Valentine’s Special: मन का बोझ- क्या हुआ आखिर अवनि और अंबर के बीच

अंबर से उस के विवाह को हुए एक माह होने को आया था. इस दौरान कितनी नाटकीय घटना या कितने सपने सच हुए थे. इस घटनाक्रम को अवनि ने बहुत नजदीक से जाना था. अगर ऐसा न होता तो निखिला से विवाह होतेहोते अंबर उस का कैसे हो जाता? हां, सच ही तो था यह. विवाह से एक दिन पहले तक किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि निखिला की जगह अवनि दुलहन बन कर विवाहमंडप में बैठेगी. विवाह की तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी थीं. सारे मेहमान आ चुके थे. अचानक ही इस समाचार ने सब को बुरी तरह चौंका दिया था कि भावी वधू यानी निखिला ने अपने सहकर्मी विधु से कचहरी में विवाह कर लिया है. सब हतप्रभ रह गए थे. खुशी के मौके पर यह कैसी अनहोनी हो गई थी.

अंबर तो बुरी तरह हैरान, परेशान हो गया था. अमेरिका से उस की बहन शालिनी आई हुई थी और विवाह के ठीक 2 दिन बाद उस की वापसी का टिकट आरक्षित था. मांजी की आंखों में पढ़ी- लिखी, सुंदर बहू के आने का जो सपना तैर रहा था वह क्षण भर में बिखर गया था. वैसे ही अकसर बीमार रहती थीं. अब सब यही सोच रहे थे कि कहीं से जल्दी से जल्दी दूसरी लड़की को अंबर के लिए ढूंढ़ा जाए, लेकिन मांजी नहीं चाहती थीं कि जल्दबाजी में उन के सुयोग्य बेटे के गले कोई ऐसीवैसी लड़की बांध दी जाए.

अंबर के ही मकान में किराएदार की हैसियत से रहने वाली साधारण सी लड़की अवनि तो अपने को अंबर के योग्य कभी भी नहीं समझती थी. वैसे अंबर को उस ने चाहा था, पर उसे सदैव के लिए पाने की इच्छा वह जुटा ही नहीं पाती थी. वह सोचती थी, ‘कहां अंबर और कहां वह. कितना सुदर्शन और शिक्षित है अंबर. इतना बड़ा इंजीनियर हो कर भी पद का घमंड उसे कतई नहीं है. सुंदर से सुंदर लड़की उसे पा कर गर्व कर सकती है और वह तो रूप और शिक्षा दोनों में ही साधारण है.’

अवनि तो एकाएक चौंक ही गई थी मां से सुन कर, ‘‘सुना तुम ने अवनि, अंबर की मां ने अंबर के लिए तुझे मांगा है. चल जल्दी से दुलहन बनने की तैयारी कर और हां…सरला बहन 5 मिनट के लिए तुम से मिलना चाहती हैं.’’ अवनि तो जैसे जड़ हो गई थी. उस का सपना इस प्रकार साकार हो जाएगा, ऐसा तो उस ने सोचा भी न था. अचानक उस की आंखों से आंसू बहने लगे तो उस की मां घबरा गईं, ‘‘क्या बात है, अवनि, क्या तुझे अंबर पसंद नहीं? सच बता बेटी, तू क्यों रो रही है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, बस ऐसे ही दिल घबरा सा गया था.’’ तभी मांजी कमरे में आ गईं, ‘‘अवनि, बता तुझे यह विवाह मंजूर है न? देखो, कोई जबरदस्ती नहीं है. अंबर से भी मैं ने पूछ लिया है. इतने सारे चिरपरिचित चेहरों में मुझे तुम ही अपनी बहू बनाने योग्य लगी हो. इनकार मत करना बेटी.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं, मांजी,’’ इस से आगे अवनि एक शब्द भी न कह सकी और आगे बढ़ कर उस ने मांजी के चरण छू लिए. अगले दिन विवाह भी हो गया. कैसे सब एकदम से घटित हो गया, आज भी अवनि समझ नहीं पाती. वह दिन भी उसे अच्छी तरह याद है जब अंबर की बहन नेहा और अंबर लड़की देखने गए थे. आते ही नेहा ने उसे नीचे से आवाज लगाई थी, ‘‘अवनि दीदी, नीचे आओ.’’

‘‘क्या है, नेहा?’’ नीचे आ कर उस ने पूछा, ‘‘बड़ी खुश नजर आ रही हो.’’ ‘‘खुश तो होना ही है दीदी, अपने लिए भाभी जो पसंद कर के आ रही हूं.’’

‘‘सच, क्या नाम है उन का?’’ ‘‘निखिला, बड़ी सुंदर है मेरी भाभी.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है. बधाई हो नेहा…और आप को भी,’’ पास बैठे मंदमंद मुसकरा रहे अंबर की ओर मुखातिब हो कर अवनि ने कहा था. ‘‘धन्यवाद अवनि,’’ कह कर अंबर दूसरे कमरे में चला गया था.

अंबर की खुशी से अवनि भी खुश थी. कैसा विचित्र प्यार था उस का, जिसे चाहती थी उसे पाने की कामना नहीं करती थी, पर अपने मन की थाह तक वह खुद ही नहीं पहुंच सकी थी. बस एक ही तो चाह थी कि अंबर हमेशा खुश रहे. एक ही घर में रहने के कारण अवनि का रोज ही तो अंबर से मिलना होता था. अंबर के परिवार में थे नेहा, मांजी, अंबर, छोटा भाई सृजन तथा शालिनी दीदी, जो विवाह होने के बाद अमेरिका में रह रही थीं. सृजन बाहर छात्रावास में रह कर पढ़ाई कर रहा था. अंबर तो अकसर दौरों पर रहता था.

पर अंबर को देखते ही अवनि उन के घर से खिसक आती थी. शांत, सौम्य सा व्यक्तित्व था उस का, परंतु उस की उपस्थिति में अवनि की मुखरता, जड़ता का रूप ले लेती थी. वैसे जब कभी भी अनजाने में अंबर की आंखें अवनि को अपने पर टिकी सी लगतीं, वह सिहर जाती थी. जाने कब उसे अंबर बहुत अच्छा लगने लगा था. अंबर के मन तक उस की पहुंच नहीं थी. कभीकभी उसे लगता भी था कि अंबर के मन में भी एक कोमल कोना उस के लिए है. फिर वह सोचने लगती, ‘नहीं, भला अंबर व अवनि (धरती) का भी कभी मिलन हुआ है.’ जब कभी दौरे से लौटने में अंबर को देर हो जाती तो मांजी और नेहा के साथसाथ अवनि भी चिंतित हो जाती थी. कभीकभी उसे खुद ही आश्चर्य होता था कि आखिर वह अंबर की इतनी चिंता क्यों करती है, भला उस का क्या रिश्ता है उस से? कहीं उस की आंखों में किसी ने प्रेम की भाषा पढ़ ली तो? फिर वह स्वयं ही अपने मन को समझाती, ‘जो राह मंजिल तक न पहुंचा सके, उस पर चलना ही नहीं चाहिए.’

अवनि भी तो खुशीखुशी अंबर के विवाह की तैयारियां नेहा के साथ मिल कर कर रही थी. विवाह का अधिकांश सामान नेहा और उस ने मिल कर ही खरीदा था. निखिला की हर साड़ी पर उस की स्वीकृति की मुहर लगी थी. अवनि का दिल चुपके से चटका था, पर उस की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी. आंसू आंखों में ही छिप कर ठहर गए थे. बाबूजी उस के लिए भी लड़का ढूंढ़ रहे थे. पर संयोगिक घटनाओं की विचित्रता को भला कौन समझ सकता है. नेहा और मांजी ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया था. मांजी का तो बहूबहू कहते मुंह न थकता था.

एक अंबर ही ऐसा था जिसे पा कर भी अवनि उस के मन तक नहीं पहुंची थी. शादी के बाद वह कुछ ज्यादा ही व्यस्त दिखाई दे रहा था. कितना चाहा था अवनि ने कि अंबर से दो घड़ी मन की बातें कर ले. उस के मन पर एक बोझ था कि कहीं अंबर उसे पा कर नाखुश तो नहीं था. वैसे भी परिस्थितियों से समझौता कर के किसी को स्वीकार करना, स्वीकार करना तो नहीं कहा जा सकता. हो सकता है मांजी और शालिनी दीदी ने उस पर दबाव डाला हो या अपनी मां के स्वास्थ्य का खयाल कर के उस ने शादी कर ली हो.

अवनि के परिवार ने विवाह के दूसरे दिन ही अपने लिए दूसरा मकान किराए पर ले लिया था. शालिनी दीदी को भी दूसरे दिन दिल्ली जाना था. अंबर उन्हें छोड़ने चला गया था. मेहमान भी लगभग जा चुके थे.

अवनि मांजी के पास रहते हुए भी मानो कहीं दूर थी. काश, वह किसी भी तरह अंबर के मन तक पहुंच पाती. दिल्ली से लौट कर अंबर अपने दफ्तर के कामों में व्यस्त हो गया था. स्वयं तो अवनि अंबर से कुछ पूछने का साहस ही नहीं जुटा पा रही थी. प्रारंभ में अंबर की व्यस्ततावश और फिर संकोचवश चाह कर भी वह कुछ न पूछ सकी थी. अंबर भी अपने मन की बातें उस से कम ही करता था. इस से भी अवनि का मन और अधिक शंकित हो जाता था कि पता नहीं अंबर उसे पसंद करता है या नहीं.

अंबर शायद मन से अवनि को स्वीकार नहीं कर पाया था. वैसे वह उस के सामने सामान्य ही बने रहने का प्रयास करता था. कभी भी उस ने अपने मन के अनमनेपन को अवनि को महसूस नहीं होने दिया था. ऊपरी तौर से उसे अवनि में कोई कमी दिखती भी नहीं थी, पर जबजब वह उस की तुलना निखिला से करता तो कुछ परेशान हो जाता. निखिला की सुंदरता, योग्यता आदि सभी कुछ तो उस के मन के अनुकूल था. अवनि को अंबर प्रारंभ से ही एक अच्छी लड़की के रूप में पसंद करता था, पर जीवनसाथी बनाने की कल्पना तो उस ने कभी नहीं की थी. सबकुछ कितने अप्रत्याशित ढंग से घटित हो गया था.

दिन बीत रहे थे. धीरेधीरे अवनि का सुंदर, सरल रूप अंबर के समक्ष उद्घाटित होता जा रहा था. घरभर को अवनि ने अपने मधुर व्यवहार से मोह लिया था. मांजी और नेहा उस की प्रशंसा करते न थकती थीं. उस के समस्त गुण अब साथ रहने से अंबर के सामने आ रहे थे, जिन्हें वह पहले एक ही घर में रहने पर भी नहीं देख पाया था. उन दिनों नेहा की परीक्षाएं चल रही थीं और मां भी अस्वस्थ थीं. अवनि के पिताजी एकाएक उसे लेने आ गए थे, क्योंकि उन्होंने नया घर बनवाया था. पीहर जाने की लालसा किस लड़की में नहीं होती, पर अवनि ने जाने से इनकार कर दिया था. मांजी ने कहा था, ‘‘चली जाओ, दोचार दिन की ही तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’

पर अवनि ही तैयार नहीं हुई थी. वह नहीं चाहती थी कि नेहा की पढ़ाई में व्यवधान पड़े. अंबर सोचने लगा, जिस तरह अवनि ने उस के घरपरिवार के साथ सामंजस्य बैठा लिया था, क्या निखिला भी वैसा कर पाती? मांबाप की इकलौती बेटी, धनऐश्वर्य, लाड़प्यार में पली, उच्च शिक्षित, रूपगर्विता निखिला क्या इतना कुछ कर सकती थी? शायद कभी नहीं. वह व्यर्थ ही भटक रहा था. जो कुछ भी हुआ, ठीक ही हुआ. अंबर अब महसूस करने लगा था कि मां ने सोचसमझ कर ही अवनि का हाथ उस के हाथ में दिया था.

फिर एक दिन स्वयं ही अंबर कह उठा था, ‘‘सच अवनि, मैं बहुत खुश हूं कि मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. वैसे तुम से मेरा विवाह होना आज भी स्वप्न जैसा ही लगता है.’’ ‘‘क्या आप को निखिला से विवाह टूटने का दुख नहीं हुआ. कहां निखिला और कहां मैं.’’

‘‘नहीं अवनि, ऐसा नहीं है,’’ अंबर ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘निखिला से जब मेरा रिश्ता तय हुआ तो उस से लगाव भी स्वाभाविक रूप से हो गया था. फिर शादी से एक दिन पूर्व ही रिश्ता टूटने से ठेस भी बहुत लगी थी. वैसे भी निखिला से मैं काफी प्रभावित था. ‘‘सच कहूं, प्रारंभ में मैं एकाएक तुम से विवाह हो जाने पर बहुत प्रसन्न हुआ हूं, ऐसा नहीं था क्योंकि एक ही घर में रहते हुए तुम्हें जानता तो था, पर उतना नहीं, जितना तुम्हें अपनी सहचरी बना कर जाना. तुम्हारे वास्तविक गुण भी तभी मेरे सामने आए. तुम्हें एक अच्छी लड़की के रूप में मैं सदा ही पसंद करता रहा था. तुम्हारी सौम्यता मेरे आकर्षण का केंद्र भी रही थी, पर विवाह करने का मेरा मापदंड दूसरा ही था. इसीलिए मैं शायद तुम्हारे गुणों व नैसर्गिक सौंदर्य को अनदेखा करता रहा था, पर अब मुझे एहसास हो रहा है कि शायद मैं ही गलत था.

‘‘वैसे भी अवनि और अंबर को तो एक दिन क्षितिज पर मिलना ही था,’’ अंबर ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘सच,’’ अंबर की स्पष्ट रूप से कही गई बातों से अवनि के मन का बोझ भी उतर गया था.

Serial Story: अंत भला तो सब भला – भाग 4

विनय सर की बात सुन कर सासससुर को तो जैसे सांप सूंघ गया. उन्होंने ऐसी चुप्पी लगाई कि आधे घंटे तक इंतजार के बाद भी विनय सर कोई उत्तर न पा सके और चुपचाप उठ कर चले गए. उस के बाद घर का माहौल अजीब सा हो गया. सासससुर ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी. एक दिन जब ग्रीष्मा स्कूल से लौटी तो सासससुर का आपसी वार्त्तालाप उस के कानों में पड़ा. ‘‘देखो तो हम ने हमेशा इसे अपनी बेटी समझा और आज इस ने हमें ही बेसहारा करने की ठान ली. बेटे के जाते ही इस ने रंगरलियां मनानी शुरू कर दीं और ऊपर से लड़का भी छोटी जाति का. हम ब्राह्मण. क्या इज्जत रह जाएगी समाज में हमारी? कैसे सब को मुंह दिखाएंगे? इस ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा..सही ही कहा जाता है कि बहू कभी अपनी नहीं हो सकती,’’ कहते हुए सास ससुर के सामने रो रही थीं.

सासससुर की यह मनोदशा देख ग्रीष्मा का मन जारजार रोने को हो चला. वह सोचने लगी कि यह क्या तूफान ला दिया सर ने उस की जिंदगी में. सासससुर शायद अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठे थे. सच भी है वृद्धावस्था में असुरक्षा की भावना के कारण इंसान अपनी वास्तविक उम्र से अधिक का दिखने लगता है. वहीं बेटेबहू और नातीपोतों के भरेपूरे परिवार में रहने वाला इंसान अपनी उम्र से कम का ही लगता है.

किसी तरह रात काट कर वह स्कूल पहुंची. बिना कुछ सोचे सीधी सर के कैबिन में पहुंची और बोली, ‘‘कभीकभी इंसान अच्छा करने चलता है और कर उस का बुरा देता है. वही आप ने मेरे साथ किया है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ सर ने उत्सुकतावश पूछा. ‘‘सब गड़गड़ हो गया है. शाम को आप कौफी हाउस में मिलिए. वहां बताती हूं.’’

स्कूल की छुट्टी के बाद कौफी हाउस में उस ने सारी बात सर को बता दी. सर कुछ देर गंभीरतापूर्वक सोचते रहे फिर बोले, ‘‘मैं शाम को घर आता हूं.’’

‘‘आप आएंगे तो वे और अधिक क्रोधित हो जाएंगे…उन्हें आप की जाति से भी तो समस्या है…’’ ‘‘अरे कुछ नहीं होगा, मुझ पर भरोसा रखो, अभी तुम जाओ.’’

लगभग 7 बजे विनय सर घर आए तो हमेशा हंस कर उन का स्वागतसत्कार करने वाले सासससुर आज उन के साथ अजनबियों सा व्यवहार कर रहे थे जैसे वे कोई बहुत बड़े अपराधी हों. पर विनय सर ने सदा की भांति उन के पांव छुए और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद बाबूजी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘बाबूजी, क्या मैं आप का बेटा नहीं बन सकता? यदि आप अपनी बहू को बेटी बना कर इतना प्यार दे सकते हो कि वह अपने से पहले आप के बारे में सोचे, तो क्या मैं जिंदगी भर के लिए आप की बेटी का सहयोगी नहीं बन सकता? मैं मानता हूं कि मेरी जाति आप की जाति से भिन्न है, परंतु क्या जाति ही सब कुछ है बाबूजी? मैं और आप की बहू मिल कर इस घर की सारी जिम्मेदारियां उठाएंगे.’’ ‘‘वह अपनी मरजी की मालिक है. हम ने उसे कब रोका है? उस की जिंदगी उसे कैसे बितानी है, इस का निर्णय लेने के लिए वह पूरी तरह स्वतंत्र है,’’ ससुर ने अपनी बात रखते हुए कठोर स्वर में कहा और कमरे में चल गए.

‘‘बहू और कुणाल के जाने से हम तो बिलकुल अकेले हो जाएंगे. इस बुढ़ापे में हमारा क्या होगा? बेटा तो पहले ही साथ छोड़ गया और अब बहू भी…’’ कह कर सासूमां तो सर के सामने ही फूटफूट कर रोने लगीं. विनय सर मां के पास जा कर बोले, ‘‘मां आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आप की बहू और पोते को ले कर अलग रहूंगा. मैं तो यहीं आप सब के साथ इसी घर में रहूंगा. आप की बहू ने तो सर्वप्रथम यही शर्त रखी थी कि मांबाबूजी उस की जिम्मेदारी हैं और वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं तो आप सब के जीवन का हिस्सा भर बनना चाहता हूं.

‘‘मैं सिर्फ आप की बेटी की जिम्मेदारियों में उस का हाथ बंटाना चाहता हूं. मुझ पर भरोसा रखिए. आजीवन आप को निराश नहीं करूंगा. यदि आप मुझे अपनाते हैं तो मुझे एकसाथ कई रिश्ते जीने को मिलेंगे. मेरा भी एक भरापूरा पूरिवार होगा. मेरा इस संसार में कोई नहीं है. कभीकभी अकेलापन काटने को दौड़ता है. मैं तो आप का बेटा बन कर रहना चाहता हूं. आप के जीवन की समस्त परेशानियों को अपने ऊपर ले कर आप का जीवन खुशियों से भर देना चाहता हूं. परंतु यह सब होगा तभी जब आप और बाबूजी की अनुमति होगी,’’ कह कर विनय सर बाहर चले गए. कुछ विचार करते हुए ससुर विश्वनाथ अपनी पत्नी से बोले, ‘‘मुझे लगता है हमें इन दोनों की शादी करा देनी चाहिए.’’

‘‘कैसी बातें करते हो? हम ब्राह्मण और वह नीची जाति का… नहीं, मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा,’’ सास कुछ उत्तेजित स्वर में बोलीं.

‘‘जाति को खुद से चिपका कर क्या मिलेगा हमें? ऊंचीनीची जाति से क्या फर्क पड़ता है हमें? हमारा तो बुढ़ापा अच्छा कटना चाहिए. बेचारी बहू कब तक दे पाएगी हमारा साथ. दोनों कमाएंगे और मिल कर जिम्मेदारियां उठाएंगे तभी तो हम चैन से रह पाएंगे.’’

‘‘यह बात तो आप की सही है… हमें जाति से क्या करना. इंसान तो विनय अच्छा ही है. हमें मातापिता सा मान भी देता है,’’ सास ने भी अपने पति के सुर में सुर मिलाते हुए कहा. अगले दिन रविवार था, सुबहसुबह ही विश्वनाथ ने विनय को फोन कर के बुला लिया. जैसे ही विनय आए औपचारिक वार्त्तालाप के बाद वे बोले, ‘‘बेटा, हम ने तुम्हें गलत समझा. शायद हम स्वार्थी हो गए थे. क्या करें बेटा बुढ़ापा ऐसी चीज है जो आदमी को स्वार्थी बना देती है.

‘‘वृद्ध सब से पहले अपनी सुरक्षा और हितों के बारे में सोचने लगते हैं. हम ने भी अपनी बेटे जैसी बहू के भविष्य के बारे में न सोच कर सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचा, जबकि उस ने सदा पहले हमारे बारे में सोचा. कौन कहता है कि बहू कभी बेटी नहीं हो सकती? मेरी बहू तो मिसाल है उन लोगों के लिए जो बहू और बेटी में फर्क करते हैं. ‘‘इस घर की बहू होने के बाद भी उस ने सदा बेटे की ही भांति सारे फर्ज निभाए हैं.

आज तक उस ने बस दुख ही दुख देखा है और आज जब तुम उस की झोली में खुशियां डालना चाहते हो, उस की जिम्मेदारियां बांटना चाहते हो, तो हम उस के मातापिता ही उस के बैरी हो गए. बस मेरी बेटी को सदा खुश रखना,’’ कह कर विश्वनाथ जी ने विनय सर के आगे हाथ जोड़ दिए.

परदे की ओट में खड़ी ग्रीष्मा सासससुर का यह बदला रूप देख कर हैरान थी. पर अंत भला तो सब भला सोच दौड़ कर अपने सासससुर के गले लग गई. ‘‘हम आप को कभी निराश नहीं करेंगे,’’ कह कर विनय सर और ग्रीष्मा ने झुक कर दोनों के जब पैर छुए तो विश्वनाथ और उन की पत्नी ने खुश हो कर अपने आशीष भरे हाथ उन की पीठ पर रख दिए.

Valentine’s Day: प्रतियोगिता

रोज की तरह आज भी शैली सुबहसुबह सोसाइटी के पार्क में टहलने के लिए पहुंची. 32 साल की शैली खुले बालों में आकर्षक लगती थी. रंग भले ही सांवला था मगर चेहरे पर आत्मविश्वास और चमक की वजह से उस का व्यक्तित्व काफी आकर्षक नजर आता था. वह एक सिंगल स्मार्ट लड़की थी और एक कंपनी में काफी ऊंचे पद पर काम करती थी. उसे अपने सपनों से प्यार था. शैली करीब 3 महीने पहले ही इस सोसाइटी में आई थी.

खुद को फिट और हैल्दी बनाए रखने के लिए वह हर संभव प्रयास करती. हैल्दी खाना और हैल्दी लाइफ़स्टाइल अपनाती. रोज सुबह वॉक पर निकलती तो शाम में डांस क्लास के लिए जाती. आज ठंड ज्यादा थी सो उस ने वार्मर के ऊपर एक स्वेटर भी पहन रखा था. टहलतेटहलते उस की नजरें किसी को ढूंढ रही थीं. रोज की तरह आज वह लड़का उसे कहीं नजर नहीं आ रहा था जो सामने वाली फ्लैट में रहता था और रोज इसी वक्त टहलने के लिए आता था. टीशर्ट के ऊपर पतली सी जैकेट और स्लीपर्स में भी वह लड़का शैली को काफी स्मार्ट नजर आता था.

अभी दोनों अजनबी थे. इसलिए बस एकदूसरे को निगाह भर कर देखते और आगे बढ़ जाते. इधर कुछ दिनों से दोनों के बीच हल्की सी मुस्कान का आदानप्रदान भी होने लगा था. आज उस लड़के को न देख कर शैली थोड़ी अचंभित थी क्योंकि मौसम कैसा भी हो, कुहासे की चादर फैली हो या फिर बारिश हो कर चुकी हो, वह लड़का जरूर आता था. अगले दो दिनों तक शैली को वह नजर नहीं आया तो शैली उस के लिए थोड़ी चिंतित हो गई. कोई रिश्ता न होते हुए भी उस लड़के के लिए वह एक अपनापन सा महसूस करने लगी थी. वह सोचने लगी कि हो सकता है उस के घर में कोई बीमार हो या वह कहीं गया हुआ हो.

तीसरे दिन जब वह लड़का दिखा तो शैली एकदम से उस के करीब पहुँच गई और पूछा,” आप कई दिनों से दिख नहीं रहे थे, सब ठीक तो है?”

“कई दिनों से कहां, केवल 2 दिन ही तो… ”

“हां वही कह रही थी. सब ठीक है न? ”

“यस एवरीथिंग इज फाइन. थैंक यू…  वैसे आज मुझे पता चला कि आप मुझे औब्जर्व भी करती हैं,” चमकीली आंखों से देखते हुए उस ने कहा.

“अरे नहीं वह तो रोज देखती थी न..,” शैली शरमा गई.

” एक्चुअली मेरे नौकर की बेटी बीमार थी. उसी के इलाज के चक्कर में हॉस्पिटलबाजी में लगा था,” उस लड़के ने बताया.

“आप अपने नौकर की बेटी के लिए भी इतनी तकलीफ उठाते हैं?” आश्चर्य से शैली ने पूछा.

” क्यों नहीं आखिर वह भी हमारे परिवार की सदस्य जैसी ही तो है.”

“नाइस. आप के घर में और कौनकौन है?”

“बस अपनी मां के साथ रहता हूं. पत्नी से तलाक हुए 3 साल हो चुके हैं. .., ” कहते हुए उस लड़के ने परिचय के लिए हाथ बढ़ाया.

शैली ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,” मैं यहां अकेली ही रहती हूं, अब तक शादी नहीं की है. मेरा नाम शैली है और आप का?”

” माईसेल्फ रोहित. नाइस टू मीट यू.”

इस के बाद काफी समय तक दोनों वाक करने के साथ ही बातें करते रहे. आधे घंटे की वाक पूरी करतेकरते दोनों के बीच अच्छीखासी दोस्ती हो गई. मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी हो गया. अब दोनों फोन पर भी एकदूसरे से कनेक्टेड रहने लगे. धीरेधीरे दोनों की जानपहचान गहरी दोस्ती में बदल गई. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बहुत पसंद आने लगा. दोनों फिटनेस फ्रीक होने के साथ स्ट्रांग मेंटल स्टेटस वाले लोग थे. दूसरों की परवाह न करना, अपने काम से काम रखना, रिश्तों को अहमियत देना और काम के साथसाथ स्टाइल में जीवन जीना. जीवन के प्रति दोनों की ही सोच एक जैसी थी. वे काफी समय साथ बिताने लगे. वक्त इसी तरह गुजरता जा रहा था.

इधर उन दोनों की दोस्ती सोसाइटी में बहुत से लोगों को नागवार गुजर रही थी. खासकर रोहित की पड़ोसन माला बहुत अपसेट थी. उस की कभी कभार शैली से भी बातचीत हो जाती थी. उस दिन भी शैली घर लौट रही थी तो रास्ते में वह मिल गई.

फॉर्मल बातचीत के बाद माला शुरू हो गई,” यार मैं ने कितनी कोशिश की कि रोहित मुझ से पट जाए. उस के लिए क्याक्या नहीं किया. कभी उस की पसंद का खाना बना कर उस के घर ले गई तो कभी उस के लिए अपने बालों की स्मूथनिंग कराई. कभी उसे रिझाने के लिए एक से बेहतर एक कपड़े खरीदे तो कभी उस के पीछे अपना पूरा दिन बर्बाद किया. मगर उस ने कभी मेरी तरफ ढंग से देखा भी नहीं. देख जरा कितनी खूबसूरत हूं मैं. कॉलेज में सब मुझे मिस ब्यूटी कहते थे. एक बात और जानती है, उस की तरह मैं भी राजपूत हूं. उबलता हुआ खून है हम दोनों का. मगर देख न मेरा तो चक्कर ही नहीं चल सका. अब तू बता, तूने ऐसी कौन सी घुट्टी पिला दी उसे जो वह….”

जो वह ..? क्या मतलब है तुम्हारा?”

“मतलब तुम दोनों के बीच इलूइलू की शुरुआत कैसे हुई? ”

“देखिए इलूविलू मैं नहीं जानती. मैं बस इतना जानती हूं कि वह मेरा दोस्त बन चुका है और हमेशा रहेगा. इस से ज्यादा न मैं जानती हूं न तुम से या किसी और से सुनना या बात करना चाहती हूं,”  टका सा जवाब दे कर शैली अपने फ्लैट में घुस गई.

शैली के जाते ही पड़ोस की रीमा आंटी माला के पास आ गई. माला गुस्से में बोली,” आंटी तेवर तो देखो इस के. सोसाइटी में आए दिन ही कितने बीते हैं और इस चालाक लोमड़ी ने रोहित को अपने जाल में फंसा लिया.”

“बहुत ऊंचा दांव खेला है इस लड़की ने. सोचा होगा कि इस उम्र में कुंवारे कहां मिलेंगे. चलो तलाकशुदा को ही पकड़ लिया जाए और तलाकशुदा जब रोहित जैसा हो तो कहना ही क्या. धनदौलत की कमी नहीं. देखने में भी किसी चार्मिंग हीरो से कम नहीं लगता. मैं ने तो अपनी नेहा के लिए इस से कितनी बार बात करनी चाही पर यह हमेशा ऐसा नादान बन जाता है जैसे कुछ समझ ही न रहा हो.”

“नेहा कौन आंटी, आप की भतीजी?”

“हां वही. जब भी मेरे घर आती है तो रोहित की ही बातें करती रहती है. रोहित के घर भी जाती है, उस की मां से भी अच्छी फ्रेंडशिप कर ली है, पर वह उसे भाव ही नहीं देता.”

“आंटी नेहा तो अभी बच्ची है. आप उस के लिए कोई और लड़का देख लीजिये. मैं तो अपनी बात कर रही थी. बताओ मुझ में क्या कमी है?” माला ने पूछा.

“सही कह रही है माला. मेरे लिए तो जैसे नेहा है वैसी ही तू है. मेरी नेहा न सही वह तुझ से ही शादी कर ले तो भी मैं खुश हो जाउंगी. फूल सी बच्ची है तू भी पर आजकल तेरी शक्ल पर 12 क्यों बजे रहते हैं? कई दिनों से ब्यूटी पार्लर नहीं गई क्या?” रीमा आंटी ने माला को गौर से देखते हुए कहा.

“हां आंटी आप सच कह रही हो. कल ही पार्लर जा कर आती हूं. अपना लुक बिल्कुल ही बदल डालूंगी फिर देखूंगी रोहित कैसे मुझे छोड़ कर किसी और पर नजर भी डालता है?”

“सही है. मैं भी अपनी नेहा के लिए लेटेस्ट फैशन के कुछ कपड़े और ज्वेलरी लाने जाने वाली हूं,” आँख मारते हुए आंटी ने कहा तो दोनों हंस पड़ी.

शैली और रोहित को साथ देख कर इन की तरह कुछ और लोगों के सीने पर भी सांप लोटने लगे थे. शैली के बगल में रहने वाली देवलीना आंटी को अपने बेटे के लिए शैली बहुत पसंद थी. जॉब करने वाली इतनी कॉन्फिडेंट और खूबसूरत लड़की को ही वह अपनी बहू बनाना चाहती थी. शैली दिखने में आकर्षक होने के साथसाथ एक कमाऊ लड़की भी थी. जब कि उन के इकलौते बेटे पीयूष का बिज़नेस ठीक नहीं चल रहा था. जाहिर था कि अगर शैली उन के घर में आ जाती तो सब कुछ चमक जाता. इसी चक्कर में पिछले 2 महीने से उन्होंने अपने बेटे के लुक पर मेहनत करनी शुरू कर दी थी. उन के बेटे का पेट थोड़ा निकला हुआ था. वह एक्सरसाइज वगैरह से दूर भागता था जब कि शैली को उन्होंने जिम जाते और मॉर्निंग वॉक करते देखा था.

देवलीना आंटी ने बेटे को जिम भेजना शुरू कर दिया था ताकि वह भी आकर्षक नजर आए. इस बीच शैली और रोहित को साथ मॉर्निंग वाक करते देख आंटी के मन में कंपटीशन की भावना बढ़ने लगी.

सुबह 7 बजे भी बेटे को सोता देख कर उन्होंने उस की चादर खींची और चिल्लाती हुई बोली,” रोहित जानबूझ कर शैली के साथ वॉक करने लगा है ताकि उस के करीब आ सके और एक तू है…  तू क्या कर रहा है ? चादर तान कर सो रहा है? चल उठ और पता कर कि शैली जिम करने किस समय जाती है. कल से तुझे भी उसी समय जिम जाना होगा.”

बेटे ने भुनभुनाते हुए चादर फिर से ओढ़ ली और बोला,” यार मम्मी मुझे नहीं जाना जिमविम.”

“समय रहते चेत जा लड़के. ऐसी लड़की घर की बहू बन कर आ गई तो पैसों की कमी नहीं रहेगी. तेरा बिजनेस तो सही चलता नहीं है, कम से कम बहू तो कमाऊ ले आ. चल उठ मैं ने कोई बहाना नहीं सुनना. खुद तो बात आगे बढ़ा नहीं पाता बस उसे देख कर दांत भर निकाल देता है. कभी यह कोशिश नहीं करता कि कैसे उसे अपने प्यार में पागल किया जाए.”

” ओह मम्मी, प्यार ज़बरदस्ती नहीं किया जाता. जिस से होना होगा हो जाएगा.”

” तो क्या बुढ़ापे में प्यार होगा और शादी भी बुढ़ापे में करेगा?”

” मम्मी अरैंज मैरिज कर लूंगा. डोंट वरी. मुझे सोने दो,” उनींदी आवाज़ में पियूष ने कहा और करवट बदल कर सो गया.

आंटी को गुस्सा आ गया. इस बार उन्होंने एक गिलास पानी उस के मुंह पर उड़ेल दिया और चिल्लाईं,” चल उठ और जिम हो कर आ. चल जा… ”

शैली को रोहित के साथ देख कर ऐसी हालत केवल देवलीना आंटी की ही नहीं थी बल्कि कुछ और लोग भी थे जो शैली को अपनी बहू या बीवी बनाने के सपने देख रहे थे. उन के दिल में भी रोहित को ले कर प्रतियोगिता की भावना घर करने लगी थी. सब अपनेअपने तरीके से इस प्रतियोगिता को जीतने की कोशिश में लग गए.

निलय मित्तल तो शैली के घर ही पहुंच गए. शैली का निलय जी से सिर्फ इतना ही परिचय था कि वह इसी सोसाइटी में रहते हैं और किसी कंपनी में मैनेजर हैं. उन्हें अपने घर देख कर शैली चकित थी.

चाय वगैरह पूछने के बाद शैली ने आने की वजह पूछी तो निलय मित्तल बड़े प्यार से शैली से कहने लगे, “बेटा तू जिस कंपनी में  है उस में मेरा दोस्त भी काम करता है. उस ने तेरे बारे में एक बार बताया था. इतनी कम उम्र में तूने कंपनी में अपनी खास जगह बना ली है. मेरा बेटा विकास भी इसी फील्ड में है. तभी मैं ने सोचा कि तुम दोनों की दोस्ती करा दूँ. वैसे तो दोनों ऑफिस चले जाते हो सो एकदूसरे से मिल नहीं पाते. मगर यह तुझे कभी भी आतेजाते देखता है तो तारीफ करता है. मेरी वाइफ भी तुझे पसंद करती और जानती है हम भी इलाहाबाद के वैश्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं. हम भी महाराजा अग्रसेन के वंशज हैं. तेरे घर के बुजुर्ग हमारे परिवार को जरूर जानते होंगे”

” जी अंकल हो सकता है. मुझे आप से और विकास से मिल कर अच्छा लगा. कभी जरूरत पड़ी तो मैं विकास को जरूर याद करूंगी.”

” अरे बेटा कभी जरूरत पड़ी की क्या बात है ? हम एक ही जगह से हैं, तुम दोनों एक ही फील्ड के हो, एक ही जाति के भी हो. आपस में मिलते रहा करो. समझ रही है न बेटी? मेरा विकास तो बहुत शर्मीला है. तुझे ही बात करनी होगी. स्विमिंग पूल के बगल वाली बिल्डिंग के पांचवें फ्लोर पर हम रहते हैं. मैं तो कहता हूं आज रात तू हमारे यहां खाने पर आ जा.”

” जी अंकल बिल्कुल मैं ख्याल रखूंगी मगर खाने पर नहीं आ पाऊंगी क्योंकि मुझे आज ऑफिस में देर हो जाएगी. अच्छा अंकल मुझे अभी ऑफिस के लिए निकलना होगा. आप बताइए चायकॉफी कुछ बना दूं ?” शैली ने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा.

” अरे नहीं बेटा. बस तुझ से ही मिलने आए थे.”

शैली की बिल्डिंग के सब से ऊपरी फ्लोर पर रहने वाले गुप्ता जी भी एक दिन लिफ्ट में मिल गए. वह शैली से पूछने लगे, “तुम इलाहाबाद की हो न.”

“जी,” शैली ने जवाब दिया.

“मेरा दोस्त भी उधर का ही है और वह भी बनिया ही है . उस के बेटे की फोटो दिखाता हूं. यह देख कितना स्मार्ट है. तुझे बहुत पसंद करता है,” गुप्ता जी ने मौका देखते ही निशाना साधने की कोशिश की थी.

“अरे यह तो सूरज है. मैं जब बास्केटबॉल खेलने जाती हूं तो एक कोने में खड़े रह कर मुझे देखता रहता है. जिम जाती हूं तब भी नजर आता है और ऑफिस जाते समय भी…” शैली ने उसे पहचानते हुए कहा.

“तू गौर करती है न इस पर, असल में यह बस तुझे नजर भर कर देखने को ही तेरा पीछा करता है. दिल का बहुत अच्छा है बस बोल नहीं पाता.”

“पर अंकल मैं तो इसे स्टॉकर समझ कर पुलिस में देने वाली थी. ”

“अरे बेटा यह कैसी बात कर रही है? यह तो बस इस का प्यार है,” गुप्ता जी ने समझाने के अंदाज़ में कहा.

“बहुत अजीब प्यार है अंकल. इसे कहिए थोड़ा ग्रूम करे,” कह कर हंसी छिपाती शैली वहां से निकल गई.

इस तरह शैली और रोहित की दोस्ती ने सोसायटी के बहुत सारे लोगों के दिलों में दर्द पैदा कर दिया था. शैली और रोहित इन लोगों के बारे में एकदूसरे को बता कर खूब हंसते. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की दोस्ती इतने लोगों के दिलोदिमाग में खलबली मचा देगी. दोनों एकदूसरे का साथ एंजॉय करते. अब वे सोसाइटी के बाहर भी एकदूसरे से मिलने लगे थे. धीरेधीरे उन के बीच की दोस्ती प्यार में तब्दील होने लगी. दोनों काबिल थे. एकदूसरे को पसंद करते थे. रोहित की मां को भी इस रिश्ते से कोई गुरेज नहीं था.

उस दिल शैली का जन्मदिन था. रोहित ने तय किया था कि वह इस बार शैली को बर्थडे पर सरप्राइज देगा. इस के लिए उस ने एक रिसोर्ट बुक कराया. शानदार तरीके से उस का बर्थडे मनाया. रात 12 बजे केक काटा गया.

उस रात रोहित ने प्यार से शैली से पूछा,” आज के दिन तुम मुझ से जो भी मांगोगी मैं उसे पूरा करूंगा. बताओ तुम्हें मुझ से क्या चाहिए?”

“रियली ?”

“यस ”

“तो फिर ठीक है. मुझे आज कुछ लोगों की आंखों का सपना छीन कर उसे अपना बनाना है.”

“मतलब ?”

” मतलब जिन की आंखों में तुम्हें या मुझे ले कर सपने सजते रहते हैं उन्हें उन के सपनों से हमेशा के लिए दूर करना है. उन सपनों को अपनी आंखों में सजाना है यानी तुम्हें अपना बनाना है,” एक अलग ही अंदाज में शैली ने कहा और मुस्कुरा उठी.

रोहित को जैसे ही बात समझ में आई तो उस ने शैली को अपनी बाहों में भर लिया और उसी अंदाज में बोला,” तो ठीक है सपनों को नया अंजाम देते हैं. इस रिश्ते को प्यारा सा नाम देते हैं. ”

दोनों की आँखों में उमंग भरी एक नई जिंदगी की मस्ती घुल गई और दोनों एकदूसरे में खो गए. एक महीने के अंदर शादी कर शैली रोहित की बन गई और इस के साथ ही बहुतों के सपने एक झटके में टूट गए.

Valentine’s Day: पिया का घर

कृष्णा अपने घने व काले केश बालकनी में खड़ी हो कर सुलझा रही थी. उस की चायजैसी भूरी रंगत को उस के घने केश और अधिक मादक बनाते थे. शादी के 10 वर्षों बाद भी सत्या उतना ही दीवाना था जितना पहले वर्ष था. सत्या का प्यार उस की सहेलियों के बीच ईर्ष्या का विषय था. पर कभीकभी सत्या के व्यवहार से कृष्णा के मन में संशय भी होता था कि यह प्यार है या दिखावा.

कुल मिला कर जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. छोटा सा परिवार था कृष्णा का, पति सत्या और बेटी विहा. लेकिन कुछ माह से कृष्णा ने महसूस किया था कि सत्या देररात को घर आने लगा है. जब भी कृष्णा पूछती, तो सत्या यह ही बोलता, ‘तुम्हारे और विहा के लिए खट रहा हूं वरना मेरे लिए दो रोटी काफी हैं.’

पर कृष्णा के मन को फिर भी ऐसा लगता था कि कहीं कुछ तो गलत हैं. बाल सुलझाते हुए कृष्णा के मन में यह सब चल रहा था कि बाहर दरवाज़े पर घंटी बजी. दरवाजा खोला, देखा सत्या खड़ा है. कृष्णा कुछ बोलती, सत्या बोल पड़ा, “अरे, उदयपुर जा रहा हूं 5 दिनों के लिए.

इसलिए सोचा कि आज पूरा दिन अपनी बेगम के साथ बिताया जाए.”

फिर सत्या ने 2 पैकेट पकड़ाए. कृष्णा ने खोल कर देखा, एक में बहुत सुंदर जैकेट थी और दूसरे में एक ट्रैक सूट. कृष्णा मुसकराते हुए बोली, “अच्छा, हर्जाना भर रहे हो नए साल पर यहां न होने के लिए?”

सत्या उदास होते हुए बोला, “कृष्णा, बस, 2 साल और, फिर मेरे सारे समय पर तुम्हारा ही हक होगा.”

कृष्णा रसोई में चाय बनाते हुए सोच रही थी कि सत्या आखिर परिवार के लिए सब कर रहा है और वह है कि शक करती रहती है. शाम को पूरा परिवार विहा के पसंदीदा होटल में डिनर करने गया था. सब ने लौंग ड्राइव की. डिनर के बाद कृष्णा का पसंदीदा पान और विहा की आइसक्रीम.

रात में कृष्णा ने सत्या के करीब जाना चाहा तो सत्या बोला, “कृष्णा, थक गया हूं, प्लीज आज नहीं.”

कृष्णा मन मसोस कर बोली, “यह तुम 7 महीनों से कह रहे हो?”

सत्या बोला, “यार, वर्कप्रैशर इतना है, क्या करूं. अच्छा, उदयपुर से वापस आ कर डाक्टर के पास चलते हैं, खुश, शायद काम की अधिकता के कारण मेरी पौरुषशक्ति कम हो गई है.” और सत्या गहरी नींद में डूब गया. कृष्ण सोच रही थी कि कहीं सत्या की क्षुधा कहीं और तो पूरी नहीं हो रही है. पर उस का मन यह मानने को तैयार नहीं था.

सुबह सत्या एयरपोर्ट के लिए निकल गया और कृष्णा, विहा के साथ शौपिंग करने निकल गई. घर आ कर विहा अपनी चीज़ों में व्यस्त थी और कृष्णा ने अपना मोबाइल उठाया तो देखा, उस में सत्या के मैसेज थे कि वह एयरपोर्ट पहुंच गया है और उदयपुर पहुंच कर कौल करेगा.

कृष्णा फोन रख ही रही थी कि उस ने देखा कि किसी सिद्धार्थ के मैसेज भी थे. उस ने उत्सुकतावश मैसेंजर खोला, तो मैसेज पढ़ कर उस के होश उड़ गए.

सिद्धार्थ के हिसाब से सत्या उदयपुर नहीं, नोएडा के लेमन राइस होटल में पूजा नाम की महिला के साथ रंगरलियां मना रहा है.

कृष्णा को लगा कि कोई शायद उस के साथ घटिया मज़ाक कर रहा है, इसलिए उस ने लिखा, ‘कैसे विश्वास करूं कि तुम सच बोल रहे हो?”

उधर से जवाब आया, ‘रूम नंबर 204, सैक्टर 62, होटल लेमन राइस, नोएडा.’

पूरी रात कृष्णा अनमनी ही रही. सत्या का फ़ोन आया था, वह कृष्णा को बता रहा था कि उस ने कृष्णा के लिए लाल रंग की बंधेज खरीदी हैं और विहा के लिए जयपुरी घाघरा.

फ़ोन रखकर कृष्णा को लगा कि वह कितना गलत सोच रही थी सत्य के बारे में. दोपहर में कृष्णा मैसेंजर पर सिद्धार्थ को ब्लौक करने ही वाली थी कि उस ने देखा, 3 फ़ोटो थे जो सिद्धार्थ ने भेजे हुए थे. तीनों फ़ोटो में एक औरत, सत्या के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. तब कृष्णा सोचने लगी कि अच्छा तो इस का नाम पूजा है. कजरारी आंखें, होंठों पर लाल लिपस्टिक और लाल बंधेज की साड़ी. क्या अपनी महबूबा की उतरन ही उसे सत्या पहनाता है.

सुबह कृष्णा, विहा को साथ ले कर मेरठ से नोएडा के लिए निकल गई. वह अब दुविधा में नहीं रहना चाहती थी. नोएडा में वह अपने मम्मीपापा के घर पहुंची. पता चला मम्मीपापा गांव गए हुए हैं. कृष्णा के भैया बोले, “अरे, एकदम से, अचानक और सत्य कहां है?”

कृष्णा बोली, “भैया, आप की बहुत याद आ रही थी. बस, चली आई. और कल मेरे कुछ पुराने दोस्तों का नोएडा में गेटटूगेदर है, सोचा, आप लोगों से मिल भी लूंगी और दोस्तों से भी.”

सुबह नाश्ता कर के कृष्णा धड़कते हुए दिल के साथ होटल पहुंची. वह रिसैप्शन पर पहुंची ही थी कि सामने से सत्या और पूजा दिखाई दे गए थे. सत्या का चेहरा सफेद पड़ गया था पर फिर भी बेशर्मी से बोला, “तुम यहां क्या कर रही हो?”

कृष्णा आंसू पीते हुए बोली, “तुम्हें लेने आई हूं.”

सत्या बोला, “मैं दूध पीता बच्चा नही हूं, घर का रास्ता पता हैं मुझे.”

कृष्णा पूजा की तरफ गुस्से से देखते हुए बोली, “तो यह है आप का जरूरी काम जो तुम उदयपुर करने गए थे?”

सत्या भी बिना झिझक के बोला, “हां, यह पूजा मेरे साथ मेरे बिज़नैस में मदद करती है. कल ही हम उदयपुर से आए हैं और आज तो मैं मेरठ पहुंच कर तुम्हें सरप्राइज देने वाला था.”

कृष्णा बिना कुछ कहे दनदनाते हुए वापस अपने घर चली गई. जब भैया और भाभी ने पूरी बात सुनी तो भाभी बोली, “अरे, ऐसी औरतों के लिए अपना घर छोड़ने की गलती मत करना. कल मैं तुम्हें गुरुजी के पास ले कर जाऊंगी, तुम चिंता मत करो.”

अगले दिन जब कृष्णा अपनी भाभी के साथ वहां पहुंची तो गुरुजी ने बिना कुछ कहे ही जैसे उस के मन का हाल जान लिया था. कृष्णा को भभूति देते हुए गुरुजी ने कहा, “अपने पति के खाने में मिला देना. कम से कम एक माह तक ऐसा करोगी तो उस औरत का काला जादू उतर जाएगा. उस औरत ने तुम्हारे पति पर वशीकरण कर रखा है. जब वे वापस आएं तो कुछ मत कहना. गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा करो और शुक्रवार को पूरी निष्ठा से उपवास करना.”

कृष्णा अगले दिन जब मेरठ जाने के लिए निकली तो भाभी बोली, “कृष्णा, मम्मीपापा से इस बात का जिक्र मत करना. तुम ये उपाय करोगी तो समस्या का समाधान अवश्य होगा, थोड़ा धीरज से काम लेना.”

कृष्णा वापस अपने घर आ गई और ठीक दूसरे दिन सत्या भी आ गया था. न सत्या ने कोई सफाई दी, न कृष्णा ने कोई सवाल किया. घर का माहौल थोड़ा घुटाघुटा सा था पर कृष्णा को विश्वास था कि वह पति को सही रास्ते पर ले आएगी.

रोज़ चाय या खाने में कृष्णा भभूति डाल कर देने लगी थी. सत्या अब समय पर घर आने लगा था. कृष्णा को लगा, शायद, गुरुजी के उपाय काम कर रहे हैं.

उधर सत्या एक पहुंचा हुआ खिलाड़ी था. वह शिकार तो अब भी कर रहा था पर अब उस ने खेलने का तरीका बदल दिया था. अब वह घर से ही अपनी महिलामित्रों को फ़ोन करने लगा था. जब कृष्णा कुछ कहती तो वह उसे अपनी बातों में उलझा लेता था. कृष्णा को अपनी बुद्धि से अधिक भभूति व व्रत पर विश्वास था. वह सबकुछ जान कर भी आंखें मूंदे हुए थी. पर एक रोज़ तो हद हो गई जब बड़ी बेशर्मी से सत्या कृष्णा के सामने ही पूजा से वीडियो कौल कर रहा था.

कृष्णा अपना आपा खो बैठी और गुस्से में उस के हाथ से फ़ोन छीनते हुए बोली, “तुम ने सारी हदें पार कर दीं हैं. मेरे नहीं, तो कम से कम विहा के बारे में तो सोचो. क्या कमी है मुझ में?”

सत्या खींसे निपोरते हुए बोला, “तुम्हारे अंदर अब न वह हुस्न है न वह मादकता रही है. एक ठंडी लाश के साथ मैं कैसे अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करूं? शुक्र करो कि मैं तुम्हारे सारे ख़र्च उठा रहा हूं और अपने नाम के साथ तुम्हारा नाम जोड़ रखा है. और क्या चाहिए तुम्हें?”

कृष्णा गुस्से में बोली, “क्या तुम्हें लगता हैं मैं अनाथ हूं या सड़क पर पड़ी हुई लड़की हूं? मेरे पापा और भाई अभी जिंदा हैं. वे तो मैं तुम्हारी इज़्ज़त के कारण अब तक चुप थी. अब अगर तुम चाहोगे भी तो वे तुम्हें मेरे करीब फटकने नहीं देंगे.”

सत्या बोला, “अगर तुम्हारे करीब फटकना होता तो मैं क्या बाहर जाता,”

इस से अधिक कृष्णा बरदाश्त नहीं कर पाई और रात में ही विहा को ले कर मम्मीपापा के घर नोएडा आ गई.

अब कृष्णा के पास कोई उपाय नहीं था. उसे अपने मम्मी, पापा को सब बताना पड़ा. मम्मी और पापा सब सुन कर सन्नाटे में आ गए थे. पूरी बात सुन कर भैया आगबबूला हो गए थे, बोले, “कृष्णा, तुम ने बिलकुल ठीक किया. अब तुम वापस नहीं जाओगी. विहा और तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो.”

पर यह बात सुनते ही भाभी के चेहरे पर चिंता लक़ीर खिंच गई थी. एकाएक वह बोल उठी, “अरे, तुम कैसी पागलों जैसी बात कर रहे हो? कोई ऐसे अपना घर छोड़ सकता हैं क्या? फिर आज की नहीं, कल की सोचो. विहा और कृष्णा की पूरी ज़िंदगी का सवाल है. कृष्णा तो नौकरी भी नहीं करती कि अपना और विहा का ख़र्च उठा सके.”

भैया बोले, “अरे, तो इस घर पर उस का भी बराबरी का हक है.”

भाभी उस के आगे कुछ न बोल सकी पर वह भैया की इस बात से नाखुश थी, यह बात कृष्णा को पता थी.

दिन हफ़्तों में और हफ़्ते महीनों में परिवर्तित हो गए थे पर सत्या की तरफ से कोई पहल नहीं हुई थी. कृष्णा को समझ नहीं आ रहा था कि उस का फैसला सही हैं या ग़लत. विहा की बुझी आंखें और मम्मीपापा की ख़ामोशी सब कृष्णा को कचोटती थी. भैया ने कह तो दिया था कि वह भी इस घर की संपत्ति में बराबर की हकदार है पर कृष्णा में इतना हौसला नहीं था कि वह इस हक़ के लिए खड़ी हो पाए.

एक दिन कृष्णा अपने पापा से बुटीक खोलने के बारे में बात कर रही थी. तभी मम्मी दनदनाती आई और हाथ जोड़ते हुए बोली, “बेटा, क्यों हमारा बुढ़ापा खराब करने पर तुली हुई है? अगर तेरे पापा ने तुझे पैसा दिया तो बहू को अच्छा नहीं लगेगा और हमारे बुढ़ापे का सहारा तो वह ही है. मैं ने आज सत्या से बात की थी. वह बोल रहा है, तुम अपनी मरजी से घर छोड़ कर गई हो और अपनी मरजी से वापस जा सकती हो.”

कृष्णा बहुत ठसक से घर छोड़ कर आई थी पर किस मुंह से वापस जाए, वह समझ नहीं पा रही थी. पर भैया का तनाव, भाभी का अबोला सबकुछ कृष्णा को सोचने पर मजबूर कर रहा था.

पहले हफ़्ते जो विहा पूरे घर की आंखों का तारा थी, वह अब सब के लिए बेचारी बन कर रह गई थी.

एक दिन कृष्णा ने देखा कि भैया के बच्चे गोगी और टिम्सी, पिज़्ज़ा के लिए जिद कर रहे थे. विहा बोली, “टिम्सी मेरे लिए तो डबल चीज़ मंगवाना.”

गोगी बोला, “ये नखरे अपने पापा के घर करना, अब जो मंगवाया हैं उसी में काम चलाओ.”

कितनी बार कृष्णा ने गोगी और टिम्सी को छिपछिप कर बादाम, आइसक्रीम और चौकलेट खाते हुए देखा था. विहा एकदम बुझ गई थी, उस ने ज़िद करना छोड़ दिया था.

कृष्णा ने छोटीबड़ी जगह नौकरी के लिए आवदेन भी किया पर कहीं से भी सफलता नहीं मिली थी. हर तरफ से थकहार कर कृष्णा ने गुरुजी को फ़ोन किया. गुरुजी ने बोला, “इस अमावस्या पर अगर वह अपने पिया के घर जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.”

कृष्णा ने जब यह फैसला अपने परिवार को सुनाया तो भाभी एकदम से चहकने लगी, “अरे, कृष्णा, तुम ने बिलकुल सही किया, बच्चे को मम्मी और पापा दोनों की ज़रूरत होती है. तुम क्यों किसी तितली के लिए अपना घर छोड़ती हो. तुम रानी हो उस घर की और उसी सम्मान के साथ रहना.”

कृष्णा मन ही मन जानती थी कि वह रानी नहीं पर एक अनचाही मेहमान है इस घर की और एक अनचाहा सामाजिक रिश्ता है पिया के घर की. अगले दिन कृष्णा जब अपने सामान समेत घर पहुंची तो सत्या ने विहा को तो खूब दुलारा लेकिन कृष्णा को देख कर व्यंग्य से मुसकरा उठा.

अब सत्या को पूरी आज़ादी थी. उसे अच्छे से समझ आ गया था कि अब कृष्णा के पास पिया के घर के अलावा कोई और रास्ता नही हैं. वह जब चाहे आता और जब चाहे जाता. जो एक आंखों की शर्म थी, वह अब नहीं रही थी. खुलेआम वह कमरे में ही बैठ कर अपनी गर्लफ्रैंड्स से बात करता था जो कभीकभी अश्लीलता की सीमा भी लांघ जाता था.

कृष्णा से जब सत्या का व्यवहार सहन नहीं होता था तो वह बाहर आ कर बालकनी में खड़ी हो जाती थी.

कहीं दूर यह गाना चल रहा था- ‘पिया का घर, रानी हूं मैं…’ गाने के बोल के साथसाथ कृष्णा की आंखों से आंसू टपटप बह रहे थे.

Valentine’s Special: थैंक यू हाई हील्स- अश्विन को सोहा की कौन सी कमी खलती थी

अश्विन के तो मन में लड्डू फूट रहे थे. कैसी होगी वह, गोरी या गेहुआं रंग? फोटो में तो बहुत ही आकर्षक लग रही है. कितनी सुंदर मुसकान है. बाल भी एकदम काले. खैर, अब 2 घंटे ही तो बचे हैं इंतजार की घडि़यां खत्म होने में. दिल्ली से मुंबईर् मात्र 2 घंटे में ही तो पहुंच जाते हैं हवाईजहाज से.

अश्विन दिल्ली का निवासी है और 2 साल पहले ही उस ने अपना नया व्यवसाय शुरू किया है. उस की लगन व मेहनत से उस का काम आसमान की बुलंदियों को छूने लगा है.

अत: उस के मातपिता ने सोचा झट से सुंदर लड़की देख कर उस का विवाह कर दिया जाए और लड़की भी ऐसी, जो उस के कारोबार में हाथ बंटा सके. सो उन्होंने अखबार में इश्तिहार दे दिया- ‘‘आवश्यकता है सुंदर, पढ़ीलिखी, आकर्षक लड़की की.’’

बदले में जवाब आया सोहा के पिता का, जो अश्विन जैसा लड़का ही अपनी बेटी के लिए ढूंढ़ रहे थे. लड़का उन की बेटी की काबिलीयत को समझे और उस का परिवार भी खुले विचारों वाला हो. बड़े अरमानों से पाला था उन्होंने अपनी बेटी को. एमबीए करवाया था ताकि विवाह उपरांत वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके. इस के अलावा उस ने घुड़सवारी, तैराकी भी सीखी थी. एनसीसी में भी सी सर्टिफिकेट लिया था उस ने और ऐरो मौडलिंग में भी गोल्ड मैडल लिया था. सो सोहा के पिता ने अश्विन के पिता से अपनी बेटी के रिश्ते की बात चलाई और उस की शिक्षा व अन्य खूबियों की जानकारी अश्विन के पिता को दे दी.

अश्विन के पिता ने उसे सोहा के बारे में बताते हुए पूछा, ‘‘बेटा, यदि तुम्हें इस लड़की के गुण व शिक्षा पसंद हो तो आगे बात चलाऊं?’’

‘‘जी डैड, आप बात आगे बढ़ा सकते हैं,’’ अश्विन ने कहा.

अश्विन के पिता ने सोहा के पिता को फोन कर कहा, ‘‘विमलजी, मेरे बेटे को आप की बेटी की शिक्षा व खूबियां बड़ी पसंद आईं. अब आप जल्द से जल्द सोहा के और फोटो भेज दीजिए या फिर फेसबुक आईडी दे दीजिए ताकि एक बार दोनों एकदूसरे को देख लें और बात आगे बढ़ाई जा सके.’’

सोहा ने भी फेसबुक आईडी देना ही उचित समझा ताकि एकदूसरे से मिलने से पहले दोनों एकदूसरे को परख लें.

सोहा की फेसबुक आईडी पा कर अश्विन ने उसे फ्रैंड्स रिक्वैस्ट भेज दी. सोहा ने

भी उसे सहर्ष स्वीकार लिया.

जब अश्विन ने सोहा को फेसबुक पर देखा तो देखता ही रह गया. इतनी खूबसूरत और आकर्षक, उस का रहनसहन उस के पोस्ट देख कर तो वह उस पर लट्टू ही हो गया. दोनों ने 1-2 बार चैट किया. अश्विन तो उस की अंगरेजी लिखी पोस्ट पढ़ कर और भी ज्यादा प्रभावित हो गया. उत्तर भारतीय हो कर भी उस की अंगरेजी बहुत अच्छी थी. सो दोनों ने आपस में मिलने का फैसला किया और फिर अपनेअपने मातापिता को अपनाअपना फैसला सुना दिया.

उस के बाद दोनों के मातापिता ने दिन तय किया कि कब और कैसे मिलना है. आजकल पहले वाला जमाना तो रहा नहीं कि रिश्तेदारों को सूचना दो, परिवार के सब सदस्य इकट्ठे हों. अब तो सब से पहले घर के लोग व लड़कालड़की मिल लेते हैं. वह भी घर में नहीं होटल या रेस्तरां में ही देखनादिखाना हो जाता है. अब पहले जैसी औपचारिकता कौन निभाता है?

अब अश्विन और उस के मातापिता सोहा को देखने जयपुर जा रहे थे. अश्विन मन ही मन सोच रहा था यह देखनादिखाना तो मात्र एक औपचारिकता है. सोहा तो उस के मन में पूरी तरह बस गई है. तभी विमान परिचारिका की आवाज से उस के विचारों की शृंखला टूटी. वह कह रही थी, ‘‘आप क्या लेंगे सर शाकाहारी या मांसाहरी खाना?’’

जवाब में अश्विन ने कहा, ‘‘शाकाहारी ही लूंगा,’’ और फिर अश्विन ने तुरंत अपनी ट्रे टेबल खोली. परिचारिका ने अश्विन को शाकाहारी खाने की ट्रे देते हुए कहा, ‘‘सर, बाद में कौफी सर्व करती हूं.’’

अश्विन ने मुसकरा कर कहा, ‘‘जी, बहुतबहुत धन्यवाद.’’

खाना व कौफी पूरी होतहोते ही विमान परिचारिका ने घोषणा की, ‘‘हम छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एअरपोर्ट पर उतरने वाले हैं. आप सभी से निवेदन है कि अपनीअपनी सीट बैल्ट  बांध लें.’’

एअरपोर्ट से अश्विन ने प्री पेड टैक्सी बुक की और पहुंच गए उस होटल में जहां दोनों परिवारों का मिलना तय हुआ था. वहां सोहा के पिता ने उन के लिए पहले से ही टेबलें बुक की हुई थीं.

वहां पहुंचते ही मैनेजर अश्विन से बोला, ‘‘सर आप की टेबलें वहां बुक हैं और वहां मेहमान आप का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.’’

अश्विन धीरे से बुदबुदाया, ‘‘इंतजार तो हम भी बेसब्री से कर रहे हैं.’’

तभी सोहा के पिता उन्हें लेने होटल लौबी में आ पहुंचे. दोनों परिवारों ने एकदूसरे का अभिनंदन किया.

अश्विन ने सोहा की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय आई एम अश्विन.’’

सोहा ने भी वहीं खड़े हो कर कहा ‘‘हाय आई एम सोहा, नाइस टू मीट यू.’’

अश्विन ने सोहा को जितना सोचा था उस से भी ज्यादा आकर्षक पाया. उस की वह मनमोहक मुसकान, हलकी सी लजाई आंखें जिन में नीले रंग का आईलाइनर ऐसा लग रहा था मानो आसमान ने अपनी सुरमई छटा बिखेरी हो. फीरोजी रंग के टौप में वह बेहद सुंदर लग रही थी. हाथ में महंगी घड़ी थी सिल्वर चेन वाली और दूसरे हाथ में फीरोजी रंग का चौड़ा सा ब्रेसलेट. कानों में छोटेछोटे स्टड्स पहन रखे थे. फिर उस के काले एवं सीधे बाल कमर तक लहरा रहे थे. अश्विन की नजर तो उस के चेहरे पर टिक ही गई थी. जैसे ही सोहा उस की तरफ देखती वह मुसकरा देता. वेटर आ कर मौकटेल दे गया था. वह खत्म करते हुए अश्विन के पिता ने सोहा के मातापिता से कहा, ‘‘चलिए अब हम लौबी में चलते हैं ताकि ये दोनों भी अकेले में आपस में बातचीत कर सकें.’’

सभी लोग लौबी की तरफ चल दिए. तब अश्विन ने सोहा को अपने कारोबार के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘यदि तुम्हें मैं शादी के लिए पसंद हूं तो बात आगे बढ़ाएं अन्यथा तुम इस रिश्ते को अस्वीकार भी कर सकती हो.’’

जब सोहा ने नजरें झुकाए मूक स्वीकृति दे दी तो अश्विन ने कहा ऐसे नहीं, तुम्हें मुंह से हां या न में जवाब देना होगा.

सोहा ने ‘‘हां’’ कह दिया. फिर क्या था जैसे ही दोनों के मातापिता वहां आए सोहा व अश्विन ने अपना फैसला उन्हें सुना दिया था. दोनों परिवारों ने एकदूसरे का मुंह मीठा करवाया. फिर चट मंगनी और पट ब्याह. 1 ही महीने में दोनों पतिपत्नी बन गए.

दिल्ली में बहू की मुंह दिखाई बड़ी शानोशौकत से हुई. सभी रिश्तेदार व मित्र अश्विन व सोहा को अपनेअपने घर आने का न्योता दे कर चले गए.

सोहा जब अश्विन के घर में रहने लगी तो अश्विन को उस में एक कमी नजर आई, जिस पर अश्विन का ध्यान ही नहीं पड़ा था. वह थी सोहा की ऊंचाई. सोहा करीब 5 फुट 2 इंच लंबी थी. जबकि अश्विन 6 फुट. जब सोहा अश्विन के पास खड़ी होती तो उस के कंधे तक भी न पहुंचती. अश्विन को मन ही मन लगने लगा कि सोहा इतनी ठिगनी है? उस का पहले क्यों नहीं ध्यान पड़ा सोहा की लंबाई पर? वह सोचने लगा कि लोग क्या कहेंगे कि उस ने क्यों इतनी ठिगनी लड़की से शादी की? कितनी बेमेल सी जोड़ी है देखने में. लेकिन वह समझ ही नहीं पाया कि यह सब कैसे हो गया?

उस ने सोहा से पूछा, ‘‘सोहा, तुम्हारी लंबाई कितनी है?’’

‘‘5 फुट डेढ़ इंच.’’

‘‘तो फिर तुम बाहर जाती हो तब तो इतनी ठिगनी नहीं लगती,’’ अश्विन ने कहा.

सोहा गाते हुए बोली, ‘‘यह हाई हील्स का जादू है मितवा,’’ और फिर मुसकरा कर अश्विन से लिपट गई. अश्विन ने भी उस के होंठों को चूमना चाहा. किंतु वह तो उस के कंधे से भी नीचे थी. सो अश्विन को ही झुकना पड़ा उस के होंठों का रसास्वादन करने के लिए.

लेकिन जब सोहा ने बदले में उचक कर उस के होंठों को चूमा तो अश्विन उस के प्रेम में डूब गया और 5 फुट डेढ़ इंच को भूल गया.

अग दिन अश्विन और सोहा को दोस्तों से मिलने जाना था. सभी ने मिल

कर एक होटल में डिस्को पार्टी रखी थी. अश्विन को लगता कि कहीं उस के दोस्त न सोचें कि अश्विन ने सोहा में बाकी सब देखा तो उस की लंबाई पर क्यों ध्यान नहीं दिया? लेकिन जब सोहा लाल रंग का ईवनिंग गाउन, पैरों में पैंसिल हील्स पहन कर अश्विन के साथ गाड़ी में आगे की सीट पर बैठी तो अश्विन उसे देखता ही रह गया. वह बारबार मन में सोचता कि सब कुछ है सोहा में यदि कुदरत थोड़ी लंबाई और दे देती तो सोने पर सुहागा हो जाता. पर फिर मन ही मन सोचता कि हाई हील्स हैं न. जैसे ही सोहा और अश्विन होटल पहुंचे अश्विन के दोस्तों और उन की पत्नियों को अपना इंतजार करते पाया. जब सोहा ने बड़े ही आकर्षक तरीके से सब के हालचाल पूछे और चटपटी बातें कीं तो वह सब के दिलों पर छा गई. डिस्को में जब सब एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले नाच रहे थे तो अश्विन ने देखा सोहा तो हाई हील्स पहने ठीक उस के कान तक पहुंच गई है और उस ने भी डिस्को की मध्यम रोशनी में मौका पा कर उस के माथे को चूम लिया.

वापस जाते सभी कहने लगे, ‘‘अश्विन, सोहा को देख कर ऐसा लगता है कि तुम्हें गड़ा खजाना हाथ लगा है.’’

अश्विन मन में सोच रहा था कि वह कितना असहज हो रहा था, सोहा की लंबाई को ले कर, लेकिन आज की सोहा की पैंसिल हील्स ने तो सब समस्या ही खत्म कर दी.

हां, जब वह घर में होता तो उस का ध्यान जरूर सोहा की लंबाई पर जाता. एक दिन उस ने अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मी, क्या तुम्हारी नजर नहीं गई थी सोहा की लंबाई पर? यह कितनी ठिगनी है.’’

उस की मां ने कहा, ‘‘अश्विन, लेकिन उस के दूसरे गुण भी तो देखो, सर्वगुणसंपन्न है मेरी बहू. इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी कितना अच्छा व्यवहार है इस का.’’

‘‘हां, वह तो है,’’ अश्विन बोला.

‘‘तो फिर तुम इतना क्यों सोच रहे हो इस बारे में? आजकल तो इतनी अच्छी हाई हील्स मिलती हैं तो लंबाई कम होने की चिंता क्यों?’’ मम्मी ने कहा.

शादी को 1 महीना होने आया था. अब सोहा को दफ्तर का काम भी संभालना था. सो अश्विन की मामी ने फोन कर के कहा, ‘‘अश्विन बेटा, 1 बार तो ले आओ सोहा को हमारे घर. फिर दफ्तर जाने लगेगी तो कहां समय मिलेगा.’’

‘‘जी, मामीजी आते हैं हम दोनों,’’ अश्विन ने कहा.

अगले ही दिन मामीजी के घर जाने की तैयारी. सोहा ने काले रंग की क्रेप की साड़ी जिस पर सुनहरे रंग के धागों से बौर्डर पर कढ़ाई की थी पहन ली. साथ में पहनीं सुनहरी वेज हील्स.

जब सोहा गाड़ी तक जाने के लिए पैरों को संभालते हुए चल रही थी तो उस की कमर में जो बल पड़ रहा था, उसे देख अश्विन उसे छुए बिना न रह सका और फिर वह बोला, ‘‘वाह कमाल की हैं तुम्हारी हाई हील्स. जब इन्हें पहन कर चलती हो तो मोरनी सी लगती है तुम्हारी चाल.’’

सोहा बदले में बस मुसकरा दी. मामीजी के घर पहुंच कर सोहा ने पैर छू कर उन्हें प्रणाम किया और फिर मिठाई का डब्बा उन के हाथों में थमाते हुए बोली, ‘‘मामीजी, बहुत ही सुंदर है आप का घर और आप ने सजाया भी बहुत खूब है. कितना साफसुथरा है. कैसे कर लेती हैं आप इस उम्र में भी इतना मैंटेन?’’

मामीजी तारीफ सुन कर फूली न समाईं बोलीं, ‘‘तुम भी तो कितनी गुणी हो, कितनी होशियार…’’

एक बात तो अश्विन पूरी तरह समझ गया था कि सोहा को हर रिश्ते को निभाना बखूबी आता है. झट से किसी को भी शीशे में उतार लेती है वह. खैर, मामीजी के घर खापी कर दोनों जब रवाना होने लगे तो मामीजी बोलीं, ‘‘सोहा, तुम पर यह काली साड़ी बहुत फब रही है और तुम्हारी ये हाई हील्स भी मैचिंग की खूब जंच रही हैं… अलग ही निखार आ जाता है जब साड़ी के साथ हाई हील्स पहनो.. वैसे कहां से लेती हो तुम ये हील्स?’’

सोहा ने भी खूब खिलखिला कर जवाब दिया, ‘‘मामीजी, आजकल तो हर मार्केट में मिल जाती हैं.’’

मामीजी ने कहा, ‘‘मैं भी लाऊंगी अपनी बेटी के लिए.’’

‘‘अच्छा बाय मामीजी,’’ कह सोहा कार में बैठ गई.

उस की आंखों में देख कर अश्विन ने कहा, ‘‘तो चला ही दिया तुम ने अपनी हाई हील्स का जादू मामीजी पर भी.’’

खैर दोनों घर पहुंचे. अगले दिन से सोहा को दफ्तर जाने की तैयारी करनी थी. सोहा सुबहसुबह दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगी तो अश्विन ने कहा, ‘‘सोहा, आज दफ्तर में तुम्हारा पहला दिन है और मेरे नए क्लाइंट आने वाले हैं. तुम्हें मिलवाऊंगा उन से.’’

सोहा ने झट से हलके चौकलेटी रंग की पैंसिल स्कर्ट जिस में पीछे से स्लिट कटी थी पहना और उस के ऊपर कोटनुमा जैकेट पहन ली. बाल खुले छोड़े. न्यूड कलर की पीप टोज बैलीज पहनीं. उन में से उस के नेलपौलिश लगे अंगूठे और 1-1 उंगली झांकती सी नजर आ रही थी. हाथ में मैचिंग बैग ले कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘तो चलिए अश्विन, आज से आप के साथ मैं काम की शुरुआत करती हूं.’’

दोनों कार में बैठ कर दफ्तर चले गए. वहां जाते ही स्टाफ के लोग उन का ‘गुड  मौर्निंग मैम’, ‘गुड मौर्निंग सर’ कह कर अभिवादन कर रहे थे. दफ्तर के सब लोगों से परिचय के बाद अश्विन ने उसे उस का कैबिन दिखा दिया. थोड़ी ही देर में जब नए क्लाइंट आए तो जिस तरीके से सोहा ने उन से बात की अश्विन देखता ही रह गया. घर में साधारण इनसान की तरह रहने वाली सोहा का दफ्तर में तो रुतबा देखते ही बनता था. जब वह अमेरिकन तरीके से अंगरेजी बोलती तो उस के होंठ देखने लायक होते और उस के बोलने का लहजा सुन कर कोई भी नहीं कह सकता था कि यह 5 फुट डेढ़ इंच वाली सोहा बोल रही है.

अश्विन मन में सोचता ही रह गया कि सोहा को कुदरत ने खूब फुरसत में बनाया है. लंबाई के सिवा कोई कमी नजर ही नहीं आती. वैसे वह भी कोई कमी नहीं क्योंकि मैं पूरा 6 फुट का हूं इसलिए मुझे उस की लंबाई कम लगती है. लेकिन चिंता की क्या बात है? हाई हील्स हैं न.

उस दिन अश्विन ने अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मी, सोहा बहुत इंप्रैसिव है. मैं फालतू में उस की लंबाई को ले कर चिंतित था. मैं ने जब सोहा को पहली बार देखा था यदि उस दिन मैं ने इस की लंबाई पर ध्यान दे कर इस से विवाह के लिए मना कर दिया होता तो क्या होता? शायद मैं ने एक हीरे को पाने का अवसर खो दिया होता. अच्छा ही हुआ कि उस दिन सोहा हाई हील्स पहन कर आई थी. मुझे तो उस की हील्स दिखाई भी नहीं दी थीं और लंबाई पर ध्यान नहीं गया था. हम ने यह रिश्ता पक्का कर दिया.’’

अश्विन कमरे में लेटी सोहा के पास जा कर उसे अपनी बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘लव यू डार्लिंग…’’

सोहा उसे मुसकरा कर देखती रह गई.

Valentine’s Special: साथ तुम्हारा

मेन सड़क पार करने में सुमना की हालत बिगड़ जाती है. दूसरे लोग तो जल्दी से पार हो जाते हैं, पर वह जब सारी गाडि़यां निकल जाती हैं और दूर तक कोई गाड़ी आती नहीं दिखती, तभी झट से कुछ तेज चल कर आधी सड़क पार करती है. फिर दूसरी तरफ से गाडि़यां पार हो जाती हैं तब आधी सड़क पार करती है. पहले वह सड़क अकेले पार करती थी. पर अब उस के दोनों हाथ व्हीलचेयर पकड़े रहते हैं, जिस पर बैठे रहते हैं उस के पति सुहैल.

‘‘तुम सड़क पार करने में बहुत डरती हो,’’ सड़क पार होने के बाद सुहैल ने पीछे मुड़ कर कहा.

‘‘सच में बहुत डर लगता है. ऐसा लगता है जैसे गाड़ी मेरे शरीर पर ही चढ़ जाएगी और बड़ी गाडि़यों को देख तो मैं और डर जाती हूं. लेकिन आप साथ में रहते हैं तो हिम्मत बंधी रहती है कि चलो पार हो जाऊंगी.’’ दोनों बातें करतेकरते स्कूल गेट के पास आ गए. तभी सुमना के पर्स में रखा मोबाइल बजने लगा. कंधे से झूल रहे पर्स में से उस ने मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर आ रहे नाम को देख काटते हुए बोली, ‘‘पापा का फोन है. आप को क्लास में पहुंचा कर उन से बात करूंगी.’’

‘‘तुम्हारे पापा तुम्हें अपने पास बुला रहे हैं न…?’’ सुहैल का चेहरा उतर गया.

‘‘नहीं तो,’’ सुमना साफ झूठ बोल गई, ‘‘यह आप से किस ने कह दिया? वे तो ऐसे ही हालचाल जानने के लिए फोन करते हैं. आप क्लास में चलिए.’’ सुमना व्हीलचेयर पकड़े सुहैल को 9वीं कक्षा में ले गई और खुद पढ़ने स्कूल के बगल में कालेज में चली गई. वह बी.ए. फर्स्ट ईयर में थी. एक पीरियड खत्म होने के बाद वह आई और सुहैल को 10वीं कक्षा में ले गई. फिर अपनी क्लास में आई. वहां 45 मिनट पूरे होने के बाद भी मैडम इतिहास पढ़ाती ही रहीं तो वह खड़ी हो कर बोली, ‘‘ऐक्सक्यूज मी मैम, सुहैलजी को 8वीं कक्षा में छोड़ने जाना है और उन की दवा का भी समय हो गया है. मैं जाऊं?’’

‘‘हां, जाओ.’’ 5-7 मिनट बाद वह लौट कर आई तो मैडम उसी के इंतजार में अभी तक क्लास में थीं. उसे कुछ नोट्स दे कर उन्होंने कहा, ‘‘सुमना, तुम बुहत संघर्ष कर रही हो. मुझे तुम पर गर्व है.’’

‘‘मैम, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ वह हलके से मुसकराई.

‘‘विपरीत परिस्थितियों में हंस कर जीना कोई तुम से सीखे.’’ मैडम उस की पीठ थपथपा कर चली गईं और उन के पीछे सारे लड़केलड़कियां भी चले गए. अब क्लास में सिर्फ वही थी. वह नोट्स पढ़ने ही वाली थी कि तभी उस का मोबाइल बजा.

‘‘हां, पापा, बोलिए….’

‘‘बेटा, तुम ठीक हो न? अभी तो तुम कालेज में होगी और सुहैल को इस कक्षा से उस कक्षा में ले जा रही होगी?’’

‘‘जी…’’

‘‘बेटा, क्यों इतनी मेहनत कर रही हो? चली आओ हमारे पास. तुम्हें इतना संघर्ष करते देख मेरी आत्मा रोती है. ऐसा कब तक चलेगा? आजा बेटा, सब छोड़ कर हमारे पास. हम तुम्हारी दूसरी शादी करवा देंगे. भरत से तुम प्यार करती थीं न. वह तुम से शादी करने के लिए तैयार है.’’ सुमना ने बिना जवाब दिए फोन काट दिया. पर उस का दिल बहुत भारी हो गया था. तभी चौथे पीरियड की घंटी बजी. आंखों की कोर से आसूं पोंछ वह सुहैल को 7वीं कक्षा में पहुंचाने गई. उस की सूरत देख सुहैल ताड़ गए कि बात क्या हुई होगी तो बोले, ‘‘सुमना, तुम रो रही थीं न? अपने पापा की बात मान जाओ, चली जाओ उन के पास.’’ सुमना सुहैल की आंखों में देखती रह गई. उसे लगा कि कैसे इन्होंने मेरी चोरी पकड़ ली. पर वह कुछ बोली नहीं, चुपचाप उन्हें कक्षा में पहुंचा आई. उस के कालेज में हरेभरे मैदान में उस की सारी सहेलियां धूप में बैठी हंस, खिलखिला रही थीं. उन्होंने उसे पुकारा पर वह फीकी मुसकान के साथ हाथ हिला कर क्लास में आ गई. उस का मन कर रहा था कि वह खूब चीखचीख कर रोए लेकिन सुहैल ने उसे रोते देख लिया तो उन्हें कितना दुख होगा, यह सोच वह चुप रही. क्लास में अकेली वह खिड़की के पास बैठी थी. उस ने सिर को दीवार से टिका दिया और रोकतेरोकते भी उस की आंखों से आंसू गिरने लगे. आंसू गिर रहे थे और उस की पिछली जिंदगी के पन्ने फड़फड़ा रहे थे. पढ़ाई में कमजोर सुमना बस पापा की जिद की वजह से इंटर की देहरी लांघने के लिए कालेज जाती थी. लेकिन उस के ख्वाबों में बी.कौम में पढ़ने वाला हैडसम भरत ही घूमता रहता. आंखें बंद कर वह उस के साथ सपनों का महल सजातीसंवारती. भरत भी उस की खूबसूरती पर मर मिटा था.

एक दिन रास्ते में सुमना के पापा की मुलाकात उन के दोस्त की पत्नी और बेटे से हो गई. वे उन से 5-6 साल बाद मिल रहे थे. अभिवादन के बाद दोस्त की पत्नी को सादी साड़ी में देख अपने मास्टर दोस्त के हार्ट अटैक से गुजर जाने का उन्हें पता चला. उन्हें बहुत दुख हुआ. पर यह जान कर खुशी हुई कि अपने पापा की जगह पर उन के इकलौते बेटे सुहैल को नौकरी मिल गई. अब वह इसी शहर में नौकरी कर रहा है. सुहैल ने पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया और उन्हें उस में अपना भावी दामाद नजर आया. इसीलिए उन्होंने मांबेटे को अपने घर आमंत्रित किया. सुमना की मां को भी सुहैल पसंद आया और सुहैल तथा उस की मां को सुमना एक नजर में भा गई. लेकिन सुमना को सुहैल फूटी आंख भी पसंद नहीं आया. कहां वह रूपयौवन से भरपूर लंबी और तीखे नाकनक्श की लड़की और सुहैल थोड़े नाटे कद का और सांवला. ऊपर से उस के सिर के बीच के बाल उड़ गए थे और चांद दिख रहा था. सुमना पर तो जैसे वज्रपात हो गया. उस ने मां से कह सीधेसीधे शादी से इनकार कर दिया. मगर उस के पापा आपे से बाहर हो गए, ‘‘मैं ने तुम्हारी बहनों को जिस खूंटे से बांधा वे बंध गईं और तुम अपनी पसंद के लड़के से ब्याह रचाओगी. यह मेरे जीतेजी नहीं हो सकता. बाइक पर घुमाने वाले उस भरत के पास है ही क्या? बाप की दौलत पर मौज करता है. कल को उस का बाप उसे घर से निकाल देगा, तो वह कटोरा ले कर भीख मांगेगा. सुंदर चेहरे का क्या अचार डालना है? सुहैल मेरा देखासुना, अच्छा लड़का है. सरकारी नौकरी है उस की. घरद्वार सब है. ऊपर से इकलौता है. अब क्या चाहिए? इस घर का दामाद सुहैल बनेगा, नहीं तो तुम मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी.’’ मांबहनों ने सुमना को खूब समझाया और उस की शादी सुहैल से हो गई.

सुहैल सुमना को जीजान से चाहता था, पर वह मन ही मन उस पर खफा रहती. उस के साथ रास्ते में चलते हुए उसे बड़ी शर्म आती. ‘हूर के साथ लंगूर’ कहकह सहेलियों ने उस की खूब खिल्ली उड़ाई. वह मन ही मन सुहैल को ‘चंडूल’ कहती. सुहैल अपना नया नामकरण जान कर भी  उस पर जान छिड़कता रहा. वह सुमना को आगे पढ़ाना चाहता था. जिस स्कूल में वह पढ़ाता था उस में कालेज भी था. उस ने उस का बी.ए. में ऐडमिशन करा दिया. वह पढ़ने में कमजोर थी, अत: उस की पढ़ाई में भरपूर मदद करता. सुमना के न चाहते हुए भी उस के पैर भारी हो गए. सास ने खूब धूमधाम से उस की गोदभराई करवाई. पर कुदरत से उन की ये खुशियां देखी नहीं गईं. एक रात 8-9 बजे सुहैल ट्यूशन पढ़ा कर बाइक से घर लौट रहा था कि अचानक बाइक की हैडलाइट खराब हो गई और अंधेरे में वह बिजली के एक खंभे से टकरा कर गिर गया. तभी तेज रफ्तार से सामने से आ रही जीप उस के दोनों पैरों पर चढ़ गई. उस के दोनों पैर कुचल गए और जीप वाला भाग खड़ा हुआ. डाक्टर ने सुहैल के दोनों पैर घुटने तक काट दिए. मां और सुमना पर तो दुखों का पहाड़ टूट गया. मां को जबरदस्त सदमा तो इस बात का लगा कि अब उन का बेटा अपने पैरों पर नहीं चल पाएगा. वह तो अपाहिज हो गया. अब दूसरे के रहमोकरम का मुहताज रहेगा. इसी सदमे के कारण वे खुद ही दुनिया छोड़ गईं. सुमना पर यह दूसरा पहाड़ टूटा. ममतामयी सास के चले जाने से उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया. अपनी मां का इस तरह चले जाना सुहैल से भी बरदाश्त नहीं हो रहा था. बिस्तर पर पड़ेपड़े वह दिनरात आंसू बहाता. एक तरह से वह डिप्रैशन में डूबता जा रहा था. अपने लाचार पति को इस तरह रोतातड़पता देख सुमना को उस पर बड़ी दया आती. अब उस की स्थिति देख उस का कठोर हृदय मोम की तरह पिघलता जा रहा था. उसी समय उस के पापा ने एक विस्फोट किया कि वह सुहैल को छोड़ दे. सुमना पापा से पूछना चाहती थी कि वह किस के भरोसे अपने पति को छोड़ दे? सुहैल की जिंदगी में जबरदस्ती उन्होंने ही उसे भेजा. आज जब वह अपाहिज हो गया है तो उसे छोड़ने की सलाह दे रहे हैं. क्या मैं उन के हाथों की कठपुतली हूं? मेरा कोई अस्तित्व नहीं है? मुझ पर कब तक बस पापा की ही चलती रहेगी? मेरे पास क्या दिलदिमाग नहीं है? लेकिन ये सारी बातें उस के मन में ही सिमट कर रह गईं.

सुहैल को लगता था कि सुमना एक न एक दिन उसे छोड़ कर चली जाएगी. एक तो वह उसे पसंद नहीं करती फिर एक अपाहिज के साथ वह कैसे रहेगी? और वह अपाहिज शरीर से उस की देखभाल भी कैसे करेगा? हां, सुमना के पेट में उस का एक अंश पल रहा है, शायद अब वह उसे जन्म भी न दे. फिर तो उन दोनों का रिश्ता खत्म हो ही जाएगा. बस, एक नौकरी बची थी, लेकिन वह होगी कैसे? ये सारे सवाल सुहैल के सामने सुरसा की तरह मुंह बाए खड़े थे, जिन का वह समाधान ढूंढ़ता और उन में उलझ जाता. मात्र एक साल ही हुआ था इस शादी को. सुमना एक ऐसे सच का सामना कर रही थी, जिस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी. सुहैल को टूट कर बिखरते देख वह उस की शक्ति बन ढाल बनी हुई थी. पहली बार उस ने सुहैल का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘जो हो गया उसे तो हम नहीं बदल सकते. अब आगे जो जिंदगी बची है उसे तो हम हंस कर जीएं. आप बच्चों को हिम्मत से लड़ने की बात सिखाते रहे हैं और आज खुद हिम्मत छोड़ कर बैठे हैं. आप कल से स्कूल पढ़ाने जाइए और मैं कालेज पढ़ने जाया करूंगी. हमें अपने आने वाले बच्चे को एक बेहतर समाज और एक सुनहरा भविष्य देना है. इस तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा.’’

सुहैल नम आंखों से सुमना को देखे जा रहा था कि उसे नापसंद करने वाली आज उसे अपनी मां की तरह समझा रही है. ‘‘आप अगर मेरी बात नहीं मानेंगे तो फिर मैं आप को चंडूल महाराज बोलूंगी,’’ सुमना ने हंस कर कहा ताकि सुहैल को हंसी आ जाए. वह ठठा कर हंस दिया. फिर बोला, ‘‘मैं सोच रहा था कि इतने दिनों से कोई मुझे मेरे प्यारे नाम से बुलाता क्यों नहीं? हां, यह ठीक है. मैं एक नौकर रख लेता हूं. वह मुझे स्कूल ले जाएगा, लाएगा और तुम कालेज जाना. अरे हां, तुम पढ़ने के फेर में मेरे आने वाले बच्चे की देखभाल मत भूल जाना. वैसे अभी बच्चे के जन्म में तो समय है न?’’ ‘‘बहुत समय है. अभी तो साढ़े 3 महीने ही हुए हैं. 7वां महीना लगते ही मैं कालेज से छुट्टी ले लूंगी.’’

‘‘दीदी… सर आप को बुला रहे हैं,’’ एक छात्र ने आ कर कहा तो सुमना जैसे नींद से जागी.

‘‘तुम चलो मैं आती हूं,’’ कह कर वह आंसू पोंछ कर मैदान में आ गई. सुहैल व्हील चेयर पर बैठा उसी का इंतजार कर रहा था, लेकिन जब वह आई तब कुछ बोला नहीं. सुमना भी खामोशी से उसे घर ले कर आ गई. सुहैल ने फोन कर अपने नौकर को जल्दी से जल्दी आने को कहा. अपनी पत्नी की तबीयत खराब होने के कारण वह गांव चला गया था. उस ने दूसरे दिन ही आने का वादा किया. सुमना आते ही रसोई में जुट गई. खाना बना कर उस ने सुहैल को दे दिया तो वह खाने लगा. सुमना को भी भूख लगी थी. वह खाने बैठी ही थी कि फिर पापा का फोन आ गया. वह दूसरे कमरे में जा कर उन से बातें करने लगी. इस बार फोन पर मां भी थीं. वे भी सुमना को सब छोड़छाड़ कर अपने पास बुला रही थीं. पापा ने एकदम खुल कर कहा, ‘‘एक अपाहिज के साथतुम इतनी बड़ी जिंदगी कैसे काटोगी? वह तुम्हें कोई सुख नहीं दे सकता, तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता. तुम भरत से शादी कर लो. मैं ने एक डाक्टर से अबौर्शन करवाने की बात कर ली है. वह तैयार…’’

सुमना को लगा कि उस के कान में पिता की आवाज नहीं गरमगरम सीसा जा रहा है. अबौर्शन की बात पर उस का पूरा वजूद हिल गया. उस की ममता जाग उठी. अपने अजन्मे बच्चे की गरदन पर अपने पिता के खूनी हाथ की कल्पना कर उस का सर्वांग कांप उठा. उस का वात्सल्य प्रेम खौलते हुए खून के साथ चिंघाड़ उठा, ‘‘वाह पापा वाह. आप जैसा पिता तो मैं ने देखा ही नहीं. जब मैं भरत को चाहती थी तो आप ने जबरदस्ती सुहैल से मेरी शादी करवाई और आज जब वे अपाहिज हो गए हैं तो उन्हें छोड़ने के लिए रोजरोज मुझ पर दबाव डाल रहे हैं. आप जैसा स्वार्थी और मौकापरस्त इनसान मैं पहली बार देख रही हूं. भरत से मेरी शादी होते ही अगर उस का भी ऐक्सीडैंट हो गया या वह मर गया, तो आप मेरी तीसरी शादी करवाएंगे? जिस बच्चे के आने की खुशी में मैं और सुहैल जी रहे हैं उसे आप खत्म करवाने की सोच बैठे. आप ने मेरे मासूम बच्चे की हत्या करवाने की बात कैसे कह दी?’’ सुमना अपने अजन्मे बच्चे की याद में रो पड़ी. उस के पापा ने उस की सिसकी सुनी तो उन के मुंह पर ताला लग गया.

वह आगे बोली, ‘‘आप ने जिस उम्मीद के बलबूते पर मेरी शादी सुहैल से करवाई है, मैं उसी उम्मीद पर खरी उतरना चाहती हूं. अगर मेरी जिंदगी में संघर्ष है, तो मुझे यह संघर्ष और सुहैल के साथ जीवन जीना पसंद है. मैं उन्हें कभी नहीं छोड़ूंगी. मेरे सिवा उन का अब है ही कौन? आगे से इस विषय पर आप मुझ से कभी बात नहीं करेंगे,’’ कह कर सुमना ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया. तभी अचानक धड़ाम की आवाज आई तो वह दौड़ते हुए कमरे की तरफ गई. वहां देखा कि टेबल पर से पानी का गिलास लेने की कोशिश में सुहैल पलंग पर से नीचे गिर गया. ‘‘यह आप ने क्या किया? थोड़ा मेरा इंतजार नहीं कर सकते थे?’’ सुमना सुहैल को किसी तरह से उठाते हुए भर्राए गले से बोली.

‘‘अब तो सिर्फ नौकर का ही इंतजार करना पड़ेगा,’’ कहतेकहते सुहैल की आंखें छलछला आईं. ‘‘आप की जानकारी के लिए बता दूं कि मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. हमेशा आप की परछाईं बन कर रहूंगी. पापा को जो बोलना है बोलने दीजिए. यह मेरी जिंदगी है और मेरा फैसला है,’’ सुमना सुहैल को पलंग पर ठीक से बैठाते हुए बोलते जा रही थी. उस ने उस की भीगी पलकों को पोंछ दिया और बोली, ‘‘मर्दों को आंसू शोभा नहीं देते. मैं आप की धर्मपत्नी हूं, इसलिए अपना फर्ज निबाहूंगी. आज से मैं आप की मां की तरह आप को डांटूगी, समझाऊंगी, तो बहन की तरह दुलार और पत्नी की तरह प्यार करूंगी.’’ फिर उस ने सुहैल को गले से लगा लिया. ‘‘धन्यवाद सुमना, तुम्हारे साथ से मैं आबाद हो गया,’’ सुहैल भर्राए गले से बोला. उस को लगा कि सुमना ने उसे तीखी धूप से बचाते हुए उस पर अपनी शीतल छांव कर दी

Valentine’s Special: सूना संसार- सुनंदा आज किस रूप में विनय के सामने थी

सुनंदा एयरपोर्ट पहुंच चुकी थी. लगेज बैल्ट पर अपना बैग आने का इंतजार करती हुई सोचने लगी, आज इतने सालों बाद लखनऊ आना ही पड़ा और जीवन की किताब का वह पन्ना, जो वह लखनऊ से मुंबई जाते हुए फाड़ कर फेंक गई थी, हवा के झोंके से उड़ आए पत्ते की तरह फिर उस के आंचल में आ पड़ा है. 5 साल बाद वह लखनऊ की जमीन पर कदम रखेगी, जहां से निकलते हुए उस ने सोचा था कि वह यहां कभी नहीं आएगी.

उसे इस बात का तो यकीन था कि बाहर उसे लेने विनय जरूर आया होगा. कैसा लगेगा इतने सालों बाद एकदूसरे को देख कर? कितना प्यार करता था उसे, कैसे जी पाया होगा वह उस के बिना? वह भी क्या करती, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं, अपनी भावनाओं को कैसे दबाती? विनय ने कैसे खुद को संभाला होगा, उस के बिखरे व्यक्तित्व को देख क्या सुनंदा को अपराधबोध नहीं होगा?

अपना बैग ले कर सुनंदा एयरपोर्ट से बाहर निकली, विनय ने उसे देख कर हाथ हिलाया. हायहैलो के बाद उस के हाथ से बैग ले कर विनय ने पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

सुनंदा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, वह बहुत स्मार्ट और फ्रैश नजर आ रहा था. बोली, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो.’’

विनय ने मुसकरा कर कहा, ‘‘ठीक हूं.’’

सुनंदा ने चलतेचलते उसे बताया, ‘‘कल यहां मेरी एक मीटिंग है. सोचा, यहां आने पर तुम से मिल लेना चाहिए. बस, तुम्हारा नंबर मिलाया, वही नंबर था तो बात हो गई. और सुनाओ, लाइफ कैसी चल रही है?’’

‘‘बढि़या,’’ फिर पूछा, ‘‘जाना कहां है तुम्हें?’’

सुनंदा चौंकी, फिर बोली, ‘‘होटल क्लार्क्स अवध में मेरा रूम बुक है.’’

विनय ने पूछा, ‘‘टैक्सी से जाना चाहोगी या मैं छोड़ दूं?’’

सुनंदा मुसकराई, ‘‘यह भी कोई पूछने की बात है?’’

विनय ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की तो सुनंदा ने पूछा, ‘‘गाड़ी कब ली?’’

‘‘2 साल हुए.’’ उस के बराबर वाली सीट पर बैठ कर 5 साल पुराना समय सुनंदा की आंखों के आगे घूम गया. तब उस के स्कूटर पर बैठ कर वह उस के साथ कितना घूमी थी. विनय की कमर में हाथ डाल कर वह बैठती और वह धीरे से गरदन घुमा कर उस के गाल पर किस करता, तो वह टोकती थी, ‘‘आगे देखो, कहीं ऐक्सीडैंट न हो जाए.’’ विनय हंस कर कहता, ‘‘तो क्या हुआ, तुम्हें प्यार करतेकरते ही मरूंगा न, क्या बुरा है.’’

और आज वही विनय उसे कितना अजनबी लग रहा था. अचानक सुनंदा का कलेजा सुलगने लगा. शायद विनय बहुत नाराज होगा उस से. कितना सरलसहज जीवन था, जो विनय के आगोश में सुरक्षित सा था, पर महत्त्वाकांक्षाएं उछालें मार रही थीं. गृहस्थी की जिम्मेदारी भी कुछ ज्यादा नहीं थी, तब भी वह उस बंधन से मुक्ति मांग बैठी थी. रास्ते भर विनय औपचारिक बातें करता रहा. विनय ने होटल आने पर गाड़ी रोकी और कहा, ‘‘तुम्हारे पास मेरा फोन नंबर है ही, कोई जरूरत हो तो बताना. और हां, कब जाना है वापस?’’

‘‘परसों की फ्लाइट है, कल मीटिंग से फ्री होते ही फोन करूंगी, तब जरूर आ जाना.’’

‘‘नहीं, अभी चलता हूं, कल आऊंगा,’’ कह कर विनय चला गया.

सुनंदा अपने रूम में पहुंच कर फ्रैश हुई, फिर लैपटौप निकाला और अगले दिन की मीटिंग की तैयारी करने लगी.

एम.बी.ए. के बाद एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम करना उस का सपना था और उस का वह सपना पूरा हो गया था. घरगृहस्थी उसे हमेशा बंधन लगती थी. उस ने सब से मुक्ति पा ली थी. विवाह के बाद एम.बी.ए. करने में विनय ने उसे भरपूर सहयोग दिया था. विनय की मां ने उस का पढ़ने का शौक देखते हुए घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं डाली थी और जब सुनंदा को एम.बी.ए. करते ही मुंबई में जौब का औफर मिला, तो उस ने सोचने में एक पल नहीं लगाया था. विनय लखनऊ छोड़ नहीं सकता था, उस ने सुनंदा को बहुत समझाया कि तुम योग्य हो, तुम्हें लखनऊ में ही और अवसर मिल सकते हैं, लेकिन सुनंदा को अपनी आत्मनिर्भरता और महत्त्वाकांक्षाओं को तिलांजलि देने की बात सोच कर ही घुटन होने लगती थी और जब सुनंदा को विनय और जौब में कोई तालमेल बनता नहीं दिखा, तो उस ने सब रिश्ते एक झटके में तोड़ कर विनय से तलाक की मांग कर दी थी.

विनय ने उसे बहुत समझाया था, लेकिन सुनंदा किसी तरह यह अवसर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी और वह तलाक ले कर ही मानी थी. मुंबई आ कर वह अपने कैरियर में ऐसी व्यस्त हुई कि जीवन में आए खालीपन को भी भूल गई. उसे जितना मिलता, वह उस से संतुष्ट न होती. अधिक से अधिक पाने के लिए वह हर तरह से संघर्ष कर के अब उच्च पद पर आसीन थी. कुछ दिन वह कंपनी के फ्लैट में रही. अब उस ने अपना फ्लैट भी खरीद लिया था. अब उस के पास सारी सुविधाओं से युक्त घर था, गाड़ी थी, नौकर थे.

मेरठ में उस के मायके में सब उस से नाराज थे और विनय के मातापिता तो उस के तलाक के 1 वर्ष बाद ही जीवित नहीं रहे थे. इन सालों में वह कभी मेरठ भी नहीं गई थी. बस समय मिलने पर कभीकभी फोन कर लिया करती थी.

अगले दिन मीटिंग से फ्री होने पर उस ने विनय को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया.

विनय ने कहा, ‘‘शाम को आ जाऊंगा..’’

सुनंदा तैयार हो कर उस का इंतजार करने लगी. सोफे पर बैठ कर आंखें मूंद कर अपने खयालों में गुम हो गई… इतने सालों में उस ने अपने दिलोदिमाग पर काबू तो पा लिया था काम की धुन में अपने को डुबो कर खुश रहने का दिखावा भी कर लेती थी, लेकिन प्यार भरा मन समुद्र सा उफनता रहता था. अपना सब कुछ लुटा कर खाली हो जाने को, किसी को अपनी चाहत में पूरी तरह भिगो देने को.

आज विनय को देख कर फिर दीवानी हो गई थी. उसे देखते ही उस के खयालों में खो गई थी. सोचती रही, क्या विनय भी उस के साथ के लिए बेचैन होगा. अगर हां, तो वह विनय से अपने व्यवहार के लिए माफी मांग लेगी. एक बार फिर उस के साथ जीवन शुरू करेगी. विनय उसे जरूर माफ कर देगा. वह उस से बहुत प्यार करता था. बहुत रह ली अकेली, चंचल नदी सागर में समा कर ही शांत होती है. सालों से पुरुषस्पर्श को तरस रहा उस का नारीमन भी आज अपना सर्वस्व त्याग कर आत्मोत्सर्ग कर शांत हो जाने को मचल उठा, विनय के साथ बीते पुराने दिनरात याद करतेकरते मिस्री की तरह कुछ मीठामीठा उस के होंठों तक आया और विनय के चेहरे को हाथों में भर चूमने की चाह से ही माथे पर पसीने की बूंदें आ गईं. वह अपनी मनोदशा पर हंस दी.

तभी डोरबैल बजी. सुनंदा ने लपक कर दरवाजा खोला और हैरान खड़ी रह गई. विनय एक लड़की के कंधे पर हाथ रख कर खड़ा था. लड़की की गोद में एक छोटा सा लगभग 2 साल का बच्चा था. विनय ने मुसकराते हुए परिचय करवाया, ‘‘यह नीता है मेरी पत्नी और हमारा बेटा राहुल और ये…’’

नीता मुसकराई, ‘‘आप के बारे में सब जानती हूं.’’

सुनंदा के चेहरे पर एक साया सा लहरा गया. उन्हें अंदर आने का इशारा करते हुए जबरन मुसकराई. उन्हें बैठने के लिए कह कर, उन से पूछ कर कौफी का और्डर दिया. बच्चा विनय की गोद में ही बैठा रहा.

सुनंदा स्वयं पर नियंत्रण रखती हुई बातें करती रही. बहुत ही मिलनसार, हंसमुख स्वभाव की नीता हंसतीबोलती रही. बीते समय की कोई बात किसी ने नहीं की. करीब 1 घंटा तीनों बैठे रहे. जाते समय नीता ने ही कहा, ‘‘अगली बार भी आएं तो मिल कर जाइएगा, अच्छा लगा आप से मिल कर.’’

उन के जाने के बाद सुनंदा बैड पर ढह सी गई. उस की आंखों के कोनों से आंसू ढलक पड़े. जिन चीजों को आधार बना कर उस ने अपने भविष्य को गढ़ा था, उन से यदि वह सुखी रह सकती, तो आज रोती ही क्यों? आज विनय का बसा हुआ सुखसंसार देखा तो लगा कि वह हार गई. अपनी सारी महत्त्वाकांक्षांओं को पूरा करने के बाद भी हार गई वह. क्या हो गया यह सब? वह हमेशा बहुत ऊंचा उड़ने की सोचती रही, विनय का प्यार, विनय की बच्चे के लिए चाह, घरगृहस्थी के कामकाज, विनय की रुचि, शौक, पसंदनापसंद सब में उसे सहभागी होना चाहिए था. तभी पनपता वह प्यार, जो उस ने नीता की आंखों में लबालब देख लिया था. वही प्यार, जो वह सुनंदा को देना चाहता था, पर अब वह पूरी तरह नीता को समर्पित है.

हां, यह प्यार ही तो है, जिसे वह ठुकरा कर चली गई थी. यही तो वह सिलसिला है, जो आगे चल कर एक सुखीसफल लंबे वैवाहिक जीवन की नींव बनता है. उस ने तो नींव रखी ही नहीं थी और अब तो ध्वस्त अवशेषों पर आंसू ही बहाने हैं. क्या पाया उस ने और क्या खो दिया? यश, नाम, रुपया, आजादी जैसे बड़े शब्द वह प्राप्ति के पलड़े में रख सकती है. पर दूसरे पलड़े में एक सुंदर घर, प्यार करने वाला पति, एक हंसतामुसकराता बच्चा आ कर बैठ जाता है, तो वह पलड़ा इतना भारी होता चला जाता है कि जमीन छूने लगता है. दूसरे पलड़े के शून्य में झूलने का एहसास बहुत कड़वा लग रहा है.

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Holi 2023: सदमा- आखिर कैसा रिश्ता था नेहा और शलभ का? भाग 2

डाक्टर से पीयूष के बारे में जरूरी डिस्कशन कर वह बेटे को दवा की अगली खुराक देने लगी. पीयूष बेचैन था और रहरह कर रो रहा था. देर रात तक वह पीयूष का सिर गोद में लिए बैठी रही. फिर उसी की बगल में सो गई.

दरअसल, पीयूष नेहा का 10 साल का बेटा था. नेहा एक तलाकशुदा महिला थी. उस का पति विपुल हैदराबाद में मैनेजर था. विपुल से नेहा ने लव मैरिज की थी. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. घर वालों के खिलाफ जा कर नेहा ने यह शादी कर ली थी. दोनों ने एक खूबसूरत शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत भी की. उन के प्यार का प्रतीक जब नेहा के गर्भ में आया तो विपुल खुशी से पागल हो गया. उसे बच्चों से बहुत लगाव था. वह अपने भाई के बच्चों को भी हर समय गोद में लिए रहता. यही वजह थी कि जब नेहा के प्रैगनैंट होने की खबर मिली तो उस ने अपने पूरे औफिस में मिठाई बंटवाई.

निश्चित समय पर नेहा ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया. उस दिन विपुल ने अपने महल्ले में ढोलनगारे बजवाए. नाचगाने का प्रोग्राम करवाया. नेहा और बच्चे के स्वागत में पूरे घर को सजाया. खिलौनों से पूरा कमरा भर दिया. बहुत प्यार से दोनों ने बच्चे का नाम पीयूष रखा. पीयूष बड़ा होने लगा मगर जल्द ही दोनों को यह बात सम?ा आने लगी कि वह एक नौर्मल चाइल्ड नहीं है.

डाक्टर से चैकअप के बाद पता चला कि वह डाउन सिंड्रोम की समस्या से ग्रस्त है. डाक्टर ने यह भी बताया कि डाउन सिंड्रोम की समस्या जेनेटिक होती है. विपुल को याद आया कि नेहा के सगे चाचा को भी यह समस्या रही है. डाक्टर से मिलने और सब जान लेने के बाद विपुल का व्यवहार नेहा और उस के बच्चे से एकदम बदल गया. वह बहुत चिड़चिड़ा रहने लगा. उस ने फिर एक और डाक्टर से बात की. इस डाक्टर ने भी वही बातें बताईं.

विपुल को इस तरह परेशान देख कर नेहा उसे सम?ाने लगी, ‘‘देखो विपुल

बच्चे की बीमारी पर हमारा वश नहीं. हमें कुदरत ने जैसी भी संतान दी है उसे ही हम अपना सारा प्यार देंगे. बहुत से लोगों के साथ ऐसा होता है. इस सच को ऐक्सैप्ट कर लो विपुल तभी खुश रह पाओगे.’’

‘‘नहीं मैं न इस सच को ऐक्सैप्ट कर सकता हूं और न ही इस बच्चे को. यह मेरा फाइनल डिसिजन है.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो? इसे ऐक्सैप्ट नहीं करोगे? क्या मतलब है तुम्हारा?’’ नेहा ने परेशान स्वर में पूछा.

‘‘यही मतलब है कि मु?ो यह बच्चा नहीं चाहिए,’’ मुंह फेरते हुए विपुल ने कहा.

‘‘नहीं चाहिए तो क्या जान से मारोगे इस नन्ही सी जान को? देखो कैसे मुसकरा रहा है. इस पर तुम्हें प्यार नहीं आता विपुल?’’

‘‘नहीं नेहा मु?ो इस पर प्यार नहीं आता. मैं इस की शक्ल भी देखना नहीं चाहता. मैं एक स्पैशल चाइल्ड का बाप कहलाना पसंद नहीं करता. हम इसे किसी अनाथालय में छोड़ आएंगे.’’

‘‘नहीं मैं ऐसा नहीं करने दूंगी. यह मेरा बच्चा है. मैं ने इसे 9 महीने कोख में रखा है. अपने खून से सींचा है.’’

‘‘तो ठीक है तुम इसे या मु?ो किसी एक को चुन लो. वैसे भी तुम इसी तरह के बीमार बच्चों को जन्म दोगी. तुम्हारे खानदान में ही दोष है. मैं तुम से अलग होना चाहता हूं.’’

विपुल के मुंह से इतने कड़वे शब्द सुनने और उस के प्यार की असलियत सम?ाने के बाद नेहा कुछ नहीं कह पाई. उस ने फैसला कर लिया. वह विपुल से अलग हो गई और बच्चे के साथ नई जिंदगी की शुरुआत की. कुछ ही दिनों में उस ने एक अच्छी कंपनी में जौब भी शुरू कर दी. वैसे भी वह एमबीए की पढ़ाई कर रही थी, इसलिए नौकरी मिलने में दिक्कत नहीं हुई.

इस बात को आज 8 साल बीत चुके थे. पीयूष पढ़ाई करने लगा था. नेहा उसे

समयसमय पर थेरैपी के लिए ले जाती. नेहा ने अपनी मेहनत और लगन से औफिस में भी

अच्छा रुतबा बना लिया था. उसे बहुत तेजी से तरक्की मिली थी और उस ने अपना 3 बीएचके का फ्लैट ले लिया था. पीयूष की देखभाल के लिए उस ने सूजी नाम की फुलटाइम मेड लगा रखी थी. वह पीयूष का पूरा खयाल रखती और घर के सदस्य की तरह रहती. यही वजह थी

कि नेहा को औफिस संभालने में दिक्कत नहीं आती थी.

हाल ही में कंपनी की तरफ से उसे तरक्की दे कर नई ब्रांच में भेजा गया था जहां उस की मुलाकात शलभ से हुई. कहीं न कहीं अब वह शलभ के साथ एक खूबसूरत जीवन की कल्पना करने लगी थी. मगर जिंदगी उसे कुछ और ही सच दिखाने वाली थी.

दरअसल, उस दिन औफिस से नेहा के जाते ही शलभ के दोस्त और कुलीग अरुण एवं शालिनी ने प्रवेश किया. उन्होंने शलभ के कमरे से नेहा को हड़बड़ाए हुए निकलते देख लिया था.

आते ही अरुण ने शलभ से पूछा, ‘‘क्या हुआ, नेहा इतनी जल्दी कहां चली गई?’’

‘‘पता नहीं यार. अचानक कोई फोन कौल आई और वह परेशान सी चली गई. कुछ बताया भी नहीं.’’

‘‘आई गैस, उस के बेटे की तबीयत खराब होगी.’’

‘‘बेटा?’’ शलभ ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां, एक दिन बताया था उस ने. उस दिन भी वह परेशान थी. मेरे पूछने पर कहने लगी कि बेटे की तबीयत ठीक नहीं और उसे मेड के भरोसे छोड़ कर आना पड़ा है.’’

‘‘क्यों घर में और कोई नहीं बच्चे को संभालने के लिए?’’ अरुण ने सवाल किया.

‘‘नहीं वह अकेली रहती है.’’

‘‘मगर उसे बेटा है, ऐसा कैसे? क्या वह शादीशुदा है?’’ शलभ को एक ?ाटका सा लगा.

‘‘फिलहाल उस का स्टेटस डिवोर्सी का है. उस ने पति से कई साल पहले तलाक ले लिया था. अकेली ही बच्चे को पाल रही है.’’

‘‘पर उस ने मु?ो तो कुछ नहीं बताया,’’ शलभ की आंखों में कई सवाल थे.

 

‘‘इस औफिस में ये सब बातें केवल मु?ो ही पता हैं. दरअसल मैं और नेहा पिछले

औफिस में भी साथ काम करते थे. वहां हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. मैं तो उस के घर भी गई हूं. बहुत बड़ा और सुंदर घर है उस का.’’

‘‘और बच्चा? बच्चा कितना बड़ा है?’’ शलभ ने सवाल किया.

‘‘बच्चा वैसे तो 8-10 साल का होगा मगर वह स्पैशल चाइल्ड है न सो अब भी संभालना कठिन होता है उसे.’’

‘‘स्पैशल चाइल्ड?’’

‘‘हां. उस का बेबी जन्म से ही डाउन सिंड्रोम की समस्या से पीडि़त है. मैं तो उस की हिम्मत की दाद देती हूं. इतनी बड़ी जिम्मेदारी वह

अकेली उठा रही है. सुना है उस के पति ने भी इस बच्चे की वजह से ही उसे तलाक दिया था. वह इस बच्चे को किसी अनाथालय में छोड़ने को तैयार नहीं हुई और अकेले ही उसे पालने का फैसला लिया.’’

नेहा के बारे में ये सारी जानकारी पाने के बाद शलभ खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगा. जिस लड़की को वह अपना पहला प्यार सम?ा रहा था वह तो शादीशुदा और एक बच्चे की मां निकली. बच्चा भी साधारण नहीं बल्कि एक स्पैशल चाइल्ड. वह पूरी रात सो नहीं सका. उसे इस बात का भी अफसोस था कि ये सारी बातें उसे दूसरों से पता चलीं. खुद नेहा ने उसे कुछ नहीं बताया. जिस रिश्ते को वह इतना सीरियसली लेने लगा था वह रिश्ता तो ?ाठ की बुनियाद पर टिका निकला. उसे नेहा से नफरत सी होने लगी. वैसे भी एक तलाकशुदा बीमार बच्चे की मां को वह अपना सारा जीवन नहीं सौंप सकता. बात ज्यादा बड़ी नहीं थी सो उस के लिए कदम पीछे करना आसान था. उस ने फैसला ले लिया था कि वह अब नेहा से दूरी बढ़ा लेगा.

नेहा 2 दिन औफिस नहीं आई. पहले अगर नेहा एक दिन भी औफिस नहीं आती थी तो शलभ 4 बार फोन कर डालता था. मगर इस बार उस ने हालचाल भी नहीं पूछा. यह बात नेहा को खटक रही थी.

Valentine’s Special: सुर बदले धड़कनों के

 

 

 

 

 

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