प्यार एक एहसास

पिता की 13वीं से लौटी ही थी सीमा. 15 दिन के लंबे अंतराल के बाद उस ने लैपटौप खोल कर फेसबुक को लौग इन किया. फ्रैंड रिक्वैस्ट पर क्लिक करते ही जो नाम उभर कर आया उसे देख कर बुरी तरह चौंक गई.

‘‘अरे, यह तो शैलेश है,’’ उस के मुंह से बेसाख्ता निकल गया. समय के इतने लंबे अंतराल ने उस की याद पर धूल की मोटी चादर बिछा दी थी. लैपटौप के सामने बैठेबैठे ही सीमा की आंखों के आगे शैलेश के साथ बिताए दिन परतदरपरत खुलते चले गए.

दोनों ही दिल्ली के एक कालेज में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे. शैलेश पढ़ने में अव्वल था. वह बहुत अच्छा गायक भी था. कालेज के हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में वह बढ़चढ़ कर भाग लेता था. सीमा की आवाज भी बहुत अच्छी थी. दोनों कई बार डुएट भी गाते थे, इसलिए अकसर दोनों का कक्षा के बाहर मिलना हो जाता था.

एक बार सीमा को बुखार आ गया. वह 10 दिन कालेज नहीं आई तो शैलेश पता पूछता हुआ उस के घर उस का हालचाल पूछने आ गया. परीक्षा बहुत करीब थी, इसलिए उस को अपने नोट्स दे कर उस की परीक्षा की तैयारी करने में मदद की. सीमा ने पाया कि वह एक बहुत अच्छा इनसान भी है. धीरेधीरे उन की नजदीकियां बढ़ने लगीं. कालेज में खाली

समय में दोनों साथसाथ दिखाई देने लगे. दोनों को ही एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था. 1 भी दिन नहीं मिलते तो बेचैन हो जाते. दोनों के हावभाव से आपस में मूक प्रेमनिवेदन हो चुका था. इस की कालेज में भी चर्चा होने लगी.

यह किशोरवय उम्र ही ऐसी है, जब कोई प्रशंसनीय दृष्टि से निहारते हुए अपनी मूक भाषा में प्रेमनिवेदन करता है, तो दिल में अवर्णनीय मीठा सा एहसास होता है, जिस से चेहरे पर एक अलग सा नूर झलकने लगता है. सारी दुनिया बड़ी खूबसूरत लगने लगती है. चिलचिलाती गरमी की दुपहरी में भी पेड़ के नीचे बैठ कर उस से बातें करना चांदनी रात का एहसास देता है.

लोग उन्हें अजीब नजरों से देख रहे हैं, इस की ओर से भी वे बेपरवाह होते हैं. जब खुली आंखों से भविष्य के सपने तो बुनते हैं, लेकिन पूरे होने या न होने की चिंता नहीं होती. एकदूसरे की पसंदनापसंद का बहुत ध्यान रखा जाता है. बारिश के मौसम में भीग कर गुनगुनाते हुए नाचने का मन करता है. दोनों की यह स्थिति थी.

पढ़ाई पूरी होते ही शैलेश अपने घर बनारस चला गया, यह वादा कर के कि वह बराबर उस से पत्र द्वारा संपर्क में रहेगा. साल भर पत्रों का आदानप्रदान चला, फिर उस के पत्र आने बंद हो गए. सीमा ने कई पत्र डाले, लेकिन उत्तर नहीं आया. उस जमाने में न तो मोबाइल थे न ही इंटरनैट. धीरेधीरे सीमा ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया और कर भी क्या सकती थी?

सीमा पढ़ीलिखी थी तथा आधुनिक परिवार से थी. शुरू से ही उस की आदत रही थी कि वह किसी भी रिश्ते में एकतरफा चाहत कभी नहीं रखती. जब कभी उसे एहसास होता कि उस का किसी के जीवन में अस्तित्व नहीं रह गया है तो स्वयं भी उस को अपने दिल से निकाल देती थी. इसी कारण धीरेधीरे उस के मनमस्तिष्क से  शैलेश निकलता चला गया. सिर्फ उस का नाम उस के जेहन में रह गया था. जब भी ‘वह’ नाम सुनती तो एक धुंधला सा चेहरा उस की आंखों के सामने तैर जाता था, इस से अधिक और कुछ नहीं.

समय निर्बाध गति से बीतता गया. उस का विवाह हो गया और 2 प्यारेप्यारे बच्चों की मां भी बन गई. पति सुनील अच्छा था, लेकिन उस से मानसिक सुख उसे कभी नहीं मिला. वह अपने व्यापार में इतना व्यस्त रहता कि सीमा के लिए उस के पास समय ही नहीं था. वह पैसे से ही उसे खुश रखना चाहता था.

15 साल के अंतराल पर फेसबुक पर शैलेश से संपर्क होने पर सीमा के मन में उथलपुथल मच गई और अंत में वर्तमान परिस्थितियां देखते हुए रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट न करने में ही भलाई लगी.

अभी इस बात को 4 दिन ही बीते होंगे कि  उस का मैसेज आ गया. किसी ने सच ही कहा है कि कोई अगर किसी को शिद्दत से चाहे तो सारी कायनात उन्हें मिलाने की साजिश करने लगती है और ऐसा ही हुआ. इस बार वह अपने को रोक नहीं पाई. मन में उस के बारे में जानने की उत्सुकता जागी. मैसेज का सिलसिला चलने लगा, जिस से पता लगा कि वह पुणे में अपने परिवार के साथ रहता है. फिर मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान हुआ.

इस के बाद प्राय: बात होने लगी. उन का मूक प्रेम मुखर हो उठा था. पहली बार शैलेश की आवाज फोन पर सुन कर कि कैसी हो नवयौवना सी उस के दिल की स्थिति हो गई थी. उस का कंठ भावातिरेक से अवरुद्ध हो गया था.

उस ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘अच्छी हूं. तुम्हें मैं अभी तक याद हूं?’’

‘‘मैं भूला ही कब था,’’ जब उस ने प्रत्युत्तर में कहा तो, उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

उस ने पूछा, ‘‘फिर पत्र लिखना क्यों छोड़ दिया?’’

‘‘तुम्हारा एक पत्र मां के हाथ लग गया था, तो उन्होंने भविष्य में

तुम्हारामेरा संपर्क में रहने का दरवाजा ही बंद कर दिया और मुझे अपना वास्ता दे दिया था. उन का इकलौता बेटा था, क्या करता.’’

उस ने सीमा से कभी भविष्य में साथ रहने का वादा तो किया नहीं था, इसलिए वह शिकायत भी करती तो क्या करती. एक ऐसा व्यक्ति जिस ने अपने प्रेम को भाषा के द्वारा कभी अभिव्यक्त नहीं किया था, उस का उसे शब्दों का जामा पहनाना उस के लिए किसी सुखद सपने का वास्तविकता में परिणत होने से कम नहीं था. यदि वह उस से बात नहीं करती तो इतनी मोहक बातों से वंचित रह जाती.

समय का अंतराल परिस्थितियां बदल देता है, शारीरिक परिवर्तन करता है, लेकिन मन अछूता ही रह जाता है. कहते हैं हर इनसान के अंदर बचपना होता है, जो किसी भी उम्र में उचित समय देख कर बाहर आ जाता है.

उन की बातें दोस्ती की परिधि में तो कतई नहीं थीं. हां मर्यादा का भी उल्लंघन कभी नहीं किया. शैलेश की बातें उसे बहुत रोमांचित करती थीं. बातों से लगा ही नहीं कि वे इतने सालों बाद मिले हैं. फोन से बातें करते हुए उन्होंने उन पुराने दिनों को याद कर के भरपूर जीया. कुछ शैलेश ने याद दिलाईं जो वह भूल गई थी, कुछ उस ने याद दिलाई. ऐसे लग रहा था जैसेकि वे उन दिनों को दोबारा जी रहे हैं.

15 सालों में किस के साथ क्या हुआ वह भी शेयर किया. आरंभ में इस तरह बात करना उसे अटपटा अवश्य लगता था, संस्कारगत थोड़ा अपराधबोध भी होता था और यह सोच कर भी परेशान होती थी कि इस तरह कितने दिन रिश्ता निभेगा.

इसी ऊहापोह में 5-6 महीने बीत गए. दोनों ही चाहते थे कि यह रिश्ता बोझ न बन जाए. यह तो निश्चित हो गया था कि आग लगी थी दोनों तरफ बराबर. पहले यह आग तपिश देती थी, लेकिन धीरेधीरे यही आग मन को ठंडक तथा सुकून देने लगी. उन की रस भरी बातें उन दोनों के ही मन को गुदगुदा जाती थीं.

एक बार शैलेश ने एक गाने की लाइन बोली, ‘‘तुम होतीं तो ऐसा होता, तुम यह कहतीं…’’

उस की बात काटते हुए सीमा बोली, ‘‘और तुम होते तो कैसा होता…’’

कभी सीमा चुटकी लेती, ‘‘चलो भाग चलते हैं…’’

शैलेश कहता, ‘‘भाग कर जाएंगे कहां?’’

एक दिन शैलेश ने सीमा को बताया कि औफिस के काम से वह बहुत जल्दी दिल्ली आने वाला है. आएगा तो वह उस से और उस के परिवार से अवश्य मिलेगा. यह सुन कर उस का मनमयूर नाच उठा. फिर कड़वी सचाई से रूबरू होते ही सोच में पड़ गई कि अब सीमा किसी और की हो चुकी है.

क्या इस स्थिति में उस का शैलेश से मिलना उचित होगा? फिर अपने सवाल का उत्तर देते हुए बुदबुदाई कि ऊंह, तो क्या हुआ? समय बहुत बदल गया है, एक दोस्त की तरह मिलने में बुराई ही क्या है… सुनील की परवाह तो मैं तब करूं जब वह भी मेरी परवाह करता हो. खुश रहने के लिए मुझ भी तो कोई सहारा चाहिए. देखूं तो सही इतने सालों में उस में कितना बदलाव आया है. अब वह शैलेश के आने की सूचना की प्रतीक्षा करने लगी थी.’’

अंत में वह दिन भी आ पहुंचा, जिस का वह बेसब्री से इंतजार कर रही थी. सुनील बिजनैस टूअर पर गया हुआ था. दोनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. उन्होंने कनाट प्लेस के कौफी हाउस में मिलने का समय निश्चित किया. वह शैलेश से अकेले घर में मिल कर कोई भी मौका ऐसा नहीं आने देना चाहती थी कि बाद में उसे आत्मग्लानि हो.

उसे लग रहा था कि इतने दिन बाद उस को देख कर कहीं वह भावनाओं में बह कर कोई गलत कदम न उठा ले, जिस की उस के संस्कार उसे आज्ञा नहीं देते थे. शैलेश को देख कर उसे लगा ही नहीं कि वह उस से इतने लंबे अंतराल के बाद मिल रही है. वह बिलकुल नहीं बदला था. बस थोड़ी सी बालों में सफेदी झलक रही थी. आज भी वह उसे बहुत अपना सा लग रहा था. बातों का सिलसिला इतना लंबा चला कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

इधरउधर की बातें करते हुए जब शैलेश ने सीमा से कहा कि उसे अपने वैवाहिक जीवन से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन उस की जगह कोई नहीं ले सकता तो उसे अपनेआप पर बहुत गर्व हुआ.

अचानक शैलेश को कुछ याद आया. उस ने पूछा, ‘‘अरे हां, तुम्हारे गाने के शौक का क्या हाल है?’’

बात बीच में काटते हुए सीमा ने उत्तर दिया, ‘‘क्या हाल होगा. मुझे समय ही नहीं मिलता. सुनील तो बिजनैस टूअर पर रहते हैं और न ही उन को इस सब का शौक है.’’

‘‘अरे, उन को शौक नहीं है तो क्या हुआ, तुम इतनी आश्रित क्यों हो उन पर? कोशिश और लगन से क्या नहीं हो सकता? बच्चों के स्कूल जाने के बाद समय तो निकाला जा सकता है.’’

सीमा को लगा काश, सुनील भी उस को इसी तरह प्रोत्साहित करता. उस ने तो कभी उस की आवाज की प्रशंसा भी नहीं की. खैर, देर आए दुरुस्त आए. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह अपनी इस कला को लोगों के सामने उजागर करेगी.

उस को चुप देख कर शैलेश ने कहा, ‘‘चलो, हम दोनों मिल कर एक अलबम तैयार करते हैं. सहकर्मियों की तरह तो मिल सकते हैं न. इस विषय पर फोन पर बात करेंगे.’’

सीमा को लगा उस के अकेलेपन की समस्या का हल मिल गया. दिल से वह शैलेश के सामने नतमस्तक हो गई थी.

फिर से बिछड़ने का समय आ गया था. लेकिन इस बार शरीर अलग हुए थे केवल, कभी न बिछड़ने वाला एक खूबसूरत एहसास हमेशा के लिए उस के पास रह गया था, जिस ने उस की जिंदगी को इंद्रधनुषी रंग दे कर नई दिशा दे दी थी. इस एहसास के सहारे कि वह इतने सालों बाद भी शैलेश की यादों में बसी है. वह शैलेश का सामीप्य हर समय महसूस करती थी. दूरी अब बेमानी हो गई थी.

एक कवि ने प्रेम की बहुत अच्छी परिभाषा देते हुए कहा है कि सिर्फ एहसास है यह रूह से महसूस करो. कहते हैं प्यार कभी दोस्ती में नहीं बदल सकता और यदि बदलता है तो उस से अच्छी दोस्ती नहीं हो सकती. इस दोस्ती का अलग ही आनंद है. सीमा को बहुत ही प्यारा दोस्त मिला.

अजंता: आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

लेखक- सुधीर मौर्य

अजंता को इस बात की बिलकुल भी उम्मीद नहीं रही होगी कि शशांक उस के फ्लैट पर आ जाएगा. डोरबैल बजने पर अजंता ने जब दरवाजा खोला तो सामने शशांक खड़ा था. उसे यों वहां आया देख कर अजंता सोच ही रही थी कि वह कैसे रिएक्ट करे तभी शशांक मुसकराते हुए बोला, ‘‘नमस्ते मैम, यहां से गुजर रहा था तो याद आया इस एरिया में आप रहती हैं. बस दिल में खयाल आया कि आप के साथ चाय पी लूं.’’

‘‘बट अभी मैं कल क्लास में देने वाले लैक्चर की तैयारी कर रही हूं, चाय पीने के लिए नहीं आ सकती,’’ अजंता ने शशांक को दरवाजे से लौटा देने की गरज से कहा.

‘‘अरे मैम, इतनी धूप में आप बाहर आ कर चाय पीएं यह तो हम बिलकुल न चाहेंगे. चाय तो हम यहां फ्लैट में बैठ कर पी सकते हैं. चाय मैं बनाऊंगा आप लैक्चर की तैयारी करते रहना और हां एक बात बता दूं हम चाय बहुत अच्छी बनाते हैं,’’ शशांक ने दरवाजे से फ्लैट के अंदर देखने की कोशिश करते हुए कहा मानो वह यह तहकीकात कर रहा हो कि इस वक्त अजंता फ्लैट में अकेली है या कोई और भी वहां है.

शशांक की कही बात का अजंता कोई जवाब न दे सकी. एक पल चुप रहने के बाद वह बिना कुछ कहे फ्लैट के भीतर आ गई. शशांक भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. शशांक ने दरवाजा बंद किया तो उस की आवाज से अजंता ने पलट कर जब उसे देखा तो शशांक ने झट से पूछा, ‘‘मैम, किचन किधर है?’’

‘‘इट्स ओके,’’ अजंता सोफे की ओर इशारा कर के शशांक से बोली, ‘‘तुम वहां बैठो चाय मैं बना कर लाती हूं.’’

‘‘एज यू विश,’’ शशांक ने मुसकरा कर कहा और फिर सोफे पर यों बैठ गया जैसे वह वहां मेहमान न हो, बल्कि यह फ्लैट उसी का हो.

शशांक को वहां बैठा देख कर अजंता किचन में चली गई. शशांक जाती हुई अजंता की लचकती कमर और रोमहीन पिंडलियां देखता रहा. अजंता नौर्मली जब घर पर होती है ढीलाढाला कुरता और हाफ पाजामा पहनती है. यही उस की स्लीपिंग ड्रैस भी है. इस में वह काफी कंफर्ट महसूस करती है.

‘‘मैम, क्या एक गिलास ठंडा पानी मिल सकता है,’’ गैस जला कर अजंता ने चाय बनाने के लिए पानी चढ़ाया ही था कि अपने बेहद करीब शशांक की आवाज सुन कर चौंक पड़ी. हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा हाथ से गिरतेगिरते बचा.

अपनी आवाज से अजंता को यों चौंकते देख कर शशांक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैम, बाहर बहुत धूप है… प्यास से गला सूख गया है.’’

अजंता ने हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा एक ओर रख फ्रिज से पानी की बोतल निकाल शशांक को पकड़ा दी. हाथ में पानी की बोतल लिए शशांक ने खुद गिलास लिया. गिलास लेते समय शशांक का जिस्म अजंता के जिस्म से तनिक छू गया. अजंता ने इस टच पर कोई रिएक्शन नहीं दिया. गिलास में पानी डाल कर पीने के बाद शशांक ने कहा, ‘‘मां कहती हैं कि पानी हमेशा गिलास से पीना चाहिए, सीधे बोतल से कभी नहीं.’’

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तुम्हारी मां यह नहीं कहतीं कि एक अकेली लड़की से मिलने उस के घर नहीं जाना चाहिए, अजंता यह कहने ही वाली थी कि उस से पहले ही शशांक ड्राइंगरूम में चला गया. चाय पीते हुए शशांक ने अजंता से ढेरों बातें करने की कोशिश की, लेकिन अजंता उन के जवाब में सिर्फ हां, हूं, नहीं आदि बोल उसे इग्नोर करने का प्रयास करती रही. चाय खत्म होने के बाद शशांक को टालने की गरज से अजंता ने कुछ पेपर उठा लिए और उन्हें मन ही मन पढ़ने का बहाना करने लगी. अजंता को यों अपनेआप में बिजी देख सोफे पर से उठते हुए शशांक ने कहा, ‘‘तो फिर मैं चलता हूं मैम.’’

‘‘हांहां ठीक है. तुम्हें ऐग्जाम की तैयारी भी करनी होगी,’’ कह वह सोच में पड़ गई कि छुट्टी का दिन है और उस से मिलने के लिए प्रशांत कभी भी आ सकता है. एक लड़के को मेरे फ्लैट में देख कर न जाने वह कौन सा सवाल कर बैठे. अजंता खुद चाहती थी कि शशांक जल्दी से जल्दी वहां से चला जाए. इसीलिए उस ने शशांक से पढ़ने की बात कह कर उसे जाने को कहा था पर उसे क्या पता था कि उस की कही बात उस के गले पड़ जाएगी.

‘‘मैम वह सच तो यह है कि मैं इसीलिए यहां आप के पास आया था कि आप से स्टडी में कुछ हैल्प ले सकूं,’’ सोफे पर वापस बैठते हुए शशांक बोला, ‘‘मैम, आप करेंगी न मेरी मदद?’’

‘‘हांहां ठीक है, पर आज नहीं. अभी तुम जाओ. मुझे अभी अपने लैक्चर की तैयारी करनी है,’’ कहतेकहते अजंता की बात में रिक्वैस्ट का पुट आ गया था.

अजंता को रिक्वैस्ट के अंदाज में बोलते देख शशांक को अच्छा लगा और फिर सोफे से उठ कर एहसान करने वाले अंदाज में बोला, ‘‘ओके मैम, आप कह रही हैं तो हम चले जाते हैं पर आप अपना वादा याद रखना.’’

‘‘कैसा वादा?’’ अजंता ने घबराते हुए पूछा.

‘यही कि आप स्टडी में मेरी हैल्प करेंगी,’ शशांक ने हंस कर कहा और फिर दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

अजंता दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि शशांक पलट कर बोल पड़ा, ‘‘मैम, आप के पैर बहुत खूबसूरत हैं. जी करता है इन्हें देखता ही रहूं. क्या मेरे लिए आप किसी ओपन लैग्स वाली ड्रैस में आ सकती हैं?’’

शशांक की इस बेहूदा बात पर अजंता चुप रह गई. शशांक ने एक गहरी नजर अजंता की रोमहीन चमकती पिंडलियों पर डाली और फिर मुसकराते हुए चला गया. उस के जाते ही अजंता ने झट से दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ली.

अजंता 23-24 साल की बेहद खूबसूरत युवती थी. इतनी खूबसूरत कि उस के चेहरे को देख कर दुनिया की सब से हसीन लड़की भी शरमा जाए, उस के जिस्म के रंग के आगे सोने का रंग मटमैला लगे. कंधे तक बिखरी जुल्फों का जलवा ऐसा मानो वह जुल्फियां नाम की मुहब्बत की कोई अदीब हो. उस के उन्नत उरोज, पतली कमर, भरेभरे नितंब और मस्तानी चाल यकीनन अजंता की खूबसूरती बेमिसाल थी और आज शशांक के कमैंट ने उसे यह भी बता दिया था कि उस की पिंडलियां भी किसी को आकर्षित कर सकने का दम रखती हैं.

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अजंता न सिर्फ जिस्मानी रूप से बेहद खूबसूरत थी, बल्कि बहुत ही कुशाग्रबुद्धि भी थी. बैंगलुरु के एक मशहूर इंजीनियरिंग कालेज से उस ने मैकैनिकल इंजीनियरिंग में बीटैक की डिग्री ली थी और लखनऊ के एक पौलिटैक्निक कालेज में अस्थाई रूप से जौब कर रही थी. रहने वाली कानुपर की थी. लखनऊ के इंदिरानगर में किराए के फ्लैट में रहती थी.

प्रशांत, अजंता के पापा के दोस्त का लड़का है. उस के पापा राजनीति में हैं, विधायक रह चुके हैं. अब प्रशांत उन का उत्तराधिकार संभाल रहा है. अजंता की उस के साथ इंगेजमैंट हो चुकी है. प्रशांत की मदद से उसे एक अच्छा फ्लैट किराए पर मिल गया था. प्रशांत की फैमिली लखनऊ में रहती थी, इसलिए अजंता के लखनऊ में अकेले रहने से उस की फैमिली उस की तरफ से बेफिक्र थी.

आगे पढ़ें- अजंता और प्रशांत की शादी का फैसला…

अजंता के और प्रशांत के पापा आपस में दोस्त थे. अत: अजंता और प्रशांत भी एकदूसरे को बचपन से जानते थे. हालांकि दोनों के परिवार अलगअलग शहरों में रहते थे फिर भी साल में 1-2 बार जब भी एकदूसरे के शहर जाते तो मुलाकात हो जाती थी. वैसे भी कानपुर और लखनऊ शहर के बीच की दूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है.

अजंता और प्रशांत की शादी का फैसला जब उन के मां और पिता ने लिया तो प्रशांत और अजंता ने कोई ऐतराज नहीं जताया. अजंता जैसी बेहद सुंदर और उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की से तो कोई भी लड़का शादी करने को उतावला हो सकता था, इसलिए प्रशांत ने फौरन हामी भर दी. अजंता ने प्रशांत से शादी करने के लिए अपनी सहमति देने में 1 दिन का वक्त लिया था. शादी के लिए सहमति देने के लिए अजंता ने जो समय लिया उसे दोनों परिवारों ने लड़की सुलभ लज्जा समझा.

अजंता द्वारा लिए गए समय को भले ही दोनों परिवारों ने उस की लज्जा समझा हो पर अजंता सच में शादी जैसे मुद्दे पर सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहती थी. अजंता का यह वक्त लेना लाजिम भी था. भले ही अजंता प्रशांत को बचपन से जानती हो पर उस के मन में कभी प्रशांत के लिए प्यार जैसी किसी भावना ने अंगड़ाई नहीं ली थी.

प्रशांत क्लोज फ्रैंड भी नहीं था. मतलब वह प्रशांत से अपनी निजी बातें शेयर करने में कंफर्ट फील नहीं करती थी न ही उस ने कभी प्रशांत से अंतरंग बातें की थीं. हालांकि जब से उन की इंगेजमैंट हुई थी तब से प्रशांत उस से कभीकभी अंतरंग बातें करता था, जिन का अजंता इस अंदाज में जवाब देती थी जैसे वह इस तरह की बातें करने में ईजी फील नहीं कर रही हो.

प्रशांत न सिर्फ एक नेता का बेटा था, बल्कि खुद भी युवा नेता था, बावजूद इस के उस में कोई खास बुरी आदतें नहीं थीं. कभीकभार किसी फंक्शन के अलावा प्रशांत ड्रिंक भी नहीं लेता था न ही लड़कियों के पीछे भागने वाला लड़का था.

हालांकि कुछ लड़कियां प्रशांत की दोस्त रही थीं. 1-2 लड़कियों से उस के अफेयर के चर्चे भी रहे थे, पर अजंता ने इसे एक सामान्य बात के तौर पर लिया. आजकल के जमाने में लड़कों और लड़कियों का अफेयर होना सामान्य सी बात हो गई है.

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अजंता खुद एक बार एक लड़के के प्रति आकर्षित हुई थी. जब वह बैंगलुरु में बीटैक फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रही थी तो फाइनल ईयर के स्टूडैंट राजीव की ओर आकर्षित हो गई थी. राजीव हैंडसम और खुशमिजाज लड़का था. वह कानपुर का रहने वाला था. शायद इसीलिए अजंता जल्द ही उस के ओर आकर्षित हो गई. जल्दी ही दोनों दोस्त बन गए और फिर क्लोज फ्रैंड.

अजंता उस समय समझ नहीं पाती थी कि वह सिर्फ राजीव की ओर आकर्षित भर है या फिर उसे प्यार करने लगी है. राजीव लास्ट ईयर का स्टूडैंट था. कालेज कैंपस से उसे एक बड़ी कंपनी में जौब मिल गई और वह ऐग्जाम देते ही दिल्ली चला गया.

कुछ दिनों तक तो राजीव को अजंता ने याद किया और फिर धीरेधीरे उस की स्मृतियां दिल के किसी कोने में खो गईं. राजीव ने भी कभी अजंता को कौंटैक्ट नहीं किया. अब अजंता को समझ में आ गया कि वह राजीव की ओर सिर्फ आकर्षित भर थी, उसे उस से प्यार नहीं हुआ था.

अजंता की जिंदगी में कोई लड़का नहीं था. उस की उम्र भी 23-24 साल की हो रही थी. प्रशांत में कोई कमी भी नहीं थी, इसलिए एक दिन सोचने के बाद उस ने प्रशांत से शादी करने की स्वीकृति दे दी. अजंता के स्वीकृति देते ही दोनों परिवारों ने दोनों की मंगनी कर दी.

अब अजंता अपनी जौब के सिलसिले में लखनऊ में रहती थी, इसलिए प्रशांत और वह एकदूसरे से अकसर मिल लेते थे. हालांकि अजंता कई बार प्रशांत से तनहाई में मिली थी पर अब तक उस ने शारीरिक संबंध नहीं बनाया था. ऐसा नहीं कि प्रशांत ने शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास न किया हो पर अजंता ‘प्लीज ये सब शादी के बाद’ कह कर मना करती आई.

अजंता के मना करने के बाद प्रशांत भी उसे ज्यादा फोर्स नहीं करता था. भले ही अजंता और प्रशांत के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने थे पर उन दोनों ने एकदूसरे के शरीर को छुआ था, एकदूसरे को किस किया था. वे लड़केलड़की जिन की इंगेजमैंट हो चुकी हो उन के बीच ऐसा होना लाजिम भी है. अजंता को प्रशांत ने कई बार अपने सीने में भी भींचा था, उस का चुंबन लिया था पर न जाने क्यों अजंता को ये सब सतरंगी दुनिया में नहीं ले जा पाते.

करीब 20 साल का शशांक कोई बहुत कुशाग्रबुद्धि का नहीं था. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद उस ने बीटैक में एडमिशन के लिए कोचिंग ली पर 2 साल तैयारी करने के बाद उसे किसी भी कालेज में दाखिला नहीं मिला. शशांक अपनी क्षमताओं को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उस ने दूसरे साल पौलिटैक्निक का भी ऐंट्रैंस ऐग्जाम दिया और उसे राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ में मैकैनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया.

कालेज में पढ़ाई से ज्यादा शशांक अन्य ऐक्टिविटीज में ज्यादा दिलचस्पी लेता. खेलकूद में आगे रहता. हमेशा अलमस्त रहने वाला शशांक न जाने क्यों पहले दिन से ही अजंता पर कुछ न कुछ कमैंट करता. अजंता ऐलिमैंट औफ मैकैनिकल इंजीनियरिंग जैसे सब्जैक्ट पढ़ाती थी. इन विषयों से संबंधित सवालों के जवाब शशांक भलीभांति नहीं दे पाता पर वह अजंता से बड़ी डेयरिंग से अन्य बातें कर लेता.

शशांक की कुछ बातें तो ऐसी होतीं कि जिन्हें सुन कर कोई भी लड़की भड़क जाए. बातें अजंता को भी अच्छी नहीं लगतीं पर वह न जाने क्यों वह कभी शशांक पर भड़की नहीं न ही उस की कालेज मैनेजमैंट से कोई शिकायत की. यहां तक कि जब शशांक एक दिन बातों ही बातों में उस के उरोजों और नितंबों की तारीफ कर बैठा तब भी उस ने कोई शिकायत नहीं की पर यह बात सुन कर उस ने रिएक्ट जरूर ऐसे किया जैसे उसे यह बात बेहद नागवार गुजरी हो.

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शशांक ने जब एक दिन हंस कर शादी के लिए प्रपोज किया तब भी उस ने ऐसे ही रिएक्ट किया पर उस रात जब उस की आंख अचानक खुल गई तो शशांक की कही बात सुन कर वह मन ही मन मुसकरा पड़ी.

न जाने क्या था शशांक की आंखों और उस की बातों में कि अजंता ने अपने से करीब 3-4 साल छोटे अपने स्टूडैंट की उन बातों को, जिन्हें लोग अश्लील कहते हैं, पुरजोर विरोध नहीं किया. कभीकभी तो जब अजंता तनहाई में होती तो शशांक उस के खयालों में आ जाता और कोई न कोई ऐसी बात कहता जिसे सुन कर अजंता बाहर से तो गुस्सा दिखाती पर मन में एक गुदगुदी सी महसूस करती.

उस दिन जब शशांक डेयरिंग करते हुए अजंता से मिलने उस के फ्लैट पर आ गया तो अजंता उस के जाने तक सिर्फ यही सोचती रही कि कहीं उसे अकेली देख वह उस के साथ गलत हरकत न करे दे. पर शशांक ने ऐसा कुछ नहीं किया. हालांकि उस ने 1-2 अशिष्ट बातें जरूर कीं. शशांक के जाने के बाद अजंता दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ले ही रही थी कि वापस डोरबैल बज उठी.

अजंता ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला तो समाने प्रशांत खड़ा था. बोली, ‘‘आइए, भीतर आ जाइए.’’

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लेखक- सुधीर मौर्य

भले ही अजंता के दिल में अब भी प्रशांत के लिए मुहब्बत के जज्बात न जगे हों पर वह उस का होने वाला पति था, इसलिए उस का मुसकरा कर स्वागत करना लाजिम था. भीतर आ कर प्रशांत उसी सोफे पर बैठ गया जहां कुछ देर पहले शशांक बैठा था. प्रशांत के लिए फ्रिज से पानी निकालते हुए अजंता सोच में पड़ गई कि अगर प्रशांत कुछ देर पहले आ जाता और शशांक के बारे में पूछता तो वह क्या जवाब देती.

‘‘बाहर तो काफी धूप है?’’ अजंता ने पानी देते हुए प्रशांत से जानना चाहा.

पानी पीते हुए प्रशांत ने अजंता को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर गिलास उस के हाथ में देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें मना किया था न ये शौर्ट कपड़े पहनने के लिए.’’

‘‘ओह हां, बट घर में पहनने को तो मना नहीं किया था,’’ अजंता ने कहा और फिर बात बदलने की गरज से झट से बोली, ‘‘आप चाय लेंगे या कौफी?’’

‘‘चाय,’’ प्रशांत सोफे पर पसर और्डर देने के अंदाज में बोला. अजंता किचन की ओर जाने लगी तो प्रशांत ने कहा, ‘‘अजंता मैं चाहता हूं तुम इस तरह के कपड़े घर पर भी मत पहनो.’’

‘‘अरे, घर में इस ड्रैसिंग में क्या प्रौब्लम है और फिर आजकल यह नौर्मल ड्रैसिंग है. ज्यादातर लड़कियां पहनना पसंद करती हैं,’’ चाय बनाने जा रही अजंता ने रुक कर प्रशांत की बात का जवाब दिया.

‘‘नौर्मल ड्रैसिंग है, लड़कियां पसंद करती हैं इस का मतलब यह नहीं कि तुम भी पहनोगी?’’ प्रशांत के स्वर में थोड़ी सख्ती थी.

‘‘अरे, इस तरह की ड्रैसिंग में मैं कंफर्ट फील करती हूं और मुझे भी पसंद है ये सब पहनना,’’ अजंता ने अपनी बात रखी.

‘‘पर मुझे पसंद नहीं अजंता… तुम नहीं पहनोगी आज के बाद यह ड्रैस, अब जाओ चाय बना कर लाओ,’’ और्डर देने वाले अंदाज में प्रशांत के स्वर में सख्ती और बढ़ गई थी.

‘‘तुम्हारी पसंद… क्या मेरी कोई पसंद नहीं?’’ प्रशांत की सख्त बात सुन कर अजंता की आवाज भी थोड़ी तेज हो गई.

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अजंता की तेज आवाज ने प्रशांत के गुस्से को बढ़ा दिया. वह चिल्लाते हुए बोला, ‘‘मैं ने जो कह दिया वह कह दिया और तुम इतने भी मैनर नहीं जानती कि जब पति बाहर से थक कर आता है तो पत्नी उस के साथ बहस नहीं करती.’’

अजंता स्वभाव से सीधीसादी थी. वह समझती थी पति से तालमेल बैठाने के लिए उसे अपनी कुछ इच्छाएं कुरबान करनी ही पडे़ंगी. मगर आज जो प्रशांत कह रहा था वह उसे बुरा लगा. वह पढ़ीलिखी सैल्फ डिपैंडैंट लड़की थी. अत: प्रशांत की बात का विरोध करते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, यह तो कोई बात नहीं कि मैं आप की बैसिरपैर की बात मानूं… मुझे इस ड्रैसिंग में कोई दिक्कत नजर नहीं आती और हां आप मेरे होने वाले पति हैं, पति नहीं.’’

अजंता की बात सुन प्रशांत का गुस्सा 7वें आसमान पर जा पहुंचा. लगभग दहाड़ते हुए बोला, ‘‘अजंता, मेरे घर में आने के बाद ये सब नहीं चलेगा. तुम्हें मेरे अनुसार खुद को ढालना ही पड़ेगा. वरना…’’ प्रशांत ने अजंता को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया पर फिर रुक गया.

प्रशांत का यह रूप अंजता के लिए एकदम नया था. कुछ देर वह हैरानी खड़ी रही, फिर बोली, ‘‘वरनावरना क्या करोगे… मुझे पीटोगे?’’

प्रशांत को लगा उस से गलती हो गई है. अत: अपनी आवाज को ठंडा करते हुए बोला, ‘‘सौरी अजंता वह बाहर धूप है शायद उस की वजह से मेरे सिर में पागलपन भर गया था… मैं गुस्से में बोल गया. चलो अब तो अपने नर्मनर्म हाथों से चाय बना कर लाओ डियर.’’

‘‘धूप से घर आने वाले व्यक्ति को क्या इस बात का सर्टिफिकेट मिल जाता है कि वह अपनी पत्नी को डांटे, उसे पीटे?’’ अजंता की बात में भी अब गुस्सा था.

प्रशांत कुछ देर अजंता को देखता रहा. फिर मन ही मन कुछ सोच कर बोला, ‘‘अच्छा ठीक है जो मेरी होने वाली बीवी मेरी थकान उतारने के लिए मुझे अपने कोमल हाथों से बना कर चाय नहीं पिला सकती तो मैं अपनी प्यारी खूबसूरत पत्नी का गुस्सा उतारने के लिए उसे चाय बना कर पिलाता हूं,’’ कह कर प्रशांत किचन की ओर बढ़ गया.

वह भले ही उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की थी पर थी तो फीमेल, नौर्मल फीमेल, अचानक उस के मन में खयाल जागा कि कहीं सही में बाहर की धूप और थकान की वजह से प्रशांत ने गुस्से में तो उस पर हाथ उठाना नहीं चाहा… केवल हाथ ही तो उठाया, मारा तो नहीं… और अब

वह जब गुस्से में है तो उसे मनाने के लिए खुद किचन में चाय बनाने गया है… उस की खुद भी तो गलती है जब प्रशांत ने उस से कहा था वह थक कर आया है उसे 1 कप चाय बना के पिला दो तो वह क्यों उस से बहस करने लगी?

ये सब सोचते हुए अजंता किचन में आ गई. प्रशांत हाथ में लाइटर ले कर गैस जलाने जा रहा था.

‘‘आप चल कर पंखे में बैठिए मैं चाय बना लाती हूं,’’ अजंता प्रशांत से लाइटर लेने की कोशश करते हुए बोली.

‘‘नहीं अब तो मैं ही चाय बनाऊंगा,’’

प्रशांत ने अजंता का हाथ हटा कर गैस जलाने की कोशिश की. अजंता ने फिर लाइटर लेने की कोशिश की. पर प्रशांत ने फिर मना किया. अजंता ने गैस जला रहे प्रशांत का हाथ पकड़ लिया. प्रशांत ने अजंता का हाथ छुड़ाने की कोशिश की. इस छीनाझपटी में अजंता फिसल कर प्रशांत की बांहों में गिर गई. प्रशांत ने उसे बांहों में भर लिया.

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‘‘छोडि़ए चाय बनाने दीजिए,’’ अजंता कसमसाई.

‘‘नहीं अब तो तुम्हारे होंठों को पीने के बाद ही चाय पी जाएगी,’’ कह प्रशांत ने अजंता के होंठों पर होंठ रख दिए. एक लंबे किस ने अजंता को निढाल कर दिया. इतना निढाल कि प्रशांत ने बिना किसी विरोध के उसे ला कर बिस्तर पर लिटा दिया.

कुछ देर बाद जब प्रशांत ने अजंता की कमर से पाजामा खिसकाने की कोशिश की तो अजंता ने विरोध करते हुए कहा, ‘‘नहीं प्रशांत ये सब शादी के बाद.’’

प्रशांत अजंता की बात सुन कर कुछ देर इस अवस्था में रहा जैसे खुद को संयत करने की कोशिश कर रहा हो और फिर अजंता के ऊपर से उठते हुए बोला, ‘‘ओके डियर ऐज यू विश.’’

अजंता ने उठ कर अपने कपड़े सही किए और फिर चाय बनाने के लिए किचन में आ गई.

‘‘जानती हो अजंता तुम्हारी इसी अदा का

तो मैं दीवाना हूं,’’ प्रशांत ने किचन में आ कर कहा.

‘‘कौन सी?’’ अजंता ने बरतन में पानी डाल कर गैस पर चढ़ाते हुए पूछा.

‘‘यही कि ये सब शादी के बाद,’’ प्रशांत ने मुसकरा कर कहा.

प्रशांत की इस बात पर अजंता भी मुसकरा कर रह गई.

‘‘मैं भी यही चाहता हूं कि मैं तुम्हारे

जिस्म को अपनी सुहागरात में पाऊं,’’

प्रशांत ने अजंता के पीछे आ कर उस के गले में बांहें डाल कर कहा.

अजंता कुछ नहीं बोली. उबलते पानी में चायपत्ती और शक्कर डालती रही.

‘‘हर व्यक्ति अपने मन में यह अरमान पालता है,’’ प्रशांत अपनी उंगलियों से अजंता के गालों को धीरेधीरे सहलाते हुए बोला.

‘‘कैसा अरमान?’’ अजंता ने पूछा.

‘‘यही कि उस की बीवी वर्जिन हो और सुहागरात को अपनी वर्जिनिटी अपने पति को तोहफे में दे.’’

कह कर प्रशांत प्लेट से बिस्कुट उठा कर खाने लगा.

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को धक्का लगा कि और अगर लड़की ने शादी से पहले अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो और फिर प्रशांत पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘अगर लड़की वर्जिन न हो एक इंसान कैसे उसे प्यार कर सकता है. तुम्हीं बताओ अजंता, कोई व्यक्ति किसी ऐसी लड़की के साथ पूरी जिंदगी कैसे रह पाएगा जिस ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो?

क्या उस का दिल ऐसी लड़की को कभी कबूल कर पाएगा? और सोचो तब क्या होगा जब किसी दिन वह इंसान सामने आ जाए जो उस लड़की का प्रेमी रहा हो. बोलो अजंता उस व्यक्ति पर यह सोच कर क्या गुजरेगी कि यही वह आदमी है जिस की वजह से उस की बीवी ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी खो दी. ऐसी लड़की से शादी के बाद तो जिंदगी नर्क बन जाएगी, नर्क.’’

प्रशांत बोले जा रहा था, अजंता पत्थर की मूर्त बने सुनते जा रही थी. चाय उबल कर नीचे फैलती जा रही थी…

आगे पढ़ें- अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन…

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तुम्हारे बिना देर शाम औफिस से लौट कर, घर आना और फिर अपने ही हाथों से अपार्टमैंट का ताला खोलना, वही ड्राइंगरूम, वही बैडरूम वही बालकनी, वही किचन सबकुछ तो वही है, मगर एक तुम्हारे बिना सबकुछ वैसा ही क्यों नहीं लगता? बेशकीमती कालीन, सुंदर परदे, रंगीन चादर, चमकते झालर, सुनहरा टीवी स्क्रीन, सुंदर हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ सुंदर क्यों नहीं लगता? क्षितिज तक फैला नीला सागर, उस पर उठती ऊंचीऊंची लहरें, सुनहरा रेत, ढलती शाम, सबकुछ सुहाना हो कर भी तुम्हारे बिना सुहाना क्यों नहीं लगता? पर्वत की चोटियों पर झूमती काली घटाएं पहाड़ों से आती सरसराती ठंडी हवाएं, स्वर्ग सा सुंदर, पहाड़ों का दामन, हसीन वादियां, खूबसूरत नजारे बहुत खूबसूरत हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ खूबसूरत क्यों नहीं लगता?

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी अजंता को प्रशांत की असलियत का पता चलता जा रहा था. एक दिन तो प्रशांत ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं…

अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे उस की जिंदगी में जद्दोजहद बढ़ती जा रही थी. शशांक की बेबाकियां बदस्तूर जारी थीं और अजंता ने न जाने क्यों कभी उस की बेबाकियों पर कोई प्रतिबंध लगाने की कोशिश नहीं की. शशांक, स्टूडैंट और टीचर के रिश्ते से हट कर अपने से करीब 3-4 साल बड़ी अपनी टीचर अजंता से प्रेमीप्रेमिका का संबंध बनाना चाहता था. अजंता का भी दिल कभी कहता कि अजंता यह शशांक तुझे बहुत प्यार करेगा, यही लड़का है जो तेरी इच्छाओं का सम्मान कर के तेरी जिंदगी में मुहब्बत के फूल खिलाएगा. पर अगले ही पल उस के दिमाग पर प्रशांत छा जाता. प्रशांत यद्यपि गाहेबगाहे अजंता के ऊपर अपनी इच्छाएं लादने का प्रयास करता पर जब कभी अजंता इस का विरोध करती तो वह अपनी गलती मान कर अजंता को खुश करने के लिए कुछ भी करता.

सच कहें तो अजंता की जिंदगी शशांक और प्रशांत के बीच उलझ रही थी. कभीकभी उस का दिल कह उठता कि अजंता ये लड़के शशांक और प्रशांत दोनों ही तेरे लायक नहीं. तू हिम्मत कर के इन दोनों को अपनी जिंदगी से बाहर कर दे. पर अजंता जानती थी वह इतनी सख्त दिल की नहीं. इसलिए न ही वह शशांक को कुछ कह पाती और प्रशांत तो उस के परिवार की पसंद था. इसलिए उसे मना करने वाला जिगर, बेहद कोशिश करने के बाद भी अजंता अपने भीतर कहीं भी ढूंढ़ नहीं पाती.

ऊपर से अजंता का अतीत कभीकभी उस के सामने किसी डरवाने सपने की तरह आ कर खड़ा हो जाता. राजीव, हां जो कभी प्रशांत से शादी करने के बाद किसी दिन उस के सामने आ गया और प्रशांत को पता लग गया कि इस व्यक्ति के साथ उस की पत्नी के अंतरंग संबंध रहे हैं. उस की पत्नी वर्जिन नहीं है तो क्या कयामत टूटेगी… अजंता और प्रशांत दोनों की जिंदगी नर्क बन जाएगी.

अजंता ने शशांक और प्रशांत से दूर होने की कोशिश भी की. वह जब प्रशांत से मिलने जाती तो वे कपड़े पहनती जो शशांक को पसंद होते और जब उसे लगता आज उसे शशांक मिल सकता है तो प्रशांत की पसंद के कपड़े पहनती.

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अजंता को ऐसी ड्रैस में देख कर प्रशांत का मूड खराब हो जाता. वह अजंता को शौर्ट कपड़ों में देख कर डांटने के अदांज में अच्छाखासा लैक्चर झाड़ता और आगे से ऐसे कपड़े न पहनने की हिदायत भी देता और शशांक वह अजंता को सलवारसूट आदि में देख कर कहता कि मैम बहुत खूबसूरत लग रही हो पर अगर आज आप ने स्कर्ट पहनी होती तो और खूबसूरत लगतीं.

शशांक की इन्हीं बातों ने अजंता को अपनी ओर थोड़ाबहुत खींचा भी था. उस की इच्छाओं का सम्मान करने वाला शशांक अजंता के दिल में जगह बनाने लगा. पर प्रशांत उस का मंगेतर था. कुछ समय बाद उन की शादी होने वाली थी. दोनों परिवार वालों के सारे जानने वाले और रिश्तेदारों को इस होने वाली शादी की खबर थी. अगर यह शादी टूटी तो कितनी बदनामी होगी, कितनी बातें उठेंगी.

शशांक की ओर बढ़ते अपने कदम तथा अपनी ओर बढ़ते शशांक के कदमों को रोकने के लिए अजंता ने एक दिन शशांक को प्रशांत के बारे में बता दिया. वह उस की मंगेतर है और जल्द ही उन की शादी होने वाली है. सुन कर शशांक के चेहरे पर कुछ देर के लिए उदासी छा गई पर फिर तुरंत ही खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘मैम, किसी कवि ने कहा है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’’

शशांक के चेहरे पर आई उदासी से उदास हुई अजंता ने उस की हंसी देख कर रिलैक्स होते हुए पूछा,‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह मैम कि हम तो तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक आप मेरे इश्क में गिरफ्तार नहीं हो जातीं.’’

‘‘नो चांस,’’ अजंता के यह कहने पर शशांक ने तपाक से कहा, ‘‘मैम, अगर इश्क में आप के गिरफ्तार होने के कोई चांस नहीं तो मुझे ही अपने इश्क में गिरफ्तार कर लीजिए.’’

शशांक की बात सुन कर न चाहते हुए भी अजंता हंस पड़ी और फिर उस ने महसूस किया कि उस का दिल शशांक की ओर थोड़ा और खिंच गया.

आगे के दिनों में अजंता की जिंदगी में 2 घटनाएं ऐसी घटीं जिन्होंने उस की सोच की धारा को बदलने में अहम रोल अदा किया.

पहली घटना…

फाइनल ऐग्जाम से पहले राजकीय पौलिटैक्निक लखनऊ में ऐनुअल स्पोर्ट्स गेम होते थे. पूरे प्रदेश के पौलिटैक्निक के लड़केलड़कियां जिन की खेल में रुचि होती इस इवेंट में हिस्सा लेते. हर कालेज अपने चुने स्टूडैंट्स का एक दल ले कर लखनऊ आता. उन के रहने एवं खेल को सुचारु रूप से संपन्न करवाने के लिए कालेज स्टाफ की सहायता राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ के सीनियर स्टूडैंट्स करते. उन्हें वालेंटियर का एक पास इशू किया जाता.

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उस पास से स्टूडैंट्स किसी भी कैंप में आजा सकते थे. जूनियर लड़कों को कालेज के इतिहास में कभी वालेंटियर का पास इशू नहीं किया गया था. अजंता भी स्पोर्ट्सपर्सन थी, इसलिए वह इस इवेंट में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अजंता उस समय यह देख कर चौंक पड़ी जब उस ने शशांक को वालेंटियर का पास अपने सीने पर लगाए झांसी से आए गु्रप को हैंडल करते देखा.

‘‘मैम, हर शहर से बहुत प्यारीप्यारी लड़कियां आई हैं खेलने के लिए पर उन में कोई भी आप सी प्यारी नहीं,’’ शशांक ने अजंता के पास से गुजरते हुए जब यह कहा तो उस के मन ने सोचा काश वह आज शशांक की टीचर न हो कर स्टूडैंट होती तो शायद शशांक की बात का पौजिटिव रिप्लाई देती.

बाद में जब अजंता ने शशांक से पूछा कि उसे यह पास कैसे मिल गया तो उस ने अलमस्त अंदाजा में कहा, ‘‘बड़ी सरलता से, वार्डन के घर पर उस की पसंदीदा चीज के साथ गया और यह पास ले आया.’’

यद्यपि शशांक का यह काम गलत था, पर अजंता को यह अच्छा लगा. सच तो यह था कि शशांक अब उसे अच्छा लगने लगा था.

हालांकि अजंता को वार्डन की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. पहले उस ने सोचा कि इस प्रकरण की शिकायत प्रधानाचार्य से करे, पर इस से शशांक का पास छिन जाने का डर था, इसलिए अजंता चुप रह गई. यह इस बात का प्रमाण था कि वह शशांक की ओर आकर्षित हो चुकी है.

खेल समाप्त हो चुके थे. अगले दिन रंगारंग कार्यक्रम के बाद पार्टिसिपेट करने आए स्टूडैंट्स को अपनेअपने शहर लौट जाना था. पूरे कालेज कैंपस में खुशी का माहौल था. पर अचानक इसी खुशी के माहौल में एक घिनौनी हरकत ने कुहराम मचा दिया.

झांसी से आई स्टूडैंट पूजा जिस ने 100 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था, वह फटे कपड़ों एवं खरोंची गई देह के साथ रोबिलख रही थी. वह शायद शौपिंग के लिए मार्केट गई थी. आते समय तक रात हो चुकी थी. उस के साथ 2 और लड़कियां थीं. कालेज के पिछले गेट पर औटो से उतर कर पूजा औटो वाले को पैसे देने लगी. उस की दोनों सहेलियां कालेज कैंपस की ओर बढ़ गईं. कालेज के पिछले गेट वाले रास्ते पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी कम थी.

पूजा जब पैसे दे कर कालेज के अंदर आई तब तक उस की सहेलियां आगे निकल गई थीं. तभी अचानक किसी ने पूजा को दबोच लिया. उस ने चीखने की कोशिश की तो तुरंत मुंह को मजबूत हाथों ने चुप कर दिया. पूजा की अस्मत लूटने से पहले लोगों ने उसे नहीं छोड़ा. वे 2 थे. जब पूजा इस हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कैंपस में पहुंची तो उस की यह हालत देख कर वहां कुहराम मच गया. अजंता भी वहां पहुंच गई. सभी पूजा को सांत्वना दे रहे थे.

कुछ आवाजें उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हुआ उसे दबा दिया जाए अन्यथा इस से पूजा के ही भविष्य पर असर पड़ेगा. पर एक आवाज थी जिस ने पूजा से कहा कि उठे और अभी पुलिस स्टेशन चले. उसे अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ पूरी ताकत लगा कर लड़ना चाहिए. यह आवाज शशांक की थी.

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‘‘यह लड़का क्या बकवास कर रहा है?’’ अजंता ने पहचानी हुई आवाज की ओर देखा तो प्रशांत खड़ा था.

‘‘आप यहां?’’

‘‘हां, तुम्हारे फ्लैट पर गया तो बंद था,’’ अजंता के सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत ने कहा, ‘‘मुझे लगा कालेज में चल रहे इवेंट की वजह से तुम शायद अब तक कालेज में होगी, सो यहां चला आया. यहां देखा तो यह कांड हुआ है. जरूर इस लड़की ने जो यह शौर्ट स्कर्ट पहनी हुई है वह इस की इस हालत की जिम्मेदार है.’’

आगे पढ़ें- अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि…

लेखक- सुधीर मौर्य

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को तेज धक्का लगा. अजंता कुछ कह पाती उस से पहले ही प्रशांत फिर बोल उठा, ‘‘और यह लड़का क्या उलटी बात कर रहा है. अरे जो हुआ सो हुआ. अब इस लड़की की इज्जत इसी में है कि चुप रहे.’’

‘‘और इस के साथ जो अपराध हुआ उस का क्या और अपराधियों को क्या खुला छोड़ दिया जाए?’’

‘‘अरे नेता तुम हो या मैं, यह क्या नेताओं सी बातें कर रही हो,’’ प्रशांत का लहजा तल्ख हो गया.

‘‘अरे हां याद आया, आप तो नेता हैं, तो क्या आप इस पीडि़त लड़की को न्याय दिलाने में मदद नहीं करेंगे?’’ अजंता ने भी तल्ख लहजे में पूछा.

‘‘देखो अजंता, मैं आज की शाम तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, इस के लिए तुम्हें ढूंढ़ता हुआ यहां तक आया. चलो कहीं बैठ कर डिनर करते हैं.’’

‘‘प्रशांत यह तो संवेदनहीनता है. हमें यहां रुकना चाहिए और पूजा के साथ पुलिस स्टेशन भी चलना चाहिए.’’

‘‘हमारे घर की औरतें पुलिस स्टेशन नहीं जातीं, इसलिए इस लड़की के साथ मैं तुम्हें पुलिस स्टेशन जाने की इजाजत नहीं दूंगा.

‘‘पर प्रशांत?’’

‘‘परवर कुछ नहीं अजंता, तुम मेरे साथ चलो.’’

अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि तभी शशांक, पूजा को वरदान सर की गाड़ी में बैठा कर 2-3 अन्य लोगों के साथ पुलिस स्टेशन निकल गया.

‘‘मुहतरमा वे लोग गए हैं पुलिस स्टेशन. वे मामला हैंडल कर लेंगे. चलो हम लोग चलते हैं,’’ प्रशांत ने कोमल अंदाज में कहा.

अजंता थकी चाल चल कार में बैठ गई. पूरा रास्ता प्रशांत बोलता रहा. उस ने कहा कलपरसों में दोनों फैमिली वाले मिल कर शादी की डेट फिक्स करने वाले हैं. अजंता पूरा रास्ता चुप रही या फिर हां हूं करती रही.

एक शानदार रैस्टोरैंट के सामने प्रशांत ने गाड़ी रोकी. अंदर आ कर उस ने खाने का और्डर दिया. अजंता क्या खाना पसंद करेगी, उस ने यह तक न पूछा. सब अपनी पसंद की डिश मंगवा लीं.

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वेटर खाना सर्व कर गया.

पहला कौर खाते हुए अजंता ने कहा, ‘‘बेचारी लड़की के साथ बड़ा अपराध हुआ है.’’

‘‘अपराध तो उस लड़के के साथ होगा जिस से इस लड़की की शादी होगी और जब उसे पता चलेगा कि कभी उस की बीवी का बलात्कार हुआ था.’’

प्रशांत की यह बात सुन कर अजंता को ऐसा लगा जैसे उस के मुंह में खाना नहीं, बल्कि कीचड़ रखा हो और उसे अभी उलटी हो जाएगी.

दूसरी घटना…

अजंता और प्रशांत की शादी की डेट फिक्स हो गई थी. दोनों परिवारों में

शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं. इन्विटेशन कार्ड छपने चले गए थे. प्रशांत, अजंता पर और ज्यादा अधिकार जताने लगा था. अजंता के मन में न जाने क्यों अपनी शादी को ले कर उल्लास की कोई भावना जन्म नहीं ले पा रही थी.

अपनी शादी के कार्ड अजंता ने कालेज में बांटे पर न जाने क्या सोच कर उस ने शशांक को कार्ड नहीं दिया. अजंता की शादी की डेट जानने के बाद भी शशांक पर कोई असर नहीं हुआ. वह मस्तमौला बना रहा. उसे यों मस्तमौला देख कर अजंता ने सोचा उस के प्रति शशांक के प्यार का दावा केवल आकर्षण और टाइमपास भर था.

शशांक ने पूजा की हैल्प की. उस की लड़ाई में सहायक बना. उस की कोशिशों से कालेज में ही पढ़ने वाला एक लड़का हेमंत और उस का एक दोस्त पूजा के बलात्कार के जुर्म में पकड़े गए.

एक दिन शशांक कालेज कैंटीन में अजंता को मिला तो उस ने पूछा, ‘‘क्यों मुझ से शादी करने का खयाल दिल से बायबाय हो गया?’’ अजंता ने भीतर से गंभीर हो कर किंतु बाहर से ठिठोली के अंदाज में उस से पूछा.

‘‘आप से शादी करने का खयाल तो तब भी दिल में रहेगा जब आप की शादी हो चुकी होगी मैम,’’ शशांक ने चाय मंगवाने के बाद अजंता के सवाल का जवाब दिया.

‘‘ओह, इतना प्यार करते हो मुझ से, तो मेरे बिना कैसे रह पाओगे?’’ अजंता ने चाय का घूंट भर कर पूछा.

‘‘रह लेंगे?’’ शशांक ने संक्षिप्त जवाब दिया.

‘‘बिना सहारे के?’’ अजंता ने फिर सवाल किया.

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‘‘बिना सहारे के तो मुश्किल होगा.’’

‘‘फिर किस के सहारे?’’

‘‘पूजा से शादी कर लूंगा,’’ शशांक ने गंभीरता से कहा. अजंता ने शशांक को पहली बार इतना गंभीर देखा था.

‘‘ये जानते हुए भी कि उस की इज्जत लुट चुकी है?’’ शशांक की आंखों में देखते हुए अजंता ने पूछा, ‘‘क्या ऐसी लड़की से शादी कर के तुम्हें तकलीफ नहीं होगी जो वर्जिन न हो.’’

‘‘तकलीफ कैसी? यह तो गर्व की बात होगी मैम कि एक ऐसी बहादुर लड़की मेरी बीवी है जिस ने एक सामाजिक अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद की.’’

शशांक की बात सुन कर अजंता की आंखें शशांक के सम्मान में झुक गईं.

यह वह दौर था जब बस मोबाइल फोन लौंच ही हुए थे. प्रशांत ने शादी से एक दिन पहले ही अजंता को फोन गिफ्ट किया था. शादी लखनऊ में होने वाली थी. अजंता की फैमिली और रिश्तेदार लखनऊ आ चुके थे. दोनों फैमिली एक ही होटल में रुकी हुई थीं. शादी के लिए पूरा होटल बुक किया गया था.

शादी वाले दिन जैसेजैसे शादी की घड़ी नजदीक आ रही थी अजंता के मन में

एक कसक उठती जा रही थी. अचानक उसे खयाल आया कि उसे कम से शशांक को शादी का इन्विटेशन कार्ड तो देना ही चाहिए था.

शशांक को कार्ड न देना असल में अब अजंता को कचोट रहा था. उसे लग रहा था उस ने गलती की है. फिर अचानक उस ने अपनी गलती सुधारने का फैसला किया. अपने लेडीज पर्स में एक इन्विटेशन कार्ड रखा और होटल से बाहर निकल कर टैक्सी में बैठ गई.

प्रशांत यों ही अजंता से मिलने के लिए उस के रूम में गया. वह वहां नहीं थी. उस के मम्मीपापा से पूछा. उन्हें भी पता नहीं था. होटल में अजंता को न पा कर प्रशांत ने अजंता को

फोन किया.

पर्स से निकाल कर अजंता ने ज्यों ही फोन रिसीव किया दूसरी ओर से प्रशांत ने अधिकारपूर्वक पूछा, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘एक जानने वाले को इन्विटेशन कार्ड देने जा रही हूं.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं, वापस आ जाओ,’’ प्रशांत बोला.

‘‘अरे उसे नहीं बुलाया तो उसे बुरा लगेगा,’’ अजंता ने समझाना चाहा.

‘‘लगता है बुरा तो लगे… मैं कह रहा हूं तुम लौट आओ.’’

‘‘उसे कार्ड दे कर तुरंत आती हूं.’’

‘‘नो… जहां हो वहीं से वापस आ जाओ.’’

‘‘अरे मैं बस पहुंचने ही वाली हूं वहां.’’

‘‘यू बिच… मैं ने तुम्हारी बहुत हरकतें बरदाश्त कर लीं… अब शादी के बाद ऐसी हरकतें नहीं चलेंगी. चलो, तुरंत वापस आओ.’’

प्रशांत की गाली सुन कर अजंता को ऐसे लगा जैसे उस के कानों में किसी ने पिघला शीशा डाल दिया हो. लाइफ में पहली बार उसे किसी ने गाली दी थी और वह भी उस के होने वाले पति ने. ग्लानि से अजंता का दिल बैठ गया. उस ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया. प्रशांत ने फोन किया तो अजंता ने फिर काट दिया. उस ने फिर फोन किया तो अजंता ने फोन स्विचऔफ कर दिया. अजंता ने सोचा अगर उस ने अब एक भी शब्द इस शख्श का और सुना तो उस का वजूद ही खत्म हो जाएगा. धड़कते दिल के साथ अजंता शशांक के रूममें पहुंची.

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‘‘अरे मैम आप यहां? आज तो आप की शादी है,’’ अजंता को अपने यहां आया देख कर शशांक ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘आप के बिना मेरी शादी कैसे हो सकती है,’’ कह कर अजंता उस के रूम के भीतर आ गई.

‘‘आज सरकार कुछ बदलेबदले नजर आ रहे हैं,’’ शशांक ने शरारत से कहा तो अजंता ने पूछ लिया, ‘‘कैसे बदलेबदले?’’

‘‘आज मुझे ‘तुम’ की जगह ‘आप’ कह रही हैं आप?’’

‘‘और अगर मैं कहूं कि मैं आप को ताउम्र ‘आप’ कहना चाहती हूं तो?’’ कह अजंता ने शशांक की गहरी आंखों में झांका.

‘‘इस के लिए तमाम उम्र साथ रहना पड़ेगा मैम. क्या आप के होने वाले पति रहने देंगे?’’ शशांक की शरारत जाग उठी.

‘‘यकीनन रहने देंगे.’’

‘‘इतना यकीन?’’ शशांक ने अजंता की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘ठीक है उन से पूछ लो फिर.’’

शशांक की बात सुन कर कुछ देर के लिए खामोश रह गई अजंता. फिर उस के करीब आते हुए बोली, ‘‘क्या मुझे अपने शशांक के पास रहने देंगे आप?’’

अजंता की बात कुछ समझते, कुछ न समझते हुए शशांक ने पूछा, ‘‘मतलब मैम?’’

‘‘मतलब मैं सबकुछ छोड़ कर आई हूं आप के पास…  आज आप

की कोशिश कामयाब हो गई है, शशांक. आज मैं आप को अपने इश्क में गिरफ्तार करने आई हूं.’’

‘‘मैं तो कब से आप के इश्क में गिरफ्तार हूं मैम,’’ शशांक ने अजंता को कंधों से पकड़ कर तनिक करीब खींचा.

‘‘मैम नहीं अजंता कहो,’’ अजंता ने शशांक के सीने में मुंह छिपा कर कहा.

‘‘अजंता,’’ शशांक ने जब एक लंबी सांस ले कर कहा तो अजंता पूरी तरह से उस के गले लग गई और फिर उस के होंठों से मद्धिम स्वर में निकला, ‘‘लव यू शशांक.’’

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बने एक-दूजे के लिए: क्या एक हो पाए भावना और विवेक

घर में कई दिनों से चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था, लेकिन आज घर में खटपट चल रही थी. मामाजी कभी ऊपर, कभी नीचे और कभी गार्डन में आ जा रहे थे. उन के पहाड़ जैसे दुख को बांटने वाला कोई सगासंबंधी पास न था. घर में सब से बड़ा होने के नाते सभी जिम्मेदारियों का बोझ उन्हीं के कंधों पर आ पड़ा था. वे तो खुल कर रो भी नहीं सकते थे. उन के भीतर की आवाज उन्हें कचोटकचोट कर कह रही थी कि अमृत, अगर तुम ही टूट गए तो बाकी घर वालों को कैसे संभालोगे? कितना विवश हो जाता है मनुष्य ऐसी स्थितियों में. उन का भानजा, उन का दोस्त विवेक इस संसार को छोड़ कर जा चुका था, लेकिन वे ऊहापोह में पड़े रहने के सिवा और कुछ कर नहीं पा रहे थे.

अपने दुख को समेटे, भावनाओं से जूझते वे बोले, ‘‘बस उन्हीं की प्रतीक्षा में 2 दिन बीत गए. मंजू, पता तो लगाओ, अभी तक वे लोग पहुंचे क्यों नहीं? कोई उत्सव में थोड़े ही आ रहे हैं. अभी थोड़ी देर में बड़ीबड़ी गाडि़यों में फ्यूनरल डायरैक्टर पहुंच जाएंगे. इंतजार थोड़े ही करेंगे वे.’’

‘‘मामाजी, अभीअभी पता चला है कि धुंध के कारण उन की फ्लाइट थोड़ी देर से उतरी. वे बस 15-20 मिनट में यहां पहुंच जाएंगे. वे रास्ते में ही हैं.’’

‘‘अंत्येष्टि तो 4 दिन पहले ही हो जानी चाहिए थी लेकिन…’’

‘‘मामाजी, फ्यूनरल वालों से तारीख और समय मुकर्रर कर के ही अंत्येष्टि होती है,’’ मंजू ने उन्हें समझाते हुए कहा.

‘‘उन से कह दो कि सीधे चर्च में ही पहुंच जाएं. घर आ कर करेंगे भी क्या? विवेक को कितना समझाया था, कितने उदाहरण दिए थे, कितना चौकन्ना किया था लोगों ने तजुर्बों से कि आ तो गए हो चमकती सोने की नगरी में लेकिन बच के रहना. बरबाद कर देती हैं गोरी चमड़ी वाली गोरियां. पहले गोरे रंग और मीठीमीठी बातों के जाल में फंसाती हैं. फिर जैसे ही शिकार की अंगूठी उंगली में पड़ी, उसे लट्टू सा घुमाती हैं. फिर किनारा कर लेती हैं.’’

‘‘छोडि़ए मामाजी, समय को भी कोई वापस लाया है कभी? सभी को एक मापदंड से तो नहीं माप सकते. इंतजार तो करना ही पड़ेगा, क्योंकि हिंदू विधि के अनुसार बेटा ही बाप की चिता को अग्नि देता है. सच तो यही है कि जेम्स विवेक का बेटा है. यह उसी का हक है.’’

‘‘मंजू, उस हक की बात करती हो, जो धोखे से छीना गया हो. तुम तो उस की दोस्त हो. उसी के विभाग में काम करती रही हो. बाकी तुम भी तो समझदार हो. तुम्हें तो मालूम है यहां के चलन.

‘‘और भावना को देखो. उसे बहुत समझाया कि उस गोरी मेम को बुलाने की कोई जरूरत नहीं. अवैध रिश्तों की गठरी बंद ही रहने दो. अगर मेम आ गईं तो पड़ोसिन छाया बेवजह ‘न्यूज औफ द वर्ल्ड’ का काम करेगी, लेकिन वह नहीं मानी.’’

‘‘मामाजी, आप बेवजह परेशान हो रहे हैं. ऐसी बातें तो होती रहती हैं इन देशों में. वे तो जीवन का अंग बन चुकी हैं. मैं ने भी भावना से बात की थी. वह बोली कि पोलीन भी तो विवेक के जीवन का हिस्सा थी. दोनों कभी हमसफर थे. फिर जेम्स भी तो है.’’ इतने में एक गाड़ी पोर्टिको आ खड़ी हुई.

‘‘लो आ गई गोरी और उस की नाजायज औलाद,’’ मामाजी ने कड़वाहट से कहा.

‘‘मामाजी, प्लीज शांत रहिए. यह भी विवेक का परिवार है. पोलीन उस की ऐक्स वाइफ तथा जेम्स बेटा है. उसे झुठलाया भी तो नहीं जा सकता,’’ मंजू ने समझाते हुए कहा.

विवेक का पार्थिव शरीर बैठक में सफेद झालरों से सजे बौक्स में अंतिम दर्शन के लिए पड़ा था. काले नए सूट, सफेद कमीज, मैचिंग टाई में ऐसा लग रहा था जैसे अभी बोल पड़ेगा. बैठक फूलों के बने रीथ (गोल आकार में सजाए फूल), क्रौस तथा गुलदस्तों से भरी पड़ी थी.

आसपास के लोग तो नहीं आए थे लेकिन उन के कुलीग वहां मौजूद थे. लोगों ने अपनेअपने घरों के परदे तान लिए थे, क्योंकि विदेशों में ऐसा चलन है.

पोलीन और जेम्स के आते ही उन्हें विवेक के साथ कुछ क्षण के लिए अकेला छोड़ दिया गया. मामाजी ने बाकी लोगों को गाडि़यों में बैठने का आदेश दिया. हर्श (शव वाहन) के पीछे की गाड़ी में विवेक का परिवार बैठने वाला था. अन्य लोग बाकी गाडि़यों में.

‘‘मंजू, किसी ने पुलिस को सूचना दी क्या? शव यात्रा रोप लेन से गुजरने वाली है?’’ (यू.के. में जहां से शवयात्रा निकलती है, वह सड़क कुछ समय के लिए बंद कर दी जाती है. कोई गाड़ी उसे ओवरटेक भी नहीं कर सकती या फिर पुलिस साथसाथ चलती है शव के सम्मान के लिए).

‘‘यह काम तो चर्च के पादरीजी ने कर दिया है.’’

‘‘और हर्श में फूल कौन रखेगा?’’

‘‘फ्यूनरल डायरैक्टर.’’

‘‘मंजू, औरतें और बच्चे तो घर पर ही रहेंगे न?’’

‘‘नहीं मामाजी, यह भारत नहीं है. यहां सभी जाते हैं.’’

‘‘मैं जानता हूं लेकिन घर को खाली कैसे छोड़ दूं?’’

‘‘मैं जो हूं,’’ मामीजी ने कहा.

‘‘तुम तो इस शहर को जानतीं तक नहीं.’’

‘‘मैं मामीजी के साथ रहूंगी,’’ पड़ोसिन छाया बोली.

अब घर पर केवल छाया तथा मामीजी थीं. मामाजी तथा मंजू की बातें सुनने के बाद छाया की जिज्ञासा पर अंकुश लगाना कठिन था.

छाया थोड़ी देर बाद भूमिका बांधते बोली, ‘‘मामीजी, अच्छी हैं यह गोरी मेम.

कितनी दूर से आई हैं बेटे को ले कर. आजकल तो अपने सगेसंबंधी तक नहीं पहुंचते. लेकिन मामीजी, एक बात समझ में नहीं आ रही कि आप उसे कैसे जानती हैं? ऐसा तो नहीं लगता कि आप उस से पहली बार मिली हों?’’

अब मामीजी का धैर्य जवाब दे गया. वे झुंझलाते हुए बोलीं, ‘‘जानना चाहती हो तो सुनो. भावना से विवाह होने से पहले पोलीन ही हमारे घर की बहू थी. विवेक और भावना एकदूसरे को वर्षों से जानते थे. मुझे याद है कि विवेक भावना का हाथ पकड़ कर उसे स्कूल ले कर जाता और उसे स्कूल से ले कर भी आता. वह भावना के बिना कहीं न जाता. यहां तक कि अगर विवेक को कोई टौफी खाने को देता तो विवेक उसे तब तक मुंह में न डालता जब तक वह भावना के साथ बांट न लेता. धीरेधीरे दोनों के बचपन की दोस्ती प्रेम में बदल गई. वह प्रेम बढ़तेबढ़ते इतना प्रगाढ़ हो गया कि पासपड़ोस, महल्ले वालों ने भी इन दोनों को ‘दो हंसों की जोड़ी’ का नाम दे दिया. उस प्रेम का रंग दिनबदिन गहरा होता गया. विवेक एअरफोर्स में चला गया और भावना आगे की पढ़ाई करने में लग गई.

‘‘लेकिन जैसे ही विवेक पायलट बना, उस की मां दहेज में कोठियों के ख्वाब देखने लगी, जो भावना के घर वालों की हैसियत से कहीं बाहर था. विवेक ने विद्रोह में अविवाहित रहने का फैसला कर लिया और दोस्तों से पैसे ले कर मांबाप को बिना बताए ही जरमनी जा पहुंचा. किंतु उस की मां अड़ी रहीं. जिस ने भी समझाने का प्रयत्न किया, उस ने दुश्मनी मोल ली.’’

‘‘तब तक तो दोनों बालिग हो चुके होंगे, उन्होंने भाग कर शादी क्यों नहीं कर ली?’’ छाया ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘दोनों ही संस्कारी बच्चे थे. घर में बड़े बच्चे होने के नाते दोनों को अपनी जिम्मेदारियों का पूरा एहसास था. दोनों अपने इस बंधन को बदनाम होने नहीं देना चाहते थे. लेकिन वही हुआ जिस का सभी को डर था. विकट परिस्थितियों से बचताबचता विवेक दलदल में फंसता ही गया. उसे किसी कारणवश पोलीन से शादी करनी पड़ी. दोनों एक ही विभाग में काम करते थे.

‘‘विवेक की शादी की खबर सुन भावना के परिवार को बड़ा धक्का लगा. भावना तो गुमसुम हो गई. भावना के घर वालों ने पहला रिश्ता आते ही बिना पूछताछ किए भावना को खूंटे से बांध दिया. 1 वर्ष बाद उसे एक बच्ची भी हो गई.

‘‘लेकिन भावना तथा विवेक दोनों के ही विवाह संबंध कच्ची बुनियाद पर खड़े थे, इसलिए अधिक देर तक न टिक सके. दोनों ही बेमन से बने जीवन से आजाद तो हो गए, किंतु पूर्ण रूप से खोखले हो चुके थे. विवेक की शादी टूटने के बाद उस के मामाजी ने जरमनी से उसे यू.के. में बुला लिया. वहां उसे रौयल एअरफोर्स में नौकरी भी मिल गई.

‘‘फिर समय भागता गया. एक दिन अचानक एक संयोग ने एक बार फिर विवेक और भावना को एकदूसरे के सामने ला खड़ा किया. ऐसा हुआ तो दोनों के हृदय का वेग बांध तोड़ कर उष्ण लावा सा बहने लगा. दोनों एक बार फिर सब कुछ भूल कर अपनत्व की मीठी फुहार से भीगने लगे. कुछ महीनों बाद दोनों विवाह के बंधन में बंध गए, लेकिन शादी के कुछ समय बाद विवेक प्लेन क्रैश में चल बसा. विवेक की मृत्यु की खबर सुनते ही हमारी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. हम दोनों स्तब्ध थे कि उन दोनों का पुनर्मिलन कल ही की तो बात थी.’’

इतने में फोन की घंटी बजी. फोन पर मामाजी थे, ‘‘हैलो सुनो, हमें घर पहुंचतेपहुंचते

5 बज जाएंगे. चाय तैयार रखना.’’

सर्दियों का मौसम था. वे लोग लौट कर आए तो सब चुप बैठ कर चाय पीने लगे. भावना स्तब्ध, निर्जीव बर्फ की प्रतिमा सी एक तरफ बैठी सोच रही थी कि कितना भद्दा और कू्रर मजाक किया है कुदरत ने उस के साथ. अभी तक उस की आंखों से एक भी आंसू नहीं छलका था. मानो आंसू सूख ही गए हों. सभी को विवेक के चले जाने के गम के साथसाथ भावना की चिंता सताए जा रही थी.

‘‘भावना रोतीं क्यों नहीं तुम? अब वह लौट कर नहीं आएगा,’’ मामीजी ने भावना को समझाते हुए कहा.

अंधेरा बढ़ता जा रहा था. भावना गठरी सी बैठी टकटकी लगाए न जाने क्या सोच रही थी. उस की दशा देख सभी चिंतित थे. 4 दिन से उस के गले में निवाला तक न उतरा था. मामीजी से उस की यह दशा और देखी नहीं गई. उन्होंने भावना को झकझोरते, जोर से उसे एक चांटा

मारा और रोतेरोते बोलीं, ‘‘रोती क्यों नहीं? पगली, अब विवेक लौट कर नहीं आएगा. तुम्हें संभलना होगा अपने और बच्ची के लिए. यह जीवन कोई 4 दिन का जीवन नहीं है. संभाल बेटा, संभाल अपने को.’’

फिर वे भावना को ऊपर उस के कमरे में ले गईं. पोलीन तथा जेम्स अपने कमरे में जा चुके थे. भावना कमरे में विवेक के कपड़ों से लिपट कर फूटफूट कर रोती रही. इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई, ‘‘मे आई कम इन?’’

‘‘यस, आओ बैठो पोलीन,’’ भावना ने इशारा करते हुए कहा. दोनों एकदूसरे से लिपट कर खूब रोईं. दोनों का दुख सांझा था. दोनों की चुभन एक सी थी. पोलीन ने भावना को संभालते तथा खुद को समेटते स्मृतियों का घड़ा उड़ेल दिया. वह एक लाल रंग की अंगूठी निकाल कर बोली, ‘‘मुझे पूरा यकीन है तुम इसे पहचानती होगी?’’

भावना की आंखों से बहते आंसुओं ने बिना कुछ कहे सब कुछ कह डाला. वह मन ही मन सोचने लगी कि पोलीन, मैं इसे कैसे भूल सकती हूं? इसे तो मैं ने विवेक को जरमनी जाते वक्त दिया था. यह तो मेरी सगाई की अंगूठी है. तुम ने इस का कहां मान रखा? फिर धीरेधीरे पोलीन ने एकएक कर के भावना के बुने सभी स्वैटर, कमीजें तथा दूसरे तोहफे उस के सामने रखे. स्वैटर तो सिकुड़ कर छोटे हो गए थे.

पोलीन ने बताया, ‘‘भावना, विवेक तुम से बहुत प्रेम करता था. तुम्हारी हर दी हुई चीज उस के लिए अनमोल थी. 2 औडियो टेप्स उसे जान से प्यारी थीं. उस के 2 गाने ‘कभीकभी मेरे दिल में खयाल आता है…’ और ‘जब हम होंगे 60 साल के और तुम होगी

55 की, बोलो प्रीत निभाओगी न तुम भी अपने बचपन की… वह बारबार सुनता था. ये दोनों गाने जेम्स ने भी गाने शुरू कर दिए थे. तुम्हारी दी हुई किसी भी चीज को दूर करने के नाम से वह तड़प उठता था. जब कभी वह उदास होता या हमारी तकरार हो जाती तो वह कमरे में जा कर और स्वैटरों को सीने से लगा कर उन्हें सहलातेसहलाते वहीं सो जाता था. कभीकभी तुम्हारे एहसास के लिए सिकुड़े स्वैटर को किसी तरह शरीर पर चढ़ा ही लेता था. घंटों इन चीजों से लिपट कर तुम्हारे गम में डूबा रहता था. जितना वह तुम्हारे गम में डूबता, उतना मुझे अपराधबोध सताता. मुझे तुम से जलन होती थी. मैं सोचती थी यह कैसा प्यार है? क्या कभी कोई इतना भी प्यार किसी से कर सकता है? मैं ने विवेक को पा तो लिया था, लेकिन वह मेरा कभी न बन सका. जब उस ने तुम से विवाह किया, मैं अपने लिए दुखी कम, तुम्हारे लिए अधिक प्रसन्न थी. मैं जानती थी कि विवेक अब वहीं है, जहां उसे होना चाहिए था. मैं भी उसे खुश देखना चाहती थी. तुम दोनों बने ही एकदूसरे के लिए ही थे. मुझे खुशी है कि मरने से पहले विवेक ने कुछ समय तुम्हारे साथ तो बिताया.

‘‘मुझे अब कुछ नहीं चाहिए. उस ने मुझे बहुत कुछ दिया है. तुम जब चाहोगी मैं जेम्स को तुम्हारे पास भेज दूंगी. जेम्स बिलकुल विवेक की फोटोकौपी है. वैसा ही चेहरा, वैसी ही हंसी.’’

फिर पोलीन और भावना दोनों आंखें बंद किए, एकदूसरे के गले में बांहें डाले, अपनाअपना दुख समेटे, अतीत की स्मृतियों के वे अमूल्य क्षण बीनबीन कर अपनी पलकों पर सजाने लगीं. दोनों का एक ही दुख था. पोलीन बारबार यही दोहरा रही थी. ‘‘आई एम सौरी भावना. फौरगिव मी प्लीज.’’

ताप्ती: उसने जब की शादीशुदा से शादी

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चाहत: दहेज के लालच में जब रमण ने सुमन को खोया

सुबहसुबह औफिस में घुसते ही रमण ने चहकते हुए कहा कि आज शाम उस के घर में उस के बेटे की सगाई की रस्म पार्टी है. यह सुन कर मैं पसोपेश में पड़ गया कि अपनी पत्नी को साथ ले कर जाना ठीक रहेगा कि नहीं.

रमण हमारे इलाके का ही है. उस का गांव मेरे गांव से 3 किलोमीटर दूर है. इधर कई साल से हमारा मिलनाबोलना तकरीबन बंद ही था. अब मैं प्रमोशन ले कर उस के औफिस में उस के शहर में आ गया तो हमारे संबंध फिर से गहरे होने लगे थे. पिछले 20 सालों में हमारे बीच बात ही कुछ ऐसी हो गई थी कि हम एकदूसरे को अपना मुंह दिखाना नहीं चाहते थे.

रमण और मैं 10वीं क्लास तक एक ही स्कूल में पढ़े थे. यह तो लाजिम ही था कि हमें एक ही कालेज में दाखिला लेना था, क्योंकि 30 मील के दायरे में वहां कोई दूसरा कालेज तो था नहीं. हम दोनों रोजाना बस से शहर जाते थे.

रमण अघोषित रूप से हमारा रिंग लीडर था. वह हम से भी ज्यादा दिलेर, मुंहफट और जल्दी से गले पड़ने वाला लड़का था.

पढ़ाई में वह फिसड्डी था, पर शरीर हट्टाकट्टा था उस का, रंग बेहद गोरा.

बचपन से ही मुझे कहानीकविता लिखने का चसका लग गया था. मजे की बात यह थी कि जिस लड़की सुमन के प्रति मैं आकर्षित हुआ था, रमण भी उसी पर डोरे डालने लगा था. हमारी क्लास में सुमन सब से खूबसूरत लड़की थी.

हम लोग तो सारे पीरियड अटैंड करते, मगर रमण पर तो एक ही धुन सवार रहती कि किसी तरह जल्दी से कालेज की कोई लड़की पट जाए. अपनी क्लास की सुमन पर तो वह बुरी तरह फिदा था. खैर, हर वक्त पीछे पड़े रहने के चलते सुमन का मन किसी तरह पिघल ही गया था.

सुमन रमण के साथ कैफे जाने लगी थी. इस कच्ची उम्र में एक ही ललक होती है कि विपरीत लिंग से किसी तरह दोस्ती हो जाए. आशिकी के क्या माने होते हैं, इस की समझ कहां होती है. रमण में यह दीवानगी हद तक थी.

एक दिन लोकल अखबार में मेरी कहानी छपी. कालेज के इंगलिश के लैक्चरर सेठ सर ने सारी क्लास के सामने मुझे खड़ा कर के मेरी तारीफ की.

मैं तो सुमन की तरफ अपलक देख रहा था, वहीं सुमन भी मेरी तरफ ही देख रही थी. उस समय उस की आंखों में जो अद्भुत चमक थी, वह मैं कई दिनों तक भुला नहीं पाया था. पता नहीं क्यों उस लड़की पर मेरा दिल अटक गया था, जबकि मुझे पता था कि वह मेरे दोस्त रमण के साथ कैफे जाती है. रमण सब के सामने ये किस्से बढ़ाचढ़ा कर बताता रहता था.

सुमन से अकेले मिलने के कई और मौके भी मिले थे मुझे. कालेज के टूर के दौरान एक थिएटर देखने का मौका मिला था हमें. चांस की बात थी कि सुमन मेरे साथ वाली कुरसी पर थी. हाल में अंधेरा था. मैं ने हिम्मत कर के उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया तो बड़ी देर तक उस का हाथ मेरे हाथ में रहा.

रमण से गहरी दोस्ती होने के बावजूद बरसों तक मैं ने रमण से सुमन के प्रति अपना प्यार छिपाए रखा. डर था कि क्या पता रमण क्या कर बैठे. कहीं कालेज आना न छोड़ दे. सुमन के मामले में वह बहुत संजीदा था.

एक दिन किसी बात पर रमण से मेरी तकरार हो गई. मैं ने कहा, ‘क्या हर वक्त ‘मेरी सुमन’, ‘मेरी सुमन’ की रट लगाता रहता है. यों ही तू इम्तिहान में कम नंबर लाता रहेगा तो वह किसी और के साथ चली जाएगी.’

रमण दहाड़ा, ‘मेरे सिवा वह किसी और के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती.’

मैं ने अनमना हो कर यों ही कह दिया, ‘कल मैं तेरे सामने सुमन के साथ इसी कैफे में इसी टेबल पर कौफी पीता मिलूंगा.’

हम दोनों में शर्त लग गई.

मैं रातभर सो नहीं पाया. सुमन ने अगर मेरे साथ चलने से मना कर दिया तो रमण के सामने मेरी किरकिरी होगी. मेरा दिल भी टूट जाएगा. मगर मुझे सुमन पर भरोसा था कि वह मेरा दिल रखेगी.

दूसरे दिन सुमन मुझे लाइब्रेरी से बाहर आती हुई अकेली मिल गई. मैं ने हिम्मत कर के उस से कहा कि आज मेरा उसे कौफी पिलाने का मन कर

रहा है.

मेरे उत्साह के आगे वह मना न कर सकी. वह मेरे साथ चल दी. थोड़ी देर बाद रमण भी वहां पहुंच गया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. खैर, कुछ दिनों बाद वह बात आईगई हो गई.

सुमन और मेरे बीच कुछ है या हो सकता है, रमण ने इस बारे में कभी कल्पना भी नहीं की थी और उसे कभी इस बात की भनक तक नहीं लगी.

कालेज में छात्र यूनियन के चुनावों के दौरान खूब हुड़दंग हुआ. रमण ने चुनाव जीतने के लिए दिनरात एक कर दिया. वह तो चुनाव रणनीति बनाने में ही बिजी रहा. वह जीत भी गया.

चुनाव प्रचार के दौरान मुझे सुमन के साथ कुछ पल गुजारने का मौका मिला. न वह अपने दिल की बात कह पाई और नही मेरे मुंह से ऐसा कुछ निकला. दोनों सोचते रहे कि पहल कौन करे. जब कभी कहीं अकेले सुमन के साथ बैठने का मौका मिलता तो हम ज्यादातर खामोश ही बैठे रहते. एक दिन तो रमण ने कह ही दिया था कि तुम दोनों गूंगों की अपनी ही कोई भाषा है. सचमुच सच्चे प्यार में चुप रह कर ही दिल से सारी बातें करनी होती हैं.

मैं एमए की पढ़ाई करने के लिए यूनिवर्सिटी चला गया. रमण ने बीए कर के घर में खेती में ध्यान देना शुरू कर दिया. साथ में नौकरी के लिए तैयारी करता रहता. मैं महीनेभर बाद गांव आता तो फटाफट रमण से मिलने उस के गांव में चल देता. वह मुझे सुमन की खबरें देता.

रमण को जल्दी ही अस्थायी तौर पर सरकारी नौकरी मिल गई. सुमन भी वहीं थी. सुमन के पिता को हार्टअटैक हुआ था, इसीलिए सुमन को जौब की सख्त जरूरत थी. काफी अरसा हो गया था. सुमन से मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई. मौका पा कर मैं उस के कसबे में चक्कर लगाता, उस कैफे में कई बार जाता, मगर मुझे सुमन का कोई अतापता न मिलता.

मेरी हालत उस बदकिस्मत मुसाफिर की तरह थी, जिस की बस उसे छोड़ कर चली गई थी और बस में उस का सामान भी रह गया था. संकोच के मारे मैं रमण से सुमन के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकता था. रमण के आगे मैं गिड़गिड़ाना नहीं चाहता था. मुझे उम्मीद थी कि अगर मेरा प्यार सच्चा हुआ तो सुमन मुझे जरूर मिलेगी. सुमन को तो उस की जौब में पक्का कर दिया गया. उस में काम के प्रति लगन थी. रमण को 6 महीने बाद निकाल दिया गया.

रमण को जब नौकरी से निकाला गया, तब वह जिंदगी और सुमन के बारे में संजीदा हुआ. उस के इस जुनून से मैं एक बार तो घबरा गया. अब तक वह सुमन को शर्तिया तौर पर अपना मानता था, मगर अब उसे लगने लगा था कि अगर उसे ढंग की नौकरी नहीं मिली तो सुमन भी उसे नहीं मिलेगी.

इसी दौरान मैं ने सुमन से उस के औफिस जा कर मिलना शुरू कर दिया था. मैं उसे साहित्य के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां बताता. उसे खास पत्रिकाओं में छपी अपनी रोमांटिक कविताएं दिखाता.

रमण ने सुमन को बहुत ही गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था. रमण मुझे कई कहानियां सुनाता कि आज उस ने सुमन के साथ फलां होटल में लंच किया और आज वे किसी दूसरे शहर घूमने गए. सुमन के साथ अपने अंतरंग पलों का बखान वह मजे ले कर करता.

पहले रमण का सुमन के प्रति लापरवाही वाला रुख मुझे आश्वस्त कर देता था कि सुमन मुझे भी चाहती है, मगर अब रमण सच में सुमन से प्यार करने लगा था. ऐसे में मेरी उलझनें बढ़ने लगी थीं.

फिर एक अनुभाग में मुझे और रमण को नियुक्ति मिली. रमण खुश था कि अब वह सुमन को प्रपोज करेगा तो वह न नहीं कहेगी. मैं चुप रहता. मैं सोचने लगा कि अब अगर कुछ उलटफेर हो तभी मेरी और सुमन में नजदीकियां बढ़ सकती हैं. हमारा औफिस सभी विभागों के बिल पास करता था. यहां प्रमोशन के चांस बहुत थे. मैं विभागीय परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया.

एक दिन मैं और रमण साथ बैठे थे, तभी अंदर से रमण के लिए बुलावा आ गया. 5 मिनट बाद रमण मुसकराता हुआ बाहर आया. उस ने मुझे अंदर जाने को कहा. अंदर जिला शिक्षा अधिकारी बैठे थे. वे मुझे अच्छी तरह से जानते थे. मेरे बौस ने ही सारी बात बताई, ‘बेटा, वैसे तो मुझे यह बात सीधे तौर पर तुम से नहीं करनी चाहिए. कौशल साहब को तो आप जानते ही हैं. मैं इन से कह बैठा कि हमारे औफिस में 2 लड़कों ने जौइन किया है. इन की बेटी बहुत सुंदर और होनहार है. ये करोड़पति हैं. बहुत जमीन है इन की शहर के साथ.

‘ये चाहते हैं कि तुम इन की बेटी को देख लो, पसंद कर लो और अपने घर वालों से सलाह कर लो. ‘रमण से भी पूछा था, मगर उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. अब तुम्हें मौका मिल रहा है.’ रमण से मैं हर बार उन्नीस ही पड़ता था. बारबार कुदरत हमारा मुकाबला करवा रही थी. एक तरफ सुमन थी और दूसरी तरफ करोड़ों की जायदाद. घरजमाई बनने के लिए मैं तैयार नहीं था और सुमन से इतने सालों से किया गया प्रेम…

फिर पता चला कि शिक्षा अधिकारी ने रमण के मांबाप को राजी कर लिया है. रमण ने अपना रास्ता चुन लिया था. सुमन से सारे कसमेवादे तोड़ कर वह अपने अमीर ससुराल चला गया था. मैं प्रमोशन पा कर दिल्ली चला गया था. सुमन का रमण के प्रति मोह भंग हो गया था. सुमन ने एक दूसरी नौकरी ले ली थी और 2 साल तक मुझे उस का कोई अतापता नहीं मिला.

बहन की शादी के बाद मैं भी अखबारों में अपनी शादी के लिए इश्तिहार देने लगा था. सुमन को मैं ने बहुत ढूंढ़ा. इस के लिए मैं ने करोड़पति भावी ससुर का औफर ठुकरा दिया था. वह सुमन भी अब न जाने कहां गुम हो गई थी. उस ने मुझे हमेशा सस्पैंस में ही रखा. मैं ने कभी उसे साफसाफ नहीं कहा कि मैं क्या चाहता हूं और वह पगली मेरे प्यार की शिद्दत नहीं जान पाई.

अखबारों के इश्तिहार के जवाब में मुझे एक दिन सुमन की मां द्वारा भेजा हुआ सुमन का फोटो और बायोडाटा मिला. मैं तो निहाल हो गया. मुझे लगा कि मुझे खोई हुई मंजिल मिल गई है. मैं तो सरपट भागा. मेरे घर वाले हैरान थे कि कहां तो मैं लड़कियों में इतने नुक्स निकालता था और अब इस लड़की के पीछे दीवाना हो गया हूं.

शादी के बाद भी लोग पूछते रहते थे कि क्या तुम्हारी शादी लव मैरिज थी या अरैंज्ड तो मैं ठीक से जवाब नहीं दे पाता था. मैं तो मुसकरा कर कहता था कि सुमन से ही पूछ लो.

सुमन से शादी के बाद रमण के बारे में मैं ने कभी उस से कोई बात नहीं की. सुमन ने भी कभी भूले से रमण का नाम नहीं लिया.

वैसे, रमण सुंदर और स्मार्ट था. सुमन कुछ देर के लिए उस के जिस्मानी खिंचाव में बंध गई थी. रमण ने उस के मन को कभी नहीं छुआ.

जब रमण ने सुमन को बताया होगा कि उस के मांबाप उस की सुमन से शादी के लिए राजी नहीं हो रहे हैं तो सुमन ने कैसे रिएक्ट किया होगा.

रमण ने यह तो शायद नहीं बताया होगा कि करोड़पति बाप की एकलौती बेटी से शादी करने के लिए वह सुमन को ठुकरा रहा है. मगर जिस लहजे में रमण ने बात की होगी, सुमन सबकुछ समझ गई होगी. तभी तो वह दूसरी नौकरी के बहाने गायब हो गई.

इन 2 सालों में सुमन ने मेरे और रमण के बारे में कितना सोचाविचारा होगा. रमण से हर लिहाज में मैं पहले रैंक पर रहा, मगर सुंदरता में वह मुझ से आगे था.

आज रमण के बेटे की सगाई का समाचार पा कर मैं सोच में था कि रमण के घर जाएं या नहीं.

सुमन ने सुना तो जाने में कोई खास दिलचस्पी भी नहीं दिखाई. उसे यकीन था कि अब रमण का सामना करने में उसे कोई झेंप या असहजता नहीं होगी. इतने सालों से रमण अपने ससुराल में ही रह रहा था. सासससुर मर चुके थे. इतनी लंबीचौड़ी जमीन शहर के साथ ही जुट गई थी. खुले खेतों के बीच रमण की आलीशान कोठी थी. खुली छत पर पार्टी चल रही थी.

रमण ने सुमन को देख कर भी अनदेखा कर दिया. एक औपचारिक सी नमस्ते हुई. अब मैं रमण का बौस था, रमण के बेटे और होने वाली बहू को पूरे औफिस की तरफ से उपहार मैं ने सुमन के हाथों ही दिलवाया.

पहली बार रमण ने हमें हैरानी से देखा था, जब मैं और सुमन उस के घर के बाहर कार से साथसाथ उतरे थे. वह समझ गया था कि हम मियांबीवी हैं.

दूर तक फैले खेतों को देख कर मेरे मन में आया कि ये सब मेरे हो सकते थे, अगर उस दिन मैं जिला शिक्षा अधिकारी की बात मान लेता.

उस शाम सारी महफिल में सुमन सब से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. शायद उसे देख कर रमण के मन में भी आया होगा कि अगर वह दहेज के लालच में न पड़ता तो सुमन उस की हो सकती थी. चलो, जिस की जो चाहत थी, उसे मिल गई थी.

ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 1- क्या था निकिता का फैसला

‘‘हमारी बात मान लो न निकिता… मिल तो लो आज अभिनव से. मैनेजर है मल्टीनैशनल कंपनी में और फोटो में भी अच्छा दिख रहा है. तुम्हें पसंद आए तभी हां करना… उस के घर से फोन आया है. पापा पूछ रहे हैं क्या कहना है उन्हें?’’ मीनाक्षी अपनी बेटी से मनुहार करते हुए बोलीं.

‘‘मम्मी, शादी करने के लिए नहीं करता मेरा मन… सोचा भी नहीं जाता मुझ से शादी के बारे में… आप तो जानती हैं सब,’’ निकिता का स्वर निराशा में डूबा था.

‘‘कब तक तुम्हारी दुनिया को अंधेरे में रखेगा वह हादसा? पापा अपनेआप को कुसूरवार समझ दिनरात गमगीन रहते हैं… निकाल दो बेटा अपने दिमाग से वे सब बातें.’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं मम्मी? आप जो ठीक समझें कर लें,’’ कह कर निकिता गुमसुम सी फिर लैपटौप में खो गई.

‘‘तुम कितनी समझदार हो… ठीक है बेटा, फिर बुला लेते हैं आज उन लोगों को,’’ निकिता के सिर पर प्यार से हाथ फेर मीनाक्षी उस के कमरे से निकल गईं.

अपना काम निबटा निकिता न चाहते हुए भी आज शाम पहनने के लिए कपड़ों का चुनाव करने चल दी. शादी के लिए किसी रिश्ते की बात शुरू होते ही वह अनमनी सी हो जाती थी.

मेहमानों के लिए हो रही तैयारी से घर में रौनक दिख रही थी. उसी रौनक की छाया सुदीप पर भी पड़ रही थी वरना 2 सालों से बेटी निकिता का दर्द उन्हें चैन से सोने नहीं दे रहा था.

शाम को आ गए वे लोग. औसत कदकाठी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अभिनव की सादगी मीनाक्षी और सुदीप के मन में अंदर तक उतर गई. अभिनव और निकिता के बीच औपचारिक बातचीत हुई. एक नामी पब्लिशिंग हाउस में कंटैट राइटर की पोस्ट पर कार्य कर रही निकिता का गोरा रंग और खूबसूरत नैननक्श देख अभिनव के मम्मीपापा रिश्ता जोड़ने को बेताब हो रहे थे. डिनर के बाद जाते समय दोनों के मातापिता ने जल्द ही बच्चों से पूछ कर रिश्ता पक्का करने की बात कह खुशीखुशी एकदूसरे से बिदा ली.

उन के चले जाने के बाद मीनाक्षी और सुदीप अभिनव के विषय में निकिता की राय जानने को आतुर थे. निकिता सोच कर जवाब देने की बात कह अपने कमरे में चली गई. बिस्तर पर लेटते ही नींद की जगह विचारों का कारवां उसे घेरने लगा कि क्या करूं अब मना करती हूं शादी के लिए तो मम्मीपापा की परेशानी कम न कर पाने की गुनहगार बन जाती हूं. हां भी कैसे करूं? सोच कर ही सिहर उठती हूं कि अपना तन किसी को सौंप रही हूं.

मम्मीपापा का कहना है कि अभिनव समझदार लग रहा है. मैं खुश रह सकूंगी उस के साथ. पर क्या होगा अगर हर रात मुझे उस में राजन अंकल… नहीं… दरिंदा राजन दिखाई देने लगेगा… निकिता के दिमाग को एक बार फिर झकझोर गया वह दिन…

दिल्ली के नामी कालेज से एमए करने के बाद जब निकिता की प्लेसमैंट पुणे हुई तो मम्मी उस के दूर जाने की बात से चिंतित हो उठी थीं. तब पापा ने याद दिलाया कि उन के एक कुलीग राजन, जो पिछले साल नौकरी छोड़ गए थे, वहीं रह रहे हैं तो मीनाक्षी की सांस में सांस आ गई.

पुणे में निकिता के रहने की व्यवस्था एक पीजी में करवाने के बाद सुदीप निकिता को साथ ले राजन के घर पहुंच गए. राजन का इकलौता बेटा यूके में रह रहा था. राजन की पत्नी भी उन दिनों वहीं गई हुई थी. राजन ने कहा कि निकिता इसे अपना घर समझ कभी भी यहां आ सकती है. पूरा आश्वासन भी दिया था कि उस के रहते निकिता को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी.

निकिता और राजन की फोन पर कभीकभी बात हो जाती थी, लेकिन निकिता की व्यस्तता के कारण दोबारा मिलना नहीं हुआ था उन का. एक दिन निकिता के पास राजन का फोन आया कि पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उसे यूके जाना पड़ रहा है, अत: जाने से पहले एक बार वह निकिता से मिलना चाहता है. निकिता शाम को राजन के घर चली गई.

राजन का व्यवहार उस दिन निकिता को बदलाबदला सा लग रहा था. उस के नमस्ते करने पर राजन ने उस के हाथों को अपने दोनों हाथों में ले कर चूम लिया. निकिता को यह बहुत अखर रहा था. कुछ देर बातचीत करने के बाद निकिता जाने लगी तो राजन ने कौफी पी कर जाने का आग्रह किया. फिर उसे कमरे में बैठने को कह कौफी बनाने चल दिया. कामवाली के बारे में निकिता के पूछने पर बोला कि वह आज जल्दी छुट्टी ले कर चली गई है.

कुछ देर बाद कौफी ला कर टेबल पर रख राजन निकिता के सामने बैठ गया. निकिता को चुपचाप कौफी पीते देख हंसता हुआ बोला, ‘‘अरे, कुछ तो बात करो… अच्छा बताओ, मैं कैसा लगता हूं तुम्हें?’’

निकिता को कौफी का घूंट हलक से उतारना मुश्किल हो गया.

‘‘आप अच्छे लगते हैं, अंकल,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी कौफी पीने लगी ताकि वहां से निकल पाए. मगर तभी बैठेबैठे उसे चक्कर सा आने लगा. ‘कहीं कौफी में कुछ नशीला तो नहीं?’ सोच कर आधा भरा हुआ मग टेबल पर रख वह उठने लगी तो राजन उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पता नहीं तुम क्यों मुझे अंकल कह कर बुला रही हो? लोग तो कहते हैं मैं अभी भी किसी बौलीवुड हीरो से कम नहीं लगता.’’

‘‘जी… अच्छा है अगर लोग ऐसा कहते हैं, आप ने फिट रखा हुआ है अपने को,’’ घबराई हुई सी निकिता खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘तो फिर जी नहीं चाहता मेरे पास आने का?’’ कहते हुए राजन निकिता से सट कर बैठ गया.

निकिता भीतर तक कांप उठी. इस से पहले कि हिम्मत जुटा वह उठ भागती राजन उसे अपनी गिरफ्त में ले चुका था. निकिता ने खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कौफी में मिलाए गए नशीले पदार्थ के असर से वह लड़खड़ा रही थी.

‘‘पता है मुझे, तुम भी यही चाहती हो… पर झिझकती हो कहने में. तभी तो एक बार बुलाते ही दौड़ी चली आई मिलने.’’

‘‘नहीं अंकल…’’ चीख उठी थी निकिता.

‘‘औरत की न का मतलब हां होता है,’’ कहते हुए अपना वहशियाना रूप दिखा दिया राजन ने.

अपनी हवस मिटा कर राजन सोफे पर ही औधे मुंह गिर गया. निकिता अपने कपड़े व्यवस्थित कर गिरतीपड़ती पीजी लौटी तो कुछ सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. उस की सहेली अदीबा ने मीनाक्षी को फोन किया. अगले दिन सुदीप और मीनाक्षी वहां पहुंच गए. निकिता से सब सुन कर वे अवाक रह गए. क्रोध से तमतमाया सुदीप राजन के घर पहुंचा, पर वह तो यूके निकल चुका था. पुलिस में शिकायत करने से भी तब कोई लाभ नहीं था. निकिता को साथ ले दोनों टूटेबिखरे से वापस आ गए.

सुदीप और मीनाक्षी निकिता का सहारा बन उसे दिनरात समझाते रहते. लगभग 2 महीने बाद वह इस हादसे से कुछ दूर हुई तो नई नौकरी की तलाश में जुट गई.

अदीबा के भाई की दिल्ली में अच्छी जानपहचान थी. उस की मदद से

कई जगह उसे रिक्त पदों के विषय में जानकारी मिली. अंतत: एक पब्लिशिंग हाउस में बतौर कंटैंट राइटर चुन लिया गया. फिर वहां काम संभालते हुए वह खुद को व्यस्त रखने लगी.

कुछ माह बाद सुदीप और मीनाक्षी ने विवाह की बात छेड़ी तो निकिता ने साफ मना कर दिया. उस का व्यथित मन किसी को भी अपना मानने को तैयार नहीं था, पर मम्मीपापा चाहते थे कि वह सब भूल कर नई जिंदगी शुरू करे.

आज भी तो नहीं मिलना चाह रही थी निकिता अभिनव से, लेकिन पापा की निराशा भी नहीं देखी जाती थी उस से. अभिनव से मिल कर उसे बुरा भी नहीं लगता था, परंतु पतिपत्नी संबंध के विषय में सोचते ही लगने लगता था कि अपनी देह कहां छिपा लूं कि किसी पुरुष की नजर ही न पड़े उस पर. अतीत के काले दलदल में फंसी निकिता रातभर बिस्तर पर करवटें बदलती रही.

सुबह औफिस जाने लगी तो मीनाक्षी उस के जवाब के इंतजार में थीं. ‘‘अभी देर हो रही है, बाद में बात करते हैं,’’ कहते हुए वह भारी मन से औफिस चली गई.

औफिस में उस के पास अलगअलग विषयों पर लिखने के लिए कई मेल आए हुए थे, लेकिन काम में मन ही नहीं लग रहा था उस का. किसी तरह मन बना कर एक टौपिक पर सोच लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा.

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ताप्ती- भाग 1: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

बहुत देर से ताप्ती मिहिम के लाए प्रस्ताव पर विचार कर रही थी. रविवार की शाम उसे अपने अकेलेपन के बावजूद बहुत प्रिय लगती थी. आज भी ऐसी ही रविवार की एक निर्जन शाम थी. अपने एकांतप्रिय व्यक्तित्व की तरह ही उस ने नोएडा ऐक्सटैंशन की एक एकांत सोसाइटी में यह फ्लैट खरीद लिया था. वह एक प्राइवेट बैंक में अकाउंटैंट थी, इसलिए लोन के लिए उसे अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी थी. कुछ धनराशि मां ने अपने जीवनकाल में उस के नाम से जमा कर दी थी और कुछ उस ने लोन ले कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

मिहिम जो उस के बचपन का सहपाठी और जीवन का एकमात्र आत्मीय था उस के इस फैसले से खुश नहीं हुआ था. ‘‘ताप्ती तुम पागल हो जो इतनी दूर फ्लैट खरीद लिया? एक बार बोला तो होता यार… मैं तुम्हें इस से कम कीमत में घनी आबादी में फ्लैट दिलवा देता,’’ मिहिम ने कुछ नाराजगी के साथ कहा. ‘‘मिहिम मैं ने अपने एकांतवास की कीमत चुकाई है,’’ ताप्ती कुछ सोचते हुए बोली.

मिहिम ने आगे कुछ नहीं कहा. वह अपनी मित्र को बचपन से जानता था. ताप्ती गेहुएं रंग की 27 वर्षीय युवती, एकदम सधी हुई देह, जिसे पाने के लिए युवतियां रातदिन जिम में पसीना बहाती हैं, उस ने वह अपने जीवन की अनोखी परिस्थितियों से लड़तेलड़ते पा ली थी. शाम को मिहिम और ताप्ती बालकनी में बैठे थे. अचानक मिहिम बोला, ‘‘अंकल का कोई फोन आया?’’ ताप्ती बोली, ‘‘नहीं, उन क ा फोन पिछले 4 माह से स्विच्ड औफ है.’’ मिहिम फिर बोला, ‘‘देखो तुम मेरी ट्यूशन वाली बात पर विचार कर लेना. हमारे खास पारिवारिक मित्र हैं आलोक.

उन की बेटी को ही ट्यूशन पढ़ानी है. हफ्ते में बस 3 दिन. क्व15 हजार तक दे देंगे. तुम्हें इस ट्यूशन से फायदा ही होगा, सोच लेना,’’ यह कह कर जाने लगा तो ताप्ती बोली, ‘‘मिहिम, खाना खा कर जाना. तुम चले गए तो मैं अकेले ऐसे ही भूखी पड़ी रहूंगी.’’ फिर ताप्ती ने फटाफट बिरयानी और सलाद बनाया. मिहिम भी बाजार से ब्रीजर, मसाला पापड़ और रायता ले आया. मिहिम फिर रात की कौफी पी कर ही गया. मिहिम को ताप्ती से दिल से स्नेह था.

प्यार जैसा कुछ था या नहीं पता नहीं पर एक अगाध विश्वास था दोनों के बीच. उन की दोस्ती पुरुष और महिला के दायरे में नहीं आती थी. मिहिम नि:स्संकोच ताप्ती को किसी भी नई लड़की के प्रति अपने आकर्षण की बात चटकारे ले कर सुनाता तो ताप्ती भी अपनी अंदरूनी भावनाओं को मिहिम के समक्ष कहने में नहीं हिचकती थी.

जब ताप्ती की मां जिंदा थीं तो एक दिन उन्होंने ताप्ती से कहा भी था कि मिहिम और तुझे एकसाथ देख कर मेरी आंखें ठंडी हो जाती हैं. तू कहे तो मैं मिहिम से पूछ कर उस घर वालों से बात करूं?’’ ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मी, आप क्या बोल रही हैं? मिहिम बस मेरा दोस्त है… मेरे मन में उस के लिए कोई आकर्षण नहीं है.’’ मम्मी डूबते स्वर में बोलीं, ‘‘यह आकर्षण ही तो हर रिश्ते का सर्वनाश करता है.’’

ताप्ती अच्छी तरह जानती थी कि मम्मी का इशारा किस ओर है. पर वह क्या करे. मिहिम को वह बचपन से अपना मित्र मानती आई है और उसे खुद भी आश्चर्य होता है कि आज तक उसे किसी भी लड़के के प्रति कोई आकर्षण नहीं हुआ… शायद उस का बिखरा परिवार, उस के पापा का उलझा हुआ व्यक्तित्व और उस की मां की हिमशिला सी सहनशीलता उसे सदा के लिए पुरुषों के प्रति ठंडा कर गई थी.

ताप्ती जब भी अपने बचपन को याद करती तो बस यही पाती, कुछ इंद्रधनुषी रंग भरे हुए दिन और फिर रेत जैसी ठंडी रातें, जो ताप्ती और उस की मां की साझा थीं. ताप्ती के पापा का नाम था सत्य पर अपने नाम के विपरीत उन्होंने कभी सत्य का साथ नहीं दिया. वे एक नौकरी पकड़ते और छोड़ते गृहस्थी का सारा बोझ एक तरह से ताप्ती की मां ही उठा रही थीं, फिर भी परिस्थितियों के विपरीत वे हमेशा हंसतीमुसकराती रहती थीं.

अपने नाम के अनुरूप ताप्ती की मां स्वभाव से आनंदी थीं, जीवन से भरपूर, दोनों जब साथसाथ चलतीं तो मांबेटी कम सखियां अधिक लगती थीं. ताप्ती ने अपनी मां को कभी किसी से शिकायत करते हुए नहीं देखा था. वे एक बीमा कंपनी में कार्यरत थीं. ताप्ती ने अपनी मां को हमेशा चवन्नी छाप बिंदी, गहरा काजल और गहरे रंग की लिपस्टिक में हंसते हुए ही देखा था.

उन के जीवन की दर्द की छाप कहीं भी उन के चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी. ताप्ती के विपरीत आनंदी को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. अपने आखिरी समय तक वे सजीसंवरी रहती थीं. मगर आज ताप्ती सोच रही है कि काश आनंदी अपनी हंसी के नीचे अपने दर्द को न छिपातीं तो शायद उन्हें ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी न होती. पापा से ताप्ती को कोई खास लगाव नहीं था.

पापा से ज्यादा तो वह मिहिम के पापा सुरेश अंकल के करीब थी. जहां अपने पापा के साथ उसे हमेशा असुरक्षा की भावना महसूस होती थी, वहीं सुरेश अंकल का उस पर अगाध स्नेह था. वे उसे दिल से अपनी बेटी मानते थे पर मिहिम की मां को यह अहंकारी लड़की बिलकुल पसंद नहीं थी.

बापबेटे का उस लड़की पर यह प्यार देख कर वे मन ही मन कुढ़ती रहती थीं. अंदर ही अंदर उन्हें यह भय भी था कि अगर मिहिम ने ताप्ती को अपना जीवनसाथी बनाने की जिद की तो वे कुछ भी नहीं कह पाएंगी. मिहिम गौर वर्ण, गहरी काली आंखें, तीखी नाक… जब से होश संभाला था कितनी युवतियां उस की जिंदगी में आईं और गईं पर ताप्ती की जगह कभी कोई नहीं ले पाई और युवतियों के लिए वह मिहिम था पर ताप्ती के लिए वह एक खुली किताब था, जिस से उस ने कभी कुछ नहीं छिपाया था.

मां को गए 2 महीने हो गए थे. अब पूरा खर्च उसे अकेले ही चलाना था. मिहिम अच्छी तरह से जानता था कि यह स्वाभिमानी लड़की उस से कोई मदद नहीं लेगी, इसलिए वह अतिरिक्त आय के लिए कोई न कोई प्रस्ताव ले कर आ जाता था. यह ट्यूशन का प्रस्ताव भी वह इसीलिए लाया था.

आज बैंक की ड्यूटी के बाद बिना कुछ सोचे ताप्ती ने अपनी स्कूटी मिहिम के दिए हुए पते की ओर मोड़ दी. जैसे सरकारी आवास होते हैं, वैसे ही था खुला हुआ, हवादार और एक अकड़ के साथ शहर के बीचोंबीच स्थित था. आलोक पुलिस महकमे में ऊंचे पद पर हैं. और अफसरों की पत्नियों की तरह उन की पत्नी भी 3-4 समाजसेवी संस्थाओं की प्रमुख सदस्या थीं और साथ ही एक प्राइवेट कालेज में लैक्चरर की पोस्ट पर भी नियुक्त थीं.

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दिल को देखो: प्रतीक में कौनसा बदलाव देख हैरान थी श्रेया

सुबह से ही अनिलजी ने पूरे घर को सिर पर उठा रखा था, ‘‘अभी घर की पूरी सफाई नहीं हुई. फूलदान में ताजे फूल नहीं सजाए गए, मेहमानों के नाश्तेखाने की पूरी व्यवस्था नहीं हुई. कब होगा सब?’’ कहते हुए वे झुंझलाए फिर रहे थे. अनिलजी की बेटी श्रेया को इतने बड़े खानदान के लोग देखने आ रहे थे. लड़का सौफ्टवेयर इंजीनियर था. बहन कालेज में लैक्चरर और पिता शहर के जानेमाने बिजनैसमैन. अनिलजी सोच रहे थे कि यहां रिश्ता हो ही जाना चाहिए. अनिलजी आर्थिक रूप से संपन्न थे. सरकारी विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत थे. शहर में निजी फ्लैट और 2 दुकानें भी थीं. पत्नी अध्यापिका थीं. बेटा श्रेयांश इंटरमीडिएट के बाद मैडिकल की तैयारी कर रहा था और श्रेया का बैंक में चयन हो गया था. फिर भी लड़के के पिता विष्णुकांत के सामने उन की हैसियत कम थी. विष्णुकांत के पास 2 फैक्ट्रियां, 1 प्रैस और 1 फौर्महाउस था, जिस से उन्हें लाखों की आमदनी थी. इसी कारण से उन के स्वागतसत्कार को ले कर अनिलजी काफी गंभीर थे.

दोपहर 1 बजे कार का हौर्न सुनाई दिया तो अनिलजी तुरंत पत्नी के साथ अगवानी के लिए बाहर भागे. थोड़ी ही देर में ड्राइंगरूम में विष्णुकांत अपनी पत्नी और बेटी के साथ पधारे, परंतु श्रेया जिसे देखना चाहती थी, वह कहीं नजर नहीं आ रहा था. तभी जोरजोर से हंसता, कान पर स्मार्टफोन लगाए एक स्टाइलिश युवक अंदर आया. लंबे बाल, बांहों पर टैटू, स्लीवलैस टीशर्ट और महंगी जींस पहने वह युवक अंदर आते ही अनिलजी व उन की पत्नी को हैलो कह कर सोफे पर बैठ गया.

‘‘श्रेया,’’ मां ने आवाज दी तो श्रेया नाश्ते की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में पहुंची.

‘‘बैठो बेटी,’’ कह कर विष्णुकांत की पत्नी ने उसे अपने पास ही बैठा लिया. उन्होंने परिचय कराया, ‘‘प्रतीक, इस से मिलो, यह है श्रेया.’’

‘ओह तो प्रतीक है इस का नाम,’ सोचते हुए श्रेया ने उस पर एक उड़ती नजर डाल कर बस ‘हाय’ कह दिया. खुशनुमा माहौल में चायनाश्ते और लंच का दौर चला. सब की बातचीत होती रही, लेकिन प्रतीक तो जैसे वहां हो कर भी नहीं था. वह लगातार अपने स्मार्टफोन पर ही व्यस्त था. ‘‘अच्छा अनिलजी, अब हम चलते हैं. मुलाकात काफी अच्छी रही. अब प्रतीक और श्रेया एकदूसरे से दोचार बार मिलें और एकदूसरे को समझें, तभी बात आगे बढ़ाई जाए,’’ कह कर विष्णुकांतजी सपरिवार रवाना हो गए.

ना है आप ने मेरे लिए. कितना बिगड़ा हुआ लग रहा था.’’ अनिलजी श्रेया को समझाते हुए बोले, ‘‘ऐसा नहीं है बेटा, किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. उस से दोचार बार मिलोगी तो उसे समझने लगोगी.’’ इस के 3 दिन बाद श्रेया सुबह बैंक जा रही थी. देर होने के कारण वह स्कूटी काफी तेज गति से चला रही थी कि तभी सड़क पर अचानक सामने आ गए एक कुत्ते को बचाने के चक्कर में उस की स्कूटी सड़क पार कर रहे एक बुजुर्ग से जा टकराई. स्कूटी एक ओर लुढ़क गई और श्रेया उछल कर दूसरी ओर सड़क पर गिरी. श्रेया को ज्यादा चोट नहीं लगी, पर बुजुर्ग को काफी चोट आई. उन का सिर फट गया था और वे बेहोश पड़े थे. श्रेया का तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था कि क्या करे. तभी प्रतीक वहां से गाड़ी से गुजर रहा था. उस ने यह दृश्य देखा तो वह फौरन अपनी गाड़ी से उतर कर श्रेया के पास आ कर बोला, ‘‘आर यू ओके.’’ फिर वह उन बुजुर्ग की ओर लपका, ‘‘अरे, ये तो बहुत बुरी तरह घायल हैं.’’

सुनसान सड़क पर मदद के लिए कोई नहीं था. अपनी चोटों की परवा न करते हुए श्रेया उठी और घायल बुजुर्ग को गाड़ी में डालने में प्रतीक की मदद करने लगी. ‘‘आइए, आप भी बैठिए. आप को भी इलाज की जरूरत है. मैं अपने मैकेनिक को फोन कर देता हूं, वह आप की स्कूटी ले आएगा.’’ श्रेया को भी गाड़ी में बैठा कर प्रतीक बड़ी तेजी से नजदीक के जीवन ज्योति हौस्पिटल पहुंचा. ‘‘डाक्टर अंकल, एक ऐक्सीडैंट का केस है. घायल काफी सीरियस है. आप प्लीज देख लीजिए.’’

‘‘डौंट वरी, प्रतीक बेटा, मैं देखता हूं.’’ डाक्टर साहब ने तुरंत घायल का उपचार शुरू कर दिया. एक जूनियर डाक्टर श्रेया के जख्मों की मरहमपट्टी करने लगी. प्रतीक जा कर कैंटीन से 2 कप चाय ले आया. चाय पी कर श्रेया ने राहत महसूस की.

‘‘हैलो पापा, मेरा एक छोटा सा ऐक्सीडैंट हो गया है पर आप चिंता न करें. मुझे ज्यादा चोट नहीं लगी पर एक बुजुर्ग को काफी चोटें आई हैं. आप जल्दी से आ जाइए. हम यहां जीवन ज्योति हौस्पिटल में हैं,’’ श्रेया ने पापा को फोन पर बताया. अब वह अपने को कुछ ठीक महसूस कर रही थी.

‘‘थैंक्यू वैरी मच, आप ने ऐनवक्त पर आ कर जो मदद की है, उस के लिए तो धन्यवाद भी काफी छोटा महसूस होता है. मैं आप का यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘अरे नहीं, यह तो मेरा फर्ज था. मैं ने डाक्टर अंकल को कह दिया है कि वे पुलिस को इन्फौर्म न करें. हौस्पिटल में सब मुझे जानते हैं, मेरे पिता इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं.’’ तभी अनिलजी भी पत्नी सहित वहां पहुंच गए. श्रेया ने उन्हें घटना की पूरी जानकारी दी तो वे बोले, ‘‘प्रतीक बेटा, यदि आप वहां न होते तो बहुत मुसीबत हो जाती. थैंक्यू वैरी मच.’’

अनिलजी डाक्टर से बोले, ‘‘इन बुजुर्ग के इलाज का पूरा खर्च मैं दूंगा. प्लीज, इन से रिक्वैस्ट कीजिए कि पुलिस से शिकायत न करें.’’

‘‘डौंट वरी अनिलजी. विष्णुकांतजी इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं. आप को कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा,’’ डा. साहब मुसकराते हुए बोले. अगली शाम श्रेया कुछ फलफूल ले कर बुजुर्ग से मिलने हौस्पिटल पहुंची. उस ने उन से माफी मांगी. उस की आंखें भर आई थीं. ‘‘नहीं बेटी, तुम्हारी गलती नहीं थी. मैं ने देखा था कि तुम कुत्ते को बचाने के चक्कर में स्कूटी पर से नियंत्रण खो बैठी थी, तभी यह ऐक्सीडैंट हुआ. और फिर तुम्हें भी तो चोट लगी थी.’’

‘‘अरेअरे श्रेयाजी, रोइए मत. सब ठीक है,’’ तभी अंदर आता हुआ प्रतीक बोला.

‘‘आइए, कैंटीन में कौफी पीते हैं. यू विल फील बैटर,’’ दोनों कैंटीन में जा बैठे. कौफी पीने और थोड़ी देर बातचीत करने के बाद श्रेया घर वापस आ गई. फिर तो मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. एक दिन जब श्रेया और प्रतीक रैस्टोरैंट में बैठे थे कि

तभी प्रतीक का एक दोस्त भी वहां आ गया. वे दोनों किसी इंस्टिट्यूट के बारे में बात करने लगे. श्रेया के पूछने पर प्रतीक ने बताया कि वह और उस के 3 दोस्त हर रविवार को एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में मुफ्त पढ़ाते हैं, जहां होनहार गरीब छात्रों को इंजीनियरिंग की तैयारी कराई जाती है. यही नहीं वे लोग उन छात्रों की आर्थिक सहायता भी करते हैं. श्रेया यह सुन कर अवाक रह गई. उस दिन घर पहुंच कर प्रतीक के बारे में ही सोचती रही. सुबह काफी शोरगुल सुन कर उस की आंख खुली तो बाहर का नजारा देख कर उस की जान ही निकल गई. उस ने देखा कि पापा को खून की उलटी हो रही है और मम्मी रो रही हैं. श्रेयांश किसी तरह पापा को संभाल रहा था. किसी तरह तीनों मिल कर अनिलजी को अस्पताल ले गए. जीवन ज्योति हौस्पिटल के सीनियर डाक्टर उन्हें देखते ही पहचान गए. तुरंत उन का उपचार शुरू हो गया. श्रेया को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पापा को अचानक क्या हो गया है. उस ने प्तीक को भी फोन कर दिया था. आधे घंटे में प्रतीक भी वहां पहुंच गया.

डाक्टरों ने अनिलजी का ब्लड सैंपल ले कर जांच के लिए भेज दिया था और शाम तक रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट देख कर डाक्टर का चेहरा उतर गया. प्रतीक को कुछ शक हुआ तो वह वार्ड में अलग ले जा कर डाक्टर साहब से रिपोर्ट के बारे में पूछने लगा. डा. साहब ने अनिलजी की ओर देखा और उन्हें सोता समझ कर धीरे से बोले, ‘‘अनिलजी को ब्लड कैंसर है, वह भी लास्ट स्टेज पर. अब कोई इलाज काम नहीं कर सकता.’’

प्रतीक को बड़ा धक्का लगा. उस ने पूछा, ‘‘फिर भी अंकल, क्या चांसेज हैं? कितना समय है अंकल के पास?’’

‘‘बस महीना या 15 दिन,’’ वे बोले.

तभी आहट सुन कर दोनों ने पलट कर देखा. अनिलजी फटी आंखों से उन की ओर देख रहे थे. दोनों समझ गए कि उन्होंने सबकुछ सुन लिया है. अनिलजी की आंखों से आंसू बह निकले, ‘‘ओह, यह क्या हो गया? अभी तो मेरे बच्चे ठीक से बड़े भी नहीं हुए. अभी तो मैं श्रेया को डोली में बैठाने का सपना देख रहा था. अब क्या होगा?’’ तभी विष्णुकांतजी भी पत्नी सहित वहां आ पहुंचे, ‘‘अनिलजी, आप पहले ठीक हो जाइए, शादीवादी की बात बाद में देखेंगे,’’ वे बोले.

‘‘मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मैं ने सब सुन लिया है. प्रतीक और श्रेया एकदूसरे को पसंद करते हैं. उन की शादी जल्दी हो जाए तो मैं चैन से मर सकूंगा.’’

‘‘कैसी बातें करते हैं आप? शादी की तैयारियों के लिए समय चाहिए. आखिर हमारी कोई इज्जत है, समाज में,’’ विष्णुकांतजी रुखाई से बोले. ‘‘नहीं पापा, मुझे धूमधाम वाली शादी नहीं चाहिए. इतने खराब हालात में इज्जत की चिंता कौन करे. अंकल आप चिंता न करें. यह शादी आज ही और यहीं अस्पताल में होगी,’’ श्रेया का हाथ पकड़ कर अंदर आता प्रतीक तेज स्वर में बोला. श्रेया हैरानी से प्रतीक का मुंह देख रही थी कि तभी वार्डबौय के मोबाइल की रिंगटोन बज उठी, ‘दिल को देखो, चेहरा न देखो… दिल सच्चा और चेहरा झूठा…’ श्रेया के होंठों पर फीकी मुसकान दौड़ गई. पापा सच ही कह रहे थे कि किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. दिखने में मौडर्न प्रतीक कितना संवेदनशील इंसान है. प्रतीक के तेवर देख कर विष्णुकांतजी भी नरम पड़ गए. पूरे अस्पताल को फूलों से सजाया गया. वार्ड में ही प्रतीक और श्रेया की शादी हुई. अस्पताल का हर कर्मचारी और मरीज इस अनोखी शादी में शामिल हो कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था.

 

दो चुटकी सिंदूर : सविता की क्या थी गलती

‘‘ऐ सविता, तेरा चक्कर चल रहा है न अमित के साथ?’’ कुहनी मारते हुए सविता की सहेली नीतू ने पूछा.

सविता मुसकराते हुए बोली, ‘‘हां, सही है. और एक बात बताऊं… हम जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘अमित से शादी कर के तो तू महलों की रानी बन जाएगी. अच्छा, वह सब छोड़. देख उधर, तेरा आशिक बैजू कैसे तुझे हसरत भरी नजरों से देख रहा है.’’ नीतू ने तो मजाक किया था, क्योंकि वह जानती थी कि बैजू को देखना तो क्या, सविता उस का नाम भी सुनना तक पसंद नहीं करती. सविता चिढ़ उठी. वह कहने लगी, ‘‘तू जानती है कि बैजू मुझे जरा भी नहीं भाता. फिर भी तू क्यों मुझे उस के साथ जोड़ती रहती है?’’

‘‘अरे पगली, मैं तो मजाक कर रही थी. और तू है कि… अच्छा, अब से नहीं करूंगी… बस,’’ अपने दोनों कान पकड़ते हुए नीतू बोली. ‘‘पक्का न…’’ अपनी आंखें तरेरते हुए सविता बोली, ‘‘कहां मेरा अमित, इतना पैसे वाला और हैंडसम. और कहां यह निठल्ला बैजू.

‘‘सच कहती हूं नीतू, इसे देख कर मुझे घिन आती है. विमला चाची खटमर कर कमाती रहती हैं और यह कमकोढ़ी बैजू गांव के चौराहे पर बैठ कर पानखैनी चबाता रहता है. बोझ है यह धरती पर.’’ ‘‘चुप… चुप… देख, विमला मौसी इधर ही आ रही हैं. अगर उन के कान में अपने बेटे के खिलाफ एक भी बात पड़ गई न, तो समझ ले हमारी खैर नहीं,’’ नीतू बोली.

सविता बोली, ‘‘पता है मुझे. यही वजह है कि यह बैजू निठल्ला रह गया.’’ विमला की जान अपने बेटे बैजू में ही बसती थी. दोनों मांबेटा ही एकदूसरे का सहारा थे. बैजू जब 2 साल का था, तभी उस के पिता चल बसे थे. सिलाईकढ़ाई का काम कर के किसी तरह विमला ने अपने बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था.

विमला के लाड़प्यार में बैजू इतना आलसी और निकम्मा बनता जा रहा था कि न तो उस का पढ़ाईलिखाई में मन लगता था और न ही किसी काम में. बस, गांव के लड़कों के साथ बैठकर हंसीमजाक करने में ही उसे मजा आता था. लेकिन बैजू अपनी मां से प्यार बहुत करता था और यही विमला के लिए काफी था. गांव के लोग बैजू के बारे में कुछ न कुछ बोल ही देते थे, जिसे सुन कर विमला आगबबूला हो जाती थी.

एक दिन विमला की एक पड़ोसन ने सिर्फ इतना ही कहा था, ‘‘अब इस उम्र में अपनी देह कितना खटाएगी विमला, बेटे को बोल कि कुछ कमाएधमाए. कल को उस की शादी होगी, फिर बच्चे भी होंगे, तो क्या जिंदगीभर तू ही उस के परिवार को संभालती रहेगी?

‘‘यह तो सोच कि अगर तेरा बेटा कुछ कमाएगाधमाएगा नहीं, तो कौन देगा उसे अपनी बेटी?’’

विमला कहने लगी, ‘‘मैं हूं अभी अपने बेटे के लिए, तुम्हें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है… समझी. बड़ी आई मेरे बेटे के बारे में सोचने वाली. देखना, इतनी सुंदर बहू लाऊंगी उस के लिए कि तुम सब जल कर खाक हो जाओगे.’’

सविता के पिता रामकृपाल डाकिया थे. घरघर जा कर चिट्ठियां बांटना उन का काम था, पर वे अपनी दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाना चाहते थे. उन की दोनों बेटियां थीं भी पढ़ने में होशियार, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि उन की बड़ी बेटी सविता अमित नाम के एक लड़के से प्यार करती है और वह उस से शादी के सपने भी देखने लगी है.

यह सच था कि सविता अमित से प्यार करती थी, पर अमित उस से नहीं, बल्कि उस के जिस्म से प्यार करता था. वह अकसर यह कह कर सविता के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की जिद करता कि जल्द ही वह अपने मांबाप से दोनों की शादी की बात करेगा.

नादान सविता ने उस की बातों में आ कर अपना तन उसे सौंप दिया. जवानी के जोश में आ कर दोनों ने यह नहीं सोचा कि इस का नतीजा कितना बुरा हो सकता है और हुआ भी, जब सविता को पता चला कि वह अमित के बच्चे की मां बनने वाली है.

जब सविता ने यह बात अमित को बताई और शादी करने को कहा, तो वह कहने लगा, ‘‘क्या मैं तुम्हें बेवकूफ दिखता हूं, जो चली आई यह बताने कि तुम्हारे पेट में मेरा बच्चा है? अरे, जब तुम मेरे साथ सो सकती हो, तो न जाने और कितनों के साथ सोती होगी. यह उन्हीं में से एक का बच्चा होगा.’’

सविता के पेट से होने का घर में पता लगते ही कुहराम मच गया. अपनी इज्जत और सविता के भविष्य की खातिर उसे शहर ले जा कर घर वालों ने बच्चा गिरवा दिया और जल्द से जल्द कोई लड़का देख कर उस की शादी करने का विचार कर लिया.

एक अच्छा लड़का मिलते ही घर वालों ने सविता की शादी तय कर दी. लेकिन ऐसी बातें कहीं छिपती हैं भला.अभी शादी के फेरे होने बाकी थे कि लड़के के पिता ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘बंद करो… अब नहीं होगी यह शादी.’’ शादी में आए मेहमान और गांव के लोग हैरान रह गए. जब सारी बात का खुलासा हुआ, तो सारे गांव वाले सविता पर थूथू कर के वहां से चले गए.

सविता की मां तो गश खा कर गिर पड़ी थीं. रामकृपाल अपना सिर पीटते हुए कहने लगे, ‘‘अब क्या होगा… क्या मुंह दिखाएंगे हम गांव वालों को? कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा इस लड़की ने हमें. बताओ, अब कौन हाथ थामेगा इस का?’’

‘‘मैं थामूंगा सविता का हाथ,’’ अचानक किसी के मुंह से यह सुन कर रामकृपाल ने अचकचा कर पीछे मुड़ कर देखा, तो बैजू अपनी मां के साथ खड़ा था. ‘‘बैजू… तुम?’’ रामकृपाल ने बड़ी हैरानी से पूछा.

विमला कहने लगी, ‘‘हां भाई साहब, आप ने सही सुना है. मैं आप की बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहती हूं और वह इसलिए कि मेरा बैजू आप की बेटी से प्यार करता है.’’

रामकृपाल और उन की पत्नी को चुप और सहमा हुआ देख कर विमला आगे कहने लगी, ‘‘न… न आप गांव वालों की चिंता न करो, क्योंकि मेरे लिए मेरे बेटे की खुशी सब से ऊपर है, बाकी लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, उस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’

अब अंधे को क्या चाहिए दो आंखें ही न. उसी मंडप में सविता और बैजू का ब्याह हो गया.

जिस बैजू को देख कर सविता को उबकाई आती थी, उसे देखना तो क्या वह उस का नाम तक सुनना पसंद नहीं करती थी, आज वही बैजू उस की मांग का सिंदूर बन गया. सविता को तो अपनी सुहागरात एक काली रात की तरह दिख रही थी.

‘क्या मुंह दिखाऊंगी मैं अपनी सखियों को, क्या कहूंगी कि जिस बैजू को देखना तक गंवारा नहीं था मुझे, वही आज मेरा पति बन गया. नहीं… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इतनी बड़ी नाइंसाफी मेरे साथ नहीं हो सकती,’ सोच कर ही वह बेचैन हो गई.

तभी किसी के आने की आहट से वह उठ खड़ी हुई. अपने सामने जब उस ने बैजू को खड़ा देखा, तो उस का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

बैजू के मुंह पर अपने हाथ की चूडि़यां निकालनिकाल कर फेंकते हुए सविता कहने लगी, ‘‘तुम ने मेरी मजबूरी का फायदा उठाया है. तुम्हें क्या लगता है कि दो चुटकी सिंदूर मेरी मांग में भर देने से तुम मेरे पति बन गए? नहीं, कोई नहीं हो तुम मेरे. नहीं रहूंगी एक पल भी इस घर में तुम्हारे साथ मैं… समझ लो.’’

बैजू चुपचाप सब सुनता रहा. एक तकिया ले कर उसी कमरे के एक कोने में जा कर सो गया.

सविता ने मन ही मन फैसला किया कि सुबह होते ही वह अपने घर चली जाएगी. तभी उसे अपने मातापिता की कही बातें याद आने लगीं, ‘अगर आज बैजू न होता, तो शायद हम मर जाते, क्योंकि तुम ने तो हमें जीने लायक छोड़ा ही नहीं था. हो सके, तो अब हमें बख्श देना बेटी, क्योंकि अभी तुम्हारी छोटी बहन की भी शादी करनी है हमें…’

कहां ठिकाना था अब उस का इस घर के सिवा? कहां जाएगी वह? बस, यह सोच कर सविता ने अपने बढ़ते कदम रोक लिए.सविता इस घर में पलपल मर रही थी. उसे अपनी ही जिंदगी नरक लगने लगी थी, लेकिन इस सब की जिम्मेदार भी तो वही थी.

कभीकभी सविता को लगता कि बैजू की पत्नी बन कर रहने से तो अच्छा है कि कहीं नदीनाले में डूब कर मर जाए, पर मरना भी तो इतना आसान नहीं होता है. मांबाप, नातेरिश्तेदार यहां तक कि सखीसहेलियां भी छूट गईं उस की. या यों कहें कि जानबूझ कर सब ने उस से नाता तोड़ लिया. बस, जिंदगी कट रही थी उस की.

सविता को उदास और सहमा हुआ देख कर हंसनेमुसकराने वाला बैजू भी उदास हो जाता था. वह सविता को खुश रखना चाहता था, पर उसे देखते ही वह ऐसे चिल्लाने लगती थी, जैसे कोई भूत देख लिया हो. इस घर में रह कर न तो वह एक बहू का फर्ज निभा रही थी और न ही पत्नी धर्म. उस ने शादी के दूसरे दिन ही अपनी मांग का सिंदूर पोंछ लिया था.

शादी हुए कई महीने बीत चुके थे, पर इतने महीनों में न तो सविता के मातापिता ने उस की कोई खैरखबर ली और न ही कभी उस से मिलने आए. क्याक्या सोच रखा था सविता ने अपने भविष्य को ले कर, पर पलभर में सब चकनाचूर हो गया था.

‘शादी के इतने महीनों के बाद भी भले ही सविता ने प्यार से मेरी तरफ एक बार भी न देखा हो, पर पत्नी तो वह मेरी ही है न. और यही बात मेरे लिए काफी है,’ यही सोचसोच कर बैजू खुश हो उठता था. एक दिन न तो विमला घर पर थी और न ही बैजू. तभी अमित वहां आ धमका. उसे यों अचानक अपने घर आया देख सविता हैरान रह गई. वह गुस्से से तमतमाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की?’’

अमित कहने लगा, ‘‘अब इतना भी क्या गुस्सा? मैं तो यह देखने आया था कि तुम बैजू के साथ कितनी खुश हो? वैसे, तुम मुझे शाबाशी दे सकती हो. अरे, ऐसे क्या देख रही हो? सच ही तो कह रहा हूं कि आज मेरी वजह से ही तुम यहां इस घर में हो.’’ सविता हैरानी से बोली, ‘‘तुम्हारी वजह से… क्या मतलब?’’

‘‘अरे, मैं ने ही तो लड़के वालों को हमारे संबंधों के बारे में बताया था और यह भी कि तुम मेरे बच्चे की मां भी बनने वाली हो. सही नहीं किया क्या मैं ने?’’ अमित बोला. सविता यह सुन कर हैरान रह गई. वह बोली, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? बोलो न? जानते हो, सिर्फ तुम्हारी वजह से आज मेरी जिंदगी नरक बन चुकी है. क्या बिगाड़ा था मैं ने तुम्हारा?

‘‘बड़ा याद आता है मुझे तेरा यह गोरा बदन,’’ सविता के बदन पर अपना हाथ फेरते हुए अमित कहने लगा, तो वह दूर हट गई. अमित बोला, ‘‘सुनो, हमारे बीच जैसा पहले चल रहा था, चलने दो.’’ ‘‘मतलब,’’ सविता ने पूछा. ‘‘हमारा जिस्मानी संबंध और क्या. मैं जानता हूं कि तुम मुझ से नाराज हो, पर मैं हर लड़की से शादी तो नहीं कर सकता न?’’ अमित बड़ी बेशर्मी से बोला.

‘‘मतलब, तुम्हारा संबंध कइयों के साथ रह चुका है?’’ ‘‘छोड़ो वे सब पुरानी बातें. चलो, फिर से हम जिंदगी के मजे लेते हैं. वैसे भी अब तो तुम्हारी शादी हो चुकी है, इसलिए किसी को हम पर शक भी नहीं होगा,’’ कहता हुआ हद पार कर रहा था अमित.

सविता ने अमित के गाल पर एक जोर का तमाचा दे मारा और कहने लगी, ‘‘क्या तुम ने मुझे धंधे वाली समझ रखा है. माना कि मुझ से गलती हो गई तुम्हें पहचानने में, पर मैं ने तुम से प्यार किया था और तुम ने क्या किया?

‘‘अरे, तुम से अच्छा तो बैजू निकला, क्योंकि उस ने मुझे और मेरे परिवार को दुनिया की रुसवाइयों से बचाया. जाओ यहां से, निकल जाओ मेरे घर से, नहीं तो मैं पुलिस को बुलाती हूं,’’ कह कर सविता घर से बाहर जाने लगी कि तभी अमित ने उस का हाथ अपनी तरफ जोर से खींचा.

‘‘तेरी यह मजाल कि तू मुझ पर हाथ उठाए. पुलिस को बुलाएगी… अभी बताता हूं,’’ कह कर उस ने सविता को जमीन पर पटक दिया और खुद उस के ऊपर चढ़ गया. खुद को लाचार पा कर सविता डर गई. उस ने अमित की पकड़ से खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, पर हार गई. मिन्नतें करते हुए वह कहने लगी, ‘‘मुझे छोड़ दो. ऐसा मत करो…’’

पर अमित तो अब हैवानियत पर उतारू हो चुका था. तभी अपनी पीठ पर भारीभरकम मुक्का पड़ने से वह चौंक उठा. पलट कर देखा, तो सामने बैजू खड़ा था. ‘‘तू…’’ बैजू बोला.

अमित हंसते हुए कहने लगा, ‘‘नामर्द कहीं के… चल हट.’’ इतना कह कर वह फिर सविता की तरफ लपका. इस बार बैजू ने उस के मुंह पर एक ऐसा जोर का मुक्का मारा कि उस का होंठ फट गया और खून निकल आया. अपने बहते खून को देख अमित तमतमा गया और बोला, ‘‘तेरी इतनी मजाल कि तू मुझे मारे,’’ कह कर उस ने अपनी पिस्तौल निकाल ली और तान दी सविता पर.

अमित बोला, ‘‘आज तो इस के साथ मैं ही अपनी रातें रंगीन करूंगा.’’ पिस्तौल देख कर सविता की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. बैजू भी दंग रह गया. वह कुछ देर रुका, फिर फुरती से यह कह कह अमित की तरफ लपका, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरी पत्नी पर गोली चलाए…’’ पर तब तक तो गोली पिस्तौल से निकल चुकी थी, जो बैजू के पेट में जा लगी.

बैजू के घर लड़ाईझगड़ा होते देख कर शायद किसी ने पुलिस को बुला लिया था. अमित वहां से भागता, उस से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. खून से लथपथ बैजू को तुरंत गांव वालों ने अस्पताल पहुंचाया. घंटों आपरेशन चला. डाक्टर ने कहा, ‘‘गोली तो निकाल दी गई है, लेकिन जब तक मरीज को होश नहीं आ जाता, कुछ कहा नहीं जा सकता.’’

विमला का रोरो कर बुरा हाल था. गांव की औरतें उसे हिम्मत दे रही थीं, पर वे यह भी बोलने से नहीं चूक रही थीं कि बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सविता है.

 

‘सच ही तो कह रहे हैं सब. बैजू की इस हालत की जिम्मेदार सिर्फ मैं ही हूं. जिस बैजू से मैं हमेशा नफरत करती रही, आज उसी ने अपनी जान पर खेल कर मेरी जान बचाई,’ अपने मन में ही बातें कर रही थी सविता. तभी नर्स ने आ कर बताया कि बैजू को होश आ गया है. बैजू के पास जाते देख विमला ने सविता का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘नहीं, तुम अंदर नहीं जाओगी. आज तुम्हारी वजह से ही मेरा बेटा यहां पड़ा है. तू मेरे बेटे के लिए काला साया है. गलती हो गई मुझ से, जो मैं ने तुझे अपने बेटे के लिए चुना…’’

‘‘आप सविता हैं न?’’ तभी नर्स ने आ कर पूछा. डबडबाई आंखों से वह बोली, ‘‘जी, मैं ही हूं.’’ ‘‘अंदर जाइए, मरीज आप को पूछ रहे हैं.’’ नर्स के कहने से सविता चली तो गई, पर सास विमला के डर से वह दूर खड़ी बैजू को देखने लगी. उस की ऐसी हालत देख वह रो पड़ी. बैजू की नजरें, जो कब से सविता को ही ढूंढ़ रही थीं, देखते ही इशारों से उसे अपने पास बुलाया और धीरे से बोला, ‘‘कैसी हो सविता?’’

अपने आंसू पोंछते हुए सविता कहने लगी, ‘‘क्यों तुम ने मेरी खातिर खुद को जोखिम में डाला बैजू? मर जाने दिया होता मुझे. बोलो न, किस लिए मुझे बचाया?’’ कह कर वह वहां से जाने को पलटी ही थी कि बैजू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बड़े गौर से उस की मांग में लगे सिंदूर को देखने लगा.

‘‘हां बैजू, यह सिंदूर मैं ने तुम्हारे ही नाम का लगाया है. आज से मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी हूं,’’ कह कर वह बैजू से लिपट गई.

 

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