Serial Story: फैसला इक नई सुबह का (भाग-4)

रात में सोते समय वह फिर समीर के बारे में सोचने लगी. कितना प्यारा परिवार है समीर का. उस के बेटेबहू कितना मान देते हैं उसे? कितना प्यारा पोता है उस का? मेरा पोता भी तो लगभग इतना ही बड़ा हो गया होगा. पर उस ने तो सिर्फ तसवीरों में ही अपनी बहू और पोते को देखा है. कितनी बार कहा सार्थक से कि इंडिया आ जाओ, पर वह तो सब भुला बैठा है. काश, अपनी मां की तसल्ली के लिए ही एक बार आ जाता तो वह अपने पोते और बहू को जी भर कर देख लेती और उन पर अपनी ममता लुटाती. लेकिन उस का बेटा तो बहुत निष्ठुर हो चुका है. एक गहरी आह निकली उस के दिल से.

समीर की खुशहाली देख कर शायद उसे अपनी बदहाली और साफ दिखाई देने लगी थी. परंतु अब वह समीर से ज्यादा मिलना नहीं चाहती थी क्योंकि रोजरोज बेटी से झूठ बोल कर इस तरह किसी व्यक्ति से मिलना उसे सही नहीं लग रहा था, भले ही वह उस का दोस्त ही क्यों न हो. बेटी से मिलवाए भी तो क्या कह कर, आखिर बेटीदामाद उस के बारे में क्या सोचेंगे. वैसे भी उसे पता था कि स्वार्थ व लालच में अंधे हो चुके उस के बच्चों को उस से जुड़े किसी भी संबंध में खोट ही नजर आएगी. पर समीर को मना कैसे करे, समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि उस का दिल तो बच्चों जैसा साफ था. मानसी अजीब सी उधेड़बुन में फंस चुकी थी.

सुबह उठ कर वह फिर रोजमर्रा के काम में लग गई. 10-11 बजे मोबाइल बजा, देखा तो समीर का कौल था. अच्छा हुआ साइलैंट पर था, नहीं तो बेटी के सवाल शुरू हो जाते. उस ने समीर का फोन नहीं उठाया. इस कशमकश में पूरा दिन व्यतीत हो गया. शाम को बेटीदामाद को चायनाश्ता दे कर खुद भी चाय पीने बैठी ही थी कि दरवाजे पर हुई दस्तक से उस का मन घबरा उठा, आखिर वही हुआ जिस का डर था. समीर को दरवाजे पर खड़े देख उस का हलक सूख गया, ‘‘अरे, आओ, समीर,’’ उस ने बड़ी कठिनता से मुंह से शब्द निकाले. समीर ने खुद ही अपना परिचय दे दिया. उस के बाद मुसकराते हुए उसे अपने पास बैठाया. और बड़ी ही सहजता से उस ने मानसी के संग अपने विवाह की इच्छा व्यक्त कर दी. यह बात सुनते ही मानसी चौंक पड़ी. कुछ बोल पाती, उस से पहले ही समीर ने कहा, ‘‘वह जो भी फैसला ले, सोचसमझ कर ले. मानसी का कोई भी फैसला उसे मान्य होगा.’’ कुछ देर चली बातचीत के दौरान उस की बेटी और दामाद का व्यवहार समीर के प्रति बेहद रूखा रहा.

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समीर के जाते ही बेटी ने उसे आड़े हाथों लिया और यहां तक कह दिया, ‘‘मां क्या यही गुल खिलाने के लिए आप दिल्ली से लखनऊ आई थीं. अब तो आप को मां कहने में भी मुझे शर्म आ रही है.’’ दामाद ने कहा कुछ नहीं, लेकिन उस के हावभाव ही उसे आहत करने के लिए काफी थे. अपने कमरे में आ कर मानसी फूटफूट कर रोने लगी. बिना कुछ भी किए उसे उन अपनों द्वारा जलील किया जा रहा था, जिन के लिए अपनी पूरी जिंदगी उस ने दांव पर लगा दी थी. उस का मन आज चीत्कार उठा. उसे समीर पर भी क्रोध आ रहा था कि उस ने ऐसा सोचा भी कैसे? इतनी जल्दी ये सब. अभी कलपरसों ही मिले हैं, उस से बिना पूछे, बिना बताए समीर ने खुद ही ऐसा निर्णय कैसे ले लिया? लेकिन वह यह भी जानती थी कि उस की परेशानियां और परिस्थिति देख कर ही समीर ने ऐसा निर्णय लिया होगा.

वह उसे अच्छे से जानती थी. बिना किसी लागलपेट के वह अपनी बात सामने वाले के पास ऐसे ही रखता था. स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी. उस की जिंदगी ने कई झंझावत देखे थे, परंतु आज उस के चरित्र की मानप्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी. उस ने अपने मन को संयत करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन आज हुए इस अपमान पर पहली बार उस का मन उसी से विद्रोह कर बैठा. ‘क्या उस का जन्म केवल त्याग और बलिदान के लिए ही हुआ है, क्या उस का अपना कोई वजूद नहीं है, सिवा एक पत्नी, बहू और मां बनने के? जीवन की एकरसता को वह आज तक ढोती चली आई, महज अपना समय मान कर. क्या सिर्फ इसलिए कि ये बच्चे आगे चल कर उसे इस तरह धिक्कारें. आखिर उस की गलती ही क्या है? क्या कुछ भी कहने से पहले बेटी और दामाद को उस से इस बात की पूरी जानकारी नहीं लेनी चाहिए थी? क्या उस की बेटी ने उसे इतना ही जाना है? लेकिन वह भी किस के व्यवहार पर आंसू बहा रही है.

‘अरे, यह तो वही बेटी है, जिस ने अपनी मां को अपने घर की नौकरानी समझा है. उस से किसी भी तरह की इज्जत की उम्मीद करना मूर्खता ही तो है. जो मां को दो रोटी भी जायदाद हासिल करने के लालच से खिला रही हो, वह उस की बेटी तो नहीं हो सकती. अब वह समझ गई कि दूसरों से इज्जत चाहिए तो पहले उसे स्वयं अपनी इज्जत करना सीखना होगा अन्यथा ये सब इसी तरह चलता रहेगा.’ कुछ सोच कर वह उठी. घड़ी ने रात के 9 बजाए. बाहर हौल में आई तो बेटीदामाद नहीं थे. हालात के मुताबिक, खाना बनने का तो कोई सवाल नहीं था, शायद इसीलिए खाना खाने बाहर गए हों. शांतमन से उस ने बहुत सोचा, हां, समीर ने यह जानबूझ कर किया है. अगर वह उस से इस बात का जिक्र भी करता तो वह कभी राजी नहीं होती. खुद ही साफ शब्दों में इनकार कर देती और अपने बच्चों की इस घिनौनी प्रतिक्रिया से भी अनजान ही रहती. फिर शायद अपने लिए जीने की उस की इच्छा भी कभी बलवती न होती. उस के मन का आईना साफ हो सके, इसीलिए समीर ने उस के ऊपर जमी धूल को झटकने की कोशिश की है.

अभी उस की जिंदगी खत्म नहीं हुई है. अब से वह सिर्फ अपनी खुशी के लिए जिएगी.

मानसी ने मुसकरा कर जिंदगी को गले लगाने का निश्चय कर समीर को फोन किया. उठ कर किचन में आई. भूख से आंतें कुलबुला रही थी. हलकाफुलका कुछ बना कर खाया, और चैन से सो गई. सुबह उठी तो मन बहुत हलका था. उस का प्रिय गीत उस के होंठों पर अनायास ही आ गया, ‘हम ने देखी है इन आंखों की महकती खूशबू, हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो…’ गुनगुनाते हुए तैयार होने लगी इस बात से बेफिक्र की बाहर उस की बेटी व दामाद उस के हाथ की चाय का इंतजार कर रहे हैं. दरवाजे की घंटी बजी, मानसी ने दरवाजा खोला. बाहर समीर खड़े थे. मानसी ने मुसकराकर उन का अभिवादन किया और भीतर बुला कर एक बार फिर से ?उन का परिचय अपनी बेटी व दामाद से करवाया, ‘‘ये हैं तुम्हारे होने वाले पापा, हम ने आज ही शादी करने का फैसला लिया है. आना चाहो तो तुम भी आमंत्रित हो.’’ बिना यह देखे कि उस में अचानक आए इस परिवर्तन से बेटी और दामाद के चेहरे पर क्या भाव उपजे हैं, मानसी समीर का हाथ थाम उस के साथ चल पड़ी अपनी जिंदगी की नई सुबह की ओर…

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Serial Story: फैसला इक नई सुबह का (भाग-1)

लखनऊ की पौश कौलोनी गोमतीनगर में स्थित इस पार्क में लोगों की काफी आवाजाही थी. पार्क की एक बैंच पर काफी देर से बैठी मानसी गहन चिंता में लीन थी. शाम के समय पक्षियों का कलरव व बच्चों की धमाचौकड़ी भी उसे विचलित नहीं कर पा रही थी. उस के अंतर्मन की हलचल बाहरी शोर से कहीं ज्यादा तेज व तीखी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उस से गलती कहां हुई है. पति के होते हुए भी उस ने बच्चों को अपने बलबूते पर कड़ी मेहनत कर के बड़ा किया, उन्हें इस काबिल बनाया कि वे खुले आकाश में स्वच्छंद उड़ान भर सकें. पर बच्चों में वक्त के साथ इतना बड़ा बदलाव आ जाएगा, यह वह नहीं जानती थी. बेटा तो बेटा, बेटी भी उस के लिए इतना गलत सोचती है. वह विचारमग्न थी कि कमी आखिर कहां थी, उस की परवरिश में या उस खून में जो बच्चों के पिता की देन था. अब वह क्या करे, कहां जाए?

दिल्ली में अकेली रह रही मानसी को उस का खाली घर काट खाने को दौड़ता था. बेटा सार्थक एक कनैडियन लड़की से शादी कर के हमेशा के लिए कनाडा में बस चुका था. अभी हफ्तेभर पहले लखनऊ में रह रहे बेटीदामाद के पास वह यह सोच कर आई थी कि कुछ ही दिनों के लिए सही, उस का अकेलापन तो दूर होगा. फिर उस की प्रैग्नैंट बेटी को भी थोड़ा सहारा मिल जाएगा, लेकिन पिछली रात 12 बजे प्यास से गला सूखने पर जब वह पानी पीने को उठी तो बेटी और दामाद के कमरे से धीमे स्वर में आ रही आवाज ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि बातचीत का मुद्दा वही थी. ‘यार, तुम्हारी मम्मी यहां से कब जाएंगी? इतने बड़े शहर में अपना खर्च ही चलाना मुश्किल है, ऊपर से इन का खाना और रहना.’ दामाद का झल्लाहट भरा स्वर उसे साफ सुनाई दे रहा था.

‘तुम्हें क्या लगता, मैं इस बात को नहीं समझती, पर मैं ने भी पूरा हिसाब लगा लिया है. जब से मम्मी आई हैं, खाने वाली की छुट्टी कर दी है यह बोल कर कि मां मुझे तुम्हारे हाथ का खाना खाने का मन होता है. चूंकि मम्मी नर्स भी हैं तो बच्चा होने तक और उस के बाद भी मेरी पूरी देखभाल मुफ्त में हो जाएगी. देखा जाए तो उन के खाने का खर्च ही कितना है, 2 रोटी सुबह, 2 रोटी शाम. और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उन के पास दौलत की कमी नहीं है. अगर वे हमारे पास सुकून से रहेंगी तो आज नहीं तो कल, उन की सारी दौलत भी हमारी होगी. भाई तो वैसे भी इंडिया वापस नहीं आने वाला,’ कहती हुई बेटी की खनकदार हंसी उस के कानों में पड़ी. उसे लगा वह चक्कर खा कर वहीं गिर पड़ेगी. जैसेतैसे अपनेआप को संभाल कर वह कमरे तक आई थी.

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बेटी और दामाद की हकीकत से रूबरू हो उस का मन बड़ा आहत हुआ. दिल की बेचैनी और छटपटाहट थोड़ी कम हो, इसीलिए शाम होते ही घूमने के बहाने वह घर के पास बने इस पार्क में आ गई थी.

पर यहां आ कर भी उस की बेचैनी बरकरार थी. निगाहें सामने थीं, पर मन में वही ऊहापोह थी. तभी सामने से कुछ दूरी पर लगभग उसी की उम्र के 3-4 व्यक्ति खड़े बातें करते नजर आए. वह आगे कुछ सोचती कि तभी उन में से एक व्यक्ति उस की ओर बढ़ता दिखाई पड़ा. वह पसोपेश में पड़ गई कि क्या करे. अजनबी शहर में अजनबियों की ये जमात. इतनी उम्र की होने के बावजूद उस के मन में यह घबराहट कैसी? अरे, वह कोई किशोरी थोड़े ही है जो कोई उसे छेड़ने चला आएगा? शायद कुछ पूछने आ रहा हो, उस ने अपनेआप को तसल्ली दी. ‘‘हे मनु, तुम यहां कैसे,’’ अचकचा सी गई वह यह चिरपरिचित आवाज सुन कर.

‘‘कौन मनु? माफ कीजिएगा, मैं मानसी, पास ही दिव्या अपार्टमैंट में रहती हूं,’’ हड़बड़ाहट में वह अपने बचपन के नाम को भी भूल गई. आवाज को पहचानने की भी उस की भरसक कोशिश नाकाम ही रही. ‘‘हां, हां, आदरणीय मानसीजी, मैं आप की ही बात कर रहा हूं. आय एम समीर फ्रौम देवास.’’ देवास शब्द सुनते ही जैसे उस की खोई याददाश्त लौट आई. जाने कितने सालों बाद उस ने यह नाम सुना था. जो उस के भीतर हमेशा हर पल मौजूद रहता था. पर समीर को सामने खड़ा देख कर भी वह पहचान नहीं पा रही थी. कारण उस में बहुत बदलाव आ गया था. कहां वह दुबलापतला, मरियल सा दिखने वाला समीर और कहां कुछ उम्रदराज परंतु प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक यह समीर. उसे बहुत अचरज हुआ और अथाह खुशी भी. अपना घर वाला नाम सुन कर उसे यों लगा, जैसे वह छोटी बच्ची बन गई है.

‘‘अरे, अभी भी नहीं पहचाना,’’ कह कर समीर ने धीरे से उस की बांहों को हिलाया. ‘‘क्यों नहीं, समीर, बिलकुल पहचान लिया.’’

‘‘आओ, तुम्हें अपने दोस्तों से मिलाता हूं,’’ कह कर समीर उसे अपने दोस्तों के पास ले गया. दोस्तों से परिचय होने के बाद मानसी ने कहा, ‘‘अब मुझे घर चलना चाहिए समीर, बहुत देर हो चुकी है.’’ ‘‘ठीक है, अभी तो हम ठीक से बात नहीं कर पाए हैं परंतु कल शाम 4 बजे इसी बैंच पर मिलना. पुरानी यादें ताजा करेंगे और एकदूसरे के बारे में ढेर सारी बातें. आओगी न?’’ समीर ने खुशी से चहकते हुए कहा.

‘‘बिलकुल, पर अभी चलती हूं.’’

घर लौटते वक्त अंधेरा होने लगा था. पर उस का मन खुशी से सराबोर था. उस के थके हुए पैरों को जैसे गति मिल गई थी. उम्र की लाचारी, शरीर की थकान सभीकुछ गायब हो चुका था. इतने समय बाद इस अजनबी शहर में समीर का मिलना उसे किसी तोहफे से कम नहीं लग रहा था. घर पहुंच कर उस ने खाना खाया. रोज की तरह अपने काम निबटाए और बिस्तर पर लेट गई. खुशी के अतिरेक से उस की आंखों की नींद गायब हो चुकी थी. उस के जीवन की किताब का हर पन्ना उस के सामने एकएक कर खुलता जा रहा था, जिस में वह स्पष्ट देख पा रही थी. अपने दोस्त को और उस के साथ बिताए उन मधुर पलों को, जिन्हें वह खुल कर जिया करती थी. बचपन का वह समय जिस में उन का हंसना, रोना, लड़ना, झगड़ना, रूठना, मनाना सब समीर के साथ ही होता था. गुस्से व लड़ाई के दौरान तो वह समीर को उठा कर पटक भी देती थी. दरअसल, वह शरीर से बलिष्ठ थी और समीर दुबलापतला. फिर भी उस के लिए समीर अपने दोस्तों तक से भिड़ जाया करता था.

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Serial Story: फैसला इक नई सुबह का (भाग-2)

गिल्लीडंडा, छुपाछुपी, विषअमृत, सांकलबंदी, कबड्डी, खोखो जैसे कई खेल खेलते वे कब स्कूल से कालेज में आ गए थे, पता ही नहीं चला था. पर समीर ने इंजीनियरिंग फील्ड चुनी थी और उस ने मैडिकल फील्ड का चुनाव किया था. उस के बाद समीर उच्चशिक्षा के लिए अमेरिका चला गया. और इसी बीच उस के भैयाभाभी ने उस की शादी दिल्ली में रह रहे एक व्यवसायी राजन से कर दी थी. शादी के बाद से उस का देवास आना बहुत कम हो गया. इधर ससुराल में उस के पति राजन मातापिता की इकलौती संतान और एक स्वच्छंद तथा मस्तमौला इंसान थे जिन के दिन से ज्यादा रातें रंगीन हुआ करती थीं. शराब और शबाब के शौकीन राजन ने उस से शादी भी सिर्फ मांबाप के कहने से की थी. उन्होंने कभी उसे पत्नी का दर्जा नहीं दिया. वह उन के लिए भोग की एक वस्तु मात्र थी जिसे वह अपनी सुविधानुसार जबतब भोग लिया करते थे, बिना उस की मरजी जाने. उन के लिए पत्नी की हैसियत पैरों की जूती से बढ़ कर नहीं थी.

लेकिन उस के सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने उसे बहुत प्यार व अपनापन दिया. सास तो स्वयं ही उसे पसंद कर के लाई थीं, लिहाजा वे मानसी पर बहुत स्नेह रखती थीं. उन से मानसी का अकेलापन व उदासी छिपी नहीं थी. उन्होंने उसे हौसला दे कर अपनी पढ़ाई जारी रखने को कहा, जोकि शादी के चलते अधूरी ही छूट गई थी. मानसी ने कालेज जाना शुरू कर दिया. हालांकि राजन को उस का घर से बाहर निकलना बिलकुल पसंद नहीं था परंतु अपनी मां के सामने राजन की एक न चली. मानसी के जीवन में इस से बहुत बड़ा बदलाव आया. उस ने नर्सिंग की ट्रेनिंग पूरी की. पढ़ाई पूरी होने से उस का आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. पर राजन के लिए मानसी आज भी अस्तित्वहीन थी.

मानसी का मन भावनात्मक प्रेम को तरसता रहता. वह अपने दिल की सारी बातें राजन से शेयर करना चाहती थी, परंतु अपने बिजनैस और उस से बचे वक्त में अपनी रंगीन जिंदगी जीते राजन को कभी मानसी की इस घुटन का एहसास तक नहीं हुआ. इस मशीनी जिंदगी को जीतेजीते मानसी 2 प्यारे बच्चों की मां बन चुकी थी.

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बेटे सार्थक व बेटी नित्या के आने से उस के जीवन को एक दिशा मिल चुकी थी. पर राजन की जिंदगी अभी भी पुराने ढर्रे पर थी. मानसी के बच्चों में व्यस्त रहने से उसे और आजादी मिल गई थी. हां, मानसी की जिंदगी ने जरूर रफ्तार पकड़ ली थी, कि तभी हृदयाघात से ससुर की मौत होने से मानसी पर मानो पहाड़ टूट पड़ा. आर्थिक रूप से मानसी उन्हीं पर निर्भर थी. राजन को घरगृहस्थी में पहले ही कोई विशेष रुचि नहीं थी. पिता के जाते ही वह अपनेआप को सर्वेसर्वा समझने लगा. दिनोंदिन बदमिजाज होता रहा राजन कईकई दिनों तक घर की सुध नहीं लेता था. मानसी बच्चों की परवरिश व पढ़ाईलिखाई के लिए भी आर्थिक रूप से बहुत परेशान रहने लगी. यह देख कर उस की सास ने बच्चों व उस के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी आधी जायदाद मानसी के नाम करने का निर्णय लिया.

यह पता लगते ही राजन ने घर आ कर मानसी को आड़े हाथों लिया. परंतु उस की मां ने मानसी का पक्ष लेते हुए उसे लताड़ लगाई, लेकिन वह जातेजाते भी मानसी को देख लेने की धमकी दे गया. मानसी का मन बहुत आहत हुआ, जिस रिश्ते को उस ने हमेशा ईमानदारी से निभाने की कोशिश की, आज वह पूरी तरह दरक गया. उस का मन चाहा कि वह अपनी चुप्पी तोड़ कर जायदाद के पेपर राजन के मुंह पर मार उसे यह समझा दे कि वह दौलत की भूखी नहीं है, लेकिन अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उस ने चुप्पी साध ली.

समय की रफ्तार के साथ एक बार फिर मानसी के कदम चल पड़े. बच्चों की परवरिश व बुजुर्ग सास की देखभाल में व्यस्त मानसी अपनेआप को जैसे भूल ही चुकी थी. अपने दर्द व तकलीफों के बारे में सोचने का न ही उस के पास वक्त था और न ही ताकत. समय कैसे गुजर जाता था, मानसी को पता ही नहीं चलता था. उस के बच्चे अब कुछ समझदार हो चले थे. ऐसे में एक रात मानसी की सास की तबीयत अचानक ही बहुत बिगड़ गई. उस के फैमिली डाक्टर भी आउट औफ स्टेशन थे. कोई दूसरी मदद न होने से उस ने मजबूरी में राजन को फोन लगाया.

‘मां ने जब तुम्हें आधी जायदाद दी है तो अब उन की जिम्मेदारी भी तुम निभाओ. मैं तो वैसे भी नालायक औलाद हूं उन की,’ दोटूक बात कह कर राजन ने फोन काट दिया. हैरानपरेशान मानसी ने फिर भी हिम्मत न हारते हुए अपनी सास का इलाज अपनी काबिलीयत के बल पर किया. उस ने उन्हें न सिर्फ बचाया बल्कि स्वस्थ होने तक सही देखभाल भी की. इतने कठिन समय में उस का धैर्य और कार्यकुशलता देख कर डाक्टर प्रकाश, जोकि उन के फैमिली डाक्टर थे, ने उसे अपने अस्पताल में सर्विस का औफर दिया. मानसी बड़े ही असमंजस में पड़ गई, क्योंकि अभी उस के बड़े होते बच्चों को उस की जरूरत कहीं ज्यादा थी. पर सास के यह समझाने पर कि बच्चों की देखभाल में वे उस की थोड़ी सहायता कर दिया करेंगी, वह मान गई. उस के जौब करने की दूसरी वजह निसंदेह पैसा भी था जिस की मानसी को अभी बहुत जरूरत थी.

अब मानसी का ज्यादातर वक्त अस्पताल में बीतने लगा. घर पर सास ने भी बच्चों को बड़ी जिम्मेदारी से संभाल रखा था. जल्द ही अपनी मेहनत व योग्यता के बल पर वह पदोन्नत हो गई. अब उसे अच्छी तनख्वाह मिलने लगी थी. पर बीचबीच में राजन का उसे घर आ कर फटकारना जारी रहा. इसी के चलते अपनी सास के बहुत समझाने पर उस ने तलाक के लिए आवेदन कर दिया. राजन के बारे में सभी भलीभांति जानते थे. सो, उसे सास व अन्य सभी के सहयोग से जल्द ही तलाक मिल गया.

कुछ साल बीततेबीतते उस की सास भी चल बसीं. पर उन्होंने जाने से पहले उसे बहुत आत्मनिर्भर बना दिया था. उन की कमी तो उसे खलती थी लेकिन अब उस के व्यक्तित्व में निखार आ गया था. अपने बेटे को उच्चशिक्षा के लिए उस ने कनाडा भेजा तथा बेटी का उस के मनचाहे क्षेत्र फैशन डिजाइनिंग में दाखिला करवा दिया. अब राजन का उस से सामना न के बराबर ही होता था. पर समय की करवट अभी उस के कुछऔर इम्तिहान लेने को आतुर थी. कुछ ही वर्षों में उस के सारे त्याग व तपस्या को भुलाते हुए सार्थक ने कनाडा में ही शादी कर वहां की नागरिकता ग्रहण कर ली. इतने वर्षों में वह इंडिया भी बस 2 बार ही आया था. मानसी को बहुत मानसिक आघात पहुंचा. पर वह कर भी क्या सकती थी. इधर बेटी भी पढ़ाई के दौरान ही रजनीश के इश्क में गिरफ्तार हो चुकी थी. जमाने की परवा न करते हुए उस ने बेटी की शादी रजनीश से ही करने का निर्णय ले लिया.

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बिन जामन ऐसे बनाएं दही

दही जमाने के लिये हमें पहले से जमाये हुये दही की जरूरत होती है. अगर पहले से जमा हुआ दही न हो और बाजार के डिब्बा बन्द दही से दही न जम रहा हो तो अन्य तरीकों से भी एकदम गाढा मलाईदार दही जमा सकते है.

आवश्यक सामग्री

उबला हुआ दूध- 200- 300 मिली लीटर

हरी मिर्च- 2

लाल मिर्च- 2

नींबू- 1

विधि

जामन तैयार करने के लिये उबले हुये दूध को एक बरतन में ले लीजिये और गैस पर रख कर हल्का सा गरम कर लीजिये. दूध को इतना ही गरम करें कि वो हाथ से आसानी से छुआ जा सके.  दूध का तापमान 40 -46 डि.से. होना चाहिए.

दही जमाने के लिये जामन हम नींबू से, हरी मिर्च से या लाल मिर्च से तैयार कर सकते हैं.

जामन जमाने का पहला तरीका

जामन जमाने के लिए 2 डंठल वाली हरी मिर्च लेकर 1 दूध की प्याली में डाल दीजिये और मिर्च को डंठल के साथ ही दूध में डुबो दीजिये. ध्यान रखें की मिर्च डंठल समेत दूध में डूबी हुई हो तभी जामन अच्छे से जमकर तैयार होगा.

जामन जमाने का दूसरा तरीका

जामन जमाने के लिए डंठल वाली सूखी लाल मिर्च ले लीजिए और दूसरे प्याले में डंठल वाली लाल मिर्च डाल कर अच्छे से डुबो दीजिये, इसमें भी डंठल का दूध में डूबा होना जरूरी है.

जामन जमाने का तीसरा तरीका

तीसरे तरीके से जामन जमाने के लिए एक नींबू लीजिए इसे काट कर इसका रस प्याली में निकाल लीजिये. अब लगभग 2 चम्मच नींबू के रस को तीसरी दूध वाली प्याली में डाल दीजिये.

इसके बाद तीनों तरह के जामन को ढक कर 10- 12 घंटे के लिए किसी गरम स्थान पर रख दीजिए.

12 घंटे बाद तीनों प्यालियों के ढक्कन हटा कर चेक कर लीजिये, तीनों तरीकों से जमाया गया जामन तैयार हो गया होगा. अब हम इनसे दही बना सकते है. हरी मिर्च, लाल मिर्च या नींबू से जमाये गये दही का स्वाद, इस जामन का स्वाद इतना अच्छा नहीं होता जितना इस जामन से जमाये हुये दही का होता है.

जामन से दही जमाने का तरीका

तैयार किये हुये जामन से दही जमाने के लिये पहले से उबले हुये 1 लीटर दूध को एक बरतन में लेकर गैस पर हल्का गरम होने रख दीजिये. दूध के हल्का गरम होते ही गैस को बंद कर दीजिये और दूध को 2 कैसरोल में आधा-आधा डाल दीजिये.

इसके बाद 1 कैसरोल में 2 चम्मच मिर्च से तैयार किया जामन डालिये और ढक्कन को बंद करके 6-7 घंटे के लिये रख दीजिये. इसी तरह दूसरे कैसरोल में 2 चम्मच नींबू से तैयार जामन डाल कर ढक्कन बंद कर दीजिये और 6-7 घंटे के लिये दही जमने के लिये रख दीजिये.

दही कैसरॉल की जगह सामान्य बरतन में भी जमाया जा सकता है लेकिन कैसरॉल दही जमने के लिये पर्याप्त गरमी बनाये रखता है इसलिये कैसरोल में दही आसानी से और जल्दी जमकर तैयार हो जाता है.

6 घंटे बाद दोनों कैसरोल के ढक्कन हटाकर चेक कीजिये, गाढ़ा मलाईदार दही बनकर तैयार है.

सुझाव

दही जमाने के लिये फुल क्रीम दूध का ही इस्तेमाल करें, ताकि गाढ़ा दही जम सके. इसके अलावा अच्छे से उबले हुये दूध का ही इस्तेमाल करिये. दूध में उबाल आने के बाद उसे थोड़ी देर 3-5 मिनिट और उबलने दे जिससे दूध थोड़ा गाढ़ा हो जायेगा और इससे दही भी अच्छा गाढ़ा जमेगा.

दही जमाने के लिये मिर्च में डंठल होना बहुत जरूरी है, क्योंकि मिर्च के डंठल में कुछ ऐसे एन्जाइम होते हैं जो दूध को जमने में मदद करते हैं और उसे खट्टापन भी देते हैं.

नींबू या मिर्च से तैयार हुये जामन का स्वाद दही जितना अच्छा नही होता. इसलिये इसे सिर्फ जामन की तरह ही दही जमाने के लिये इस्तेमाल करना अधिक अच्छा होता है. दही का जामन बनाने के लिये कच्चे आम की खटाई, इमली की खटाई या टाटरी का पानी बना कर भी यूज कर सकते हैं.

दही को ताजा बनाये रखने और ज्यादा खट्टा न होने के लिये दही को जमाने के बाद फ्रिज में रख दीजिये.

हुंडई वरना में मौजूद 6 एयर बैग आपकी यात्रा को बनाते हैं सुरक्षित

न्यू हुंडई वरना की सेफ्टी की बात करें तो इसके सारे फीचर आपकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं. इस कार में 6 एयर बैग है, जो कार में बैठे सभी यात्रियों की सुरक्षा करता है.

और आपको हर तरह के खतरे से बचाता है. वरना में इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल है जो स्लिपरी रोड़ पर भी आपको सही दिशा में ले जाने की सलाह देता है. इसमें टायर प्रेशर मोनिटरिंग सिस्टम भी है जो आपको हर एक टायर प्रेशर के बारे में जानकारी देता है. जिससे आपकी हर यात्रा सुरक्षित होती है. अगर कभी आपको अचानक गाड़ी रोकनी पड़ी उस दौरान वरना में मौजूद रियर लाइट बाकी अन्य गाड़ियों के मुकाबले तेजी से रिएक्शन देता है. ये सारे फीचर वरना को बाकी कारों से बेहतर बनाते हैं.

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हुंडई की बाकी सभी नई कारों की तरह वरना भी तीन साल की रोड़ असिस्टेंट के साथ आता है. साथ ही हुंडई की वंडर वारंटी आपको अपनी आवश्यकताओं के अनुरुप वारंटी के लाभ और अवधि का चयन करने देती है. वरना के साथ हुंडई ने एक सेडान बनाई है जो वास्तव में आपकी सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं करता है, और इसके साथ टेंशन फ्री एक्सपीरियंस इसे #BetterThanTheRest बनाता है.

रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी के बाद दो हिस्सों में बंटा बॉलीवुड, सपोर्ट में आए सोनम-करीना और ये सेलेब्स

बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड मामले में सीबीआई की जांच लगातार तेज होती जा रही है. वहीं इसके आरोपों का रिया चक्रवर्ती लगातार सामना कर रही हैं, जो कि अब गिरफ्तार हो चुकी हैं. हालांकि ड्रग्स कनेक्शन सामने आने के बाद रिया को एनसीबी ने बीते दिन गिरफ्तार किया था. वहीं रिया के जेल जाने के बाद जहां सुशांत की फैमिली, सेलेब्स और फैंस खुश हैं तो वहीं कुछ सेलेब्स रिया चक्रवर्ती के सपोर्ट में उतर आया है. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

रिया को इस तरह सपोर्ट कर रहे हैं सितारे

बॉलीवुड सितारे एक अनोखे अंदाज में सोशलमीडिया पर रिया चक्रवर्ती को अपना समर्थन दे रहे हैं. सेलेब्स ने जेल जाने के दिन रिया चक्रवर्ती की पहनी हुई टीशर्ट की लाइन्स को सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं, जिस पर लिखा था कि, ‘रोज ऑर रेड, वॉयलेट्स और ब्लू… चलो हम और तुम मिलकर पितृसत्ता को पूरी तरह से खत्म कर दें.’

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करीना से लेकर सोनम कपूर ने किया शेयर

 

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Everyone loves a witch hunt as long as it’s someone else’s witch being hunted. Walter Kirn

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रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी का विरोध जता रहे बौलीवुड सितारे की इस लिस्ट में सोनम कपूर, करीना कपूर, श्वेता बच्चन, विद्या बालन, अनुराग कश्यप, पुल्कित सम्राट, फरहान अख्तर, दिया मिर्जा और नेहा धूपिया जैसे सितारों का नाम शामिल है.

 

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! #justiceforrhea

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सुशांत की बहन ने किया पलटवार

रिया चक्रवर्ती की टीशर्ट की तस्वीर सुशांत सिंह राजपूत की बहन श्वेता सिंह कीर्ति ने भी शेयर की है. हालांकि लाइन में थोड़ा सा बदलाव करते हुए श्वेता सिंह कीर्ति की पोस्ट में लिखा है कि, ‘रोज ऑर रेड, वॉयलेट्स और ब्लू… लेट्स फाइट फॉर द राइट मी एंड यू….’ वहीं इस फोटो को शेयर करते हुए श्वेता सिंह कीर्ति ने लिखा है कि एक दिन सुशांत सिंह राजपूत का इंसाफ जरुर मिलेगा.

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बता दें, ड्रग्स मामले में रिया चक्रवर्ती ने कुछ बौलीवुड के दिग्गजों के नाम भी लिए हैं, जिनमें अभी पूछताछ होगी. हालांकि सुशांत मामले को लेकर रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी को लेकर फैंस काफी इंतजाम कर रहे हैं. वहीं इसी मामले के चलते बौलीवुड दो हिस्सो में बंट चुका है.

नायरा पर टूटेगा दुखों का पहाड़, कार्तिक होगा लापता

स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की करेंट ट्रैक इन दिनों फैंस को खास पसंद नही आ रहा है, जिसका असर शो की टीआरपी पर देखने को मिल रहा है. वहीं इसी के चलते मेकर्स ने नया ट्रैक लाने का फैसला किया है. दरअसल, हाल ही में ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के मेकर्स ने एक नया प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें नए ट्विस्ट का अंदाजा लगाया जा सकता है. आइए आपको बताते हैं क्या है प्रोमों में खास…

नायरा-कार्तिक की जिंदगी में आएगी खुशी

शिवांगी जोशी और मोहसिन खान स्टारर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) का नया प्रोमो सामने आ चुका है. नए प्रोमो के हिसाब से आने वाले दिनों गोयनका हाउस में एक बार फिर से किलकारियां गूंजने वाली है. वहीं नायरा और कार्तिक के चेहरे पर इसकी खुशी देखने को मिल रही है. जहां दोनों अभी से होने वाले बच्चे के नाम भी सोचने लगे है. कार्तिक और नायरा के आसपास ढेर सारे गुब्बारे भी दिख रहे है, जिसके मुताबिक अगर लड़का हुआ तो दोनों मिलकर उसका नाम कार्निक रखेंगे और अगर लड़की हुई तो दोनों उसका नाम कायरा रखेंगे.

 

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कार्तिक होगा लापता

 

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Fav scene ❤😘 Folow @kaira_shivin_my_lovee for more #kaira#shivin#yehrishtakyakehlatahai #kairamoments

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प्रोमो में कार्तिक और नायरा की खुशियों के बीच फैंस को झटका भी लग गया है. दरअसल, आने वाले बच्चे की तैयारियों के बीच कार्तिक के पास एक फोन आता है और नायरा परेशान होकर उसका हाथ थाम लेती है. नायरा की बैचेनी देखकर कार्तिक उसके पास जल्द से जल्द आने का वादा भी कर रहा है, लेकिन वो अचानक से लापता हो जाता है. प्रेग्नेंट नायरा का रो-रोकर बुरा हाल गया है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के करेंट ट्रैक की बात करें तो इन दिनों कीर्ति और उसके एक्स हस्बैंड आदित्य का ट्रैक चल रहा है, जिसमें नायरा, कीर्ति और आदित्य के मिलने के बारे में जान जाएगी. और वह दोनों को मिलने से मना करेगी. अब देखना ये होगा कि कार्तिक के गायब होने के पीछे क्या आदित्य का हाथ होगा.

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लॉकडाउन के दौरान ‘ऐ मेरे हमसफर’ की इस एक्ट्रेस ने कराया लगभग 2 लाख लोगों को भोजन

दुनिया और देश घातक कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहा हैं. कुछ मशहूर व सामथ्र्यवान लोग कोरोना वायरस व लौक डाउन के वक्त परेशान गरीबों व जरूरतमंदों की मदद के लिए स्वेच्छा से आगे आए हैं.  इन्ही में से एक हैं अभिनेत्री रिशिना कंधारी, जो कि इन दिनों ‘‘ दंगल’’ टीवी चैनल पर प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘ऐ मेरे हमसफर’’में इमरती कोठारी के किरदार को निभाते हुए नजर आ रही हैं.

रिशिना का मानना है कि वह ‘‘कृतज्ञता के रवैए’’ पर विश्वास करती है. रिशिना का मानना है कि वह जीवन में मूलभूत आवश्यकताओं के लिए ईश्वर की षुक्रगुजार हैं. पर कोरोना काल में जो लोग सुविधाएं पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वह उन तक पहुंच कर उन्हें सुविधाएं पहुंचाना चाहती हैं. उन्होंने वंचितों के लिए भोजन वितरण की पहल के साथ खुद को जोड़ा और तालाबंदी के दौरान भोजन तैयार करने और वितरित करने में उनकी मदद करने का प्रयास किया.

 

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Little rustic with a sense of whimsy! #hopelessromantic #rangdetumohegerua 🧡

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इस संबंध में जब हमने रिशिना कंधारी से बात की, तो उन्होे कहा-‘‘मेरा झुकाव हमेशा दूसरों की मदद करने की ओर रहा है. महामारी के दौरान हम अपने क्षेत्र के दैनिक मजदूरी श्रमिकों की स्थितियों को देख निराश हो गए थे. इसलिए मैंने अपने पति के साथ भोजन की आपूर्ति और किराने के सामान में उनकी मदद करने का फैसला किया. लोगों ने घबड़ाहट में चीजों को खरीदना शुरू कर दिया और किराने का सामान समाप्त हो गया.

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यही कारण है कि हमने अपने स्टूडियो को वंचितों के लिए रसोई में बदलने का फैसला किया. हमारे पास एक छोटा रसोईघर था, जहाँ हम एक दिन में लगभग 800 लोगों के लिए खाना बनाते थे. पूरे तालाबंदी के दौरान हमने लगभग 2 लाख लोगों की सेवा की. मेरे लिए लॉकडाउन बहुत व्यस्त रहा. क्योंकि,  दूसरों की तरह मैं घर पर बैठकर शिकायत नहीं कर रही थी, बल्कि दूसरों की मदद करने की पूरी कोशिश कर रही थी. दिन के अंत में जब मैं घर वापस आती, तब मुझे संतोष,  आशीर्वाद और गर्व महसूस हुआ करता था. ”

वह मानती है कि हर किसी को इस दौरान अपना योगदान देना चाहिए.

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साइंस फिक्शन फिल्म ‘कार्गो’ में दर्शन शास्त्र भी है-आरती कदव

-आरती कदव, लेखक व निर्देशक फिल्म‘‘कार्गो’’

बचपन से ही रचनात्मकता में रूचि होने के बावजूद आरती कदव ने आईआईटी, कानपुर से इंजीनियरिंगं की डिग्री हासिल करते हुए अमरीका की माइक्रोसाफ्ट कंपनी में काम करना शुरू किया. पर कुछ दिन बाद ही वह लघु फिल्में बनाने लगी. फिर नौकरी छोड़कर वह मुंबई पहुंच गयी. आठ वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद वह अपनी पहली साइंस फिक्शन फिल्म‘‘कार्गो’’का लेखन, निर्माण व निर्देशन कर सकी, इसी बीच उन्होने कुछ बेहतरीन लघु फिल्में बनाकर शोहरत बटोरी.

फिल्म ‘‘कार्गो’’ कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सराही जा चुकी है. आरती कदव अपनी इस फिल्म को सीधे सिनेमाघर में ही प्रदर्शित करने की इच्छा रखती थी. लेकिन कोरोना महामारी व लौक डाउन के चलते अब उन्होने अपनी फिल्म‘‘कार्गो’’ ओटीटी’प्लेटफार्म ‘‘नेटफ्लिक्स’को दे दी है, जो कि 9 सितंबर को ‘नेटफिलक्स’ पर प्रदर्शित होगी.

प्रस्तुत है आरती कदव से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

सवाल- आपकी पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?

-मेरा बचपन नागपुर में रहने वाले मध्यम वर्गीय परिवार में बीता. मेरे पिता इंजीनियर और मॉं शिक्षक है. हमारे परिवार में शिक्षा को लेकर काफी दबाव था. एक तो मां शिक्षक,उपर से नागपुर में हर बच्चा पढ़लिखकर इंजीनियर या डाक्टर बनने की ही सोचता है. वैसे मेरी रूचि कला की तरफ थी. मंै चारकोल स्केचिंग बहुत किया करती थी. एक स्केच बनाने में मुझे पंद्रह दिन लगते थे. फिर मैं उनकी एक्जबीशन प्रदर्शनी भी लगाती थी. स्कूल के दिनो में मैं कहानी लेखन में पुरस्कार भी जीतती थी. उन दिनों में राक्षस की ही कहानियां लिखती थी. मगर मां का दबाव था और मैं पढ़ने में तेज थी,तो मैंने कानपुर आई आई टी से इंजीनिरिंग की डिग्री ली,फिर पोस्ट ग्रेज्यूएशन भी किया. उन्ही दिनों अमरीका की माईक्रो साफ्ट कंपनी पहली बार भारत आयी थी और यहां के होनहार बच्चों की तलाश कर रही थी. तो मुझे भी चुना गया. भारत से दो लोग चुने गए थे. जिसमें से एक मैं थी. तो पढ़ाई पूरी होते ही मैं अमरीका चली गयी. यह मेरे लिए सभ्यता व संस्कृति के स्तर पर बहुत बड़ा बदलाव था. क्योंकि अब तक भारतीय सभ्यता व संस्कृति में मेरी परवरिश बहुत प्रोटेक्टिब रूप में हुई थी. वहां पर मुझे काफी एक्सपोजर मिला. पूरी स्वतंत्रता थी. मैं अमरीका जैसे शहर में अकेले नौकरी कर रही थी. तो काफी स्वतंत्रता थी. एक दिन मैंने एक कैमरा खरीदा. वहां से मैने धीरे धीरे कुछ फिल्माना शुरू किया. उस वक्त कैमरा महंगा था और मैं उस वक्त पैसे वसूल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा शूट करने लगी. फिर कुछ भारतीयो से मिलकर कुछ लघु शॉर्ट फिल्में बनायीं. बहुत प्यारी प्यारी लघु फिल्में थीं.

फिर मैंने इनमें कुछ प्रयोग करने शुरू किए. मैने बतौर लेखक, निर्देशक, निर्माता व संगीतकार तीन से पांच मिनट की ढेर सारी लघु फिल्में बना डाली. मैने खुद ही साफ्टवेअर लोड करके इन लघु फिल्मों की एडीटिंग भी करती थी. यह सब देखकर मेरे छोटे भाई ने मुझसे कहा कि,‘आप जो कर रही हंै,उसे देखकर लगता है कि यह सब किसी नौसीखिए ने किया है. अगर आपको शौक है,तो प्रशिक्षण ले लो. ’मुझे भाई की सलाह पसंद आयी और मैं अमरीका छोड़कर मंुबई आ गयी. उन्ही दिनों सुभाष घई का ‘व्हिशलिंग वुड इंस्टीट्यूट’नया नया खुला था. मुझे पता चला कि इसमें पुणे फिल्म संस्थान से जुड़े रहे व अन्य अच्छे शिक्षक हैं और दो वर्ष का कोर्स है. तो मैंने ‘व्हिशलिंग वूड’में प्रवेश ले लिया. मुझे बहुत मजा आया. उस वक्त मेरी उम्र 28 वर्ष थी. जबकि बाकी सभी विद्यार्थी बच्चे 18 से बीस वर्ष के थे. पर मैं सबसे अधिक मस्ती कर रही थी. क्योंकि मुझे वहां मिलने वाली शिक्षा की महत्ता का अहसास हो चुका था. मैं इंजीनियरिंग छोड़कर फिल्म स्कूल में आयी थी. वहां से पढ़ाई पूरी करके जब हमने मंुबई फिल्म नगरी में काम करना चाहा,तो आटे दाल का भाव पता चला. बहुत संघर्ष करना पड़ा. पूरे आठ वर्ष के संघर्ष के बाद में अपनी पहली साइंस फिक्शन फिल्म ‘‘कार्गो’’ बना सकी.

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सवाल- पर आई आई टी कानपुर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करतेवक्त भी आप अकेले व स्वतंत्र रही होगी?

-जी हॉ! स्वतंत्रता पूर्वक रहने का माइंड सेट तो आई आर्ई टी कानपुर में पढ़ाई के दौरान ही बन गया था. वहां हम रात रात भर जागकर पढ़ाई करते थे. मैने उस दौरान एक भी फिल्म नहीं देखी थी. मगर हम स्वावलंबी बन जाते हैं. सच तो यह है कि आई आई टी की पढ़ाई से मुझे एक ताकत मिली. दिमागी रूप से मैने जो कुछ सीखा,वह वहीं से मिला.

सवाल- क्या आज आपको लगता है कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना समय की बर्बादी या गलत था?

-मैं ऐसा नहीं कह सकती. क्योंकि मैने उससे बहुत कुछ सीखा. आई आई टी में जो सिस्टम डेवलपमेंट था,वह पूरा कम्प्यूटर साइंस था. तो रोबोट जिनकी मैं कहानी सुनती हूं, उसको पहले मैने इंजीनिंयरिंग की पढ़ाई के नजरिए से जाना. लोग साइंस फिक्शन किताबों से पढ़ते हैं,पर मैं तकनीक टेक्नोलॉजी से पढ़ा. यह सब मुझे मेरे कथा कथन कहानी कहने में मदद करता है. जब मैंने फिल्म‘‘कार्गो’’ बनायी,तो मुझे लोग इज्जत दे रहे थे,क्योंकि उन्हे अहसास हुआ कि इसने कुछ डिजाइन किया है. इस बात ने मेरी कहानी को विकसित करने में मदद की. दूसरी बात इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए निजी स्तर पर मैंने बहुत कुछ सीखा. यह हमेशा कमा आएगा. जिम्मेदारी का अहसास भी उसी दौरान हुआ.

सवाल- आप अपने सात आठ वर्ष के संघर्ष को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

-जब मैं ‘‘व्हिशलिंग वूड’’से फिल्म विधा की पढ़ाई कर रही थी,तभी मैने समझ लिया था कि मुझे साइंस फिक्शन फिल्में ही बनानी है. या कुछ जादुई काम करना है. उस वक्त नेटफ्लिक्स या अमॉजान जैसे ओटीटी प्लेटफार्म नहीं थे और सिनेमाघरांे में फिल्म प्रदर्शित करना टेढ़ी खीर था. उस वक्त मैं बहुत युवा नजर आती थी. मैं फिल्म निर्माताओं से मिलती थी और उन्हे बताती थी कि मुझे इस तरह की साइंस फिक्शन फिल्म बनानी है,तो संभवतः लोगों को मुझ पर यकीन नही होता था. जबकि सभी मिलते अच्छे थे. इसलिए मैने ‘इंडियन नोशन का बहुत अच्छा म्यूजिक वीडियो बनाया. कुछ लघु फिल्में बनायी. म्यूजिक वीडियो कई बनाएं. कुछ विज्ञापन फिल्में बनायी. मैने एक फिल्म की पटकथा लिखी, जिसे‘फैंटम फिल्म’ बनाने वाला था. हमने काफी तैयारी कर ली थी. मगर तभी फैंटम के अंदर कुछ विखराव हो गया और फिल्म बन न सकी. लेकिन इस फिल्म के चक्कर में मेरे पूरे दो वर्ष चले गए थे. तब मैने प्रण कर लिया था कि मै 2017 में अपनी फिल्म बनाउंगी,भले ही मुझे किसी परदे के सामने दो इंसानों को खड़ा करके ही क्यों न बनाना पड़े.

सवाल- अपनी लघु फिल्मों के बारे में बताएंगी?

-एक लघु फिल्म ‘उस पार’थी,जिसमें जैकी श्राफ ने अभिनय किया था. इसे कई फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया. दूसरी फिल्म ‘गुलमोहर’है. इसके बाद मैने एक फिल्म बनायी, जिसे कई फेस्टिवल में पुरस्कृत किया गया. यह फिल्म मूवी डॉट कॉम पर आयी थी. मैने एक लघु फिल्म‘‘रावण’’ बनायी, इसे मस्ती में एक दिन में बनाया था. इसमें एक संघर्षरत अभिनेता की कहानी है,जिससे लोग कह रहे हैं कि शादी करके बच्चे पैदा करो अन्यथा तुम मर जाओगे तो कई रावण पैदा हो जाएंगे. यह पहली लघु फिल्म थी, जिसके लिए मैने मैथोलॉजी के किरदार को उठाकर आधुनिकता के साथ जोड़ा था.

सवाल- इसके बाद की क्या योजना है?

-अभी एक साइंस फिक्श लघु फिल्म की शूटिंग रिचा चड्डा के संग की है. कुछ दूसरी योजनाएं भी हैं.

सवाल- फिल्म ‘‘कार्गो’’ की प्रेरणा कहां से मिली?

-मैने पंचतंत्र का महाभारत वर्जन भी पढने के बाद जब साइंस फिक्शन वाली कहानियां पढ़ना शुरू की,तो मेरी समझ में आया कि साइंस फिक्शन अभी का नहीं है और न ही अमरीका से आया है. बल्कि यह तो हमारे देश में कई सदियों से रहा है. मेरी नजर में ‘महाभारत’ भी एक तरह से साइंस फिक्शन ही है. शोध में मैने पाया कि सभी ने सबसे पहले साइंस फिक्शन कहानी के तौर पर यह बनाया कि हम पैदा कहां से हुए और मर कर कहां जाएंगे. क्योकि हर धर्म में इंसान की मृत्यू होने पर सांत्वना देते समय यह कहानी बतानी पड़ती है. इसे आप क्रिएशन मिथ आफ्ट्र लाइफ एंड डेथ’कह सकते हैं. तो मैने सोचा कि हमने पढ़ा है कि मृत्यू होने पर यमराज आकर इंसान को लेकर जाते हैं. तो हमने इसी पर एक नई कहानी पेश करने की कोशिश की है. हमारी फिल्म ‘कार्गो’ की मूल कहानी‘प्रे शिप’’की है,मगर बीच बीच में कई छोटी छोटी कहानियां हैं. साहित्य में एक खास चीज है-‘‘अनरिलायबल नरेटर. ’’एक स्पेनिश लेखक इसे बहुत आगे ले गए हैं.

सवाल- कहानी के बारे में कुछ बताना चाहेंगी?

-फिल्म‘‘कार्गो’’की कहानी पृथ्वी परहर सुबह आने वाले पुष्कर नामक ‘प्रे शिप’’की है. यह कहानी प्रहस्त (विक्रांत मैसे) नामक इंसान की है,जो कि पचास साठ साल से ‘पुष्कर 634 ए’’पर कार्यरत है. तो वह बहुत ही मेकेनिकल हो गया है. कार्गो से मृत लोग आते हैं और प्रहस्त के पास वह एक प्रोसेेस के साथ जाते हैं और प्रहस्त भी सारा काम मेकेनिकल तरीके से करता रहता है. अचानक प्रहस्त को एक सहायक युविश्का (श्वेता त्रिपाठी) मिलती है,जो कि इस नौकरी को लेकर बहुत उत्साहित है. उसे यह पहली नौकरी मिली है. यह लड़की अहसास करती है कि यह मस्ती वाला नहीं,बल्कि लार्जर आॅस्पेक्ट वाला काम है. वह यह जानने का प्रयास करती है कि आखिर जिंदगी का मतलब क्या है,यदि हर इंसान आकर सब कुछ देेने लगेे. उसके इस संसार में रहने का क्या मतलब है. इंटरवल के बाद फिल्म पूरी तरह से फिलॉसाफिकल हो जाती है. कहने का अर्थ यह कि जिंदगी में कुछ भी न रहे,तो भी कुछ न कुछ रह जाता है.

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सवाल- इस साइंस फिक्शन फिल्म में दर्शनशास्त्र?

-दर्शन शास्त्र यही है कि हम सोचते है कि हम मर जाते हैं,तो सब कुछ खत्म हो जाता है,तो ऐसा नहीं है,हम कहीं न कहीं कुछ छोड़ जाते हैं. और वही काफी है. मेरा कहना यह है कि हम जो ‘फार एवर’बोलते हैं,तो ‘फार एवर’ हमेशा रहने में नहीं होता, बल्कि वह जिंदगी का कोई भी पल हो सकता है.

सवाल- दर्शक अपने साथ ले जाएगा?

-फिल्म में ह्यूमर भी है,इसलिए लोगों को फिल्म देखते हुए मजा आएगा. इसके अलावा हर दर्शक अपनी जिंदगी के प्रति प्यार लेकर जाएगा. हम अपनी जिंदगी में इतना फंसे रहते हैं कि हम कभी भी अपने बारे में सोच ही नहीं पाते. लोग खुद को भाग्यशाली समझेंगे कि वह जिंदा हैं.

सवाल- इसके बाद की क्या येाजना है?

-एक फिल्म की पटकथा तैयार है. यह भी साइंस फिक्शन ही है. मै कम से चार पांच साइंस फिक्शन फिल्में ही बनाना चाहती हूं. वैसे मेरे पास कहानियों का भंडार है. अभी एक साइंस फिक्शन लघु फिल्म रिचा चड्डा के साथ शूट की है.

मेरा वजन बहुत अधिक है, इसे कम करने के लिए मैं डाइटिंग कर रही हूं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय कालेज स्टुडैंट हूं. मेरा वजन बहुत अधिक है, इसे कम करने के लिए मैं डाइटिंग कर रही हूं. लेकिन इस के कारण मुझे कब्ज रहने लगा है, क्या करूं?

जवाब

सब से पहले तो डाइटिंग की अवधारणा ही गलत है. आप को वजन कम करने के लिए कभी डाइटिंग नहीं बल्कि डाइट प्लानिंग करनी चाहिए. आप के शरीर को सामान्य रूप से काम करने के लिए एक निश्चित मात्रा में कैलोरी की आवश्यक है. अगर आप प्रतिदिन 1200 कैलोरी से कम का सेवन करेंगी तो आप का मैटाबोलिज्म धीमा पड़ जाएगा, जिस का सीधा प्रभाव आप के मल त्यागने की आदतों पर होगा. आप का पाचनतंत्र ठीक प्रकार से काम करेगा.

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अपने खानपान और लाइफस्टाइल के कारण आजकल अधिकतर लोगों में मोटापे की समस्या देखी जा रही है. इससे निजात पाने के लिए लोग घंटों जिम करते हैं, पर कुछ खास असर नहीं होता. हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसमें सामने आया है कि वजन कम करने के लिए एक्सरसाइज से ज्यादा डाइट महत्वपूर्ण होती है. अगर आपको वजन कम करना है तो इक्सरसाइज से ज्यादा डाइट पर ध्यान देना होगा.

अमेरिका की एक शोध संस्था के मुताबिक, जो लोग धीरे-धीरे यानी हफ्ते में सिर्फ 1 या 2 पाउंड ही वजन कम करते हैं, उनका वजन जल्दी नहीं बढ़ता है. रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई कि खाना के पाचन में 10 फीसदी तक कैलोरी बर्न होती हैं. वहीं, 10 से 30 फीसदी कैलोरी फिजिकल एक्टिविटी से कम होती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- एक्सरसाइज या डाइटिंग: वजन कम करने के लिए क्या करें?

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