आप एटीएम से कर सकती हैं ये 10 काम

आम तौर पर लोग एटीएम (एटीएम मशीन) का इस्तेमाल केवल पैसा निकालने के लिए करते हैं. इसके अन्य सुविधाओं के बारे में लोगों को जानकारी नहीं होती. हम आपको बताएंगे कि कैश निकालने के अलावा एटीएम और कौन से 10 काम कर सकता है. आइए जानते हैं एटीएम की अन्य सुविधाओं के बारे में.

करें बिल की पेमेंट

आजकल लगभग सभी एटीएम मशीनों में ये सुविधा मौजूद है. इससे कई तरह के बिल, जैसे इलेक्ट्रिसिटी, डीटीएच और गैस बिल, एटीएम मशीन में मौजूद पे यूटिलिटी बिल्स विकल्प पर क्लिक करके कर सकती हैं.

करें मोबाइल रिचार्ज

अपने मोबाइल फोन को रिचार्ज करें एटीएम से. जी हां, प्री-पेड फोन का रिचार्ज अब एटीएम से संभव है. इसके लिए आपको मशीन में मौजूद रिचार्ज मोबाइल ऑप्शन को सिलेक्ट करके ज़रूरी निर्देशों का पालन करना होगा.

करें क्रेडिट कार्ड का पेमेंट

अपने क्रेडिट कार्ड बिल का पेमेंट करने के लिए आप एटीएम का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसके लिए आपको अपने डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करना होगा. इसकी बकायदा आपको रसीद दी जाएगी. इसके लिए जरूरी है कि आपका डेबिट और क्रेडिट कार्ड एक ही बैंक का हो.

पिन बदलना

एटीएम से आप अपने कार्ड का पिन जेनरेट करने के अलावा बदल भी सकती हैं.

मिनी स्टेटमेंट

एटीएम से आप अपने अकाउंट ट्रांजेक्शन्स की जानकारी ले सकती हैं. इसे मिनी स्टेटमेंट कहते हैं. इसके लिए आपको बैंक जाने की जरूरत नहीं है.

पता करें अकाउंट बैलेंस

अपके खाते में कितना पैसा है इसकी जानकारी आप एटीएम से ले सकती हैं.

करें फंड ट्रांसफर

एक बैंक से दूसरे बैंक में पैसा भेजन की सुविधा एटीएम पर मिलती है. आपको बता दें कि एक बार में 15 हज़ार और एक दिन में आप 30 हजार तक ट्रांसफर कर सकती हैं.

करें कैश डिपौजिट

आजकल कई एटीएम में कैश डिपौजिट की सुविधा मिलती है. वहां से आप पैसे जमा कर सकती हैं.

फिक्ड डिपौजिट अकाउंट खोलें

बचत के लिए फिक्स्ड डिपौजिट एक बेहतर विकल्प है. इसके लिए किसी तरह के फौर्म को भरने की जरूरत नहीं है. एटीएम के ज़रिए भी आप यह कर सकती हैं. कुछ बैंक 10 हज़ार से लेकर 50 हजार तक के फिक्स्ड डिपौजिट एटीएम से करने की सुविधा देते हैं.

करें चेक बुक रिक्वेस्ट

अगर आपकी चेकबुक खत्म हो जाए और आप उसे दोबारा प्रिंट करवाना चाहती हैं तो एटीएम पर आपको ये सुविधा मिलेगी. एटीएम से रिक्वेस्ट भेजें और आपकी चेक बुक आपके घर पहुंच जाएगी.

फिल्म रिव्यू : रिस्कनामा

रेटिंग : दो स्टार

गांव के पुरुष के अत्याचार से अकाल मृत्यु प्राप्त लड़की भूतनी बनकर किस तरह पूरे गांव के मर्दों से बदला लेती है, उसी की कहानी है फिल्म ‘‘रिस्कनामा’’. पर पूरे परिवार के साथ देखने योग्य नही है.

फिल्म की कहानी राजस्थान के एक गांव की है, जहां के सरपंच शेरसिंह गुर्जर (सचिन गुर्जर) का हुकुम ही सर्वोपरी है. कोई भी इंसान उनके खिलाफ जाने की जुर्रत नही करता. पंचायत के सभी सदस्य शेरसिंह की ही बात का समर्थन करते हैं. शेरसिंह का दावा है कि वह हर काम देश व समाज की संस्कृति को बचाने व गांव की भलाई के लिए ही करते हैं. शेरसिंह के गांव में प्यार करना अपराध है. जो युवक व युवती प्यार करते हुए पकड़े जाते हैं, उन दोनों को शेरसिंह मौत की नींद सुला देता है. गांव के काका (प्रमोद माउथो) की लड़की दामिनी जब एक लड़के राजू के प्यार में पड़कर गांव से बाहर जा रही होती है, तो काका पंचायत पहुंचते हैं, जहां प्रेम की सजा मौत सुनाई जाती है. सरपंच शेरसिंह का मानना है कि दामिनी अपनी मनमर्जी से राजू के साथ गयी है. दोनो को ढूंढकर मौत की सजा दी जाए. गांव के लोग दामिनी व राजू को ढूंढकर लाते हैं, और दोनों को मौत की नींद सुला दिया जाता है. पर दामिनी भूतनी बनकर एक पेड़ पर रहने लगती है. उसके बाद आए दिन किसी न किसी गांव के युवक का शव गांव के उसी पेड़ पर लटकते हुए मिलता है, जिस पर दामिनी के भूत ने कब्जा जमा रखा है.

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सरपंच शेरसिंह जितने नेक दिल इंसान हैं, उनका भाई वीर सिंह (सचिन गुर्जर) उतना ही बदचलन है. हर दिन गांव की किसी न किसी लड़की की इज्जत लूटना उसका पेशा सा बन गया है. दिन भर शराब में डूबा रहता है या जुआ खेलता है. मगर शेरसिंह कि ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है. पड़ोसी गांव के चौधरी (शहबाज खान) अपनी बेटी मोहिनी (अनुपमा) की शादी शेरसिंह के भाई वीर सिंह से करने का प्रस्ताव यह सोचकर रखते हैं कि शेरसिंह की ही तरह वीर सिंह भी अच्छा आदमी होगा. शादी के बाद पहली रात ही मोहिनी को पता चल जाता है कि उसकी शादी गलत इंसान से हुई है. वीर सिंह हर दिन रात में शराब पीकर किसी तरह कमरे में पहुंचता है. कुछ दिन बाद चौधरी अपनी बेटी मोहिनी को बिदा कराने आते हैं. जब वह मोहिनी को बिदा कराकर जा रहे होते हैं, तो कुछ पलों के लिए उसकी गाड़ी उसी पेड़ के नीचे रूकती है और दामिनी का भूत मोहिनी में समा जाता है. घर पहुंचने पर मोहिनी बीमार हो जाती है. बेसुध रहती है. डाक्टरों को बीमारी की वजह समझ नही आती. डाक्टर कहते हैं कि यह किसी सदमे में है. इसे खुश रखने की कोशिश की जाए. समय गुजरता है. पर वीर सिंह अपनी पत्नी मोहिनी को बिदा कराने नही जाता. तब शेरसिंह की पत्नी सरला (कल्पना अग्रवाल), शेरसिंह को घर की इज्जत बचाने के लिए मोहिनी को बिदा कराने भेजती है. पर चौधरी गांव की पंचायत बुलाकर शेरसिह पर आरोप लगाते हुए मोहिनी को भेजने से मना कर देते हैं.

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शेरसिंह अपनी गलती कबूल करते हुए कहते हैं कि वह एक बार मोहिनी से मिलना चाहेंगे. शेरसिंह, मोहिनी से मिलने घर के अंदर जाता है. मोहिनी इस शर्त पर जाने के लिए राजी होती हैं कि वह उसके साथ पत्नी जैसा व्यवहार करेंगे. क्योंकि उसके पिता ने उसकी शादी उन्ही को देखकर की थी ना कि वीरसिंह को. अपने गांव व घर में अपनी इज्जत बचाने के लिए शर्त मान लेते हैं. मोहिनी बिदा होकर आ जाती है. अब मोहिनी हर रात शराब में डूबे वीरसिंह को कमरे से बाहर कर शेरसिंह के साथ रात गुजारती है. एक दिन रात में मोहिनी के कमरे से शेरसिंह को निकलते हुए शेरसिंह की बहन ज्योति देख लेती है. शेरसिंह कहता है कि वह मोहिनी को समझाने गया था. फिर ज्योति की सलाह पर शेरसिंह, वीर व मोहिनी को पिकनिक मनाने भेजते हैं. जहां वीर सिंह सुधर जाता है. फिर कहानी तेजी से बदलती है. फिर हालात ऐसे बनते हैं कि वीरसिंह, शेरसिंह और मोहिनी को रंगेहाथों पकड़ता है. वीरसिंह के हाथों गोली चलती है. शेरसिंह व मोहिनी मारे जाते हैं, पर फिर मोहिनी खड़ी हो जाती है, पता चलता है कि उसके अंदर तो दामिनी का भूत है, जिसने बदला लेने के लिए  शेरसिंह से यह सब करवाया. अंततः वीरसिंह भी मारा जाता है और सरला को गांव का सरपंच बना दिया जाता है.

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बदला लेने की कहानी ‘‘रिस्कनामा’’ एक बोझिल फिल्म है. इसमें मनोरंजन का घोर अभाव है. फिल्म में गंदी गालियों की भरमार है, जिसके चलते पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्म नहीं देखी जा सकती. जबकि इस विषय पर यह बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. मगर अपरिपक्व लेखन व निर्देशन के चलते फिल्म एकदम सतही बनकर रह गयी. कई जगह लगता है कि पटकथा लिखते समय लेखक खुद स्पष्ट नही रहें कि उन्हें अपनी फिल्म को वास्तव में किस दिशा की तरफ ले जाना है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म में एक भी कलाकार अपने किरदार के साथ न्याय करने में पूर्णतः सफल नही है. दोहरी भूमिका में सचिन गुर्जर है, मगर शेरसिंह के किरदार में वह कुछ हद तक सफल रहे हैं, पर वीर सिंह के किरदार में वह बेवजह लाउड हो गए हैं. अनुपमा तो सुंदर लगी हैं. कल्पना अग्रवाल ठीक ठाक हैं. प्रमोद माउथो एक गरीब व मजबूर गांव वाले के छोटे किरदार में अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

लगभग पौने दो घंटे की फिल्म ‘रिस्कनामा’ का निर्माण अर्जुन सिंह ने किया है. फिल्म के निर्देशक गुर्जर अर्जन नागर हैं.

फिल्म रिव्यू : फोटोग्राफ

रेटिंग: डेढ़ स्टार

‘‘लंच बाक्स’’ जैसी सफल फिल्म के सर्जक रितेश बत्रा इस बार रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ लेकर आए हैं.  जिसे देखने के बाद रितेश बत्रा पर ‘‘वन फिल्म वंडर’’ की ही कहावत सटीक बैठती है. इस रोमांटिक कौमेडी फिल्म में प्यार की भावनाएं तो कहीं उभरती ही नही है.

फिल्म की कहानी मुंबई की है. मुंबई के गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आए लोगों के फोटो तुरंत खींचकर देकर कुछ फोटोग्राफर अपनी जीविका चलाते हैं. उन्हीं में से एक है मो.रफीक (नवाजुद्दीन सिद्दीकी). रफीक के माता पिता बचपन में ही खत्म हो गए थे. उनकी दादी ने उसे व उसकी दो बहनों को पाल पोसकर बड़ा किया. रफीक ने अपनी दोनों बहनों की शादी अच्छे ढंग से की. पर अब तक उनकी शादी नहीं हुई है. उसकी दादी चाहती हैं कि रफीक जल्द से जल्द शादी कर ले. दादी उसके पीछे पड़ी हुई हैं पर रफीक को कोई लड़की नहीं मिली. एक दिन वह गेटवे आफ इंडिया पर घूमने आयी गुजराती परिवार की लड़की मिलोनी (सान्या मल्होत्रा) की तस्वीर खींचता है. और यूं ही उसकी तस्वीर अपनी दादी (जफर) के पास भेज देता है कि वह चिंता न करें उसे एक अच्छी लड़की मिल गयी है. दादी को वह उसका नाम नूरी बता देता है क्योंकि उसने मिलोनी से नाम पूछा ही नहीं था. अब दादी का पत्र आ जाता है कि वह मुंबई नूरी से मिलने के लिए आ रही हैं तो रफीक परेशान हो जाता है. पर जल्द ही रफीक व मिलोनी की मुलाकात हो जाती है. रफीक,मिलोनी से निवेदन करता है कि वह उसकी दादी के मुंबई आने पर उनकी प्रेमिका बनकर मिल ले और वह बता देता है कि उसने दादी को उसका नाम नूरी बताया है. मिलोनी अमीर गुजराती परिवार की लड़की है, जो कि सी ए की तैयारी कर रही है. जब दादी मुंबई पहुंचती हैं तो रफीक मिलोनी को नूरी कहकर अपनी दादी से मिलवाता है. उसके बाद मिलोनी व रफी की मुलाकातें बढ़ती हैं. दोनों एक दूसरे के साथ एडजस्ट करने के लिए खुद को बदलने पर विचार करना शुरू करते हैं. पर एक दिन दादी रफीक से कह देती हैं कि उन्हे पता चल गया है कि नूरी का नाम कुछ और है और वह मुस्लिम नही है. उसके बाद रफीक, मिलोनी को लेकर फिल्म देखने जाता है. मिलोनी बीच में ही फिल्म छोडकर बाहर बैठ जाती है. रफीक भी उसके पीछे आता है और फिल्म की आगे की कहानी बताते हुए कहता है कि लड़की व लड़के के माता पिता को इनके प्यार पर एतराज होगा. और फिर दोनो चल पड़ते हैं.

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पटकथा लेखन व कथा कथन की कमजोरी के चलते दस मिनट बाद ही दर्शक सोचने लगते हैं कि यह फिल्म कब खत्म होगी. फिल्म का अंत होने से पहले ही दर्शक कह उठता है कि ‘‘कहां फंसायो नाथ.’’ फिल्म बहुत ही धीमी गति से सरकती रहती है. इतना ही नहीं लेखक व निर्देशक ने बेवजह कोचिंग क्लास के अंदर का लंबा दृश्य, फिर कोचिंग क्लास के शिक्षक की सड़क पर मिलोनी से मुलाकात, अपने माता पिता के कहने पर एक गुजराती लड़के से होटल मे मिलोनी की मुलाकात के दृश्य गढ़कर कहानी को भटकाने का ही काम किया है. यह गैरजरुरी दृश्य कहानी में पैबंद लगाने का ही काम करते हैं. बतौर निर्देशक व लेखक रितेश बत्रा की यह सबसे कमजोर फिल्म कही जाएगी. एडीटिंग टेबल पर भी इस फिल्म को कसने की जरूरत थी. यह रोमांटिक कौमेडी फिल्म है पर दर्शक को एक बार भी हंसी नही आती. इतना ही नहीं मिलोनी या रफीक के चेहरे पर एक बार भी प्रेम की भावनाएं नजर नहीं आती.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो नवाजुद्दीन सिद्दीकी और सान्या मल्होत्रा दोनों ने ही निराश किया है. दादी के किरदार में फारुख जफर जरूर कुछ छाप छोड़ती हैं.

एक घंटा 51 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फोटोग्राफ’’ का निर्माण रितेश बत्रा, रौनी स्क्रूवाला, नील कोप, विंसेट सेनियो ने किया है. निर्देशक रितेश बत्रा, संगीतकार पीटर रैबुम, कैमरामैन टिम गिलिस व बेन कुचिन्स तथा कलाकार हैं- नवाजुद्दीन सिद्दिकी, सान्या मल्होत्रा, फारूख जफर, विजय राज, जिम सर्भ, आकाश सिन्हा, ब्रिंदा त्रिवेदी नायक, गीतांजली कुलकर्णी, सहर्ष कुमार शुक्ला व अन्य.

बिना पिन डाले करें पेमेंट, जानिए इस नई तकनीक को

एटीएम कार्डों की तकनीक में 1 जनवरी से एक बड़ा बदलाव हुआ है. अब बैंक कौंटेक्टलेस एटीएम कार्ड भी जारी करेंगे. इन कार्ड्स की खासियत है कि इनसे पेमेंट करने के लिए पीओएस पर आपको पिन डालने की जरूरत नहीं है. बस पीओएस पर कार्ड को टच करने की जरूरत है और आपका पेमेंट हो जाएगा. आपको बता दें कि इस तकनीक से आप

2000 रुपये तक का पेमेंट कर सकती हैं. इससे ज्यादा का भुगतान करने के लिए पिन डालने की जरूरत होगा.जानकारों की माने तो सुरक्षा के मामले में ये बेहद कमजोर है. अगर आपका कार्ड खो जाता है तो बिना पिन जाने कोई भी आपके कार्ड से खरीदारी कर भुगतान कर सकता है. एक्सपर्ट्स की माने तो इस दिशा में लोगों को और अधिक जागरुक करने की जरूरत है.  ग्राहकों को भी इस कार्ड का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए. आपको बता दें कि इस  मामले में मौजूदा कानून पर्याप्त नहीं हैं.

कार्ड चोरी होने या गिरने की स्थिति में ग्राहक को साबित करने में परेशानी होगी कि कौंटेक्टलेस फीचर का इस्तेमाल कर उसने पेमेंट नहीं किया है.एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में होने वाले कुल वित्तीय लेन-देन में 60% दो हजार रुपए से कम का होता है. इसे आसान बनाने के लिए कौंटेक्टलेस कार्ड का आइडिया इस्तेमाल किया जा रहा है.

आपको बता दें कि वीजा ने देश में पहली बार 2015 में कौंटेक्टलेस कार्ड जारी किए थे. तब से अब तक यह 2 करोड़ से ज्यादा ऐसे कार्ड जारी कर चुका है. विभिन्न बैंकों की बिना पिन/ओटीपी के ट्रांजैक्शन सीमा की बात की जाए तो एसबीआई, एक्सिस और यूनियन बैंक ने एक दिन में अधिकतम 5 कौंटेक्टलेस ट्रांजैक्शन की सीमा तय कर रखी है. कई बैंकों ने कौंटेक्टलेस तकनीक से एक दिन में 10,000 रुपये का प्रावधान किया है.

पंडों की सरकार जनता है बेहाल

अपने गब्बर सिंह टैक्स को सही साबित करने के लिए सरकार ने हाल ही में एक सर्वे करा कर कहा है कि जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) के कारण एक औसत घर को क्व 8,400 सालाना की बचत हुई है. सरकार का कहना है कि पहले फैक्ट्री के गेट पर ऐक्साइज टैक्स लगता था, फिर रास्ते में औक्ट्रौय लगता था और आखिर में कई बार वैट यानी सेल्स टैक्स लगता था. जीएसटी में सब टैक्स हट गए हैं और सिर्फ एक टैक्स रह गया है.

सरकार यह नहीं बताती कि जीएसटी आखिरी दाम पर लगता है जिस में बिचौलियों का मुनाफा शामिल है, जिस का मतलब है कि मुनाफे पर भी टैक्स अब उपभोक्ता दे रहा है. यही नहीं, सरकार यह भी नहीं बता रही कि पहले टैक्स देना आसान था और उस के लिए कंप्यूटर ऐक्सपर्ट को दफ्तरों या दुकानों में बैठना जरूरी नहीं था.

सरकार की आंकड़ेबाजी तो पूर्व सीएजी विनोद राय की तरह की है, जिन्होंने 2014 से पहले कोल, टैलीकौम व कौमनवैल्थ स्कैमों में लाखोंकरोड़ों का घपला दिखा दिया था. अब भारतीय जनता पार्टी के सांसद बने विनोद राय ने आज तक नहीं बताया कि नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली उस महान राशि में से कितना पिछले 5 साल में वसूल कर पाए हैं? आंकड़ेबाजी और बकबक करने में माहिर सरकार को यह चिंता नहीं कि आम घरवालियों को जीएसटी की वजह से किस तरह हर दुकान पर कंप्यूटरों का सामना करना पड़ रहा है और टैक्सों के साथसाथ कंप्यूटरों का खर्च भी सामान के खर्च में जोड़ा जा रहा है.

वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था कच्चे पर टिकी है ताकि फैक्ट्री से पूरा सामान टैक्स दे कर निकला भी है तो उस के बाद होने वाले खर्च व बिचौलियों को मिलने वाले मुनाफे पर सेल्स टैक्स बन जाता था. कुछ जमा हुआ, कुछ नहीं पर जनता के हाथ में सस्ता माल आता था और राज्य सरकारें नुकसान में न थीं.

अब जीएसटी से राज्य सरकारों को भी नुकसान हो रहा है और केंद्र सरकार को भी. पंडों की सरकार ने टैक्स यज्ञ में आहूतियां डालने की लंबी सूचियां भक्तों को दे दीं कि इस टैक्स यज्ञ से केंद्र व लक्ष्मी प्रसन्न हो कर सब पर वर्षा कर देंगे पर आसमान से केवल काला धुआं टपक  रहा है. टैक्स यज्ञ का धुआं सारे देश में भर गया है और जनता त्राहित्राहि कर रही है.

नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली उस दशरथ की तरह हैं जिन्होंने एक बूढ़े को केवल आवाज सुन कर तीर से मार डाला. उन की आंखों पर धर्म और दंभ का चश्मा चढ़ा हुआ था.

जीएसटी किसी भी तरह से उपयोगी साबित नहीं हुआ. हर व्यापारी और उस के ग्राहक को चोर समझना हर मनुष्य को पापी समझने के बराबर है. मोदी व जेटली शुभ होगा, शुभ हो रहा है का मंत्र पढ़ रहे हैं पर असल में जनता की मेहनत तो यज्ञ में स्वाहा हो रही है. यह कहना कि घरवालियों को लाभ हो रहा है वैसा ही है जैसे यज्ञ कराने वाले कहने लगते हैं कि अच्छे दिन आ गए, बस देखने वाली आंखें चाहिए.

पुराने फर्नीचर को कुछ इस तरह से दें न्यू लुक

फर्नीचर को नया बनाये रखना बहुत कठिन होता है. अत: इसे नया बनाये रखने के लिए आपको कुछ ऐसे उपायों के बारे में मालूम होना चाहिए जिससे आपका फर्नीचर अच्छा और अनोखा दिखे. आइए देखें कि पुराने फर्नीचर को नया कैसे बनाया जा सकता है तथा आपको इन सब बातों के लिए समय क्यों देना चाहिए?

1. कवर

आपके पुराने लकड़ी के फर्नीचर पर खरोचें आ जाती हैं. इस प्रकार के पुराने फर्नीचर को नया कैसे बनायें? गहरे रंग के लकड़ी के फर्नीचर के लिए खरोचों पर पिसी हुई कॉफ़ी लगायें. 10 मिनिट तक इंतज़ार करें. फिर नरम और सूखे कपड़े से पोंछ दें. हलके रंग के फर्नीचर के लिए पिसी हुई अखरोट के चूर्ण का उपयोग करें.

2. पेंट

यह फर्नीचर को अनोखा लुक देने का एक प्रभावी तरीका है. आप अपनी कुर्सियों और टेबल को भूरे रंग या उसके विभिन्न शेड्स से पेंट करके उसे पारंपरिक लुक दे सकते हैं. नए रंग मौसम के प्रभाव से आपके फर्नीचर की रक्षा करते हैं.

3. दाग धब्बे दूर करें

आप जानते हैं कि लकड़ी से चाय और कॉफ़ी के धब्बों को दूर करना कितना कठिन होता है. कैनोला ऑइल और विनेगर से ये दाग आसानी से साफ़ हो जाते हैं. एक चौथाई तेल में तीन चौथाई विनेगर मिलाएं. कॉटन के कपड़े (सूती कपड़े) की सहायता से इस घोल को फर्नीचर पर लगायें. आप कुछ ही मिनिटों में बदलाव देखेंगे.

4. व्हाइट पेंट

यदि आपके परदे गहरे रंग के हैं तो अपने पुराने फर्नीचर को सफ़ेद रंग से पेंट करें जिससे आपके कमरे को एक अनोखा लुक मिलेगा. इससे फर्नीचर उत्तम दर्जे का दिखेगा तथा रंग का संतुलन भी सुरुचिपूर्ण ढंग से रखा जा सकेगा.

5. दरारों को दूर करें नेल पैंट से

यदि आपके फर्नीचर के वार्निश पर दरारें आ गयी हैं तो कोई भी चीज़ इसे नया नहीं बना सकती. इसका हल क्या है? नेल पॉलिश की सहायता से वार्निश को ठीक करें. इसे दरार वाले स्थान पर लगायें और 10 मिनिट तक इंतज़ार करें. जब यह सूख जाए तो इसे चिकना बनाने के लिए सैंडपेपर से घिसें.

6. वॉलपेपर्स यूज करें

यदि आपने अपने घर में पार्टी आयोजित की है और समय पर आपको अपने पुराने फर्नीचर की याद आती है तो वॉलपेपर्स इसका एक आसान उपाय है. अपने घर की सजावट के अनुसार वॉलपेपर्स खरीदें तथा अपने फर्नीचर को इससे ढंक दें.

7. ब्लीच का उपयोग करें

आपके पास गार्दन में बैठने के लिए प्लास्टिक की सुन्दर कुर्सियां हैं परन्तु आप ये नहीं जानते कि इन्हें ख़राब होने से किस प्रकार बचाया जा सकता है. इन्हें फेंकने से पहले यह उपाय अपनायें. एक बाल्टी गर्म पानी लें. इसमें एक चौथाई कप ब्लीचिंग पाउडर मिलाएं. इससे कुर्सी को घिसें तथा सूखे कपड़े से पोंछ दें. आपको तुरंत ही मेजिक दिखेगा.

8. इमली

हर एक घर में ब्रास, सिल्वर या ब्रोंज़ के मेडल्स या ट्रॉफी निश्चित ही होते हैं. समय के साथ साथ इस पर धूल के धब्बे दिखाई देने लगते हैं तथा मौसम के कारण भी इन पर दाग आ जाते हैं. इन्हें इमली से साफ़ करें तथा फिर पानी से धो डालें. फिर इसे कपड़े की सहायता से सुखा लें. ये फिर से आपकी पिछली सफ़लता की कहानी कहने लगेंगे.

यूरिक एसिड के बढ़ने पर ये जूस पिएं, होगा फायदा

यूरिक एसिड का नाम तो आपने सुना ही होगा. ये एक वेस्ट प्रोडक्ट होता है जिसकी बढ़ी मात्रा सेहत के लिए हानिकारक होती है. ये आपके शरीर में निश्चित से अधिक मात्रा में इक्कठ्ठा हो जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है और शरीर में जमा होने लगता है. धीरे धीरे ये खून के संपर्क में आता है और खून में यूरिक एसिड की मात्रा को बढ़ा देता है, जिससे पैर, एड़ी और टखनों में दर्द और सूजन हो जाती है. इस समस्या को दूर करने के लिए कुछ हेल्दी ड्रिंक्स आपके लिए काफी लाभकारी हो सकते हैं. तो आइए जाने उन ड्रिंक्स के बारे में.

पाइनएप्पल जूस

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पाइनएप्पल जूस में विटामिन सी के साथ साथ अन्य एंटीऔक्सिडेंट होते हैं. यूरिक एसिड को बाहर करने में ये ड्रिंक बेहद कारगर है. इसे बनाने के लिए पाइनेप्पल की तीन चौथाई जूस को एक चौथाई गिलास स्किम्ड मिल्क में मिलाकर आइस क्यूब डालकर सेवन करें.

योगर्ट और स्ट्रौबेरी

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योगर्ट यानि दही और स्ट्रौबेरी को ब्लेंड करने के बाद इसे हम स्मूदी कहते हैं. ये स्मूदी सूरिक एसिड के स्तर को कम करने में लाभकारी होता है.

मोसंबी और पूदीने का ड्रिंक

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इस ड्रिंक में विटामिन सी की मात्रा प्रचूर होती है. यूरिक एसिड को कम करने में ये बेहद कामगर है. एक मोसंबी को छील कर इसमें नींबू का रस और पुदीने के पत्ते डाल लें और अच्छे से मिक्स कर लें. अच्छे से ब्लेंड कर के जूस बना कर इसका सेवन करें.

खीरा सूप

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शरीर को हाइड्रेट रखने के साथ साथ शरीर से यूरिक एसिड की मात्रा को कम करने में ये ड्रिंक काफी लाभकारी होता है. इसे बनाने के लिए एक जार में खीरे का जूस, एक चौथाई कप दही, पुदीने के पत्ते और नींबू का रस डालकर ब्लेंड करें और थोड़े देर तक ठंडा करने के बाद सेवन करें. जल्दी ही आपको फायदा मिलेगा.

तो ब्रैस्ट फीडिंग हो जाएगी आसान

नवजात पैदा होने के तुरंत बाद स्तनपान के लिए तैयार होता है. वह अपने व्यवहार से दर्शाता है कि वह स्तनपान करना चाहता है जैसे चूसने की कोशिश करना, अपने मुंह के पास उंगलियां लाना. पैदा होने के बाद पहले 45 मिनट से ले कर 2 घंटों के भीतर बच्चे का ऐसा व्यवहार देखा जा सकता है.

बच्चे के जन्म के बाद 6 सप्ताह स्तनपान के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं. बच्चे को जन्म के बाद पहले 1 घंटे के अंदर स्तनों के पास रखें. हर 3-4 घंटे में बच्चे की जरूरत के अनुसार उसे स्तनपान कराएं. ऐसा करने से फीडिंग की समस्याएं कम होंगी, साथ ही आप इस से स्तनों में अकड़न की समस्या से भी बचेंगी.

कैसे करें शुरुआत

एक आरामदायक नर्सिंग स्टेशन बनाएं और खुद को रिलैक्स रखें.

स्तनपान कराते समय आरामदायक स्थिति में बैठें, जैसे आप कुरसी पर बैठ सकती हैं या बिस्तर पर बैठ कर तकिए का सहारा ले कर स्तनपान करा सकती हैं. बच्चे को अपने हाथों से सपोर्ट दें. इस दौरान ध्यान रखें कि आप के पैर सही स्थिति में हों. अगर आप बिस्तर पर हैं तो अपने पैरों के नीचे तकिया रखें. इसी तरह अगर कुरसी पर बैठ कर स्तनपान कराना चाहती हैं, तो फुटस्टूल का इस्तेमाल करें.

स्तनपान की कुछ तकनीकें

क्रैडल होल्ड: स्तनपान की इस तकनीक में आप बच्चे के सिर को अपनी बाजू से सहारा देती हैं. बिस्तर या कुरसी पर आराम से बैठ जाएं. अगर बिस्तर पर बैठी हैं तो तकिए का सहारा लें. अपने पैरों को आराम से किसी स्टूल या कौफी टेबल पर रख लें ताकि आप बच्चे पर झुकें नहीं.

बच्चे को अपनी गोद में इस तरह लें कि उस का चेहरा, पेट और घुटने आप की तरफ हों. अब अपनी बाजू को बच्चे के सिर के नीचे रखते हुए उसे सहारा दें. अपनी बाजू को आगे की ओर निकालते हुए उस की गरदन, पीठ को सहारा दें. इस दौरान बच्चा सीधा या हलके कोण पर लेटा हो.

यह तरीका उन बच्चों के लिए सही है, जो फुल टर्म में और नौर्मल डिलीवरी प्रक्रिया से पैदा हुए हैं. लेकिन जिन महिलाओं में सी सैक्शन हुआ हो, उन्हें इस तकनीक को नहीं अपनाना चाहिए, क्योंकि इस से पेट पर दबाव पड़ता है.

क्रौस ओवर होल्ड: इस तकनीक को क्रौस क्रैडल होल्ड भी कहा जाता है. यह क्रैडल होल्ड से अलग है. इस में आप अपनी बाजू से बच्चे के सिर को सपोर्ट नहीं करतीं.

अगर आप अपने दाएं स्तन से बच्चे को स्तनपान करा रही हैं, तो बच्चे को बाएं हाथ से पकड़ें. बच्चे के शरीर को इस तरह घुमाएं कि उस की छाती और पेट आप की तरफ हो. बच्चे के मुंह को अपने स्तन तक ले जाएं. यह तकनीक बहुत छोटे बच्चों के लिए सही है जो ठीक से लेट नहीं पाते.

क्लच या फुटबौल होल्ड: जैसाकि नाम से पता चलता है इस तकनीक में आप बच्चे को हाथों से ठीक वैसे पकड़ती हैं जैसे फुटबौल या हैंडबैग (उसी तरफ जिस तरफ से स्तनपान करा रही हैं).

बच्चे को अपनी बाजू के नीचे साइड में इस तरह रखें कि उस की नाक का स्तर आप के निपल पर हो. गोद में तकिया रख कर अपनी बाजू उस पर टिका लें और बच्चे के कंधे, गरदन और सिर को हाथ से सपोर्ट करें. सी होल्ड से बच्चे को निपल तक ले जाएं.

यह तकनीक उन महिलाओं के लिए अच्छी है जिन के बच्चे सिजेरियन से पैदा हुए हों. रिक्लाइनिंग पोजिशन: बच्चे को इस तरह अपने पास लाएं कि उस का चेहरा आप की तरफ हो. उस के सिर को नीचे वाली बाजू से सपोर्ट करें और नीचे वाला हाथ उस के सिर के नीचे रखें.

अगर बच्चे को स्तन तक लाने के लिए थोड़ा ऊंचा करने की जरूरत हो तो छोटा सा तकिया या फोल्ड की हुई चादर उस के सिर के नीचे रखें. ध्यान रखें कि बच्चे को आप के निपल तक पहुंचने के लिए अपनी गरदन पर खिंचाव न लाना पड़े और न ही आप को झुकना पड़े.

अगर आप के लिए बैठना मुश्किल है, तो आप इस तरह से लेट कर बच्चे को स्तनपान करा सकती हैं. इस के अलावा जब आप रात या दिन में आराम कर रही हों, तो भी इस तरह बच्चे को लेटेलेटे स्तनपान करा सकती हैं.

स्तनपान कराने के बाद बच्चे को डकार दिलवाना बहुत जरूरी होता है. इस के लिए उस के पेट पर हलके से दबाव डालें. अगर 5 मिनट बाद भी बच्चे को डकार न आए और वह सहज लगे तो डकार दिलवाने की जरूरत नहीं है.

– डा. रीनू जैन, ऐग्जीक्यूटिव कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनोकोलौजी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

तीखे मीठे घरेलू स्वाद : ठंडाई और रिची रोल्स

ठंडाई

सामग्री

– 8-10 बादाम

– 2 हरी इलायची

– 1 बड़ा चम्मच खरबूज के बीज

– 1 बड़ा चम्मच तरबूज के बीज

– 1 बड़ा चम्मच मोटी सौंफ

– 2-3 लौंग

– 3-4 कालीमिर्च

– 7-8 काजू

– 21/2 बड़े चम्मच चीनी

– 3 कप दूध.

विधि

– बादाम, इलायची, खरबूज व तरबूज के बीज, सौंफ, लौंग, कालीमिर्च व काजू को 7-8 घंटे पानी में भिगो लें.

– फिर मिक्सी में चीनी के साथ महीन पीस लें.

– छलनी में छान कर दूध में मिलाएं. बर्फ डाल कर सर्व करें.

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रिची रोल्स

सामग्री

– 250 ग्राम मैदा

– 1/2 गिलास दूध

– 50 ग्राम पनीर या मोजरेला चीज

– 2 बड़े चम्मच शिमलामिर्च व गाजर

– थोड़े से चावल उबले

– 200 ग्राम स्प्राउट्स मिक्स

– तलने के लिए घी या तेल

– 6 बड़े चम्मच कौर्नफ्लौर

– जरूरतानुसार रैड, औरेंज फूड कलर

– चाटमसाला व नमक स्वादानुसार.

विधि

– मैदे को कुनकुने दूध से गूंध लें.

– रोटी के साइज के पतलेपतले रैपर बना कर हलके गरम तवे पर सेंक कर अलग रखें.

– 2 चम्मच मैदा, 6 चम्मच कौर्नफ्लोर का पेस्ट बना लें.

– उस में रैड, औरेंज फूड कलर व नमक मिला लें.

– अब सारी सामग्री व स्प्राउट्स को एकसाथ मिला लें.

– रैपर के बीच यह सामग्री रख कर रैपर को रोल कर के कौर्नफ्लोर के पेस्ट से चिपका कर बंद करें.

– गरम तेल में सुनहरा होने तक तल कर चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें.

फिल्म रिव्यू : मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर

रेटिंग : दो स्टार

‘दिल्ली 6’, ‘भाग मिखा भाग’, ‘मिर्जिया’ जैसी फिल्मों के सर्जक राकेश ओमप्रकाश मेहरा एक बार फिर एक संदेश परक फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिस्टिर’ लेकर आए हैं. मगर इस फिल्म में वह नया परोसने में विफल रहने के साथ ही कहानी के स्तर पर काफी भटके हुए नजर आते हैं. शौचालय की जरुरत को लेकर अक्षय कुमार की फिल्म ‘ट्वायलेटःएक प्रेम कथा’ और नीला माधव पंडा की फिल्म ‘हलका’आ चुकी हैं. नीला माधव पंडा की फिल्म ‘हलका’ में बाहरी दिल्ली की झुग्गी बस्ती में रहने वाला बालक अपने घर के अंदर  शौचालय बनाने की लड़ाई लड़ता है, जबकि राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’में मुंबई के धारावी इलाके की झुग्गी बस्ती का बालक बस्ती में  शौचालय के लिए लड़ाई लड़ता है.

फिल्म की कहानी मुंबई के धारावी इलाके की झुग्गी बस्ती की है, जहां गरीब तबके के लाखों लोग रह रहे हैं. यहां एक सजह व सुखद जीवन जीने की सुविधाओं का घोर अभाव है. यहीं पर आठ वर्षीय कन्हैया उर्फ कनु (ओम कनौजिया) अपनी मां सरगम ( अंजली पाटिल) के साथ रहता है. कनु के पिता नहीं है. पता चलता है कि सरगम ने सोलह साल की उम्र में किसी लड़के से प्यार किया था और शादी से पहले ही सरगम के गर्भवती हो जाने पर वह भाग गया, तब सरगम मुंबई के धारावी इलाके में आकर रहने लगी थी. उसकी पड़ोसन राबिया (रसिका अगाशे), राबिया का पति जस्सू (नचिकेत) और उसकी बेटी मंगला(सायना आनंद) है. कनू व मंगला के दोस्त हैं रिंग टोन(आदर्श भारती) और निराला (प्रसाद). इस बस्ती में एक गगनचुंबी इमारत में रहने वाली समाज सेविका ईवा (सोनिया अलबिजूरी) अपनी कार से आती रहती हैं, जो कि मंगला के स्कूल का खर्च उठाती है और इसके बदले में मंगला के हाथों लोगों के बीच कंडोम बंटवाती हैं, जिससे लोग कम से कम बच्चे पैदा करें. यही काम वह बाद में कनु को भी देती हैं. एक कंडोम बांटने पर एक रूपया देती है.

कनु एक समाचर पत्र बेचने वाले पप्पू (नितीश वाधवा) की दुकान पर काम करता है. पप्पू, सरगम से प्यार करता है और आए दिन किसी न किसी बहाने वह सरगम से मिलने आता रहता है. इस बात को राबिया समझ जाती है. वह सरगम से कहती है कि पप्पू अच्छा लड़का और वह सरगम से प्यार भी करता है. पर सरगम उसे महत्व नहीं देती. एक दिन जब रात में सरगम षौच के रेलवे पटरी की तरफ जाती है लिए बाहर जाती है, तो उसी मोहल्ले के साईनाथ (मकरंद देशपांडे), सरगम को छेड़ने का प्रयास करता है. पर ऐन वक्त पर पुलिस हवलदार आ जाता है, जो कि साईनाथ को मारकर भगा देता है. लेकिन हवलदार के साथ आया पुलिस का अफसर सरगम के साथ बलात्कार करता है. इससे सरगम बहुत दुखी होती है. अब कनु की समझ में आ जाता है कि जिस तरह ईवा के घर के अंदर ट्वायलेट है, वैसा उसके घर या बस्ती में न होने की बवजह से उसकी मां के साथ बलात्कार हुआ. तो वह अपने दो साथियां के साथ नगरपालिका के दफ्तर जाकर ट्वायलेट बनाने की मांग करता है. नगर पालिका का अफसर उन्हे यह कहकर भगा देता है कि दिल्ली में प्राइम मिनिस्टर के पास पत्र भेजने पर ही  शौचालय बनेगा. अब कनु अपने दोस्तों के साथ प्राइम मिनिस्टर के आफिस पहुंचता है, जहा वह एक अफसर (अतुल कुलकर्णी) को पत्र देकर आ जाते हैं. मुंबई पहुंचने के बाद वह और उसके दोस्त मंदिर बनवाने, मस्जिद बनवाने आदि के नाम पर लोगों से चंदा इकट्ठा करते हैं, जिससे वह अपनी बस्ती में ट्वायलेट बनवा सके. पर एक दिन पुलिस वाले कनु व उसके दोस्तों से यह पैसा ले लेते हैं. उधर पप्पू, सरगम को समझाकर गुप्त रोग आदि की जांच करवाने के लिए कहता है. फिर दोनों शादी करने के लिए सहमत हो जाते हैं. इसी बीच प्रधानमंत्री के आफिस से नगरपालिका में पत्र आता है और कनु की बस्ती में सार्वजनिक  शौचालय बन जाता है.

राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ में नारी सुरक्षा का मुद्दा उठाया है, मगर वह कथा कथन में बुरी तरह से मात खा गए. फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने फिल्म की षुरूआत में कंडोम बांटने से की और फिर एक महिला के साथ शौच जाने पर बलात्कार के बाद कहानी  शौचालय की तरफ मुड़ जाती है और कंडोम व कम बच्चे का मसला वह भूल गए. तो वहीं कम उम्र के चारो बच्चे जिस तरह से  शौचालय बनाने की जद्दोजेहाद करते हुए दिखाए गए, वह अविश्वसनिय लगता है.  शौचालय की मूल कहानी तक पहुंचने में भी कहानीकार व निर्देशक ऐसी लंबी उल जलूल यात्रा करते हैं कि दर्षक बोर हो जाता है. ’मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ देखकर इस बात का अहसास ही नहीं होता कि इस फिल्म के निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ही है, जिन्होने कभी ’दिल्ली 6’ और ’भाग मिल्खा भाग’ जैसी फिल्मों का निर्माण व निर्देशन किया था.

पूरी फिल्म देखने के बाद इस बात का अहसास होता है किलेखकीय टीम के सदस्य मनोज मैरटा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा व हुसेन दलाल इतने बड़े हो गए हैं कि उनके लिए बाल मनोविज्ञान की समझ के साथ लेखन करना संभव ही नहीं रहा.

संगीतकार शंकर एहसान लौय का संगीत भी प्रभावहीन है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो चारो बच्चों में से कनु का मूख्य किरदार निभाने वाले बाल कलाकार ओम कनौजिया प्रभावित नहीं करते. जबकि आदर्श भारती व प्रसाद में ज्यादा संभावनाएं नजर आती हैं. छोटे से किरदार में बाल कलाकार सयाना आनंद जरुर अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने में सफल रहती है. सरगम के किरदार में अंजली पाटिल ने भी उत्कृष्ट अभिनय किया है. इसके अलावा अन्य कलाकारों के हिस्से कुछ खास करने को रहा नहीं. यॅूं भी कहानी तो एक मां और बेटे के ही इर्द गिर्द घूमती है. मगर इन बाल कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के बावजूद फिल्म दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती.

दो घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ’मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ का निर्माण राकेश ओमप्रकाश मेहरा, पी एस भारती, नवमीत सिंह, राजीव टंडन व अर्पित व्यास ने किया है. फिल्म के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा, लेखक मनोज मैरटा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा व हुसेन दलाल, संगीतकार शंकर एहसान लौय, कैमरामैन पावेल डायलस और कलाकार हैं-अंजली पाटिल, ओम कनौजिया, अतुल कुलकर्णी, मकरंद देशपांडे, रसिका अगाषे, सोनिया अलबिजुरी, सायना आनंद, आदर्ष भारती, प्रसाद, नचिकेत पूरणपत्रे, नितीश वाधवा, जिज्ञासा यदुवंशी व अन्य.

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