ग्रहण- भाग 1: मां के एक फैसले का क्या था अंजाम

शाम से ही तेज हवा चल रही थी, घंटेभर बाद मूसलाधार बारिश होने लगी और बिजली चली गई. मेरे पति गठिया की वजह से ज्यादा चलफिर नहीं पाते थे. दफ्तर से आतेजाते बुरी तरह थक जाते थे. मैं ने घर की सारी खिड़कियां बंद कीं और रसोई में जा कर खिचड़ी बनाने लगी. अंधेरे में और कुछ बनाने की हिम्मत ही नहीं थी.

साढ़े 8 बजे ही हम दोनों खापी कर सोने चले गए. पंखा न चलने की वजह से नींद तो नहीं आ रही थी, लेकिन उठने का मन भी नहीं कर रहा था. मेरी आंख अभी लगी ही थी कि किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज से उठ बैठी. टौर्च जला कर देखा, साढ़े 9 बजे थे. सोचा कि इस वक्त कौन होगा? आजकल तो मिलने वाले, परिचित भी कभीकभार ही आते हैं और वह भी छुट्टी के दिन.

मैं धीरे से उठी. टौर्च की रोशनी के सहारे टटोलतेटटोलते दरवाजे तक पहुंची.

मेरे पति पीछे से आवाज लगा रहे थे, ‘‘शांता, जरा देख कर खोलना, पहले कड़ी लगा कर देख लेना, इस इलाके में आजकल चोरियां होने लगी हैं.’’

मैं ने दरवाजे के पास पहुंच कर चिल्ला कर पूछा, ‘‘कौन है?’’

2 क्षण बाद धीरे से आवाज आई, ‘‘अम्मा, मैं हूं, कविता.’’

कविता, मेरी बहू. मेरे इकलौते लाड़ले बेटे प्रमोद की पत्नी. मेरी घनिष्ठ सहेली कुंती की बेटी. 10 महीने पहले ही तो मैं ने बड़े चाव से उन की शादी रचाई थी. मैं ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोल दिया.

बरसात में भीगीभागी कविता एक हाथ में सूटकेस और कंधे पर बैग लिए खड़ी थी.

‘‘कविता, इतनी रात गए? प्रमोद भी आया है क्या?’’

उस ने ‘नहीं’ में सिर हिलाया और अंदर आ गई. मेरा दिल धड़क उठा, ‘‘वह ठीक तो है न?’’

‘‘हां,’’ उस ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘वह कहां…मेरा मतलब है, प्रमोद क्यों नहीं आया?’’

‘‘वे भोपाल गए हैं?’’ वह शांत स्वर में बोली.

‘‘भोपाल?’’ मैं चौंक गई, ‘‘किसी से मिलने या दफ्तर के काम से?’’

‘प्रभा से मिलने गए हैं,’’ उस का स्वर इतना ठंडा था कि लगा, मेरे सीने पर बर्फ की छुरी चल गई हो.

‘‘प्रभा,’’ मैं कुछ जोर से बोली. उसी समय बिजली आ गई. कविता ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘अम्मा, मैं भीग गई हूं, कपड़े बदल कर आती हूं.’’

वह सूटकेस खोल कर कपड़े निकालने लगी और फिर नहाने चली गई. मैं वहीं बैठ गई. अंदर से पति लगातार पूछ रहे थे, ‘‘शांता, कौन आया है?’’

फिर वे खुद ही उठ कर बाहर चले आए, ‘‘क्या बहू आई है? कुछ झगड़ा हुआ क्या प्रमोद के साथ?’’

‘‘पता नहीं, कह रही थी कि प्रमोद भोपाल गया है प्रभा से मिलने,’’ मैं धीरे से बोली.

‘‘मुझे पता था, एक दिन यही होगा. किस ने तुम से कहा था प्रमोद के साथ जबरदस्ती करने को? तुम्हारी जिद और झूठे अहं ने एक नहीं, 3-3 लोगों की जिंदगी खराब कर दी. लो, अब भुगतो,’’ वे बड़बड़ाते हुए वापस चले गए.

कविता कपड़े बदल कर आई. अचानक मुझे खयाल आया कि वह भूखी होगी. वह सुबह की गाड़ी से चली होगी. पता नहीं रास्ते में कुछ खाया भी होगा या नहीं. वह जिस हालत में थी, लग तो नहीं रहा था कि कुछ खाया होगा.

मैं ने फ्रिज से उबले आलू निकाल कर फटाफट तल दिए और मसाले में छौंक दिए. फिर डबलरोटी को सेंक कर उस के सामने रख दिए. वह चुपचाप खाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे वह अपने सीने में एक तूफान छिपाए बैठी हो.

मैं ने उस का बिस्तर सामने वाले कमरे में लगा दिया. वह हाथ धो कर आई तो मैं ने मुलायम स्वर में कहा, ‘‘कविता, तुम थक गई होगी, सो जाओ. कल सवेरे बात करेंगे.’’

‘‘कल सवेरे मैं, मां के पास दिल्ली चली जाऊंगी.’’

‘‘इतनी जल्दी?’’ मैं अचकचा गई.

‘‘मैं तो यहां आप से सिर्फ यह पूछने आई हूं कि आप ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’’ उस की सवालिया निगाहें मुझ पर तन गईं.

‘‘बेटी, मैं ने सोचा था…’’

‘‘आप ने सोचा कि मुझ से शादी करने के बाद प्रमोद प्रभा को भूल जाएंगे, पर सच तो यह है कि वे एक क्षण भी उस को भुला नहीं पाए.’’

‘‘क्या तुम्हें प्रभा के बारे में सब पता है?’’ मैं ने डरतेडरते पूछा.

‘‘हां, प्रमोद ने शादी के पहले ही मुझे सबकुछ बता दिया था. इधर आप की जिद थी, उधर मेरी मां की. उस वक्त तो मैं ने भी यही सोचा था कि शादी के बाद वे सब भूलने लगेंगे. पर…’’

‘‘क्या प्रमोद ने तेरे साथ कुछ…’’

‘‘नहीं अम्मा, वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं. पर प्रभा उन पर कुछ इस तरह हावी है कि वे मेरे साथ कभी सामान्य नहीं रहते.’’

मुझे प्रमोद पर गुस्सा आने लगा. इस तरह कविता को अकेले छोड़ कर भोपाल जाने का क्या मतलब?

मुझे सालभर पहले प्रमोद का कहा याद आया, ‘अम्मा, कविता को दूसरे अच्छे घर के लड़के मिल जाएंगे. पर प्रभा का मेरे अलावा और कोई नहीं है. उस के पिता नहीं हैं, मां बीमार रहती हैं. छोटे भाईबहन…’

‘तो क्या प्रभा से तुम इसलिए शादी करना चाहते हो कि उस का कोई नहीं? मैं तो उसे बहू के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती.’

‘मां,’ प्रमोद ने दयनीय स्वर में प्रतिवाद किया था.

‘देख प्रमोद, तेरी शादी कविता से ही होगी. मैं अपनी बचपन की सहेली कुंती को वचन दे चुकी हूं. फिर शादीब्याह में खानदान भी तो देखना पड़ता है. कविता के पिता की 2 फैक्टरियां हैं, एक होटल है. तेरा कितना अरसे से फैक्टरी लगाने का मन है. शादी के बाद चुटकियों में तेरा काम हो जाएगा.’

‘मां, मैं किसी और के पैसे से नहीं, अपने पैसों से फैक्टरी लगाऊंगा. फिर इतनी जल्दी क्या है? अभी 3 साल ही तो हुए हैं मुझे इंजीनियर बने हुए.’

‘मैं कुछ नहीं जानती. अगर तू ने ज्यादा जिद की तो मैं आत्महत्या कर लूंगी. वैसी भी सहेली के सामने जलील होने से तो अच्छा है मर जाऊं.’

फिर मैं ने सचमुच भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, तब मजबूरी में प्रमोद को मेरी बात माननी पड़ी.

प्रमोद के ‘हां’ कहने भर से मैं खुश हो कर शादी की तैयारी में जुट गई. कविता के लिए साडि़यां मैं ने अपनी पसंद से लीं. नई डिजाइन के गहने बनवाए. मेरे सारे दूरदराज के रिश्तेदार सप्ताहभर पहले आ गए.

ग्रहण- भाग 3: मां के एक फैसले का क्या था अंजाम

मेरे पीछे खड़ी कविता शायद उसे दिखी नहीं. पर मुझे प्रमोद के पीछे आती एक दुबलीपतली, कंधे तक कटे बालों वाली सांवली, लेकिन अच्छे नैननक्श वाली लड़की दिख ही गई. मैं समझ गई कि यही प्रभा है.

प्रमोद के कुछ कहने से पहले मैं फट पड़ी, ‘‘तुम्हें कुछ खयाल भी है कि तुम्हारा घरबार है, पत्नी है, मां है, और…’’

‘‘मुझे सब पता है, मां. मैं भूलना चाहता हूं तो भी आप भूलने कहां देती हैं? आप जरा धीरे बोलिए, यह अस्पताल है,’’ उस के स्वर में कड़वाहट थी. वह पहली बार मुझ से इस ढंग से बोल रहा था.

अचानक विभा बाहर दौड़ती हुई आई. ‘‘दीदी, जल्दी अंदर चलो. मां को होश आ गया है.’’

प्रभा और प्रमोद तेजी से अंदर भागे. मेरे कदम भी उसी दिशा में बढ़ गए. कविता भी मेरे पीछे चली आई.

कमरे में एक कृशकाय महिला बड़े प्यार से प्रमोद का हाथ थामे बैठी थी. मुझे देख कर प्रमोद ने कुछ हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘आप इतने दिनों से मेरी मां से मिलने को कह रही थीं. देखिए, वे आप से मिलने आई हैं.’’

मुझे देख कर उस महिला की आंखों में आंसू उभर आए. वह हौले से बोली, ‘‘बहनजी, मैं मरने से पहले आप से एक बार मिलना चाहती थी. आप का बेटा प्रमोद मेरे लिए देवदूत जैसा है. पता नहीं, प्रभा ने ऐसा क्या कर्म किए हैं, जो उसे प्रमोद जैसा…’’ उन की आवाज आंसुओं में धुल गई.

मैं हतप्रभ सी खड़ी रही. अचानक प्रभा की मां का ध्यान कविता की ओर गया, ‘‘यह कौन है, बेटा?’’

प्रमोद ने तुरंत धीरे से कह डाला, ‘‘मेरी मौसेरी बहन है, मां के साथ आई है.’’

कविता के चेहरे का रंग लाल हो उठा. वह एक झटके में कमरे से बाहर निकल गई. उस के पीछेपीछे मैं भी बाहर जा पहुंची. वार्ड के बाहर एक कुरसी पर बैठ कर वह सिसकियां भरने लगी.

मेरी लाड़ली बहू रो रही थी और मेरा गुस्सा लगातार बढ़ रहा था. दो कौड़ी की महिला के सामने प्रमोद ने कविता को जलील किया, उस की यह हिम्मत?

प्रमोद वार्ड से बाहर आया और मेरे पास न आ कर सीधे कविता के पास पहुंचा और रूंधे स्वर से बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हें जलील करने के इरादे से ऐसा नहीं कहा था. उस वक्त मुझे कुछ और नहीं सूझा. दरअसल, प्रभा की मां मेरी शादी के बारे में नहीं जानती. उस की जिंदगी में एकमात्र आशा की किरण प्रभा से मेरी शादी है. इस वक्त जब वह कैंसर के अंतिम चरण से गुजर रही है, मैं अपनी शादी की बात बता कर समय से पहले उसे मारना नहीं चाहता. तुम समझ रही हो न?’’

कविता की सिसकियां धीरेधीरे रुकने लगीं. प्रमोद उसे बता रहा था, ‘‘मुझे प्रभा की मां से बहुत प्यार मिला है. मैं घर से दूर था. मुझे कभी उन्होंने घर की कमी न खटकने दी. मैं बीमार पड़ता तो पूरा परिवार दिनरात मेरी सेवा करता. प्रभा से मैं ने खुद विवाह का प्रस्ताव रखा था. इस पर भी मेरी शादी के बाद उस ने मुझे एक बार भी गलत नहीं कहा.

‘‘क्या इस परिवार के प्रति मेरा कोई कर्तव्य नहीं है? मुझ से ये लोग किसी चीज की आशा नहीं रखते. पर अगर मैं इस वक्त इन का साथ नहीं दूंगा तो खुद की नजरों में गिर जाऊंगा. कविता, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. मैं ने तो तुम से कहा था कि मैं 3-4 दिनों बाद वापस आऊंगा. फिर भी तुम्हें सब्र क्यों न हुआ?’’

कविता का रोना रुक चुका था. वह गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो, प्रमोद, मैं ने तुम्हें गलत समझा. दरअसल, शादी से पहले जब तुम मुझ से मिले थे और प्रभा के बारे में बताया था, तभी मुझे समझ जाना चाहिए था. मैं तो बेकार में ही तुम दोनों के बीच आ गई.

‘‘तुम्हारी जरूरत मुझ से ज्यादा प्रभा और उस के परिवार को है. तुम चाहो तो अब भी अपनी गलती सुधार सकते हो. मैं तुम्हें आजाद करती हूं, प्रमोद. मैं दिल्ली लौट जाऊंगी और फैशन डिजाइनर बनने का सपना साकार करूंगी.’’

मैं हक्कीबक्की खड़ी रह गई. मुझे लग रहा था, मेरा अस्तित्व है ही नहीं, मेरे बनाए गुड्डेगुड्डी अब इंसानों की भाषा में बोलने लगे थे.

‘‘कविता, इतनी जल्दी कोई निर्णय मत लो. शादी कोई खेल नहीं है,’’ प्रमोद कठोर स्वर में बोला.

‘‘हां, वाकई खेल नहीं है. पर मैं अब और कठपुतली नहीं बन सकती,’’ कविता दृढ़ स्वर में बोली.

प्रभा और विभा हमारे पास आ गईं. प्रभा शांत स्वर में बोली, ‘‘आप लोग घर चलिए. खाना खा कर जाइएगा.’’

घर आ कर प्रभा और विभा ने फटाफट खाना तैयार किया. बिना एक भी शब्द कहे हम सब ने खाना खाया.

रात घिर आई थी. प्रभा ने बाहर वाले कमरे में हम सब के सोने का इंतजाम किया. प्रभा का व्यवहार देख कर मैं चकित रह गई. शांत, सुशील, कहीं से ऐसा नहीं लगा कि वह मुझ से नाराज है. उसे तो निश्चित ही पता होगा कि प्रमोद ने उस से शादी क्यों नहीं की? रात को मैं प्रमोद से कुछ न कह पाई, क्योंकि प्रभा का भाई अरुण हमारे कमरे में सोने चला आया और कविता प्रभा के साथ अंदर वाले कमरे में.

मुझे सारी रात नींद न आई. मैं जिंदगी में पहली बार अपने को पराजित महसूस कर रही थी, पर फिर भी हार मानने को तैयार न थी.

सवेरे उठते ही कविता ने घोषणा कर दी, ‘‘मैं आज ही दिल्ली चली जाऊंगी.’’

मैं ने प्रमोद से कहा, ‘‘देख बेटा, कविता को रोक ले. तू उसे अपने साथ मुंबई ले जा.’’

‘‘अम्मा, उसे कुछ दिनों के लिए दिल्ली हो आने दो. अब तुम हमारी जिंदगी में दखल न ही दो तो अच्छा है. हमारी जिंदगी है, हम रोते या हंसते हुए इसे काट लेंगे. आप जो करना चाहती थीं, वह तो हो ही गया. मैं जब जानबुझ कर गड्ढे में गिरा हूं तो शिकायत क्यों करूं?’’

प्रमोद भी उसी शाम की गाड़ी से मुंबई लौटना चाहता था. उस ने मुझे भी पूना तक का टिकट ला दिया. मेरे चलते समय प्रभा सामने आई ही नहीं. पता नहीं क्यों, मेरा दिल उस सहनशील लड़की के लिए कसक उठा. विभा और अरुण हमें स्टेशन तक छोड़ने आए.

कविता की गाड़ी पहले छूटनी थी. वह विभा से भावुक स्वर में बोली, ‘‘अपनी दीदी से कहना, मैं उस के बीच की दीवार नहीं हूं. जिंदगी में रोशनी के हकदार हम सभी हैं,’’ फिर प्रमोद से कहा, ‘‘इस बार तुम निर्णय स्वयं लेना.’’

प्रमोद ने संयत हो कर कहा, ‘‘इस समय तुम भावना में बह रही हो. कोई भी रिश्ता इतनी आसानी से काट कर फेंका नहीं जा सकता. तुम सोच कर जवाब देना, मैं इंतजार करूंगा.’’

फिर कविता ने मेरी तरफ देख कर हाथ जोड़ दिए. प्रमोद ने मुझे महिला डब्बे में बैठा दिया और खुद मुंबई जाने के लिए बसस्टैंड की तरफ बढ़ गया.

ज्यों ही गाड़ी चली, मुझे चक्कर सा आने लगा कि यह मैं ने क्या कर दिया? अपने स्वार्थ के लिए 3 युवाओं को दुखी कर दिया. ये तीनों अब कभी खुश नहीं हो पाएंगे, इन के सपनों के एक हिस्से में ग्रहण लग गया…और वह ग्रहण मैं हूं. मैं फूटफूट कर रोने लगी. आखिरकार मैं हार गई, मैं हार गई.

 

छितराया प्रतिबिंब- भाग 1: क्या हुआ था मलय के साथ

मेघों की अब मुझ से दोस्ती हो चली थी, शायद इस वजह से अब आसमान को ढक लेने की उन की जिद भी कुछ कम हो चली थी. खुलाखुला आसमान, जो कभी मेरी हसरतों की पहली चाहत थी, मेरे सामने पसरा पड़ा था. मगर क्या यह आसमान सच में मेरा था? मैं निहार रहा था गौर से उसे. सितारों की झिलमिलाहट कैसी सरल और निष्पाप थी. एक आह सी निकल आई जो मेरे दिल की खाली जगह में धुएं सी भर गई.

गंगटोक के होटल के जिस कमरे में मैं ठहरा था वहां से हरीभरी वादियों के बीच घरों की जुगनू सी चमकती रोशनियां और रात के बादलों में छिपा आसमान मेरे जीवन सा ही रहस्यमय था. शायद वह रहस्य का घेरा मैं ने ही अपने चारों ओर बनाया हुआ था या वह रहस्य मेरे जन्म के पहले से ही मेरे चारों तरफ था. जो भी हो, जन्म के बाद से ही मैं इस रहस्यचक्र के चारों ओर चक्कर काट रहा हूं.

मोबाइल बज उठा था, शरारती मेघों की अठखेलियां छोड़ मैं बालकनी से अपने कमरे में आया. बिस्तर पर पड़ा मोबाइल अब भी वाइब्रेशन के साथ बज रहा था. मुझे उसे उठाने की जल्दी नहीं थी, मैं बस नंबर देखना चाह रहा था. मेरी 10 साल की बेटी कुक्कू का फोन था. दिल चाहा उठा ही लूं फोन, सीने से चिपका कर उस के माथे पर एक चुंबन जड़ दूं, या उसे गोद में ही उठा लूं. उस के सामने घुटने मोड़ कर बैठ जाऊं और कह दूं कि माफ कर दे अपने पापा को, पर चाह कर भी मैं कुछ नहीं कर पाया.

फोन की तरफ खड़ाखड़ा देखता रहा मैं, फोन कट गया. मैं मुड़ने को हुआ कि फोन पुन: बजने लगा. मैं उसे उठा पाता कि वह फिर से कट गया. शायद प्रतीति होगी जिस ने मेरे फोन न उठाने पर कुक्कू को डांट कर फोन बंद करा दिया होगा.

गंगटोक में घूमने नहीं छिपने आया हूं. हां, छिपने. वह भी खुद से. जहां मैं ‘मैं’ को न पहचानूं और खुद से दूर जा सकूं. अपने पुरातन से छिप सकूं, अपने पहचाने हुए मैं से अपने ‘अनचीन्हे’ मैं को दूर रख सकूं. अनजाने लोगों की भीड़ में खुद से भाग कर खुद को छिपाने आया हूं.

यहां मुझे आए 9 दिन हो गए और अब तो प्रतीति का फोन आना भी बंद हो गया है. हां, मैं उस का फोन उठाऊं या नहीं, फोन की उम्मीद जरूर करता था और न आने पर जिंदगी के प्रति एक शिकायत और जोड़ लेता था. कुक्कू फिर भी शाम के वक्त एक फोन जरूर करती थी, वह भी ड्राइंग क्लास से. लाड़ में मैं ने ही मोबाइल खरीद दिया था उसे. बाहर अकेले जाने की स्थिति में वह मोबाइल साथ रखती थी. मैं बिना फोन उठाए फोन की ओर देख कर उस से बारबार माफी मांगता हूं, वह भी तब जब पूरी तरह आश्वस्त हो जाता हूं कि यह माफी मेरे पुरातन मैं के कानों तक नहीं पहुंच रही. बड़ा अहंकार है उसे अपने हर निर्णय के सही होने का.

आज रात नींद से मैं चिहुंक कर उठ बैठा. वह मेरा बचपन था, मुझे फिर नोचने आया था, मैं डर कर चीख कर भागता जा रहा था, सुनसान वादियों में कहीं खो चला था कि अचानक कहीं से एक डंडा जोर से हवा में लहराता हुआ आया और मेरे सिर से टकरा गया. मैं ने कराह कर देखा तो सामने पिताजी खड़े थे. मुझे ऐसा एहसास हुआ कि डंडा उन्होंने ही मुझ पर चलाया था, मेरी मां हंसतीगाती अपनी सहेलियों के संग दूर, और दूर चली जा रही थीं. मैं…मैं कितना अकेला हो गया था. आह, क्या भयावह सपना था. मैं ने उठ कर टेबल पर रखा पानी पिया. आज रात और नींद नहीं आएगी, वह हकीकत जो बरसों पहले मेरे दिमाग के पोरपोर में दफन थी, लगभग हर रात मुझे खरोंच कर बिलखता, सिसकता छोड़ कर भाग जाती है और मैं हर रात उन यादों के हरे घाव में आंसू का मरहम लगाता हुआ बिताता हूं.

पिताजी फैक्टरी में बड़े पद पर थे, सो जिम्मेदारी भी बड़ी थी. स्वयं के लिए स्वच्छंद जीवन के प्रार्थी मेरे पिताजी खेल और शिकार में भी प्रथम थे. दोस्तों और कारिंदों से घिरे वे अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहते थे. सख्त और जिम्मेदारीपूर्ण नौकरी के 12-12 घंटों से वे जब भी छूटते, शिकार या खेल, चाहे वह टेनिस का खेल हो या क्रिकेट या क्लब के ताश या चेस का, में व्यस्त हो जाते. मेरी मां अपने जमाने की मशहूर हीरोइन सुचित्रा सेन सी दिखती थीं.

बेहद नाजुक, बेहद रूमानी. उन की जिंदगी के फलसफे में नजाकत, नरमी, मुहब्बत और सतरंगी खयालों का बहुत जोर था. लेकिन ब्याह के बाद 5 अविवाहित ननदों की सब से बड़ी भाभी की हैसियत से उन्हें बेहद वजनी संसार को कंधों पर उठाना पड़ा, जहां प्यार, रूमानियत, नजाकत और उन की नृत्य अभिनय शैली, साजसज्जा के प्रति रुझान का कोई मोल नहीं था. सारा दिन शरीर थकाने वाले काम, ननदों की खिंचाई करने वाली भाषा, सासससुर की साम्राज्यवादी मानसिकता और पति का स्वयं को ले कर ज्यादा व्यस्त रहना. मेरी मां ने धीरेधीरे जीने की कला विकसित कर ली. जीजान से दूसरों के बारे में सोचने वाली मेरी मां में अब काफी कुछ बदल गया था, फिर साक्षी बना मैं. तीनों बेटों को अकेले पालतेपालते कब मैं उन की झोली में आ गिरा पता ही नहीं चला.

रात 3 बजे या कभी 2 बजे तक पिताजी क्लब में चेस या रात्रिकालीन खेल आयोजनों में व्यस्त रहते. इधर मेरी मां मारे गुस्से से मन ही मन कुढ़तीबिफरती रहतीं. सब लोगों को खाना खिला कर खुद बिना खाएपिए सिलाई ले कर बैठ जातीं. और तब तक बैठी रहतीं जब तक पिताजी न वापस आ जाते. सारा दिन और आधी रात बाहर रहने के बाद शायद मां का मोल पिताजी के लिए ज्यादा ही हो जाता, वे मां का सान्निध्य चाहते. लेकिन दिनभर की थकीहारी, प्रेम की भूखी, छोटेछोटे बच्चों को पालने में किसी सहारे की भूखी, ननदों की चिलम जलाने वाली बातों से जलीभुनी, सहानुभूति की भूखी मेरी मां दूसरे की भूख क्या शांत करतीं?

फिर रात हो उठती भयावह. रोनाधोना, चीखनाचिल्लाना, सिर पटकना-बदस्तूर जारी रहता. तीनों भैया मुझ से बड़े थे. उन के कमरे अलग थे जहां वे तीनों साथ सोते. मैं सब से छोटा होने के कारण अब भी मां के आंचल में था. कुछ हद तक मां मुझे दुलार कर या मेरे साथ अपनी बातें बता कर अकेलापन दूर करतीं. बंद पलकों में मेरी जगी हुई रातें सुबह मेरी सारी ऊर्जा समाप्त कर देतीं.

स्कूल जा कर अलसाया सा रहता. स्कूल के टीचर पिताजी से मेरी शिकायत करते. मैं क्याकुछ सोचता और सोता रहता, स्कूल भेजे जाने का कोई फायदा नहीं, मुझ से पढ़ाई नहीं होगी आदि. मेरी 8 वर्ष की उम्र और पिताजी की बेरहम मार, मां दौड़ कर बचाने आतीं, धक्के खातीं, फिर जाने मां को कितना गुस्सा आता. विद्रोहिणी सीधे पिताजी को धक्के देने की कोशिश करतीं. उलट ऐसा करारा हाथ उन के गालों पर पड़ जाता कि उन का गाल ही सूज जाता. फिर अड़ोसपड़ोस में कानाफूसी, रिश्तों को निभाने का आडंबर सब के सामने अजीब सी नाटकीयता और अकेले में फूला हुआ सा मुंह. सबकुछ मेरे लिए कितना असहनीय था.

क्यों नहीं मेरे पिताजी थोड़ा सा समय मेरी मां के लिए निकालते? क्यों नहीं उन की छोटीबड़ी इच्छाओं का खयाल रखते? क्यों मेरी मां इन ज्यादतियों के बावजूद चुप रहतीं? अकसर ही मैं सोचता.
धीरेधीरे फैक्टरी में काम करने वाले बाबुओं की बीवियां मेरी मां की पक्की सहेलियां बनती गईं. उन के साथ बाहर या पार्टियों में वक्त गुजारना मां का प्रिय शगल बन गया.

मेरे भाइयों की अपने दोस्तों के साथ एक अलग दुनिया बन गई थी, जहां वे खुश थे. शाम को जब वे खेल कर घर वापस आते तो अपनी पढ़ाई वे खुद कर लेते, खापी कर वे सब अपने कमरे में निश्ंिचत सोने चले जाते. मगर मैं मां के सब से करीब था, जरूरत की वजह से भी और अपनी तनहाई की वजह से भी. मेरे जन्म से पहले मेरी मां कैसी थीं, इस से मुझे अब कोई सरोकार न था लेकिन मेरे जन्म के कुछ सालों बाद परिस्थितिवश मेरी मां घरपरिवार की चखल्लस जल्दी से जल्दी निबटा कर शाम होते ही सहेलियों में यों खो जातीं कि मैं तनहा इन बेअदब अट्टहासों की भीड़ में तनहाई की दीवार से सिर पटकता कहीं खामोश सा टूट रहा होता.

औनलाइन फ्रैंड- भाग 3: रिया ने कौनसी बेवकूफी की थी

रिया बाहर वेटिंगरूम में आ कर मोहित के कंधे पर सिर रख रोने लगी. “मोहित, अगर तुम ने मुझे नहीं बचाया होता तो मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या होता. वह अपराधी मुझे लौंग ड्राइव और फौर्महाउस में दिन बिताने के लिए बुला रहा था.”

मोहित ने उस के आंसू पोंछे. “संभालो अपनेआप को, रिया.” फिर उस ने अपनी घड़ी की तरफ देखा, “मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. मेरी औफिस में मीटिंग है.”

गाड़ी के अंदर मोहित ने रिया के गाल पे गिरे हुए बाल को धीरे से हटाया. रिया ने उस का हाथ पकड़ कर रखा ताकि मोहित का हाथ उस के गालों पे रहे. उस के पूरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन हो रही थी. दिल तेज़ी से धड़क रहा था. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. क्या मोहित उस के होंठों को छुएगा? लेकिन मोहित ने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

उस ने धीरे से अपना हाथ हटा कर गाड़ी स्टार्ट की और रिया को उस के घर के एकदम पास छोड़ दिया.

“मोहित, थैंक यू.”

रिया ने एक पल के लिए सोचा कि मोहित को अपने दिल की बात साहस कर के बता दे.

“मोहित, मैं ने नादानी में बहुत बड़ी गलती की है. मुझे माफ़ कर दो. मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. तुम्हारा जीवनसाथी बनना चाहती हूं.”

लेकिन मोहित कह रहा था, “जब तक तुम अपने घर के अंदर नहीं जातीं, रिया, मैं यहीं हूं. इन आपराधिक गिरोहों का कोई भरोसा नहीं. बाय रिया.”

रिया को अचानक महसूस हुआ कि मोहित ने उस से दोबारा मिलने के बारे में कुछ नहीं कहा. मोहित ने एक खूंखार अपराधी से बचा कर उसे एक नई जिंदगी दी थी लेकिन उस ने अपनी मूर्खता से मोहित को हमेशा के लिए खो दिया था.

मम्मी ने उस के आंसुओं से लथपथ चेहरे की ओर देखा.

“क्या हुआ? तारा से झगड़ा हुआ? अब जाओ हाथमुँह धो कर कपड़े बदल लो. खाना तैयार है.”

रिया पूरी रात मोहित के फोन का इंतज़ार करती रही लेकिन मोहित का कोई फ़ोन नहीं आया.

यह स्पष्ट हो रहा था मोहित उस से फिर कभी संपर्क नहीं करेगा.

पश्चात्ताप के आंसू से उस की आंखें भीग गईं.

कुछ दिन बीत गए. रिया ने ठीक से खाना खाना बंद कर दिया. मोहित की याद में और पछतावे के आंसू से रात बीत जाती थी. एक हफ्ते बाद हिम्मत कर के रिया ने अपनी मां से पूंछा, “मम्मी, क्या मोहित का कोई फोन आया था?”

“वह क्यों फ़ोन करे? मैं ने तुझ से कहा था, अगर तूने फैसला करने में इतना समय लगाया तो हम मोहित जैसे होनहार लड़के को खो देंगे. मूर्ख लड़की.”

‘मम्मी, मैं मोहित से प्यार करने लगी हूं,’ यह कहने से पहले उस ने अपनेआप को जल्दी से रोक लिया. फिर धीरे से कहा, “मम्मी, मैं ने फैसला कर लिया है. मोहित बहुत ही अच्छा लड़का है.”

“आज रात मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगी. लेकिन मुझे लगता है बहुत देर हो चुकी है. कल कोई लेडी बता रही थी कि मोहित के परिवार वाले उस की सगाई मेहराजी की छोटी बेटी से कराने की सोच रहे हैं.

“मुझे याद आया, आज रात मेहराजी की बड़ी बेटी की शादी हो रही है.

हमें वहां जाना होगा. पापा उन्हें जानते हैं. मोहित और उन का परिवार भी वहां आएंगे.”

रिया का मेहराजी की बड़ी बेटी की शादी में शामिल होने का कोई इरादा नहीं था. वह उन्हें जानती तक नहीं थी लेकिन मोहित से मिलने की आस ने उस में एक अजीब सी उमंग भर दी.

उस ने बड़े ध्यान से ड्रैसअप और मेकअप किया.

शादी में बहुत मेहमान आ चुके थे. कुछ लड़कियां रिया को अंदर ले गईं जहां दुलहन तैयार हो रही थी.

“अब शादी करने की बारी तृषा की है,” एक लड़की ने मेहराजी की छोटी बेटी की ओर इशारा करते हुए कहा. “रिया, क्या आप ने मोहित खन्ना को देखा है जिन से तृषा शायद जल्द ही

सगाई कर रही है?” एक दूसरी लड़की ने कहा.

“अभीअभी बाहर आया है मोहित,” किसी ने कहा, “बहुत डैशिंग लग रहा है. तृषा, तुम सचमुच लकी हो.” सारी लड़कियां हंसने लगीं.

रिया अब और नहीं सुन सकती थी. इस से पहले कि लड़कियां उस के आंसू देख पातीं, वह बैडरूम से बाहर आ गई.

उस ने मोहित को दूर खड़े कुछ लोगों से बात करते हुए देखा. शेरवानी में वह बिलकुल दूल्हा लग रहा था. सारी लड़कियों की नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं.

अचानक उस ने रिया को देखा और मुसकराया, फिर उस की ओर आने लगा.

रिया का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. क्या होगा अगर वह सब के सामने रोने लगी? शुक्र था कि उस के मम्मीपापा आसपास दिखाई नहीं दे रहे थे.

“हाय रिया,” उस ने मोहित को सुना, “बहुत सुंदर लग रही हो साड़ी में.”

“तृषा के साथ सगाई के लिए बधाई.”

“सगाई? किस के साथ?”

“मेहराजी की छोटी बेटी तृषा के साथ.”

रिया अब और नहीं बोल पा रही थी क्योंकि उस की आंखों से आंसू छलक पड़े थे.

उस ने अपने सामने सीढ़ी देख कर ऊपर भागी और छत पर जा पहुंची, जो रोशनी से जगमगा रहा था. लेकिन वहां कोई नहीं था. सभी लोग शादी के लिए नीचे थे.

रिया एक कोने में खड़ी हो कर रोने लगी. उस का दिल टूट रहा था. आज तृषा की जगह वह खुद होती लेकिन उस ने अपनी बेवकूफी से मोहित को हमेशा के लिए खो दिया था.

“रिया, क्या बात है?” उस ने अपने पीछे मोहित को सुना. “क्यों रो रही

हो, रिया? सब ठीक तो है?”

फिर मोहित ने कुछ सोचा, “कोई आप को परेशान तो नहीं कर रहा है, रिया?”

“तुम तृषा से शादी कर रहे हो और मुझ से पूछ रहे हो कि मैं क्यों रो रही हूं?”

मोहित ने धीरे से रिया का मुंह ऊपर उठाया और अपने रूमाल से उस के आंसू पोंछे.

“क्या मेरी किसी और से शादी करने की बात तुम्हें इतना दुखी करती है, रिया?”

रिया ने उस के चेहरे पर हलकी मुसकान देखी और शरमाते हुए अपनी पलकें झुका लीं. उस ने बिना सोचेसमझे अपनी भावनाओं को ज़ाहिर कर दिया था “रिया, आप ही थे जिन्हें फैसला करना था और मेरे परिवार को फ़ोन कर के बताना था.”

“मैं ने मम्मी से कहा था, लेकिन मम्मी ने कहा कि तुम्हारे लोग तृषा से तुम्हारी शादी कराने की कोशिश कर रहे हैं.”

“उन के परिवार की ओर से शादी का प्रस्ताव आया था. बस, इतना ही.

मैं तृषा को देखने नहीं गया. न ही मेरी किसी से इस बारे में और कोई बात हुई. रिया, क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम से बात किए बिना किसी और लड़की को देखने जाता?”

“मोहित, मैं ने सोचा, तुम ने मुझे मेरी बेवकूफ़ी के लिए माफ़ नहीं किया.”

“उस घटना के बारे में बात मत करो, रिया. मुझे रोज़ बुरे सपने आते हैं जब मैं सोचता हूं कि वह अपराधी गैंग तुम्हारे साथ क्या कर सकता था.”

उस ने रिया को अपनी बांहों में ले लिया.

“मेरी नासमझ, प्यारी जान.”

रिया ने अपनी आंखें बंद कर लीं. इस मनमोहक चांदनी रात में मोहित की बांहों में वह ख़ुशी से मर जाना चाहती थी.

“मुझे पहली नजर में ही तुम से प्यार हो गया था,” मोहित फुसफुसाया, “रिया, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?”

उस के होंठ रिया के कांपते हुए होंठों के बहुत नज़दीक थे.

रिया ने सिर हिलाया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे. “मिसेज रिया खन्ना, मैं अपने मम्मीपापा से कहूंगा कि कल ही तुम्हारे घर जा कर शादी की तारीख तय करें.”

रिया जवाब नहीं दे सकी क्योंकि मोहित ने धीरे से उस के होंठों को छुआ.

औनलाइन फ्रैंड- भाग 2: रिया ने कौनसी बेवकूफी की थी

मोहित उठ कर उस के पास आया, उस का हाथ पकड़ा और अपने रूमाल से उस के आंसू पोंछे.

“रिया, तुम ने कुछ नहीं किया. लेकिन हमें पता लगाना है कि जय असल में क्या वही है जो वह बता रहा है?”

“क्या होगा अगर पुलिस ने मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?”

“नहीं रिया, मैं ने पुलिस को बता दिया है. वह सबकुछ गोपनीय रखेगी.

मीडिया को भी कुछ नहीं बताएगी.”

मोहित ने अपने टेबल से प्रिंटआउट उठाया. “रिया, मैं ने इसे अभी टाइप किया है. इसे पढ़ कर इस पर दस्तखत करो.”

“लेकिन, यह तो जय के खिलाफ शिकायत है.”

“हां रिया, हमें यह ले जाना होगा. लेकिन मैं इसे पुलिस को तभी दूंगा जब मेरा शक सही निकलेगा.”

मोहित खुद भी अजनबी ही था लेकिन कार में उस के नज़दीक बैठते ही रिया को सुकून और सुरक्षा का एक अजीब एहसास हुआ.

“मोहित, आने के लिए शुक्रिया.”

“नहीं रिया, यह बहुत जरूरी था कि मैं आप की मदद करूं.” रास्ते में वह एक कंप्यूटर की दूकान पर रुका. “अपना फ़ोन और डाक्यूमैंट्स दो रिया. हमे साईंफ्ट कौपी भी देना होगा पुलिस को.”

“मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है, मोहित.”

“मुझ पर भरोसा रखो, रिया.”

जैसे ही वे पुलिस साइबर क्राइम सैल दफ्तर पहुंचे, मोहित ने उस का हाथ पकड़ लिया.

“डरना नहीं, रिया. मैं हूं तुम्हारे साथ.”

पुलिस अफसर को मोहित ने जय के बारे में पहले ही बता दिया था. अफसर ने उन की बातचीत, बैंक लेनदेन विवरण चैक किया. फिर जय की तसवीर को देख कर कहा, “यह लंदन रिटर्न्ड नहीं है. यह एक कुख्यात मुजरिम है और एक खूंखार आपराधिक गिरोह का सदस्य है. कुछ महीने पहले ही जेल से छूट कर आया है.

“आप लोग अपनी लिखित शिकायत और सुबूत मेरे पास छोड़ जाइए. मिस रिया, जब यह जय फोन करे तो उस से बात कीजिए. कहना कि

आप पैसे की व्यवस्था कर रही हैं, ताकि उसे कोई शक न हो. इस की सारी

डिटेल्स पुलिस फाइल्स में हैं. इसे पकड़ने में ज़्यादा समय नहीं लगना

चाहिए. जैसे ही हमें इस केस में कोई सफलता मिलेगी, हम आप को फ़ोन

कर देंगे.”

“आप मुझे फ़ोन कर लेना,” मोहित ने अपना विजिटिंग कार्ड पुलिस को दिया.

रिया का सिर चकरा रहा था. कुख्यात मुजरिम और वह उसे अपना प्यार समझ बैठी थी. अगर मोहित न होता…

रिया बाहर वेटिंगरूम में मोहित के कंधे पर अपना सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगी. मोहित ने उस का हाथ कस कर पकड़ उस के आंसू पोंछे.

“मत रो रिया, प्लीज.”

फिर मोहित ने अपने कालेज के दिनों के कुछ मज़ेदार किस्से सुना कर माहौल को हलका करने की कोशिश की. रिया को उसी पल एहसास हुआ कि वास्तव में मोहित कितना अच्छा इंसान है.

थाने से बाहर आने के बाद रिया ने मोहित का हाथ पकड़ लिया. “मोहित, आई एम सौरी. तुम इतने व्यस्त हो और तुम ने मेरे लिए इतना समय बरबाद किया.”

“यह समय की बरबादी नहीं है, रिया. अगर हम यहां न आते तो तुम बहुत मुसीबत में पड़ सकती थीं.”

उस ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला. “रिया, मुझ से वादा करो कि आज के बाद तुम उस जय का कोई फ़ोन नहीं उठाओगी. सिर्फ आज अगर उस ने फ़ोन किया तो पुलिस के कहने के मुताबिक उस से बात करना.”

“मैं वादा करती हूं, मोहित.”

“जैसे ही पुलिस अफसर मुझे फ़ोन करेगा, मैं तुम्हें बता दूंगा. मैं तुम्हारे साथ आऊंगा पुलिस स्टेशन.”

घर पहुंचते ही जय का फ़ोन आया.

“रिया, तुम ने पैसे अरेंज किए?”

रिया के हाथपैर ठंडे हो रहे थे. वह एक कुख्यात क्रिमिनल के साथ बात कर रही थी. लेकिन उस ने वैसा ही किया जैसा पुलिस ने उसे सलाह दी थी.

“जय, मुझे एकदो दिन और दे दो,”  किसी तरह से उस ने कहा.

जय निराश लग रहा था.

“जल्दी अरेंज करो, रिया. मैं तुम से मिलना चाहता हूं. पैसे अपने साथ ले कर आओ जल्दी. फिर हम लौंग ड्राइव पर निकलेंगे. हम एक दोस्त के फौर्महाउस जाएंगे और वहां उस के घर में पूरे दिन बिताएंगे. सिर्फ हम दोनों. मैं तुम्हें अपनी बांहों में समेटने के लिए बेक़रार हूं, रिया.”

रिया भय और घृणा से कांप रही थी. वह कितनी बेवक़ूफ़ थी. अगर मोहित न होता और वह जय के साथ चली जाती… “जय, मैं कल आप को फोन कर के बता दूंगी पैसे अरेंज हुए कि नहीं. बाय

जय.”

अगले दिन सुबह 10स बजे मोहित ने फ़ोन किया. “रिया जल्दी से तैयार हो जाओ. पुलिस के वहां से फ़ोन आया था. हमें अभी वहीं जाना है. मैं आधे घंटे में तुम्हारे घर के नज़दीक से तुम्हें पिक करूंगा.”

रिया बाहर जाने के लिए तैयार हो कर कमरे से निकली तो उस की मम्मी ने पूछा, “आज फिर से कहां जा रही हो, रिया?” रिया ने जल्दी में बताया कि उसे अपनी सहेली तारा के घर से कुछ किताबें उठानी हैं.

“जल्दी वापस आना.”

तभी उसे मोहित का मैसेज आया. “मैं पहुंच गया हूं, बाहर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं.”

मोहित अपनी कार के पास खड़े इतना हैंडसम और स्मार्ट लग रहा था कि लोग उसे घूर रहे थे.

“हम कल रात ही जय को पकड़ने में कामयाब रहे. सोनीपत में छिप रहा था,” पुलिस अधिकारी ने कहा, “इस का असली नाम राजेश है. यह 10वीं क्लास का ड्रौपआउट है और एक खूंखार आपराधिक गिरोह का सदस्य है. जिन में पैसे की जबरन वसूली, धोखाधड़ी, सामूहिक बलात्कार लड़कियों को उन के अंतरंग वीडियो के साथ ब्लैकमेल करना, और कई बार बेरहमी से उन्हें क़त्ल करना भी शामिल है.

“औनलाइन दोस्ती करने के बाद ये लोग अपनेआप को विदेश से लौटे अमीर आदमी बताते हैं. राजेश कई साल पहले लड़कियों के रेप और अश्लील वीडियो औनलाइन लीक करने के आरोप में पकड़ा गया था. जेल से छूटने के बाद उस ने फिर से यह काम शुरू कर दिया है. उस के गिरोह के 2 सदस्य अभी तक जेल में ही हैं. जब हमारी पुलिस टीम ने कल उस के घर पर छापा मारा, हम राजेश के साथ उसके गिरोह से एक और लड़के को पकड़ने में कामयाब रहे.”

रिया बिना कुछ बोले सुनती रही. सबकुछ एक भयानक दुस्वप्न की तरह लग रहा था. उस का शरीर कांप रहा था यह सोच कर कि अगर मोहित ने उस की मदद न की होती तो वह खूंखार गिरोह उस के साथ क्या कर सकता था.

मोहित ने उस का हाथ पकड़ कर रखा था नहीं तो वह शायद बेहोश हो कर गिर ही जाती.

अधिकारी ने रिया की ओर देखा, “आप सभी महिलाओं और पुरुषों को मेरी सलाह है कि इतनी आसानी से औनलाइन दोस्त न बनाएं और उन्हें व्यक्तिगत विवरण, पैसा न दें. या उन से अकेले मिलने के लिए बाहर न जाएं. आप लड़कियां एक आपराधिक गिरोह के जाल में फंस सकती हैं जो सामूहिक बलात्कार के बाद आप को ब्लैकमेल कर सकता है.

“पुरुषों के मामले में उन्हें महिला आपराधिक गिरोहों द्वारा हनी ट्रैप किया जा सकता है. कई मामलों में हम ने पाया है कि पहचान से बचने के लिए इन गिरोहों द्वारा लड़कियों या लड़कों की बाद में हत्या कर दी जाती है.”

रिया कांपने लगी. मोहित फुसफुसाया, ‘हिम्मत रखो, रिया.’

फिर मोहित उठ खड़ा हुआ.

“बहुत धन्यवाद, सर.”

“मुझे बहुत खुशी है मिस्टर मोहित खन्ना, आप ने समझदारी से टाइम रहते ही मिस रिया को बचा लिया.”

औनलाइन फ्रैंड- भाग 1: रिया ने कौनसी बेवकूफी की थी

“जय, मैं तुम्हारे लिए और 50 हजार रुपए कहां से लाऊं?” रिया ने कहा, “मैं पहले ही पापा से 30 हजार रुपए ले कर तुम्हें दे चुकी हूं. तुम जानते हो कि मैं ने अभीअभी अपने कालेज का फाइनल एग्जाम दिया है. कोई नौकरी नहीं करती.”

रिया ने अपनी मां को अंदर आते सुना और जल्दी से फोन नीचे रख दिया. “मम्मी आ रही हैं, बाय जय. मैं तुम से बाद में बात करूंगी.”

“रिया बेटे, जल्दी से तैयार हो जाओ. एक घंटे में एक लड़का और उस का परिवार तुम्हें देखने आ रहे है.”

“मम्मी, मैं ने आप से कहा है, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती. मैं नौकरी करना चाहती हूं.”

“उन्हें तुम्हारे काम करने में कोई समस्या नहीं है. लड़का खुद इतनी कम उम्र में एक बड़ी फर्म में मैनेजिंग डायरैक्टर है. तुम्हारी रीना दीदी मुंबई में सैटल हैं और एक बच्चा होने के बाद भी काम कर रही हैं. दीदी की ससुराल वालों को भी उन के काम करने में कोई दिक्कत नहीं है. तुम्हारे पापा अगले साल रिटायर होंगे. वे तुम्हें उस से पहले सैटल देखना चाहते हैं.”

“मम्मी प्लीज…”

“अब जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ. ऐसा लड़का दोबारा नहीं मिलेगा. तुम्हारे पापा ने उन के बारे में पता किया है. बहुत ही अच्छा परिवार है. लड़के का सिर्फ एक बड़ा भाई है जो शादीशुदा है और विदेश में रहता है. उन की कोई मांग नहीं है. वे सिर्फ एक अच्छी लड़की चाहते है.”

“रिया बेटे, यह मोहित है.”

एक बहुत ही हैंडसम लड़का अपने मातापिता के साथ बैठा था. मातापिता भी बहुत सुशील लग रहे थे. यह एक ऐसा मैच था जिसे कोई भी लड़की तुरंत ‘हां’ कह देती लेकिन रिया के दिल में जय के अलावा और किसी के लिए जगह नहीं थी.

मोहित की मां ने रिया से उस के कालेज और एग्जाम के बारे में पूछा. फिर मुसकरा कर कहा, “हमें लड़की पसंद है. लेकिन बच्चों को अंतिम फैसला लेना है.”

“तुम दोनों अलग बैठ कर बात क्यों नहीं करते?” रिया की मां ने सुझाव दिया, “एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान लो. रिया, मोहित को छत पर ले जाओ.”

छत के बगीचे में रंगबिरंगे फूल खिले हुए थे.

मोहित बहुत ही सौम्य और मृदुभाषी लग रहा था. वह निश्चित रूप से बहुत अच्छा पति साबित होगा. लेकिन वह रिया के लिए नहीं था. “मोहितजी.”

“मुझे केवल मोहित बुलाओ, रिया,” वह मुसकराया.

“रिया,” उसने धीरे से कहा, “मैं ने तुम्हें पसंद किया है. लेकिन मुझे तुम्हारा फैसला जानना ज़रूरी है.”

“मोहित, मुझे माफ करना. मैं आप से शादी नहीं कर सकती. मैं किसी और से प्यार करती हूं. लेकिन आप प्लीज किसी को कुछ मत बताना.

मेरे मातापिता को इस के बारे में पता नहीं है.”

मोहित का चेहरा भावहीन बना रहा.

“मुझे अपना दोस्त समझो, रिया. मैं किसी को नहीं बताऊंगा. क्या वह लड़का तुम्हारे कालेज का है?”

“नहीं. 2 हफ्ते पहले मेरी उस से डेटिंग ऐप पर दोस्ती हुई है. मैं अभी तक उस से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिली.”

“तुम अभी तक उस से नहीं मिलीं और तुम उस से प्यार करती हो?”

“जय बहुत अच्छा लड़का है. अमेरिका से पढ़ाई की है. वह अभी लंदन से भारत आया है. लंदन में उस का कारोबार है.”

“लेकिन तुम डेटिंग ऐप पर क्यों गईं, रिया?”

रिया शरमाई, बोली, “मेरी क्लास में कुछ लड़कियों के बौयफ्रैंड थे. वे लोग मुझे चिढ़ाते थे और मुझ से पूछते थे, मेरा अभी तक कोई बौयफ्रैंड क्यों नहीं हैं. इसलिए मैं एक डेटिंग ऐप पर गई और जय जैसा काबिल व अमीर लड़का मुझे मिला.”

मोहित बिना कुछ बोले उसे चुपचाप सुन रहा था.

रिया ने अचानक कुछ सोचा, फिर बोली, “मोहित, क्या आप प्लीज मेरी मदद करोगे?”

“कैसे?”

“क्या आप मुझे 50 हजार रुपए उधार दे सकते हो?”

“क्यों रिया?”

“मुझे जय को देना है. नौकरी मिलते ही मैं आप को पैसे वापस कर दूंगी.”

“अगर जय इतना अमीर है और लंदन में उस का अपना कारोबार है, तो उसे तुम से पैसे लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी, रिया?”

“नहीं मोहित. जैसा मैं ने आप से कहा, जय अभीअभी भारत आया है. उसे कुछ फौरेन एक्सचेंज समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. मैं ने उसे 30 हजार रुपए दिए हैं. क्या आप 50 हजार और अरेंज कर सकते हो?”

मोहित अपने सामने खड़ी खूबसूरत, मासूम लड़की की तरफ देखा. वह बहुत चिंतित लग रहा था.

“रिया,” उस ने गंभीर स्वर में कहा, “यह रहा मेरा औफिस का पता. कल ज़रूर आ कर मुझ से मेरे औफिस में मिलो और अपना फोन ले आना जिस में जय का फोटो और तुम दोनों की बातचीत हो. अपना 6 महीने का बैंक स्टेटमैंट भी ले आना. उस में जय के साथ तुम्हारे बैंक ट्रांजैक्शन की सारी डिटेल्स ज़रूर होनी चाहिए. अपनी पहचान और पते का प्रमाण भी साथ लाना. मुझे जय का बैंक अकाउंट नंबर और बैंक डिटेल्स भी चाहिए.”

“मोहित, आप बहुत ही अच्छे हो.”

“रिया, वादा करो कि तुम जय से अभी नहीं मिलोगी. अगर उस ने फ़ोन किया तो बोलना कि तुम पैसे अरेंज करने की कोशिश कर रही हो.”

“मैं वादा करती हूं.”

मोहित ने अपनी घड़ी की ओर देखा.

“हमें नीचे चलना चाहिए. हमारे मम्मीपापा इंतजार कर रहे हैं. मैं उन से कहूंगा तुम्हे हमारे मैच के बारे में सोचने के लिए कुछ समय चाहिए.”

“थैंक यू मोहित. मैं कल आप के औफिस ज़रूर आऊंगी. लेकिन किसी को कुछ मत बताना.”

रिया फैसला करने के लिए थोड़ा और समय चाहती है, यह सुन कर सब बहुत निराश हो गए.

मेहमान जाने के बाद रिया के पापा गुस्से में अंदर चले गए.

“पागल हो गई है लड़की?” रिया की मम्मी ने कहा.

“तू और समय क्यों लेना चाहती है? तुझे इतना अच्छा लड़का बाद में नहीं मिलेगा. कुछ ही दिनों में उस की शायद किसी दूसरी लड़की से शादी भी हो जाएगी.”

“मैं काम करना चाहती हूं, मम्मी.”

“शादी के बाद भी काम कर सकती थी. तुझे कब अक्ल आएगी?”

अगले दिन सुबह रिया ने बैंक जा कर अपना स्टेटमैंट लिया, फिर मोहित के औफिस गई.

रिसैप्शनिस्ट ने इंटरकौम पर बात की. और रिया को मैनेजिंग डायरैक्टर लिखा हुआ कमरे के अंदर जाने के लिए कहा.

“रिया बैठो,” मोहित ने कहा.

फौर्मल सूट में वह बेहद ही हैंडसम लग रहा था. उस ने रिया के लिए सौफ्ट ड्रिंक मंगवाया. फिर रिया से सारे डाक्यूमैंट्स ले कर कुछ टाइप करने लगा और एक प्रिंटआउट निकाला.

“रिया, मैं चाहता हूं कि तुम पहले इसे देखो.”

यह मोहित के फ़ोन पे एक टीवी चैनल की रिपोर्ट थी.

“‘औनलाइन दोस्त ने एक लड़की को मां के बीमार होने की झूठी बात कह कर 2 लाख रुपए ठगे.’” और यह देखो रिया, “‘औनलाइन दोस्त एक लड़की के साथ घनिष्ठ संबंध बना कर बैडरूम वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर उसे ब्लैकमेल कर रहा था. डरके मारे लड़की ने अपने घर में कुछ नहीं बताया. फिर जब उस के दोस्तों ने भी उस के साथ गैंगरेप किया तब लड़की ने जा कर पुलिस में शिकायत की.’”

मोहित ने अपना फ़ोन बंद किया.

“रिया, इतनी आसानी से औनलाइन दोस्तों पर भरोसा नहीं करना चाहिए. मेरे साथ चलो.”

“कहां?”

“पुलिस के पास.”

“पुलिस के पास? पर मैं ने क्या किया हैं, मोहित?” डर के मारे रिया के आंखों में आंसू आ गए.

सीख: क्या दूर हुई चिंता की मां लावण्या

हर शनिवार की तरह आज भी तान्या जब दिन में 12 बजे सो कर उठी तो लावण्या के चेहरे पर नाराजगी देख फौरन प्यार से बोली, ‘‘मम्मी, बहुत भूख लगी है, खाना तैयार है न? जल्दी लगा दो, मैं फ्रैश हो कर आई.’’

वहीं बैठे तुषार ने पत्नी का खराब मूड भांप कर समझाते हुए कहा, ‘‘लावण्या, क्यों दुखी हो रही हो? यह तो हर छुट्टी का रुटीन है उस का. चलो, हम भी उस के साथ लंच कर लेते हैं. इस बहाने उस के साथ थोड़ा समय बिता लेंगे.’’

लावण्या कुढ़ते हुए तीनों का खाना लगाने लगी. तान्या आई. डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए बोली, ‘‘आप लोग भी खा रहे हैं मेरे साथ, लेकिन अभी तो 12 ही बजे हैं?’’

तुषार बोले, ‘‘इस बहाने ही तुम्हारी कंपनी मिल जाएगी.’’

‘‘यह बात तो ठीक है पापा, मैं खा कर अभी फिर सो जाऊंगी, आज पूरा दिन आराम करना है.’’

लावण्या कुछ नहीं बोली. तीनों खाना खाते रहे. तान्या ने खाना खत्म कर प्लेट उठाई, रसोई में रखी और बोली, ‘‘अच्छा पापा, थोड़ा और आराम करूंगी. और हां मम्मी, मुझे उठाना मत.’’

तान्या ने अपने रूम का दरवाजा बंद किया और फिर सोने चली गई. पतिपत्नी ने बस चुपचाप एकदूसरे को देखा, कहा कुछ नहीं. कहने लायक कुछ था भी नहीं. दोनों मन ही मन इकलौती, आलसी और लापरवाह बेटी के तौरतरीकों पर दुखी थे.

लंच खत्म कर तुषार टेबल साफ करने में लावण्या का हाथ बंटाने लगे. फिर बोले, ‘‘मेरी जरूरी मीटिंग है, कुछ तैयारी करनी है. तुम थोड़ा आराम कर लो.’’

लावण्या ‘हां’ में सिर हिला कर दुखी मन से अपने बैडरूम में जा कर लेट गई. वह सचमुच बहुत दुखी हो चुकी थी. बेटी के रंगढंग उसे बहुत चिंतित कर रहे थे.

तान्या का बीकौम हो चुका था. वह सीए कर रही थी. अब, उस की आर्टिकलशिप चल रही थी. तान्या सुबह साढ़े 9 बजे के आसपास निकलती थी, रात को 9 बजे तक ही आती थी. वह लोकल टे्रन से ही आतीजाती थी.

तान्या काफी थक जाती है, यह जानती है लावण्या. उसे तान्या की इस भागदौड़ से सहानुभूति भी है लेकिन वह हमेशा यही सोचती है कि यह मेहनत ही उस की बेटी का भविष्य बनाएगी.

लावण्या और तुषार ने मन ही मन अपनी बेटी को उच्च शिक्षित, आत्मनिर्भर बनते देखने का सपना संजोया है. वह उस से घर के किसी काम में हाथ बंटाने की उम्मीद भी नहीं करती. वह बस यही चाहती है कि वह पढ़ेलिखे. लेकिन तान्या को पता नहीं क्या हो गया है, वह झुंझलाते हुए बिना कोई बात किए औफिस निकल जाती है. आते ही बैग ड्राइंगरूम में ही पटकती है और टीवी देखने को बैठ जाती है, डिनर करती है और फिर सोने चली जाती है.

कई बार लावण्या ने सोचा कि कहीं उस की बेटी को औफिस में कोई परेशान तो नहीं कर रहा है, पता नहीं कितने अच्छेबुरे खयाल उस के दिल को परेशान करने लगे थे.

एक दिन रात को उस ने बड़े स्नेह से उसे दुलारते हुए पूछा था, ‘‘क्या बात है, बेटी? इतना चिढ़ते हुए औफिस क्यों जाती हो? अब तो 8 महीने ही बचे हैं सीए फाइनल की परीक्षा में, 4 महीने पहले से तुम्हें छुट्टियां भी मिल जाएंगी, बात क्या है?’’

तान्या ने चिढ़ते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मुझे सोने दो, मैं थक गई हूं.’’

लावण्या ने फिर थोड़ी गंभीरता से पूछा, ‘‘सो जाना, पहले बताओ, इतने खराब मूड में क्यों रहती हो?’’

‘‘आप को पता नहीं मेरी बात समझ आएगी या नहीं.’’

‘‘मतलब? ऐसी क्या बात है?’’

तान्या उठ कर बैठ गई थी, ‘‘मम्मी, मेरा मन नहीं करता कुछ करने का.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मेरा मन करता है, घर में रहूं, आराम करूं, टीवी देखूं, बस.’’

लावण्या अवाक् सी बेटी का मुंह देखती रह गई थी, कहा, ‘‘यह क्या बात हुई, तान्या?’’

‘‘हां मम्मी, कोई शौक नहीं है मुझे पढ़ने का, औफिस जाने का.’’

‘‘क्या कह रही हो, तान्या? तुम पढ़ाई में तो अच्छी रही हो, तुम्हारा दिमाग भी तेज है और अब तो कम समय ही बचा है फाइनल का.’’

‘‘हां, पता है, पर मेरा मन नहीं करता कुछ करने का. बस, आराम करना अच्छा लगता है मुझे घर में.’’

लावण्या बेटी का आलसी, आरामपसंद स्वभाव जानती तो थी ही, कहने लगी, ‘‘तुम्हें तुम्हारे ही अच्छे भविष्य के लिए पढ़ायालिखाया जा रहा है और तुम ऐसी बातें कर रही हो, बहुत दुख हो रहा है मुझे.’’

‘‘आप को भी तो शौक नहीं रहा जौब करने का, मुझे भी नहीं है तो कौन सी बड़ी बात हो गई.’’

‘‘पर मेरा टाइम और था, तान्या. अब अपने पैरों पर खड़े होना बहुत जरूरी है, लड़कियां हर क्षेत्र में कितना आगे हैं, तुम्हारे पापा तुम्हें हर तरह से आत्मनिर्भर व सफल होते देखना चाहते हैं. हर सुखसुविधा है घर में तुम्हारे लिए, कुछ करोगी नहीं तो क्या करोगी?’’

‘‘वही जो आप कर रही हैं, आप को अपनी लाइफ में कोई कमी लगती है क्या? मैं भी हाउसवाइफ बन जाऊंगी, मुझे क्यों घर के बाहर धक्के खाने भेजना चाहते हो आप लोग?’’

लावण्या ने अपना सिर पकड़ लिया, बेटी की चलती जबान पर गुस्सा भी आया. फिर भी शांत, संयत स्वर में कहा, ‘‘तुम ने अब तक क्यों नहीं बताया कि तुम्हें पढ़ने का शौक नहीं है, कुछ करना नहीं है तुम्हें?’’

‘‘बता कर क्या होता? पापा मुझे ले कर इतने ऊंचे सपने देखते हैं, उन का मूड खराब हो जाता, आप ने आज पूछा तो मैं ने बता दिया.’’

इतने में तुषार ने आवाज दी थी और लावण्या तान्या के रूम से चली गई. तुषार ने लावण्या का उतरा चेहरा देखा, कारण पूछा. पहले तो लावण्या ने छिपाने की कोशिश की लेकिन फिर तान्या की सारी सोच तुषार के सामने स्पष्ट कर दी. दोनों सिर पकड़ कर बैठ गए थे. वे दोनों तो पता नहीं क्याक्या सपने देख रहे हैं और बेटी तो कुछ करना ही नहीं चाहती. तुषार ने इतना ही कहा, ‘‘बाद में प्यार से समझाएंगे, ऐसे ही औफिस के कामों से घबरा गई होगी.’’

फिर वह बाद आज तक नहीं आ पाया था. सोमवार से शुक्रवार तान्या बात के मूड में नहीं होती थी. शनिवार और रविवार पूरा दिन सोती थी. शाम को टीवी देखती थी. रविवार की शाम से ही उस का मूड अगले दिन औफिस जाने के नाम से खराब होना शुरू हो जाता था.

लावण्या मन ही मन आहत थी. मन तो होता था कि बेटी छुट्टियों में मांबाप के साथ हंसेबोले, बातें करे पर बेटी तो अपने आराम की दुनिया से बाहर निकलना ही नहीं चाहती थी. कई बार लावण्या ने फिर समझाया था, ‘‘और भी लड़कियां पूरा दिन काम करती हैं औफिस में, किसी का रुटीन यह नहीं रहता, घर वालों से बात तो ठीक से करती होंगी सब, कुछ घूमतीफिरती भी होंगी, बाहर जाती होंगी फैमिली के साथ, दोस्तों के साथ, तुम्हें तो दोस्तों से मिलने में भी आलस आता है.’’

‘‘मुझे बस आराम करने दिया करो, मम्मी. मुझे कुछ नहीं करना है.’’

‘‘22 साल की तो हो ही गई हो, शादी के बाद कैसे ऐडजस्ट करोगी?’’

‘‘मैं तो कुछ नहीं करूंगी, जल्दी ही जौब भी छोड़ दूंगी.’’

‘‘कैसे बीतेगी तुम्हारी लाइफ? इतना आराम, इतना आलस अच्छा नहीं है.’’

तान्या हंसते हुए बोली, ‘‘एक अच्छी पोस्ट वाला अमीर लड़का ढूंढ़ देना. बस, कट जाएगी लाइफ.’’

लावण्या उस का मुंह देखती रह गई थी. फिर वह परेशान रहने लगी थी बेटी की सोच से.

तुषार बैडरूम में आए. लावण्या को करवटें बदलते देख बोले, ‘‘अरे, तुम सोईं नहीं?’’

‘‘जब भी तान्या के बारे में सोचती हूं परेशान हो जाती हूं. क्यों इतना आराम चाहिए उसे लाइफ में?’’

‘‘अपना मूड मत खराब करो, समझ जाएगी धीरेधीरे.’’

ऐसे ही कुछ दिन और बीते, फिर महीने. मार्च का महीना चल रहा था, जुलाई से तान्या फाइनल के लिए छुट्टी पर रहने वाली थी. फाइनल की क्लास के लिए 60 हजार रुपए फीस भरी गई थी. लेकिन वह एक दिन भी नहीं गई थी.

एक दिन तुषार भी परेशान हो कर बोले, ‘‘तान्या, कैसे पास करोगी फाइनल? इतना टफ होता है, पैसे तो सब डूब ही गए?’’

‘‘अरे पापा, पहली बार फेल हो गई तो दूसरी बार दे दूंगी परीक्षाएं, क्या फर्क पड़ता है, कितनी बार भी दे सकते हैं परीक्षाएं, कोई चिंता नहीं है इस बात की.’’

तुषार को गुस्सा आ गया, ‘‘दिमाग खराब हो गया है? तुम्हें न समय की वैल्यू है न पैसे की, परेशान हो गए हैं हम.’’

तान्या पैर पटकते हुए अपने रूम में गई और लेट कर सो गई.

लावण्या की तो अब नींद ही उड़ने लगी थी. यही चिंता रहती कि आत्मनिर्भर नहीं भी हुई तो कम से कम आराम और आलस तो छोड़े. क्या होगा इस का.

1 महीना और बीता, एक रविवार को दिन में 12 बजे तान्या की आंख किसी के रोने की आवाजों से खुली. कोई जोरजोर से सिसकियां ले रहा था.

तान्या ने बिस्तर छोड़ा, ड्राइंगरूम में आई, वहां पूना में रहने वाली तुषार की चचेरी बहन नीता अपने पति विपिन और 25 वर्षीया बेटी रेनू के साथ बैठी थी. माहौल बहुत गंभीर था. तान्या सब को नमस्ते करते हुए एक कोने में बाल बांधती हुई बैठ गई. रेनू रोए जा रही थी.

नीता सिसकियां भरते हुए कह रही थी, ‘‘तुषार, तू ने मुझे कितना समझाया था. रेनू को अच्छी तरह पढ़ाऊंलिखाऊं, फिर इस का विवाह करूं लेकिन हम ने बेटी को बोझ समझते हुए इस की पढ़ाई छुड़वा कर जल्दी से जल्दी इस का विवाह करना ठीक समझा. अब इस का पति मनोज इसे कम पढ़ेलिखे होने का ताना मारता है. जरूरत के पैसे भी अपमान कर के देता है. अपने दोस्तों की पढ़ीलिखी पत्नियों के सामने इसे नीचा दिखाता है. कभीकभी हाथ भी उठा देता है. इस के ऊपर ही घर का सारा काम है. तू ने कितना समझाया था. मैं ने तेरी बात नहीं सुनी. मैं इसे वहां नहीं जाने दूंगी अब.’’

रेनू रोते हुए बोली, ‘‘मामाजी, मैं क्या करूं? मेरी मदद करो. मेरी वहां कोई इज्जत नहीं है. एकएक पैसे के लिए हाथ फैलाना पड़ता है. घर के बहुत सारे काम मुझे ही करने पड़ते हैं. मेरी जेठानी औफिस जाती हैं. सास भी टीचर हैं. सब कहते हैं तुम्हें घर में ही तो रहना है. घर के सब काम तो करने ही पड़ेंगे. पता नहीं क्या सोच कर उन्होंने मुझे अपनी बहू बनाया. मैं तो उन के जितनी पढ़ीलिखी नहीं, थक जाती हूं, मामाजी, क्या करूं अब?’’

तुषार ने कहा, ‘‘पहले आप लोग फ्रैश हो कर कुछ खाओ, फिर सोचते हैं क्या करना है.’’

लावण्या ने तान्या के भोले चेहरे पर पहली बार चिंता की लकीरें देखीं. फिर उसे बाथरूम में जाते देखा. लावण्या रसोई में व्यस्त हो गई. जब तक उस ने सब का खाना टेबल पर लगाया, नहाधो कर एकदम तैयार हाथ में बैग लिए तान्या को देख कर चौंकी. सब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे. तुषार ने कहा, ‘‘बेटा, तैयार क्यों हो गई? कहीं जाना है क्या?’’

‘‘हां पापा, क्लास है मेरी, घाटकोपर जाना है.’’

लावण्या और तुषार चौंके, ‘‘क्या?’’

तान्या ने अपनी प्लेट में खाना रखते हुए कहा, ‘‘हां पापा, क्लास जा रही हूं, फाइनल में कम ही दिन बचे हैं,’’ बाकी मेहमानों की उपस्थिति का ध्यान रखते हुए उन पर नजर डालते हुए तान्या ने आगे कहा, ‘‘मम्मी, जल्दी निकलूंगी. स्नेहा से बाकी नोट्स भी लेने हैं. पहले ही बहुत देर हो गई है.’’

बाकी मेहमान तो नहीं समझे, लावण्या और तुषार बेटी का आशय समझ गए. तुषार मुसकराते हुए बस इतना ही बोले, ‘‘हां, देर तो हो गई है पर इतनी भी नहीं. अब भी समय है.’’

तुषार और लावण्या ने एकदूसरे को चमकती आंखों से देखा. उन की न सही, किसी और की ही सही, एक सीख से उन की बेटी ने कुछ करने की दिशा में आज एक कदम तो उठा ही लिया था.

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