पछतावा-भाग 3: क्यूं परेशान थी सुधा

उधर से समीर ने क्या कहा, यह तो तन्वी सुन नहीं पाई. इस पर सुधा ने कहा. “आज घर पर आने के बाद पूछना उस से कि कौन था वह? जरा जोरदार आवाज में चिल्ला कर झगड़ा करना, अक्ल ठिकाने आ जाएगी उस की. चार लोग सुनेंगे तो उस का मजाक भी बनेगा. अच्छा, मैं फ़ोन रखती हूं. टाइम मिलने पर कौल करूंगी. बाय जानू.” और सुधा ने फ़ोन रख दिया. और तन्वी की तरफ देख कर बोली, “अब मजा आएगा. समीर घर जा कर काव्या से झगड़ा करेगा, गलियां देगा. और आसपास के लोग सुनेंगे. बड़ा मजा आएगा. सारी होशियारी धरी रह जाएगी उस की. बहुत सजसंवर कर घूमती है, अब पता चलेगा उस को.”

तन्वी ने सुधा से कहा, “दीदी, आप ने समीर से झूठ क्यों कहा, हम तो मार्केट गए ही नहीं. हम तो घर पर ही थे. आप ने ऐसा क्यों कहा?”

“तू नहीं समझेगी,” सुधा ने कहा, “उन दोनों के बीच झगड़े होते रहना चाहिए. तभी तो समीर मेरी मुट्ठी में रहेगा. झगडे होने से उन के बीच दूरियां बढ़ेंगी. जितना वे एकदूसरे से दूर होंगे, समीर उतना मेरे करीब होगा. उस की वाइफ, एक तो वह पढ़ीलिखी है, सुंदर भी है और मैं दिखने में साधारण हूं. इसलिए समीर को काव्या के खिलाफ भड़काती रहती हूं ताकि उन के बीच मनमुटाव चलता रहे. इस का मैं फायदा उठाती हूं. जो कहती हूं, समीर मानता है.”

“इस का मतलब, तुम काव्या से जलती हो. किसी की गृहस्थी क्यों बरबाद कर रही हो? समीर तो वैसे भी तुम्हारे जाल में फंसा हुआ है, जो थोड़ाबहुत रिश्ता उन दोनों के बीच बचा हुआ है, उसे भी क्यों ख़त्म कर देना चाहती हो? सच तो यह है, दीदी, तुम काव्य से जलती हो. तुम उस की बराबरी करने की कोशिश करती हो. इसलिए जैसे वह कपडे पहनती है, जिस रंग के पहनती है, उसी रंग और डिजाइन के कपड़े खरीदती हो, चाहे वो तुम पर फबे या न. चूंकि काव्या ने पहने है, इसलिए तुम्हें भी पहनना होता है. हर चीज में तुम उस की बराबरी करने की कोशिश करती हो यह दिखाने के लिए कि तुम उस से कम नहीं हो. लेकिन इस से सचाई बदल नहीं जाएगी और न ही तुम उस के जैसी बन पाओगी क्योंकि कुछ गुण व्यक्ति के जन्मजात होते है,” तन्वी ने कहा.

सुधा को तन्वी की बातें सुन कर गुस्सा आ गया. वह चिढ़ती हुई बोली, “तू मेरी बहन है कि उस की. तरफदारी तो ऐसे कर रही है जैसे उसे बरसों से जानती हो.”

“इस पर तन्वी बोली, “मैं तो सिर्फ सचाई बता रही हूं आप को. इस में बुरा मानने की क्या बात है. दीदी, एक बात मैं आप से और कहना चाहती थी. अपने बच्चों को लड़ाईझगड़ा करने के लिए बढ़ावा देना अच्छी बात नहीं है. अभी स्कूल में हैं, कालेज में जाएंगे. यह सब चलता रहा तो पिंटू गुंडागर्दी करने लगेगा. रोज इसी तरह शिकायतें आएंगी. उस वक्त क्या करोगी जब किसी दिन उस को जेल जाना पड़ जाएगा. बेहतरी इसी में है कि उसे अभी रोका जाए.”

“इतना सुनते ही सुधा गुस्से से बोली, “यह मेरे घर का मामला है, तू इस में अपनी टांग मत अड़ा. मैंतेरे से बड़ी हूं और मुझे अच्छे से पता है कि मुझे क्या करना है. तुझे सलाह देने की जरूरत नहीं है.”

तन्वी ने भी गुस्से से कहा, “दीदी, आप अभी समझ नहीं रही हो कि आप क्या कर रही हो. बच्चों को गलत शिक्षा दे रही हो. निशा को पराए आदमी को कैसे चिकनीचुपड़ी बातें कर के अपने जाल में फंसाना सिखा रही हो. सुबह से ले कर आधी रात तक सामने वाले फ्लैट की गतिविधियों पर नजर रखती हो. कुछ चलपहल दिखाई न दे तो तुरंत निशा और पिंटू को देखने भेजती हो. घर पर कोई है या ताला लगा है? उस दिन तुम ने यही देखने के लिए पिंटू को भेजा था. और आ कर उस ने इशारे से वही कहा था. मुझे बेवकूफ मत समझना, दीदी.”

“मैं तुम्हें बहुत अच्छे से जानती हूं और तुम्हारे हथकंडे भी पहचानती हूं,” तन्वी ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा, “छोटीमोटी ताकझांक करना, बातों को मिर्चमसाला लगा कर बताना तो औरतों की आदत होती है. तुम जो कर कर रही हो, वह एक अपराध है. और उस में तुम ने अपने बच्चों को भी शामिल कर रखा है. यह किसी की सुरक्षा का भी सवाल है. आखिर, तुम्हें उस फ्लैट में इतनी दिलचस्पी क्यों है? क्या जानना चाहती हो? या किसी और व्यक्ति ने तुम से निगरानी रखने के लिए कहा है जिस को तुम सब इन्फौर्मेशन देती हो. अगर किसी को पता चल गया कि तुम चौबीस घंटे निगरानी कर रही हो, तो तुम किसी मुसीबत में फंस सकती हो. तुम्हारे खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखाई जा सकती है. यह काफी गंभीर मामला है जिसे तुम मजाक समझ रही हो. दिनभर पता नहीं क्याक्या प्लानिंग, प्लौटिंग करती हो. एक षड्यंत्रकारी दिमाग है तुम्हारा.

“इतना ही नहीं, तुम्हारे बौयफ्रैंड यानी तुम्हारे प्रेमियों के बारे में भी तुम्हारे बच्चों को सब पता है. निशा 16 साल की है और तुम्हारा पाठक अंकल के साथ, समीर के साथ दसबारह साल से चक्कर चल रहा है. इस का मतलब निशा 6 या 7 साल की होगी और पिंटू 5 साल का. 5 और 6 साल के बच्चे कितने अबोध होते है. मातापिता की उंगली पकड़ कर चलते हैं. इतनी छोटी उम्र के बच्चों को पता है कि उन की मां के 2 बौयफ्रैंड हैं. शर्म नहीं आती, दीदी तुम को ये सब करते हुए.

“तुम्हारे स्कूल के बौयफ्रैंड अलग थे. 8वीं, 9वीं क्लास से तुम्हारे अफेयर शुरू हो गए थे. कालेज में अलग बौयफ्रैंड बनाए. इसी कारण तुम 2 बार फेल भी हुईं. पापा ने जैसेतैसे तुम को ग्रेजुएशन करवाया, ताकि शादी के लिए आए रिश्तों को बता सकें कि तुम ग्रेजुएट हो. शादी के समय मम्मीपापा ने कितना समझाया था कि नया जीवन शुरू करने जा रही हो, अब किसी पराए आदमी से अफेयर मत करना. शादी के पहले किए गए अफेयर को नादानी या भूल समझ कर माफ़ किया जा सकता है लेकिन शादी के बाद के अफेयर भूल नहीं कहलाते. और तुम ने तो अपने ऐशोआराम के लिए अफेयर किए हैं. और महंगे गिफ्ट के लिए तुम इतना नीचे गिर गईं कि समीर और पाठक अंकल के साथ तुम्हारे शारीरिक संबंध भी हैं. और तुम्हारे बच्चे सब जानते हैं. कितनी शर्म की बात है. मम्मीपापा को पता चलेगा तो उन पर क्या बीतेगी, कभी सोचा है तुम ने?

“तुम जब हमारे यहां आती थीं, तुम्हारे बच्चे कितना शोऔफ करते थे. आयुष और पूर्वी ने मुझ से कहा भी था कि   मम्मी, पिंटू और निशा दीदी बहुत शोऔफ करते हैं. कुछ भी सामान छूने नहीं देते. और कहते हैं, ‘हाथ मत लगाओ. बहुत महंगा है, फालतू की बातें करते हैं.’ भैयाभाभी ने भी शिकायत की थी कि   सुधा ने अपने बच्चों को तमीज नहीं सिखाई है. बड़ों से कैसे बात की जाती है, इस का उन को जरा भी तरीका नहीं है. अपने से बड़े लोगों का मजाक बनाते हैं वे. यह सब सही नहीं है. और तुम खुद भी तो शान बघारती रहती थीं. उन सब के पीछे का राज अब पता चला है. तुम्हारे महंगे कपड़े, जूते जीजाजी ने नहीं, तुम्हारे प्रेमी ने दिए हैं. दूसरों के दिए हुए सामान पर तुम और तुम्हारे बच्चे इतराते फिरते हैं.”

सुधा तन्वी की कड़वी बातें सुन कर एकाएक गुस्से में आ गई और चिल्ला कर बोली, “तू मुझ से जलती है, मेरे बच्चों से जलती है. इसीलिए अपने मन की भड़ास निकाल रही है. तुम नहीं ले सकतीं महंगा सामान, इसीलिए यह सब बोल रही हो. तेरे पति की इतनी इनकम नहीं है न.”   तन्वी ने कहा, “चिल्लाओ मत, दीदी. चिल्लाने से सचाई बदल नहीं जाएगी. तुम इन सामान के लिए किस हद तक गिरी हो, मुझे मालूम है. रही मेरी बात, तो मैं ने अपनी चादर से बाहर कभी पैर नहीं निकाले. जैसे मेरे पति ने मुझे रखा, मैं रही. जो खिलाया वह खाया. जो पहनाया वह पहना. तुम्हारे जैसे कीमती चीजों के लिए न तो कभी कोई अफेयर किया और न किसी से शारीरिक संबंध रखे.

“हर औरत को अपने पति की सैलरी के हिसाब से ही खर्च करना चाहिए. मैं उन लड़कियों जैसी नहीं हूं जो मायके से मांगमांग कर अपना घर भर लेती हैं. और न ही तुम्हारी तरह इतना नीचे गिर सकती हूं. मेरे साथ अपनी तुलना कभी मत करना क्योंकि मैं, मैं हूं और तुम, तुम जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकती हो. तुम जैसी औरतों के कारण पुरुषों को लगता है कि औरतें पैसों की लालची होती हैं. और इसीलिए वे पैसों का दिखावा करते हैं. लेकिन यह सच नहीं है. हर औरत तुम्हारी तरह लालची और स्वार्थी नहीं होती है. पहले अपने गिरेबान में झांको कि तुम क्या हो, फिर मुझ पर इलजाम लगाना.”

“तन्वी, तुम अब अपनी हदें पार कर रही हो,” सुधा बौखलाती हुई बोली.

“हदें तो तुम ने पार की हैं, दीदी. मैं तो सिर्फ सचाई बता रही हूं,” तन्वी ने कहा, “इतना बुरा लग रहा है तो ऐसे काम करती क्यों हो. सुबह से ले कर रात तक मोबाइल से चिपकी रहती हो. न घर पर ध्यान है और न बच्चों पर. बस, पास हो जाते है वो. कम मार्क्स होने के कारण किसी भी अच्छे कालेज में उन को एडमिशन नहीं मिलेगा. एक तो हम ओपन कैटेगिरी में आते है. तुम्हारे बच्चे गूंगेबहरे भी नहीं हैं. उन के हाथपैर भी सहीसलामत हैं. इसलिए विकलांग कोटे में भी एडमिशन नहीं मिलेगा. डोनेशन के आधार पर यदि किसी कालेज में एडमिशन मिल भी गया तो करीब 5 से 6 लाख डोनेशन देना पड़ेगा. फिर एकडेढ़ लाख रुपए उस की फीस रहेगी. तो करीब सातआठ लाख रुपए में सिर्फ एडमिशन होगा. डाक्टर या इंजीनियरिंग का 4 या 5 साल का खर्चा 15 से 20 लाख रुपए होगा. तुम्हारे बच्चे पढ़ाई में एवरेज हैं. वे फेल भी हो सकते है. फिर तुम्हारा पैसा बरबाद हो जाएगा. तुम्हारे बौयफ्रैंड समीर और पाठक अंकल इतने बड़े बेवकूफ तो नहीं होंगे कि तुम्हारे बच्चों पर लाखों खर्च करें. तुम तो उन से ही मांगोगी यह दुहाई देते हुए कि   आप ने एडमिशन करवाया है, तो अब आप को ही देने पड़ेंगे. मेरे पास तो नहीं हैं इतने पैसे. तुम को मुफ्त में खाने की जो आदत है.”

सुधा गुस्से में आगबबूला हो गई. उस ने अपनी कमर पर हाथ रखा और तन्वी पर चिल्लाते हुए बोली, “शट अप, इस के आगे और एक शब्द बोली तो मैं तुम्हारी जबान खींच लूंगी.”

“यू शट अप,” तन्वी बोली, “मुझे चुप करा देने से दुनिया के मुंह पर ताला नहीं लगा सकोगी. उस दिन हमें देख कर तुम्हारी सोसायटी की औरतें कितना खुसुरफुसुर कर रही थीं. क्या शिक्षा दे रही हो तुम अपने बच्चों को. आदमियों को अपनी लच्छेदार बातों से अपने जाल में फंसाना, अपने बौयफ्रैंड के अजबोगरीब नाम रखना, दूसरों के घरों में ताकझांक करना, बड़ों का मजाक बनाना, बदतमीजी से बात करना, लड़ाईझगड़ा करना, घमंड दिखाना और तो और अपने बौयफ्रैंड से क्या चाहिए उस के लिए महंगे सामान की लिस्ट बनाना आदि. एक मां तो अपने बच्चे को गलत राह पर जाने से रोकती है. उस के लिए वह सख्ती भी बरतती है. और तुम, तुम उन को अंधी गलियों और दिशाहीन रास्ते की ओर धकेल रही हो. मां के नाम पर तुम   एक ब्लैक डौट हो.

“मिडिल क्लास परिवारों में कई बार सैक्रिफाइज करने पड़ते हैं. अपनी इच्छाओं का दमन कर के परिवारहित में सोचना पड़ता है. परिवार ही सर्वोपरि माना जाता है. हर औरत कीमती गहने, कपड़े पहनना चाहती है, घूमनाफिरना चाहती है. लेकिन पति की कम इनकम के कारण यह संभव नहीं हो पता है. अगर हर औरत तुम्हारी तरह सोचे और इतने अफेयर करे जिन की गिनती नहीं और तुम्हारी तरह सारी मर्यादाएनिमेशन लांघ जाए तो समाज किधर जाएगा. समाज को न तो तुम्हारे जैसे विचारों की जरूरत है और न ही तुम्हारे जैसे लोगों की. वह कहते हैं न,   एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है.   तुम्हारी जैसी औरते सिर्फ गंदगी ही फैलाने का काम करती हैं.

“अवैध संबंध न पहले कभी स्वीकारे गए थे, न आज स्वीकारे जाते हैं. और न ही आगे स्वीकारे जाएंगे. स्वीकारे जाना भी नहीं चाहिए क्योंकि इस में 2 परिवार टूटते हैं. बच्चों की कस्टडी को ले कर पेरैंट्स कोर्ट तक जाते हैं. उन के अवैध संबंधों का खमियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ता है. जिस के कारण वे डिप्रैशन का शिकार होते हैं. ऐसे में वे ड्रग्स का सेवन करने लगते हैं. वे एन्जायटी और फ्रस्ट्रेशन का शिकार होने लगते हैं. तुम जैसी औरतों को तो अपनी मौज़मस्ती से मतलब है. यदि जीजाजी किसी दूसरी औरत के साथ अफेयर कर लें और अपनी पूरी सैलरी उस पर लुटाएं, तुम को और बच्चों को निगलैक्ट करें, तो तुम्हें कैसा लगेगा?”

“सुधा तमतमा कर बोली, “ऐसा कैसे हो सकता है. मैं उन की बैंड बजा दूंगी.”

इस पर तन्वी बोली, “वाह दीदी, तुम को सुन कर इतना गुस्सा आ रहा है और दूसरे के पतियों को अपने स्वार्थ के लिए अपने जाल में फांस कर रखा है. उस के लिए क्या कहोगी. तुम्हारी यह जो ऐयाशी चालू है, क्या यह सही है?”

“ऐयाशी किस को कह रही है?” सुधा चिढ़ती हुई बोली.

“नहीं तो यह तुम्हारा धरमकरम कहा जाएगा क्या?” तन्वी भी गुस्से से बोली, “और अब यह नया नाटक क्या चालू किया है. सुबह से प्रवचन चालू कर देती हो टीवी पर. फिर दोतीन घंटे फुल वौल्यूम पर भजनकीर्तन चालू कर देती हो. हर आधे घंटे में तुम बालकनी में जाजा कर घंटी बजाती हो रात के सोने तक. पूजा भी सुबहशाम ही लोग करते हैं वह भी अपने भगवान के सामने, न कि बाहर बालकनी में घंटी बजाबजा कर? किस को नीचा दिखा रही हो. लोगों को नीचा दिखाने की तुम्हारी पुरानी आदत है. 2 महीने पहले तक तो तुम्हारा पूजापाठ से कोई लेनादेना नहीं था. अचानक तुम्हारे भीतर ईश्वर की इतनी गहरी भक्ति कैसे जाग गई. 2 महीने पहले, जब बूआजी के यहां हम मिले थे उन के यहां नए घर की वास्तुपूजा में, तुम को जरा भी रुचि नहीं थी पूजा में. पूरे समय फ़ोन पर चिपकी थीं. कितनी बार तुम को बुलाने के लिए बच्चों को भेजा था, तब आई थीं. और हम लोगों से कहा था कि ‘मुझे पूजापाठ में कोई इंट्रैस्ट नहीं है.  इसलिए, अपनी भक्ति का यह ढोंग बंद करो. अगर सही माने में तुम ने प्रवचन सुने होते तो आज तुम्हारी गाड़ी पटरी से न उतरी होती.”

“यह दिखावा, यह पाखंड किस के लिए, जबकि सब जानते हैं कि असलियत क्या है,” तन्वी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “इतनी ही शुद्ध हदय की यदि तुम होतीं, तो छलकपट, प्रपंच, षड़यंत्र, लालच और स्वार्थ की पुड़िया न होतीं. झूठी बातें कह कर पतिपत्नी के बीच झगड़े न करतीं. यही सब यदि तुम्हारे साथ हो, तुम्हें कैसा लगेगा. आज निशा 16 साल की है. और 6-7  साल बाद तुम उस की शादी करोगी. यदि ससुराल ख़राब मिल गई, सास व ननद ने निशा के खिलाफ अपने बेटे के कान भरने शुरू कर दिए, ननद ने झूठ बोलबोल कर उन दोनों के बीच झगड़े कराए तो तुम्हारी लड़की की जिंदगी नरक बन जाएगी. और तुम्हारा दामाद चरित्रहीन निकला तो उस की जिंदगी तो बरबाद हो गई. मैं ठीक कह रही हूं न, दीदी.”

अभी तक सुधा, जो तन्वी की बातें सुन रही थी, चीखती हुई बोली, “तू मेरी बहन है कि दुश्मन, कब से अनापशनाप बके जा रही है. मैं कुछ बोल नहीं रही हूं, इस का मतलब यह नहीं कि जो मरजी आए, वह बोलती रहे.”

तन्वी ने अब चिल्ला कर कहा, “दीदी, तुम कुछ बोल भी नहीं सकतीं गलती जो कर रही हो. अपनी बेटी के लिए तुम से सुना नहीं जा रहा है. और जो समीर और पाठक अंकल की पत्नियों के साथ जो तुम कर रही हो, क्या वह सब उचित है. जो ताने तुम नहीं सुन सकतीं वे दूसरों के लिए क्यों? जो व्यवहार तुम्हें पसंद नहीं, दूसरों के साथ क्यों, जो बेवफाई तुम्हें पसंद नहीं, दूसरों के साथ क्यों? यह वह सचाई है जिसे तुम चाह कर भी झुठला नहीं सकतीं. तुम्हारा डबल स्टैंडर्ड मैं जान चुकी हूं. तुम जानबूझ कर समीर और पाठक अंकल का घर बरबाद कर रही हो. किसी की खुशियां छीन कर, किसी की आंखों में आंसू दे कर अपने लिए जिन खुशियों का महल खड़ा करना चाहती हो, vताश के पत्तों के भांति भरभरा कर गिर जाएंगी. और जो काम जानबूझ कर किए जाते हैं वे गलती नहीं,  गुनाह कहलाते हैं. और गुनाह की सजा मिलती है. घर तोड़ने जैसा पाप जो तुम कर रही हो, इस की सजा तो तुम्हें मिल कर रहेगी. दूसरों की जो तुम खुशियां छीन रही हो, तुम से भी तुम्हारी खुशियां एक दिन छीनी जाएंगी. और उस दिन   पछताने   के अलावा तुम्हारे पास कुछ नहीं रहेगा. याद रखना दीदी, नाटक कितना भी लंबा चले, परदा गिरता जरूर है. तुम जीजाजी, समीर और पाठक अंकल इन तीनों को एकसाथ धोखा दे रही हो.”

इस पर सुधा बोली, “चार किताबें क्या पढ़ लीं, अपने को बहुत होशियार समझने लगी है.”

“शुक्र है कि मुझे किताबों में लिखी शिक्षा और जीवन के नैतिक मूल्य आज भी याद हैं. वही चार किताबें तुम ने भी पढ़ी थीं. लेकिन तुम सबकुछ भूल गईं. इसलिए आज बरबादी के रास्ते पर चल पड़ी हो. एक भ्रम की दुनिया में जी रही हो. तुम सोचती हो कि समीर और पाठक अंकल को अपनी उंगलियों पर नचा रही हो. हो सकता है, वास्तविकता कुछ और ही हो. उन दोनों के लिए तुम एक   टाइमपास भी हो सकती हो. पाठक अंकल तो ठहरे रिटायर आदमी और समीर में लड़कपन है. उस में तो गंभीरता भी कम है. गलत चीजों को कभी भी त्यागा जा सकता है. बुराई के रास्ते से वापस लौटा जा सकता है. देर कभी भी किसी भी चीज के लिए नहीं होती है. लेकिन यह तभी संभव है जब तुम में गलत चीजों को छोड़ने का, बुराई को त्यागने का जज्बा पैदा हो. जब आंख खुले तब सवेरा.”

सुधा झटके से उठी और दनदनाती हुई बच्चों के कमरे में गई. वहां से तन्वी का सारा सामान उठा कर लाई और जमीन पर फेंकते हुए बोली, “मेरे ही घर में खड़े रह कर मुझे बातें सुना रही है. अपना बोरियाबिस्तर बांध और निकल जा मेरे घर से. और अब कभी मेरे घर मत आना. वैसे भी, तेरा आना मुझे खल रहा था. बड़ी आई मुझे सहीगलत बताने वाली. यह जो तेरा भाषण है, अपने बच्चों को सुनाना. उन के काम आएगा. मुझे और मेरे बच्चों को तेरी सलाह की जरूरत नहीं है.”

जमीन पर बिखरे सामान को समेटती हुई तन्वी बोली, “गलत चीजें होते हुए मैं नहीं देख सकती. और न ही गलत चीजों का समर्थन करती हूं. जहां सम्मान न मिले वहां मैं जाती भी नहीं. और ऐसे रिश्तों से जुड़े रहने का कोई फायदा भी नहीं. दिखावे के रिश्ते एक न एक दिन टूट ही जाते हैं बनावटी जो होते हैं. रिश्तों का लिहाज भी एक हद तक ही किया जाना चाहिए. ऐसे रिश्ते निभा कर भी क्या फायदा. सो, उन से दूर रहने में ही अपनी भलाई है. मैं तो खुद ही अपने घर जा रही थी. और यही बताने तुम्हारे पास आई थी.

“आज तुम होश में नहीं हो. आसमान में उड़ रही हो. लेकिन एक दिन जब तुम आसमान से नीचे जमीन पर गिरेगी, जिंदगी की वास्तविकता से जब तुम्हारा सामना होगा, तब तुम्हें पता चलेगा की यथार्थ का धरातल कितना खुरदुरा और सख्त होता है . जो बोया है वही काटोगी. इंसान को अपने कर्मो की सजा इसी दुनिया में भुगतनी पड़ती है. तुम ने लोगों की खुशियां छीनने का जो पाप किया है, उस के लिए तुम्हें माफ़ नहीं जाएगा. इस की सजा तो तुम्हें मिल कर रहेगी. आज के बाद मैं कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगी. आज इस रिश्ते को हमेशा के लिए मैं ख़त्म कर के जा रही हूं. मैं सबकुछ बरदाश्त कर सकती हूं, अपना अपमान बरदाश्त नहीं कर सकती.” यह कह कर तन्वी ने अपना ब्रीफकेस उठाया और सुधा की तरफ देखे बगैर तेजी से बाहर निकल गई.

ट्रेन में बैठी तन्वी सोच रही थी कि जहां आज कदमकदम पर धोखा और फरेब है वहीं पाठक अंकल और समीर जैसे पढ़ेलिखे, उच्च पदों पर कार्यरत लोग सुधा दीदी जैसी औरतों पर अंधा विश्वास कैसे कर सकते हैं. इन दस सालों में वे इतना तो समझ चुके होंगे कि सुधा दीदी कितनी लालची और स्वार्थी औरत है. हो सकता है जीजाजी भी दीदी के साथ मिल कर समीर और पाठक अंकल को बेवकूफ बना रहे हों. पैसा और प्रौपर्टी देख कर अच्छेअच्छों का ईमान डोल जात्ता है. नीयत ख़राब होने में कितनी देर लगती है. आएदिन अखबारों में हम इन्हीं धोखाधड़ी के किस्से पढ़ते हैं. कुछ भी कहा नहीं जा सकता. यह दुनिया है, कुछ भी हो सकता है. इतने सालों से दीदी के अफेयर चल रहे है, जीजाजी को कानोंकान खबर भी नहीं है, ऐसा कैसे हो सकता है. कभी दीदी पर शक भी नहीं हुआ? इतने महंगे मोबाइल, सामान दीदी और बच्चों के पास कहां से आ रहे हैं. जीजाजी गूंगेबहरे बन कर तमाशा क्यों देख रहे हैं. इन की क्या वजह हो सकती है. ऐसे कई सवाल तन्वी के दिमाग में घूम रहे थे जिन के जवाब उसे नहीं मिल पा रहे थे. तभी ट्रेन ने सीटी बजाई और चल पड़ी. धीरेधीरे प्लेटफौर्म छूटने लगा.

तन्वी ने आख़री बार प्लेटफौर्म पर एक सरसरी निगाह डाली, क्योंकि अब इस प्लेटफौर्म से उस का कोई वास्ता नहीं रह गया था. तन्वी ने अपने बैग से मोबाइल निकाला. आयुष और पूर्वी को मैसेज किया कि वह घर आ रही है.

इधर, पाठक अंकल किराना लेने गए थे, सोचा, पान भी लेते चलता हूं. पान की दुकान पर पहुंचे ही थे कि किसी की आवाज उन के कानों से टकराई. उन्होंने देखा, 2 आदमी पान की दुकान पर खड़े बात कर रहे थे. उन की शक्ल पाठक अंकल को जानीपहचानी लग रही थी. उन का नाम याद नहीं आ रहा था. इसी पान की दुकान पर उन दोनों को कई बार उन्होंने देखा था. उन में से एक कह रहा था,  “बहुत घूम रही है आजकल वह अपने आशिक के साथ.”

“किस की बात कर रहे हो, यार?” दूसरे ने पूछा.

“अरे वही, अपनी सोसायटी की अनारकली, पिंटू की मम्मी,” उस ने पान चबाते हुए कहा.

“अरे, क्या बात कर रहे हो, सक्सेनाजी, क्या सच में?”

“हां, मैं सच कह रहा हूं, मिश्राजी. समीर को तो जानते हो न आप. बस, उसी के साथ घूमती फिर रही है. दोचार बार तो मैं ने भी देखा है उस को,” सक्सेनाजी ने कहा.

इस पर मिश्राजी ने कहा, “मेरी मिसेस ने बताया था मेरे को उस के बारे में कि वह अच्छी औरत नहीं है. सोसाइटी में लोग उस के बारे में तरहतरह की बातें करते हैं. पर मैं ने इन बातों पर कभी ध्यान नहीं दिया.”

जैसे ही पाठक अंकल ने ये बातें सुनीं, उन के तो होश उड़ गए. सुधा का मेरे अलावा किसी और के साथ भी अफेयर है. और उस के साथ घूमफिर भी रही है. इस का मतलब वह मुझे बेवकूफ बना रही है. उन्होंने पान नहीं लिया. और घर की ओर चल पड़े. रास्तेभर वे यही सोच रहे थे कि आखिर उस ने समीर से चक्कर क्यों चलाया. हम दोनों को मूर्ख बना रही है. पैसा मेरा खाती है और गुलछर्रे उस समीर के साथ उड़ा रही है. शायद पैसों के लिए ही उस ने मेरे जैसे वरिष्ठ आदमी से रिश्ता जोड़ा. क्योंकि मैं तो उस से करीब 15 साल बड़ा हूं. समीर को तो मैं बहुत अच्छे से जानता होण. अच्छी कदकाठी है. दिखने में भी स्मार्ट है. यह सब सोचसोच कर उन का दिमाग भिन्नाने लगा.

वे जल्दी से जल्दी घर पहुंच कर सुधा से बात करना चाहते थे. उन्होंने रास्ते में ही उस को मैसेज कर दिया. और कहा कि मैं तुझ से मिलना चाहता हूं. आज शाम को उसी स्थान पर मिलना जहां हम वौकिंग के समय मिलते हैं.

जवाब में सुधा ने लिखा, “कल मिलती हूं आप से. आज मैं जरा बिजी हूं.”

कोई और दिन होता तो पाठक अंकल शायद मान जाते लेकिन समीर का खयाल आते ही उन्होंने कहा, “नहीं, मुझे आज ही मिलना है. मैं तुम्हारा वहीं पर इंतज़ार करूंगा.”

सुधा ने ‘ओके’ लिखा.

पाठक अंकल सोचने लगे हो सकता है, आज फिर समीर के साथ कहीं जाना होगा, इसलिए मुझ से झूठ बोल रही हो. नियत समय पर पाठक अंकल उस जगह पर पहुंच गए. थोड़ी देर में सुधा भी वहां पहुंच गई और पहुंचते ही पाठक अंकल पर बरस पड़ी, बोली, “इतनी भी क्या इमरजैंसी थी कि कल तक के लिए रुक नहीं सकते थे. मैं यदि न आना चाहती, तो आप आने के लिए मुझ पर दबाव क्यों डालते हो?”

पाठक अंकल ने बिना कुछ इस का जवाब दिए सुधा से पूछा, “यह समीर कौन है और इस के साथ तुम्हारा अफेयर कब से चल रहा है?”

पाठक अंकल का यों अचानक समीर के बारे में पूछने से सुधा सकपका गई. उस से कुछ बोलते न बना. वह सोचने लगी, इन को समीर के बारे में कैसे पता चला. फिर भी हकलाती हुई बोली, “कौन समीर? मैं उसे नहीं जानती.”

पाठक अंकल बोले, “उसे नहीं जानतीं या बताना नहीं चाहती हो? लेकिन मुझे सब पता चल गया है.”

इस पर चिढ़ती हुई सुधा ने कहा, “पता नहीं किस ने तुम्हारे कान मेरे खिलाफ भर दिए हैं जो आप ऊलजलूल बातें कर रहे हैं.”

अब पाठक अंकल को गुस्सा आ गया, चिल्लाते हुए बोले, “झूठ बोलते तुम को शर्म नहीं आती है. अपने से छोटी उम्र के लड़के के साथ मटरगश्ती करती फिर रही हो. और मुझे बेवकूफ बना रही हो.”

इतना सुनते ही सुधा को भी गुस्सा आ गया. उस ने भी ऊंची आवाज में कहा, “चिल्लाओ मत, अंकल. मैं तुम्हारी पत्नी नहीं हूं जो चुपचाप सबकुछ सुन लूंगी. अपनी पत्नी को तुम ने जूते की नोक पर रखा होगा. मैं तुम से दबने वाली नहीं हूं. ये तेवर अपनी पत्नी को दिखाना, मुझे नहीं. वह झेलती होगी तुम्हें और तुम्हारी ज्यादतियों को. अगली बार मुझ से ऊंची आवाज में बात करने की कोशिश भी मत करना. हां, है मेरा समीर के साथ अफेयर. इस से तुम्हें क्या? मेरी अपनी जिंदगी है और मैं अपने हिसाब से जीती हूं. किसी और की मरजी से नहीं.”

थी सुधा का यह रूप देख कर पाठक अंकल हैरान रह गए. उस के तो तेवर ही बदल गए थे. एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी. पाठक अंकल सोच में पड़ गए. सुधा के मन में जो आ रहा था, बोले जा रही थी. उस को बीच में ही रोकते हुए पाठक अंकल बोले, “तुम ने मेरे साथ प्यार का झूठा नाटक किया. तुम्हारा मेरे लिए प्यार एक सौदेबाजी था. हर महीने मुझ से कहती हो, मुझे शौपिंग कराओ. और लंबीचौड़ी लिस्ट थमा देती हो. मुझे तो तुम जैसी लालची और मतलबी औरत के जाल में फंसना ही नहीं था.

इस पर सुधा बोली, “आप कौन से दूध के धुले हुए हो. अपनी औरत को धोखा दे रहे हो. मैं तुम्हारी पत्नी को सब बता दूंगी. तुम्हारी पोल खोल कर रख दूंगी.”

इस के जवाब में पाठक अंकल बोले, “तुम क्या मेरी पोल खोलोगी, तुम्हारी सारी सचाई मेरे सामने आ गई है. तुम बहुत ही चालक औरत हो. मुझे ही तुम ने अपने घर बुलाया. तुम मेरे साथ शारीरिक संबंध रखना चाहती थी. संबंध हम दोनों की मरजी से बने हैं, इसलिए जितना दोषी मैं हूं, उतनी ही दोषी तुम भी हो. तुम्हारी उम्र इतनी छोटी भी नहीं है कि तुम्हें किसी ने बहलाफुसला लिया हो. तुम्हारी इस में पूरी रजामंदी शामिल थी. क्याक्या नहीं मांगा तुम ने. तुम्हारे और बच्चों के लिए लैपटौप, स्मार्टफ़ोन, हैंडीकैम, टेबलेट और यहां तक कि किचन के लिए ओवन, राइस कुकर, ग्राइंडर, कुकिंग रेंज, घर के लिए फर्नीचर, कर्टेन और जिस सोफे पर तुम पसरपसर कर बैठती हो उस की कीमत एक लाख रुपए है. कपडेजूते तो हर महीने तुम्हें और तुम्हारे बच्चों के लिए देता हूं. यही नहीं, कितनी बार झूठे बहाने बना कर मुझ से अपने अकाउंट में हजारों रुपये डलवाए हैं. तुम्हारे साथ रखे संबंधों की कीमत आज तक चूका रहा हूं मैं. और तुम मेरी पोल खोलने चली हो.  गलती मेरी ही है, मुझे तुम जैसी शातिर और मक्कार औरत के झांसे में आना ही न था. मैं अपनी राह से भटक गया था. लेकिन अब मैं अपनी भूल सुधारूंगा. रही मेरी पत्नी की बात, तो कहां वह और कहां तुम. उस के साथ तुम बराबरी नहीं कर सकतीं. और अपनी गंदी जबान से उस का नाम भी न लेना. वह तुम्हारी तरह नहीं है. जो औरत अपने पति को धोखा दे सकती है, वह किसी के भी प्रति वफादार नहीं हो सकती. चरित्र के साथसाथ तुम्हारी जबान भी गंदी है. आज इसी समय मैं तुम्हारे साथ अपना संबंध ख़त्म करता हूं. आज से मैं तुम्हारे लिए और तुम मेरे लिए अजनबी हो. मुझ से फिर कभी भी संपर्क करने की कोशिश मत करना.

Women’s Day 2023: मां का घर- क्या अपने अकेलेपन को बांटना चाहती थीं मां

Women’s Day 2023: आशियाना- अनामिका ने किसे चुना

“बहू कुछ दिनों के लिए रश्मि आ रही है. तुम्हें भी मायके गए कितने दिन हो गए, तुम भी शायद तब की ही गई हुई हो, जब पिछली दफा रश्मि आई थी. वैसे भी इस छोटे से घर में सब एकसाथ रहेंगे भी तो कैसे?

“तुम तो जानती हो न उस के शरारती बच्चों को…क्यों न कुछ दिन तुम भी अपने मायके हो आओ,” सासूमां बोलीं.

लेकिन गरीब परिवार में पलीबङी अनामिका के लिए यह स्थिति एक तरफ कुआं, तो दूसरी तरफ खाई जैसी ही होती. उसे न चाहते हुए भी अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता.

अनामिका आज भी नहीं भूली वे दिन जब शादी के 6-7 महीने बाद उस का पहली दफा इस स्थिति से सामना हुआ था.

तब मायके में कुछ दिन बिताने के बाद मां ने भी आखिर पूछ ही लिया,”बेटी, तुम्हारी ननद ससुराल गई कि नहीं? और शेखर ने कब कहा है आने को?” मां की बात सुन कर अनामिका मौन रही.

उसी शाम जब पति शेखर का फोन आया तो बोला,”अनामिका, कल सुबह 10 बजे की ट्रेन से रश्मि दीदी अपने घर जा रही हैं. मैं उन्हें स्टेशन छोड़ने जाऊंगा और आते वक्त तुम्हें भी लेता आऊंगा। तुम तैयार रहना, जरा भी देर मत करना. तुम्हें घर छोड़ कर मुझे औफिस भी तो जाना है.”

कुछ देर शेखर से बात करने के बाद जब वह पास पड़ी कुरसी पर बैठने लगी तो उस पर रखे सामान पर उस की नजर गई। उस ने झट से सामान उठा कर पास पड़ी टेबल पर रखा और कुरसी पर बैठ कर अपनी आंखें मूंद लीं.

कुछ देर शांत बैठी अनामिका अचानक से उठ खड़ी हुई. उस ने सामान फिर से कुरसी पर रखा और उसे देखती रही और फिर से वही सामान टेबल पर रख कर कुरसी पर बैठ गई.

इस छोटे से प्रयोग से अनामिका को यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि कहीं वह भी इस सामान की तरह तो नहीं? कभी यहां तो कभी वहां…

अगले दिन जब वह शेखर के साथ ससुराल गई तो बातबात में उस ने कहीं छोटीमोटी जौब करने की इच्छा जताई तो शेखर ने साफ मना कर दिया.

लेकिन शेखर के ना चाहते हुए भी अनामिका ने कुछ ही दिनों में जौब ढूंढ़ ही ली. और जब अपनी पहली सैलरी ला कर उस में से कुछ रूपए अपनी सासूमां के हाथ में थमाए तो सास भी अपनी बहू की तरफदारी करते हुए शेखर को समझाने लगीं,”अनामिका पढ़ीलिखी है, अब जौब कर के 2 पैसे घर लाने लगी है तो इस में बुराई क्या है?”

अपनी मां से अनामिका की तारीफ सुनने के बाद शेखर के पास बोलने को जैसे कुछ नहीं बचा.

महीनों बाद जब घर में रुपयोंपैसों को ले कर सहुलत होने लगी तो शेखर को भी अनामिका का जौब करना रास आने लगा.

आज जब बेटी रश्मि का फोन आने के बाद सासूमां ने अनामिका को मायके जाने के लिए कहा तो हर बार की तरह मायूस होने की बजाय अनामिका पूरे उत्साह से बोली,”मांजी, मैं आज ही पैकिंग कर लेती हूं. कल शेखर के औफिस जाने के बाद चली जाऊंगी.”

एक बार तो आत्मविश्वास से लबरेज बहू का जबाव सुन कर सास झेंप सी गईं फिर सोचा कि बहुत दिनों बाद मायके जा रही है, शायद उसी की खुशी झलक रही है.

अगले दिन शेखर को औफिस के लिए विदा कर के अपना काम निबटा कर अनामिका ने मायके जाने के लिए इजाजत मांगी तो सास ने कहा,”मायके पहुंचते ही फोन करना मत भूलना.”

‘हां’ में गरदन हिलाते हुए अनामिका बाहर की ओर चल दी.

ससुराल से मायके का सफर टैक्सी में आधे घंटे से अधिक का नहीं था. लेकिन शाम के 4 बजने को आए थे, अनामिका का अब तक कोई फोन नहीं आया.

सासूमां ने उसे फोन किया तो आउट औफ कवरेज एरिया बता रहा था. फिर उस के मायके का नंबर मिलाया तो पता चला कि अनामिका अब तक वहां पहुंची ही नहीं.

सास के पांवों के नीचे से जमीन खिसकने लगी थी. झट से शेखर को फोन कर के इस बारे में बताया.

औफिस में बैठा शेखर भी घबरा गया। वह भी बारबार अनामिका के मोबाइल पर नंबर मिलाने के कोशिश करने लगा. और कुछ देर बाद जब रिंग गई तो…

“अनामिका, तुम ठीक तो हो न? तुम तो मेरे जाने के कुछ ही देर बाद मायके निकल गई थीं? लेकिन वहां पहुंची क्यों नहीं? घर पर मां परेशान हो रही हैं और तुम्हारी मम्मी भी इंतजार कर रही हैं. आखिर हो कहां तुम?” शेखर एक ही सांस में बोल गया.

“मैं अपने घर में हूं,” उधर से आवाज आई.

“लेकिन अभीअभी तुम्हारी मम्मी से मेरी बात हुई तो पता चला तुम वहां पहुंची ही नहीं.”

“मैं ने कहा… मैं अपने घर में हूं,”आशियाना अपार्टमैंट, तीसरा माला, सी-47,” जोर देते हुए अनामिका ने कहा.

“लेकिन वहां क्या कर रही हो तुम?” हैरानपरेशान शेखर ने आश्चर्य से पूछा.

“यहां नए फ्लैट पर चल रहे आखिरी चरण का काम देखने आई हूं.”

“नया फ्लैट? मैं कुछ समझा नहीं… लेकिन यह सब अचानक कैसे?”

“अचानक कुछ नहीं हुआ, शेखर। जब भी रश्मि दीदी सपरिवार हमारे यहां आती हैं, तो मुझे छोटे घर के कारण अपने मायके जाना पड़ता है. और जब मायके ज्यादा दिन ठहर जाती हूं तो मां पूछ बैठती हैं कि बेटी, और कितने दिन रहोगी?

“एक तो पहले से ही वहां भैयाभाभी और उन के बच्चे मां संग रह कर जैसेतैसे अपना गुजारा करती हैं, ऊपर से मैं भी वहां जा कर उन पर बोझ नहीं बनना चाहती.”

और फिर एक कान से दूसरे कान पर फोन लगाते हुए बोली,”औफिस में मेरे साथ जो डिसूजा मैम हैं उन्होंने ने भी 1 साल पहले इसी अपार्टमैंट में 1 फ्लैट खरीदा था.

“मैं ने उन से इस बारे में जानकारी जुटा कर फौर्म भर दिया और हर महीने अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा इस फ्लैट की ईएमआई भरने में लगाने लगी.

“तुम ने भी मेरी सैलरी और उस के खर्च को ले कर कभी कोई हस्तक्षेप नहीं किया, इसलिए इस में तुम्हारा भी बहुत बड़ा योगदान है.”

“अनामिका…अनामिका… प्लीज, ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा मत करो.”

“शर्मिंदा होने का समय गया शेखर… जब मैं किसी सामान की तरह जरूरत के मुताबिक यहां से वहां भेज दी जाती थी. लेकिन आज मैं अपने स्वाभिमान की बदौलत अपने आशियाने में हूं,” कहते हुए अनामिका भावुक हो गई.

भटकते मन को दिशा मिल गई- भाग 2

शहनाई बजी और चारुल अपने पिया की मनभावन दुलहन बन कर पायल छनकाती ससुराल आ गई.

यश के पिता वृद्ध हो चले थे. बढ़ती उम्र के कारण फैक्टरी का काम अच्छी तरह से न संभाल पाते. इसलिए यश ने पिता के जमेजमाए बिजनैस में हाथ आजमाने का निर्णय लिया.

चारुल ने एक प्रतिष्ठित एमएनसी जौइन कर ली.

विवाह के बाद के शुरुआती दिन मानो मदहोश भरी खुमारी में बीते.

चारुल एक सहृदय, साफ दिल की मृदु स्वाभाव की लड़की थी. वक्त के साथ वह ससुराल के तौरतरीके सीखती गई. अपनी नरमदिली और मीठे व्यवहार से उस ने धीरेधीरे ससुराल के सभी सदस्यों के मन में जगह बना ली.

किसी के मन में कोई खलिश न थी. उन के विवाह की पहली वर्षगांठ बेहद धूमधाम से मनी. शानदार पार्टी आयोजित की गई. इस आयोजन के कुछ ही दिन बीते थे कि यश की तबीयत अचानक गिरने लगी. उसे निरंतर थकान, पैरों में सूजन, उबकाई, सीने में दर्द और भारीपन की शिकायत रहने लगी.

डाक्टरों ने सभी टेस्ट करवाए जिस से पता चला कि उस की किडनी फेल होने की कगार पर है. 1 वर्ष की अवधि में उस का किडनी फंक्शन 30% तक रह गया.

उसे अब सप्ताह में एक बार डायलिसिस की आवश्यकता पड़ने लगी. इस बीमारी की वजह से वह अपनेआप को फैक्टरी का कामकाज सुचारु रूप से संभाल पाने में असमर्थ पाने लगा. उस के पिता भी कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे.

 

कुछ ही दिनों में फैक्टरी के कर्मचारियों के भरोसे चलने पर व्यापार में गिरावट आने लगी. इसलिए यश और चारुल ने मिलजुल कर निर्णय लिया कि चारुल को नौकरी छोड़ कर फैक्टरी से जुड़ जाना चाहिए, जिस से घर का व्यापार सही ढंग से चलता रहे.

चारुल ने कुछ ही दिनों में फैक्टरी जौइन कर ली और धीरेधीरे फैक्टरी का सारा कामकाज अपने कंधों पर ले लिया.

उस के लिए जिंदगी बेहद मुश्किल हो चली थी. यश की दिनरात की तीमारदारी, उसे हर सप्ताह डायलिसिस के लिए ले जाना, फैक्टरी और बाहर का चुनौतीपूर्ण काम, घरगृहस्थी के सौ कामों में उल?ा चारुल दिनभर चकरघिन्नी की तरह नाचती रहती, लेकिन अपनी शिद्दत की सहनशीलता के चलते कभी भी चूं तक न करती. हमेशा चेहरे पर मुसकान लिए सभी कामों को पूरी मेहनत से निबटाती.

बेटे के प्रति उस का समर्पण भाव देख कर सासससुर उस की बड़ाई करते न थकते. हर परिचित के सामने उस की दिल खोल कर प्रशंसा करते.

उन्हीं दिनों कोरोना की पहली और दूसरी लहरें आईं जिस में उस के व्यवसाय को गहरा धक्का पहुंचा. दिन पर दिन व्यापार की स्थिति नाजुक होने लगी. तभी चारुल और यश के कालेज का एक सहपाठी जौय उन के संपर्क में आया, जिस की कोरोना की दोनों लहरों में स्वयं की फैक्टरी बैठ गई थी और वह किसी नए अवसर की तलाश में था.

उस के पास बिलकुल पूंजी नहीं बची थी और बहुत कर्जा चढ़ गया था. जब उस ने चारुल और यश से उन की फैक्टरी की बदहाली सुनी, उस ने उन से फैक्टरी में सा?ोदारी की पेशकश रखी.

उस मुश्किल दौर में दोनों ही पक्षों को डूबते को तिनके की तर्ज पर सहारा चाहिए था. इसलिए चारुल और यश दोनों ने आपसी सहमति से उस के साथ 70-30% की सा?ोदारी कर ली.

जौय एक बेहद मेहनती और व्यवसाय की बारीकियों का जानकार था. कुछ ही दिनों में उस ने फैक्टरी की डगमगाती नैया को सहारा दिया. धीमेधीमे चारुल और उस की मेहनत रंग लाई और उस की स्थिति ठीक होने लगी.

यों ही देखते देखते 5 बरस गुजर गए कि तभी चारुल पर आसमान टूट पड़ा. यश की मृत्यु हो गई. प्राणों से प्यारे जीवनसाथी से जुदा हो कर वह टूट गई. करीब 7-8 माह तक वह पति के जाने के गम में बेसुध रही. उसे न अपना होश था, न घरपरिवार का. इस अवधि में उस ने घर की दहलीज तक नहीं लांघी. सासससुर के कहे अनुसार घर में रही. यों ही देखतेदेखते पति की मौत को पूरा साल गुजर गया.

इस मुश्किल दौर में उस की कुछ करीबी सहेलियों ने उस को बहुत हिम्मत दी. पति की मौत के बाद उसे फिर से अपनी नई जिंदगी शुरू करने का हौसला दिया. इस परीक्षा की घड़ी में जौय ने भी उस का बहुत साथ दिया. यश के न रहने पर भी उस ने अकेले दम पर पूरी नेकनीयती के साथ फैक्टरी संभाली, और फैक्टरी के कुल मुनाफे से बड़ी ईमानदारी से चारुल का 70% हिस्सा उसे देता रहा.

पति की पहली बरसी के बाद उस ने फैक्टरी में सालभर बाद कदम रखा.

शुरूशुरू में वह काम में अपना ध्यान केद्रिंत न कर पाती, लेकिन वक्त के साथ वह अपने काम में रमने लगी. जौय उसे हर कदम पर अपना सहयोग देता. धीमेधीमे दोनों के संयुक्त प्रयासों से फैक्टरी का टर्नओवर आसमान छूने लगा.

अपनी सफलता से उत्साहित वह वक्त के साथ सामान्य होती जा रही थी. अब उस का काम उस की जिंदगी का एकमात्र ध्येय बन कर रह गया था. वह और जौय दिन के आठ 8-10 घंटे साथसाथ गुजारने लगे थे. अनेक बिजनैस मीटिंग्स साथसाथ अटैंड करने लगे थे. अमूमन फैक्टरी के बाहर साथसाथ देखे जाते. बिजनैस में उन के प्रतियोगी व्यापारी उन की इस दिनदूनी रात चौगुनी प्रगति से खार खाने लगे.

दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी, लेकिन उन दोनों की जबरदस्त सफलता के चलते उन की प्रोग्रैस से जलने वाले विरोधी खेमे के कुछ नीच मानसिकता के लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि दोनों में गलत संबंध हैं.

उड़तेउड़ते यह बात चारुल के सासससुर तक पहुंची. दोनों इस बात पर बहुत तिलमिलाए, लेकिन उन्हें इस बदनामी का प्रतिकार करने का कोई रास्ता नहीं नजर आ रहा था. उन्हें अपनी बहू पर पूरा भरोसा था कि वह इस तरह कि घटिया हरकत कतई नहीं करेगी, लेकिन दुनिया का मुंह तो बंद नहीं किया जा सकता. इसलिए चारुल के ससुरजी ने एक दिन बहू को बुला कर उस से कहा, ‘‘बेटा, तुम अभी यंग हो. हमें तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम कभी गलत रास्ते पर नहीं चलोगी. लेकिन बेटा, यह दुनिया बड़ी जालिम है. पति की छांव भी तुम्हारे ऊपर नहीं. इसलिए अब से तुम धीरेधीरे जौय के साथ उठनाबैठना कम कर दो. फैक्टरी के बाहर उस के साथ आनाजाना बिलकुल बंद कर दो. लोग तुम दोनों को ले कर बातें बनाने लगे हैं.’’

‘‘पापाजी, मैं ऐडल्ट हूं और अपना अच्छाबुरा अच्छी तरह से सम?ाती हूं. मैं बस, अपनी अंतरात्मा के प्रति जवाबदेह हूं, बाकी दुनिया क्या कहती है, मु?ो उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. हां, मैं दुनिया के डर से उस के साथ घूमनाफिरना बंद कर दूं, यह संभव नहीं. अब अपने व्यापार को अकल्पनीय ऊंचाइयों तक ले जाना ही मेरे जिंदगी की ख्वाहिश है और वह जौय के साथ के बिना बहुत मुश्किल होगा. हम दोनों अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संभावनाएं ढूंढ़ने एक इंटरनैशनल नेट वर्किंग इवैंट में हिस्सा लेने अगले माह की पहली तारीख को न्यूयौक जा रहे हैं. अगर हमें विदेशी कंपनियों के और्डर मिल गए तो हमारे वारेन्यारे हो जाने हैं.

मीठी परी: भाग 2- सिम्मी और ऐनी में से किसे पवन ने अपनाया

संजना के मायके वाले उसे डिलीवरी के लिए अपने पास रखना चाहते थे. पर नयन यह कह कर कि उसे यहां हर तरह का आराम है और फिर मां भी गोदभराई की रस्म के लिए आएंगी, तो रुकेंगी, उस का जाना टाल दिया. सब ठीक रहा और संजना ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. सब ओर से बधाई का आदानप्रदान हुआ. चाचा पवन को नई पदवी की विशेष बधाई मिली. बच्चे के 4 महीने के होते ही मां असम से लौट आईं, नयन स्वयं छोड़ने आया.

‘यह कैसे हो गया, कहां गलती हुई, क्यों नहीं ध्यान दिया?’ ऐनी यह सब सोचते हुए परेशान थी. वह प्रैग्नैंट थी. ‘नहीं, वह झंझट नहीं ले सकती, उसे नौकरी करनी है.’ सब आगापीछा सोचते हुए पवन से अबौर्शन की जिद करने लगी. पवन थोड़ा तो परेशान हुआ पर तसल्ली दी कि वह पूरी तरह से सहयोग करेगा ऐनी व बच्चे का ध्यान रखने में.

ऐनी की मां अब अपनी छोटी बेटी के पास स्कौटलैंड में रहती थी. समय पर मां को बुलाने पर बात अटकी तो पवन ने कहा, ‘देखेंगे.’ पहले वाले लड़के ने मां के कारण ही ऐनी से किनारा किया था और अब वह वही मुसीबत मोल ले ले, नहीं. ऐनी को यह मंजूर न था.

अपनी गर्भावस्था के दौरान ऐनी स्वस्थ व चुस्त रही और काम पर जाती रही. बस, डिलीवरी होने से पहले 3 दिन ही घर पर रही थी और 9 महीने पूरे होते ही उस ने सुंदर, स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. उस के गोल्डन, ब्राउन, घुंघराले बालों को देखते ही चहकी, ‘‘यह तो अपने नाना जैसा है.’’ अपने पिता की याद में उस की आंखें भर आईं. वे दोनों बहनें छोटी ही थीं जब उस के पिता का कार दुर्घटना में निधन हो गया था और पिता के काम की जगह ही मां को काम दे दिया गया था.

ऐनी को नौकरी से 3 महीने की छुट्टी मिल गई और पवन भी कोशिश कर उस की हर संभव सहायता करता. छोटे बेबी को पालना आसान नहीं. मां के फोन आते रहते. पर इस बार पवन ने पक्का इरादा कर ऐनी के बारे में बता दिया, लेकिन बच्चे का जिक्र नहीं किया.

मां यह सुन सन्नाटे में आ, पूछना भूल गई कि कौन है, कब यह सब हुआ? पवन हैलोहैलो ही कहता रह गया, फोनलाइन कट गई. बिना शादी एकसाथ रहना, बच्चे होना और फिर साथ रहने की गारंटी, क्या कहा जा सकता है.

पवन दोबारा फोन करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया. लेकिन, भाभी का फोन आ गया. ‘‘मां अस्पताल में हैं. उन की अचानक तबीयत खराब होने की खबर सुनते ही वे लोग फौरन मां के पास पहुंच गए. अभी नयन मां के पास अस्पताल में हैं.’’

भाभी ने उस की शादी के बारे में पूछा तो पवन ने रोंआसा हो बताया कि यह अचानक किया फैसला है और झूठ का सहारा ले यह कह दिया कि यहां सैटल होने के लिए यहां की लड़की से शादी करने से मदद मिल जाती है.

पवन का मन परेशान हुआ कि बच्चे के बारे में जानेंगे तो क्या सोचेंगे. भाभी ने कहा कि मां उस के लिए यहां लड़कियां देख रही थीं. अचानक खबर से उन्हें काफी धक्का लगा है. पर अब क्या हो सकता है. तसल्ली दी कि जब तक मां पूरी तरह ठीक नहीं हो जाएंगी, वह यहां रह उन की देखभाल करेगी. नयन भी आतेजाते रहेंगे. बाद में वे मां को अपने साथ असम ले जाएंगे.

पिछली बार जब रमा असम गई थी तो कुछ दिनों के बाद ही कहना शुरू कर दिया था कि यहां बहुत अकेलापन है. वह वापस जाना चाहती है. नयन ने समझाने की बहुत कोशिश भी की थी कि आप की बहू, बेटा, पोता हैं, यहां अकेलापन कैसा और फिर यह भी आप का घर है. पर नहीं, वह जल्दी लौट आई थी.

इधर, ऐनी बच्चे क्रिस को अकेले संभालने में परेशान हो जाती थी. पवन रात में बच्चे के लिए कई बार जागता था. अब ऐनी के काम पर वापस जाने का समय हुआ. क्रिस को घर से दूर एक डेकेयर में छोड़ना तय हुआ. क्रिस को सुबह पवन छोड़ आता था, शाम को ऐनी ले आती थी. आसान नहीं था यह सब. अब आएदिन दोनों में किसी न किसी बात पर बहस होने लगी. बच्चे के कारण दोनों का बाहर घूमनाफिरना, मौजमस्ती कम हो गई थी. ऐनी जैसी मौजमस्ती में रहने वाली के लिए यह सब बदलाव मुश्किल सा हो गया था जबकि पवन ने बहुत सी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी.

अचानक एक दिन ऐनी को पता नहीं क्या सूझी, जो सीधा ही पवन से कह दिया कि वह नौकरी छोड़ बेबी क्रिस को ले अपनी मांबहन के पास स्कौटलैंड चली जाएगी.

पवन हैरत में था कि अपनी ओर से वह और क्या करे कि ऐनी अपना इरादा बदल ले. अभी इस बात को एक सप्ताह ही बीता था कि पवन को डेकेयर से फोन पर बताया गया कि मिस ऐनी का उन्हें फोन आया था कि आज आप क्रिस को लेने आएं, वे नहीं आ पाएंगी. ‘‘ठीक है,’’ कह कर पवन ने सोचा कि ऐनी यह बात सीधे उस से भी कह सकती थी. फिर यह सोच कर मन को तसल्ली दी कि वह आजकल बहुत परेशान व नाराज सी रहती है. इसलिए शायद उस से नहीं कहा.

पवन औफिस से जल्दी निकल, क्रिस को डेकेयर से घर लाया, उसे दूध पिलाया. ऐनी को कई बार फोन किया पर उस का फोन स्विच औफ था. उस का मन भयभीत होने लगा कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. जब ऐसे करते रात के 12 बजने को आए तो चिंतित पवन कहां फोन करे, उस के पास तो ऐनी के किसी जानपहचान वाले या उस की मांबहन का नंबर तक नहीं था. कैसा बेवकूफ है वह, कभी उन से बात ही नहीं हुई.

रात 2 बजे फोन बजा तो उस ने लपक कर फोन उठाया, फोन ऐनी का ही था. उस ने सीधा कहा, ‘‘मैं अपनी मां के पास आ गई हूं. तुम्हें क्रिस को स्वयं पालना है, मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरा कोई पता या फोन नंबर नहीं है.’’

‘‘ऐनीऐनी’’ कहता रह गया पवन, और फोन कट गया. सिर धुन लिया पवन ने और सोते क्रिस को देख बेहाल हो गया. क्या कुसूर है उस का या इस नन्हे बच्चे का.

दिन बीतते गए. सब रोज के ढर्रे पर चलता रहा. ऐसा कब तक चलेगा? हताश हो कर सोचा, मां या भाई को बताऊं. पहले ऐनी के साथ रहने का बता मां को सदमा दिया था, अब उस से बड़ा सदमा देने के बारे में सोच कर ही डर गया.

कुछ तो करना होगा, यह सोच कर हिम्मत जुटा भाई को फोन किया तो पता चला वह 1 महीने के लिए दूसरी जगह पोस्ंिटग पर है. फोन पर पवन के रोने की आवाज सुन, भाभी डर गई, ‘‘पवन, क्या हुआ, ऐनी तो ठीक है?’’

‘‘भाभी, ऐनी मुझे छोड़ कर चली गई.’’

भाभी ने कुछ और समझा, ‘‘कैसे हुआ, क्या हुआ, तुम साथ नहीं थे क्या?’’

‘‘भाभी, वो अब मेरे साथ रहना नहीं चाहती. अपने बेटे को छोड़ कर, अपनी मां के पास चली गई है.’’

‘‘बेटे को, यानी तुम्हारा बेटा या केवल उस का?’’ भाभी कुछ अंदाजा लगा चुकी थी, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘जब पहली बार ऐनी के बारे में बताया था, तब हमारा बेटा क्रिस 2 महीने का था.’’

‘‘अब क्या करोगे?’’

‘‘भाभी, कुछ समझ नहीं आ रहा.’’

संजना ने कहा, ‘‘सुनो, बच्चे को ले सीधा हमारे पास चले आओ, तब तक तुम्हारे भाई भी आ जाएंगे. सब मिल कर कुछ उपाय सोचेंगे.’’

तुरंत बच्चे का पासपोर्ट बनवा, वीजा लगवा, काम से एक महीने की छुट्टी ले पवन वापस इंडिया चल पड़ा. भाई के घर वापस आने से 4 दिन पहले पहुंच गया. भाभी को पूरी बात बता, थोड़ा सहज हुआ.

‘‘कुछ गलत तो नहीं किया तुम ने ऐनी से शादी कर. अगर बच्चा पैदा हो गया तो विदेश में ऐसी बातें होती ही हैं.’’

‘‘भाभी, शादी नहीं की थी, सोचा था, कुछ समय इकट्ठा गुजारेंगे. पर उसी बीच वह प्रैग्नैंट हो गई. उस के बाद भी शादी कर लेता तो ठीक होता.’’

भाभी ने कहा, ‘‘अब अपने देश में भी अजीब सा चलन हो गया है लिवइन रिलेशनशिप का. लगता है लगाव, जिम्मेदारी, ममता केवल शब्द ही रह गए हैं, कोई भावना नहीं.’’

अगली सुबह नयन आ गए. अचानक पवन को वहां देख हैरान हुए और फिर घर में बच्चे के रोने की आवाज सुन और भी हैरान से हो गए. संजना ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं चाय बनाती हूं. आप पहले अपने बेटे रोहन को जगाएं, आप को आया देख खुश होगा. फिर सब बात होगी.’’

नयन कुछ समझ नहीं पा रहा था. रोहन उठ, पापा से मिला और फिर भाग, दूसरे कमरे में ताली बजा नन्हे क्रिस को रोते से चुप कराने की कोशिश करने लगा. पवन ये सब देख अपने आंसू नहीं रोक पाया.

पत्नी संजना से सब जान नयन ने किसी को कुछ नहीं कहा.

नाश्ता करते नयन ने देखा पवन चुपचाप खाने की कोशिश कर रहा पर जैसे खाना उस के गले से नहीं उतर रहा था. नयन के कहने पर कि नाश्ते के बाद हमारे कमरे में मिलते हैं,

उस की घबराहट और बढ़ गई. क्रिस दूध पीने के बाद सो गया. रोहन को उस की पसंद का टीवी पर प्रोग्राम लगा दूसरे कमरे में बिठाया और फिर तीनों कमरे में मिले.

आगे पढ़ें- पवन ने वापस लौट कुछ समय के बाद…

लेखिका- वीना त्रेहन

जो भी प्रकृति दे दे – भाग 2

‘‘सच पूछो तो मुझे विकास पर तरस आने लगा है. मैं ने तो अपना सब एक हादसे में खो दिया. जिसे कुदरत की मार समझ मैं ने समझौता कर लिया लेकिन विकास ने तो अपने हाथों से अपना घर जला लिया.’’

कहतेकहते न जाने कितना कुछ कह गए सोम. अपना सबकुछ खो देने के बाद जीवन के नए ही अर्थ उन के सामने भी चले आए हैं.

दूसरे दिन जांच में और भी सुधार नजर आया. डाक्टर ने बताया कि इस की पूरी आशा है कि निशा का एक और छोटा सा आपरेशन कर प्राकृतिक मल द्वार खोल दिया जाए और पेट पर लगी थैली से उस को छुटकारा मिल जाए. डाक्टर के मुंह से यह सुन कर निशा की आंखें झिलमिला उठी थीं.

‘‘देखा…मैं ने कहा था न कि एक दिन तुम नातीपोतों के साथ खेलोगी.’’

बस रोतेराते निशा इतना ही पूछ पाई थी, ‘‘खाली गोद में नातीपोते?’’

‘‘भरोसा रखो निशा, जीवन कभी ठहरता नहीं, सिर्फ इनसान की सोच ठहर जाती है. आने वाला कल अच्छा होगा, ऐसा सपना तो तुम देख ही सकती हो.’’

निशा पूरी तरह स्वस्थ हो गई. पेट पर बंधी थैली से उसे मुक्ति मिल गई. अब ढीलेढाले कपड़े ही उस का परिधान रह गए थे. उस दिन जब घर लौटने पर सोम ने सुंदर साड़ी भेंट में दी तो उस की आंखें भर आईं.

विकास नहीं आए जबकि फोन पर मैं ने उन्हें बताया था कि मेरा आपरेशन होने वाला है.

‘‘विकास के बेटी हुई है और गायत्री अस्पताल में है. मैं ने तुम्हारे बारे में विकास से बात की थी और वह मनु को लाना भी चाहता था. लेकिन मां नहीं मानीं तो मैं ने भी यह सोच कर जिद नहीं की कि अस्पताल में बच्चे को लाना वैसे भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं होता.’’

क्या कहती निशा. विकास का परिवार पूर्ण है तो वह क्यों उस के पास आता, अधूरी तो वह है, शायद इसीलिए सब को जोड़ कर या सब से जुड़ कर पूरा होने का प्रयास करती रहती है.

निशा की तड़प पलपल देखते रहते सोम. विकास का इंतजार, मनु की चाह. एक मां के लिए जिंदा संतान को सदा के लिए त्याग देना कितना जानलेवा है?

‘‘क्यों झूठी आस में जीती हो निशा,’’ सोम बोले, ‘‘सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन इस सच को भी मान लो कि तुम्हारे पास कोई नहीं लौटेगा.’’

एक सुबह सोम की दी हुई साड़ी पहन निशा कार्यालय पहुंची तो सोम की आंखों में मीठी सी चमक उभर आई. कुछ कहा नहीं लेकिन ऐसा बहुत कुछ था जो बिना कहे ही कह दिया था सोम ने.

‘‘आज मेरी दिवंगत पत्नी विभा और गुड्डी का जन्मदिन है. आज शाम की चाय मेरे साथ पिओगी?’’ यह बताते समय सोम की आंखें झिलमिला रही थीं.

सोम उस शाम निशा को अपने घर ले आए थे. औरत के बिना घर कैसा श्मशान सा लगता है, वह साफ देख रही थी. विभा थी तो यही घर कितना सुंदर था.

‘‘घर में सब है निशा, आज अपने हाथ से कुछ भी बना कर खिला दो.’’

चाय का कप और डबलरोटी के टुकड़े ही सामने थे जिन्हें सेक निशा ने परोस दिया था. सहसा निशा के पेट को देख सोम चौंक से गए.

‘‘निशा, तुम्हें कोई तकलीफ है क्या, यह कपड़ों पर खून कैसा?’’

सोम के हाथ निशा के शरीर पर थे. पेटी की वजह से पेट पर गहरे घाव बन चुके थे. थैली वाली जगह खून से लथपथ थी.

‘‘आज आप के साथ आ गई, पेट पर की पट्टी नहीं बदल पाई इसीलिए. आप परेशान न हों. पट््टी बदलने का सामान मेरे बैग में है, मैं ने आज साड़ी पहनी है. शायद उस की वजह से ऐसा हो गया होगा.’’

सोम झट से बैग उठा लाए और मेज पर पलट दिया. पट्टी का पूरा सामान सामने था और साथ थी वही पुरानी पेटी और थैली.

सोम अपने हाथों से उस के घाव साफ करने लगे तो वह मना न कर पाई.

पहली बार किसी पुरुष के हाथ उस के पेट पर थे. उस के हाथ भी सोम ने हटा दिए थे.

‘‘यह घाव पेटी की वजह से हैं सोम, ठीक हो जाएंगे…आप बेकार अपने हाथ गंदे कर रहे हैं.’’

मरहमपट्टी के बाद सोम ने अलमारी से विभा के कपड़े निकाल कर निशा को दिए. वह साड़ी उतार कर सलवारसूट पहनने चली गई. लौट कर आई तो देखा सोम ने दालचावल बना लिए हैं.

हलके से हंस पड़ी निशा.

सोम चुपचाप उसे एकटक निहार रहे थे. निशा को याद आया कि एक दिन विकास ने उसे बंजर जमीन और कंदमूल कहा था. आधीअधूरी पत्नी उस के लिए बेकार वस्तु थी.

‘क्या मुझे शरीरिक भूख नहीं सताती, मैं अपनेआप को कब तक मारूं?’ चीखा था विकास. पता नहीं किस आवेग में सोम ने निशा से यही नितांत व्यक्तिगत प्रश्न पूछ लिया, तब निशा ने विकास के चीख कर कहे वाक्य खुल कर सोम से कह डाले.

हालांकि यह सवाल निशा के चेहरे की रंगत बदलने को काफी था. चावल अटक गए उस के हलक में. लपक कर सोम ने निशा को पानी का गिलास थमाया और देर तक उस की पीठ थपकते रहे.

‘‘मुझे क्षमा करना निशा, मैं वास्तव में यह जानना चाहता था कि आखिर विकास को तुम्हारे साथ रहने में परेशानी क्या थी?’’

सोम के प्रश्न का उत्तर न सूझा उसे.

‘‘मैं चलती हूं सोम, अब आप आराम करें,’’ कह कर उठ पड़ी थी निशा लेकिन सोम के हाथ सहसा उसे जाने से रोकने को फैल गए..

‘‘मैं तुम्हारा अपमान नहीं कर रहा हूं निशा, तुम क्या सोचती हो, मैं तमाशा बना कर बस तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी का राज जान कर मजा लेना चाहता हूं.’’

रोने लगी थी निशा. क्या उत्तर दे वह? नहीं सोचा था कि कभी बंद कमरे की सचाई उसे किसी बाहर वाले पर भी खोलनी पड़ेगी.

‘‘निशा, विकास की बातों में कितनी सचाई है, मैं यह जानना चाहता हूं, तुम्हारा मन दुखाना नहीं चाहता.’’

‘‘विकास ने मेरे साथ रह कर कभी अपनेआप को मारा नहीं था…मेरे घाव और उन से रिसता खून भी कभी उस की किसी भी इच्छा में बाधक नहीं था.’’

उस शाम के बाद एक सहज निकटता दोनों के बीच उभर आई थी. बिना कुछ कहे कुछ अधिकार अपने और कुछ पराए हो गए थे.

‘‘दिल्ली चलोगी मेरे साथ…बहन के घर शादी है. वहां आयुर्विज्ञान संस्थान में एक बार फिर तुम्हारी पूरी जांच हो जाएगी और मन भी बहल जाएगा. मैं ने आरक्षण करा लिया है, बस, तुम्हें हां कहनी है.’’

‘‘शादी में मैं क्या करूंगी?’’

‘‘वहां मैं अपनी सखी को सब से मिलाना चाहता हूं…एक तुम ही तो हो जिस के साथ मैं मन की हर बात बांट लेता हूं.’’

‘‘कपड़े बारबार गंदे हो जाते हैं और ठीक से बैठा भी तो नहीं जाता…अपनी बेकार सी सखी को लोगों से मिला कर अपनी हंसी उड़ाना चाहते हैं क्या?’’

उस दिन सोम दिल्ली गए तो एक विचित्र भाव अपने पीछे छोड़ गए. हफ्ते भर की छुट्टी का एहसास देर तक निशा के मानस पटल पर छाया रहा.

बहन उन के लिए एक रिश्ता भी सुझा रही थी. हो सकता है वापस लौटें तो पत्नी साथ हो. कितने अकेले हैं सोम. घर बस जाएगा तो अकेले नहीं रहेंगे. हो सकता है उन की पत्नी से भी उस की दोस्ती हो जाए या सोम की दोस्ती भी छूट जाए.

2 दिन बीत चुके थे, निशा रात में सोने से पहले पेट का घाव साफ करने के लिए सामान निकाल रही थी. सहसा लगा उस के पीछे कोई है. पलट कर देखा तो सोम खड़े मुसकरा रहे थे.

हैरानी तो हुई ही कुछ अजीब सा भी लगा उसे. इतनी रात गए सोम उस के पास…घर की एक चाबी सदा सोम के पास रहती है न…और वह तो अभी आने वाले भी नहीं थे, फिर एकाएक चले कैसे आए?

‘‘जी नहीं लगा इसलिए जल्दी चला आया. गाड़ी ही देर से पहुंची और सुबह का इंतजार नहीं कर सकता था…मैं पट्टी बदल दूं?’’

Women’s Day: श्यामली- जब श्यामली ने कुछ कर गुजरने की ठानी

‘श्यामली बुटीक’ लखनऊ शहर में किसी परिचय का मुहताज नहीं था. होता भी क्यों, क्योंकि श्यामलीजी के जीवन का मोटो था कि अपने काम में परफैक्शन. इसी लक्ष्य के कारण कुछ वर्षों में ही उन का बुटीक शहर का सब से अच्छा बुटीक बन गया.

श्यामलीजी की मीठी, मधुर आवाज और चेहरे पर खिली मुसकान के साथ कस्टमर की पसंद को समझते हुए समय पर काम पूरा कर के वे उन्हें खुश कर देती थीं.

अब तो उन की बेटी राशि भी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर के आ गई थी और बुटीक में उन का हाथ बंटा रही थी. बेटा शुभ अमेरिका पढ़ने गया तो वहीं का हो कर रह गया.

सोम उन के बुटीक के मैनेजर बन गए थे. उन के बालों की चांदनी, आंखों में चश्मा और थकती काया उन से रिटायरमैंट का इशारा करती दिखाई देती थी.

रात के 8 बजने वाले थे. श्यामलजी बुटीक बंद करवाने की सोच ही रही थीं कि दौड़तीहांफती वन्या उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. फिर बोली, ‘‘मैम, मेरा लहंगा रैडी है?’’

‘हां…हां… आप ट्रायल कर लो, तो मैं फिनिशिंग करवा दूं.’

वन्या ट्रायलरूम में लहंगा पहन कर बाहर आते ही उन से लिपट कर बोली, ‘‘थैंक्यू मैम, आप के हाथ में जादू है.’’

वन्या की मां प्रज्ञा ने अपने बैग से कार्ड निकाला और फिर उन्हें देती हुए बोलीं, ‘‘दी, आप को शादी में जरूर आना है.’’

श्यामलीजी ने कार्ड को खोल कर देखते हुए कहा, ‘‘वैरी नाइस कार्ड.’’

‘‘7 दिसंबर… वाह जरूरी आऊंगी.’’

7 दिसंबर तारीख देखते ही श्यामलीजी अपने अतीत में खो गईं. पुरानी यादें चलचित्र की तरह उन की आंखों के सामने सजीव हो उठीं…

लखनऊ के पास सुलतानपुर एक छोटा सा शहर है. वे वहां रहती थीं. 3 बहनों और 2 भाइयों में वे सब से बड़ी थीं. पढ़ाई से अधिक सिलाईकढ़ाई में रुचि थी. जब वे छोटी थीं, तभी मां के दुपट्टे या साड़ी से अपनी गुडि़या के लिए तरहतरह के डिजाइनर लहंगे और दूसरी पोशाकें बनाया करती थीं.

ये सब देख कर मां कहतीं कि तुम्हें फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करवा देंगे. बीए पास करने के बाद फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर लिया. पापा को शादी की फिक्र होने लगी थी. उन के पास दहेज देने के लिए बड़ी रकम तो थी नहीं. वे नैट पर लड़कों का प्रोफाइल देखने में लगे रहते थे.

श्यामली का चेहरा गोल था, रंग गेहुंआ, लेकिन कटीले नैननक्श की वे नाजुक सी आकर्षक लड़की थीं. चचंल चितवन और प्यारी सी मुसकराहट सब को आकर्षित कर लेती. वे खाना बहुत अच्छा बनातीं इसलिए अपने पापा की अन्नपूर्णा थीं.

पापा को सोम का प्रोफाइल पसंद आया था. उन्होंने उन का बायोडाटा और छोटा सा फोटो उन के पिता के पास भेज दिया. सोम के पिता का लखनऊ के अमीनाबाद में खूब चलता हुआ बड़ा सा मैडिकल स्टोर था. अच्छाखासा संपन्न परिवार और साथ में इकलौता बेटा तो सोने में सुहागा जैसा था.

सोम के पिता केशवजी के फोन ने उन के घर में खुशियों की हलचल मचा दी. उन्होंने मेल आईडी मांगी. बस फिर शुरू हो गई थी सोम के साथ चैटिंग. सोम की प्यारभरी मीठीमीठी बातों ने श्यामलीजी के दिल के तार झंकृत कर दिए.

जल्दी ही शादी की शहनाइयां बज उठीं. वे अपने मन में सुनहरे भविष्य के रंगबिरंगे सपने संजो कर सोम का हाथ पकड़ कर उन की बड़ी सी कोठी में प्रवेश कर गईं. वे खुशी से फूली नहीं समा रही थीं.

सोम की बांहों के घेरे में सिमट कर वे विश्वास ही नहीं कर पा रहीं थीं कि उन की दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है.

श्यामली सोम के प्यार में डूबी थीं, लेकिन उन का रवैया कुछ समझ नहीं आ रहा था. 1-2 महीनों में उन्हें थोड़ा बहुत इशारा मिल गया कि सोम दुकान पर केवल पैसा लेने जाते और फिर दोस्तों के साथ सिगरेट, शराब और लड़कियों की संगत में ऐश की लाइफ जीने के शौकीन हैं.

सोम बातबात पर उन्हें डांट देते थे, इसलिए वे उन से डरने लगी थीं. एक शाम सोम ने उन से क्लब चलने के लिए तैयार होने को कहा. वे अपने कमरे में तैयार हो रही थीं. तभी उन्हें सोम की पापा के साथ जोरजोर की कहासुनी की आवाजें सुनाई देने लगीं.

सोम के चेहरे पर तनाव देख कर उन्होंने उन से पूछा भी था कि क्या बात है? पापा क्यों नाराज हो रहे थे? इस पर सोम का जवाब था कि अपने काम से काम रखा करो.

उस दिन श्यामलीजी बड़े मन से तैयार हुई थीं. ब्लैक साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थीं.

ट्रैफिक में फंस जाने के कारण वे लोग क्लब काफी देर से पहुंचे. वहां कौकटेल पार्टी चल रही थी. सैक्सी ड्रैसेज पहनी महिलाओं के हाथ में डिं्रक के गिलास थे. श्यामली घबरा कर सोम के पीछे छिपने लगी थीं. उन के लिए वहां का माहौल एकदम से नया और अजीब सा था.

सोम के मित्र अतुल ने उन्हें ड्रिंक का गिलास औफर किया. श्यामलीजी ने घबरा कर कहा, ‘‘मैं ड्रिंक नहीं करती.’’

सोम ने गिलास ले कर जबरदस्ती उन के मुंह में लगा दिया, ‘‘छोड़ो भी यह बी ग्रेड देहाती मैंटेलिटी. अब तुम रईसों वाले शौक करो और ऐश की जिंदगी जीयो.’’

श्यामलीजी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी. वे कोने में जा कर बैठ गईं. नौनवैज खाना देख खाने के पास भी नहीं गईं.

उस दिन उन के कारण सोम को अपनी बेइजती महसूस हुई थी. वे सारे रास्ते उन्हें भलाबुरा कहने के साथसाथ गालियां भी देते रहे थे.

इतनी गालीगलौज के बाद भी वे श्यामलीजी के तन को रौंदना नहीं भूले थे. वे रातभर सिसकती रही थीं. समझ नहीं पा रही थीं कि उन्हें ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए. अगली सुबह सब कुछ उलटपुलट कर उन के जीवन में अघटित घट गया. पापाजी रात में सोए तो उन्होंने सुबह आंखें ही नहीं खोलीं. सब कुछ बदल चुका था. मम्मीजी श्यामलीजी को अपशगुनी कहकह कर रो रही थीं. उन की शादी को अभी मात्र 2 महीने ही हुए थे.

नातेरिश्तेदारों की भीड़ के सामने मम्मीजी का एक ही प्रलाप जारी रहता कि बिना दानदहेज की तो बहू लाए और वह भी ऐसी आई कि मेरी जड़ ही खोद दी. इस ने तो हमें बरबाद कर दिया.

यह ठीक था कि सोम दुखी थे, लेकिन वे मम्मीजी को चुप भी तो करा सकते थे, परंतु नहीं. वे उन से खिंचेखिंचे से रहते, लेकिन रात में उन के शरीर पर उन का पूरा अधिकार होता. उन की इच्छाअनिच्छा की परवाह किए बिना वे अपनी भूख मिटा कर करवट बदल कर खर्राटे भरने लगते.

श्यामलीजी उदास और परेशान रहतीं, क्योंकि वहां उन का अपना कोई न था, जिस से वे अपने मन का दर्द कह सकें.

उन्हीं दिनों उन के शरीर के अंदर नवजीवन का स्फुरण होने लगा. वे समझ नहीं पा रही थीं कि हंसे या फूटफूट कर रोए. विद्रोह करने की न ही प्रवृत्ति थी और न ही हिम्मत. वे अपनी शादी को टूटने नहीं देना चाहती थीं. वे रिश्तों को निभाने में विश्वास रखती थीं. दोनों की इज्जत का समाज में मजाक नहीं बनने देना चाहती थीं. सोम मैडिकल स्टोर में बिजी हो गए थे. वे कभी नहीं सोच पाए कि श्यामलीजी का भी कोई अरमान या इच्छा होगी. वे भी प्यार और सम्मान की चाहत रखती होंगी. वे तो स्वचालित मशीन बन गई थीं,  जिस का काम था- मम्मीजी और सोम को हर हाल में खुश रखना. कोई आएजाए जो उस का आदरसम्मान और सेवा करना.

उन्होंने सुबह से शाम तक अपने को घर के कामों में झोंक दिया था. जो भी खाना बनातीं सोम को पसंद नहीं आता. कहते कि यह क्या खाना बनाया है? मुझे तो मटरपनीर की सब्जी खानी है. फिर वे थके कदमों से रात के 11 बजे सब्जी बनाने में जुट जातीं.

जब भी मम्मीपापा उन से मिलने को आए या घर ले जाने की बात की तो मम्मीजी ने ऐसा लाड़प्यार और उन की अनिवार्यता दिखाई कि उन लोगों को यह महसूस हुआ कि वे लोग धन्य हैं, जिन की बेटी को इतना संपन्न और प्यार करने वाला पति और परिवार मिला है.

वे अपनी मां के कंधे पर अपना सिर रख कर अपना मन हलका करना चाहती थीं, लेकिन मम्मीजी और सोम ने ऐसा जाल बिछाया कि एक पल को भी उन्हें मां के साथ अकेले नहीं बैठने दिया.

गोद में राशि के आने के सालभर बाद ही शुभ आ गया. उन की व्यस्तता जिम्मेदारियों के कारण बढ़ गई थी. वे घरगृहस्थी और बच्चों में उलझती गई थीं.

जब कभी सोम उन का अपमान करते या भलाबुरा कहते तो उन्हें अपने पर बहुत क्रोध आता कि क्यों वे ये सब सह रही हैं. क्या बच्चे केवल उन के हैं? आखिर बीज तो सोम का ही है.

सोम के लिए तो अब वे मात्र तन की भूख मिटाने की जरूरत बन कर रह गई थीं. सोम ने स्टोर पर कुछ काम बढ़ा लिया था. मैन काउंटर की डिस्ट्रीब्यूटरशिप ले ली थी. इसलिए और ज्यादा बिजी रहने लगे थे.

स्टोर पर कंप्यूटर का काम करने के लिए एक लड़की, जिस का नाम नइमा था, उसे रख लिया था. वह काफी खूबसूरत और फैशनेबल थी. जल्दी ही सोम उस के प्यार में पड़ गए. वे नइमा को साथ ले कर क्लब जाने लगे. वहां पौप म्यूजिक की धुन पर डांस और ड्रिंक के गिलास खनकते. वहां वह सोम का बखूबी साथ देती. जल्द ही नइमा सोम की जरूरत और जिंदगी बन गई.

एक दिन स्टोर के मैनेजर महेश ने मम्मीजी को अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सोम बहक गए हैं. नकली दवा बेचने लगे हैं. वे कई बार ऐक्सपायरी दवा भी ग्राहकों को दे देते हैं. ड्रग्स सप्लाई का काम भी करना शुरू कर दिया है. किसी भी समय मुसीबत में पड़ सकते हैं.

अब मम्मीजी को श्यामलीजी की याद आई कि श्यामली, सोम को कंट्रोल करो. वह तो अपनी तो अपनी, हम सब की बरबादी के रास्ते पर भी चल निकला है.

मम्मीजी की हिम्मत ही नहीं थी कि वे सोम से दुकान के विषय में बात कर सकें. उन्होंने जब भी कुछ पूछताछ या टोकाटाकी की तो सोम गालीगलौच पर उतर आते.

सोम के साथ उन का औपचारिक सा रिश्ता रह गया था. अब वे बच्चों के लिए महंगेमहंगे खिलौने लाते. उन के और मम्मीजी के लिए भी कीमती तोहफे ले कर आते. वे देर रात लौटते. उन के मुंह से रोज शराब की दुर्गंध आती. लेकिन श्यामलीजी लड़ाई से बचने के लिए चुप रहतीं.

उन्हें महंगे तोहफे, कीमती साडि़यों की चाह नहीं थी. वे तो पति के प्यार की भूखी थीं. वे उन की बांहों में झूलती हुईं प्यार भरी बातें करना चाहती थीं.

नियति ने स्त्री को इतना कमजोर क्यों बना दिया है कि वह घर न टूटने के डर से अपने वजूद की कुरबानी देती रहती है?

अब तो सोम के लाए हुए तोहफों को वे खोल कर भी नहीं देखती थीं.

एक दिन सोम चिढ़ कर बोले कि इतनी महंगी साडि़यां ला कर देता हूं, लेकिन तुम्हारा उदास और मायूस चेहरा मेरा मूड खराब कर देता है.

मैं तुम्हें मार रहा हूं? गाली दे रहा हूं? क्या कमी है?

श्यामलीजी हिम्मत कर के प्यार से, बच्चों का वास्ता दे कर उन से शराब पीने और क्लब जाने को मना करने लगीं तो सोम बेशर्मी से बोले कि मैं ये सब न करूं तो क्या करूं? मैं तुम से संतुष्ट नहीं हूं, न तो शारीरिक रूप से न ही मानसिक रूप से. मेरा और तुम्हारा मानसिक स्तर बिलकुल अलग है. हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते.

मैं तुम्हारा खर्च उठा रहा हूं, तुम्हारे बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहा हूं. तुम्हें महंगेमहंगे गिफ्ट, जेवर, कपड़े ला कर देता हूं. गाड़ी है, ड्राइवर है. बड़ी कोठी में रह रही हो. इस से अधिक तुम्हें और क्या चाहिए?

पत्नी हो, पत्नी बन कर रहो. यदि यहां नहीं रहना है तो चली जाओ अपने गांव. लेकिन एक बात अच्छी तरह समझ लो कि मेरे बच्चे यहीं रहेंगे.

इतनी बातें कहसुन कर सोम क्लब या न जाने कहां चले गए. वे सहम कर चुप हो गई थीं. बच्चे तो उन की जान थे. वही तो उन के जीवन का संबल और आधार थे. उन्हीं के लिए तो वे जी रही थीं. उन की चुप्पी और सहनशीलता को देख सोम का हौसला बढ़ता गया. अब एक लड़की नइमा के साथ वे खुल्लमखुल्ला घूमने लगे थे. कई बार उसे वे घर भी ले कर आ जाते. कई बार वे रात में भी घर न आते.

श्यामलीजी चुप रहतीं, उन की पीड़ा आंसू बन कर आंखों से बहती. एकांत उन के हर दुख का साक्षी रहता. विद्रोह करना उन का स्वभाव नहीं था. वे समझ रही थीं कि यदि वे कुछ भी बोलेंगी तो उन का घरौंदा टूट जाएगा. उन के बच्चे अनाथ हो जाएंगे. अपनी बेचारगी पर वे कई बार स्वयं को धिक्कारती भी थीं, परंतु घर टूट जाने के डर से वह हिम्मत नहीं जुटा पाती थीं. नन्हीं राशि जब उन के आंसू पोंछती और उन्हें चुप हो जाने को कहती, तो उन को अपने आंसू रोकने मुश्किल हो जाते.

बुजुर्ग मैनेजर ने उन के पास भी 2-3 बार फोन कर के कहा कि सोम नकली दवाइयों का कारोबार बढ़ाते जा रहे हैं, साथ ही ड्रग्स का धंधा भी.

यदि इसी तरह से चलता रहा तो जल्द ही किसी मामले में फंस जाएंगे. वे चिंतित हो उठी थीं. उन के अपने प्यारे बच्चों और स्वयं का भविष्य दांव पर लगा था. उन्होंने दूसरे सेल्समैन लड़कों से बात कर के पता किया तो मालूम हुआ कि सच में सोम रास्ता भटक गए हैं.

आखिर एक दिन एक हादसा हो ही गया. उन के स्टोर से खरीदी नकली दवा से एक बच्चे की मौत हो गई. मामले ने तूल पकड़ा. वे लोग लाठियां ले कर आ गए और फिर दुकान में तोड़फोड़ कर दी. सोम की भी खूब पिटाई की. पुलिस आ गई. पुलिस को कुछ लेदे कर किसी तरह मामला शांत करवाया. पर इसी बीच बच्चे के पिता ने ‘ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमैंट’ में मेल कर दिया था. और वहां की टीम रेड करने आ गई. इस अचानक हमले का किसी को कोई अनुमान या तैयारी नहीं थी. नकली और ऐक्सपायरी दवा के साथसाथ ड्रग्स का भी स्टौक पकड़ा गया.

मामला संगीन था. लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने के आरोप में सोम गिरफ्तार हो गए और मैडिकल स्टोर को सील कर दिया गया. वकीलों पर पैसा पानी की तरह बहाया गया.

बेल होने में लगभग 3 महीने लग गए. घर खर्चे की दिक्कत होने लगी. एकएक कर सारे नौकर हटा दिए गए. यहां तक कि बच्चों के लिए दूध की भी परेशानी होने लगी थी. सामान बेच कर कुछ दिन काम चला.

इतनी विषम परिस्थिति कभी होगी, इस का उन्हें कतई अनुमान भी नहीं था. जब सोम जमानत के बाद घर आए, तो उन को पहचानना मुश्किल था. रंग काला पड़ गया था और शरीर कृषकाय हो चुका था. वे किसी का सामना नहीं करना चाहते थे. यहां तक कि बच्चों से भी बात नहीं करते थे. चुपचाप अपने कमरे में लेट कर छत को निहारते रहते.

सोम नया रास्ता तलाशने के बजाय निराशा के गर्त में डूब कर डिप्रैशन का शिकार बन गए. जख्मों को कुरेदने के लिए सांत्वना के नाम पर रिश्तेदारों और परिचितों के ताने और उलटेसीधे व्यंग्य वाणों के कारण सब का जीना दूभर हो गया था.

अब यह श्यामलीजी के लिए परीक्षा की घड़ी थी. अब आवश्यक हो चुका था कि वे स्वयं आगे बढ़ कर घर के हालात को सुधारने के लिए कुछ करें.

एक ओर नैराश्य में जकड़ा हुआ सोम दूसरी ओर 12 वर्ष की राशि तो 11 वर्ष का शुभ, ऐसे कठिन समय में घर का मोरचा संभाला. वे सोम का हौसलाअफजाई करतीं. बच्चों का भी उन्होंने पूरा ध्यान रखा.

मित्रों के सहयोग से एक नामी बुटीक में ड्रैस डिजाइनर की नौकरी मिल गई. जल्द ही बुटीक की मालकिन कल्पनाजी ने उन की प्रतिभा को पहचान लिया, उन के डिजाइन किए हुए कपड़े कस्टमर को पसंद आने लगे. 1 साल में ही बुटीक का बिजनैस काफी बढ़ गया, साथ में उन की सैलरी भी बढ़ गई.

जीवन पटरी पर लौटने लगा था. उन्हें नौकरी करते हुए लगभग 2 वर्ष हो चुके थे. अब वे अपना बुटीक खोलना चाह रही थीं. लेकिन पैसे की कमी बाधा बनी हुई थी.

उन्होंने ‘महिला गृह उद्योग’ योजना के अंतर्गत बैंक से लोन के लिए आवेदन किया और जल्दी ही घर के एक कमरे में अपना बुटीक शुरू कर दिया. 4 सिलाई मशीनें और कुछ कारीगर लड़कियों को रख कर काम शुरू कर दिया. देखते ही देखते उन की मेहनत और क्रिएटिविटी की क्षमता ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए.

आज उन के बुटीक की शहर में 2 ब्रांच और खुल गई हैं. करीब 40 लोगों को उन्होंने रोजगार दे रखा है.

राशि की आवाज ने उन की तंद्रा भंग कर दी, ‘‘मां, आज कहां खो गई हैं? घर नहीं चलना है क्या?’’

वे वर्तमान में लौटी ही थीं कि उन का मोबाइल बज उठा, ‘‘मैडम श्यामली?’’

‘‘यस.’’

‘‘महिला दिवस पर ‘विषम परिस्थितियों में स्वयं को सिद्ध करने के लिए’ आप को ‘विजय नगरम् हाल’ में मेयर के द्वारा सम्मानित किया जाएगा. कल हम लोग निमंत्रणपत्र ले कर आप के पास आएंगे.’’

‘‘धन्यवाद,’’ कहते हुए श्यामलीजी भावुक हो उठी थीं. चूंकि फोन स्पीकर पर था, इसलिए सभी ने इस खबर को सुन लिया था.

सोम भी भावुक हो उठे थे. उन्होंने प्यार से बांहों के घेरे में उन्हें ले लिया, ‘‘श्यामली, तुम्हें मैं वह प्यार और सम्मान नहीं दे पाया, जिस के योग्य तुम थीं. इसलिए अब पूरा लखनऊ शहर तुम्हें सम्मानित करेगा.’’

आज बरसों बाद सोम के प्यार भरे आलिंगन से वे अभिभूत हो उठी थीं. उन्होंने भी प्यार से सोम को अपनी बांहों में कैद कर लिया. बेटी राशि पर निगाह पड़ते ही उन का मुखमंडल शर्म से लाल हो उठा.

सोम फोन पर श्यामलीजी के मम्मीपापा को निमंत्रण दे रहे थे. आज उन के सारे विषाद धुल गए थे.

Women’s Day: अकेली लड़की- कैसी थी महक की कहानी

” बेटे आप दोनों को गिफ्ट में क्या चाहिए? ” मुंबई जा रहे लोकनाथ ने अपनी बच्चियों पलक और महक से पूछा.

12 साल की पलक बोली,” पापा आप मेरे लिए एक दुपट्टे वाला सूट लाना.”

” मुझे किताबें पढ़नी हैं पापा. आप मेरे लिए फोटो वाली किताब लाना,” 7 साल की महक ने भी अपनी फरमाइश रखी.

“अच्छा ले आऊंगा. अब बताओ मेरे पीछे में मम्मी को परेशान तो नहीं करोगे ?”

“नहीं पापा मैं तो काम में मम्मी की हैल्प करूंगी.”

“मैं भी खूब सारी पेंटिंग बनाऊंगी. मम्मी को बिल्कुल तंग नहीं करूंगी. पापा मुझे भी ले चलो न, मुझे मुंबई देखना है,” मचलते हुए महक ने कहा.

” चुप कर मुंबई बहुत दूर है. क्या करना है जा कर? अपने बनारस से अच्छा कुछ नहीं,” पलक ने बहन को डांटा.

” नहीं मुझे तो पूरी दुनिया देखनी है,” महक ने जिद की.

” ठीक है मेरी बच्ची. अभी तू छोटी है न. बड़ी होगी तो खुद से देख लेना दुनिया,” लोकनाथ ने प्यार से महक के सर पर हाथ फिराते हुए कहा.

पलक और महक दोनों एक ही मां की कोख से पैदा हुई थीं मगर उन की सोच, जीवन को देखने का नजरिया और स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था. बड़ी बहन पलक जहां बेहद घरेलू और बातूनी थी और जो भी मिल गया उसी में संतुष्ट रहने वाली लड़की थी तो वहीं महक को नईनई बातें जानने का शौक था. वह कम बोलती और ज्यादा समझती थी.

पलक को बचपन से ही घर के काम करने पसंद थे. वह 6 साल की उम्र में मां की साड़ी लपेट कर किचन में घुस जाती और कलछी चलाती हुई कहती,” देखो छोटी मम्मी खाना बना रही है.”

तब उस के पिता उसे गोद में उठा कर बाहर निकालते हुए अपनी पत्नी से कहते,” लगता है हमें इस की शादी 18 साल से भी पहले ही करनी पड़ेगी. इसे घरघर खेलना ज्यादा ही पसंद है. ”

18 तो नहीं लेकिन 23 साल की होतेहोते पलक ने शादी की सहमति दे दी और एक बड़े बिजनेसमैन से उस की अरेंज मैरिज कर दी गई. इधर महक बड़ी बहन के बिलकुल विपरीत शादीब्याह के नाम से ही कोसों दूर भागती थी. उसे ज्ञानविज्ञान और तर्कवितर्क की बातों में आनंद मिलता. वह जीवन में दूसरों से अलग कुछ करना चाहती थी. जॉब कर के आत्मनिर्भर जीवन जीना चाहती थी.

जल्द ही उसे एक एडवरटाइजिंग कंपनी में कॉपी एडिटर की जॉब भी लग गई. वक्त गुजरता गया. पलक अब तक 32 साल की हो चुकी थी मगर जब भी घर वाले शादी की बात उठाते वह कोई न कोई बहाना बना देती. शादी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती. इस बीच एक एक्सीडेंट में उस के मम्मीपापा की मौत हो गई. यह वक्त महक के लिए बहुत कठिन गुजरा. अब उसे खुद को अकेले संभालना था. शुरू में तो कुछ समय तक वह पलक के घर में रही. पर बहन की ससुराल में ज्यादा लंबे समय तक रहना अजीब लगता है इसलिए वह अपने घर लौट आई और अकेली रहने लगी.

अकेले रहने की आदी न होने के कारण उसे शुरू में अच्छा नहीं लगता. रिश्तेदार बहुत से थे मगर सब अपने जीवन में व्यस्त थे. इसलिए समय के साथ उस ने ऐसे ही जीने की आदत डाल ली. मांबाप की मौत ने उस के अंदर गहरा खालीपन भर दिया था. यह ऐसा समय था जब वह खुद को अंदर से कमजोर महसूस करने लगी थी. ऐसे में उसे पलक का सहारा था. पलक उसे सपोर्ट देती थी मगर यह बात कहीं न कहीं पलक के घरवालों को अखरती थी.

उस के जीजा नवीन पलक से अक्सर कहा करते,” तुम्हारी बहन शादी क्यों नहीं करती? क्या जिंदगी भर तुम्हारा आंचल पकड़ कर चलेगी? समझाती क्यों नहीं कि बिना शादी के जीना बहुत कठिन है.”

तब पलक हंस कर कहती,” मैं ने उसे आंचल पकड़ाया ही कहां है? वैसे भी उसे जो करना होता है वही करती है. मेरे समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.”

अकेली लड़की की जिंदगी में परेशानियां कम नहीं आतीं. लोगों की बुरी नजरों से खुद को बचाते हुए अपने दम पर परिस्थितियों का सामना करना महक धीरेधीरे सीख रही थी.

उस दिन महक ऑफिस से घर लौटी तो तबीयत काफी खराब लग रही थी. बुखार नापा तो 102 डिग्री बुखार था. कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. वह क्रोसिन खा कर सो गई. अगले दिन बुखार और भी ज्यादा बढ़ गया. उसे डॉक्टर के पास जाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी. तब उस ने पलक को फोन लगाया. पलक ने उसे अपने घर बुला लिया. घर के पास ही एक डॉक्टर से दवाइयां लिखवा दीं. महक को टाइफाइड था. ठीक होने में 10- 12 दिन लग गए. फिर जब तक महक पूरी तरह ठीक नहीं हो गई तब तक वह पलक के ही घर रही. पलक उस के खानेपीने का अच्छे से प्रबंध करती रही. महक की वजह से उस के काम काफी बढ़ गए थे. कई बार उस की वजह से पलक को पति की बात भी सुननी पड़ जाती. तब पलक उसे समझाती कि शादी कर ले।

ठीक होते ही महक अपने घर आ गई. एक दिन रात में 8 बजे महक ने पलक को फोन कर कहा,” मेरे घर के सामने दो अनजान युवक बहुत देर से खड़े बातें कर रहे हैं. मुझे उन की मंशा सही नहीं लग रही. बारबार मेरे ही घर की तरफ देख रहे हैं.”

” ऐसा कर तू सारी खिड़कियांदरवाजे बंद कर और लाइट ऑफ कर के सोने का नाटक कर. वे खुद चले जाएंगे ,” पलक ने सलाह दी.

उस दिन तो किसी तरह मामला निपट गया मगर अब यह रोज की दिनचर्या बन गई थी. लड़के उस के घर की तरफ ही देखते रहते. पलक को असहज महसूस होता. वह घर से निकलती तब भी वे लड़के उसे घूरते रहते.

कुछ समय से वह वर्क फ्रॉम होम कर रही थी मगर आसपड़ोस में काफी शोरगुल होता रहता था. इसलिए वह ठीक से काम नहीं कर पाती थी. उस के घर के ऊपरी फ्लोर पर नया परिवार आया था. ये लोग हर 2 -4 दिन के अंतर पर घर में कीर्तन रखवा देते. माइक लगा कर घंटों भजन गाए जाते. कीर्तन और घंटियों की आवाजें सुनसुन कर उस के दिमाग की नसें हिल जातीं. तब उस ने तय किया कि वह घर शिफ्ट कर लेगी मगर जल्दी ही उसे समझ आ गया कि अकेली लड़की के लिए अपनी पसंद का फ्लैट खोजना भी इतना आसान नहीं है. उस ने 2- 3 सोसाइटीज पसंद कीं जहां उस ने घर लेने की कोशिश की तो पता चला कि वहां बैचलर्स को घर नहीं दिया जाता. इस बात को ले कर महक कई दिनों तक परेशान रही.

उस की परेशानियों के मद्देनज़र उस के जीजा एक ही बात कहते,” शादी कर लो. जीवन में आ रही सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी.”

पलक भी उसे समझाती,” अकेले रहने में समस्याएं तो आएंगी ही. हम हर समय तुम्हारी मदद के लिए खड़े नहीं रह सकते. अपना परिवार बनाओ और चैन से रहो. देख मैं कितनी निश्चिन्त हूँ. जो भी चिंता करनी होती है वह तेरे जीजा करते हैं.”

यह बात तो महक को भी समझ आती थी मगर वह ऐसे ही किसी से शादी करने को तैयार नहीं थी. वह शादी तभी करना चाहती थी जब कोई उसे पसंद आए और उस के लायक हो. तब उस के लिए जीजा ने एक रिश्ता सुझाया और उस के साथ महक की मीटिंग फिक्स कर दी. वह लड़का महक के जीजा के पुराने जानपहचान का था इसलिए वह चाहते थे कि महक शादी के लिए हां कह दे. मगर महक को वह जरा भी पसंद नहीं आया. ठिगना कद और बारहवीं पास वह लड़का महक की सोच के आगे कहीं भी नहीं टिकता था.

भले ही उस लड़के के पास धनदौलत और शानोशौकत की कोई कमी नहीं थी. वह एक शानदार बंगले और कई गाड़ियों का मालिक भी था. मगर महक को जीवनसाथी के रूप में कोई अपने जैसा पढ़ालिखा और काबिल इंसान चाहिए था. महक उसे इंकार कर के चली आई. इस बात पर जीजा और भी ज्यादा भड़क गए.

पलक को सुनाते हुए बोले,” खबरदार जो अब महक के लिए कुछ भी किया या उस की मदद करने की कोशिश भी की. उसे खुद की काबिलियत और शिक्षा पर बहुत घमंड है न. देखता हूं, अकेली लड़की कितने समय तक अपने बल पर जी सकेगी. हर काम में तो उसे हमारी मदद चाहिए होती है. हमारे बिना 4 दिन भी रह ले तो बताना. ”

” यह तो सच है कि उसे हर समय हमारी मदद चाहिए होती है मगर जब कोई सलूशन बताओ तो मानती नहीं. मैं खुद उस से तंग आ गई हूं. ”

इस के बाद दोनों पतिपत्नी ने तय कर लिया कि वह महक को अपनी जिंदगी से दूर रखेंगे. इस बात को 4- 6 महीने बीत गए. पलक ने महक को खुद से दूर कर दिया था. महक सब समझ रही थी मगर उस ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी जंग जारी रखी.

एक दिन पलक ने रोते हुए फोन किया,” महक तेरे जीजा जी का एक्सीडेंट हो गया है. वे छत से गिर गए हैं. सिर पर चोट आई है. खून बह रहा है. मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा कि क्या करूं. निक्कू भी एग्जाम देने गया हुआ है और गोकुल (नौकर) 2 दिन से आ ही नहीं रहा. घर में कोई नहीं है. पापा जी भी जानती ही है, पैरों में तकलीफ की वजह से चल नहीं सकते.”

” कोई नहीं पलक दी मैं आ रही हूं,” महक ने बहन को हिम्मत दी.

बिजली की सी फुर्ती से महक घर से निकली. रास्ते में ही उस ने एंबुलेंस वाले को फोन कर दिया था. आननफानन में उस ने एंबुलेंस में जीजा को हॉस्पिटल पहुंचाया. पलक से उस ने इंश्योरेंस के कागजात भी रखने को कह दिया था. हॉस्पिटल पहुँचते ही उस ने जीजा को एडमिट कराने की सारी प्रक्रिया फटाफट पूरी कराई और उन्हें एडमिट करा दिया. बड़े से बड़े डॉक्टरों से बात कर अच्छे इलाज का पूरा प्रबंध भी करा दिया. कुछ देर में जीजा को होश आ गया. माथे पर गहरी चोट लगी थी सो सर्जरी करनी पड़ी.

इस बीच पलक ने बताया कि इंश्योरेंस वालों ने किसी वजह से क्लेम कैंसिल कर दिया है. महक तुरंत सारे कागजात ले कर भागी और सब कुछ सही कर के ही वापस लौटी.

महक के प्रयासों से सब कुछ अच्छे से निबट गया. कुछ दिन हॉस्पिटल में रख कर जीजा को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. जीजा इतने दिनों में महक को बाहरभीतर की सारी जिम्मेदारियां निभाते देख काफी प्रभावित हो गया था. पलक भी अपनी बहन की तारीफ किए बगैर नहीं रह सकी, ” सच महक अब मुझे यकीन हो गया है कि तू अकेले भी खुद को बहुत अच्छे से संभाल सकती है. अकेली हो कर भी तू कमजोर नहीं है. खुद में पूर्ण है. ”

” दीदी जिंदगी में एक पल ऐसा जरूर आता है जब कोई भी इंसान खुद को अकेला या कमजोर महसूस करता है. जैसे आप की जिंदगी में भले ही सब कुछ है. पति है, बेटा है, घरपरिवार है, मगर सोचिए जब पूरे दिन परिवार के लिए काम करने के बाद रात में जीजाजी आप को किसी कारण से बात सुना कर बाहर चले जाते हैं, निक्कू अपने मोबाइल में और अंकल टीवी में बिजी रहते हैं, तब क्या आप को नहीं लगता कि आप बहुत अकेली हो. इसी तरह मुझे भी कभीकभी लगता है कि मैं बहुत अकेली हूं. मगर जब चुनौतियों को हरा कर कुछ अच्छा करती हूं तो दिल का खालीपन भर जाता है. आखिर अपनी जिंदगी अपनी पसंद के अनुसार हम खुद चुनते हैं. इस में सही या गलत नहीं होता. बस परिस्थितियां ही सही या गलत होती हैं. ”

पलक ने बहन को गले लगाते हुए कहा,” मैं समझ गई हूं महक तू मेरे जैसी नहीं पर मुझ से कम भी नहीं. तेरी सोच अलग है मगर कमजोर नहीं. बहुत स्ट्रॉन्ग है तू. आज तेरा लोहा सिर्फ मैं ने ही नहीं तेरे जीजा ने भी मान लिया है. मेरी प्यारी बहन मुझे तुझ पर गर्व है, ” पलक से अपनी तारीफ सुन कर महक की आंखों में विश्वास भरी चमक उभर आई थी.

अमेरिकन बहू- भाग 3: समाज को भाने लगी विदेशी मीरा

राहुल पढ़ाई पूरी कर के अमेरिका में ही बहुत ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी भी करने लगा. पर शादी की बात सुजाता ने उस से जब भी छेड़ी वह टाल गया. अंत में हुआ वही जिसका डर उन्हें पूरे 3 सालों से सता रहा था. कोविड के दिनों में वे उस के अभाव को ?ोलते रहे. गनीमत यह रही कि न कुमार, न सुजाता और न ही राहुल कोविड की चपेट में आए.

राहुल उन के मन के हर कोने में छिपी भावनाओं से परिचित था. इतना सम?ाना उस के लिए कठिन नहीं था कि मां को जान कर कितना आघात लगेगा कि वह एक अमेरिकन युवती से विवाह करना चाहता था. इस खुशखबरी को डैडी को देने में ही सम?ादारी होगी. यही उस ने किया भी. पिता की खुली सोच से वह परिचित था ही. कुमार उस की अकादमिक सफलताओं के कारण हमेशा से उस पर गर्व करते आते थे. ‘अपने विषय में जो भी निर्णय लेगा वह बहुत सोचसम?ा कर ही लेगा…’ इस का उन्हें भरोसा था और राहुल को डैडी पर. इसलिए मां को पहले यह खबर देने के लिए फिर सम?ाबु?ा कर राजी कर लेने के लिए उस ने डैडी का ही सहारा लिया.

एक दिन देर रात तक फोन पर उस ने विस्तार में पिता को बताया कि कैसे एक पार्टी में मीरा से उस की मुलाकात हुई थी. मीरा ने कालेज में ‘भारतीय इतिहास और संस्कृति’ विषय पर एक कोर्स किया था और इस के बाद भारत में उस की रुचि बढ़ती ही गई थी. यह रुचि केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रही थी. उसे हिंदू वर्णव्यवस्था की खामियों, दानपुण्य के ढकोसलोंकी भी पूरी जानकारी थी.

औफिस की एक पार्टी में भारत के प्रति उस का यह ?ाकाव ही उसे राहुल के इतना करीब ले आया था. जोरजोर से बज रहे संगीत के माहौल में चिल्लाचिल्ला कर उन्होंने एकदूसरे को अपना नाम बताया था. जब उस का नाम मीरा ले कर मुसकराते हुए राहुल ने कहा था कि यह तो एक विशुद्ध भारतीय नाम है तो उस ने हंस कर कहा था, ‘‘आई नो, बट राहुल, डोंट यू इमैजिन यू आर कृष्णा. यू बेटर रिमैन राहुल.’’

राहुल ने जोरदार ठहाका तो लगाया था पर साथ ही उस की भारत के विषय में इतनी जानकारी देख कर बेहद प्रभावित भी हुआ था. इस के बाद पार्टी के शोरगुल से ऊपर उठ कर सुकून से बातें कर पाएं इस के लिए वे टैरिस पर आ गए थे. वहां मीरा देर तक उस से भारत के विषय में बहुत सारे  पूछती रहीं. उस ने राहुल को यह भी बताया कि उस के नाम का सही उच्चारण अमेरिकन ढंग से तो मायिरा होना चाहिए था पर जब किसी से मीरा के कृष्णप्रेम के बारे में सुन कर उस ने उन के बारे में विस्तार में पढ़ा था तभी से उस ने अपने नाम का भारतीय उच्चारण ‘मीरा’ ही अपना लिया था.

उस पार्टी के बाद राहुल और मीरा की मुलाकातें अकसर

होने लगी थीं. दोनों का एक ही कंपनी में कार्यरत होना इस में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ था. मीरा पढ़ाई, प्रशिक्षण और व्यवसाय से तो इंजीनियर थी पर भारतीय इतिहास और दर्शन में उस की रुचि इतनी गहरी थी कि उस के प्रश्नों के उत्तर दे पाने के लिए राहुल को खुद अपने देश के बारे में बहुत कुछ पढ़ना पड़ा. पर इस का यह अर्थ नहीं था कि राहुल और मीरा अपना जीवन गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों की तरह बिताना चाहते थे.

पार्टी, पब, सैरसपाटा भी उन की फितरत में था. मीरा के दादा स्वीडन से आ कर अमेरिका में बस गए थे. मीरा अच्छे कदकाठी की, छरहरी, चमकती आंखों और सुनहरे बालों की वजह से स्वीडिश युवती की तरह दिखती थी. गोरी त्वचा के प्रति एक आम भारतीय की स्वाभाविक कमजोरी राहुल में थी ही. ऊपर से सुंदरता के हर मानदंड पर मीरा पूरी तरह से खरी उतरती थी.

उधर भारतीय प्रोफैशनल्स के अमेरिका में बढ़ते हुए दबदबे, बहुराष्ट्रीय कंपनियों में उन की कार्यनिष्ठा और जिम्मेदारी की बढ़ती हुई इज्जत के चलते राहुल भी मीरा के लिए एक बेहद आकर्षक नवयुवक था. सब से अच्छा यह था कि  मीरा को भारत में दिलचस्पी थी.

कुल मिला कर दोनों तरफ से आग बराबर लगी और 3 महीने बीततेबीतते मीरा की तरफ से राहुल को अपने दादाजी के घर पर आने का बुलावा भी मिल गया. उस के अपने पिता तो उस की मां को तलाक देने के बाद अपनी दूसरी पत्नी को भी त्याग कर तीसरी के साथ ब्याह रच चुके थे और उस की मां अपने दूसरे पति के साथ उस के टैक्सास स्थित रेंच पर रहने चली गई थी. पर मीरा के दादा और दादी 50 सालों से भी अधिक पुराने अपने विवाहित जीवन की आदर्श मिसाल कायम करते हुए न्यूजर्सी के एक उपनगर में रहते थे. मीरा दादादादी की बहुत प्यारी पोती थी.

राहुल उन से मिलने गया तो वे इतने प्यार से उस से मिले कि उसे अपने बचपन की याद आ गई. उस के बाद अधिक समय नहीं लगा था राहुल को यह निर्णय लेने में कि वही इस अमेरिकी मीरा का कृष्ण था. पर अपनी मम्मी को मीरा के विषय में आश्वस्त कर पाना उस के लिए टेढ़ी खीर थी.

एक सम?ादार और प्रतिभाशाली बेटे की हर इच्छा पर कुरबान होने वाले कुमार ने पहले तो राहुल को सम?ाया कि मां को खुश देखना है तो वह किसी भारतीय लड़की का चुनाव करे पर एक तो राहुल की अपनी इच्छा उन के लिए सब से महत्त्वपूर्ण थी, ऊपर से स्वीडिश रक्त वाली इस अमेरिकन लड़की के भारत

के बारे में अद्भुत बातें सुनसुन कर वे इतने प्रभावित हो गए कि उन्होंने सुजाता को राजी करने की जिम्मेदारी ले ही ली. उन्होंने राहुल को आश्वस्त कर दिया कि वह मीरा से विवाह कर पाएगा. उन्हें पता था कि सुजाता को राजी करने में सब से अधिक आसानी होगी मीरा की इस ख्वाहिश से कि वह भारत आ कर परंपरागत ढंग से भारतीय शादी रचाना चाहती थी.

 

मीरा के भारतीयता के प्रति रुचि का विस्तार में खाका खींचने के बाद जब अंत में

उस की इस ख्वाहिश का जिक्र कुमार ने किया तो सुजाता के मन से जैसे सैकड़ों मन का बो?ा हट गया. अपनी कूटनीतिक सफलता का जश्न मनाने के अंदाज में कुमार ने फिर राहुल को स्काइप पर बुला कर मां का स्नेह भी दिला दिया. इसी के अगले दिन राहुल ने मां को फिर लैपटौप के सामने खड़ा कर दिया. फिर उस खूबसूरत स्वीडिश अमेरिकन युवती ने जब मुसकरा कर ‘‘नैमेस्टे मम्मीजी,’’ कहा तो सुजाता का वात्सल्य खुशी के आंसुओं में बदल कर उन की आंखों में बह निकला.

उस पहली मुलाकात के बाद तो समय

जैसे पंख लगा कर उड़ने लगा. यह तय हो गया कि मीरा और राहुल दोनों साल के अंत में भारत आ जाएंगे और उसी सप्ताह में बाजेगाजे, धूमधड़ाके के साथ उन की पहले तो कानून के अनुसार शादी होगी और फिर भारतीय रीतिरिवाजों के बीच लंहगे और शेरवानी में हंसीमजाक व नाचगाना होगा.

शादी के बाद 1 सप्ताह और भारत में बिता कर वे वापस जाएंगे. हनीमून मनाने के लिए मीरा के ही आग्रह पर उदयपुर की ?ाल के बीच खड़े भव्य और सब से महंगे होटल में कमरा बुक करा दिया गया. मीरा के पिता या दादाजी नहीं आ सके तो कुमार साहब के सब से घनिष्ठ मित्र को यह किरदार निभाने के लिए कह दिया गया. ग्रैंड इंडियन वैडिंग हो यह सास और बहू दोनों की हार्दिक इच्छा थी.

सास की तमन्ना थी की दूरदूर से इकट्ठा हुए सारे रिश्तेदारों को अमेरिकन बहू के शुद्ध भारतीय संस्कार देख कर गर्व हो. सुजाता को विश्वास था कि खुशी के इस मौके पर उन के कुछ रिश्तेदार जो छोटे और मं?ोले शहरों से आने वाले थे, कोई कोताही नहीं करेंगे.

उस ने मन में गांठ बांध ली थी कि अपनी अमेरिकन बहू के भारतीय ढंग दिखा कर वे सब को चमत्कृत कर देंगी, सब के मुंह बंद करा देंगी. उस के बाद से ही स्काइप की सारी मुलाकातें मीरा के पूर्ण भारतीयता में खर्च होने लगी.

तुम आज भी पवित्र हो– भाग 2

क्षितिजा के पूछने पर कि उस की पत्नी और बच्चे कहां हैं तो कोल्डड्रिंक्स का गिलास उस के हाथ में पकड़ाते हुए उस का बौस नरेश कहने लगा कि खाने का सारा अरैंजमैंट उस की पत्नी ने ही किया है,

पर अचानक से उस के किसी दूर के रिश्तेदार, जो इसी शहर में रहते थे उन की मौत हो गई तो उसे फौरन वहां जाना पड़ा. वह बस आती ही होगी.

‘‘क्षितिजा यह सोच कर धीरेधीरे कोल्डड्रिंक्स के घूंट भरने लगी कि जब उस की पत्नी आ जाएगी तब सब साथ में ही खाना खाएंगे. मगर उसे इस बात की चिंता भी हो रही थी कि मां उस के लिए परेशान हो रही होंगी. अपने फोन की बैटरी लो होने के कारण, जब वह बौस के फोन से मुझे फोन लगाने लगी तो यह कह कर नरेश ने उस के हाथ से फोन ले लिया कि अब वह कोई छोटी बच्ची नहीं रही जो हर बात की खबर अपनी मां को देती रही.

‘‘अरे, अब तो वह शादी कर के अपने पिया के घर चली जाएगी तो क्या फिर भी मां को हर बात की जानकारी देती रहेगी? उस की बातों पर क्षितिजा भी मुसकरा पड़ी.

लेकिन उसे एहसास होने लगा कि उस की आंखें बोझिल होने लगी हैं. कुछ समझबोल पाती, उस से पहले ही वह वहीं सोफे पर लुढ़क गई.

‘‘सुबह जब उस की आंखें खुलीं तो उस ने खुद को एक बड़े से बैड पर पाया. उस का पूरा बदन दर्द के मारे टूट रहा था. लग रहा था जैसे किसी ने उस के शरीर को मचोड़ कर रख दिया हो. मगर हैरान तो वह तब रह गई जब उस ने अपने को बिलकुल वस्त्रहीन पाया. फिर अचानक उसे मेरा खयाल आया और जैसे ही वह बैड पर से उठने की कोशिश करने लगी. नरेश सामने आ कर खड़ा हो गया. उस के हाथ में शराब से भरा गिलास था.’’

‘‘एक बड़ा सा घूट भरते हुए वह बोला कि आराम से… आराम से… वैसे ठीक तो हो न?’’ वह कुछ समझबूझ पाती नरेश उसे घूरते हुए बोला बहुत मजा आया सच में… तुम ने मेरी रात रंगीन कर दी. इस रात को मैं हमेशा याद रखूंगा. बोल कर वह जोर से हंसा और फिर शराब से भरा गिलास एक बार में ही गटक गया.

‘‘नरेश को इस रूप में देख और उस की बातें सुन कर क्षितिजा की आंखें हैरानी से फैल गई. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि नरेश ने उस के साथ ये सब कुछ किया? चादर से ही अपने नंगे बदन को किसी प्रकार ढकती हुई बोली कि तो तुम ने मेरे साथ…धोखे से अपने घर बुला कर तुम ने मेरा बलात्कार किया? और वहां मेरी मां…

‘‘क्षितिजा की बातों पर वह जोर से हंसा और फिर बोला कि तो क्या अपनी मरजी से तुम मेरे साथ सोने के लिए राजी हो जाती? और मां… हा…हा…हा…

कर वह ठहाके लगाने लगा.’’

‘‘उस की बेशर्मी देख गुस्से से क्षितिजा की आंखें लाल हो गईं. ललकारते हुए बोली कि ठीक है अब देखो मैं क्या करती हूं.

कहीं का नहीं छोडूंगी मैं तुम्हें. सब बताऊंगी पुलिस को कि किस तरह से तुम ने मुझे धोखे से अपने घर बुलाया और फिर कैसे मेरी बेहोशी का फायदा उठाया. बोल कर वह कमरे से निकलने लगी कि नरेश ने यह बोल कर उस का मुंह बंद कर दिया कि अगर उस ने ऐसा सोचा भी तो वह उस का न्यूड वीडियो जो उस ने बना लिया है उसे वायरल कर देगा. इसलिए उस की भलाई इसी में है कि अपना मुंह बंद रखे.’’

सारी बात सुन कर नमन का खून खौल उठा. मन तो किया उस का कि अभी जा कर उस नरेश का खून कर दे, पर उस ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर लिया और सोचने लगा कि अगर उस शख्स के खिलाफ पुलिस में शिकायत करे तो वह खबर तुरंत अखबारों और टीवी की सुर्खियां बन जाएगी और तब शायद क्षितिजा और अवसाद में चली जाएगी, हो सकता है बदनामी के डर से वह खुद को ही खत्म कर ले.

लेकिन अगर दोषी को सजा नहीं मिलती है तो भी खौफ में वह जी नहीं पाएगी.

क्या शादी के बाद बलात्कार को याद कर वह अपना वैवाहिक जीवन अच्छी तरह जी पाएगी कभी? ‘नहीं, मैं अपनी क्षितिजा को यों घुटघुट कर मरते नहीं देख सकता. मैं इसे इस अवसाद से बाहर निकाल कर ही रहूंगा और इस के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े मैं पीछे नहीं हटूंगा, और फिर मन ही मन नमन ने फैसला कर लिया कि अब उसे क्या करना है. नमन और क्षितिजा कालेज के समय से ही एकदूसरे से प्यार करते थे. उन की शादी से उन के परिवार वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी पर वे दोनों चाहते थे कि जौब लगने के बाद ही शादी के बंधन में बंधे. नौकरी लगते ही वादे के अनुसार दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया. कुछ दिन बाद ही दोनों की सगाई होनी थी और ये सब हो गया.

दिनप्रतिदिन क्षितिजा को और अवसाद में जाते देख उस के माता-पिता और नमन बहुत परेशान थे. सब ने अनेक प्रकार से उसे समझाने की कोशिश की, पर उसे तो जैसे काठ मार गया था. न तो वह किसी से ठीक से बात करती थी और न ही ठीक से कुछ खातीपीती थी. दिनबदिन शरीर और कमजोर होता जा रहा था. अंदर ही अंदर टूट रही थी. उस मंजर को याद कर कभी-कभी आधी रात में ही उठ जाती और फिर उसे संभालना काफी मुश्किल हो जाता था.

आज फिर वही भयानक दृश्य क्षितिजा को दहला गया और वह घबरा कर उठ बैठी. उस की आंखों से टपटप आंसू बहने लगे. उस की हथेलियों को अपने दोनों हाथों के बीच दबा कर नमन कहने लगा. ‘‘क्षितिजा, मेरी तरफ देखो, अकेली तुम ही एक लड़की नहीं हो इस दुनिया में जो इस दुख से गुजर रही हो. ऐसी कितनी लड़कियां होंगी जो इस दुख से गुजरी होंगी और गुजर रही होंगी, तो क्या सब ने हिम्मत हार दी होगी? जीना छोड़ दिया सब ने? अरे, गलती किसी और ने की है. फिर तुम क्यों खुद को सजा दे रही हो बोलो?

देखो अपनी मां की तरफ, क्या हालत हो गई है उन की और देखो मेरी आंखों में, क्या लगता है कि अब इन आंखों में तुम्हारी तसवीर नहीं है?

‘‘क्षितिजा,

तुम यह बिलकुल मत समझना कि किसी के छूने भर से तुम्हारा कौमार्य भंग हो गया या तुम अपवित्र हो गई या फिर पहले की तरह नहीं रही. फालतू की बातों को कभी अपने ऊपर हावी मत होने देना तुम. आज भी मेरे लिए तुम उतनी ही मासूम और पवित्र हो जितनी पहले थी और देखना, उस पापी को उसके किए की सजा एक दिन जरूर मिलेगी,’’ कह कर नमन ने क्षितिजा को अपने सीने से लगा लिया.

आगे पढ़ें- नमन किसी तरह उसे उस खौफ से बाहर निकालना

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