नौशीन ट्रे ले कर आईं तो दानिश ने उन के हाथ से आदतन ट्रे ले ली और ललित को स्नैक्स की प्लेट खुद अपने हाथों से लगा कर हंसते हुए बोला, ‘‘अंकल, मम्मी के हाथ के पनीर के पकौड़े खा कर देखिए… और यह खीर. मम्मी ने आज आप के लिए ही बनाई है और ये कुकीज मैं ने बेक किए हैं.’’
‘‘सच? अरे, पनीर के पकौड़े और खीर मु?ो बहुत पसंद है और दानिश तुम ने ककीज बनाए हैं? तुम कुकिंग जानते हो?’’
‘‘हां अंकल, मम्मी कहती हैं कि ये सब काम सब को आने चाहिए, जब भी फ्री होता हूं, मम्मी को कुछ बना कर खिलाता हूं्.’’
ललित को लग रहा था कि इस मांबेटे की इतनी सुंदर दुनिया में वे कैसे आ बैठे हैं. उन्होंने बड़े स्वाद ले कर नाश्ता किया, बहुत तारीफ की. वे कहां जानते थे कि यशिका ने बताया था कि पापा को खुश करना हो तो पनीर के पकौड़े और खीर खिला दो, बस. पापा
को लाइफ में यही 2 चीजें सब से प्यारी हैं. वे सब इस बात पर बहुत हंसे थे और कुकीज तो वह खुद सुबह बना कर गई थी जिन्हें खा कर ललित के मुंह से निकल ही गया, ‘‘मेरी बेटी भी ऐसे ही कुकीज बनाती है.’’
थोड़ी देर बाद वे जाने के लिए खड़े हुए तो दानिश ने कहा, ‘‘अंकल, मैं आप को छोड़ आऊं?’’
‘‘नहीं बेटा, नीचे ड्राइवर है, शिंदे भी है.’’
‘‘आइए, हमारा छोटा सा घर तो देख लीजिए,’’ कहतेकहते नौशीन उन्हें अपना 2 कमरे का फ्लैट दिखाने लगीं तो ललित को याद आया, ‘‘अरे, आप का घर तो बहुत सुंदर है, फिर भी नया खरीदना चाहती हैं?’’
‘‘हां, एक फ्लैट ले कर इन्वैस्ट करना चाह रही थी.’’
‘‘आराम से आप का काम हो जाएगा, चिंता मत करना, मैं देख लूंगा, रेट भी सही लगवा दूंगा,’’ ललित का बस नहीं चल रहा था कि नौशीन के लिए क्या न कर दें. पूरा फ्लैट इतना सुंदर, व्यवस्थित था कि वे 1-1 चीज निहारते रह गए. उन के मन में चोर आ गया था जो नौशीन से टच में रहने के लिए उन्होंने यों ही कह दिया, ‘‘मैं इधर अकसर आता हूं, कभी फ्री रहूंगा, आ जाऊंगा मिलने, आप दोनों से मिल कर बहुत अच्छा लगा.’’
दानिश और नौशीन ने उन्हें फिर आने के लिए कह कर विदा दी और ललित चले गए नौशीन को दिल में समाए. वे चरित्रहीन इंसान नहीं थे पर थे तो पुरुष ही न. नौशीन का साथ उन्हें बहुत भला लगा था. दानिश भी उन्हें बहुत पसंद आया था. सोच रहे थे ऐसा लड़का यशिका के लिए मिल जाए तो कितना अच्छा हो. पर दानिश दूसरी जाति का था, यहां तो कुछ नहीं हो सकता था पर वे इस बात पर हैरान थे कि जब तक वे नौशीन के घर रहे, एक बार भी उन्हें जाति के अंतर का खयाल नहीं आया.
कुछ दिन और बीते. एक बार नौशीन ने आम हालचाल
के लिए उन्हें फोन किया. उन्होंने भी नौशीन से कई बार फोन पर हालचाल ले लिए थे. नौशीन दानिश और यशिका के साथ इस प्रोजैक्ट पर बात करते हुए खूब हंसतीं. तीनों को इस बात में मजा आ रहा था.
एक दिन यशिका ने अपने मम्मीपापा के साथ डिनर करते हुए जानबू?ा कर बात छेड़ी, ‘‘पापा, आप सचमुच आजकल के जमाने में भी जातबिरादरी के बाहर मेरी शादी नहीं करेंगे? अगर मु?ो किसी और जाति का अच्छा लड़का पसंद आ जाए तो क्या होगा?’’
धर्म और जाति के दलदल में फंसा मन भला इतनी आसानी से कैसे यह बात चुपचाप सुन लेता. थोड़ा गुस्से से ललित की आवाज जरा तेज हुई, ‘‘हम ने तुम्हें हमेशा सारी छूट दी है, किसी चीज के लिए कभी टोका नहीं. बस शादी तुम्हारी हम ही करेंगे. हम अपनी बिरादरी में लड़का ढूंढ़ रहे हैं.’’
यशिका ने मां को देखा. उन्होंने हमेशा की तरह उसे चुप रहने के लिए कहा तो यशिका गुस्से में पैर पटकती हुई जाने लगी. रुकी, फिर मां से कहा, ‘‘आप तो हमेशा खुद भी चुप रहना और मु?ो भी यही सिखाना. आप को और आता भी क्या है.’’
उस की मां गीता देहात में पलीबढ़ी, कम पढ़ीलिखी, दबू, धार्मिक कार्यों में जीवन बिताने वाली महिला थीं जिस के लिए पति का आदेश सर्वोपरि होता है. ललित को अचानक नौशीन याद आ गईं. सोचने लगे कि वह गीता से कितनी अलग है. उन्होंने अपने रूम में जा कर नौशीन को फोन मिला दिया. यों ही उन से बातें करना उन्हें अच्छा लगा, फिर उन्हें ऐसे ही डिनर पर इन्वाइट किया. थोड़ी नानुकुर के बाद नौशीन मान गईं.
ऐसा फिर 3-4 बार और भी हुआ. वे नौशीन के घर भी आए. बाहर भी मिले. सबकुछ मर्यादा
में था, कोई आपत्तिजनक बात भी नहीं हुई पर ललित ने अपने घर में किसी से नौशीन से मिलनाजुलना बताया भी नहीं जबकि दानिश
और यशिका को 1-1 प्रोग्राम पता रहता था.
कुछ महीने बीते कि यशिका ने घर में बम फोड़ दिया, ‘‘मैं एक मुसलिम लड़के से शादी करना चाहती हूं, पापा.’’
दहाड़ गूंजी, ‘‘दिमाग खराब हो गया है? सोचा भी कैसे? यह हो ही नहीं सकता.’’
‘‘पापा, यह तो होगा. उसी से शादी करूंगी.’’
गीता देवी उस पर खूब चिल्लाईं, बहुत डांटा पर यशिका अपनी जिद पर डटी रही. 3 दिन
घर में खूब घमासान हुआ. एक तूफान उठा रहा जिस में हिंदूमुसलिम ये 2 ही शब्द गूंजते रहे. यशिका ने जा कर दानिश और नौशीन को अपने घर के हालात बताए.
नौशीन ने ठंडे दिमाग से सब सुना, फिर कहा, ‘‘चलो, अब प्रोजैक्ट को खत्म करने का टाइम आ गया है. इस संडे को सब क्लीयर कर देते हैं.’’
फिर बैठ कर संडे की प्लानिंग की गई. नौशीन ने ललित को फोन किया, ‘‘बहुत दिन हो गए. चलिए, संडे को डिनर साथ करते हैं. फ्री हैं?’’
‘‘हांहां, बिलकुल फ्री हूं. मिलते हैं.’’
‘‘ठाणे चलते हैं, अर्बन तड़का. कभी गए हैं वहां?’’
‘‘न.’’
‘‘आप अपनी कार रहने देना. मैं अपनी कार से आप को लेने आप के औफिस के बाहर आ जाऊंगी. अच्छी आउटिंग हो जाएगी.’’
सब तय हो चुका था. कार में नौशीन के बराबर में बैठ कर ललित अलग ही दुनिया में
जा पहुंचे थे जहां जाति की कोई दीवार नहीं थी,
न कोई धर्म का जाल. पता नहीं नौशीन से मिल कर वे सबकुछ कैसे भूल जाते हैं, यही सोचते
हुए मुसकराते हुए उन्होंने नौशीन से कहा, ‘‘आप की कंपनी मु?ो अच्छी लगती है, मैं सब भूल
जाता हूं.’’
नौशीन मुसकरा दी, कहा, ‘‘मु?ो भी एक दोस्त के रूप में आप का मिलना अच्छा लगा.’’
‘अर्बन तड़का’ पहुंच कर नौशीन ने कहा, ‘‘मैं और दानिश यहां अकसर आते हैं.’’
‘‘फिर आप ही और्डर दीजिए, आप को आइडिया होगा कि यहां क्या अच्छा है.’’
नौशीन ने वेटर को पहले 2 मौकटेल लाने के लिए कहा. इतने में ही तय प्रोग्राम के अनुसार वहां यशिका और दानिश ने ऐंट्री ली. यशिका उन्हें देख चहकी, ‘‘अरे पापा. आप. हेलो आंटी, अरे, वाह, आंटी. पापा. आप लोग यहां? कैसे?’’
ललित का चेहरा देखने वाला था. वे कुछ बोल ही नहीं पाए. तभी दानिश ने उन के पैर छूए तो यशिका चौंकी, ‘‘अरे दानिश तुम मेरे पापा को जानते हो?’’
‘‘और क्या. अंकल तो हमारे घर आ चुके हैं.’’
‘‘पापा, यह क्या है? मेरे लिए इतने नियम और आप आंटी और दानिश के घर भी जा चुके हैं? पापा, वैरी बैड.’’
नौशीन ने भोलेपन से पूछा, ‘‘क्या हुआ यशिका, मैं सम?ा नहीं?’’
ललित ने यशिका के कुछ बोलने से पहले ही जवाब दिया जिस से नौशीन को यशिका की कोई बात सुन कर बुरा न लग जाए, ‘‘ऐसे ही इस का और मेरा कुछ न कुछ ?ागड़ा चलता रहता है.’’
‘‘पापा, यही है दानिश. आप का होने वाला दामाद,’’ कह कर यशिका हंस कर ललित से लिपट गई.
ललित अब न कुछ कह पाए, न कर पाए, बस ?ोंपी सी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘अरे वाह, यह तो बहुत खुशी की बात है. दानिश तो मु?ो भी पसंद है.’’
‘‘पर पापा…’’
ललित ने बेटी को आंखों से चुप रहने का इशारा किया तो नौशीन और दानिश ने अपनी हंसी मुश्किल से रोकी.
नौशीन ने बहुत प्यार से पूछा, ‘‘ललितजी, फिर यह रिश्ता आप को मंजूर है? मु?ो तो बहुत ही खुशी होगी कि आप की बेटी हमारे घर आए.’’
‘‘हांहां, बिलकुल मंजूर है.’’
‘‘चलो, फिर आज सैलिब्रेट करते हैं, अब तुम अपने मम्मी और पापा के साथ हमारे घर जल्द ही आओ, बहुत कुछ करना है,’’ नौशीन की आवाज में आज अलग ही उत्साह था.
ललित की हालत सब से अजीब थी, उन्होंने इस स्थिति की कभी कल्पना भी नहीं की थी. सब ने खायापीया. गीता को यशिका ने वीडियो कौल कर के दानिश से ‘हेलो’ कहलवाया और कहा, ‘‘बाकी विस्फोट आ कर करती हूं.’’
सब हंसने लगे. लौटते समय सब कार में साथ ही बैठे, अब दानिश कार चला रहा था.
उस की बगल वाली सीट पर नौशीन बैठी थी, पीछे बैठेबैठे ललित अभी भी चोर नजरों से नौशीन को देख रहे थे. यशिका दानिश को निहार रही थी. नौशीन राहत की सांस ले रही थीं.
तभी मोबाइल पर पीछे बैठी यशिका ने मैसेज भेजा, ‘‘थैंक यू, आंटी. आप ने हमारे लिए बहुत कुछ किया.’’
‘‘करना पड़ता है,’’ उस ने रिप्लाई किया. नौशीन यही सोच रही थीं. हां, करना पड़ता है, अपने बच्चों की खुशियां धर्म, जाति की भेंट न चढ़ जाएं, इस के लिए सचमुच कभीकभी बहुत कुछ करना पड़ता है.
नौशीन जैसी महिला जीवन में दोस्त, रिश्तेदार बन कर रह पाएगी, इस की खुशी महसूस कर ललित उत्साहित थे, सोच रहे थे, नौशीन जैसी दोस्त के लिए, दानिश जैसे दामाद के लिए, अपनी बेटी के चमकते चेहरे की इस खुशी के लिए धर्म, जाति को किनारे करना ही पड़ता है, करना पड़ता है. करना ही चाहिए.