लिव इन धोखा है: भाग 1- आखिर क्यों परिधि डिप्रेशन में चली गई

इतवार का दिन था. रात से ही बादल खूब बरस रहे थे. मौसम सुहावना था. निया ने अपने मनपसंद मूली के परांठे बनाए थे और नाश्ता कर के छुट्टी मनाने के मूड से गहरी नींद में सो गई थी. जब लगभग

3 बजे उस की आंख खुली तो परिधि को तैयार होते देख उस ने पूछा, ‘‘परिधि क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही सजधज रही हो? यह डार्क लिपस्टिक, शोल्डर कट ड्रैस  किसी के साथ डेट पर जा रही हो क्या?’’

‘‘निया आज तू अपनी फ्रैंड के घर नहीं जा रही है क्या?’’

‘‘नहीं यार, आज तो मैं पूरा दिन सोऊंगी या फिर अपना नौवेल गौन विद द विंड पूरा करूंगी. वैरी इंट्रैस्टिंग नौवेल है.’’

‘‘लेकिन आज तो तुझे रूम से 4 बजे जाना ही पड़ेगा,’’ कहते हुए उस के चेहरे पर  मुसकराहट छा गई.

‘‘क्यों किसी के साथ डेट कर रही है?’’

‘‘यस माई डियर.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘यह नहीं बताऊंगी.’’

परिधि और निया दिल्ली के आसपास की हैं. एक गाजियाबाद से तो दूसरी मेरठ से है. दोनों ने एमबीए किया है और 1 साल से बैंगलुरु में रह रही हैं. दोनों ही मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हैं. पहले एक वूमंस लाउंज में रहती थीं. वहीं पर दोनों में दोस्ती हो गई थी. डोसा, इडली और सांभर खातेखाते परेशान हो गई थीं. फिर वहां के रूल्स… रूम में खाना ले कर नहीं जा सकतीं… देर हो जाने पर चायनाश्ता नहीं मिलता. फिर प्याजलहसुन की भी समस्या थी. उन लोगों को वहां का खाना अच्छा नहीं लगता था. 6 महीने किसी तरह झेलने के बाद दोनों ने फ्लैट ले कर रहना तय किया.

दोनों ही सारा खर्च आधाआधा बांट लेतीं. काम भी बांट कर करती. कोई झगड़ा नहीं. साथ में मूवी देखतीं, एकदूसरे के कपड़े शेयर करतीं, अपनेअपने बौस की बातें कर के खूब हंसतीखिलखिलातीं… औफिस की दिनभर की गौसिप करतीं.

निया को पढ़ने का शौक था. फुरसत के समय उस के हाथ में नौवेल होता तो परिधि के हाथ में मोबाइल. वह  तरहतरह के वीडियो देखा करती.

आज पहली बार उसे परिधि की बात पसंद नहीं आ रही थी. उस ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘वही तेरा चश्मिशपोपू आ रहा है क्या?’’

‘‘परिधि तू गलत रास्ते पर कदम बढ़ा रही है. यदि तेरे घर वालों को पता लगा तो?’’

‘‘निया तू भी बूढ़ी दादी जैसी बात कर रही है. चल जल्दी निकलने की तैयारी कर 4 बजने वाले हैं… मुझे कमरा भी तो ठीक करना है.’’

‘‘तेरा इरादा शादीवादी का तो नहीं है?’’

वह निया का हाथ पकड़ कर उठाती हुई

बोली, ‘‘शादी माई फुट… मैं तो लाइफ को ऐंजौय कर रही हूं.’’

‘‘तुम भी एक बौयफ्रैंड बना लो, जीवन हसीन हो जाएगा.’’

‘‘बस कर अपनी सीख अपने पास रख… मैं तुझ से सीरियसली कह रही हूं. आज तो मैं मौल  में जा कर भटक लूंगी, लेकिन मेरे साथ रहना है तो रूम से बाहर चाहे जो करो रूम के अंदर कुछ नहीं.’’

‘‘निकल, आज तो जा… फिर बाद में जो होगा वह देखेगें.’’

‘‘यह तो बता कि मुझे कितनी देर में लौट कर आना है?’’

‘‘आज संडे है, डिनर तो बाहर ही करना है.’’

निया ने अपने बैग में बुक रखी और सोचने लगी कि कहां जाऊं. वह मौल में गई. वहां मल्टीप्लैक्स में ‘अवेंजर’ का पोस्टर देख टिकट लिया और हौल में चली गई. पिक्चर देख कर बाहर आई, तो भूख लगी थी. उस ने पिज्जा और कोल्ड ड्रिंक और्डर की.

उस के बाद जब वह अपने कमरे में पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद था क्योंकि परिधि का बौयफ्रैंड अभी भी रूम में था. उस ने नौक किया तो परिधि ने अपने कपड़ों को ठीक करते हुए दरवाजा खोला, लेकिन बिस्तर की हालत वहां पर जो कुछ हो रहा था उस की गवाही दे रहीं थी.

उस के बौयफ्रैंड ने परिधि को पहले हग किया फिर किस. उस के बाद निया को गहरी नजरों से देखा और बोला, ‘‘हैलो… आई एम विभोर. निया, यू आर वैरी स्मार्ट ऐंड ब्यूटीफुल.’’

‘‘थैंक्स फौर कंप्लिमैंट ऐंड विभोर नाइस टू मीट यू.’’

दोनों के चेहरे पर मुस्कान छा गई थी. परिधि के चेहरे पर फैला हुई प्रसन्नता का अतिरेक उस के रोमरोम से फूट रहा था. निया थकी हुई थी. अपने बैड पर जा कर लेट गई. परिधि उस के पास आ कर लेट गई और विभोर की बातें  करने लगी.

विभोर प्राइवेट कालेज से इंजीनियरिंग कर के आया था. वह मध्यवर्गीय परिवार से था. लेकिन सपने बड़े ऊंचे देखता था. एक स्टार्टअप कंपनी में काम कर रहा था. 6 फुट लंबा, गोराचिट्टा स्मार्ट आकर्षक युवक. उस का बात करने का स्टाइल रईस परिवार जैसा था. वह अमेरिकन एसेंट में फर्राटेदार इंग्लिश बोल कर सब को प्रभावित कर लेता था. परिधि भी उस की प्यार भरी मीठीमीठी बातों के जाल में फंस गई थी.

‘‘निया मैं बता नहीं सकती कि आज कितना मजा आया… तू इतनी जल्दी क्यों आ गई… विभोर तो रात में यहीं रुकना चाह रहा था,’’ कहते हुए वह उस से लिपट गई.

निया ने उस के हाथों को अपने ऊपर से हटा दिया और करवट बदल ली, ‘‘परिधि तुझे घर वालों का डर नहीं रहा क्या? जब उन्हें तेरी हरकत पता चलेगी तो सोचा है कि क्या होगा?’’

‘‘तू चिंता मत कर, यहां की बात भला उन लोगों को कौन है बताने वाला…’’

परिधि की खुशी से निया को थोड़ी जलन सी हो रही थी परंतु उस छोटे शहर वाले संस्कार वह अभी भूल नहीं पाई थी.

परिधि अपने बैड पर लेटी हुई लगातार चैटिंग में बिजी थी शायद यह उस के आनंद का आफ्टर इफैक्ट चल रहा था. निया की आंखों से नींद ने दूरी बना ली थी. उसे  कुछ अजीब सी फीलिंग हो रही थी.

अब निया जब औफिस से आती दोनों आपस में गुटुरगूं करते मिलते. उस के आते ही कौफी या खाने की बात होने लगती या फिर विभोर कहता, ‘‘चलो आइसक्रीम खा कर आते हैं.’’

1 महीने से ज्यादा तक यह नाटक चलता रहा. फिर एक दिन परिधि ने कह दिया, ‘‘मैं ने दूसरा फ्लैट देख लिया है मैं उस में शिफ्ट कर रही हूं.’’

‘‘परिधि मैं तुझे वार्न कर रही हूं. लिव इन धोखा है.’’

‘‘तू 18वीं सदी की बातें मत कर. मुझे लाइफ को ऐंजौय करने दे. तुम किसी दूसरे के साथ रूम शेयर कर लेना.’’

निया को गुस्सा तो आया, लेकिन इस रोजरोज के फिल्मी लव सीन से तो उसे नजात मिली. प्यार में डूबी परिधि ने ब्रोकर से बात कर के जल्दी में 1 लाख सिक्युरिटी मनी दे कर वन रूम फ्लैट ले लिया. उस ने सोचा था कि विभोर सिक्युरिटी मनी तो देगा ही लेकिन  अंतिम समय में वह बोला, ‘‘सौरी यार मेरा तो कार्ड रूम में ही रह गया.’’

अब दोनों प्रेमी लिव इन में रहने लगे थे. विभोर सुबह उस के लिए बैड टी बना कर ले आता और वह उस की गोद में बैठ कर चाय का मजा लेती. दोनों मिल कर नाश्ता बनाते फिर अपनेअपने औफिस चले जाते.

विभोर को कुकिंग का शौक था और वह अच्छा खाना बना लेता था. इसलिए वह कुछकुछ बनाता रहता.

एक दिन परिधि औफिस से आ कर बोली, ‘‘आज बहुत भूख लगी है.’’

‘‘डार्लिंग, फिकर नौट मैं आज डिनर में तुम्हें  लच्छा परांठे और शाहीपनीर खिलाने वाला हूं,’’ और ऐक्सपर्ट कुक की तरह उस ने डिनर बनाना शुरू कर दिया. वह हैल्प के लिए गई तो उस ने प्यार से उसे अपनी बांहों के घेरे में ले चुंबन ले कर कहा, ‘‘माई लविंग शोना, आज नो ऐंट्री का बोर्ड लगा है. तुम आराम से मूवी देखो… बस तुम्हारा शैफ हाजिर है.

परिधि तो अपने निर्णय पर खुशी से झमी जा रही थी कि विभोर के साथ लिव इन के लिए उस ने पहले क्यों नहीं सोचा. वह विभोर की बाहों के झाले में खुशी के गोते लगा रही थी.

समय को तो जैसे पंख लगे हुए थे. वह नाश्ता बनाती तो विभोर कौफी बना देता, जब तक वह औफिस के लिए तैयार होती वह फटाफट किचन की सफाई और बरतन भी धो देता. परिधि को उस का इतना काम करना कई बार अच्छा नहीं लगता और वह भी परेशान हो जाती, इसलिए उस ने वाचमैन से कह कर बबिता (सहायिका) को रख लिया.

अब दोनों जब बबिता कौलबैल बजाती तब ही उठते. वह झाड़ूबरतन कर के उन दोनों के लिए नाश्ता बना देती. दोपहर में दोनों ही औफिस में लंच लेते थे.

परिधि मन ही मन सोच रही थी कि घर के खर्च में विभोर ज्यादा कुछ नहीं करता. ज्यादातर सबकुछ उसे ही करना पड़ रहा है लेकिन वह उस से कुछ कह नहीं पाती. निया का साथ था तो बराबर खर्च कर के उस के पास अच्छा बैंक बैलेंस इकट्ठा हो गया था. लेकिन विभोर की मीठीमीठी बातों में वह सबकुछ भूल जाती और सोचती कि विभोर ग्रोसरी तो जबतब और्डर कर ही देता है. ज्यादातर मोटा खर्च तो वही करती. वह फल और नाश्ता लाती तो विभोर ब्रैड या सब्जी ले आता. किराया,बिजली का बिल, बाहर डिनर या थियेटर वगैरह के समय विभोर कहीं पर कुछ भी नहीं खर्च करता.

महीना पूरा होते ही किराया देना था. विभोर अनमना सा उदास चेहरे के साथ औफिस से लौट कर आया था.

‘‘डियर, मेरे सिर में बहुत दर्द है, हरारत सी लग रही है.’’

स्वाभाविक था कि परिधि ने उस के सिर में  बाम लगाया, टैबलेट खिला कर कौफी बना कर पिलाई. तब तक रात के 9 बज गए थे. वह थक गई थी, इसलिए उस ने खाना और्डर कर दिया.

मृगमरीचिका: भाग 2-आखिर अनिमेष को बंद लिफाफे में क्या मिला

बेटी के दुख से परेशान उस के पिता देर रात तक पत्नी पर अनिमेष को मणिका के लिए फाइनल करने का आरोप लगाते हुए झगड़ते रहे.

बहुत सोचविचार कर मणिका के मातापिता ने अगली सुबह ही बेटी के जीवन में अमोला को ले कर आई परेशानी का तोड़ ढूंढ़ने के लिए समधीजी के घर पर धावा बोल दिया, जो शिकागो में ही रहते थे.

‘‘भाई साहब, आप अपने बेटे को समझते क्यों नहीं. एक पराई औरत की खातिर वह अपने घर की शांति भंग करने पर क्यों उतारू है?’’ मणिका के पिता ने समधी को आड़े हाथों लेते हुए कहा.

समधी के इस वार पर तिलमिलाते हुए अनिमेष के पिता बोले, ‘‘आप की बेटी ने तो तिल का ताड़ बना दिया है. अमोला अनिमेष की बहन जैसी है. अगर वह उस के बुलावे पर उसे घर छोड़ने चला भी गया, तो क्या गजब हो गया?’’

‘‘जी, एक पराई औरत की खातिर बीवी का दिल तोड़ना क्या सही है? कल मणिका ने इतने मन से इतना समय लगा कर अनिमेष की पसंद का पिज्जा बनाया. वे दोनों खाने बैठने ही वाले थे कि अनिमेष लगीलगाई टेबल छोड़ कर उस अमोला के एक फोन पर उसे घर ड्रौप करने चला गया. अगर जाना इतना ही जरूरी था तो क्या वह थोड़ी देर बाद खापी कर उसे छोड़ने नहीं जा सकता था? लेकिन उसे तो मणिका की रत्तीभर भी परवाह नहीं. उस के लिए अमोला पहले है. मणिका की कोई अहमियत ही नहीं उस की निगाहों में,’’ इस बार मणिका की मां ने समधी से आक्रामक ढंग से बोला.

‘‘बहनजी, आप कुछ ज्यादा ही बढ़ाचढ़ा कर बोल रहीं. मणिका अनिमेष की वाइफ है और अमोला जस्ट एक अच्छी फ्रैंड. दोनों का क्या मुकाबला.’’

‘‘जी समधीजी, अमोला मात्र एक अच्छी फ्रैंड नहीं वरन उस से कुछ ज्यादा ही है. आप को शायद पूरी बात पता नहीं,’’ कह उन्होंने समधीसमधन को दामाद और अमोला के साथ घूमनेफिरने और मैसेजिंग की बात बताई, जिसे सुन कर वे भी चिंतित हो उठे कि उन का बेटा अमोला के मोहपाश में बहकने लगा है.

दोनों समधीसमधन ने अमोला के जीवन में आई इस विपदा का तोड़ ढूंढ़ने के विषय में गंभीरता से चिंतनमनन किया. इस विचारविमर्श के परिणामस्वरूप निष्कर्ष निकला कि अनिमेष के पेरैंट्स उसे धमकाएंगे कि वह अमोला की ओर अपने बढ़ते कदम खींचे और उस से अपना मेलजोल बिलकुल बंद करे और यदि वह ऐसा नहीं करता तो मणिका उस से तलाक ले लेगी.

समधीसमधन से यह आश्वासन पा कर मणिका के मातापिता को बहुत तसल्ली हुई और वे शांत मन से घर लौट गए.

शाम को अनिमेष के औफिस से घर लौटने पर उस के मातापिता ने सख्त स्वर में उसे उस की अमोला से बढ़ती नजदीकियों की वजह से मणिका के उस से तलाक लेने के निर्णय से अवगत कराया. उन्होंने उसे यह भी कहा कि वे दोनों इस मुद्दे पर बहू का साथ देंगे न कि उस का. मगर उन की इस बात का उस पर कोई असर नहीं हुआ.

उस ने उन से महज यह कह कर इस बात से पल्ला झड़ लिया कि मणिका अमोला को ले कर हाइपर हो रही है और ओवर रिएक्ट कर रही है. उस की बातों में लेशमात्र भी सचाई नहीं.

इस के बाद वह मणिका पर क्रोधावेश में जम कर बरसा कि वह नाहक अमोला की बात को अनावश्यक रूप से तूल दे रही है और अपनी सुखी गृहस्थी उजाड़ने पर तुली हुई है.

अनिमेष को यों अपनी जिद पर अडिग देख मणिका ने उसे अल्टीमेटम दे दिया कि मैं अब तुम जैसे छिछोरे आदमी के साथ जिंदगी कतई नहीं बिताऊंगी, जिसे इधरउधर मुंह मारने से गुरेज नहीं. मैं जल्द ही तुम से तलाक के लिए अर्जी दे दूंगी और 10-15 दिनों में अपने अलग रहने का इंतजाम कर लूंगी.

‘‘यह अमोला इतनी सीधीसच्ची नहीं है, जितनी दिखती है. वह मु?ा से एक बार कह चुकी है कि वह बहुत जल्दी दूसरी शादी करने वाली है. जहां तक मैं उसे पहचान पाई हूं, वह तुम से अपना स्वार्थ साधने के लिए नजदीकियां बढ़ा रही है. वह तुम्हें यूज कर रही है. तुम उस के लिए यूज और थ्रो से अधिक कुछ साबित नहीं होंगे. बहुत शातिर है वह. उस से दूर रहो.’’

पत्नी की इन बातों से अनिमेष आगबबूला हो गया. वह अंत तक अमोला प्रकरण में अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हुआ और अपनी बात पर अडिग रहा कि वह निर्दोष है.

उस रात उसने इस मुद्दे पर बहुत संजीदगी से सोचा और फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मणिका से आत्मिक संबंध की तुलना में अमोला के प्रति उस की भावनाएं बेहद छिछली है. वह बस उस के प्रति शारीरिक रूप से आकर्षित है और उस के साथ कुछ समय के लिए मुंह का जायका बदलने के लिए संबंध जोड़ कर मन बहलाना चाहता है.

पत्नी मणिका के प्रति उस का नजरिया फौर ग्रांटेड वाला है. उसे भरोसा है कि वह चाहे कितनी ही गलतियां कर ले, मणिका एक टिपिकल ओल्ड फैशंड वाइफ की तरह उस के सौ खून भी माफ कर देगी. कभी उस से अलग होने जैसा मजबूत कदम नहीं उठा पाएगी, लेकिन मणिका एक कड़े इरादों वाली, सिद्धांतप्रिय युवती है, जो शादी में एकदूसरे के प्रति प्रतिबद्धता और एकनिष्ठा को अपरिहार्य मानती है. आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी थी.

सो पति की ज्यादती को मानने से इनकार करते हुए वह अपने कहे अनुसार एक पखवाड़े के भीतर उसे छोड़ कर एक अलग घर किराए पर ले उस में रहने चली गई.

मणिका के घर छोड़ कर चले जाने के बावजूद उस ने उसे गंभीरता से नहीं लिया और उस के इस कदम को मात्र उस की गीदड़ भभकी सम?ाते हुए उस ने अमोला का साथ नहीं छोड़ा. उस के मन के कोने में यह सोच थी कि वह बस एक बार अमोला को पूरी तरह पा कर कुछ दिन उस के साथ मौज कर मणिका के पास लौट आएगा. अपनी इसी सोच के चलते उस के प्रति दैहिक आकर्षण की मृगमरीचिका में वह उस के पीछेपीछे भागता रहा.

मणिका के घर छोड़ कर चले जाने से अनिमेष अब बिंदास अमोला के साथ हर जगह टंगाटंगा फिरता. औफिस के बाद का समय वह उस के साथ गुजारता.

कासनी का फूल: भाग 5-अभिषेक चित्रा से बदला क्यों लेना चाहता था

रात काफी बीत चुकी थी. चित्रा सब कह कर बेसुध सी अपने जीवन की कड़वी यादों में डूबी थी. ईशान चाह रहा था कि चित्रा अब सो जाए. कुछ. सोचते हुए चित्रा का हाथ अपने हाथ में ले कर उस ने चित्रा की उंगलियों में अपनी उंगलियां फंसा दीं और बोला, ‘‘फिक्र मत करो, हम सब सुलझ लेंगे बस तुम्हारी उंगलियां मेरी उंगलियों में यों ही उलझ रहनी चाहिए हमेशा.’’

‘‘उलझन में सुलझन,’’ चित्रा खिलखिला कर हंस पड़ी.

चित्रा की हंसी कमरे में चारों ओर बिखरी रही, उन दोनों के सो जाने के बाद भी.

सूरज की किरणें सुबह खिड़की के परदे से छन कर भीतर आईं तो नींद से जागे वे.

कुछ देर बाद साधुपुल के लिए निकल पड़े. आज चित्रा का एक नया ही रूप दिख रहा था. कल तक गुमसुम सी, कम बोलने वाली चित्रा आज चंचल हिरणी सी मदमस्त हो चिडि़या सी चहक रही थी.

‘‘आज गाने नहीं सुनोगे, ईशान?’’ रास्ते में चित्रा पूछ बैठी.

‘‘नहीं, आज मैं तुम्हें सुनूंगा, कितने दिनों बाद इतना बोलते देख रहा हूं तुम्हें,’’ ईशान हौले से मुसकरा दिया.

साधुपुल पहुंच कर छोटी सी धारा के रूप में बहती अश्विनी नदी के आसपास टहलते रहे दोनों. थक गए तो पानी में मेजकुरसियां लगे रैस्टोरैंट में खाना खा कर नदी किनारे आ बैठे. नदी की कल-कल ध्वनि को सुनते हुए पैर पानी में डाले हुए बैठना, पक्षियों की चहचहाहट को महसूस करना और छोटेछोटे लकड़ी के बने कच्चे पुलों पर एकदूसरे का हाथ थामे इस से उस पार आनाजाना, दुनिया को भूले बैठे थे आज वे.

शाम हुई तो नदी किनारे बने टैंटनुमा कमरे में रात बिताने चल दिए. रात को बैड पर ईशान से सट कर बैठी खिड़की से बाहर झांकती चित्रा को देख लग रहा था जैसे जीवन में पहली बार प्रकृति की खूबसूरती देख रही हो.

‘‘एक बात कहूं ईशान?’’ चित्रा कुछ देर बाद बोली.

‘‘यही न कि अब नींद सता रही है. सोना चाहती हो?’’ ईशान ने उस की नाक पकड़ कर खींचते हुए कहा.

‘‘नहीं ईशान, मैं तो कहना चाहती थी कि यहां कार वाला म्यूजिक होता तो मैं पता है कौन सा गाना सुनती.’’

‘‘कौन सा?’’

‘‘पुराना है, ‘भीगी रात’ फिल्म का, आज मैं सिर्फ वही गुनगुनाना

चित्रा की आंखों से आंसू बह निकले. अपने हाथों से आंसू पोंछते हुए ईशान बोला, ‘‘नहीं, दुखी नहीं होना है तुम्हें अब. अपने आने वाले बच्चे को खुश रखना है. कल से तुम रैस्टोरैंट काम पर नहीं आओगी, अब आराम करो.’’

‘‘ईशान डाक्टर ने मुझे ऐक्टिव रहने की सलाह दी है. मैं इतना करूंगी कि देर से आ जाया करूंगी और जल्दी वापस हो लिया करूंगी.’’

चित्रा को अगले दिन दोपहर हो गई रैस्टोरैंट पहुंचने में. अंदर दाखिल हुई तो ईशान किसी ग्राहक से बातों में मशगूल था.

चित्रा को देख ईशान चिहुंक उठा, ‘‘आज तो कम से कम आराम कर लेतीं चिकोरी. इतने दिनों से तुम ही तो संभाल रही थीं सब.’’

उस ग्राहक को देख चित्रा जड़वत रह गई. धीरे से ईशान के कान में बताया कि वह तो अभिषेक है.

‘‘तुम तो चित्रा हो न? यह चिकोरी कह कर क्यों बुला रहे हैं?’’ अभिषेक चित्रा को देख हैरान रह गया.

रैस्टोरैंट में कई लोग बैठे थे. सब के सामने अभिषेक न जाने क्या कह दे यह सोच कर ईशान बोला, ‘‘चलो कुछ देर अंदर बने कमरे में बैठते हैं.’’

तीनों रैस्टोरैंट की किचन के साथ बने छोटे से कमरे में चले गए. ईशान खुशनुमा माहौल तैयार करते हुए बोला, ‘‘मेरी पत्नी को कासनी के फूल बहुत पसंद हैं. कासनी का एक नाम चिकोरी है, इसलिए ही मैं इन्हें चिकोरी कहता हूं.’’

अभिषेक जलाभुना सा बोल उठा, ‘‘ओह, पतिपत्नी, भई लगता है आप दोनों में तो अच्छी जमती है. वैसे मैं ने भी कुछ बुरा तो किया नहीं था, रिश्ता तो चित्रा की वजह से टूटा था. अड़ गई थी छोटी सी बात पर.’’

फिर मुंह चित्रा की ओर घुमाता हुआ बोला, ‘‘माफ करना, तुम ने पता

नहीं इन को अपनी पिछली जिंदगी के बारे में कुछ बताया या नहीं, मैं कौन हूं आज जान जाएंगे तुम ने छिपाया होगा तो,’’ बात समाप्त करते ही अभिषेक विद्रूप हंसी हंस दिया.

ईशान का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा, ‘‘अभिषेक, चिकोरी ने कुछ नहीं छिपाया मु?ा से. हां एक बात और कि तुम पिछली जिंदगी की बात करते हुए अच्छे नहीं लगते. चित्रा के अड़ने की जिस बात को तुम छोटी सी कह रहे हो वह भी उस की पिछली जिंदगी, उस के बचपन से जुड़ी थी, लेकिन तुम्हें क्या? कभी सोचना जरूरी ही नहीं समझ होगा कि पत्नी के मन में क्या चल रहा है.’’

‘‘तुम्हारे पति से क्या बहस करूं? न जाने तुम्हारे बचपन की कौन सी बात के बारे में जिक्र कर रहे हैं जनाब. अजीब सनकी को चुना है तुम ने इस बार.’’

ईशान के विषय में अभिषेक के कहे शब्द चित्रा को तीर से चुभ गए. व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए बोली, ‘‘तुम बिलकल नहीं बदले अभिषेक. तुम्हें जरूर सुन कर हैरानी होगी कि ईशान अभी मेरे पति नहीं हैं. कम से कम तुम्हारे जैसी सोच रखने वालों के अनुसार तो मैं अभी किसी की ब्याहता नहीं हूं, लेकिन पति होने का अर्थ यदि पत्नी को मानसम्मान देना, उस की इच्छाओं और विचारों की कद्र करना और उस का हमदर्द होना है तो हां मैं एक पत्नी हूं, मेरे होने वाले बच्चे के पिता ईशान हैं और हम कुछ दिनों बाद परिवारों की खुशी के लिए शादी भी करेंगे.

ऐसे साथी को तुम सनकी कहते हो? काश, तुम भी सनकी होते, अब तुम से ज्यादा बहस करूंगी तो मेरी तबीयत ही खराब होगी और उस से ईशान को तकलीफ होगी. इतना ही कहूंगी कि तुम भी जीवनसाथी ढूंढ़ लो, लेकिन प्लीज उसे एक जीताजागता इंसान समझना कठपुतली नहीं.’’

अभिषेक चुपचाप बाहर निकल गया. जातेजाते रैस्टोरैंट के बोर्ड पर निगाह चली ही गई, ‘कासनी फूड हट.’

‘‘कासनी मतलब चित्रा,’’ बुदबुदाता हुए हारे खिलाड़ी सा मुंह लिए वह लौट गया.

मृगमरीचिका: भाग 1- आखिर अनिमेष को बंद लिफाफे में क्या मिला

‘‘अन्नू, प्लीज फ्रिज से सौस ले आओ. मैं पिज्जा ला रही हूं. बहुत बढि़या बना है. वाऊ. टौपिंग क्या शानदार गोल्डन ब्राउन बेक हुई है. मेरे तो मुंह में पानी आ रहा है,’’ ओटीजी से बेक किया हुआ पिज्जा निकाल कर लाते हुए मणिका मुदित मन पति से बोली.

तभी अनिमेष का मोबाइल बजा.

‘‘अन्नू, किस का फोन है?’’

‘‘मणिका, तुम जब तक पिज्जा टेबल पर लगाओ, मैं अभी आया.’’

‘‘अरे बताओ तो सही, किस का फोन है यह रात के एक बजे? कहां जा रहे हो भई? भूख लग रही है. कभीकभी तो दोनों एकसाथ खाते हैं, आधी रात को भी लोगों को चैन नहीं है. जरूर उस मुंह झंसी अमोला का फोन होगा. नहीं, तुम अभी कहीं नहीं जाओगे… आज का ऐनिवर्सरी डिनर हम साथ करेंगे.’’

‘‘अनिमेष बस अभी आया,’’ कह घर से निकल गया.

क्रोध से चालू ओटीजी बंद कर मणिका अपने बिस्तर पर जा कर पड़ गई. दिल में भीषण दावानल सुलग रहा था.

‘‘अन्नू को मेरी परवाह ही नहीं है. यह नहीं सोचा कि आज के स्पैशल दिन तो लगीलगाई टेबल छोड़ कर न जाए. जरूर वह चुड़ैल अमोला ही होगी,’’ शक का बिरवा वटवृक्ष बन बैठा और फिर गुस्से से थरथर कांपते हुए उस ने अमोला को फोन मिलाया, ‘‘अमोला, तुम कहां हो? अनिमेष तुम्हारे साथ है?’’

‘‘हां मणिका, अनिमेष ड्राइविंग कर रहा है. आज औफिस में देर तक रुकना पड़ा. सो मैं ने सोचा उसे ही बुला लूं.’’

‘‘तुम किराए की गाड़ी से नहीं जा सकती थी जो इतनी देर रात अनिमेष को बुलाया? हद है. जरा सोचा करो भई, उस की एक अदद बीवी भी है, जिसे उस का साथ चाहिए. यों रातबिरात मत बुलाया करो उसे, हां. खुद ड्राइव कर के क्यों नहीं आई?’’ मणिका ने क्रोध में फुफकारते हुए कहा.

‘‘अरे बाबा, मेरा औफिस बदल गया है. अब नया औफिस अपने शहर शिकागो के बाहरी इलाके में शिफ्ट हो गया है. यह एरिया मेरा देखा नहीं है. रात को एकदम सुनसान रहता है. सो इतनी रात को वहां से किराए की गाड़ी से या खुद ड्राइव कर आने की हिम्मत नहीं हुई. मेरे मोबाइल का गूगल ऐप भी एक वीक से काम नहीं कर रहा. सो अनिमेष को बुला लिया. फिक्र न करो. तुम्हारे पति को सहीसलामत भेजती हूं, बस आधे घंटे में. क्या हुआ मणिका, बहुत अपसैट लग रही हो? अनिमेष से झगड़ा हुआ क्या?’’

‘‘अभी तक तो नहीं हुआ, हां अब उसे आने दो. अब होगा असली झगड़ा तो,’’ इसी के साथ मणिका ने गुस्से से फोन को बैड पर उछाल दिया. वह बैड पर पड़ आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी, लेकिन नींद आज उस की आंखों की राह भूल बैठी थी. मन अतीत में विचरने लगा…

अमोला शिकागो में उन के अपार्टमैंट में करीब सालभर पहले किसी और शहर से आई थी. उस ने मणिका को बताया कि उस के पति की 2-3 वर्ष पहले एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. बेहद व्यवहारकुशल महिला थी. कुछ ही दिनों में अपने मधुर स्वभाव से उस ने मणिका का दिल जीत लिया था. इधर कुछ महीनों से उस के घर उस का उठनाबैठना बहुत बढ़ गया था. उस के अकेले रहने की वजह से मणिका के मन में उस के प्रति गहरी सहानुभूति थी.

मणिका गाहेबगाहे अनिमेष को उस की घरबाहर की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाने अकेले उस के घर भेज देती. हर छुट्टी के दिन कुछ पकवान बनाने पर उसे अपने घर बुला लेती और बड़े प्यारमनुहार से खिलाती. उसे लेशमात्र भी अंदेशा नहीं था पर हर चमकती चीज सोना नहीं होती.

भोली सरल, सहज, निश्छल मन की मणिका को सपने में भी अंदाजा नहीं था कि अमोला के चरित्र में ठहराव नहीं था. एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मणिका का अमोला से पूरी तरह से भरोसा उठ गया. वह दिन आज तक उसे भुलाए नहीं भूलता.

शाम के 7 बजे जब वह घर लौट अपनी चाबी से घर का ताला खोल घर में घुसी, उस ने देखा कि अमोला अनिमेष के कंधे से लगी आंसू बहा रही थी और अनिमेष उस की बांहों को सहला रहा था.

अमोला और पति को अपनी अनुपस्थिति में यों देख मणिका के पांवों तले से जमीन खिसक गई. उस दिन के बाद से अमोला के प्रति उस का मन साफ न रहा. उस ने उसे लाख सफाई दी कि वह अनिमेष को अपना भाई जैसा मानती है, उन दोनों के बीच कोई गलत भाव नहीं है, लेकिन कहते हैं न, भरोसे का शीशा एक बार दरक जाए तो फिर नहीं जुड़ता.

अमोला के प्रति उस के मन में दरार आ गई, जो समय के साथ गहरी होती जा रही थी. उस की लाख सफाइयां भी उस के मन का मैल न हटा सकीं.

वह इस मुद्दे पर पति के साथ भी बहुत उलझ, लेकिन उस ने उसे मात्र उसका ओवर इमैजिनेशन करार देते हुए उस बात को खारिज कर दिया. तभी ट्रेन की सीटी की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई. उस ने अपने मोबाइल पर नजर डाली, ढाई बज गए थे.

आंखों के सामने से रोतीसिसकती अनिमेष के कंधे से लगी अमोला की तसवीर बारबार आ रही थी, जिस से उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. आननफानन में वह बैड से उठी, अपना पर्स उठाया और अपनी गाड़ी स्टार्ट कर उसे अपने मायके की ओर मोड़ दिया.

‘‘मणिका तू इतनी रात को? क्या हुआ भई? आज तो तेरी ऐनिवर्सरी है. अनिमेष कहां है? वह ठीक तो है?’’

‘‘यस मम्मा, उसे क्या होना है. आज ऐनिवर्सरी के दिन बनेबनाए पिज्जे को छोड़ कर उस अमोला की एक कौल पर उसे घर ड्रौप करने गया है. मैं ने आज कितने मन से उस की पसंद का औलिव और मशरूम टौपिंग का पिज्जा बनाया था. लेकिन उसे तो मेरी, मेरी फीलिंग्स की परवाह ही नहीं है. मैं ने फैसला कर लिया है मां, अब उस के साथ मेरा गुजारा नहीं है. मैं उसे छोड़ रही हूं.’’

‘‘अरे पागल हुई है क्या? यों जराजरा सी बात पर शादी तोड़ी जाती है, शादी न हुई चाइनी सामान हो गया. जा, तू अभी बहुत गुस्से में है. अभी जा कर सो जा. सुबह बात करेंगे.’’

‘‘मां, जब उस अनिमेष के लिए मेरी कोई अहमियत नहीं है तो ऐसे इंसान के साथ जिंदगी गुजारने का क्या फायदा. नहींनहीं या तो अनिमेष उस अमोला के साथ पूरी तरह से अपनी दोस्ती खत्म करे या फिर मुझे छोड़ दे. उसे हम दोनों में से एक को चुनना ही होगा. वह उस के साथ औफिस के बाद घूमता फिरता है. उस के साथ हर समय व्हाट्सऐप पर टच में रहता है. उन दोनों के बीच गलत वे में मैसेजिंग चलती है. वह उसे अमूमन रोज फोन करती है. उस का फोन आते ही वह सबकुछ छोड़ उस के पास भागा जाता है. आज तो हद ही हो गई. उस की एक कौल पर वह लगीलगाई टेबल छोड़ उस के पास चला गया. अब मैं और बरदाश्त नहीं कर सकती.’’

‘‘अरे, यह तुम दोनों के बीच अमोला कहां से आ गई?’’ तभी मणिका के पापा भी घर में शोरगुल सुन कर वहां आ गए.

मणिका ने रोतेरोते दोनों को अनिमेष के साथ अमोला की बढ़ती नजदीकियों के बारे में बताया.

‘‘अणिमा, मैं ने तुम से कहा था, अनिमेष मुझे शुरू से सही नहीं लगा. उस की शख्सियत में कतई कोई गहराई नहीं है. फ्लर्ट है नंबर एक का. हर समय मजनूं बना फिरता है. अरे जब मणिका को अमोला के साथ उस की करीबी नहीं पसंद तो वह उस से दूरी क्यों नहीं बनाता. उस के लिए अपनी बीवी इंपौर्टैंट है या अमोला. हद है इम्मैच्योरिटी की.

‘‘अरे मुझे तो वह हमेशा से लपाडि़या लगता था. वह तो मणिका ने उस के लिए हां कर दी. फिर तुम ने भी मुझ से उस की वकालत की, तो मैं उस के लिए मान गया नहीं तो मुझे तो वह शुरू से ही कतई पसंद नहीं था.’’

‘‘जी, मुझे तो वह काफी हंसमुख लगा था. मुझे लगा था, आप की तरह उस की यह सोच नहीं है कि बोलने में भी टैक्स लगता है. सो अपने बातूनी, मजाकिया स्वभाव से अपनी मणिका को खुश रखेगा, मैं ने इसीलिए उस के लिए हां की. फिर मणिका को तो वह पसंद था ही. आप के चुप्पे स्वभाव से मैं ने कितना दुख पाया है, आप को उस का अंदाज भी नहीं है.’’

‘‘अच्छा, तो तुम्हें मेरे कम बोलने पर भी आपत्ति है? मैं कुछ बोलता नहीं हूं, तभी आज हर चीज में मनमानी करती हो. ऐश की जिंदगी जी रही हो मेरी वजह से. अगर में पसंद नहीं हूं तो ढूंढ़ लो न कोई दूसरा, जो खूब बोले. अभी भी देर तो नहीं हुई.चली जाओ न अपने उस जिम के साथ, जिस के संग तुम हमेशा हंसहंस कर नौनस्टौप बातें करती हो.’’

‘‘अच्छा जी, अब तुम्हें मेरे किसी और से बातें करने पर भी ऐतराज है. तुम कहो तो मुंह पर पट्टी बांध 7 तालों में कैद हो जाऊं.’’

आप के झगड़े शुरू हो जाते हैं. कहीं चैन नहीं है,’’ कहते हुए मणिका फूले मुंह पांव पटकते हुए अपने कमरे में चली गई.

Raksha Bandhan: सरप्राइज- भाई-बहनों का जीवन संवारने वाली सीमा क्या खुद खुश रह पाई?

रविवार को सुबह 10 बजे जब सीमा के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे लपक कर उठा लिया. स्क्रीन पर अपने बचपन की सहेली नीता का नाम पढ़ा तो वह भावुक हो गई और खुद से ही बोली कि चलो किसी को तो याद है आज का दिन.

लेकिन अपनी सहेली से बातें कर उसे निराशा ही हाथ लगी. नीता ने उसे कहीं घूमने चले का निमंत्रण भर ही दिया. उसे भी शायद आज के दिन की विशेषता याद नहीं थी.

‘‘मैं घंटे भर में तेरे पास पहुंच जाऊंगी,’’ यह कह कर सीमा ने फोन काट दिया.

‘सब अपनीअपनी जिंदगियों में मस्त हैं. अब न मेरी किसी को फिक्र है और न जरूरत. क्या आगे सारी जिंदगी मुझे इसी तरह की उपेक्षा व अपमान का सामना करना पड़ेगा?’ यह सोच उस की आंखों में आंसू

भर आए.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर निकली और रसोई में काम कर रही अपनी मां को बताया, ‘‘मां, मैं नीता के पास जा रही हूं.’’

‘‘कब तक लौट आएगी?’’ मां ने पूछा.

‘‘जब दिल करेगा,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर उस ने अपनी नाराजगी प्रकट की.

‘‘ठीक है,’’ मां का लापरवाही भरा जवाब सुन कर उदास हो गई.

सीमा का भाई नवीन ड्राइंगरूम में अखबार पढ़ रहा था. वह उस की तरफ देख कर मुसकराया जरूर पर उस के बाहर जाने के बारे में कोई पूछताछ नहीं की.

नवीन से छोटा भाई नीरज बरामदे में अपने बेटे के साथ खेल रहा था.

‘‘कहां जा रही हो, दीदी?’’ उस ने अपना गाल अपने बेटे के गाल से रगड़ते हुए सवाल किया.

‘‘नीता के घर जा रही हूं,’’ सीमा ने शुष्क लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं कार से छोड़ दूं उस के घर तक?’’

‘‘नहीं, मैं रिकशा से चली जाऊंगी.’’

‘‘आप को सुबहसुबह किस ने गुस्सा दिला दिया है?’’

‘‘यह मत पूछो…’’ ऐसा तीखा जवाब दे कर वह गेट की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.

कुछ देर बाद नीता के घर में प्रवेश करते ही सीमा गुस्से से फट पड़ी, ‘‘अपने भैयाभाभियों की मैं क्या शिकायत करूं, अब तो मां को भी मेरे सुखदुख की कोई चिंता नहीं रही.’’

‘‘हुआ क्या है, यह तो बता?’’ नीता ने कहा.

‘‘मैं अब अपनी मां और भैयाभाभियों की नजरों में चुभने लगी हूं… उन्हें बोझ लगती हूं.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारे घर वालों के व्यवहार में कोई बदलाव महसूस नहीं किया है. हां, कुछ दिनों से तू जरूर चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई है.’’

‘‘रातदिन की उपेक्षा और अपमान किसी भी इंसान को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना देता है.’’

‘‘देख, हम बाहर घूमने जा रहे हैं, इसलिए फालतू का शोर मचा कर न अपना मूड खराब कर, न मेरा,’’ नीता ने उसे प्यार से डपट दिया.

‘‘तुझे भी सिर्फ अपनी ही चिंता सता रही है. मैं ने नोट किया है कि तुझे अब मेरी याद तभी आती है, जब तेरे मियांजी टूर पर बाहर गए हुए होते हैं. नीता, अब तू भी बदल गई है,’’ सीमा का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘अब मैं ने ऐसा क्या कह दिया है, जो तू मेरे पीछे पड़ गई है?’’ नीता नाराज होने के बजाय मुसकरा उठी.

‘‘किसी ने भी कुछ नहीं किया है… बस, मैं ही बोझ बन गई हूं सब पर,’’ सीमा रोंआसी हो उठी.

‘‘तुम्हें कोई बोझ नहीं मानता है, जानेमन. किसी ने कुछ उलटासीधा कहा है तो मुझे बता. मैं इसी वक्त उस कमअक्ल इंसान को ऐसा डांटूंगी कि वह जिंदगी भर तेरी शान में गुस्ताखी करने की हिम्मत नहीं करेगा,’’ नीता ने उस का हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गई.

‘‘किसकिस को डांटेगी तू. जब मतलब निकल जाता है तो लोग आंखें फेर लेते हैं. अब मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार मेरे दोनों भाई और उन की पत्नियां कर रही हैं तो इस में हैरानी की कोई बात नहीं है. मैं बेवकूफ पता नहीं क्यों आंसू बहाने पर तुली हुई हूं,’’ सीमा की आंखों से सचमुच आंसू बहने लगे थे.

‘‘क्या नवीन से कुछ कहासुनी हो गई है?’’

‘‘उसे आजकल अपने बिजनैस के कामों से फुरसत ही कहां है. वह भूल चुका है कि कभी मैं ने अपने सहयोगियों के सामने हाथ फैला कर कर्ज मांगा था उस का बिजनैस शुरू करवाने के लिए.’’

‘‘अगर वह कुसूरवार नहीं है तब क्या नीरज ने कुछ कहा है?’’

‘‘उसे अपने बेटे के साथ खेलने और पत्नी की जीहुजूरी करने से फुरसत ही नहीं मिलती. पहले बहन की याद उसे तब आती थी, जब जेब में पैसे नहीं होते थे. अब इंजीनियर बन जाने के बाद वह खुद तो खूब कमा ही रहा है, उस के सासससुर भी उस की जेबें भरते हैं. उस के पास अब अपनी बहन से झगड़ने तक का वक्त नहीं है.’’

‘‘अगर दोनों भाइयों ने कुछ गलत नहीं कहा है तो क्या अंजु या निशा ने कोई गुस्ताखी की है?’’

‘‘मैं अब अपने ही घर में बोझ हूं, ऐसा दिखाने के लिए किसी को अपनी जबान से कड़वे या तीखे शब्द निकालने की जरूरतनहीं है. लेकिन सब के बदले व्यवहार की वजह से आजकल मैं अपने कमरे में बंद हो कर खून के आंसू बहाती हूं. जिन छोटे भाइयों को मैं ने अपने दिवंगत पिता की जगह ले कर सहारा दिया, आज उन्होंने मुझे पूरी तरह से भुला दिया है. पूरे घर में किसी को भी ध्यान नहीं है कि मैं आज 32 साल की हो गई हूं…

तू भी तो मेरा जन्मदिन भूल गई… अपने दोनों भाइयों का जीवन संवारते और उन की घरगृहस्थी बसातेबसाते मैं कितनी अकेली रह गई हूं.’’

नीता ने उसे गले से लगाया और बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘इंसान से कभीकभी ऐसी भूल हो जाती है कि वह अपने किसी बहुत खास का जन्मदिन याद नहीं रख पाता. मैं तुम्हें शुभकामनाएं देती हूं.’’

उस के गले से लगेलगे सीमा सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा घर नहीं बसा, मैं इस बात की शिकायत नहीं कर रही हूं, नीता. मैं शादी कर लेती तो मेरे दोनों छोटे भाई कभी अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते. शादी न होने का मुझे कोई दुख नहीं है.

‘‘अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवार का हिस्सा बन कर मैं खुशीखुशी जिंदगी गुजार लूंगी, मैं तो ऐसा ही सोचती थी. लेकिन आजकल मैं खुद को बिलकुल अलगथलग व अकेला महसूस करती हूं. कैसे काटूंगी मैं इस घर में अपनी बाकी जिंदगी?’’

‘‘इतनी दुखी और मायूस मत हो, प्लीज. तू ने नवीन और नीरज के लिए जो कुरबानियां दी हैं, उन का बहुत अच्छा फल तुझे मिलेगा, तू देखना.’’

‘‘मैं इन सब के साथ घुलमिल कर जीना…’’

‘‘बस, अब अगर और ज्यादा आंसू बहाएगी तो घर से बाहर निकलने पर तेरी

लाल, सूजी आंखें तुझे तमाशा बना देंगी.

तू उठ कर मुंह धो ले फिर हम घूमने चलते हैं,’’ नीता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खड़ा कर दिया.

‘‘मैं घर वापस जाती हूं. कहीं घूमने जाने का अब मेरा बिलकुल मूड नहीं है.’’

‘‘बेकार की बात मत कर,’’ नीता उसे खींचते हुए गुसलखाने के अंदर धकेल आई.

जब वह 15 मिनट बाद बाहर आई, तो नीता ने उस के एक हाथ में एक नई काली साड़ी, मैचिंग ब्लाउज वगैरह पकड़ा दिया.

‘‘हैप्पी बर्थडे, ये तेरा गिफ्ट है, जो मैं कुछ दिन पहले खरीद लाई थी,’’ नीता की आंखों में शरारत भरी चमक साफ नजर आ रही थी.

‘‘अगर तुझे मेरा गिफ्ट खरीदना याद रहा, तो मुझे जन्मदिन की मुबारकबाद देना कैसे भूल गई?’’ सीमा की आंखों में उलझन के भाव उभरे.

‘‘अरे, मैं भूली नहीं थी. बात यह है कि आज हम सब तुझे एक के बाद एक सरप्राइज देने के मूड में हैं.’’

‘‘इस हम सब में और कौनकौन शामिल है?’’

‘‘उन के नाम सीक्रेट हैं. अब तू फटाफट तैयार हो जा. ठीक 1 बजे हमें कहीं पहुंचना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘उस जगह का नाम भी सीके्रट है.’’

सीमा ने काफी जोर डाला पर नीता ने उसे इन सीक्रेट्स के बारे में और कुछ भी

नहीं बताया. सीमा को अच्छी तरह से तैयार करने में नीता ने उस की पूरी सहायता की. फिर वे दोनों नीता की कार से अप्सरा बैंक्वेट हौल पहुंचे.

‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘मुझ से ऐसे सवाल मत पूछ और सरप्राइज का मजा ले, यार,’’ नीता बहुत खुश और उत्तेजित सी नजर आ रही थी.

उलझन से भरी सीमा ने जब बैंक्वेट हौल में कदम रखा, तो अपने स्वागत में बजी तालियों की तेज आवाज सुन कर वह चौंक पड़ी. पूरा हौल ‘हैप्पी बर्थडे’ के शोर से

गूंज उठा.

मेहमानों की भीड़ में उस के औफिस की खास सहेलियां, नजदीकी रिश्तेदार और

परिचित शामिल थे. उन सब की नजरों का केंद्र बन कर वह बहुत खुश होने के साथसाथ शरमा भी उठी.

सब से आगे खड़े दोनों भाई व भाभियों को देख कर सीमा की आंखों में आंसू छलक आए. अपनी मां के गले से लग कर उस के मन ने गहरी शांति महसूस की.

‘‘ये सब क्या है? इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’ उस की डांट को सुन कर नवीन और नीरज हंस पड़े.

दोनों भाइयों ने उस का एकएक बाजू पकड़ा और मेहमानों की भीड़ में से गुजरते हुए उसे हौल के ठीक बीच में ले आए.

नवीन ने हाथ हवा में उठा कर सब से खामोश होने की अपील की. जब सब चुप

हो गए तो वह ऊंची आवाज में बोला,

‘‘सीमा दीदी सुबह से बहुत खफा हैं. ये सोच रही थीं कि हम इन के जन्मदिन की तारीख भूल गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था. आज हम इन्हें बहुत सारे सरप्राइज देना चाहते हैं.’’

सरप्राइज शब्द सुन कर सीमा की नजरों ने एक तरफ खड़ी नीता को ढूंढ़ निकाला. उस को दूर से घूंसा दिखाते हुए वह हंस पड़ी.

अब ये उसे भलीभांति समझ में आ गया था कि नीता भी इस पार्टी को सरप्राइज बनाने की साजिश में उस के घर वालों के साथ मिली हुई थी.

नवीन रुका तो नीरज ने सीमा का हाथ प्यार से पकड़ कर बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हमारी दीदी ने पापा की आकस्मिक मौत के बाद उन की जगह संभाली और हम दोनों भाइयों की जिंदगी संवारने के लिए अपनी खुशियां व इच्छाएं इन के एहसानों का बदला हम कभी नहीं भूल गईं.’’

‘‘लेकिन हम इन के एहसानों व कुरबानियों को भूले नहीं हैं,’’ नवीन ने फिर

से बोलना शुरू कर दिया, ‘‘कभी ऐसा वक्त था जब पैसे की तंगी के चलते हमारी आदरणीय दीदी को हमारे सुखद भविष्य की खातिर अपने मन को मार कर जीना पड़ रहा था. आज दीदी के कारण हमारे पास बहुत कुछ है.

‘‘और अपनी आज की सुखसमृद्धि को अब हम अपनी दीदी के साथ बांटेंगे.

‘‘मैं ने अपना राजनगर वाला फ्लैट दीदी के नाम कर दिया है,’’ ऊंची आवाज में ये घोषणा करते हुए नवीन ने रजिस्ट्री के कागजों का लिफाफा सीमा के हाथ में पकड़ा दिया.

‘‘और ये दीदी की नई कार की चाबी है. दीदी को उन के जन्मदिन का ये जगमगाता हुआ उपहार निशा और मेरी तरफ से.’’

‘‘और ये 2 लाख रुपए का चैक फ्लैट की जरूरत व सुखसुविधा की चीजें खरीदने

के लिए.

‘‘और ये 2 लाख का चैक दीदी को अपनी व्यक्तिगत खरीदारी करने के लिए.’’

‘‘और ये 5 लाख का चैक हम सब की तरफ से बरात की आवभगत के लिए.

‘‘अब आप लोग ये सोच कर हैरान हो रहे होंगे कि दीदी की शादी कहीं पक्की होने की कोई खबर है नहीं और यहां बरात के स्वागत की बातें हो रही हैं. तो आप सब लोग हमारी एक निवेदन ध्यान से सुन लें. अपनी दीदी का घर इसी साल बसवाने का संकल्प लिया है हम दोनों भाइयों ने. हमारे इस संकल्प को पूरा कराने में आप सब दिल से पूरा सहयोग करें, प्लीज.’’

बहुत भावुक नजर आ रहे नवीन और नीरज ने जब एकसाथ झुक कर सीमा के पैर छुए, तो पूरा हौल एक बार फिर तालियों की आवाज से गूंज उठा.

सीमा की मां अपनी दोनों बहुओं व पोतों के साथ उन के पास आ गईं. अब पूरा परिवार एकदूसरे का मजबूत सहारा बन कर एकसाथ खड़ा हुआ था. सभी की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे.

बहुत दिनों से चली आ रही सीमा के मन की व्याकुलता गायब हो गई. अपने दोनों छोटे भाइयों के बीच खड़ी वह इस वक्त अपने सुखद, सुरक्षित भविष्य के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रही थी.

सुदाम: आखिर क्यों हुआ अनुराधा को अपने फैसले पर पछतावा?

अनुराधा पूरे सप्ताह काफी व्यस्त रही और अब उसे कुछ राहत मिली थी. लेकिन अब उस के दिमाग में अजीबोगरीब खयालों की हलचल मची हुई थी. वह इस दिमागी हलचल से छुटकारा पाना चाहती थी. उस की इसी कोशिश के दौरान उस का बेटा सुदेश आ धमका और बोला, ‘‘मम्मी, कल मुझे स्कूल की ट्रिप में जाना है. जाऊं न?’’

‘‘उहूं ऽऽ,’’ उस ने जरा नाराजगी से जवाब दिया, लेकिन सुदेश चुप नहीं हुआ. वह मम्मी से बोला, ‘‘मम्मी, बोलो न, मैं जाऊं ट्रिप में? मेरी कक्षा के सारे सहपाठी जाने वाले हैं और मैं अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं हूं. अब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ रहा हूं.’’

उस की बड़ीबड़ी आंखें उस के जवाब की प्रतीक्षा करने लगीं. वह बोली, ‘‘हां, अब मेरा बेटा बहुत बड़ा हो गया है और सातवीं कक्षा में पढ़ रहा है,’’ कह कर अनु ने उस के गाल पर हलकी सी चुटकी काटी.

सुदेश को अब अपेक्षित उत्तर मिल गया था और उसी खुशी मे वह बाहर की ओर भागा. ठीक उसी समय उस के दाएं गाल पर गड्ढा दे कर वह अपनी यादों में खोने लगी.

अनु को याद आई सुदेश के पिता संकेत से पहली मुलाकात. जब दोनों की जानपहचान हुई थी, तब संकेत के गाल पर गड्ढा देख कर वह रोमांचित हुई थी. एक बार संकेत ने उस से पूछा था, ‘‘तुम इतनी खूबसूरत हो, गुलाब की कली की तरह खिली हुई और गोरे रंग की हो, फिर मुझ जैसे सांवले को तुम ने कैसे पसंद किया?’’

इस पर अनु नटखट स्वर में हंसतेहंसते उस के दाएं गाल के गड्ढे को छूती हुई बोली थी, ‘‘इस गड्ढे ने मुझे पागल बना दिया है.’’

यह सुनते ही संकेत ने उसे बांहों में भर लिया था. यही थी उन के प्रेम की शुरूआत. दोनों के मातापिता इस शादी के लिए राजी हो गए थे. दोनों ग्रेजुएट थे. वह एक बड़ी फर्म में अकाउंटैंट के पद पर काम कर रहा था. उस फर्म की एक ब्रांच पुणे में भी थी.

दोपहर को अनु घर में अकेली थी. सुदेश 3 दिन के ट्रिप पर बाहर गया हुआ था और इधर क्रिसमस की छुट्टियां थीं. हमेशा घर के ज्यादा काम करने वाली अनु ने अब थोड़ा विश्राम करना चाहा था. अब वह 35 पार कर चुकी थी और पहले जैसी सुडौल नहीं रही थी. थोड़ी सी मोटी लगने लगी थी. लेकिन संकेत के लिए दिल बिलकुल जवान था. वह उस के प्यार में अब भी पागल थी. लेकिन अब उस के प्यार में वह सुगंध महसूस नहीं होती थी.

जब भी वह अकेली होती. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगते. उसे अकसर ऐसा महसूस होता था कि संकेत अब उस से कुछ छिपाने लगा है और वह नजरें मिला कर नहीं बल्कि नजरें चुरा कर बात करता है. पहले हम कितने खुले दिल से बातचीत करते थे, एकदूसरे के प्यार में खो जाते थे. मैं ने उस के पहले प्यार को अब भी अपने दिल के कोने में संभाल कर रखा है. क्या मैं उसे इतनी आसानी से भुला सकती हूं? मेरा दिल संकेत की याद में हमेशा पुणे तक दौड़ कर जाता है लेकिन वह…

उस का दिल बेचैन हो गया और उसे लगा कि अब संकेत को चीख कर बताना चाहिए कि मेरा मन तुम्हारी याद में बेचैन है. अब तुम जरा भी देर न करो और दौड़ कर मेरे पास आओ. मेरा बदन तुम्हारी बांहों में सिमट जाने के लिए तड़प रहा है. कम से कम हमारे लाड़ले के लिए तो आओ, जरा भी देर न करो.

बच्चा छोटा था तब सासूमां साथ में रहती थीं. अनजाने में ही सासूमां की याद में उस की आंखें डबडबा आईं. उसे याद आया जब सुरेश सिर्फ 2 साल का था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उसे नौकरी तो करनी ही थी. ऐसे में संकेत का पुणे तबादला हो गया था.

वे मुंबई जैसे शहर में नए फ्लैट की किस्तें चुकातेचुकाते परेशान थे, लेकिन क्या किया जा सकता था. बच्चे को घर में छोड़ कर औफि जाना उसे बहुत अखरता था, लेकिन सासूमां उसे समझाती थीं, ‘बेटी, परेशान मत हो. ये दिन भी निकल जाएंगे. और बच्चे की तुम जरा भी चिंता मत करो, मैं हूं न उस की देखभाल के लिए. और पुणे भी इतना दूर थोड़े ही है. कभी तुम बच्चे को ले कर वहां चली जाना, कभी वह आ जाएगा.’

सासूमां की यह योजना अनु को बहुत भा गई थी और यह बात उस ने तुरंत संकेत को बता दी थी. फिर कभी वह पुणे जाती तो कभी संकेत मुंबई चला आता. इस तरह यह आवाजाही का सिलसिला चलता रहा. इस दौड़धूप में भी उन्हें मजा आ रहा था.

कुछ दिनों बाद बच्चे का स्कूल जाना शुरू हो गया, तो उस की पढ़ाई में हरज न हो यह सोच कर दोनों की सहमति से उसे पुणे जाना बंद करना पड़ा. संकेत अपनी सुविधा से आता था. इसी बीच उस की सासूमां चल बसीं. उन की तेरही तक संकेत मुंबई  में रहा. तब उस ने अनु को समणया था, ‘अनु, मुझे लगता है तुम बच्चे को ले कर पुणे आ जाओ. वह वहां की स्कूल में पढ़ेगा और तुम भी वहां दूसरी नौकरी के लिए कोशिश कर सकोगी.’

इस प्रस्ताव पर अनु ने गंभीरता से नहीं सोचा था क्योंकि फ्लैट की कई किस्तें अभी चुकानी थीं. उस ने सिर्फ यह किया कि वह अपने बेटे सुरेश को ले कर अपनी सुविधानुसार पुणे चली जाती थी. संकेत दिल खोल कर उस का स्वागत करता था. बच्चे को तो हर पल दुलारता रहता था.

बच्चे की याद में तो उस ने कई रातें जाग कर काटी थीं. वह बेचैनी से करवट बदलबदल कर बच्चे से मिलने के लिए तड़पता था1 उस ने ये सब बातें साफसाफ बता दी थीं, लेकिन अनु ने उसे समणया था, ‘एक बार हमारी किस्तें अदा हो जाएं तो हम इस झंझट से छूट जाएंगे. तुम्हारे अकेलेपन को देख कर मेरा दिल भी रोता है. मेरे साथ तो सुरेश है, रिश्तेदार भी हैं. यहां तुम्हारा तो कोई नहीं. तुम्हें औफिस का काम भी घर ला कर करना पड़ता है, यह जान कर मुझे बहुत दुख होता है. मन तो यही करता है कि तुम जाग कर काम करते हो, तो तुम्हें गरमागरम चाय का कप ला कर दूं, तुम्हारे आसपास मंडराऊं, जिस से तुम्हारी थकावट दूर हो जाए.’

यह सुन कर संकेत का सीना गर्व से फूल जाता था और वह कहता था, ‘तुम मेरे पास नहीं हो फिर भी यादों में तो तुम हमेशा मेरे साथ ही रहती हो.’

अब फ्लैट की सारी किस्तों की अदायगी हो चुकी थी और फ्लैट का मालिकाना हक भी उन्हें मिल चुका था. सुदेश अब सातवीं कक्षा में पढ़ रहा था. उस ने फैसला कर लिया कि अब वह कुछ दिनों के लिए ही सही पुणे में जा कर रहेगी. सरकारी नौकरी के कारण उसे छुट्टी की समस्या तो थी नहीं.

उस ने संकेत को फोन किया दफ्तर के फोन पर, ‘‘हां, मैं बोल रही हूं.’’

‘‘हां, कौन?’’ उधर से पूछा गया.

‘‘ऐसे अनजान बन कर क्यों पूछ रहे हो, क्या तुम ने मेरी आवाज नहीं पहचानी?’’ वह थोड़ा चिड़चिड़ा कर बोली.

‘‘हां तो तुम बोल रही हो, अच्दी हो न? और सुदेश की पढ़ाई कैसे चल रही है?’’ उस के स्वर में जरा शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.

‘‘मैं ने फोन इसलिए किया कि सुदेश

3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ है और मैं भी छुट्टी ले रही हूं. अकेलपन से अब बहुत ऊब गई हूं, इसलिए कल सुबह 10 बजे तक तुम्हारे पास पहुंच रही हूं. क्या तुम मुझे लेने आओगे स्टेशन पर?’’

‘‘तुम्हें इतनी जल्दी क्यों है? शाम तक आओगी तो ठीक रहेगा, क्योंकि फिर मुझे छुट्टी लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

संकेत का रूखापन अनु को समझने में देर नहीं लगी. एक समय उस से मिलने के लिए तड़पने वाला संकेत आज उसे टालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उस के प्यार को दिल में संजोने का पूरा प्रयास भी कर रहा था. दरअसल, अब वह दोहरी मानसिकता से गुजर रहा था.

काफी साल अकेले रहने के कारण इस बीच एक 17-18 साल की लड़की से उसे प्यार हो गया था. वह एक बाल विधवा रिश्तेदार थी. वह उस के यहां काम करती थी. वह काफी समझदार, खूबसूरत और सातवीं कक्षा तक पढ़ीलिखी थी. संकेत के सारे काम वह दिल लगा कर किया करती थी और घर की देखभाल भलीभांति करती थी.

कुछ दिनों बाद संकेत के अनुरोध पर चपरासी चाचा की सहमति से वह उसी घर में रहने लगी थी. फिर जबजब अनु वहां जाती तो उसे अपना पूरा सामान समेट कर चाचा के यहां जा कर रहना पड़ता था. यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा.

अभी अनु के आने की खबर मिलते ही वह परेशान हो गया था और अनु से बात करते वक्त उस की जुबान सूखने लगी थी. अब उसे तुरंत घर जा कर पारू को वहां से हटाना जरूरी था. उसे पारू पर दया आती, क्योंकि जबजब ऐसा होता वह काफी समझदारी से काम लेती. उसे अपने मालिक और मालकिन की परवाह थी, क्योंकि उसे उन का ही आसरा था1 कम उम्र में ही उस ने पूरी गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया था.

शाम को अनु संकेत के साथ घर पहुंची तो रसोईघर से जायकेदार भोजन की खुशबू आ रही थी. इस खुशबू से उस की भूख बढ़ गई और उस ने हंसतेहंसते पूछा, ‘‘वाह, इतना अच्छा खाना बनाना तुम ने कब सीखा?’’

वह भी हंसतेहंसते बोला, ‘‘अपनी नौकरानी अभीअभी खाना बना कर गई है.’’

दूसरे दिन सुबहसुबह पारू आई और दोनों के सामने गरमागरम चाय के 2 कप रखे. चाय की खुशबू से वह तृप्त हो गई. थोड़ी देर बाद वह घर के चारों ओर फैले छोटे से बाग में टहलने लगी. घास का स्पर्श पा कर वह विभोर हो उठी. पेड़पौधों की सोंधी महक ने उस का मन मोह लिया.

अचानक उस का ध्यान एक 6-7 साल के बच्चे की ओर गया. वह वहां अकेला ही लट्टू घुमाने के खेल में खोया हुआ था. धीरेधीरे वह उस की ओर बढ़ी तो वह भागने की कोशिश करने लगा. अनु ने उस की छोटी सी कलाई पकड़ ली और बोली, ‘‘मैं कुछ नहीं करूंगी. ये बताओ तुम्हारा नाम क्या है?’’

वह घबरा गया तो कुछ नहीं बोला और सिर्फ देखता ही रह गया. उस के फूले हुए गाल और बड़ीबड़ी आंखें देख कर अनु को बहुत अच्छा लगा. वह हंस दी तो नादान बालक भी हंसा. उस की हंसी के साथ उस के दाएं गाल का गड्ढा भी मानो उस की ओर देख कर हंसने लगा.

यह देख कर उस का दिल दहल गया क्योंकि वह बच्चा बिलकुल संकेत की तरह दिख रहा था. ऐसा लगा कि संकेत का मिनी संस्करण उस के समाने खड़ा हो गया हो. वह दहलीज पर बैठ गई. उसे लगा कि अब आसमान टूट कर उसी पर गिरेगा और वह खत्म हो जाएगी. एक अनजाने डर से उस का दिल धड़कने लगा. उस का गला सूख गया और सुबह की ठंडीठंडी बयार में भी वह पसीने से तर हो गई. उस की इस स्थिति को वह नन्हा बच्चा समझ नहीं पाया.

‘‘क्या, अब मैं जाऊं?’’ उस ने पूछा.

इस पर अनु ने ठंडे दिल से पूछा, ‘‘तुम कहां रहते हो?’’

वह बोला, ‘‘मैं तो यहीं रहता हूं, लेकिन कल शाम को मैं और मेरी मां चाचा के घर चले गए. सुबह मैं मां के साथ आया तो मां बोलीं, बाहर बगीचे में ही खेलना, घर में मत आना.’’

बोझिल मन से उस ने उस मासूम बच्चे को पास ले कर उस के दाएं गाल के गड्ढे को हलके से चूमा. अब उसे मालूम हुआ कि पारू उस की खातिरदारी इतनी मगन हो कर क्यों करती है, उस की पसंद के व्यंजन क्यों बनाती है.

उसे संकेत के अनुरोध और विनती याद आने लगी, ‘‘हम सब एकसाथ रहेंगे. तुम्हारी और सुरेश की मुझे बहुत याद आती है.’’

लगता है मुझे उस समय उस की बात मान लेनी चाहिए थी. लेकिन मैं ने ऐसा क्या किया? मेरी गलती क्या है? मैं ने भी खुद के लिए नहीं बल्कि अपने परिवार के लिए नौकरी की. वह पुरुष है, इसलिए उस ने ऐसा बरताव किया. उस की जगह अगर मैं होती और ऐसा करती तो? क्या समाज व मेरा पति मुझे माफ कर देता? यहां कुदरत का कानून तो सब के लिए एक जैसा ही है. स्त्रीपुरुष दोनों में सैक्स की भावना एक जैसी होती है, तो उस पर काबू पाने की जिम्मेदारी सिर्फ स्त्री पर ही क्यों?

कहा जाता है कि आज की स्त्री बंधनों से मुक्त है, तो फिर वह बंधनों का पालन क्यों करती है? हम स्त्रियों को बचपन से ही माताएं सिखाती हैं इज्जत सब से बड़ी दौलत होती है, लेकिन उस दौलत को संभालने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ स्त्रियों की है?

यह सब सोचते हुए उस के आंसू वह निकले तो उस ने अपने आंचल से पोंछ डाले. उसे रोता देख कर वह बच्चा फिर डर कर भागने की कोशिश करने लगा, तो अनु जरा संभल गई. उस ने उस मासूम बच्चे को अपने पास बिठा लिया और कांपते स्वर में बोली, ‘‘बेटा, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, लेकिन तुम ने अब तक अपना नाम नहीं बताया? अब बताओ क्या नाम है तुम्हारा?’’

अब वह बच्चा निडर बन गया था, क्योंकि उसे अब थोड़ा धीरज जो मिल गया था. वह मीठीमीठी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘सुदाम.’’ और फिर बगीचे में लट्टू से खेलने लगा.

Raksha Bandhan: कच्ची धूप-कैसे हुआ सुधा को गलती का एहसास

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कासनी का फूल: भाग 4- अभिषेक चित्रा से बदला क्यों लेना चाहता था

चित्रा के मनमस्तिष्क में अनवरत अभिषेक और ईशान के बीच के अंतर की सोच जारी थी. चैल में दुनिया का सब से ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड देखते हुए चारों ओर का नयनाभिराम दृश्य चित्रा को ईशान के खुशदिल व्यक्तित्व सा लग रहा था तो वाइल्ड लाइफ सैचुरी देखते हुए जंगली जानवर अभिषेक का व्यवहार याद दिला रहे थे. जिस प्रकार ईशान पूरे मनोयोग से उसे स्थानस्थान पर ले जाते हुए विस्तृत जानकारी दे रहा था, वैसी आशा तो वह अभिषेक से कर ही नहीं सकती थी. जानकारी अभिषेक को भी थी लेकिन वह चित्रा से ज्यादा बातचीत करने और कुछ भी समझनेसमझने के चक्कर में नहीं पड़ता था. ईशान बारबार पूछ रहा था कि वह थक तो नहीं गई?

चाहती हूं.’’

‘‘मैं सुनना चाहता हूं, चिकोरी.’’

‘‘दिल जो न कह सका, वही राज ए दिल कहने की रात आई…’’

‘‘कितना रोमाटिक सौंग है. मुझे याद है मीना कुमारी पर फिल्माया गया है. तुम्हें बोल याद हैं तो अंतरा भी सुनाओ न,’’ ईशान ने आग्रह किया.

‘‘नगमा सा कोई जाग उठा बदन में, झंकार की सी थरथरी है तन में…’’ चित्रा की मीठी आवाज में नशा घुल रहा था. आकंठ प्रेम में डूबे उस के मादक स्वरों में ईशान भी डूबता चला गया.

चित्रा ने कमरे में जल रही खुशबूदार मोमबत्ती बुझ दी. जगमग रोशनी से डर कर नहीं, न ही उस की खुशबू से दूर भगाने का. आज वह बाहर से आ रही चांद, सितारों की रोशनी में उस रात को जीना चाहती थी जो उस के जीवन में कभी आई ही नहीं थी. ईशान के तन से आती हुई उस महक में डूब जाना चाहती थी जो उसे उन्मादी बनाए जा रही थी.

ईशान की बरसों पुरानी कल्पनाएं आज की रात साकार हो रही थीं. इस मिलन के साक्षी बनने आसमान के तारे जुगनुओं के रूप में धरती पर उतर आए थे. चांद भी नदी में झिलमला कर मुबारकबाद दे रहा था.

अगली सुबह वे वापस अपने ठिकानों पर आ गए. मिलनाजुलना अब बढ़ गया था. ईशान प्राय रात में रैस्टोरैंट से सीधा चित्रा के पास आ जाता. अचानक मिली इस खुशी ने चित्रा की झोली में एक और खुशी डाल दी. उसे पता लगा कि ईशान का अंश उस में पलने लगा है.

उस दिन यह सुखद समाचार वह ईशान के साथ साझ करने वाली थी. ईशान ने आते ही प्रश्न कर दिया, ‘‘चिकोरी, अगर मैं कुछ समय तुम से दूर रहूं तो सह लोगी?’’

‘‘मतलब? कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां कहोगी तो ही जाऊंगा. कनाडा में एक इंस्टिट्यूट स्मौल बिजनैस करने वालों को 6-7 महीने की ट्रेनिंग देता है. इस बार मेरा नाम लिस्ट में आ गया है. वहां ट्रेनिंग लेने वालों को अपने छोटे व्यवसाय से जुड़ी किसी खास योजना पर प्रोजैक्ट तैयार कर दिखाना होता है. जो उन को पसंद आ जाता है उसे फैलोशिप के नाम से बड़ी रकम देते हैं बिजनैस में लगाने को. मैं अपने रैस्टोरैंट को बढ़ा कर एक होटल का रूप देना चाहता हूं. कासनी के फूल के थीम पर पूरा इंटीरियर होगा. बहुत कुछ और भी सोच रहा हूं जैसे सलाद के रूप में कासनी की पंखुडि़यों का इस्तेमाल कम लोग जानते हैं. इसे बड़े स्तर पर लाना और ऐसे ही अन्य उपयोग भी. इसी पर होगा मेरा प्रोजैक्ट.’’

‘‘वाह, इस मौके को हाथ से जाने मत देना. मैं सोच रही हूं कि अपनी जौब छोड़ दूं. तुम्हारे जाने के बाद रैस्टोरैंट की देखभाल कर लूंगी. यह ठीक से चलता रहेगा तभी तो होटल का रूप ले पाएगा भविष्य में,’’ चित्रा ने अपनी प्रैगनैंसी की बात नहीं बताई. जानती थी कि पता लगा तो ईशान विदेश नहीं जाएगा.

ईशान चला गया. चित्रा ने अपना पूरा ध्यान ईशान के व्यवसाय को संभालने में लगा दिया. अपने घर में कह दिया कि वह विदेश जा रही है ताकि कोई उस से मिलने न आ जाए और होने वाले बच्चे को ले कर हंगामा न हो जाए.

दोनों का परिश्रम और त्याग रंग लाया. ईशान का प्रोजैक्ट चुन लिया गया. 25 लाख की धनराशि मिली. वापस लौटा तो होने वाली संतान के विषय में जान कर अचंभित हो गया.

‘‘तुम ने मेरे लिए कितना बड़ा त्याग किया, चिकोरी, इस से पहले यह बच्चा दुनिया में आए हम कोर्ट मैरिज कर लेते हैं, घर पर सब को यही कहेंगे कि हम ने मेरे कनाडा जाने से पहले शादी कर ली थी,’’ ईशान भावुक हो रहा था.

‘‘तुम आराम से सोच लेना, ईशान. मेरे कारण तुम्हें अपमानित न होना पड़े. मेरी वजह से ?ाठ का सहारा लेना पड़ रहा है तुम्हें.’’

‘‘चिकोरी, 7 फेरों का नाम ही विवाह होता है क्या? मैं ने तो साधुपुल में बिताई रात के बाद ही पत्नी मान लिया था तुम्हें. कनाडा जा कर अपना सपना पूरा करने में मुझे तुम्हारा कितना सहयोग मिला मैं बता नहीं सकता. एकदूसरे के सुखदुख में साथ देने वाले हम क्या पतिपत्नी नहीं हैं? झूठ नहीं है इस में कुछ. भी,’’ ईशान ने चित्रा को गले से लगा लिया.

चित्रा को अचानक याद आया जब अभिषेक और वह इंदौर में ही घूमने गए थे. अभिषेक जल्दबाजी में एक के बाद एक कई जगह ले कर जा रहा था उसे. चित्रा के यह कहने पर कि हम छुट्टी वाले दिन आ कर आराम से एक दिन में एक जगह देखेंगे, अभिषेक भड़क उठा था, ‘‘मेरे पास तुम्हें घुमाने के सिवा और भी काम हैं. तुम्हारे कहने पर ही आया हूं आज वरना मैं तो दोस्तों के साथ कई बार आ चुका हूं इन जगहों पर.’’

सब याद कर चित्रा का मुंह कसैला होने लगा, किंतु कुछ देर बाद वह ईशान के मधुर व्यवहार में खो गई. साथसाथ घूमते हुए समय का पता ही नहीं लगा. शाम हो रही थी.

‘‘अब वापस चलें होटल? कल साधुपुल आएंगे. घूमने के बाद वहां रात को कैंपिंग करेंगे. परसों घर वापसी,’’ ईशान ने आगे के कार्यक्रम की जानकारी देते हुए कहा.

वापस होटल जा कर रात बिताने की कल्पना से चित्रा को अचानक दहशत होने लगी. वही जगमगती रोशनी, खुशबू और एक पुरुष. कैंप में शायद होटल सी चकाचौंध न हो, सोचते हुए वह बोली, ‘‘ईशान,क्या आज की रात हम साधुपुल के कैंप में नहीं बिता सकते?’’

‘‘साधुपुल यहां से दूर है. मेन रोड से नदी के किनारे तक जाने वाली सड़क ढलवां है. वहां से हट्स और कैंप्स तक पहुंचने का रास्ता कच्चा है, पैदल जाना पड़ेगा. कार बीच में कहीं लगानी पड़ेगी. अभी जाएंगे तो वहां तक पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. ऐसे में कल सुबह चलना ठीक रहेगा,’’ ईशान ने अभी चलने की मुश्किल बताई तो चित्रा के पास होटल वापस जाने के अलावा कोई उपाय न था.

डिनर के बाद वे कमरे में पहुंचे. चित्रा कपड़े बदलने बाथरूम में चली गई. बाहर आई तो जगमग रोशनी और कमरे में फैली रूमफ्रैशनर की सुगंध ने उसे झकझरना शुरू ही किया था कि बैड पर बैठे ईशान पर निगाहें ठहर गईं. ईशान दोनों हाथों से कासनी के फूलों का बड़ा सा बुके पकड़े हुए चित्रा को स्नेहसिक्त दृष्टि से देख रहा था. चित्रा सुधबुध खो कर बैड तक पहुंची. कासनी का रंग ईशान की आंखों में भी झिलमिला रहा था.

‘‘यह कहां से कब ले लिया?’’ चित्रा हैरानी से अपनी हथेलियां गालों पर रख कभी ईशान को तो कभी कासनी के पुष्पगुच्छ को निहार रही थी.

‘‘रास्ते में जहां चाय पीने रुके थे उस के पास ही है फूलों की बड़ी सी दुकान. मैं उन से खास मौकों पर रैस्टोरैंट की सजावट के लिए फूल मंगवाता रहता हूं. 2 दिन पहले ही फोन कर और्डर दे दिया था बुके का क्योंकि कासनी के फूल सब जगह नहीं मिलते. हम जब चाय पी रहे थे वह कार में रख गया था यह बुके,’’ ईशान ने अपने सरप्राइज का राज खोला.

‘‘ईशान आज तुम्हारे हाथों में कासनी के नीले फूल नहीं वह आसमान है जहां मैं पंख फैला कर उड़ना चाहती हूं, यह गुलदस्ता नहीं तुम्हारे एहसासों का नीला सागर है जिस की गहराई तक मैं कभी पहुंच नहीं सकती. इस तोहफे के लिए शुक्रिया कहना इस का अपमान होगा,’’ चित्रा भावविभोर थी. एकाएक उसे कमरे में फैली रोशनी की चकाचौंध ईशान के प्रेम की चमक सी लगने लगी, रूमफ्रैशनर की महक में कासनी के फूलों की सुगंध घुल गई. बुके हाथ में लिएलिए ही वह ईशान के गले लग गई.

उसे बेसाखता चूमते हुए चित्रा फफकफफक कर रो पड़ी, ‘‘हम पहले क्यों नहीं

मिले ईशान? मेरे साथ तब वह सब तो नहीं होता जो हुआ.’’

ईशान ने उसे बैड पर लिटा कर प्यार से सहलाया, पानी पिलाया फिर बोला, ‘‘बताओमु?ो क्याक्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

चित्रा ने चंदनदास की करतूत, उस कारण अभिषेक से संबंध न बना पाने का सच और नतीजतन अभिषेक की बेरुखी और नाराजगी सबकुछ एकएक कर ईशान को बता दिया. चित्रा की आपबीती ईशान की कल्पना से बाहर थी. चित्रा के आंसुओं ने उस के चेहरे को भिगो दिया और ईशान के मन को भी.

 

मन के तहखाने-भाग 3: अवनी के साथ ससुराल वाले गलत व्यवहार क्यों करते थे

पूरब को उस की खामोशी अच्छी नहीं लग रही थी पर वह कुछ कह कर उस के मन को दुखी नहीं करना चाहता था. सारी स्थिति को स्वयं ही संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘मौसी, आप का बेटा हमें भी बहुत पसंद है. अब आप आज्ञा दें तो शगुन दे कर इसे अपना बना लें.’’

मौसी ने तुरंत कहा, ‘‘यह तुम्हारा ही है पूरब.’’

प्रसन्नचित्त पूरब रसोई में जा कर श्रावणी से बोली, ‘‘श्रावी, चलो अपनी बेटी के शगुन की रस्म पूरी करो. तुम्हें ही मां और चाची का फर्ज निभाना है.’’

श्रावणी कुछ कहने जा रही थी पर उसी समय विविधा आ गई तो उस ने मन की बात बाहर नहीं निकाली. विविधा आते ही श्रावणी से लिपट गई. बोली, ‘‘हाय मम्मी, अवनी दी अब हमें छोड़ कर चली जाएंगी…’’

श्रावणी के मन में अचानक कुछ घनघना उठा. इतने वर्षों से इस घर का हर काम अवनी ने ही संभाला हुआ था. अब क्या होगा, कैसे होगा? श्रावणी ने विविधा और पूरब को देखा. वह बोला, ‘‘विवू ठीक कह रही है. बहुत थोड़ा समय है जिस में हमें अवि को जी भर कर लाड़ देना है.’’

पूरब जैसे ही घूमा देखा द्वार पर अवनी खड़ी थी और उस के आंसू झरने लगे थे.

‘‘बाहर क्यों खड़ी है, चल अंदर आ जा,’’ अचानक श्रावणी ने कहा. वह सुबकती हुई आई तो श्रावणी ने आंचल से उस के आंसू पोंछ डाले.

‘‘आज तो खुशी का दिन है, फिर रो क्यों रही है?’’

अवनी उन के गले से लग गई तो धीरेधीरे श्रावणी ने भी उसे बांहों में भर लिया.

‘‘चुप हो जा और विवू इसे अच्छी सी साड़ी पहना कर तैयार कर. हम अनिकेत के टीके की थाली बना रहे हैं.’’

पूरब जा चुका था. विविधा अवि को ले कर चली तो अचानक श्रावणी ने कहा, ‘‘बेटा अवि, मेरी किसी बात का दुख न मनाना. मैं तो हूं ही पगली. कभी यह भी नहीं सोचा, यह तो पराया धन है, इसे जी भर कर प्यार कर लूं.’’

‘‘नहीं चाची, आप तो हमें घरगृहस्थी के योग्य बनाना चाहती थीं. यह तो मातापिता ही सिखाते हैं.’’

श्रावणी ने भरी आंखों से उसे देखा. एकदम अपनी मां जैसी सादगी से भरी हुई. अवनी चली गई तो श्रावणी जल्दीजल्दी थाली सजाने लगी. उस के हाथ तीव्रता से चल रहे थे और उसी रफ्तार से वह सोच में डूब गई थी. आखिर वह इतने दिनों से किस से चिढ़ रही थी. उस जेठानी से, जिस ने सदा उसे छोटी बहन माना. यह क्रोध क्या उसे इसलिए सताता रहा कि सास क्यों जेठानी को अधिक प्यार करती थीं या इसलिए कि वह क्यों नहीं उन की तरह समर्थ थी? तो फिर क्यों अवनी को भी उसी क्रोध का शिकार बना डाला?

मन के बवंडर को संभालते हुए वह टीके की थाली ले कर बाहर आ गई. विविधा भी तब तक अवनी को ले कर आ गई थी. सुनहरे बौर्डर वाली लाल जरीदार साड़ी में अवनी एकदम राजकुमारी लग रही थी. मौसी ने उसे अपनी बगल में बैठा लिया और लाड़ से उसे देखते हुए शनील का डब्बा खोल कर सुंदर सा हार उस के गले में पहना दिया.

माथे पर रोली का टीका लगा कर बोलीं, ‘‘श्रावणी, तुम्हारी बेटी अब हमारी हुई.’’

श्रावणी का मन धक से रह गया. एक बार फिर वह किसी अपने को खोने जा रही थी तो क्यों नहीं उसे कभी जी भर कर प्यार कर पाई?

श्रावणी देर से जिस बवंडर से जूझ रही थी. वह आखिर बांध तोड़ कर बह निकला, ‘‘बहुत भोली है हमारी बेटी, इसे…’’

‘‘इसे हम बहू नहीं बेटी बना कर रखेंगे श्रावणी,’’ मौसी ने बीच में ही टोक दिया.

अवनी ने पलकें उठा कर रोती हुई चाची को देखा तो उस का मन भी भर आया. श्रावणी अनिकेत को टीका करने लगी तो उस ने कहा, ‘‘आप से वादा करता हूं, इन्हें कभी मायके की कमी महसूस नहीं होने देंगे.’’

अवनी को लग रहा था, जैसे वह कोई स्वप्न देख रही हो. आखिर इतना प्यार चाची ने कहां छुपा रखा था और क्यों छुपा रखा था?

जाने कितने द्वंद्व श्रावणी के अंतरमन में छुपे हुए थे, जो बूंदबूंद बन कर रिसने लगे थे. अवनी ने देखा और उन के गले से लग गई. एक कांपता सा रुदन उस के कंठ से भी फूट निकला था, ‘‘छोटी मां…’’

श्रावणी के स्वर गायब से हो चुके थे, फिर भी लरजती ध्वनि से कह गई, ‘‘क्षमा कर देना मेरी बच्ची.’’

अवनी के आंसुओं से उस का कंधा भीग गया था और अवनी अस्फुट स्वरों में फुसफुसा रही थी, ‘‘मां कभी क्षमा नहीं मांगती है, बस आशीर्वाद देती है.’’

अवनी के ये अस्फुट शब्द श्रावणी के अंतरमन को हुलसाते चले गए थे. यह कैसा मधुर सा एहसास था, किसी को अपना पूरी तरह बना लेने का. काश, मन के दरवाजे बहुत पहले ही खोल दिए होते. उस ने प्रफुल्लित मन से अवनी का माथा चूम लिया था.

तीज स्पेशल: लाइफ पार्टनर- क्या थी अवनि के अजीब व्यवहार की वजह?

अवनि की शादी को लगभग चार महीने बीत चुके थे, परंतु अवनि अब तक अभिजीत को ना मन से और ना ही‌ तन‌ से‌ स्वीकार कर पाई थी. अभिजीत ने भी इतने दिनों में ना कभी पति होने का अधिकार जताया और ना ही अवनि को पाने की चेष्टा की. दोंनो एक ही छत में ऐसे रहते जैसे रूम पार्टनर .

अवनि की परवरिश मुंबई जैसे महानगर में खुले माहौल में हुई थी.वह स्वतंत्र उन्मुक्त मार्डन विचारों वाली आज की वर्किंग वुमन (working woman) थी. वो चाहती थी कि उसकी शादी उस लड़के से हो जिससे वो प्यार करे.अवनि शादी से पहले प्यार के बंधन में बंधना चाहती थी और फिर उसके बाद शादी के बंधन में, लेकिन ऐसा हो ना सका.

अवनि जिसके संग प्यार के बंधन में बंधी और जिस पर उसने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, वो अमोल उसका लाइफ पार्टनर ना बन सका लेकिन अवनि को इस बात का ग़म ना था.उसे इस बात की फ़िक्र थी कि अब वो अमोल के संग अपना संबंध बिंदास ना रख पाएगी.वो चाहती थी कि अमोल के संग उसका शारीरिक संबंध शादी के बाद भी ऐसा ही बना रहे.इसके लिए अमोल भी तैयार था.

अवनि अब तक भूली‌ नही ‌अमोल से उसकी वो पहली मुलाकात.दोनों ऑफिस कैंटीन में मिले थे.अमोल को देखते ही अवनि की आंखों में चमक आ गई थी.उसके बिखरे बाल, ब्लू जींस और उस पर व्हाईट शर्ट में अमोल किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था.उसके बात करने का अंदाज ऐसा था कि अवनि उसे अपलक निहारती रह गई थी. उसे love at first sight वाली बात सच लगने लगी. सुरभि ने दोनों का परिचय करवाया था.

अवनि और अमोल ऑफिस के सिलसिले में एक दूसरे से मिलते थे.धीरे धीरे दोनों में दोस्ती हो गई और कब दोस्ती प्यार में बदल गई पता ही नही चला.प्यार का खुमार दोनों में ऐसा ‌चढ़ा की सारी मर्यादाएं लांघ दी गई.

अमोल  इस बात से खुश था की अवनि जैसी खुबसूरत लड़की उसके मुठ्ठी में है‌ और अवनि को भी इस खेल में मज़ा आ रहा  था.मस्ती में चूर अविन यह भूल ग‌ई कि उसे पिछले महीने पिरियड नहीं आया है जब उसे होश आया तो उसके होश उड़ गए.वो ऑफिस से फौरन लेडी डॉक्टर के पास ग‌ई. उसका शक सही निकला,वो प्रेग्नेंट थी.

अवनि ने हास्पिटल से अमोल को फोन किया पर अमोल का फोन मूव्ड आउट आफ कवरेज एरिया बता रहा था.अवनि घर आ गई.वो सारी रात बेचैन रही. सुबह ऑफिस पहुंचते ही वो अमोल के सेक्शन में ग‌ई जहां सुरभि ने उसे बताया कि अमोल तो कल‌ ही अपने गांव के लिए निकल गया.उसकी पत्नी का डीलीवरी होने वाला है,यह सुनते ही अवनि के चेहरे का रंग उड़ गया.अमोल ने उसे कभी बताया नहीं कि वो शादीशुदा है. इस बीच अवनि के आई – बाबा ने अभिजीत से अवनि की शादी तय कर दी.अवनि यह शादी नहीं करना चाहती थी.

पंद्रह दिनों बाद अमोल के लौटते ही अवनि उसे सारी बातें बताती हुई बोली-“अमोल मैं किसी और से शादी नहीं करना चाहती तुम अपने बीबी,बच्चे को छोड़ मेरे पास आ जाओ हम साथ रहेंगे ”

अमोल इसके लिए तैयार नही हुआ और अवनि को पुचकारते हुए बोला-“अवनि तुम  एबार्शन करा लो और जहां तुम्हारे आई बाबा चाहते हैं वहां तुम शादी कर लो और बाद में तुम कुछ ऐसा करना कि कुछ महीनों में वो तुम्हें  तलाक दे दे और फिर हमारा संबध यूं ही बना रहेगा”.

अवनि मान गई और उसने अभिजीत से शादी कर ली.शादी के बाद जब अभिजीत ने सुहाग सेज पर अवनि के होंठों पर अपने प्यार का मुहर लगाना‌ चाहा तो अवनि ने उसी रात अपना मंतव्य साफ कर दिया कि जब ‌तक वो अभिजीत को दिल से स्वीकार नही कर लेती, उसके लिए उसे शरीर से स्वीकार कर पाना संभव नही होगा.उस दिन से अभिजीत ने अविन‌ को कभी छूने का प्रयास नही किया.केवल दूर से उसे देखता.ऐसा नही था की अभिजीत देखने में बुरा था.अवनि जितनी खूबसूरत ‌थी.अभिजीत उतना ही सुडौल और आकर्षक व्यक्तित्व का था.

अभिजीत वैसे तो माहराष्ट्र के जलगांव जिले का रहने वाला था,लेकिन अपनी नौकरी के चलते नासिक में रह रहा था.शादी के ‌बाद अवनि को भी अपना ट्रांसफर नासिक के ब्रान्च ऑफिस में परिवार वालों और अमोल  के कहने पर करवाना पड़ा.अमोल ने वादा किया था कि वो नासिक आता रहेगा.अवनि के नासिक‌ पहुंचने की दूसरी सुबह,अभिजीत ने चाय‌ बनाने से पहले अवनि से कहा-” मैं चाय बनाने जा रहा हूं क्या तुम चाय पीना पसंद करोगी .

अवनि ने बेरुखी से जवाब दिया-“तुम्हें तकल्लुफ करने की कोई जरुरत नहीं.मैं अपना ध्यान स्वयं रख सकती हूं.मुझे क्या खाना‌ है,पीना है ,ये मैं खुद देख लुंगी”.

अवनि के ऐसा कहने पर अभिजीत वहां से बिना कुछ कहे चला गया.दोनों एक ही छत में ‌रहते हुए एक दूसरे से अलग ‌अपनी‌ अपनी‌ दुनिया में मस्त थे.

शहर और ऑफिस दोनों ही न‌ए होने की वजह से अवनि ‌अब तक ज्यादा किसी से घुलमिल नहीं पाई थी.ऑफिस का काम और ऑफिस के लोगों को समझने में अभी उसे  थोड़ा वक्त चाहिए था.अभिजीत और अवनि दोनों ही सुबह अपने अपने ऑफिस के लिए निकल जाते और देर रात घर लौटते.सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना दोनों अपने ऑफिस कैंटीन में खा लेते.केवल रात का खाना ही घर पर बनता.दोंनो में से जो पहले घर पहुंचता खाना बनाने की जिम्मेदारी उसकी होती.ऑफिस से आने के बाद अवनि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर देती या फिर अपनी क्लोज  फ्रैंड सुरभि को,जो उसकी हमराज भी थी और अभिजीत को अवनि का room partner संबोधित किया करती थी. अभिजीत अक्सर न्यूज या फिर  एक्शन-थ्रिलर फिल्में देखते हुए बिताता.

अवनि और अभिजीत दोनों मनमौजी की तरह अपनी जिंदगी अपने-अपने ढंग से जी रहे थे, तभी अचानक एक दिन अवनि का पैर बाथरूम में फिसल गया और उसके पैर में मोच आ गई. दर्द इतना था ‌कि अवनि के लिए हिलना डुलना मुश्किल हो गया. डॉक्टर ने अवनि को पेन किलर और कुछ दवाईयां दी साथ में पैर पर मालिस करने के लिए लोशन भी, साथ ही यह हिदायत भी दी कि वो दो चार दिन घर पर ही रहे और ज्यादा चलने फिरने से बचे.

अवनि को इस हाल में देख अभिजीत ने भी अवनि के साथ अपने ‌ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली और पूरे दिन अवनि की देखभाल करने लगा.उसकी हर जरूरतों का पूरा ध्यान रखता.अवनि के मना करने के बावजूद दिन में दो बार उसके पैरों की मालिश करता.अभिजीत जब उसे छूता ‌अवनि को अमोल के संग बिताए अपने अंतरंग पलों की याद ताज़ा हो जाती और वो रोमांचित हो उठती.अभिजीत भी तड़प उठता लेकिन फिर संयम रखते हुए अवनि से दूर हो जाता.अभिजीत सारा दिन अवनि को खुश रखने का प्रयास करता उसे हंसाता उसका दिल बहलाता.

इन चार दिनों में अवनि ने यह महसूस किया की अभिजीत देखने में जितना सुंदर है उससे कहीं ज्यादा खुबसूरत उसका दिल है.वो अमोल से ज्यादा उसका ख्याल रखता है. अभिजीत ने अपने सभी जरूरी काम स्थगित कर दिए थे.इस वक्त अवनि ही अभिजीत की प्रथमिकता थी. इन्हीं सब के बीच ना जाने कब अवनि के मन में अभिजीत के लिए प्रेम का पुष्प पुलकित होने लगा पर इस बात ‌से अभिजीत बेखबर था.

अवनि अब ठीक हो चुकी थी.एक हफ्ते गुजरने को थे.अवनि अपने दिल की बात  कहना चाहती थी, लेकिन कह‌ नही पा रही थी.अवनि चाहती थी अभिजीत उसके करीब आए उसे छूएं लेकिन अभिजीत भूले से भी उसे हाथ नहीं लगाता बस ललचाई आंखों से उसकी ओर देखता.एक सुबह मौका पा अवनि, अभिजीत से बोली-“मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं”

” हां कहो,क्या कहना है ?”अभिजीत न्यूज पेपर पर आंखें गढ़ाए अवनि की ओर देखे बगैर ही बोला.

अवनि गुस्से में अभिजीत के हाथों से न्यूज पेपर छीन उसके दोनों बाजुओं को पकड़ अपने होंठ उसके होंठों के एकदम करीब ले जा कर जहां दोनों को एक-दूसरे की गर्म सांसें महसूस होने लगी अवनि बोली-“मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं मुझे तुम से प्यार हो गया है”.

यह सुनते ही अभिजीत ने अवनि को अपनी बाहों में भर लिया और बोला-“तुम मुझे अब प्यार करने लगी हो,मैं तुम्हें उस दिन से प्यार करता हूं जिस दिन से तुम मेरी जिंदगी में आई हो और तब से तुम्हें पाने के लिए बेताब हूं. तभी अचानक अवनि का मोबाइल बजा.फोन पर सुरभि थी.हाल चाल पूछने के बाद सुरभि ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा-“and what about your room partner”

यह सुनते ही अवनि गम्भीर स्वर में बोली- “No सुरभि he is not my room partner.now he is my life partner”.

ऐसा कह अवनि अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर सब कुछ भूल अभिजीत की बाहों में समा गई.

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