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अक्षय सभी बच्चों में अलग ही दिखता था. वह खूब शरारत करता. कभी मिट्टी किसी के ऊपर फेंकता, कभी अपने मित्रों के साथ दौड़ लगाता अब वह आता तो था किंतु खेलता नहीं था. कई बार तो शाम तक स्कूल यूनिफौर्म ही पहने होता. दूर से ही खेलते मित्रों को देखता, तो कभी पास बैठा उन सब की मम्मियों को देखता रहता.

अभी परसों शाम की ही बात है. चिरायु ने अपनी दोनों मुट्ठियों में रेत भर कर अक्षय पर उछाल दी. प्रत्युत्तर में अक्षय ने न तो रेत उस पर उछाली न ही उस से पहले की तरह ?ागड़ा किया. किसी परिपक्व व्यक्ति की तरह अपना सिर नीचा किया और रेत ?ाड़ दी अपने नन्हे हाथों से. न जाने क्यों उस का इस तरह अचानक सम?ादार हो जाना तनूजा को हिला गया भीतर तक. मन ही मन उस ने ठान लिया कि वह पता
लगा कर रहेगी कि आखिर इस की मम्मी को हुआ क्या है? क्यों यह 4 वर्ष का बच्चा परिपक्व व्यवहार कर रहा है?

इस की जानकारी के लिए शांति और नमिता सर्वश्रेष्ठ स्रोत थीं. अगली सुबह 6 बजे ही तनूजा नीचे आ गई. बच्चे चिढ़ रहे थे, ‘‘मां, इतनीजल्दी क्यों ले आईं आप हमें? अभी तो पूरे 15 मिनट हैं.’’
‘‘थोड़ा पहले आ गए तो क्या हो गया? देखो, कितनी फ्रैश हवा है इस समय. थोड़ा वाक करो, तुम्हें अच्छा लगेगा.’’

तभी तन्मयी बोली, ‘‘देखो भैया, सनराइज हो रहा है. कितना अच्छा लग रहा है न?’’
‘‘हां तन्मयी. और उधर देखो मून अब भी दिखाई दे रहा है, सन ऐंड मून टुगैदर... अमेजिंग न?’’
तनूजा का ध्यान उन की बातों पर नहीं गया. उस की आंखें तो शांति और नमिता को खोज रही थीं. उस ने बच्चों को गाड़ी में बैठाया और लौट चली. थोड़ी ही दूर बढ़ी थी कि देखा शांति सामने ही खड़ी थीं. उन से 10 कदम ही पीछे थीं नमिता. उन के बच्चे स्कूल बस में बैठ चुके थे.

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