प्रैगनैंसी: भाग 1- अरुण को बड़ा सबक कब मिला

शिखा के पास क्या नहीं था. जितना उस ने सोचा भी नहीं था. उस से कहीं अधिक उसे मिला था. लंबाचौड़ा फ्लैट, जिस के छज्जे से समुद्र की लहरें अठखेलियां करती दिखाई पड़ती थीं. उस पर रखे सीमेंट के गमलों में उस ने खूब सारी लताएं लगाई थीं, जो सदाबहार फूलों से लदी रहती थीं. इन सब का सुख लेने के लिए उस ने छज्जे पर सफेद बेंत की कुरसियां डलवा रखी थीं. अकसर वह और उस का पति चांदनी रातों में वहां बैठ कर समुद्र की लहरों को मचलते देखा करते थे. ऐसे में किलकारी मारती उन की बच्ची रूपा उन्हें बारबार धरती पर खींच लाया करती थी.

शिखा का ड्राइंगरूम भी कम खूबसूरत नहीं था. ड्राइंगरूम में लगे बड़ेबड़े शीशे के दरवाजे छज्जे पर ही खुलते थे. उन में से भी समुद्र साफ दिखाई देता था. दीवारों पर लगी बड़ीबड़ी मधुबनी कलाकृतियां आने वाले अतिथियों का मन मोह लेती थीं. बढि़या रैक्सीन का सफेद सोफा तो जैसे ड्राइंगरूम की शान था. उस पर वह इधरउधर गुलदस्ते सजा देती थी. नीली लेस लगे सफेद परदों से पूरा ड्राइंगरूम बहुत भव्य लगता था.

इसी तरह शिखा ने अपना शयनकक्ष भी सजाया हुआ था. पूरा हलका गुलाबी. उस की हर चीज में गुलाबी रंग का स्पर्श था. उस से लगा स्नानघर समूचा संगमरमर से बना था. फ्लैट बनवाते समय उस ने स्नानघर और रसोई पर ज्यादा ध्यान दिया था. उस का खयाल है कि यही दोनों चीजें किसी फ्लैट की जान होती हैं. अगर ये दोनों चीजें अच्छी न हों तो सबकुछ बेकार. इसीलिए उस ने अपने बाथरूम का टब सफेद संगमरमर का बनवाया था. उस के एक तरफ हलके रंगों के प्लास्टिक के परदे थे. जब शिखा उस में नहाती थी तो अपने को रानीमहारानी से कम नहीं समझती थी.

अब तो कहते हुए भी शर्म आती है, पर शुरू में उस ने सोचा था कि उस के 4-5 बच्चे होंगे. इसीलिए उस के उस फ्लैट में 5 कमरे थे. पर वह केवल एक ही बच्ची की मां बन कर रह गई. एक बच्ची के साथ यह फ्लैट उस को बहुत बड़ा लगता था. इसलिए उस ने केवल 3 कमरे अपने लिए सजाए थे, शेष 2 को आने वाले मेहमानों के लिए खाली रख छोड़ा था.

जब से शिखा के पति ने ‘शिपिंग’ कंपनी खोली थी तब से तो वह और भी अकेली हो गईर् थी. उस के पति को अकसर बाहर जाना पड़ता था. कुछ कपड़ों तथा जरूरत के सारे छोटेमोटे सामान के साथ उस के पति की अटैची सदा तैयार रहती. उस की बेटी रूपा कुछ साल बाद बड़ी हो गई थी. कालेज में पढ़ने लगी थी. मां के लिए उस के पास ज्यादा टाइम नहीं था. 4 चौकरों के बीच खिलौनों की तरह चक्कर काटती रहती थी. शिखा क्या करे. करने को कुछ काम ही नहीं था.

कभी कुछ भी करने को न होता तो वह नौकरों से पूरा फ्लैट धुलवा डालती. वह सफाई की शुरू से ही शौकीन थी. इस सफाई में उस का आधा दिन निकल जाता था. कभीकभी वह ड्राइंगरूम के शीशे स्वयं साफ करने लगती थी. उस के नौकर जो पुराने हो चुके थे, उसे काम करने से रोकते रहते थे. पर मन लगाने के लिए उसे कुछ काम तो करना चाहिए ही था. वह उपन्यास पढ़पढ़ कर ऊब गई थी क्योंकि उस के पति का स्टेटस देखते हुए उसे इस आयु में कोई जौब नहीं देगा. वैसे भी वह नौकरी करने की बात सोच भी नहीं सकती थी. पैसों कीकोई कमी नहीं थी.

जब मन बिलकुल न लगता तो दोनों मांबेटी कार ले कर खरीदारी के लिए निकल जाती थीं. थोड़े दिन उसी खरीदारी को व्यवस्थित करने में निकल जाते थे. कुछ दिन तो रूपा की पोशाक के लिए नई डिजाइन सोचने तथा कुछ अलट्रेशन कराने की बताने में ही निकल जाते थे. शिखा को बहुत अच्छा लगता जब उस की डिजाइन पर सिला कपड़ा रूपा पर खूब फबता.

पूरी रौनक तो उन दिनों आती थी, जब उस का पति अरुण दौरे से लौट कर घर आता. नौकरों में भी चहलपहल बढ़ जाती थी. 2 नौकर तो रसोई में जुटे रहते थे. अरुण को जोजो चीजें पसंद होतीं वे सब बनतीं. ऐसे में खाने की मेज पर डोंगों और प्लेटों की एक बाढ़ सी आ जाती. तब शिखा सजीसंवरी घूमती रहती थी.

मगर रूपा तब भी अपने में मस्त रहती. उसे अपनी सहेलियों और मित्रों के साथ इतना अच्छा लगता था कि वह घर को भूल ही जाती थी. उसे पता था, पिताजी जैसे आए हैं, वैसे ही चले जाएंगे. शाम को तो उन से मिलना ही है. बस और क्या चाहिए. फिर बड़ों के साथ बैठ कर उसे क्या मिलेगा. केवल प्यार भरी कोई नसीहत कि ऐसा करो, वैसा न करो, लड़कियों को खाना बनाना आना ही चाहिए, लड़कियों का बाहर बहुत नहीं रहना चाहिए आदिआदि.

जब से रूपा कालेज में पढ़ने लगी थी उसे यह सुनना बहुत बुरा लगने लगा था. शिखा जब उस मोबाइल पर फोन कर के कहती कि रूपा घर आने में देर न किया करो तो रूपा झंझाला उठती और कहती कि बताइए, घर आ कर मैं क्या करूं. यहां तो मेरा मन ही नहीं लगता. इसलिए थोड़ा शीला के घर चली जाती हूं.

जब शिखा उस से कहती कि बेटी, लड़कियों का ज्यादा देर बाहर रहना ठीक नहीं है तो रूपा कहती कि मां, पिताजी तो कभी ऐसा नहीं कहते. तुम हो कि सदा मुझे रोकती ही रहती हो. मां, अब दुनिया पहले से बहुत बदल गई है. लड़केलड़कियों में कोई अंतर नहीं होता आदि  कहती हुई दनादन सीढि़यां उतर जाती.

शिखा यह सब सुन कर भी चुप रह जाती थी. वह सोचने लगती कि क्या सचमुच जमाना बदल गया है. अपने जमाने में उसे अपनी मां और दादी से कितना डर लगता था. उसे स्कूल भी घर का नौकर छोड़ने जाता था. छुट्टी होते ही नौकर स्कूल के दरवाजे पर खड़ा मिलता था. एक दिन स्कूल से सीधे वह सहेली के घर चली गई थी. घर आते ही देखा पिता छड़ी ले कर दरवाजे पर चक्कर लगा रहे थे. मां अंदर अलग परेशान हो रह थी. वह डर के मारे सहम गई थी. बस इतना ही कह पाई थी, ‘‘मां, उस सहेली की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए चली गई थी.’’

मगर आगे के लिए रास्ता बंद हो गया था. पिता बोले थे, ‘‘यदि तुम्हें जाना ही था तो पूछ कर जाती. अब आगे से कभी कहीं नहीं जाना.’’

दादी तो सीधे गालियां ही देने लगी थीं, ‘‘आजकल की लड़कियों को लोकलाज तो है नहीं. जहां चाहे घूमती फिरती हैं.’’

चाहे जो भी हो, वह जमाना था बड़ा अच्छा. लड़कियों में एक सलीका था, लिहाज था. छोटे बड़ों की इज्जत करते थे. पर अब तो हर बात का जवाब उन के पास मौजूद है. वह कैसे सम?ाए रूपा को. उसे लगता है जवानी के तूफान में रूपा बहकती जा रही है. वह कैसे रोके उसे.

एक दिन शिखा ने अरुण से भी कहा, ‘‘अरुण, रूपा को समझओ. तुम तो

बाहर रहते हो, वह दिनभर घर से बाहर रहती है. मेरी एक नहीं सुनती. तुम ने उसे प्यार में सिर पर चढ़ा रखा है. कालेज से भी देर से आने लगी हैं.’’

उत्तर में अरुण ने कहा, ‘‘शिखा, सच कहता हूं तुम अपने दकियानूसी विचारों को छोड़ नहीं पाईं. जमाना देखो, लड़कियां दुनिया नहीं देखेंगी तो सीखेंगी कैसे. फिर तुम किस की पत्नी हो,’’ उस के पति सिर ऊंचा कर के थोड़ा सीना तान कर कहते, ‘‘शिपिंग कंपनी के मालिक की, जिस के 3-3 कारखाने भी हैं. तुम्हें किसी बात की चिंता नहीं करनी चाहिए,’’ अरुण शिखा के कंधे पकड़ मुसकरा दिया.

अरुण उन की बातों से थोड़ा मुसकराने लगती. फिर सोचती, ये सुख के क्षण बेकार की बातों में चले जाएंगे. अरुण 4 दिन के लिए आए हैं, उन को सुख ही सुख देना चाहिए. यह सोच कर वह उन का हाथ पकड़ कर कहने लगती, ‘‘तुम आ जाते हो तो मुझ में नई ताकत आ जाती है. मन कहता है कि तुम से सबकुछ कह डालूं. मेरी आदत तो तुम समझाते ही हो, अकेले में घबरा जाती हूं,’’ कहते हुए वह चुपचाप अपना सिर अरुण के सीने पर रख देती और सुख का एहसास करने लगती.

अरुण भी धीरेधीरे उस के बाल सहलाने लगता और कहता, ‘‘तुम खुश रहती हो तो मुझे भी अच्छा लगता है.’’

मगर शिखा सोचती रहती, कभी आदमी अपना मन खोल कर नहीं रख सकता. रूपा के प्रति हो सकता है वह गलत हो, पर उस की आदतों में जो खुलापन आ रहा है, उसे वह कैसे रोके. अगर उस ने अरुण से कह भी दिया तो उस का क्या अर्थ निकलेगा. इस बात को सोच कर वह सबकुछ भूल कर अरुण के स्पर्श के सुख में खो जाती.

वैवाहिक विज्ञापन वर चाहिए : मेरी बेटी के लिए वर चाहिए

मेरी 25 वर्षीय बेटी कौन्वैंट एजुकेटेड डिगरीधारी है. एक एमएनसी यानी मल्टीनैशनल कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर की पर्सनल सैक्रेटरी है. उस का सालाना पैकेज 15 लाख रुपए है. रंग गोरा, सुडौल, कदकाठी आकर्षक नयननक्श, कद 5 फुट 5 इंच के लिए गृहकार्य में दक्ष, सरकारी नौकरी करने वाला (प्राइवेट नौकरी वाले कृपया क्षमा करें), पढ़ालिखा, आधुनिक विचारों वाला, सहनशील, गौरवर्ण और कम से कम 5 फुट 9 इंच कद वाला आज्ञाकारी वर चाहिए. जो निम्न शर्तें पूरी करता हो वही संपर्क करें :

–       मेरी बेटी को देररात तक अपने पसंदीदा सीरियल देखने की आदत है. उसे ऐसा करने से रोका न जाए. रविवार या छुट्टी के दिन उसे जीभर कर सोने दिया जाए और उसे डिस्टर्ब न किया जाए.

–       पति स्वयं सुबह की गरमागरम चाय बनाने के बाद ही उसे जगाए.

–       जब वह निवृत्त हो कर बाथरूम से डैसिंगरूम में जाए तो डायनिंग टेबल पर  नाश्ता सर्व करना शुरू कर दिया जाए.

–       नाश्ता करने के बाद औफिस जाते समय उसे लंचबौक्स तैयार मिलना चाहिए.

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–       हमारी लाड़ली बेटी को खाना बनाना नहीं आता है, इसलिए वह खाना नहीं बनाएगी. उसे खाना बनाने की कला सिखाने के लिए भी बाध्य न किया जाए. वहीं, यह ध्यान रखें कि घर में खाना उसी की पसंद का बनाया जाए.

–       साफसफाई का घर में पूरा ध्यान रखा जाए क्योंकि उसे गंदगी से सख्त नफरत है.

–       उस का बाथरूम कोई अन्य इस्तेमाल न करे. यदि प्रयोग किया है तो उसे पूरी तरह वायपर से रगड़ कर और पोंछा लगा कर साफ किया जाए.

–       हमारी बेटी व्हाट्सऐप और फेसबुक की फैन है. फोन पर व्यस्त रहते समय उसे बिलकुल भी डिस्टर्ब न किया जाए. उस की स्किल के कारण ही सैकड़ों लोग फ्रैंडरिक्वैस्ट भेज रहे हैं और उस की मित्रता पाने को तरस रहे हैं.

–       भूल कर भी उस के मोबाइल फोन को कोई हाथ न लगाए वरना दुष्परिणाम भुगतने के लिए परिवार को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा.

–       वह जो भी सूट या साड़ी पसंद करे उसे पति ही खरीद कर देगा. कोई नानुकुर सहन नहीं होगी.

–       जब भी कभी वह बच्चे को जन्म देगी तो बच्चे के लालनपालन की जिम्मेदारी बच्चे के पिता की ही होगी, मसलन नहलाना, डायपर्स बदलना, कपड़े पहनाना, दूध पिलाना, झूले पर झुलाना आदि. रात के समय बच्चे के रोने के कारण यदि उस की नींद डिस्टर्ब होगी तो इस के लिए सीधेसीधे बच्चे का पिता जिम्मेदार होगा और उसे ही कोपभाजन का शिकार होना पड़ेगा.

–       सास या ननद को उस की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा.

–       परिवार के किसी भी सदस्य को उस से जिरह करने और किसी तरह का ताना देने का हक नहीं होगा.

शेष शर्तें लड़का पसंद आने पर बता दी जाएंगी.

नोट : हम ने अपनी बेटी को राजकुमारी की तरह पाला है और साथ ही, आधुनिक संस्कार भी दिए हैं. हम दावा तो नहीं करते लेकिन वादा जरूर करते हैं कि यह जिस घर में भी जाएगी वह परिवार ऐसी संस्कारवान वधू पा कर धन्य हो जाएगा.

सुरंग में कुरंग : शमशेर के सामने कैसे आई स्वामी की सच्चाई

स्वामीजी के आने से पहले ही सारी तैयारियां पूरी कर ली गई थीं. मकान में स्थित बड़े कमरे से सारा सामान निकाल कर उसे खाली कर दिया गया था. स्वामीजी के आदेशानुसार दीवारों पर लगे चित्र भी हटा दिए गए थे. अनुष्ठान रात में 8 बजे के आसपास निकले मुहूर्त में स्वामीजी द्वारा प्रारंभ होना था.

स्वामीजी समय से आ गए थे और उचित समय पर एकांत कमरे में उन्होंने पूजा प्रारंभ कर दी. यह अनुष्ठान सुबह 4 बजे तक अनवरत चलना था और इस दौरान किसी को भी कमरे में आने की इजाजत नहीं थी.

स्वामी करमप्रिय आनंद का आश्रम मुख्य राष्ट्रीय मार्ग के दक्षिण में शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर था. आश्रम में बरगद के विशाल वृक्षों के अलावा नीम, बेल और आम आदि के वृक्ष थे, जिन पर लंगूरबंदरों का वास था.

स्वामीजी के आश्रम में भक्त जब भी जाते, बंदरों के खाने के लिए केले, चने, गुड़ आदि जरूर ले जाते. भक्तों के हाथ की उंगली पकड़ कर गदेली पर रखे चने, गुड़ आदि बंदर खाते और सफेद दांत दिखा कर उन को घुड़कते भी रहते. बाबा के संकेत पर यदि कोई बंदर किसी भक्त को अपनी पूंछ मार देता तो वह अपने को धन्य समझता कि उस आशीर्वाद से उस का कार्य निश्चित ही सफल हो जाएगा.

स्वामीजी के भक्तों की सूची बहुत लंबी थी, जिस में अतिसंपन्न लोगों से ले कर सामान्यजन तक सभी समानभाव से हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लेते थे. ऐसा भक्तों में प्रचारित था कि आश्रम में स्थित मंदिर में दर्शन कर के मनौती मांगने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है. कोई भी विघ्नबाधा हो, स्वामीजी के बताए उपाय से संकट का समाधान जरूर हो जाता था. स्वामीजी विधिविधान से पूजा, अनुष्ठान आदि कर के भक्त की समस्या का हल निकाल ही लेते थे.

शमशेर बहादुर व उन के परिवार की श्रद्धा स्वामीजी पर शुरू से ही थी. वे शिक्षा विभाग में उच्च अधिकारी थे. मोटी आमदनी और अच्छे वेतन के बावजूद वे लालच से मुक्त नहीं थे. गलत काम कर के कमाई करने को स्वामीजी पाप की कमाई बताते और इस से बचने के तमाम उपाय भी पुजारीपंडों ने बता रखे थे. इसी क्रम में स्वामी करमप्रिय आनंद के दर्शन लाभ के बाद उन की व्यवस्था ने शमशेर बहादुर को इतना चमत्कृत किया कि वे सपरिवार स्वामीजी के अनन्य भक्त हो गए. जम कर कमाओ और जम कर स्वामीजी की सेवा करो, पापबोध से मुक्त हो कर पुण्यलाभ अर्जन का आशीर्वाद स्वामीजी से प्राप्त करते रहो, यही उन का जीवनदर्शन हो गया था.

नौकरी से रिटायर होने के बाद शमशेर सिंह ने आमदनी का जरिया बनाए रखने के लिए एक राइस मिल लगा दी. मिल घाटे में चलने लगी. जब तक अधिकारी थे, तमाम व्यापारी झुकझुक कर उन्हें सलाम करते थे. अब अधिकारी के पद से रिटायर हो कर व्यापारी बने तो किसी को झुक कर सलाम करना उन्हें गवारा नहीं हुआ. अत: व्यापार में घाटा होना शुरू हो गया. इस विपरीत आर्थिक स्थिति का कारण और उपाय जानने के लिए वे स्वामीजी की शरण में गए. तमाम तरह के फल, लाई, चना और गुड़ आदि खिलाने के बाद भी किसी बंदर ने अपनी पूंछ से उन की पिटाई नहीं की. सभी बंदर पुरानी जानपहचान होने के कारण उन्हें पीटना ठीक नहीं समझते थे. बिगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधारने और घाटे को मुनाफे में बदलने के लिए पूरा परिवार स्वामीजी के चरणों में लोट गया.

पुराने और संपन्न भक्त के परिवार की समस्या का समाधान तो स्वामीजी को करना ही था. ज्योतिष से गणना कर के ग्रहनक्षत्र की स्थिति देख कर उन्होंने बताया कि शनिमंगल आमनेसामने हैं. षडष्टक योग बन रहा है. मेष राशि में उच्च के सूर्य की स्थिति बनी हुई है. अत: प्रचंड अग्नि में धनवैभव का जलना स्वाभाविक है. सूर्य के घर सिंह राशि में शनि होने के कारण सूर्य आगबबूला हो रहे हैं.

इस विकट परिस्थिति से राहत पाने के लिए ग्रह शांति के अनेक उपाय करने पड़ेंगे. इस का अनुष्ठान आज रात्रि से शुरू कर दिया जाएगा और समापन तुम्हारे भवन के किसी कक्ष में पूजन के बाद होगा.

अत: आश्रम में विधिपूर्वक विभिन्न प्रकार के पूजापाठ व अनुष्ठान करने के बाद शमशेरजी के घर के एक कमरे में स्वामी ने रात 8 बजे से सुबह 4 बजे तक लगातार मंत्रों का जाप कर विधिवत पूजा कर के अनुष्ठान का समापन किया.

प्रात:काल स्वामी ने परम संतुष्ट भाव से बताया कि इस कमरे में ही मुसीबत की जड़ तथा भाग्योदय के उपकरण छिपे हैं. अत: कमरे का फर्श 4-4 फुट गहरे तक खोदा जाए. जिस स्तर पर कच्ची मिट्टी मिल जाए उस स्तर पर पहुंचने पर ही आगे की कार्यवाही होगी.

नतीजतन, संगमरमर का फर्श उखाड़ दिया गया और फर्श की खुदाई शुरू कर दी गई. 4 फुट खुदाई के बाद कच्ची मिट्टी के स्तर पर पहुंचने पर 4 छोटीछोटी सुरंगें दृष्टिगोचर हुईं, जिन्हें शायद चूहों ने बनाया होगा. कमरे के ठीक बीच में से एक सुरंग दक्षिण दिशा की ओर गई थी और दूसरी उत्तरपूर्व दिशा में. भक्तजनों ने सुरंगों का यह चमत्कार देख कर स्वामीजी को पुन: सादर प्रणाम किया व जिज्ञासा जाहिर की.

स्वामीजी ने उत्तर दिया, ‘‘अनुष्ठान सफल हुआ पुत्र…पूजा के समय ही मुझे संकेत मिल गया था कि इस कमरे में स्वर्णकलश दबा पड़ा है, जिस में सोने की असंख्य मोहरों का खजाना छिपा है. पूजा के बाद उस की प्राप्ति का योग तुम्हारे लिए बन गया है. इस अतुल धनराशि से तुम्हारे सारे आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे.’’

सभी परिवारजनों के चेहरे खिल गए. शमशेर अति उत्साह में खुद फावड़ा उठा लाए और आगे किस सुरंग की खुदाई करनी है, स्वामी से पूछा. वे स्वयं गड्ढा खोद कर स्वर्णकलश निकालना चाहते थे जिस से मजदूरों को या बाहर के किसी व्यक्ति को इस की जानकारी न हो.

स्वामीजी ने संकेत किया कि उत्तरपूर्व दिशा में जाने वाली सुरंग के नीचे कलश दबा पड़ा है पर अभी इधर फावड़ा न चलाना. इस में अभी बाधा है. इस भयंकर व्यवधान को दूर करना पड़ेगा. इस कलश का रक्षक दक्षिण दिशा में जाने वाली सुरंग में मणिधारी नाग के रूप में रहता है, जो अति विषैला और भयंकर है. प्रत्येक अमावस्या को वह आधी रात में इस कमरे में प्रकट होता है और अपनी मणि उत्तरपूर्व की सुरंग के दहाने पर रख कर उस के प्रकाश में अपना आहार प्राप्त करता है.

अत: तुम्हें अमावस्या तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. अमावस्या की रात को मैं आ कर स्वयं नाग देवता की आराधना कर के उन्हें अपने वश में कर लूंगा और फिर उन्हें अपने आश्रम में स्थापित कर दूंगा. उस के बाद उन से अनुमति ले कर इस स्वर्णकलश को हासिल करने की कार्यवाही करूंगा.

तुम्हें ज्ञात होगा कि बंदर सांप के फन को कौशल से पकड़ लेता है और उसे भूमि पर तब तक रगड़ता है जब तक वह मर नहीं जाता. यहां के नागराज अजेय हैं पर वानरों के सान्निध्य में जीवनरक्षा की प्राणीसुलभ चेष्टा के कारण निष्क्रिय हो जाएंगे और तब उन्हें मंत्रों द्वारा वश में कर लेना आसान हो जाएगा.

शमशेर सिंह और उन का परिवार यह जान गया था कि स्वर्णकलश मिलने में अभी देरी है पर निराशा की भावना पर विजय पाते हुए उन्होंने स्वामी से कहा कि हम सब उचित समय की प्रतीक्षा करेंगे. स्वामी ने कमरे को ठीक से बंद करा कर बड़ा सा ताला लगवा दिया.

एकादशी को स्वामी के आश्रम पर एक महायज्ञ का आयोजन था जिस में भंडारा भी होना था. यज्ञ 10 दिन तक चलना था. उस में पूजनहवन आदि में जो व्यय होना था वह भक्तों द्वारा दिए गए सामान और दान की धनराशि से संपन्न होना था.

शमशेर अति श्रद्धावान थे. भंडारे के लिए स्वामी को सवा लाख रुपए नकद दान में दिए. जहां करोड़ों की धनराशि मिलनी हो वहां सवा लाख दे कर स्वामी को प्रसन्न रखने में क्या बुराई है.

महायज्ञ के आयोजन में भक्तों द्वारा लगभग 3 लाख का सामान और नकद चढ़ावा आ गया. सभी कार्यक्रम आनंद से संपन्न हो गए. इस आयोजन के बाद स्वामीजी का 3 माह का तीर्थयात्रा का और अपने गुरुदर्शन का कार्यक्रम बना, जिस के लिए उन्होंने सब को आशीर्वाद देते हुए प्रस्थान किया.

शमशेर के कमरे पर अभी भी मोटा ताला लटक रहा था. हर अमावस्या को वे खिड़कीदरवाजों की झिरी (दरार) से झांक कर नाग देवता द्वारा छोड़ी गई मणि के प्रकाश को देखने का प्रयास करते थे.

अमावस्या की रात बीत गई. स्वामी तो अभी तीर्थयात्रा पर थे. उन का कड़ा निर्देश था कि कमरे का ताला न खोला जाए और न ही कमरे में कोई जाए. अमावस्या की सुबह शायद अपनेआप नाग के या मणि के दर्शन हो जाएं, इस आशा से खिड़की की झिरी से झांका तो देखा कि चोरों ने सेंध लगा कर 10-10 फुट तक फर्श खोद डाला है और मिट्टी का ढेर बाहर लगा है.

स्वर्णकलश की बात छिपाते हुए शमशेर ने पुलिस में चोरी की रिपोर्ट लिखाई. तेजतर्रार दारोगा को पटाया. सेंधमार चोर पकड़ा गया. रोते हुए उस ने बताया कि उसे किसी तरह खजाने की खबर लग गई थी. वह भी स्वामी का चेला था. रात भर फर्श को 10-10 फुट गहरा खोद कर मिट्टी का ढेर बाहर लगा दिया. अमावस्या की रात थी पर न तो स्वर्णकलश दिखाई दिया न नागमणि. रात भर खुदाई की मजदूरी भी मिट्टी में मिल गई.

अस्तित्व : पहली किस्त

घड़ीका अलार्म एक अजीब सी कर्कशता के साथ कानों में गूंजने लगा तो ल्लाहट के साथ मैं ने उसे बंद कर दिया. सोचा कि क्या करना है सुबह 5 बजे उठ कर. 9 बजे का दफ्तर है लेकिन 10 बजे से पहले कोई नहीं पहुंचता. करवट बदल कर मैं ने चादर को मुंह तक खींच लिया.

‘‘क्या करती हो ममा उठ जाओ. 7 बजे स्कूल जाना है. बस आ जाएगी,’’ साथ लेटे सोनू ने हिला कर कहा.

मैं उठी, ‘‘जाना मुझे है कि तुझे ? चल तू भी उठ. रोज कहती हूं कि 5 बजे के बजाय 6 बजे का अलार्म लगाया कर, लेकिन तू मुझे 5 बजे ही उठाता है और खुद 6 बजे से पहले नहीं उठता.’’

‘‘सोनू…सोनू…स्कूल नहीं जाना क्या?’’

‘‘आप पागल हो मम्मा,’’ कह कर उस ने चादर चेहरे पर खींच लिया. फिर बोला, ‘‘मुझे 10 मिनट भी नहीं लगेंगे तैयार होने में. लेकिन आप ने सारा घर सिर पर उठा लिया.’’

‘‘तू ऐनी को देख. तु से छोटा है पर तुझे से पहले उठ चुका है. जबकि उस का स्कूल 8 बजे का है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बस नाश्ता तैयार कर लो. चाहे 7 बजे मुझे जाना हो और 8 बजे ऐनी को,’’ वह चिल्ला कर बोला.

मैं मन मार कर उठी और चाय बनाने लगी. फिर बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां लेते हुए अखबार की सुर्खियों पर नजरें दौड़ा ही रही थी कि अंदर से आवाज आई, ‘‘मम्मी, पापा अखबार मांग रहे हैं.’’

मैं ने बुझे मन से अखबार के कुछ पन्ने पति को पकड़ाए और पेज थ्री पर छपी फिल्मी खबरें पढ़ने लगी. अभी खबरें पूरी पढ़ नहीं पाई थी कि पति ने आ कर झटके से वे पेज भी मेरे सामने से उठा लिए. खबर पूरी न पढ़ पाने की वजह से मजा किरकिरा हो गया.

मैं ने चाय का अंतिम घूंट लिया और रसोई में आ गई. बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. जल्दीजल्दी 2 परांठे सेंके  और गिलास में दूध डाल बच्चों को नाश्ता दे उन का टिफिन तैयार करने लगी.

‘‘मम्मी, मेरी कमीज नहीं मिल रही,’’ ऐनी ने आवाज लगाई.

‘‘तुझे कभी कुछ मिलता भी है?’’ फिर कमरे में आ कर अलमारी से कमीज निकाल कर उसे दी.

‘‘मम्मी दूध ज्यादा गरम है. प्लीज ठंडा कर दो,’’ सोनू ने टाई की नौट बांधते हुए हुक्म फरमा दिया.

दूध ठंडा कर वापस जाने लगी तो सोनू मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया, ‘‘मम्मी प्लीज 1 मिनट,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी स्कूल बैग से कुछ निकालने लगा. फिर मिन्नतें करने लगा कि मम्मी, मेरा रिपोर्टकार्ड साइन कर दो…प्लीज मम्मी.’’

‘‘जरूर मार्क्स कम आए होंगे. इस बार तो मैं बिलकुल नहीं करूंगी. बेवकूफ समझ रखा है क्या तू ने मुझे जा, अपने पापा से करवा साइन. और तू ने मुझे कल क्यों नहीं दिखाया अपना रिपोर्टकार्ड?’’

‘‘मम्मा, प्लीज धीरे बोलो, पापा सुन लेंगे,’’ उस के चेहरे पर याचना के भाव उभर आए. हाथ पकड़ कर प्यार से मुझे पलंग पर बैठाते हुए उस ने पेन और रिपोर्टकार्ड मुझे पकड़ा दिया.

‘‘जब भी मार्क्स कम आते हैं तो मुझे कहते हैं और जब ज्यादा आते हैं तो सीधे पापा के पास जाते हैं,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रिपोर्टकार्ड खोल कर देखने लगी. साइंस में 100 में से 89, हिंदी में 85, मैथ्स में 92. मेरी आंखें चमकने लगीं. चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उसे शाबासी देने के लिए मैं ने नजरें उठाई तो देखा कि आईने में बाल संवारता हुआ वह शरारत भरी निगाहों से मुझे ही देख रहा था. मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोल उठा, ‘‘जल्दी से साइन कर दो न मम्मा, इतनी देर से मार्क्स ही देखे जा रही हो.’’

बेकाबू होती खुशी को नियंत्रित करते हुए मैं ने पेन का ढक्कन खोला. रिपोर्टकार्ड के दायीं ओर देखा तो ये पहले ही साइन कर चुके थे. दोनों फिर मुझे देख कर हंसने लगे तो मैं खिसिया गई.

‘‘घर की चाबी रख ली है न? कहीं ऐसा न हो कि आज मुझे बाहर गमले के पीछे छिपा कर जाना पड़े,’’ मैं ने अपनी झेप मिटाते हुए कहा.

बच्चों के काम से फारिग हुई ही थी कि पति ने दोबारा चाय की फरमाइश कर दी. ‘‘पत्ती जरा तेज डालना. सुबह जैसी चाय न बनाना. तुम्हें 16 सालों में चाय बनानी नहीं आई.’’

‘‘तुम अपनी चाय खुद क्यों नहीं बना लेते? कभी पत्ती कम तो कभी दूध ज्यादा. हमेशा मीनमेख निकालते रहते हो,’’ मैं ने भी अपना गुबार निकाल दिया.

आज दफ्तर को देर हो कर रहेगी. अभी सब्जी भी बनानी है और दूध भी उबालना है. क्याक्या करूं.

‘‘क्यों, तू समय पर  नहीं आ सकती? ये कौन सा वक्त है आने का? तेरी वजह से क्या मैं दफ्तर जाना छोड़ दूं?’’ मैं ने काम वाली पर सारा गुस्सा उतार दिया. सारा काम निबटा कर नहाने गई तो देखा बाथरूम बंद.

‘‘तुम रोज जल्दी क्यों नहीं नहाते? जबकि तुम्हें पता है कि इस वक्त ही मेरा काम खत्म हो पाता है. अब जल्दी बाहर निकलो,’’ मैं बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए लगभग चिल्ला दी.

‘‘जब तक मैं नहा कर निकलूं प्लीज मेरा रूमाल और मोजे पलंग पर रख दो,’’ शौवर के शोर को चीरती उन की मद्धिम पड़ गई आवाज सुनाई दी.

‘‘तुम मुझे 2 मिनट भी चैन से जीने मत देना,’’ मैं ने अपना तौलिया और गाउन वहीं पटका और रूमाल और मोजे ढूंढ़ने कमरे में चली गई.

यह इन का रोज का काम था. बापबेटे मुझ पर हुक्म चलाते.

‘चाय कड़क बनाना’

‘अखबार कहां है?’

‘मम्मी, दूध में मालटोवा नहीं डाला?’

‘आमलेट कच्चा है.’

‘मम्मी, ब्रैड में मक्खन नहीं लगाया?’

‘कभी बहुत गरम दूध दे देती हो तो कभी बिलकुल ठंडा. मम्मी, आप को हुआ क्या है?’

‘‘अब किस सोच में खड़ी हो? जाओ नहा लो,’’ पति बाथरूम से बाहर निकल कर बोले.

मैं पैर पटकती बाथरूम में घुस गई.

घर पर ही 10 बज गए. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दफ्तर पहुंची. सोचा कि आज बौस से फिर डांट खानी पड़ेगी. लेकिन अपने सैक्शन में पहुंचने पर पता चला कि आज बौस छुट्टी पर हैं. दिमाग कुछ शांत हुआ.

‘रोज का काम यदि रोज न निबटाओ तो काम का ढेर लग जाता है,’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

कोर्ट केस की फाइल पूरी कर बौस की मेज पर पटकी और अपनी दिनचर्या का विश्लेषण करने लगी. कभी अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती. घरदफ्तर, पतिबच्चों के बीच एक कठपुतली की तरह दिन भर नाचती रहती हूं. कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी इतनी व्यस्त हो जाएगी. कल से सुबह ठीक 5 बजे उठा करूंगी. ऐनी को आमलेट पसंद नहीं है तो उसे नाश्ते में दूध ब्रैड या परांठा दूंगी. सोनू को आमलेट और फिर अखबार के साथ इन्हें दोबारा कड़क सी चाय.

‘‘किस सोच में बैठी हो मैडम? आज चाय पिलाने का इरादा नहीं है क्या?’’ साथ बैठी सहयोगी ने ताना मारा.

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. चलो कैंटीन चलते हैं,’’ मैं थोड़ा सामान्य हुई.

‘‘आज बड़ी उखड़ीउखड़ी लग रही हो.

क्या बात है? सुबह से कोई बात भी नहीं की,’’ उस ने कैंटीन में इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए कोने में एक खाली मेज की तरफ चलने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘यार, बात तो कोई नहीं. लेकिन आजकल काम का बहुत बोझेहै. जिंदगी जैसे रेल सी बन गई है. बस भागते रहो, भागते रहो,’’ कह कर मैं ने चाय की चुसकी ली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. कल मेरे बेटे के पैर में चोट लग गई तो डाक्टर के पास 2 घंटे लग गए. मेरे साहब के पास तो फुरसत ही नहीं है. सब काम मैं ही करूं,’’ अब उस के चेहरे पर भी आ गई.

‘‘लगता है आज का दिन ही बोझल है. चलो छोड़ो, कोई दूसरी बात करते हैं. ये भी क्या जिंदगी हुई कि बस सारा दिन बिसूरते रहो,’’ मैं हंस दी.

‘‘मैं ने एक नया सूट लिया है, लेटैस्ट डिजाइन का,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तुम ने पहले तो नहीं बताया?’’

‘‘दफ्तर के काम की वजह से भूल गई.’’

‘‘कितने का लिया?’’

‘‘700 का. उन्हें बड़ी मुश्किल से मनाया. मेरे नए कपड़े खरीदने से बड़ी परेशानी होती है उन्हें. बच्चे भी उन्हीं के साथ मिल जाते हैं.’’

मेरी हंसी निकल गई, ‘‘मेरे साथ भी तो यही होता है.’’

‘‘कब पहन कर आ रही हो?’’ मैं ने बातों में रस लेते हुए पूछा.

‘‘अभी तो दर्जी के पास है. शायद 3-4 दिन में सिल कर दे दे,’’ उस ने कहा.

‘‘अरे, अगले महीने 21 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी तो है, तभी पहनना,’’ मैं ने जैसे अपनी याददाश्त पर गर्व करते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे याद रहा?’’

‘‘हर साल तुम्हें बताती हूं कि मेरे छोटे बेटे का बर्थडे भी उसी दिन पड़ता है, भुलक्कड़ कहीं की.’’

‘‘हां यार, मैं हमेशा भूल जाती हूं,’’ वह खिसिया गई.

कुछ देर इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर, ‘‘चलो अब अंदर चलते हैं. बहुत गप्पें मार लीं. थोड़ाबहुत काम निबटा लें. आज शर्माजी की सेवानिवृत्ति पार्टी भी है,’’ मैं एक ही सांस में कह गई.

दिन भर फाइलों में सिर खपाती रही तो समय का पता ही नहीं चला. ओह 5 बज गए… मैं ने घड़ी पर नजर डाली और दफ्तर के गेट के बाहर आ गई.

पति पहले ही मेरे इंतजार में स्कूटर ले कर खडे़ थे. उन्हें देख मैं मुसकरा दी.

रास्ते में इधरउधर की बातें होती रहीं.

‘‘आज बढि़या सा खाना बना लेना.’’

‘‘क्यों, आज कोई खास बात है?’’

‘‘नहीं, कई दिनों से तुम रोज ही दालचावल बना देती हो.’’

‘‘तो तुम सब्जी ला कर दिया करो न.

सब्जी मंडी जाने के नाम पर तुम्हें बुखार चढ़ जाता है.’’

‘‘रोज रेहड़ी वाले गली में घूमते हैं. उन से सब्जी क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘खरीद कर तो तुम्हीं लाओ. चाहे रेहड़ी वाले से, चाहे मंडी से. मुझे तो बस घर में सब्जी चाहिए वरना आज भी दालचावल…’’

‘‘अच्छा मैं तुम्हें घर के पास छोड़ कर सब्जी ले आता हूं. अब तो खुश?’’

‘‘हां, बड़ा एहसान कर रहे हो,’’ कहती हुई मैं घर की सीढि़यां चढ़ने लगी.

‘‘मेरे गुगलूबुगलू क्या कर रहे हैं?’’ मैं ने लाड़ जताते हुए बच्चों से पूछा.

‘‘मम्मी कैंटीन से खाने के लिए क्या लाई हो?’’ ऐनी ने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यहां सब्जी बड़ी मुश्किल से आती है, तुझे अपनी पड़ी है,’’ मैं ने पर्स खोलते हुए कहा.

‘‘सब के मम्मीपापा रोज कुछ न कुछ लाते हैं. जस्सी का फ्रिज तो तरहतरह की चीजों से भरा रहता है,’’ सोनू ने उलाहना दिया.

‘‘तो अपने पापा को बोला कर न बाजार से ले आया करें. मैं कहांकहां जाऊं. ये लो,’’ मैं ने एक पैकेट उन की तरफ उछाल दिया.

‘‘ये क्या है?’’

‘‘मिठाई है. औफिस में पार्टी हुई थी. मैं तुम्हारे लिए ले आई.’’

मैं ने पर्स अलमारी में रखा, जल्दीजल्दी कपड़े बदले और टीवी चालू कर दिया. थोड़ी देर में मेरा मनपसंद धारावाहिक आने वाला था.

‘‘आज चाय कौन बनाएगा?’’ मैं ने आवाज में रस घोलते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं उठ कर उन के कमरे में गई. देखा दोनों बच्चे कंप्यूटर पर गेम खेलने में मस्त थे.

‘‘रोज खुद चाय बनाओ. इन लड़कों का कोई सुख नहीं. लड़की होती तो कम से कम मां को 1 कप चाय तो बना कर देती,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रसोई में आ गई.

‘‘मम्मी, कुछ कह रही हो क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं चिल्ला दी.

रोटी का डब्बा खोल कर देखा तो लंच के लिए बनाए परांठों में से 2 परांठे अभी भी उस में पड़े थे.

‘‘दोपहर का खाना किस ने नहीं खाया?’’ मैं ने कमरे में दोबारा आ कर पूछा.

‘‘मैं ने तो खा लिया था,’’ सोनू बोला.

मैं ने ऐनी की तरफ देखा.

‘‘मम्मी आप के बिना खाना अच्छा नहीं लगता…अपने हाथ से खिला दो न,’’ उस ने स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए ही लाड़ से कहा मेरा मन द्रवित हो उठा. खाना गरम कर अपने हाथों से उसे खिलाया और वापस रसोई में आ कर चाय बनाने लगी.

ट्रिंगट्रिंग…

शायद ये आ गए. बच्चों ने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर किताबें खोल लीं. मेरी हंसी निकल गई.

‘‘कुंडी खोलने में बड़ी देर लगा दी. कितनी देर से वजन उठाए खड़ा हूं,’’ सब्जी और दूध के लिफाफे रसोई की तरफ लाते हुए ये भुनभुनाए.

‘‘अरे चाय बना रही थी इसीलिए.’’

‘‘जरा ढंग से बना लेना. मेरी चाय में अलग से चाय की पत्ती डाल कर कड़क कर देना. सुबह की चाय फीकीफीकी थी.’’

‘‘अरे सुबह तो मैं ने दोबारा कड़क चाय बनाई थी. किसी दिन पत्ती का सारा डब्बा उड़ेल दूंगी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए कहा. फिर जल्दीजल्दी सुबह का बचा दूध गरम कर बच्चों को दे आई और ताजा दूध को गैस सिम कर उबलने के लिए रख दिया. चाय ले कर कमरे में आई तो मेरा पसंदीदा धारावाहिक शुरू हो चुका था.

-क्रमश:

बने एकदूजे के लिए: भाग 2- क्या विवेक और भावना का प्यार परवान चढ़ा

काले नए सूट, सफेद कमीज, मैचिंग टाई में ऐसा लग रहा था जैसे अभी बोल पड़ेगा. बैठक फूलों के बने रीथ (गोल आकार में सजाए फूल), क्रौस तथा गुलदस्तों से भरी पड़ी थी.आसपास के लोग तो नहीं आए थे लेकिन उन के कुलीग वहां मौजूद थे.

लोगों ने अपनेअपने घरों के परदे तान लिए थे, क्योंकि विदेशों में ऐसा चलन है. पोलीन और जेम्स के आते ही उन्हें विवेक के साथ कुछ क्षण के लिए अकेला छोड़ दिया गया. मामाजी ने बाकी लोगों को गाडि़यों में बैठने का आदेश दिया.

हर्श (शव वाहन) के पीछे की गाड़ी में विवेक का परिवार बैठने वाला था. अन्य लोग बाकी गाडि़यों में.‘‘मंजू, किसी ने पुलिस को सूचना दी क्या? शव यात्रा रोप लेन से गुजरने वाली है?’’ (यू.के. में जहां से शवयात्रा निकलती है, वह सड़क कुछ समय के लिए बंद कर दी जाती है.

कोई गाड़ी उसे ओवरटेक भी नहीं कर सकती या फिर पुलिस साथसाथ चलती है शव के सम्मान के लिए).‘‘यह काम तो चर्च के पादरीजी ने करदिया है.’’‘‘और हर्श में फूल कौन रखेगा?’’‘‘फ्यूनरल डायरैक्टर.’’‘‘मंजू, औरतें और बच्चे तो घर पर हीरहेंगे न?’’‘‘नहीं मामाजी, यह भारत नहीं है.

यहां सभी जाते हैं.’’‘‘मैं जानता हूं लेकिन घर को खाली कैसे छोड़ दूं?’’‘‘मैं जो हूं,’’ मामीजी ने कहा.‘‘तुम तो इस शहर को जानतीं तक नहीं.’’‘‘मैं मामीजी के साथ रहूंगी,’’ पड़ोसिन छाया बोली.अब घर पर केवल छाया तथा मामीजी थीं. मामाजी तथा मंजू की बातें सुनने के बाद छाया की जिज्ञासा पर अंकुश लगाना कठिन था. छाया थोड़ी देर बाद भूमिका बांधते बोली, ‘‘मामीजी, अच्छी हैं यह गोरी मेम. कितनी दूर से आई हैं बेटे को ले कर.

आजकल तो अपने सगेसंबंधी तक नहीं पहुंचते. लेकिन मामीजी, एक बात सम?ा में नहीं आ रही कि आप उसे कैसे जानती हैं? ऐसा तो नहीं लगता कि आप उस से पहली बार मिली हों?’’अब मामीजी का धैर्य जवाब दे गया. वे झंझलाते हुए बोलीं, ‘‘जानना चाहती हो तो सुनो.

भावना से विवाह होने से पहले पोलीन ही हमारे घर की बहू थी. विवेक और भावना एकदूसरे को वर्षों से जानते थे. मुझे याद है कि विवेक भावना का हाथ पकड़ कर उसे स्कूल ले कर जाता और उसे स्कूल से ले कर भी आता. वह भावना के बिना कहीं न जाता. यहां तक कि अगर विवेक को कोई टौफी खाने को देता तो विवेक उसे तब तक मुंह में न डालता जब तक वह भावना के साथ बांट न लेता.

धीरेधीरे दोनों के बचपन की दोस्ती प्रेम में बदल गई. वह प्रेम बढ़तेबढ़ते इतना प्रगाढ़ हो गया कि पासपड़ोस, महल्ले वालों ने भी इन दोनों को ‘दो हंसों की जोड़ी’ का नाम दे दिया. उस प्रेम का रंग दिनबदिन गहरा होता गया.

विवेक एअरफोर्स में चला गया और भावना आगे की पढ़ाई करने में लग गई.‘‘लेकिन जैसे ही विवेक पायलट बना, उस की मां दहेज में कोठियों के ख्वाब देखने लगी, जो भावना के घर वालों की हैसियत से कहीं बाहर था.

विवेक ने विद्रोह में अविवाहित रहने का फैसला कर लिया और दोस्तों से पैसे ले कर मांबाप को बिना बताए ही जरमनी जा पहुंचा. किंतु उस की मां अड़ी रहीं. जिस ने भी सम?ाने का प्रयत्न किया, उस ने दुश्मनी मोल ली.’’‘‘तब तक तो दोनों बालिग हो चुके होंगे, उन्होंने भाग कर शादी क्यों नहीं कर ली?’’ छाया ने जिज्ञासा से पूछा.‘‘दोनों ही संस्कारी बच्चे थे. घर में बड़े बच्चे होने के नाते दोनों को अपनी जिम्मेदारियों का पूरा एहसास था.

दोनों अपने इस बंधन को बदनाम होने नहीं देना चाहते थे. लेकिन वही हुआ जिस का सभी को डर था. विकट परिस्थितियों से बचताबचता विवेक दलदल में फंसता ही गया. उसे किसी कारणवश पोलीन से शादी करनी पड़ी. दोनों एक ही विभाग में काम करते थे.‘‘विवेक की शादी की खबर सुन भावना के परिवार को बड़ा धक्का लगा.

भावना तो गुमसुम हो गई. भावना के घर वालों ने पहला रिश्ता आते ही बिना पूछताछ किए भावना को खूंटे से बांध दिया. 1 वर्ष बाद उसे एक बच्ची भी हो गई.‘‘लेकिन भावना तथा विवेक दोनों के ही विवाह संबंध कच्ची बुनियाद पर खड़े थे, इसलिए अधिक देर तक न टिक सके.

दोनों ही बेमन से बने जीवन से आजाद तो हो गए, किंतु पूर्ण रूप से खोखले हो चुके थे. विवेक की शादी टूटने के बाद उस के मामाजी ने जरमनी से उसे यू.के. में बुला लिया. वहां उसे रौयल एअरफोर्स में नौकरी भी मिल गई.

सोने की सास: क्यों बदल गई सास की प्रशंसा करने वाली चंद्रा

Family soty in hindi

श्रीमतीजी जाएं मायके: पति की सजा या मजा

पति पत्नीमें झगड़ा होता रहता है, परंतु यदि पत्नी रूठ कर मायके जा बैठे तो पति की क्या स्थिति होती है, जब हम ने इस पर विचार किया तो पाया कि 20-25 वर्ष पूर्व जो स्थिति थी वह आज नहीं है.

पहले लड़ाई का कारण बड़ा मासूम होता था जैसे हमें मिसेज शर्मा की साड़ी जैसी साड़ी चाहिए. यदि पति महोदय औफिस से डांट खा कर आए होते तो गुस्सा पत्नी पर निकलता, ‘‘चाहिए तो मंगा लो न अपने मायके से.’’

‘‘देखो मेरे मायके का नाम मत लेना,’’ और फिर वाकयुद्ध इतना बढ़ता कि श्रीमतीजी रूठ कर मायके जा बैठतीं और पति महोदय का वनवास शुरू हो जाता.

प्रात: दूध वाले से दूध ले कर फिर सो जाते. औफिस के लिए देर हो रही होती. उसी समय महरी आ धमकती. वह भी भद्दी, मैलीकुचैली सी. श्रीमतीजी ने छांट कर रखी ताकि उस की ओर देखने को भी मन न करे.

सो उसे वापस भेज स्वयं ही फ्रिज में कुछ पड़ा खा कर, बिना प्रैस किए कपड़े पहन कर, बिना पौलिश किए जूते पहन कर दफ्तर भागते. औफिस देर से जाने पर साहब से नजरें चुरानी पड़तीं.

दोपहर में सब अपनाअपना खाने का डब्बा खोलते तो विभिन्न प्रकार की

सब्जियों की महक भूख और बढ़ा देती. बेचारे पति महोदय कैंटीन की रूखी, फीकी थाली खाते हुए सोचते कि बेकार में श्रीमतीजी पर गुस्सा किया. उन्हें मायके जाने से रोक लेते तो ढंग का खाना तो मिलता.

घर पहुंच कर चाय बनाना चाहते तो वह फट जाती. ऐंटरटेनमैंट के नाम पर केवल दूरदर्शन. उस में कृषि दर्शन से मन बहलाते. खाने में सोचते खिचड़ी बना ली जाए. इस से अधिक की वे सोच भी नहीं सकते थे, क्योंकि मां और श्रीमतीजी ने कभी रसोई में जो घुसने नहीं दिया.

फिर क्या था. चावलदाल मिला कर कुकर में डाल दिए और पानी कम होने के कारण सेफ्टिवौल्व उड़ गया. बेचारे अब क्या करें? जनाब 3 तल्ले नीचे सीढि़यों से जाते और फिर स्कूटर को किक पर किक लगा बड़ी मुश्किल से स्टार्ट कर पास वाले ढाबे में जा कर छोलेभठूरे खाते. घर आ कर सोने लगते तो सुबह का भीगा तौलिया और कपड़े बिस्तर पर बिखरे मिलते. सब को किनारे रख कर सोने की कोशिश करते. उस समय श्रीमतीजी की बहुत याद आती. सोचते फोन कर लिया जाए पर तभी पुरुष अहं रोक देता कि वे गई हैं स्वयं और आएं भी स्वयं.

प्रात: कामवाली जल्दी आ गई. रसोई की हालत देख कर भड़क गई. जला कुकर देख कर तो और जलभुन गई.

बेचारे मिमियाते हुए उस से बोले, ‘‘वो न खिचड़ी जल गई थी,’’ मन ही मन सोच रहे थे कि अगर यह भाग गई तो झाड़ू, बरतन सब खुद करना पड़ेगा. नाश्ते के समय आलू के परांठे याद आते. सोचते कि क्या बुला लूं? पर फिर पुरुष अहं रोक देता.

उस दिन शाम को औफिस से घर लौटे तो तभी मिसेज शर्मा आ गईं, चीनी मांगने के बहाने यह टोह लेने की श्रीमतीजी कहां गईं और कब आएंगी.

बिना नाश्ता किए औफिस जाना, दूसरों का टिफिन देख ललचाना, होटल का खाना खाना, पेट खराब होना, दूरदर्शन और रेडियो पर किसी विशेष व्यक्ति की मृत्यु पर शोक मनाना, बिना प्रैस किए कपड़े और बिना पौलिश किए जूते पहन कर औफिस जाना और रात में विरह गीत रेडियो पर सुनना सब खलने लगा. मन लगाएं तो कहां?

औफिस में 1-2 महिलाएं हैं, जो शादीशुदा हैं. कहीं और जाएं तो किसी को पता चल जाए या फिर श्रीमतीजी को पता चल जाए तो समाज में क्या इज्जत रह जाएगी? बच्चों की भी याद आती. सब सहना कठिन होता.

सोचते मिसेज शर्मा का ‘भाभीजी कब आएंगी’, से आसान है मिसेज शर्मा की साड़ी जैसी साड़ी ले कर देना. 2 दिनों में अकल ठिकाने आ गई. श्रीमतीजी को लेने उन के मायके पहुंच गए. पहले की यानी पुराने जमाने की श्रीमतीजी भी विरह में आस लगाए बैठी होतीं कि कब संदेशा आए और वे वापस अपने श्रीमान के पास जाएं. सो हैप्पी ऐंडिंग.

आज के पति महोदय 33-34 वर्ष के एक बच्चे के पिता कैरियर की सीढि़यां चढ़ने में लगे हुए. अगर पत्नी मायके बैठ जाए तो? यह सौभाग्य तो किसी नसीब वाले को ही मिलता है. आजकल यदि मायका और ससुराल एक ही शहर में हैं तो महीने में एक बार श्रीमतीजी एक शाम के लिए मायके जाती ही हैं, क्योंकि वे भी काम करती हैं और साप्ताहिक छुट्टी में आउटिंग पर जाती हैं.

मायके की हर पल की खबर सोशल मीडिया पर मिलती रहती है और फिर फोन तो दिन भर होता ही रहता है तो फिर जाने की क्या आवश्यकता? हां, जब बच्चा छोटा था तो डेली उसे मायके छोड़ कर औफिस जाती थीं.

अब श्रीमतीजी के रूठ कर मायके जाने के फायदे देखिए. सुबहसुबह कोई अलार्म की तरह उठोउठो का राग नहीं अलापता. बच्चे को स्कूल बस तक छोड़ने को कोई नहीं कहता.

भीगा तौलिया बैड पर फेंकने पर कोई टोकने वाला नहीं. सुबहसुबह महकती स्टाइलिश कपड़ों में सजीसंवरी कामवाली को देख कर मन खिल जाता.

श्रीमती के सामने कनखियों से देख पाते थे अब खुली छूट. नाश्ता स्वयं बनाना आता है ब्रैडबटर, अंडाफ्राई और डिप वाली चाय. काम वाली तब तक घर साफ कर देती है. जनाब औफिस समय पर पहुंच जाते हैं.

मैडम मायके गई, सुन कर सब दोस्त जश्न मनाने लगते हैं, ‘‘तुम्हारे फोर्स्ड बैचलर होने की पार्टी तो बनती है.’’

औफिस की कुछ कुंआरियां, जिन की शादी की उम्र निकल रही होती है वे चांस लेने लगती हैं. घर का बना खाना औफर करने लगती हैं. आज के श्रीमान को फ्लर्ट करने का पूरा अवसर मिलता है. मजे ही मजे.

देर शाम तक औफिस में काम कर के घर 8 बजे पहुंचो या 9 बजे कोई कुछ कहने  वाला नहीं. रात का खाना किसी अच्छे रैस्टोरैंट में किसी लड़की मित्र के साथ खाओ या घर पर पिज्जा मंगा लो. विकल्प बहुत हैं. छुट्टी के दिन इंटरनैट से देख कर नईनई रैसिपीज बनाने का मजा ही अलग होता है.

आजकल श्रीमतियां (पत्नियां) समान अधिकार के कारण श्रीमान को भी किचन में हाथ बंटाने को कहती हैं. इसीलिए वे भी बहुत कुछ पकानाबनाना जानते हैं.

वाशिंग मशीन में कपड़े औटोमैटिक धुल जाते हैं. कुछ काम कामवाली से करा लिए जाते हैं. ऐंटरटेनमैंट की भी कमी नहीं. जो चाहो चैनल देखो टीवी में या फिर देर रात तक औफिस का काम करें लैपटौप पर अथवा स्मार्ट फोन में लगे रहें सोशल साइट्स पर सब अपनी मरजी से. कोई बैड पर सोने का इंतजार नहीं कर रहा. श्रीमतीजी घर में हैं या नहीं किसी पड़ोसी को इस से कोई मतलब नहीं.

बच्चों से रोज बात हो जाती है, पर श्रीमतीजी से नहीं. वे सोचतीं इतने दिन बीत गए कहीं कोई और तो नहीं ढूंढ़ ली और फिर अपने अधिकार से अपने घर अपने बच्चों के साथ लौट आती हैं तो सारे गिलेशिकवे दूर हो जाते हैं.

‘‘आप हमें छोड़ कर कभी मत जाना. हम तुम्हारे बिना नहीं रह सकते,’’ यह श्रीमानजी मुंह से तो कह देते हैं पर मन हीमन सोचते हैं श्रीमतीजी को कभीकभी मायके भी जाना चाहिए.

बने एकदूजे के लिए: भाग 1- क्या विवेक और भावना का प्यार परवान चढ़ा

घर में कई दिनों से चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था, लेकिन आज घर में खटपट चल रही थी. मामाजी कभी ऊपर, कभी नीचे और कभी गार्डन में आ जा रहे थे. उन के पहाड़ जैसे दुख को बांटने वाला कोई सगासंबंधी पास न था. घर में सब से बड़ा होने के नाते सभी जिम्मेदारियों का बोझ उन्हीं के कंधों पर आ पड़ा था. वे तो खुल कर रो भी नहीं सकते थे.

उन के भीतर की आवाज उन्हें कचोटकचोट कर कह रही थी कि अमृत, अगर तुम ही टूट गए तो बाकी घर वालों को कैसे संभालोगे? कितना विवश हो जाता है मनुष्य ऐसी स्थितियों में. उन का भानजा, उन का दोस्त विवेक इस संसार को छोड़ कर जा चुका था, लेकिन वे ऊहापोह में पड़े रहने के सिवा और कुछ कर नहीं पा रहे थे. अपने दुख को समेटे, भावनाओं से जूझते वे बोले, ‘‘बस उन्हीं की प्रतीक्षा में2 दिन बीत गए.

मंजू, पता तो लगाओ, अभी तक वे लोग पहुंचे क्यों नहीं? कोई उत्सव में थोड़े ही आ रहे हैं. अभी थोड़ी देर में बड़ीबड़ी गाडि़यों में फ्यूनरल डायरैक्टर पहुंच जाएंगे. इंतजार थोड़े ही करेंगे वे.’’‘‘मामाजी, अभीअभी पता चला है कि धुंध के कारण उन की फ्लाइट थोड़ी देर से उतरी.

वे बस 15-20 मिनट में यहां पहुंच जाएंगे. वे रास्ते में ही हैं.’’‘‘अंत्येष्टि तो 4 दिन पहले ही हो जानी चाहिए थी लेकिन…’’‘‘मामाजी, फ्यूनरल वालों से तारीख और समय मुकर्रर कर के ही अंत्येष्टि होती है,’’ मंजू ने उन्हें समझाते हुए कहा.‘‘उन से कह दो कि सीधे चर्च में ही पहुंच जाएं. घर आ कर करेंगे भी क्या? विवेक को कितना समझाया था, कितने उदाहरण दिए थे, कितना चौकन्ना किया था लोगों ने तजुर्बों से कि आ तो गए हो चमकती सोने की नगरी में लेकिन बच के रहना.

बरबाद कर देती हैं गोरी चमड़ी वाली गोरियां. पहले गोरे रंग और मीठीमीठी बातों के जाल में फंसाती हैं. फिर जैसे ही शिकार की अंगूठी उंगली में पड़ी, उसे लट्टू सा घुमाती हैं. फिर किनारा कर लेती हैं.’’‘‘छोडि़ए मामाजी, समय को भी कोई वापस लाया है कभी? सभी को एक मापदंड से तो नहीं माप सकते. इंतजार तो करना ही पड़ेगा, क्योंकि हिंदू विधि के अनुसार बेटा ही बाप की चिता को अग्नि देता है. सच तो यही है कि जेम्स विवेक का बेटा है.

यह उसी का हक है.’’‘‘मंजू, उस हक की बात करती हो, जो धोखे से छीना गया हो. तुम तो उस की दोस्त हो. उसी के विभाग में काम करती रही हो. बाकीतुम भी तो समझदार हो. तुम्हें तो मालूम है यहां के चलन.‘‘और भावना को देखो. उसे बहुत समझाया कि उस गोरी मेम को बुलाने की कोई जरूरत नहीं. अवैध रिश्तों की गठरी बंद ही रहने दो. अगर मेम आ गईं तो पड़ोसिन छाया बेवजह ‘न्यूज औफ द वर्ल्ड’ का काम करेगी, लेकिन वह नहीं मानी.’’‘‘मामाजी, आप बेवजह परेशान हो रहे हैं. ऐसी बातें तो होती रहती हैं इन देशों में. वे तो जीवन का अंग बन चुकी हैं. मैं ने भी भावना से बात की थी. वह बोली कि पोलीन भी तो विवेक के जीवन का हिस्सा थी.

दोनों कभी हमसफर थे. फिर जेम्स भी तो है.’’इतने में एक गाड़ी पोर्टिको आ खड़ी हुई.‘‘लो आ गई गोरी और उस की नाजायज औलाद,’’ मामाजी ने कड़वाहट से कहा.‘‘मामाजी, प्लीज शांत रहिए. यह भी विवेक का परिवार है. पोलीन उस की ऐक्स वाइफ तथा जेम्स बेटा है. उसे झुठलाया भी तो नहीं जा सकता,’’ मंजू ने समझाते हुए कहा.विवेक का पार्थिव शरीर बैठक में सफेद झलरों से सजे बौक्स में अंतिम दर्शन के लिए पड़ा था.

धोखा : काश वासना के उस खेल को समझ पाती शशि

घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे. किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी. वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’ राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

‘नहीं, यह इतना आसान नहीं है. पिताजी मानने को तैयार नहीं हैं.’ ‘लेकिन मैं कैसे रहूंगा? अकेला हो जाऊंगा तुम्हारे बिना.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, राकेश,’ शशि का गला भर आया था. ‘एक काम करो. तुम पहले होस्टल आ जाओ. कोई उपाय निकालते हैं,’ राकेश ने कहा था, ‘मैं रेलवे स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. 2 नंबर गेट पर मिलना. वहीं से दोनों होस्टल चलेंगे.’

उदास स्वर में शशि बोली थी, ‘ठीक है. मैं 2 नंबर गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ तय योजना के अनुसार, शशि रेल से उतर कर 2 नंबर गेट पर खड़ी हो गई. तभी एक कार आ कर शशि के पास रुकी. उस में से राकेश बाहर निकला और शशि के गले लग कर बोला, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

शशि रोआंसी हो गई. राकेश ने कहा, ‘आओ, गाड़ी में बैठ कर बातें करते हैं.’ ‘राकेश कितना सच्चा है,’ शशि ने सोचा, ‘तभी होस्टल जाने के लिए गाड़ी ले आया. नहीं तो औटो से 20 रुपए में पहुंचती. 2 किलोमीटर दूर है होस्टल.’

गाड़ी में बैठते ही राकेश ने शशि का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘शशि, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम नहीं मिलीं, तो अपनी जान दे दूंगा.’ कार सड़क पर दौड़ने लगी.

शशि बोली, ‘नहीं राकेश, ऐसा नहीं करना. मैं तुम्हारी हूं और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी.’ ‘इस के लिए मैं ने एक उपाय सोचा है,’ राकेश ने कहा.

‘क्या,’ शशि बोली. ‘हम लोग शादी कर लेते हैं और अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं.’

शशि आश्चर्यचकित हो कर बोली, ‘यह क्या कह रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न.’ ‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है,’ तभी उस ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा.

कार एक पुल पर पहुंच गई थी. नीचे नदी बह रही थी. राकेश कार से बाहर आ कर बोला, ‘तुम शादी के लिए हां नहीं कहोगी तो मैं इसी पुल से नदी में कूद कर जान दे दूंगा,’ यह कह कर राकेश पुल की तरफ बढ़ने लगा. ‘यह क्या कर रहे हो, राकेश?’ शशि घबरा गई.

‘तो मैं जी कर क्या करूंगा.’ ‘चलो, मैं तुम्हारी बात मानती हूं. लेकिन जान न दो,’ यह कह कर उस ने राकेश को खींच कर वापस कार में बिठा दिया और खुद भी बगल में बैठ कर बोली, ‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’

शशि के हाथों को अपने सीने से लगा कर राकेश बोला, ‘अगर तुम तैयार हो तो सब हो जाएगा. हम दोनों आज ही शादी करेंगे.’ शशि चकित रह गई. इस निर्णय पर वह कांप रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न कहे तो प्यार टूट जाता और राकेश जान दे देता. हां कहे तो मातापिता, रिश्तेदार और समाज के गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा.

‘क्या सोच रही हो?’ राकेश ने पूछा. शशि बोली, ‘यह सब अचानक और इतनी जल्दी ठीक नहीं है, मुझे कुछ सोचनेसमझने का समय तो दो.’

‘इस का मतलब तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है. ठीक है, मत करो शादी. मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’ ‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तैयार हूं, लेकिन शादी कोई खेल नहीं है. कैसे शादी होगी. हम कहां रहेंगे? घर के लोग नाराज होंगे तो क्या करेंगे? हमारी पढ़ाई का क्या होगा?’ शशि ने कहा.

‘तुम इस की चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. एक बार शादी हो जाने दो. कुछ दिनों बाद सब मान जाएंगे. वैसे अब हम बालिग हैं. अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकते हैं,’ राकेश ने समझाया. ‘लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.’

‘मैं हूं न. डरने की क्या बात है?’ ‘चलो, फिर ठीक है. मैं तैयार हूं,’ डरतेडरते शशि ने शादी के लिए हामी भर दी. वह किसी भी कीमत पर अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी.

राकेश खुश हो कर बोला, ‘तुम कितनी अच्छी हो.’ थोड़ी देर बाद कार एक होटल के गेट पर रुकी. राकेश बोला, ‘डरो नहीं, सब ठीक हो जाएगा. हम लोग आज ही शादी कर लेंगे, लेकिन किसी को बताना नहीं. शादी के बाद कुछ दिन हम लोग होस्टल में ही रहेंगे. 15 दिनों बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मेरी मां अपनी बहू को देखना चाहती हैं. वे बहुत खुश होंगी.’

‘तो क्या तुम ने अपनी मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?’ ‘नहीं, सिर्फ मम्मी को, क्योंकि मम्मी को गठिया है. ज्यादा चलफिर नहीं पातीं. इसीलिए वे जल्दी बहू को घर लाना चाहती हैं. किंतु पापा नहीं चाहते कि मेरी शादी हो. वे चाहते हैं कि मैं पहले पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, लेकिन वे भी मान जाएंगे फिर हम दोनों की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी,’ राकेश बोला.

‘सच, तुम बहुत अच्छे हो.’ ‘तो मेरी प्यारी महबूबा, तुम होटल में आराम करो और हां, इस बैग में तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं. तुम रात 8 बजे तक तैयार हो जाना. फिर हम दोनों पास के मंदिर में चलेंगे. वहां शादी कर लेंगे. फिर हम होटल में आ जाएंगे. आज हमारी जिंदगी का सब से खुशी का दिन होगा.’

कुछ प्रबंध करने राकेश बाहर चला गया. शशि उधेड़बुन में थी. उस के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने मातापिता को धोखा देने की बात सोच कर उसे बुरा लग रहा था, लेकिन राकेश जिद पर अड़ा था और वह राकेश को खोना नहीं चाहती थी. कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. तभी राकेश आ कर बोला, ‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुई? समय कम है. तैयार हो जाओ. मैं भी तैयार हो रहा हूं.’

‘लेकिन राकेश यह सब ठीक नहीं हो रहा है,’ शशि ने कहा. ‘यदि ऐसा है तो चलो, तुम्हें होस्टल पहुंचा देता हूं. किंतु मुझे हमेशा के लिए भूल जाना. मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा. जहां प्यार नहीं, वहां जी कर क्या करना?’ राकेश उदास हो कर बोला.

‘तुम बहुत जिद्दी हो, राकेश. डरती हूं कहीं कुछ बुरा न हो जाए.’ ‘लेकिन मैं किसी कीमत पर अपना प्यार पाना चाहता हूं, नहीं तो…’

‘बस राकेश, और कुछ मत कहो.’ 1 घंटे में तैयार हो कर दोनों पास के एक मंदिर में पहुंच गए. वहां राकेश के कुछ दोस्त पहले से मौजूद थे.

राकेश मंदिर के पुजारी से बोला, ‘पंडितजी, हमारी शादी जल्दी करा दीजिए.’ जल्दी ही शादी की प्रक्रिया पूरी हो गई. शशि और राकेश एकदूसरे के हो गए. शशि को अपनी बाहों में ले कर राकेश बोला, ‘चलो, अब हम होटल चलते हैं. आज की रात वहीं बितानी है.’

दोनों होटल में आ गए. लेकिन यह दूसरा होटल था. शशि को घबराहट हो रही थी. राकेश बोला, ‘चिंता न करो. अब सब ठीक हो जाएगा. आज की रात हम दोनों की खास रात है न.’ शशि मन ही मन डर रही थी, किंतु राकेश को रोक न सकी. फिर उसे भी अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में समा गए. कब 2 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘थक गई न. चलो, पानी पी लो और सो जाओ,’ पानी का गिलास शशि की तरफ बढ़ाते हुए राकेश बोला. शशि ने पानी पी लिया. जल्द ही उसे नींद आने लगी. वह सो गई. सुबह जब शशि की नींद खुली तो वह हक्काबक्का रह गई. उस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था. उस के मुंह से चीख निकल गई. जब उस ने देखा कि कमरे में राकेश के अलावा 3 और लड़के थे. सब मुसकरा रहे थे.

तभी राकेश बोला, ‘चुप रहो जानेमन, यहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. ज्यादा इधरउधर की तो तेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देंगे.’ ‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया, राकेश,’ अपने शरीर को ढकने का प्रयास करती हुई शशि रोने लगी, ‘तुम ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं सब को बता दूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी.’

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगी अन्यथा हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वैसे ऐसा करोगी तो तुम खुद ही बदनाम होगी,’ कह कर राकेश हंसने लगा. उस के दोस्त भी हंसने लगे. शशि का बदन टूट रहा था. उस के शरीर पर जगहजगह नोचनेखसोटने के निशान थे. वह समझ गई कि रात में पानी में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था राकेश ने. उस के बेहाश हो जाने पर सब ने उस के साथ…

शशि का रोरो कर बुरा हाल हो गया. राकेश बोला, ‘अब चुप हो जा. जो हो गया उसे भूल जा. इसी में तेरी भलाई है और जल्दी से तैयार हो जा. तुझे होस्टल पहुंचा देता हूं. और हां, किसी से कुछ कहना नहीं वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’

शशि को अपनी व अपने परिवार की खातिर चुप रहना पड़ा था. ‘‘अरे, खिड़की के बाहर क्या देख रही हो? जल्दी तैयार हो जा. मेहमान आने वाले होंगे,’’ तभी मां ने उसे झकझोरा तो वह पिछली यादों से वर्तमान में लौटी.

‘‘वह प्यार नहीं धोखा था. उस ने अपने मजे के लिए मेरी सचाई और भावना का इस्तेमाल किया,’’ शशि ने मन ही मन सोचा. अपने आंसू पोंछते हुए शशि बाथरूम में घुस गई. उसे अपनी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था. अपनी जिंदगी का फैसला उस ने दूसरे को करने का हक दे दिया था जो उस की भलाई के लिए जिम्मेदार नहीं था. इसीलिए ऐसा हुआ, लेकिन अब कभी वह ऐसी भूल नहीं करेगी. मुंह पर पानी के छींटे मार कर वह राकेश के दिए घाव के दर्द को हलका करने की कोशिश करने लगी.

मेहमान आ रहे हैं. अब उसे नई जिंदगी शुरू करनी है. हां, नई जिंदगी…वह जल्दीजल्दी सजनेसंवरने लगी.

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