RakshaBandhan Look: रेड ड्रेस में कैसे दिखें एलिगेंट और सबसे खास?

RakshaBandhan Look: रक्षाबंधन एक त्योहार नहीं, एक एहसास भी है. यह दिन हर बहन के लिए खास होता है और खास दिन पर स्टाइलिश और ऐलिगेंट दिखना आप का हक भी है और खुशी भी.तो इस रक्षाबंधन क्यों न रैड कलर की खूबसूरती और परंपरा को एक ट्रेंडी ट्विस्ट के साथ अपनाया जाए?

आइए, जानें कुछ आसान और असरदार फैशन टिप्स, जो आप को बनाएंगे सब से स्टाइलिश और ग्रेसफुल.

अपने स्टाइल और लुक से खास महसूस करें

रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ भाईबहन के रिश्ते का जश्न नहीं होता, बल्कि यह एक ऐसा दिन होता है जब आप अपने स्टाइल और लुक से भी खास महसूस करना चाहती हैं. ऐसे में रैड कलर की ड्रैस एक शानदार विकल्प है, जो पारंपरिक भी है और ट्रेंडी भी.

अगर आप सोच रही हैं कि रैड ड्रैस के साथ खुद को कैसे स्टाइल करें ताकि आप दिखें सब से अलग और ऐलिगेंट तो ये फैशन टिप्स आप के लिए ही हैं :

रैड को स्टाइल करें मौडर्न ट्विस्ट के साथ

मैरून, ब्रिक रैड, चाइनीज रैड या क्लासिक ब्राइट रैड, हर शेड का अपना एक अलग स्वैग है. इसलिए रैड पहनने से पहले अपनी स्किनटोन, पर्सनैलिटी और ओकेजन का ध्यान जरूर रखें. अगर ट्रैडिशनल लुक चाहिए, तो रैड अनारकली या शरारा सेट परफैक्ट रहेगा.

कुछ सिंपल और ऐलिगेंट चाहिए, तो एक क्लासिक रैड कुरता प्लाजो कौंबो ट्राई करें. इस बात का ध्यान रखें कि रैड में एक रौयल टच होता है, बस सही शेड और सही स्टाइल चुनना जरूरी है.

सिंपल और बैलेंस्ड मेकअप

ग्लोइंग और बैलेंस्ड रैड कलर खुद में बहुत बोल्ड और आकर्षक होता है, इसलिए उस के साथ मेकअप को हमेशा थोड़ा सटल और बैलेंस्ड रखना ही बेहतर होता है. ‘लेस इज मोर’ पर खास ध्यान दें, क्योंकि ओवरडन मेकअप लुक को भारी बना सकता है.

सब से पहले बेस को नैचुरल रखें ताकि आप की स्किन फ्रैश, क्लीन और हैल्दी ग्लो करती दिखे. एक हलका फाउंडेशन या बीबी क्रीम, थोड़ा कंसीलर और अच्छी तरह ब्लैंड किया गया पाउडर ही काफी है. आई मेकअप में हलका काजल, मसकारा और थोड़ा सा ब्राउन या गोल्डन टोन आईशैडो आप को सटल लेकिन डिफाइंड लुक देगा.

लिप्स के लिए न्यूड, पिच या सौफ्ट पिंक शेड्स चुनें. ये लाल आउटफिट के साथ खूबसूरती से बैलेंस बनाते हैं. थोड़ा सा हाइलाइटर चीकबोंस, नोज ब्रिज और आई कौर्नर पर लगाएं ताकि चेहरे पर नैचुरल शाइन आए.

ऐसा ग्लो जो अंदर से निकला हुआ लगे, अगर आप ट्रैडिशनल टच चाहती हैं, तो एक छोटी सी बिंदी जरूर लगाएं. यह छोटा सा डिटेल आप के पूरे लुक को क्लासिक, ऐलिगेंट और पूरी तरह फैस्टिव बना देता है.

ऐक्सैसरीज जो आप के लुक को बना देंगे स्टेटमैंट

लुक को परफैक्ट बनाने में ऐक्सैसरीज का बहुत बड़ा हाथ होता है. यह आप के पूरे आउटफिट को एक नया आयाम देती है. लाल या किसी भी फैस्टिव ड्रैस के साथ झुमके, ड्रौप इयररिंग्स या औक्सीडाइज्ड सिल्वर इयररिंग्स एक सेफ और स्टाइलिश चौइस हैं. ये हर ट्रैडिशनल आउटफिट के साथ आसानी से मैच हो जाते हैं और चेहरे को एक अलग शाइन देते हैं.

अगर आप की ड्रैस की नेकलाइन सिंपल है, तो पतला सिल्वर चेन पैंडेंट या क्लासिक पर्ल नेकपीस पहनना ज्यादा अच्छा रहेगा. भारीभरकम नेकलेस हर लुक के साथ जरूरी नहीं होता, कभीकभी कम ही ज्यादा होता है. हाथों के लिए एक साइड में सिल्वर कड़ा, मिनिमल ब्रेसलेट या कलर कोऔर्डिनेटेड ट्रेंडी चूड़ियां बेहतरीन लगती हैं.

अगर आप थोड़ी ऐक्सपेरिमैंटल हैं, तो मैटल फिंगर रिंग्स, ऐथनिक पायल या बिंदी जैसे छोटेछोटे ऐलिमैंट्स से भी लुक को खास बना सकती हैं. ध्यान रखें, ऐक्सैसरीज का काम है आप के लुक को उभारना, उसे ढंकना नहीं. इसलिए संतुलन जरूरी है.

फुटवियर : स्टाइल और कंफर्ट का परफैक्ट बैलेंस

आप का लुक तभी पूरा माना जाता है जब फुटवियर सही हो, जो दिखने में भी अच्छा लगे और पहनने में भी आरामदायक हो. रैड ड्रैस के साथ न्यूड, गोल्डन या सिल्वर टोन की हील्स, खासकर स्ट्रैपी हील्स या ब्लौक हील्स बेहद क्लासी लगती हैं.फ्लैट्स या ट्रेंडी पंजाबी जूतियां एक बढ़िया औप्शन हैं.

आजकल मिरर वर्क, गोटा पट्टी या थोड़ा सा ऐंब्रौयडरी वाला फुटवियर भी खूब चलन में है. यह ट्रैडिशनल टच भी देता है और कंफर्ट भी. ध्यान रखें, फुटवियर ऐसा हो जो आप के पूरे लुक को बैलेंस करे, न कि ओवरशैडो या अंडरप्ले.

हेयरस्टाइल : जब बाल भी बोले त्योहार की खुशी

आप का हेयरस्टाइल आप के पूरे लुक को एक अलग लेवल पर ले जा सकता है, इसलिए इसे नजरअंदाज न करें. अगर आप क्लासी और सिंपल लुक चाहती हैं, तो आधे खुले बाल पीछे पिन कर लें. यह लुक साफ, ऐलीगेंट और कभी आउट औफ ट्रेंड नहीं होता. अगर आप खुले बाल पसंद करती हैं, तो उन्हें एक खूबसूरत हेयरबैंड या ट्रेंडी क्लिप से सजाएं. यह आप के स्टाइल में थोड़ा फैस्टिव ग्लैमर जोड़ देगा.

थोड़ी सी क्रिएटिविटी चाहें तो साइड ब्रेड या लोबन बनाएं. इन में आप गजरा, बीड्स या पर्ल पिन्स लगा कर ट्रैडिशनल टच भी जोड़ सकती हैं. बस ध्यान रखें कि हेयरस्टाइल ऐसा हो जो आप के आउटफिट और ज्वेलरी से मेल खाए और आप को कंफर्ट दे.

खुशबू में असर, कौन्फिडेंस में दम

रक्षाबंधन सिर्फ राखी का त्योहार नहीं, बल्कि उस रिश्ते की महक है जो हर साल और गहराता है. जब आप अपने भाई से मिलने जाएं, तो सिर्फ उपहार नहीं, अपनी मुसकान, आत्मविश्वास और एक खूबसूरत खुशबू भी साथ ले जाएं क्योंकि आप की मौजूदगी से ही तो यह त्योहार खास बनता है.

Dessert Recipes: फैस्टिवल पर बनाएं डेजर्ट, बच्चे वाह-वाह करते नहीं थकेंगे

Dessert Recipes

केक लौलीज

सामग्री

– 150 ग्राम केक क्रंब्स

– 5 ग्राम क्रीम

– 15 ग्राम मैल्ट टैंपर्ड डार्क कुकिंग चौकलेट

– 10 ग्राम पिघला मक्खन

– 5 ग्राम आइसिंग शुगर

– 2-3 बूंदें वैनिला ऐसेंस

– कुछ लौली स्टिक्स.

विधि

एक बाउल में केक क्रंब्स लें. फिर उस में आइसिंग शुगर और पिघला मक्खन डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब इस में वैनिला ऐसेंस और क्रीम डाल कर चलाएं. फिर चौकलेट डाल कर मिलाएं और सौफ्ट डो तैयार कर के 5-10 मिनट फ्रिज में रखें. फिर डो से छोटीछोटी बौल्स तैयार कर पुन: फ्रिज में रखें. लौली स्टिक को पिघली चौकलेट में डिप कर के बौल्स में डालें और फिर फ्रिज में रखें. अब इन्हें पिघली चौकलेट में डिप कर के जेम्स से सजाएं और 10 मिनट फ्रिज में ठंडा कर सर्व करें.

जरमन ब्लैक फौरैस्ट कप

सामग्री

– 2 कप क्रीम फेंटी

– 150 ग्राम प्लेन चौकलेट केक क्रंब्स

– 1/2 कप बिना बीज वाली कैन्ड चैरीज

– 100 एमएल चैरी जूस

– 2 बड़े चम्मच चौकलेट कटी

– 5 ग्राम इलायची पाउडर

– 15 ग्राम अखरोट कटे

– गार्निशिंग के लिए चैरीज.

विधि

चैरीज को इलायची पाउडर के साथ मिला कर एक तरफ रख दें. फिर पुडिंग गिलास में फेंटी हुई क्रीम की लेयर लगाएं. फिर उस पर केक क्रंब्स की लेयर सैट करें. अब उस पर चैरी जूस डालें. फिर तैयार चैरीइलायची के मिश्रण से लेयर तैयार करें. उस पर नट्स व चौकलेट डालें. पुन: उस पर फेंटी क्रीम की लेयर बनाएं और ऊपर से नट्स व चौकलेट डाल कर चैरीज से सजा कर सर्व करें.

डच चौकलेट

सामग्री

– 30 ग्राम नारियल बुरादा

– 15 ग्राम चौकलेट पाउडर

– 40 ग्राम बिस्कुट क्रंब्स

– 15 ग्राम कंडैंस्ड मिल्क

– 10 ग्राम पिघला मक्खन

– चुटकीभर इलायची पाउडर

– सजाने के लिए थोड़ी सी जेम्स

– कोटिंग के लिए नारियल बुरादा.

विधि

बिस्कुट क्रंब्स में चौकलेट, इलायची पाउडर और नारियल डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस में मक्खन डाल कर अच्छी तरह चलाएं. अब इस में कंडैंस्ड मिल्क डाल कर डो तैयार करें. फिर हाथों पर थोड़ी सी चिकनाई लगा कर उस की छोटी बौल्स तैयार कर उन्हें नारियल के बुरादे से रोल कर जेम्स से सजा सर्व करें.

कोकोनट मैकरून

सामग्री

– 100 ग्राम नारियल का बुरादा

– चुटकीभर बेकिंग पाउडर

– चुटकीभर सोडा

– 50 ग्राम मैदा

– 40 ग्राम चीनी

– 15 ग्राम पिघला मक्खन

– 1-2 बड़े चम्मच दूध

– 1 बड़ा चम्मच नारियल का बुरादा गार्निशिंग के लिए

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में नारियल का बुरादा ले कर उस में बेकिंग पाउडर, सोडा और नमक मिला कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर उस में मैदा, चीनी व मक्खन मिला कर तब तक चलाती रहें जब तक मिश्रण चूरे की तरह न हो जाए. अब इस में दूध मिला कर नर्म आटा गूंध कर लोइयां बनाएं और उन्हें ओवनप्रूफ ट्रे में रख थोड़ा सपाट करें. फिर पहले से गरम ओवन में 1500 सैंटीग्रेड पर 10 मिनट  बेक करें. मैकरून बन कर तैयार हैं. ऊपर से थोड़ा नारियल बुरक कर नारियल को हलका सुनहरा करने के लिए 2-3 मिनट और बेक करें. ठंडा कर सर्व करें. Dessert Recipes

Genz Career Planning: जैन जेड कैसे बनाएं फ्यूचर

Genz Career Planning: आज के युवाओं को आजादी इतनी प्यारी होने लगी है कि वे अकसर आजादी का मूल ही भूल जाते हैं. आजादी का मतलब सिर्फ अपनी मनमानी करना, बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ना या आंख बंद कर मस्ती में फिरना नहीं होता बल्कि अपने विचारों को विस्तृत और प्रगतिशील करना होता है. अपनी योग्यता को निखारना और अपने भविष्य के लिए गंभीर मनोस्थिति अपनाना कार्यबद्ध होने से है.

कहीं तो आज के जैन जेड किशोर अवस्था से ही अपनी योग्यता को पहचान, उस पर मेहनत कर नाम कर रहे हैं तो कहीं और कुछ अपने लक्ष्य से भटक रहे. जो समय उन्हे अपनी पढ़ाई, कला आदि में लगाना चाहिए उस समय को वे सोशल मीडिया में गुमराह हो कर नष्ट कर रहे.

बहुत से युवा जितनी जानकारी टैक्नोलौजी या किसी वायरल ट्रेंड की रखते हैं, वहीं आम दुनियादारी की नहीं. न परिवार, सरकार व समाज में अपनी भूमिका की और न ही वे इस बात को महत्त्व देते हैं. वे यह नहीं समझते कि उन्हें अपना पूरा जीवन इसी दुनिया की भागदौड़ में निकालना है. इसलिए उन्हें बदलते दौर के साथ वर्तमान और भविष्य दोनों के उतारचढ़ाव के लिए हर रूप से तैयार रहना चाहिए.

इसे नाकार नहीं सकते कि जैन जेड समाज का भविष्य है और इस भविष्य को उज्ज्वल और दृढ़ बनाने के लिए हमें वर्तमान में अपनी भागीदारी निभानी पड़ेगी. अब वह भागीदारी मांबाप, भाईबहन बन कर निभाएं या एक सलाहकार बन कर अपनी इसी जैन जेड के लिए हम भी कुछ सलाह देना चाहेंगे:

अपना पैशन पहचाने: बहुत से युवा जीवन के कई वर्ष निकाल लेते लेकिन उन्हें अपना पैशन या वह कार्य या कला नहीं जान पाते जिस में उन की योग्यता उभर कर बाहर आ सके, जिस पैशन को अपना कर वे आंतरिक व भौतिक दोनों सुख प्राप्त कर सकें.

मैंटर या गुरु का चुनाव: हमारी योग्यता जितनी हमारी मेहनत पर टिकी है उतनी ही एक उत्तम गुरु या मैंटर के मार्गदर्शन पर भी. जिस तरह अशोक एक शक्तिशाली योद्धा थे लेकिन चाणक्य की छाया में वे एक सम्राट बन गए. उन की तरह अपनी सफलता के लिए हमें एक गुरु की आवश्यकता होती है. अब वे गुरु हमारे टीचर्स हों, मांबाप हो या कोई सलाहकार.

अपनी गलतियों या फेल्योर से सीखना: बहुत से युवा गलती होने पर या अपने परिश्रम में सफल न होने पर निराश हो पीछे हट जाते है, जबकि ऐसे समय में उन्हें धैर्य रखना चाहिए और बचपन में सुनाई चींटी के संघर्ष की कहानी याद करनी चाहिए कि किस तरह वह अपने रास्ते में आती हर रुकावट को पार करती है और अपने लक्ष्य तक पहुंचती है.

उचित संगत: हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं कि हमें अपनी संगत का चुनाव सूझबूझ से करना चाहिए. हमारे दोस्तों, सहभागियों के स्वभाव का असर हमारे हावभाव पर भी पड़ता है. अगर हमारी संगत परिश्रमी हो तो हम साथ मिल कर एकदूसरे के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं नहीं तो गलत संगत दोनों की ही हानि करेगी.

स्किल्स को निखारें: आज समय उतनी तेजी से नहीं भाग रहा जितनी तेजी से टैक्नोलौजी बढ़ और बदल रही है. इसलिए युवाओं को चाहिए कि अपनी स्किल्स को निखारने और डैवलप करने के लिए हमेशा तैयार रहें.

फाइनैंस का ज्ञान: यहां हमारा अर्थ फाइनैंस की किसी डिप्लोमा या डिगरी से नहीं बल्कि आम ज्ञान से है अर्थात कोई अपनी आर्थिक स्थिति और कमाए गए धन के बारे में कितना ज्ञान रखता है? युवाओं को अपनी कमाई, अपनी जरूरतें, खर्च इन सब का ज्ञान होना चाहिए क्योंकि वे ही अपने भविष्य और अपने परिवार के भविष्य का, उन की आर्थिक जरूरतों, सुखसुविधाओं व मैडिकल जरूरतों का बीड़ा उठाने वाले हैं.

बजट, बचत: युवाओं को फाइनैंशल बजट का 50-30-20 रूल का ज्ञान होना चाहिए. यह रूल बहुत कारगर और आसान भी है जो यह कहता है कि आप की कमाई का 50% आप की जरूरत व आर्थिक आवश्यकताओं पर खर्च होना चाहिए, 30% आप की इच्छाओं पर और 20% आप की बचत या इनवैस्टमैंट पर इस रूल को अपना वे कई फुजूल खर्चों से बच सकते हैं और अपनी कमाई का सही इस्तेमाल कर सकते हैं.

इनवैस्टमैंट की समझ: इनवेस्टमैंट करने से पहले यह जानना जरूरी है कि इनवैस्टमैंट की कहां जाए? आखिर अपने पैसे के साथ कौन जोखिम लेना चाहेगा. युवाओं को चाहिए कि जिस किसी चीज में वे निवेश करना चाहते हैं पहले उस के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें. अपना जोखिम, लाभ, उस की शर्तें व नियम इन सब की जानकारी हासिल कर के ही निवेश करें क्योंकि यह निवेश वे भविष्य के लिए ही कर रहे हैं और यही निवेश उन्हे कई बार आपातकालीन स्थितियों में सहायता देता है.

फाइनैंशियल एडवाइस: हमारी जैन जेड बहुत सी चीजों और लोगों से प्रभावित हो कर उन से तरहतरह के एडवाइस ले रही है जैसे बौडी बिल्डिंग, स्किन केयर, रिलेशनशिप, स्टाइलिंग और बहुत कुछ तो उन्हें अपनी लिस्ट में फाइनैंशियल एडवाइस भी जोड़ लेनी चाहिए. आखिर लिस्ट में लिखी बाकी चीजों को पूरा तो पैसे से ही किया जा सकता है. जहां वे सोशल मीडिया पर ऐंटरटेनमैंट इन्फ्लुएंसर को फौलो कर करे हैं वहीं वे फाइनैंशियल इन्फ्लुएंसर से भी क्यों न जुड़ें जो उन्हें कई तरह के एडवाइस फ्री में दे सकते हैं, साथ ही फाइनैंशियल एडवाइस सिर्फ ऐक्सपर्ट ही नहीं बल्कि अपने घर व समाज के बड़ेबूड़े से भी मिल सकती है.

सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल: सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक सिक्के की तरह है जो अच्छा और बुरा दोनों पहलू लिए हुए है. एक तरफ तो युवा इस का इस्तेमाल कर के नाम और काम दोनों में सफल हो रहे वहीं दूसरी तरफ इस की बनावटी दुनिया में मुखौटे पहने चेहरों के चमकीले झूठ में डूब कर अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं. ऐसे प्लेटफौर्म पर ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें देख कर वे गुमराह हो रहे हैं इसलिए उन्हें चाहिए कि इन्हीं प्लेटफौर्म्स का सही इस्तेमाल कर उन लोगों से जुड़ें जो सच में गुणी, सफल और शालीन व्यक्तित्व वाले हैं. उन लोगों से इंसपायर हों. उन से मार्गदर्शन मांगे और अपने जीवन में सफल बनें.

मदद मांगने में हिचक नहीं: बहुत से युवाओं को किसी भी तरह की मदद मांगने में बहुत संकोच या शर्म महसूस होती है. उन्हें इस प्रकार की सोच से बाहर निकल अपनी परेशानी साझा करनी चाहिए ताकि उस पर समय से कदम उठा उसे दूर किया जा सके. उन्हें यह याद रखना चाहिए कि मदद मांगने से वे छोटे नहीं हो जाते और न ही किसी से कम बल्कि एकदूसरे की मदद करना अपने ही आत्मविश्वास को बढ़ाता है.

ट्रैवल टू लर्न: युवाओं को ट्रैवल करना बहुत पसंद है लेकिन क्या ट्रैवल सिर्फ मौजमस्ती के लिए होता है? नहीं. किसी जगह ट्रैवल करना वहां सिर्फ घूमना नहीं हुआ बल्कि वहां के रहनसहन, बोली, भाषा, कल्चर, कला, वहां के इतिहास का ज्ञान अर्जन के लिए बहुत अच्छा रास्ता है. कई बार इसी तरह से प्राप्त ज्ञान का सही उपयोग कर बहुत लोग जीवन में सफल बन जाते हैं.

सैल्फ केयर: सैल्फ केयर से हमारा अर्थ सिर्फ त्वचा की सुंदरता बढ़ाने से नहीं बल्कि हर रूप से अपनी सुंदरता और आत्म के विकास से है. युवाओं को अपने रूप के साथ मनमस्तिष्क और अपनी सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए. आजकल की भागदौड़ और बेढंगे लाइफस्टाइल से उन्हें न ही पूरी रैस्ट मिल पा रही है और न ही पोषण. याद रहे कि स्वस्थ रह कर ही जीवन का आनंद लिया जा सकता है क्योंकि स्थूल व बीमार शरीर न ही कोई कार्य कर सकता और न ही मौज, इसलिए अपनी जीवनशैली या लाइफस्टाइल में सुधार लाना चाहिए.

बी थैंकफुल: आभार शब्द हमें इतना भारी लगने लगा है कि हम दूसरों के प्रयत्नों, उन की मदद या अच्छे स्वभाव के प्रति आभार नहीं दिखा पाते. यह बरताव आज के युवाओं में अधिक देखा जाता है. वे न अपने मांबाप के प्रति थैंकफुल हैं, न ही अपने गुरुओं के प्रति. उन्हें यह लगता है कि ये सब अपना कर्तव्य निभा रहे और इस कर्तव्य के लिए उन का आभार व्यक्त करना फुजूल की बात है. वे यह भूल जाते कि जब वे किसी और का आभार या धन्यवाद नहीं करेंगे तो कोई और भी उन के किए गए प्रयासों व मेहनत के लिए न थैंक्स कहेगा और न ही अहमियत देगा.

वैल्यू ऐंड कंसीडर हैल्दी रिलेशनशिप: रिलेशन चाहे मांबाप से हो, भाईबहन या किसी दोस्त से आज की पीढ़ी उस की वैल्यू भूल सी गई है. उस के लिए हर रिश्ता या तो कोई फौरमैलिटी निभाना है या फिर कैजुअल रहना बन गया है. वह रिश्तों के प्रति गंभीर नहीं. Genz Career Planning

Work Life Balance: रिश्ते पर भारी वर्कलोड

Work Life Balance: रीमा और आदित्य कभी एकदूसरे की आंखों में सुबह ढूंढ़ते थे, अब लंबे समय से अपनेअपने कामों के मेलबौक्स में खो गए थे. मीटिंग्स, डैडलाइन और मोबाइल स्क्रीन ने उन के रिश्ते में सन्नाटा भर दिया था. फिर एक दिन आदित्य ने रीमा को बिना वजह कौफी पर बुलाया. दोनों अचकचाए, मुसकराए और फिर बातोंबातों में पुराने किस्से धीरेधीरे लौटने लगे.

रीमा बोली, ‘‘हम काम में इतना खो गए थे कि साथ चलना भूल गए थे.’’ आदित्य ने रीमा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘तो क्या हुआ? फिर से चलना शुरू कर लेते हैं.’’ कभीकभी दूरी नहीं, एक कौफी और इरादा ही काफी होता है एक नई शुरुआत के लिए.

आगे बढ़ने की रेस

आजकल की जिंदगी में काम और कैरियर की रेस इतनी तेज हो गई है कि हम अकसर उन लोगों को पीछे छोड़ देते हैं जिन के साथ यह सफर शुरू किया था. सुबह की नींद औफिस कौल्स से टूटती है और रातें लैपटौप की नीली रोशनी में बीत जाती हैं. ऐसे में न जाने कब रिश्तों के बीच एक खामोशी आ कर बैठ जाती है जो बोलती कुछ नहीं पर बहुत कुछ कह जाती है.

कभी जिन से घंटों बातें करते थे, अब उन से हफ्तों तक सिर्फ ‘ठीक हूं’ या ‘बिजी हूं’ में बातचीत सिमट जाती है. क्या यह सच में बिजनैस है या हम खुद ही अपने रिश्तों से दूरी बना बैठे हैं? लेकिन अच्छी बात यह है कि रिश्ते टूटते नहीं, बस थम जाते हैं और हर थमे रिश्ते को फिर से चलाने के लिए बस एक छोटी सी कोशिश काफी होती है.

रिश्तों में भी रिचार्ज जरूरी है

जैसे मोबाइल बिना चार्ज के काम नहीं करता वैसे ही रिश्ते भी बिना समय और संवाद के फीके पड़ जाते हैं. रोज नहीं तो हफ्ते में एक बार, बस 10 मिनट भी साथ बैठ कर मुसकरा लेना रिश्तों की बैटरी को दोबारा जिंदा कर सकता है.

टैक्नोलौजी नहीं खुद से जुडि़ए

वीडियो काल्स, व्हाट्सऐप और ईमेल से भरे इस दौर में असली मौजूदगी की अहमियत और भी बढ़ गई है. एक काल के बजाय कभीकभी 1-1 कप चाय साथ पीना या औफिस से लौटते हुए फूल ले आना ये छोटेछोटे कदम दिलों को फिर से पास ला सकते हैं.

शिकायत कम यादें ज्यादा बांटें

हर रिश्ता कभी न कभी थकता है. ऐसे समय में एकदूसरे को सुनना, बीती अच्छी बातों को याद करना और बिना जज किए सामने वाले की बात समझना बेहद जरूरी होता है. रिश्ते तब नहीं बिगड़ते जब लड़ाई हो बल्कि तब बिगड़ते जब बात ही बंद हो जाए.

बड़े प्लान की जरूरत नहीं

कभीकभी एक कप कौफी, एक वाक या बस चलो बात करते हैं कह देना भी नई शुरुआत बन सकता है. प्यार दिखाने के लिए बड़े जेस्चर नहीं, बस सच्चा इरादा चाहिए.

काम करने की उम्र है तो काम करना ही है क्योंकि अच्छी जिंदगी जीना हर किसी का सपना होता है. लेकिन इस बीच अपने जीवनसाथी या फ्रैंड के साथ अपने रिश्ते पर कोई डैंट न आने देना भी जरूरी है. इसलिए छोटीछोटी बातों से अपने रिश्ते को रिफ्रैश करते रहना जरूरी है. Work Life Balance

Youth Mental Health: युवाओं में क्यों बढ़ रहा डिप्रैशन

Youth Mental Health: 20 से 22 साल की आयु जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है. इस दौरान शिक्षा, कैरियर और रिश्तों में कई बड़े बदलाव आते हैं. इस उम्र में खुशी, रोमांच और उत्साह आदि सबकुछ साथसाथ होता है, साथ ही अनिश्चितताओं और स्ट्रैस की वजह से बहुत अधिक तनाव भी होता है.

नवी मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल के मनोचिकित्सक डा. पार्थ नागडा कहते हैं कि कम उम्र में कोई भी समस्या युवाओं के लिए तनाव का कारण बन जाती है क्योंकि वे छोटीछोटी चीजों से घबरा जाते हैं. इस का असर उन के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, इसलिए उन पर नियंत्रण रखना, सही समय पर उपचार कराना जरूरी है.

तनाव से पनपती गंभीर बिमारियां

डाक्टर कहते हैं कि इतनी कम उम्र में लंबे समय तक तनाव में रहने से मानसिक स्वास्थ्य की बड़ी समस्याएं हो सकती हैं. इस दौरान शिक्षा में आगे बढ़ने, एक स्थिर कैरियर हासिल करने और एक अच्छी रिलेशनशिप को बनाए रखने का दबाव, हमारे नैचुरल कोपिंग मैकेनिज्म को प्रभावित कर सकता है, जिस से चिंता या निराशा जैसे डिसऔर्डर दिखाई पड़ सकते हैं. मसलन, घर से दूर रहना, नए रिश्ते बनाना, वित्तीय निर्णय लेना आदि कई वजहों से तनाव बढ़ता है.

‘जर्नल औफ क्लीनिकल मैडिसिन’ में प्रकाशित 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि जीवन के बदलावों से होने वाला तनाव इस आयुवर्ग में मनोवैज्ञानिक संकट को दर्शाता है, जिस का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है.

इस के अलावा लगातार तनाव से युवाओं में कई गंभीर शारीरिक बीमारियां भी हो सकती हैं, जिन में हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अवसाद और चिंता शामिल है. इन्हें समय रहते पहचान लेना जरूरी होता है.

– ऐसा देखा गया है कि अत्यधिक तनाव से हृदय गति और रक्तचाप बढ़ सकता है, जिस से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है.

– तनाव इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ा सकता है, जिस से मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है.

– तनाव से रक्तचाप बढ़ सकता है, जिस से उच्च रक्तचाप और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है.

– अधिक स्ट्रैस से डिप्रैशन बढ़ सकता है खासकर जब इसे ठीक से मैनेज न किया जाए.

– लगातार स्ट्रैस में रहने पर चिंता और घबराहट हो सकती है जो कई प्रकार के डिसऔर्डर को जन्म देती है.

– अधिक तनाव की वजह से पाचन संबंधी समस्याएं भी आज के यूथ में कौमन हो चुकी हैं.

– अधिक तनाव से इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है, जिस से अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. हालांकि तनाव से ग्रस्त हर युवा को मानसिक बीमारी हो यह जरूरी नहीं, लेकिन जिन में कुछ कमजोरियां पहले से मौजूद हों मसलन परिवार में पहले किसी को मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं होना, आघात या सामाजिक समर्थन की कमी उन के लिए रिस्क हो सकती है.

ऐसे में बीमारी का जल्दी पता लग जाने से उसे इलाज कर ठीक किया जा सकता है. कुछ लक्षण निम्न हैं:

– लगातार चिंता, चिड़चिड़ापन, उदासी या निराशा, रोज के काम करने में असमर्थता, भविष्य के बारे में बहुत अधिक सोचना.

– ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, याददाश्त की समस्याएं.

– थकान, सिरदर्द, नींद की समस्याएं, भूख में बदलाव या बिना किसी कारण के दर्द और पीड़ा का होना.

– खुद को लोगों से अलग कर लेना, अकेले

रहना, नशे का होना, खुद को नुकसान पहुंचाना या लापरवाह ड्राइविंग जैसे जोखिम भरे काम करना.

– आत्महत्या के विचार या खुद को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार का होना आदि.

पेरैंट्स दें ध्यान

डाक्टर आगे कहते हैं कि पेरैंट्स को यूथ के अलग व्यवहारों को नोटिस करना जरूरी होता है ताकि समय रहते उन का इलाज किया जा सकें. कुछ सुझाव इस प्रकार है:

– यूथ से पेरैंट्स खुली बातचीत करें, एक सुरक्षित और नौनजजमैंटल माहौल बनाएं, जहां यूथ अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकें. तुरंत समाधान सुझाने के बजाय उन की बातों को पूरी और ध्यान से सुनें.

– किसी भी स्थिति, समस्या का सामना स्वस्थ तरीके से करने को प्रोत्साहित करें, जिस में संतुलित दिनचर्या, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद को बढ़ावा देने से तनाव कम होता जाता है.

– उन की भावनाओं को समझें. उन्हें पूरी फ्रीडम दें, मार्गदर्शन करें, उन्हें उन के निर्णय लेने में सहायता करें. अपनी अपेक्षाओं को उन पर न थोपें. अगर संभव हो तो उन्हें कैरियर या शिक्षा के विकल्प तलाशने में मदद करें.

इलाज जरूरी

कुछ मातापिता ऐसे में पूजापाठ, हवन का सहारा लेते है, जो उन्हें अधिक कमजोर बनाता है. तनावग्रस्त व्यक्ति को निरंतर प्रयास और धैर्य बनाए रखने की जरूरत होती है. अगर ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा है तो डाक्टर की सलाह अवश्य लें. शुरुआती दौर में कुछ थेरैपी से तनाव कम हो जाता है, जबकि अधिक समस्या होने पर दवा की जरूरत पड़ती है.

अधिक प्रतियोगी होना

डाक्टर पर्थ कहते हैं कि आज के युवाओं में तनाव और अवसाद अधिक मात्रा में बढ़ने की वजह का हर मोड़ पर कंपीटिशन का सामना करना है. 23 वर्षीय एक महिला यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए अचानक हुए ब्रेकअप से परेशान थी. उस का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग पा रहा था. उसे नींद न आना, चिंता और लोगों से अलग, अकेले रहने जैसे लक्षण विकसित हो चुके थे, जिस से वह बहुत परेशान रहती थी और कुछ भी आगे सोचने में समर्थ नहीं थी. मैं ने मैडिसिन, जीवनशैली में बदलाव, आरईबीटी थेरैपी और परिवार की मदद से उस स्थिति का मुकाबला स्वस्थ तरीके से करने के बारे में सिखाया और आत्मविश्वास हासिल किया.

22 वर्षीय एक युवा ग्रैजुएशन करने के बाद कैरियर की अनिश्चितता से जूझ रहा था, जिस से उसे नशे की लत लग गई. ऐंटीक्रेविंग दवाओं, स्ट्रैस मैनेजमैंट तकनीकों और कैरियर परामर्श ने उस के तनाव को दूर करने और शराब पीने की आदतों को कम करने में मदद की.

लड़कियों में तनाव अधिक

ऐसा देखा गया है कि 20 से 22 वर्ष की युवा लड़कियों में लड़कों की तुलना में चिंता और अवसाद अधिक होता है. इस की वजह अकसर रिश्तों और शैक्षणिक सफलता से जुड़े सामाजिक दबाव का होना है, जिस में एक लड़की को उतनी आजादी नहीं मिलती, जितनी एक लड़के को मिलती है. 36% लड़कियों को जो वे करना चाहती हैं वह करने की आजादी उन्हें नहीं मिलती, इसलिए वे खुदखुशी, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती हैं, जबकि 25% लड़के किसी नशे का आदी बन कर घर से बाहर जा कर तनावमुक्त होने की कोशिश करते हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

वैश्विक स्तर पर 7 में से 1 किशोर में मानसिक विकार होता है. इस आयुवर्ग में चिंता और अवसाद के 40% मामले पाए जाते हैं, जबकि 66% छात्रों में खराब ग्रेड की वजह से तनाव होता है, 55% छात्र तैयारी के बावजूद परीक्षाओं को ले कर चिंता में रहते हैं. लड़कों की तुलना में लड़कियां शिक्षा को ले कर अधिक तनाव में रहती हैं. इस के अलावा सोशल मीडिया और साइबर बुलिंग भी तनाव का कारण बनती है. ऐसे में परिवार और दोस्तों का मजबूत समर्थन और समय पर एक्सपर्ट से इलाज बहुत जरूरी है.   Youth Mental Health

Perfume Guide: जानिए परफ्यूम के प्रकार और लगाने का सही तरीका

Perfume Guide: परफ्यूम कोई साधारण चीज नहीं होती. यह आप की मौजूदगी को यादगार बना सकता है. जब कोई आप के पास से गुजरता है और एक हलकी सी खुशबू उस के जेहन में रह जाती है तो समझिए आप ने अपने व्यक्तित्व की एक छाप छोड़ दी है. लेकिन इस असर के लिए सिर्फ अच्छी खुशबू होना काफी नहीं, उसे सही तरीके से लगाना भी आना चाहिए.

परफ्यूम लगाने का सब से अच्छा तरीका यह है कि उसे सीधा त्वचा पर लगाया जाए न कि सिर्फ कपड़ों पर. शरीर के जिन हिस्सों में नब्ज चलती है जैसे कलाई, गरदन, कान के पीछे या कुहनियों के अंदरूनी हिस्से वहां परफ्यूम लगाना ज्यादा असरदार होता है क्योंकि वहां की गरमी खुशबू को धीरेधीरे फैलने में मदद करती है.

परफ्यूम नहाने के बाद लगाना सब से अच्छा होता है लेकिन त्वचा पूरी तरह सूखी होनी चाहिए. बहुत सी महिलाएं परफ्यूम लगाने के बाद कलाई रगड़ती हैं जो एक आम गलती है. इस से खुशबू के ऊपरी नोट्स उड़ जाते हैं और उस का असर कम हो जाता है. बस स्प्रे कीजिए और उसे अपनेआप सूखने दीजिए.

मात्रा का भी ध्यान रखना जरूरी

2 से 4 स्प्रे पर्याप्त होते हैं. बहुत ज्यादा परफ्यूम लोगों को असहज कर सकता है जबकि हलकी और संतुलित खुशबू लंबे समय तक आकर्षित करती है.

अब बात करते हैं कि परफ्यूम के कौनकौन से प्रकार होते हैं और उन्हें कब और क्यों चुनना चाहिए.

सब से पहले आता है लिक्विड स्प्रे परफ्यूम, जिस में Eau de Parfum(EDP)  और Eau de toilette (EDT) शामिल हैं. EDP में खुशबू का तेल अधिक होता है इसलिए यह ज्यादा देर तक टिकता है और खास मौकों के लिए उपयुक्त होता है. वहीं EDT में खुशबू हलकी होती है जो दिनभर के लिए खासकर औफिस या बाहर के काम के लिए आदर्श है.

आजकल सौलिड परफ्यूम का चलन भी बढ़ गया है. यह छोटे डब्बों में मिलता है और बाम जैसा होता है. इसे उंगली से ले कर कलाई, गरदन या कान के पीछे लगाया जा सकता है. यह लीक नहीं करता और यात्रा के लिए बहुत सुविधाजनक होता है. यदि आप सादा, साफ और निजी खुशबू पसंद करती हैं तो यह आप के लिए उपयुक्त है.

रोल औन परफ्यूम भी एक सरल विकल्प है, जिस में एक छोटा बौल होता है, जिस से परफ्यूम सीधे त्वचा पर लगाया जाता है, इस में वेस्टेज कम होती है और खुशबू देर तक बनी रहती है. यह अकसर अल्कोहल फ्री होता है इसलिए संवेदनशील त्वचा वालों के लिए अच्छा विकल्प माना जाता है.

बौडी मिस्ट हलकी और तरोताजा खुशबू देता है. इसे पूरे शरीर पर लगाया जा सकता है खासकर नहाने के बाद. गरमियों में या जब दिनभर बाहर रहना हो तब इस का इस्तेमाल राहत देता है. हां इसे दिन में 2-3 बार दोहराना पड़ता है क्योंकि इस की टिकाऊ क्षमता कम होती है.

इत्र परंपरा से जुड़ी वह खुशबू है जिसे लोग पीढि़यों से इस्तेमाल करते आ रहे हैं. यह एक तरह का शुद्ध परफ्यूम औयल होता है जिस में अल्कोहल नहीं होता. इस की सिर्फ 1 बूंद ही काफी होती है और यह दिनभर टिका रहता है. यह खासतौर पर पारंपरिक अवसरों या उत्सवों में इस्तेमाल किया जाता है.

ये खास सुझाव भी ध्यान में रखें

– बालों पर हलका परफ्यूम स्प्रे किया जा सकता है लेकिन सीधे स्कैल्प पर नहीं लगाना चाहिए.

– परफ्यूम को कभी सीधी धूप या गरमी में न रखें क्योंकि इस से उस की गुणवत्ता खराब हो जाती है.

– एकसाथ 2 अलगअलग परफ्यूम मिला कर न लगाएं क्योंकि इस से खुशबू टकरा सकती है और मनचाहा प्रभाव नहीं पड़ता.

खुशबू सिर्फ एक सुंदर एहसास नहीं बल्कि आप की पहचान भी है. आप क्या पहनते हैं, लोग एक बार देखेंगे लेकिन आप कैसी खुशबू छोड़ते हैं वह उन्हें लंबे समय तक याद रहती है. इसलिए अगली बार परफ्यूम लगाते समय सिर्फ उस की महक के बारे में न सोचें, सोचिए वह आप के बारे में क्या कहेगी. Perfume Guide

Beauty Tips: मार्केट में मिलने वाली फेयरनैस क्रीम सच में रंग गोरा करती है?

Beauty Tips

क्या मार्केट में मिलने वाली फेयरनैस क्रीम सच में रंग गोरा कर देती है?

ज्यादातर फेयरनैस क्रीम इंस्टैंट ब्राइटनैस देती हैं लेकिन असली गोरा रंग देने का दावा सही नहीं होता. ये क्रीम्स अकसर स्किन को टंपरेरली ब्लीच करती हैं या उस में लाइट रिफ्लैक्टिंग पार्टीकल्स मिलाए जाते हैं जिस से चेहरा थोड़ा साफ दिखता है. लेकिन लंबे समय में इन का ज्यादा इस्तेमाल स्किन को डल और ड्राई बना सकता है और कई बार तो पिगमैंटेशन भी बढ़ सकते हैं. इस के बजाय अपनी स्किन को हैल्दी बनाने पर ध्यान दें जैसेकि सन प्रोटैक्शन, हाइड्रेशन, ऐक्सफौलिएशन और सही डाइट ताकि आप के नैचुरल कौंप्लैक्सन में ग्लो आ सके. गोरा होना जरूरी नहीं, साफ और निखरी स्किन ज्यादा जरूरी है.

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क्या ऐलोवेरा हर स्किन टाइप पर सूट करता है?

ऐलोवेरा एक बेहद गुणकारी पौधा है जो ज्यादातर स्किन टाइप्स पर अच्छा असर करता है लेकिन कुछ महिलाओं की स्किन बहुत सैंसिटिव होती है और उन्हें इस से इरिटेशन या लालिमा हो सकती है. पहली बार इस्तेमाल करने से पहले थोड़ा सा ऐलोवेरा जैल हाथ पर लगा कर पैच टैस्ट करना सही रहता है. अगर कोई जलन या खुजली न हो तो आप इसे चेहरे पर इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर फ्रैश ऐलोवेरा लगा रही हैं तो उस के पत्ते को हलका सा कट कर कुछ देर उलटा कर के रख दें. उस में से एक ऐलो लिक्विड निकल जाएगा फिर इसे धो कर इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐलोवेरा औयली स्किन पर भी अच्छा काम करता है क्योंकि यह हलका होता है और त्वचा को हाइड्रेट करता है बिना चिपचिपेपन के. ड्राई स्किन वालों के लिए इसे क्रीम या औयल के साथ मिला कर इस्तेमाल करना बेहतर रहता है.

बालों में हर दिन तेल लगाना जरूरी है क्या?

हर दिन तेल लगाना जरूरी नहीं होता बल्कि हफ्ते में 1 या 2 बार अच्छा तेल लगाना ज्यादा फायदेमंद रहता है. जरूरी तो मसाज है. रोज बालों में तेल लगाने से धूल और गंदगी ज्यादा चिपक सकती है, जिस से स्कैल्प ब्लौक हो जाती है और बाल झड़ने भी लगते हैं. तेल लगाते समय हलके हाथों से मसाज करें और कम से कम 1 घंटे बाद बाल धो लें. कुछ महिलाएं रातभर तेल लगा कर सोना पसंद करती हैं लेकिन अगर स्कैल्प सैंसिटिव है तो इस से दाने या खुजली भी हो सकती है. इसलिए अपनी स्कैल्प की जरूरत के हिसाब से तेल लगाना ज्यादा बेहतर है. अगर आराम और मसाज के लिए तेल लगा रही हैं और आप के बाल औयली हैं तो तेल के बदले हेयर टौनि

लगा कर भी मसाज कर सकती हैं.

Hindi Love Story: बेइंतहा मोहब्बत की कहानी

Hindi Love Story: दिसंबर का पहला पखवाड़ा चल रहा था. शीतऋतु दस्तक दे चुकी थी. सूरज भी धीरेधीरे अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर रहा था और उस की किरणें आसमान में लालिमा फैलाए हुए थीं. ऐसा लग रहा था मानो ठंड के कारण सभी घर जा कर रजाई में घुस कर सोना चाहते हों. पार्क लगभग खाली हो चुका था, लेकिन हम दोनों अभी तक उसी बैंच पर बैठे बातें कर रहे थे. हम एकदूसरे की बातों में इतने खो गए थे कि हमें रात्रि की आहट का भी पता नहीं चला. मैं तो बस, एकाग्रचित्त हो अखिलेश की दीवानगी भरी बातें सुन रही थी.

‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं रीमा, मुझे कभी तनहा मत छोड़ना. मैं तुम्हारे बगैर बिलकुल नहीं जी पाऊंगा,’’ अखिलेश ने मेरी उंगलियों को सहलाते हुए कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो अखिलेश, मैं तो हमेशा तुम्हारी बांहों में ही रहूंगी, जिऊंगी भी तुम्हारी बांहों में और मरूंगी भी तुम्हारी ही गोद में सिर रख कर.’’

मेरी बातें सुनते ही अखिलेश बौखला गया, ‘‘यह कैसा प्यार है रीमा, एक तरफ तो तुम मेरे साथ जीने की कसमें खाती हो और अब मेरी गोद में सिर रख कर मरना चाहती हो? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बिना जी कर क्या करूंगा? बोलो रीमा, बोलो न.’’ अखिलेश बच्चों की तरह बिलखने लगा.

‘‘और तुम… क्या तुम उस दूसरी दुनिया में मेरे बगैर रह पाओगी? जानती हो रीमा, अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो क्या कहता,’’ अखिलेश ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इस दुनिया से पहले चली जाओगी तो मैं तुम्हारे पास आने में बिलकुल भी देर नहीं करूंगा और यदि मैं पहले चला गया तो फिर तुम्हें अपने पास बुलाने में देर नहीं करूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारे बिना कहीं भी नहीं रह सकता.’’

अखिलेश का यह रूप देख कर पहले तो मैं सहम गई, लेकिन अपने प्रति अखिलेश का यह पागलपन मुझे अच्छा लगा. हमारे प्यार की कलियां अब खिलने लगी थीं. किसी को भी हमारे प्यार से कोई एतराज नहीं था. दोनों ही घरों में हमारे रिश्ते की बातें होने लगी थीं. मारे खुशी के मेरे कदम जमीन पर ही नहीं पड़ते थे, लेकिन अखिलेश को न जाने आजकल क्या हो गया था. हर वक्त वह खोयाखोया सा रहता था. उस का चेहरा पीला पड़ता जा रहा था. शरीर भी काफी कमजोर हो गया था.

मैं ने कई बार उस से पूछा, लेकिन हर बार वह टाल जाता था. मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता था, जैसे वह मुझ से कुछ छिपा रहा है. इधर कुछ दिनों से वह जल्दी शादी करने की जिद कर रहा था. उस की जिद में छिपे प्यार को मैं तो समझ रही थी, मगर मेरे पापा मेरी शादी अगले साल करना चाहते थे ताकि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूं. इसलिए चाह कर भी मैं अखिलेश की जिद न मान सकी.

अखिलेश मुझे दीवानों की तरह प्यार करता था और मुझे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. यह बात मुझे उस दिन समझ में आ गई जब शाम को अखिलेश ने फोन कर के मुझे अपने घर बुलाया. जब मैं वहां पहुंची तो घर में कोई भी नहीं था. अखिलेश अकेला था. उस के मम्मीपापा कहीं गए हुए थे. अखिलेश ने मुझे बताया कि उसे घबराहट हो रही थी और उस की तबीयत भी ठीक नहीं थी इसलिए उस ने मुझे बुलाया है.

थोड़ी देर बाद जब मैं उस के लिए कौफी बनाने रसोई में गई, तभी अखिलेश ने पीछे से आ कर मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया, मैं ने घबरा कर पीछे हटना चाहा, लेकिन उस की बांहों की जंजीर न तोड़ सकी. वह बेतहाशा मुझे चूमने लगा, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रीमा, जीना तो दूर तुम्हारे बिना तो मैं मर भी नहीं पाऊंगा. आज मुझे मत रोको रीमा, मैं अकेला नहीं रह पाऊंगा.’’

मेरे मुंह से तो आवाज तक नहीं निकल सकी और एक बेजान लता की तरह मैं उस से लिपटती चली गई. उस की आंखों में बिछुड़ने का भय साफ झलक रहा था और मैं उन आंखों में समा कर इस भय को समाप्त कर देना चाहती थी तभी तो बंद पलकों से मैं ने अपनी सहमति जाहिर कर दी. फिर हम दोनों प्यार के उफनते सागर में डूबते चले गए और जब हमें होश आया तब तक सारी सीमाएं टूट चुकी थीं. मैं अखिलेश से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी और उस के लाख रोकने के बावजूद बिना कुछ कहे वापस आ गई.

इन 15 दिन में न जाने कितनी बार वह फोन और एसएमएस कर चुका था. मगर न तो मैं ने उस के एसएमएस का कोई जवाब दिया और न ही उस का फोन रिसीव किया. 16वें दिन अखिलेश की मम्मी ने ही फोन कर के मुझे बताया कि अखिलेश पिछले 15 दिन से अस्पताल में भरती है और उस की अंतिम सांसें चल रही हैं. अखिलेश ने उसे बताने से मना किया था, इसलिए वे अब तक उसे नहीं बता पा रही थीं.

इतना सुनते ही मैं एकपल भी न रुक सकी. अस्पताल पहुंचने पर मुझे पता चला कि अब उस की जिंदगी के बस कुछ ही क्षण बाकी हैं. परिवार के सभी लोग आंसुओं के सैलाब को रोके हुए थे. मैं बदहवास सी दौड़ती हुई अखिलेश के पास चली गई. आहट पा कर उस ने अपनी आंखें खोलीं. उस की आंखों में खुशी की चमक आ गई थी. मैं दौड़ कर उस के कृशकाय शरीर से लिपट गई.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं अखिलेश, सिर्फ ‘कौल मी’ लिख कर सैकड़ों बार मैसेज करते थे. क्या एक बार भी तुम अपनी बीमारी के बारे में मुझे नहीं बता सकते थे? क्या मैं इस काबिल भी नहीं कि तुम्हारा गम बांट सकूं?‘‘

‘‘मैं हर दिन तुम्हें फोन करता था रीमा, पर तुम ने एक बार भी क्या मुझ से बात की?’’

‘‘नहीं अखिलेश, ऐसी कोई बात नहीं थी, लेकिन उस दिन की घटना की वजह से मैं तुम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.’’

‘‘लेकिन गलती तो मेरी भी थी न रीमा, फिर तुम क्यों नजरें चुरा रही थीं. वह तो मेरा प्यार था रीमा ताकि तुम जब तक जीवित रहोगी मेरे प्यार को याद रख सकोगी.’’

‘‘नहीं अखिलेश, हम ने साथ जीनेमरने का वादा किया था. आज तुम मुझे मंझधार में अकेला छोड़ कर नहीं जा सकते,’’ उस के मौत के एहसास से मैं कांप उठी.

‘‘अभी नहीं रीमा, अभी तो मैं अकेला ही जा रहा हूं, मगर तुम मेरे पास जरूर आओगी रीमा, तुम्हें आना ही पड़ेगा. बोलो रीमा, आओगी न अपने अखिलेश के पास’’,

अभी अखिलेश और कुछ कहता कि उस की सांसें उखड़ने लगीं और डाक्टर ने मुझे बाहर जाने के लिए कह दिया.

डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद अखिलेश को नहीं बचाया जा सका. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मेरा तो सुहागन बनने का रंगीन ख्वाब ही चकनाचूर हो गया. सब से बड़ा धक्का तो मुझे उस समय लगा जब पापा ने एक भयानक सच उजागर किया. यह कालेज के दिनों की कुछ गलतियों का नतीजा था, जो पिछले एक साल से वह एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहा था. उस ने यह बात अपने परिवार में किसी से नहीं बताई थी. यहां तक कि डाक्टर से भी किसी को न बताने की गुजारिश की थी.

मेरे कदमों तले जमीन खिसक गई. मुझे अपने पागलपन की वह रात याद आ गई जब मैं ने अपना सर्वस्व अखिलेश को समर्पित कर दिया था.

आज उस की 5वीं बरसी है और मैं मौत के कगार पर खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही हूं. मुझे अखिलेश से कोई शिकायत नहीं है और न ही अपने मरने का कोई गम है, क्योंकि मैं जानती हूं कि जिंदगी के उस पार मौत नहीं, बल्कि अखिलेश मेरा बेसब्री से इंतजार कर रहा होगा.

मैं ने अखिलेश का साथ देने का वादा किया था, इसलिए मेरा जाना तो निश्चित है परंतु आज तक मैं यह नहीं समझ पाई कि मैं ने और अखिलेश ने जो किया वह सही था या गलत?

अखिलेश का वादा पक्का था, मेरे समर्पण में प्यार था या हम दोनों को प्यार की मंजिल के रूप में मौत मिली, यह प्यार था. क्या यही प्यार है? क्या पता मेरी डायरी में लिखा यह वाक्य मेरा अंतिम वाक्य हो. कल का सूरज मैं देख भी पाऊंगी या नहीं, मुझे पता नहीं. Hindi Love Story

Social Story : घर और घाट – पति की मौत के बाद क्या हुआ रीता के साथ

Social Story : मेरे पति आकाश का देहांत हो गया था. उम्र 35 की भी नहीं हुई थी. उन्हें कोई लंबी बीमारी नहीं थी. बस, अचानक दिल का दौरा पड़ा और उन की मृत्यु हो गई. अभी तक तो मित्रगण आते रहे थे, लेकिन पति के देहांत के बाद कोई नहीं आया. इस में उन का भी दोष नहीं. वहां की जिंदगी थी ही इतनी व्यस्त.

पहली 3 रातें मेरे साथ किरण सोई थी. अब से रातें अकेले ही गुजारनी थीं. शायद हफ्ता गुजरने तक दिन भी अकेले बिताने होंगे. क्या करूंगी, कहां रहूंगी, कुछ सोचा नहीं था.

यों तो कहने को मेरी ननद भी अमेरिका में ही रहती थीं लेकिन वह ऐसे मौके पर भी नहीं आई थीं. साल भर पहले कुछ देर के लिए आई थीं. तब मुझ से कह गई थीं, ‘रीता, आकाश बचपन से बड़ा विनोदप्रिय किस्म का है. तुम्हें दोष नहीं देती, लेकिन आकाश को कुछ हो गया तो भुगतोगी तुम ही. तुम लोगों की शादी को 10 बरस हो गए. देखती हूं पहले आकाश की हंसी जाती रही. फिर माथे पर अकसर बल पड़े रहने लगे. साथ ही वह चुप भी रहने लगा. 5 बरस से सिगरेट और शराब का सहारा भी लेने लगा है. रक्तचाप से शुरुआत हुई तनाव की. उस का कोलेस्ट्राल का स्तर ज्यादा है…’

मुझे तो लगता है उन को और कुछ नहीं था, बस, दीदी ही की टोकाटाकी खा गई थी. उन से मेरा सुख नहीं देखा गया था.

रहरह कर अतीत मेरे दिमाग में घूमने लगा. मैं ने दशकों से बहुओं के ऊपर होते हुए अत्याचारों को देखतेसुनते मन में ठान ली थी कि मैं कभी अपने ऊपर किसी की ज्यादती नहीं होने दूंगी. अगर आप जुल्म न सहें तो कोई कर ही कैसे सकता है. इस तरह समस्या जड़ से ही उखड़ जाएगी.

लेकिन मैं जैसी शरीर की बेडौल हूं वैसी अक्ल की भी मोटी हूं. मेरी लंबाई कम और चौड़ाई ज्यादा है. जहां तक खूबसूरती का सवाल है, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ होगी ही वरना क्यों आकाश जैसा खूबसूरत नौजवान, वह भी अमेरिका में बसा हुआ सफल इंजीनियर, मुझ 18 बरस की अल्हड़ को एक ही बार देख पसंद कर लिया था. ऊपर से उन्होंने न तो दहेज की मांग की थी, न ही खर्च की नोकझोंक हुई थी.

मेरे मांबाप भी होशियार निकले थे. उन्होंने एक बार की ‘हां’ के बाद आकाश और उस के कितने रिश्तेदारों के कहने पर भी उन्हें एक और झलक न मिलने दी थी. मां ने कह दिया था, ‘शादी के बाद सुबहशाम अपनी दुलहन को बैठा कर निहारना.’

डर तो था ही कि कहीं लेने के देने न पड़ जाएं. मां ने शादी के वक्त भी अपारदर्शी साड़ी में मुझ को नख से शिख तक छिपाए रखा था. क्या मालूम बरात ही न लौट जाए. खैर, जैसेतैसे शादी हो गई और मैं सजीधजी ससुराल पहुंच गई.

अभी तक तो घूंघट में कट गई. मरफी का सिद्धांत है कि यदि कुछ गलत होने की गुंजाइश है तो अवश्य हो कर रहेगा. मैं कमरे में आ कर बैठी ही थी कि ननद ने पीछे से आ कर घूंघट सरका दिया. मैं बुराभला सब सुनने को तैयार थी. मगर किसी ने कुछ कहा ही नहीं. मुंह दिखाई के नाम पर कुछ चीजें और रुपए मिलने अवश्य शुरू हो गए. दीदी तो अमेरिका से आई थीं. उन्होंने वहीं का बना खूबसूरत सैट मुझे मुंह दिखाई में दिया. बाकी रिश्तेदार और अड़ोसीपड़ोसी भी आते रहे.

इतने में ददिया सास आईं. दीदी झट बोलीं, ‘लता, जरा आगे बढ़ कर दादीजी के पैर छू लो.’

मैं ने वहीं बैठेबैठे जवाब दे दिया, ‘पैर छुआने का इतना ही शौक था तो ले आतीं गांव की गंवार. मैं तो बी.ए. पास शहरी लड़की हूं.’

दीदी को ऐसा चुप किया कि वह उलटे पांव लौट गईं. कुछ देर बाद एक कमरे के पास से गुजर रही थी तो खुसरफुसर सुनाई पड़ी, ‘इस को इतना गुमान है बी.ए. करने का. एक आकाश की मां एम.ए. पास आई थी, जिस के मुंह से आज तक भी कोई ऐसीवैसी बात नहीं सुनी.’

अब आप ही बताइए, सास के एम.ए. करने का मेरे पैर छूने से क्या सरोकार था? खैर, मुझे क्या पड़ी थी जो उन लोगों के मुंह लगती. मुझे कल मायके चले जाना था, उस के 4 दिन बाद आकाश के संग अमेरिका. वहां दीदी जरूर मेरी जान की मुसीबत बन कर 4 घंटे की दूरी (200 किलोमीटर) पर रहेंगी. मैं पहले दिन से ही संभल कर रहूंगी तो वह मेरा क्या बिगाड़ लेंगी. अनचाहे ही मुझे किसी कवि की लिखी पंक्ति याद आ गई, ‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात.’

लेकिन देखूंगी, दीदी की क्षमा कब तक चलेगी मेरे उत्पात के सामने. बड़ी आई थीं मेरे से दादीजी के पैर छुआने. डाक्टर होंगी तो अपने लिए, मेरे लिए तो बस, एक सठियाई हुई रूढि़वादी ननद थीं.

सच पूछिए तो पिछले 4 दिन में मैं एक बार भी उन को याद नहीं आई थी. मैं पिछले दिनों अपनी एक सहेली के यहां गई थी. पूरा 1 महीना उस की देवरानी उस के घर रह कर गई थी. एक मेरी ननद थीं, जिन के चेहरे पर जवान भाई के मरने पर शिकन तक नहीं आई थी.

जब मैं 10 बरस पहले आकाश के साथ इस घर में घुसी थी तो गुलाब के फूलों का गुलदस्ता हमारे लिए पहले से इंतजार कर रहा था. उसे ननद ने भेजा था. आकाश ने मुझ को घर की चाबी थमा दी थी, लेकिन मुझे ताला खोलते हुए लगा था जैसे ननद वहां पहले से ही विराजमान हों.

घर क्या था, जैसे किसी राजकुमार की स्वप्न नगरी थी. मुझ को तो सबकुछ विरासत में ही मिला था. भले ही वह सब आकाश की 4 साल की कड़ी मेहनत का इनाम था. मैं इतनी खुश थी कि मेरे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. मेरे सब संबंधियों में इतना अच्छा घरबार उन के खयाल से भी दूर की चीज थी.

मैं ने गुलाब के फूल बैठक में सजा लिए. मगर दीदी का शुक्रिया तो क्या अदा करती, उन की रसीद तक नहीं पहुंचाई. दोचार दिन बाद उन का फोन आया तो कह दिया, ‘हां, मिल तो गए थे.’

एक बार दीदी शुरू में सपरिवार आई थीं. वह रात को 9 बजे पहुंचने वाली थीं. भला इतनी रात गए तक कौन उन लोगों के लिए इंतजार करता. मैं ने 8 बजे ही खाना लगा दिया था. आकाश कुछ बोलते, इस से पहले ही मैं ने सुना कर कह दिया, ‘9 बजे आने के लिए कहा है. फिर भी क्या भरोसा, कब तक आएं? आप खाना खा लो.’

वह न चाहते हुए भी खाने बैठ गए थे. अभी खाना खत्म भी नहीं हुआ था कि दरवाजे की घंटी बजी. मैं बोली, ‘अब खाना खाते हुए तो मत उठो. पहले खाना खत्म कर लो फिर दरवाजा खोलना.’

खाना खा कर आकाश दरवाजा खोलने गए. मैं बरतन मांजने लगी. उधर न पहुंची तो 15 मिनट बाद ही दीदी रसोई में आ गईं और नमस्ते कर के लौट गईं. मैं ने उन सब का खाना लगा दिया.

दीदी ने हम से भी खाने को पूछा. फिर बोलीं, ‘इस देश में खाने की कमी नहीं है. हर चौराहे पर मिलता है. साथ न खाना था तो कह देते, हम खा कर आते.’

तो क्या मैं ने कहा था कि यहां आ कर खाएं या उन को किसी डाक्टर ने सलाह दी थी? मैं ने सिरदर्द का बहाना बनाया और ऊपर शयनकक्ष में चली गई. खुद ही निबटें अपने भाईजान से.

सुबह उठी तो दीदी चाय बना रही थीं, ‘क्या खालाजी का घर समझ रखा है, जो पूछने की भी जरूरत न समझी?’ मैं ने दीदी को लताड़ा, ‘आप ने क्या समझा था कि मैं आप को उठ कर चाय भी नहीं दूंगी.’

मेरी रसोई को अपनी रसोई समझा था. उस के बाद कभी दीदी को मेरी रसोई में घुसने की हिम्मत न हुई.

मैं ने दीदी को नहानेधोने के लिए 2 तौलिए दिए तो वह 2 बच्चों के लिए और मांग बैठीं. अपने घर में 4 तौलिए इस्तेमाल करें या 8, यहां एक दिन 2 तौलियों से काम नहीं चला सकती थीं? मैं ने एक पुराना सा तौलिया और दे दिया. आखिर मेरा घर है, जो चाहूंगी करूंगी.

उस के बावजूद कुछ ही दिनों बाद दीदी अचानक दोनों बच्चों के साथ मेरे यहां आ धमकीं. रात को देर तक आकाश से बातें करती रही थीं. वह पति महोदय से खटपट कर के आई थीं. मैं पूछ बैठी, ‘आप ने तो अपनी इच्छा से प्रेम विवाह किया था. फिर अब किस बात का रोना?’ दीदी से कुछ जवाब देते न बना.

मैं तो घबरा गई. कहीं दीदी जिंदगी भर मेरे घर डेरा न डाल लें. अगली सुबह आकाश दफ्तर गए और मैं सोती दीदी के पास ही पहुंच गई, ‘दीदी, वापस लौटने के बारे में क्या सोचा है?’

समझदार को इशारा काफी है. उन्होंने हमारे घर रह पति महोदय से बिलकुल बात न बढ़ाई. उसी दिन जीजाजी को फोन किया और शाम को वापस अपने घर लौट गईं. बस, समझ लीजिए तभी से उन का हमारे यहां आनाजाना कुछ खास नहीं रहा. हम ही उन के यहां साल में 2-3 दिन के लिए चले जाते थे. जाते भी क्यों न, वह बड़े आग्रह से बुलाती जो थीं. बुलातीं भी क्यों न, आखिर उन की पति से कम ही पटती थी. हम से भी नाता तोड़ लेतीं तो आड़े वक्त में कहां जातीं? कौन काम आता?

और फिर उन पर क्या जोर पड़ता था हमें बुलाने में. उन्होंने खाना बनाने को एक विधवा फुफेरी सास को साथ रखा हुआ था. घर की सफाई करने वाली अलग आती थी.

एक बार दीदी भारत गईं तो मेरे लिए मां ने उन के साथ कुछ सामान भेजा. जब मुझे सामान मिला तो उस में से एक कटहल के अचार का डब्बा गायब था, ‘दीदी, अचार चाहिए था तो आप कह देतीं, मैं आप के लिए भी मंगा देती. चोरी करना तो बहुत बुरी बात है.’

बाद में मां ने बताया कि अचार का डब्बा भेजने से रह गया था. बात आईगई हो चुकी थी, तो मैं ने फिर दीदी से कुछ कहने की जरूरत न समझी.

अभी पिछले दिनों दीदी फिर भारत गई थीं. उन्होंने लौट कर फोन किया, ‘लता, तुम्हारे मांबाबूजी से मिल कर आ रही हूं. सब मजे में हैं. मगर तुम्हारे लिए कुछ नहीं भेजा है.’

‘हां, मैं ने ही मां को मना कर दिया था कि हर ऐरेगैरे के हाथ कुछ न भेजा करें. फिर भी मां किसी न किसी के हाथों सामान भेजती रहती हैं. एक पार्सल तो पिछले 8 बरस से आ रहा है. एक 6 महीने बाद मिला था.’

खैर, जो हुआ सो हुआ. मैं अतीत को भूल कर वर्तमान के धरातल पर आ गई. मुझ को अकेले नींद नहीं आ रही थी. रात के 2 बज गए थे. एक तरफ आंसू नहीं थम रहे थे और दूसरी तरफ डर भी लग रहा था इतने बड़े घर में. भूख लग रही थी मगर…मैं अकेली थी…बिलकुल अकेली. शरीर टूट सा रहा था.

मैं मां को भारत ट्रंककाल करने लगी, ‘‘मां, आप कुछ दिनों के लिए अमेरिका आ जाइए. मैं आप का टिकट भेज देती हूं.’’

मां अपनी मजबूरी सुनाने लगीं. विरासत में मिला सुख कुछ भी तो काम नहीं आ रहा था. पति के मरते ही कुछ भी अपना न रहा था. 10 बरस बाद भी उस घर में न तो कोई अपनापन था, न ही देश में.

आकाश 1 लाख डालर छोड़ कर मरे थे. मैं एअर इंडिया को फोन करने लगी, ‘‘मैं वापस भारत जाना चाहती हूं. अपने घर.’’

भारत लौट कर पीहर पहुंची तो वहां कुछ और ही नजारा पाया. भाई की शादी हो चुकी थी, सो एक कमरा भाईभाभी का और दूसरे में मेरे मांबाबूजी. मेरा बैठक में सोने का प्रबंध कर दिया था. मेरा सामान मां के साथ. सुबह बिस्तर समेटते ऐसा लगता था, जैसे उस घर में मैं फालतू थी. मैं ने सोचा, ‘सहना शुरू किया तो जिंदगी भर सहती ही रहूंगी. ऐसी कोई गईगुजरी स्थिति मेरी भी नहीं है. आखिर 10 लाख रुपए ले कर लौटी हूं. चाहूं तो इन चारों को खरीद लूं.’

एक दिन भाभीजान फरमाने लगीं, ‘‘दीदी, पूरी तलवाने में मदद कर दो न, मैं बेलती जाती हूं.’’

आखिर भाभी ने मुझे समझ क्या रखा था…मैं नौकरानी बन कर आई थी क्या वहां? इतना पैसा था मेरे पास कि 10 नौकर रख देती. लेकिन बात बढ़ाने से क्या फायदा था. मैं कुछ भी नहीं बोली थी. मदद नहीं करनी थी, सो नहीं की.

खाना खाने के वक्त भाभी ने अपना खाना परोसा और खाने लगीं. मैं ने भी ले तो लिया, मगर वह बात मेरे मन को चुभ गई. जब मांबाबूजी ही सब बातों में चुपी लगाए थे तो भाभी तो मेरी छाती पर मूंग दलेंगी ही.

मैं ने कहा, ‘‘मेरे आने का तुम लोगों को इतना कष्ट हो रहा है तो मैं वापस चली जाती हूं. मेरे पास जितना पैसा है, मैं उतने में जिंदगी भर मजे से रहूंगी. न किसी से कहना, न सुनना.’’

कोई कुछ भी न बोला. मैं सन्नाटे में रह गई. मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि मेरे मांबाबूजी ही इतने बेगाने हो जाएंगे. फिर ससुराल से ही क्या आशा करती.

घर छोड़ते हुए मेरे आंसू टपक पड़े. मैं फिर अकेली हो गई थी. बिलकुल अकेली. बिलकुल धोबी का कुत्ता बन कर रह गई, न घर की न घाट की.

Parivarik Kahani: कितना झूठा सच- वीरेन नें मां के लिए क्या कहा था

Parivarik Kahani: ‘बेचारी, जीवन भर दुख ही उठाती रही. अब ऊपर से वैधव्य…’

दुख और संवेदना प्रकट करती सब महिलाएं उठ कर चली गईं. रेवा जड़ सी बैठी रही.

‘‘आप चल कर जरा लेटिए. मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ नीना ने आ कर उसे संभाला. बेजान गुडि़या सी रेवा पलंग पर आ कर लेट गई.

कितना झूठा सत्य? जो जीवन भर सर्पदंश सा उस के एकएक क्षण को विषाक्त करता रहा वही आज समुद्र मंथन से निकले गरल घट सा सहस्र धाराओं में बंट कर उसे व्याकुल कर रहा था, पर वह तो शिव नहीं थी जो इसे पी कर भी जीवित रहती. और वह अब जीना चाहती थी. किस के लिए मरे? किन मधुर क्षणों की थाती सहेजे? सोलह शृंगार कर सामाजिक मर्यादा की चिता पर चढ़ कर सती हो जाए? जीवन भर तो जल ही चुकी थी.

इंद्रधनुषी सपनों के रंग अभी सूखने भी न पाए थे कि वीरेन ने उपेक्षा की स्याही फेंक कर उन्हें बदरंग कर दिया था. फिर भी उस ने सजानेसंवारने का कितना प्रयत्न किया था. आंखकान पर  जबरदस्ती भ्रम की मनों रुई का भार डाल कर अंधीबहरी बन जाना चाहा था, परंतु यह भी क्या सहज था?

पागल सी हो कर मरीचिका के पीछे भागती वह सपनों के रंग समेटती, उन्हें क्रम से लगाती, पर वे बारबार उसे छलावा दे जाते, खंडखंड हो कर बिखर जाते और क्षितिज उतना ही दूर दिखता जितना प्रारंभ में था. भागतेभागते वह हांफ गई थी. शाम के ढलते सूरज की तरह घिसटघिसट कर पहुंचे भी तो कुछ हाथ आने वाला नहीं था. वहां बाकी था केवल एक स्याह अंधेरा.

जीवन की संध्या पर गुल्लू की तोतली बातों, पिंकी की हंसी और नन्हे की शरारतों का सलोना सिंदूरी रंग बिखरा हुआ था. यही एक थाती बच रही थी और आज रिश्तेनाते तथा आसपड़ोस की औरतें समझाने आ धमकी थीं कि इस सिंदूरी आभा पर वह वैधव्य की राख उड़ा कर, सामाजिक नियमों का पालन कर उसे गंदला कर ले.

पिछले महीने तार आया था कि वीरेन को दिल का दौरा पड़ा है. बेजान कागज का टुकड़ा लिए वह दीवान पर बैठी रह गई थी. नीना ने आ कर पढ़ा.

‘‘फोन कर के इन को बुलवा लूं क्या?’’

वह समझ नहीं पाई कि सास से और क्या कहे.

पत्थर सी बैठी रेवा जैसे नींद से जागी, ‘‘क्यों? क्या जरूरत है? उसे कुछ कामधाम नहीं है क्या?’’

कहतेकहते तार को तोड़मरोड़ कर एक कोने में फेंक दिया. रसोई में जा कर सांभर को छौंक लगाने लगी. अभी पिंकी स्कूल से आ कर चावलसांभर मांगेगी. सवेरे कह गई थी कि मेरे आने तक बना कर रखना.

‘‘नीना, सांभर पाउडर कहां रखा है?’’

सफेद टाइलों के ऊपर लगी लाल सनमाइका के पटों वाली अलमारी में वह मैटल बाक्स के मसालों वाले डब्बे इधरउधर करने लगी.

नीना ने फिर तार के विषय में कुछ नहीं कहा. बिना कहे ही एक स्त्री दूसरी स्त्री के अंतर की व्यथा जान गई थी. कहनेसुनने को कुछ नहीं रहा.

दोपहर को खाना परोसते समय रेवा रोज की तरह गुल्लू को चावल बिखराने को मना कर रही थी. नन्हे कामिक खोले खाना खा रहा था. हाथ के निवाले में चावल, रोटी कुछ है भी या नहीं, यह देखने की उसे फुरसत नहीं थी. रोज की तरह रेवा ने कामिक छीन कर मेज पर फेंका, ‘‘खाते समय पढ़ने की आदत कब छूटेगी? जब मेदा खराब हो जाएगा?’’

आग्रह कर पिंकी की प्लेट में दोबारा चावलसांभर डालने लगी थी रेवा. घर की दिनचर्या में किसी प्रकार का अंतर नहीं आया था. दोपहर में दादी की बगल में सिमटते गुल्लू ने आग्रह किया था, ‘‘दादीमां, हीरामन तोते की कहानी सुनाओ न.’’

‘‘दोपहर को कहानी नहीं सुनते. रात को सुनाऊंगी. अब घड़ी भर लेटने दे.’’

शाम को जय आया तो घर का वातावरण रोज की तरह सहज था. बच्चे खेलने गए थे. नीना किसी पत्रिका के पन्ने उलट रही थी. मां रसोई में रात के खाने की तैयारी में व्यस्त थी. किसी अनहोनी के घटने का कहीं चिह्न न था.

रात के खाने के बाद ही रेवा ने बात छेड़ी, ‘‘आज कानपुर से तार आया था.’’ बासी अखबार पलटते जय के हाथ रुक गए. उस का सर्वांग जल उठा. बोला कुछ नहीं. केवल आंखों से प्रश्न छलक उठा.

‘‘वीरेन को दिल का दौरा पड़ा है,’’ बिना किसी भावना के ठंडे बरफीले स्वर में रेवा कह गई.

जय चुप था. वह क्या कहे? यह ऐसे व्यक्ति की बीमारी का समाचार था जिस ने उस का व छोटे भाईबहन का बचपन निर्ममता से अभावों की अंधी गलियों में धकेल दिया था. तिरस्कृत मां का असहाय यौवन, दुनिया भर का उपहास और पिता के होते हुए भी पितृविहीन होने का शूल सा चुभता एहसास. सब कुछ उस की आंखों के आगे आ गया.

प्रारंभ में जब बात ढकीछिपी थी तब भी कोईकोई रिश्तेदार या स्कूल का साथी व्यंग्य की पैनी छुरी चुभो देता था, ‘क्यों जय, तुम्हारे पिता ने 2 बीवियां रखी हुई हैं क्या? एक घुमानेफिराने के लिए, दूसरी घर में खाना बनाने के लिए?’

और फिर घिनौने रंग में रंगी तीखी हंसी का फव्वारा. जी में तो आता कि मुंह तोड़ दे कहने वाले का, पर बात सच थी. गुस्सा पी जाना पड़ता. घर आ कर देखता कि मां हर वक्त मूक दीपशिखा सी जलती रहती हैं. पिता घर आने की औपचारिकता सी निभाते थे. स्कूल की फीस, कपडे़, किताबों और पढ़ाई का हालचाल पूछते थे. फीस के लिए चेक काट कर अलमारी में रख देते थे.

पितृत्व यहीं तक सिमट कर रह गया था. घर के खर्चे के लिए मां को महीने का बंधा रुपया देते थे. बस, सब उत्तरदायित्व पूरे हो गए. ये रुपए, चेक जय को अपमान का प्याला लगते

जिसे फिलहाल उतारने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. छोटा था तो क्या, सब समझता था.

फिर कैसे उन का व्यवहार एकदम बदल गया. मां को शायद लगा कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आया है. पुरानी कड़वाहट भूल कर फिर बौराई गौरैया सी तिनके समेटने लगी थीं, परंतु यह केवल एक छलावा निकला. प्यार के बोलों से युगों से पुरुष स्त्री को भरमाता आया है. भारतीय स्त्री जानबूझ कर इस गर्त में जा गिरती है. मां कहां का अपवाद थीं. जायदाद के कागज कह कर, मां से दूसरे विवाह के लिए स्वीकृति के कागजात पर हस्ताक्षर करवा लिए. बिना पढे़ मां ने हस्ताक्षर कर दिए थे. अंधे विश्वास की दोधारी तलवार तले कट मरीं. अब तो खर्चा, रुपयापैसा भी नहीं मांग सकती थीं.

फिर वह चले गए नए घर में आधुनिका नई पत्नी के साथ, जो उन के साथ पार्टियों में आजा सकती थी. जाते समय दया कर गए कि मकान मां के नाम करवा गए. साल भर का किराया पेशगी भर गए. बाद में दोनों मामा आए. हाथ पटकपटक कर मां पर झुंझलाते रहे, ‘तुम इतनी भोली कैसे बन गईं कि बिना पढे़ हस्ताक्षर कर दिए?’

मां का रोष अपनी मौत स्वयं मर गया था. वहां अंकुरित हो रहा था एक निराला स्वाभिमान.

‘अब जाने भी दो, भैया.’

‘जाने कैसे दूं? हाईकोर्ट तक छीछालेदर करवा देंगे बच्चू की. याद करेंगे.’

‘नहीं. अब यह बात यहीं खत्म करो. कुछ लाभ नहीं,’ मां का स्वर सर्द था.

‘पर बच्चों का खर्चा तो उसे देना ही पडे़गा. उस का परिवार है.’

‘भैया…’ मां चीख पड़ी थीं, ‘बच्चे केवल मेरे हैं अब. किसी की दानदया की भीख पर नहीं पलेंगे. कहीं ऐसा न हो कि दूसरों के सहारे जीना सीख जाएं.’

‘पर रेवा…’ मामा ने समझाना चाहा.

‘जो मेरा था ही नहीं उस के लिए अब कैसी छीनाझपटी?’

मामा के सामने तो मां स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति बनी रही थीं पर जय जानता था कि कितनी रातों को वह नदी के कच्चे कगार सी टुकड़ाटुकड़ा ढहती रही हैं. कन्या पाठशाला की नौकरी के बाद शाम को ट्यूशन. शनिवार तथा रविवार को मां आसपड़ोस का सिलाई का काम ले आती थीं. फिर एक स्वेटर बुनने की मशीन भी रख ली. परित्यक्ता स्त्री और तिरस्कृत होने न मायके गईं न ससुराल. तिलतिल कर जलती हुई बच्चों को अपने कमजोर डैनों में समेटे रही थीं. जय साक्षी रहा है इस पूरी अग्निपरीक्षा का. सीता तो धरती की गोद में समा कर त्राण पा गई थीं पर मां जीवन भर उस अग्नि में तपती कुंदन होती रहीं. मशीन पर झुकी मां को देख कर जय का शैशव इस दलदल से उन्हें बाहर खींचने को कसमें खाता था. इसी इच्छाशक्ति के कारण वह हर कक्षा में अव्वल आता था. महेश को भी वह पढ़ाता था. शोभा की कापियां खोल कर स्वयं जांचने बैठ जाता था.

मां व बच्चों में एक मूक सा समझौता हो गया था जिस की शर्तें सभी एकएक कर पूरी कर रहे थे. इंटरमीडिएट की परीक्षा में जय ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया. अखबारों में उस के फोटो छपे, टेलीविजन पर उस का साक्षात्कार हुआ.

उस दिन विद्यालय के बाहर नीली फिएट से पिता उतरे. साथ में ‘वह’ भी थीं हाथों में बड़ा सा उपहार का डब्बा लिए.

‘मुझे तुम पर गर्व है, बेटे.’ भारतीय पिता एक योग्य बेटे का बाप होने की सार्वजनिक घोषणा करने का अवसर हाथ से कैसे जाने देता? जय निर्विकार सा उन्हें देखता रहा, जैसे वह कोई अजनबी हों.

इतने वर्षों में अजनबी तो बन ही गए थे. उपहार वाला हाथ हवा में ही लटका रह गया. जय आगे बढ़ गया. चेहरे पर संतुष्टि की मुसकान थी. आज मां के अपमान का दुख कुछ कम हुआ.

शाम को वह घर भी आ धमके. सब के लिए कपडे़, मिठाई, फलों के टोकरे, क्या कुछ नहीं लाए थे. मशीन पर बैठी मैली धोती पहने मां सकुचा सी गईं. जय ने उन्हें आंखों से आश्वासन दिया. बेटा जब बाप के बराबर कद का हो जाए तो मां को कितना आसरा हो जाता है.

‘कैसे आए?’ जय आज घर में मर्द था. बिना बुलाए इस मेहमान की शक्ल देखना भी उसे सहन नहीं हो रहा था. पराए घर में शानदार सूट पहने, अधेड़ अफसर पिता कितना बौना हो उठा था.

‘तुम्हें बधाई देने.’

‘मिल गई.’

‘अब आगे क्या करने का विचार है?’

जय झल्ला उठा, ‘अभी सोचा नहीं है कुछ.’

‘आई.आई.टी. में कोशिश करो.’

‘देखूंगा.’

शोभा उन्हें पहचानती थी. नमस्ते कर अंदर चली गई. साधारण मेहमान समझ कर हमेशा की तरह चाय बना कर ले आई. साथ में मठरी भी थी. जय ने जलती आंखों से उसे घूरा तो सकपका गई. कहां गलती हो गई.

बिना किसी के कहे ही उन्होंने चाय उठा ली. साथ में मठरी कुतरने लगे, ‘तुम ने बनाई है?’

‘बेटी’ कहतेकहते शायद झिझक गए. तभी लट्टू घुमाता महेश आ पहुंचा. उस से स्कूल और पढ़ाई के विषय में पूछने लगे, ‘तुम मेरे पास रहोगे, बेटा?’ चाय पीतेपीते पूछ बैठे.

‘कोई कहीं नहीं जाएगा. सब यहीं रहेंगे जहां आप उन्हें छोड़ गए थे.’

मां का स्वाभिमान दपदप कर जल रहा था. वह घबरा कर उठ खडे़ हुए. कैसे बूढे़ से लगने लगे. चुपचाप आ कर कार में बैठ गए. ड्राइवर ने कार स्टार्ट की. उन का सारा सामान जय ने खुली खिड़की से कार में रख दिया. फिर हाथ झाड़ने लगा. जैसे कूड़ा- करकट झाड़ रहा हो.

‘अब फिर कष्ट न कीजिएगा.’

यहीं सारे संबंध समाप्त कर जय ने हाथ झाड़ लिए. फिर कभी मुड़ कर नहीं देखा.

बी.ए. पास करने के बाद उस ने बैंक से ऋण ले कर स्वतंत्र व्यवसाय शुरू किया और अब शहर के सफल व्यापारियों में गिना जाता था. कोठी, कार क्या कमी थी अब. शोभा डाक्टरी के अंतिम वर्ष में आ गई थी. महेश पत्रकारिता में जाने का विचार रखता है. अखबारों व पत्रिकाओं में उस के लेख छपने लगे थे.

और मां? घर में 2 नौकरानियां रखी हुई थीं. कभी उन्हें आदेश देतीं, काम करवातीं, कभी स्वयं गेहूं चुनने बैठ जाती थीं.

शोभा की शादी में नानी ने कितना कहा था, ‘अरे पिता को तो बुलवा लो.’ जय भन्ना उठा था, ‘इतने वर्षों तक उन के बिना काम चलाते आए हैं, आज भी चला लेंगे.’

‘पर कन्यादान कौन करेगा?’

‘मां जो हैं.’

बात यहीं समाप्त हो गई थी.

फिर जय की शादी भी हो गई. पिछली बातें याद कर लोग हंसते, पर धनी व्यवसायी को लड़कियों की क्या कमी थी?

पहली ही रात जय ने नीना को पूरी कहानी सुना दी. साथ ही चेतावनी भी दे दी, ‘कभी इस घर में अलगाव की बात मत करना, हमें मां के दुखों को कम करना है बढ़ाना नहीं.’

गुल्लू, पिंकी और नन्हे के साथ हसंखेल कर मां के पुराने दिनों के घाव भर रहे थे. वीरेन की बदली होती रही थी. आजकल कानपुर में थे. सेवानिवृत्त हो कर वहीं रहने लगे थे.

आज वर्षों के अनछुए विषय की किरणें बिखेरता यह तार आ पहुंचा था, ‘‘दिल का दौरा पड़ा है वीरेन को. हालत गंभीर है.’’

मां बेटे ने एकदूसरे को देखा. जीवन भर दुखों की डोर में बंधे रहे थे. शब्द बेमानी हो उठे. फिर किसी ने न जाने की बात की, न हालचाल पता करने की इच्छा प्रकट की.

रेवा अब विगत की परतों को कुरेदती भी तो सिवा तिरस्कार के कोई स्मृति हाथ न लगती.

आज एक महीने बाद दूसरा तार आ गया. वीरेन की मृत्यु हो गई थी. उसी का समाचार पा कर औरतें रोनेपीटने, सांत्वना देने आई थीं पर नीना ने उन्हें बाहर खदेड़ कर दरवाजा बंद कर दिया.

अब एक बार कानपुर जाना जरूरी हो गया था. बच्चों को शोभा के पास छोड़ कर सभी कार से निकल गए.

वहां कुहराम मचा हुआ था. रेवा शांत थी. जय, नीना व महेश गंभीर थे. वीरेन की दूसरी पत्नी का चीत्कार गूंज रहा था, ‘‘मुझे किस के सहारे छोड़ गए?’’

रोतीबिलखती स्त्री, अस्तव्यस्त कपडे़. यही प्रौढ़ा क्या उन के अभावग्रस्त पितृविहीन शैशव का कारण थी?

उस दिन स्कूल के बाहर भी तो देखा था. आज जैसे सोने का सारा झूठा पानी उतरा हुआ था. बाकी रह गई थी वैधव्य की कालिख और ढलती आयु के अकेलेपन का कुहरा.

‘‘चलिए, बेटा तो आ गया मुखाग्नि देने को,’’ दरअसल, किसी ने जय को देख कर कहा था.

दूसरी शादी से वीरेन को कोई संतान नहीं हुई थी.

‘‘हम केवल अफसोस जाहिर करने आए थे, अब वापस जाएंगे,’’ कह कर जय उठ खड़ा हुआ. रेवा, नीना और महेश भी बाहर आ गए. औपचारिकता पूरी हो चुकी थी.

भरी सभा में जैसे किसी ने बम फेंक दिया. सब सकते में आ गए.

‘‘कलियुग है… घोर कलियुग. धरती रसातल को जाएगी. बेटा, बेटा होने से मुकर गया,’’ बड़ीबूढि़यां जय की मलामत कर रही थीं.

‘‘और मां को तो देखो. नीली साड़ी, चूडि़यां, बिछुए. कौन कहेगा कि यह विधवा है?’’ जितने मुंह उतनी बातें.

‘‘खबरदार, जो मेरी मां को विधवा कहा. इतने वर्षों तक वह किसी की पत्नी नहीं थी. वह आज भी विधवा नहीं है, वह मां है, केवल हमारी मां.’’

खुले आंगन में जैसे कांसे का थाल गिरा और छनाका देर तक गूंजता रहा. Parivarik Kahani

लेखक- आदर्श मलगूरिया

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