पीएसआई देवांश पाटिल की पुणे में नईनई नियुक्ति हुई थी. अभी पिछले महीने ही एक रेव पार्टी में उन्होंने 269 युवकयुवतियों को पकड़ा था. गणेशोत्सव पर डीजे बजाने की पाबंदी थी. कई प्रतियोगी परीक्षा केंद्रों में वे मार्गदर्शन करते थे. युवा पीएसआई देवांश का वीडियो यूट्यूब पर देखते थे. उन के सैमिनार में युवाओं की भीड़ लग जाती थी. कैरियर के साथसाथ पाटिल के परिवार वाले उन की शादी की तैयारी भी कर रहे थे.
अगले हफ्ते देवांश परिवार के साथ एक जगह लड़की देखने जाने वाले थे. देवांश के हां कहते ही सगाई की रस्म पूरी हो जानी थी. पटवर्धन की बड़ी बेटी जिज्ञासा को पाटिल परिवार ने पसंद किया था. जिज्ञासा 4 साल से पुणे में होस्टल मे रह कर एमबीए की पढ़ाई कर रही थी. पटवर्धन गांव के ही एक कालेज में प्राध्यापक थे. इस तरह से दोनों ही प्रतिष्ठित और संपन्न परिवारों से थे. लड़कालड़की दोनों उच्चशिक्षित होने से एकदूसरे के लिए बेहतर थे, लड़की वालों की तरफ से एक तरह से हां ही थी, सिर्फ देवांश का हामी भरना बाकी था.
देवांश के मामा ही यह रिश्ता खोज कर लाए थे.
‘‘इतनी शिक्षित लड़की किसी अन्य परिचित खानदान में नहीं मिलेगी. जैसा घरपरिवार हमें चाहिए, बिलकुल वैसे ही लोग हैं,’’ मामा ने देवांश की मां को बताया था. जिज्ञासा की भी उन्होंने काफी तारीफ की थी.
बस, तभी से देवांश जिज्ञासा को देखने के लिए बेचैन हुआ जा रहा था.
देखनेदिखाने की रस्म के लिए निर्धारित समय पर पाटिल परिवार पटवर्धन परिवार के घर पहुंच गया. बड़े उत्साह से मेहमानों का स्वागत किया गया. लड़कीदिखाई की रस्म शुरू हुई. जिज्ञासा दुपट्टा संभाले हाथों में चाय की ट्रे लिए हौल में दाखिल हुई, अपने दिल की धड़कनों को थामे देवांश की नजरें ज्यों ही जिज्ञासा पर पड़ीं उस का चेहरा उतर गया. चाय का कप थमाते हुए जिज्ञासा की नजर भी जब देवांश की नजर से टकराई, तो वह भी कांप उठी और घबराहट में अपना चेहरा छिपाने लगी.
दरअसल, पिछले दिनों पुणे की रेव पार्टी में देवांश ने जिन लोगों को पकड़ा था उन में से एक जिज्ञासा भी थी, लेकिन किसी जानेमाने व्यक्ति का फोन आने पर उसे और उस की दोस्त को छोड़ दिया गया था.
‘‘बेटा, हमारी जिज्ञासा पढ़ीलिखी, सर्वगुणसंपन्न है. आप को कुछ पूछना है तो पूछ सकते हो?’’
‘‘अरे पटवर्धन, हमारे सामने ये दोनों क्या बात करेंगे? अकेले में दोनों को बात करने दो,’’ देवांश के मामा ने कहा.
‘‘हां, हां, जरूर. जिज्ञासा, देवांश बाबू को कमरे में ले कर जाओ.’’
जिज्ञासा देवांश के सामने अपनी आंखें नहीं उठा पा रही थी. वह चुपचाप अपने कमरे की तरफ चल पड़ी. वह काफी डरी हुई थी और उसे खुद पर शर्म आ रही थी. उधर देवांश के मन में सवालों की खलबली मची हुई थी, सो वह जिज्ञासा के पीछेपीछे चल पड़ा. जैसे ही देवांश कमरे के अंदर आया, जिज्ञासा ने जल्दी से अंदर से दरवाजा बंद किया और दरवाजे के पास खड़ी हो गई.
‘‘मुझे ऐसा लगता है कि हमारे बीच बोलने के लिए कुछ खास नहीं है मिस जिज्ञासा. बिना वजह एकदूसरे का समय बरबाद कर के कोई फायदा नहीं है.’’
देवांश जिज्ञासा से क्यों पूछना तो बहुतकुछ चाहता था पर न जाने वह इतना ही बोला. देवांश सोच रहा था कि जिज्ञासा अपनी सफाई में उस से कुछ कहेगी, लेकिन जिज्ञासा सिर नीचे किए चुपचाप खड़ी रही. देवांश से ज्यादा देर तक कमरे में रुका नहीं गया और वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गया.
हौल में आते ही देवांश की हां सुनने के लिए सभी लोग आतुर बैठे थे.
‘‘आगे क्या करना है देवांश?’’ देवांश की मां ने पूछा.
‘‘मां, हम घर जा कर बात करेंगे, अभी हमें यहां से चलना चाहिए.’’
‘‘ठीक है, कोई जल्दबाजी नहीं है. शांति से सोचविचार कर निर्णय लें. हमें आप के फोन का इंतजार रहेगा,’’ पटवर्धन ने कहा.
देवांश के जवाब से सभी लोगों को निराशा हुई, उन्हें पूरी उम्मीद थी कि देवांश जिज्ञासा को देखते ही हां कर देगा.
वहां जिज्ञासा देवांश की ना के बाद, उस दिन को कोस रही थी जब उस ने उस रेव पार्टी में जाने की भूल की थी. लेकिन अब यदि देवांश के सामने सारी बात साफ नहीं करती तो जिंदगी की दूसरी भूल करेगी. आखिरकार जिज्ञासा ने स्वयं देवांश से मिलने की योजना बनाई और हिम्मत कर के एक दिन उस के औफिस पुलिस स्टेशन पहुंच गई.
पुलिस स्टेशन में उसे बहुत अटपटा लग रहा था लेकिन देवांश अपने केबिन में कुरसी पर बैठा फाइलें पलटते नजर आ गया था. जिज्ञासा घबराते हुए उस के सामने जा कर खड़ी हो गई.
देवांश भी एक बारी उसे यों अपने सामने खड़ा देख अचकचा गया.
‘‘मुझे आप से कुछ बात करनी है,’’ जिज्ञासा ने हिम्मत बटोरते हुए कहा.
‘‘बोलो,’’ देवांश ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा.
जिज्ञासा समझ नहीं पा रही थी कि केबिन में बैठे और लोगों के सामने कैसे बात करे. 2-3 मिनट तक चुपचाप खड़ी रही. देवांश भी कुछ अटपटा सा महसूस कर रहा था.
‘‘हम बाहर बात करें क्या? प्लीज.’’
‘‘ठीक है,’’ देवांश ने भी बाहर जाना मुनासिब समझ.
दोनों बाहर लौन में आ गए.
‘‘आप न जाने मेरे बारे में क्याक्या सोच रहे होंगे, लेकिन यकीन मानिए मैं ने कोई गलत काम नहीं किया है. मैं 4 साल से पुणे में पढ़ाई कर रही हूं. मेरी रूममेट अकसर रेव पार्टी में जाती है. मैं भी जानना चाहती थी कि आखिर इन पार्टियों में होता क्या है? कैसी होती है रेव पार्टी? इसलिए उस दिन उस के साथ चली गई थी, लेकिन उस के पहले तक मैं ने कभी किसी भी तरह की ड्रिंक नहीं की. आप चाहें तो मेरा ब्लड टैस्ट करा सकते हैं.
आप तो पुलिस डिपार्टमैंट में हैं, मेरे बारे में सबकुछ जांच कर सकते हैं. मुझ से गलती हुई है, मैं मानती हूं, लेकिन मैं बुरी लड़की नहीं हूं, इतना ही मुझे कहना था. मेरे परिवार को आप ने इस बारे में कुछ नहीं बताया, इस के लिए मैं आप की बहुत आभारी हूं.’’
जिज्ञासा को उम्मीद थी की देवांश उसे रुकने के लिए कहेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जिज्ञासा भारी मन के साथ घर लौट आई. उस के परिवार वाले उस से देवांश के इनकार का कारण पूछते रहे, लेकिन वह भी अनजान बनी रही. परिवार वालों को इतना अच्छा रिश्ता खो देने का बड़ा अफसोस था.
जिज्ञासा का घर में मन नहीं लग रहा था, इसलिए वह वापस होस्टल लौट गई. एक दिन होस्टल में सारी बातें याद कर सिसकसिसक कर रो रही थी. देवांश उसे एक नजर में भा गया था. अपनी एक भूल के कारण उस ने उसे खो दिया था. उस की यह हालत देख कर उस की दूसरी रूममेट तनया से रहा नहीं गया. उस ने जिज्ञासा से कहा कि वह देवांश से मिल कर पूरी बात साफ करने की कोशिश करेगी.
अगले ही दिन तनया देवांश के औफिस पुलिस स्टेशन गई.
‘‘नमस्कार सर, मैं जिज्ञासा की फ्रैंड हूं. क्या मैं आप से दो मिनट बात कर सकती हूं.’’
‘‘हां, कहिए.’’
‘‘ सर, मैं घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगी. बस, इतना पूछना चाहती हूं कि आप ने जिज्ञासा से शादी के लिए इनकार क्यों किया? मेरा कहना बदतमीजी हो सकता है, लेकिन यह जरूरी है, क्योंकि आप का फैसला गलत है. दोनों परिवार के बड़े लोग यह संबंध जोड़ना चाहते हैं. रही बात जिज्ञासा की रेव पार्टी में जाने की, तो वह उन लड़कियों जैसी नहीं है. हमारी एक रूममेट हर दिन किसी न किसी पार्टी में जाती है. जिज्ञासा एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की है. उस ने यों ही सोचा कि एक बार जा कर देखना चाहिए कि आखिर रेव पार्टी में होता क्या है, जिस के लिए वह आज तक पछता रही है.
‘‘हमारी गलती की वजह से आप ने उस से शादी के लिए ना कर दिया, उस से वह बहुत दुखी है. उस की आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं. वह दिल ही दिल में आप को पसंद करने लगी है. मैं विश्वास के साथ कहती हूं कि एक बहू के रूप में वह आप के परिवार को कभी निराश नहीं करेगी. एक बार फिर से आप ठंडे दिमाग से सोचविचार करें.’’
तनया ने स्पष्ट रूप से अपनी बात कही थी, जो पुलिस स्टेशन में आसपास बैठे सभी लोग सुन रहे थे. तनया के जाने के कुछ समय बाद सीनियर औफिसर देव कुमार देवांश के सामने आ कर बैठ गए. देवांश उन की बहुत इज्जत करता था.
‘‘पूरा मामला क्या है?’’ देव कुमार ने गंभीरता से देवांश से पूछा.
‘‘कुछ नहीं सर,’’ देवांश से कुछ कहते नहीं बना.
‘‘मुझे थोड़ीबहुत जानकारी है. तुम्हारे मांपिता ने मुझ से इस बारे में फोन पर बात की थी. सब से कोई न कोई गलती होती है. इस के अलावा तुम्हारे परिवार ने लड़की के बारे में हर जानकारी ली है. बेवजह तुम मामले को खींच रहे हो. ऐसा मुझे लग रहा है.’’
मेरी बात मानो तो बात की तह तक जाओ. कुछ दिनों पहले वह लड़की तुम से मिलने आई थी, तब मैं ने उसे देखा था. मेरी अनुभवी आंखें कहती हैं कि वह लड़की वाकई शरीफ है. उस से जो कुछ भी हुआ, अनजाने में हुआ.
देव कुमार की बातें सुन देवांश भी अब जिज्ञासा के बारे में एक बार फिर सोचने पर विवश हो गया.
देवांश ने एक बार फिर से जिज्ञासा के बारे में कई लोगों से पूछताछ की, तब जा कर उसे यकीन हुआ कि जिज्ञासा एक संस्कारी लड़की है.
दूसरे दिन वह जिज्ञासा के होस्टल की कैंटीन में जा कर बैठ गया. इत्तफाक की बात थी, जिज्ञासा भी वहीं टेबल पर सिर रख कर बैठी थी. सिर में दर्द होने के कारण वह क्लास अटैंड कर यहां आ गई थी. तनया उसे चाय पीने के लिए फोर्स कर रही थी.
‘‘मुझे नहीं पीनी चाय. मुझे कुछ देर अकेले बैठने दो.’’
देवांश ने देखा, तनया जिज्ञासा के पास से उठ कर किसी और लड़की से बातचीत में मशगूल थी. जिज्ञासा के आसपास कोई नहीं था.
‘‘भाई, 2 चाय देना,’’ कहते हुए देवांश जिज्ञासा की टेबल पर जा कर बैठ गया.
देवांश की आवाज सुन कर जिज्ञासा ने अपना सिर उठाया. वह हैरान रह गई, सकपका कर खड़ी हो गई.
‘‘अरेअरे, खड़ी क्यों हो गई, बैठो. तुम्हीं से बात करने आया हूं.’’
‘‘मैं…मैं…वो,’’ जिज्ञासा को समझ नहीं आया कि क्या कहे.
‘‘जिज्ञासा, मैं स्पष्ट बात करता हूं. तुम से झूठ नहीं कहूंगा, तुम्हारी भोली सूरत, गहरी आंखें मुझे पहली नजर में भा गई थीं. लेकिन क्या करता, वह रेव पार्टी…
‘‘खैर, छोड़ो अब इस बात को. अब जो मैं तुम से बात कहने जा रहा हूं उसे ध्यान से सुनो.
‘‘पहली बात कि मैं एक पुलिस अफसर हूं, इसलिए रोने वाली लड़की मेरी पत्नी नहीं हो सकती है. दूसरी बात, मुझे दोनों वक्त घर का बना खाना चाहिए. ऐसे में कभी भी टिफिन बनाना पड़ सकता है. तीसरी बात, मुझे अपनी पत्नी साड़ी में पसंद है. चौथी बात, वह मेरे मांपिता का मन कभी नहीं दुखाएगी. 5वीं बात, मेरे जीवन में देशसेवा पहले है, इस के बाद परिवार. क्या तुम्हें यह सबकुछ स्वीकार्य है?’’
खुशी के कारण जिज्ञासा को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले. वह शरमा गई और मन ही मन मुसकराने लगी. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि देवांश उस से यह सब कह रहा है.
‘‘मैं तुम्हारे घर रविवार को सगाई करने आ रहा हूं,’’ चाय पी कर मुसकराते हुए देवांश जिज्ञासा के करीब आया. उस की आंखों में झंकते हुए बोला, ‘‘तुम ने मुझे अभी तक नहीं बताया, मैं तुम्हें पसंद तो हूं न.’’ जिज्ञासा देवांश की शरारती नजरों को समझ गई और शरमा कर देवांश की बांहों में उस ने अपना चेहरा छिपा लिया.