Hindi Story Collection : चक्रव्यूह – क्या हुआ था सुशील के साथ

Hindi Story Collection : यौन दुराचार के आरोप में निलंबन, धूमिल सामाजिक प्रतिष्ठा और एक लंबी विभागीय जांच प्रक्रिया के बाद निर्दोष साबित हो कर फिर बहाल हुए सुशील आज पहली बार औफिस पहुंचे. पूरा स्टाफ उन के सम्मान में खड़ा हो गया, मगर उन्होंने किसी की तरफ भी नजर उठा कर नहीं देखा और चपरासी के पीछेपीछे सीधे अपने केबिन में चले गए. आज उन की चाल में पहले सी ठसक नहीं थी. वह पुराना आत्मविश्वास कहीं खो सा गया था.

कुरसी पर बैठते ही उन की आंखों में नमी तैर गई. उन के उजले दामन पर जो काले दाग लगे थे वे बेशक आज मिट गए थे मगर उन्हें मिटातेमिटाते उन का चरित्र कितना बदरंग हो गया, यह दर्द सिर्फ भुक्तभोगी ही जान सकता है.

कितना गर्व था उन्हें अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर, बहुत भरोसा था अपने व्यवहार की पारदर्शिता पर. हां, वे काम में सख्त और वक्त के पाबंद थे. मगर यह भी सच था कि अपने स्टाफ के प्रति बहुत अपनापन रखते थे. वे कितनी बड़ी खुशफहमी पाले हुए थे अपने दिल में कि उन का स्टाफ भी उन्हें बहुत प्यार करता है. तभी तो उन्हें अपने चपरासी मोहन की बातों पर जरा भी यकीन नहीं हुआ था जब उस ने रजनी और शिखा के बीच हुई बातचीत ज्यों की त्यों सुना कर उन्हें खतरे से आगाह किया था. उन्हें आज भी वह सब याद है जो मोहन ने उस दिन दोनों की बातें लगभग फुसफुसा कर कही थीं…

‘इन सुशील का भी न, कुछ न कुछ तो इलाज करना ही पड़ेगा. जब से डिपार्टमैंट में हेड बन कर आए हैं, सब को सीट से बांध कर रख दिया है. मजाल है कि कोई लंचटाइम के अलावा जरा सा भी इधरउधर हो जाए,’ शिखा की टेबल पर टिफिन खोलते हुए रजनी ने अपनी भड़ास निकाली.

‘हां यार, विमल सर के टाइम में कितने मजे हुआ करते थे. बड़े ही आराम से नौकरी हो रही थी. न सुबह जल्दी आने की हड़बड़ाहट और न ही शाम को 6 बजे तक सीट पर बैठने की पाबंदी. अब तो सुबह अलार्म बजने के साथ ही मोबाइल में सुशील का चेहरा दिखाई देने लगता है,’ शिखा ने रजनी की हां में हां मिलाते हुए उस की बात का समर्थन किया.

‘याद करो, कितनी बार हम ने औफिस से बंक मार कर मैटिनी शो देखा है, ब्यूटीपार्लर गए हैं, त्योहारों पर सैल में शौपिंग के मजे लूटे हैं. और तो और, औफिसटाइम में घरबाहर के कितने ही काम भी निबटा लिया करते थे. अब तो बस, सुबह साढ़े 9 बजे से शाम 6 बजे तक सिर्फ फाइलें ही निबटाते रहो. लगता ही नहीं कि सरकारी नौकरी कर रहे हैं,’ रजनी ने बीते हुए दिनों को याद कर के आह भरी.

‘और हां, सुशील सर पर तो तुम्हारी आंखों का काला जादू भी काम नहीं कर रहा, है न,’ शिखा ने जानबूझ कर रजनी को छेड़ा?

‘सही कह रही हो तुम. विमल सर तो मेरी एक मुसकान पर ही फ्लैट हो जाते थे. सुशील को तो यदि बांहोें में भर के चुंबन भी दे दूं न, तब भी शायद कोई छूट न दें,’ रजनी ने ठहाका लगाते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली.

‘शिखा मैडम, आप को साहब ने याद किया है,’ तभी मोहन ने आ कर कहा था.

‘अभी आती हूं,’ कहती हुई शिखा ने अपना टिफिन बंद किया और सुशील के चैंबर की तरफ चल दी.

‘साहब का चमचा,’ कह कर रजनी भी बुरा सा मुंह बनाती हुई अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

सुशील को एकएक बात, एकएक घटना याद आ रही थी. रजनी उन के औफिस में क्लर्क है. बेहद आकर्षक देहयष्टि की मालकिन रजनी को यदि खूबसूरती की मल्लिका भी कहा जाए तो भी गलत न होगा. उस की मुखर आंखें उस के व्यक्तित्व को चारचांद लगा देती हैं. रजनी को भी अपनी इस खूबी का बखूबी एहसास है और अवसर आने पर वह अपनी आंखों का काला जादू चलाने से नहीं चूकती.

मोहन ने ही उन्हें बताया था कि 3 साल पहले जब रजनी ने ये विभाग जौइन किया था तब प्रशासनिक अधिकारी मिस्टर विमल उस के हेड थे. शौकीनमिजाज विमल पर रजनी की आंखों का काला जादू खूब चलता था. बस, वह अदा से पलकें उठा कर उन की तरफ देखती और उस के सारे गुनाह माफ हो जाते थे.

विमल ने कभी उसे औफिस की घड़ी से बांध कर नहीं रखा. वह आराम से औफिस आती और अपनी मरजी से सीट छोड़ कर चल देती. हां, जाने से पहले एक आखिरी कौफी वह जरूर मिस्टर विमल के साथ पीती थी. उसी दौरान कुछ चटपटी बातें भी हो जाया करती थीं. मिस्टर विमल इतने को ही अपना समय समझ कर खुश हो जाते थे. रजनी की आड़ में शिखा समेत दूसरे कर्मचारियों को भी काम के घंटों में छूट मिल जाया करती थी, इसलिए सभी रजनी की तारीफें करकर के उसे चने के झाड़ पर चढ़ा रखते थे.

लेकिन रजनी की आंखों का काला जादू ज्यादा नहीं चला क्योंकि मिस्टर विमल का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह सुशील उन के बौस बन कर आ गए. दोनों अधिकारियों में जमीनआसमान का फर्क. सुशील अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार थे और साथ ही, वक्त के भी बहुत पाबंद, औफिस में 10 मिनट की भी देरी न तो खुद करते हैं और न ही किसी स्टाफ की बरदाश्त करते. शाम को भी 6 बजे से पहले किसी को सीट नहीं छोड़ने देते.

जैसा कि अमूमन होता आया है कि लंबे समय तक मिलने वाली सुविधाओं को अधिकार समझ लिया जाता है. रजनी को भी सुशील के आने से कसमसाहट होने लगी. उन की सख्ती उसे अपने अधिकारों का हनन महसूस होती थी. उसे न तो जल्दी औफिस आने की आदत थी और न ही देर तक रुकने की. उस ने एकदो बार अपनी अदाओं से सुशील को शीशे में उतारने की कोशिश भी की मगर उसे निराशा ही हाथ लगी. सुशील तो उसे आंख उठा कर देखते तक नहीं थे. फिर? कैसे चलेगा उस की आंखों का काला जादू? इस तरह तो नौकरी करनी बहुत मुश्किल हो जाएगी. रजनी की परेशानी बढ़ने लगी तो उस ने शिखा से अपनी परेशानी साझा की थी. तभी मोहन ने उन की बातें सुन ली थीं और सुशील को आगाह किया था.

उन्हीं दिनों विधानसभा का मौनसून सत्र शुरू हुआ था. इन सत्रों में विपक्ष द्वारा सरकार से कई तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं और संबंधित सरकारी विभाग को उन के जवाब में अपने आंकड़े पेश करने पड़ते हैं. साथ ही, जब तक उस दिन का सत्र समाप्त नहीं हो जाता,

तब तक उस विभाग के सभी अधिकारियों व उन से जुड़े कर्मचारियों को औफिस में रुकना पड़ता है. हां, देरी होने पर महिला कर्मचारियों को सुरक्षित उन के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जरूर विभाग की होती है. इस बाबत सुशील भी हर रोज उन के लिए कुछ टैक्सियों की एडवांस में व्यवस्था करवाते थे.

रजनी के अधिकारक्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण विकास योजनाओं की जानकारी वाली फाइलें थीं. इसलिए सुशील की तरफ से उसे खास हिदायत थी कि वह बिना उन की इजाजत के औफिस छोड़ कर न जाए. और फिर उस दिन जो हुआ उसे भला वे कैसे भूल सकते हैं.

‘साहब ने आज आप को फाइलों के साथ रुकने के लिए कहा है,’ मोहन ने जैसे ही औफिस से निकलने के लिए बैग संभालती रजनी को यह सूचना दी, उस के हाथ रुक गए. उस ने मन ही मन कुछ सोचा और सुशील के चैंबर की तरफ बढ़ गई.

‘सर, आज मेरे पति का जन्मदिन है, प्लीज आज मुझे जल्दी जाने दीजिए. मैं कल देर तक रुक जाऊंगी,’ रजनी ने मिन्नत की.

‘मगर मैडम, हमारे विभाग से जुड़े प्रश्न तो आज के सत्र में ही पूछे जाएंगे. कल रुकने का क्या फायदा? लेकिन आप फिक्र न करें, जैसे ही आप का काम खत्म होगा, हम तुरंत आप को टैक्सी से जहां आप कहेंगी वहां छुड़वा देंगे. अब आप जाइए और जल्दी से ये आंकड़े ले कर आइए,’ सुशील ने उस की तरफ एक फाइल बढ़ाते हुए कहा. रजनी कुछ देर तो वहां खड़ी रही मगर फिर सुशील की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर निराश सी चैंबर से बाहर आ गई.

‘सर, क्या मैं आप के मोबाइल से एक फोन कर सकती हूं? अपने पति को देर से आने की सूचना देनी है, मैं जल्दबाजी में आज अपना मोबाइल लाना भूल गई,’ रजनी ने संकोच से कहा.

‘औफिस के लैंडलाइन से कर लीजिए,’ सुशील ने उस की तरफ देखे बिना ही टका सा जवाब दे दिया.

‘लैंडलाइन शायद डेड हो गया है और शिखा भी घर चली गई. पर

खैर, कोई बात नहीं, मैं कोई और व्यवस्था करती हूं,’ कहते हुए रजनी वापस मुड़ गई.

‘यह लीजिए, कर दीजिए अपने घर फोन. और हां, मेरी तरफ से भी अपने पति को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीजिएगा,’ सुशील ने रजनी को

अपना मोबाइल थमा दिया और फिर

से फाइलों में उलझ गए. रजनी उन

का मोबाइल ले कर अपनी सीट पर

आ गई. थोड़ी देर बाद उस ने मोहन के साथ सुशील का मोबाइल वापस

भिजवा दिया और फिर अपने काम में लग गई.

‘रजनीजी, आज आप अभी तक औफिस नहीं आईं?’ दूसरे दिन सुबह लगभग 11 बजे सुशील ने रजनी को फोन किया.

‘सर, कल आप के साथ रुकने से मेरी तबीयत खराब हो गई. मैं 2-4 दिनों तक मैडिकल लीव पर रहूंगी, रजनी ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या हुआ?’ सुशील के शब्दों में चिंता झलक रही थी.

‘कुछ खास नहीं, सर. बस, पूरी बौडी में पेन हो रहा है. रैस्ट करूंगी तो ठीक हो जाएगा. मैं अलमारी की चाबियां शिखा के साथ भिजवा रही हूं. शायद आप को कुछ जरूरत पड़े,’ कह कर रजनी ने अपनी बात खत्म की.

2 दिनों बाद सुशील के पास महिला आयोग की अध्यक्ष सुषमा का फोन आया जिसे सुन कर सुशील के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. रजनी ने उन पर यौन दुराचार का आरोप लगाया था. रजनी ने अपने पक्ष में सुशील द्वारा भेजे गए कुछ अश्लील मैसेज और एक फोनकौल की रिकौर्डिंग उन्हें उपलब्ध करवाई थी. सुशील ने लाख सफाई दी, मगर सुषमा ने उन की एक  न सुनी और रजनी की लिखित शिकायत व सुबूतों को आधार बनाते हुए यह खबर हर अखबार व न्यूज चैनल वालों को दे दी. सभी समाचारपत्रों ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया.

चूंकि खबर एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ी थी और वह भी ऐसे विभाग का जोकि खास महिलाओं की बेहतरी के लिए ही बनाया गया था, सो सत्ता के गलियारों में भूचाल आना स्वाभाविक था. न्यूज चैनलों पर गरमागरम बहस हुई. महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर खामियों को ले कर विपक्ष द्वारा सरकार को घेरा गया. सुशील के घर के बाहर महिला संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया. सरकार से उन्हें बरखास्त करने की पुरजोर मांग की गई.

सरकार ने पहले तो अपने अधिकारी का पक्ष लिया मगर बाद में जब रजनी के मोबाइल में भेजे गए सुशील के अश्लील संदेश और फोनकौल की रिकौडिंग मीडिया में वायरल हुए तो सरकार भी बैकफुट पर आ गईर् और तुरंत प्रभाव से सुशील को सस्पैंड कर के एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक महिला प्रशासनिक अधिकारी उपासना खरे को जांच अधिकारी बनाया गया.

उपासना की छवि एक कर्मठ और ईमानदार अधिकारी की रही थी. उसे इस से पहले भी ऐसी कई जांच करने का अनुभव था. साथ ही, एक महिला होने के नाते रजनी उस से खुल कर बात कर सकेगी, शायद उसे जांच अधिकारी नियुक्त करने के पीछे सरकार की यही मंशा रही होगी.

इधर सुशील के निलंबन को रजनी अपनी जीत समझ रही थी. उस ने एक दिन बातों ही बातों में शेखी मारते हुए शिखा के सामने सारे घटनाक्रम को बखान कर दिया तो शिखा को

सुशील के लिए बहुत बुरा लगा. उधर शर्मिंदगी और समाज में हो रही थूथू के कारण सुशील ने अपनेआप को घर में कैद कर लिया.

उपासना ने पूरे केस का गंभीरता से अध्ययन किया. सुशील और रजनी के अलगअलग और एकसाथ भी

बयान लिए. दोनों के पिछले चारित्रिक रिकौर्ड खंगाले. पूरे स्टाफ से दोनों के बारे में गहन पूछताछ की और सुशील के पिछले कार्यालयों से भी उन के व्यवहार व कार्यप्रणाली से जुड़ी जानकारी जुटाई.

मोहन और शिखा से बातचीत के दौरान अनुभवी उपासना को रजनी की साजिश की भनक लगी और उन्हीं के बयानों को आधार बनाते हुए उस ने रजनी को पूछताछ के लिए दोबारा बुलाया. इस बार जरा सख्ती से बात की. थोड़ी ही देर के सवालजवाबों में रजनी उलझ गई और उस ने सारी सचाई उगल दी.

‘मैं ने औफिस के लैंडलाइन फोन की पिन निकाल कर उसे डेड कर दिया. फिर बहाने से सुशील का मोबाइल लिया और उस से अपने मोबाइल पर कुछ अश्लील मैसेज भेजे. दूसरे दिन जब सर ने मुझे फोन किया तो मैं ने उन की बातों के द्विअर्थी जवाब देते हुए उस कौल को रिकौर्ड कर लिया और फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए सारे सुबूत देते हुए महिला आयोग से उन की शिकायत कर दी. नतीजतन, वे सस्पैंड हो गए. इस कांड से सबक लेते हुए नए अधिकारी भी मुझ से दूरदूर रहने लगे और मुझे फिर से मनमरजी से औफिस आनेजाने की आजादी मिल गई,’ रजनी ने उपासना से माफी मांगते हुए यह सब कहा. अब यह केस शीशे की तरह बिलकुल साफ हो गया.

‘रजनी, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम ने ऐसी गिरी हुई हरकत कर के महिलाओं का सिर शर्म से नीचा कर दिया. तुम ने अपने महिला होने का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर के महिला जाति के नाम पर कलंक लगाया है. तुम्हें इस की सजा मिलनी ही चाहिए…’ उपासना ने रजनी को बहुत ही तीखी टिप्पणियों के साथ

दोषी करार दिया और सुशील को बहाल करने की सिफारिश की. उपासना ने अपनी जांच रिपोर्ट में रजनी को बतौर सजा न सिर्फ शहर बल्कि राज्य से भी बाहर स्थानांतरण करने की अनुशंसा की.

मामला चूंकि सरकार के उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ा था और आरोप भी बहुत संगीन थे, इसलिए मुख्य सचिव ने व्यक्तिगत स्तर पर गुपचुप तरीके से भी मामले की जांच करवाई और आखिरकार, उपासना की जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए सुशील को बहाल करने के आदेश जारी हो गए, हालांकि उन का विभाग जरूर बदल दिया गया था. रजनी का ट्रांसफर दिल्ली से लखनऊ कर दिया गया.

रजनी ने कई बार मौखिक व लिखित रूप से विभाग में अपना माफीनामा पेश किया, मगर आरोपों की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने उस का प्रार्थनापत्र ठुकरा दिया और आखिरकार रजनी को लखनऊ जाना पड़ा.

आज भले ही सुशील अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से बरी हो चुके हैं मगर महिलाओं को ले कर एक अनजाना भय उन के भीतर घुस गया है. महिलाओं के प्रति उन के अंदर जो एक स्वाभाविक संवेदना थी उस की जगह कठोरता ने ले ली. वे शायद जिंदगीभर यह हादसा न भूल पाएं कि महज काम के घंटों में छूट न देने की कीमत उन्हें क्याक्या खो कर चुकानी पड़ी.

सुशील ने मुख्य सचिव को पत्र

लिख कर अपील की कि या तो

उन के अधीन कार्यरत सभी महिलाओं को दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया जाए या फिर उन्हें ही

ऐसे सैक्शन में लगा दिया जाए

जहां महिला कर्मचारी न हों. आखिर दूध का जला छाछ भी फूंकफूक कर पीता है.

स्वाभाविक है यह मांग नहीं मानी गई और सालभर बाद सुशील ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना छोटा सा कंसलंटिंग का व्यवसाय शुरू कर दिया. एक औरत ने इस तरह उन की कमर तोड़ दी कि अब वे पत्नी व बेटी से भी आंख नहीं मिला पाते हैं.

Best Hindi Story: चलो रे डोली उठाओ- साची ने क्यों चुनी किताब की राह

Best Hindi Story: नीचे से साची की चहकती हुई आवाज आई, मैं झट से सीढ़ियां उतरती हुई बोली, “क्या हो गया, इतनी खुश क्यों लग रही है? मम्मी पापा बाहर जा रहे हैं क्या?’’

मेरी इस बात पर मम्मी ने मुझे घूर कर देखा तो मैं हंस दी. साची ने मुझे इशारा किया कि ऊपर तेरे रूम में ही चलते हैं. मैं ने कहा, आ जा, साची, मेरे रूम में ही बैठते हैं, मम्मी यहां स्कूल का रजिस्टर खोल कर बैठी हैं, उन्हें डिस्टर्ब होगा.’’

पर मम्मी तो मम्मी हैं, ऊपर से टीचर. मेरे जैसी पता नहीं कितनी लड़कियों से दिनभर स्कूल में निबटती हैं, बोलीं, “नैना, आ जाओ, यहीं बैठ जाओ, कुछ डिस्टर्ब नहीं होगा.’’

“हम ऊपर ही जाते हैं,’’ कह कर मैं साची को अपने रूम में ले गई. मैं ने कहा, “चल बोल, आज सुबहसुबह 10 बजे कैसे आई?’’

साची ने थोड़ा ड्रामा करते हुए गुनगुनाया, “चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई…’’

मैं ने उस की कमर पर एक धौल जमाया, बकवास नहीं, जल्दी बताओ.’’

“वह जो पिछले हफ्ते लड़के वाले देखने आए थे न, उन्होंने हां कर दी है और वे शादी भी जल्दी करना चाह रहे हैं. वही ध्रुव, जो मुझे देखते ही पसंद आ गया था. हाय, क्या बताऊं कितनी ख़ुशी हो रही है.’’

“अरे वाह, मुबारक हो, मुबारक हो,’’ कहते हुए मैं ने उसे गले से लगा तो लिया पर मैं मन ही मन जल मरी. देखो तो, कैसी खुश हो रही है, हाय, इस की भी शादी हो रही है. एकएक कर के सब ससुराल चली जा रही हैं और मैं क्या इन की शादियों में बस नाचती रह जाऊंगी. दुख से मुझे रोना आ गया, मेरे आंसू सच में बह निकले जिन्हें देख कर वह चौंकी, बचपन की सहेली है नालायक, सारी खुराफातें साथ ही तो की हैं, एकदूसरे की नसनस तो जानती हैं हम, बोली, “क्या हुआ नैना, फिर वैसी ही जलन हो रही है जैसे हमें अब तक अपनी दूसरी सहेलियों की शादी होते देख होती है?’’

मुझे हंसी आ गई, सोचा अब क्या झूठ बोलना, कहा, “हां, यार, जलन तो बहुत हो रही है पर दुख भी हो रहा है कि मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी,” कहतेकहते अब की बार मेरे सच्चे प्यार और दोस्ती वाले आंसू बह गए तो वह मेरे गले लग गई, बोली, “यहीं लोकल ही तो है ससुराल, मिलते रहेंगे, नैना. तू आती रहना.’’

“सुन, तेरा कोई देवर है?’’

“न, ध्रुव अकेला है.’’

“मर, तू किसी काम की नहीं.’’

“बरात में ही अब देखना. कोई पसंद आता है तो बताना.’’

इतने में मम्मी कुछ फल काट कर ले आईं और हमारे पास ही बैठ गईं, पूछा, “किस की बरात है भई, क्या देखना है?’’

मम्मी के कान कितने तेज हैं.

मैं ने एक आस के साथ कहा, “मम्मी, इस की भी शादी हो रही है.’’

मम्मी ने कहा, “अरे, इतनी जल्दी!’’

मैं ने कहा, “कहां जल्दी है, मम्मी, हमारा एमए पूरा होने वाला है. लगभग सब लड़कियों की कहीं न कहीं बात चल रही है.’’

“फिर भी, पढ़ाई ख़त्म हो जाए, अपने पैरों पर खड़े होने के बाद ही शादी करनी चाहिए.’’

मुझे अपनी मम्मी पर इन बातों पर इतना गुस्सा आता है कि क्या बताऊं.

“बेटा, अपने मम्मीपापा से कहो कि हो सके तो लड़के वालों से बात कर लें कि तुम कहीं जौब कर लो तब तक रुक सकें तो. तुम कहो तो मैं उन से बात कर सकती हूं.’’

मम्मी भी न, कुछ नहीं समझतीं.

मैं ने झट कहा, “नहीं मम्मी, जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है, यही तो उम्र है शादी की.” पता नहीं कैसे न चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल ही गया.

“क्या? तुम्हें कुछ नहीं पता. लड़कियों का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है,’’ कहते हुए मम्मी नीचे जाने के लिए उठ गईं. उन के जाते ही मैं शुरू हो गई, “यार, ये मेरी मां भी न. अरे, नहीं होना है हमें आत्मनिर्भर. हम खुश हैं ऐसे ही. जो ले जाएगा, खिला लेगा. पहले कहां कमाती थीं लड़कियां. यार, मैं अपने मौडर्न मम्मीपापा से परेशान हो चुकी हूं. समझते ही नहीं. सारा दिन कैरियर की बातें. बहुत बोरिंग बातें करते हैं दोनों. मम्मी टीचर, पापा डाक्टर. यार, मैं कहां जाऊं. ये नवीन भैया भी बिलकुल मम्मीपापा की तरह बातें करने लगे हैं.

“मुझ से 2 साल बड़े हैं. कल उन के लिए रिश्ता आया तो कहा है कि अभी कैरियर बना रहे हैं. भई, कितना कैरियर बनाना है, अच्छाख़ासा कमा रहे हैं. मेरे लिए रिश्ता आया तो भैया ने कहा कि अभी तो नैना छोटी है, अभी तो सैट भी नहीं हुई. अरे, शादी करनी है मुझे. ये लोग क्यों ध्यान नहीं दे रहे.’’

मुझे साची की यही बात अच्छी लगती है जब मैं अपनी भड़ास निकाल रही होती हूं तो वह मुझे रोकती नहीं. पूरी बकवास अच्छी तरह करने देती है. जब मैं चुप हुई, उस ने कहा, “दुखी न हो, दोस्त, तेरा भी टाइम आएगा. तेरी भी डोली सजेगी, हाथों में मेहंदी लगेगी, पर हां, उस से पहले तू अपना कैरियर बना ले,’’ बात ख़म होतेहोते उसे शरारत सूझ गई तो मैं ने उसे लात मारमार कर बैड से गिरा दिया. फिर हम दोनों हंसने लगीं. उस ने और शरारत से कहा, “यार, रिश्ता पक्का होते ही पता नहीं कहांकहां दिमाग दौड़ने लगा है.’’ यह कहतेकहते उस के सुंदर

मुखड़े पर शर्म की लाली मुझे बहुत प्यारी लगी, कहा, “जरा मैं भी सुनूं तो, कहांकहां दिमाग जा रहा है?’’

“वही कि सुहागरात पर क्या होगा.’’

“वही होगा जो अपने मामा के घर जा कर कजिन के दोस्त अनिल के साथ कर के आई थी पिछले साल.’’

उस ने उठ कर मेरे मुंह पर हाथ रख दिया, शर्म करो, लड़की, दोस्त हो या दुश्मन? दीवारों के भी कान होते हैं. अब ये बातें सुनना भी मेरे लिए पाप है.’’

“ड्रामेबाज.’’

थोड़ी देर बाद वह जाने के लिए उठ गई. जातेजाते बोली, “अब शौपिंग शुरू करेंगे, फ्री रहना, साथ रहना.’’

“मैं तो फ्री ही रहूंगी, मेरी शादी के टाइम सब अपनी ससुराल में बैठी होंगी. बच्चे खिला रही होंगी. मेरे जवान अरमान मचले जा रहे हैं और मेरे मम्मीपापा के सपनों की भेंट चढ़ रहे हैं, हाय, मेरी डोली कब उठेगी.’’

“बेटा, तुम कैरियर पर ध्यान दो.’’

“तुम दफा हो जाओ.’’

‘पालकी पे होके सवार, चली रे मैं तो अपने साजन के गांव, चली रे…,’ गाते हुए वह मुझे छेड़ती हुई जाने लगी तो मैं ने कहा, “मन कर रहा है तुम्हें सीढ़ियों से धक्का दे दूं.’’

वह हंसती हुई चली गई. मैं अपने बैड पर लेट गई. मन सचमुच उदास था, साची और मैं बचपन से अब तक हमेशा साथ रहे. उस का घर ठीक हमारे घर के सामने है. खतौली के एक महल्ले में हमारे परिवार सालों से साथ हैं. उस की एक बड़ी बहन है जो दिल्ली में रहती है. उन की शादी में मेरे नवीन भैया ने ही हर काम संभाल रखा था. मम्मीपापा दोनों बच्चों के कैरियर को बहुत गंभीरता से लेते हैं. आज के जमाने में तो कोई भी लड़की ऐसे पेरैंट्स पर गर्व करेगी पर मैं क्या करूं, मेरे सपने कुछ और हैं, मैं कुछ और चाहती हूं.

मेरा तो मन शादी करने का करता है, पता नहीं कैसेकैसे अरमान मचलते रहते हैं, ये मम्मी भी तो इस उम्र से गुजरी होंगी. उन्हें समझ नहीं आता क्या कि इस उम्र में लड़की क्याक्या सोचती है. सब जबान से कहना ही जरूरी है क्या. हद है. अरे, खुद भी तो शादी के बाद पढ़ी हैं, मैं भी पढ़ लूंगी. कितना मन करता है कि एक अच्छा सा पति मिल जाए, जीभर कर रोमांस करूं. 2 प्यारे बच्चे हो जाएं, सजीसंवरी घूमती रहूं. यहां तो जवानी ज़ाया हुई जा रही है. अरे, मुझे नहीं बनाना कैरियरवैरियर. शादी कर दो मेरी. जरूरी तो नहीं कि दुनिया की हर लड़की कैरियर ही बनाए.

इतने में मम्मी की नीचे से आवाज आई, “नैना, मैं कालेज के लिए निकल रही हूं, टाइम से कालेज चले जाना. सब काम अंजू से करवा लेना.”

ठीक है मम्मी, बाय, कहतेकहते मैं रोज की तरह नीचे आ कर मम्मी को गाल पर किस करने लगी तो उन्होंने प्यार से मुझ से कहा, “बेटा, टाइम मत खराब करना. तुम्हारे एक्जाम्स भी आने वाले हैं. मैं आज तुम्हारी पीएचडी के लिए भी प्रोफैसर शर्मा से बात करूंगी.’’

मुझे करंट लगा, “मम्मी, पीएचडी. क्यों?”

“फिर अच्छे कालेज में प्रोफैसर बन सकती हो. लड़कियों के लिए टीचिंग बेस्ट जौब है.’’

मैं बेहोश होतेहोते बची. पीएचडी. ये मेरी मां ऐसी क्यों है? मेरी शादी की किसी को चिंता नहीं? हाय. क्या होगा मेरा.

अगले कुछ दिन मैं और साची टाइम मिलते ही उस की शादी की शौपिंग में व्यस्त हो गए. हम अकसर मेरठ या दिल्ली उस की कार से जाते. वह कार चला लेती थी. शौपिंग करते हुए मैं अकसर स्मार्ट लड़कों को जीभर कर देखती और उस से कहती, “हाय, मैं कब अपनी शादी की शौपिंग करूंगी? मेरे पेरैंट्स तो मुझे प्रोफैसर बना कर छोड़ेंगे. तुम तो कई बार अफेयर कर चुकी, तुम ने तो हर आनंद उठा रखा है, मैं अपने जवान, अनछुए सपनों का क्या करूं, यार. मुझे भी शादी करनी है.’’

“देख नैना, तेरी तो अभी होती मुझे दिख नहीं रही. तू भले ही एकदो अफेयर चला कर थोड़ा मौजमस्ती कर ले. तो शायद तेरे दिल को चैन आए. अफेयर से भी थोड़ा मन बहला रहेगा.’’

“हम गर्ल्स कालेज में पढ़ते हैं. कहां से लड़के लाऊं. आतेजाते भी नहीं दिखता कोई ऐसा. तेरी तरह मेरा कोई कजिन भाई भी नहीं है. मेरे भाई के तो दोस्त भी घर नहीं आते, जो आते हैं, अच्छे हैं पर नालायक मुझ से राखी बंधवाते हैं. भैया का एक दोस्त इतना अच्छा लगता था, कम्बख्त ने मुझ से राखी बंधवा ली. सुन, क्या मेरी शक्ल पर लिखा है कि मैं कैरियर बनाना चाहती हूं?”

साची से जितना मरजी ड्रामा करवा लो. मुझे ध्यान से देखती हुई बोली, “नहीं, शक्ल तो रोमांस को तरसी हुई लगती है.’’

“साची, मन करता है तुझे कहीं बंद कर दूं जिस से तू भी ससुराल न जा पाए.’’

“मुझे लगता है, सारी गलती तेरी है. तू इतने अच्छे नंबर क्यों लाती रही कि अंकलआंटी को लगा कि तू पढ़ाई में बहुत सीरियस है. हमेशा फर्स्ट आती रही तो यही होना था. मुझे देख कितने खराब नंबर से पास हुई हमेशा कि घर में सब यही बात करते कि इस के बस की पढ़ाई नहीं है, इस की शादी कर दो. कितना आसान था, देख. मेहनत भी नहीं की कभी, और शादी भी टाइम से हो रही है. तू तो बस अब मेरे संगीत में नाचने की तैयारी कर और कैरियर बना.’’

“आई हेट यू, साची. तू मेरी दोस्त नहीं, दुश्मन है.!’’

“तेरी बात पर मुझे यकीन नहीं. चल, अब लहंगे देखते हैं,’’ बात करतेकरते हम दोनों एक शौप में घुस गए. मैं सचमुच अब काफी बिजी थी, पढ़ाई और साथसाथ साची की हर हैल्प के लिए हमेशा उस के साथ रहती. फिर हम दोनों एक दिन उस के लिए शादी के बाद पहनने वाली नाइट ड्रैसेस लेने गए. हाय, एक से एक सैक्सी ड्रैसेस सामने थीं. मेरे मुंह से एक आह निकल गई. वह हंस पड़ी और शर्माते हुए पता नहीं कैसीकैसी ड्रैसेस खरीदने लगी, यहां तक कि उस ने मुझे भी पहन कर दिखा दी. वह सचमुच उन जराजरा सी ड्रैसेस में कमाल लग रही थी. मैं ने वहां से निकलते हुए कहा, “यार साची, तू तो बहुत एंजौय करने वाली है. हाय, ये कपड़े देख कर तो ध्रुव राजा अपने होश खो बैठेंगे. तुम दोनों तो बहुत रोमांस करने वाले हो न.’’

“हां, मुझे भी लगता है, शादी टाइम से हो जाए तो अच्छा रहता है. एक उम्र होती है जब शरीर में उमंगें होती हैं. मन बातबात पर खुश होना चाहता है. यार, मैं सारा दिन ध्रुव के बारे में सोचने लगी हूं. तेरे लिए हमदर्दी है पर देखती हूं, ससुराल में कोई अच्छा, स्मार्ट लड़का दिखा तो तेरा कुछ करती हूं.’’

हां यार, ध्यान रखना. सोच रही हूं तेरी बात ही ठीक है. एकाध अफेयर भी चल जाए तो लाइफ में रौनक रहेगी. बड़ी सपाट जा रही है जवानी.’’

हम दोनों यों ही पूरा दिन बिता कर दिल्ली से वापस आए तो मम्मीपापा डिनर पर हमारा इंतज़ार कर रहे थे. संडे था, मम्मी ने साची को भी मैसेज कर दिया था कि वह भी हमारे साथ ही डिनर करे.

हम दोनों फ्रैश हो कर ऊपर मेरे रूम में उस का सब सामान रख कर नीचे आए. आजकल वो अपना कुछ स्पैशल सामान खरीद कर मेरे रूम में ही रख देती, जैसे कि अभी उस ने नाइट ड्रैसेस ली थीं, कुछ हनीमून पर पहनने के लिए ख़ास अश्लील कपड़े लिए थे जिन्हें वह घर नहीं ले जाना चाहती थी. उस का मूड था कि वह इन की पैकिंग भी मेरे रूम में कर लेगी.

इतने में भैया भी आ गए. हम सब ने साथ खाना खाया. सब साची से उस की शादी की तैयारियों की बातें करते रहे. वह चहकचहक कर बताती रही. फिर उस ने हिम्मत कर के दोस्त होने का फ़र्ज़ पूरा करते हुए कह ही दिया, “आंटी, नैना के लिए भी देखो न कोई लड़का. मेरे जाने के बाद इस का मन नहीं लगेगा.’’

“नहीं, अभी नहीं. अभी पहले उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है,” मम्मी खाना खाते हुए आराम से बोलीं तो मेरा मन हुआ कि उठ कर मम्मी को झिंझोड़ दूं और कहूं कि मम्मी, देखो अपनी बेटी की आंखों में. क्या दिखता है आप को? हसीं सपने या किसी जौब की चाहत? मां तो बच्चों के दिल की बात आसानी से समझ लेती है पर अब कहां हैं वे माएं जो रातदिन बेटी की शादी की चिंता करती थीं. हाय, मम्मी, मुझे नहीं बनाना कैरियर.

खाना खा कर साची अपने घर चली गई. मैं भी थक गई थी, ऊपर आ कर बैड पर लेट कर सुस्ताने लगी तो मम्मी आईं. मेरे सिर पर हाथ फिराते हुए बोली, “बेटा, थक गई क्या? आज मैं ने कुछ प्रोफैसर से बात कर ली है, उन्होंने तुम्हें गाइड करने के लिए हाँ कर दी है और यह देखो, अभी से कुछ किताबें आज ही भिजवा भी दीं कि अपनी पढ़ाई के साथसाथ इन पर भी नजर डाल लेना कि किस विषय पर आगे काम करना चाहोगी.’’

मेरा दिल रुकने को हुआ, मैं ने आंखें बंद कर लीं. मम्मी मेरा माथा चूम कर चली गईं. मेरे स्टडी डैस्क पर नई किताबें रखी थीं. उन पर एक नजर डाल कर मैं नें उन की तरफ से करवट ले ली. आंखें फिर बंद कीं तो साची की हनीमून की ड्रैसेस आंखों के आगे घूम गईं और मेरे मन में फिर वही गाना चलने लगा जो आजकल साची गुनगुनाती रहती है, ‘चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई…’

पर फिर मैं ने खुद ही पैरोडी बना ली, ‘दफा ही हो जाओ कहार, यहां तो किताबों की रुत आई.’

मैं ने अपनी धुन साची को फोन पर हंसते हुए सुनाई. वह देर तक हंसती रही और मैं बीचबीच में कलपती रही.

Best Hindi Story

Fictional Story: लड़कियां- महिलाओं के बीच अकेला औफिस में फंसा शख्स

Fictional Story: नए औफिस में लड़कियां ज्यादा थीं. नहीं-नहीं यह कहना गलत होगा. दरअसल, यहां सिर्फ वह अकेला मर्द है. बाकी सब औरतें. उस ने हैड औफिस में अपने बौस से रिक्वैस्ट की है जैसे भी हो इस महिलाबहुल प्रतिष्ठान से उसे निकाल दिया जाए या एकाध पुरुष को और भेज दिया जाए. वह कुछ दिनों पहले ही यहां आया था.

ये लड़कियां पूरे समय या तो अपनी सास की बातें करती रहती हैं या फिर किसी रैसिपी पर डिसकस करतीं, कभीकभी कपड़ों की बातें करती हैं. हद तो तब हो जाती जब नैटफ्लिक्स की स्टोरी सुनाई जा रही होती है.

हैरत की बात है कि पीठ पीछे एकदूसरे की चुगली करने वाली लड़कियां लंच टाइम में एक हो जाती हैं. मिलबांट कर खाना खाया जाता है. पीछे की दुकान से समोसे मंगा कर खाए बिना उन का खाना पूरा न होता है.

‘जो जी चाहे करो. प्रजातंत्र है… सब अपनी मरजी के मालिक हो. बस इतनी कृपा करना देवियो कि जिस कंपनी की तनख्वाह ले रही हैं उस का भी कुछ काम कर देना,’ वह मन ही मन सोचता रहता.

उस की आदत है कम बोलने की और अपना काम दुरुस्त रखने की. मन ही मन गौरवान्वित होता है कि बौस ने उसे जानबू  झ कर भेजा है इस औफिस में. इन लड़कियों की मदद करने के लिए पुरुषोचित अभिमान से सीना चौड़ा हो जाता है उस का.

काम करने के गजब तरीके हैं इन लड़कियों के पहली बार जब कुछ नया काम या नया ऐप खोलना होता तो उन में से 1-2 घबरा जातीं, एक से दूसरे के डैस्कटौप पर काम ट्रांसफर करतीं, मक्खियों की तरह भिनभिन करतीं और फिर काम पूरा होने पर ऐसे चैन की सांस लेतीं जैसे ऐवरैस्ट की चढ़ाई फतह कर ली हो.

वह सोचता है कि जितनी देर आपस में गप्पें लगाती हैं. अगर उतनी देर सैटिंग्स पर जा कर कुछ देखो, इंस्ट्रक्शन पढ़ो, सम  झो, सारा काम करना सीख जाएंगी.

तभी उस की तंद्रा टूटी.

‘‘सर, आप को पता है फ्राइडे हमारे औफिस में कैजुअल्स पहन के आते हैं. आप जींस पहन कर आइए न सर,’’ इन लड़कियों में जो सब से ज्यादा बातूनी है, उस ने कहा.

वह उस की बात हवा में उड़ाते हुए रुखाई से बोला, ‘‘हैड औफिस से फोन आया था. डाइरैक्टर साहब को रिपोर्ट करनी है. अगर आप का काम पूरा हो गया हो तो हम निकलें?’’ कहतेकहते वह थोड़ा सख्त हो गया.

लड़की ने भांप लिया और फिर बोली, ‘‘जी सर, बस एक नजर डाल लूं.’’

उस के चेहरे पर पड़ती शिकनें देख कर वह हंस पड़ी, ‘‘सर काम पर नहीं, शीशे पर नजर डालनी है. जरा टचिंग कर के आती हूं… काम पूरा है सर.’’

‘अजीब बेशर्म लड़की है. कुछ भी कह लो इस पर जूं नहीं रेंगने वाली. एक आदत खास है इस में कभी पूछेगी नहीं. हमेशा कुछ बताएगी,’ वह मन ही मन भुनभुनाया.

कार में बैठते ही लड़की का रिकौर्ड चालू हो गया.

‘‘यहां पर आने से पहले 2 साल तक विदेश में थी सर, फिर लौट आई.’’

‘‘क्यों पीआर नहीं मिला क्या?’’ वह बोला.

‘‘जी नहीं यह बात नहीं है. पीआर था, नौकरी भी ठीकठाक थी, पर मेरे हस्बैंड ने कहा वापस चलते हैं तो मैं ने भी अपना मन बदल लिया. यहां पर सारे लोग हैं. मेरे मम्मीपापा, मेरे इनलौज. हम दोनों के फ्रैंड्स, फिर कामवाली बाइयां.

‘‘दरअसल, मु  झे भीड़ अच्छी लगती है, इतनी कि बस टकरातेटकराते बचो.’’

फिर वह गंभीर हो गई. बोली, ‘‘यह बात भी नहीं सर. बात कुछ और ही थी… मेरे बेटे में अपने रंग को ले कर हीनभावना आ गई थी. उस ने कहा कि टीचर गोरे (अंगरेज) बच्चों को ज्यादा प्यार करती है. बस सर, मैं ने अपना मन बदल लिया. वापस आ गए हम दोनों.

‘‘बुरा नहीं लगता आप को,’’ उस ने लड़की से पूछा.

‘‘बुरा क्यों लगेगा?’’

‘‘अपना देश है जैसा भी है… टेढ़ा है पर मेरा है.’’

तभी लालबत्ती पर कार रुक गई. लड़की ने फटाफट अपना बैग खोला और एक पोटलीनुमा पर्स निकाला. थोड़ा सा कार का शीशा नीचे किया और फिर बच्चेमहिलाएं भीख मांग रहे थे, उन्हें पैसे बांटने लगी.

तभी कार चल पड़ी.

उस ने देखा एक छोटा लड़का सड़क से फ्लाइंग किस उछाल रहा था, जिसे इस ने लपक कर कैच कर लिया.

वह बोला, ‘‘कभी भी इन लोगों को पैसे नहीं देने चाहिए. ये आप का बैग छीन कर भाग सकते हैं.’’

‘‘जी सर सही कह रहे हैं पर क्या है न अब परिस्थितियां बदल गई हैं. क्या पता कौन किस मजबूरी में भीख मांग रहा हो. इसलिए मैं ने अपने विचारों को थोड़ा बदल लिया है. मेरा छोटा सा कंट्रीब्यूशन हो सकता है किसी की भूख मिटा दे,’’ उस ने पैसों की पोटली फिर अपने बैग में रख ली.

अब वह ड्राइवर से बोली, ‘‘भैयाजी गाना बदलिए. कुछ फड़कता हुआ सा म्यूजिक लगाइए न.’’

तभी उस के बच्चे की कौल आ गई. उस ने म्यूजिक धीरे करवाया… पूरा रास्ता बच्चे का होमवर्क कराने में काट दिया.

‘‘सर, बहुत शरारती है. मेरा बेटा बिना मेरे साथ बैठे कुछ नहीं करता. इसलिए रोज आधा घंटा औफिस के साथ थोड़ी बेवफाई करती हूं. सर, आखिरकार नौकरी भी तो फैमिली के लिए ही कर रही हूं.’’

हां हूं करते उस ने अपने दिमाग और जबान में मानो संतुलन बनाया, मगर विचारों ने गति पकड़ ली थी…

वह तो पूरी तन्मयता से नौकरी कर रहा

है… पत्नी और बच्चे उस की राह देख कर थक चुके हैं. उस का बच्चा भी आठ वर्ष का है. पर स्कूल से आने के बाद उस की दिनचर्या का उसे पता नहीं है. रात के भोजन पर ही उन की मुलाकात होती है. बिटिया जरूर लाड़ दिखा

जाती है.

‘‘सर,’’ लड़की ने उस के विचारों को लगाम दी.

‘‘हां बोलो.’’

‘‘आप भी हमारे साथ ही लंच किया करें. अच्छा नहीं लगता आप अकेले बैठते हैं.’’

‘‘मैं ज्यादा कुछ नहीं खाता. हैवी ब्रेकफास्ट करता हूं. लंच तो बस नाममात्र का.’’

‘‘सर, कल आइए हमारे साथ. देखिए अगर अच्छा न लगे तो फिर नहीं कहूंगी.’’

अब एक बार सिलसिला चल पड़ा तो खत्म न हुआ… दूर से जैसी दिखती थी उस के

विपरीत अंदर से बहुत संवेदनशील दुनिया थी इन लड़कियों की.

कोई टूटी टांग वाली पड़ोसिन आंटी को पूरीछोले पकड़ा कर आ रही है, तो एक शाम को अपनी सहेली के तलाक के लिए वकीलों के चक्कर काट रही है.

यहां से घर जा कर किसी को ननद को मेहंदी लगवाने ले जाना है, किसी को बच्चे को साइकिल के 4 राउंड लगवाने हैं, तो किसी के घर मेहमान आए पड़े हैं, जाते ही नहीं.

फिर भी औफिस में बर्थडे, प्रमोशन, बच्चे का रिजल्ट, हस्बैंड का बर्थडे, शादी की सालगिरह हर दिन लंच टाइम पर एक उत्सव है, इन लड़कियों का. फ्राईडे को इस बात का जश्न कि शनिवार, इतवार छुट्टी है. क्या कमाल की दुनिया है.

सब के पास ढेरों काम हैं, औफिस से पहले भी और घर जा कर भी. औफिस के काम में भी पूरी भागीदारी है. उस के विचार बदलने लग पड़े हैं.

उस की हिचक भी निकलती जा रही है. अब उसे नहीं लगता कि वह औफिस में अकेला मर्द है. घर में पत्नी भी खुश… वह रोज घर जा कर बताता है कि खाना कितना अच्छा बना था. यह तारीफ करना भी इन्हीं देवियों ने सिखाया है.

आज फ्राइडे है. उस ने अपनी ब्लू जींस पहनी, पत्नी देख कर हैरान हुई. पूछा, ‘‘आप औफिस ही जा रहे हैं न?’’

‘‘हां तो क्या हुआ? कभीकभी चेंज अच्छा लगता है.’’

‘‘यह भी सही है,’’ पत्नी ने ऊपरी तौर पर सहमति जताई, जबकि वह जानती थी कि वह कितना जिद्दी है, अपने कपड़ों को ले कर. वह भी   झेंप गया था, पर   झटके से घर से निकल लिया.

रास्ते में बौस का फोन आ गया. वे बोले, ‘‘तुम्हारा ट्रांसफर कर दूं… वापस आना चाहोगे?’’

उस को मानो   झटका सा लगा, ‘‘जैसा आप कहें… मु  झे तो जो आदेश मिलेगा वही पालन करूंगा.’’

‘‘नहीं तुम कह रहे थे औफिस में खाली लड़कियां हैं.’’

‘‘सर, लड़कियां ही तो हैं. क्या फर्क पड़ता है? मु  झे तो अब अच्छा लगता है. रौनक वाली जगह है सर.’’

‘‘हाहाहा,’’ उस के बौस की हंसी गूंज उठी. ऐक्चुअली यह बैस्ट पोस्टिंग है तुम्हारी.’’

‘‘जी सर, आप ठीक कहते हैं… यहां सीखने को बहुत कुछ है,’’ और वह मुसकरा दिया.

Fictional Story

Parivarik Kahani: रिटायरमेंट- आत्म-सम्मान के लिए अरविंद बाबू ने क्या किया

Parivarik Kahani: ‘‘तो पापा, कैसा लग रहा है आज? आप की गुलामी का आज अंतिम दिन है. कल से आप पिंजरे से आजाद पंछी की भांति आकाश में स्वच्छंद विचरण करने के लिए स्वतंत्र होंगे,’’ आरोह नाश्ते की मेज पर भी पिता को अखबार में डूबे देख कर बोला था.

‘‘कहां बेटे, जीवन भर पिंजरे में बंद रहे पंछी के पंखों में इतनी शक्ति कहां होती है कि वह स्वच्छंद विचरण करने की बात सोच सके,’’ अरविंद लाल मुसकरा दिए थे, ‘‘पिछले 35 साल से घर से सुबह खाने का डब्बा ले कर निकलने और शाम को लौटने की ऐसी आदत पड़ गई है कि ‘रिटायर’ शब्द से भी डर लगता है.’’

‘‘कोई बात नहीं पापा, एकदो दिन बाद आप अपने नए जीवन का आनंद लेने लगेंगे,’’ कहकर आरोह हंस दिया.

‘‘मैं तो नई नौकरी ढूंढ़ रहा हूं. कुछ जगहों पर साक्षात्कार भी दे चुका हूं. मुझे कोई पैंशन तो मिलेगी नहीं. नई नौकरी से हाथ में चार पैसे भी आएंगे और साथ ही समय भी कट जाएगा.’’

‘‘क्या कह रहे हैं, पापा, जीवन भर खटने के बाद क्या यह आप की नौकरी ढूंढ़ने की उम्र है. यह समय तो पोतेपोतियों के साथ खेलने और अपनी इच्छानुसार जीवन जीने का है,’’ आरोह ने बड़े लाड़ से कहा था.

‘‘मैं सब समझ गया बेटे, रिटायर होने के बाद तुम मुझे अपना सेवक बना कर रखना चाहते हो,’’ अरविंद लाल का स्वर अचानक तीखा हो गया था.

‘‘पापा, आप के लिए मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूं.’’

‘‘बेटे, आज घरघर की यही कहानी है. बूढ़े मातापिता तो किसी गिनती में हैं ही नहीं. बच्चों को स्कूल से लाना ले जाना. सब्जीभाजी से ले कर सारी खरीदारी करना यही सब तो कर रहे हैं आजकल अधिकतर वृद्ध. सुबह की सैर के समय मेरे मित्र यही सब बताते हैं.’’

‘‘बताते होंगे, पर हर परिवार की परिस्थितियां अलगअलग होती हैं. आप को ऐसा कुछ करने की कतई जरूरत नहीं है. कल से आप अपनी इच्छा के मालिक होंगे. जब मन में आए सोइए, जब मन में आए उठिए, आप की दिनचर्या में कोई खलल नहीं डालेगा. मैं, यह आप को विश्वास दिलाता हूं. पर कृपया फिर से नई नौकरी ढूंढ़ने के चक्कर में मत पडि़ए,’’ आरोह ने विनती की.

अरविंदजी कोई उत्तर देते इस से पहले ही बहू मानिनी आ खड़ी हुई और अपने पति की ओर देख कर बोली, ‘‘चलें क्या? देर हो रही है.’’ ‘‘हां, चलो, मुझे भी आज जल्दी पहुंचना है. अच्छा पापा, फिर शाम को मिलते हैं,’’ आरोह उठ खड़ा हुआ.

‘‘मानिनी, नाश्ता तो कर लो,’’ आरोह की मां वसुधाजी बोलीं.

‘‘मांजी, चाय पी ली है. नाश्ता अस्पताल पहुंच कर लूंगी. आज चारू को हलका बुखार था. परीक्षा थी इसलिए स्कूल गई है. रामदीन जल्दी ले आएगा. आप जरा संभाल लीजिएगा,’’ मानिनी जाते हुए बोली थी.

‘‘बहू, तुम चिंता मत करो. मैं हूं न. सब संभाल लूंगी,’’ वसुधाजी ने मानिनी को आश्वस्त किया.

‘‘चिंता करने की जरूरत भी कहां है, यहां स्थायी नौकरानी जो बैठी है दिन भर हुकम बजा लाने को,’’ अरविंद लाल कटु स्वर में बोले.

‘‘अपने घर के काम करने से कोई छोटा नहीं हो जाता पर यह बात आप की समझ से बाहर है. चलो, नहाधो कर तैयार हो जाओ. आज तो आफिस जाना है. कल से घर बैठ कर अपनी गाथा सुनाना.’’

‘‘मेरी समझ का तो छोड़ो अपनी समझ की बात करो. दिन भर घर में लगी रहती हो. मानिनी तो नाम की मां है. चारू और चिरायु को तो तुम्हीं ने पाल कर बड़ा किया है. सुधांशु की पत्नी इसी काम के लिए आया को 7 हजार रुपए देती है.’’

‘‘आप के विचार से आया और दादी में कोई अंतर नहीं होता. मैं ने तो आरोह और उस की दोनों बहनों को भी बड़ा किया है. तब तो आप ने यह प्रश्न कभी नहीं उठाया.’’

‘‘भैंस के आगे बीन बजाने का कोई लाभ नहीं है. मैं आगे तुम से कुछ भी नहीं कहूंगा, पर इतना साफ कहे देता हूं कि मैं अपने ही बेटे के घर पर घरेलू नौकर बन कर नहीं रहूंगा. मेरे लिए मेरा आत्मसम्मान सर्वोपरि है.’’

‘‘क्या कह रहे हो, कुछ तो सोचसमझ कर बोला करो. घर में नौकरचाकर क्या सोचेंगे…अच्छा हुआ कि आरोह, मानिनी और बच्चे घर पर नहीं हैं. नहीं तो ऐसी बेसिरपैर की बातें सुन कर न जाने क्या सोचते.’’

‘‘मैं किसी से नहीं डरता. और जो कुछ तुम से कह रहा हूं उन से भी कह सकता हूं,’’ अरविंद लाल शान से बोले.

‘‘क्यों अपने पैरों आप कुल्हाड़ी मारने पर तुले हो. याद करो वह दिन जब हम पैसेपैसे को तरसते थे. तब एक दिन आप ने बड़ी शान से कहा था कि चाहे आप को कुछ भी करना पड़े आप आरोह को क्लर्की नहीं करने देंगे. उसे आप डाक्टर बनाएंगे.’’

‘‘हां, तो क्या बनाया नहीं उसे डाक्टर? उन दिनों हम ने कितनी तंगी में दिन गुजारे यह क्या तुम नहीं जानतीं?’’

‘‘जानती हूं. मैं सब जानती हूं. पर कई बार मातापिता लाख प्रयत्न करें तब भी संतान कुछ नहीं करती लेकिन अपना आरोह तो लाखों में एक है. अपने पैरों पर खड़े होते ही उस ने आप की जिम्मेदारियों का भार अपने कंधों पर ले लिया. नीना और निधि के विवाह में उस ने कर्ज ले कर आप की सहायता की वरना उन दोनों के लिए अच्छे घरवर जुटा पाना आप के वश की बात न थी,’’ वसुधाजी धाराप्रवाह बोले जा रही थीं.

‘‘तुम्हें तो पुत्रमोह ने अंधा बना दिया है. अपनी बहनों के प्रति उस का कुछ कर्तव्य था या नहीं? उन के विवाह में सहायता कर के उस ने अपने कर्तव्य का पालन किया है और कुछ नहीं. परिवार के सदस्य एकदूसरे के लिए इतना भी न करें तो एकसाथ रहने का अर्थ क्या है? आरोह ने जब इस कोठी को खरीदने की इच्छा जाहिर की थी तो हम चुपचाप अपना 2 कमरों का मकान बेच कर उस के साथ रहने आ गए थे.’’

‘‘वह भी तब जब उस ने आधी कोठी आप के नाम करवा दी थी.’’

‘‘वह सब मैं ने अपने लिए नहीं तुम्हारे लिए किया था. आजकल की संतान का क्या भरोसा. कब कह दे कि हमारे घर से बाहर निकल जाओ,’’ अरविंदजी अब अपनी अकड़ में थे.

‘‘समझ में नहीं आ रहा कि आप को कैसे समझाऊं. पता नहीं इतनी कड़वाहट कहां से आ गई है आप के मन में.’’

‘‘कड़वाहट? यह कड़वाहट नहीं है आत्मसम्मान की लड़ाई है. माना तुम्हारा आरोह बहुत प्रसिद्ध डाक्टर हो गया है. दोनों पतिपत्नी मिल कर खूब पैसा कमा रहे हैं, पर वे मुझे नीचा दिखाएं या अपने रुतबे का रौब दिखाएं तो मैं यह सह नहीं पाऊंगा.’’

 

‘‘कौन आप को नीचा दिखा रहा है? पता नहीं आप ने अपने दिमाग में यह कैसी कुंठा पाल ली है और दिन भर न जाने क्याक्या सोचते रहते हैं,’’ वसुधा का स्वर अनचाहे भर्रा गया था.

‘‘चलो, बहस छोड़ो और मेरा सूट ले आओ. आज मेरा विदाई समारोह है. सूट पहन कर जाऊंगा.’’

अरविंद लाल तैयार हो कर दफ्तर चले गए. पर वसुधा को सोच में डूबा छोड़ गए. कुछ दिनों से अपने पति अरविंद लाल का हाल देख कर वसुधा का दिल बैठा जा रहा था. जितनी देर वे घर में रहते एक ही राग अलापते कि अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देंगे.

फूलमालाओं और उपहारों से लदे अरविंदजी को दफ्तर की गाड़ी छोड़ गई थी. उन के अफसरों ने भी उन की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे.

घर आते ही उन्होंने चारू और चिरायु के गले में फूलमालाएं डाल दी थीं और प्रसन्नता से झूमते हुए देर तक वसुधा को विदाई समारोह का हाल सुनाते रहे थे.

‘‘दादाजी, घूमने चलो न, आइसक्रीम खाएंगे,’’ उन्हें अच्छे मूड में देख कर बच्चे जिद करने लगे थे.

‘‘कहीं नहीं जाना है. चारू को बुखार है, वैसे भी आइसक्रीम खाने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है. फ्रिज में ढेरों आइसक्रीम पड़ी है,’’ वसुधाजी ने दोनों बच्चों को समझाया था.

‘‘ठीक कहती हो,’’ अरविंदजी बोले, ‘‘बच्चो, कल घूमने चलेंगे. आज मैं बहुत थक गया हूं. वसुधा, एक प्याली चाय पिला दो फिर कुछ देर आराम करूंगा. कल नई पारी की शुरुआत जो करनी है.’’

वसुधा के मन में सैकड़ों प्रश्न बादल की तरह उमड़घुमड़ रहे थे कि वे किस दूसरी पारी की बात कर रहे हैं, कुछ पूछ कर फिर से वे घर की शांति को भंग नहीं करना चाहतीं. इसलिए चुपचाप चाय बना कर ले आईं.

अगले दिन अरविंदजी रोज की तरह तैयार हो कर घर से चले तो वसुधा स्वयं को रोक नहीं सकीं.

‘‘टोकना आवश्यक था? शुभ कार्य के लिए जा रहा था… अब तो काम शायद ही बने,’’ अरविंदजी झुंझला गए थे.

‘‘मुझे लगा कि आज आप घर पर ही विश्राम करेंगे. आप 2 मिनट रुकिए अभी आप के लिए टिफिन तैयार करती हूं.’’

‘‘जाने दो, मैं फल आदि खा कर काम चला लूंगा. मुझे देर हो रही है,’’ अरविंदजी अपनी ही धुन में थे.

‘‘पापा कहां गए?’’ नाश्ते की मेज पर आरोह पूछ बैठा था.

‘‘वे तो रोज की तरह ही घर से निकल गए. कह रहे थे कि किसी आवश्यक कार्य से जाना है,’’ वसुधा ने बताया.

‘‘मां, आप उन्हें समझाती क्यों नहीं कि उन्हें फिर से काम ढूंढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है. 35 वर्ष तक उन्होंने कार्य किया है. अब जब कुछ आराम करने का समय आया तो फिर से काम ढूंढ़ने निकल पड़े.’’

‘‘क्या कहूं, बेटे. मैं तो उन्हें समझासमझा कर थक गई हूं. सुबह की सैर पर साथ जाने वाले मित्रों ने इन के मन में यह बात अच्छी तरह बिठा दी है कि अब घर में उन को कोई नहीं पूछेगा. बातबात में यही कहते हैं कि अपने आत्मसम्मान पर आंच नहीं आने देंगे.’’

‘‘उन के आत्मसम्मान पर चोट करने का प्रश्न ही कहां है, मां. घर में आराम से रहें, अपनी इच्छानुसार जीवन जिएं.’’

‘‘इस विषय पर बहुत कहासुनी हो चुकी है. मैं ने तो अब किसी प्रकार की बहस न करने का निर्णय लिया है, पर मन ही मन मैं बुरी तरह डर गई हूं.’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है, मां.’’

‘‘इसी तरह तनाव में रहे तो अपनी सेहत चौपट कर लेंगे,’’ वसुधाजी रो पड़ी थीं.

‘‘चिंता मत करो, मां, सेवानिवृत्ति के समय कई लोग इस तरह के तनाव के शिकार हो जाते हैं,’’ आरोह ने मां को समझाया.

अरविंदजी दोपहर को घर आए तो देखा, आरोह खाने की मेज पर अपनी मां से कुछ बातें कर रहा था.

‘‘मांबेटे के बीच क्या कानाफूसी हो रही है? मेरे विरुद्ध कोई साजिश तो नहीं हो रही?’’ वे थके होने पर भी मुसकराए थे.

‘‘हो तो रही है, हम सब को आप से बड़ी शिकायत है,’’ आरोह मुसकराया था.

‘‘ऐसा क्या कर दिया मैं ने?’’

‘‘कल आप का विदाई समारोह था. आप सपरिवार आमंत्रित थे पर आप अकेले ही चले गए. मां तक को नहीं ले गए. हम से पूछा तक नहीं.’’

‘‘क्या कह रहे हो, आरोह? इन्हें सपरिवार बुलाया गया था?’’ वसुधा चौंकी थीं .‘‘पूछ लो न, पापा सामने ही तो बैठे हैं. मुझे तो इन के सहकर्मी मनोज ने आज सुबह अस्पताल आने पर बताया.’’

‘‘इन्हें हमारी भावनाओं की चिंता ही कहां है,’’ वसुधा नाराज हो उठी थीं.

‘‘बात यह नहीं है. मुझे लगा आरोह और मानिनी इतने नामीगिरामी चिकित्सक हैं. वे मुझ जैसे मामूली क्लर्क के विदाई समारोह में क्यों आएंगे. वसुधा सदा पूजापाठ और चारू व चिरायु के साथ व्यस्त रहती है, इसीलिए मैं किसी से कुछ कहेसुने बिना अकेले ही चला गया था. यद्यपि हमारे यहां विदाई समारोह में सपरिवार जाने की परंपरा है,’’ अरविंदजी क्षमायाचनापूर्ण स्वर में बोले थे.

‘‘आप की समस्या यह है पापा कि आप सबकुछ अपने ही दृष्टिकोण से देखते हैं. खुद को बारबार साधारण क्लर्क कह कर आप केवल स्वयं को नहीं, मेरे पिता को अपमानित करते हैं जिन्होंने इसी नौकरी के बलबूते पर मेहनत और ईमानदारी से अपने परिवार का पालनपोषण किया. साथ ही आप उन हजारों लोगों का अपमान भी करते हैं जो इस तरह की नौकरियों से अपनी जीविका कमाते हैं.’’

आरोह का आरोप सुन कर कुछ क्षणों के लिए अरविंदजी ठगे से रह गए थे. कोई उन के बारे में इस तरह भी सोच सकता है यह उन के लिए एक नई बात थी. उन की आंखों से आंसू टपकने लगे.

‘‘क्या हुआ, पापा? आप रो क्यों रहे हैं?’’ तभी नीना और निधि आ खड़ी हुई थीं.

‘‘मैं क्या बताऊं, पापा से ही पूछ लो न,’’ आरोह हंसा था. पर अरविंदजी ने चटपट आंसू पोंछ लिए थे.

‘‘तुम दोनों कब आईं?’’ उन्होंने नीना और निधि से अचरज से पूछा था.

‘‘ये दोनों अकेली नहीं सपरिवार आई हैं, वह भी मेरे निमंत्रण पर. कल कुछ और अतिथि भी आ रहे हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हो…मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है…कल कौन सा पर्व है?’’

‘‘कल हम अपने पापा के रिटायर होने का फंक्शन मना रहे हैं.’’

‘‘यह सब क्या है. हमारे परिवार में इस तरह के किसी आयोजन की कोई परंपरा नहीं है.’’

‘‘परंपराएं बदली भी जा सकती हैं. हम ने कल की पार्टी में आप के सभी सहकर्मियों को भी आमंत्रित किया है. नीनानिधि, इन के हाथों से यह फाइल ले लो. पूछो आज दोपहर तक कहां भटकते रहे,’’ आरोह ने अरविंदजी की फाइल की ओर इशारा किया.

नीना ने पिता के हाथ से फाइल ले ली.

‘‘इस में तो डिगरियां और पापा का बायोडाटा है. यह क्या पापा? आप फिर से नौकरी ढूंढ़ रहे हैं?’’ नीना और निधि आश्चर्यचकित पास आ खड़ी हुई थीं.

‘‘चलो, चायनाश्ता लग गया है,’’ तभी मानिनी ने आ कर सब का ध्यान बटाया.

‘‘लाओ, यह फाइल मुझे दो. मैं इसे ताले में रखूंगा,’’ आरोह उठते हुए बोला.

‘‘चलो उठो, मुंहहाथ धो लो. सब चाय पर प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ वसुधाजी ने भरे गले से कहा.

‘‘इतना सब हो गया और तुम ने मुझे हवा भी नहीं लगने दी,’’ अरविंदजी ने उलाहना देते हुए पत्नी से कहा.

‘‘मुझे भी कहां पता था. मुझे तो कोई भी कुछ बताता ही नहीं. न तुम न तुम्हारे बच्चे. पर मेरे आत्मसम्मान की चिंता किसे है भला,’’ वसुधा नाटकीय अंदाज में बोली थीं.

अरविंद बाबू सोचते रह गए थे. वसुधा शायद ठीक ही कहती है. परिवार की धुरी है वह पर कभी किसी बात का रोना नहीं रोया. ये तो केवल वही थे जो आत्मसम्मान के नाम पर इतने आत्मकेंद्रित हो गए थे कि कोई दूसरा नजर ही नहीं आता था. न जाने मन में कैसी कुंठाएं पाल ली थीं उन्होंने.

Parivarik Kahani

Rebellion Youth: युवाओं का रिबेलियन होना कितना सही

 Rebellion Youth: हमारा समाज जौइंट फैमिली, उन की परंपराओं और रिश्तों की मिठास से भरा है. लेकिन जब वही रिश्ते, वही परंपराएं हमारी आजादी को बांधने लगें, जब मांबाप, भाईबहन यह तय करने लगें कि हमें क्या पढ़ना चाहिए, किस से शादी करनी चाहिए और किस उम्र में क्या काम करना चाहिए, तो सैल्फ इंडिपेंडैंट बनने का सपना दम तोड़ने लगता है. तब सवाल उठता है, क्या विद्रोह करना गलत है?

परिवार का प्यार या कंट्रोलिंग रवैया?

भारत में अकसर पेरैंट्स बच्चों की भलाई के नाम पर उन के जीवन के हर फैसले में दखल देते हैं. बेटियों के मामले में यह और भी गहरा हो जाता है, ‘अब शादी कर लो’, ‘घर के काम सीखो’, ‘बहुत पढ़लिख लिया, अब बस करो’, ‘नौकरी की क्या जरूरत है, अच्छा लड़का मिल रहा है तो शादी कर लो.’

ये बातें सिर्फ सलाह नहीं बल्कि जड़ें जमा चुकी एक सोच होती है जो मानती है कि एक लड़की की जिंदगी का उद्देश्य सिर्फ शादी और परिवार होता है.

सुमन कहती है, ‘मेरी मां चाहती हैं कि मैं जल्दी से शादी कर लूं और घरगृहस्थी संभालूं.’ वे कहती हैं, ‘लड़कियों की पढ़ाई की क्या जरूरत है, जितना सीख लिया बहुत है.

‘लेकिन मैं चाहती हूं कि मैं पढ़ाई करूं, जौब करूं, खुद कमा सकूं, अपने सपनों को पूरा करूं. हमें हर बात पर लड़ना पड़ता है. उन की नजर में मेरी जिंदगी का रास्ता और है जबकि मेरी नजर में और. ऐसे में सवाल उठता है, क्या मैं गलत हूं?’

जवाब है- नहीं, तुम गलत नहीं.

अगर आप अपने लिए कुछ बनाना चाहते हैं, अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, तो यह विद्रोह नहीं, हक है. लेकिन यह लड़ाई आसान नहीं होती. इस में आंसू भी आते हैं, ताने सुनने पड़ते हैं और अकेलापन भी लगता है. फिर भी, यह लड़ाई जरूरी है.

रिबेल का मतलब क्या होता है

रिबेल का मतलब यह नहीं कि आप चिल्लाएं, घर छोड़ दें या रिश्ता तोड़ लें. विद्रोह का मतलब है साहस के साथ अपने जीवन के लिए खड़े होना. जब आप अपनी मरजी से पढ़ाई, नौकरी या लाइफस्टाइल चुनते हैं, तब आप चुपचाप एक क्रांति कर रहे होते हैं.

नैना एक छोटे शहर से थी. उस की मां हर रोज कहती, ‘अब शादी कर लो, तुम्हारी उम्र निकल रही है.’ लेकिन नैना का सपना था कि वह एक ग्राफिक डिजाइनर बने और खुद का स्टार्टअप शुरू करे. परिवार ने विरोध किया, उसे मानसिक तौर पर बहुत दबाया गया. लेकिन नैना ने एक कोर्स किया, दिल्ली जा कर इंटर्नशिप ली और आज वह एक सफल डिजाइन एजेंसी की मालिक है. उस ने न अपने पेरैंट्स से रिश्ता तोड़ा, न उन से लड़ाई की, लेकिन उस ने ‘न’ कहना सीखा. यही उस का रिबेल था.

जानें रिबेलियन कैसे बनें

अपने सपने को पहचानें : आप को क्या चाहिए? पढ़ाई? नौकरी? आजादी? जब तक यह साफ नहीं होगा, तब तक आप किसी को भी समझा नहीं पाएंगे. अपने एंबीशंस को पेपर पर लिखिए, उस के लिए छोटेछोटे स्टैप बनाइए.

धीरेधीरे बदलाव लाएं : अचानक ‘मैं शादी नहीं करूंगी’ बोलने से पहले मां को यह दिखाइए कि आप कितनी जिम्मेदार हैं. जब वे देखती हैं कि आप पढ़ाई के साथसाथ घर भी संभाल सकती हैं, तब भरोसा बनता है.

इमोशनल ब्लैकमेल को पहचानें : ‘हम ने तुम्हारे लिए इतना किया और तुम…’ यह वाक्य कई बार एक जाल बन जाता है. आप को यह समझना होगा कि इस का मतलब यह नहीं कि इमोशनल हो कर अपनी जिंदगी कुरबान कर दें. इस के लिए आप को ताने भी मिलेंगे, गिल्ट दिलाया जाएगा जैसे, ‘हमारे लिए क्या किया?’, ‘तू बदल गई है’, ‘हमारी बात अब बेकार है?’, ‘पेरैंट्स के बारे में नहीं सोच रही’ वगैरह.

सपोर्ट सिस्टम बनाएं : कभीकभी कोई रिश्तेदार, दोस्त, टीचर या मैंटर आप के साथ खड़े हो सकते हैं. उन से मदद मांगने में शर्म न करें.

परिवार से विद्रोह क्यों करना पड़ता है?

क्योंकि हर कोई आप के सपने नहीं समझता : मांबाप कई बार वही सोचते हैं जो उन्होंने अपने समय में देखा. उन्हें नहीं पता कि आज की दुनिया कितनी बदल गई है. आप की मां अपने जीवन के 25 साल एक ऐेसे वातावरण में रही हैं जहां लड़कियों को हमेशा परदे में रखा गया. ऐसे में खुली सोच को डाइजैस्ट करना उन के लिए मुश्किल हो जाता है.

क्योंकि वे डरते हैं : उन्हें लगता है अगर आप आजाद हो गए तो उन से दूर हो जाएंगे. वे आप को सुरक्षित रखना चाहते हैं लेकिन उसी चक्कर में आप की उड़ान रोक देते हैं.

उन्हें समझाना आसान नहीं : वे मानते हैं कि वे ‘बड़े हैं, इसलिए सही हैं’. लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता.

अपने लिए खड़ा होना आसान नहीं लेकिन है जरूरी : कभीकभी यह लड़ाई हमें अपने ही घर के लोगों से लड़नी पड़ती है. परिवार से लड़ाई करना आसान नहीं होता. मां की आंखों में आंसू देखना, पापा की चुप्पी सहना, भाईबहनों के ताने सुनना आदि सब दिल तोड़ देता है. लेकिन सोचो, क्या अपने सपनों को छोड़ देना सही होगा? आप का सपना, आप की मेहनत और आप की आवाज ही आप को उस मुकाम तक ले जाएगी जहां आप जाना चाहते हैं.

अगर आप आज चुप रहे, तो शायद एक दिन पछतावा होगा. लेकिन अगर आज हिम्मत दिखाई, तो कल आप खुद पर गर्व करेंगे.

Rebellion Youth

Mirai Movie PC: ऐक्टर तेजा सज्जा पत्रकारों पर क्यों हुए गुस्सा, जानिए वजह

Mirai Movie PC: हाल ही में फिल्म ‘मिराई’ के प्रैस कौन्फ्रेंस में साउथ ऐक्टर तेजा सज्जा मीडियाकर्मी पर उस वक्त भड़क गए जब उन को धार्मिक ऐक्टर कह कर सिर्फ धार्मिक फिल्मों का ऐक्टर कहा गया.

ऐसे में तेजा ने तुनकते हुए कहा,”जब प्यार की कहानियां बारबार दोहराई जाती हैं तो कोई सवाल नहीं करता, फिर हमारे धर्म पर सवाल क्यों?”

फिल्मों में भारतीय इतिहास जोड़ने पर दिया जवाब

पिछले दिनों एक भव्य कार्यक्रम में जब आगामी पैन इंडिया स्पैक्टेकल मिराई के अभिनेता तेजा सज्जा से पूछा गया कि उन की फिल्मों में धार्मिक तत्त्व बारबार क्यों नजर आते हैं, तो अभिनेता ने जवाब देते हुए कहा,”जब प्रेम कहानी बारबार बनाई जाती है तो कोई सवाल नहीं करता, लेकिन जैसे ही हम अपने धर्म से प्रेरित कहानी कहने की कोशिश करते हैं, लोग शक जताने लगते हैं.

हमें गर्व होना चाहिए कि यह हमारी धरती है, यही हमारे संस्कार हैं. और उसी पर धर्म का सवाल उठ रहा है. यह फिल्म सिर्फ उसी के बारे में नहीं है. यह फैंटेसी, ऐक्शन, ऐडवेंचर, सुपरहीरो स्टोरीटेलिंग और गहरी भावनाओं का संगम है. हम इन सब को भारतीय इतिहास की नजर से एक नए और आकर्षक तरीके से पेश कर रहे हैं, ताकि नई पीढ़ी इस से जुड़ सकें और इसे आत्मसात कर सकें.”

इतिहास को विस्फोटक ऐक्शन के साथ मिलाते हुए, फिल्म ‘मिराई’ एक ऐसा सिनेमाई अनुभव देने का वादा करती है जैसा पहले कभी नहीं देखा गया. मनोज मंजू, जगपति बाबू, जयराम, श्रिया सरन और रितिका नायक जैसे शानदार कलाकारों से सजी यह फिल्म, गौरा हरी के बिजली जैसे संगीत और तकनीकी सीमाओं को लांघते विजुअल्स के कारण और भी दमदार बनती है.

तेजा सज्जा के करिश्माई स्क्रीन प्रजैंस, कार्तिक घट्टमनेनी की विजनरी स्टोरीटेलिंग और धर्मा प्रोडक्शंस के उत्तर भारतीय बाजार में मजबूत सहयोग से सशक्त, मिराई 12 सितंबर, 2025 को दुनियाभर के सिनेमाघरों में दहाड़ मचाने आ रही है, भारतीय सिनेमा के पैमाने और परिभाषा को एक नई ऊंचाई देने के लिए.

Mirai Movie PC

Mashroom Recipes: मशरूम को इस तरह बना कर देखें सभी मजे से खाएंगे.

Mashroom Recipes: मशरूम कुरकुरे

सामग्री

– 10 मशरूम

– 20 ग्राम रैड व ग्रीन शिमलामिर्च

– 20 ग्राम चीज कद्दूकस

– 1/2 चम्मच व्हाइट पैपर

– 3-4 चम्मच व्हाइट ब्रैड क्रंब्स

– 3 चम्मच अरारोट

-11/2  चम्मच मैदा

– नमक स्वादानुसार.

विधि

बैटर बनाने के लिए 3 चम्मच अरारोट और 11/2 चम्मच मैदे में थोड़ा सा पानी डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर नमक और व्हाइट पैपर डालें. बैटर गाढ़ा रखें. अब मशरूम को हलका उबाल कर उन के बीच नाइफ से हलका गड्ढा करें ताकि उस में चीज स्टफ हो सके. फिर रैड और ग्रीन शिमलामिर्च को काट कर हाथों से दबा कर हलका पानी निकाल लें. चीज में थोड़ा सा नमक  वव्हाइट पैपर डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर इसे मशरूम में स्टफ करें. अब मशरूम के 2 पीस कर के आपस में जोड़ें. याद रखें कि दोनों टुकड़े वहीं से जोड़ें जहां से स्टफ कर रखा है. फिर उस में ऊपर से 2 टूथपिक डाल कर अच्छी तरह जोड़ लें. अब मशरूम को बैटर में डिप कर ब्रैडक्रंब्स से कोट कर डीप फ्राई करें. सुनहरा हो जाने पर निकालें और सौस के साथ सर्व करें.

‘ग्रिल्ड मशरूम का जायका और इस का सोंधापन बेमिसाल है.’

  ग्रिल्ड मशरूम

सामग्री

– 250 ग्राम मशरूम

– 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– 1 चुटकी केसर का रंग

– 1 बड़ा चम्मच बेसन

– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

– आवश्यकतानुसार तेल

– 1 बड़ा चम्मच दही

– 1 बड़ा चम्मच चाट मसाला

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में चाट मसाला छोड़ कर बाकी सारी सामग्री को मिक्स कर 40 मिनट तक रखें. अब मशरूम को हल का ब्राउन हो

 ‘पोटैटो सालसा बच्चों के साथसाथ बड़ों को भी पसंद आएगा.’ने तक भूनें. चाट मसाला डाल कर सर्व करें.

 पोटैटो सालसा

सामग्री

– 4 मीडियम आकार के आलू

– 2 बड़े चम्मच औलिव औयल

– 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च चूरा

– 1/2 छोटा चम्मच ओरिगैनो

– 1/2 छोटा चम्मच कसूरी मेथी

– 1/2 छोटा चम्मच तिल

– थोड़ी सी मेयोनीज

– नमक स्वादानुसार.

विधि

आलुओं को छील लें. अगर आलुओं को बिना छीले आलू वैजेज बना रही हैं तो उन्हें धो कर आलू को पहले लंबाई में काट कर 2 टुकड़े कर लें. इस आधे आलू को बीच से काट कर 2 टुकड़े कर लें. एक टुकड़ा उठाएं और इसे बराबर 2 भागों में बांटते हुए लंबाई में काट लें. सारे आलू इसी तरह काट लें. एक बड़े बरतन में सारे मसाले मिला कर आलू के टुकड़ों पर मसाले की कोटिंग अच्छी तरह करें. अब तिल भी डाल कर मिक्स कर लें. ओवन को 180 डिग्री सैल्सियस पर प्रिहीट कर लें. मसाले मिले आलुओं को ट्रे में 1-1 कर के लगा लें और पहले से गरम किए ओवन में रोस्ट करने के लिए रख दें. 35 मिनट बाद आलू वैजेज को ओवन से निकाल लें. मेयोनीज के साथ सर्व करें.          –

Mashroom Recipes

Snacks Recipe: गैस्ट घर आएं तो उन्हें परोसें ये बेहतरीन स्नैक्स

Snacks Recipe:  चीज चिली टोस्ट

सामग्री

– 4 सफेद ब्रैडस्लाइस

– 1/2 कप मोजरेला चीज कद्दूकस किया

– 2 बड़े चम्मच शिमलामिर्च बारीक कटी

– 2 हरीमिर्चें बारीक कटी

– मक्खन आवश्यकतानुसार

– 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक कटोरे में कद्दूकस किया मोजरेला चीज डालें. साथ में कटी शिमलामिर्च और हरीमिर्च डालें. फिर नमक और कालीमिर्च भी डालें. सारी सामग्री को एकसाथ अच्छी तरह मिला लें. चीज चिली मिश्रण तैयार है. इसे एक तरफ रख दें. एक तवा गरम कर उस पर मक्खन डालें. ब्रैड को हलका कुरकुरा टोस्ट कर लें. जब ब्रैड एक तरफ से कुरकुरी हो जाए, तब उस के दूसरी तरफ मक्खन फैलाएं.

अब ब्रैड के ऊपर चीज चिली मिश्रण को बराबर फैलाएं ताकि ब्रैडस्लाइस पूरी तरह से मिश्रण से कवर हो जाए. अब उसे ढक कर धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक चीज पिघल न जाए और ब्रैड नीचे से सुनहरी और कुरकुरी न हो जाए. अब टोस्ट को तवे से निकाल कर 2 बराबर हिस्सों में काट लें. चिली चीज टोस्ट को टोमैटो सौस के साथ सर्व करें.

‘चीज, बटर और गार्लिक के फ्लेवर वाली ब्रैड के स्वाद का जवाब नहीं.’

 गार्लिक ब्रैड विद चीज

सामग्री

– 3-4 ब्रैडस्लाइस – 4 बड़े चम्मच मक्खन – 3 बड़े चम्मच चीज

– 1 कप दूध – 1/2 चम्मच ओरिगैनो – 1/2 चम्मच चिल्ली फ्लैक्स

– 2 चम्मच लहसुन पेस्ट – 1/2 चम्मच कालीमिर्च पाउडर

– 1 बड़ी कटोरी सब्जियां (शिमलामिर्च, गोभी, प्याज सभी बारीक कटी)

– 1 बड़ा चम्मच आटा – आवश्यकतानुसार तेल – नमक स्वादानुसार.

विधि

कड़ाही में मक्खन गरम कर आटा डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. अब इस में दूध डालें और हलके हाथ से चलाती रहें ताकि आटे में गांठें न पड़ें. जैसे ही आटे में बुलबुले आने लगें तो उस में कटी सब्जियां डालें और मिक्स कर पकाएं. इस के बाद इस में नमक और कालीमिर्च पाउडर डालें और 3 मिनट तक पकाएं. ब्रैड पर लगाने के लिए पेस्ट तैयार हो चुका है.

अब ब्रैड के टुकड़ों पर चम्मच से मक्खन, लहसुन पेस्ट, तैयार किया मिश्रण, चिली फ्लैक्स, कालीमिर्च, ओरिगैनो बुरकें और फिर चीज कद्दूकस कर लें. सारे ब्रैडस्लाइस इसी तरह तैयार कर लें. इस के बाद तवे पर तेल लगाएं और ब्रैडस्लाइस रखें. 2 मिनट तक ढक कर रखें. अब ढक्कन हटाएं और करारी गार्लिक ब्रैड निकाल कर सर्व करें.

Snacks Recipe

Hindi Short Story: अवैध संतान- क्या था मीरा का फैसला

Hindi Short Story: मीरा कन्या महाविद्यालय के गेट से बाहर आते ही विमला मैडम ने अपनी चाल तेज कर दी. वे लगभग दौड़ रही थीं, इसलिए उन की बिटिया सीमा को भी दौड़ लगानी पड़ रही थी. विमला मैडम सीमा के उस सवाल से बचना चाहती थीं जो उस ने गेट से बाहर आते ही दाग दिया था, ‘‘मम्मी, मैं आप की और विमल सर की अवैध संतान हूं?’’

वे बिना कोई उत्तर दिए चली जा रही थीं. इसलिए जब उन के बगल से एक आटो गुजरा तो उसे रोक कर अपनी बेटी सीमा को लगभग खींचते हुए आटो में बैठ गईं. उन्हें पता था, उन की बेटी आटोचालक के सामने कुछ नहीं बोलेगी.

आज जो कुछ घटा उस की उम्मीद उन को सपने में भी नहीं थी. आज उन के स्कूल की छुट्टी जल्दी हो गई थी तब उन्होंने अपनी बेटी को भी छुट्टी दिला कर बाजार जाने की सोची थी. इसलिए, वे उस की बड़ी मैडम से अपनी बेटी की छुट्टी स्वीकृत करा कर, स्टाफरूम में बैठी थीं. तभी विमल सर स्टाफरूम में आए. विमला मैडम विमल सर से बात कर रही थीं. उसी समय सीमा स्टाफरूम में घुसी. उसे देख कर विमल सर बोले, ‘‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’’ उन के बात आगे बढ़ाने से पूर्व ही विमला मैडम ने इशारे से उन्हें रोक दिया. परंतु सर के ये शब्द सीमा के कान में पड़ गए. उस समय तो सीमा कुछ नहीं बोली परंतु गेट से बाहर आते ही मम्मी से पूछे बिना नहीं रही.

आटो में चुप बैठी रही सीमा घर पहुंचते ही बोल पड़ी, ‘‘मम्मी, आप जवाब नहीं दे रही हो जबकि मेरी सहेलियां मुझे चिढ़ाती हैं. कहती हैं, ‘तू भी कानपुर की और सर भी कानपुर के, और तेरे में सर का अक्स दिखाई देता है. कहीं तेरी मम्मी और सर के बीच अफेयर तो नहीं था?’ और आज उन के शब्द ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी’. तब क्या, मैं आप की और सर की अवैध संतान हूं?’’

विमला उस की बात को टालते हुए बोलीं, ‘‘जब तू पेट में थी तब तेरे सर के परिवार का घर में बहुत आनाजाना था, इसीलिए.’’

‘‘मम्मी, आप ने मुझे बच्चा समझा है. मैं सर से ही पूछ लूंगी,’’ कह कर सीमा वहां से उठ गई.

विमला ने उसे रोका नहीं क्योंकि उन को पता था, वह जो सोच लेती है, करती है. सीमा चायनाश्ता कर अपने कमरे में आ कर लेट गई. टीवी चला लिया परंतु उस का प्रिय प्रोग्राम भी उस को शांति नहीं दे रहा था. ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’, ये ही शब्द उस के कानों में बारबार गूंज रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, उधर उस की सहेली मधु थी, ‘‘तू भी घर आ गई पागल, घड़ी देख, 4 से ज्यादा बज गए हैं.’’

इधरउधर की बातें करने के बजाय सीमा ने सीधे ही पूछ लिया, ‘‘तू विमल सर का घर जानती है?’’

‘‘क्यों? क्या तू भी सर से ट्यूशन पढ़ना चाहती है? हां, वह बहुत अच्छा पढ़ाते हैं. अरे हां, तेरा विषय तो सर पढ़ाते नहीं हैं. फिर तू…?’’

‘‘तुझ से जितना पूछा है उतना बता. मैं खुद चली जाऊंगी, तू केवल पता बता.’’

‘‘ऐसा कर, गांधी चौक की ओर से मेरे घर की ओर आएगी, तो पहले ही मोड़ पर अंतिम मकान है. उन के नाम की प्लेट लगी है.’’

उस ने फोन रख दिया और मम्मी से बोल दिया, ‘‘मैं मधु के घर जा रही हूं, जल्दी घर आ जाऊंगी.’’

कुछ ही देर में सीमा सर के घर पहुंच गई. वह पहले झिझकी, फिर घंटी बजा दी. दरवाजा सर ने ही खोला. एक पल को वह सर को देखती ही रही क्योंकि आज उसे सर दूसरे ही रूप में दिख रहे थे और फिर उसे अपना मकसद ध्यान आया और सर के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘सर, क्या मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

सर को शायद ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी.

इसलिए सर ने कहा, ‘‘देखो बेटे, ऐसे प्रश्न दरवाजे पर नहीं किए जाते. अंदर आओ. मैं तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर दूंगा.’’

वह अंदर आ गई. अंदर सर ने अपनी मम्मी से उस का परिचय कराया, ‘‘मम्मी, यह विमला की बेटी है.’’

सर की मम्मी पुलकित हो उठीं, ‘‘मम्मी को भी ले आती.’’

उन के और कुछ बोलने से पूर्व ही सर ने मम्मी को कहा, ‘‘मम्मी, बाकी बातें बाद में हो जाएंगी. इसे चायनाश्ता कराओ. पहली बार घर आई है,’’ उन के चले जाने के बाद सर बोले, ‘‘हां, अब बोलो.’’

‘‘सर, मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

‘‘देखो बेटे, संतान अवैध नहीं होती, बल्कि संबंध अवैध होते हैं. और फिर मेरे और तुम्हारी मम्मी के संबंधों को तो तुम्हारे पापा की स्वीकृति थी.’’

यह सुनते ही सीमा का मुंह खुला का खुला रह गया. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना नीचे भी गिर सकता है. उसे यह समझ नहीं आया कि पापा की क्या मजबूरी थी.

उस की परेशानी भांप कर सर बोले, ‘‘शांत हो कर बैठो, मैं सब बताता हूं. तुम्हारी मम्मी की शादी आम हिंदुस्तानी शादी थी. पहले 2 साल शादी की खुमारी में  निकल गए और फिर कानाफूसी शुरू हो गई कि घर में किलकारी क्यों नहीं गूंजी. पहले घर से और फिर आसपास. तुम्हारे पापा के दोस्त ताना मारने से नहीं चूकते. उधर, उन की मर्दानगी पर चुटकुले बनने लगे. साथ ही, डाक्टरी रिपोर्ट ने आग में घी का कार्य किया. कमी तुम्हारे पापा में मिली. ‘‘तुम्हारे पापा औफिस का गुस्सा घर में निकालने लगे. उन्हीं दिनों हमारा परिवार तुम्हारे पड़ोस में आ गया. तुम्हारी मम्मी हमारे घर आ जातीं. मैं तुम्हारी मम्मी के बाजार के काम कर देता. तुम्हारी मम्मी कोई बच्चा गोद लेने को कहतीं तो तुम्हारे पापा नाराज हो जाते. उन को अपनी मर्दानगी दिखानी थी. मेरे और तुम्हारी मम्मी के बीच निकटता बढ़ने लगी. तुम्हारे पापा ने हमारी निकटता को इग्नोर किया. फलस्वरूप, हमारी निकटता और बढ़ती गई और उस मुकाम तक पहुंच गई जिस के फलस्वरूप तुम अपनी मम्मी के पेट में आ गईं.

‘‘वह दिन मुझे आज भी याद है, मैं जब तुम्हारे घर पहुंचा तब तुम्हारी मम्मी के शब्द कान में पड़े, उन शब्दों को सुनते ही अंदर जा रहे मेरे कदम रुक गए. तुम्हारी मम्मी कह रही थीं, ‘लो, अब तुम भी मर्द बन गए. मैं गर्भवती हो गई. अब दोस्तों के सामने तुम्हारी गरदन नहीं झुकेगी.’ मुझे लगा कि मैं सिर्फ एक टूल था, जो तुम्हारे पापा को मर्द साबित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था. मुझे तुम्हारी मम्मी पर गुस्सा आया. सोचा कि वहां जा कर अपनी नाराजगी जाहिर करूं लेकिन फिर मुझे तुम्हारी मम्मी पर तरस आ गया. मैं वापस घर आ गया. उस के बाद मैं कभी तुम्हारे घर नहीं गया.

‘‘उसी दौरान मेरे पापा का तबादला हो गया. जिस दिन हम जा रहे थे उस दिन तुम्हारी मम्मी हमें छोड़ने आई थीं. वे कुछ नहीं बोलीं लेकिन उन की चुप्पी भी बहुतकुछ कह गई. मैं ने उन को माफ कर दिया.’’

सर की मम्मी, जो वहां आ गई थीं, ने सब सुन लिया था, बोल पड़ीं, ‘‘बेटा, इस ने खुद को माफ नहीं किया और अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी की खबरें शोभा आंटी से मिलती रहीं. तुम्हारा जन्म हुआ. तुम्हारे पिता ने पार्टी दी. लेकिन बताते हैं कि उन के चेहरे पर वह खुशी नहीं दिखाई दी जो एक बाप के चेहरे पर दिखाई देनी चाहिए थी. तुम्हारी मम्मी और पापा में झगड़ा और बढ़ गया. तुम्हारा चेहरा देख कर उन को पता नहीं क्या हो जाता, शायद उन को अपनी नामर्दी ध्यान आ जाती या वे हीनभावना से ग्रस्त हो गए थे. तुम्हारी ओर ध्यान नहीं देते. तुम्हारी मम्मी के लिए तुम सबकुछ थीं. शायद वे तुम्हारे कारण अपने को भूल जातीं.

‘‘एक दिन तुम्हारी मम्मी बाथरूम में नहा रही थीं. तुम जोरजोर से रो रही थीं. तुम्हारे पापा वहीं खड़े थे परंतु उन्होंने तुम्हें चुप नहीं कराया. उसी समय शोभा आंटी आ गईं. तुम्हें जोरजोर से रोते देख कर वे तुम्हारे पापा से बोलीं, ‘कैसा बाप है? लड़की रोए जा रही है और तू अपनी टाई बांधने में लगा है, जैसे यह तेरी बेटी नहीं है.’ आंटी के बोलते ही वे आगबबूला हो उठे. वे चीखे, ‘हांहां, यह मेरी बेटी नहीं है. मैं तो नपुंसक हूं.’

‘‘इतना कह कर वे घर से निकल गए और फिर केवल उन की मौत की सूचना आई कि उन्होंने रेलगाड़ी के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली थी. बस, एक ही बात उन्होंने अच्छी की, अपनी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया.

‘‘कुछ दिन के बाद तुम्हारे मामा, तुम्हारी मम्मी और तुम को ले कर चले गए.’’

बात गंभीर हो गई थी. एक तरह से वहां चुप्पी छा गई. चुप्पी सीमा ने ही तोड़ी, ‘‘सर, मेरी शादी के बाद मेरी मम्मी अकेली रह जाएंगी. आप भी कभी अकेले हो जाओगे. इसलिए आप और  मम्मी अपने उन अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘पगली, अब हमारी शादी की उम्र थोड़े ही है, अब तो तेरी शादी करनी है.’’

‘‘लेकिन सर, आप से मिलने के बाद मैं ने मम्मी के चेहरे पर अलग चमक देखी थी. और अब जब आप ने घर के दरवाजे पर मुझे देखा तो आप के चेहरे पर भी वही चमक मैं ने महसूस की.’’

‘‘बहुत बड़ी हो गई है तू और लोगों को पढ़ना भी जानती है.’’

‘‘प्लीज, सर.’’

‘‘तू एक तरफ तो मुझे पापा बनाना चाहती है और दूसरी ओर सरसर भी करे जा रही है. पापा नहीं कह सकती.’’

‘‘सौरी, पापा,’’ कहती हुई वह सर से लिपट गई. दादी ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘चल बेटा, अपनी बहू के पास चलते हैं.’’

सीमा ने उन को रोक दिया, ‘‘पहले मैं मम्मी से बात कर लूं.’’

‘‘मैं तेरी मम्मी को जानती हूं. वह भी राजी हो ही जाएगी.’’

‘‘हां, दादी, मम्मी मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं.’’

सीमा वापस घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई तब विमल सर उसे छोड़ने आ गए. उधर, विमला सीमा के लिए चिंतित हो रही थीं. दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोलने पर सामने सीमा ही थी. विमला चीखीं, ‘‘कहां गई थी?’’

‘‘पापा के पास.’’

‘‘तेरे पापा तो मर चुके हैं.’’

‘‘वे मेरे पापा नहीं थे. वे आप के पति थे. और फिर वे तो पति कहलाने लायक भी नहीं क्योंकि वे तन से ही नहीं मन से भी नपुंसक थे, जो अपनी पत्नी को पराए मर्द के साथ सोने को प्रेरित करता है मात्र इसलिए कि दुनिया के सामने अपने को मर्द दिखा सके. अपने को मर्द दिखाने के लिए पत्नी द्वारा बच्चा गोद ले लेने के विचार को भी न सुने.’’

‘‘तो इतना जहर भर दिया उस ने. मुझे उस से यह उम्मीद नहीं थी. मैं इसीलिए चुप थी कि यह सुन कर तू मुझ से भी घृणा करने लगती.’’

‘‘मम्मी, मैं आप से घृणा करूंगी? आप ने जिस तरह मेरी परवरिश की है उस पर मुझे गर्व है कि तुम मेरी मां हो. पापा भी ऐसे नहीं हैं. दरवाजे पर मुझे देख कर उन की नजर इधरउधर घूम रही थी. वे शायद आप को खोज रहे थे.’’

फिर कुछ समय तक चुप्पी छाई रही. दोनों एकदूसरे को देखती रहीं. फिर सीमा ही बोली, ‘‘मम्मी, आप और सर अपने अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘नहीं बेटा, अब मुझे तेरी शादी करनी है, अपनी नहीं.’’

‘‘मम्मी, पापा को पता है मैं उन की बेटी हूं परंतु मुझे बेटी नहीं कह सकते. मैं जानते हुए भी उन को पापा नहीं कह सकती. और आप मेरे सामने खोखली हंसी हंसोगी और अकेले में रोओगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘उन की चिंता नहीं है. मुझे आप की चिंता है. मेरी शादी के बाद आप अकेली रह जाओगी और उधर, दादी कितने दिन की मेहमान हैं. बाद में पापा भी अकेले हो जाएंगे.’’

विमला विचारमग्न हो गईं. फिर अचानक बोल पड़ीं, ‘‘तू अकेली आई, कैसा पिता है? जवान लड़की को रात में अकेला भेज दिया.’’

‘‘नहीं, मम्मी, पापा आए थे.’’

‘‘फिर अंदर क्यों नहीं आए?’’

‘‘मम्मी, मैं ने मना कर दिया था. मैं चाहती थी कि पहले मैं आप से बात कर लूं.’’

‘‘ओह, क्या बात है. बड़ी समझदार हो गई है मेरी लाड़ली.’’

तभी फोन की घंटी बजी. सीमा ने फोन उठाया, उधर दादी थीं. उस ने फोन मम्मी को दे दिया. मम्मी बोलीं, ‘‘नमस्ते, आंटी.’’

‘‘अरे, मैं अब तेरी आंटी नहीं, बल्कि अब तेरी सास हूं.’’ इस के बाद की कहानी भी छोटी सी रह गई है. सीमा के मम्मीपापा के अवैध संबंध वैध बन गए. सब बहुत खुश थे. सब से ज्यादा कौन खुश था, बताने की जरूरत नहीं.

आज जब मैं यह कहानी लिख रहा हूं तब सीमा मेरे पास बैठी है, पूछ रही है, ‘पापा, मैं ने सही किया या गलत?’

अब आप लोग ही बताएं सीमा ने सही किया या गलत?

Hindi Short Story

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें