Hindi Fictional Story: जिस गली जाना नहीं- क्या हुआ था सोम के साथ

Hindi Fictional Story: अवाक खड़ा था सोम. भौचक्का सा. सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो जाएगा उस के साथ. जीवन कितना विचित्र है. सारी उम्र बीत जाती है कुछकुछ सोचते और जीवन के अंत में पता चलता है कि जो सोचा वह तो कहीं था ही नहीं. उसे लग रहा था जिसे जहां छोड़ कर गया था वह वहीं पर खड़ा उस का इंतजार कर रहा होगा. वही सब होगा जैसा तब था जब उस ने यह शहर छोड़ा था.

‘‘कैसे हो सोम, कब आए अमेरिका से, कुछ दिन रहोगे न, अकेले ही आए हो या परिवार भी साथ है?’’

अजय का ठंडा सा व्यवहार उसे कचोट गया था. उस ने तो सोचा था बरसों पुराना मित्र लपक कर गले मिलेगा और उसे छोड़ेगा ही नहीं. रो देगा, उस से पूछेगा वह इतने समय कहां रहा, उसे एक भी पत्र नहीं लिखा, उस के किसी भी फोन का उत्तर नहीं दिया. उस ने उस के लिए कितनाकुछ भेजा था, हर दीवाली, होली पर उपहार और महकदार गुलाल. उस के हर जन्मदिन पर खूबसूरत कार्ड और नए वर्ष पर उज्ज्वल भविष्य के लिए हार्दिक सुखसंदेश. यह सत्य है कि सोम ने कभी उत्तर नहीं दिया क्योंकि कभी समय ही नहीं मिला. मन में यह विश्वास भी था कि जब वापस लौटना ही नहीं है तो क्यों समय भी खराब किया जाए. 10 साल का लंबा अंतराल बीत गया था और आज अचानक वह प्यार की चाह में उसी अजय के सामने खड़ा है जिस के प्यार और स्नेह को सदा उसी ने अनदेखा किया और नकारा.

‘‘आओ न, बैठो,’’ सामने लगे सोफों की तरफ इशारा किया अजय ने, ‘‘त्योहारों के दिन चल रहे हैं न. आजकल हमारा ‘सीजन’ है. दीवाली पर हर कोई अपना घर सजाता है न यथाशक्ति. नए परदे, नया बैडकवर…और नहीं तो नया तौलिया ही सही. बिरजू, साहब के लिए कुछ लाना, ठंडागर्म. क्या लोगे, सोम?’’

‘‘नहीं, मैं बाहर का कुछ भी नहीं लूंगा,’’ सोम ने अजय की लदीफंदी दुकान में नजर दौड़ाई. 10 साल पहले छोटी सी दुकान थी. इसी जगह जब दोनों पढ़ कर निकले थे वह बाहर जाने के लिए हाथपैर मारने लगा और अजय पिता की छोटी सी दुकान को ही बड़ा करने का सपना देखने लगा. बचपन का साथ था, साथसाथ पलेबढ़े थे. स्कूलकालेज में सब साथसाथ किया था. शरारतें, प्रतियोगिताएं, कुश्ती करते हुए मिट्टी में साथसाथ लोटे थे और आज वही मिट्टी उसे बहुत सता रही है जब से अपने देश की मिट्टी पर पैर रखा है. जहां देखता है मिट्टी ही मिट्टी महसूस होती है. कितनी धूल है न यहां.

‘‘तो फिर घर आओ न, सोम. बाहर तो बाहर का ही मिलेगा.’’

अजय अतिव्यस्त था. व्यस्तता का समय तो है ही. दीवाली के दिन ही कितने रह गए हैं. दुकान ग्राहकों से घिरी है. वह उस से बात कर पा रहा है, यही गनीमत है वरना वह स्वयं तो उस से कभी बात तक नहीं कर पाया. 10 साल में कभी बात करने में पहल नहीं की. डौलर का भाव बढ़ता गया था और रुपए का घटता मूल्य उस की मानसिकता को इतना दीनहीन बना गया था मानो आज ही कमा लो सब संसार. कल का क्या पता, आए न आए. मानो आज न कमाया तो समूल जीवन ही रसातल में चला जाएगा. दिनरात का काम उसे कहां से कहां ले आया, आज समझ में आ रहा है. काम का बहाना ऐसा, मानो एक वही है जो संसार में कमा रहा है, बाकी सब निठल्ले हैं जो मात्र जीवन व्यर्थ करने आए हैं. अपनी सोच कितनी बेबुनियाद लग रही है उसे. कैसी पहेली है न हमारा जीवन. जिसे सत्य मान कर उसी पर विश्वास और भरोसा करते रहते हैं वही एक दिन संपूर्ण मिथ्या प्रतीत होता है.

अजय का ध्यान उस से जैसे ही हटा वह चुपचाप दुकान से बाहर चला आया. हफ्ते बाद ही तो दीवाली है. सोम ने सोचा, उस दिन उस के घर जा कर सब से पहले बधाई देगा. क्या तोहफा देगा अजय को. कैसा उपहार जिस में धन न झलके, जिस में ‘भाव’ न हो ‘भाव’ हो. जिस में मूल्य न हो, वह अमूल्य हो.

विचित्र सी मनोस्थिति हो गई है सोम की. एक खालीपन सा भर गया है मन में. ऐसा महसूस हो रहा है जमीन से कट गया है. लावारिस कपास के फूल जैसा जो पूरी तरह हवा के बहाव पर ही निर्भर है, जहां चाहे उसे ले जाए. मां और पिताजी भीपरेशान हैं उस की चुप्पी पर. बारबार उस से पूछ रहे हैं उस की परेशानी आखिर है क्या? क्या बताए वह? कैसे कहे कि खाली हाथ लौट आया है जो कमाया उसे वहीं छोड़ आ गया है अपनी जमीन पर, मात्र इस उम्मीद में कि वह तो उसे अपना ही लेगी.

विदेशी लड़की से शादी कर के वहीं का हो गया था. सोचा था अब पीछे देखने की आखिर जरूरत ही क्या है? जिस गली अब जाना नहीं उधर देखना भी क्यों? उसे याद है एक बार उस की एक चाची ने मीठा सा उलाहना दिया था, ‘मिलते ही नहीं हो, सोम. कभी आते हो तो मिला तो करो.’

‘क्या जरूरत है मिलने की, जब मुझे यहां रहना ही नहीं,’ फोन पर बात कर रहा था इसलिए चाची का चेहरा नहीं देख पाया था. चाची का स्वर सहसा मौन हो गया था उस के उत्तर पर. तब नहीं सोचा था लेकिन आज सोचता है कितना आघात लगा होगा तब चाची को. कुछ पल मौन रहा था उधर, फिर स्वर उभरा था, ‘तुम्हें तो जीवन का फलसफा बड़ी जल्दी समझ में आ गया मेरे बच्चे. हम तो अभी तक मोहममता में फंसे हैं. धागे तोड़ पाना सीख ही नहीं पाए. सदा सुखी रहो, बेटा.’

चाची का रुंधा स्वर बहुत याद आता है उसे. उस के बाद चाची से मिला ही कब. उन की मृत्यु का समाचार मिला था. चाचा से अफसोस के दो बोल बोल कर साथ कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी. इतना तेज भाग रहा था कि रुक कर पीछे देखना भी गवारा नहीं था. मोहममता को नकार रहा था और आज उसी मोह को तरस रहा है. मोहममता जी का जंजाल है मगर एक सीमा तक उस की जरूरत भी तो है. मोह न होता तो उस की चाची उसे सदा खुश रहने का आशीष कभी न देती. उस के उस व्यवहार पर भी इतना मीठा न बोलती. मोह न हो तो मां अपनी संतान के लिए रातभर कभी न जागे और अगर मोह न होता तो आज वह भी अपनी संतान को याद करकर के अवसाद में न जाता. क्या नहीं किया था सोम ने अपने बेटे के लिए.

विदेशी संस्कार नहीं थे, इसलिए कह सकता है अपना खून पिलापिला कर जिसे पाला वही तलाक होते ही मां की उंगली पकड़ चला गया. मुड़ कर देखा भी नहीं निर्मोही ने. उसे जैसे पहचानता ही नहीं था. सहसा उस पल अपना ही चेहरा शीशे में नजर आया था.

‘जिस गली जाना नहीं उस गली की तरफ देखना भी क्यों?’

उस के हर सवाल का जवाब वक्त ने बड़ी तसल्ली के साथ थाली में सजा कर उसे दिया है. सुना था इस जन्म का फल अगले जन्म में मिलता है अगर अगला जन्म होता है तो. सोम ने तो इसी जन्म में सब पा भी लिया. अच्छा ही है इस जन्म का कर्ज इसी जन्म में उतर जाए, पुनर्जन्म होता है, नहीं होता, कौन जाने. अगर होता भी है तो कर्ज का भारी बोझ सिर पर ले कर उस पार भी क्यों जाना. दीवाली और नजदीक आ गई. मात्र 5 दिन रह गए. सोम का अजय से मिलने को बहुत मन होने लगा. मां और बाबूजी उसे बारबार पोते व बहू से बात करवाने को कह रहे हैं पर वह टाल रहा है. अभी तक बता ही नहीं पाया कि वह अध्याय समाप्त हो चुका है.

किसी तरह कुछ दिन चैन से बीत जाएं, फिर उसे अपने मांबाप को रुलाना ही है. कितना अभागा है सोम. अपने जीवन में उस ने किसी को सुख नहीं दिया. न अपनी जन्मदाती को और न ही अपनी संतान को. वह विदेशी परिवेश में पूरी तरह ढल ही नहीं पाया. दो नावों का सवार रहा वह. लाख आगे देखने का दावा करता रहा मगर सत्य यही सामने आया कि अपनी जड़ों से कभी कट नहीं पाया. पत्नी पर पति का अधिकार किसी और के साथ बांट नहीं पाया. वहां के परिवेश में परपुरुष से मिलना अनैतिक नहीं है न, और हमारे घरों में उस ने क्या देखा था चाची और मां एक ही पति को सात जन्म तक पाने के लिए उपवास रखती हैं. कहां सात जन्म तक एक ही पति और कहां एक ही जन्म में 7-7 पुरुषों से मिलना. ‘जिस गली जाना नहीं उस गली की तरफ देखना भी क्यों’ जैसी बात कहने वाला सोम आखिरकार अपनी पत्नी को ले कर अटक गया था. सोचने लगा था, आखिर उस का है क्या, मांबाप उस ने स्वयं छोड़ दिए  और पत्नी उस की हुई नहीं. पैर का रोड़ा बन गया है वह जिसे इधरउधर ठोकर खानी पड़ रही है. बहुत प्रयास किया था उस ने पत्नी को समझाने का.

‘अगर तुम मेरे रंग में नहीं रंग जाते तो मुझ से यह उम्मीद मत करो कि मैं तुम्हारे रंग में रंग जाऊं. सच तो यह है कि तुम एक स्वार्थी इंसान हो. सदा अपना ही चाहा करते हो. अरे जो इंसान अपनी मिट्टी का नहीं हुआ वह पराई मिट्टी का क्या होगा. मुझ से शादी करते समय क्या तुम्हें एहसास नहीं था कि हमारे व तुम्हारे रिवाजों और संस्कृति में जमीनआसमान का अंतर है?’

अंगरेजी में दिया गया पत्नी का उत्तर उसे जगाने को पर्याप्त था. अपने परिवार से बेहद प्यार करने वाला सोम बस यही तो चाहता था कि उस की पत्नी, बस, उसी से प्रेम करे, किसी और से नहीं. इस में उस का स्वार्थ कहां था? प्यार करना और सिर्फ अपनी ही बना कर रखना स्वार्थ है क्या?

स्वार्थ का नया ही अर्थ सामने चला आया था. आज सोचता है सच ही तो है, स्वार्थी ही तो है वह. जो इंसान अपनी जड़ों से कट जाता है उस का यही हाल होना चाहिए. उस की पत्नी कम से कम अपने परिवेश की तो हुई. जो उस ने बचपन से सीखा कम से कम उसे तो निभा रही है और एक वह स्वयं है, धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का. न अपनों से प्यार निभा पाया और न ही पराए ही उस के हुए. जीवन आगे बढ़ गया. उसे लगता था वह सब से आगे बढ़ कर सब को ठेंगा दिखा सकता है. मगर आज ऐसा लग रहा है कि सभी उसी को ठेंगा दिखा रहेहैं. आज हंसी आ रही है उसे स्वयं पर. पुन: उसी स्थान पर चला आया है जहां आज से 10 साल पहले खड़ा था. एक शून्य पसर गया है उस के जीवन में भी और मन में भी.

शाम होते ही दम घुटने लगा, चुपचाप छत पर चला आया. जरा सी ताजी हवा तो मिले. कुछ तो नया भाव जागे जिसे देख पुरानी पीड़ा कम हो. अब जीना तो है उसे, इतना कायर भी नहीं है जो डर जाए. प्रकृति ने कुछ नया तो किया नहीं, मात्र जिस राह पर चला था उसी की मंजिल ही तो दिखाई है. दिल्ली की गाड़ी में बैठा था तो कश्मीर कैसे पहुंचता. वहीं तो पहुंचा है जहां उसे पहुंचना चाहिए था.

छत पर कोने में बने स्टोररूम का दरवाजा खोला सोम ने. उस के अभाव में मांबाबूजी ने कितनाकुछ उस में सहेज रखा है. जिस की जरूरत है, जिस की नहीं है सभी साथसाथ. सफाई करने की सोची सोम ने. अच्छाभला हवादार कमरा बरबाद हो रहा है. शायद सालभर पहले नीचे नई अलमारी बनवाई गई थी जिस से लकड़ी के चौकोर तिकोने, ढेर सारे टुकड़े भी बोरी में पड़े हैं. कैसी विचित्र मनोवृत्ति है न मुनष्य की, सब सहेजने की आदत से कभी छूट ही नहीं पाता. शायद कल काम आएगा और कल का ही पता नहीं होता कि आएगा या नहीं और अगर आएगा तो कैसे आएगा.

4 दिन बीत गए. आज दीवाली है. सोम के ही घर जा पहुंचा अजय. सोम से पहले वही चला आया, सुबहसुबह. उस के बाद दुकान पर भी तो जाना है उसे. चाची ने बताया वह 4 दिन से छत पर बने कमरे को संवारने में लगा है.

‘‘कहां हो, सोम?’’

चौंक उठा था सोम अजय के स्वर पर. उस ने तो सोचा था वही जाएगा अजय के घर सब से पहले.

‘‘क्या कर रहे हो, बाहर तो आओ, भाई?’’

आज भी अजय उस से प्यार करता है, यह सोच आशा की जरा सी किरण फूटी सोम के मन में. कुछ ही सही, ज्यादा न सही.

‘‘कैसे हो, सोम?’’ परदा उठा कर अंदर आया अजय और सोम को अपने हाथ रोकने पड़े. उस दिन जब दुकान पर मिले थे तब इतनी भीड़ थी दोनों के आसपास कि ढंग से मिल नहीं पाए थे.

‘‘क्या कर रहे हो भाई, यह क्या बना रहे हो?’’ पास आ गया अजय. 10 साल का फासला था दोनों के बीच. और यह फासला अजय का पैदा किया हुआ नहीं था. सोम ही जिम्मेदार था इस फासले का. बड़ी तल्लीनता से कुछ बना रहा था सोम जिस पर अजय ने नजर डाली.

‘‘चाची ने बताया, तुम परेशान से रहते हो. वहां सब ठीक तो है न? भाभी, तुम्हारा बेटा…उन्हें साथ क्यों नहीं लाए? मैं तो डर रहा था कहीं वापस ही न जा चुके हो? दुकान पर बहुत काम था.’’

‘‘काम था फिर भी समय निकाला तुम ने. मुझ से हजारगुना अच्छे हो तुम अजय, जो मिलने तो आए.’’

‘‘अरे, कैसी बात कर रहे हो, यार,’’ अजय ने लपक कर गले लगाया तो सहसा पीड़ा का बांध सारे किनारे लांघ गया.

‘‘उस दिन तुम कब चले गए, मुझे पता ही नहीं चला. नाराज हो क्या, सोम? गलती हो गई मेरे भाई. चाची के पास तो आताजाता रहता हूं मैं. तुम्हारी खबर रहती है मुझे यार.’’

अजय की छाती से लगा था सोम और उस की बांहों की जकड़न कुछकुछ समझा रही थी उसे. कुछ अनकहा जो बिना कहे ही उस की समझ में आने लगा. उस की बांहों को सहला रहा था अजय, ‘‘वहां सब ठीक तो है न, तुम खुश तो हो न, भाभी और तुम्हारा बेटा तो सकुशल हैं न?’’

रोने लगा सोम. मानो अभीअभी दोनों रिश्तों का दाहसंस्कार कर के आया हो. सारी वेदना, सारा अवसाद बह गया मित्र की गोद में समा कर. कुछ बताया उसे, बाकी वह स्वयं ही समझ गया.

‘‘सब समाप्त हो गया है, अजय. मैं खाली हाथ लौट आया. वहीं खड़ा हूं जहां आज से 10 साल पहले खड़ा था.’’

अवाक् रह गया अजय, बिलकुल वैसा जैसा 10 साल पहले खड़ा रह गया था तब जब सोम खुशीखुशी उसे हाथ हिलाता हुआ चला गया था. फर्क सिर्फ इतना सा…तब भी उस का भविष्य अनजाना था और अब जब भविष्य एक बार फिर से प्रश्नचिह्न लिए है अपने माथे पर. तब और अब न तब निश्चित थे और न ही आज. हां, तब देश पराया था लेकिन आज अपना है.

जब भविष्य अंधेरा हो तो इंसान मुड़मुड़ कर देखने लगता है कि शायद अतीत में ही कुछ रोशनी हो, उजाला शायद बीते हुए कल में ही हो.

मेज पर लकड़ी के टुकड़े जोड़ कर बहुत सुंदर घर का मौडल बना रहा सोम उसे आखिरी टच दे रहा था, जब सहसा अजय चला आया था उसे सुखद आश्चर्य देने. भीगी आंखों से अजय ने सुंदर घर के नन्हे रूप को निहारा. विषय को बदलना चाहा, आज त्योहार है रोनाधोना क्यों? फीका सा मुसकरा दिया, ‘‘यह घर किस का है? बहुत प्यारा है. ऐसा लग रहा है अभी बोल उठेगा.’’

‘‘तुम्हें पसंद आया?’’

‘‘हां, बचपन में ऐसे घर बनाना मुझे बहुत अच्छा लगता था.’’

‘‘मुझे याद था, इसीलिए तो बनाया है तुम्हारे लिए.’’

झिलमिल आंखों में नन्हे दिए जगमगाने लगे. आस है मन में, अपनों का साथ मिलेगा उसे.

सोम सोचा करता था पीछे मुड़ कर देखना ही क्यों जब वापस आना ही नहीं. जिस गली जाना नहीं उस गली का रास्ता भी क्यों पूछना. नहीं पता था प्रकृति स्वयं वह गली दिखा देती है जिसे हम नकार देते हैं. अपनी गलियां अपनी होती हैं, अजय. इन से मुंह मोड़ा था न मैं ने, आज शर्म आ रही है कि मैं किस अधिकार से चला आया हूं वापस.

आगे बढ़ कर फिर सोम को गले लगा लिया अजय ने. एक थपकी दी, ‘कोई बात नहीं. आगे की सुधि लो. सब अच्छा होगा. हम सब हैं न यहां, देख लेंगे.’

बिना कुछ कहे अजय का आश्वासन सोम के मन तक पहुंच गया. हलका हो गया तनमन. आत्मग्लानि बड़ी तीव्रता से कचोटने लगी. अपने ही भाव याद आने लगे उसे, ‘जिस गली जाना नहीं उधर देखना भी क्यों.

Hindi Fictional Story

Moral Story: सास बिना ससुराल, बहू हुई बेहाल

Moral Story: बचपन में एक लोक गीत ‘यह सास जंगल घास, मुझ को नहीं सुहाती है, जो मेरी लगती अम्मां, सैयां की गलती सासू मुझ को वही सुहाती है…’ सुन कर सोचा शायद सास के जुल्म से तंग आ कर किसी दुखी नारी के दिल से यह आवाज निकली होगी. कालेज में पढ़ने लगी तो किसी सीनियर को कहते हुए सुना, ‘ससुराल से नहीं, सास से डर लगता है.’ यह सब देखसुन कर मुझे तो ‘सास’ नामक प्राणी से ही भय हो गया था. मैं ने घर में ऐलान कर दिया था कि पति चाहे कम कमाने वाला मिले मंजूर है, पर ससुराल में सास नहीं होनी चाहिए. अनुभवी दादी ने मुझे समझाने की कोशिश की कि बेटी सुखी जिंदगी के लिए सास का होना बहुत जरूरी होता है, पर मम्मी ने धीरे से बुदबुदाया कि चल मेरी न सही तेरी मुराद तो पूरी हो जाए.

शायद भगवान ने तरस खा कर मेरी सुन ली. ग्रैजुएशन की पढ़ाई खत्म होते ही मैं सासविहीन ससुराल के लिए खुशीखुशी विदा कर दी गई. विदाई के वक्त सारी सहेलियां मुझे बधाई दे रही थीं. यह कहते हुए कि हाय कितनी लकी है तू जो ससुराल में कोई झमेला ही नहीं, राज करेगी राज.

लेकिन वास्तविक जिंदगी में ऐसी बात नहीं होती है. सास यानी पति की प्यारी और तेजतर्रार मां का होना एक शादीशुदा स्त्री की जिंदगी में बहुत माने रखता है, इस का एहसास सब से पहले मुझे तब हुआ जब मैं ने ससुराल में पहला कदम रखा. न कोई ताना, न कोई गाना, न कोई सवाल और न ही कोई बवाल बस ऐंट्री हो गई मेरी, बिना किसी झटके के. सच पूछो तो कुछ मजा नहीं आया, क्योंकि सास से मिले ‘वैल्कम तानों’ के प्लाट पर ही तो बहुएं भावी जीवन की बिल्डिंग तैयार करती हैं, जिस में सासूमां की शिकायत कर सहानुभूति बटोरना, नयनों से नीर बहा पति को ब्लैकमेल करना, देवरननद को उन की मां के खिलाफ भड़काना, ससुरजी की लाडली बन कर सास को जलाना जैसे कई झरोखे खोल कर ही तो जिंदगी में ताजा हवा के मजे लिए जा सकते हैं.

क्या कहूं और किस से कहूं अपना दुखड़ा. अगले दिन से ही पूरा घर संभालने की जिम्मेदारी अपनेआप मेरे गले पड़ गई. ससुरजी ने चुपचाप चाभियों को गुच्छा थमा दिया मुझे. सखियो, वही चाभियों का गुच्छा, जिसे पाने के लिए टीवी सीरियल्स में बहुओं को न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. कहते हैं न कि मुफ्त में मिली चीज की कोई कद्र नहीं होती. बिलकुल ठीक बात है, मेरे लिए भी उस गुच्छे को कमर में लटका कर इतराने का कोई क्रेज नहीं रहा. आखिर कोई देख कर कुढ़ने वाली भी तो होनी चाहिए.

मन निराशा से भर उठता है कभीकभी तो. गुस्से और झल्लाहट में कभी बेस्वाद खाना बना दिया या किसी को कुछ उलटापुलटा बोल दिया, तो भी कोईर् प्रतिक्रिया या मीनमेख निकालने वाला नहीं है इस घर में. कोई लड़ाईझगड़ा या मनमुटाव नहीं. अब आप सब सोचो किसी भी खेल को खेलने में मजा तो तब आता है जब खेल में द्वंद्वी और प्रतिद्वंद्वी दोनों बराबरी के भागीदार हों. एकतरफा प्रयास किस काम का? अब तो लगने लगा है लाइफ में कोई चुनौती नहीं रही. बस बोरियत ही बोरियत.

एक बार महल्ले की किसी महान नारी को यह कहते सुना था कि टीवी में सासबहू धारावाहिक देखने का अलग ही आकर्षण है. सासबहू के नित्य नए दांवपेच देखना, सीखना और एकदूसरे पर व्यवहार में लाना सचमुच जिंदगी में रोमांच भर देता है. उन की बातों से प्रभावित हो कर मैं ने भी सासबहू वाला धारावाहिक देखना शुरू कर दिया. साजिश का एक से बढ़ कर एक आइडिया देख कर जोश से भर उठी मैं पर हाय री मेरी किस्मत आजमाइश करूं तो किस पर? बहुत गुस्सा आया अपनेआप पर. अपनी दादी की बात याद आने लगी मुझे. उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की थी कि बेटा सास एक ऐसा जीव है, जो बहू के जीवनरूपी स्वाद में चाटमसाले का भूमिका अदा करता है, जिस से पंगे ले कर ही जिंदगी जायकेदार बनाईर् जा सकती है. काश, उस समय दादी की बात मान ली होती तो मजबूरन दिल को यह न गाना पड़ता, ‘न कोई उमंग है, न कोई तरंग है, मेरी जिंदगी है क्या, सासू बिना बेरंग है…’

मायके जाने का भी दिल नहीं करता अब तो. क्या जाऊं, वहां बैठ कर बहनें मम्मी से जहां अपनीअपनी सास का बखान करती रहती हैं, मुझे मजबूरन मूक श्रोता बन कर सब की बातें सुननी पड़ती हैं. बड़ी दीदी बता रही थीं कि कैसे उन की सास ने एक दिन चाय में कम चीनी डालने पर टोका तो दूसरे दिन से किस तरह उन की चाय में डबल चीनी मिला कर उन्होंने उन का शुगर लैवल बढ़ा दिया. लो अब पीते रहो बिना चीनी की चाय जिंदगी भर. मूवी देखने की शौकीन दूसरी बहन ने कहा कि मैं ने तो अपनी सास को सिनेमाघर में मूवी देखने का चसका लगा दिया है. ससुरजी तो जाते नहीं हैं, तो एहसान जताते हुए मुझे ही उन के साथ जाना पड़ता है मूवी देखने. फिर बदले में उस दिन रात को खाना सासू अम्मां ही बनातीं सब के लिए तथा ससुरजी बच्चों का होमवर्क करवाते हैं. यह सब सुन कर मन में एक टीस सी उठती कि काश ऐसा सुनहरा मौका मुझे भी मिला होता.

अब कल की ही बात है. मैं किट्टी पार्टी में गई थी. सारी सहेलियां गपशप में व्यस्त थीं. बात फिल्म, फैशन, स्टाइल से शुरू हो कर अंतत: पति, बच्चों और सास पर आ टिकी. 4 वर्षीय बेटे की मां मीनल ने कहा, ‘‘भई मैं ने तो मम्मीजी (सास) से ऐक्सचेंज कर लिया है बेटों का. अब उन के बेटे को मैं संभालती हूं और मेरे बेटे को मम्मीजी,’’ सुन कर कुढ़ गई मैं.

सुमिता ने मेरी तरफ तिरछी नजर से देखते हुए मुझे सुनाते हुए कहा, ‘‘सुबह पति और ससुरजी के सामने मैं अपनी सास को अदरक और दूध वाली अच्छी चाय बना कर दे देती हूं फिर उन के औफिस जाने के बाद से घर के कई छिटपुट कार्य जैसे सब्जी काटना, आटा गूंधना, चटनी बनाना, बच्चों को संभालने में दिन भर इतना व्यस्त रखती हूं कि उन्हें फुरसत ही नहीं मिलती कि मुझ में कमी निकाल सकें. शाम को फिर सब के साथ गरमगरम चाय और नमकीन पेश कर देती हूं बस.’’

उस के इतना कहते ही एक जोरदार ठहाका लगाया सारी सखियों ने.

बात खास सहेलियों की कि जाए तो पता चला कि सब ने मिल कर व्हाट्सऐप पर एक गु्रप बना रखा है, जिस का नाम है- ‘सासूमां’ जहां सास की खट्टीतीखी बातें और उन्हें परास्त करने के तरीके (मैसेज) एकदूसरे को सैंड किए जाते हैं, जिस से बहुओं के दिल और दिमाग में दिन भर ताजगी बनी रहती है, पर मुझ जैसी नारी को उस गु्रप से भी दूर रखा गया है अछूत की तरह. पूछने पर कहती हैं कि गु्रप का मैंबर बनने के लिए एक अदद सास का होना बहुत जरूरी है. मजबूरन मनमसोस कर रह जाना पड़ा मुझे.

अपनी की गई गलती पर पछता रही हूं मैं, मुझे यह अनुभव हो चुका है कि सास गले की फांस नहीं, बल्कि बहू की सांस होती है. बात समझ में आ गई मुझे कि सासबहू दोनों का चोलीदामन का साथ होता है. दोनों एकदूसरे के बिना अधूरी और अपूर्ण हैं. कभीकभी दिल मचलता है कि काश मेरे पास भी एक तेजतर्रार, दबंग और भड़कीली सी सास होती पर ससुरजी की अवस्था देख कर यह कहने में संकोच हो रहा है कि पापा एक बार फिर घोड़ी पर चढ़ने की हिम्मत क्यों नहीं करते आप?

नई लड़कियों और अविवाहित सखियो, मेरा विचार बदल चुका है. अब दिल की जगह दिमाग से सोचने लगी हूं मैं कि पति चाहे कम कमाने वाला हो पर ससुराल में एक अदद सास जरूर होनी चाहिए. जय सासूमां की.

Moral Story

Short Story in Hindi: मुलाकात का एक घंटा

Short Story in Hindi: एक ही साथ वे दोनों मेरे कमरे में दाखिल हुए. अस्पताल के अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ मैं उस घड़ी को मन ही मन कोस रहा था, जब मेरी मोटर बाइक के सामने अचानक गाय के आ जाने से यह दुर्घटना घटी. अचानक ब्रेक लगाने की कोशिश करते हुए मेरी बाइक फिसल गई और बाएं पैर की हड्डी टूटने के कारण मुझे यहां अस्पताल में भरती होना पड़ा. ‘‘कहिए, अब कैसे हैं?’’ उन में से एक ने मुझ से रुटीन प्रश्न किया.

‘‘अस्पताल में बिस्तर पर लेटा व्यक्ति भला कैसा हो सकता है? समय काटना है तो यहां पड़ा हूं. मैं तो बस यहां से निकलने की प्रतीक्षा कर रहा हूं,’’ मैं ने दर्दभरी हंसी से उन का स्वागत करते हुए कहा. ‘‘आप को भी थोड़ी सावधानी रखनी चाहिए थी. अब देखिए, हो गई न परेशानी. नगरनिगम तो अपनी जिम्मेदारी निभाता नहीं है, आवारा जानवरों को यों ही सड़कों पर दुर्घटना करने के लिए खुला छोड़ देता है. लेकिन हम तो थोड़ी सी सावधानी रख कर खुद को इन मुसीबतों से बचा सकते हैं,’’ दूसरे ने अपनी जिम्मेदारी निभाई.

‘‘अब किसे दोष दें? फिर अनहोनी को भला टाल भी कौन सकता है,’’ पहले ने तुरंत जड़ दिया. लेकिन मेरी बात सुनने की उन दोनों में से किसी के पास भी फुर्सत नहीं थी. अब तक शायद वे अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चुके थे और अब शायद उन के पास मेरे लिए वक्त नहीं था. वे आपस में बतियाने लगे थे.

‘‘और सुनाइए गुप्ताजी, बहुत दिनों में आप से मुलाकात हो रही है. यार, कहां गायब रहते हो? बिजनेस में से थोड़ा समय हम लोगों के लिए भी निकाल लिया करो. पर्सनली नहीं मिल सकते तो कम से कम फोन से तो बात कर ही सकते हो,’’ पहले ने दूसरे से कहा. ‘‘वर्माजी, फोन तो आप भी कर सकते हैं पर जहां तक मुझे याद है, पिछली बार शायद मैं ने ही आप को फोन किया था,’’ पहले की इस बात पर दूसरा भला क्यों चुप रहता.

‘‘हांहां, याद आया, आप को शायद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में कुछ काम था. कह तो दिया था मैं ने सिंह को देख लेने के लिए. फिर क्या आप का काम हो गया था?’’ पहले ने अपनी याददाश्त पर जोर देते हुए कहा. ‘‘हां, वह काम तो खैर हो गया था. उस के बाद यही बात बताने के लिए मैं ने आप को फोन भी किया था, पर आप शायद उस वक्त बाथरूम में थे,’’ गुप्ता ने सफाई दी.

‘‘लैंडलाइन पर किया होगा. बाद में वाइफ शायद बताना भूल गई होंगी. वही तो मैं सोच रहा था कि उस के बाद से आप का कोई फोन ही नहीं आया. पता नहीं आप के काम का क्या हुआ? अब यदि आज यहां नहीं मिलते तो मैं आप को फोन लगाने ही वाला था,’’ पहले ने दरियादिली दिखाते हुए कहा. ‘‘और सुनाइए, घर में सब कैसे हैं? भाभीजी, बच्चे? कभी समय निकाल कर आइए न हमारे यहां. वाइफ भी कह रही थीं कि बहुत दिन हुए भाभीजी से मुलाकात नहीं हुई,’’ अब की बार दूसरे ने पहले को आमंत्रित कर के अपना कर्ज उतारा, वह शायद उस से अपनी घनिष्ठता बढ़ाने को उत्सुक था.

‘‘सब मजे में हैं. सब अपनीअपनी जिंदगी जी रहे हैं. बेटा इंजीनियरिंग के लिए इंदौर चला गया. बिटिया को अपनी पढ़ाई से ही फुर्सत नहीं है. अब बच गए हम दोनों. तो सच बताऊं गुप्ताजी, आजकल काम इतना बढ़ गया है कि समझ ही नहीं आता कि किस तरह समय निकालें. फिर भी हम लोग शीघ्र ही आप के घर आएंगे. इसी बहाने फैमिली गैदरिंग भी हो जाएगी,’’ पहले ने दूसरे के घर आने पर स्वीकृति दे कर मानो उस पर अपना एहसान जताया. ‘‘जरूर, जरूर, हम इंतजार करेंगे आप के आने का, मेरे परिवार को भी अच्छा लगेगा वरना तो अब ऐसा लगने लगा है कि लाइफ में काम के अलावा कुछ बाकी ही नहीं बचा है,’’ दूसरे ने पहले के कथन का समर्थन किया.

मैं चुपचाप उन की बातें सुन रहा था. ‘‘और सुनाइए, तिवारी मिलता है क्या? सुना है इन दिनों उस ने भी बहुत तरक्की कर ली है,’’ पहले ने दूसरे से जानकारी लेनी चाही.

‘‘सुना तो मैं ने भी है लेकिन बहुत दिन हुए, कोई मुलाकात नहीं हुई. फोन पर अवश्य बातें होती हैं. हां, अभी पिछले दिनों स्टेशन पर जोशी मिला था. मैं अपनी यू.एस. वाली कजिन को छोड़ने के लिए वहां गया हुआ था. वह भी उसी ट्रेन से इंदौर जा रहा था. किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर बता रहा था. इन दिनों उस ने अपने वजन को कुछ ज्यादा ही बढ़ा लिया है,’’ दूसरे ने भी अपनी तरफ से बातचीत का सूत्र आगे बढ़ाया. ‘‘आजकल तो मल्टीनेशनल्स का ही जमाना है,’’ पहले ने अपनी ओर से जोड़ते हुए कहा.

‘‘पैकेज भी तो अच्छा दे रही हैं ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां,’’ दूसरे ने अपनी राय व्यक्त की. ‘‘बहुराष्ट्रीय कंपनियां पैसे तो देती हैं लेकिन काम भी खूब डट कर लेती हैं. आदमी चकरघिन्नी बन कर रह जाता है. उन में काम करने वाला आदमी मशीन बन कर रह जाता है. उस की अपनी तो जैसे कोई लाइफ ही नहीं रह जाती. एकएक सेकंड कंपनी के नाम समर्पित हो जाता है. सारे समय, चाहे वह परिवार के साथ आउटिंग पर हो या किसी सोशल फंक्शन में, कंपनी और टार्गेट उस के दिमाग में घूमते रहते हैं.’’

जाने कितनी देर तक वे कितनी और कितने लोगों की बातें करते रहे. अभी वे जाने और कितनी देर बातें करते तभी अचानक मुझे उन में से एक की आवाज सुनाई दी. ‘‘अरे, साढ़े 4 हो गए.’’

‘‘इस का मतलब हमें यहां आए 1 घंटे से अधिक का समय हो रहा है,’’ यह दूसरे की आवाज थी. ‘‘अब हमें चलना चाहिए,’’ पहले ने निर्णयात्मक स्वर में कहा.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, घर में वाइफ इंतजार कर रही होंगी,’’ दूसरे ने सहमति जताते हुए कहा. आम सहमति होने के बाद दोनों एक साथ उठे, मुझ से विदा मांगी और दरवाजे की ओर बढ़ गए.

मैं ने भी राहत की सांस ली. अब मेरे कमरे में पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ था. मुझे ऐसा लगा जैसे अब कमरे में उस पोस्टर की कतई आवश्यकता नहीं है जिस के नीचे लिखा था, ‘‘कृपया शांति बनाए रखें.’’

एक और बात, वे एक घंटे बैठे, लेकिन मुझे कतई नहीं लगा कि वे मेरा हालचाल पूछने आए हों. लेकिन दूसरों के साथ दर्द बांटने में जरूर माहिर थे. जातेजाते दर्द बढ़ाते गए. उन की फालतू की बातें सोचसोच कर मैं अब उन के हिस्से का दर्द भी झेल रहा था.

Short Story in Hindi

Hindi Kahani: वे 20 दिन- क्या राजेश से शादी करना चाहती थी रश्मि?

लेखक- किशोर

Hindi Kahani: नेहरू प्लेस से राजीव चौक का करीब आधे घंटे का मैट्रो का सफर कुछ ज्यादा रुहानी हो गया है. अब यह मैट्रो स्टेशन रात को भी सपने में नजर आता है. क्यों नहीं आएगा? यहीं मैं ने उसे पहली बार देखा था. देखा क्या? पहली नजर में उस से प्यार करने लगा. पता नहीं कि यह मेरा प्यार है या महज आकर्षण. पहला दिन, दूसरा दिन और फिर शुरू हो गया आनेजाने का सिलसिला.

स्टेशन पर जब वह नजर आती तो मेरा दिल उछलने लगता. अगर नहीं दिखती तो एकदम उदास हो जाता. पूरे 24 घंटे उस की तसवीर मेरी आंखों के इर्दगिर्द घूमती रहती. एक सवाल मुझे परेशान करता रहता कि क्या उस की किसी और से दोस्ती है? रोजाना यही सोच कर जाता कि आज तो दिल की बात उस से कह ही दूंगा, लेकिन उस के सामने आते ही मेरी घिग्घी बंध जाती. मुझे उस से कभी एकांत में मिलने का मौका ही नहीं मिला.

देखने में तो वह मुझ से बस 2-3 साल ही छोटी लगती. उस पर नीली जींस और लाल टौप खूब फबता. कभीकभी तो वह सलवारकुरते में भी बेहद खूबसूरत नजर आती. उस के बौब कट बाल और कानों में बड़ेबड़े झुमके, काला चश्मा, हलका मेकअप उस की सादगी को बयान करते. मैं उस की इसी सादगी का कायल

हो गया था. मैट्रो में पूरे सफर के दौरान मेरी नजरें उसी के चेहरे पर टिकी रहतीं.

मैं सोचता, ‘कैसी लड़की है? मेरी तरफ देखती तक नहीं,‘ फिर दिल को किसी तरह तसल्ली दे देता. फिर सोचता कि कभी तो उसे तरस आएगा.

दोस्त कहते हैं, ‘लड़कियां तो पहली नजर में ही अपने मजनू को ताड़ जाती हैं.’ मैं भी तो उस का मजनू हूं, फिर क्यों… मैट्रो में मोबाइल की लीड लगा कर उस का गाना सुनना मुझे अखरता रहता. कभीकभी तो वह गाने सुनने के साथसाथ अंगरेजी उपन्यास

भी पढ़ना शुरू कर देती. मैट्रो में राजीव चौक स्टेशन की घोषणा होते ही वह सीट से उठ जाती और तेजी से चल पड़ती. मैं भी भीड़ के साथसाथ उस के पीछे हो लेता. रीगल सिनेमाहौल के आसपास कहीं उस का कार्यालय था.

जब तक वह मेरी आंखों से ओझल नहीं हो जाती, तब तक मैं खड़ा एकटक उसे देखता रहता. बाद में धीरेधीरे मैं भी अपने कार्यालय की ओर चल पड़ता. कार्यालय में काम करने का मन ही नहीं करता. मेरा पूरा ध्यान तो घड़ी की सूई पर टिका रहता. कब 1 बजे और मैं लंच का बहाना बना कर नीचे उतरूं. क्या पता, मार्केट में मुझे कहीं उस के दर्शन हो जाएं. एकाध बार तो वह नजर आई थी, लेकिन तब उस के साथ कार्यालय के कई सहयोगी थे. हफ्ता बीत गया. मेरी बेचैनी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. कितना दब्बू हूं मैं…  लड़का हूं, मुझे तो पहले पहल करनी चाहिए थी. डरता हूं कि कहीं कोई तमाशा खड़ा न हो जाए.

कुछ दिन से तो खानासोना पूरी तरह से हराम हो गया था. जब टिफिन का खाना वापस घर लौटने लगा तो भाभी नाराज होने लगीं. शिकायत मां तक पहुंची. सुबह भी मेरा नाश्ता ढंग से नहीं होता. वजह एक ही थी कि कहीं मैट्रो न छूट जाए.

‘‘छोटू, क्या बात है?’’ बड़े भाई ने पूछा.

मां बोलीं, ‘‘शायद इस की तबीयत खराब होगी. जवान लड़का है. बाजार में खट्टीमीठी चीजें खा लेता होगा.’’

‘‘नहींनहीं सासूजी, राजू बाहर कुछ खाता नहीं है, समझ में नहीं आ रहा है कि इस लड़के को किस बात की जल्दबाजी रहती है. मैं समय पर नाश्ता बना लेती हूं. कल थोड़ी देर क्या हो गई, बरस पड़ा था. पहले तो इस की कभी बोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी. देवरानी आ जाएगी तो दिमाग ठिकाने लगा देगी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘हां, मेरी नजर में मास्टर देवधरजी की बेटी नीता है. इसी साल उस ने 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की है. देखने में गोरीचिट्टी, सुंदर और सुशील है,’’ भैया बोले, ‘‘राजेश से बात तो चलाओ. मुझ से तो वह शरमाता है. मां, तुम ही उस से बात कर के देख लो.’’

रविवार को छुट्टी का दिन था. मैं अपने कमरे में बैठा उन सब लोगों की बातें सुन रहा था. मुझे लगा कि अब तो मां मेरे कमरे में आ ही जाएंगी.

मैं फौरन उठा और अपने 8 साल के भतीजे को आवाज लगाई, ‘‘सोनू, चल, छत पर पतंग उड़ाते हैं.’’

‘‘अच्छा चाचू, आया, लेकिन चाचू मम्मी ने पढ़ने को कहा है.’’

‘‘चल तो सही, मैं भाभी से कह दूंगा.’’

‘‘राजेश सुन,’’ मां ने आवाज दी पर मैं ने मां की आवाज को अनसुना कर दिया. भतीजे को कंधे पर बैठाया और तेज कदमों से छत पर चला गया. पीछे से भाभी की आवाज सुनाई दी, ‘‘राजू, सुन नाश्ता तो कर ले.’’

‘‘बाद में भाभी.’’

इतने में भैया बोले, ‘‘शरमा गया है. लगता है कि उस ने हमारी बातें सुन ली हैं. चलो, इतनी भी जल्दी क्या है? आराम से बात कर लेंगे,’’ भैया यह कह कर बाहर चले गए और मांभाभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गईं.

छत पर जाना तो मेरा बस, एक बहाना था. मैं फिर उस की यादों में खो गया और सोचने लगा, ‘कल तो कुछ भी हो जाए, मैं उस से अवश्य बात करूंगा.’

‘‘चाचूचाचू, कहां ध्यान है आप का. डोर तो ठीक से पकड़ो. हमारी पतंग कट जाएगी.’’

‘‘अच्छाअच्छा, तू ढील तो छोड़,’’ छत पर काफी देर हो गई. भाभी से रहा नहीं गया तो वे नाश्ता ले कर ऊपर छत पर ही आ गईं. भाभी से मेरा बचपन से ही गहरा लगाव था.

बचपन में मुझे नहलानेधुलाने की सारी जिम्मेदारी उन्हीं की होती थी. भाभी से रहा नहीं गया और बोलीं, ‘‘राजेश, नाश्ता कर ले. कब तक भूखा रहेगा? आखिर ऐसी क्या नाराजगी है. अब तो दोपहर के खाने का समय होने वाला है.’’

‘‘हां, भाभी, रख दो. खा लूंगा.’’

‘‘नहींनहीं. पहले खा क्योंकि तब तक मैं जाने वाली नहीं. तेरे भैया ने सुन लिया तो दोनों को डांट पड़ेगी.’’

‘‘क्या बनाया है भाभी?’’

‘‘आलू के परांठे और आम की चटनी है.’’

‘‘अरे वाह,’’ और फिर मैं खाने पर टूट पड़ा.

भाभी मेरे बदले व्यवहार से परेशान थीं, इसलिए वह अकेले में मुझ से बात करने का बहाना तलाश रही थीं, ‘‘अरे, राजू, कब तक भाभी से छिपाता फिरेगा. मैं तुझ से बहुत बड़ी हूं. जिंदगी की समझ मुझे तुझ से ज्यादा है.’’

‘‘नहींनहीं, भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘कहीं तेरा कोई प्यारव्यार का चक्कर तो नहीं है. मुझे बता दे. अब तो घर में तेरी शादी की बातें होने लगी हैं. तुझे कोई लड़की पसंद है तो मुझे बता दे. तेरे भैया को बता दूंगी. वे आधुनिक विचारों के हैं. मान जाएंगे. हां, सासूजी को मैं मना लूंगी. बाकी जैसी तेरी मरजी. मैं चलती हूं दोपहर के खाने का समय हो गया है. तुम दोनों भी जल्दी नीचे

आ जाना और सोनू को स्कूल का होमवर्क करा देना.’’

‘‘ठीक है भाभी, हम दोनों आते हैं.’’

खाना खाने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया. नींद तो कोसों दूर थी. रात के खाने पर मां ने शादी की बात छेड़ने की कोशिश की. मैं बोला, ‘‘इतनी भी जल्दी क्या है?’’

इतने में भाभी बोल पड़ीं, ‘‘ठीक है, मैं राजेश को समझा दूंगी. अभी उसे खाना तो खा लेने दो. सप्ताह में एक दिन तो घर पर रहता है.’’

मैं भतीजे को ले कर अपने कमरे में चला गया. भाभी मेरा कितना खयाल रखती हैं. उन से कोई बात छिपानी नहीं चाहिए. लेकिन पहले उस लड़की से बात तो हो जाए. सोमवार से सोचतेसोचते शुक्रवार बीत गया. इस बीच उस से बात करने का मौका नहीं मिला. अब तो मुझे सोमवार का इंतजार करना पड़ेगा. शनिवाररविवार को तो उस का अवकाश होता है. आज शनिवार था इसलिए मुझे उठने की जल्दी नहीं थी.

सुबह का नाश्ता मैं ने आराम से किया. मैट्रो स्टेशन पहुंचा तो उसे देख कर चौंक पड़ा. वह पीछे वाले कोच की तरफ जा रही थी. आज कोच में कम लोग थे. मैं फौरन उस की बगल वाली सीट पर जा बैठा.

मैं कांपती आवाज में उस से बोल पड़ा, ‘‘मैं राजेश.’’

उस ने पहले मेरे चेहरे की ओर देखा और बोल पड़ी, ‘‘आई एम रश्मि. तुम भी रोजाना राजीव चौक जाते हो. कई बार तुम्हें देखा है. क्या करते हो?’’

‘‘एमबीए किया है मैं ने. एक पीआर कंपनी में नौकरी करता हूं.’’

‘‘मैं भी एक टायर कंपनी में काम करती हूं. वैसे शनिवार को छुट्टी होती है, लेकिन आज औफिस में काम कुछ ज्यादा था इसलिए आना पड़ा.’’

कब राजीव चौक आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अच्छा, चलती हूं.’’

आज पूरे 13 दिन के तनाव व बेचैनी के बाद मुझे राहत मिली. ‘अब तो भाभी को बता ही दूंगा. नहींनहीं,’ आज तो पहली बार बात हुई है. 2-3 बार मिलेगी तो खुल कर बात करने का मौका मिल जाएगा,’ मैं ने मन ही मन सोचा.

सोमवार को वह दिखाई नहीं दी. लगता है कि पहले निकल गई होगी. जब 2-3 दिन ऐसे ही गुजर गए तो मेरी बेचैनी बढ़ने लगी. ’कहां गई होगी? काश, मैं ने उस से मोबाइल नंबर मांग लिया होता.’ सोचसोच कर मैं परेशान हो उठा. शाम को पूरी तरह से निराश था. उम्मीद ही नहीं थी कि रश्मि से मुलाकात हो जाएगी.

रश्मि का चेहरा कुछ थकाथका सा लग रहा था. पास पहुंचा तो बोल पड़ी, ‘‘अरे, राजेश, कैसे हो.’’

‘‘ठीक हूं. क्या बात है 3-4 दिन…’’

‘‘हां, मैं हैदराबाद गई थी. मामाजी का देहांत हो गया था. आज सुबह की फ्लाइट से दिल्ली लौटी हूं.’’

मैट्रो तेज रफ्तार पकड़ चुकी थी. बातचीत में सफर कब कट गया, पता ही नहीं चला. नेहरू प्लेस स्टेशन आते ही वह उतरी और तेज कदमों से आटो ले कर घर चली गई. मैं भी अपने घर चला गया. घर पहुंचा तो भाभी मेरी चालढाल से समझ गईं. ‘‘देवरजी, आज तो चेहरे पर रौनक नजर आ रही है. क्या कोई खुशखबरी है?’’

‘‘नहीं भाभी, आप तो…’’

‘‘चल, चाय बना कर लाती हूं. हाथमुंह धो ले.’’

मां भी आ गईं. मां कुछ पूछें उस से पहले ही मैं कपड़े बदलने का बहाना बना कर अपने कमरे में चला गया. भतीजा भी मेरे पीछेपीछे हो लिया.

‘‘चाचू, 10 रुपए…’’

‘‘क्यों, कुछ लेना है. ठीक है, लेकिन मम्मीपापा को मत बताना.’’

आज दिल बहुत खुश था. सबकुछ अच्छा लग रहा था. भाभी को बताना चाहता था इसलिए किचन में चला गया.

‘‘अरे, देवरजी, किचन में क्यों आ गए.’’

‘‘क्यों, मैं यहां नहीं आ सकता भाभी?‘‘

’’क्यों नहीं. कोई न कोई बात होगी. पहले तो कभी नहीं आया था. तेरे पास हमारे साथ बात करने का तो समय ही नहीं होता. बोल, खाने में क्या बनाऊं तेरे लिए.’’

‘‘पनीर खाने का मन हो रहा है, भाभी.’’

‘‘ठीक है,’’ भाभी ने कहा, ‘‘बाजार से खरीद कर ले आ. मैं बना देती हूं. बहुत

दिन से सोनू भी पनीर खाने की जिद कर रहा था.’’

अचानक मां आ गईं और बोलीं, ‘‘क्या बातचीत हो रही है दोनों देवरभाभी में.’’

‘‘कुछ नहीं मां, मैं भाभी से कह रहा था कि पनीर की सब्जी बना दो.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. ठीक है, पालक भी ले आना. पालकपनीर की सब्जी तेरे भाई को पसंद है.’’

मैं फौरन बाजार की तरफ निकल पड़ा. बाजार क्या पहुंचा? पुराने दोस्तों की टोली मिल गई. मैं चाह कर भी उन से पीछा नहीं छुड़ा पाया. फिर तो मेरी खिंचाई का दौर शुरू हो गया. ’घर में बैठेबैठे क्या करते हो.’ ’शादी के लिए कोई लड़की पसंद की है कि नहीं,’ एकसाथ कई सवालों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया…

’’अरे भाई, अब जाने भी दो. भाभी ने पनीर और पालक के लिए भेजा है. भैया भी आते होंगे. देर हो गई तो मुझे डांट पड़ेगी.’’

‘‘आज तो तुझे इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे बच्चू. बहुत दिन बाद बड़ी मुरगी जाल में फंसी है. नौकरी की पार्टी हमें अभी तक नहीं मिली है.’’

‘‘सब ठीक है अगली बार… पक्का.’’

‘‘रविवार को हम सब इंतजार करेंगे.’’

बाप रे, पीछा छूटा, और कोई पुराना दोस्त मिले इस से पहले घर भागता हूं. सब्जी की दुकान पर पहुंचा तो नीता अपने पापा और छोटी बहन के साथ खड़ी थी. नजरें मिलीं तो शरमा गई और मुंह फेर लिया. उसे इस बात की भनक लग चुकी थी कि मेरे साथ उस के रिश्ते की बात चल रही है. इस से पहले कि उस के पापा की नजर मुझ पर पड़ती, मैं फौरन घर भाग लिया. मैं घर के अंदर कदम रख ही रहा था कि भैया नीता के रिश्ते के बारे में मां से पूछ रहे थे, ‘‘मां, राजू से बात की.’’

‘‘नहीं, अभी नहीं. पहले उस की हां तो हो जाए फिर सभी उन के घर चल पड़ेंगे.’’

मैं ने नीता को बचपन से देखा था. हम दोनों साथसाथ खेलते थे. पिछली बार देखा तो पहचान नहीं पाया. तभी दोस्तों ने बताया कि वह नीता है. अब घर वाले उस के हाथ पीले करने की सोच रहे हैं. मैं आधुनिक और पढ़ीलिखी लड़की को अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं, नीता की तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया था. रश्मि तो पढ़ीलिखी है. अच्छी नौकरी है. घर वालों को जल्दी पसंद आ जाएगी. बस, अब रश्मि का इंतजार है. दोचार दिन में हम दोनों पूरी तरह से घुलमिल गए थे, लेकिन अभी तक इतनी हिम्मत नहीं हुई कि दिल की बात कह सकूं.

सोचता हूं कि जल्दबाजी में कहीं बात बिगड़ न जाए. रश्मि वैसे भी खुले विचारों की युवती थी. खुल कर बात होने लगी. अगले शनिवार को रश्मि ने मेरा घूमने का प्रस्ताव मान लिया. दिन में हम ने दिल्ली दरबार में लंच किया और फिर आटो पकड़ कर इंडिया गेट की तरफ चल पड़े. खूब घूमेफिरे, लेकिन दिल की बात करने का मौका ही नहीं मिला. असल में रश्मि ने ऐसा कोई मौका ही नहीं दिया.

औफिस और हैदराबाद की बातों में ही पूरा दिन निकल गया. घर वापसी में ज्यादा बात नहीं हो पाई. वह थोड़ी परेशान नजर आई. नेहरू प्लेस स्टेशन आते ही वह तेजी से बाहर निकली और मुझे बाय करते हुए चल पड़ी. 1-2 घंटे पहले तो सब ठीक था. अचानक इसे क्या हो गया? कोई समस्या होगी. अगले 2 दिन तक रश्मि नजर नहीं आई. आखिर क्या बात हो गई. किसी ने हमें साथ घूमते देख तो नहीं लिया. मिलने पर ही सारी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी. बुधवार को रश्मि से मुलाकात हो गई.

‘‘क्या हुआ रश्मि?’’

वह बोली, ‘‘पहले आराम से बैठते हैं, फिर बातें करते हैं.’’

उस का चेहरा बुझाबुझा सा लग रहा था. आज ठीक से मेकअप भी नहीं किया. लगता है कि रातभर सोई नहीं होगी. मेरे कई सवालों का उस ने एक उत्तर दिया. ‘‘बहुत जल्दबाजी करते हो,’’ कहते ही वह अचानक गंभीर हो गई.

‘‘राजेश, तुम बहुत अच्छे लड़के हो. अच्छी नौकरी है. दिखने में हैंडसम हो. एक अच्छे दोस्त के नाते तुम्हें एक सलाह देती हूं कि जल्दी ही शादी कर लो.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘मैं सब समझती हूं. शायद तुम्हें पता नहीं कि मैं शादीशुदा हूं और 2 बच्चों की मां हूं. पति आर्मी में हैं. उन की ड्यूटी ज्यादातर सीमा पर रहती है. मैं सासससुर के साथ रहती हूं. मैं दोस्ती तोड़ने को थोड़े कह रही हूं. वह तो चलती ही रहेगी. यह सब अलग बात है. जिंदगी की गाड़ी चलाना अलग बात है.’’

मैं पूरी तरह से जड़वत हो गया. क्या सोचा था? क्या हो गया? एक ही झटके में सब खत्म हो गया. अचानक रश्मि सीट से उठी और तेजी से चल पड़ी. मैं अवाक् रह गया.

उस के जाते ही मैं ने खुद को संभाला. मेरी क्या गलती थी? स्टेशन पर उतरने के बाद मैं धीरेधीरे घर की ओर चल पड़ा. पैर जमीन पर ठीक से नहीं पड़ रहे थे. दरवाजे पर पहुंचा ही था कि भाभी खड़ी थीं. ‘‘अरे राजू, तू आ गया. क्या बात है तेरे चेहरे पर तो पूरे 12 बजे हैं.‘‘

‘‘नहीं, भाभी, ऐसा कुछ नहीं है,’’ अचानक मेरे मुंह से निकल पड़ा, ‘‘भाभी, आप लोग नीता को देखने कब जा रहे हो. भाभी, मुझे नीता पसंद है.’’

भाभी को एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ. उन्होंने उत्साह में भैया को जोर से आवाज दी, ‘‘अजी, सुनते हो…’’

‘‘क्या है, क्यों इतना चिल्ला रही हो?’’ भैया बोले.

‘‘जल्दी से बाजार से 2 किलो अच्छी बरफी तो ले आओ.’’

‘‘आखिर ऐसी क्या बात हो गई. कौन सी खुशी की बात है.’’

‘‘अपने राजू को नीता पसंद आ गई है. वह शादी के लिए मान गया है.’’

मां भी दौड़ीदौड़ी बाहर आ गईं. घर में पूरी तरह से खुशी का माहौल था. भतीजे ने सुना तो वह भी खुशी से पागल हो गया.

‘‘मैं अपने दोस्तों को बताने जा रहा हूं, चाचू. मेरे चाचू की शादी होगी. बहुत मजे आएंगे.’’

Hindi Kahani

Long Hindi Story: वादियों का प्यार

Long Hindi Story: साकेत से विवाह कर के कितनी खुश थी मैं, तभी एक शक की दीवार हमारे बीच आ खड़ी हुई और शिमला की वादियों में पनपा प्यार किन्हीं और वादियों में खोता दिखाई देने लगा.

नैशनल कैडेट कोर यानी एनसीसी की लड़कियों के साथ जब मैं कालका से शिमला जाने के लिए टौय ट्रेन में सवार हुई तो मेरे मन में सहसा पिछली यादों की घटनाएं उमड़ने लगीं.

3 वर्षों पहले ही तो मैं साकेत के साथ शिमला आई थी. तब इस गाड़ी में बैठ कर शिमला पहुंचने तक की बात ही कुछ और थी. जीवन की नई डगर पर अपने मनचाहे मीत के साथ ऐसी सुखद यात्रा का आनंद ही और था.

पहाडि़यां काट कर बनाई गई सुरंगों के अंदर से जब गाड़ी निकलती थी तब कितना मजा आता था. पर अब ये अंधेरी सुरंगें लड़कियों की चीखों से गूंज रही हैं और मैं अपने जीवन की काली व अंधेरी सुरंग से निकल कर जल्द से जल्द रोशनी तलाश करने को बेताब हूं. मेरा जीवन भी तो इन सुरंगों जैसा ही है- काला और अंधकारमय.

तभी किसी लड़की ने पहाड़ी के ऊपर उगे कैक्टस को छूना चाहा तो उस की चीख निकल गई. साथ आई हुई एनसीसी टीचर निर्मला उसे फटकारने लगीं तो मैं अपने वर्तमान में लौटने का प्रयत्न करने लगी.

तभी सूरज बादलों में छिप गया और हरीभरी खाइयां व पहाड़ और भी सुंदर दिखने लगे. सुहाना मौसम लड़कियों का मन जरूर मोह रहा होगा पर मुझे तो एक तीखी चुभन ही दे रहा था क्योंकि इस मौसम को देख कर साकेत के साथ बिताए हुए लमहे मुझे रहरह कर याद आ रहे थे.

सोलन तक पहुंचतेपहुंचते लड़कियां हर स्टेशन पर सामान लेले कर खातीपीती रहीं, लेकिन मुझे मानो भूख ही नहीं थी. निर्मला के बारबार टोकने के बावजूद मैं अपने में ही खोई हुई

थी उन 20 दिनों की याद में जो मैं

ने विवाहित रह कर साकेत के साथ गुजारे थे.

तारा के बाद 103 नंबर की सुरंग पार कर रुकतीचलती हमारी गाड़ी ने शिमला के स्टेशन पर रुक कर सांस ली तो एक बार मैं फिर सिहर उठी. वही स्टेशन था, वही ऊंचीऊंची पहाडि़यां, वही गहरी घाटियां. बस, एक साकेत ही तो नहीं था. बाकी सबकुछ वैसा का वैसा था.

लड़कियों को साथ ले कर शिमला आने का मेरा बिलकुल मन नहीं था, लेकिन प्रिंसिपल ने कहा था, ‘एनसीसी की अध्यापिका के साथ एक अन्य अध्यापिका का होना बहुत जरूरी है. अन्य सभी अध्यापिकाओं की अपनीअपनी घरेलू समस्याएं हैं और तुम उन सब से मुक्त हो, इसलिए तुम्हीं चली जाओ.’

और मुझे निर्मला के साथ लड़कियों के एनसीसी कैंप में भाग लेने के लिए आना पड़ा. पिं्रसिपल बेचारी को क्या पता कि मेरी घरेलू समस्याएं अन्य अध्यापिकाओं से अधिक गूढ़ और गहरी हैं पर खैर…

लड़कियां पूर्व निश्चित स्थान पर पहुंच कर टैंट में अपनेअपने बिस्तर बिछा रही थीं. मैं ने और निर्मला ने

भी दूसरे टैंट में अपने बिस्तर बिछा लिए. खानेपीने के बाद मैं बिस्तर पर

जा लेटी.

थकान न तो लड़कियों को महसूस हो रही थी और न निर्मला को. वह उन सब को ले कर आसपास की सैर को निकल गई तो मैं अधलेटी सी हो कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी.

यद्यपि हम लोग शिमला के बिलकुल बीच में नहीं ठहरे थे और हमारा कैंप भी शिमला की भीड़भाड़ से काफी दूर था फिर भी यहां आ कर मैं एक अव्यक्त बेचैनी महसूस कर रही थी.

मेरा किसी काम को करने का मन नहीं कर रहा था. मैं सिर्फ पत्रिका के पन्ने पलट रही थी, उस में लिखे अक्षर मुझे धुंधले से लग रहे थे. पता नहीं कब उन धुंधले हो रहे अक्षरों में कुछ सजीव आकृतियां आ बैठीं और इस के साथ ही मैं तेजी से अपने जीवन के पन्नों को भी पलटने लगी…

वह दिन कितना गहमागहमी से भरा था. मेरी बड़ी बहन की सगाई होने वाली थी. मेरे होने वाले जीजाजी आज उस को अंगूठी पहनाने वाले थे. सभी तरफ एक उल्लास सा छाया हुआ था. पापा अतिथियों के स्वागतसत्कार के इंतजाम में बेहद व्यस्त थे.

सब अपेक्षित अतिथि आए. उस में मेरे जीजाजी के एक दोस्त भी थे.

जीजाजी ने दीदी के हाथ में अंगूठी पहना दी, उस के बाद खानेपीने का दौर चलता रहा. लेकिन एक बात पर मैं ने ध्यान दिया कि जीजाजी के उस

दोस्त की निगाहें लगातार मुझ पर ही टिकी रहीं.

यदि कोई और होता तो इस हरकत को अशोभनीय कहता, किंतु पता नहीं क्यों उन महाशय की निगाहें मुझे बुरी नहीं लगीं और मुझ में एक अजीब सी मीठी सिहरन भरने लगी. बातचीत में पता चला कि उन का नाम साकेत है और उन का स्वयं का व्यापार है.

सगाई के बाद पिक्चर देखने का कार्यक्रम बना. जीजाजी, दीदी, साकेत और मैं सभी इकट्ठे पिक्चर देखने गए. साकेत ने बातोंबातों में बताया, ‘तुम्हारे जीजाजी हमारे शहर में 5 वर्षों पहले आए थे. हम दोनों का घर पासपास था, इसलिए आपस में कभीकभार बातचीत हो जाती थी पर जब उन का तबादला मेरठ हो गया तो हम लोगों की बिलकुल मुलाकात न

हो पाई.

‘मैं अपने काम से कल मेरठ आया था तो ये अचानक मिल गए और जबरदस्ती यहां घसीट लाए. कहो, है न इत्तफाक? न मैं मेरठ आता, न यहां आता और न आप लोगों से मुलाकात होती,’ कह कर साकेत ठठा कर हंस दिए तो मैं गुदगुदा उठी.

सगाई के दूसरे दिन शाम को सब लोग चले गए, लेकिन पता नहीं साकेत मुझ पर कैसी छाप छोड़ गए कि मैं दीवानी सी हो उठी.

घर में दीदी की शादी की तैयारियां हो रही थीं पर मैं अपने में ही खोई हुई थी. एक महीने बाद ही दीदी की शादी हो गई पर बरात में साकेत नहीं आए. मैं ने बातोंबातों में जीजाजी से साकेत का मोबाइल नंबर ले लिया और शादी की धूमधाम से फुरसत पाते ही

मैसेज किया.

साकेत का रिप्लाई आ गया. व्यापार की व्यस्तता की बात कह कर उन्होंने माफी मांगी थी.

और उस के बाद हम दोनों में मैसेज का सिलसिला चलता रहा. मैं तब बीएड कर चुकी थी और कहीं नौकरी की तलाश में थी, क्योंकि पापा आगे पढ़ाने को राजी नहीं थे. मैसेज के रूप में खाली वक्त गुजारने का बड़ा ही मोहक तरीका मुझे मिल गया था.

साकेत के प्रणयनिवेदन शुरू हो गए थे और मैं भी चाहती थी कि हमारा विवाह हो  जाए पर मम्मीपापा से खुद यह बात कहने में शर्म आती थी. तभी अचानक एक दिन साकेत का मैसेज मेरे मोबाइल पर मेरी अनुपस्थिति में आ गया. मैं मोबाइल घर पर छोड़ मार्केट चली गई, पापा ने मैसेज पढ़ लिया.

मेरे लौटने पर घर का नकशा ही बदला हुआ सा लगा. मम्मीपापा दोनों ही बहुत गुस्से में थे और मेरी इस हरकत की सफाई मांग रहे थे.

लेकिन मैं ने भी उचित अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और अपने दिल की बात पापा को बता दी. पहले तो पापा भुनभुनाते रहे, फिर बोले, ‘उस से कहो कि अगले इतवार को हम से आ कर मिले.’

और जब साकेत अगले इतवार को आए तो पापा ने न जाने क्यों उन्हें जल्दी ही पसंद कर लिया. शायद बदनामी फैलने से पहले ही वे मेरा विवाह कर देना चाहते थे. जब साकेत भी विवाह के लिए राजी हो गए तो पापा ने उसी दिन मिठाई का डब्बा और कुछ रुपए दे कर हमारी बात पक्की कर दी. साकेत इस सारी कार्यवाही में पता नहीं क्यों बहुत चुप से रहे, जाते समय बोले, ‘अब शादी अगले महीने ही तय कर दीजिए. और हां, बरात में हम ज्यादा लोग लाने के हक में नहीं हैं, सिर्फ 5 जने आएंगे. आप किसी तकल्लुफ और फिक्र में

न पड़ें.’

और 1 महीने बाद ही मेरी शादी साकेत से हो गई. सिर्फ 5 लोगों का बरात में आना हम सब के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श था.

किंतु शादी के बाद जब मैं ससुराल पहुंची तो मुंहदिखाई के वक्त एक उड़ता सा व्यंग्य मेरे कानों में पड़ा, ‘भई, समय हो तो साकेत जैसा, पहली भी कम न थी लेकिन यह तो बहुत ही सुंदर मिली है.’

मुझे समझ नहीं आया कि इस का मतलब क्या है? जल्दी ही सास ने आनेजाने वालों को विदा किया तो मैं उलझन में डूबनेउतरने लगी.

कहीं ऐसा तो नहीं कि साकेत ने पहले कोई लड़की पसंद कर के उस से सगाई कर ली हो और फिर तोड़ दी हो या फिर प्यार किसी से किया हो और शादी मुझ से कर ली हो? आखिर हम ने साकेत के बारे में ज्यादा जांचपड़ताल की ही कहां है. जीजाजी भी उस के काफी वक्त बाद मिले थे. कहीं तो कुछ गड़बड़ है. मुझे पता लगाना ही पड़ेगा.

पता नहीं इसी उधेड़बुन में मैं कब तक खोई रही और फिर यह सोच कर शांत हो गई कि जो कुछ भी होगा, साकेत से पूछ लूंगी.

किंतु रात को अकेले होते ही साकेत से जब मैं ने यह बात पूछनी चाही तो साकेत मुझे बाहों में भर कर बोले, ‘देखो, कल रात कालका मेल से शिमला जाने के टिकट ले आया हूं. अब वहां सिर्फ तुम होगी और मैं, ढेरों बातें करेंगे.’ और भी कई प्यारभरी बातें कर मेरे निखरे रूप का काव्यात्मक वर्णन कर के उन्होंने बात को उड़ा दिया.

मैं ने भी उन उन्मादित क्षणों में यह सोच कर विचारों से मुक्ति पा ली कि ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि प्यार किसी और से किया होगा पर विवाह तो मुझ से हो गया है. और मैं थकान से बोझिल साकेत की बांहों में कब सो गई, मुझे पता ही न चला.

दूसरे दिन शिमला जाने की तैयारियां चलती रहीं. तैयारियां करते हुए कई बार वही सवाल मन में उठा लेकिन हर बार कोई न कोई बात ऐसी हो जाती कि मैं साकेत से पूछतेपूछते रह जाती. रात को कालका मेल से रिजर्व कूपे में हम दोनों ही थे. प्यारभरी बातें करतेकरते कब कालका पहुंच गए, हमें पता ही न चला. सुबह 7 बजे टौय ट्रेन से शिमला पहुंचने के लिए उस गाड़ी में जा बैठे.

घुमावदार पटरियों, पहाड़ों और सुरंगों के बीच से होती हुई हमारी गाड़ी बढ़ी जा रही थी और मैं साकेत के हाथ पर हाथ धरे आने वाले कल की सुंदर योजनाएं बना रही थी.

मैं बीचबीच में देखती कि साकेत कुछ खोए हुए से हैं तो उन्हें खाइयों और पहाड़ों पर उगे कैक्टस दिखाती और सुरंग आने पर चीख कर उन के गले लग जाती.

खैर, किसी तरह शिमला भी आ गया. पहाड़ों की हरियाली और कोहरे ने मन मोह लिया था. स्टेशन से निकल कर हम मरीना होटल में ठहरे.

कुछ देर आराम कर के चाय आदि पी कर हम माल रोड की सैर को निकल पड़े.

साकेत सैर करतेकरते इतनी बातें करते कि ऊंची चढ़ाई हमें महसूस ही न होती. माल रोड की चमकदमक देख कर और खाना खा कर हम अपने होटल लौट आए. लौटते हुए काफी रात हो गई थी व पहाड़ों की ऊंचाईनिचाई पर बसे होटलों व घरों की बत्तियां अंधेरे में तारों की झिलमिलाहट का भ्रम पैदा कर रही थीं. दूसरे दिन से घूमनेफिरने का यही क्रम रहने लगा. इधरउधर की बातें करतेकरते हाथों में हाथ दिए हम कभी रिज, कभी माल रोड, कभी लोअर बाजार और कभी लक्कड़ बाजार घूम आते.

दर्शनीय स्थलों की सैर के लिए तो साकेत हमेशा टैक्सी ले लेते. संकरी होती नीचे की खाई देख कर हम सिहर जाते. हर मोड़ काटने से पहले हमें डर लगता पर फिर प्रकृति की इन अजीब छटाओं को देखने में मग्न हो जाते.

इस प्रकार हम ने वाइल्डफ्लावर हौल, मशोबरा, फागू, चैल, कुफरी, नालडेरा, नारकंडा और जाखू की पहाड़ी सभी देख डाले.

हर जगह ढेरों फोटो खिंचवाते. साकेत को फोटोग्राफी का बहुत शौक था. हम ने वहां की स्थानीय पोशाकें पहन कर ढेरों फोटो खिंचवाईं. मशोबरा के संकरे होते जंगल की पगडंडियों पर चलतेचलते साकेत कोई ऐसी बात कह देते कि मैं खिलखिला कर हंस पड़ती पर आसपास के लोगों के देखने पर

हम अचानक अपने में लौट कर चुप

हो जाते.

नारकंडा से हिमालय की चोटियां और ग्लेशियर देखदेख कर प्रकृति के इस सौंदर्य से और उन्मादित हो जाते.

इस प्रकार हर जगह घूम कर और माल रोड से खापी कर हम अपने होटल लौटने तक इतने थक जाते कि दूसरे दिन सूरज उगने पर ही उठते.

इस तरह घूमतेघूमते कब 10 दिन गुजर गए, हमें पता ही न चला. जब हम लौट कर वापस दिल्ली पहुंचे तो शिमला की मस्ती में डूबे हुए थे.

साकेत अब अपनी वर्कशौप जाने लगे थे. मैं भी रोज दिन का काम कराने के लिए रसोई में जाने लगी.

एक दिन चुपचाप मैं अपने कमरे में

खिड़की पर बैठी थी कि साकेत

आए. मैं अभी कमरे में उन के आने का इंतजार ही कर रही थी कि मेरी सासूजी की आवाज आई, ‘साकेत, कल काम पर मत जाना, तुम्हारी तारीख है.’ और साकेत का जवाब भी फुसफुसाता सा आया, ‘हांहां, मुझे पता है पर धीरे बोलो.’

उन लोगों की बातचीत से मुझे कुछ शक सा हुआ. एक बार आगे भी मन में यह बात आई थी लेकिन साकेत ने टाल दिया था. मुझे खुद पर आश्चर्य हुआ, पहले दिन जिस बात को साकेत ने प्यार से टाल दिया था उसे मैं शिमला के मस्त वातावरण में पूछना ही भूल गई थी. खैर, आज जरूर पूछ कर रहूंगी. और जब साकेत कमरे में आए तो मैं ने पूछा, ‘कल किस बात की तारीख है?’

साकेत सहसा भड़क से उठे, फिर घूरते हुए बोले, ‘हर बात में टांग अड़ाने को तुम्हें किस ने कह दिया है? होगी कोई तारीख, व्यापार में ढेरों बातें होती हैं. तुम्हें इन से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. और हां, कान खोल कर सुन लो, आसपड़ोस में भी ज्यादा आनेजाने की जरूरत नहीं. यहां की सब औरतें जाहिल हैं. किसी का बसा घर देख नहीं सकतीं. तुम इन के मुंह मत लगना.’ यह कह कर साकेत बाहर चले गए.

मैं जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गई. एक तो पहली बार डांट पड़ी थी, ऊपर से किसी से मिलनेजुलने की मनाही कर दी गई. मुझे लगा कि दाल में अवश्य ही कुछ काला है. और वह खास बात जानने के लिए मैं एड़ीचोटी का जोर लगाने के लिए तैयार हो गई.

दूसरे दिन सास कहीं कीर्तन में गई थीं और साकेत भी घर पर नहीं थे. काम वाली महरी आई. मैं उस से कुछ पूछने की सोच ही रही थी कि वह बोली, ‘मेमसाहब, आप से पहले वाली मेमसाहब की साहबजी से क्या खटरपटर हो गई थी कि जो वे चली गईं, कुछ पता है आप को?’

यह सुन कर मेरे पैरों तले जमीन खिसकने लगी. कुछ रुक कर वह धीमी आवाज में मुझे समझाती हुई सी बोली, ‘साहब की एक शादी पहले हो चुकी है. अब उस से कुछ मुकदमेबाजी चल रही है तलाक के लिए.’ सुन कर मेरा सिर चकरा गया.

?सगाई और शादी के समय साकेत का खोयाखोया रहना, सगाई के लिए मांबाप तक को न लाना और शादी में सिर्फ

5 आदमियों को बरात में लाना, अब मेरी समझ में आ गया था. पापा खुद सगाई के बाद आ कर घरबार देख गए थे. जा कर बोले थे, ‘भई, अपनी सुनीता का समय बलवान है. अकेला लड़का है, कोई बहनभाई नहीं है और पैसा बहुत है. राज करेगी यह.’

उन को भी तब इस बात का क्या गुमान था कि श्रीमान एक शादी पहले ही रचाए हुए हैं.

जीजाजी भी तब यह कह कर शांत हो गए थे, ‘लड़का मेरा जानादेखा है पर पिछले 5 वर्षों से मेरी इस से मुलाकात नहीं हुई, इसलिए मैं इस से ज्यादा क्या बता सकता हूं.’

इन्हीं विचारों में मैं न जाने कब तक खोई रही और गुस्से में भुनभुनाती रही कि वक्त का पता ही न चला. अपने संजोए महल मुझे धराशायी होते लगे. साकेत से मुझे नफरत सी होने लगी.

क्या इसी को प्यार कहते हैं? प्यार की पुकार लगातेलगाते मुझे कहां तक घसीट लिया और इतनी बड़ी बात मुझ से छिपाई. यदि तलाक मिल जाता तो शादी भी कर लेते पर अभी तो यह कानूनन जुर्म था. तो क्या साकेत इतना गिर गए हैं?

और मैं ने अचानक निश्चय कर लिया कि मैं अभी इसी वक्त अपने मायके चली जाऊंगी. साकेत से मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए. इतना बड़ा धोखा मैं कैसे बरदाश्त कर सकती थी? और मैं दोपहर को ही बिना किसी से कुछ कहेसुने अपने मायके के लिए चल पड़ी. आते समय एक नोट जल्दी में गुस्से में लिख कर अपने तकिए के नीचे छोड़ आई थी :

‘मैं जा रही हूं. वजह तुम खुद जानते हो. मुझे धोखे में रख कर तुम सुख चाहते थे पर यह नामुमकिन है. अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करते तुम को शर्म नहीं आई? क्या मालूम और कितनी लड़कियां ऐसे फांस चुके हो. मुझे तुम से नफरत है. मिलने की कोशिश मत करना.          -सुनीता’

घर आ कर मम्मीपापा को मैं ने यह सब बताया तो उन्होंने सिर धुन लिया. पापा गुस्से में बोले, ‘उस की यह हिम्मत, इतना बड़ा जुर्म और जबान तक न हिलाई. अब मैं भी उसे जेल भिजवा कर रहूंगा.’

मैं यह सब सुन कर जड़ सी हो गई. यद्यपि मैं साकेत को जेल भिजवाना नहीं चाहती थी पर पापा मुकदमा करने पर उतारू थे.

मेरी समझ को तो जैसे लकवा मार गया था और पापा ने कुछ दिनों बाद ही साकेत पर इस जुर्म के लिए मुकदमा ठोंक दिया. मैं भी पापा के हर इशारे पर काम करती रही और साकेत को दूसरा विवाह करने के अपराध में 3 वर्षों की सजा हो गई.

मेरे सासससुर ने साकेत को बचाने के लिए बहुत हाथपैर मारे, पर सब बेकार.

इस फैसले के बाद मैं गुमसुम सी रहने लगी. कोर्ट में आए हुए साकेत की उखड़ीउखड़ी शक्ल याद आती तो मन भर आता, न जाने किन निगाहों से एकदो बार उस ने मुझे देखा कि घर आने पर मैं बेचैन सी रही. न ठीक से खाना खाया गया और न नींद आई.

साकेत के साथ बिताया, हुआ हर पल मुझे याद आता. क्या सोचा था और क्या हो गया.

इन सब उलझनों से मुक्ति पाने के लिए मैं ने स्थानीय माध्यमिक विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली.

दिन गुजरते गए और अब स्कूल की तरफ से ही शिमला आ कर मुझे पिछली यादें पागल बनाए दे रही थीं.

बाहर लड़कियों के खिलखिलाने के स्वर गूंज रहे थे. मैं अचानक वर्तमान में लौट आई. निर्मला जब मेरे करीब आई तो वह हंसहंस कर ऊंचीनीची पहाडि़यों से हो कर आने की और लड़कियों की बातें सुनाती रही और मैं निस्पंद सी ही पड़ी रही.

दूसरे दिन से एनसीसी का काम जोरों से शुरू हो गया. लड़कियां सुबह होते ही चहलपहल शुरू कर देतीं और रात तक चुप न बैठतीं.

एक दिन लड़कियों की जिद पर उन्हें बस में मशोबरा, फागू, कुफरी और नालडेरा वगैरह घुमाने ले जाया गया. हर जगह मैं साकेत की ही याद करती रही, उस के साथ जिया हरपल मुझे पागल बनाए दे रहा था.

हमारे कैंप के दिन पूरे हो गए थे. आखिरी दिन हम लोग लड़कियों को ले कर माल रोड और रिज की सैर को गए.

मैं पुरानी यादों में खोई हुई हर चीज को घूर रही थी कि सामने भीड़ में एक जानापहचाना सा चेहरा दिखा. बिखरे बाल, सूजी आंखें, बढ़ी हुई दाढ़ी पर इस सब के बावजूद वह चेहरा मैं कभी भूल सकती थी भला? मैं जड़ सी हो गई. हां, वह साकेत ही थे. खोए, टूटे और उदास से.

मुझे देख कर देखते ही रहे, फिर बोले, ‘‘क्या मैं ख्वाब देख रहा हूं? तुम और यहां? मैं तो यहां तुम्हारे साथ बिताए हुए क्षणों की याद ताजा करने के लिए आया था पर तुम? खैर, छोड़ो. क्या मेरी बात सुनने के लिए दो घड़ी रुकोगी?’’

मेरी आंखें बरस पड़ने को हो रही थीं. निर्मला से सब लड़कियों का ध्यान रखने को कह कर मैं भीड़ से हट कर किनारे पर आ गई. मुझे लगा साकेत आज बहुतकुछ कहना चाह रहे हैं.

सड़क पार कर साकेत सीढि़यां उतर कर नीचे प्लाजा होटल में जा बैठे, मैं भी चुपचाप उन के पीछे चलती रही.

साकेत बैठते ही बोले, ‘‘सुनीता, तुम मुझ से बगैर कुछ कहेसुने चली गईं. वैसे मुझे तुम को पहले ही सबकुछ बता देना चाहिए था. उस गलती की मैं बहुत बड़ी सजा भुगत चुका हूं. अब यदि मेरे साथ न भी रहना चाहो तो मेरी एक बात जरूर सुन लो कि मेरी शादी मधु से हुई जरूर थी पर पहले दिन ही मधु ने मेरे पैर पकड़ कर कहा था, ‘आप मेरा जीवन बचा सकते हैं. मैं किसी और से प्यार करती हूं और उस के बच्चे की मां बनने वाली हूं. यह बात मैं अपने पिताजी को समझासमझा कर हार गई पर वे नहीं माने. उन्होंने इस शादी तक मुझे एक कमरे में बंद रखा और जबरदस्ती आप के साथ ब्याह दिया.

‘‘‘मैं आप की कुसूरवार हूं. मेरी वजह से आप का जीवन नष्ट हो गया है पर मैं आप के पैर पड़ती हूं कि मेरे कारण अपनी जिंदगी खराब मत कीजिए. आप तलाक के लिए कागजात ले आइए, मैं साइन कर दूंगी और खुद कोर्ट में जा कर सारी बात साफ कर दूंगी. आप और मैं जल्दी ही मुक्त हो जाएंगे.’

‘‘यह कह कर मधु मेरे पैरों में गिर पड़ी. मेरी जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ हुआ था पर उस को जबरदस्ती अपने गले मढ़ कर मैं और बड़ी गलती नहीं करना चाहता था, इसलिए मैं ने जल्दी ही तलाक के लिए अरजी दे दी. मुझे तलाक मिल भी जाता, पर तभी तुम जीवन में आ गईं.’’

‘‘मैं स्वयं चाह कर भी अपनी तरफ से तुम्हें मैसेज नहीं लिख रहा था पर जब तुम्हारा मैसेज आया तो मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी है और मैं अनचाहे ही तुम्हें भावभरे मैसेज भेजता गया.

‘‘फिर तुम्हारे पापा ने जब सगाई करनी चाही तो मैं अपनी बात कहने के लिए इसलिए मुंह नहीं खोल पाया कि कहीं इस बात से बनीबनाई बात बिगड़ न जाए और मैं तुम्हें खो न बैठूं.

‘‘बस, वहीं मुझ से गलती हुई. तुम्हें पा जाने की प्रबल अभिलाषा ने मुझ से यह जुर्म करवाया. शिमला की रंगीनियां कहीं फीकी न पड़ जाएं, इसलिए यहां भी मैं ने तुम्हें कुछ नहीं बताया. उस के बाद मुझे लगा कि यह बात छिपाई जा सकती है और तलाक मिलने पर तुम्हें बता दूंगा पर वह नौबत ही नहीं आई. तुम अचानक कहीं चली गईं और मिलने से भी मना कर गईं.

‘‘जेल की जिंदगी में मैं ने जोजो कष्ट सहे, वे यह सोच कर दोगुने हो जाते थे कि अब तुम्हारा विश्वास कभी प्राप्त न कर सकूंगा और इस विचार के आते ही मैं पागल सा हो जाता था.

‘‘पिछले महीने ही मैं सजा काट कर आया हूं पर घर में मन ही नहीं लगा. तुम्हारे साथ बिताए हर पल दोबारा याद करने के लालच में ही मैं यहां आ गया.’’

और साकेत उमड़ आए आंसुओं को अपनी बांह से पोंछने लगे, फिर झुक कर बोले, ‘‘हाजिर हूं, जो सजा दो, भुगतने को तैयार हूं. पर एक बार, बस, इतना कह दो कि तुम ने मुझे माफ कर दिया.’’

मैं बौराई हुई सी साकेत की बातें सुन रही थी. अब तक सिर्फ श्रोता ही बनी रही. भर आए गले को पानी के गिलास से साफ कर के बोली, ‘‘क्या समझते हो, मैं इस बीच बहुत सुखी रही हूं? मुझे भी तुम्हारी हर याद ने बहुत रुलाया है. बस, दुख था तो यही कि तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाई.

‘‘यदि एक बार, सिर्फ एक बार मुझे अपने बारे में खुल कर बता देते तो यहां तक नौबत ही न आती. पतिपत्नी में जब विश्वास नाम की चीज मर जाती है तब उस की जगह नफरत ले लेती है. इसी वजह से मैं ने तुम्हें मिलने को भी मना कर दिया था पर तुम्हारे बिना रह भी नहीं पाती थी.

‘‘जब तुम्हें सजा हुई तब मेरे दिल पर क्या बीती, तुम्हें क्या बताऊं. 3-4 दिनों तक न खाना खाया और न सोई, पर खैर उठो…जो हुआ, सो हुआ, विश्वास के गिर जाने से जो खाई बन गई थी वह आज इन वादियों में फिर पट गई है. इन वादियों के प्यार को हलका न होने दो.’’

और हम दोनों एकएक कप कौफी पी कर हाथ में हाथ डाले होटल से बाहर आ गए माल रोड की चहलपहल में खो जाने के लिए, एकदूसरे की जिंदगी में समा जाने के लिए.

Long Hindi Story

Sanchi Bhoyar: ‘बिंदी’ सीरियल का किरदार मेरी मां को समर्पित है

Sanchi Bhoyar: कलर्स चैनल पर प्रसारित इमोशनल शो ‘बिंदी’ एक ऐसी छोटी लड़की की कहानी है, जिस ने अपनी मां काजल के साथ जेल के अंदर ही बचपन बिताया. उस को जेल कभी डरावनी नहीं लगी, क्योंकि जेल में उस की मां उस के साथ ही थी. उस की मां का प्यार उसे घर जैसा एहसास देता था. लेकिन एक दिन काजल (मैया), जो कानून का पालन करती है, मजबूर हो कर बिंदी को खुद से दूर भेज देती है. तब बिंदी को एक बड़ा सच पता चलता है. दरअसल, उस के अपने पिता ने ही उस की मां के साथ धोखा किया और माफिया डौन दयानंद का साथ दिया.

अब बिंदी का सपना है पढ़ाई कर के खुद को मजबूत बनाना और अपनी मां को आजाद कराना. लेकिन उस के पिता और दयानंद हर कदम पर उसे रोकने की कोशिश करते हैं. यह बिंदी की लड़ाई है अपनी मां को बचाने की और यह साबित करने की कि एक छोटी लड़की भी बेहद साहसी हो सकती है.

बिंदी का किरदार निभाने वाली सांची भोयर अपने किरदार को ले कर बेहद उत्साहित हैं. छोटी सी सांची जो ‘बिंदी’ शो में बिंदी का किरदार निभा रही हैं, वे अपने इस शो में किरदार के बारे में बताते हुए कहती हैं कि मेरा किरदार जिस का नाम बिंदी है, वह जेल के सब से अंधेरे कोनों में चमकती धूप जैसी है, जो अपनी मैया की पूरी दुनिया बन गई है. वह होशियार है, दयालु है, थोड़ी भोली भी है, लेकिन उसे एहसास नहीं है कि जेल की दीवारों से बाहर की जिंदगी और भी कठिन हो सकती है. उस के सपने बहुत साधारण हैं.

एक सामान्य परिवार पाना, अपनी मां के साथ वक्त बिताना, अपनी मां को जेल से बाहर देखना और पढ़ाई का मौका पाना. जब अचानक वह अपनी मां से जुदा हो जाती है, तो टूट जाती है, लेकिन हार मानने के बजाय हिम्मत और दयालुता से लड़ने का फैसला करती है. बिंदी का साहस, दया और हार न मानने की जिद ही मुझ से सब से ज्यादा जुड़ी और इस किरदार को निभाना मेरे लिए बेहद खास है.

यह आप का पहला हिंदी टीवी रोल है. इतने मजबूत किरदार का भावनात्मक बोझ उठाना आप के कैरियर के इस पड़ाव पर कैसा लग रहा है?

यह बहुत रोमांचक है. हिंदी टैलीविजन में नए चेहरे के तौर पर कलर्स पर लीड रोल मिलना मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. इस का मतलब है कि टीम ने मुझ पर भरोसा किया कि मैं बिंदी को निभा सकती हूं. मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक कहानी ही नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी उठा रही हूं, उन दर्शकों की, जो खुद को बिंदी में देख सकते हैं.

वे कहती हैं कि एक अभिनेत्री के तौर पर मैं बहुत कुछ सीख रही हूं. निजी तौर पर यह रोल मेरी मां को समर्पित है, जो बिलकुल काजल जैसी हैं.

आप मराठी टीवी सीरियल ‘इंद्रायणी’ करने के बाद और मराठी दर्शकों का दिल जीतने के बाद अब ‘बिंदी’ के साथ हिंदी टीवी में आ रही हैं. आप के लिए यह अनुभव कितना अलग है?

मराठी टीवी से मुझे ‘इंद्रायणी’ के जरीए पहचान और प्यार मिला. हिंदी में सबकुछ नया और रोमांचक लग रहा है. शूटिंग की प्रक्रिया तो वही है, लेकिन कहानी बिलकुल अलग और ताजा है. सब से बड़ा फर्क यह है कि अब और भी ज़्यादा लोग मुझे देख पाएंगे. मुझे उम्मीद है कि दर्शक बिंदी को भी ‘इंद्रायणी’ की तरह प्यार देंगे.

‘बिंदी’ दयालुता के साथ लड़ाई लड़ती है. आप को क्या लगता है की आज की युवा पीढ़ी इस गुण से कैसे जुड़ पाएगी?

बिंदी यह दिखाती है कि दयालु होना बिलकुल मुफ्त है और जिंदगी की मुश्किलों से भी दयालुता के जरीए निबटा जा सकता है. आज की युवा पीढ़ी ज्यादा संवेदनशील और सामाजिक रूप से जागरूक है, इसलिए मुझे लगता है कि वे इस भावना से जुड़ेंगे और दयालुता को कमजोरी नहीं मानेंगे.

उस बेटी का किरदार निभाना, जिस की दुनिया मां से बिछड़ने पर बिखर जाती है, आप के लिए सब से कठिन चुनौती क्या रही?

जुदाई के सीन सब से कठिन रहे. मैं खुद अपनी मां से बहुत करीब हूं, इसलिए एक बच्चे को मां से दूर होते हुए सोचना भी मेरे लिए बेहद दर्दनाक था. इसलिए इस ने मुझे उन बच्चों के बारे में सोचने पर मजबूर किया, जो टूटे हुए परिवारों या अनाथालयों में बड़े होते हैं और जिन का दर्द दुनिया नहीं देख पाती.

आप एक ऐसी बेटी का किरदार निभा रही हैं, जो जेल में पैदा हुई. इस किरदार को समझने का सब से कठिन हिस्सा क्या रहा?

सब से मुश्किल हिस्सा उस बचपन की कल्पना करना था, जो मेरी जिंदगी से बिलकुल अलग है. बिंदी के लिए जेल की दीवारें सामान्य हैं और आजादी ही उस के लिए अजनबी है. मुझे बारबार खुद को यह याद दिलाना पड़ता था कि जिन चीजों को हम सामान्य मानते हैं, जैसे खेल का मैदान, दोस्त बनाना या बाहर घूमना वगैरह, उस के लिए विलासिता जैसी हैं, जो उस ने कभी देखी ही नहीं. उस की मां और मौसी ने जेल की दीवारों के बीच उस के लिए एक खुशनुमा माहौल बनाने की कोशिश की.

बिंदी शिक्षा के जरीए अन्याय से लड़ती है. आप के हिसाब से यह संदेश युवाओं के लिए कितना प्रासंगिक है?

बहुत ही प्रासंगिक है. हमारे देश में बहुत से युवा गरीबी, असमानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ रहे हैं और उन के पास एकमात्र हथियार शिक्षा है. ‘बिंदी’ इस सचाई को परदे पर उतारती है. वह हर बच्चे को यह संदेश देती है कि तुम्हारा पेन, तुम्हारी किताबें और तुम्हारा ज्ञान तुम्हारी दुनिया बदल सकती हैं. यह बहुत सशक्त संदेश है.

दर्शकों के लिए आप का क्या संदेश है?

मैं चाहती हूं कि हर कोई ‘बिंदी’ की यात्रा का हिस्सा बनें. यह एक कहानी है जो मां के प्यार और बेटी के साहस का जश्न मनाती है. यह भावनात्मक है, प्रेरणादायक है और आप को परिवार के रिश्तों के प्रति और गहरी इज्जत के साथ छोड़ेगी.  हर रोज रात 8:30 बजे सिर्फ कलर्स और जियो हौट स्टार पर इसे जरूर देखिए.

Sanchi Bhoyar

टीचर्स के यौन शोषण की शिकार लड़कियां, आखिर कब रुकेगा यह सिलसिला

Sexual Exploitation: पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस में शर्मसार करने वाले एक मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.हाथरस के पीसी बागला डिगरी कालेज के प्रोफेसर रजनीश कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

प्रोफेसर रजनीश की 50 से भी अधिक वीडियो सामने आई है, जिस में वह डिगरी कालेज में पढ़ने वाली छात्राओं के साथअश्लील हरकतें करता नजर आ रहा है. इस डिगरी कालेज में पढ़ने वाली छात्राओं को आरोपी प्रोफेसर परीक्षा में अच्छे नंबर और सरकारी नौकरी दिलाने का झांसा दे कर उन के साथ रेप की घटनाओं को अंजाम देता था और उन का अश्लील वीडियो व फोटो निकाल कर उन्हें बदनाम करने की धमकी देता था. जब इस का वीडियोज सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर वायरल होने लगे तो शहर में चर्चा शुरू हो गई. पुलिस ने आरोपी प्रोफेसर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. प्रोफेसर पर आरोप है कि वह 20 साल से छात्राओं का शोषण कर रहा है.

यह कैसी सोच

बहुत पहले से चली आ रही एक पौराणिक सोच है कि लड़कियां तो चूल्हेचौके के लिए ही बनी हैं. अगर वे पढ़लिख गईं, अपने पैरों पर खड़ी हो गईं तो इस पुरुष प्रधान समाज का क्या होगा? ये औरतों को अपनी दासी बना कर कैसे रखेंगे?

दरअसल, यह सब लड़कियों के खिलाफ एक साजिश है कि वे अच्छी शिक्षा न लें ताकि उन का कैरियर ही न बन पाएं, क्योंकि अगर कैरियर में आगे बढ़ कर वे पुरुषों के साथ बराबर का कमाने लगीं तो वे घर की जिम्मेदारी अकेले नहीं निभाना चाहेंगी, उन्हें इस में पुरुषों का बराबर का सहयोग चाहिए होगा, जो वे नहीं होने देना चाहते.

लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो पुरुषों का अन्याय नहीं सहेंगी

आज हर जगह अतुल सुभाष और मेरठ कांड, जिस में पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी और उसे नीले ड्रम में बंद कर दिया चर्चा का विषय है. हमेशा से पुरुष महिलाओं की बलि देता आया है, कभी समाज के नाम पर और कभी परिवार के नाम पर. दहेज के लिए भी लड़कियां शुरू से ससुरालों में जलाई जाती रही हैं. जब लड़किओं पर सदियों से अत्याचार हो रहे थे तब यह समाज कहां था? महिलाओं के द्वारा किए गए इन अपराधों को सही नहीं माना जा सकता लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो अत्याचार के खिलाफ आवाज तो वे उठाएंगी ही और शायद यही बात अब रास नहीं आ रही.

यही वजह है कि कुछ लोगों का कहना है कि लड़कियों को ज्यादा नहीं पढ़ाना चाहिए, क्योंकि अगर वे ज्यादा पढ़ लेंगी तो फिर ससुराल में काम नहीं करेंगी. उन का संसार बस नहीं पाएगा. तलाक के केस बढ़ेंगे, क्योंकि अब वे पुरुषों की दासी बनने से इनकार जो करने लगी हैं.

ऐसे बहुत कारणों से लोग आज भी लड़कियों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं. बस, उतना ही पढ़ाते हैं जितने में शादी हो जाए.

लड़कियां पढ़ाई छोड़ने को मजबूर क्यों

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के मुताबिक लगभग 5 में से 1 लड़की अभी भी निम्न माध्यमिक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रही हैं. लगभग 10 में से 4 लड़कियां आज भी उच्च माध्यमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रही हैं. कुछ क्षेत्रों में तो यह संख्या और भी निराशाजनक है. भारत में प्राइमरी स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद लगभग 65% लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया. ये आंकड़े शिक्षा मंत्रालय ने अपनी पहली ‘ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति’ रिपोर्ट में बताए हैं. हालांकि इस पढ़ाई छोड़ने के पीछे यौन हिंसा के अलावा और भी कई बड़े कारण हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन बच्चियों के मातापिता के मन का सब से बड़ा डर जरूर है.

टीचर्स के द्वारा यौन शोषण पर शिकायतें कम क्यों दर्ज कराई जाती हैं

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लड़कियों को डर होता है कि यह पता चलने पर कहीं उन की पढ़ाई ही न छुङवा दें. कई बार उन की आवाज इज्जत के नाम पर भी दबा दी जाती है. अगर समाज में पता चल गया कि बेटी के साथ गलत हुआ है तो उस से शादी कौन करेगा. जैसेकि 2023 में उत्तर प्रदेश का उन्नाव, एक सरकारी स्कूल को लेकर सुर्खियों में आया. यहां स्कूल के हेडमास्टर पर कम से कम 18 नाबालिग छात्राओं ने कथित तौर पर यौन शोषण के आरोप लगाए.

इस से पहले हरियाणा के जींद से भी कुछ ऐसी ही खबर सामने आई थी, जहां 60 स्कूली छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था.

लेकिन जींद के मामले में भी यह आरोप लगा कि पुलिस ने मामले में देरी की और 1 महीने बाद जा कर प्रिंसिपल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

उन्नाव मामले में भी यही सुनने को मिला कि लड़कियां लंबे समय से परेशान थीं और वे अभी भी काफी तनाव में हैं. यह सब उन के लिए इतना आसान नहीं है क्योंकि यहां बात सिर्फ आगे बढ़ कर शिकायत करने की नहीं है, उन के सामने सब से बड़ा डर उन की पढ़ाई छूटने की भी है.

सरकारी या गैर सरकारी सभी बालिका छात्रावासों और बालगृहों की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है. यहां कई बार अलगअलग तरह के मुजफ्फरपुर, देवरिया, कानपुर और आगरा समेत कई बालिका गृहकांड देश के सामने आ चुके हैं. कई बार आरोपी गिरफ्तार भी हुए, एकाध मामलों में सजा भी मिली, लेकिन इन सब में जो मुख्य मुद्दा सुरक्षा का है उस में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है क्योंकि इस ओर सरकार और महिला आयोग का ध्यान बिलकुल ही नहीं जाता, जब तक कुछ बड़ी घटना घटित नहीं हो जाती.

मातापिता के लिए लड़कियों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल

आज भी दूरदराज के गांवों में कई किलोमीटर पैदल चल कर पढ़ने जाना पड़ता है. वहां अकेले उन्हें अपनी बेटियों को भेजने से डर भी लगता है. कभी कहीं किसी लड़की के साथ हुई शोषण व उत्पीड़न की घटनाएं बाकी लड़कियों को भी घर में कैद होने को मजबूर कर देती हैं. कोलकाता में मैडिकल की छात्र के साथ हुआ रेप केस भी इस का अपवाद नहीं है.

इस तरह की घटनाएं होती हैं तो पढ़ेलिखे शहरों में रहने वाले मातापिता भी अपनी बेटियों की सुरक्षा को ले कर चिंता में आ जाते हैं और उन्हें लगता है कि इतना पढ़ालिखा कर क्या करना है, शादी समय से कर दो बस, जिम्मेदारी खत्म.

लड़कियों की शादी कर घर बसाना पढ़ाई करने से ज्यादा जरूरी क्यों

वाकई आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लड़के और लड़कियों में फर्क किया जाता है. यहां लड़का जितना चाहे, जो चाहे पढ़ सकता है लेकिन लड़की नहीं. यहां लड़की अपनी मरजी से कुछ नहीं कर सकती है. यहां तक कि पढ़ाई भी नहीं. उन को क्या पढ़ना है और कितना पढ़ना है, यह मांबाप और रिश्तेदार तय करते हैं. लड़की को पढ़ाया तब तक जाता है जब तक कोई अच्छा लड़का न मिल जाए.

तलाक शिक्षा के कारण नहीं हो रहे

समय आगे बढ़ गया पर लोग उसी पिछड़ी हुई सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं. यह तो वही बात हुई कि अगर सहूंगी तो कमजोर और बोला तो बदतमीज. शहरों में लड़की सब को कामकाजी ही चाहिए लेकिन गिलासभर पानी खुद उठा कर नहीं पीएंगे जनाब, यह सोच ही तलाक की जड़ है.

पतिपत्नी दोनों कमा रहे हैं लेकिन पति चाहता है कि पत्नी घरबाहर दोनों संभाले. आधे से ज्यादा घरों में यही फसाद की जड़ है पर आज की महिला पढ़ीलिखी है, अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है या खड़े होने की कोशिश कर रही है पर इलजाम यही लगता है कि ज्यादा पढ़लिख गई इसलिए दिमाग खराब है इस का. सामने से कितना भी दिखा ले पुरुष कि वह मौर्डन है पर कहीं न कहीं यही सोच, यही धारणा आज भी पनप रही है. आज हर किसी को अपने बराबर पढ़ीलिखी लड़की चाहिए शादी के लिए, क्योंकि सोशल मीडिया पर ढिंढोरा जो पीटना है पर वाइफ की सोच का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में भी चाहिए .

लड़कियों के पिछड़ने का कारण लोगों की संक्रीण मानसिकता है

आज के वक्त में लड़िकयों के पिछड़ने का सब से बड़ा कारण है लोगों की मानसिकता है. दिनप्रतिदिन लड़कियों के साथ बढ़ते अपराध (बलात्कार), लड़के और लड़कियों के प्रति सामाजिक भेदभाव के कारण अपने सपनों से मुंह मोड़ना पड़ रहा है.

पंडेपुजारी भी नहीं चाहते लड़कियां पढ़ें

पंडेपुजारियों का हमारे घरों में बहुत बड़ा रोल है. वे चाहते हैं कि महिलाएं बस किचन में घुसी रहें और अपने बाकी के बचे हुए दिन में हमारे प्रवचन सुनने आएं और हमारी दुकाने चलवाएं. लेकिन अगर वे पढ़लिख कर नौकरीपेशा बन गईं तो उन के पास हमें देने के लिए समय ही नहीं होगा. अगर ऐसा हुआ तो पंडितों का महिलाओं को मुर्ख बना कर पैसे ऐंठने का धंधा तो चौपट हो ही जाएगा.

इसलिए लड़कियों के ड्रौपआउट को कम करने के लिए सब से पहले सुरक्षा के पुख्ते इंतजाम के साथ ही अपराधियों पर सख्त काररवाई की भी जरूरत है, जिस से लड़कियों के हौसले बुलंद हो सकें. मांबाप भी निश्चिंत हो सकें और लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी कर आजादी से जीवन जी सकें.

सरकारों को चाहिए कि वे लोगों को जागरूक करने के साथसाथ अपराध पर लगाम लगाएं ताकि लड़कियां बिना डरेसहमे अकेली चल सकें. घर वाले न भी ज्यादा पढ़ाना चाहें तो भी वे खुद अकेली जा कर, पैसे कमा कर पढ़ सकें. सरकार ने हर जगह कालेज तो दिए हैं मगर कालेज जाने वाले माहौल नहीं दिए.

एक शिक्षित लड़की की अगर कम उम्र में शादी नहीं की जाए तो वह भारत में शिक्षा क्षेत्र में लेखक, शिक्षक, वकील, डाक्टर और वैज्ञानिक के रूप में देश की सेवा कर सकती है. वह बिना किसी संदेह के अपने परिवार को एक पुरुष की तुलना में अधिक कुशलता से संभाल सकती है. एक आदमी को शिक्षित कर के हम केवल राष्ट्र का कुछ हिस्सा शिक्षित कर सकते हैं जबकि एक महिला को शिक्षित कर के पूरे देश को शिक्षित किया जा सकता है. इसलिए भारत में शिक्षा का अधिकार न केवल पुरुष को बल्कि महिलाओं को भी होना चाहिए.

वैदिक काल के बाद से लड़कियों की शिक्षा गैर जरूरी क्यों समझी जाने लगी

वैदिक काल के बाद से धीरेधीरे लड़कियों की शिक्षा गैर जरूरी समझी जाने लगी और मुगलकाल तक आतेआते वे घर की चारदीवारी में ही कैद हो कर रह गईं. इस के पीछे सोच यह थी कि जब विवाह कर के घर ही संभालना है तो पढ़ाई किसलिए? और फिर दहेज के लिए धन भी जुटाना है. इसलिए उन की शिक्षा पर समय और धन क्यों नष्ट किया जाए?

कुछ उदार पिता इतनी स्वीकृति अवश्य दे देते कि चिट्ठीपत्री लिख सके या रामायण बांच ले. खैर, मुगलकाल तक आतेआते तो वैसे भी लड़कियों को घर की चारदीवारी में बंद रखना मजबूरी हो गया. यह स्थिति अंगरेजों के राज में यथावत रही.

गांधीजी ने लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया

महात्मा गांधी ने लड़कियों की शिक्षा को बेहद महत्त्वपूर्ण माना और कहा कि अगर आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं, लेकिन अगर आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो आप पूरे परिवार को शिक्षित करते हैं…

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधीजी ने स्त्रियों का आव्हान किया कि वे घरों से निकल कर देश की आजादी के लिए पुरुषों को योगदान दें और तभी उन की शिक्षा पर भी गौर किया गया. गांधीजी ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चरखा चलाना सिखाया और उन्हें शिक्षा हासिल करने और नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित किया. गांधीजी महिलाओं की शिक्षा के पक्षधर थे. उन्होंने लड़कियों व लड़कों के लिए निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान किया.

Sexual Exploitation

Sarcastic Story in Hindi: अब विदाई नहीं जुदाई में है असली ग्लैमर

Sarcastic Story in Hindi: टीवी हो या अखबार अथवा सोशल मीडिया, शादियों से ज्यादा सुर्खियां तलाक बटोर रहे हैं. पहले पंडितजी की आवाज गूंजती थी-

‘‘7 फेरे ले कर अब तुम जीवनसाथी बने,’’ और अब वकील साहब की आवाज आती है,

‘‘7 सुनवाइयों के बाद अब तुम आजाद पंछी बने,’’ या पंडितजी कहते थे 7 फेरों के बाद अब आप दोनों की नई जिंदगी शुरू हो रही है तो वकील साहब कहते हैं 7 सुनवाइयों के बाद

अब आप दोनों की नई जिंदगी शुरू हो रही है. समाज का एक नया फैशन शादी को शोपीस की तरह बना दो ताकि बाद में टूटे तो इंस्टाग्राम पर डाला जा सके, ‘‘2 साल हम साथ जीए,

अब हम अपनेअपने रास्ते,’’ जैसे मोबाइल का ट्रायल पीरियड खत्म हुआ और सब्सक्रिप्शन रद्द कर दी.

अब तो हालात ऐसे हैं कि शादी को रिश्तेदारों से छिपाया जाता है और तलाक को मीडिया से बताया जाता है. पहले ‘गृहलक्ष्मी’ कहलाना स्टेटस सिंबल था, अब ‘सिंगल मदर’ कहलाना. टीवी इंटरव्यूज में लोग गर्व से कहते हैं, ‘‘हां, मैं अकेले अपने बच्चे को पाल रही हूं,’’ जैसे कोई ओलिंपिक मैडल जीत लिया हो और वह बच्चा भी यदि आसपास हो तो न चाहते हुए भी गर्व महसूस करने लगता है. सिंगल मदर का तमगा स्टेटस सिंबल बना दिया गया है. अब सिंगल फादर वाले भी उतराने लगे हैं मीडिया में.

कभी शादी के कार्ड पर लिखा जाता था ‘दो दिलों का मिलन’ अब लिखना चाहिए ‘दो दिलों का प्रयोग, रिजल्ट न्यूनतम 3 माह व अधिकतम 5 साल में घोषित होगा.’ और ट्रेंड यह है कि शादी की तसवीरें अलबम में बंद रहती हैं, तलाक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पिन की जाती हैं.

बड़े शहरों में तो हालात ये हो गए हैं कि शादी एक लौंच इवेंट है और तलाक उस का ग्रैंड फिनाले. पहले हनीमून मनाया जाता था, अब ‘अनमैरिड मून.’ और हैरानी तो तब होती है जब लोग अपने बच्चों के सामने ही यह संवाद कर लेते हैं, ‘‘तुम्हारे डैडी और मैं अब अलगअलग घर में खुश हैं.’’ बच्चा सोचता है कि मम्मीपापा नहीं, नैटफ्लिक्स, पिज्जा व ऐप ही उस के असली गार्जियन हैं. मम्मीपापा बच्चे के स्कूल फंक्शन में अलगअलग गर्व से पंहुचते हैं व बच्चे को भी बड़ा सम?ादार दिखाया जाता है कि वह दोनों से गर्मजोशी से मिला. वे दोनों भी गर्मजोशी से मिले. जब इतनी गर्मजोशी थी तो अलगअलग हो कर रिश्ते को सर्दजोशी क्यों कर दिया?

अब यह सवाल भी उठता है कि लोग शादी क्यों करते हैं? जवाब आता है, ‘‘फोटोग्राफर के लिए. इंस्टा रील्स के लिए. शादी एक ब्रैंडिंग ऐक्टिविटी है, तलाक उस का पब्लिसिटी स्टंट.’’

तलाक का ग्लैमर इतना बढ़ गया है कि कभीकभी लगता है कि अगली पीढ़ी में ‘शादी’ शब्द डिक्शनरी से गायब हो जाएगा और ‘डाइवोर्स पार्टी.’ नए वैडिंग हाल में बुक होगी.

अब पंडितजी नहीं, वकील साहब ही सब से भरोसेमंद विवाह संचालक हैं. अब पंडित यदि वकील भी बन जाएं तो एक ही जोडे़ से दोहरी कमाई कर सकते हैं. बात करो जब अरबपति के तलाक की तो सैटलमैंट से एक और अरबपति पैदा हो जाता है. डिवोर्स अब एक गर्व महसूस करने का सोर्स हो गया है.

शादी अब फिक्स्ड डिपौजिट नहीं, इंस्टालमैंट वाला मोबाइल कनैक्शन है. 2 साल बाद पोर्ट आउट कर लो. शादी में केवल डीजे गूंजता है, जबकि तलाक में पूरा मीडिया गूंजता है. ‘सात जन्मों का वादा’ अब ‘7 मिनट का इंस्टास्टोरी’ बन गया है. पहले सिंदूर शान था, अब दूर होना ब्रैंड है. शादी के जोड़े से ज्यादा महंगे अब तलाक के गाउन हो गए हैं. शादी का फोटो अलबम दब जाता है, तलाक की सैल्फी वायरल होती है.

‘हम दो हमारे दो’ अब बदल कर ‘हम दो हमारे दो वकील.’ हो गया है. पहले तलाक छिपा कर रखा जाता था, अब शादी छिपा कर रखी जाती है. पहले रिश्तेदार पूछते थे ‘‘शादी कब करोगे?’’ अब पूछते हैं ‘‘कब छोड़ोगे?’’ पहले मंगलसूत्र जोड़ता था, अब सिग्नेचर तोड़ता है.

तलाक अब विफलता नहीं, नई उपलब्धि कहलाता है. वह दिन दूर नहीं है जब वैडिंग स्पैशल की तरह डिवोर्स स्पैशल शोरूम आ जाएगा. विवाह जर्नी तो तलाक डैस्टिनेशन हो गया है. अब तलाक का नोटिस शादी के कार्ड से ज्यादा सुंदर छपता है. पहले घर वाले कहते थे ‘दहेज कितना दोगे?’ अब पूछते हैं ‘मैंटेनैंस कितनी मिलेगी?’ शादी अगर ससुराल का दरवाजा है, तो तलाक अब कैरियर का नया दरवाजा बन गया है. पहले गाना बजता था ‘मेरे हाथों में नौनौ चूडि़यां हैं…’ अब बजता है ‘मेरे हाथों में कोर्ट की तारीखें हैं.’

अंत में कह सकते हैं कि द होल थिंग इज दैट कि भैया तलाक विवाह से ज्यादा हैड लाइन बनाता है. तलाक अब अंतिम अध्याय नहीं, नए सीजन का ट्रेलर है. पहले की चट मंगनी पट ब्याह की कहावत अब चट विवाह पट तलाक में बदल गई है.

Sarcastic Story in Hindi

Revlon ED: मेघना मोदी- मेरी सफलता का सीक्रेट डीप नौलेज में है

Revlon ED: मोदी मुंडीफार्मा प्राइवेट लिमिटेड ने 1995 में भारत में रेवलौन की शुरुआत की थी जो देश में लौंच होने वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय कौस्मैटिक ब्रैंड था. इस ब्रैंड ने ब्यूटी के क्षेत्र में एक ट्रेंडसैटर के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है. अपनी अच्छी क्वालिटी वाले प्रोडक्ट्स और नए एक्सपेरिमैंट्स के लिए प्रसिद्ध यह ब्रैंड अब मेघना मोदी के नेतृत्व में एक नए अध्याय की शुरुआत कर रहा है, जिस का लक्ष्य भारत के बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत करना है. नवंबर, 2023 में ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर और भारत की प्रमुख के रूप में नियुक्त हुईं मेघना मोदी के नेतृत्व में कंपनी नई ऊंचाइयों को छूने की तैयारी में है.

उमेश मोदी गु्रप के अध्यक्ष उमेश कुमार मोदी की सब से बड़ी बेटी मेघना ने ‘लंदन बिजनैस स्कूल’ और ‘हार्वर्ड स्कूल औफ बिजनैस’ से शिक्षा प्राप्त की है और वहां के अनुभव ले कर आई हैं. हार्वर्ड से एमबीए करने के बाद उन्होंने बोस्टन में एक बैन कंसल्टिंग में 4 साल तक एडवाइजर के रूप में काम किया. मेघना 4 भाईबहन हैं. मेघना, हिमानी, अभिषेक और जय. वे सब से बड़ी हैं. मेघना मोदी बताती हैं कि वे मोदीनगर में पैदा हुई. उन के ग्रैंडफादर गुजरमल मोदी साहब ने 1933 में मोदीनगर शहर बसाया था. यह शहर अमेजिंग था. गुजरमल मोदी के 11 बच्चे थे. वे उन के 10वें बेटे उमेश मोदी की सब से बड़ी बेटी हैं. वे 1997 में रेवलौन में ट्रेनी यानी एज अ इंटर्न आई थीं और पापा के औफिस में जौइन किया. तब उन्हें ब्यूटी एडवाइजर की नौकरी मिली. उन्होंने शौपर्स स्टौप अंसल प्लाजा में 1 साल ब्यूटी एडवाइजर की नौकरी की थी ताकि मार्केट और कस्टमर को समझ सकें. फिर वे रेवलौन में बोर्ड की ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर बनीं.

करीब 4 साल यहां काम करने के बाद वे ‘हार्वर्ड स्कूल औफ बिजनैस’ में पढ़ने चली गईं. 2003 में बोस्टन में कंसल्टिंग का काम शुरू किया और 4 साल तक इस का अनुभव लिया. उन्होंने गो मोबाइल कंपनी की शुरुआत भी की. इस के लिए फंडिंग बाहर से ले कर आई. आज भी गो मोबाइल अच्छे से चल रही है. यह दिल्ली में एक फोन रिटेल है जोकि मल्टीब्रैंड है. इस कंपनी से उन्होंने दुकानदारी सीखी. दुकानदारी सीखनी बहुत जरूरी थी. ब्रैंड प्रोडक्ट बनाते हैं जबकि दुकानदार प्रोडक्ट बेचते हैं. आज 15-16 साल हो गए गो मोबाइल को. गो मोबाइल से उन्होंने अपने रिटेल की जर्नी शुरू की थी. फिर 2024 में उन्होंने रेवलोन को जौइन किया. रेवलान थोड़ी दिक्कतों में चल रहा था. रेवलौन जौइन किए 1 साल से ज्यादा हो चुका है. मेघना बताती हैं कि यहां लड़कियां बहुत हैं. हर स्टोर में एक ब्यूटी एडवाइजर लड़की है.

meghna modi

वे लड़कियों को आगे बढ़ाना चाहती हैं और ऐंपौवर करना चाहती हैं ताकि लड़कियां ब्यूटी एडवाइजर से ब्रैंड ऐंबेसेडर बन सकें. उन के पास करीब एक हजार ब्यूटी एडवाइजर गर्ल्स हैं. रेवलौन के प्रोडक्ट्स अब स्टोर के साथसाथ ई कौमर्स में भी बिकते हैं. भले ही वह अमेजन हो या फ्लिपकार्ट, मिंत्रा या ब्लिंकिट अथवा औफलाइन रिटेलर, सब को एकजैसा ट्रीट किया जाता है और एकजैसा डिस्काउंट दिया जाता है. उन को गो मोबाइल के लिए 2017 में ऐप्पल का आल इंडिया अवार्ड मिला. जयपुर में उन्होंने अपनी जरमन फ्रैंड के साथ जो लायर हैं, आशिता नाम से एक अनाथ लड़कियों के लिए एनजीओ खोला है.

इस एनजीओ में उन लड़कियों को आश्रय दिया जाता है, जिन की मदर प्रौस्ट्रेट हैं, जेल में हैं या मांबाप ने छोड़ दिया. विदेशी कंपनियों से कंपीटिशन? मेघना मोदी बताती हैं, ‘‘1932 में शुरू हुए 90 साल पुराने हमारे ब्रैंड का काफी नाम है. एक बार प्रोडक्ट ले कर कस्टमर रिपीट करते हैं. रेवलौन एक इंटरनैशनल ब्रैंड है. मगर फिर भी इंडियन हो या इंटरनैशनल, कौस्मैटिक कंपनियां बहुत सी हैं. उन से कंपीट करने के लिए हम कई चीजों का खयाल रखते हैं. सब से पहले प्रोडक्ट की क्वालिटी सब से महत्त्वपूर्ण होती है. मसलन, फाउंडेशन की बात करें तो हमारा प्रोडक्ट ऐसा होना चाहिए जिसे लगाने पर स्किन ड्राई न हो, ब्लैक पैचेज न पड़ें, कहीं चैप न हो यानी क्वालिटी ऐसी हो कि कस्टमर रिपीट करना चाहे.

इस के अलावा प्राइसिंग भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. हम कस्टमर के बजट की रिस्पैक्ट करते हैं. हमारी लिपस्टिक 400-500 रुपए से ले कर 5,000 रुपए तक की है. हम कोई कैमिकल यूज नहीं करते. सब नैचुरल तत्त्वों से बने प्रोडक्ट्स हैं. हम नए प्रोडक्ट लौंच को अहमियत देते हैं. लगातार प्रोडक्ट्स के नए कलर, नए स्किन शेड्स, नई रेंज लाते रहते हैं. हमारी कंपनी का सब से लोकप्रिय प्रोडक्ट लिपस्टिक है. इस की 5 रेंज हैं. हाल ही में हम ने पुरुषों के लिए भी एक नई रेंज लौंच की है. पुरुषों के ग्रूमिंग के लिए रेवलोन एकदम नई रेंज ले कर आया है. हेयर कलर बहुत अहम हैं.’’

 

इस फील्ड में आना तय था या कुछ और करना था?

मेघना कहती हैं, ‘‘मैं बहुत पढ़ाकू थी और हमेशा सब से आगे रहने की सोची. टौप पर रही हूं. मेरे पेरैंट्स भी पढ़ाई पर बहुत जोर देते थे. हमें नंबर अच्छे लाने पड़ते थे क्योंकि पेरैंट्स पढ़ाई को अहमियत देते थे. जब रेवलौन आया तो यह कौस्मैटिक ब्रैंड था इसलिए मुझे औपर्च्यूनिटी मिली और मैं इस से जुड़ी. फिर मैं ने इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की. 1995 में उमेश मोदी यानी मेरे पिताजी रेवलान को इंडिया में ले कर आए. उन्हें इस के लिए लाइफटाइम लाइसैंस मिला था. 1997 में मैं ने ट्रेनी के रूप में रेवलौन को जौइन किया था. यहां 4 साल काम किया फिर हार्वर्ड स्कूल चली गई. फिर वहां से मैं ने बहुत से ऐक्सपीरिएंस लिए. अपने बिजनैस खोले. कैटालौगिंग का काम भी किया. गो मोबाइल शुरू किया. अब मैं ने फिर से रेवलौन की कमान संभाली है और इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाना है.’’

कैसे बसा था मोदीनगर?

मेघना बताती हैं, ‘‘हम लोग पटियाला से थे. हमारे दादाजी यानी गुजरमल मोदी ने 1932 में मोदीनगर की स्थापना की. यह अमेजिंग नगर था. यह शुगर प्लांट से शुरू हुआ. तब हमारे पास कुछ नहीं था. लेकिन दादाजी हमेशा कम्युनिटी को साथ ले कर चले. एक बिजनैस के बाद दूसरा बिजनैस बढ़ाया और जो भी प्रौफिट होता वे उसे उसी शहर में इन्वैस्ट करते जाते थे. तब मैं बहुत छोटी थी. उन की डैथ के समय 3 दिन तक कोई चूल्हा नहीं जला क्योंकि उन्होंने कम्युनिटी फीलिंग बहुत बना कर रखी थी. उन में सिर्फ देने की भावना थी. उन के पास कोई बैंक अकाउंट नहीं था.

अगर आप बड़े घर में पैदा हुए हों तो काम करने के साथ काम देना बहुत बढि़या है. यह मुझे बहुत अच्छा लगता है. गो मोबाइल में 700 से ज्यादा लोग काम करते हैं. रेवलौन में 5000 से ज्यादा लड़कियां हैं. रेवलौन में कुल 10000 कर्मचारी हैं. मुझे खुशी होती है कि हम ने भी इतने लोगों को रोजगार दिया है.’’ कंपनी को आगे बढ़ाने का फ्यूचर प्लान क्या है? ‘‘मेरी नजर में मार्केटिंग महत्त्वपूर्ण है. आजकल डिजिटल पर सबकुछ है. इंस्टाग्राम, इन्फ्लुएंसर का जमाना है. इस पर मेरा फोकस है. मार्केट को देखते हुए हम प्रोडक्ट लौचिंग कर रहे हैं. जैसे हम ने अभी लिपस्टिक की नई रेंज लौंच की है.

पुरुषों के लिए भी नया ग्रूमिंग रेंज लौंच की है. कंपीटिशन बहुत है, सुपर मार्केट्स के साथ टाईअप करना है. ‘‘दूसरी चीज है स्टोरी टैलिंग. आप बता सकें कि इस प्रोडक्ट में क्या खासीयत है. दुकान पर खड़ी हमारी लड़कियों को कौन्फिडैंस होना चाहिए कि वे अपने प्रोडक्ट्स के बारे में सारी डिटेल अच्छे से समझएं. कस्टमर को यह बताना जरूरी है कि उन का फायदा किस में है. सस्ता सामान बारबार लेना पड़ता है, मगर महंगा सामान एक बार ही लेने से लंबे समय तक चलता है. इस तरह की बातें बारबार ऐक्सप्रैस करना जरूरी हैं. ‘‘तीसरा ट्रेनिंग इंपौर्टैंट है. जो लड़कियां दुकानों में खड़ी हैं उन्हें कैसे ट्रेंड करें ताकि वे परफैक्टली बताएं कि कस्टमर के लिए कौन सा राइट प्रोडक्ट है और कस्टमर को पहचान सकें. ‘‘चौथा हमें डिस्ट्रीब्यूशन बढ़ाना है. प्रोडक्ट हर जगह दिखना चाहिए. अभी रेवलौन मार्केट में वाइडली डिस्ट्रीब्यूटेड नहीं है. उसे बढ़ना होगा.

इस सब के अलावा ऐक्टिव मैनेजमैंट जरूरी है. हमारे सभी पार्टनर जैसे रिटेलर, डिस्ट्रीब्यूटर, मार्केटर, कंपनी के बाकी लोग सब ऐक्टिव होने चाहिए. तभी कंपनी जंप करेगी. ब्रैंड का नाम बहुत है. अब हमारा फोकस होना चाहिए कि इस नाम को आगे कैसे बढ़ाएं. हर दिन जो काम करना है वह करना ही है. काम कल के लिए टालना नहीं है. मैं इन सब बातों पर ध्यान दे रही हूं.’’

चैलेंजेज क्या थे?

‘‘हम काफी स्लो थे, जबकि स्पीड जरूरी है. मार्केट में आगे बढ़ने के लिए फास्ट होना जरूरी है. इस के लिए हमारे पास सही प्लान होना चाहिए. भागनादौड़ना और सब काम समय से करना होगा. आप को खुद में पहले जोश लाना होगा तब आप अपने नीचे के लोगों को समय पर काम करने को कह सकते हैं. आप को हमेशा इस बात का खयाल रखना होगा कि कस्टमर वेट कर रहा है. ‘‘एक सही टीम बनानी भी एक बड़ी चुनौती है. माहौल के हिसाब से हमें इंपू्रवमैंट करना है. जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है. जैसे चैट जीपीटी पहले नहीं था. मोबाइल से सबकुछ होने लगा. डिजिटल मार्केटिंग काफी तेजी से आगे बढ़ी है.

आज 15-16 साल की लड़कियां, उन का फैशन, उन का सोचने का तरीका, उन के खरीदने का स्टाइल काफी अलग है. हम उन के हिसाब से खुद को चेंज नहीं करेंगे तो पीछे रह जाएंगे. मार्केट के हिसाब से चलना जरूरी है. ‘‘हमारे लिए एंबिशस बने रहना भी एक चुनौती है. कोई काम करना है तो करना है. कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी. रेवलौन 1997 में लौंच हुआ था बट हम ने मार्केट शेयर लूज कर दिया था. हम औनलाइन उपलब्ध नहीं थे. मार्केटिंग सही नहीं थी. अब हमें रेवलौन को फिर से ऊपर पहुंचाना है. ‘‘एक चुनौती ट्रांसपेरैंसी बना कर रखनी भी है. ओपनली व्हाट्सऐप ग्रुप में बात करना जरूरी है. किसी से छिप कर बात नहीं करना. हर बात सब को मालूम होना चाहिए. तभी टीम फीलिंग आती है.’’

जीवन के स्ट्रगल?

मेघना बताती हैं, ‘‘हमारे परिवार में लेडीज काम नहीं करती हैं. मेरे लिए भी पढ़ाई इंपौर्टैंट थी, मगर काम करना इंपौर्टैंट नहीं था क्योंकि घर में पैसे की कमी नहीं थी. हमारे घर के लोग पुरातनपंथी थे तो ऐसे में मेरा आगे बढ़ना और फुलटाइम जौब करना काफी स्ट्रगल भरा फैसला था. हमारे घर का एन्वायरन्मैंट ऐंड कल्चर भी काफी ट्रैडिशनल थे. मैं पहली लड़की थी जो यूएस और लंदन गई. मैं घर की पहली लड़की थी जो कोएड स्कूल में पढ़ने गई. मेरी सारी कजिन गर्ल्स कालेज में जाते थे. मैं ने एक तरह से घर वालों की ट्रैडिशनल सोच से हट कर काम किया जो काफी चैलेंजिंग था. मुझे मेरे पेरैंट्स ने बचपन से हार्ड वर्किंग, बीइंग औनैस्ट, स्ट्रेट फौरवर्ड और टफनैस सिखाई है. हजारों लोग हम से जुड़े हैं तो उन का कैरियर अब हमारे हाथ में है. जिम्मेदारी लेना सिखाया गया है. इन्हीं सीखों की वजह से आज मैं इस मुकाम पर हूं.’’

विदेशी और भारतीय सोच में बेसिक अंतर?

‘‘विदेशों में लड़केलड़की में अंतर नहीं पाया जाता है लेकिन हमारे यहां यह बहुत बड़ा अंतर है. भारत में लड़की की शादी के बाद लाइफ बहुत टफ हो जाती है. रोकटोक बहुत हो जाती है. यह करो, यह मत करो जैसी बातें समझई जाती हैं. लड़का जिम जाता है और फिर औफिस आ जाता है जबकि लड़कियां घर का खाना बनाती हैं और सब को खिलातीपिलाती हैं, घर के बाकी काम निबटाती हैं फिर औफिस आती हैं. तो डिफरैंस बहुत है. शादी के बाद सब टफ हो जाता है. वहां ऐन्वायरन्मैंटल चैलेंजेज इतने नहीं हैं. लड़की घर में भी इंडिपैंडैंट नहीं ससुराल में भी नहीं, जबकि विदेशों में लड़के हों या लड़कियां सब 18 साल के बाद इंडिपैंडैंट हो जाते हैं. विदेशों में औपर्च्युनिटी बहुत है. वहां इंसान छोटा काम कर के भी बहुत जल्दी रिच बन जाता है. मगर भारत में सबकुछ इतना आसान नहीं है. यहां पौपुलेशन ज्यादा है और इस वजह से कंपीटिशन भी ज्यादा है.’’

इंस्पिरेशन किस से मिलती है?

‘‘मेरे इंस्पिरेशन मेरे दादाजी हैं और इस के अलावा कोई भी शख्स जो नीचे से ऊपर आया, अपनी जिंदगी को उस ने खुद संवारा, जिस ने अपने हाथों से कुछ बनाया. वे प्रैसिडैंट रूजवेल्ट हों या प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी हों या फिर किसी कंपनी का छोटामोटा कर्मचारी हो. अगर कोई डिलिवरी बौय है जिस की बैकग्राउंड अच्छी नहीं है पर उस ने हिम्मत नहीं हारी और स्टोर मैनेजर बन गया और अपने बल पर लाइफ में आगे बढ़ा तो मेरे लिए वह इंस्पिरेशन है.’’

बिजनैस की सफलता के मंत्र?

‘‘किसी भी बिजनैस की सफलता के लिए सही इंडस्ट्री सिलैक्शन इंपौर्टैंट है. हम कहां हैं और किस दिशा में मेहनत करें यह बहुत माने रखता है, साथ ही यह देखना भी जरूरी है कि उस इंडस्ट्री को कैप्चर करने के लिए क्या आप के पास कोई खासीयत है? मसलन, हमारी इंडस्ट्री में सब के पास लिपस्टिक है या बिजनैस का आइडिया है तो आप के पास क्या अलग है जो दूसरा कौपी नहीं कर सकता है? यह समझना जरूरी है क्योंकि मार्केट में कंपीटिशन बहुत है. ‘‘साथ ही इंडस्ट्री में बने रहने के लिए प्रौफिट जरूरी है. बिजनैस बिना प्रौफिट कुछ नहीं है. आप को देखना होगा कि आप को प्रौफिट हो रहा है या नहीं. घर से रुपए लगाने की जरूरत नहीं है बल्कि अपना प्रौफिट देखें. शुरू में आप पैसा लगाते हैं लेकिन बाद में आप को देखना होगा कि कितना प्रौफिट होगा. प्रौफिट से ही आप का बिजनैस ऐक्सपैंशन होना चाहिए. आज रेवलौन के प्रोडक्ट्स नेपाल, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका और यूएस जैसे देशों में भी अवेलेबल है.’’

सफलता का सीक्रेट?

‘‘मेरी सफलता का सीक्रेट डीप नौलेज में है. हर चीज को ऐग्जाम समझना और उस में पास होना जरूरी समझती हूं. मैं किसी भी चीज के अंदर तक घुसती हूं. हर चीज को गंभीरता से समझती हूं. अपने बिजनैस से जुड़ी हर छोटीबड़ी बात मालूम रखती हूं. नौलेज पाने के लिए मैं डिलिवरी बौय और सेल्स गर्ल्स से ले कर बड़े ओहदे वालों तक सब से जानकारी लेने की कोशिश करती हूं.’’

लड़कियां ब्यूटी प्रोडक्ट्स लेते समय किस तरह की गलतियां करती हैं?

मेघना मोदी कहती हैं, ‘‘लड़कियां अकसर गोरा दिखने के लिए हलके शेड्स वाले या व्हाइट फाउंडेशन ले लेती हैं. यह नहीं करना चाहिए. फाउंडेशन को स्किन टोन से मैच न किया तो वह गलती होती है. इसलिए ऐन्वायरन्मैंट और अपनी स्किन कलर को समझते हुए फंक्शन के हिसाब से प्रोडक्ट लें. शादी के फंक्शन में ब्राइट कलर अच्छे लगते हैं, जबकि किसी गैटटुगैदर में जाना हो तो लाइट कलर ही शूट करते हैं. दरअसल, किसी भी प्रोडक्ट का कब ब्राइट कलर लेना है, कब मैट या न्यूड कलर लेना है इस के बारे में कई तरह से सोचना चाहिए. मौका, समय और अपनी स्किन के हिसाब से ही शेड्स चूज करें.’’

Revlon ED

Organza Outfit Ideas: इस फैस्टिव सीजन औरगेंजा फैब्रिक

Organza Outfit Ideas: अवसर कोई भी हो सभी भीड़ से अलग दिखना चाहते हैं. हमारी पर्सनैलिटी को अलग बनाने में सब से अहम रोल होता है हमारे आउटफिट का. आजकल औरगेंजा फैब्रिक से बने आउटफिट बौलीवुड से ले कर सामान्य जगत तक में छाए हुए हैं. वजन में हलका, दिखने में झाना और पारदर्शी टैक्स्चर वाला यह फैब्रिक दिखने में तो बहुत सुंदर और क्लासी सा लगता है.

पहले इसे केवल रेशम के धागे से ही बनाया जाता था परंतु आजकल इसे पौलिस्टर और नायलोन से भी बनाया जाने लगा है. रेशम से बने औरगेंजा की अपेक्षा पौलिस्टर और नायलोन से बना औरगेंजा अधिक मजबूत होता है. इस से बने हुए आउटफिट फ्लोई और घेरदार बनते हैं जो आप के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देते हैं.

तो आइए जानते हैं कि इस फैस्टिव सीजन में आप किस तरह से औरगेंजा फैब्रिक को अपने वार्डरोब में शामिल कर सकती हैं:

क्लासी कुरती

औरगेंजा फैब्रिक से बनी कुरती से आप खुद को इंडोवैस्टर्न लुक दे सकती हैं, साथ ही कुरती को आप प्लाजो और पैंट के साथ भी पेयर कर सकती हैं. हैवी ऐंब्रौयडरी वाली कुरती को आप जींस के साथ पहन कर खुद को बेहद स्टाइलिश लुक दे सकती हैं. किसी भी खास फंक्शन या फैस्टिवल पर आप औरगेंजा फैब्रिक से बनी कुरती के साथ घेर वाली स्कर्ट पहन कर भीड़ में भी खुद को अलग दिखा सकती हैं. किसी भी जींस टौप पर औरगेंजा फैब्रिक का श्रग डाल कर आप खुद को बेहद स्टाइलिश लुक दे सकती हैं.

मैक्सी और गाउन ड्रैस

प्रिंटेड औरगेंजा फैब्रिक से बनी मैक्सी ड्रैस आजकल खूब फैशन में है. इसे पहन कर आप ट्रेंडी, क्लासी और स्टाइलिश दिखेंगी. आप इस से प्लीट्स वाली, अनारकली, ऐंकल लैंथ वाली मैक्सी ड्रैस बनवा सकती हैं. आप अच्छे फौल के लिए अपनी ड्रैस में चौड़ी फ्रिल भी लगवा सकती हैं. ट्रैवलिंग से ले कर औफिस या फैस्टिवल किसी भी अवसर पर आप इसे कैरी कर सकती हैं. किसी भी प्रिंटेड या कढ़ाई वाले फैब्रिक से फ्लोर लैंथ गाउन बनवा कर आप फंक्शन या फैस्टिवल पर पहन सकती हैं.

टी लैंथ ड्रैस

वैकेशन या डेनाइट के लिए अथवा फ्रैंड्स के साथ पार्टी में आप स्टाइलिश दिखना चाहतीं हैं तो औरगेंजा फैब्रिक से बनी टी लैंथ ड्रैस को ट्राई करें. हलकी और कंफर्टेबल होने के साथसाथ यह आप को भरपूर स्टाइल भी देगी. इस के साथ आप जींस, पैंट या फिर कार्गो पैंट पेयर कर सकती हैं.

ट्रांसपेरैंट शर्ट्स

आजकल महिलाओं में शर्ट्स काफी पौपुलर हैं आप प्रिंटेड औरगेंजा फैब्रिक से बनी शर्ट्स ट्राई करें यह आप को बहुत पसंद आएगी. इस के साथ हाई वेस्ट चौड़ी पैंट पेयर कर सकती हैं. इन्हें आप औफिस, पार्टी और ट्रेवलिंग में भी बड़े आराम से पहन सकती हैं. अपनी पसंद के अनुसार आप कोट या सिंपल कौलर वाली शर्ट बनवा सकती हैं.

ट्रैडिशनल सूट्स

आजकल औरगेंजा फैब्रिक पर हैवी और लाइट ऐंब्रौयडरी वाले सूट्स बहुत फैशन में हैं. आप अपनी पसंद के अनुसार इन्हें ट्राई कर के खुद को ट्रैडिशनल लुक दे सकती हैं. सेम कलर का दुपट्टा ले कर आप अपनी ड्रैस को और भी अधिक आकर्षक बना सकती हैं.

औरगेंजा साड़ी

पेस्टल शेड्स वाली प्लेन साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज आजकल बहुत फैशन में है. आप अपनी पसंद और बजट के अनुसार मनपसंद साड़ी का चुनाव कर सकती हैं. किसी भी स्पैशल इवेंट, फंक्शन या त्योहार पर आप औरगेंजा साड़ी पहन सकती हैं. प्लेन साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज और हैवी साड़ी के साथ प्लेन ब्लाउज पेयर करें.

औरगेंजा लहंगा

चूंकि औरगेंजा फ्रैब्रिक बहुत हलका होता है इसलिए आप इस से बने लहंगे को प्री वैडिंग पार्टी या फिर दीवाली जैसे फैस्टिवल पर औरगेंजा फैब्रिक का लहंगा स्टाइल कर सकती हैं. हलका होने के कारण आप इसे काफी लंबे समय तक कैरी कर सकती हैं.

रखें इन बातों का ध्यान

औरगेंजा फैब्रिक काफी हलका और पारदर्शी होता है इसलिए इसे हमेशा इनर के साथ पहनें. फैब्रिक से ड्रैस बनवाते समय भी साटिन या कौटन के मोटे फैब्रिक का अस्तर लगवाएं. यह काफी नाजुक फैब्रिक होता है इसलिए प्रयोग करने के बाद ड्राईक्लीन करा कर ही रखें.

औरगेंजा फैब्रिक की साड़ी पहनते समय मैचिंग का ही पेटीकोट या डीकाट पहनें अन्यथा दूसरे रंग का पेटीकोट आप की साड़ी की खूबसूरती को ही कम कर देगा.

इस फैब्रिक से बने आउटफिट को कभी भी वाशिंग मशीन में न धोएं वरना इस के धागे निकलने लगेंगे.

Organza Outfit Ideas

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें