इसमें गलत क्या है : क्या रमा बड़ी बहन को समझा पाई

मेरी छोटी बहन रमा मुझे समझा रही है और मुझे वह अपनी सब से बड़ी दुश्मन लग रही है. यह समझती क्यों नहीं कि मैं अपने बच्चे से कितना प्यार करती हूं.

‘‘मोह उतना ही करना चाहिए जितना सब्जी में नमक. जिस तरह सादी रोटी बेस्वाद लगती है, खाई नहीं जाती उसी तरह मोह के बिना संसार अच्छा नहीं लगता. अगर मोह न होता तो शायद कोई मां अपनी संतान को पाल नहीं पाती. गंदगी, गीले में पड़ा बच्चा मां को क्या किसी तरह का घिनौना एहसास देता है? धोपोंछ कर मां उसे छाती से लगा लेती है कि नहीं. तब जब बच्चा कुछ कर नहीं सकता, न बोल पाता है और न ही कुछ समझा सकता है.

‘‘तुम्हारे मोह की तरह थोड़े न, जब बच्चा अपने परिवार को पालने लायक हो गया है और तुम उस की थाली में एकएक रोटी का हिसाब रख रही हो, तो मुझे कई बार ऐसा भी लगता है जैसे बच्चे का बड़ा होना तुम्हें सुहाया ही नहीं. तुम को अच्छा नहीं लगता जब सुहास अपनेआप पानी ले कर पी लेता है या फ्रिज खोल कर कुछ निकालने लगता है. तुम भागीभागी आती हो, ‘क्या चाहिए बच्चे, मुझे बता तो?’

‘‘क्यों बताए वह तुम्हें? क्या उसे पानी ले कर पीना नहीं आता या बिना तुम्हारी मदद के फल खाना नहीं आएगा? तुम्हें तो उसे यह कहना चाहिए कि वह एक गिलास पानी तुम्हें भी पिला दे और सेब निकाल कर काटे. मौसी आई हैं, उन्हें भी खिलाए और खुद भी खाए. क्या हो जाएगा अगर वह स्वयं कुछ कर लेगा, क्या उसे अपना काम करना आना नहीं चाहिए? तुम क्यों चाहती हो कि तुम्हारा बच्चा अपाहिज बन कर जिए? जराजरा सी बात के लिए तुम्हारा मुंह देखे? क्यों तुम्हारा मन दुखी होता है जब बच्चा खुद से कुछ करता है? उस की पत्नी करती है तो भी तुम नहीं चाहतीं कि वह करे.’’

‘‘तो क्या हमारे बच्चे बिना प्यार के पल गए? रातरात भर जाग कर हम ने क्या बच्चों की सेवा नहीं की? वह सेवा उस पल की जरूरत थी इस पल की नहीं. प्यार को प्यार ही रहने दो, अपने गले की फांसी मत बना लो, जिस का दूसरा सिरा बच्चे के गले में पड़ा है. इधर तुम्हारा फंदा कसता है उधर तुम्हारे बच्चे का भी दम घुटता है.’’

‘‘सुहास ने तुम से कुछ कहा है क्या? क्या उसे मेरा प्यार सुहाता नहीं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे नहीं, दीदी, वह ऐसा क्यों कहेगा. तुम बात को समझना तो चाहती नहीं हो, इधरउधर के पचड़े में पड़ने लगती हो. उस ने कुछ नहीं कहा. मैं जो देख रही हूं उसी आधार पर कह रही हूं. कल तुम भावना से किस बात पर उलझ रही थीं, याद है तुम्हें?’’

‘‘मैं कब उलझी? उस ने तेरे आने पर इतनी मेहनत से कितना सारा खाना बनाया. कम से कम एक बार मुझ से पूछ तो लेती कि क्या बनाना है.’’

‘‘क्यों पूछ लेती? क्या जराजरा सी बात तुम से पूछना जरूरी है? अरे, वही

4-5 दालें हैं और वही 4-6 मौसम की सब्जियां. यह सब्जी न बनी, वह बन गई, दाल में टमाटर का तड़का न लगाया, प्याज और जीरे का लगा लिया. भिंडी लंबी न काटी गोल काट ली. मेज पर नई शक्ल की सब्जी आई तो तुम ने झट से नाकभौं सिकोड़ लीं कि भिंडी की जगह परवल क्यों नहीं बनाए. गुलाबी डिनर सैट क्यों निकाला, सफेद क्यों नहीं. और तो और, मेजपोश और टेबल मैट्स पर भी तुम ने उसे टोका, मेरे ही सामने. कम से कम मेरा तो लिहाज करतीं. वह बच्ची नहीं है जिसे तुम ने इतना सब बिना वजह सुनाया.

‘‘सच तो यह है, इतनी सुंदर सजी मेज देख कर तुम से बरदाश्त ही नहीं हुआ. तुम से सहा ही नहीं गया कि तुम्हारे सामने किसी ने इतना अच्छा खाना सजा दिया. तुम्हें तो प्रकृति का शुक्रगुजार होना चाहिए कि बैठेबिठाए इतना अच्छा खाना मिल जाता है. क्या सारी उम्र काम करकर के तुम थक नहीं गईं? अभी भी हड्डियों में इतना दम है क्या, जो सब कर पाओ? एक तरफ तो कहती हो तुम से काम नहीं होता, दूसरी तरफ किसी का किया तुम से सहा नहीं जाता. आखिर चाहती क्या हो तुम?

‘‘तुम तो अपनी ही दुश्मन आप बन रही हो. क्या कमी है तुम्हारे घर में? आज्ञाकारी बेटा है, समझदार बहू है. कितनी कुशलता से सारा घर संभाल रही है. तुम्हारे नातेरिश्तेदारों का भी पूरा खयाल रखती है न. कल सारा दिन वह मेरे ही आगेपीछे डोलती रही. ‘मौसी यह, मौसी वह,’ मैं ने उसे एक पल के लिए भी आराम करते नहीं देखा और तुम ने रात मेज पर उस की सारे दिन की खुशी पर पानी फेर दिया, सिर्फ यह कह कर कि…’’

चुप हो गई रमा लेकिन भन्नाती रही देर तक. कुछ बड़बड़ भी करती रही. थोड़ी देर बाद रमा फिर बोलने लगी, ‘‘तुम क्यों बच्चों की जरूरत बन कर जीना चाहती हो? ठाट से क्यों नहीं रहती हो. यह घर तुम्हारा है और तुम मालकिन हो. बच्चों से थोड़ी सी दूरी रखना सीखो. बेटा बाहर से आया है तो जाने दो न उस की पत्नी को पानी ले कर. चायनाश्ता कराने दो. यह उस की गृहस्थी है. उसी को उस में रमने दो. बहू को तरहतरह के व्यंजन बनाने का शौक है तो करने दो उसे तजरबे, तुम बैठी बस खाओ. पसंद न भी आए तो भी तारीफ करो,’’ कह कर रमा ने मेरा हाथ पकड़ा.

‘‘सब गुड़गोबर कर दे तो भी तारीफ करूं,’’ हाथ खींच लिया था मैं ने.

‘‘जब वह खुद खाएगी तब क्या उसे पता नहीं चलेगा कि गुड़ का गोबर हुआ है या नहीं. अच्छा नहीं बनेगा तो अपनेआप सुधारेगी न. यह उस के पति का घर है और इस घर में एक कोना उसे ऐसा जरूर मिलना चाहिए जहां वह खुल कर जी सके, मनचाहा कर सके.’’

‘‘क्या मनचाहा करने दूं, लगाम खींच कर नहीं रखूंगी तो मेरी क्या औकात रह जाएगी घर में. अपनी मरजी ही करती रहेगी तो मेरे हाथ में क्या रहेगा?’’

‘‘अपने हाथ में क्या चाहिए तुम्हें, जरा समझाओ? बच्चों का खानापीना या ओढ़नाबिछाना? भावना पढ़ीलिखी, समझदार लड़की है. घर संभालती है, तुम्हारी देखभाल करती है. तुम जिस तरह बातबात पर तुनकती हो उस पर भी वह कुछ कहती नहीं. क्या सब तुम्हारे अधिकार में नहीं है? कैसा अधिकार चाहिए तुम्हें, समझाओ न?

‘‘तुम्हारी उम्र 55 साल हो गई. तुम ने इतने साल यह घर अपनी मरजी से संभाला. किसी ने रोका तो नहीं न. अब बहू आई है तो उसे भी अपनी मरजी करने दो न. और ऐसी क्या मरजी करती है वह? अगर घर को नए तरीके से सजा लेगी तो तुम्हारा अधिकार छिन जाएगा? सोफा इधर नहीं, उधर कर लेगी, नीले परदे न लगाए लाल लगा लेगी, कुशन सूती नहीं रेशमी ले आएगी, तो क्या? तुम से तो कुछ मांगेगी नहीं न?

‘‘इसी से तुम्हें लगता है तुम्हारा अधिकार हाथ से निकल गया. कस कर अपने बेटे को ही पकड़ रही हो…उस का खानापीना, उस का कुछ भी करना… अपनी ममता को इतना तंग और संकुचित मत होने दो, दीदी, कि बेटे का दम ही घुट जाए. तुम तो दोनों की मां हो न. इतनी तंगदिल मत बनो कि बच्चे तुम्हारी ममता का पिंजरा तोड़ कर उड़ जाएं. बहू तुम्हारी प्रतिद्वंद्वी नहीं है. तुम्हारी बच्ची है. बड़ी हो तुम. बड़ों की तरह व्यवहार करो. तुम तो बहू के साथ किसी स्पर्धा में लग रही हो. जैसे दौड़दौड़ कर मुकाबला कर रही हो कि देखो, भला कौन जीतता है, तुम या मैं.

‘‘बातबात में उसे कोसो मत वरना अपना हाथ खींच लेगी वह. अपना चाहा भी नहीं करेगी. तुम से होगा नहीं. अच्छाभला घर बिगड़ जाएगा. फिर मत कहना, बहू घर नहीं देखती. वह नौकरानी तो है नहीं जो मात्र तुम्हारा हुक्म बजाती रहेगी. यह उस का भी घर है. तुम्हीं बताओ, अगर उसे अपना घर इस घर में न मिला तो क्या कहीं और अपना घर ढूंढ़ने का प्रयास नहीं करेगी वह? संभल जाओ, दीदी…’’

रमा शुरू से दोटूक ही बात करती आई है. मैं जानती हूं वह गलत नहीं कह रही मगर मैं अपने मन का क्या करूं. घर के चप्पेचप्पे पर, हर चीज पर मेरी ही छाप रही है आज तक. मेरी ही पसंद रही है घर के हर कोने पर. कौन सी चादर, कौन सा कालीन, कौन सा मेजपोश, कौन सा डिनर सैट, कौन सी दालसब्जी, कौन सा मीठा…मेरा घर, मैं ने कभी किसी के साथ इसे बांटा नहीं. यहां तक कि कोने में पड़ी मेज पर पड़ा महंगा ‘बाऊल’ भी जरा सा अपनी जगह से हिलता है तो मुझे पता चल जाता है. ऐसी परिस्थिति में एक जीताजागता इंसान मेरी हर चीज पर अपना ही रंग चढ़ा दे, तो मैं कैसे सहूं?

‘‘भावना का घर कहां है, दीदी, जरा मुझे समझाओ? तुम्हें जब मां ने ब्याह कर विदा किया था तब यही समझाया था न कि तुम्हारी ससुराल ही तुम्हारा घर है. मायका पराया घर और ससुराल अपना. इस घर को तुम ने भी मन से अपनाया और अपने ही रंग में रंग भी लिया. तुम्हारी सास तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकती थीं. तुम गुणी थीं और तुम्हारे गुणों का पूरापूरा मानसम्मान भी किया गया. सच पूछो तो गुणों का मान किया जाए तभी तो गुण गुण हुए न. तुम्हारी सास ने तुम्हारी हर कला का आदर किया तभी तो तुम कलावंती, गुणवंती हुईं.

वे ही तुम्हारी कीमत न जानतीं तो तुम्हारा हर गुण क्या कचरे के ढेर में नहीं समा जाता? तुम्हें घर दिया गया तभी तो तुम घरवाली हुई थीं. अब तुम भी अपनी बहू को उस का घर दो ताकि वह भी अपने गुणों से घर को सजा सके.’’

रमा मुझे उस रात समझाती रही और उस के बाद जाने कितने साल समझाती रही. मैं समझ नहीं पाई. मैं समझना भी नहीं चाहती. शायद, मुझे प्रकृति ने ऐसा ही बनाया है कि अपने सिवा मुझे कोई भी पसंद नहीं. अपने सिवा मुझे न किसी की खुशी से कुछ लेनादेना है और न ही किसी के मानसम्मान से. पता नहीं क्यों हूं मैं ऐसी. पराया खून अपना ही नहीं पाती और यह शाश्वत सत्य है कि बहू का खून होता ही पराया है.

आज रमा फिर से आई है. लगभग 9 साल बाद. उस की खोजी नजरों से कुछ भी छिपा नहीं. भावना ने चायनाश्ता परोसा, खाना भी परोसा मगर पहले जैसा कुछ नहीं लगा रमा को. भावना अनमनी सी रही.

‘‘रात खाने में क्या बनाना है?’’ भावना बोली, ‘‘अभी बता दीजिए. शाम को मुझे किट्टी पार्टी में जाना है देर हो जाएगी. इसलिए अभी तैयारी कर लेती हूं.’’

‘‘आज किट्टी रहने दो. रमा क्या सोचेगी,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप तो हैं ही, मेरी क्या जरूरत है. समय पर खाना मिल जाएगा.’’

बदतमीज भी लगी मुझे भावना इस बार. पिछली बार रमा से जिस तरह घुलमिल गई थी, इस बार वैसा कुछ नहीं लगा. अच्छा ही है. मैं चाहती भी नहीं कि मेरे रिश्तेदारों से भावना कोई मेलजोल रखे.

मेरा सारा घर गंदगी से भरा है. ड्राइंगरूम गंदा, रसोई गंदी, आंगन गंदा. यहां तक कि मेरा कमरा भी गंदा. तकियों में से सीलन की बदबू आ रही है. मैं ने भावना से कहा था, उस ने बदले नहीं. शर्म आ रही है मुझे रमा से. कहां बिठाऊं इसे. हर तरफ तो जाले लटक रहे हैं. मेज पर मिट्टी है. कल की बरसात का पानी भी बरामदे में भरा है और भावना को घर से भागने की पड़ी है.

‘‘घर वही है मगर घर में जैसे खुशियां नहीं बसतीं. पेट भरना ही प्रश्न नहीं होता. पेट से हो कर दिल तक जाने वाला रास्ता कहीं नजर नहीं आता, दीदी. मैं ने समझाया था न, अपनेआप को बदलो,’’ आखिरकार कह ही दिया रमा ने.

‘‘तो क्या जाले, मिट्टी साफ करना मेरा काम है?’’

‘‘ये जाले तुम ने खुद लगाए हैं, दीदी. उस का मन ही मर चुका है, उस की इच्छा ही नहीं होती होगी अब. यह घर उस का थोड़े ही है जिस में वह अपनी जानमारी करे. सच पूछो तो उस का घर कहीं नहीं है. बेटा तुम से बंधा कहीं जा नहीं सकता और अपना घर तुम ने बहू को कभी दिया नहीं.

‘‘मैं ने समझाया था न, एक दिन तुम्हारा घर बिगड़ जाएगा. आज तुम से होता नहीं और वह अपना चाहा भी नहीं करती. मनमन की बात है न. तुम अपने मन का करती रहीं, वह अपने मन का करती रही. यही तो होना था, दीदी. मुझे यही डर था और यही हो रहा है. मैं ने समझाया था न.’’

रमा के चेहरे पर पीड़ा है और मैं यही सोच कर परेशान हूं कि मैं ने गलती कहां की है. अपना घर ही तो कस कर पकड़ा है. आखिर इस में गलत क्या है?

परख : भाग 1- कैसे बदली एक परिवार की कहानी

नीताभाभी का फोन आया था,’’ गौरिका के घर लौटते ही श्यामला ने बेटी को सूचित किया.

पर गौरिका तो मानों वहां हो कर भी वहां नहीं थी. उस ने अपना पर्स एक ओर फेंका, सैंडल उतारे और सोफे पर पसर गई.

कुछ देर तो श्यामला बात को मुंह में दबाए बैठी रहीं. फिर आंखें मूंदे लेटी अपनी इकलौती बेटी गौरिका को देखा.

मनमस्तिष्क में  झं झवात सा उठ रहा था. वे दिन भर गौरिका की प्रतीक्षा में बैठी रहती हैं, पर वह घर लौट कर मानों बड़ा उपकार करती है. उस के पास मां से बात करने का तो समय ही नहीं है.

मन हुआ, इतनी जोर से चीखें कि गौरिका तो क्या पासपड़ोस तक हिल उठें और उन के मन का सारा गुबार निकल जाए. पर वे भली प्रकार जानती थीं कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगी. वे तो हर समय और हर कार्य में मर्यादा के ऐसे अबू झ बंधन में बंधी रहती थीं कि इस प्रकार के अभद्र व्यवहार की बात सोच भी नहीं सकतीं.

हार कर श्यामला ने टीवी खोल लिया और बेमन से रिमोट हाथ में थामे अलगअलग चैनलों का जायजा लेने लगीं.

उधर गौरिका सोफे पर ही सो गई थी. श्यामला ने एक नजर उस पर डाली, फिर मुंह फेर लिया. उन्होंने कितने लाड़प्यार से पाला है गौरिका को. उस के लिए उन्होंने न दिन को दिन सम झा न रात को रात. पर अब गौरिका अपने सामने किसी को कुछ सम झती ही नहीं.

वे तो उस घड़ी को कोस रही हैं जब उन्होंने गौरिका को राजधानी आ कर नौकरी करने की अनुमति दी थी. उन के पति नभेश ने साफ मना कर दिया था कि वे बेटी के अकेले अजनबी शहर में जा कर रहने के पक्ष में नहीं हैं. तब उन्होंने जोरशोर से बेटी के अधिकारों का  झंडा बुलंद किया था. उन का अकाट्य तर्क था कि जब बेटे को दूसरे शहर में रह कर पढ़ाई व नौकरी करने का हक है तो बेटी को क्यों नहीं?

नभेशजी ने मांबेटी की जिद के आगे हथियार डाल दिए थे. गौरिका राजधानी आ गई. पिछले 4-5 वर्षों में श्यामला ने गौरिका में थोड़ाबहुत परिवर्तन होते देखा था.

गौरिका जब ब्रैंडेड पोशाक पहन कर कंधे तक कटे केशों को बड़ी अदा से लहराती और गरदन को  झटकती अपने शहर आती तो पड़ोसियों, मित्रों और संबंधियों की आंखों में ईर्ष्या के भाव देख कर उन का दिल  झूम उठता था. इसी दिन के लिए तो वे जी रही थीं. उन्होंने अपना जीवन बड़ी तंगहाली में बिताया था. बड़े संयुक्त परिवार में उन का विवाह हुआ था, जिस में छोटीछोटी बातों के लिए भी मन मार कर रहना पड़ता था. पर गौरिका को एमबीए करते ही क्व25 लाख प्रतिवर्ष की नौकरी मिल जाएगी, ऐसा तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. उन की नाक कुछ अधिक ही ऊंची हो चली थी.

श्यामला के भाई श्याम और भाभी नीता उसी शहर में रहते थे. नभेश बाबू अड़ गए कि गौरिका उन्हीं के साथ रहेगी. वे उसे अजनबी शहर में अकेले नहीं रहने देंगे.

इस में श्यामला को कोई आपत्ति नहीं थी. भाईभाभी से उन के मधुर संबंध थे. यों भी वे आवश्यकता पड़ने पर उन की सहायता करने को सदैव तत्पर रहते थे. गौरिका को यह प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा था. उस ने नौकरी मिलते ही जिस उन्मुक्त उड़ान का सपना देखा था उस में यह प्रस्ताव बाधा बन रहा था. पर श्यामला ने उसे मना लिया. गौरिका भी सम झ गई थी कि अधिक जिद की तो नौकरी से हाथ धोने पड़ेंगे.

श्याम संपन्न व्यक्ति थे. पर वे और उन की पत्नी नीता घर में कड़ा अनुशासन रखते थे. वह अनुशासन गौरिका को रास नहीं आया और मामी की रोकटोक से तंग आ कर उस ने शीघ्र ही अलग फ्लैट ले लिया.

नभेश यह सुनते ही भड़क उठे थे और श्यामला को तुरंत बेटी के साथ रहने भेज दिया था. पर श्यामला 4 दिनों में ही ऊब गई थीं. गौरिका सुबह 9 बजे घर से निकलती तो फिर रात 8 बजे तक ही घर लौटती. घर में रहती भी तो या तो टीवी में व्यस्त रहती या फिर लैपटौप में. श्यामला का वश चलता तो वे कब की लौट जातीं पर नभेश की आज्ञा का उल्लंघन कर के वे नया बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती थीं.

श्यामला न जाने कितनी देर अपने ही विचारों में खोई रहतीं कि तभी

गौरिका की आवाज ने उन्हें चौंका दिया, ‘‘मां, कहां खोई हो. चलो खाना खा लें.’’

‘‘उफ, तो तुम्हारी नींद पूरी हो गई? अपनी मां से बात करने का तो तुम्हें समय ही नहीं मिलता,’’ श्यामला तीखे स्वर में बोलीं.

‘‘मम्मी, नाराज हो गईं क्या?’’ कह गौरिका ने बड़े लाड़ से मां के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘नाराज होने वाली मैं होती कौन हूं?’’

‘‘आप को नाराज होने का पूरा अधिकार है पर नाराज होने का कोई कारण भी तो हो.’’

‘‘मैं ने कहा था कि नीता भाभी का फोन आया था. पर तुम ने तो पलट कर उत्तर देना भी जरूरी नहीं सम झा.’’

‘‘मैं ने सुना था मां. पर उस में उत्तर देने जैसा क्या था? मैं भलीभांति जानती हूं कि नीता मामी ने क्या कहा होगा.’’

‘‘अच्छा बड़ी अंतर्यामी हो गई हो तुम. तो तुम्हीं बता दो क्या कहा था उन्होंने?’’ श्यामला चिहुंक उठीं.

‘‘मेरी बुराइयों का पिटारा खोल दिया होगा और क्या. मैं आप को सच बताऊं? उन के घर में 6 माह मैं ने कैसे बिताए हैं केवल मैं ही जानती हूं. मु झे तो उन के बच्चों अशीम और आभा पर दया आती है. इतना अनुशासन किस काम का कि दम घुटने लगे,’’ गौरिका एक ही सांस में बोल गई.

‘‘उन्होंने तो तुम्हारा नाम तक नहीं लिया बुराईभलाई की कौन कहे. वे तो बस यही कहती रहीं कि बिना मिले मत चली जाना.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं है कहीं आनेजाने की. वे बड़े, धनीमानी होंगे तो अपने लिए, अब आप को उन का रोब सहने की कोई जरूरत नहीं है. हम उन का दिया नहीं खाते. अब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं.’’

‘‘कैसी बातें कर रही है गौरिका? माना तुम अब अपने पैरों पर खड़ी हो, अच्छा वेतन ले रही हो पर इस का अर्थ यह तो नहीं कि हम अपने सगेसंबंधियों से मुंह फेर लें और वह भी श्याम भैया और नीता भाभी जैसे लोगों से, जिन के हम पर अनगिनत उपकार हैं?’’

‘‘ठीक है, आप को जाना है तो जाओ, मेरे पास समय नहीं है. आप जब कहें मैं आप को उन के यहां छोड़ दूंगी.’’

‘‘अपने पांव धरती पर रखना सीख बेटी. पढ़ेलिखे लोगों को क्या ऐसा व्यवहार शोभा देता है?’’ श्यामला ने सम झाया.

‘‘आप लोगों के कहने से मैं उन के यहां रहने को तैयार हो गई थी. यों मैं ने कभी स्वयं को उन पर बो झ नहीं बनने दिया पर अब नहीं. उन की रोकटोक से तो मेरा दम घुटने लगा था,’’ गौरिका ने अपनी असमर्थता जताई.

‘‘ठीक है, जैसी तेरी मरजी. कल औफिस जाते समय मु झे छोड़ देना और लौटते समय ले लेना. वैसे भी दिन भर अकेले बैठे मन ऊब जाता है,’’ श्यामला ने बात समाप्त की.

अगले दिन श्यामला श्याम के यहां पहुंचीं तो पतिपत्नी दोनों ने बड़ी गर्मजोशी

से स्वागत किया. बहुत जोर डालने पर गौरिका अंदर तक आई और समय न होने का बहाना कर लौट गई.

‘‘जिस दिन से यहां से गई है आज सूरत दिखाई है, तुम्हारी बेटी ने,’’ नीता ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘उस की ओर से मैं क्षमा मांगती हूं. आजकल के बच्चों को तो तुम जानती ही हो, वे किसी की सुनते कहां हैं. पर मेरे मन में तुम दोनों के लिए अथाह श्रद्धा है,’’ श्यामला ने हाथ जोड़े.

‘‘क्षमायाचना मांगने का समय नहीं है श्यामला, सतर्क हो जाने का समय है. मैं किसी के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता. पर तुम्हें बरबाद होते भी तो नहीं देख सकता.’’

‘‘क्या कह रहे हो भैया? मैं कुछ सम झी नहीं?’’ श्यामला का मन किसी अनजानी आशंका से धड़क उठा था.

तराई : कैसे बचाई उस लड़की ने अपनी इज्जत

शहर से दूर बस रही सैटेलाइट कालोनी में शानदार कोठी बन रही थी. मिक्सर मशीन की तेज आवाज के बीच में मजदूर काम में लगे हुए थे. उन में जवान, अधेड़ उम्र के आदमी और औरतें थीं. उन में जवानी की दहलीज पर खड़ी एक लड़की भी थी. वह सिर पर ईंटें ढो रही थी. तराई भी हो रही थी, इसलिए उस के गीले बदन से जवानी झांक रही थी.

बनते हुए मकान के सामने ठेकेदार खड़ा हो कर उस जवान होती लड़की की तरफ देखते हुए चिल्ला कर कह रहा था, ‘‘जल्दीजल्दी काम करो.’’

ठेकेदार के पास ही मकान मालिक खड़ा था, जो बहुत बड़ा अफसर था. ठेकेदार को उम्मीद थी कि साहब उसे दूसरे कामों के ठेके भी दिलाएंगे इसलिए उन्हें खुश करने का वह कोई मौका नहीं छोड़ता था.

ठेकेदार ने मकान मालिक की तरफ देखा तो उस को जवान होती मजदूर लड़की की तरफ देखते हुए पाया. मकान मालिक ने सब को सुना कर जोर से कहा, ‘‘मकान की तराई अच्छी तरह से कराना, तभी मकान मजबूत होगा.’’

ठेकेदार ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता न करें साहब, इस काम में अच्छी लड़की को लगाऊंगा.’’

ठेकेदार ने काम की देखभाल करने वाले सुपरवाइजर को इशारे से अपने पास बुला कर उस के कान में कुछ कहा.

सुपरवाइजर ने सहमति से सिर हिलाया. उस ने जा कर ईंट ढोती लड़की को कहा, ‘‘आज से मकान की तराई का काम तू करेगी.’’

यह सुन कर वह मजदूर लड़की खुश हो गई क्योंकि तराई का काम सब से हलका होता है. उस ने तुरंत ईंटों का तसला नीचे रख पानी का पाइप उस मजदूर लड़के से ले कर दीवार के प्लास्टर पर पानी छिड़कना शुरू कर दिया.

मकान मालिक ने 5 सौ का नोट निकाल कर सुपरवाइजर को दिया और मजदूरों को नाश्ता कराने को कहा. वह तराई करने वाली लड़की का ध्यान रखने की कह कर उस लड़की को देखने लगा. किसी भी मजदूर लड़की को फांसने का यह एक तरीका था कि उसे हलका काम खासकर मकान में तराई का काम दे दिया जाता था.

यह एक जाल होता था जिस में जवान होती मजदूर लड़की के फंसने की उम्मीद ज्यादा होती थी. मिक्सर मशीन में सीमेंट, रेत, पानी और वाटरप्रूफ कैमिकल की मिक्सिंग के साथ कितनी गरीब मजदूर लड़कियों की इज्जत भी मिक्स हो जाती थी और यह आलीशान मकानों में रहने वालों को पता भी नहीं चलता होगा.

दुनियादारी को कुछ समझने और कुछ नासमझने वाली लड़की खुशीखुशी तराई का काम कर रही थी. उसे मालूम नहीं था कि ठेकेदार और मकान मालिक उस पर इतने मेहरबान क्यों हो रहे हैं.

उस मजदूर लड़की को रोजाना चायनाश्ते की खास सुविधा और काम के बीच में बैठ कर आराम करने की छूट मिली हुई थी और काम भी क्या था, पानी का पाइप पकड़ कर दीवारों और फर्श पर दिन में 3 बार पानी से तराई करना.

ठेकेदार और मकान मालिक को कोई जल्दी नहीं थी. वे जानते थे कि सब्र का फल मीठा होता है.

एक हफ्ते बाद मकान मालिक ने दोमंजिला बनते मकान के किसी सूने कमरे में तराई करती उस लड़की का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है. तुम को कोई परेशानी हो तो मुझे बताना,’’ और धीरे से उस की पीठ पर हाथ फेरने की कोशिश करने लगा.

लड़की चौंकते हुए डर कर पीछे हट गई. उस ने मकान मालिक की आंखों में ऐसा कुछ देखा जो उसे ठीक नहीं लगा. पानी में भीगा उस का बदन ठंड और डर से कांप रहा था. उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. पानी का पाइप उस के हाथ से छूट कर कंक्रीट से बने फर्श पर बह रहा था. उस ने कमरे से निकलने की कोशिश की, पर बिना दरवाजे के उस कमरे में निकलने के रास्ते पर मकान मालिक खड़ा था.

मकान मालिक पुराना खिलाड़ी था. उस ने लड़की से कहा, ‘‘कुछ नहीं. तू अपना काम कर,’’ कहते हुए वह बाहर निकल कर ठेकेदार के पास आ गया.

ठेकेदार ने आंखों ही आंखों में उस से पूछा, पर उस ने असहमति से गरदन हिला कर मना कर दिया. उस के बाद शाम तक उस लड़की से किसी ने कुछ नहीं कहा.

हफ्ते का आखिरी दिन शनिवार था. उस दिन सभी मजदूरों को मजदूरी का पैसा मिलता था. सुपरवाइजर ने सभी मजदूरों को उन की हाजिरी के हिसाब से रजिस्टर पर दस्तख्त करा कर या अंगूठा लगवा कर पैसा दे दिया. अगले दिन रविवार की छुट्टी थी.

सोमवार को सभी मजदूर काम पर आ गए थे. वह लड़की भी डरीडरी सी काम पर आई थी. काम शुरू होते ही रोज की तरह उस ने पानी का पाइप पकड़ कर जैसे ही तराई शुरू की, सुपरवाइजर ने उसे मना कर के ईंटें ढोने और दूसरे भारी कामों पर लगा दिया.

अब उस लड़की को भारी काम देने और बातबात पर डांटने का सिलसिला शुरू हो गया. काम से निकालने की धमकी भी ठेकेदार द्वारा दी जाने लगी थी.

जवान मजदूर लड़की परेशान होने लगी थी, क्योंकि इतने दिन उस ने तराई करने का काम किया था. उसे ईंटें ढोने जैसा भारी काम करना अच्छा नहीं लग रहा था.

खाने की छुट्टी के दौरान उस ने अधेड़ उम्र की पुरानी मजदूर, जिसे सब मौसी कहते थे, से जा कर अपनी समस्या बताई और ठेकेदार से सिफारिश करने को कहा कि उसे फिर से तराई का काम मिल जाए.

उस अधेड़ मजदूर की बात ठेकेदार मानता था. वह कई सालों से उस के साथ काम कर रही थी और काम करने में भी बहुत तेज थी. उस ने लड़की से कहा, ‘‘मैं ठेकेदार से बात करूंगी.’’

दिनभर काम करने के बाद घर जा कर वह लड़की थक कर चूर हो गई थी. वैसे भी उस ने भारी काम कई दिनों बाद किया था. बीच में उसे कमर सीधी करने का मौका भी नहीं मिला था, पर उसे भरोसा था कि मौसी अगर कहेंगी तो उसे तराई का काम फिर से मिल जाएगा.

इसी तरह काम करते हुए 3 दिन हो गए. भारी काम करतेकरते वह लड़की लस्तपस्त हो गई थी. बीच में चायनाश्ते और आराम की सुविधा भी खत्म हो गई थी.

ठेकेदार और मकान मालिक में गजब का सब्र था और अपनेआप पर यकीन था कि दूसरा तरीका कामयाबी दिलाएगा.

शनिवार को मजदूरी बंटने का दिन आ गया था. सुपरवाइजर ने रजिस्टर पर अंगूठा लगवा कर रुपए उस के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘तुझ से ठीक से काम नहीं हो रहा है. ठेकेदार नाराज हो रहे हैं कि इस लड़की को हटा कर दूसरी लड़की को काम पर लगा दो. मैं ने अभी तो उन्हें मना लिया है, पर आगे से काम ठीक से करना.’’

काम ठीक से करने के बावजूद काम से हटाने की धमकी से उस लड़की को कुछकुछ समझ में आने लगा था कि उस के साथ ऐसा क्यों हो रहा था. गरीबी और बेरोजगारी से भूखे रहने की नौबत आ सकती थी, इसलिए उस ने मौसी से एक बार और उस के घर जा कर मिलने की सोची.

रात को खाना खा कर वह सीधा पास की झुग्गी बस्ती में रहने वाली मौसी के घर गई और जा कर उन से कहा कि ठेकेदार ने काम से निकालने की धमकी दी है.

मौसी ने पूरी बात सुन कर उसे दुनियादारी की बातें समझाते हुए कहा, ‘‘देख बेटी, हम गरीब मजदूर हैं. हमारे साथ तो ऐसा होता ही है. मेरे साथ भी हो चुका है. यह ठेकेदार नहीं होगा तो दूसरा होगा, यह साहब नहीं होगा तो दूसरा साहब होगा.

‘‘तेरी किस्मत और हिम्मत हो तो अपनेआप को बचा ले या काम से बचना है तो जो वे चाहते हैं कर ले.’’

मौसी ने अपने ब्लाउज में से 500 का नोट निकाल कर उस की मुट्ठी में दबाते हुए कहा,’’ ठेकेदार ने दिया है और कहा है कि तू चिंता मत कर. वे तेरा बहुत खयाल रखेंगे.’’

500 का नोट जोर से पकड़ कर वह लड़की चुपचाप अपने घर आ गई. उसे देर तक नींद नहीं आई. ठेकेदार द्वारा आराम का काम देने और मकान मालिक द्वारा रोज स्वादिष्ठ नाश्ता कराने की याद कर के उस के मुंह में पानी आ गया था. वह सोचने लगी कि किस तरह ज्यादा मेहनत करने से रात को उस का बदन थक कर चूर हो जाता था.

उस ने अपनेआप से कहा कि इतनी मेहनत का काम मैं कैसे और कब तक करूंगी. फिर उसे मौसी की बात याद आ गई कि उस के साथ भी ऐसा हो चुका है, जब वह जवान थी.

कुछ देर सोचने के बाद वह सो गई. दूसरे दिन रविवार था. आज वह निश्चिंत और बेफिक्र थी. मौसी भी उस से मिलने आई थीं. उस ने उन से भी खूब हंस कर बातें कीं.

मौसी समझ गईं कि उन का काम हो गया है. उन्होंने शाम को ही ठेकेदार को खबर कर दी कि लड़की ने 500 रुपए ले लिए हैं.

दूसरे दिन सोमवार को वह लड़की नहाधो कर अच्छी तरह तैयार हो कर काम करने निकली. साइट पर सब उसे देखने लगे.

सुपरवाइजर ने भी हलकी मुसकान से उसे देखा क्योंकि साहब लोगों के बाद बची हुई मलाई पर उसे भी मुंह मारने का मौका मिलने की उम्मीद थी.

मौसी ने ठेकेदार को जो बताया था, उस से उसे लग रहा था कि बड़े साहब आज खुश हो जाएंगे. वह उन का ही इंतजार कर रहा था. साहब दफ्तर से बीच में कोठी का काम देखने आने ही वाले थे.

सुपरवाइजर ने उस लड़की को ऊपर के कमरों में जिन का प्लास्टर हो गया था तराई करने को कहा. वह ऊपर जा कर पाइप उठा कर तराई का काम करने लगी. बालकनी से उस ने साहब को कार से उतरते देखा. ठेकेदार तेजी से उन के पास गया और ऊपर देखते हुए वे आपस में कुछ बात कर रहे थे. काम की रफ्तार बढ़ गई थी. मिक्सर मशीन का शोर भी तेज था. लड़की भी दीवारों पर पानी फेंक कर दीवारों को मजबूत बना रही थी.

थोड़ी देर बाद ठेकेदार उसी कमरे में आ गया और मुसकराते हुए कहने लगा, ‘‘चल, जरा स्टोररूम में… एक काम है.’’

लड़की ने धीरे से, लेकिन मजबूत आवाज में कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि क्या काम है, लेकिन मैं यह सब नहीं करूंगी,’’ उस ने तुरंत पानी का पाइप नीचे पटका और साड़ी के पल्लू में बंधा 500 का नोट निकाल कर उसे वापस करते हुए कहा, ‘‘ठेकेदार, साहब, काम जितना मरजी करा लो, आज से मैं तराई का काम नहीं करूंगी. तुम कहोगे तो

2 मजदूरों के बराबर काम करूंगी, लेकिन अपनी इज्जत नहीं दूंगी,’’ इतना कह कर वह नीचे उतर कर सुपरवाइजर से कहने लगी, ‘‘मैं तराई का काम नहीं, ईंटें ढोने का काम करूंगी.’’

इतना कह कर उस लड़की ने तसले में ईंटें भरनी शुरू कर दीं.

फिर वही शून्य: क्या शादी के बाद पहले प्यार को भुला पाई सौम्या

सबक: संध्या का कौनसा राज छिपाए बैठा था उसका देवर

संध्या की आंखों में नींद नहीं थी. बिस्तर पर लेटे हुए छत को एकटक निहारे जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, जिस से वह आकाश के चंगुल से निकल सके. वह बुरी तरह से उस के चंगुल में फंसी हुई थी. लाचार, बेबस कुछ भी नहीं कर पा रही थी. गलती उस की ही थी जो आकाश को उसे ब्लैकमेल करने का मौका मिल गया.

वह जब चाहता उसे एकांत में बुलाता और जाने क्याक्या करने की मांग करता. संध्या का जीना दूभर हो गया था. आकाश कोई और नहीं उस का देवर ही था. सगा देवर. एक ही घर, एक ही छत के नीचे रहने वाला आकाश इतना शैतान निकलेगा, संध्या ने कल्पना भी नहीं की थी. वह लगातार उसे ब्लैकमेल किए जा रहा था और वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी. बात ज्यादा पुरानी नहीं थी. 2 माह पहले ही संध्या अपने पति साहिल के साथ यूरोप ट्रिप पर गई थी. 50 महिलापुरुषों का गु्रप दिल्ली इंटरनैशनल एअरपोर्ट से रवाना हुआ.

15 दिनों की यात्रा से पूर्व सब का एकदूसरे से परिचय कराया गया. संध्या को उस गु्रप में नवविवाहित रितू कुछ अलग ही नजर आई. उसे लगा रितू के विचार काफी उस से मिलते हैं. बातबात पर खिलखिला कर हंसने वाली रितू से वह जल्द ही घुलमिल गई.

रितू का पति प्रणव भी काफी विनोदी स्वभाव का था. हर बात को जोक्स से जोड़ कर सब को हंसाने की आदत थी उस की. एक तरह से रितू और प्रणव में सब को हंसाने की प्रतिस्पर्धा चलती थी. संध्या इस नवविवाहित जोड़े से खासी प्रभावित थी. संध्या और उस के पति साहिल के बीच वैसे तो सब कुछ सामान्य था, लेकिन जब भी वह रितू और प्रणव की जोड़ी को देखती आहें भर कर रह जाती.

प्रणव के विपरीत साहिल गंभीर स्वभाव का इंसान था, जबकि संध्या साहिल से अलग खुले विचारों वाली थी. यूरोप यात्रा के दौरान ही संध्या, रितू और प्रणव इतना घुलमिल गए कि विभिन्न पर्यटन स्थलों में घूम आने के बाद भी होटल के रूम में खूब बातें करते, हंसीमजाक होता. साहिल संध्या का हाथ पकड़ खींच कर ले जाता. वह कहता कि चलो संध्या, बहुत देर हो गई. इन्हें भी आराम करने दो. हम भी सो लेते हैं. गु्रप लीडर ने सुबह जल्दी उठने को बोला है.

मगर संध्या को कहां चैन मिलता. वह अपने रूम में आ कर भी मोबाइल पर शुरू हो जाती. वहाट्सऐप पर शुरू हो जाता रितू से जोक्स, कौमैंट्स भेजने का सिलसिला. रितू ने संध्या के फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज डाली. संध्या ने तुरंत स्वीकार कर ली. दिन में जो फोटोग्राफी वे लोग करते उसे वे व्हाट्सऐप पर एकदूसरे को भेजते. फोटो पर कौमैंट्स भी चलते. रात को रितू और संध्या के बीच व्हाट्सऐप पर घंटों बातें चलतीं. जोक्स से शुरू हो कर, समाजपरिवार की बातें होतीं. धीरेधीरे यह सिलसिला व्यक्तिगत स्तर पर आ गया. एकदूसरे की पसंद, रुचि से ले कर स्कूलकालेज की पढ़ाई, बचपन में बीते दिनों की बातें साझा करने लगीं.

एक रात रितू ने व्हाट्सऐप पर संध्या के सामने दिल खोल कर रख दिया. शादी से पहले के प्यार और शादी तक सब कुछ बता दिया. शादी से पहले रितू की लाइफ में प्रणव था. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों का परिवार अलगअलग धर्म और जाति का था. उन के प्यार में कुछ अड़चनें आईं. शादी को ले कर दोनों परिवारों में तकरार हुई पर आखिर रितू और प्रणव ने सूझबूझ दिखाते हुए अपनेअपने परिवार को मना लिया.

रितू और प्रणव की शादी हो गई.व्हाट्सऐप पर रितू की लव स्टोरी पढ़ कर संध्या के मन में हलचल पैदा हो गई. उसे अपना अतीत याद हो आया. उस रात उस का मन किया वह भी रितू को वह सब कुछ बता दे जो उस का अतीत है, लेकिन वह हिम्मत नहीं कर पाई कि पता नहीं रितू क्या सोचेगी. वह उस के बारे में न जाने क्या धारणा बना ले. अजीब सी हलचल मन में लिए संध्या सो गई.

अगली रात संध्या अपनेआप को रोक नहीं पाई. रोज की तरह व्हाट्सऐप पर बातों का सिलसिला चल ही रहा था कि मौका देख कर संध्या ने लिख डाला कि मेरा भी एक अतीत है रितू. मैं भी किसी से प्यार करती थी. पर वह प्यार मुझे नहीं मिल सका.

रितू ने आश्चर्य वाला स्माइली भेजा और लिखा कि बताओ कौन था वह? क्या लव स्टोरी है तुम्हारी?

फिर संध्या ने रितू को अपनी लव स्टोरी बताने का सिलसिला शुरू कर दिया. वह मेरे कालेज में ही था. उस का नाम संजय था. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. हर 1-2 घंटे में मोबाइल पर हमारी बातें नहीं होतीं, तो लगता बहुत कुछ अधूरा है लाइफ में. दोनों में खूब बातें होतीं और तकरार भी. दुनिया से बेखबर हम अपने प्यार की दुनिया में खोए रहते. हमारा प्यार सारी हदें पार कर गया.

विश्वास था कि घर वाले हमारी शादी को राजी हो जाएंगे. इसी विश्वास को ले कर मैं ने खुद को संजय को सौंप दिया. संध्या ने रितू को व्हाट्सऐप पर आगे लिखा, उस दिन पापा ने मुझ से कहा कि बेटी, तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है. हम चाहते हैं कि अब अच्छा सा लड़का देख कर तुम्हारी शादी कर दें. मैं एकाएक पापा से कुछ नहीं बोल पाई. बस, इतना ही कहा कि पापा मुझे नहीं करनी शादी. अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है.

इस पर पापा ने कहा कि उम्र और क्या होगी? 25 साल की तो हो चुकी हो. जब मैं ने कहा कि नहीं पापा, मुझे नहीं करनी शादी तो वे हंस पड़े. बोले सच में अभी बच्ची हो. मैं ने पापा की बात को गंभीरता से नहीं लिया, पर वे मेरी शादी को ले कर गंभीर थे. एक दिन पापा ने मुझे बताया कि एक अच्छे परिवार का लड़का है तेरे लायक. किसी बड़ी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

25 लाख का पैकेज है. वे अगले हफ्ते तुझे देखने आ रहे हैं. पापा की बात सुन कर मैं अवाक रह गई. मुझ से रहा नहीं गया. मैं ने हिम्मत जुटा कर पापा से कहा कि पापा, मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. आप उन से बात कर लीजिए. पापा मेरी तरफ देखते रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उन की नजर में मैं सीधीसादी नजर आने वाली लड़की किस हद तक आगे बढ़ चुकी हूं.

पापा ने पूछा कि कौन है वह लड़का? मैं ने संजय का नाम, पता बताया तो पापा का गुस्सा बढ़ गया कि कभी उस परिवार में अपनी बेटी का रिश्ता नहीं करूंगा. मैं अंदर तक हिल गई. मुझे लगा मेरे सपने रेत से बने महल की तरह धराशायी हो जाएंगे. मैं ने तो संजय को सब कुछ सौंप दिया था. धरती हिलती हुई नजर आई उस दिन मुझे.

पापा और सब घर वालों ने 2-4 दिन में ऐसा माहौल बनाया कि मेरी और संजय की शादी नहीं हो पाई. अगले हफ्ते ही साहिल और उस के घर वाले मुझे देखने आ गए. मुझे पसंद कर लिया गया. रिश्ता पक्का हो गया. पापा ने सख्त हिदायत दी कि संजय का जिक्र भूल कर भी कभी न करूं. इस तरह मेरी शादी साहिल से हो गई. मैं अतीत भूल कर अपना घर बसाने में लग गई. शादी को 2 साल हो चुके हैं. संध्या ने रितू से व्हाट्सऐप पर अपने अतीत की बातें शेयर की और संजय का वह फोटो भेजा जो उस ने संजय के फेसबुक अकाउंट से डाउनलोड किया था.

‘‘अरे वाह, मैडम तुम ने तो बखूबी हैंडल कर लिया लाइफ को,’’ रितू ने संध्या की कहानी सुन कर लिखा.

इसी तरह हंसीमजाक और व्यक्तिगत बातें शेयर करते हुए यूरोप का ट्रिप पूरा हो गया. जब वे वापस घर पहुंचे तो संध्या और साहिल थक कर चूर हो चुके थे. तब रात के 2 बज रहे थे. सुबह देर तक सोते रहे. सास ने दरवाजा खटखटाया कि संध्या, साहिल उठ जाओ… सुबह के 11 बज चुके हैं. नहा कर नाश्ता कर लो. संध्या हड़बड़ा कर उठी. फटाफट फ्रैश हो कर तैयार हुई और किचन में आ गई. नाश्ता तैयार कर डाइनिंग टेबल पर लगाया तब तक साहिल भी तैयार हो चुका था. दोनों ने नाश्ता किया. तभी संध्या को खयाल आया कि मोबाइल कहां है. उस ने इधरउधर देखा पर नहीं मिला. आखिर कहां गया मोबाइल? उसे ध्यान आ रहा था कि रात को जब आई थी तो डाइनिंग टेबल पर रखा था.

‘‘संध्या मैं औफिस जा रहा हूं. आज बौस आ रहे हैं. 3 बजे उन के साथ मीटिंग है,’’ साहिल ने घर से निकलते हुए कहा.

‘‘ठीक है.’’

साहिल के जाने के बाद संध्या मोबाइल ढूंढ़ने में जुट गई. हर जगह देखा. वह अपने देवर आकाश के कमरे में जा पहुंची कि कहीं उस ने देखा हो. वह उस के कमरे में पहुंची तो मोबाइल आकाश के हाथों में देखा. वह मोबाइल स्क्रीन पर व्हाट्सऐप पर मैसेज पढ़ रहा था. वह मैसेज जो संध्या ने रितू को लिखे थे. वह सब कुछ पढ़ चुका था और मोबाइल को साइड में रखने ही जा रहा था.

‘‘आकाश, क्या कर रहे हो? मेरा मोबाइल तुम्हारे पास कहां से आया? क्या देख रहे थे इस में?’’ संध्या ने पूछा तो हमउम्र देवर आकाश के होंठों पर कुटिल मुसकान दौड़ गई.

‘‘कुछ नहीं भाभी, बस आप की लव स्टोरी पढ़ रहा था. आप के लवर का फोटो भी देखा. बहुत स्मार्ट है वह. क्या नाम था उस का संजय?’’ आकाश ने कहा तो संध्या की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

‘‘कुछ नहीं है… आकाश वे सब मजाक की बातें थीं,’’ संध्या ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘अगर भैया को ये सब मजाक की बातें बता दूं तो…?’’ आकाश ने तिरछी नजरें करते हुए कहा. उस की आंखों में शरारत साफ नजर आ रही थी.

संध्या को आकाश के इरादे नेक नहीं लगे. उसे अफसोस था कि उस ने किसी अनजानी दोस्त के सामने क्यों अपने अतीत की बातें व्हाट्सऐप पर लिखी. लिख भी दी थीं तो डिलीट क्यों नहीं कीं.

‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे आकाश. यह मजाक अच्छा नहीं है तुम्हारे लिए,’’ संध्या ने सख्त लहजे में कहा.

यह सुन कर आकाश अपनी औकात पर उतर आया, ‘‘भाभी जान, क्यों घबराती हो, ऐसा कुछ नहीं करूंगा. आप बस देवर को खुश कर दिया करो.’’

संध्या गुस्सा पीते हुए बोली, ‘‘मुझे क्या करना होगा? तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘भाभी, इतना बताना पड़ेगा क्या आप को? आप शादीशुदा हैं. शादी से पहले भी आप काफी ज्ञान रखती थीं,’’ आकाश ने बेशर्मी से कहा.

संध्या को लगा वह बहुत बड़े जाल में फंसने जा रही है. अब करे भी तो क्या करे?

‘‘क्या सोच रही हो संध्या? आकाश अचानक भाभी से संध्या के संबोधन पर उतर आया.

‘‘मुझे सोचने का वक्त दो आकाश,’’ संध्या ने कहा.

‘‘ओके, नो प्रौब्लम. जैसा तुम्हें ठीक लगे. पर याद रखना मेरे पास बहुत कुछ है. भैया को पता चल गया तो धक्के मार कर घर से निकाल देंगे तुम्हें.’’

‘‘पता है, तुम किस हद तक नीचता कर सकते हो,’’ संध्या ने रूखे स्वर में कहा.

संध्या अब क्या करे? कैसे पीछा छुड़ाए आकाश से? वह देवरभाभी के रिश्ते को कलंकित करने पर उतारू था. वह जब भी मौका मिलता संध्या का रास्ता रोक कर खड़ा हो जाता कि क्या सोचा तुम ने?

आकाश मोबाइल पर संध्या को कौल करता, ‘‘इतने दिन हो गए, अभी तक सोचा नहीं क्या? क्यों तड़पा रही हो?’’

संध्या पर आकाश लगातार दबाव बढ़ा रहा था. उस का जीना दूभर हो गया. इसी उधेड़बुन में वह करवटें बदल रही थी. उस की नींद उड़ चुकी थी. वह सुबह तक किसी निर्णय पर पहुंचना चाहती थी. उस के सामने दुविधा यह थी कि वह खुद को बचाए या आकाश की वजह से परिवार में होने वाले विस्फोट से बचे. वह चाहती थी किसी तरह आकाश को समझा सके, ताकि यह बात अन्य सदस्यों तक नहीं पहुंचे, लेकिन करे तो क्या करें. अचानक उस के दिमाग में एक विचार कौंधा. हां, यही ठीक रहेगा. उस ने मन ही मन सोचा और गहरी नींद में सो गई. अगले दिन संध्या ने घर का कामकाज निबटाया और अपनी सास से बोली, ‘‘मम्मीजी, मुझे मार्केट जाना है कुछ घर का सामान लाने. घंटे भर में वापस जा जाऊंगी.’’

फिर संध्या जब घर लौटी तो उस के चेहरे पर चिंता की लकीरों के बजाय चमक थी. उस ने पढ़ा था कि राक्षस को मारने के लिए मायावी होना ही पड़ता है. वह आकाश को भी उसी के हथियार से मारेगी… उस का सामना करेगी. मार्केट से वह अपने मोबाइल में वायस रिकौर्डिंग सौफ्टवेयर डलवा आई. कुछ देर बाद ही आकाश ने घर से बाहर जा कर संध्या के मोबाइल पर कौल की. संध्या पूरी तरह तैयार थी.

‘‘हैलो संध्या क्या सोचा तुम ने?’’ आकाश ने पूछा.

‘‘मुझे क्या करना होगा?’’ संध्या ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं बस वही सब… तुम्हें बताना पड़ेगा क्या?’’

‘‘हां, बताना पड़ेगा. मुझे क्या पता तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम मेरे साथ…’’ और फिर सब कुछ बताता चला गया आकाश. कब, कहां, क्या करना होगा.

‘‘और अगर मैं मना कर दूं तो क्या करोगे?’’ संध्या ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं तुम्हारी लव स्टोरी सब को बता दूंगा.’’

संध्या गुस्से से चिल्ला पड़ी, ‘‘जाओ, सब को बताओ. परंतु एक बात याद रखना तुम जो मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो न मैं इस की शिकायत पुलिस में करूंगी. ऐसी हालत कर दूंगी कि कई जन्मों तक याद रखोगे.’’

‘‘कैसे करोगी?’’ क्या प्रूफ है तुम्हारे पास?’’ आकाश ने कहा.

‘‘घर आ कर देख लेना यों कायरों की तरह घर से बाहर जा कर क्या बात कर रहे हो,’’ संध्या का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था.

शाम को आकाश घर आया. संध्या ने मौका मिलते ही धीमे से कहा ‘‘पू्रफ दूं या वैसे ही मान जाओगे? तुम ने जो भी बातें की हैं वह सब मोबाइल में रिकौर्ड हैं और इस की सीडी अपने लौकर में रख ली है.’’

आकाश को विश्वास नहीं हो रहा था कि संध्या इस कदर पलटवार करेगी. वह चुपचाप अपने कमरे में खिसक गया. संध्या आज अपनी जीत पर प्रसन्न थी. व्हाट्सऐप के जरीए जो मुसीबत उस पर आई थी, वह उस से छुटकारा पा चुकी थी.

गांठ खुल गई- भाग 3 : क्या कभी जुड़ पाया गौतम का टूटा दिल

3 दिनों बाद इषिता आ भी गई. गौतम के घर गई तो वह गहरी सोच में था.

उस ने आवाज दी. पर उस की तंद्रा भंग नहीं हुई. तब उसे झंझोड़ा और कहा, ‘‘किस सोच में डूबे हुए हो?’’

‘‘श्रेया की यादों से अपनेआप को मुक्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ गौतम ने सच बता दिया.

इषिता गुस्से से उफन उठी, ‘‘इतना सबकुछ होने के बाद भी उसे याद करते हो? सचमुच तुम पागल हो गए हो?’’

‘‘तुम ने कभी किसी को प्यार नहीं किया है इषिता, मेरा दर्द कैसे समझ सकती हो.’’

‘‘कुछ घाव किसी को दिखते नहीं. इस का मतलब यह नहीं कि उस शख्स ने चोट नहीं खाई होगी,’’ इषिता ने कहा.

गौतम ने इषिता को देखा तो पाया कि उस की आंखें नम थीं. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी आंखों में आंसू हैं. इस का मतलब यह है कि तुम ने भी प्यार में धोखा खाया है?’’

‘‘इसे तुम धोखा नहीं कह सकते. जिसे मैं प्यार करती थी उसे पता नहीं था.’’

‘‘यानी वन साइड लव था?’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझो.’’

‘‘लड़का कौन था. निश्चय ही वह कालेज का रहा होगा?’’

इषिता उसे उलझन में नहीं रखना चाहती थी, रहस्य पर से परदा हटाते हुए कह दिया, ‘‘वह कोई और नहीं, तुम हो.’’

गौतम ने चौंक कर उसे देखा तो वह बोली, ‘‘कालेज में पहली बार जिस दिन तुम से मिली थी उसी दिन तुम मेरे दिल में घर कर गए थे. दिल का हाल बताती, उस से पहले पता चला कि तुम श्रेया के दीवाने हो. फिर चुप रह जाने के सिवा मेरे पास रास्ता नहीं था.

‘‘जानती थी कि श्रेया अच्छी लड़की नहीं है. तुम से दिल भर जाएगा, तो झट से किसी दूसरे का दामन थाम लेगी. आगाह करती, तो तुम्हें लगता कि अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उस पर इलजाम लगा रही हूं. इसलिए तुम से दोस्ती कर ली पर दिल का हाल कभी नहीं बताया.

‘‘श्रेया के साथ तुम्हारा सबकुछ खत्म हो गया, तो सोचा कि मौका देख कर अपनी मोहब्बत का इजहार करूंगी और तुम से शादी कर लूंगी. पर देख रही हूं कि आज भी तुम्हारे दिल में वह ही है.’’

दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी पसर गई. गौतम ने ही थोड़ी देर बार खामोशी दूर की, ‘‘उसे दिल से निकाल नहीं पा रहा हूं, इसीलिए कभी शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मैं ने जो तपस्या की है उस का फल मुझे नहीं दोगे?’’ इषिता का स्वर वेदना से कांपने लगा था. आंखें भी डबडबा आई थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो इषिता. तुम बहुत अच्छी लड़की हो. तुम से विवाह करता तो मेरा जीवन सफल हो जाता. पर मैं दिल के हाथों मजबूर हूं. किसी से भी शादी नहीं

कर सकता.’’

इषिता चली गई. उस की आंखों में उमड़ा वेदना का समंदर देख कर भी वह उसे रोक नहीं पाया. वह उसे कैसे समझाता कि श्रेया ने उस के साथ जो कुछ भी किया है, उस से समस्त औरत जाति से उसे नफरत हो गई है.

3 दिन बीत गए. इषिता ने न फोन किया न आई. गौतम सोचने लगा, ‘कहीं नाराज हो कर उस ने दोस्ती तोड़ने का मन तो नहीं बना लिया है?’

उसे फोन करने को सोच ही रहा था कि अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस समय शाम के 6 बज रहे थे. फोन किसी अनजान का था.

उस ने ‘‘हैलो’’ कहा तो उधर से किसी ने कहा, ‘‘इषिता का पापा बोल रहा हूं. तुम से मिलना चाहता हूं. क्या हमारी मुलाकात हो सकती है?’’

उस ने झट से कहा, ‘‘क्यों नहीं अंकल. कहिए, कहां आ जाऊं?’’

‘‘तुम्हें आने की जरूरत नहीं है बेटे. 7 बजे तक मैं ही तुम्हारे घर आ जाता हूं.’’

इषिता उसे 3-4 बार अपने घर ले गई थी. वह उस के मातापिता से मिल चुका था.

उस के पिता रेलवे में उच्च पद पर थे. बहुत सुलझे हुए इंसान थे. वह उन की इकलौती संतान थी. मां कालेज में अध्यापिका थीं. बहुत समझदार थीं. कभी भी उस के और इषिता के रिश्ते पर शक नहीं किया था.

इषिता के पापा समय से पहले ही आ गए. गौतम के साथसाथ उस की मां और बहन ने भी उन का भरपूर स्वागत किया.

उन्होंने मुद्दे पर आने में बहुत देर नहीं लगाई. पर उन चंद लमहों में ही अपने शालीन व्यक्तित्व की खुशबू से पूरे घर को महका दिया था. इतनी आत्मीयता उड़ेल दी थी वातावरण में कि उसे लगने लगा कि उन से जनमजनम का रिश्ता है.

कुछ देर बाद इषिता के पापा को गौतम के साथ कमरे में छोड़ कर मां और बहन चली गईं तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इषिता तुम्हें प्यार करती है और शादी करना चाहती है. उस ने श्रेया के बारे में भी सबकुछ बता दिया है.

‘‘श्रेया से तुम्हारा रिश्ता टूट चुका है तो इषिता से शादी क्यों नहीं करना चाहते? वैसे तो बिना कारण भी कोई किसी को नापसंद कर सकता है. यदि तुम्हारे पास इषिता से विवाह न करने का कारण है तो बताओ. मिलबैठ कर कारण को दूर करने की कोशिश करें.’’

उसे लगा जैसे अचानक उस के मन में कोई बड़ी सी शिला पिघलने लगी है. उस ने मन की बात बता देना ही उचित समझा.

‘‘इषिता में कोई कमी नहीं है अंकल. उस से जो भी शादी करेगा उस का जीवन सार्थक हो जाएगा. कमी मुझ में है. श्रेया से धोखा खाने के बाद लड़कियों से मेरा विश्वास उठ गया है.

‘‘लगता है कि जिस से भी शादी करूंगा वह भी मेरे साथ बेवफाई करेगी. ऐसा भी लगता है कि श्रेया को कभी भूल नहीं पाऊंगा और पत्नी को प्यार नहीं कर पाऊंगा,’’ गौतम ने दिल की बात रखते हुए बताया.

‘‘इतनी सी बात के लिए परेशान हो? तुम मेरी परवरिश पर विश्वास रखो बेटा. तुम्हारी पत्नी बन कर इषिता तुम्हें इतना प्यार करेगी कि तुम्हारे मन में लड़कियों के प्रति जो गांठ पड़ गई है वह स्वयं खुल जाएगी.’’

वे बिना रुके कहते रहे, ‘‘प्यार या शादी के रिश्ते में मिलने वाली बेवफाई से हर इंसान दुखी होता है, पर यह दुख इतना बड़ा भी नहीं है कि जिंदगी एकदम से थम जाए.

‘‘किसी एक औरतमर्द या लड़कालड़की से धोखा खाने के बाद दुनिया के तमाम औरतमर्द या लड़केलड़की को एकजैसा समझना सही नहीं है.

‘‘यह जीवन का सब से बड़ा सच है कि कोई भी रिश्ता जिंदगी से बड़ा नहीं होता. यह भी सच है कि हर प्रेम संबंध का अंजाम शादी नहीं होता.

‘‘जीवन में हर किसी को अपना रास्ता चुनने का अधिकार है. यह अलग बात है कि कोई सही रास्ता चुनता है कोई गलत.

‘‘श्रेया के मन में गलत विचार भरे पड़े थे. इसलिए चंद कदम तुम्हारे साथ चल कर अपना रास्ता बदल लिया. अब तुम भी उसे भूल कर जीने की सही राह पर आ जाओ. गिरते सब हैं पर जो उठ कर तुरंत अपनेआप को संभाल लेता है, सही माने में वही साहसी है.’’

थोड़ी देर बाद इषिता के पापा चले गए. गौतम ने मंत्रमुग्ध हो कर उन की बातें सुनी थीं.

श्रेया के कारण लड़कियों के प्रति मन में जो गांठ पड़ गई थी वह खुल गई.

अब देर करना उस ने मुनासिब नहीं समझा. इषिता के पापा को फोन किया, ‘‘अंकल, कल अपने घर वालों के साथ इषिता का हाथ मांगने आप के घर आना चाहता हूं.’’

उधर से इषिता के पापा ने कहा, ‘‘वैलकम बेटे. देर आए दुरुस्त आए. अब तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. तुम ने अपने भीतर के डर पर विजय जो प्राप्त कर ली है.’’

गांठ खुल गई- भाग 2 : क्या कभी जुड़ पाया गौतम का टूटा दिल

पहले छुट्टियों में पिता की दुकान संभालता था. अब पिता के कहने पर भी दुकान पर नहीं जाता था. उसे लगता था कि दुकान पर जाएगा तो महल्ले की लड़कियां उस पर छींटाकशी करेंगी तो वह बरदाश्त नहीं कर पाएगा.

इसी तरह घटना को 2 वर्ष बीत गए. इषिता ने ग्रैजुएशन कर ली. जौब की तलाश की, तो वह भी मिल गई. बैक में जौब मिली थी. पोस्टिंग मालदह में हुई थी.

जाते समय इषिता ने उस से कहा, कोलकाता से जाने की इच्छा तो नहीं है पर सवाल जिंदगी का है. जौब तो करनी ही पड़ेगी, पर 6-7 महीने में ट्रांसफर करा कर आ जाऊंगी. विश्वास है कि तब तक श्रेया को दिल से निकाल फेंकने में सफल हो जाओगे.

इषिता मालदह चली गई तो गौतम पहले से अधिक अवसाद में आ गया. तब उस के मातापिता ने उस की शादी करने का विचार किया.

मौका देख कर मां ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं कि इषिता सिर्फ तुम्हारी दोस्त है. इस के बावजूद यह जानना चाहती हूं कि यदि वह तुम्हें पसंद है तो बोलो, उस से शादी की बात करूं?’’

‘‘वह सिर्फ मेरी दोस्त है. हमेशा दोस्त ही रहेगी. रही शादी की बात, तो कभी किसी से भी शादी नहीं करूंगा. यदि किसी ने मुझ पर दबाव डाला तो घर छोड़ कर चला जाऊंगा.’’

गौतम ने अपना फैसला बता दिया तो मां और पापा ने उस से फिर कभी शादी के लिए नहीं कहा. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

लेकिन एक दोस्त ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘श्रेया से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, यह अच्छी तरह जानते हो. फिर जिंदगी बरबाद क्यों कर रहे हो? किसी से विवाह कर लोगे तो पत्नी का प्यार पा कर अवश्य ही उसे भूल जाओगे.’’

‘‘जानता हूं कि तुम मेरे अच्छे दोस्त हो. इसलिए मेरे भविष्य की चिंता है. परंतु सचाई यह है कि श्रेया को भूल पाना मेरे वश की बात नहीं है.’’

दोस्त ने तरहतरह से समझाया. पर वह किसी से भी शादी करने के लिए राजी नहीं हुआ.

इषिता गौतम को सप्ताह में 2-3 दिन फोन अवश्य करती थी. वह उसे बताता था कि जल्दी ही श्रेया को भूल जाऊंगा. जबकि हकीकत कुछ और ही थी.

हकीकत यह थी कि इषिता के जाने के बाद उस ने कई बार श्रेया को फोन लगाया था. पर लगा नहीं था. घटना के बाद शायद उस ने अपना नंबर बदल लिया था.

न जाने क्यों उस से मिलने के लिए वह बहुत बेचैन था. समझ नहीं पा रहा था कि कैसे मिले. अंजाम की परवा किए बिना उस के घर जा कर मिलने को वह सोचने लगा था.

तभी एक दिन श्रेया का ही फोन आ गया. बहुत देर तक विश्वास नहीं हुआ कि उस का फोन है.

विश्वास हुआ, तो पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘तुम से मिल कर अपना हाल बताना चाहती हूं. आज शाम के 7 बजे साल्ट लेक मौल में आ सकते हो?’’ उधर से श्रेया ने कहा.

खुशी से लबालब हो कर गौतम समय से पहले ही मौल पहुंच गया. श्रेया समय पर आई. वह पहले से अधिक सुंदर दिखाई पड़ रही थी.

उस ने पूछा, ‘‘मेरी याद कभी आई थी?’’

‘‘तुम दिल से गई ही कब थीं जो याद आतीं. तुम तो मेरी धड़कन हो. कई बार फोन किया था, लगा नहीं था. लगता भी कैसे, तुम ने नंबर जो बदल लिया था.’’

उस का हाथ अपने हाथ में ले कर श्रेया बोली, ‘‘पहले तो उस दिन की घटना के लिए माफी चाहती हूं. मुझे इस का अनुमान नहीं था कि मेरे झूठ को पापा और भैया सच मान कर तुम्हारी पिटाई करा देंगे.

‘‘फिर कोई लफड़ा न हो जाए, इस डर से पापा ने मेरा मोबाइल ले लिया. अकेले घर से बाहर जाना बंद कर दिया गया.

‘‘मुंबई से तुम्हें फोन करने की कोशिश की, परंतु तुम्हारा नंबर याद नहीं आया. याद आता तो कैसे? घटना के कारण सदमे में जो थी.

‘‘फिलहाल वहां ग्रैजुएशन करने के बाद 3 महीने पहले ही आई हूं. बहुत कोशिश करने पर तुम्हारे एक दोस्त से तुम्हारा नंबर मिला, तो तुम्हें फोन किया. मेरी सगाई हो गई है. 3 महीने बाद शादी हो जाएगी.

‘‘यह कहने के लिए बुलाया है कि जो होना था वह हो गया. अब मुद्दे की बात करते हैं. सचाई यह है कि हम अब भी एकदूसरे को चाहते हैं. तुम मेरे लिए बेताब हो, मैं तुम्हारे लिए.

‘‘इसलिए शादी होेने तक हम रिश्ता बनाए रख सकते हैं. चाहोगे तो शादी के बाद भी मौका पा कर तुम से मिलती रहूंगी. ससुराल कोलकाता में ही है. इसलिए मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

श्रेया का चरित्र देख कर गौतम को इतना गुस्सा आया कि उस का कत्ल कर फांसी पर चढ़ जाने का मन हुआ. लेकिन ऐसा करना उस के वश में नहीं था. क्योंकि वह उसे अथाह प्यार करता था. उसे लगता था कि श्रेया को कुछ हो गया तो वह जीवित नहीं रह पाएगा.

उसे समझाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे इतना प्यार करती हो तो शादी मुझ से क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘इस जमाने में शादी की जिद पकड़ कर क्यों बैठे हो? वह जमाना पीछे छूट गया जब प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी एकदूसरे से कहते थे कि जिंदगी तुम से शुरू, तुम पर ही खत्म है.

‘‘अब तो ऐसा चल रहा है कि जब तक साथ निभे, निभाओ, नहीं तो अपनेअपने रास्ते चले जाओ. तुम खुद ही बोलो, मैं क्या कुछ गलत कह रही हूं? क्या आजकल ऐसा नहीं हो रहा है?

‘‘दरअसल, मैं सिर्फ कपड़ों से ही नहीं, विचारों से भी आधुनिक हूं. जमाने के साथ चलने में विश्वास रखती हूं. मैं चाहती हूं कि तुम भी जमाने के साथ चलो. जो मिल रहा है उस का भरपूर उपभोग करो. फिर अपने रास्ते चलते बनो.’’

श्रेया जैसे ही चुप हुई, गौतम ने कहा, ‘‘लगा था कि तुम्हें गलती का अहसास हो गया है. मुझ से माफी मांगना चाहती हो. पर देख रहा हूं कि आधुनिकता के नाम पर तुम सिर से पैर तक कीचड़ से इस तरह सन चुकी हो कि जिस्म से बदबू आने लगी है.

‘‘यह सच है कि तुम्हें अब भी अथाह प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें भूल जाना मेरे वश की बात नहीं है. लेकिन अब तुम मेरे दिल में शूल बन कर रहोगी, प्यार बन कर नहीं.’’

श्रेया ने गौतम को अपने रंग में रंगने की पूरी कोशिश की, परंतु उस की एक दलील भी उस ने नहीं मानी.

उस दिन से गौतम पहले से भी अधिक गमगीन हो गया.

इस तरह कुछ दिन और बीत गए. अचानक इषिता ने फोन पर बताया कि उस ने कोलकाता में ट्रांसफर करा लिया है. 3-4 दिनों में आ जाएगी.

गांठ खुल गई- भाग 1 : क्या कभी जुड़ पाया गौतम का टूटा दिल

श्रेया से गौतम की मुलाकात सब से पहले कालेज में हुई थी. जिस दिन वह कालेज में दाखिला लेने गया था, उसी दिन वह भी दाखिला लेने आई थी.

वह जितनी सुंदर थी उस से कहीं अधिक स्मार्ट थी. पहली नजर में ही गौतम ने उसे अपना दिल दे दिया था.

गौतम टौपर था. इस के अलावा क्रिकेट भी अच्छा खेलता था. बड़ेबड़े क्लबों के साथ खेल चुका था. उस के व्यक्तित्व से कालेज की कई लड़कियां प्रभावित थीं. कुछ ने तो खुल कर मोहब्बत का इजहार तक कर दिया था.

उस ने किसी का भी प्यार स्वीकार नहीं किया था. करता भी कैसे? श्रेया जो उस के दिल में बसी हुई थी.

श्रेया भी उस से प्रभावित थी. सो, उस ने बगैर देर किए उस से ‘आई लव यू’ कह दिया.

वह कोलकाता के नामजद अमीर परिवार से थी. उस के पिता और भाई राजनीति में थे. उन के कई बिजनैस थे. दौलत की कोई कमी न थी.

गौतम के पिता पंसारी की दुकान चलाते थे. संपत्ति के नाम पर सिर्फ दुकान थी. जिस मकान में रहते थे, वह किराए का था. उन की एक बेटी भी थी. वह गौतम से छोटी थी.

अपनी हैसियत जानते हुए भी गौतम, श्रेया के साथ उस के ही रुपए पर उड़ान भरने लगा था. उस से विवाह करने का ख्वाब देखने लगा था.

कालांतर में दोनों ने आधुनिक रीति से तनमन से प्रेम प्रदर्शन किया. सैरसपाटे, मूवी, होटल कुछ भी उन से नहीं छूटा. मर्यादा की सारी सीमा बेहिचक लांघ गए थे.

2 वर्ष बीत गए तो गौतम ने महसूस किया कि श्रेया उस से दूर होती जा रही है. वह कालेज के ही दूसरे लड़के के साथ घूमने लगी थी. उसे बात करने का भी मौका नहीं देती थी.

बड़ी मुश्किल से एक दिन मौका मिला तो उस से कहा, ‘‘मुझे छोड़ कर गैरों के साथ क्यों घूमती हो? मुझ से शादी करने का इरादा नहीं है क्या?’’

श्रेया ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’

वह तिलमिला गया. किसी तरह गुस्से को काबू में कर के बोला, ‘‘कहा तो नहीं था पर खुद सोचो कि हम दोनों में पतिपत्नी वाला रिश्ता बन चुका है तो शादी क्यों नहीं कर सकते हैं?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं मानती कि किसी के साथ पतिपत्नी वाला रिश्ता बन जाए तो उसी से विवाह करना चाहिए.

‘‘मेरा मानना है कि संबंध किसी से भी बनाया जा सकता है, पर शादी अपने से बराबर वाले से ही करनी चाहिए. शादी में दोनों परिवारों के आर्थिक व सामाजिक रुतबे पर ध्यान देना अनिवार्य होता है.

‘‘तुम्हारे पास यह सब नहीं है. इसलिए शादी नहीं कर सकती. तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि अब मेरा पीछा करना बंद कर दो, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

श्रेया की बात गौतम को शूल की तरह चुभी. लेकिन उस ने समझदारी से काम लेते हुए उसे समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी.

आखिरकार, उसे लगा कि श्रेया किसी के बहकावे में आ कर रिश्ता तोड़ना चाहती है. उस ने सोचा, ‘उस के घर वालों को सचाई बता दूंगा तो सब ठीक हो जाएगा. परिजनों के कहने पर उसे मुझ से विवाह करना ही होगा.’

एक दिन वह श्रेया के घर गया. उस के पिता व भाई को अपने और उस के बारे में सबकुछ बताया.

श्रेया अपने कमरे में थी. भाई ने बुलाया. वह आई. भाई ने गौतम की तरफ इंगित कर उस से पूछा, ‘‘इसे पहचानती हो?’’

श्रेया सबकुछ समझ गई. झट से अपने बचाव का रास्ता भी ढूंढ़ लिया. बगैर घबराए कहा, ‘‘यह मेरे कालेज में पढ़ता है. इसे मैं जरा भी पसंद नहीं करती. किंतु यह मेरे पीछे पड़ा रहता है. कहता है कि मुझ से शादी नहीं करोगी तो इस तरह बदनाम कर दूंगा कि मजबूर हो कर शादी करनी ही पड़ेगी.’’

वह कहता रहा कि श्रेया झूठ बोल रही है परंतु उस के भाई और पिता ने एक न सुनी. नौकरों से उस की इतनी पिटाई कराई कि अधमरा हो गया. पैरों की हड्डियां टूट गईं.

किसी पर किसी तरह का इलजाम न आए, इसलिए गौतम को अस्पताल में दाखिल करा दिया गया.

थाने में श्रेया द्वारा यह रिपोर्ट लिखा दी गई, ‘घर में अकेली थी. अचानक गौतम आया और मेरा रेप करने की कोशिश की. उसी समय घर के नौकर आ गए. उस की पिटाई कर मुझे बचा लिया.’

थाने से खबर पाते ही गौतम के पिता अस्पताल आ गए. गौतम को होश आया तो सारा सच बता दिया.

सिर पीटने के सिवा उस के पिता कर ही क्या सकते थे. श्रेया के परिवार से भिड़ने की हिम्मत नहीं थी.

उन्होंने गौतम को समझाया, ‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ. अस्पताल से वापस आ कर पढ़ाई पर ध्यान लगाना. कोशिश करूंगा कि तुम पर जो मामला है, वापस ले लिया जाए.’’

उन्होंने सोर्ससिफारिश की तो श्रेया के पिता ने मामला वापस ले लिया.

अस्पताल में गौतम को 5 माह रहना पड़ा. वे 5 माह 5 युगों से भी लंबे थे. कैलेंडर की तारीखें एकएक कर के उस के सपनों के टूटने का पैगाम लाती रही थीं.

उसे कालेज से निकाल दिया गया तो दोस्तों ने भी किनारा कर लिया. महल्ले में भी वह बुरी तरह बदनाम हो चुका था. कोई उसे देखना नहीं चाहता था.

श्रेया के आरोप पर किसी को विश्वास नहीं हुआ तो वह थी इषिता. वह उसी कालेज में पढ़ती थी और गौतम की दोस्त थी. वह अस्पताल में उस से मिलने बराबर आती रही. उसे हर तरह से हौसला देती रही.

गौतम घर आ गया तो भी इषिता उस से मिलने घर आती रही. शरीर के घाव तो कुछ दिनों में भर गए पर आत्मसम्मान के कुचले जाने से उस का आत्मविश्वास टूट चुका था.

मन और आत्मविश्वास के घावों पर कोई औषधि काम नहीं कर रही थी. गौतम ने फैसला किया कि अब आगे नहीं पढ़ेगा.

परिजनों तथा शुभचिंतकों ने बहुत समझाया लेकिन वह फैसले से टस से मस

नहीं हुआ.

इस मामले में उस ने इषिता की भी नहीं सुनी. इषिता ने कहा था, ‘‘ पढ़ना नहीं चाहते हो तो कोई बात नहीं. क्रिकेट में ही कैरियर बनाओ.’’

‘‘मेरा आत्मविश्वास टूट चुका है. कुछ नहीं कर सकता. इसलिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,’’ उस ने दोटूक जवाब दिया था.

वह दिनभर चुपचाप घर में पड़ा रहता था. घर के लोगों से भी ठीक से बात नहीं करता था. किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर भी नहीं जाता था. हर समय चिंता में डूबा रहता.

पांव पड़ी जंजीर

सुबह दाढ़ी बनाते समय अचानक  बिजली चली गई. नीरज ने जोर  से आवाज दे कर कहा, ‘‘रितु, बिजली चली गई, जरा मोमबत्ती ले कर आना.’’

‘‘मैं मुन्ने का दूध गरम कर रही हूं,’’ रितु ने कहा, ‘‘एक मिनट में आती हूं.’’

तब तक नीरज आधी दाढ़ी बनाए ही भागे चले आए और गुस्से से बोले, ‘‘कई दिनों से देख रहा हूं कि तुम मेरी बातों को सुन कर भी अनसुनी कर देती हो.’’

खैर, उस समय तो रितु ने नीरज को मोमबत्ती दे दी थी लेकिन नाश्ता परोसते समय वह उस से बोली, ‘‘आप तो ऐसे न थे. बातबात पर गुस्सा करने लग जाते हो. मेरी मजबूरी भी तो समझो. सुबह से ले कर देर रात तक घर और बाहर के कामों में चरखी की तरह लगी रहती हूं. रात होतेहोते तो मेरी कमर ही टूट जाती है.’’

‘‘मैं क्या करूं अब,’’ नीरज ठंडी सांस लेते हुए बोले, ‘‘समय पर आफिस नहीं पहुंचो तो बड़े साहब की डांट सुनो.’’

फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘लगता है, इस बार इनवर्टर लेना ही पड़ेगा.’’

‘‘इनवर्टर,’’ रितु ने मुंह बना कर कहा, ‘‘पता भी है कि उस की कीमत कितनी है. कम से कम 7-8 हजार रुपए तो चाहिए ही. कोई लोन मिल रहा है क्या?’’

‘‘लोन की बात कर क्यों मेरा मजाक उड़ा रही हो. तुम्हें तो पता ही है कि पिछला लोन पूरा करने में ही मेरे पसीने छूट गए थे. मैं तो सोच रहा था कि तुम अपने पापा से बात कर लो….उधार ही तो मांग रहा हूं.’’

‘‘क्याक्या उधार मांगूं?’’ रितु तल्ख हो गई, ‘‘गैस, टेलीफोन, सोफा, दीवान और भी न जाने क्याक्या. सब उधार के नाम पर ही तो आया है. अब और यह सबकुछ मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘क्यों, क्या मुझ में उधार चुकाने की सामर्थ्य नहीं है?’’ नीरज बोेले, ‘‘इतने ताने मत दो. आखिर, जो हुआ उस में कहीं न कहीं तो तुम्हारी भी सहमति थी.

‘‘मेरी सहमति,’’ रितु फैल गई, ‘‘मैं जिस प्रकार तुम्हें निभा रही हूं मैं ही जानती हूं.’’

‘‘तो ठीक है, निभाओ अब, कह क्यों रही हो,’’ नीरज गुस्से से उठते हुए बोले.

‘‘मैं तो निभा ही रही हूं. इतना ही गरूर था तो बसाबसाया घर क्यों छोड़ कर आ गए. तब तो बड़ी शान से कहते थे कि मैं अपना अलग घर ले कर रहूंगा. कोई मोहताज तो नहीं किसी का. और अब…मैं पापा से कुछ नहीं मांगूंगी,’’ रितु गुस्से से कहती गई.

‘‘अच्छा बाबा, गलती हो गई तुम से कुछ कह कर,’’ नीरज कोट पहनते हुए बोले, ‘‘अब तक यह घर चला ही रहा हूं, आगे भी चलाऊंगा. कोई भूखे तो नहीं मर रहे.’’

आज सुबहसुबह ही मूड खराब हो गया. अभाव में पलीबढ़ी जिंदगी का यही हश्र होता है. आएदिन किसी न किसी बात पर हमारी अनबन रहती है और फिर न समाप्त होने वाला समझौता. आज स्कूल जाने का रहासहा मूड भी जाता रहा सो गुमसुम सी पड़ी रही. मन में छिपी परतों से बीते पल चलचित्र की तरह एकएक कर सामने आने लगे.

अपना नया नियुक्तिपत्र ले कर आफिस में प्रवेश किया तो मैं पूरी तरह घबराई हुई थी. इतना बड़ा आफिस. सभी लोग चलतेफिरते रोबोट की तरह अपने में व्यस्त. एक कोने में मुझे खड़ा देख कर एक स्मार्ट से लड़के ने पूछा, ‘आप को किस से मिलना है?’

बिना कुछ बोले मैं ने अपना नियुक्तिपत्र उस की ओर बढ़ाया था.

‘ओह, तो आप को इस दफ्तर में आज ज्वाइन करना है,’ कहते हुए वह लड़का मुझे एक केबिन में ले गया और एक कुरसी पर बैठाते हुए बोला, ‘आप यहां बैठिए, मेहताजी आप के बौस हैं. वह आएंगे तो आप के काम और बैठने की व्यवस्था करेंगे.’

मैं इंतजार करने लगी. थोड़ी देर बाद वह लड़का फिर आया और कहने लगा, ‘सौरी, मैडम, मेहताजी आज थोड़ी देर में आएंगे. आप चाहें तो नीचे रिसेप्शन पर इंतजार कर सकती हैं. कुछ चाय वगैरह लेंगी?’

मुझे इस समय चाय की सख्त जरूरत थी किंतु औपचारिकतावश मना कर दिया.

‘आर यू श्योर,’ उस ने चेहरे पर मुसकराहट बिखेर कर पूछा तो इस बार मैं मना न कर सकी.

‘अच्छा, मैं अभी भिजवाता हूं,’ फिर अपना परिचय देते हुए बोला, ‘मेरा नाम नीरज है और मैं सामने के हाल में उस तरफ बैठता हूं. यहां सेल्स एग्जीक्यूटिव हूं.’

नीरज मुझे बेहद सहायक और मधुर से लगे. बस, फिर तो क्रम ही बन गया. हर रोज सुबह नीरज मुझ से मिलने आ जाते या कभी मैं ही चली जाती. इस तरह सुबह की गुडमार्निंग कब और कहां अनौपचारिक ‘हाय’ में बदल गई पता ही न चला.

नीरज का मधुर स्वभाव मुझे अपनी ओर अनायास ही खींचता चला गया. अंतत: इस खिंचाव ने प्रगति मैदान जा कर ही दम लिया. हम दोनों प्राय: इसी मैदान में आते और हाथों में हाथ डाले शकुंतलम थिएटर की फिल्में देखते.

एक दिन मैं ने नीरज से कहा, ‘अब बहुत हो चुकी डेटिंग, नीरज. अब शादी के लिए गंभीर हो जाओ. कहीं किसी ने यों ही देख लिया तो आफत आ जाएगी. आफिस का स्टाफ तो पहले से ही शक करता है.’

‘गंभीर क्या हो जाऊं,’ वह मेरी लटों को संभालते हुए बोले, ‘यही तो दिन हैं घूमने के. फिर ये कभी हाथ नहीं आएंगे. पर तुम शादी के लिए इतनी उत्सुक क्यों हो रही हो? क्या रात में नींद नहीं आती? इतना कह कर नीरज ने मेरा हाथ जोर से दबा दिया. उन का स्पर्श मुझे अभिभूत कर गया. लजा कर रह गई थी मैं. थोड़ी देर के लिए सपनों की दुनिया में चली गई थी. समय का आभास होते ही मैं ने पूछा, ‘क्या सोचा तुम ने?’

‘मुझे क्या सोचना है,’ नीरज थोड़ा चिंतित हो कर बोले, ‘मैं तो तुम्हारे साथ ही शादी करूंगा, पर…’

‘पर क्या?’ उन के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए मैं ने पूछा.

‘मां को मनाने में थोड़ा समय लगेगा. दरअसल, उन्होंने एकदम सीधीसादी सलवारकमीज वाली धार्मिक लड़की की कल्पना की है, जो हमारे घर के पास रह रही है. किंतु वह लड़की मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती.’

‘फिर क्या होगा?’ मैं ने गंभीर होते हुए पूछा.

‘होगा वही जो मैं चाहूंगा. आखिर रखना तो मुझे है न. तुम चिंता न करो. समय देख कर किसी दिन मां से बात करूंगा, पर डरता हूं, कहीं वे मना न कर दें.’

एक दिन शाम को नीरज अपनी मां से मिलवाने के लिए मुझे ले गए. मेरी नानुकुर नीरज के सामने ज्यादा न चल सकी. कहने लगे, ‘मां को अपनी पसंद भी बता दूं क्योंकि सीधा कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती है. तुम्हें मेरे साथ देख कर शायद बातचीत का कोई रास्ता निकल आए.’

नीरज ने थोड़े शब्दों में मेरा परिचय दिया. मां की अनुभवी नजरों से कुछ भी छिपा न रह सका.

नीरज की जिद और इच्छा को देखते हुए मां ने बेमन से शादी के लिए हां तो कह दी किंतु जिस तरह दुलहन को इस घर में आना चाहिए था वह सारी रस्में फीकी पड़ गईं. मेरी सारी सजने- संवरने की आशाएं धरी की धरी रह गईं. मां ने कोई खास उत्सुकता नहीं दिखाई क्योंकि शादी उन की मरजी के खिलाफ जो हुई थी.

कुछ दिन तो हंसीखेल में बीत गए पर हमारा देर रात तक घूमना और बाहर खा कर आना ज्यादा दिन तक न चल सका. मां ने एक दिन नाश्ते पर कह दिया कि हम से देर रात तक इंतजार नहीं किया जाता. समय पर घर आ जाया करो. फिर घर की तरफ बहू को थोड़ा ध्यान देना चाहिए.

इस पर नीरज तुनक कर बोले, ‘मां, इस के लिए तो सारी उम्र पड़ी है. हम दूसरी चाबी ले कर चले जाया करेंगे आप सो जाया करो, क्योंकि पार्टी में दोस्तों के साथ देर तो हो ही जाती है.’

मेरे मन में न जाने क्यों शांत स्वभाव वाले मां और बाबूजी के प्रति सहानुभूति उभर आई. बोली, ‘मां ठीक कहती हैं, नीरज. हम समय पर घर आ जाएंगे. अपनी पार्टियां अब हम वीकेंड्स में रख लेंगे.’

मांजी के व्यवहार में आई सख्ती को मैं कम करना चाहती थी. इस के लिए अपनी एक हफ्ते की छुट्टी और बढ़ा ली ताकि मांजी के व्यवहार को समझ सकूं.

एक दिन नीरज शाम को मुसकराते हुए आए और कहने लगे, ‘रितु, सब लोग तुम्हें बहुत याद करते हैं. देखना चाहते हैं कि तुम शादी के बाद कैसी लगती हो.’

मैं खिलखिला कर हंस पड़ी. मुझे आफिस का एकएक चेहरा याद आने लगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, कुछ दिनों की ही तो बात है. अगले सोमवार से तो आफिस जा ही रही हूं?’

‘‘मांजी पास में बैठी चाय पी रही थीं. बड़े शांत स्वर में बोलीं, ‘बेटा, हमारे घरों में शादी के बाद नौकरी करने की रीति नहीं है. बहू को बहू की तरह ही रहना चाहिए, यही अच्छा लगता है. आगे जैसा तुम को ठीक लगे, करो.’

मां का यह स्वर मुझे भीतर तक हिला कर रख गया था. उन के यह बोल अनुभव जन्य थे. जोर से डांटडपट कर कहतीं तो शायद मैं प्रतिकार भी करती. मुझे मां का इस तरह कहना अच्छा भी लगा और उन का सामीप्य पाने का रास्ता भी.

नीरज फट से बोल पड़े थे, ‘मां, आजकल दोनों मिल कर कमाएं तभी तो घर ठीक से चलता है. फिर यह तो अकेली यहां बोर हो जाएगी.’

‘क्यों? क्या कमी है यहां जो दोनों को काम करने की आवश्यकता पड़ रही है. भरापूरा घर है. तेरे बाबूजी भी अच्छा कमाते हैं. सबकुछ ठीक चल रहा है. हम कौन सा तुम से कुछ मांग रहे हैं,’ मांजी का स्वर तेज हो गया, ‘फिर भी तू बहू से काम करवाना चाहता है तो तेरी मरजी.’

मैं खामोश ही रही. पर इस तरह नीरज का बोलना मुझे अच्छा नहीं लगा था. भीतर जा कर मैं ने नीरज से कहा, ‘नौकरी मुझे करनी है. मांजी को अच्छा नहीं लगता तो मैं नहीं जाऊंगी. बस.’

‘नहीं, तुम नौकरी करने जरूर जाओगी. मैं ने जो कह दिया सो कह दिया,’ नीरज ने कठोर स्वर में कहा.

मन के झंझावात में मैं अंतत: कोई निर्णय नहीं ले पाई. मैं ने हार कर मां से पूछा, ‘मैं क्या करूं, मां?’

‘जो नीरज कहता है वही कर,’ मां ने सीधासपाट सा उत्तर दिया.

उस दिन काम पर तो चली गई किंतु मां के मूक आचरण से एहसास हो गया था कि उन को यह सब ठीक नहीं लगा.

मैं, मां और बाबूजी को खुश करने के लिए हरसंभव प्रयास करती रही. नीरज को भी समझाया कि यह सब उन को ठीक नहीं लगता पर उन के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. क्या पता था कि ऊपर से इतने मृदुभाषी और हंसमुख इनसान अंदर से इतने अस्वाभाविक और सख्त हो सकते हैं.

इस प्रपंच से जल्दी ही मुझे मुक्ति मिल गई. मेरा पांव भारी हो गया और आफिस न जाने का बहाना मिल गया. इस में मां ने मेरी तरफदारी की तो अच्छा लगा.

मुन्ना के होने के बाद तो मांबाबूजी के स्वभाव में पहले से कहीं ज्यादा बदलाव आ गया. आफिस के साथियों ने पार्टी की जिद पकड़ ली तो मैं ने नीरज को कहा कि पार्टी घर पर ही रख लेते हैं. किसी होटल या रेस्तरां में पार्टी करेंगे तो बहुत महंगा पड़ेगा. फिर मां और बाबूजी को भी अच्छा लगेगा. नीरज भी बजट को देखते हुए कुछ नहीं बोले.

सारा दिन मैं घर संवारने में लगी रही. मां को घर में आ रहे इस बदलाव से अच्छा लगने लगा था. सारे सामान का आर्डर पास ही के रेस्तरां में दे दिया था.

‘मांजी कहां हैं,’ मेरी एक आफिस की सहेली ने पूछ लिया. मैं मां को बुलाने उन के कमरे में गई तो मां हंस कर बोलीं, ‘मैं वहां जा कर क्या करूंगी. बच्चों की पार्टी है, तुम लोग मौजमस्ती करो.’

‘नहीं, मां, आप वहां जरूर चलो. बस, मिल कर आ जाना…अच्छा लगता है,’ मैं ने स्नेहवश मां को कहा तो मेरा दिल रखने के लिए उन्होंने कह दिया, ‘अच्छा, तुम चलो, मैं तैयार हो कर आती हूं.’

मैं मुन्ने को ले कर ड्राइंगरूम में आ गई. मांबाबूजी अभी ड्रांइगरूम में आए ही थे कि दरवाजे की घंटी बजी. बाबूजी दरवाजे की तरफ जाने लगे तो मैं ने नीरज को इशारा किया.

‘बाबूजी, आप बैठिए. मैं जा रहा हूं. बाजार से खाना मंगवाया है, वही होगा.’

‘अरे, कोई बात नहीं,’ बाबूजी बोले.

‘नहीं, बाबूजी,’ नीरज थोड़ी तेज आवाज में बोले, ‘इसे हाथ न लगाना. इस में चिकन है. बाजार से दोस्तों के लिए मंगवाया है.’

‘नानवैज?’

मां और बाबूजी बिना किसी से मिले चुपचाप अपने कमरे में चले गए. मैं नीरज के साथ उन के पीछेपीछे कमरे तक गई तो देखा, मांजी माथा पकड़ कर एक तरफ पसर कर बैठी कह रही थीं, ‘अब यही दिन देखना रह गया था. जिस घर में अंडा, प्याज और लहसुन तक नहीं आया चिकन आ रहा है.’

‘मां, हम लोग तो खाते नहीं. बस, दोस्तों के लिए मंगवाया था. मैं ने घर पर तो नहीं बनवाया,’ नीरज ने सफाई देते हुए कहा.

मेरा चेहरा पीला पड़ गया था.

‘तुम लोग भी खा लो, रोका किस ने है…मैं क्या जानती नहीं कि तुम लोग बाहर जा कर क्या खाते हो…और अब यह घर पर भी….’ मां सुबक पड़ीं, ‘मेरा सारा घर अपवित्र कर दिया तू ने. मैं अब इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगी.’

‘नहीं, मां, तुम क्यों जाती हो, हम ही चले जाते हैं. हमारी तो सारी खुशियां ही छीनी जा रही हैं. मैं ही अलग घर ले कर रह लेता हूं, कहते हुए नीरज बाहर चले गए.

सुबह नाश्ते पर बैठते ही नीरज ने कहा, ‘मां, कल रात के लिए मैं माफी मांगता हूं किंतु मैं ने अलग रहने का फैसला ले लिया है.’

‘नीरज,’ मैं चौंक कर बोली, ‘आप क्या कह रहे हो, आप को पता भी है.’

‘तुम बीच में मत बोलो, रितु,’ वह एकाएक उत्तेजित और असंयत हो उठे. मैं सहम गई. वह बोलते रहे, ‘अच्छा कमाताखाता हूं, अलग रह सकता हूं… अब यही एक रास्ता रह गया है. आप को हमारे देर से आने में परेशानी होती है. यह करो वह न करो, कितने समझौते करने पड़ रहे हैं. मेरा अपना कोई जीवन ही नहीं रहा.’

‘ठीक है, बेटा, जैसा तुम को अच्छा लगे, करो. हम ने तो अपना जीवन जैसेतैसे काट दिया. किंतु इस घर के नियमों को तोड़ा नहीं जा सकता. मन के संस्कार हमें संयत रखते हैं. खेद है, तुम में ठीक से वह संस्कार नहीं पड़ सके. तुम चाहते हो कि तुम्हारे मिलनेजुलने वाले यहां आएं, हुड़दंग मचाएं, खुल कर शराब पीएं और जुआ खेलें…इस घर को मौजमस्ती का अड्डा बनाएं…’ बाबूजी पहली बार तेज आवाज में अपने मन की भड़ास निकाल रहे थे. कहतेकहते बाबूजी की आंखें भर आईं.

मेरे बहुत समझाने के बाद भी नीरज ने अलग घर ले कर ही दम लिया. 2-3 महीने तो घर को व्यवस्थित करने में लग गए पर जब घर का बजट हिलने लगा तो पास के एक स्कूल में मुझे भी नौकरी करनी पड़ी. मुन्ने की आया और के्रच के खर्चे बढ़ गए. असुविधाएं, अभाव और आधीअधूरी आशाओं के सामने प्यार ने दम तोड़ दिया. कभी सोचा भी न था कि मुझ पर दुनिया की जिम्मेदारियां पड़ेंगी. मुन्ने के किसी बात पर मचलते ही मैं अतीत से वर्तमान में आ गई.

एक दिन सुबह कपड़े धोतेधोते पानी आना बंद हो गया. मैं ने उठ कर नीरज से कहा कि सामने के हैंडपंप से पानी ला दो.

‘‘सौरी, यह मुझ से नहीं होगा,’’ उन्होंने साफ मना कर दिया.

‘‘तो फिर वाशिंग मशीन ला दो, कुछ काम तो आसान हो जाएगा,’’ मैं ने उठते हुए कहा.

‘‘मैं कहां से ला दूं,’’ बड़बड़ाते हुए नीरज बोले, ‘‘तुम भी तो कमाती हो. खुद ही खरीद लो.’’

‘‘मेरी तनख्वाह क्या तुम से छिपी है. सबकुछ तो तुम्हारे सामने है. जितना कमाती हूं उस का आधा तो क्रेच और आया में चला जाता है. आनेजाने और खुद का खर्च निकाल कर बड़ी मुश्किल से हजार भी नहीं बच पाता.’’

‘‘कमाल है,’’ नीरज नरम होते हुए बोले, ‘‘तो फिर यह सब पहले मां के घर पर कैसे चलता था.’’

‘‘वहां काम करने वाली आया थी. बाबूजी का सहारा था. कोई किराया भी नहीं देना पड़ता था और उन सब से ऊपर मांजी की सुलझी हुई नजर. वह घर जो सुचारु रूप से चल रहा था उस के पीछे सार्थक श्रम और निस्वार्थ समर्पण था. पर यह सब तुम्हारी समझ में नहीं आएगा क्योंकि सहज से प्राप्त हुई वस्तु का कोई मोल नहीं होता,’’ मैं ने झट से बालटी उठाई और पानी लेने चली गई.

पानी ले कर वापस आई तो नीरज वहीं गुमसुम बैठे थे. उन के चेहरे के बदलते रंग को देखते हुए मैं ने कहा, ‘‘क्या सोचने लगे.’’

‘‘चलो, मां से मिल आते हैं,’’ उन की आंखें नम हो गईं.

अभावों में पलीबढ़ी जिंदगी ने वे सारे सुख भुला दिए जिन के लिए नीरज ने घर छोड़ा था. चिकनआमलेट तो छोड़ उन का दोस्तों के साथ आनाजाना भी कम होता गया. मांजी कभीकभी मिलने चली आतीं और शाम तक लौट जातीं. बस, बंटी हुई जिंदगी जी रही थी मैं.

एक दिन बाबूजी का फोन आया. बोले, ‘‘2 दिन के लिए लंदन वाले चाचा आए हैं. खाना रखा है तुम्हारी मां ने….ठीक समय से पहुंच जाना.’’

‘‘ठीक है, बाबूजी, मैं पूरी कोशिश करूंगी,’’ मैं ने औपचारिकतावश कह दिया.

‘‘कोशिश,’’ वे थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘क्यों, कहीं जाना है क्या?’’

‘‘नहीं, बाबूजी,’’ मैं सुबक पड़ी. मेरे सारे शब्द बर्फ बन कर गले में अटक गए. मैं ने आंसू पोंछ कर कहा, ‘‘हफ्ते भर से इन की तबीयत ठीक नहीं है. दस्त और उलटियां लगी हुई हैं. डाक्टर की दवा से भी आराम नहीं आया.’’

‘‘अरे, तो हमें फोन क्यों नहीं किया?’’

‘‘मना किया था इन्होंने,’’ मैं बोली.

‘‘नालायक,’’ बाबूजी भारीभरकम आवाज में बोले, ‘‘चिंता न करो, मैं अभी आता हूं.’’

थोड़ी देर में मां और बाबूजी भी पहुंच गए. नीरज एक तरफ सिमट कर पड़े हुए थे. मां को देखते ही उन की रुलाई फूट पड़ी. बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘अरे, किसी से कहलवा दिया होता. देख तो क्या हालत बना रखी है. थोड़ा सा भी उलटासीधा खा लेता है तो हजम नहीं होता.’’

बाबूजी भी पास ही बैठे रहे. मैं चाय बना कर ले आई.

मांजी बोलीं, ‘‘चल, घर चल, अब बहुत हो चुका. अब तेरी एक न सुनूंगी. परीक्षा की घडि़यां तो जीवन में आती ही रहती हैं. चंचल मन इधरउधर भटक ही जाता है. कोई इस तरह मां को छोड़ कर भी चला आता है क्या. चल, बहुत मनमानी कर ली.’’

वात्सल्यमयी मां के स्वर सुन कर मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मांजी मेरी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘इस तरह की जिद बहू करती तो समझ में आता. उस ने तो स्वयं को घर के वातावरण के अनुसार ढाल लिया था पर तुझ से तो ऐसी उम्मीद ही नहीं थी. तुझ से तो मेरी बहू ही अच्छी है.’’

‘‘मां, मुझे माफ कर दो,’’ नीरज रो पड़े. उन का रोना मां और बाबूजी दोनों को रुला गया.

‘‘मैं ने दवाई के लिए नीरज को सहारा दे कर उठाया तो बड़े ही आत्मविश्वास से बोले, ‘‘अब इस की जरूरत नहीं पड़ेगी. मां आ गई हैं, अब मैं जल्दी ही अच्छा हो जाऊंगा.’’

मैं मुन्ने को उठा कर सामान समेटने में लग गई.

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