उधर से समीर ने क्या कहा, यह तो तन्वी सुन नहीं पाई. इस पर सुधा ने कहा. “आज घर पर आने के बाद पूछना उस से कि कौन था वह? जरा जोरदार आवाज में चिल्ला कर झगड़ा करना, अक्ल ठिकाने आ जाएगी उस की. चार लोग सुनेंगे तो उस का मजाक भी बनेगा. अच्छा, मैं फ़ोन रखती हूं. टाइम मिलने पर कौल करूंगी. बाय जानू.” और सुधा ने फ़ोन रख दिया. और तन्वी की तरफ देख कर बोली, “अब मजा आएगा. समीर घर जा कर काव्या से झगड़ा करेगा, गलियां देगा. और आसपास के लोग सुनेंगे. बड़ा मजा आएगा. सारी होशियारी धरी रह जाएगी उस की. बहुत सजसंवर कर घूमती है, अब पता चलेगा उस को.”
तन्वी ने सुधा से कहा, “दीदी, आप ने समीर से झूठ क्यों कहा, हम तो मार्केट गए ही नहीं. हम तो घर पर ही थे. आप ने ऐसा क्यों कहा?”
“तू नहीं समझेगी,” सुधा ने कहा, “उन दोनों के बीच झगड़े होते रहना चाहिए. तभी तो समीर मेरी मुट्ठी में रहेगा. झगडे होने से उन के बीच दूरियां बढ़ेंगी. जितना वे एकदूसरे से दूर होंगे, समीर उतना मेरे करीब होगा. उस की वाइफ, एक तो वह पढ़ीलिखी है, सुंदर भी है और मैं दिखने में साधारण हूं. इसलिए समीर को काव्या के खिलाफ भड़काती रहती हूं ताकि उन के बीच मनमुटाव चलता रहे. इस का मैं फायदा उठाती हूं. जो कहती हूं, समीर मानता है.”
“इस का मतलब, तुम काव्या से जलती हो. किसी की गृहस्थी क्यों बरबाद कर रही हो? समीर तो वैसे भी तुम्हारे जाल में फंसा हुआ है, जो थोड़ाबहुत रिश्ता उन दोनों के बीच बचा हुआ है, उसे भी क्यों ख़त्म कर देना चाहती हो? सच तो यह है, दीदी, तुम काव्य से जलती हो. तुम उस की बराबरी करने की कोशिश करती हो. इसलिए जैसे वह कपडे पहनती है, जिस रंग के पहनती है, उसी रंग और डिजाइन के कपड़े खरीदती हो, चाहे वो तुम पर फबे या न. चूंकि काव्या ने पहने है, इसलिए तुम्हें भी पहनना होता है. हर चीज में तुम उस की बराबरी करने की कोशिश करती हो यह दिखाने के लिए कि तुम उस से कम नहीं हो. लेकिन इस से सचाई बदल नहीं जाएगी और न ही तुम उस के जैसी बन पाओगी क्योंकि कुछ गुण व्यक्ति के जन्मजात होते है,” तन्वी ने कहा.
सुधा को तन्वी की बातें सुन कर गुस्सा आ गया. वह चिढ़ती हुई बोली, “तू मेरी बहन है कि उस की. तरफदारी तो ऐसे कर रही है जैसे उसे बरसों से जानती हो.”
“इस पर तन्वी बोली, “मैं तो सिर्फ सचाई बता रही हूं आप को. इस में बुरा मानने की क्या बात है. दीदी, एक बात मैं आप से और कहना चाहती थी. अपने बच्चों को लड़ाईझगड़ा करने के लिए बढ़ावा देना अच्छी बात नहीं है. अभी स्कूल में हैं, कालेज में जाएंगे. यह सब चलता रहा तो पिंटू गुंडागर्दी करने लगेगा. रोज इसी तरह शिकायतें आएंगी. उस वक्त क्या करोगी जब किसी दिन उस को जेल जाना पड़ जाएगा. बेहतरी इसी में है कि उसे अभी रोका जाए.”
“इतना सुनते ही सुधा गुस्से से बोली, “यह मेरे घर का मामला है, तू इस में अपनी टांग मत अड़ा. मैंतेरे से बड़ी हूं और मुझे अच्छे से पता है कि मुझे क्या करना है. तुझे सलाह देने की जरूरत नहीं है.”
तन्वी ने भी गुस्से से कहा, “दीदी, आप अभी समझ नहीं रही हो कि आप क्या कर रही हो. बच्चों को गलत शिक्षा दे रही हो. निशा को पराए आदमी को कैसे चिकनीचुपड़ी बातें कर के अपने जाल में फंसाना सिखा रही हो. सुबह से ले कर आधी रात तक सामने वाले फ्लैट की गतिविधियों पर नजर रखती हो. कुछ चलपहल दिखाई न दे तो तुरंत निशा और पिंटू को देखने भेजती हो. घर पर कोई है या ताला लगा है? उस दिन तुम ने यही देखने के लिए पिंटू को भेजा था. और आ कर उस ने इशारे से वही कहा था. मुझे बेवकूफ मत समझना, दीदी.”
“मैं तुम्हें बहुत अच्छे से जानती हूं और तुम्हारे हथकंडे भी पहचानती हूं,” तन्वी ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा, “छोटीमोटी ताकझांक करना, बातों को मिर्चमसाला लगा कर बताना तो औरतों की आदत होती है. तुम जो कर कर रही हो, वह एक अपराध है. और उस में तुम ने अपने बच्चों को भी शामिल कर रखा है. यह किसी की सुरक्षा का भी सवाल है. आखिर, तुम्हें उस फ्लैट में इतनी दिलचस्पी क्यों है? क्या जानना चाहती हो? या किसी और व्यक्ति ने तुम से निगरानी रखने के लिए कहा है जिस को तुम सब इन्फौर्मेशन देती हो. अगर किसी को पता चल गया कि तुम चौबीस घंटे निगरानी कर रही हो, तो तुम किसी मुसीबत में फंस सकती हो. तुम्हारे खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखाई जा सकती है. यह काफी गंभीर मामला है जिसे तुम मजाक समझ रही हो. दिनभर पता नहीं क्याक्या प्लानिंग, प्लौटिंग करती हो. एक षड्यंत्रकारी दिमाग है तुम्हारा.
“इतना ही नहीं, तुम्हारे बौयफ्रैंड यानी तुम्हारे प्रेमियों के बारे में भी तुम्हारे बच्चों को सब पता है. निशा 16 साल की है और तुम्हारा पाठक अंकल के साथ, समीर के साथ दसबारह साल से चक्कर चल रहा है. इस का मतलब निशा 6 या 7 साल की होगी और पिंटू 5 साल का. 5 और 6 साल के बच्चे कितने अबोध होते है. मातापिता की उंगली पकड़ कर चलते हैं. इतनी छोटी उम्र के बच्चों को पता है कि उन की मां के 2 बौयफ्रैंड हैं. शर्म नहीं आती, दीदी तुम को ये सब करते हुए.
“तुम्हारे स्कूल के बौयफ्रैंड अलग थे. 8वीं, 9वीं क्लास से तुम्हारे अफेयर शुरू हो गए थे. कालेज में अलग बौयफ्रैंड बनाए. इसी कारण तुम 2 बार फेल भी हुईं. पापा ने जैसेतैसे तुम को ग्रेजुएशन करवाया, ताकि शादी के लिए आए रिश्तों को बता सकें कि तुम ग्रेजुएट हो. शादी के समय मम्मीपापा ने कितना समझाया था कि नया जीवन शुरू करने जा रही हो, अब किसी पराए आदमी से अफेयर मत करना. शादी के पहले किए गए अफेयर को नादानी या भूल समझ कर माफ़ किया जा सकता है लेकिन शादी के बाद के अफेयर भूल नहीं कहलाते. और तुम ने तो अपने ऐशोआराम के लिए अफेयर किए हैं. और महंगे गिफ्ट के लिए तुम इतना नीचे गिर गईं कि समीर और पाठक अंकल के साथ तुम्हारे शारीरिक संबंध भी हैं. और तुम्हारे बच्चे सब जानते हैं. कितनी शर्म की बात है. मम्मीपापा को पता चलेगा तो उन पर क्या बीतेगी, कभी सोचा है तुम ने?
“तुम जब हमारे यहां आती थीं, तुम्हारे बच्चे कितना शोऔफ करते थे. आयुष और पूर्वी ने मुझ से कहा भी था कि मम्मी, पिंटू और निशा दीदी बहुत शोऔफ करते हैं. कुछ भी सामान छूने नहीं देते. और कहते हैं, ‘हाथ मत लगाओ. बहुत महंगा है, फालतू की बातें करते हैं.’ भैयाभाभी ने भी शिकायत की थी कि सुधा ने अपने बच्चों को तमीज नहीं सिखाई है. बड़ों से कैसे बात की जाती है, इस का उन को जरा भी तरीका नहीं है. अपने से बड़े लोगों का मजाक बनाते हैं वे. यह सब सही नहीं है. और तुम खुद भी तो शान बघारती रहती थीं. उन सब के पीछे का राज अब पता चला है. तुम्हारे महंगे कपड़े, जूते जीजाजी ने नहीं, तुम्हारे प्रेमी ने दिए हैं. दूसरों के दिए हुए सामान पर तुम और तुम्हारे बच्चे इतराते फिरते हैं.”
सुधा तन्वी की कड़वी बातें सुन कर एकाएक गुस्से में आ गई और चिल्ला कर बोली, “तू मुझ से जलती है, मेरे बच्चों से जलती है. इसीलिए अपने मन की भड़ास निकाल रही है. तुम नहीं ले सकतीं महंगा सामान, इसीलिए यह सब बोल रही हो. तेरे पति की इतनी इनकम नहीं है न.” तन्वी ने कहा, “चिल्लाओ मत, दीदी. चिल्लाने से सचाई बदल नहीं जाएगी. तुम इन सामान के लिए किस हद तक गिरी हो, मुझे मालूम है. रही मेरी बात, तो मैं ने अपनी चादर से बाहर कभी पैर नहीं निकाले. जैसे मेरे पति ने मुझे रखा, मैं रही. जो खिलाया वह खाया. जो पहनाया वह पहना. तुम्हारे जैसे कीमती चीजों के लिए न तो कभी कोई अफेयर किया और न किसी से शारीरिक संबंध रखे.
“हर औरत को अपने पति की सैलरी के हिसाब से ही खर्च करना चाहिए. मैं उन लड़कियों जैसी नहीं हूं जो मायके से मांगमांग कर अपना घर भर लेती हैं. और न ही तुम्हारी तरह इतना नीचे गिर सकती हूं. मेरे साथ अपनी तुलना कभी मत करना क्योंकि मैं, मैं हूं और तुम, तुम जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकती हो. तुम जैसी औरतों के कारण पुरुषों को लगता है कि औरतें पैसों की लालची होती हैं. और इसीलिए वे पैसों का दिखावा करते हैं. लेकिन यह सच नहीं है. हर औरत तुम्हारी तरह लालची और स्वार्थी नहीं होती है. पहले अपने गिरेबान में झांको कि तुम क्या हो, फिर मुझ पर इलजाम लगाना.”
“तन्वी, तुम अब अपनी हदें पार कर रही हो,” सुधा बौखलाती हुई बोली.
“हदें तो तुम ने पार की हैं, दीदी. मैं तो सिर्फ सचाई बता रही हूं,” तन्वी ने कहा, “इतना बुरा लग रहा है तो ऐसे काम करती क्यों हो. सुबह से ले कर रात तक मोबाइल से चिपकी रहती हो. न घर पर ध्यान है और न बच्चों पर. बस, पास हो जाते है वो. कम मार्क्स होने के कारण किसी भी अच्छे कालेज में उन को एडमिशन नहीं मिलेगा. एक तो हम ओपन कैटेगिरी में आते है. तुम्हारे बच्चे गूंगेबहरे भी नहीं हैं. उन के हाथपैर भी सहीसलामत हैं. इसलिए विकलांग कोटे में भी एडमिशन नहीं मिलेगा. डोनेशन के आधार पर यदि किसी कालेज में एडमिशन मिल भी गया तो करीब 5 से 6 लाख डोनेशन देना पड़ेगा. फिर एकडेढ़ लाख रुपए उस की फीस रहेगी. तो करीब सातआठ लाख रुपए में सिर्फ एडमिशन होगा. डाक्टर या इंजीनियरिंग का 4 या 5 साल का खर्चा 15 से 20 लाख रुपए होगा. तुम्हारे बच्चे पढ़ाई में एवरेज हैं. वे फेल भी हो सकते है. फिर तुम्हारा पैसा बरबाद हो जाएगा. तुम्हारे बौयफ्रैंड समीर और पाठक अंकल इतने बड़े बेवकूफ तो नहीं होंगे कि तुम्हारे बच्चों पर लाखों खर्च करें. तुम तो उन से ही मांगोगी यह दुहाई देते हुए कि आप ने एडमिशन करवाया है, तो अब आप को ही देने पड़ेंगे. मेरे पास तो नहीं हैं इतने पैसे. तुम को मुफ्त में खाने की जो आदत है.”
सुधा गुस्से में आगबबूला हो गई. उस ने अपनी कमर पर हाथ रखा और तन्वी पर चिल्लाते हुए बोली, “शट अप, इस के आगे और एक शब्द बोली तो मैं तुम्हारी जबान खींच लूंगी.”
“यू शट अप,” तन्वी बोली, “मुझे चुप करा देने से दुनिया के मुंह पर ताला नहीं लगा सकोगी. उस दिन हमें देख कर तुम्हारी सोसायटी की औरतें कितना खुसुरफुसुर कर रही थीं. क्या शिक्षा दे रही हो तुम अपने बच्चों को. आदमियों को अपनी लच्छेदार बातों से अपने जाल में फंसाना, अपने बौयफ्रैंड के अजबोगरीब नाम रखना, दूसरों के घरों में ताकझांक करना, बड़ों का मजाक बनाना, बदतमीजी से बात करना, लड़ाईझगड़ा करना, घमंड दिखाना और तो और अपने बौयफ्रैंड से क्या चाहिए उस के लिए महंगे सामान की लिस्ट बनाना आदि. एक मां तो अपने बच्चे को गलत राह पर जाने से रोकती है. उस के लिए वह सख्ती भी बरतती है. और तुम, तुम उन को अंधी गलियों और दिशाहीन रास्ते की ओर धकेल रही हो. मां के नाम पर तुम एक ब्लैक डौट हो.
“मिडिल क्लास परिवारों में कई बार सैक्रिफाइज करने पड़ते हैं. अपनी इच्छाओं का दमन कर के परिवारहित में सोचना पड़ता है. परिवार ही सर्वोपरि माना जाता है. हर औरत कीमती गहने, कपड़े पहनना चाहती है, घूमनाफिरना चाहती है. लेकिन पति की कम इनकम के कारण यह संभव नहीं हो पता है. अगर हर औरत तुम्हारी तरह सोचे और इतने अफेयर करे जिन की गिनती नहीं और तुम्हारी तरह सारी मर्यादाएनिमेशन लांघ जाए तो समाज किधर जाएगा. समाज को न तो तुम्हारे जैसे विचारों की जरूरत है और न ही तुम्हारे जैसे लोगों की. वह कहते हैं न, एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है. तुम्हारी जैसी औरते सिर्फ गंदगी ही फैलाने का काम करती हैं.
“अवैध संबंध न पहले कभी स्वीकारे गए थे, न आज स्वीकारे जाते हैं. और न ही आगे स्वीकारे जाएंगे. स्वीकारे जाना भी नहीं चाहिए क्योंकि इस में 2 परिवार टूटते हैं. बच्चों की कस्टडी को ले कर पेरैंट्स कोर्ट तक जाते हैं. उन के अवैध संबंधों का खमियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ता है. जिस के कारण वे डिप्रैशन का शिकार होते हैं. ऐसे में वे ड्रग्स का सेवन करने लगते हैं. वे एन्जायटी और फ्रस्ट्रेशन का शिकार होने लगते हैं. तुम जैसी औरतों को तो अपनी मौज़मस्ती से मतलब है. यदि जीजाजी किसी दूसरी औरत के साथ अफेयर कर लें और अपनी पूरी सैलरी उस पर लुटाएं, तुम को और बच्चों को निगलैक्ट करें, तो तुम्हें कैसा लगेगा?”
“सुधा तमतमा कर बोली, “ऐसा कैसे हो सकता है. मैं उन की बैंड बजा दूंगी.”
इस पर तन्वी बोली, “वाह दीदी, तुम को सुन कर इतना गुस्सा आ रहा है और दूसरे के पतियों को अपने स्वार्थ के लिए अपने जाल में फांस कर रखा है. उस के लिए क्या कहोगी. तुम्हारी यह जो ऐयाशी चालू है, क्या यह सही है?”
“ऐयाशी किस को कह रही है?” सुधा चिढ़ती हुई बोली.
“नहीं तो यह तुम्हारा धरमकरम कहा जाएगा क्या?” तन्वी भी गुस्से से बोली, “और अब यह नया नाटक क्या चालू किया है. सुबह से प्रवचन चालू कर देती हो टीवी पर. फिर दोतीन घंटे फुल वौल्यूम पर भजनकीर्तन चालू कर देती हो. हर आधे घंटे में तुम बालकनी में जाजा कर घंटी बजाती हो रात के सोने तक. पूजा भी सुबहशाम ही लोग करते हैं वह भी अपने भगवान के सामने, न कि बाहर बालकनी में घंटी बजाबजा कर? किस को नीचा दिखा रही हो. लोगों को नीचा दिखाने की तुम्हारी पुरानी आदत है. 2 महीने पहले तक तो तुम्हारा पूजापाठ से कोई लेनादेना नहीं था. अचानक तुम्हारे भीतर ईश्वर की इतनी गहरी भक्ति कैसे जाग गई. 2 महीने पहले, जब बूआजी के यहां हम मिले थे उन के यहां नए घर की वास्तुपूजा में, तुम को जरा भी रुचि नहीं थी पूजा में. पूरे समय फ़ोन पर चिपकी थीं. कितनी बार तुम को बुलाने के लिए बच्चों को भेजा था, तब आई थीं. और हम लोगों से कहा था कि ‘मुझे पूजापाठ में कोई इंट्रैस्ट नहीं है. इसलिए, अपनी भक्ति का यह ढोंग बंद करो. अगर सही माने में तुम ने प्रवचन सुने होते तो आज तुम्हारी गाड़ी पटरी से न उतरी होती.”
“यह दिखावा, यह पाखंड किस के लिए, जबकि सब जानते हैं कि असलियत क्या है,” तन्वी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “इतनी ही शुद्ध हदय की यदि तुम होतीं, तो छलकपट, प्रपंच, षड़यंत्र, लालच और स्वार्थ की पुड़िया न होतीं. झूठी बातें कह कर पतिपत्नी के बीच झगड़े न करतीं. यही सब यदि तुम्हारे साथ हो, तुम्हें कैसा लगेगा. आज निशा 16 साल की है. और 6-7 साल बाद तुम उस की शादी करोगी. यदि ससुराल ख़राब मिल गई, सास व ननद ने निशा के खिलाफ अपने बेटे के कान भरने शुरू कर दिए, ननद ने झूठ बोलबोल कर उन दोनों के बीच झगड़े कराए तो तुम्हारी लड़की की जिंदगी नरक बन जाएगी. और तुम्हारा दामाद चरित्रहीन निकला तो उस की जिंदगी तो बरबाद हो गई. मैं ठीक कह रही हूं न, दीदी.”
अभी तक सुधा, जो तन्वी की बातें सुन रही थी, चीखती हुई बोली, “तू मेरी बहन है कि दुश्मन, कब से अनापशनाप बके जा रही है. मैं कुछ बोल नहीं रही हूं, इस का मतलब यह नहीं कि जो मरजी आए, वह बोलती रहे.”
तन्वी ने अब चिल्ला कर कहा, “दीदी, तुम कुछ बोल भी नहीं सकतीं गलती जो कर रही हो. अपनी बेटी के लिए तुम से सुना नहीं जा रहा है. और जो समीर और पाठक अंकल की पत्नियों के साथ जो तुम कर रही हो, क्या वह सब उचित है. जो ताने तुम नहीं सुन सकतीं वे दूसरों के लिए क्यों? जो व्यवहार तुम्हें पसंद नहीं, दूसरों के साथ क्यों, जो बेवफाई तुम्हें पसंद नहीं, दूसरों के साथ क्यों? यह वह सचाई है जिसे तुम चाह कर भी झुठला नहीं सकतीं. तुम्हारा डबल स्टैंडर्ड मैं जान चुकी हूं. तुम जानबूझ कर समीर और पाठक अंकल का घर बरबाद कर रही हो. किसी की खुशियां छीन कर, किसी की आंखों में आंसू दे कर अपने लिए जिन खुशियों का महल खड़ा करना चाहती हो, vताश के पत्तों के भांति भरभरा कर गिर जाएंगी. और जो काम जानबूझ कर किए जाते हैं वे गलती नहीं, गुनाह कहलाते हैं. और गुनाह की सजा मिलती है. घर तोड़ने जैसा पाप जो तुम कर रही हो, इस की सजा तो तुम्हें मिल कर रहेगी. दूसरों की जो तुम खुशियां छीन रही हो, तुम से भी तुम्हारी खुशियां एक दिन छीनी जाएंगी. और उस दिन पछताने के अलावा तुम्हारे पास कुछ नहीं रहेगा. याद रखना दीदी, नाटक कितना भी लंबा चले, परदा गिरता जरूर है. तुम जीजाजी, समीर और पाठक अंकल इन तीनों को एकसाथ धोखा दे रही हो.”
इस पर सुधा बोली, “चार किताबें क्या पढ़ लीं, अपने को बहुत होशियार समझने लगी है.”
“शुक्र है कि मुझे किताबों में लिखी शिक्षा और जीवन के नैतिक मूल्य आज भी याद हैं. वही चार किताबें तुम ने भी पढ़ी थीं. लेकिन तुम सबकुछ भूल गईं. इसलिए आज बरबादी के रास्ते पर चल पड़ी हो. एक भ्रम की दुनिया में जी रही हो. तुम सोचती हो कि समीर और पाठक अंकल को अपनी उंगलियों पर नचा रही हो. हो सकता है, वास्तविकता कुछ और ही हो. उन दोनों के लिए तुम एक टाइमपास भी हो सकती हो. पाठक अंकल तो ठहरे रिटायर आदमी और समीर में लड़कपन है. उस में तो गंभीरता भी कम है. गलत चीजों को कभी भी त्यागा जा सकता है. बुराई के रास्ते से वापस लौटा जा सकता है. देर कभी भी किसी भी चीज के लिए नहीं होती है. लेकिन यह तभी संभव है जब तुम में गलत चीजों को छोड़ने का, बुराई को त्यागने का जज्बा पैदा हो. जब आंख खुले तब सवेरा.”
सुधा झटके से उठी और दनदनाती हुई बच्चों के कमरे में गई. वहां से तन्वी का सारा सामान उठा कर लाई और जमीन पर फेंकते हुए बोली, “मेरे ही घर में खड़े रह कर मुझे बातें सुना रही है. अपना बोरियाबिस्तर बांध और निकल जा मेरे घर से. और अब कभी मेरे घर मत आना. वैसे भी, तेरा आना मुझे खल रहा था. बड़ी आई मुझे सहीगलत बताने वाली. यह जो तेरा भाषण है, अपने बच्चों को सुनाना. उन के काम आएगा. मुझे और मेरे बच्चों को तेरी सलाह की जरूरत नहीं है.”
जमीन पर बिखरे सामान को समेटती हुई तन्वी बोली, “गलत चीजें होते हुए मैं नहीं देख सकती. और न ही गलत चीजों का समर्थन करती हूं. जहां सम्मान न मिले वहां मैं जाती भी नहीं. और ऐसे रिश्तों से जुड़े रहने का कोई फायदा भी नहीं. दिखावे के रिश्ते एक न एक दिन टूट ही जाते हैं बनावटी जो होते हैं. रिश्तों का लिहाज भी एक हद तक ही किया जाना चाहिए. ऐसे रिश्ते निभा कर भी क्या फायदा. सो, उन से दूर रहने में ही अपनी भलाई है. मैं तो खुद ही अपने घर जा रही थी. और यही बताने तुम्हारे पास आई थी.
“आज तुम होश में नहीं हो. आसमान में उड़ रही हो. लेकिन एक दिन जब तुम आसमान से नीचे जमीन पर गिरेगी, जिंदगी की वास्तविकता से जब तुम्हारा सामना होगा, तब तुम्हें पता चलेगा की यथार्थ का धरातल कितना खुरदुरा और सख्त होता है . जो बोया है वही काटोगी. इंसान को अपने कर्मो की सजा इसी दुनिया में भुगतनी पड़ती है. तुम ने लोगों की खुशियां छीनने का जो पाप किया है, उस के लिए तुम्हें माफ़ नहीं जाएगा. इस की सजा तो तुम्हें मिल कर रहेगी. आज के बाद मैं कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगी. आज इस रिश्ते को हमेशा के लिए मैं ख़त्म कर के जा रही हूं. मैं सबकुछ बरदाश्त कर सकती हूं, अपना अपमान बरदाश्त नहीं कर सकती.” यह कह कर तन्वी ने अपना ब्रीफकेस उठाया और सुधा की तरफ देखे बगैर तेजी से बाहर निकल गई.
ट्रेन में बैठी तन्वी सोच रही थी कि जहां आज कदमकदम पर धोखा और फरेब है वहीं पाठक अंकल और समीर जैसे पढ़ेलिखे, उच्च पदों पर कार्यरत लोग सुधा दीदी जैसी औरतों पर अंधा विश्वास कैसे कर सकते हैं. इन दस सालों में वे इतना तो समझ चुके होंगे कि सुधा दीदी कितनी लालची और स्वार्थी औरत है. हो सकता है जीजाजी भी दीदी के साथ मिल कर समीर और पाठक अंकल को बेवकूफ बना रहे हों. पैसा और प्रौपर्टी देख कर अच्छेअच्छों का ईमान डोल जात्ता है. नीयत ख़राब होने में कितनी देर लगती है. आएदिन अखबारों में हम इन्हीं धोखाधड़ी के किस्से पढ़ते हैं. कुछ भी कहा नहीं जा सकता. यह दुनिया है, कुछ भी हो सकता है. इतने सालों से दीदी के अफेयर चल रहे है, जीजाजी को कानोंकान खबर भी नहीं है, ऐसा कैसे हो सकता है. कभी दीदी पर शक भी नहीं हुआ? इतने महंगे मोबाइल, सामान दीदी और बच्चों के पास कहां से आ रहे हैं. जीजाजी गूंगेबहरे बन कर तमाशा क्यों देख रहे हैं. इन की क्या वजह हो सकती है. ऐसे कई सवाल तन्वी के दिमाग में घूम रहे थे जिन के जवाब उसे नहीं मिल पा रहे थे. तभी ट्रेन ने सीटी बजाई और चल पड़ी. धीरेधीरे प्लेटफौर्म छूटने लगा.
तन्वी ने आख़री बार प्लेटफौर्म पर एक सरसरी निगाह डाली, क्योंकि अब इस प्लेटफौर्म से उस का कोई वास्ता नहीं रह गया था. तन्वी ने अपने बैग से मोबाइल निकाला. आयुष और पूर्वी को मैसेज किया कि वह घर आ रही है.
इधर, पाठक अंकल किराना लेने गए थे, सोचा, पान भी लेते चलता हूं. पान की दुकान पर पहुंचे ही थे कि किसी की आवाज उन के कानों से टकराई. उन्होंने देखा, 2 आदमी पान की दुकान पर खड़े बात कर रहे थे. उन की शक्ल पाठक अंकल को जानीपहचानी लग रही थी. उन का नाम याद नहीं आ रहा था. इसी पान की दुकान पर उन दोनों को कई बार उन्होंने देखा था. उन में से एक कह रहा था, “बहुत घूम रही है आजकल वह अपने आशिक के साथ.”
“किस की बात कर रहे हो, यार?” दूसरे ने पूछा.
“अरे वही, अपनी सोसायटी की अनारकली, पिंटू की मम्मी,” उस ने पान चबाते हुए कहा.
“अरे, क्या बात कर रहे हो, सक्सेनाजी, क्या सच में?”
“हां, मैं सच कह रहा हूं, मिश्राजी. समीर को तो जानते हो न आप. बस, उसी के साथ घूमती फिर रही है. दोचार बार तो मैं ने भी देखा है उस को,” सक्सेनाजी ने कहा.
इस पर मिश्राजी ने कहा, “मेरी मिसेस ने बताया था मेरे को उस के बारे में कि वह अच्छी औरत नहीं है. सोसाइटी में लोग उस के बारे में तरहतरह की बातें करते हैं. पर मैं ने इन बातों पर कभी ध्यान नहीं दिया.”
जैसे ही पाठक अंकल ने ये बातें सुनीं, उन के तो होश उड़ गए. सुधा का मेरे अलावा किसी और के साथ भी अफेयर है. और उस के साथ घूमफिर भी रही है. इस का मतलब वह मुझे बेवकूफ बना रही है. उन्होंने पान नहीं लिया. और घर की ओर चल पड़े. रास्तेभर वे यही सोच रहे थे कि आखिर उस ने समीर से चक्कर क्यों चलाया. हम दोनों को मूर्ख बना रही है. पैसा मेरा खाती है और गुलछर्रे उस समीर के साथ उड़ा रही है. शायद पैसों के लिए ही उस ने मेरे जैसे वरिष्ठ आदमी से रिश्ता जोड़ा. क्योंकि मैं तो उस से करीब 15 साल बड़ा हूं. समीर को तो मैं बहुत अच्छे से जानता होण. अच्छी कदकाठी है. दिखने में भी स्मार्ट है. यह सब सोचसोच कर उन का दिमाग भिन्नाने लगा.
वे जल्दी से जल्दी घर पहुंच कर सुधा से बात करना चाहते थे. उन्होंने रास्ते में ही उस को मैसेज कर दिया. और कहा कि मैं तुझ से मिलना चाहता हूं. आज शाम को उसी स्थान पर मिलना जहां हम वौकिंग के समय मिलते हैं.
जवाब में सुधा ने लिखा, “कल मिलती हूं आप से. आज मैं जरा बिजी हूं.”
कोई और दिन होता तो पाठक अंकल शायद मान जाते लेकिन समीर का खयाल आते ही उन्होंने कहा, “नहीं, मुझे आज ही मिलना है. मैं तुम्हारा वहीं पर इंतज़ार करूंगा.”
सुधा ने ‘ओके’ लिखा.
पाठक अंकल सोचने लगे हो सकता है, आज फिर समीर के साथ कहीं जाना होगा, इसलिए मुझ से झूठ बोल रही हो. नियत समय पर पाठक अंकल उस जगह पर पहुंच गए. थोड़ी देर में सुधा भी वहां पहुंच गई और पहुंचते ही पाठक अंकल पर बरस पड़ी, बोली, “इतनी भी क्या इमरजैंसी थी कि कल तक के लिए रुक नहीं सकते थे. मैं यदि न आना चाहती, तो आप आने के लिए मुझ पर दबाव क्यों डालते हो?”
पाठक अंकल ने बिना कुछ इस का जवाब दिए सुधा से पूछा, “यह समीर कौन है और इस के साथ तुम्हारा अफेयर कब से चल रहा है?”
पाठक अंकल का यों अचानक समीर के बारे में पूछने से सुधा सकपका गई. उस से कुछ बोलते न बना. वह सोचने लगी, इन को समीर के बारे में कैसे पता चला. फिर भी हकलाती हुई बोली, “कौन समीर? मैं उसे नहीं जानती.”
पाठक अंकल बोले, “उसे नहीं जानतीं या बताना नहीं चाहती हो? लेकिन मुझे सब पता चल गया है.”
इस पर चिढ़ती हुई सुधा ने कहा, “पता नहीं किस ने तुम्हारे कान मेरे खिलाफ भर दिए हैं जो आप ऊलजलूल बातें कर रहे हैं.”
अब पाठक अंकल को गुस्सा आ गया, चिल्लाते हुए बोले, “झूठ बोलते तुम को शर्म नहीं आती है. अपने से छोटी उम्र के लड़के के साथ मटरगश्ती करती फिर रही हो. और मुझे बेवकूफ बना रही हो.”
इतना सुनते ही सुधा को भी गुस्सा आ गया. उस ने भी ऊंची आवाज में कहा, “चिल्लाओ मत, अंकल. मैं तुम्हारी पत्नी नहीं हूं जो चुपचाप सबकुछ सुन लूंगी. अपनी पत्नी को तुम ने जूते की नोक पर रखा होगा. मैं तुम से दबने वाली नहीं हूं. ये तेवर अपनी पत्नी को दिखाना, मुझे नहीं. वह झेलती होगी तुम्हें और तुम्हारी ज्यादतियों को. अगली बार मुझ से ऊंची आवाज में बात करने की कोशिश भी मत करना. हां, है मेरा समीर के साथ अफेयर. इस से तुम्हें क्या? मेरी अपनी जिंदगी है और मैं अपने हिसाब से जीती हूं. किसी और की मरजी से नहीं.”
थी सुधा का यह रूप देख कर पाठक अंकल हैरान रह गए. उस के तो तेवर ही बदल गए थे. एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी. पाठक अंकल सोच में पड़ गए. सुधा के मन में जो आ रहा था, बोले जा रही थी. उस को बीच में ही रोकते हुए पाठक अंकल बोले, “तुम ने मेरे साथ प्यार का झूठा नाटक किया. तुम्हारा मेरे लिए प्यार एक सौदेबाजी था. हर महीने मुझ से कहती हो, मुझे शौपिंग कराओ. और लंबीचौड़ी लिस्ट थमा देती हो. मुझे तो तुम जैसी लालची और मतलबी औरत के जाल में फंसना ही नहीं था.
इस पर सुधा बोली, “आप कौन से दूध के धुले हुए हो. अपनी औरत को धोखा दे रहे हो. मैं तुम्हारी पत्नी को सब बता दूंगी. तुम्हारी पोल खोल कर रख दूंगी.”
इस के जवाब में पाठक अंकल बोले, “तुम क्या मेरी पोल खोलोगी, तुम्हारी सारी सचाई मेरे सामने आ गई है. तुम बहुत ही चालक औरत हो. मुझे ही तुम ने अपने घर बुलाया. तुम मेरे साथ शारीरिक संबंध रखना चाहती थी. संबंध हम दोनों की मरजी से बने हैं, इसलिए जितना दोषी मैं हूं, उतनी ही दोषी तुम भी हो. तुम्हारी उम्र इतनी छोटी भी नहीं है कि तुम्हें किसी ने बहलाफुसला लिया हो. तुम्हारी इस में पूरी रजामंदी शामिल थी. क्याक्या नहीं मांगा तुम ने. तुम्हारे और बच्चों के लिए लैपटौप, स्मार्टफ़ोन, हैंडीकैम, टेबलेट और यहां तक कि किचन के लिए ओवन, राइस कुकर, ग्राइंडर, कुकिंग रेंज, घर के लिए फर्नीचर, कर्टेन और जिस सोफे पर तुम पसरपसर कर बैठती हो उस की कीमत एक लाख रुपए है. कपडेजूते तो हर महीने तुम्हें और तुम्हारे बच्चों के लिए देता हूं. यही नहीं, कितनी बार झूठे बहाने बना कर मुझ से अपने अकाउंट में हजारों रुपये डलवाए हैं. तुम्हारे साथ रखे संबंधों की कीमत आज तक चूका रहा हूं मैं. और तुम मेरी पोल खोलने चली हो. गलती मेरी ही है, मुझे तुम जैसी शातिर और मक्कार औरत के झांसे में आना ही न था. मैं अपनी राह से भटक गया था. लेकिन अब मैं अपनी भूल सुधारूंगा. रही मेरी पत्नी की बात, तो कहां वह और कहां तुम. उस के साथ तुम बराबरी नहीं कर सकतीं. और अपनी गंदी जबान से उस का नाम भी न लेना. वह तुम्हारी तरह नहीं है. जो औरत अपने पति को धोखा दे सकती है, वह किसी के भी प्रति वफादार नहीं हो सकती. चरित्र के साथसाथ तुम्हारी जबान भी गंदी है. आज इसी समय मैं तुम्हारे साथ अपना संबंध ख़त्म करता हूं. आज से मैं तुम्हारे लिए और तुम मेरे लिए अजनबी हो. मुझ से फिर कभी भी संपर्क करने की कोशिश मत करना.