एकांत कमजोर पल- भाग 2

घर आ कर मां से सारी बात बताई और फफक कर रो पड़ी, ‘‘साहिल ने मुझे धोखा दिया. अब मैं उस के साथ नहीं रह सकती.’’

बड़ी बेगम का दिल रो पड़ा. वर्षों पहले जिस आग में उन का घर जला था आज उन की बेटी के घर पर उस की आंच आ गई.

निकाह में शर्तें रखने से भी क्या हुआ? सब मर्द एकजैसे होते हैं, जब जिसे मौका मिल जाए कोई नहीं चूकता.

बड़ी बेगम ने बेटी को संभाला, ‘‘बेटी मैं तुम्हारा दुख समझ सकती हूं. तुम सो जाओ.’’ और उस का सिर अपनी गोद में रख कर सहलाने लगीं.

दूसरे दिन जब सनोबर औफिस गई और बच्ची स्कूल तो साहिल आया. जानता था बड़ी बेगम अकेली होगी. नौकरानी ने बैठाया. बड़ी बेगम को सलाम कर के बैठ गया. धीरे से बोला, ‘‘खालाजान, मुझ से बड़ी गलती हो गई. मैं एक कमजोर पल में बहक गया था. मुझ से गलती हो गई. मैं कसम खाता हूं अब कभी ऐसा नहीं होगा. मुझे माफ कर दीजिए, सनोबर से माफ करवा दीजिए,’’ इतना सब वह एक सांस में ही कह गया था.

बड़ी बेगम चुप रहीं. उन को बहुत दुख था और गुस्सा भी. साहिल की बातों और आंखों में शर्मिंदगी और पछतावा था. वे धीरे से बोलीं, ‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती, जैसा सनोबर चाहे.’’

‘‘खालाजान मेरा घर टूट जाएगा, मेरी बेटी मेरे बारे में क्या सोचेगी? मैं सनोबर के बिना जी नहीं सकता.’’

बड़ी बेगम कुछ न कह सकीं.

शाम को जब सनोबर औफिस से आई तो बड़ी बेगम ने बताया कि साहिल आया था और माफी मांग रहा था.

सनोबर ने गुस्सा किया, ‘‘आप ने उसे आने क्यों दिया? हमारा कोई रिश्ता नहीं उस से. मैं तलाक लूंगी.’’

बड़ी बेगम को याद आया जब वकील साहब दूसरी बीवी ले आए थे तो वे भी मायके जाना चाहती थीं पर उन का न तो कोई सहारा था न वे अपने पैरों पर खड़ी थीं. आज सनोबर अपने पैरों पर खडी है. अपने फैसले खुद ले सकती है. फिर सोचने कि लगीं तलाक से इस मासूम बच्ची का क्या होगा? मां या बाप किसी एक से कट जाएगी. अगर दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा? वे अंदर ही अंदर डर गईर्ं. अपने बेटे को सनोबर और साहिल के बारे में बताया तो वह दूसरे दिन ही आ गया. दोनों बहनभाई की एक ही राय थी कि तलाक ले लिया जाए. साहिल रोज फोन करता, मैसेज भेजता पर सनोबर जवाब न देती.

साहिल बड़ी बेगम से मिन्नतें करता, ‘‘खालाजान, आप सब ठीक कर सकती हैं. एक बार मुझे माफ कर दीजिए और सनोबर से भी माफ करवा दीजिए. मैं अपनी गलती के लिए बहुत शर्मिंदा हूं.’’

एक दिन सनोबर औफिस से अपने फ्लैट पर कुछ सामान लेने गई तो उस ने देखा घर बिखरा है. किचन में भी कुछ बाहर का खाना पड़ा है. वह समझ गई बाई नहीं आ रही है. घर में हर तरफ लिखा था, ‘आई एम सौरी, वापस आ जाओ सनोबर.’ सनोबर को लगा साहिल 40 साल का नहीं, कोई नवयुवक हो और उसे मना रहा हो.

धीरेधीरे कई कोशिशों के बाद साहिल ने बड़ी बेगम को विश्वास दिला दिया कि यह एक कमजोर पल की भूल थी. उस ने पहले कभी कोई बेवफाई नहीं की. बड़ी बेगम ने सोचा यह तो सच है कि साहिल से भूल हो गई, अपनी गलती पर उसे शर्मिंदगी भी है, माफी भी मांग रहा है. प्रश्न बच्ची का भी है. वह दोनों में से किसी एक से छिन जाएगी. तो क्या इसे एक अवसर देना चाहिए?

बड़ी बेगम ने साहिल को बताया कि सनोबर तलाक लेने की तैयारी कर रही है. यह सुनते ही साहिल दौड़ादौड़ा आया, ‘‘खालाजान, अगर सनोबर ने तलाक की अर्जी डाली तो मैं मर जाऊंगा, मुझे एक मौका दीजिए और बच्चों की तरह रोने लगा.’’

बड़ी बेगम को दया आने लगी बोलीं, ‘‘तुम रो मत मैं आज बात करूंगी.’’

सनोबर बोली, ‘‘औफकोर्स अम्मी.’’

मुझे माफ कर दो- भाग 1

‘नीरा मेरी छुट्टी मंजूर हो गई है. हम लोग अपनी ऐनिवर्सरी अमृतसर में मनाएंगे. कब से स्वर्ण मंदिर देखने की इच्छा थी, वह अब जा कर तुम्हारे साथ पूरी होगी. तुम अपनी पैकिंग शुरू कर दो. मैं ने होटल में बुकिंग करवा ली है. वहां दोनों ‘जलियांवाला बाग’ देखेंगे और वाघा बौर्डर की परेड. सुना है बहुत अच्छी होती है,’’ पति सजल ने पत्नी नीरा को अपनी बांहों के घेरे में समेट कर उस पर चुंबनों की बौछार कर दी.

दोनों पतिपत्नी बांहों में बांहें डाल कर

2 दिनों तक प्यार से अपनी ऐनिवर्सरी को ऐजौय करते रहे.

सजल ने नीरा को अमृतसर के बाजार से खूब सारी शौपिंग भी करवाई. स्वर्ण मंदिर की खूबसूरती और वाघा बौर्डर की परेड ने दोनों

की इस यात्रा को यादगार बना दिया. आज शाम को राजधानी से लोगों को दिल्ली के लिए निकलना था.

‘‘नीरा डियर, तुम सब पैकिंग कर लेना,’’ कहते हुए सजल अपनी औफिस की कौल में बिजी हो गए.

‘‘सब पैकिंग हो गई?’’

‘‘यस डियर.’’

‘‘चलो, नीचे लंच कर के निकलेंगे. टैक्सी आती ही होगी.’’

सजल मैनेजर के पास बिल पेमैंट कर रहे थे. नीरा टैक्सी को देखते ही जल्दबाजी से उस में जा कर बैठ गई.

जब सजल को आने में देर हुई तो वह बाहर आई और बोली, ‘‘कितनी देर लगाएंगे आप लोग. मेरा सारा समय बेकार हो रहा है.’’

‘‘मैनेजर 5 मिनट रुकने को बोल रहे हैं. रूम चैक कर रहे हैं. कोई सामान तो नहीं छूटा है? मेरा चार्जर रख लिया था?’’

‘‘हां… हां. मैं ने सबकुछ रख लिया है.

कुछ भी नहीं छूटा है, बस अब यहां से जल्दी चलिए.’’

‘‘इतनी परेशान और बेचैन क्यों हो रही हो? वे लोग रूम चैक कर के आ ही रहे होंगे.’’

एक वैरा मैनेजर को धीरेधीरे कुछ बता रहा था, फिर उस ने एक कागज मैनेजर के हाथों में पकड़ाया. सजल कुछ सम?ा नहीं पा रहे थे कि आखिर मामला क्या है.

मैनेजर ने जल्दीजल्दी बिल बना कर तैयार किया और उन के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘सर, यह ऐक्स्ट्रा पेमैंट आप को देनी होगी.’’

सजल ने बिल को गौर से पढ़ना शुरू किया.

‘‘तौलिया, आइरन, हेयर ड्रायर, बाथगाउन, हैंड टौवेल, सर, आप के रूम में ये चीजें मिसिंग हैं. चाहे तो आप ये चीजें लौटा दें या फिर इन की पेमैंट कर दें.’’

नीरा नाराज हो कर बोली, ‘‘हमें आप ने चोर सम?ा है क्या जो आप की चीजें हम ने

चुरा ली?’’

‘‘मु?ो आप के बैग की तलाशी लेनी होगी.’’

सजल पत्नी की इस आदत से अनजान थे. उन्होंने धीरे से कहा, ‘‘कोई बात नहीं, यदि सामान तुम ने रख भी लिया है तो निकाल कर दे दो बात खत्म हो जाएगी.’’

‘‘मैं सच कह रही हूं मैं ने कोई सामान

नहीं लिया है… ये वैरों ने ही इधरउधर किया

होगा और हम लोगों पर इलजाम लगा रहे हैं,’’ और वह जोरजोर से नाटक कर के आंसू बहाने लगी.

सजल पत्नी की ड्रामेबाजी देख कर नाराज हो कर बोले, ‘‘क्या शोर मचा रखा है… चाबी कहां है निकाल कर दो. इन लोगों को बैग खोल कर देखने दो.’’

नीरा बैग पकड़ कर खड़ी हो गई, ‘‘मेरा बैग कोई नहीं खोलेगा.’’

नीरा मन ही मन भगवान का जाप करने लगी कि हे भगवान सत्यनारायण भगवान की कथा करवाऊंगी, 16 सोमवार का व्रत करूंगी. हे भगवान तुम तो सर्वशक्तिमान हो, बैग से सारा सामान गायब कर दो.’’

पत्नी की बेवकूफी भरा व्यवहार सजल की सम?ा से बाहर हो रहा था. उन्होंने पत्नी के हाथ से पर्स ?ापट कर खींच लिया और उस में से चाबी निकाल कर बैग खोल दिया.

नीरा तेजी से बैग पकड़ कर बोली, ‘‘ठहरो,’’ मेरे बैग को कोई हाथ नहीं लगाएगा,

मैं दिखा रही हूं,’’ और वह अपने सामान से होटल के सामान को छिपाती हुई होशियारी से सामान दिखाने लगी. मगर होटल के मैनेजर की अनुभवी निगाहों से कुछ भी नहीं छिपा सका क्योंकि उन्हें तो ऐसे कस्टमर से जबतब निबटना पड़ता था.

पोल खुलती देख नीरा मुंह छिपा कर

टैक्सी में जा कर बैठ गई, परंतु सजल के लिए बेइज्जती सहन करना मुश्किल हो रहा था. उन

का चेहरा अपमान की कालिमा से बेरौनक हो गया था.

नीरा अपनी आंखें मूंद कर पति से बचने का प्रयास कर रही थी. सजल का चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था. ड्राइवर की उपस्थिति के कारण वे बिलकुल मौन थे.

नीरा पुन: मन ही मन सारे देवीदेवताओं को मना रही थी कि हे हनुमानजी, मेरी इज्जत बचा लो, मैं तुम्हें क्व501 का प्रसाद चढ़ाऊंगी.

जब सजल अपने क्रोध को संयत कर चुके तो पत्नी से बोले, ‘‘तुम ?ाठ पर ?ाठ क्यों बोलती जा रही थी. तुम्हें आज वादा करना होगा कि इस तरह कभी किसी की चीज नहीं उठाओगी.’’

नीरा ने धीरे से अपना सिर हिला दिया. वह अपने बचपन में खो गई थी…

नीरा को अपनी सहेली विभा की पैंसिल उन्हें बहुत आकर्षित करती थी. बस मौका देख कर एक दिन पैंसिल चुरा ली. जब मां ने उस के पैंसिल बौक्स में नई पैंसिल देखी तो उस का कान पकड़ कर भगवान के सामने माफी मांगने को कहा.

नीरा को तो यह बड़ा सरल सा उपाय लगा. बस वह इस तरह से अकसर स्कूल से कुछ न कुछ उठा लाती और भगवान के सामने कान पकड़ कर माफी मांग लेती. अपराध क्षमा हो गया.

मां ने एक  बार माला जपने को भी कहा तो वह माला के दानों को ?ाटपट अपनी उंगलियों से सरकाती, बस सब माफ.

धीरेधीरे दूसरों का सामान चुराना नीरा की आदत बन गई. वह जहां भी जाती मौका देख

कर चुपचाप सामान उठा कर अपने बैग के

हवाले कर लेती. अपने चेहरे के भोलेपन और होशियारी के चलते, कोई उस पर शक भी नहीं करता. मगर एक बार जब वह कक्षा 8 में थी, रश्मि के हाथ में 100-100 के करारे नोटों को देख कर उस की आंखें चमक उठीं. वह स्कूल ट्रिप में जाने के लिए रुपए जमा कराने के लिए लाई थी.

अब नीरा इस जुगत में लग गई कि वह उस के बैग से रुपए कैसे पार करे. रश्मि ने रुपए चोरी से बचाने के लिए पौकेट में रख लिए थे. अब तो उस के लिए रुपए गायब करना बाएं हाथ का खेल था. उस ने उस की जेब से ?ांकते रुपए चुरा लिए और अपनी किताब के कवर के अंदर रख कर निश्चिंत हो गई.

दिल्लगी: क्या था कमल-कल्पना का रिश्ता- भाग 2

खाने के बाद राजीव और कमल बाहर बालकनी में रखी कुरसियों पर आ बैठे. बीना को कमल के रहने का प्रबंध गैस्टरूम कक्ष में करने का आदेश देने के बाद कल्पना भी बाहर आ गई. तीनों ने वहीं कौफी पी. काफी रात तक ड्राइंगरूम में मजलिस जमी रही. राजीव कल्पना को बराबर छेड़ रहा था. मौका मिलने पर कमल भी पीछे नहीं रहा. कल्पना सम?ा नहीं पा रही थी कि क्यों दोनों ही उसे तंग करने पर आमादा हैं.

औपचारिकता व सभ्यता के एहसास ने उसे उन के समीप ही बैठे रहने पर विवश कर दिया. कमल को छोड़ने के बाद राजीव के साथ सीढि़यां उतरते हुए कल्पना ने मन पर छाया बो?ा कुछ समय के लिए हलका महसूस किया. लेकिन थोड़ी देर बाद ही उस के विचार उसे फिर कुरेदने लगे.

 

जिस कमरे में वह लेटी पड़ी है उसी के ऊपर वाले कमरे में एक ऐसा आदमी

मौजूद है, जो कभी भी उस के सुखी, शांत व हंसतेमुसकराते दांपत्य जीवन को तहसनहस कर सकता है. इस एहसास तले दबी कल्पना राजीव के समीप ही डबलबैड पर लेटी सोने की असफल चेष्टा करते हुए कसमसाती रही.

दरअसल, राजीव से शादी से पहले कल्पना कमल के पीछे शादी के लिए सोचने लगी थी. दोनों वैसे तो पड़ोसी होने के नाते बहुत मिलते थे पर कभी प्यार जैसी बात नहीं हुई. कमल ने कभी उस का हाथ तक नहीं पकड़ा. हां जब चाहे वह उसे धौल जमा देता, उस की चोटी पकड़ लेता पर सब में दोस्तानापन होता था, प्यार की भावना नहीं.

व्हाट्सऐप पर उस के ‘आई लव यू’ मैसेज का वह गोलमोज जवाब ‘यू आर ग्रेट,’ ‘यू आर ए ब्यूटी,’ ‘यू आर माई बैस्ट फ्रैंड’ कर के देता था.

कल्पना की सहेलियां अकसर कहतीं कि उसे पटा ले वरना वह उड़ जाएगा या कोई उसे उड़ा ले जाएगा. कल्पना को भी लगता कि उस जैसे हैंडसम लड़के को कौन छोड़ेगा. इसलिए एक दिन उस ने एक एडवैंचरस कार्य करने का प्लान बनाया.

कमल का घर पास था. उस के मातापिता कब घर में रहते हैं कब नहीं, उसे मालूम रहता था. एक दिन जब पेरैंट्स बाहर गए हुए थे और वह अकेला था, दिन में कल्पना ने साइड के एक डोर को खोल दिया. रात को जब सब सो गए तो वह उठी. उस ने बेहद सैक्सी अंडरगारमैंट पहने और ऊपर से शाल ओड़ ली. रात के 12 बजे वह अपने घर से निकल कर चुपके से उस के घर के पिछले दरवाजे से उस के घर में घुस गई.

कमल के बैड पर पहुंच कर उस ने शाल उतार फेंकी. कमल ढीलेढाले पाजामे में बिना बनियान के लेटा हुआ था. उस ने उसे लपक कर बांहों में ले लिया. इस से पहले कि कमल सम?ा पाता कि क्या हो रहा है, उस ने कमल के मोबाइल से 4-5 शौट ले लिए और एक वीडियो भी चालू कर दिया. वह कमल को अपना प्यार जताना चाहती थी, सबकुछ दे देना चाहती थी.

कमल ने संभलने के बाद बैड लाइट लैंप जलाया और कल्पना को इस हालत में देख कर चीखा. ‘‘होश में आओ, कल्पना… यह क्या कर रही हो?’’

‘‘होश में तुम नहीं हो जानू. मैं कब से ऐसे मौके की तलाश में हूं और तुम भाव ही नहीं देते. मेरे पास अब यही रास्ता बचा है कमल,’’ कल्पना ने आधी मदहोशी में कहा.

 

कमल ने उसे एक चांटा मारा और धक्का देता हुआ बोला, ‘‘यह तुम्हारा

पागलपन है, कल्पना. हम अच्छे दोस्त हो सकते हैं पर प्रेमी नहीं. मैं और तुम शादी नहीं कर सकते क्योंकि तुम्हारे मातापिता मु?ा जैसे ओबीसी के साथ कभी शादी नहीं होने देंगे. मै अपनी दोस्ती पर तुम्हारे इस पागलपन की छाया भी नहीं पड़ने दूंगा. तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो और रहोगी पर अब घर जाओ. मु?ो सम?ाने की कोशिश करो, कल्पना हम बचपन के साथी हैं. जिंदगी भर साथ रहेंगे.’’

इसी तरह राजीव न जाने क्या सोच कर पड़ापड़ा मुसकरा दिया. कल्पना में अचानक आया परिवर्तन उस से छिपा नहीं था. वह अनुभव कर रहा था कि जब से कमल आया है, कल्पना कुछ दबीदबी, उमड़ीउखड़ी और भयभीत सी नजर आ रही है मानो उसे कमल का आना अच्छा न लगा हो या उस की तरफ से उसे किसी विशेष खतरे की संभावना हो.

सहसा उस ने चौंकने का उपक्रम करते हुए कल्पना से पूछा, ‘‘अरे, तुम अभी तक सोई नहीं.’’

‘‘न जाने क्यों नींद नहीं आ रही,’’ कल्पना ने उस की तरफ करवट लेते हुए कहा, ‘‘लाइट बुझा दो.’’

राजीव ने हाथ बढ़ा कर लाइट का स्विच औफ कर दिया और नाइट बल्व जला दिया. कुछ देर चुप रहने के बाद वह फिर बाला, ‘‘कल्पना, मैं देख रहा हूं, जब से  कमल गया है, तुम कुछ उदास, गुमसुम और डरी सी लग रही हो. तुम्हारी चंचलता न जाने कहां गायब हो गई. क्या तुम्हें उस का आना अच्छा नहीं लगा?’’

‘‘नहीं तो, ऐसा आप से किस ने कहा,’’ कल्पना संभलतेसंभलते भी चौक गई.

‘‘कमल को देखते ही तुम्हारे चेहरे की रंगत उड़ जाना, आंखों में विस्मय की परछाइयां ?िलमिलाना और पलकों का स्थिर हो जाना क्या ये सब लक्षण इस बात के संकेत नहीं हैं?’’ राजीव ने उसे कुरेदा.

‘‘यह प्रतिक्रिया तो किसी भी पुराने परिचित था मित्र को सहसा सामने देख कर होनी संभव है.’’

‘‘खैर, छोड़ो, वैसे एक बात कहूं?’’ राजीव ने लापरवाही से कहा. दरअसल, कल्पना को इस प्रकार बात गोल करते देख उस की चंचलता फिर लौट आई थी.

‘‘कहिए.’’ कल्पना ने कहा.

‘‘कमल मु?ा से कहीं अधिक खूबसूरत है और तुम्हारा बचपन और कालेज जीवन भी उस के साथ बीता है.’’

कल्पना उस का आशय नहीं सम?ा पाई. इसलिए चुप ही रही.

‘‘तुम्हारी जोड़ी मेरी अपेक्षा कमल के साथ खूब जमती.’’

कल्पना स्तब्ध रह गई. आश्चर्य और भय के कारण बुरी तरह धड़कते दिल के साथ आंखें फाड़े वह राजीव को देखती रह गई. चूंकि नाइट बल्व राजीव के पीछे था इसलिए अंधेरे में डूबे उस के चेहरे के भाव न पढ़ सकने की स्थिति में कोई सही अनुमान नहीं लगा पाई. उस ने सोचा, वह इसे पति की चंचलता सम?ो या स्पष्टवादिता या अपने और कमल के पिछले जीवन के संबंधों पर व्यंग्य. एक बार फिर वह भय, आशंका और अपराधबोध की विचित्र स्थिति में फंस गई. यदि राजीव उस के और कमल के पूर्व संबंधों को जान गया है तो आगे की मात्र कल्पना से ही वह सिहर उठी, उस का संपूर्ण शरीर सूखे पत्ते की भांति कांप गया.

‘‘नाराज हो गई हो क्या?’’ राजीव ने हंस कर पूछा. फिर कल्पना के चेहरे पर पड़ते नाइट बल्ब के मध्यम उजाले में उस की आंखों में ?ांकने का प्रयत्न करने लगा.

‘‘नहीं तो,’’ कल्पना ने बलपूर्वक हंसते हुए अपनी नजरें चुरा लीं.

‘‘अच्छा, अब सो जाओ. रात काफी बीत गई है,’’ कह कर सचमुच राजीव ने पलकें मूंद लीं.

लाल साया: भाग-2

‘‘महेश तो आज छुट्टी पर है. गांव गया है.‘‘

‘‘फिर तो बहुत अच्छा है. हम दोनों आज शाम तक निकल जाते हैं. सब को लगेगा कि हम तीनों चले गए.‘‘

‘‘ठीक है, मैं ड्राइवर को बोल दूंगा.”

‘‘नहीं, नहीं, अंकल, आप के ड्राइवर के साथ नहीं.”

‘‘हां, ठीक कह रहे हो. मैं टैक्सी बुला दूंगा.‘‘

‘‘जी.”

दोपहर में तीनों लड़के नीचे आए तो विमला देवी की सूजी आंखें उन के दिल का भेद खोल रही थीं.

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए. मैं आज के बाद कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा,” कहते हुए विशेष पिता के पैरों में गिर पड़ा. वह फूटफूट कर रो रहा था.

निशब्द उन्होंने उठा कर बेटे को गले लगा लिया.

‘‘रिचा… पापा रिचा… मुझे कुछ याद नहीं है…” वह हिचकियों के साथ बोला.

‘‘मैं हूं ना बेटा… सब संभाल लूंगा… और फिर तुम इतने भाग्यशाली हो कि तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं.”

‘‘अंकल, हम दोनों दिन में ही निकल जाते हैं. हम ने ऊपर सब ठीक कर दिया है.”

‘‘मैं ने दूसरा ड्राइवर बुला रखा है. वह तुम्हें छोड़ आएगा. और हां बेटा, जैसे विशेष वैसे ही तुम लोग. इसलिए यह छोटी सी भेंट है. तुम्हारे मकान के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है. और तुम्हारे बिजनेस के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है.‘‘

‘‘अरे अंकल…‘‘

‘‘बस रख लो बेटा, मुझे खुशी होगी,‘‘ बिना आंखें मिलाए सेठजी बोले.

कालोनी में इस बात की चर्चा जाने कैसे फैल गई कि सेठ मदन लाल के घर रात में गोली चली थी. सफाई देदे कर दोनों परेशान थे. विमला देवी ने तो सब से मिलना ही बंद कर दिया. सेठ मदन लाल तनाव में रहने लगे. ऊपर से रिचा की गुमशुदगी की रिपोर्ट के चलते पुलिस जांच करने उन के घर आ धमकी. बड़ी मुश्किल से लेदे कर सेठजी ने मामला निबटाया.

इस घटना को 4-6 महीने बीत गए थे. एक दिन विमला देवी बोलीं, ‘‘सुनिएजी, कहीं विशेष की शादी की बात चलाइए. अब उस की शादी तो करनी ही है ना…‘‘

‘‘देखो, थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. जल्दबाजी ठीक नहीं. देख तो रही हो जितने शादी के प्रस्ताव थे, सभी कोई ना कोई बहाना कर पीछे हट गए. पता नहीं कैसे समाज में हमारे परिवार को ले कर नकारात्मक माहौल बन गया है. तो अब थोड़ी प्रतीक्षा ही करनी होगी.”

‘‘मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है.”

‘‘मां, मुझे शादी नहीं करनी है. कितनी बार तो कह चुका हूं. फिर वही विषय ले कर बैठ जाती हैं आप,” विशेष अचानक कमरे में आ गया था.

तभी मदन लाल जी का फोन घनघनाया.

‘‘हां उमेश, बेटा.‘‘

‘‘अरे, पिछले हफ्ते ही तो 10 लाख तुम्हारे अकाउंट में डाले थे. नहीं, अब मैं और नहीं दे सकता,’’ कह कर उन्होंने गुस्से से फोन काट दिया.

‘‘उमेश… आप से पैसे मांग रहा है?” चकित सा विशेष पिता को देख रहा था.

‘‘पैसे नहीं मांग रहा है… ब्लैकमेल कर रहा है. 10-10 लाख दो बार ले चुका है और अब फिर…‘‘ गुस्से से वे हांफने लगे थे.

‘‘मुझे कुछ नहीं बताया उस ने,” विशेष के स्वर में हैरानी थी.

‘‘अरे, आप को क्या हो रहा है?” विमला देवी उठ कर पति के सीने पर हाथ फेरने लगीं, जिसे वे कस कर दबा रहे थे. उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, परंतु बचाया नहीं जा सका.

हंसताखिलखिलाता घर बिखर गया. घर में जैसे मुर्दनी छा गई थी. विशेष पिता की जगह अपनी शर्राफे की दुकान पर बैठने लगा था. दिन जैसेतैसे कट रहे थे.

‘‘विशेष, छुटकी की शादी का न्योता आया है. जाना पड़ेगा,” मां विशेष के आते ही बोलीं.

‘‘ठीक है मां, मैं मामाजी के यहां आप के जाने की व्यवस्था कर देता हूं.”

‘‘नहीं बेटा तुझे भी चलना होगा.”

‘‘आप जानती तो हैं मां…”

‘‘जानती हूं, तू कहीं नहीं जाना चाहता. परंतु मीरा की शादी में भी तू पढ़ाई के कारण नहीं जा पाया था. उन्हें लगेगा, उन की गरीबी के कारण तू उन के घर नहीं आता.”

‘‘यह सच नहीं है मां. मेरे लिए रिश्ते महत्व रखते हैं. गरीबीअमीरी तो मैं सोचता भी नहीं. मैं मामाजी की बहुत इज्जत करता हूं,‘‘ विशेष ने प्रतिवाद किया.

‘‘जानती हूं, इसीलिए चाहती हूं कि तू मेरे साथ चल. दो दिन की ही तो बात है,‘‘ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए वे बोलीं.

‘‘ठीक है मां, जैसा आप चाहे.‘‘

गांव में उन की गाड़ी के रुकते ही धूम मच गई ‘‘बूआजी आ गईं, बूआजी आ गईं.”

भाईभाभी के साथ छुटकी भी दौड़ी आई और उस के साथ में थी उस की प्यारी सहेली रजनी. विशेष पर नजर पड़ते ही अपनी सुधबुध खो बैठी. सब एकदूसरे को दुआसलाम कर रहे थे और रजनी अपलक विशेष को निहारे जा रही थी.

‘‘रजनी, भैया को ऐसे क्यों  घूर रही हो?‘‘ छुटकी ने कोहनी मारी.

सब उधर ही देखने लगे. रजनी के साथसाथ विशेष भी झेंप गया, ‘‘नहीं… कुछ नहीं…‘‘ कहते हुए रजनी बूआजी का सामान निकलवाने लगी.

‘‘आप रहने दीजिए, मैं निकलवा दूंगा,’’ विशेष ने उसे टोका.

‘‘आप तो पाहुन हैं,” वो खिलखिलाई और बैग उठा कर अंदर भाग गई.

‘‘बहुत ही प्यारी बच्ची है बीबीजी. अपनी छुटकी की सब से पक्की सहेली है. जान छिड़कती हैं दोनों एकदूसरे पर,” स्नेह से भौजाई बोलीं.

जब तक सब लोग आ कर बैठे, रजनी सब के लिए शरबत ले कर हाजिर थी. बूआजी सब से बोलतीबतियाती रहीं, पर निगाह उन की हर पल रजनी पर ही टिकी रही. एक आशा की किरण दिखाई दी थी उन्हें. रजनी का स्पष्ट झुकाव उन के सुदर्शन बेटे पर दिखाई दे रहा था. और कितने महीनों बाद विशेष भी खुश दिखाई दे रहा था. शाम को जब ढोलक की थाप पर रजनी नाची तो विमला देवी लट्टू ही हो गईं.

‘‘भाभी, रजनी तो वाकई बहुत अच्छा नाचती है.”

‘‘हां बीबीजी, बहुत भली और गुणी लड़की है. पढ़ने में भी अव्वल आती है. वजीफा पाती है. लगन की ऐसी पक्की कि जाड़ा, गरमी, बरसात साइकिल से कसबे तक पढ़ने जाती है,” स्नेह पगे स्वर में भौजाई बोलीं.

‘‘अपने विशेष के लिए कैसी रहेगी?” वे सीधे भाभी की आंखों में देख रही थीं.

‘‘बीबीजी, लड़की तो बहुत ही अच्छी है. लाखों में एक. जोड़ी भी बहुत अच्छी लगेगी, लेकिन…‘‘ बात अधूरी ही छोड़ दी उन्होंने.

‘‘लेकिन क्या…?‘‘

‘‘लेकिन, बहुत गरीब परिवार से है. आप की हैसियत की तो छोड़ दीजिए. साधारण शादी भी नहीं कर सकेंगे वे लोग.‘‘

आगे पढ़ें- रजनी के लिए आए इस प्रस्ताव से छुटकी की शादी की…

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 2

इन का परिवार पहाड़ी था, परंतु ईसाई धर्म अपना लिया था. उन की बिरादरी में बहुत से परिवार थे, जिन्होंने पाखंडों और रूढि़वादिता से तंग आ कर अपनी इच्छा से इस धर्म को अपनाया था. अगले दिन जब अमन वार्ड में मरीजों को देखने गया तो नीरा उसी वार्ड में थी. उस के मातापिता भी वहीं खड़े थे. डा. अमन ने जब नीरा का हालचाल पूछा तो उस ने अपनी लंबीलंबी पलकें झपका कर ठीक महसूस करने का इशारा कर दिया. उस के पिता उतावले से हो कर पूछने लगे, ‘‘डाक्टर हड्डी जुड़ने में कितना समय लगेगा? ठीक तो हो जाएगी न?’’

अमन ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘हड्डी जुड़ने में थोड़ा समय लगेगा. आप चिंता न करें, आप की बेटी बिलकुल ठीक हो जाएगी.’’

यह सुन कर उन दोनों के चेहरे पर गहरी चिंता झलकने लगी. यह देख कर अमन को हैरानी हुई. उस ने नीरा के पिता से कहा, ‘‘आप की बेटी ठीक है. फिर यह चिंता किसलिए कर रहे हैं?’’

इस पर नीरा के पिता ने झिझकते हुए बताया, ‘‘डाक्टर साहब, नीरा की परीक्षा खत्म होने के बाद सगाई होने वाली है. हमारी बिरादरी के एक आईएएस लड़के से इस की शादी की बात पक्की हो रखी है. 3 दिन बाद लड़का सगाई की रस्म के लिए आने वाला है. उस के मातापिता यहीं रहते हैं.’’

अमन ने कहा, ‘‘देखिए, आप पहले बेटी की सेहत पर ध्यान दीजिए. सगाई बाद में होती रहेगी,’’ कह अमन अन्य मरीजों का मुआयना कर वार्ड से बाहर जाने से पहले नीरा से बोला, ‘‘मेरे पास कुछ किताबें हैं, आप को भिजवाता हूं, पढ़ती रहेंगी तो मन लगा रहेगा.’’

आज नीरा के होने वाले पति व उस के परिवार वालों की आने की उम्मीद में उस के मम्मीपापा जल्दी आ गए. वे नीरा के लिए गुलाबी रंग का सलवारकुरता लाए थे. नीरा के चेहरे पर भी खुशी झलक रही थी. जल्दी से नर्स को बुला कर हाथमुंह धो कर कपड़े बदल वह बेसब्री से इंतजार करने लगी.

सुबह से शाम हो गई पर लड़के के परिवार का कहीं दूरदूर तक अतापता न था. अमन जब शाम को वार्ड में आया तो देखा नीरा के मातापिता चेहरे लटकाए जा रहे थे, नीरा को यह कह कर कि चर्च में जा कर पता करते हैं. शाम को वे वहां आएंगे ही… सब ठीकठाक हो. नीरा भी थकावट और चिंता से बेहाल थी. चुपचाप चादर ओढ़ कर सो गई.

अगले दिन नीरा के मातापिता आए तो उन के चेहरों पर उदासी छाई थी. जैसे अरसे से बीमार हों.

अमन वार्ड के अन्य मरीजों को देख रहा था. नीरा की मां आते ही रोष भरी आवाज में बोल उठीं, ‘‘मैं कहती थी न कि दाल में कुछ काला है. चर्च में लड़के का परिवार आया था पर परायों जैसा व्यवहार था. औपचारिक हायहैलो का जवाब दे कर चर्च से निकल गए. तुम्हारा रिश्ता करवाने वाली महिला आशा भी नजरें चुरा रही थी. मैं ने पास जा कर पूछा तो बोली, ‘‘लड़के का परिवार बहुत नीच निकला. जब मैं ने नीरा के संग सगाई के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो नीरा के बारे में उलटासीधा बोलने लगे कि नीरा हाथ छोड़ कर साइकिल चला रही थी…कुछ लड़कों के साथ रेसिंग कर रही थी. ऐक्सिडैंट इसी कारण हुआ..

‘‘न भई न मेरे लड़के ने तो साफ मना कर दिया कि नहीं करता सगाई. कहीं नीरा की टांग में फर्क रह गया तो उस की जिंदगी बरबाद हो जाएगी. उसे तो आएदिन क्लब व पार्टियों में जाना पड़ता है.

‘‘भई हम ने तो वही किया जो बेटे ने कहा. अच्छा हुआ अभी बातचीत ही हुई थी, कोई रस्म नहीं हुई थी.’’

सारी बात सुन कर नीरा की मां पस्त हो कर स्टूल पर बैठ गईं और सिसकने लगीं. पिता भी सिर झुकाए पलंग पर बैठ गए. ये सब सुन कर नीरा गुस्से से कांपने लगी. फिर चिल्ला कर बोली, ‘‘उन की इतनी हिम्मत… मेरे लिए ऐसा बोला. उस दिन तो लड़के की मां तारीफों के पुल बांध रही थीं, नीरा के हाथ में चाय का गिलास था. उस ने उसे जोर से पटक दिया. वार्ड के अन्य मरीज उसे देखने लगे. डा. अमन और उस के सहयोगी नीरा को शांत करने की कोशिश करने लगे. नीरा के पिता नीरा की मां को डांटते हुए बोले, ‘‘अभी सबकुछ बताना था?’’

नीरा की मां भी भरी बैठी थीं. गुस्से में जोर से बोलीं, ‘‘तो क्या बताने के लिए मुहूर्त निकलवाती?’’

बड़ी मुश्किल से उन्हें बाहर भेज कर नीरा को नींद का इंजैक्शन लगाया गया. पल भर में ही सब कुछ घटित हो गया.

अमन सोचने लगा वास्तव में नीरा के साथ अन्याय हुआ है. यदि यह ऐक्सिडैंट शादी के बाद होता तो क्या होता? उसे समाज के ऐसे मतलबी लोगों से नफरत होने लगी. उसे नीरा से सहानुभूति सी होने लगी कि अच्छीभली लड़की के जीवन में जहर घोल दिया.

नीरा अभी इस घटना से उबर भी नहीं पाई थी कि एक और घटना हो गई, जिस ने नीरा की जीवनधारा को उलटी दिशा में मोड़ दिया.

2 दिन बाद ही नीरा की मां जब नीरा से मिलने आईं तो बहुत ही गुस्से में थीं. आते ही आवदेखा न ताव नीरा पर बरस पड़ीं. बोलीं, ‘‘नीरा सचसच बताओ तुम सचमुच हाथ छोड़ कर साइकिल चला रही थी? लड़कों के साथ रेसिंग कर रही थी? सारी कालोनी में तुम्हारे ही चर्चे हैं.’’

नीरा का दिल पहले ही चोट खाया था. यह बातें उसे नश्तर की तरह चुभने लगीं. मां और बेटी के बीच बहस ने खतरनाक रूप ले लिया. नीरा पलंग से उठने की कोशिश में गिर गई. डाक्टर ने उसे प्राइवेट रूम में शिफ्ट कर दिया. सीनियर डाक्टर ने नीरा के घर वालों पर नीरा से मिलने की पाबंदी लगा दी क्योंकि इस का नीरा की सेहत पर गलत असर पड़ रहा था और अस्पताल का माहौल भी बिगड़ रहा था. हां, वे नीरा का हाल डाक्टरों से फोन से पूछ सकते थे.

शारीरिक और मानसिक चोट ने नीरा को बुरी तरह तोड़ दिया था. वह न तो किसी से बातचीत करती और न ही दवा व भोजन समय पर लेती. सभी डाक्टरों ने उसे समझाया पर वह टस से मस न हुई.

आगे पढ़ें- नीरा अमन को अपना मित्र समझने लगी. वह…

पति नहीं सिर्फ दोस्त

3 दिन हो गए स्वाति का फोन नहीं आया तो मैं घबरा उठी. मन आशंकाओं से घिरने लगा. वह प्रतिदिन तो नहीं मगर हर दूसरे दिन फोन जरूर करती थी. मैं उसे फोन नहीं करती थी यह सोच कर कि शायद वह बिजी हो. कोई जरूरत होती तो मैसेज कर देती थी. मगर आज मुझ से नहीं रहा गया और शाम होतेहोते मैं ने स्वाति का नंबर डायल कर दिया. उधर से एक पुरुष स्वर सुन कर मैं चौंक गई. हालांकि फोन तुरंत स्वाति ने ले लिया मगर मैं उस से सवाल किए बिना नहीं रह सकी.

‘‘फोन किस ने उठाया था स्वाति?’’

‘‘मां, वह रोहन था… मेरा दोस्त’’, स्वाति ने बेहिचक जवाब दिया.

‘‘मगर तुम तो महिला छात्रावास में रहती हो ना. क्या वहां पुरुष मित्रों को भी आने की इजाजत है? वह भी इस वक्त?’’  मैं ने थोड़ा कड़े लहजे में पूछा.

‘‘मां अब मैं होस्टल में नहीं रहती. मैं रोहन के साथ रह रही हूं उस के फ्लैट में. रोहन मेरे साथ ही कालेज में पढ़ता है.’’

‘‘क्या? कहीं तुम ने हमें बताए बिना शादी तो नहीं कर ली?’’

‘‘नहीं मां, हम लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे हैं.’’

‘‘स्वाति, तुम्हें पता है तुम क्या कर रही हो? अभी तुम्हारी उम्र अपना कैरियर बनाने की है. और तुम्हारी ही उम्र का रोहन…वह क्या तुम्हारे प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता है?’’

‘‘मां, हम दोनों सिर्फ दोस्त हैं.’’

‘‘लड़कालड़की दोस्त होने से पहले एक लड़की और लड़का होते हैं. कुछ नहीं तो कम से कम अपने और परिवार की मर्यादा का तो खयाल रखा होता. हम ने तुझे आधुनिक बनाया है, इस का मतलब यह तो नहीं कि तू हमें यह दिन दिखाए. लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’ मैं पूरी तरह से तिलमिला गई थी.

‘‘मां, समाज और बिरादरी की बात न ही करो तो अच्छा है. वैसे भी आप की दी गई शिक्षा ने मुझे अच्छेबुरे का फर्क तो समझा ही दिया है.

‘‘रोहन उन छिछोरे लड़कों की तरह नहीं है जो सिर्फ मौजमस्ती के लिए लिवइन में रहते हैं और न ही मैं वैसी हूं. हम दोनों एकदूसरे की पढ़ाई में भी मदद करते हैं और कैरियर के प्रति भी हम पूरी तरह से जिम्मेदार हैं.’’

‘‘लेकिन बेटा, कल को अगर रोहन ने तुम्हें छोड़ दिया तो…तुम्हारी मानसिक स्थिति…’’ मैं अपनी बेटी के भविष्य को ले कर कोई सवाल नहीं छोड़ना चाहती थी.

‘‘मां, हम दोनों पतिपत्नी नहीं हैं, इसलिए ‘छोड़ने’ जैसा तो सवाल ही नहीं उठता. और अगर कभी हमारे बीच में कोई प्रौब्लम होगी तो हम एकदूसरे के साथ नहीं रहेंगे और उस के लिए हम दोनों मानसिक रूप से तैयार हैं,’’ स्वाति पूरे आत्मविश्वास से बोल रही थी.

‘‘और यदि तुम दोनों के बीच बने दैहिक संबंधों के कारण…’’ मैं ने हिचकते हुए सब से मुख्य सवाल भी पूछ ही लिया.

‘‘यह महानगर है, मां, तुम चिंता मत करो. मैं ने इस के लिए भी डाक्टर और काउंसलर दोनों से बात कर ली है.’’

‘‘अच्छा, तभी इतनी समझदारी की बात कर रही हो. ठीक है मैं भी जल्दी ही आती हूं तुम्हारे रोहन से मिलने.’’

‘‘सब से बड़ी समझदारी तो आप के संस्कारों और मेरे प्रति आप के विश्वास ने दी है मगर एक बात आप लोग भी याद रखिएगा, मां…कि आप उस से सिर्फ मेरा दोस्त समझ कर मिलिएगा, मेरा पति समझ कर नहीं.’’

स्वाति से बात कर मैं सोफे पर बैठ गई. स्वाति की बातें सुन यह महसूस हो रहा था कि बचपन से ही बच्चों की जड़ों में सुसंस्कारों और मर्यादित आचरण

का खादपानी देना हम मातापिता की जिम्मेदारी है. इन्हीं आदर्शों को स्वयं

में संचित कर ये बच्चे जब अपनी सोचसमझ से कोई निर्णय या अपनी इच्छा के अनुरूप चलना चाहते हैं, तब मातापिता का उन्हें अपना सहयोग देना समझदारी है.

स्वाति के चेहरे पर अब निश्ंिचतता के भाव थे.

बिटिया का पावर हाऊस

अमितजी की 2 संतान हैं, बेटा अंकित और बेटी गुनगुन. अंकित गुनगुन से 6-7 साल बड़ा है.
घर में सबकुछ हंसीखुशी चल रहा था मगर 5 साल पहले अमितजी की पत्नी सरलाजी की तबियत अचानक काफी खराब रहने लगी. जांच कराने पर पता चला कि उन्हें बड़ी आंत का कैंसर है जो काफी फैल चुका है. काफी इलाज कराने के बाद भी उन की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.

जब उन्हें लगने लगा कि अब वे ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएंगी तो एक दिन अपने पति से बोलीं,”मैं अब ज्यादा दिन जीवित नहीं रहूंगी. गुनगुन अभी 15-16 वर्ष की है और घर संभालने के लिहाज से अभी बहुत छोटी है. मैं अपनी आंख बंद होने से पूर्व इस घर की जिम्मेदारी अपनी बहू को देना चाहती हूं. आप जल्दी से अंकित की शादी करा दीजिए.”

अमितजी ने उन्हें बहुत समझाया कि वे जल्द ठीक हो जाएंगी और जैसा वे अपने बारे में सोच रही हैं वैसा कुछ नहीं होगा. लेकिन शायद सरलाजी को यह आभास हो गया था कि अब उन की जिंदगी की घड़ियां गिनती की रह गई हैं, इसलिए वे पति से आग्रह करते हुए बोलीं, “ठीक है, यदि अच्छी हो जाऊंगी तो बहू के साथ मेरा बुढ़ापा अच्छे से कट जाएगा. लेकिन अंकित के लिए बहू ढूंढ़ने में कोई बुराई तो है नहीं, मुझे भी तसल्ली हो जाएगा कि मेरा घर अब सुरक्षित हाथों में है.”

अमितजी ने सुन रखा था कि व्यक्ति को अपने अंतिम समय का आभास हो ही जाता है. अत: बीमार पत्नी की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने अंकित के लिए बहू ढूंढ़ना शुरू कर दिया.

एक दिन अंकित का मित्र आभीर अपनी बहन अनन्या के साथ उन के घर आया. अंकित ने उन दोनों को अपनी मां से मिलवाया. जब तक अंकित और आभीर आपस में बातचीत में मशगूल रहे, अनन्या सरलाजी के पास ही बैठी रही. उस का उन के साथ बातचीत करने का अंदाज, उन के लिए उस की आंखों में लगाव देख कर अमितजी ने फैसला कर लिया कि अब उन्हें अंकित के लिये लड़की ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है.

उन्होंने सरलाजी से अपने मन की बात बताई, जिसे सुन कर सरलाजी के निस्तेज चेहरे पर एक चमक सी आ गई.

वे बोलीं, “आप ने तो मेरे मन की बात कह दी.”

अंकित को भी इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी. दोनों परिवारों की रजामंदी से अंकित और अनन्या की शादी तय हो गई.

शादी के बाद जब मायके से विदा हो कर अनन्या ससुराल आई तो सरलाजी उस के हाथ में गुनगुन का हाथ देते हुए बोलीं,”अनन्या, मैं मुंहदिखाई के रूप में तुम्हें अपनी बेटी सौंप रही हूं. मेरे जाने के बाद इस का ध्यान रखना.”

अनन्या भावुक हो कर बोली, “मम्मीजी, आप ऐसा मत बोलिए. आप का स्थान कोई नहीं ले सकता.”

“बेटा, सब को एक न एक दिन जाना ही है, लेकिन यदि तुम मुझे यह वचन दे सको कि मेरे जाने के बाद तुम गुनगुन का ध्यान रखोगी, तो मैं चैन से अंतिम सांस ले पाऊंगी.”

“मांजी, आप विश्वास रखिए. आज से गुनगुन मेरी ननद नहीं, मेरी छोटी बहन है.”

बेटे के विवाह के 1-2 महीने के अंदर ही बीमारी से लड़तेलड़ते सरलाजी की मृत्यु हो गई. अनन्या हालांकि उम्र में बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन उस ने अपनी सास को दिया हुआ वादा पूरे मन से निभाया. उस ने गुनगुन को कभी अपनी ननद नहीं बल्कि अपनी सगी बहन से बढ़ कर ही समझा.

बड़ी होती गुनगुन का वह वैसे ही ध्यान रखती जैसे एक बड़ी बहन अपनी छोटी बहन का रखती है.

वह अकसर गुनगुन से कहती, “गुनगुन, बड़ी भाभी, बड़ी बहन और मां में कोई भेद नहीं होता.”

गुनगुन के विवाह योग्य होने पर अंकित और अनन्या ने उस की शादी खूब धूमधाम से कर दी. विवाह में कन्यादान की रस्म का जब समय आया, तो अमितजी ने मंडप में उपस्थित सभी लोगों के सामने कहा,”कन्यादान की रस्म मेरे बेटेबहू ही करेंगे.”

विवाह के बाद विदा होते समय गुनगुन अनन्या से चिपक कर ऐसे रो रही थी जैसे वह अपनी मां से गले लग कर रो रही हो. ननदभाभी का ऐसा मधुर संबंध देख कर विदाई की बेला में उपस्थित सभी लोगों की आंखें खुशी से नम हो आईं.

गुनगुन शादी के बाद ससुराल चली गई. दूसरे शहर में ससुराल होने के कारण उस का मायके आना अब कम ही हो पाता था. उस का कमरा अब खाली रहता था लेकिन उस की साजसज्जा, साफसफाई अभी भी बिलकुल वैसी ही थी जैसे लगता हो कि वह अभी यहीं रह रही हो. अंकित के औफिस से लौटने के बाद अनन्या अपने और अंकित के लिए शाम की चाय गुनगुन के कमरे में ही ले आती ताकि उस कमरे में वीरानगी न पसरी रहे और उस की छत और दीवारें भी इंसानी सांसों से महकती रहे.

एक दिन पड़ोस में रहने वाले प्रेम बाबू अमितजी के घर आए. बातोंबातों में वे उन से बोले, “आप की बिटिया गुनगुन अब अपने घर चली गई है, उस का कमरा तो अब खाली ही रहता होगा. आप उसे किराए पर क्यों नहीं दे देते? कुछ पैसा भी आता रहेगा.”

यह बातचीत अभी हो ही रही थी कि उसी समय अनन्या वहां चाय देने आई. ननद गुनगुन से मातृतुल्य प्रेम करने वाली अनन्या को प्रेम बाबू की बात सुन कर बहुत दुख हुआ. वह उन से सम्मानपूर्वक किंतु दृढ़ता से बोलीं,”अंकल, क्या शादी के बाद वही घर बेटी का अपना घर नहीं रह जाता जहां उस ने चलना सीखा हो, बोलना सीखा हो और जहां तिनकातिनका मिल कर उस के व्यक्तित्व ने साकार रूप लिया हो.

“अकंल, बेटी पराया धन नहीं बल्कि ससुराल में मायके का सृजनात्मक विस्तार है. शादी का अर्थ यह नहीं है कि उस के विदा होते ही उस के कमरे का इंटीरियर बदल दिया जाए और उसे गैस्टरूम बना दिया जाए या चंद पैसों के लिए उसे किराए पर दे दिया जाए.”

“बहू, तुम जो कह रही हो, वह ठीक है. लेकिन व्यवहारिकता से मुंह मोड़ लेना कहां की समझदारी है?”

“अंकल, रिश्तों में कैसी व्यवहारिकता? रिश्ते कंपनी की कोई डील नहीं है कि जब तक क्लाइंट से व्यापार होता रहे तब तक उस के साथ मधुर संबंध रखें और फिर संबंधों की इतिश्री कर ली जाए. व्यवहारिकता का तराजू तो अपनी सोच को सही साबित करने का उपक्रम मात्र है.”

तब प्रेम बाबू बोले,”लेकिन इस से बेटी को क्या मिलेगा?”

”अंकल, मायका हर लड़की का पावर हाउस होता है जहां से उसे अनवरत ऊर्जा मिलती है. वह केवल आश्वस्त होना चाहती है कि उस के मायके में उस का वजूद सुरक्षित है. वह मायके से किसी महंगे उपहार की आकांक्षा नहीं रखती और न ही मायके से विदा होने के बाद बेटियां वहां से चंद पैसे लेने आती हैं बल्कि वे हमें बेशकीमती शुभकामनाएं देने आती हैं, हमारी संकटों को टालने आती हैं, अपने भाईभाभी व परिवार को मुहब्बत भरी नजर से देखने आती हैं.

“ससुराल और गृहस्थी के आकाश में पतंग बन उड़ रही आप की बिटिया बस चाहती है कि विदा होने के बाद भी उस की डोर जमीन पर बने उस घरौंदे से जुड़ी रहें जिस में बचपन से ले कर युवावस्था तक के उस के अनेक सपने अभी भी तैर रहे हैं. इसलिए हम ने गुनगुन का कमरा जैसा था, वैसा ही बनाए रखा है. यह घर कल भी उन का था और हमेशा रहेगा.”

प्रेम बाबू बोले, “लेकिन कमरे से क्या फर्क पड़ता है? मायके आने पर उस की इज्जत तो होती ही है.”

अनन्या बोली, “अंकल, यही सोच का अंतर है. बात इज्जत की नहीं बल्कि प्यार और अपनेपन की है. लड़की के मायके से ससुराल के लिए विदा होते ही उस का अपने पहले घर पर से स्वाभाविक अधिकार खत्म सा हो जाता है. इसीलिए विवाह के पहले प्रतिदिन स्कूलकालेज से लौट कर अपना स्कूल बैग ले कर सीधे अपने कमरे में घुसने वाली वही लड़की जब विवाह के बाद ससुराल से मायके आती है, तो अपने उसी कमरे में अपना सूटकेस ले जाने में भी हिचकिचाती है, क्योंकि दीवारें और छत तो वही रहती हैं मगर वहां का मंजर अब बदल चुका होता है. लेकिन उसी घर का बेटा यदि दूसरे शहर में अपने बीबीबच्चों के साथ रह रहा हो, तो भी यह मानते हुए कि यह उस का अपना घर है उस का कमरा किसी और को नहीं दिया जाता. आखिर यह भेदभाव बेटी के साथ ही क्यों, जो कुछ दिन पहले तक घर की रौनक होती है?

“यदि संभव हो, तो बिटिया के लिए भी उस घर में वह कोना अवश्य सुरक्षित रखा जाना चाहिए, जहां नन्हीं परी के रूप में खिलखिलाने से ले कर एक नई दुनिया बसाने वाली एक नारी बनने तक उस ने अपनी कहानी अपने मापिता, भाईबहन के साथ मिल कर लिखा हो.”

हर लड़की की पीड़ा को स्वर देती हुई अनन्या की दर्द में डूबी बात को सुन कर राम बाबू को एकबारगी करंट सा लगा.

उन्हें पिछले दिनों अपने घर में घटित घटनाक्रम की याद आ गई, जब उन की बेटी अमोली अपने मायके आई थी.

वे बोले,”बहू, तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. परसों मेरी बिटिया अमोली ससुराल से मायके आई थी. यहां आने के बाद उस का सामान उस के अपने ही घर के ड्राइंगरूम में काफी देर ऐसे पड़ा रहा, जैसे वह अमोली का नहीं बल्कि किसी अतिथि का सामान हो. ‘बेटा अपना, बेटी पराई’ जैसी बात को बचपन से अबतक सुनते आए हमारी मनोभूमि वैसी ही बन जाती है और इसी भाव ने अमोली को कब चुपके से घर की सदस्य से अपने ही घर में अतिथि बना दिया, उस मासूम को पता ही नहीं चला. पता नहीं क्यों, मैं ने उस का कमरा किसी और को क्यों दे दिया? यदि गुनगुन की तरह अमोली का कमरा भी उस के नाम सुरक्षित रहता तो वह भी पहले की भांति सीधे अपने कमरे में जाती जैसे कालेज ट्रिप से आने के बाद वह सीधे अपने कमरे में अपनी दुनिया में चली जाती थी,” यह बोलते हुए उन की आंखें भर आईं और गला अवरुद्ध हो गया. वे रुमाल से अपना चश्मा साफ करने लगे.

अनन्या तुरंत उन के लिए पानी का गिलास ले आई. पानी पी कर गला साफ करते हुए राम बाबू बोले, “बहू, उम्र में इतनी छोटी होने पर भी तुम ने मुझे जिंदगी का एक गहरा पाठ पढ़ा दिया. मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूं…”

अनन्या बोली, “अंकल, यदि आप मुझे शुभकामनाएं स्वरूप कुछ देना चाहते हैं तो आप घर जा कर अमोली से कहिए कि तुम अपने कमरे को वैसे ही सजाओ, जैसे तुम पहले किया करती थी. मैं आज बचपन वाली अमोली से फिर से मिलना चाहता हूं. यही मेरे लिए आप का उपहार होगा.”

प्रेम बाबू बोले, “बेटा, जिस घर में तुम्हारे जैसी बहू हो, वहां बेटी या ननद को ही नहीं बल्कि हर किसी को रहना पसंद होगा और आज से अमोली का पावर हाऊस भी काम करने लगा है, वह उसे निरंतर ऊर्जा देता रहेगा.”

प्रेम बाबू की बात को सुन कर अमितजी और अनन्या मुसकरा पड़े. खुशियों के इन्द्रधनुष की रुपहली आभा अमितजी के घर से प्रेम बाबू के घर तक फैल चुकी थी.

अमेरिकन बहू- भाग 4: समाज को भाने लगी विदेशी मीरा

भारतीयता के रंग में पूरी तरह रंग जाने की मीरा की व्याकुलता का

नतीजा था या सुजाता के निश्चिय का, यह कहना तो मुश्किल है. पर पहली बार बात होने से ले कर शादी तक के 3 महीनों में ही सुजाता ने क्या कुछ नहीं सिखा दिया मीरा को. उस का ‘नैमस्टे’ का उच्चारण देखतेदेखते ‘नमस्ते’ में बदल गया. उस से भी एक कदम आगे बढ़ कर बड़ों के पांव छू कर आशीर्वाद लेना उसे आ गया.

उसे पालथी मार कर फर्श पर बैठने में

कोई कष्ट नहीं होता था. पर घर के किन कमरों में जूते पहन कर आ सकते थे और किन में नहीं, यह बारीकियां भी वह जान गई थी. बड़ों को संबोधित करने में नाम के आगे ‘जी’ जोड़ना

उसे आ गया. केवल अंकल या आंटी नाम की लाठी से सारे चाचा, मामा, मौसा और बुआ, मौसी, चाची आदि को हांकने के बजाए उन उल?ा रिश्तेदारियों के अनोखे नामों को भी यह सम?ा गई.

लोकप्रिय हिंदी गाने भी उस ने सीख लिए और उसी के साथ यह भी सम?ा गई कि ‘मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए…’ वाला गीत.

साड़ी को उस ने जितना खूबसूरत परिधान सम?ा था उतना ही टेढ़ा काम उसे पहनना और संभालना होगा, इस का उसे लेशमात्र भी अंदाजा नहीं था. उस की हार्दिक इच्छा थी कि कम से कम शादी के दिनों में भारत में यह भारतीय कपड़े ही पहने पर डर लगता था तो साड़ी से.

सुजाता ने उसे आश्वस्त कर दिया कि विवाह के अवसर पर लहंगाचोली पहन कर और अन्य दिन शानदार कशीदाकारी वाले सलवारसूट की मदद से वह अपना शौक पूरा कर सकेगी. एकाध बार वह स्वयं साड़ी उसे पहना देगी.

 

अब इस से अधिक विस्तार में जाना तो यहां संभव नहीं होगा. इतना कहना काफी

होगा कि जिस दिन एयरपोर्ट से होटल पहुंचने पर चूड़ीदार कमीज में सजी हुई सुजाता का उन्होंने अपने चरणों में ?ाकने के बाद अपने अंक में भर कर स्वागत किया उस को देख कर सारे चुहल करने वाले उपस्थित रिश्तेदारों के मुंह आश्चर्य और प्रशंसा से खुले के खुले रह गए.

उसे होटल में ठहराने का और विवाह की रस्म होने के बाद ही अपने घर लाने के निर्णय

ने बहुतों का मुंह बंद कर दिया था. मीरा के छोटे से छोटे हावभाव में वे सब उस के विदेशीपनकी सनद ढूंढ़ रहे थे पर वाह री सुजाता की ट्रैनिंग कि सभी चकित थे. राहुल की रिश्ते की बहनें तो बस मीरा पर इंप्रैस हुई जा रही थीं. और सुजाता की आंखों में इतना गर्व भरा हुआ था जैसे चुनौती दे कर सब से पूछ रही हो कि ला सकते हो मेरे राहुल के लिए इस से बेहतर भारतीय बहू?

फिर शादी भी हुई और वैसे ही धूमधड़ाके से हुई जैसी करने की सुजाता ने ठानी थी, जो मीरा के सपनों में थी. इवैंट मैनेजमैंट वालों

को सौंप देने और इकलौते बेटे की शादी के

जोश से भरपूर कुमार दंपति को दिल खोल कर खर्च करने का मन बना लेने के बाद कमी ही किस चीज की थी कि  वह एक यादगार शादी न बन जाए.

पर असल में वह शादी यादगार बनी तो

एक ऐसी अनहोनी घटना के बाद जो शादी के अगले दिन घटी. अगले दिन कोई औपचारिक मेहमान नहीं थे. केवल अपने शहर के निकट संबंधियों और बाहर से आए हुए संबंधियों की घरेलू महफिल में मुंहदिखाई की रस्म आयोजित की गई.

बहू को उस दिन सुजाता ने अपने हाथों से साड़ी पहनाई. मीरा इस बात को ले कर बहुत चिंतित थी कि क्या साड़ी अपनी जगह पर टिकी रह सकेगी, पर सुजाता ने ढेरों पिनों और क्लिपों की सहायता से साड़ी को बांधा.

मीरा को दिलासा इस बात से भी मिली कि आज उसे चलनाफिरना नहीं था, केवल बैठे रहना था. ऐक्सरसाइज की अभ्यस्त मीरा को उस में कोईर् परेशानी नहीं थी. सारे रिश्तेदारों से उस ने पिछली संध्या को काफी अपनेपन और बेतकल्लुफी से बातचीत की थी पर इस समय उस की साड़ी का पल्लू हलका सा उस के माथे पर खींच कर छोटे से घूंघट का आभास दे दिया गया था.

 

उसे सम?ा दिया गया था कि वे सारे

रिश्तेदार जो कल शाम उस से आराम

से बातें कर चुके थे और बड़े शौक से उस के और राहुल के साथ फोटो खिंचवा चुके थे एक बार फिर औपचारिक ढंग से उस से रूबरू होंगे और उसे अपनी तरफ से आशीर्वाद और भेंट देंगे. इस के साथ ही वह भी बड़ों को पैर छू कर  प्रणाम करेगी.

रस्म का प्रारंभ कुमार साहब की चाचीजी से हुआ जो परिवार की सब से वयोवृद्ध सदस्या थीं. फिर आए अन्य 2 और वृद्ध रिश्तेदार जिन का परिचय बहू को दिया गया. अमेरिकन बहू ने बेहद शालीनता से उन सब को अपना सुंदर मुखड़ा पलकें ?ाकाए हुए ही दिखाया और सब की भेंट खुशीखुशी स्वीकार की.

सब से आखिर में जब कुमार साहब और सुजाता ने प्यार से उसे स्नेह और ममताभरी निगाहों से देखा तो वह बहुत भावुक हो उठी. अपनी भेंट वाला गहनों का सैट खोल कर सुजाता ने मीरा के सामने किया तो भावातिरेक से उस की आंखें गीली हो गईं. इस के बाद कुमार साहब ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘वी हैव चूजेन इट बिकोज द ऐमराल्ड पर्फेक्टली मैचेज द कलर औफ योर आईज.’’ (हम ने इसलिए इसे तुम्हारे लिए चुना है क्योंकि इस के पन्नों का रंग बिलकुल तुम्हारी आंखों जैसा हैं.)

अब तो मीरा बिलकुल ही अपनी सुधबुध खो बैठी. सुजाता के सिखाए हुए सारे पाठ वह भूल गई. भारतीय दुलहन की संस्कार प्रदत्त सीमाएं एक हद तक ही तो वह भोली अमेरिकन बहू ग्रहण कर पाई थी. एक ?ाटके के साथ वह उठी, ससुरजी को अपने आगोश में बांधते हुए, भावविभोर हो कर उस ने कहा, ‘‘ओह डैडी, आई लव यू…’’ और कुमार साहब के शर्म से लाल होते गाल पर झट से एक चुंबन जड़ दिया.

परिवार के निकट संबंधियों की उस बैठक को अचानक जैसे सांप सूंघ गया. सारे लोग हक्केबक्के रह गए. कुमार साहब के गाल

लाल हो कर अपनी अमेरिकन बहू के गालों के रंग से प्रतिस्पर्धा करने लगे. सुजाता के मुंह से एक लंबी सी हाय निकल गई. क्षण भर तक सन्नाटा सा छाया रहा. फिर उस सन्नाटे को तोड़ती हुई काकी दादी की पोपली आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘बहू सुजाता, अरे तुम ने शेर को सब तो सिखाया बस पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया. चलो धीरेधीरे वह भी सीख जाएगी हमारी अमेरिकन बहू.’’

इस के बाद राहुल की चचेरी बहन हंसी दबातेदबाते दुपट्टे से अपना मुंह बंद कर के वहां से भागी. इस के बाद सारे लोगों ने धीरेधीरे हंसना शुरू किया. फिर तो कई लोग हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.

अमेरिकन बहू कुछ देर तक तो बिलकुल स्तब्ध रही, उसे कुछ सम?ा में ही नहीं आया कि आखिर हुआ क्या था. फिर माथे पर आगे सरक आए घूंघट को थोड़ा पीछे सरकाती हुई वह भी सब के हंसने में खुले दिल से शामिल हो गई.

संकल्प: शादी के बाद कैसे बदली कविता की जिंदगी

मेरीसहेली कविता की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाने के लिए रवि का देर से घर पहुंचना मेरा मूड बहुत खराब कर गया था.

घर में कदम रखते ही उन्होंने सफाई देनी शुरू कर दी, ‘‘बौस ने अचानक मीटिंग बुला ली थी और उस गुस्सैल से जल्दी जाने की रिक्वैस्ट करने का मेरा दिल नहीं किया. आईएम सौरी डार्लिंग.’’

‘‘मैं कुछ कह रही हूं क्या जो माफी मांग रहे हो?’’ मैं नाराजगी भरे अंदाज में उठ कर रसोई की तरफ चल दी.

उन्होंने सामने आ कर मु?ो रोका और मनाने वाले लहजे में बोले, ‘‘अब गुस्सा थूक कर मुसकरा भी दो, स्वीटहार्ट. मैं फटाफट तैयार होता हूं और हम 15 मिनट में निकल चलेंगे.’’

‘‘मु?ो इतनी देर से पार्टी में नहीं जाना है.’’

‘‘प्लीज, अब मूड ठीक कर भी लो, यार. मैं औफिस में चल रही घटिया पौलीटिक्स के कारण वैसे ही परेशान चल रहा हूं और अगर ऊपर से घर में भी टैंशन बनी रहेगी, तो मैं पक्का बीमार पड़ जाऊंगा.’’

यह बात ठीक है कि आजकल उन के अपने बौस से संबंध ठीक नहीं चल रहे हैं और इस कारण नौकरी बदलने की नौबत तक आ सकती है. उन की परेशानी न बढ़ाने की खातिर मैं ने बात को लंबा नहीं खींचा और बोली, ‘‘औफिस की चिंता करने के साथसाथ कभीकभी मेरी खुशियों का भी खयाल रखा करो.’’

‘‘मैं रखता हूं, पर…’’

‘‘अब ?ाठेसच्चे बहाने बना कर समय बरबाद करने के बजाय जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ अपने गुस्से को भुलाकर मैं मुसकराई, तो उन्होंने प्रसन्नता दर्शाते हुए मेरा माथा चूम लिया.

कुछ देर बाद बैंकेट हौल में कदम रखते ही मैं सारे गिलेशिकवे भूल कर पार्टी का मजा लेने लगी. कोविड के बाद यह पहली बड़ी पार्टी थी जिस में हम लोग शामिल हुए थे और मैं उस के पलपल को जी लेना चाहती थी. जो जानकार थे, उन से हंसीखुशी के साथ मिली. बड़े उत्साह से अपनी मनपसंद चीजें खाने की इच्छा जाहिर कर मैं ने उन से खूब भागदौड़ कराई.

उन्हें डांस करना ढंग से नहीं आता, इस बात की फिक्र किए बिना मैं हाथ पकड़ कर उन्हें जबरदस्ती डांस फ्लोर तक खींच ले गई.

‘‘यार, उलटासीधा डांस करा कर मेरा जलूस मत निकलवाया करो,’’ व्यायाम करने के अंदाज में डांस करते हुए उन की आवाज में खीज के भाव साफ ?ालक रहे थे.

‘‘शादी होने से पहले मेरी खुशी की खातिर तुम डांस कर लेते थे, तो अब क्यों एतराज करते हो, जनाब?’’ मस्ती से नांचते हुए मैं ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘तब मैं तुम्हें नाराज करने की रिस्क नहीं ले सकता था.’’

‘‘और अब मु?ो खुश रखने को किसी तरह की कोशिश करना तुम्हें बो?ा सा लगता है. अब घर की मुरगी दाल बराबर हो गई है,’’ दिल पर चोट लगने का अभिनय करते हुए मैं ने आंखें तरेरी, तो वे खिलखिला कर हंस पड़े थे.

‘‘तुम गुस्से में भी बहुत प्यारी लगती हो.’’

‘‘यू मीन ब्यूटीफुल,’’ मैं ने बड़ी अदा से पूछा.

‘‘यैस, वैरी ब्यूटीफुल.’’

‘‘थैंक्यू,’’ मैं ने भीड़ की फिक्र किए बिना एक प्यार भरा चुंबन उन के गाल पर ?ाटके से अंकित किया तो वे बुरी तरह से शरमा गए.

‘‘यह क्या करती हो. सब देख रहे हैं, यार.’’

‘‘तो क्या हुआ.’’

‘‘यार, कुछ काम अकेले में करने होते हैं.’’

‘‘ओके, पर ‘आईलवयू’ तो यहां कह सकती हूं न.’’

‘‘यैस, श्योर.’’

‘‘आई लव यू, माई डार्लिंग,’’ इस बार मैं ने उन का हाथ होंठों तक लेजा कर चूमा तो उन का चेहरा फूल सा खिल उठा.

‘‘पगली,’’ प्यार भरे अंदाज में उन के मुंह से निकले इस एक शब्द ने मेरे रोमरोम में मस्ती भर दी थी.

मैं आज अपनी शादीशुदा जिंदगी में बहुत खुश और सुखी हूं, पर शादी के बाद गुजरे पहले साल में हम दोनों की नासम?ा के कारण हमारी विवाहित जिंदगी में बहुत कुछ गलत घटा था.

वे बहुत जल्दी तरक्की करना चाहते हैं, यह तो मैं शादी होने से पहले भी सम?ाती थी, पर शादी होने के बाद मु?ो उन का अपने कैरियर के प्रति बहुत ज्यादा सीरियस होना खलने लगा था. औफिस की जिम्मेवारियों में उल?ा कर उन का आएदिन देर से घर आना तो मु?ो बिलकुल हजम नहीं होता था.

शादी के बाद और भी बहुत कुछ बदल गया था. पहले मु?ो अपनी बात मनवाने में कभी दिक्कत नहीं होती थी, पर प्रेमी से पति बनते ही वे अडि़यल इंसान में बदल गए थे. अपने मातापिता के कहने में आ कर वो मेरी मरजी के खिलाफ कुछ करते तो हमारे बीच ?ागड़ा जरूर होता.

हमारे बीच बढ़ती अनबन की खबर मेरे मायके वालों को हुई, तो वे सभी अपनीअपनी सम?ा के अनुसार मु?ो समस्याओं का हल सम?ाते. मेरे मम्मीपापा के उन्हें सम?ाने से बात ज्यादा बिगड़ती गई क्योंकि रवि को उन का हमारी जिंदगी में दखल देना बिलकुल पसंद नहीं आता.

दिलों के बीच दूरियां बढ़ने से हमारी जिंदगी में से रोमांस मरता जा रहा था. सैक्स संबंध अधिकतर मशीनी से हो गए. मैं खुद को कभीकभी इतना ज्यादा फंसा हुआ महसूस करती कि विवाहित जिंदगी बहुत बड़ा बो?ा लगने लगती.

शादी को ले कर जो रंगीन सपने देखे थे, उन का टूटना मेरे मन को बहुत अखरता. उन के व्यवहार और नजरिए में आए परिवर्तन को ले कर मेरी शिकायतें रोजरोज बढ़ती जाती थीं. जब ?ागड़ा करने की ताकत अपने अंदर महसूस नहीं करती, तो मैं लंबे समय के लिए उन से बोलचाल बंद कर देती.

करीब 2 महीने पहले आई हमारी शादी की पहली वर्षगांठ पर मैं उन से खफा हो कर अपने मायके में रहने आई हुई थी. अपनी नाराजगी दिखाते हुए वे उस दिन जब शाम को मु?ा से मिलने आए, तो उन का भी चेहरा तना हुआ था.

मम्मीपापा ने जोर डाल कर हम दोनों को बाहर घूमने भेज दिया. इत्तेफाक से हम उसी पार्क में घूमने पहुंचे जहां करीब डेढ़ साल पहले उन्होंने शादी करने का प्रस्ताव मेरे सामने रखा था.

पार्क में कदम रखते ही उस खास दिन की सुखद यादें मेरे परेशान मन में एकदम से ताजा हो उठी थीं.

रवि एक घुटना जमीन पर टिकाते हुए मेरे सामने बैठे और बड़े रोमांटिक अंदाज में मेरा हाथ चूम कर मु?ा से पूछा था, ‘‘मेरी जिंदगी में अपार खुशियां भरने के लिए क्या तुम मेरे संग 7 फेरे लेने को तैयार हो, नीरू.’’

मु?ो उन की आंखों में अपने लिए बहुत गहरा प्यार नजर आया था. मैं ने भावविभोर हो कर ‘‘हां’’ कहा तो वो खुशी से फूले नहीं समाए थे.

उसी दिन अपने प्यार को साक्षी बना कर हम ने एकदूसरे से वादा किया था कि अपने विवाहित जीवन में अपनी खुशियों को हमेशा बरकरार रखेंगे.

मैं प्रपोज करने वाले दिन की यादों के संसार से तब उबरी जब रवि ने भावुक हो कर मु?ा से पूछा, ‘‘हमारी जिंदगी में सब कुछ इतना गलत क्यों हो रहा है, नीरू? मैं तुम्हें अब भी बहुत प्यार करता हूं, पर फिर भी हम एकदूसरे से इतनी दूर क्यों होते जा रहे हैं?’’

उन की आंखों में छलक आए आंसूओं को देख कर मु?ो तेज ?ाटका लगा था. मैं ने उन के सवाल का जवाब देने की कोशिश कई बार करी, पर मेरे मुंह से एक शब्द नहीं निकला.

अचानक ही मेरा अपने ऊपर से नियंत्रण टूट गया और मेरी आंखों से भी आंसू बह निकले. उन्होंने बांहें फैलाईं तो उन की छाती से लग कर मैं जोर से रो पड़ी थी.

उन के आंसू पोंछते हुए मैं ने उस शाम मन ही मन यह महत्त्वपूर्ण संकल्प किया कि रविके प्रति बहुत तीव्रता और ताकत से उठ रहे खुशी और प्यार के एहसास को भविष्य में कभी मरने नहीं दूंगी. जो हमारे विवाहित जीवन की खुशियों को तबाह कर रहे थे, मैं भविष्य में उन हालतों की गुलाम बन कर जीने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी.

मेरे इसी संकल्प ने मेरी जिंदगी, मेरे नजरिए और व्यवहार को पूरी तरह से बदल डाला है. किसी भी कीमत पर रवि के साथ अपने संबंध अच्छे रख कर अपने विवाहित जीवन की खुशियों को बनाए रखना अब मेरे लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हो गया है.

अब मु?ो उन की किसी बात या काम पर गुस्सा आता है, तो उसे दिखाने से मैं

कतई संकोच नहीं करती, पर वे मु?ो मेरे आगेपीछे घूमते हुए मनाएं, ऐसी अपेक्षा अब मैं नहीं रखती. जिस इच्छा के कारण मन चोट खा कर बारबार दुखे और घर में टैंशन जन्मे, उसे मन में पालने से क्या फायदा.

उलटा अब वे अगर मु?ा से किसी कारण नाराज हो जाते हैं, तो जल्दी से जल्दी उचित अवसर ढूढ़ कर मैं उन्हें मनाने से नहीं चूकती. मु?ो उन की नाराजगी की फिक्र नहीं, अपने हावभाव से ऐसा दर्शा कर उन के अहम को ठेस पहुंचाने की नासम?ा अब मैं नहीं दिखाती.

शिकायतें, नाराजगी और रुठनामनाना तो खैर हमारी जिंदगी में हमेशा चलता ही रहेगा, पर इन सब के कारण अब मैं हमारी खुशियों को ग्रहण नहीं लगने देती हूं. रवि के साथ बिताए पलों से निकल रहे हर खट्टेमीठे अनुभव का भरपूर आनंद लेने से मु?ो मेरी कोई अधूरी रह गई कामना या टूटी उम्मीद अब नहीं रोक पाती हैं.

पार्टी वाली इस रंगीन रात का भरपूर फायदा उठाने के लिए हम ने कविता और उस के पति से जल्दी विदा ली और घर लौट आए. रवि की आंखों में नजर आ रहे मौजमस्ती के भाव साफ कह रहे थे कि उस रात मेरे जल्दी सो जाने का कोई चांस नहीं था.

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