family story in hindi

family story in hindi
सोफे पर अधलेटी सी पड़ी आभा की आंखें बारबार भीग उठती थीं. अंतर्मन की पीड़ा आंसुओं के साथ बहती जा रही थी. उस के पति आकाश भी भीतरी वेदना मन में समेटे मानो अंगारों पर लोटते सोच में डूबे थे. ‘यह क्या हो गया? क्या अतीत की वह घटना सचमुच हमारी भूल थी? कितनी आसानी से प्रतीक्षा ने सारे संबंध तोड़ डाले. एक बार भी मांबाप की उमंगों, सपनों के बारे में नहीं सोचा. उस का दोटूक उत्तर किस तरह कलेजे को बींध गया था, देखो मम्मी, अब तुम्हारा जमाना नहीं रहा. मैं अपना भलाबुरा अच्छी तरह समझती हूं. वैसे भी अपने जीवन का यह महत्त्वपूर्ण फैसला मैं किसी और को कैसे लेने दूं?’
‘पर प्रतीक्षा, मैं और तुम्हारे पापा कोई और नहीं हैं. हम ने तुम्हें जन्म दिया है,’ आभा ने कहा तो प्रतीक्षा चिढ़ गई, ‘यही तो मुसीबत है, जन्म दे कर जो इतना बड़ा उपकार कर दिया है, उस का ऋण तो मैं इस जन्म में चुका ही नहीं सकती… क्यों?’
‘बेटा, तुम हमारी बात को गलत दिशा में मोड़ रही हो. शादी का फैसला जीवन का अहम फैसला होता है, इस में जल्दबाजी ठीक नहीं. दिल से नहीं दिमाग से निर्णय लेना चाहिए,’ आभा ने समझाया तो प्रतीक्षा बोली, ‘मैं ने कोई जल्दबाजी नहीं की है, मैं अरुण को 2 वर्षों से जानती हूं. आप दोनों अच्छी तरह समझ लें, मैं अरुण से ही शादी करूंगी.’
‘मुझे अरुण पसंद नहीं है, प्रतीक्षा. वह अभी ठीक से कोई जौब भी नहीं पा सका है और मुझे लगता है कि वह एक जिम्मेदार जीवनसाथी नहीं बन पाएगा. तुम दोनों अभी कल्पना की उड़ान भर रहे हो, जब धरातल से सिर टकराएगा तो बहुत पछताओगी, बेटी,’ आकाश ने कहा.
‘आप अगर अरुण को पसंद नहीं करते तो मैं भी ऐसे पिता को पसंद नहीं करती जो बच्चों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं.’
‘प्रतीक्षा…’ आभा सन्न रह गई थी.
आकाश कुछ देर चुप रहे फिर उन्होंने बेटी से कहा, ‘शादी को ले कर हमारे भी कुछ अरमान हैं.’
‘बी प्रैक्टिकल पापा, डोंट बी इमोशनल और आप ने भी तो प्रेमविवाह ही किया था न?’ प्रतीक्षा पांव पटकती कमरे से बाहर चली गई पर उस का तर्क मुंह चिढ़ा रहा था.
आभा ने कुछ कहना चाहा तो आकाश ने उसे रोक दिया, ‘मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो.’
आकाश अकेले बैठे सोच के अथाह सागर में डूब गए. उन्होंने और आभा ने भी तो प्रेमविवाह किया था. आज जिस स्थान पर वे खड़े हैं कल उसी स्थान पर उन के मांबाप खड़े थे.
‘आकाश, यह तू क्या कह रहा है? अभी तो तू ने गे्रजुएशन भी नहीं किया है. यह कैसे संभव है?’ मां ने अवाक् हो कर पूछा था.
‘क्यों संभव नहीं है, मां? रही ग्रेजुएट होने की बात, तो मात्र 4 महीने बाद मुझे बीकौम की डिगरी मिल ही जाएगी.’
‘बेटा, केवल डिगरी मिल जाने से क्या होगा? क्या तू अभी परिवार संभालने के योग्य है? वैसे भी तेरे पिताजी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगे.’
मां ने समझाया तो आकाश चिढ़ कर बोला, ‘पिताजी नहीं मानते तो मत मानें, मुझे उन की परवा नहीं. मैं आभा के सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगा.’
आकाश और आभा एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों ने विवाह का फैसला किया था. पर दोनों के परिवार वाले इस विवाह के सख्त खिलाफ थे. आभा के परिवार वाले पढ़ालिखा कमाऊ वर चाहते थे और आकाश के मातापिता पुत्र को उच्च पद पर पहुंचते हुए देखने के अभिलाषी थे. उस समय दोनों परिवारों के बच्चे उम्र की उस परिधि पर खड़े थे जहां केवल अपना निर्णय, अपनी भावनाएं और अपनी सोच ही अंतर्मन पर हावी होती हैं.
आकाश के पिता सबकुछ जान कर क्रोध से फट पड़े थे, ‘आकाश की मां, समझाओ इस नालायक को, शादी के लिए तो उम्र पड़ी है, अभी पढ़ाई पर ध्यान दे. कहां तो मैं इस के लिए सोच रहा हूं, बीकौम के बाद ये आगे पढ़े, चार्टर्ड अकाउंटैंट बने, खूब नाम कमाए, और यह है कि लैलामजनूं का नाटक कर रहा है.’
‘आप शांत रहिए, मैं उसे समझाऊंगी,’ मां बेहद दुखी थीं. पर बगल के कमरे में बैठा, अब तक सबकुछ चुपचाप सुन रहा आकाश तमतमा कर कमरे में चला आया था, ‘पिताजी, यह लैलामजनूं… नाटक, आप क्याक्या बोलते जा रहे हैं? क्या प्यार करना गुनाह है? और अगर है भी, तो मैं यह गुनाह कर के ही रहूंगा, मैं आभा से कल ही कोर्टमैरिज करने वाला हूं, आप से जो बन पड़ता है कर लीजिए.’
पिताजी सन्न रह गए थे और मां ने एक तमाचा जड़ दिया था आकाश के मुंह पर, ‘नालायक, तू इन्हें भलाबुरा कह रहा है. बेटा, मांबाप हर परिस्थिति में बच्चों का भला ही सोचते हैं. तू पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर, अपने पांव पर खड़ा हो, तब आभा से ही शादी करना पर अभी नहीं. क्यों पांव पर कुल्हाड़ी मार रहा है?’
पर उस वक्त न जाने आकाश की सोच को क्या हो गया था? क्रोध में विवेक खो बैठे आकाश ने आभा से कोर्टमैरिज कर ली.
‘मेरे घर में तुम्हारा कोई स्थान नहीं. निकल जाओ मेरे घर से, फिर कभी अपना मुंह मत दिखाना. कल जब पछताओगे तो केवल मैं ही याद आऊंगा. आज मेरी बातें बुरी लग रही हैं न, कल यही तीर सी चुभेंगी.’
पिता के कहे शब्दों को आकाश आज भी महसूस करते हैं. कम उम्र में सोच कितनी ‘अपरिपक्व’ होती है? इस बात को वे धीरेधीरे समझने लगे थे. बिना सोचेसमझे भावावेश में आ कर उन्होंने आभा से विवाह तो कर लिया पर जल्द ही दोनों को अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था.
आकाश ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली थी और एक छोटे से किराए के घर से जीवन शुरू कर दिया था. छोटीछोटी चीजों के लिए भी तरसता जीवन. आकाश लाख चाह कर भी पत्नी की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था. नमकहल्दी का जुगाड़ करने में ही पूरा महीना बीत जाता था. इसी बीच, आभा गर्भवती हो गई. खर्च बढ़ता जा रहा था और आमदनी सीमित थी. भीतरी कुंठा अब आकाश का सुखचैन जैसे लीलती जा रही थी. बातबात पर भड़कना जैसे उस की आदत में शुमार होता जा रहा था.
‘मैं जब भी कुछ मांगती हूं तुम इतना भड़क क्यों जाते हो? कहां गए तुम्हारे वादे? मुझे हर हाल में खुश रखने का तुम ने वादा किया था न?’ एक दिन आभा ने पूछ ही लिया था.
‘मैं अभी इस से ज्यादा कुछ नहीं कर सकता,’ आकाश ने चिढ़ कर कहा तो आभा बोली, ‘काश, हम अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद शादी करते तो शायद जीवन कितना सुखमय होता.’
‘तुम ठीक कह रही हो, आभा. न जाने मुझे उस वक्त क्या हो गया था? मुझे कैरियर बनाने के बाद ही विवाह के लिए सोचना चाहिए था,’ एक ठंडी सांस भरते हुए आकाश ने कहा.
समय धीरेधीरे सरकता जा रहा था. दोनों पतिपत्नी ने विचार किया कि वे अभी किसी तीसरे की जिम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए गर्भपात ही एकमात्र उपाय है. और एक अजन्मा शिशु इस दुनिया में आंखें खोलने से रोक दिया गया. उस रात दोनों पतिपत्नी की आंखों में नींद नहीं असंख्य प्रश्न थे.
चुपचाप बैठा आकाश सोच रहा था, किशोरावस्था और यौवन की दहलीज पर खड़ा व्यक्ति कितना असहाय होता है. निर्णय लेने की क्षमता से रहित. पर फिर भी स्वयं को परिपक्वता से भरा समझ कर भूल करता जाता है. ऐसे में मातापिता का सहयोग, विचार, सहमति, निर्णय और प्रेम कितना महत्त्वपूर्ण होता है. ठीक ही तो कहा था पिताजी ने, ‘पछताओगे एक दिन तब केवल मैं ही याद आऊंगा. अभी मेरी बातें कड़वी लग रही हैं न? पर एक दिन, यही सोचने पर विवश कर देंगी.’
उधर, आभा परकटे पंछी की तरह बिस्तर पर करवटें बदल रही थी. मांबाप का दिल दुखा कर कोई भी खुश नहीं रह सकता. प्रेम एक नैसर्गिक अनुभूति है. इसे अनुभव कर के खुशहाल जीवन बिताना ही जीवन की सार्थकता है. प्रेम कभी पलायन का कारण नहीं बन सकता. सच्चा प्रेम तो संबंधों में दृढ़ता प्रदान करता है, एक व्यापक सोच प्रदान करता है. प्रेम के कारण परिजनों से मुख मोड़ने वाले कभी सच्चा सुख नहीं पा सकते. आभा ने जैसे अपनेआप से कहा, ‘मेरा और आकाश का प्रेम एक आकर्षण था. जो धीरेधीरे एकदूसरे के प्रति आसक्ति में बदलता गया. आसक्ति विचारधाराओं को स्वयं में समेटती गई. हम परिवार से दूर होते गए और आखिरकार अकेले रह गए. काश, थोड़ा सा विचार किया होता तो आज सारे सुख हमारी मुट्ठियों में होते.’
अगली सुबह आभा ने आकाश से कहा, ‘मैं टीचर की ट्रेनिंग करना चाहती हूं. तब हम ने विवाह में जल्दबाजी की थी, यह हमारी भूल थी, पर अब मैं अपने पांव पर खड़ी हो कर तुम्हारा हाथ बंटाना चाहती हूं.’
‘तुम बिलकुल ठीक सोच रही हो. मैं भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहता हूं. सफल होने के बाद हम दोनों अपने परिवारों के साथ फिर से जुड़ जाने का प्रयास करेंगे. परिवार से अलग रह कर कोई खुश नहीं रह सकता,’ आकाश का स्वर भीग उठा था.
समय अपनी धुरी पर सरकता रहा. प्रकृति ने प्रत्येक इंसान को यह शक्ति दी है कि अगर वह मन से कुछ ठान लेता है तो कर के ही रहता है. समय के साथ आभा और आकाश ने भी इच्छित मंजिल पा ली. आकाश बैंक में पीओ हो गए और आभा एक स्कूल में शिक्षिका बन गई. 2 प्यारे बच्चों की किलकारी से घर गूंज उठा. सुखमय जीवन तो जैसे क्षणों में बीत जाता है. बेटा निलय इंजीनियरिंग पढ़ रहा था और बेटी प्रतीक्षा मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रही थी. मातापिता की नजरों में बच्ची, प्रतीक्षा उस दिन सहसा बड़ी लगने लगी जब उस ने अरुण के बारे में उन्हें बताया.
‘मां, अरुण मेरा सीनियर है. एक बार मिलोगी तो बारबार मिलना चाहोगी,’ प्रतीक्षा ने चहकते हुए कहा था.
‘यह अरुण कौन है?’
‘बताया न, मेरा सीनियर है.’
‘अरे नहीं, हमारी जातिधर्म का तो है न?’ आभा ने हठात पूछ लिया था.
‘उस से क्या फर्क पड़ता है?’ प्रतीक्षा ने मुंह बना लिया था.
‘फर्क पड़ता है, सब की अपनीअपनी संस्कृति होती है.’
‘डोंट बी सिली, मां, प्रेम के सामने इन ओछी बातों की कोई अहमियत
नहीं होती. वैसे भी मैं बेकार ही इस बहस में पड़ रही हूं. मुझे अरुण पसंद है, दैट्स आल.’
प्रतीक्षा, मां को अवाक् छोड़ कर कमरे से बाहर जा चुकी थी. आभा के कलेजे में अपने ही कहे कुछ शब्द चुभ रहे थे, जो उस ने अपनी मां से कहे थे, ‘आप लोगों ने अपना जीवन जी लिया है, अब मुझे भी चैन से अपना जीवन जीने दो. जिस से प्रेम है, उस से शादी की है, घर छोड़ कर भागी नहीं हूं. जो तुम लोगों को समाज का भय सता रहा है.’
आकाश को जब सबकुछ पता चला तो उन्होंने भी बेटी से बात की. पर प्रतीक्षा अपनी बात पर अड़ी रही.
‘पापा, आप ने मुझे उच्च शिक्षा दी है, तो भलाबुरा समझने की बुद्धि भी दी है. आप ही बताइए, मैं कभी गलत निर्णय ले सकती हूं?’
आकाश सोच में पड़ गए. इसे कहते हैं परिवर्तन, पहले प्रेमविवाह की जड़ में होती थी जिद और अब…? आज की पीढ़ी तो आत्मस्वाभिमान को ही ढाल बना कर मनचाहा निर्णय ले रही है. अभिभावक तब भी असहाय थे और आज भी मूक रहने को विवश हैं.
‘बताइए न पापा, क्या प्रेम करने से पहले जाति, धर्म सबकुछ पूछ लेना ही सही है? आप ने भी तो मां से…’
प्रतीक्षा की बात बीच में ही काट कर आकाश बोले, ‘हमारी जाति एक थी, प्रतीक्षा. दूसरी जाति में विवाह से कई सामाजिक मुश्किलें आती हैं. फिर भी तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो, अरुण को भी सही जौब मिल जाने दो. फिर हम धूमधाम से तुम्हारी शादी करवा देंगे.’
‘मुझे और अरुण को तो कोर्टमैरिज पसंद है, तामझाम के लिए आज किस के पास वक्त है?’ प्रतीक्षा ने मुंह बना कर कहा तो आकाश क्रोधित हो उठे, ‘जब तुम ने सारे निर्णय स्वयं ही ले लिए हैं तो हमारी जरूरत क्या है? तुम्हें और अरुण को यह पसंद नहीं, वह पसंद नहीं, और हमारी पसंद? मुझे अरुण अपने दामाद के रूप में पसंद नहीं.’
‘मैं भी ऐसे पिता को पसंद नहीं करती जो मेरी भावनाएं न समझे,’ कह कर प्रतीक्षा मांबाप को सकते की हालत में छोड़ कर चली गई.
‘‘चाय ले आऊं?’’ आभा ने पूछा तो आकाश की सोच पर विराम लग गया.
‘‘प्रतीक्षा कहां है?’’ उन्होंने पूछा तो आभा ने बताया कि वह बाहर गई है.
‘‘क्या सोच रहे हो?’’ आभा बोली.
‘‘यही कि एकमात्र बेटी का विवाह भी हम अपने रीतिरिवाज और परंपरा के अनुसार नहीं कर सकेंगे. वह जिद्दी लड़की कोर्टमैरिज ही करेगी, देखना.’’
‘‘पता नहीं बच्चे मांबाप की भावनाओं का खयाल क्यों नहीं रखते? बच्चों की उद्दंडता उन्हें कितनी चोट पहुंचाती है.’’
‘‘यह एक कटु सत्य है.’’
‘‘हां, पर उस से बड़ा एक सच और है,’’ आभा ने ठहरे हुए स्वर में कहा.
‘‘क्या?’’
‘‘यही कि जब अभिभावक स्वयं बच्चे होते हैं, युवावस्था की दहलीज पर पांव रखते हैं तो अपने मांबाप की कद्र नहीं करते और जब अपना समय आता है तो बच्चों की उद्दंडता, निर्लिप्तता आहत करती है. बबूल के पेड़ पर आम का फल नहीं लगता.’’
‘‘तुम सच कह रही हो, आभा. मांबाप बनने के बाद ही उन की वेदना का सही साक्षात्कार हो पाता है, और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. आज मैं भी बाबूजी और मां की पीड़ा का सहज अनुमान लगा पा रहा हूं,’’ आकाश के शब्द आंतरिक पीड़ा से भीग उठे थे.
‘‘अगर दोनों पीढि़यां एकदूसरे की भावनाओं को समझ कर परस्पर सामंजस्य बिठाएं तो ऐसी जटिल परिस्थिति कभी उत्पन्न ही नहीं होगी. कभी मांबाप अड़ जाते हैं तो कभी बच्चे. थोड़ाथोड़ा दोनों झुक जाएं तो खुशियों का वृत्त पूरा हो जाए, है न?’’ आभा ने कहा.
‘‘खुशियों का वृत्त जरूर पूरा होगा मां,’’ तभी अचानक प्रतीक्षा कमरे में आ गई.
मातापिता की प्रश्नवाचक दृष्टि देख कर वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘मैं आप लोगों की इस बात से सहमत हूं कि हमें फ्लैक्सिबल होना चाहिए. अगर आप को मेरे निर्णय पर एतराज नहीं तो चलिए, मानती हूं आप की बात. अरुण की जौब के बाद ही मैं शादी करूंगी और कोर्टमैरिज नहीं, पारंपरिक विवाह जैसा कि आप लोग चाहते हैं. ठीक है?’’
‘‘हां बेटी,’’ आकाश ने बेटी का कंधा थपथपा दिया था. प्रतीक्षा के जाने के बाद आभा ने देखा आकाश का चेहरा अब भी गंभीर था.
‘‘अब तो ठीक है न?’’ आभा ने पूछा तो आकाश ने कहा, ‘‘हां, ऊपरी तौर पर. सोच रहा हूं, 2 पीढि़यों का यह द्वंद्व क्या कभी समाप्त हो पाएगा?’’
एक प्रश्न कमरे में गूंजा और अनुत्तरित रह गया. पर दोनों का मौन बहुत कुछ कह रहा था.
प्रणय ने होटल में बैठ कर सोनाली की तारीफ के पुल बांधे तो उस युवक ने पूछा, ‘‘क्या सचमुच ऐसी कन्या उपलब्ध है?’’
‘‘अजी, हाथ कंगन को आरसी क्या. मैं कल ही आप को उस से मिला देता हूं, लेकिन कुछ अपने बारे में भी बताइए.’’
‘‘मेरा नाम सतीश है. मैं नागपुर से नौकरी की तलाश में यहां आया था. आप जानते ही हैं कि मुंबई महानगरी में नौकरी मिल जाती है, छोकरी भी मिल जाती है, पर रहने को मकान नहीं मिलता. लाचारी से पिछले 5 वर्षों से एक पारसी महिला के घर पर बतौर पेइंगगैस्ट रह रहा हूं. वह है तो भली, पर जरा खब्ती है. पैसेपैसे का हिसाब रखती है, रात को 10 बजे रसोई में ताला लगा देती है. देर से लौटो तो थाली से ढका ठंडा खाना मिलता है, जिसे खाने की तबीयत नहीं होती. वह तो भला हो मकान मालकिन की बेटी नर्गिस का, जो मेरे लिए चोरी से आमलेट
बना देती है. चाय के तो अनगिनत
प्याले पिलाती है, बड़ी भली है, बेचारी 30 साल पार कर चुकी है, पर उसे भी मनपसंद वर नहीं मिला.
‘‘मैं अपने एकाकीपन से आजिज आ गया हूं. सोचा, एक लड़की ढूंढ़ कर शादी कर ही डालूं. अच्छा, अब मुझे चलना चाहिए.’’
‘‘तो कल मिल रहे हो न? इसी जगह, इसी समय?’’
‘‘पक्का.’’
दूसरे दिन प्रणय बेसब्री से सतीश की राह देखता रहा, पर वह न आया. प्रणय ने अपनेआप को कोसा कि उस ने सतीश का पता, ठिकाना तक मालूम नहीं किया.
वह फिर मनपसंद कार्यालय जा पहुंचा और बाहर टहलता रहा. उसे निराश नहीं होना पड़ा. अचानक उस ने देखा कि एक सुंदर नौजवान लिफ्ट से निकल कर मनपसंद की ओर बढ़ रहा है.
प्रणय ने उसे बीच ही में घेर लिया, वे बातें करतेकरते वर्ली की तरफ निकल गए, समुद्र के किनारे घूमतेघूमते उन्होंने ढेरों बातें कर डालीं. प्रणय ने शीघ्र ही जान लिया कि युवक का नाम शांतनु है. वह अपने मातापिता के साथ मालाबार हिल पर रहता है, उस के पिता व्यापारी हैं यानी खातेपीते लोग हैं. घर में शांतनु के अलावा 2 छोटे भाईबहन हैं.
प्रणय को शांतनु बेहद जंचा. कोई भी लड़की उसे पतिरूप में पा कर धन्य हो जाएगी.
प्रणय खुशीखुशी घर पहुंचा. रात को देर तक अपने और दीपाली के बारे में सोचता रहा.
दूसरे दिन शांतनु आग्रह कर के उसे अपने घर ले गया. उस ने प्रणय को बढि़या खाना खिलाया और अपने परिवार के दूसरे सदस्यों से मिलाया. फिर वह उसे उस के घर छोड़ने गया.
रास्ते में वे हाजीअली पर रुके. एक पान की दुकान से पान ले कर खाया. बात लड़कियों की चल पड़ी तो प्रणय ने पूछ लिया, ‘‘तुम्हें कैसी लड़की पसंद है?’’
शांतनु ने उसे विस्तार से बताया.
‘‘मेरी नजर में एक बहुत सुंदर लड़की है,’’ प्रणय ने कहा, ‘‘ऐसी लड़की चिराग ले कर ढूंढ़ोगे, तो भी नहीं मिलेगी. लाखों में एक है.’’
‘‘सच?’’ शांतनु की आंखें चमकने लगीं.
‘‘एकदम सच, जब कहो दिखा दूं? तुम उसे कब देखना चाहोगे?’’
‘‘देखने की जरूरत ही क्या है. तुम जब इतनी तारीफ कर रहे हो तो जरूर अच्छी होगी.’’
‘‘फिर भी. शादीब्याह के मामले में अच्छी तरह देखभाल कर लेनी चाहिए.’’
‘‘भई, मैं तुम से साफसाफ बता दूं, मैं ने तय कर लिया है कि जो व्यक्ति मेरी बहन से शादी करेगा, मैं उस की बहन या उस के परिवार की लड़की से ब्याह कर लूंगा.’’
‘‘अरे,’’ प्रणय अचकचाया, ‘‘यह क्या कह रहे हो, यार?’’
‘‘ठीक कह रहा हूं, मेरी बहन की शादी नहीं हो रही है. जहां बात चलती है, टूट जाती है. मेरे मांबाप उस की शादी को ले कर बहुत परेशान हैं. इसीलिए मैं ने फैसला किया है कि जो मेरी बहन का हाथ थामेगा, मैं उस की बहन से शादी कर लूंगा. इस हाथ दे, उस हाथ ले. बोलो, क्या कहते हो?’’
‘‘अब मैं क्या बोलूं?’’
‘‘क्यों, क्या तुम्हें मेरी बहन पसंद नहीं आई?’’
‘‘यार, पसंदनापसंद का सवाल नहीं है. मैं किसी और लड़की को चाहता हूं. हमारी मंगनी हो चुकी है.’’
‘‘ओह, तुम यह मंगनी तोड़ नहीं सकते?’’
‘‘असंभव,’’ प्रणय ने दृढ़ता से कहा.
‘‘ओह,’’ शांतनु मायूस हो गया.
‘‘मेरे भाई,’’ प्रणय ने उसे समझाना चाहा, ‘‘क्यों तुम अपनी बहन की खातिर अपना जीवन बरबाद करना चाहते हो. तुम्हारी बहन को अच्छा लड़का मिल ही जाएगा. मैं खुद भी उस के लिए वर खोजूंगा, बल्कि एक लड़का तो मेरी नजर में है भी.’’
प्रणय घर लौट कर सोचने लगा कि कुछ भी हो, सोनाली की शादी तो वह करा कर ही रहेगा. इस काम का बीड़ा उठाया है तो पूरा कर के रहेगा.
अगले रोज जब प्रणय मनपसंद कार्यालय के करीब पहुंचा तो दरबान ने उसे घूर कर देखा.
करीब एक घंटे बाद उस ने देखा कि एक लंबाचौड़ा कद्दावर इंसान मनपसंद की ओर बढ़ रहा है. प्रणय सोचने लगा, ‘वाह, यदि यह शिकार फंस जाए तो क्या कहने, सोनाली के मांबाप मेरे चरणों में बिछ जाएंगे. खुद सोनाली भी उम्रभर मेरा आभार मानेगी.’
‘‘भाईसाहब,’’ वह फुसफुसाया.
युवक ठिठक गया, ‘‘कहिए?’’
प्रणय ने सोनालीपुराण शुरू किया तो युवक भड़क उठा, ‘‘क्या कह रहे हैं आप? मैं यहां लड़कियों की खोज में नहीं आया. मैं शादी कर के बाकायदा घर बसाना चाहता हूं.’’
प्रणय ने दांतों तले जीभ काटी, ‘‘आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मैं भी शादी की ही बात कर रहा हूं.’’
उस ने अपनी बात का खुलासा किया तो युवक चुपचाप सुनता रहा. वे दोनों उस इमारत से बाहर निकले और चौपाटी की ओर चलते गए.
मेरीन ड्राइव पर पहुंच कर उस युवक ने कहा, ‘‘मैं यहीं रहता हूं,’’ उस ने एक भव्य इमारत की तरफ इशारा किया, ‘‘मैं आप को अपने घर ले चलता, पर क्या करूं, मजबूर हूं.’’
प्रणय ने उस की ओर सवालिया नजरों से देखा तो युवक ने अपनी गाथा सुनाई, ‘‘मेरा नाम रणवीर सिंह है. हम लोग ठाकुर हैं. बिहार में हमारी बहुत जमीनजायदाद है. लेकिन कईर् सालों से हम मुंबई में ही रह रहे हैं, क्योंकि यहां भी हमारा व्यापार फैला हुआ है. मेरे मांबाप बहुत पहले गुजर गए. मैं अपने चाचाचाची के साथ रहता हूं. जायदाद हाथ से निकल जाने के डर से वे मेरी शादी नहीं करना चाहते. जब भी कोई रिश्ता आता है, वे लड़की वालों को मेरे खिलाफ उलटासीधा बता कर भड़का देते हैं. इधर मेरी शादी की उम्र बीतती जा रही है. लाचार हो कर मैं ने सोचा, किसी वैवाहिक संस्था में अरजी दे दूं.’’
‘‘बस, आप अब सबकुछ मुझ पर छोड़ दीजिए,’’ प्रणय ने आश्वासन दिया.
‘‘तो आप लड़की वालों से मेरी बात चलाइए, यदि वे राजी हों, तो हम इसी जगह, इसी समय, ठीक 8 दिनों बाद मिलते हैं.’’
‘‘ठीक है,’’ प्रणय ने मुसकराते हुए कहा.
लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगी, प्रणय घंटों रणवीर की प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन वह न आया.
अनिरुद्ध घर के अंदर घुसते हुए मंजुला से बोले, ‘‘मैडम, आप के भाईसाहब ने श्रेयसी के कन्यादान की तैयारी कर ली है.’’
‘‘क्या?’’
‘‘उन्होंने उस की शादी का कार्ड भेजा है.’’
‘‘क्या कह रहे हैं, आप?’’ चौंकती हुई मंजुला बोली, ‘‘क्या श्रेयसी की शादी तय हो गई है?’’
‘‘जी मैडम, निमंत्रणकार्ड तो यही कह रहा है.’’
मंजुला ने तेजी से कार्ड खोल कर पढ़ा और उसे खिड़की पर एक किनारे रख दिया. फिर बुदबुदाई, ‘भाईसाहब कभी नहीं बदलेंगे.’ उस के चेहरे पर उदासी और खिन्नता का भाव था.
‘‘क्या हुआ? तुम श्रेयसी की प्रस्तावित शादी की खबर सुन कर खुश नहीं हुई?’’
‘‘आप तो बस.’’
तभी बहू छवि चाय ले कर ड्राइंगरूम में आई, ‘‘पापाजी, किस की शादी का कार्ड है?’’
‘‘अरे बेटा, खुशखबरी है. अपनी श्रेयसी की शादी का कार्ड है.’’
छवि खुश हो कर बोली, ‘‘वाउ, मजा आ गया.’’
छवि के जाने के बाद मंजुला बोली, ‘‘क्या भाईसाहब एक बार भी फोन नहीं कर सकते थे?’’
‘‘तो क्या हुआ? लो, मैं अपनी ओर से भाई साहब को फोन कर के बधाई दे देता हूं.’’
मन ही मन अपमानित महसूस करती हुई मंजुला वहां से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.
‘‘साले साहब, बहुतबहुत बधाई. आप का भेजा हुआ कार्ड मिल गया. श्रेयसी की तरह उस की शादी का कार्ड भी बहुत सुंदर है. मेरे लायक कोई सेवा हो तो निसंकोच कहिएगा. लड़के के बारे में आप ने अच्छी तरह से जानकारी तो कर ही ली होगी?’’
‘‘हां, हां, क्यों नहीं. महाराजजी ने सब पक्का कर दिया है.’’
‘‘एक बात बताइए, आप ने श्रेयसी से पूछा कि नहीं?’’
‘‘उस से क्या पूछना? ऐसा राजकुमार सा छोरा सब को नहीं मिलता. अपनी श्रेयसी तो सीधे अमेरिका जाएगी. इसी वजह से जल्दबाजी में 15 दिनों के अंदर शादी करनी पड़ रही है.’’
‘‘अच्छा, श्रेयसी कहां है, फोन दीजिए उसे, बधाई तो दे दें.’’
‘‘देखिए अनिरुद्धजी, बधाईवधाई रहने दीजिए. पहले मेरी बात सुनिए, हमारे हिंदू धर्म में कन्यादान को महादान कहा गया है, लेकिन भई, आप की और मेरी सोच में बहुत अंतर है. आप तो पहले आयुषी से नौकरी करवाएंगे, फिर उस के लिए लड़का खोजेंगे या फिर उस की पसंद के लड़के से उस की शादी कर देंगे. परंतु मैं तो जल्द से जल्द बेटी का कन्यादान कर के बोझ को सिर से उतारना चाहता हूं. मेरी तो रातों की नींद उड़ी हुई थी. अब तो उस की डोली विदा करने के बाद ही चैन कीनींद सोऊंगा. अच्छा, ठीक है, अब मैं फोन रखता हूं.’’
‘‘छवि, तुम्हारी आदरणीया मम्मीजी कहां गईं? अपने भाईसाहब या भाभी से उन्होंने बात भी नहीं की, क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?’’ मंजुला को आता देख अनिरुद्ध बोले, ‘‘आइए श्रीमतीजी, चाय आप के इंतजार में उदास हो कर ठंडी हुई जा रही है.’’
मंजल का मुंह उतरा हुआ था पर शादी की खबर से उत्साहित छवि बोली, ‘‘मुझे तो बहुत सारी खरीदारी करनी है, आखिर मेरी प्यारी ननद की शादी जो है.’’
‘‘हांहां, कर लेना, जो चाहे वह खरीद लेना,’’ अनिरुद्ध बोले.
बेटा उन्मुक्त मौका देखते ही बोला, ‘‘पापा, आप का इस बार कोई भी बहाना नहीं चलेगा, आप को नया सूट बनवाना ही पड़ेगा.’’
‘‘न, यार, मुझे कौन देखेगा?’’ मंजुला की ओर निगाहें कर के अनिरुद्ध बोले, ‘‘भीड़ में सब की निगाहें लड़की की सुंदर सी बूआ और भाभी पर होंगी. और हां, आयुषी कहां है? वह तो शादी की खबर सुनते ही कितना हंगामा करेगी.’’
मंजुला चिंतामग्न हो कर बोली, ‘‘वह कालेज गई है, उस का आज कोई लैक्चर था.’’
मंजुला सोचने लगी कि बड़े भाईसाहब क्या कभी नहीं बदलेंगे. वे हमेशा अपनी तानाशाही ही चलाते रहेंगे. वे रूढि़वादिता और जातिवाद के चंगुल से अपने को कभी भी बाहर नहीं निकाल पाएंगे.
फिर वह मन ही मन शादी होने वाले खर्च का हिसाबकिताब लगाने लगी. तभी आयुषी कालेज से लौट कर आ गई. जैसे ही उस ने श्रेयसी की शादी का कार्ड देखा, उस का चेहरा एकदम बदरंग हो उठा. उस के मुंह से एकबारगी निकल पड़ा, ‘‘श्रेयसी की शादी’’ फिर वह एकदम से चुप रह गई.
मंजुला ने पूछा कि क्या कह रही हो? तो वह बात बदलते हुए बोली, ‘‘पापा, इस बार आप की कोई कंजूसी नहीं चलेगी. मेरा और भाभी का लहंगा बनेगा और सुन लीजिए, डियर मौम के लिए भी इस बार महंगी वाली खूबसूरत कांजीवरम साड़ी खरीदेंगे. हर बार जाने क्या ऊटपटांग पुरानी सी साड़ी पहन कर खड़ी हो जाती हैं.’’
‘‘आयुषी, तुम बहुत बकबक करती हो. पैसे पेड़ पर लगते हैं न, कि हिला दिया और बरस पड़े.’’ मंजुला अपनी खीझ निकालती हुई बोली, ‘‘श्रेयसी को कुछ उपहार देने के लिए भी तो सोचना है.’’
‘‘श्रीमतीजी आप इतनी चिंतित क्यों हैं?’’
‘‘मेरी सुनता कौन है? आप को तो अपनी आयुषी की कोई फिक्र ही नहीं है.’’
‘‘जब वह शादी के लिए तैयार होगी, तभी तो उस के लिए लड़का देखेंगे.’’
‘‘इस साल 24 की हो जाएगी. मेरी तो रातों की नींद उड़ जाती है.’’
‘‘तुम अपने भाईसाहब की असली शागिर्द हो. उन की भी नींद उड़ी रहती है.’’ यह कह कर अनिरुद्ध अपने लैपटौप में कुछ करने में व्यस्त हो गए.
मंजुला इस बीच श्रेयसी के बचपन में खो गई. उस ने श्रेयसी को पालपोस कर बड़ा किया है. भाभी के जुड़वां बच्चे हुए थे. वे 2 बच्चों को एकसाथ कैसे पालतीं, इसीलिए वह श्रेयसी को अपने साथ ले आई थी. उस ने रातदिन एक कर के उसे पालपोसकर बड़ा किया. जब वह 6 साल की हो गई तो भाभी बोलीं, ‘यह मेरी बेटी है, इसलिए यह मेरी जिम्मेदारी है.’ और वे उसे अपने साथ ले गई थीं.
श्रेयसी के जाने के बाद वह फूटफूट कर रो पड़ी थी. उस के मन में श्रेयसी के प्रति अतिरिक्त ममत्व था. श्रेयसी बहुत दिनों तक मंजुला को ही अपनी मां समझती रही थी. मंजुला छुट्टियों में श्रेयसी को बुला लेती थी.
श्रेयसी आती तो उन्मुक्त और आयुषी उस के हाथ से खिलौना झपट कर छीन लेते. उसे कोई चीज छूने नहीं देते. इस बात पर मंजुला जब उन्मुक्त को डांट रही थी तो वह धीरे से बोली थी, ‘मम्मी, मुझे तो आदत है. वहां प्रखर मेरे हाथ से सब खिलौने छीन लेता है. चाहे खाने की हों या खेलने की, सब चीजें झपट लेता है. अम्मा भी कहती हैं कि वह भाई है, उसे दे दो.’
यह सब कहते हुए श्रेयसी की आंखें नम हो उठी थीं. तभी वह मंजुला से लिपट कर बोली थी, ‘मम्मी, मेरा घर कहां है? आप अच्छी मम्मी हैं. वे गंदी अम्मा हैं, मुझे मारती हैं.’
‘‘मैडम, क्या बात है बड़ी अपसैट दिख रही हो?’’ अनिरुद्ध की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. ‘‘सुनिए जी, श्रेयसी अपनी ससुराल में खुश तो रहेगी न? मेरे मन में अपराधबोध है कि मैं ने उसे अपने से दूर कर के भाभी के पास क्यों भेजा?’’
‘‘तुम तो फुजूल की बात करती हो. वह उन की बेटी है, जैसा वे चाहें वैसा करें.’’
जैसेजैसे श्रेयसी बड़ी होती गई, गुमसुम और चुप होती गई. श्रेयसी की आंखों का सूनापन देख मंजुला अपराधबोध से भर जाती. वह सोचती कि यदि वह उसे अपने पास रख सकती तो शायद श्रेयसी खुश रहती. भाभी के कड़क और दकियानूसी स्वभाव के कारण श्रेयसी सब से दूर, अकेली खड़ी दिखाई पड़ती. हंसनेचहचहाने की उम्र में भी उस के चेहरे पर गंभीरता का आवरण होता था.
उन्मुक्त और आयुषी धीरेधीरे बड़े होते गए और भाईसाहब व भाभी ने अपने बच्चों को मंजुला के यहां भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
‘‘विभोर, कुछ खाओगे?’’
‘‘नहीं, मुझे सोने दो.’’
सुबह जब वह सो कर उठी तो उसे किचन में आमलेट बनाता देख बोली, ‘‘बबिता आ रही होगी.’’
‘‘प से प्यारी परिधि आज बबिता नहीं आएगी, अपने फोन पर मैसेज बौक्स में देखो… डौंट वरी माई लव योर फैवरिट आमलेट इज रैडी.’’
परिधि विभोर के संग मन ही मन सुखद भविष्य के मीठे सपने बुनती रहती.
‘‘परिधि मैं तो बिलकुल मध्य परिवार से ताल्लुक रखता हूं, मेरी एक बहन भी है, जिस की शादी पापा ने अपने खेत गिरवी रख कर की थी. छोड़ो मैं भी बेकार में अपना दुखड़ा तुम्हें सुनाने बैठ गया. समय को साथ सब ठीक हो जाएगा, कुछ महीनों की बात है.’’
परिधि ने संवेदना जताते हुए कहा, ‘‘तुम परेशान मत हो, अपने पापा के पास पैसे भेज दो. उन के खेत छूट जाएं. अब हम दोनों मिल कर कमाएंगे तो घर की सारी समस्या दूर हो जाएगी,’’ कहते हुए परिधि ने प्यार से उसे अपनी बांहों में लिपटा कर चूम लिया. फिर दोनों जीवन की रंगीनियों में डूब गए.
परिधि घर का पूरा खर्च खुशीखुशी उठा रही थी. किसी महीने में तो उसे सेविंग अकाउंट से भी पैसे निकालने पड़ते थे, लेकिन वह अंतरंग रिश्तों के आनंद में आकंठ डूबी हुई अपने सुनहरे भविष्य के सपने देख रही थी.
सैटरडे औफ था, उस की प्रोमोशन हुई थी. वह मैनेजर बन गई थी. उस के टीम मैंबर्स पार्टी मांग रहे थे. उस ने अपने टीम मैंबर्स के लिए कौकटेल पार्टी अरेंज की. वह विभोर को ले कर पार्टी में गई तो अपनी शादी की पार्टी के सपनों में खोई हुई सब के साथ उस ने भी एक पैग ले लिया. वहां डांस फ्लोर पर बांहों में डाल कर दोनों बहुत देर तक डांस करते रहे. यहां तक कि प्रीशा ने तो उसे चुपचाप विभोर जैसे बौयफ्रैंड के लिए मुबारकवाद भी दी. वह खिलखिला कर हंसते हुए थैंक्यू बोली.
तभी विभोर ने आ कर उस की हथेलियों पर चुंबन ले कर उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया.
परिधि तो ऐसा प्रेमी पा कर अभिभूत हो उठी थी. जब विभोर ने अपने घुटनों पर बैठ कर उस की हथेलियां पकड़ कर कहा, ‘‘मेरी जीवनसंगिनी बनोगी?’’
पूरा हौल तालियों से गूंज उठा. वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि विभोर जैसा परफैक्ट जीवनसाथी इतनी आसानी से उसे हासिल हो सकता है.
वह विभोर के सीने से लग गई. पूरा हौल तालियों से गूंज रहा था. वह खुशी से अभिभूत हो रही थी. पार्टी समाप्त हो गई थी. वह गहरी नींद के आगोश में चली गई थी.
कुछ नशे की खुमारी, सपने सच होने का एहसास होने की खुशी में डूबी वह सपनों की दुनिया में खोई हुई थी.
वह और विभोर बहुत ऊंचे पहाड़ पर गए हुए हैं और विभोर उसे अकेला छोड़ कर कहीं चला जा रहा है… वह जोरजोर से चीख रही है. विभोर… विभोर… मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ… प्लीज… विभोर…
तभी विभोर ने उसे जगा दिया, परिधि कोई बुरा सपना देख रही थीं?
‘‘हां विभोर मुझे छोड़ कर तुम कभी मत जाना,’’ कहते हुए उस ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया.
‘‘कैसी बात करती हो? मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. तुम तो मेरी जान हो मेरा लव हो,’’ कहते हुए उस पर चुंबनों की बौछार कर दी.
प्यार में डूबी परिधि की आंखें छलछला उठीं. दोनों को साथ रहते लगभग 6 महीने हो गए थे. परिधि अब विभोर से शादी कर सैटल होना चाहती थी.
एक दिन विभोर अनमना सा औफिस से लौट कर आया और अपना सामान समेटने लगा. उस की आंखें छलछला रही थीं. उस ने डिनर तैयार किया और परिधि का इंतजार करने लगा. जब से वह मैनेजर बनी थी, वह शाम को लेट आने लगी थी.
परिधि जब लौट कर आई तो अचानक विभोर को पैक सामान के साथ देख वह चौंक पड़ी. सुबह तो सब ठीक था. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मैं अपने घर जा रहा हूं, मेरी मां को कैंसर का शक है, इसलिए उन्हें ले कर टाटा कैंसर हौस्पिटल जाना पड़ेगा… परिधि जिस स्टार्टअप के लिए मैं रातदिन मेहनत कर रहा था. उस के फाइनैंसर ने हाथ खड़े कर दिए. हम लोगों की सैलरी भी मारी गई. ऐसा मन कर रहा है कि पंखें से लटक जाऊं,’’ कहते हुए अपना मुंह फेर लिया. शायद वह अपने आंसू छिपाना चाहता था, ‘‘मैं पापा के सामने किस मुंह से जाऊंगा. मेरे पास तो कुछ भी नहीं है.
‘‘मैं तुम्हारे पैसे भी नहीं लौटा पाया. मैं बहुत नालायक हूं… पापा आस लगाए बैठे हैं कि बेटा कमा कर पैसा ले कर आएगा तो मां का इलाज बड़े हौस्पिटल में करवाएंगे.’’
‘‘परिधि, यदि मैं जीवित रहा तो तुम्हारे पैसे जरूर लौटाऊंगा नहीं तो अगले जन्म में,’’ यह कहते हुए वह तेजी से उठ खड़ा हुआ.
परिधि असमंजस की स्थिति में विभोर की बातों पर सहसा विश्वास नहीं कर पा रही थी. यह कैसी दुविधा की घड़ी उस के जीवन में आ खड़ी हुई है. विभोर के लिए उस के दिल में अप्रतिम प्यार था. वह उस के प्यार में आकंठ डूबी हुई थी. उस के बिना अपने जीवन की कल्पना करते ही घबरा उठी.
कुछ क्षणों तक सोचने के बाद बोली, ‘‘विभोर, तुम पैसे के लिए मेरातेरा क्यों कर रहे हो? तुम्हारी मां आखिर मेरी भी तो मां हुईं. जो कुछ भी मेरा है. वह हम दोनों का ही है… मां बीमार हैं तो मेरा भी तो तुम्हारे साथ चलना बनता है. मैं छुट्टी के लिए अप्लाई करती हूं.’’
विभोर घबरा कर बोला, ‘‘इस समय तुम्हारा जाना क्या उचित होगा? सब लोग वैसे ही परेशान हैं, तुम नई मुसीबत खड़ी करने की बात कर रही हो… मेरी जान तो वैसे ही हलक में अटकी हुई है. एक हफ्ते से अपने पैसे मिलने के लिए हर तरह से कोशिश कर रहा था लेकिन सारी मेहनत बेकार हो गई. 3 महीने से एक पैसा नहीं मिला परंतु मिलने की आस तो बनी हुई थी. आज तो वह आस भी टूट गई,’’ विभोर के चेहरे पर निराशा, हताशा और मायूसी छाई हुई थी, ‘‘परिधि, मैं ने तुम्हारे लिए डिनर बना दिया है,’’ कहते हुए अपना बैग उठाते वह रोंआसा हो उठा.
‘‘बाय…’’ कहते हुए बैग उठा कर चलने लगा तो परिधि को लगा कि जैसे उस का सबकुछ लुटता जा रहा है. वह दौड़ती हुई आई और उस के गले में अपनी बांहें डाल कर उस के सीने से लिपट कर बोली, ‘‘मेरे अकाउंट में केवल 1 लाख रुपए हैं. मैं ट्रांसफर कर देती हूं. तुम मां के इलाज के लिए पैसे भेज दो. मैं आज अपने यहां हायरिंग के लिए तुम्हारे नाम को रिकमैंड कर दूंगी.’’
‘‘मेरा जाना जरूरी है परिधि… मैं तुम्हारा यह एहसान सारी जिंदगी नहीं भूल सकता,’’ कहते हुए उसे अपने आलिंगन में समेट कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए फिर बैग उठा कर डबडबाई आंखों से तेजी से बाहर चला गया.
परिधि ने निया को फोन मिलाया और काफी देर तक बात करती रही? लेकिन विभोर के जाने की बात नहीं बताई. उस की आंखों की नींद उड़ गई थी. एक ओर विभोर चला गया था तो दूसरी ओर उस ने भावुकता में आ कर अपनी बचत के सारे पैसे भी उसे दे दिए थे.
कुछ दिनों पहले जब पापा ने उस से पूछा था कि परिधि तुम्हारी शादी के लिए लड़का
देख रहे हैं तो उस ने बोल दिया था, ‘‘आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है, मेरे औफिस में एक लड़का मुझे पसंद है. मैं जल्द ही आप लोगों के पास उसे ले कर आऊंगी.’’
वह फोन मिलाती तो उस का फोन बंद आता. उस की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. वह उस के गांवघर के बारे में कुछ नहीं जानती थी. न ही उस का औफिस में मन लगे न ही अपने फ्लैट में. वह रातदिन बिन पानी के मछली की तरह तड़प रही थी. बारबार फोन मिलाती, लेकिन उस का फोन बंद आता.
वह अपनी बेवकूफी पर कभी रोती तो कभी नाराज हो कर अपने पैर पटकती, ‘‘आने दो… इतना सुनाऊंगी कि वह भी याद करेगा कि उस का भी किस से पाला पड़ा है.’’
अब उस के चेहरे पर मुसकराहट छा गई थी. लेकिन तुरंत ही उस के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं.
वह हताशानिराशा के गर्त में डूब गई. ऐसा तो नहीं कि विभोर उसे धोखा दे कर कहीं चला गया है. फिर वह स्वत: कहती नहीं ऐसा नहीं हो सकता. वह उसे बहुत प्यार करता है… धोखा नहीं दे सकता…
पूरे 5 दिनों के बाद रात के 10 बजे उस का फोन आया, ‘‘परिधि, हम लोगों का सपना पूरा होने वाला है.’’
वह छूटते ही बोली, ‘‘पहले यह बताओ तुम्हारा फोन क्यों बंद आ रहा था? मैं बहुत नाराज हूं… मुझे कुछ नहीं सुनना.’’
‘‘मैं कान पकड़ कर माफी मांग रहा हूं. पहले खुशखबरी सुन लो फिर नाराजगी दिखा लेना.’’
‘‘ मां को कैंसर नहीं है. दूसरी खुशखबरी मेरी जौब आस्ट्रेलिया में फाइनल हो गई है अब हम दोनों साथसाथ आस्ट्रेलिया जाएंगे.’’
‘‘मैं कैसे जाऊंगी…’’
‘‘मैं कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं. मैं ने कोर्ट में शादी की एप्लिकेशन लगा रखी है. तुम मेरी पत्नी बन कर मेरे साथ चलोगी.’’
‘‘तुम कब आ रहे हो?’’
‘‘दरवाजा तो खोलो,’’ अंदर आते ही उसने परिधि को अपने आलिंगन में ले कर चुंबनों की बौछार कर दी और फिर दोनों एकदूसरे में समा गए. परिधि के सारे गिलेशिकवे बादल के टुकड़ों की तरह हवा के ?ांके में उड़ गए.
‘‘माई लव, तुम्हारे रुपयों ने मेरी इज्जत बचा ली नहीं तो पापा से मुझे बहुत गालियां मिलतीं…’’
‘‘अरे यार पैसा तो हाथ का मैल है.’’
‘‘आई एम सो लकी माई डियर,’’ कहते हुए अपने बैग से लाल रेशमी कपड़े में बंधे हुए एक जोड़ी कंगन निकाल कर उस की सूनी कलाइयों में पहना दिए, ‘‘ये कंगन चुपके से अम्मां ने अपनी बहू के लिए दिए हैं.’’
परिधि कंगन पहन कर भावुक हो उठी और फिर अपने प्रियतम के गले से लग गई.
‘‘परिधि, माई डियर, डोंट वरी मैं तुम्हारा पूरा पैसा चुका दूंगा.’’
परिधि ने उस के होंठों पर अपनी ऊंगली रख दी. फिर दोनों एकदूसरे में खो गए.
1-2 दिन ही बीते थे वह बोला, ‘‘अच्छी मुसीबत है, सब फ्रैंड्स पार्टी मांग रहे हैं.’’
‘‘सही तो कह रहे हैं… पार्टी तो बनती ही है… चलो तुम भी क्या कहोगे… मैं तुम्हारे लिए पार्टी स्पौंसर कर देती हूं.’’
जल्द ही पार्टी हुई. जम कर धमाल हुआ… पार्टी को यादगार बनाने के लिए परिधि ने जाने मानें सिंगर कृष्णन को बुलाया था. संगीत की धुन पर शोरशराबा, डांस और ड्रिंक की मस्ती में सब डूबे हुए थे. आधी रात तक प्रोग्राम चलता रहा.
मणिका को घर छोड़े हुए 2 माह होने को आए. इस अवधि में स्वच्छंद प्रवृत्ति के अनिमेष ने कई बार कोशिश की कि वह अमोला के साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन अमोला इस दृष्टि से उसे अपने ऊपर हाथ न रखने देती.
वह आए दिन रईस मर्दों को दोस्त बना कर उन के साथ बढि़या समय गुजारने में विश्वास रखती. वह एक लालची प्रवृत्ति की महिला थी, जिस की जिंदगी का फलसफा था उन से कीमती तोहफे ऐंठ कर उन के साथ बिंदास ऐश करना.
उस ने अपने लटके झटकों से न्यूयौर्क में रह रहे अपने दौलतमंद बौस को अपने शिकंजे में फंसा लिया था और अब वह जल्दी से जल्दी उस से विवाह कर सैटल हो जाना चाहती थी. उस का मंगेतर जल्द ही शिकागो शिफ्ट होने वाला था. सो इस स्थिति में वह अनिमेष के साथ संबंध बना कर अपनी जिंदगी में किसी भी तरह की कोई पेचीदगी नहीं चाहती थी. अत: उस ने अपने रवैए द्वारा अनिमेष के अपनी ओर बढ़ते कदमों पर अंकुश लगा दिया.
भोले अनिमेष को अगर अमोला की इस मंशा का तनिक भी आभास होता, तो वह उस के पीछे अपनी बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ने की राह पर कतई न बढ़ता.
पिछले कुछ समय से वह अनिमेष से अपना व्यक्तिगत काम करवाने लगी थी. आए दिन उसे कोई न कोई काम दे देती या फिर उसे अपने साथ लिएलिए फिरती और अनिमेष उसे पाने के लोभ से खुशीखुशी उस का कहा मानता. उस के पीछेपीछे डोलता. मणिका के घर छोड़ने के बाद उस ने उसे न जाने कितने महंगेमहंगे उपहार दे दिए थे.
जैसेजैसे वक्त बीत रहा था अमोला को पूरी तरह से पाने की उस की तृष्णा बढ़ती ही जा रही थी.
उस दिन संडे था. उस दिन एक अच्छे रेस्तरां में लंच करने के बाद अमोला शौपिंग के लिए एक मौल में ले गई और उस ने वहां जम कर अति कीमती कपड़ों की लगभग क्व30 हजार की शौपिंग की. सब बिल अनिमेष ने ही चुकाए. फिर उस ने एक ज्वैलरी के शोरूम से करीब क्व3 लाख की कीमत के गहने खरीदे. उन का बिल भी अनिमेष ने ही चुकाया.
अमोला इतनी शौपिंग कर खुशी से चहक रही थी और उसे यों मगन देख अनिमेष के मन में लड्डू फूट रहे थे कि आज शायद उन दोनों के मिलन का चिरप्रतीक्षित दिन आ पहुंचा है.
इतनी शौपिंग करतेकरते दोनों ही बहुत थक गए थे और फिर डिनर के लिए एक इंडियन रेस्तरां पहुंचे. वहां पहुंच कर वे दोनों बैठे ही थे कि तभी एक स्मार्ट, सुदर्शन, प्रौढ़ावस्था की दहलीज पर कदम रखता पुरुष उन की टेबल पर आया. उसे देख कर अमोला उठ खड़ी हुई और उस ने उस आगंतुक का परिचय अनिमेष से यह कहते हुए कराया, ‘‘अनिमेष, ये मेरे मंगेतर हैं, भुवन. भुवन. ये मेरे बेहद अजीज फ्रैंड हैं, अनिमेष.’’
अमोला की यह बात सुन अनिमेष जैसे आसमान से औंधे मुंह गिरा. घोर सदमे से उस का चेहरा यों पिचक गया जैसे किसी ने हवा भरे गुब्बारे में पिन चुभो दी हो.
वह हक्काबक्का हो रंग उड़े चेहरे से अमोला को अविश्वसनीय नजरों से ताकने लगा और उस ने भुवन के हैंड शेक के लिए बढ़े हाथ की ओर अपना शिथिल हाथ आगे बढ़ा दिया.
उधर उस के चेहरे पर छाई मायूसी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए अमोला चहक रही थी, ‘‘भुवन मेरे ही औफिस में मेरे सीनियर हैं. ये न्यूयौर्क में पोस्टेड हैं. अगले महीने ही शिकागो शिफ्ट हो रहे हैं. हम अगले माह ही शादी कर रहे हैं.’’
जबरदस्त शौक से अनिमेष की मानो सोचनेसमझने की शक्ति लुप्त हो गई और वह अमोला और भुवन से यह कहते हुए रेस्तरां से हारे हुए जुआरी की तरह पस्त चाल से बाहर निकल आया, ‘‘ऐंजौय यौर सैल्व्स. मुझे किसी जरूरी काम से अभी कहीं जाना है. तुम से कल मिलता हूं.’’
धीरेधीरे पूरी तसवीर अनिमेष की आंखों के सामने स्पष्ट हो रही थी. मन में बारंबार एक ही खयाल आ रहा था कि वह यह कैसी बेवकूफी कर बैठा कि अमोला जैसी चतुरचालाक औरत के हाथों ठगा गया. उस के क्षणिक आकर्षण में वह अपना सबकुछ गवां बैठा.
अनिमेष सोच रहा था उस की अक्ल पर क्या पत्थर पड़ गए थे, जो वह उस की असली मंशा और फितरत नहीं समझ पाया. उस के झांसे में आ कर उस ने एक बड़ी रकम का नुकसान तो सहा ही, साथ ही वह अपने सुखी संसार को भी आग लगा बैठा. तभी उस के फ्लैट की घंटी बजी और उस ने दरवाजा खोला. सामने उस के बेहद करीबी अमेरिकन मित्र किम और उस की पत्नी जुआना थे.
‘‘हाय अनिमेष, हम शौपिंग कर के आ रहे थे. बहुत भूख लग रही थी तो सोचा, मणिका के हाथ का कुछ बढि़या स्पाइसी खाते चलें. मणिका कहां है? मणिका… मणिका…’’ जुआना धड़धड़ाते हुए पूरे घर का चक्कर काट आई.
मणिका को घर में न पा कर उस ने अनिमेष से पूछा, ‘‘अनिमेष, मणिका कहां है?’’
‘‘वह मेरी जिंदगी से हमेशाहमेशा के लिए चली गई जुआना.’’
‘‘क्या?’’ घोर सदमे से दोनों पतिपत्नी के मुंह खुले के खुले रह गए.
अनिमेष से पूरी बात सुनने के बाद किम उस से बोला, ‘‘यह तूने क्या
किया ब्रो. मणिका जैसी समर्पित, केयरिंग और गोल्डन हार्टेड वाइफ तुझे इस जन्म में तो क्या अगले 10 जन्म में नहीं मिलेगी. वह तेरा इतना खयाल रखती थी. तू कोई बात ऊंची आवाज में कहता था तो भी चुपचाप सह लेती थी. वह तेरे लिए ब्लैसिंग थी ब्रो. तूने एक चीप औरत
के लिए उस की बेकदरी की, यह तूने अच्छा नहीं किया.’’
तभी जुआना बोल पड़ी, ‘‘यस ब्रो. तुम ने ऐसी आइडियल वाइफ का दिल दुखा कर अच्छा नहीं किया. तुम्हें अभी रियलाइज नहीं हो रहा, लेकिन उस के रूप में तुम अपनी लाइफ की अनमोल नियामत को गवां बैठे हो. तुम्हें उस से दिल से माफी मांगनी चाहिए. इस में देर नहीं करनी चाहिए.’’
किम और जुआना के जाने के बाद अनिमेष के मन में निरंतर मंथन चल रहा था. बिना मणिका के सूना फ्लैट सांयसांय कर रहा था. आंखों के सामने मणिका की हंसतीमुसकराती तसवीर जैसे फ्रीज हो गई. उस के अल्फाज कानों में हथौड़े की मानिंद प्रहार करने लगे कि वह तुम्हें यूज कर रही है. तुम उस के लिए यूज और थ्रो से अधिक कुछ साबित नहीं होंगे.
तभी दरवाजे पर खटखट हुई. उस ने दरवाजा खोला. कूरियर बौय ने उसे एक लिफाफा थमाया. उस में मणिका के वकील द्वारा भेजा हुआ तलाक का नोटिस था. उसे देख कर वह कटे वृक्ष की भांति दिल की गहराइयों से निकले चीत्कार के साथ बैड पर ढह गया और फूटफूट कर रोने लगा.
‘‘सुपीरियरिटी कांप्लेक्स जैसी
कोई भी भावना नहीं होती.
वास्तव में जो इनसान इनफीरियरिटी कांप्लेक्स से पीडि़त है उसी को सुपीरियरिटी कांप्लेक्स भी होता है. अंदर से वह हीनभावना को ही दबा रहा होता है और यही दिखाने के लिए कि उसे हीनभावना तंग नहीं कर रही, वह सब के सामने बड़ा होने का नाटक करता है.
‘‘उच्च और हीन ये दोनों मनोगं्रथियां अलगअलग हैं. उच्च मनोग्रंथि वाला इनसान इसी खुशफहमी में जीता है कि सारी दुनिया उसी की जूती के नीचे है. वही सब से श्रेष्ठ है, वही देता है तो सामने वाले का पेट भरता है. वह सोचता है कि यह आकाश उसी के सिर का सहारा ले कर टिका है और वह सहारा छीन ले तो शायद धरती ही रसातल में चली जाए. किसी को अपने बराबर खड़ा देख उसे आग लग जाती है. इसे कहते हैं उच्च मनोगं्रथि यानी सुपीरियरिटी कांप्लेक्स.
‘‘इस में भला हीन मनोगं्रथि कहां है. जैसे 2 शब्द हैं न, खुशफहमी और गलतफहमी. दोनों का मतलब एक हो कर भी एक नहीं है. खुशफहमी का अर्थ होता है बेकार ही किसी भावना में खुश रहना, मिथ्या भ्रम पालना और उसी को सच मान कर उसी में मगन रहना जबकि गलतफहमी में इनसान खुश भी रह सकता है और दुखी भी.’’
‘‘तुम्हारी बातें बड़ी विचित्र होती हैं जो मेरे सिर के ऊपर से निकल जाती हैं. सच पूछो तो आज तक मैं समझ ही नहीं पाया कि तुम कहना क्या चाहते हो.’’
‘‘कुछ भी खास नहीं. तुम अपने मित्र के बारे में बता रहे थे न. 20 साल पहले तुम पड़ोसी थे. साथसाथ कालिज जाते थे सो अच्छा प्यार था तुम दोनों में. पढ़ाई के बाद तुम पिता के साथ उन के व्यवसाय से जुड़ गए और अच्छेखासे अमीर आदमी बन गए. पिता की जमा पूंजी से जमीन खरीदी और बैंक से खूब सारा लोन ले कर यह आलीशान कोठी बना ली.
‘‘उधर 20 साल में तुम्हारे मित्र ने अपनी नौकरी में ही अच्छी इज्जत पा ली, उच्च पद तक पहुंच गया और संयोग से इसी शहर में स्थानांतरित हो कर आ गया. अपने आफिस के ही दिए गए छोटे से घर में रहता है. तुम से बहुत प्यार भी करता है और इन 20 सालों में वह जब भी इस शहर में आता रहा तुम से मिलता रहा. तुम्हारे हर सुखदुख में उस ने तुम से संपर्क रखा. हां, यह अलग बात है कि तुम कभी ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि आज की ही तरह तुम सदा व्यस्त रहे. अब जब वह इस शहर में पुन: आ गया है, तुम से मिलनेजुलने लगा है तो सहसा तुम्हें लगने लगा है कि उस का स्तर तुम्हारे स्तर से नीचा है, वह तुम्हारे बराबर नहीं है.’’
‘‘नहीं, ऐसा नहीं है.’’
‘‘ऐसा ही है. अगर ऐसा न होता तो उस के बारबार बुलाने पर भी क्या तुम उस के घर नहीं जाते? ऐसा तो नहीं कि तुम कहीं आतेजाते ही नहीं हो. 4-5 तो किटी पार्टीज हैं जिन में तुम जाते हो. लेकिन वह जब भी बुलाता है तुम काम का बहाना बना देते हो.
‘‘साल भर हो गया है उसे इस शहर में आए. क्या एक दिन भी तुम उस के घर पर पहले जितनी तड़प और ललक लिए गए हो जितनी तड़प और ललक लिए वह तुम्हारे घर आता रहता था और अभी तक आता रहा? तुम्हारा मन किया दोस्तों से मिलने का तो तुम ने एक पार्टी का आयोजन कर लिया. सब को बुला लिया, उसे भी बुला लिया. वह भी हर बार आता रहा. जबजब तुम ने चाहा और जिस दिन उस ने कहा आओ, थोड़ी देर बैठ कर पुरानी यादें ताजा करें तो तुम ने बड़ी ठसक से मना कर दिया. धीरेधीरे उस ने तुम से पल्ला झाड़ लिया. तुम्हारी समस्या जब यह है कि तुम ने अपने बेटे के जन्मदिन पर उसे बुलाया और पहली बार उस ने कह दिया कि बच्चों के जन्मदिन पर भला उस का क्या काम?’’
‘‘मुझे बहुत तकलीफ हो रही है राघव…वह मेरा बड़ा प्यारा मित्र था और उसी ने साफसाफ इनकार कर दिया. वह तो ऐसा नहीं था.’’
‘‘तो क्या अब तुम वही रह गए हो? तुम भी तो यही सोच रहे हो न कि वह तुम्हारी सुखसुविधा से जलता है तभी तुम्हारे घर पर आने से कतरा गया. सच तो यह है कि तुम उसे अपने घर अपनी अमीरी दिखाने को बुलाते रहे हो, अचेतन में तुम्हारा अहम संतुष्ट होता है उसे अपने घर पर बुला कर. तुम उस के सामने यह प्रमाणित करना चाहते हो कि देखो, आज तुम कहां हो और मैं कहां हूं जबकि हम दोनों साथसाथ चले थे.’’
‘‘नहीं तो…ऐसा तो नहीं सोचता मैं.’’
‘‘कम से कम मेरे सामने तो सच बोलो. मैं तुम्हारे इस दोस्त से तुम्हारे ही घर पर मिल चुका हूं. जब वह पहली बार तुम से मिलने आया था. तुम ने घूमघूम कर अपना महल उसे दिखाया था और उस के चेहरे पर भी तुम्हारा घर देखते हुए बड़ा संतोष झलक रहा था और तुम कहते हो वह जलता है तुम्हारा वैभव देख कर. तुम्हारे चेहरे पर भी तब कोई ऐसा ही दंभ था…मैं बराबर देख रहा था. उस ने कहा था, ‘भई वाह, मेरा घर तो बहुत सुंदर और आलीशान है. दिल चाह रहा है यहीं क्यों न आ जाऊं…क्या जरूरत है आफिस के घर में रहने की.’
‘‘तब उस ने यह सब जलन में नहीं कहा था, अपना घर कहा था तुम्हारे घर को. तुम्हारे बच्चों के जन्मदिन पर भागा चला आता था और आज उसी ने मना कर दिया. उस ने भी पल्ला खींचना शुरू कर दिया, आखिर क्यों. हीन ग्रंथि क्या उस में है? अरे, तुम व्यस्त रहते हो इसलिए उस के घर तक नहीं जाते और वह क्या बेकार है जो अपने आफिस में से समय निकाल कर भी चला आता है. प्यार करता था तभी तो आता था. क्या एक कप चाय और समोसा खाने चला आता था?
‘‘जिस नौकरी में तुम्हारा वह दोस्त है न वहां लाखों कमा कर तुम से भी बड़ा महल बना सकता था लेकिन वह ईमानदार है तभी अभी तक अपना घर नहीं बना पाया. तुम्हारी अमीरी उस के लिए कोई माने नहीं रखती, क्योंकि उस ने कभी धनसंपदा को रिश्तों से अधिक महत्त्व नहीं दिया. दोस्ती और प्यार का मारा आता था. तुम्हारा व्यवहार उसे चुभ गया होगा इसलिए उस ने भी हाथ खींच लिया.’’
‘‘तुम्हें क्या लगता है…मुझ में उच्च गं्रथि का विकास होने लगा है या हीन ग्रंथि हावी हो रही है?’’
‘‘दोनों हैं. एक तरफ तुम सोचने लगे हो कि तुम इतने अमीर हो गए हो कि किसी को भी खड़ेखडे़ खरीद सकते हो. तुम उंगली भर हिला दोगे तो कोई भी भागा चला आएगा. यह मित्र भी आता रहा, तो तुम और ज्यादा इतराने लगे. दोस्तों के सामने इस सत्य का दंभ भी भरने लगे कि फलां कुरसी पर जो अधिकारी बैठा है न, वह हमारा लंगोटिया यार है.
‘‘दूसरी तरफ तुम में यह ग्रंथि भी काम करने लगी है कि साथसाथ चले थे पर वह मेज के उस पार चला गया, कहां का कहां पहुंच गया और तुम सिर्फ 4 से 8 और 8 से 16 ही बनाते रह गए. अफसोस होता है तुम्हें और अपनी हार से मुक्ति पाने का सरल उपाय था तुम्हारे पास उसे बुला कर अपना प्रभाव डालना. अपने को छोटा महसूस करते हो उस के सामने तुम. यानी हीन ग्रंथि.
‘‘सत्य तो यह है कि तुम उसे कम वैभव में भी खुश देख कर जलते हो. वह तुम जितना अमीर नहीं फिर भी संतोष हर पल उस के चेहरे पर झलकता है…इसी बात पर तुम्हें तकलीफ होती है. तुम चाहते हो वह दुम हिलाता तुम्हारे घर आए…तुम उस पर अपना मनचाहा प्रभाव जमा कर अपना अहम संतुष्ट करो. तुम्हें क्या लगता है कि वह कुछ समझ नहीं पाता होगा? जिस कुरसी पर वह बैठा है तुम जैसे हजारों से वह निबटता होगा हर रोज. नजर पहचानना और बदल गया व्यवहार भांप लेना क्या उसे नहीं आता होगा. क्या उसे पता नहीं चलता होगा कि अब तुम वह नहीं रहे जो पहले थे. प्रेम और स्नेह का पात्र अब रीत गया है, क्या उस की समझ में नहीं आता होगा?
‘‘तुम कहते हो एक दिन उस ने तुम्हारी गाड़ी में बैठने से मना कर दिया. उस का घर तुम्हारे घर से ज्यादा दूर नहीं है इसलिए वह पैदल ही सैर करते हुए वापस जाना चाहता था. तुम्हें यह भी बुरा लग गया. क्यों भई? क्या वह तुम्हारी इच्छा का गुलाम है? क्या सैर करता हुआ वापस नहीं जा सकता था. उस की जराजरा सी बात को तुम अपनी ही मरजी से घुमा रहे हो और दुखी हो रहे हो. क्या सदा दुखी ही रहने के बहाने ढूंढ़ते रहते हो?’’
आंखें भर आईं विजय की.
‘‘प्यार करते हो अपने दोस्त से तो उस के स्वाभिमान की भी इज्जत करो. बचपन था तब क्या आपस में मिट्टी और लकड़ी के खिलौने बांटते नहीं थे. बारिश में तुम रुके पानी में धमाचौकड़ी मचाना चाहते थे और वह तुम्हें समझाता था कि पानी की रुकावट खोल दो नहीं तो सारा पानी कमरों में भर जाएगा.
‘‘संसार का सस्तामहंगा कचरा इकट्ठा कर तुम उस में डूब गए हो और उस ने अपना हाथ खींच लिया है. वह जानता है रुकावट निकालना अब उस के बस में नहीं है. समझनेसमझाने की भी एक उम्र होती है मेरे भाई. 45 के आसपास हो तुम दोनों, अपनेअपने रास्तों पर बहुत दूर निकल चुके हो. न तुम उसे बदल सकते हो और न ही वह तुम्हें बदलना चाहता होगा क्योंकि बदलने की भी एक उम्र होती है. इस उम्र में पीछे देख कर बचपन में झांक कर बस, खुश ही हुआ जा सकता है. जो उस ने भी चाहा और तुम ने भी चाहा पर तुम्हारा आज तुम दोनों के मध्य चला आया है.
‘‘बचपन में खिलौने बांटा करते थे… आज तुम अपनी चकाचौंध दिखा कर अपना प्रभाव डालना चाहते हो. वह सिर्फ चाय का एक कप या शरबत का एक गिलास तुम्हारे साथ बांटना चाहता है क्योंकि वह यह भी जानता है, दोस्ती बराबर वालों में ही निभ सकती है. तुम उस के परिवार में बैठते हो तो वह बातें करते हो जो उन्हें पराई सी लगती हैं. तुम करोड़ों, लाखों से नीचे की बात नहीं करते और वह हजारों में ही मस्त रहता है. वह दोस्ती निभाएगा भी तो किस बूते पर. वह जानता है तुम्हारा उस का स्तर एक नहीं है.
‘‘तुम्हें खुशी मिलती है अपना वैभव देखदेख कर और उसे सुख मिलता है अपनी ईमानदारी के यश में. खुशी नापने का सब का फीता अलगअलग होता है. वह तुम से जलता नहीं है, उस ने सिर्फ तुम से अपना पल्ला झाड़ लिया है. वह समझ गया है कि अब तुम बहुत दूर चले गए हो और वह तुम्हें पकड़ना भी नहीं चाहता. तुम दोनों के रास्ते बदल गए हैं और उन्हें बदलने का पूरापूरा श्रेय भी मैं तुम्हीं को दूंगा क्योंकि वह तो आज भी वहीं खड़ा है जहां 20 साल पहले खड़ा था. हाथ उस ने नहीं तुम ने खींचा है. जलता वह नहीं है तुम से, कहीं न कहीं तुम जलते हो उस से. तुम्हें अफसोस हो रहा है कि अब तुम उसे अपना वैभव दिखादिखा कर संतुष्ट नहीं हो पाओगे… और अगर मैं गलत कह रहा हूं तो जाओ न आज उस के घर पर. खाना खाओ, देर तक हंसीमजाक करो…बचपन की यादें ताजा करो, किस ने रोका है तुम्हें.’’
चुपचाप सुनता रहा विजय. जानता हूं उस के छोटे से घर में जा कर विजय का दम घुटेगा और कहीं भीतर ही भीतर वह वहां जाने से डरता भी है. सच तो यही है, विजय का दम अपने घर में भी घुटता है. करोड़ों का कर्ज है सिर पर, सारी धनसंपदा बैंकों के पास गिरवी है. एकएक सांस पर लाखों का कर्ज है. दिखावे में जीने वाला इनसान खुश कैसे रह सकता है और जब कोई और उसे थोड़े में भी खुश रह कर दिखाता है तो उसे समझ में ही नहीं आता कि वह क्या करे. अपनी हालत को सही दिखाने के बहाने बनाता है और उसी में जरा सा सुख ढूंढ़ना चाहता है जो उसे यहां भी नसीब नहीं हुआ.
‘‘मैं डरने लगा हूं अब उस से. उस का व्यवहार अब बहुत पराया सा हो गया है. पिछले दिनों उस ने यहां एक फ्लैट खरीदा है पर उस ने मुझे बताया तक नहीं. सादा सा समारोह किया और गृहप्रवेश भी कर लिया पर मुझे नहीं बुलाया.’’
‘‘अगर बुलाता तो क्या तुम जाते? तुम तो उस के उस छोटे से फ्लैट में भी दस नुक्स निकाल आते. उस की भी खुशी में सेंध लगाते…अच्छा किया उस ने जो तुम्हें नहीं बुलाया. जिस तरह तुम उसे अपना महल दिखा कर खुश हो रहे थे उसी तरह शायद वह भी तुम्हें अपना घर दिखा कर ही खुश होता पर वह समझ गया होगा कि उस की खुशी अब तुम्हारी खुशी हो ही नहीं सकती. तुम्हारी खुशी का मापदंड कुछ और है और उस की खुशी का कुछ और.’’
‘‘मन बेचैन क्यों रहता है यह जानने के लिए कल मैं पंडितजी के पास भी गया था. उन्होंने कुछ उपाय बताया है,’’ विजय बोला.
‘‘पंडित क्या उपाय करेगा? खुशी तो मन के अंदर का सुख है जिसे तुम बाहर खोज रहे हो. उपाय पंडित को नहीं तुम्हें करना है. इतने बडे़ महल में तुम चैन की एक रात भी नहीं काट पाए क्योंकि इस की एकएक ईंट कर्ज से लदी है. 100 रुपए कमाते हो जिस में 80 रुपए तो कारों और घर की किस्तों में चला जाता है. 20 रुपए में तुम इस महल को संवारते हो. हाथ फिर से खाली. डरते भी हो कि अगर आज तुम्हें कुछ हो जाए तो परिवार सड़क पर न आ जाए.
‘‘तुम्हारे परिवार के शौक भी बड़े निराले हैं. 4 सदस्य हो 8 गाडि़यां हैं तुम्हारे पास. क्या गाडि़यां पेट्रोल की जगह पानी पीती हैं? शाही खर्च हैं. कुछ बचेगा क्या, तुम पर तो ढेरों कर्ज है. खुश कैसे रह सकते हो तुम. लाख मंत्रजाप करवा लो, कुछ नहीं होने वाला.
‘‘अपने उस मित्र पर आरोप लगाते हो कि वह तुम से जलता है. अरे, पागल आदमी…तुम्हारे पास है ही क्या जिस से वह जलेगा. उस के पास छोटा सा ही सही अपना घर है. किसी का कर्ज नहीं है उस पर. थोड़े में ही संतुष्ट है वह क्योंकि उसे दिखावा करना ही नहीं आता. सच पूछो तो दिखावे का यह भूत तकलीफ भी तो तुम्हें ही दे रहा है न. तुम्हारी पत्नी लाखों के हीरे पहन कर आराम से सोती है, जागते तो तुम हो न. क्यों परिवार से भी सचाई छिपाते हो तुम. अपना तौरतरीका बदलो, विजय. खर्च कम करो. अंकुश लगाओ इस शानशौकत पर. हवा में मत उड़ो, जमीन पर आ जाओ. इस ऊंचाई से अगर गिरे तो तकलीफ बहुत होगी.
‘‘मैं शहर का सब से अच्छा काउंसलर हूं. मैं अच्छी सुलह देता हूं इस में कोई शक नहीं. तुम्हें कड़वी बातें सुना रहा हूं सिर्फ इसलिए कि यही सच है. खुशी बस, जरा सी दूर है. आज ही वही पुराने विजय बन जाओ. मित्र के छोटे से प्यार भरे घर में जाओ. साथसाथ बैठो, बातें करो, सुखदुख बांटो. कुछ उस की सुनो कुछ अपनी सुनाओ. देखना कितना हलकाहलका लगेगा तुम्हें. वास्तव में तुम चाहते भी यही हो. तुम्हारा मर्ज भी वही है और तुम्हारी दवा भी.’’
चला गया विजय. जबजब परेशान होता है आ जाता है. अति संवेदनशील है, प्यार पाना तो चाहता है लेकिन प्यार करना भूल गया है. संसार के मैल से मन का शीशा मैला सा हो गया है. उस मैल के साथ भी जिआ नहीं जा रहा और उस मैल के बिना भी गुजारा नहीं. मैल को ही जीवन मान बैठा है. प्यार और मैल के बीच एक संतुलन नहीं बना पा रहा इसीलिए एक प्यारा सा रिश्ता हाथ से छूटता जा रहा है. क्या हर दूसरे इनसान का आज यही हाल नहीं है? खुश रहना तो चाहता है लेकिन खुश रहना ही भूल गया है. किसी पर अपनी खीज निकालता है तो अकसर यही कहता है, ‘‘फलांफलां जलता है मुझ से…’’ क्या सच में यही सच है? क्या यह सच है कि हर संतोषी इनसान किसी के वैभव को देख कर सिर्फ जलता है?
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दीपाली सुंदर थी, युवा थी. प्रणय भी सजीला था, नौजवान था. दोनों पहलेपहल कालेज की कैंटीन में मिले, आंखें चार हुईं और फिर चोरीछिपे मुलाकातें होने लगीं. दोनों ने उम्रभर साथ निभाने के वादे किए.
प्रणय की पढ़ाई समाप्त हो चुकी थी. वह उच्चशिक्षा के लिए शीघ्र ही अमेरिका जाने वाला था. दीपाली से 2-3 साल दूर रहने की कल्पना से वह बेचैन हो गया. सो, उस ने प्रस्ताव रखा, ‘‘चलो, हम अभी शादी कर लेते हैं.’’
दोनों कालेज की कैंटीन में बैठे हुए थे.
‘‘शादी? उंह, अभी नहीं,’’ दीपाली बोली.
‘‘क्यों नहीं? हमारी शादी में क्या रुकावट है? तुम भी बालिग हो, मैं भी.’’
‘‘तुम समझते नहीं. मेरी बड़ी बहन सोनाली अभी तक कुंआरी बैठी हैं और वे मुझ से 5 साल बड़ी हैं. मेरे मातापिता कहते हैं कि जब तक उस की शादी न हो जाए, मेरी शादी का सवाल ही नहीं उठता.’’
प्रणय सोच में पड़ गया. कुछ क्षण रुक कर बोला, ‘‘अभी तक सोनाली की शादी क्यों नहीं हुई? क्या वे बदसूरत हैं या कोई नुक्स है उन में?’’
दीपाली खिलखिलाई, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, दीदी बहुत सुंदर हैं.’’
‘‘तुम से भी ज्यादा?’’ प्रणय ने चौंकते हुए पूछा.
‘‘अरे, मैं तो उन के सामने कुछ भी नहीं हूं. दीदी बहुत रूपवती हैं, पढ़ीलिखी हैं, स्मार्ट हैं, कालेज में पढ़ाती हैं. उन के जोड़ का लड़का मिलना मुश्किल हो रहा है. दीदी लड़कों में बहुत मीनमेख निकालती हैं. अब तक बीसियों को मना कर चुकी हैं. मेरी मां तो कभीकभी चिढ़ कर कहती हैं कि पता नहीं, कौन से देश का राजकुमार इसे ब्याहने आएगा.’’
‘‘तब हमारा क्या होगा, प्रिये?’’ प्रणय ने हताश हो कर कहा, ‘‘3 महीने बाद मैं अमेरिका चला जाऊंगा. फिर पता नहीं कब लौटना हो. क्या तुम मेरी जुदाई सह पाओगी? मैं तो तुम्हारे बगैर वहां रहने की सोच भी नहीं सकता.’’
समस्या गंभीर थी, सो, दोनों कुछ क्षण गुमसुम बैठे रहे.
‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि तुम्हारी दीदी कैसा वर चाहती हैं? जरा उन की पसंद का तो पता चले.’’
‘‘ऊंचा, रोबीला, मेधावी, सुसंस्कृत, शिक्षित, सुदर्शन.’’
‘‘अरे बाप रे, इतनी सारी खूबियां एक आदमी में तो मिलने से रहीं. लगता है, तुम्हारी दीदी को द्रौपदी की तरह 5-5 शादियां करनी पड़ेंगी.’’
‘‘देखो जी,’’ दीपाली ने तनिक गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बहन का मजाक मत उड़ाओ, नहीं तो…’’
‘‘खैर, छोड़ो. पर यह तो बताओ कि हमारी समस्या कैसे हल होगी?’’
‘‘वह तुम जानो,’’ दीपाली उठ खड़ी हुई, ‘‘मेरी क्लास है, मैं चलती हूं. वैसे मैं ने मां के कानों में अपनी, तुम्हारी बात डाल दी है. उन्हें तो शायद मना भी लूंगी, पर पिताजी टेढ़ी खीर हैं. वे इस बात पर कभी राजी नहीं होंगे कि सोनाली के पहले मेरी शादी हो जाए.’’
उस के जाने के बाद प्रणय बुझा हुआ सा बैठा रहा. तभी उस के कुछ दोस्त कैंटीन में आए.
‘‘अरे, देखो, अपना यार तो यहां बैठा है,’’ रसिक लाल ने कहा, ‘‘क्यों मियां मजनूं, आज अकेले कैसे, लैला कहां है? और सूरत पर फटकार क्यों बरस रही है?’’
प्रणय ने उन्हें अपनी समस्या बताई, ‘‘यार, दीपाली की बहन सोनाली को एक वर की तलाश है…और वर भी ऐसावैसा नहीं, किसी राजकुमार से कम नहीं होना चाहिए.’’
‘‘राजकुमार?’’ श्यामल चमक कर बोला, ‘‘गुरु, यदि राजकुमार की दरकार है तो अपन अर्जी दिए देते हैं.’’
‘‘हा…हा…हा…’’ दामोदरन ने हंसते हुए कहा, ‘‘कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है? ये रूखे बाल, ये सूखे गाल, फटेहाल…राजकुमार ऐसे हुआ करते हैं?’’
‘‘अरे, शक्ल का क्या है, अभी उस साबुन से नहा लूंगा. वही जिस का आएदिन टीवी पर विज्ञापन आता रहता है. तब तो एकदम तरोताजा लगने लगूंगा. शेष रहे कपड़े, तो एक भड़कीली पोशाक किराए पर ले लूंगा. अगर चाहो तो ताज और तलवार भी.’’
‘‘यार, बोर मत कर,’’ प्रणय ने कहा, ‘‘यहां मेरी जान पर बनी है और तुम लोगों को मजाक सूझ रहा है.’’
‘‘यार,’’ रसिक लाल ने कहा, ‘‘हमारे ताड़देव के इलाके में एक ‘मैरिज ब्यूरो’ खुला है, नाम है, ‘मनपसंद विवाह संस्था.’ ब्यूरो वालों ने अब तक सैकड़ों शादियां कराई हैं. वहां अर्जी दे दो, अपनी जरूरत बता दो, लड़का वे मुहैया करा देंगे.’’
‘‘यह हुई न बात,’’ प्रणय खुशी से उछल पड़ा, ‘‘झटपट वहां का पता बता. लेकिन क्या पता, सोनाली के मांबाप वहां पहले ही पहुंच कर नाउम्मीद हो चुके हों?’’
‘‘यह कोईर् जरूरी नहीं. कई लोग अखबार में शादी का विज्ञापन देने और ऐसी संस्थाओं में लड़का तलाशने से कतराते हैं.’’
ताड़देव में एक इमारत की तीसरी मंजिल पर मनपसंद विवाह संस्था का कार्यालय था. प्रणय ने जब अंदर प्रवेश किया तो एक छरहरे बदन के धोतीधारी सज्जन ने चश्मे से उसे घूरा, ‘‘कहिए?’’
‘‘मैं…मैं,’’ प्रणय हकलाने लगा.
‘‘हांहां, कहिए? क्या शादी के लिए वधू चाहिए?’’
‘‘जी नहीं, लड़का.’’
‘‘जी?’’
‘‘मेरा मतलब है, शादी मुझे नहीं करनी. अपनी पत्नी की भावी बहन… नहींनहीं, अपनी भावी पत्नी की बहन के लिए वर की जरूरत है.’’
‘‘ठीक है. यह फौर्म भर दीजिए. अपनी जरूरतें दर्ज कीजिए और लड़की का विवरण भी दीजिए. फोटो लाए हैं? अगर नहीं, तो बाद में दे जाइएगा. हां, फीस के एक हजार रुपए जमा कर दीजिए.’’
‘‘एक हजार?’’
‘‘यह लो, एक हजार तो कुछ भी नहीं हैं. लड़का मिलने पर आप शादी में लाखों खर्च कर डालेंगे कि नहीं? और फिर हम यहां खैरातखाना खोल कर तो नहीं बैठे हैं. हम भी चार पैसे कमाने की गरज से दफ्तर खोले बैठे हैं. यहां का भाड़ा, कर्मचारियों और दरबान का वेतन वगैरह कहां से निकलेगा, बताइए?’’
‘‘ठीक है. मैं कल फोटो और रुपए लेता आऊंगा.’’
‘‘अच्छी बात है. फौर्म भी कल ही भर देना, यह हमारा कार्ड रख लीजिए, मेरा नाम बाबूभाई है.’’
प्रणय जाने लगा तो बाबूभाई ने उसे हिकारत से देख कर मुंह फेर लिया. ‘हुंह,’ वह बुदबुदाया, ‘चले आते हैं खालीपीली टाइम खोटा करने के लिए.’
प्रणय दफ्तर से बाहर निकल कर सोचने लगा, ‘अगर एक हजार रुपए भरने पर भी काम न बना तो यह रकम पानी में गई, समझो. उंह, हटाओ, मुझे सोनाली की शादी से क्या लेनादेना है, भले शादी करे या जन्मभर कुंआरी रहे, मेरी बला से.’
अचानक लिफ्ट का द्वार खुला और उस में से एक नौजवान निकल कर सधे कदमों से चलता ‘मनपसंद’ के दफ्तर में दाखिल हुआ. प्रणय उसे घूरता रहा, अरे, यह कौन था, कोई हीरो या किसी रियासत का राजकुमार. वाह, क्या चेहरामोहरा था, क्या चालढाल थी, ऐसे ही वर की तो मुझे तलाश है.’
वह वहीं गलियारे में चहलकदमी करता रहा. कुछ देर बाद वह युवक दफ्तर से निकला तो प्रणय ने उसे टोका, ‘‘सुनिए.’’
युवक मुड़ा, ‘‘जी, कहिए?’’
प्रणय बोला, ‘‘बुरा न मानें, तो एक बात पूछूं? आप इस मनपसंद संस्था में वधू के लिए अरजी देने गए थे?’’
‘‘आप का अंदाजा सही है. मुझे शादी के लिए एक लड़की की खोज है.’’
‘‘यदि आप के पास थोड़ा समय हो तो चलिए, पास के होटल में चाय पी जाए. मेरी निगाह में एक अति उत्तम कन्या है.’’
इतवार का दिन था. रात से ही बादल खूब बरस रहे थे. मौसम सुहावना था. निया ने अपने मनपसंद मूली के परांठे बनाए थे और नाश्ता कर के छुट्टी मनाने के मूड से गहरी नींद में सो गई थी. जब लगभग
3 बजे उस की आंख खुली तो परिधि को तैयार होते देख उस ने पूछा, ‘‘परिधि क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही सजधज रही हो? यह डार्क लिपस्टिक, शोल्डर कट ड्रैस किसी के साथ डेट पर जा रही हो क्या?’’
‘‘निया आज तू अपनी फ्रैंड के घर नहीं जा रही है क्या?’’
‘‘नहीं यार, आज तो मैं पूरा दिन सोऊंगी या फिर अपना नौवेल गौन विद द विंड पूरा करूंगी. वैरी इंट्रैस्टिंग नौवेल है.’’
‘‘लेकिन आज तो तुझे रूम से 4 बजे जाना ही पड़ेगा,’’ कहते हुए उस के चेहरे पर मुसकराहट छा गई.
‘‘क्यों किसी के साथ डेट कर रही है?’’
‘‘यस माई डियर.’’
‘‘कौन है?’’
‘‘यह नहीं बताऊंगी.’’
परिधि और निया दिल्ली के आसपास की हैं. एक गाजियाबाद से तो दूसरी मेरठ से है. दोनों ने एमबीए किया है और 1 साल से बैंगलुरु में रह रही हैं. दोनों ही मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हैं. पहले एक वूमंस लाउंज में रहती थीं. वहीं पर दोनों में दोस्ती हो गई थी. डोसा, इडली और सांभर खातेखाते परेशान हो गई थीं. फिर वहां के रूल्स… रूम में खाना ले कर नहीं जा सकतीं… देर हो जाने पर चायनाश्ता नहीं मिलता. फिर प्याजलहसुन की भी समस्या थी. उन लोगों को वहां का खाना अच्छा नहीं लगता था. 6 महीने किसी तरह झेलने के बाद दोनों ने फ्लैट ले कर रहना तय किया.
दोनों ही सारा खर्च आधाआधा बांट लेतीं. काम भी बांट कर करती. कोई झगड़ा नहीं. साथ में मूवी देखतीं, एकदूसरे के कपड़े शेयर करतीं, अपनेअपने बौस की बातें कर के खूब हंसतीखिलखिलातीं… औफिस की दिनभर की गौसिप करतीं.
निया को पढ़ने का शौक था. फुरसत के समय उस के हाथ में नौवेल होता तो परिधि के हाथ में मोबाइल. वह तरहतरह के वीडियो देखा करती.
आज पहली बार उसे परिधि की बात पसंद नहीं आ रही थी. उस ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘वही तेरा चश्मिशपोपू आ रहा है क्या?’’
‘‘परिधि तू गलत रास्ते पर कदम बढ़ा रही है. यदि तेरे घर वालों को पता लगा तो?’’
‘‘निया तू भी बूढ़ी दादी जैसी बात कर रही है. चल जल्दी निकलने की तैयारी कर 4 बजने वाले हैं… मुझे कमरा भी तो ठीक करना है.’’
‘‘तेरा इरादा शादीवादी का तो नहीं है?’’
वह निया का हाथ पकड़ कर उठाती हुई
बोली, ‘‘शादी माई फुट… मैं तो लाइफ को ऐंजौय कर रही हूं.’’
‘‘तुम भी एक बौयफ्रैंड बना लो, जीवन हसीन हो जाएगा.’’
‘‘बस कर अपनी सीख अपने पास रख… मैं तुझ से सीरियसली कह रही हूं. आज तो मैं मौल में जा कर भटक लूंगी, लेकिन मेरे साथ रहना है तो रूम से बाहर चाहे जो करो रूम के अंदर कुछ नहीं.’’
‘‘निकल, आज तो जा… फिर बाद में जो होगा वह देखेगें.’’
‘‘यह तो बता कि मुझे कितनी देर में लौट कर आना है?’’
‘‘आज संडे है, डिनर तो बाहर ही करना है.’’
निया ने अपने बैग में बुक रखी और सोचने लगी कि कहां जाऊं. वह मौल में गई. वहां मल्टीप्लैक्स में ‘अवेंजर’ का पोस्टर देख टिकट लिया और हौल में चली गई. पिक्चर देख कर बाहर आई, तो भूख लगी थी. उस ने पिज्जा और कोल्ड ड्रिंक और्डर की.
उस के बाद जब वह अपने कमरे में पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद था क्योंकि परिधि का बौयफ्रैंड अभी भी रूम में था. उस ने नौक किया तो परिधि ने अपने कपड़ों को ठीक करते हुए दरवाजा खोला, लेकिन बिस्तर की हालत वहां पर जो कुछ हो रहा था उस की गवाही दे रहीं थी.
उस के बौयफ्रैंड ने परिधि को पहले हग किया फिर किस. उस के बाद निया को गहरी नजरों से देखा और बोला, ‘‘हैलो… आई एम विभोर. निया, यू आर वैरी स्मार्ट ऐंड ब्यूटीफुल.’’
‘‘थैंक्स फौर कंप्लिमैंट ऐंड विभोर नाइस टू मीट यू.’’
दोनों के चेहरे पर मुस्कान छा गई थी. परिधि के चेहरे पर फैला हुई प्रसन्नता का अतिरेक उस के रोमरोम से फूट रहा था. निया थकी हुई थी. अपने बैड पर जा कर लेट गई. परिधि उस के पास आ कर लेट गई और विभोर की बातें करने लगी.
विभोर प्राइवेट कालेज से इंजीनियरिंग कर के आया था. वह मध्यवर्गीय परिवार से था. लेकिन सपने बड़े ऊंचे देखता था. एक स्टार्टअप कंपनी में काम कर रहा था. 6 फुट लंबा, गोराचिट्टा स्मार्ट आकर्षक युवक. उस का बात करने का स्टाइल रईस परिवार जैसा था. वह अमेरिकन एसेंट में फर्राटेदार इंग्लिश बोल कर सब को प्रभावित कर लेता था. परिधि भी उस की प्यार भरी मीठीमीठी बातों के जाल में फंस गई थी.
‘‘निया मैं बता नहीं सकती कि आज कितना मजा आया… तू इतनी जल्दी क्यों आ गई… विभोर तो रात में यहीं रुकना चाह रहा था,’’ कहते हुए वह उस से लिपट गई.
निया ने उस के हाथों को अपने ऊपर से हटा दिया और करवट बदल ली, ‘‘परिधि तुझे घर वालों का डर नहीं रहा क्या? जब उन्हें तेरी हरकत पता चलेगी तो सोचा है कि क्या होगा?’’
‘‘तू चिंता मत कर, यहां की बात भला उन लोगों को कौन है बताने वाला…’’
परिधि की खुशी से निया को थोड़ी जलन सी हो रही थी परंतु उस छोटे शहर वाले संस्कार वह अभी भूल नहीं पाई थी.
परिधि अपने बैड पर लेटी हुई लगातार चैटिंग में बिजी थी शायद यह उस के आनंद का आफ्टर इफैक्ट चल रहा था. निया की आंखों से नींद ने दूरी बना ली थी. उसे कुछ अजीब सी फीलिंग हो रही थी.
अब निया जब औफिस से आती दोनों आपस में गुटुरगूं करते मिलते. उस के आते ही कौफी या खाने की बात होने लगती या फिर विभोर कहता, ‘‘चलो आइसक्रीम खा कर आते हैं.’’
1 महीने से ज्यादा तक यह नाटक चलता रहा. फिर एक दिन परिधि ने कह दिया, ‘‘मैं ने दूसरा फ्लैट देख लिया है मैं उस में शिफ्ट कर रही हूं.’’
‘‘परिधि मैं तुझे वार्न कर रही हूं. लिव इन धोखा है.’’
‘‘तू 18वीं सदी की बातें मत कर. मुझे लाइफ को ऐंजौय करने दे. तुम किसी दूसरे के साथ रूम शेयर कर लेना.’’
निया को गुस्सा तो आया, लेकिन इस रोजरोज के फिल्मी लव सीन से तो उसे नजात मिली. प्यार में डूबी परिधि ने ब्रोकर से बात कर के जल्दी में 1 लाख सिक्युरिटी मनी दे कर वन रूम फ्लैट ले लिया. उस ने सोचा था कि विभोर सिक्युरिटी मनी तो देगा ही लेकिन अंतिम समय में वह बोला, ‘‘सौरी यार मेरा तो कार्ड रूम में ही रह गया.’’
अब दोनों प्रेमी लिव इन में रहने लगे थे. विभोर सुबह उस के लिए बैड टी बना कर ले आता और वह उस की गोद में बैठ कर चाय का मजा लेती. दोनों मिल कर नाश्ता बनाते फिर अपनेअपने औफिस चले जाते.
विभोर को कुकिंग का शौक था और वह अच्छा खाना बना लेता था. इसलिए वह कुछकुछ बनाता रहता.
एक दिन परिधि औफिस से आ कर बोली, ‘‘आज बहुत भूख लगी है.’’
‘‘डार्लिंग, फिकर नौट मैं आज डिनर में तुम्हें लच्छा परांठे और शाहीपनीर खिलाने वाला हूं,’’ और ऐक्सपर्ट कुक की तरह उस ने डिनर बनाना शुरू कर दिया. वह हैल्प के लिए गई तो उस ने प्यार से उसे अपनी बांहों के घेरे में ले चुंबन ले कर कहा, ‘‘माई लविंग शोना, आज नो ऐंट्री का बोर्ड लगा है. तुम आराम से मूवी देखो… बस तुम्हारा शैफ हाजिर है.
परिधि तो अपने निर्णय पर खुशी से झमी जा रही थी कि विभोर के साथ लिव इन के लिए उस ने पहले क्यों नहीं सोचा. वह विभोर की बाहों के झाले में खुशी के गोते लगा रही थी.
समय को तो जैसे पंख लगे हुए थे. वह नाश्ता बनाती तो विभोर कौफी बना देता, जब तक वह औफिस के लिए तैयार होती वह फटाफट किचन की सफाई और बरतन भी धो देता. परिधि को उस का इतना काम करना कई बार अच्छा नहीं लगता और वह भी परेशान हो जाती, इसलिए उस ने वाचमैन से कह कर बबिता (सहायिका) को रख लिया.
अब दोनों जब बबिता कौलबैल बजाती तब ही उठते. वह झाड़ूबरतन कर के उन दोनों के लिए नाश्ता बना देती. दोपहर में दोनों ही औफिस में लंच लेते थे.
परिधि मन ही मन सोच रही थी कि घर के खर्च में विभोर ज्यादा कुछ नहीं करता. ज्यादातर सबकुछ उसे ही करना पड़ रहा है लेकिन वह उस से कुछ कह नहीं पाती. निया का साथ था तो बराबर खर्च कर के उस के पास अच्छा बैंक बैलेंस इकट्ठा हो गया था. लेकिन विभोर की मीठीमीठी बातों में वह सबकुछ भूल जाती और सोचती कि विभोर ग्रोसरी तो जबतब और्डर कर ही देता है. ज्यादातर मोटा खर्च तो वही करती. वह फल और नाश्ता लाती तो विभोर ब्रैड या सब्जी ले आता. किराया,बिजली का बिल, बाहर डिनर या थियेटर वगैरह के समय विभोर कहीं पर कुछ भी नहीं खर्च करता.
महीना पूरा होते ही किराया देना था. विभोर अनमना सा उदास चेहरे के साथ औफिस से लौट कर आया था.
‘‘डियर, मेरे सिर में बहुत दर्द है, हरारत सी लग रही है.’’
स्वाभाविक था कि परिधि ने उस के सिर में बाम लगाया, टैबलेट खिला कर कौफी बना कर पिलाई. तब तक रात के 9 बज गए थे. वह थक गई थी, इसलिए उस ने खाना और्डर कर दिया.