शालू की समझ में नहीं आ रहा था क्या जवाब दे? पता नहीं क्या मांगने आई है? हो सकता है, सब्जी ही मांग बैठे. उस ने कपिल का दिया हुआ अस्त्र ही चलाया, ‘‘करेले पका रही हूं.’’
‘‘करेले,’’ आरुषि की आंखों में चमक आ गई.
शालू घबरा गई, ‘‘अब ये करेले मांगेगी… मुझे क्या पता था कि इसे करेले इतने पसंद हैं, नहीं तो झूठ ही बोल देती.’’
खिली हुई बांछों से आरुषि बोली, ‘‘फिर तो तेरे आलू बच गए होंगे. सौरभ कल बता रहा था कि औफिस से लौटते समय कपिल ने मंडी से अन्य सब्जियों के साथ आलू भी खरीदे थे. 4 आलू दे दे शाम को वापस कर दूंगी.’’
शालू रोआंसी हो गई. एक ही दिन में 2 अस्त्र बरबाद हो गए. शाम को उस ने कपिल को सारी बात बताई. कपिल सिर पकड़ कर बैठ गया. उस की समझ में ही नहीं आ रहा था इस समस्या से कैसे निबटा जाए?
अगले दिन रविवार था. कपिल और सौरभ का एक अन्य बैचमेट राघव अपनी
बीवी नैना और बच्ची समेत सामने वाले ब्लौक में ट्रक से सामान उतरवा रहा था. उन दोनों के कहने पर उस ने भी उसी कालोनी में 2 बैडरूम का फ्लैट खरीद लिया था. ट्रक से सामान उतरवा कर सौरभ तो वापस आ गया, कपिल वहीं रुका रहा.
अगले दिन शालू और कपिल डिनर ले कर राघव और नैना से मिलने पुन: उस के घर गए. बातों ही बातों में राघव ने कहा, ‘‘यार, यह सौरभ तो बड़ा अजीब आदमी है. दोपहर में आया और बोला, घर में सिलैंडर खत्म हो गया है. बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं. अपना जरिकैन मुझे दे दे. शाम को दुकान खुलते ही वापस कर दूंगा.’’
‘‘तूने बताया ही क्यों कि तेरे पास जरिकैन भर मिट्टी का तेल है?’’
‘‘बताने की क्या जरूरत है? वह तो सामान उतरवा रहा था, सो उस की नजर पड़ गई. जब तक गैस का कनैक्शन चालू हो, हौट प्लेट से काम चलाना पड़ेगा.’’
‘‘जरिकैन वापस मिला की नहीं?’’
‘‘अरे जरिकैन तो नहीं मिला, मजेदार बात यह है कि थोड़ी देर पहले नैना आरुषि से बात कर रही थी, तो उस के मुंह निकल गया कि कानपुर में मिट्टी के तेल की तो बेहद किल्लत है, तो जानते हो आरुषि क्या बोली?’’
‘‘क्या?’’
‘‘पता नहीं तुम्हारे हसबैंड कहां गए ढूंढ़ने? मेरे हसबैंड तो दोपहर में निकले और 10 मिनट में ही तेल ले कर आ गए. अब बताओ भला, हमारे यहां से तेल ले गए और हमारे ऊपर ही रोब झाड़ रहे हैं.’’
कपिल और शालू दोनों के मुंह खुले के खुले रह गए. मियांबीवी दोनों ही उस्ताद हैं. दोनों को मांगने की तो बुरी आदत है ही, मांग कर भूलने का नाटक करना भी इन की आदत में शुमार है.
घर लौट कर कपिल ने शालू से इस समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए कहा, तो शालू ने तुरंत हल सुझाया, ‘‘हम साफ मना कर दें कि कुछ नहीं देंगे.’’
‘‘नहीं, वे बुरा मान सकते हैं.’’
शालू ने अगला प्रयत्न किया, ‘‘अच्छा अगर हम दी हुई चीज वापस मांग लें?’’
‘‘हां, किया जा सकता है, पर इस में आपस के संबंधों में तनातनी हो सकती है.’’
शालू सोच में पड़ गई, ‘‘एक तरीका और है, हम मकान ही बदल लें?’’
‘‘इतना आसान नहीं है मकान बदलना शालू. अगर दूसरी जगह भी ऐसा ही मांगने वाला पड़ोसी मिल जाए, तो फिर क्या तीसरा मकान ढूंढ़ेंगे?’’
‘‘एक तरीका है,’’ अगली सुबह औफिस जाते समय कपिल ने शालू से कहा, ‘‘कोई भी सामान आरुषि या सौरभ को दो तो मुझे जरूर बता देना.’’
औफिस पहुंचने के बाद शालू के 3 फोन आए और उस ने जोजो सामान आरुषि को दिया, सब बता दिया. औफिस में लंच सब लोग साथ किया करते थे, मिलबांट कर खाते थे. जब सब लोग इकट्ठा हो गए तो कपिल ने सौरभ से कहा, ‘‘सौरभ, आज तेरे घर, प्याज, चीनी और डिटर्जैंट खत्म हो गया है लौटते समय ले कर जाना.’’
‘‘तुझे कैसे मालूम?’’ सौरभ का कौर मुंह तक आतेआते रुक गया.
‘‘अरे यार तुझ से लापरवाह कोई नहीं हो सकता. तू तो घर का सामान लाना भूल जाता है, उधर भाभीजी घरघर सामान मांगमांग कर तेरी गृहस्थी चलाती रहती हैं. मैं ने इसीलिए शालू से कह दिया था कि भाभीजी के घर जोजो सामान खत्म होता जाए मुझे फोन पर बताती जाए. अभी तक ये 3 चीजें भाभीजी मेरे घर से ले कर गई हैं.’’
सौरभ को इस तरह सब के बीच पोल खुलना रास नहीं आया. वह गुर्राते हुए बोला, ‘‘ऐसा क्या सामान मांग लिया मेरी बीवी ने? भले पड़ोसी होने के नाते थोड़ाबहुत लेनदेन तो चलता ही है, आरुषि भी तेरे यहां से कुछ ले गई होगी. इस का मतलब यह तो नहीं कि तू ढिंढोरा पीटता फिरे?’’
इस से पहले कि कपिल कुछ बोल पाता, राघव बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘अरे सौरभ, तुझे मिट्टी का तेल मिला कि नहीं? तूने तो जरिकैन भी वापस नहीं किया.’’
सौरभ इस दोतरफा हमले के लिए तैयार नहीं था. उस ने चुप बैठने में ही भलाई समझी. अमन वर्मा उन के गु्रप में सब से ज्यादा मस्त था. जानतेबूझते हुए बोला, ‘‘भिंडी की सब्जी बहुत अच्छी बनी हुई है. यह कौन लाया है?’’
‘‘मैं लाया हूं,’’ सौरभ बोला.
‘‘यानी कपिल के घर की भिंडी पर अपनी मुहर लगा रहे हो?’’
सौरभ के मुंह से जोर से निकला, ‘‘खबरदार, आज की सब्जी मेरे घर की है.’’
‘‘इस का मतलब, रोज की सब्जी कपिल के घर की होती थी,’’ अमन वर्मा ने बात पकड़ ली. इस के साथ ही पूरे गु्रप का जोरदार ठहाका गूंजा.
शाम को कपिल ने सब्जी मंडी में स्कूटर रोक लिया और सौरभ से बोला,
‘‘जा, जोजो सामान घर में खत्म हो रहा है वह ले ले. मुझे बहुत बुरा लगता है, जब भाभी घरघर हाथ फैलाती हैं.’’
सौरभ एक हारे हुए सिपाही की तरह स्कूटर से उतरा और सामान लेने चला गया.
सौरभ को देखते ही दुकानदार बोला, ‘‘बहुत दिन बाद आए बाऊजी.’’
कपिल मन ही मन बोला, ‘‘जब मैं रोज आ रहा था, तो यह क्या करते आ कर? मगर अब चिंता न करो, ये रोज आएंगे.’’
सौरभ ने सामान पैक करवाना शुरू किया, तो कपिल ने दुकानदार से उसी सामान में से कई चीजों के अलगअलग पैकेट बनाने को कहा.
सौरभ ने टोका, तो कपिल बोला, ‘‘अरे यार, तेरी इस भूलने की आदत के
कारण मैं भाभी को अब और अपमानित होते नहीं देख सकता, इसलिए बजाय इस के कि वे मांगा हुआ सामान मुझे वापस करने आएं, मैं पहले ही उसे अपने घर ले जा रहा हूं.’’
सौरभ के पास इतने जोरदार तर्क का कोई जवाब नहीं था. उस ने चुपचाप दुकानदार के पैसे चुकाए और दोनों लोगों की थैलियां हाथ में पकड़े चुपचाप स्कूटर के पीछे बैठ गया.
सौरभ से अपनी थैली ले कर जब कपिल अपने घर पहुंचा, तो शालू ने उस के हाथ से थैली ली और बोली, ‘‘सुनो यह मांगी हुई चीजों की लिस्ट क्या रोजरोज तुम्हें फोन पर देनी पड़ेगी?’’
‘‘कल से शायद तुम्हें इस की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’
उधर आरुषि सौरभ को क्व2 हजार का बिल पकड़ाते हुए बोली, ‘‘आज सर्विस स्टेशन से मैकैनिक आया था. स्कूटर ठीक कर गया है. कह रहा था सौरभ का फोन आया था. उन्होंने ही घर का पता और स्कूटर नंबर दिया है.’’
दोनों घर आसपास थे, पर दोनों में माहौल अलग था. इधर कपिल से अपनी जीत की मुसकराहट रोके नहीं रुक रही थी और उधर सौरभ परेशान था कि उस ने तो कोई फोन नहीं किया था पर बीवी के आगे अपनी हार का परदाफाश होने के डर से वह शांत खड़ा था.