Serial Story: अंत भला तो सब भला – भाग 3

अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली. 8 बज रहे थे. वह एकदम उठ गई और बोली, ‘‘सर, अब मुझे चलना होगा. मांबाबूजी इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह कर वह कौफी हाउस से बाहर आ स्कूटी स्टार्ट कर घर चल दी. घर आ कर ग्रीष्मा सीधे अपने कमरे में गई और खुद को फिर आईने में देख सोचने लगी कि क्या हो रहा है उसे? कहीं उसे प्यार तो नहीं हो गया… पर नहीं वह एक विधवा है… मांबाबूजी और कुणाल की जिम्मेदारी है उस पर…वह ये सब क्यों भूल गई…सोचतेसोचते उस का सिर दर्द करने लगा तो कपड़े बदल कर सो गई.

अगले दिन जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर सामने ही मिल गए. उसे देखते ही बोले, ‘‘मैम, फ्री हो कर मेरे कैबिन में आइएगा, आप से कुछ काम है.’’ ‘‘जी सर,’’ कह कर वह तेज कदमों से स्टाफरूम की ओर बढ़ गई.

जब वह सर के कैबिन में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैडम कल शिक्षा विभाग की एक मीटिंग है, जिस में आप को मेरे साथ चलना होगा.’’ ‘‘सर मैं… मैं तो बहुत जूनियर हूं… और टीचर्स…’’ न जाने क्यों वह सर के साथ जाने से बचना चाहती थी.

‘‘यह तो मेरी इच्छा है कि मैं किसे ले जाऊं, आप को बस मेरे साथ चलना है.’’ ‘‘जी, सर,’’ कह कर वह स्टाफरूम में आ गई और सोचने लगी कि यह सब क्या हो रहा है… कहीं विनय सर को मुझ से… मुझे विनय सर से… तभी फ्री टाइम समाप्त होने की घंटी बजी और वह अपनी कक्षा में आ गई. आज उस का मन बच्चों को पढ़ाने में भी नहीं लगा. दिलदिमाग पर सर का जादू जो छाया था.

अगले दिन मीटिंग से वापस आते समय विनय सर ने गाड़ी फिर कौफी हाउस के बाहर रोक दी. बोले, ‘‘चलिए कौफी पी कर चलते हैं.’’ उन का ऐसा जादू था कि ग्रीष्मा चाह कर भी मना न कर सकी.

कौफी पीतपीते विनय सर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोले, ‘‘ग्रीष्मा, आप ने अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचा है?’’ ‘‘क्या मतलब सर… मैं कुछ समझी नहीं…’’ अचकचाते स्वर में समझ कर भी नासमझ बनते हुए उस ने कहा.

‘‘जो हो गया है उसे भूल कर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के बारे में सोचिए…मैं आप का हर कदम पर साथ देने को तैयार हूं. यदि आप को मेरा साथ पसंद हो तो…’’ सपाट स्वर में विनय सर ने अपनी बात ग्रीष्मा के सामने रख दी. कुछ देर तक विचार करने के बाद ग्रीष्मा बोली, ‘‘सर, बुरा न मानें तो एक बात पूंछू? आप ने अभी तक विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘आप का प्रश्न एकदम सही है. मैडम ऐसा नहीं है कि मैं विवाह करना नहीं चाहता था, परंतु पहले तो मैं अपने कैरियर को बनाने में लगा रहा और फिर कोई लड़की अपने अनुकूल नहीं मिली. दरअसल, हमारे समाज में लड़कियों को उच्चशिक्षित नहीं किया जाता. अल्पायु में ही उन की शादी कर दी जाती है. मुझे शिक्षित लड़की ही चाहिए थी. बस इसी जद्दोजहद में मैं आज तक अविवाहित ही हूं. बस यही है मेरी कहानी.’’ सर की बातें सुन कर ग्रीष्मा सोचने लगी कि सर की जाति के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं. मांबाबूजी तो बड़े ही रूढि़वादी हैं. पर किया भी क्या जा सकता है…प्यार कोई जाति देख कर तो किया नहीं जा सकता. वह तो बस हो जाता है, क्योंकि प्यार में दिमाग नहीं दिल काम करता है.

ग्रीष्मा अपने विचारों में डूबी हुई थी कि अचानक विनय सर बोले, ‘‘अरे मैडम कहां खो गईं?’’

‘‘सर मैं आप की बात को समझ रही हूं और मानती भी हूं कि आप ने मेरे अंदर जीने की इच्छा जाग्रत कर दी है. आप ने मेरे खोए आत्मविश्वास को लौटाया है. जब आप के साथ होती हूं तो मुझे भी यह दुनिया बड़ी हसीन लगती है…मुझे आप का साथ भी पसंद है… पर मेरे साथ बहुत सारी मजबूरियां हैं… मैं अकेली नहीं हूं मेरा बेटा और सासससुर भी हैं, जिन का इस संसार में मेरे सिवा कोई नहीं है… उन का एकमात्र सहारा मैं ही हूं.’’ ‘‘तो उन का सहारा कौन छीन रहा है मैम? उन से अलग होने को कौन कह रहा है? मैं तो स्वयं ही अकेला हूं. आगेपीछे कोई नहीं है. मैं अभी अधिक तो कुछ नहीं कह सकता, परंतु हां यह वादा अवश्य करता हूं कि आप को और आप के परिवार के किसी भी सदस्य को कभी कोई कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘जी, मैं इस बारे में सोचूंगी,’’ कह कर वह उठ खड़ी हुई. अगले दिन रविवार था. वह नाश्ता तैयार कर रही थी, तभी ससुर ने आवाज लगाई, ‘‘बहू देखो तुम से कोई मिलने आया है? हाथ पोंछते हुए जब ग्रीष्मा किचन से आई तो सामने विनय सर को देख एक बार को तो हड़बड़ा ही गई. फिर कुछ संयत हो सासससुर से बोली, ‘‘मांबाबूजी ये हमारे प्रिंसिपल हैं विनय सर और सर ये मेरे मातापिता.’’

विनय सर ने आगे बढ़ कर दोनों के पांव छू लिए. ससुरजी बोले, ‘‘अच्छा ये वही सर हैं जिन के बारे में तू अकसर चर्चा करती रहती है. अरे बेटा बहुत तारीफ करती है यह आप की.’’ विनय सर बिना कोई उत्तर दिए मुसकराते रहे.

ससुरजी बोले, ‘‘आज बिटिया ने नाश्ते में आलू के परांठे बनाए हैं. चलिए आप भी हमारे साथ नाश्ता करिए.’’ ‘‘जी बिलकुल मुझे खुशबू आ गई थी इसलिए मैं भी खाने आ गया,’’ कह ग्रीष्मा की ओर मुसकरा कर देखते हुए विनय सर सामने रखा नाश्ता करने लगे. कुछ देर बाद फिर बोले, ‘‘मैम कल एक जरूरी मीटिंग है. आप 2 दिन से नहीं आ रही थीं तो मैं ने सोचा आप का हालचाल भी पूछ लूं और सूचना भी दे दूं. अब मैं चलता हूं, और वे चले गए.’’

विनय सर के जाने के बाद सास बोलीं, ‘‘बड़े अच्छे, सौम्य और विनम्र हैं तुम्हारे सर.’’ ‘‘हां मां आप बिलकुल सही कह रही हैं. सर बहुत अच्छे और सुलझे हुए इंसान हैं. आप को पता है जब से सर आए हैं हमारे स्कूल का माहौल ही बदल गया है.’’

इस के बाद तो अकसर रविवार को विनय सर घर आने लगे थे. कुणाल भी अंकलअंकल कह कर उन से चिपक जाता. कई बार वे परिवार के सभी सदस्यों को अपनी गाड़ी में घुमाने भी ले जाते थे. लगभग 6 माह बाद एक दिन शाम को विनय सर घर आए और औपचारिक बातचीत के बाद ससुर से बोले, ‘‘अंकल, मैं आप से आप की बहू का हाथ मांगना चाहता हूं.’’

आगे पढें- विनय सर की बात सुन कर…

चोरी का फल: भाग 2- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

मैं बड़े प्यार से उस का चेहरा निहार रहा था. मेरी आंखों के भाव पढ़ कर उस के गोरे गाल अचानक गुलाबी हो उठे.

मैं उसे चाहता हूं, यह बात उस दिन शिखा पूरी तरह से समझ गई. उस दिन से हमारे संबंध एक नए आयाम में प्रवेश कर गए.

जिस बीज को उस दिन मैं ने बोया था उसे मजबूत पौधा बनने में एक महीने से कुछ ज्यादा समय लगा.

‘‘हमारे लिए दोस्ती की सीमा लांघना गलत होगा, सर. संजीव को धोखा दे कर मैं गहरे अपराधबोध का शिकार बन जाऊंगी.’’

जब भी मैं उस से प्रेम का इजहार करने का प्रयास करता, उस का यही जवाब होता.

शिखा को मेरे प्रस्ताव में बिलकुल रुचि न होती तो वह आसानी से मुझ से कन्नी काट लेती. नाराज हो कर उस ने मुझ से मिलना बंद नहीं किया, तो उस का दिल जीतने की मेरी आशा दिनोदिन बलवती होती चली गई.

वह अपने घर की परिस्थितियों से खुश नहीं थी. संजीव का व्यवहार, आदतें व घर का खर्च चलाने में उस की असफलता उसे दुखी रखते. मैं उस की बातें बड़े धैर्य से सुनता. जब उस का मन हलका हो जाता, तभी मेरी हंसीमजाक व छेड़छाड़ शुरू होती.

उस के जन्मदिन से एक दिन पहले मैं ने जिद कर के उस से अपने घर चलने का प्रस्ताव रखा और कहा, ‘‘अपने हाथों से मैं ने तुम्हारे लिए खीर बनाई है, अगर तुम मेरे यहां चलने से इनकार करोगी तो मैं नाराज हो जाऊंगा.’’

मेरी प्यार भरी जिद के सामने थोड़ी नानुकुर करने के बाद शिखा को झुकना ही पड़ा.

मैं ने उस के जन्मदिन के मौके पर एक सुंदर साड़ी उपहार में दी और उसे पहली बार मैं ने अपनी बांहों में भरा तो वह घबराए लहजे में बोली, ‘‘नहीं, यह सब ठीक नहीं है. मुझे छोड़ दीजिए, प्लीज.’’

अपनी बांहों की कैद से मैं ने उसे मुक्त नहीं किया क्योंकि वह छूटने का प्रयास बडे़ बेमन से कर रही थी. उस के मादक जिस्म का नशा मुझ पर कुछ इस तरह हावी था कि मैं ने उस के कानों और गरदन को गरम सांसें छोड़ते हुए चूम लिया. उस ने झुरझुरी के साथ सिसकारी ली. मुंह से ‘ना, ना’ करती रही पर मेरे साथ और ज्यादा मजबूती से वह लिपट भी गई.

शिखा को गोद में उठा कर मैं बेडरूम में ले आया. वहां मेरे आगोश में बंधते ही उस ने सब तरह का विरोध समाप्त कर समर्पण कर दिया.

सांचे में ढले उस के जिस्म को छूने से पहले मैं ने जी भर कर निहारा. वह खामोश आंखें बंद किए लेटी रही. उस की तेज सांसें ही उस के अंदर की जबरदस्त हलचल को दर्शा रही थीं. हम दोनों के अंदर उठे उत्तेजना के तूफान के थमने के बाद भी हम देर तक निढाल हो एकदूसरे से लिपट कर लेटे रहे.

कुछ देर बाद शिखा के सिसकने की आवाज सुन कर मैं चौंका. उस की आंखों से आंसू बहते देख मैं प्यार से उस के चेहरे को चूमने लगा.

उस की सिसकियां कुछ देर बाद थमीं तो मैं ने कोमल स्वर में पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

जवाब में उस ने मेरे होंठों का चुंबन लिया और भावुक स्वर में बोली, ‘‘प्रेम  का इतना आनंददायक रूप मुझे दिखाने के लिए धन्यवाद, राकेश.’’

हमारे संबंध एक और नए आयाम में प्रवेश कर गए. मैं अब तनावमुक्त व प्रसन्न रहता. शिखा ही नहीं बल्कि उस के घर के बाकी सदस्य भी मुझे अच्छे लगने लगे. मैं भी अपने को उन के घर का सदस्य समझने लगा.

मैं शिखा के घर वालों की जरूरतों का ध्यान रखता. कभी संजीव को रुपए की जरूरत होती तो शिखा से छिपा कर दे देता. मैं ने शिखा की सास के घुटनों के दर्द का इलाज अच्छे डाक्टर से कराया. उन्हें फायदा हुआ तो उन्होंने ढेरों आशीर्वाद मुझे दे डाले.

इन दिनों मैं अपने को बेहद स्वस्थ, युवा, प्रसन्न और भाग्यशाली महसूस करता. शिखा ने मेरी जिंदगी में खुशियां भर दीं.

एक रविवार की दोपहर शिखा मुझे शारीरिक सुख दे कर गई ही थी कि मेरे मातापिता मुझ से मिलने आ पहुंचे. मेरठ से मेरे लिए एक रिश्ता आया हुआ था. वह दोनों इसी सिलसिले में मुझ से बात करने आए थे.

‘‘वह लड़की तलाकशुदा है,’’ मां बोलीं, ‘‘तुम कब चलोगे उसे देखने?’’

‘‘किसी रविवार को चले चलेंगे,’’ मैं ने गोलमोल सा जवाब दिया.

‘‘अगले रविवार को चलें?’’

‘‘देखेंगे,’’ मैं ने फिर टालने की कोशिश की.

मेरे पिता अचानक गुस्से में बोले, ‘‘इस से तुम मेरठ चलने को ‘हां’ नहीं कहलवा सकोगी क्योंकि आजकल इस के सिर पर उस शिखा का जनून सवार है.’’

‘‘प्लीज पापा, बेकार की बातें न करें. शिखा से मेरा कोई गलत रिश्ता नहीं है,’’ मैं नाराज हो उठा.

‘‘अपने बाप से झूठ मत बोलो, राकेश. यहां क्या चल रहा है, इस की रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहती है.’’

‘‘लोगों की गलत व झूठी बातों पर आप दोनों को ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

मां ने पिताजी को चुप करा कर मुझे समझाया, ‘‘राकेश, सारी कालोनी शिखा और तुम्हारे बारे में उलटीसीधी बातें कर रही है. उस का यहां आनाजाना बंद करो, बेटे, नहीं तो तुम्हारा कहीं रिश्ता होने में बड़ा झंझट होगा.’’

‘‘मां, किसी से मिलनाजुलना गुनाह है क्या? मेरी जानपहचान और बोलचाल सिर्फ शिखा से ही नहीं है, मैं उस के पति और उस की सास से भी खूब हंसताबोलता हूं.’’

अपने झूठ पर खुद मुझे ऐसा विश्वास पैदा हुआ कि सचमुच ही मारे गुस्से के मेरा चेहरा लाल हो उठा.

मुझे कुछ देर और समझाने के बाद मां पिताजी को ले कर मेरठ चली गईं. उन के जाने के काफी समय बाद तक मैं बेचैन व परेशान रहा. फिर शाम को जब मैं ने शिखा से फोन पर बातें कीं तब मेरा मूड कुछ हद तक सुधरा.

शिखा को ले कर मेरे संबंध सिर्फ मांपिताजी से ही नहीं बिगड़े बल्कि छोटे भाई रवि और उस की पत्नी रेखा के चेहरे पर भी अपने लिए एक खिंचाव महसूस किया.

शिखा के मातापिता ने भी उस से मेरे बारे में चर्चा की थी. उन तक शिखा और मेरे घनिष्ठ संबंध की खबर मेरी समझ से रेखा ने पहुंचाई होगी, क्योंकि रेखा जब भी मायके जाती है तब वह शिखा के मातापिता से जरूर मिलती है. यह बात खुद शिखा ने मुझे बता रखी थी.

‘‘मम्मी, पापा, राकेशजी के ही कारण आज तुम्हारी बेटी इज्जत से अपनी घरगृहस्थी चला पा रही है. रोहित उन्हें बहुत प्यार करता है. संजीव उन की बेहद इज्जत करते हैं. मेरी सास उन्हें अपना बड़ा बेटा मानती हैं. हमारे बीच अवैध संबंध होते तो उन्हें मेरे घर में इतना मानसम्मान नहीं मिलता. आप दोनों अपनी बेटी की घरगृहस्थी की सुखशांति की फिक्र करो, न कि लोगों की बकवास की,’’ शिखा के ऐसे तीखे व भावुक जवाब ने उस के मातापिता की बोलती एक बार में ही बंद कर दी.

आगे पढ़ें- उदास से लहजे में शिखा ने…

Valentine’s Special: बसंत का नीलाभ आसमान- क्या पूरा हुआ नैना का प्यार

लेखक- geetanjali chy

अब यह मौसम का खुमार था या उसकी अल्हड़ उम्र का शूरुर  जो उसे दुनिया बेहिसाब खुबसूरत लग रही थी. जितने रंग फिजाओं में घुले थे उसकी गंध से नैना का हृदय सराबोर था. बसंत के  फूलों से मुकाबला करती नैना की खुबसूरती मौसम के मिज़ाज से भी छेड़खानी करती चलती थी. जब सारा जहाँ जाती हुई ठंड को रूसवा करने के डर से जैकेट डालकर सुबह सुबह घूमने निकलता तब नैना बगैर स्वेटर शाल के बसंती फिजाँ में इठलाती सारे जमाने को अपने जादू में बाँध लेती थी.

दो बहनों में  बड़ी नैना एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी. माँ के सानिध्य से मरहूम नैना अपने पिता के साथ रहती थी.घर की बड़ी बेटी होने के बावजूद उसका बचपना नहीं गया था . बल्कि उसकी छोटी बहन ही कुछ अधिक शान्त, संयम, गम्भीर और बुजुर्ग बनी बैठी रहती. नैना के पिता एक प्रगतिशील व्यक्तित्व के स्वामी थे, जो नैना की हरकतों पर यदाकदा उसे स्नेह भरी फटकार लगा देते थे.

पर नैना भी कहाँ किसी से कम थी सारी डांट फटकार का लेखा जोखा तैयार रखती थी और फिर मौका मिलते ही कभी स्वास्थ्य के लिए उपदेश दे डालती, तो कभी पिता की राजनीति के प्रति दिवानगी को देख कर विद्रोहिनी हो जाती. राजनीति के नाम से नैना को इतनी चिढ़ थी कि वह अपनी सारी नजाकत, खुबसूरती, मासूमियत और शब्दों की मर्यादा को ताक पर रखकर इतनी ढीठ बन जाती कि उसका सारा विद्रोह, सारी झुँझलाहट, मिज़ाज का सारा तीखापन बाहर आ जाता था.

बाप बेटी की इस तकरार से आजिज रहने वाली नताशा अक्सर खिसियाकर कहती  – “राजनीति से इतना प्रेम और घृणा दोनों ही खतरनाक है. नैना तुम जो राजनीति के नाम पर दाँत पीस पीसकर लड़ती हो, तुम्हारी शादी जरूर किसी राजनैतिक परिवार में होगी. ”

इतना सुनने के साथ नैना नताशा पर भड़क जाती और पिता पुत्री का समझौता हो जाता. पर कहते हैं न कि वाणी में माँ सरस्वती का वास होता है. अल्हड़, पवित्र,निश्छल व्यक्तित्व की स्वामिनी नैना कब नैतिक को पसंद आ गयी, इसका अहसास उसे तब हुआ जब शहर के एमएलए नैतिक का रिश्ता नैना के लिए आया.

इस खबर ने जहाँ नैना की आत्मा का गला घोंट दिया था, तो वहीं उसके पिता रसूखदार राजनैतिक परिवार को रिश्ते के लिए मना करने का हौसला नहीं दिखा पाये.विवाह के प्रस्ताव को मना कर तलवार की धार पर चलने का सामर्थ उनमें न था. वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में प्रणय, विवाह और तृप्ति उन्हें ज्यादा प्रासंगिक नजर आ रही थी. वरना होने को तो कुछ भी हो सकता था.

अपने ही कुबोल से कुपित नताशा स्वयं को मुनि का अवतार समझ रही थी. उधर अपने अहर्निश अन्तर्द्वन्द्व में उलझी नैना रोयी, खीझी पर अपने परिवार की खैरियत के लिए एम एल ए से शादी करने को तैयार हो गई. वो अपने इनकार से पिता का दिल नहीं दुखाना चाहती थी. अपने कुढ़न और खीज से छोटी बहन का भविष्य खतरे में नहीं डालना चाहती थी.

नियत समय पर ब्याह सम्पन्न हुआ. एक तो पिता और बहन को छोड़ कर जाने का गम और फिर बेदिली का रिश्ता नैना चुप हो गयी थी. आँसू को छुपाने के लिए नसों के सहारे उन्हें हृदय में उतार देती, पर जब आँसूओं के सैलाब से हृदय डूबने लगता तो आँसू यकबयक पलकों पर उतर आते. मायके से बिदा होकर जब ससुराल आयी तो ऐसा लगा मानों स्वर्ग को किसी ने इन्द्रधनुषों के रंगों से भर दिया हो. पर जब वैभव और ऐश्वर्य के बादलों से झांककर वह नैतिक को देखती तो उसे लगता कि किस्मत ने उसे किसी पाप का दंड दिया है.

नैतिक बाबू गम्भीर और फिलासफर किस्म के इंसान थे. सुदर्शन पुरुष सा आभामंडल उनके यश का कारण था.काम और समाज सेवा की तमाम मसरूफियत के बीच कहीं कोई प्रेमी हृदय तो अवश्य था जिसमें नैना के जिंदादिल व्यक्तित्व ने अपना घर बना लिया था. नैना से विवाह के बाद वह अपनी भावना, प्रणय की कल्पनाओं को व्यक्त कर देना चाहता था, पर नैना के मौन को देख कर डर जाता . जब भी स्नेह भरे स्पर्श की चेष्टा करता, तब नैना की मौन तल्खी से सहसा कटुता और व्यंग्य से उबल उठता.

पहले पहल तो उसे लगा मानों नये परिवेश को आत्मसात नहीं कर पाने की वजह से नैना इस प्रकार का रवैया अपना रही है. परंतु शिघ्र ही नैतिक को नैना के हृदय में उग्र जहरीले काँटों का आभास हो गया. जुबान की तल्ख़ी की चुभन फिर कमजोर हो जाती है, पर नैना की निर्मम उपेक्षा नैतिक को कटुता के जहर से अभिषिक्त कर रही थी.

दो लोग एक साथ जीवन की एक ही समस्या के अंतर्विरोधों में उलझे हुए थे. मन में एक ठहराव आ गया था और वक्त ठहरने का नाम नहीं ले रहा था. नैना के हृदय ने मन से विद्रोह करना शुरू कर दिया था. अब वह जब भी नैतिक को देखती तो उसे वह सुकुमार और पवित्र लगता. नफरत पर भावुकता हावी होने लगी. हृदय और मन नैतिक का अलग अलग मुल्यांकन करता. हृदय को नैतिक देवदूत लगता तो दिमाग को पथभ्रष्ट देवदूत जिसे खरीदने को गुनाहगारों की सारी फौज खड़ी हो.

वहीं नैतिक नैना के तिरस्कार से ज्यादा उसके बदले हुए रूप से गमजदा था. जिस बिंदासपन, जिंदादिली और मस्तमौला अंदाज का वह कायल हो गया था. वही सबकुछ नैना का किसी ने छीन लिया था. उसका दिल और दिमाग बेबस हो रहा था. अपने ही प्यार का निबाह न कर पाने की कसक से वो नैना से दूर हो रहा था.

एक ही घर में दोनों अजनबियों की तरह जी रहे थे और एक ऐसी चाबी की तलाश कर रहे थे, जिसका कोई ताला ही नहीं था. नैना की भावनाएँ, उसका हृदय, उसकी आत्मा, उसके प्राण हार मान लेना चाहते थे, लेकिन उसका मन अब भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था. हृदय में प्रेम की कोमल उपस्थिति को मन झल्लाहट और अन्तर्द्वन्द्व से अस्वीकार कर रहा था.

ताज्जुब है कि दिल और दिमाग की रस्साकशी में दिमाग का नियंत्रण खो गया नैना सीढ़ियों से नीचे गिर गई. दोनों टांग टूटने के दर्द से ज्यादा असुरक्षा और अस्वीकार कर दिए जाने की भावना से तड़प उठी. अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी पड़ी न जाने कौन कौन से बुरे ख्यालों से बिंधने लगी. कभी सपना देखती कि नैतिक उसे अपने से दूर कीचड़ में फेंक कर है. तो अगले ही पल पाँवों में तीखे दर्द से सारा बदन काँपने लगता.

सभी आ रहे थे और जल्दी ठीक होने का ढ़ाढ़स देकर चले जा रहे थे. फिर नताशा का भी आना हुआ और आने के साथ बोली ” अरे जीजा जी से सेवा ही करवाना था तो झूठ का बीमार हो जाती. टांगों को कुर्बान करने की क्या जरुरत थी. वैसे भी इतनी हट्टी कट्टी हो तुम्हें उठाना बैठाना कितना मुश्किल होगा बेचारे के लिए. ”

“अच्छा,  सच में.किसी को मेरी भी इतनी चिंता है”नैतिक बोला.

हादसे के बाद नैतिक ने नैना को पल भर भी अकेला नहीं छोड़ा. उसकी हर छोटी बड़ी जरूरत को पूरा करने के क्रम में जो विश्वास और प्रेम की अभिव्यक्ति नैतिक ने की, उसे शब्दों के जामे की जरूरत नहीं थी. नैतिक के मौन अभिव्यक्ति ने नैना के मष्तिष्क की मुर्छा को समाप्त कर दिया था.

और जिस दिन नैना का अस्पताल से डिसचार्ज होने का दिन आया तो नैतिक नैना के लिए गुलाब के फूलों गुलदस्ता ले आया. होंठों में मुसकान और आँखों में शरारत को छिपाते हुए एक गुलाब निकल कर नैतिक को देकर नैना बोली  “हैप्पी वेलेंटाइन डे. ”

और नैतिक हँस पड़ा.दोनों मुसकुरा रहे थे. चेहरे की आभा देखकर लगरहा था जैसे हवाओं में,फिजाओं में बसंत के मौसमी फूलों की खुबसूरती और गंध की बजाये,मोहब्बत के फूल खिलें हों और उसकी गंध से दोनों का तन मन पिघल रहा हो.महीने भर के सानिध्य और दोनों के संबंधों की गर्माहट भरे साथ में वे भी प्रेम के स्पर्श को महसूस कर थे. स्नेह और स्पर्श की ऊष्मा से उनका मन धुलकर ऐसे निखर गया जैसे बसंत का नीलाभ आसमान.

Valentine’s Special: कढ़ा हुआ रूमाल- शिवानी के निस्वार्थ प्यार की कहानी

तिनसुखिया मेल के एसी कोच में बैठे प्रोफैसर महेश एक पुस्तक पढ़ने में मशगूल थे. वे एक सैमिनार में भाग लेने गुवाहाटी जा रहे थे.

पास की एक सीट पर बैठी प्रौढ़ महिला बारबार प्रोफैसर महेश को देख रही थी. वह शायद उन्हें पहचानने का प्रयास कर रही थी. जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो गई तो उठ कर उन की सीट के पास गई और शिष्टतापूर्वक पूछा, ‘‘सर, क्या आप प्रोफैसर महेश हैं?’’

यह अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर प्रोफैसर महेश असमंजस में पड़ गए. उन्होंने महिला की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, मैडम.’’

‘‘मेरा नाम माधवी है. मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हूं. मेरी एक सहेली थी प्रोफैसर शिवानी,’’ वह महिला बोली.

‘‘थी… से आप का क्या मतलब है?’’ प्रोफैसर महेश ने उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने किसी को अपनी किडनी डोनेट की थी. उसी दौरान शरीर में सैप्टिक फैल जाने के कारण उस की मृत्यु हो गई थी,’’ महिला ने कहा.

‘‘क्या?’’ प्रोफैसर महेश का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया था.

‘‘जी सर. उसे शायद अपनी मृत्यु का एहसास पहले ही हो गया था. मरने से 2 दिन पहले उस ने मु?ो यह रूमाल और एक पत्र आप को देने के लिए कहा था. उस के द्वारा दिए पते पर मैं आप से मिलने दिल्ली कई बार गई. मगर आप शायद वहां से कहीं और शिफ्ट हो गए थे.’’ यह कह कर उस महिला ने वह रूमाल और पत्र प्रोफैसर को दे दिया.

वह महिला जा कर अपनी सीट पर बैठ गई. प्रोफैसर महेश बुत बने अपनी सीट पर बैठे थे.

तिनसुखिया मेल अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी और उस से भी तेज रफ्तार से अतीत की स्मृतियां प्रोफैसर महेश के मानसपटल पर दौड़ रही थीं.

आज से 25 वर्ष पूर्व उन की तैनाती एक कसबे के डिग्री कालेज में प्रोफैसर के रूप में हुई थी. कालेज कसबे से दोढाई किलोमीटर दूर था. कालेज में छात्रछात्राएं दोनों पढ़ते थे. कालेज का अधिकांश स्टाफ कसबे में ही रहता था.

प्रोफैसर महेश का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था और उन के पढ़ाने का ढंग बहुत प्रभावी. इसलिए छात्रछात्राएं उन का बड़ा सम्मान करते थे. वे बड़े मिलनसार और सहयोगी स्वभाव के थे. इसलिए स्टाफ में भी उन के सब से बड़े मधुर संबंध थे.

एक दिन वे क्लास में पढ़ा रहे थे, तभी चपरासी उन के पास आया और बोला, ‘सर, प्रिंसिपल सर आप को अपने औफिस में बुला रहे हैं.’

प्रोफैसर महेश सोच में पड़ गए. फिर वे प्रिंसिपल रूम की ओर चल दिए.

उन्हें देख कर प्रिंसिपल साहब बोले, ‘प्रोफैसर महेश, बीए सैकंड ईयर की छात्रा शिवानी अचानक क्लास में बेहोश हो गई है. उसे किसी तरह होश तो आ गया है मगर अभी उस की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है. आप ऐसा करिए, उसे अपने स्कूटर से उस के घर छोड़ आइए.’

उस समय स्टाफ के 2-3 लोगों के पास ही स्कूटर था. शायद इसी कारण प्राचार्यजी ने उन्हें यह कार्य सौंपा था.

वे शिवानी को स्कूटर पर बैठा कर कसबे की ओर चल दिए. वे कसबे में पहुंचने ही वाले थे कि सड़क के किनारे खड़े बरगद के पेड़ के पास शिवानी ने कहा, ‘सर, स्कूटर रोक दीजिए.’

प्रोफैसर महेश ने स्कूटर रोक दिया और शिवानी से पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, क्या तुम्हें फिर चक्कर आ रहा है?’

‘मु?ो कुछ नहीं हुआ सर, मैं तो आप से एकांत में बात करना चाहती थी, इसलिए मैं ने कालेज में बेहोश होने का नाटक किया था,’ उस ने बड़े भोलेपन से कहा.

‘क्या?’ प्रोफैसर ने हैरानी से उस की ओर देखा. फिर पूछा, ‘आखिर, तुम ने ऐसा क्यों किया और तुम मु?ा से क्या बात करना चाहती हो?’

‘सर, मैं आप से प्यार करती हूं और आप को यही बात बताने के लिए मैं ने यह नाटक किया था,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकरा रही थी.

प्रोफैसर हतप्रभ खड़े थे. उन्हें सम?ा में ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें. काफी देर तक वे चुप रहे. फिर बोले, ‘यह तुम्हारी पढ़ने की उम्र है, प्यार करने की नहीं. अभी तो तुम प्यार का मतलब भी नहीं जानतीं.’

‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. मगर मैं अपने इस दिल का क्या करूं, यह तो आप से प्यार कर बैठा है,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकराते हुए बोली.

‘तुम्हें मालूम है कि मैं शादीशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे हैं. और मेरी तथा तुम्हारी उम्र में कम से कम 20 साल का अंतर है,’ प्रोफैसर ने उसे सम?ाते हुए कहा.

‘मु?ो इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, सर. मैं तो केवल एक ही बात जानती हूं कि मैं आप से प्यार करती हूं, बेपनाह प्यार,’ वह दार्शनिक अंदाज में बोली.

प्रोफैसर ने उसे सम?ाने का हरसंभव प्रयास किया. मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ. तो उन्होंने यह कह कर कि, अब तुम ठीक हो इसलिए यहां से अपने घर पैदल चली जाना, वे कालेज लौट गए.

प्रोफैसर महेश ने इस बात को उस का बचपना समझ और गंभीरता से नहीं लिया. शिवानी किसी न किसी बहाने से उन के करीब आने और उन से बात करने का प्रयास करती रहती. परंतु वह उन के जितना करीब आने का प्रयास करती, वे उतना ही उस से दूर भागते. वे नहीं चाहते थे कि कालेज में यह बात चर्चा का विषय बने.

कसबे में छोटे बच्चों का कोई कौन्वैंट स्कूल नहीं था, इसलिए वे यहां अकेले ही किराए के मकान में रहते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन के मम्मीपापा के साथ रहते थे.

एक दिन शाम का समय था. प्रोफैसर कमरे में अकेले बैठे एक किताब पढ़ रहे थे. तभी दरवाजे पर खटखट हुई. उन्होंने दरवाजा खोला. सामने शिवानी खड़ी थी. उसे इस प्रकार अकेले अपने घर पर देख वे असमंजस में पड़ गए.

इस से पहले कि वे कुछ कहते, वह कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठ गई. आज पहली बार प्रोफैसर ने शिवानी को ध्यान से देखा. 20-21 वर्ष की उम्र, लंबा व छरहरा बदन, गोराचिट्टा रंग और आकर्षक नैननक्श. उस के लंबे घने बाल उस की कमर को छू रहे थे. सादे कपड़ों में भी वह बेहद सुंदर लग रही थी.

कमरे के एकांत में एक बेहद सुंदर नवयुवती प्रोफैसर के सामने बैठी थी और वह उन से प्यार करती है, यह सोच कर प्रोफैसर के मन में गुदगुदी सी होने लगी. उन्होंने अपने मन को संयत करने का बहुत प्रयास किया मगर वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में असफल रहे. उन के मन में तरहतरह की हसीन कल्पनाएं उठने लगीं, चेहरे का रंग पलपल बदलने लगा.

इस सब से बेखबर शिवानी कुरसी पर शांत और निश्चल बैठी थी. उस के एक हाथ में सफेद रंग का रूमाल था. प्रोफैसर उठ कर उस के पास गए और उस के गालों को थपथपाते हुए पूछा, ‘शिवानी, तुम यहां अकेले क्या करने आई हो?’

उस ने प्रोफैसर की आंखों में झांक कर देखा, पता नहीं उसे उन की आंखों में क्या दिखाई दिया, वह ?ाटके के साथ कुरसी से उठ कर खड़ी हो गई. उस के चेहरे के भाव एकाएक बदल गए थे. प्रोफैसर के हाथों को अपने गालों से झटके के साथ हटाते हुए वह बोली, ‘प्लीज, डोंट टच मी. आई डोंट लाइक दिस.’

प्रोफैसर के ऊपर पड़ा बुद्धिजीवी का लबादा फट कर तारतार हो चुका था. शिवानी का यह व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें.

‘तुम तो कहती हो कि तुम मुझ से बहुत प्यार करती हो,’ प्रोफैसर महेश ने शिवानी की ओर देखते हुए कहा.

‘हां सर, मैं आप को बहुत प्यार करती हूं. मगर मेरा प्यार गंगाजल की तरह निर्मल और कंचन की तरह खरा है,’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘ये सब फिल्मी डायलौग हैं,’ प्रोफैसर ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा.

‘सर, जरूरत पड़ने पर मैं यह सबित कर दूंगी कि आप के प्रति मेरा प्यार कितना गहरा है,’ यह कह कर वह कमरे से चली गई थी. काफी देर तक प्रोफैसर अवाक खड़े रहे थे, फिर अपने काम में लग गए थे.

इस के बाद शिवानी ने उन से बात करने या मिलने का प्रयास नहीं किया. वे भी धीरेधीरे उसे भूल गए. कुछ समय बाद उन का उस कालेज से स्थानांतरण हो गया. सरकारी सेवा होने के कारण कई जगह स्थानांतरण हुए और आखिर में वे दिल्ली में सैटल्ड हो गए.

2 साल पहले प्रोफैसर को किडनी प्रौब्लम हो गई. कई महीने तक तो डाइलिसिस पर रहे, फिर डाक्टरों ने कहा कि अब किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा कोई चारा नहीं है. तब प्रोफैसर ने अपने परिवार में इस संबंध में सब से बातचीत की. उन की पत्नी, दोनों बेटों और बेटी ने राय दी कि पहले किडनी के लिए विज्ञापन देना चाहिए. हो सकता है कि कोई जरूरतमंद पैसे के लिए अपनी किडनी डोनेट करने के लिए तैयार हो जाए. अगर 2-3 बार विज्ञापन देने के बाद भी कोई डोनर नहीं मिलता है तो हम लोग फिर इस बारे में बातचीत करेंगे.

बेटे ने राजधानी के सभी अखबारों में किडनी डोनेट करने वाले को 20 लाख रुपए देने का विज्ञापन छपवाया. विज्ञापन में प्रोफैसर का नाम, पूरा पता दिया गया. विज्ञापन दिए एक महीना हो गया था. जिस अस्पताल में प्रोफैसर महेश का इलाज चल रहा था. एक दिन वहां से फोन आया.

‘सर, आप के लिए गुड न्यूज है. आप को किडनी देने के लिए एक डोनर मिल गई है. उस की उम्र 45 साल के करीब है और वह आप को किडनी डोनेट करने के लिए तैयार है. मगर उस की एक शर्त है कि, किडनी ट्रांसप्लांट होने से पहले उस का नाम व पता किसी को न बताया जाए.’

मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि डोनर अपना नाम, पता क्यों नहीं बताना चाहती. फिर हम सब ने सोचा कि शायद उस की कोई मजबूरी होगी.

ट्रांसप्लांट की सारी फौर्मैलिटीज पूरी कर ली गईं और नियत तारीख पर उन की किडनी का ट्रांसप्लांटेशन हो गया, जो पूरी तरह से सफल रहा.

इस के कई दिनों बाद जब प्रोफैसर महेश अपने को काफी सहज अनुभव करने लगे तो उन्होंने एक दिन डाक्टर साहब से पूछा कि ‘डाक्टर साहब, वे लेडी कैसी हैं जिन्होंने उन्हें अपनी किडनी डोनेट की थी.’

कुछ देर तक डाक्टर साहब खामोश रहे, फिर बोले कि वह लेडी तो परसों बिना किसी को कुछ बताए अस्पताल से चली गई. हैरानी की बात यह है कि वह अपनी डोनेशन फीस भी नहीं ले गई.

‘क्या..?’ प्रोफैसर का मुंह विस्मय से खुला का खुला रह गया था. जब उन्होंने यह बात अपने परिवार के लोगों को बताई तो उन सब को बड़ी हैरानी हुई. सभी को यह बात सम?ा ही नहीं आ रही थी कि आज के इस आपाधापी के दौर में 20 लाख रुपए ठुकरा देने वाली यह लेडी आखिर कौन थी. काफी दिनों तक प्रोफैसर इसी उधेड़बुन में रहे. उन्होंने उस लेडी का पता लगाने की हरसंभव कोशिश की, मगर इस के बारे में कुछ पता नहीं चला.

‘‘आप को कहां तक जाना है, सर,’’ अचानक टीटीई ने आ कर प्रोफैसर महेश की तंद्रा को भंग कर दिया. वे अतीत से वर्तमान में लौट आए. टिकट चैक करने के बाद टीटीई चला गया.

प्रोफैसर महेश ने वह रूमाल उठाया जो शिवानी ने उन्हें देने के लिए प्रोफैसर माधवी को दिया था. उन्होंने रूमाल को पहचानने की कोशिश की. यह शायद वही कढ़ा हुआ रूमाल था जो शिवानी उन्हें देने उन के कमरे पर आई थी. सफेद रंग के उस रूमाल के एक कोने में सुनहरे रंग से इंग्लिश का अक्षर एस कढ़ा हुआ था. एस यानी शिवानी के नाम का पहला अक्षर.

अब प्रोफैसर महेश को डोनर की सारी पहेली समझ में आ गई थी. उन्होंने रूमाल में रखे हुए मुड़ेतुड़े पत्र को खोल कर पढ़ा, लिखा था-

‘‘प्रोफैसर साहब,

‘‘आप का जीवन मेरे लिए बहुत बहुमूल्य है, इसलिए मैं ने अपने जीवन को संकट में डाल कर आप की जान को बचाया. मगर मैं ने ऐसा कर के आप पर कोई एहसान नहीं किया. मुझे तो इस बात की खुशी है कि मैं जिसे हृदय की गहराइयों से प्यार करती थी, उस के किसी काम आ सकी.

‘‘आप की शिवानी.’’

पत्र पढ़ कर प्रोफैसर महेश का मन गहरी वेदना से भर उठा. शिवानी का यह निस्वार्थ प्यार देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने शिवानी का दिया हुआ रूमाल उठाया और उस से अपने आंसुओं को पोंछने लगे. ऐसा कर के शायद उन्होंने शिवानी के सच्चे अमर प्रेम को स्वीकार कर लिया था.

वकीलनी: अमीरों को जाल में फंसाती श्यामा

Serial Story: अंत भला तो सब भला – भाग 2

उसे उतार कर विनय की गाड़ी तेजी से निकल गई. अपने कमरे में आ कर ग्रीष्मा सोचने लगी कि कितने सुलझे इंसान हैं सर. अपने बारे में उन की साफगोई ने उसे अंदर तक प्रभावित कर दिया था… और एक रवींद्र. उस के बारे में सोचते ही उस का मन वितृष्णा से भर उठा. न जाने विनय सर में ऐसा क्या था कि उन से बात करना, मिलना उसे अच्छा लगा था. विनय सर के बारे में सोचतेसोचते ही उस की आंख लग गई.

एक दिन जैसे ही ग्रीष्मा स्कूल पहुंची, चपरासी आ कर बोला, ‘‘मैम, आप को सर बुला रहे हैं.’’ जब वह प्रिंसिपल कक्ष में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैम, बालिका शिक्षा पर कल एक सेमिनार में जाना है…आप जा सकेंगी.’’

‘‘जी सर,’’ उस ने सकुंचाते स्वर में कहा. ‘‘चिंता मत करिए मैं भी चलूंगा साथ में,’’ विनय सर ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘जी सर,’’ कह कर वह जैसे ही कक्ष से बाहर जाने लगी तो विनय सर फिर बोले, ‘‘कल सुबह 10 बजे यहीं से मेरे साथ चलिएगा.’’ ‘‘जी,’’ कह कर वह प्रिंसिपल के कक्ष से बाहर आ गई.

अपनी कक्षा में सीट पर आ कर बैठी तो उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. विनय सर के साथ जाने की कल्पना मात्र से ही वह रोमांचित हो उठी थी. उसे लगने लगा जैसे उस के दिल और दिमाग में एकसाथ अनेक घंटियां बजने लगी हों. फिर अचानक वह तंद्रा से जागी और सोचने लगी कि वह यह नवयुवतियों जैसा क्यों सोच रही है. तभी लंच समाप्त होने की घंटी बज गई और क्लास में बच्चे आ जाने से उस के सोचने पर विराम लग गया. अगले दिन सुबह चंपई रंग की साड़ी पहन, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर और बालों की ढीली सी चोटी बना कर वह जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर उसे बाहर ही मिल गए. उसे देखते ही एकदम बोल पड़े, ‘‘मैडम, आज तो आप बहुत स्मार्ट दिख रही हैं.’’

वह शर्म से लजा गई. सेमिनार के बाद घर पहुंच कर उस ने एक बार नहीं कई बार अपनेआप को आईने में निहारा. सर के एक वाक्य ने उस के दिलदिमाग में प्रेमरस का तूफान जो ला दिया था. अगले दिन सुबह कुणाल के स्कूल में पीटीएम थी. सो जैसे ही तैयार हो कर वह कमरे से बाहर आई तो उसे देखते ही कुणाल बोला, ‘‘मां, कितने दिनों बाद आज आप ने अच्छी साड़ी पहनी है. आप बहुत अच्छी लग रही हो.’’ ‘‘हां बेटा सच में तू आज अच्छी लग रही है,’’ सासूमां ने भी कहा तो उसे सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ और फिर सोचने लगी कि क्या सारे जमाने को विनय सर की हवा लग गई है जो सब को वह सुंदर लग रही है.

सासूमां की बात सुन कर वह दूसरी बार चौंकी और अंदर जा कर एक बार फिर आईने में खुद को देखा कि कहीं चेहरे पर तो ऐसा कुछ नहीं है जिस से सब को वह सुंदर नजर आ रही है पर अब न जाने क्यों सुबह स्कूल जाते समय अच्छे से तैयार होने का उस का मन करता. विनय सर और उन की बातों से उस के सुसुप्त मन में प्रेमरस की लहरें हिलोरे लेने लगी थीं. विवाह के बाद सजनेसंवरने और प्रेमरस में डूबे रहने की जो भावनाएं रवींद्र के शुष्क व्यवहार के कारण कभी जन्म ही नहीं ले पाई उन के अंकुर अब फूटने लगे थे. इधर वह नोटिस कर रही थी कि विनय सर भी किसी न किसी बहाने से उसे लगभग रोज अपने कैबिन में बुला ही लेते.

एक दिन जब ग्रीष्मा एक छात्र के सिलसिले में विनय सर से मिलने गई तो बोली, ‘‘सर, यह बच्चा पिछले माह से स्कूल नहीं आ रहा है? क्या करूं?’’

‘‘अरे मैडम उस की समस्या मैं हल कर दूंगा. उस के घर का फोन नंबर दीजिए पर यह बताइए आप हमेशा इतनी गुमसुम सी क्यों रहती हैं… जिंदगी एक बार मिलती है उसे खुश हो कर जीएं. जो हो गया है उसे भूल जाइए और आगे बढि़ए. चलिए आज शाम को मेरे साथ कौफी पीजिए. ‘‘मैं… नहींनहीं सर, ये सब ठीक नहीं है… मैं कैसे जा पाऊंगी? आप ही चले जाइएगा.’’

ग्रीष्मा को तो कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था… जो मन में आया कह कर बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोला ही था कि विनय सर की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘मैं बगल वाले इंडियन कौफी हाउस में शाम 7 बजे आप का इंतजार करूंगा. आना न आना आप की मरजी?’’

इस अनापेक्षित प्रस्ताव से उस की सांसें तेजतेज चलने लगीं. वह तो अच्छा था कि गेम्स का पीरियड होने के कारण बच्चे खेलने गए थे वरना उस की हालत देख कर बच्चे क्या सोचते? बारबार विनय सर के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे. दूसरी ओर मन में अंतर्द्वंद भी था कि यह उसे क्या हो रहा है. जो भावना कभी रवींद्र के लिए भी नहीं जागी वह विनय सर के लिए… विनय सर शाम को इंतजार करेंगे. जाऊं या न जाऊं… वह इसी ऊहापोह में थी कि छुट्टी की घंटी बज गई.

घर आ कर सब को चाय बना कर पिलाई. घड़ी देखी तो 6 बज रहे थे. फिर वह सोचने लगी कि कैसे जाऊं…,मांबाबूजी से क्या कहूं…पर सर…ग्रीष्मा को सोच में बैठा देख कर ससुर बोले, ‘‘क्या बात है बहू क्या सोच रही है?’’ वह हड़बड़ा गई जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. फिर कुछ संयत हो कर बोली. ‘‘कुछ नहीं पिताजी एक सहेली के बेटे का जन्मदिन है. वहां जाना था सो सोच रही थी कि जाऊं या नहीं, क्योंकि लौटतेलौटते देर हो जाएगी.’’

‘‘जा बेटा तेरा भी थोड़ा मन बहलेगा…बस, जल्दी आने की कोशिश करना.’’ ‘‘ठीक है, मैं जल्दी आ जाऊंगी,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और फिर स्कूटी स्टार्ट कर चल दी. स्कूटी चलातेचलाते उसे खुद पर हंसी आने लगी कि कैसे कुंआरी लड़कियों की तरह वह भाग ली. विनय सर का जनून उस पर इस कदर हावी था कि आज पहली बार उस ने कितनी सफाई से ससुर से झूठ बोल दिया.

जैसे ही ग्रीष्मा ने कौफी हाउस में प्रवेश किया विनय सर सामने एक टेबल पर बैठे इंतजार करते मिले. उसे देखते ही बोले, ‘‘मुझे पता था कि आप जरूर आएंगी.’’ ‘‘कैसे?’’

‘‘बस पता था,’’ कुछ रोमांटिक अंदाज में विनय सर बोले, ‘‘बताइए क्या लेंगी कोल्ड या हौट.’’ ‘‘हौट ही ठीक रहेगा,’’ उस ने सकुचाते हुए कहा. ‘‘आप बिलकुल आराम से बैठिए यहां. भूल जाइए कि मैं आप का बौस हूं. यहां हम सिर्फ 2 इंसान हैं. वैसे आप आज भी बहुत सुंदर लग रही. आप इतनी खूबसूरत हैं, योग्य हैं और सब से बड़ी बात आप अपने पति के मातापिता को अपने मातापिता सा मान देती हैं. जो हो गया उसे भूल जाइए और खुल कर बिंदास हो कर जीना सीखिए.’’ ‘‘सर आप को पता नहीं है मेरे पति… और मेरा अतीत…’’ उस ने अपनी ओर से सफाई देनी चाही. ‘‘ग्रीष्मा प्रथम तो तुम्हारा अतीत मुझे पता है. स्टाफ ने मुझे सब बताया है. दूसरे मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता… कब तक आप अतीत को अपने से चिपका कर बैठी रहेंगी. अतीत की कड़वी यादों के साए से अपने वर्तमान को क्यों बिगाड़ रही हैं? जब वर्तमान में प्रसन्न रहेंगी तभी तो आप अपने भविष्य को भी बेहतर बना पाएंगी… मेरी बातों पर विचार करिए और अपने जीने के अंदाज को थोड़ा बदलने की कोशिश करिए.’’

विनय सर ने पहली बार उसे उस के नाम से पुकारा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि सर उसे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं.

आगे पढें- अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली…

हाय सैक्सी: डेजी से दूर हुआ रोहित

कालेज के गेट में ऐंटर करते ही मृणालिनी ने रोहित को देखा तो अचंभे से चिल्लाई, ‘‘हाय रोहित,’’ लेकिन रोहित का ध्यान कहीं और था. उस ने मृणालिनी की ओर देखा भी नहीं और डेजी के पास पहुंच कर बोला, ‘‘हाय डेजी, माई स्वीट हार्ट.’’

मृणालिनी ने देखा तो चौंकी. कितना बदल गया है रोहित. कहां तो स्कूल में मुझे कनखियों से देखता शर्माता था और कहां यह बदला रूप. मृणालिनी और रोहित दिल्ली के एक नामी कालेज में पढ़ते थे. स्कूल में मृणालिनी रोहित से एक क्लास पीछे थी. दोनों साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई कर रहे थे. रोहित मृणालिनी के घर से थोड़ी दूरी पर ही रहता था सो कभीकभी नोट्स आदि लेने व पढ़ाई में हैल्प के लिए वह रोहित के घर चली जाती थी. रोहित शर्माता हुआ उस से बात करने में भी हिचकता था. लेकिन कभीकभी उन दिनों भी वह मृणालिनी की सुंदरता की तारीफ करता तो वह सिहर उठती. मन ही मन वह उसे चाहने लगी थी. कई सपने देख बैठी थी रोहित से मिलन के. लेकिन कालेज में ऐडमिशन के बाद से ही रोहित का उस से संपर्क कम होने लगा था. जब मृणालिनी ने भी 12वीं पास कर ली और उसी कालेज में ऐडमिशन लिया तो वह इस बात से अनजान  थी कि रोहित उसे यहीं मिल जाएगा. मृणालिनी ने कालेज में प्रवेश किया तो उसे किसी अन्य लड़की से बतियाते देख जैसे अपना सपना टूटता लगा.

रोहित जिस से बात कर रहा था वह गजब की थी. गोरा रंग, तीखे नयन, लंबे बाल तिस पर धूप का चश्मा और ड्रैस ऐसी कि कोई भी शरमा जाए. फंकी टीशर्ट के साथ निकर में से निकलती उस की सुडौल टांगें और टीशर्ट व निकर के बीच में झांकती आकर्षक नाभि उसे सैक्सुअली अट्रैक्शन दे रही थी. मृणालिनी मन मार कर उस के पास गई और रोहित को पुकारा. रोहित ने मुड़ कर देखा तो पूछने लगा, ‘‘अरी मृणालिनी तुम. इसी कालेज में ऐडमिशन लिया है क्या?’’

‘‘हां,’’ वह इतना ही कह पाई थी कि रोहित डेजी का हाथ पकड़ जाते हुए बोला, ‘‘यह है डेजी, मेरी क्लासमेट. अच्छा, मिलते हैं फिर,’’ और चला गया. ‘कहां तो रोहित उसे देख चमक जाता था और कहां अब इग्नोर करता उस सैक्सी बाला के साथ चला गया. ऐसा क्या जादू है इस में,’ वह सोचने लगी. तभी अमिता ने उसे पुकारा, ‘‘अरे मृणालिनी, क्लास में नहीं चलना क्या?’’

‘‘हां, चलो.’’ कह कर वह अमिता के साथ चल दी. रास्ते में अमिता ने पूछा, ‘‘तुम रोहित को जानती हो क्या?’’

‘‘हां…’’ कुछ रुकते हुए मृणालिनी ने अपनी स्कूली दोस्ती की बात उसे बता दी. अमिता बोली, ‘‘कहां तुम और कहां डेजी, देखा है उस के लुक को, उस की सैक्स अपील को. एक तुम हो मोटा नजर का चश्मा लगा कर सलवारकुरते में बहनजी बन कर आ जाती हो. मैं ने तो तुम्हें कभी जींस में भी नहीं देखा. आजकल पर्सनैलिटी बनाने के लिए सैक्सी लुक चाहिए. रोहित तो वैसे ही फ्लर्ट किस्म का लड़का है. सैक्सुअली अट्रैक्शन के पीछे भागने वाला.

‘‘उस के साथ जो लड़की थी, पता है मिस कालेज है वह. दोनों एक ही क्लास में हैं. पहले रोहित भी शर्मीला था पर धीरेधीरे इतना खुल गया कि फ्लर्ट करने लगा.’’ आज मृणालिनी का मन क्लास में न लगा. उस के मन में एक ही बात कौंध रही थी कि वह कैसे रोहित को पाए. कैसे रोहित के दिल में जगह बनाए. ‘‘चलो, सब चले गए,’’ अमिता ने कहा तो जैसे मृणालिनी नींद से जागी. उस की डबडबाई आंखें उस के दिल का हाल बयां कर रही थीं. अमिता को समझते देर न लगी. वह बोली, ‘‘अभी तक रोहित के बारे में सोच रही हो, छोड़ो उसे बिंदास जिओ.’’

‘‘नहीं अमिता मेरा मन नहीं मानता,’’ मृणालिनी रोंआसी हो गई.

‘‘मृणालिनी, अगर तुम रोहित को पाना चाहती हो तो मौडर्न बनो, खुद में अट्रैक्शन पैदा करो, तुम किसी भी तरह से डेजी से कम नहीं हो. विद्या बालन वाला बहनजीनुमा लुक छोड़ो, आज बिपाशा बनने में कोई हर्ज नहीं देखना, रोहित ही नहीं पूरा कालेज तुम्हारे पीछेपीछे भागेगा.’’ मृणालिनी उदास सी घर पहुंची. हाथमुंह धोते समय बाथरूम में लगे शीशे में खुद को निहारा तो अमित के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे. ‘वाकई बहनजी ही तो लगती हूं मैं. ठीक कह रही थी अमिता. सैक्सुअली अट्रैक्शन तो जैसे मुझ में है ही नहीं. इस उम्र में देह आकर्षण ही तो विपरीतलिंगी को अट्रैक्ट करता है. मैं भी बदलूंगी अपने लुक को.’ लंच करते समय उस ने मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मी, क्या मैं अपने लिए दोचार अच्छी ड्रैसेज खरीद लूं.’’ मां ने भी मना नहीं किया और शाम को खुद उस के साथ मार्केट गईं. मृणालिनी को सलवारकमीज, पाजामी, लैगिंग्स के बजाय जींसटौप, ट्यूब ड्रैस, शौर्ट्स, निकर जैसी स्टाइलिश ड्रैसेज खरीदते देख मम्मी हैरान हुईं. लेकिन मृणालिनी ने कह दिया, ‘‘आजकल यही सब चलता है. बोल्ड अंदाज न हो तो मम्मी कोई नहीं पूछता कालेज में.’’ मम्मी शांत हो गईं. घर आ कर मृणालिनी एकएक ड्रैस ट्राई करने लगी. शौर्ट ड्रैस ट्राई करते समय उस का ध्यान टांगों के बालों पर गया तो उसे खुद से ही घिन हुई. फिर उस ने कल के लिए जींस और टौप पहनना ही उचित समझा और निर्णय किया कि कल कालेज से आ कर ब्यूटी पार्लर भी जाएगी. मृणालिनी को जींस और टौप में देख उस की सहेलियां हतप्रभ रह गईं. अमिता ने भी देखा तो बोली, ‘‘वाउ, क्या फिगर है यार.’’

मृणालिनी तारीफ सुन फूली न समाई. जब उस ने कालेज के लड़कों को एकटक अपनी तरफ देखते हुए देखा तो उस का हौसला बढ़ा. वह बड़े चाव से रोहित के क्लासरूम के बाहर गई, लेकिन वह कुछ लड़कियों से बातचीत में मशगूल था. जब बहाने से बुलाया तो वह उसे एकटक देखता रह गया. फिर बहाना बनाती मृणालिनी बोली, ‘‘मुझे फर्स्ट ईयर के तुम्हारे नोट्स चाहिए. दोगे क्या?’’ ‘‘हां, ले लेना पर अभी जाओ,’’ उसे इग्नोर करता रोहित बोला तो मृणालिनी को बहुत बुरा लगा. उस ने आ कर अमिता को बताया तो वह भी नाराज हुई.

‘‘अरे, तुम्हें कालेज में भी नोट्स मांगने थे. उसे कौफी पीने चलने को कहती. कैंटीन में खाने चलने को कहती ताकि अपने दिल की बात कह सके,’’ अमिता ने समझाया. ‘‘ठीक है अगली बार देखूंगी,’’ कह वह वहां से चली गई. लेकिन उस ने सोच लिया था कि वह अपने लिए अट्रैक्शन पैदा कर के ही रहेगी. घर आ कर लंच किया और ब्यूटी पार्लर चल दी. टांगबांहों की वैक्सिंग और मैनीक्योरपैडिक्योर करवाया, साथ ही थ्रैडिंग भी. अगले दिन रैड ट्यूब ड्रैस के साथ सीधेसीधे बालों का हेयरस्टाइल बना, साथ में हाईहील सैंडिल पहन कर वह गजब ढाती दिखी. कालेज पहुंची तो दूर से ही उस की चाल, मखमली टांगें, सुंदर बांहें देख सभी दिल थाम बैठे. अमिता ने देखा तो टोक दिया, ‘‘यह क्या हुलिया बना लिया तुम ने,’’ फिर उस का चश्मा उतारती हुई बोली, ‘‘कम से कम इसे तो उतार लेती. ऐसे लगता है जैसे मखमली चादर में टाट का पैबंद लगा दिया हो.’’

‘‘क्या करूं अमिता. इस के बिना ब्लैकबोर्ड पर कुछ दिखेगा नहीं. मैं पढ़ूंगी कैसे? मुझे कालेज की पढ़ाई भी तो करनी है,’’ मृणालिनी बोली.

‘‘तो कौंटैक्ट लैंस लगा लो. जरूरी है मोटा चश्मा लगाना और हां, अगर लगाना ही है तो धूप का चश्मा लगाओ न ताकि देखते ही हर कोई बोले, ‘गोरे गोरे मुखड़े पे कालाकाला चश्मा…’’’ यह बात मृणालिनी की समझ में आ गई थी. अब मृणालिनी ने चश्मे को भी बाय कह दिया. रोज तरहतरह की अटै्रक्टिव ड्रैसेज पहन उस की इमेज भी सैक्सुअल अट्रैक्ट करने वाली बन गई थी. हर कोई उसे मुड़मुड़ कर देखता. उस दिन मृणालिनी रैड ड्रैस में थी. सभी उस की प्रशंसा कर रहे थे. वह खुशीखुशी रोहित के पास गई तो वह भी उसे देखता रह गया. फिर हायहैलो के बाद मृणालिनी बोली, ‘‘रोहित, आज शाम कौफी पीते हुए घर चलें. वहीं से तुम मुझे घर छोड़ देना.’’

रोहित कुछ कहता, इस से पहले ही पास खड़ी डेजी ने उस की बांहों में बांह डाल दी तो वह चुप रह गया. इस पर मृणालिनी को काफी ईर्ष्या हुई. रोहित के लिए उस के दिल में जो प्यार था वह धुंधला पड़ रहा था, अब वह सिर्फ रोहित को डेजी जैसा बन कर दिखाना चाहती थी. रोहित और डेजी को झुकाने का यह अवसर भी उसे जल्द ही मिल गया. दरअसल, मृणालिनी ने अपनी हर ड्रैस में सैल्फी खींचखींच कर कई बार अपनी डीपी चेंज की व फेसबुक पर अपना हर पोज अपलोड किया जिसे काफी लाइक भी मिले. उस दिन उस का फेसबुक पर लाइक के साथ एक कमैंट भी था. ‘तुम मिस कालेज के लिए ट्राई क्यों नहीं करतीं. छा जाओगी.’ मृणालिनी को यह बात जंच गई. उस ने झट से अमिता को फोन किया और मिस कालेज प्रतियोगिता में भाग लेने की इच्छा जताई. अमिता ने बताया, ‘‘इस प्रतियोगिता का सारा अरेंजमैंट तो रोहित ही देख रहा है. तुम उसी से बात करो. हां, अगर डांस में भाग लेना हो तो मैं तुम्हारी हैल्प कर सकती हूं क्योंकि इस बार डांस ग्रुप को कोरियोग्राफ करने वाली हूं मैं.’’

अगले दिन मृणालिनी रोहित से मिली और मिस कालेज कंपीटिशन में भाग लेने की इच्छा बताई. तभी वहां खड़ी डेजी बोल पड़ी, ‘‘अब कौए भी हंस की चाल चलेंगे,’’ और उस की सहेलियां हंस पड़ीं. मृणालिनी को बात चुभ गई. रोहित ने भी इस कंपीटिशन में भाग लेने से मना किया कि यह तुम्हारे बस का नहीं. लेकिन इरादे की पक्की मृणालिनी नाम लिखवा कर ही मानी. फिर वह अमिता के पास गई और डांस प्रोग्राम भी करना चाहा. अब मृणालिनी रोज 2 घंटे डांस की रिहर्सल करती. फिर रैंप पर चलने की प्रैक्टिस और रात को पढ़ाई. साथ ही अपने खानपान, व्यायाम का भी ध्यान रखती. कालेज फैस्टिवल का दिन था. पहले डांस प्रोग्राम था और मृणालिनी का ही पहला कार्यक्रम था. दिल पक्का कर वह स्टेज पर उतरी और डांस शुरू किया, ‘सैक्सी सैक्सी सैक्सी मुझे लोग बोलें, हाय सैक्सी, हैलो सैक्सी क्यों बोलें…’ गाने के साथ उस के स्टैप्स और ड्रैस ने ऐसा धमाल मचाया कि स्टेज से उतरते ही लोग उसे सैक्सी…सैक्सी कहने लगे.

उस के डांस पर पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. कालेज के फैस्टिवल में अंतिम कार्यक्रम ‘मिस कालेज’ का कंपीटिशन था. सो उसे थोड़ा आराम करने का समय भी मिल गया. उस ने रैंप पर आने के लिए वही रैड ट्यूब ड्रैस चुनी जिस पर सब से ज्यादा लाइक मिले थे. वह इस ड्रैस में गजब की सैक्सुअली अट्रैक्टिव लग रही थी. जब वह रैंप पर उतरी तो उस के गाने व नृत्य के कायल स्टूडैंट्स सैक्सी…सैक्सी… कह उठे. सारा वातावरण हाय सैक्सी… की धुन से सराबोर हो गया. जितनी तालियां मृणालिनी के अट्रैक्शन पर बजीं उतनी किसी अन्य पर नहीं. लिहाजा, उसे ही ‘मिस कालेज’ का ताज पहनाया गया. अगले ही पल जब उसे मिस कालेज की ट्रौफी दी गई तो डेजी देखदेख कर जलन के मारे गढ़ी जा रही थी और ट्रौफी व ताज के साथ अनूठे अंदाज में खड़ी मृणालिनी सब पर बिजलियां गिरा रही थी.

अगले दिन मृणालिनी ने कालेज गेट से ऐंटर किया ही था कि आवाज आई, ‘‘हाय सैक्सी…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर मृणालिनी रुकी तो देख दंग रह गई. उस के पीछे रोहित था.

‘‘अरे, रोहित तुम.’’

‘‘हां, आज तक मैं तुम्हें इग्नोर करता रहा पर तुम ने सिरमौर बन कालेज में नाम कमा मुझे बता दिया कि मैं गलत था. आज शाम कालेज के बाद मेरे साथ कौफी पीने चलोगी. वहीं से साथ घर चलेंगे.’’ ‘‘नहीं, मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं रोहित. कल तक जब तुम एक शर्मीले लड़के थे ठीक था. फिर तुम फ्लर्टी हो गए और कभी इस की बगल तो कभी उस की बगल. मेरी दोस्ती भी भूल गए. याद है सब से पहले तुम्हीं ने मुझे खूबसूरत कहा था लेकिन कालेज में आ कर तुम्हें सिर्फ सैक्सुअल अट्रैक्शन में रुचि रही सो मुझे इग्नोर करते रहे. मैं तुम्हारे पीछे भागती फिरती थी और तुम मेरी ओर देखते भी न थे…’’

अभी मृणालिनी ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय सैक्सी…’’

‘‘ओह, कपिल तुम,’’ फिर एक नजर रोहित पर डाल कपिल से बोली, ‘‘चलो, आज कौफी हाउस चलते हैं अमिता को भी बुला लेते हैं,’’ कहती हुई मृणालिनी कपिल के साथ चली गई अमिता का धन्यवाद करने जिस ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया था. रोहित ठगा सा दोनों को जाता हुआ देख रहा था.

Valentine’s Day: नया सवेरा- भाग 3

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: नया सवेरा (भाग-2)

‘‘तुम्हारे पिता ने हमारी आर्थिक रूप से बहुत मदद की. इस खातिर, मैं चुप हो गई. उस के बाद मेरे पापा को तो मौका मिल गया. तुम्हारे पिता दारू पीने के लिए उन्हें खूब पैसे देते. कितना स्वार्थी होता है न इंसान, प्रीति? अपने बच्चे का दर्द देख कर भी अनजान बन जाता है और सिर्फ अपने बारे में सोचता है.

‘‘खैर, धीरेधीरे यहां आ कर कुछ समय के पश्चात मैं ने सबकुछ भूल कर तुम्हारे पिता को दिल से अपनाना चाहा. परंतु उन्हें तो सिर्फ मेरी खूबसूरती से प्यार था. मात्र खिलौना भर थी मैं उन के लिए. बहुत कोशिश की प्रीति, पर निराशा ही हाथ लगी. जब उन का मन करता, वे मु झ से मिलते अन्यथा महीनों वे मु झ से बात तक नहीं करते. यदि मैं कुछ कहती तो वे मु झे अपनी औकात में रहने को कहते. मु झ से कहते कि मु झे तो उन का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने मु झ से शादी की, मु झे इस बंगले में आश्रय दिया. चूंकि उन्होंने दीदी के इलाज के लिए पैसे दिए थे. मैं चुप हो जाती. उस के बाद मैं ने चुप रहना सीख लिया. तुम्हारे पिताजी जो चाहते थे, वह हो गया. सबकुछ उन के हिसाब से हो रहा था और यही तो वह चाहते थे.’’

वे आगे बोलीं, ‘‘फिर तुम भी मु झ से बात नहीं करना चाहती थीं और तब तक मैं इस कदर टूट चुकी थी कि तुम्हारे करीब जाने, तुम्हें सम झने की मैं ने कोशिश भी नहीं की. मु झे लगा कि न मेरे पिता अपने हुए, न मेरे पति अपने हुए तो तुम तो किसी और का खून हो, तुम कैसे मेरी अपनी हो सकती हो. फिर क्यों मैं यह बेकार की कोशिश करूं. क्यों हर बार अपना हमदर्द तलाशने की कोशिश करूं. मैं ने तुम में अपनी खुशी तलाशने के बजाय खुद को एक गहरे अंधकार में धकेल दिया. मु झे माफ कर देना, प्रीति.

‘‘तुम्हारे प्रति मेरी जिम्मेदारी थी जिसे मैं ने कभी पूरा नहीं किया. कभीकभी लगता है पापा की तरह मैं भी तो स्वार्थी ही थी जो अपने गमों में इस कदर खो गई कि तुम्हारे गमों को देख कर भी हमेशा मैं ने अनदेखा किया है. लेकिन देखो न, इतना कुछ होने के बावजूद जब पापा की मौत की खबर सुनी, मु झे बहुत रोना आया. मैं फूटफूट कर रोई. ऐसे क्यों होता है प्रीति? कहां से हम औरतों में इतना स्नेह आता है? और क्यों आता है? क्यों हम लोग बेरहम नहीं हो सकते?’’

यह कह कर छोटी मां रोने लगीं. मेरा भी गला भर आया. मैं वहीं बालकनी में फर्श पर बैठ गई. मैं ने छोटी मां का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा, ‘‘मां, आप चिंता मत करिए. अब सब ठीक होने वाला है. हमारे जीवन में खुशियां लौटेंगी. कितना कीमती समय हम ने ऐसे ही जाया कर दिया, जबकि आप और मैं, हम दोनों उसी दर्द से गुजर रहे थे. फिर भी हम एकदूसरे के हमदर्द नहीं बन पाए. गलती सिर्फ आप की नहीं थी मां, गलती तो मेरी भी थी.

‘‘मैं ने भी तय कर लिया था कि कभी आप को मां के रूप में नहीं स्वीकारूंगी. मां, हमारा जीवन के प्रति दृष्टिकोण ही नकारात्मक था. यदि हम कोशिश करते तो एकदूसरे के दोस्त बन सकते थे. हम अपना दर्द बांट सकते थे. लेकिन हम ने ऐसा नहीं किया.’’

मां ने मु झ से सहमति जताई. मैं ने किचन से एक गिलास ठंडा पानी ले कर मां को दिया. आज हम एक अनोखे दोस्ती के रिश्ते से बंध रहे थे. सबकुछ कितना अच्छा और नया लग रहा था. मैं वहीं मां के पास नीचे बैठी. घड़ी ने सुबह के 4:30 बजा दिए. तभी मेरे मोबाइल पर रोहित का मैसेज आया. उस ने लिखा था, ‘कब तक इंतजार करवाओगी प्रीति? कब तक मेरे प्यार की परीक्षा लोगी? 2 साल से हम एकदूसरे को जानते हैं. अब वक्त आ गया है कि हम पतिपत्नी के बंधन में बंध कर सदा के लिए एक हो जाएं. तुम्हारी हां के इंतजार में, तुम्हारा और सदा तुम्हारा, रोहित.’ मेरे चेहरे की प्रसन्नता से मां सम झ गईं कि कुछ न कुछ बात जरूर है. मैं ने रोहित को मैसेज किया, ‘रोहित, तुम ने मेरा बहुत इंतजार किया है. एक दिन और कर लो. आज मु झे मां को ले कर उन के पिता के दाहसंस्कार में जाना है. मैं तुम से कल मिलती हूं.’

मां के पूछने पर मैं ने मां को रोहित के बारे में सबकुछ बता दिया कि हम लोग 2 साल से एक ही औफिस में काम करते हैं. एकदूसरे को पसंद भी करते हैं और रोहित चाहता है कि हम विवाह बंधन में बंध जाएं. मगर रिश्तों से डर लगने लगा है. तब मां ने मु झे प्यार से सम झाया, ‘‘मेरे हिसाब से यदि रोहित तुम से सच्चा प्यार नहीं करता तो तुम्हारा इंतजार भी नहीं करता. वह विवाह करना चाहता है तुम से. तुम्हें प्यार से अपनाना चाहता है. फिर भी मैं एक बार उस से मिलना चाहूंगी.’’ मां का यह कहना था कि मेरी खुशी की सीमा न रही. मैं ने मां से कहा, ‘‘मां, आप को पूरा अधिकार है और आप को यह अधिकार देते हुए मु झे अजीब सा सुकून महसूस हो रहा है. आज लग रहा है कि मेरी जिंदगी में भी अच्छेबुरे का निर्णय लेने वाला कोई है. कोई है जो अब मु झे गलत काम के लिए डांट सकता है,’’ कहतेकहते मेरा गला भर आया.

आज हम मांबेटी खूब रोए. अब सूरज की पहली लालिमा निकल रही थी. ऐसा लग रहा था कि प्रकृति भी आज प्रसन्न है. नया दिन आज आशा का नया सवेरा ला कर हमारी जिंदगी में आया था. मैं ने मां से जल्दी तैयार हो जाने को कहा. मां ने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा. कुछ ही देर बाद हमारी गाड़ी मां के मायके में आ कर रुकी. मां ने अपने पिताजी को अंतिम बार प्रणाम किया. वहां उन की बहनें पहले ही पहुंच चुकी थीं. मैं उन सब से मिली. मैं अगले दिन घर आ गई और मां कुछ दिन वहीं रुक गईं. फिर मैं रोहित से मिलने गई. रोहित मु झे देख बहुत खुश हो गया. फिर हम कौफी हाउस गए. वहां कौफी का और्डर दिया.

मैं ने रोहित से कहा, ‘‘रोहित, मैं बहुत खुश हूं. अब मु झे मेरे परिवार के रूप में छोटी मां का प्यार मिला है. मैं ने तुम से अपने परिवार के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया था. लेकिन तुम्हें सबकुछ जानने का अधिकार है,’’ यह कह कर मैं ने रोहित को सारी बात बता दी. मैं ने रोहित से यह भी कहा कि शादी के बाद भी मां मेरे साथ ही रहेंगी. अब मैं उन को और अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं ने एक मां का प्यार तो खो दिया, अब दूसरी मां का नहीं खोना चाहती. यह सब जान लेने के बाद ही वह मु झ से शादी करने का फैसला ले. कोई जल्दबाजी न करे.

‘‘मु झे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा, रोहित,’’ मैं यह कह कर उठने ही वाली थी कि रोहित ने मेरा हाथ थाम लिया. उस ने मु झ से कहा, ‘‘प्रीति, पहले मैं केवल तुम से प्यार करता था परंतु अब तुम्हारी इज्जत भी करता हूं. जहां तक मां का सवाल है, मां यदि अपने बच्चों के पास नहीं रहेंगी तो कहां रहेंगी? और यकीन मानो, हम लोग मां को ढेर सारी खुशियां देंगे, जिन की वे हकदार हैं.’’

रोहित का इतना कहना था कि मैं रोहित के गले लग गई. मां उम्र के हिसाब से मेरी बड़ी बहन जैसी थीं. अब हमें अपने साथ उन का भी भविष्य संवारना था. 2 दिनों बाद रोहित मां से मिला. मां को रोहित अच्छा लगा. उन की तरफ से हरी  झंडी मिलते ही हम नए जीवन की हसीन कल्पनाओं में खो गए.

‘‘अरे, अरे…अभी से सपनों में खो गए तुम दोनों, अभी बहुत काम है. मेरी बेटी की शादी है, मु झे बहुत सारी तैयारियां करनी हैं,’’ मां का यह कहना था कि हम सब खिलखिला कर हंस पड़े.

चोरी का फल: भाग 1- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

शिखा पर पहली नजर पड़ते ही मेरे मन ने कहा, क्या शानदार व्यक्तित्व है. उस के सुंदर चेहरे पर आंखों का विशेष स्थान था. उस की बड़ीबड़ी आंखों में ऐसी चमक थी कि सामने वाले के दिल को छू ले.

वह एक दिन रविवार की सुबह मेरे छोटे भाई की पत्नी रेखा के साथ मेरे घर आई. शनिवार को शिखा हमारी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू दे कर आई थी. रेखा के पिता उस के पिता के अच्छे दोस्त थे. मेरी सिफारिश पर उसे नौकरी जरूर मिल जाएगी, ऐसा आश्वासन दे कर रेखा उसे मेरे पास लाई थी.

‘‘सर, मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है. आप मेरी सहायता कीजिए, प्लीज,’’ यों प्रार्थना करते हुए उस की आंखों में एकाएक आंसू छलक आए.

अब तक शिखा ने मेरे दिल में अपनी खास जगह बना ली थी. मेरे मन ने कहा कि मैं भविष्य में उस से संपर्क बनाए रखूं.

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आप का काम हो जाए. इस कागज पर आप जरूरी ब्योरा लिख दें,’’ मैं ने पैड और पेन उसे पकड़ा दिया.

करीब 10 मिनट बाद शिखा रेखा के साथ चली गई, लेकिन इन कुछ मिनटों में उस ने मेरा दिल जीत लिया था.

शिखा को क्लर्क की नौकरी दिलाना मेरे लिए कठिन काम नहीें था. करीब 10 दिन बाद मैं उस की नियुक्ति की अच्छी खबर ले कर शाम को उस के घर पहुंच गया.

वहां मेरी मुलाकात उस के पति संजीव, सास निर्मला व 4 वर्षीय बेटे रोहित से हुई. शिखा की नियुक्ति की खबर सुन घर का माहौल खुशी से भर गया.

शिखा के घर की हर चीज इस बात की तरफ इशारा कर रही थी कि वे लोग आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थे. संजीव बातूनी किस्म का इनसान था. उस की बातों से यह भी मालूम हो गया कि उस की स्टौक मार्किट में बहुत दिलचस्पी थी.

कुछ देर बाद संजीव मुंह मीठा कराने के लिए बाजार मिठाई लेने चला गया. मैं ने तब आग्रह कर के शिखा को अपने सामने बैठा लिया.

अपनी सास की मौजूदगी में वह ज्यादा नहीं बोल रही थी. उस से पूछे गए मेरे अधिकतर सवालों के जवाब उस की सास ने ही दिए.

बातोंबातों में मुझे इस परिवार के बारें में काफी जानकारी मिली. संजीव एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटेंट था. उस की पगार अच्छी थी, फिर भी वे लोग भारी कर्जे से दबे हुए थे. शेयर मार्किट में संजीव ने बारबार घाटा उठाया, पर बहुत अमीर बनने की धुन के चलते इस लत ने अब तक उस का पीछा नहीं छोड़ा था.

‘‘सर, आप की कृपा से मुझे नौकरी मिली है और मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी. अब दो वक्त की रोटी और रोहित की पढ़ाई का खर्च मैं अपने बलबूते पर उठा सकूंगी,’’ शिखा की बड़ीबड़ी आंखों में मुझे अपने लिए सम्मान के भाव साफ नजर आए.

‘‘शिखा, तुम्हें नौकरी दिलाने वाली बात अब खत्म हुई. इस के बाद तुम ने मुझे ‘धन्यवाद’ कहा तो मैं फौरन उठ कर चला जाऊंगा,’’ अपनी आवाज को मैं ने नाटकीय रूप से सख्त किया, पर मेरे होंठों पर मुसकराहट बनी रही.

‘‘अब नहीं दूंगी धन्यवाद, सर,’’ वह मुसकराई और फिर उठ कर रसोई की ओर चली गई.

कुछ देर बाद बडे़ अच्छे माहौल में हम सब ने चायनाश्ता किया. फिर मैं उन से विदा लेना चाहता था, पर ऐसा संभव नहीं हुआ क्योंकि बेहद अपनेपन के साथ आग्रह कर के शिखा ने मुझे रात का खाना खा कर जाने के लिए रोक लिया.

उस शाम के बाद से मेरा उस घर में जाना नियमित सा हो गया. कुछ दिनों बाद रोहित के जन्मदिन की पार्टी में मैं शामिल हुआ. फिर एक त्योहार आया और शिखा ने मुझे घर खाने के लिए आमंत्रित किया. मैं छुट्टी वाले दिन उन के यहां कुछ न कुछ खानेपीने की चीज ले कर पहुंच जाता. एक बार मेरी कार में सब पिकनिक मना आए. धीरेधीरे इस परिवार के साथ मेरे संबंध गहरे होते चले गए.

चाय पीने के लिए मैं फोन कर के शिखा को अपने कक्ष में बुला लेता. ऐसा अकसर लंच के समय में होता. उस के साथ बिताया हुआ वह आधा घंटा मेरी रगरग में चुस्तीफुर्ती भर जाता.

शिखा जैसी खूबसूरत और खुशमिजाज युवती के साथ सिर्फ मैत्रीपूर्ण संबंध रखना अब मेरे लिए दिन पर दिन कठिन होने लगा था. अगर मैं किसी कार्य में व्यस्त न होता तो वह मेरे खयालों में छाई रहती. हमारे संबंध दोस्ती की सीमा को लांघ कर कुछ और खास हो जाएं, यह इच्छा मेरे मन में लगातार गहराती जा रही थी.

एक दिन अपने कक्ष में चाय पीते हुए मैं ने शिखा से पूछा, ‘‘तुम्हें पता है शिखा, मैं किस दिन को अपने लिए भाग्यशाली मानता हूं.’’

‘‘आप बताओगे नहीं तो मुझे कैसे पता चलेगा,’’ उस ने जवाब सुनने के लिए अपना ध्यान मेरे चेहरे पर केंद्रित कर लिया.

‘‘जिस दिन तुम मेरे घर नौकरी पाने के सिलसिले में आई थीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरे लिए तो वह यकीनन महत्त्वपूर्ण दिन था,’’ शिखा बोली, ‘‘पर आप क्योें उसे अपने लिए भाग्यशाली मानते हैं?’’

‘‘वह दिन मेरे जीवन में न आया होता तो आज मैं तुम्हारे जैसी अच्छी दोस्त कैसे पाता.’’

मेरे स्वर की भावुकता को पहचान कर शिखा नजरें झुका कर फर्श को निहारने लगी.

‘‘तुम मेरी अच्छी दोस्त हो न, शिखा?’’ यह सवाल पूछते हुए अपने गले में मैं ने कुछ अटकता सा महसूस किया.

उस ने मेरी तरफ देख कर एक बार सिर हिला कर ‘हां’ कहा और फिर से नीचे फर्श देखने लगी.

‘‘दुनिया वाले कुछ न कुछ गलत हमारे संबंध में देरसवेर जरूर कहेंगे, पर उस कारण तुम मुझ से दूर तो नहीं हो जाओगी?’’ मैं ने व्याकुल भाव से पूछा.

‘‘जब हमारे दिलों में पाप नहीं है तो लोगों की बकवास को हम क्यों अहमियत देंगे?’’ शिखा ने मजबूत स्वर में मुझ से उलटा सवाल पूछा, ‘‘बिलकुल नहीं देंगे.’’

मैं ने अपना दायां हाथ बढ़ा कर उस के हाथ पर रखा और उस की आंखों में आंखेें डाल कर बोला, ‘‘तुम मुझे अपना समझ कर हमेशा अपने दुखदर्द मेरे साथ बांट सकती हो.’’

‘‘थैंक्स,’’ उस के होंठों पर उभरी छोटी सी मुसकान मुझे अच्छी लगी.

उस के हाथ पर मेरी पकड़ थोड़ी मजबूत थी. उस ने अपना हाथ आजाद करने का प्रयत्न किया, पर असफल रही. कुछ घबराए से अंदाज में उस ने मेरे चेहरे पर खोजपूर्ण दृष्टि डाली.

आगे पढ़ें- शिखा को मेरे प्रस्ताव में…

Valentine’s Special: एक रिश्ता किताब का- क्या सोमेश के लिए शुभ्रा का फैसला सही था

romantic story in hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें