रंजना सोसाइटी के गेट पर अन्य महिलाओं के साथ खड़ी थी. मांओं और स्कूल जाने वाले बच्चों का मेला सा लगा था. रंजना भी अपनी 11 वर्षीय बेटी मिनी का हाथ पकड़े खड़ी थी. स्कूल बस आने वाली थी. सभी महिलाएं रंजना को जिन नजरों से देख रही थीं, उन नजरों की भाषा से रंजना भलीभांति परिचित थी. सब की निगाहें हमेशा की तरह यही कह रही थीं कि हाय बेचारी. निगाहों का यह संदेश पा कर रंजना को हमेशा मन ही मन हंसी आती. सब उसे रोज ऊपर से नीचे तक कई बार देखतीं. उस के लेटैस्ट हेयरस्टाइल, बढि़या फिगर और आधुनिक कपड़ों की खूब प्रशंसा करतीं. लेकिन आंखों में वही हाय बेचारी के भाव.
स्कूल बस आ गई तो मांओं का अपनेअपने बच्चे को फ्लाइंग किस करने, आई लव यू बेटा, बाय बेटा, टेक केयर कहने का सिलसिला शुरू हो गया. रंजना ने भी मिनी को किस किया और मिनी बस में चढ़ गई. जब तक बस दिखती रही, रंजना वहीं खड़ी रही. फिर अपने फ्लैट की ओर चल दी. 11 बज रहे थे. मिनी का स्कूल 12 से 6 बजे तक था.
सारे काम करने के लिए मेड आ गई. 12 बजे तक रंजना फ्री हो चुकी थी. उस ने घड़ी देखी. 1 बजे अमित, उस का लेटैस्ट बौयफ्रैंड आने वाला था. उस ने सोचा 1 घंटा आराम कर ले. फिर अमित के साथ लंच कर के… इस के आगे की सोच कर ही रंजना के शरीर में मादक सी लहर दौड़ गई. आज
4 बजे उस की किट्टी पार्टी भी है. अमित को भेज कर वह किट्टी पार्टी में चली जाएगी. बैड पर लेट कर रंजना की आंखों के सामने बीते दिन किसी चलचित्र की तरह घूम गए… रंजना 21 साल की थी जब वह विनोद से एक पार्टी में मिली थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे.
दोनों ही सुंदर, स्मार्ट और आकर्षक थे. विनोद बैंगलुरु से मुंबई अपने बिजनैस के किसी काम से आया था. मिलने के 6 महीने बाद ही रंजना ने विजातीय विनोद से प्रेमविवाह कर लिया. दोनों के मातापिता इस विवाह के खिलाफ थे. रंजना के मातापिता जो अंधेरी, मुंबई में रहते थे, उन्होंने उस से संबंध तोड़ लिए. उस की छोटी बहन संजना कभीकभी उस से फोन पर बात कर लेती थी. रंजना विनोद के साथ बैंगलुरु चली गई. विनोद के मातापिता भी रंजना को बहू मानने के लिए तैयार नहीं हुए थे.
रंजना को याद आ रहा था कि उस ने अच्छी पत्नी और अच्छी बहू बनने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन बेहद कट्टरपंथी ससुराल में रहना मुश्किल होता जा रहा था.
एक दिन विनोद ने ही कह दिया, ‘‘रंजना, ऐसा करता हूं कि अलग घर ले लेता हूं, घर में रोजरोज का कलह अच्छा नहीं लगता.’’
रंजना को इस में भला क्या आपत्ति हो सकती थी. वह तैयार हो गई. विनोद ने एक फ्लैट ले लिया. अब रंजना खुश थी.
लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकी. उस ने नोट किया, विनोद उस के साथ बस रात को सोने ही आता है. सुबह अपने घर चला जाता है. एक दिन वह झंझला गई. बोली, ‘‘यह क्या चल रहा है… यहां बस सोने आते हो… अब यही तो हमारा घर है?’’
‘‘वहां मेरे मातापिता, भाईबहन हैं, उन्हें छोड़ दूं?’’ विनोद ने चिढ़ कर पूछा.
‘‘मैं उन्हें छोड़ने के लिए कहां कह रही हूं, रोज मिलने जाओ. मुझे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन यहां अपनी पत्नी के पास तुम चोरों की तरह आ रहे हो. मुझे बड़ा अजीब लग रहा है.’’
विनोद गरदन झटक कर चला गया. रंजना को कुछ समझ नहीं आया. यह तो वह देख ही चुकी थी कि विनोद एक बहुत धनी बिजनैसमैन का बेटा है, उन का बहुत लंबाचौड़ा बिजनैस था. पूरा दिन अकेली रहने पर रंजना बोर होने लगी थी. सुबह नाश्ते से डिनर तक वह अकेली होती थी. विनोद ने मेड का भी इंतजाम कर दिया था. 1 साल बीत रहा था. रंजना अब गर्भवती थी. उसे लगा शायद अब सब ठीक हो जाएगा. उस ने यह खुशखबरी विनोद को सुनाई तो उस ने कोई खास उत्साह नहीं दिखाया. 2 दिन बाद रात को आ कर कहने लगा, ‘‘मैं ने मां को यह खबर सुनाई.’’
रंजना ने चहक कर पूछा, ‘‘वे खुश हुईं?’’
विनोद ने तटस्थ भाव से कहा, ‘‘मां ने कहा कि इस हालत में तुम्हारा
अपने मातापिता के पास जाना ज्यादा ठीक रहेगा.’’
रंजना को जैसे धक्का लगा. वह भड़क उठी, ‘‘मैं क्यों जाऊं कहीं? मैं ने सब को छोड़ कर तुम्हें अपनाया है, सब मुझ से नाराज हैं.’’
‘‘लेकिन मम्मीपापा अब भी तुम्हें अपनाने को तैयार नहीं हैं.’’
‘‘तुम तो हो न मेरे साथ, मुझे प्यार करते हो न? फिर मुझे किसी की जरूरत नहीं है.’’
विनोद ने थोड़ा अटकते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है, पर मैं उन के खिलाफ नहीं जा सकता.’’
‘‘यह बात अब याद आ रही है मेरे जीवन से खेल कर?’’ रंजना चिल्ला पड़ी.
विनोद ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने इस बारे में बहुत सोचा… यही ठीक लगा कि तुम मुंबई चली जाओ, मैं आता रहूंगा.’’
‘‘मैं क्यों जाऊं कहीं? मैं यहीं रहूंगी और अपने होने वाले बच्चे को पूरा हक दिलवाऊंगी.’’
रात भर रंजना और विनोद में कहासुनी होती रही. सुबह विनोद चला गया. अगले कुछ दिनों में विनोद के कुछ रिश्तेदारों से उसे उड़तीउड़ती खबर मिली कि विनोद के घर वाले उस पर दूसरा विवाह करने का दबाव डाल रहे हैं और रंजना को तलाक दिलवाना चाहते हैं.
रंजना को अपनी दुनिया उजड़ती लगी. वह पूरा दिन फूटफूट कर रोती रही. पड़ोसिन मालती आंटी उस की पूरी स्थिति से परिचित थीं. अत: उन्होंने उसे बहुत कुछ समझया. तब रंजना ने खुद को संभाला. अपने आंसू पोंछे. गर्भस्थ संतान को मन ही मन प्यार किया. अब वह और तरह सोच रही थी कि अगर विनोद और उस का परिवार इस विवाह के बंधन को खेल समझ रहा है तो वह क्यों रोते हुए जीए? क्यों वह एक कमजोर पुरुष के साथ अपनी जिंदगी बिताने के लिए मजबूर हो? वह आधुनिक लड़की है अत: कमजोर और बेबस हो कर नहीं जीएगी. कल उस की संतान इस दुनिया में जन्म ले लेगी. तब वह उस के साथ जी लेगी.
अब आगे क्या करना है, रंजना ने यह भी उसी समय सोच लिया. वह बस ग्रैजुएट थी. उसे कोई बहुत बड़ी नौकरी मिलने से रही, यह भी वह जानती थी.
अगली रात जब विनोद आया तो रंजना ने कहा था, ‘‘मैं मुंबई जाने के लिए
तैयार हूं.’’
विनोद उस का मुंह देखता रह गया.
रंजना ने कहा, ‘‘तुम मुझे मेरे नाम से वहां एक फ्लैट ले दो.’’
‘‘हां, यह तो हो जाएगा, मैं भी आता रहूंगा.’’
रंजना व्यंग्यपूर्वक हंसी, ‘‘और घर का खर्च?’’
‘‘मैं हर महीने क्व25-30 हजार तुम्हारे खाते में डाल दिया करूंगा और जरूरत हुआ करेगी तो और दे दिया करूंगा. तुम्हें कतई परेशानी नहीं होगी. बस मैं अपने परिवार से अलग कुछ कर नहीं सकता, यह मेरी मजबूरी है.’’
‘‘तुम रहो अपने परिवार के साथ, जितनी जल्दी हो सके मेरा मुंबई में रहने का अच्छा सा प्रबंध कर दो.’’
विनोद ने उसे बांहों में भरने की कोशिश की तो रंजना ने उस की बांहें झटक दीं. कहा, ‘‘तुम्हारे अब तक के प्यार को समझने में मुझ से जो भूल हुई है, पहले उस से तो उबर लूं… एक बात याद रखना, अगर मुझे या मेरे बच्चे को पैसे की तंगी हुई तो मैं तुम्हें कोर्ट में घसीट लूंगी.’’
रंजना जानती थी कि विनोद के परिवार को अपनी इज्जत जान से ज्यादा प्यारी है. समाज में एक नाम, इज्जत थी उन की.
‘‘नहींनहीं, तुम्हें कोई कमी नहीं रहेगी,’’ विनोद तुरंत बोला.
विनोद का बिजनैस के सिलसिले में मुंबई चक्कर लगता रहता था. उस ने 1 महीने के अंदर मुलुंड की एक अच्छी सोसाइटी में एक बैडरूम सैट खरीद कर रंजना के नाम कर दिया. मन ही मन वह दुखी और शर्मिंदा तो था. परिवार के दबाव के चलते उस ने रंजना के साथ अच्छा नहीं किया था. लेकिन परिवार की बात न मानने पर उसे सारी संपत्ति से हाथ धोना पड़ेगा, यह वह अच्छी तरह जानता था.
खुद को पूरी हिम्मत से संभाल कर रंजना मुंबई के इस फ्लैट में आ गई. संजना
उस के संपर्क में रहती थी. उसे पूरी बात पता थी. जब संजना ने अपने मम्मीपापा को यह बात बताई तो नाराजगी भूल उन्होंने आ कर रंजना को गले लगा लिया. तय समय पर रंजना ने स्वस्थ सुंदर मिनी को जन्म दिया. रंजना मिनी का चेहरा देख खिल उठी थी. विनोद और रंजना की फोन पर बातचीत होती रहती थी. वह खबर पाते ही मिनी को देखने चला आया.
सारा काम रंजना की मम्मी ने संभाला था. उस के मम्मीपापा विनोद से खिंचेखिंचे ही रहे. विनोद 2 दिन में रंजना के हाथ में भारी रकम रख कर चला गया. रंजना ने कोई नाराजगी नहीं दिखाई.
मिनी 2 महीने की हो गई तो रंजना ने अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, अब आप घर लौट जाओ. अब मैं मिनी को देख लूंगी.’’
‘‘लेकिन तू अकेली कैसे…?’’
‘‘नहीं मम्मी, मैं सब कर लूंगी, मुझे अपनी लाइफ खुद संभालने दो,’’ रंजना बीच ही में बोली.
रंजना के चेहरे पर छाए आत्मविश्वास को देख कर अंजना भी कुछ कह नहीं सकीं और बेटी को बहुत सी हिदायतें दे कर अपने घर लौट गईं.
रंजना ने बखूबी मिनी को संभाल लिया था, उसी को देख कर उस के रातदिन कटते, सुंदर और आकर्षक तो वह थी ही, उस पर बेहतरीन रखरखाव, बेहद मौडर्न कपड़े, यत्न से संवारा रूपरंग. तभी तो भीड़ में भी वह अलग दिखती.
ऐसे ही दिन बीत रहे थे. 2-3 महीनों में विनोद आता तो शारीरिक जरूरत की पूर्ति के चलते. विनोद का सामीप्य, एक पुरुष और स्त्री का नैसर्गिक संबंध दोनों को एकदूसरे के करीब ले आता और फिर दोनों अभी पतिपत्नी तो थे ही.
पासपड़ोस में भी सब को यही लगता कि बेचारी बच्ची के साथ
अकेली रहती है. रंजना ने सब को यही बताया था कि उस के पति की टूरिंग जौब है. उन्हें अकसर विदेश जाना पड़ता है. मिनी 1 साल की हो रही थी. बैंगलुरु की एक परिचिता ने रंजना को बताया था कि विनोद दूसरी शादी करने के लिए तैयार हो गया है. सुन कर रंजना के तनबदन में आग लग गई. फिर उस ने ठंडे दिमाग से सोचा. वह विनोद पर आर्थिक रूप से निर्भर थी. वह ताव में आ कर अपना नुकसान नहीं कर सकती थी. अत: उस ने विनोद से कहा, ‘‘तुम्हें जो करना है कर लो, लेकिन कानूनन आज भी मैं ही तुम्हारी पत्नी हूं. मेरा और मिनी का खर्च हमेशा तुम ही उठाओगे, मैं भी अब कुछ भी करूं, तुम्हें बोलने का हक नहीं होगा.’’
विनोद ने तो जान छूटी, सोच कर झट से कहा, ‘‘हांहां, बिलकुल, तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी, मैं भी मिलने आता रहूंगा.’’
‘‘मिलने में मुझे अब कोई रुचि नहीं रहेगी. मिनी के प्रति कोई फर्ज महसूस हो तो उस से मिलने आ जाना,’’ और उसी क्षण रंजना ने अकेली और उदास रह कर नहीं, बल्कि आनंदपूर्वक जीने का निश्चय कर लिया.
मिनी को वह मां और पिता दोनों का प्यार देती. उस की हर जिम्मेदारी मन से पूरा कर रही थी. सुजय उस की सहेली निशा का छोटा भाई था. वह रंजना के मादक सौंदर्य के आकर्षण से बच नहीं पाया. कभी मिनी से मिलने तो कभी किसी और बहाने आने लगा तो रंजना मन ही मन मुसकरा उठी. उस ने सुजय को बड़ी अदाओं से बढ़ावा दिया और फिर दोनों एकदूसरे में खो गए. एमबीए करने के बाद वह जौब की तलाश में था. मिनी के स्कूल जाने के बाद वह रंजना के पास पहुंच जाता और रंजना का पुरुषस्पर्श को तरसता मन उस की चाहत में डूबडूब जाता. सुजय उस से विवाह करने के लिए भी तैयार था, लेकिन अब रंजना विवाह के नाम से ही दूर भागती. हाथ में भरपूर पैसा, मनचाहा जीवन, न पति का कोई काम, न कोई रोकनेटोकने वाला, उसे अब अपने आजाद जीवन में कोई अड़चन नहीं चाहिए थी.
सुजय को दिल्ली से जौब का बुलावा आया तो वह उदास मन से चला गया और रंजना सिर झटक कर जीवन में आगे बढ़ गई. वह अपने मम्मीपापा और बहन से फोन पर संपर्क में रहती ही थी, मिनी की छुट्टियों में आनाजाना भी लगा रहता था. विनोद आज भी फोन पर हालचाल लेता रहता था. अब भी मुंबई आने पर मिलने जरूर आता था. बस, अब मेहमान की तरह आता था, मेहमान की तरह चला जाता था. मिनी को अभी रंजना ने बहला दिया था. समझदार होने पर वह अपनी बेटी को सब साफसाफ समझ देगी, यह वह सोच चुकी थी.
विनोद के मन में आज भी अपराधबोध था. बेचारी कैसे जीती है अकेली. लेकिन रंजना कैसे जी रही है, यह उसे बताने वाला कोई नहीं था. वह दूसरा विवाह कर चुका था और अब 1 बेटे का पिता भी बन चुका था. रंजना सब जानती थी, लेकिन विनोद के पैसे पर ही उसे मौज करनी थी, इसलिए वह गंभीर बनी रहती थी.
फिर उस के जीवन में आए डा. नीरज. वे चाइल्ड स्पैशलिस्ट थे. उन्होंने एक बार मिनी को तेज बुखार होने पर उस का इलाज किया था. वे भी रंजना के आकर्षण में बंधे एक दिन मिनी को देखने के बहाने उस के घर जा पहुंचे और फिर
2 साल रंजना और उन का प्रेमप्रसंग चला. वे तलाकशुदा थे. वे भी रंजना के साथ विवाह करना चाहते थे, पर रंजना उन के साथ शारीरिक रूप से तो जुड़ी लेकिन विवाह तो अब उसे करना नहीं था. अंत में रंजना के साफसाफ मना करने पर उन्होंने अन्यत्र विवाह कर लिया. अब रंजना की दोपहरें अमित के साथ बीत रही थीं.
अमित कालसैंटर में काम करता था. उस की अकसर नाइट शिफ्ट होती थी.
अमित से रंजना मिनी के स्कूल में मिली थी. वह मिनी की क्लास में पढ़ रहे सुधांशु का चाचा था. सुधांशु के मातापिता दोनों कामकाजी थे, इसलिए पीटीएम में अकसर अमित ही आता था. अमित से 2-4 मुलाकातें होने पर ही रंजना को वह अच्छा लगने लगा था. फिर उन की धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ती गई.
अब अमित के इंतजार में अतीत की स्मृतियों में डूबतेउतरते डोरबैल बजने पर ही उस की तंद्रा भंग हुई. अमित ने आते ही उसे बांहों में भर लिया.
रंजना ने अपनी मादक हंसी बिखेरते हुए कहा, ‘‘अरे, पहले फ्रैश तो हो जाओ, लंच तो कर लो.’’
‘‘सब बाद में,’’ कहते हुए अमित रंजना को गोद में उठा कर बैड पर ले गया. रंजना भी उस की बांहों में समाती चली गई. भावनाओं का ज्वार जब थमा तो दोनों काफी देर लेट कर हंसीमजाक करते रहे. फिर लंच करते हुए रंजना ने कहा, ‘‘आज मेरी किट्टी पार्टी है.’’
‘‘अच्छा, कब निकलोगी?’’
‘‘4 बजे.’’
‘‘ठीक है, मैं चलता हूं, तुम भी तैयारी करो,’’ अमित बोला.
‘‘कल से मिनी की गरमी की छुट्टियां हैं. हम फिलहाल नहीं मिलेंगे… स्कूल शुरू होने के बाद ही मिलेंगे.’’
‘‘एज यू विश, चलता हूं,’’ कहते हुए अमित ने रंजना के गाल पर किस किया.
रंजना ने तुरंत किचन समेटी, टाइम देखा.
3 बज चुके थे. ‘15 मिनट लेट कर तैयार होगी,’ सोच कर वह बैड पर लेट गई. लेटते ही कुछ पल पहले अमित के साथ बिताए पलों ने उसे फिर आंतरिक खुशी दी कि कितनी खुश है वह, क्या बढि़या जीवन जी रही है. अभी अपनी लेटैस्ट ड्रैस पहनेगी, लंबी रैड स्कर्ट के साथ ब्लैक टौप, साथ में मैचिंग ज्वैलरी. किट्टी पार्टी में सभी उस की डै्रसिंगसैंस की तारीफ करती नहीं थकतीं. उसे उन कुछ मूर्ख महिलाओं पर हंसी आती जिन की यह कानाफूसी उस के कानों में पड़ती कि हाय बेचारी, कितनी अकेली है, कैसे जीती होगी, अपना समय कैसे काटती होगी? इन फुसफुसाहटों पर उस का मन होता कि वह जोर से ठहाका लगाए, वह और बेचारी? बिलकुल नहीं, वह तो लाइफ ऐंजौय कर रही है. कहां जरूरत है उसे पति नामक प्राणी की? फिर वह मन ही मन हंस कर उठ कर तैयार होने लगी.
तैयार हो कर शीशे में देखा तो खुद पर इतरा उठी. फिर पर्स ले कर निशा के घर चल दी.
पार्टी आज उस के घर पर ही थी. उसे देखते ही सब वाहवाह कर उठीं. किट्टी पार्टी में लगभग 50 साल की 2-3 आंटियां भी थीं. सविता आंटी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर पूछा, ‘‘कैसी हो, बेटा?’’
‘‘एकदम ठीक,’’ कह कर रंजना औरों से मिलने लगी.
सविता अब मंजू आंटी से कह रही थी,
‘‘बेचारी किट्टी पार्टी में आ जाती है तो थोड़ा मन लग जाता होगा, हाय बेचारी.’’
अपने बारे में हमेशा होने वाली इस टिप्पणी
पर रंजना मन ही मन इन कुंठित सोच वाली महिलाओं पर तरस खाती थी. फिर रंजना ने पार्टी का पूरे मन से आनंद लिया. 5 बजते ही कई महिलाओं ने अपनाअपना पर्स संभाल कर कहा, ‘‘अब चलना पड़ेगा… अपना तो खानापीना हो गया, पति और बच्चों के लिए तो जा कर बनाना ही पड़ेगा.’’
एक ने कहा, ‘‘अरे, मुझे तो सासससुर के लिए चायनाश्ता बनाना है जा कर.’’
रंजना आराम से बैठी थी. मन ही मन सोच रही थी कि बेचारी तो ये हैं. वह कितने आराम से जी रही है, जीवन के 1-1 पल का भरपूर आनंद उठा रही है, और आगे भी उठाती रहेगी.
सब चली गईं. रंजना भी उठ खड़ी हुई तो निशा ने कहा, ‘‘तू बैठ न, तुझे क्या जल्दी है?’’
‘‘मिनी के आने का समय हो रहा है. आज उसे पिज्जा और आइसक्रीम खिलाने ले जाना है. सुबह ही कह कर गई थी,’’ कह कर निशा से विदा ले कर रंजना बस स्टैंड की ओर चल दी.
बस आई तो मिनी फुदकती हुई उस की तरफ बढ़ गई, बोली, ‘‘मौम, आज बाहर चलेंगे न?’’
‘‘बिलकुल, पहले चल कर कपड़े तो
बदल लो.’’
‘‘ठीक है मौम.’’
घर आ कर मिनी को याद आया, ‘‘अरे, आज आप की किट्टी पार्टी थी न? आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं, आप की फ्रैंड्स आप की नई डै्रस देख कर क्या बोलीं मौम?’’
‘‘वे बोलीं, हाय बेचारी,’’ कह कर रंजना ने जोर से ठहाका लगाते हुए बेटी को सीने से लगा लिया.