बिदाई- भाग 3: क्यों मिला था रूहानी को प्यार में धोखा

‘‘तुम बस हमारे घर को सजाने की चिंता करो… यह तुम्हारा डिपार्टमैंट है,’’ रंजन की इन बातों से रूहानी चहक उठी थी.

रूहानी ने अपने एजेंट के द्वारा रंजन को काफी काम दिलवाया और खुद घर सजानेबसाने में व्यस्त रहने लगी. कभीकभार 1-2 भूमिका निभा लेती. लेकिन काम का बोझ और दबाव उसे अब रास न आता. अब उस का मन प्यार, घरगृहस्थी में रमने लगा था. रंजन और वह रहते भी एक ही घर में थे. आजकल का प्यार न तो सीमाएं जानता है और न ही मानता है. उन दोनों ने अभी शादी नहीं की थी, लेकिन पतिपत्नी के रिश्ते की डोर थाम चुके थे. रंजन नईनवेली दुलहन की तरह रूहानी को उठा कर कमरे में ले जाता और दोनों प्रेमरस में भीग कर आनंदित हो उठते. यों ही साथ रहते हुए, प्यार के सागर में हिचकोले खाते दोनों रिश्ते के अगले पड़ाव पर पहुंच गए. माना कि दोनों ने सोचसमझ कर यह कदम नहीं उठाया था किंतु प्यार के बीज को पनपने से कोई रोक पाया है भला? जब रूहानी को पता चला कि वह गर्भवती है, तो उस ने रंजन को बताने की सोची. थोड़ा डर भी था मन में कि पता नहीं रंजन की प्रतिक्रिया कैसी होगी.

रात को सोते समय उस ने रंजन का हाथ हौले से अपने पेट पर रख दिया. बस इतना इशारा काफी था. रंजन समझ गया. इस खुशी के मौके पर उस ने रूहानी के गाल पर अपने प्यार का चुंबन अंकित कर दिया.

रूहानी प्रसन्न भी थी और संतुष्ट भी. अब वह रंजन से जल्दी से जल्दी शादी करना चाहती थी.

जीवन की नाव सुखसागर में गोते लगा रही थी कि अचानक एक दिन रंजन की गैरमौजूदगी में रूहानी ने उस का फोन उठा लिया. दूसरी तरफ से एक लड़की बोल रही थी, ‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’

‘‘आप को रंजन से बात करनी है न? वह इस समय घर पर नहीं है… मार्केट गया है… गलती से फोन घर भूल गया है. आप मुझे बता दीजिए क्या काम है आप को?’’ रूहानी ने कहा.

‘‘तुम्हें बता दूं तुम हो कौन रंजन की?’’

‘‘मैं उस की गर्लफ्रैंड हूं… जल्द ही हम शादी करने वाले हैं.’’

‘‘गर्लफ्रैंड?’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोली, ‘‘मुझे अपना पता देना प्लीज, मैं उस की पुरानी फ्रैंड हूं. उसे सरप्राइज देना चाहती हूं.’’

रूहानी ने उसे अपना पता लिखवा दिया.

बस, उसी शाम उन के प्रेम नीड़ में तूफान आ गया. अचानक वह लड़की उन के घर आ धमकी.

दरवाजा खोलते ही उस ने रंजन को एक तमाचा जड़ा और जोरजोर से लड़ने लगी, ‘‘रंजन, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे धोखा देने की? शायद तुम भूल गए कि तुम्हारे पिता मेरे डैड के मातहत हैं. इस चुड़ैल के साथ मिल कर तुम मेरे साथ चीटिंग कर रहे हो… मैं कपड़े की गुडि़या नहीं हूं. मैं रोती नहीं, रूलाती हूं, समझे?’’ लगभग चीखती हुई वह रूहानी की ओर मुड़ी. फिर उसे धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. रूहानी इस तरह के बरताव के लिए तैयार न थी. वह लड़की रूहानी पर टूट पड़ी. उसे पीटने लगी.

शोर सुन कर कुछ पड़ोसी इकट्ठा हो गए. उन्होंने बड़ी मुश्किल से उस लड़की को रूहानी से अलग किया. इस घटना से रूहानी की जिंदगी में उथलपुथल मच गई. अचानक उस का जीवन ऐसे मोड़ पर आ गया था कि आगे उसे सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिख रहा था.

दरअसल, रंजन का उस की हालत पर ध्यान न देना उसे बहुत आहत कर गया था. यह वह ठेस थी जिस ने रूहानी के सभी मौसम बदल कर ठंडे, निर्जीव और बेरंग कर दिए थे. रूहानी हर वक्त उदास रहने लगी थी. एक तो गर्भावस्था में डोलती मनोस्थिति, उस पर साथी से मिला दुर्व्यवहार. आजकल रंजन को उस की खुशी, उस के मूड से कोई फर्क नहीं पड़ता था, बल्कि आजकल वह रूहानी पर अकसर नाराज होने लगा था. रंजन के सिवा रूहानी का अपना कहने का कोई नहीं था.

अकेली रूहानी सारा दिन उदासीन पड़ी रहती. रात को जब रंजन घर लौटता तो दोनों में घमासान होता. रंजन रूहानी पर हाथ भी उठाने लगा था.

अवसाद से घिरी रूहानी को आगे की राह दिखाई नहीं दे रही थी कि क्या करे कि रंजन से उस का रिश्ता फिर मजबूत हो जाए. सोचसोच कर वह और भी अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

ऐसी ही एक शाम जब रूहानी छत पर टकटकी बांधे अकेली बिस्तर पर पड़ी थी, अचानक फोन घनघना उठा. दूसरी तरफ उसी लड़की की आवाज थी.

उस ने रूहानी के फोन उठाते ही खरीखरी सुनानी शुरू कर दी, ‘‘तुम क्या सोचती हो रंजन को मुझ से छीन लोगी? रंजन मेरा है, सिर्फ मेरा. तुम्हारी जैसी कितनी आईं और गईं. लेकिन रंजन को मुझ से कोई नहीं छीन पाई. कुछ दिन इधरउधर मुंह मारने से उस का मेरे प्रति प्यार कम नहीं हो जाता, समझी? अब अपना बोरियाबिस्तर बांध और निकल जा रंजन की जिंदगी से.’’

उस लड़की की बातें सुन कर रूहानी और भी परेशान हो उठी कि क्या रंजन ने उसे धोखा दिया है? उस का उद्विग्न मन शांत नहीं हो पा रहा था. रंजन भी तो उस के किसी सवाल का जवाब नहीं देता. आखिर किस से पूछे? वह सारे घर में कलपती सी घूमने लगी.

स्वयं को उपेक्षित महसूस करती रूहानी छटपटाने लगी कि क्या करे, कैसे मुक्ति पाए इस अवसाद से? क्या फायदा इस सौंदर्य का, इस शोहरत का, जब कोई उसे प्यार ही न करे? क्या इस जीवन में उस के लिए प्यार पाना संभव नहीं? इसी उधेड़बुन में रूहानी उठी और…

अगली सुबह एक ही खबर सारे टीवी चैनलों पर बारबार दिखाई जा रही थी कि प्रसिद्ध अभिनेत्री रूहानी ने अपने घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

बस, फिर सब तरफ वही शो, उसी की चर्चा. टीवी इंडस्ट्री में रूहानी के सहकर्मी, उस के तथाकथित मित्रगण अलगअलग कहानियां बयान करने लगे. न्यूज चैनलों को एक बढि़या मुद्दा मिल गया अपनी टीआरपी बढ़ाने का. एक चैनल ने रूहानी के इस कदम का दोष रंजन के जीवन में दूसरी लड़की के प्रवेश को दिया. आधार था पड़ोसियों से की गई बातचीत, तो दूसरा चैनल कहने लगा कि रूहानी गर्भवती थी और वह रंजन पर शादी का दबाव डाल रही थी, पर वह मान नहीं रहा था, इसलिए रूहानी ने आत्महत्या कर ली.

तीसरा चैनल रूहानी के कुछ दोस्तों के बयानों के आधार पर कहने लगा कि रूहानी ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि रंजन ने उस दूसरी लड़की के साथ मिल कर उस का खून किया है यानी जितने मुंह उतनी बातें.

अंतिम संस्कार के समय काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सहकलाकार, आम जनता और इन सब के बीच छिपे, रोतेबिलखते रूहानी के मातापिता. इतनी भीड़ देख कर कौन कह सकता था कि यहां उस का अपना कहने को, उस के मन की टोह लेने वाला कोई न था. रूहानी चली गई… शायद संवेदनशीलता का यहां कोई काम नहीं. अपने घर में जिस धन व प्रसिद्धि की खोज में रूहानी निकल पड़ी थी, वह उसे मिल तो गई, लेकिन इनसान की खोज कब रुकी है भला. धनप्रसिद्धि के पश्चात प्यार पाने की खोज, प्यार के पश्चात अपना घर बसाने की आकांक्षा… यह सूची कभी खत्म नहीं होती.

रज्जो: क्यों रोने लगा रामदीन

रज्जो रसोईघर का काम निबटा कर निकली, तो रात के 10 बज रहे थे. वह अपने कमरे में जाने से पहले सुरेंद्र के कमरे में पहुंची. वह उस समय बिस्तर पर आंखें बंद किए लेटा था.

‘‘साहबजी, मैं कमरे पर सोने जा रही हूं. कुछ लाना है तो बताइए?’’ रज्जो ने सुरेंद्र की ओर देखते हुए पूछा.

सुरेंद्र ने आंखें खोलीं और अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘रज्जो, आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘मैं आप के माथे पर बाम लगा कर दबा देती हूं,’’ रज्जो ने कहा और अलमारी में रखी बाम की शीशी ले आई. वह सुरेंद्र के माथे पर बाम लगा कर सिर दबाने लगी.

कुछ देर बाद रज्जो ने पूछा, ‘‘अब कुछ आराम पड़ा?’’

‘‘बहुत आराम हुआ है रज्जो, तेरे हाथों में तो जादू है,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने अपना सिर रज्जो की गोद में रख दिया.

रज्जो सिर दबाने लगी. वह महसूस कर रही थी कि एक हाथ उस की कमर पर रेंग रहा है. उस ने सुरेंद्र की ओर देखा.

सुरेंद्र बोला, ‘‘रज्जो, यहां रहते हुए तू किसी बात की चिंता मत करना. तुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. जब कभी जितने रुपए की जरूरत पड़े, तो बता देना.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘आज तेरी मैडम लखनऊ गई हैं. वहां जरूरी मीटिंग है. 4 दिन बाद वापस आएंगी,’’ कह कर सुरेंद्र ने उसे अपनी ओर खींच लिया.

रज्जो समझ गई कि सुरेंद्र की क्या इच्छा है. वह बोली, ‘‘नहीं साहबजी, ऐसा न करो. मुझे तो मांकाका ने आप की सेवा करने के लिए भेजा है.’’

‘‘रज्जो, यह भी तो सेवा ही है. पता नहीं, आज क्यों मैं अपनेआप पर काबू नहीं रख पा रहा हूं?’’ सुरेंद्र ने रज्जो की ओर देखते हुए कहा.

‘‘साहबजी, अगर मैडम को पता चल गया तो?’’ रज्जो घबरा कर बोली.

‘‘उस की चिंता मत करो. वह कुछ नहीं कहेगी.’’

रज्जो मना नहीं कर सकी और न चाहते हुए भी सुरेंद्र की बांहों समा गई.

कुछ देर बाद जब रज्जो अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटी, तो उस की आंखों से नींद भाग चुकी थी. उस की आंखों के सामने मांकाका, 2 छोटी बहनों व भाई के चेहरे नाचने लगे.

यहां से 3 सौ किलोमीटर दूर रज्जो का गांव चमनपुर है. काका राजमिस्त्री का काम करता है. महीने में 10-15 दिन मजदूरी पर जाता है, क्योंकि रोजाना काम नहीं मिलता.

रज्जो तो 5 साल पहले 10वीं जमात पास कर के स्कूल छोड़ चुकी थी. उस की 2 छोटी बहनें व भाई पढ़ रहे थे. मां ने उस का नाम रजनी रखा था, पर पता नहीं, कब वह रजनी से रज्जो बन गई.

एक दिन गांव की प्रधान गोमती देवी ने मां को बुला कर कहा था, ‘मुझे पता चला है कि तेरी बेटी रज्जो तेरी तरह बहुत बढि़या खाना बनाती है. तू उसे सुबह से शाम तक के लिए मेरे घर भेज दे.’

‘ठीक है प्रधानजी, मैं रज्जो को भेज दूंगी,’ मां ने कहा था.

2 दिन बाद रज्जो ने गोमती प्रधान के घर की रसोई संभाल ली थी.

एक दिन एक बड़ी सी कार गोमती प्रधान के घर के सामने रुकी. कार से सुरेंद्र व उस की पत्नी माधवी मैडम उतरे. कार पर लाल बत्ती लगी थी. गोमती प्रधान की दूर की रिश्तेदारी में माधवी मैडम बहन लगती थीं.

दोपहर का खाना खा कर सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को बुला कर कहा, ‘तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो. हमें तुम जैसी लड़की की जरूरत है. क्या तुम हमारे साथ चलोगी? जैसे तुम यहां खाना बनाती हो, वैसा ही तुम्हें वहां भी रसोई में काम करना है.’

रज्जो चुप रही.

गोमती प्रधान बोल उठी थीं. ‘यह क्या कहेगी? इस के मांकाका को कहना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद ही रज्जो के मांकाका वहां आ गए थे.

गोमती प्रधान बोलीं, ‘रामदीन, यह मेरी बहन है. सरकार में एक मंत्री की तरह हैं. इस को रज्जो के हाथ का बना खाना बहुत पसंद आया, तो ये लोग इसे अपने घर ले जाना चाहते हैं रसोई के काम के लिए.’

‘रामदीन, बेटी रज्जो को भेज कर बिलकुल चिंता न करना. हम इसे पूरा लाड़प्यार देंगे. रुपएपैसे हर महीने या जब तुम चाहोगे भेज देंगे,’ माधवी मैडम ने कहा था.

‘साहबजी, आप जैसे बड़े आदमी के यहां पहुंच कर तो इस की किस्मत ही खुल जाएगी. यह आप की सेवा खूब मन लगा कर करेगी. यह कभी शिकायत का मौका नहीं देगी,’ काका ने कहा था.

सुरेंद्र ने जेब से कुछ नोट निकाले और काका को देते हुए कहा, ‘लो, फिलहाल ये पैसे रख लो. हम लोग हर तरह  से तुम्हारी मदद करेंगे. यहां से लखनऊ तक कोई भी सरकारी या गैरसरकारी काम हो, पूरा करा देंगे. अपनी सरकार है, तो फिर चिंता किस बात की.’

रज्जो उसी दिन सुरेंद्र व माधवी के साथ इस कसबे में आ गई थी.

सुरेंद्र की बहुत बड़ी कोठी थी, जिस में कई कमरे थे. एक कमरा उसे भी दे दिया गया था. माधवी मैडम ने उस को कई सूट खरीद कर दिए थे. उसे एक मोबाइल फोन भी दिया था, ताकि वह अपने घरपरिवार से बात कर सके.

रज्जो को पता चला था कि सुरेंद्र की काफी जमीनजायदाद है. एक ही बेटा है, जो बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहा है.

माधवी मैडम बहुत बिजी रहती हैं. कभी पार्टी मीटिंग में, तो कभी इधरउधर दूसरे शहरों में और कभी लखनऊ में.

इन्हीं विचारों में डूबतेतैरते रज्जो को नींद आ गई थी. अगले दिन सुरेंद्र ने रज्जो को कमरे में बुला कर कुछ गोलियां देते हुए कहा, ‘‘रज्जो, ये गोलियां तुझे खानी हैं. रात जो हुआ है, उस से तेरी सेहत को नुकसान नहीं होगा.’’

‘‘जी…’’ रज्जो ने वे गोलियां देखीं. वह जान गई कि ये तो पेट गिराने वाली गोलियां हैं.

‘‘और हां रज्जो, कल अपने घर ये रुपए मनीऔर्डर से भेज देना,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने 5 हजार रुपए रज्जो को दिए.

‘‘इतने रुपए साहबजी…?’’ रज्जो ने रुपए लेते हुए कहा.

‘‘अरे रज्जो, ये रुपए तो कुछ भी नहीं हैं. तू हम लोगों की सेवा कर रही है न, इसलिए मैं तेरी मदद करना चाहता हूं.’’

रज्जो सिर झुका कर चुप रही.

सुरेंद्र ने रज्जो का चेहरा हाथ से ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘तुझे कभी अपने गांव जाना हो, तो बता देना. ड्राइवर और गाड़ी भेज दूंगा.’’

सुन कर रज्जो बहुत खुश हुई.

‘‘रज्जो, तू मुझे इतनी अच्छी लगती है कि अगर मैडम की जगह मैं मंत्री होता, तो तुझे अपना पीए बना लेता,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘रहने दो साहबजी, मुझे ऐेसे सपने न दिखाओ, जो मैं रोटी बनाना ही भूल जाऊं.’’

‘‘रज्जो, तू नहीं जानती कि मैं तेरे लिए क्या करना चाहता हूं,’’ सुरेंद्र ने कहा.

खुशी के चलते रज्जो की आंखों की चमक बढ़ गई.

4 दिन बाद माधवी मैडम घर लौटीं. इस बीच हर रात को सुरेंद्र रज्जो को अपने कमरे में बुला लेता और रज्जो भी पहुंच जाती, उसे खुश करने के लिए.

अगले दिन रज्जो एक कमरे के बराबर से निकल रही थी, तो सुरेंद्र व माधवी की बातचीत की आवाज आ रही थी. वह रुक कर सुनने लगी.

‘‘कैसी लगी रज्जो?’’ माधवी ने पूछा.

‘‘ठीक है, बढि़या खाना बनाती है,’’ सुरेंद्र का जवाब था.

‘‘मैं रसोई की नहीं, बैडरूम की बात कर रही हूं. मैं जानती हूं कि रज्जो ने इन रातों में कोई नाराजगी का मौका नहीं दिया होगा.’’

‘‘तुम्हें क्या रज्जो ने कुछ बताया है?’’

‘‘उस ने कुछ नहीं बताया. मैं उस के चेहरे व आंखों से सच जान चुकी हूं.

‘‘खैर, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम कहा करते थे कि मैं बाहर चली जाती हूं, तो अकेले रात नहीं कटती, इसलिए ही तो रज्जो को इतनी दूर से यहां लाई हूं, ताकि जल्दी से वापस घर न जा सके.’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो माधवी…’’ सुरेंद्र ने कहा, ‘‘लखनऊ में तुम्हारे नेताजी के क्या हाल हैं? वह तो बस तुम्हारा पक्का आशिक है, इसलिए ही तो उस ने तुम्हें लाल बत्ती दिला दी है.’’

‘‘इस लाल बत्ती के चलते हम लोगों का कितना रोब है. पुलिस या प्रशासन में भला किस अफसर की इतनी हिम्मत है, जो हमारे किसी भी ठीक या गलत काम को मना कर दे.’’

‘‘नेताजी का बस चले तो वह तुम्हें लखनऊ में ही हमेशा के लिए बुला लें.’’

‘‘अगले हफ्ते नेताजी जनपद में आ रहे हैं. रात को हमारे यहां खाना होगा. मैं ने सोचा है कि नेताजी की सेवा में रात को रज्जो को उन के पास भेज दूंगी.

‘‘जब नेताजी हमारा इतना खयाल रखते हैं, तो हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नेताजी को खुश रखें. अगले महीने रज्जो को लखनऊ ले जाऊंगी, वहां

2-3 दूसरे नेता हैं, उन को भी खुश करना है,’’ माधवी ने कहा.

सुनते ही रज्जो के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. वह चुपचाप रसोई में जा पहुंची. उस ने तो साहब को ही खुश करना चाहा था, पर ये लोग तो उसे नेताओं के पास भेजने की सोच बैठे हैं. वह ऐसा नहीं करेगी. 1-2 दिन बाद ही वह अपने गांव चली जाएगी.

तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वह बोली, ‘‘हैलो…’’

‘‘हां रज्जो बेटी, कैसी है तू?’’ उधर से काका की आवाज सुनाई दी.

काका की आवाज सुन कर रज्जो का दिल भर आया. उस के मुंह से आवाज नहीं निकली और वह सुबकने लगी.

‘‘क्या हुआ बेटी? बता न? लगता है कि तू वहां बहुत दुखी है. पहले तो तू साहब व मैडम की बहुत तारीफ किया करती थी. फिर क्या हो गया, जो तू रो रही है?’’

‘‘काका, मैं गांव आना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है रज्जो, मेरा 2 दिन का काम और है. उस के बाद मैं तुझे लेने आ जाऊंगा. मैं जानता हूं कि मैडम व साहब बहुत अच्छे लोग हैं. तुझे भेजने को मना नहीं करेंगे. तू हमारी चिंता न करना. यहां सब ठीक है. तेरी मां, भाईबहनें सब मजे में हैं,’’ काका ने कहा.

रज्जो चुप रही.

अगले दिन सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को कमरे में बुलाया.

सुरेंद्र ने कहा, ‘‘रज्जो, 4-5 दिन बाद लखनऊ से बहुत बड़े नेताजी आ रहे हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे यहां खाना खाएंगे और रात को आराम भी यहीं करेंगे.’’

‘‘जी…’’ रज्जो के मुंह से निकला.

‘‘रात को तुम्हें नेताजी की सेवा करनी है. उन को खुश करना है. देखना रज्जो, अगर नेताजी खुश हो गए तो…’’ माधवी की बात बीच में ही अधूरी रह गई.

रज्जो एकदम बोल उठी, ‘‘नहीं मैडमजी, यह मुझ से नहीं होगा. यह गलत काम मैं नहीं करूंगी.’’

‘‘और मेरे पीठ पीछे साहबजी के साथ रात को जो करती रही, क्या वह गलत काम नहीं था?’’

रज्जो सिर झुकाए बैठी रही, उस से कोई जवाब नहीं बन पा रहा था.

‘‘रज्जो, तू हमारी बात मान जा. तू मना मत कर,’’ सुरेंद्र बोला.

‘‘साहबजी, ये नेताजी आएंगे, इन को खुश करना है. फिर कुछ नेताओं को खुश करने के लिए मुझे मैडमजी लखनऊ ले कर जाएंगी. मैं ने आप लोगों की बातें सुन ली हैं. मैं अब यह गलत काम नहीं करूंगी. मैं अपने घर जाना चाहती हूं. 2 दिन बाद मेरे काका आ रहे हैं,’ रज्जो ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा.

‘‘अगर हम तुझे गांव न जाने दें तो…?’’ माधवी ने कहा.

‘‘तो मैं थाने जा कर पुलिस को और अखबार के दफ्तर में जा कर बता दूंगी कि आप लोग मुझ से जबरदस्ती गलत काम कराना चाहते हैं,’’ रज्जो ने कड़े शब्दों में कहा.

रज्जो के बदले तेवर देख कर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘ठीक है रज्जो, हम तुझ से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराएंगे. तू अपने काका के साथ गांव जा सकती है,’’ यह कह कर सुरेंद्र ने माधवी की ओर देखा.

उसी रात सुरेंद्र ने रज्जो की गला दबा कर हत्या कर दी और ड्राइवर से कह कर रज्जो की लाश को नदी में फिंकवा दिया. दिन निकलने पर इंस्पैक्टर को फोन कर के कोठी पर बुला लिया.

‘‘कहिए हुजूर, कैसे याद किया?’’ इंस्पैक्टर ने आते ही कहा.

‘‘हमारी नौकरानी रजनी उर्फ रज्जो घर से एक लाख रुपए व कुछ जेवरात चुरा कर भाग गई है.’’

‘‘सरकार, भाग कर जाएगी कहां वह? हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और कुछ देर बाद चला गया.

दोपहर बाद रज्जो का काका रामदीन आया. सुरेंद्र ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरे ओ रामदीन, तेरी रज्जो तो बहुत गलत लड़की निकली. उस ने हम लोगों से धोखा किया है. वह हमारे एक लाख रुपए व जेवरात ले कर कल रात कहीं भाग गई है.’’

‘‘नहीं हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता. मेरी रज्जो ऐसा नहीं कर सकती,’’ घबरा कर रामदीन बोला.

‘‘ऐसा ही हुआ है. वह यहां से चोरी कर के भाग गई है. जब वह गांव में अपने घर पहुंचे तो बता देना. थाने में रिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस तेरे घर भी पहुंचेगी.

‘‘अगर तू ने रज्जो के बारे में न बताया, तो पुलिस तुम सब को उठा कर जेल भेज देगी.

‘‘और सुन, तू चुपचाप यहां से भाग जा. अगर पुलिस को पता चल गया कि तू यहां आया है, तो पकड़ लिया जाएगा.’’

यह सुन कर रामदीन की आंखों में आंसू आ गए. रज्जो के लिए उस के दिल में नफरत बढ़ने लगी. वह रोता हुआ बोला, ‘‘रज्जो, यह तू ने अच्छा नहीं  किया. हम ने तो तुझे यहां सेवा करने के लिए भेजा था और तू चोर बन गई.’’

रामदीन रोतेरोते थके कदमों से कोठी से बाहर निकल गया.

दलाल: क्या राजन को माफ कर पाई काजल

6 महीने पहले जब काजल की शादी राजन से हुई थी, तो वह मन में हजारों सपने ले कर अपने पति के घर आई . शुरुआती दिनों में उस के सपने पूरे होते भी दिखे थे. उस के ससुराल वाले खातेपीते लोग थे और वहां कोई कमी नहीं थी.

गरीबी में पलीबढ़ी काजल के लिए इतना होना बहुत था. उसे लगा था कि ससुराल आ कर उस की जिंदगी बदल गई है, उस की गरीबी हमेशा के लिए पीछे छूट गई है, पर बीतते दिनों के साथ उस का यह सपना टूटने लगा था.

काजल के मायके की जिंदगी गरीबी और तंगहाली से भरी जरूर थी, पर वहां उस की इज्जत थी. जैसे ही वह 20 साल की हुई थी, उस के मांबाप उस की इज्जत के प्रति कुछ ज्यादा ही सचेत हो उठे थे.

शादी के शुरू के दिनों में राजन का बरताव काजल के प्रति अच्छा था. उस के सासससुर भी उस का खयाल रखते थे, पर आगे चल कर राजन का बरताव काजल के प्रति कठोर होता चला गया.

राजन कपड़े का कारोबार करता था. उसे अपने कारोबार में 50 हजार रुपए का घाटा हुआ. उसे महाजन का उधार चुकाने के लिए अपने एक दोस्त से 50 हजार रुपए का कर्ज लेना पड़ा.

रजत नाम का यह दोस्त जब राजन से अपने पैसे मांगने लगा, तो उस के हाथपैर फूलने लगे. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह इतने रुपए कहां से लाए, ताकि अपने दोस्त के कर्ज से छुटकारा पा सके. उस ने इस बारे में गहराई से सोचा और तब उसे लगा कि उस की पत्नी ही उसे इस कर्ज से छुटकारा दिला सकती है.

अपनी इस सोच के तहत राजन ने काजल से बात की और उस से कहा कि वह अपने मांबाप से 50 हजार रुपए मांग लाए. पर जहां दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही मुश्किल से हो पाता हो, वहां इतने पैसों का इंतजाम कहां से हो पाता.

‘‘ठीक है,’’ राजन उदास लहजे में बोला.

‘‘पर मेरे पास एक और तरीका है,’’ काजल मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरे पास रूप और जवानी की दौलत तो है. मैं इसी का इस्तेमाल कर के पैसों का इंतजाम करूंगी.’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो तुम?’’ राजन तेज आवाज में बोला.

‘‘मैं बकवास नहीं, बल्कि सच कह रही हूं.’’

‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं. आखिरकार मैं तुम्हारा पति हूं और कोई पति अपनी पत्नी की इज्जत का सौदा नहीं कर सकता.’’

‘‘पर मैं कर सकती हूं,’’ काजल कुटिल आवाज में बोली, ‘‘क्योंकि पैसा पहले है और पति बाद में.’’

उन की स्कीम के अनुसार, रात के तकरीबन 10 बजे राजन लौटा, तो उस के साथ उस का वह दोस्त रजत भी था, जिस से उस ने कर्ज लिया था. राजन अपने दोस्त रजत को ले कर अपने बैडरूम में आ गया. उस ने काजल से कहा कि वह उस के और उस के दोस्त के लिए खानेपीने का इंतजाम करे.

आधे घंटे बाद जब काजल उन का खाना ले कर बैडरूम में पहुंची, तो दोनों शराब की बोतल खोले बैठे थे. काजल खाना लगा कर एक ओर खड़ी हो गई. शराब पीने के साथसाथ वे दोनों खाना खाने लगे.

खाना खाते समय रजत रहरह कर काजल को बड़ी कामुक निगाहों से देखने लगता था.

जब वे लोग खाना खा चुके, तो काजल जूठे बरतन ले कर रसोईघर में चली गई. थोड़ी देर बाद राजन ने आवाज दे कर उसे पुकारा. काजल कमरे में बैड के पास खड़ी थी और राजन के साथ बैठा रजत उसे बड़ी कामुक निगाहों से घूर रहा था. काजल ने आंखों ही आंखों में कुछ इशारा किया और राजन उठता हुआ बोला, ‘‘काजल, तुम यहीं बैठो, मैं अभी आया.’’

इतना कहने के बाद राजन तेजी से कमरे से निकल गया और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया. पर वह कमरे से निकला था, घर से नहीं. राजन दरवाजे के पास अपने मोबाइल फोन के साथ छिपा बैठा था, ताकि काजल और रजत के प्यार के पलों की वीडियो फिल्म बना सके. राजन के कमरे से निकलते ही रजत काजल से छेड़छाड़ करने लगा.

‘‘यह क्या कर रहे हो तुम?’’ काजल नकली नाराजगी दिखाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मुझे.’’

‘‘तुम्हें कैसे छोड़ दूं जानेमन?’’ रजत बोला.

‘‘बड़ी कोशिश के बाद तो तुम मेरे हाथ आई हो,’’ कह हुए उस ने काजल को अपनी बांहों में भर लिया.

रजत की इस हरकत से काजल पलभर को तो बौखला उठी, फिर उस की बांहों में मचलते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मुझे, वरना मैं तुम्हारी शिकायत अपने पति से करूंगी.’’

‘‘पति…’’ कह कर रजत कुटिलता से मुसकराया.

‘‘तुम्हारा पति भला मेरा क्या बिगाड़ लेगा? वह तो गले तक मेरे कर्ज में डूबा हुआ है.

‘‘सच तो यह है कि वह खुद चाहता है कि मैं तुम्हारी जवानी से खेलूं, ताकि उसे कर्ज चुकाने के लिए थोड़ी और मुहलत मिल जाए.’’

‘‘नहीं, राजन ऐसा नहीं कर सकता,’’ काजल अपने पति पर भरोसा करते हुए बोली.

‘‘तुम्हें यकीन नहीं आता?’’ रजत उस का मजाक उड़ाते हुए बोला, ‘‘तो खुद जा कर दरवाजा चैक कर लो. तुम्हारे पति ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया है.’’

‘‘नहीं,’’ कह कर काजल दरवाजे की ओर भागी, पर शराब और वासना के नशे से जोश में आए एक मर्द से एक औरत कब तक बचती. रजत ने झपट कर उसे अपनी बांहों में उठाया और बिस्तर पर उछाल दिया. अब काजल संभलती हुई उस पर सवार थी.

ऐसा करते हुए यह बात रजत के सपने में भी न थी कि उस का यह मजा आगे चल कर उस के लिए कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाला है.

रजत के जाने के बाद जब राजन कमरे में आया, तो नकली गुस्सा और अपमान से भरी काजल बोली, ‘‘कैसे पति हो तुम? पति तो अपनी पत्नी की इज्जत की हिफाजत के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं, पर तुम ने तो अपना कर्ज उतारने के लिए अपनी पत्नी की इज्जत को ही दांव पर लगा दिया?’’

बदले में राजन मुसकराते हुए बोला, ‘‘काजल, कुछ पल रजत के साथ बिताने के एवज में अब हमें उस के कर्ज से जल्दी ही छुटकारा मिल जाएगा.’’

इस के तीसरे दिन जब रजत अपने पैसे मांगने राजन के घर पहुंचा, तो राजन ने उसे अपने मोबाइल फोन से बनाई वह वीडियो फिल्म दिखाई, फिर उसे धमकाता हुआ बोला, ‘‘रजत, अब तुम अपने पैसे भूल ही जाओ. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो मैं यह वीडियो क्लिप पुलिस तक पहुंचा दूंगा और तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दूंगा कि तुम ने मेरी पत्नी के साथ बलात्कार किया है. इस के बाद पुलिस तुम्हारी क्या गत बनाएगी, इस की कल्पना तुम आसानी से कर सकते हो.’’

रजत हैरान सा राजन को देखता रह गया. उस के चेहरे से खौफ झलकने लगा था. वह चुपचाप राजन के घर से निकल गया.

इधर राजन ने उस के इस डर का भरपूर फायदा उठाया. इस वीडियो क्लिप को आधार बना कर वह रजत को ब्लैकमेल कर उस से पैसे ऐंठने लगा. रजत राजन की साजिश का शिकार जरूर हो गया था, पर वह भी कम शातिर न था. आखिर वह लाखों रुपए का कारोबार ऐसे ही नहीं चलाता था. उस ने इस मामले पर गहराई से विचार किया और राजन के हथियार से ही उसे मात देने की योजना बनाई.

अपनी योजना के तहत जब अगली बार राजन उस से पैसे वसूलने आया, तो रजत बोला, ‘‘राजन, तुम कब तक मुझे यों ही ब्लैकमेल करते रहोगे? आखिरकार तुम मेरे दोस्त हो, कम से कम इस बात का तो लिहाज करो.’’

‘‘मैं पैसे के अलावा और किसी का दोस्त नहीं.’’ ‘‘अगर मैं पैसे कमाने का इस से भी बड़ा जरीया तुम्हें बता दूं, तो क्या तुम मेरा पीछा छोड़ दोगे?’’

‘‘क्या मतलब?’’ राजन की आंखों में लालच की चमक उभरी.

‘‘मेरी नजर में एक करोड़पति है, जिस की कमजोरी खूबसूरत और घरेलू औरतें हैं. अगर तुम बुरा न मानो, तो तुम काजल को उस के पास भेज दिया करो. इस से तुम हजारों नहीं, बल्कि लाखों रुपए कमा सकते हो.’’

लालच के चलते काजल और राजन रजत द्वारा फैलाए जाल में फंस गए. अब रजत ने उस आदमी के साथ काजल के रंगीन पलों की वीडियो क्लिप बना ली और एक शाम जब पतिपत्नी उस के पास आए, तो यह फिल्म उन्हें दिखाई, फिर रजत बोला, ‘‘मैं जानता था कि तुम लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे. सो, मैं ने यह खूबसूरत वीडियो क्लिप बनाई है.

‘‘अब अगर तुम ने भूल कर भी मेरे घर का रुख किया, तो इस वीडियो फिल्म के जरीए मैं यह साबित कर दूंगा कि तुम्हारी पत्नी देह धंधा करती है और इस की आड़ में लोगों को ब्लैकमेल करती है. तुम इस में उस की मदद करते हो. तुम न सिर्फ उस के दलाल हो, बल्कि एक ब्लैकमेलर भी हो.’’

यह सुन कर पतिपत्नी के मुंह से बोल न फूटे. वे हैरान हो कर रजत को देखते रहे, फिर अपना सा मुंह ले कर उस के घर से निकल गए.

बिग डील: क्या गोपाल को माफ कर पाई मोहना

सोशल नैटवर्किंग साइट पर मोहना अपनी सगाई के कुछ फोटो अपलोड कर के हटी ही थी कि उस के स्मार्टफोन में नए मैसेज की टोन गूंज उठी. सभी मित्र तथा सहकर्मी उसे बधाई दे रहे थे. मुसकराती हुई वह सभी मैसेज पढ़ रही थी कि एक नाम पढ़ते ही उस के फैले अधर सिकुड़ गए, मुसकराते चेहरे पर त्योरियां चढ़ गईं और खुशमिजाज मूड बिगड़ गया. फिर भी उस ने बधाई का उत्तर दिया, ‘धन्यवाद गोपाल, मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’

एक बार को दिल किया कि गोपाल को अपनी फ्रैंडलिस्ट से निकाल दे लेकिन रुक गई. पिछले 3 वर्षों में गोपाल ने कोई ऐसी हरकत नहीं की थी. आज भी अन्य मित्रों की भांति बधाई दी है. फिर मोहना आज के जमाने की बोल्ड युवती है, खुले विचारों वाली, दकियानूसी विचारधारा से परे. 3 साल पहले हुई एक दुर्घटना उस का मनोबल कैसे तोड़ सकती है. लैपटौप बंद कर वह रसोई में अपने लिए एक कप कौफी बनाने चल दी. दूध के उबाल के साथसाथ उस के विचारों में भी ऊफान आने लगा और एक झटके में पुराने दिनों में पहुंच गई.

स्नातकोत्तर के लिए कालेज में प्रवेश के साथ ही मोहना की मित्रता गोपाल से हुई थी. दोनों का विषय एक था. कुछ ही अरसे की दोस्ती ने गोपाल को एक सुंदर, सुनहरे भविष्य के सपने दिखाने शुरू कर दिए. वह अकसर बात करता, ‘मोहना, जब हम अपना घर लेंगे तो उस में…’

मोहना बीच में ही बात काट देती, ‘अपना घर? हम एक घर क्यों लेंगे?’ गोपाल शरमा कर हंस देता और मोहना सिर झटक कर हंस देती. ‘जब मैं ने मोहना के आगे शादी का प्रस्ताव ही नहीं रखा तो वह क्यों मेरे इशारों को समझेगी. जब मैं प्रपोज करूंगा तभी तो मोहना भी मेरे प्रति अपना प्यार स्वीकारेगी,’ सोचता हुआ गोपाल एक सही समय की प्रतीक्षा कर रहा था.

कालेज के अंतिम वर्ष में प्लेसमैंट सैल द्वारा लगभग सभी की जौब लग गई. मोहना व गोपाल को भी अपनी पसंदीदा कंपनियों में अच्छे पैकेज वाली नौकरियां मिल गईं. किंतु एक को दिल्ली में तो दूसरे को हैदराबाद में नौकरी मिली. गोपाल इस से काफी उदास हो उठा.

‘अरे, हम टच में रहेंगे न, इतना क्यों उदास होते हो?’

‘मैं ने कल शाम. तुम्हारे लिए एक पार्टी रखी है, मोहना, आओगी न?’ गोपाल ने उदासी का चोला उतार पहले जैसी मुसकान ओढ़ ली.

‘बिलकुल आऊंगी. मेरे लिए पार्टी हो और मैं न आऊं?’ मोहना पार्टी का नाम सुन कर खुश थी. अगली शाम जब मोहना तैयार हो निर्धारित जगह पर पहुंची तो अपने ज्यादातर मित्रों को उस पार्टी में पा कर बोली, ‘‘अरे वाह, यहां तो सभी हैं.’’ ‘क्योंकि ये आम पार्टी नहीं, आज यहां कुछ खास होने वाला है. कुछ ऐसा जिसे तुम सारी उम्र नहीं भूलोगी,’ कहते हुए गोपाल के इशारे पर सारा वातावरण मधुर संगीत से गूंज उठा. आसपास खड़े मित्र, मोहना और गोपाल पर गुलाब की पंखुडि़यां बरसाने लगे.

मोहना आश्चर्यचकित थी पर साथ ही इतने मनमोहक माहौल में उस की मुसकान थमने का नाम नहीं ले रही थी. तभी गोपाल ने जेब से एक सुंदर सी डब्बी निकाली और खोल कर मोहना के समक्ष बढ़ा दी. उस डब्बी में एक खूबसूरत अंगूठी थी, ‘क्या तुम मेरी जीवनसंगीनी बनोगी, मोहना?’ मोहना की हंसी अचानक काफूर हो गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है, जिसे वह अपनी नौकरी मिलने की खुशी की पार्टी समझ रही थी वह तो दरअसल गोपाल ने उसे प्रपोज करने हेतु रखी थी. वह भी सब के सामने. इस अप्रत्याशित प्रस्ताव के लिए वह कतई तैयार नहीं थी. पहली बात उस ने अभी शादी करने के बारे में सोचा भी न था. गोपाल को उस ने कभी इस नजर से देखा भी नहीं था. वह तो उसे सिर्फ एक दोस्त मानती थी.

‘ओह गोपाल. एक बार मुझ से पूछ तो लेते. यों अचानक सब के सामने… देखो, मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहती पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहती. मैं तुम से प्यार भी नहीं करती. प्लीज, बात समझने की कोशिश करो,’ मोहना अचकचा गई थी, वह गोपाल को किसी भी गलतफहमी में नहीं रखना चाहती थी. उस के इतना कहते ही पार्टी में हलचल मच गई. चारों ओर खुसफुसाहट सुनाई देने लगी. गोपाल को अपनी बेइज्जती महसूस हुई. सब मित्र अपनेअपने घर रवाना हो गए. मोहना भी चुपचाप चली गई. कुछ दिन बाद मोहना हैदराबाद चली गई और वहां नई नौकरी जौइन कर ली. उस शाम से आज तक उस ने गोपाल से कोई बातचीत नहीं की थी. नए शहर और नई नौकरी में मोहना खुश थी. मोहना को इस औफिस में अभी एक हफ्ता ही हुआ था कि एक सुबह अचानक औफिस में प्रवेश करते समय उस ने गोपाल को रिसैप्शन पर खड़ा पाया.

‘अरे, गोपाल तुम?’

‘हां, किसी काम से हैदाराबाद आया था. सोचा, तुम से भी मिलता चलूं. तुम्हारी कंपनी का नामपता तो मालूम ही था.’

‘अच्छा किया. कैसे हो? कहां ठहरे हो और कब तक?’

‘होटल मयूर में रुका हूं. यदि शाम को तुम फ्री हो तो आ जाओ, एक कप कौफी पीएंगे साथ में और गपशप करेंगे दोनों.’ गोपाल के इस प्रस्ताव पर मोहना झिझकी.

‘हां, मैं आऊंगी,’ मोहना ने झिझकते हुए कहा. शाम को मोहना होटल मयूर पहुंची. वहीं के रेस्तरां में दोनों ने कौफी पी. कुछ हलका सा खाया ही था कि गोपाल ने पेटदर्द की शिकायत की, ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है, मोहना. मैं अब कमरे में जाना चाहता हूं.’ मोहना गोपाल को छोड़ने उस के कमरे तक गई, ‘कोई दवा है तुम्हारे पास या मैं जा कर ले आऊं?’ ‘मेरी दवा तुम हो, मोहना,’ कहते हुए गोपाल ने अचानक कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और मोहना को घसीट कर बिस्तर पर गिरा दिया. ‘यह क्या कर रहे हो, गोपाल? क्या पागल हो गए हो? मैं तुम्हें साफतौर से बता चुकी हूं कि मैं तुम्हें नहीं चाहती. फिर भी तुम…’

गोपाल अपनी सुधबुध खो चुका था. मोहना की बातों का, उस की चीखों का उस पर कोई असर नहीं हुआ. उस पर तो जैसे फुतूर सवार हो गया था. वह मोहना पर टूट पड़ा और उस की अस्मिता भंग करने के पश्चात ही सांस ली. मोहना का रोरो कर बुरा हाल था. एक पुराने दोस्त के हाथों इतना बड़ा धोखा. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि गोपाल उसे इतना आहत कर सकता है. शारीरिक वेदना से अधिक वह रोष अनुभव कर रही थी. मना करने के बावजूद उस के अपने मित्र ने उस के साथ छल किया. मोहना का दिल कसमसा उठा. रात काफी हो चुकी थी. मोहना अपने संताप को स्वीकार चुकी थी. गोपाल चुपचाप एक तरफ बैठा था. अचानक गोपाल उठ खड़ा हुआ और कमरे की एकमात्र अलमारी से फिर वही अंगूठी वाली डब्बी निकाल लाया और बोला, ‘अब तो मान जाओ, मोहना,’ और वही अंगूठी मोहना की ओर बढ़ा दी.

‘ओह, तो तुम ने ये सब इसलिए किया ताकि मैं कहीं और, किसी और के पास जाने लायक न रहूं? मुझे तरस आता है, गोपाल, तुम्हारी संकुचित सोच पर. ऐसी हरकत कर के तुम किसी लड़की को जबरदस्ती पा तो सकते हो, लेकिन उस का दिल कभी नहीं जीत सकते, उस के अंतर्मन में अपने लिए इज्जत कभी नहीं बना सकते. मैं आज के जमाने की लड़की हूं. मेरे लिए मेरे सभी अंग महत्त्वपूर्ण हैं. किसी एक अंग को भंग कर के तुम मेरा आत्मविश्वास नहीं खत्म कर सकते. ‘यदि तुम्हारी एक उंगली कट जाए तो क्या तुम जीना छोड़ दोगे? नहीं ना? वैसे ही इस घटना को मैं अपने मनमस्तिष्क पर हावी नहीं होने दूंगी. तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती की, इस का पछतावा तुम्हें होना चाहिए, मुझे नहीं. मेरा मन साफ है. ‘मेरे मन में तुम्हारे लिए कभी भी प्यार नहीं था और अब तो बिलकुल नहीं पनप सकता. मैं यहीं बैठी हूं. चाहो तो ऐसी हरकत फिर कर लो. मगर बारबार आहत कर के भी तुम मुझे नहीं पा सकते,’ कहते हुए मोहना उठी और अपने कपड़े, पर्स संभालते हुए कमरे से बाहर निकल गई. गोपाल भोर तक वहीं उसी मुद्रा में बैठा रहा. यह क्या कर दिया था उस ने? जिस को इतना चाहता था उसे ही इतनी पीड़ा पहुंचाई उस ने. मोहना द्वारा कही बातें उस के कानों में गूंज रही थीं.

‘अब तो कभी उस की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करेगी मोहना?’ उस ने सोचा. अगले दिन पूरी हिम्मत जुटा कर गोपाल फिर मोहना के औफिस पहुंच गया. किंतु आज मोहना औफिस नहीं आई थी. वहां से उस के घर का पता ले, वह उस के घर जा पहुंचा. दरवाजे पर गोपाल को खड़ा देख मोहना ने उसे एक चांटा जड़ दिया. गोपाल फिर भी सिर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा, हाथ जुड़े थे, मुख ग्लानि की स्याही से मलिन था. ‘मुझे माफ कर दो, मोहना. मैं पागल हो गया था. तुम्हें पा लेने के जनून में मैं ने अपना विवेक खो दिया था. प्लीज, मुझे माफ कर दो, मोहना,’ गोपाल गिड़गिड़ा रहा था.

मोहना एक आत्मविश्वासी, समझदार युवती थी. वह जानती थी कि किस चीज को कितनी अहमियत देनी है. गोपाल से उस की दोस्ती 3 साल पुरानी थी और इस समयाकाल में गोपाल ने उस का सिर्फ हित सोचा था. आज उस से एक भूल अवश्य हो गई थी लेकिन उस के पीछे भी उस की मनशा गलत नहीं थी. यह उस की मूर्खता थी. मोहना ने एक शर्त पर गोपाल को माफ कर दिया कि अब जब तक वह नहीं चाहेगी, दोनों एकदूसरे से मिलेंगे भी नहीं. गोपाल ने भी शर्त मान ली थी. ‘गोपाल, तुम्हारे मन में मेरे लिए जो भी भावना रही, उसे मैं विनिमय नहीं कर सकती और यह बात तुम्हें सहर्ष स्वीकारनी चाहिए. इसी में तुम्हारा बड़प्पन है,’ मोहना ने गोपाल को विदा किया. कौफी बन चुकी थी. हाथ में कौफी का मग लिए मोहना टीवी देखने बैठ गई. अपनी शादी पर पूरे 3 वर्ष पश्चात वह गोपाल से मिलेगी. गोपाल ने कहा था कि उस की शादी में अपनी गर्लफ्रैंड को भी लाएगा.

कारावास: लाले और जाले की कहानी

मलिक साहब एक वकील थे, जो अमेरिका जा कर बस गए थे. जब वह स्वदेश आए तो उन से उन की वकालत के दिनों के केसों में सब से रोचक केस सुनाने के लिए कहा गया.

यह कहानी उन्हीं के कथनानुसार है. उन्होंने बताया, ‘मेरे गुरु लाहौर के एक प्रसिद्ध वकील थे. उन के पास फौजदारी मुकदमों की लाइन लगी रहती थी. बड़ेबड़े मुकदमे वह खुद लिया करते थे और छोटेमोटे चोरीडकैती वगैरह के मुकदमे मुझे दिया करते थे. मैं बहुत मेहनत से काम करता था, इसलिए जल्दी ही मेरी गिनती बड़े वकीलों में होने लगी थी.

मेरे 2 क्लायंट थे, जो अकसर छोटेमोटे अपराध किया करते थे. एक का नाम जाले था, जो खातेपीते घराने का था. उसे खानेकमाने की कोई चिंता नहीं थी. जबकि दूसरे का नाम लाले था. वह था तो गरीब घर का, लेकिन उस का शरीर पहलवानों जैसा था.

उस के डीलडौल की वजह से उस से कोई पंगा नहीं लेता था. दोनों मेरे पक्के क्लायंट थे और अपना हर केस मुझे ही देते थे. कभीकभी तो दोनों मेरी फीस भी एडवांस में दे देते थे. वे कहते थे, ‘‘वकील साहब, रख लो. अगर कभी हम किसी केस में फंसे तो इसे अपनी फीस समझ लेना.’’

जाले खातेपीते घराने का था और उस की पीठ पर उस के ताऊ का हाथ था. ताऊ की कोई संतान नहीं थी, इसलिए ताऊ की पूरी संपत्ति और कारोबार उसे ही मिलना था. वह अकसर जुआ खेला करता था, इसलिए पैसे से तंग रहता था.

इस के लिए कई बार वह घटिया हरकतें भी करता था. मसलन, जैसे छोटे बच्चों से पैसे छीन लेना, किसी छोटी बच्ची के कानों से सोने की बालियां उतार लेना.

दूसरी ओर लाला यानी लाले मेहनतमजदूरी करता था. जुआ वह भी खेलता था. जब पैसे नहीं होते थे तो वह अपने मांबाप या विवाहिता बहन से बहाने से पैसे मांग लेता था. जब कहीं से पैसे नहीं मिलते थे तो वह कहीं हाथ मार कर अपना शौक पूरा कर लेता था. सब उस से डरते थे और उसे लाला पहलवान कह कर बुलाते थे.

गर्मियों में जब मैं रोज अपने औफिस के लिए निकलता तो अपने भाई की दूध की दुकान पर जरूर जाता था. वहां मैं पिस्ता, बादाम और खोए का ठंडा दूध पी कर जाता था. एक दिन मैं दूध पी रहा था तो लाले वहां आ गया.

उस ने बोस्की का सूट और बढि़या जूते पहन रखे थे और बहुत खुश था. उस ने मुझे देखते ही जोर से कहा, ‘‘अरे वकील साहब आप?’’ फिर जेब से बहुत सारे नोट निकाल कर बोला, ‘‘लो साल भर की फीस इकट्ठी ही एडवांस में ले लो.’’

मैं ने कहा, ‘‘लाले, इतना रुपया कहां से आया, क्या कहीं लंबा हाथ मारा है?’’

वह बोला, ‘‘मलिक साहब, कल रात ताश के पत्ते मेरे ऊपर मेहरबान थे, बाजी पर बाजी जीतता गया. अब खूब मौज करूंगा. आप भी एडवांस फीस ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.’’

मैं ने उस का दिल रखने के लिए थोड़े से पैसे ले कर कह दिया, ‘‘ठीक है, खूब मौजमस्ती करो.’’

इस के एक हफ्ते बाद मोहल्ले में सुबहसवेरे शोर हुआ तो मेरी आंखें खुल गईं. जा कर पता किया तो पता चला कि लाले की हत्या हो गई है. यह जानकारी भी मिली कि उस की हत्या जाले ने की है. मुझे यकीन नहीं हुआ, क्योंकि वे दोनों घनिष्ठ मित्र थे. इस के अलावा लाले वैसे भी इतना ताकतवर था कि वह 2-3 के बस में नहीं आ सकता था. उसे जाले जैसा कमजोर आदमी नहीं मार सकता था.

जहां उस की हत्या हुई थी, वह जगह मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं थी. मैं घटनास्थल पर पहुंचा. वहां लोगों ने बताया कि रात दोनों ने जुआ खेला था और दोनों हारजीत पर लड़ पड़े. जाले ने चाकू निकाल कर लाले को भोंक दिया और वह मर गया.

लाले की लाश घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर पड़ी थी. चाकू लगने से वह भागा होगा, इसलिए खून की लकीर जमीन पर पड़ी थी. लगता था, उसे पहले खूब शराब पिलाई गई होगी, जिस से उसे आसानी से मारा जा सके. वैसे तो दोनों मेरे क्लाइंट थे, लेकिन लाले के घर वालों ने पहले मुझे अपना वकील कर लिया और जाले के घर वालों ने एक मशहूर वकील किया. मुझे लाले के मरने का बड़ा दुख था, उस की सब बुराइयों के बावजूद मैं उसे पसंद करता था. मुझे उस की वह बात याद आ रही थी कि वकील साहब पैसे एडवांस में ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.

हो सकता है, उस से यह बात उस की मौत कहलवा रही हो. लाले की पार्टी गरीब थी, उस की ओर से मुकदमा उस के पिता लड़ रहे थे. जाले की पार्टी धनी थी, उस की ओर से उस का ताऊ मुकदमा लड़ रहा था, जो बहुत पैसे वाला था. उस ने जाले को खुली छूट दे रखी थी, जो मरजी आए करो पर बड़ा बदमाश बन कर दिखाओ. वह उस के लिए बहुत पैसे खर्च कर रहा था.

मैं ने मुकदमे की तैयारी शुरू कर दी. चश्मदीद गवाह एक ही था और वह जाले की बिरादरी का था. मुझे यकीन नहीं था कि वह जाले के खिलाफ गवाही देगा. ऐसा ही हुआ. उस ने गवाही देने से साफ मना कर दिया. बाद में पता चला कि जाले के ताऊ ने उसे गवाही न देने के लिए पैसे दिए थे और जाले की बहन से उस का रिश्ता भी कर दिया था. मुकदमा चला, गवाह न मिलने की वजह से जाले साफ छूट गया.

लाले के मांबाप बहुत गरीब थे. मुकदमा हार कर घर बैठ गए. बाद में वे दोनों जवान बेटे के गम में मर गए. जाले जेल से रिहा हो कर घर आ गया. पूरे मोहल्ले में उस की धाक जम गई. जब भी जाले का और मेरा सामना होता था तो वह मुझ से बड़े घमंड से कहता था, ‘‘आप ने लाले का मुकदमा लड़ कर अच्छा नहीं किया.’’

एक हत्या कर के उस की हिम्मत बढ़ गई और वह चरस, गांजे का कारोबार करने लगा. इलाके में अपनी धाक जमाने के लिए वह अपराध करने लगा था. अब उस ने मुझे अपना वकील भी करना छोड़ दिया था.

उस इलाके में एक और जेबकतरा था, जो बहुत बड़ा बदमाश था. उस की जाले से दोस्ती हो गई और दोनों मिल कर बदमाशी करने लगे. उन्होंने दुकानदारों से हफ्तावसूली शुरू कर दी थी. एक दिन जब वे हफ्तावसूली कर रहे थे तो दोनों की एक दुकानदार से लड़ाई हो गई.

दुकानदार भी दो थे, दोनों ने हफ्ता देने से मना कर दिया. वे दोनों बहुत दिलेर थे. चारों में जबरदस्त लड़ाई हुई. दोनों ओर से चाकूछुरियां चलीं, जिस में एक दुकानदार और जाले का साथी मारे गए. जाले भी घायल हो गया और वहां से फरार हो गया.

एक दुकानदार ने जाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. जाले ने भी अपने साथी की हत्या के लिए मुकदमा दर्ज कराना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. कारण यह था कि लड़ाई उन की दुकान पर हुई थी और जाले व उस का साथी एक मील चल कर वहां लड़ने आए थे.

फौजदारी मुकदमों के लिए मैं बहुत मशहूर था, इसलिए उस दुकानदार ने मुझे अपना वकील कर लिया. एक बार फिर मैं जाले के खिलाफ मुकदमा लड़ने लगा. जाले के ताऊ ने लाहौर का एक मशहूर महंगा वकील कर लिया था. जाले जेल चला गया. जाले हर पेशी पर बड़े घमंड से आया करता था. वह मेरी ओर गुस्से से देखता था और इशारों में मुझे धमकियां भी देता था.

जाले के घर वाले भी मुझे धमकियां देने लगे, जिस से डर कर मैं मुकदमा न लड़ूं. मैं ने मन लगा कर मेहनत की, जिस से मेरे क्लाइंट बहुत खुश थे. केस सैशन में चला. मेरे गवाहों ने बहुत अच्छी गवाही दी. जाले के वकील ने एक गवाह पेश किया, जो हिस्ट्रीशीटर था. वह ठीक से गवाही नहीं दे पाया. जाले का वकील बहुत परेशान था. हर बड़े वकील को अपने केस की चिंता होती है. उस ने जाले को शक का लाभ ले कर उसे बरी कराने या फांसी से बचाने की तरकीब सोची.

हर अदालत में पुलिस का एक व्यक्ति होता है, जो थानों से मिली हर केस की सभी फाइलें अपने पास रखता है और अदालत तक पहुंचाता है. जब मुकदमा दायर हो जाता है तो उस मुकदमे की दूसरी फाइल उस के पास रहती है, जिसे पुलिस फाइल कहते हैं. उस में विवेचना अधिकारी की हर दिन की काररवाई दर्ज की जाती है. अधिकतर वकील उस फाइल को देख नहीं पाते, लेकिन जो होशियार वकील होते हैं, उस फाइल से अपने मतलब की बहुत सी चीजें निकाल लेते हैं.

जाले के वकील ने जाले के ताऊ से कह कर एक नई डाक्टरी रिपोर्ट लगवा दी जो असल रिपोर्ट से अलग थी. दोनों रिपोर्टों में भिन्नता के कारण अपराधी को शक का लाभ मिल सकता था.

मैं अदालत जाने से पहले उस पुलिस फाइल को जरूर देखता था. मैं ने वह रिपोर्ट देखी तो मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई. मैं ने पुलिस वाले से पूछा तो उस ने बताया कि उसे पता नहीं लेकिन फाइल थानेदार ने मंगवाई थी. मैं ने तुरंत अपने क्लायंट से कहा, ‘‘समय रहते कुछ करना है तो कर लो.’’

वे लोग भी बहुत होशियार थे. उन्होंने पुलिस वाले को अच्छी रकम दे कर वह रिपोर्ट निकलवा दी.

पेशी के दिन जाले का वकील और थानेदार बड़े भरोसे से अदालत में आए. पहले विवेचना अधिकारी के बयान हुए. वकील बहुत खुश था कि उस रिपोर्ट की बिनाह पर वे लोग मुकदमा जीत जाएंगे. थानेदार और वकील ने पूरी फाइल देख ली, लेकिन वह रिपोर्ट नहीं मिली. दोनों को पसीना आ गया कि वह रिपोर्ट कहां गई. शोर इसलिए नहीं कर सकते थे कि अदालत के पास जो रिपोर्ट थी, वह असली थी.

मैं ने लोहा गरम देख कर चोट की, ‘‘योर औनर, ऐसी कोई रिपोर्ट न तो थी और न है. नई रिपोर्ट कोई डाक्टर बना कर भी नहीं दे सकता, इसलिए यह पूरा मामला ही झूठ का पुलिंदा है.’’

जाले का वकील कोई सबूत पेश नहीं कर सका, इसलिए अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी. मेरे क्लाइंट बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरी जेब में बहुत मोटी रकम डाल दी. मैं ने मना किया तो वे कहने लगे कि केस हाईकोर्ट में तो जाना ही है, और इसे आप ही लड़ेंगे.

केस हाईकोर्ट में गया. मेरे क्लायंट ने एक और महंगा वकील कर लिया. हम दोनों ने मिल कर मुकदमा लड़ा. यहां भी हम जीत गए. लेकिन अदालत ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

जाले को उस की करनी की सजा मिल गई, लेकिन मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ कि 2 आदमियों का हत्यारा फांसी से बच गया. लेकिन यह दुनिया की अदालत का फैसला था, अभी कुदरत का फैसला बाकी था. कुदरत की ओर से जो सजा उसे मिलनी थी, उस के लिए जाले का जिंदा रहना जरूरी था.

लाले के मातापिता मरते दम तक जाले को कोसते रहे. दूसरी ओर उस दुकानदार के घर वाले व और भी कई लोग थे, जो उसे कोस रहे थे. कहते हैं, कमजोर की हाय आसमान से टकराती है और इस का नतीजा बड़ा भयानक होता है.

एक दिन खबर आई कि जाले जेल में अंधा हो गया है. यह बात यकीन करने के काबिल नहीं थी, क्योंकि वह 26-27 साल का गबरू जवान था, उसे कोई बीमारी भी नहीं थी. जेल के डाक्टरों ने बहुत बारीकी से उस की आंखों को टेस्ट किया, लेकिन उन की समझ में बीमारी नहीं आई. एक डाक्टर ने कहा, ‘‘यह बीमारी हमारी समझ से बाहर है. आंखें भलीचंगी हैं, उन में कोई खराबी नहीं लेकिन अचरज की बात है कि आंखों की रोशनी कैसे चली गई.’’

जाले की दुनिया अंधेरी हो गई थी, जबकि वह लोगों की दुनिया में अंधेरा फैलाता रहा था. जेल अधिकारियों ने बड़ेबड़े आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, लेकिन किसी की समझ में बीमारी नहीं आई. अब अंधे जाले के लिए जेल का जीवन और भी कठिन हो गया. अब वह कुछ नहीं कर सकता था. हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर था. वह रोरो कर अपने गलत कर्मों की माफी मांगता था.

लेकिन लगता था कि बेकसूर लोगों की बददुआएं अभी और असर दिखाने वाली थीं. कुछ दिनों बाद खबर आई कि जाले जेल में गूंगा हो गया है. इस बीमारी का भी बहुत इलाज हुआ, लेकिन सब बेकार. उस के बाद खबर आई कि जाले चलनेफिरने से भी बेकार हो गया. जाले को जेल के अस्पताल भेज दिया गया. सभी डाक्टर इस बात पर हैरान थे कि भलाचंगा आदमी गूंगा, लंगड़ा, अंधा कैसे हो गया?

जेल के दूसरे बंदी उसे देख कर कानों को हाथ लगाते थे. अब वह अपाहिज हुआ अस्पताल में पड़ा रहता था. न बोल सकता था, न हाथपैर चला सकता था. जेल के डाक्टरों ने जेल अधिकारियों से बात की और उस के घर वालों से संपर्क किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उस की रिहाई का प्रार्थनापत्र डाल दिया, जो जेल के डाक्टरों की संस्तुति पर मंजूर हो गया.

वह जेल से रिहा हो कर अपने घर आ गया. वह पेशाब व शौच बिस्तर पर ही कर देता था. कुछ ही दिनों में उस के घर वाले उस से तंग आ गए और उस की चारपाई घर से बाहर रख दी. उस की साफसफाई के लिए एक सफाई कर्मचारी को लगा दिया गया.

हर आनेजाने वाला उसे देख कर कानों को हाथ लगाता था. वह वही जाले था, जो कभी सब के सामने अकड़ कर चलता था. आज वह अपने मुंह से मक्खी भी नहीं उड़ा सकता था. घर के लोग उस के मरने की दुआएं करने लगे थे. एक दिन सब की दुआ काम आई और वह अपनी जिंदगी की कैद से आजाद हो गया.

क्या यहां पर आ कर कहानी खत्म हो गई? नहीं, अभी एक और गुनहगार बचा हुआ था, जो कानून और दुनिया वालों की नजरों से छिपा हुआ था. वह अपने आप में संतुष्ट था कि उस की ओर किसी का ध्यान नहीं गया.

वह व्यक्ति जाले को बहुत बड़ा बदमाश बनाना चाहता था. उसे बदमाश बनाने में उस ने अपना धन लगाया. वह था, उस का ताऊ. एक दिन उस की पिंडली पर एक छोटा सा घाव हो गया, जो ठीक नहीं हुआ और डाक्टरों ने उस की पिंडली से टांग काट दी.

वह घाव फिर घुटने तक पहुंच गया और फिर उस की रान से टांग काटनी पड़ी. यह भी चलनेफिरने में अक्षम हो गया था.

चारपाई पर पड़ा रहता था. रातदिन बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया था. अंत में एक दिन वह भी दुनिया से चला गया.

रत्नमाया: क्या देह व्यापार से बच पाई वह

स्वर्ण रेखा नदी के तट पर स्थित एक मंदिर के द्वार पर एक असहाय तरुणी ने आश्रय की भीख मांगी. उसे आश्रय मिल गया, किंतु वह यह नहीं जानती थी कि मंदिर का वह द्वार नारी देह का व्यापार करने वालों का एक विशाल गृह है.

कल क्या होने वाला है कौन जानता है. तरुणी अपने को समय के हाल पर छोड़ चुकी थी. वह जहां थी जिस हाल में थी अपने को महफूज समझ रही थी.

तभी एक दिन गोधूली की बेला में, मंदिर में होने वाली आरती के समय एक युवक ने वहां प्रवेश किया. एकत्रित भक्त मंडली की भीड़ को चीरता हुआ वह अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा हुआ.

आरती खत्म होने पर जब अपने पायलों की रुनझुन बजाती हुई, थाल को हाथों में लिए हुए, देव मंदिर की वह नवयुवती सीढि़यों से उतरी और स्वर्ण रेखा नदी के तट पर आ दीपों को एकएक कर के जल में प्रवाहित करने लगी, तभी पीछे से उस युवक ने पुकारा, ‘‘रत्नमाया.’’

युवती चौंक गई. पीछे मुड़ कर उस ने बलिष्ट कंधों वाले उस गौरांग सुंदर युवक को देखा तो उस के कपोल लाज की गरिमा से आरक्त हो उठे. साड़ी का आंचल धीरे से सिर पर खींच उस ने कहा, ‘‘रत्नसेन, तुम यहां कैसे?’’

‘‘होनी ले आई,’’ युवक ने उत्तर दिया.

‘‘किंतु मैं ने तो समझा था कि हूणों से मेरी रक्षा करने में उस दिन तुम ने अपने जीवन की इति ही कर दी,’’ तरुणी बोली.

युवक हंसा और बोला, ‘‘नहीं,  जीवन अभी शेष था, इसलिए बच गया. तुम कौन हो नहीं जानता, किंतु ऐसा लगता है कि युगोंयुगों से मैं तुम्हें पहचानता हूं. एक लहर ने हमें परिचय के बंधन में पुन: उस दिन बंधने का आयोजन किया था. क्या तुम मुझ पर विश्वास करोगी और मेरे साथ चल सकोगी?’’

युवती कटाक्ष करती हुई बोली, ‘‘मुझ पर इतना अखंडित विश्वास हो गया तुम्हें.’’

युवक बोला, ‘‘मन जो कहता है.’’

‘‘उसे कभी बुद्धि की आधारतुला पर भी तौल कर तुम ने देखा है. एक असहाय नारी की जीवन रक्षा करने का प्रतिफल ही आज तुम मुझ से मांग रहे हो.’’

युवक यह सुन कर हतप्रभ रह गया. उसे लगा नारी के इस उत्तर ने उसे बहुत प्रताडि़त किया है. वह सहमा घूमा और सीढि़यों पर पग रखता हुआ, आगे चल दिया. तभी युवती ने फि र से पुकारा, किंतु उसे पीछे लौटते न देख वह स्वयं उस के निकट आ गई और बोली, ‘‘रत्नसेन, तुम तो बुरा मान गए. काश, तुम समझ सकते कि मैं एक दुर्बल नारी हूं, जो खुल कर अपनी बात नहीं कह सकती.

‘‘हृदय में क्या है और होंठों पर क्या शब्द आ जाते हैं, या मेरे चेहरे पर क्या भाव आते हैं? यह मैं स्वयं नहीं जानती,’’  यह कहतेकहते उस युवती की आंखों में आंसू आ गए, किंतु रत्नसेन पाषाण शिला सा खड़ा रहा. रत्नमाया ने अपने दोनों हाथ उस की भुजा पर रख दिए और बोली, ‘‘एक प्रार्थना है, मानोगे, कल गोधूलि की इसी बेला में आरती के समय तुम आ जाना और मैं नदी के तट पर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी. तभी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी दे दूंगी. अब मैं चलती हूं.’’

इतना कह कर रत्नमाया जाने लगी तो रत्नसेन ने कहा, ‘‘सुनो, रत्नमाया, मेरा कर्तव्य पथ कठिन है. मैं एक साधकमात्र हूं. आज जहां हूं, उस स्थान से मैं परिचित नहीं. अपने उद्देश्य पूर्ति के निमित्त मगध जाने के रास्ते में आज यहां रुका. मेरे भरोसे ने मुझ से कहा था कि तुम यहीं कहीं इसी नगरी में होगी और वही आस की प्रबल डोर मुझे बांधेबांधे यहां इसी नदी के तट तक तुम्हारे समीप ले आई.’’

उस ने आगे कहा, ‘‘किंतु तुम मुझे समझने में भूल कर गईं. तुम्हारी जीवन रक्षा कर के उस के प्रतिदान रूप में तुम्हें उपहारस्वरूप मांगने का मेरा कोई  विचार न था,’’ यह कहते हुए रत्नसेन तेजी से आगे बढ़ गया.

उस के जाने के बाद पीछे से रत्नमाया ने अपना सुंदर चेहरा उस पाषाण शिला पर वहीं रख दिया जहां अभीअभी रत्नसेन के चरण पडे़ थे. उसे अपने आंसुओं से धो कर रत्नमाया अपने कक्ष की ओर चल पड़ी.

वहां उन देवदासियों की भीड़ में देवबाला ही इकलौती उस की प्रिय थी. उस से ही रत्नमाया अपनी विरहव्यथा कहती थी. देवबाला उस के अतीत को जानती थी. इसीलिए जब उस दिन स्वर्णनदी में द्वीप प्रवाहित कर वह लौटी तो सहसा देवबाला बोली थी, ‘‘रत्नमाया, यह क्यों भूलती है कि तू एक देवदासी है? उस युवक की शब्द छलना में फंस कर अपनी सुंदर देह को मत गला. भला नारी की छविमाया के सामने पुरुष द्वारा दिए हुए विश्वासों का मूल्य ही क्या है? तू उसे भूल जा. तेरा यह जीवन चक्र तुझे जिस पथ पर ले आया है, उसे ही अब ग्रहण कर.’’

किंतु सब सुनते और समझते हुए भी रत्नमाया ने अपने चेहरे को न उठाया. वह पहले की तरह ही देवबाला के सामने सुबकती रही. बाहर मंदिर में घंटों के बजने का स्वर चारों ओर गूंजने लगा था.

तभी पुजारी ने आ कर पुकारा तो देवबाला ने उठ कर कक्ष के कपाट खोल दिए.

आगंतुक पुजारी ने कहा, ‘‘देवबाला, मंगल रात की इस बेला में रत्नमाया को अलंकृत कर दो. रसिक जनों के आगमन का समय हो गया है. शीघ्र ही उसे भीतर विलास कक्ष में भेजा जाएगा.’’

‘‘नहीं,’’  देवबाला बोली. उस के स्वर में दृढ़ता साफ झलक रही थी और आंखों से प्रतिशोध की भावना. उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया तो अस्वस्थ है इसलिए विलास नृत्य में वह भाग नहीं ले सकेगी.’’

‘‘अस्वस्थता का कारण मैं खूब जानता हूं,’’ पुजारी बोला, ‘‘एक दिन जब तुम भी इस द्वार पर देवदासी बन कर आई थीं तब भी तुम ने ऐसा ही कुछ कहा था. किंतु मेरे दंड के विधान की कठोरता तुम्हें याद है न.’’

यह कहतेकहते पुजारी की पैशाचिक भंगिमा कठोर हो गई. देवबाला उन्हें देख कर सिहर उठी. खिन्न मन बिना कुछ उत्तर दिए हुए, वापस लौट आई.

‘‘रत्नमाया,’’ देवबाला आ कर बोली, ‘‘औरत की बेबसी ही उस का सब से बड़ा अभिशाप है. तू तो जानती ही है अत: अपने मन को स्वस्थ कर और देख तेरा वह अनोखा भक्त मंदिर में पुन: आया है, जिस ने एक दिन आरती की बेला में तुझे अपने प्रेम विश्वासों की सुरभि से मतवाला किया था.’’

‘‘सच, कौन रत्नसेन?’’ चकित सी वह पूछ बैठी.

‘‘हां, तेरा ही रत्नसेन,’’ देवबाला ने उत्तर दिया.

‘‘आह, बहन एक बार फिर कहो,’’ रत्नमाया कह उठी और तत्काल ही देवबाला को उस ने अपनी बांहों में कस कर बांध लिया. भावनाओं के उद्वेग में हाथ ढीले हुए तो सरकती हुई वह देवबाला के सहारे धरती पर बैठ गई.

कुछ क्षणों के लिए आत्मविभोर देवबाला ठिठकी खड़ी रह गई. फिर उस ने कहा, ‘‘रत्नमाया, तू अब जा और अपनी देह को अलंकृत कर…शीघ्र ही मंदिर में आ जा, आज देवनृत्य का आयोजन है.’’

रत्नमाया तुरंत उठी. उस दिन फिर उस ने अपने अद्भुत रूप को आभूषणों का पुट दे सजाया. गोरे रंग की अपनी देह पर लहराते हुए केशों की एक वेणी गूंथी. केतकी के सुवासित फूलों को उस में पिरो कर गले में देवबाला के दिए हुए हीरक हार को पहना.

रात्रि की उस बेला में ऊपर नीले आकाश में अनेक तारे टिमटिमा रहे थे. उन की छाया के तले अपने हाथों में आरती के थाल को सजाए वह पायलों को रुनझुन बजाती हुई चल दी.

‘‘ठहरो,’’ सहसा देवबाला ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रत्नमाया, सुन दुर्भाग्य मुझे एक दिन देवदासी बना कर यहां लाया था किंतु रूप के इतने विपुल भार को लिए हुए अभागिन तेरा समय तुझे यहां क्यों लाया है?’’

रत्नमाया विस्मित रह गई. धीमे से उस ने उत्तर दिया, ‘‘बहन, रूप की बात तो मैं जानती नहीं, किंतु समय के चक्र को मैं अवश्य पहचानती हूं. बर्बर हूणों के आक्रमण में राज्य लुटा, वैभव और सम्मान गया. परिवार का अब कुछ पता नहीं. सबकुछ खो कर जिस प्रकार तुम्हारे द्वार तक आई हूं, वह तुम से छिपा है कुछ क्या?’’

देवबाला ने उत्तर नहीं दिया. किन्हीं विचारों में वह कहीं गहरे तक खो गई. फिर बोली, ‘‘रत्नमाया, क्या रत्नसेन का पता तू जानती है?’’

‘‘नहीं, केवल इतना कि वह एक दिन हठात कहीं से आया और अपने जीवन को दांव पर लगा कर मेरी रक्षा की थी.’’

‘‘और तू ने अपना हृदय इतनी सी बात पर न्योछावर कर दिया,’’ देवबाला बोली.

किंतु उत्तर में रत्नमाया का गोरा चेहरा बस, लाज से आरक्त हो उठा.

देवबाला बोली, ‘‘सुन, रत्नसेन यहां नहीं है और वह मंदिर भी भगवान का उपासना गृह नहीं बल्कि नारी के रूप का विक्रय घर है. आज की इस रात को तू विलास कक्ष में मत जा. यदि तुझे जीवन का मोह नहीं है तो वहां जा, जो इस रूप का मोल कर ले. हां, नहीं तो जीवन की सारी मोहममता त्याग कर तू जहां भी आज जा सकती है…वहां इसी पल इस द्वार को छोड़ कर चली जा.’’

उस समय सामने मंदिर की सीढि़यों से टकराती हुई बरसाती स्वर्णरेखा नदी बही चली जा रही थी. एक असहाय तरुणी के क्लांत हृदय सी चीत्कार करती हुई उस की लहरें वातावरण को क्षुब्ध कर रही थीं.

रत्नमाया ने देवबाला की बात को पूरी तरह सुना अथवा नहीं, किंतु उसी क्षण उस ने अपनी सुंदर देह से स्वर्ण आभूषणों को निकाल कर फेंक दिया. केशों की वेणी में गुथे हुए केतकी के फूलों को नोच कर चारों ओर छितरा दिया और सत की ज्वाला सी धधकती हुई वह रूपवती अद्भुत नारी देवबाला को देखतेदेखते ही क्षणों में वहां से विलीन हो गई. दिन बीतते गए…समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा.

…और फिर एक दिन रात्रि के आगमन पर एक छोटे से गांव के मंदिर में किसी सुंदरी ने दीप जलाया. बाहर आकाश में बादल घिरे थे और हवा के एक ही झोंके में सुंदरी के हाथों में टिमटिमाते हुए उस दीपक की लौ बुझ गई.

तभी मंदिर के बाहरी द्वार पर किसी अश्वारोही के रुकने का शब्द सुनाई पड़ा. एकएक कर बडे़ यत्न से वह अश्वारोही मंदिर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा. मानो शक्ति का उस की देह में सर्वथा अभाव हो. किसी प्रकार आगे बढ़ कर वह देवालय के उस द्वार पर आ कर खड़ा हो गया, जहां 2 क्षण पहले ही, उस ने एक छोटा दीपक जलते हुए देखा था.

लेकिन उस के पैरों की आहट सुन कर भी कक्ष की वह नारी मूर्ति हिली नहीं. मन और देह से ध्यान की तंद्रा में तल्लीन वह देव प्रतिमा के समक्ष पुन: दीप जला, पहले की तरह अचल बैठी रही.

युवक के धैर्य का बांध टूट गया. उस ने कहा, ‘‘हे विधाता, जीवन का अंत क्या आज यहीं होने को है?’’

इस बार युवती मुड़ी और पूछा, ‘‘बटोही, तुम कौन हो?’’

‘‘मैं एक सैनिक हूं,’’ उस ने उत्तर दिया और कहा, ‘‘हूणों द्वारा शिप्रा पार कर इस ओर आक्रमण करने के प्रयास को आज सर्वथा विफल किया है, किंतु लगता है कि देह में जीवन शक्ति अब शेष नहीं है. किंतु इस गहन रात्रि में मुझे आज यहां क्या अभय मिल सकेगा?’’

युवती उठ खड़ी हुई. वह द्वार तक आई तभी आकाश में बिजली चमकी और उस के क्षणिक प्रकाश में उस ने रक्त में भीगे युवक के काले केश, उस के गीले वस्त्र और खून में लिपटे चेहरे को देखा. वह चीख उठी अैर अचानक ही उस के मुख से निकला गया, ‘‘कौन? रत्नसेन?’’

हर्ष और विस्मय से रत्नसेन का हृदय स्पंदित होने लगा. सम्मुख ही गौरांगिनी रत्नमाया खड़ी थी.

उस दिन रत्नमाया फिर रत्नसेन को अपने कक्ष में ले गई और अपने मृदुल हाथों से उस बटोही के घावों को धोया, स्नेह के अमृत रस को ढुलका कर उसे स्वस्थ और चेतनयुक्त बनाया.

बाहर गहन अंधकार अभी भी व्याप्त था. कक्ष में जलते दीपक की धीमी रोशनी में रत्नसेन ने कहा, ‘‘रत्नमाया, वक्त की मुसकान और उस के आंसू विचित्र हैं. कब ये हंसाएगी और कब ये रुला जाएंगी, कोई नहीं जानता? एक दिन बर्बर हूणों से तुम्हारी रक्षा कर सकने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ और फिर अचानक ही उस दिन स्वर्णरेखा नदी के तट पर तुम से पुन: भेंट हो गई.’’

रत्नमाया शांत बैठी सुनती रही. उस ने…अपने कोमल हाथों को उठा कर रत्नसेन के उन्नत माथे पर मृदुलता के साथ रख दिया.

रत्नसेन ने फिर कहा, ‘‘रत्नमाया, तुम्हारी इस रूपशिखा के सतरंगी प्रकाश को अपने से दूर न हटने दूं, मेरा यह दिवास्वप्न अब तुम्हारी कृपा से पूरा होगा.’’

‘‘मन की इच्छापूर्ण कर सकने का सामर्थ्य आप में भला कब नहीं रहा,’’ यह कह रत्नमाया वहां से उठी और अंदर के प्रकोष्ठ में चली गई.

दूसरे दिन जब ऊषा अपने स्वर्णिम रथ पर बैठी सुनहरी चादर को खुले नीलाकाश में फहराती चली आ रही थी, तभी रत्नसेन की खोज में अनेक सैनिकों ने उस गांव में प्रवेश किया. रत्नसेन बाहर मंदिर के प्रांगण में आ कर खड़ा हो गया और एक वृद्ध सैनिक को संकेत से पुकारा, ‘‘सिंहरण, इधर इस ओर मंदिर के समीप.’’

अगले पल में वह देवालय सैनिकों की चहलपहल और कोलाहल से भर गया. वहां का आकाश भी वीर सामंत रत्नसेन की जयजयकार से निनादित हो उठा.

निकट के उद्यान से तभी संचित किए हुए पुष्पों को ले कर, रत्नमाया उस ओर आई. कनकछरी सी कमनीय काया युक्त शुभ्रवसना, उस सुंदरी को देखते ही सहसा सिंहरण विस्मित रह गया. उस ने पुकारा, ‘‘कौन राजकुमारी, रत्नमाया.’’

रत्नमाया ठिठकी. घूम कर उस ने सिंहरण की ओर देखा और बोली, ‘‘सेनापति सिंहरण, अरे, तुम यहां कैसे?’’ फिर जैसे उसे ध्यान हो आया. वह बोली, ‘‘तो बर्बर विदेशियों से आर्यावर्त को मुक्त करने का संकल्प लिए हुए तुम अभी जीवित हो?’’

‘‘हां, राजकुमारी,’’ सिंहरण ने कहा, ‘‘वृद्ध सिंहरण ही जीवित रह गया. तात तुल्य जिस राजा ने सदैव पाला और  मेरे कंधों पर राज्य की रक्षा का भार सौंपा था, यह अभागा तो न उन की ही रक्षा कर सका, न उस धरती की ही. आज भी यह जीवित है, इस दिन को देखने के लिए. आह, स्वर्ण पालने और फूलों की सेज पर जिस राजकुमारी को मैं ने कभी झुलाया था, उस की असहाय बनी इस दीन कुटिया में आज अपने दिन बिताते देखने को यह अभागा अभी जीवित ही है.’’

सिंहरण ने पुन: सामंत रत्नसेन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तात, शूरसेन प्रदेश के वीर राजा घुमत्सेन की पुत्री यही राजकुमारी रत्नमाया है.’’

मन की किसी रहस्यमयी अज्ञात प्रेरणावश उस ने रत्नमाया को प्रणाम किया. उत्तर में उस की प्रेमरस से अभिसिंचित शुक्रतारे सी उज्ज्वल मोहक मुसकान को पा, वह आत्मविभोर हो उठा.

किंतु उस दिन अति आग्रह पर भी रत्नमाया रत्नसेन के साथ नहीं गई. उस के अभावों और कष्टों के पीडि़त दिनों में ग्रामीणजनों ने निश्चल, निस्वार्थ भाव से एक दिन उसे आश्रय प्रदान किया था. वह उन्हीं की सेवा में पूर्ववत तनमन से ही संलग्न रही.

गुप्तकाल के यशस्वी मानध्वज के नीचे सामूहिक रूप से संगठित हो एक दिन आर्य वीरों ने जब भारत भूमि को हूणों की पैशाचिक सत्ता से मुक्त कर लिया, तभी प्रभात की एक बेला में एक स्वर्णमंडित रथ रत्नमाया के उस छोटे से गांव में आया. उस पर से पराक्रमी मालव सामंत वीर रत्नसेन उतरे. उन के साथ ही फूल सी कोमल कुंदकली सुंदर राजवधू रत्नमाया को ग्रामीण जनों ने स्नेह के आंसू दे विदा कर दिया.

उस दिन ग्रामवधुओं ने रथ को घेर लिया था और उस के पथ को अपने मोहक प्रेमफूलों से पूरी तरह सजा दिया. उस रास्ते पर से जाते समय अपने दुख के दिनों में भी जिस रत्नमाया के नयन आंसुओं से कभी इतने आर्द न हो सके थे, जितने आज हुए.

वार पर वार: नमिता की हिम्मत देख क्यों चौंक गया भूषण राज

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लिवइन रिलेशनशिप- भाग 2: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

‘जी नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं.’ उस ने सकुचाते हुए कहा पर उसे लगा मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

उस के बाद उन की दोस्ती बढ़ती ही गई. कनिका को रोनित का साथ बड़ा अच्छा लगता. दोनों का साथ में कौफी पीना, घूमनाफिरना आम बात हो गई थी. ऐसे ही एक दिन जब वे ‘मोहनजोदाड़ो’ फिल्म देखने गए तो शो के छूटतेछूटते रात के 11 बज गए. हौल के बाहर निकल कर घड़ी देखते ही रोनित बोला, ‘कनु, अब इतनी रात में तुम कहां जाओगी, होस्टल तो बंद हो गया होगा.’

‘मैं अपनी मौसी के घर चली जाती हूं, वे होस्टल के पास ही रहती हैं,’ कनिका ने कहा.

‘अब तो वे सो गई होंगी, इतनी रात में कहां उन्हें जगाओगी. ऐसा करो, आज तुम मेरे फ्लैट पर ही रुक जाओ. होस्टल सुबह चली जाना.’

‘नहीं रोनित, तुम्हारे फ्लैट पर कैसे, तुम तो अकेले रहते हो न,’ उस ने अचकचाते हुए कहा.

‘अरे, तो क्या हुआ, मैं तुम्हें खा थोड़े ही जाऊंगा, चलो,’ और रोनित ने हाथ पकड़ कर उसे अपने पीछे बैठा लिया.

वह रोनित से सट कर बैठ गई. रोनित के साथ अकेले रहने की बात सोच कर उसे अंदर ही अंदर थोड़ी घबराहट तो हो रही थी पर रोमांच भी कुछ कम नहीं था. फ्लैट पर पहुंच कर रोनित ने कहा, ‘तुम बैठो, मैं चेंज कर के आता हूं.’

कुछ ही देर में रोनित अपनी नाइट ड्रैस में था. उसे देख कर अचकचाते हुए बोला, ‘अरे, तुम कैसे चेंज करोगी?’ फिर कुछ सोच कर बोला, ‘मेरी टीशर्ट और लोअर पहन लो, एक रात की ही तो बात है, सुबह चेंज कर लेना.’

कुछ ही देर में कनिका लोअर व टीशर्ट में थी. उसे देख कर रोनित खुश होते हुए बोला, ‘क्या बात है, बड़ी सैक्सी और खूबसूरत लग रही हो.’

कनिका थोड़ा शरमा गई. तभी रोनित ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. न जाने क्यों वह चाह कर भी प्रतिरोध न कर सकी, बल्कि उस की बांहों में समाती ही चली गई. रोनित उसे बांहों में उठा कर अपने बैड पर ले आया और दोनों ने उस दिन सारी सीमाओं को पार करते हुए अपने मध्य स्थित लाजशर्म के उस  झीने परदे को भी तारतार कर दिया जो अब तक उन के मध्य मौजूद था.

दोनों की बढ़ती दोस्ती औफिस में भी चर्चा का विषय बन चुकी थी. अब अकसर ही रोनित उसे अपने फ्लैट पर ले जाने लगा था. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि वे एकदूसरे के बिना रहने में असमर्थ हो गए. तभी एक दिन रोनित ने उस से कहा, ‘यार, ऐसा करो, अगले माह से तुम मेरे ही फ्लैट पर आ जाओ. एकसाथ चैन से रहेंगे. क्योंकि मु झे लगता है अब हम अलग नहीं रह सकते.’

‘हां, बात तो तुम ठीक कह रहे हो, मु झे भी ऐसा ही लगता है, पर कैसे, शादी तो मैं करना नहीं चाहती,’ कनिका ने धीरे से कहा.

‘न बाबा, आम लड़कियों की तरह तुम भी ये शादीवादी की बातें मत करो. तुम सब से अलग हो, इसीलिए तो मु झे पसंद हो,’ रोनित ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘रियली रोनित, मु झे स्वयं यह शादी और बच्चों के  झं झट पसंद नहीं हैं. मैं तो बिंदास, मस्त और आजाद पंछी की तरह उड़ना चाहती हूं. न शादी, न बच्चा, न कोई टैंशन. कमाओ, खाओपिओ और मौज करो, यह विश्वास है मेरा,’ कनिका ने अपनी जुल्फें लहराते हुए कहा.

‘तो बस, फिर देर किस बात की है. अगले महीने से मैं, तुम साथसाथ एक छत के नीचे, हर पल एकदूसरे के साथ,’ कहते हुए रोनित ने उस के गाल पर एक पप्पी जड़ दी.

‘पर रोनित, तुम्हारे अड़ोसपड़ोस वाले क्या सोचेंगे?’

‘अरे नहीं, यह तुम्हारा छोटा सा इंदौर नहीं है. यह पुणे है पुणे, मेरी जान. यहां किसी से किसी को कोई मतलब नहीं होता. इस तरह बिना शादी किए रहने को महानगरीय भाषा में लिवइन रिलेशनशिप कहा जाता है और यहां अधिकांश लोग इसी रिलेशनशिप में रहना पसंद करते हैं और अपनी जिंदगी को बिना किसी बंधन के आजाद तरीके से जीते हैं.’ रोनित ने उसे सम झाते हुए अपने बाहुपाश में बांध लिया.

‘सच रोनित, मैं ने भी कुछ समय पहले इस के बारे में सुना था और तभी मैं ने सोचा था कि यह रिलेशनशिप मेरे जैसे लोगों के लिए बनी है. तो ठीक है, मु झे तुम्हारा यह लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव पसंद है,’ कनिका ने संकोच से कहा और अगले माह से वे दोनों एकसाथ रहने लगे. उस के बाद तो दोनों का एकसाथ घूमनाफिरना, लेटनाइट क्लब और पार्टियां करना, देररात सोना, सुबह देर से जागना, जैसे अनेक ऐसे कार्य प्रारंभ हो गए थे जो आज तक नहीं किए थे. औफिस में जब उस की सहकर्मी आयशा को इस बात की भनक लगी तो उस ने एक दिन लंच में कनिका से पूछा, ‘क्या यह सच है, कनु, कि तुम और रोनित एकसाथ फ्लैट में रहते हो?’

‘हां, तो इस में बुरा क्या है?’ कनिका ने कंधे उचका कर खुश होते हुए कहा तो आयशा बोली, ‘कनु, तू पागल तो नहीं हो गई, तू पढ़ीलिखी और सम झदार है. क्या तू नहीं जानती कि इस सब के परिणाम अच्छे नहीं होते. एक मर्द के साथ बिना शादी किए रह रही है, यह ठीक नहीं है. और क्या लाइफस्टाइल बना रखा है तुम लोगों ने, सुना है आजकल बड़ीबड़ी लेटनाइट पार्टियां अटैंड कर रहे हो तुम दोनों?’

‘तू रहेगी वही छोटे शहर की छोटी मानसिकता वाली. तेरी सोच दकियानूसी ही रहेगी. इसे लिवइन रिलेशनशिप कहते हैं, मैडम, और यहां अधिकांश कपल ऐसे ही रहते हैं. जिस में न कोई बंधन, न जिम्मेदारी, और न कोई  झं झट. बस मस्ती, मौज और मौज. तू नहीं सम झेगी, तू तो एक पतिव्रता और आदर्श नारी है न. तू इस जिंदगी के लिए नहीं बनी, सो नहीं सम झेगी,’ कह कर अपने बालों को  झटकाते हुए कनिका रोनित के केबिन में चली गई थी.

जब पिछली बार रक्षाबंधन पर इंदौर गई थी तो मां को उस के रंगढंग कुछ ठीक नहीं लगे थे. एक दिन वे उस के सिरहाने आ कर बैठ गईं और बड़े प्यार से उस के सिर पर हाथ फिराते हुए बोलीं, ‘बेटा, अब तू 28 साल की होने जा रही है.

शादी कर ले. तेरे पापा इसी बात को ले कर बड़े तनाव में रहते हैं. पिछले 4 वर्षों से तु झे कहती आ रही हूं पर तू है कि अभी नहीं, अभी नहीं की रट लगा रखी है. शादीब्याह समय पर हो जाए तो ही अच्छा रहता है.’

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 1: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

डा. बत्रा की टेबल पर पड़ी उस की रिपोर्ट्स मानो उस से अब तक की लाइफस्टाइल का हिसाब मांग रही हों. डा. बत्रा की एकएक बात उस के कानों में गूंज रही थी. ‘‘इट्स टू लेट मिस कनिका, नाउ यू हैव टू गिव बर्थ टू दिस चाइल्ड. वी कांट टेक रिस्क.’’ डाक्टर बत्रा ने सीधे शब्दों में जब उस से कहा तो वह गिरतेगिरते बची. रोनित ने बड़ी मुश्किल से उसे संभाला. कुछ चैतन्य होने पर उस ने फिर डाक्टर से कहा, ‘‘डाक्टर, कोई उपाय तो होगा. मैं इन सब  झं झटों में नहीं पड़ना चाहती. ऐंड आई कांट अफोर्ड दिस चाइल्ड, प्लीज एनी हाउ अबौर्ट इट.’’

‘‘नहीं मिस कनिका, आप का अबौर्शन नहीं हो सकता. इट्स टू लेट नाउ. दूसरे, आप को फिजिकली इतनी प्रौब्लम्स हैं कि अबौर्शन से आप की जान को खतरा हो सकता है. आप की बौडी अबौर्शन नहीं सह सकती. मैं ने दवाएं लिख दी हैं, आप इन्हें लेती रहेंगी तो समस्या कम होगी,’’ कह कर डाक्टर अपने केबिन से बाहर राउंड पर चली गईं.

उस ने रोनित की ओर देखा, पर उस की आंखों में भी कुछ न कर पाने की बेबसी  झलक रही थी. उस ने सहारा दे कर कनिका को उठाया और बाहर आ कर एक टैक्सी को आवाज लगाई. टैक्सी में दोनों ने आपस में कोई बात नहीं की. घर पहुंच कर रोनित ने उस से कहा, ‘‘तुम आराम करो, मैं औफिस जा रहा हूं. दवाइयां टेबल पर रखी हैं.’’ और उस के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वह घर से चला गया. जरूरी दवाइयां ले कर कनिका बिस्तर पर लेट गई.

आंखें बंद करते ही वह आज से 8 वर्ष पूर्व की यादों में जा पहुंची जब उस का बीए कर के टीसीएस कंपनी में प्लेसमैंट हुआ था. अपौइंटमैंट लैटर हाथ में आते ही उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे लग रहा था आज ही जा कर नौकरी जौइन कर ले. पर जौइनिंग 3 माह बाद की थी. घर में घुसते ही मां के गले लिपट गई थी वह.

‘मां, मां, कहां हो? जल्दी से मिठाई बांटो.’

‘क्या हुआ? क्यों इतना खुश हो रही है?’ मां ने कमरे से बाहर आते हुए पूछा.

‘मां, आप की बेटी की नौकरी लग गई, यह देखो अपौइंटमैंट लैटर.’ कनिका ने अपना नियुक्तिपत्र मां के हाथों में रख दिया. मां की खुशी का पारावार नहीं था. पिताजी के आने पर मां ने उन का मुंह मीठा कराते हुए उस की सफलता की सूचना दी. पिताजी ने बिना कोई उत्साह दिखाए मिठाई खा ली और अपने कमरे में चले गए. पिता की ऐसी प्रतिक्रिया देख कर कनिका हैरान हो कर उन के पीछेपीछे चल दी और उन के गले में बांहें डाल कर बड़े लाड़ से बोली, ‘पापा, आप मेरी सफलता से खुश नहीं हैं क्या?’

‘नहीं बेटा, ऐसा नहीं है कि मैं खुश नहीं हूं, पर मैं चाहता हूं कि तू पीजी कर ले ताकि और अधिक अच्छे पैकेज वाली नौकरी मिले क्योंकि यह नौकरी ऐसी है कि घर छोड़ कर इतनी दूर रहना पड़ेगा. यहां इंदौर में ही मिल जाती तो ठीक था. इतनी सैलरी से तो पुणे में तेरा ही खर्च नहीं निकलेगा,’ पापा ने प्यार से उसे सम झाते हुए कहा.

‘नहीं पापा, पीजीवीजी करना तो अब मेरे बस का है ही नहीं. क्योंकि अब और पढ़ाई मु झ से नहीं होगी. अब तो बस मैं नौकरी कर के महानगर में रह कर लाइफ एंजौय करना चाहती हूं,’ कह कर मानो उस ने अपना निर्णय सुना दिया था.

‘जैसी तुम्हारी मरजी,’ कह कर पापा कमरे से बाहर चले गए थे. यों भी पापा कभी किसी से अपनी बात जबरदस्ती नहीं मनवाते थे. सो, उस ने इतना ध्यान नहीं दिया. फिर मां तो पूरी तरह उस के साथ थीं. 3 माह बाद पापा की इच्छा के विरुद्ध वह पुणे जैसे महानगर में नौकरी करने आ गई. यहां आ कर शहर की चकाचौंध ने तो उसे अभिभूत ही कर दिया था. आते समय मां के कहे शब्द आज उसे बारबार याद आ रहे थे.

‘बेटी, अभी तक तू छोटे शहर में रही है. इतने बड़े शहर में जा कर वहां की चकाचौंध में भटक मत जाना. बड़े नाजों से पाला है तु झे. कहीं भी रहना, पर अपने परिवार के मानसम्मान और संस्कार कभी मत भूलना.’

उफ, वह कैसे यहां आ कर सब भूल गई और आज इस स्थिति में आ गईर् कि उस का अपना जीवन ही दांव पर लग गया है. उसे याद है वह दिन जब उस की अपने औफिस के सहकर्मी रोनित से दोस्ती हुई थी. शाम के साढ़े 5 बजे वह औफिस से होस्टल जाने के लिए बसस्टौप पर खड़ी हुई थी कि तभी रोनित की बाइक उस के सामने आ कर रुकी. ‘आइए, मैं आप को होस्टल छोड़ देता हूं.’

‘नहीं, मैं चली जाऊंगी, आप निकल जाएं.’ कनिका ने सकुचाते हुए कहा तो रोनित बोला, ‘‘पानी बरस रहा है. भीग जाएंगी. संकोच मत करिए. आइए, बैठ जाइए. औफिस का ही बंदा हूं, विश्वास तो कर ही सकती हैं आप.’ जब रोनित ने इतना आग्रह किया तो वह टाल न सकी और उस के पीछे सट कर बैठ गई.

किसी पुरुष के पीछे इस प्रकार बैठने का उस का यह पहला अनुभव था. उस का रोमरोम उस समय खिल उठा था, मन कर रहा था यह सुहाना सफर कभी समाप्त ही न हो. पर कुछ ही देर बाद रोनित ने बाइक रोक दी तो मानो वह नींद से जागी थी. हड़बड़ा कर नीचे उतर कर खड़ी हो गई. होस्टल के बाहर उसे छोड़ते समय रोनित मुसकराते हुए बोला, ‘जब भी जरूरत पड़े, याद करिएगा. बंदा हाजिर हो जाएगा.’

कनिका ने खुशी से हुलसते हुए ‘जी’ कहा और पर्स को हवा में  झुलाते हुए अपने कमरे में पहुंची. आज न जाने क्यों उसे मन ही मन बहुत अच्छा और अलग सा महसूस हो रहा था. पूरी रात वह रोनित के बारे में ही सोचती रही. अगले दिन जब वह औफिस पहुंची तो रोनित गेट पर ही मिल गया.

‘हैलो, गुडमौर्निंग मैडम, रात में नींद आई कि नहीं या मेरे बारे में ही सोचती रहीं.’ उस ने खिलखिलाते हुए कहा तो वह भी हंस पड़ी.

एक दिन अचानक: दीदी के खुदखुशी का क्या कारण था

मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

लता दीदी मशहूर लेखिका मालती जोशी की कहानियों की फैन थीं. फुरसत के क्षणों में वे उन की कहानियां पढ़ा करती थीं. एक बार मैं भोपाल गया. मैं ने उन की अलमारी से मालती जोशी की किताब ‘कठपुतली’ निकाली और पढ़ने लगा. 2 दिन में मैं ने कुछ कहानियां पढ़ीं. उन कहानियों ने मुझे इतना प्रभावित किया कि ग्वालियर वापस आते समय मैं ने दीदी से कहा, ‘शेष कहानियां पढ़ कर, यह किताब मैं आप को वापस भिजवा दूंगा.’

‘नहीं भैया, नहीं, यह मेरी प्रिय किताब है और मैं इसे किसी को भी नहीं देती हूं, चाहे वह तुम्हारे जीजाजी ही क्यों न हों, क्योंकि एक बार किसी को किताब दे दो तो वह वापस नहीं मिलती,’ उन्होंने किताब मेरे हाथ से ले ली और अलमारी में रख दी.

जब कभी 2-3 दिन की छुट्टी पड़तीं तब वे हमारे यहां आ जाते, 2 दिन साथ रहते. उस दौरान हम पार्क में घूमने चले जाते, कभी कोई अच्छी सी फिल्म देख आते. इस प्रकार हंसतेखेलते 3-4 साल निकल गए.  एक दिन जब मैं दफ्तर से घर आया तो मालूम हुआ, दीदी आई हैं. मैं ने मां से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे अपनी सहेली प्रेमलता से मिलने गई हैं, कह रही थीं कि उस से कुछ जरूरी काम है.

रात करीब 10 बजे वे घर आईं. मेरी नजर उन के चेहरे पर ठहरी तो लगा कि वे कुछ परेशान हैं और उन के चेहरे पर पहले सी खुशी नहीं है. वे सीधे अंदर के कमरे में चली गईं. मुझे लगा, शायद कपड़े बदलने गई होंगी, लेकिन जब बहुत देर गुजरने पर भी वे ड्राइंगरूम में नहीं आईं, तब मैं ही अंदर के कमरे में चला गया.

वे उदास चेहरा लिए बैठी थीं.

मैं ने पूछा तो बोलीं, ‘अरे कुछ नहीं, भैया, यात्रा कर के आई हूं, उसी की थकान है.’

मुझे उन की बात पर यकीन नहीं  हुआ. मैं ने कहा, ‘दीदी, सच कहूं, आप कुछ छिपा रही हैं, लेकिन आज आप का चेहरा आप का साथ नहीं दे रहा. क्या बहन की शादी के बाद एक भाई इस लायक नहीं रह जाता कि वह बहन के मन की बात जान सके?’

यह सुनते ही वे फफक उठीं और एक अविरल अश्रुधारा उन की आंखों से बहने लगी.

‘अब कुछ बताओगी भी या केवल रोती ही रहोगी,’ मैं ने उन के आंसू पोंछते हुए कहा.‘भैया, हमारी शादी को अब 5 साल 4 माह हो गए, इस बीच मेरी गोद नहीं भरी. इसी कारण आएदिन घर में विवाद होने लगे हैं.’

‘पर इस में आप का क्या दोष है, दीदी?’

‘पर भैया, मेरी ननद और सासूजी मुझे ही दोष देती हैं.’

‘हो सकता है दीदी, दोष जीजाजी में हो?’

‘लेकिन इस बात को उन के घर का कोई मानने के लिए तैयार नहीं है. वे तो यही रट लगाए बैठे हैं कि दोष मुझ में ही है.’

‘ठीक है दीदी, मैं आप के साथ भोपाल चलता हूं और इस बारे में जीजाजी से बात करता हूं.’

मैं दीदी के साथ भोपाल गया और आधी रात तक उन से इसी विषय पर बात करता रहा. वे बोले, ‘देखो भैया, मैं ने तुम्हारी दीदी से शादी की थी तब मेरा एक सपना था कि मेरे घर में मेरे अपने बच्चे हों, जब मैं शाम को बैंक से घर वापस आऊं तब वे प्यार से मेरे पैरों में लिपट जाएं और अपनी तुतलाती जबान से मुझे पापा…पापा…कहें. फिर मैं उन के साथ खेलूं, उन को हंसते हुए देखूं, तो कभी रोते हुए. उन को अपने कंधे पर बैठा कर गार्डन में घुमाने ले जाऊं. मैं उन का अच्छे से पालनपोषण करूं, उन्हें इस योग्य बनाऊं कि जब मैं बूढ़ा हो जाऊं तब वे मेरा सहारा बनें, मेरा नाम और वंश आगे चलाएं. फिर पंडेपुजारी कहते भी हैं न कि जब तक अपना पुत्र पानी नहीं दे तब तक मरने के बाद भी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती. तब मेरी यह तमन्ना गलत तो नहीं है न?’ जीजाजी ने अपने दिल की बात बताई.

‘जीजाजी, क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जिन को पुत्र नहीं होते उन को मुक्ति नहीं मिलती? पर एक सच आप भी जान लीजिए कि इन पंडेपुजारियों ने ये सारी बातें सिर्फ अपना पेट और जेबें भरने के लिए फैला रखी हैं. जीजाजी, आदमी को मुक्ति मिलती है तो अपने किए कर्मों के आधार पर.’

मेरे लाख समझाने के बावजूद वे अपनी ही बात पर अड़े रहे. अब मैं वहां रुक कर और क्या करता. मैं दुखी हो कर वापस घर लौट आया.

एक रात करीब 10 बजे दीदी का  फोन आया. वे बोलीं, ‘तुम्हारे यहां से जाने के बाद अगले ही दिन रायपुर से मेरी सासूजी, ननद के यहां भोपाल आईं. फिर वे दोनों मेरे घर आईं और बोलीं, देखो लता, पास की पहाड़ी पर एक साधु बाबा का डेरा है, तुम हमारे साथ वहां चलो, शायद उन के आशीर्वाद से तुम्हारी गोद भर जाए. मैं उन के साथ वहां गई थी. अब उन्होंने अगली अमावस की रात बुलाया है. खैर, अब उन का स्वभाव और व्यवहार मेरे साथ अजीब सा होता जा रहा है, अब वे दूसरे कमरे में सोने लगे हैं.’

मैं उस से क्या कहता सिवा इस के कि दीदी, थोड़ा सब्र रखो, देखो कुछ दिनों बाद फिर पहले सा सामान्य हो जाएगा.

कुछ दिन बीते. इन दिनों में न तो दीदी का फोन आया और न ही कोई चिट्ठीपत्री आई. एक दिन मैं ने ही उन्हें फोन किया. फोन दीदी ने ही उठाया. मेरे बारबार पूछने पर वे बोलीं, ‘भैया, उन्होंने अपना तबादला जबलपुर करवा लिया है और अब मैं यहां अकेली ही रहती हूं. कहने के लिए यहां उन की बहन और बहनोई हैं,’ इतना कह कर उन्होंने फोन रख दिया.

वक्त गुजरता गया और 6 माह बीत गए. एक दिन जीजाजी के बड़े भाईसाहब, जो हमारे ही शहर में रहते हैं, बाजार में मिल गए. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि शरद (जीजाजी) ने जबलपुर में अपने ही बैंक में कार्यरत एक तलाकशुदा महिला से शादी कर ली है.

‘जीजाजी ने दूसरी शादी कर ली,’ यह सुनते ही लगा जैसे आसमान में कड़कड़ाती हुई एक बिजली चमकी और सीधे मुझ पर आ गिरी हो. मैं स्तब्ध रह गया और सोचने लगा कि यह खबर पा कर दीदी पर क्या गुजरेगी?

मैं ने रात को फोन पर इस बारे में बात की तो वे बोलीं, ‘भैया, मैं जानती थी कि वे ऐसा ही करेंगे. खैर, अब ये बात छोड़ो, अब तुम मेरी चिंता मत करना, अपनी शादी की बात चलाना और कोई अच्छी लड़की मिले तो तत्काल शादी कर लेना. भैया, अब मैं किसी तरह से अपनी शेष जिंदगी काट लूंगी.’

‘पर दीदी, ये अकेलापन…’ मेरी बात को काटते हुए वे बोलीं, ‘हां भैया, अब एक बात ध्यान रखना, मेरा फोन न भी आए तो भी समझ लेना मैं अच्छी हूं,’ उन्होंने रोते हुए फोन काट दिया.

2 माह बाद मेरी शादी पक्की हो गई. मेरी शादी में दीदी आईं जरूर लेकिन पूरे समय खामोश रहीं. शादी पर उन्होंने मुझे जो उपहार दिया उसे मैं ने सब से अधिक अनमोल उपहार मान कर अपनी अलमारी में सहेज कर रख दिया.

शादी के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ हनीमून के लिए चला गया. वहां से वापसी के तत्काल बाद मैं ने ड्यूटी जौइन कर ली.

एक रात करीब साढ़े दस बजे फोन की घंटी बजी. फोन पुलिस स्टेशन से था, ‘लता नाम की महिला ने यहां आत्महत्या कर ली है. आप तत्काल आ जाइए.’ यह सुनते ही मैं सन्न रह गया. मां को साथ ले कर मैं भोपाल पहुंचा. दीदी का अंतिम संस्कार मुझे ही करना पड़ा. मैं ने अपनी तरफ से जीजाजी को फोन पर सब कुछ बता दिया था, लेकिन वे नहीं आए.

दीदी की आत्महत्या के लिए सिर्फ जीजाजी ही जिम्मेदार हैं. उन्होंने दीदी को जो असंख्य प्रताड़नाएं दीं, वे कब तक सहतीं? फिर इस प्रकार का अकेलापन किसी आजन्म कारावास से कम दुखद होता है क्या? पहले जीजाजी का अलग कमरे में सोना, फिर उस के बाद बिना कुछ बताए चुपचाप जबलपुर तबादला करवा लेना और उस के बाद वहां जा कर दूसरी शादी करना, दीदी के साथ ये उन का अक्षम्य अपराध है. मैं केवल उन को ही दीदी का अपराधी मानता हूं.

मैं यादों के दायरों से बाहर निकला और बिस्तर पर आ कर लेट गया. अलका, मेरी पत्नी मायके गई है इसलिए अकेलापन जैसे मुझे निगलने के लिए मेरी तरफ बढ़ रहा था, फिर उस में भी दीदी की यादें. तभी मुझे उन के द्वारा शादी में दिए अनमोल उपहार की याद आई. मैं तेजी के साथ कमरे में गया, अलमारी खोली और उस में से दीदी का दिया उपहार निकाला.

अब मेरे सामने दीदी का दिया सिल्वर पेपर से लिपटा अनमोल उपहार था. मैं ने सिल्वर पेपर का आवरण हटाया तो आश्चर्यचकित रह गया. दीदी ने मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यारी लगने वाली किताब ‘कठपुतली’ उपहारस्वरूप दी थी. मैं ने उस किताब का पहला पृष्ठ पलटा. उस पर दीदी ने अपने हाथ से लिखा था :

‘प्रिय अनमोल भैया को शादी पर एक बहन का अनमोल उपहार. भैया, जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना.

तुम्हारी दीदी लता.’

उन के द्वारा लिखे शब्द पढ़ कर मैं भावविभोर हो गया और उसी अवस्था में किताब के अगले पृष्ठ पलटने लगा, तभी उस में से एक कागज जमीन पर जा गिरा.

मैं ने उस कागज को उठा कर पढ़ना चालू किया तो मेरी आंखें पथरा सी गईं.

वह दीदी का पत्र था, सिर्फ मेरे नाम. उन्होंने लिखा था :

‘प्रिय अनमोल भैया. सर्वप्रथम ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है. यह याद रखना. इस पत्र द्वारा मैं कुछ सचाइयां तुम्हारे सामने लाना चाहती हूं, जिन से तुम अभी तक अनभिज्ञ हो. ‘भैया, मेरी सासूजी और ननद आएदिन मुझे ताने मारती थीं कि अब तुम्हारी शादी हुए 5 साल से अधिक समय हो गया है, अब तो तुम्हारी गोद भरनी ही चाहिए, अड़ोसपड़ोस की महिलाएं और मेरी सहेलियां भी पूछती रहती हैं कि बहू कैसी है, अभी उसे बच्चा हुआ या नहीं? अगर न हुआ हो तो किसी साधु या बाबा के आश्रम में उसे ले जा कर उन का आशीर्वाद दिलवाओ.

‘भैया, ऐसी बातों से मैं आहत तो होती ही थी, उस में भी ये एक और घटना हो गई. हमारे पास के गंगराडेजी के यहां उन की बहू की गोदभराई का कार्यक्रम था. मैं भी वहां गई थी. एकएक कर के सब स्त्रियां गंगराडे भाभी की गोद भर रही थीं. जब मैं उस की गोद भरने के लिए उठी तो उस ने यह कह कर मुझ से गोद भरवाने से इनकार कर दिया कि मैं एक बांझ औरत से अपनी गोद नहीं भरवाऊंगी. उस के मुंह से यह बात सुन कर मेरी हालत तो काटो तो खून नहीं जैसी हो गई. मैं वहां से अपमानित हो कर अपने बैडरूम में आ कर रोती रही.

‘एक दिन यह बात मैं ने अपनी ननद को बताई तो वे बोलीं, ‘इस में गलत क्या है? 5 साल से अधिक समय हो गया. इतने सालों में भी तुम्हारी गोद नहीं भरी तो लोग तो तुम्हें बांझ ही कहेंगे न?’

‘भैया, तुम्हें याद होगा, एक बार मैं ने तुम्हें फोन पर बातचीत के दौरान भोपाल के पास स्थित पहाड़ी पर एक बाबा के डेरे पर जाने की बात कही थी. भैया, पहली बार मैं वहां अपनी सासूजी और ननद के साथ गई थी. तब वे बोली थीं, ‘उन बाबा का आशीर्वाद पा कर कई स्त्रियों की गोद भर गई है. तुम हमारे साथ चलो, हो सकता है उन के ही आशीर्वाद से कोई चमत्कार हो जाए?’

‘वे मुझे पहाड़ी पर स्थित बाबाओं के डेरे पर ले गईं. बाबा के डेरे पर एक बड़ा बोर्ड लगा था, ‘टैंशन भगाने वाले बाबा का आश्रम’. उस के नीचे लिखा था, ‘यहां जड़ीबूटियों से सभी प्रकार की तकलीफों का उपचार किया जाता है.’ वहां बहुत से परेशान पुरुष और महिलाएं बैठे थे. बाबा एकएक कर के, क्रम से सब को अपने पास बुला रहे थे. जब मेरा नंबर आया तो बाबा बोले, ‘मैं तेरी परेशानी समझ गया हूं. तेरे साथ कौन आया है?’

‘मैं ने इशारे से बताया कि मेरी ननदजी मेरे साथ आई हैं.

‘वे मेरी ननद से बोले, ‘बहन, मामला पुराना हो चुका है, समय लगेगा, पर फल जरूर मिलेगा. इसे 4 माह तक अमावस की रात्रि में यहां लाना. तंत्रमंत्र, पूजापाठ और हवन आदि करने पड़ेंगे. ये सारे काम रात को एकांत में गर्भगृह में होते हैं,’ फिर उन्होंने मेरे गले में एक ताबीज बांधा और ननद से कहा, ‘अब तुम इसे अमावस की रात को यहां लाना.’

‘बाबा के कहे अनुसार मैं ननद के साथ 3 माह तक अमावस की रात पहाड़ी पर बाबा के डेरे पर जाती रही. चौथी अमावस की रात जब हम बाबा के डेरे पर पहुंचे, तब बाबा मेरी ननद से बोले, ‘बहन, आज रात 11 बजे गर्भगृह में विशेष तांत्रिक महापूजा में इस को बैठाया जाएगा, चूंकि ये तंत्र क्रिया एकांत में ही की जाती है, इसलिए तुम चाहो तो घर चली जाओ और रात 1 बजे के बाद इसे अपने साथ ले जाना.’

‘उन के कहने पर ननदजी घर चली गईं. उस के बाद वे बाबा लोग मुझे एक अंधियारे गर्भगृह में ले गए और उन्होंने मुझे एक हवन कुंड के सामने बैठा दिया. फिर उन्होंने कुछ देर तक जोरजोर से मंत्रोच्चार किया, उस के बाद बाबा बोले, ‘अब तुम एकएक कर के अपने बदन से वस्त्र उतारो और इस हवनकुंड में डालती जाओ.’

‘मैं ने वस्त्र उतारने से साफ इनकार कर दिया. तब पीछे से एक साधु बाबा ने मेरे हाथ पकड़े और दूसरे ने मेरे साथ जबरदस्ती करना चालू कर किया. मैं जोरजोर से चिल्लाई भी, लेकिन शहर से दूर पहाड़ी पर मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था?

‘उस रात मैं उन के दुराचार का शिकार हो गई. वे दुराचार करने के बाद मुझे पहाड़ी से नीचे फेंकना चाहते थे, लेकिन बहुत संघर्ष कर के मैं वहां से जान बचा कर भाग आई.

‘भैया, दुराचार का शिकार होने के बाद मैं तत्काल आत्महत्या करना चाहती थी लेकिन उस स्थिति में मेरी सासूजी और ननद मुझे ही अपराधी मानतीं, इसलिए मैं जान बचा कर घर आई. जब मैं ने यह घटना अपनी ननद को बताई तब वे बोलीं, ‘मुझे क्या पता था कि वहां तुम्हारे साथ ऐसा होगा? हम लोग तो यही चाहते हैं कि तुम्हारी गोद भर जाए और हमारे भैया को उन का वंश चलाने वाला मिल जाए.’

‘जब मेरी सासूजी को इस घटना के बारे में मालूम पड़ा तब वे बोलीं, ‘लगता है मेरे नसीब में मेरे मरने के बाद भी मुझे पानी देने वाला नहीं है.’

‘भैया, अब तुम ही बताओ, ऐसी मैली जिंदगी जी कर मैं क्या करूं? तुम्हारे जीजाजी ने मेरे जीवन में जो अकेलापन भर दिया है उस से मैं तंग आ चुकी हूं, इसलिए सोचती हूं कि आत्महत्या कर लूं?

‘भैया, याद रखना, ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है इसलिए इस का जिक्र कभी किसी से मत करना, पुलिस से भी नहीं.

तुम्हारी दीदी लता.’

पत्र पढ़ने के बाद मेरे मन में यह बात पक्की हो गई कि दीदी की मौत के लिए सिर्फ जीजाजी दोषी हैं. अब दिल तो यही करता है कि दीदी का यह पत्र पुलिस को सौंप कर जीजाजी और तथाकथित झूठे बाबाओं को उन के किए की सजा दिलवाऊं, लेकिन दीदी के पत्र में लिखे शब्दों का सम्मान भी मुझे रखना है कि ‘भैया, याद रखना, ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है, इस का जिक्र तुम कभी किसी से न करना, पुलिस से भी नहीं.’

मैं परेशान हूं और असमंजस में पड़ा हूं कि क्या करूं? क्या दीदी की आत्महत्या को यों ही व्यर्थ जाने दूं? शायद, इसी स्थिति को इंसान की बेबसी कहते हैं.

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