आधुनिक बीवी

story in hindi

ताईजी: क्या रिचा की परवरिश गलत थी

family story in hindi

ट्रस्ट एक कोशिश: क्या हुआ आलोक के साथ

family story in hindi

किसकी मां, किसका बाप: भाग 3- ससुराल में कैसे हुआ वरुण का स्वागत ?

निराशा से भरे कटु स्वर में वरुण ने कहा, ‘‘वह तो स्पष्ट है. चलो कोई बात नहीं. कुछ और पसंद कर लो.’’

निशा को वरुण की निराशा का एहसास हुआ था, पर मां के कानून से बंधी थी. सोच कर बोली, ‘‘कोई परफ्यूम ले लेती हूं. कपड़े तो बहुत हैं और फिर रोज कुछ न कुछ बन ही रहा है.’’

‘‘कौन सा लोगी?’’ वरुण ने कहा, ‘‘कल मैं ने टीवी पर एक नए परफ्यूम का विज्ञापन देखा था. नाम जोरदार था और जिन लड़कियों ने लगाया था उन के आसपास खड़े 6 से 60 वर्ष तक के जवान हवा में सूघंते हुए उड़ रहे थे.’’

‘‘सच?’’ निशा ने व्यग्ंयभरी हंसी से कहा, ‘‘बड़ा खतरनाक था तब तो. क्या नाम था?’’

‘‘अरब की लैला,’’ वरुण मुसकराया, ‘‘चलो देखते हैं. शायद मिल जाए.’’

एक बड़ी दुकान पर यह परफ्यूम मिल भी गया. पूरे 500 रुपए की शीशी थी. वरुण ने सोचा, कोई बात नहीं, 1,750 रुपए से तो कम की है. वरुण ने नमूने के तौर पर निशा की गरदन के थोड़ा नीचे एक फुहार डाली. बड़ी मतवाली सुगंध थी.

अंदर गहरी सांस खींचते हुए निशा ने कहा, ‘‘यहां नहीं, मजनुओं का जमघट लग जाएगा.’’

वरुण ने कटाक्ष किया, ‘‘मेरे सासससुर के सामने मत लगाना. तुम्हारे घर की छत जरा नीची है.’’

निशा ने कृत्रिम क्रोध से कहा, ‘‘जरा भी शर्म नहीं आती आप को. मांबाप का सम्मान करना चाहिए.’’

वरुण के दिल पर चोट लगी. अभी से इतना तीखा बोलती है तो आगे क्या होगा? एकाएक गंभीर हो गया और चुप भी. निशा ने महसूस किया पर उस की गलती क्या थी? यह बात भी मन में आई कि इस आदमी से अब तक 3-4 बार झगड़ा सा हो

चुका है. क्या जीवनभर ऐसे ही झगड़ता रहेगा? यों तो घर में भी मांबाप के बीच कुछ न कुछ तूतूमैंमैं होती रहती है, पर अपने जीवन में ऐसी कल्पना नहीं कर पा रही थी.

कुछ देर बाद वरुण ने ही मौन तोड़ा, ‘‘तुम गुफा में गई हो?’’

‘‘गुफा?’’ निशा ने आश्चर्य से उत्तर दिया, ‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं गई. अजंता, एलोरा जातेजाते रह गए हम लोग. भारी वर्षा के कारण पुणे से ही लौट आए. अब आप के साथ चलूंगी.’’

वरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे सामान्य ज्ञान पर बड़ा तरस आता है. यह देखो, ऊपर इतना बड़बड़ा क्या लिखा है?’’

निशा ने सिर उठा कर देखा. जिस रेस्तरां के सामने खड़ी थी उस का नाम था ‘गुफा’.

ये भी पढ़ें- हितैषी : क्या अधूरा वादा हो पाया पूरा

झेंपते हुए बोली, ‘‘होटलों में कहां जाते हैं हम लोग. मां को बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘मां…’’ वरुण के मुंह से कटु शब्द निकलने ही वाला था, पर तुरंत होंठ सी लिए.

निशा ने घूर कर देखा, पर वरुण दरवाजा खोल कर अंदर जा रहा था. जल्दी से पीछे हो ली. वेटर ने एक खाली मेज की तरफ इशारा किया. बैठते ही वेटर ने पानी के गिलास रखे और मैन्यू कार्ड सामने रख दिया. आदेश की प्रतीक्षा में खड़ा हो गया.

‘‘क्या लोगी?’’ वरुण ने पूछा.

‘‘जो आप चाहें,’’ निशा ने संकोच से मैन्यू कार्ड पर निगाह डालते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता.’’

व्यंग्य से वरुण ने कहा, ‘‘तुम्हारी शिक्षा अधूरी है. काफीकुछ सिखाना पड़ेगा. मां ने यही नहीं सिखाया.’’

कोई कड़वी बात न कह दे, इसलिए निशा ने होंठ दांतों से दबा लिया. इस पुरुष के साथ तो मस्ती का माहौल ही नहीं बनता. इतना पढ़ीलिखी है, पर उस की दृष्टि में बस गंवार ही है. वह भी तो बातबात में मांमां करती है.

मैन्यू कार्ड पर नजरें दौड़ाते हुए वरुण ने आश्चर्य से कहा, ‘‘अरे, यहां तो कढ़ी भी मिलती है.’’

‘‘कढ़ी?’’ निशा ने प्रश्न सा किया.

‘‘क्यों, नाम नहीं सुना कढ़ी का?’’ वरुण ने कहा, ‘‘मुझे बहुत अच्छी लगती है. तुम्हें बनानी आती है?’’

‘‘थोड़ाबहुत,’’ निशा के स्वर में अनिश्ंिचतता थी.

‘‘क्या मतलब?’’ वरुण ने कहा, ‘‘अरे, या तो बनाना आता है या नहीं.’’

निशा ने पूरी गंभीरता से कहा, ‘‘मां नहीं बनातीं. कहती हैं कि कढ़ी खाने से पेट में दर्द होता है. वैसे भी गरमी में तो बेसन की बनी कोई चीज नहीं खानी चाहिए. इसीलिए हमारे यहां कढ़ी नहीं बनती.’’

‘‘ऐसा सोचना है तुम्हारी मां का?’’ वरुण ने कटु व्यंग्य से पूछा, ‘‘और अगर मैं चाहूं कि कढ़ी बने तो क्या मां बनाएंगी?’’

‘‘पता नहीं,’’ निशा ने सरलता से सचाई सामने रख दी और कंधे हिला दिए.

‘‘मेरी पसंदीदा चीजों की सूची भी लंबी हो सकती है, जो मां को पसंद नहीं?’’ वरुण ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘मैं ने तो सुना है कि ससुराल में दामाद की बड़ी खातिर होती है?’’

वरुण ने जिद में आ कर कढ़ी तो मंगाई ही, साथ ही वह कुछ और भी मंगाया जिसे खाना शायद निशा को अच्छा नहीं लगा. निशा ने साथ तो दिया पर यह भी जाना कि खाने के मामलों में भी वे दोनों उत्तरदक्षिण की तरह थे.

‘‘और कुछ नहीं खाओगी?’’ वरुण ने पूछा, ‘‘तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं?’’

‘‘इतना ही खाती हूं,’’ निशा ने हंसने का असफल प्रयत्न किया, ‘‘शादी से पहले शरीर का ध्यान रखना है न.’’

‘‘और शादी के बाद?’’ वरुण ने कटुता से पूछा.

‘‘शादी के बाद बेफिक्री,’’ निशा मुसकराई.

‘‘यह भी तुम्हारी मां ने कहा होगा,’’ वरुण ने पूछा.

निशा की मुसकराहट गायब हो गई, ‘‘हर बात में आप मां को क्यों ले आते हैं?’’

‘‘मैं ले आता हूं?’’ वरुण ने कड़वाहट से कहा, ‘‘या तुम ले आती हो?’’

निशा ने वरुण के चेहरे को देखा और चुप हो गई.

घर के सामने निशा को छोड़ कर वरुण जैसे ही जाने लगा, निशा ने पूछा, ‘‘अंदर नहीं आएंगे? मां को बुरा लगेगा और मेरे ऊपर गुस्सा भी होंगी.’’

‘‘आज नहीं,’’ वरुण ने रूखेपन से कहा, ‘‘मेरी ओर से मां से क्षमा मांग लेना.’’

‘‘फिर कब आएंगे?’’

‘‘पता नहीं, पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’’ वरुण ने कहा और तेज कदम बढ़ाता हुआ आंखों से ओझल

हो गया.

‘पिताजी से पूछ कर बताऊंगा,’ निशा ने समझ लिया कि शादी के सिलसिले में मांबाप जितने महत्त्वपूर्ण होते हैं, उतने ही महत्त्वहीन भी होते हैं. क्या विडंबना है. अगले 10-12 दिनों तक कोई संपर्क न होने से निशा और परिवार वालों को चिंता होने लगी. होने वाले दामाद का शादी से पहले आनाजाना बना रहे तो सब निश्चिंत रहते हैं. बस, बेटी का जाना संदेह के दायरे में घिरा होता है. शादी होने तक मानसम्मान बना रहे, बाद में तो कोई बात नहीं. निशा के दिल में तो विशेषकर एक खटका सा लगा रहा. कहीं वरुण नाराज तो नहीं हो गया?

ये भी पढ़ें- साथी : अवधेश और आभा के मन में क्या था अंधेरा

अंत में चिंतामुक्त होने के लिए वरुण को दावतनामा भेज दिया. वरुण ने कई बहाने बेमन से बनाए, पर फिर राजी हो गया. आखिर उसे भी तो निशा से मिलने की उतनी ही बेकरारी थी.

दोपहर के भोजन के बाद वरुण ने निशा से घूमने चलने को कहा.

‘‘मां से पूछ कर आती हूं,’’ निशा ने मुड़ते हुए कहा.

‘‘और अगर मना कर दिया?’’

‘‘हो भी सकता है.’’

मां ने मुंह तो बनाया पर जल्दी लौट आने की चेतावनी भी दे दी. बोली तो अंदर थी, पर इस तरह कि वरुण के कान में पड़ जाए. वरुण के माथे पर लकीरें पड़ गईं.

काफी देर तक दोनों सड़क पर पैदल चलते रहे. कोई बातचीत नहीं, लगभग एक शीतयुद्ध सा.

निशा ने ही मौन तोड़ा, ‘‘इतने दिनों तक आए क्यों नहीं? सब को चिंता हो रही थी.’’

मानो इसी प्रश्न की प्रतीक्षा में था. वरुण ने शीघ्रता से उत्तर दिया, ‘‘पिताजी से पूछा नहीं था.’’

उत्तर का अभिप्राय समझते हुए भी निशा ने प्रश्न किया, ‘‘क्यों नहीं पूछा? इतना डरते हैं आप?’’

‘‘हां,’’ वरुण ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा, ‘‘और तुम्हें भी डरना पड़ेगा.’’

‘‘जिन से लोग डरते हैं,’’ निशा ने कहा, ‘‘उन का सम्मान भी नहीं करते.’’

‘‘ओह,’’ वरुण ने तीखेपन से कहा, ‘‘तो तुम मेरे पिताजी का सम्मान नहीं करोगी?’’

‘‘ऐसा तो मैं ने नहीं कहा.’’

‘‘बात एक ही है.’’

‘‘क्या हर बात का गलत अर्थ निकालना आप की आदत है?’’

‘‘अपनीअपनी समझ है,’’ वरुण ने आते आटोरिकशा को रोकते हुए कहा.

निशा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘जहां चलो,’’ वरुण ने हंस कर कहा, ‘‘वैसे तो चांद पर जाने की तमन्ना है.’’

‘‘सुना है चांद की सतह में बहुत गहरे खड्डे हैं,’’ निशा ने अर्थभरी मुसकान से कहा.

‘‘हां, हैं तो,’’ वरुण ने उत्तर दिया, ‘‘पर दिल्ली की सड़कों से कम.’’ और तभी एक गढ्डा सामने आने से आटोरिकशा उछल पड़ा और निशा वरुण के ऊपर जा गिरी. जब गति सामान्य हुई तो निशा ने अपने को संभाला, और फिर हंस पड़ी, ‘‘क्या गढ्डा है.’’

‘‘हां,’’ वरुण भी मुसकराया, ‘‘गढ्डे भी कभीकभी एकदूसरे को मिला देते हैं.’’

‘‘विशेषकर,’’ निशा ने अर्थपूर्ण मुसकराहट से कहा, ‘‘तब जबकि ये गढ्डे मांबाप ने न खोदे हों.’’

मीठे व्यंग्य से वरुण ने पूछा, ‘‘इतनी अच्छी शिक्षा तुम्हें किस ने दी?’’

‘‘मां ने,’’ निशा ने तत्परता से कहा और पूछा, ‘‘आप को गढ्डे में गिरने के बारे किस ने बताया?’’

‘‘पिताजी ने,’’ वरुण ने उसी तत्परता से उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि शादी एक गढ्डा है.’’

फिर एकदूसरे को देख कर दोनों खुल कर हंसने लगे.

सुना है कि इस के बाद दोनों ने कभी भी अपनेअपने मांबाप की चर्चा नहीं की और सारा जीवन हंसी खुशी से बिताया.

ये भी पढ़ें- अंतत: क्या भाई के जुल्मों का जवाब दे पाई माधवी

किसकी मां, किसका बाप: ससुराल में कैसे हुआ वरुण का स्वागत ?

family story in hindi

सिद्धार्थ की वापसी – भाग 3 : सुमित और तृप्ति शादी के बाद भी खुश क्यों नहीं थें

तभी मां उस के पास बैठ बोली थीं. ‘कहो, मां.’ ‘ऐसे कब तब चलेगा? न किसी से कुछ कहतीसुनती हो, न हंसतीबोलती हो. तुम्हारे पिताजी जहां भी विवाह की बात चलाते हैं, तुम कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती हो. लगता है, तुम्हारे मन को तो सुमित के अलावा कोई भाता ही नहीं.’ ‘उस का नाम मत लो, मां. उस ने मुझे धोखा दिया है,’ तृप्ति क्रोधित स्वर में बोली थी. ‘नहीं बेटी, धोखा तो तब होता जब वह बिना कुछ बताए तुम से विवाह कर लेता. सच पूछो तो मैं उस की साफगोई से बहुत प्रभावित हूं. उस में संबंधों की नाजुक डोर को संभालने की क्षमता है. जरा सोचो, जो व्यक्ति अपने नन्हे से बच्चे से इस तरह जुड़ा है,

भविष्य में तुम्हें किस तरह रखेगा. मेरा मतलब है यदि तुम उस से विवाह करने का निर्णय लो तो…’ तृप्ति की मां ने बात आगे बढ़ाई थी. आखिरकार, तृप्ति को कुछ समझ आया था, सो उस ने मां से हां कह दी थी. तृप्ति ने तो केवल स्वीकृति दी थी, बाकी बातचीत तो उस के पिता और बड़े भाई ने की थी. वे तो उझानी जा कर सुमित के मातापिता और सिद्धार्थ से भी मिल आए थे. इस तरह वह सुमित की पत्नी बन कर उस के घर में आ गई थी. अब तो स्वयं उस का 4 वर्ष का बेटा मयूर था. सिद्धार्थ की बात इन 7 वर्षों में न उस ने की, न सुमित ने उठाई, फिर अचानक उस का सिद्धार्थ को ले कर इस तरह बेचैन हो उठना? तृप्ति की समझ में कुछ नहीं आया था. इतने वर्षों से तो वह दादादादी के साथ आराम से रह रहा था, फिर अब अचानक क्या हो गया? तभी द्वार पर आहट हुई थी और तृप्ति ने मुड़ कर देखा था.

द्वार खोला तो बाहर सुमित का चचेरा भाई रघु खड़ा था. ‘‘अरे रघु भैया, आप? आइए न, अंदर आइए,’’ तृप्ति ने स्वागत करते हुए कहा. ‘‘अब आओ न, द्वार के पीछे छिपे क्यों खड़े हो बेटे? कोई कुछ नहीं कहेगा,’’ कहते हुए रघु ने किसी को पुकारा. ‘‘कौन है वहां?’’ तृप्ति ने पूछा. ‘‘अपना सिद्धू है, भाभी. उझानी में किसी की नहीं सुनता है, दिनभर बाहर खेलता रहता है. पिछली बार ताऊजी ने सुमित भैया से भी कहा था कि अब उन से नहीं संभलता, पालपोस कर बड़ा कर दिया, अब तो आप लोग संभाल लीजिए. बेचारा, बिना मां का बच्चा है. गुस्सा भी आए तो इस पर हाथ नहीं उठता,’’ रघु उसे ले कर अंदर आते हुए कह रहा था. खापी कर रघु चला गया था. पर सिद्धार्थ भौचक्का सा घर की हर वस्तु को छू कर देख रहा था. सुमित पास की दुकान से मयूर को साथ ले कर कुछ खरीदने गया था.

पता नहीं, कहां रह गया. तृप्ति सोच ही रही थी कि मयूर के गुनगुनाने के दूर से आते स्वर से ही उस ने सुमित के कदमों की आहट पहचान ली थी. ‘‘अरे, सिद्धू,’’ सिद्धार्थ पर नजर पड़ते ही सुमित चौंक गया था. वह फिर बोला, ‘‘यह यहां कैसे आया?’’ ‘‘रघु आया था छोड़ने,’’ तृप्ति बोली थी. ‘‘कुछ दिन इसे यहीं रहने दो. मैं इस के लिए कुछ और प्रबंध करने का प्रयत्न कर रहा हूं. मेरे मित्र सुंदर बाबू इसे गोद लेने को भी तैयार हैं, पर मेरा ही मन नहीं माना,’’ सुमित ने मानो सफाई दी थी. ‘‘अब और शर्मिंदा मत करो, सुमित. तुम्हारी पत्नी हूं. तुम्हारा दुख तो मुझे बहुत पहले ही समझ लेना चाहिए था, पर अब तो मुझे भूल सुधारने का अवसर दो. अब सिद्धार्थ यहीं रहेगा. आज जब रघु ने उसे बिना मां का बच्चा कहा तो मेरा मन भर आया,’’ तृप्ति ने कहा तो सुमित छोटे बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगा. सुमित को सांत्वना देते हुए पहली बार तृप्ति को लगा कि उन के बीच की अनकही दूरी सदा के लिए खत्म हो गई है. अब सुमित सही अर्थों में उस का हो गया है.

अंधविश्वास से आत्मविश्वास तक: क्या नरेन के मन का अंधविश्वास दूर हो पाया

story in hindi

दिल्लगी बन गई दिल की लगी: क्यों शर्मिंदा थी साफिया

family story in hindi

समाधान: भाग 1- अनुज और अरुण ने क्या निकाला अंजलि की तानाशाही का हल

लगातार बढ़ते जा रहे क्लेश ने मेरी भतीजी अंजलि की तबीयत और ज्यादा खराब कर दी. जुकाम- बुखार से पैदा हुआ सिरदर्द रोने के कारण इतना बढ़ा कि सिर फटने लगा.

‘‘बूआ, यह अरुण अगर घर छोड़ कर चला जाएगा तो मैं मर नहीं जाऊंगी,’’ अंजलि अपने भाई के बारे में बोलते हुए सुबक रही थी, ‘‘पिताजी और मां के मरने का सदमा सहा है मैं ने. दोनों छोटे भाइयों को काबिल बना कर इज्जत की जिंदगी देने के लिए मैं ने अपना घर नहीं बसाया…आज अरुण घर छोड़ कर जाने को तैयार है…कितना अच्छा फल मिल रहा है मुझे अपने त्याग और बलिदान का.’’

‘‘तू इतनी परेशान मत हो अंजलि, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने उसे दिलासा देते हुए बारबार समझाया, पर उस का रोना नहीं थमा.

ये भी पढ़ें- झूठ बोले कौआ काटे: क्या रितु को बचा पाया प्रेम नेगी ?

मेरा बड़ा भतीजा अरुण अपने कमरे में अपनी पत्नी सीमा से ऊंची आवाज में झगड़ रहा था. आमतौर पर अरुण से डरनेदबने वाली सीमा उस दिन जबरदस्त विद्रोही मूड में उस से खूब लड़ रही थी.

‘‘मैं नहीं रहूंगी…नहीं रहूंगी…अब इस  घर में, मैं बिलकुल भी नहीं रहूंगी,’’ सीमा की गुस्से से भरी आवाज हम साफ सुन सकते थे, ‘‘रातदिन की रोकटोक अब मुझ से नहीं सही जाती है. आप की बहन जानबूझ कर मुझे दुखी और परेशान करती हैं…हमें नहीं चाहिए उन की सहायता, उन का पैसा. मैं और मेरा बच्चा एक वक्त की  रोटी खाएंगे, पर मैं अब सुखचैन से अलग घर में ही रहूंगी.’’

जिस बात को ले कर घर का माहौल इतना खराब हो गया था, वह बहुत छोटी सी थी.

सीमा सुबह अपनी बड़ी बहन से मिलने जाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी थी, लेकिन अंजलि ने अपनी खराब तबीयत को कारण बना उसे जाने से रोक दिया.

सीमा की प्रतिक्रिया अप्रत्याशित रूप से तेज रही. वह बुरी तरह पहले अंजलि से उलझी फिर अरुण से. उस का देवर अनुज, देवरानी प्रिया और मैं उसे समझा कर शांत करने में पूरी तरह असफल रहे थे.

घटनाचक्र ने खतरनाक मोड़ तब लिया जब अरुण ने गुस्से में आ कर सीमा के गाल पर 2 थप्पड़ मार दिए.

सीमा ने एकदम खामोश हो कर अपना और अपने बेटे समीर का जरूरी सामान एक सूटकेस में भरना शुरू कर दिया. वह घर छोड़ कर मायके जाने की तैयारी कर रही थी.

प्रिया की पूरी सहानुभूति अपनी जेठानी के साथ है, यह उस के हावभाव से साफ पता चल रहा था. उस का फूला मुंह उस के खराब मूड की निशानी था.

अनुज भावुक स्वभाव का है. वह अपनी दीदी की बेहद इज्जत करता है. उसे मैं ने ऊंची आवाज में अंजलि से बातें करते कभी नहीं सुना.

प्रिया और अनुज का प्रेम विवाह हुआ था. प्रिया अच्छी पगार पाती है. बाहर घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने में उस का मन बहुत लगता है. मेरा यह मानना है कि अगर अनुज अपनी बहन के साथ इतनी ज्यादा मजबूती से न जुड़ा होता तो प्रिया अब तक जरूर घर से अलग हो गई होती.

प्रिया की तुलना में सब सीमा को ज्यादा सीधा और सरल मानते थे पर आज वही घर छोड़ कर मायके जाने की तैयारी कर रही थी.

अरुण नाराजगी भरे अंदाज में सीमा को सूटकेस में सामान भरते देखता रहा. जब सीमा सूटकेस बंद करने को तैयार हुई, तब वह झटके से उठा और सूटकेस उठा कर उलटा कर दिया.

सारा सामान पलंग पर फैला देख सीमा पहले जोर से रोई और फिर बाहर के दरवाजे की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.

उस के पीछे पहले अरुण घर से बाहर गया, करीब 5 मिनट बाद अनुज और प्रिया भी समीर को ले कर उन्हें ढूंढ़ने के लिए घर से बाहर चले गए.

मैं बाहर का दरवाजा बंद कर के अंजलि के कमरे में लौटी, तो उसे बेहद उदास और दुखी पाया.

‘‘बूआ, क्या मैं इतनी बुरी हूं कि इस घर का हर सदस्य मुझे नफरत की नजरों से देखने लगा है?’’ अंजलि के इस सवाल के जवाब में मैं ने उसे छाती से लगा लिया तो वह सुबकने लगी थी.

ये भी पढ़ें- दूसरा भगवान : डाक्टर रंजन पर कौनसी आई मुसीबत

मेरे बड़े भैया करीब 10 साल पहले हमें छोड़ गए थे और भाभी उन से 3 साल बाद. भैया ने सदा के लिए आंखें मूंदने से पहले अपनी बेटी अंजलि पर परिवार की देखभाल की सारी जिम्मेदारी डाल दी थी.

अंजलि ने अपने पापा को दिए गए वादे को जरूरत से ज्यादा गंभीरता के साथ निभाया था. उस ने अपना ही नहीं अपने भाइयों का कैरियर भी अच्छा बनाया. जो रुपए उस की शादी के लिए मातापिता ने जोड़े थे, उन से अनुज को इंजीनियर बनाया. उस के लिए रिश्ते आते रहते थे पर वह शादी से इनकार करती रही.

अपने से पहले अंजलि ने अरुण की शादी की. घर में जल्दी बहू ला कर वह अपनी मां को सुख और आराम देना चाहती थी.

अनुज ने अभी 2 साल पहले प्रिया से प्रेम विवाह कर लिया था. उस वक्त तक अंजलि 30 साल की हो चुकी थी. वह तब तक कभी शादी न करने का मन पूरी तरह बना चुकी थी.

मेरी समझ से उस की शादी न होने के अलगअलग समय पर अलगअलग कारण रहे.

जब तक वह 26-27 की हुई, तब तक अपने दिवंगत पिता को दिए गए वचन के चलते उस ने शादी करने से इनकार किया था.

इस उम्र के बाद लड़कियों के लिए उचित रिश्ते आने कम हो जाते हैं. बाद में वह अनुज को इंजीनियर बनाने व अरुण की शादी की जिम्मेदारियों के चक्कर में फंस कर अपनी शादी टालती गई.

शादी की सही उम्र निकलती जा रही है, इस बात का एहसास किस सामान्य लड़की को नहीं होगा? अंजलि भी जरूर मन ही मन परेशान व चिंतित रही होगी. तभी उस के चेहरे का नूर कम होने लगा. कैरियर बेहतर हो रहा था, पर विवाह के बाजार में उस की कीमत कम होती गई.

अनुज का इंजीनियर बनते ही अपने एक सहपाठी की छोटी बहन प्रिया से प्रेम विवाह कर लेना अंजलि को सदमा पहुंचा गया. इस शादी के बाद उस ने कभी शादी न करने की बात सब के सामने कुछ शिकायती अंदाज में खुल कर कहनी शुरू कर दी थी, ‘‘बूआ, मेरे दोनों भाइयों के घर बस गए हैं, यह मेरे लिए बडे़ संतोष की बात है. इन के परिवार ही अब मेरे अपने हैं. इन सब के साथ मैं आराम से जिंदगी गुजार लूंगी,’’ अंजलि के ऐसे मनोभावों को मैं कभी बदल नहीं पाई थी.

ये भी पढ़ें- डायन : केशव ने कैसे की गेंदा की मदद

अनुज की शादी के बाद पहले से चली आ रही एक समस्या ने ज्यादा विस्फोटक रूप हासिल कर लिया था. समस्या पैदा हुई थी अंजलि के स्वभाव को ले कर. वह दोनों भाइयों से बड़ी थी. जिम्मेदारियों का बड़ा सा बोझ वह अपने कंधों पर सालों से ढो रही थी. दोनों भाई उसे पूरा मानसम्मान देते थे. उस के कहे को कभी नहीं टालते थे.

आगे पढ़ें- अपने दिवंगत भैयाभाभी के परिवार को…

समाधान: अनुज और अरुण ने क्या निकाला अंजलि की तानाशाही का हल

family story in hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें