अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली. 8 बज रहे थे. वह एकदम उठ गई और बोली, ‘‘सर, अब मुझे चलना होगा. मांबाबूजी इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह कर वह कौफी हाउस से बाहर आ स्कूटी स्टार्ट कर घर चल दी. घर आ कर ग्रीष्मा सीधे अपने कमरे में गई और खुद को फिर आईने में देख सोचने लगी कि क्या हो रहा है उसे? कहीं उसे प्यार तो नहीं हो गया… पर नहीं वह एक विधवा है… मांबाबूजी और कुणाल की जिम्मेदारी है उस पर…वह ये सब क्यों भूल गई…सोचतेसोचते उस का सिर दर्द करने लगा तो कपड़े बदल कर सो गई.
अगले दिन जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर सामने ही मिल गए. उसे देखते ही बोले, ‘‘मैम, फ्री हो कर मेरे कैबिन में आइएगा, आप से कुछ काम है.’’ ‘‘जी सर,’’ कह कर वह तेज कदमों से स्टाफरूम की ओर बढ़ गई.
जब वह सर के कैबिन में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैडम कल शिक्षा विभाग की एक मीटिंग है, जिस में आप को मेरे साथ चलना होगा.’’ ‘‘सर मैं… मैं तो बहुत जूनियर हूं… और टीचर्स…’’ न जाने क्यों वह सर के साथ जाने से बचना चाहती थी.
‘‘यह तो मेरी इच्छा है कि मैं किसे ले जाऊं, आप को बस मेरे साथ चलना है.’’ ‘‘जी, सर,’’ कह कर वह स्टाफरूम में आ गई और सोचने लगी कि यह सब क्या हो रहा है… कहीं विनय सर को मुझ से… मुझे विनय सर से… तभी फ्री टाइम समाप्त होने की घंटी बजी और वह अपनी कक्षा में आ गई. आज उस का मन बच्चों को पढ़ाने में भी नहीं लगा. दिलदिमाग पर सर का जादू जो छाया था.
अगले दिन मीटिंग से वापस आते समय विनय सर ने गाड़ी फिर कौफी हाउस के बाहर रोक दी. बोले, ‘‘चलिए कौफी पी कर चलते हैं.’’ उन का ऐसा जादू था कि ग्रीष्मा चाह कर भी मना न कर सकी.
कौफी पीतपीते विनय सर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोले, ‘‘ग्रीष्मा, आप ने अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचा है?’’ ‘‘क्या मतलब सर… मैं कुछ समझी नहीं…’’ अचकचाते स्वर में समझ कर भी नासमझ बनते हुए उस ने कहा.
‘‘जो हो गया है उसे भूल कर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के बारे में सोचिए…मैं आप का हर कदम पर साथ देने को तैयार हूं. यदि आप को मेरा साथ पसंद हो तो…’’ सपाट स्वर में विनय सर ने अपनी बात ग्रीष्मा के सामने रख दी. कुछ देर तक विचार करने के बाद ग्रीष्मा बोली, ‘‘सर, बुरा न मानें तो एक बात पूंछू? आप ने अभी तक विवाह क्यों नहीं किया?’’
‘‘आप का प्रश्न एकदम सही है. मैडम ऐसा नहीं है कि मैं विवाह करना नहीं चाहता था, परंतु पहले तो मैं अपने कैरियर को बनाने में लगा रहा और फिर कोई लड़की अपने अनुकूल नहीं मिली. दरअसल, हमारे समाज में लड़कियों को उच्चशिक्षित नहीं किया जाता. अल्पायु में ही उन की शादी कर दी जाती है. मुझे शिक्षित लड़की ही चाहिए थी. बस इसी जद्दोजहद में मैं आज तक अविवाहित ही हूं. बस यही है मेरी कहानी.’’ सर की बातें सुन कर ग्रीष्मा सोचने लगी कि सर की जाति के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं. मांबाबूजी तो बड़े ही रूढि़वादी हैं. पर किया भी क्या जा सकता है…प्यार कोई जाति देख कर तो किया नहीं जा सकता. वह तो बस हो जाता है, क्योंकि प्यार में दिमाग नहीं दिल काम करता है.
ग्रीष्मा अपने विचारों में डूबी हुई थी कि अचानक विनय सर बोले, ‘‘अरे मैडम कहां खो गईं?’’
‘‘सर मैं आप की बात को समझ रही हूं और मानती भी हूं कि आप ने मेरे अंदर जीने की इच्छा जाग्रत कर दी है. आप ने मेरे खोए आत्मविश्वास को लौटाया है. जब आप के साथ होती हूं तो मुझे भी यह दुनिया बड़ी हसीन लगती है…मुझे आप का साथ भी पसंद है… पर मेरे साथ बहुत सारी मजबूरियां हैं… मैं अकेली नहीं हूं मेरा बेटा और सासससुर भी हैं, जिन का इस संसार में मेरे सिवा कोई नहीं है… उन का एकमात्र सहारा मैं ही हूं.’’ ‘‘तो उन का सहारा कौन छीन रहा है मैम? उन से अलग होने को कौन कह रहा है? मैं तो स्वयं ही अकेला हूं. आगेपीछे कोई नहीं है. मैं अभी अधिक तो कुछ नहीं कह सकता, परंतु हां यह वादा अवश्य करता हूं कि आप को और आप के परिवार के किसी भी सदस्य को कभी कोई कमी नहीं होने दूंगा.’’
‘‘जी, मैं इस बारे में सोचूंगी,’’ कह कर वह उठ खड़ी हुई. अगले दिन रविवार था. वह नाश्ता तैयार कर रही थी, तभी ससुर ने आवाज लगाई, ‘‘बहू देखो तुम से कोई मिलने आया है? हाथ पोंछते हुए जब ग्रीष्मा किचन से आई तो सामने विनय सर को देख एक बार को तो हड़बड़ा ही गई. फिर कुछ संयत हो सासससुर से बोली, ‘‘मांबाबूजी ये हमारे प्रिंसिपल हैं विनय सर और सर ये मेरे मातापिता.’’
विनय सर ने आगे बढ़ कर दोनों के पांव छू लिए. ससुरजी बोले, ‘‘अच्छा ये वही सर हैं जिन के बारे में तू अकसर चर्चा करती रहती है. अरे बेटा बहुत तारीफ करती है यह आप की.’’ विनय सर बिना कोई उत्तर दिए मुसकराते रहे.
ससुरजी बोले, ‘‘आज बिटिया ने नाश्ते में आलू के परांठे बनाए हैं. चलिए आप भी हमारे साथ नाश्ता करिए.’’ ‘‘जी बिलकुल मुझे खुशबू आ गई थी इसलिए मैं भी खाने आ गया,’’ कह ग्रीष्मा की ओर मुसकरा कर देखते हुए विनय सर सामने रखा नाश्ता करने लगे. कुछ देर बाद फिर बोले, ‘‘मैम कल एक जरूरी मीटिंग है. आप 2 दिन से नहीं आ रही थीं तो मैं ने सोचा आप का हालचाल भी पूछ लूं और सूचना भी दे दूं. अब मैं चलता हूं, और वे चले गए.’’
विनय सर के जाने के बाद सास बोलीं, ‘‘बड़े अच्छे, सौम्य और विनम्र हैं तुम्हारे सर.’’ ‘‘हां मां आप बिलकुल सही कह रही हैं. सर बहुत अच्छे और सुलझे हुए इंसान हैं. आप को पता है जब से सर आए हैं हमारे स्कूल का माहौल ही बदल गया है.’’
इस के बाद तो अकसर रविवार को विनय सर घर आने लगे थे. कुणाल भी अंकलअंकल कह कर उन से चिपक जाता. कई बार वे परिवार के सभी सदस्यों को अपनी गाड़ी में घुमाने भी ले जाते थे. लगभग 6 माह बाद एक दिन शाम को विनय सर घर आए और औपचारिक बातचीत के बाद ससुर से बोले, ‘‘अंकल, मैं आप से आप की बहू का हाथ मांगना चाहता हूं.’’
आगे पढें- विनय सर की बात सुन कर…