Hindi Story : स्वयंवरा – मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

Hindi Story : टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.

सुलभा ने दीपिका के बारे में अचानक यह घोषणा कर दी थी कि उस के मांबाप को बिना किसी परिश्रम और दानदहेज की शर्त के दीपिका के लिए अच्छाखासा चार्टर्ड अकाउंटैंट वर मिल गया है. दीपिका के तो मजे ही मजे हैं. 10 हजार रुपए वह कमाएगा और 4-5 हजार दीपिका, 15 हजार की आमदनी दिल्ली में पतिपत्नी के ऐशोआराम के लिए बहुत है.

दीपिका के बारे में सुलभा की इस घोषणा ने अचानक ही मीता को अपनी बढ़ती उम्र के प्रति सचेत कर दिया. सब के साथ वह हंसीबोली तो जरूर परंतु वह स्वाभाविक हंसी और चहक अचानक ही गायब हो गई और उस के भीतर एक कशमकश सी जारी हो गई.

जब तक मीता इंस्टिट्यूट में पढ़ रही थी और टेक्सटाइल डिजाइनिंग की डिगरी ले रही थी, मातापिता उस की शादी को ले कर बहुत परेशान थे. लेकिन जब वह दिल्ली की इस फैशन डिजाइनिंग कंपनी में 4 हजार रुपए की नौकरी पा गई और अकेली मजे से यहां एक छोटा सा फ्लैट ले कर रहने लगी, तब से वे लोग भी कुछ निश्ंिचत से हो गए.

मीता जानती है, उस के मातापिता बहुत दकियानूसी नहीं हैं. अगर वह किसी उपयुक्त लड़के का स्वयं चुनाव कर लेगी तो वे उन के बीच बाधा बन कर नहीं खड़े होंगे. परंतु यही तो उस के सामने सब से बड़ा संकट था. नौकरी करते हुए उसे यह तीसरा साल था और उस के साथ की कितनी ही लड़कियां शादी कर चुकी थीं. वे अब अपने पतियों के साथ मजे कर रही थीं या शहर छोड़ कर उन के साथ चली गई थीं. एक मीता ही थी जो अब तक इस पसोपेश में थी कि क्या करे, किसे चुने, किसे न चुने.

ऐसा नहीं था कि कहीं गुड़ रखा हो और चींटों को उस की महक न लगे और वे उस की तरफ लपकें नहीं. अपने इस खयाल पर मीता बरबस ही मुसकरा भी दी, हालांकि आज उस का मुसकराने का कतई मन नहीं हो रहा था.

राखाल बाबू प्राय: रोज ही उसे कंपनी बस से रास्ते में लौटते हुए मिलते हैं. एकदम शालीन, सभ्य, शिष्ट, सतर्क, मीता की परवा करने वाले, उस की तकलीफों के प्रति एक प्रकार से जिम्मेदारी अनुभव करने वाले, बुद्धिजीवी किस्म के, कम बोलने वाले, ज्यादा सुननेगुनने वाले. समाज की हर गतिविधि पर पैनी नजर. आंखों पर मोटे लैंस का चश्मा, गंभीर सा चेहरा, ऊंचा ललाट, कुछ कम होते जा रहे बाल. सदैव सफेद कमीज और सफेद पैंट ही पहनने वाले. जेब में लगा कीमती कलम, हाथ में पोर्टफोलियो के साथ दबे कुछ अखबार, पत्रिकाएं, किताबें.

जब तक मीता आ कर उन की सीट के पास खड़ी न हो जाती, वे बेचैन से बाहर की ओर ताकते रहते हैं. जैसे ही वह आ खड़ी होती है, वे एक ओर को खिसक कर उस के बैठने लायक जगह हमेशा बना देते हैं. वह बैठती है और नरम सी मुसकराहट उस के अधरों पर उभर आती है.

ऐसा नहीं है कि वे हमेशा असामान्य सी बातें करते हैं, परंतु मीता ने पाया है, वे अकसर सामान्य लोगों की तरह लंपटतापूर्ण न व्यवहार करते हैं, न बातें. उन के हर व्यवहार में एक गरिमा रहती है. एक श्रेष्ठता और सलीका रहता है. एक प्रकार की बहुत बारीक सी नफासत.

‘‘कहो, आज का दिन कैसा बीता…?’’ वे बिना उस की ओर देखे पूछ लेते हैं और वह बिना उन की ओर देखे जवाब दे देती है, ‘‘रोज जैसा ही…कुछ खास नहीं.’’

‘‘मीता, कैसी अजीब होती है यह जिंदगी. इस में जब तक रोज कुछ नया न हो, जाने क्यों लगता ही नहीं कि आज हम जिए. क्यों?’’ वे उत्तर के लिए मीता के चेहरे की रगरग पर अपनी पैनी नजरों से टटोलने लगते हैं, ‘‘जानती हो, मैं ने अखबारों से जुड़ी जिंदगी क्यों चुनी…? महज इसी नएपन के लिए. हर जगह बासीपन है, सिवा अखबारों के. यहां रोज नई घटनाएं, नए हादसे, नई समस्याएं, नए लोग, नई बातें, नए विचार…हर वक्त एक हलचल, एक उठापटक, एक संशय, संदेह भरा वातावरण, हर वक्त षड्यंत्र, सत्ता का संघर्ष. अपनेआप को बनाए रखने और टिकाए रखने की जीतोड़ कोशिशें… मित्रों के घातप्रतिघात, आघात और आस्तीनों के सांपों का हर वक्त फुफकारना… तुम अंदाजा नहीं लगा सकतीं मीता, जिंदगी में यहां कितना रोमांच, कितनी नवीनता, कितनी अनिश्चितता होती है…’’

‘‘लेकिन आप के धीरगंभीर स्वभाव से आप का यह कैरियर कतई मेल नहीं खाता…कहां आप चीजों पर विभिन्न कोणों से गंभीरता से सोचने वाले और कहां अखबारों में सिर्फ घटनाएं और घटनाएं…इन के अलावा कुछ नहीं. आप को उन घटनाओं में एक प्रकार की विचारशून्यता महसूस नहीं होती…? आप को नहीं लगता कि जो कुछ तेजी से घट रहा है वह बिना किसी सोच के, बिना किसी प्रयोजन के, बेकार और बेमतलब घटता चला जा रहा है?’’

‘‘यहीं मैं तुम से भिन्न सोचता हूं, मीता…’’

‘‘आजकल की पत्रपत्रिकाओं में तुम क्या देख रही हो…? एक प्रकार की विचारशून्यता…मैं इन घटनाओं के पीछे व्याप्त कारणों को तलाशता हूं. इसीलिए मेरी मांग है और मैं अपनी जगह बनाने में सफल हुआ हूं. मेरे लिए कोई घटना महज घटना नहीं है, उस के पीछे कुछ उपयुक्त कारण हैं. उन कारणों की तलाश में ही मुझे बहुत देर तक सोचते रहना पड़ता है.

‘‘तुम आश्चर्य करोगी, कभीकभी चीजों के ऐसे अनछुए और नए पहलू उभर कर सामने आते हैं कि मैं भी और मेरे पाठक भी एवं मेरे संपादक भी, सब चकित रह जाते हैं. आखिर क्यों…? क्यों होता है ऐसा…?

‘‘इस का मतलब है, हम घटनाओं की भीड़ से इतने आतंकित रहते हैं, इतनी हड़बड़ी और जल्दबाजी में रहते हैं कि इन के पीछे के मूल कारणों को अनदेखा, अनसोचा कर जाते हैं जबकि जरूरत उन्हें भी देखने और उन पर भी सोचने की होती है…’’

राखाल बाबू किसी भी घटना के पक्ष में सोच लेते हैं और विपक्ष में भी. वे आरक्षण के जितने पक्ष में विचार प्रस्तुत कर सकते थे, उस से ज्यादा उस के विपक्ष में भी सोच लेते थे. गजरौला के कानवैंट स्कूल की ननों के साथ घटी बलात्कार और लूट की घटना को उन्होंने महज घटना नहीं माना. उस के पीछे सभ्यता और संस्कृति से संपन्न वर्ग के खिलाफ, उजड्ड, वहशी और बर्बर लोगों का वह आदिम व्यवहार जिम्मेदार माना जो आज भी आदमी को जानवर बनाए हुए है.

मीता राखाल बाबू से नित्य मिलती और प्राय: नित्य ही उन के नए विचारों से प्रभावित होती. वह सोचती रह जाती, यह आदमी चलताफिरता विचारपुंज है. इस के साथ जिंदगी जीना कितना स्तरीय, कितना श्रेष्ठ और कितना अच्छा होगा. कितना अर्थपूर्ण जीवन होगा इस आदमी के साथ. वह महीनों से राखाल बाबू की कल्पनाओं में खोई हुई है. कितना अलग होगा उस का पति, सामान्य सहेलियों के साधारण पतियों की तुलना में. एक सोचनेसमझने वाला, चिंतक, श्रेष्ठ पुरुष, जिसे सिर्फ खानेपीने, मौज करने और बिस्तर पर औरत को पा लेने भर से ही मतलब नहीं होगा, जिस की जिंदगी का कुछ और भी अर्थ होगा.

लेकिन दूसरे क्षण ही मीता को अपनी कंपनी के निर्यात प्रबंधक विजय अच्छे लगने लगते. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, करीने से रखी गई दाढ़ी. चमकदार, तेज आंखें. हर वक्त आगे और आगे ही बढ़ते जाने का हौसला. व्यापार की प्रगति के लिए दिनरात चिंतित. कंपनी के मालिक के बेहद चहेते और विश्वासपात्र. खुला हुआ हाथ. खूब कमाना, खूब खर्चना. जेब में हर वक्त नोटों की गड्डियां और उन्हें हथियाने के लिए हर वक्त मंडराने वाली लड़कियां, जिन में एक वह खुद…

‘‘मीता, चलो आज 12 से 3 वाला शो देखते हैं.’’

‘‘क्यों साहब, फिल्म में कोई नई बात है?’’

मीता के चेहरे पर मुसकराहट उभरती है. जानती है, विजय जैसा व्यस्त व्यक्ति फिल्म देखने व्यर्थ नहीं जाएगा और लड़कियों के साथ वक्त काटना उस की आदत नहीं.

‘‘और क्या समझती हो, मैं बेकार में 3 घंटे खराब करूंगा…? उस में एक फ्रैंच लड़की है, क्या अनोखी पोशाक पहन रखी है, देखोगी तो उछल पड़ोगी. मैं चाहता हूं कि तुम उस में कुछ और नया प्रभाव पैदा कर उसे डिजाइन करो… देखना, यह एक बहुत बड़ी सफलता होगी.’’

कितना फर्क है राखाल बाबू में और विजय में. एक जिंदगी के हर पहलू पर सोचनेविचारने वाला बुद्धिजीवी और एक अलग किस्म का आदमी, जिस के साथ जीवन जीने का मतलब ही कुछ और होगा. नए से नए फैशन का दीवाना. नई से नई पोशाकों की कल्पना करने वाला, हर वक्त पैसे से खेलने वाला…एक बेहद आकर्षक और निरंतर आगे बढ़ते चले जाने वाला नौजवान, जिसे पीछे मुड़ कर देखना गवारा नहीं. जिसे एक पल ठहर कर सोचने की फुरसत नहीं.

तीसरा राकेश है, राजनीति विज्ञान का विद्वान. पड़ोस की चंद्रा का भाई. अकसर जब यहां आता है तो होते हैं उस के साथ उस के ढेर सारे सपने, तमाम तमन्नाएं. अभी भी उस के चेहरे पर न राखाल बाबू वाली गंभीरता है, न विजय वाली व्यस्तता. बस आंखों में तैरते बादलों से सपने हैं. कल्पनाशील चेहरा एकदम मासूम सा.

‘‘अब क्या इरादा है, राकेश?’’ एक दिन उस ने यों ही हंसी में पूछ लिया था.

‘‘इजाजत दो तो कुछ प्रकट करूं…’’ वह सकुचाया.

‘‘इजाजत है,’’ वह कौफी बना लाई थी.

‘‘अपने इरादे हमेशा नेक और स्पष्ट रहे हैं, मीताजी,’’ राकेश ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘पहला इरादा तो आईएएस हो जाना है और वह हो कर रहूंगा, इस बार या अगली बार. दूसरा इरादा आप जैसी लड़की से शादी कर लेने का है…’’

राकेश एकदम ऐसे कह देगा इस की मीता को कतई उम्मीद नहीं थी. एक क्षण को वह अचकचा ही गई, पर दूसरे क्षण ही संभल गई, ‘‘पहले इरादे में तो पूरे उतर जाओगे राकेश, लेकिन दूसरे इरादे में तुम मुझे कच्चे लगते हो. जब आईएएस हो जाओगे और कोरा चैक लिए लड़की वाले जब तुम्हें तलाशते डोलेंगे तो देखने लगोगे कि किस चैक पर कितनी रकम भरी जा सकती है. तब यह 4 हजार रुपल्ली कमाने वाली मीता तुम्हें याद नहीं रहेगी.’’

‘‘आजमा लेना,’’ राकेश कह उठा, ‘‘पहले अपने प्रथम इरादे में पूरा हो लूं, तब बात करूंगा आप से. अभी से खयाली पुलाव पकाने से क्या फायदा?’’

एक दिन दिल्ली में आरक्षण विरोध को ले कर छात्रों का उग्र प्रदर्शन चल रहा था और बसों का आनाजाना रुक गया था. बस स्टाप पर बेतहाशा भीड़ देख कर मीता सकुचाई, पर दूसरे ही क्षण उसे अपनी ओर आते हुए राखाल बाबू दिखाई दिए, ‘‘आ गईं आप…? चलिए, पैदल चलते हैं कुछ दूर…फिर कहीं बैठ कर कौफी पीएंगे तब चलेंगे…’’

एक अच्छे रेस्तरां में कोने की एक मेज पर जा बैठे थे दोनों.

‘‘जीवन में क्या महत्त्वपूर्ण है राखाल बाबू…?’’ उस ने अचानक कौफी का घूंट भर कर प्याले की तरफ देखते हुए उन पर सवाल दागा था, ‘‘एक खूब कमाने वाला आकर्षक पति या एक आला दर्जे का रुतबेदार अफसर अथवा जीवन पर विभिन्न कोणों से हर वक्त विचार करते रहने वाला एक चिंतक…एक औरत इन में से किस के साथ जीवन सुख से बिता सकती है, बताएंगे आप…?’’

एक बहुत ही अहम सवाल मीता ने

राखाल बाबू से पूछ लिया था जिस

सवाल का उत्तर वह स्वयं अपनेआप को कई दिनों से नहीं दे पा रही थी. वह पसोपेश में थी, क्या सही है, क्या गलत? किसे चुने? किसे न चुने?

राखाल बाबू को वह बहुत अच्छी तरह समझ गई थी. जानती थी, अगर वह उन की ओर बढ़ेगी तो वे इनकार नहीं करेंगे बल्कि खुश ही होंगे. विजय ने तो उस दिन सिनेमा हौल में लगभग स्पष्ट ही कर दिया था कि मीता जैसी प्रतिभाशाली फैशन डिजाइनर उसे मिल जाए तो वह अपनी निजी फैक्टरी डाल सकता है और जो काम वह दूसरों के लिए करता है वह अपने लिए कर के लाखों कमा सकता है. और राकेश…? वह लिखित परीक्षा में आ गया है, साक्षात्कार में भी चुन लिया जाएगा, मीता जानती है. लेकिन इन तीनों को ले कर उस के भीतर एक सतत द्वंद्व जारी है. वह तय नहीं कर पा रही, किस के साथ वह सुखी रह सकती है, किस के साथ नहीं…?

बहुत देर तक चुपचाप सोचते रहे राखाल बाबू. अपनी आदत के अनुसार गरम कौफी से उठती भाप ताकते हुए अपने भीतर कहीं डूबे रहे देर तक. जैसे भीतर कहीं शब्द ढूंढ़ रहे हों…

‘‘मीता…महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि इन में से औरत किस के साथ सुखी रह सकती है…महत्त्वपूर्ण यह है कि इन में से कौन है जो औरत को सचमुच प्यार करता है और करता रहेगा. औरत सिर्फ एक उपभोग की वस्तु नहीं है मीता. वह कोई व्यापारिक उत्पादन नहीं है…न वह दफ्तर की महज एक फाइल है, जिसे सरसरी नजर से देख कर आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा दिया जाए. जीवन में हर किसी को सबकुछ तो नहीं मिल सकता मीता…अभाव तो बने ही रहेंगे जीवन में…जरूरी नहीं है कि अभाव सिर्फ पैसे का ही हो. दूसरों की थाली में अपनी थाली से हमेशा ज्यादा घी किसी न किसी कोण से आदमी को लगता ही रहेगा…ऐसी मृगतृष्णा के पीछे भागना मेरी समझ से पागलपन है. सब को सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ अगर मिल जाए तो हमें संतोष करना सीखना चाहिए.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, आदमी के लिए सिर्फ बेतहाशा भागते जाना ही सब कुछ नहीं है…दिशाहीन दौड़ का कोई मतलब नहीं होता. अगर हमारी दौड़ की दिशा सही है तो हम देरसवेर मंजिल तक भी पहुंचेंगे और सहीसलामत व संतुष्ट होते हुए पहुंचेंगे. वरना एक अतृप्ति, एक प्यास, एक छटपटाहट, एक बेचैनी जीवन भर हमारे इर्दगिर्द मंडराती रहेगी और हम सतत तनाव में जीते हुए बेचैन मौत मर जाएंगे.

‘‘मैं नहीं जानता कि तुम मेरी इन बातों से किस सीमा तक सहमत होगी, पर मैं जीवन के बारे में कुछ ऐसे ही सोचता हूं…’’

और मीता को लगा कि वह जीवन के सब से आसन्न संकट से उबर गई है. उसे वह महत्त्वपूर्ण निर्णय मिल गया है जिस की उसे तलाश थी. एक सतत द्वंद्व के बाद उस का मन एक निश्छल झील की तरह शांत हो गया और जब वह रेस्तरां से बाहर निकली तो अनायास ही उस ने अपना हाथ राखाल बाबू के हाथ में पाया. उस ने देखा, वे उसे एक स्कूटर की तरफ खींच रहे हैं, ‘‘चलो, बस तो मिलेगी नहीं, तुम्हें घर छोड़ दूं.’’

Best Short Story : बिना कुछ कहे

Best Short Story : दिसंबर की वह शायद सब से सर्द रात थी, लेकिन कुछ था जो मुझे अंदर तक जला रहा था और उस तपस के आगे यह सर्द मौसम भी जीत नहीं पा रहा था.

मैं इतना गुस्सा आज से पहले स्नेहा पर कभी नहीं हुआ था, लेकिन उस के ये शब्द, ‘पुनीत, हमारे रास्ते अलगअलग हैं, जो कभी एक नहीं हो सकते,’ अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे थे. इन शब्दों की ध्वनि अब भी मेरे कानों में बारबार गूंज रही थी, जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ रही थी.

जो कुछ भी हुआ और जो कुछ हो रहा था, अगर इन सब में से मैं कुछ बदल सकता तो सब से पहले उस शाम को बदल देता, जिस शाम आरती का वह फोन आया था.

आरती मेरा पहला प्यार थी. मेरी कालेज लाइफ का प्यार. कोई अलग कहानी नहीं थी, मेरी और उस की. हम दोनों कालेज की फ्रैशर पार्टी में मिले और ऐसे मिले कि परफैक्ट कपल के रूप में कालेज में मशहूर हो गए.

मैं आरती को बहुत प्यार करता था. हमारे प्यार को पूरे 5 साल हो चुके थे, लेकिन अब कुछ ऐसा था, जो मुझे आरती से दूर कर रहा था. मेरी और आरती की नौकरी लग चुकी थी, लेकिन अलगअलग जगह हम दोनों जल्दी ही शादी करने के लिए भी तैयार हो चुके थे. आरती के पापा के दोस्त का बेटा विहान भी आरती की कंपनी में ही काम करता था. वह हाल ही में कनाडा से यहां आया था. मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता था और उस की नजरें भी साफ बताती थीं कि कुछ ऐसी ही सोच उस की भी मेरे प्रति है.

‘‘देखो आरती, मुझे तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा विहान अच्छा नहीं लगता,‘‘ मैं ने एक दिन आरती को साफसाफ कह दिया.

‘‘तुम्हें वह पसंद क्यों नहीं है?‘‘ आरती ने मुझ से पूछा.

‘‘उस में पसंद करने लायक भी तो कुछ खास नहीं है आरती,‘‘ मैं ने सीधीसपाट बात कह दी.

‘तो तुम्हें उसे पसंद कर के क्या करना है,‘‘ यह कह कर आरती हंस दी.

मेरे मना करने का उस पर खास फर्क नहीं पड़ा, तभी तो एक दिन वह मुझे बिना बताए विहान के साथ फिल्म देखने चली गई और यह बात मुझे उस की बहन से पता चली.

मुझे छोटीछोटी बातों पर बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, शायद इसीलिए उस ने यह बात मुझ से छिपाई. उस दिन मेरी और उस की बहुत लड़ाई हुई थी और मैं ने गुस्से में आ कर उस को साफसाफ कह दिया था कि तुम्हें मेरे और अपने उस दोस्त में से किसी एक को चुनना होगा.

‘‘पुनीत, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है और तुम ने अभी से मुझ पर अपना हुक्म चलाना शुरू कर दिया है. मैं कोई पुराने जमाने की लड़की नहीं हूं, कि तुम कुछ भी कहोगे और मैं मान लूंगी. मेरी भी खुद की अपनी लाइफ है और खुद के अपने दोस्त, जिन्हें मैं तुम्हारी मरजी से नहीं बदलूंगी.‘‘

सीधे तौर पर न सही, लेकिन कहीं न कहीं उस ने मेरे और विहान में से विहान की तरफदारी कर मुझे एहसास करा दिया कि वह उस से अपनी दोस्ती बनाए रखेगी.

आरती और मैं हमउम्र थे. उस का और मेरा व्यवहार भी बिलकुल एकजैसा था. मुझे लगा कि अगले दिन आरती खुद फोन कर के माफी मांगेगी और जो हुआ उस को भूल जाने को कहेगी, लेकिन मैं गलत था, आरती की उस दिन के बाद से विहान से नजदीकियां और बढ़ गईं.

मैं ने भी अपनी ईगो को आगे रखते हुए कभी उस से बात करने की कोशिश ही नहीं की और उस ने भी बिलकुल ऐसा ही किया. उस को लगता था कि मैं टिपिकल मर्दों की तरह उस पर अपना फैसला थोप रहा हूं, लेकिन मैं उस के लिए अच्छा सोचता था और मैं नहीं चाहता था कि जो लोग अच्छे नहीं हैं, वे उस के साथ रहें. एक दिन उस की सहेली ने बताया कि उस ने साफ कह दिया है कि जो इंसान उस को समझ नहीं सकता, उस की भावनाओं की कद्र नहीं कर सकता, वह उस के साथ अपना जीवन नहीं बिता सकती.

आरती और मेरे रास्ते अब अलगअलग हो चुके थे. मैं उसे कुछ समझाना नहीं चाहता था और वह भी कुछ समझना नहीं चाहती थी.

मुझे बस हमेशा यह उम्मीद रहती थी कि अब उस का फोन आएगा और एक माफी से सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा, लेकिन शायद कुछ चीजें बनने के लिए बिगड़ती हैं और कुछ बिगड़ने के लिए बनती हैं.

हमारी कहानी तो शायद बिगड़ने के लिए ही बनी थी. 5 साल का प्यार और साथ सबकुछ खत्म सा हो गया था.

मेरे घर में अब मेरे रिश्ते की बात चलने लगी थी, लेकिन किसी और लड़की से. मां मुझे रोज नएनए रिश्तों के बारे में बताती थीं, लेकिन मैं हर बार कोई न कोई बहाना या कमी निकाल कर मना कर देता था.

मुझे भीड़ में भी अकेलापन महसूस होता था. सब से ज्यादा तकलीफ जीवन के वे पल देते हैं, जो एक समय सब से ज्यादा खूबसूरत होते हैं. वे जितने मीठे पल होते हैं, उन की यादें भी उतनी ही कड़वी होती हैं.

धीरेधीरे वक्त बीतता गया. मेरे साथ आज भी बस, आरती की यादें थीं. मुझे क्या पता था आज मैं किसी से मिलने वाला हूं. आज मैं स्नेहा से मिला. हम दोनों की मुलाकात मेरे दोस्त की शादी में हुई थी.

स्नेहा आरती की चचेरी बहन थी. साधारण नैननक्श वाली स्नेहा शादी में बिना किसी की परवा किए, सब से ज्यादा डांस कर रही थी. 21-22 साल की वह लड़की हरकतों से एकदम 10-12 साल की बच्ची लग रही थी.

‘‘बेटा, तुम्हारी गाड़ी में जगह है?‘‘ मेरे जिस दोस्त की शादी थी, उस की मम्मी ने आ कर मुझ से पूछा.

‘‘हां आंटी, क्यों?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘तो ठीक है, कुछ लड़कियों को तुम अपनी गाड़ी में ले जाना. दरअसल, बस में बहुत लोग हो गए हैं. तुम घर के हो तो तुम से पूछना ठीक समझा.‘‘

सजीधजी 3 लड़कियां मेरी कार में पीछे की सीट पर आ कर बैठ गईं. एक मेरे बराबर वाली सीट पर आ कर बैठ गई.

मेरे यह कहने से पहले कि सीट बैल्ट बांध लो, उस ने बड़ी फुर्ती से बैल्ट बांध ली. वे सब अपनी बातों में मशगूल हो गईं.

मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे मैं इस कार का ड्राइवर हूं, जिस से बात करने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी.

तभी स्नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘आप रजत या के दोस्त हैं न.‘‘

‘‘जी,‘‘ मैं ने बस, इतना ही उत्तर दिया.

न तो इस से ज्यादा हमारी कोई बात हुई और  ही मुझे कोई दिलचस्पी थी.

आजकल के हाईटैक युग में जिस से आप आमनेसामने बात करने से हिचकें उस के लिए टैक्नोलौजी ने एक नया नुसखा कायम किया है, जो आज के समय में काफी कारगर है, और वह है चैटिंग. स्नेहा ने मुझे फेसबुक पर रिक्वैस्ट भेजी और मैं ने भी स्वीकार कर ली.

हम दोनों धीरेधीरे अच्छे दोस्त बन गए. बातोंबातों में उस ने मुझे बताया कि उसे अपने कालेज के सैमिनार में एक प्रोजैक्ट बनाना है. मैं ने कहा, ‘‘तो ठीक है, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं.‘‘

इतने सालों बाद मैं ने उस के लिए दोबारा पढ़ाई की थी उस का प्रोजैक्ट बनवाने के लिए. कभी वह मेरे घर आ जाया करती थी तो कभी मैं उस के घर चला जाता. दरअसल, वह अपने कालेज की पढ़ाई की वजह से रजत के घर ही रहती थी. जब भी वह प्रोजैक्ट बनवाने के लिए आती तो बस, बोलती ही जाती थी. मेरे से बिलकुल अलग थी, वह.

एक दिन बातोंबातों में उस ने पूछा, ‘‘आप की कोई गर्लफ्रैंड नहीं है?‘‘

मैं उस को न कह कर बात वहीं पर खत्म भी कर सकता था, लेकिन मैं ने उस को अपने और आरती के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.

‘‘ओह,‘‘ स्नेहा ने दुख जताते हुए कहा, ‘‘मुझे सच में बहुत दुख हुआ यह सब सुन कर. क्या तब से आप दोनों की एक बार भी बात नहीं हुई?‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘नहीं, और अब करनी भी नहीं है,‘‘ यह कह कर हम दोनों प्रोजैक्ट बनाने लग गए.

आज जब स्नेहा आई तो कुछ बदलीबदली सी लग रही थी. आते ही न तो उस ने जोर से आवाज लगा कर डराया और न ही हंसी.

मैं ने पूछा, ‘‘सब ठीक तो है न?‘‘

वह बोली, ‘‘कुछ बताना था आप को, आप मुझे बताना कि सही है या गलत.‘‘

हम अच्छे दोस्त बन गए थे. मैं ने उस से कहा, ‘‘हांहां जरूर, क्यों नहीं,‘‘ बोलो.

उस ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी से प्यार हो गया है.‘‘

मैं ने कहा, ‘‘कौन है वह और क्या वह भी तुम से प्यार करता है?‘‘

उस ने कहा, ‘‘मालूम नहीं?‘‘

‘‘ओह, तुम्हारे ही कालेज में है क्या?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,‘‘ उस ने बस छोटा सा जवाब दिया.

‘‘वह मेरा दोस्त है जो मुझ से 7 साल बड़ा है. उस की पहले एक गर्लफ्रैंड थी, लेकिन अब नहीं है. उस को गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है.

‘‘वह मेरे बारे में क्या सोचता है, पता नहीं, लेकिन जब वह मेरी मदद करता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. उस का नाम…‘‘ यह कह कर वह रुक गई.

‘‘उस का नाम,‘‘ स्नेहा ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘बहुत मजा आ रहा है न आप को. सबकुछ जानते हुए भी पूछ रहे हो और वैसे भी इतने बेवकूफ आप हो नहीं, जितने बनने की कोशिश कर रहे हो.‘‘

मैं बहुत तेज हंसने लगा.

उस ने कहा, ‘‘अब क्या फिल्मों की तरह प्रपोज करना पड़ेगा?‘‘

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, उस की कोई जरूरत नहीं है. यह जानते हुए भी कि मैं उम्र में तुम से 7 साल बड़ा हूं और मेरे जीवन में तुम से पहले कोई और थी, तब भी..‘‘

‘‘हां, और वैसे भी प्यार में उम्र, अतीत ये सबकुछ भी माने नहीं रखते.‘‘

मैं ने उस को गले लगा लिया और कहा, ‘‘हमेशा मुझे ऐसे ही प्यार करना.‘‘

वह खुश हो कर मेरी बांहों में आ गई. अब मेरे जीवन में भी कोई आ गया था जो मेरा बहुत खयाल रखता था. कहने को तो उम्र में मुझ से 7 साल छोटी थी, लेकिन मेरा खयाल वह मेरे से भी ज्यादा रखती थी. हम दोनों आपस में सारी बातें शेयर करते थे. अब मैं खुश रहने लगा था.

उस शाम मैं और स्नेहा साथ ही थे, जब मेरा फोन बजा. फोन पर दूसरी तरफ से एक बहुत धीमी लेकिन किसी के रोने की आवाज ने मुझे अंदर तक हिला दिया. वह कोई और नहीं बल्कि आरती थी.

वह आरती जिस को मैं अपना अतीत समझ कर भुला चुका था या फिर स्नेहा के प्यार के आगे उस को भूलने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हैलो, कौन?‘‘

‘‘मैं आरती बोल रही हूं पुनीत,‘‘ आरती ने कहा.

‘‘आज इतने दिन बाद तुम्हारा फोन…‘‘ इस से आगे मैं और कुछ कहता, वह बोल पड़ी, ‘‘तुम ने तो मेरा हाल भी जानने की कोशिश नहीं की. क्या तुम्हारा अहंकार हमारे प्यार से बहुत ज्यादा बड़ा हो गया था?‘‘

‘‘तुम ने भी तो एक बार फोन नहीं किया, तुम्हें आजादी चाहिए थी. कर तो दिया था मैं ने तुम्हें आजाद. फिर अब क्या हुआ?‘‘

‘‘तुम यही चाहते थे न कि मैं तुम से माफी मांगू. लो, आज मैं तुम से माफी मांगती हूं. लौट आओ पुनीत, मेरे लिए. मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है.‘‘

मैं बस उस की बातों को सुने जा रहा था बिना कुछ कहे और स्नेहा उतनी ही बेचैनी से मुझे देखे जा रही थी.

‘‘मुझे तुम से मिलना है,‘‘ आरती ने कहा और बस, इतना कह कर आरती ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ, किस का फोन था?‘‘ स्नेहा ने फोन कट होते ही पूछा.

कुछ देर के लिए तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. स्नेहा के दोबारा पूछने पर मैं ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आरती का फोन था.‘‘

‘‘ओह, तुम्हारी गर्लफ्रैंड का,‘‘ स्नेहा ने कहा.

मैं ने स्नेहा से अब तक कुछ छिपाया नहीं था और अब भी मैं उस से कुछ छिपाना नहीं चाहता था. मैं ने सबकुछ उस को सचसच बता दिया.

सारी बात सुनने के बाद स्नेहा ने कहा, ‘‘मुझे लगता है आप को एक बार आरती से जरूर मिलना चाहिए. आखिर पता तो करना चाहिए कि अब वह क्या चाहती है.‘‘

यह जानते हुए भी कि वह मेरा पहला प्यार थी. स्नेहा ने मुझे उस से मिल कर आने की इजाजत और सलाह दी.

अगले दिन मैं आरती से मिला और आरती ने मुझे देख कर कहा, ‘‘तुम बिलकुल नहीं बदले, अब भी ऐसे ही लग रहे हो जैसे कालेज में लगा करते थे.‘‘

‘‘आरती अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है,‘‘ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्यों?‘‘ आरती ने पूछा, ‘‘कोई आ गई है क्या तुम्हारे जीवन में?‘‘

‘‘हां, और उस को सब पता है. उसी के कहने पर मैं यहां तुम से मिलने आया हूं.‘‘

‘‘क्या तुम उसे भी उतना ही प्यार करते हो जितना मुझे करते थे, क्या तुम उस को मेरी जगह दे पाओगे?‘‘

मैं शांत रहा. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘हां, वह मुझे बहुत प्यार करती है.‘‘

‘‘ओह, तो इसलिए तुम मुझ से दूर जाना चाहते हो. मुझ से ज्यादा खूबसूरत है क्या वह?‘‘

‘‘आरती,‘‘ मैं गुस्से में वहां से उठ कर चल दिया. मुझे लग रहा था कि अब वह वापस क्यों आई? अब तो सब ठीक होने जा रहा था.

उस रात मुझे नींद नहीं आई. एक तरफ वह थी, जिस को कभी मैं ने बहुत प्यार किया था और दूसरी तरफ वह जो मुझ को बहुत प्यार करती थी.

अगली सुबह मैं स्नेहा के घर गया, तो वह कुछ उदास थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम एकदूसरे के लिए नहीं बने हैं और हमारे रास्ते अलग हैं,‘‘ यह कह कर वह चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चली गई.

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि इतना प्यार करने वाली लड़की इस तरह की बातें कैसे कर सकती है.

आरती का फोन आते ही मैं अपने खयालों से बाहर आया. मुझे स्नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘आरती, इस समय मेरा बात करने का बिलकुल मन नहीं है. मैं तुम से बाद में बात करता हूं,‘‘ मेरे फोन रखने से पहले ही आरती बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ?‘‘

‘‘आरती, मैं स्नेहा को ले कर पहले से ही बहुत परेशान हूं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘वह अभी भी बच्ची है, शायद इन सब बातों का मतलब नहीं जानती, इसलिए कह दिया होगा.‘‘

उस के इतना कहते ही मैं ने फोन रख दिया और उसी समय स्नेहा के घर के लिए निकल गया.

मैं ने स्नेहा के घर के बाहर पहुंच कर स्नेहा से कहा, ‘‘सिर्फ एक बार मेरी खुशी के लिए बाहर आ जाओ,‘‘ स्नेहा ना नहीं कर पाई और मुझे पता था कि वह ना कर भी नहीं सकती, क्योंकि बात मेरी खुशी की जो थी.

स्नेहा की आंखों में आंसू थे. मैं ने स्नेहा को गले लगा लिया और कहा, ‘‘पगली, मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करने जा रही थी.‘‘

स्नेहा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा.

‘‘तुम मुझ से झूठ बोलने की कोशिश भी नहीं कर सकती. अब यह तो बताओ कि आरती ने क्या कहा, तुम से मिल कर.‘‘

स्नेहा ने रोते हुए कहा, ‘‘आरती ने कहा कि अगर मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम्हारी खुशी चाहती हूं तो…. मैं तुम से कभी न मिलूं, क्योंकि तुम्हारी खुशी उसी के साथ है,‘‘ यह कह कर स्नेहा फूटफूट कर रोने लगी.

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘ओह, मेरा बच्चा मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करना चाहता था. इतना प्यार करती हो तुम मुझ से.‘‘

उस ने एक छोटे बच्चे की तरह कहा,  ‘‘इस से भी ज्यादा.‘‘

मैं ने उस को हंसाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘कितना ज्यादा?‘‘

वह मुसकरा दी.

‘‘लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि वह मुझ से मिली? क्या उस ने तुम्हें बताया?‘‘

‘‘नहीं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘फिर,‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने जोर से हंसते हुए कहा, ‘‘उस ने तुम्हें बच्ची बोला,‘‘ इसीलिए.

इतने में ही मेरा फोन दोबारा बजा, वह आरती का फोन था. मैं ने अपने फोन को काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया और स्नेहा को गले लगा लिया. बिना कुछ कहे मेरा फैसला आरती तक पहुंच गया था.

Dance Benefits : शौक के साथ ऐक्सरसाइज भी

Dance Benefits :  चिलचिलाती धूप और गरमी में मार्निंग वौक से ले कर जिम जाने तक सभी तरह का वर्कआउट हम समय पर नहीं कर पाते हैं। लेकिन अब इस से परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि डांस भी एक तरह की ऐक्सरसाइज है जिस से तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं और साथ ही डांस करने का शौक भी पूरा हो जाता है.

आप को डांस नहीं आता लेकिन फिर भी तेज म्यूजिक पर आप अपने पैरों को थिरकने से नहीं रोक पाते.

रिपोर्ट्स की मानें तो दिन में कुछ देर बस ऐसे ही थिरकने से शरीर को कई फायदे होते हैं.

कैलोरी तेजी से बर्न होती है

डांस एक प्रकार की कार्डियो ऐक्सरसाइज है, जिसे करने से शरीर में कैलोरी तेजी से बर्न होती है. करीब 1 घंटा डांस करने से लगभग 500 से 800 कैलोरी बर्न होती है, जो वजन घटाने में काफी फायदेमंद है. इससे मेटाबौलिज्म की प्रक्रिया भी तेज होती है, जिस से शरीर में जमा वसा की मात्रा आसानी से पिघलती है.

वजन घटाने के लिए आप रोजाना कम से कम 15 से 20 मिनट तक डांस कर सकते हैं.

अमेरिका के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के अनुसार अगर आप का वेट 150 पाउंड्स है, तो सिर्फ 30 मिनट नाचने से आप अच्‍छीखासी कैलोरीज बर्न कर सकते हैं. अच्‍छी बात यह कि ज्‍यादा वजन वाले लोग भी कैलोरी बर्न करने के इस अंदाज को आजमा सकते हैं.

नींद अच्छी आएगी

दिनभर में की गई आधे घंटे की डांस थेरैपी से आप रात में चैन की नींद सो पाएंगे. दरअसल, डांस करने से शरीर के सभी अंग हिलतेडुलते हैं, जिस से शरीर में थकान का भी अनुभव रहता है। ऐसे में रात को अच्छी नींद आती है.

वर्क कैपिसिटी भी बढ़ती है

डांस से हमारा दिमाग पूरी तरह से फ्रैश हो जाता है और हम बाकी सभी चिंताओं से खुद को मुक्त कर के केवल डांस पर ही फोकस करते हैं. इस से हमारे अंदर एकाग्रता बढ़ने लगती है और हम आसानी से किसी काम को पूरे मन से कर पाते हैं। दिनभर में कुछ मिनटों तक डांस करना सेहत के लिए तो फायदेमंद होता ही है, साथ ही आप को मानसिक तौर पर भी मजबूत बनाता है। इस से आप की वर्क कैपिसिटी भी बढ़ती है.

भूख नहीं लगने की समस्या भी दूर होगी

अगर आप को भूख नहीं लगती और वजन धीरेधीरे कम हो रहा है तो दिन में 1 मघंटा डांस करना शुरू कर दें. इस से थकान होगी और भूख और प्यास दोनों लगने लगेगी. जब डाइट लेंगे तो वजन भी अपनेआप सही हो जाएगा.

श्वसनतंत्र में सुधार

नाचने से श्वसनतंत्र में सुधार होता है, क्योंकि इस में म्यूजिक के साथ कूदना भी शामिल होता है और यह हाई इंटेंसिटी स्टैप्स होते हैं। नाचने से ब्रीथिंग रेट बढ़ता है जिस से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं.

मसल्स स्ट्रौंग होती हैं

जुंबा, साल्सा, पोल डांस, बैलेट आदि डांस करने से हड्डियां मजबूत रहती हैं.

यों तो ये केवल कुछ नाम हैं, पर आप डांस कोई भी करें आप का पूरा शरीर उस समय काम कर रहा होता है। नृत्य करने से हमारी मसल्स स्ट्रौंग होती हैं। बौडी स्ट्रेच होती है।

वेट लूज करता है डांस

आजकल सोशल मीडिया पर हरकोई अपनी अपनी तरह से वजन कम करने के लिए बहुत सा ज्ञान दे रहा है लेकिन कई स्टडी में साबित हो गया है कि डांस करने से शरीर की कैलोरी बर्न होती है.

शोधकर्ताओं की मानें तो नियमित तौर पर डांस करने से बौडी मास इंडैक्स, बौडी मास, कमर की चरबी कम होने के साथ ही फैट पर्सेंटेज भी काफी हद तक कम होता है.

डांस नहीं करने वाले लोगों की तुलना में रोजाना डांस करने वाले लोगों में फैट की मात्रा आसानी से कम होती है.

स्टडी की मानें तो यह ऐक्टिविटी आप की फीजिकल और मैंटल हैल्थ को दुरुस्त रखने के साथ ही मोटापे से बचाने में भी लाभकारी होती है.

अगर आप वजन या फिर फैट कम करना चाहते हैं तो नियमित तौर पर इस शारीरिक गतिविधि में शामिल हो सकते हैं.

फ्लेक्सिबिलिटी में सुधार

डांस करने से फ्लेक्सिबिलिटी में सुधार होता है, क्योंकि इस में कई तरह के मूव्स शामिल होते हैं जो किसी कसरत से कम नहीं है. ये डांसिंग मूव्स आप के शरीर की संपूर्ण कसरत करवाते हैं और आप को थकान भी महसूस नहीं होती.

कई बीमारियों से बचाता है डांस

जो लोग डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हैं, उन के लिए डांस करना फायदेमंद साबित हो सकता है. रोजाना डांस करने से हाई कोलेस्ट्रोल, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट डिजीज, मोटापा समेत कई गंभीर बीमारियों का खतरा कम हो सकता है.

डांस करते समय किन बातों का धयान रखें :

● किसी भी तरह की ऐक्सरसाइज शुरू करने से पहले वार्मअप करना बहुत जरूरी है. यह बात डांस करने पर भी लागू होती है.

● डांस करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पानी का इंटेक पूरा होना चाहिए. इसलिए डांस के बीचबीच में भी पानी पिया जा सकता है.

● डांस नंगे पैर न करें बल्कि आरामदायक जूते पहन कर करें. वर्ना पैरों में दर्द की शिकायत हो सकती है.

● स्ट्रेचिंग सहित डांस सेशन के बाद खुद को कूल डाउन करें और अपनी बौडी को आराम दें.

मोटापा माइनस पौइंट नहीं : Prisha Dhatwalia

Prisha Dhatwalia : किसी इंसान का मोटा होना उस का सब से बड़ा माइनस पौइंट होता है क्योंकि उस के मोटापे के सामने उस के सारे गुण छिप जाते हैं और वह टेलैंटेड होने के बावजूद समाज में हमेशा मजाक का पात्र बना रहता है. कई बार कुछ लोग ऐसे मोटे लोगों को अपने आसपास भी फटकने नहीं देते. खासतौर पर हैंडसम लड़के जिन्हें सिर्फ खूबसूरत और स्लिमट्रिम लड़कियां पसंद होती हैं. उन की जिंदगी में अगर कोई मोटी लड़की आ जाए तो वे उसे जरा भी बरदाश्त नहीं कर पाते. फिर चाहे वह लड़की कितनी ही टेलैंटेड या अच्छे स्वभाव की हो.

ऐसा ही कुछ टीवी सीरियल ‘मेरी भव्या लाइफ’ में एक मोटी लड़की की कहानी के जरीए दर्शाया गया है. इस सीरियल का हीरो ऋषभ भव्या के मोटे होने की वजह से बातबात पर उस की बेइज्जती करता है और उसे नीचा दिखाता रहता है, जबकि भव्या उसी ऋषभ का जिम डिजाइन करने आती है. लेकिन बाद में हालात के चलते इसी हैंडसम फिटनैस के पीछे पागल और मोटे लोगों से नफरत करने वाले ऋषभ को भव्या से शादी करनी पड़ती है.

भव्या का किरदार निभाने वाली प्रीशा धतवालिया से हाल ही में हमारी बातचीत हुई जोकि एक खूबसूरत और क्यूट ऐक्ट्रैस हैं. प्रीशा अर्थात भव्या के अनुसार उन्हें इस किरदार के लिए अपना वजन 85 किलोग्राम तक बढ़ाना पड़ा. भव्या ने इस से पहले कभी ऐक्टिंग नहीं की थी लेकिन ऐक्टिंग का शौक उन्हें बचपन से था. हालांकि उन के घर में ज्यादातर इंजीनियर और हाई ऐजुकेशन वाले सदस्य हैं. प्रीशा भी पहले पत्रकारिता से जुड़ी हुई थीं और उन्होंने रेडियो मिर्ची और एबीपी न्यूज के लिए काम भी किया है.

एक दोस्त के कहने पर प्रीशा ने मजाकमजाक में इस सीरियल के लिए औडिशन दे दिया और जब इस के लिए प्रीशा का चुनाव हो गया तो उन के मन में पहला खयाल क्या आया? अभिनय से कोसों दूर रहने वाली प्रीशा मेरी भव्या लाइफ में काम करने के बाद अभिनय कैरियर को ले कर कितनी सचेत हुई हैं? जैसेकि भव्या को शादी का औफर सीरियल के हीरो ऋषभ की तरफ से आया है ऐसे ही अगर कोई हैंडसम लड़का जो उन को बिलकुल पसंद नहीं करता उस की तरफ से अगर शादी का औफर आया तो प्रीशा की क्या प्रतिक्रिया होगी?

एक वार्तालाप के दौरान ऐसे ही कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए प्रीशा ने अपने दिलचस्प अंदाज में:

जब आप को ‘मेरी भाव लाइफ’ के लिए भाव का किरदार निभाने का मौका मिला तो पहली प्रतिक्रिया आप की क्या थी?

सच कहूं तो मैं ने एक दोस्त के कहने पर इस सीरियल के लिए औडिशन दिया था. मुझे बिलकुल भी आशा नहीं थी कि मुझे भाव के किरदार के लिए सलैक्ट किया जाएगा क्योंकि इस से पहले मैं ने न तो ऐक्टिंग की थी और न ही मेरी बैकग्राउंड ऐक्टिंग कैरियर वाली है. मैं ने इंग्लिश लिटरेचर में ग्रैजुएशन किया है. बस शौक के तौर पर दिल्ली में मैं नुक्कड़ नाटक अपने दोस्तों के साथ किया करती थी. उसी दौरान शौकिया तौर पर मैं ने यूट्यूब चैनल के लिए बैंक का एक ऐड किया. इस ऐड में मेरा काम देख कर मुझे औडिशन के लिए बुलाया गया क्योंकि मैं दिल्ली की रहने वाली हूं इसलिए मैं मुंबई औडिशन देने आई यह सोच कर कि इसी बहाने मुझे मुंबई घूमने को मिल जाएगा.

लेकिन सलैक्शन के बाद जब मुझे मुंबई शिफ्ट होने का चैनल ने संदेश भेजा तो मेरे मन में एक खयाल सब से पहले आया कि मैं इतनी भी मोटी नहीं हूं कि मुझे इस रोल के लिए सलैक्ट किया. अभी कोई मोटा अपनेआप को मोटा नहीं समझता. लेकिन क्योंकि मुझे ऐक्टिंग का शौक था इसलिए मैं ने अपने घर वालों को इस के लिए मनाया और मुंबई शिफ्ट हो गई.

जैसाकि आप ने बताया आप की बैकग्राउंड हाई ऐजुकेशन वालों के साथ जुड़ी हुई है और आप के घर में सभी इंजीनियर व आर्मी में हैं. ऐसे में आप के घर वालों ने क्या आसानी से ऐक्टिंग करने की इजाजत दे दी?

नहीं, शुरुआत में ऐग्री नहीं थे. मैं अपने पिताजी के बहुत क्लोज हूं इसलिए उन्होंने मुझे सपोर्ट किया क्योंकि उन को पता है मुझे ऐक्टिंग का शौक है. इस से पहले पिताजी ने भी यही कहा कि क्या जरूरत है इस लाइन में जाने की कोई सिक्युरिटी नहीं है. मैं ने अपने पिताजी को आश्वासन देते हुए कहा कि जब सीरियल वालों ने खुद से मुझे चुना है और बुलाया है मुंबई तो कुछ तो सही होगा, बावजूद इस के मेरे पिताजी मेरे साथ मुंबई आए, सारे मैंबर लोगों से मिले, मेरे रहने का सही इंतजाम किया उस के बाद ही मुझे मुंबई रुकने की इजाजत मिली.

आप ने बताया इस से पहले आप ने कभी ऐक्टिंग नहीं की है तो इस सीरियल में आप ऐक्टिंग के लिए क्या तैयारी करती हैं?

मैं डाइरैक्टर के कहे अनुसार ऐक्टिंग करती हूं और सैट पर मौजूद सभी सीनियर ऐक्टरों से  ऐक्टिंग को ले कर टिप्स लेती रहती हूं ताकि मैं धीरेधीरे सीखसीख कर अभिनय करने की कोशिश कर सकूं.

इस सीरियल का हीरो ऋषभ आप के मोटे होने की वजह से आप से नफरत करता है. ऐसे में पर्सनल लाइफ में उन का स्वभाव आप के साथ कैसा है?

ऋषभ बहुत अच्छे स्वभाव का है. वह बहुत फूडी भी है. अच्छे खाने वाली जगह पर वही मुझे ले जाता है. हमारे विचार भी बहुत मिलते हैं. शूटिंग के दौरान हमारी अच्छी दोस्ती हो गई है. वह सीरियल में जैसा खड़ूस और गुस्सैल दिखता है असल में वह बिलकुल वैसा नहीं है.

इस शो में आप की उस के साथ शादी भी दिखाई गई है. ऋषभ के पिता की वजह से आप की जबरन उस से शादी हो जाती है. असल लाइफ में अगर ऐसी सिचुएशन आ जाए तो पृष्ठ का आप का क्या रिएक्शन होगा?

मैं तो बिलकुल भी ऐसे लड़के से शादी नहीं करूंगी जो मुझे पसंद नहीं करता या मुझ से नफरत करता है. मेरे हिसाब से शादी का मतलब 2 लोगों के बीच सम्मान, अंडरस्टैंडिंग और प्यार होना है. अगर 2 लोगों के बीच में सम?ाते की वजह से शादी होती है तो वह ज्यादा समय तक नहीं टिकती. जहां तक भव्या का सवाल है तो वह अपने से ज्यादा अपने परिवार की चिंता करती है. वह अपने परिवार के सदस्यों की खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकती है क्योंकि उस की वजह से घर में सब को बहुत तकलीफें हैं. उस की छोटी बहन की शादी भी नहीं हो रही. मातापिता भी तकलीफ में हैं इसलिए वह शादी करने के लिए तैयार हो जाती है. कभीकभी हालात भी इंसान को वह करने पर मजबूर कर देते हैं जो वह नहीं करना चाहता.

क्या आप प्रौपर दिल्ली की रहने वाली हैं या दिल्ली से पहले कहीं और रहती थीं?

नहीं मैं दिल्ली के रहने वाली नहीं हूं. मैं और मेरा पूरा परिवार पिताजी के वजह से दिल्ली आए क्योंकि उन्होंने दिल्ली में अपना बिजनैस सैटल किया. ऐक्चुअली मैं पूरी तरह पहाड़न हूं. जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश में एक छोटा सा गांव है जिस का नाम करनेड़ा है वहां मेरी दादी का घर है. मैं वहीं पर पैदा हुई और पहाड़ों की वादियों में ही मेरा बचपन गुजरा. लेकिन बाद में पिताजी को बिजनैस सैटल करना था इसलिए हम दिल्ली आ गए. लेकिन हमारा पूरा खानदान हिमाचल के करनेड़ा गांव में ही रहता है. इसलिए हम साल में 2-3 बार उधर जाते रहते हैं.

आज के समय में कई सारे ऐसे लोग हैं जो मोटे होने के बावजूद प्रसिद्धि के शिखर पर हूं जैसे एक समय में अदनान सामी बहुत मोटे थे, भारती सिंह कौमेडियन, सरोज खान और गणेश हेगडे़ इन्होंने भी भारी वजन के साथ ही लोगों को डांस सिखाया और कई सारे अवार्ड भी जीते. ऐसे में ‘मेरी भव्या लाइफ’ के जरीए आप समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

मैं यही कहना चाहती हूं कि मोटापा माइनस पौइंट नहीं है, इनफैक्ट मोटे या पतले का कोई पौइंट ही नहीं होना चाहिए, इंसान की परख उस के टेलैंट और उस के स्वभाव से होनी चाहिए न कि उस के शारीरिक गठन से. अगर आप का वेट ज्यादा है लेकिन आप पूरी तरह से ऐक्टिव हों, निरोगी हों और अपनी जिंदगी में वह सबकुछ अचीव किया है जो एक पतला इंसान नहीं कर पाया, आप का खानापीना भी उतना ही है जितना कि एक नौर्मल इंसान का होता है.

आप के मोटापे के पीछे कोई बीमारी का कारण है लेकिन आप बावजूद उस के बहुत ज्यादा ऐक्टिव हों, टेलैंटेड हों, लेकिन इस के विपरीत अगर कोई पतला और खूबसूरत इंसान बदतमीज है, अवगुण से भरा हुआ है, टेलैंट नाम की चीज नहीं है साथ ही घमंडी भी है, आप ऐसे इंसान को अपने साथ रखना पसंद करोगे? किसी भी इंसान को उस के मोटापे को ले कर जज नहीं करना चाहिए क्योंकि हरेक की कदकाठी, शारीरिक बनावट प्राकृतिक होती है. कई बार चाह कर भी मोटा आदमी पतला नहीं हो पाता तो क्या हुआ जीना ही छोड़ दे? हम ने अपने शो के जरीए भव्य के किरदार के जरीए यही बात कहने की कोशिश की है. भव्य इंजीनियर है, ईमानदार है, अपने परिवार से प्यार करती है लेकिन क्योंकि वह मोटी है इसलिए तिरस्कार का सामना करना पड़ता है लेकिन वह हार नहीं मानती और अपनी जिंदगी में पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ती है.

आजकल बौडी शेमिंग बहुत ज्यादा होती है इसलिए लोग पतले होने की दौड़ में शामिल हैं. आप पर्सनली इस बात से कितनी सहमत हैं?

मैं पतला होने के खिलाफ नहीं हूं. मगर इस सोच के खिलाफ हूं कि मोटा इंसान बेकार है, वह कुछ नहीं कर सकता. कई लोग पतला होने के चक्कर में जरूरत से ज्यादा भूखे रहते हैं, गलत डाइट फौलो करते हैं, बहुत ज्यादा ऐक्सरसाइज करते हैं, जिस के लिए वे स्टेराइड का इस्तेमाल करते हैं और इस चक्कर में कई बार जान भी गवां बैठते हैं. मेरे हिसाब से लोगों को अपनी काबिलीयत पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए न कि फिगर पर.

अच्छी सेहत जरूरी है न कि मोटापा या पतलापन. जहां तक बौडी शेमिंग की बात है तो समाज का चुभता हुआ पहलू है कि वह किसी न किसी तरह लोगों को नीचा दिखाने के लिए नएनए तरीके अपनाता रहता है. जैसे बहुत ज्यादा मोटा, बहुत ज्यादा पतला, बहुत ज्यादा काला आदि लोगों को बौडी शेमिंग का शिकार होना ही पड़ता है. इसलिए लोगों की परवाह नहीं करनी चाहिए और अपनी मस्ती में जीना चाहिए.

क्यों नहीं होती Vibes मैच

Vibes : 22  साल की सिमरन को औफिस की वाइब्स अच्छी नहीं लगीं इसलिए उस ने उस जौब को छोड़ कर दूसरी कंपनी जौइन कर ली. वहां भी केवल 6 महीने काम किया. वहां भी वाइब्स मैच नहीं हुईं और उसे छोड़ कर अब घर बैठी है तथा नई जौब की तलाश कर रही है. यहां सिमरन से जब पूछा गया कि वाइब्स हैं क्या? तब वह केवल इतना बता पाई कि पता नहीं लेकिन वाइब्स के मैच न करने पर काम करना मुश्किल होता है.

यह रही सिमरन की बात जो औफिस वाइब्स सही न होने की वजह से बारबार जौब छोड़ रही है, जबकि स्मिता की पिछले 4 साल से एक लड़के से दोस्ती है, जब उस के परिवार वालों ने स्मिता से उस लड़के से शादी करने की बात कही तो उस ने सिरे से मना कर दिया और पेरैंट्स को बताया कि उस लड़के के साथ उस की वाइब्स मैच नहीं कर रही हैं, इसलिए वह उस के साथ शादी कर घर नहीं बसा सकती.

वाइब्स का अर्थ

वाइब्स आखिर यह शब्द है क्या जिसे आज की जैन जी बहुत अधिक प्रयोग करती है? अकसर हमें सुनने को मिलता है कि यार फलां से मेरी वाइब्स मैच नहीं हुईं. फलां औफिस में वाइब्स अच्छी नहीं थीं. फलां से गुड वाइब्स आती हैं. ऐसे वाक्य काफी आम हो गए हैं.

आइए, जानते हैं असल जिंदगी में इस का अर्थ और इस के पीछे की साइकोलौजी जानने की कोशिश करते हैं:

कई बार ऐसा देखा गया है कि कभीकभी कोई इंसान, कोई कमरा, कोई औफिस या कोई माहौल अजीब सा लगता है. बिना किसी ठोस वजह के हम कह देते हैं कि यहां वाइब्स अजीब हैं या फिर इन से मिल कर बहुत अच्छा फील हुआ, पौजिटिव ऐनर्जी मिली. क्या ये फीलिंग्स एक भ्रम हैं या इन का कोई वैज्ञानिक आधार भी है?

क्या कहती है रिसर्च

एक नई रिसर्च में यह बात सामने आई है कि वाइब्स केवल कल्पना नहीं बल्कि हमारे ब्रेन और नर्वस सिस्टम की एक अनदेखी प्रक्रिया का हिस्सा हैं. डा. हेडी मौवार्ड ने ठ्ठद्गह्वह्म्शद्यशद्द4द्यद्ब1द्ग.ष्शद्व की लेख में लिखा है कि हमारा दिमाग हमारे आसपास के लोगों के हावभाव, आवाज के उतारचढ़ाव और माइक्रो ऐक्सप्रैशंस से ढेर सारी अनकही बातें पकड़ लेता है. यह प्रक्रिया इतनी जल्दी होती है कि हमें इस का पता नहीं चल पाता, बस व्यक्ति कह देता है कि यह मुझे सही नहीं लग रहा है या बहुत अच्छा महसूस हो रहा है.

मनोवैज्ञानिक आधार

इस बारे में मनोवैज्ञानिक हेमलता ठाकुर कहती हैं कि वाइब्स का अर्थ किसी के साथ खुद को कनैक्ट कर पाना होता है, अगर ऐसा नहीं हो पाता तो आज की जेनरेशन आसान शब्दों में वाइब्स कह देती है, जो उन के साथ मैच नहीं होती क्योंकि इमोशनली वे उस परिस्थिति से जुड़ नहीं पाते, जिस में उन के विचार आसपास के परिवेश से मेल नहीं खाते.

हेमलता आगे कहती है कि जैसा अकसर सुनने में आता है कि फलां लाइक माइंडेड है, फलां नहीं. असल में उस व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसी घटना पास्ट में हुई होगी, जिस से उस सामने वाले व्यक्ति के साथ वाइब्स मैच नहीं कर रहा है और यह उस का इंटरप्रिटेशन है जो किसी दूसरे का साथ अलग हो सकता है. इसे समझना और व्याख्या करना आसान नहीं. किसी के लिए पांव छू कर रिसपैक्ट दिखानी होती है, जबकि कुछ बिना पांव छूए ही अदब से पेश आने को रिस्पैक्ट मानते हैं. इस में आप का सैंसरी आर्गन किसी बात को कैसे इंटरप्रेट करता है, यह देखना पड़ता है.

अनुभूति मस्तिष्क की

दरअसल, हमारे दिमाग की यह वह अनुभूति है जो अतीत के अनुभवों और वर्तमान की इनपुट्स को मिला कर एक इमोशनल निष्कर्ष निकालती है. यह कई बार अवचेतन मन से आता है, जब हम किसी व्यक्ति या जगह से पहली बार मिलते हैं तो उन की सोच या परिवेश से अनभिज्ञ रहते हैं. ऐसे में सामने वाले का रहनसहन और व्यवहार उस स्थान को परिचित बनाता है. कई बार एक स्थान किसी के लिए सकारात्मक तो किसी के लिए नकारात्मक भी हो सकता है.

लड़कियों में संवेदनशीलता

नीदरलैंड में हुई एक स्टडी में यह सामने आया कि इंसानों के पसीने और आंसुओं में मौजूद रासायनिक संकेत दूसरों के मूड पर असर डाल सकते हैं, जबकि वह इंसान वहां पर होता भी नहीं है. एक ऐक्सपैरिमैंट में डर के समय लिया गया बौडी ओडर सूंघने पर वालंटियर्स की बौडी लैंग्वेज भी डर जैसी हो गई. हमारा मस्तिष्क महज आंखकान तक सीमित नहीं है. हमारी त्वचा, नाक, कान और आंतें भी इमोशनल सिग्नलस को पकड़ती हैं. कुछ लोग इसे आसानी से सम?ा लेते हैं, कुछ नहीं खासकर लड़कियों में यह संवेदनशीलता अधिक होती है. इन्हें हम इंट्यूटिव कह सकते हैं और यही अधिकतर वाइब्स शब्द का प्रयोग करते हैं.

जब हम किसी नैगेटिव माहौल में होते हैं तो खुद को थका हुआ, चिड़चिड़ा या लो महसूस कर सकते हैं. वहीं पौजिटिव माहौल में ऊर्जा, उत्साह और प्रेरणा महसूस होती है, इसे इमोशनल कंटैजियन यानी भावनाओं का फैलाव कहा जा सकता है, जिस में एक हंसता हुआ इंसान पूरी मीटिंग को हलका कर सकता है.

बदल सकती हैं वाइब्स

जब हम अपने आसपास पौजिटिव बातचीत, अच्छी खुशबू, प्रकृति का स्पर्श और अच्छी लाइटिंग करते हैं तो वाइब्स चेंज होने का एहसास होता है. इस के अलावा हमारे विचार, बोलचाल और बौडी लैंग्वेज भी एक ऐनर्जी फील्ड बनाते हैं जो हमारे कार्यक्षेत्र और आसपास के माहौल को बदल सकती है.

मनोवैज्ञानिक हेमलता कहती हैं कि वाइब्स कोई जादुई चीज नहीं. इस में अपनी सोच को बदल कर इसे बदला जा सकता है. आज इस शब्द को नई जैनरेशन बहुत प्रयोग करती है लेकिन इस में जैन जी के अंदर पेशंस और टौलरैंस को बढ़ाने की जरूरत है. जो चीज उन्हें कुछ समय के लिए सही नहीं लग रही है, थोड़े समय के बाद करने पर वह अच्छी लग सकती है. इसे कार्यक्षेत्र के अलावा रिलेशनशिप में भी दिखाना आवश्यक है, जो आज उन्हें करना जरूरी है क्योंकि बौर्डर पर लड़ने वाला अगर आप के बर्थडे पर विश नहीं करता है तो उस की समस्या को समझें और औफिस में जौब करने वाली ने अगर किसी दिन खाना नहीं भी बनाया तो उस की समस्या को समझने की कोशिश करें क्योंकि ये परिस्थितियां आज की जैनरेशन के साथ हैं.

इस प्रकार वाइब्स हमारे मस्तिष्क और शरीर का एक कोलाज है, जिसे ध्यान देने पर व्यक्ति खुद ही इसे अपने लिए हो या दूसरों के लिए बेहतर बना सकता है और यह आज के समय में जैन जी को आगे बढ़ने के लिए समझना बहुत जरूरी है.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, जाति अलग होने की वजह से घरवाले शादी के लिए तैयार नहीं हो रहे…

Relationship : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 19 साल की हूं और अपने से 2 साल बड़े लड़के से प्यार करती हूं. हम ने कई बार सैक्स का आनंद भी उठाया है. वह मुझे बहुत प्यार करता है और मुझसे शादी करना चाहता है. उस के घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे घर वाले तैयार नहीं हो रहेक्योंकि वह अलग जाति का है और मैं अलग जाति की. हमारे रिश्ते के बारे में घर वालों को पता चला तो मेरी पढ़ाई छुड़वा दी और मोबाइल भी ले लिया. फिर भी मैं लड़के से चोरीछिपे बात कर लेती हूं. बौयफ्रैंड मुझसे बिना बात किए नहीं रह सकता. इस की वजह से उस की पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो रही है. वह कह रहा है कि अगर घर वाले नहीं मान रहे तो अभी रुको4 साल बाद जब मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो हम शादी कर लेंगे. मगर इस दिल को कैसे तसल्ली दूंजो दिनरात उसी के लिए धड़क रहा हैबताएं मैं क्या करूं?

जवाब 

अभी आप की उम्र काफी छोटी है. यह उम्र पढ़लिख कर कुछ बनने की होती है. मगर आप कच्ची उम्र में ही गलती कर बैठीं. यहां तक कि जिस्मानी संबंध भी बना लिए. आप के पेरैंट्स का सोचना सही है. वे भी यही चाहते होंगे कि पहले आप अपने पैरों पर अच्छी तरह खड़ी हो जाएंकैरियर बना लें तभी शादी की सोचेंगे.

खैरजो होना था सो हो गया. अब सम?ादारी इसी में है कि आप पहले अपने घर वालों को विश्वास में ले कर अपनी पढ़ाई जारी रखें. बौयफ्रैंड को भी अपना कैरियर बनाने दें.

अगर वह 4 साल इंतजार करने को कह रहा है तो उस का सोचना भी सही है. अगर वह आप से सच्ची मुहब्बत करता है तो 4 साल बाद ही सहीआप से जरूर विवाह करेगा. रही बात एकदूसरे की जाति अलगअलग होने कीतो आज के समय में ये सब दकियानूसी बातें हैं. समाज में ऐसी शादियां खूब हो रही हैं.

देरसवेर आप के पेरैंट्स भी मान जाएंगे. अगर न मानें तो आप दोनों कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. फिलहाल यही जरूरी है कि आप दोनों ही अपनेअपने कैरियर पर ध्यान दें.

Monsoon Special Food : बच्चों के लिए बनाएं सौफ्ट टाकोज, खाने का मजा हो जाएगा दोगुना

Monsoon Special Food : अगर आप बच्चों के लिए उनके मनपसंद टाकोज बनाना चाहती है तो आज हम आपको सौफ्ट टाकोज का आसान रेसिपी बताएंगे. सौफ्ट टाकोज आसान के साथ हेल्दी रेसिपी है, जिसे आपके बच्चे चाव से खाएंगे.

 हमें चाहिए

आटा 1/4 कप

मैदा 1 कप

कॉर्नफ्लोर 3 छोटी चम्मच

नमक 1 छोटी चम्मच

बेकिंग पाउडर चुटकी भर

चिली फ्लेक्स 1 छोटी चम्मच

ऑरेगैनो 1 छोटी चम्मच और आटा गूँथने के लिए दूध

फूलगोभी 1

तेल 2 छोटी चम्मच

पिसी काली मिर्च 1 छोटी चम्मच

मक्के का आटा 2 छोटी चम्मच

नमक 1 छोटी चम्मच

बटर 2 छोटी चम्मच

नींबू का रस 3 छोटी चम्मच और हरा धनिया.

बनाने का तरीका

बाउल में आटा, मैदा, कॉर्नफ्लोर, नमक, बेकिंग पाउडर, चिली फ्लेक्स, ओरेगैनो डालकर थोड़ा-थोड़ा दूध डालकर परांठे जैसा आटा गूंथकर बीस मिनट के लिए ढक कर अलग रखें. जैसे ही बीस मिनट हो जाये, आटे की बराबर लोई बना लें और बेलकर तवे पर ही दोनों तरफ से अच्छे से सेक लें.

फूलगोभी के छोटे-छोटे फूल अलग-अलग करके गरम पानी में थोड़ा सा नमक डालकर गोभी डालकर साफ करें. माइक्रोवेव प्रूफ बाउल में फूलगोभी और थोड़ा सा पानी डालकर हाई पॉवर में 2 मिनट के लिए गोभी को ब्लांच करें.

फूलगोभी को बाउल में निकालकर तेल, पिसी काली मिर्च, मक्के का आटा और नमक डालकर अच्छे से मिला लें, फूलगोभी को बेकिंग ट्रे में फैला कर 180℃ पर ब्राउन होने तक बेक करें.

टाकोज में स्प्रेड करने के लिए क्रीम-

बंधा हुआ दही 1 कप, पनीर क्रम्बल किया हुआ 1/2 कप,  बारीक कटी हुई पत्तागोभी 2 छोटी चम्मच, हरी शिमला मिर्च बारीक कटी हुई 2 छोटी चम्मच, गाजर 1 किसा हुआ, लहसुन पाउडर 1/2 छोटी चम्मच, पेपरिका मिर्च 1 छोटी चम्मच, नमक 1/2 छोटी चम्मच और बारीक कटा हरा धनिया 2 छोटी चम्मच.

क्रीम की विधि-

दही और पनीर को अच्छे से मिलाकर फेंट कर एक क्रीम तैयार कर लें. ( चाहें तो मिक्सी जार में डालकर फेंट सकते है )  तैयार क्रीम में कटी पत्तागोभी, शिमला मिर्च, किसी गाजर, लहसुन पाउडर, पेपरिका मिर्च, हरा धनिया और नमक डालकर मिला लें.

सर्व करने की विधि-

तैयार टाकोज रोटी को प्लेट में रखकर बटर स्प्रेड कर इसके बाद रोटी के बीच में तैयार क्रीम लगा दें, बेक्ड की हुए गोभी के थोड़े-थोड़े टुकड़े डालकर ऊपर से नींबू का रस और हरा धनिया डालकर रोल कर लें और सर्व करें.

Love Story : प्रीत का गुलाबी रंग

Love Story : विहान और लता की शादी को कई साल हो गए थे मगर दोनों संतानसुख से विमुख थे. घरपरिवार और रिश्तेदारों से लता को ताने मिलने लगे. विहान और लता ने हर किस्म की इलाज करवाई. आईवीएफ प्रोसेस से भी गुजरे मगर कोई फायदा नहीं हुआ. जब हर दवा नाकामयाब होने लगी तो दोनों ने थकहार कर एक फैसला किया और फिर…

एक बच्चे की चाह में लता ने विहान को कितना गलत समझ लिया था. कैसे उस का विहान पर से भरोसा उठ गया था, वह भी बिना असलियत का आईना देखे. अब क्या करे वह, कहां जाए…

अगले दिन, अगली सुबह लता के लिए अभी भी अमावस की रात समान ही थी. विहान जो उस की जीने की वजह था उसी ने लता को जीतेजागते मौत के मुंह तक पहुंचा दिया. लता के जिस्म का पोरपोर दुख रहा था. वह चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी, बेतहाशा रोना चाहती थी पर उस के तो जैसे आंसू ही सूख गए हों.

पूरी ताकत के साथ लता ने खुद को बेड से उठाया. शौवर के नीचे अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया. न जाने कितनी ही देर पानी की बौछारें उस पर गिरती रहीं पर एक प्रतिशत भी उस के भीतर उठने वाली अग्नि को बुझा ना सकीं.

बड़ी मुश्किल से वो सामान्य दिखने का प्रयास कर रही थी. जैसे ही विहान फैक्टरी के लिए निकला उस के थोड़ी ही देर बाद वह भी कार ले कर निकल गई. आज कार वह खुद ही ड्राइव कर रही थी.

लगभग घंटेभर बाद लता उसी घर के आगे खड़ी थी जहां कल उस की दुनिया वीरान होते लगी थी. वह डोरबैल बजाना चाह रही थी पर उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. उस का दिल इतनी जोर से धड़क रहा था जैसे पसलियां तोड़ कर बाहर आ जाएगा. उस के पांव जैसे उस का साथ छोड़ चुके थे. फिर भी उस ने एक कदम आगे बढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे उस का वह कदम मनों भारी हो गया हो. उस ने डोरबैल बजाने की पूरी कोशिश की पर उस का हाथ ही नहीं उठा.

कौन दरवाजा खोलेगा, कैसे सामना कर पाएगी वह उस औरत का उस बच्चे का.

‘‘नहीं… नहीं… मैं नहीं देख पाऊंगी, उफ यह कैसी दुविधा है.’’

अंत में लता जल्दी से उलटे पांव वापस अपनी कार में आ बैठी. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. कुछ देर बाद उस की रुलाई फूट ही पड़ी. उस ने अपना चेहरा स्टेयरिंग पर टिका दिया.

‘‘उफ, विहान, यह कौन से मोड़ पर खड़ी हूं मैं आज, तुम्हारी वजह से सिर्फ तुम्हारी वजह से, मेरी सांसें घुट रहीं हैं, यह क्या किया तुम ने? ऐसा क्यों किया?’’

कुछ संभली लता तो एक बार फिर उस ने घर के दरवाजे की ओर देखा और एक ठंडी सांस भर कर कार स्टार्ट कर दी.

घर वापस आने पर लता ने अपने कमरे में विहान की अलमारी को बुरी तरह खंगाल डाला. हरेक दराज का 1-1 कोना उस ने बारीकी से छाना. तभी अलमारी के सब से ऊपर वाले खाने के एक कोने में उसे एक वालेट नजर आया. उस ने वालेट को उठा कर अच्छी तरह से देखा तो उसे याद आया कि यह तो वही वालेट है जो विहान के लंदन से छुट्टियों में आने पर मौल में शौपिंग के दौरान लता ने विहान के लिए खरीदा था और पैकिंग करते हुए उस के एक प्यारे से लव नोट के साथ उस के बैग में रख दिया था.

लता ने धीरे से वालेट खोला. उस में उस का लिखा हुआ नोट आज भी रखा हुआ था. लता ने उसे दोबारा खोल कर पढ़ा. नोट में लिखा था, ‘‘सरप्राइज इसे कहते हैं और कभीकभी ऐसे भी दिए जाते हैं, तुम्हारी मैडम लता.’’

विहान तो अकसर मैडम कहता आया था प्यार से लता को और लता को भी उस के मुंह से यह सुनना अच्छा लगता था. पूर्व के वे हंसतेखिलखिलाते पल उस की यादों की पगडंडी से गुजरे तो उस हालत में भी लता के चेहरे पर फीकी सी मुसकान खेल गई.

लता ने फिर वालेट को और खोला तो उस के अंदर कुछ पाउंड्स, एक बिल जो किसी हौस्पिटल का था, 3-4 शौपिंग बिल्स और वालेट के सीक्रेट कंपार्टमैंट में से एक तसवीर मिली जिस ने लता के वजूद को हिला कर रख दिया.

एक तसवीर जिस में विहान एक लड़की के साथ है और लता को पहचानने में एक पल का वक्त नहीं लगा कि यह वही लड़की जो कल विहान के साथ थी. दोनों किसी चर्च के बाहर खड़े थे. वह लड़की आगे खड़ी थी और सफेद गाउन में थी. विहान एकदम उस के पीछे था और उस ने उस लड़की के कंधे पर हाथ रखा हुआ था. अचानक लता ने तसवीर पलटी तो पीछे दोनों के नाम लिखे थे, ‘‘विहान ऐंड तारा.’’

लड़की का नाम तारा था और इसी के साथ एक तारीख लिखी थी और लिखा था, ‘‘वैडिंग डे,’’ पर इस शब्द पर बुरी तरह से पैन चलाया हुआ दिख रहा था.

लता के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया बस आंखों से निरंतर आंसुओं की धारा बहती रही. कुछ देर वह तसवीर को देखती रही फिर उस ने आंसू पोंछे और तसवीर वालेट में वापस रख दी पर इस बार सीक्रेट कंपार्टमैंट में नहीं रखी और वालेट को अलमारी में यथास्थान रख दिया.

‘‘यह कैसी पहेली है? विहान और तारा, क्या दोनों ने लंदन में शादी? नहींनहीं, ये मैं क्या सोचने लग गई पर इस में गलत क्या है. वह तारा का ही बच्चा था और विहान को डैड पुकार रहा था तो ज़ाहिर है कि विहान ही उस का पिता है. उफ, इतना बड़ा धोखा, अगर विहान अपना अलग ही परिवार बसा चुका था तो मु?ा से इस शादी के क्या माने हैं? क्या इसलिए ही वह पिता बनने को इतना आतुर नहीं दिखता क्योंकि संतान सुख से तो केवल मैं वंचित हूं, वह तो पिता होने का सुख भोग ही रहा है.’’

विहान के भोलेभाले से चेहरे के नकाब के पीछे यह घिनौना रूप होगा, यह तो लता सोच भी नहीं सकती थी पर विहान ने ऐसा क्यों किया, बहुत सोचने के बाद भी लता इस सवाल का जवाब नहीं खोज पा रही थी.

तभी लता का मोबाइल बज उठा. उस ने अलमारी बंद की और मोबाइल उठाया. विहान की कॉल थी. उस का उस वक्त बिलकुल दिल नहीं चाह रहा था विहान से बात करने का. उस ने मोबाइल पलंग की साइड टेबल पर रख दिया.

थोड़ी देर बाद मोबाइल फिर बज उठा. इस बार लता ने कुछ पल मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी और विहान की हंसती हुई तसवीर को देखा और कौल अटैंड कर ही ली.

‘‘लता, क्या हुआ, तुम कौल क्यों नहीं पिक कर रही थीं?’’

विहान की आवाज सुन कर लता का दिल जैसे एकदम से पिघल गया हो. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उस की और तारा की वह तसवीर उस की आंखों के आगे घूम गई. वह कुछ कहतेकहते खामोश हो गई.

‘‘लता, क्या हुआ? कुछ बोल नहीं रहीं. तबीयत तो ठीक है?’’ विहान का स्वर अब चिंतित हो उठा था.

‘‘कुछ नहीं विहान, मैं ठीक हूं, हां बोलो, कैसे कौल की?’’ लता ने जैसे समूची ताकत जुटा कर जवाब दिया हो.

‘‘दरअसल, मुझे औफिस से ही मुंबई के लिए निकलना होगा, बहुत जरूरी मीटिंग है, 3-4 दिन लग जाएंगे, सूटकेस पैक कर के यहीं भिजवा देना.’’

लता के होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान फैल गई पर ऊपरी तौर पर उस ने कुछ जाहिर नहीं किया. विहान की जरूरी मीटिंग अब वह समझ रही थी.

‘‘ठीक है विहान,’’ उस ने ठंडे से स्वर में कहा.

‘‘हैं, बस ठीक है, कहां तो इतना शोर मचा देती हो मेरे कहीं जाने पर कि वहां से यह लाना, वह लाना, न हो तो मैं भी साथ ही चलती हूं, तुम फाइलें देखना, मैं तुम्हें देखूंगी और आज यह सूखा सूखा सा ठीक है, क्या बात है भई…’’ विहान ने तो प्यारभरी शिकायतों की झड़ी सी लगा दी थी.

इस वक्त लता बिलकुल कमजोर पड़ कर रोना नहीं चाहती थी पर उस का दिल उस का साथ नहीं दे रहा था. उस ने बहुत मुश्किल से अपनेआप को कुछ संभाला और बोली, ‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, बस जरा सा सिर में दर्द था.’’

‘‘सिरदर्द, बुखार तो नहीं? मांजी और मम्मीपापा भी यहां नहीं, तबीयत ज्यादा खराब हो तो कहो, जाना कैंसल कर दूं?’’

‘‘अरे नहीं, बस सिरदर्द है और कुछ नहीं, मैं सूटकेस भिजवाती हूं, तुम बेफिक्र हो कर जाओ, मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

‘‘चलो, ठीक है फिर,’’ इस के साथ ही उधर से कौल कट गई.

विहान मुंबई चला गया तो रात को खाली बैडरूम लता को चुभने लगा. इस वक्त विहान कहां होगा वह इस की कल्पना भी नहीं करना चाहती थी. उस ने पूरी रात आंखोंआंखों में ही काट दी.

सवेरे उठी तो उस दिन काफी हद तक लता खुद को मानसिक तौर पर तारा से मिलने के लिए तैयार कर चुकी थी. दोपहर होतेहोते लता एक बार फिर उसी घर के आगे खड़ी थी जहां इन दिनों तारा रह रही थी और इस वक्त शायद अंदर विहान भी हो.

लता सधे कदमों से उतरी और धीमे से चलते हुए घर के दरवाजे के सामने पहुंची और डोरबैल बजा दी.

दरवाजा खुलने में लगने वाले कुछ पल भी लता को सदियों समान लग रहे थे. उस ने दोबारा बैल बजानी चाही पर उसी वक्त दरवाजा खुला. सामने वही वृद्ध महिला खड़ी थीं.

‘‘यस, हू आर यू? कौन हो तुम?’’ महिला ने धीरे से पूछा.

‘‘क्या विहानजी यहीं रहते हैं?’’ लता ने कुछ सकुचाते हुए पूछा.

‘‘हाउ डू यू नो विहान? तुम विहान को कैसे जानती हो?’’ महिला अब कुछ परेशान सी नजर आने लगी थी.

लता का दिल तो चाहा अभी उन्हें बता दे कि वह कौन है पर वह शांत ही रही.

‘‘आंटीजी, कल विहानजी का यह पर्स हमारी कैब में छूट गया था,’’ लता ने विहान का वालेट वृद्ध महिला के सामने करते हुए कहा.

महिला कुछ भी न समझने वाली निगाहों से लता को देखती रही.

‘‘दरअसल, आंटी कल विहानजी जिस कैब में आए थे उसे मेरा भाई चलाता है, कल शायद गलती से विहानजी का यह पर्स कैब में ही रह गया. कल मेरे भाई की तबीयत अचानक कुछ खराब हुई तो यहां से सीधा घर ही आ गया और कैब से उतरते समय उस की नजर इस पर्स पर पड़ी तो उस ने इसे उठा कर खोल कर देखा.

अंदर विहानजी का फोटो देख कर वह समझ गया कि उन का पर्स गलती से गिर गया है, उस ने मुझे पता बताया और जिद कि मैं आज ही यह पर्स विहानजी तक पहुंचा दूं. फोटो के पीछे नाम लिखे हुए हैं, उसी से विहानजी का नाम पता चला. आप पर्स देख लीजिए. सब ठीक है न…’’ लता खुद न जान सकी कि वह इतना सब कैसे कह गई.

महिला ने लता के हाथ से वालेट लिया और खोल कर देखा. अंदर विहान और तारा की तसवीर देख कर उन्हें कुछ संतुष्टि सी हुई और उन्होंने लता से अंदर आने के लिए कहा.

लता कुछ झिझकती सी उन के पीछे अंदर चली गई. अंदर पहुंचने पर देखा कि एक बड़ा कमरा है जिस में सामने दीवार पर टीवी स्क्रीन लगी है और एक सोफासैट है और एक कोने में एक टेबलकुरसी रखी थी. एक तरफ परदा था जो उस के पीछे एक और कमरे के होने का एहसास करवा रहा था. इसी बड़े कमरे के एक तरफ झने से हलके हरे रंग के परदे के पीछे से छोटी सी रसोई बनी हुई दिख रही थी.

लता ने चारों तरफ अच्छे से निगाहें घुमा कर देखा पर उसे किसी कोने में विहान और तारा की कोई तसवीर न दिखाई दी.

तभी महिला ने उस की आगे रखी छोटी सी सैंटर टेबल पर पानी का गिलास रखते हुए कहा, ‘‘थैंक यू बेटा, तुमने यह ईमानदारी दिखाई, आजकल तो धोखे का ही टाइम है, किसी से कोई होप नहीं है,’’ यह कहते हुए महिला ने एक गहरी सांस ली फिर लता की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘मेरा नाम शरन है, सौरी, मैं भूल गई, तुम ने क्या नाम बताया बेटा अपना?’’

लता को याद आया कि अभी तक उस ने अपना नाम तो बताया ही नहीं. अत: उस ने जल्दी से कहा, ‘‘रश्मि.’’

लता ने बात आगे बढ़ाने की कोशिश की. उस ने शरन से पूछा, ‘‘आंटी, आप यहां की लगती नहीं, मेरा मतलब है कि आप लोग क्या कहीं भारत के बाहर से…?’’

‘‘लंदन से आए हैं हम लोग,’’ उन्होंने धीमे से जवाब दिया.

इस से पहले कि लता कुछ और पूछती उसे परदे के पीछे वाले कमरे से ग्रैंडमां पुकारते हुए किसी बच्चे की आवाज सुनाई दी. यह शायद उसी बच्चे की आवाज थी जो उस दिन विहान को डैड पुकार रहा था. लता के दिल की धड़कनें तेज हो गईं थीं.

शरन जल्दी अंदर जाना चाह रही थीं कि तभी उन्हें ध्यान आया कि लता उन के सामने बैठी है. वे उठीं और जल्दी से अंदर के कमरे में जाने की कोशिश में लड़खड़ा सी गईं तो लता ने झट से उन्हें सहारा दिया. वे मुसकरा कर रह गईं और उन्होंने लता को बैठने के लिए कहा. वे अंदर गईं और कुछ ही पलों में बाहर आ गईं. लता ने देखा तो उन के हाथ में कुछ नोट थे.

‘‘बेटा, आप का बहुतबहुत थैंक यू, यह बस मेरी तरफ से,’’ उन्होंने लता को वे नोट थमाने चाहे.

‘‘अरे आंटी, यह क्या कर रही है,’’ लता ने उन का हाथ थाम लिया.

तभी अंदर से दोबारा आवाज आई. अब की बार शरन को अंदर जाना ही पड़ा.

लता का दिल चाह रहा था कि अगले ही पल वह भी अंदर पहुंच जाए पर उस के पांव तो जैसे जमीन से जुड़ गए थे. कुछ मिनट बाद शरन बाहर आईं तो लता ने उन से जाने की इजाजत मांगी.

शरन ने एक बार फिर नोट वाला हाथ आगे बढ़ाया तो लता ने न में सिर हिला दिया और तेजी से कमरे के दरवाजे से बाहर चली गई.

घर वापस आई तो उस का सिर फटने को हो रहा था. तेज दर्द उसे बेचैन कर रहा था. सिरदर्द की गोली खा कर उस ने खुद को बैड पर पटक दिया. उसे पता ही नहीं चला कि कब उस की आंखें मुंदती चली गईं.

लता जिस वक्त उठी उस वक्त रात के 9 बज रहे थे. उस ने मोबाइल देखा तो विहान की 3 मिस्ड कौल्स आई थीं. वह उन्हें अनदेखा करती हुई बालकनी में आ खड़ी हुई. ठंडी हवाओं ने उस के चेहरे को सहलाया तो लता ने आंखें बंद कर लीं. कुछ देर वह वहीं खड़ी रही.

वापस अंदर कमरे में आई तो कपड़े बदल कर फिर लेट गई. यह पहेली वह सुल?ा नहीं पा रही थी पर आज उस घर तारा को न पा कर उसे दुख भी बहुत हुआ. उसे उस का शक यकीन में बदलता दिख रहा था. हो सकता था कि आज की तारीख में विहान और तारा एकसाथ ही हों.

यह विहान ने उसे जीवन के किस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है जो वह इस तरह अपने ही पति की जासूसी जैसा काम करने को मजबूर हो गई है. वह बिलकुल उस घर में दोबारा जाना नहीं चाहती थी पर विहान की इस सचाई से परदा कौन उठाएगा? कौन बताएगा उसे कि जिस जाल में वह खुद को फंसा पा रही है आखिर वह किस ने बुना है?

अगली सुबह गरम चाय का घूंट उस के गले से नीचे उतरा तो उसे लगा जैसे उसे उबकाई आ जाएगी. वह बाथरूम की ओर भागी. बाहर आई तो उसे अपनी तबीयत बिलकुल सही महसूस नहीं हो रही थी. जिस्म निढाल हुआ जा रहा था. उस ने न चाहते हुए भी वर्षा को कौल कर दी.

वर्षा ने उसे आराम करने की हिदायत देने के साथ जल्द ही उस के पास पहुंचने की बात की. दोपहर में कबीर के साथ वर्षा लता के पास आई तो लता ने झट से कबीर को गोद में खींच लिया.

‘‘अरे, क्या कर रही हो भाभी, लेटी रहो न और यह क्या हुआ तुम्हें. चेहरा कैसे पीला पड़ा हुआ है. बुखार है क्या?’’ वर्षा लता को देख कर घबरा सी गई.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है बस बहुत कमजोरी महसूस हो रही है, आराम करूंगी तो बिलकुल ठीक हो जाऊंगी.’’

‘‘अच्छा, फिर मुझे क्यों बुलाया, जानती हूं तुम्हें मैं,जब भी तबीयत खराब होती है ऐसी ही बातें करती हो, डाक्टर के पास जाने के नाम से ही तुम्हारी तबीयत आधी ठीक हो जाती है पर आधी या पूरी, तबीयत जैसी भी हो रही हो, डाक्टर को तो दिखाना ही है, चलो उठो, भैया को फोन करती हूं अभी.’’

‘‘नहींनहीं, विहान को फोन मत करना, आज उन की बहुत जरूरी मीटिंग है, मैं चल रही हूं,’’ लता जल्दी से बोली. वह अभी भी विहान से बात करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी.

‘‘उफ, भैया की इतनी फिक्र, थोड़ा खुद पर भी ध्यान दे लो, चलो जल्दी कपड़े बदलो,’’ वर्षा ने पूरे अधिकार से कहा.

उस का ऐसा प्यार देख कर लता फिर रोने को हो आई. वर्षा, मांजी, सब कितना चाहते हैं उसे. इन लोगों से तो वह अलग होने के बारे में सोच भी नहीं सकती है.

लता को सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या होगा जब सब को विहान की असलियत पता लगेगी. सब के सामने तो वह एक आदर्श बेटा, भाई और पति के रूप में दिखाई देता है. ये लोग तो उस के इस कर्म से बिलकुल अनजान हैं.

‘‘अरे, कहां खो गई, आ जाएंगे भैया भी बस 1-2 दिन की बात तो है,’’ वर्षा ने लता को शून्य में गुम होते देख कहा.

डाक्टर के पास से वापस आने पर लता जहां पहले से ज्यादा खामोश हो गई थी वहीं वर्षा के तो जैसे खुशी से पांव ही जमीन पर न थे.

‘‘भाभी, भाभी, भाभी, यह क्या किया तुम ने, न मुझे मांजी को फोन करने दिया, न भैया को, आखिर इस खबर का हम सभी को कितनी बेचैनी से इंतजार था.’’

लता बस खामोशी से वर्षा को देखे जा रही थी.

‘‘कबीर, अब जल्दी से कबीर का भाईबहन आएगा, वाह, कितना मज़ा आएगा कबीर को अब यहां. है न बोलो, बोलो?’’ वर्षा कबीर को गोद में उठा कर बहुत ज्यादा खुश थी.

लता अब तो जैसे बिलकुल ही सोचनेसमझने की हालत में नहीं थी. जिस घड़ी का उसे और विहान को न जाने कब से इंतजार था वह खुशी की खबर देने का वक्त आया भी तो तब जब लता विहान को खुद से अलग मानने लगी थी. आज अगर सब पहले सा होता तो वह और विहान खुशी से पागल हो गए होते.

तभी वर्षा ने विहान को फोन लगा दिया, ‘‘और भैया, कब वापस आ रहे हो… हांहां, भाभी की तबीयत बिलकुल ठीक है, मैं तो बस ऐसे ही मिलने चली आई थी, क्या आप को अभी 3-4 दिन और लग सकते हैं? ठीक है, लो भाभी से बात करो,’’ वर्षा ने मोबाइल लता के कान से सटा दिया.

मजबूरन लता को भी फीकी मुसकराहट के साथ मोबाइल पकड़ना पड़ा.

वर्षा कबीर के साथ खेलतेखेलते बाहर चली गई.

‘‘हां विहान, कैसे हो? हां तबीयत बिलकुल सही है मेरी, हां अब वर्षा रहेगी मेरे पास, जब तक तुम लौट नहीं आते, ओके बाय,’’ लता ने कौल काट दी और मोबाइल ले कर बाहर आ गई.

‘‘हां भाभी, हो गई बात? क्लीनिक से तो तुम ने बताने नहीं दिया तो यहां से फोन लगा दिया मैं ने. अब तो बता दिया, भैया तो खुशी से झूम गए होंगे, बताओ न?’’

‘‘अभी नहीं बताया,’’ लता उसे मोबाइल देती हुई बोली.

‘‘हैं… अच्छा, सामने ही बताओगी, यह भी सही है. अच्छा देखो, यह अमोल के दोस्त की शादी थी, वहां की तसवीरें,’’ कह वर्षा बीती रात के फंक्शन की तसवीरें दिखाने लगी. तभी कबीर रोने लगा तो वर्षा झट से उठ कर उस के पास चली गई.

मोबाइल की गैलरी खुली हुई थी. लता बेखयाली में तसवीरें स्क्रौल करे जा रही थी. अचानक उस का हाथ जैसे एक तसवीर पर जड़ हो कर रह गया. विहान और तारा की तसवीर. यह तो वही तसवीर है पर यह क्या यह तसवीर पूरी थी. तारा के हाथ में किसी और का हाथ था और वही उस का जीवनसाथी था शायद. तसवीर में वह बहुत प्यार से तारा को देख रहा था और जिस तरह विहान तारा के पीछे था उसी तरह एक और लड़का दूसरी तरफ खड़ा था जिस ने दोनों हाथों से एक खूबसूरत सजा हुआ बोर्ड उठा रखा था. बोर्ड पर लिखा था, ‘‘रिचर्ड वेड्स तारा.’’

वर्षा जैसे ही लता के पास आई, लता ने जल्दी से पूछा, ‘‘वर्षा, यह किस का फोटो है? यह विहान किन लोगों के साथ है?’’ लता बेसब्र हो उठी थी.

‘‘ये, ये लोग तो भैया के दोस्त हैं, यह कैविन, यह रिचर्ड और यह तारा. पता है भाभी तुम्हें रिचर्ड और तारा की लव मैरिज है,’’ वर्षा तसवीर देखती हुई बोली.

उस के बाद वह और भी न जाने कितनी बातें करती रह गई पर लता को जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

तो फिर तारा यहां भारत में क्या कर रही है और रिचर्ड कहां है? अगर यह बच्चा रिचर्ड का है तो फिर वह विहान को डैड क्यों कह रहा था?’’

तभी कबीर पापा पापा कहते हुए उन दोनों के पास चला आया.

‘‘अपने पापा को याद कर रहा है,’’ वर्षा हंसती हुई बोली.

‘‘अरे, बस अभी पापा लेने आ जाएंगे हमारे कबीर को,’’ लता प्यार से बोली.

‘‘अरे नहीं,अमोल आज नहीं आएंगे, अब तो जब भैया आएंगे मैं तभी जाऊंगी, तुम्हारी तबीयत सही नहीं है.’’

‘‘वर्षा रानी, मैं बिलकुल ठीक हूं, क्यों जीजाजी के गुस्से का शिकार हमें बनवा रही हो,’’ लता ने वर्षा से चुहल करते हुए कहा, ‘‘वर्षा, यकीन करो, मेरी तबीयत अब बिलकुल ठीक है.’’

‘‘चली जाऊं, भैया आ रहे हैं क्या?’’ वर्षा उसे छेड़ते हुए बोली.

लता ने भी खुल कर हंसी में उस का साथ दिया.

‘‘अच्छा, वर्षा वह तसवीर सैंड करना जरा मुझे, वह विहान के फ्रैंड्स वाली, विहान ने तो अपना यह ग्रुप कभी मुझे दिखाया ही नहीं, लौटने पर खबर लेती हूं तुम्हारे भैया की,’’ लता ने थोड़े से बनावटी गुस्से से कहा.

अगले दिन सवेरे वर्षा चली गई तो लता एक बार फिर तारा के घर पहुंची.

शरन ने दरवाजा खोला तो लता ने सीधा मोबाइल उन के आगे किया.

शरन ने तारा और रिचर्ड की तस्वीर देखी तो बेहद हैरान हुई.

‘‘यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया? कौन हो तुम?’’ शरन का लहज अब गुस्से में बदल गया था.

‘‘अंदर आ जाइए आंटी, यहां दरवाजे पर खड़े हो कर बात करना सही नहीं है,’’ और लता ही शरन को पकड़ कर धीरेधीरे अंदर ले आई. लता ने उन्हें सोफे पर बैठा दिया.

‘‘अब बताइए आंटी, क्या यह तारा का पति है और अगर यह तारा का पति है तो तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है?’’ लता अब बेझिझक हो कर शरन से सवाल कर रही थी.

‘‘तुम कौन होती हो ये सब जाननेपूछने वाली और सब से पहले यह बताओ कि यह फोटो तुम्हारे पास कैसे आया?’’ शरन अभी भी गुस्से में थी.

‘‘मैं विहान की पत्नी हूं, लता,’’ ये कहने के साथ ही लता भी उन के साथ सोफे पर बैठ गई.

शरन की जैसे समस्त हिम्मत जवाब दे गई हो.

‘‘आंटी, बताइए सच क्या है? अपनी खामोशी तोडि़ए और बताइए कि विहान की जिंदगी में ये सब क्या चल रहा है? वह अकेला नहीं है इस जीवन में, उस के साथ बहुतों की धड़कनें बंधी हैं, उन की मां हैं, उन की बहन और मैं उन की पत्नी. बताइए मुझे क्या रिश्ता है तारा और विहान का? क्या तारा आप की बेटी है? तारा का बच्चा विहान को डैड क्यों कहता है? मुझे सारे सवालों के जवाब चाहिए आंटी,’’ लता शरन को देखती हुई बोली.

‘‘हां, तारा मेरी बेटी है,’’ शरन ने गहरी सांस ली और लता को सब बताना शुरू किया.

‘‘विहान जब लंदन आया था तब वह एक अपार्टमैंट में केविन और रिचर्ड के साथ रहता था. रिचर्ड मेरी फ्रैंड का बेटा था और तारा को भी चाहता था. मैं और रिचर्ड के घरवाले तारा और रिचर्ड की शादी करवाने के बारे में भी हम सोचते थे.’’

लता को बताते हुए लंदन का वह अतीत जैसे शरन की आंखों के आगे उतर आया था…

‘‘रीटा, अब जल्द ही तारा और रिचर्ड की मैरिज हो जाए तो अच्छा है. तारा के फादर की डैथ के बाद मैं बहुत अकेली हो गई हूं इसलिए अपनी ये रिस्पौंसिबिलिटी जल्दी पूरा करना चाहती हूं.’’

‘‘रिचर्ड ने तो जबसे तारा को लीना की पार्टी में देखा है तभी से उसे पसंद करने लगा है, अब बस हमें तो मैरिज की डेट फिक्स करनी है.’’

रीटा की बात सुन कर शरन काफी खुश

हों गई.

शाम में रिचर्ड तारा को ले जाने के लिए घर आया. तारा और रिचर्ड का मूवी जाने का प्लान था. उस दिन तारा बहुत सुंदर लग रही थी. दोनों खुशीखुशी घर से गए.

रात को जब तारा वापस आई तो कुछ चुप सी थी. अगले 3-4 दिन रिचर्ड भी घर नहीं आया तो शरन ने तारा से पूछा, ‘‘तारा व्हाट हैपेंड… तुम्हें क्या हुआ है, कुछ दिनों से इतनी उदास क्यों लग रही हो? क्या रिचर्ड से कोई फाइट हुई है?’’

तारा जवाब में खामोश ही रही.

शरन ने दोबारा पूछा तो तारा कुछ अनमनी और रोंआसी सी हो उठी.

‘‘मौम, जिस दिन मैं रिचर्ड के साथ मूवी देखने गई थी उस दिन वह मुझे एक होटल में ले गया था. वहां पर वह मेरे बहुत पास आने की कोशिश कर रहा था. मैं ने मना किया तो बोला कि अगर यहां रहकर भी तुम्हारे थौट्स इतने बैकवर्ड हैं तो मु तुम में कोई इंट्रैस्ट नहीं है, चलो घर चलें.’’

तारा रिचर्ड की बात सुन कर बहुत हर्ट हुई पर फिर भी उसे सम?ाते हुए बोली, ‘‘फौरन में रहने का यह मतलब तो नहीं न कि हम अपनी लिमिट क्रौस कर दें?’’

‘‘तारा, हमारी मैरिज होने वाली है, क्यों दूर कर रही हो खुद को मु?ा से, देखो खुद को आज कितनी ब्यूटीफुल लग रही हो.’’

रिचर्ड तारा के बहुत करीब आ चुका था. उस ने अपने हाथों में उस का चेहरा थाम लिया. तारा पिघलने लगी.

नदी का बांध टूट गया. बहाव क्षणिक था पर इतना तेज कि कुछ ही पलों में अपने साथ बहुत कुछ बहा कर ले गया.

शरन बहुत दुखी हुई पर तारा का उदास चेहरा देख कर उन्होंने अपने चेहरे के भाव बदले और तारा को अपने सीने से लगा कर प्यार से उसे सम?ाने लगी, ‘‘जो हुआ सो हुआ, मैं आज ही रीटा से तुम दोनों की मैरिज की बात करती हूं, अब तुम दोनों की मैरिज में देर नहीं होनी चाहिए. चलो अब अच्छी सी स्माइल दे दो मम्मी को.’’

अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई पर तारा को जल्द ही रिचर्ड की असलियत पता चल गई. वह एक ऐय्याश किस्म का लड़का था. रातों को नशे में लड़खड़ाता हुआ घर पहुंचता था और 1-2 बार तो तारा पर हाथ भी उठा चुका था. तारा उस के इस बिहेवियर से बहुत परेशान हो चुकी थी.

शरन ने रीटा से बात की तो उस ने दो टूक जवाब दे दिया, ‘‘लुक शरन, मुझे तुम से ऐसी होप नहीं थी, तुम्हारे हसबैंड होंगे पुराने विचारों वाले इंडियन पर तुम तो यहीं की हो, यहां ये सब चलता रहता है. एक तो तुम ने बच्चों की मैरिज की इतनी जल्दी मचा दी और अब चाहती हो कि मेरा बेटा हर टाइम तुम्हारी बेटी का सर्वेंट बना रहे. वह क्या कहते हैं तुम्हारे हसबैंड के देश में… हां… जोरू का गुलाम,’’ रीटा व्यंग्यबाण छोड़ती हुई बोली.

‘‘कुछ बातें हर जगह बुरी लगती हैं फिर चाहे वह देश हो या विदेश, अपने बेटे को उस की गलती पर समझने की जगह उस की साइड ले रही हो जबकि तुम ख़ुद भी एक औरत हो,’’ शरन को रीटा से ऐसी उम्मीद नहीं थी.

अगले महीने पता चला कि तारा प्रैगनैंट है. उन्हीं 2-4 दिनों में रिचर्ड ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं. वह घर पर ही किसी लड़की को ले आया और तारा के सामने ही उस लड़की से करीबियां बढ़ाने लगा. तारा ने उस रात उस से बहुत झगड़ा किया पर रिचर्ड उस की कोई बात सुनने को तैयार न था बल्कि वह तो तारा को ही घर से बाहर निकालने पर आमादा हो गया.

तारा ने उसे बताया कि वह मां बनने वाली है तो रिचर्ड ने उस से कहा कि यह बच्चा उस का नहीं है, अगर वह शादी से पहले उस के साथ सो सकती है तो किसी और के साथ भी संबंध रख सकती है, ऐसे में वह यह मानने को बिलकुल तैयार नहीं था कि यह बच्चा उस का है.’’

‘‘आज के टाइम में यह पता लगाना कि यह बच्चा तुम्हारा है या नहीं, कोई मुश्किल बात नहीं है पर अब मैं खुद नहीं चाहूंगी कि मेरे बच्चे के बाप तुम कहलाओ,’’ तारा ने एक तमाचा उस के चेहरे पर जड़ दिया और रातोंरात घर छोड़ दिया. जल्द ही दोनों का तलाक हो गया. तारा शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो चुकी थी. डाक्टरों को कहना पड़ा कि उस का शरीर बच्चे को जन्म देने की ताकत नहीं रखता. पर तारा हर हाल में यह बच्चा चाहती थी पर अपनी कमजोरी के चलते मजबूर थी. उसे 7वें महीने में लेबर पेन उठ गया.

आधी रात का वक्त था. शरन अकेली तारा को संभाल नहीं पा रही थी और इन हालात में शरन कुछ सू?ा भी नहीं रहा था कि तभी रिचर्ड के अपार्टमैंट के 2 दोस्तों का खयाल आया. तारा की शादी में तो विहान उस का भी बहुत अच्छा दोस्त बन गया था.

शरन ने जल्दी से तारा के मोबाइल से विहान को कौल की. उस के बाद सबकुछ बहुत तेजी से हुआ. विहान केविन के साथ तुरंत तारा के घर पहुंचा और फिर हौस्पिटल ले जाने से ले कर और जौन के जन्म के बाद तारा के डिस्चार्ज होने तक वह साथ ही रहा.

शरन और तारा उस की एहसानमंद हो चुकी थी. इन सब के दौरान विहान और तारा की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी. शरन ने महसूस किया कि तारा विहान को पसंद करने लगी है. एक दिन विहान घर आया तो प्यार से जौन के साथ खेलने लगा कि तभी तारा ने पीछे से विहान के कंधे पर हाथ रख दिया.

विहान ने मुड़ कर देखा तो तारा की आंखें कुछ अनकहा सा बयां कर रही थीं. तारा विहान की ओर मुसकराती हुई देख रही थी. दोनों खामोश थे पर विहान तारा की आंखों की भाषा समझ चुका था.

‘‘नहीं तारा, यह नहीं हो सकता, मैं किसी और से प्यार करता हूं,’’ कहने के साथ ही विहान वहां से चला गया.

कुछ पलों को तो तारा का चेहरा मुर?ा गया पर जल्द ही उसे विहान का स्पष्ट होना बहुत भाया. उसे गर्व हो आया विहान पर जो उस ने कभी किसी भी तरह तारा का फायदा नहीं उठाना चाहा. अपनी एकतरफा मुहब्बत के बदले विहान की दूरी से तो अच्छा था कि वह उस के जैसे साफ दिल वाले मानस की सच्ची दोस्त बनी रहे. कल ही विहान से मिल कर बात करूंगी और उसे सारी बात सम?ाऊंगी, इसी सोच के साथ रात गुजरते ही अगली सुबह जैसे ही तारा विहान से मिलने पहुंची तो केविन ने उसे बताया कि वह तो बीती रात ही इंडिया चला गया है.

तारा ने उसे काफी बार कौल की पर विहान से बात न हो सकी. कई दिनों बाद तारा ने विहान को मैसेज किया.

‘‘डियर विहान,

‘‘क्या मुP से इतनी बड़ी गलती हुई कि तुम मुेेेेझे बिना बताए इंडिया चले गए? विहान, उस दिन वह बस मेरे दिल के जज्बात थे जो मेरी आंखों से झलक गए थे पर मेरा भरोसा करो, तुम मेरे लिए बहुत रिस्पैक्टेबल इंसान हो और सिर्फ मेरे लिए ही नहीं सभी के साथ तुम्हारा व्यव्हार इतना अपनापन और प्यार लिए होता है कि कोई भी तुम्हारी जादू भरी पर्सनैलिटी से दूर नहीं हो पाएगा और उन में से मैं भी एक हूं पर अब तुम्हारा प्यार मुझे दोस्ती के रूप में मिल जाए तो अपनेआप को बहुत खुश समझूंगी. बिलीव मी, मैं दोस्ती के खूबसूरत रिश्ते में हमेशा अपनी लिमिट का ध्यान रखूंगी.’’

तारा नहीं जानती थी कि इस वक्त विहान यह मैसेज पढ़ रहा था तो वह लंदन वापस जाने के लिए एअरपोर्ट ही पहुंचा था.

तारा वहां शरन से कुछ छिपा न सकी और उस ने शरन से यह भी कहा कि शायद मेरी बातों से विहान हर्ट हुआ हो और अब वह मुझ से दोस्ती भी न रखे.

शरन ने उसे समझाया कि ऐसा नहीं होगा. विहान बहुत बड़े दिल का मालिक है. वह उसे दोस्त के रूप में जरूर मिलेगा और शरन की बात सच साबित हुई.

विहान और तारा अच्छे दोस्त बन चुके थे. विहान ने तो तारा को यह भी बताया कि वह नहीं जानता कि लता भी उस से बहुत प्यार करती है और जब एअरपोर्ट पर उस ने आई लव यू कहा तो विहान तो बस जवाब में उसे देखता ही रह गया. वह जिंदगी का इतना प्यारा सच ऐसे अपने सामने आने की उम्मीद नहीं रखता था. उस वक्त वह लता को अपने दिल की बात भी नहीं बता सका कि वह भी उसे उतना ही चाहता है.

मगर विहान ने वर्षा को जरूर यह बात बताई तो वर्षा ने उस से कहा कि अरे भैया, मैं तो शुरू से ही जानती थी कि आप दोनों एकदूजे से बहुत प्यार करते हैं बस इजहार करने में मेरी सहेली बाजी मार गई.

‘‘मांजी और अंकलआंटी मान जाएंगे?’’ विहान ने वर्षा से पूछा.

‘‘सब ठीक होगा भैया, आप बस दिल लगा कर वहां पढ़ाई कीजिए. पर कैसे दिल लगाएंगे वह तो अब यहां है,’’ वर्षा ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा वर्षा,अब जब तक वापस नहीं आ जाता लता से जरा कम ही बात करूंगा. अब वापस लौटने पर ही लता के सामने ही बात करूंगा.’’

‘‘इस के लिए बिना हवाईजहाज के हवाहवाई बन कर मत आ जाइएगा.’’

विहान अकसर तारा और शरन को वर्षा की बातें बताता तो दोनों हंसतीहंसती दोहरी हो जातीं.

तारा अकसर विहान से कहती, ‘‘लता इज सच ए लकी गर्ल.’’

देखते ही देखते विहान के वापस जाने का दिन आ गया. विहान ने दोनों से वादा लिया कि कुछ ही दिनों में वर्षा की शादी है और वे शादी में शामिल होने के लिए इंडिया जरूर आएं.’’

तारा ने कहा कि वह जरूर आएगी वर्षा की शादी में भी और विहान की शादी में भी. जातेजाते तारा ने अपना और विहान का एक फोटो भी विहान को दिया पर शरन की तबीयत सही न होने की वजह से वे लोग शादी में शामिल न हो सके.

विहान और लता शादी के बाद बहुत खुश थे पर बीतते वक्त के साथ संतानसुख न पाने का दर्द लता और विहान को मायूस कर देता था.

एक दिन विहान हैरान रह गया जब तारा ने उसे अपने भारत आने के बारे में बताया. विहान ने महसूस किया कि तारा की आवाज में खुशी का कोई सुर न था. तारा ने उस से कहा कि हो सके तो विहान उस के लिए किसी किराए के घर का इंतजाम कर दे.

‘‘किराए का घर क्यों? किसी होटल में क्यों नहीं?’’ विहान कुछ न समझते हुए बोला.

‘‘मैं आने के बाद तुम्हें सब समझा दूंगी,’’ तारा का स्वर अभी भी उदासी लिए था.

एअरपोर्ट पर जौन ने जब उसे डैड कहा तो विहान ने घोर आश्चर्य के साथ तारा की ओर देखा.

‘‘प्लीज, प्लीज विहान, अभी जौन को कुछ मत कहना, वह वही कह रहा है जो मैं ने उसे बताया है,’’ विहान असमंजस में था.

विहान एक साधारण सा घर किराए पर लिया. वह वहीं सब को ले गया. जौन और शरन को घर छोड़ कर विहान ने तारा से कहा कि वह उस के साथ बाहर चले. तारा बिना किसी सवाल के उसी पल उस के साथ बाहर आ गई.

‘‘तारा, यह सब क्या है? तुम ने जौन को मुझे उस के पिता के रूप में दर्शाया हुआ है… तुम ने ऐसा क्यों किया है… जानती हो इस का रिजल्ट कितना खराब होगा, मेरी फैमिली तबाह हो सकती है…’’ विहान कुछ गुस्से से तारा को यह सब कह रहा था.

‘‘जौन को अपना लो विहान, प्लीज जौन को अपना लो, वह बहुत प्यारा और मासूम है, उसे एक फैमिली की जरूरत है, उसे प्यार की जरूरत है,’’ तारा फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘तारा, क्या हुआ है तुम्हें, क्या बात है, बताओ मुझे?’’ विहान बहुत हैरानपरेशान सा हो रहा था.

‘‘मैं मर रही हूं विहान, मुझे कैंसर है, डाक्टरों ने कहा है कि अब ज्यादा से ज्यादा 3 महीने हैं मेरे पास,’’ तारा बिलकुल खोखले स्वर में बोली.

‘‘तारा, क्या कह रही हो? तुम्हें कैंसर… ये सब कब… कैसे?’’ विहान को अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘कुछ दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. हौस्पिटल चैकअप करवाने गई पर बहुत ज्यादा कमजोरी की वजह से मुझे चक्कर आ गया, मैं बेहोश हो गई. होश आया तो मैं हौस्पिटल में ही थी. डाक्टर ने वहीं मेरे कुछ टैस्ट करवाए. अगले कुछ दिनों में रिपोर्ट्स आईं तो पता चला कि मैं कैंसर की गिरफ्त में हूं और अब मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘यह सुन कर जौन का चेहरा मेरी आंखों के आगे घूम गया. मुझे अपनी नहीं उस की दुनिया वीरान होती नजर आ रही थी. मौम इस हालत में नहीं कि वह अब जौन की परवरिश कर सके. जौन जिस की लाइफ अभी शुरू हुई है वह कैसे जिंदगी जीएगा. उस ने बाप के प्यार को तो कभी महसूस ही नहीं किया था और अब मां का प्यार भी उस से दूर होने वाला था.

‘‘मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था. मैं तो जैसे अपनी सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. दिनरात जैसे हवा बन कर उड़ रहे थे और हाथ से वक्त रेत की तरह फिसल रहा था.

‘‘एक दिन जब तुम्हारा फोन आया तो मैं ने तुम्हारी आवाज में बहुत उदासी महसूस की. ख़ुद से ज्यादा तुम लता के लिए दुखी थे.

‘‘तब मुझे लगा कि अगर आप लोग जौन को अपना लो तो मेरे बच्चे को फैमिली और आप की फैमिली को एक बच्चा मिल जाएगा. विहान, बोलो न विहान, मेरे बच्चे को अपना लो, मुझे पता है मैं स्वार्थी हो रही हूं, पर मैं एक मां हूं, इस वक्त जौन से ज्यादा और उस के आगे कुछ नहीं सोच पा रही हूं. प्लीज विहान, मेरी हालत को समझ,’’ तारा रो रो कर बेहाल हुए जा रही थी.

विहान यह सब सुन कर खुद को बहुत अजीब स्थिति में पा रहा था. तारा के लिए वह बहुत दुखी हुआ पर जो वह चाह रही थी वह किसी भी हालात में किसी के लिए भी आसान परिस्थिति नहीं होने वाली थी. तभी जौन अपने नन्हेनन्हे कदमों से चलता हुआ विहान के पास आया और उस की टांगों को पकड़ लिया.

विहान ने उसे धीरे से अपनी गोद में उठा लिया. जौन का मासूम चेहरा उस का दिल पिघला रहा था कि तभी जौन के मुंह से निकला, ‘‘डैड.’’

विहान का मन जैसे भीग गया. उस ने जौन को गले से लगा लिया. यह देख कर तारा को ऐसा लगा जैसे तपती धूप में उसे किसी पेड़ की छाया मिल गई हो.

शरन खिड़की के एक कोने से खड़ी यह सब देख रही थी. आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘लता, विहान को कभी गलत मत सम?ाना, वह तुम से बहुत प्यार करता है, मैं समझती हूं कि इस वक्त विहान की लाइफ में जो कुछ हो रहा है वह एक बीवी होने के नाते तुम्हारे लिए बहुत तकलीफ देने वाला है पर बेटा इसमें विहान की कोई गलती नहीं है,’’ शरन रो रही थी और लता तो जैसे खुद को अपराधी महसूस कर रही थी.

कितना कुछ गलत सोच लिया था उस ने बिना असलियत का आईना देखे. उस का विहान पर से विश्वास कैसे डगमगाया यह सोच कर लता को खुद पर क्रोध आ रहा था. ऐसा लग रहा था उसे कि वह तो माफी मांगने ले काबिल नहीं रही.

तभी विहान का वहां प्रवेश हुआ, ‘‘लता, तुम यहां?’’ विहान हैरानी से भर उठा.

लता तेजी से उस के सीने से लग गई. कुछ देर तक दोनों के बीच सिर्फ निश्चल प्रेम के आंसुओं की धारा का प्रवाह होता रहा फिर लता ने ही कहा, ‘‘आंटी ने मुझे सब बता दिया है. आज कितने ऊपर उठ गए हो मेरी नजरों में मैं बयां नहीं कर सकती हूं. कल तक प्यार करती थी और अब एक महान इंसान को पूजने का दिल चाह रहा है.’’

‘‘लता, मैं तुम्हें कैसे सब बताऊं, बस बात करने का सही मौका तलाश रहा था और सोच रहा था कि न जाने तुम इसे किस तरीके से स्वीकार करोगी.’’

‘‘जो तुम ने किया और आगे भविष्य में जिस तरह से तुम एक मासूम को एक परिवार का प्यार देना चाहते हो तो तुम्हारी इस सोच से अलग मैं सोच सकती हूं क्या? क्या मुझ पर विश्वास नहीं था? एक बार कह कर तो देखते,’’ लता ने रोते हुए ये सब कहा.

‘‘बच्चा गोद लेने पर कभी तुम ने कोई प्रतिक्रिया नहीं…’’

लता ने उस के होंठों पर अपनी उंगली रख दी.

तभी शरन ने पूछा, ‘‘बेटा तारा कहां है?’’

‘‘हौस्पिटल में ही है आंटी, मैं आप को लेने ही आया था.’’

लता ने घबरा कर विहान की ओर सवालिया निगाहों से देखा.

‘‘तारा को मैं अपने डाक्टर दोस्त के भी दिखा रहा था पर वहां से भी उम्मीद नहीं जगी, तारा अभी उसी के हौस्पिटल में है. 3-4 दिन पहले ही उस ने पूरी तरह से तारा की हालत को देख कर जवाब दे दिया था इसलिए मैं तारा के साथ था.’’

यह सब सुन कर शरन के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. लता ने शरन को गले से लगा लिया.

उस दिन सूर्यास्त के वक्त तारा की जिंदगी का दीया भी सदा के लिए बु?ा गया. जौन को लता ने संभाल लिया था.

अगले वर्ष होली पर वर्षा जब सपरिवार अपने मायके आई तो कबीर आते  ही जौन और आयुषी के साथ खेलने में मस्त हो गया.

विहान और लता की बिटिया आयुषी अभी 3 माह की थी. वर्षा ने तो आयुषी को गोद में ले कर खूब प्यार किया.

तभी वैदेहीजी की आवाज सुनाई दी और सभी उस दिशा में देखने लगे.

‘‘जौन, कबीर इधर आओ,तुम लोगों की पिचकारियां भर गई हैं.’’

बच्चे भागते हुए चले गए. वर्षा भी आयुषी को गोद में ले कर वहीं चली गई. वहां सभी थे. वैदेहीजी, विवेक और अरुणाजी और उन के साथ बैठी थी शरन. बच्चों को देख कर सभी उनके साथ खेलने लगे.

तभी विहान ने लता के गालों को गुलाल से रंग दिया. लता ने हंसते हुए वहां से भागने की कोशिश की तो विहान ने उसे अपने करीब खींच लिया.

‘‘थैंक यू लता, जौन को इतने प्यार से अपनाने के लिए, तुम ने आंटी को भी वापस नहीं जाने दिया. थैंक यू सो मच मेरी मैडमजी हर कदम पर मेरा साथ देने के लिए, मेरी हर उलझन को सुलझाने के लिए, तुम्हारे बिना मेरा यह जीवन बिलकुल अधूरा है,’’ विहान भावुक हो उठा था.

लता की भी आंखें भर आई थीं. उस ने भी विहान के सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. उस के गालों पर प्रीत का गुलाबी रंग और अधिक गहरा हो उठा था.

Short Funny Story : श्रीमतीजी का टीवी प्रेम

Short Funny Story : इनदिनों टीवी चैनलों पर अपराधों के प्रति जनता को जागरूक करने वाले धारावाहिकों की बाढ़ सी आई हुई है. लोग भले ही इन धारावाहिकों से कोई सीख लें न लें पर हमारी श्रीमतीजी तो इन कार्यक्रमों की इतनी भक्त हैं कि पूछिए मत.

हमारे औफिस से घर लौटने के दौरान वे टीवी के आगे ही पसरी मिलेंगी. टीवी के आगे बैठने का उन का अंदाज देख हमें बादशाहों का जमाना याद हो आता है.

उस दिन काम के बोझ से हमारा सिर दर्द से फटा जा रहा था. घर में घुसने पर श्रीमतीजी को चाय बनाने को कहा तो तपाक से बोलीं, ‘‘चायवाय तो बाद में पीते रहना, जरा टीवी

देखो और जानो कि आजकल वारदातों को अंजाम देने के लिए अपराधी क्याक्या तरकीबें अपना रहे हैं. भला हो इन चैनल वालों का जिन्होंने हमें घर बैठे ही अपराधों से सचेत करने का बीड़ा उठा रखा है.’’

श्रीमतीजी की अंधश्रद्धा के आगे हम से कुछ कहते न बना. चुपचाप रसोई में जा कर हम ने खुद चाय बनाई.

रात को श्रीमती की चीखें सुन हम हड़बड़ा कर उठ बैठे. देखा तो वे ख्वाब में चिल्ला रही थीं, ‘‘पकड़ो… पकड़ो…’’

हम ने उन्हें झकझोर कर उठाया तो उलटा हम पर ही बरस पड़ीं, ‘‘अच्छाभला सपना देख रही थी. चोर चोरी कर चुपके से निकल रहा था कि मैं ने उसे देख लिया. उसे दबोचने ही वाली थी कि आप ने मुझे उठा दिया. हुंह…’’

अब श्रीमतीजी की इस हालत पर हम रोएं या ठहाके लगाएं.

कल ही की बात है. औफिस के बाद थोड़ा बाहर का काम निबटाते हुए हम थोड़ा

देरी से घर पहुंचे. गृहस्वामिनी ने हमारी आंखों में सीधे झांकते हुए पूछा, ‘‘कहां लगा दी इतनी देर? सचसच बताओ… कहीं बाहर किसी दूसरी से तो नैन नहीं लड़ा रहे? आजकल सीरियलों में दिखाते हैं कि पति ने बाहर भी दूसरी औरत रखी हुई है और घर में ब्याह कर लाई गई बेचारी पत्नी को भनक भी नहीं होती.’’

थोड़ी देर हमारा चेहरा देख कर फिर गंभीरता से बोलीं, ‘‘अगर तुम्हारा भी कोई ऐसा ही प्लान हुआ तो खैर नहीं. आजकल की औरत वह नहीं कि पतिदेव कह कर आगेपीछे मंडराती हुई उस की हर गलती को नजरअंदाज कर दे. मैं शिक्षित हूं और कानून तुम से बेहतर समझती हूं. किसी मुगालते में न रहना.’’

श्रीमतीजी के इस कानूनी ज्ञान के आगे हमारी भला कहां चलने वाली थी. सो चुप्पी साधने में ही भलाई समझी.

अब तो श्रीमतीजी इतनी ज्यादा जागरूक हो गई हैं कि हमारे पास मोबाइल होने के बावजूद गाहेबगाहे औफिस में फोन कर हमारा जायजा लेती रहती हैं.

हम आभारी हैं इंडिया को होशियार करने वाले इन कार्यक्रमों के निर्माताओं का, जिन से और कोई सावधान हो चाहे न हो पर हमारी श्रीमतीजी इतनी होशियार हो गई हैं कि अब

उन्हें लगता है कि समाज की हर शादीशुदा औरत अपने पति का जुल्म सह रही है. पता चला कि उन्होंने नारीमुक्ति संस्था खोलने का मन भी बना लिया था. पर बड़ी मुश्किल से मेरे सालेसाली के समझाने पर अपने उस इरादे को बदला.

श्रीमतीजी के गुप्तचरी कौशल की भी बात निराली है. हर सोमवार घर पर श्रीमतीजी की सखीसहेलियों का जमावड़ा लगता है. सब अपनेअपने पति, सासससुर, ननद वगैरह की रिपोर्ट पेश करती हैं और हमारी श्रीमती अपने टीवीप्रदत्त ज्ञान का सदुपयोग करते हुए उन सब को घर में अपना राज करने का कानून सिखाती हैं. धन्य है टीवी और महाधन्य हैं इस के कार्यक्रम, जिन्होंने आज की नारी को इतना जागरूक कर दिया है कि अपराधों की रोकथाम हो न हो पर पति बेचारे की पुंगी जरूर बज गई है.

Hindi Satire : नाक की लड़ाई

Hindi Satire : इन दिनों मेरा घर पानीपत का मैदान बना हुआ है. जिस ओर देखो उसी ओर एकदूसरे को चुनौती दी जा रही है. मैं ने पत्नी लक्ष्मी से पूछा, ‘‘मेरी लच्छो, इस छोटे से फ्लैट को घर समझो. यहां आराम से रहने में तुम्हें क्या परेशानी है?’’

‘‘मैं तो शांतिपूर्वक रहना चाहती हूं, मगर मांजी ही सुकून से रहना नहीं चाहतीं. जब देखो तब अपनी नाक चढ़ाए घूमती रहती हैं. आर्डर पे आर्डर देती रहती हैं, यह मत करो, वह मत करो, अपनी नाक का कुछ तो खयाल रखो,’’ लक्ष्मी ने अपनी तोता नाक पर टिका चश्मा ठीक करते हुए कहा.

मैं समझ गया कि सासबहू में नाक को ले कर तकरार हो रही है. दोनों जिद्दी स्वभाव की हैं. दोनों में से कोई भी एक अपनी नाक छोटी करना नहीं चाहतीं. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि यदि नाक छोटी हो गई तो क्या फर्क पड़ जाएगा. मगर नहीं, लक्ष्मी बता रही थी कि विवाह पर उस की माताश्री ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘बेटी, हमारा परिवार नाक वालों का है. हमारी नाक समाज में प्रतिष्ठित है. ससुराल में अपनी नाक की प्रतिष्ठा बचाए रखना. मर जाना मगर नाक पर आंच मत आने देना.’

बस, तब से अब तक लक्ष्मी चौबीसों घंटे अपनी उंगली नाक पर रखे रहती है. यहां तक कि वह अपनी नाक पर मक्खी तक बैठने नहीं देती. लक्ष्मी का नासिका मोह मुझे भी लुभा गया. जिस नारी को अपनी नाक से एक बार प्रेम हो जाए उस का पति उसे नाक में कम से कम एक बार लौंग पहना कर हमेशा के लिए उस के नखरों से बच जाता है. मैं ने देखा है, जिस संभ्रांत महिला को जब अपनी सुराहीदार गरदन से स्नेह हो जाता है उस समय उस के पति का दिवाला निकलने में देर नहीं लगती. गले के लिए नेकलेस, हार खरीदने के लिए कईकई तोले स्वर्ण भेंट चढ़ जाता है. नारी मूड की तरह ग्रीवा आभूषणों की डिजाइनें बदलती रहती हैं और हर 1-2 वर्ष में पति की नाक में पत्नी अपनी फरमाइशों की नकेल डालती रहती है.

नाक की लड़ाई घरघर में युगों से चली आ रही है और आगे भी निरंतर चलती रहेगी. कोई भी अपनी नाक को कटते हुए नहीं देख सकता. जिस की नाक एक बार कट जाती है वह दोबारा नहीं जुड़ पाती. संभ्रांत समाज में जिस की नाक कट जाती है उसे ‘नक्टा’ की उपाधि से सुशोभित किया जाता है. जिस से वह बेशर्म की तरह कटे नाक का दर्द, पीड़ा, टीस, सूर्पणखा की तरह ढोता रहता है, आत्मग्लानि के बोझ तले अपनी कटी नाक हथेली में लिए रात की नींद व दिन का चैन खोता रहता है. हर कोई चाहता है कि भैया, चाहो तो मेरी गरदन काट लो, मगर मेहरबानी कर के नाक मत काटिए. नाक में ही मेरे प्राण बसते हैं. बिना नाक के जीना, कोई जीना है, लल्लू.

लोगों ने नाक को प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों   बनाया है, कान को क्यों नहीं बनाया, शोध का विषय है. मैं भी नाक के महत्त्व पर चिंतन कर रहा हूं. क्या सचमुच किसी की नाक देख लेने मात्र से ही उस के चरित्र का

पता लगाया जा सकता है? कहा जाता है कि जिन की नाक समकोणी होती है वे उदार, बुद्धिमान, महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के होते हैं. मैं ने लक्ष्मी की नाक देखी, वह न्यूनकोण नसिका वाली थी.

मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘लच्छो, तुम्हारे स्वभाव का इस में कोई दोष नहीं है. दोष तो तुम्हारी नाक का है, जो तुम्हारे निराशा, द्वेष, भावुकता से भरे स्वभाव को दर्शाती है.’’

‘‘मेरी नाक ही ऐसी है तो इस में मेरा क्या दोष है. नाक का क्या है, नाक तो नाक है, श्वास लेने का माध्यम,’’ कहते हुए लच्छो ने रूमाल से अपनी नाक ढक ली.

इतिहास गवाह है, इसी नाक को समर्पित नथिनों के लिए कितने ही राजेरजवाड़े समर्पित हो गए, मर गए मिट गए. तभी तो विवाह के समय सास अपने होने वाले दामाद की नाक खींचती है. यह रिवाज क्यों बनाया गया है, विचारणीय है. सच, नाक खिंचाई की रस्म बड़ी ही लुभावनी होती है. सास ने इधर दूल्हे के भाल पर तिलक लगाया, उधर दूल्हा अलर्ट हो जाता है, सावधान हो जाता है कि कहीं उस की नाक न खींच ली जाए. नाक खिंचवाना शर्म की बात होती है. सारे रिश्तेदार, सालेसालियां इस रोमांचक रिवाज का आनंद लेते हैं.

नाक की लड़ाई का प्रभाव राजनीति में जबरदस्त रूप से देखा जा सकता है. वे राष्ट्र की प्रगति के लिए नहीं लड़ते बल्कि दोनों पक्षों के बीच नाक की लड़ाई का ही वर्चस्व होता है.

‘‘चुनाव में उन की नाक न कटवा दी तो मैं सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लूंगा,’’  टाइप की हुई भीष्म प्रतिज्ञा लेने की घोषणा होती रहती है.

यही नाक है जिस ने न जाने कितनों के सिर फुड़वा दिए, टांगें तुड़वा दीं. तब लगता है चुनाव समर में नाक ही अपनी अहम भूमिका निभाती है. नाक की लड़ाई राष्ट्रीय स्तर पर होती है. कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक घरघर में लड़ी जाती है. अब इसे समाजवादी लड़ाई भी कहा जा सकता है. जहां नाक है वहां लड़ाई है. चाहे दफ्तर हो या घर पड़ोसियों में इसी नाक की लड़ाई को ले कर सट्टे खेले जाते हैं कि देखें कि किस की नाक बचती है.

2 की लड़ाई में बेचारी तीसरी नाक ही शहीद होती है.

तब लगता है, जहां प्रतिष्ठा है वहीं नाक की लड़ाई लड़ी जाती है. सब से रोमांचक लड़ाई सासबहू के बीच लड़ी जाती है, जो ड्रा नहीं होती. दोनों ही अपनी नाक के लिए दांवपेच के पासे फें कती हैं. पत्नी, पति के कंधे पर कान भरने की बंदूक रख कर चलती है. सास के खिलाफ बरगलाती है. फिल्मी संवाद उगलती है, ‘‘आखिर कब तक अपनी नाक की लाज बचाओगी? बुढ़ापा तो आ ही गया है, सासूमां 2-4 साल में मजबूरी की बैसाखियां ले कर हमारी चौखट पर ही आओगी, अपनी नाक रगड़ने.’’

तब टेप से सास अपनी नाक का नाप लेते हुए

कहती हैं, ‘‘बहू, गलतफहमी में मत रहना. मैं भी लंबी नाक वाली हूं. अपनी शादी में दहेज के साथ लंबी, तीखी नाक साथ ले कर आई हूं. तुम्हारी चौखट पर नाक रगड़ने जाए मेरी जूती. बहू, अब तुम भी नाक चिंतन करना शुरू कर दो. तुम भी सास बन रही हो. जितना तुम नाक का मुद्दा उछालोगी उतना ही घाटे में रहोगी. नाक तो राजा रावण की बहन की भी नहीं रही थी. जिधर देखो उधर जेबकतरों की तरह नाक काटने वाले उस्तरा हाथ में लिए घूम रहे हैं. ध्यान बंटा व नाक कटी. अब तुम ही कहो, बहू, नाक की लड़ाई में भला कौन सुखी रहा है. अपनी नाक वही बचा पाता है, जो दूसरे की नाक का सम्मान करता है. तुम्हारी यही सोच तुम्हें अपनी महफिलों, पड़ोस, क्लब, परिवार में नाक वाली बनाए रखेगी, बहू.’’

लक्ष्मी को सासूमां का नाक प्रवचन व्यावहारिक लगा. प्रसन्न मुद्रा में लच्छो ने कहा, ‘‘मांजी, सच में आप लंबी नाक वाली हैं. आप का तो हक बनता है कि परिवार को नाक की लड़ाई से बचाएं,’’ कहते हुए लक्ष्मी ने वार्डरोब में से लेडीज रूमाल निकाल कर कहा, ‘‘सासूमां, लीजिए रूमाल और पोंछ डालिए अपनी नाक का गुस्सा.’’

मैं ने संतोष की सांस ली. मेरा घर नाक की लड़ाई होने से एक बार फिर बच गया. मगर ऐसा रहेगा कब तक?

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