अब मैं समझ गई हूं- भाग 2: क्या रिमू के परिवार को समझा पाया अमन

अगले दिन सुबहसुबह ही मेरे सपनों की रानी रिमू का फोन आ गया. उस ने जो कहा उस से मेरी खुशी दोगुनी हो गई,

‘‘अमन, मैं ने मां को अपने बारे में बताया था तो उन्होंने कुंडली मिलान की बात की है. और कहा है कि तुम अपनी जन्मपत्रिका का फोटो व्हाट्सऐप पर भेज दो. वे कल ही हमारे पंडितजी के पास जा कर मिलवा लाएंगी. बस, फिर हमारी शादी,’’ कहतेकहते रीमा फोन पर ही शरमा गई.

रिमू की बात सुन कर मैं भी कुछ आश्वस्त सा हो गया कि कुछ गुण तो मिल ही जाएंगे अर्थात अब हमारे विवाह में कोई व्यवधान नहीं था. मन ही मन मैं अपने और रिमू के सुनहरे भविष्य के सुनहरे सपने बुनने लगा.

2-3 दिन यों ही खयालों में निकल गए. एक दिन जब मैं शाम को औफिस से निकल रहा था तो रिमू का फोन आया. वह फोन पर जोरजोर से रो रही थी. मैं उस का रोना सुन कर घबरा सा गया और बोला, ‘‘क्या हुआ, कुछ बताओगी भी, क्यों इतनी जोरजोर से रो रही हो?’’

‘‘अमन, कल मां गई थीं हमारे पंडितजी से कुंडली मिलवाने. पर उन्होंने कहा है कि दोनों की कुंडली में लेशमात्र भी मिलान नहीं है.  इन दोनों का विवाह किसी भी हालत में संभव नहीं है और यदि किया गया तो लड़की का वैधव्य सुनिश्चित है. इसलिए मांपिताजी ने इस विवाह के लिए साफ मना कर दिया है. अब क्या होगा?’’ कह कर फिर वह जोर से रोने लगी और फोन काट दिया.

रिमू के मातापिता की ऐसी रूढि़वादी सोच ने मुझे हैरत में डाल दिया क्योंकि स्वयं को अति आधुनिक बताने वाला परिवार इतना अंधविश्वासी और दकियानूसी हो सकता है, यह तो मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

रिमू का भाई यूएस से एमबीए कर रहा था. पूरा परिवार प्रतिदिन अपने बेटे से स्काइप पर बातचीत करता था. घर के प्रत्येक सदस्य के पास अपना अलग लैपटौप और आधुनिक तकनीक के समस्त साधन मौजूद थे. घर की एकएक वस्तु आधुनिकता का बखान करती सी प्रतीत होती थी.

बातबात में अपनी आधुनिकता का प्रदर्शन करने वाले परिवार का इतना अंधविश्वासी होना मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था. जन्मपत्रिका और कुंडली को इतना अधिक महत्त्व देने वाले ये तथाकथित आधुनिक परिवेश के जनमानस क्यों नहीं समझ पाते कि विवाह किसी कुंडलीवुंडली से नहीं, बल्कि 2 लोगों की परस्पर समझदारी से सफल और असफल होते हैं.

क्या जन्मकुंडली में सभी गुण मिला कर किए विवाह असफल नहीं होते, जबकि वास्तविकता तो यह है कि विवाह की सफलता और असफलता तो पतिपत्नी की परस्पर समझ, त्याग और समर्पण की भावना पर निर्भर करता है.

खैर, इस समय तो मुझे अपनी इस समस्या का ही कोई उपाय तलाशना था, सो शांतमन से किसी हल पर विचार करने लगा. इस के बाद दोएक अवसरों पर मैं ने स्वयं रिमू के मातापिता को कुंडली की निरर्थकता के बारे में समझने का काफी प्रयास किया परंतु उन का एक ही जवाब था.

‘‘हम जानबूझ कर अपनी बेटी को विधवा होते नहीं देख सकते.’’

उन से बात कर के मुझे भी समझ आ गया था कि उन के मन में कुंडली के बीजों की पैठ बहुत गहरी है. सो, उन के आगे बोलना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है. कुछ दिनों बाद मुझे अपने एक मित्र के विवाह में भोपाल जाना पड़ा. मित्र ने बिना किसी तामझम के कोर्ट में रजिस्टर्ड मैरिज की थी, जिस में महज उस के परिवार वाले ही शामिल थे.

लड़की के मातापिता ही नदारद थे. पूछने पर पता चला कि लड़की के मातापिता किसी भी स्थिति में इस अंतर्जातीय विवाह के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए दोनों ने बिना मातापिता के ही रजिस्टर्ड विवाह करने का फैसला लिया था.

वापस आते समय मैं भी रजिस्टर्ड विवाह के बारे में सोचने लगा कि अब शायद मेरे लिए भी यही चारा है क्योंकि आज 2 वर्ष हो गए पर रिमू के मातापिता सबकुछ सहीसलामत होते हुए भी कुंडली के साथ समझता करने को तैयार नहीं थे. न जाने कैसे और क्यों उन के मस्तिष्क में इस जन्मकुंडली ने भी सर्प की भांति की कुंडली मार ली थी.

एक दिन बातों ही बातों में मैं ने फोन पर रिमू से मातापिता की अनुमति के बगैर रजिस्टर्ड विवाह करने की बात कही. इस पर रिमू बोली, ‘‘अमन, विवाह के बाद अगर कुछ ऐसावैसा हो गया तो क्योंकि पंडितजी ने कहा है…’’

‘‘कुछ नहीं होता रिमू, मैं ऐसे किसी भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करता. मैं ने ऐसे कितने ही जोड़े देखे हैं जो पूरी तरह कुंडली मिलने के बाद भी ताउम्र लड़तेझगड़ते और एकदूसरे से असंतुष्ट ही रहते हैं. और मेरे ही परिचित कितने ऐसे जोड़े हैं जो अंतर्जातीय विवाह कर के भी आज खुशहाल जीवन जी रहे हैं.

‘‘हम दोनों मिल कर अपने गृहस्थ जीवन को खूबसूरत बनाएंगे. क्या तुम मांपापा को छोड़ कर मेरी खातिर आ सकती हो? कहते हैं न युवावस्था का प्यार अंधा होता है जिस में सिर्फ और सिर्फ प्यार को पाने की चाहत होती है. सो, सुनिश्चित दिन पर रीमा अपने मातापिता की अनुमति के बगैर घर से आ गई और मेरे मातापिता की मौजूदगी में मैं ने रिमू से कोर्ट मैरिज कर ली.

हमारे विवाह के बाद रिमू के मातापिता ने प्रारंभ में तो कुछ नाराजगी प्रदर्शित की परंतु बाद में धीरेधीरे सब सामान्य हो गया. विवाह के बाद रिमू को ले कर मैं अपने पोस्ंिटग स्थल रीवां आ गया था. कुछ शादी की व्यस्तता और मौसम के बदलाव ने ऐसा असर दिखाया कि आते ही मैं चिकनगुनिया नामक बीमारी से ग्रस्त हो कर एक माह तक बिस्तर पर ही रहा.

एक दिन रीमा मेरे पास आ कर बैठी और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, ‘‘अमन, मुझे लगता है हमारी बेमेल कुंडली ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है, मैं तुम से बारबार कहता हूं इस प्रकार का कोई वहम अपने मन में मत पालो. ये सब बेकार की बातें हैं,’’ कह कर मैं ने रीमा को चुप करा दिया.

मुझे पूरी तरह ठीक होतेहोते ही लगभग 6 माह लग गए. सबकुछ सामान्य हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन अचानक मेरे बड़े भाई को हार्टअटैक हो गया और जब तक उन्हें अस्पताल ले जाया गया, उन्होंने दम तोड़ दिया. अब तो रीमा के अंधविश्वासी मन का वहम और भी मजबूत हो गया. जब हम लोग भैया का क्रियाक्रम कर के वापस आ रहे थे तो रीमा कहने लगी.

‘‘अमन, तुम मानो या न मानो, हमारे बड़ेबुजुर्ग जन्मकुंडली मिला कर विवाह करने की बात सही ही कहते थे. देखो, हम अपने विवाह के बाद चैन से रह तक नहीं पा रहे हैं. एक के बाद एक विपत्तियां आए ही जा रही हैं. गृहस्थ जीवन को तो हम महसूस तक नहीं कर पाए.’’

‘‘तो फिर क्यों तुम चली आईं अपने मातापिता को छोड़ कर मेरे साथ. जिस से जन्मकुंडली मिलती उसी से शादी करतीं.’’

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 2

‘‘आंटी, आप को संगीता और संयोगिता में कौन सा नाम अधिक पसंद है?’’ एक दिन अचानक वह हमारी संरक्षक मेरी मम्मी से पूछ बैठी तो लगा कमरे की हवा थम सी गई है. मुंह की ओर खाना ले जाते हुए हमारे हाथों पर बे्रक लग गया.

दोनों ही नाम अच्छे हैं. पर तू क्यों पूछ रही है?’’ मम्मी ने उस की बात पर ध्यान दिए बिना पूछा.

‘‘मुझे तो संगीता बिलकुल पसंद नहीं है. संयोगिता की तो बात ही कुछ और है. कितना रोमांटिक नाम है,’’ कह संगीता ने गहरी सांस ली.

‘‘लो भला… नाम में क्या रखा है… किसी भी नाम से गुलाब तो गुलाब ही कहलाएगा,’’ मम्मी को शेक्सपियर याद आ गया था.

‘‘हां, पर कमल को गुलाब कहने पर भी वह तो कमल ही रहेगा न?’’ संगीता ने तर्क दिया.

‘‘बात तो पते की कह रही है मेरी बेटी. शेक्सपियर से भी अधिक बुद्धिमान है मेरी संगीता. ऐसे ही कोई बोर्ड में टौप नहीं कर लेता,’’ मम्मी निहाल हो उठी थीं. पर हम सब की जान पर बन आई थी.

‘‘फिर शुरू हो गया तेरा संयोगिता पुराण?’’ मम्मी के कक्ष से बाहर जाते ही हम तीनों उस पर टूट पड़े.

‘‘अरे वाह, तुम लोग हो कौन इस तरह की बातें करने वाले? अब क्या संयोगिता का नाम लेना भी गुनाह हो गया,’’ संगीता रोंआसी हो उठी.

‘‘वही समझ ले. हमारे मातापिता को इस काल्पनिक परीकथा की भनक भी पड़ गई तो शीघ्र ही यहां से हम सब का बोरियाबिस्तर बंध जाएगा और हम सब को प्राइवेट परीक्षा देनी पड़ेगी,’’ मैं संगीता पर बरस पड़ी.

‘‘वही तो,’’ नीरजा ने मेरी हां में हां मिलाई.

‘‘समझ में नहीं आ रहा है कि तुम लोग मेरी मित्र हो या शत्रु? मेरी छोटी सी खुशी भी तुम लोगों से सहन नहीं होती. मैं ने ऐसा क्या कर दिया है कि तुम सब को अपना बिस्तर बंध जाने की चिंता सताने लगी है. मैं ने भी तय कर लिया है कि तुम लोगों से कुछ नहीं कहूंगी,’’ संगीता ने अपना मुंह फुला लिया.

हम सब ने चैन की सांस ली. संगीता कुछ नहीं कहेगी तो संयोगिता का भूत भी शीघ्र ही उस के सिर से उतर जाएगा. कुछ ही देर में वह सामान्य हो गई. उसे मनाने के लिए हमें अधिक मनुहार नहीं करनी पड़ी. पर संगीतासंयोगिता के बीच संघर्ष चलता रहा. हम सब भी अब उस की बातों को उपहास समझ कर टालने लगे थे.

यों दिवास्वप्न तो हम सब देखते थे. सब के मन में अपने सपनों के राजकुमार की धुंधली ही सही पर एक काल्पनिक छवि थी अवश्य. पर संगीता सब से अधिक मुखर थी और अपने मन की बात डंके की चोट पर कहने में विश्वास रखती थी. पर परीक्षा पास आते ही वह इस तरह पढ़ाई में डूब जाती थी कि हम सब दंग रह जाते थे. बी.एससी. औनर्स के अंतिम वर्ष में वह पूरे विश्वविद्यालय में तीसरे स्थान पर आई जबकि हम सब पूरे मनोयोग से पढ़ाई करने पर भी मैरिट लिस्ट में कहीं नहीं थे.

‘‘देखा, कुछ सीखो संगीता से,’’ हर बार अपने परिवार के सम्मान में चार चांद लगा देती है,’’ मेरी मम्मी ने हमें थोड़ा और परिश्रम करने की सलाह दी तो नीरजा मुंह फुला कर बैठ गई.

‘‘अब तुझे क्या हुआ?’’ मैं ने उसे शांत करना चाहा.

‘‘होने को रह भी क्या गया है? सुना नहीं आंटी क्या कह रही थीं? अब मेरी समझ में भी कुछ आ रहा है,’’ वह गंभीर स्वर में बोली.

‘‘क्या समझ में आ रहा है तुम्हें?’’

‘‘यही कि अपनी काल्पनिक प्रेम कहानी सुना कर संगीता हमारा ध्यान बंटा देती है और स्वयं डट कर पढ़ाई कर बाजी मार ले जाती है. यह सब उस की चाल है हम से आगे निकलने की… आगे से हम उस की एक नहीं सुनेंगे. स्वयं को बड़ा तीसमारखां समझती है,’’ नीरजा बहुत क्रोध में थी.

‘‘यह तू नहीं, तेरी ईर्ष्या बोल रही है,’’ हम सब ने किसी प्रकार उसे शांत किया.

अब हम सब अपनी स्नातकोत्तर पढ़ाई में व्यस्त हो गए थे. गाहेबगाहे संगीता संयोगिता को याद कर लेती थी. मैं और सपना उस की बातों को मजाक समझ कर टाल देते पर नीरजा आगबबूला हो उठती.

एक दिन अचानक संगीता दनदनाती हुई आई. अपना बैग एक ओर फेंका और कुरसी पर पालथी लगा कर बैठ गई. उस के हावभाव देख कर लगा कि वह कुछ कहने के लिए आतुर है. नीरजा ने इशारे में ही पूछ लिया कि माजरा क्या है? उस ने आंखों ही आंखों में समझा दिया कि मेरी मम्मी की मौजूदगी में वह अपने मन की बात नहीं कह सकती.

अब तो हमारी उत्सुकता की सीमा न रही. मेरी मम्मी उस की अभिभावक ही नहीं, बल्कि अच्छी मित्र भी थीं. जिस बात को वह अपनी मम्मी से नहीं कह पाती थी उसे मेरी मम्मी से बेधड़क कह देती थी. फिर आज यह कौन सी गुप्त बात थी जो वह मेरी मम्मी के सामने कहने से हिचक रही थी.

मम्मी हम सब को नाश्ता करा कर पास के पार्क में घूमने चली गईं. वहां उन्होंने अपनी मित्रमंडली बना ली थी. वे वहां घूमफिर कर सब्जी खरीद कर घर लौटती थीं. उन के जाते मैं और सपना लपक कर संगीता के पास पहुंचे. नीरजा दूर बैठी सब देख रही थी पर उस के हावभाव से साफ था कि उस के कान हमारी ओर ही लगे हुए हैं.

‘‘क्या हुआ? ऐसी कौन सी बात है जो तू मम्मी के सामने नहीं कह सकती थी?’’ हम ने एक स्वर में पूछा.

‘‘दिल थाम कर बैठो. आज तो कमाल हो गया. साक्षात पृथ्वीराज मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया. मुझे तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ.’’

‘‘क्या? पृथ्वीराज? कौन सा पृथ्वीराज?’’ न चाहते हुए भी हम सब की हंसी छूट गई.

‘‘संयोगिता का पृथ्वीराज. इस में इतना खीखी करने की क्या बात है. तुम सब मेरी घनिष्ठ सहेलियां हैं पर काश तुम मेरी भावनाएं समझ पातीं. पर नहीं तुम्हें तो बस मेरी कमियां नजर आती हैं. पर मैं चुप नहीं रहूंगी. आज तुम्हें मेरी बात ध्यान से सुननी पड़ेगी. आज पहली बार जब साक्षात पृथ्वीराज मेरे सामने आ खड़ा हुआ तो न जाने कितनी देर तक मैं मूर्ति सी खड़ी रही. ऐसा प्रभावशाली व्यक्तित्व है उस का कि देखने वाले के होश उड़ा दे. मुझे तो लगा मानों संयोगिता का पृथ्वीराज इतिहास के पन्नों से बाहर आ गया. बस एक ही अंतर था…’’

‘‘वह क्या? नीरजा ने उसे बीच में टोक दिया.’’

‘‘यही कि वह घोड़े पर नहीं बाइक पर आया था.’’

‘‘उफ, कितने दुख की बात है. पर अब तू क्या करेगी? तेरा इतिहास में अमर होने का सपना तो अधूरा ही रह जाएगा,’’ नीरजा हंसी.

‘‘तुम लोग चिंता न करो. मैं अपना कोई भी सपना अधूरा नहीं रहने दूंगी,’’ संगीता बड़ी अदा से बोली.

‘‘पर है कौन यह पृथ्वीराज और यह संगीता को कहां मिल गया? अरे, कोई समझाओ इसे क्यों ओखली में सिर डालने पर तुली है यह. खुद तो मरेगी ही हमें भी मरवाएगी,’’ नीरजा बडे़ ही नाटकीय स्वर में बोली.

‘‘तुम समझती क्या हो स्वयं को? जब देखो तब उलटासीधा बोलती रहती हो. मैं कुछ बोलती नहीं हूं, तो तुम स्वयं को तीसमारखां समझ बैठी हो? पर मैं क्या समझती नहीं कि तुम सदा मुझे नीचा दिखाने का प्रयास करती रहती हो,’’ पहली बार हम ने संगीता को नीरजा पर बरसते देखा वरना तो सदा उस की बात को चुपचाप सुन लेती थी.

‘‘लो मुझे क्या पड़ी है? तुम्हारे मामलों में टांग अड़ाने का कोई शौक नहीं है मुझे,’’ नीरजा भी उतनी ही कड़वाहट से बोली.

‘‘नीरजा की बातों पर न जा तू… हमें बता कौन है यह पृथ्वीराज और तुझे कहां मिला?’’ मैं ने बात संभालनी चाही.

‘‘हमारी क्विज टीम का सदस्य है. एम.बी.ए. कर रहा है. बड़ा स्मार्ट है. प्रश्न पूछने से पहले ही उत्तर दे देता था. मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गई. हमारे शहर की 8 टीमों में से केवल हमारी टीम ही अगले राउंड में पहुंची है. यह संभव हुआ केवल पृथ्वीराज के कारण.’’

‘‘बुद्धिमान तो तू भी कम नहीं है. तूने क्यों नहीं दिए प्रश्नों के उत्तर? हम लड़कियों की तो नाक ही कटवा दी तूने,’’ सपना बोली.

‘‘मैं तो पृथ्वीराज का नाम सुनते ही होश खो बैठी. लगा जैसे 7वें आसमान पर पहुंच कर हवा में उड़ रही हूं. उस के बाद तो न प्रश्न समझ में आए न उन के उत्तर.’’

‘‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया वरना तो हम भी आदमी थे काम के,’’ नीरजा अपने विशेष अंदाज में बोली.

‘‘और इश्क भी एकतरफा. इसे तो यह भी पता नहीं कि यह पृथ्वीराज नाम का प्राणी इस के बारे में सोचता क्या है,’’ सपना खिलखिला कर हंसी.

‘‘जी नहीं, वह मेरे बारे में सब जानता है. मुझे देखते ही बोला कि उस ने मेरा फोटो कालेज पत्रिका में देखा था. विश्वविद्यालय में तीसरे स्थान पर आने का कुछ तो लाभ मिला. आज पहली बार प्रथम न आ पाने का दुख हुआ. काश, थोड़ा और परिश्रम किया होता मैं ने. पर कोई बात नहीं इस बार मैं नहीं चूकने वाली,’’ संगीता बड़ी अदा से बोली.

‘‘और क्या कहा पृथ्वीराज ने?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘उस ने कहा कि रूप और गुण का ऐसा संगम उस ने पहले कहीं नहीं देखा. आज पहली बार किसी ने मेरे सौंदर्य की प्रशंसा की,’’ वह अपने स्थान से उठ कर नाचने लगी.

‘‘यह तो गई काम से,’’ नीरजा व्यंग्य से मुसकराई.

तब तक मम्मी भी सैर कर के लौट आई थीं. अत: पृथ्वीराज की बात को वहीं विराम देना पड़ा.

उस के बाद तो कालेज से लौटते ही हमें संगीतापृथ्वीराज की प्रेम कहानी से रोज दोचार होना पड़ता.

अपनी जिंदगी: मां ने क्या दिया रंजना का साथ

उस लोकल ट्रेन की बोगी में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी, इसलिए रंजना ने जल्दी से खिड़की की तरफ वाली सीट पकड़ ली थी. उसे चलती हुई ट्रेन से बाहर खेत, मैदान, पेड़पौधे, नदी, पहाड़ देखना अच्छा लगता था, पर इस बार उस की इच्छा बाहर देखने की नहीं हो रही थी. उस का मन अंदर से उदास था, इसलिए वह अनमने ढंग से सीट पर बैठ गई थी. पास ही दूसरी तरफ की सीट पर उस के मामाजी बैठे हुए थे.

ट्रेन के अंदर कभी चाय वाला, कभी मूंगफली वाला, तो कभी फल बेचने वाले आ और जा रहे थे.

रंजना इन चीजों से बेखबर थी. उस का ध्यान ट्रेन के अंदर नहीं था, इसलिए वह खयालों में खोने लगी थी. उसे अलगअलग तरह के शोर से घबराहट हो रही थी, इसलिए वह आंखें बंद कर के सोचने लगी थी.

आज से तकरीबन डेढ़ साल पहले वह अपने मामा के घर पढ़ने आई थी. हालांकि उस की मम्मी नहीं चाहती थीं कि उन की सब से लाड़ली बेटी अपने मामामामी पर बो झ बने. उस के मामामामी के कोई औलाद नहीं थी, इसलिए मामामामी के कहने पर उन के घर जाने के लिए तैयार हुई थी. उस की मामी का अकेले मन नहीं लगता था, तभी उस की मम्मी भेजने को राजी हुई थीं.

रंजना की मम्मी के राजी होने के पीछे की एक वजह यह भी थी कि वे चाहती थीं कि उन की बेटी पढ़लिख जाए. गांव में 11वीं जमात के लिए स्कूल नहीं था, जबकि मामामामी जहां रहते थे, वहां ये सब सुविधाएं थीं.

रंजना 3 भाईबहनों में सब से बड़ी थी. उस के पापाजी खेतीबारी करते थे. घर में किसी तरह की कमी नहीं थी.

मम्मी दिल पर पत्थर रख कर बेटी रंजना को भेजने को राजी हुई थीं. वैसे, वे नहीं चाहती थीं कि उन की बेटी उन से दूर रहे. पर गांव में आगे की पढ़ाईलिखाई का उचित इंतजाम नहीं था, इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए न चाहते हुए भी वे मामामामी के घर भेजना उचित सम झी थीं.

आइसक्रीम वाले ने आइसक्रीम की आवाज लगाई. उस के मामाजी ने उस से आइसक्रीम के लिए पूछा, ‘‘रंजना, आइसक्रीम खाओगी?’’

‘‘नहीं मामाजी, मेरी इच्छा नहीं है,’’ रंजना अनिच्छा जाहिर करते हुए उस लोकल ट्रेन की खिड़की से बाहर देखने लगी थी.

रंजना के मामाजी चाय वाले से चाय खरीद कर सुड़कने लगे थे, क्योंकि वह चाय नहीं लेती थी, इसलिए वह बाहर की तरफ देख रही थी. लेकिन उस का मन बाहर भी टिक नहीं पा रहा था. अभी भीड़ उस का ध्यान मामा के गांव की गलियों में ही था. उसे रोना आ रहा था. वह किस मुंह से मम्मी से बात करेगी?

रंजना अपनेआप को कुसूरवार मान रही थी. लेकिन उस ने कोई बहुत बड़ा अपराध नहीं किया था. उस का अपराध सिर्फ यही था कि वह एक दूसरी जाति के लड़के से प्यार करने लगी थी. वह अपनी मम्मी की हिदायतों के मुताबिक खुद पर काबू नहीं रख पाई थी.

मम्मी ने घर से निकलते हुए उसे दुनियादारी के लिए सम झाया था, ‘‘अपने मामामामी का मान रखना. कभी भी कुछ गलत काम मत करना कि अपने मातापिता के साथ मामामामी को भी सिर  झुकाना पड़ जाए. बेटी की एक गलती के चलते घर की मानमर्यादा चली जाती है. इसे हमेशा याद रखना,’’ और उस का सिर चूम कर घर से विदा किया था.

लेकिन यहां रंजना एक ऐसे लड़के से प्यार कर बैठी थी, जहां उस की जाति के लोग छोटा मानते थे. पर राजेश का इस में क्या कुसूर था? उस का सिर्फ इतना ही कुसूर था कि उस ने निचले तबके में जन्म लिया था, जबकि इनसान का किसी जाति या धर्म में जन्म लेना किसी के वश में नहीं होता है. पर, राजेश एक अच्छा इनसान था.

रंजना राजेश के साथ स्कूल और कोचिंग आतीजाती थी. वह कैसे उस की तरफ खींचती चली गई थी, उसे पता भी नहीं चला था. दोनों हमउम्र होने के चलते एकदूसरे से खूब ठिठोली करते. पगडंडियों पर हंसहंस कर बातें करते. एकदूसरे का मजाक उड़ाते. बिना वजह भी खूब हंसते. बिना बात किए एक पल भी नहीं रह पाते थे. यह सब कब प्यार में बदल गया, उसे पता भी नहीं चला. फिर तो वे एकदूसरे के प्यार में पागल हो गए थे. आज उसी पागलपन ने उसे पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वह पढ़ना चाहती थी और वह यहां पढ़ने के लिए ही तो आई थी.

उस दिन रात के अंधेरे में रंजना राजेश के आगोश में थी. दोनों एकदूसरे की बांहों में चिपके हुए मस्ती में डूबे हुए थे. वे एकदूसरे के होंठों को चूम रहे थे. राजेश उस के कोमल अंगों से खेलने लगा था. दोनों के जिस्म में गरमी बढ़ने लगी थी. वे एकदूसरे में समा जाने की कोशिश कर रहे थे, तभी उस के मामा आ गए थे. यह सब उन के लिए खून खौलाने वाला था.

अचानक मामा ने उन दोनों को एकदूसरे के आगोश में लिपटे हुए रंगे हाथों पकड़ लिया था. वे काफी गुस्से में थे.

रंजना राजेश को किसी तरह भगा चुकी थी.

मामामामी को यह पसंद नहीं था कि रंजना एक निचले तबके के लड़के के प्यार में पड़ जाए और इस की चर्चा पूरे गांव में हो, इसलिए उस की मामी ने मामा को सम झाया था, ‘‘इस का यहां रहना ठीक नहीं है. पानी सिर से ऊपर जा चुका है. इस की कच्ची उम्र का पागलपन है. कहीं ऊंचनीच हो गई, तो हम लोग जीजी को क्या मुंह दिखाएंगे? हमारी बिरादरी में बदनामी होगी सो अलग. इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.’’

सरल स्वभाव के मामा ने मामी की हां में हां मिलाई थी, क्योंकि वे मामी के आज्ञाकारी पति थे. वे उन की बातों को कभी भी टालते नहीं थे. वहीं मामी

काफी उग्र स्वभाव की थीं. उन में जातपांत, छुआछूत की सोच कूटकूट कर भरी हुई थी.

दूसरी वजह यह थी कि वे ब्राह्मण थे. इस परिवार के लोग निचले तबके से काम तो ले सकते हैं, पर प्यार के नाम पर एकदूसरे की जान के दुश्मन बन बैठते हैं. इसलिए उस के मामामामी दोनों ने फौरन फैसला किया कि उसे गांव में मम्मीपापा के पास छोड़ आएं. यही  वजह थी कि आज उस के मामा रंजना को उस के घर छोड़ने जा रहे थे.

राजेश देखने में स्मार्ट था. दोनों को स्कूल और कोचिंग आनेजाने के दौरान ही एकदूसरे से नजदीकियां बढ़ी थीं. राजेश पढ़नेलिखने में बहुत अच्छा था, जबकि रंजना गांव से आई थी. राजेश उसे पढ़ने में भी मदद करता था. उस की फर्स्ट ईयर की कोचिंग क्लासेज में परफौर्मैंस अच्छी हो चुकी थी.

रंजना का अपना गांव काफी पिछड़ा हुआ था. लेकिन यहां छोटामोटा बाजार होने के चलते लोग थोड़ीबहुत शहरी रंगढंग में ढल चुके थे. पास ही रेलवे स्टेशन था. यहां के लड़केलड़कियां लोकल ट्रेन से स्कूल और कोचिंग आतेजाते थे. ट्रेन से उतर कर कुछ दूरी गांव की पगडंडियों पर चलना पड़ता था. उन्हीं पगडंडियों के बीच उन दोनों का प्यार पनपा था. वह राजेश के साथ जीना चाहती थी. राजेश भी उसे बहुत प्यार करता था.

जैसे ही ट्रेन हिचकोले खा कर रुकी, रंजना के मामाजी ने उसे  झक झोरा, ‘‘चलो रंजना, स्टेशन आ गया. अब उतरना है,’’ सुन कर वह सकपका गई थी.

रंजना अतीत से वर्तमान में आ गई थी. दोनों तेजी से ट्रेन से उतर गए थे, क्योंकि यहां ट्रेन बहुत कम समय के लिए रुकती थी.

रंजना जल्द ही आटोरिकशा से घर पहुंच चुकी थी. उस की मम्मी अचानक आई अपनी बेटी और भाई को देख कर खुश थीं, लेकिन उन के मन में शक पैदा होने लगा था. उस के पापाजी को आने से कोई खास फर्क नहीं हुआ था. लेकिन उस की मम्मी सम झ नहीं पा रही थीं. अभी उस की स्कूल की छुट्टी के दिन भी नहीं थे, फिर वह अचानक कैसे आ गई. मामाजी जल्दी ही शाम की गाड़ी से लौट गए थे.

हालांकि रंजना के मामाजी उस के मम्मीपापा को सबकुछ बता चुके थे. यह सब सुन कर उस के घर का माहौल ही बदल गया था. उस के पापाजी ने उसे घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया था. उस की पढ़ाईलिखाई छूट गई थी. अब वह उदास रहने लगी थी. जल्दीजल्दी उस के लिए रिश्त ढूंढ़ा जाने लगा था. काफी भागदौड़ के बाद उस की शादी तय हो गई, लेकिन उस की उदासी दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी.

कुछ दिन बीतने के बाद रंजना की उदासी में कोई सुधार नहीं हुआ. उस की मम्मी ने उसे सम झाने की कोशिश की, ‘‘हम ऊंची जाति वाले हैं. इस तरह की ओछी हरकत से हम लोगों की समाज में बदनामी होगी. हम लोगों का ऊंचा खानदान है. जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी,’’ उस की मम्मी हिदायत दे रही थीं और उस के सिर

पर उंगलियां भी फिरा रही थीं.

वह मम्मी से गले लग कर फफकफफक कर रोने लगी थी. उस दिन उस के पापाजी घर पर नहीं थे.

‘‘मम्मी, मैं राजेश के बिना नहीं जी पाऊंगी. मैं उसे बहुत प्यार करती हूं.’’

मम्मी उस के सिर को प्यार से सहला रही थीं और सम झा रही थीं, ‘‘बेटी, अपनी बिरादरी में क्या लड़कों की कमी है? तुम्हारे लिए उस से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ा जाएगा.’’

‘‘नहीं मम्मी, मु झे सिर्फ राजेश चाहिए,’’ उस ने रोते हुए उन्हें बताया.

उस की मम्मी अपनी बेटी के रोने  से विचलित हो गई थी. फिर भी वह  उसे ढांढ़स बंधा रही थीं, ‘‘सबकुछ  ठीक हो जाएगा. वक्त हर मर्ज की  दवा है.’’

उस दिन रंजना की मम्मी रात को अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थीं. वे काफी बेचैन थीं. शायद उन्हें अपनी बेटी का दुख सहा नहीं जा रहा था. उन्हें भी याद आ रहा थे, अपनी जिंदगी के बीते हुए वे सुनहरे पल, जब वे अपनी जवानी के दिनों में अपने ही गांव के पड़ोस के एक लड़के से प्यार करने लगी थीं. लेकिन वे अपने मातापिता को नहीं बता पाई थीं. मातापिता की इज्जत का खयाल कर के दिल पर पत्थर रख उन के द्वारा तय किए गए उस के पापा से ही शादी कर ली थी.

रंजना की मम्मी सोच रही थीं, ‘काश, मैं इतनी हिम्मत कर पाती. कम से कम अपनी बेटी की तरह वे भी अपनी मां से कह पातीं.’

आज भी वे अपने पहले प्यार को भुला नहीं पाई थीं. मन में कहीं न कहीं इस बात का मलाल जरूर था. क्योंकि उन का प्यार अधूरा रह गया था. वे सोच रही थीं कि अगर वे अपने प्रेमी को पा लेतीं, तो शायद उन की जिंदगी कुछ अलग होती.

आज मम्मी फैसला ले रही थीं, कुछ भी हो जाए, वे अपनी बेटी को उस रास्ते पर नहीं जाने देंगी, जिस रास्ते पर उन्होंने चल कर खुद की जिंदगी बरबाद कर ली थी. शादी तो कर ली थी, पर अपने पति से प्यार नहीं कर पाई थीं. दोनों के बीच काफी  झगड़े होते थे.

मम्मी शादी की चक्की में पिस रही थीं. उन्होंने अपनेआप को खो दिया  था. उन की अपनी पहचान कहीं बिखर गई थी.

आज वे भले ही 3 बच्चों की मां बन चुकी थीं, पर प्यार तो किसी कोने में दुबक गया था. उन की जिंदगी में नीरसता भर गई थी. ऐसे बंधनों से उन्हें कभीकभी ऊब सी होने लगती थी. उन्हें ऐसा महसूस होता था, जैसे वे अनदेखी बेडि़यों में जकड़ ली गई हैं.

बस, सुबह जागो, खाना पकाओ, घर के लोगों को खिलाओ, सब का ध्यान रखो. खुद का ध्यान भाड़ में जाए. पति के लिए व्रत करो, बेटेबेटी के लिए व्रत करो. सब के लिए बलिदान करो, सब के लिए त्याग करो. खुद के लिए कुछ भी नहीं. वही पुराने ढर्रे पर चलते रहो. क्या उन्होंने अपनी जिंदगी के बारे में यही सब सोचा था?

रंजना के पापाजी और मामाजी उस के लिए रिश्ता तय करने गए थे, बल्कि लड़के वालों को कुछ पैसे भी पहुंचाने गए थे. उस के पापाजी 2 दिन बाद

ही लौटेंगे.

पापाजी के जाने के बाद मम्मी अपनी बेटी से खुल कर बातें कर रही थीं. वे राजेश के बारे में पूरी जानकारी ले चुकी थीं. फिर खुद ही राजेश से टैलीफोन से बात भी की थी. सबकुछ जान कर, संतुष्ट होने के बाद ही उसे बुलाया था.

मम्मी हैरान, पर खुश थीं. राजेश समय से हाजिर हो गया था. मम्मी की नजर में राजेश सुंदर और होनहार लड़का था. उन्होंने राजेश से कई तरह के सवालजवाब किए थे.

अगले दिन सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. मम्मी ने  झक झोर कर रंजना को जगाया. उसे आधे घंटे में तैयार होने के लिए बोला. वह सम झ नहीं पाई थी कि उसे कहां जाना है और क्या करना है? वह कई बार उन से पूछ चुकी थी, पर मम्मी कोई जवाब नहीं दे रही थीं.

तभी दरवाजे पर मोटरसाइकिल रुकने की आवाज आई थी. रंजना सोच रही थी कि अभी तो उस के पापाजी के भी आने का समय नहीं है. उसे मालूम था कि उस के पापाजी दूसरे दिन ही आ पाएंगे. उस की मम्मी उस के लिए बैग पैक कर रही थीं. उस के सारे कपड़े, गहने बैग में समेट दिए थे.

रंजना ने जैसे  ही दरवाजा खोला, राजेश अंधेरे में अपनी मोटरसाइकिल के साथ खड़ा था. वह अभी भी नहीं सम झ पा रही थी कि आखिर उस की मम्मी क्या चाहती हैं? उस के छोटे भाईबहन सब सोए हुए थे.

मम्मी जो कुछ भी कर रही थीं, बहुत ही सावधानी से कर रही थी. उन्होंने राजेश को बैग पकड़ा दिया और बोलीं, ‘‘देखो, इस का खयाल रखना. इसे कभी हमारी कमी महसूस नहीं होने देना. मैं ने अपनी बेटी को बड़े नाजों  से पाला है. तुम कुछ दिन के लिए  कहीं दूर चले जाओ, जहां तुम्हें कोई देख न सके.’’

रंजना सारा माजरा सम झ चुकी थी. वह राजेश के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ गई थी. उस की मम्मी डबडबाई आंखों से सिर्फ इतना ही बोल पाई थीं, ‘‘जा बेटी, अपनी जिंदगी जी ले.’’

रंजना भी फफकफफक कर रोने लगी थी. वह मोटरसाइकिल स्टार्ट होने से पहले उतर कर अपनी मम्मी के गले लग गई थी.

रंजना की मम्मी बोलीं, ‘‘बेटी, जल्दी कर…’’ फिर उन्होंने सहारा दे कर मोटरसाइकिल पर बैठने में रंजना की मदद की थी.

राजेश मोटरसाइकिल स्टार्ट कर चल दिया था. मम्मी अंधेरे में हाथ हिलाती रहीं, जब तक कि वे दोनों उन की आंखों से ओ झल नहीं हो गए थे.

औनलाइन फ्रैंड: रिया ने कौनसी बेवकूफी की थी

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दिल वर्सेस दौलत- भाग 2: क्या पूरा हुआ लाली और अबीर का प्यार

अगले दिन लाली के मातापिता ने बेटी को सामने बैठा उस से अबीर के रिश्ते को ले कर अपने खयालात शेयर किए.

लाली के पिता ने लाली से कहा, ‘सब से पहले तो तुम मु झे यह बताओ, अबीर के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’

‘पापा, वह एक सीधासादा, बेहद सैंटीमैंटल और सुल झा हुआ लड़का लगा मु झे. यह निश्चित मानिए, वह कभी दुख नहीं देगा मु झे. मेरी हर बात मानता है. बेहद केयरिंग है. दादागीरी, ईगो, गुस्से जैसी कोई नैगेटिव बात मु झे उस में नजर नहीं आई. मु झे यकीन है, उस के साथ हंसीखुशी जिंदगी बीत जाएगी. सो, मु झे इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं.’

तभी लाली की मां बोल पड़ीं, ‘लेकिन, मु झे औब्जेक्शन है.’

‘यह क्या कह रही हैं मम्मा? हम दोनों अपने रिश्ते में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. अब मैं इस रिश्ते से अपने कदम वापस नहीं खींच सकती. आखिर बात क्या है? आप ने ही तो कहा था, मु झे अपना लाइफपार्टनर चुनने की पूरीपूरी आजादी होगी. फिर, अब आप यह क्या कह रही हैं?’

‘लाली, मैं तुम्हारी मां हूं. तुम्हारा भला ही सोचूंगी. मेरे खयाल से तुम्हें यह शादी कतई नहीं करनी चाहिए.’

‘मौम, सीधेसीधे मुद्दे पर आएं, पहेलियां न बु झाएं.’

‘तो सुनो, एक तो उन का स्टेटस, स्टैंडर्ड हम से बहुत कमतर है. पैसे की बहुत खींचातानी लगी मु झे उन के घर में. क्यों जी, आप ने देखा नहीं, शाम को दादी ने अबीर से कहा, एसी बंद कर दे. सुबह से चल रहा है. आज तो सुबह से मीटर भाग रहा होगा. तौबा उन के यहां तो एसी चलाने पर भी रोकटोक है.

‘फिर दूसरी बात, मु झे अबीर की दादी बहुत डौमिनेटिंग लगीं. बातबात पर अपनी बहू पर रोब जमा रही थीं. अबीर की मां बेचारी चुपचाप मुंह सीए हुए उन के हुक्म की तामील में जुटी हुई थी. दादी मेरे सामने ही बहू से फुसफुसाने लगी थीं, बहू मीठे में गाजर का हलवा ही बना लेती. नाहक इतनी महंगी दुकान से इतना महंगी मूंग की दाल का हलवा और काजू की बर्फी मंगवाई. शायद कल हमारे सामने हमें इंप्रैस करने के लिए ही इतनी वैराइटी का खानापीना परोसा था. मु झे नहीं लगता यह उन का असली चेहरा है.’

‘अरे मां, आप भी न, राई का पहाड़ बना देती हैं. ऐसा कुछ नहीं है. खातेपीते लोग हैं. अबीर के पापा ऐसे कोई गएगुजरे भी नहीं. क्लास वन सरकारी अफसर हैं. हां, हम जैसे पैसेवाले नहीं हैं. इस से क्या फर्क पड़ता है?’

‘लेकिन मैं सोच रही हूं अगर अबीर भी दादी की तरह हुआ तो क्या तू खर्चे को ले कर उस की तरफ से किसी भी तरह की टोकाटाकी सह पाएगी? खुद कमाएगी नहीं, खर्चे के लिए अबीर का मुंह देखेगी. याद रख लड़की, बच्चे अपने बड़ेबुजुर्गों से ही आदतें विरासत में पाते हैं. अबीर ने भी अगर तेरे खर्चे पर बंदिशें लगाईं तो क्या करेगी? सोच जरा.’

‘अरे मां, क्या फुजूल की हाइपोथेटिकल बातें कर रही हैं? क्यों लगाएगा वह मु झ पर इतनी बंदिशें? इतना बढि़या पैकेज है उस का. फिर अबीर मु झे अपनी दादी के बारे में बताता रहता है. कहता है, वे बहुत स्नेही हैं. पहली बार जब वे लोग हमारे घर आए थे, दादी ने मु झे कितनी गर्माहट से अपने सीने से चिपकाया था. मेरे हाथों को चूमा था.’

‘तो लाली बेटा, तुम ने पूरापूरा मन बना लिया है कि तुम अबीर से ही शादी करना चाहती हो. सोच लो बेटा, तुम्हारी मम्मा की बातों में भी वजन है. ये पूरी तरह से गलत नहीं. उन के और हमारे घर के रहनसहन में मु झे भी बहुत अंतर लगा. तुम कैसे ऐडजस्ट करोगी?’’ पापा ने कहा था.

‘अरे पापा, मैं सब ऐडजस्ट कर लूंगी. जिंदगी तो मु झे अबीर के साथ काटनी है न. और वह बेहद अच्छा व जैनुइन लड़का है. कोई नशा नहीं है उस में. मैं ने सोच लिया है, मैं अबीर से ही शादी करूंगी.’

‘लाली बेटा, यह क्या कह रही हो? मैं ने दुनिया देखी है. तुम तो अभी बच्ची हो. यह सीने से चिपकाना, आशीष देना, चुम्माचाटी थोड़े दिनों के शादी से पहले के चोंचले हैं. बाद में तो, बस, उन की रोकटोक, हेकड़ी और बंधन रह जाएंगे. फिर रोती झींकती मत आना मेरे पास कि आज सास ने यह कह दिया और दादी सास ने यह कह दिया.

‘और एक बात जो मु झे खाए जा रही है वह है उन का टू बैडरूम का दड़बेनुमा फ्लैट. हर बार त्योहार के मौके पर तु झे ससुराल तो जाना ही पड़ेगा. एक बैडरूम में अबीर के पेरैंट्स रहते हैं, दूसरे में उस की दादी. फिर तू कहां रहेगी? तेरे हिस्से में ड्राइंगरूम ही आएगा? न न न, शादी के बाद मेरी नईनवेली लाडो को अपना अलग एक कमरा भी नसीब न हो, यह मु झे बिलकुल बरदाश्त नहीं होगा.

‘सम झा कर बेटा, हमारे सामने यह खानदान एक चिंदी खानदान है. कदमकदम पर तु झे इस वजह से बहू के तौर पर बहुत स्ट्रगल करनी पड़ेगी. न न, कोई और लड़का देखते हैं तेरे लिए. गलती कर दी हम ने, तु झे अबीर से मिलाने से पहले हमें उन का घरबार देख कर आना चाहिए था. खैर, अभी भी देर नहीं हुई है. मेरी बिट्टो के लिए लड़कों की कोई कमी है क्या?’

‘अरे मम्मा, आप मेरी बात नहीं सम झ रहीं हैं. इन कुछ दिनों में मैं अबीर को पसंद करने लगी हूं. उसे अब मैं अपनी जिंदगी में वह जगह दे चुकी हूं जो किसी और को दे पाना मेरी लिए नामुमकिन होगा. अब मैं अबीर के बिना नहीं रह सकती. मैं उस से इमोशनली अटैच्ड हो गई हूं.’

‘यह क्या नासम झी की बातें कर रही है, लाली? तू तो मेरी इतनी सम झदार बेटी है. मु झे तु झ से यह उम्मीद न थी. जिंदगी में सक्सैसफुल होने के लिए प्रैक्टिकल बनना पड़ता है. कोरी भावनाओं से जिंदगी नहीं चला करती, बेटा. बात सम झ. इमोशंस में बह कर आज अगर तू ने यह शादी कर ली तो भविष्य में बहुत दुख पाएगी. तु झे खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी नहीं मारने दूंगी. मैं ने बहुत सोचा इस बारे में, लेकिन इस रिश्ते के लिए मेरा मन हरगिज नहीं मान रहा.’

‘मम्मा, यह आप क्या कह रही हैं? मैं अब इस रिश्ते में पीछे नहीं मुड़ सकती. मैं अबीर के साथ पूरी जिंदगी बिताने का वादा कर चुकी हूं. उस से प्यार करने लगी हूं. पापा, आप चुप क्यों बैठे हैं? सम झाएं न मां को. फिर मैं पक्का डिसाइड कर चुकी हूं कि मु झे अबीर से ही शादी करनी है.’

‘अरे भई, क्यों जिद कर रही हो जब यह कह रही है कि इसे अबीर से ही शादी करनी है तो क्यों बेबात अड़ंगा लगा रही हो? अबीर के साथ जिंदगी इसे बितानी है या तुम्हें?’ लाली के पिता ने कहा.

‘आप तो चुप ही रहिए इस मामले में. आप को तो दुनियादारी की सम झ है नहीं. चले हैं बेटी की हिमायत करने. मैं अच्छी तरह से सोच चुकी हूं. उस घर में शादी कर मेरी बेटी कोई सुख नहीं पाएगी. सास और ददिया सास के राज में 2 दिन में ही टेसू बहाते आ जाएगी. जाइए, आप के औफिस का टाइम हो गया. मु झे हैंडल कर लेने दीजिए यह मसला.’

इस के साथ लाली की मां ने पति को वहां से जबरन उठने के लिए विवश कर दिया और फिर बेटी से बोलीं, ‘यह क्या बेवकूफी है, लाली? यह तेरा प्यार पप्पी लव से ज्यादा और कुछ नहीं. अगर तू ने मेरी बात नहीं मानी तो सच कह रही हूं, मैं तु झ से सारे रिश्ते तोड़ लूंगी. न मैं तेरी मां, न तू मेरी बेटी. जिंदगीभर तेरी शक्ल नहीं देखूंगी. सम झ लेना, मैं तेरे लिए मर गई.’ यह कह कर लाली की मां अतीव क्रोध में पांव पटकते हुए कमरे से बाहर चली गईं.

जीवन की मुसकान- भाग 3: क्या थी रश्मि की कहानी

और उसी समय रश्मि को लगा, जैसे उस से कोई भारी भूल हो गई है. आगंतुक को देखे बिना बेढंगेपन से बोलने के बाद और आगंतुक को देख लेने के पश्चात उस के चेहरे पर अजीब सा परिवर्तन आ गया. उस की माथे की सलवटें विलीन हो गईं और उस का रौद्र रूप परिवर्तित हो कर असमंजस की स्थिति में पहुंच गया. वह आगंतुक को निहारती ही रह गई. उस की क्रुद्ध आंखें सहज हो कर आगंतुक पर जा टिकीं. वह सूरज था, उस का भाई. उस का परिवार भी इस शहर में ही रहता था. उस की शादी इसी शहर में हो गई थी, जिस परिवार के लोगों से यदाकदा वह मिल सकती थी. सच तो यह था कि परिवार के यहां होने से ही उस की हिम्मत कुछकुछ बाकी थी, नहीं तो सुंदरम के दैनिक कार्यक्रम से तो वह पूरी तरह टूट ही चुकी होती.

परिवार के किसी भी सदस्य से मिल कर उसे बेहद शांति और प्रसन्नता महसूस होती थी. किंतु इस समय ऐसी कोई बात नहीं थी कि भाई को देख कर वह प्रसन्न होती. समय आधी रात का जो था.

जैसे किसी को आशंकाओं के बादल कड़क कर भयभीत कर दें, ऐसी स्थिति से घिरी रश्मि शीघ्रता से बोल उठी, ‘‘सूरज, तुम! इतनी रात गए?’’

‘‘दीदी, दीपू की हालत बहुत खराब है. जीजाजी कहां हैं? उन से कहिए, जल्दी चलें,’’ सूरज ने डरे हुए स्वर में कहा.

‘‘क्या हुआ दीपू को?’’ रश्मि ने अपने छोटे भाई के बारे में पूछा. एकाएक उस की घबराहट बढ़ गई.

‘‘यह तो जीजाजी ही देख कर बता सकेंगे. दीदी, उन्हें जल्दी चलने को कहिए,’’ सूरज बोला, ‘‘समय बताने का भी नहीं है.’’ एकाएक रश्मि लड़खड़ा गई. कड़ाके की सर्दी में भी उस के माथे पर पसीने की बूंदें चमक उठीं. पूरा शरीर जैसे मूर्च्छित अवस्था में पहुंच गया. उस के आगे अपने भाई दीपू का चेहरा घूमने लगा, प्याराप्यारा, भोलाभाला सा वह मासूम चेहरा.

एकाएक उस ने अपने को संयत किया और पूरी शक्ति से बोलने का प्रयास करती हुई वह कह उठी, ‘‘सुनिए, कहां हैं आप? जल्दी तैयार होइए. आप ने सुना, दीपू की हालत गंभीर है. चलिए न, जल्दी कीजिए.’’

‘‘हां, हमें तुरंत चलना चाहिए,’’ सुंदरम, जो पहले से तैयार था, बोला.

कुछ ही देर बाद तीव्र गति से दौड़ रहे, सुंदरम और सूरज के स्कूटरों ने तुरंत उन्हें उन के लक्ष्य तक पहुंचा दिया. स्कूटर रोक कर सुंदरम ने तुरंत अपना बैग संभाला और शीघ्रता से अंदर की तरफ दौड़ा. पीछे से रश्मि को जो लगभग पूरे रास्ते मूर्च्छित सी सुंदरम के पीछे बैठी रही थी, सूरज ने सहारा दिया और कमरे में ले आया. सुंदरम पूरी तन्मयता से दीपू को देखने में जुट गया. यद्यपि उस के माथे पर भी पसीने की बूंदें झलक आई थीं, लेकिन उसे इस की परवा न थी. उस के हाथ सधे हुए और आंखें जौहरी बन कर अपने मरीज को जांच रही थीं. उस का दिमाग केवल अपने मरीज के बारे मेें ही विचारशील था. उसे दीपू के अलावा आसपास की किसी चीज का बोध न था.

जब तक सुंदरम दीपू को देखता रहा, रश्मि, उस की मां, बहनभाई व पिताजी सभी आशंकित से खड़े रहे. सब के सब सांस रोके सुंदरम के चेहरे के उतारचढ़ाव को देख रहे थे, जो पूरी तन्मयता से जांच कर रहा था.

दीपू को इंजैक्शन लगा कर एकाएक सुंदरम के चेहरे के हावभाव में परिवर्तन हो आया. मंदमंद मुसकराते हुए उस ने कहा, ‘‘कोई खतरा नहीं.’’ सब की सांस में सांस आई. वे निश्चिंत हो कर सुंदरम को देखने लगे. सभी के मुंह से एकदम निकला, ‘‘शुक्र है, हम तो घबरा गए थे.’’

वातावरण को अत्यंत शीतलता प्रदान करते हुए सुंदरम ने आगे कहा, ‘‘दीपू को सर्दी लग गई है. उस की सांस सर्दी के कारण ही रुकने लगी थी. मैं ने इंजैक्शन दे दिया है. अब कोई खतरा नहीं है. किंतु…’’ रुक कर उस ने कहा, ‘‘अगर हम देर से पहुंचते तो खतरा बढ़ सकता था.’’

रश्मि दौड़ कर एकाएक सुंदरम से आवेश में लिपट गई, ‘‘सुंदरम, तुम कितने अच्छे हो. तुम ने मेरे भाई को बचा लिया, सुंदरम.’’ और सुंदरम ने मुसकरा कर उसे अपने से अलग किया जो सब के सामने ही उस से लिपट गई थी. होश में आने पर रश्मि भी कुछ झेंप गई. अगले दिन फिर रात को कौलबैल घनघनाई. रश्मि को न जाने क्यों इस बार न कोई क्रोध आया न कोई खीझ.

उस ने चुपचाप उठ कर किवाड़ खोला, ‘‘कहिए?’’

‘‘डाक्टर साहब घर पर हैं? मेरे भाई की हालत बहुत खराब है. जरा उन्हें बुला दीजिए,’’ वैसा ही धीमा और भयभीत स्वर, जैसा सूरज का था. रश्मि को एकाएक लगा, जैसे आज फिर उस का भाई बीमार है जिस के लिए सुंदरम का जाना जरूरी है. तो क्या वह आज भी सुंदरम को रोकेगी?

उसे लगा कि जिस तरह कल मेरा पूरा परिवार भयभीत था, तरहतरह की मनौतियां मन ही मन मना रहा था, सुंदरम के जल्दी पहुंच जाने की इच्छा में बेसब्री से समय बिता रहा था, उसी तरह आज भी एक पूरे परिवार की हालत है. अगर सुंदरम नहीं गया तो एक पूरे परिवार की खुशियां मिट जाएंगी. नहीं, वह अपने सुख के लिए किसी पूरे परिवार को दुख के गर्त में नहीं धकेल सकती, कदापि नहीं. उस के आगे सुंदरम की वह मुसकान खिंच गई जो कल दीपू को बचाने के बाद उस के चेहरे पर आई थी. कितनी गहरी थी वह मुसकान, कैसा संतोष, गौरव भरा था उस मुसकान में. उसे लगा कि जीवन की मुसकान तो किसी को बचा लेने मेें ही है. सच्चा जीवन वही है जो किसी को जीवन दे सके, किसी की रक्षा कर सके. वह इस मुसकान को सुंदरम से छीनने का कभी कोई प्रयास नहीं करेगी. वह अपनी जिंदगी इस तरह बनाएगी जिस से सुंदरम को रोके नहीं और अनगिनत चेहरे नवीन जीवन पा कर झिलमिला उठें. वह अपने पति की राह अब कभी नहीें रोकेगी.

रश्मि बोली, ‘‘सुनिए, जल्दी जाइए, किसी मरीज की हालत चिंताजनक है. जल्दी जाइए न, देरी न जाने क्या कर जाए?’’

‘‘अरे भई, जा रहा हूं. अपना बैग तो लेने दो,’’ सुंदरम ने बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘कैसी अजीब हो तुम भी.’’

उस के जाने के बाद रश्मि ने टेप रिकौर्डर चालू कर दिया. आवाजें गूंजने लगीं. ‘रश्मि, आज की रात कितनी मधुर है, कितनी इच्छा होती है, यह रात लंबी, बहुत लंबी हो जाए. कभी खत्म ही न हो.’ ‘रश्मि, मैं तुम्हें बेहद चाहता हूं. सच, रश्मि, तुम से अलग हो कर भी ऐसा लगता है जैसे तुम मेरे करीब हो और तुम्हारे पास होने का एहसास मुझे जल्दी काम करने की प्रेरणा देता रहता है.’ रश्मि को लगा, सुंदरम उस के पास ही बैठा बोलता जा रहा है और वह मंत्रमुग्ध सी सुनती जा रही है. उस ने एकाएक जोर से अविनाश को सीने से लगा कर चिपटा लिया.

संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार- भाग 1

बड़ेबड़ेशहरों में ऐसी छोटीछोटी घटनाएं होती रहती हैं,’’ हमारे किस नेता ने किस दारुण घटना के संबंध में यह वक्तव्य दिया था, अब ठीक से याद नहीं पड़ता. यों भी अपने नेताओं और बुद्धिजीवियों के अमूल्य वक्तव्यों के सुनने के हम इतने आदी हो गए हैं कि अब उन का कोई कथन हमें चौंकाता नहीं. पर जब हमारे छोटे से शहर में अपहरण जैसी घटना घटने की संभावना प्रतीत हो तो हम सब का चौंकना स्वाभाविक था और वह भी तब, जब वह घटना मेरी घनिष्ठ सहेली संगीता और उस के प्रेमी से संबंधित हो.

हमारे छोटे से कसबेनुमा शहर के हिसाब से हमारी सहेली संगीता कुछ अधिक ही फैशन की दीवानी थी. अपनी 18वीं सदी की मानसिकता वाले मातापिता से छिप कर वह ब्यूटीपार्लर भी जाती थी. माथे पर बड़ी अदा से गिरने वाली घुंघराली लटों को घर में घुसने से पहले पीछे खोंस लेती थी. संपन्न परिवार की 3 भाइयों की इकलौती बहन. तरहतरह के सौंदर्यप्रसाधनों के प्रयोग से उस का व्यक्तित्व निखर उठा था. घर में कड़ा ड्रैस कोड लागू होने पर भी वह विशेष अवसरों पर अतिआधुनिक छोटे परिधानों में नजर आ ही जाती थी. अभिभावकों से छिपा कर कैसे वह इन परिधानों को कालेज तक ले आती थी, यह केवल वही जानती थी. पर हम चाह कर भी उस के जैसा साहस नहीं जुटा पाते थे.

‘‘मैं अपना नाम बदलना चाहती हूं,’’ एक दिन संगीता अचानक बोली.

‘‘अपने मातापिता से पूछा है? कितना अच्छा नाम रखा है तेरा, संगीता. वे नाम बदलने की बात सुनते ही भड़क उठेंगे. वैसे कौन सा नाम रखेगी तू?’’ सपना, नीरजा और मैं ने एकसाथ पूछा.

‘‘संयोगिता. कितना अच्छा नाम है. है न? थोड़ा सा ऐतिहासिक, थोड़ा सा रोमांटिक.’’

‘‘तू कब से इतिहास में रुचि लेने लगी और अभी से रोमांस? सोचना भी मत. आंटी और अंकल घर से निकलना बंद कर देंगे.’’

‘‘निर्भय बनो, निडर बनो. डरडर कर जीना भी कोई जीना है… देखो, मैं कैसे मां और पापा को मना कर अपना नाम बदलवाती हूं.’’

मगर अपना नाम नहीं बदलवा पाई थी संगीता. आंटी के कुछ बोलने की नौबत ही नहीं आई. अंकल ने सुनते ही उस की बात को नकार दिया, ‘‘हंसीखेल है क्या नाम बदलना? कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओ… अखबार में छपवाओ… और कोई काम नहीं है क्या? मैं इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता और फिर संगीता नाम में बुराई क्या है? इन बेकार की बातों को भुला कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. जब देखो तब बेकार की बातें करती रहती हो.’’

‘‘क्या हुआ?’’ दूसरे दिन उस का फूला मुंह देख कर हम हंस पड़े.

‘‘यहां जान पर बनी है और तुम लोगों को हंसी आ रही है.’’

‘‘क्या हुआ तुम बताओगी नहीं तो हम जानेंगे कैसे और जानेंगे नहीं तो सहानुभूति कैसे प्रकट करेंगे?’’ हम ने हंसी दबाने का प्रयास करते हुए कहा.

‘‘पापा ने सुनते ही नाम बदलने की बात रिजैक्ट कर दी. मन की बात मन में ही रह गई. हाय, संयोगिता और पृथ्वीराज… क्या प्रेम कहानी थी… इतिहास में नाम अमर कर दिया.’’

‘‘तो तू अमर होने के लिए नाम बदलना चाहती है?’’ मैं ने गंभीरता से पूछा.

‘‘मैं तो केवल उस घटना की पुनरावृत्ति करने का सपना पूरा करना चाहती हूं,’’ वह अपनी नजरें क्षितिज के पार करते हुए पुन: अपने स्वप्नलोक में खो गई.

हम सहेलियों ने उस की स्वप्निल आंखों के सामने हाथ हिलाहिला कर उसे यथार्थ के धरातल पर उतारा और हंसतेहंसते लोटपोट हो गईं.

‘‘देख संगीता, हम से कहा तो कहा, क्योंकि हम चारों पक्की सहेलियां हैं. हम से तो तू बेधड़क अपने मन की बात कह सकती है पर और किसी के सामने यह सब मत कहना वरना पता नहीं कौन क्या समझे,’’ हम ने उसे समझाया.

‘‘तुम तीनों इस तरह मेरा उपहास नहीं उड़ा सकतीं. तुम सब शायद भूल रही कि 3 वर्ष पहले जब स्कूल के वार्षिकोत्सव में पृथ्वीराजसंयोगिता का नाटक खेला गया था तो संयोगिता का रोल मैं ने ही निभाया था.’’

‘‘तो क्या हुआ? संयोगिता का रोल करने से कोई संयोगिता नहीं बन जाती. मैं उस नाटक में पृथ्वीराज बनी थी. तो क्या मैं पृथ्वीराज बन जाऊंगी?’’ नीरजा ने कहा.

‘‘तू कौन सी मुझे घोड़े पर बैठा कर ले गई थी? नाचने वाले घोड़े पर नाचती हुई आई थी और मैं घिसटती हुई चली गई थी तेरे साथ. पर मैं ने तो अपने रोल में जान डाल दी थी. याद है मेरा परिचय दिया गया तो दर्शक खड़े हो कर देर तक तालियां बजाते रहे थे.’’

‘‘मान लिया तू बड़ी महान अभिनेत्री है, पर अभिनय और जीवन में अंतर होता है… 12वीं कक्षा फेल संयोगिता को भला कौन सा पृथ्वीराज घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा?’’ मैं ने उसे समझाना चाहा.

‘‘क्या कह रही है तू? मैं क्या आज तक कभी फेल हुई हूं? देखना सब से ज्यादा नंबर आएंगे मेरे,’’ संगीता नाराज हो गई.

‘‘इसी तरह काल्पनिक पृथ्वीराज के सपनों में खोई रही तो फेल भी हो जाएगी… 10वीं कक्षा की बात और थी, पर इंटर को हंसीखेल मत समझ… परीक्षा में केवल 1 माह रह गया है और तू अपना और हमारा समय खराब कर रही है,’’ मैं तनिक रुष्ट स्वर में बोली.

‘‘अर्चना, तू तो दादीअम्मां की तरह बातें करने लगी है. पर तू ठीक कह रही है. पापा भी यही कह रहे थे. मुझे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए.’’

‘‘वही तो… हम चारों मिल कर पढ़ाई करते हैं. चल साथ मिल कर प्लान करते हैं कि कब और कहां साथ मिल कर परीक्षा की तैयारी करेंगे.’’

‘‘प्लान क्या करना है. प्रैक्टिकल परीक्षा होते ही परीक्षा अवकाश होने वाला है. सदा की तरह मेरे घर आ जाया करना तुम सब. मिल कर परीक्षा की तैयारी करेंगे. पर एक बात है.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘संयोगिता कितनी खुशहाल थी… जिंदगी कितनी रोमांटिक हुआ करती थी. संयोगिता और पृथ्वीराज, पृथ्वीराज और संयोगिता… जीवन कितना रसपूर्ण और भावुक होता था. हमारी तरह घर से स्कूल और स्कूल से घर तक ही सीमित नहीं था. संयोगिता के सपनों का राजकुमार आया और उसे घोड़े पर बैठा कर ले गया. पर ऐसा हमारे हिस्से कहां,’’ संगीता अपने कल्पनालोक में खोई हमें संबोधित कर रही थी.

‘‘बस बहुत हो गया. हमें नहीं करनी साथ मिल कर पढ़ाई वरना संगीता के साथ हम सब भी धराशायी हो जाएंगे… संगीता का पृथ्वीराज उसे ही मुबारक हो,’’ अचानक नीरजा गुस्से में बोली तो हम सब हैरान रह गए.

‘‘कैसी बातें कर रही हो नीरजा. तुम तो हासपरिहास भी नहीं समझतीं,’’ संगीता उदास स्वर में बोली.

‘‘न समझती हूं और न ही समझना चाहती हूं. हमारे साथ पढ़ने की पहली शर्त यही है कि तू पृथ्वीराजसंयोगिता के नाम अपनी जबान पर नहीं लाएगी,’’ नीरजा ने धमकी दी.

लंबे वादविवाद और मानमनौअल के बाद संगीता सहमत हुई. सब ने अपनी सहमति दे दी. संगीता के घर के शांत वातावरण में हम सब खूब मन लगा कर पढ़ाई करते. हमारे घर पासपास होने के कारण यह काफी सुविधाजनक भी था. कुछ समय के लिए ही सही संगीता अपने स्वप्निल संसार से बाहर निकल आई थी. पर जब परीक्षाफल आया तो चौंकने की बारी हमारी थी. यद्यपि हम सभी सहेलियों के अच्छे नंबर आए थे पर संगीता पूरे बोर्ड में प्रथम थी. देखते ही देखते वह सब की आंखों का तारा बन गई.

हमारे बढि़या परीक्षाफल से प्रभावित हो कर हमारे मातापिता ने हमें पास के शहर में रह कर पढ़ने की अनुमति दे दी. उन्हें भी हमारी ही तरह यह विश्वास हो गया था कि हम एकसाथ रह कर अच्छी तरह पढ़ाई कर पाएंगे. एक किराए के घर में हमारे रहने का प्रबंध कर दिया गया. बारीबारी से हम सब की मांएं हमारी देखभाल करने और हम पर नजर रखती थीं. पर संगीता पुन: अपने सपनों में विचरण करने लगी थी.

दोहरा चरित्र

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तू मुझे कबूल: क्या वापस मिलीं शायरा और सुहैल की खुशियां

शायरा और सुहैल एकसाथ खेलते बड़े हुए थे. उन्होंने पहले दर्जे से 7वें दर्जे तक एकसाथ पढ़ाई की थी. शायरा के अब्बा बड़ी होती लड़कियों के बाहर निकलने के सख्त खिलाफ थे, इसलिए उसे घर बैठा दिया गया.

उस समय शायरा और सुहैल को लगा था, जैसे उन की खुशियों पर गाज गिर गई हो, मगर दोनों के घर गांव की एक ही गली में होने के चलते उन्हें इस बात की खुशी थी कि शायरा की पढ़ाई छूट जाने के बाद भी वे दोनों एकदूसरे से दूर नहीं थे.

उन दोनों के अब्बा मजदूरी कर के घर चलाते थे, मगर माली हालात के मामले में दोनों ही परिवार तंगहाल नहीं थे. शायरा के चाचा खुरशीद सेना में सिपाही थे, बड़ी बहन नाजनीन सुहैल के बड़े भाई अरबाज के साथ ब्याही थी, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर थे और बैंगलुरु में रहते थे. शायरा का एकलौता भाई जफर था, उस से बड़ा, जिस की गांव में ही परचून की दुकान थी.

सुहैल 3 भाइयों में बीच का था. अरबाज बैंगलुरु में सैटल था. गुलफान और सुहैल अभी पढ़ रहे थे. सुहैल खूब  मन लगा कर पढ़ रहा था, ताकि सेना में बड़ा अफसर बन सके.

स्कूल से आते ही सुहैल का पहला काम होता शायरा के घर पहुंच कर उस से खूब बातें करना. उस समय घर में शायरा के अलावा बस उस की अम्मी हुआ करती थीं.

शायरा कोई काम कर रही होती तो सुहैल उसे बांह पकड़ कर छत पर ले जाता. जब वे छोटे थे, तब उन की योजनाओं में गुड्डेगुडि़यों और खिलौनों से खेलना शामिल था, मगर अब वे बड़े हो गए थे तो योजनाएं भी बदल गई थीं.

वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे

अब सुहैल को लगता था कि वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे, मगर उस के मासूम बरताव को देख कर वह ठहर जाता.

एक दिन स्कूल से छुट्टी ले कर सुहैल ने शहर जा कर कोई फिल्म देखी. वापस लौटते हुए फिल्म की प्यार से सराबोर कहानी उस के जेहन पर छाई हुई थी. जैसे ही वह और शायरा छत पर पंहुचे, उस ने बिना कोई बात किए शायरा का हाथ पकड़ लिया.

ऐसा नहीं था कि उस ने शायरा का हाथ पहली बार पकड़ा हो, मगर उस की आंखों में तैर रहे प्यार के भाव को महसूस कर के शायरा घबरा गई और हाथ छुड़ा कर नीचे चली गई.

सुहैल चुपचाप अपने घर लौट आया. अब हालात बदल गए थे. स्कूल से आते ही वह अपना होमवर्क खत्म करता और उस के बाद शायरा के घर जा कर बस उसे देखभर आता.

समय बीतता गया. सुहैल की ग्रेजुएशन खत्म हो चुकी थी. घर वाले शादी की बात करने लगे थे, मगर सुहैल कह देता, ‘‘अभी मु?ो सीडीएस की तैयारी करनी है और फिर नौकरी लग जाने के बाद शादी करूंगा.’’

एक शाम सुहैल सीडीएस का इम्तिहान दे कर लौटा और सीधा शायरा के घर पहुंच गया. शायरा खाना बना रही थी. सुहैल ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया, तो वह धीरे से बोली, ‘‘क्या करते हो… रोटी बनानी है मु?ो.’’

सुहैल ने शायरा की एक न सुनी और छत पर ले आया. वहां दोनों हाथों से उस का चेहरा ऊपर कर के बोला, ‘‘मेरी जल्द ही नौकरी लग जाएगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे.’’

शायरा चुप खड़ी रही. उस का दिल तो कह रहा था कि सुहैल उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

‘‘मैं अब्बा से कहूंगा कि वे तेरे घर आ कर हमारे रिश्ते की बात करें,’’ कह कर सुहैल अपने घर चला आया.

कई दिन बाद शायरा को खबर लगी कि सुहैल की नौकरी लग गई है और उसे श्रीनगर भेज दिया गया है. यह सुनते ही शायरा को लगा जैसे घरमकान, गलीकूचा सब बदरंग हो गए हों. न खाने का मन करता था और न ही किसी से बात करने को दिल करता. दिनभर या तो वह काम करती रहती या छत पर चली जाती. रात तो तारे गिनते कब बीत जाती, उसे पता ही न चलता.

शायरा की यह हालत देख कर एक रात उस की अम्मी ने अपने शौहर से कहा कि वे सुहैल के अब्बा से उन दोनों के रिश्ते की बात कर आएं.

अगले दिन शायरा के अब्बू घर लौटे, तो शायरा ने उन्हें पानी दिया. जब वह जाने लगी, तो उन्होंने उसे रोक लिया और बोले, ‘‘मैं ने निजाम से बात कर ली है. कहते हैं कि जैसे ही सुहैल छुट्टी पर आएगा, तुम दोनों का निकाह कर देंगे.’’

शायरा भाग कर कमरे में चली गई और तकिए में मुंह छिपा कर खूब मुसकराई. उस दिन उस ने भरपेट खाना खाया और कई दिनों के बाद अच्छी नींद आई. अब इंतजार था तो सुहैल के घर लौट आने का.

एक दिन अब्बू ने बताया कि एक महीने बाद सुहैल घर लौट कर आ रहा है. यह सुन कर शायरा की खुशी का ठिकाना न रहा. अब तो बस दिन गिनने थे. महीने का समय ही कितना होता है? मगर जल्द ही उसे एहसास हो गया कि अगर किसी अजीज का इंतजार हो, तो एक दिन भी सदियों सा बड़ा हो जाता है.

शायरा सुबह उठती तो खुश होती कि चलो एक दिन बीता, मगर दिनभर बस घड़ी की तरफ निगाहें जमी रहतीं.

आखिर वह दिन भी आया, जब उसे पता चला कि सुहैल घर लौट आया  है. मेरठ नजदीक था तो चाचा भी घर  आ गए.

शाम को मौलवी की हाजिरी में दोनों परिवार के लोगों ने बैठ कर 10 दिन बाद का निकाह तय कर दिया.

शायरा को यकीन ही न था कि उसे मनमांगी मुराद मिल गई थी. घर में चूंकि चहलपहल थी, इसलिए सुहैल से मिलने का तो सवाल ही न था. बस, तसल्ली यह थी कि 10 ही दिनों की तो बात थी.

शादी में अभी 3 दिन बचे थे. घर में हर तरफ खुशी का माहौल था. अचानक एक बुरी खबर आई कि बैंगलुरु वाली बहन नाजनीन को बच्चों को स्कूल से लाते समय एक बस ने कुचल दिया. उन की मौके पर ही मौत हो गई.

एक पल में जैसे खुशियां मातम में बदल गईं. कुछ लोग तुरंत बैंगलुरु रवाना हो गए. हालात की नजाकत देखते  हुए उन्हें बैंगलुरु में ही दफना कर सब लौटे, तो अरबाज भी दोनों बच्चों के साथ आए.

शादी का समय नजदीक था, मगर शायरा ऐसे माहौल में शादी करने के हक में नहीं थी. उस ने जब यह बात सुहैल को बताई, तो उस ने शायरा का साथ दिया, मगर दोनों जानते थे कि कोई भी फैसला करना तो बड़ों को ही है.

शायरा दिनभर नाजनीन के बच्चों को अपने साथ रखती, उन के खानेपीने, नहलाने जैसी हर जरूरत का खयाल रखती. अरबाज दिन में 2-3 बार आ कर उस से बच्चों के बारे में जरूर जानते, उन का हालचाल लेते.

शादी की तैयारियां भी चुपचाप जारी थीं. शायरा भी कबूल कर चुकी थी कि बहन की मौत कुदरत की मरजी थी और यह शादी भी. उस ने मन ही मन खुद को तैयार भी कर लिया था.

शाम का समय था. सब लोग घर के आंगन में बैठे थे कि अरबाज और उस के अब्बू एकसाथ वहां पहुंचे. उन्हें बैठा कर चाय दी गई. शायरा उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘क्या बात है मियां, कुछ परेशान हो?’’ शायरा के अब्बू ने अरबाज के अब्बा से पूछा.

निजाम कुछ पल खामोश रहे, फिर कहा, ‘‘नाजनीन चली गई. अभी उस की उम्र ही कितनी थी. उस के बच्चे भी अभी बहुत छोटे हैं. अरबाज की हालत भी मु?ा से देखी नहीं जाती.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘अरबाज अभी जवान है. लंबी उम्र पड़ी है. कैसे कटेगी? और इन बच्चों को कौन पालेगा? आखिर इन सब के बारे में भी तो हमें ही सोचना है.’’

‘‘अब क्या किया जा सकता है?’’

‘‘नाजनीन के बच्चे शायरा के साथ घुलमिल गए हैं. अगर अरबाज और शायरा का निकाह कर दें तो कैसा रहे?’’

एक पल के लिए खामोशी छा गई. शायरा ने सुना तो उस के शरीर से जैसे जान निकल गई.

‘‘वह सुहैल से प्यार करती है. वह नहीं मानेगी,’’ शायरा के अब्बा बोले.

‘‘औरत जात की मरजी के माने ही क्या हैं? जानवर की तरह जिस के हाथ रस्सी थमा दी गई उसी से बंध गई. तुम अपनी कहो. मंजूर हो तो निकाह की तैयारी करें. अरबाज की भी नौकरी का सवाल है.’’

शायरा के अब्बा इसलाम ने अपनी बीवी जुबैदा की ओर देखा, तो जुबैदा ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी.’’

अगले ही दिन से शादी की तैयारी शुरू हो गई. सुहैल को इस निकाह की खबर लगी, तो उस ने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

जब यह खबर शायरा ने सुनी, तो उसे लगा कि जाने से पहले सुहैल उस से मिलने जरूर आएगा. मगर वह नहीं आया. उन के घर से खबर ही आनी बंद हो गई.

शादी बहुत सादगी से हो रही थी. शायरा को जब निकाह के लिए ले जाया गया, तो उस की हालत ऐसी थी जैसे मुरदे को मैयत के लिए ले जाया जा रहा हो. उस के सारे सपने टूट गए थे. जीने की वजह ही खत्म हो गई थी.

शायरा को लग रहा था कि जब उस से पूछा जाएगा कि अरबाज वल्द निजाम आप को कबूल है, तो वह कैसे कह पाएगी कि कबूल है?

दूल्हे से पूछा गया, ‘‘शायरा वल्द इसलाम आप को कबूल है?’’

आवाज आई, ‘‘कबूल है.’’

शायरा की जैसे धड़कन बढ़ गई. फिर शायरा से पूछा गया, ‘‘मोहतरमा, सुहैल वल्द निजाम आप को  कबूल है?’’

शायरा ने जैसे ही सुहैल का नाम सुना, तो उस ने धड़कते दिल और  चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘कबूल है.’’

दरअसल, अरबाज को पता चल चुका था कि शायरा सुहैल को चाहती है. उस ने सुहैल से बात की और शादी के दिन शायरा को यह खूबसूरत तोहफा देने की सोची. अब सुहैल और शायरा एक हो चुके थे.

दिल वर्सेस दौलत- भाग 3: क्या पूरा हुआ लाली और अबीर का प्यार

मां का यह विकट क्रोध देख लाली सम झ गई थी कि अब अगर कुदरत भी साक्षात आ जाए तो उन्हें इस रिश्ते के लिए मनाना टेढ़ी खीर होगा. मां के इस हठ से वह बेहद परेशान हो उठी. उस का अंतर्मन कह रहा था कि उसे अबीर जैसा सुल झा हुआ, सम झदार लड़का इस जिंदगी में दोबारा मिलना असंभव होगा. आज के समय में उस जैसे सैंसिबल, डीसैंट लड़के बिरले ही मिलते हैं. अबीर जैसे लड़के को खोना उस की जिंदगी की सब से बड़ी भूल होगी.

लेकिन मां का क्या करे वह? वे एक बार जो ठान लेती हैं वह उसे कर के ही रहती हैं. वह बचपन से देखती आई है, उन की जिद के सामने आज तक कोई नहीं जीत पाया. तो ऐसी हालत में वह क्या करे? पिछली मुलाकात में ही तो अबीर के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं उस ने. दोनों ने एकदूसरे के प्रति अपनी प्रेमिल भावनाएं व्यक्त की थीं.

पिछली बार अबीर के उस के कहे गए प्रेमसिक्त स्वर उस के कानों में गूंजने लगे, ‘लाली माय लव, तुम ने मेरी आधीअधूरी जिंदगी को कंप्लीट कर दिया. दुलहन बन जल्दी से मेरे घर आ जाओ. अब तुम्हारे बिना रहना शीयर टौर्चर लग रहा है.’

क्या करूं क्या न करूं, यह सोचतेसोचते अतीव तनाव से उस के स्नायु तन आए और आंखें सावनभादों के बादलों जैसे बरसने लगीं. अनायास वह अपने मोबाइल स्क्रीन पर अबीर की फोटो देखने लगी और उसे चूम कर अपने सीने से लगा उस ने अपनी आंखें मूंद लीं.

तभी मम्मा उस का दरवाजा पीटने लगीं… ‘‘लाली, दरवाजा खोल बेटा.’’

उस ने दरवाजा खोला. मम्मा कमरे में धड़धड़ाती हुई आईं और उस से बोलीं, ‘‘मैं ने अबीर के पापा को इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. सारा टंटा ही खत्म. हां, अब अबीर का फोनवोन आए, तो उस से तु झे कुछ कहने की कोई जरूरत नहीं. वह कुछ कहे, तो उसे रिश्ते के लिए साफ इनकार कर देना और कुछ ज्यादा बात करने की जरूरत नहीं. ले देख, यह एक और लड़के का बायोडाटा आया है तेरे लिए. लड़का खूब हैंडसम है. नामी एमएनसी में सीनियर कंसल्टैंट है. 40 लाख रुपए से ऊपर का ऐनुअल पैकेज है लड़के का. मेरी बिट्टो राज करेगी राज. लड़के वालों की दिल्ली में कई प्रौपर्टीज हैं. रुतबे, दौलत, स्टेटस में हमारी टक्कर का परिवार है. बता, इस लड़के से फोन पर कब बात करेगी?’’

‘‘मम्मा, फिलहाल मेरे सामने किसी लड़के का नाम भी मत लेना. अगर आप ने मेरे साथ जबरदस्ती की तो मैं दीदी के यहां लंदन चली जाऊंगी. याद रखिएगा, मैं भी आप की बेटी हूं.’’ यह कहते हुए लाली ने मां के कमरे से निकलते ही दरवाजा धड़ाक से बंद कर लिया.

मन में विचारों की उठापटक चल रही थी. अबीर उसे आसमान का चांद लग रहा था जो अब उस की पहुंच से बेहद दूर जा चुका था. क्या करे क्या न करे, कुछ सम झ नहीं आ रहा था.

सारा दिन उस ने खुद से जू झते हुए बेपनाह मायूसी के गहरे कुएं में बिताया. सां झ का धुंधलका होने को आया. वह मन ही मन मना रही थी, काश, कुछ चमत्कार हो जाए और मां किसी तरह इस रिश्ते के लिए मान जाएं. तभी व्हाट्सऐप पर अबीर का मैसेज आया, ‘‘तुम से मिलना चाहता हूं. कब आऊं?’’

उस ने जवाब में लिखा, ‘जल्दी’ और एक आंसू बहाती इमोजी भी मैसेज के साथ उसे पोस्ट कर दी. अबीर का अगला मैसेज एक लाल धड़कते दिल के साथ आया, ‘‘कल सुबह पहुंच रहा हूं. एयरपोर्ट पर मिलना.’’

लाली की वह रात आंखों ही आंखों में कटी. अगली सुबह वह मां को एक बहाना बना एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई.

क्यूपिड के तीर से बंधे दोनों प्रेमी एकदूसरे को देख खुद पर काबू न रख पाए और दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे. कुछ ही क्षणों में दोनों संयत हो गए और लाली ने उन दोनों के रिश्ते को ले कर मां के औब्जेक्शंस को विस्तार से अबीर को बताया.

अबीर और लाली दोनों ने इस मुद्दे को ले कर तसल्ली से, संजीदगी से विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अब जो कुछ करना है उन दोनों को ही करना होगा.

‘‘लाली, इन परिस्थितियों में अब तुम बताओ कि क्या करना है? तुम्हारी मां हमारी शादी के खिलाफ मोरचाबंदी कर के बैठी हैं. उन्होंने साफसाफ लफ्जों में इस के लिए मेरे पापा से इनकार कर दिया है. तो इस स्थिति में अब मैं किस मुंह से उन से अपनी शादी के लिए कहूं?’’ अबीर ने कहा.

‘‘हां, यह तो तुम सही कह रहे हो. चलो, मैं अपने पापा से इस बारे में बात करती हूं. फिर मैं तुम्हें बताती हूं.’’

‘‘ठीक है, ओके, चलता हूं. बस, यह याद रखना मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. शायद खुद से भी ज्यादा. अब तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं.’’

लाली ने अपनी पनीली हो आई आंखों से अबीर की तरफ एक फ्लाइंग किस उछाल दिया और फुसफुसाई, ‘हैप्पी एंड सेफ जर्नी माय लव, टेक केयर.’’

लाली एयरपोर्ट से सीधे अपने पापा के औफिस जा पहुंची और उस ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया. उस की बातें सुन पापा ने कहा, ‘‘अगर तुम और अबीर इस विषय में निर्णय ले ही चुके हो तो मैं तुम दोनों के साथ हूं. मैं कल ही अबीर के घर जा कर तुम्हारी मां के इनकार के लिए उन से माफी मांगता हूं और तुम दोनों की शादी की बात पक्की कर देता हूं. इस के बाद ही मैं तुम्हारी मां को अपने ढंग से सम झा लूंगा. निश्चिंत रहो लाली, इस बार तुम्हारी मां को तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी.’’

लाली के पिता ने लाली से किए वादे को पूरा किया. अबीर के घर जा कर उन्होंने अपनी पत्नी के इनकार के लिए उन से हाथ जोड़ कर बच्चों की खुशी का हवाला देते हुए काफी मिन्नतें कर माफी मांगी और उन दोनों की शादी पक्की करने के लिए मिन्नतें कीं.

इस पर अबीर के पिता ने उन से कहा, ‘‘भाईसाहब, अबीर के ही मुंह से सुना कि आप लोगों को हमारे इस 2 बैडरूम के फ्लैट को ले कर कुछ उल झन है कि शादी के बाद आप की बेटी इस में कहां रहेगी? आप की परेशानी जायज है, भाईसाहब. तो, मेरा खयाल है कि शादी के बाद दोनों एक अलग फ्लैट में रहें. आखिर बच्चों को भी प्राइवेसी चाहिए होगी. यही उन के लिए सब से अच्छा और व्यावहारिक रहेगा. क्या कहते हैं आप?’’

‘‘बिलकुल ठीक है, जैसा आप उचित सम झें.’’

‘‘तो फिर, दोनों की बात पक्की?’’

‘‘जी बिलकुल,’’ अबीर के पिता ने लाली के पिता को मिठाई खिलाते हुए कहा.

बेटी की शादी उस की इच्छा के अनुरूप तय कर, घर आ कर लाली के पिता ने पत्नी को लाली और अबीर की खुशी के लिए उन की शादी के लिए मान जाने के लिए कहा. लाली ने तो साफसाफ लफ्जों में उन से कह दिया, ‘‘इस बार अगर आप हम दोनों की शादी के लिए नहीं माने तो मैं और अबीर कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’’ और लाली की यह धमकी इस बार काम कर गई. विवश लाली की मां को बेटी और पति के सामने घुटने टेकने पड़े.

आखिरकार, दिल वर्सेस दौलत की जंग में दिल जीत गया और दौलत को मुंह की खानी पड़ी.

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