‘विश्वासघातवहीं होता है जहां विश्वास होता है,’ यह सुनीसुनाई बात रिया को आज पूरी तरह सच लग रही थी. आधुनिक, सुशिक्षित, मातापिता की इकलौती सुंदर, मेधावी संतान रिया रोरो कर थक चुकी थी. अब वास्तविकता महसूस कर होश आया तो किसी तरह चैन नहीं आ रहा था. अपने मातापिता विक्रम और मालती से वह अपना सारा दुख छिपा गई थी. तनमन की सारी पीड़ा खुद अकेले सहन करने की कोशिश कर रही थी. पिछले महीने ही विक्रम को हार्टअटैक हुआ था. रिया अब अपने मातापिता को 15 दिन पहले अपने साथ हुए हादसे के बारे में बता कर दुख नहीं पहुंचाना चाहती थी.
रात के 2 बज रहे थे. आजकल उसे नींद नहीं आ रही थी. रातभर अपने कमरे में सुबकती, फुफकारती घूमती रहती थी. बारबार वह काला दिन याद आता जब वह संडे को अपनी बचपन की सहेली सुमन के घर एक बुक वापस करने गई थी.
रिया को बाद में अपनी गलती का एहसास हुआ था कि उसे सुमन से फोन पर बात करने के बाद ही उस के घर जाना चाहिए था. पर कितनी ही बार दोनों एकदूसरे के घर ऐसे ही आतीजाती रहती थीं. सहारनपुर में पास की गलियों में ही दोनों के घर थे. स्कूल से कालेज तक का साथ चला आ रहा था. सुमन से 2 साल बड़े भाई रजत को रिया भी बचपन से भैया ही बोलती आ रही थी. उस दिन जब वह सुमन के घर गई तो दरवाजा रजत ने ही खोला. वह सुमनसुमन करती अंदर चली गई. उस के घर के अंदर जाते ही रजत ने मेन गेट बंद कर ड्राइंगरूम का दरवाजा भी लौक कर लिया.
रिया ने पूछा, ‘‘सुमन कहां है, भैया?’’
रजत उसे घूर कर देखता हुआ मुसकराया, ‘‘सब शौपिंग पर गए हैं… घर पर कोई नहीं है.’’
‘‘ओह, आप ने बाहर बताया ही नहीं, चलती हूं. फिर आऊंगी.’’
रजत ने आगे बढ़ कर उसे बांहों में भर लिया, ‘‘चली जाना, जल्दी क्या है?’’
रिया को करंट सा लगा, ‘‘भैया, यह क्या हरकत है?’’
‘‘यह हरकत तो मैं कई सालों से करना चाह रहा था, पर मौका ही नहीं मिला रहा था.’’
‘‘भैया, शर्म कीजिए.’’
‘‘यह भैयाभैया मत करो…भाई नहीं हूं मैं तुम्हारा, सम4ां?’’
रिया को एहसास हो गया कि वह खतरे में है. उस ने अपनी जींस की जेब से मोबाइल फोन निकालने की कोशिश की तो रजत ने उसे छीन कर दूर फेंक दिया और फिर उसे जबरदस्ती उठा कर अपने बैडरूम में ले गया. रिया ने बहुत हाथपैर मारे, रोईगिड़गिड़ाई पर रजत की हैवानियत से खुद को नहीं बचा पाई. बैड पर रोतीचिल्लाती रह गई.
रजत ने धूर्ततापूर्वक कहा, ‘‘मैं बाहर जा रहा हूं, तुम भी अपने घर चली जाओ, किसी से कुछ कहने की बेवकूफी मत करना वरना मैं सारा इलजाम तुम पर ही लगा दूंगा… वैसे भी तुम इतनी मौडर्न फैमिली से हो और हम परंपरावादी परिवार से हैं, सब जानते हैं… कोई तुम पर यकीन नहीं करेगा. चलो, अब अपने घर जाओ. और रजत कमरे में चला गया.
रिया को अपनी बरबादी पर यकीन ही नहीं हो रहा था. जोरजोर से रोए जा रही थी. फिर अपने अस्तव्यस्त कपड़े संभाले और बेहद टूटेथके कदमों से अपने घर चली गई.
दोपहर का समय था. विक्रम और मालती दोनों सो रहे थे. रिया चुपचाप अपने कमरे में जा कर औंधे मुंह पड़ी रोतीसिसकती रही.
शाम हो गई. मालती उस के कमरे में आईं तो वह सोई हुई होने का नाटक कर
चुपचाप लेटी रही. एक कयामत सी थी जो उस पर गुजर गई थी. तनमन सबकुछ टूटा व बिखरा हुआ था. रात को वह अपने मम्मीपापा के कहने पर बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल कर उठी. थोड़ा सा खाना खाया, फिर सिरदर्द बता कर जल्दी सोने चली गई.
बारबार उस का मन हो रहा था कि वह अपने मम्मीपापा को अपने साथ हुए हादसे के बारे में बता दे पर डाक्टर ने उस के पापा विक्रम को किसी भी टैंशन से दूर रहने के लिए कहा था. मां मालती को बताती तो वे शायद पापा से छिपा न पाएंगी, यह सोच कर रिया चुप रह गई थी. अगले दिन सुमन कालेज साथ चलने के लिए आई तो रिया ने खराब तबीयत का बहाना बना दिया. वह अभी कहां संभाल पा रही थी खुद को.
रिया मन ही मन कु्रद्ध नागिन की तरह फुफकार रही थी. उसे रजत की यह बात तो सच लगी थी कि समाज की दूषित सोच उसे ही अपराधी ठहरा देगी. वैसे भी उस के परिवार की आधुनिक सोच आसपास के रहने वालों को खलती थी. विक्रम और मालती दोनों एक कालेज में प्रोफैसर थे. आंखें बंद कर के न किसी रीतिरिवाज का पालन करते थे, न किसी धार्मिक आडंबर का उन के जीवन में कोई स्थान था. 3 लोगों का परिवार मेहनत, ईमानदारी और अच्छी सोच ले कर ही चलता था. रिया को उन्होंने बहुत नए, आधुनिक, सकारात्मक व साहसी विचारों के साथ पाला था.
रिया मन ही मन खुद को तैयार कर रही थी कि वह अपने साथ हुए रेप के अपराधी को ऐसे नहीं छोड़ेगी. वह अपने हिसाब से उस अपराधी को ऐसी सजा जरूर देगी कि उस के जलते दिल को कुछ चैन आए. मगर क्या और कैसी सजा दे, यह सोच नहीं पा रही थी. कभी अपनी बेबसी पर तड़प कर रो उठती थी, तो कभी अपना मनोबल ऊंचा रखने के लिए सौ जतन करती थी.
रजत को सबक सिखाने के रातदिन उपाय सोच रहती थी. कभी मन होता कि रजत को इतना मारे कि उस के हाथपैर तोड़ कर रख दे पर शरीर से कहां एक मजबूत जवान लड़के से निबट सकती थी. फिर अचानक इस विचार ने सिर उठाया कि क्यों नहीं निबट सकती? आजकल तो हमारे देश की लड़कियां लड़कों को पहलवानी में मात दे रही हैं. फिर पिछले दिनों देखी ‘सुलतान’ मूवी याद आ गई. क्यों? वह क्यों नहीं शारीरिक रूप से इतनी मजबूत हो सकती कि अपने अपराधी को मारपीट कर अधमरा कर दे. हां, मैं हिम्मत नहीं हारूंगी.
मैं कोई सदियों पुरानी कमजोर लड़की नहीं कि सारी उम्र यह जहर अकेली ही पीती रहूंगी. रजत को उस के किए की सजा मैं जरूर दूंगी. यह एक फैसला क्या किया कि हिम्मत से भर उठी. शीशे में खुद को देखा. उस दिन के बाद आज पहली बार किसी बात पर दिल से मुसकराई थी. उस रात बहुत दिनों बाद आराम से सोई थी.
सुबह डाइनिंगटेबल पर उसे हंसतेबोलते देख विक्रम और मालती भी खुश हुए. विक्रम ने कहा भी, ‘‘आज बहुत दिनों बाद मेरी बच्ची खुश दिख रही है.’’
‘‘हां पापा, कालेज के काम थे…एक प्रोजैक्ट चल रहा था.’’
मन ही मन रिया अपने नए प्रोजैक्ट की तैयारी कर चुकी थी. पूरी प्लैनिंग कर चुकी थी कि उसे अब क्याक्या करना है. उस ने बहुत ही हलकेफुलके ढंग से कहा, ‘‘मम्मी, मु4ो जिम जौइन करना है.’’
‘‘अरे, क्यों? तुम्हें क्या जरूरत है? इतनी स्लिमट्रिम तो हो?’’
‘‘हां, स्लिम तो हूं पर शरीर अंदर से भी तो मजबूत होना चाहिए और मम्मी जूडोकराटे की क्लास भी जौइन करनी है.’’
विक्रम और मालती ने हैरानी से एकदूसरे को देखा. फिर विक्रम ने कहा, ‘‘ठीक है, जूडोकराटे तो आजकल हर लड़की को आने ही चाहिए… ठीक है, जिम भी जाओ और जूडोकराटे भी सीख लो.’’
अगला 1 महीना रिया सारा आराम, चिंता, दुख भूल कर अपनी योजना को
साकार करने की कोशिश में जुटी रही. सुबह कालेज जाने से पहले हैल्थ क्लब जाती. प्रशिक्षित टे्रनर की देखरेख में जम कर ऐक्सरसाइज करती. शाम को जूडोकराटे की क्लास होती. शुरू में ऐक्सरसाइज करकर के जब शरीर टूटता, मनोबल मुसकरा कर हाथ थाम लेता. क्लास से आ कर पढ़ने बैठती. अब उस पर एक ही धुन सवार थी कि रजत को सबक सिखाना है. पर जब हिम्मत टूटने लगती, उस दुर्घटना के वे पल याद कर फिर उठ खड़ी होती.
2 महीने में रिया को अपने अंदर अनोखी स्फूर्ति महसूस होने लगी. अब खूब फ्रैश रह कर अपने रूटीन में व्यस्त रहती. सुमन से वह पहले की ही तरह मित्रवत व्यवहार कर रही थी पर उस दिन के बाद वह सुमन के घर नहीं गई थी.
एक दिन सुमन ने बताया, ‘‘संडे को भैया की सगाई है. तुम जरूर आना, खूब मजा करेंगे… भैया भी बहुत खुश हैं. होने वाली भाभी बहुत अच्छी हैं.’’
‘‘अरे वाह, जरूर आऊंगी,’’ रिचा ने कह कर मन ही मन बहुत सारी बातों का हिसाब लगाया. फिर सुमन से कहा, ‘‘अपने भैया का फोन नंबर देना. मैं उन्हें पर्सनली भी बधाई दे देती हूं.’’
‘‘हांहां, देती हूं.’’
शुक्रवार को रिया ने रजत को फोन किया, रजत हैरान हुआ. रिया ने कहा, ‘‘मैं आप से मिलना चाहती हूं.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘जो हुआ सो हुआ, अब इस बात के लिए सुमन और अपनी दोस्ती में कोई बाधा खड़ी नहीं करना चाहती.’’
‘‘हां, तो ठीक है, मिलने की क्या जरूरत है?’’
‘‘परसों आप की सगाई है, इस बात को खत्म करते हुए मैं पहले आप से मिलना चाहती हूं. आप जानते हैं सुमन मेरी बैस्ट फ्रैंड है. वह मु4ो बारबार बुलाती है, आप की सगाई, शादी में भी उसे मेरे साथ ऐंजौय करना है तो पहले एक बार मिलने का मन है, थोड़ा सहज होने के लिए.’’
‘‘ठीक है, कहां मिलना है?’’
‘‘कंपनी गार्डन के पिछले हिस्से में.’’
‘‘पर वहां तो कम ही लोग जाते हैं?’’
‘‘आप डर रहे हैं?’’
‘‘नहींनहीं, ठीक है, आता हूं.’’
‘‘तो कल शाम 6 बजे.’’
‘‘ठीक है.’’
रिया ने चैन की सांस ली. चलो आने के लिए तैयार तो हुआ. मना कर देता तो इतने दिनों की मेहनत खराब हो जाती. वैसे उस ने सोच लिया था अगर मिलने के लिए ऐसे न मानता तो वह सगाई वाले दिन उस की हरकत सब को बताने की धमकी देती. आना तो उसे पड़ता ही. रिया ने सुमन से भी फोन पर बातें कीं.
सुमन बहुत खुश थी. बोली, ‘‘तुम थोड़ा पहले ही आ जाना. बहुत ऐंजौय करेंगे… भैया भी आजकल बहुत अच्छे मूड में हैं.’’
‘‘हां, जरूर आऊंगी.’’
शनिवार शाम को जब रिया अपनी स्कूटी से कंपनी गार्डन पहुंची तो वहां
रजत पहले से ही था. उसे देख कर बेशर्मी से मुसकराया, ‘‘मु4ा से मिलने का इतना ही मन था तो घर आ जाती… सुमन और मम्मीपापा तो अकसर शौपिंग पर जाते हैं.’’
रिया ने नफरत की आग सी महसूस की अपने मन में. फिर बोली, ‘‘जो मन में था, उस के लिए ऐसी ही जगह चाहिए थी.’’
‘‘अच्छा, बोलो क्या है मन में?’’ कहते हुए रजत ने रिया की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि रिया ने आव देखा न ताव और शुरू हो गई. कई दिनों का लावा फूटफूट कर अंगअंग से बह निकला. उस के अंदर एक बिजली सी भर गई. उस ने रजत के प्राइवेट पार्ट पर जम कर एक लात मारी. रजत के मुंह से तेज चीख निकली. इसी बीच रिया ने रजत को नीचे पटक दिया था.
वह चिल्लाया, ‘‘क्या है यह… रुक बताता हूं तु4ो अभी.’’
मगर वह फिर कुछ बताने की स्थिति में कहां रहा. पिछले दिनों सीखे सारे दांवपेंच आजमा डाले रिया ने. रजत रिया का कोई मुकाबला नहीं कर पाया. रिया ने उसे इतना मारा कि उसे अपनी पसलियां साफसाफ टूटती महसूस हुईं. उस के चेहरे से खून बह चला था, होंठ फट गए थे, चेहरे पर मार के कई निशान पड़ गए थे.
वह जमीन पर पड़ा कराह उठा, ‘‘सौरी, रिया, माफ कर दो मु4ो.’’
उसे पीटपीट कर जब रिया थक गई, तब वह रुकी. फिर अपनी चप्पल निकाल कर उस के सिर पर मारी और फिर अपनी स्कूटी स्टार्ट कर वहां से निकल गई. विजयी कदमों से घर वापस आ गई.
विक्रम और मालती शाम की सैर पर गए थे. बहुत दिनों बाद रिया के मन को आज इतनी शांति मिली कि भावनाओं के आवेश में उस की आंखों से आंसू भी बह निकले. इतने दिनों से शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को मजबूत बनाने के लिए उस ने जीतोड़ मेहनत की थी जो आज रंग लाई थी. वह बहुत देर यों ही लेटी रही. कभी खुशी से रो पड़ती, तो कभी खुद पर हंस पड़ती.
मालती आईं, बेटी का चमकता चेहरा देख कर खुश हुईं. बोलीं, ‘‘आज बहुत खुश हो?’’
‘‘हां मम्मी, एक प्रोजैक्ट पर काम कर रही थी. आज पूरा हो गया.’’
‘‘वाह, गुड,’’ कहते हुए मालती ने उसे प्यार किया.
रिया फिर आराम से घर के कामों में मालती का हाथ बंटाने लगी.
रात को 10 बजे सुमन का फोन आया, ‘‘रिया, बहुत गड़बड़ हो गई.’’
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘सगाई स्थगित करनी पड़ी. शाम को कई गुंडों ने मिल कर भैया पर हमला कर दिया… पता नहीं कौन थे. उन के हाथ और पसलियों में फ्रैक्चर है. चेहरे पर भी बहुत चोटें लगी हैं… भैया हौस्पिटल में एडमिट हैं… उन्हें बहुत दर्द है,’’ कह कर सुमन सुबकने लगी.
‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ… मेरी कोई जरूरत हो तो बताना?’’
‘‘हां, अब रखती हूं,’’ सुबकते हुए सुमन ने फोन रख दिया.
अपने कमरे में अकेली खड़ी रिया सुन कर हंस पड़ी. ड्रैसिंग टेबल के सामने
खड़ी हो कर खुद से बोली कि कई गुंडों ने मिल कर? नहीं, एक बहादुर लड़की ही काफी है ऐसे इंसान से निबटने के लिए.
रिया अपने कमरे में उत्साहित सी घूम रही थी, अपने किए पर खुद अपनेआप को शाबाशी दे रही थी… काम भी तो ऐसा ही किया था. शाबाशी तो बनती ही थी.
‘‘रिया मन ही मन खुद को तैयार कर रही थी कि वह अपने साथ हुए रेप के अपराधी को ऐसे नहीं छोड़ेगी…’’
‘‘अब उस पर एक ही धुन सवार थी कि रजत को सबक सिखाना है. पर जब हिम्मत टूटने लगती, उस दुर्घटना के वे पल याद कर फिर उठ खड़ी होती…’’