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तेज स्पीड में भागी जा रही गाड़ी एक झटके के साथ रुक गई, पूर्वी ने कंबल से गरदन बाहर निकाल कर खिड़की से झंका. बाहर गुप्प अंधेरा था. उस ने मन ही मन सोचा इस का मतलब है अभी सवेरा नहीं हुआ है. उस ने अपने इर्दगिर्द कस कर कंबल लपेटा और सोने की कोशिश करने लगी. नींद तो जैसे किसी जिद्दी बच्चे की तरह रूठी बैठी थी. पहली बार घर से अकेली इतने लंबे सफर पर निकली थी. हालांकि उस के पापा ने कई बार कहा था इतनी दूर अकेली कैसे जाओगी मैं छोड़ आता हूं परंतु उस ने भी जिद पकड़ ली थी.

‘‘अरे पापा अब मैं इतनी छोटी भी नहीं हूं. वैसे भी होस्टल में रह कर पढ़ाई करनी है तो आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’

पूर्वी वरेली से मुंबई वहां के फेमस इंस्टिट्यूट से इंटीरियर डिजाइनर का कोर्स करने जा रही थी. अब मन ही मन पछता रही थी, नाहक ही पापा को साथ आने से रोका, कम से कम यह सफर तो आराम से कटता.

उस ने एक बार फिर से सोने की कोशिश की. कुछ देर की झपकी लेने के बाद इस बार नींद फिर कानों में टकराती गरमगरम चाय की आवाज से खुली. दिन निकल आया था. पता नहीं कौन सा स्टेशन था परंतु एसी कंपार्टमैंट के कारण ठंड भी लग रही थी, साथ ही चाय पीने की तलव भी जोर मार रही थी. उस के मन में झंझलाहट सी भर गई कि इन ऐसी कंपार्टमैंट में बस खिड़की से झंकते रहो, शीशा खोल कर कुछ ले नहीं सकते. यदि जनरल बोगी होती तो झट से खिड़की खोल कर अपनी सीट पर बैठेबैठे ही चाय ले लेती. अब करे भी तो क्या करे. तभी उस की नजर सामने वाली बर्थ पर पड़ी. जब वह ट्रेन में चढ़ी थी तो सामने वाली बर्थ खाली थी परंतु शायद रात में कोई आया होगा.

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