
तभी वहां मौली आ गई. उसे देख कर वह बोली, ‘‘दी, तुम ने कभी बताया नहीं तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड भी है?’’
‘‘कैसी बात करती हो मौली यह मेरा बौयफ्रैंड नहीं है.’’
‘‘झूठ बोल रही है तुम्हारी दी. यह भी मु?ो प्यार करती है लेकिन कहने से डरती
है. इस के मन में पता नहीं क्या है जिस से यह उबर नहीं पा रही है.’’
‘‘दी, तुम किस्मत वाली हो जो तुम्हें इतना चाहने वाले दोस्त मिले हैं. आज के जमाने में रिश्ते कपड़ों की तरह हो गए हैं. इस्तेमाल करो और फेंक दो. दी मु?ो लगता है तुम्हें इन्हें सम?ाना और कुछ वक्त देना चाहिए.’’
‘‘तुम कुछ नहीं सम?ाती मौली.’’
‘‘दी, मैं इतनी छोटी भी नहीं हूं. मु?ा से भी कई युवा दोस्ती करना चाहते हैं. देख रही हूं ये तुम्हारे लिए दूसरे शहर से यहां आए हैं. कोई किसी के लिए इतना वक्त नहीं निकालता जितना इन्होंने निकाला है. होश में आओ दी और इन्हें पहचानने की कोशिश करो. कब तक इसी तरह खुद से भागती रहोगी?’’
‘‘मैं भी यही सम?ा रहा हूं. जिंदगी में हादसे होते रहते हैं. उन का हिस्सा बन जाना कहां की सम?ादारी है? जो बीत गया उसे भूलने की कोशिश करो. जिंदगी को खुले दिल से अपना लो तो वह जन्नत बन जाती है.’’
‘‘आप ठीक कहते हैं. बड़ी मम्मी के चले जाने का दी पर बहुत बड़ा असर पड़ा है और उस के बाद वह किसी को अपना नहीं सकी.
सब दी को खुश देखना चाहते हैं लेकिन यह अपनी ही दुनिया में रहती है,’’ मौली बोली तो पाली को लगा जैसे किसी ने उस की चोरी पकड़ ली हो.
पहली बार पाली को एहसास हुआ कि वह मम्मी की मौत को भुला नहीं पाई और खो जाने के डर से कभी किसी को अपने जीवन का हिस्सा न बन सकी.
‘‘मैं तुम्हारे फोन का इंतजार करूंगा पाली और तब तक इसी शहर में रहूंगा जब तक तुम
मेरे प्यार को स्वीकार नहीं कर लेती,’’ कह कर वह चला गया. मौली और पाली भी चुपचाप घर चली आईं.
दोनों की बातों ने आज पाली को ?ाक?ार कर रख दिया था. पहली बार वह अपना आत्मविश्लेषण करने के लिए मजबूर हो गई. उसे लगा मौली ठीक कहती है. यह तो खुशी की बात है कि उसे इतने अच्छे पापा, नई मम्मी और छोटी बहन के रूप में मौली मिली लेकिन उस ने कभी उन्हें दिल से स्वीकार ही नहीं किया. दोस्त और प्रेमी के रूप में भी पार्थ जैसा हैंडसम लड़का उस के जीवन में आना चाहता है और वह उसे नकारते चली जा रही थी.
सारी रात पाली सो नहीं सकी. मौली उस की बेचैनी को महसूस कर रही थी लेकिन कुछ कह कर उस के विचारों की डोर को तोड़ना नहीं चाहती थी. सुबह वह देर से उठी.
मौली ने पूछा, ‘‘दी, तबीयत तो ठीक है?’’
‘‘हां ठीक हूं. रात देर तक नींद आई… सुबह आंख लग गई.’’
‘‘दी, बुरा मत मानना पार्थ बहुत अच्छ हैं. उन्हें अपना लो. मु?ो यकीन है वे कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे.’’
‘‘तुम ठीक कहती हो मौली. मैं ही स्वार्थी हो गई थी. खोने के डर से मैं कभी किसी को अपना ही नहीं सकी. कुदरत न करे कभी किसी बच्चे को मांबाप के बगैर रहना पड़े.’’
‘‘बीमारी पर किसी का बस नहीं है. बड़ी मम्मी को पापा ने बचाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन उन का साथ इतना ही लिखा था. वे तुम्हें छोड़ कर चली गईं. उसी का बदला तुम पूरी दुनिया से ले रही हो और वह भी अपनेआप से लड़ कर.’’
‘‘तुम ठीक कह रही हो. मैं खुद इस बात
को नहीं सम?ा सकी. बस अंदर एक खालीपन था. लगता था उसे मम्मी के अलावा कोई नहीं
भर सकता. उसी ने मु?ो सब से दूर कर दिया.’’
‘‘अभी भी देर नहीं हुई है दी. तुम्हें पार्थ को अपना लेना चाहिए.’’
‘‘तुम उस का नाम कैसे जानती हो?
मैं ने तो कभी उस का जिक्र भी नहीं किया?’’ पाली बोली तो मौली खिलखिला कर हंसने
लगी.
‘‘दी, तुम्हें भले ही यह जिंदगी अपनी
लगती रही हो लेकिन उस पर हमारा भी उतना
ही हक है दी. यही सोच कर पार्थ परसों मु?ा
से मिले थे. वे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानना चाहते थे. मैं ही किसी अजनबी को बताने में हिचक रही थी. कल उन के कहने पर ही मैं कौफीहाउस आई थी.’’
‘‘तो यह सब तुम्हारी शरारत थी.’’
‘‘मु?ो भी एक हैंडसम जीजू चाहिए
इसीलिए मैं ने पार्थ का साथ दिया,’’ मौली बोली.
यह सुन पाली भी हंसने लगी. पहली बार उस ने उसे खिलखिलाते हुए देखा.
‘‘देर किस बात की है दी? पार्थ को फोन मिलाइए और मिलने के लिए बुला लो. मैं भी देखना चाहती हूं तुम कैसे अपने प्यार का इजहार करती हो?’’
‘‘सच कहूं कुदरत ने मु?ा से मम्मी छीन कर बहन के रूप में तुम्हें लौटा दिया. एक तुम ही हो जिसे मैं अपना सम?ाती हूं.’’
‘‘सब अपने हैं दी. तुम मम्मी से बात कर के तो देखो उन्होंने कभी हम दोनों में कोई भेद नहीं किया. वे बहुत अच्छी हैं.’’
‘‘जानती हूं उन्हें खोने के डर से मैं उन के पास कभी गई ही नहीं. सोचती थी कहीं तुम्हें भी मेरी जैसी स्थिति से न गुजरना पड़े.’’
‘‘ऐसा कभी नहीं होगा दी,’’ कह कर मौली पाली से लिपट गई.
दोपहर में पाली ने पार्थ को फोन कर मिलने के लिए बुला लिया. पार्थ की खुशी का ठिकाना न था. वह निर्धारित समय से पहले कौफीहाउस पहुंच गया.
आज पाली बिलकुल बदली हुई थी. उस का चेहरा खुशी से चमक रहा था. खुले बाल और टाइट जींस में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.
आते ही पाली ने पार्थ का हाथ पकड़ लिया और बोली, ‘‘चलो, घूमने चलते हैं. आज मैं अपना समय इस जगह पर नहीं तुम्हारे साथ किसी खुली जगह बिताना चाहती हूं.’’
दोनों एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले कौफीहाउस से बाहर चले गए. मौली उन्हें दूर तक जाते हुए देखती रही और दी के सुनहरे भविष्य की कल्पना में खो गई.
कहानी- रेणु श्रीवास्तव
आ मिर और मल्लिका ने कालेज के स्टेज पर शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक रोमियोजूलियट क्या खेला कि ये पात्र उन के वास्तविक जीवन में भी प्रतिबिंबित हो उठे. महीनेभर की रिहर्सल उन्हें इतना करीब ले आई कि वे एकदूजे की धड़कनों में ही समा गए. स्टेज पर अपने पात्रों में वे इतने जीवंत हो उठे थे कि सभी ने इन दोनों का नाम भी रोमियोजूलियट ही रख दिया था.
कालेज कैंपस हो या बाहर, दीनदुनिया से बेखबर, हाथों को थाम चहलकदमी करते प्यार के हजारों रंगों को बिखराते वे दिख जाते. प्रीत की खुशबू से मदहोश हो कर वे झूम उठे थे. जाति अलग, धर्म अलग फिर भी कोई खौफ नहीं आंखों में. विरहमिलन की अनगिनत गाथाओं को समेटे इस दीवाने प्रेम को जाति और धर्म से क्या लेनादेना था.
प्रेम ने तो कभी दरिया में, कभी पहाड़ों पर, कभी दीवारों में, कभी मरुस्थलों में दम तोड़ दिया पर प्रियतम का साथ नहीं छोड़ा. एक ही मन, एक ही चुनर, प्रीत के ऐसे पक्के रंग में रंगी विरहबेला में न छीजा न सूखा. दिनोंदिन प्रेमी प्रेमरस में भीगते और भिगोते सूली पर चढ़ गए. पर जातिधर्म की न समाप्त होने वाली सरहदों ने प्रेमीयुगल को शायद ही बख्शा हो. मल्लिका और आमिर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
पहले तो सभी इसे सहजता से लेते रहे लेकिन जैसे ही इश्क के गहराते रंग का अनुभव हुआ दोनों ओर के लोगों की तलवारें तन गईं. फिर प्यार भी कहीं छिपता है? यह तो पलभर में हरसिंगार के फूलों की तरह अपनी आभा बिखेरता है. बेहद सुंदर और प्रतिभा की मालकिन मल्लिका को पाने के लिए प्रोफैसरों से ले कर सजातीयविजातीय लड़कों में एक होड़ सी लगी थी. बहुत दीवाने थे उस के लेकिन सब को अनदेखा कर उन की नादानियों पर हंसती रही.
जिसे भी मल्लिका पलभर को देख लेती वह निहाल हो उठता था. जिधर से गुजर जाती, लोग उस की खूबसूरती के कायल हो जाते थे. कट्टर मानसिकता वाले राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली मल्लिका के लिए अपनी बिरादरी में भी एक से एक सुयोग्य लड़के शादी के लिए आंखें बिछाए कतार में खड़े थे. लेकिन मल्लिका के सपनों का राजकुमार आमिर बन चुका था.
मल्लिका का किसी गैरजाति के लड़के को चाहना जमाना इसे कितने दिनों तक सहन करता. आमिर पर न जाने कितने जानलेवा हमले हुए, मल्लिका को तो एसिड से जला देने की धमकियों से भरी न जाने कितनी गुमनाम चिट्ठियां मिलती रहीं, जो उन के प्रेम को और मजबूत ही करती रहीं. आमिर का एक प्यारभरा स्पर्श, एक स्नेहिल मुसकान उस की राहों में बिछे हर कांटे के डंक को मिटाती रही. आमिर के बारे में पता चलते ही मल्लिका के मातापिता ने अपनी लाड़ली को हर तरह से सम झाया, अपनी जान देने की धमकी तक दी. पर प्यार की इस मेहंदी का रंग लाल ही होता गया. जैसेजैसे समाज के शिकंजे कसते गए वह आमिर के प्यार में और डूबती गई.
एक हिंदू लड़की अपनी जातिबिरादरी के एक से एक होनहार और खूबसूरत नौजवानों को नजरअंदाज कर के मुसलिम से प्यार करे, हिंदू समाज को यह सहन कैसे होता. राजनीति का अखाड़ा बने कालेज परिसर में ही आमिर पर ऐसा जानलेवा हमला हुआ कि उस की जान बालबाल बची. मल्लिका पर भी तेजाबी हमले हुए. गरदन और हाथ ही झुलसे. चेहरे पर एकाध छींटे पड़े जरूर, पर वे उलटे उस की सुंदरता में चारचांद लगा गए.
पुलिस ने कुछ विरोधी हिंदू आतंकियों को पकड़ा पर जैसा इस तरह के मामलों में होता है, सुबूतों के अभाव में वे छूट गए. मुसलिम समाज क्यों पीछे रहता, वह भी दलबल के साथ आमिर के बचाव में उतर आया. हिंदूमुसलिम दंगा भड़कने ही वाला था कि मल्लिका और आमिर ने कोर्टमैरिज कर के दंगाइयों के मनसूबों पर पानी फेर दिया. मल्लिका के मातापिता ने जीतेजी उसे अपने लिए मरा करार दे दिया, तो आमिर के घरवालों ने उसे अपनाते हुए धूमधाम से अपने घर ले जा कर उस का भरपूर मानसम्मान किया जिसे उन दोनों ने कोई खास तरजीह नहीं दी. धर्म के सौदागरों के शह और मात के खेलों से वे अनजान नहीं थे.
अभी आमिर के घर में मल्लिका के कुछ ही घंटे बीते थे कि बाहर गेट पर पटाखे फूट कर आकाश को छू रहे थे. चेहरे को छिपाए
8-10 आदमियों का समूह चिल्ला रहा था. राजपूत की बेटी इन विधर्मियों के घर में. अकबर का इतिहास दोहरा रहे हो तुम लोग. राजपूतों का वह समाज नपुंसक था जिस ने पैरों पर गिर कर अपनी बहनबेटियों को म्लेच्छों के हवाले कर दिया था. उसे किसी भी हालत में दोहराने नहीं देंगे हम. सुनो विधर्मियो, हमें नीचा दिखाने के लिए बड़ी शान से मुसलिम बना कर जिसे विदा करा लाए हो तुम सभी, उस म्लेच्छ लड़की को घर से निकाल बाहर करो. हम यहीं पर उस के टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.
आज गौमांस खाएगी, कल रोजा रख कर कुरानपाठ करेगी. बुरका ओढ़ कर तुम्हारी बिरादरी में घूमेगी, तुम्हारे गंदे खून से बच्चे पैदा कर के राजपूतों की नाक कटवाएगी. निकालो इसे, नहीं तो इस का अंजाम बहुत भयानक होगा. आज पटाखों से केवल तुम्हारा गेट जला है. कल बम फोड़ कर तुम सब को भून डालेंगे.
उन की गगनभेदी आवाजों से घर के अंदर सभी दहशत से कांप रहे थे. आमिर की बांहों में मल्लिका अर्धमूर्च्छित पड़ी थी. हिंदुओं की कारगुजारी की जानकारी पाते उस के विरोध में मुसलिम समाज भी इकट्ठा होने लगा था. वह तो अच्छा हुआ कि आननफानन में पुलिस पहुंच गई, और दंगों के शोले भड़कने से रह गए.
फिर महीनों तक आमिर को पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी थी. उन का बाहर निकलना मुश्किल था. घात लगाए बैठे राजपूतों का खून खौल रहा था. कुछ अलग हट कर करने की चाह से ये आंखें मूंदे सभीकुछ सहन कर रहे थे. रिजल्ट निकलते ही इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले जाना था. सभी तैयारियां हो चुकी थीं. बची हुई औपचारिकताओं को ये छिपछिपा कर पूरी कर रहे थे. पर मौत का खतरा टला नहीं था. अपने हनीमून को ये दोनों दहशतों के बीच ही मना रहे थे.
इन दोनों का रिजल्ट आ गया. तैयारियां तो थीं ही. जाने के दिन छिपतेछिपते किसी प्रकार से वे इंटरनैशनल हवाईअड्डे तक पहुंचे. रिश्तेदार तो दूर, इन्हें विदा करने कोई संगीसाथी भी नहीं आ सका. उमड़ आए आंसुओं के समंदर को दोनों पलकों से पी रहे थे. बुरके में मल्लिका का दम घुट रहा था तो खुले में आमिर के पसीने छूट रहे थे.
जब तक प्लेन उड़ा नहीं, वे डर के साए में ही रहे. किसी तरह की जांचपड़ताल से वे घबरा उठते थे. 17 घंटे के अंतराल के बाद ही एकदूसरे की बांहें थाम पहुंच गए अमेरिका के न्यूजर्सी में, जहां की गलियों में उन्नत सिर उठाए उन के सपनों की मंजिल, प्रिंसटन कालेज बांहें फैलाए उन का स्वागत कर रहा था. इस की तैयारी वे महीनों से कर रहे थे. बहुत हाईस्कोर के साथ उन्होंने टोफेल आदि को क्लीयर कर रखा था. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने दोनों का लोन सैंक्शन करते हुए पासपोर्ट, वीजा आदि के मिलने में बड़ा ही सहयोग दिया. प्यार के विरोध में उठे स्वरों एवं छलनी दिल के सिवा वे भारत से कुछ भी नहीं लाए थे. सामने चुनौतियों से भरे रास्ते थे, पर उन के पास हौसलों के पंख थे. ख्वाबों की दुनिया उन्हें खुद बनानी थी.
यहां आ कर भी महीनों तक मल्लिका दहशत में जीती रही. किसी भी हिंदू की नजर उसे सहमा कर रख देती थी. कालेज परिसर में रहने वाले विद्यार्थियों के आश्वासन भी उसे सामान्य नहीं बना सके थे. मल्लिका ने कभी पलट कर भी अपनों की खबर नहीं ली. आमिर के मांबाप और छोटी बहन से कभी बात कर लिया करती थी पर उन्हें भी कभी यहां आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया.
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में इंटरनैशनल सिक्योरिटी, जो एक नया विषय था, उस में पीएचडी करने का फैसला मल्लिका और आमिर ने लिया. यह भी अच्छी बात रही कि यूनिवर्सिटी की ओर से ही उन दोनों को रहने के लिए जगह मिली, जिस ने उन के रहने की बड़ी समस्या को हल कर दिया. जैसेजैसे दिन गुजरते गए, उन की राहें आसान होती गईं.
अभी भी उन के रिश्ते पतिपत्नी से ज्यादा प्रेमीप्रेमिका जैसे ही थे. हाथों में हाथ डाले जिधर चाहा निकल गए. न किसी के देख लेने का डर था और न कोई दंगा भड़कने का. अकसर वे दोनों मखमली हरी घास पर लेट कर गरमी का आनंद लेते हुए पढ़ाई किया करते थे. जब? भी थक जाते, आइसक्रीम खा कर तरोताजा हो उठते.
वीकैंड में अकसर चहलकदमी करते हुए प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते दुकानों में जा कर शौपिंग करते. रैस्टोरैंट में हर तरह के कौंटिनैंटल फूड खाते. आमिर को कौफी बहुत पसंद थी तो मल्लिका को टोमैटो सूप और ग्रिल्ड सैंडविच.
इतने लंबे समय में दोनों कभी मंदिरमसजिद नहीं गए. प्यार ही उन का मजहब था. विवरस्पून स्ट्रीट की विशाल प्रिंसटन पब्लिक लाइब्रेरी में जा कर दोनों पढ़ाई करते. समय ने इन के परिश्रम और लगन का भरपूर रिवौर्ड दिया.
युद्ध के कारण, नेचर डेटरैंस, एलाएंस, फौर्मेशन, सिविल मिलिटरी रिलेशन, आर्म्स कंपीटिशन के साथ आर्म्स की रोक आदि पर इन की हर छानबीन को खूब वाहवाही मिली. इन का परफौर्मैंस इतना अच्छा रहा कि दोनों की नियुक्ति प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में ही हो गई. सपनों की मंजिल पर पहुंच कर दोनों अभिभूत थे.
प्रिंसटन के लिंडेन लेन में इन्होंने रहने के लिए एक टाउन हाउस ले लिया था, जिस के गैराज में चमचमाती हुई नई गाड़ी खड़ी थी.
युद्ध के कारणों और निवारणों पर रिसर्च करते हुए उन्होंने करीबकरीब दुनिया के सारे शक्तिशाली देशों की परिक्रमा कर डाली. यह अपनेआप में बहुत खास अनुभव रहा. पढ़तेपढ़ाते विभिन्न देशों की संस्कृति को मानसम्मान देते हुए उन्होंने मेल्ंिटग पौट औफ कल्चर को अपना लिया. दंगा, हिंसा और खूनखराबे के डर से अपने देश से क्या भागे कि सारी दुनिया को ही गले लगा लिया. यही कारण है कि अमेरिका में रह रहे सारे विश्ववासियों को इन्होंने प्यार से एक गुलदस्ते में ही संजो लिया. सभी वर्गों में इन का बड़ा मानसम्मान था.
2 साल में ही सारे लोन चुका कर इन्होंने अपना परिवार बढ़ाने का निर्णय लिया. गर्भावस्था में आमिर ने मल्लिका का बहुत ध्यान रखा. अपने जुड़वां बच्चों का नाम उन्होंने अर्थ और आशी रखा. ऐसे वक्त में गुजरात की रहने वाली पारुल बेन किसी सौगात की तरह उन्हें मिल गईं, जिन्होंने दोनों बच्चों की देखरेख के साथ मल्लिका का भी मां की तरह खयाल रखा. मल्लिका और आमिर ने भी उन्हें कभी नैनी नहीं सम झा.
अपने बच्चों को पारुल बेन को सौंप कर मल्लिका और आमिर पढ़नेपढ़ाने की दुनिया में ख्याति बटोरते रहे. पारुल बेन भी उन की कसौटी पर सब तरह से खरा सोना निकलीं. किसी बात के लिए उन्हें निराश नहीं किया. अर्श और आशी को पारुल बेन ने दोनों संस्कृतियों के सारे संस्कार दिए. घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर आमिर और मल्लिका को ऊंची उड़ान भरने के अवसर मिले. मल्लिका के सौंदर्य और प्रतिभा पर उस के क्षेत्र के लोग मुग्ध थे. ब्यूटी और ब्रेन का अनोखा सामंजस्य था उस में. उन से जुड़ कर सभी लाभान्वित ही होते रहे. अपने आसपास के ही नहीं, बल्कि जिस देश में भी गए वहां की संस्कृति को आत्मसात कर लिया. उन्होंने बहुत बड़ी पहचान को प्राप्त कर लिया था. यह उन के जीवन की बहुत बड़ी विजय थी.
समय पखेरू बन कर उड़ता रहा. अर्थ ने फाइनैंस में एमबीए कर के न्यूयौर्क की प्रतिष्ठित कंपनी को जौइन कर लिया. साल भी नहीं बीता था कि उस ने उसी कंपनी में कार्यरत चाइनीज लड़की से शादी कर ली और 4 महीने बाद ही 2 जुड़वां लड़कियों का पिता बन गया. वहां की खुली संस्कृति के लिए यह बड़ी आम बात थी. वहां बच्चे पहले पैदा होते हैं, शादी बाद में होती है.
आशी ने भी मैडिसिन की पढ़ाई कर के एक अफ्रीकीअमेरिकन से ब्याह रचा लिया. सालभर में वह भी अपने पिता के हमशक्ल जैसे बच्चे की मां बन गई. अपने बच्चों के उठाए इन कदमों की कोई आलोचना मल्लिका और आमिर ने कभी नहीं की. सब तरह से सहयोग देते हुए उन्हें संवारते हुए निखारा था. दोनों अपने बच्चों के बच्चे देख कर अभिभूत थे. सारे जहां की खुशियों को वे बटोर रहे थे.
अपने नानानानी और दादादादी बनने की खुशी में उन्होंने न्यूजर्सी में ही बड़ी शानदार पार्टी रखी थी. महीनेभर पहले सारी नाराजगी को भुलाते हुए दोनों ने अपने परिवारवालों को भी न्योता दिया था. वे आएं या न आएं, उस से उदासीन होते हुए वे अपनी खुशियों में मग्न थे. इतने लंबे समय में मल्लिका ने भूल कर भी अपनों को कभी याद नहीं किया था. उन के सारे रिश्तेनाते एकदूसरे के लिए वे स्वयं ही थे. बाकी कमी पारुल बेन ने आ कर पूरी कर दी थी. किसी अपने की तरह अर्थ और आशी की खुशियों से उन की भी आंखें छलक रही थीं. दोनों में से वे किस के पास जा कर, रह कर बच्चों की देखरेख करें, इस के लिए अर्थ और आशी को विवाद करते देख पारुल बेन भी अपने अस्तित्व के महत्त्व पर, अपनी काबिलीयत पर खुश थीं. 1,800 डौलर मासिक पगार पर काम करने वाली पारुल बेन लाखों डौलर की मालकिन होने के साथ अपना भविष्य संवारते हुए परिवार की बहुत बड़ी स्तंभ बन गई थीं.
भारत से आमिर और मल्लिका दोनों के मातापिताओं के साथ उन के भैयाभाभी भी आए. मिलन की खुशियों में छलकते आंसुओं ने दरिया ही बहा दिया था. फिर आरोपों और प्रत्यारोपों के लिए समय ही कहां था. वर्षों से बिछुड़े बच्चों के लिए नजराने में वे सारा भारत ही उठा लाए थे. उस प्यार के उफनते समंदर में न कोई जाति थी, न कोई धर्म, एक परिवार की तरह सारे भेदभाव को भूल कर सभी एकदूसरे से गले मिल रहे थे.
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‘‘कैसे करेले उठा लाए? सारे एकदम कड़वे हैं. न जाने कैसी खरीदारी करते हैं. एक भी सब्जी ठीक नहीं ला पाते.’’
श्रीमतीजी ने हमारे द्वारा लाए गए करेलों का सारा कड़वापन हम पर उड़ेला.
‘‘क्यों, क्या बुराई है भला इन करेलों में? बाजार से अच्छी तरह देख कर, चुन कर अच्छेअच्छे हरेहरे करेले लाए थे हम… अब सवाल रहा जहां तक इन के कड़वे होने का तो वह तो करेलों की प्रकृति ही है… करेले भी कभी मीठे सुना है क्या भला आज तक?’’ हम ने भी श्रीमतीजी की प्रतिक्रिया का पुरजोर विरोध किया.
‘‘करेले कड़वे होते हैं वह तो मैं भी जानती हूं, लेकिन इतने कड़वे करेले? अभी कल ही पड़ोस में कान्हा के दादाजी ने साइकिल वाले से करेले खरीदे. सच, भाभी बता रही थीं कि इतने अच्छे, इतने मुलायम और नरम करेले थे कि कुछ पूछो मत. ऊपर से कड़वापन भी बिलकुल न के बराबर. समझ में नहीं आता कि सब को अच्छी सब्जियां, अच्छे फल, अच्छा सामान कैसे मिल जाता है. बस एक आप ही हैं, जिन्हें अच्छी चीजें नहीं मिलतीं.
‘‘सच कई बार तो मन में आता है कि आप से कुछ कहने के बजाय स्वयं बाजार जा कर सामान खरीद लाया करूं. लेकिन उस में भी एक परेशानी है, आप के लिए तो यह और भी अच्छा हो जाएगा. काम न करने का बहाना मिल जाएगा,’’ श्रीमतीजी ने हम से कार्य करवाने की अपनी मजबूरी बताई.
‘‘संयोग की बात है कि ऐसा हो जाता है. वरना इस महंगाई में रुपए खर्च कर खराब सामान लाने का तो हमें स्वयं भी कोई शौक नहीं है. हमें स्वयं अफसोस होता है जब हमारे लिए सामान में कोई गड़बड़ निकलती है. लेकिन इस में भला हम कर भी क्या सकते हैं,’’ हम ने अपनी बेचारगी दिखाई.
‘‘संयोग है कि सारे संयोग सिर्फ आप के साथ ही होते हैं… संयोग से आप को ही अंदर से काले खराब आलू मिलते हैं… संयोग से ही आप को ऐसे सेब मिलते हैं, जो ऊपर से तो अच्छे दिखाई देते हैं, लेकिन होते हैं एकदम फीके. यह भी संयोग है कि आप के लाए नारियल फोड़ने पर प्राय: खराब निकल जाते हैं,’’ श्रीमतीजी के पास जैसे हमारे लाए खराब सामान की एक पूरी सूची थी.
‘‘यह क्यों भूल रही हैं कि तुम से विवाह कर के हम ही तुम्हें यहां इस घर में लाए थे… हम ने ही तुम्हें पसंद किया था… अब अपने विषय में तुम्हारा क्या विचार है? अपने ऊपर लगते लगातार आरोपों ने हमें भयभीत कर दिया…’’ इसीलिए वातावरण को हलका करने के लिए हम ने श्रीमतीजी से मजाक किया.
लेकिन यह क्या? हमारे मजाक को वे तुरंत समझ गईं. झल्ला कर बोलीं, ‘‘मजाक छोडि़ए, मैं आप से गंभीर बात कर रही हूं… आप की कमियां आप को बता रही हूं और एक आप हैं, जो मेरे कहे को गंभीरता से सुनने तथा स्वयं में सुधार लाने के स्थान पर मेरी बात को मजाक में उड़ा रहे हैं. आप की इस प्रवृत्ति का ही यहां के दुकानदार भरपूर फायदा उठा रहे हैं. वे खराब सामान आप के मत्थे मढ़ देते हैं. ऐसे में वे तो दोहरा लाभ उठा रहे हैं.
‘‘पहला उन के यहां का खराब सामान निकल जाता है. और दूसरा वे उसे बेच कर कमाई भी कर लेते हैं… और हम हैं कि सिर्फ नुकसान उठाए जा रहे हैं. मेरी तो समझ में नहीं आता कि क्या करूं, किन शब्दों में आप को चेताऊं ताकि हमें और नुकसान न झेलना पड़े.’’
‘‘तुम भी न बस जराजरा सी बातों को तूल देती हो… एक बड़ा मुद्दा बना देती हो… यह भी कोई बात हुई भला कि करेले कड़वे क्यों हैं? अरे करेले की तो प्रकृति ही है कड़वा होना. इस में भला हम क्या कर सकते हैं? रहा सवाल खरीदारी का तो यह तो किसी के साथ भी हो सकता है, बल्कि हो ही जाता होगा. लेकिन हमें क्या यह सब पता चलता है कि कौन कब बेवकूफ बना? किस के साथ क्या चालाकी हुई? इसलिए इन छोटीछोटी बातों को गंभीरता से न लिया करो. अब थोड़ाबहुत चला भी लिया करो,’’ अब हम कड़वे करेलों की बात को यहीं पर समाप्त करना चाहते थे.
‘‘आप इन्हें छोटीछोटी बातें समझ रहे हैं? कोई आप की आंखों में धूल फेंक दे, आप को बेवकूफ बना कर खराब सामान पकड़ा दे और आप के लिए यह कोई बात ही नहीं है? आप के लिए होगी ये सब जराजरा सी बातें, लेकिन मुझे तो यह सब किसी भी तरह अपने अपमान से कम नहीं लगता. कोई आप के संपूर्ण व्यक्तित्व को नकार कर अपना उल्लू सीधा कर ले, यह तो चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात हो गई. रहा सवाल दूसरों के बेवकूफ बनने का तो मुझे इस सब से कोई मतलब नहीं है कि कौन अपने घर में क्या कर रहा है, क्या खापका रहा है? वैसे भी राह चलता व्यक्ति चाहे जो कर रहा हो, हम न तो उस की ओर ध्यान देते हैं और न ही इस से कुछ खास फर्क पड़ता है. लेकिन आप तो मेरे पति हैं, आप के साथ यदि कुछ गलत होगा, चालाकी होगी तो उस का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ेगा. हमें बुरा भी लगेगा. इसलिए कोशिश कीजिए कि आप के साथ ऐसा कुछ न हो, जिस से हमें नुकसान उठाना पड़े. इस महंगाई के दौर में जब वैसे ही इतनी कठिनाई आ रही है… आप अपनी इन नादानियों से मेरी परेशानी और बढ़ा रहे हैं,’’ श्रीमतीजी ने कहा.
‘‘यदि तुम्हें मेरे लिए सामान, मेरी लाई सब्जी, फलों से इतनी ही अधिक परेशानी है, तो एक काम क्यों नहीं करतीं? आज से सारा सामान स्वयं लाया करो. इस से तुम्हें तुम्हारा मनपसंद सामान भी मिल जाएगा और खराब सामान आने की समस्या से भी दोचार नहीं होना पड़ेगा,’’ अब इस विकट परिस्थिति में हमें यही एक उपाय सूझा, जिसे हम ने श्रीमतीजी के सामने रख दिया.
‘‘अच्छा तो मुझ पर यह अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी जा रही है… आप क्या समझते हैं कि मैं आप की चालाकी नहीं समझती हूं? खरीदारी का काम मुझे सौंप कर आप इस काम से बचना चाहते हैं… ऐसा कतई नहीं होगा. आप को घर का इतना कार्य तो करना ही पड़ेगा… बाजार से सामान तो आप को ही लाना पड़ेगा,’’ श्रीमतीजी ने निर्णायक स्वर में कहा.
अब भला हम क्या कहते? चुप रहे. इस समय हमारी हालत उस व्यक्ति की तरह हो रही थी जिसे मारा भी जा रहा हो और रोने भी न दिया जा रहा हो.
वाणी की आंखों में आंसू आ गए थे. वह कोने में जा कर बैठ गई थी. वहां भुवन की पत्नी निशा बैठी हुई थी. उस को भी इस तरह की पार्टियां पसंद नहीं थीं.
सोम के 7-8 दोस्तों और उन की पत्नियों ने जी भर कर बोतलें खाली कीं. फिर किसी को होश नहीं रहा कि कौन किस की बांहों में थिरक रहा है. सब नशे में डूबे हुए थे. उसे यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. सोम को नशे में धुत्त देख वह परेशान हो उठी थी. वाणी ने उस दिन से इस तरह की पार्टियों में न जाने की कसम खा ली थी.
जल्द ही वाणी के पैर भारी हो गए. उस की तबीयत ढीली रहने लगी. लेकिन दोनों के संबंध सामान्य नहीं हो पाए. सोम उस पर हावी होता गया. वह झगड़े से बचने के लिए चुप रह जाती. कभीकभी पीने वाला सोम अकसर पी कर आने लगा था.
उस की खराब तबीयत के बारे में सुन कर उस के अम्माबाबूजी आ कर उस को अपने साथ ले गए. वहां कुहू के पैदा होने पर सोम आया और बेटी को लाड़ दिखा कर चला गया. वह सोचती थी कि मेरी प्यारी सी बेटी हम दोनों के रिश्ते सामान्य कर देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सोम की मम्मीजी और पापाजी विदेश में थे.
थोड़े दिनों बाद वह सोम के साथ फिर से मुंबई आ गई. वहां नन्ही सी कुहू की देखभाल में उस का समय बीतने लगा. उस की सहायता के लिए एक आया लीला को रख लिया गया.
एक दिन सुबह औफिस जाते हुए सोम बोला, ‘‘शाम को 6 बजे तैयार रहना. आज रुचिर की मैरिज ऐनिवर्सरी है. उस ने तुम्हें ले कर आने को कहा है.’’
यह कह कर वह औफिस चला गया, लेकिन वाणी के लिए वहां जाना मुमकिन नहीं था, क्योंकि कुहू को बुखार था. फिर उसे शुरू से ही सोम के दोस्त पसंद नहीं थे. पीना, डांस करना और आपस में भद्देभद्दे मजाक करना. पीनेपिलाने वाली पार्टियों से तो वह कोसों दूर रहना चाहती थी.
शाम 7 बजे आते ही सोम घुड़क कर बोला, ‘‘तुम्हारे कान बंद रहते हैं क्या? सुबह मैं तुम से कुछ कह कर गया था. अभी तक तुम तैयार क्यों नहीं हुई हो?’’
‘‘मैं नहीं जा पाऊंगी. कुहू को बुखार है.’’
सोम नाराज हो कर पैर पटकता हुआ घर
से चला गया. लेकिन पार्टी में अकेले जाने के कारण सोम दोस्तों से हायहैलो करने के बाद
एक पैग ले कर कोने की एक टेबल पर चुपचाप बैठ गया. उस पर अभी नशे का सुरूर चढ़ा भी नहीं था कि एक सुंदर महिला पर उस की निगाह पड़ी. वह कुछ क्षणों तक उस को अपलक निहारता रह गया.
सोम की निगाहें उस महिला से एक क्षण को मिल गईं तो उस ने एक घूंट में ही बड़ा पैग खाली कर दिया. वह महिला भी अकेली बैठी सोम की ओर देख रही थी. अचानक वह तेजी से उठी और उस के पास आ कर कुरसी पर बैठते हुए बोली, ‘‘हाय हैंडसम, माईसैल्फ नैना.’’
उस की सुंदरता में खोए सोम को सब सपना सा लग रहा था, लेकिन वह भी बोला, ‘‘हैलो, माईसैल्फ सोम.’’
दोनों में दोस्ती होते देर न लगी. सोम उस की सुंदरता पर मर मिटा था, तो नैना सोम की स्मार्टनैस और जवानी पर. उन दोनों ने बेखौफ ड्रिंक और डांस का अच्छी तरह आनंद लिया. फोन नंबर का आदानप्रदान हुआ और शुरू हो गया दोनों का मिलनाजुलना.
सोम सब कुछ भूल कर नैना के प्यार में खो गया. वह मीटिंग और अधिक काम के बहाने घर देर से पहुंचने लगा. दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते बन चुके थे, इसलिए सोम उस के नशे में डूबा रहता. दोनों अकसर साथ में लंच करते, तो कभी पिक्चर, कभी थिएटर, कभी मौल में घूमते.
वाणी को पति के आचरण पर शक होने लगा था. वह कभीकभी उस के फोन काल और एसएमएस चैक करती, परंतु चौकन्ना सोम पत्नी के लिए कोई निशान नहीं छोड़ता था.
एक दिन शाम को अचानक सोम बोला, ‘‘वाणी, मैं दिल्ली जा रहा हूं. वहां न्यूयार्क से एक डैलिगेशन आया है. उन के साथ मेरी मीटिंग है. मु झे वहां 2-3 दिन लगेंगे.’’
वाणी ने पति को शक की नजर से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं सिर्फ धीमी आवाज में बाय कह दिया. बाद में उस ने सोम की सेक्रेटरी से पता लगा लिया कि वह छुट्टी ले कर गया हुआ है, तो उस का शक विश्वास में बदल गया.
इधर सोम प्लेन की सीट पर बैठते ही नैना के ख्वाबों में खो गया. उस ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और वह नैना के सान्निध्य के खूबसूरत एहसास को जी रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बज उठी थी. उधर नैना थी. वह बोली, ‘‘डियर, मेरे लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा है. मेरी फ्लाइट में अभी देर है.’’
सोम ने एहतियातन दोनों की अलगअलग फ्लाइट बुक करवाई थी. वह आने वाले कल के रंगीन सपनों में खोया नैना के साथ बिताने वाले समय की रूपरेखा मन ही मन बना रहा था.
वह दिल्ली पहुंचा ही था कि फिर से नैना का फोन आ गया, ‘‘डियर, तुम कहां तक पहुंचे?’’
‘‘मैं दिल्ली पहुंच गया हूं. जब तुम्हारी फ्लाइट पहुंचेगी मैं एअरपोर्ट पर तुम्हारा इंतजार करता हुआ मिलूंगा.’’
‘‘तुम बहुत अच्छे हो. तुम मु झे यूज कर
के फिर अपनी बीवी के आंचल में तो नहीं लौट जाओगे?’’
‘‘नहीं…’’
अक्षय सभी बच्चों में अलग ही दिखता था. वह खूब शरारत करता. कभी मिट्टी किसी के ऊपर फेंकता, कभी अपने मित्रों के साथ दौड़ लगाता अब वह आता तो था किंतु खेलता नहीं था. कई बार तो शाम तक स्कूल यूनिफौर्म ही पहने होता. दूर से ही खेलते मित्रों को देखता, तो कभी पास बैठा उन सब की मम्मियों को देखता रहता.
अभी परसों शाम की ही बात है. चिरायु ने अपनी दोनों मुट्ठियों में रेत भर कर अक्षय पर उछाल दी. प्रत्युत्तर में अक्षय ने न तो रेत उस पर उछाली न ही उस से पहले की तरह ?ागड़ा किया. किसी परिपक्व व्यक्ति की तरह अपना सिर नीचा किया और रेत ?ाड़ दी अपने नन्हे हाथों से. न जाने क्यों उस का इस तरह अचानक सम?ादार हो जाना तनूजा को हिला गया भीतर तक. मन ही मन उस ने ठान लिया कि वह पता
लगा कर रहेगी कि आखिर इस की मम्मी को हुआ क्या है? क्यों यह 4 वर्ष का बच्चा परिपक्व व्यवहार कर रहा है?
इस की जानकारी के लिए शांति और नमिता सर्वश्रेष्ठ स्रोत थीं. अगली सुबह 6 बजे ही तनूजा नीचे आ गई. बच्चे चिढ़ रहे थे, ‘‘मां, इतनीजल्दी क्यों ले आईं आप हमें? अभी तो पूरे 15 मिनट हैं.’’
‘‘थोड़ा पहले आ गए तो क्या हो गया? देखो, कितनी फ्रैश हवा है इस समय. थोड़ा वाक करो, तुम्हें अच्छा लगेगा.’’
तभी तन्मयी बोली, ‘‘देखो भैया, सनराइज हो रहा है. कितना अच्छा लग रहा है न?’’
‘‘हां तन्मयी. और उधर देखो मून अब भी दिखाई दे रहा है, सन ऐंड मून टुगैदर… अमेजिंग न?’’
तनूजा का ध्यान उन की बातों पर नहीं गया. उस की आंखें तो शांति और नमिता को खोज रही थीं. उस ने बच्चों को गाड़ी में बैठाया और लौट चली. थोड़ी ही दूर बढ़ी थी कि देखा शांति सामने ही खड़ी थीं. उन से 10 कदम ही पीछे थीं नमिता. उन के बच्चे स्कूल बस में बैठ चुके थे.
तनूजा फुरती से उन की ओर बढ़ी और अभिवादन किया, ‘‘हैलो, गुडमौर्निंग शांतिजी.’’
‘‘गुडमौर्निंग, हम तो हर रोज आप को देखते हैं, आप से बात भी करना चाहते हैं पर आप इतना तेज चलती हो कि…’’ शांति ने कहा.
‘‘अगर वाक के दौरान बातें करने लगो तो वाक तो रह ही जाती है,’’ तनूजा ने शीघ्रता से उन की बात के प्रवाह को काट दिया, नहीं तो अनवरत बहता रहता.
नमिता के तेज गंध वाले डिओ से छींकने लगी तनूजा, तो नमिता ने अपने मिठासयुक्त धीमे स्वर में कहा, ‘‘आप को जुकाम हो गया है न?’’
‘‘हां बस हलका सा.’आज उसे भी मंथर गति से वाक करना था उन के साथ. लेकिन किसी के निजी जीवन में ताक?ांक करना उस का स्वभाव नहीं था, इसलिए जो जानना चाहती थी पूछ नहीं पा रही थी. अभी सोच ही रही थी कि कैसे पूछूं कि सामने से अक्षय आता दिखा. उस के पापा उत्तम सिब्बल उस के साथ आ रहे थे और वह सुबक रहा था.
तनूजा से रहा नहीं गया. उस ने सुबकते अक्षय को थपथपा कर पूछा, ‘‘क्या हो गया बेटा, क्यों रो रहे हो?’’ उस की थपकी शायद उत्तम सिब्बल को नागवार गुजरी. अक्षय की बांह पकड़ कर उसे लगभग घसीटते हुए वे बोले, ‘‘चल जल्दीजल्दी, वैन छूट गई तो 2 ?ापड़ दूंगा खींच कर.’’ आग्नेय नेत्रों से वे तनूजा को भी घूर रहे थे.
पास खड़ी शांति ‘च्च, च्च, च्च…’ करती हुई बोली, ‘‘बेचारे… मम्मी तो भाग गई, इस बेचारे को छोड़ गई.’’
‘‘यू मीन कहीं चली गई है?’’ तनूजा व्यग्र थी.
‘‘नहीं जी, भाग गई.’’
तनूजा विस्मित सी खड़ी रह गई, ‘‘भाग गई, कहां…?’’
शांतिजी शांति से बोलीं, ‘‘आप को तो कुछ पता नहीं. बच्चाबच्चा जानता है कि वह बदमाश अर्चना सामने वाले चोपड़ाजी के लड़के के साथ…,’’ फिर अपनी तर्जनी को हवा में एक चक्र की भांति घुमा कर बोलीं, ‘‘सम?ा गईं न आप? ये उस को एसएमएस करती, वह इसको… पता नहीं कहांकहां घूमने जाते थे. घर पर पता चला तो अक्षय के पापा ने बहुत पीटा अर्चना को.’’
नमिता जो अब तक शांत थीं, बोल पड़ीं, ‘‘उन्होंने तो चोपड़ा साहब के घर जा कर उन के बेटे को भी बहुत मारा, गाली दी, तोड़फोड़ की.
फिर अर्चना पता नहीं कहां चली गई और यह बेचारा बच्चा…’’
शांतिजी अपने माथे पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘ये बेचारा तो यहां मां के कुकर्मों की सजा भुगत रहा है.’’
उन के शब्दों के चयन पर तनूजा को घृणा हो आई. वह वहीं खड़ी रह गई. वे दोनों आगे जा चुकी थीं. उसे इस बात पर विश्वास करना कठिन जान पड़ रहा था. अर्चना इतनी सुसंस्कृत… ऐसा कैसे कर सकती है? और चोपड़ाजी का लड़का तो 22-23 वर्ष का ही है. नहींनहीं, ऐसा हो नहीं सकता, सोचतेसोचते सिर भारी हो गया उस का.
गरमी की छुट्टियां चल रही थीं. तनूजा का आजकल सुबह नीचे आना नहीं होता था. तन्मयी और तनिष्क ने स्विमिंग क्लासेज जाना शुरू किया था. सुबह 9.30 बजे जाते और आतेआते 12 बज जाते. थके हुए वे दोनों खापी कर जो सोते तो शाम को ही नींद खुलती उन की. वह भी अकसर उन के पास सो जाती थी. उस दिन वह बहुत देर तक सोती रही तो उस के बेटे तनिष्क ने उसे उठाया. वह उठी तो उसे याद आया कि आज दिव्यांशु की बर्थडे पार्टी में जाना है. सलिल सुबह कह गए थे तैयार रहने को और गिफ्ट भी लाना है. वह फुरती से उठी और तैयार हो कर बाजार चली गई.
10 वर्ष के दिव्यांशु के लिए कोई गिफ्ट तनूजा को सू?ा नहीं रहा था. 3 गिफ्ट शौप्स छान मारी थीं. बस अब एक और देख लेती हूं और वहीं से कुछ न कुछ ले लूंगी, तय किया उस ने. सेल्समैन को गिफ्ट दिखाने को कह वह स्वयं भी रखी हुई चीजें देखने लगी. सेल्समैन ने दर्जनों चीजें दिखाईं किंतु एक न जंची उसे. तभी पिछले काउंटर से एक महिला स्वर उभरा, ‘‘मैडम, आप इधर आइए. यहां कुछ गेम्स ऐसे
हैं, जो इस ऐज ग्रुप के लिए काफी इंटरैस्टिंग और इन्फौर्मेटिव हैं.’’
तनूजा ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक गई. वह अर्चना थी, अक्षय की मम्मी.
‘‘ओह आप, नमस्ते,’’ हाथ जोड़ कर बड़ी नम्रता से उस ने कहा.
‘‘तुम यहां कैसे अर्चना?’’
‘‘ये मेरे अंकल की शौप है. घर पर बैठी बोर हो रही थी, सोचा यहां थोड़ा टाइमपास हो जाएगा, बस इसीलिए चली आई.’’
पिछले कुछ समय से नन्हे अक्षय की उदासी से हो रही घुटन से तनूजा ने उसी क्षण मुक्त होना चाहा, इसलिए वह बोली, ‘‘टाइमपास? तुम यहां टाइमपास कर रही हो और वहां तुम्हारा बच्चा किस हाल में है, जानती हो? छोटा सा बच्चा न हंसता है, न खेलता है, न शरारत करता है. बस चुपचाप सब को देखता रहता है. आखिर बच्चों को जन्म क्यों देती हैं तुम्हारे जैसी औरतें…?’’
बीच में ही बात काटते हुए अर्चना बोली, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, तुम्हारे जैसी औरतों से आप का क्या तात्पर्य है?’’ और तनूजा के कुछ कहने से पहले ही फिर बोली वह, ‘‘मैं आप की रिस्पैक्ट करती हूं, इसीलिए कुछ नहीं कहूंगी… प्लीज आप यहां से चली जाएं. और हां, मेरे बेटे के लिए आप परेशान न हों.’’
‘मेरा बेटा’ सुन कर एक आशा जागी तनूजा के मन में. साथ ही शर्मिंदगी भी हो आई कि आखिर क्या जरूरत थी मु?ो इस सब में पड़ने की?
फिर उस ने गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि एक प्रौढ महिला को अपनी ओर आते देखा. वे उसे हाथ से रुकने का इशारा कर रही थीं. पास आने पर वे बोलीं, ‘‘अर्चना के व्यवहार के लिए मैं आप से माफी मांगती हूं. मैं उस की मां हूं. वह जब से अपने घर से आई है बहुत चिड़चिड़ी हो गई है.’’
मगर नायरा ने नरेश से बात तक करना छोड़ दिया था. उस की तो बस एक ही जिद थी कि उसे अपनी मां से मिलना है. हार कर नरेश ने ही घुटने टेक दिए और बताया कि उस की मां दक्षिण अमेरिका के चिली में रहती है. नायरा के सामने एक बहुत बड़ी समस्या यह थी कि वहां जाने के लिए पैसे भी बहुत लगेंगे… वहां तक पहुंचेगी कैसे? वहां की भी तो यहां से अलग है. लेकिन जब उसे पता चला 12 टूरिस्टों में से एक ‘चिली’ का है तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. जब उस ने उस से बात की और अपनी समस्या से अवगत कराया तो वह नायरा की मदद के लिए तैयार हो गया. उस ने यह भी कहा कि वह नायरा को वहां की थोड़ीबहुत भाषा भी सिखा देगा. 46 साल का जेम्स बहुत ही अच्छा इंसान था. वह नायरा को ‘सिस्टर’ कह कर बुलाता था. जगहजगह घूमना और वहां की युनीक चीजों को अपने कैमरे में कैद करना उस का फैशन था.
सिर पर हाथ रखे बैठी नायरा सोच ही रही थी कि यहां तक तो समस्या सुल?झते दिख रहा है, लेकिन पैसे… वे कहां से आएंगे? बिना पैसे के वह उतनी दूर अपनी मां से मिलने कैसे जाएगी? तभी अपने सामने अपने पापा नरेश को खड़े देख वह उठ खड़ी हुई. उसे लगा नरेश फिर उसे सम?झने आया है कि वह अपनी जिद छोड़ दे. लेकिन नरेश ने उस के हाथों में ब्लैंक चैक पकड़ाते हुए कहा कि वह जितने चाहे पैसे निकल ले. लेकिन वह अपना ध्यान रखे. पहुंचने पर एक फोन जरूर कर दे. बोलते हुए नरेश की आंखों से आंसू गिर पड़े, जिन्हें वह अपनी शर्ट से पोंछने लगा ताकि नायरा देख न ले. लेकिन अगर नायरा को अपने पापा के आंसुओं की इतनी ही चिंता होती तो वह उन्हें छोड़ कर जाती ही क्यों?
उसे तो अब भी यही लग रहा था कि नरेश ने उसे उस की मां से छीन कर उसे अपनी
जिंदगी से बाहर फेंक दिया. उसे लगा रहा था दुनिया के सारे मर्द एकजैसे हैं. नरेश ने कितना सम?झया कि जैसा वह सम?झ रही है वैसा बिलकुल नहीं है और अगर उस की मां को उस से प्यार होता तो क्या वह एक बार फोन कर के उस का हालचाल नहीं पूछती? लेकिन अपनी मां की तरह ही जिद्दी नायरा, 7 समुंदर पार उस से जोली से मिलने निकल पड़ी. नायरा की बहुत सी आदतें जोली से मिलतीजुलती थीं. नायरा को भी अपनी मां की तरह आर्किटैक्चर बनने का शौक था. वह भी शादी में विश्वास नहीं रखती थी. वह भी अपनी मां की तरह देशदुनिया घूमना पसंद करती थी.
अमेरिका रवाना होते समय नरेश ने खुद की और जोली की एक पेयर फोटो नायरा को थमाते हुए कहा था कि यही उस की मां है. नरेश ने फोटो इसलिए दिया ताकि जोली को लगे कि नायरा सच कह रही है. नायरा ने देखा, देखने में वह बहुत कुछ अपनी मां जैसी ही है. रास्ते भर वह अपनी मां से मिलने के खयालों में खोयी रही. उसे तो लग रहा था जैसे वह सपना देख रही है. लेकिन यह सच था कि जेम्स की मदद से वह चिली पहुंच चुकी थी. लेकिन कई दिनों की कोशिशों के बाद भी उसे जोली के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था. फिर एक दिन जेम्स ने उसे बताया कि जोली का पता चल गया. उस की मां यहीं चिली में ही अपना आर्किटेक्चर का फर्म चलाती है. जेम्स ने ही सु?झया कि क्यों न वह आर्किटेक्चर में इंटर्नशिप के बहाने जोली से मिले. नायरा को यह आइडिया बहुत ही अच्छा लगा और उस ने वही किया. अपनी मां को अपने इतने करीब देख कर नायरा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मन तो किया उस का अपनी मां के गले लग जाए और कहे कि वह उस की बेटी है. लेकिन क्या वह किसी अंजान लड़की पर भरोसा करेगी? इसलिए नायरा को अभी कुछ बताना उचित नहीं लगा.
नायरा को तो पता था वह उस की मां है, पर जोली तो नहीं जानती थी कि वह उस की बेटी है. लेकिन फिर भी उसे नायरा का साथ बहुत अच्छा लगता था. अच्छा लगने का एक कारण यह भी था कि नायरा इंडिया से थी. नहीं, उसे नरेश की याद नहीं आती थी. मगर कुछ तो था जो उसे इंडिया से जोड़े हुए था लेकिन क्या, नहीं पता उसे. नायरा यहां एक पीजी में रहती है जो जेम्स की मदद से मिला था. पीजी अच्छा था लेकिन जोली के पूछने पर कह दिया कि वहां उसे अच्छा नहीं लगता है. ताकि जोली उसे अपने घर आ कर रहने को इनवाइट करे और वह जरा नानुकर के बाद मान जाए. यह आइडिया भी उसे जेम्स ने ही दिया था. जेम्स फोन पर उस से उस का हालचाल लेता रहता था. खैर, नायरा अब जोली के साथ उस के घर आ कर ही रहने लगी थी. लेकिन उसे जोली को अपने बारे में बताने का मौका नहीं मिल रहा था.
इंसान शराब तब पीता है जब वह बहुत खुश हो या बहुत ज्यादा दुखी. जोली बहुत
दुखी थी क्योंकि आज उस के एकलौते बेटे का जन्मदिन था और वह अपनी मां से मिलना भी नहीं चाहता था. जोली का अपने पति ग्रेग से सालों पहले तलाक हो चुका था. दोनों के बीच बच्चे की कस्टडी को ले कर ?झगड़ा चला, लेकिन जीत ग्रेग की हुई. उस ने कोर्ट में यह साबित कर दिया कि जोली एक अच्छी मां नहीं और आस्टिन, जोली का बेटा उस का भविष्य उस के साथ सुरक्षित नहीं है. हालांकि, कोर्ट ने उसे अपने बेटे से मिलने की अनुमति दी थी. पर खुद आस्टिन ही अपनी मां से मिलना नहीं चाहता है. उसे उस की मां दुनिया की सब से बुरी मां लगती है. अपने बेटे को याद कर जोली पैग पर पैग लिए जा रही थी और बकबक बोले भी जा रही थी. ज्यादा शराब कहीं जोली को नुकसान न पहुंचा दे, यह सोच कर नायरा ने उसे और शराब पीने से रोका, तो वह कहने लगी कि उस से ज्यादा बदकिस्मत औरत इस दुनिया में और कोई नहीं होगी. कहते हैं इंसान जब नशे में होता है तो सच बोलता है और आज जोली भी सारी सचाई उगलने लगी. शराब के नशे में पुरानी सारी बातें उस ने नायरा के सामने खोल कर रख दीं. यह भी कि वह नरेश के बच्चे की मां बनने वाली थी और उस ने एक बेटी को जन्म दिया था.
‘‘तो अब वह बच्चा कहां है?’’ वह जानना चाहती थी कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि उसे अपनी बेटी को छोड़ कर यहां आना पड़ा.
‘‘बेटी को छोड़ कर. अरे नहीं, मुझे तो वह बच्चा चाहिए ही नहीं था,’’ शराब का एक घूंट भरते हुए वह बोली.
‘‘फुलिश मैन नरेश को लगा मैं उस से प्यार करती हूं और शादी करूंगी. पागल,’’ बोल कर एक ?झटके में ही पूरा ग्लास खाली कर दिया और ठहाके लगा कर आगे बोली, ‘‘वह बच्चा मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी गलती थी जिसे मैं ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया. मैं ने कितनी कोशिश की थी अबौर्शन कराने की पर सारे डाक्टरों ने मना कर दिया. अपने देश आ कर अबौर्शन करा नहीं सकती थी क्योंकि मुझे जेल नहीं जाना था. इसलिए मजबूरन मुझे वहां रहना पड़ा ताकि उस बच्चे को जन्म दे सकूं.’’
‘‘तो वह बच्ची कहां है अब?’’ नायरा ने पूछा.
‘‘कचरे के डब्बे में… मैं उसे कचरे के डब्बे में फेंक आई थी क्योंकि उस की असली जगह वही थी.’’
जोली की बात सुन कर नायरा सन्न रह गई. उस की आंखों से ?झर?झर आंसू बहने लगे.
‘‘मुझे उस बच्चे से कुछ लेनादेना ही नहीं था तो फिर यहां ला कर क्या करती? पता नहीं, पर उसे जरूर लावारिस जानवर खा गए होंगे,’’ बोलते हुए जोली की जबान भी नहीं लड़खड़ाई.
आखिर कोई मां इतनी बेरहम दिल कैसे हो सकती है. नायरा को अपने पापा की याद सताने लगी थी. कहा था उन्होंने जैसे वह अपने पापा के बारे में सोच रही है, बात वह नहीं बल्कि… लेकिन कहां सुन पाई थी वह नरेश की पूरी बात. बीच में ही अपने कान बंद कर लिए थे ताकि कुछ सुन ही न पाए.
जोली की 1-1 बात उसे सूई की तरह चुभ रही थी. नायरा वहां से उठ कर जाने ही लगी कि उस का सिर घूम गया और वह वहीं पर गिर पड़ी. होश आया तो वह अस्पताल में थी. जोली उस के पास बैठी उस का माथा सहला रही थी, पूछ रही थी कि अचानक उसे क्या हो गया. लेकिन नायरा के पास कोई जवाब नहीं था. उसे तो बस अब अपने पापा के पास जाना था. नरेश ने अपनी बेटी की खातिर आज तक शादी नहीं की और इस औरत ने सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखा.
नायरा ने फोन कर अपने बीमार होने की बात जब नरेश को बताई, तो वह पागलों की तरह भागता हुआ यहां पहुंच गया. अचानक वर्षों बाद नरेश को अपने सामने देख कर जोली की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसे अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि नरेश उस के सामने खड़ा है. लेकिन जब भरोसा हुआ और जाना कि नायरा कोई और नहीं, बल्कि उस की वही बेटी है जिसे वह कचरे में फेंक आई थी. बेटी के लिए उस के दिल में प्यार उमड़ पड़ा. कहने लगी, ‘‘मैं मानती हूं कि मु?झ से गलती हुई, बहुत बड़ी गलती हुई. लेकिन मुझे माफ कर दो नरेश. इतनी बड़ी सजा मत दो मुझे. प्लीज, नरेश लौटा दो मेरी बेटी मुझे,’’ जोली नरेश के सामने हाथ जोड़ कर कहने लगी, ‘‘बोलो न नायरा को वह मुझे छोड़ कर न जाए. नायरा मैं तुम्हारी मां हूं मैं ने तुम्हें जन्म दिया है. मेरा हक है तुम पर… और देखो, यह घर, औफिस यहां तक की अपना सारा बैंक बैलेंस भी मैं तुम्हारे नाम कर दूंगी. प्लीज, बेटा, माफ कर दो अपनी मां को. मत जाओ मुझे छोड़ कर,’’ घिघियाते हुए जोली दोनों के सामने हाथ जोड़ने लगी. सब उस की जिंदगी से जा चुके थे. अब उसे नायरा में ही अपना सहारा नजर आ रहा था.
‘‘माफ कर दूं आप को जिस ने मेरे पापा को सिर्फ यूज किया अपने स्वार्थ के लिए. मुझे लगा था पापा गलत है इसलिए इन से लड़?झगड़ मैं यहां आप के पास आ गई थी. लेकिन गलत थी मैं.
हमारे यहां एक कहावत है, ‘पूत भले ही कुपूत बन जाए, पर माता कभी कुमाता
नहीं होती.’ लेकिन आज देख रही हूं कि एक माता भी कुमाता हो सकती है. एक मां अपने बच्चे को मरने के लिए छोड़ सकती है,’’ बोलतेबोलते नायरा का स्वर तेज हो गया…, ‘‘और आप ने सोच भी कैसे लिए कि सबकुछ जानने के बाद भी मैं आप के साथ आ कर रहूंगी? नहीं चाहिए मुझे आप का यह घर, औफिस और बैंक बैलेंस.
‘‘पापा, आप ने सही कहा था, मेरी मां मर चुकी है,’’ कह कर नायरा अपने पापा का हाथ पकड़ कर जाने लगी, लेकिन फिर पलट कर बोली, ‘‘एक बात और… 2 बच्चों को जन्म देने के बाद भी आज तुम बेऔलाद हो और रहोगी क्योंकि तुम इसी लायक हो.’’
अपनी बेटी को जाते वह देखती रह गई क्योंकि उसे रोकने का उसे कोई हक नहीं था. उस के लिए तो उस की बेटी कब की मर चुकी थी.
सोम के प्यार की गहराई समझ सकता हूं मैं. बहुत प्यार करता है वह अपनी मां से, तभी तो मेरे साथ बांट नहीं पाया. पहली बार सोम का मन समझा मैं ने, क्योंकि इस से पहले मुझे यथार्थ का पता नहीं था.
संतान की चाह में मौसी ने सोम को गोद लिया था, अधूरेअधूरे आपस में मिल जाएं तो संपूर्ण होने का सुख पा सकते हैं, यही समझ पा रहा हूं मैं. इन 2 अधूरों में एक अधूरा मैं भी आ मिला था जिस की वजह से जरा सी हलचल हो गई थी.
‘‘अपनापराया वास्तव में हमारे मन की ही समझ और नासमझ होती है अजय. मन जिसे अपना माने वही अपना. अपना होने के लिए खून के रिश्ते की जरूरत नहीं होती. सोम अनाथ था, मेरी गोद खाली थी… मिल कर पूरे हो गए न दोनों. मेरा जीना, मेरा मरना, मेरी विरासत… आज मेरा जो भी है सोम का ही है न. हर जगह सोम का नाम है, लेकिन इस के बावजूद मैं सोम की कैदी तो नहीं हूं न. मुझे जो प्यारा लगेगा, जो मेरे मन को छू लेगा, वह मेरा होगा. मुझे किसी सीमा में बांधना सोम को शोभा नहीं देता.’’
‘‘मां, सच तो यह है कि मैं तो यह सचाई ही नहीं सहन कर पा रहा हूं कि तुम ने मुझे जन्म नहीं दिया. तुम ने भी कभी नहीं बताया था न.’’
‘‘उस से क्या फर्क पड़ गया, जरा सोच ठंडे दिमाग से. अजय का खून मेरे खून से मिल गया. इस की जात भी हमारी जात से मिल गई, तो तुम्हें लगा अब यह तुम्हारी जगह ले लेगा? इतनी असुरक्षा भर गई तुम्हारे मन में.
‘‘अरे, यह बच्चा क्या छीनेगा तेरा. यह भूखानंगा है क्या. इसे पालने वाले हैं इस के पास. भाईबहन हैं इस के. इसे कोई कमी नहीं है, जो यह तेरा सब छीन ले जाएगा, लावारिस नहीं है तुम्हारी तरह.’’
‘‘मैं ने ऐसा नहीं सोचा था, मां.’’
‘‘अगर नहीं सोचा था तो भविष्य में सोचना भी मत. इतनी ही तकलीफ हो रही है तो बेशक चले जाओ अपने घर. शराबी पिता और सौतेली मां हैं वहां. अनपढ़गंवार भाईबहन हैं. तुम भी वैसे ही होते अगर मैं न उठा लाती, आज इतनी बड़ी कंपनी में अधिकारी नहीं होते. सच पता चल गया तो मेरे शुक्रगुजार नहीं हुए तुम, उलटा मुझ पर पहरे बिठाने शुरू कर दिए. बातबात पर ताना देते हो. क्या पाप कर दिया मैं ने? तुम को जमीन से उठा कर गोद में पालापोसा, क्या यही मेरा दोष है?’’
‘‘मौसी, ऐसा क्यों कह रही हैं आप? आप का बेटा है सोम.’’
‘‘मेरा बेटा है तो मेरे मरने का इंतजार तो करे न मेरा बेटा. यह तो चाहता है कि आज ही अपना सब इस के नाम कर दूं. अगर यह मेरी कोख का जाया होता तो क्या तब भी ऐसा ही करता? जानते हो, तुम्हारे घर किस शर्त पर लाया है मुझे कि भविष्य में मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगी. घर के कागज भी तैयार करवा रखे हैं. अगर सचमुच इस से प्यार करती हूं तो सब इस के नाम कर दूं, वरना मुझे छोड़ कर ही चला जाएगा…तुम्हारे मौसा ने समझाया भी था कि किसी रिश्तेदार का ही बच्चा गोद लेना चाहिए. तब भी अपनी गरीब बाई का नवजात बच्चा उठा लिया था मैं ने. सोचा था, गीली मिट्टी को जैसा ढालूंगी, ढल जाएगी. नहीं सोचा था, मेरी शिक्षादीक्षा का यह इनाम मिलेगा मुझे.’’
सोम चुप था और उस की गरदन झुकी थी. मैं भी स्तब्ध था. यह क्याक्या भेद खोलती जा रही हैं मौसी.
‘‘अब मैं इस के साथ घर नहीं जाऊंगी, अजय. आज रात अपने घर रहने दो. सुबह 10 बजे की गाड़ी से मैं इलाहाबाद चली जाऊंगी. यह क्या छोड़ेगा मुझे, मैं ही इसे छोड़ कर जाना चाहती हूं.’’
सोम मौसी के पैर पकड़ कर रोने लगा था.
‘‘मुझे अब तुम पर भरोसा नहीं रहा. रात में गला दबा कर मार डालो तो किसे पता चलेगा कि तुम ने क्या किया. जब से अजय हम से मिलनेजुलने लगा है, तुम्हारे चरित्र का पलपल बदलता नया ही रूप मैं हर रोज देखती हूं…इस बच्चे को मुझ से क्या लालच है. जब भी मिलता है मुझे कुछ दे कर ही जाता है. कभी अपना खून देता है और कभी यह कीमती शाल. बदले में क्या ले जाता है, जरा सा प्यार.’’
नहीं मानी थीं मौसी. सोम चला गया वापस. रात भर मौसी मेरे घर पर रहीं.
‘‘मेरी वजह से आप दोनों में इतनी दूरी चली आई.’’
‘‘सोम ने अपना रंग दिखाया है, अजय. तुम नहीं आते तो कोई और वजह होती लेकिन ऐसा होता जरूर. तुम्हारे मौसाजी कहते थे, ‘मांबाप के खून का असर बच्चे में आता है. मनुष्य के चरित्र की कुछकुछ बुराइयां या अच्छाइयां पीढ़ी दर पीढ़ी सफर करती हैं. सोम के पिता ने शराब पी कर जिस तरह इस की मां को मार डाला था, ऐसा लगता है उसी चरित्र ने सोम में भी अपना अधिकार जमा लिया है. कल इस लड़के ने जिस बदतमीजी से मुझ से बात की, बरसों पुराना इस के पिता का वह रूप मुझे इस में नजर आ रहा था.’’
भर्रा गया था मौसी का स्वर.
सुबह मैं मौसी को इलाहाबाद की गाड़ी में चढ़ा आया. वहां मौसी का मायका है और मौसाजी की विरासत भी.
आफिस में सोम से मिला. क्या कहतासुनता मैं उस से. वह घर की बाई का बच्चा है, इसी शर्म में वह डूबा जा रहा था. कल को सब को पता चला तो आफिस के लोग क्या कहेंगे.
‘‘शर्म ही करनी है तो उस व्यवहार पर करो जो तुम ने अपनी मां के साथ किया. इस सत्य पर कैसी शर्म कि तुम बाई के बच्चे हो.’’
मैं ने समझाना चाहा सोम को. मांबेटा मिल जाएं, ऐसा प्रयास भी किया लेकिन ममता का धागा तो सोम ने खुद ही जला डाला था. मौसी ने सोम से हमेशा के लिए अपना रिश्ता ही तोड़ लिया था.
वास्तव में नाशुक्रा है सोम, जिसे ममता का उपकार ही मानना नहीं आया. धीरेधीरे हमारी दोस्ती बस सिर हिला देने भर तक ही सीमित हो गई. बहुत कम बात होती है अब हम दोनों में.
होली की छुट्टियों में घर गया तो मौसी का रंगरूप चाची में घुलामिला नजर आया मुझे. अगर मेरी भी मां होतीं तो चाची से हट कर क्या होतीं.
‘‘कैसी हो, मां? अब चाची नहीं कहूंगा तुम्हें. मां कहूं न?’’
सदा की तरह चाची मेरे बिना उदास थीं. क्याक्या बना रखा था मेरे लिए. नमकीन मठरी, गुझिया और शक्करपारे.
मेरा चेहरा चूम कर रो पड़ीं चाची.
‘‘क्या फर्क पड़ता है. कुछ भी कह ले. हूं तो मैं तेरी मां ही. इतना सा था जब गोद में आया था.’’
सच कहा चाची ने. क्या फर्क पड़ता है. हम मांबेटा गले मिल कर रो रहे थे और शिखा मां की टांग खींच रही थी.
‘‘मां, कल गाजर का हलवा बनाओगी न. अब तो भैया आ गए हैं.’’
‘‘अरे देखदेख लंगूर को कैसी हूर की परी मिली है.’’
‘‘सच यार, गोरी मेम को बगल में लिए कैसे शान से घूम रहा है. काश…’’
इस से पहले कि बोलने वाले की बात पूरी होती, अखिलेश ने पलट कर उन्हें घूरा तो यह सोच कर कि कहीं पिटाई न हो जाए, वे दोनों वहां से तुरंत खिसक लिए.
‘‘अकी, आई बिलीव दीज पीपल वेयर कमैंटिंग औन अस,’’ कैथरीन के कहने पर अखिलेश बोला, ‘‘नहींनहीं ऐसा कुछ नहीं है. डोंट थिंक अबाउट इट.’’
इस समय दोनों कनाट प्लेस घूम रहे थे. डेढ़ महीने पहले ही उन की शादी हुई थी. इंडिया आए 1 महीना ही हुआ था. शुरूशुरू में तो अखिलेश को बहुत गुस्सा आता था कि आखिर क्यों लोग कैथरीन को उस के साथ देख कमैंट करते हैं. लेकिन अब यह सुनने की आदत सी हो गई थी. उन दोनों को साथ देख कर देखने वाला कैथरीन को आश्चर्य से जरूर देखता था.
अखिलेश को लोगों का इस तरह रिएक्ट करना अजीब नहीं लगता था, क्योंकि उस ने अंतर्जातीय नहीं, बल्कि दूसरे देश की संस्कृति में पलीबढ़ी कैथरीन से विवाह किया था. वह अमेरिका से थी और एकदम दूध जैसी सफेद जबकि अखिलेश सांवला था. संस्कृति, भाषा और रंगरूप में इतना अंतर होने के कारण ऐसे कमैंट्स मिलने स्वाभाविक थे. ऐसे रिश्तों को आसानी से नहीं स्वीकारा जाता है. ऐसे विवाह पर लोगों के मन में अनेक सवाल उठते हैं कि आखिर क्यों इस अंगरेज लड़की ने एक भारतीय से शादी की? देखने में उस के सामने एकदम मामूली लगता है. शायद उस के पैसे के लिए की होगी या फिर उसी में कोई खामी होगी? हो सकता है तलाकशुदा हो या लड़के ने उसे फंसा लिया हो? भारत में कहां ऐडजस्ट कर पाएगी… देखना थोड़े ही दिनों में भाग जाएगी. वहां की लड़कियां बेहद तेज होती हैं. इंडिया में उस का मन लगने से रहा.
अपरिचितों की बात छोड़ दो, घर वालों ने भी उसे अभी तक कहां स्वीकारा है. कैथरीन जितनी देर तक घर में होती है, एक मातम सा छाया रहता है. जबकि वह अपनी तरफ से सब के हिसाब से पूरी तरह से ढलने की कोशिश कर रही है. पर अम्मां, बाबूजी और दोनों भाभियां उस से सीधे मुंह बात तक नहीं करती हैं. कैथरीन के टूटीफूटी हिंदी बोलने का मजाक उड़ाती हैं. हालांकि दोनों भाइयों ने कभी उस से गलत तरीके से बात नहीं की, पर वे भी अकसर कैथरीन को अवाइड ही करने की कोशिश करते हैं.
कैथरीन हालांकि साड़ी भी पहनने लगी है और शाकाहारी खाना ही खाती है, फिर भी अम्मां जबतब कहती रहती हैं कि अंगरेज का क्या भरोसा… कहीं तु झे धोखा न दे दे.
यह सुन कर अखिलेश खून का घूंट पी कर रह जाता. उस में मां से कुछ कहने की हिम्मत नहीं. कैथरीन को ठीक से उन की बातें सम झ नहीं आतीं तो वह उस से पूछती. तब वह हंस कर टाल जाता कि सब कुछ ठीक चल रहा है. घबराओ नहीं… थोड़ा संयम रखो. मु झे यकीन है एक दिन तुम सब का दिल जीत लोगी.
अखिलेश कैथरीन से इतना प्यार करता कि उसे उदास होते नहीं देख सकता था. वह भी तो उस पर जान देती थी. उस की हर बात को ध्यान से सुन कर उस पर अमल करती थी. वह चाहती थी कि घर के सभी लोग उस से बात करें, उसे घर के काम में शामिल करें, लेकिन वे लोग उस से दूरी ही बनाए रखते.
कई बार अखिलेश ने कैथरीन से कहा भी कि वे अलग हो जाते हैं. तब वह कहती, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम अपने परिवार से दूर रहो… मैं जानती हूं कि तुम अपने परिवार से बहुत घुलेमिले हो.’’
तब अखिलेश का मन होता कि वह अम्मां को बताए कि सुन लो. तुम जिस गोरी बहू से चिढ़ती हो, वह क्या सोचती है. दूसरी ओर भाभियां हैं, जो दिनरात भाइयों को अलग हो जाने के लिए उकसाती रहती हैं. जबतब बीमारी का बहाना कर अपने कमरों में चली जाती हैं. उधर कैथरीन हर काम खुशीखुशी करने की कोशिश करती है. वह रैसिपी बुक ला कर नईनई डिशेज बनाती पर उसे कोई सराहना नहीं मिलती. अम्मां ने तो एक बार भी उस के सिर पर ममता का हाथ नहीं फेरा. हां, बाबूजी बेशक थोड़े नरम पड़े हैं और कैथरीन को हिंदी सिखाने की कोशिश करते हैं.
‘‘उधर देखो वह क्या कर रही है,’’ कह कैथरीन ने उस का ध्यान भंग किया.
अब तक वे जनपथ पर आ गए थे. फुटपाथों पर अनेक चीजें बिक रही थीं.
‘‘मैं इन्हें खरीदना चाहती हूं,’’ कह कैथरीन ने 4-5 पोटलीनुमा पर्स उठा लिए और फिर बोली, ‘‘घर में सब को दूंगी.’’
वे वापस जाने के लिए जैसे ही कार में बैठने लगे कि तभी एक पुलिस वाले ने उन्हें रोक लिया कि गाड़ी गलत जगह पार्क की है. कैथरीन उस से बात करने लगी. अंगरेज महिला से बात करते हुए पुलिस वाले की बोलती बंद हो गई. बोला, ‘‘मैडम कोई बात नहीं… इस बार जाओ, अगली बार ध्यान रखना.’’
‘‘कई बार तुम्हारा गोरे होने का मु झे बहुत फायदा मिल जाता है. उस दिन तुम फिल्म के टिकट खरीदने गईं तो विंडो बंद होने पर भी मैनेजर ने तुम्हें टिकट दे दिए. तुम्हारी वजह से भारत में मु झे भी हाई स्टेटस मिलने लगा है. आई एम ऐंजौइंग दिस स्टेटस,’’ अखिलेश हंसते हुए बोला.
मुझे भरोसा है कि तुम दूसरों की तरह बुरा फील नहीं करते वरना कुछ हसबैंड्स को कौंप्लैक्स हो जाता है,’’ कैथरीन ने रात को सोते समय अपना डर प्रकट किया तो अखिलेश ने उसे बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तुम्हें मु झ से ज्यादा रिस्पैक्ट मिल रही है तो अच्छी बात है… आज ही देखो फाइन लगतेलगते बच गया. चाहे रैस्टोरैंट हो या कोई मौल, तुम्हारी वजह से हमें स्पैशल अटैंशन मिलती है. गोरे लोगों को आज भी हिंदुस्तान में मान दिया जाता है. देखा नहीं उस दिन कितने अदब से होटल का मैनेजर तुम्हें ग्रीट कर रहा था मानों तुम्हारे आने से उस के होटल की रौनक बढ़ गई हो.’’
‘‘तुम्हारा मतलब कि मेरी वजह से तुम्हारे कई काम बन जाते हैं… स्पैशल अटैंशन मिलती है?’’ कैथरीन ने हैरानी से पूछा. उसे इस बात की खुशी थी कि उस की वजह से उस के पति को देश में ज्यादा सम्मान मिल रहा है.
उस दिन भी तो ऐसा ही हुआ था. बड़ी भाभी के बेटे को स्कूल में परीक्षा में बैठने नहीं दिया जा रहा था, क्येंकि वह बहुत दिन गैरहाजिर रहा था. तब कैथरीन ही जा कर उन से मिली थी और बात बन गई थी. यहां तक कि कई बार बाबूजी उसे बैंक ले जाते तो काम चुटकियों में हो जाता था.
अखिलेश ने एक गोरी मेम से शादी की है, इसलिए औफिस में भी उस का ओहदा ऊंचा हो गया था. कोई उस से कहता कि उस की भी अंगरेज लड़की से शादी करा दे, तो कोई कहता कि विदेश भेजने का जुगाड़ करा दे. अकसर उन्हें कोई न कोई घर पर खाने के लिए आमंत्रित करता रहता. सब कैथरीन से बातें करने को इच्छुक रहते और सब से ज्यादा आश्चर्य तो उन्हें कैथरीन के व्यवहार पर होता, जो बहुत ही सहज होता. वह सब से घुलनेमिलने की कोशिश करती, जिस से सब को लगता कि वह उन्हीं में से एक है.
धीरेधीरे घर के लोगों का रवैया उस के प्रति कुछ नरम होने लगा था.
अम्मां उस से बात करने लगी थीं. वह भी दिनरात उन की सेवा में लगी रहती. एक बार अखिलेश की चाची आईं तो उन्होंने बहुत कुहराम मचाया कि गोरी बहू घर आ गई है, सब अपवित्र हो गया है, घर में हवन करा कर बहू का धर्म बदलो तभी शुद्धि होगी वरना सब तहसनहस हो जाएगा.
‘‘बेटा अखिलेश यह तूने क्या कर डाला? क्या हमारे देश में लड़कियों की कमी थी? तू विदेश क्या गया… विदेशी मेम के चक्कर में फंस गया,’’ वे अखिलेश से बोलीं.
‘‘चाची, बहुत हुआ,’’ पहली बार अखिलेश ने इस तरह आवाज उठाई थी. कैथरीन को ही नहीं, घर के बाकी सभी लोगों को भी उस के इस तरह रिएक्ट करने पर आश्चर्य हुआ.
‘‘मु झे कैथरीन ने फंसाया नहीं है… हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं… इतना तो मु झ पर विश्वास किया होता आप लोगों ने कि कैथरीन में कोई तो खूबी होगी, जिस की वजह से मैं ने उस से विवाह किया है… सिर्फ उस के गोरे रंग के कारण क्यों इतना बवाल मचाया हुआ है आप ने?’’
अखिलेश की बात सुन कर कैथरीन भी
अड़ गई कि वह इन अंधविश्वासों पर यकीन नहीं करती है.
‘‘धर्म के नाम पर आप यह पाखंड नहीं कर सकती हैं. शादी के बाद हम ने यह तय किया था कि न तो अखिलेश हिंदू है और न मैं कैथोलिक… हम बस इंसान हैं. हम ने तय किया है कि हमारे बच्चे भी किसी धर्म के नाम पर झगड़ा नहीं करेंगे. हवन कराने से मैं और यह घर पवित्र कैसे हो जाएंगे, क्या मैं गंदी रहती हूं?’’ कैथरीन की आवाज में मासूमियत के साथसाथ विरोध भी था.
तभी पैसा कमाने के लालच में वहां पहुंचे पंडित राम शंकर यह सुन भड़क उठे, ‘‘रामराम, इस कलयुग में धर्म कैसे बचेगा? मांसमछली खाने वाले लोगों को घर में रखा जा रहा है और उस पर हवनपूजा करवाने से भी इनकार किया जा रहा है. अम्मांजी, अब मैं इस घर में पैर नहीं रखूंगा,’’ पंडित ने अपना झोला संभालते हुए कहा तो अखिलेश तुरंत बोला, ‘‘पंडितजी अगर आप ऐसा करेंगे तो बहुत मेहरबानी होगी… आप जैसे लोगों से जितना दूर रहा जाए उतना ही अच्छा. धर्म के नाम पर लोगों के घरों में दरारें डालने में आप जैसे पंडित ही अहम भूमिका निभाते हैं.’’
पंडित के जाते ही चाची को लगा कि अब यहां उन की दाल नहीं गलने वाली है. उन्होंने एक बार अपनी जेठानी की ओर देखा, पर वहां से कोई जवाब न आने पर वह बोलीं, ‘‘मेरा क्या जाता है, जो होगा खुद भुगत लेना. मैं तो अच्छा ही करने आई थी. अब मैं यहां एक पल भी नहीं ठहरने वाली.’’
‘‘चाचीजी, हम आप का निरादर नहीं करना चाहते… हम तो केवल यही कह रहे हैं कि हम धर्म से जुड़े किसी भी तरह के पागलपन में साथ नहीं देंगे. हम लोग इस समाज में ऐसे नागरिक बनना चाहते हैं, जो पूरे सोचविचार के साथ निर्णय लेते हैं और जाति या धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहते,’’ कैथरीन ने उन्हें सम झाना चाहा, पर वे बिना कुछ और कहे चली गईं.
परिवार में तनाव न हो, इस वजह से कैथरीन विवाद से दूर ही रहना चाहती थी, पर धर्म के नाम पर होने वाले पाखंडों का विरोध किए बिना न रह सकी. अम्मां ने कुछ कहा तो नहीं, पर वे वहां से अपने कमरे में चली गईं. बाबूजी ने अवश्य उस की ओर प्रशंसा से देखा था.
भाभियों ने मुंह बनाया, ‘‘अब तो इसी की चलेगी घर में… हमें नए तौरतरीके सीखने पड़ेंगे.’’ मगर भाइयों ने उन्हें डांट दिया, ‘‘क्या गलत किया कैथरीन ने?’’
बड़े भैया तो तभी कैथरीन के कायल हो गए थे जब उस ने उन के बिजनैस में उन्हें सही राय दी थी और अमेरिका में भी उन के बिजनैस का रास्ता खोल दिया था.
उस दिन कैथरीन सुबह से देख रही थी कि अम्मां कुछ कमजोरी महसूस कर रही हैं. पिछले दिनों में उन्होंने मठरियां, पापड़ और न जाने क्याक्या चीजें बना डाली थीं, जिस से वे थक गई थीं. जोड़ों का दर्द सर्दियों में वैसे भी ज्यादा परेशान करता है. ऊपर से डायबिटीज की मरीज भी थीं. कैथरीन ने उन्हें बिस्तर पर जा कर लिटा दिया. फिर खुद उन के लिए सूप बनाया. फिर डाक्टर को दिखाने ले गई तो पता चला कि कोलैस्ट्रौल बढ़ गया है. उस के बाद तो मां का पूरापूरा खयाल रखने लगी. भाभियां कहतीं कि चमचागीरी कर रही है. पर वह कहां परवाह करने वाली थी.
एक दिन बीपी बढ़ जाने से अम्मां चक्कर खा कर गिर गईं तो बड़ी भाभी देवरानी से बोलीं, ‘‘लो, बढ़ गया काम. मैं तो सोच रही थी कि कुछ दिनों के लिए मायके हो आऊं पर अब सब चौपट हो गया. अम्मां को भी अभी बीमार पड़ना था. अब करो इन की सेवाटहल.’’
छोटी भाभी भी मुंह बनाते हुए बोली, ‘‘सच, इतने दिनों से ये बाहर घूमने जाने का
प्रोग्राम बना रहे थे… अब तो लगता है टिकट वापस करने पड़ेंगे.’’
मगर उन्हें क्या पता था कि कैथरीन ही नहीं, अम्मां ने भी उन की बातें सुन ली हैं. अम्मां को डाक्टर ने पूरा आराम करने की हिदायत दी थी, क्योंकि उन्हें हलका सा हार्टअटैक भी आ चुका था. भाभियों ने घर में अम्मां के लिए नर्स रखने की सलाह दी तो कैथरीन अड़ गई.
‘‘नर्स रखने की क्या जरूरत है…मैं हूं न… और इतना परेशान होने की जरूरत नहीं… वे जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’
उस के बाद कैथरीन ने अम्मां की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. डाक्टर से खुद बात करती, चैकअप कराने उन्हें खुद अस्पताल ले जाती. उन की बीमारी से संबंधित जानकारी इंटरनैट से हासिल कर उस पर अमल करती. उन की डाइट से ले कर उन के नहाने और दवा समय पर देने का खयाल रखती. दोनों भाभियों ने तो जैसे राहत की सांस ली थी. बड़ी भाभी तो इस बीच मायके भी रह आई थीं. अम्मां सब देखतीं, पर कहतीं कुछ नहीं. इसी कैथरीन का कितना अपमान किया था उन्होंने… मन ही मन वे उसे ढेरों आशीष दे डालतीं.
अम्मां कैथरीन की सेवा से ठीक होने लगी थीं, पर अचानक एक रात उन्हें फिर दिल का दौरा पड़ा और उन की मृत्यु हो गई. कैथरीन अवाक रह गई. उसे लगा कि उसी की सेवा में कुछ कमी रह गई होगी, पर अखिलेश और बाबूजी ने उसे संभाला. खबर सुनते ही चाची दौड़ी आईं और सलाह दी कि गोदान कराया जाए और पूरे कर्मकांड के साथ दाहसंस्कार किया जाए. फिर धीमे स्वर में बड़ी बहू से बोलीं, ‘‘यह सब इस गोरी बहू के घर में पैर पड़ने का नतीजा है वरना क्या अभी दीदी की जाने की उम्र थी? अभी भी झाड़फूंक करा लो… और घर में गंगाजल छिड़को.’’
कैथरीन यह कतई नहीं चाहती थी, लेकिन चाचा पंडित को घर ले आए थे. गोदान कराने पर भी वे जोर दे रहे थे ताकि अम्मां की आत्मा को शांति मिल सके. इस बात पर अखिलेश और कैथरीन के साथ उन का बहुत झगड़ा हुआ. बाबूजी एकदम शांत थे. कैथरीन ने किस तरह अखिलेश की मां की सेवा की थी, उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा था. जमा भीड़ अपनीअपनी राय दे रही थी और कैथरीन अम्मां के शव के सामने बैठी रो रही थी. इस समय भी ऐसा झगड़ा उसे दुखी कर रहा था.
तभी अम्मां की बहन हाथ में एक कागज लिए दौड़ीदौड़ी आई, बोली, ‘‘देखो, मु झे दीदी की अलमारी से क्या मिला है. दीदी को शायद अपनी मौत का अहसास हो गया था. करीब
10 दिन पहले लिखा था उन्होंने शायद यह कागज… लिखा है कि मेरे मरने के बाद कैथरीन जैसा कहे, वैसा ही करना. मैं ने उसे गलत सम झा, यह मेरी भूल थी… सच में वह मेरी बाकी दोनों बहुओं से अधिक सम झदार है. जितना प्यार और सम्मान उस ने मु झे इन कुछ महीनों में दिया, वह मेरी दोनों बहुओं ने 10 सालों में भी नहीं दिया. उन्होंने हमेशा एक बो झ सम झ मेरा काम किया, पर कैथरीन ने दिल से मेरी सेवा की. उस की तर्कसंगत बातें कड़वी बेशक लगें, पर वह जो भी कहती है, वह सही होता है. इसलिए वह जिस तरह से मेरा दाहसंस्कार करना चाहे, उसे करने दिया जाए. मेरी गोरी बहू को मेरा ढेरों आशीर्वाद.’’
कैथरीन ने आगे बढ़ कर वह कागज अपने हाथों में ले लिया और बेतहाशा उसे चूमने लगी मानों अम्मां के हाथों को चूम रही हो. उस के आंसू लगातार अम्मां के शव को भिगो रहे थे.