‘‘इन से मिलिए, यह मेरे विभाग के वरिष्ठ अफसर राजकुमारजी हैं. जब से यह आए हैं स्वास्थ्य विभाग का कामकाज बहुत तेजी से हो रहा है. किसी भी फाइल को 24 घंटे के अंदर निबटा देते हैं,’’ स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल ने राजकुमार का परिचय अपनी पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रामचंद्रजी से कराया.
रामचंद्र ने एक उड़ती नजर राजकुमार पर डाली और बोले, ‘‘आप के विभाग में मेरे इलाके के कई डाक्टर हैं जिन के बारे में मुझे आप से बात करनी है. मैं अपने सचिव को बता दूंगा. वह आप से मिल लेगा. आप जरा उन पर ध्यान दीजिएगा.’’
राजकुमार का अधिकारी वर्ग में अच्छा नाम था. वह केवल कार्यकुशल ही नहीं थे बल्कि फैसले भी समझदारी के साथ लेते थे. फाइलों को दबा कर रखना उन के उसूल के खिलाफ था. फैसला किस के हक में हो रहा है, इस बात पर वह ज्यादा माथापच्ची नहीं करते थे. हां, किसी के साथ पक्षपात नहीं करते थे चूंकि दबंग व्यक्तित्व के थे. इसलिए राजनीतिक दखल को सहन नहीं करते थे. आम व्यक्ति उन की कार्य प्रणाली से संतुष्ट था.
मोहनलाल पहली बार मंत्री बने थे. उन्हें राजकुमार की कार्यशैली का अनुभव नहीं था. उन्होंने जो फाइलों में देखा या दूसरे अधिकारियों व आम लोगों से सुना, उसी के आधार पर मंत्रीजी राजकुमार से बेहद प्रभावित थे. यह और बात है कि मंत्री आमतौर पर जो चाहते हैं वही करवाने की अपने अधिकारियों से उम्मीद करते हैं, चाहे वह नियम के खिलाफ ही क्यों न हो.
मंत्री रामचंद्र के सचिव मुरली मनोहर ने राजकुमार से फोन पर संपर्क किया और बोले, ‘‘कहो भाई, कैसा चल रहा है तुम्हारे विभाग का काम? मेरे विभाग के मंत्री रामचंद्र तुम्हारी बड़ी तारीफ कर रहे थे. उन के इलाके के कुछ डाक्टर 4-5 साल पहले दुबई नौकरी करने चले गए थे. लगता है जाने से पहले उन्होंने सरकार से कोई मंजूरी नहीं ली थी और वहां नौकरी कर ली थी. अब वे पैसा कमा कर भारत लौट आए हैं. वह इस गैरहाजिरी के समय को छुट्टी मनवा कर वापस नौकरी पर आना चाहते हैं. उन सब की फाइलें तुम्हारे पास हैं, क्या विचार है? मैं मंत्रीजी से क्या कहूं?’’
राजकुमार ने शांति से मगर दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘ऐसे डाक्टरों की तादाद बहुत ज्यादा है और इस बात को उन्होंने मौखिक रूप से स्वीकार भी किया है, लेकिन अपने लिखित पत्र में मातापिता की लंबी बीमारी या उन के देहांत का बहाना बना कर छुट्टी मंजूर करने की प्रार्थना की है. समस्या यह है कि उन की गैरहाजिरी के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने दूसरे डाक्टरों की नियुक्ति कर दी थी. अब उन्हें हटा कर इन्हें वापस लेने का कोई औचित्य नहीं है. ऐसे डाक्टरों पर विभागीय जांच भी चल रही है. ऐसे में इन्हें वापस नौकरी पर लेना मुमकिन नहीं है. मेरी स्वास्थ्य मंत्री से इस बारे में बात हुई है. आप अपने मंत्री को हमारी इस बातचीत से अवगत करा सकते हैं.’’
स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल को जब इस बात का पता चला तो वह तिलमिला उठे. फौरन राजकुमार को बुला कर कहने लगे, ‘‘आप मंत्री रामचंद्रजी के बारे में कुछ जानते भी हैं. वह मेरे आराध्य हैं. उन्हीं की मदद से मैं मंत्री बन पाया हूं. यदि उन का यह छोटा सा काम नहीं हुआ तो वह मुझ से नाराज हो जाएंगे. हो सकता है कि वह मुख्यमंत्री तक इस विषय को ले जाएं और मुझे मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ जाए. आप इतनी सख्ती न करें तो अच्छा होगा.’’
राजकुमार गंभीर हो कर बोले, ‘‘आप इस विभाग के मंत्री हैं. हालात की गंभीरता को समझने की कोशिश करें. हमारे दिमाग को कुछ डाक्टर समझते हैं कि वह कैसा भी अनैतिक कार्य क्यों न करें, उन पर कोई काररवाई नहीं हो सकती क्योंकि उन्हें राजनीतिक समर्थन प्राप्त है.
‘‘अंधेरगर्दी मची हुई है. कई डाक्टर अस्पताल से गायब रह कर अपनी निजी प्रैक्टिस करते हैं तो कुछ बिना अनुमति लिए विदेशों में नौकरी करते हैं. और फिर अचानक वापस आ कर अपनी बहाली की बात धड़ल्ले से करते हैं. मैं इस विषय पर एक नोट तैयार कर देता हूं. आप उसे कैबिनेट में चर्चा के लिए रख दीजिए. मुख्यमंत्रीजी जो फैसला करेंगे उसे हम लागू कर देंगे. मेरे विचार में यही इस समस्या का सही हल होगा.’’
इस के बाद मंत्रीजी चुप्पी साध गए.
कुछ ही दिनों में मुख्यमंत्री का फैसला फाइल पर आ गया. वह राजकुमार के तर्क से सहमत थे. स्वास्थ्य मंत्री ने भी इस समस्या को आगे न खींचने में ही अपनी भलाई समझी.
विभाग में डाक्टरों के 1 हजार खाली पड़े पदों को भरने का सरकारी आदेश आया. मंत्रीजी का पी.ए. बड़ा घाघ था. उस ने उन्हें समझाया, ‘‘सर, अपने आराध्य रामचंद्रजी तथा दूसरे मंत्रिगण को खुश करने का यह बड़ा अच्छा मौका है. आप एक कमेटी का निर्माण कर के सचिव राजकुमार को उस का चेयरमैन बना दीजिए तथा सभी मंत्रिगण की सिफारिश पर डाक्टरों की भरती कीजिए. ऐसा पहले भी किया जा चुका है.’’
पी.ए. के सुझाव पर मंत्रीजी बेहद खुश हुए. उन्होंने फौरन राजकुमार से बातचीत करते हुए कहा, ‘‘आप ने डाक्टरों की भरती के लिए आया सरकारी आदेश जरूर देखा होगा. मैं चाहता हूं कि एक कमेटी बना कर आप को उस का चेयरमैन बनाया जाए. मैं ने सभी कैबिनेट स्तर के मंत्रियों के लिए 30-30 डाक्टरों का कोटा तय किया है. आप उन की सिफारिश पर उन्हें बतौर दैनिक वेतन पर नियुक्त करें तो सभी मंत्री संतुष्ट हो जाएंगे. कुछ भरतियां विरोधी पक्ष के नेताओं की सिफारिश पर भी की जा सकती हैं ताकि वे सदन में हंगामा खड़ा न करें. आशा है कि इस बार आप मेरे इस सुझाव के अनुसार ही कार्य करेंगे.’’
राजकुमार थोड़ी देर सोचते रहे. फिर बोले, ‘‘मान्यवर, आप का सुझाव सरकारी नियमों के खिलाफ है. कमेटी की रचना तथा मुझे चेयरमैन बनाने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है. सरकार के लिखित आदेश मौजूद हैं जिस के तहत डाक्टरों की दैनिक वेतन पर भरती नहीं की जा सकती. डाक्टरों की भरती का अधिकार केवल लोकसेवा आयोग को है. मेरे पास सरकारी आदेश उपलब्ध हैं. मैं आप को फाइल भेज दूंगा. आप कृपया पढ़ लीजिएगा.’’
मंत्रीजी बहुत निराश हुए. उन्होंने सभी बड़े मंत्रियों को उन के सुझाए डाक्टरों की नियुक्ति का वादा कर दिया था. अब क्या होगा? यह सवाल उन के सामने खड़ा था और इसी के साथ जुड़ा था उन की इज्जत का सवाल.
पी.ए. ने एक बार फिर उन्हें बहकाया और कहा, ‘‘सर, आप की आज्ञा सरकारी आदेशों के ऊपर है. आप सार्वजनिक हित में कोई भी आदेश दे सकते हैं. सचिव को उस का पालन करना ही पड़ेगा. आप इतना निराश न हों. आप फाइल पर आदेश दे दीजिए. मैं एक नोट तैयार कर देता हूं.’’
मंत्रीजी ने वैसा ही किया. राजकुमार ने अपने सेवाकाल में ऐसे कई आदेश देखे थे. वह पी.ए. की शरारत को समझ गए और मंत्रीजी से मिल कर उन्हें सुझाया, ‘‘सर, इस फाइल को मैं अपनी टिप्पणी सहित कानून विभाग को भेज देता हूं. उन की सलाह पर ही आगे की काररवाई करना उचित होगा.’’
यह पहली बार था कि राजकुमार चाहते हुए भी फाइल का निबटारा जल्दी नहीं कर पा रहे थे. कुछ अरसे बाद कानून विभाग के सचिव की टिप्पणी सहित फाइल वापस आ गई. राजकुमार के तर्क से उन्होंने सहमति जाहिर की थी. एक बार फिर वह अपने मंत्री से मिले. उन्हें फाइल दिखाई और सुझाव दिया, ‘‘कानून विभाग के सचिव ने अपनी टिप्पणी फाइल पर लिखित रूप में दी है. इस के खिलाफ कार्य करने पर विधानसभा में हंगामा खड़ा हो सकता है. विरोधी पक्ष वाले इस तरह के नियम के विरुद्ध काररवाई की भनक पड़ते ही आप के लिए बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. मेरा सुझाव है कि नियमों के दायरे में ही डाक्टरों की भरती करें तो अच्छा होगा.’’
मंत्रीजी नाराज थे, वह बोले, ‘‘आप इस फाइल को कुछ दिनों के लिए रोक लें. मैं मुख्यमंत्री से बात कर के आप को बताऊंगा कि क्या करना है.’’
एक माह से ज्यादा समय बीत गया पर मंत्रीजी ने न तो मुख्यमंत्री से कोई बात की और न ही अपने सचिव को कोई आदेश दिया. राजकुमार के याद दिलाने पर कि भरती का सूचनापत्र सरकारी आदेश के अनुसार अगले एक माह के अंदर निकलना चाहिए वरना समय बढ़ाने के लिए फिर सरकार को भेजना पड़ेगा. विरोधी पक्ष इस तरह की अनियमितताओं की खोजखबर रखता है. अच्छा होगा कि हम अगली काररवाई समयावली के मुताबिक कर लें. मंत्रीजी कुछ नहीं बोले.
राजकुमार मुख्य सचिव से मिलने गए. पूरी बात सुनने पर वह बोले, ‘‘कानून विभाग के सचिव की टिप्पणी फाइल पर है. आप के पास भरती करने के पूरे अधिकार हैं. मंत्रीजी के आदेश की कोई जरूरत नहीं है. यह सरकार का आदेश है और इस पर आप के मंत्री की भी परोक्ष रूप से सहमति कैबिनेट में ली जा चुकी है. वह इसे लटका नहीं सकते. आप आगे की काररवाई कीजिए.’’
लोकसेवा आयोग का डाक्टरों की भरती के लिए सूचनापत्र गजट में छप गया. पी.ए. ने मंत्रीजी को अवगत कराया, ‘‘सर, आप की मंजूरी के बिना सचिव ने लोकसेवा आयोग को भरती का निर्देश जारी कर दिया है. यह आप के सम्मान का सवाल है.’’
मंत्रीजी गुस्से से लालपीले हो गए. अपने पी.ए. को फाइल लाने को कहा. राजकुमार ने मंत्रीजी से फोन पर पूछा, ‘‘क्या मैं आ कर आप को पूरी स्थिति से अवगत कराऊं?’’
मंत्री मोहनलाल तो गुस्से से फड़फड़ा रहे थे. वह रूखे स्वर में बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है. मैं स्वयं देख लूंगा…’’ उन्होंने अपने वरिष्ठ मंत्रियों से सलाह ली. मालूम नहीं उन्होंने क्या सुझाव दिया पर 2 दिन के बाद फाइल वापस राजकुमार की मेज पर थी. उस पर मंत्रीजी ने अपनी सहमतिस्वरूप हस्ताक्षर कर दिए थे.
मंत्री मोहनलाल मुख्यमंत्री से जा कर मिले. अगले ही दिन राजकुमार अपने पद का कार्यभार एक दूसरे अफसर को दे रहे थे. यह उन की 30 साल के सेवाकाल का 27वां तबादला था.