वादियों का प्यार : जब दो प्यार करनेवालों के बीच बनी शक की दीवार

साकेत से विवाह कर के कितनी खुश थी मैं, तभी एक शक की दीवार हमारे बीच आ खड़ी हुई और शिमला की वादियों में पनपा प्यार किन्हीं और वादियों में खोता दिखाई देने लगा.

नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.

3 वर्षों पहले ही तो मैं साकेत के साथ शिमला आई थी. तब इस गाड़ी में बैठ कर शिमला पहुंचने तक की बात ही कुछ और थी. जीवन की नई डगर पर अपने मनचाहे मीत के साथ ऐसी सुखद यात्रा का आनंद ही और था.

पहाडि़यां काट कर बनाई गई सुरंगों के अंदर से जब गाड़ी निकलती थी तब कितना मजा आता था. पर अब ये अंधेरी सुरंगें लड़कियों की चीखों से गूंज रही हैं और मैं अपने जीवन की काली व अंधेरी सुरंग से निकल कर जल्द से जल्द रोशनी तलाश करने को बेताब हूं. मेरा जीवन भी तो इन सुरंगों जैसा ही है- काला और अंधकारमय.

तभी किसी लड़की ने पहाड़ी के ऊपर उगे कैक्टस को छूना चाहा तो उस की चीख निकल गई. साथ आई हुई एनसीसी टीचर निर्मला उसे फटकारने लगीं तो मैं अपने वर्तमान में लौटने का प्रयत्न करने लगी.

तभी सूरज बादलों में छिप गया और हरीभरी खाइयां व पहाड़ और भी सुंदर दिखने लगे. सुहाना मौसम लड़कियों का मन जरूर मोह रहा होगा पर मुझे तो एक तीखी चुभन ही दे रहा था क्योंकि इस मौसम को देख कर साकेत के साथ बिताए हुए लमहे मुझे रहरह कर याद आ रहे थे.

सोलन तक पहुंचतेपहुंचते लड़कियां हर स्टेशन पर सामान लेले कर खातीपीती रहीं, लेकिन मुझे मानो भूख ही नहीं थी. निर्मला के बारबार टोकने के बावजूद मैं अपने में ही खोई हुई

थी उन 20 दिनों की याद में जो मैं

ने विवाहित रह कर साकेत के साथ गुजारे थे.

तारा के बाद 103 नंबर की सुरंग पार कर रुकतीचलती हमारी गाड़ी ने शिमला के स्टेशन पर रुक कर सांस ली तो एक बार मैं फिर सिहर उठी. वही स्टेशन था, वही ऊंचीऊंची पहाडि़यां, वही गहरी घाटियां. बस, एक साकेत ही तो नहीं था. बाकी सबकुछ वैसा का वैसा था.

लड़कियों को साथ ले कर शिमला आने का मेरा बिलकुल मन नहीं था, लेकिन प्रिंसिपल ने कहा था, ‘एनसीसी की अध्यापिका के साथ एक अन्य अध्यापिका का होना बहुत जरूरी है. अन्य सभी अध्यापिकाओं की अपनीअपनी घरेलू समस्याएं हैं और तुम उन सब से मुक्त हो, इसलिए तुम्हीं चली जाओ.’

और मुझे निर्मला के साथ लड़कियों के एनसीसी कैंप में भाग लेने के लिए आना पड़ा. पिं्रसिपल बेचारी को क्या पता कि मेरी घरेलू समस्याएं अन्य अध्यापिकाओं से अधिक गूढ़ और गहरी हैं पर खैर…

लड़कियां पूर्व निश्चित स्थान पर पहुंच कर टैंट में अपनेअपने बिस्तर बिछा रही थीं. मैं ने और निर्मला ने

भी दूसरे टैंट में अपने बिस्तर बिछा लिए. खानेपीने के बाद मैं बिस्तर पर

जा लेटी.

थकान न तो लड़कियों को महसूस हो रही थी और न निर्मला को. वह उन सब को ले कर आसपास की सैर को निकल गई तो मैं अधलेटी सी हो कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी.

यद्यपि हम लोग शिमला के बिलकुल बीच में नहीं ठहरे थे और हमारा कैंप भी शिमला की भीड़भाड़ से काफी दूर था फिर भी यहां आ कर मैं एक अव्यक्त बेचैनी महसूस कर रही थी.

मेरा किसी काम को करने का मन नहीं कर रहा था. मैं सिर्फ पत्रिका के पन्ने पलट रही थी, उस में लिखे अक्षर मुझे धुंधले से लग रहे थे. पता नहीं कब उन धुंधले हो रहे अक्षरों में कुछ सजीव आकृतियां आ बैठीं और इस के साथ ही मैं तेजी से अपने जीवन के पन्नों को भी पलटने लगी…

वह दिन कितना गहमागहमी से भरा था. मेरी बड़ी बहन की सगाई होने वाली थी. मेरे होने वाले जीजाजी आज उस को अंगूठी पहनाने वाले थे. सभी तरफ एक उल्लास सा छाया हुआ था. पापा अतिथियों के स्वागतसत्कार के इंतजाम में बेहद व्यस्त थे.

सब अपेक्षित अतिथि आए. उस में मेरे जीजाजी के एक दोस्त भी थे.

जीजाजी ने दीदी के हाथ में अंगूठी पहना दी, उस के बाद खानेपीने का दौर चलता रहा. लेकिन एक बात पर मैं ने ध्यान दिया कि जीजाजी के उस

दोस्त की निगाहें लगातार मुझ पर ही टिकी रहीं.

यदि कोई और होता तो इस हरकत को अशोभनीय कहता, किंतु पता नहीं क्यों उन महाशय की निगाहें मुझे बुरी नहीं लगीं और मुझ में एक अजीब सी मीठी सिहरन भरने लगी. बातचीत में पता चला कि उन का नाम साकेत है और उन का स्वयं का व्यापार है.

सगाई के बाद पिक्चर देखने का कार्यक्रम बना. जीजाजी, दीदी, साकेत और मैं सभी इकट्ठे पिक्चर देखने गए. साकेत ने बातोंबातों में बताया, ‘तुम्हारे जीजाजी हमारे शहर में 5 वर्षों पहले आए थे. हम दोनों का घर पासपास था, इसलिए आपस में कभीकभार बातचीत हो जाती थी पर जब उन का तबादला मेरठ हो गया तो हम लोगों की बिलकुल मुलाकात न

हो पाई.

‘मैं अपने काम से कल मेरठ आया था तो ये अचानक मिल गए और जबरदस्ती यहां घसीट लाए. कहो, है न इत्तफाक? न मैं मेरठ आता, न यहां आता और न आप लोगों से मुलाकात होती,’ कह कर साकेत ठठा कर हंस दिए तो मैं गुदगुदा उठी.

सगाई के दूसरे दिन शाम को सब लोग चले गए, लेकिन पता नहीं साकेत मुझ पर कैसी छाप छोड़ गए कि मैं दीवानी सी हो उठी.

घर में दीदी की शादी की तैयारियां हो रही थीं पर मैं अपने में ही खोई हुई थी. एक महीने बाद ही दीदी की शादी हो गई पर बरात में साकेत नहीं आए. मैं ने बातोंबातों में जीजाजी से साकेत का मोबाइल नंबर ले लिया और शादी की धूमधाम से फुरसत पाते ही

मैसेज किया.

साकेत का रिप्लाई आ गया. व्यापार की व्यस्तता की बात कह कर उन्होंने माफी मांगी थी.

और उस के बाद हम दोनों में मैसेज का सिलसिला चलता रहा. मैं तब बीएड कर चुकी थी और कहीं नौकरी की तलाश में थी, क्योंकि पापा आगे पढ़ाने को राजी नहीं थे. मैसेज के रूप में खाली वक्त गुजारने का बड़ा ही मोहक तरीका मुझे मिल गया था.

साकेत के प्रणयनिवेदन शुरू हो गए थे और मैं भी चाहती थी कि हमारा विवाह हो  जाए पर मम्मीपापा से खुद यह बात कहने में शर्म आती थी. तभी अचानक एक दिन साकेत का मैसेज मेरे मोबाइल पर मेरी अनुपस्थिति में आ गया. मैं मोबाइल घर पर छोड़ मार्केट चली गई, पापा ने मैसेज पढ़ लिया.

मेरे लौटने पर घर का नकशा ही बदला हुआ सा लगा. मम्मीपापा दोनों ही बहुत गुस्से में थे और मेरी इस हरकत की सफाई मांग रहे थे.

लेकिन मैं ने भी उचित अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और अपने दिल की बात पापा को बता दी. पहले तो पापा भुनभुनाते रहे, फिर बोले, ‘उस से कहो कि अगले इतवार को हम से आ कर मिले.’

और जब साकेत अगले इतवार को आए तो पापा ने न जाने क्यों उन्हें जल्दी ही पसंद कर लिया. शायद बदनामी फैलने से पहले ही वे मेरा विवाह कर देना चाहते थे. जब साकेत भी विवाह के लिए राजी हो गए तो पापा ने उसी दिन मिठाई का डब्बा और कुछ रुपए दे कर हमारी बात पक्की कर दी. साकेत इस सारी कार्यवाही में पता नहीं क्यों बहुत चुप से रहे, जाते समय बोले, ‘अब शादी अगले महीने ही तय कर दीजिए. और हां, बरात में हम ज्यादा लोग लाने के हक में नहीं हैं, सिर्फ 5 जने आएंगे. आप किसी तकल्लुफ और फिक्र में

न पड़ें.’

और 1 महीने बाद ही मेरी शादी साकेत से हो गई. सिर्फ 5 लोगों का बरात में आना हम सब के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श था.

किंतु शादी के बाद जब मैं ससुराल पहुंची तो मुंहदिखाई के वक्त एक उड़ता सा व्यंग्य मेरे कानों में पड़ा, ‘भई, समय हो तो साकेत जैसा, पहली भी कम न थी लेकिन यह तो बहुत ही सुंदर मिली है.’

मुझे समझ नहीं आया कि इस का मतलब क्या है? जल्दी ही सास ने आनेजाने वालों को विदा किया तो मैं उलझन में डूबनेउतरने लगी.

कहीं ऐसा तो नहीं कि साकेत ने पहले कोई लड़की पसंद कर के उस से सगाई कर ली हो और फिर तोड़ दी हो या फिर प्यार किसी से किया हो और शादी मुझ से कर ली हो? आखिर हम ने साकेत के बारे में ज्यादा जांचपड़ताल की ही कहां है. जीजाजी भी उस के काफी वक्त बाद मिले थे. कहीं तो कुछ गड़बड़ है. मुझे पता लगाना ही पड़ेगा.

पता नहीं इसी उधेड़बुन में मैं कब तक खोई रही और फिर यह सोच कर शांत हो गई कि जो कुछ भी होगा, साकेत से पूछ लूंगी.

किंतु रात को अकेले होते ही साकेत से जब मैं ने यह बात पूछनी चाही तो साकेत मुझे बाहों में भर कर बोले, ‘देखो, कल रात कालका मेल से शिमला जाने के टिकट ले आया हूं. अब वहां सिर्फ तुम होगी और मैं, ढेरों बातें करेंगे.’ और भी कई प्यारभरी बातें कर मेरे निखरे रूप का काव्यात्मक वर्णन कर के उन्होंने बात को उड़ा दिया.

मैं ने भी उन उन्मादित क्षणों में यह सोच कर विचारों से मुक्ति पा ली कि ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि प्यार किसी और से किया होगा पर विवाह तो मुझ से हो गया है. और मैं थकान से बोझिल साकेत की बांहों में कब सो गई, मुझे पता ही न चला.

दूसरे दिन शिमला जाने की तैयारियां चलती रहीं. तैयारियां करते हुए कई बार वही सवाल मन में उठा लेकिन हर बार कोई न कोई बात ऐसी हो जाती कि मैं साकेत से पूछतेपूछते रह जाती. रात को कालका मेल से रिजर्व कूपे में हम दोनों ही थे. प्यारभरी बातें करतेकरते कब कालका पहुंच गए, हमें पता ही न चला. सुबह 7 बजे टौय ट्रेन से शिमला पहुंचने के लिए उस गाड़ी में जा बैठे.

घुमावदार पटरियों, पहाड़ों और सुरंगों के बीच से होती हुई हमारी गाड़ी बढ़ी जा रही थी और मैं साकेत के हाथ पर हाथ धरे आने वाले कल की सुंदर योजनाएं बना रही थी.

मैं बीचबीच में देखती कि साकेत कुछ खोए हुए से हैं तो उन्हें खाइयों और पहाड़ों पर उगे कैक्टस दिखाती और सुरंग आने पर चीख कर उन के गले लग जाती.

खैर, किसी तरह शिमला भी आ गया. पहाड़ों की हरियाली और कोहरे ने मन मोह लिया था. स्टेशन से निकल कर हम मरीना होटल में ठहरे.

कुछ देर आराम कर के चाय आदि पी कर हम माल रोड की सैर को निकल पड़े.

साकेत सैर करतेकरते इतनी बातें करते कि ऊंची चढ़ाई हमें महसूस ही न होती. माल रोड की चमकदमक देख कर और खाना खा कर हम अपने होटल लौट आए. लौटते हुए काफी रात हो गई थी व पहाड़ों की ऊंचाईनिचाई पर बसे होटलों व घरों की बत्तियां अंधेरे में तारों की झिलमिलाहट का भ्रम पैदा कर रही थीं. दूसरे दिन से घूमनेफिरने का यही क्रम रहने लगा. इधरउधर की बातें करतेकरते हाथों में हाथ दिए हम कभी रिज, कभी माल रोड, कभी लोअर बाजार और कभी लक्कड़ बाजार घूम आते.

दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए तो साकेत हमेशा टैक्सी ले लेते. संकरी होती नीचे की खाई देख कर हम सिहर जाते. हर मोड़ काटने से पहले हमें डर लगता पर फिर प्रकृति की इन अजीब छटाओं को देखने में मग्न हो जाते.

इस प्रकार हम ने वाइल्डफ्लावर हौल, मशोबरा, फागू, चैल, कुफरी, नालडेरा, नारकंडा और जाखू की पहाड़ी सभी देख डाले.

हर जगह ढेरों फोटो खिंचवाते. साकेत को फोटोग्राफी का बहुत शौक था. हम ने वहां की स्थानीय पोशाकें पहन कर ढेरों फोटो खिंचवाईं. मशोबरा के संकरे होते जंगल की पगडंडियों पर चलतेचलते साकेत कोई ऐसी बात कह देते कि मैं खिलखिला कर हंस पड़ती पर आसपास के लोगों के देखने पर

हम अचानक अपने में लौट कर चुप

हो जाते.

नारकंडा से हिमालय की चोटियां और ग्लेशियर देखदेख कर प्रकृति के इस सौंदर्य से और उन्मादित हो जाते.

इस प्रकार हर जगह घूम कर और माल रोड से खापी कर हम अपने होटल लौटने तक इतने थक जाते कि दूसरे दिन सूरज उगने पर ही उठते.

इस तरह घूमतेघूमते कब 10 दिन गुजर गए, हमें पता ही न चला. जब हम लौट कर वापस दिल्ली पहुंचे तो शिमला की मस्ती में डूबे हुए थे.

साकेत अब अपनी वर्कशौप जाने लगे थे. मैं भी रोज दिन का काम कराने के लिए रसोई में जाने लगी.

एक दिन चुपचाप मैं अपने कमरे में

खिड़की पर बैठी थी कि साकेत

आए. मैं अभी कमरे में उन के आने का इंतजार ही कर रही थी कि मेरी सासूजी की आवाज आई, ‘साकेत, कल काम पर मत जाना, तुम्हारी तारीख है.’ और साकेत का जवाब भी फुसफुसाता सा आया, ‘हांहां, मुझे पता है पर धीरे बोलो.’

उन लोगों की बातचीत से मुझे कुछ शक सा हुआ. एक बार आगे भी मन में यह बात आई थी लेकिन साकेत ने टाल दिया था. मुझे खुद पर आश्चर्य हुआ, पहले दिन जिस बात को साकेत ने प्यार से टाल दिया था उसे मैं शिमला के मस्त वातावरण में पूछना ही भूल गई थी. खैर, आज जरूर पूछ कर रहूंगी. और जब साकेत कमरे में आए तो मैं ने पूछा, ‘कल किस बात की तारीख है?’

साकेत सहसा भड़क से उठे, फिर घूरते हुए बोले, ‘हर बात में टांग अड़ाने को तुम्हें किस ने कह दिया है? होगी कोई तारीख, व्यापार में ढेरों बातें होती हैं. तुम्हें इन से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. और हां, कान खोल कर सुन लो, आसपड़ोस में भी ज्यादा आनेजाने की जरूरत नहीं. यहां की सब औरतें जाहिल हैं. किसी का बसा घर देख नहीं सकतीं. तुम इन के मुंह मत लगना.’ यह कह कर साकेत बाहर चले गए.

मैं जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गई. एक तो पहली बार डांट पड़ी थी, ऊपर से किसी से मिलनेजुलने की मनाही कर दी गई. मुझे लगा कि दाल में अवश्य ही कुछ काला है. और वह खास बात जानने के लिए मैं एड़ीचोटी का जोर लगाने के लिए तैयार हो गई.

दूसरे दिन सास कहीं कीर्तन में गई थीं और साकेत भी घर पर नहीं थे. काम वाली महरी आई. मैं उस से कुछ पूछने की सोच ही रही थी कि वह बोली, ‘मेमसाहब, आप से पहले वाली मेमसाहब की साहबजी से क्या खटरपटर हो गई थी कि जो वे चली गईं, कुछ पता है आप को?’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसकने लगी. कुछ रुक कर वह धीमी आवाज में मुझे समझाती हुई सी बोली, ‘साहब की एक शादी पहले हो चुकी है. अब उस से कुछ मुकदमेबाजी चल रही है तलाक के लिए.’ सुन कर मेरा सिर चकरा गया.

?सगाई और शादी के समय साकेत का खोयाखोया रहना, सगाई के लिए मांबाप तक को न लाना और शादी में सिर्फ

5 आदमियों को बरात में लाना, अब मेरी समझ में आ गया था. पापा खुद सगाई के बाद आ कर घरबार देख गए थे. जा कर बोले थे, ‘भई, अपनी सुनीता का समय बलवान है. अकेला लड़का है, कोई बहनभाई नहीं है और पैसा बहुत है. राज करेगी यह.’

उन को भी तब इस बात का क्या गुमान था कि श्रीमान एक शादी पहले ही रचाए हुए हैं.

जीजाजी भी तब यह कह कर शांत हो गए थे, ‘लड़का मेरा जानादेखा है पर पिछले 5 वर्षों से मेरी इस से मुलाकात नहीं हुई, इसलिए मैं इस से ज्यादा क्या बता सकता हूं.’

इन्हीं विचारों में मैं न जाने कब तक खोई रही और गुस्से में भुनभुनाती रही कि वक्त का पता ही न चला. अपने संजोए महल मुझे धराशायी होते लगे. साकेत से मुझे नफरत सी होने लगी.

क्या इसी को प्यार कहते हैं? प्यार की पुकार लगातेलगाते मुझे कहां तक घसीट लिया और इतनी बड़ी बात मुझ से छिपाई. यदि तलाक मिल जाता तो शादी भी कर लेते पर अभी तो यह कानूनन जुर्म था. तो क्या साकेत इतना गिर गए हैं?

और मैं ने अचानक निश्चय कर लिया कि मैं अभी इसी वक्त अपने मायके चली जाऊंगी. साकेत से मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए. इतना बड़ा धोखा मैं कैसे बरदाश्त कर सकती थी? और मैं दोपहर को ही बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने मायके के लिए चल पड़ी. आते समय एक नोट जल्दी में गुस्से में लिख कर अपने तकिए के नीचे छोड़ आई थी :

‘मैं जा रही हूं. वजह तुम खुद जानते हो. मुझे धोखे में रख कर तुम सुख चाहते थे पर यह नामुमकिन है. अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करते तुम को शर्म नहीं आई? क्या मालूम और कितनी लड़कियां ऐसे फांस चुके हो. मुझे तुम से नफरत है. मिलने की कोशिश मत करना.          -सुनीता’

घर आ कर मम्मीपापा को मैं ने यह सब बताया तो उन्होंने सिर धुन लिया. पापा गुस्से में बोले, ‘उस की यह हिम्मत, इतना बड़ा जुर्म और जबान तक न हिलाई. अब मैं भी उसे जेल भिजवा कर रहूंगा.’

मैं यह सब सुन कर जड़ सी हो गई. यद्यपि मैं साकेत को जेल भिजवाना नहीं चाहती थी पर पापा मुकदमा करने पर उतारू थे.

मेरी समझ को तो जैसे लकवा मार गया था और पापा ने कुछ दिनों बाद ही साकेत पर इस जुर्म के लिए मुकदमा ठोंक दिया. मैं भी पापा के हर इशारे पर काम करती रही और साकेत को दूसरा विवाह करने के अपराध में 3 वर्षों की सजा हो गई.

मेरे सासससुर ने साकेत को बचाने के लिए बहुत हाथपैर मारे, पर सब बेकार.

इस फैसले के बाद मैं गुमसुम सी रहने लगी. कोर्ट में आए हुए साकेत की उखड़ीउखड़ी शक्ल याद आती तो मन भर आता, न जाने किन निगाहों से एकदो बार उस ने मुझे देखा कि घर आने पर मैं बेचैन सी रही. न ठीक से खाना खाया गया और न नींद आई.

साकेत के साथ बिताया, हुआ हर पल मुझे याद आता. क्या सोचा था और क्या हो गया.

इन सब उलझनों से मुक्ति पाने के लिए मैं ने स्थानीय माध्यमिक विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली.

दिन गुजरते गए और अब स्कूल की तरफ से ही शिमला आ कर मुझे पिछली यादें पागल बनाए दे रही थीं.

बाहर लड़कियों के खिलखिलाने के स्वर गूंज रहे थे. मैं अचानक वर्तमान में लौट आई. निर्मला जब मेरे करीब आई तो वह हंसहंस कर ऊंचीनीची पहाडि़यों से हो कर आने की और लड़कियों की बातें सुनाती रही और मैं निस्पंद सी ही पड़ी रही.

दूसरे दिन से एनसीसी का काम जोरों से शुरू हो गया. लड़कियां सुबह होते ही चहलपहल शुरू कर देतीं और रात तक चुप न बैठतीं.

एक दिन लड़कियों की जिद पर उन्हें बस में मशोबरा, फागू, कुफरी और नालडेरा वगैरह घुमाने ले जाया गया. हर जगह मैं साकेत की ही याद करती रही, उस के साथ जिया हरपल मुझे पागल बनाए दे रहा था.

हमारे कैंप के दिन पूरे हो गए थे. आखिरी दिन हम लोग लड़कियों को ले कर माल रोड और रिज की सैर को गए.

मैं पुरानी यादों में खोई हुई हर चीज को घूर रही थी कि सामने भीड़ में एक जानापहचाना सा चेहरा दिखा. बिखरे बाल, सूजी आंखें, बढ़ी हुई दाढ़ी पर इस सब के बावजूद वह चेहरा मैं कभी भूल सकती थी भला? मैं जड़ सी हो गई. हां, वह साकेत ही थे. खोए, टूटे और उदास से.

मुझे देख कर देखते ही रहे, फिर बोले, ‘‘क्या मैं ख्वाब देख रहा हूं? तुम और यहां? मैं तो यहां तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षणों की याद ताजा करने के लिए आया था पर तुम? खैर, छोड़ो. क्या मेरी बात सुनने के लिए दो घड़ी रुकोगी?’’

मेरी आंखें बरस पड़ने को हो रही थीं. निर्मला से सब लड़कियों का ध्यान रखने को कह कर मैं भीड़ से हट कर किनारे पर आ गई. मुझे लगा साकेत आज बहुतकुछ कहना चाह रहे हैं.

सड़क पार कर साकेत सीढि़यां उतर कर नीचे प्लाजा होटल में जा बैठे, मैं भी चुपचाप उन के पीछे चलती रही.

साकेत बैठते ही बोले, ‘‘सुनीता, तुम मुझ से बगैर कुछ कहेसुने चली गईं. वैसे मुझे तुम को पहले ही सबकुछ बता देना चाहिए था. उस गलती की मैं बहुत बड़ी सजा भुगत चुका हूं. अब यदि मेरे साथ न भी रहना चाहो तो मेरी एक बात जरूर सुन लो कि मेरी शादी मधु से हुई जरूर थी पर पहले दिन ही मधु ने मेरे पैर पकड़ कर कहा था, ‘आप मेरा जीवन बचा सकते हैं. मैं किसी और से प्यार करती हूं और उस के बच्चे की मां बनने वाली हूं. यह बात मैं अपने पिताजी को समझासमझा कर हार गई पर वे नहीं माने. उन्होंने इस शादी तक मुझे एक कमरे में बंद रखा और जबरदस्ती आप के साथ ब्याह दिया.

‘‘‘मैं आप की कुसूरवार हूं. मेरी वजह से आप का जीवन नष्ट हो गया है पर मैं आप के पैर पड़ती हूं कि मेरे कारण अपनी जिंदगी खराब मत कीजिए. आप तलाक के लिए कागजात ले आइए, मैं साइन कर दूंगी और खुद कोर्ट में जा कर सारी बात साफ कर दूंगी. आप और मैं जल्दी ही मुक्त हो जाएंगे.’

‘‘यह कह कर मधु मेरे पैरों में गिर पड़ी. मेरी जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ हुआ था पर उस को जबरदस्ती अपने गले मढ़ कर मैं और बड़ी गलती नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं ने जल्दी ही तलाक के लिए अरजी दे दी. मुझे तलाक मिल भी जाता, पर तभी तुम जीवन में आ गईं.’’

‘‘मैं स्वयं चाह कर भी अपनी तरफ से तुम्हें मैसेज नहीं लिख रहा था पर जब तुम्हारा मैसेज आया तो मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है और मैं अनचाहे ही तुम्हें भावभरे मैसेज भेजता गया.

‘‘फिर तुम्हारे पापा ने जब सगाई करनी चाही तो मैं अपनी बात कहने के लिए इसलिए मुंह नहीं खोल पाया कि कहीं इस बात से बनीबनाई बात बिगड़ न जाए और मैं तुम्हें खो न बैठूं.

‘‘बस, वहीं मुझ से गलती हुई. तुम्हें पा जाने की प्रबल अभिलाषा ने मुझ से यह जुर्म करवाया. शिमला की रंगीनियां कहीं फीकी न पड़ जाएं, इसलिए यहां भी मैं ने तुम्हें कुछ नहीं बताया. उस के बाद मुझे लगा कि यह बात छिपाई जा सकती है और तलाक मिलने पर तुम्हें बता दूंगा पर वह नौबत ही नहीं आई. तुम अचानक कहीं चली गईं और मिलने से भी मना कर गईं.

‘‘जेल की जिंदगी में मैं ने जोजो कष्ट सहे, वे यह सोच कर दोगुने हो जाते थे कि अब तुम्हारा विश्वास कभी प्राप्त न कर सकूंगा और इस विचार के आते ही मैं पागल सा हो जाता था.

‘‘पिछले महीने ही मैं सजा काट कर आया हूं पर घर में मन ही नहीं लगा. तुम्हारे साथ बिताए हर पल दोबारा याद करने के लालच में ही मैं यहां आ गया.’’

और साकेत उमड़ आए आंसुओं को अपनी बांह से पोंछने लगे, फिर झुक कर बोले, ‘‘हाजिर हूं, जो सजा दो, भुगतने को तैयार हूं. पर एक बार, बस, इतना कह दो कि तुम ने मुझे माफ कर दिया.’’

मैं बौराई हुई सी साकेत की बातें सुन रही थी. अब तक सिर्फ श्रोता ही बनी रही. भर आए गले को पानी के गिलास से साफ कर के बोली, ‘‘क्या समझते हो, मैं इस बीच बहुत सुखी रही हूं? मुझे भी तुम्हारी हर याद ने बहुत रुलाया है. बस, दुख था तो यही कि तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाई.

‘‘यदि एक बार, सिर्फ एक बार मुझे अपने बारे में खुल कर बता देते तो यहां तक नौबत ही न आती. पतिपत्नी में जब विश्वास नाम की चीज मर जाती है तब उस की जगह नफरत ले लेती है. इसी वजह से मैं ने तुम्हें मिलने को भी मना कर दिया था पर तुम्हारे बिना रह भी नहीं पाती थी.

‘‘जब तुम्हें सजा हुई तब मेरे दिल पर क्या बीती, तुम्हें क्या बताऊं. 3-4 दिनों तक न खाना खाया और न सोई, पर खैर उठो…जो हुआ, सो हुआ, विश्वास के गिर जाने से जो खाई बन गई थी वह आज इन वादियों में फिर पट गई है. इन वादियों के प्यार को हलका न होने दो.’’

और हम दोनों एकएक कप कौफी पी कर हाथ में हाथ डाले होटल से बाहर आ गए माल रोड की चहलपहल में खो जाने के लिए, एकदूसरे की जिंदगी में समा जाने के लिए.

दीमक: अविनाश के प्यार में क्या दीपंकर को भूल गई नम्रता?

ऐंटी टर्माइट का छिड़काव हो रहा था. उस की अजीब सी दुर्गंध सांसों में घुली जा रही थी. एक बेचैनी और उदासी उस फैलते धुएंनुमा स्प्रे के कारण उस के भीतर समा रही थी. उफ, यह नन्ही सी दीमक किस तरह जीवन की गति में अवरोध पैदा कर देती है. हर चीज अस्तव्यस्त…कमरे, रसोई, हर अलमारी और पलंगों को खाली करना पड़ा है…खूबसूरत कैबिनटों पर रखे शोपीस, किताबें सब कुछ इधरउधर बिखरा पड़ा है.

हर 2-3 महीने में यह छिड़काव कराना जरूरी होता है. जब दिल्ली से फरीदाबाद आए थे तो किसे पता था कि इस तरह की परेशानी उस की जिंदगी की संगति को ही बिगाड़ कर रख देगी. अगर अपना मकान बनाना एक बहुत बड़ी सिरदर्दी और टैंशन का काम लगता है तो बनाबनाया मकान लेने की चाह भी चैन छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ती है.

जब उस में आ कर रहो तभी छूटी हुई खामियां जैसे छिपी दरारें, दरकती दीवारें आदि 1-1 कर सामने आने लगती हैं. पर इस जमाने में दिल्ली में 600 गज की कोठी खरीदना किसी बहुत बड़े सपने से कम नहीं है और आसपास एनसीआर इतने भर चुके हैं कि वहां भी कीमत आसमान छू रही है. ऐसे में फरीदाबाद का विकल्प ही उन के पास बचा था जहां बजट में कोठी मिल गई थी. तब तो यही सोचा था कि फरीदाबाद कौन सा दूर है, इसलिए यह कोठी खरीद ली थी.

हालांकि वह दिल्ली छोड़ कर आना नहीं चाहती थी, पर उस के पति दीपंकर की जिद थी कि उन्हें स्टेटस को मैंटेन करने के लिए कोठी में रहना ही चाहिए. आखिर क्या कमी है उन्हें. पैसा, पावर और स्टेटस सब है उस का सोसायटी में. फिर जब कारें घर के बाहर खड़ी हैं तो दिल्ली कौन सी दूर है. रोजरोज दिल्ली आनेजाने के झंझट के बारे में सोच उस के माथे पर शिकन उभर आई थी, पर बहस करने का कोई औचित्य नहीं था.

‘‘मैडम, हम ने स्प्रे कर दिया है, पर 3 महीने बाद आप को फिर करवाना होगा. दीमक जब एक बार फैल जाती है, तो बहुत आसानी से पीछा नहीं छोड़ती है जब तक कि पूरी तरह अंदर तक फैली उस की सुरंगें नष्ट न हो जाएं. दीमक लकड़ी में एक के बाद एक सुरंग बनाती जाती है. बाहर से पता नहीं चलता कि लकड़ी को कोई नुकसान पहुंच रहा है, पर उसे वह अंदर से बिलकुल खोखला कर देती है. अच्छा होगा कि आप साल भर का कौंट्रैक्ट हमारी कंपनी के साथ कर लें. फिर हम खुद ही आ कर स्प्रे कर जाया करेंगे. आप को बुलाने का झंझट नहीं रहेगा,’’ स्मार्ट ऐग्जीक्यूटिव, अपनी कंपनी का बिजनैस बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था.

यहीं आने पर पता चला था फरीदाबाद में मेहंदी की खेती होती है, इसलिए दीमक बहुत जल्दी जगहजगह लग जाती है. स्प्रे की गंध उसे अभी भी अकुला रही थी. लग रहा था जैसे उलटी आ जाएगी. भीनीभीनी मेहंदी की सुगंध कितनी भाती है, पर जब उस की वजह से दीमक फैलने लगे, तो उस की खुशबू ही क्या, उस का रंग भी आंखों को चुभने लगता है. एक नन्ही सी दीमक किस तरह से घर को खोखला कर देती है. ठीक वैसे जैसे छोटीछोटी बातें रिश्ते की मजबूत दीवारों को गिराने लगती हैं. वे इतनी खोखली हो जाती हैं कि उस शून्यता और रिक्तता को भरने के लिए पूरी जिंदगी भी कम लगने लगती है.

‘‘ठीक है, आप कौंट्रैक्ट तैयार कर लें. पेपर तैयार कर कल आ जाएं. मैं इस समय बिजी हूं,’’ वह किसी भी तरह से उसे वहां से टालने के मूड में थी.

हर तरफ सामान बिखरा हुआ था और उसे शाम को अवनीश से मिलने जाना था. मेड को हिदायतें दे कर वह थोड़ी देर बाद ही सजधज कर बाहर निकल गई. अवनीश से मिलने जाना है तो ड्राइवर को नहीं ले जा सकती, इसलिए खुद ही दिल्ली तक ड्राइव करना पड़ा. जब से अवनीश उस की जिंदगी में आया था, उस की दुनिया रंगीन हो गई थी. शादी को 2 साल हो गए हैं, पर दीपंकर से उस की कभी नहीं बनी. रोमांस और रोमांच तो जैसे क्या होता है, उसे पता तक नहीं है. वह तो शुरू से ही बिंदास किस्म की रही है. घूमनाफिरना, पार्टियां अटैंड कर मौजमस्ती करना उस की फितरत है. दीपंकर के पास तो कभी उस के लिए टाइम होता ही नहीं है, बस पैसा कमाने और अपने बिजनैस टूअर में बिजी रहता है. हमेशा एक गंभीरता सी उस के चेहरे पर बनी रहती है.

दूसरी तरफ अवनीश है. स्मार्ट, हैंडसम और उसी की तरह मौजमस्ती करना पसंद करने वाला. हमेशा हंसता रहता है. उस की हर बात पर ध्यान देता है जैसे उसे कौन सा कलर सूट करता है, उस का हेयरस्टाइल आज कैसा है या कब उस ने कौन से शेड की लिपस्टिक लगाई थी. यहां तक कि उसे यह भी पता है कि वह कौन सा परफ्यूम पसंद करती है. दीपंकर को तो यह भी पता नहीं चलता कि कब उस ने नई ड्रैस खरीदी है या कौन सी साड़ी में वह ज्यादा खूबसूरत लगती है. हां, पैसे देने में कभी कटौती नहीं करता न ही पूछता कि कहां खर्च  कर रही हो?

‘‘हाय मेरी जान, बला की खूबसूरत लग रही हो…कितनी देर लगा दी. तुम्हारा इंतजार करतेकरते सूख गया मैं,’’ अवनीश की इसी अदा पर तो मरती है वह.

‘‘ट्रैफिक प्रौब्लम… ऐनी वे बताओ आज का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘शाम ढलने को है, प्रोग्राम क्या होना चाहिए, तुम ही सोचो,’’ अवनीश ने उसे आंख मारते हुए कहा तो वह शरमा गई.

अवनीश अकेला था और कुंआरा भी. अपने दोस्त के साथ एक कमरा शेयर कर के रहता था. दोनों के बीच आपस में पहले से ही तय था कि जब वह नम्रता को वहां ले जाएगा तो वह देर आएगा. अवनीश की बांहों से जब नम्रता मुक्त हुई तो बहुत खुश थी और अवनीश तो जैसे हमेशा उसे पा लेने को आतुर रहता था.

‘‘तुम ने मुझे दीवाना बना दिया है नम्रता. अच्छा आजकल सेल चल रही है, क्या खयाल है तुम्हारा कल कुछ शौपिंग करें?’’

‘‘मेरे होते हुए तुम्हें सेल में खरीदारी करने की क्या जरूरत?’’ कह नम्रता निकल गई और अवनीश उस के लाए हुए परफ्यूम को लगाने लगा.

‘‘सही मुरगी हाथ लगी है तेरे. बहुत ऐश कर रहा है,’’ अवनीश के दोस्त ने परफ्यूम से महकते कमरे में घुसते हुए कहा.

‘‘तू क्यों जल रहा है? फायदा तो तेरा भी होता है. मेरी सारी चीजों का तू भी तो इस्तेमाल करता है?’’ अवनीश बेशर्मी से मुसकराया.

अगले दिन नम्रता ने अवनीश के लिए ढेर सारी शौपिंग की. कुछ और भी खरीदना है, कह कर उस ने नम्रता से उस का क्रैडिट कार्ड ले लिया. वह जानता था कि नम्रता अपने पति को पसंद नहीं करती है, इसलिए उस की भावनाओं का खूब फायदा उठा रहा था.

पति से नाखुश होने के कारण उस के अंदर संवेदनशीलता की कमी बनी रहती थी, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि अवनीश से उस का साथ छूटे. उसे डर लगा रहता था कि कहीं वह शादी न कर ले. कभीकभी भावुक हो वह उस के सामने रो भी पड़ती थी.

3 महीने बाद जब फिर से ऐंटीटर्माइट स्प्रे करने कंपनी के लोग आए, तो उन्होंने कहा लकड़ी को गीला होने से बचाना चाहिए. उसे पता चला कि  दीमक नमी वाले स्थानों में अधिक पाई जाती है. जहां कहीं भी गली हुई लकड़ी मिलती है, वह तुरंत वहां अपनी पैठ बना लेती है. उस ने तो इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था कि अवनीश धीरेधीरे उस के जीवन में पैठ बना कर उसे खोखला बनाता जा रहा है.

‘‘तुम्हारे पति की बहुत पहुंच है, उन से कह कर मेरे बौस का यह काम करवा दो न,’’ अवनीश ने एक दिन नम्रता के गालों को चूमते हुए कहा तो वह बोली, ‘‘तुम ने कह दिया, समझो हो गया. दीपंकर मेरी कोई बात नहीं टालते हैं. अच्छा चलो आज लंच किसी बढि़या होटल में करते हैं.’’

नम्रता सोचती थी कि अवनीश की वजह से उस की जिंदगी में बहार है…तितली की तरह उस के चारों ओर मंडराती रहती. उस के मुंह से अपनी प्रशंसा सुन बादलों में उड़ती रहती. दूसरी ओर अवनीश की मौज थी. उस का शरीर, पैसा और हर तरह की ऐश की मौज लूट रहा था.

जब नम्रता ने बताया के दीपंकर बिजनैस ट्रिप पर हफ्ते भर के लिए सिंगापुर जा रहा है, तो उस ने भी नम्रता से किसी हिल स्टेशन पर जाने के लिए प्लेन का टिकट बुक कराने के लिए कहा. दोनों ने वहां बहुत ऐंजौय किया, पर पहली बार उसे अवनीश का खुले हाथों से पैसे खर्चना अखरा.

वह समझ ही नहीं पा रही थी कि अवनीश नामक दीमक उस के और दीपंकर के रिश्ते के बीच आ उसे भुरभुरा कर रहा है. उसे क्या पता था कि दीमक अपना घर बनाने के लिए लकड़ी को खोखला नहीं करती है, बल्कि लकड़ी को ही चट कर जाती है और इसीलिए उस के लग जाने का पता नहीं चलता, क्योंकि वह अपने पीछे किसी तरह का बुरादा तक नहीं छोड़ती है. जब तक लकड़ी का वजूद पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता, दीमक लगने का एहसास तक नहीं हो पाता है. आसानी से उस का पता नहीं लगाया जा सकता, इसलिए उस से छुटकारा पाना भी कभीकभी असंभव हो जाता है. यहां तक कि उसे हटाने के लिए जो छिड़काव किया जाता है, वह उसे भी अपने में समा लेती और अधिक जहरीली हो जाती है.

कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि अवनीश की मांगें निरंतर बढ़ती जा रही हैं. जबतब उस का क्रैडिट कार्ड मांग लेता. दीपंकर उस से कहता नहीं है, पर कभीकभी लगता कि मेहनत से कमाए उस के पैसे वह अवनीश पर लुटा कर अच्छा नहीं कर रही है. दीपंकर की सौम्यता और उस पर अटूट विश्वास उसे अपराधबोध से भरने लगा था. माना अवनीश बहुत रोमांटिक है, पर दीपंकर ने कभी यह एहसास तो नहीं कराया कि वह उस से प्यार नहीं करता है. उस का केयर करना क्या प्यार नहीं है और अवनीश है कि बस जब भी मिलता है किसी न किसी तरह से पैसे खर्चवाने की बात करता है. क्या यह प्यार होता है? नहीं अवनीश उसे प्यार नहीं करता है. उस ने कहीं पढ़ा था कि दीमक घास के ऊपर या नमी वाली जमीन पर एक पहाड़ी सी भी बना लेती है जो दूर से देखने में बहुत सुंदर लगती है और एहसास तक नहीं होता कि उसे छूने भर से हाथों में एक अजीब सी सिहरन तक दौड़ सकती है.

पास जा कर देखो तब पता लगता है कि असंख्य दीमक उस के अंदर रेंग रही है और तब एक लिजलिजा सा एहसास मन को घेर लेता है.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस के मन और शरीर पर हावी होती जा रही अवनीशरूपी दीमक पर वह किस स्प्रे का छिड़काव करे… दीपंकर को धोखा देने के कारण मन लकड़ी के बुरादे सा भुरभुरा और खोखला होता जा रहा है…क्षणक्षण कुछ दरक जाता है…न जाने मन के कपाट इस सूरत में कितने समय तक बंद रह सकते हैं. डरती है वह कहीं कपाट खुल गए तो संबंधों की कड़ी ही न ढीली पड़ जाए. जब मजबूती न रहे तो टूटने में बहुत देर नहीं लगती किसी भी चीज को…फिर यह तो रिश्ता है.

नम्रता को एहसास हुआ कि अपने पति की कमियों और रिश्ते से नाखुश होने के कारण उस के भीतर से जो संवेदनाओें का बहाव हो रहा है, उस की नमी में दीमक ने अपना घर बना लिया है. अवनीश के सामने उस ने दिल के दरवाजे खोल दिए हैं उस ने भी तो…उस की आंसुओं की आर्द्रता से मिलती नमी में पनपने और जगह बनाने का मौका मिल रहा है उसे.

अचानक उसे महसूस हुआ कि दीमक उस के घर में ही नहीं, उस की जिंदगी में भी लगी हुई है. धीरेधीरे वह किस तरह बिखर रही है…बाहर से सब सुंदर और अच्छा लगता है, पर अंदर ढेरों सुरंगें बनती जा रही हैं, जिन्हें बनने से अभी न रोका गया तो बाहर आना मुश्किल हो जाएगा. दीमक उस के जीवन को किसी बुरादे में बदल दे, उस से पहले ही हर जगह छिड़काव कराना होगा.

‘‘दीमक कुछ ज्यादा ही फैल रही है, आप तुरंत किसी को भेजें. मुझे इसे पूरी तरह से हटाना है,’’ नम्रता ने घर में स्प्रे करवाने के लिए कंपनी में समय से पहले ही फोन कर उन्हें आने को कहा.

‘‘पर मैडम, अभी तो स्प्रे किए 2 ही महीने हुए हैं, 3 महीने बाद इसे करना होता है.’’

‘‘आप ऐक्स्ट्रा पैसे ले लेना. दीमक और फैल गई, तो सब बिखर जाएगा. आज ही भेज दो आदमी को, दीमक फैल रही है,’’ फोन तो कब का कट चुका था, पर वह लगातार बुदबुदा रही थी, ‘‘दीमक को फैलने से रोकना ही होगा.’’

उस के मोबाइल पर अवनीश का फोन आने लगा था. यह पहली बार हुआ था जब उस ने दूसरी घंटी भी बजाने दी थी. फिर तो रिंग होती ही रही. मोबाइल हाथ में ही था. जब उसे अहसास हुआ तो 10 मिनट बीत चुके थे. अवनीश की 5 मिस्ड काल्स थीं. उस ने मोबाइल साइलैंट मोड पर कर दिया और कपड़ों की अलमारी से कपड़े निकालने लगी, जो कपड़े अवनीश के साथ खरीदे थे उन में तो बुरी तरह दीमक लग चुकी थी. उन्हें बाहर ले जा कर जला डालना ही ठीक होगा.

मुट्ठी भर राख

व्यंग्य- अलका पाठक

मुट्ठी में जो था वह राख थी, दूसरों के लिए चमकते सितारे थे, झिलमिलाते, दमकते.

आंचल में आने को सितारे तैयार थे. बस, अपने ही पग मैं ने पीछे हटा लिए. एक उम्र होती है जिस में सितारों के सपने आते हैं. फूलों से लदी डालियां लचक- लचक कर हवाओं को खुशबू से भर देती हैं. ठीक इसी वक्त मुंहमांगी मुराद कुबूल होने के समय पांव अपनेआप पीछे हो गए.

बेटी के लिए वर तलाश करें तो गुणों की एक अदृश्य लंबी सूची साथ रहती है. पढ़ालिखा, बारोजगार, सुंदर, सुदर्शन, सुशील, अच्छे कुलखानदान का सभ्य, संभ्रांत. अपना मकान, छोटा परिवार. छोटा भी इतना कि न सास न ननद. लड़के की बहन कोई है ही नहीं और मां का 4 साल पहले इंतकाल हो गया. यह आखिरी वाक्य इस ठसक के साथ मुंह से बाहर आया कि यह गुणों का कोई बोनस है, सोने पर सुहागा है.

बापबेटे 2 जन ही हैं. दोनों कामकाजी हैं. मां की तसवीर पर माला लटक रही है, ड्राइंगरूम में ही. बस, लड़की तो पहले ही दिन से राज करेगी, राज. सासननदों की झिकझिक उस परिवार में नहीं है.

बताने वाली चहक रही थी, ‘‘क्या राजकुमार सा वर मिला है. लड़की तकदीर वाली है.’’

मां ने बेटी की आंखों में चमक देखी, ‘यही ठीक है.’

‘‘लड़का सुंदर है. दोनों ही परिवारों ने एकदूसरे को देख लिया है, पसंद कर लिया है. ऐसे लड़के को तो झट से घेर लेना चाहिए. देर करोगी तो रिश्ता हाथ से निकल जाएगा. अब सोच क्या रही हो?’’

‘‘मैं सोच रही हूं कि लड़के की मां नहीं है…’’

‘‘यह तो और अच्छी बात है. फसाद की जड़ ही नहीं है,’’ बताने वाली को लड़के के गुण को कम कर के आंकने की जरूरत न समझ आई. बेटी की मां है, बेटी का हित नहीं देख पा रही. अरे, सास नहीं है. लड़की पहले ही दिन से राज करेगी. अपने घर को अपने हिसाब से चलाएगी. बापबेटे दोनों चाहते हैं कि जल्दी से रिश्ता पक्का हो, घर में रौनक आए.

मां की आंखों में रौनक की जगह उदासी का सागर दिखा. पहले दिन से होने वाला राज दिखा कि लाड़चाव करने, बोलनेबतियाने के लिए परिवार में कोई नहीं. लड़की जाते ही गृहस्थी का बोझ संभालेगी और बापबेटे हर घड़ी उस की तुलना अपनी पत्नी व मां से करेंगे. जिंदा मां धूरि बराबर और मरी मां देवी समान. हर घड़ी पूजित. मां ऐसा करती थीं, वैसा करती थीं. होतीं तो उन के साथ देखसुन कर लड़की गृहस्थी सीखसमझ लेती कि क्या करना है, कैसे करना है. अब ऐसे में तो तुलना मात्र ही शेष रहती है.

काम की तुलना, उठनेबैठने, चलने- फिरने की तुलना. बेटेबहू का सुख बाप से न सहा जाएगा. न हंसना न बोलना, न घूमना न फिरना. बेटे को पापा…पापा का राग रहेगा. पापा घर में अकेले हैं, पापा उदास हैं…पापा के दुख के सागर में गोते लगाता रहेगा.

जमाना जालिम होता रहेगा और ध्यानाकर्षण के लिए तरहतरह की बीमारियां, पापाजी को सिरदर्द, पापाजी को ब्लड प्रेशर…मां होती तो पापाजी की देखभाल करती रहती और बेटेबहू अपने में मगन रहते. दुखी आदमी के सामने सुखी होना भी तो मुसीबत ही है. ऐसे में परपीड़न का आनंद लेने वाला कैसे उसे बेटी समझेगा? मां होती तो यह आशंका शायद न होती.

मां का न होना कोई गुण नहीं बल्कि कमी है, ऐसा बेटी की मां को लग रहा था. परिवार एक ऐसे शीशे का सामान था जिस पर ‘हैंडिल विद केअर’ तो लगा ही होता है. यहां तो यह न केवल शीशे का था बल्कि चटका भी हुआ था. हाथ में लग जाए तो खून निकल आए.

सास नहीं है, यानी कि वर की मां नहीं है. इस बात पर हाथ आया रिश्ता छोड़ने वाली कन्या की मां को जिस ने कहा, मूर्ख ही कहा. बताइए सास नहीं है लड़ने को, इस बात पर प्रसन्न नहीं हो सकती. ज्यादा सोचनेसमझने की जरूरत नहीं होती, इस को कहते हैं भाग्य को ठोकर मारना.

कब से बेटी हंसीहंसी में कहती कि कितना अच्छा है. मांबाप फोटो वाले हों. मतलब फोटो माला पहन कर दीवार पर लटकी हो. सास की ‘नो किचकिच.’

किचकिच, झिकझिक नहीं किंतु इस का अर्थ स्नेह की कमी, नियंत्रण का अभाव. ननद नहीं है, लड़का अकेला है. मान लें कि वह शेयर करना जानता ही न होगा. स्वकेंद्रित होगा. बिना नियंत्रण के या तो उच्छृंखल होगा या दब्बू. पिता के स्नेह में सहानुभूति का अनुपात अधिक. जो कहो, सो मान लो. बच्चा कहीं उदास न हो. उस की आदत अपनी बात मनवाने की होगी बजाय मानने की.

सास का न होना कोई बोनस नहीं हो सकता. न ही सोने पर सुहागा. दुख की छाया यों कि लड़की के तन पर गहने तक सास के पुराने होंगे. मोह के मारे तुड़वा कर फिर न गढ़वाए जाएंगे. मां होती तो यह फैसला मां का होता कि नए गढ़वाए जाएंगे कि पुरानों को बदला जाएगा. अब चूंकि है नहीं इसलिए मां को तो उन्हें पहनना नहीं है. सब बहू पहनेगी. वैसे के वैसे ही पहने तो अच्छा. अनुपस्थित होते हुए भी वह सदा उपस्थित रहेगी. इस में सुलहसंवाद की संभावना नहीं है.

बेटी की मां की रात करवटें बदलते बीती. ऐसे झंझटों में क्यों डालें बेटी को. परिवार ठीक है, अच्छा है लेकिन सामान्य नहीं है. खोज के पैरामीटर में एक शब्द और जुड़ा. परिवार छोटा और सामान्य और बेटा पढ़ालिखा, बारोजगार, सुंदर, सुदर्शन, सुशील, अच्छे कुलखानदान का, सभ्य, संभ्रांत. सास का न होना मुट्ठी की राख भर है, आसमान के चमकते सितारे नहीं, जिस की कोई साध करे.

तुम सावित्री हो : क्या पत्नी को धोखा देकर खुश रह पाया विकास?

अमेरिका के एअरपोर्ट से जब मैं हवाईजहाज में बैठी तो बहुत खुश थी कि जिस मकसद से मैं यहां आई थी उस में सफल रही. जैसे ही हवाईजहाज ने उड़ान भरी और वह हवा से बातें करने लगा वैसे ही मेरे जीवन की कहानी चलचित्र की तरह मेरी आंखों के आगे चलने लगी और मैं उस में पूरी तरह खो गई…

विकास और मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. वैसे मैं उम्र में विकास से 1 वर्ष बड़ी हूं. वे कंपनी में एम.डी. हैं, जबकि मैं सीनियर मैनेजर. कंपनी में साथसाथ काम करने के दौरान अकसर हमारी मुलाकात होती रहती थी. मेरे मम्मीपापा मेरी शादी के लिए लड़का देख रहे थे, लेकिन कोई अच्छा लड़का नहीं मिल रहा था. आखिर थकहार के मम्मीपापा ने लड़का देखना बंद कर दिया. तब मैं ने भी उन से टैलीफोन पर यही कहा कि वे मेरी शादी की चिंता न करें. जब होनी होगी तब चट मंगनी पट शादी हो जाएगी. दरअसल, विकास का कार्यक्षेत्र मेरे कार्यक्षेत्र से एकदम अलग था. यदाकदा हम मिलते थे तो वह भी कंपनी की लिफ्ट या कैंटीन में. वे कंपनी में मुझ से सीनियर थे, हालांकि मैं पहले एक दूसरी कंपनी में कार्यरत थी. मैं ने उन के 3 वर्ष बाद यह कंपनी जौइन की थी. एक बार कंपनी के एक सेमिनार में मुझे शोधपत्र पढ़ने के लिए चुना गया. उस समय सेमिनार की अध्यक्षता विकास ने की थी. जब मैं ने अपना शोधपत्र पढ़ा तब वे मुझ से इतने इंप्रैस हुए कि अगले ही दिन उन्होंने मुझे अपने कैबिन में चाय के लिए आमंत्रित किया. चाय के दौरान हम ने आपस में बहुत बातें कीं. बातोंबातों में उन्होंने मुझ से मेरे बारे में ंसारी बातें मालूम कर लीं. रही उन के बारे में जानकारी लेने की बात, तो मैं उन के बारे में बहुत कुछ जानती थी और जो नहीं जानती थी वह भी उन से पूछ लिया.

जब मैं उन के कैबिन से उठने लगी, तब उन्होंने कहा, ‘‘अलका, क्या तुम मुझ से शादी करना चाहोगी?’’

‘‘पर सर, मैं उम्र में आप से 1 साल बड़ी हूं.’’

‘‘उम्र हमारे बीच दीवार नहीं बनेगी,’’ वे बोले.

‘‘फिर ठीक है, मैं अपने मम्मीपापा से बात कर के आप को बताती हूं.’’

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन मैं इस बारे में तुम्हारी अपनी राय जानना चाहता हूं?’’

‘‘जो आप की राय है, वही मेरी,’’ मैं ने कुछ शरमाते हुए कहा और कैबिन से बाहर आ गई. ड्यूटी से घर लौटने के बाद मैं ने टैलीफोन पर मम्मीपापाजी से विकास के प्रस्ताव पर सविस्तार बात की तो वे बोले, ‘‘बेटी, यदि तुम्हें यह रिश्ता पसंद है तो हम भी तैयार हैं.’’ फिर क्या था मेरी और विकासजी की चट मंगनी और पट शादी हो गई. यह हमारी शादी के 2 साल बाद की बात है. एक दिन विकास ने मुझे अपने कैबिन में बुलाया और बताया, ‘‘कंपनी मुझे 2 सालों के लिए अमेरिका भेजना चाहती है. अब मेरा वहां जाना तुम्हारे हां कहने पर निर्भर है. तुम हां कहोगी तो ही मैं जाऊंगा वरना बौस से कह दूंगा कि सौरी कुछ परिस्थितियों के चलते मैं अमेरिका जाने के लिए असमर्थ हूं.’’ यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात थी कि कंपनी स्वयं अपने खर्च पर विकास को अमेरिका भेज रही थी. ऐसा चांस बहुत कम मिलता है. अत: मैं ने उन्हें अमेरिका जाने के लिए उसी समय अपनी सहमति दे दी. करीब 1 माह बाद विकास अमेरिका चले गए. वहां जाने के बाद मोबाइल पर हमारी बातें होती रहती थीं, लेकिन समय बीतने के साथसाथ बातें कम होती गईं. जब एक बार मैं ने उन से इस के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘यहां बहुत काम रहता है, फिर यहां नया होने के कारण सब कुछ समझने में मुझे ज्यादा वक्त देना पड़ रहा है.’’ इस प्रकार 8-9 माह बीत गए. एक दिन सुबह 5 बजे हमारी डोरबैल बजी. मैं ने दरवाजा खोला तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. मेरे सामने विकास खड़े थे. जब वे अंदर आए तब मैं ने पूछा, ‘‘आप ने तो आने के बारे में कुछ बताया ही नहीं?’’

तब वे बोले, ‘‘तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था. दरअसल, मैं कंपनी के काम से केवल 1 सप्ताह के लिए यहां आया हूं.’’

‘‘बस 1 सप्ताह?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, कंपनी ने मेरे इंडिया आने के साथसाथ मेरा रिटर्न टिकट भी करवा दिया है,’’ मुझ से आंखें चुराते हुए उन्होंने जवाब दिया. इस 1 सप्ताह के दौरान हम रोज शाम को कहीं बाहर घूमने चले जाते और फिर रात को किसी होटल में खाना खा कर ही लौटते. दिन बीतने को कितना समय लगता है? देखतेदेखते हफ्ता बीत गया और वे लौट गए. एक दिन जब मैं ड्यूटी से घर लौटी तो दरवाजे के पास एक चिट्ठी पड़ी देखी. चिट्ठी विकास की थी. मैं बैडरूम में आई और अपने कपड़े चेंज कर चिट्ठी पढ़ने लगी. पूरी चिट्ठी पढ़ने पर ऐसा लगा जैसे मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई हो. उन्होंने चिट्ठी में लिखा था:

‘अलका,

तुम्हें सच बता रहा हूं कि मैं कंपनी के किसी काम से इंडिया नहीं आया था. दरअसल, जब हम रोज शाम को घूमने जाते थे तो उस दौरान यह बात तुम्हें बताना चाहता था, लेकिन तब हिम्मत न जुटा पाने के कारण कुछ नहीं बता पाया, इसलिए यहां पहुंचते ही यह चिट्ठी लिख रहा हूं. यहां रहने के दौरान मैं एक लड़की सायना जेली के संपर्क में आया और फिर हम ने शादी कर ली.

तुम्हारा- विकास.’

विकास की चिट्ठी पढ़ने के बाद मन किया आत्महत्या कर लूं, क्योंकि मेरी दुनिया में विकास के अलावा और कोई था ही नहीं. फिर सोचा यदि आत्महत्या कर ली तो मेरे मम्मीपापा मुझे ही दोषी समझेंगे. अत: मैं ने अपना मन मजबूत करना शुरू किया. अब मेरे सामने सवाल यह था कि मैं करूं तो करूं क्या? यदि मैं इस बात को अपने मम्मीपापा को बताती तो उन का दिल बैठ जाता. यदि इस बात को मैं अपनी कंपनी की सहेलियों के साथ शेयर करती तो भी बदनामी हमारी ही होनी थी, क्योंकि कहते हैं न जितने मुंह उतनी बातें. अत: मैं ने धैर्य रखने का निर्णय लिया और रोजाना ड्यूटी जाती तो किसी को इस बात का एहसास नहीं होने देती कि मेरे साथ क्या हुआ है और मैं इस समय किस दौर से गुजर रही हूं. सब के साथ हंसहंस कर बातें करती. यदाकदा कोई विकास के बारे में पूछता तो कह देती कि अमेरिका में आनंद ले रहे हैं. ऐसे ही डेढ़ साल बीत गया. एक दिन मम्मी ने टैलीफोन पर पूछा, ‘‘अलका, तेरे पति के लौटने का समय हो गया है न? कब आ रहे हैं हमारे दामादजी?’’ अब मैं क्या जवाब देती? मम्मी को समझाने भर के लिए कहा, ‘‘मम्मीजी, शायद कंपनी उन के 6 महीने और बढ़ाना चाहती है. अत: वे 6-7 महीने बाद ही आएंगे. दरअसल, वे चाहते हैं कि मैं ही 1-2 महीनों की छुट्टी ले कर अमेरिका चली आऊं.’’

मैं ने मम्मी से यह कह तो दिया, पर उस पूरी रात सो नहीं पाई. बिस्तर पर पड़ेपड़े मुझे अचानक यह खयाल आया कि हमारी शादी को हुए 2 साल हो गए हैं. इस दौरान मैं मां न बन सकी. विकास चाहते थे कि पहला बच्चा जल्दी हो जाए. घर में बच्चे की किलकारियां सुनने के लिए वे बहुत बेताब थे. तभी मुझे खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास बच्चा जल्दी चाहते थे, इसीलिए उन्होंने वहां जा कर सायना से शादी कर ली? यह विचार मन में आते ही मैं एकदम बिस्तर से उठ बैठी. इस विचार ने मुझे सारी रात जगाए रखा. एक दिन घर लौट रही थी, तब हमारी कंपनी के उज्ज्वल सर मुझे मिल गए. मैं ने उन का अभिवादन किया. वे देर तक खामोश खड़े रहे. तब मैं ने ही खामोशी को तोड़ते हुए उन से पूछा, ‘‘सर, आप कब अमेरिका से आए?’’

‘‘मैडम, मुझे यहां आए 1 सप्ताह ही हुआ है… सच बताऊं विकास के साथ वहां बहुत बुरा हुआ.’’

मैं उन की बात सुन कर दंग रह गई. और फिर तुरंत पूछा, ‘‘सर, विकास के साथ क्या बुरा हुआ?’’

वे बोले, ‘‘मैडम, विकास ने जिस सायना से शादी की थी, उस ने विकास के बैंक खाते में जमा लाखों डौलर औनलाइन सर्विस के माध्यम से अपने खाते में ट्रांसफर करवा लिए और फिर विकास ने जो गोल्ड खरीद रखा था, उसे भी अपने साथ ले कर फरार हो गई. अभी तक उस का कोई अतापता नहीं है. इतना ही नहीं उस ने विकास के नाम पर कई जगहों से क्रैडिट पर कीमती सामान की खरीदारी भी की. विकास बुरी तरह आर्थिक परेशानी के दौर से गुजर रहा है. इस घटना के बाद विकास ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की पर बचा लिया गया. सायना फ्रौड लेडी है और ऐसा औरों के साथ भी कर चुकी है.’’ इस घटना से मैं पुन: सदमे में आ गई. हालांकि एक सचाई यह भी थी कि विकास और मेरे बीच अब कोई संबंध नहीं रह गया था. जब सायना उन की जिंदगी में आई थी तभी से मेरे उन के संबंध खत्म हो गए थे. मैं घर आई तो सोच के समंदर में डूब गई कि अब क्या किया जाए? सोच की हर लहर मेरे मन के किनारे पर आ कर टकरा रही थी.

तभी एक शांत लहर ने मेरे विचारों को दिशा दी कि विकास तुम्हारे साथ प्यार या संबंध निभाने में भले ही असफल रहे हों, लेकिन तुम ने भी तो उन्हें अपनी जिंदगी के लिए चुना था? तो फिर अब तुम चुपचाप कैसे बैठ सकती हो? उन से गलती हुई है इस का अर्थ यह तो नहीं कि उन के और तुम्हारे बीच कभी प्यार के संबंध थे ही नहीं? आज उन के बुरे वक्त में उन का साथ देना तुम्हारा दायित्व है. ऐसे अनगिनत सवाल मेरे मन से आ कर टकराए और तभी मैं ने निश्चय किया कि मैं अपना दायित्व अवश्य निभाऊंगी. फिर क्या था. मैं ने अपनी एक सहेली की मदद से अपने फ्लैट को एक कोऔपरेटिव बैंक के पास गिरवी रख कर क्व25 लाख कर्ज लिया और अमेरिका पहुंच गई. जब मैं ने उन के फ्लैट की डोरबैल बजाई तो उन्होंने ही दरवाजा खोला और फिर मुझे देखते ही आश्चर्यचकित तो हुए ही, साथ ही शर्मिंदा भी. मैं जानती थी कि वे इस घटना के कारण गहरे अवसाद से गुजर रहे हैं, फिर भी मैं ने एक बार तो उन से पूछ ही लिया, ‘‘विकास, सायना से अंतरंग संबंध बनाते समय क्या तुम्हें एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया कि मुझ पर क्या गुजरेगी? खैर, मुझ पर क्या गुजर रही है, यह तुम क्योंकर सोचोगे भला?’’ मेरी बात सुन कर विकास एक अपराधी की तरह खामोश रहे. उन का चेहरा गवाही दे रहा था कि उन्हें अपनी गलती पर पछतावा है. उन से कोई जवाब न पा कर मैं सीधे अपने उस मकसद पर आ गई, जिस के लिए मैं अमेरिका आई थी. उन के साथ बैठ कर मैं ने एक लिस्ट तैयार की जिस में सायना ने जहांजहां से इन के क्रैडिट पर कीमती वस्तुएं खरीदी थीं. अगले दिन विकास को अपने साथ ले कर उन की सारी उधारी चुकता कर दी. हम फ्लैट में लौटे तब रात के 10 बज रहे थे. मैं थकीहारी सोफे पर आ कर बैठ गई. तब विकास बोले, ‘‘अलका, सच, तुम सावित्री हो. जिस प्रकार सावित्री सत्यवान को मौत के मुंह से वापस लाई थी, उसी प्रकार तुम भी मुझे मौत के मुंह से वापस लाई हो वरना मैं तो आत्महत्या करने का अपना इरादा फिर से पक्का कर चुका था.’’

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विकास की बात सुन कर मैं ने इतना ही कहा, ‘‘विकास, हमारे रिश्ते में सेंध तुम ने ही लगाई है. खैर, अब तुम पूरी तरह मुक्त हो, क्योंकि न तुम ऋणग्रस्त हो और न ही किसी बंधन में गिरफ्त. मैं ने तो यहां आ कर सिर्फ अपना पत्नीधर्म निभाया है, क्योंकि मैं ने अपनी तरफ से यह रिश्ता नहीं तोड़ा है. चूंकि मैं मुंबई से रिटर्न टिकट ले कर यहां आई हूं, इसलिए कल ही मुझे मुंबई लौटना है.’’ तभी एअरहोस्टेज की इस घोषणा से मेरी तंद्रा टूटी कि हवाईजहाज मुंबई एअरपोर्ट पर लैंड करने वाला है. कृपया अपनीअपनी सीटबैल्ट बांध लें. एअरपोर्ट उतर टैक्सी पकड़ अपने फ्लैट पहुंची. अब घर पर अकेली रह कर भी क्या करती, इसलिए अगले ही दिन से ड्यूटी जौइन कर ली. करीब 2 सप्ताह बाद विकास भी अमेरिका से लौट आए. अब हम दोनों रोज साथसाथ कंपनी जाते हैं. और हां, एक गुड न्यूज यह भी है कि मैं शीघ्र ही मां बनने वाली हूं.

कुछ कहना था तुम से : 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद?

वैदेही का मन बहुत अशांत हो उठा था. अचानक 10 साल बाद सौरव का ईमेल पढ़ बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी. वह न चाहते हुए भी सौरव के बारे में सोचने को मजबूर हो गई कि क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था? कहता था कि तुम्हारे लिए चांदतारे तो नहीं ला सकता पर अपनी जान दे सकता है पर वह भी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी जान तुम में बसी है. वैदेही हंस कर कहती थी कि कितने झूठे हो तुम… डरपोक कहीं के. आज भी इस बात को सोच कर वैदेही के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई थी पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल कि क्यों वह मुझे छोड़ गया था? आज क्यों याद कर मुझे ईमेल किया है?

वैदेही ने मेल खोल पढ़ा. सौरव ने केवल

2 लाइनें लिखी थीं, ‘‘आई एम कमिंग टू सिंगापुर टुमारो, प्लीज कम ऐंड सी मी… विल अपडेट यू द टाइम. गिव मी योर नंबर विल कौल यू.’’

यह पढ़ बेचैन थी. सोच रही थी कि नंबर दे या नहीं. क्या इतने सालों बाद मिलना ठीक रहेगा? इन 10 सालों में क्यों कभी उस ने मुझ से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की? कभी मेरा हालचाल भी नहीं पूछा. मैं मर गई हूं या जिंदा हूं… कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की. फिर क्यों वापस आया है? सवाल तो कई थे पर जवाब एक भी नहीं था.

जाने क्या सोच कर अपना नंबर लिख भेजा. फिर आराम से कुरसी पर बैठ कर सौरव से हुई पहली मुलाकात के बारे में सोचने लगी…

10 साल पहले ‘फोरम द शौपिंग मौल’ के सामने और्चर्ड रोड पर एक ऐक्सीडैंट में वैदेही सड़क पर पड़ी थी. कोई कार से टक्कर मार गया था. ट्रैफिक जाम हो गया था. कोई मदद के लिए सामने नहीं आ रहा था. किसी सिंगापोरियन ने हैल्पलाइन में फोन कर सूचना दे दी थी कि फलां रोड पर ऐक्सीडैंट हो गया है, ऐंबुलैंस नीडेड.

वैदेही के पैरों से खून तेजी से बह रहा था. वह रोड पर हैल्प… हैल्प चिल्ला रही थी, पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. उसी ट्रैफिक जाम में सौरव भी फंसा था. न जाने क्या सोच वह मदद के लिए आगे आया और फिर वैदेही को अपनी ब्रैंड न्यू स्पोर्ट्स कार में हौस्पिटल ले गया.

वैदेही हलकी बेहोशी में थी. सौरव का उसे अपनी गोद में उठा कर कार तक ले जाना ही याद था. उस के बाद तो वह पूरी बेहोश हो गई थी. पर आज भी उस की वह लैमन यलो टीशर्ट उसे अच्छी तरह याद थी. वैदेही की मदद करने के ऐवज में उसे कितने ही चक्कर पुलिस के काटने पड़े थे. विदेश के अपने पचड़े हैं. कोई किसी

की मदद नहीं करता खासकर प्रवासियों की. फिर भी एक भारतीय होने का फर्ज निभाया था. यही बात तो दिल को छू गई थी उस की. कुछ अजीब और पागल सा था. जब जो उस के मन में आता था कर लिया करता था. 4 घंटे बाद जब वैदेही होश में आई थी तब भी वह उस के सिरहाने ही बैठा था. ऐक्सीडैंट में वैदेही की एक टांग में फ्रैक्चर हो गया था, मोबाइल भी टूट गया था. सौरव उस के होश में आने का इंतजार कर रहा था ताकि उस से किसी अपने का नंबर ले इन्फौर्म कर सके.

होश में आने पर वैदेही ने ही उसे अच्छी तरह पहली बार देखा था. देखने में कुछ खास तो नहीं था पर फिर भी कुछ तो अलग बात थी.

कुछ सवाल करती उस से पहले ही उस ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप होश में आ गईं वरना तो आप के साथ मुझे भी हौस्पिटल में रात काटनी पड़ती. खैर, आई एम सौरव.’’

सौरव के तेवर देख वैदेही ने उसे थैंक्यू

नहीं कहा.

वैदेही से उस ने परिवार के किसी मैंबर का नंबर मांगा. मां का फोन नंबर देने पर सौरव ने अपने फोन से उन का नंबर मिला कर उन्हें वैदेही के विषय में सारी जानकारी दे दी. फिर हौस्पिटल से चला गया. न बाय बोला न कुछ. अत: वैदेही ने मन ही मन उस का नाम खड़ूस रख दिया.

उस मुलाकात के बाद तो मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. न उस ने वैदेही का नंबर लिया था न ही वैदेही ने उस का. उस के जाते ही वैदेही की मां और बाबा हौस्पिटल आ पहुंचे थे. वैदेही ने मां और बाबा को ऐक्सीडैंट का सारा ब्योरा दिया और बताया कैसे सौरव ने उस की मदद की.

2 दिन हौस्पिटल में ही बीते थे.

ऐसी तो पहली मुलाकात थी वैदेही और सौरव की. कितनी अजीब सी… वैदेही सोचसोच मुसकरा रही थी. सोच तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. सौरव के ईमेल ने वैदेही के पुराने सारे मीठे और दर्द भरे पलों को हरा कर दिया था.

ऐक्सीडैंट के बाद पंद्रह दिन का बैडरेस्ट लेने को कहा गया

था. नईनई नौकरी भी जौइन की थी तब वैदेही ने. घर पहुंच वैदेही ने सोचा औफिस में इन्फौर्म कर दे. मोबाइल खोज रही थी तभी याद आया मोबाइल तो हौस्पिटल में सौरव के हाथ में था और शायद अफरातफरी में उस ने उसे लौटाया नहीं था. पर इन्फौर्म तो कर ही सकता था. उफ, सारे कौंटैक्ट नंबर्स भी गए. वैदेही चिल्ला उठी थी. तब अचानक याद आया कि उस ने अपने फोन से मां को फोन किया था. मां के मोबाइल में कौल्स चैक की तो नंबर मिल गया.

तुरंत नंबर मिला अपना इंट्रोडक्शन देते हुए उस ने सौरव से मोबाइल लौटाने का आग्रह किया. तब सौरव ने तपाक से कहा, ‘‘फ्री में नहीं लौटाऊंगा. खाना खिलाना होगा… कल शाम तुम्हारे घर आऊंगा… एड्रैस बताओ.’’

वैदेही के तो होश ही उड़ गए. मन में सोचने लगी कैसा अजीब प्राणी है यह. पर मोबाइल तो चाहिए ही था. अत: एड्रैस दे दिया.

अगले दिन शाम को महाराज हाजिर भी हो गए थे. सारे घर वालों को सैल्फ इंट्रोडक्शन भी दे दिया और ऐसे घुलमिल गया जैसे सालों से हम सब से जानपहचान हो. वैदेही ये सब देख हैरान भी थी और कहीं न कहीं एक अजीब सी फीलिंग भी हो रही थी. बहुत मिलनसार स्वभाव था. मां, बाबा और वैदेही की छोटी बहन तो उस की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. थकते भी क्यों उस का स्वभाव, हावभाव सब कितना अलग और प्रभावपूर्ण था. वैदेही उस के साथ बहती चली जा रही थी.

वह सिंगापुर में अकेला रहता था. एक कार डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मैनेजर था. तभी आए दिन उसे नई कार का टैस्ट ड्राइव करने का मौका मिलता रहता था. जिस दिन उस ने वैदेही की मदद की थी उस दिन भी न्यू स्पोर्ट्स कार की टैस्ट ड्राइव पर था. उस के मातापिता इंडिया में रहते थे.

इस दौरान अच्छी दोस्ती हो गई थी. रोज आनाजाना होने लगा था. वैदेही के परिवार के सभी लोग उसे पसंद करते थे. धीरेधीरे उस ने वैदेही के दिल में खास जगह बना ली. उस के साथ जब होती थी तो लगता था ये पल यहीं थम जाएं. वैदेही को भी यह एहसास हो चला था कि सौरव के दिल में भी उस के लिए खास फीलिंग्स हैं. मगर अभी तक उस ने वैदेही से अपनी फीलिंग्स कही नहीं थीं.

15 दिन बाद वैदेही ने औफिस जौइन कर लिया. सौरव और वैदेही का औफिस और्चर्ड रोड पर ही था. सौरव अकसर वैदेही को औफिस से घर छोड़ने आता था. फ्रैक्चर होने की वजह से

6 महीने केयर करनी ही थी. वैदेही को उस का लिफ्ट देना अच्छा लगता था.

आज भी वैदेही को याद है सौरव ने उसे

2 महीने के बाद उस के 22वें बर्थडे पर प्रपोज किया था. औसतन लोग अपनी प्रेमिका को गुलदस्ता या चौकलेट अथवा रिंग के साथ प्रपोज करते हैं, पर उस ने वैदेही के हाथों में एक कार का छोटा सा मौडल रखते हुए कहा कि क्या तुम अपनी पूरी जिंदगी का सफर मेरे साथ तय करना चाहोगी? कितना पागलपन और दीवानगी थी उस की बातों में. वैदेही उसे समझने में असमर्थ थी. यह कहतेकहते सौरव उस के बिलकुल नजदीक आ गया और वैदेही का चेहरा अपने हाथों में थामते हुए उस के होंठों को अपने होंठों से छूते हुए दोनों की सांसें एक हो चली थीं. वैदेही का दिल जोर से धड़क रहा था. खुद को संभालते हुए वह सौरव से अलग हुई. दोनों के बीच एक अजीब मीठी सी मुसकराहट ने अपनी जगह बना ली थी.

कुछ देर तो वैदेही वहीं बुत की तरह खड़ी रही थी. जब उस ने वैदेही का उत्तर जानने की उत्सुकता जताई तो वैदेही ने कहा था कि अगले दिन ‘गार्डन बाय द वे’ में मिलेंगे. वहीं वह अपना जवाब उसे देगी.

उस रात वैदेही एक पल भी नहीं सोई थी. कई विषयों पर सोच रही थी जैसे

कैरियर, आगे की पढ़ाई और न जाने कितने खयाल. नींद आती भी कैसे, मन में बवंडर जो उठा था. तब वैदेही मात्र 22 साल की ही तो थी और इतनी जल्दी शादी भी नहीं करना चाहती थी. सौरव भी केवल 25 वर्ष का था. पर वैदेही उसे यह बताना भी चाहती थी कि उस से बेइंतहा मुहब्बत हो गई है और जिंदगी का पूरा सफर उस के साथ ही बिताना चाहती है. बस कुछ समय चाहिए था उसे. पर यह बात वैदेही के मन में ही रह गई थी. कभी इसे बोल नहीं पाई.

अगले दिन वैदेही ठीक शाम 5 बजे ‘गार्डन बाय द वे’ में पहुंच गई. वहां पहुंच कर उस ने सौरव को फोन मिलाया तो फोन औफ आ रहा था. उस का इंतजार करने वह वहीं बैठ गई. आधे घंटे बाद फिर फोन मिलाया तब भी फोन औफ ही आ रहा था. वैदेही परेशान हो उठी. पर फिर सोचा कहीं औफिस में कोई जरूरी मीटिंग में न फंस गया हो. वहीं उस का इंतजार करती रही. इंतजार करतेकरते रात के 8 बजे गए, पर वह नहीं आया और उस के बाद उस का फोन भी कभी औन नहीं मिला.

2 साल तक वैदेही उस का इंतजार करती रही पर कभी उस ने उसे एक बार भी फोन नहीं किया. 2 साल बाद मांबाबा की मरजी से आदित्य से वैदेही की शादी हो गई. आदित्य औडिटिंग कंपनी चलाता था. उस के मातापिता सिंगापुर में उस के साथ ही रहते थे.

शादी के बाद कितने साल लगे थे वैदेही को सौरव को भूलने में पर पूरी तरह भूल नहीं पाई थी. कहीं न कहीं किसी मोड़ पर उसे सौरव की याद आ ही जाती थी. आज अचानक क्यों आया है और क्या चाहता है?

वैदेही की सोच की कड़ी को अचानक फोन की घंटी ने तोड़ा. एक अनजान नंबर था. दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं. वैदेही को लग रहा था हो न हो सौरव का ही होगा. एक आवेग सा महसूस कर रही थी. कौल रिसीव करते हुए हैलो कहा तो दूसरी ओर सौरव ही था. उस ने अपनी भारी आवाज में ‘हैलो इज दैट वैदेही?’ इतने सालों के बाद भी सौरव की आवाज वैदेही के कानों से होते हुए पूरे शरीर को झंकृत कर रही थी.

स्वयं को संभालते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘यस दिस इज वैदेही,’’ न पहचानने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘मे आई नो हू इज टौकिंग?’’

सौरव ने अपने अंदाज में कहा, ‘‘यार, तुम मुझे कैसे भूल सकती हो? मैं सौरव…’’

‘‘ओह,’’ वैदेही ने कहा.

‘‘क्या कल तुम मुझ से मरीना वे सैंड्स होटल के रूफ टौप रैस्टोरैंट पर मिलने आ सकती  हो? शाम 5 बजे.’’

कुछ सोचते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘हां, तुम से मिलना तो है ही. कल शाम को आ जाऊंगी,’’ कह फोन काट दिया.

अगर ज्यादा बात करती तो उस का रोष सौरव को फोन पर ही सहना पड़ता. वैदेही के दिमाग में कितनी हलचल थी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल था. यह सौरव के लिए उस का प्यार था या नफरत? मिलने का उत्साह था या असमंजसता? एक मिलाजुला भावों का मिश्रण जिस की तीव्रता सिर्फ वैदेही ही महसूस कर सकती थी.

अगले दिन सौरव से मिलने जाने के लिए जब वैदेही तैयार हो रही थी, तभी आदित्य कमरे में आया. वैदेही से पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘सौरव सिंगापुर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है,’’ कह वैदेही चुप हो गई. फिर कुछ सोच आदित्य से पूछा, ‘‘जाऊं या नहीं?’’

आदित्य ने जवाब में कहा, ‘‘हां, जाओ. मिल आओ. डिनर पर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कह वह कमरे से चला गया.

आदित्य ने सौरव के विषय में काफी कुछ सुन रखा था. वह यह जानता था कि सौरव को वैदेही के परिवार वाले बहुत पसंद करते थे… कैसे उस ने वैदेही की मदद की थी. आदित्य खुले विचारों वाला इनसान था.

हलके जामुनी रंग की ड्रैस में वैदेही बहुत खूबसूरत लग रही थी. बालों को

ब्लो ड्राई कर बिलकुल सीधा किया था. सौरव को वैदेही के सीधे बाल बहुत पसंद थे. वैदेही हूबहू वैसे ही तैयार हुई जैसे सौरव को पसंद थी. वैदेही यह समझने में असमर्थ थी कि आखिर वह सौरव की पसंद से क्यों तैयार हुई थी? कभीकभी यह समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर किसी के होने का हमारे जीवन में इतना असर क्यों आ जाता है. वैदेही भी एक असमंजसता से गुजर रही थी. स्वयं को रोकना चाहती थी पर कदम थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

वैदेही ठीक 5 बजे मरीना बाय सैंड्स के रूफ टौप रैस्टोरैंट में पहुंची. सौरव वहां पहले से इंतजार कर रहा था. वैदेही को देखते ही वह चेयर से खड़ा हो वैदेही की तरफ बढ़ा और उसे गले लगते हुए बोला, ‘‘सो नाइस टू सी यू आफ्टर ए डिकेड. यू आर लुकिंग गौर्जियस.’’

वैदेही अब भी गहरी सोच में डूबी थी. फिर एक हलकी मुसकान के साथ उस ने कहा, ‘‘थैंक्स फार द कौंप्लीमैंट. आई एम सरप्राइज टु सी यू ऐक्चुअली.’’

सौरव भांप गया था वैदेही के कहने का तात्पर्य. उस ने कहा, ‘‘क्या तुम ने अब तक मुझे माफ नहीं किया? मैं जानता हूं तुम से वादा कर के मैं आ न सका. तुम नहीं जानतीं मेरे साथ क्या हुआ था?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘10 साल कोई कम तो नहीं होते… माफ कैसे करूं तुम्हें? आज मैं जानना चाहती हूं क्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

सौरव ने कहा, ‘‘तुम्हें याद ही होगा, तुम ने मुझे पार्क में मिलने के लिए बुलाया था. उसी दिन हमारी कंपनी के बौस को पुलिस पकड़ ले गई थी, स्मगलिंग के सिलसिले में. टौप लैवल मैनेजर को भी रिमांड में रखा गया था. हमारे फोन, अकाउंट सब सीज कर दिए गए थे. हालांकि 3 दिन लगातार पूछताछ के बाद, महीनों तक हमें जेल में बंद कर दिया था. 2 साल तक केस चलता रहा. जब तक केस चला बेगुनाहों को भी जेल की रोटियां तोड़नी पड़ीं. आखिर जो लोग बेगुनाह थे उन्हें तुरंत डिपोर्ट कर दिया गया और जिन्हें डिपोर्ट किया गया था उन में मैं भी था. पुलिस की रिमांड में वे दिन कैसे बीते क्या बताऊं तुम्हें…

‘‘आज भी सोचता हूं तो रूह कांप जाती है. किस मुंह से तुम्हारे सामने आता? इसलिए जब मैं इंडिया (मुंबई) पहुंचा तो न मेरे पास कोई मोबाइल था और न ही कौंटैक्ट नंबर्स. मुंबई पहुंचने पर पता चला मां बहुत सीरियस हैं और हौस्पिटलाइज हैं. मेरा मोबाइल औफ होने की वजह से मुझ तक खबर पहुंचाना मुश्किल था. ये सारी चीजें आपस में इतनी उलझी हुई थीं कि उन्हें सुलझाने का वक्त ही नहीं मिला और तो और मां ने मेरी शादी भी तय कर रखी थी. उन्हें उस वक्त कैसे बताता कि मैं अपनी जिंदगी सिंगापुर ही छोड़ आया हूं. उस वक्त मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा था.

‘‘और फिर जिंदगी की आपाधापी में उलझता ही चला गया. पर तुम हमेशा याद आती रहीं. हमेशा सोचता था कि तुम क्या सोचती होगी मेरे बारे में, इसलिए तुम से मिल कर तुम्हें सब बताना चाहता था. काश, मैं इतनी हिम्मत पहले दिखा पाता. उस दिन जब हम मिलने वाले थे तब तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थीं न… आज बता दो क्या कहना चाहती थीं.’’

वैदेही को यह जान कर इस बात की तसल्ली हुई कि सौरव ने उसे धोखा नहीं दिया. कुदरत ने हमारे रास्ते तय करने थे. फिर बोली, ‘‘वह जो मैं तुम से कहना चाहती उन बातों का अब कोई औचित्य नहीं,’’ वैदेही ने अपने जज्बातों को अपने अंदर ही दफनाने का फैसला कर लिया था.

थोड़ी चुप्पी के बाद एक मुसकराहट के साथ वैदेही ने कहा, ‘‘लैट्स और्डर सम कौफी.’’

रोशनी : आखिर बच्चा गोद लेने से क्यों इंकार करता था नवल

स्नान कर के दीप्ति शृंगारमेज की ओर जा ही रही थी कि अपने नकल को पलंग पर औंधे लेटे देख कर चकित सी रह गई क्योंकि इतनी जल्दी वे क्लीनिक से कभी नहीं आते थे. फिर आज तो औपरेशन का दिन था. ऐसे दिन तो वे दोपहर ढलने के बाद ही आ पाते थे. इसीलिए पलंग के पास जा कर दीप्ति ने साश्चर्य पूछा, ‘‘क्या बात है, आज इतनी जल्दी निबट गए?’’

डाक्टर नवल ने कोई उत्तर नहीं दिया. वे पूर्ववत औंधे लेटे रहे. दीप्ति ने देखा कि उन्होंने जूते भी नहीं उतार हैं, कपड़े भी नहीं बदले हैं, क्लीनिक से आते ही शायद लेट गए हैं. इसीलिए यह सोच कर उस का माथा ठनका, कोई औपरेशन बिगड़ क्या? इन का स्वास्थ्य तो नहीं बिगड़ गया?

चिंतित स्वर में दीप्ति ने फिर पूछा, ‘‘क्या बात है तबीयत खराब हो गई क्या?’’

डाक्टर नवल ने औंधे लेटेलेटे ही जैसे बड़ी कठिनाई से उत्तर दिया, ‘‘नहीं.’’

‘‘औपरेशन बिगड़ गया क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर क्या बात है?’’

डाक्टर नवल ने कोई उत्तर नहीं दिया. दीप्ति तौलिए से बालों को सुखाती हुई पति के पास बैठ गई. उन्हें हौले से छूते हुए उस ने फिर पूछा, ‘‘बोलो न, क्या बात है? इस तरह मुंह लटकाए क्यों पड़े हो?’’

डाक्टर नवल ने दोनों हाथों से अपना मुंह ढकते हुए कहा, ‘‘दीप्ति, मु?ो कुछ देर अभी अकेला छोड़ दो. मेहरबानी कर के जाओ यहां से.’’

दीप्ति का आश्चर्य और बढ़ गया. पिछले

3 सालों के वैवाहिक जीवन में ऐसा अवसर कभी नहीं आया था. डाक्टर नवल उस की भावनाओं का हमेशा खयाल रखते थे. उस से कभी ऊंचे स्वर में नहीं बोलते थे. वह कभी गलती पर होती थी, तब भी वे उस बात की उपेक्षा सी कर जाते थे.

कभीकभी तो उदारतापूर्वक वे उसे अपनी गलती मान लेते थे. हमेशा पत्नी को प्रसन्न रखने की चेष्टा करते रहते थे. आज वे ही उसे कमरे से बाहर जाने को कह रहे थे.

 

और सब से बड़ी बात तो यह थी कि नवल दीप्ति को दीप्ति कह कर संबोधित

किया था. ऐसा आमतौर पर कभी नहीं होता था. उन्होंने उस का नाम पंडितजी रख छोड़ा था. संस्कृत की प्राध्यापिका होने के कारण वे प्रथम परिचय के बाद से ही उसे पंडितजी कह कर संबोधित करने लगे थे. यह संबोधन विवाह के बाद भी कायम रहा था. उठतेबैठते वे पंडितजी… पंडितजी की धूम मचाया करते थे. क्लीनिक से या और कहीं से भी घर आते ही पुकार उठते थे, ‘‘पंडितजी.’’

किंतु आज तो नवल चोरों की तरह घर में आ कर सो गए थे. पंडितजी को एक बार भी नहीं पुकारा था और अब अपराधियों की तरह  दोनों हाथों से मुंह ढक कर अकेला छोड़ देने को कह रह थे. उस समय भी उन के मुंह से ‘पंडितजी’ संबोधन नहीं निकला था. दीप्ति कहा था उन्होंने.

दीप्ति को लगा, जरूर कोई न कोई गंभीर बात है. इसीलिए दीप्ति बजाय बाहर जाने के पति से सट कर बैठती हुई बोली, ‘‘पहले यह बताओ बात क्या है? मैं तभी जाऊंगी.’’

डाक्टर नवल ने दीवार की ओर मुंह करते हुए कहा, ‘‘वही बताने की स्थिति में मैं अभी नहीं हूं. मु?ो जरा संभल जाने दो. फिर सब बताऊंगा. बताना ही होगा. बताए बिना काम भी कैसे चलेगा? इसीलिए दीप्ति मेहरबानी कर के चली जाओ.’’

दीप्ति भीतर तक कांप उठी. उसे विश्वास हो गया कि जरूर कोई न कोई गंभीर बात है.डाक्टर नवल का स्वर, लहजा सभी कुछ इस क्षण असामान्य था.

असमंजस की मुद्रा में कुछ देर बैठी रहने के बाद दीप्ति जाने को उठ खड़ी हुई. किंतु वह द्वार के बाहर ही पहुंची थी कि डाक्टर नवल का भर्राया सा स्वर उसे सुनाई पड़ा, ‘‘दीप्ति.’’

दीप्ति ने ठिठकते हुए कहा, ‘‘जी.’’

‘‘चली आओ. यों नियति से अब आंख चुराने से क्या फायदा. जो हो चुका है, वह तो अब बदला नहीं जा सकता.’’

दीप्ति को जैसे काठ मार गया. उस की ऊपर की सांस जैसे ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई. उसे ऐसा लगा जैसे कोई भयानक विपत्ति गाज की तरह उस के सिर पर मंडरा रही है.

डाक्टर नवल ने उसे फिर पुकारा, ‘‘बुरा मान गईं क्या? इस अशोभनीय व्यवहार के लिए मु?ो माफ करो, पंडितजी.’’

दीप्ति दौड़ी सी भीतर आई और कंपित स्वर में बोली, ‘‘नहीं… नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई. तुम्हारी परेशानी क्या है, तुम बस यही बताओ?’’

डाक्टर नवल आलथीपालथी मार कर बिस्तर पर बैठ गए थे. तौलिए से बाल सुखाती दीप्ति को एकटक देखने लगे. उन की इस दृष्टि से दीप्ति के तन में फुरहरी सी दौड़ गई. उस के गालों पर लाली की ?ांई सी उभर आई. उस ने नजरें चुराते हुए कहा, ‘‘ऐसे क्यों देख रहे हो?’’

डाक्टर नवल ने आह भरते हुए कहा, ‘‘नजर भर के इस रूप को देख लेने दो. यह  तौलिया परे फेंक दो, पंडितजी. अपने गजगज लंबे बालों को फैला दो. सावन की छटा छा जाने दो.’’

दीप्ति ने तौलिया हैंगर पर टांग दिया और गरदन को ?ाटका दे कर बालों को फैला दिया. डाक्टर नवल आंखें फाड़फाड़ कर उसे अभी भी घूरे जा रहे थे.

डाक्टर नवल की यह मुग्ध दृष्टि दीप्ति को अच्छी लग रही थी, किंतु इस विशेष परिस्थिति के कारण उसे यह दृष्टि स्वाभाविक प्रतीत नहीं हो रही थी. इसीलिए उस ने पति के पास बैठते हुए कहा, ‘‘आज मु?ो इस तरह क्यों घूर रहे हो?’’

डाक्टर नवल ने दीप्ति को बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कैसे सम?ाऊं, पंडितजी?’’

‘‘इस में क्या कठिनाई है?’’

‘‘बड़ी भारी कठिनाई है.’’

‘‘आज तुम अजीबअजीब सी बातें कर रहे हो. पहेलियां बु?ा रहे हो. साफसाफ कहो न बात क्या है?’’

‘‘बड़ी भारी बात है, पंडितजी.’’

‘‘बड़ी भारी बात है?’’

‘‘हां.’’

‘‘आखिर पता तो लगे बात क्या है?’’

डाक्टर नवल फिर चुप हो गए. बारबार पूछे जाने पर वे भर्राए स्वर में बोले, ‘‘कैसे कहूं?’’

दीप्ति को आश्चर्य हुआ. डाक्टर नवल इतने भावुक कभी नहीं होते थे. इसीलिए उस ने किंचित ?ां?ाला कर कहा, ‘‘किसी भी तरह कहो तो सही. मैं तो आशंका में ही मरी जा रही हूं.’’

अपने विशाल सीने पर दीप्ति को सटाते हुए डाक्टर नवल बोले, ‘‘मालूम नहीं, सुनने पर तुम्हारा क्या हाल होगा.’’

‘‘जो होगा, वह देखा जाएगा, तुम कह डालो.’’

 

दीप्ति की आंखों में आंखें डालते हुए डाक्टर नवल ने बड़े भावुक स्वर में कहा,

‘‘पंडितजी, तुम्हारे इस रूपसौंदर्य का क्या होगा?’’

दीप्ति चौंकी. उस ने और अधिक ?ां?ालाते हुए पूछा, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तुम… तुम…’’

‘‘रुक क्यों गए? कहो न?’’

‘‘तुम अब किसी और से शादी कर लो.’’

पति की बांहों की कैद से एक ?ाटके में ही अलग हो कर तीखी नजर डालते हुए दीप्ति ने कंपित स्वर में कहा, ‘‘कैसी बातें कर रहे हो आज? नशे में हो क्या?’’

डाक्टर नवल ने अविचलित स्वर में कहा, ‘‘नहीं, पूरे होशोहवास में हूं.’’

‘‘तो फिर ऐसी बहकीबहकी बातें क्यों कर रहे हो?’’

‘‘ये बहकीबहकी बातें नहीं हैं.’’

‘‘तो फिर ऐसी बेहूदा बात तुम्हारे मुंह से कैसे निकली?’’

‘‘बड़ी मजबूरी में निकली है. इसी बात को कहने के लिए ही मैं कब से अपनेआप को जैसे धकेल रहा था.’’

किसी जलते कोयले पर जैसे पैर रखा गया हो, इस तरह दीप्ति चौंक उठी. उस ने पति के दोनों कंधे पकड़ कर पूछा, ‘‘एकाएक ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई?’’

आंखें चुराते हुए डाक्टर नवल ने कहा, ‘‘एकाएक ही आई है, मेरी पंडितजी, आसमान से जैसे बिजली सी गिरी है.’’

दीप्ति ने लगभग चीखते से स्वर में कहा, ‘‘फिर पहेलियां बु?ाने लगे. साफसाप कहो न, कौन सी बिजली गिरी है?’’

 

डाक्टर नवल ने 1-1 शब्द को कैसे चबाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी गोद हरी

करने लायक मैं अब नहीं रहा. कान खोल कर सुन लो, मैं अब किसी संतान को जन्म देने लायक नहीं रहा.’’

‘‘क्यों नहीं रहे?’’

‘‘ऐसी दुर्घटना हो गई है.’’

‘‘दुर्घटना. कैसी दुर्घटना?’’

‘‘तुम्हें कैसे सम?ाऊं, मेरी पंडित. यह बात तुम्हारी सम?ा से बाहर की है. हमारे डाक्टरी उसूलों की लीला है यह.’’

‘‘फिर भी मु?ो सम?ाओ न?’’

‘‘सम?ाने को और रहा ही क्या है. कुदरत ने मेरी लापरवाही की मु?ो कठोर सजा दी है. तुम बस इतना ही सम?ा लो.’’

‘‘नहीं, मु?ो सारी बात विस्तार से सम?ाओ.’’

‘‘मैं आज भी रोज की तरह औपरेशन में रेडियो धर्मी रेडियम का उपयोग कर रहा था…’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘जाने कैसे एक पिन मेरे ऐप्रन में रह गई और मेरे शरीर से स्पर्श हो गई. उसी का यह गंभीर परिणाम हुआ. मैं सैक्स की दृष्टि से बेकार हो गया हूं. बाप बनने की मु?ा में अब क्षमता ही नहीं रही है. इसीलिए मैं ने तुम्हारे सामने यह प्रस्ताव…’’

डाक्टर नवल के मुंह पर हाथ रखते हुए दीप्ति बोली, ‘‘यह अशुभ बात दोबारा मत कहो.’’

बुजुर्गाना अंदाज में मुसकराते हुए डाक्टर नवल ने कहा, ‘‘पंडितजी, यह समय थोथे आदर्शवाद का नहीं है. जीवन के क्रूर यथार्थ ने हमें जहां ला कर पटका है उस से आंखें मिलाओ. भावुकता से काम नहीं चलेगा. तुम्हारे सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. उसे थोथी भावुकता में बरबाद मत करो. इस रूपसौंदर्य का…’’

दीप्ति ने पति का मुंह बंद करते हुए रोआंसे स्वर में कहा, ‘‘तुम इस हादसे के बाद भी जीवित तो रहोगे न? तुम्हारी जिंदगी को तो कोई खतरा नहीं है न?’’

‘‘नहीं, फिलहाल ऐसा कोईर् खतरा इस हादसे से नहीं हुआ है. इस हादसे ने तो बस मेरे पौरुष को ही ?ालसा दिया है.’’

‘‘बस तो फिर कोई चिंता की बात नहीं है. मैं तुम्हारे ?ालसे हुए पौरुष के साथ ही जीवन व्यतीत कर लूंगी.’’

‘‘नहीं, यह नहीं होगा. मैं तुम्हें थोथे आदर्शवाद की बलिवेदी पर बलिदान नहीं होने दूंगा, भावुकता में बहने नहीं दूंगा. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा.’’

‘‘क्यों दे दोगे?’’

‘‘क्योकि मातृत्व के बिना नारीत्व अपूर्ण होता है.’’

‘‘जिन्हें कोई संतान नहीं होती वे भी तो इस अपूर्णता के बावजूद…’’

‘‘वह उन की विवशता होती है.’’

‘‘यह भी एक विवशता ही है.’’

‘‘नहीं, खुली आंख से मक्खी निगलना विवशता नहीं है. यह तो अपने हाथों से अपने

पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है. अपने हाथों से

अपने अरमानों का गला घोटना है. यह सरासर बेवकूफी है.’’

‘‘जरा मेरी भी तो सुनो.’’

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं सुनूंगा. जब कुदरत ने हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है जहां से आगे साथसाथ चलना मुमकिन नहीं है…’’

‘‘क्यों मुमकिन नहीं है? मुमकिन है. जरा ठंडे दिमाग से सोचो.’’

‘‘मैं ने खूब सोच लिया है. अब तो बस कुदरत का फैसला मंजूर कर लेना चाहिए. हमें हंसते हुए एकदूसरे को अलविदा कह देना चाहिए.’’

दीप्ति ने कानों में उगली देते हुए कहा, ‘‘नहीं, यह नहीं होगा. हमारा प्यार भी कोई चीज है या नहीं?’’

‘‘है तभी तो यह फैसला करने में जैसे मेरी जान पर आ रही है पर मैं अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारे जीवन का बलिदान नहीं होने दूंगा. वैसे प्यार के लिए ही मैं यह अंतिम निर्णय ले रहा हूं. मैं नहीं तो कम से कम तुम तो सुखी रहो.’’

‘‘तुम से अलग रह कर मैं सुखी नहीं रह सकती हूं?’’

‘‘ये सब फालतू की बातें हैं. लाश के साथ रहने में क्या सुख है?’’

‘‘सैक्सुअली न्यूट्रल होने से तुम लाश कैसे हो गए? बाप बनने के अयोग्य होना और नामर्द होना अलगअलग बात है. पिता बनने की तुम में क्षमता नहीं रही. मगर यौन क्षमता तो है. मैं इसी पर संतोष कर लूंगी.’’

‘‘पर मैं संतोष नहीं कर पाऊंगा. संतान को मैं वैवाहिक जीवन की अनिवार्यता मानता हूं.’’

‘‘संतान… संतान बस एक ही बात रटे जा रहे हो. संतान की तुम्हें ऐसी ही भूख है तो हम किसी को गोद ले लेंगे. सरोगेसी से कुछ करा लेंगे.’’

‘‘पराए आखिर पराए ही होते हैं. अपने खून की बात ही दूसरी होती है.’’

‘‘तुम डाक्टर हो कर कैसी दकियानूसी बातें कर रहे हो? मैं पचासों ऐसे उदाहरण अपने आसपास से तुम्हें बतला सकती हूं जब अपने खून ने बेगानों से भी बदतर सुलूक अपने मांबाप से किया और जिन्हें तुम पराए कह रह हो, ऐसे गोद आए बच्चों ने अपने खून से भी अच्छा सुलूक किया है, कहो तो गिनवाऊं?’’

डाक्टर नवल टुकुरटुकुर देखते रहे. वे कुछ नहीं बोल पाए. उन के ठीक पड़ोस में ही गोद आए बच्चों ने खुद की संतान से अधिक सुख अपने इन गोद लेने वाले मांबाप को दिया था. नाक के सामने के इस सत्य ने उन्हें अवाक कर दिया. दीप्ति के संकेत को वे सम?ा गए थे.

 

तभी दीप्ति ने फैसला सा सुनाते हुए कहा, ‘‘कान खोल कर सुन लो मैं इस घर से

नहीं जाऊंगी. तुम मु?ो धक्के दे कर निकालोगे तब भी नहीं. मैं तुम्हारे साथ ही जीवन बिताऊंगी. ऐसी मूर्खतापूर्ण बात मेरे सामने अब कभी मत कहना. उठो, हाथमुंह धो लो. मैं चाय ला रही हूं.’’

छोटे बच्चे की तरह बिना कोई नानुकर

किए डाक्टर नवल उठ खड़े हुए. हाथमुंह धो कर आईने के सामने खड़े हो कर वे बाल संवारने लगे.

चाय की ट्रे ले कर दीप्ति आई तो वे उस का चेहरा देखने लगे.

दीप्ति ने लजाते हुए पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

डाक्टर नवल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘फरिश्ते के चेहरे की कल्पना कर रहा हूं.’’

चाय की ट्रे को मेज पर रखते हुए दीप्ति ने इठलाते हुए कहा, ‘‘ओह, तुम्हारी कल्पना भी इतनी उड़ान भरने लगी?’’

‘‘पंडितजी की संगत का असर है.’’

‘‘अच्छाजी, पर अब ये जूतेकपड़े तो उतारो.’’

‘‘नहीं, मैं चाय पी कर फिर से औपरेशन थिएटर जाऊंगा. रहे हुए औपरेशन करूंगा. मेरे आसपास का अंधेरा छंट गया. अब तो चारों तरफ मु?ो रोशनी ही रोशनी नजर आ रही है.’’

दीप्ति पुलकित हो उठी. चाय समाप्त कर के डाक्टर नवल जब जाने लगे तो उस ने इसी पुलक में कहा, ‘‘जल्दी लौटना. मैं तुम्हें संस्कृत में कामशास्त्र पढ़ाऊंगी.’’

लिव इन की तड़प : सुमन को सबक सिखाने के लिए रवि ने कौनसा कदम उठाया

Writer- कुमसुम वर्मा

सुमन अपनी बादामी आंखों में मोटेमोटे मोतियों से आंसू लिए मु?ो अपनी दर्दभरी दास्तान सुना रही थी. उस समय उस के सांवलेसलोने मुखड़े पर निराशा एवं उदासी की स्याही फैली हुई थी.

सुमन का रवि के साथ लंबे समय से अफेयर चल रहा था. 6 महीने से वे लिव इन में एक रूम में ही रह रहे थे. दोस्तों को यह बात पता थी पर दोनों के मातापिता को नहीं. घर में चहलपहल होती थी. लेकिन उस रोज घर में एकांत कोना तलाश कर वहां बैठ कर वह किसी गहरे सोच में डूबी थी.

कभी सुमन अपने पार्टनर की मधुर कल्पनाओं में डूबी हुई होती तो कभी उस के होंठ उस के जोक्स पर मुसकराहट से फैल जाते, कभी रात के पैशन का सोच कर चेहरा लाज के मारे गुलनार हो जाता और वह अपना सांवला मुखड़ा हथेलियों में छिपा लेती. तभी उस की फ्रैंड ने उस के कंधे पर हाथ रखा.

सुमन की कल्पनाओं का महल टूट गया. उस के पास मधुरी खड़ी थी. आसमानी रंग की अमेरिकन जौर्जेट की औफशोल्डर ड्रैस पहने थी. गालों पर रूज, आंखों में तिरछा काजल और पतलेपतले नाजुक होंठों पर लिपस्टिक लगा रखी थी. वह अपनी शरारतपूर्ण नजरों से उस की तरफ देख कर बोली, ‘‘क्या सोच रही थी? क्या काम है जो तूने मु?ो यहां बुलाया?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘मु?ा से छिपाने की कोशिश कर रही हो? ओ मेरी जान, हमें भी तो बताओ अपने मन की बात?’’

‘‘कहा न कुछ भी नहीं.’’

‘‘मुंह से कह रही हो कुछ भी नहीं लेकिन मन में शायद किसी याद का दीपक जल रहा है. क्या तुम्हारा पार्टनर शहर से बाहर गया हुआ है?

‘‘यार लगता है मुकेश को मु?ा से बोरियत होने लगी है. वह अब उखड़ाउखड़ा रहता है.’’

‘‘क्यों?’’ माधुरी आश्चर्यभरी निगाहों से घूरती हुई बोली, ‘‘हां कई कपल्स में कुछ महीनों के बाद बोरियत सी छा जाती है.’’

‘‘ अच्छा, कुछ काम की बातें बताने आई हूं तुम्हें. अगर तुम मेरी बताई राह पर चलोगी तो हो सकता है तुम्हारा पार्टनर राजकुमार तुम्हारे आगेपीछे फिरे, तुम्हारी हर बात माने. अगर मेरी बात नहीं मानी तो मरजी से लिव इन में रहने के बाद भी तुम्हें सारा जीवन पार्टनर की दासी बन कर व्यतीत करना पड़ेगा.’’

‘‘पहेलियां मत बु?ाओ, सचसच बताओ, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘एक मिनट ठहरो,’’ कहते हुए मधु ने उठ कर एक ऐसी टेबल देखी जहां चारों ओर कोई नहीं था और वहां जा कर बैठ गई.

 

सुमन विचित्र सी निगाहों से मधु की तरफ देख रही थी. मधु ने कहना शुरू

किया, ‘‘यदि आरंभ में ही लड़की अपने पार्टनर को अपने बस में कर ले, बातबात में नखरे

दिखाए तो पार्टनर उस के चरणों का दास बन जाता है और सदा उस की उंगलियों पर नाचता रहता है. लेकिन अगर लड़की शुरू में ही अपने पार्टनर से दब जाए, अपने भीतर हीनभावना महसूस करे तो पार्टनर उस पर छा जाता है और लड़की पार्टनर की दासी बन कर रह जाती है. लिव इन में आपसी सम?ौते के बावजूद मेल ईगो हावी रहता है.’’

‘‘मगर मैं ने तो सम?ा था कि लिव इन में दोनों एकदूसरे के साथी होते हैं, लड़की हमदर्द होती है.’’

‘‘पुरुषों का लिखा हुआ कहीं मोटीवेशनल मैसेज इंस्टाग्राम पर पढ़ा होगा, जो लड़कियों के मन में इन्फीरियौरिटी जगाने के लिए लिखते हैं. तुम केवल मेरी बात याद रखो,’’ मधु गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘सैक्स ऐक्साइटेड आदमी में ही नहीं, औरत में भी होती है. फर्क केवल इतना होता है कि आदमी किसी युवा सुंदर फीमेल

शरीर को देख कर शीघ्र ही ऐक्साइट हो जाता है, किंतु औरत में ऐक्साइटमैंट जाग्रत होने में समय लगता है. इतना ही नहीं वह अपनी लिबिडो को काबू में भी कर सकती है और यही वह गुण है जिस के आधार पर वह पार्टनर को अपना

दीवाना और गुलाम बना लेती है. तुम दोनों ने लिव इन का फैसला चाहे कई बार रातें साथ गुजारने के बाद किया हो पर लड़कों का जेनेटिक गुण जाता नहीं है.’’

‘‘देखो मधु, अपनी भावनाओं पर काबू पाना और पति को दास बनाना मेरे बस का काम नहीं,’’ सुमन ने एक ही सांस में कह दिया.

मधु ने सुमनकी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘अगर तुम संयम से काम लो तो अवश्य ही

तुम्हें सफलता मिल सकती है. जानती हो जिस लड़की का शरीर पार्टनर को आसानी से मिल जाता है उस का मेल पार्टनर अपनी पार्टनर के लिए पागल नहीं होता. पार्टनर को अगर तरसने, तड़पने के बाद लड़की का जिस्म मिलता है तो वह उस की कद्र करता है. किंतु जो लड़की हलका सा इशारा पा कर स्वयं को पार्टनर के पहलू में डाल देती है उस लड़की के प्रेम में न तो वह बंधा रहता है, न ही वह उस की परवाह करता है. इस के विपरीत वह अपनी सुंदर पार्टनर को छोड़ कर साधारण शक्लसूरत की लड़कियों पर भी डोरे डालता फिरता है क्योंकि फीमेल पार्टनर का बदन उसे जब चाहे सहज ही प्राप्त हो जाता है. इसलिए उसे अपनी पार्टनर में उस रस का एहसास नहीं होता.

‘‘सुमन, अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारा पार्टनर केवल तुम्हारा रहे तो तुम्हें पार्टनर को नखरे दिखाने होंगे, उसे थोड़ा तरसाना होगा. मेरी बन्नो, तुम नहीं जानती कि जो लड़की जितने अधिक नखरे दिखाती है, लड़के उतना ही अधिक उस के आगेपीछे घूमते हैं. अब तुम खुद ही सोच लो कि तुम्हें क्या चाहिए स्वयं पार्टनर के इशारों पर नाचने वाली रहना या पार्टनर को अपना गुलाम बना कर रखना?’’

‘‘लेकिन बौयफ्रैंड अगर इन बातों से विमुख हो जाए तो?’’

‘‘ऐसा नहीं होता,’’ मधु ने कहा, ‘‘अब मेरे ही पति को देख ले न, मैं जब जी चाहे मायके आ कर बैठ जाती हूं और वह मेरे बगैर नहीं रह सकता. दौड़ता हुआ चला आता है मु?ा से मिलने. सुमन, तुम नारी हो कर भी स्त्री के सौंदर्य से अनभिज्ञ हो. जानती हो, पुरुष को रि?ाने और ?ाकाने के लिए ही कुदरत ने स्त्री को एक ऐसा खूबसूरत शरीर दिया है जिसे पाने की लालसा में आदमी सबकुछ नहीं, फिर भी बहुत कुछ कर सकता है. इसलिए तुम्हें अपने शरीर का सही इस्तेमाल करना होगा.’’

‘‘सही इस्तेमाल से तुम्हारा क्या मतलब है? हमारे सैक्स संबंध तो महीनों से हैं और दोनों फैशनेट रहते हैं,’’ सुमन ने प्रश्नसूचक नजरों से उस की तरफ देख कर पूछा.

मधु ने उस की ओर विचित्र सी निगाहों से देखा, फिर बोली, ‘‘अब क्या सारी बातें खोल कर सम?ानी पड़ेंगी? अपने दिमाग से भी तो काम लो न. कुछ पढ़ा भी है या सिर्फ सोशल मीडिया का ज्ञान बघार रही है.’’

मधु के जाने के बाद सुमन उस की बातों को सम?ाने का यत्न करने लगी. उस के मस्तिष्क में कई बातें बारबार गूंजने लगीं.

सुमन मधु की बातों पर जितना अधिक विचार करती वह उस के दिल में उतनी ही अधिकाधिक उतरती चली जातीं. धीरेधीरे उसे इस बात का एहसास होने लगा कि मधु ने जो कुछ भी कहा है वह सही है. यही एक ऐसा तरीका है जिसे अपना कर वह अपने बौयफ्रैंड को अपनी मुट्ठी में कर सकती.

1 सप्ताह इन्हीं विचारों में गुजर गया. दोनों साथ रहने का नाटक सा करते रहे. उन के बीच गरमाहट कम हो गई थी. उस के बाद वे 2 सप्ताह के लिए दोस्तों के साथ लंबे टूर पर निकले और वे दिन सुखपूर्वक गुजर गए.

एक दिन सुमन मधु का मैसेज मिला, जिस में उस ने अपनी उन्हीं बातों का जिक्र किया था. परिणामतया उस के दिमाग में मधु की वे बातें फिर घूमने लगीं और उस ने उसी दिन से मधु के बताए तरीकों पर अमल करने का निश्चय कर लिया.

शाम के 7 बज रहे थे. सुमन पहले फ्लैट

में आ चुकी थी. रवि के दफ्तर से लौटने का समय हो रहा था. वह ड्रैसिंगटेबल के सामने

खड़ी हो कर मेकअप करने लगी. सहसा रवि ने भीतर आ कर पीछे से उसे अपनी बांहों में भर लिया. वह तड़प उठी. उस ने रवि की पकड़ से निकलने का यत्न किया, मगर सफल न हो

सकी. इस पर वह तड़प कर बोलीं, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

रवि हंस कर बोला, ‘‘इसी बदतमीजी का तो दूसरा नाम प्यार है. आज तुम बीवी की तरह मेकअप क्यों कर रही हो.’’

‘‘तुम्हारी ये बातें मु?ो पसंद नहीं.’’

‘‘वाह, जवाब नहीं तुम्हारे नखरे का,’’ रवि मुसकरा कर बोला.

‘‘मु?ो तंग मत करो वरना…’’

‘‘वरना क्या? खैर, मैं बैठ कर तुम्हारी वेट करता हूं. देखूं तो सही तुम एक पत्नी की तरह कैसी लगोगी,’’ रवि ने एक गहरी सांस लेते हुए सुमन को छोड़ दिया.

 

रात गहराने लगी थी. रवि खिड़की के पास खड़ा न जाने क्या सोच रहा था. वह

बिस्तर पर जा कर लेट गई थीं. एकाएक रात को रवि ने उसे जगाया.

सुमन तड़प कर उठी. फिर क्रोध भरी नजरों से रवि की तरफ देख कर बोली, ‘‘कमाल के हो तुम. सोने भी नहीं देते.’’

‘‘सुमन,’’ रवि प्यारभरे स्वर में बोला, ‘‘आज मेरा मन बहुत बेताब हुआ जा रहा है.’’

‘‘लेकिन आज मेरा मन नहीं है. कल कर…’’

‘‘लेकिन मेरा मन तो है तुम भी तो तैयार

हो रही थीं… किस के लिए?’’ कहते हुए उस

ने उस का हाथ थाम लिया और फिर उसे चूम

भी लिया.

सुमन ने एक  ?ाटके से हाथ छुड़ा लिया और तमतमाए स्वर में बोली, ‘‘अगर ज्यादा तंग करोगे तो मैं बालकनी में जा कर सो जाऊंगी. आज तुम ने मेरा मूड औफ कर दिया है.’’

‘‘सुमन,’’ रवि एकाएक गंभीर हो गया.

‘‘हर रोज वही काम करना अब मु?ो अच्छा नहीं लगता. 1 साल हो गया उसी रूटीन को दोहराते हुए.’’

‘‘आखिर क्यों?’’ रवि ने तड़प कर पूछा.

‘‘हर बात की कोई हद होती है. तुम्हारी रोजरोज की इन हरकतों से मु?ो बोरियत महसूस होने लगी है,’’ सुमन ने प्रत्युत्तर में कहा.

‘‘लेकिन मु?ो तो बोरियत महसूस नहीं होती, उलटे अच्छा लगता है,’’ रवि ने बनावटी गंभीरता से कहा, ‘‘प्लीज, सुमन, मान जाओ.’’

‘‘तुम्हें तो बस अपनी चिंता है मेरी कोई परवाह नहीं,’’ वह कठोर स्वर में बोल गई.

अब रवि ने अधिक बोलना उचित नहीं सम?ा. वह केवल हौले से इतना ही बोल पाया, ‘‘ठीक है, सो जाओ,’’ कह कर उस ने करवट बदली और आंखें बंद किए निढाल सा पड़ा रहा.

 

उस दिन के बाद से सुमन ने रवि को तरसाना, तड़पाना शुरू कर दिया. ऐसा तो पहले

कभी नहीं हुआ था. रवि अविवाहित युवक की तरह मन मसोस कर रहने लगा. हां, कभीकभार वह रवि को आत्मसमर्पण कर देती परंतु रवि की व्यग्रता और बेसब्री बढ़ती रहे, इस विचार से वह अब ज्यादा नखरे दिखाने लगी थी. लिव इन में एकदूसरे का कौऔपरेशन जरूरी था पर सुमन के दिमाग में न जाने कौन सा कीड़ा घुस गया था.

एक रात रवि ने सुमन को मनाने का खूब यत्न किया, मगर उस ने तो मानो न मानने का प्रण कद रखा था. जब वह बिलकुल नहीं मानी तो रवि क्रोधित हो उठा और तनिक कठोर स्वर में बोला, ‘‘ज्यादा नखरे करना अच्छी बात नहीं है सुमन. मैं नखरे ढीले करना भी जानता हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ सुमन व्यंग्य भरी हंसी होंठों पर ला कर बोली, ‘‘अब तक कितनी लड़कियों

के नखरे ढीले करने का खिताब हासिल किया है?’’

‘‘इस मामले में तुम पहली लड़की साबित होगी.’’

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए उस ने कंबल और तकिया बगल में दबाया और बालकनी में जा कर दरवाजा बंद कर लिया. रवि बुत बना दरवाजे को कुछ पल तक घूरता रहा.

उन को साथ रहते हुए 6 महीने ही हुए, किंतु इस दरमियान सुमन ने रवि को कई बार तरसाया. एक दिन तो सुमन ने उस के दिल पर गहरा आघात पहुंचाया. लिव इन में रहना एक आपसी सम?ौता है पर इसे भी तोड़ना आसान नहीं है. रवि को अब एक घर, एक छत, एक बिस्तर की आदत हो चुकी थी. वह इस सम?ौते को बेवकूफी में तोड़ना नहीं चाहता था.

इस घटना को हुए 1 माह बीत गया मगर इस दौरान रवि में जो परिवर्तन आया उसे देख

कर सुमन के दिल में अब घबराहट सी होने लगी कि माधुरी गलत तो नहीं कह रही. वह खुद से पूछने लगी. वह उखड़ीउखड़ी सी रहने लगी थी. रवि की लापरवाही देख कर उस का दिल डूबने लगा था.

अब रवि का व्यवहार बदल गया था. उस का उत्साह न जाने कहां खो गया था. सुमन के प्रति उस की आंखों में चाहत का जो अथाह सागर रहता था, वह सूखने लगा था. अब वह कभी उस से प्यार जताने का प्रयत्न न करता. सदैव खामोश और गंभीर रहने लगा था. उस के होंठों की हंसी को जैसे किसी ने सदा के लिए नोच कर फेंक दिया था. ऐसे पतिपत्नी की तरह रह रहे थे जिन्हें जबरन गले बांध दिया हो.

सुमन अब बारबार यही सोचती कि अगर रवि एक बार भी उसे कहेगा तो वह आत्मसमर्पण कर देगी लेकिन रवि ने तो अब उस की उपेक्षा करनी आरंभ कर दी थी. जो कभी उस की हर इच्छा को मानने को तैयार रहता था, अब वह उस की बातों को अनसुना कर जाता था. घर के सारे काम वह मशीन की तरह करता. खर्च का अपना हिस्सा टेबल पर रख जाता. अब तो हिसाब भी मांगना बंद कर दिया था. बौक्स में कम पैसे से रहते तो वह बैंक से निकाल कर दे देता था. दोनों के पास शेयरिंग क्रैडिट कार्ड था और वह आधे शेयर से ज्यादा पैसे ट्रांसफर कर रहा था.

सुमन अब अपनी उपेक्षा सहन नहीं कर पा रही थी. वह रवि की नजरों में फिर पहले जैसा महत्त्व प्राप्त करना चाहती थी. पर कभी उसे स्वयं अपने व्यवहार पर खेद होता और कभी रवि के व्यवहार से मन कचोटने लगता. पिछले कुछ दिनों से वह रवि के कपड़ों पर विशेष ध्यान देने लगी थी. कभी उसे रवि के सूट पर लंबे रेशमी बाल मिलते, कभी लिपस्टिक का कोई हलका सा दाग और कभी ऐसे सैंट की खुशबू जिसे रवि इस्तेमाल नहीं करता था.

 

यह सब देखते हुए भी सुमन रवि से कुछ पूछने का साहस नहीं जुटा सकी. वह

जानती थी कि उस का रवि पर पत्नी सा हक तो है नहीं और गर्लफ्रैंड का रोल वह अदा नहीं कर रही तो पूछे क्या? जब भी कुछ बात करना चाहती रवि का गंभीर एवं कठोर चेहरा देख कर उस का कंठ शुष्क पड़ जाता. वह केवल कुछ क्षण प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे निहारती रहती. समय से औफिस जाती. अब देर से लौटती क्योंकि उस ने कुछ ऐक्स्ट्रा ड्यूटी ले ली थीं. उस की प्रमोशन भी हो गई थी.

रवि कभीकभार सुमन की आंखों में ?ांकता जरूर पर उस में छिपी समर्पण की भावना को ताड़ न सका वह. वस्तुत: उस ने सुमन की भावनाओं को सम?ाने का कभी प्रयास ही नहीं किया.

एक दिन सुमन जल्दी औफिस से आ गई. व्याकुल नजरों से बारबार डोरकी तरफ देखने लगी. वह लैपटौप पर काम करते हुए रवि की प्रतीक्षा कर रही थी. सहसा मोबाइल का अलार्म बजा. उस ने परेशान नजरों से घड़ी की तरफ देखा. रात के 11 बज चुके थे. उस का दिल घबराने लगा. वह पुन: उदास नजरों से खिड़की के बाहर देखने लगी. बिजली के खंभों की टिमटिमाती रोशनी को छोड़ कर सर्वत्र अंधकार छाया हुआ था. इस बिल्डिंग में 9 बजे के बाद चहलपहल वैसे ही कम हो जाती थी.

एकाएक लिफ्ट के दरवाजे की आवाज हुई तो वह दौड़ती हुई आगे बढ़ी और दरवाजा खोल कर उस का इंतजार करने लगी. कुछ क्षण बाद जैसे ही रवि ने घर में प्रवेश किया, वह अपनी नशीली आंखों से रवि की आंखों में ?ांकते हुए खास अंदाज में बोली, ‘‘ रवि, आज बहुत देर लगा दी तुम ने?’’

रवि ने उस के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और कोट उतार कर सोफे पर बैठ गया.

सुमन अपनी उपेक्षा देख कर तिलमिला उठी. फिर भी उस ने संयम से काम लिया. दरवाजा बंद कर के वह रवि के पास आई और उस के जूतों के फीते खोलते हुए बोली, ‘‘आप के लिए खाना गरम कर दूं? आज मैक्सिक्न मंगाया था. बेक्ड पोटैटो खुद भी बनाए हैं.’’

‘‘मु?ो भूख नहीं है,’’ रवि शुष्क स्वर में बोला.

रवि के निकट आने पर सुमन को लगा रवि शराब पी कर आया है. मगर वह कुछ कहने की हिम्मत न कर सकी. रवि ने जूते उतार कर रैक में रखे ही थे कि सुमन बोली, ‘‘तुम्हारा कोट अलमारी में टांग दूं?’’

‘‘तुम्हारे लिए इतना ही काफी है,’’ रवि ने उपेक्षा से कहा और फिर स्वयं दूसरे कमरे में जा कर उस ने कपड़े उतारे और नाइट सूट पहन कर बिस्तर पर लेट गया.

सुमन रवि के समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पिछले दिनों से तुम कुछ खिंचेखिंचे से नजर आ रहे हो?’’

‘‘मु?ो नींद आ रही है. प्लीज, मु?ो सोने दो,’’ कह कर रवि ने दूसरी तरफ करवट बदल ली.

‘‘लगता है, तुम मु?ा से अभी तक नाराज हो शायद इसीलिए मु?ा से दूरदूर रहने लगे हो?’’

‘‘दूरी बनी रहे तो ही अच्छा है.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ सुमन ने तड़प कर पूछा.

‘‘क्योंकि रोजरोज की उन्हीं बातों से बोरियत महसूस होने लगती है,’’ रवि ने जवाब दिया.

‘‘ऐसी भी क्या नाराजगी?’’ सुमन ने कहा, फिर रविका हाथ पकड़ कर अपने दिल पर रखते हुए बोली, ‘‘देखो तो यह दिल कितना तड़प रहा है.’’

रवि ने एक ?ाटके के साथ अपना हाथ खींच लिया और बोला, ‘‘कमाल की लड़की हो गई तम, मु?ो सोने भी नहीं देती.’’

 

सुमन के दिल को एक धक्का सा लगा. उस का दिल भर आया. आंखों में आंसू

छलक आए. वह अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करती हुई कुछ पल तक रवि की तरफ देखती रही, फिर अपना चेहरा हथेलियां में छिपा कर फफक कर रो पड़ी. लेकिन रवि पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह कंबल और तकिया उठा कर बैठक में चला गया.

अगले दिन सुमन ने रवि से कहा, ‘‘मैं मां के पास जाना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है. मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूगा,’’ रवि ने इतनी सहजता से कहा जैसे उसे जुदाई का तनिक भी दुख न हो.

सुमन गुस्से में आ कर पिता के घर चली आई, वह वहां रोज रवि के फोन का इंतजार करती. उसे विश्वास था कि एक न एक दिन

रवि उसे लेने जरूर आएगा परंतु 2 माह बीत

जाने पर भी रवि लेने नहीं आया. दोनों में

छिटपुट काम की बात होती थी. सुमन लगातार औफिस जा रही थी. उस के दोस्तों को यही लगा था कि सुमन कुछ दिन मां के पास गुजारना चाहती है.

मांबाप को जब पता चला कि  सुमन रवि

के साथ रह रही है तो उन्होंने बहुत सम?ाया

पर ये दोनों अपनी जिद पर अड़े थे कि वे अभी शादी के बंधन में बंधना नहीं चाहते. सुमन

अपने मांबाप की इकलौती संतान थी और पढ़ीलिखी थी इसलिए मांबाप को उस के भविष्य की चिंता नहीं थी. मातापिता दोनों के अपने कैरियर थे इसलिए उन्होंने यंग एडल्ट्स को अपने फैसले करते देखा था और चाहेअनचाहे उसे इजाजत दे दी थी. वह इस बार से पहले भी

कई 8-8, 10-10 दिनों के लिए पेरैंट्स के पास रहने आती थी और रवि भी पेरैंट्स से हिलमिल गया था.

उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उन की बेटी ने किस बहकावे में आ कर रवि को टैस्ट करना शुरू कर दिया है. वह आई तो उन्होंने उसे सामान्य सम?ा क्योंकि वह रोज पहले की तरह औफिस चली जाती थी और शाम को आ कर मां के साथ गप्पें लगाती थी.

एक दिन सुमन को ही ?ाकना पड़ा, अपनी हार माननी पड़ी. वह स्वयं रवि के घर चली गई.

इतने दिनों की जुदाई के बावजूद रवि ने उस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. उसे रवि के पास लौटे 2 दिन बीत चुके थे लेकिन रवि में

कोई अंतर नजर नहीं आ रहा था. वह बेहद परेशान हो उठी. उसे अब इस बात का एहसास होने लगा था कि उन की बसीबसाई जोड़ी किसी भी समय उजड़ सकती है. लिव इन में यह सुविधा तो है कि जब चाहो अपना सामान ले

कर चलते बनो पर जब एक साथी के साथ रहने की आदत पड़ जाए तो बात ब्रेकअप की कठिन होती है.

तीसरे दिन अपने दफ्तर में सुमन विचार में डूबी थी. आखिर उस ने फैसला किया कि वह रवि से क्लीयर बात करेगी, उस से अपने बिहेवियर के लिए सौरी बोलेगी. उस रात वह

8 बजे घर आ गई. रात 10 बजे कार की

आवाज के कुछ क्षण बाद ही दरवाजे की घंटी बजी. उस ने जैसे ही डोर खोला तो देखा रवि के साथ 24-25 वर्ष की छरहरे बदन की एक युवती थी. वह निर्लज्जता से मुसकराती हुई उस की ओर देख रही थी. अपने हावभाव से वह कोई कौलगर्ल लगी.

सुमन की आंखों में खून उतर आया. उस का चेहरा क्रोधावेश में लाल पड़ गया. वह

क्रोधित स्वर में बोली, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती? गर्लफ्रैंड के घर में रहते किसी वेश्या को घर में लाते हुए…’’

‘‘चुप रहो, तुम्हें मेरे निजी मामले में दखल देने की कोई जरूरत नहीं,’’ रवि गुस्से से बोला, ‘‘यह घर मेरा भी है. मैं यहां कुछ भी कर सकता हूं. शुक्र करो कि मैं ने घर छोड़ा नहीं है, अगर तुम अपना भला चाहती हो तो खामोश रहो.’’

रवि के ये शब्द कानों में उतर कर उस के दिल को घायल कर गए. आंखें आंसुओं से डबडबा गईं. उस ने थरथराती, रोंआसी आवाज में कहा, ‘‘छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा मत दो. मु?ो माफ कर दो.’’

‘‘माफ और तुम जैसी लड़की को, जिस

ने अपने बौयफ्रैंड को सिवा तड़प के कुछ न दिया हो?’’ वह दांत किटकिटा कर बोला, ‘‘मैं तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता,’’ कह कर उस ने आगे बढ़ने की कोशिश की परंतु वह उस के पैरों को पकड़ती हुई बोली, ‘‘आप जो कहेंगे, मैं वही करूंगी, लेकिन मु?ो…’’

सुमन अपनी बात पूरी तरह कह भी नहीं पाई थी कि रवि की आंखों में घृणा के गहरे बादल सिमट आए. वह चिल्ला उठा, ‘‘तुम नफरत के काबिल हो, माफी के नहीं. जाने दो मु?ो.’’

‘‘नहीं, मैं मर जाऊंगी, पर इस घर में कौलगर्ल को अपने बैड पर सजने नहीं दूंगी.’’

 

‘‘हट जाओ वरना…’’ रवि गरज उठा और अपने हाथों से उसे दूर धकेल कर

तेज कदमों से उस युवती को ले कर बैडरूम में चला गया.

2 घंटे बाद जब वह लड़की कमरे से निकली तो साफ लग रहा था कि उस ने न तो कपड़े उतारे, न ही दोबारा मेकअप किया. ऐसा साफ था कि वह बस बैठी रही.

सुमन का मन भर आया कि वे लिव इन में रह रहे पर न जाने क्यों वह रवि पर अधिकार जमाने लगी. उसे सबक सिखाने के लिए ही रवि ने यह सब किया.

वह लड़की जातेजाते बोल गई कि हर अपने इंपोटैंट बौयफ्रैंड को छोड़ दे. मेरे साथ चल, रोज मजा कराऊंगी. कमाई भी होगी.

सुमन ने बैडरूम का दरवाजा खोला और रवि को बांहों में भर कर उस पर चुंबनों की बौछार कर दी.

कुछ देर तो रवि अकड़ा खड़ा रहा पर फिर पिघल गया. अगली सुबह जब वे उठे तो 10 बजे चुके थे. उन्हें औफिस के लिए देर हो गई थी पर किसे परवाह थी.

ग्रहों की शांति: रामचरण कैसे अंधविश्वास से निकला?

‘‘बोलो माताजी महाराज की जय,’’ पंडित का यह स्वर कानों में पड़ते ही घर की औरतों ने घूंघट खींच लिए और बारीबारी से पंडित के पैर छूने के लिए आंगन में आ गईं.

‘‘सदा खुश रहो. जल्द ही बेटे का मुंह देखो,’’ पंडित ने घर की नई बहू के सिर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद दिया.

‘‘चलो, सब औरतें घर के भीतर जाओ. हमें पंडितजी से कुछ बात करनी है,’’ घर के मुखिया रामचरण ने घर की औरतों को अंदर भेज दिया और फिर पंडितजी के साथ चारपाई पर बैठते हुए बोले, ‘‘पंडितजी, 3 बेटों का बाप होने के बाद भी पोते का मुंह नहीं देख पा रहा हूं. जो उपाय आप ने दोनों बेटों की बहुओं को बताए थे वे सब करने के बाद भी दोनों ने एक के बाद एक 4 लड़कियां पैदा की हैं.’’

‘‘अरे, कहां, रामचरण, आप की बहुओं को एकादशी का निर्जला व्रत करने को कहा था मैं ने, जब वे पहली बार पेट से थीं. बड़ी बहू तो आधे व्रत में ही बेहोश हो गई और पता नहीं दूसरी ने भी व्रत पूरा किया या नहीं. अरे, एक बार व्रत पूरा नहीं हुआ तो देवीमां थोड़े ही बारबार मानती हैं,’’ पंडित ने अपनी झोली से पत्रिकाएं निकाल लीं, ‘‘अरे, रामचरणजी, आप तो सभी संस्कार भूल गए हैं. हमें आए इतनी देर हो गई और आप की बहुओं ने चायनाश्ता भी नहीं कराया, घर आए पंडित को भूखा

रखना पाप है.’’

पंडित की यह बात सुन कर रामचरण गुस्से में चिल्लाए, ‘‘अरे, रमेश की बहू, पंडितजी के लिए चायनाश्ता ला.’’

कुछ देर बाद ही पंडितजी ने चायनाश्ता कर के नई बहू और बेटे का मंदिर में आ कर हवन कराने का मुहूर्त निकाला और चले गए.

रामचरण गजोला गांव के सरपंच हैं.

3 बेटे और अब 3 बहुओें से भरापूरा परिवार है. छोटे बेटे की शादी को अभी 4 दिन हुए हैं. मंदिर में पूजा कराने के लिए मुहूर्त के लिए पंडित को घर बुलवाया था, पर पंडित जातेजाते उन्हें एक बार फिर पोते का सपना दिखा गया.

‘‘अरी, रमेश की अम्मां, पंडितजी ने कल सुबह का मुहूर्त निकाला है. मंदिर में पूजा के लिए सभी को कह दे. सुबहसुबह तैयार रहेंगे,’’ रामचरण अपनी बीवी को कह कर घर के बाहर निकल गए.

रसोईघर में जा कर उन की बीवी ने सभी बहुओं को जल्दी तैयार होने को कह दिया. उन के जाने के बाद बहुएं आपस में बातें करने लगीं, ‘‘अरे, पंडित भी न, मुआ पता नहीं कब हमारी जान छोड़ेगा,’’ रमेश की बीवी गीता बोल पड़ी, ‘‘पैर कब्र में हैं, पर देखा, नई बहू को कैसे घूर रहा था.’’

‘‘हां दीदी, जब मेरी शादी हुई थी तो आशीर्वाद देने के बहाने बारबार कभी मेरी कमर तो कभी सिर पर हाथ फेर रहा था,’’ बीच वाली बहू मंजू बोली.

‘‘जब मैं पहली बार पेट से थी तो 7वें महीने में एकादशी का व्रत आया. मुझ से बोला कि अगर निर्जला व्रत करोगी तो बेटा होगा. अरे, 7वें महीने 1 घंटे भी भूखाप्यासा नहीं रहा जाता, तो पूरे 24 घंटे कैसे रहती? आधे दिन में बेहोश हो गई. इसलिए बेटी होने पर सब दोष मेरे सिर आ गया,’’ गीता की आवाज भर्रा गई.

‘‘दीदी, जाने भी दो, इस पंडित ने तो मांबाप

दोनों को बस में कर रखा है. साल में जितने ये हम से व्रत रखवाएगा उतना ही तो दान बापू से पाएगा,’’ मंजू पानी की बालटी उठा कर किचन से बाहर चली गई और गीता अपने काम में लग गई, पर दिल की धड़कन तेज हो गई सीमा की, जो अभी बस, 4 दिन पहले ही इस घर में आई थी. उसे भी पंडित की नजरें सही नहीं लगी थीं, पर बेचारी नई है, घर में दोनों बहुओं की बातचीत से उस ने अपने को दूर ही रखा.

अगली सुबह घर के सारे लोग नहाधो कर मंदिर की ओर चल पड़े. रास्ते में औरतों का एक झुंड देख कर गीता ने सीमा से कहा, ‘‘नई बहू, वहां उन औरतों के चेहरे मत देखना. देखना, उन के पास से जब हम निकलें तो आंखें नीची रखना.’’

‘‘क्यों दीदी, क्या हुआ?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘अरे, वह विधवाओं का झुंड है. वे सुबह तड़के ही मंदिर से पूजा कर के वापस आ रही हैं. सूरज निकलने के बाद वे मंदिर क्या, घर के बाहर भी नहीं जा सकतीं, समझी? बस, सुबह उन के मुंह देखना अपशकुन है,’’ गीता ने सीमा से कहा.

मंदिर पहुंच कर रामचरणजी ने पंडित से पूछा, ‘‘पंडितजी, ये विधवाएं आज देर से मंदिर आई थीं क्या? हमारे रास्ते में पड़ गई थीं. इन को कहा था कि सुबह तड़के मंदिर आ कर अपनेअपने घर में बंद रहा करो.’’

‘‘अरे, रामचरणजी, आप गुस्सा मत हों, आज के बाद ऐसा नहीं होगा. आप आइए, पूजा करिए,’’ पंडित ने पूजा संपन्न की और बोला, ‘‘रामचरणजी, आप की नई बहू के ग्रह कुछ अनुकूल नहीं हैं. राहु जल्द ही मंगल के साथ आ कर इस की राशि में आने वाला है,’’ पंडित ने अपना सिर खुजाया.

‘‘अरे, पंडितजी, पर आप ने ही तो विवाह से पहले इन की कुंडलियां मिलाई थीं और

आप ने कहा था, इस के ग्रह बहुत अच्छे

हैं,’’ रामचरणजी ने चिंता से पंडित से कहा.

पंडित कुछ हड़बड़ा गया, ‘‘अरे, वे ग्रह कुंआरी लड़की के थे, अब एक विवाहिता के ग्रह हैं,’’ पंडित ने बात संभाली.

‘‘अब आप ही कहें, क्या करें हम?’’ रामचरण ने पंडित से पूछा.

‘‘करना क्या है, रामचरणजी, ग्रह शांति के लिए 12 दिन का हवन है, जो हम यहां अपने दूसरे पंडितों की सहायता से करेंगे और उस का प्रसाद 12वें दिन आप की बहू ग्रहण कर लेगी. बस, सारी चिंताएं दूर हो जाएंगी,’’ फिर पंडित उंगलियों पर कुछ हिसाब करने लगा.

‘‘रामचरणजी, ग्रह की दशाओं के अनुसार यह हवन हम पंडित ही कर सकते हैं. आप के घर का इस में कोई नहीं बैठे. आप बस, हवन सामग्री के लिए 5,100 रुपए दे दीजिए. हम हवन संपन्न कर देंगे.’’

पंडित की बात सुन कर रामचरणजी तुरंत राजी हो गए और पैसे पंडित को दे कर वापस आ गए.

घर आ कर सीमा ने अपने पति सूरज से इस

अंधविश्वास के बारे में बात करनी चाही पर सूरज ने यह कह कर बात टाल दी कि ग्रहों की दशा पंडित से बेहतर कौन समझ सकता है. इसलिए उन को इस सब में नहीं पड़ना चाहिए. पर सीमा का मन बेचैन हो रहा था. वह समझ चुकी थी कि यह एक शुरुआत है. अभी उसे बड़ी भाभियों की तरह इस अंधविश्वास के नाम पर बहुत कुछ सहना पड़ेगा.

हवन हो गया. फिर व्रतों का सिलसिला चल पड़ा. वह पंडित अपनी टोली के साथ किसी न किसी बहाने रामचरण को डरा कर, कभी ग्रह का डर तो कभी नक्षत्रों का भय दिखा कर पैसे लेता रहता और इस सब का असर सीमा पर और दूसरी बहुओं पर होता. उन्हें पूरे दिन का उपवास, कभी ठंड में सुबहसुबह नदी के ठंडे पानी में नहाने और कभीकभी तो 7 दिन तक मौन व्रत भी रखना पड़ता. हद तो तब हो जाती जब नदी में स्नान के बाद गीले कपड़ों में उन्हें पंडित मंदिर बुलाता और पंडित की लालची निगाहें उन के गीले बदन को घूरतीं.

सीमा के सब्र का बांध टूटने को था कि घर में जैसे भूचाल आ गया. 5 महीने के बाद भी जब सीमा ने गर्भधारण नहीं किया तो पंडित ने ग्रहों को एक बार फिर अनुकूल करने के लिए 3 रातों तक मंदिर में महाकाली का हवन कराने की सलाह दी. जब सीमा को पता चला तो वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे रोता देख गीता ने उस की हिम्मत बढ़ाई, पर सीमा बोली, ‘‘दीदी, आप तो सब जानती हैं, यह पंडित कितना कमीना है. मैं रात में अकेली मंदिर में हवन के लिए नहीं जाऊंगी. बच्चा पैदा करना क्या सिर्फ मेरे हाथ में है? यह तो पतिपत्नी दोनों के हाथ में है. तो हवन में सिर्फ मैं ही क्यों जाऊं, मेरे पति क्यों नहीं बैठ सकते?’’

सीमा की बातों में दम था पर गीता उसे समझाने लगी, ‘‘तू घबरा मत. तू आज रात को जा. वे पंडित कुछ नहीं करेंगे,’’ गीता ने सीमा को झूठी तसल्ली दी.

रात को डरतेडरते सीमा हवन के लिए अकेली मंदिर पहुंच गई. पंडित और उस के चेले पहले से ही वहां मौजूद थे.

‘‘आ जाओ, दुलहन, बैठो,’’ पंडित ने सीमा को अपने पास बैठने को कहा पर सीमा उस के सामने ही बैठ गई.

‘‘क्या दुलहन, 5 महीने बाद भी गर्भ नहीं ठहरा, मतलब घोर विपदा आने वाली है, पर मेरे पास सब का हल है, अगर तुम चाहो तो…,’’

सीमा ने घूर कर पंडित को देखा.

‘‘अरे, मेरा मतलब है, यह हवन कर के सब कुछ ठीक हो जाएगा,’’ सीमा का मन घबराने लगा. 3 घंटे तक पंडित कुछ मुंह में ही मंत्र बोलता रहा और हवन में सामग्री डालता रहा. रात गहराने लगी.

‘‘अरी दुलहन, अगर थक गई हो तो थोड़ा आराम कर लो. हवन 1 घंटे बाद फिर शुरू करेंगे,’’ पंडित ने लालची निगाहों से सीमा को ऊपर से नीचे तक देखा.

‘‘नहीं, हम ऐसे ही ठीक हैं. हमें आराम नहीं करना,’’ सीमा अपनी जगह से नहीं हिली.

‘‘अरे दुलहन, हवन तो हमारे चेले कर ही रहे हैं. चलो, भीतर थोड़ा आराम कर लो,’’ पंडित थोड़ा सा पास आ कर कहने लगा, ‘‘देखो दुलहन, तुम्हारे ससुर को पोता चाहिए. उस के लिए तुम्हें कुछ तो करना ही होगा.

‘‘मेरा मतलब अभी 2 रातें बाकी हैं. आज नहीं तो कल आराम कर लेना.’’

पंडित की बातें सीमा को समझ में आ गई थीं. पूरी रात पंडित सीमा को बहलाने की कोशिश करता रहा.

सुबह तड़के विधवाओं के मंदिर आने पर सीमा की जान में जान आई. पंडित के एक चेले ने उन विधवाओं से पूजा की थाली ली. सीमा साफ देख पा रही थी कि थाली लेने के बहाने  चेला उन विधवाओं को घूर रहा था. एक विधवा का तो उस चेले ने हाथ ही पकड़ लिया था, पर वे विधवाएं चुपचाप अपना अपमान करा रही थीं. मंदिर से लौटते समय सीमा ने उन विधवाओं को रोक लिया. ‘‘देखो बहनो, वह पंडित और उस के चेले ठीक नहीं हैं. तुम सब क्यों अपना ऐसा अपमान करवा कर भी चुप हैं?’’

उन में से एक विधवा बोली, ‘‘दीदी, आप

के सिर पर पति का साया है, फिर भी आप रात को मंदिर में इस पंडित के पास आईं मगर हम तो असहाय हैं. हम विरोध नहीं कर सकतीं. हमें तो जब चाहे यह रात को हवन के बहाने बुला सकता है और हमारे घर के लोग ग्रहों के डर से हमें यहां भेज देते हैं. आप हमारी फिक्र मत करिए, हमें तो आदत हो गई है इस अपमान की.’’

वे सब चली गईं, पर सीमा को आईना दिखा गईं. सीमा ने गहरी सांस ली और घर आ गई. वह जानती थी और उसे यह बात समझ में आ गई थी कि पंडित का हौसला सिर्फ इसलिए बढ़ा है, क्योंकि औरतें लोकलाज के डर से उस के खिलाफ नहीं जा सकतीं, पर वह नहीं सहेगी. एक रात तो बच गई पर आज रात वह पंडित उसे नहीं छोड़ेगा और अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो फिर ग्रहों की दशा का बहाना कर वह बाबूजी के कान भरेगा और कोई और रास्ता खोज लेगा.

सीमा ने काफी देर तक सोचविचार कर एक योजना बनाई. उस ने घर की बड़ी बहू को पूरी योजना बताई, गीता ने भी सीमा का साथ देने का मन बना डाला. रात को जब सब सो गए और सीमा मंदिर चली गई तब गीता ने जोरजोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. सब घर वाले आंगन में इकट्ठा हो गए. तब गीता बोली, ‘‘मांजी, मुझे अभी कालीमां का सपना आया है. अगर हम सब इसी वक्त मंदिर में मां के दर्शन करने नहीं गए तो अनर्थ हो जाएगा.’’

सपने वाली बात सुन कर घर के सभी लोग मंदिर जाने को तैयार हो गए और वहां मंदिर में अपनी योजनानुसार सीमा वक्त देखने लगी. रात गहराते ही पंडित ने उसे आराम करने को कहा, वह तुरंत मान गई. वहां घर से जब सब मंदिर जाने के लिए निकले तो मंदिर में पंडित और सीमा को कमरे में जाता देख पंडित के चेले भी हवन छोड़ कर दारू पीने लगे. थोड़ी देर बाद ही जब रामचरण का परिवार मंदिर पहुंचा तो पंडित के चेलों को दारू पीता देख उन के होश उड़ गए.

तभी योजनानुसार सीमा भी चीखतीचिल्लाती पंडित के कमरे से बाहर निकली. अपने घर की बहू की ऐसी हालत देख कर रामचरणजी गुस्से में आ गए और उन्होंने पंडित का गला पकड़ लिया.

‘‘अरे रामचरणजी, आप की बहू पर काला साया है. वह चुड़ैल है…’’ पंडित कुछ और कहता, उस से पहले ही रामचरण ने उस के मुंह पर ही 2-4 घूंसे जड़ दिए.

‘‘कमीने पंडित, तू ने हमारे घर की बहू को छुआ कैसे? ग्रहों के नाम पर हमें लूटता रहा और हम घर की शांति के लिए अपना धन लुटाते रहे, पर हमारी आंखों पर तो पट्टी बंधी थी, जो पोते के लालच में हम ने अपनी बहू को यहां भेजा,’’ रामचरण ने एक और थप्पड़ पंडित को जड़ दिया.

पंडित के बाकी चेले अब तक रामचरण के बेटों की लातों और घूंसों से होश में आ चुके थे.

रामचरण को पंडित को मारते देख सीमा

बोली, ‘‘बाबूजी, रुकिए, पंडित को मारने से क्या होगा? आज यह पंडित चला जाएगा तो दूसरा आ जाएगा. दोष इन पंडितों का नहीं है, हमारे डर का है. ग्रह आसमान में नहीं हमारे दिलों में हैं, जिन की शांति के लिए हम इन पंडितों के पास आते हैं और ये पंडित जैसा चाहे उस का फायदा उठाते हैं. आप जब तक इन अंधविश्वासों से नहीं निकलोगे तब तक ये पंडित हमारा फायदा उठाते रहेंगे. मेरा साथ तो आप सब ने दिया पर उन विधवाओं के बारे में सोचें, जो आए दिन ऐसे पंडितों का शिकार होती हैं और इन के साथसाथ अपने घर के लोगों द्वारा भी अपमानित होती हैं. बाबूजी, कृपया आप उन्हें भी अंधविश्वासों के इस जाल से मुक्ति दिलाएं.’’

सीमा की बात सुन कर रामचरणजी की आंखें खुल गईं और वे बोले, ‘‘बेटी, तुम

चिंता मत करो. तुम ने मेरी आंखें खोली हैं. मैं बाकी गांव वालों की भी आंखें खोलूंगा. चलो, घर चलें. इस पंडित और इस के चेलोें को कमरे में बंद कर दो, सुबह इन की ग्रहों की शांति जो करनी है.’’

झिलमिल सितारों का आंगन होगा

नीलमस्ती में गुनगुना रहा था, ‘‘मेरे रंग में रंगने वाली, परी हो या हो परियों की रानी,’’ तभी पीछे से उस की छोटी बहन अनु ने आ कर कहा, ‘‘भैया प्यार हो गया है क्या किसी से शादी के बाद?’’

नील बोला, ‘‘नहीं तो पर गाना तो गा ही सकता हूं.’’

अनु मुसकराते हुए अंदर चाय बनाने चली गई. तभी घर के बाहर कार के रुकने की आवाज आई. अनु ने खिड़की से देखा, राजीव भैया और मधु भाभी आ रहे थे.

अनु जब चाय ले कर कमरे में पहुंची तो राजीव भैया बोले, ‘‘अनु मेघा भाभी नहीं आई अब तक?’’

इस से पहले कि अनु कुछ बोल पाती, मम्मी बोलीं, ‘‘अरे मेघा के तो बैंक में बहुत काम चल रहा है देर रात घर में पहुंचती है. बेचारी का काम के बो झ के कारण चेहरा उतर जाता है.’’

नील बरबस बोल उठा, ‘‘अरे मम्मी बहू ही तुम्हारी काले मेघ जैसी है, तुम बेकार में ही काम को दोष दे रही हो.’’

मेघा ने तभी घर में कदम रखा था. नील की बात पर वह सकपका गई.

नील खुद ही अपने चुटकुले पर हंसने लगे. नील की मम्मी का माथा ठनका और बोलीं, ‘‘नील हंसीमजाक करने का भी एक स्तर होता है.’’

नील बोला, ‘‘मम्मी मेघा मेरी जीवनसाथी है. मेरे साथसाथ मेरे मजाक को भी सम झती है.’’

मगर मेघा को देख कर ऐसा नहीं लग रहा था. कुछ देर बाद मेघा तैयार हो कर बाहर आ गई. महरून सूट में बेहद सलोनी लग रही थी. परंतु नील बारबार मधु की तरफ देख रहा था.

राजीव नील का करीबी दोस्त था. अभी पिछले हफ्ते ही उन का विवाह हुआ था. मधु बेहद खूबसूरत थी, परंतु मेघा के तीखे नैननक्श भी कुछ कम नहीं थे.

डाइनिंगटेबल पर तरहतरह के पकवान सजे हुए थे. अनु बोली, ‘‘मधु भाभी यह फ्रूट कस्टर्ड और शाही पनीर हमारी मेघा भाभी की पसंद हैं.’’

राजीव बोल उठा, ‘‘अरे अनु, मधु कुछ भी फ्राइड या औयली नहीं लेती हैं. चेहरे पर दाने आ जाते हैं.’’

एकाएक नील प्रशंसात्मक स्वर में बोल उठा, ‘‘फिर गोरे रंग पर अलग से दिखते भी हैं. गहरे रंग में तो सब घुलमिल जाता है.’’

मेघा बोली, ‘‘हां सिवा प्यार के,’’ उस के बाद मेघा वहां रुकी नहीं और दनदनाती हुई अंदर चली गई. उस के बाद महफिल न जम सकी.

जब वे लोग जा रहे थे तो मेघा उन्हें छोड़ने बाहर भी नहीं आईर्. कमरे में घुसते ही नील बोला, ‘‘मेघा तुम बाहर क्यों नहीं आईं?’’

मेघा ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं थक गई थी और तुम तो थे न वहां मधु का ध्यान रखने के लिए.’’

नील गुस्से में बोला, ‘‘इतनी असुरक्षित क्यों रहती हो? अगर कोई सुंदर है तो क्या उसे सुंदर कहने से मैं बेवफा हो जाऊंगा.’’

मेघा बोली, ‘‘नील मैं तुम्हारी तरह अपने पापा के साथ काम नहीं करती हूं कि जब मरजी हो तब जाओ और जब मरजी हो तब मत जाओ.’’

नील गुस्से में बोला, ‘‘बहुत घमंड है तुम्हें अपनी नौकरी का. जो भी करती हो अपने लिए करती हो. मेरे लिए तो तुम ने कभी कुछ नहीं किया है.’’

सुबह मेघा के दफ्तर जाने के बाद मम्मी नील से बोलीं, ‘‘नील, कुछ तो बिजनैस पर ध्यान दे. शादी को 7 महीने हो गए हैं. कल को तुम्हारे खर्चे भी बढ़ेंगे.’’

नील हमेशा की तरह मम्मी की बात को टाल कर चला गया. रात को खाने पर पापा गुस्से में नील से बोले, ‘‘तुम्हारा ध्यान कहां है? आज पूरा दिन तुम दफ्तर में नहीं थे. ऐसा ही रहा तो मैं तुम्हें खर्च देना बंद कर दूंगा.’’

नील बेशर्मी से बोला, ‘‘पापा, आप कमाते हो और मम्मी घर पर रहती हैं पर मेरे केस में मेरी बीवी कमाती है और मैं बाहर के काम देख लेता हूं.’’

मेघा हक्कीबक्की रह गई. अंदर कमरे में घुसते ही मेघा ने नील को आड़े हाथों लिया, ‘‘क्या तुम ने मु झ से शादी मेरी तनख्वाह के कारण की है? मैं ने तो सोचा था कि तुम घर की जिम्मेदारियां उठाओगे और मैं पैसे बचा कर एक घर खरीद लूंगी. कब तक मम्मीपापा पर बोझ बने रहेंगे.’’

नील भी गुस्से में बोला, ‘‘मैं ने भी सोचा था कि गोरीचिट्टी बीवी लाऊंगा, जो मु झे सम झेगी और मेरी मदद करेगी. पर तुम्हें तो अपनी नौकरी की बहुत अकड़ है.’’

हालांकि नील ने यह बात दिल से नहीं कही थी पर यह मेघा के दिल में फांस की तरह चुभ गई.

आज पूरा दिन बैंक में मेघा को नील का रहरह कर मधु को देखना याद आ रहा था. बारबार वह यही सोच रही थी कि क्या वह बस नील की जिंदगी में नौकरी के कारण है.

एकाएक उसे अपनी दादी की बात याद आ गई. दादी कितना कहती थीं कि बिट्टू यह गोरेपन की क्रीम लगा ले. आजकल काले को भी गोरी दुलहन चाहिए.

मेघा का जब गौरवर्ण नील से विवाह हो रहा था तो उस ने दादी से कहा था, ‘‘दादी, देखो तुम्हारी बिट्टू को गोरा दूल्हा मिल गया है और वह भी बिना फेयर ऐंड लवली के.’’

मगर आज मेघा को लगा था कि नील ने तो उस की नौकरी के कारण उस के काले रंग से सम झौता किया था.

मेघा की जिंदगी में वैसे तो सबकुछ नौर्मल था, पर एक अनकहा तनाव था, जो उस के और नील के बीच पसर गया था. नील को लगने लगा था कि मेघा को अपनी नौकरी का घमंड है तो मेघा को लगता था कि नील उस की दबी हुई रंगत के कारण अपने दोस्तों की बीवियों से हेय सम झता है. इसलिए नील उसे कभी भी अपने किसी दोस्त के घर ले कर नहीं जाता था.

उधर नील अपनी नाकामयाबियों के जाल में इतना फंस गया था कि उस ने अपना सामाजिक दायरा बहुत छोटा कर लिया था.

नील कुछ करना चाहता था. वह प्रयास भी करता पर विफल हो जाता था. पिता के व्यापार में उस का मन नहीं लगता था. वह अपने हिसाब से, अपनी तरह से काम करना चाहता था. आज उसे एक बहुत अच्छा प्रोपोजल आया था. काम ऐसा था, जिस में नील अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई को भी इस्तेमाल कर सकता था. परंतु अपने काम के लिए उसे पूंजी की जरूरत थी. नील को पता था कि  उस के पिता अपने पुराने अनुभवों के कारण उस की मदद नहीं करेंगे.

नील को लगा मेघा उस की जीवनसाथी है शायद वह उस की बात सम झ जाए. जब नील ने मेघा से कहा तो मेघा तुनक कर बोली, ‘‘अलग बिजनैस का इतना ही शौक है, तो अपनी कमाई से कर लो. मु झे तो लगता है कि तुम ने मु झ से शादी ही इस कारण से की है कि बीवी की कमाई से अपने सपने पूरे करोगे. फ्रीसैक्स मु झ से मिल ही रहा है. जेबखर्च 30 की उम्र में भी अपने पापा से लेते हो और बाहर घुमाने के लिए ये पतली, सुंदर और गोरी लड़कियां तो तुम्हारे पास होंगी ही न.’’

रात में खाने की मेज पर तनाव छाया रहा. अनु ने चुपके से पापा को सारी बात बता दी थी.

पापा ने मेघा से कहा, ‘‘बेटा एक बार नील की बात पर ठंडे दिमाग से सोचो. जब बच्चे हो जाएंगे तो वैसे ही तुम लोगों का हाथ तंग हो जाएगा.’’

मेघा भाभी फुफकार उठीं, ‘‘अच्छा बहाना ढूंढ़ा है पूरे परिवार ने पैसा उघाई का. जानती हूं एक काली लड़की का उद्धार क्यों किया है इस परिवार ने. अब कीमत तो चुकानी ही होगी न? इतना ही अच्छा बिजनैस प्रोपोजल है तो आप क्यों नहीं लगाते हो पैसा.’’

नील अपनाआपा खो बैठा और चिल्ला कर बोला, ‘‘काला तुम्हारी त्वचा का रंग नहीं पर दिल का रंग है मेघा, तुम से शादी मैं ने अपने दिल से की थी पर लगता है कुछ गलती कर दी है.’’

नील बेहद रोष में खाना अधूरा छोड़ कर चला गया था. यह जरूर था कि वह मेघा को चिढ़ाने के लिए कुछ भी बोल देता था पर उस के दिल में ऐसा कुछ नहीं था. आज मेघा वास्तव में विद्रूप लग रही थी. न जाने क्या सोच कर नील ने कार राजीव के घर की तरफ मोड़ दी थी.

3 बार घंटी बजाने के पश्चात नील मुड़ ही रहा था कि मधु ने दरवाजा खोला. एक रंग उड़ेगा उन में और छितरे हुए बालों में वह बेहद फूहड़ लग रही थी. लग ही नहीं रहा था कि उस के विवाह को एक माह ही हुआ है. अंदर का हाल देख कर तो नील चकरा ही गया. चारों तरफ कपड़ों का अंबार और धूल जमी हुई थी.

राजीव  झेंपते हुए बोला, ‘‘अरे, मधु को धूल से ऐलर्जी है. 2 दिन से कामवाली भी नहीं आ रही है.’’

मधु ट्रे में 2 कप चाय ले आई. अचानक नील को लगा कि वह कितना खुशहाल है मेघा कितनी सुघड़ है. नौकरी के साथसाथ घर भी कितनी अच्छी तरह संभालती है और एक वह है नकारा. अगर मेघा कुछ कहती भी है तो उस के भले के लिए ही कहती है. कब तक वह अपने परिवार पर बो झ बना रहेगा?

चाय पीने के बाद नील ने झिझकते हुए कहा, ‘‘राजीव यार, कुछ पैसे मिल सकते हैं क्या? मैं बिजनैस शुरू करना चाहता हूं.’’

राजीव बोला, ‘‘नील पूरी सेविंग शादी में खर्च हो गई है और मधु के नखरे देख कर लगता है अब सेविंग हो नहीं पाएगी.’’

रात में जब नील घर पहुंचा तो देखा मेघा जगी हुई थी. नील को देख कर बोली, ‘‘फोन क्यों स्विच औफ कर रखा है? नील क्या हम शांति से बात नहीं कर सकते हैं?’’

नील ने मेघा से कहा, ‘‘मेघा मैं कोशिश कर रहा हूं पर मु झे तुम्हारे साथ की जरूरत है.’’

मेघा भी भर्राए स्वर में बोली, ‘‘नील मैं जानती हूं पर जब तुम मेरे रंग पर  कटाक्ष करते हो, तु झे बहुत छोटा महसूस होता है.’’

नील बोला, ‘‘तुम पर नहीं मेघा, अपनी नाकामयाबी पर हताश हो कर कटाक्ष कर देता हूं. आज तक किसी से नहीं कहा पर मेघा बहुत कोशिश कर के भी अपनी नाकामयाबी की परछाईं से बाहर नहीं निकल पा रहा हूं. तुम अच्छी नौकरी में हो तुम नहीं सम झ सकती कि कितना मुश्किल है नाकामयाबी का बो झ ढोना.’’

मेघा सुबकते हुए बोली, ‘‘जानती हूं नील, कैसा लगता है जब लोग आप को रिजैक्ट कर देते हैं. तुम से पहले 10 लड़के मेरे रंग के कारण मु झे नकार चुके थे. तुम से विवाह के बाद ऐसा लगा जैसे सबकुछ ठीक हो गया है पर रहरह कर तुम्हारे मजाक मेरे दिल में कड़वाहट भर देते हैं.’’

नील बोला,’’ पगली ऐसा कुछ नहीं हैं, मैं ज्यादा बोलता हूं न तो कुछ भी बोल जाता हूं. तुम से ज्यादा सम झदार और प्यारी पत्नी मु झे नहीं मिल सकती है, यह मैं अच्छी तरह जानता हूं. हां तुम्हारा मु झे हेयदृष्टि से देखना पागल कर देता था और इस कारण मैं कभीकभी जानबू झ कर तुम्हें नीचा दिखाने के लिए कभीकभी कटाक्ष कर देता था.’’

एक कमरे में बंद दो एटम बम  

वे चारों डाइनिंग टेबल पर जैसे तैसे आखरी कौर समेट कर उठने के फिराक में थे. दिल के दरवाजे और खिड़कियां अंदुरनी शोर शराबों से धूम धड़ाका कर रहीं थीं.

नीना और लीना दोनों टीन एज बच्चियां अब उठकर अपने कमरे में चली गईं है और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया है.

समीर और श्रीजा का चेहरा मेंढ़क के फूले गाल की तरह सूजा है, और उन दोनों के मन में एक दूसरे पर लात घुंसो की बारिश कर देने की इच्छा बलवती हो रही है.

” मै कुछ भी वीडियो फारवर्ड करूं ,किसी से कुछ भी कहूं ,तुम्हे क्या – तुमने मेरे मामले में दुबारा टांग अड़ाने की कोशिश भी की तो अंजाम देखने के लिए तैयार रहना! तुम औरत हो,देश और दुनिया के बारे में ज्यादा नाक न गलाओ! समझी?”

“अरे! इतनी क्यों कट्टर सोच है  तुम्हारी ! तुम सारे ग्रुप्स में फेक वीडियो डाल रहे हो ,भड़काऊ संदेश भेज रहे हो, कोरोना वाले लौक डाउन में जहां लोगों को शांत रहकर एक जुट होने का संदेश देना चाहिए, ताकि बिना वैमनस्य के लोग एक दूसरे की मदद कर सकें, तुम असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हो, और मुझसे सहा नहीं जा रहा तो मै इसलिए चुप रहूं क्योंकि मै औरत हूं!”

“हां ,इसलिए ही तुम  मुझसे मुंह मत लगो! तुम लेडिस लोग समझती कुछ नहीं बस मुंह फाड़कर चिल्लाने लगती हो!”

“लडकियां भी समझ रही हैं, कि औरतों के प्रति तुम्हारा नजरिया कितना पूराना और कमतर है!”

“जानना ही चाहिए! उन्हें अपनी तरह नाच मत नचाओ!

औरत का जन्म है तो जिंदगी भर औरत ही रहेगी,मर्द बनकर  तो नहीं रह सकती!”

उफ़ इसका क्या इलाज! बात बढ़ने से बच्चियां परेशान होंगी, श्रीजा मन मसोस कर रह गई.

कोरोना की वजह से लौक डाउन था.औफिस बंद था,यानी अब अपनी मर्जी का था,दवाब नहीं था. सैर सपाटा,दोस्ती यारी ,शराब कबाब बन्द था , बिन बताए घर से घंटों गायब रहना बन्द था, इस बन्द में सब कुछ तो बन्द था – फिर श्रीजा का खुलकर सांस लेना तो बन्द होना ही था ! मन लगाने को भड़काऊ संदेश फारवर्ड और पत्नी और बेटियों पर कट्टर पंथी सोचों का वार! लौक डाउन ने वाकई श्रीजा की जिंदगी तोड़ मरोड़ कर रख दी थी.

वह बेटियों के पास जाकर बैठ गई.छोटी बेटी ने पूछा – मां क्या पापा के दूसरे धर्मों के दोस्त नहीं है? मेरे तो बहुत सारे दोस्त हैं पक्के पक्के, जिनकी धर्म जाति  मुझसे अलग है.उनके घर जाती हूं तो पता तो नहीं चलता कि वे अलग धर्म के है, हम तो उनके घर खूब मज़े करते हैं!”

“बेटा खुराफात लोगों का यह अच्छा टाइम पास है! यहां इस लौक डाउन में  कितने ही लोगों को कितनी मुश्किलें हो रहीं हैं ,हम चाहे तो उन्हें मदद करें, ये क्या कि आपस में रंजिश बढ़ाएं! हर जाति धर्म में बुरे लोग होते हैं, जो अपराध करते हैं, उनका धर्म अपराध होता है, और कुछ नहीं! लेकिन कट्टर सोच वालों को कैसे समझाया जाय!”

“क्या हमारे पापा भी कट्टर ही हैं?”

“ये तुम खुद ही समझना , मै नहीं बता सकती!”

डिनर जैसे तैसे खत्म कर अब सोने की तैयारी थी.

निबाहना भी भारी काम है .श्रीजा को निभाना पड़ता ही है, बात सिर्फ बच्चों के भविष्य की ही नहीं, इस मरदुए से वो भी तो जाने अनजाने लगाव की डोर से बंधी है! दिमाग में कितनी ही भिन्नता हो, दिल में कितनी ही खिन्नता हो, निभाना सिर्फ निभाना नहीं, दिल का कहा मानना भी है!

काश ! पति अगर शांति प्रिय होता, उदार और समझदार होता, तो घर में ताला बन्दी कितनी रूमानी होती! हसरतें अनुराग से भरी भरी -बल्लियों उछलती पतिदेव के गले में झुल सी जाती!

पर यहां तो कूप मंडूक को देखते ही तन बदन में आग लहक जाती है!

कमरा साफ सुंदर, नीली रोशनी जैसे मादक नील परी सी अपनी चुनरी फैलाए थी!

करीने से बिस्तर लगाकर श्रीजा एक किनारे सिमट गई .

“श्रीजा ! इधर आओ ”

“मन नहीं है!”

“तुम्हारे मन से क्या होता है?”

“लौक डाउन!”

“वो बाहर है!”

“दिल में भी!”

“अरे! छोड़ो मै दिल की बात नहीं कर रहा!”

” मेरे घर का दरवाजा दिल से होकर गुजरता है! मेरा दिल चकनाचूर है! तुम देश वासियों में नफरत क्यों बांट रहे हो? उदार बनो,कट्टर नहीं! ”

“भाड़ में जाओ! इतना लेक्चर चौराहे पर जाकर दो!”

यार एक तो घर में कैद होकर रह गया ,ऊपर से तुम एटम बम फोड़े जा रही हो! घर है कि ब्लास्ट फर्नेस!”

“तुम ही बताओ! तुम भी कोरोना बम से कम हो क्या!

इतनी नफरत और उंच नीच का भेद भाव!”

अचानक  एक तकिया श्रीजा की पीठ पर आकर लगा. वो समीर की तरफ पीठ दिखाकर लड़ती जा रही थी, कि अचानक यह झटका !

धमाके सा समीर मेन गेट खोलकर बाहर निकल चुका था.

दिमाग भन्ना गया था समीर का. आखिर एक औरत को इतनी हिम्मत पड़ी कैसे कि वह अपने पति से जवाब तलब करे ! कहीं उसने श्रीजा को ज्यादा ढील तो न दे दी? समीर अपने विचारों में इतना ही खो चुका था कि कब वह अपनी कालोनी से निकलकर मेन रोड में चलता जा रहा था उसे पता ही न चला!

होश तो तब हुआ जब पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी ने उसे आकर रोका!

“अरे !सर जी कुछ नहीं, बीबी घर में बड़ा चिक चिक कर रही थी!

मजाक है ?बिना मास्क बाहर घूम रहे हैं, वो भी रात के बारह बजे इस 144 में!”

लाख मिन्नतें कर किसी  तरह समीर पुलिस से जान छुड़ाने में कामयाब हुआ लेकिन पुलिस की गाड़ी उसे घर तक छोड़ने आई.

क्या हुआ मैडम! हम तो इन्हे थाने ले जा रहे थे.बड़ा गिड़गिड़ाया इन्होंने. क्या अनबन हो गई?”

“अहंकार के फुले हुए कुप्पे का यूं पिचक जाना श्रीजा के लिए बड़ा संतोष कारी था.उसने समीर की ओर भेद भरी नजरों से देख इतना ही पूछा- “क्या हुआ था बताऊं?”

“अरे सर जी! गलती मेरी भी थी! अब घर के अंदर ही रहूंगा और बीबी की बात मानुंगा.”

श्रीजा के अंदर हंसी का गुबार भर भर निकलने को हुआ,लेकिन वो समीर के घिघियाए चेहरे को हंसी में टालना नहीं चाहती थी.

फिर से दोनो बिस्तर पर थे.समीर इस बार अपना खार खाया हाइड्रोजन बम दिल में ही दबाकर चुप सो गया!

करम फूटे जो ऐसी एटम बम को छुए!

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