिल हैरान हो गया.

”हां, घर पर कोई नहीं है, चलो न.”

”तुम्हारे मम्मीपापा कहां गए?”

”किसी की डैथ पर अफसोस करने गए हैं, रात तक आएंगे.”

”तो चलो, फिर हम देर क्यों कर रहे हैं? मैं तो अभी से सोच कर मरा जा रहा हूं कि क्या हम सचमुच अभी वही करने जा रहे हैं जो हम 15 दिनों से नहीं कर पाए. यार, रूड़की में जगह ही नहीं मिलती. पिछली बार मेरे घर पर कोई नहीं था, तब मौका मिला था.”

”चलो अब, बातें नहीं कुछ और करने का मूड है अभी.”

कपिल ने बड़े उत्साह से बाइक नेहा के घर की तरफ दौड़ा दी. रास्ते भर मुंह पर स्कार्फ बांधे नेहा कपिल की कमर में बाहें डाल उस से लिपटी रही. दोनों युवा प्रेमी अपनीअपनी धुन में खोए हुए थे.

दोनों का अफेयर 2 साल से चल रहा था. दोनों का औफिस एक ही बिल्डिंग में था. इसी बिल्डिंग में कभी कैफेटैरिया में, तो कभी लिफ्ट में मिलते रहने से दोनों की जानपहचान हुई थी. दोनों ने एकदूसरे को देखते ही पसंद कर लिया था.

नेहा की बोल्डनैस पर कपिल फिदा था तो कपिल के शांत व सौम्य स्वभाव पर नेहा मुग्ध हो गई थी. इन 2 सालों में दोनों पता नहीं कितनी बार शारीरिक रूप से भी पास आ गए थे. नेहा लाइफ को खुल कर जीना चाहती थी. कई बार तो कपिल उस के जीने के ढंग को देख कर हैरान रह जाता.

नेहा के घर में उसके पेरैंट्स थे. दोनों कामकाजी थे. छोटा भाई कालेज में पढ़ रहा था. कपिल अपने पेरैंट्स की इकलौती संतान था. उस की मम्मी हाउसवाइफ थी. कपिल के पिता रवि एक बिल्डर थे. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी.

कपिल ने अपने घर में नेहा के बारे में बता दिया था. नेहा को बहू बनाने में कपिल के पेरैंट्स को कोई आपत्ति  नहीं थी. नेहा कपिल के घर भी आतीजाती रहती पर नेहा के घर में कपिल के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था.

हमेशा की तरह कपिल ने नेहा की बिल्डिंग से कुछ दूर एक शौपिंग कौंप्लैक्स की पार्किंग में बाइक खड़ी की. पहले नेहा अपने घर गई. थोड़ी देर बाद कपिल उस के घर पहुंचा. पहले भी घर पर किसी के न होने का  दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था.

घर में अंदर जाते ही कपिल ने अपना बैग एक तरफ रख नेहा को बांहों में भर लिया. उस पर अपने प्यार की बरसात कर दी. नेहा ने उस बरसात में अपनेआप को पूरी तरह भीग जाने दिया. प्यार की यह बरसात नेहा के बैड पर कुछ देर बाद ही रुकी.

कपिल ने कहा,”यार, अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता, चलो न, शादी कर लेते हैं. देर क्यों कर रही हो?”

नेहा ने अपने बोल्ड अंदाज में कहा,”शादी के लिए क्यों परेशान हो?, जो बाद में करना है अभी कर ही रहे हैं न.”

‘अरे ,ऐसे नहीं, अब चोरीचोरी नहीं, खुल कर अपने घर में तुम्हारे साथ रहना है.”

”पर मेरा मूड शादी का नहीं है, कपिल.”

”कब तक इंतजार करवाओगी?”

”पर मैं ने तो यह कभी नहीं कहा कि मैं तुम से शादी जल्दी ही करूंगी.”

”पर मैं तो तुम से ही करूंगा, मैं तुम्हारे बिना जी ही नहीं सकता, नेहा. मैं ने सिर्फ तुम से ही प्यार किया है.”

”ओह, कपिल,” कहते हुए नेहा ने फिर कपिल के गले में बांहें डाल दीं, कहा, ”चलो, अब तुम्हे फिर कौफी पिलाती हूं.”

दोनों ने कौफी भी काफी रोमांस करते हुए पी. कपिल थोड़ी देर बाद चला गया. हर समय टच में रहने के लिए व्हाट्सऐप था ही.

यह दोनों का रोज का नियम था कि कपिल ही नेहा को उस के घर छोड़ कर जाता. कपिल ने घर जा कर साफसाफ बताया कि वह नेहा के साथ था.

उस की मम्मी सुधा ने कहा,” बेटा, तुम दोनों शादी क्यों नहीं कर रहे हो? अब दोनों ही अच्छी नौकरी भी कर रहे हो, तो देर किस बात की है?”

”मम्मी, अभी नेहा शादी नहीं करना चाहती.”

”फिर कब तक करेगी ?उस के पेरैंट्स क्या कहते हैं?”

”कुछ नहीं,मम्मी. अभी तो उस ने अपने घर में हमारे बारे में बताया ही नहीं.”

”यह क्या बात हुई ?”

”छोड़ो मम्मी, जैसा नेहा को ठीक लगे. वह शायद और टाइम लेना चाहती है.”

”बेटा, एक बात और मेरे मन में है. क्या तुम उस से निभा लोगे? वह काफी बोल्ड लड़की है, तुम ठहरे सीधेसादे.”

”मम्मी, वह आज की लड़की है. आज की लड़कियां आप के टाइम से थोड़ी अलग होती हैं. नेहा बोल्ड है मगर गलत नहीं. आप चिंता न करो वह शायद कुछ और रुकना चाहती है.”

“पर मुझे लगता है अब तुम सीरियसली शादी के बारे में सोचो.”

”अच्छा ठीक है मम्मी, उस से बात करता हूं.”

2 दिन बाद ही नेहा ने कपिल से कहा,”यार, लौटरी लग गई, मेरा भाई दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा है और मेरे चाचा की तबीयत खराब हो गई है. मेरे मम्मीपापा उन्हें देखने दिल्ली जा रहे हैं. चलो, अब तुम भी अपने घर बोल दो कि तुम भी टूर पर जा रहे हो. दोनों औफिस से छुट्टी ले कर जम कर घर पर ऐश करेंगे.”

”सच?”

”लाइफ ऐंजौय करेंगे, यार. आ जाओ, खाना बाहर से और्डर करेंगे. बस सिर्फ ऐश ही ऐश.”

कपिल नेहा को दिलोजान से चाहता था. जैसा उस ने कहा था कपिल ने वैसा ही किया. वह अपने घर पर टूर पर जाने की बात बता कर नेहा के घर रात गुजारने के लिए अपने कपङे वगैरह ले कर आ गया. दोनों ने जीभर कर रोमांस किया. जब मन हुआ पास आए, एकदूसरे में खोए रहे.

कपिल ने कहा,”यार, तुम्हारे साथ ये पल ही मेरा जीवन हैं. अब तुम हमेशा के लिए मेरी लाइफ में जल्दी आ जाओ. अब मैं नहीं रुक सकता बोलो, कब मिला रही हो अपने पेरैंट्स से?”

नेहा ने प्यार से झिड़का,”तुम क्या यह शादीशादी करते रहते हो? शादी की क्या आफत आई है? और मैं तुम्हें कितनी बार बता चुकी हूं कि मेरा मूड शादी करने का नहीं है.”

अब कपिल गंभीर हुआ,”नेहा, यह क्या कहती रहती हो? मेरी मम्मी बारबार मुझे शादी करने के लिए कह रही हैं और हम रूक क्यों रहे हैं ?”

नेहा ने अब शांत पर गंभीर स्वर में कहा ,”देखो, मैं अभी काफी साल शादी के बंधन में नहीं बंधने वाली. अभी मैं सिर्फ 26 साल की हूं और लाइफ ऐंजौय कर रही हूं.”

”पर मैं 30 का हो रहा हूं. आज नहीं तो कल हमें शादी करनी ही है. एकदूसरे के इतने करीब हैं तो चोरीचोरी कब तक क्यों मिलें?”

”यह मैं ने कब कहा कि आज नहीं तो कल हम शादी कर ही रहे हैं?”

”मतलब ?”

”देखो, कपिल अब तक मैं ने तुम्हें अपने पेरैंट्स से इसलिए नहीं मिलवाया क्योंकि अरैंज्ड मैरिज तो हमारी होगी नहीं क्योंकि हम अलगअलग जाति के हैं. मेरे पेरैंट्स ठहरे पक्के पंडित और तुम हम से नीची जाति के. अभी इस उम्र में जाति को ले कर मुझे टैंशन चाहिए ही नहीं. हम प्यार, रोमांस सैक्स सब कुछ तो ऐंजौय कर रहे हैं, तुम शादी के पीछे क्यों पड़े हो? शादी तो अभी दूरदूर तक मैं नहीं करने वाली.”

”क्या तुम मुझे प्यार नहीं करतीं?”

”करती तो हूं.”

”फिर तुम्हारा मन नहीं करता कि हम दोनों एकसाथ रहने के लिए शादी कर लें?”

‘नहीं, यह मन तो नहीं करता मेरा.”

”अच्छा बताओ, कितने दिन रुकना चाहती हो, मैं तुम्हारा इंतजिर करूंगा.”

”मुझे नहीं पता.”

कपिल कुछ गंभीर सा बैठ गया तो नेहा ने शरारती अंदाज में मस्ती शुरू कर दी. कहा,”मैं तुम्हें फिर कहती हूं कि शादी की रट छोड़ो, लाइफ को ऐंजौय करो.”

”मतलब तुम मुझ से शादी नहीं करोगी?”

”नहीं.”

”मैं समझ ही नहीं पा रहा, नेहा यह सब क्या है? तुम 2 साल से मेरे साथ रिलैशनशिप में हो, पता नहीं कितनी बार हम ने सैक्स किया होगा और तुम कह रही हो कि मुझ से शादी नहीं करोगी?”

“सैक्स कर लिया तो कौन सा गुनाह कर लिया? हम एकदूसरे को पसंद करते थे और करीब आ गए. अच्छा लगा. इस में शादी कहां से आ गई?”

”तो शादी कब और किस से करने वाली हो ?”

”अभी तो कुछ भी नहीं पता. मैं यह सोच कर तुम से सैक्स थोड़े ही कर रही थी कि तुम से ही शादी करूंगी. कपिल, अब वह जमाना गया जब कोई लड़की किसी लङके को इसलिए अपने पास आने देती थी कि उसी से शादी करेगी. ऐसा कुछ नहीं है अब. कम से कम मैं ऐसा नहीं सोचती. अभी मैं लाइफ ऐंजौय करने के मूड में हूं. अभी गृहस्थी संभालने का मेरा कोई मूड नहीं. तुम भी अब यह शादी शादी की रट छोड़ दो और ऐंजौय करो.”

”नहीं… नेहा मैं इस रिश्ते को कोई नाम देना चाहता हूं.”

नेहा अब झुंझला गई,” तो कोई ऐसी लड़की ढूंढ़ लो जो तुम से अभी शादी कर ले.”

कपिल ने भावुक हो कर उस का हाथ पकड़ लिया,”ऐसा कभी न कहना नेहा. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.”

”अरे, सब कहने की बातें हैं. रोज हजारों दिल जुड़ते हैं और हजारों टूटते हैं. सब चलता रहता है.”

कपिल की आंखों में सचमुच नमी आ गई. यह नमी गालों पर भी बह गई  तो नेहा हंस पड़ी,” यह क्या कपिल, इतना इमोशनल क्यों हो यार… रिलैक्स.”

”कभी मुझ से दूर मत होना, नेहा. आई रियली लव यू , कहतेकहते कपिल ने उसे बांहों में भर कर किस कर दिया. नेहा भी उस के पास सिमट आई. थोड़ी देर रोमांस चलता रहा.

काफी समय दोनों ने साथ बिता लिया था. अगले दिन कपिल घर जाने लगा तो नेहा ने कहा,”कपिल, बी प्रैक्टिकल.”

कपिल ने उसे घूरा तो वह हंस पड़ी और कहा ,”प्रैक्टिकल होने में ही समझदारी है. इमोशनल हो कर मुझे गिल्ट ट्रिप पर भेजने की कोशिश मत करो.”

कुछ दिन तो सामान्य से कटे , फिर कपिल ने महसूस किया कि नेहा उस से कटने लगी है. कभी फोन पर कह देती,”तुम जाओ, मेरी कुछ जरूरी मीटिंग्स हैं, देर लगेगी. कभी मिलती तो जल्दी में होती. बाइक पर कभी साथ भी होती तो चुप ही रहती. पहले की तरह बाइक पर शरारतों भरा रोमांस खत्म होने लगा. दूरदूर अजनबी सी बैठी रहती. कपिल के पूछने पर औफिस का स्ट्रैस कह देती.कपिल को साफ समझ आ रहा था कि वह उस से दूर हो रही है. फोन भी अकसर नहीं उठाती और कुछ भी बहाना कर देती.

एक दिन कपिल ने बाइक रास्ते में एक सुनसान जगह पर रोक दी और पूछा,”नेहा, मुझे साफसाफ बताओ कि तुम मुझ से दूर क्यों भाग रही हो ? मुझे तुम्हारा यह अजनबी जैसा व्यवहार बरदाश्त नहीं हो रहा है.”

नेहा ने भी अपने मन की बात उस दिन साफसाफ बता दी,” कपिल, तुम बहुत इमोशनल हो. हमारे अभी तक के संबंधों को शादी के रूप में देखने लगे हो. मेरा अभी दूरदूर तक शादी का इरादा नहीं है. अभी तो मुझे अपने कैरियर पर ध्यान देना है. मैं शादी के झमेले में अभी नहीं फंसना चाहती. तुम्हारी शादी की चाहत से मैं बोर होने लगी हूं और शायद तुम जैसे इमोशनल इंसान के साथ मेरी ज्यादा निभे भी न, तो समझो कि मैं तुम से ब्रैकअप कर रही हूं.”

कपिल का स्वर भर्रा गया,”ऐसा मत कहो, नेहा. मैं तुम्हारे बिना जीने की सोच भी नहीं सकता.”

”अरे ,यह सब डायलाग फिल्मों के लिए रहने दो. कोई किसी के बिना नहीं मरता. चलो, आज लास्ट टाइम घर छोड़ दो अब ऐंड औल द बैस्ट फौर योर फ्यूचर. एक अच्छी लड़की ढूंढ़ कर शादी कर लो. और हां, मुझे भी बुला लेना, मैं भी आउंगी. मुझे कोई गिल्ट नहीं है और मैं उन में से भी नहीं जो अपने प्रेमी को किसी और का होते न देख सकूं, ”कह कर नेहा जोर से हंसी.

कपिल ने उसे किसी रोबोट की तरह उस के घर तक छोड़ दिया.

“बाय, कपिल कह कर इठ लाती हुई नेहा अपने घर की तरफ चली गई. नेहा ने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा. कपिल नेहा को तब तक देखता रहा जब तक वह उस की आंखों से ओझल न हो गई.

कपिल वापसी में रोता हुआ बाइक चलाता रहा. वह सचमुच नेहा से प्यार करता था. उस के बिना जीने की वह कल्पना ही नहीं कर पा रहा था.

लुटापिटा, हारा सा घर पहुंचा. उस की शक्ल देख कर उस की मम्मीपापा घबरा गए. वह खराब तबीयत का बहाना बता कर अपने कमरे में 2 दिन पड़ा रहा तो सब को चिंता हुई. न कुछ खापी रहा था और न ही कुछ बोल रहा था.

उस की मम्मी सुधा ने उस के एक दोस्त सुदीप को बुलाया. सुदीप उस के और नेहा के संबंधों के बारे में जानता था. सुदीप ने काफी समय कपिल के पास बैठ कर बिताया. कपिल कुछ बोल ही नहीं रहा था, पत्थर सा हो गया था. दीवानों सी हालत थी. बहुत देर बाद सुदीप के कुछ सवालों का जवाब उस ने रोते हुए दे कर बता दिया कि नेहा ने उसे छोड़ दिया है. सुदीप देर तक उसे समझाता रहा.

अगले दिन की सुबह घर में मातम ले कर आई. कपिल ने रात में हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली थी. एक पेपर पर लिख गया था ,”सौरी मम्मी, मुझे माफ कर देना. नेहा ने मुझे छोड़ दिया है. मैं उस के बिना नहीं जी पाउंगा. पापा, मुझे माफ कर देना.”

मातापिता बिलखते रहे. सुदीप पता चलने पर बदहवास सा भागा आया. जोरजोर से रोने लगा. बड़ी मुश्किल घङी थी. सुधा बारबार गश खाती और कहती कि क्या एक लड़की के प्यार में हमें भी भूल गया? हमारा अब कौन है? पडोसी, रिश्तेदार सब इकठ्ठा होते रहे. सब ने रमेश और सुधा को बहुत मुश्किल से संभाला. दोनों को कहां चैन आने वाला था. सुदीप को नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

एक शाम वह नेहा के औफिस की बिल्डिंग के नीचे खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. वह निकली तो उस ने अपना परिचय देते हुए उसे कपिल की आत्महत्या के बारे में बताया तो नेहा ने एक ठंडी सांस ले कर कहा ,”दुख जरूर हुआ मुझे पर गिल्ट फील करवाने की जरूरत नहीं है. वह कमजोर था , मेरी सचाई के साथ कही बात को सहन नहीं कर पाया तो मेरी गलती नहीं है. उस की आत्महत्या के लिए मैं खुद को दोषी बिलकुल नहीं समझूंगी. मुझे गिल्ट ट्रिप मत भेजो, ओके…” कहते हुए वह सधे कदमों से आगे बढ़ गई. सुदीप हैरानी से उसे देखता रह गया.

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