बैकुंठ- भाग 2: क्या हुआ था श्यामचरण के साथ

पल्लवी मालती को बड़े ध्यान से सुन रही थी. सोच रही थी कि आज की पीढ़ी का होने पर भी अपने धर्म के विरोध में कुछ कहने का इतना साहस उस में नहीं था जितना अम्माजी बेधड़क कह गईं. मैं ने एमबीए किया हुआ है, जौब भी करती हूं पर धर्म का एक डर मेरे अंदर भी कहीं बैठा हुआ है. सोनाक्षी भी कालेज में है. उस ने 72 सोमवार के व्रत केवल पापाजी के डर से नहीं रखे, बल्कि खुद अपने भविष्य के डर से भी, अपने विश्वास से रखे हैं.

‘‘अम्मा, आप ही राधे महाराज से बात कर लीजिए,’’ क्षितिज बोला.

‘‘मैं करूंगी तो उन्हें शर्म आएगी लेने में, उन से उम्र में मैं काफी बड़ी हूं. क्षितिज, तुम ही अपनी तरफ से बात कर लेना, यही ठीक रहेगा.’’

‘‘ठीक है अम्मा, आज ही शाम को बात कर लूंगा वरना हफ्तेभर की छुट्टी की अरजी दी तो औफिस वाले मुझे सीधा ही बैकुंठ भेज देंगे,’’ कह कर क्षितिज मुसकराया.

एक नहीं, ऐसी अनेक घटनाएं व पूजा आएदिन घर में होती रहतीं, जिन में श्यामाचरण के अनुसार राधे महाराज की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती. राधे महाराज से पहले उन के पिता किशन महाराज, श्यामाचरण के पिता विद्याचरण के जमाने से घर के पुरोहित हुआ करते थे. जरा भी कहीं धर्म के कामों में ऊंचनीच न हो जाए, विवाह, बच्चे का जन्म, अन्नप्राशन, मुंडन कुछ भी हो, वे ही संपन्न करवाते, आशीष देते और थैले भरभर कर दक्षिणा ले जाते.

इधर, राधे महाराज ने शुभमुहूर्त और शुभघड़ी के चक्कर में श्यामाचरण को कुछ ज्यादा ही उलझा लिया था. कारण मालती को साफ पता था, बढ़ते खर्च के साथ बढ़ता उन का लालच, जिसे श्यामाचरण अंधभक्ति में देख नहीं पाते. कभी समझाने का प्रयत्न भी करती तो यही जवाब मिलता, ‘‘तुम तो निरी नास्तिक हो मालती, नरक में भी जगह नहीं मिलेगी तुम को, मैं कहे दे रहा हूं. पूजापाठ कुछ करना नहीं, न व्रतउपवास, न नियमधरम से मंदिरों में दर्शन करना. घर में जो मुसीबत आती है वह तुम्हारी वजह से. चार अक्षर ज्यादा पढ़लिख गई तो धर्मकर्म को कुछ समझना ही नहीं.

‘‘तुम्हारी देखादेखी बच्चे भी उलटापुलटा सीख गए. घबराओ मत, बैकुंठ कभी नहीं मिलेगा तुम्हें. घर की सेवा, समाजसेवा करने का स्वांग बेकार है. अपने से ईश्वर की सेवा करते मैं ने तुम्हें कभी देखा नहीं, कड़ाहे में तली जाओगी, तब पता चलेगा,’’ कहते हुए आधे दर्जन कलावे वाले हाथ से गुरुवार हुआ तो गुरुवार के पीले कपड़ों में सजेधजे श्यामाचरण, हलदीचंदन का टीका माथे पर सजा लेते. उन के हर दिन का नियम से पालन उन के कपड़ों और टीके के रंग में झलकता.

‘‘नरक भी नहीं मिलेगा, कभी कहते हो कड़ाहे में तली जाऊंगी, कभी बैकुंठ नहीं मिलेगा, फिर पाताल लोेक में जाऊंगी क्या? जहां सीता मैया समा गई थीं. अब मेरे लिए वही बचा रह गया…’’ उस की हंसी छूट जाती. मुंह में आंचल दबा कर वह हंसी रोकने की कोशिश करती. कभीकभी उसे गुस्सा भी आता कि दिमाग है तो तर्क के साथ क्यों नहीं मानते कुछ भी. कौआ कान ले गया, सब दौड़ पडे़, अपने कानों को किसी ने हाथ ही नहीं लगा कर देखना चाहा, वही वाली बात हो गई. अब कुछ तो करना चाहिए कि यह सब बंद हो सके. पर कैसे?

वह सोचने लगी कि क्षितिज का सीडीएस का इंटरव्यू भी तो उन के इसी शुभमुहूर्त के चक्कर में छूट गया था. उस की बरात ले कर ट्रेन से पटना के लिए निकलने वाले थे हम सब, तब भी घर से मुहूर्त के कारण इतनी देर से स्टेशन पहुंचे कि गाड़ी ही छूट गई. किस तरह फिर बस का इंतजाम किया गया था. सब उसी में लदेफंदे हाईस्पीड में समय से पटना पहुंचे थे, पर श्यामजी की तो लीला निराली है, तब भी यही समझ आया कि सही मुहूर्त में चले थे, इसलिए कोई हादसा होने से बच गया. फिर पूजा भी इस के लिए करवाई, कमाल है.

नया केस लेंगे तो पूजा, जीते तो सत्यनारायण कथा, हारे तो दोष निवारण, शांतिपाठ हवन. पता नहीं वह कौन सी आस्था है. या तो सब अपने उस देवता पर छोड़ दो या फिर सपोर्ट ही करना है उसे, तो धार्मिक कर्मकांडों की चमचागीरी से नहीं, बल्कि उसे ध्यान में रख कर अपने प्रयास से कर सकते हो. तो वही क्यों न करो. पर अब कौन समझाए इन्हें कितनी बार तो कह चुकी.

करवाचौथ की पूजा के लिए मेरी जगह वे उत्साहित रहते हैं. मांजी के कारण यह व्रत रखे जा रही हूं. पिछले वर्ष ही तो उन का निधन हो गया, पर श्यामजी को कैसे समझाऊं कि मुझे इस में भी विश्वास नहीं. कह दूं तो बहुत बुरा मान जाएंगे. औरत के व्रत से आदमी की उम्र का क्या संबंध? हां, स्वादिष्ठ, पौष्टिक व संतुलित भोजन खिलाने, साफसफाई रखने और घर को व्यवस्थित व खुशहाल रखने से अवश्य हो सकता है, जिस का मैं जीजान से खयाल रखती हूं. बस, अंधविश्वास में उन का साथ दे कर खुश नहीं कर पाती, न स्वयं खुश हो पाती.

‘‘चलो, कोई तो पूजा करती हो अपने से, साल में एक बार. घर की औरत के पूजाव्रत से पूरे घर को पुण्य मिलता है, सुहागन मरोगी तो सीधा बैकुंठ जाओगी.’’ दुनियाभर को जतातेफिरते श्यामाचरण के लिए आज मालती ने भी व्रत रखा है, उन की इज्जत बढ़ जाती. अपने से ढेर सारे फलफलाहारी, फेनीवेनी, पूजासामग्री, उपहार, साड़ी, चूड़ी, आल्ता, बिंदी सब ले आते. सरगई का इंतजाम करना जैसे उन्हीं की जिम्मेदारी हो, इस समझ का मैं क्या करूं? रात की पूजा करवाने के लिए राधे पंडित को खास निमंत्रण भी दे आए होंगे.

सरगई के लिए 3 बजे उठा दिया श्यामाचरण ने.

‘‘खापी लो अच्छी तरह से मालती, पूजा से पहले व्रत भंग नहीं होना चाहिए.’’ वह सोते से अनमनी सी घबरा कर उठ बैठी थी कि क्या हो गया. उस ने देखा श्यामजी उसे जगा कर, फिर चैन से खर्राटे भरने लगे. यह प्यार है या बैकुंठ का डर? पागलों की तरह इतनी सुबह तो मुझ से कभी खाया न गया, भूखा रहना है तो पूरे दिन का खाना मिस करो न.

हिंदुओं का करवा, मुसलमानों का रोजा सब यही कि दो समय का भोजन एकसाथ ही ठूंस लो कि फिर पूजा से पहले न भूख लगेगी न प्यास, यह भी क्या बात हुई अकलमंदी की. नींद तो उचट चुकी थी, वह सोचे जा रही थी. तभी फोन की घंटी बजी. इस समय कौन हो सकता है? श्यामजी की नाक अभी भी बज रही थी, सो, फोन उसी ने उठा लिया.

‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘ओ मालती, मैं रैमचो, तुम्हारा डाक्टर भैया, अभी आस्ट्रेलिया से इंडिया पहुंचा हूं.’’

‘‘नमस्ते भैया, इतने सालों बाद, अचानक,’’ मालती खुशी से बोली, ससुराल में यही जेठ थे जिन से उन के विचार मेल खाते थे.

‘‘हां, कौन्फ्रैंस है यहां, सब से मिलना भी हो जाएगा और सब ठीक हैं न?

1 घंटे में घर पहुंच रहा हूं.’’

‘आज 5 सालों बाद डाक्टर भैया घर आ रहे हैं. अम्मा के निधन पर भी नहीं आ सके थे. भाभी का लास्ट स्टेज का कैंसर ट्रीटमैंट चल रहा था, उसी में वे चल भी बसीं. 3 लड़के ही हैं भैया के, तीनों शादीशुदा, वैल सैटल्ड. कोई चिंता नहीं अब, डाक्टरी और समाजसेवा में ही अपना जीवन समर्पित कर रखा है उन्होंने. वह बच्चों को प्रेरणा के लिए उन का अकसर उदाहरण देती है,’ यह सब सोचते हुए मालती फटाफट नहाधो कर आई. फिर श्यामजी को उठा कर भैया के आने के बारे में बताया.

‘‘रामचरण भैया, अचानक…’’

‘‘नहीं, रैमचो भैया. मैं उन की पसंद का नाश्ता तैयार करने जा रही हूं, आप भी जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ उस ने हंसते हुए कहा और किचन की ओर बढ़ गई.

हाय हैंडसम- भाग 3: क्या हुआ था गौरी के साथ

मेरे ड्राइवर ने मुझे फोन कर के कहा कि वह मुरादाबाद पहुंच गया है. ड्राइवर का फोन आते ही मैं ने गौरी से विदा ली. विदा लेते समय गौरी का चेहरा उतर गया. वह बहुत भावुक हो गई थी. उस की आंखों की चमक कम हो गई. वह एकदम छुईमुई सी दिखाई देने लगी. उस ने मुसकराने की कोशिश की, मगर उस के होंठ कांपने लगे. उस की आंखों में आंसू तैरने लगे. उस ने अपनी उंगली से आंख में लटके आंसू की उस बूंद को उठा लिया, जो टपक कर उस के गाल पर गिरने ही वाली थी.

मैं अपने ड्राइवर को गौरी के बारे में कुछ पता नहीं चलने देना चाहता था, इसलिए मैं गौरी से कुछ दूर चला गया. गौरी मुझे अभी भी अपलक देख रही थी.

मैं कार में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई, तो गौरी ने अपना एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा कर मुझे बाय का इशारा किया. बदले में मैं ने कुछ नहीं किया. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा मैं पीछे घूम कर काफी दूर तक गौरी को देखता रहा. वह भी मुझे यों ही देखती रही और अपनी उंगलियों से अपनी आंखों के आंसू पोंछती रही.

गौरी से मिलने के बाद एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि वह बहुत ही मासूम और भोली लड़की थी. उस के मन में मेरे लिए कोई छलकपट नहीं था. दिल की भी साफ थी. पता नहीं कैसे वह मेरी तरफ आकर्षित हो गई. कोई बात नहीं, अगर उस से यह भूल हो गई तो मुझे उस की भूल को सुधारना होगा.

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मुझे याद आया, गौरी ने मुझ से कहा था, अगर मुझे जिंदा देखना चाहते हो तो मुझे कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मुझे थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से झठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम समझ गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मुझे गौरी से बात कर के उसे समझ देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मुझे बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मुझे किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मुझ से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत समझ लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मुझ से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

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हाय हैंडसम- भाग 1: क्या हुआ था गौरी के साथ

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मुझे अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मुझ से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मुझे आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं झेंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मुझे बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मुझे ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मुझे अपना नंबर दो न, मुझे आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मुझे मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क… से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या समझ था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने झंझलाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?िझक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

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पानी मिलता रिश्ता- भाग 2: क्या परिवार को मना पाई दीप्ति

धीरेधीरे एकदूसरे की तरफ 1-1 पांव चलते वे दोनों अब काफी नजदीक आ चुके थे. बस, इस रिश्ते को स्वीकार करने की औपचारिकता भर शेष थी. वह भी पिछले वैलेंटाइन पर कदम ने पूरी कर दी थी.

प्यार के इजहार के बाद अब दीप्ति कदम के फ्लैट पर भी बेरोकटोक जाने लगी थी. हालांकि कदम उदयपुर का ही मूल निवासी था लेकिन उस का परिवार गुलाबपुरा में रहता था इसलिए दीप्ति के लिए कभी भी बिना समय देखे कदम के फ्लैट पर जाना बहुत आसान था.

एकांत और मनपसंद साथी का साथ… ये दोनों परिस्थियां किसी को भी बहकाने के लिए पर्याप्त होती हैं तिस पर यदि साथी का अपना बनना निश्चित हो तो फिर यह परिस्थिति किसी भी प्रतिक्रिया में उत्प्रेरक का काम करती है. ऐसी ही परिस्थिति आज दीप्ति और कदम के बीच बन गई थी.

मार्च महीने के पहले शनिवार यानी वीकेंड की गुलाबी सी दोपहरी और लंच के बाद का अलसाया सा समय… भारी खाने के बाद कदम बिस्तर पर लेट गया. दीप्ति भी वहीं पसर गई. ऐसी कि ठंडी हवा ने जल्दी ही दोनों की पलकों को अपने कब्जे में ले लिया. नींद के किसी पल में दीप्ति की बांह कदम के सीने पर आ लगी और उस का मुंह उस की कांख में. कदम की आंखें खुलीं और उस ने अंगङाई लेते हुए अपनी बांहें दीप्ति के इर्दगिर्द लपेट लीं. अभी उस के होंठ दीप्ति के चेहरे की तरफ बढ़े ही थे कि वह कसमसाई.

“प्लीज कदम, शादी तक रुको,” दीप्ति ने उसे रोका लेकिन हवाएं एक बार चल निकलें तो फिर आंधी बनते देर कहां लगती है. कदम के तन और मन में भावनाओं की आंधी उठने लगी थी.

“वह तो हो जाएगी. हमतुम राजी… तो जीतेंगे बाजी…” कदम दीप्ति के कान में फुसफुसाया. शरमाई सी दीप्ति उस की बांहों में सिमट गई और इस से पहले कि वह कुछ और कहती, कदम ने अपने भीतर उठते तूफान को आजाद कर दिया. तूफान तो थम गया किंतु कदम अभी भी दीप्ति पर झुका हुआ ही था. अचानक जैसे उसे कुछ याद आया.

“क्या तुम्हारे घर वाले मुझे स्वीकार कर लेंगे?” कदम ने असमंजस से पूछा.

“क्यों नहीं करेंगे? वैसे भी मेरे मांपापा ने मुझे अपना जीवनसाथी खुद चुनने की आजादी दी है. बशर्ते कि वह पानी मिलता हो,” दीप्ति कदम के बालों में अपनी उंगलियां घुमाते हुए हंसी.

“इसलिए तो मैं पूछ रहा हूं,” कदम ने चिंतित होते हुए कहा तो दीप्ति चौंकी.
“क्या मतलब? हमें राजपूतों से कोई समस्या नहीं. मम्मी ने सिर्फ 2-3 कास्ट ही बताई थी जिन को वे नहीं स्वीकारेंगी,” कहते हुए दीप्ति ने उन जातियों के नाम गिना दिए जो उस की मां के अनुसार पानी मिलते नहीं थे. जैसे ही दीप्ति की बात समाप्त हुई, कदम के माथे की लकीरें और भी अधिक गहरी हो गईं.

“मुझे इसी बात का डर था. मैं जानता था कि दुनिया चाहे चांद पर ही क्यों न चली जाए, हम कभी भी सवर्णों के बराबर नहीं बैठ सकते,” कहते हुए जहां कदम रुआंसा हो गया, वहीं दीप्ति का चेहरा भय से जर्द हो गया.

“लेकिन तुम तो चौहान… उपनाम सरनेम लगते हो न?” दीप्ति ने पूछा.

“हां, यह सरनेम हमारी जाति के भी कुछ लोग लगाते हैं,” कदम ने धीरे से कहा.

सहसा दीप्ति को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन हकीकत समझ में आतेआते वह समझ चुकी थी कि वह एक बड़ी मुश्किल की गिरफ्त में आ चुकी है. एकाएक कोई निर्णय न ले पाने की स्थिति ने उसे और भी अधिक बेचैन कर दिया. दीप्ति ने अपने कपड़े और बाल ठीक किए और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल आई. कदम की भी हिम्मत नहीं हुई कि जाते हुए प्यार को हाथ बढ़ा कर रोक ले.

अगला दिन रविवार था. दीप्ति अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकली. एक ही रात ने उसे ऐसा निश्तेज कर दिया मानों बरसों की बीमार हो. कभी उसे मां की नसीहतें याद आ रही थीं तो कभी कदम का प्रेम… इस परेशान घड़ी में वह मां के आंचल में छिप जाना चाहती थी लेकिन वह जाती किस मुंह से? उन की दी गई आजादी का मान कहां रख पाई थी वह? रश्मि गिल्ट से भरी जा रही थी लेकिन कदम को किसी भी हाल दोषी नहीं ठहरा पा रही थी.

“सारी गलती मेरी ही है. मुझे ही प्यार का बुखार चढ़ा था. ऐसा भी क्या उतावलापन? सामने वाले की जातबिरादरी तो पता करनी चाहिए थी न?” दीप्ति अपनेआप पर झुंझला रही थी. कई बार तो लगा मानों यह सब वह खुद नहीं सोच रही बल्कि मां उस के भीतर आ बसी है. अनजाने ही वह परिस्थितियों को मां की निगाहों से देखने लगी थी.

इस सारे घटनाक्रम में वह कदम का दोष बिलकुल भी नहीं मान रही थी लेकिन यह भी सच था कि उस के किसी भी फैसले का सब से अधिक असर कदम पर ही पड़ने वाला था. हो सकता है कि बिना किसी गलती के ही उसे कई सारे अपराधों को करने के बराबर सजा मिले. दीप्ति का दिल और दिमाग कोलंबस की तरह झूल रहा था. उसे रहरह कर कदम का व्यवहार याद आ रहा था. उस में वह हर खूबी थी जो कोई भी लड़की अपने जीवनसाथी में देखना चाहती है. कदम ने कभी भी उस की मरजी के खिलाफ उसे नहीं छुआ था. जब भी वह उस के साथ होती थी, अपनेआप को संपूर्ण महसूस करती थी. सिर्फ उस के साथ ही नहीं बल्कि कदम का व्यवहार सभी महिलाओं के प्रति सम्मानजनक होता था और यही बात उसे सब से अलग और विशेष भी बनाती थी.

2 दिन की उधेड़बुन के बाद भी दीप्ति किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाई तो 3 दिन की छुट्टी ले कर घर चली गई. पापा तो उसे यों अचानक आया देख कर खुशी से उछल पड़े लेकिन मां की पारखी निगाहें उस में सेंध लगा रही थीं. अपनेआप को सामान्य करते हुए दीप्ति कमरे में चली गई.

“पड़ोस वाले मिश्राजी के लड़के मनीष ने अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली,” दोपहर के खाने पर मां ने उसे टटोलने की गरज से कहा. जवान लड़कियों की मांएं बेहतर जानती हैं कि कौन सी खबर उन से कब साझा करनी चाहिए.

“अच्छा है न, कम से कम उसे जिंदगी भर यह मलाल तो नहीं रहेगा कि यदि खुद उस ने लड़की खोजी होती तो पता नहीं क्या ढूंढ़ कर लाता. अब ले आया है तो सारी अच्छीबुरी जिम्मेदारी उसी की हो गई,” दीप्ति ने मनीष का पक्ष लेते हुए कहा.

“अरे, लानी ही थी तो कम से कम पानी मिलती तो लाता. अब जिस जाति के छुए गिलास हम रसोई में नहीं रखते, उस जाति की लड़की को रसोई में प्रवेश कैसे करने दें?” बेटी के जवाब पर मां का झुंझलाना स्वाभाविक था.

दीप्ति कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद कर रही थी. दीप्ति ने मनीष की जगह खुद को रख कर देखा तो घबरा गई,’क्या परिवार के इतने विरोध के बीच वह कदम के पक्ष में फैसला ले पाएगी? यदि मांपापा ने दिल को कठोर कर के, बेटी की खुशी के लिए कदम को अपना भी लिया तो क्या वे उसे वह सम्मान दे पाएंगे जो घर के दामाद को मिलना चाहिए? यदि वह मांपापा की नाराजगी को झेलते हुए कदम का साथ दे तो क्या वह मम्मीपापा को भूल पाएगी? क्या उन के 25 बरस के प्यार के सामने कदम के 25 महीने के प्यार को उसे वरीयता देनी चाहिए? माना कि मांबाप हमेशा साथ नहीं रहते लेकिन क्या यह स्वार्थ नहीं कहा जाएगा कि मैं अपनी खुशी के लिए उन्हें जिंदगीभर का गम दे दूं?’ सोचतेविचारते आखिर दीप्ति की छुट्टियां भी समाप्त होने को आईं लेकिन वह अपने सवालों के घेरे से बाहर नहीं निकल पा रही थी. कभी कदम का पलड़ा भारी होता तो कभी मां का. कभी दिल कदम की तरफ झुकता तो कभी घर वालों का स्नेह दिमाग पर हावी हो जाता.

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पानी मिलता रिश्ता- भाग 3: क्या परिवार को मना पाई दीप्ति

कल सुबह उसे उदयपुर के लिए निकलना है. वह असमंजस में थी कि कदम का सामना कैसे करेगी. अनमनी सी दीप्ति अपना सामान जमा रही थी कि तभी मनीष की मां की आवाज सुन कर बाहर आई,
“अरे दीप्ति बेटा, कैसी है तू? कब आई? तेरी मां ने तो तुझे बता ही दिया होगा कि मनीष ने क्या कांड किया है,” मनीष की मम्मी ने अपना दुखड़ा रोया. दीप्ति क्या कहती, फीकी सी हंसी हंस दी.

“मनीष की पत्नी लाख भली होगी लेकिन अपने संस्कारों का क्या करूं? चाहे यह छुआछूत आज के जमाने में न होता होगा लेकिन संस्कारों के बीज तो सदियों पुराने हैं न… कैसे एकदम से उखाड़ कर फेंक दूं? जब भी मेरे सामने आती है, आशीर्वाद देने का मन होते हुए भी मैं उसे आशीर्वाद नहीं दे पाती. तू ही बता, मैं क्या करूं?” अपनी सफाई देतेदेते अचानक मनीष की मम्मी ने दीप्ति से प्रश्न किया. वह अचकचा गई. एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा तो काम का बहाना कर के वहां से खिसक ली.

मन ही मन एक फैसला ले कर वह उदयपुर आ गई. कदम को देखा तो लगा मानों 3 दिन में ही मुरझा गया है. लग रहा था कि उस की गैरमौजूदगी में उस ने शेव तक नहीं बनाई होगी. दीप्ति को देखते ही कदम उस की तरफ लपका, “यों अचानक बिना बताए क्यों चली गई थी? कोई परेशानी थी तो हम मिलबैठ कर सुलझा सकते थे न…” कदम ने बेचैन होते हुए कहा.

“कुछ परेशानियां अकेले ही भुगतनी होती हैं,” दीप्ति ने सहजता से मुसकराते हुए कहा.

“तो क्या फैसला है तुम्हारा?” कदम अधीर हो रहा था.

“न चाहते हुए भी कुछ फैसले हमें अपने विरुद्ध लेने पड़ते हैं क्योंकि हम पर केवल हमारा ही अधिकार तो नहीं होता न?” दीप्ति ने कहा. कदम कुछ समझा नहीं. वह मुंह खोले उस की बात पूरी होने की प्रतीक्षा कर रहा था.

“यदि हम एकदूसरे को चुनते हैं तो अपनेअपने परिवार और समाज में एकदूसरे को इज्जत दिलवाना हमारी अपनी निजी जिम्मेदारी हो जाती है. और मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे लिए यह नहीं कर पाऊंगी. यदि मैं तुम्हें अपने परिवार में तुम्हारा सही स्थान नहीं दिला पाती तो मुझे कोई अधिकार नहीं है कि हर सामाजिक कार्यक्रम में तुम्हें नीचा देखने की स्थिति में लाऊं. मैं तुम्हारी बहुत इज्जत करती हूं और समाज में उसे बरकरार रखना चाहती हूं. फिर चाहे मुझे न चाहते हुए भी समाज के बकवास नियम मानने ही क्यों न पड़ें,” दीप्ति ने आंखों की नमी छिपाते हुए कहा.

“मैं जानता हूं कि एक पल में कुछ भी नहीं बदलेगा. न लोग और न ही उन की मान्यताएं… लेकिन आज यदि हमने एकदूसरे के हाथ नहीं थामे तो फिर वक्त हमें दूसरा मौका नहीं देगा और उस मलाल के सामने जिंदगी का हर हासिल कम रह जाएगा,” कदम लगभग गिड़गिड़ा ही उठा.

आंखें तो दीप्ति की भी भर आई थीं लेकिन वह सिर झुकाए चुपचाप खड़ी रही. कदम उस की मन की स्थिति भलीभांति समझ रहा था लेकिन मजबूर था. उस ने दीप्ति के कंधे थपथपाए और उस के निर्णय का सम्मान करता हुआ अपने केबिन में चला गया. उस ने तय कर लिया था कि वह इंतजार करेगा. मगर किस का? दीप्ति के मन को बदलने का या समाज की धारणा को बदलने का? जो भी हो… दोनों में ही वक्त लगने वाला था.

कदम ने हालांकि अपना मन बहुत कड़ा कर लिया था लेकिन मन अपने बस में रहता कहां है? रातभर दीप्ति और उस का निर्णय ही उस के दिमाग में हलचल मचाए हुए था. ऐसा ही कुछ हाल दीप्ति का भी था. उस के सामने भी रहरह कर कदम का निराशहताश चेहरा घूम रहा था. अपने घर पर उस ने जो फैसला किया था वह कदम की बेगुनाह मोहब्बत के सामने कमजोर पड़ता नजर आ रहा था. लेकिन दीप्ति इतनी जल्दी कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. आखिरकार उस ने अपने मन को कठोर कर लिया.

दूसरे दिन दीप्ति औफिस नहीं गई. उस ने कदम को व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजा,”मिलना है तुम से. घर आ जाओ,” कदम ने मैसेज को देखा लेकिन कोई जवाब नहीं दिया.

दीप्ति ने आधा घंटा बाद फिर से मेसैज भेजा,”मैं इंतजार कर रही हूं.” कदम ने पढ़ा. और कोई दिन होता तो वह सिर के बल दौड़ा चला जाता लेकिन वह परिस्थितियों को भी समझ रहा था और दीप्ति की मनःस्थितियों को भी. वह दीप्ति की दुविधाएं बढ़ाना नहीं चाहता था लेकिन पांव उस के रोके नहीं रुके और अगले 15 मिनट में वह दीप्ति के फ्लैट की घंटी बजा रहा था. इन 15 मिनट में वह सोच चुका था कि उसे दीप्ति को सांत्वना कैसे देनी है. कैसे उस के टूटे दिल को ढांढस बंधाना है.
घंटी बजने से पहले ही दीप्ति ने दरवाजा खोल दिया मानों खिड़की में बैठी उसी की राह देख रही थी. कदम ने देखा आज दीप्ति ने वही मोरपंखी रंग की साड़ी पहनी थी जो उस ने उसे पिछली दीवाली पर उपहार में दी थी.

कानों में मैचिंग लटकन और हाथों में चूड़ियां भी उसी की लाई हुई ही पहनी थी. हलका मेकअप कर के दीप्ति बहुत खूबसूरत लग रही थी. कदम तड़प कर रह गया.

‘सदमे के कारण बेचारी के दिमाग का संतुलन बिगड़ गया शायद,’ सोचते हुए कदम उस की तरफ बढ़ा लेकिन यह क्या? दीप्ति तो खिलखिलाती हुई उस से लिपट गई. कदम सकपका गया.

“हम शादी करेंगे. क्या तुम तैयार हो? यदि तुम्हारे घर वाले भी राजी न हों तब भी?” दीप्ति ने उस के सीने से सिर हटा कर अपनी आंखें उस के चेहरे पर गड़ा दीं.

“लेकिन कल तक तो माहौल कुछ और ही था. आज अचानक?” कदम ने पूछा. उसे अब भी दीप्ति के प्रस्ताव पर यकीन नहीं हो रहा था.

“बहुत सोचा मैं ने. और मंथन का नतीजा यह निकला,” दीप्ति ने कहा.

“क्या?” कदम ने पूछा.

“मांपापा सारी उम्र तो साथ नहीं रहेंगे न? आखिर तो जीवनसाथी ही काम आता है. यदि वही अपनी पसंद का न हो तो जिंदगी नरक नहीं बन जाएगी? देरसवेर घर वाले भी राजी हो ही जाएंगे. वैसे भी क्या तुम्हारे प्यार की लाश पर मैं अपना आशियाना बना पाऊंगी? और फिर तुम से शादी कर के मैं अपनी भावी संतानों को एक बेहतरीन भविष्य भी तो दे पाऊंगी… उन्हें भी तो आरक्षित श्रेणी के पिता की संतान होने के नाते आरक्षण मिलेगा,” अंतिम बात कहतेकहते दीप्ति के होंठों पर मुसकान थिरक उठी. कदम भी मुसकरा दिया.

“ओहो, तो यह बात है. जो अभी दुनिया में आया भी नहीं उस के भविष्य की चिंता की जा रही है और जो सामने खड़ा है उस के वर्तमान का क्या?” कदम ने शरारत से कहा.

“उस के लिए यह,” कहते हुए दीप्ति ने अपने होंठों से कदम का मुंह बंद कर दिया. पानी मिले या न मिले लेकिन दो दिल मिल चुके थे.

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वक्त की साजिश- भाग 3: क्या अभिषेक को मिला सच्चा प्यार

अभी वह सोच ही रहा था कि दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुई जिस से उस की तंद्रा भंग हुई. कौन हो सकता है इस समय? उस ने जल्दी से स्टूल किनारे किया और शर्ट पहन कर दरवाजा खोला तो एकदम जड़ सा हो गया.

‘‘तुम…रंजना…तुम यहां,’’ बस, आगे के शब्द जैसे पिघल कर बह गए.

‘‘क्यों? क्या मैं नहीं आ सकती यहां?’’ रंजना हंसती हुई बोली.

‘‘नहीं, मैं ने ऐसा तो नहीं कहा, पर तुम…’’ वह कहना कुछ और ही चाह रहा था, पर जबान ने उस का साथ न दिया.

‘‘अंदर आ जाऊं कि यहीं खड़ी रहूं,’’ रंजना बोली.

वह एकदम से शर्मिंदा हो कर दरवाजे से हट गया.

रंजना कमरे के अंदर आई और दीवार से लगी फोल्ंिडग कुरसी खोल कर बैठ गई.

‘‘अब तुम भी बैठोगे कि वहीं खड़े रहोगे. यह आज तुम्हें क्या हो रहा है. अरे, तुम्हारे चेहरे पर तो हवाइयां उड़ रही हैं. क्या कहीं भागने की योजना बना रहे थे और मैं पहुंच गई?’’ रंजना ने अपनी स्वाभाविक हंसी के साथ यह प्रश्न उछाल दिया.

अभिषेक  के माथे पर यह सोच कर पसीना आ गया कि रंजना कैसे जान लेती है उस की हर बात. पर अपने को संयत रखने की भरपूर कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बिलकुल ठीक हूं. अच्छा, छोड़ो ये सब बातें, यह बताओ, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अब कैसे क्या मतलब, जनाब से कल से मुलाकात नहीं हुई थी सो बंदी खुद हाजिर हो गई,’’ रंजना शरारत भरे अंदाज में बोली, ‘‘क्या बात है…कल मिलने क्यों नहीं आए?’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, मूड ही नहीं बना,’’ अभिषेक बोला.

‘‘अच्छा, अब मुझ से मिलने के लिए मूड की जरूरत पड़ती है,’’ रंजना उसी अंदाज में बोली.

अभिषेक खामोश हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बात करे.

‘‘क्या बात है, मुझे बताओ?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं, बात क्या हो सकती है, कुछ तो नहीं हुआ…पर…’’ आगे अभिषेक बोलताबोलता रुक गया.

‘‘पर क्या?’’ रंजना एकदम पास आ कर बोली, ‘‘मुझे बताओ तो सही.’’

‘‘पता नहीं क्यों मुझे कल से कैसाकैसा लग रहा है. घर से खत आया है. बस, उसी को पढ़ कर जाने क्याक्या मैं सोचने लगा.’’

‘‘क्या लिखा है पत्र में?’’ रंजना ने पूछा.

‘‘तुम खुद ही पढ़ लो. वहां दराज में रखा है.’’

रंजना पत्र पढ़ कर बोली, ‘‘ऐसा क्या लिखा है इस में. सही तो है. वास्तव में अभि, अब तुम्हें कुछ न कुछ करना चाहिए.’’

‘‘मैं क्या करूं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा. तुम तो देख ही रही हो कि कोई भी नौकरी नहीं मिल रही है.’’

‘‘अभी तक नहीं मिली है तो आगे मिल जाएगी, तुम इतने काबिल और समझदार हो,’’ रंजना उस का साहस बढ़ाती हुई बोली.

‘‘नहीं, रंजना. कुछ भी नहीं होने वाला. मैं सोचता हूं कि घर चला जाऊं, और वहीं खेतीबाड़ी शुरू करूं. कुछ घर में अपना सहयोग दूं. आखिर मेरी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं. हां, एक बात और…’’ इतना कहतेकहते उस के होंठ थरथरा उठे.

‘‘क्यों, रुक क्यों गए. कहो न और अब…क्या?’’ रंजना उस की आंखों में झांकती हुई बोली.

‘‘नहीं, कुछ नहीं.’’

‘‘नहीं, कुछ तो जरूर है?’’ रंजना उसी तरह आंखों में झांकती हुई बोली.

‘‘तुम तो बेकार में पीछे ही पड़ जाती हो,’’ अभिषेक थोड़ा परेशान हो कर बोला.

‘‘पहले कभी तुम इस तरह मुझ से व्यवहार नहीं करते थे, अभिषेक. आखिर क्या बात है, कुछ मैं ने गलती की है? कुछ पता तो चले,’’ रंजना एक सांस में बोलती चली गई.

‘‘देखो रंजना, मैं…अब तुम्हें कैसे समझाऊं कि इसी में तुम्हारी बेहतरी है.’’

‘‘अरे, किस में मेरी बेहतरी है?’’ रंजना लगभग चीखती हुई बोली.

‘‘तुम और मैं अब न ही मिलें तो अच्छा है.’’

रंजना आश्चर्यमिश्रित गुस्से के स्वर में बोली, ‘‘मेरी बेहतरी इस में है कि मैं अब तुम से न मिलूं. तुम से…’’

‘‘हां, रंजना,’’ अभिषेक उसे समझाते हुए बोला, ‘‘मैं अब तुम्हें क्या दे सकता हूं. मेरे पास कुछ नहीं है. रंजना, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं और कभी तुम्हें उदास या परेशान नहीं देख सकता और मेरे पास कुछ भी नहीं है जिस से मैं तुम्हें सुख दे पाऊं.’’

‘‘वाह…क्या बात है…तुम मुझ से बेहद प्यार करते हो इसलिए मुझे छोड़ने की बात कह रहे हो. यह बात कुछ समझ में नहीं आई और रही बात यह कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है, तो सुनो, तुम्हारे पास तुम खुद हो और तुम से बढ़ कर खुशी देने वाली चीज कोई दूसरी नहीं हो सकती मेरे लिए,’’ आखिरी शब्द बोलतेबोलते रंजना की आंखें भर आईं और गला रुंध गया.

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं दे सकता तुम्हें. तुम मुझ से न ही मिलो तो अच्छा है. तुम्हारे पापा किसी अच्छे घर में तुम्हारी शादी कर देंगे, जहां तुम्हें देने को ऐशोआराम की सारी चीजें होंगी. खुद सोचो, भविष्य के लिए ये सब बेहतर है कि मैं…सोच कर देखो,’’ अभिषेक एक प्रवाह में बोलता चला गया.

‘‘तुम जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘हां, मैं जानता हूं कि मैं क्या कह रहा हूं.’’

‘‘नहीं, तुम नहीं जानते कि तुम क्या कह रहे हो. तुम मुझ से मर जाने को कह रहे हो,’’ रंजना रुंधे स्वर में बोली.

‘‘यह कैसी बात कह रही हो, मैं और तुम्हें…’’

‘‘हां, तुम अच्छी तरह जानते हो अभि,’’ वह जैसे फूट पड़ी, ‘‘मैं तुम्हारे बिना कुछ सोच भी नहीं सकती कि तुम इतने कमजोर भी हो सकते हो. पर इतना सुन लो, अगर तुम समझते हो कि मैं तुम से इस तरह अलग हो सकती हूं तो तुम गलत सोचते हो. मैं तुम्हारी तरह कमजोर नहीं हूं. मैं उम्र भर इंतजार कर सकती हूं. तुम्हें ही प्यार करती रहूंगी उम्र भर…और सुनो, तुम्हारी जगह कोई दूसरा मेरी जिंदगी में नहीं आ सकता…’’ यह कह कर रंजना उठ खड़ी हुई.

‘‘प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश करो. जिंदगी उतनी आसान नहीं है जितनी दिखाई पड़ती है. तुम्हें क्या हासिल होगा मुझ से. मेरी परेशानियों में घुट जाओगी और फिर  तुम्हें उदास देख कर क्या मैं भी खुश रह पाऊंगा, बोलो?’’ अभिषेक उस का हाथ पकड़ते हुए विवशता के स्वर में बोला.

‘‘तुम्हारे साथ अगर मुझे घुटघुट कर भी जीना पड़ा तो विश्वास मानो मैं इस के लिए कभी उफ तक नहीं करूंगी. अच्छा, एक बात का जवाब दो,’’ रंजना फैसले के स्वर में बोली, ‘‘क्या तुम मुझे खुद अपनेआप को दे पाओगे? सोच कर बताना,’’ इतना कह कर वह चली गई.

उसे लगा कि वह सवाल ही नहीं छोड़ गई बल्कि उस के षड्यंत्रकारी दिमाग की पीठ पर कोड़े बरसा कर चली गई. उस ने कान को छू कर देखा, मिट्टी नहीं लगी हुई थी. उस ने जैसे खुद अपनेआप को ही झटका दिया और वह सारा बोझ उतार दिया जो समय उस पर धीरेधीरे रखता चला गया था.

उस ने अपने हाथ को छू कर देखा, वे ठंडे नहीं थे. उस ने अपनी बांह उठाई और अपनी उलझनों के जाले को साफ करने लगा. उस के पैर जीवंत हो उठे और तेज कदमों से कमरे के बाहर निकल कर उस ने एक ठंडी भरपूर सांस भरी और चल पड़ा वह लड़ाई लड़ने जो उसे जीतनी ही थी. तभी दिमाग में आया, ‘अभि, आखिर कब तक तू हारता रहेगा?’

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वक्त की साजिश- भाग 2: क्या अभिषेक को मिला सच्चा प्यार

कुछ लोगों को भविष्य के बारे में स्वप्न आते हैं तो कुछ चेहरे के भावों को देख कर सामने वाले का भविष्य बता देते हैं. रंजना ने भी मुझे पढ़ कर बता दिया था. पर अब मैं क्या कर सकता हूं. उस ने सोचा, मैं अपने हाथों से अपने ही सपनों को आग लगाऊंगा. फिर उसे लगा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं लेकिन ऐसा करना ही पड़ेगा. और कोई चारा भी तो नहीं है.

दीवार पर लटकी घड़ी में घंटे की आवाज से वह घबरा सा गया. उसे हाथों में गीलापन सा महसूस हुआ. जैसे उस ने अभीअभी रंजना का हाथ छोड़ा हो और रंजना की हथेली की गरमाहट से उस के हाथ में पसीना आ गया है.

उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और उंगलियों के एकएक पोर को रंगड़रगड़ कर पोंछने लगा. फिर भी वह संतुष्ट नहीं हो पा रहा था. उसे बराबर अपना हाथ गीला महसूस होता रहा. गीले हाथों से ही तो कच्ची मिट्टी के बरतनों को संवारा जाता है. उस ने अपने गीले हाथों से उस समय की मिट्टी को सजासंवार तो लिया था पर सहेज कर रखने के लिए पका नहीं पाया.

‘मैं क्यों नहीं कर पाया ऐसा? क्यों मैं एक ऐसी सड़क का मुसाफिर बन गया जो कहीं से चल कर कहीं नहीं जाती.’

उस ने किताब को अपने से परे किया और बिस्तर पर पड़ी चादर से खुद को सिर से ले कर पांव तक ढंक लिया. उसे याद आया कि लाश को भी तो इसी तरह पूरापूरा ढंकते हैं. वह अपने पर हंसा. उसे अपना दम घुटता सा लगा. मुझे यह क्यों नहीं याद रहा कि मैं अभी तक जिंदा हूं. उसे अपने हाथ ठंडे से लगे. वह अपने हाथों के ठंडेपन से परेशान हो उठा. नहीं, मेरा हाथ ठंडा नहीं है, इसे ठंडा नहीं होना चाहिए. इसे गरम होना ही चाहिए.

‘ठंडे हाथ वाले बेवफा होते हैं,’ रंजना की आवाज उस के कानों में पड़ी.

‘अच्छा, तुम्हें कैसे पता?’

‘मैं ने एक किताब में पढ़ा था,’ रंजना बोली.

‘क्या किताबों में लिखी सारी बातें सच ही होती हैं?’

‘पर सब गलत भी तो नहीं होती हैं,’ रंजना जैसे उस के अंदर से ही बोली.

‘नहीं, मेरे हाथ ठंडे कहां हैं,’ उस ने फिर छू कर देखा और उठ कर बैठ गया. चादर को उस ने अपने दोनों हाथों पर कस कर लपेट लिया. पर उसे लगा जैसे उस ने अपने दोनों हाथ किसी बर्फ की सिल्ली में डाल दिए हैं. उस ने घबरा कर चादर उतार दी, ‘क्या मेरे हाथ वाकई ठंडे हैं? पर न भी होते तो क्या,’ उस ने सोचा, ‘मेरे माथे पर जो ठप्पा लगने वाला था, उस से कैसे बच सकता हूं.’

‘यह मुझे क्या हो रहा है?’ उस ने सोचा, ‘मैं पागल होता जा रहा हूं क्या?’ उस की आवाज गहरे कु एं से निकल कर आई.

‘तुम तो बिलकुल पागल हो,’ रंजना हंसी.

‘क्यों?’

‘अरे, यह तक नहीं जानते कि रूठे को कै से मनाया जाता है,’ रंजना बोली.

‘मैं क्या जानूं. यू नो, इट इज माई फर्स्ट लव.’

फिर इसी बात पर वे कितनी देर तक हंसते रहे.

हंसना तो जैसे वह भूल ही गया. उसे ठीक से याद नहीं आ रहा था कि वह आखिरी बार कब खुल कर हंसा था. वह उठा और खिड़की खोल दी. खिड़की के पल्ले चरमरा कर खुल गए.

‘काश, मैं इसी तरह जिंदगी में खुशी की खिड़की खोल पाता.’

उस ने कहा, कितनी बातें जीवन में ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों में नहीं ढाला जा सकता. वे बातें तो मन के किसी कोने में अपने होने का एहसास दिलाती रहती हैं बस. ठीक उसी खिड़की के नीचे कुछ गमले रखे हुए थे. हर बार बरसात में उन गमलों में फूलों के आसपास अपनेआप कुछ उग आता जो समय के साथ अपनेआप सूख भी जाता.

वह जल्दी से बाहर निकला और गमलों के पास पहुंच कर बेतरतीब उग आए घासफूस के झुंड को जल्दीजल्दी फूलों के चारों ओर से हटाने लगा. गमलों के फूल जैसे मुसकरा उठे. उस ने हलकी सी जुंबिश ली और तन कर खड़ा हो गया. कितने सुंदर होते हैं फूल. कितने सुंदर होते हैं सपने. पर मुरझा कर बिखर जाना ही उन की नियति है. उस के सपने भी फूल की तरह एक दिन मुरझा कर गिर जाएंगे.

‘टुकड़ोंटुकड़ों में मरना भी एक कला है,’ वह हंसा, ‘चलो, जब रंजना नहीं रहेगी तो कुछ तो मेरे पास रहेगा. मैं धीरेधीरे अपनेआप को मारूंगा. पहले कौन सा हिस्सा मरेगा… सब से पहले मैं अपने हाथों को मारूंगा. ये हमेशा ठंडे रहते हैं और घोषणा करते रहते हैं. इन्हें सब से पहले मरना चाहिए. फिर दिमाग को, क्योंकि यह भी हमेशा रोका करता है कि यह सही   है, यह गलत है. तुम पर ये जिम्मेदारियां हैं. ये न करो वो न करो. सब बकवास. फिर मुंह को, फिर आंख को और सब से बाद में कान को.’

‘तुम्हारे कान कितने प्यारे हैं,’ रंजना उस के कान से खेलती हुई बोली.

‘अच्छा, पर क्या तुम्हें मुझ में सिर्फ कान ही अच्छे लगते हैं और कुछ नहीं?’

‘नहीं, ऐसी बात नहीं है पर इन्हीं कानों से तो मैं अपने होेंठों की बात सुनती हूं,’ रंजना की उंगलियां बड़ी देर तक उस के कान से खेलती रहीं.

रंजना जैसे उस के कानों में खिलखिलाई हो. उस ने अपना कान छू कर देखा, कुछ मिट्टी सी लगी हुई थी. शायद गमले से घासफू स साफ करते हुए उस का हाथ कान तक गया हो और मिट्टी लग गई हो, पर उसे लगा जैसे घासफूस वहां भी उग आई हो. वक्त की साजिश की खरपतवार.

इन्हें हटाना आसान भी तो नहीं होता, पौराणिक कथाओं में आए रक्तबीज राक्षस की तरह. उस का प्रेम का कोमल सा पौधा इन खरपतवारों में फंस कर दम तोड़ देगा.

‘उफ, कितना विवश हो रहा हूं मैं,’ उस ने सोचा, ‘नहीं कर सकता कुछ चाह कर भी, पर मैं चाहता क्या हूं?’ उस ने जैसे अपनेआप से ही पूछा. इस का कोई उत्तर उस को खुद ही समझ में नहीं आया.

वह निढाल सा बिस्तर पर बैठ गया और छत की तरफ देखने लगा. हलकी सी भिनभिनाहट की आवाज उस के कानों में पड़ी. उस ने देखा, छत के एक कोने में एक कीड़ा जाले में फंस गया था और वह उस से निकलने का जितना प्रयास करता उतना ही और उलझता जा रहा था. ठीक इसी तरह वह जितना उलझनों से निकलने के बारे में सोचता, उतना ही उलझनों में घिरता चला जाता.

वह उठा और उस के मुंह से निकला, ‘मैं शायद अपनी उलझनों को न सुलझा पाऊं, पर तुम्हें तो निकाल ही दूंगा,’ उस ने झाड़ ू उठाई और स्टूल पर चढ़ कर जाले को साफ कर दिया. काश, कोई ऐसी झाड़ ू होती जिस से वह अपनी उलझनों के जाले को साफ कर पाता.

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स्मिता तुम फिक्र मत करो- भाग 4: क्या वापस लौटी खुशियां

चिराग का घर वाकई खूबसूरत था. वह लौन की तरफ गई, जहां सिर्फ 10-12 बच्चे थे. बच्चों को दूरदूर बैठा कर फन एक्टिविटी कराई जा रही थी. वह नजरें घुमा कर अवि को देख रही थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘हैलो, आप शायद अवि की मदर हैं.’’ स्मिता ने पलट कर देखा, लगभग 35-37 वर्षीय पुरुष, जिस का व्यक्तित्व आकर्षक कहा जाए तो गलत न होगा, खड़ा था.

‘‘जी, और आप?’’ स्मिता ने पूछा.

‘‘मैं चिराग का पापा अनुराग. आप को कई बार पेरैंट्स मीटिंग में देखा है अवि के साथ.’’

‘‘अच्छा, तभी सोच रही थी, कैसे मु झे पहचाना. वह क्या है कि अवि चिराग का गिफ्ट घर पर भूल आया था, देने चली आई. इधर कुछ काम भी था, सोचा, वह भी कर लूंगी.’’

‘‘गिफ्ट कोई इतना जरूरी तो नहीं था.’’

‘‘क्यों नहीं, बर्थडे पर बच्चों को अपने गिफ्ट देखने का ही शौक होता है.’’

‘‘यह तो आप सही कह रही हैं. अब आ ही गई हैं तो केक खा कर जाइए.’’ वेटर केक रख कर ले आया था.

‘‘थैंक्स, मैं चलती हूं. अवि अभी यहीं हैं. काफी एंजौय कर रहा है.’’

‘‘लाइफ में एंजौयमैंट बहुत जरूरी है, बच्चों के लिए भी और बड़ों के लिए भी,’’ अनुराग ने कुछ गंभीर हो कर कहा तो स्मिता ने एक बार उस की तरफ देखा. आंखें जैसे कहीं शून्य में खो गई थीं.
‘‘जी?’’

‘‘जी, कुछ नहीं. आइए आप को बाहर तक छोड़ देता हूं.’’

‘‘जी शुक्रिया, आप मेहमानों को देखिए. अच्छा, नमस्ते.’’
‘‘नमस्ते.’’

अवि और चिराग वीडियो कौलिंग करते थे. कभीकभी स्कूल के असाइनमैंट वर्क को ले कर अनुराग स्मिता से बात कर लेता था. अनुराग पेशे से प्रोफैसर था. पत्नी से तलाक हो चुका था. उस की अपनी महत्त्वाकांक्षाएं थीं जिन्हें पूरा करने के लिए उस ने पति और बेटे को पीछे छोड़ दिया था. चिराग की पूरी देखभाल अनुराग के सिर थी और अनुराग की मां भी चिराग का पूरापूरा खयाल रखती थीं.

एक दिन अनुराग अपने पुत्र चिराग को अवि से मिलवाने के लिए ले कर आया था. स्मिता घर पर ही थी. अनुराग को देख उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई थी जिसे सोमा काकी ने पढ़ लिया था. स्मिता ने अपने भाव छिपाते हुए अनुराग को बैठने के लिए कहा. चिराग और अवि खेलने ऊपर के कमरे में चले गए थे.
‘‘आप के लिए कुछ लाऊं?’’ सोमा काकी के चेहरे पर उत्साह की  झलक थी.
‘‘जी नहीं, मैं ठीक हूं,’’ अनुराग ने जवाब दिया.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है कि आप बिना कुछ लिए चले जाएं. मैं दोनों के लिए ही चाय बना कर लाती हूं,’’ बीच में ही सोमा काकी बड़े अधिकार से बोलीं और किचन की ओर बढ़ गईं.

‘‘आज काकी को न जाने क्या हो गया है. वे तो किसी को मेरे पास फटकने नहीं देतीं,’’ स्मिता का यह कहनाभर था कि अनुराग के चेहरे पर मुसकान आ गई, जिसे देख स्मिता को अच्छा लगा.
‘‘क्या कर रही हैं आजकल आप, कुछ नया?’’ अनुराग ने प्रश्न किया.
‘‘कुछ खास नहीं, फैक्ट्री का काम अच्छा चल ही रहा है, तो कोई दिक्कत नहीं.’’
‘‘मैं आप के बारे में पूछ रहा था फैक्ट्री के नहीं,’’ अनुराग ने स्मिता की आंखों में देखते हुए कहा.
‘‘मेरे बारे में जानने जैसा कुछ है ही नहीं,’’ स्मिता ने नजरें अनुराग के चेहरे से हटाते हुए कहा.
‘‘मु झे ऐसा नहीं लगता.’’

सोमा काकी चाय ले आईं. सोमा काकी वहीं पास खड़ी थीं और लगातार अनुराग को ताक रही थीं. उन्हें अनुराग के चेहरे पर एक अपनापन नजर आया था जो उन्होंने किसी और पुरुष के चेहरे पर नहीं देखा था. अनुराग का व्यक्तित्व उस के अच्छे इंसान होने की गवाही दे रहा था. सोमा काकी कमरे से बाहर गईं तो शामू काका से अनुराग को ले कर चर्चा करने लगीं.
‘‘प्रोफैसर साहब को ले कर तुम्हारा क्या खयाल है?’’ सोमा काकी ने पूछा.
‘‘अच्छे इंसान मालूम पड़ते हैं,’’ शामू काका ने जवाब दिया.
‘‘मु झे भी. बिटिया का चेहरा कितने दिन बाद इतना खिला हुआ दिख रहा है, है न?’’
‘‘पता नहीं, लेकिन तुम कह रही हो तो ऐसा ही होगा.’’
‘‘हां.’’

अनुराग चिराग को ले कर जाने लगा तो उस के चेहरे पर स्मिता से मिलने की चाह साफ नजर आ रही थी. अनुराग के जाते ही स्मिता सोफे पर बैठी हुई थी जब सोमा काकी उस के पास आ कर बैठ गईं.
‘‘मु झे तो प्रोफैसर साहब अच्छे लगे, और बिटिया तुम्हें?’’
‘‘हां, मु झे भी,’’ कहते ही स्मिता को खयाल आया कि उस ने अचानक क्या कह दिया. ‘‘क्या? ऐसा तो कुछ नहीं है, मेरा मतलब, हां, अच्छे व्यक्ति हैं,’’ कह कर उस ने नजरें दूसरी तरफ कर लीं.
‘‘मेरी तो हां हैं और शामू की भी,’’ कह कर सोमा काकी उठ कर जाने लगीं.
स्मिता उन की बात सुन कर  झेंप गई, बोली, ‘‘कुछ भी कहती हो आप.’’

अवि और चिराग आपस में बात करना चाहते थे तो स्मिता के फोन पर अनुराग का मैसेज आ जाता था. पर अब वह चिराग और अवि की बात कराने के लिए नहीं बल्कि खुद स्मिता से बात करने के लिए मैसेज करने लगा. धीरेधीरे अनुराग ने स्मिता से मोबाइल पर बात करनी शुरू कर दी. दो दुखी दिल, दो तन्हा इंसान ही एकदूसरे की पीड़ा सम झ सकते हैं. अनुराग ने अपनी पत्नी से तलाक के बाद दूसरी शादी के बारे में सोचा तक नहीं था. लेकिन, अपनी तरह ही स्मिता को देख वह उस के प्रति आकर्षित होने लगा था.

स्मिता और अनुराग जब बात करते थे, उन्हें लगता था उन के मन की पीड़ा कम हो गई है. दोनों एकदूसरे के अच्छे दोस्त बन गए थे. अनुराग का यह कहना, ‘स्मिता, तुम फिक्र मत करो. मैं हूं न. सब ठीक हो जाएगा,’ स्मिता की सब पीड़ा हर लेता.

सोमा काकी ने महसूस किया था जब से अनुराग स्मिता की जिंदगी में आया है, स्मिता के जीवन में आया खालीपन भरने लगा था. दोनों अपनीअपनी तकलीफ एकदूसरे से बांट कर जिंदगी की उल झनों को सुल झा रहे थे. बेशक वे एकदूसरे से दूर रहे थे लेकिन मन का जुड़ाव हो चुका था. मन से मन का मिलन कुछ कम तो नहीं होता.

दोनों की अपनीअपनी जिंदगी थी. दोनों पर अपने बच्चों की जिम्मेदारी थी. वे उन्हें अच्छी तरह निभा रहे थे. लेकिन दोनों के पास आज एकदूसरे का मानसिक संबल था जो शारीरिक संबल से भी जरूरी है. वक्त की धारा में दोनों बह रहे थे.

‘‘स्मिता बिटिया, किस सोच में हो, तुम्हारा खूबसूरत भविष्य तुम्हारा इंतजार कर रहा है. शादी के बारे में क्यों नहीं सोचतीं,’’ सोमा काकी ने एक दिन कहा.
‘‘डर लग रहा है काकी. समाज क्या कहेगा, बच्चे क्या सोचेंगे कि उन की मां को शादी की पड़ी है.’’
‘‘बच्चे छोटे हैं स्मिता, वे पिता की कमी महसूस करते हैं जो प्रोफैसर साहब पूरी कर सकते हैं. वे भी तुम से शादी करना चाहते हैं, उन की बातों से, उन की आंखों से साफ  झलकता है.’’
‘‘पूछा था अनुराग ने मु झ से, मैं ने ही मना कर दिया था.’’
शामू काका भी वहां आ चुके थे.

‘‘स्मिता बिटिया, सोमा सही कह रही है, समाज हमारे साथ ऐसा करता ही क्या है जो हम उस के बारे में सोचें, अपने दिल की सुनो बिटिया. बच्चों को पिता भी मिल जाएगा.’’
शामू काका और सोमा काकी के जाने के बाद स्मिता सोच में डूब गई. सुमित को याद करने लगी, अपने वे दिन याद करने लगी जब लोगों की नजरें उसे तारतार करने की कोशिश करती थीं. अनुराग से मिलने से पहले कितना दर्द था उस के दिल में. सब स्मिता की आंखों के आगे नाचने लगा.
स्मिता ने फोन उठाया और अनुराग को कौल किया.
‘‘हैलो, अनुराग.’’
‘‘हां स्मिता, कहो?

‘‘मैं तुम्हारा हाथ थाम कर आगे बढ़ना चाहती हूं. ऐसा लगता है कि हम साथ होंगे तो सब उलझनें सुलझ जाएंगी.’’
‘‘स्मिता, मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा कभी.’’ अनुराग के इन शब्दों से स्मिता का रोमरोम पुलकित हो उठा था.

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बदलते मूल्य: बाप-बेटे का बदलता रिश्ता

बाप और बेटों का रिश्ता संक्रमण काल से गुजर रहा है. पहले बाप बेटे की विश्वसनीयता एवं चरित्र पर शंका किया करते थे, अब बेटे भी बाप को शंकालु दृष्टि से देखने लगे हैं. वे बचपन से ही प्रेम को आत्मसात करतेकरते मूंछ की रेख आने तक पूर्ण परिपक्व हो जाते हैं और उन्हें यौवन पार करतेकरते पिताश्री की गतिविधियां संदिग्ध लगने लगती हैं. अब प्यार और विवाह में आयु का बंधन नहीं रहा. 60 के आसपास के चार्ल्स अभी भी राजकुमार हैं और वह आयु में अपने से बड़ी राजकुमारी कैमिला पार्कर को ब्याह कर राजमहल ले आए. पिता की शादी में युवा पुत्रों-हैरी और विलियम्स ने उत्साह से भाग लिया और आशीर्वाद…क्षमा करें, शुभकामनाएं दीं. कैमिला की बेटी लारा पार्कर नवयुगल को निहारनिहार कर स्वप्नलोक में खोती रही. वर्तमानकाल में सांस्कृतिक, सामाजिक व पारिवारिक मूल्य तेजी से बदल रहे हैं. ऐसे सामाजिक संक्रांतिकाल खंड में एक बेटे ने बाप से पूछा, ‘‘पापा, आज आप बडे़ स्मार्ट लग रहे हैं. कहां जा रहे हैं?’’

‘‘कहीं नहीं, बेटा,’’ बाप नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘मेरी हेयरक्रीम से आप की चांद चमक रही है. अब समझ में आया. क्रीम जाती कहां है. मम्मी की नजरें बचा कर आईब्रो पेंसिल से मूंछें काली करते हैं. कहते हैं, कहीं नहीं जा रहे. क्या चक्कर है पिताश्री?’’ बेटे ने फिर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ बाप सकपकाया जैसे चोरी पकड़ी गई हो. फिर बोला, ‘‘बेटा, तुम तो फालतू में शक वाली बात कह रहे हो.’’

‘‘फालतू में नहीं, पापा, जरूर दाल में कुछ काला है. मम्मी सही कहती हैं, आप के लक्षण ठीक नहीं. मैं ने भी टीवी सीरियल देखे हैं. आप के कदम बहक गए हैं. आप को परलोक की चिंता नहीं. मुझे अपने भविष्य की है,’’ बेटा गंभीरता से बोला.

‘‘तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में है. बेटा, पढ़नेलिखने में दिल लगाओ,’’ बाप ने समझाया.

‘‘मैं पढ़ने में दिल लगाऊं और आप…’’ कहतेकहते बेटा रुक गया.

बाप सोच रहा था. बेटे को डांटूं या समझाऊं. तभी उस की निगाह बेटे के पैर पर गई. अपना नया जूता बेटे के पैर में देख पहले तो उसे क्रोध आया पर अगले पल ही यह सोच कर रह गया कि बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगा है. समझाने में ही भलाई है. फिर बोला, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, बेटा?’’

बेटा मन ही मन सोच रहा था, ‘मेरा बाप बेकहम की तरह करोड़पति तो है नहीं, जो मुआवजा दे सके. न कोई सेलिब्रेटी है जिस का बदनाम हो कर भी नाम हो, न मैं आमिर की तरह अमीर हूं जो बाप से नाता तोड़ सकूं. पिताश्री घर में रहें इसी में परिवार की भलाई है. यह अकसर पैसा खींचने के लिए अच्छा है?’

प्रगटत: बेटे ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, पापा, बाहर जा रहा था. 100 रुपए दे दीजिए.’’

‘‘100 रुपए,’’ बाप दम साध कर बोला, ‘‘कल ही तो दिए थे. अब फिर…’’ पर उस ने समझौता करने में ही भलाई समझी. 100 रुपए देते हुए उस ने मुसीबत से छुटकारा पाया.

अब जेब खाली थी. अपना कार्यक्रम स्थगित किया, शयनकक्ष में झांका. पत्नी दूरदर्शन देखने में व्यस्त थी. पत्नी के मनोरंजन कार्यक्रम में व्यवधान डालने के परिणाम की कल्पना कर ही वह सिहर उठा. वह बाप से पति बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा था. चुपचाप किचन में चाय बनाने लगा. पत्नी के व्यस्त कार्यक्रम के मध्य उसे चाय पिला कर पतिधर्म निभाने का विचार करने लगा. तभी बरतन गिरने की आवाज से चौंकी पत्नी की चिल्लाहट गूंजी, ‘‘पप्पू, क्या खटरपटर मचा रखी है? क्लाइमेक्स बरबाद कर दिया.’’

‘‘जी, पप्पू नहीं पप्पू का पापा,’’ पति ने भय से उत्तर दिया.

‘‘कितनी बार मना किया कि किचन में संभल कर काम करो. 20 साल में कुछ नहीं सीख पाए. तुलसी की साड़ी देखो, एक एपीसोड में 6 बदलती है और मैं 6 माह से यही रगड़ रही हूं. मेरे भाग्य में तुम्हीं लिखे थे,’’ पत्नी ने विषय बदल दिया.

‘‘अरे भाग्यवान, क्यों नाराज होती हो. लो, मेरे हाथ की चाय पियो,’’ पति चापलूसी के स्वर में बोला.

‘‘हाय राम, पूरा दूध डाल दिया. फिर भी चाय है या काढ़ा,’’ पत्नी चाय सुड़कते हुए बोली.

‘‘दवा समझ कर पी लो, मैं तो 20 साल से पी रहा हूं.’’

‘‘मेरे हाथ की चाय तुम्हें काढ़ा लगती है, तो कल से तुम्हीं बनाओ.’’

‘‘बुरा मान गईं. मैं तो रोज बनाता हूं. क्या देख रही हो, कुमकुम…’’

‘‘सीरियल का नाम भी याद है. मुझे बदनाम करते हो, देख लो मजेदार है.’’

‘‘नहीं, मुझे काम है,’’ कहते हुए पति कमरे से बाहर निकलने लगा.

‘‘कांटा लगा…देखोगे?’’

जब से आकाशीय तत्त्व ने दूरदर्शन के माध्यम से गृहप्रवेश किया है, दिन में चांद दिखने लगा है और रात में सूरज या यों कहें कि दिन में सोते हैं, रात में टीवी देखते हैं. घर में सभी की समयसारणी निश्चित है कि कौन कब क्या देखेगा. बच्चे पढ़ाई सीरियल के हिसाब से करते हैं. खाने का समय बदल ही गया है. जब पत्नी के जायके का सीरियल नहीं आता तभी खाना मिलता है. खाने का जायका भी सीरियल के जायके पर निर्भर हो गया है. रसपूर्ण सीरियल के मध्य ठंडा व नीरस और नीरस सीरियल के मध्य गरम और रसपूर्ण भोजन मिलता है. दूरदर्शन ने नई पीढ़ी को अत्यधिक समझदार बना दिया है. वे मम्मी से मासूमियत से माला-डी के बारे में पूछते हैं. वयस्कों के चलचित्र भोलेपन से देखते हैं.

हमारी कथा के नायक पति, जो कभीकभी बाप बन जाते हैं, क्रोधित होते हुए घर में प्रवेश करते हैं, ‘‘कहां है पप्पू, सूअर का बच्चा?’’

‘‘मैं यहां हूं, पापा.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? क्यों आसमान सिर पर उठाए हो?’’ पत्नी ने हस्तक्षेप किया.

‘‘पूछो इस से, मोटरसाइकिल पर लिए किसे घुमा रहा था?’’

‘‘किसे घुमा रहा था. मेरी सिस्टर थी ललिता,’’ बेटे ने निर्भीक हो कर उत्तर दिया.

‘‘लो, एक नई सिस्टर पैदा हो गई. मुझे तो मालूम नहीं, तुम्हारी मम्मी से ही पूछ लेते हैं,’’ बाप ने बेटे की मां की ओर देखा.

‘‘हाय राम, यह भी दिन देखने थे. पहले बेटे पर, अब मुझ पर शक करते हो? मेरी भी अग्निपरीक्षा लोगे? यह सब सुनने के पहले मैं मर क्यों नहीं गई,’’ पत्नी ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा.

‘‘देखो मम्मी, पापा की बुद्धि कुंठित है, सोच दकियानूसी है, पुराने जमाने के आदमी हैं, दुनिया मंगल पर पहुंच रही है और आप हैं कि चांद पर अटके हैं. जरा आंखें खोलिए, पापा,’’ बेटे ने समझाया.

‘‘तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, बेटे, अभी तक अंधा था. अब समझ आया, साहिबजादे क्या गुल खिला रहे हैं.’’

‘‘पापा, अब गुल नहीं खिलते, ईमेल खुलते हैं, चैटिंग होती है. सुपर कंप्यूटर के जमाने में आप स्लाइड रूल खिसका रहे हैं. बदलिए आप. मुझ से चाहते क्या हैं?’’ बेटे ने पूछा.

‘‘मैं क्या चाहूंगा? तुम अच्छी तरह पढ़लिख कर नाम कमाओ, बस.’’

‘‘पढ़लिख कर आप जैसी नौकरी करूं, यही न?’’

‘‘मैं ने यह नहीं कहा. कुछ भी अच्छा करो, कोई रोलमाडल चुनो. कुछ सभ्यता सीखो,’’ बाप ने समझाया.

‘‘आप की पीढ़ी से किसे चुनूं? गांधी, नेहरू, सुभाष, शास्त्री देखे नहीं. जे पी, विवेकानंद के बारे में बस, सुना है. आप के जमाने के रोलमाडल कौन हैं? फिल्म वाले, डकैत, पैसे वाले, रसूख वाले, दोहरे चरित्र के नेता, अफसर…आप बताएं किस जैसा बनूं?’’

‘‘तुम बहुत बातें करने लगे हो, यही सीखा है. तुम्हारे दादा के सामने मेरी आवाज नहीं निकलती थी.’’

‘‘आप कुछ नहीं कहते थे…क्यों?’’ बेटे ने प्रश्न किया.

‘‘मैं अनुशासित था.’’

‘‘आप यह नहीं कहेंगे, दादाजी अनुशासनप्रिय थे. आप के सामने बात करता हूं तो आप कहते हैं, मैं उद्दंड हूं. यह नहीं कहते कि आप अनुशासनप्रिय नहीं. आप की पीढ़ी अनुशासनप्रिय नहीं. परिणाम हमारी पीढ़ी है,’’ बेटे ने अपना पक्ष रखा.

‘‘कहां की बकबक लगा रखी है?’’ बाप खीजते हुए बोला.

‘‘आप कहें तो प्रवचन. हम कहें तो बकबक. यही आप की पीढ़ी का दोहरा चरित्र है. आप विचार करें, मैं बाहर मूड फे्रश कर के आता हूं,’’ कहता हुआ बेटा उठा और बाहर चला गया.

बाप सोच रहा था, ‘नई पीढ़ी में गजब का आत्मविश्वास है. पप्पू बात सही कह रहा था या गोली खिला कर चला गया?’

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दरबदर- भाग 1: मास्साब को कौनसी सजा मिली

इस बार मायके गई तो छोटी बहन ने समाज की खासखास खबरों के जखीरे में से यह खबर सुनाई, ‘‘बाजी, आप के सईद मास्साब की मृत्यु हो गई.’’

‘‘कब? कैसे?’’

पिछले महीने की 10 तारीख को. बड़ी तकलीफ थी उन्हें आखिरी दिनों में. पीठ में बैडसोर हो गए थे. न लेट पाते थे न सो पाते थे. रातरातभर रोतेरोते अपनी मौत का इंतजार करते पूरे डेढ़ साल बिताए थे उन्होंने.

इस दर्दनाक मौत की खबर ने मुझे रुला दिया. मैं ने आंसू पोंछते हुए पूछा, ‘‘लेकिन उन की तो 4-4 बीवियां, 6 बच्चे और एक छोटा भाई भी तो था न?’’

‘‘बाजी, जब बुरे दिन आते हैं न, तो साया भी साथ छोड़ देता है. उन की पहली बीवी तो 3 साल पहले ही

दुनिया से चली गई थी. दूसरी, तीसरी, चौथी बीवियों ने झांक कर भी नहीं

देखा. आखिरी वक्त में भाई ही भाई के काम आया.’’

यह सुन कर मुझे दिली तकलीफ पहुंची.

सईद मास्साब 10वीं क्लास में अंजुमन स्कूल में मेरे इंग्लिश के टीचर थे. लंबेचौड़े सांवले रंग के मास्साब के फोटोजैनिक चेहरे पर मोटे फ्रेम के चश्मे के नीचे बड़ीबड़ी आंखों में चमक हमेशा सजी रहती. अपने हेयरस्टाइल आर ड्रैसिंग सैंस के लिए स्टूडैंट्स के बीच बेहद लोकप्रिय थे वे. लड़कियां अकसर आपस में शर्त लगातीं, ‘देखना, सईद मास्साब आज कुरतापजामा के साथ कोल्हापुरी चप्पल पहन कर आएंगे.’ सुन कर दूसरी लड़की झट बात काटती हुई कहती, ‘नहीं, आज मास्साब जरूर पैंटशर्ट के साथ बूट पहन कर आएंगे.’ कोईर् कहती, ‘नहीं, मास्साब आज सलवारकुरते के साथ काली अचकन और राजस्थानी जूतियां पहन कर आएंगे चर्र…चूं करने वाली.’

जो लड़की शर्र्त हार जाती वह इंटरवल में पूरे ग्रुप को गोलगप्पे खिलाती. मास्साब इतने खुशमिजाज थे कि दर्दीली पोयम पढ़ाते वक्त भी उन के होंठों पर मुसकान की लकीर दिखाई पड़ती. लेकिन जब हम डिक्शनरी में वर्डमीनिंग देखते और गाइड में उस का अनुवाद पढ़ते तो मास्साब की मुसकान के पीछे छिपे गूढ़ अर्थ को समझने में महीनों सिर खपाते रहते.

‘मास्साब, आज मैं घर से बटुआ लाना भूल गई. घर वापस जाने के लिए रिकशे के पैसे नहीं…’ कोई लड़की कहती.

‘कोई बात नहीं, ये लीजिए 5 रुपए, ठीक से जाइएगा, समझीं,’ कहते हुए अपने पर्स की जिप खोलने लगते.

‘मास्साब, मेरे अब्बू के गैरेजमालिक की मां मर गई. मेरे अब्बू को तनख्वाह नहीं मिल सकी, इसलिए फीस नहीं ला सका.’ कोई लड़का हकलाते हुए यह कहता तो मास्साब कौपियों से सिर उठाए बिना, उस की सूरत देखे बगैर ही कहते, ‘कोई बात नहीं, मैं भर दूंगा, आप की फीस. नाम क्या है?’

‘फैयाज मंसूरी.’

‘ठीक है, जब अब्बू को तनख्वाह मिले तब ले आना,’ कह कर मास्साब चपरासी को बुला कर उस लड़के की फीस औफिस में उसी वक्त जा कर जमा करने के लिए नोट थमा देते. लेकिन पूरे साल लड़के के अब्बू को न तो तनख्वाह मिलती, न मास्साब को कभी अपने दिए गए पैसे याद रहते.

इंग्लिश के अच्छे टीचर के अलावा सईद मास्साब स्कूल की कल्चरल, स्पोर्ट्स और सोशल ऐक्टिविटीज में हमेशा आगे रहते. नौजवान खून में ऊंचे ओहदे की बुलंदियां छू लेने के लिए मेहनतकशी को हथियार बनाने की पुख्ता सोच उन के हर काम के लिए तत्पर रहने वाले किरदार से साफ झलकती. साइंस एग्जीबिशन में अपने मौडल ले कर दूसरे स्कूल जाना है बच्चों को, तो सईद मास्साब बस के इंतजाम से ले कर मौडल्स पैक करने, उन के डिटेल्स को टाइप कराने तक के पूरे काम अपने सिर ले लेते.

बच्चों को किसी टुर्नामैंट में जाना है तो सईद मास्साब बच्चों के स्पोर्ट्स ड्रैस, किट्स, फर्स्टएड बौक्स खरीदते हुए घर आने में लेट हो जाते तो मुंह फुला कर बैठी बीवी की तानाकशी भी झेलते. ‘पिं्रसिपल के बराबर तनख्वाह मिलती तो भी सब्र आ जाता. चौबीसों घंटे, घरबार, बच्चे सौदासुलूफ को भूले… आप बस, अंजुमन स्कूल के ही हो कर रह गए हैं. घर, बच्चों का तो खयाल ही नहीं.’

जुलाई के महीने में एक नई टीचर ने जौइन किया था. वह कुंआरी थी. कुछ महीनों के बाद पता चला उस की शादी तय हो गई. स्कूल में वह हाथ भरभर कर हरी रेशमी चूडि़यां और कुहनी तक मेहंदी लगा कर आईर् थी.

सालभर भी नहीं गुजरा, दुबई गए उस के शौहर ने दुबई से स्काईप पर ही टीचर को तलाक कह दिया तीन बार. रोतीबिलखती टीचर को सईद मास्साब जैसे हमदर्द का ही कंधा मिला पूरे स्कूल में दर्द का पहाड़ पिघलाने के लिए.

स्टाफरूम में अब सईद मास्साब को देख कर कानाफूसी शुरू होने लगी. ‘सुना है सईद सर जुलेखा मैडम से निकाह करने वाले हैं.’

‘तभी तो उन्हें रोज स्कूल से घर लाते, ले जाते हैं. कमाने वाली औरत पर ही सईद मास्साब पूरी हमदर्दी लुटाते हैं.’

‘क्या कह रहीं है आप?’ नसरीन मैडम चौंकी. ‘हां, सच कह रही हूं,’ आयशा मैडम बोली, ‘देखिए उन की पहली बीवी सरकारी स्कूल में टीचर हैं. दोनों की कमाई है. घर में हर तरह का ऐशोआराम है. अब मजहब के नाम पर बेसहारा को सहारा देने के बहाने सईद मास्साब को फिर एक कमाऊ औरत मिल गई है. और दूसरी बीवी पर खर्च तो करना नहीं पड़ेगा, बल्कि जरूरत पर जुलेखा मैडम उन के अकाउंट में पैसे डाल देगी.’

मुझे नजमा मैडम ने स्टाफरूम में मेरी क्लास की नोटबुक लाने भेजा था, तभी टीचर्स की ये बातें मेरे कानों में पड़़ीं तो सहज विश्वास नहीं हुआ. आता भी कैसे? हमारे बालमन पर सईद मास्साब की छवि आदर्श टीचर की छपी हुई थी.

मैं ने 12वीं पास कर ली. मेरी 2 छोटी बहनें, उस के बाद एक भाई है. मेरे अब्बू की मनिहारी की दुकान है. घर की खस्ता माली हालत ने मुझे एक प्राइवेट स्कूल में नर्सरी की टीचर बना दिया. उन्हीं दिनों मेरी स्कूल में लीव वैकैंसी पर नई टीचर आयरीन सहर ने जौइन किया. घुंघराले बालों वाली छरहरे बदन की भोले से चेहरे पर खड़ी नाक और सुडौल जिस्म वाली यह टीचर इतनी कमाल की आर्टिस्ट थी कि मिनटों में शिक्षापयोगी सहायक सामग्री बना कर क्लासरूम के शीशे वाली अलमारी में सजा देती. हम दोनों हमउम्र थे, इसलिए हाफटाइम में दोनों टिफिन के साथसाथ दिल की बातें भी शेयर करते. कुछ महीनों के बाद मैं ने गौर किया कि वह अपने पहनावे और जिस्मानी खूबसूरती के लिए बतलाए गए टिप्स पर संजीदगी से अमल करती और उस के फायदे बतला कर मुझे भी वैसा करने को कहती.

एक दिन वह स्कूल में नौर्मल दिनों से कहीं ज्यादा सजधज कर आईर् थी. मिलते ही चहकने लगी, ‘आज मेरा बौयफ्रैंड मुझे पिक करने आ रहा है,’ आयरीन ने बताया.

छुट्टी के बाद मुझे हैडमिस्ट्रैस ने बुलवा लिया. छुट्टी के आधे घंटे बाद मैं अपना बैग ले कर सड़क की तरफ बढ़ने लगी. तभी सामने का दृश्य देख कर आश्चर्यचकित रह गई. आयरीन जिन की मोटरसाइकिल पर बैठ रही थी, वे सईद मास्साब थे.

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