पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 3: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘यह सब मैं नहीं पचा पाया. मैं अपने देश में, अपनों के बीच शांति से और सम्मानपूर्वक जीना चाहता था. मेरी पत्नी भी यही चाहती थी. इसलिए हम वापस आ गए. मेरी पढ़ाई और तजरबे के कारण यहां आते ही अच्छी नौकरी मिल गई.

‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि हमारे देश में अमेरिका के प्रति इतना मोह क्यों है. हर कोई आंख बंद कर के अमेरिका

जाने को तैयार रहता है. यहां के लोग भोलीभाली लड़कियों को शादी के नाम पर वहां भेज कर अंधे कुएं में ढकेल देते हैं.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं नहीं कहता कि सभी के साथ बुरा ही होता है पर जिस के साथ ऐसा होता है, उस की तो जिंदगी बरबाद हो जाती है न. आजकल हमारे देश में भी अच्छी नौकरियों या दूल्हों की कमी नहीं है,’’ नरेंद्र के जीजाजी बोले.

मनोहर, दीदी और जीजाजी को इतना भा गया कि वे उसे घर का ही सदस्य मानने लगे. वह भी नरेंद्र के साथसाथ शादी के कामों में इस तरह जुट गया जैसे शादी उसी के घर की हो.

शादी में अब केवल 2 दिन बाकी रह गए थे. घर मेहमान और सामान से भरा था. रात के 11 बज रहे थे. कुछ लोगों को छोड़ कर बाकी सब जिसे जहां जगह मिली, वहीं नींद में लुढ़के पडे़ थे. नरेंद्र भी बहुत थक गया था. थोड़ी देर आराम करने के लिए जगह ढूंढ़ रहा था. इतने में अर्चना उस के पास आई. उस के हाथ में एक लिफाफा था.

‘‘नरेंद्र, मैं कुछ ढूंढ़ रही थी तो मुझे दूल्हे की फोटो मिल गई. तुम इसे अपने पास रख लो. परसों लड़के वालों को लेने तुम्हें ही स्टेशन जाना होगा. तुम्हारे साथ मेरे देवरजी भी जाएंगे मगर उन्होंने भी लड़के वालों को नहीं देखा. इसलिए तुम्हें फोटो दे रही हूं. संभाल कर रखो. बरात को लिवा लाने में मदद मिलेगी.’’

अर्चना के हाथ से नरेंद्र ने फोटो ले ली. जैसे ही उस की नजर फोटो पर पड़ी उस के मन में फिर वही भावना जगी- कहीं देखा है इसे. पर कहां? दूर से भाईबहन को बतियाते देख विभा भी वहां आ गई.

‘‘सुनो, इस लिफाफे में दूल्हे की फोटो है. अपने पर्स में संभाल कर रख लो. परसों मुझे दे देना. बरात को लाने मुझे ही जाना है.’’

विभा ने लिफाफे में से फोटो निकाली, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’’

नरेंद्र उछल पड़ा. उस की थकावट और नींद जाने कहां उड़ गई, ‘‘मगर यह बात तुम डंके की चोट पर कैसे कह रही हो? आखिर तुम ने भी तो उसे केवल एक बार शादी में ही देखा था.’’

‘‘आप मर्द लोग शादी में ताश खेलते हो, सुंदरसुंदर भाभियों पर लाइन मारते हो या राजनीति की चर्चाएं करते हों. शादी में दूल्हा या दुलहन बदल जाए तो भी तुम्हें पता नहीं चलता.’’

‘‘तो क्या तुम औरतों की तरह साजशृंगार कर के अदाएं बिखेरते चलें? खैर, छोड़ो असली बात तो बताओ.’’

‘‘शादी के अलबम दिखाने के लिए गेटटुगेदर के बहाने सिमरन भाभी ने सारी महिलाओं को बुलाया था. यह और बात है कि हमें झक मार कर 2 घंटे बैठ कर वीडियो भी देखना पड़ा. इतनी देर तक देखते रहने के बाद भला हम दूल्हे को कैसे भूल सकते हैं. मैं ही नहीं, सारी महिलाएं इसे पहचान लेंगी.’’

‘मगर अब करें क्या? यही तो सोचना है. शादी तो हमें हर हाल में रोकनी है’, नरेंद्र और विभा इसी चिंता के कारण रातभर सो नहीं पाए.

महिंदर भी नरेंद्र के अन्य मित्रों की तरह अपनी नौकरी पर निर्भर मध्यवर्ग का व्यक्ति था. बहुत सीधासादा और ईमानदार. उस ने अपनी जमापूंजी सब लगा कर अपनी लड़की की शादी इस लड़के से तय की थी कि लड़का सुंदर है, अच्छी नौकरी है. सब से बड़ी बात है लड़का अमेरिकावासी है. यह तो ‘बिन मांगे मोर’ था. उन लोगों ने सपनों में भी इस की कल्पना नहीं की थी. उन्होंने सोचा कि लड़की सुखी रहेगी. दूसरी बेटी के विवाह में वह हाथ भी बंटाएगी.

मगर यह आदमी शादी के बाद ऐसे गायब हुआ कि आज ही उस के बारे में पता चला जब उस की फोटो मिली.

महिंदर की बेटी लवली बेचारी आज भी इस की राह देख रही है. यहांवहां से तरहतरह की बातें सुन कर महिंदर को कुछकुछ अंदाजा हो गया है मगर घर में इस बात की चर्चा करने से डरता है. अब क्या किया जाए?

महिंदर की बात तो बाद में आती है. इस समय 2 दिन बाद होने वाली शादी को कैसे रोका जाए? वह कुछ कहे तो क्या दीदी और जीजाजी उस का विश्वास करेंगे? हमारे समाज में शादी टूटना बहुत बुरी बात है. नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह अपनी भांजी की जिंदगी बरबाद होते नहीं देख सकता था.

पौ फटते ही नरेंद्र बिना किसी से कुछ कहेसुने विभा से फोटो ले कर निकल गया. 11 बजे तक वह महिंदर के घर में था. अब तक महिंदर के घर में सब को पता चल चुका था कि वे लोग ठगे गए थे. अब नरेंद्र की भांजी की घटना सुन कर उन का खून खौल उठा. उस के बाद की घटनाएं बड़ी तेजी से घटीं.

महिंदर को साथ ले कर नरेंद्र सारा दिन दौड़धूप करता रहा. शाम को महिंदर  को साथ ले कर टैक्सी से भोपाल के लिए निकल पड़ा. घर पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. दीदी और जीजाजी नरेंद्र पर बहुत बिगड़े. पर नरेंद्र और महिंदरजी के मुख से सारी बात सुन कर उन के पांव तले की जमीन खिसक गई. रात आधी हो गई थी. घर मेहमानों से भरा था. क्या करें क्या न करें. वे सब अंदर सामान वाले कमरे में जागते रहे.

सुबह 10 बजे की गाड़ी से बरात आने वाली थी. पर सुबह होते ही जैसे कोहराम मच गया. अखबार में नाम और बड़ीबड़ी तसवीरों के साथ अमेरिकी दूल्हे की सारी कहानी छपी थी. शादी का जो सुमधुर कोलाहल था वह भयानक नीरवता में बदल गया जिस में मेहमानों की खुसुरफुसुर स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी.

इस घटना को कोई 20-22 वर्ष गुजर गए हैं. अब विभा नहीं कहती ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’ क्योंकि इस लंबे अंतराल में उस के जीवन में बहुत से उतारचढ़ाव आए. जमापूंजी इकट््ठी करने के बाद भी पैसे कम पड़े तो मकान को गिरवी रख कर पप्पू यानी सुशांत को विदेश भेजा गया. वहां उस की पढ़ाई समाप्त हुई और अच्छी सी नौकरी भी लग गई. जाने से पहले पप्पू ने जो कहा था, वे शब्द आज भी विभा के कानों में गूंज रहे थे. उस ने नम आंखों से दोनों के चरण छूते हुए कहा था, ‘मां, बाबूजी, आप ने अपनी जिंदगीभर की जमापूंजी मुझ पर दांव लगा दी, मैं यह बात कभी नहीं भूलूंगा. मैं आप लोगों का सपना अवश्य पूरा करूंगा. खूब परिश्रम करूंगा और  पढ़ाई पूरी होते ही अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाएगी. मैं अपना मकान छुड़वा लूंगा और हम सब मिल कर सुखचैन से रहेंगे.’’

सुशांत के जाने के बाद 3 वर्षों में ही नरेंद्र इतना बीमार पड़ा कि वह बिस्तर से उठ ही नहीं पाया. नई नौकरी का वास्ता दे कर सुशांत आ नहीं पाया. विभा कहां जाती. उस ने एक वृद्धाश्रम में पनाह ले ली. अब वह पेड़ के उस सूखे, पीले पत्ते की तरह है जो किसी भी क्षण पेड़ की टहनी से अलग हो कर धूल में मिल सकता है और अपना अस्तित्व खो सकता है. फिर भी उसे इंतजार है…

सूखे और झुर्रियों वाले चेहरे पर धंसी हुई निस्तेज आंखें कहीं दूर शून्य में फंसी हुई हैं. उसे इंतजार है अपने बेटे का. उस के सूखे होंठ बुदबुदा रहे हैं,‘जाने पप्पू कब आएगा…

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 2: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘खैर मानिए कि लड़की यहीं पर है. हमारे रिश्तेदारों में भी ऐसी ही घटना हो गई थी. रिश्तेदार एक छोटे से गांव के रहने वाले और रूढि़वादी हैं. उन की लड़की ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है. गांव से ही मिडिल पास है. अंगरेजी तो बिलकुल नहीं आती. जब उसे अमेरिका में रहने वाला लड़का ब्याह कर ले गया तो सारे रिश्तेदार अचंभित थे. जवान लड़कियां उस से ईर्ष्या करतीं. वह लड़की जब अमेरिका पहुंची तो उस ने देखा कि उस का पति और उस की अमेरिकन पत्नी सुबहसुबह नौकरी के लिए निकल जाते. उन्हें केवल एक पूर्णकालीन नौकरानी की जरूरत थी जो उन की, उन के घर की और उन के बच्चे की देखभाल कर सके. ऐसे में दहेज दे  कर भी अगर ऐसी कोई लड़की मिल रही थी तो लड़के की तो मुंहमांगी मुराद पूरी हो रही थी. ऐसी जिंदगी से तंग आ कर लड़की ने जब भारत वापस लौटना चाहा तो पहले तो किसी ने ध्यान न दिया, बाद में रोजरोज उस के कहने पर दोनों मिल कर उस की पिटाई करने लगे. न वहां उस की खोजखबर लेने वाला था न कोई उस की मदद करने वाला.’’

‘‘रेखाजी, आएदिन अखबारों में विज्ञापन छपते हैं, आप देखती ही होंगीं, ‘उच्च शिक्षा प्राप्त करने या नौकरी के लिए आस्ट्रेलिया, कनाडा या और कहीं जाने के लिए आप हम से मिलिए. हम आप के पासपोर्ट, वीजा आदि का इंतजाम करवा देंगे.’ बाद में पता चलता है कि वहां जा कर या तो कोई सड़कछाप काम करना पड़ता है या तरहतरह की ठोकरें खानी पड़ती हैं, नौकरी मिलना तो दूर की बात है, वापस आने के पैसे भी नहीं होते. कितने लोग गलत कामों में फंस जाते हैं,’’ लतिका ने कहा जो इन महिलाओं में ज्यादा समझदार थी.

‘‘ठीक कहा आप ने लतिकाजी, कई बार तो ये एजेंट लोग पैसे लेने के बाद यहीं के यहीं गायब हो जाते हैं कि विदेश जाने का सपना धरा का धरा रह जाता है,’’ एक अन्य ने जोड़ा.

विभा का सिर चकराने लगा. क्या ये सब बातें सच हैं या विदेश जाने वाले लोगों के प्रति जलन के मारे ऐसी बातें फैलाई जाती हैं.

‘‘विभाजी, आप यहां क्या कर रही हैं. सब लोग खाना शुरू भी कर चुके हैं. कहां खो गई हैं आप? चलिए, मैं ले चलती हूं,’’ मिसेज मोहन ने उन का हाथ थाम कर उठाते हुए कहा.

घर वापस आतेआते रात के 11 बज रहे थे. आते ही मां ने नरेंद्र से कहा, ‘‘बेटा, भोपाल से अर्चना का फोन आया था. उस की बेटी पिंकी की शादी तय हो गई है. अक्तूबर में शादी होगी. तारीख पक्की होते ही फिर बताएगी.’’

‘‘अच्छा मां, यह तो बड़ी अच्छी बात है. आज तो बहुत देर हो गई है. कल मैं दीदी से बात करता हूं,’’ नरेंद्र ने कहा.

घर में सब बहुत खुश थे खासकर नरेंद्र. उस की बहन अर्चना कई महीनों से अपनी बेटी के लिए एक अच्छे वर की तलाश में थी. अर्चना ने किसी से कहा तो नहीं था पर सभी लोग जानते थे कि वह हमेशा से विदेश में बसने वाले दामाद की तलाश में थी. पिंकी की पढ़ाई तो 2 साल पहले ही पूरी हो गई थी मगर दीदी की तलाश आज रंग लाई थी. उस ने जरूर अपनी पसंद का ही दामाद ढूंढ़ा होगा.

अगले दिन फोन से बात करने पर उस का अंदाजा सही निकला. यह जान कर सब खुश हुए. दीदी ने बताया कि लड़का अमेरिका के टैक्सास में रहता है.

दीदी चाहती थीं कि सब लोग शादी की तैयारियों में मदद करने के लिए कम से कम 10 दिन पहले भोपाल पहुंच जाएं. उन के अलावा दूसरा कौन था मदद करने वाला. सही भी था. अर्चना के बाद मांबाबूजी ने बहुत इंतजार करने के बाद सोच लिया था कि अब उन की कोई संतान नहीं होगी. उन्हें एक बेटा भी चाहिए था, निराशा तो हुई मगर क्या कर सकते थे. उन्होंने अपने मन को समझा लिया था. ऐसे में अर्चना के जन्म के 11 वर्ष के बाद नरेंद्र का जन्म हुआ था. नरेंद्र को अर्चना ने इतना प्यार दिया कि उस को मां और बाबूजी से ज्यादा अर्चना से लगाव था. वह अपनी दीदी की हर बात मानता था. वह उस से दीदी जैसे प्यार करता था, दोस्त जैसा अपनापन देता था और मां जैसा सम्मान करता था.

दफ्तर में 10 दिन छुट्टी ले कर नरेंद्र परिवार के साथ भोपाल जा पहुंचा. दीदी और जीजाजी बहुत खुश हुए. वे जानते थे कि अब नरेंद्र आ गया है तो वह सब संभाल लेगा. नरेंद्र भी तुरंत अपनी भांजी की शादी के कामों में जुट गया.

अगले दिन जब विभा और अर्चना बाजार गई हुई थीं तब अचानक नरेंद्र को खयाल आया कि उस ने तो अपनी भांजी के होने वाले दूल्हे को देखा ही न था. यह बात जब उस ने अपने जीजाजी से कही तो तुरंत उन्होंने कहा, ‘‘अरे, अभी तक अर्चना ने तुम्हें फोटो नहीं दिखाई? रुको, मैं ले कर आता हूं.’’

जब नरेंद्र ने लड़के की तसवीर देखी तो उसे लगा चेहरा तो बहुत जानापहचाना लग रहा है. लेकिन बहुत याद करने पर भी उसे याद नहीं आया कि उसे कहां देखा है? फिर वह शादी के कामों में उलझ कर इस बात को भूल गया.

शाम को नरेंद्र से मिलने मनोहर आया. वह उस का बचपन का दोस्त था. दोनों इंदौर में प्राथमिक कक्षाओं से ले कर महाविद्यालय तक साथसाथ पढ़े थे. फिर वह अमेरिका चला गया. उस के बाद जैसे दोनों का संबंधविच्छेद ही हो गया. उस की खबर न पा कर मित्रों की टोली यही सोचती रही कि वहां जा कर वह बहुत बड़ा आदमी बन गया होगा. पैसों के ढेर पर बैठे उसे इंदौर के ये साधारण मित्र याद नहीं आते होंगे. आज उस से मिलने के बाद नरेंद्र को असलियत का पता चला तो उस की आंखें नम हो गईं.

मनोहर अमेरिका में मिलने वाले वजीफे के भरोसे अमेरिका चला गया और एमएस में दाखिला ले लिया. उसे 6 महीनों तक वजीफा मिला भी. फिर वजीफा मिलना बंद हो गया. बाकी की पढ़ाई पूरी करने के लिए उसे तरहतरह के पापड़ बेलने पडे़. उसे कई ऐसे काम करने पडे़ जो यहां रहते हुए भारतवासी सोच भी नहीं सकते. उसी दौरान उसे कई भयंकर अनुभव हुए. वहां के प्रवासी भारतीयों ने उस की मदद न की होती तो शायद उसे पढ़ाई छोड़ कर वापस आने के लिए पैसे न होने के कारण भीख तक मांगनी पड़ती.

मनोहर ने बताया कि यहां भारतीय सोचते हैं कि अमेरिका जाने वाला हर आदमी जैसे सपनों की सैर करने गया है. वहां वह पैसों में खेल रहा है और वैभवपूर्ण जीवन जी रहा है. कुछ हद तक कुछ लोगों के विषय में यह सही हो सकता है लेकिन वहां ऐसे भी लोग हैं जो पगपग पर ठोकर खाते हैं और तनावपूर्ण जीवन जीते हैं.

मनोहर ने उसे बताया कि लुधियाना का रहने वाला एक लड़का भारत आ कर यहां गांव की सीधीसादी, अनपढ़ लड़की से शादी कर के अमेरिका ले गया. यहां सब खुश थे कि अनपढ़ गंवार हो कर भी लड़की को अमेरिका जाने का मौका मिल गया. वहां उस बेचारी का क्या हाल हुआ, क्या कोई जानता है?

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘वहां उस लड़के की पहली पत्नी थी जो विदेशी थी. दोनों उस लड़की के सामने ही खुल कर रासलीलाएं करते थे. उन की भाषा अलग, रहनसहन अलग. इस के साथ किसी भी प्रकार का संबंध तो दूर खानेपीने या किसी भी जरूरत के बारे में न पूछते. कामवाली बाई से भी बदतर हालत थी. पति से पूछने पर गालीगलौज और मारपीट. वह वापस आना चाहती थी, वे लोग उस के लिए भी तैयार नहीं हुए. वे उसे किसी से मिलने नहीं देते थे, न कहीं जाने देते थे. एकदो बार उस लड़की ने घर से भागने की कोशिश की तो पकड़ कर वापस ले गए और इतनी पिटाई की कि लड़की ने बिस्तर पकड़ लिया. पता नहीं, बाद में उस ने कब और कैसे खुदकुशी कर ली. बेचारी की कहानी का और क्या अंत हो सकता था? यह सब मुझे वहां के एक मित्र ने बताया.’’

वह चुप हो गया. उस अनजान लड़की के लिए शायद दिल भर आया था. कुछ रुक कर फिर बोला, ‘‘कितनी भी मेहनत करो, आप को अमेरिका में दूसरे नंबर पर ही रहना होगा. स्वाभाविक है कि प्रथम स्थान तो वहां के नागरिकों का होगा. कुछ लोग परिस्थितियों से समझौता कर के, नित्य संघर्ष का सामना करते हुए वहां रह भी गए तो बच्चे जब बडे़ होने लगते हैं तो फिर से तनाव का सामना करना पड़ता है. बच्चे उस माहौल में पलतेबढ़ते हैं, इसलिए उन की संस्कृति ही सीखते हैं. उन की सोच ही अलग हो जाती है. मांबाप को यह सब ठीक लगे और सब की एक राय हो तो ठीक है वरना फिर से संघर्ष. 60 साल के बेटे को भी मांबाप यहां कुछ भी कह देते हैं, डांट देते हैं, अपमानित कर देते हैं पर बेटा कुछ नहीं कहता. पर वहां 12 साल के बच्चे को भी कुछ कहा जाए तो वह बंदूक निकाल कर गोली दाग देगा. ऐसी घटनाएं लोकविदित हैं. ऐसी कई समस्याएं हैं जिन की ओर से लोग जानबूझ कर आंख मूंद लेते हैं.

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 1: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

भारतीय सोचते हैं कि अमेरिका जाने वाला हर आदमी जैसे सपनों की सैर करने गया है, वहां वह पैसों में खेल रहा है और वैभवपूर्ण जीवन जी रहा है लेकिन वास्तव में वहां ऐसे लोग भी हैं जो पगपग पर ठोकर खाते हैं और तनावपूर्ण जीवन जीते हैं.

नरेंद्र के हाथ में फोटो देखते ही विभा ने कहा, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’

‘‘सुनो, कल तुम्हें बताना भूल

गया था. आज शाम को 7 बजे मोहनजी के यहां पार्टी है. तुम तैयार रहना. हम साढे़ 6 बजे तक घर से निकल जाएंगे,’’ दफ्तर से नरेंद्र का फोन था.

‘‘क्यों, किस खुशी में पार्टी दे रहे हैं वे लोग?’’ विभा ने पूछा.

‘‘मोहनजी का बड़ा लड़का रघुवीर इस महीने के अंत तक अमेरिका चला जाएगा. तुम्हें याद होगा, हम उन की बेटी की शादी में भी गए थे. उस की शादी अमेरिका में बसे एक लड़के से हुई थी न. बस, अब उसी की मदद से रघु भी अमेरिका जा रहा है.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. भाईबहन दोनों एक ही जगह रहें तो एकदूसरे का सहारा रहेगा.’’

‘‘हां और उन दोनों के अमेरिका जाने की खुशी में आज की पार्टी दी जा रही है. तुम देर न करना. और सुनो, मां और पप्पू का खाना बना लेना,’’ कहते ही नरेंद्र ने फोन रख दिया.

विभा सोच में पड़ गई, कहते हैं कि अभी भी अमेरिका में भारतीयों की भरमार है. केवल कंप्यूटर क्षेत्र में दोतिहाई लोग भारतीय हैं. डाक्टर, इंजीनियर, नर्स, व्यापारी पता नहीं कुल कितने होंगे. पता नहीं पप्पू के बडे़ होतेहोते अमेरिका की क्या हालत होगी. भारतीयों की तादाद अधिक हो जाने से कहीं आगे चल कर और भारतीयों को वहां आने से रोक न दिया जाए. जाने पप्पू कब बड़ा होगा? काश, अमेरिका वाले यहां के लोगों को और कम उम्र में यानी स्कूल में पढ़ते वक्त ही वहां आने दें. फिर तो उन का भविष्य ही सुधर जाएगा. वरना यहां रखा ही क्या है.

उसे याद आया कि उस की ममेरी बहन की लड़की 11वीं पास कर के ही अमेरिका चली गई थी. कल्चरल एक्सचैंज या जाने क्या? 11वीं के बाद उस का 1 साल बिगड़ा तो क्या हुआ? पढ़ाई तो बाद में होती रहेगी, सारी जिंदगी पड़ी है. अमेरिका जाने का मौका कहां बारबार आता है. जाने यह पप्पू भी कब बड़ा होगा?

विभा और नरेंद्र जब मोहनजी के यहां पहुंचे तब उन लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया. वे प्रवेशद्वार पर ही बेटे रघुवीर के साथ खड़े गुलाब के फूलों से सब का स्वागत कर रहे थे. खुशी से उन के चेहरे दमक रहे थे. पार्टी एक शानदार होटल में रखी गई थी. लौन मेहमानों से भरा था. फौआरों और रंगबिरंगे बल्बों से सजा लौन बड़ा खुशनुमा वातावरण पैदा कर रहा था. विभा और नरेंद्र भी भीड़ में शामिल हो गए. मोहनजी ने अपने दफ्तर वालों, दोस्तों, पत्नी के मायके के लोगों, बेटे के दोस्तों को यानी कि बहुत सारे लोगों को इस पार्टी में आमंत्रित किया था.

‘‘हाय नरेंद्र, लुकिंग वैरी स्मार्ट. लगता है तुम्हारा सूट विदेशी है,’’ सामने भूपेंद्र और उन की पत्नी खड़े थे.

‘‘नहीं यार, भूपू. यह तो सौ प्रतिशत देशी है. हमारे सारे रिश्तेदार बड़े देशभक्त हैं जो यहीं पड़े हैं,’’ नरेंद्र ने हंस कर कहा.

भूपेंद्र ने तुरंत पैंतरा बदला, ‘‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा, है कि नहीं भाभी? मुझे तो यहीं भाता है. अच्छा छोडि़ए, बहुत दिनों से आप हमारे यहां नहीं आए. भई क्या बात है, हम से कोई गलती हो गई है क्या?’’

‘‘आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली. क्यों विभाजी, आप को वक्त नहीं मिल रहा है या भाईसाहब टीवी से चिपक जाते हैं?’’ भूपू की पत्नी अपनी ही बात पर ठहाका मार कर हंसते हुए बोली.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आएंगे हम लोग. आप लोग भी कभी समय निकाल कर आइए,’’ विभा ने कहा.

‘‘ओह, श्योरश्योर. अच्छा, फिर मिलते हैं. सब लोगों को एक बार हाय, हैलो कर लें,’’ कह कर पतिपत्नी दूसरी ओर बढ़ गए.

‘‘जरूरी था उन लोगों से कहना कि हम ही यहां ऐसे बेवकूफ  हैं जिन का कोई भी रिश्तेदार विदेश में नहीं है,’’ विभा ने होंठ भींचे ही पति को झिड़का.

‘‘हाय विभा, अभी आई है क्या?’’ किसी की बड़ी जोशीली चीख जैसी आवाज सुनाई दी. साथ ही किसी महिला ने उसे अपनी बांहों में भर कर गालों पर चूम लिया. वह घुटनों के ऊपर तक की चुस्त स्कर्ट और बिना बांहों की व लो नैक वाली टौप पहने हुए थी. विभा अचकचा गई. यह पहले तो कभी इतनी गर्मजोशी से नहीं मिली थी. मूड न होने पर तो एकदम सामने पड़ जाने के बावजूद ऐसे आंख फेर कर निकल जाती थी जैसे देखा ही न हो. विभा के मुंह से केवल ‘हाय सिट्टी’ निकला. वैसे तो मांबाप का दिया नाम सीता था मगर उसे सिट्टी कहलाना ही पसंद था. 2 मिनट बाद विभा ने देखा कि वह उसी गर्मजोशी से किसी दूसरी स्त्री से मिल रही थी. ऐसे लोग अपने हंगामे के जरिए भीड़ को आकर्षित करते हैं. कुछ देर बाद सब लोग वहां करीने से रखी हुई कुरसियों पर बैठ गए. पुरुष झुंड में खड़े हो कर बातें कर रहे थे. सभी के हाथों में अपनीअपनी पसंद के ड्रिंक थे. वरदीधारी लड़केलड़कियां सजधज कर महिलाओं को ठंडे पेय के गिलास सर्व कर रहे थे.

विभा सरला और मेनका के बीच में बैठी थी. थोड़ी देर रोजमर्रा की बातें हुईं, फिर सरला ने पूछा, ‘‘मेनका, सुना है आप की बेटी ने इंजीनियरिंग पूरी कर ली है. आगे का क्या सोचा है? शादीवादी या नौकरी?’’

‘‘अरे काहे की शादी और काहे की नौकरी? मेरी मन्नू ने टोफेल (टैस्ट औफ इंगलिश ऐज फौरेन लैंग्वेज) क्लियर कर लिया है. जीआईई की तैयारी कर रही है. फिलहाल उस का एक ही सपना है अमेरिका जाना,’’ मेनका ने बड़े गर्व से कहा.

‘‘आज के बच्चे बहुत स्मार्ट हैं. हमारे जैसे भोंदू नहीं हैं. वे जानते हैं कि उन के जीवन का मकसद क्या है और कैसे उसे हासिल किया जाए. मेरी बेटी टीना को ही ले लीजिए. उस ने कालेज में दाखिला लेते ही हमें बता दिया था कि उस के लिए अमेरिका का लड़का ही चुना जाए क्योंकि उस के सपनों की दुनिया अमेरिका है जहां वह पति के जरिए पहुंचना चाहती है,’’ सरला ने बीच में ही कहना शुरू कर दिया.

‘‘उस की ग्रेजुएशन पूरी हो गई?’’ विभा ने पूछ लिया.

‘‘ग्रेजुएशन क्या पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर ली. लड़के के लिए पेपर में इश्तिहार दे दिया है. 2-3 मैरिज ब्यूरो में भी पैसे भर दिए हैं. साथ में दोस्तों और रिश्तेदारों को भी बता दिया है कि टीना के लिए अमेरिकी दूल्हा ही चाहिए.’’

विभा अपने ही विचारों में खोई कभी मेनका और कभी सरला की ओर देख रही थी और मन ही मन सोच रही थी, ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’

‘‘अरे विभाजी, सब लोग मौजमस्ती कर रहे हैं और आप बैठीबैठी क्या सोच रही हैं? यही न कि ‘एक दिन पप्पू बड़ा हो जाएगा तो मैं उसे अपनी नजरों से कदापि दूर नहीं भेजूंगी. पता नहीं, ये लोग अपनी औलाद को इतनी दूर भेज कर कैसे चैन से जी पाते हैं.’ ठीक कह रहा हूं न. मैं आप को अच्छी तरह जानता हूं,’’ ये मिस्टर दिवाकर थे.

‘आप खाक जानते हैं’, उस ने मन में सोचा पर कुछ न बोली. केवल हकला कर रह गई, ‘‘जी…जी…’’

उस ने सोचा कैसा उजड्ड आदमी है. लोग किस रफ्तार से दौडे़ जा रहे हैं और यह…? इस के विचार कितने दकियानूसी हैं. उस समय वह भूल गई कि इंसान चाहे कितनी भी तरक्की कर ले, उस की प्यार और अपनेपन की प्यास कभी नहीं मिटती. वह उठी और औरतों के दूसरे झुंड में जा मिली.

वहां एक औरत धीमी आवाज में कह रही थी, ‘‘आजकल तो लोगों पर एक पागलपन सा सवार है जिस के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. हमारे पड़ोसी लालजी ने अपने बेटे को इंजीनियरिंग के बाद अमेरिका भेजा था. वे कोई बहुत धनी नहीं थे. मध्यवर्गीय ही कह लो. वहां जा कर उस की अच्छी सी नौकरी लग गई. वहां की जिंदगी उसे इतनी भा गई कि एक गोरी मेम से शादी कर के वहीं बस गया. मगर वह कायर था इसलिए शादी की बात घर में नहीं बताई. जब भी वह भारत आता उस के मांबाप उस से शादी के लिए कहते. इस तरह 5-6 साल गुजर गए. पिछली बार जब वह भारत आया तो मांबाप ने एक अच्छी सी लड़की ढूंढ़ ली. उस ने भी बिना एतराज के उस से शादी कर ली. बहुत जल्दी उसे अमेरिका ले जाने का वादा कर के वह लौट गया. 2 साल से वह लड़की यहीं पर है और अपने पति के बुलावे का इंतजार कर रही है. अभी हाल ही में लालजी को अमेरिका से आए किसी दोस्त ने बताया कि वहां उस लड़के की मृत्यु हो गई है. मृत्यु का कारण किसी को पता नहीं है. मांबाप तो रो ही रहे हैं, साथ में वह 20-21 वर्ष की लड़की भी रोतेरोते पागल सी हो गई है,’’ तभी दूसरी ने कहा.

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 4

तब तक नीरजा चाय बना लाई और मैं उस का सिर अपने कंधे पर टिका कर उसे सांत्वना देने लगी. अब तक हम उस की प्रेम कहानी को मजाक समझ कर हंस कर टाल देते थे पर आज अचानक लगा कि संगीता तो सचमुच गंभीर है. बात अब पृथ्वीराज के मातापिता तक पहुंच चुकी थी.

‘‘मैं तो कहती हूं कि इस प्रेमकथा को यहीं समाप्त कर दो. इसी में हम सब की भलाई है,’’ अंतत: मौन नीरजा ने तोड़ा.

‘‘क्या कह रही हो तुम? संगीता की तो जान बसती है पृथ्वीराज में,’’ सपना ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘हां, पर इस के चक्कर में इस के प्रेमी की जान भी जा सकती थी… फिर क्या होता इस की जान का?’’ नीरजा की बात कड़वी जरूर थी पर थी सच.

‘‘मैं अपने फैसले स्वयं ले सकती हूं. कृपया मुझे अकेला छोड़ दो,’’ संगीता ने आंसू पोंछ लिए. अब संगीता पढ़ाई में कुछ इस तरह जुट गई कि उसे दीनदुनिया का होश ही नहीं रहा. न पहले की तरह हंसतीबोलती न हमें हंसाती.

गनीमत है कि पृथ्वीराज को अधिक चोट नहीं आई थी. फिर भी उसे कालेज आने में 6 सप्ताह लग गए.

‘‘अब तेरे पृथ्वीराज की भविष्य की क्या योजना है?’’ एक दिन सपना ने संगीता से पूछ ही लिया.

‘‘हम ने इस विषय पर बहुत बात की. पृथ्वी तो फिर से घुड़सवारी शुरू करना चाहता है पर मैं ने ही मना कर दिया,’’ संगीता गंभीरता से बोली.

‘‘पर तेरा संयोगिता वाला स्वप्न?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘मैं अपने स्वप्न के लिए पृथ्वीराज को खोने का खतरा तो नहीं उठा सकती न. वैसे भी यह 21वीं सदी है. अब सपनों के राजकुमार घोड़े पर नहीं, बाइक पर आते हैं,’’ संगीता हंसी.

संगीता की हंसी में न जाने कैसी उदासी थी कि हम सब भी उदास हो गए पर कुछ कह कर हम उसे और उदास नहीं करना चाहते थे. संगीता अपनी पुस्तकों में डूब गई पर हम चाह कर भी अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे थे.

‘‘बेचारी संगीता, न जाने उस की खुशियों को कैसे ग्रहण लग गया,’’ सपना अचानक भावुक हो उठी.

‘‘क्या कह रही हो. संगीता की नादानी तो पृथ्वीराज को भी ले डूबी. बड़ी संयोगिता बनने चली थी. ऐतिहासिक चरित्र… मुझे तो पृथ्वीराज पर तरस आता है. संगीता प्रेम में कुएं में कूदने को कहती तो क्या कूद जाता वह?’’ नीरजा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

वार्षिक परीक्षा सिर पर थी. प्रैक्टिकल, प्रोजैक्ट और थ्यौरी की तैयारी के बीच हम संगीता की प्रेम कहानी को लगभग भूल चुके थे. अंतिम पेपर के बाद हम बसस्टैंड पर खड़े अपनी सखियों से विदा ले रहे थे. भविष्य के सपनों में डूबे सब के मन में अजीब सी उदासी थी. हमारी कुछ सहपाठिनें तो इस अवसर पर अपने आंसू रोक नहीं पा रही थीं. फूटफूट कर रो रही थीं. तभी वहां अजीब सा शोर उभरा. घोड़े की टापें सुनाई दीं. इस से पहले कि हम कुछ समझ पाते घोड़ा हमारी आंखों से ओझल हो गया.

‘पृथ्वीराज… पृथ्वीराज…’’ नीरजा चीखी पर हमारी समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या है? पृथ्वीराज संगीता को उठा ले गया. देखा नहीं? घोड़े पर आया था. नीरजा अब भी कांप रही थी,’’ हमारा डर के मारे बुरा हाल था. हम घर पहुंचे तो हांफ रहे थे. मैं तो मम्मी को देखते ही रोते हुए उन से लिपट गई. सिसकियां थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं.

मम्मी ने हमें समझाबुझा कर शांत किया. पर जब हम ने सिसकियों के बीच टूटेफूटे शब्दों में उन्हें सारी बात बताई तो उन्होंने सिर थाम लिया.

‘‘इतनी बड़ी बात छिपा ली तुम सब ने? मेरा सिर तो सदा के लिए झुका दिया तुम ने… और वह संगीता… कितना नाज था मुझे उस पर. उस ने एक बार भी अपने मातापिता के संबंध में नहीं सोचा कि उन पर क्या बीतेगी. क्या करूं अब?’’

‘‘करना क्या है? पुलिस में रिपोर्ट लिखवाओ वरना संगीता का पता कैसे चलेगा?’’ मैं बोली.

‘‘पता है. तुम सब की होशियारी देख ली मैं ने. लड़की का मामला है, बहुत सोचसमझ कर कदम उठाना पड़ता है. पहले तो संगीता के मातापिता को सूचित करना पड़ेगा. पता नहीं बेचारों पर क्या बीतेगी. फिर जैसा वे कहेंगे वैसा ही करेंगे.’’ पर पुलिसकचहरी तक पहुंचने की नौबत नहीं आई. संगीता के मातापिता के पहुंचने से पहले ही संगीता का फोन आ गया था. इस बार दोनों को घोड़े से गिर कर चोट आई थी और दोनों ही नर्सिंगहोम में भरती थे. अब तो प्रेम कहानी ने बेहद जटिल रूप धारण कर लिया था. दोनों पक्षों के दर्जनों संबंधी आ जुटे थे और अपनाअपना पक्ष ले कर दूसरे पक्ष को दोषी ठहराने में जुटे थे. बीचबीच में हम तीनों को भी जी भर कर कोसा जाता कि हम ने सारी बात को तब तक छिपाए रखा जब तक पानी सिर से नहीं गुजर गया. हम मूर्ति बन सारी लानतें सह रह थे. अचानक एक दिन चमत्कार हो गया. न जाने कैसे दोनों पक्ष इस निर्णय पर पहुंच गए कि पृथ्वीराज और संगीता को खुला छोड़ना खतरे से खाली नहीं. अत: दोनों का विवाह ही एकमात्र समाधान है. दोनों बहुत गिड़गिड़ाए. पृथ्वीराज ने तो यहां तक कहा कि अपने पैरों पर खड़े हुए बिना वह विवाह मंडप में पैर भी नहीं रखेगा पर किसी ने दोनों की एक न सुनी और चट मंगनी पट विवाह की घोषणा कर दी. विवाह के अवसर पर पृथ्वीराज और संगीता ने लंगड़ाते हुए विवाह की रस्में पूरी कीं. स्वागत भोज के अवसर पर सपना से नहीं रहा गया. बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बड़े छिपेरुस्तम निकले? पैर तुड़वा लिए पर संगीता का सपना पूरा कर के ही माने.’’

‘‘यह राज की बात है किसी से कहना मत.’’

‘‘राज की बात? मैं कुछ समझी नहीं,’’ सपना बोली.

‘‘हम अपने घर वालों से विवाह की अनुमति लेने जाते तो जाति के नाम पर न जाने कितनी हायतोबा मचाते. अब देखो उन्होंने स्वयं हमें घेर कर विवाह करवा दिया,’’ पृथ्वीराज अपने विशेष अंदाज में मुसकराया. संगीता की आंखों में भी शरारत भरी मुसकान थी.

‘‘संगीता, सचमुच तुम इस खुशी की हकदार हो,’’ पहली बार नीरजा ने संगीता की प्रशंसा की. उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

हम उस का दर्द भलीभांति समझते थे. उस का मित्र अंकुश कब का उसे छोड़ कर किसी और के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रहा था. पर आज का दिन तो केवल संगीता के नाम था और हम सब कुछ भूल कर उस के विवाह का जश्न मना रहे थे.

विदाई- भाग 1: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

नीरज 3 महीने की टे्रनिंग के लिए दिल्ली से मुंबई गया था पर उसे 2 माह बाद ही वापस दिल्ली लौटना पड़ा था.

‘‘कविता की तबीयत बहुत खराब है. डा. विनिता कहती हैं कि उसे स्तन कैंसर है. तुम फौरन यहां आओ,’’ टेलीफोन पर अपने पिता से पिछली शाम हुए इस वार्त्तालाप पर नीरज को विश्वास नहीं हो रहा था.

कविता और उस की शादी हुए अभी 6 महीने भी पूरे नहीं हुए थे. सिर्फ 25-26 साल की कम उम्र में कैंसर कैसे हो गया? इस सवाल से जूझते हुए नीरज का सिर दर्द से फटने लगा था.

एअरपोर्ट से घर न जा कर नीरज सीधे डा. विनिता से मिलने पहुंचा. इस समय उस का दिल भय और चिंता से बैठा जा रहा था.

डा. विनिता ने जो बताया उसे सुन कर नीरज की आंखों से आंसू झरने लगे.

‘‘तुम्हें तो पता ही है कि कविता गर्भवती थी. उसे जिस तरह का स्तन कैंसर हुआ है, उस का गर्भ धारण करने से गहरा रिश्ता है. इस तरह का कैंसर कविता की उम्र वाली स्त्रियों को हो जाता है,’’ डा. विनिता ने गंभीर लहजे में उसे जानकारी दी.

‘‘अब उस का क्या इलाज करेंगे आप लोग?’’ अपने आंसू पोंछ कर नीरज ने कांपते स्वर में पूछा.

बेचैनी से पहलू बदलने के बाद डा. विनिता ने जवाब दिया, ‘‘नीरज, कविता का कैंसर बहुत तेजी से फैलने वाला कैंसर है. वह मेरे पास पहुंची भी देर से थी. दवाइयों और रेडियोथेरैपी से मैं उस के कैंसर के और ज्यादा फैलने की गति को ही कम कर सकती हूं, पर उसे कैंसरमुक्त करना अब संभव नहीं है.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं? मेरी कविता क्या बचेगी नहीं?’’ नीरज रोंआसा हो कर बोला.

‘‘वह कुछ हफ्तों या महीनों से ज्यादा हमारे साथ नहीं रहेगी. अपनी प्यार भरी देखभाल व सेवा से तुम्हें उस के बाकी बचे दिनों को ज्यादा से ज्यादा सुखद और आरामदायक बनाने की कोशिश करनी होगी. कविता को ले कर तुम्हारे घर वालों का आपस में झगड़ना उसे बहुत दुख देगा.’’

‘‘यह लोग आपस में किस बात पर झगड़े, डाक्टर?’’ नीरज चौंका और फिर ज्यादा दुखी नजर आने लगा.

‘‘कैंसर की काली छाया ने तुम्हारे परिवार में सभी को विचलित कर दिया है. कविता इस समय अपने मायके में है. वहां पहुंचते ही तुम्हें दोनों परिवारों के बीच टकराव के कारण समझ में आ जाएंगे. तुम्हें तो इस वक्त बेहद समझदारी से काम लेना है. मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ नीरज की पीठ अपनेपन से थपथपा कर डा. विनिता ने उसे विदा किया.

ससुराल में कविता से मुलाकात करने से पहले नीरज को अपने सासससुर व साले के कड़वे, तीखे और अपमानित करने वाले शब्दों को सुनना पड़ा.

‘‘कैंसर की बीमारी से पीडि़त अपनी बेटी को मैं ने धोखे से तुम्हारे साथ बांध दिया, तुम्हारे मातापिता के इस घटिया आरोप ने मुझे बुरी तरह आहत किया है. नीरज, मैं तुम लोगों से अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता हूं,’’ गुस्से में उस के ससुर ने अपना फैसला सुनाया.

‘‘इस कठिन समय में उन की मूर्खतापूर्ण बातों को आप दिल से मत लगाइए,’’ थकेहारे अंदाज में नीरज ने अपने ससुर से प्रार्थना की.

‘‘इस कठिन समय को गुजारने के लिए तुम सब हमें अकेले छोड़ने की कृपा करो. बस,’’ उस के साले ने नाटकीय अंदाज में अपने हाथ जोड़े.

‘‘तुम भूल रहे हो कि कविता मेरी पत्नी है.’’

‘‘आप जा कर अपने मातापिता से कह दें कि हमें उन से कैसी भी सहायता की जरूरत नहीं है. अपनी बहन का इलाज मैं अपना सबकुछ बेच कर भी कराऊंगा.’’

‘‘देखिए, आप लोगों ने आपस में एकदूसरे से झगड़ते हुए क्याक्या कहा, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. मेरी गृहस्थी उजड़ने की कगार पर आ खड़ी हुई है. कविता से मिलने को मेरा दिल तड़प रहा है…उसे मेरी…मेरे सहारे की जरूरत है. प्लीज, उसे यहां बुलाइए,’’ नीरज की आंखों से आंसू बहने लगे.

नीरज के दुख ने उन के गुस्से के उफान पर पानी के छींटे मारने का काम किया. उस की सास पास आ कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

अब उन सभी की आंखों में आंसू छलक उठे.

‘‘कविता की मौसी उसे अपने साथ ले कर गई हैं. वह रात तक लौटेंगी. तुम तब तक यहां आराम कर लो,’’ उस की सास ने बताया.

अपने हाथों से मुंह कई बार पोंछ कर नीरज ने मन के बोझिलपन को दूर करने की कोशिश की. फिर उठ कर बोला, ‘‘मैं अभी घर जाता हूं. रात को लौटूंगा. कविता से कहना कि मेरे साथ घर लौटने की तैयारी कर के रखे.’’

आटोरिकशा पकड़ कर नीरज घर पहुंचा. उस का मन बुझाबुझा सा था. अपने मातापिता के रूखे स्वभाव को वह अच्छी तरह जानता था इसलिए उन्हें समझाने की उस ने कोई कोशिश भी नहीं की.

कविता की जानलेवा बीमारी की चर्चा छिड़ते ही उस की मां ने गुस्से में अपने मन की बात कही, ‘‘तेरी ससुराल वालों ने हमें ठग कर अपनी सिरदर्दी हमारे सिर पर लाद दी है, नीरज. कविता के इलाज की भागदौड़ और उस की दिनरात की सेवा हम से नहीं होगी. अब उसे अपने मायके में ही रहने दे, बेटे.’’

‘‘तेरे सासससुर ने शादी में अच्छा दहेज देने का मुझे ताना दिया है. सुन, अपनी मां से कविता के सारे जेवर ले जा कर उन्हें दे देना,’’ नीरज के पिता भी तेज गुस्से का शिकार बने हुए थे.

नीरज की छोटी बहन वंदना ने जरूर उस के साथ कुछ देर बैठ कर अपनी आंखों से आंसू बहाए पर कविता को घर लाने की बात उस ने भी अपने मुंह से नहीं निकाली.

अपने कमरे में नीरज बिना कपड़े बदले औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ा. इस समय वह अपने को बेहद अकेला महसूस कर रहा था. अपने घर व ससुराल वालों के रूखे व झगड़ालू व्यवहार से उसे गहरी शिकायत थी.

उस के अपने घर वाले बीमार कविता को घर में रखना नहीं चाहते थे और ससुराल में रहने पर नीरज का अपना दिल नहीं लगता. वह कविता के साथ रह कर कैसे यह कठिन दिन गुजारे, इस समस्या का हल खोजने को उसे काफी माथापच्ची करनी पड़ी.

उस रात कविता से नीरज करीब 2 माह बाद मिला. उसे देख कर नीरज को मन ही मन जबरदस्त झटका लगा. उस की खूबसूरत पत्नी का रंगरूप मुरझा गया था.

लुकाछिपी- भाग 4: क्या हो पाई कियारा औक अनमोल की शादी

अनमोल को पा कर कियारा बेहद खुश थी. वह अनमोल में कुछ इस तरह डूबी हुई थी कि उस ने अपना सबकुछ अनमोल पर लुटा दिया. अपनेआप को अनमोल को समर्पित दिया. अनमोल के प्यार में कियारा इस कद्र अंधी थी कि उसे अनमोल के आगे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था. वह यह भी देखने को तैयार नहीं थी कि संदीप भी उस से बेइंतहा मुहब्बत करता है, लेकिन यह बात अनमोल भाप चुका था और यही वजह थी कि कियारा का संदीप से मिलना उसे पसंद नहीं था.

अकसर वीकैंड पर कियारा अनमोल के फ्लैट में रात रुक जाती या जब

भी अजय नहीं होता वह अनमोल के साथ ही रातें गुजारती. अब कियारा जल्द से जल्द अनमोल के संग ब्याह के बंधन में बंध कर अपना घर बसाना चाहती थी, इसलिए एक रात जब वह अनमोल की बांहों में अपना सिर रख कर लेटी हुई थी तो उस ने अनमोल से कहा, ‘‘अनमोल अब हमें शादी कर लेनी चाहिए.’’

यह सुनते ही अनमोल कियारा के लबों पर अपने प्यार की निशानी अंकित करते हुए बोला, ‘‘माई डियर मैं भी यही सोच रहा हूं कोई तुम्हें उड़ा कर ले जाए, उस से पहले मैं तुम्हें उड़ा ले जाऊं.’’

उस के बाद अनमोल और कियारा ने अपने घर वालों के समक्ष अपनी शादी की इच्छा जाहिर की और दोनों के ही परिवार वाले भी इस शादी के लिए सहर्ष तैयार हो गए क्योंकि दोनों एक ही बिरादरी से थे और दोनों का सामाजिक स्तर भी बराबरी का था. कुछ ही हफ्तों बाद अनमोल और कियारा की सगाई हो गई और औफिस में चल रही सारी अठखेलियां कियारा और अनमोल के सगाई के बाद समाप्त हो गईं.

सलोनी की शादी भी उस की भाभी के छोटे भाई अंशु से फिक्स हो गई. यों लग रहा था जैसे सबकुछ सही हो गया है. सभी के सपनों को पंख मिल गए थे और सभी ऊंची उड़ान भरने लगे थे, लेकिन जिंदगी जितनी सरल दिखती है उतनी आसान होती कहां है. अभी जिंदगी को अपना एक अलग ही रंग दिखाना बाकी था.

तभी एक दिन कियारा किसी से कुछ भी बताए बगैर अनमोल के फ्लैट में जा पहुंची. सगाई के बाद से अनमोल के फ्लैट की एक चाबी कियारा के पास भी थी. फ्लैट पहुंच कर जैसे ही उस ने दरवाजा खोला और कियारा की आंखों ने जो देखा उसे देख कियारा को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. सलोनी को अनमोल की बांहों में देख कियारा स्तब्ध रह गई. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सलोनी और अनमोल उस के साथ ऐसा करेंगे. वह जानती थी कि सलोनी हर हफ्ते बौयफ्रैंड बदलती है, लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि अनमोल और सलोनी उस की पीठ पीछे लुकाछिपी का ऐसा गंदा खेल खेल रहे हैं. वह सम झती थी कि अजय और सलोनी के बीच में कुछ है शायद इसलिए सलोनी बारबार अनमोल के फ्लैट में अजय से मिलने जाती है. उसे तो कभी भनक तक नहीं लगी कि सलोनी और अनमोल उसे धोखा दे रहे हैं.

अनमोल और सलोनी के बीच का यह दृश्य देखने के बाद कियारा वहां से उलटे पांव अपने फ्लैट पर लौट आई. यह देख अनमोल और सलोनी भी उस के पीछे भागते हुए आए.

अनमोल अपनी सफाई देते हुए बोला, ‘‘देखो कियारा मैं और सलोनी

केवल फिजिकल रिलेशनशिप में हैं और कुछ नहीं, मैं  शादी सिर्फ और सिर्फ तुम से ही करना चाहता हूं और केवल तुम से ही करूंगा, किसी और से नहीं.’’

तभी सलोनी बोली, ‘‘हां कियारा मेरे और अनमोल के बीच में कुछ नहीं है. मेरा अजय और अनमोल के साथ एकजैसा ही रिलेशन है. तू तो जानती है न मेरा ऐसा रिलेशन कितनों के साथ रहा है. मैं ने तु झ से कहा भी था कि मैं किसी के साथ भी रिलेशनशिप में रहूं पर शादी अपनी कास्ट, अपनी बिरादरी के लड़के से ही करूंगी और तु झे भी ऐसा ही करना चाहिए. मु झे देख इतनों के साथ रिलेशन में होने के बावजूद मैं शादी तो अंशु से ही कर रही हूं.’’

यह सब चल ही रहा था कि संदीप भी वहां आ गया. संदीप को देखते ही कियारा उस से लिपट गई. यह देख अनमोल का पारा चढ़ गया और वह कियारा को संदीप से अलग करते हुए बोला, ‘‘ये सब क्या है कियारा? जब तक हमारी सगाई नहीं हुई थी, तब तक तुम्हारा इस संदीप के संग बेतकल्लुफ  होना मैं बरदाश्त कर सकता था, लेकिन अब ये सब नहीं चलेगा.’’

अनमोल का इतना कहना था कि कियारा की आंखों में खून खौल गया और बोली, ‘‘तुम सगाई के बाद किसी और लड़की से हमबिस्तर हो सकते हो और मैं अपने दोस्त के गले भी नहीं लग सकती?’’

अनमोल गुस्से में बोला, ‘‘नहीं, अब तुम मेरी होने वाली पत्नी हो और मैं किसी भी हाल

में नहीं चाहूंगा तुम इस संदीप के साथ कोई

रिश्ता रखो.’’

यह सुनते ही कियारा संदीप की ओर देखने लगी. आज पहली बार संदीप की आंखों में

कियारा अपने लिए प्यार देख पाई थी. कियारा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, ‘‘अनमोल अभी हमारी शादी हुई नहीं है और शादी से पहले मेरी एक शर्त है.’’

अनमोल ने कहा, ‘‘कैसी शर्त?’’

संदीप और सलोनी आश्चर्य से कियारा को देखने लगे. तभी कियारा बोली, ‘‘मैं शादी से पहले एक रात संदीप के साथ अकेले गुजारना चाहती हूं.’’

कियारा का इतना कहना था कि सभी की भौंहें तन गईं. कियारा को  झं झोड़ते हुए संदीप बोला, ‘‘पागल हो गई हो क्या? कुछ भी बोल रही हो…’’

तभी अनमोल बोला, ‘‘यह कैसी बेकार की शर्त

है. यह नहीं हो सकता. मेरी होने वाली बीवी किसी

पराए मर्द के साथ रात नहीं गुजार सकती.’’

‘‘मेरा होने वाला पति अगर पराई लड़की के साथ रात गुजार सकता है तो मैं क्यों नहीं? यदि शादी होगी तो इसी शर्त पर होगी नहीं तो नहीं होगी,’’ कहते हुए कियारा ने अपनी उंगली पर पहनी सगाई की अंगूठी निकाल कर अनमोल को थमा दी.

अनमोल ने फिर आगे कुछ नहीं कहा क्योंकि उसे यह शर्त मंजूर नहीं थी. वह कियारा को छोड़ सकता था, इस शादी को भी तोड़ सकता था, लेकिन एक ऐसी लड़की से शादी करने को तैयार नहीं था जो एक रात किसी दूसरे लड़के के साथ गुजार कर आई हो. अनमोल ने शर्त मानने से मना कर दिया.

तभी कियारा बोली, ‘‘हर लड़का एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता है जो लड़की जिस्मानी तौर पर पाक साफ हो, चाहे उस का खुद का कितनी भी लड़कियों के साथ जिस्मानी संबंध क्यों न हो. एक लड़की कई लड़कों से संबंध रखने के बाद शादी अपनी ही जातबिरादरी और धर्म में करना चाहती है ताकि समाज में उस की मानप्रतिष्ठा बनी रहे यह कैसी दोहरी मानसिकता है? यह कैसी सोच है? मु झे इस दोहरी सोच का हिस्सा नहीं बनना.

कियारा की शर्तों पर अनमोल ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया.

तभी संदीप बोला, ‘‘कियारा अनमोल सच कह रहा है, मैं ने आज तक तुम से यह

बात छिपाई कि मैं तुम से प्यार करता हूं. आज तुम यह बात जान चुकी हो, इसलिए पूछ रहा हूं क्या तुम एक विजातीय लड़के के संग यानी मेरे संग शादी करना चाहोगी?’’

संदीप के ऐसा कहते ही कियारा बोली, ‘‘संदीप क्या तुम यह जानते हुए भी मु झ से शादी करना चाहोगे कि मैं ने अपनी कई रातें अनमोल के साथ गुजारी हैं और मैं पाक साफ नहीं हूं?’’

‘‘प्यार तो बस प्यार होता है कियारा इस में किस ने किस के साथ रात गुजारी है यह नहीं देखा जाता, तुम ने किस के साथ कितनी रातें गुजारी हैं इस से मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मन की पवित्रता ही सब से बड़ी पवित्रता है और मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम दिल से पाक साफ हो, पवित्र हो और अपने जीवनसाथी के प्रति सदा ईमानदार थी और रहोगी. मु झे और क्या चाहिए,’’ ऐसा कहते हुए संदीप ने अपना हाथ कियारा की ओर बढ़ा दिया और कियारा ने बिना देर किए उस का हाथ थाम लिया. उस के बाद दोनों एकदूसरे की बांहों को थामे वहां से निकल गए. अनमोल और सलोनी उन्हें जाते हुए देखते रहे.

इक घड़ी दीवार की- भाग 3: क्या थी चेष्ठा की कहानी

सात्वत ने जेब से चाबी निकाल कर चेष्टा की ओर बढ़ा दी. दरवाजा खोल कर दोनों अंदर बैठ गए तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए चेष्टा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है? पहले अस्पताल चलें, ड्रेसिंग करवाने?’’

सात्वत जल्दी से बोला, ‘‘नहींनहीं, मेरे फ्लैट में ड्रेसिंग का सामान है. मैं कर लूंगा…अभी मुझे तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाना है.’’ कुछ पल की खामोशी रही. चेष्टा बिना कुछ बोले सामने की ओर देखती कार चलाती रही तो सात्वत ने पूछा, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? तुम तो पूना में थीं?’’

चेष्टा ने उस की ओर तीखी निगाहों से देखा फिर लंबा निश्वास ले कर उस ने कार को आगे बढ़ा दिया. लालबत्ती पार कर के कार सफदरजंग अस्पताल पहुंची. लेकिन चेष्टा ने वहां कार नहीं रोकी. उस ने आगे बढ़ कर सफदरजंग एनक्लेव में एक दोमंजिला भवन के गेट के अंदर जा कर पोर्टिको में कार रोकी. सात्वत इस बीच सीट पर पीछे सिर टिकाए खामोश बैठा रहा. केवल बीचबीच में वह 1-2 पल के लिए तिरछी निगाहों से चेष्टा की ओर देख लेता था.

चेष्टा ने कार का दरवाजा खोल कर बाहर आते हुए कहा, ‘‘चलो,’’ तो सात्वत चौंक कर दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चेष्टा ने सीढि़यां चढ़ते हुए आने का इशारा किया. दोनों पहली मंजिल में बरामदे के दाईं ओर एक आफिस के बाहर पहुंचे. चपरासी ने झट से दरवाजा खोला और चेष्टा के पीछे सात्वत अंदर गया. थोड़ा आश्चर्यचकित सा, हलका सा लंगड़ाता हुआ.

छोटा सा आफिस का कमरा था. एक मेज, कई कुरसियां, स्टूल, अलमारी, फाइलिंग कैबिनेट, एक टेलीफोन और एक कंप्यूटर आदि.

चेष्टा ने अपनी कुरसी पर बैठते हुए इशारा किया तो सात्वत भी सामने पड़ी दूसरी कुरसी खींच कर बैठ गया. चेष्टा ने जाते वक्त चपरासी से कहा कि डे्रसिंग का सामान और 2 कप चाय भेज देना. सात्वत ने सोचा कि चेष्टा यहां दिल्ली में इस आफिस में क्या कर रही है?

एक औरत तुरंत डे्रसिंग का सामान टे्र में ले कर आई. चेष्टा के इशारा करने पर उस ने सात्वत का जख्म साफ कर के दवा लगा कर पट्टी बांध दी. सात्वत ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘थैंक यू.’’

तब तक चाय आ गई और दोनों खामोश चाय पीने लगे, अपनेअपने खयालों में घिरे हुए.

सात्वत ने चेष्टा के सिर की ओर देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम्हारे हसबैंड?’’

चेष्टा ने सात्वत की ओर व्यथित नजरों से देखा, फिर अपने सूने सीमंत पर हाथ फेरती हुए, मुसकराने की नाकाम कोशिश करते हुए मंद स्वर में बोली, ‘‘मेरे पति जिंदा हैं, यानी जब तक जानती हूं तब तक थे, अब पता नहीं.’’

‘‘डाइवोर्स?’’

चेष्टा ने नकारात्मक सिर हिलाया और बिना जवाब दिए चाय की प्याली में कुछ तलाशती हुई सी खामोश बैठी रही.

‘‘सौरी, आई एम सौरी,’’ सात्वत को लगा कि उसे यह व्यक्तिगत प्रश्न नहीं पूछना चाहिए था.

चाय खत्म हो गई तो सात्वत ने बातों का सूत्र पुन: जोड़ने के लिए पूछा, ‘‘तुम पूना से यहां कब आईं? रहती कहां हो? अपना पता और टेलीफोन नंबर दे दो.’’

चेष्टा एक पल उस की ओर देख कर फिर नीचे देखने लगी, मानो पलकों के कोरों पर आए आंसुओं को वापस ढकेलने की कोशिश कर रही हो. फिर अचानक उस ने हंस कर कहा, ‘‘मेरी शादी के बारे में तो तुम्हें मालूम ही होगा?’’

‘‘हां, मैं पटना गया था मिलने.  तुम्हारी ही एक सहेली ने बताया कि शादी हो गई.’’

‘‘मालूम है,’’ चेष्टा बोली, ‘‘शायद तुम्हारे फोन कौल्स ने ही ममीडैडी को मेरी शादी करने के लिए फोर्स किया. उन्हें हम दोनों के प्रेम के बारे में मालूम हो गया था. शायद वे नहीं चाहते थे…कह नहीं सकती,’’ चेष्टा के चेहरे पर गहरी पीड़ा और वेदना की छाया उभरी. उस ने सात्वत के मन में उठते प्रश्नों को जान लिया और आगे बोली, ‘‘इनकार करना बहुत मुश्किल होता है. खासकर उन मांबाप की बात जिन्होंने जिंदगी में कुछ भी इनकार नहीं किया, कभी डांटा तक नहीं, हमेशा पूरी तरह से सपोर्ट किया. केवल एक के अलावा. वे तो मन में अच्छा ही चाहते होंगे. लेकिन हमेशा अच्छा नहीं होता. हजारों शादियां ऐसे ही होती हैं.’’

चेष्टा चुप हो गई मानो उस ने कुछ गलत कह दिया हो. सात्वत भी खामोश रहा क्योंकि उस के पास शब्द नहीं थे. कुछ क्षण गहरी खामोशी छाई रही. चेष्टा ने अचानक सात्वत की ओर देखा और बोली, ‘‘लंच का समय हो गया है,’’ मानो वह चेतना पर बोझ बनती इस खामोशी को दूर हटाना चाहती हो.

सात्वत चौंका फिर उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं लंच नहीं करता. हैवी ब्रेकफास्ट कर के निकलता हूं. दिन में कभीकभार कुछ स्नैक्स ले लेता हूं.’’

चेष्टा ने कौल बेल बजाई और चपरासी के अंदर आते ही उस से कहा, ‘‘2 कप चाय और कुछ बिस्कुट ले आओ.’’

दोनों थोड़ा सहज हुए. चेष्टा ने सात्वत की ओर देख कर उस की आंखों में उभरे प्रश्न को पढ़ लिया और बोली, ‘‘डैडी ने तुरंत रिश्ता तय कर दिया और 15 दिन बाद शादी कर दी.

‘‘मैं पूना आ गई. पति एक फर्म में एग्जीक्यूटिव थे. ससुर डी.जी. पुलिस थे. अब रिटायर्ड हैं. समाज की नजरों में तो सबकुछ परफेक्ट था. शिकायत की कोई वजह नहीं थी. पति ऊंची पोस्ट पर, अच्छी तनख्वाह. मैं शादी के 3 महीने बाद ही गर्भवती हो गई. डिलिवरी हुई तो बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ.’’

चेष्टा चुप हो गई और चाय पीने लगी. सात्वत व्यथित, अवाक् उस की ओर देखता रहा. फिर चेष्टा के इशारा करने पर वह बिस्कुट और चाय पीने लगा.

चेष्टा ने आगे कहा, ‘‘1 साल के बाद मैं दोबारा गर्भवती हो गई,’’ वह कुछ देर रुकी फिर फुसफुसा कर बोली, ‘‘वह भी मरा हुआ पैदा हुआ.’’

सात्वत के अंतर में पीड़ा का ऐसा वेग उभरा कि उस की जबान जड़ हो गई, सांत्वना के शब्द भी नहीं निकले और वह चुपचाप नीचे देखता रहा. चेष्टा ने सहज स्वर में आगे कहा, ‘‘तब डाक्टर ने ब्लड टेस्ट किया…इमैजिन, गर्भावस्था में नहीं किया और मैं एच.आई.वी. पाजिटिव थी.’’

‘‘ह्वाट?’’ सात्वत ने वेदना से अभिभूत हो कर चेष्टा की ओर देखा. उस के बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई.

चेष्टा धीरे से मुसकराई, मानो वह सात्वत को ढाढ़स दे रही हो. वह बोली,  ‘‘एड्स नहीं, केवल एच.आई.वी. पाजिटिव. मैं ने जिंदगी में कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिया था. कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं लिया था, कभी किसी पुरुष के साथ संबंध बनाने का कोई प्रश्न ही नहीं था. फिर शादी के बाद एच.आई.वी. पाजिटिव कैसे हो गई? समझ सकते हो?

‘‘उस डाक्टर को पहली बार गर्भवती होने पर टेस्ट कराना चाहिए था. मेरे पति का भी ब्लड टेस्ट कराना चाहिए था…उस ने टेस्ट की रिपोर्ट मेरे पति, सासससुर को दे दी और उन लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया, बिना कुछ पूछे, बिना कुछ जाने, बिना अपने बेटे के बारे में कुछ पता लगाए.’’

‘‘तुम ने केस नहीं किया?’’

‘‘केस…मुकदमा?’’ वह हंसी, जिस में केवल असीम व्यथा और निराशा की झलक और ध्वनि थी, ‘‘उस समय मुझे कुछ नहीं सूझा. मैं गहरे अंधकार में चली गई. बस, एक ही बात मन में आ रही थी, आत्महत्या…लेकिन उस समय मेरे मम्मीडैडी ने बहुत सहारा दिया. वे मुझे अपने साथ पटना ले आए. मुझे उस गहरे अंधकार से निकलने में महीनों लग गए. मैं धीरेधीरे सहारा ले कर, झिझकते, रुकते इस राह पर चल पड़ी. मैं ने एक एन.जी.ओ. ज्वाइन किया, डब्लू.एच.ओ. का सपोर्ट है. मैं ने एच.आई.वी. एड्स की टे्रनिंग ली. काउंसलर बनी. पूरे देश में घूमती हूं, टे्रनिंग और काउंसलिंग के लिए. समय कट जाता है, अब मन लग गया है. अब लगता है कि इस जीवन में कोई लक्ष्य है, कोई काम है.’’

लुकाछिपी- भाग 3: क्या हो पाई कियारा औक अनमोल की शादी

कियारा अपने अनुभाग में आते ही फौरन सलोनी के पास जा पहुंची और उसे अपना हाले दिल व अनमोल के बारे में बताने लगी.

यह सुनते ही सलोनी हंसती हुई बोली, ‘‘वाऊ… आखिर तु झे भी प्यार हो ही गया. अनमोल और तु झे मिलाने में मैं तेरी मदद कर सकती हूं.’’

यह सुनते ही कियारा बोली, ‘‘प्लीज बता न कैसे?’’

तब सलोनी थोड़ा इतराती हुई बोली, ‘‘मैं अनमोल के रूममेट को जानती हूं. पहले

वह तेरा दीवाना था और आजकल मेरा है.’’

कियारा आश्चर्य से बोली, ‘‘कौन?’’

सलोनी मुसकराती हुई बोली, ‘‘अजय.’’

कियारा मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘वह… अजय.’’

‘‘हां अजय… अजय और अनमोल रूममेट भी हैं और फ्रैंड भी. अनमोल से तो मैं उस के रूम में कई बार मिल चुकी हूं. जब भी अजय से मिलने जाती हूं अकसर मेरी मुलाकात अनमोल से होती है और अनमोल तो तु झे भी अच्छी तरह से जानता है.’’

यह सुन कर कियारा को थोड़ा अजीब सा लगा क्योंकि अनमोल से बातें करते हुए उसे एक क्षण के लिए भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि अनमोल उसे जानता है.

वह यह सोच ही रही थी की कियारा के क्लासमेट संदीप का फोन आ गया. संदीप उस का स्कूल फ्रैंड था, उस के शहर दिल्ली से था और वह भी यहां बैंगलुरु की ही एक आईटी कंपनी में था. अकसर संदीप वीकैंड पर या फिर जब भी फ्री होता कियारा के साथ समय स्पैंड करने आ जाता या कियारा उस के पास चली जाती. दोनों के बीच इतना अच्छा तालमेल था कि लोगों को संदेह होता कि शायद संदीप और कियारा के बीच संबंध है.

कियारा के फोन रिसीव करते ही संदीप बोला, ‘‘हाय? किया क्या कर रही हो?’’

यहां बैंगलुरु में संदीप ही था जो कियारा को किया नाम से पुकारता था. उस के केवल कुछ खास दोस्त ही थे जो उसे किया पुकारते थे. उन में से एक संदीप भी था.

‘‘कुछ नहीं बस औफिस में हूं.’’

‘‘आज शाम मैं फ्री हूं डिनर पर चलोगी? बहुत दिनों से हम ने साथ डिनर नहीं किया है,’’ संदीप खुश होते हुए बोला.

कियारा डिनर के लिए मना कर देना चाहती थी क्योंकि उस का मन विचलित था, लेकिन वह संदीप को दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए बोली, ‘‘हां ठीक है. कहो मु झे कहां आना है?’’

‘‘अरे यार तुम्हें कहीं आने की जरूरत नहीं. मैं आ जाऊंगा तु झे लेने फिर साथ चलेंगे,’’ संदीप आत्मीयता और अपना पूरा हक जताते हुए बोला.

‘‘ओके आई विल वेट,’’ कह कर कियारा ने फोन रख दिया.

कियारा के फोन रखते ही सलोनी शरारती अंदाज में मुसकराती हुई बोली, ‘‘संदीप का फोन था?’’

कियारा के हां कहने पर सलोनी उसे छेड़ती हुई बोली, ‘‘क्या बात है कहां चलने को कह रहा है हीरो… तेरी तो ऐश है यार, संदीप जैसा हैंडसम लड़का भी तु झ पर ही मरता है और मु झ से ठीक से बात भी नहीं करता.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है वी आर जस्ट ए गुड फ्रैंड. तू भी साथ चलना… मजा आएगा.’’

डेढ़ साल पहले जब सलोनी संदीप से मिली थी तब से वह संदीप को आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन विफल ही रही. उसे इस बात से बहुत चिढ़ है कि संदीप का ध्यान केवल कियारा की ओर ही रहता है, लेकिन उस ने कभी कियारा को इस बात का आभास नहीं होने दिया.

‘‘ठीक है तू कह रही है तो मैं भी चलती हूं वरना संदीप के साथ कहीं जाना मु झे पसंद नहीं.’’

सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा ने कोई जवाब नहीं दिया और फिर दोनों अपनेअपने काम में लग गईं.

शाम को औफिस से लौटने के बाद कियारा डिनर पर जाने के लिए तैयार होने लगी.

तभी उस ने देखा सलोनी हैडफोन लगा कर शांत बैठी हुई है. यह देख कियारा ने कहा, ‘‘अरे संदीप आने ही वाला है तू रैडी कब होगी?’’

‘‘नहीं मैं नहीं चल रही, मेरा मन नहीं कर रहा. तुम जाओ मेरी वजह से तुम अपना प्रोग्राम ड्राप मत करो,’’ सलोनी गंभीर होती हुई बोली.

‘‘क्या हुआ? कुछ है तो बता न मैं संदीप को डिनर के लिए मना कर दूंगी,’’ कियारा बोली.

‘‘अरे कुछ नहीं तू जा न… आई विल मैनेज,’’ सलोनी के ऐसा कहने पर कियारा अकेले ही संदीप के साथ डिनर पर चली गई.

जब वह डिनर से लौटी तो उस ने देखा सलोनी काफी खुश लग रही थी. कियारा को कुछ सम झ नहीं आया कि आखिर इन 2 घंटों में ऐसी क्या बात हो गई जो शांत उदास सलोनी अचानक इतनी खुश लग रही है. कियारा उस से यह जानना चाहती थी लेकिन चुप रही.

अगले दिन औफिस में अभी कियारा ने अपना डैस्कटौप खोला ही था कि वहां अनमोल आ गया. अनमोल को देखते ही सलोनी की धड़कनें तेज हो गईं. ऐसा पहली बार हुआ था

जब कियारा का दिल किसी के लिए इतना अधीर हुए जा रहा था. कियारा अपनी सीट से उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘अनमोल तुम? कहो कुछ काम है?’’

अनमोल ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘नहीं बस यों ही तुम से मिलने आ गया.’’

यह सुनते ही कियारा के आंखों में चमक आ गई और औफिस के बाकी लोगों के कान खड़े हो गए, कियारा थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘ प्लीज हेव ए सीट.’’

कियारा के ऐसा कहते ही अनमोल बैठ गया और थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच गहरी शांति ने स्थान ले लिया जिसे तोड़ते हुए अनमोल ने कहा, ‘‘कियारा कल रात मैं तुम से मिलने तुम्हारे फ्लैट पर आने वाला हूं यह जानते हुए भी तुम किसी संदीप के साथ डिनर पर चली गई, अगर तुम्हें मु झ से नहीं मिलना था तो फोन कर के मु झे बता भी सकती थी. सलोनी के पास तो मेरा और मेरे रूममेट अजय हम दोनों का नंबर है, लेकिन तुम इस तरह बिना बताए.

कियारा बीच में ही अनमोल को रोकती हुई बोली, ‘‘एक मिनट. एक मिनट. तुम ने मु झ से कब कहा कि तुम मु झ से मिलने आ रहे हो?’’

‘‘अरे… मैं ने सलोनी से फोन कर के कहा तो था कि मैं आ रहा हूं… तुम्हारा मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था, इसलिए मैं ने सलोनी से कहा था,’’ अनमोल थोड़ा हैरान होते हुए बोला.

कियारा को बात सम झने में देर नहीं लगी कि कल सलोनी उन के साथ डिनर पर क्यों नहीं गई और वह इतनी खुश क्यों लग रही थी.

कियारा के चेहरे पर दुख के भाव आ गए और वह बोली, ‘‘आई एम सौरी अनमोल मु झे नहीं पता था तुम आने वाले हो, सलोनी मु झे बताना भूल गई होगी.’’

अनमोल मुसकराते हुए बोला, ‘‘इट्स ओके अच्छा अब मैं चलता हूं.’’

अनमोल जैसे ही जाने लगा कियारा ने कहा ‘‘अनमोल फिर कभी आना हो तो…’’ ऐसा कहते हुए एक कागज का टुकड़ा उस की ओर बढ़ा दिया, जिस पर उस का फोन नंबर लिखा था. उस के बाद क्या था अनमोल और कियारा की प्यार की गाड़ी सुपरफास्ट ऐक्सप्रैस की तरह दौड़ने लगी. औफिस में भी अफसाने बनने लगे. किसी को कुछ सम झ नहीं आ रहा था. सभी के सम झ से परे थी यह बात कि आखिर किस का रिश्ता किस के साथ है.

कियारा का रिश्ता संदीप के संग है या अनमोल के संग, सलोनी कभी अजय के साथ नजर आती तो कभी अनमोल के साथ, लोगों को यह अंदाजा लगाना मुश्किल था. आखिर इन सभी पांचों में किस का संबंध किस के साथ. कियारा पहले की ही तरह संदीप के साथ आउटिंग पर जाती उस के साथ मूवी जाती और कभीकभी डिनर पर भी जाती, लेकिन जब संदीप और कियारा साथ जाते उन के साथ कोई तीसरा नहीं होता क्योंकि कोई भी संदीप के साथ कहीं जाना पसंद नहीं करता, लेकिन जब कियारा अनमोल के साथ कहीं जाती संदीप को छोड़ कर सलोनी और अजय भी साथ होते.

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 3

‘‘आजक्या हुआ मालूम है?’’ उस दिन घर लौटते ही संगीता का उत्साह छलक पड़ा.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पृथ्वी अचानक ही कहने लगा कि तुम्हारा नाम संयोगिता होना चाहिए था. क्या जोड़ी बनती हमारी.’’

‘‘अच्छा? फिर तूने क्या कहा?’’

‘‘मैं क्या कहती? मेरे मन की बात उस की जबान पर? मैं तो दंग रह गई. सच मन को मन से राह होती है. फिर तो मैं ने उसे सब कुछ विस्तार से बताया कि मैं अपना नाम बदल कर संयोगिता रखना चाहती थी पर पापा नहीं माने. वह मेरी बात तुरंत समझ गया. कहने लगा कि वह आगे से मुझे संयोगिता ही बुलाएगा. फिर मैं ने भी कह दिया कि मेरा भी एक सपना है कि मेरा पृथ्वीराज मुझे इतिहास वाले पृथ्वीराज की तरह घोड़े पर उठा कर ले जाए और सब देखते रह जाएं.’’

‘‘हाय, फिर क्या बोला वह?’’ सपना अपनी स्वप्निल आंखों को नचाते हुए बोली.

‘‘एक क्षण को तो वह चुप रह गया. फिर बोला कि उसे तो घुड़सवारी आती ही नहीं. पर मेरे लिए वह कुछ भी करेगा. वह घुड़सवारी भी सीखेगा और मुझे उठा कर भी ले जाएगा. लोग तो प्यार में आकाश से तारे तक तोड़ लाने तक की बात करते हैं. वह क्या इतना भी नहीं कर सकता?’’

अगले दिन संगीता ने हमें पृथ्वीराज से मिलवाया. उस का सुदर्शन व्यक्तित्व देख कर हम तीनों ठगे से रह गए.

‘‘तो आप तीनों हैं संगीता की अंतरंग सहेलियां. आप तीनों के बारे में संगीता ने इतना कुछ बताया है कि मैं बिना किसी परिचय के भी आप तीनों को पहचान लेता,’’ उस ने हमें हमारे नामों से बुला कर हैरान कर दिया.

‘‘इस में खूबी मेरी नहीं संगीता की है. उस ने जिस तरह मुझे आप के नामों से परिचित कराया उस में भ्रमित होने का कोई अवसर ही नहीं था,’’ उस ने हंसते हुए कहा. पता नहीं उस के व्यक्तित्व में कैसा आकर्षण था कि हमें लगा ही नहीं कि हम उस से पहली बार मिले.

‘‘संगीता को बचपन से ही पृथ्वीराज से बहुत लगाव रहा है. अच्छा हुआ जो उसे आप मिल गए.’’

‘‘जी हां, बताया था उस ने. वह तो अपना नाम भी बदल कर संयोगिता रखना चाहती थी पर सफल नहीं हुई. मैं ने उसे समझाया कि मेरे लिए तो संयोगिता ही रहेगी. वह इतने से ही प्रसन्न हो गई.’’

‘‘आप तो उस के लिए घुड़सवारी भी सीख रहे हैं. हम ने तो दांतों तले उंगली दबा ली,’’ सपना ने उस की प्रशंसा की.

‘‘मैं तो बस प्रयास कर रहा हूं. पर काम मुश्किल है. सच तो यह है कि मुझे घोड़ों से बहुत डर लगता है.’’

‘‘दाद देनी ही पड़ेगी कि संगीता की पसंद की जो आप उस के लिए इतना कठिन कार्य भी करने को तैयार हो गए,’’ सपना अपनी स्वप्निल आंखों को दूर कहीं टिकाते हुए बोली.

‘‘मैं भी कम खुश नहीं हूं जो मेरी भेंट संगीता से हो गई,’’ अपने मनभावन को खोजतेखोजते पृथ्वीराज भी सिर से पांव तक संगीतामय हुआ प्रतीत हुआ हमें.

हम कौफीहाउस में साथ कौफी पी कर लौट आए. पर संगीता और पृथ्वीराज एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले वहीं बैठे रहे.

घर में मम्मी हमारी प्रतीक्षा कर रही थीं, ‘‘कहां थीं तुम तीनों? मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूं? यह समय है घर लौटने का? और संगीता कहां रह गई? मुझे तो तुम लोगों के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे?’’

‘‘आ जाएगी अभी. आज उस की ऐक्स्ट्रा क्लास है. कुछ कह रही थी न वह आज सुबह?’’ मैं ने सपना और नीरजा से प्रश्न करने का दिखावा किया.

‘‘आप पार्क में घूम आइए न. तब तक संगीता भी आ जाएगी,’’ मैं ने मां के गले में बांहें डाल कर उन्हें शांत करना चाहा.

‘‘तू नहीं समझेगी. बेटियों की जिम्मेदारी कंधों पर हो तो पार्क में मन लगेगा? मेरा काम केवल तुम्हारे खानेपीने का प्रबंध करना ही नहीं है, बल्कि तुम्हारी गतिविधियों पर नजर रखना भी है,’’ मां को इतना गंभीर मैं ने पहले कभी नहीं देखा था.

‘‘ठीक कहा आप ने आंटी. इन तीनों के लक्षण तो मुझे भी ठीक नहीं लगते. पर आप चिंता न कीजिए, मैं इन पर कड़ी नजर रखती हूं,’’ संगीता मम्मी के पीछे खड़ी मंदमंद मुसकराते हुए उन की हां में हां मिला रही थी.

‘‘कहां थी अब तक? मेरी तो जान ही सूख गई थी,’’ मां अब भी नाराज थीं.

‘‘कालेज के अलावा और कहां जाऊंगी आंटी? मैं तो आप के डर से दौड़ती हुई घर आई हूं.’’

‘‘तू तो मेरी प्यारी बेटी है. तू तो कुछ गलत कर ही नहीं सकती. पर क्या करूं, मन में सदा डर लगा रहता है. अब तू आ गई है तो मैं पार्क में घूमने जा रही हूं,’’ कह मां सैर करने चली गईं.

नीरजा आगबबूला हो उठी, ‘‘सुन लिया तुम दोनों ने? प्रेमरस में डुबकी संगीता लगाए और डांट हम खाएं. यह सब मुझ से नहीं सहा जाएगा. संगीता सुधर जा नहीं तो मैं आंटी को सब कुछ बता दूंगी. फिर तू जाने और तेरा काम,’’ नीरजा ने धमकी दी.

‘‘उस की जरूरत नहीं पड़ेगी. आज से ठीक 4 दिन बाद पृथ्वीराज मुझे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा. बिलकुल इतिहास की संयोगिता की तरह और तुम सब देखती रह जाओगी. अब वह घुड़सवारी में दक्ष हो गया है. समझ में नहीं आ रहा कि मेरे सपनों का राजकुमार जब पूरी तरह सजधज कर मेरे सामने आ खड़ा होगा तो मैं उस का स्वागत कैसे करूंगी? मैं तो रहस्यरोमांच से भावविभोर हो उठी हूं,’’ संगीता आंखें मूंदे अपने स्वप्नलोक में खो गई. पर हमें लगा मानों कमरे की हवा थम गई हो. कुछ क्षणों के लिए हम में से किसी के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला. ‘‘बहुत हो गया. मैं अब चुप नहीं रहूंगी. अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है. मैं तो अब तक सब कुछ इस का बचपना समझ कर चुप थी. पर अब मैं आंटी को सब कुछ सचसच बता दूंगी. फिर वे जानें और संगीता,’’ नीरजा क्रोधित हो उठी.

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी. तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हारे अंकुश के विषय में कुछ नहीं जानती जिस के साथ तुम घंटों लाइब्रेरी में बैठी रहती हो… और क्लासें बंक कर के सिनेमा देखने जाती हो?’’ संगीता भी उतने ही क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘कौन है यह अंकुश?’’ मैं और सपना दंग रह गए.

‘‘नीरजा से पूछो न, जो सदा मुझे उपदेश देती रहती है.’’

‘‘मैं कौन सा डरती हूं. अंकुश दोस्त है मेरा.’’

‘‘पृथ्वीराज भी मेरा दुश्मन तो नहीं है?’’ संगीता ने तर्क दिया.

‘‘तुम दोनों अपनी बहस बंद करो तो मैं कुछ बोलूं?’’ मैं ने दोनों को टोका.

‘‘कहो, क्या कहना है तुम्हें?’’ दोनों ने कहा.

‘‘यही कि मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे कारण मेरी मम्मी को दुख पहुंचे. मैं उन्हें सब सच बता दूंगी.’’

‘‘तू चिंता न कर मैं स्वयं उन्हें सब बता दूंगी,’’ संगीता ने आश्वासन दिया. उस के बाद हम सांस रोक कर उस घड़ी की प्रतीक्षा करने लगे जब संगीता पृथ्वीराज का राज मां को बताने वाली थी.

2 दिन बाद संगीता कालेज से लौटी तो बड़ी गमगीन थी.‘‘क्या हुआ?’’ उसे दुखी देख कर हम ने पूछा तो उत्तर में संगीता फफक उठी.

‘क्या हुआ?’’ सपना दौड़ कर पानी ले आई. हम ने किसी प्रकार उसे शांत किया.

‘‘कल घुड़सवारी करते समय पृथ्वीराज घोड़े से गिर पड़ा… बहुत चोट आई है,’’ संगीता ने हिचकियों के बीच बताया.

‘‘है कहां वह?’’ हम ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘नर्सिंगहोम में. उस के मातापिता भी आ गए हैं. पता नहीं उन्हें कैसे मेरे और पृथ्वीराज के संबंध के बारे में पता चल गया. उन्होंने मुझे बहुत बुराभला कहा,’’ उस के आंसू थम ही नहीं रहे थे.

ग्रहण: मां के एक फैसले का क्या था अंजाम

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