प्रायश्चित्त- भाग 2: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

‘एक परिवार टूटता है तो कितने सपने टूटते हैं, कितने अरमान बिखरते हैं, पता है तुझे? प्रेम, जिस प्रेम की तू दुहाई दे रही है वह प्रेम नहीं, भ्रम है तेरा. कोरी वासना है. ऐसे पुरुष कायर होते हैं, न वे पत्नी के होते हैं न प्रेमिका के. प्रेम में कोई इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है? किसी के अरमानों की लाश पर अपने प्रेम का महल खड़ा करेगी तू. अपना किया किसी न किसी रूप में एक दिन अपने ही सामने आता है, पछताएगी तू,’ मां एक लंबी सांस ले कर फिर बोलीं, ‘कोई भी निर्णय लेने से पहले सोच ले, कहीं ऐसा न हो कि अपमान और तिरस्कार के दर्द को धोने के लिए तेरे पास प्रायश्चित्त के आंसू भी कम पड़ जाएं, पर मैं जानती हूं कि इसे तू समझ नहीं सकेगी. तू समझना ही नहीं चाहती. मेरी बात मान ले और एक बार प्रकाश की पत्नी से मिल कर आ.’

निशा तो नहीं गई, पर एक दिन निशा की मां माया प्रकाश की पत्नी रजनी से मिलने पहुंच गईं. रजनी को देख कर माया पलकें झपकाना भी भूल गईं. उन का मुंह खुला का खुला रह गया. रजनी कितनी सुंदर थी. निशा और रजनी की क्या तुलना, क्या यही देख कर प्रकाश निशा की ओर आकृष्ट हुआ.

‘बेटा, मैं निशा की मां हूं. पता है तुझे निशा और प्रकाश…’ वे आगे कुछ कह न सकीं. ‘पता है,’ सारी पीड़ा को मन के कुएं में डाल कर रजनी ने मानो मुसकराहट के आवरण से चेहरा ढक दिया हो. ‘और तू चुप है?’

‘और क्या करूं, मां?’ उस के  मुख से ‘मां’ का संबोधन सुन माया चकित थीं. रजनी बोलती रही, ‘प्यार कोई किला तो नहीं है न जिस के चारों ओर पहरा लगाया जाए या उसे जीतने के लिए जान की बाजी लगा दी जाए, आखिर कुछ तो होगा ही निशा में जो मेरा प्रकाश मुझ से छीन ले गई.’

‘बेटा, तुम ने प्रकाश से बात की?’ ‘मुझे उन से कोई बात नहीं करनी, वे कोई भी निर्णय लेने के लिए आजाद हैं. मां, वह प्यार क्या जिसे झली फैला कर भीख की तरह मांगा जाए. अधिकार तो दिया जाता है, जो छीना जाए उस अधिकार में प्यार कहां? आप चिंतित न हों.’

‘कैसे चिंतित न होऊं, एक मां हूं मैं, किसी की दुनिया उजाड़ कर बेटी की मांग सजाऊं? सारा दोष निशा का है.’ ‘निशा को क्यों दोष दे रही हैं आप, वह तो न मुझ से मिली है न मुझे जानती है, वह मेरी दुश्मन कैसे हो सकती है. दोष है तो मेरे समय का.’

‘और प्रकाश? प्रकाश का कोई कुसूर नहीं?’ ‘है मां, लेकिन, उसे सजा देने वाली मैं कौन होती हूं. अब तो उन्होंने मुझ से माफी मांगने का अपना अधिकार भी खो दिया है. कहीं पानी का बहाव पत्थर डालने से रुका है, वह तो उसी वेग से उछल कर बहने के लिए दिशा तलाश लेता है.’

रजनी के कहे शब्दों को माया समझ न सकीं. उन्हें लगा कि पति के विद्रोह ने इसे विक्षिप्त कर दिया है. उन्होंने मन ही मन फैसला किया कि उसे एक बार प्रकाश से मिलना होगा, जहां निशा न हो.

एक दिन निशा की अनुपस्थिति में प्रकाश आया. खुद पर नियंत्रण न रख सकीं और बोलीं, ‘बेटा, मैं एक मां हूं. तुम्हारा, निशा का, रजनी का, किसी का बुरा कैसे सोच सकती हूं, पर न्यायअन्याय के बारे में तो सोचना पड़ेगा न. माना कि निशा नादान है, प्यार ने उसे अंधा बना दिया है, उस ने आज तक जिस चीज पर उंगली रखी वह उसे मिली है. खोना क्या होता है, इस का उसे एहसास नहीं है. पर तुम तो समझदार हो, अपने अच्छेबुरे की अक्ल है तुम में. अपनी जिम्मेदारी समझ. तुम अकेली रजनी और 2 छोटेछोटे बच्चे किस के भरोसे छोड़ आए हो. क्या प्यार की खाई में इतने नीचे जा गिरे हो कि आसमान भी धुंधला दिखाई पड़ रहा है.’

प्रकाश की आंखें भर आईं. वे बोले, ‘मां, मैं सब समझता हूं. मैं मानता हूं कि मुझ से भूल हो गई. मैं ने रजनी की कीमत पर निशा की कामना नहीं की थी. मैं तो निशा और रजनी दोनों से माफी मांगने को तैयार हूं. निशा तो शायद माफ भी कर दे, पर रजनी, वह तो इस विषय में क्या, किसी भी विषय में मुझ से बात करने को तैयार नहीं. पत्थर बन गई है वह. मेरी क्षमायाचना का उस पर कोई असर नहीं होता. अगर मैं उस के कदमों पर गिर भी पड़ूं तो भी वह मुझे माफ नहीं करेगी, बेहद स्वाभिमानी औरत है वह,’ लाचारी प्रकाश के शब्दों में समाती गई. वे फिर बोले, ‘वक्त ने आज मुझे जिंदगी के उस चौराहे पर ला कर खड़ा कर दिया है, जहां की हर डगर निशा तक जाती है, सिर्फ निशा तक. अब तो न मुझे रजनी से बिछुड़ने का गम है न निशा से मिलने की खुशी.’

वक्त गुजरता गया. रजनी से तलाक मिल गया और प्रकाश का ब्याह निशा से हो गया. उस के बाद रजनी बच्चों को ले कर पता नहीं कहां चली गई. किसी को कुछ पता नहीं. न वह अपने मायके गई न ससुराल. उस के बगैर जीना इतना मुश्किल होगा, प्रकाश ने सोचा न था. प्रकाश चाह कर भी पूरी तरह खुद को रजनी से जुदा न कर सके. कई बार निशा झंझला कर कहती, ‘अगर उस रिश्ते का मातम मनाना था तो मुझ से ब्याह करने की क्या आवश्यकता थी. कोशिश तो करो, समय के साथ सबकुछ भुला सकोगे.’

‘क्या भुला सकूंगा, निशा मैं, यह कि 8 साल पहले अपना सबकुछ छोड़ कर एक भोलीभाली लड़की मेरे कदमों के पीछेपीछे चली आई थी, यह कि मैं ने अग्नि के सामने जीवनभर साथ निभाने की कसमें खाई थीं. कैसे भूल जाऊं उस की सिंदूर से भरी मांग, कैसे भूल जाऊं उस के हाथों की लाल चूडि़यां. किसी का सुखचैन लूट कर किसी की खुशियों पर डाका डाल कर तुम्हारा दामन खुशियों से भरा है मैं ने. मैं इतना निर्मोही कैसे हो गया? कैसे भूल जाऊं कि जो घरौंदा मैं ने और रजनी ने मिल कर बनाया था उसे मैं ने अपने ही हाथों नोच कर फेंक दिया और क्या कुसूर था उन 2 मासूम बच्चों का? क्या अधिकार था मुझे उन से खुशियां छीनने का? क्या कभी मैं इन तमाम बातों से अपने को मुक्त कर पाऊंगा?’

प्रायश्चित्त- भाग 3: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

‘प्रकाश, क्या होता जा रहा है तुम्हें, संभालो खुद को. सत्य से सामना करने का साहस जुटाओ. बीता कल अतीत की अमानत होता है, उस के सहारे आज को नहीं जिया जा सकता. एक बुरा सपना समझ कर सबकुछ भूलने का प्रयास करो.’

‘काश कि यह सब एक सपना होता निशा, अफसोस तो यह है कि यह सब एक हकीकत है. मेरे जीवन का एक हिस्सा है.’

प्रकाश के दर्द को जान कर निशा खामोश थी, उस ने इस घटना को अपने जीवन की सब से बड़ी भूल के रूप में स्वीकार कर लिया था. वह समझती थी कि इंसान खुद को परिस्थितियों के अनुरूप नहीं ढाल पाता तो परिस्थितियां ही उसे अपने अनुरूप ढाल लेती हैं, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. रमिता का आगमन भी प्रकाश को सामान्य न कर सका. उस की बालसुलभ क्रियाएं भी उन्हें लुभा न सकीं. शायद कुछ पाने से ज्यादा कुछ खोने का गम था उन्हें.

प्रकाश के दिल की तड़प अब निशा के दिल को भी तड़पा जाती. तभी तो उस ने एक दिन कहा, ‘अगर रमिता में तुम्हें दीपक और ज्योति नजर आते हैं तो हम रजनी को ढूंढें़गे, उसे समझबुझ कर बच्चों को अपने पास ले आएंगे.’

‘नहीं निशा, अब मुझ में साहस नहीं है, रजनी के सामने जा कर खड़े होने का. और फिर रजनीरूपी बेल जिस वृक्ष से लिपटी है वह दीपक और ज्योति ही तो हैं. मैं उस की जड़ों को झकझरना नहीं चाहता. मैं रजनी के जीवन की बचीखुची रोशनी भी उस से छीनना नहीं चाहता.’

निशा का पूरा ध्यान रमिता की परवरिश की ओर लग गया. वक्त गुजरता गया. प्रकाश पहले से ज्यादा गुमसुम रहने लगे. हां, रमिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना उन्हें बखूबी आ गया था. वे नहीं चाहते थे कि प्रायश्चित्त की जो आग उन के दिल में सुलग रही है, उस की आंच भी रमिता तक पहुंचे. जिंदगी के 17-18 साल यों ही बीत गए.

रजनी नाम का जख्म समय के साथ भर तो गया, पर निशान अब भी बाकी था. 2 वर्षों पहले रजनी का एक खत प्रकाश के नाम आया. निशा ने उसे उलटपलट कर देखा, पर फिर प्रकाश को थमा दिया. पत्र सामने खुला पड़ा था, नजरें पत्र की लिखावट पर फिसलती चली गईं.

‘प्रकाश, तुम्हारे दोनों बच्चे अब बड़े हो गए हैं, ज्योति डाक्टर बन गई है और अपनी पसंद के लड़के से शादी कर रही है. तुम्हारा बेटा दीपक अब मुझे ले कर विदेश में बसना चाहता है. मैं जानती हूं, तुम्हारे हृदय के भीतर छिपा इन का पिता इन से मिलने को तड़प रहा होगा. अब मैं तुम से नाराज भी नहीं हूं. सच मानो, मैं ने तो तुम्हें कब का माफ कर दिया है.’

‘रजनी.’

नीचे पता लिखा हुआ था और साथ में ज्योति की शादी का कार्ड भी था.

प्रकाश ने कार्ड सहित पत्र निशा की ओर बढ़ा दिया.

‘नहीं निशा, मैं नहीं कर सकता रजनी का सामना. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह कह सकती है कि उस ने मुझे माफ कर दिया. लेकिन मैं कैसे माफ कर दूं अपनेआप को? मेरी सजा यही है कि मैं उम्रभर तड़पता रहूं और यही होगा मेरे पापों का प्रायश्चित्त भी.’

‘तब से ले कर आज तक प्रायश्चित्त ही तो करती आ रही हूं मैं और आप भी. अब और कितना?’ सिसक उठी निशा.

भूलीबिसरी घटनाओं की यादें आआ कर दिमाग के दरवाजे को खटखटाती रहीं. मन अतीत की गलियों में पता नहीं कब तक भटकता रहा कि अचानक शांताबाई की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘बहूजी, आज और कितनी देर तक इस कमरे में रहेंगी आप? नाश्ता तैयार है,’’ निशा हड़बड़ा गई, स्वयं को व्यवस्थित करते हुए बोली, ‘‘साहब कहां हैं?’’

‘‘उन के पास तो कोई बैठा है, उसी से बातें कर रहे हैं.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘क्या पता, आवाज तो दामादजी जैसी है,’’ शांताबाई ने लापरवाही से कहा.

‘‘और तू अब बता रही है मुझे,’’ निशा उठ खड़ी हुई.

‘‘मैं तो आप को यह बताने आई थी कि आप को रमिता दीदी बुला रही हैं.’’

‘‘अच्छाअच्छा ठीक है, तू जा अपना काम कर.’’

मां को देखते ही रमिता बिफर पड़ी, ‘‘मां, वह क्या करने यहां आया है? कह दो उस से चला जाए यहां से, मैं उस की सूरत भी नहीं देखना चाहती.’’

‘‘हां, बेटा, ठीक है, तुम्हारे पापा उस से बात कर रहे हैं न, जो उचित होगा वही करेंगे. कोई भी निर्णय बिना कुछ सोचेसमझे मत लो.’’

रमिता ने नजर उठा कर देखा, सामने पापा खड़े थे और उन के पीछे सिर झकाए खड़ा था तुषार.

‘‘गलती हर इंसान से होती है, बेटी, पर अपनी गलती को स्वीकार कर लेने का साहस बहुत कम लोगों में होता है. अपने किए पर तुषार खुद शर्मिंदा है. वह मानता है कि वह भटक गया था. उसे अफसोस है कि उस ने तुम्हारा दिल दुखाया है. जन्मों के रिश्तों को पलों में मत टूट जाने दो, रमिता. मान लो बेटा कि तूफान तुम्हारे दिलों के द्वार पर दस्तक दे कर वापस लौट गया है. उठो रमिता और माफ कर दो तुषार को. आज वह तुम्हें मनाने आया है, अगर आज वह चला गया तो शायद लौट कर कभी न आए. मैं नहीं चाहता कि तुम दोनों रूठने और मनाने की सीमा पार कर जाओ. आज वह चल कर तुम्हारे पास आया है, इस का अर्थ यह नहीं कि वह सिर्फ दंड का अधिकारी है,’’ प्रकाश का गला बोलतेबोलते भर्रा उठा, स्वर थरथराने लगे, ‘‘उसे माफ कर दो, रमिता, नहीं तो पछतावे की आग से तुम भी नहीं बच सकोगी, सबकुछ जल कर राख हो जाएगा. प्यार भी और नफरत भी. कुछ भी नहीं बचेगा.’’

रमिता हैरान थी. आज जिंदगी में पहली बार पापा को इतना कुछ कहते सुन रही थी. पापा तुषार का पक्ष ले रहे हैं? मगर क्यों?

रमिता ने पलट कर प्रश्नभरी नजर मां पर डाली.

निशा भी प्रकाश से सहमत थी, मानो उस की निगाहें कह रही हों, ‘कुछ बातों को समझना इतना जरूरी नहीं होता रमिता जितना उन पर अमल करना.’

रमिता के कदम तुषार की ओर बढ़ चले. निशा ने आगे बढ़ कर नन्ही अंकिता को तुषार की गोद में दे दिया. रमिता जाते समय पलटपलट कर अपने मातापिता को देखती रही.

निशा और प्रकाश भी रमिता और तुषार को आंखों से ओझल होने तक देखते रहे. दोनों की आंखें अनायास ही छलक उठीं.

प्रायश्चित्त- भाग 1: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

निशा के दिल और दिमाग में शून्यता गहराती जा रही थी. रोतेरोते रमिता का चेहरा लाल पड़ गया था, आंखों की पलकें सूज आई थीं. अपनी औलाद की आंखों में इतने सारे दुख की परछाइयां देख कर कौन मां विचलित नहीं हो जाएगी. इसलिए निशा का तड़प उठना भी स्वाभाविक ही था. वह एक बार रमिता को देखती, तो एक बार उस की गोद में पड़ी उस मासूम बच्ची अंकिता को जो दुनियादारी से बेखबर थी.

2 वर्षों पहले ही कितनी धूमधाम से निशा ने रमिता और तुषार का ब्याह किया था. दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. एकदूसरे से प्रेम करते थे, फिर.अचानक निशा की नजर दरवाजे पर खड़ी शांताबाई पर पड़ी.

‘‘क्या है, तू यहां खड़ीखड़ी क्या कर रही है?’’ घूरते हुए निशा ने शांताबाई से कहा, ‘‘तुझ से दूध मांगा था न मैं ने बच्ची के लिए. और, मेरे नहाने के लिए पानी गरम कर दिया तू ने?’’

‘‘दूध ही तो लाई हूं, बहूजी, और पानी भी गरम कर दिया है.’’ ‘‘ठीक है, अब जा यहां से,’’ शांताबाई से दूध की बोतल छीन कर निशा बोली, ‘‘अब खड़ेखड़े मुंह क्या देख रही है. जा, जा कर अपना काम कर,’’ निशा अकारण ही झंझला पड़ी उस पर.

‘‘बहूजी, फूल तोड़ दूं?’’ ‘‘और क्या, रोज नहीं तोड़ती क्या?’’ निशा अच्छी तरह जानती थी कि शांता क्यों किसी न किसी बहाने यहीं चक्कर काटते रहना चाहती है.

सुबह जब रमिता आई तो प्रकाश वहीं बाहर बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. कोई नई बात नहीं थी, वैसे भी रमिता हर  3-4 दिन में मां की अदालत में तुषार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा ले कर हाजिर रहती और फैसला भी उसी के पक्ष में होता. कभी यह कि, तुषार आजकल लगातार औफिस से घर देर से आता है, तो कभी यह कि तुषार फिल्म दिखाने का वादा कर के समय पर नहीं आया, तो कभी यह कि तुषार मेरा जन्मदिन भूल गया.

इन बातों को उस की मां निशा ने भले ही महत्त्व दिया हो, पर पिता प्रकाश हर बात हंसी में उड़ा देते. अकसर यही होता कि शाम को तुषार आता, सारे गिलेशिकवे छूमंतर और दोनों हंसतेमुसकराते वापस अपने घर चले जाते. पर आज बात कुछ और ही थी. प्रकाश की आंखें अखबार पर मंडरा रही थीं, पर कान कमरे में चल रहे मांबेटी के संवाद पर ही लगे रहे.

‘‘बस, मां, अब और नहीं. अब यह न कहना कि झगड़ा तुम ने ही शुरू किया होगा या तुम्हें तो समझता करना ही नहीं आता. मैं अब उस घर में कभी कदम नहीं रखूंगी. मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती कि तुषार के दिल में मेरे सिवा किसी और का भी खयाल रहता है. बताओ मां, मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी थी जो तुषार… मैं ने अपनी आंखों से उस लड़की की बांहों में बांहें डाले तुषार को बाजार में घूमते और फिर सिनेमाघर में जाते देखा है,’’ सिसकती हुई रमिता बोली, ‘‘मां, मैं तुषार से बहुत प्यार करती हूं, मैं उस के बिना जी नहीं सकती.’’

बेटी की बातें सुन कर निशा खामोश रह गई. प्रकाश बेचैनी से उस के उत्तर का इंतजार कर रहे थे. क्या निशा के पास रमिता के प्रश्न का कोई जवाब है? ‘‘कैसे बाप हो तुम? बेटी रोरो कर बेहाल हुई जा रही है और तुम्हारे पास उस के लिए सहानुभूति के बोल भी नहीं हैं.’’

प्रकाश ने देखा निशा की भी आंखें नम थीं और गला भरा हुआ था. ‘‘बैठो,’’ प्रकाश ने उस का हाथ पकड़ कर अपने करीब बैठा लिया और बोले, ‘‘कुछ देर के लिए उसे अकेला छोड़ दो. अभी वह बहुत परेशान है. वक्त हर समस्या का समाधान ढूंढ़ लेता है,’’ इतना कह कर प्रकाश की नजरें फिर अखबार के शब्दजाल में खो गईं.

प्रकाश की इन्हीं दार्शनिक बातों से निशा विचलित हो उठती है. निशा ने प्रकाश की चश्मा चढ़ी गंभीर आंखों को घूरा और मन ही मन सोचने लगी कि कहां से लाते हैं ये इतना धैर्य. ‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ बिना देखे ही न जाने कैसे आभास हो गया उन्हें निशा के घूरने का.

‘‘कुछ नहीं,’’ ठहर कर बोली वह, ‘‘जो दर्द मुझे इस कदर तड़पा रहा है उस से आप इतने अनजान कैसे हो? सबकुछ परिस्थितियों के हवाले कर के इतना निश्ंिचत कैसे रहा जा सकता है?’’

‘‘निशा, कभीकभी जीवन में कुछ ऐसा घटता है जिस पर इंसान का वश नहीं रहता, कुछ नहीं कर सकता वह,’’ प्रकाश निशा के मन का तनाव कम करना चाहते थे.

‘‘तो आप का मतलब यह है कि हम यों ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें,’’ निशा बड़बड़ाती हुई कमरे की ओर बढ़ चली, ‘‘तुम पुरुष भी कैसे होते हो, गंभीर से गंभीर समस्या से भी मुंह मोड़ कर बैठ जाते हो.’’

उस कमरे में पहुंचते ही निशा के मन ने मन से ही प्रश्न किया, ‘तुम्हें सुनाई देती है किसी के सपने टूटने की आवाज? क्या होता है अरमानों का बिखरना, कैसे लुटती है किसी की दुनिया, क्या तुम जानती हो या नहीं जानती?’

निशा अपने भीतर की आवाज सुन कर सोचने लगी कि आज क्या होता जा रहा है उसे? 24 साल पहले की गई भूल का एहसास उसे आज क्यों हो उठा? तो क्या उस के किए की सजा उस की बच्ची को मिलेगी. अपनी गलतियों को याद कर उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. मन को नियंत्रित करने के सारे प्रयास विफल सिद्ध हुए. वक्त ने उसे अतीत के दलदल में धकेल दिया और वह उस में हर पल धंसती चली गई थी.

याद आ रहा था उसे मां का तमतमाया हुआ चेहरा. उस दिन उस ने मां को अपने और प्रकाश के विषय में सबकुछ बताया था. मां के शब्द उस के कानों में ऐसे गूंज रहे थे मानो कल की बात हो. ‘निशा, तू जानती है न बेटा, कि प्रकाश शादीशुदा है.’

‘हां मां,’  बात काटते हुए निशा बोली, ‘पर यह कहां का इंसाफ है कि एक इंसान जिस रिश्ते को स्वीकार ही नहीं करता, उस का बोझ ढोता रहे और फिर उस की पत्नी रजनी, वह खुद नहीं रहना चाहती प्रकाश के साथ.’

‘बेटा, रिश्ते कोई पतंग की डोर तो नहीं कि एक हाथ से छूटी और दूसरे ने लूट ली. और वह क्यों ऐसा चाहेगी, कभी सोचा है तू ने? एक पत्नी अपने पति के साथ कब रहना नहीं चाहती, जानना चाहती है तू, इसलिए नहीं कि वह उस से ज्यादा किसी और को चाहता है, बल्कि इसलिए कि उस ने उस के विश्वास को तोड़ा है. एक मर्यादा का उल्लंघन किया है,’ थोड़ा ठहर कर वे बोलीं.

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प्यार की पहली किस्त: सायरा का क्या था असली चेहरा

बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झुका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा

नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है

कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा

के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं.

तुम्हारी मजबूरी सुलतान.

सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर.

भूल किसकी

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बिचौलिए- भाग 1: क्यों मिला वंदना को धोखा

सोमवार की सुबह सीमा औफिस पहुंची तो अपनी सीट की तरफ जाने के बजाय वंदना की मेज के सामने जा खड़ी हुई. उस के चेहरे पर तनाव, चिंता और गुस्से के भाव अंकित थे. अपना सिर झुका कर मेज की दराज में से कुछ ढूंढ़ रही वंदना से उस ने उत्तेजित लहजे में कहा, ‘‘वंदना, वह तुझे बेवकूफ बना रहा है.’’ वंदना ने झटके से सिर उठा कर हैरान नजरों से सीमा की तरफ देखा. उस के कहे का मतलब समझने में जब वह असमर्थ रही, तो उस की आंखों में उलझन के भाव गहराते चले गए. कमरे में उपस्थित बड़े बाबू ओमप्रकाश और सीनियर क्लर्क महेश की दिलचस्पी का केंद्र भी अब सीमा ही थी.

‘‘क….कौन मुझे बेवकूफ बना रहा है, सीमा दीदी?’’ वंदना के होंठों पर छोटी, असहज, अस्वाभाविक मुसकान उभर कर लगभग फौरन ही लुप्त हो गई.

‘‘समीर तुझे बेवकूफ बना रहा है. प्यार में धोखा दे रहा है वह चालाक इंसान.’’

‘‘आप की बात मेरी समझ में कतई नहीं आ रही है, सीमा दीदी,’’ मारे घबराहट के वंदना का चेहरा कुछ पीला पड़ गया.

‘‘मर्दजात पर आंखें मूंद कर विश्वास करना हम स्त्रियों की बहुत बड़ी नासमझी है. मैं धोखा खा चुकी हूं, इसीलिए तुझे आगाह कर भावी बरबादी से बचाना चाहती हूं.’’

‘‘सीमा दीदी, आप जो कहना चाहती हैं, साफसाफ कहिए न.’’ ‘‘तो सुन, मेरे मामाजी के पड़ोसी हैं राजेशजी. कल रविवार को समीर उन्हीं की बेटी रजनी को देखने के लिए अपनी माताजी और बहन के साथ पहुंचा हुआ था. रजनी की मां तो पूरे विश्वास के साथ सब से यही कह रही हैं कि समीर ही उन का दामाद बनेगा,’’ सीमा  की बात का सुनने वालों पर ऐसा प्रभाव पड़ा था मानो कमरे में बम विस्फोट हुआ हो.

ओमप्रकाश और महेश अब तक सीमा के दाएंबाएं आ कर खड़े हो गए थे. दोनों की आंखों में हैरानी, अविश्वास और क्रोध के मिश्रित भाव झलक रहे थे.

‘‘मैं आप की बात का विश्वास नहीं करती, जरूर आप को कोई गलतफहमी हुई होगी. मेरा समीर मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता,’’ अत्यधिक भावुक होने के कारण वंदना का गला रुंध गया.

‘‘मेरी मां कल मेरे मामाजी के यहां गई थीं. उन्होंने अपनी आंखों से समीर को राजेशजी के यहां देखा था. समीर को पहचानने में वे कोई भूल इसलिए नहीं कर सकतीं क्योंकि उसे उन्होंने दसियों बार देख रखा है,’’ सीमा का ऐसा जवाब सुन कर वंदना का चेहरा पूरी तरह मुरझा गया. उस की आंखों से आंसू बह निकले. किसी को आगे कुछ भी टिप्पणी करने का मौका इसलिए नहीं मिला क्योंकि तभी समीर ने कमरे के भीतर प्रवेश किया. ‘नमस्ते,’  समीर की आवाज सुनते ही वंदना घूमी और उस की नजरों से छिपा कर उस ने अपने आंसू पोंछ डाले. उस के नमस्ते के जवाब में किसी के मुंह से कुछ नहीं निकला. इस बात से बेखबर समीर बड़े बाबू ओमप्रकाश के पास पहुंच कर मुसकराता हुआ बोला, ‘‘बड़े बाबू, यह संभालिए मेरा आज की छुट्टी का प्रार्थनापत्र, इसे बड़े साहब से मंजूर करा लेना.’’

‘‘अचानक छुट्टी कैसे ले रहे हो?’’ उस के हाथ से प्रार्थनापत्र ले कर ओमप्रकाश ने कुछ रूखे लहजे में पूछा.

‘‘कुछ जरूरी व्यक्तिगत काम है, बड़े बाबू.’’

‘‘कहीं तुम्हारी सगाई तो नहीं हो रही है?’’ सीमा कड़वे, चुभते स्वर में बोली, ‘‘ऐसा कोई समारोह हो, तो हमें बुलाने से…विशेषकर वंदना को बुलाने से घबराना मत. यह बेचारी तो ऐसे ही किसी समारोह में शामिल होने को तुम्हारे साथ पिछले 1 साल से प्रेमसंबंध बनाए हुए है.’’

‘‘यह…यह क्या ऊटपटांग बोल रही हो तुम, सीमा?’’ समीर के स्वर की घबराहट किसी से छिपी नहीं रही.

‘‘मैं ने क्या ऊटपटांग कहा है? कल राजेशजी की बेटी को देखने गए थे तुम. अगर लड़की पसंद आ गई होगी, तो अब आगे ‘रोकना’ या ‘सगाई’ की रस्म ही तो होगी न?’’

‘‘समीर,’’ सीमा की बात का कोई जवाब देने से पहले ही वंदना की आवाज सुन कर समीर उस की तरफ घूमा.

वंदना की लाल, आंसुओं से भरी आंखें देख कर वह हड़बड़ाए अंदाज में उस के पास पहुंचा और फिर चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘तुम रो रही हो क्या?’’

‘‘इस मासूम के दिल को तुम्हारी विश्वासघाती हरकत से गहरा सदमा पहुंचा है, अब यह रोएगी नहीं, तो क्या करेगी?’’ सीमा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘यह आग तुम्हारी ही लगाई लग रही है मुझे. अब कुछ देर तुम खामोश रहोगी तो बड़ी कृपा समझूंगा मैं तुम्हारी,’’ सीमा  को गुस्से से घूरते हुए समीर नाराज स्वर में बोला.

‘‘समीर, तुम मेरे सवाल का जवाब दो, क्या तुम कल लड़की देखने गए थे?’’ वंदना ने रोंआसे स्वर में पूछा.

‘‘अगर तुम ने झूठ बोलने की कोशिश की, तो मैं इसी वक्त तुम्हें व वंदना को राजेशजी के घर ले जाने को तैयार खड़ी हूं,’’ सीमा ने समीर को चेतावनी दी. सीमा के कहे पर कुछ ध्यान दिए बगैर समीर नाराज, ऊंचे स्वर में वंदना से बोला, ‘‘अरे, चला गया था तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है? मांपिताजी ने जोर डाला, तो जाना पड़ा मुझे मैं कौन सा वहां शादी को ‘हां’ कर आया हूं. बस, इतना ही विश्वास है तुम्हें मुझ पर. खुद भी खामखां आंखें सुजा कर तमाशा बन रही हो और मुझे भी लोगों से आलतूफालतू की बकवास सुनवा रही हो.’’ समीर की क्रोधित नजरों से प्रभावित हुए बगैर सीमा व्यग्ंयभरे स्वर में बोली, ‘‘इश्क वंदना से कर रहे हो और सुनते हो मातापिता की. कल को जनाब मातापिता के दबाव में आ कर शादी भी कर बैठे, तो इस बेचारी की तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी या नहीं?’’

‘‘समीर, तुम गए ही क्यों लड़की देखने और मुझे बताया क्यों नहीं इस बारे में कुछ?’’ वंदना की आंखों से फिर आंसू छलक उठे.

‘‘मुझे खुद ही कहां मालूम था कि ऐसा कुछ कार्यक्रम बनेगा. कल अचानक ही मांपिताजी जिद कर के मुझे जबरदस्ती उस लड़की को दिखाने ले गए.’’

‘‘झूठा, धोखेबाज,’’ सीमा बड़बड़ाई और फिर पैर पटकती अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

‘‘सीमा की बातों पर ध्यान न देना, वंदना. तुम्हारी और मेरी ही शादी होगी…जल्दी ही मैं उचित माहौल बना कर तुम्हें अपने घरवालों से मिलाने ले चलूंगा. अभी जल्दी में हूं क्योंकि बाहर मांपिताजी टैक्सी में बैठे इंतजार कर रहे हैं मेरा. कल मिलते हैं, बाय,’’  किसी और से बिना एक भी शब्द बोले समीर तेज चाल से चलता हुआ कक्ष से बाहर निकल गया. उस के यों चले जाने से सब को ही ऐसा एहसास हुआ मानो वह वहां से उन सब से पीछा छुड़ा कर भागा है. ओमप्रकाश और महेश रोतीसुबकती वंदना को चुप कराने के प्रयास में जुट गए. सीमा क्रोधित अंदाज में समीर को भलाबुरा कहती लगातार बड़बड़ाए जा रही थी.

भूल किसकी- भाग 4:

प्रिंस जैसेजैसे बड़ा हो रहा था पापाजी उतने ही छोटे बनते जा रहे थे. दिनभर उस के साथ खेलना, उस के जैसे ही तुतला कर उस से बात करना. आज रीता की किट्टी पार्टी थी. प्रिंस को खाना खिला कर पापाजी के पास सुला कर वह किट्टी में जाने के लिए तैयार होने लगी. वैसे भी प्रिंस ज्यादा समय अपने दादाजी के साथ बिताता था, इसलिए उसे छोड़ कर जाने में रीता को कोई परेशानी नहीं थी.

जिस के यहां किट्टी थी उस के कुटुंब में किसी की गमी हो जाने की वजह से किट्टी कैंसिल हो गई और वह जल्दी घर लौट आई. बाहर तुषार की गाड़ी देख आश्चर्य हुआ. आज औफिस से इतनी जल्दी कैसे आना हुआ… अगले ही पल आशंकित होते हुए कि कहीं तबीयत तो खराब नहीं है, जल्दीजल्दी बैडरूम की ओर बढ़. दरवाजे पर पहुंचते ही ठिठक गई.

अंदर से रीमा की आवाजें जो आ रही थीं. रीमा को तो इस समय कालेज में होना चाहिए. यहां कैसे? कहीं पापाजी की बात सही तो नहीं है? गुस्से में जोर से दरवाजा खोला. अंदर का नजारा देखते ही उस के होश उड़ गए. तुषार तो रीता को देखते ही सकपका गया पर रीमा के चेहरे पर शर्मिंदगी का नामोनिशान नहीं था.

गुस्से से रीता का चेहरा तमतमा उठा. आंखों से अंगारे बरसने लगे. पूरी ताकत से रीमा को इसी समय कमरे से और घर से जाने को कहा. तुषार तो सिर  झुकाए खड़ा रहा पर रीमा ने कमरे से बाहर जाने से साफ इनकार कर दिया. रीता ने बहुत बुराभला कहा पर रीमा पर उस का कुछ भी असर नहीं हुआ.

हार कर रीता को ही कमरे से बाहर आना पड़ा. उस की रुलाई थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला और फिर हिम्मत कर तुषार से बात करने कमरे में गई और बोली ‘‘तुषार इस घर में या तो रीमा रहेगी या मैं,’’ उसे लगा यह सुन कर तुषार रीमा को जाने के लिए कह देगा.

मगर वह बोला, ‘‘रीमा तो यहीं रहेगी, तुम्हें यदि नहीं पसंद तो तुम जा सकती हो.’’

तुषार से इस जवाब की उम्मीद तो रीता को बिलकुल नहीं थी. अब उस के पास कहने को कुछ नहीं था.

सुचित्रा और शेखर ने भी रीमा को सम झाने की बहुत कोशिश की, पर अपनी जिद पर अड़ी रीमा किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. अभी तक जो काम चोरीछिपे होता था अब वह खुल्लमखुल्ला होने लगा. रीता को तो अपने बैडरूम से भी बेदखल होना पड़ा. जिस घर में हंसी गूंजती थी अब वीरानी सी छाई थी. आखिर कोई कब तक सहे. इन सब का असर रीता की सेहत पर भी होने लगा. सुचित्रा और शेखर ने तय किया कि रीता उन के पास आ कर रहेगी वरना वहां रह कर तो घुटती रहेगी.’’

तुषार को प्रमोशन मिली थी. आज उस ने प्रमोशन की खुशी में पार्टी रखी थी. रीता जाना ही नहीं चाहती थी, लोगों की नजरों और सवालों से बचना जो चाहती थी. पार्टी में वह रीमा को ले कर गया.

पापाजी बहुत परेशान थे. उन्हें सम झ ही नहीं आ रहा था इस मामले को कैसे सुल झाया जाए. वे किसी भी कीमत पर रीता और प्रिंस को इस घर से जाने नहीं देना चाहते थे. उन के जाने के बाद वे कैसे जीएंगे. पर रोकें भी तो कैसे? इसी उधेड़बुन में लगे थे कि अचानक उन्होंने एक ठोस निर्णय ले ही लिया.

रीता का कमरा साफ करते हुए सुचित्रा ने शेखर से कहा, ‘‘पता नहीं मु झ से रीमा की परवरिश में कहां चूक हो गई.’’

‘‘कितनी बार तुम से कहा अपनेआप को दोष मत दिया करो सुचित्रा.’’

‘‘नहीं शेखर, यदि बचपन में ही उस की जिद न मानी होती तो शायद यह दिन न देखना पड़ता. जब भी उस ने रीता की किसी चीज पर हक जमाया हम ने हमेशा यह कह कर रीता को सम झाया कि छोटी बहन है दे दो, पर इस बार उस ने जो चीज लेनी चाही है वह कैसे दी जा सकती है?

‘‘सपने में भी नहीं सोचा था. रीमा रीता का घर ही उजाड़ देगी, काश मैं ने रीमा पर नजर रखी होती, उसे इतनी छूट न दी होती. ये सब मेरी भूल की वजह से हुआ.’’

रीता बैग में कपड़े रखते हुए सोच रही थी कि उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह दिन भी देखना पड़ेगा. तुषार भी बदल जाएगा. काश मैं ने पापाजी की बात को सीरियसली लिया होता. उन्होंने तो मु झे बहुत बार आगाह किया पर मैं सम झ ही नहीं पाई. जो कुछ हुआ उस में मेरी ही गलती है.

पापाजी के मन में उथलपुथल मची थी. वे रीता के पास जा कर बोले, ‘‘कपड़े वापस अलमारी में रखो. तुम कहीं नहीं जाओगी.’’

‘‘पर पापाजी मैं यहां रह कर क्या करूंगी जब तुषार ही नहीं चाहता?’’

‘‘क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं? इस घर को घर तो तुम ने ही बनाया है. तुम चली जाओगी तो वीराना हो जाएगा. मैं कैसे जीऊंगा तुम्हारे और प्रिंस के बिना. अब तुम अपने बैडरूम में जाओ. यह घर तुम्हारा है.’’

‘‘जी पापाजी,’’ कह वह प्रिंस को ले कर सोने चली गई.

रात के 2 बज रहे थे. तुषार और रीमा अभी तक नहीं आए थे. पापाजी की आंखों की नींद उड़ गई थी. वे सोच रहे थे कि मैं तो बड़ा और अनुभवी था जब मु झे आभास हो गया था तो चुप क्यों बैठा रहा. सारी मेरी गलती है.

हरकोई इस भूल के लिए अपनेआप को दोषी ठहरा रहा था, जबकि जो दोषी था वह तो अपनेआप को दोषी मान ही नहीं रहा था. घड़ी ने 12 बजा दिए. पापाजी ने अंदर से दरवाजा लौक किया और आंखें बंद कर दीवान पर लेट गए. मन में विचारों का घुमड़ना जारी था. गेट खुलने की आवाज आते ही पापाजी ने खिड़की से देखा, तुषार गाड़ी पार्क कर रहा था. दोनों हाथों में हाथ डाले लड़खड़ाते हुए दरवाजे की ओर बढ़ रहे थे.

तुषार ने इंटर लौक खोला पर दरवाजा नहीं खुला, ‘‘यह दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा?’’

‘‘हटो, मैं खोलती हूं.’’

पर रीमा से भी नहीं खुला.

‘‘लगता है किसी ने अंदर से बंद कर दिया है.’’

‘‘अरे, ये बैग कैसे रखे यहां?’’

‘‘रीता के होंगे. वह आज मम्मी के घर जा रही थी न.’’

तुषार ने दरवाजा कई बार खटखटाया पर कोई उत्तर न आने पर रीता को आवाज लगाई. पर तब भी कोई जवाब नहीं.

‘‘लगता है रीता गहरी नींद में है, पापाजी को आवाज लगाता हूं.’’

‘‘यह दरवाजा नहीं खुलेगा,’’ अंदर से ही पापाजी ने जवाब दिया.

‘‘देखो, दरवाजे पर ही एक तुम्हारा और एक रीमा का बैग रखा है.’’

‘‘यह घर मेरा है मु झे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘बरखुरदार, तुम भूल रहे हो मैं ने अभी यह घर तुम्हारे नाम नहीं किया है.’’

‘‘पापाजी मैं इस समय कहां जाऊंगी?’’

‘‘यह फैसला भी तुम्हें ही करना है… इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं. जब तुम्हें पूरी तरह सम झ आ जाए कि तुम क्या कर रहे हो और कुछ ऐसा कि इस दरवाजे की एक और चाबी तुम्हें मिले, तब तक यह दरवाजा बंद सम झो.’’

दोनों का नशा काफूर हो चुका था. थोड़ी देर इंतजार किया कि शायद पापाजी दरवाजा खोल दें. मगर जब दरवाजा नहीं खुला तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘रीमा, चलो गाड़ी में बैठो.’’

रीमा ने कहा, ‘‘तुषार, मु झे घर पर उतार दो. तुम्हें तो रात को शायद होटल में रहना पड़ेगा,’’ रीमा को मन में खुशी भी थी कि बहन का घर तोड़ दिया पर यह डर भी था कि तुषार जैसा वेबकूफ पार्टनर कहीं हाथ से न निकल जाए.

‘‘तुषार भी शादी के दिन इतना सुंदर नहीं लगा था जितना आज लग रहा था.

कहते हैं जब व्यक्ति खुश होता है तो चेहरे पर चमक आ ही जाती है…’’

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