Baaghi 4 Flop: टाइगर की लगातार फ्लौप फिल्मों के पीछे क्या है खास वजह

Baaghi 4 Flop: जैकी श्रौफ के बेटे टाइगर श्रौफ कई सालों से अपनी हर फिल्म पर मेहनत करते आए हैं लेकिन अभी तक उन की एक भी फिल्म सुपर डुपर हिट नहीं हुई, इनफैक्ट कई फिल्में रिलीज होते ही असफलता की श्रेणी में आ गईं, हालांकि टाइगर श्रौफ ने जब से अपना अभिनय कैरियर शुरू किया है, अपनी हर फिल्म में जीतोड़ मेहनत करते हैं, डांस, ऐक्शन, रोमांस के चलते वे पूरी तरह से हीरो पैक्ड मैटीरियल लगते हैं, बावजूद इस के ऐसी क्या वजह है कि टाइगर की ज्यादातर फिल्में असफल हो जाती हैं?

हिंसा जरूरी या अच्छी कहानी

हाल ही में प्रदर्शित ‘बागी 4’ में टाइगर श्रौफ एक अलग अंदाज में नजर आए. फिल्म में पूरी तरह से हिंसा भरी हुई थी इसलिए इस की तुलना रणबीर कपूर की हिंसक फिल्म ‘एनिमल’ से की गई.

टाइगर श्रौफ जहां इस फिल्म में हीरो हैं, तो संजय दत्त इस में खतरनाक विलेन के रोल में नजर आए हैं. फिल्म का बजट ₹150 से ₹200 करोड़ के करीब है लेकिन पहले ही दिन ‘बागी 4’ को ज्यादातर निगेटिव रिव्यू मिले हैं. फिल्म में बहुत ज्यादा हिंसा, मारकाट व अत्याचार का बोलबाला है लेकिन फिल्म की आत्मा कही जाने वाली ‘बागी 4’ की कहानी कमजोर है.

फिर निराश हुए दर्शक

तड़का लगाने के लिए सोनम बवेजा और हरनाथ संधू भी फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं. लेकिन फिर भी पहले ही दिन ‘बागी 4’ की रिपोर्ट कुछ खास नहीं है. पिछली फ्लौप फिल्मों  ‘गणपत’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’, ‘वार,’ ‘ए फ्लाइंग जट्ट’ के बाद ‘बागी 4’ से भी दर्शक निराश ही हुए हैं.

दरअसल, टाइगर श्रौफ को अगर अपने पिता जैकी श्रौफ की तरह लंबे समय तक इंडस्ट्री में टिके रहना है तो बहुत जरूरी है टाइगर ऐसी फिल्में साइन करें जिस में सिर्फ उन के बौडी ऐक्शन और डांस का प्रदर्शन न हो बल्कि कहानी और उन का किरदार भी दमदार हो.

गौरतलब है कि टाइगर श्रौफ ने अब तक जितनी भी फिल्में की हैं उन फिल्मों की कहानी कमजोर थी और ऐक्शन लुक्स और डांस को प्राथमिकता दी गई थी. टाइगर श्रौफ को समझना होगा कि अगर कहानी और फिल्म मेकिंग अच्छी नहीं हुई तो उन का ऐक्शन सिक्स पैक बौडी या उछलकूद वाला डांस दर्शकों को थिएटर तक लाने में नाकामयाब होगा और ‘बागी 4’ की तरह आने वाले समय में भी अगर वह ऐसी ही फिल्में करते रहें तो असफलता का मुंह देखना पड़ेगा. इसलिए बहुत जरूरी है कि टाइगर श्रौफ में बड़े बदलाव की, इस से पहले कि उन को घर बैठना पड़ जाए.

Baaghi 4 Flop

Srishti Jain: ‘गंगा माई की बेटियां’ में अपने किरदार के लिए सीखी बनारसी

Srishti Jain: जी टीवी का नया फिक्शन ड्रामा ‘गंगा माई की बेटियां’ एक मां के गहरे जज्बातों की कहानी है, जिसे सिर्फ बेटा न होने की वजह से उस का पति छोड़ देता है. लेकिन वह मां पूरी हिम्मत, मान और सम्मान के साथ अपनी बेटियों को पालने का फैसला करती है.

इस शो में शुभांगी लाटकर गंगा माई का किरदार निभा रही हैं. उन के साथ सृष्टि जैन बड़ी बेटी साहना बनी हैं, अमनदीप सिद्धू दूसरी बेटी स्नेहा का किरदार निभा रही हैं और सब से छोटी बेटी सोनी के रोल में वैष्णवी प्रजापति नजर आएंगी. शो की पृष्ठभूमि वाराणसी के माहौल और वहां के रंगों में रचीबसी है.

सीखी स्थानीय बोली

जहां वाराणसी की गलियों और घाटों पर हुई शूटिंग ने पहले ही शो को असली रंग दे दिया है, वहीं अभिनेत्री सृष्टि जैन ने अपने किरदार साहना को सच्चा बनाने के लिए खास तैयारी की. वे वाराणसी की बोली और बोलचाल की बारीकियों को सीखने में पूरे दिल से जुट गईं. इस के लिए उन्होंने भाषा कोच की मदद ली और निर्देशक का मार्गदर्शन भी लिया जो वाराणसी के आसपास के इलाके से हैं और कई वीडियो देख कर उस बोली के लहजे और टोन को समझा.

अपनी तैयारी के बारे में सृष्टि जैन कहती हैं, “मेरे लिए साहना सिर्फ एक किरदार नहीं है, वह बनारस की बेटी है और मैं चाहती थी कि उस की बोली सचमुच यहीं की लगे. स्थानीय बोली सीखना चैलेंजिंग भी था और संतोषजनक भी. मैं ने कोच के साथ काम किया, कुछ वीडियोज देखे और हमारे निर्देशक, जो वाराणसी के आसपास के इलाके से हैं, उन्होंने उच्चारण और लहजे की सब से बारीकियों को समझाने में मेरी काफी मदद की. इस प्रोसेस से मैं न सिर्फ स्क्रीन पर अपने किरदार को सचाई से निभा सकी बल्कि इस शहर की संस्कृति और लोगों से मेरा रिश्ता और गहरा हो गया. वाराणसी की एक अलग ही ऐनर्जी है जो आप को अपने अंदर समा लेती है और मैं चाहती थी कि साहना के हर शब्द में वही झलके.”

अटूट रिश्ते की कहानी

अपने कलाकारों की ऐसी लगन और मेहनत के साथ, ‘गंगा माई की बेटियां’ एक सच्ची और दिल छू लेने वाली कहानी पेश करने जा रहा है, जिस में एक मां की हिम्मत, उस की ममता और बेटियों के अटूट रिश्ते की गहराई सामने आएगी.

देखिए ‘गंगा माई की बेटियां’ बहुत जल्द सिर्फ जी टीवी पर.

Srishti Jain

Big Boss 19: मुनव्वर फारूकी ने ली सलमान खान के कुंआरे होने की चुटकी

Big Boss 19: कलर्स के ‘बिग बौस’ शो में जब शनिवार रविवार का समय आता है तो घर वालों के साथ दर्शक भी खुश होते हैं क्योंकि इस एपिसोड में सलमान खान बिग बौस हाउस में मौजूद न सिर्फ प्रतियोगियों की क्लास लगाने आते हैं, बल्कि मजाकमस्ती भी होती है.

लिहाजा, इस बार शनिवार के वार में सलमान खान ने प्रतियोगियों की क्लास तो लगाई ही, लेकिन साथ में बतौर गेस्ट आए स्टैंडअप कौमेडियन, होस्ट व रोस्ट करने वाले ‘बिग बौस 17’ सीजन के विजेता मुन्नवर फारुकी ने सलमान खान के कुंआरे रहने को ले कर मजाक करते हुए चुटकी ले ली, जबकि सलमान खान के सामने अच्छेअच्छे की बोलती बंद हो जाती है.

मजाक और मस्ती

दरअसल, हुआ यों कि एक यूट्यूबर जोड़ी भी शामिल हुई जिस ने अपना हैश टैग सल्लू बताया. यह सुनते ही मुन्नवर तपाक से बोल पड़े,”फिर तो तुम दोनों की शादी नहीं होगी, कुंआरे ही रहोगे.”

यह सुनते ही जहां वहां मौजूद सभी लोग जोरजोर से हंसने लगे, वहीं सलमान खान के चेहरे पर हंसी के साथसाथ थोड़ी नाराजगी भी नजर आई, क्योंकि मजाकमजाक में बोली हुई बात पर रिऐक्ट करना सही नहीं होता, इसलिए सलमान खान भी हंसे बिना नहीं रह पाए.

इतना ही नहीं ‘बिग बौस 19’ में एक प्रतियोगी प्रणीत मोरे भी, जो एक स्टैंडअप कौमेडियन हैं, सलमान की ही मजाक उड़ा कर रोस्ट कर के रील बना कर शो तक पहुंच गए हैं. इस प्रणीत को टारगेट बना कर मुनव्वर ने एक और हवा में तीर फेंका यह बोल कर कि तुम तो कुछ बोलो ही मत, क्योंकि भाई ने यानि सलमान ने उन को रोस्ट करने वाली अभी तक एक ही रील देखी है, तुम ज्यादा बोला तो मैं सलमान भाई को उन का मजाक उड़ाने वाली सब रील दिखा दूंगा.

हंसी न रोक पाए सलमान

यह सब सुनने के बाद सलमान भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए. ऐसे में कहना गलत न होगा कि मिलियन फौलोवर रखने वाले रोस्ट कौमेडियन व यूट्यूबर धीरेधीरे ‘बिग बौस’ शो पर हावी होते नजर आ रहे हैं. हालांकि इन की लोकप्रियता शो को टीआरपी बढ़ाने में फायदा भी दे रही है.

Big Boss 19

Grihshobha’s Cooking Queen Competition in Bengaluru

The Grihshobha Cooking Queen event, organized by Delhi Press’s Grihshobha magazine in Bengaluru, brought together a vibrant group of women united by their passion for cooking. This celebratory contest provided a stage for home cooks to shine, learn, and be celebrated.

A highlight of the event was its spotlight on LG Hing, a brand of asafoetida known for both its flavour-enhancing and antibacterial properties. Participants were introduced to the health benefits of using LG Hing in their cooking—suggesting that this humble spice is both practical and health-conscious.

The excitement surrounding the competition was clearly palpable on social media. Instagram reels highlighted how the Cooking Queen contest was in full swing, with enthusiastic participation and a celebratory atmosphere. 

One notable feature was the involvement of renowned Chef Asha Somnath,  who lent her expert presence and further elevated the event. Her involvement not only added credibility but also excitement, as attendees got to learn and be inspired by a distinguished culinary figure. Dietician Suma Chethan empowers women with smart, simple health tips at the Grihshobha Cooking Queen competition in Bengaluru. Winner Women were honoured with well-deserved awards at the Grihshobha Cooking Queen competition in Bengaluru

Grihshobha’s Cooking Queen competition in Bengaluru was much more than a cooking contest—it was a celebration of culinary talent, hygiene, and community. By weaving together expert guidance, consumer education, and a spirit of friendly competition, the event created an empowering experience. Participants not only got to showcase their skills and compete for attractive prizes, but also left with valuable insights into nutrition, clean cooking practices, and creative recipes—making the event a flavorful success in every way

.The event was presented by LG Hing, with EXO as the Healthy Tiffin Partner, Sunpure as the Purity Partner, Seneco Gold and Diamonds as the Jewellery Partner, Nandini as the Associate Sponsor, and Pragathi TV & Praja Pragathi as our Media Partners.

Society Story in Hindi: मशीनें न बन जाएं हम

Society Story in Hindi: लोकेशजी परेशान चल रहे हैं बहुत दिन से. जीवन जैसे एक बिंदु पर आ कर खड़ा हो गया है, उन्हें कुछकुछ ऐसा लगने लगा है. समझ नहीं पा रहे जीवन को गति दें भी तो कैसे. जैसे घड़ी भी रुकी नजर आती है. मानो सुइयां चल कर भी चलती नहीं हैं. सब खड़ा है आसपास. बस, एक सांस चल रही है, वह भी घुटती सी लगती है. रोज सैर करने जाते हैं. वहां भी एक बैंच पर चुपचाप बैठ जाते हैं. लोग आगेपीछे सैर करते हैं, टकटकी लगा कर उन्हीं को देखते रहते हैं. बच्चे साइकिल चलाते हैं, फुटबाल खेलते हैं. कभी बौल पास आ जाए तो उठा कर लौटा देते हैं लोकेशजी. यही सिलसिला चल रहा है पिछले काफी समय से.

‘‘क्या बात है, अंकल? कोई परेशानी है?’’ एक प्यारी सी बच्ची ने पास आ कर पूछा. नजरें उठाईं लोकेशजी ने. यह तो वही प्यारी सी बच्ची है जिसे पिछले सालभर के अंतराल से देख रहे हैं लोकेशजी. इसी पार्क में न जाने कितनी सैर करती है, शायद सैर पट्टी पर 20-25 चक्कर लगाती है. काफी मोटी थी पहले, अब छरहरी हो गई है. बहुत सुंदर है, मौडल जैसी चलती है. अकसर हर सैर करने वाले की नजर इसी पर रहती है. सुंदरता सदा सुख का सामान होती है यह पढ़ा था कभी, अब महसूस भी करते हैं. जवानी में भी बड़ी गहराई से महसूस किया था जब अपनी पत्नी से मिले थे. बीच में भूल गए थे क्योंकि सुख का सामान साथ ही रहा सदा, आज भी साथ है. शायद सुखी रहने की आदत भी सुख का महत्त्व कम कर देती है. जो सदा साथ ही रहे उस की कैसी इच्छा.

इस बच्ची पर हर युवा की नजर पड़ती देखते हैं तो फिर से याद आती है एक भूलीबिसरी सी कहानी जब वे भी जवान थे और सगाई के बाद अपनी होने वाली पत्नी की एक झलक पाने के लिए उस के कालेज में छुट्टी होने के समय पहुंच जाया करते थे.

‘‘अंकल, क्या बात है, आप परेशान हैं?’’ पास बैठ गई वह बच्ची. उन की बांह पर हाथ रखा.

‘‘अं…हं…’’ तनिक चौंके लोकेशजी, ‘‘नहीं तो बेटा, ऐसा तो कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो है, कई दिन से देख रही हूं, आप सैर करने आते तो हैं लेकिन सैर करते ही नहीं?’’

चुप रहे लोकेशजी. हलका सा मुसकरा दिए. बड़ीबड़ी आंखों में सवाल था और होंठों पर प्यारी सी मुसकान.

‘‘घर में तो सब ठीक है न? कुछ तो है, बताइए न?’’

मुसकराहट आ गई लोकेशजी के होंठों पर.

‘‘आप को कहीं ऐसा तो नहीं लग रहा कि मैं आप की किसी व्यक्तिगत समस्या में दखल दे रही हूं. वैसे ऐसा लगना तो नहीं चाहिए क्योंकि आप ने भी एक दिन मेरी व्यक्तिगत समस्या में हस्तक्षेप किया था. मैं ने बुरा नहीं माना था, वास्तव में बड़ा अच्छा लगा था मुझे.’’

‘‘मैं ने कब हस्तक्षेप किया था?’’ लोकेश के होंठों से निकल गया. कुछ याद करने का प्रयास किया. कुछ भी याद नहीं आया.

‘‘हुआ था ऐसा एक दिन.’’

‘‘लेकिन कब, मुझे तो याद नहीं आ रहा.’’

‘‘कुछ आदतें इतनी परिपक्व हो जाती हैं कि हमें खुद ही पता नहीं चलता कि हम कब उस का प्रयोग भी कर जाते हैं. अच्छा इंसान अच्छाई कर जाता है और उसे पता भी नहीं होता क्योंकि उस की आदत है अच्छाई करना.’’

हंस पड़े लोकेशजी. उस बच्ची का सिर थपक दिया.

‘‘बताइए न अंकल, क्या बात है?’’

‘‘कुछ खास नहीं न, बच्ची. क्या बताऊं?’’

‘‘तो फिर उठिए, सैर कीजिए. चुपचाप क्यों बैठे हैं. सैर पट्टी पर न कीजिए, यहीं घास पर ही कीजिए. मैं भी आप के साथसाथ चलती हूं.’’

उठ पड़े लोकेशजी. वह भी साथसाथ चलने लगी. बातें करने लगे और एकदूसरे के विषय में जानने लगे. पता चला, उस के पिता अच्छी नौकरी से रिटायर हुए हैं. एक बहन है जिस की शादी हो चुकी है.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है, बच्चे?’’

‘‘नेहा.’’

बड़ी अच्छी बातें करती है नेहा. बड़ी समझदारी से हर बात का विश्लेषण भी कर जाती. एमबीए है. अच्छी कंपनी में काम करती है. बहुत मोटी थी पहले, अब छरहरी लगती है. धीरेधीरे वह लोकेशजी को बैठे रहने ही न देती. सैर करने के लिए पीछे पड़ जाती.

‘‘चलिए, आइए अंकल, उठिए, बैठना नहीं है, सैर कीजिए, आइएआइए…’’

उस का इशारा होता और लोकेशजी उठ पड़ते. उस से बातें करते. एक दिन सहसा पूछा लोकेशजी ने, ‘‘एक बात तो बताना बेटा, जरा समझाओ मुझे, इंसान संसार में आया, बच्चे से जवान हुआ, शादीब्याह हुआ, बच्चे हुए, उन्हें पालापोसा, बड़ा किया, उन की भी शादियां कीं. वे अपनीअपनी जिंदगी में रचबस गए. इस के बाद अब और क्या? क्या अब उसे चले नहीं जाना चाहिए? क्यों जी रहा है यहां, समझ में नहीं आता.’’

चलतेचलते रुक गई नेहा. कुछ देर लोकेशजी का चेहरा पढ़ती रही.

‘‘तो क्या इतने दिन से आप यही सोच रहे थे यहां बैठ कर?’’

चुप रहे लोकेशजी.

‘‘आप यह सोच रहे थे कि सारे काम समाप्त हो गए, अब चलना चाहिए, यही न. मगर जाएंगे कहां? क्या अपनी मरजी से आए थे जो अपनी मरजी से चले भी जाएंगे? कहां जाएंगे, बताइए? उस जहान का रास्ता मालूम है क्या?’’

‘‘कौन सा जहान?’’

‘‘वही जहां आप और मेरे पापा भी चले जाना चाहते हैं. न जाने कब से बोरियाबिस्तर बांध कर तैयार बैठे हैं. मानो टिकट हाथ में है, जैसे ही गाड़ी आएगी, लपक कर चढ़ जाएंगे. बिना बुलाए ही चले जाएंगे क्या?

‘‘सुना है यमराजजी आते हैं लेने. जब आएंगे चले जाना शान से. अब उन साहब के इंतजार में समय क्यों बरबाद करना. चैन से जीना नहीं आता क्या?’’

‘‘चैन से कैसे जिएं?’’

‘‘चैन से कैसे जिएं, मतलब, सुबह उठिए अखबार के साथ. एक कप चाय पीजिए. नाश्ता कीजिए, अपना समय है न रिटायरमैंट के बाद. कोई बंधन नहीं. सारी उम्र मेहनत की है, क्या चैन से जीना आप का अधिकार नहीं है या चैन से जीना आता ही नहीं है. क्या परेशानी है?’’

‘‘अपने पापा को भी इसी तरह डांटती हो?’’

‘‘तो क्या करूं? जब देखो ऐसी ही उदासीभरी बातें करते हैं. अब मेरी मम्मी तो हैं नहीं जो उन्हें समझाएं.’’

क्षणभर को चौंक गए लोकेशजी. सोचने लगे कि उन के पास पत्नी का साथ तो है लेकिन उस का सुख भी गंवा रहे हैं वे. नेहा के पिता के पास तो वह सहारा भी नहीं.

‘‘चलिए, कल इतवार है न. आप हमारे घर पर आइए, बैठ कर गपशप करेंगे. अपने घर का पता बताइए.’’

पता बताया लोकेशजी ने. फिर अवाक् रहने के अलावा कुछ नहीं सूझा. उन का फ्लैट 25 नंबर और इन का 12. घरों की पिछली दीवारें मिलती हैं. एक कड़वी सी हंसी चली आई नेहा के होंठों पर. कड़वी और खोखली सी भी.

‘‘फेसबुक पर हजारों मित्र हैं मेरे, शायद उस से भी कहीं ज्यादा मेरा सुख मेरा दुख पढ़ते हैं वे. मैं उन का पढ़ती हूं और बस. डब्बा बंद, सूरत गायब. वे अनजान लोग मुझे शायद ही कभी मिलें.

‘‘जरूरत पड़ने पर वे कभी काम नहीं आएंगे क्योंकि वे बहुत दूर हैं. आप उस दिन काम आए थे जब सैरपट्टी पर एक छिछोरा बारबार मेरा रास्ता काट रहा था. आप ने उस का हाथ पकड़ उसे किनारे किया था और मुझे समझाया था कि अंधेरा हो जाने के बाद सैर को न आया करूं.

‘‘आप मेरे इतने पास हैं और मुझे खबर तक नहीं है.’’

आंखें भर आई थीं नेहा की. सच ही तो सोच रही है, हजारों दोस्त हैं जो लैपटौप की स्क्रीन पर हैं, सुनते हैं, सुनाते हैं. पड़ोस में कोई है उस का पता ही नहीं क्योंकि संसार से ही फुरसत नहीं है. पड़ोसी का हाल कौन पूछे. अपनेआप में ही इतने बंद से हो गए हैं कि जरा सा किसी ने कुछ कह दिया कि आहत हो गए. अपनी खुशी का दायरा इतना छोटा कि किसी एक की भी कड़वी बात बीमार ही करने लगी. यों तो हजारों दोस्तों की भीड़ है, लेकिन सामने बैठ कर बात करने वाला एक भी नहीं जो कभी गले लगा कर एक सुरक्षात्मक भाव प्रदान कर सके.

‘‘यही बातें उदास करती हैं मुझे नेहा. आज की पीढ़ी जिंदा इंसानों से कितनी दूर होती जा रही है. सारे संसार की खबर रखते हैं लेकिन हमारे पड़ोसी कौन हैं, नहीं जानते. हमारे साथ वाले घर में कौन रहता है, पता ही नहीं हमें. अमेरिका में क्या हो रहा है, पता न चले तो स्वयं को पिछड़ा हुआ मानते हैं. हजारों मील पार क्या है, जानने की इच्छा है हमें. पड़ोसी चार दिन से नजर नहीं आया. हमें फिक्र नहीं होती. और जब पता चलता है हफ्तेभर से ही मरा पड़ा है तो भी हमारे चेहरे पर दुख के भाव नहीं आते. हम कितने संवेदनहीन हैं. यही सोच कर उदास होने लगता हूं.

‘‘अपने बच्चों को इतना डरा कर रखते हैं कि किसी से बात नहीं करने देते. आसपड़ोस में कहीं आनाजाना नहीं. फ्लैट्स में या पड़ोस में कोई रहता है, बच्चे स्कूल आतेजाते कभी घंटी ही बजा दें, बूढ़ाबूढ़ी का हालचाल ही पूछ लें लेकिन नहीं. ऐसा लगता है हम जंगल में रहते हैं, आसपास इंसान नहीं जानवर रहते हैं. हर इंसान डरा हुआ अपने ही खोल में बंद,’’ कहतेकहते चुप हो गए लोकेशजी.

उन का जमाना कितना अच्छा था. सब से आशीर्वाद लेते थे, सब की दुआएं मिलती थीं. आज ऐसा लगता है सदियां हो गईं किसी को आशीर्वाद नहीं दिया. जो उन्हें विरासत में मिला उन का भी जी चाहता है उसे आने वाली पीढ़ी को परोसें. मगर कैसे परोसें? कोई कभी पास तो आए कोई इज्जत से झुके, मानसम्मान से पेश आए तो मन की गहराई से दुआ निकलती है. आज दुआ देने वाले हाथ तो हैं, ऐसा लगता है दुआ लेना ही हम ने नहीं सिखाया अपने बच्चों को.’’

‘‘अंकल चलिए, आज मेरे साथ मेरे घर. मैं आंटीजी को ले आऊंगी. रात का खाना हम साथ खाएंगे.’’

‘‘आज तुम आओ, बच्चे. तुम्हारी आंटी ने सरसों का साग बनाया है. कह रही थीं, बच्चे दूर हैं अकेले खाने का मजा नहीं आएगा.’’

भीग उठी थीं नेहा की पलकें. आननफानन सब तय हो भी गया. करीब घंटेभर बाद नेहा अपने पिता के साथ लोकेशजी के फ्लैट के बाहर खड़ी थी. लोकेशजी की पत्नी ने दरवाजा खोला. सामने नेहा को देखा.

‘‘अरे आप…आप यहां.’’

एक सुखद आश्चर्य और मिला नेहा को. हर इतवार जब वह सब्जी मंडी सब्जी लेने जाती है तब इन से ही तो मुलाकात होती है. अकसर दोनों की आंख भी मिलती है और कुछ भाव प्रकट होते हैं, जैसे बस जानपहचान सी लगती है.

‘‘तुम जानती हो क्या शोभा को?’’ आतेआते पूछा लोकेशजी ने. चारों आमनेसामने. इस बार नेहा के पिता

भी अवाक्. लोकेशजी का चेहरा जानापहचाना सा लगने लगा था.

‘‘तुम…तुम लोकेश हो न और शोभा तुम…तुम ही हो न?’’

बहुत पुराने मित्र आमनेसामने खड़े थे. नेहा मूकदर्शक बनी पास खड़ी थी. अनजाने ही पुराने मित्रों को मिला दिया था उस ने. शोभा ने हाथ पकड़ कर नेहा को भीतर बुलाया. मित्रों का गले मिलना संपन्न हुआ और शोभा का नेहा को एकटक निहारना देर तक चलता रहा. मक्की की रोटी के साथ सरसों का साग उस दिन ज्यादा ही स्वादिष्ठ लगा.

‘‘देखिए न आंटी, आप का घर इस ब्लौक में और हमारा उस ब्लौक में.

2 साल हो गए हमें यहां आए. आप तो शायद पिछले 5 साल से यहां हैं. कभी मुलाकात ही नहीं हुई.’’

‘‘यही तो आज की पीढ़ी को मिल रहा है बेटा, अकेलापन और अवसाद. मशीनों से घिर गए हैं हम. जो समय बचता है उस में टीवी देखते हैं या लैपटौप पर दुनिया से जुड़ जाते हैं. इंसानों को पढ़ना अब आता किसे है. न तुम किसी को पढ़ते हो न कोई तुम्हें पढ़ता है. भावना तो आज अर्थहीन है. भावुक मनुष्य तो मूर्ख है. आज के युग में, फिर शिकवा कैसा. अपनत्व और स्नेह अगर आज दोगे

नहीं तो कल पाओगे कैसे? यह तो प्रकृति का नियम है. जो आज परोसोगे वही तो कल पाओगे.’’

चुपचाप सुनती रही नेहा. सच ही तो कह रही हैं शोभा आंटी. नई पीढ़ी को यदि अपना आने वाला कल सुखद और मीठा बनाना है तो यही सुख और मिठास आज परोसना भी पड़ेगा वरना वह दिन दूर नहीं जब हमारे आसपास मात्र मशीनें ही होंगी, चलतीफिरती मशीनें, मानवीय रोबोट, मात्र रोबोट. शोभा आंटी बड़ी प्यारी, बड़ी ममतामयी सी लगीं नेहा को. मानो सदियों से जानती हों वे इन्हें.

वह शाम बड़ी अच्छी रही. लोकेश और शोभा देर तक नेहा और उस के पिता से बातें करते रहे. उस समय जब शायद नेहा का जन्म भी नहीं हुआ था तब दोनों परिवार साथसाथ थे. नेहा की मां अपने समय में बहुत सुंदर मानी जाती थीं.

‘‘मेरी मम्मी बहुत सुंदर थीं न? आप ने तो उन्हें देखा था न?’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने नहीं देखा?’’

‘‘बहुत हलका सा याद है, मैं तब

7-8 साल की थी. जब उन की रेल दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. मैं उन की गोद में थी. वे चली गईं और मैं रह गई, यह देखिए उस दुर्घटना की निशानी,’’ माथे पर गहरा लाल निशान दिखाया नेहा ने. मां के हाथ की चूड़ी धंस गई थी उस के माथे की हड्डी में. वह आगे बोली, ‘‘पापा ने बहुत समझाया कि प्लास्टिक सर्जरी करवा लूं, यह दाग अच्छा नहीं लगता. मेरा मन नहीं मानता. मां की निशानी है न, इसे कैसे मिटा दूं.’’

नेहा का स्वर भीग गया. मेज का सामान उठातेउठाते शोभा के हाथ रुक गए. प्यारी सी बच्ची माथे की चोट में भी मां को पा लेने का सुख खोना नहीं चाहती.

वह दिन बीता और उस के बाद न जाने कितने दिन. पुरानी दोस्ती का फिर जीवित हो जाना एक वरदान सा लगा नेहा को. अब उस के पापा पहले की तरह उदास नहीं रहते और लोकेश अंकल भी उदास से पार्क की बैंच पर नहीं बैठते. मानो नेहा के पास 3-3 घर हो गए हों. औफिस से आती तो मेज पर कुछ खाने को मिलता. कभी पोहा, कभी ढोकला, कभी हलवा, कभी इडली सांबर. पूछने पर पता चलता कि लोकेश अंकल छोड़ गए हैं. कभी शोभा आंटी की बाई छोड़ गई है.

खापी कर पार्क को भागती मानो वह तीसरा घर हो जहां लोकेश अंकल इंतजार करते मिलते. वहां से कभी इस घर और कभी उस घर.

लोकेशजी के दोनों बेटे अमेरिका में सैटल हैं. उन की भी दोस्ती हो गई है नेहा से. वीडियो चैटिंग करती है वह उन से. शोभा आंटी उस की सखी भी बन गई हैं अब. वे बातें जो वह अपनी मां से करना चाहती थी, अब शोभाजी से करती है. जीवन कितना आसान लगने लगा है. उस के पापा भी अब उस जहान में जाने की बात नहीं करते जिस का किसी को पता नहीं है. ठीक है जब बुलावा आएगा चले जाएंगे, हम ने कब मना किया. जिंदा हो गए हैं तीनों बूढ़े लोग एकदूसरे का साथ पा कर और नेहा उन तीनों को खुश देख कर, खुशी से चूर है.

क्या आप के पड़ोस में कोई ऐसा है जो उदास है, आप आतेजाते बस उस का हालचाल ही पूछ लें. अच्छा लगेगा आप को भी और उसे भी.

Society Story in Hindi

Motivational Story: घोंसला- सारा ने क्यों शादी से किया था इंकार

Motivational Story: साराआज खुशी से झम रही थी. खुश हो भी क्यों न पुणे की एक बहुत बड़ी फर्म में उस की नौकरी जो लग गई थी. अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुए वह अपनी मम्मी से बोली, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरी उड़ान कोई नहीं रोक सकता.’’

‘‘पापा ने पढ़ने के लिए मुझे मुजफ्फरनगर से बाहर नहीं जाने दिया पर अब इतनी अच्छी नौकरी मिली है कि वह मुझे रोक नहीं सकते हैं.’’

सारा थी 23 वर्ष की खूबसूरत नवयुवती, जिंदगी से भरपूर, गोरा रंग, गोलगोल आंखें, छोटी सी नाक और गुलाबी होंठ, होंठों के बीच काला तिल सारा को और अधिक आकर्षक बना देता था. उसे खुले आकाश में उड़ने का शौक था. वह अकेले रहना चाहती थी और जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती थी.

जब भी सारा के पापा कहते, ‘‘हमें तुम से जिंदगी का अधिक अनुभव है इसलिए हमारा कहा मानो.’’

सारा फट से कहती, ‘‘पापा मैं अपने अनुभवों से कुछ सीखना चाहती हूं.’’

सारा के पापा उसे पुणे भेजना नहीं चाहते थे पर सारा की दलीलों के आगे उन की एक न चली.

फिर सारा की मम्मी ने भी समझया, ‘‘इतनी अच्छी नौकरी है, आजकल अच्छी नौकरी वाली लड़कियों की शादी आराम से हो जाती है.

फिर सारा के पापा ने हथियार डाल दिए थे. ढेर सारी नसीहतें दे कर सारा के पापा वापस मुजफ्फरनगर आ गए थे.

सारा को शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई थी परंतु धीरधीरे वह पुणे की लाइफ की अभ्यस्त हो गई थी.

यहां पर मुजफ्फरनगर की तरह न टोकाटाकी थी न ही ताकाझंकी. सारा को आधुनिक कपड़े पहनने का बहुत शौक था जिसे सारा अब पूरा कर पाई थी. वह स्वच्छंद तितली की तरह जिंदगी बिता रही थी. दफ्तर में ही सारा की मुलाकात मोहित से हुई थी. मोहित का ट्रांसफर दिल्ली से पुणे हुआ था.

मोहित को सारा पहली नजर में ही भा गई थी. सारा और मोहित अकसर वीकैंड पर बाहर घूमने जाते थे. परंतु सारा को हरहाल में रात 9 बजे तक अपने होस्टल वापस जाना ही पड़ता था.

फिर एक दिन मोहित ने यों ही सारा से कहा, ‘‘सारा, तुम मेरे फ्लैट में शिफ्ट क्यों नहीं हो जाती हो. चिकचिक से छुटकारा भी मिल जाएगा और हमें यों ही हर वीकैंड पर बंजारों की तरह घूमना नहीं पड़ेगा. सब से बड़ी बात तुम्हारा होस्टल का खर्च भी बच जाएगा.’’

सारा छूटते ही बोली, ‘‘पागल हो क्या, ऐसे कैसे रह सकती हूं तुम्हारे साथ? मतलब मेरातुम्हारा रिश्ता ही क्या है?’’

मोहित बोला, ‘‘रहने दो बाबा, मैं तो भूल ही गया था कि तुम तो गांव की गंवार हो. छोटे शहर के लोगों की मानसिकता कहां बदल सकती हैं चाहे वह कितने ही आधुनिक कपड़े पहन लें.’’

सारा मोहित की बात सुन कर एकदम चुप हो गईं. अगले कुछ दिनों तक मोहित सारा से खिंचाखिंचा रहा.

एक दिन सारा ने मोहित से पूछा, ‘‘मोहित, आखिर मेरी गलती क्या हैं?’’

मोहित बोला, ‘‘तुम्हारा मुझ पर अविश्वास.’’

‘‘बात अविश्वास की नहीं है मोहित, मेरे परिवार को अगर पता चल जाएगा तो वे मेरी नौकरी भी छुड़वा देंगे.’’

‘‘तुम्हें अगर रहना है तो बताओ बाकी सब मैं हैंडल कर लूंगा.’’

घर पर पापा के मिलिटरी राज के कारण सारा का आज तक कोई बौयफ्रैंड नहीं बन पाया था, इसलिए वह यह सुनहरा मौका हाथ से नहीं छोड़ना चाहती थी. अत: 1 एक हफ्ते बाद मोहित के साथ शिफ्ट कर गई. घर पर सारा ने बोल दिया कि उस ने एक लड़की के साथ अलग से फ्लैट ले लिया है क्योंकि उसे होस्टल में बहुत असुविधा होती थी.

यह बात सुनते ही सारा के मम्मीपापा ने जाने के लिए सामान बांध लिया था. वे देखना चाहते थे कि उन की लाड़ली कैसे अकेले रहती होगी.

सारा घबरा कर मोहित से बोली, ‘‘अब क्या करेंगे?’’

मोहित हंसते हुए बोला, ‘‘अरे देखो मैं कैसा चक्कर चलाता हूं,’’

अगले रोज मोहित अपनी एक दोस्त शैली को ले कर आ गया और बोला, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा के सामने मैं शैली के बड़े भाई के रूप में उपस्थित रहूंगा.’’

सारा के मम्मीपापा आए और फिर मोहित के नाटक पर मोहित हो कर चले गए.

सारा के मम्मीपापा के सामने मोहित शैली के बड़े भाई के रूप में मिलने आता. सारा के मम्मीपापा को अब तसल्ली हो गई थी और वे निश्तिंत हो कर वापस अपने घर चले गए.

सारा और मोहित एकसाथ रहने लगे थे. सारा को मोहित का साथ भाता था परंतु अंदर ही अंदर उसे अपने मम्मीपापा से झठ बोलना भी कचोटता रहता था. एक दिन सारा ने मोहित से कहा, ‘‘मोहित, तुम मुझे पसंद करते हो क्या?’’

मोहित बोला, ‘‘अपनी जान से भी ज्यादा?’’

सारा बोली, ‘‘मोहित तुम और मैं क्या इस रिश्ते को नाम नहीं दे सकते हैं?’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला,’’ यार मुझे माफ करो, मैं ने पहले ही कहा था कि हम एक दोस्त की तरह ही रहेंगे. मैं तुम पर कोई बंधन नहीं लगाना चाहता हूं और न ही तुम मुझ पर लगाया करो. और तुम यह बात क्यों भूल जाती हो कि मेरे घर पर रहने के कारण तुम्हारी कितनी बचत हो रही है और भी कई फायदे भी हैं,’’ कहते हुए मोहित ने अपनी आंख दबा दी.

सारा को मोहित का यह सस्ता मजाक बिलकुल पसंद नहीं आया. 2 दिन तक मोहित और सारा के बीच तनाव बना रहा परंतु फिर से मोहित ने हमेशा की तरह सारा को मना लिया. सारा भी अब इस नए लाइफस्टाइल की अभ्यस्त हो चुकी थी.

सारा जब मुजफ्फरनगर से पुणे आई थी तो उस के बड़ेबड़े सपने थे परंतु अब न जाने क्यों उस के सब सपने मोहित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए थे.

आज सारा बेहद परेशान थी. उस के पीरियड्स की डेट मिस हो गई थी. जब उस ने मोहित को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘सारा ऐसे कैसे हो सकता है हम ने तो सारे प्रीकौशंस लिए थे?’’

‘‘तुम मुझ पर शक कर रहे हो?’’

‘‘नहीं बाबा कल टैस्ट कर लेना.’’

सारा को जो डर था वही हुआ. प्रैगनैंसी किट की टैस्ट रिपोर्ट देख कर सारा के हाथपैर ठंडे पड़ गए.

मोहित उसे संभालते हुए बोला, ‘‘सारा टैंशन मत लो कल डाक्टर के पास चलेंगे.’’

अगले दिन डाक्टर के पास जा कर जब उन्होंने अपनी समस्या बताई तो डाक्टर बोली, ‘‘पहली बार अबौर्शन कराने की सलाह मैं नहीं दूंगी… आगे आप की मरजी.’’

घर आ कर सारा मोहित की खुशामद करने लगी, ‘‘मोहित, प्लीज शादी कर लेते हैं. यह हमारे प्यार की निशानी है.’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला, ‘‘सारा, प्लीज फोर्स मत करो… यह शादी मेरे लिए शादी नहीं बल्कि एक फंदा बनेगी.’’

सारा फिर चुप हो गई थी. अगले दिन चुपचाप जब सारा तैयार हो कर जाने लगी तो मोहित भी साथ हो लिया.

रास्ते में मोहित बोला, ‘‘सारा, मुझे मालूम है तुम मुझ से गुस्सा हो पर ऐसा कुछ

जल्दबाजी में मत करो जिस से बाद में हम

दोनों को घुटन महसूस हो. देखो इस रिश्ते में

हम दोनों का फायदा ही फायदा है और शादी के लिए मैं मना कहां कर रहा हूं, पर अभी नहीं कर सकता हूं.’’

डाक्टर से सारा और मोहित ने बोल दिया था कि कुछ निजी कारणों से वे अभी बच्चा नहीं कर सकते हैं.

डाक्टर ने उन्हें अबौर्शन के लिए 2 दिन बाद आने के लिए कहा. मोहित ने जब पूरा खर्च पूछा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘25 से 30 हजार रुपए.’’

घर आ कर मोहित ने पूरा हिसाब लगाया, ‘‘सारा तुम्हें तो 3-4 दिन बैड रैस्ट भी करना होगी जिस कारण तुम्हें लीव विदआउट पे लेनी पड़ेगी. तुम्हारा अधिक नुकसान होगी, इसलिए इस अबौर्शन का 50% खर्चा मैं उठा लूंगा.’’

सारा छत को टकटकी लगाए देख रही थी. बारबार उसे ग्लानि हो रही थी कि वह एक जीव हत्या करेगी. बारबार सारा के मन में खयाल आ रहा था कि अगर उस की और मोहित की शादी हो गई होती तो भी मोहित ऐसे ही 50% खर्चा देता. सारा ने रात में एक बार फिर मोहित से बात करने की कोशिश करी, मगर उस ने बात को वहीं समाप्त कर दिया.

मोहित बोला, ‘‘तुम्हें वैसे तो बराबरी चाहिए, मगर अब फीमेल कार्ड खेल रही हो. यह गलती दोनों की है तो 50% भुगतान कर तो रहा हूं और यह बात तुम क्यों भूल जाती हो कि तुम्हारा वैसे ही क्या खर्चा होता है. यह घर मेरा है जिस में तुम बिना किराए दिए रहती हो.’’

मोहित की बात सुन कर सारा का मन खट्टा हो गया.

जब से सारा अबौर्शन करा कर लौटी थी वह मोहित के साथ हंसतीबोलती जरूर थी, मगर उस के अंदर बहुत कुछ बदल गया था. पहले जो सारा मोहित को ले कर बहुत केयरिंग और पजैसिव थी अब उस ने मोहित से एक डिस्टैंस बना लिया था.

शुरूशुरू में तो मोहित को सारा का बदला व्यवहार अच्छा लग रहा था परंतु बाद में उसे सारा का वह अपनापन बेहद याद आने लगा.

पहले मोहित जब औफिस से घर आता था तो सारा उस के साथ ही चाय लेती थी परंतु आजकल अधिकतर वह गायब ही रहती थी.

एक दिन संडे को मोहित ने कहा, ‘‘सारा कल मैं ने अपने कुछ दोस्त लंच पर बुलाए हैं.’’

सारा लापरवाही से बोली, ‘‘तो मैं क्या

करूं, तुम्हारे दोस्त हैं तुम उन्हें लंच पर बुलाओ या डिनर पर.’’

‘‘अरे यार हम एकसाथ एक घर में रहते हैं… ऐसा क्यों बोल रही हो.’’

सारा मुसकराते हुए बोली, ‘‘बेबी, इस घोंसले की दीवारें आजाद हैं… जो जब चाहे उड़ सकता है. कोई तुम्हारी पत्नी थोड़े ही हूं जो तुम्हारे दोस्तों को ऐंटरटेन करूं.’’

मोहित मायूस होते हुए बोला, ‘‘एक दोस्त के नाते भी नहीं?’’

‘‘कल तुम्हारी इस दोस्त को अपने दोस्तों के साथ बाहर जाना है.’’

मोहित आगे कुछ नहीं बोल पाया.

सारा ने अब तक अपनी जिंदगी मोहित

के इर्दगिर्द ही सीमित कर रखी थी. जैसे ही उस

ने बाहर कदम बढ़ाए तो सारा को लगा कि वह कुएं के मेढक की तरह अब तक मोहित के

साथ बनी हुई थी. इस कुएं के बाहर तो बहुत

बड़ा समंदर है. सारा अब इस समंदर की सारी सीपियों और मोतियों को अनुभव करना

चाहती थी.

एक दिन डिनर करते हुए सारा मोहित से बोली, ‘‘मोहित, तुम्हें पता नहीं है तुम कितने अच्छे हो.’’

मोहित मन ही मन खुश हो उठा. उसे लगा कि अब सारा शायद फिर से प्यार का इकरार करेगी.

मगर सारा मोहित की आशा के विपरीत बोली, ‘‘अच्छा हुआ तुम ने शादी करने से मना कर दिया. मुझे उस समय बुरा अवश्य लगा परंतु अगर हम शादी कर लेते तो मैं इस कुएं में ही सड़ती रहती.’’

अगले माह मोहित को कंपनी के काम से बैंगलुरु जाना था. उसे न जाने क्यों अब सारा का यह स्वच्छंद व्यवहार अच्छा नहीं लगता था. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि अगले माह सारा के जन्मदिन पर वह उसे प्रोपोज कर देगा और फिर परिवार वालों की सहमति से अगले साल तक विवाह के बंधन में बंध जाएंगे.

बैंगलुरु पहुंचने के बाद भी मोहित ही सारा को मैसेज करता रहता था परंतु चैट पर बकबक करने वाली सारा अब बस हांहूं के मैसेज तक सीमित हो गई थी.

जब मोहित बैंगलुरु से वापस पुणे पहुंचा तो देखा सारा वहां नही थी. उस ने फोन लगाया तो सारा की चहकती आवाज आई, ‘‘अरे यार मैं गोवा में हूं, बहुत मजा आ रहा है.’’

इस से पहले कि मोहित कुछ बोलता सारा ने झट से फोन काट दिया.

3 दिन बाद जब सारा वापस आई तो मोहित बोला, ‘‘बिना बताए ही चली गईं, एक बार पूछा भी नही.’’

सारा बोली, ‘‘तुम मना कर देते क्या?’’

मोहित झेंपते हुए बोला, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था.’’

मोहित को उस के एक नजदीकी दोस्त ने बताया था कि सारा अर्पित नाम के लड़के के साथ गोवा गई थी. मोहित को यह सुन कर बुरा लगा था, मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि सारा से क्या बात करे? उस ने खुद ही अपने और सारा के बीच यह खाई बनाई थी.

मोहित सारा को दोबारा से अपने करीब लाने के लिए सारे ट्रिक्स अपना चुका था परंतु अब सारा पानी पर तेल की तरह फिसल गई थी.

अगले हफ्ते सारा का जन्मदिन था. मोहित ने मन ही मन उसे सरप्राइज देने की सोच रखी थी. तभी उस रात अचानक मोहित को तेज बुखार हो गया. सारा ने उस की खूब अच्छे से देखभाल करी. 5 दिन बाद जब मोहित पूरी तरह से ठीक हो गया तो उसे विश्वास हो गया कि सारा उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. मोहित ने सारा के लिए हीरे की अंगूठी खरीद ली. कल सारा का जन्मदिन था. मोहित शाम को जल्दी आ गया था. उस ने औनलाइन केक बुक कर रखा था.

न जाने क्यों आज उसे सारा का बेसब्री से इंतजार था.

जैसे ही सारा घर आई तो मोहित ने उस के लिए चाय बनाई. सारा ने मुसकराते हुए चाय का कप पकड़ा और कहा, ‘‘क्या इरादा है जनाब का?’’

मोहित बोला, ‘‘कल तुम्हारा जन्मदिन है, मैं तुम्हें स्पैशल फील कराना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो तुम्हें मेरे घर आ कर करना पड़ेगा.’’

‘‘तुम क्या अपने घर जा रही हो जन्मदिन पर.’’

‘‘मैं ने अपने औफिस के पास एक छोटा सा फ्लैट ले लिया है. मैं अपना जन्मदिन वहीं मनाना चाहती हूं. अब मैं अपना खर्च खुद उठाना चाहती हूं… यह निर्णय मुझे बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था.’’

मोहित बोला, ‘‘मुझे मालूम है तुम मुझ से अब तक अबौर्शन की बात से नाराज हो. यार मेरी गलती थी कि मैं ने तुम से तब शादी करने के लिए मना कर दिया था.’’

‘‘अरे नहीं तुम सही थे, मजबूरी में अगर तुम मुझ से शादी कर भी लेते तो हम दोनों हमेशा दुखी रहते.’’

‘‘सारा मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मोहित पर मैं तुम से आकर्षित थी… अगर प्यार होता तो शायद आज मैं अलग रहने का फैसला नहीं लेती.’’

सारा सामान पैक कर रही थी. मोहित के अहम को ठेस लग गई थी, इसलिए उस ने अपना आखिरी दांव खेला, ‘‘तुम्हारे नए बौयफ्रैंड को पता है कि तुम ने अबौर्शन करवाया था. अगर तुम्हारे घर वालों को यह बात पता चल जाएगी तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा? मैं तुम पर विश्वास करता हूं, इसलिए मैं तुम से शादी करने को अभी भी तैयार हूं.’’

‘‘पर मोहित मैं तैयार नहीं हूं. बहुत अच्छा हुआ कि इस बहाने ही सही मुझे तुम्हारे विचार पता चल गए. और रही बात मेरे परिवार की, तो वे कभी नहीं चाहेंगे कि मैं तुम जैसे लंपट इंसान से विवाह करूं. मोहित तुम्हारा यह घोंसला आजादी के तिनकों से नहीं वरन स्वार्थ के तिनकों से बुना हुआ है. अगर एक दोस्त के नाते कभी मेरे घर आना चाहो तो अवश्य आ सकते हो,’’ कहते हुए सारा ने अपने नए घोंसले का पता टेबल पर रखा और एक स्वच्छंद चिडि़या की तरह खुले आकाश में विचरण करने के लिए उड़ गई.

सारा ने अब निश्चय कर लिया था कि वह अपनी मेहनत और हिम्मत के तिनकों से अपना घोंसला स्वयं बनाएगी. तिनकातिनका जोड़ कर बनाएगी अब वह अपना घोंसला… आज की नारी में हिम्मत, मेहनत और खुद पर विश्वास का हौसला.

Motivational Story

Hindi Story Collection : चक्रव्यूह – क्या हुआ था सुशील के साथ

Hindi Story Collection : यौन दुराचार के आरोप में निलंबन, धूमिल सामाजिक प्रतिष्ठा और एक लंबी विभागीय जांच प्रक्रिया के बाद निर्दोष साबित हो कर फिर बहाल हुए सुशील आज पहली बार औफिस पहुंचे. पूरा स्टाफ उन के सम्मान में खड़ा हो गया, मगर उन्होंने किसी की तरफ भी नजर उठा कर नहीं देखा और चपरासी के पीछेपीछे सीधे अपने केबिन में चले गए. आज उन की चाल में पहले सी ठसक नहीं थी. वह पुराना आत्मविश्वास कहीं खो सा गया था.

कुरसी पर बैठते ही उन की आंखों में नमी तैर गई. उन के उजले दामन पर जो काले दाग लगे थे वे बेशक आज मिट गए थे मगर उन्हें मिटातेमिटाते उन का चरित्र कितना बदरंग हो गया, यह दर्द सिर्फ भुक्तभोगी ही जान सकता है.

कितना गर्व था उन्हें अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर, बहुत भरोसा था अपने व्यवहार की पारदर्शिता पर. हां, वे काम में सख्त और वक्त के पाबंद थे. मगर यह भी सच था कि अपने स्टाफ के प्रति बहुत अपनापन रखते थे. वे कितनी बड़ी खुशफहमी पाले हुए थे अपने दिल में कि उन का स्टाफ भी उन्हें बहुत प्यार करता है. तभी तो उन्हें अपने चपरासी मोहन की बातों पर जरा भी यकीन नहीं हुआ था जब उस ने रजनी और शिखा के बीच हुई बातचीत ज्यों की त्यों सुना कर उन्हें खतरे से आगाह किया था. उन्हें आज भी वह सब याद है जो मोहन ने उस दिन दोनों की बातें लगभग फुसफुसा कर कही थीं…

‘इन सुशील का भी न, कुछ न कुछ तो इलाज करना ही पड़ेगा. जब से डिपार्टमैंट में हेड बन कर आए हैं, सब को सीट से बांध कर रख दिया है. मजाल है कि कोई लंचटाइम के अलावा जरा सा भी इधरउधर हो जाए,’ शिखा की टेबल पर टिफिन खोलते हुए रजनी ने अपनी भड़ास निकाली.

‘हां यार, विमल सर के टाइम में कितने मजे हुआ करते थे. बड़े ही आराम से नौकरी हो रही थी. न सुबह जल्दी आने की हड़बड़ाहट और न ही शाम को 6 बजे तक सीट पर बैठने की पाबंदी. अब तो सुबह अलार्म बजने के साथ ही मोबाइल में सुशील का चेहरा दिखाई देने लगता है,’ शिखा ने रजनी की हां में हां मिलाते हुए उस की बात का समर्थन किया.

‘याद करो, कितनी बार हम ने औफिस से बंक मार कर मैटिनी शो देखा है, ब्यूटीपार्लर गए हैं, त्योहारों पर सैल में शौपिंग के मजे लूटे हैं. और तो और, औफिसटाइम में घरबाहर के कितने ही काम भी निबटा लिया करते थे. अब तो बस, सुबह साढ़े 9 बजे से शाम 6 बजे तक सिर्फ फाइलें ही निबटाते रहो. लगता ही नहीं कि सरकारी नौकरी कर रहे हैं,’ रजनी ने बीते हुए दिनों को याद कर के आह भरी.

‘और हां, सुशील सर पर तो तुम्हारी आंखों का काला जादू भी काम नहीं कर रहा, है न,’ शिखा ने जानबूझ कर रजनी को छेड़ा?

‘सही कह रही हो तुम. विमल सर तो मेरी एक मुसकान पर ही फ्लैट हो जाते थे. सुशील को तो यदि बांहोें में भर के चुंबन भी दे दूं न, तब भी शायद कोई छूट न दें,’ रजनी ने ठहाका लगाते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली.

‘शिखा मैडम, आप को साहब ने याद किया है,’ तभी मोहन ने आ कर कहा था.

‘अभी आती हूं,’ कहती हुई शिखा ने अपना टिफिन बंद किया और सुशील के चैंबर की तरफ चल दी.

‘साहब का चमचा,’ कह कर रजनी भी बुरा सा मुंह बनाती हुई अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

सुशील को एकएक बात, एकएक घटना याद आ रही थी. रजनी उन के औफिस में क्लर्क है. बेहद आकर्षक देहयष्टि की मालकिन रजनी को यदि खूबसूरती की मल्लिका भी कहा जाए तो भी गलत न होगा. उस की मुखर आंखें उस के व्यक्तित्व को चारचांद लगा देती हैं. रजनी को भी अपनी इस खूबी का बखूबी एहसास है और अवसर आने पर वह अपनी आंखों का काला जादू चलाने से नहीं चूकती.

मोहन ने ही उन्हें बताया था कि 3 साल पहले जब रजनी ने ये विभाग जौइन किया था तब प्रशासनिक अधिकारी मिस्टर विमल उस के हेड थे. शौकीनमिजाज विमल पर रजनी की आंखों का काला जादू खूब चलता था. बस, वह अदा से पलकें उठा कर उन की तरफ देखती और उस के सारे गुनाह माफ हो जाते थे.

विमल ने कभी उसे औफिस की घड़ी से बांध कर नहीं रखा. वह आराम से औफिस आती और अपनी मरजी से सीट छोड़ कर चल देती. हां, जाने से पहले एक आखिरी कौफी वह जरूर मिस्टर विमल के साथ पीती थी. उसी दौरान कुछ चटपटी बातें भी हो जाया करती थीं. मिस्टर विमल इतने को ही अपना समय समझ कर खुश हो जाते थे. रजनी की आड़ में शिखा समेत दूसरे कर्मचारियों को भी काम के घंटों में छूट मिल जाया करती थी, इसलिए सभी रजनी की तारीफें करकर के उसे चने के झाड़ पर चढ़ा रखते थे.

लेकिन रजनी की आंखों का काला जादू ज्यादा नहीं चला क्योंकि मिस्टर विमल का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह सुशील उन के बौस बन कर आ गए. दोनों अधिकारियों में जमीनआसमान का फर्क. सुशील अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार थे और साथ ही, वक्त के भी बहुत पाबंद, औफिस में 10 मिनट की भी देरी न तो खुद करते हैं और न ही किसी स्टाफ की बरदाश्त करते. शाम को भी 6 बजे से पहले किसी को सीट नहीं छोड़ने देते.

जैसा कि अमूमन होता आया है कि लंबे समय तक मिलने वाली सुविधाओं को अधिकार समझ लिया जाता है. रजनी को भी सुशील के आने से कसमसाहट होने लगी. उन की सख्ती उसे अपने अधिकारों का हनन महसूस होती थी. उसे न तो जल्दी औफिस आने की आदत थी और न ही देर तक रुकने की. उस ने एकदो बार अपनी अदाओं से सुशील को शीशे में उतारने की कोशिश भी की मगर उसे निराशा ही हाथ लगी. सुशील तो उसे आंख उठा कर देखते तक नहीं थे. फिर? कैसे चलेगा उस की आंखों का काला जादू? इस तरह तो नौकरी करनी बहुत मुश्किल हो जाएगी. रजनी की परेशानी बढ़ने लगी तो उस ने शिखा से अपनी परेशानी साझा की थी. तभी मोहन ने उन की बातें सुन ली थीं और सुशील को आगाह किया था.

उन्हीं दिनों विधानसभा का मौनसून सत्र शुरू हुआ था. इन सत्रों में विपक्ष द्वारा सरकार से कई तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं और संबंधित सरकारी विभाग को उन के जवाब में अपने आंकड़े पेश करने पड़ते हैं. साथ ही, जब तक उस दिन का सत्र समाप्त नहीं हो जाता,

तब तक उस विभाग के सभी अधिकारियों व उन से जुड़े कर्मचारियों को औफिस में रुकना पड़ता है. हां, देरी होने पर महिला कर्मचारियों को सुरक्षित उन के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जरूर विभाग की होती है. इस बाबत सुशील भी हर रोज उन के लिए कुछ टैक्सियों की एडवांस में व्यवस्था करवाते थे.

रजनी के अधिकारक्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण विकास योजनाओं की जानकारी वाली फाइलें थीं. इसलिए सुशील की तरफ से उसे खास हिदायत थी कि वह बिना उन की इजाजत के औफिस छोड़ कर न जाए. और फिर उस दिन जो हुआ उसे भला वे कैसे भूल सकते हैं.

‘साहब ने आज आप को फाइलों के साथ रुकने के लिए कहा है,’ मोहन ने जैसे ही औफिस से निकलने के लिए बैग संभालती रजनी को यह सूचना दी, उस के हाथ रुक गए. उस ने मन ही मन कुछ सोचा और सुशील के चैंबर की तरफ बढ़ गई.

‘सर, आज मेरे पति का जन्मदिन है, प्लीज आज मुझे जल्दी जाने दीजिए. मैं कल देर तक रुक जाऊंगी,’ रजनी ने मिन्नत की.

‘मगर मैडम, हमारे विभाग से जुड़े प्रश्न तो आज के सत्र में ही पूछे जाएंगे. कल रुकने का क्या फायदा? लेकिन आप फिक्र न करें, जैसे ही आप का काम खत्म होगा, हम तुरंत आप को टैक्सी से जहां आप कहेंगी वहां छुड़वा देंगे. अब आप जाइए और जल्दी से ये आंकड़े ले कर आइए,’ सुशील ने उस की तरफ एक फाइल बढ़ाते हुए कहा. रजनी कुछ देर तो वहां खड़ी रही मगर फिर सुशील की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर निराश सी चैंबर से बाहर आ गई.

‘सर, क्या मैं आप के मोबाइल से एक फोन कर सकती हूं? अपने पति को देर से आने की सूचना देनी है, मैं जल्दबाजी में आज अपना मोबाइल लाना भूल गई,’ रजनी ने संकोच से कहा.

‘औफिस के लैंडलाइन से कर लीजिए,’ सुशील ने उस की तरफ देखे बिना ही टका सा जवाब दे दिया.

‘लैंडलाइन शायद डेड हो गया है और शिखा भी घर चली गई. पर

खैर, कोई बात नहीं, मैं कोई और व्यवस्था करती हूं,’ कहते हुए रजनी वापस मुड़ गई.

‘यह लीजिए, कर दीजिए अपने घर फोन. और हां, मेरी तरफ से भी अपने पति को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीजिएगा,’ सुशील ने रजनी को

अपना मोबाइल थमा दिया और फिर

से फाइलों में उलझ गए. रजनी उन

का मोबाइल ले कर अपनी सीट पर

आ गई. थोड़ी देर बाद उस ने मोहन के साथ सुशील का मोबाइल वापस

भिजवा दिया और फिर अपने काम में लग गई.

‘रजनीजी, आज आप अभी तक औफिस नहीं आईं?’ दूसरे दिन सुबह लगभग 11 बजे सुशील ने रजनी को फोन किया.

‘सर, कल आप के साथ रुकने से मेरी तबीयत खराब हो गई. मैं 2-4 दिनों तक मैडिकल लीव पर रहूंगी, रजनी ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या हुआ?’ सुशील के शब्दों में चिंता झलक रही थी.

‘कुछ खास नहीं, सर. बस, पूरी बौडी में पेन हो रहा है. रैस्ट करूंगी तो ठीक हो जाएगा. मैं अलमारी की चाबियां शिखा के साथ भिजवा रही हूं. शायद आप को कुछ जरूरत पड़े,’ कह कर रजनी ने अपनी बात खत्म की.

2 दिनों बाद सुशील के पास महिला आयोग की अध्यक्ष सुषमा का फोन आया जिसे सुन कर सुशील के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. रजनी ने उन पर यौन दुराचार का आरोप लगाया था. रजनी ने अपने पक्ष में सुशील द्वारा भेजे गए कुछ अश्लील मैसेज और एक फोनकौल की रिकौर्डिंग उन्हें उपलब्ध करवाई थी. सुशील ने लाख सफाई दी, मगर सुषमा ने उन की एक  न सुनी और रजनी की लिखित शिकायत व सुबूतों को आधार बनाते हुए यह खबर हर अखबार व न्यूज चैनल वालों को दे दी. सभी समाचारपत्रों ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया.

चूंकि खबर एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ी थी और वह भी ऐसे विभाग का जोकि खास महिलाओं की बेहतरी के लिए ही बनाया गया था, सो सत्ता के गलियारों में भूचाल आना स्वाभाविक था. न्यूज चैनलों पर गरमागरम बहस हुई. महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर खामियों को ले कर विपक्ष द्वारा सरकार को घेरा गया. सुशील के घर के बाहर महिला संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया. सरकार से उन्हें बरखास्त करने की पुरजोर मांग की गई.

सरकार ने पहले तो अपने अधिकारी का पक्ष लिया मगर बाद में जब रजनी के मोबाइल में भेजे गए सुशील के अश्लील संदेश और फोनकौल की रिकौडिंग मीडिया में वायरल हुए तो सरकार भी बैकफुट पर आ गईर् और तुरंत प्रभाव से सुशील को सस्पैंड कर के एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक महिला प्रशासनिक अधिकारी उपासना खरे को जांच अधिकारी बनाया गया.

उपासना की छवि एक कर्मठ और ईमानदार अधिकारी की रही थी. उसे इस से पहले भी ऐसी कई जांच करने का अनुभव था. साथ ही, एक महिला होने के नाते रजनी उस से खुल कर बात कर सकेगी, शायद उसे जांच अधिकारी नियुक्त करने के पीछे सरकार की यही मंशा रही होगी.

इधर सुशील के निलंबन को रजनी अपनी जीत समझ रही थी. उस ने एक दिन बातों ही बातों में शेखी मारते हुए शिखा के सामने सारे घटनाक्रम को बखान कर दिया तो शिखा को

सुशील के लिए बहुत बुरा लगा. उधर शर्मिंदगी और समाज में हो रही थूथू के कारण सुशील ने अपनेआप को घर में कैद कर लिया.

उपासना ने पूरे केस का गंभीरता से अध्ययन किया. सुशील और रजनी के अलगअलग और एकसाथ भी

बयान लिए. दोनों के पिछले चारित्रिक रिकौर्ड खंगाले. पूरे स्टाफ से दोनों के बारे में गहन पूछताछ की और सुशील के पिछले कार्यालयों से भी उन के व्यवहार व कार्यप्रणाली से जुड़ी जानकारी जुटाई.

मोहन और शिखा से बातचीत के दौरान अनुभवी उपासना को रजनी की साजिश की भनक लगी और उन्हीं के बयानों को आधार बनाते हुए उस ने रजनी को पूछताछ के लिए दोबारा बुलाया. इस बार जरा सख्ती से बात की. थोड़ी ही देर के सवालजवाबों में रजनी उलझ गई और उस ने सारी सचाई उगल दी.

‘मैं ने औफिस के लैंडलाइन फोन की पिन निकाल कर उसे डेड कर दिया. फिर बहाने से सुशील का मोबाइल लिया और उस से अपने मोबाइल पर कुछ अश्लील मैसेज भेजे. दूसरे दिन जब सर ने मुझे फोन किया तो मैं ने उन की बातों के द्विअर्थी जवाब देते हुए उस कौल को रिकौर्ड कर लिया और फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए सारे सुबूत देते हुए महिला आयोग से उन की शिकायत कर दी. नतीजतन, वे सस्पैंड हो गए. इस कांड से सबक लेते हुए नए अधिकारी भी मुझ से दूरदूर रहने लगे और मुझे फिर से मनमरजी से औफिस आनेजाने की आजादी मिल गई,’ रजनी ने उपासना से माफी मांगते हुए यह सब कहा. अब यह केस शीशे की तरह बिलकुल साफ हो गया.

‘रजनी, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम ने ऐसी गिरी हुई हरकत कर के महिलाओं का सिर शर्म से नीचा कर दिया. तुम ने अपने महिला होने का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर के महिला जाति के नाम पर कलंक लगाया है. तुम्हें इस की सजा मिलनी ही चाहिए…’ उपासना ने रजनी को बहुत ही तीखी टिप्पणियों के साथ

दोषी करार दिया और सुशील को बहाल करने की सिफारिश की. उपासना ने अपनी जांच रिपोर्ट में रजनी को बतौर सजा न सिर्फ शहर बल्कि राज्य से भी बाहर स्थानांतरण करने की अनुशंसा की.

मामला चूंकि सरकार के उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ा था और आरोप भी बहुत संगीन थे, इसलिए मुख्य सचिव ने व्यक्तिगत स्तर पर गुपचुप तरीके से भी मामले की जांच करवाई और आखिरकार, उपासना की जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए सुशील को बहाल करने के आदेश जारी हो गए, हालांकि उन का विभाग जरूर बदल दिया गया था. रजनी का ट्रांसफर दिल्ली से लखनऊ कर दिया गया.

रजनी ने कई बार मौखिक व लिखित रूप से विभाग में अपना माफीनामा पेश किया, मगर आरोपों की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने उस का प्रार्थनापत्र ठुकरा दिया और आखिरकार रजनी को लखनऊ जाना पड़ा.

आज भले ही सुशील अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से बरी हो चुके हैं मगर महिलाओं को ले कर एक अनजाना भय उन के भीतर घुस गया है. महिलाओं के प्रति उन के अंदर जो एक स्वाभाविक संवेदना थी उस की जगह कठोरता ने ले ली. वे शायद जिंदगीभर यह हादसा न भूल पाएं कि महज काम के घंटों में छूट न देने की कीमत उन्हें क्याक्या खो कर चुकानी पड़ी.

सुशील ने मुख्य सचिव को पत्र

लिख कर अपील की कि या तो

उन के अधीन कार्यरत सभी महिलाओं को दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया जाए या फिर उन्हें ही

ऐसे सैक्शन में लगा दिया जाए

जहां महिला कर्मचारी न हों. आखिर दूध का जला छाछ भी फूंकफूक कर पीता है.

स्वाभाविक है यह मांग नहीं मानी गई और सालभर बाद सुशील ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना छोटा सा कंसलंटिंग का व्यवसाय शुरू कर दिया. एक औरत ने इस तरह उन की कमर तोड़ दी कि अब वे पत्नी व बेटी से भी आंख नहीं मिला पाते हैं.

Best Hindi Story: चलो रे डोली उठाओ- साची ने क्यों चुनी किताब की राह

Best Hindi Story: नीचे से साची की चहकती हुई आवाज आई, मैं झट से सीढ़ियां उतरती हुई बोली, “क्या हो गया, इतनी खुश क्यों लग रही है? मम्मी पापा बाहर जा रहे हैं क्या?’’

मेरी इस बात पर मम्मी ने मुझे घूर कर देखा तो मैं हंस दी. साची ने मुझे इशारा किया कि ऊपर तेरे रूम में ही चलते हैं. मैं ने कहा, आ जा, साची, मेरे रूम में ही बैठते हैं, मम्मी यहां स्कूल का रजिस्टर खोल कर बैठी हैं, उन्हें डिस्टर्ब होगा.’’

पर मम्मी तो मम्मी हैं, ऊपर से टीचर. मेरे जैसी पता नहीं कितनी लड़कियों से दिनभर स्कूल में निबटती हैं, बोलीं, “नैना, आ जाओ, यहीं बैठ जाओ, कुछ डिस्टर्ब नहीं होगा.’’

“हम ऊपर ही जाते हैं,’’ कह कर मैं साची को अपने रूम में ले गई. मैं ने कहा, “चल बोल, आज सुबहसुबह 10 बजे कैसे आई?’’

साची ने थोड़ा ड्रामा करते हुए गुनगुनाया, “चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई…’’

मैं ने उस की कमर पर एक धौल जमाया, बकवास नहीं, जल्दी बताओ.’’

“वह जो पिछले हफ्ते लड़के वाले देखने आए थे न, उन्होंने हां कर दी है और वे शादी भी जल्दी करना चाह रहे हैं. वही ध्रुव, जो मुझे देखते ही पसंद आ गया था. हाय, क्या बताऊं कितनी ख़ुशी हो रही है.’’

“अरे वाह, मुबारक हो, मुबारक हो,’’ कहते हुए मैं ने उसे गले से लगा तो लिया पर मैं मन ही मन जल मरी. देखो तो, कैसी खुश हो रही है, हाय, इस की भी शादी हो रही है. एकएक कर के सब ससुराल चली जा रही हैं और मैं क्या इन की शादियों में बस नाचती रह जाऊंगी. दुख से मुझे रोना आ गया, मेरे आंसू सच में बह निकले जिन्हें देख कर वह चौंकी, बचपन की सहेली है नालायक, सारी खुराफातें साथ ही तो की हैं, एकदूसरे की नसनस तो जानती हैं हम, बोली, “क्या हुआ नैना, फिर वैसी ही जलन हो रही है जैसे हमें अब तक अपनी दूसरी सहेलियों की शादी होते देख होती है?’’

मुझे हंसी आ गई, सोचा अब क्या झूठ बोलना, कहा, “हां, यार, जलन तो बहुत हो रही है पर दुख भी हो रहा है कि मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी,” कहतेकहते अब की बार मेरे सच्चे प्यार और दोस्ती वाले आंसू बह गए तो वह मेरे गले लग गई, बोली, “यहीं लोकल ही तो है ससुराल, मिलते रहेंगे, नैना. तू आती रहना.’’

“सुन, तेरा कोई देवर है?’’

“न, ध्रुव अकेला है.’’

“मर, तू किसी काम की नहीं.’’

“बरात में ही अब देखना. कोई पसंद आता है तो बताना.’’

इतने में मम्मी कुछ फल काट कर ले आईं और हमारे पास ही बैठ गईं, पूछा, “किस की बरात है भई, क्या देखना है?’’

मम्मी के कान कितने तेज हैं.

मैं ने एक आस के साथ कहा, “मम्मी, इस की भी शादी हो रही है.’’

मम्मी ने कहा, “अरे, इतनी जल्दी!’’

मैं ने कहा, “कहां जल्दी है, मम्मी, हमारा एमए पूरा होने वाला है. लगभग सब लड़कियों की कहीं न कहीं बात चल रही है.’’

“फिर भी, पढ़ाई ख़त्म हो जाए, अपने पैरों पर खड़े होने के बाद ही शादी करनी चाहिए.’’

मुझे अपनी मम्मी पर इन बातों पर इतना गुस्सा आता है कि क्या बताऊं.

“बेटा, अपने मम्मीपापा से कहो कि हो सके तो लड़के वालों से बात कर लें कि तुम कहीं जौब कर लो तब तक रुक सकें तो. तुम कहो तो मैं उन से बात कर सकती हूं.’’

मम्मी भी न, कुछ नहीं समझतीं.

मैं ने झट कहा, “नहीं मम्मी, जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है, यही तो उम्र है शादी की.” पता नहीं कैसे न चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल ही गया.

“क्या? तुम्हें कुछ नहीं पता. लड़कियों का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है,’’ कहते हुए मम्मी नीचे जाने के लिए उठ गईं. उन के जाते ही मैं शुरू हो गई, “यार, ये मेरी मां भी न. अरे, नहीं होना है हमें आत्मनिर्भर. हम खुश हैं ऐसे ही. जो ले जाएगा, खिला लेगा. पहले कहां कमाती थीं लड़कियां. यार, मैं अपने मौडर्न मम्मीपापा से परेशान हो चुकी हूं. समझते ही नहीं. सारा दिन कैरियर की बातें. बहुत बोरिंग बातें करते हैं दोनों. मम्मी टीचर, पापा डाक्टर. यार, मैं कहां जाऊं. ये नवीन भैया भी बिलकुल मम्मीपापा की तरह बातें करने लगे हैं.

“मुझ से 2 साल बड़े हैं. कल उन के लिए रिश्ता आया तो कहा है कि अभी कैरियर बना रहे हैं. भई, कितना कैरियर बनाना है, अच्छाख़ासा कमा रहे हैं. मेरे लिए रिश्ता आया तो भैया ने कहा कि अभी तो नैना छोटी है, अभी तो सैट भी नहीं हुई. अरे, शादी करनी है मुझे. ये लोग क्यों ध्यान नहीं दे रहे.’’

मुझे साची की यही बात अच्छी लगती है जब मैं अपनी भड़ास निकाल रही होती हूं तो वह मुझे रोकती नहीं. पूरी बकवास अच्छी तरह करने देती है. जब मैं चुप हुई, उस ने कहा, “दुखी न हो, दोस्त, तेरा भी टाइम आएगा. तेरी भी डोली सजेगी, हाथों में मेहंदी लगेगी, पर हां, उस से पहले तू अपना कैरियर बना ले,’’ बात ख़म होतेहोते उसे शरारत सूझ गई तो मैं ने उसे लात मारमार कर बैड से गिरा दिया. फिर हम दोनों हंसने लगीं. उस ने और शरारत से कहा, “यार, रिश्ता पक्का होते ही पता नहीं कहांकहां दिमाग दौड़ने लगा है.’’ यह कहतेकहते उस के सुंदर

मुखड़े पर शर्म की लाली मुझे बहुत प्यारी लगी, कहा, “जरा मैं भी सुनूं तो, कहांकहां दिमाग जा रहा है?’’

“वही कि सुहागरात पर क्या होगा.’’

“वही होगा जो अपने मामा के घर जा कर कजिन के दोस्त अनिल के साथ कर के आई थी पिछले साल.’’

उस ने उठ कर मेरे मुंह पर हाथ रख दिया, शर्म करो, लड़की, दोस्त हो या दुश्मन? दीवारों के भी कान होते हैं. अब ये बातें सुनना भी मेरे लिए पाप है.’’

“ड्रामेबाज.’’

थोड़ी देर बाद वह जाने के लिए उठ गई. जातेजाते बोली, “अब शौपिंग शुरू करेंगे, फ्री रहना, साथ रहना.’’

“मैं तो फ्री ही रहूंगी, मेरी शादी के टाइम सब अपनी ससुराल में बैठी होंगी. बच्चे खिला रही होंगी. मेरे जवान अरमान मचले जा रहे हैं और मेरे मम्मीपापा के सपनों की भेंट चढ़ रहे हैं, हाय, मेरी डोली कब उठेगी.’’

“बेटा, तुम कैरियर पर ध्यान दो.’’

“तुम दफा हो जाओ.’’

‘पालकी पे होके सवार, चली रे मैं तो अपने साजन के गांव, चली रे…,’ गाते हुए वह मुझे छेड़ती हुई जाने लगी तो मैं ने कहा, “मन कर रहा है तुम्हें सीढ़ियों से धक्का दे दूं.’’

वह हंसती हुई चली गई. मैं अपने बैड पर लेट गई. मन सचमुच उदास था, साची और मैं बचपन से अब तक हमेशा साथ रहे. उस का घर ठीक हमारे घर के सामने है. खतौली के एक महल्ले में हमारे परिवार सालों से साथ हैं. उस की एक बड़ी बहन है जो दिल्ली में रहती है. उन की शादी में मेरे नवीन भैया ने ही हर काम संभाल रखा था. मम्मीपापा दोनों बच्चों के कैरियर को बहुत गंभीरता से लेते हैं. आज के जमाने में तो कोई भी लड़की ऐसे पेरैंट्स पर गर्व करेगी पर मैं क्या करूं, मेरे सपने कुछ और हैं, मैं कुछ और चाहती हूं.

मेरा तो मन शादी करने का करता है, पता नहीं कैसेकैसे अरमान मचलते रहते हैं, ये मम्मी भी तो इस उम्र से गुजरी होंगी. उन्हें समझ नहीं आता क्या कि इस उम्र में लड़की क्याक्या सोचती है. सब जबान से कहना ही जरूरी है क्या. हद है. अरे, खुद भी तो शादी के बाद पढ़ी हैं, मैं भी पढ़ लूंगी. कितना मन करता है कि एक अच्छा सा पति मिल जाए, जीभर कर रोमांस करूं. 2 प्यारे बच्चे हो जाएं, सजीसंवरी घूमती रहूं. यहां तो जवानी ज़ाया हुई जा रही है. अरे, मुझे नहीं बनाना कैरियरवैरियर. शादी कर दो मेरी. जरूरी तो नहीं कि दुनिया की हर लड़की कैरियर ही बनाए.

इतने में मम्मी की नीचे से आवाज आई, “नैना, मैं कालेज के लिए निकल रही हूं, टाइम से कालेज चले जाना. सब काम अंजू से करवा लेना.”

ठीक है मम्मी, बाय, कहतेकहते मैं रोज की तरह नीचे आ कर मम्मी को गाल पर किस करने लगी तो उन्होंने प्यार से मुझ से कहा, “बेटा, टाइम मत खराब करना. तुम्हारे एक्जाम्स भी आने वाले हैं. मैं आज तुम्हारी पीएचडी के लिए भी प्रोफैसर शर्मा से बात करूंगी.’’

मुझे करंट लगा, “मम्मी, पीएचडी. क्यों?”

“फिर अच्छे कालेज में प्रोफैसर बन सकती हो. लड़कियों के लिए टीचिंग बेस्ट जौब है.’’

मैं बेहोश होतेहोते बची. पीएचडी. ये मेरी मां ऐसी क्यों है? मेरी शादी की किसी को चिंता नहीं? हाय. क्या होगा मेरा.

अगले कुछ दिन मैं और साची टाइम मिलते ही उस की शादी की शौपिंग में व्यस्त हो गए. हम अकसर मेरठ या दिल्ली उस की कार से जाते. वह कार चला लेती थी. शौपिंग करते हुए मैं अकसर स्मार्ट लड़कों को जीभर कर देखती और उस से कहती, “हाय, मैं कब अपनी शादी की शौपिंग करूंगी? मेरे पेरैंट्स तो मुझे प्रोफैसर बना कर छोड़ेंगे. तुम तो कई बार अफेयर कर चुकी, तुम ने तो हर आनंद उठा रखा है, मैं अपने जवान, अनछुए सपनों का क्या करूं, यार. मुझे भी शादी करनी है.’’

“देख नैना, तेरी तो अभी होती मुझे दिख नहीं रही. तू भले ही एकदो अफेयर चला कर थोड़ा मौजमस्ती कर ले. तो शायद तेरे दिल को चैन आए. अफेयर से भी थोड़ा मन बहला रहेगा.’’

“हम गर्ल्स कालेज में पढ़ते हैं. कहां से लड़के लाऊं. आतेजाते भी नहीं दिखता कोई ऐसा. तेरी तरह मेरा कोई कजिन भाई भी नहीं है. मेरे भाई के तो दोस्त भी घर नहीं आते, जो आते हैं, अच्छे हैं पर नालायक मुझ से राखी बंधवाते हैं. भैया का एक दोस्त इतना अच्छा लगता था, कम्बख्त ने मुझ से राखी बंधवा ली. सुन, क्या मेरी शक्ल पर लिखा है कि मैं कैरियर बनाना चाहती हूं?”

साची से जितना मरजी ड्रामा करवा लो. मुझे ध्यान से देखती हुई बोली, “नहीं, शक्ल तो रोमांस को तरसी हुई लगती है.’’

“साची, मन करता है तुझे कहीं बंद कर दूं जिस से तू भी ससुराल न जा पाए.’’

“मुझे लगता है, सारी गलती तेरी है. तू इतने अच्छे नंबर क्यों लाती रही कि अंकलआंटी को लगा कि तू पढ़ाई में बहुत सीरियस है. हमेशा फर्स्ट आती रही तो यही होना था. मुझे देख कितने खराब नंबर से पास हुई हमेशा कि घर में सब यही बात करते कि इस के बस की पढ़ाई नहीं है, इस की शादी कर दो. कितना आसान था, देख. मेहनत भी नहीं की कभी, और शादी भी टाइम से हो रही है. तू तो बस अब मेरे संगीत में नाचने की तैयारी कर और कैरियर बना.’’

“आई हेट यू, साची. तू मेरी दोस्त नहीं, दुश्मन है.!’’

“तेरी बात पर मुझे यकीन नहीं. चल, अब लहंगे देखते हैं,’’ बात करतेकरते हम दोनों एक शौप में घुस गए. मैं सचमुच अब काफी बिजी थी, पढ़ाई और साथसाथ साची की हर हैल्प के लिए हमेशा उस के साथ रहती. फिर हम दोनों एक दिन उस के लिए शादी के बाद पहनने वाली नाइट ड्रैसेस लेने गए. हाय, एक से एक सैक्सी ड्रैसेस सामने थीं. मेरे मुंह से एक आह निकल गई. वह हंस पड़ी और शर्माते हुए पता नहीं कैसीकैसी ड्रैसेस खरीदने लगी, यहां तक कि उस ने मुझे भी पहन कर दिखा दी. वह सचमुच उन जराजरा सी ड्रैसेस में कमाल लग रही थी. मैं ने वहां से निकलते हुए कहा, “यार साची, तू तो बहुत एंजौय करने वाली है. हाय, ये कपड़े देख कर तो ध्रुव राजा अपने होश खो बैठेंगे. तुम दोनों तो बहुत रोमांस करने वाले हो न.’’

“हां, मुझे भी लगता है, शादी टाइम से हो जाए तो अच्छा रहता है. एक उम्र होती है जब शरीर में उमंगें होती हैं. मन बातबात पर खुश होना चाहता है. यार, मैं सारा दिन ध्रुव के बारे में सोचने लगी हूं. तेरे लिए हमदर्दी है पर देखती हूं, ससुराल में कोई अच्छा, स्मार्ट लड़का दिखा तो तेरा कुछ करती हूं.’’

हां यार, ध्यान रखना. सोच रही हूं तेरी बात ही ठीक है. एकाध अफेयर भी चल जाए तो लाइफ में रौनक रहेगी. बड़ी सपाट जा रही है जवानी.’’

हम दोनों यों ही पूरा दिन बिता कर दिल्ली से वापस आए तो मम्मीपापा डिनर पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे. संडे था, मम्मी ने साची को भी मैसेज कर दिया था कि वह भी हमारे साथ ही डिनर करे.

हम दोनों फ्रैश हो कर ऊपर मेरे रूम में उस का सब सामान रख कर नीचे आए. आजकल वो अपना कुछ स्पैशल सामान खरीद कर मेरे रूम में ही रख देती, जैसे कि अभी उस ने नाइट ड्रैसेस ली थीं, कुछ हनीमून पर पहनने के लिए ख़ास अश्लील कपड़े लिए थे जिन्हें वह घर नहीं ले जाना चाहती थी. उस का मूड था कि वह इन की पैकिंग भी मेरे रूम में कर लेगी.

इतने में भैया भी आ गए. हम सब ने साथ खाना खाया. सब साची से उस की शादी की तैयारियों की बातें करते रहे. वह चहकचहक कर बताती रही. फिर उस ने हिम्मत कर के दोस्त होने का फ़र्ज़ पूरा करते हुए कह ही दिया, “आंटी, नैना के लिए भी देखो न कोई लड़का. मेरे जाने के बाद इस का मन नहीं लगेगा.’’

“नहीं, अभी नहीं. अभी पहले उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है,” मम्मी खाना खाते हुए आराम से बोलीं तो मेरा मन हुआ कि उठ कर मम्मी को झिंझोड़ दूं और कहूं कि मम्मी, देखो अपनी बेटी की आंखों में. क्या दिखता है आप को? हसीं सपने या किसी जौब की चाहत? मां तो बच्चों के दिल की बात आसानी से समझ लेती है पर अब कहां हैं वे माएं जो रातदिन बेटी की शादी की चिंता करती थीं. हाय, मम्मी, मुझे नहीं बनाना कैरियर.

खाना खा कर साची अपने घर चली गई. मैं भी थक गई थी, ऊपर आ कर बैड पर लेट कर सुस्ताने लगी तो मम्मी आईं. मेरे सिर पर हाथ फिराते हुए बोली, “बेटा, थक गई क्या? आज मैं ने कुछ प्रोफैसर से बात कर ली है, उन्होंने तुम्हें गाइड करने के लिए हाँ कर दी है और यह देखो, अभी से कुछ किताबें आज ही भिजवा भी दीं कि अपनी पढ़ाई के साथसाथ इन पर भी नजर डाल लेना कि किस विषय पर आगे काम करना चाहोगी.’’

मेरा दिल रुकने को हुआ, मैं ने आंखें बंद कर लीं. मम्मी मेरा माथा चूम कर चली गईं. मेरे स्टडी डैस्क पर नई किताबें रखी थीं. उन पर एक नजर डाल कर मैं नें उन की तरफ से करवट ले ली. आंखें फिर बंद कीं तो साची की हनीमून की ड्रैसेस आंखों के आगे घूम गईं और मेरे मन में फिर वही गाना चलने लगा जो आजकल साची गुनगुनाती रहती है, ‘चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई…’

पर फिर मैं ने खुद ही पैरोडी बना ली, ‘दफा ही हो जाओ कहार, यहां तो किताबों की रुत आई.’

मैं ने अपनी धुन साची को फोन पर हंसते हुए सुनाई. वह देर तक हंसती रही और मैं बीचबीच में कलपती रही.

Best Hindi Story

Fictional Story: लड़कियां- महिलाओं के बीच अकेला औफिस में फंसा शख्स

Fictional Story: नए औफिस में लड़कियां ज्यादा थीं. नहीं-नहीं यह कहना गलत होगा. दरअसल, यहां सिर्फ वह अकेला मर्द है. बाकी सब औरतें. उस ने हैड औफिस में अपने बौस से रिक्वैस्ट की है जैसे भी हो इस महिलाबहुल प्रतिष्ठान से उसे निकाल दिया जाए या एकाध पुरुष को और भेज दिया जाए. वह कुछ दिनों पहले ही यहां आया था.

ये लड़कियां पूरे समय या तो अपनी सास की बातें करती रहती हैं या फिर किसी रैसिपी पर डिसकस करतीं, कभीकभी कपड़ों की बातें करती हैं. हद तो तब हो जाती जब नैटफ्लिक्स की स्टोरी सुनाई जा रही होती है.

हैरत की बात है कि पीठ पीछे एकदूसरे की चुगली करने वाली लड़कियां लंच टाइम में एक हो जाती हैं. मिलबांट कर खाना खाया जाता है. पीछे की दुकान से समोसे मंगा कर खाए बिना उन का खाना पूरा न होता है.

‘जो जी चाहे करो. प्रजातंत्र है… सब अपनी मरजी के मालिक हो. बस इतनी कृपा करना देवियो कि जिस कंपनी की तनख्वाह ले रही हैं उस का भी कुछ काम कर देना,’ वह मन ही मन सोचता रहता.

उस की आदत है कम बोलने की और अपना काम दुरुस्त रखने की. मन ही मन गौरवान्वित होता है कि बौस ने उसे जानबू  झ कर भेजा है इस औफिस में. इन लड़कियों की मदद करने के लिए पुरुषोचित अभिमान से सीना चौड़ा हो जाता है उस का.

काम करने के गजब तरीके हैं इन लड़कियों के पहली बार जब कुछ नया काम या नया ऐप खोलना होता तो उन में से 1-2 घबरा जातीं, एक से दूसरे के डैस्कटौप पर काम ट्रांसफर करतीं, मक्खियों की तरह भिनभिन करतीं और फिर काम पूरा होने पर ऐसे चैन की सांस लेतीं जैसे ऐवरैस्ट की चढ़ाई फतह कर ली हो.

वह सोचता है कि जितनी देर आपस में गप्पें लगाती हैं. अगर उतनी देर सैटिंग्स पर जा कर कुछ देखो, इंस्ट्रक्शन पढ़ो, सम  झो, सारा काम करना सीख जाएंगी.

तभी उस की तंद्रा टूटी.

‘‘सर, आप को पता है फ्राइडे हमारे औफिस में कैजुअल्स पहन के आते हैं. आप जींस पहन कर आइए न सर,’’ इन लड़कियों में जो सब से ज्यादा बातूनी है, उस ने कहा.

वह उस की बात हवा में उड़ाते हुए रुखाई से बोला, ‘‘हैड औफिस से फोन आया था. डाइरैक्टर साहब को रिपोर्ट करनी है. अगर आप का काम पूरा हो गया हो तो हम निकलें?’’ कहतेकहते वह थोड़ा सख्त हो गया.

लड़की ने भांप लिया और फिर बोली, ‘‘जी सर, बस एक नजर डाल लूं.’’

उस के चेहरे पर पड़ती शिकनें देख कर वह हंस पड़ी, ‘‘सर काम पर नहीं, शीशे पर नजर डालनी है. जरा टचिंग कर के आती हूं… काम पूरा है सर.’’

‘अजीब बेशर्म लड़की है. कुछ भी कह लो इस पर जूं नहीं रेंगने वाली. एक आदत खास है इस में कभी पूछेगी नहीं. हमेशा कुछ बताएगी,’ वह मन ही मन भुनभुनाया.

कार में बैठते ही लड़की का रिकौर्ड चालू हो गया.

‘‘यहां पर आने से पहले 2 साल तक विदेश में थी सर, फिर लौट आई.’’

‘‘क्यों पीआर नहीं मिला क्या?’’ वह बोला.

‘‘जी नहीं यह बात नहीं है. पीआर था, नौकरी भी ठीकठाक थी, पर मेरे हस्बैंड ने कहा वापस चलते हैं तो मैं ने भी अपना मन बदल लिया. यहां पर सारे लोग हैं. मेरे मम्मीपापा, मेरे इनलौज. हम दोनों के फ्रैंड्स, फिर कामवाली बाइयां.

‘‘दरअसल, मु  झे भीड़ अच्छी लगती है, इतनी कि बस टकरातेटकराते बचो.’’

फिर वह गंभीर हो गई. बोली, ‘‘यह बात भी नहीं सर. बात कुछ और ही थी… मेरे बेटे में अपने रंग को ले कर हीनभावना आ गई थी. उस ने कहा कि टीचर गोरे (अंगरेज) बच्चों को ज्यादा प्यार करती है. बस सर, मैं ने अपना मन बदल लिया. वापस आ गए हम दोनों.

‘‘बुरा नहीं लगता आप को,’’ उस ने लड़की से पूछा.

‘‘बुरा क्यों लगेगा?’’

‘‘अपना देश है जैसा भी है… टेढ़ा है पर मेरा है.’’

तभी लालबत्ती पर कार रुक गई. लड़की ने फटाफट अपना बैग खोला और एक पोटलीनुमा पर्स निकाला. थोड़ा सा कार का शीशा नीचे किया और फिर बच्चेमहिलाएं भीख मांग रहे थे, उन्हें पैसे बांटने लगी.

तभी कार चल पड़ी.

उस ने देखा एक छोटा लड़का सड़क से फ्लाइंग किस उछाल रहा था, जिसे इस ने लपक कर कैच कर लिया.

वह बोला, ‘‘कभी भी इन लोगों को पैसे नहीं देने चाहिए. ये आप का बैग छीन कर भाग सकते हैं.’’

‘‘जी सर सही कह रहे हैं पर क्या है न अब परिस्थितियां बदल गई हैं. क्या पता कौन किस मजबूरी में भीख मांग रहा हो. इसलिए मैं ने अपने विचारों को थोड़ा बदल लिया है. मेरा छोटा सा कंट्रीब्यूशन हो सकता है किसी की भूख मिटा दे,’’ उस ने पैसों की पोटली फिर अपने बैग में रख ली.

अब वह ड्राइवर से बोली, ‘‘भैयाजी गाना बदलिए. कुछ फड़कता हुआ सा म्यूजिक लगाइए न.’’

तभी उस के बच्चे की कौल आ गई. उस ने म्यूजिक धीरे करवाया… पूरा रास्ता बच्चे का होमवर्क कराने में काट दिया.

‘‘सर, बहुत शरारती है. मेरा बेटा बिना मेरे साथ बैठे कुछ नहीं करता. इसलिए रोज आधा घंटा औफिस के साथ थोड़ी बेवफाई करती हूं. सर, आखिरकार नौकरी भी तो फैमिली के लिए ही कर रही हूं.’’

हां हूं करते उस ने अपने दिमाग और जबान में मानो संतुलन बनाया, मगर विचारों ने गति पकड़ ली थी…

वह तो पूरी तन्मयता से नौकरी कर रहा

है… पत्नी और बच्चे उस की राह देख कर थक चुके हैं. उस का बच्चा भी आठ वर्ष का है. पर स्कूल से आने के बाद उस की दिनचर्या का उसे पता नहीं है. रात के भोजन पर ही उन की मुलाकात होती है. बिटिया जरूर लाड़ दिखा

जाती है.

‘‘सर,’’ लड़की ने उस के विचारों को लगाम दी.

‘‘हां बोलो.’’

‘‘आप भी हमारे साथ ही लंच किया करें. अच्छा नहीं लगता आप अकेले बैठते हैं.’’

‘‘मैं ज्यादा कुछ नहीं खाता. हैवी ब्रेकफास्ट करता हूं. लंच तो बस नाममात्र का.’’

‘‘सर, कल आइए हमारे साथ. देखिए अगर अच्छा न लगे तो फिर नहीं कहूंगी.’’

अब एक बार सिलसिला चल पड़ा तो खत्म न हुआ… दूर से जैसी दिखती थी उस के

विपरीत अंदर से बहुत संवेदनशील दुनिया थी इन लड़कियों की.

कोई टूटी टांग वाली पड़ोसिन आंटी को पूरीछोले पकड़ा कर आ रही है, तो एक शाम को अपनी सहेली के तलाक के लिए वकीलों के चक्कर काट रही है.

यहां से घर जा कर किसी को ननद को मेहंदी लगवाने ले जाना है, किसी को बच्चे को साइकिल के 4 राउंड लगवाने हैं, तो किसी के घर मेहमान आए पड़े हैं, जाते ही नहीं.

फिर भी औफिस में बर्थडे, प्रमोशन, बच्चे का रिजल्ट, हस्बैंड का बर्थडे, शादी की सालगिरह हर दिन लंच टाइम पर एक उत्सव है, इन लड़कियों का. फ्राईडे को इस बात का जश्न कि शनिवार, इतवार छुट्टी है. क्या कमाल की दुनिया है.

सब के पास ढेरों काम हैं, औफिस से पहले भी और घर जा कर भी. औफिस के काम में भी पूरी भागीदारी है. उस के विचार बदलने लग पड़े हैं.

उस की हिचक भी निकलती जा रही है. अब उसे नहीं लगता कि वह औफिस में अकेला मर्द है. घर में पत्नी भी खुश… वह रोज घर जा कर बताता है कि खाना कितना अच्छा बना था. यह तारीफ करना भी इन्हीं देवियों ने सिखाया है.

आज फ्राइडे है. उस ने अपनी ब्लू जींस पहनी, पत्नी देख कर हैरान हुई. पूछा, ‘‘आप औफिस ही जा रहे हैं न?’’

‘‘हां तो क्या हुआ? कभीकभी चेंज अच्छा लगता है.’’

‘‘यह भी सही है,’’ पत्नी ने ऊपरी तौर पर सहमति जताई, जबकि वह जानती थी कि वह कितना जिद्दी है, अपने कपड़ों को ले कर. वह भी   झेंप गया था, पर   झटके से घर से निकल लिया.

रास्ते में बौस का फोन आ गया. वे बोले, ‘‘तुम्हारा ट्रांसफर कर दूं… वापस आना चाहोगे?’’

उस को मानो   झटका सा लगा, ‘‘जैसा आप कहें… मु  झे तो जो आदेश मिलेगा वही पालन करूंगा.’’

‘‘नहीं तुम कह रहे थे औफिस में खाली लड़कियां हैं.’’

‘‘सर, लड़कियां ही तो हैं. क्या फर्क पड़ता है? मु  झे तो अब अच्छा लगता है. रौनक वाली जगह है सर.’’

‘‘हाहाहा,’’ उस के बौस की हंसी गूंज उठी. ऐक्चुअली यह बैस्ट पोस्टिंग है तुम्हारी.’’

‘‘जी सर, आप ठीक कहते हैं… यहां सीखने को बहुत कुछ है,’’ और वह मुसकरा दिया.

Fictional Story

Parivarik Kahani: रिटायरमेंट- आत्म-सम्मान के लिए अरविंद बाबू ने क्या किया

Parivarik Kahani: ‘‘तो पापा, कैसा लग रहा है आज? आप की गुलामी का आज अंतिम दिन है. कल से आप पिंजरे से आजाद पंछी की भांति आकाश में स्वच्छंद विचरण करने के लिए स्वतंत्र होंगे,’’ आरोह नाश्ते की मेज पर भी पिता को अखबार में डूबे देख कर बोला था.

‘‘कहां बेटे, जीवन भर पिंजरे में बंद रहे पंछी के पंखों में इतनी शक्ति कहां होती है कि वह स्वच्छंद विचरण करने की बात सोच सके,’’ अरविंद लाल मुसकरा दिए थे, ‘‘पिछले 35 साल से घर से सुबह खाने का डब्बा ले कर निकलने और शाम को लौटने की ऐसी आदत पड़ गई है कि ‘रिटायर’ शब्द से भी डर लगता है.’’

‘‘कोई बात नहीं पापा, एकदो दिन बाद आप अपने नए जीवन का आनंद लेने लगेंगे,’’ कहकर आरोह हंस दिया.

‘‘मैं तो नई नौकरी ढूंढ़ रहा हूं. कुछ जगहों पर साक्षात्कार भी दे चुका हूं. मुझे कोई पैंशन तो मिलेगी नहीं. नई नौकरी से हाथ में चार पैसे भी आएंगे और साथ ही समय भी कट जाएगा.’’

‘‘क्या कह रहे हैं, पापा, जीवन भर खटने के बाद क्या यह आप की नौकरी ढूंढ़ने की उम्र है. यह समय तो पोतेपोतियों के साथ खेलने और अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का है,’’ आरोह ने बड़े लाड़ से कहा था.

‘‘मैं सब समझ गया बेटे, रिटायर होने के बाद तुम मुझे अपना सेवक बना कर रखना चाहते हो,’’ अरविंद लाल का स्वर अचानक तीखा हो गया था.

‘‘पापा, आप के लिए मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूं.’’

‘‘बेटे, आज घरघर की यही कहानी है. बूढ़े मातापिता तो किसी गिनती में हैं ही नहीं. बच्चों को स्कूल से लाना ले जाना. सब्जीभाजी से ले कर सारी खरीदारी करना यही सब तो कर रहे हैं आजकल अधिकतर वृद्ध. सुबह की सैर के समय मेरे मित्र यही सब बताते हैं.’’

‘‘बताते होंगे, पर हर परिवार की परिस्थितियां अलगअलग होती हैं. आप को ऐसा कुछ करने की कतई जरूरत नहीं है. कल से आप अपनी इच्छा के मालिक होंगे. जब मन में आए सोइए, जब मन में आए उठिए, आप की दिनचर्या में कोई खलल नहीं डालेगा. मैं, यह आप को विश्वास दिलाता हूं. पर कृपया फिर से नई नौकरी ढूंढ़ने के चक्कर में मत पडि़ए,’’ आरोह ने विनती की.

अरविंदजी कोई उत्तर देते इस से पहले ही बहू मानिनी आ खड़ी हुई और अपने पति की ओर देख कर बोली, ‘‘चलें क्या? देर हो रही है.’’ ‘‘हां, चलो, मुझे भी आज जल्दी पहुंचना है. अच्छा पापा, फिर शाम को मिलते हैं,’’ आरोह उठ खड़ा हुआ.

‘‘मानिनी, नाश्ता तो कर लो,’’ आरोह की मां वसुधाजी बोलीं.

‘‘मांजी, चाय पी ली है. नाश्ता अस्पताल पहुंच कर लूंगी. आज चारू को हलका बुखार था. परीक्षा थी इसलिए स्कूल गई है. रामदीन जल्दी ले आएगा. आप जरा संभाल लीजिएगा,’’ मानिनी जाते हुए बोली थी.

‘‘बहू, तुम चिंता मत करो. मैं हूं न. सब संभाल लूंगी,’’ वसुधाजी ने मानिनी को आश्वस्त किया.

‘‘चिंता करने की जरूरत भी कहां है, यहां स्थायी नौकरानी जो बैठी है दिन भर हुकम बजा लाने को,’’ अरविंद लाल कटु स्वर में बोले.

‘‘अपने घर के काम करने से कोई छोटा नहीं हो जाता पर यह बात आप की समझ से बाहर है. चलो, नहाधो कर तैयार हो जाओ. आज तो आफिस जाना है. कल से घर बैठ कर अपनी गाथा सुनाना.’’

‘‘मेरी समझ का तो छोड़ो अपनी समझ की बात करो. दिन भर घर में लगी रहती हो. मानिनी तो नाम की मां है. चारू और चिरायु को तो तुम्हीं ने पाल कर बड़ा किया है. सुधांशु की पत्नी इसी काम के लिए आया को 7 हजार रुपए देती है.’’

‘‘आप के विचार से आया और दादी में कोई अंतर नहीं होता. मैं ने तो आरोह और उस की दोनों बहनों को भी बड़ा किया है. तब तो आप ने यह प्रश्न कभी नहीं उठाया.’’

‘‘भैंस के आगे बीन बजाने का कोई लाभ नहीं है. मैं आगे तुम से कुछ भी नहीं कहूंगा, पर इतना साफ कहे देता हूं कि मैं अपने ही बेटे के घर पर घरेलू नौकर बन कर नहीं रहूंगा. मेरे लिए मेरा आत्मसम्मान सर्वोपरि है.’’

‘‘क्या कह रहे हो, कुछ तो सोचसमझ कर बोला करो. घर में नौकरचाकर क्या सोचेंगे…अच्छा हुआ कि आरोह, मानिनी और बच्चे घर पर नहीं हैं. नहीं तो ऐसी बेसिरपैर की बातें सुन कर न जाने क्या सोचते.’’

‘‘मैं किसी से नहीं डरता. और जो कुछ तुम से कह रहा हूं उन से भी कह सकता हूं,’’ अरविंद लाल शान से बोले.

‘‘क्यों अपने पैरों आप कुल्हाड़ी मारने पर तुले हो. याद करो वह दिन जब हम पैसेपैसे को तरसते थे. तब एक दिन आप ने बड़ी शान से कहा था कि चाहे आप को कुछ भी करना पड़े आप आरोह को क्लर्की नहीं करने देंगे. उसे आप डाक्टर बनाएंगे.’’

‘‘हां, तो क्या बनाया नहीं उसे डाक्टर? उन दिनों हम ने कितनी तंगी में दिन गुजारे यह क्या तुम नहीं जानतीं?’’

‘‘जानती हूं. मैं सब जानती हूं. पर कई बार मातापिता लाख प्रयत्न करें तब भी संतान कुछ नहीं करती लेकिन अपना आरोह तो लाखों में एक है. अपने पैरों पर खड़े होते ही उस ने आप की जिम्मेदारियों का भार अपने कंधों पर ले लिया. नीना और निधि के विवाह में उस ने कर्ज ले कर आप की सहायता की वरना उन दोनों के लिए अच्छे घरवर जुटा पाना आप के वश की बात न थी,’’ वसुधाजी धाराप्रवाह बोले जा रही थीं.

‘‘तुम्हें तो पुत्रमोह ने अंधा बना दिया है. अपनी बहनों के प्रति उस का कुछ कर्तव्य था या नहीं? उन के विवाह में सहायता कर के उस ने अपने कर्तव्य का पालन किया है और कुछ नहीं. परिवार के सदस्य एकदूसरे के लिए इतना भी न करें तो एकसाथ रहने का अर्थ क्या है? आरोह ने जब इस कोठी को खरीदने की इच्छा जाहिर की थी तो हम चुपचाप अपना 2 कमरों का मकान बेच कर उस के साथ रहने आ गए थे.’’

‘‘वह भी तब जब उस ने आधी कोठी आप के नाम करवा दी थी.’’

‘‘वह सब मैं ने अपने लिए नहीं तुम्हारे लिए किया था. आजकल की संतान का क्या भरोसा. कब कह दे कि हमारे घर से बाहर निकल जाओ,’’ अरविंदजी अब अपनी अकड़ में थे.

‘‘समझ में नहीं आ रहा कि आप को कैसे समझाऊं. पता नहीं इतनी कड़वाहट कहां से आ गई है आप के मन में.’’

‘‘कड़वाहट? यह कड़वाहट नहीं है आत्मसम्मान की लड़ाई है. माना तुम्हारा आरोह बहुत प्रसिद्ध डाक्टर हो गया है. दोनों पतिपत्नी मिल कर खूब पैसा कमा रहे हैं, पर वे मुझे नीचा दिखाएं या अपने रुतबे का रौब दिखाएं तो मैं यह सह नहीं पाऊंगा.’’

 

‘‘कौन आप को नीचा दिखा रहा है? पता नहीं आप ने अपने दिमाग में यह कैसी कुंठा पाल ली है और दिन भर न जाने क्याक्या सोचते रहते हैं,’’ वसुधा का स्वर अनचाहे भर्रा गया था.

‘‘चलो, बहस छोड़ो और मेरा सूट ले आओ. आज मेरा विदाई समारोह है. सूट पहन कर जाऊंगा.’’

अरविंद लाल तैयार हो कर दफ्तर चले गए. पर वसुधा को सोच में डूबा छोड़ गए. कुछ दिनों से अपने पति अरविंद लाल का हाल देख कर वसुधा का दिल बैठा जा रहा था. जितनी देर वे घर में रहते एक ही राग अलापते कि अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देंगे.

फूलमालाओं और उपहारों से लदे अरविंदजी को दफ्तर की गाड़ी छोड़ गई थी. उन के अफसरों ने भी उन की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे.

घर आते ही उन्होंने चारू और चिरायु के गले में फूलमालाएं डाल दी थीं और प्रसन्नता से झूमते हुए देर तक वसुधा को विदाई समारोह का हाल सुनाते रहे थे.

‘‘दादाजी, घूमने चलो न, आइसक्रीम खाएंगे,’’ उन्हें अच्छे मूड में देख कर बच्चे जिद करने लगे थे.

‘‘कहीं नहीं जाना है. चारू को बुखार है, वैसे भी आइसक्रीम खाने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है. फ्रिज में ढेरों आइसक्रीम पड़ी है,’’ वसुधाजी ने दोनों बच्चों को समझाया था.

‘‘ठीक कहती हो,’’ अरविंदजी बोले, ‘‘बच्चो, कल घूमने चलेंगे. आज मैं बहुत थक गया हूं. वसुधा, एक प्याली चाय पिला दो फिर कुछ देर आराम करूंगा. कल नई पारी की शुरुआत जो करनी है.’’

वसुधा के मन में सैकड़ों प्रश्न बादल की तरह उमड़घुमड़ रहे थे कि वे किस दूसरी पारी की बात कर रहे हैं, कुछ पूछ कर फिर से वे घर की शांति को भंग नहीं करना चाहतीं. इसलिए चुपचाप चाय बना कर ले आईं.

अगले दिन अरविंदजी रोज की तरह तैयार हो कर घर से चले तो वसुधा स्वयं को रोक नहीं सकीं.

‘‘टोकना आवश्यक था? शुभ कार्य के लिए जा रहा था… अब तो काम शायद ही बने,’’ अरविंदजी झुंझला गए थे.

‘‘मुझे लगा कि आज आप घर पर ही विश्राम करेंगे. आप 2 मिनट रुकिए अभी आप के लिए टिफिन तैयार करती हूं.’’

‘‘जाने दो, मैं फल आदि खा कर काम चला लूंगा. मुझे देर हो रही है,’’ अरविंदजी अपनी ही धुन में थे.

‘‘पापा कहां गए?’’ नाश्ते की मेज पर आरोह पूछ बैठा था.

‘‘वे तो रोज की तरह ही घर से निकल गए. कह रहे थे कि किसी आवश्यक कार्य से जाना है,’’ वसुधा ने बताया.

‘‘मां, आप उन्हें समझाती क्यों नहीं कि उन्हें फिर से काम ढूंढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है. 35 वर्ष तक उन्होंने कार्य किया है. अब जब कुछ आराम करने का समय आया तो फिर से काम ढूंढ़ने निकल पड़े.’’

‘‘क्या कहूं, बेटे. मैं तो उन्हें समझासमझा कर थक गई हूं. सुबह की सैर पर साथ जाने वाले मित्रों ने इन के मन में यह बात अच्छी तरह बिठा दी है कि अब घर में उन को कोई नहीं पूछेगा. बातबात में यही कहते हैं कि अपने आत्मसम्मान पर आंच नहीं आने देंगे.’’

‘‘उन के आत्मसम्मान पर चोट करने का प्रश्न ही कहां है, मां. घर में आराम से रहें, अपनी इच्छानुसार जीवन जिएं.’’

‘‘इस विषय पर बहुत कहासुनी हो चुकी है. मैं ने तो अब किसी प्रकार की बहस न करने का निर्णय लिया है, पर मन ही मन मैं बुरी तरह डर गई हूं.’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है, मां.’’

‘‘इसी तरह तनाव में रहे तो अपनी सेहत चौपट कर लेंगे,’’ वसुधाजी रो पड़ी थीं.

‘‘चिंता मत करो, मां, सेवानिवृत्ति के समय कई लोग इस तरह के तनाव के शिकार हो जाते हैं,’’ आरोह ने मां को समझाया.

अरविंदजी दोपहर को घर आए तो देखा, आरोह खाने की मेज पर अपनी मां से कुछ बातें कर रहा था.

‘‘मांबेटे के बीच क्या कानाफूसी हो रही है? मेरे विरुद्ध कोई साजिश तो नहीं हो रही?’’ वे थके होने पर भी मुसकराए थे.

‘‘हो तो रही है, हम सब को आप से बड़ी शिकायत है,’’ आरोह मुसकराया था.

‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने?’’

‘‘कल आप का विदाई समारोह था. आप सपरिवार आमंत्रित थे पर आप अकेले ही चले गए. मां तक को नहीं ले गए. हम से पूछा तक नहीं.’’

‘‘क्या कह रहे हो, आरोह? इन्हें सपरिवार बुलाया गया था?’’ वसुधा चौंकी थीं .‘‘पूछ लो न, पापा सामने ही तो बैठे हैं. मुझे तो इन के सहकर्मी मनोज ने आज सुबह अस्पताल आने पर बताया.’’

‘‘इन्हें हमारी भावनाओं की चिंता ही कहां है,’’ वसुधा नाराज हो उठी थीं.

‘‘बात यह नहीं है. मुझे लगा आरोह और मानिनी इतने नामीगिरामी चिकित्सक हैं. वे मुझ जैसे मामूली क्लर्क के विदाई समारोह में क्यों आएंगे. वसुधा सदा पूजापाठ और चारू व चिरायु के साथ व्यस्त रहती है, इसीलिए मैं किसी से कुछ कहेसुने बिना अकेले ही चला गया था. यद्यपि हमारे यहां विदाई समारोह में सपरिवार जाने की परंपरा है,’’ अरविंदजी क्षमायाचनापूर्ण स्वर में बोले थे.

‘‘आप की समस्या यह है पापा कि आप सबकुछ अपने ही दृष्टिकोण से देखते हैं. खुद को बारबार साधारण क्लर्क कह कर आप केवल स्वयं को नहीं, मेरे पिता को अपमानित करते हैं जिन्होंने इसी नौकरी के बलबूते पर मेहनत और ईमानदारी से अपने परिवार का पालनपोषण किया. साथ ही आप उन हजारों लोगों का अपमान भी करते हैं जो इस तरह की नौकरियों से अपनी जीविका कमाते हैं.’’

आरोह का आरोप सुन कर कुछ क्षणों के लिए अरविंदजी ठगे से रह गए थे. कोई उन के बारे में इस तरह भी सोच सकता है यह उन के लिए एक नई बात थी. उन की आंखों से आंसू टपकने लगे.

‘‘क्या हुआ, पापा? आप रो क्यों रहे हैं?’’ तभी नीना और निधि आ खड़ी हुई थीं.

‘‘मैं क्या बताऊं, पापा से ही पूछ लो न,’’ आरोह हंसा था. पर अरविंदजी ने चटपट आंसू पोंछ लिए थे.

‘‘तुम दोनों कब आईं?’’ उन्होंने नीना और निधि से अचरज से पूछा था.

‘‘ये दोनों अकेली नहीं सपरिवार आई हैं, वह भी मेरे निमंत्रण पर. कल कुछ और अतिथि भी आ रहे हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हो…मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है…कल कौन सा पर्व है?’’

‘‘कल हम अपने पापा के रिटायर होने का फंक्शन मना रहे हैं.’’

‘‘यह सब क्या है. हमारे परिवार में इस तरह के किसी आयोजन की कोई परंपरा नहीं है.’’

‘‘परंपराएं बदली भी जा सकती हैं. हम ने कल की पार्टी में आप के सभी सहकर्मियों को भी आमंत्रित किया है. नीनानिधि, इन के हाथों से यह फाइल ले लो. पूछो आज दोपहर तक कहां भटकते रहे,’’ आरोह ने अरविंदजी की फाइल की ओर इशारा किया.

नीना ने पिता के हाथ से फाइल ले ली.

‘‘इस में तो डिगरियां और पापा का बायोडाटा है. यह क्या पापा? आप फिर से नौकरी ढूंढ़ रहे हैं?’’ नीना और निधि आश्चर्यचकित पास आ खड़ी हुई थीं.

‘‘चलो, चायनाश्ता लग गया है,’’ तभी मानिनी ने आ कर सब का ध्यान बटाया.

‘‘लाओ, यह फाइल मुझे दो. मैं इसे ताले में रखूंगा,’’ आरोह उठते हुए बोला.

‘‘चलो उठो, मुंहहाथ धो लो. सब चाय पर प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ वसुधाजी ने भरे गले से कहा.

‘‘इतना सब हो गया और तुम ने मुझे हवा भी नहीं लगने दी,’’ अरविंदजी ने उलाहना देते हुए पत्नी से कहा.

‘‘मुझे भी कहां पता था. मुझे तो कोई भी कुछ बताता ही नहीं. न तुम न तुम्हारे बच्चे. पर मेरे आत्मसम्मान की चिंता किसे है भला,’’ वसुधा नाटकीय अंदाज में बोली थीं.

अरविंद बाबू सोचते रह गए थे. वसुधा शायद ठीक ही कहती है. परिवार की धुरी है वह पर कभी किसी बात का रोना नहीं रोया. ये तो केवल वही थे जो आत्मसम्मान के नाम पर इतने आत्मकेंद्रित हो गए थे कि कोई दूसरा नजर ही नहीं आता था. न जाने मन में कैसी कुंठाएं पाल ली थीं उन्होंने.

Parivarik Kahani

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