बड़ी आपा: नसीम के किस बात से घर में कोहराम मचा

तार पर नजर पड़ते ही नसीम बौखला गया. उस का हृदय बड़ी तीव्रता से धड़का. लगा, हलक से बाहर आ जाएगा. किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला और तार ले कर घर के अंदर बढ़ गया.

घर में सुरैया और अम्मी ने खाने से निवृत्त हो कर अभी हाथ ही धोए थे कि नसीम के लटके मुंह को देख कर उस की अम्मी पूछ बैठीं, ‘‘क्या बात है, नसीम, दफ्तर नहीं गए?’’

‘‘अम्मी..’’ कहने के साथ ही नसीम की आंखें भीग गईं, ‘‘असद भाई कल सुबह दिन का दौरा पड़ने से चल बसे. यह तार आया है.’’

नसीम का इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया. उस की बीवी सुरैया और अम्मी बिलखबिलख कर रो पड़ीं. दुख तो नसीम को भी बहुत था, लेकिन किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला तथा सुरैया और अम्मी को जल्दी से तैयार होने को कह कर अपने दफ्तर को चल दिया. दफ्तर से उस ने 3 दिन की छुट्टी ली और घर लौट आया. तब तक सुरैया और अम्मी तैयार हो चुकी थीं.

वह रिकशा ले आया और अम्मी तथा सुरैया को ले कर बस अड्डे को रवाना हो गया.

7 वर्ष पूर्व शमीम आपा की शादी असद भाई के साथ हुई थी. असद भाई अपने घर में सब से बड़े थे. घर का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर था. शमीम आपा को पा कर असद भाई अपने सारे गम भूल गए. शमीम आपा ने अपनी बुद्धिमानी से घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी और घर की चिंता से उन्हें पूरी तरह मुक्त कर दिया था.

सीधे और सरल स्वभाव के असद भाई रोजे, नमाज के बड़े कायल थे. इस के अतिरिक्त सभी धार्मिक कार्यों में रुचि लेते थे. हर जुम्मेरात को मजार पर जाना, अगरबत्ती सुलगाना उन का पक्का नियम था. उन के उसी नियम के कारण शमीम आपा को भी उन के कार्यों में शामिल होना पड़ता था. धीरेधीरे यही आदत उन के जीवन का अंग बन गई थी.

यों तो असद भाई और शमीम आपा के जीवन में कोई अभाव नहीं था, लेकिन शादी के 7 वर्ष बीत जाने पर भी उन के कोई संतान पैदा नहीं हुई थी. इस के कारण कभीकभी वे बेहद दुखी हो जाते थे. इस का कारण हमेशा ही वह मियां, फकीरों को बताते थे. कहते थे, फलां फकीर या मियां उन से नाराज हैं. इसी कारण उन्हें औलाद का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ है.

उधर उन के दोनों छोटे भाइयों के यहां 3-3 बच्चे थे. शमीम आपा ने जोर डाल कर डाक्टर को दिखाया था. डाक्टर से आधाअधूरा इलाज भी करवाया था. लेकिन लाभ होने से पहले ही छोड़ दिया गया, क्योंकि उन के अंदर भी यह अंधविश्वास बैठ गया था कि उन से कोई मियां नाराज हैं.

यही कारण था जब नसीम की शादी की बात आई तो उस की अम्मां ने पूरी होशियारी बरती थी. शमीम आपा तो सिर्फ मजहबी तालीम हासिल करने वाली लड़की को ही बहू बनाना चाहती थीं. लेकिन नसीम और उस की अम्मी की जिद के कारण ही सुरैया के साथ नसीम का निकाह हुआ था.

सुरैया इंटर तक शिक्षा प्राप्त सुलझे विचारों की लड़की थी. अपने छोटे से घर को उस ने आते ही व्यवस्थित कर लिया था.

अपनी इच्छा पूरी न होने के कारण बड़ी आपा नाराज हो कर अपनी ससुराल वापस लौट गई थीं तथा बहुत कोशिशों के बाद भी नसीम की शादी में शरीक नहीं हुई थीं.

पिछले 2 वर्षों से उन्होंने अपने मायके की सूरत भी नहीं देखी थी. सुरैया की सूरत से भी वह नफरत करती थीं.

अपने भाई और अम्मी को सामने देख कर शमीम आपा के धैर्य का बांध टूट गया. वह उन से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ीं. किसी तरह अम्मी ने समझाया, ‘‘बेटी, सब्र से काम लो. जो होना था सो हो गया. अब रोने से असद तो वापस आ नहीं सकता.’’

शमीम आपा की आंखें रोने के कारण सूज गई थीं. कई बार गम से वह बेहोश हो जाती थीं. सुरैया साए की भांति उन के साथ रहती थी. वह उन्हें दिलासा देती रहती.

तीसरे दिन नसीम सुरैया को ले कर लौट आया था. अम्मी शमीम आपा के पास ही रुक गई थीं. अभी उन्हें सहारे की आवश्यकता थी. नसीम चाहता था शमीम आपा को अपने साथ घर ले जाए. लेकिन अभी इद्धत (40 दिन तक घर से बाहर न निकलना) होना बाकी था.

घर पहुंचते ही नसीम गहरी सोच में डूब गया था. असद भाई की असमय मृत्यु ने उसे विचलित कर दिया था. उसे मालूम था, असद भाई की मृत्यु के बाद उन के भाई शमीम आपा को अपने साथ रखने से रहे. फिर वह स्वयं भी शमीम आपा को उन लोगों की मेहरबानी पर नहीं छोड़ना चाहता था.

उसे उदास और खोया देख कर सुरैया पूछ बैठी, ‘‘आप कुछ परेशान लगते हैं. मुझे बताइए, आखिर बात

क्या है?’’

‘‘आपा के बारे में सोच रहा था, सुरैया,’’ नसीम बोला, ‘‘भरी जवानी में वह विधवा हो गई हैं. शादी का सुख भी उन्हें न मिल सका.’’

‘‘हां, आप ठीक कहते हैं,’’ सुरैया ने एक गहरी सांस ली. फिर बोली, ‘‘लेकिन आप अधिक परेशान न हों. शमीम आपा को हम अपने साथ ही रखेंगे.’’

‘‘सुरैया,’’ नसीम ने आश्चर्य से कहा, ‘‘तुम्हें तो मालूम है, आपा तुम्हें पसंद नहीं करतीं.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं कोशिश करूंगी तो आपा मुझे पसंद करने लगेंगी.’’ सुरैया मुसकराई.

नसीम प्रसन्नता से सुरैया को देखता रह गया. उसे विश्वास हो गया, सुरैया शमीम आपा को जीने का सलीका सिखा देगी. एक बोझ सा उस ने अपने ऊपर से उतरता हुआ महसूस किया.

सवा महीने बाद शमीम आपा अम्मी के साथ अपने भाई के पास आ गईं. सुरैया ने उन्हें हाथोंहाथ लिया. उसे अपनी ननद से पूरी हमदर्दी थी. अब शमीम आपा हमेशा खामोश, उदास, परेशान सी रहती थीं. उन के होंठों की हंसी जैसे हमेशा के लिए मुरझा गई थी. सुरैया हमेशा उन का दिल बहलाने की कोशिश करती रहती थी.

एक दिन अचानक रात को चीखपुकार सुन कर नसीम और सुरैया की आंख खुल गई. कमरे से बाहर आ कर उन्होंने देखा तो चौंक पड़े. शमीम आपा अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी गहरीगहरी सांसें ले रही थीं. उन की आंखें बुरी तरह सुर्ख हो रही थीं. उन के पास ही घबराई हुई अम्मी खड़ी थीं.

‘‘क्या हुआ, अम्मी? क्या बात है?’’ नसीम ने पूछा.

‘‘सोतेसोते अचानक चीखने लगी, ‘अरे, मुझे बचाओ…मार डालेंगे…मार डालेंगे.’’ अम्मी ने बताया.

नसीम की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने शमीम आपा से कुछ पूछना चाहा लेकिन वह कुछ भी बताने में असमर्थ थीं. उस रात फिर घर के किसी भी व्यक्ति को एक पल भी नींद नहीं आई.

सुबह को जब शमीम आपा की तबीयत कुछ ठीक दिखाई दी तो नसीम ने पूछा, ‘‘रात क्या हुआ था, आपा?’’

आपा ने एक गहरी सांस ली और बोली, ‘‘भैया, रात स्वप्न में तुम्हारे दूल्हा भाई मेरा गला दबा रहे थे. कह रहे थे, ‘तू सब मियां, फकीरों को भूल गई. किसी भी मजार पर नहीं जाती. हर जुम्मेरात को मजार पर नहीं जाएगी तो मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा.’’’

नसीम ने एक गहरी सांस ली. वह समझ गया, ये सब बीती बातें हैं. इसी कारण उन्हें यह सब स्वप्न में दिखाई दिया.

अगली जुम्मेरात आने से पहले

ही एक रात को शमीम आपा फिर

चीख पड़ीं. पूरी रात वह रोती रहीं. नसीम और सुरैया ने किसी तरह उन्हें चुप कराया.

दिन निकला तो वह बोलीं, ‘‘मैं अब हर जुम्मेरात को मजार पर जाया करूंगी, नहीं तो वह मुझे जान से मार देंगे.’’

नसीम ने उन्हें इजाजत दे दी. उस ने अपने मन में सोचा, 2-4 बार मजार पर जाएंगी और इन के दिमाग से भ्रम निकल जाएगा तो वह आपा को समझा देगा. वह इन बातों को बिलकुल पसंद नहीं करता था. अंधविश्वास से उसे बुरी तरह चिढ़ थी.

अब आपा ने हर जुम्मेरात को मजार पर जाना शुरू कर दिया था. हर जुम्मेरात को आपा अच्छेअच्छे पकवान बनातीं और मजार पर जा कर नियाज दिलातीं.

नसीम चुपचाप खामोशी से सब कुछ देखता रहता. लेकिन 15 दिन में ही जब उस का वेतन इन खर्चों में समाप्त हो गया तो उसे अपने पैरों तले की जमीन खिसकती हुई सी प्रतीत हुई.

उस ने आपा को समझाना चाहा तो आपा भड़क उठीं. सारे दिन वह रोती रहीं. आपा का रोना अम्मी से न देखा गया तो वह भी नसीम को बुराभला कहने लगीं.

नसीम का परेशानी से बुरा हाल था. लेकिन वह किसी तरह सब्र कर रहा था. किसी तरह उस ने आपा को समझाया, ‘‘आपाजान, आप ही सोचो, एक मामूली सा क्लर्क हूं. मैं कोई बड़ा आदमी तो हूं नहीं, जो इस तरह से खर्च सहन करूं. लेकिन फिर भी आप थोड़ा सोचसमझ कर खर्च करें तो अच्छा होगा.’’

शमीम आपा पर उस के समझाने का इतना असर अवश्य हुआ कि खर्च में उन्होंने कुछ कमी कर दी, लेकिन मजार पर जाना कम नहीं किया.

नसीम इधर बेहद परेशान रहने लगा था. उस का बचत किया हुआ पैसा धीरेधीरे समाप्त होता जा रहा था. उधर सुरैया अपने पहले बच्चे को जन्म देने वाली थी. उसे अस्पताल में भरती कराना था, जिस के लिए रुपयों की आवश्यकता थी.

मानसिक परेशानियों के कारण एक  दिन उस की साइकिल स्रद्ध स्कूटर से टक्कर होतेहोते बची. वह तो संयोग की बात थी कि उस की साइकिल स्कूटर की टक्कर खा कर स्कूटर के आगे आ कर गिरने के स्थान पर विपरीत दिशा में गिरी जिस के कारण नसीम के हाथपैर में मामूली सी ही चोटें आईं.

सुरैया तो बेहद घबरा गई थी. शमीम आपा ने सुना तो बोलीं, ‘‘भैया, यह सब बुजुर्गों की बेअदबी के कारण हुआ है. तुम उन की अवमानना जो कर रहे थे.’’

‘‘ऐसी बातें तो मत करो, आपा,’’ सुरैया चीख पड़ी थी, ‘‘अपने ही भाई का बुरा चाहती हो? खुदा न करे उन्हें कुछ हो.’’

सुरैया की बातें सुन कर शमीम आपा रोने लगीं, ‘‘मैं तो हूं ही बुरी. मैं तो अपने भाई का बुरा ही चाहती हूं.’’

बड़ी मुश्किल से अम्मी और नसीम ने आपा को चुप कराया.

सुरैया नसीम की परेशानी को समझ गई थी. उस ने मन ही मन शमीम आपा को सही राह पर लाने की सोच ली. कई दिन तक वह योजनाएं बनाती रही. एक दिन उस के दिमाग में एक तरकीब आ ही गई.

उस रात को जब सब सो रहे थे तो अचानक सुरैया चीख पड़ी, ‘‘अरे बचाओ, मुझे भाई मार डालेंगे. अरे मेरा गला दबा रहे हैं.’’

घबरा कर शमीम आपा और अम्मी सुरैया के कमरे में पहुंचीं तो देखा सुरैया बुरी तरह चीख रही है. उस के बाल बिखरे हुए थे. वह किसी तरह संभल नहीं रही थी, हालांकि नसीम उसे बिस्तर पर बैठाने की कोशिश कर रहा था.

अचानक नसीम का बंधन ढीला पड़ गया तो सुरैया चीखती हुई शमीम आपा की ओर बढ़ी, ‘‘मैं तुझे जान से मार दूंगा,’’ अब वह पुरुषों की भाषा में बोलने लगी थी, ‘‘अरे, खापी कर मोटी भैंस हो रही है. तुझ से एक दिन यह भी न हुआ कि पांचों वक्त की नमाज पढ़े, रमजान रखे.’’

शमीम आपा का चेहरा भय से पीला पड़ गया था. वह हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आगे से मैं ऐसा ही करूंगी, जैसा आप कहते हैं.’’

‘‘करेगी कैसे नहीं,’’ सुरैया चीखी, ‘‘मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा. और सुन, अब तुझे मजार पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं. तेरे मजार पर जाने से बेपरदगी होती है जो मुझे स्वीकार नहीं.’’

किसी तरह अम्मी और नसीम ने सुरैया को काबू में किया. पूरी रात वह चीखतीचिल्लाती रही. कभी हंसने लगती तो कभी रोने लगती.

दिन निकलने पर बड़ी मुश्किल से सुरैया सो सकी. दोपहर बाद वह सो कर उठी. उस दिन घर का सारा कार्य शमीम आपा को करना पड़ा. सो कर उठने के बाद सुरैया पहले की तरह ही सामान्य थी. उस से अम्मी ने पूछा, ‘‘रात तुझे क्या हो गया था?’’

लेकिन उस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वह बोली, ‘‘मैं तो आराम से सोती रही हूं.’’

इस से शमीम आपा और अम्मी को विश्वास हो गया कि रात सुरैया पर असद भाई की रूह का असर था. उस दिन से शमीम आपा बेहद घबराईघबराई सी रहने लगीं. उन्होंने 10 दिन से पांचों वक्त की नमाज पढ़नी शुरू कर दी. एक दिन सुरैया ने चाहा कि वह उन्हें मजार पर ले जाए, लेकिन आपा इतनी बुरी तरह डरी हुई थीं कि उन्होंने मजार पर जाने से इनकार कर दिया.

इस तरह पूरे 6 महीने गुजर गए. इस बीच सुरैया ने एक सुंदर से शिशु को जन्म दिया. शमीम आपा में इस बीच काफी परिवर्तन आ गया था. अब वह पहले के समान उदास और परेशान नहीं रहती थीं. अब उन के चेहरे पर हमेशा मुसकराहट सी रहती थी. मजार आदि पर जाना वह बिलकुल भूल गई थीं.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो सुरैया बोली, ‘‘एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानेंगे आप?’’

‘‘हां, बोलो, क्या बात है?’’ नसीम ने कहा.

‘‘मैं ने सोचा है कि शमीम आपा का घर बस जाए तो अच्छा होगा.’’

‘‘क्या कह रही हो, सुरैया?’’ नसीम चौंक पड़ा, ‘‘जमाना क्या कहेगा? लोग कहेंगे एक विधवा बहन का बोझ भी नहीं उठाया जा सकता.’’

‘‘हमें लोगों से कुछ लेनादेना नहीं है. हमें आपा की खुशियां देखनी हैं. औरत मर्द के बिना अधूरी है,’’ सुरैया बोली.

सुरैया की बात सुन कर नसीम गहरी सोच में डूब गया. काफी सोचनेसमझने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुरैया की बात सही है. उस ने उसी दिन से आपा के लिए शौहर की तलाश शुरू कर दी.

शीघ्र ही उसे लतीफ मियां जैसे नेक और शरीफ व्यक्ति का पता मिल गया. लतीफ मियां एक स्कूल में अध्यापक थे. उन की पत्नी का कई वर्ष पूर्व देहांत हो गया था. एक छोटी सी बच्ची थी. नसीम ने तुरंत रिश्ता पक्का कर दिया. पहले तो शमीम आपा ने थोड़ा इनकार किया, लेकिन फिर निकाह के लिए राजी हो गईं.

ईद के महीने में नसीम ने शमीम आपा और लतीफ मियां का निकाह कर दिया. जब शमीम आपा की विदाई का समय आया तो सुरैया उन के गले लग गई और बोली, ‘‘आपाजान, मैं आप को किसी धोखे में रखना नहीं चाहती. उस रात जब मुझ पर असर हुआ था, वह सब एक नाटक था. सिर्फ आप का अंधविश्वास समाप्त करने के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा. मुझे उम्मीद है, मेरी इस गलती को आप माफ कर देंगी.’’

‘‘भाभी, तुम ने गलती कहां की थी?’’ शमीम आपा बोलीं, ‘‘तुम ने जो कुछ भी किया मेरे भले के लिए किया. अगर तुम ऐसा न करतीं तो मैं आज भी उन्हीं अंधविश्वासों से लिपटी होती.’’

सुरैया मुसकरा पड़ी. अम्मी और सुरैया ने हंस कर बड़ी आपा को विदा कर दिया.

शमीम आपा का निकाह हुए 2 वर्ष बीत गए थे. आपा अपने जीवन से हर तरह से संतुष्ट थीं. लतीफ मियां ने उन्हें कभी कोई शिकायत का अवसर नहीं दिया था. जब भी आपा का दिल घबराता था वह अपनी अम्मी और भाभी से मिलने उन के घर आ जाती थीं. आपा को सुखी देख कर नसीम और अम्मी को बेहद प्रसन्नता होती. सुरैया तो शमीम आपा को देख कर फूल के समान खिल जाती थी.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो बेहद प्रसन्न था. आते ही अपनी अम्मी और सुरैया से बोला, ‘‘अम्मीजान, एक खुशखबरी, शमीम आपा के घर चांद सा बेटा आया है.’’

‘‘सच,’’ दोनों ने आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ पूछा.

‘‘हां, अम्मीजान,’’ नसीम बोला, ‘‘आज लतीफ भाई दफ्तर में आए थे और मुझे यह खबर दे गए.’’

उसी समय तीनों तैयार हो कर शमीम आपा को बधाई देने उन के घर जा पहुंचे.

सुरैया अधिक देर अपने कुतूहल को न छिपा सकी. पूछ ही बैठी, ‘‘आपाजान, आप तो कहती थीं आप से मियां नाराज हैं, इसी कारण आप को संतान नहीं होती. लेकिन यहां आ कर तो सब उलटा ही हो गया. क्या मियां आप से खुश हो गए?’’

नजदीक ही बैठे लतीफ मियां ने सुरैया की बात पर एक ठहाका लगाया और बोले, ‘‘सुरैया, यह सब इन के अंधविश्वास का कारण था. असद मियां को एक लंबे इलाज की आवश्यकता थी. लेकिन वह अपने अंधविश्वास के कारण यह सब नहीं कर सके. उन्हें विश्वास था वह नियाज दिलवा कर, मजारों पर जा कर अपने लिए संतान मांग लेंगे. लेकिन क्या मजारों से भी संतानें मिली हैं?’’

उन्होंने शमीम आपा की तरफ देखा तो उन्होंने शरमा कर मुंह दूसरी ओर कर लिया.

नीली झील में गुलाबी कमल: ईशानी ने कौनसा प्रस्ताव रखा था

ईशानी अपनी दीदी शर्मिला से बहुत प्यार करती थी. शर्मिला भी हमेशा अपनी ममता उस पर लुटाती रहती थी, तभी तो वह जबतब हमारे घर आ जाया करती थी. जब मैं ने शुरूशुरू में शर्मिला को देने के लिए एक पत्र उस के हाथों में सौंपा था, तब वह मात्र 12 वर्ष की थी. वह लापरवाह सी साइकिल द्वारा इधरउधर बेरोकटोक आयाजाया करती थी. मेरा और शर्मिला का गठबंधन कराने में ईशानी का ही हाथ था. जाति, बिरादरी से भरे शहर में हम दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन किसी को पता ही न चला. ईशानी ने एक दिन कहा, ‘‘तुम दोनों में क्या गुटरगूं चल रही है… मां को बता दूं?’’

उस की चंचल आंखों ने मानो हम दोनों को चौराहे पर ला खड़ा कर दिया. किसी तरह शर्मिला ने अंधेरे में तीर मार कर मामला संभाला, ‘‘मैं भी मां को बता दूंगी कि तू टैस्ट में फेल हो गई है.’’ वह सहम गई और विवाह तक उस ने हम लोगों की मुहब्बत को राज ही रहने दिया.

बड़ी बहन होने के नाते शर्मिला ने ईशानी की टीचर से मिल कर उस के इतिहासभूगोल के अंक बढ़वाए और पास करवा दिय?. शर्मिला ही ईशानी की देखरेख करती, सो, दोनों में मांबेटी जैसा ममतापूर्ण स्नेह भी पनपता रहा. अपनी सहेलियों से मजाक करतेकरते ईशानी दावा कर दिया करती थी, ‘मैं शर्मिला दीदी को ‘मां’ कह सकती हूं.’ यह बात मेरे दोस्त की बहन ने बताई थी, जो ईशानी की सहेली थी. समय ने करवट ली. एक दिन बाजार से लौटते समय ईशानी की मां को एक तीव्र गति से आती हुई कार ने धक्का दे दिया. उन्हें अस्पताल ले जाया गया, परंतु बिना कुछ कहे, बताए वे संसार से विदा हो गईं. ईशानी के बड़े भाई प्रशांत का इंजीनियरिंग का अंतिम वर्ष था. वह किशोरी अपने बड़े भैया को समझाती रही, तसल्ली देती रही, जैसे परिवार में वह सब से बड़ी हो.

उस की मां ने अपने पति के रहते हुए ही तीनों बच्चों में संपत्ति का बंटवारा करवा लिया था. इस से उन लोगों के न रहने पर भी आपस में मधुर संबंध बने रहे. मैं परिवार का बड़ा बेटा था. मुझ से छोटी 2 बहनें सुधा, सीमा हाई स्कूल और इंटर बोर्ड की तैयारी कर रही थीं. मैं बैंक में नौकरी करता था. पिता बचपन में ही चल बसे थे. मां ने अपनेआप को अकेलेपन से बचाने के लिए एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का काम ले लिया था. कुल मिला कर जीवन आराम से चल रहा था.

एक दिन ईशानी बोली, ‘‘होने वाले जीजाजी, अब आप लोग जल्दी से शादी कर लीजिए.’’

मैं ने पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो… क्या भैया ने कुछ कह दिया है.’’

‘‘नहीं,’’ वह बोली, ‘‘बात यह है कि कल मामाजी आए थे. भैया ने उन से दीदी के लिए लड़का ढूंढ़ने को बोला है.’’

‘‘तो क्या हुआ, हम तुझ से शादी कर लेंगे.’’ यह सुन कर वह ऐसे मुसकराई जैसे मुझे बच्चा समझ रही हो. मैं ने झेंपते हुए उस से कहा, ‘‘फिर क्या करें? मेरे घर में तो सब मान जाएंगे… हां, तुम्हारे भैया…’’

‘‘उन को मैं मनाऊंगी,’’ वह चुटकी बजाते हुए हंसती हुई चली गई.

पता नहीं उस ने भैया को कौन सी घुट्टी पिलाई कि वे एक बार में ही हम लोगों का विवाह करने को राजी हो गए.

ईशानी हमारे यहां आतीजाती रहती थी और भैया के समाचार देती रहती थी. भैया इंजीनियर के पद पर नियुक्त हुए तो उस दिन वह बहुत खुश हुई और आ कर मुझ से लिपट गई. फिर झेंपती हुई अपनी दीदी के पास चली गई. हाई स्कूल का फार्म भरते समय ईशानी ने अभिभावक के स्थान पर भैया का नाम न लिख कर मेरा लिखा था. तब मैं ने उस से कहा, ‘‘ईशानी, गलती से तुम ने यहां मेरा नाम लिख दिया है.’’ ‘‘वाह जीजाजी, आप तो अपुन के माईबाप हो, मैं ने तो समझबूझ कर ही आप का नाम लिखा है,’’ कहते हुए वह खिलखिला पड़ी थी.

मेरे पिता बनने का समाचार भी ईशानी ने ही मुझे दिया था. पर मैं ने इस बात को सामान्यतौर पर ही लिया था.

‘‘जीजाजी, आज हम सब इस खुशी में आइसक्रीम खाएंगे,’’ वह चहक रही थी.

शर्मिला भी बोली, ‘‘सच तो है, चलिए…आज सब लोग आइसक्रीम खाएंगे.’’

‘‘ठीक है, आइसक्रीम खिला देंगे पर मैं तो इतनी बड़ी घोड़ी का बाप पहले से ही बना दिया गया हूं. तब तो किसी ने कुछ खिलाने की बात नहीं की,’’ मैं ने ईशानी की ओर देख कर कहा.

मेरी बात पर वह जोर से हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘बगल में खड़ी हो जाऊं तो आधी घरवाली लगूंगी और उंगली पकड़ लूं तो…’’

शर्मिला ने मीठी झिड़की दी, ‘‘चल हट, यह मुंह और मसूर की दाल…’’

मेरी बहन सुधा के विवाह में उस की विदाई पर ईशानी मुझे सांत्वना दे रही थी, ‘‘बेटियां तो पराए घर जाती ही हैं.’’

सीमा प्रेमविवाह करना चाहती थी, पर मां इस के लिए तैयार नहीं थीं, तब मैं ईशानी की बात सुन कर दंग रह गया. वह मां को समझा रही थी, ‘‘आप सीमा से नाराज मत होइए. आप के जो भी अरमान रह गए हों, मेरी शादी में पूरे कर लीजिएगा. आप जैसी कहेंगी मैं वैसी ही शादी करूंगी और जिस से कहेंगी, उस से कर लूंगी. बस, अब आप शांत हो जाइए.’’ मैं ने वातावरण को सहज करने के लिए मजाक किया, ‘‘मां कहेंगी, बच्चों के बापू से विवाह कर लो तो करना पड़ेगा…’’

मैं कई वर्षों बाद बेटे का बाप बना था. इस सुख ने मुझे अंदर से पुलकित और पूर्ण बना दिया था. बेटे का नाम रखना था, सो, सब ने अपनेअपने सोचे हुए नाम सुझाए पर निश्चित नहीं हो पा रहा था कि किस के द्वारा सुझाया हुआ नाम रखा जाए. फिर तय किया गया कि सब बारीबारी से बच्चे के कान में नाम का उच्चारण करेंगे, जिस के नाम पर वह जबान खोलेगा उसी का सुझाया गया नाम रखा जाएगा. सब से पहले शर्मिला ने उस का नाम लिया, ‘विराट’, सुधा ने ‘विक्रम’, सीमा ने ‘राघव’, मां ने पुकारा, ‘पुरुषोत्तम’. आखिर में ईशानी की बारी थी. उस ने बच्चे के कान के पास फूंक मारी और ‘अंकित’ कहते ही वह ‘ममम…ऊं…अं…मम…’ गुनगुना उठा.

सब लोग हंस पड़े, तालियां बज उठीं. मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘ईशानी, तू ने आधी घरवाली का रोल अदा किया है.’’ य-पि सुधा को यह अच्छा नहीं लगा था, परंतु मां का चेहरा दमक रहा था. वे बोलीं, ‘‘मौसी है न, मां ही होती है, गया भी तो मौसी पर ही है.’’

सुधा से न रहा गया. वह बोली, ‘‘सब कुछ मौसी का ही लिया है, क्या बात है ईशानी?’’ इस मजाक में य-पि सुधा की चिढ़ छिपी थी पर ईशानी झेंप गई थी. उस की झुकीझुकी पलकें मर्यादा से बोझिल थीं, परंतु होंठों की मुसकराहट में गौरव की झलक थी, ‘‘हां, मुझे मौसी होने पर गर्व है.’’

शर्मिला बीमार पड़ी तो पता चला कि उसे कैंसर ने दबोच लिया है. हम सब लोगों के तो जैसे हाथपांव ही फूल गए. एक ईशानी ही सब को दिलासा दे रही थी. अंकित की देखभाल अब ईशानी ही करती थी.

एक दिन ईशानी डाक्टर के सामने रो पड़ी, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी दीदी को बचा लीजिए.’’ मृत्यु के पूर्व शर्मिला का चेहरा चमकने लगा था. उस के कष्ट जैसे समाप्त ही हो गए थे. ईशानी यह देख कर खुश थी. लेकिन उसे क्या पता था कि मृत्यु इतनी निकट आ गई है. ईशानी अंकित को पैरों पर बिठा कर झुला रही थी, ‘‘बता, तू मुझे दीदी कहेगा या मौसी? बता न, तू मुझे दीदी कहेगा… हां…’’

मैं आरामकुरसी पर बैठा आंखें मूंदे सोने की चेष्टा कर रहा था. पर ईशानी की तोतली बोली में ‘दीदी’ का संबोधन सुन कर मन ही मन हंस पड़ा. मां पास बैठी थीं, बोलीं, ‘‘ईशानी, नीचे गद्दी रख ले, गीला कर देगा,’’ और उन्होंने गद्दी उठा कर उसे दे दी. ईशानी गद्दी रखते हुए दुलार से अंकित से बोली, ‘‘अगर तू दीदी कहेगा तो गीला नहीं करना, मौसी कहेगा तो गीला…’’ मैं हंस पड़ा, ‘‘तुम मौसी हो तो मौसी ही कहेगा न.’’

शर्मिला की सहेलियां उस से मिल कर जा चुकी थीं. भैया भी आ गए थे. शाम हो गई, पर अंकित ने गद्दी गीली नहीं की थी. मां बोलीं, ‘‘देखो तो इस अंकू को, आज गद्दी गीली ही नहीं की.’’ ईशानी जूस बना रही थी, झट से देखने आ गई, ‘‘अरे, वाह, यह हुई न बात.’’ फिर मुझे आवाज दे कर बोली, ‘‘जीजाजी, देखिए, अंकू ने गद्दी गीली नहीं की,’’ और फिर खुद ही झेंप गई. उसी रात साढ़े 11 बजे शर्मिला हम सब से विदा हो गई. अंदर से मैं पूरी तरह ध्वस्त हो गया था, परंतु कुछ ऐसा अनुभव कर रहा था कि ईशानी मुझ से भी ज्यादा बिखर कर चूरचूर हो गई है. उस की गंभीर आंखें देख कर मेरा मन और भी उदास होने लगता. मैं अपना दुख भूल कर उसे समझाने की चेष्टा करता, परंतु वह मेरे सामने पड़ने से कतरा जाती.

समय बीतने लगा. अंकित ईशानी के बिना नहीं रहता था. वह उसे कईकई दिनों के लिए अपने साथ ले जाने लगी. मैं ही अंकित से मिलने चला जाता. अंकित का जन्मदिन आने वाला था. मां अपनी योजनाएं बनाने लगीं. सुधा, सीमा को भी निमंत्रण भेजा गया. ईशानी और मैं बड़े पैमाने पर जन्मदिन मनाने के पक्ष में नहीं थे. पर मां का कहना था कि वे अपने पोते के जन्मदिन पर शानदार दावत देंगी.

मां और ईशानी का विवाद चल रहा था. ऐसा लग रहा था कि मां खिसिया गई हैं, तभी उन्होंने यह प्रस्ताव रख दिया, ‘‘ईशानी, तुम जब अंकित पर इतना अधिकार समझती हो तो उसे सौतेला बेटा बनने से बचा लो,’’ और वे रोने लगीं. सब चुप थे. शीघ्र ही मां ने धीरेधीरे कहा, ‘‘तुम एक बार यहां इस की मां बन कर आ जाओ, बेटी. अंकित अनाथ होने से बच जाएगा…’’ ईशानी उठ कर चली गई थी. वह अंकित के जन्मदिन पर भी नहीं आई. अंकित रोता, चिड़चिड़ाता, बीमार पड़ा, तब भी वह नहीं आई. मां अंकित की देखरेख करती थक जातीं. मेरा बेटा ईशानी के बिना नहीं रह सकता, यह मैं जानता था. वह निरंतर दुर्बल होता जा रहा था. क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा था. लगभग 2 माह बीत गए. फिर इस विषय पर कोई बातचीत न हुई. एक शाम मैं उदास बैठा ईशानी के बारे में ही सोच रहा था. साथ ही, मां के प्रस्ताव की भी याद आ गई. लेकिन मैं ने ईशानी को कभी उस नजर से नहीं देखा था. मुझे उम्मीद नहीं थी कि विशाल नभ के नीचे फैली नीली नदी में भी झील उतर सकती है और उस में गुलाबी कमल खिल सकते हैं.

तभी भैया को आते देखा तो मैं उठ खड़ा हुआ, ‘‘आइए, मां देखो तो, भैया आए हैं.’’ मां झट से अंकित को गोद में उठाए आ गईं.

भैया ने कहा, ‘‘यह पत्र ईशानी ने दिया है,’’ और वह पत्र मेरे हाथ में दे दिया.

मैं कुछ घबरा गया, ‘‘सब ठीक तो है न, भैया?’’ ‘‘हां, सब ठीक ही है,’’ कहते हुए उन्होंने अंकित को गोद में ले लिया, ‘‘मैं इसे ले जा रहा हूं. घुमा कर थोड़ी देर में ले आऊंगा,’’ और वे अंकित को ले कर चले गए. ‘‘क्या बात है बेटा, देखो तो क्या लिखा है? मालूम नहीं, वह क्या सोच रही होगी, मुझे ऐसा प्रस्ताव नहीं रखना चाहिए था. सचमुच उस दिन से मैं पछता रही हूं. वह घर नहीं आती तो अच्छा नहीं लगता…’’ और मां की आंखों में आंसू आ गए. मैं ने पत्र खोला. उस में लिखा था…

‘मां, मैं बहुत सोचविचार कर, भैया से पूछ कर फैसला कर रही हूं. मुझे आप का प्रस्ताव स्वीकार है, ईशानी.’ मुझे अचानक महसूस हुआ जैसे सचमुच नीली झील में गुलाबी कमल खिल गए हैं.

पेचीदा हल – भाग 1 : नई जिंदगी जीना चाहता था संजीव

शिखाके पति संजीव का रोहित सब से अच्छा दोस्त था. उस  का महीना भर पहले अंजलि से रिश्ता तय हुआ था. उस शनिवार की शाम को अंजलि बिना फोन किए शिखा से मिलने उस के घर आईर् थी.

खुल कर हंसनेबोलने वाली अंजलि को खोयाखोया सा देख शिखा ने कुछ देर के औपचारिक वार्त्तालाप के बाद उस से पूछ लिया, ‘‘तुम आज परेशान क्यों लग रही हो?’’

अंजलि एकदम संजीदा हो कर बोली, ‘‘शिखा भाभी, मैं अमन के बारे में आप से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘यह अमन कौन है?’’

‘‘हम दोनों कभी एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे,’’ अंजलि ने  िझ झकते लहजे में उसे जानकारी दी.

‘‘फिर तुम दोनों ने शादी क्यों नहीं करी?’’ अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए

शिखा ने सवाल किया.

‘‘हमारी जाति का न होने के कारण अमन ओबीसी कैटेगरी का है पर पढ़ने में अच्छा था, इसलिए आज बहुत ऊंची नौकरी पर है. मेरे मातापिता अमन के साथ मेरी शादी करने के

लिए बिलकुल तैयार नहीं हुए थे. फिर अमन ने

6 महीने पहले अपनी बिरादरी में अरेंज्ड मैरिज कर ली, पर वह उसे कतई रास नहीं आई है. वह व्हाट्सऐप पर मेरे संदेश और दोनों के फोटो अभी भी संभाले रख रहा है और बारबार उन्हें देख कर आंहें भरता है. इसीलिए पतिपत्नी के बीच बनी नहीं, दोनों आज की तारीख में अलगअलग रह रहे हैं.’’

‘‘अमन के साथ तुम्हारी मुलाकात अब भी होती है?’’

‘‘हां, होती है,’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद अंजलि ने अमन से मिलने की बात स्वीकार कर ली, ‘‘तभी तो मु झे ये सब पता चला है कि अगर मैं उस से नहीं मिली तो वह आत्महत्या

कर लेगा.’’

शिखा ने संजीदा लहजे में पूछा, ‘‘तुम अमन के बारे में मु झ से क्या बात करना चाहती हो?’’

‘‘मु झे उस से अभी भी मिलने जाना पड़ता है, भाभी. मैं ऐसा न करूं तो वह दुखी और निराश हो कर मरने की बात कहता है,’’  अंजलि एकदम भावुक हो उठी.

‘‘मेरी सम झ से तुम्हारा अमन से अब भी मिलते रहना गलत है, अंजलि. यह बात जब कभी रोहित को पता लगेगी, तो उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘भाभी, मैं इस बात को अच्छी तरह से सम झती हूं, पर मैं उस से मिलने जाने को मजबूर हूं. उसे निराशा और उदासी के कुहरे से निकालना मैं अपनी जिम्मेदारी मानती हूं भाभी.’’

‘‘देखो, कुछ हफ्तों के बाद तुम्हारी शादी रोहित से होने जा रही है और यों भावुक हो कर अपनी भावी खुशियों को दांव पर लगाना तुम्हारे हित में नहीं होगा अंजलि.’’

‘‘इसी सिलसिले में मु झे आप की हैल्प चाहिए,’’ अंजलि की आंखों में बेचैनी के भाव साफ दिखाई दे रहे थे.

‘‘मु झ से कैसी हैल्प चाहिए?’’

‘‘मैं चाहती हूं कि शादी के बाद भी रोहित को मेरे अमन से मिलने जाने की बात न मालूम पड़े और यह काम आप की सहायता के बिना नहीं हो सकेगा भाभी.’’

‘‘मु झे तुम्हारी क्या सहायता करनी

होगी?’’ शिखा जबरदस्त उल झन का शिकार

बन गई.

‘‘भाभी, मैं आप के साथ घूमने का बहाना बना कर उस से मिलने जाया करूंगी.’’

‘‘तुम बेकार की बात कर के मेरा दिमाग खराब…’’

‘‘भाभी, आप पहले मेरी पूरी बात सुन लो, प्लीज,’’ अंजलि ने उसे टोक दिया, ‘‘आप अगर मेरे साथ होंगी, तो रोहित को किसी तरह का शक कभी नहीं होगा. आप को इस नाजुक मामले में मेरी सहायता करनी ही पड़ेगी भाभी. अगर अमन ने आत्महत्या…’’

‘‘सौरी, अंजलि, पर तुम कैसी भी दलील दे कर मु झे इस तरह के गलत काम में अपना साथ देने के लिए कभी राजी नहीं कर सकोगी.’’

अंजलि ने उसे मनाने की कोशिश नहीं छोड़ी और कहा, ‘‘अमन मेरे मामा के घर के

पास रहता है. कभी रोहित या संजीव भैया द्वारा पूछताछ करने की नौबत आई, तो कह दिया

करेंगे कि हम मामामामी से मिलने जा रहे थे कि अमन की मां ने हमें आवाज दे कर अपने घर बुला लिया. आप के मेरे साथ होने के कारण रोहित या संजीव भैया को कभी मु झ पर शक

नहीं होगा.’’

‘‘तुम संजीव के गुस्से को नहीं जानती हो अंजलि. मु झ से इस मामले में कैसी भी सहायता की उम्मीद मत रखो,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तब आप एक काम करो. मेरी तरफ से उन्हें आश्वासन जरूर देना कि अमन

के दिमागी हालत से ठीक होते ही मैं उस से मिलना बिलकुल बंद कर दूंगी.’’

‘‘वे इस काम में सहयोग करने के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘आप उन्हें सम झाने की कोशिश तो करो. फिर कल मैं उन से खुद मिल लूंगी,’’ अंजलि थके से अंदाज में जाने के लिए खड़ी हो गई, ‘‘आप भैया से यह जरूर कह देना कि वे अमन के बारे में रोहित से कुछ न कहें.’’

‘‘तुम सम झदारी दिखाते हुए अमन से मिलना एकदम बंद कर दो अंजलि. रोहित…’’

शिखा को टोकते हुए अंजलि भावुक लहजे में बोली, ‘‘ऐसी बेरुखी दिखा कर मैं उसे मौत के मुंह में नहीं धकेल सकती हूं. मेरी कायरता की सजा वह नहीं भुगतेगा भाभी,’’ अपना फैसला सुना कर अंजलि मुड़ी और मुख्य द्वार की तरफ चल पड़ी.

उस रात संजीव देर से घर लौटा. वह प्रौपर्टी का साइड बिजनैस करता था और रोहित के साथ जयपुर के पास बन रहे नए फ्लैटों को देखने सुबह जल्दी निकल गया था.

रात को खाना खाने के बाद छत पर घूमते

हुए शिखा ने अंजलि के साथ हुई सारी

बात संजीव को बता दी. अंजलि अभी भी अपने पुराने प्रेमी अमन के साथ संपर्क बनाए रखना चाहती है, यह बात सुन कर उसे बहुत गुस्सा आया.

‘‘इस शादी को मु झे रोकना ही पड़ेगा,’’ संजीव गुस्से से भर कर बोला, ‘‘मु झे तो लगता है कि अभी भी इन दोनों के बीच गलत तरह का रिश्ता बना हुआ है. एक बार को हम मान लें कि इस समय अंजलि के मन में कोई खोट नहीं है, पर रोहित के साथ शादी हो जाने के बाद अगर उस के पांव फिसल गए, तो रोहित का क्या होगा? इस मामले में बेकार का रिस्क लिया ही क्यों जाए?’’

‘‘रोहित भैया को इस रिश्ते के टूटने से बहुत दुख होगा,’’ शिखा एकदम से उदास हो गई.

‘‘हां, वह अंजलि को बहुत प्यार करने

लगा है, पर बाद के  झं झटों से बचने के लिए

उस का अंजलि से शादी न करना ही ठीक रहेगा.’’

‘‘आप कल अंजलि को सम झाने की कोशिश नहीं करोगे?’’

‘‘नहीं, उसे सम झाने की कोई तुक मु झे

नजर नहीं आ रही है. मैं तो जोर दे

कर कहूंगा कि वह रोहित की जिंदगी से चुपचाप निकल जाए,’’ कठोर लहजे में अपनी राय बता कर संजीव नीचे जाने के लिए सीढि़यों की तरफ

चल पड़ा.

संजीव ने अगले दिन सुबह 10 बजे अंजलि से एक रेस्तरां में मुलाकात करी. कोने की मेज पर बैठ कर दोनों ने गंभीर लहजे में अमन को ले कर बातें करना शुरू किया.

‘‘तुम्हारी अमन से रिश्ता बनाए रखने की जिद तुम दोनों के

बीच देरसवेर गहरी अनबन का कारण बन जाएगी. मैं उसे तुम्हारे साथ शादी करने की सलाह नहीं दूंगा,’’ रोहित ने शुष्क लहजे में अपना मत उसे बता दिया.

‘‘पर हमारी शादी

हो कर रहेगी क्योंकि हम एकदूसरे को बहुत चाहते हैं,’’ अपनी इच्छा बताते हुए अंजलि की आवाज में दृढ़ता की कोईर् कमी नजर नहीं आ रही थी, ‘‘मैं ने शिखा भाभी को इस समस्या का हल बताया है.’’

‘‘रोहित को धोखे में रख कर तुम अमन से मिलती रहो, ऐसा करने में वह तुम्हारा साथ बिलकुल

नहीं देगी.’’

‘‘फिर मैं किसी और तरह से इस समस्या का हल ढूंढ़ूगी. प्लीज, आप इस

मामले में रोहित से कुछ मत कहना.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता. मैं अपने दोस्त को ये सब बातें जरूर बताऊंगा.’’

‘‘आप ने अगर रोहित को कुछ भी बताया तो ठीक नहीं होगा,’’ अंजलि ने उसे सख्त स्वर में चेतावनी दे डाली.

‘‘क्या तुम मु झे धमकी दे रही हो?’’ संजीव को भी फौरन गुस्सा आ गया.

‘‘आप ऐसा ही सम झ लो.’’

‘‘तब तो मैं उसे सबकुछ बताने अभी जाऊंगा.’’

‘‘तब मैं भी इसी वक्त शिखा भाभी से मिलने जा रही हूं.’’

‘‘ उस से मिलने क्यों जा रही हो?’’ संजीव ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘मैं उन्हें मानसी के बारे में सबकुछ बता दूंगी.’’

‘‘यह मानसी कौन है?’’ संजीव की आंखों से उभरे चिंता के भाव साफ बता रहे थे कि अंजलि की बात सुन कर उसे मन ही मन तेज  झटका लगा है.

‘‘मानसी वही है जिस के साथ आप ने शिखा भाभी से शादी करने के बाद भी इश्क का चक्कर चला रखा है.’’

‘‘बेकार की बकवास मत करो. मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं चल रहा है.’’

‘‘मैं आप की जानकारी के लिए बता दूं

कि मैं एक ऐसे इंसान को जानती हूं जो आप

की गलत हरकतों के बारे में सारी जानकारी

रखता है.’’

‘‘तब क्या उस ने तुम्हें यह नहीं बताया

कि मानसी और मैं सिर्फ अच्छे दोस्त हैं और

 

मां आनंदेश्वरी: भाग 3- पोस्टर देख के नलिनी हैरान क्यों हो गई

वह गुस्से के कारण तमतमा उठी थी.‘‘एक ओर उस का अपना सपना पूरा होने वाला था, वह स्वतंत्ररूप से कथावाचक बन कर मंच पर बैठ कर कथा सुनाने वाली थी, दूसरी ओर जिन बच्चों के स्वर्णिम भविष्य के जो सपने वह देख रही थी वे सब टूटते दिखाई पड़ रहे थे.

लेकिन अपने मन का दर्द कहे भी तो किस से, इस दुनिया में कोई भी तो ऐसा नहीं था जो उस के मन की पीड़ा बांट सके. वह बिलख उठी थी. उसे अपने चारों तरफ अंधकार ही अंधकार दिखाई पड़ रहा था. वह समझ तो गई कि माताजी ने उस के साथ बदला लेने के लिए रूपा को कहीं गायब किया है.

वह यह भी जान रही थी कि स्वामीजी को भी सबकुछ अवश्य मालूम है. उन्होंने उस के पर काटने के लिए बेटी को अपना हथियार बनाया है. ‘‘स्वामीजी के पैरों पर गिर कर वह घंटों तक सिसकती रही थी, ‘स्वामीजी. मैं आजीवन आप की गुलाम बनी रहूंगी, बस, आप मेरी बेटी रूपा को बुला कर दिखा दीजिए.

बेटे बलराम को यहां से हटा कर होस्टल में पढ़ने के लिए उस का एडमिशन करवा दीजिए.’‘‘वे नाराज हो कर बोले, ‘मैं तो बराबर तुम्हारे साथ था. मुझे स्वयं नहीं मालूम. आप माताजी से पूछिए, वे सब बता देंगी.’ ‘‘जब स्वामीजी ने माताजी को पुलिस का डर दिखाया तो उन्होंने कबूला, ‘रूपा ने मलंग के साथ शादी कर ली है. वह डर के मारे नहीं आ रही है. वह उन के संपर्क में है.’ ‘‘मलंग कथा में कृष्ण का रूप धारण करता था और माताजी का करीबी था.

वह लगभग 35 साल का आकर्षक रंगरूप का आदमी था. सब से बड़ी खासीयत उस की चिकनीचुपड़ी, मीठीमीठी बातें… बस, रूपा को उस ने अपनी बातों में ही फंसा लिया होगा, आनंदी अपनी बेबसी पर सिसकती रही थी. माताजी ने उस के साथ खूब बदला लिया था.

‘‘अब वह बेटे को इन सब से दूर करना चाहती थी जहां इस जगह की उस पर परछाईं भी न पड़े. अभी वह 10 वर्ष का पूरा हुआ था और कक्षा 4 में था. वह पढ़ने के बजाय मोबाइल पर वीडियो देखता या गेम खेलता था. पहले तो स्वामीजी नाराज हो कर बोले, ‘इस की फीस कौन भरेगा?’लेकिन जब आनंदी ज्यादा रोईगिड़गिड़ाई तो वे पिघल गए.‘‘उन के अपना कोई बेटा नहीं था, इसलिए स्वामीजी बलराम को अपना बेटा कहा करते थे.

उन्होंने किसी भक्त से कह कर तुरंत उस का एक बोर्डिंग स्कूल में एडमिशन करवा दिया. सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि उस के जीवन में इतना कुछ घटित हो चुका है.‘बोर्डिंग में जाते समय बलराम उस से लिपट कर रोता रहा था.

उस की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली थी, यहां तक कि स्वामीजी की भी आंखें भीग उठीं तो वे अंदर चले गए थे.‘बलराम बेटा, तुम पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े होना.’ आज उस की ममता बिलख उठी थी परंतु वह उस के भविष्य की सुनिश्चितता के लिए सबकुछ सहने को तैयार थी.’’

बूआ उस आश्रम में दर्शन करने अकसर जाया करती थीं. आनंदी के चेहरे पर छाई उदासी को देख वे पूछ बैठीं, ‘आनंदी, आज तुम्हें बहुत दिनों के बाद देख रही हूं. तुम्हारा चेहरा बुझा हुआ दिखाई पड़ रहा है?’ उस की आंखें भीग उठी थीं. उस ने आंखों से अपने कमरे की ओर आने का इशारा किया था.

वहां सभी लोग उन दोनों के आपसी संबंधों के बारे जानते थे, इसलिए कुछ नया नहीं था. जब वह कमरे में आई तो उन के कंधे पर सिर रख कर पहले खूब रोई, फिर बोली, ‘दीदी, मैं ने स्वामीजी की शरण ली कि यहां पर मुझे भगवान मिलेंगे और मैं शांति से जी सकूंगी. कम से कम अगला जन्म तो सुधर जाएगा लेकिन दीदी, यहां का जीवन देख कर तो मन वितृष्णा से व्यथित हो उठा है.

सोचा था कि भगवान की शरण में रह कर किसी तरह से बच्चों को पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा कर दूंगी. लेकिन यहां पर तो धर्म की आड़ में वही धन की लिप्सा, भोगलिप्सा, सामदामदंडभेद से येनकेन प्रकारेण समाज में अपने को श्रेष्ठ दिखाने की होड़ में लगी रहती है. दूसरों की जमीन, धन और स्त्री पर गिद्ध दृष्टि रहती है. ये स्वामीजी, दूसरे कथावाचक, जो समाज में भगवान के समान पूजे जाते हैं, अंदर से सब खोखले होते हैं.

इन के अंदर भी वही मानवीय अवगुण भरे हुए हैं जो सामान्य इंसान में होते हैं. ये अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए दान करो, दान करो का गान करते रहते हैं ताकि ये संपन्न हो कर अपने लिए सुखसुविधा जुटा कर बड़ेबड़े आश्रम बना कर समाज में अपना वैभव दिखा कर सर्वश्रेष्ठ स्थान पर आसीन हो सकें.  ‘समस्या निदान के नाम पर ये लोगों की भावनाओं से खेल कर, उन्हें ठग कर अपना खजाना भरते हैं. ये नशा भी करते हैं, साथ में अन्य असामाजिक कृत्यों में भी संलग्न रहते हैं.

जो भी इन के जाल में फंस जाता है, उस का निकलना मुश्किल हो जाता है क्योंकि? कभी भविष्य का डर दिखाते हैं तो कभी भविष्य की सपनीली दुनिया. ‘दीदी, आप तो लिखती हैं, मेरे जीवन की कहानी जरूर लिखना, कम से कम यहां की असलियत तो बाहर की दुनिया

जाने.‘दीदी, अब मुझे अपनी परीक्षा की तैयारी करनी है क्योंकि कल से ही मेरी फाइनल परीक्षा शुरू है,’ कहती हुई व अपने आंसू पोंछती हुई मुझे बाहर जाने का इशारा किया लेकिन उस की बेबसी देख कर मुझे बहुत दर्द हुआ.

वह अपनी कथा के रिहर्सल में जुट गई थी. आखिर, उस के लिए भी तो परीक्षा की घड़ी थी, जिस में उसे जरूर से पास हो कर खरा उतरना जरूरी था. आखिर, उस के भी तो भविष्य का सवाल था. सुनतेसुनते नलिनी कब झपकी आ गई थी, पता ही नहीं लगा था. जब सूर्य की रश्मियों ने कमरे में उजाला भर दिया तब वह हड़बड़ा कर उठ बैठी थी.  मामी विशेष कमरे में घंटी बजा रही थीं और मधुर स्वर में गा रही थीं, ‘जागो मोहन प्यारे…’वह अभी भी आनंदी के फर्श से अर्श के संघर्ष की कहानी में खोई हुई थी. तभी मामी की आवाज से तंद्रा टूटी थी, ‘‘नलिनी दी उठ गईं.’’ मासूम आनंदी से मां आनंदेश्वरी बनने की कहानी तो वास्तव में बहुत संघर्षभरी जीवन गाथा है. प्रसन्नता इस बात की है कि वह अपने प्रयास में सफल हुई.

बीच राह में: भाग 3- अनिता ने अपना घर क्यों नहीं बसाया

अनिता को जबयह खबर मिली तो वह फौरन अस्पताल पहुंचगई थी.डाक्टर आनंद उस के प्रेरणास्रोत, मागर्दशक, प्रेमी और हमसफर थे. उन्हें असहाय हालत में आईसीयू में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ते देख वह रो पड़ी थी, ‘‘डाक्टर साहब तुम्हें बहुत काबिल मानते हैं, अनिता. उन्हें स्वस्थ कर के मुझे सौंपने की जिम्मेदारी तुम्हारी है,’’ आईसीयू के बाहर सीमा भी उस के गले लग कर बहुतरोई थी.सीमा की खास प्रार्थना पर उसे डाक्टर आनंद की देखभाल पर लगाया गया था.

जब तक वे खतरे में रहे, तब तक किसी ने अनिता की आंखों में आंसू की 1 बूंद नहीं देखी थी. जिस दिन केस इंचार्ज डाक्टर राजीव ने उन्हें खतरे से बाहर बताया, उस रात वह अपने फ्लैट के एकांत में फूटफूट कर रोई थी.‘‘डाक्टर आनंद को दिल का दौरा पड़ा था.

उन्हें लंबे समय तक आराम करना पड़ेगा. वे अब 60 के तो हो चले हैं. मुझे नहीं लगता कि वे अब ड्यूटी पर कभी लौट सकेंगे,’’ डाक्टर राजीव की ये बातें हथौड़े सी उस के दिमाग में सारी रात पड़ती रही थीं.

जब वे वार्ड में शिफ्ट हुए तो उन की पत्नी सीमा रात को उन के साथ रुकने लगी थीं.‘‘आप मैडम से कहो कि वे रात को न रुकें. मैं हूं न आप की देखभाल के लिए.’’ अनिता ने डाक्टर आनंद पर सीमा को आने से मना करने के लिए दबाव डाला.‘‘वह नहीं मानेगी,’’ डाक्टर आनंद का यह जवाब सुन कर अनिता का मन बुझ सा गया.

सीमा की मौजूदगी के कारण वह रात को डाक्टर आनंद से दिल की बातें करने के अवसर से वंचित जो रह जाती थी. पूरे 20 साल में इकट्ठी हुईयादों को एक रात में जी लेना संभव नहीं.

वक्त अपनीरफ्तार से चलता रहा और सुबहहो गई. अनिता को डाक्टर आनंद से 2 बातें करने का मौका तब मिला जब सीमा गुसलखाने में फ्रैश होने गई थीं.

डाक्टर आनंद ने उस का हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना.’’‘‘मेरी फिक्र करने के बजाय आप सारा ध्यान खुद को ठीक करने में लगाना,’’ उन का कमजोर सा चेहरा देख कर अनिता का गलारुंध गया.

‘‘मैं अपने अंदर जीने का जोश महसूस नहीं कर रहा हूं.बेटा कह रहा है कि मैं उस के पास आ कर मुंबई में रहूं… मेरा दिल कैसे लगेगा अनजान शहर में जा कर? मैं तुम से दूर नहीं जाना चाहता हूं…’’‘‘परिवार के बीच रहने से दिल क्यों नहीं लगेगा? आप यों मन छोटा न करो.’’‘‘मेरे कारण तुम्हारा तो परिवार भी नहीं बसा.

मैं 20 साल पहले अगर किसी तरह से आज की इन परिस्थितियों को देख पाता तो कभी तुम से इतना गहरा रिश्ता न बनाता. दिल के रिश्ते बनाने में उम्र का इतना बड़ा अंतर होना गलत है. तुम्हें बीच राह में यों अकेला छोड़ देने का मुझे बहुत अफसोस है, अनिता,’’ डाक्टर आनंद की आंसुओं से पलकें भीग गईं.

सीमा के गुसलखाने से बाहर आने की आवाज सुन कर अनिता सिर्फ इतना ही कह सकी थी, ‘‘आप के साथ बिताए प्यार के पलों की यादें मेरे लिए बहुत खास हैं.

मझे अगर फिर से जिंदगी जीने का मौका मिले तो भी मैं आप का साथ ही चुनूंगी.’’ 10 बजे के करीब डाक्टर आनंद अपने बेटेबहू व पत्नी के साथ घर चले गए. सीमा ने अनिता को गले लगा कर डाक्टर आनंद की दिल से सेवा करने के लिए कई बार धन्यवाद दिया.

डाक्टर आनंद ने एक बार उस की तरफ देख कर हाथ हिलाया और फिर कार में बैठ कर चले गए. अनिता के दिल का एक कोना समझ रहा था कि शायद यह उन की आखिरी मुलाकात है.

उन को विदा करने के बाद अनिता ने अपनी आंखों में आंसू नहीं आने दिए. वह यंत्रचालित सी मरीजों की देखभाल में लग गई. धीरेधीरे शाम के 4 बजे तक का समय किसी तरह बीत ही गया. ड्यूटी खत्म कर के अपने फ्लैट पर पहुंची और निढाल सी पलंग पर लेट गई.

उस समय वह अपनेआप को बहुत अकेला और खाली महसूस कर रही थी. समझ में नहीं आ रहा था कि डाक्टर आनंद के साथ के बिना वह अपनी आगे की जिंदगी में खुशियां और उत्साह कैसे पैदा कर पाएगी.

डाक्टर आनंद की यादों के सहारे जीना पड़ सकता है, इस वक्त से पहले उस ने ऐसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी. उसे डाक्टर आनंद के साथ 20 साल तक प्रेम के धागे से जुड़े रहनेका कोई अफसोस नहीं था, पर अकेले ही आगे की जिंदगी काटना बहुत बड़ा बोझ जरूर प्रतीत होरहा था.

प्रैगनैंसी: भाग 3- अरुण को बड़ा सबक कब मिला

दूसरे दिन अरुण पहुंच गया. सभी नौकरों ने सूचना दी कि रूपा का ऐक्सीडैंट हुआ है जब वह 3-4 दोस्तों के साथ थी. उसे चोट तो नहीं लगी पर एक दोस्त बुरी तरह घायल है जिस की वजह से वह शौक में है.

शिखा खामोश थी. वह अरुण को सीधे अपने कमरे में ले गई. अरुण बहुत घबराया

हुआ था. शिखा ने उसे अपने कमरे में ला कर धीरे से कहा, ‘‘आप घबराइए नहीं, कोई

ऐक्सीडैंट नहीं हुआ है. रूपा का मन ठीक है, किसी लड़के ने उसे प्यार में धोखा दे कर छोड़ दिया है,’’ कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए.

अरुण सारी स्थिति समझ गया. पर करता क्या. धीरे से शिखा से बोला, ‘‘अगर कहो तो उस लड़के से बात करूं?’’

शिखा ने समझते हुए कहा, ‘‘क्या बात करोगे. वह लड़का साफ झूठ बोल जाएगा. पहले तो किसी लेडी डाक्टर को दिखा कर यह पता लगाओ कि कहीं रूपा को गर्भ तो नहीं ठहर गया है.’’

यह सुन कर अरुण भी परेशान हो उठा. पर पुरुष होने के नाते उस ने शिखा से कहा,

‘‘तुम घबराओ नहीं, मैं कल ही इंतजाम कर दूंगा. किसी को पता भी नहीं लगेगा.’’

यह सुन कर शिखा की घबराहट थोड़ी कम हो गईर्. फिर अरुण रूपा के कमरे में आया. उस का रूपा से मिलने का उत्साह थोड़ा ठंडा हो गया था. पर उस ने यह जाहिर नहीं किया. बोला, ‘‘रूपा बेटी, कैसी हो?’’

रूपा ने अपना चेहरा झुका लिया. उस की आंखों में लाचारी के आंसू तैरने लगे. वह कुछ बोल नहीं पा रही थी.

अरुण ने ही उस के बाल सहलाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम बिलकुल न घबराओ. अब तो मैं आ ही गया हूं.

वैसे भी घबराने से काम नहीं चलेगा. हिम्मत से काम लो. तुम अब बड़ी भी हो गई हो,’’ कह कर वह शिखा के साथ अपने कमरे में चला गया. शिखा ने बताया कि होम टैस्ट से पता चला है कि वह प्रैगनैंट है.

अरुण शिखा से बोला, ‘‘कल ही जा कर इसे डाक्टर मीना को दिखा देता हूं. वह सबकुछ संभाल लेगी,’’ कहते हुए उस ने अपने कपड़े बदले. खाना पहले से ही तैयार था, सभी ने रूपा के कमरे में ही खाना खाया ताकि नौकरों को पता न लगे कि रूपा के साथ क्या हुआ है.

दूसरे दिन सुबह 9 बजते ही अरुण शिखा और रूपा के साथ गाड़ी में बैठ कर डाक्टर मीना के नर्सिंगहोम में पहुंचा. अरुण ने पहले ही फोन कर दिया था, इसलिए डाक्टर मीना उन का इंतजार कर रही थी.

शिखा ने बहुत धीरे से उन से कहा, ‘‘आप रूपा को जरा देख लीजिए.’’

डाक्टर मीना अनुभवी डाक्टर थी. स्थिति समझते देर नहीं लगी. कहा, ‘‘आप घबराइए नहीं, मैं ऐसे कितने ही मामले ठीक कर चुकी हूं. अगर कुछ होगा भी तो मैं सब संभाल लूंगी,’’ कहते हुए डाक्टर ने अरुण की तरफ देखा.

अरुण कुछ खोया हुआ था, बोला, ‘‘डाक्टर अब आप जानें.’’

डाक्टर मीना रूपा को कमरे में ले गई. शिखा भी उन के साथ चली गई. डाक्टर ने रूपा को पूरी तरह देखा. शिखा को जिस बात का डर था,  रूपा के पेट में 2 महीने का बच्चा पल रहा था.

रूपा चुपचाप आंखें बंद किए रो रही थी. शिखा ने डाक्टर की तरफ देखा और बोली, ‘‘कोई इंजैक्शन दे कर इस को समाप्त कर दीजिए.’’

डाक्टर मीना बोली, ‘‘नहीं, शिखाजी, अब तो अबौर्शन ही करना होगा. अगर आप चाहें तो मैं आज ही यह कर सकती हूं. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी. ऐसे मामले मैं कितने ही कर चुकी हूं. फिर आप तो अपने हैं.’’

यह सुनते ही शिखा बोली, ‘‘मुझ से ज्यादा तो डाक्टर आप सम?ाती हैं. आप जैसा चाहें करें, मैं उन को जा कर बताती हूं.’’

डाक्टर मीना के साथ शिखा बाहर वाले कमरे में आ गई जहां अरुण बैठा हुआ कमरे की हर चीज बड़े ध्यान से देख रहा था. डाक्टर मीना ने आ कर अपनी मेज से एक रजिस्टर निकाला. उस पर कुछ लिखा और फिर अरुण से बोली, ‘‘इस में आप अपने दस्तखत कर दीजिए.’’

इस बीच शिखा ने अरुण को सबकुछ बता दिया था. दस्तखत करते हुए अरुण के हाथ कांपने लगे. उस ने शिखा की तरफ देखा, जिसे वह हमेशा दकियानूसी विचारों की समझता था. उस के आधुनिक विचार कहां गए. शिखा भी अपने पति की तरफ देख रही थी. एक क्षण को उसे लगा कि आज वह अपने पति से जीत गई. कितनी बार वह अपने अंदर की बात अपने पति से कहना चाहती थी.

उस का मन कर रहा था कि वह खूब जोर से हंसे और अरुण से कहे, ‘‘तुम ने मेरी बात कभी नहीं मानी, आज तुम्हारी लड़की ही तुम्हें शिक्षा दे रही है.’’

अरुण से यह सब बरदाश्त नहीं हो पा रहा था. वह जिंदगी में कभी हारना नहीं चाहता था. उस ने शिखा की आंखों की चमक को जैसे पढ़ लिया था. उस ने एकदम जेब से पैन निकाला और दस्तखत कर दिए.

मां आनंदेश्वरी: भाग 2- पोस्टर देख के नलिनी हैरान क्यों हो गई

‘‘बूआ भी उन गुरु सच्चानंद की भक्त बन गई थीं, इसलिए वे भी वहां अकसर दर्शन और कथा सुनने जाया करती थीं. वहां पर उन की मुलाकात आनंदी से हो जाया करती थी.‘‘राधे ने शहर से दूर एक चाल में कमरा लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे.

वह दूध का काम करने के साथ एक हलवाई की दुकान में भी काम करने लगा था. वे लोग 3-4 महीने भी नहीं रह पाए थे कि स्वामीजी के आदमी उन लोगों का पता लगा कर आए और उन लोगों को अपने साथ ले गए. वह अपने कमरे में आ कर खुश हो गई थी लेकिन राधे को यहां आना अच्छा नहीं लगा था. उस ने सख्त ताकीद कर दी थी कि तुम स्वामीजी से दूरी बना कर रहना. ‘‘मंदिर के पीछे कई सारे कमरे बने हुए थे जो प्रबंध कमेटी ने पुजारियों के परिवारों के रहने के लिए बनाए हुए थे.

उस के सिवा भी 8-10 कमरे थे जो यात्रियों के लिए बनाए गए थे लेकिन उन सब कमरों में अब स्वामीजी के चहेते रहते थे. गुरुजी की पत्नी भी वहीं पर रहती थीं. उन के कमरे में एसी लगा था, बड़ा टीवी और सारी सुखसुविधाएं थीं.

यह आश्रम बूआ के घर के पास ही था, इसलिए बूआ वहां पर आनंदी को देख चौंकी थी. लेकिन उस ने इशारे से चुप रहने को कह दिया था. ‘राधे, तुम्हारी बहू तो कमरे में ही घुसी रहती है, बाहर आ कर दर्शन तो कर लिया करे.’जब वह सजधज कर आश्रम में पहुंची तो स्वामीजी वहीं बाहर ही बैठे हुए थे. ‘आनंदी बहू, यहां पर तुम्हें कोई परेशानी या कुछ जरूरत हो तो बता देना. राधे तो एकदम लापरवाह है और गैरजिम्मेदार लड़का है.’‘‘स्वामीजी ने स्वयं उठ कर मंदिर में चढे़ हुए ढेर सारे फल और मिठाई उस की झूली में डाले और बोले, ‘सब बच्चों को ही मत खिलाना, खुद भी खाना.

कितनी कमजोर लग रही हो. मैं राधे से कहूंगा कि मेहरी का बड़ा सुख लेकिन खर्ची का बड़ा दुख.’ उन के चेहरे पर अनोखा तेज देख उस का मन उन के प्रति श्रद्धा से भर उठा था. वह उन के चमकते चेहरे और आकर्षक व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हो गई थी.‘‘स्वामीजी लगभग 40-45 साल के लंबेचौड़े स्वस्थ गठीले बदन के थे.

उन का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था. उन को सुंदरकांड कंठस्थ था. उन्हें संस्कृत के कई सारे श्लोक और मंत्र कंठस्थ थे, जिन्हें अपने मधुर स्वर में गा कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे. उन के आश्रम में एक बड़ा सा वरांडा था जहां रोज कीर्तनभजन और प्रसाद वितरण होता था. वे समयसमय पर दूसरे कथावाचकों को आमंत्रित करते, जिस के कारण वहां भीड़ के साथसाथ चढ़ावा बढ़ता जा रहा था, जिस पर स्वामीजी अपनी काग दृष्टि लगाए रखते थे. ‘‘वहां एक कोने में उन का धार्मिक कार्य करने का एक छोटा सा कमरा था जहां के लिए यह कहा जाता था कि वे वहां पर ध्यान लगाया करते थे.

उस कमरे में उन की आज्ञा के बिना कोई नहीं जा सकता था. वे केवल जोगिया कपड़ा पहनते थे.‘‘स्वामीजी की पत्नी कादंबरीजी को सब लोग माताजी कहते थे. एक दिन माताजी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और कहा, ‘बिटिया, अपना खाना अलग क्यों बनाती हो? यहां प्रसादी बनता ही है, वहीं पर तुम मदद कर दिया करो और सब लोग यहीं पर प्रसाद ग्रहण कर लिया करो.’ वह बहुत खुश हुई थी और उस ने माताजी के पैर पकड़ लिए थे, ‘आप तो मेरी अम्मा से भी बढ़ कर हैं.’  ‘‘सच था कि वहां रसोई में बढि़या खाना देख कर उसे बहुत लालच आया करता था. अब वह वहां पर मदद करती और फिर राजसी भोजन करती. कुछ दिनों में ही उस का शरीर गदबदा उठा और सौंदर्य निखर उठा था.

वह गौर कर रही थी कि वह स्वामीजी की विशेष कृपा का पात्र बनती जा रही थी और उन की नजरें उस का पीछा करती रहती थीं.‘‘स्वामीजी झड़फूंक भी करते थे. वे लोगों की परेशानियों का निदान करने के लिए धार्मिक कार्य के साथ अन्य उपाय भी बताया करते थे. वे बच्चों/बड़ों को एक काला डोरा के साथ भभूत, जिसे वे मंत्रसिक्त या सिद्ध कह कर, दिया करते थे.

उस के एवज में लोग प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दक्षिणा में रुपया आदि दिया करते.‘‘इस के सिवा आश्रम की व्यवस्था के नाम पर उस के नवनिर्माण के लिए लोगों की औकात व श्रद्धा देखपरख कर स्वामीजी रसीद काट दिया करते थे. वह व्यक्ति श्रद्धा के कारण मजबूरीवश पैसा दे दिया करता था.

इसी कारण से उन का आश्रम दिनोंदिन विशाल और भव्य होता जा रहा था. स्वामीजी के प्रति उस का भी श्रद्धाभाव बढ़ता जा रहा था.‘‘उन के धार्मिक कार्य करने वाले कमरे से खूब सुगंधित धुआं बाहर निकलता था. माताजी बताया करतीं कि उन्हें देवीजी की सिद्धि है. वे प्रसाद में लौंग दिया करते और कपूर, गुगुर, लोबान का धुआं या अज्ञारी करवाते.  ‘‘उस छोटे से कक्ष में महिलाएं अपनी समस्या ले कर जाया करतीं, उन से वहां पर विशेष कार्य करवाया जाता था.

उन से विशेष रूप से चढ़ावा चढ़वाने के बाद उन की समस्या के समाधान हो जाने के लिए विशेष मंत्र जाप करने के लिए भी कहा जाता. वह झंक कर जानने की कोशिश करती कि वहां कुछ गलत काम तो नहीं हो रहा. लेकिन माताजी वहां बाहर बैठ कर निगरानी करतीं, इसलिए अंदर क्या होता है, वह कभी नहीं देख पाई थी. वैसे, यह तो उसे पक्का विश्वास था कि स्वामीजी के कमरे के अंदर अकेली महिला के साथ कुछ अनैतिक कार्य अवश्य किया जाता है परंतु वह कभी नहीं देख पाई और न ही किसी से भी सुना.‘‘राधे, स्वामीजी और उन के सब संगीसाथी रात में इकट्ठा हो कर गांजे की चिलम लगाते, नशा किया करते थे. नशे का सामान राधे और गुरुजी का विश्वासपात्र अंगद चुपचाप लाया करते थे.

कई बार माताजी को भी उस ने चिलम लगाते देखा था. राधे ने उसे रात के समय जब सब चिलम से नशा करते, उस समय बाहर निकलने से बिलकुल मना कर दिया था. लेकिन धीरेधीरे राधे नशेड़ची बन कर आश्रम में रहने वाली माला के साथ खुल्लमखुल्ला इश्क लड़ाने लगा था. यहां तक कि वह रातें भी उस के कमरे में गुजारने लगा था.‘‘राधे एक दिन काम पर गया, फिर वह लौट कर ही नहीं आया. कई दिनों बाद उस की लावारिस लाश मिली थी.

क्रौसिंग से जल्दबाजी में ट्रेन के साथ बाइक के साथ घिसटता चला गया था. आनंदी तो बिलकुल बेसहारा हो गई थी. रोतेरोते वह बेहोश हो जाती. उस समय स्वामीजी ने उसे सहारा देते हुए कहा था, ‘राधे नहीं रहा तो क्या हुआ? मैं तुम्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होने दूंगा.’‘‘स्वामीजी के सिवा उस के पास कोई सहारा नहीं था. चारों तरफ अंधकार ही अंधकार छाया हुआ था.

वह पंखविहीन पक्षी की भांति स्वामीजी के चरणों पर अपना सिर रख सिसक पड़ी थी. स्वामीजी ने दिलासा देते हुए उसे अपना विशेष शिष्य बना लिया. लेकिन उन की वासनाभरी नजरें उस के शरीर के आरपार मानो देख रही थीं. कोई भी स्त्री किसी पुरुष की कामुक निगाहों को पलभर में परख लेती है, फिर, वह तो ऐसी निगाहों के धोखे से कई बार गुजर चुकी थी.

अब वह स्वामीजी के सहारे अपने जीवन को नई दिशा दे सकती है, ऐसा वह मन ही मन सोचा करती थी.‘‘विशेष शिष्य बनने के बाद अब वह स्वामीजी की मंडली के साथ दूसरे गांवगांव सत्संग और कथा में जाने लगी थी. उन की समृद्धि और संपन्नता देख वह स्वामीजी के प्रति आकर्षित होती जा रही थी. सार्वजनिक रूप से वह आश्रम की विशेष प्रबंधक कही जाती थी. लेकिन वह जानती थी कि स्वामीजी के जीवन में उस का क्या स्थान था.

जब वह फौर्चुनर गाड़ी में बैठती तो इस सपने के साथ बैठती कि जल्द ही वह भी ऐसी ही गाड़ी और आश्रम की मालकिन बन कर रहेगी. वह स्वामीजी का राजसी ठाटबाट देख वह स्वयं भी मन ही मन उसी तरह की रईसी से रहने की अभिलाषा पाल बैठी थी.  ‘‘आनंदी अपनी जद्दोजहेद में लगी हुई थी, इधर बेटी लक्ष्मी 12 वर्ष की हो चुकी थी और स्कूल के नाम पर वह स्वामीजी के ही एक चेले मलंग के साथ आंखें लड़ा रही थी. बेटा बलराम सब की नजर बचा कर चिलम के सुट्टे लगाया करता.

उस के सामने दोनों इस तरह से कौपीकिताब के पेज पलटते मानो पढ़ाई के सिवा कुछ जानते ही नहीं. वह बच्चों की तरफ से निश्चित थी. वे दोनों स्वामीजी से ट्यूशन और हाथ खर्च के लिए रकम लेते रहते. दोनों के पास बड़ेबड़े मोबाइल देख वह खुश होती थी कि उस के बच्चे उस की तरह गरीबी में नहीं बड़े हो रहे हैं.‘‘अब वह अपने को शातिर समझ कर अपने लिए नई राह बनाने चल पड़ी थी.

‘‘उस का प्रोमोशन हो गया था. माताजी वाला कक्ष उस के लिए आवंटित हो गया था. वह स्वामीजी की मुख्य शिष्या के रूप में जानी जाने लगी थी परंतु वह जानसमझ रही थी कि वह स्वामीजी के लिए एक खिलौने की तरह थी, जब तक चाहेंगे उस के शरीर के साथ अपनी भूख मिटाएंगे, फिर उन को जैसे ही कोई नया शिकार पसंद आया, वह किनारे कर दी जाएगी क्योंकि वह उन की तथाकथित पत्नी का हश्र देख रही थी.

उस के देखतेदेखते वे पदच्युत हो कर टूटी टांग के साथ आश्रम के एक छोटे से कोने में आंसू बहाती हुई अपने दिन काट रही थीं.इसलिए कुछ कथाप्रसंगों को आनंदी ने कंठस्थ कर लिया और उसे अकेले में अभ्यास किया करती. चूंकि वह पढ़ना जानती थी, इसलिए वह रोज कथाप्रसंगों को पढ़ती, सुनती और बोलने का अभ्यास करती थी.‘‘उस ने जब एक दिन मोबाइल पर अपनी आवाज में कथा रिकौर्ड कर के चुपचाप रिकौर्डिंग चला दी तो स्वामीजी सुन कर दंग रह गए. वे नाराज हो कर बोल पड़े, ‘तुम तो जल्दी ही मेरी रोजीरोटी ही बंद करवा दोगी.

बंद करो.’’ उन के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई पड़ रही थीं. वे आगे बोले, ‘अब तुम ऐसी हिम्मत मत करना.’‘‘स्वामीजी की संपन्नता दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी. वे भागवत कथा सुनाया करते थे. उन के नाम पर लाखों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. उन का अंदाज बहुत चुटीला और संगीत व नृत्य से भरपूर रहता था, जिस में कथा कम होती थी, मनोरंजन ज्यादा होता था. इसीलिए, भीड़ बेतहाशा उमड़ पड़ती थी. ‘‘उन का कथा सुनाने का रेट बढ़ता जा रहा था.

बुकिंग करवाते समय उन्हें लंबी रकम मिलती, फिर कथा में लोग श्रद्धा से भरपूर चढ़ावा चढ़ाते. स्वामीजी मालामाल होते जा रहे थे. अब उन के पास एक नहीं, दो बड़ी गाडि़यां थीं. वे रेशमी जोगिया कपड़े धारण करने लगे थे. उन के हाथ में महंगी स्मार्ट वाच और बड़ा वाला आइफोन रहने लगा था. उन्होंने विनय नाम के एक पढ़ेलिखे भक्त को मैनेजर बना कर अपौइंट कर लिया था, जो उन की बुकिंग की तारीख तय करता. उन के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लग जाती.

उन की सुरक्षा के लिए उन के साथ 2 गनर रहने लगे थे. उन के पास नेताओं का जमावड़ा रहने लगा था.‘‘आनंदी की रिकौर्डिंग सुनने के बाद उस के सुंदर रूप और मीठे स्वर से स्वामीजी घबराने लगे तो उन्होंने उस के रंगीन कपड़ों पर, साजशृंगार पर प्रतिबंध लगा कर सफेद साड़ी पहनने के लिए मजबूर कर दिया. वह बहुत रोई थी क्योंकि रंगबिरंगी साडि़यों, विशेषकर चुनरी, में उस की जान बसती थी. मजबूर हो कर उसे अपनी मांग से सिंदूर मिटा कर विधवा का वेष धारण करना पड़ा.

अति तो तब हो गई थी जब उन्होंने उस के लंबे बालों पर कैंची चलवा दी थी. उस दिन आनंदी फूटफूट कर रोई थी. लेकिन वह सबकुछ अपने बच्चों के भविष्य के लिए सह रही थी. ‘‘उस ने मन ही मन योजना बना रखी थी कि जब उस की ख्याति बढ़ जाएगी तो वह कथावाचक बन कर अपना अलग आश्रम बना लेगी परंतु स्वामीजी के गुप्तचर उस की हर क्रियाकलाप पर नजर रखते थे.

उन्होंने उसे आगाह किया था, ‘ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करना वरना बरबाद हो जाओगी.’ ‘‘वह स्वामीजी के साथ बहराइच में भागवत कथा के लिए उन की मंडली के साथ गई हुई थी. वह छोटा शहर था, अपार जनसमूह उमड़ पड़ा था क्योंकि आयोजनकर्ता ने कथावाचक के पोस्टर में उस की तसवीर भी छपवा रखी थी और वे लगातार पर्चा बांट कर कथा का प्रचार भी कर रहे थे.

वह अपनी कथा में व्यस्त थी. लगातार उसे एक महीने तक बाहर रहना पड़ा था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. वह अकसर कथामंडली के साथ गांवगांव जाती रहती थी क्योंकि ग्रामीण श्रद्धापूर्वक कथा सुनते थे और जीभर कर दान भी देते थे. ‘‘अब तो गुरुजी की ख्याति बढ़ती जा रही थी, इसलिए बड़ेबड़े शहरों में भी लंबे प्रवास के लिए जाना पड़ता था. वह मना तो कर ही नहीं सकती थी क्योंकि वह उन की मंडली के साथसाथ उन के आनंद के लिए वह आवश्यक सामग्री की तरह थी. उन के लिए वह एक पंथ दो काज थी. वह लगभग 2 महीने के व्यस्त कार्यक्रम के बाद कुछ दिनों के लिए ही लौट कर आई थी. ‘‘घर पर बेटी रूपा को न पा कर जब बेटे से पूछा तो वह बोला, ‘वह तो लगभग एक महीने पहले माताजी की आज्ञा से उन के किसी रिश्तेदार के साथ कुछ पढ़ाई करने गई है.’

‘‘वह समझ नहीं पा रही थी कि बेटी रूपा कहां गई. माताजी से पूछा तो वे गोलमोल जवाब दे कर बोलीं, ‘मुझ से कहा था कि वह कल लौट कर आ जाएगी तो मैं ने हां कर दी थी. वह कहां गई, उन्हें नहीं मालूम.’ इतना कह कर उन्होंने मुंह फेर लिया था.‘‘स्वामीजी से पूछा तो वे लापरवाही से बोले थे, ‘वह बड़ी हो गई है, अपना भलाबुरा जानती है.

तुम नाहक परेशान हो रही हो. अपने अगले प्रोग्राम पर ध्यान दो. इस बार तुम्हारे नाम से अलग से बुकिंग ली है, इसलिए अच्छे से अभ्यास करो और कलपरसों से यहां आश्रम में तुम्हें कथा सुनानी होगी.’ ‘‘इस अप्रत्याशित घटना ने उस के सारे सपनों को धूलधूसरित कर दिया था. वह रातभर सिसकती रही थी.

तुम बिन जिया जाए कैसे

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अपना घर: क्यों तलाक लेनी चाहती थी सुरेखा

विजय की गुस्से भरी आवाज सुनते ही सुरेखा चौंक उठी. उस का मूड खराब था. वह तो विजय के आने का इंतजार कर रही थी कि कब विजय आए और वह अपना गुस्सा उस पर बरसाए क्योंकि आज सुबह औफिस जाते समय विजय ने वादा किया था कि शाम को कहीं घूमने चलेंगे. उस के बाद खरीदारी करेंगे. खाना भी आज होटल में खाएंगे. शाम को 6 बजे से पहले घर पहुंचने का वादा किया था.

4 बजे के बाद सुरेखा ने कई बार विजय के मोबाइल फोन पर बात करनी चाही तो उस का फोन नहीं सुना था. हर बार उस का फोन काट दिया गया था. वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या बात है? जल्दी नहीं आना था तो मना कर देते. बारबार फोन काटने का क्या मतलब?

सुरेखा तो शाम के 5 बजे से ही जाने के लिए तैयार हो गई थी. पता नहीं, औफिस में देर हो रही है या यारदोस्तों के साथ सैरसपाटा हो रहा है. बस, उस का मूड खराब होने लगा था. उसे कमरे की लाइट औन करना भी ध्यान नहीं रहा.

सुरेखा ने विजय की ओर देखा. विजय का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. 2 साल की शादीशुदा जिंदगी में आज वह पहली बार विजय को इतने गुस्से में देख रही थी.

सुरेखा अपना गुस्सा भूल कर हैरान सी बोल उठी, ‘‘यह क्या कह रहे हो? मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं. तुम्हारा फोन मिलाया तो हर बार तुम ने फोन काट दिया. आखिर बात क्या है?’’

‘‘बात तो बहुत बड़ी है. तुम ने मुझे धोखा दिया है. तुम्हारे मातापिता ने मुझे धोखा दिया है.’’

‘‘धोखा… कैसा धोखा?’’ सुरेखा के दिल की धड़कन बढ़ती चली गई.

‘‘तुम्हारे धोखे का मुझे आज पता चल गया है कि तुम शादी से पहले विकास की थी,’’ विजय ने कहा.

यह सुन कर सुरेखा चौंक गई. वह विजय से आंख न मिला पाई और इधरउधर देखने लगी.

‘‘अब तुम चुप क्यों हो गई? शादी को 2 साल होने वाले हैं. इतने दिनों से मैं धोखा खा रहा था. मुझे क्या पता था कि जिस शरीर पर मैं अपना हक समझता था, वह पहले ही कोई पा चुका था और मुझे दी गई उस की जूठन.’’

‘‘नहीं, आप यह गलत कह रहे हो.’’

‘‘क्या तुम विकास से प्यार नहीं करती थी? तुम उस के साथ पता नहीं कहांकहां आतीजाती थी. तुम दोनों को शादी की मंजूरी भी मिल गई थी कि अचानक वह कमबख्त विकास एक हादसे में मर गया. यह सब तो मुझे आज पता चल गया नहीं तो मैं हमेशा धोखे में रहता.’’

यह सुन कर सुरेखा की आंखें भर आईं. वह बोली, ‘‘तुम्हें किसी ने धोखा नहीं दिया है, मेरी किस्मत ने ही मुझे धोखा दिया है जो विकास के साथ ऐसा हो गया था.’’

‘‘तुम ने मुझे अब तक बताया क्यों नहीं?’’

सुरेखा चुप रही.

‘‘अब तुम यहां नहीं रहोगी. मैं तुम जैसी चरित्रहीन और धोखेबाज को अपने घर में नहीं रखूंगा.’’

‘‘विजय, मैं चरित्रहीन नहीं हूं. मेरा यकीन करो.’’

‘‘प्रेमी ही तो मरा है, तुम्हारे मांबाप तो अभी जिंदा हैं. जाओ, वहां दफा हो जाओ. मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहता. अपने धोखेबाज मांबाप से कह देना कि अपना सामान ले जाएं.’’

सुरेखा सब सहन कर सकती थी, पर अपने मातापिता की बेइज्जती सहना उस के वश से बाहर था. वह एकदम बोल उठी, ‘‘तुम मेरे मम्मीपापा को क्यों गाली देते हो?’’

‘‘वे धोखेबाज नहीं हैं तो उन्होंने क्यों नहीं बताया?’’ कहते हुए विजय ने गालियां दे डालीं.

‘‘ठीक है, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रहूंगी,’’ कहते हुए सुरेखा ने एक बैग में कुछ कपड़े भरे और चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई.

सुरेखा रेलवे स्टेशन पर जा पहुंची. रात साढ़े 10 बजे ट्रेन आई.

3 साल पहले एक दिन सुरेखा बाजार में कुछ जरूरी सामान लेने जा रही थी. उस के हाथ में मोबाइल फोन था. तभी एक लड़का उस के हाथ से फोन छीन कर भागने लगा. वह एकदम चिल्लाई ‘पकड़ो… चोरचोर, मेरा मोबाइल…’

बराबर से जाते हुए एक नौजवान ने दौड़ लगाई. वह लड़का मोबाइल फेंक कर भाग गया था. जब उस नौजवान ने मोबाइल लौटाया, तो सुरेखा ने मुसकरा कर धन्यवाद कहा था.

वह युवक विकास ही था जिस के साथ पता नहीं कब सुरेखा प्यार के रास्ते पर चल दी थी.

एक दिन सुरेखा ने मम्मी से कह दिया था कि विकास उस से शादी करने को तैयार है. विकास के मम्मीपापा भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए हैं.

पर उस दिन अचानक सुरेखा के सपनों का महल रेत के घरौंदे की तरह ढह गया जब उसे यह पता चला कि मोटरसाइकिल पर जाते समय एक ट्रक से कुचल जाने पर विकास की मौत हो गई है.

सुरेखा कई महीने तक दुख के सागर में डूबी रही. उस दिन पापा ने बताया था कि एक बहुत अच्छा लड़का विजय मिल गया है. वह प्राइवेट नौकरी करता है.

सुरेखा की विजय से शादी हो गई. एक रात विजय ने कहा था, ‘तुम बहुत खूबसूरत हो सुरेखा. मुझे तुम जैसी ही घरेलू व खूबसूरत पत्नी चाहिए थी. मेरे सपने सच हुए.’

जब कभी सुरेखा विजय की बांहों में होती तो अचानक ही एक विचार से कांप उठती थी कि अगर किसी दिन विजय को विकास के बारे में पता चल गया तो क्या होगा? क्या विजय उसे माफ कर देगा. नहीं, विजय कभी उसे माफ नहीं करेगा क्योंकि सभी मर्द इस मामले में एकजैसे होते हैं. तब क्या उसे बता देना चाहिए? नहीं, वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारे?

आज विजय को पता चल गया और जिस बात का उसे डर था, वही हुआ. पर वह शक, नफरत और अनदेखी के बीच कैसे रह सकती थी?

सुबह सुरेखा मम्मीपापा के पास जा पहुंची थी.

सुरेखा के कमरे से निकल जाने

के बाद भी विजय का गुस्सा बढ़ता

ही जा रहा था. वह सोफे पर पसर गया. धोखेबाज… न जाने खुद को क्या समझती है वह? अच्छा हुआ आज पता चल गया, नहीं तो पता नहीं कब तक उसे धोखे में ही रखा जाता?

2-3 दिन में ही पासपड़ोस में सभी को पता चल गया. काम वाली बाई कमला ने साफसाफ कह दिया, ‘‘देखो बाबूजी, अब मैं काम नहीं करूंगी. जिस घर में औरत नहीं होती, वहां मैं काम नहीं करती. आप मेरा हिसाब कर दो.’’

विजय ने कमला को समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, काम न छोड़ो, 100-200 रुपए और बढ़ा लेना.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मेरी भी मजबूरी है. मैं यहां काम नहीं करूंगी.’’

‘‘जब तक दूसरी काम वाली न मिले, तब तक तो काम कर लेना कमला.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं एक दिन भी काम नहीं करूंगी,’’ कह कर कमला चली गई.

4-5 दिन तक कोई भी काम वाली बाई न मिली तो विजय के सामने बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो गई. सुबह घर व बरतनों की सफाई, शाम को औफिस से थका सा वापस लौटता तो पलंग पर लेट जाता. उसे खाना बनाना नहीं आता था. कभी बाजार में खा लेता. दिन तो जैसेतैसे कट जाता, पर बिस्तर पर लेट कर जब सोने की कोशिश करता तो नींद आंखों से बहुत दूर हो जाती. सुरेखा की याद आते ही गुस्सा व नफरत बढ़ जाती.

रात को देर तक नींद न आने के चलते विजय ने शराब के नशे में डूब

कर सुरेखा को भुलाना चाहा. वह जितना सुरेखा को भुलाना चाहता, वह उतनी ज्यादा याद आती.

एक रात विजय ने शराब के नशे में मदहोश हो कर सुरेखा का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम ने मुझे जो धोखा दिया है, उस की सजा जल्दी ही मिलेगी. मुझे तुम से और तुम्हारे परिवार से नफरत है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मुझे नहीं चाहिए एक चरित्रहीन और धोखेबाज पत्नी. अब तुम सारी उम्र विकास के गम में रोती रहना.’’

उधर से कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘सुन रही हो या बहरी हो गई हो?’’ विजय ने नशे में बहकते हुए कहा.

‘यह क्या आप ने शराब पी रखी है?’ वहां से आवाज आई.

‘‘हां, पी रखी है. मैं रोज पीता हूं. मेरी मरजी है. तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली? धोखेबाज कहीं की.’’

उधर से फोन बंद हो गया.

विजय ने फोन एक तरफ फेंक दिया और देर तक बड़बड़ाता रहा.

औफिस और पासपड़ोस के कुछ साथियों ने विजय को समझाया कि शराब के नशे में डूब कर अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. इस परेशानी का हल शराब नहीं है, पर विजय पर कोई असर नहीं पड़ा. वह शराब के नशे में डूबता चला गया.

एक शाम विजय घर पर ही शराब पीने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. विजय ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘इस समय कौन आ गया मेरा मूड खराब करने को?’’

विजय ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक उठा. सामने उस का पुराना दोस्त अनिल अपनी पत्नी सीमा के साथ था.

‘‘आओ अनिल, अरे यार, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए? सीधे दिल्ली से आ रहे हो क्या?’’ विजय ने पूछा.

‘‘हां, आज ही आने का प्रोग्राम बना था. तुम्हें 2-3 बार फोन भी मिलाया, पर बात नहीं हो सकी.’’

‘‘आओ, अंदर आओ,’’ विजय ने मुसकराते हुए कहा.

विजय ने मेज पर रखी शराब की बोतल, गिलास व खाने का सामान वगैरह उठा कर एक तरफ रख दिया.

अनिल और सीमा सोफे पर बैठ गए. अनिल और विजय अच्छे दोस्त थे, पर वह अनिल की शादी में नहीं जा पाया था. आज पहली बार दोनों उस के पास आए थे.

विजय ने सीमा की ओर देखा तो चौंक गया. 3 साल पहले वह सीमा से मिला था अगरा में, जब अनिल और विजय लालकिला में घूम रहे थे. एक बूढ़ा आदमी उन के पास आ कर बोला था, ‘‘बाबूजी, आगरा घूमने आए हो?’’

‘‘हां,’’ अनिल ने कहा था.

‘‘कुछ शौक रखते हो?’’ बूढ़े ने कहा.

वे दोनों चुपचाप एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

‘‘बाबूजी, आप मेरे साथ चलो. बहुत खूबसूरत है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. बस, कभीकभी आप जैसे बाहर के लोगों को खुश कर देती है,’’ बूढ़े ने कहा था.

वे दोनों उस बूढ़े के साथ एक पुराने से मकान पर पहुंच गए. वहां तीखे नैननक्श वाली सांवली सी एक खूबसूरत लड़की बैठी थी.

अनिल उस लड़की के साथ कमरे में गया था, पर वह नहीं.

वह लड़की सीमा थी, अब अनिल की पत्नी. क्या अनिल ने देह बेचने वाली उस लड़की से शादी कर ली? पर क्यों? ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी जो अनिल को ऐसी लड़की से शादी करनी पड़ी?

‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’ अनिल ने विजय से पूछा.

‘‘वह मायके गई है,’’ विजय के चेहरे पर नफरत और गुस्से की रेखाएं फैलने लगीं.

‘‘तभी तो जाम की महफिल सजाए बैठे हो, यार. तुम तो शराब से दूर भागते थे, फिर ऐसी क्या बात हो गई कि…?’’

‘‘ऐसी कोई खास बात नहीं. बस, वैसे ही पीने का मन कर रहा था. सोचा कि 2 पैग ले लूं…’’ विजय उठता हुआ बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘अरे भाई, खाने की तुम चिंता न करो. खाना सीमा बना लेगी और खाने से पहले चाय भी बना लेगी. रसोई के काम में बहुत कुशल है यह,’’ अनिल ने कहा.

विजय चुप रहा, पर उस के दिमाग में यह सवाल घूम रहा था कि आखिर अनिल ने सीमा से शादी क्यों की?

सीमा उठ कर रसोईघर में चली गई. विजय ने अनिल को सबकुछ सच बता दिया कि उस ने सुरेखा को घर से क्यों निकाला है.

अनिल ने कहा, ‘‘पहचानते हो अपनी भाभी सीमा को?’’

‘‘हां, पहचान तो रहा हूं, पर क्या यह वही है… जब आगरा में हम दोनों घूमने गए थे?’’

‘‘हां विजय, यह वही सीमा है. उस दिन आगरा के उस मकान में वह बूढ़ा ले गया था. मैं ने सीमा में पता नहीं कौन सा खिंचाव व भोलापन पाया कि मेरा मन उस से बातें करने को बेचैन हो उठा था. मैं ने कमरे में पलंग पर बैठते हुए पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम?’’

‘‘यह सुन कर वह बोली थी, ‘क्या करोगे जान कर? आप जिस काम से आए हो, वह करो और जाओ.’

‘‘तब मैं ने कहा था, ‘नहीं, मुझे उस काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है. मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं.’

‘‘वह बोली थी, ‘मेरे बारे में जानना चाहते हो? मुझ से शादी करोगे क्या?’

‘‘उस ने मेरी ओर देख कर कहा तो मैं एकदम सकपका गया था. मैं ने उस से पूछा था, ‘पहले तुम अपने बारे में बताओ न.’

‘‘उस ने बताया था, ‘मेरा नाम सीमा है. वह मेरा चाचा है जो आप को यहां ले कर आया है. आगरा में एक कसबा फतेहाबाद है, हम वहीं के रहने वाले हैं. मेरे मातापिता की एक बस हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद मैं चाचाचाची के घर रहने लगी. मैं 12वीं में पढ़ रही थी तो एक दिन चाचा ने आगरा ला कर मुझे इस काम में धकेल दिया.

‘‘चाचा के पास थोड़ी सी जमीन है जिस में सालभर के गुजारे लायक ही अनाज होता है. कभीकभार चाचा मुझे यहां ले कर आ जाता है.’

‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘जब चाचा ने इस काम में तुम्हें धकेला तो तुम ने विरोध नहीं किया?’

‘‘वह बोली थी, ‘किया था विरोध. बहुत किया था. एक दिन तो मैं ने यमुना में डूब जाना चाहा था. तब किसी ने मुझे बचा लिया था. मैं क्या करती? अकेली कहां जाती? कटी पतंग को लूटने को हजारों हाथ होते हैं. बस, मजबूर हो गई थी चाचा के सामने.’

‘‘फिर मैं ने उस से पूछा था, ‘इस दलदल में धकेलने के बजाय चाचा ने तुम्हारी शादी क्यों नहीं की?’

‘‘वह बोली, ‘मुझे नहीं मालूम…’

‘‘यह सुन कर मैं कुछ सोचने लगा था. तब उस ने पूछा था, ‘क्या सोचने लगे? आप मेरी चिंता मत करो और…’

‘‘कुछ सोच कर मैं ने कहा था, ‘सीमा, मैं तुम्हें इस दलदल से निकाल लूंगा.’

‘‘तो वह बोली थी, ‘रहने दो आप बाबूजी, क्यों मजाक करते हो?’

‘‘लेकिन मैं ने ठान लिया था. मैं ने उस से कहा था, ‘यह मजाक नहीं है. मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दूंगा. मैं तुम से शादी करूंगा.’

‘‘सीमा के चेहरे पर अविश्वास भरी मुसकान थी. एक दिन मैं ने सीमा के चाचा से बात की. एक मंदिर में हम दोनों की शादी हो गई.

‘‘मैं ने कभी सीमा को उस की पिछली जिंदगी की याद नहीं दिलाई. वह मेरा कितना उपकार मानती है कि मैं ने उसे ऐसे दलदल से बाहर निकाला जिस की उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी.’’

यह सुन कर विजय हैरान रह गया. वह अनिल की ओर एकटक देख रहा था. न जाने कितने लोग सीमा के जिस्म से खेले होंगे? आखिर यह सब कैसे सहन कर गया अनिल? क्या अनिल के सीने में दिल नहीं है? अनिल के सामने कोई मजबूरी नहीं थी, फिर भी उस ने सीमा को अपनाया.

अनिल ने कहा, ‘‘यार, भूल तो सभी से होती है. कभी किसी को माफ भी कर के देखो. भूल की सजा तो कोई भी दे सकता है, पर माफ करने वाला कोईकोई होता है. किसी गिरे हुए को ठोकर तो सभी मार सकते हैं, पर उसे उठाने वाले दो हाथ किसीकिसी के होते हैं.’’

तभी सीमा एक ट्रे में चाय के कप व कुछ खाने का सामान ले कर आई और बोली, ‘‘चाय लीजिए.’’

विजय सकपका गया. वह सीमा से आंखें नहीं मिला पा रहा था. वह खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहा था. उसे लग रहा था कि सचमुच उस ने सुरेखा को घर से निकाल कर बहुत बड़ी भूल की है. शक के जाल में वह बुरी तरह उलझ गया था. आज उस जाल से बाहर निकलने के लिए छटपटाहट होने लगी. उसे खुद से ही नफरत हो रही थी.

विजय चुपचाप चाय पी रहा था. अनिल ने कहा, ‘‘अब ज्यादा न सोचो. कल ही जा कर तुम भाभीजी को ले आओ. सब से पहले यह शराब उठा कर बाहर फेंक देना. भाभीजी के आने के बाद तुम्हें इस की जरूरत नहीं पड़ेगी.

‘‘शराब तुम्हें खोखला और बरबाद कर देगी. भाभीजी की याद में जलने से जिंदगी दूभर हो जाएगी. जिस का हाथ थामा है, उसे शक के अंधेरे में इस तरह भटकने के लिए न छोड़ो.

‘‘कुछ त्याग भी कर के देखो यार. वैसे भी इस में भाभीजी की जरा भी गलती नहीं है.’’

विजय को लग रहा था कि अनिल ठीक ही कह रहा है. वह एक भूल तो कर चुका है सुरेखा को घर से निकाल कर, अब तलाक लेने की दूसरी भूल नहीं करेगा. कुछ दिनों में ही उस की और घर की क्या हालत हो गई है. अभी तो जिंदगी का सफर बहुत लंबा है.

‘‘हम 4 दिन बाद लौटेंगे तो भाभीजी से मिल कर जाएंगे,’’ अनिल ने कहा.

विजय ने मोबाइल फोन का स्विच औन किया और दूसरे कमरे में जाता हुआ बोला, ‘‘मैं सुरेखा को फोन कर के आता हूं.’’

अनिल और सीमा ने मुसकुरा कर एकदूसरे की ओर देखा.

विजय ने सुरेखा को फोन मिलाया. उधर से सुरेखा बोली, ‘हैलो.’

‘‘कैसी हो सुरेखा?’’ विजय ने पूछा.

‘मैं ठीक हूं. कब भेज रहे हो तलाक के कागज?’

‘‘सुरेखा, तलाक की बात न करो. मुझे दुख है कि उस दिन मैं ने तुम्हें घर से निकाल दिया था. फिर फोन पर न जाने क्याक्या कहा था. मुझे उस भूल का बहुत पछतावा है.’’

‘पी कर नशे में बोल रहे हो क्या? मुझे पता है कि अब तुम रोज शराब पीने लगे हो.’

‘‘नहीं सुरेखा, अब मैं नशे में नहीं हूं. मैं ने आज नहीं पी है. तुम्हारे बिना यह घर अधूरा है. अब अपना घर संभाल लो. मैं तुम्हें लेने कल आ रहा हूं.’’

उधर से सुरेखा का कोई जवाब

नहीं मिला.

‘‘सुरेखा, तुम चुप क्यों हो?’’

सुरेखा के रोने की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहीं, सुरेखा नहीं, अब मैं तुम्हें रोने नहीं दूंगा. मैं कल ही आ कर मम्मीपापा से भी माफी मांग लूंगा. बस, एक रात की बात है. मैं कल शाम तक तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा.’’

‘मैं इंतजार करूंगी,’ उधर से सुरेखा की आवाज सुनाई दी.

विजय ने फोन बंद किया और अनिल व सीमा को यह सूचना देने के लिए मुसकराता हुआ उन के पास आ गया.

ठूंठ से लिपटी बेल : रूपा को आखिर क्या मिला

रूपा के आफिस में पांव रखते ही सब की नजरें एक बारगी उस की ओर उठ गईं और तुरंत सब फिर अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. सब की नजरों में छिपा कौतूहल दूर अपनी मेज पर बैठे मैं ने देख लिया था. मेरे पास से निकल कर अपनी मेज तक जाते रूपा ने मेरे कंधे पर हलके हाथ से दबाव दे कर कहा, ‘हैलो, स्वीटी.’ उस की इस शरारत पर मैं भी मुसकरा दी.

रूपा में आया परिवर्तन मुझे भी दिखाई पड़ रहा था पर मैं चाहती थी वह खुद ही खुले. मैं जानती थी वह अधिक दिनों तक अपना कोई भी सुखदुख मुझ से छिपा नहीं सकती. हमेशा बुझीबुझी और उदास रहने वाली रूपा को मैं वर्षों से जानती थी. उसे किसी ने हंसतेचहकते शायद ही कभी देखा हो. हंसने, खुश रहने के लिए उस के पास था ही क्या? छोटी उम्र में मां का साया उठ गया था. मां के रहने का दुख शायद कभी भुलाया भी जा सकता था, पर जिस हालात में मां मरी थीं वह भुलाना बहुत ही मुश्किल था.

शराबी बाप के अत्याचारों से मांबेटी हमेशा पीडि़त रहती थीं. मां स्कूल में पढ़ाती थीं और जो तनख्वाह मिलती उस से तो पिताजी की पूरे महीने की शराब भी मुश्किल से चलती थी. पैसे न मिलने पर रूपा के पिता रतनलाल घर का कोई भी सामान उठा कर बेच आते थे. जरा सा भी विरोध उन्हें आक्रामक बना देता. मांबेटी को रुई की तरह धुन कर रख देते.

धीरेधीरे रूपा की मां भूख, तनाव और मारपीट सहतेसहते एक दिन चुपचाप बिना चीखेचिल्लाए चल बसीं. उस वक्त रूपा 9वीं कक्षा में पढ़ती थी. बिना मां की किशोर होती बेटी को एक दिन मौसी आ कर उस को अपने साथ ले गईं. मौसी तो अच्छी थीं, पर उन के बच्चों को रूपा फूटी आंखों न भाई.

मौसी के घर की पूरी जिम्मेदारी धीरेधीरे रूपा पर आ गई. किसी तरह वहीं रह कर रूपा ने ग्रेजुएशन किया. ग्रेजुएशन करते ही रतनलाल आ धमके और सब के विरोध के बावजूद रूपा को अपने साथ ले गए. इतने दिनों बाद उन की ममता उमड़ने का कारण जल्दी ही रूपा की समझ में आ गया. उन्होंने उस के लिए एक नौकरी का प्रबंध कर रखा था.

रूपा की नौकरी लगने के बाद कुछ दिनों तक तो रतनलाल थोड़ेथोड़े कर के शराब के लिए पैसे ऐंठते रहे फिर धीरेधीरे उन की मांग बढ़ती गई. पैसे न मिलने पर चीखतेचिल्लाते और गालियां बकते थे. रूपा 2-3 साडि़यों को साफसुथरा रख कर किसी तरह अपना काम चलाती. चेहरे पर मेघ छाए रहते. सारे सहयोगी उस की जिंदगी से परिचित थे. सभी का व्यवहार उस से बहुत अच्छा था. लंच में चाय तक के लिए उस के पास पैसे न रहते. मैं कभीकभार ही चायनाश्ते  के लिए उसे राजी कर पाती. पूछने पर वह अपनी परेशानियां मुझे बता भी देती थी.

इधर करीब महीने भर से रूपा में एक खास परिवर्तन आया था, जो तुरंत सब की नजरों ने पकड़ लिया. 33 साल की नीरस जिंदगी में शायद पहली बार उस ने ढंग से बाल संवारे थे. उदास होंठों पर एक मदहोश करने वाली मुसकराहट थी. आंखें भी जैसे छलकता जाम हों.

मैं ने सोचा शायद आजकल रूपा के पिता सुधर रहे हों…यह सब इसी कारण हो. करीब 1 माह पहले ही तो रूपा ने एक दिन बताया था कि कैसे चीखतेचिल्लाते और गालियां बकते पिता को रवि भाई समझाबुझा कर बाहर ले गए थे. करीब 1 घंटे बाद पिताजी नशे में धुत्त खुशीखुशी लौटे थे और बिना शोर किए चुपचाप सो गए थे. रवि भाई उस के मौसेरे भाई के दोस्त हैं. पहले 1-2 बार मौसी के घर पर ही मुलाकात हुई थी. अब इसी शहर में बिजनेस कर रहे हैं.

ऐसे ही रूपा ने बातचीत के दौरान बताया था कि अब पिताजी चीखते-चिल्लाते नहीं, क्योंकि रवि भाई की दुकान पर बैठे रहते हैं. काफी रात गए वहीं से पी कर आते हैं और चुपचाप सो जाते हैं.

2 महीने बाद अचानक एक दिन सुबहसुबह रूपा मेरे घर आ पहुंची. बहुत खुश नजर आ रही थी. जैसे जल्दीजल्दी बहुत कुछ बता देना चाहती हो पर मुझे व्यस्त देख उस ने जल्दीजल्दी मेरे काम में मेरा हाथ बंटाना शुरू कर दिया. नाश्ता मेज पर सजा दिया. मुन्ने को नहला कर स्कूल के लिए तैयार कर दिया. पति व बच्चों को भेज कर जब हम दोनों नाश्ता करने बैठीं तो आफिस जाने में अभी डेढ़ घंटा बचा था. रूपा ने ऐलान कर दिया कि आज आफिस से छुट्टी करेंगे. मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘‘क्यों भई, छुट्टी किसलिए. डेढ़ घंटे में तो पूरा नावेल पढ़ा जा सकता है…सुना भी जा सकता है.’’

पर वह डेढ़ घंटे में सिर्फ एक लाइन ही बोल पाई, ‘‘मैं रवि से शादी कर लूं, रत्ना?’’ मैं जैसे आसमान से गिरी, ‘‘रवि से? पर वह तो…’’

‘‘शादीशुदा है, बच्चों वाला है, यही न?’’ मैं आगे सुनने के लिए चुप रही. रूपा ने अपनी छलकती आंखें उठाईं, ‘‘मेरी उम्र तो देख रत्ना, इस साल 34 की हो जाऊंगी. पिताजी मेरी शादी कभी नहीं करेंगे. उन्होंने तो आज तक एक बार भी नहीं कहा कि रूपा के हाथ पीले करने हैं. मुझे…एक घर…एक घर चाहिए, रत्ना. रवि मुझे बहुत चाहते हैं. मेरा बहुत खयाल रखते हैं. आजकल रवि के कारण पिताजी ऊधम भी नहीं करते. रवि के कारण ही मैं चैन की सांस ले पाई हूं. शादी के बाद मैं रवि के पास रहूंगी. पिताजी यहीं अकेले रहें और चीखेंचिल्लाएं.’’

मुझे उस की बुद्धि पर तरस आया. मैं ने कहा, ‘‘यहां तो अकेले पिताजी हैं, वहां सौत और उस के बच्चों के बीच रह कर किस सुख की कल्पना की है तू ने? जरा मैं भी तो सुनूं?’’

उस ने मेरे गले में बांहें डाल दीं, ‘‘ओह रत्ना, तुम समझती क्यों नहीं. वहां मेरे साथ रवि हैं फिर मुझे नौकरी करने की भी जरूरत नहीं. रवि की पत्नी बिलकुल बदसूरत और देहाती है. रवि मेरे बिना रह ही नहीं सकते.’’

इस के बाद की घटनाएं बड़ी तेजी से घटीं. रूपा से तो मुलाकात नहीं हुई, बस, उस की 1 महीने की छुट्टी की अर्जी आफिस में मैं ने देखी. एक दिन सुना दोनों ने कहीं दूसरी जगह जा कर कोर्ट मैरिज कर ली है. इस बीच मुझे दूसरी जगह अच्छी नौकरी मिल गई. जहां मेरा आफिस था वहां से बच्चों का स्कूल भी पास था. इसलिए मेरे पति ने भागदौड़ कर उसी इलाके में मकान का इंतजाम भी कर लिया. इस भागमभाग में मुझे रूपा के बारे में उठती छिटपुट खबरें ही मिलीं कि रूपा उसी आफिस में नौकरी कर रही है, फिर सुना रूपा 1 बेटी की मां बन गई है.

एक ही शहर में रहते हुए भी हमारी मुलाकात एक शादी में 10 साल बाद हुई. करीब 9 साल की बेटी भी उस के साथ थी. देखते ही आ कर लिपट गई. मैं ने पूछा, ‘‘रवि नहीं आए?’’

ठंडा सा जवाब था रूपा का, ‘‘उन्हें अपने काम से फुरसत ही कहां है.’’

रूपा का कुम्हलाया चेहरा यह कहते और बेजान हो गया. उस की बेटी का उदास चेहरा भी झुक गया. मैं ने पूछा, ‘‘रूपा, तुम्हारे पिताजी आजकल कैसे हैं?’’

‘‘वैसे ही जैसे थे,’’ वह बोली.

‘‘कहां रहते हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कभी मेरे पास, कभी गांव में जमीनजायदाद बेचते हैं. पीते रहते हैं, शहर आते हैं तो मैं हूं ही पैसे देने के लिए. महीने में 8-10 दिन यहीं मेरे पास रहते हैं. गांव में पिक्चर हाल जो नहीं है. वहां बोर हो जाते हैं.’’

‘‘पैसे देने से मना क्यों नहीं कर देतीं.’’

‘‘मना करती हूं तो ऐसी भद्दी और गंदी गालियां देते हैं कि सारा महल्ला सुनता है. मेरी बेटी डर कर रोती है. पढ़- लिख नहीं पाती.’’

‘‘घर के बाकी लोग कुछ नहीं कहते. रवि कुछ नहीं कहते?’’

‘‘बाकी कौन से लोग हैं? मैं तो अपने उसी घर में रहती हूं. रात को रवि 10 बजे आते हैं, 12-1 बजे चले जाते हैं. वह भी एक दिन छोड़ कर. बस, हमारा पतिपत्नी का नाता यही 2-3 घंटे का है. घर खर्च देना नहीं पड़ता, कारण, मैं कमाती हूं न.’’

‘‘भई, कुछ तो खर्चा देते ही होंगे. तुझे न सही अपनी बेटी को ही.’’

‘‘और क्या देंगे जब शाबाशी तक तो दे नहीं सकते. नीलूहर साल फर्स्ट आती है. कभी टौफी तक ला कर नहीं दी.’’

नीलू का चेहरा और बुझ गया था. उस का सिर झुक गया. मेरा मन भर आया. बोली, ‘‘पागल, मैं ने तो तुझे पहले ही समझाना चाहा था पर…’’

रूपा की आंखें छलक गईं, ‘‘क्या करती, रत्ना? मुझ जैसी बेसहारा बेल के लिए तो ठूंठ का सहारा भी बड़ी बात थी. फिर वह तो…’’

इतने में हमारे पास 2-3 महिलाएं और आ बैठीं. मैं ने बात बदल दी, ‘‘भई, तेरी बेटी 9 साल की हो गई, अब तो 1 बेटा हो जाना चाहिए था,’’ फिर धीरे से कहा, ‘‘1 बेटा हो जाए तो तुम दोनों का सहारा बने, और नीलू को भाई भी मिल जाए.’’

अचानक नीलू हिचकियां ले कर रोने लगी, ‘‘नहीं चाहिए मुझे भाई, नहीं चाहिए.’’

मैं सहम गई, ‘‘क्या हो गया नीलू बेटे…क्या बात है मुझे बताओ?’’ नीलू को मैं ने गोद में समेट लिया. उस ने हिचकियों के बीच जो कहा सुन कर मैं सन्न रह गई.

‘‘मौसी, वह भी नाना और पापा की तरह मां को तंग करेगा. वह भी लड़का है.’’

मैं हैरान सी उसे गोद में समेटे बैठी उस के भविष्य के बारे में सोचती रह गई. इस नन्ही सी उम्र में उस ने 2 ही पुरुष देखे, एक नाना और दूसरा पापा. दोनों ने उस के कोमल मन पर पुरुष मात्र के लिए एक खौफ और नफरत पैदा कर दी थी.

हम चलने लगे तो रूपा भी चल दी. गेट के बाहर निकले तो रवि को एक महिला के साथ अंदर जाते देखा. समझते देर नहीं लगी कि यह उस की पहली पत्नी है. सेठानियों जैसी गर्वीली चाल, कमर से लटकता चाबियों का गुच्छा और जेवरों से लदी उस अनपढ़ सांवली के चेहरे की चमक के सामने रूपा का गोरा रंग, सुंदर देह, खूबसूरत नाकनक्श, कुम्हलाया सा चेहरा फीका पड़ गया. एक के चेहरे पर पत्नी के अधिकारों की चमक थी तो दूसरी का चेहरा, अपमान और अवहेलना से बुझा हुआ. मैं नहीं चाहती थी कि रूपा और नीलू की नजर भी उन पर पड़े, इसलिए मैं ने जल्दी से कार का दरवाजा खोला और उन्हें पहले अंदर बैठा दिया.

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