अकेले हम अकेले तुम

कलशाम औफिस से आ कर हर्ष ने सूचना दी कि उस का ट्रांसफर दिल्ली से चंडीगढ़ कर दिया गया है. यह खबर सुनने के बाद से तान्या के आंसू रोके नहीं रुक रहे हैं. उस ने रोरो कर अपना हाल बुरा कर लिया है.

‘‘हर्ष मैं अकेले कैसे सबकुछ मैनेज कर पाऊंगी यहां… क्षितिज और सौम्या भी इतने बड़े नहीं हैं कि मेरी मदद कर पाएं… अब घर, बाहर, बच्चों की पढ़ाई सबकुछ अकेले मैं कैसे कर पाऊंगी, यही सोचसोच कर मेरा दिल बैठा जा रहा है,’’ तान्या बोली.

तान्या के मुंह से ऐसी बातें सुन कर हर्ष का मन और परेशान होने लगा. फिर बोला, ‘‘देखो तान्या हिम्मत तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी. क्या करूं जब कंपनी भेज रही है तो जाना तो पड़ेगा ही… प्राइवेट नौकरी है. ज्यादा नानुकुर की तो नोटिस भी थमा सकती है हाथ में और फिर भेज रही है तो सैलरी भी तो बढ़ा रही है… आखिर हमारा भी तो फायदा हो रहा है जाने में. सैलरी बढ़ जाएगी तो घर का लोन चुकाने में थोड़ी आसानी हो जाएगी.’’

थोड़ी देर चुप रहने के बाद तान्या का तनाव थोड़ा और कम करने के लिए हर्ष फिर बोला, ‘‘देखो तान्या, महीने का राशन मैं खरीद कर रख ही जाऊंगा… सब्जी वाले रोज घर के सामने से जाते हैं. उन से ले लिया करना. अगर वक्तबेवक्त कोई और जरूरत पड़ती है तो आसपास के लोग हैं ही… इतना रिश्ता तो हम ने बना रखा ही है हरेक से कि एक फोन करने पर कोई भी आ खड़ा होगा.’’

मगर हर्ष के समझाने का तान्या पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ रहा था. दरअसल, 10 सालों के वैवाहिक जीवन में यह पहला अवसर आया था जब तान्या को हर्ष से अलग रहने की जरूरत आ पड़ी थी. पहले तो तान्या ने भी साथ ही चंडीगढ़ चलने की बात कही पर दिल्ली से चंडीगढ़ जाने का मतलब बच्चों का नए स्कूल में ऐडमिशन कराना, नई यूनीफौर्म खरीदना, वहां किराए का घर ले कर रहना और फिर उस का किराया देना और यहां लोन की किस्त चुकानी किसी भी तरह से संभव नहीं होगा.

फिर इस बात की भी तो कोई गारंटी नहीं थी कि वहां सारी व्यवस्था कर लेने के बाद

10-12 साल वहीं रहेंगे. क्या पता अगले ही साल फिर कंपनी दिल्ली वापस बुला ले तो कब तक बच्चों को ले कर ऐसे फिरते रहेंगे? इसलिए हर्ष ने तान्या को समझाते हुए कहा कि उस का अकेले जाना ही उचित होगा.

हर्ष को अगले ही सोमवार को चंडीगढ़ औफिस जौइन करना था, इसलिए वह बुझे मन से जाने की तैयारी करने लगा.

हर्ष भी पहली बार अकेला रहने जा रहा था, इसलिए मन ही मन घबराहट उसे भी बहुत हो रही थी. बचपन से आज तक अपने हाथ से

1 गिलास पानी तक ले कर नहीं पीया था उस ने. पहले मां और बहनें और फिर शादी के बाद तान्या उस के सारे काम कर दिया करती थी.

हर्ष मन ही मन सोच कर परेशान हो रहा था कि कैसे वह अपने कपड़े धोएगा, बैडशीट बदलेगा, कमरे की सफाई करेगा…? खाना, नाश्ता तो बाहर कर लेगा या टिफिन लगवा लेगा पर कभी चाय पीने का मन हुआ या बीच में भूख लगी तो क्या करेगा? मगर तान्या और बच्चों की चिंता में वह अपनी परेशानी के बारे में कोई चर्चा नहीं कर पा रहा था और न ही तान्या का ध्यान इस पर जा रहा था कि उस का पति उस के बिना अकेले कैसे रह पाएगा.

इतवार की सुबह से ही हर्ष की व्यस्तता बढ़ी हुई थी. अपने सामान की

पैकिंग के साथसाथ वह इस बात का भी खयाल रख रहा था कि उस के जाने के बाद घर में किसी चीज की कमी न रह जाए जिस के लिए तान्या को बच्चों को ले कर बाजार के चक्कर लगाने पड़ें. राशन, सब्जी, फल, मिठाई आदि 1-1 चीज वह घर में ला कर रखता जा रहा था. शाम होतेहोते तान्या का उतरा चेहरा देख कर उस का दिल यह सोच कर घबराने लगा कि कहीं उस के जाने के बाद तान्या की तबीयत न खराब हो जाए.

‘‘तान्या कुछ दिनों के लिए मम्मी को आने के लिए कहूं क्या? तुम्हें देख कर मुझे चिंता हो रही है कि तुम अकेले रह पाओगी या नहीं?’’

‘‘हर्ष, सोच तो मैं भी रही थी कि मम्मीजी आ जातीं कुछ दिनों के लिए मेरे पास तो ठीक रहता, पर वहां भी तो रिंकी और पापाजी को परेशानी होगी उन के बिना. यही सोच कर मैं ने कुछ कहा नहीं.’’

‘‘हां वह तो है, फिर भी एक बार बात कर के देखता हूं. मम्मी से कहता हूं कि 4-5 दिनों के लिए आ जाएं. फिर शनिवार को मैं आ ही जाऊंगा. आगे की आगे देखेंगे.’’

हर्ष ने अपनी मां से बात की तो बेटेबहू की समस्या सुन कर विचलित हो गईं. बोलीं कि वे यहां की व्यवस्था समझा कर कल ही दिल्ली आ जाएंगी. रिंकी और उस के पापा मिल कर 1 सप्ताह गुजार लेंगे किसी तरह से.

मम्मीजी आ जाएंगी, यह सुन तान्या ने राहत की सांस ली और फिर उस ने हर्ष की बची तैयारी करा कर नम आंखों से दूसरे दिन उसे चंडीगढ़ के लिए विदा किया.

बात नौकरी और जीवनयापन की थी, इसलिए न आने का कोई विकल्प नहीं था हर्ष के पास पर सही माने में मन ही मन वह बहुत परेशान था. एक तरफ तान्या और बच्चों की चिंता तो दूसरी तरफ अपने बारे में सोचसोच कर परेशान हो रहा था कि बिना तान्या के कैसे रहेगा.

1 सप्ताह तक तो कंपनी के गैस्ट हाउस में रहना था तब तक तो खैर कोई समस्या नहीं होनी थी, पर इसी 1 सप्ताह में उसे अपने लिए किराए का घर ले कर रहने की पूरी व्यवस्था करनी होगी. दसियों झंझट होने थे उस में…घर खोजो, कामवाली खोजो, समय पर कपड़े धो कर प्रैस करने को दो. तान्या के होते ये सब काम इतने कठिन होते हैं उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ था.

अपने घर में तो आज तक उस ने कभी कामवाली से बात  तक नहीं की थी. अब कैसे उस से बात करेगा. कौन से कपड़े गंदे हैं और कौन से साफ इस का फर्क तक आज तक नहीं कर पाया था वह. अब ये सारी चीजें खुद करनी पड़ेंगी, यह सोच कर पसीना छूट रहा था.

1 सप्ताह जैसेतैसे गुजार कर अगले शनिवार की रात को जब हर्ष एक दिन के लिए चंडीगढ़ से दिल्ली आया तो घर में त्योहार जैसा माहौल बन गया. बच्चे उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे और तान्या के पास तो हर्ष को बताने के लिए इतनी सारी बातें इकट्ठी हो गई थीं मानो वह सालों बाद हर्ष से मिल रही हो. 1 सप्ताह तक हर्ष के बिना उस ने 1-1 पल कैसे बिताया इस का वर्णन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

पर मम्मीजी की निगाह हर्ष के चेहरे पर अटक गईर् थी, ‘‘बेटा तू 1 ही सप्ताह में कितना दुबला हो गया है,’’ कहते हुए उन की आंखें भर आईं. उन का बस चलता तो वे एक ही दिन में हर्ष को अपने हाथों से उस के पसंद की सारी चीजें बना और खिला कर पूरे सप्ताह की कमी पूरी कर देतीं, लेकिन शाम को उन का वापस जाना भी जरूरी था, क्योंकि रिंकी के पेपर शुरू होने वाले थे. उन की अनुपस्थिति से उस की पढ़ाई बाधित हो रही थी.

मम्मीजी को शाम की ट्रेन में बैठा कर आने के बाद बच्चों ने जिद पकड़ ली पिज्जा खाने की. तान्या ने भी उन का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘जब से तुम गए हो तब से ही ये पिज्जा खाने की जिद कर रहे हैं. मैं ने समझा रखा था कि पापा के आने के बाद चलेंगे. अब चल कर खिला दो वरना तुम्हारे जाने के बाद फिर मुझे परेशान करेंगे.’’

हर्ष का मन न ही इस समय बाहर जाने का हो रहा था और न ही बाहर का कुछ खाने का. उस का दिल कर रहा था कि बचाखुचा समय वह सब के साथ सुकून से घर में बिताए और तान्या के हाथ का बना घर का गरमगरम खाना खाए, पर बच्चों और तान्या की बात न मान कर वह अपराधभावना से घिरना नहीं चाह रहा था. अत: बेमन से ही वह सब को साथ ले कर पिज्जा हट चला गया.

दूसरे दिन फिर सुबहसुबह ही वह चंडीगढ़ के लिए निकल गया. ट्रेन में बैठते ही हर्ष ने सोचना शुरू कर दिया कि कहीं कुछ ऐसा रह तो नहीं गया जिस की वजह से तान्या को परेशान होना पड़े. पर जब उसे ऐसी कोई बात याद नहीं आई तो उस ने सुकून के साथ सीट पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं.

चंडीगढ़ जाने के साथ ही हर्ष की जिंदगी से आराम और सुकून शब्द गायब हो गए. अब तक शनिवार की शाम से ले कर सोमवार की सुबह तक जो सुकून के पल हुआ करते थे अब तो वही पल सब से ज्यादा भागदौड़ वाले बन गए. औफिस से छूटते ही वह स्टेशन की ओर भागता फिर ट्रेन से उतर कर औटो पकड़ कर घर पहुंचता. तब तक बच्चे तो सो चुके होते थे, इसलिए बच्चों के साथ वक्त बिताने की खुशी में वह सुबह जल्दी उठ जाता. फिर सारा दिन साप्ताहिक खरीदारी या बच्चों को घुमानेफिराने में निकल जाता. फिर सोमवार की सुबह शताब्दी पकड़ने के लिए सुबह 5 बजे ही नहाधो कर तैयार हो कर उसे घर से निकलना पड़ता था.

तान्या अकेली है यह सोच कर बीचबीच में उस के सासससुर चक्कर लगा जाते थे, पर चूंकि वे भी अभी नौकरी करते थे, इसलिए ज्यादा दिन रुकना संभव नहीं हो पाता था.

एक शनिवार जब हर्ष घर आया तो घर पर तान्या की मां सारिकाजी उस के साथ रहने के लिए आई हुई थीं. तान्या के मुंह से उस की परेशानी सुन कर वे कुछ दिनों के लिए उस के पास रहने को आ गई थीं.

हर्ष को देखते ही उन के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं, ‘‘हर्ष बेटा आप का स्वास्थ्य इतना गिर कैसे गया है? चेहरे से रौनक ही गायब हो गई है. अभी 2 महीने पहले जब आप से मिली थी तब तो आप ऐसे नहीं थे? क्या खानेपीने का सही इंतजाम नहीं है वहां पर?’’

‘‘नहीं मम्मीजी खानापीना तो सब ठीक है वहां पर बस घर से दूर हूं तो बच्चों की याद सताती रहती है. बस इसी वजह से आप को ऐसा लग रहा होगा. अब आज घर आया हूं तो कल देखिएगा मेरा चेहरा भी चमकने लगेगा.’’

दूसरे दिन सुबह से ही हर्ष फिर घर की व्यवस्था और बच्चों की फरमाइशें पूरी करने में जुट गया. डिनर के लिए जब फिर सब ने बाहर का प्रोग्राम बनाया तो सारिकाजी ने रोकते हुए कहा कि कल सुबह ही हर्ष को निकलना है तो इस समय सब घर पर ही रहो, घर पर ही बनाओ खाओ.

मगर बच्चे नहीं माने तो सारिकाजी ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम सब जाओ मैं नहीं जाऊंगी. मैं अपने लिए यहीं कुछ बना लूंगी.’’

निकलतेनिकलते हर्ष ने कहा, ‘‘मम्मीजी, आप अपने लिए जो भी बनाइएगा उस में 2 रोटियां मेरी भी बना दीजिएगा. मैं भी घर आ कर ही खा लूंगा, बाहर का खाना खाखा कर मन भर गया है मेरा.’’

सारिकाजी ने उस समय तो कुछ नहीं कहा, लेकिन दूसरे दिन हर्ष के जाने के बाद तान्या को आड़े हाथों लिया, ‘‘तान्या, तुझे क्या लगता है हर्ष की पोस्टिंग दूसरे शहर में हो गई है तो उस में उस का कोई गुनाह है? तुझे यहां अकेले रहना पड़ रहा है तो इस में उस का कोई कुसूर है? क्या सोचती है तू? क्या अकेले रहने से परेशानियों का सामना केवल तुझे ही करना पड़ रहा है? हर्ष बड़ा ऐश कर रहा है वहां पर? कैसी बीबी है तू कि तुझे उस का खराब हो रहा स्वास्थ्य और ढलता जा रहा चेहरा नहीं दिख रहा है? देख रही हूं एक दिन के लिए इतनी दूर से बेचारा भागाभागा बीवीबच्चों के पास रहने के लिए आया और सारा दिन तुम लोगों की जरूरतें और फरमाइशें पूरी करने में लगा रहा. 1 पल भी चैन से नहीं बैठ पाया. क्या उस के शरीर को आराम की जरूरत नहीं है?’’

‘‘पर मां मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो आप इतना नाराज हो रही हैं मुझ पर? आप को ऐसा क्यों लगने लगा कि मुझे हर्ष की चिंता नहीं है? ऐसा क्या देख लिया आप ने जो मुझे इतना डांट रही हैं?’’

‘‘देख तान्या जब से हर्ष चंडीगढ़ गया है तब से मैं तेरे मुंह से बस यही सुनती आ रही हूं कि मैं अकेले कैसे रह रही हूं यह मैं ही जानती हूं. मुझे कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है कि क्या बताऊं? यह बात तू अपने मायके, ससुराल के 1-1 इंसान को बता चुकी है… अकेले रहने की वजह से तुझे कितनी तरह की परेशानियां हो रही हैं… पर एक बार भी मैं ने तुम्हें हर्ष की चिंता करते नहीं सुना. एक बार भी मैं ने तेरे मुंह से यह नहीं सुना कि हर्ष वहां क्या खाता होगा? पता नहीं मनपसंद खाना मिलता भी होगा उसे या नहीं… उस के कपड़े कैसे धुलते और प्रैस होते होंगे? शाम को थकाहारा घर आता होगा तो 1 कप चाय की जरूरत होती होगी तो क्या करता होगा?

‘‘बेचारा एक दिन के लिए घर आता है और उस एक दिन भी तू उसे एक पल भी आराम से बैठने नहीं देती. सारा दिन किसी न किसी काम के लिए दौड़ाए रहती है उसे… क्या इतनी पढ़ीलिखी होने के बावजूद तू हर्ष के बिना घरगृहस्थी के अपने छोटेबड़े काम नहीं कर सकती?’’

‘‘मां मैं कर तो लेती पर आप तो देख ही रही हैं कि क्षितिज और सौम्या इतने छोटे हैं कि इन्हें ले कर बाजार जाना खतरे से खाली नहीं है… और बाहर खाना और घूमनाघुमाना तो बच्चों की फरमाइश पर करना पड़ता है… मैं थोड़े ही कहती हूं जाने को,’’ तान्या ने रोंआसे होते हुए कहा.

इस पर सारिकाजी ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, मैं समझ रही हूं कि हर्ष के जाने की वजह से तुझे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है पर तू केवल अपनी ही परेशानियों के बारे में क्यों सोचती रहती है? क्या यह खुदगर्जी नहीं है तेरी? मेरी नजर में तो तुझ से ज्यादा परेशानी हर्ष को उठानी पड़ रही है. तुझ से तो केवल हर्ष दूर गया है पर हर्ष से तो घर, बीवीबच्चे, घर का खाना, घर का सुकून सबकुछ छिन गया है. एक दिन के लिए आता भी है तो तुम सब के लिए ऐसे परेशान होता है जैसे कोई गुनाह कर के लौटा है.

‘‘तू पढ़ीलिखी और समझदार है. तुझे चाहिए कि बच्चों को स्कूल भेजने के बाद बाजार जा कर सारा सामान ला कर रख ले ताकि कम से कम रविवार को तो दिनभर हर्ष आराम से रह सके… और तुझे शुरू से पता है कि हर्ष को तेरे हाथ का बना खाना ही पसंद है बाहर के खाने से वह कतराता है. फिर भी तू रविवार को भी उसे बजाय अपने हाथों से बना कर खिलाने के बाहर ले जाती है. बच्चों को पिज्जाबर्गर खाना हो तो तू ही ले जा कर खिला आया कर.’’

मां की बात सुन कर तान्या को एहसास हुआ कि सचमुच वह बहुत बड़ी गलती कर रही थी कि हर्ष के जाने से समस्या केवल उसे हो रही है. हर्ष की परेशानियों के बारे में न सोच कर वह इतनी खुदगर्ज कैसे बन गई उसे खुद ही समझ में नहीं आ रहा था.

अगले शुक्रवार को बच्चों को स्कूल भेज कर घर के सारे छोटेबड़े कामों की लिस्ट बना कर तान्या घर से निकल गई. उस ने तय कर लिया था कि अब आगे से हर्ष के आने पर उसे किसी काम के लिए बाहर नहीं भेजेगी, बल्कि अब पूरा रविवार वे सब हर्ष के साथ घर पर ही बिताएंगे ताकि उसे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से आराम मिल सके.

बाजार की तरफ जाते समय अचानक तान्या की नजर सड़क के किनारे छोलेचावल के ठेले के पास खड़े एक युवक पर पड़ी जो जल्दीजल्दी छोलेचावल खा रहा था. उसे देखते ही न जाने क्यों तान्या की आंखों से आंसू गिरने लगे. वह सोचने लगी कि हर्ष भी तो आखिर भूख लगने पर ऐसे ही जहां कहीं भी जो कुछ भी मिल जाता होगा खा कर अपना पेट भर लेता होगा. मनपसंद चीजों की फरमाइश कर के बनवाना और खाना तो भूल ही गया होगा हर्ष.

अपने आंसू पोंछतेपोंछते तान्या जल्दीजल्दी घर चली जा रही थी, साथ ही सोचती भी जा रही थी कि अपने परिवार वालों को भरपेट भोजन देने और उन के लिए सुखसुविधा जुटाने के लिए घर से दूर रह कर दिनरात खटने वाले हमारे पतियों को भूख लगने पर मनपसंद भोजन तक मुहैया नहीं होता और हम पत्नियां यही जताती रह जाती हैं कि हम ही उन के बिना बड़ी कठिनाइयों का सामना कर रही हैं.

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एक नारी ब्रह्मचारी- भाग 3 : पति वरुण की हरकतों पर क्या था स्नेहा का फैसला

घर आ कर उस ने किसी को कुछ नहीं बताया, क्योंकि जानती थी कि उस का घर से निकलना बंद करवा दिया जाता. हो सकता था कि उस का स्कूल भी छुड़वा दिया जाता. इसलिए उसे चुप रहना ही बेहतर लगा. लेकिन आज सोचती है तो लगता है कि गलत किया. मारना चाहिए था पकड़ कर उसे, शोर मचाना चाहिए था, ताकि लोगों को पता तो चलता कि वह कितना गंदा इनसान है?

लेकिन एक डर कि उस की बदनामी हो जाएगी. हमारे समाज में दोषी वह नहीं होता, जो लड़की के साथ छेड़छाड़ करता है, उस का बलात्कार करता है, बल्कि दोषी तो लड़की होती है, क्योंकि उसे घर से नहीं निकलना चाहिए था. हमारे समाज में दोषी आजाद घूमते हैं और निर्दोष को घर में कैद कर दिया जाता है.

दरवाजे की घंटी से स्नेहा अतीत से वर्तमान में आ गई. दरवाजा खोला।तो सामने वरुण खड़ा मुसकरा रहा था.

“आ गए तुम…? और ये हाथ में क्या है?” वरुण के हाथ में लाल पन्नी से लपेटा एक पैकेट देख कर स्नेहा चिहुक उठी.

“अब अंदर भी आने दोगी या यहीं खड़ेखड़े सवालजवाब करोगी,” वरुण ने कहा, तो स्नेहा जरा साइड हो गई.

“खोल कर देखो तो इस में क्या है,” लाल पन्नी से लपेटा पैकेट स्नेहा की ओर बढ़ाते हुए वरुण उस के चेहरे के आतेजाते भावों को पढ़ने लगा.

“वाउ वरुण… इस में तो आईफोन है… मेरे लिए?” स्नेहा ने पूछा, तो आंखों के इशारे से वरुण बोला की हां ये फोन उस के लिए ही है.

‘‘ओह्ह, आई लव यू सो मच वरुण,” कह कर उस ने वरुण के गालों को चूम लिया.

“लेकिन, यह मोबाइल तो बहुत महंगा लगता है?कितने का आया है बताओ?”

“तुम आम खाओ न, गुठली क्यों गिनती हो ?” वरुण ने कहा.

“गिनूंगी, बताओ कहां से आए इतने पैसे…?” स्नेहा तो वरुण के पीछे ही पड़ गई कि आखिर अचानक से उस के पास इतने सारे पैसे कहां से आ गए?

“बोलो न वरुण, नहीं तो मुझे नहीं चाहिए यह मोबाइल… रखो अपना मोबाइल अपने पास,” स्नेहा ने मुंह बनाया.

“अरे भई, एरियर मिला था, उसी पैसे से ले कर आया हूं. तुम बोल रही थी न कि तुम्हारा मोबाइल ठीक से काम नहीं कर रहा है. बात करतेकरते कट जाता है, तो इसलिए नया ले आया और अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन भी तो आ रहा है न, तो गिफ्ट समझ कर रख लो,” वरुण ने कहा, तो स्नेहा उस से लिपट गई यह बोल कर कि वह उस का कितना खयाल रखता है.

“हम और तुम… बातबात पर मुझे गालियां देती रहती हो. जरा किसी लड़की को देख क्या लेता हूं, आंखें दिखाने लगती हो, जबकि जानती हो कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं. मैं तो एक नारी ब्रहचारी हूं.“

“अच्छा ठीक है, मैं तुम्हें नहीं डाटूंगी, लेकिन तुम भी ऐसीवैसी हरकतें मत किया करो,” बोल कर स्नेहा हंस पड़ी.

स्नेहा जानती है कि वरुण उसे कभी धोखा नहीं दे सकता. लेकिन डर इस बात का है कि कोई उसे बेवकूफ न बना दे. कितनों को देखा है, लड़कियों के चक्कर में कंगाल बनते हुए.

सुबह वरुण को औफिस भेज कर रोज की तरह वह अपने काम में लग गई.

“सर, मे आई कम इन… वरुण के कैबिन के बाहर खड़ी एक महिला बोली.

वरुण किसी से फोन पर बात करने में व्यस्त था, इसलिए बिना देखे ही उस ने इशारों से उसे अंदर आने को बोल दिया.

“थैंक यू सर,” उस महिला की मधुर खनकती आवाज जब वरुण के कानों में पड़ी और उस ने अपनी नजरें उठा कर देखा तो बला की खूबसूरत उस महिला पर वरुण की नजर टिक गई. उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार इतनी खूबसूरत महिला देखी थी. बड़ीबड़ी कजरारी नशीली आंखें, गुलाब की पंखुड़ियों से रसभरे होंठ, रेशमी बाल, जो उस के गोरेगोरे मुखड़े पर अठखेलियां करते हुए कभी उस की आंखों को, कभी गालों को तो कभी उस के गुलाब सी पंखुड़ियों से अधरों को छू रही थी और जिसे वह बारबार अपने कोमल हाथों से हटाने का असफल प्रयास कर रही थी.

“सर, मैं रूपम व्यास हूं,” जब उस महिला ने अपना नाम बताया, तो वरुण की सुस्ती तुरंत फुरती में बदल गई.

“बोलिए मैडम, मैं आप की क्या सहायता कर सकता हूं?‘‘ रूपम के चेहरे पर से नजरें हटाते हुए वरुण ने कहा.

“सर, मुझे अपना ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए बैंक से 10-12 लाख रुपए का लोन चाहिए,” रूपम बोले जा रही थी और वरुण उस की मादक और मोहक खुशबू में सराबोर हुए जा रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह यों ही बोलती रहे और वह ऐसे ही उसे निहारता रहे.

“सर, क्या मुझे बैंक से लोन मिल सकता है?”

‘‘हां… हां, क्यों नहीं मैडम. हम यहां बैठे किसलिए हैं, आप की सेवा में… मेरा मतलब कि आप जैसों की सेवा के लिए ही न,” उस की आंखों में झांकते हुए वरुण बोला, “वैसे, लोन तो आप को मिल जाएगा, कोई समस्या नहीं है. लेकिन इस के लिए गारंटर का होना जरूरी है. ऐसे हम किसी को लोन नहीं दे सकते,” लेकिन रूपम कहने लगी कि वह इस शहर में अभी कुछ महीने पहले ही रहने आई है. यहां किसी को ज्यादा नहीं जानती.

रूपम आगे और कुछ बोलती कि वरुण बीच में ही बोल पड़ा, “आप की बात सही है मैडम, लेकिन यह तो बैंक का रूल है. हम बिना गारंटर के किसी को भी लोन नहीं दे सकते,“ बोल कर वह हंस पड़ा.

“ठीक है सर, तो फिर मैं चलती हूं,” खड़ी होती हुई रूपम बोली. वह समझ गई कि इस बैंक में उसे लोन नहीं मिलने वाला, इसलिए उसे अब किसी दूसरे बैंक का रुख करना पड़ेगा.

“क्या बात है, आज बड़े चुपचुप लग रहे हो, सब ठीक तो है न?” खाना खाते समय वरुण को चुप देख कर स्नेहा ने पूछा, तो वह यह बोल कर कमरे की तरफ बढ़ गया कि आज औफिस में काम ज्यादा था, इसलिए जरा थकावट हो रही है.

‘बेचारा, औफिस में पूरे दिन खटता रहता है और मैं पागल फिर भी इस से लड़ती रहती हूं. कितनी बुरी हूं मैं भी,’ अपने मन में ही सोच स्नेहा ग्लानि से भर उठी. लेकिन वरुण यह सोच कर गुस्से से भर उठा कि वह भी न, एक नंबर का गधा है. इतनी सुंदर औरत खुद चल कर उस के पास आई और वह उसे इतनी आसानी से जाने दिया. हाऊ केन? और कुछ भी तो नहीं जानता वह उस के बारे में कि वह कौन है, कहां रहती है? अरे, कम से कम उस का फोन नंबर तो ले लिया होता,‘ लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत. और गारंटर का क्या है, अपने किसी दोस्त को बना देता या खुद मैं भी तो बन सकता था न? अरे, कौन सा वह बैंक के पैसे ले कर भाग जाती? सही कहती है स्नेहा, मैं ने पिछली रोटी खाई है, तभी मेरा दिमाग सही समय पर काम नहीं करता,’ अपने मन में ही सोच वरुण पछतावे से भर उठा. रात में कितनी देर तक उसे नींद नहीं आई. फिर जाने कब उस की आंख लग गई. सुबह स्नेहा ने उठाया तब जा कर उस की आंख खुली.

 

कासनी का फूल: भाग 1- अभिषेक चित्रा से बदला क्यों लेना चाहता था

‘‘क्वैक, क्वैक,’’ चित्रा के कानों में मोनाल पक्षी की आवाज पड़ी. वह कमरे से निकल बालकनी में जा खड़ी हुई. सायंकाल आसपास के पेड़ों पर अनेक पक्षी आ कर बैठते. चित्रा को ओक के पेड़ पर बैठा मोनाल और उस की सुरीली आवाज बहुत भाती थी. चित्रा ऊंचे पहाड़ों, पेड़ों, पौधों, फूलों और पक्षियों से नाता जोड़ उन के साए में प्रसन्न रहने का पूरा प्रयास कर रही थी. उस के लिए पहाड़ों की जीवनशैली नई थी. 2 मास पहले ही वह कसौली आई थी.

नई जगह, नया घर, नई नौकरी. चित्रा जीवन को नई दिशा दे कर अपने दुख को कम करने के प्रयास में लगी थी. पुराना सब भूल जाए, इसलिए ही तो सुदूर हिमाचल प्रदेश के कसौली शहर में नौकरी करने आ गई, जहां कोई उस से पूछने वाला नहीं होगा कि शादी हुई या नहीं? हुई तो पति के साथ क्यों नहीं हो? वह तलाक शब्द सब के सामने बारबार दोहरा कर लोगों के चुभते सवालों का सामना नहीं करना चाहती थी.

कभी दिल्ली के एक फाइवस्टार होटल में जौब थी, इसलिए कसौली जैसे छोटे नगर के थ्रीस्टार में फ्रंट डैस्क की नौकरी पाना आसान रहा, लेकिन बीते समय से दूर हो पाना इतना आसान कहां?

दूर पगडंडी पर बस्ता उठाए 2 बच्चों को जाते देख उसे अपना बचपन याद आने लगा.

2 साल बड़े इकलौते भाई मोहित से हमेशा उसे कमतर आंका जाता था. बचपन में अध्यापक मातापिता से शिकायत करते कि मोहित जैसे प्रतिभावान भाई की बहन इतनी साधारण क्यों?

न परीक्षा में वाहवाही पाने योग्य प्रदर्शन कर पाती है और न ही किसी अन्य क्षेत्र में कोई कमाल कर सकी है. छठी, 7वीं कक्षा तक आतेआते यह भी स्पष्ट होने लगा कि गणित और साइंस में ट्यूशन टीचर की सिरखपाई के बावजूद वह साधारण अंक ले कर ही उत्तीर्ण हो पा रही है. पिता ने इस बात पर जब उसे फटकार लगाई तो सुबकती हुई चित्रा मां के पास पहुंच गई.

‘‘मोहित सब कर लेता है, तो फिर तू क्यों नहीं? जरूर तेरे भाग्य में कुछ अड़चन है. कल बाबा को बुला कर बात करती हूं.’’

मां की दृष्टि में प्रत्येक समस्या का समाधान बाबा चंदनदास ही थे. जबतब वे उन के घर आता और बड़े रोब से अपनी सेवा करवाते. चित्रा अनमनी हो जाती. मेवा डली खीर, पूरी, साग, भाजी बना कर परोसते हुए मां उसे एक दासी सरीखी लगती थीं.

चंदनदास सदैव भविष्य में किसी अनहोनी की ओर इशारा कर मां को आतंकित करते थे. इस का उपाय दानदक्षिणा बता कर खूब खर्चा करवाते. मां का उन पर अडिग विश्वास था. उन का मानना था कि बाबाजी के पावन चरण जब भी घर में पड़े हैं कुछ शुभ ही हुआ है. मां की इतनी श्रद्धा होने पर भी चित्रा को न जाने क्यों बाबा का मुसकरा कर देखना अच्छा नहीं लगता था. जब भी वह मां के कहने पर उन को प्रणाम करने जाती तो बाबा की आंखें उसे अपने शरीर पर फिसलती सी लगती थीं. चित्रा को उन की एक अन्य आदत बहुत खटकती थी. मोहित भैया के प्रणाम करने पर वे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते, जबकि उसे अपने सीने से लगा कर दुलार करते.

उस ने मां से एक बार यह कहा भी मां ने उलटा उसे ही लताड़ दिया, ‘‘पापा डांटें तब भी तुम्हें दिक्कत है और बाबाजी प्यार करें तो भी परेशानी है. दिमाग को एक तरफ रखा करो.’’

चित्रा की अनिच्छा के बाद भी मां ने फोन कर बाबाजी को उस की पढ़ाई वाली समस्या बताई और घर बुला लिया. इस बार चंदनदासजी ने उसे भी मोहित के समान सिर पर हाथ रख आशीष दिया तो चित्रा को कुछ राहत मिली, लेकिन अगले ही पल जब सुना कि वे उसे अपने मठ में बुलाएंगे वह अनमनी, बेचैन सी हो गई.

‘‘बाबाजी आप यहीं कह दें मुझे जो कहना है,’’ चित्रा हिम्मत जुटा कर बोली.

‘‘यह तो बिलकुल बेवकूफ है, आप बुरा न मानिएगा,’’ मां बाबाजी के समक्ष हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

वे कुछ और भी कहना चाह रही थीं कि चंदनदास ने मुसकराते हुए हाथ के इशारे से रुकने को कहा. चित्रा को संबोधित करते हुए वे बोले, ‘‘बेटा, तुम्हारी स्मरणशक्ति विकसित नहीं हो रही. मैं कुछ मंत्र वहां अपने सामने पढ़वा कर कंठस्थ करवाऊंगा. इस से 2 लाभ ये होंगे कि एक तो तुम कुछ भी पढ़ कर मस्तिष्क में रखना सीखोगी, दूसरा मंत्रशक्ति के प्रभाव से जीवन में सफलता प्राप्त करोगी.’’

अगले दिन चित्रा को मां के साथ बाबा के मठ जाना पड़ा. चंदनदास के एक शिष्य ने कुछ मंत्र लिख कर दिए और कहा कि इन को कंठस्थ करने का प्रयास करे. चित्रा को बारबार पढ़ कर भी 1-2 मंत्र ही याद हुए. चंदनदास ने सुन कर संतुष्टि दर्शाई और चित्रा को घर भेज दिया. यह सिलसिला 4 दिन चला. चित्रा का डर धीरेधीरे कम हो रहा था.

उस दिन अकेले ही मठ जाने को तैयार हो गई. इस बार शिष्य ने उसे सीधा चंदनदास के पास भेज दिया. चंदनदास मखमली बिस्तर पर तकिए का सहारा लिए बैठे थे. हाथ में कोई पेयपदार्थ लिए घूंटघूंट पीते हुए चित्रा की ओर एक लंबी मुसकान फेंकने के बाद चंदनदास ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया. कुटील मुसकराहट और चंदनदास के मुख पर आई वासना की भंगिमा चित्रा को असहज करने लगी. कमरे में सुनहरे बल्बों के चकाचौंध उजाले में चित्रा की धड़कनें असामान्य होने लगीं, कंठ सूख रहा था. वह संभलते हुए चंदनदास के निकट जा कर बैठी तो बाबा की आंखों में तैर रही लोलुपता स्पष्ट दिखने लगी.

‘‘मैं कल आऊंगी, सिर में दर्द हो गया अचानक,’’ चित्रा उठ कर जाने लगी.

मगर उस के कमरे के द्वार तक पहुंचने से पहले ही बत्तियां बुझ गईं. अकबका कर अंधेरे में दौड़ी तो दीवार से टकरा कर गिर पड़ी. चंदनदास ने उसे कस कर भींच लिया. कमरे में फैली अगरबत्ती की महक थी या चंदनदास ने कोई इत्र लगाया हुआ था, चित्रा को उबकाई आने लगी. कुछ. देर बाद उस के अनावृत शरीर के नीचे नर्म गद्देदार बिस्तर था और ऊपर कठोर, घृणित दानव. चित्रा का दम घुट रहा था. असहनीय पीड़ा से उस की चीख निकल गई. इस के बाद नहीं पता उसे कि क्या हुआ? जब चेतना लौटी तो वह मठ के एक कमरे में थी. मां सिरहाने बैठी थीं. सफेद कपड़े पहने एक महिला उस की तीमारदारी कर रही थी.

‘‘बिजली चली गई तो डर के मारे यह दौड़ पड़ी थी… थोड़ीबहुत चोट आई. कुछ दिनों बाद ठीक हो जाएगी,’’ उजले परिधान वाली मां से कह रही थी.

उस दिन घटी घटना ने चित्रा को भीतर तक तोड़ दिया. दिनरात उसे भय सताता था कि बाबा ने मां को फुसला कर यदि फिर उसे बुला लिया तो क्या करेगी. मगर चित्रा को चंदनदास का सामना दोबारा नहीं करना पड़ा. उस के पिता का ट्रांसफर लखनऊ हो गया.

चित्रा उस घटना को भूल तो नहीं सकती थी लेकिन प्रयास अवश्य करती थी. अपना ध्यान हटाने के लिए उस ने पढ़ाई को अधिक से अधिक समय देना शुरू किया तो खोया आत्मविश्वास फिर से लौटने लगा. 12वीं के बाद होटल मैनेजमैंट की प्रवेश परीक्षा में अच्छा रैंक आ गया. आईएचएम लखनऊ में दाखिला ले कर डिगरी पूरी करने के बाद दिल्ली के एक फाइवस्टार होटल में प्लेसमैंट भी हो गई.

एक ओर अपनी नई नौकरी को ले कर उत्साहित थी तो दूसरी ओर इस बात की शंका थी कि मां फिर से चंदनदास कांड न आरंभ कर दें. दिल्ली में मां के साथ उन की एक सहेली के घर ठहरी चित्रा की यह चिंता जल्द ही दूर हो गई. उसे पता लगा कि चंदनदास का डेरा वहां से उखड़ चुका है. एक दिन मां की सखी को यह कहते सुना, ‘‘जितने मुंह उतनी बातें. कोई कहता है बाबाजी तपस्या के लिए कहीं दूर निकल गए हैं तो कोई यह भी कह रहा था कि पुलिस के डर से कहीं छिप गए हैं.’’

मां यह सुन कर उदास हो गईं तो चित्रा ने चैन की सांस ली. जौब करते हुए चित्रा को 1 साल ही बीता था कि उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ा जाने लगा. चित्रा इस बात को ले कर भयभीत रहती कि चंदनदास ने उस के साथ जबरन जो संबंध बनाया था, उस के विषय में पति को कुछ पता तो नहीं लग जाएगा? कहीं उसे ही चरित्रहीन न समझने लगे भावी पति. मातापिता जोरशोर से मैट्रिमोनियल साइट्स खंगाल रहे थे.

इंदौर का रहने वाला अभिषेक उन को पसंद आ गया. अभिषेक ने बीबीए के बाद एमबीए किया था और किसी कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्य कर रहा था. अभिषेक व उस के परिवार वाले चाहते थे कि चित्रा नौकरी छोड़ दे क्योंकि रुपएपैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को समझदार, सुंदर लड़की की तलाश थी. चित्रा असमंजस में थी. अंत में उस ने विवाह करने के पक्ष में निर्णय ले लिया. सोच रही थी कि मातापिता को कब तक टालेगी? पति को प्रेम भी करेगी और दोस्त भी मानेगी. संभव है तब कोई समस्या न आए. वह चाहती थी कि अभिषेक के साथ विवाहपूर्व कुछ समय साथ बिता ले जिस से आपस में बनी झिझक की दीवार गिरने लगे.

चित्रा का यह प्रस्ताव न उस के मातापिता को पसंद आया और न ही अभिषेक ने शादी से पहले मिलने में रुचि दिखाई. चित्रा ने मन को सम?ा लिया कि नौकरी तो शादी के बाद करनी नहीं, ऐसे में अभिषेक के साथ समय बिताने का भरपूर अवसर मिलेगा. विवाह के बाद सर्वस्व लुटा दूंगी उस पर. मखमली सपने देखते हुए वह अभिषेक की पत्नी बन गई.

विवाह की पहली रात को कमरा सुगंधित पुष्पों से सजा था. शैंडलेयर्स का तीव्र प्रकाश, फूलों की महक और नर्म बिस्तर. चित्रा का अवचेतन मन बरसों पुरानी घटना को याद कर भय से कांप उठा. अभिषेक ने कमरे में आ कर

2 गिलासों में सौफ्ट ड्रिंक डाल एक गिलास चित्रा की ओर बढ़ा दिया. अभिषेक के हाथ में गिलास और तकिए के सहारे बैड पर उसे अधलेटा देख चित्रा को उस में चंदनदास की छवि दिखने लगी. घबराहट के कारण उसे चक्कर आने लगा. जब अभिषेक ने उसे अपने पास खींचा तो वह चिल्ला उठी. नाराजगी दिखा कर डांटते हुए अभिषेक ने उस के मुंह पर अपना हाथ रख नियंत्रण में रहने को कहा. चित्रा का दम फूलने लगा. अभिषेक उस रात चुपचाप सो गया.

3 रातें बीत गईं. अभिषेक नाराज ही रहा. दिन में चित्रा उस के साथ खुल कर बातें करने का प्रयास करती, प्यार जताती, लेकिन अभिषेक मुंह फेर लेता. रात को उस के पास लेटे हुए चित्रा चिंता में घुलती रहती. अभिषेक कभी क्रोध से बड़बड़ाते हुए तो कभी भावभंगिमाओं के सहारे अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करता.

एक नारी ब्रह्मचारी- भाग 2: पति वरुण की हरकतों पर क्या था स्नेहा का फैसला

कभीकभी वरुण का व्यवहार स्नेहा के लिए इतना एम्ब्रेसिंग हो जाता है कि वही शर्म से गड़ जाती है. अब वह कोई बच्चा तो है नहीं, जो दोचार थप्पड़ लगा कर समझा दिया जाए? उस दिन अपने दोस्त की वेडिंग एनिवर्सरी में कैसे वह उस खूबसूरत महिला के साथ शराब के नशे में झूमने लगा था. यह भी नहीं सोचा कि उस की इस हरकत से स्नेहा को कितना बुरा लग रहा होगा. और वह औरत भी कितनी बेशर्म थी, जो वरुण की बांहों में लिपटी मजे से थिरक रही थी. कौन थी वो औरत? जो भी हो, पर उसे देख कर लग नहीं रहा था कि वह शादीशुदा है. वैसे, अब कहां पता चल पाता है कि उक्त महिला शादीशुदा है या नहीं. क्योंकि सिंदूर, चूड़ियां और मंगलसूत्र पहनना तो अब बीते जमाने की बात हो गई.

आज की महिलाएं काफी मौडर्न बन चुकी हैं. वैसे, इस बात से स्नेहा को भी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वह खुद शादी का टैग लगा कर घूमना पसंद नहीं करती. लेकिन हां, जब उसे किसी पार्टी में जाना होता है तो कभीकभार स्टाइल के लिए मांग में जरा सा सिंदूर भर लेती है. वैसे भी, करीना कपूर हो, दीपिका पादुकोण या अनुष्का शर्मा, सभी शादीशुदा हीरोइनें बस फैशन के लिए ही तो मांग में सिंदूर भरती हैं.

वैसे, वरुण को भी इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह तो खुद कहता है, जरूरत क्या है यह सब करने की. खुल कर जियो यार. बचा हुआ खाना फ्रिज में रखते हुए स्नेहा सोचने लगी कि वरुण की हर बात सही है, पर उस का औरतों को घूरना, उस के साथ फ्लर्ट करना उसे जरा भी नहीं पसंद. तभी पीछे से आ कर वरुण ने उसे पकड़ लिया और कान में फुसफुसाते हुए बोला,
‘मेरी जान, चलो न. कितनी देर लगा रही हो. तुम्हारे बिना नींद नहीं आ रही है मुझे,’ अचानक से वरुण की पकड़ से स्नेहा सिहर उठी. मन तो उस का भी मचला, पर एकदम से उस ने अपना रुख बदल लिया.

“ऊंह… छोड़ो मुझे. और मेरे पास क्यों आए हो…?जाओ न अपनी उन महिला दोस्तों के पास, जिन के साथ हमेशा मोबाइल में चिपके रहते हो?” बोल कर स्नेहा ने कुहनी मारी, तो वरुण ने और कस कर उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया.

“छोड़ो न वरुण, मुझे नहीं अच्छा लगता ये सब. तुम बड़े वो हो…” लेकिन उस की बात पूरी होने से पहले ही वरुण ने उस के मुंह पर उंगली रख दी और उसे अपनी गोद में उठा कर कमरे में ले गया और स्नेहा कुछ न बोल पाई.

सुबह स्नेहा के चेहरे पर न तो कोई गुस्सा था और न ही कोई शिकवाशिकायत, बल्कि वह तो गुनगुनाते हुए अपने वरुण के लिए अदरकइलायची वाली चाय बना रही थी. अपनी प्यार भरी बातों से आज फिर वरुण ने अपनी भोलीभाली पत्नी को शीशे में उतार लिया था.

वरुण को औफिस भेज कर स्नेहा किचन के बाकी काम निबटाने लगी. तब तक कमला भी आ गई. कमला चुप नहीं रह सकती कभी भी. काम करते हुए ही पटरपटर बोलते रहना उस की आदत है.

कमला, कमला नहीं, बल्कि एक चलताफिरता टेपरेकौर्डर थी. आसपड़ोस के घरों में क्या हो रहा है, किस पतिपत्नी के बीच मनमुटाव चल रहा है, किस सासबहू में टंटा हुआ, किस की बेटी भाग गई? सब रेकौर्ड कर के रखती है और जाजा कर दूसरे घरों में सुनाती है. काम करते हुए ही रस लेले कर वह आसपड़ोस के घरों की कहानियां बोलती रहती है और सब बड़े प्यार से सुनते हैं.

कमला काम करने के तो पैसे लेती ही है, रसीली खबरें सुनाने के भी उसे कुछ न कुछ मिल ही जाता है. खुश हो कर कोई उसे अपनी अच्छीभली साड़ियां, सूट दे देती हैं, तो किसी के घर से पुरानी लिपस्टिक, नेल पालिश या मेकअप का सामान मिल जाने पर वह झूम उठती है. अब दे भी क्यों न, जब बिना मेहनत किए दूसरेतीसरे घरों का ‘आंखोंदेखा हाल’ जो सुनने को मिल जाता है तो… इनसानों की फितरत में है दूसरों के घरों में ताकझांक करना. लोग क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कैसे रहते हैं, उन की दिनचर्या क्या है? जानने की लोगों में बड़ी उत्सुकता रहती है. लेकिन खुद के घरों में क्या हो रहा है, यह उन्हें खुद पता नहीं होता है.

स्नेहा भी कमला के आने का बेसब्री से इंतजार करती, ताकि आसपड़ोस की चटपटी खबरें सुनने को मिल सकें.अपनी आदत के अनुसार आते ही कमला शुरू हो गई.

“क्या बात कर रही है कमला? मिश्राइन चाची का अपनी बहू से झगड़ा हुआ? अच्छा… बहू उन्हें अब अपने साथ नहीं रखना चाहती? हाय, क्या जमाना आ गया है देखो तो… लेकिन, वह तो अपनी बहू की बड़ाई करते नहीं थकती थी. जब देखो, मेरी बहू ये, मेरी बहू वो,” स्नेहा ने मुंह बिचकाया, तो कमला कहने लगी, “अरे दीदी, वह सब तो दिखावा था, असल में सासबहू एकदूसरे का मुंह तक देखना नहीं चाहती हैं. सास कहती है कि निकल जा इस घर से… और बहू कहती है कि तू निकल बुढ़िया, हम क्यों निकलें?

“सच कहूं दीदी, सही हुआ है उस मिश्राइन चाची के साथ… उस बुढ़िया ने अपनी बड़ी बहू का जीना हराम कर रखा था, तो देखो, मिल गया न सेर को सवा सेर.

‘‘अरे दीदी, इस मिश्राइन चाची को छोड़ो. मेनका मैडम के बारे में सुनो. अरे वही, पार्लर वाली.‘‘

“हां… हां, बता न क्या हुआ उस के साथ?” स्नेहा ने सांस रोक कर पूछा.

“दीदी, सुना है कि उस के फेशियल से किसी को रिएक्शन हो गया. चेहरा सूज कर लाल हो गया बेचारी का. वह औरत तो मेनका मैडम को पुलिस में ले जाने की धमकी देने लगी.‘‘

“ये क्या कह रही है तू कमला? पर तुझे यह सब कैसे पता चला?” हैरानी से स्नेहा बोली.

“आप को तो पता ही है कि मेनका मैडम ने मुझ पर पार्लर से सामान चोरी करने का इलजाम लगाया था? हां, तो तभी से मैं ने उन के घर काम करना छोड़ दिया. लेकिन मेरी ही बस्ती की एक औरत उस के घर काम करने जाती है. उस ने ही बताया कि वह महिला मेनका मैडम पर केस करने जा रही थी. फिर मेनका मैडम ने उस औरत के सामने हाथपैर जोड़े, अपने बच्चों का वास्ता दिया, तब जा कर वह रुकी. पता नहीं, कुछ पैसे भी दिए होंगे शायद उसे. तभी तो वह पुलिस के पास नहीं गई. अच्छा हुआ, सारी बेईमानी एक बार में निकल गई. सच कहती हूं दीदी बड़ा मजा आया सुन कर कि उस की सारी अकड़ टांयटांय फुस हो गई,” एक लंबी सांस छोड़ते हुए विजयी मुसकान के साथ कमला बोली, “हम्म… अपनेआप को बड़ी श्रीदेवी समझती थी,” कमला की बात पर स्नेहा की हंसी छूट गई.

वैसे, स्नेहा को भी खूब मजा आ रहा था मेनका की बुराई सुन कर. उस के घमंडी व्यवहार के कारण ही तो स्नेहा ने उस का पार्लर जाना छोड़ दिया था.

“और मेनका मैडम के पति तो एकदम गिरा हुआ इनसान है,” कमला फिर शुरू हो गई, “आज सुबह जब मैं काम पर आ रही थी, तब वह मुझे ऐसे घूरने लगा कि क्या कहूं. ऐसा लग रहा था जैसे खा ही जाएगा. मैं भी उस के सामने थू कर आगे बढ़ गई. अच्छा किया न दीदी? ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए,” बोल कर कमला जिस तरह से हंसने लगी, स्नेहा को अच्छा नहीं लगा.

“सच कहूं, ये मर्दजात बड़े छिछोरे होते हैं. औरत या लड़की देखी नहीं कि इन के मुंह से लार टपकने लगती है.‘‘

“अच्छा… अच्छा, चुप हो जा अब, बहुत बोलती है तू,” स्नेहा ने डपटा, तो वह चुप हो गई. लेकिन स्नेहा का सिर भारी होने लगा.

“सुन, तेरा काम पूरा हो जाए तो एक कप चाय बनाती जाना. मेरा सिर भारी हुआ जा रहा है,” बोल कर स्नेहा किताब उठा कर उस के पन्ने पलटने लगी. लेकिन उस के चेहरे के आगे उस स्कूटी वाली लड़की का चेहरा नाचने लगा, जिसे वरुण गंदी नजरों से घूर रहा था और वह उस से बचने की कोशिश कर रही थी.

‘उस लड़की का मन भी तो वरुण के मुंह पर थूकने का कर रहा था?’ सोच कर स्नेहा शर्म से गढ़ गई. अपनी जिंदगी में हर एक लड़की को एक न एक बार इस सिचुएसन से गुजरना ही पड़ता है. कभीकभी तो करीबी दोस्त या परिवार का ही कोई सदस्य लड़कियों का शोषण करता है और वह कुछ बोल नहीं पाती है. एकाएक स्नेहा को वर्षों पुरानी बात याद हो आई और उस का मन कड़वाहट से भर उठा.

वह और उस की दोस्त मालती एक ही स्कूल में साथ पढ़ती थीं. दोनों का साथ आनाजाना, पढ़ना होता था. चूंकि दोनों का घर आसपास ही था, तो अकसर दोनों एकदूसरे के घर भी आयाजाया करती थीं. लेकिन उसे बुरा लगता, जब मालती का भाई उसे गंदी नजरों से घूरता. वह तो उसे अपने भाई की तरह मानती थी, लेकिन वह उस पर गंदी नजर रखता था.

एक बार अकेले पा कर वह स्नेहा के साथ गंदी हरकतें करने लगा. उसे यहांवहां छूने लगा. स्नेहा चिल्लाती रही, ‘भैया छोड़ो मुझे,’ मगर वह उस के स्तन को दबाता रहा. तब स्नेहा 15 साल की थी. कितनी मुश्किल से वह वहां से अपनी जान बचा कर भागी थी, वही जानती है.

प्यार न माने सरहद: समीर और एमी क्या कर पाए शादी?

समीर को सीएटल आए 3 महीने हो गए थे. वह बहुत खुश था. डाक्टर मातापिता का छोटा बेटा. बचपन से ही कुशाग्र बुद्घि था. आईआईटी दिल्ली का टौपर था. मास्टर्स करते ही माइक्रोसौफ्ट में जौब मिल गई. स्कूल के दिनों से ही वह अमेरिकन सीरियल और फिल्में देखता, मशहूर सीरियल फ्रैंड्स उसे रट गया था. भारत से अधिक वह अमेरिका के विषय में जानता था. वह अपने सपनों के देश पहुंच गया.

सीएटल की सुंदरता देख कर वह मुग्ध हो गया. चारों ओर हरियाली ही हरियाली, नीला साफ आसमान, बड़ीबड़ी झीलें और समुद्र, सब कुछ इतना मनोरम कि बस देखते रहो. मन भरता ही नहीं.

समीर सप्ताह भर काम करता और वीकैंड में घूमने निकल जाता. कभी ग्रीन लेक पार्क, कभी लेक वाशिंगटन, कभी लेक, कभी माउंट बेकर, कभी कसकेडीएन रेंज, तो कभी स्नोक्वाल्मी फाल्स.

खाना खाने के ढेरों स्थान, दुनिया के सभी स्थानों का खाना यहां मिलता. वह नईनई जगह खाना खाने जाता. अब तक वह चीज फैक्ट्री, औलिव गार्डन, कबाब पैलेस, सिजलर्स एन स्पाइस कनिष्क, शालीमार ग्लोरी का खाना चख चुका था.

औफिस उस का रैडमंड में था सीएटल के पास. माइक्रोसौफ्ट में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी यहां रहते हैं. मिक्स आबादी है- गोरे, अफ्रीकन, अमेरिकन और एशियाई देशों के लोग यहां रहते हैं. यहां भारतीय और पाकिस्तानी भी अच्छी संख्या में हैं. देशी खाने के कई रेस्तरां हैं. इसीलिए समीर ने यहां एक बैडरूम का अपार्टमैंट लिया.

औफिस में बहुत से भारतीय थे. अधिकतर दक्षिण भारत से थे. कुछ उत्तर भारतीय भी थे. सभी इंग्लिश में ही बात करते. हायहैलो हो जाती. देख कर सभी मुसकराते. यह यहां अच्छा था, जानपहचान हो न हो मुसकरा कर अभिवादन करा जाता.

समीर की ट्रेनिंग पूरी हो गई तो उसे प्रोजैक्ट मिला. 5 लोगों की टीम बनी. एक दक्षिण भारतीय, 2 गोरे और 1 लड़की एमन. समीर एमन से बहुत प्रभावित हुआ. बहुत सुंदर, लंबी, पतली, गोरी, भूरे बाल, नीली आंखें. पहनावा भी बहुत अच्छा फौर्मल औफिस ड्रैस. बातचीत में शालीन. अमेरिकन ऐक्सैंट में बातें करती और देखने में भी अमेरिकन लगती थी. मूलतया एमन कहां की थी, इस विषय में कभी बात नहीं हुई. उसे सब एमी कहते थे.

एमी काम में बहुत होशियार थी. सब के साथ फ्रैंडली. समीर भी बुद्घिमान, काम में बहुत अच्छा था. देखने में भी हैंडसम और मदद करने वाला. अत: टीम में सब की अच्छी दोस्ती हो गई.

एक दोपहर समीर ने एमी से साथ में लंच करने को कहा. वह मान गई. दोनों ने लंच साथ किया. समीर ने बर्गर और एमी ने सलाद लिया. वह हलका लंच करती थी.

समीर ने पूछा, ‘‘यहां अच्छा खाना कहां मिलता है?’’

‘‘आई लाइक कबाब पैलेस,’’ एमी ने जवाब दिया.

समीर को आश्चर्य हुआ कि अमेरिकन हो कर भी यह भारतीय देशी खाना पसंद करती है.

समीर ने जब एमी से पूछा कि क्या तुम्हें इंडियन खाना पसंद है, तो उस ने बताया कि हां इंडियन और पाकिस्तानी एकजैसा ही होता है. फिर जब समीर ने पूछा कि क्या तुम अमेरिकन हो तो एमी ने बताया कि हां वह अमेरिकन है, मगर दादा पाकिस्तान से 1960 में अमेरिका आ गए थे.

समीर सोचता रहा कि एमी को देख कर उस के पहनावे से, बोलचाल से कोई नहीं कह सकता कि वह पाकिस्तानी मूल की है. दोनों एकदूसरे में काफी रुचि लेने लगे. अब तो वीकैंड भी साथ गुजरता. एमी ने समीर को सीएटल और आसपास की जगहें दिखाने का जिम्मा ले लिया था. पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने जाते, माउंट रेनियर गए. सीएटल की स्पेस नीडल 184 मीटर ऊंचाई पर घूमते हुए स्काई सिटी रेस्तरां में खाना खाया. यहां से शहर देखना एक सपने जैसा लगा.

सीएटली ग्रेट व्हील में वह डरतेडरते बैठा. 53 मीटर की ऊंचाई, परंतु एमी को डर नहीं लगा. भारत में वह मेले में जब भी बैठता था तो बहुत डरता था. यहां आरपार दिखने वाले कैबिन में बैठ कर मध्यम गति से चलने वाला झूला आनंद देता है डराता नहीं.

फेरी से समुद्र से व्हिदबी टापू पर जाना, वहां का इतालियन खाना खाना उसे बहुत रोमांचित करता था. भारत में भी समुद्रतट पर पर जाता था पर पानी एवं वातावरण इतना साफ नहीं होता था. पहाड़ी रास्ते 4 लेन चौड़े, 5 हजार फुट की ऊंचाई पर जाना पता भी नहीं चलता. अपने यहां तो पहाड़ी रास्ते इतने संकरे कि 2 गाडि़यों का एकसाथ निकलना मुश्किल.

साथसाथ घूमतेफिरते दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान गए थे. जैसे एमी के दादा का परिवार 1947 में लखनऊ, भारत से कराची चला गया था. दादी भी लखनऊ से विवाह कर के आई थीं. उन के रिश्तेदार अभी भी लखनऊ में हैं. 1960 में अमेरिका में न्यूयौर्क आए थे. उस के पिता और ताया दोनों छोटेछोटे थे, जब वे अमेरिका आए.

दादादादी ने अपनी संस्कृति के अनुसार बच्चों को पाला था. यहां का खुला माहौल उन्हें बिगाड़ न दे, इस का पूरा खयाल रखा था. ताया पर अधिक सख्ती की गई. वे मुल्ला बन गए. अभी भी न्यूयौर्क में ही रहते हैं और उन का एक बेटा है, जो एबीसीडी है अर्थात अमेरिकन बोर्न कन्फ्यूज्ड देशी.

ताया को अधिक धार्मिक होते देख दादा ने एमी के पिता पर अधिक अनुशासन नहीं लगाया और वे इकोनौमिक्स के प्रोफैसर बन गए. एमी की मां नैंसी अमेरिकन थीं और पिता की सहपाठी. वे अब नरगिस हैं. उन्होंने इसलाम कुबूल कर लिया और दादादादी की देखरेख में नमाजी और उर्दू बोलने वाली बहू बन गईं. दादा तो अब नहीं रहे, दादी साथ रहती थीं, हिंदी फिल्मों की दीवानी. एक सुखी परिवार है.

एमी की परवरिश में देशी और अमेरिकी संस्कृति का समावेश था. अत: वह सभ्य, अनुशासित, समय की पाबंद थी. सुंदर थी, साथ ही अपनी सुंदरता को संवार कर और संभाल कर रखने वाली भी थी. अमेरिकियों की तरह सुबह जल्दी उठना, व्यायाम करना, रात में जल्दी सोना और वीकैंड पर घूमना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस के घर में उर्दू भाषा ही बोली जाती. वह उर्दू जानती थी पर बोलती इंग्लिश में थी. एमी के विषय में जान कर समीर को अच्छा लगा. समीर को एमी से प्यार हो गया. वह हर कीमत पर उसे पाना चाहता था. परंतु पाकिस्तानी मूल का होना… कैसे बात बनेगी?

दोनों 6 महीनों से साथ थे. एकदूसरे में रुचि अब एकदूसरे को पाने की चाह में बदल गई थी.

एमी ने समीर को अपने घर वालों से मिलने के लिए बुलाया. घर वालों से यह कह कर मिलाया कि यह औफिस का मित्र है समीर. एमी की दादी को देख कर समीर को अपनी दादी याद आ गई. सलवारसूट में वैसी ही लग रही थीं. प्रोफैसर साहब बहुत हंसमुख थे. तुरंत घुलमिल गए. फुटबौल के दीवाने थे. सीएटल टीम के फैन. समीर को यहां का फुटबौल अजीब लगता था. हाथपैर दोनों से खेला जाता. अधिकतर बौल हाथ में ले कर भागते हैं.

एमी की मां सभ्यशालीन महिला थीं. एमी बिलकुल अपनी मां जैसी थी. एमी की मां ने बिलकुल देशी खाना बनाया था. समीर लखनऊ से है, यह सुन कर दादी तो गदगद हो गईं. अपने बचपन के मायके के किस्से सुनाने लगीं. एक लंबे समय बाद वह इतनी देर हिंदी में बोला. उसे अच्छा लगा. यहां तो वह जब से आया है मुंह टेढ़ा कर के ऐक्सैंट में बोलने की कोशिश करता रहा है.

समीर ने ध्यान दिया दादी, प्रोफैसर, नरगिस सभी उर्दू में बात करते हैं. पर एमी इंग्लिश में जवाब देती. कभीकभी हिंदी में भी. उर्दूहिंदी एकजैसी भाषाएं हैं, जिन्हें वह अपने यहां भी सुनताबोलता था. बस इन के उर्दू में कुछ शब्द गाढ़े उर्दू के हैं पर बात समझ में आ जाती है. उसे यहां अपनापन लगा. एमी के घर वालों को भी समीर अच्छा लगा और उसे बराबर आते रहने का न्योता दिया.

एमी ने समीर के जाने के बाद जब घर वालों से पूछा कि समीर उन्हें कैसा लगा तो वे लोग बोले कि अच्छा है. तब उस ने बताया कि समीर और वह शादी करना चाहते हैं.

यह सुन उस की दादी तो खुश हो गईं क्योंकि वह उन के मायके से जो था और उन्हें समीर नाम से मुसलमान लगा था. प्रोफैसर ने आपत्ति की कि वह पाकिस्तानी नहीं भारतीय है. एमी की मां ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा कि कहीं ग्रीन कार्ड के लालच में शादी तो नहीं करना चाहता है. लड़के को अमेरिकन सिटीजन होना चाहिए.

एमी ने धीरेधीरे समीर के बारे में 1-1 बात बताई कि वह भारतीय भी है और हिंदू भी. उस का परिवार भारत में है. अत: कभी भी वापस जा सकता है.

दादी, प्रोफैसर और नरगिस सब ने एकसाथ आपत्ति की कि हिंदू से शादी नहीं हो सकती.

एमी बोली, ‘‘अब तक वह आप सब को बहुत पसंद था पर उस के हिंदू और भारतीय होने से वह बुरा कैसे हो गया?’’

जब कोई प्यार में होता है तो उसे धर्म, भाषा, नागरिकता कुछ दिखाई नहीं देता. दिखता है तो केवल प्यार से भरा मन और वह व्यक्ति जो उस के साथ जीवन बिताना चाहता है. वहीं दूसरे लोगों को व्यक्ति और उस का मन, उस के गुण नहीं दिखते, केवल धर्म दिखता है.

‘‘डैडी आप और ममा ने भी तो दूसरे धर्म में शादी की थी, फिर आप लोग कैसे कह रहे हैं?’’

‘‘बेटी, तुम्हारी मां को हम अपने घर लाए थे. वह हम में रचबस गई. उस ने इसलाम कुबूल कर लिया. तुम्हें दूसरे घर जाना है. यह अंतर है. कल को वह लड़का तुम्हें हिंदू बना ले तो तुम्हारी तो आखरत (मरने के बाद की जिंदगी) गई.’’

एमी ने समीर को सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘हम दोनों को जब कोई प्रौब्लम नहीं तो उन्हें क्यों है? हम जब चाहें शादी कर सकते हैं. हमें कोई रोक नहीं सकता पर मैं चाहती हूं कि मेरी फैमिली मेरे साथ हो,’’ यह एमी की देशी परवरिश की सोच थी.

समीर ने कहा, ‘‘तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘मरते दम तक.’’

‘‘तो ठीक है अपने घर वालों से मेरी मीटिंग करवाओ.’’

रविवार को समीर एमी के घर वालों से मिलने गया. शाहरुख खान की मूवी की डीवीडी दादी के लिए ले गया. दादी शाहरुख खान की दीवानी थीं सो खुश हो गईं. प्रोफैसर कुछ ठंडे थे. समीर ने उन से सीएटल टीम फुटबौल की बातें छेड़ दीं. वे भी सामान्य हो गए. नरगिस के लिए कबाब ले गया था. वे भी कुछ नौर्मल हो गईं.

फिर समीर ने अपनी मंशा बताई, ‘‘मैं और एमी एकदूसरे से प्यार करते हैं…जीवन भर साथ रहना चाहते हैं…शादी करना चाहते हैं. मगर आप सब की मरजी से…’’ मैं नेशनैलिटी के लिए शादी नहीं कर रहा हूं. मेरी कंपनी ने मेरा ग्रीन कार्ड अप्लाई कर दिया है. हां, मैं इंडियन हूं और मैं भारत आताजाता रहूंगा, मेरे परिवार को जब भी मेरी आवश्यकता होगी मैं उन के पास जाऊंगा… इसी प्रकार जब आप लोगों को भी मेरी जरूरत होगी तो मैं आप का भी साथ दूंगा. रहा धर्म तो यदि मैं आप को दिखाने के लिए मुसलिम बन जाऊं और मन से हिंदू रहूं तो आप क्या कर सकते हैं? धर्म में हम उसे ही याद करते हैं जिसे न आप ने देखा न मैं ने. उसे किस नाम से पुकारें इस पर लड़ाई है, किस प्रकार याद करें इस पर सहमति नहीं. इंसान जिन्हें एकदूसरे से प्यार है वे इसलिए शादी नहीं कर सकते, क्योंकि वे ऊपर वाले को अलगअलग नामों से पुकारते हैं, अलगअलग तरह से याद करते हैं.’’

उस ने मीर को कुछ पढ़ रखा था और एक शेर जो उसे याद था कहा, ‘‘ ‘मत इन नमाजियों को खानसाज-ए-दीं जानो, कि एक ईंट की खातिर ये ढोते होंगे कितने मसीत’ दादी ये धर्म के चोंचले अमेरिका में आ कर तो हम छोड़ दें.’’

सब चुप रहे. जानते थे कि यह ठीक कह रहा.

प्रोफैसर को मुसलिम समाज और सब से बढ़ कर भाईजान का डर था. अमेरिका में भी हम ने अपना पाकिस्तानहिंदुस्तान बना लिया है, अपनी मान्यताएं अपने रीतिरिवाज… यहां वैसे तो इंडियनपाकिस्तानी मिल कर रहते हैं पर शादीविवाह अपने धर्म में ही पसंद करते हैं.

हां, साथसाथ स्कूल, कालेज, औफिस की दोस्ती में अकसर अलगअलग जगह के लोगों में शादियां हो जाती हैं, परंतु मंदिरमसजिद में मिलने वाले साथी पसंद नहीं करते. प्रोफैसर को उन का तो डर नहीं था पर भाईजान…

दादी भी जानतीं थी कि पाकिस्तानियों में तलाक अधिक होते हैं और भारत वाले साथ निभाते हैं. फिर भी हिंदू से…

एमी के घर वाले समीर के बराबर आनेजाने से धीरेधीरे उस से घुलमिल गए. बात टल सी गई पर समीर बराबर जाता रहता. दादी से हिंदी मूवीज पर बातें करता, प्रोफैसर के साथ फुटबौल मैच टीवी पर देखता, उन के लैपटौप में नएनए गेम्स लोड करता, लौन की घास काटने में प्रोफैसर की मदद करता, काटना तो मशीन से होता है पर मेहनत का काम है. नरगिस की किचन में हैल्प करता. यहां सारे काम खुद ही करने होते हैं.

प्रोफैसर कहते, ‘‘मैं तो 3 औरतों में अकेला पड़ गया था… तुम से अच्छी कंपनी मिलती है.’’

समीर एमी से कहता, ‘‘यार एमी, मैं तो तुम्हारे घर का छोटू बन गया पर दामाद बनने के चांस नहीं दिखते. तुम मुझे डिच दे कर किसी पाकी के साथ निकल गईं तो?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘यू नैवर नो.’’

प्रोफैसर सोचते समीर अच्छा है, बोलचाल, विचार हमारे जैसे हैं. एमी के साथ जोड़ी अच्छी है, दोनों एकदूसरे के साथ खुश रहेंगे, फिर क्या हुआ अगर वह अल्लाह को ईश्वर कहता है? पूजा करना उस का मामला है… एमी को तो पूजा करने को नहीं कह रहा…

हिम्मत कर के न्यूयौर्क में भाईजान से बात की. बताया कि एमी ने लड़का पसंद कर लिया है हिंदुस्तानी है.

भाईजान बोले, ‘‘क्या पाकिस्तानी लड़कों का अकाल पड़ गया जो हिंदुस्तानी लड़का देखा?’’

‘‘एमी को पसंद है.’’

‘‘हां, अमेरिकन मां की बेटी जो है.’’

‘‘लड़का बहुत अच्छा है. बस वह हिंदू है.’’

भाईजान पर तो जैसे बम फटा, ‘‘क्या कह रहे हो? काफिर को दामाद बनाओगे?’’

प्रोफैसर मिनमिनाए, ‘‘भाईजान, आप तो जानते हैं यहां तो बच्चे भी नहीं सुनते जरा तंबीह करो तो 911 कौल कर पुलिस बुला लेते हैं और बड़े हो कर तो और भी आजाद हो जाते हैं. ये हम से इजाजत मांग रहे हैं, यह क्या कम है? हम हां कर दें तो हमारा बड़प्पन रह जाएगा.’’

भाईजान को लगा कि प्रोफैसर ठीक कह रहे हैं. अत: बोले, ‘‘ठीक है वह मुसलमान हो जाए तो हो सकता है.’’

‘‘नहीं वह इस पर राजी नहीं. वह एमी से भी धर्म परिवर्तन के लिए नहीं कह रहा.’’

भाईजान चिल्लाए, ‘‘काफिर से निकाह नहीं हो सकता. अगर तुम ने शादी की तो मुझ से कोई रिश्ता न रखना… मुल्लाजी को भी तो अपने समाज में सिर उठा कर चलना है वरना उन की कौन सुनेगा.’’

प्रोफैसर को भाई की बातों से बहुत दुख हुआ. हार्ट के मरीज तो थे ही सो हार्ट अटैक आ गया. नरगिस और दादी थीं घर पर. नरगिस ने ऐंबुलैंस कौल की. ऐंबुलैंस डाक्टर व नर्स के साथ आ गई. अस्पताल में भरती किया गया. एमी, नरगिस, दादी और समीर रोज देखने जाते. यहां अस्पताल में भरती करने के बाद डाक्टर व नर्स पूरी देखभाल करते हैं. अस्पताल का रूम फाइवस्टार सुविधा वाला होता है. प्रोफैसर को यहां का खाना पसंद नहीं, तो नरगिस उन का खाना घर से लाती थीं. यहां मरीज की देखभाल अच्छी की जाती है. बिल इंश्योरैंस से जाता है. कुछ 10-15% देना पड़ता है.

कुछ दिन बाद प्रोफै सर घर आ गए. अभी भी देखभाल की आवश्यकता थी. परहेजी खाना ही चल रहा था. इस दौरान समीर उन की देखभाल बराबर करता एक बेटे की तरह और औफिस में भी एमी के काम में मदद करता ताकि एमी प्रोफैसर साहब को अधिक समय दे सके.

प्रोफैसर के दोस्त, मिलने वाले मसजिद के साथी सब दोएक बार आए. भाईजान ने केवल फोन पर खैरियत ली.

बीमारी में कोई देखने आए तो अच्छा लगता है. अमेरिका में किसी के पास समय नहीं है. समीर प्रतिदिन आता. प्रोफैसर को भी अच्छा लगता. प्रोफैसर को लगता अगर उन का अपना बेटा भी होता तो शायद वह भी इतना ध्यान नहीं रखता.

आखिर प्रोफैसर ठीक हो गए. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या तुम ने घर वालों से शादी की बात की?’’

समीर ने बताया, ‘‘हां मैं ने घर वालों को मना लिया है… पहले तो सब नाराज थे पर एमी से बात कर के सब खुश हो गए. मेरे मातापिता धर्मजाति नहीं मानते पर एमी पाकिस्तानी मूल की होने पर चौंके थे. मगर मेरी पसंद के आगे उन्हें सब छोटा लगने लगा. अत: सब राजी हो गए.’’

प्रोफैसर ने अपने ठीक होने की पार्टी में अपने सभी मिलने वालों, दोस्तों को बुलाया और फिर समीर और एमी की मंगनी की घोषणा कर दी. वे जानते थे शादी में बहुत लोग नहीं आएंगे. दोनों परिवारों की मौजूदगी में शादी सादगी से कोर्ट में हो गई और फिर रिसैप्शन पार्टी होटल में की, जिस में दोनों के औफिस के साथी, नरगिस और प्रोफैसर के दोस्त, पड़ोसी, मिलने वाले शामिल हुए. भाईजान और उन की जैसी सोच वाले नहीं आए. 2 प्रेमी पतिपत्नी बन गए. सच ही तो है, प्रेम नहीं मानता कोई सरहद, भाषा या धर्म.

चक्रव्यूह: सायरा को मुल्क अलग होने का क्यों हुआ फर्क

सुबह का अखबार देखते ही मंसूर चौंक पड़ा. धूधू कर जलता ताज होटल और शहीद हुए जांबाज अफसरों की तसवीरें. उस ने लपक कर टीवी चालू किया. तब तक सायरा भी आ गई.

‘‘किस ने किया यह सब?’’ उस ने सहमे स्वर में पूछा.

‘‘वहशी दरिंदों ने.’’

तभी सायरा का मोबाइल बजा. उस की मां का फोन था.

‘‘जी अम्मी, हम ने भी अभी टीवी खोला है…मालूम नहीं लेकिन पुणे तो मुंबई से दूर है…वह तो कहीं भी कभी भी हो सकता है अम्मी…मैं कह दूंगी अम्मी… हां, नाम तो उन्हीं का लगेगा, चाहे हरकत किसी की हो…’’

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‘‘सायरा, फोन बंद करो और चाय बनाओ,’’ मंसूर ने तल्ख स्वर में पुकारा, ‘‘किस की हरकत है…यह फोन पर अटकल लगाने का मुद्दा नहीं है.’’

सायरा सिहर उठी. मंसूर ने पहली बार उसे फोन करते हुए टोका था और वह भी सख्ती से.

‘‘जी…अच्छा, मैं कुछ देर बाद फोन करूंगी आप को…जी अम्मी जरूर,’’ कह कर सायरा ने मोबाइल बंद कर दिया और चाय बनाने चली गई.

टीवी देखते हुए सायरा भी चुपचाप चाय पीने लगी. पूछने या कहने को कुछ था ही नहीं. कहीं अटकलें थीं और कहीं साफ कहा जा रहा था कि विभिन्न जगहों पर हमले करने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी थे.

‘‘आप आज आफिस मत जाओ.’’

इस से पहले कि मंसूर जवाब देता दरवाजे की घंटी बजी. उस का पड़ोसी और सहकर्मी सेसिल अपनी बीवी जेनेट के साथ खड़ा था.

‘‘लगता है तुम दोनों भी उसी बहस में उलझ कर आए हो जिस में सायरा मुझे उलझाना चाह रही है,’’ मंसूर हंसा, ‘‘कहर मुंबई में बरस रहा है और हमें पुणे में, बिल में यानी घर में दुबक कर बैठने को कहा जा रहा है.’’

‘‘वह इसलिए बड़े भाई कि अगला निशाना पुणे हो सकता है,’’ जेनेट ने कहा, ‘‘वैसे भी आज आफिस में कुछ काम नहीं होगा, सब लोग इसी खबर को ले कर ताव खाते रहेंगे.’’

‘‘खबर है ही ताव खाने वाली, मगर जेनी की यह बात तो सही है मंसूर कि आज कुछ काम होगा नहीं.’’

‘‘यह तो है सेसिल, शिंदे साहब का बड़ा भाई ओबेराय में काम करता है और बौस का तो घर ही कोलाबा में है. इसलिए वे लोग तो आज शायद ही आएं. और लोगों को फोन कर के पूछते हैं,’’ मंसूर बोला.

‘‘जब तक आप लोग फोन करते हैं मैं और जेनी नाश्ता बना लेते हैं, इकट्ठे ही नाश्ता करते हुए तय करना कि जाना है या नहीं,’’ कह कर सायरा उठ खड़ी हुई.

‘‘यह ठीक रहेगा. मेरे यहां जो कुछ अधबना है वह यहीं ले आती हूं,’’ कह कर जेनेट अपने घर चली गई. यह कोई नई बात नहीं थी. दोनों परिवार अकसर इकट्ठे खातेपीते थे लेकिन आज टीवी के दृश्यों से माहौल भारी था. सेसिल और मंसूर बीचबीच में उत्तेजित हो कर आपत्तिजनक शब्द कह उठते थे, जेनी और सायरा अपनी भरी आंखें पोंछ लेती थीं तभी फिर मोबाइल बजा. सायरा की मां का फोन था.

‘‘जी अम्मी…अभी वही बात चल रही है…दोस्तों से पूछ रहे हैं…हो सकता है हो, अभी तो कुछ सुना नहीं…कुछ मालूम पड़ा तो जरूर बताऊंगी.’’

‘‘फोन मुझे दो, सायरा,’’ मंसूर ने लपक कर मोबाइल ले लिया, ‘‘देखिए अम्मीजान, जो आप टीवी पर देख रही हैं वही हम भी देख रहे हैं इसलिए क्या हो रहा है उस बारे में फोन पर तबसरा करना इस माहौल में सरासर हिमाकत है. बेहतर रहे यहां फोन करने के बजाय आप हकीकत मालूम करने को टीवी देखती रहिए.’’

मोबाइल बंद कर के मंसूर सायरा की ओर मुड़ा, ‘‘टीवी पर जो अटकलें लगाई जा रही हैं वह फोन पर दोहराने वाली नहीं हैं खासकर लाहौर की लाइन पर.’’

‘‘आज के जो हालात हैं उन में लाहौर से तो लाइन मिलानी ही नहीं चाहिए. माना कि तुम कोई गलत बात नहीं करोगी सायरा, लेकिन देखने वाले सिर्फ यह देखेंगे कि तुम्हारी कितनी बार लाहौर से बात हुई है, यह नहीं कि क्या बात हुई है,’’ सेसिल ने कहा.

‘‘सायरा, अपनी अम्मी को दोबारा यहां फोन करने से मना कर दो,’’ मंसूर ने हिदायत के अंदाज में कहा.

‘‘आप जानते हैं इस से अम्मी को कितनी तकलीफ होगी.’’

‘‘उस से कम जितनी उन्हें यह सुन कर होगी कि पुलिस ने हमारे लाहौर फोन के ताल्लुकात की वजह से हमें हिरासत में ले लिया है,’’ मंसूर चिढ़े स्वर में बोला.

‘‘आप भी न बड़े भाई बात को कहां से कहां ले जाते हैं,’’ जेनेट बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा लेकिन फिर भी एहतियात रखनी तो जरूरी है सायरा. अब जब अम्मी का फोन आए तो उन्हें भी यह समझा देना.’’

दूसरे सहकर्मियों को फोन करने के बाद सेसिल और मंसूर ने भी आफिस जाने का फैसला कर लिया.

‘‘मोबाइल पर नंबर देख कर ही फोन उठाना सायरा, खुद फोन मत करना, खासकर पाकिस्तान में किसी को भी,’’ मंसूर ने जातेजाते कहा.

मंसूर ने रोज की तरह अपना खयाल रखने को नहीं कहा. वैसे आज जेनी और सेसिल ने भी ‘फिर मिलते हैं’ नहीं कहा था.

सायरा फूटफूट कर रो पड़ी. क्या चंद लोगों की वहशियाना हरकत की वजह से सब की प्यारी सायरा भी नफरत के घेरे में आ गई?

नौकरानी न आती तो सायरा न जाने कब तक सिसकती रहती. उस ने आंखें पोंछ कर दरवाजा खोला. सक्कू बाई ने उस से तो कुछ नहीं पूछा मगर श्रीमती साहनी को न जाने क्या कहा कि वह कुछ देर बाद सायरा का हाल पूछने आ गईं. सायरा तब तक नहा कर तैयार हो चुकी थी लेकिन चेहरे की उदासी और आंसुओं के निशान धुलने के बावजूद मिटे नहीं थे.

‘‘सायरा बेटी, मुंबई में कोई अपना तो परेशानी में नहीं है न?’’

‘‘मुंबई में तो हमारा कोई है ही नहीं, आंटी.’’

‘‘तो फिर इतनी परेशान क्यों लग रही हो?’’

साहनी आंटी से सायरा को वैसे भी लगाव था. उन के हमदर्दी भरे लफ्ज सुनते ही वह फफक कर रो पड़ी. रोतेरोते ही उस ने बताया कि सब ने कैसे उसे लाहौर बात करने से मना किया है. मंसूर ने अम्मी से तल्ख लफ्जों में क्या कहा, यह भी नहीं सोचा कि उन्हें मेरी कितनी फिक्र हो रही होगी. ऐसे हालात में वह बगैर मेरी खैरियत जाने कैसे जी सकेंगी?

‘‘हालात को समझो बेटा, किसी ने आप से कुछ गलत करने को नहीं कहा है. अगर किसी को शक हो गया तो आप की ही नहीं पूरी बिल्ंिडग की शामत आ सकती है. लंदन में तेरा भाई सरवर है न इसलिए अपनी खैरखबर उस के जरिए मम्मी को भेज दिया कर.’’

‘‘पता नहीं आंटी, उस से भी बात करने देंगे या नहीं?’’

‘‘हालात को देखते हुए न करो तो बेहतर है. रंजीत ने तुझे बताया था न कि वह सरवर को जानता है.’’

‘‘हां, आंटी दोनों एक ही आफिस में काम करते हैं,’’ सायरा ने उम्मीद से आंटी की ओर देखा, ‘‘क्या आप मेरी खैरखबर रंजीत भाई के जरिए सरवर को भेजा करेंगी?’’

‘‘खैरखबर ही नहीं भेजूंगी बल्कि पूरी बात भी समझा दूंगी,’’ श्रीमती साहनी ने घड़ी देखी, ‘‘अभी तो रंजीत सो रहा होगा, थोड़ी देर के बाद फोन करूंगी. देखो बेटाजी, हो सकता है हमेशा की तरह चंद दिनों में सब ठीक हो जाए और हो सकता है और भी खराब हो जाए, इसलिए हालात को देखते हुए अपने जज्बात पर काबू रखो. आतंकवादी और उन के आकाओं की लानतमलामत को अपने लिए मत समझो और न ही यह समझो कि तुम्हें तंग करने को तुम से रोकटोक की जा रही…’’ श्रीमती साहनी का मोबाइल बजा. बेटे का लंदन से फोन था.

‘‘बस, टीवी देख रहे हैं…फिलहाल तो पुणे में सब ठीक ही है. पापा काम पर गए. मैं सायरा के पास आई हुई हूं. परेशान है बेचारी…उस की मां का यहां फोन करना मुनासिब नहीं है न…हां, तू सरवर को यह बात समझा देना…वह भी ठीक रहेगा. वैसे तू उसे बता देना कि हमारे यहां तो कसूरवार को भी तंग नहीं करते तो बेकसूर को क्यों परेशान करेंगे, उसे सायरा की फिक्र करने की जरूरत नहीं है.’’

श्रीमती साहनी मोबाइल बंद कर के सायरा की ओर मुड़ीं, ‘‘रंजीत सरवर को बता देगा कि वह मेरे मोबाइल पर तुम से बात करे. वीडियो कानफें्रस कर तुम दोनों बहनभाइयों की मुलाकात करवा देंगे.’’

‘‘शुक्रिया, आंटीजी…’’

‘‘यह तो हमारा फर्ज है बेटाजी,’’ श्रीमती साहनी उठ खड़ी हुईं.

उन के जाने के बाद सायरा ने राहत की सांस ली. हालांकि सरवर के जरिए अम्मी को उस की खैरखबर भिजवाने की जिम्मेदारी और सरवर के साथ वीडियो कानफें्रसिंग करवाने की बात कर के आंटी ने उसे बहुत राहत दी थी मगर उन का यह कहना ‘हमारे यहां तो कसूरवार को भी तंग नहीं करते तो बेकसूर को क्यों परेशान करेंगे’ या ‘यह तो हमारा फर्ज है’ उसे खुद और अपने मुल्क पर कटाक्ष लगा. वह कहना चाहती थी कि आप लोगों की अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने और एहसान चढ़ाने की आदत से चिढ़ कर ही तो लोग आप को मजा चखाने की सोचते हैं.

सायरा को लंदन स्कूल औफ इकनोमिक्स के वे दिन याद आ गए जब पढ़ाई के दबाव के बावजूद वह और मंसूर एकदूसरे के साथ वहां के धुंधले सर्द दिनों में इश्क की गरमाहट में रंगीन सपने देखते थे. सुनने वालों को तो यकीन नहीं होता था लेकिन पहली नजर में ही एकदूसरे पर मर मिटने वाले मंसूर और सायरा को एकदूसरे के बारे में सिवा नाम के और कुछ मालूम नहीं था.

अंतिम वर्ष में एक रोज जिक्र छिड़ने पर कि नौकरी की तलाश के लिए कौन क्या कर रहा है, सायरा ने मुंह बिचका कर कहा था, ‘नौकरी की तलाश और वह भी यहां? यहां रह कर पढ़ाई कर ली वही बहुत है.’

‘तुम ने तो मेरे खयालात को जबान दे दी, सायरा,’ मंसूर फड़क कर बोला, ‘मैं भी डिगरी मिलते ही अपने वतन लौट जाऊंगा.’

‘वहां जा कर करोगे क्या?’

‘सब से पहले तो सायरा से शादी, फिर हनीमून और उस के बाद रोजीरोटी का जुगाड़,’ मंसूर सायरा की ओर मुड़ा, ‘क्यों सायरा, ठीक है न?’

‘ठीक कैसे हो सकता है यार?’ हरभजन ने बात काटी, ‘वतन लौट कर सायरा से शादी कैसे करेगा?’

‘क्यों नहीं कर सकता? मेरे घर वाले शियासुन्नी मजहब में यकीन नहीं करते और वैसे भी हम दोनों पठान यानी खान हैं.’

‘लेकिन हो तो हिंदुस्तानी- पाकिस्तानी. दोनों मुल्कों के बाशिंदों को नागरिकता या लंबा वीसा आसानी से नहीं मिलता,’ हरभजन ने कहा.

सायरा और मंसूर ने चौंक कर एकदूसरे को देखा.

‘क्या कह रहा है हरभजन? सायरा भी पंजाब से है…’

‘बंटवारे के बाद पंजाब के 2 हिस्से हो गए जिन में से एक में तुम रहते हो और एक में सायरा यानी अलगअलग मुल्कों में.’

‘क्या यह ठीक कह रहा है सायरा?’ मंसूर की आवाज कांप गई.

‘हां, मैं पंजाब यानी लाहौर से हूं.’

‘और मैं लुधियाना से,’ मंसूर ने भर्राए स्वर में कहा, ‘माना कि हम से गलती हुई है, हम ने एकदूसरे को अपने शहर या मुल्क के बारे में नहीं बताया लेकिन अगर बता भी देते तो फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि फिदा तो हम एकदूसरे पर नाम जानने से पहले ही हो चुके थे.’

‘जो हो गया सो हो गया लेकिन अब क्या करोगे?’ दिव्या ने पूछा.

‘मरेंगे और क्या?’ मंसूर बोला.

‘मरना तो हर हाल ही में है क्योंकि अलग हो कर तो जी नहीं सकते सो बेहतर है इकट्ठे मर जाएं,’ सायरा बोली.

‘बुजदिली और जज्बातों की बातें करने के बजाय अक्ल से काम लो,’ अब तक चुप बैठा राजीव बोला, ‘तुम यहां रहते हुए आसानी से शादी कर सकते हो.’

‘शादी के बाद मैं इसे लुधियाना ले कर जा सकता हूं?’ मंसूर ने उतावली से पूछा.

‘शायद.’

‘तब तो बात नहीं बनी. मैं अपना देश नहीं छोड़ सकता.’

‘मैं भी नहीं,’ सायरा बोली.

‘न मुल्क छोड़ सकते हो न एकदूसरे को और मरना भी एकसाथ चाहते हो तो वह तो यहीं मुमकिन होगा इसलिए जब यहीं मरना है तो क्यों नहीं शादी कर के एकसाथ जीने के बाद मरते,’ हरभजन ने सलाह दी.

‘हालात को देखते हुए यह सही सुझाव है,’ राजीव बोला.

‘घर वालों को बता देते हैं कि परीक्षा के बाद यहां आ कर हमारी शादी करवा दें,’ मंसूर ने कहा.

‘मेरी अम्मी तो आजकल यहीं हैं, अब्बू भी अगले महीने आ जाएंगे,’ सायरा बोली, ‘तब मैं उन से बात करूंगी. तुम्हें अगर अपने घर वालों को बुलाना है तो अभी बात करनी होगी.’

‘ठीक है, आज ही तफसील से सब लिख कर ईमेल कर देता हूं.’

‘तुम भी सायरा आज ही अपनी अम्मी से बात करो, उन लोगों की रजामंदी मिलनी इतनी आसान नहीं है,’ राजीव ने कहा.

राजीव का कहना ठीक था. दोनों के घर वालों ने सुनते ही कहा कि यह शादी नहीं सियासी खुदकुशी है. खतरा रिश्तेदारों से नहीं मुल्क के आम लोगों से था, दोनों मुल्कों में तनातनी तो चलती रहती थी और दोनों मुल्कों के अवाम खुनस में उन्हें नुकसान पहुंचा सकते थे.

सायरा की अम्मी ने तो साफ कहा कि शादी के बाद हरेक लड़की को दूसरे घर का रहनसहन और तौरतरीके अपनाने पड़ते हैं लेकिन सायरा को तो दूसरे मुल्क और पूरी कौम की तहजीब अपनानी पड़ेगी.

‘तुम्हारी इस हरकत से हमारी शहर में जो इज्जत और साख है वह मिट्टी में मिल जाएगी. लोग हमें शक की निगाहों से देखने लगेंगे और इस का असर कारोबार पर भी पड़ेगा,’ मंसूर के अब्बा बशीर खान का कहना था.

घर वालों ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था लेकिन एकदूसरे से अलग होना भी मंजूर नहीं था इसलिए दोनों ने घर वालों को यह कह कर मना लिया कि वे शादी के बाद लंदन में ही रहेंगे और उन लोगों को सिवा उन के नाम के किसी और को कुछ बताने की जरूरत नहीं है. उन की जिद के आगे घर वाले भी बेदिली से मान गए. वैसे दोनों ही पंजाबी बोलते थे और तौरतरीके भी एक से थे. शादी हंसीखुशी से हो गई.

कुछ रोज मजे में गुजरे लेकिन दोनों को ही लंदन पसंद नहीं था. दोस्तों का कहना था कि दुबई या सिंगापुर चले जाओ लेकिन मंसूर लुधियाना में अपने पुश्तैनी कारोबार को बढ़ाना चाहता था. भारतीय उच्चायोग से संपर्क करने पर पता चला कि उस की ब्याहता की हैसियत से सायरा अपने पाकिस्तानी पासपोर्ट पर उस के साथ भारत जा सकती थी. सायरा को भी एतराज नहीं था, वह खुश थी कि समझौता एक्सप्रेस से लाहौर जा सकती थी, अपने घर वालों को भी बुला सकती थी लेकिन बशीर खान को एतराज था. उन का कहना था कि सायरा की असलियत छिपाना आसान नहीं था और पंजाब में उस की जान को खतरा हो सकता था.

उन्होंने मंसूर को सलाह दी कि वह पंजाब के बजाय पहले किसी और शहर में नौकरी कर के तजरबा हासिल करे और फिर वहीं अपना व्यापार जमा ले. बशीर खान ने एक दोस्त के रसूक से मंसूर को पुणे में एक अच्छी नौकरी दिलवा दी. काम और जगह दोनों ही मंसूर को पसंद थे, दोस्त भी बन गए थे लेकिन उसे हमेशा अपने घर का सुख और बचपन के दोस्त याद आते थे और वह बड़ी हसरत से सोचता था कि कब दोनों मुल्कों के बीच हालात सुधरेंगे और वह सायरा को ले कर अपनों के बीच जा सकेगा.

सब की सलाह पर सायरा ने नौकरी नहीं की थी. हालांकि पैसे की कोई कमी नहीं थी लेकिन घर बैठ कर तालीम को जाया करना उसे अच्छा नहीं लगता था और वैसे भी घर में उस का दम घुटता था. अच्छी सहेलियां जरूर बनी थीं पर कब तक आप किसी से फोन पर बात कर सकती थीं या उन के घर जा सकती थीं.

मंसूर के प्यार में कोई कमी नहीं थी, फिर भी पुणे आने के बाद सायरा को एक अजीब से अजनबीपन का एहसास होने लगा था लेकिन उसे इस बात का कतई गिला नहीं था कि उस ने क्यों मंसूर से प्यार किया या क्यों सब को छोड़ कर उस के साथ चली आई.

15 अगस्त स्पेशल: दहशत की हवा- दहशतगर्दों ने बच्चे के साथ क्या किया?

सारी गली सुनसान थी. शाम अंधेरे में बदल गई थी. पहाड़ी इलाका था. यहां साल भर सर्दी का ही मौसम रहता था. गरमियों में सर्दी कम हो जाती. सर्दियों में तो रातें सर्द ही रहतीं. जिन को सर्दी की आदत थी उन को कम या ज्यादा सर्दी से क्या फर्क पड़ता था.  हाथ में पकड़ी ए.के. 47 राइफल की नोक से अरबाज खान ने अधखुले दरवाजे को खटखटाया. कोई जवाब नहीं मिला. फिर वह थोड़ी धीमी आवाज में चिल्लाया, ‘‘कोई है?’’

उत्तर में कोई जवाब नहीं.  उस के पीछे खड़े उस के 7 साथियों के चेहरों पर गुस्से के भाव उभर आए. आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था. जिस किसी भी गांव में दिन या रात में कदम रखा था, उन के खौफ से वहां के लोग थरथर कांपते हुए उन की किसी बादशाह या सुलतान के समान आवभगत करते थे. मगर यहां अभी तक कोई बाहर नहीं आया था.

‘‘मार डालो इन को. कोई भी जिंदा न बच पाए,’’ सभी ए.के. 47 राइफल व हैंडगे्रनेडधारी जनों के नेता सुलतान ने अपने आदमियों से कहा तो उन के चेहरों के भावों ने एकदूसरे को कहा, ‘मगर पहले कोई सामने तो आए.’  दरवाजा आधा खुला था. पल्ला जोर पड़ते ही एक तरफ हो गया. ट्रिगर पर उंगली सख्त किए सभी अंदर प्रवेश कर गए. उन का गुस्सा माथे पर था. सामने जो भी आया गोली खाएगा. मगर सामने कोई आए तो सही.  सारा मकान खाली था. खाने का सामान तो दूर की बात थी वहां तो पानी का मटका भी खाली था. सब कहां गए? शायद कहीं बाहर गए थे?

मगर दूसरा मकान भी पहले की तरह खाली. तीसरा, चौथा मकान भी खाली. तनी हुई मशीनगनें ढीली पड़ एक तरफ कंधे पर लटक गईं. चढ़ा हुआ गुस्सा उतरने लगा. गरमी या जोश भी ढीला पड़ने लगा.  एक ही कतार में, सारे मकान खाली थे. अंधेरा बढ़ रहा था. ऐसा कैसे हो सकता था? क्या कोई साजिश थी? सेना या खुफिया विभाग वालों की साजिश भी हो सकती है. क्या पता एकदम से चारों तरफ से घेर कर सब पर गोलियों की बरसात कर दें…सभी के चेहरों पर डर और दहशत उभर आई.  पिछले माह जब वे आए थे, तब इन्हीं 4-5 मकानों में रहने वालों ने किस तरह डर कर उन की अगवानी की थी. बकरे का मांस पेश किया था. काजूसेब से बनी शराब पेश की थी. रात को जब सब ने उन की जवान बहुओं और कुंआरी बेटियों को लपक लिया था तब किसी ने विरोध नहीं किया था.

मगर आज इन्हीं मकानों में कोई नहीं था. इनसान तो क्या कोई परिंदा भी नहीं था. पशु नहीं था. इनसान कहीं बाहर किसी काम से जा सकते थे. मगर क्या परिंदे और जानवर भी जा सकते थे?  जरूर कोई साजिश थी. अंधेरा कभी उन को सुरक्षा और हिम्मत देता था. आज वही अंधेरा उन्हें डरा रहा था. दूसरों पर बिना बात गोली चलाने वाले अब इस सोच से डर रहे थे कि कहीं एकदम किसी ओर से कोई फौजी सामने आ कर गोली न चला दे या आसपास के मकानों से उन सब पर गोलियों की बौछार न हो जाए.  जिस दबंगता, अकड़ और जोश से वे सब गांव में प्रवेश करते समय भरे हुए थे वह अब एक अनजाने डर, दहशत में बदल गया था. सभी के चेहरों पर अब मातम छा गया था. प्यास से सब के गले सूख रहे थे. मगर किसी मकान के मटके में पानी नहीं था.  प्यास से गला सूख रहा था. शाम आधी रात में बदल गई थी. मगर अभी तक खाना नहीं मिला था. कहां तो सोचा था कि मुरगेबकरे का मांस, गरमागरम तंदूरी रोटियां, मिस्सी रोटियां मिलेंगी, शराब मिलेगी. रात को साथ सोने के लिए अनछुई जवान महिला मिलेगी…मगर आज सब सुनसान था. कोई भी नहीं था. खाली मकान थे. सब खालीखाली था.

‘‘अब क्या करें?’’ एक साथी ने सरदार से कहा.

सरदार चुप रहा. क्या जवाब दे? वापस चलें? मगर कहां? सामने के पहाड़ों पर बर्फ पड़ रही थी. आसमान साफ था.  मगर इस सुनसान आधी रात में जाएं कहां? सारे मकान खाली थे. सारा गांव खाली था.  सभी थक चुके थे. धीरेधीरे चलते गांव के बाहर चले आए. एक मकान पत्थरों से घिरी चारदीवारी के अंदर बना हुआ था. चारदीवारी में शायद सब्जियां बो रखी थीं. खाने को कच्ची सब्जियां तो मिल जाएंगी, सभी यह सोच कर वहां प्रवेश कर गए.

एक आतंकवादी ने हिम्मत कर टौर्च   जलाई. सचमुच सब्जियां थीं मगर   कच्चा घीया, बैगन और तोरी, कौन और कैसे खाता? शायद मकान मेें ईंधन और चूल्हा है. सभी मकान की तरफ बढ़े तभी उन के कानों में किसी के धीमेधीमे सुबकनेकी आवाज आई.  मकान में कोई था. टौर्च जलाने वाला आगे बढ़ा. एक लंबे आयताकार कमरे के भीतर खूंटे में रस्सी से बंधी एक बकरी खोली में रखी घास चर रही थी. समीप एक 2 साल का मासूम बच्चा सुबक रहा था.  गांव में इस अकेले मकान में 2 प्राणी थे. थोड़ीबहुत शराब थी. दालान के कोने में एक मटका पानी से भरा था. थोड़ाबहुत राशन भी वहां मौजूद था.  पानी देख कर सब की निगाहों में चमक आ गई. एक आतंकी रसोई में गया मगर वहां कोई गिलास नहीं था. हाथों को चुल्लू बना सब ने बारीबारी से पानी पिया. सब बकरी और बच्चे वाले कमरे में चले आए.

बच्चा अभी भी सुबक रहा था. वह भूखा था.  एक खाट दीवार से लगी सीधी खड़ी थी. सब उस को बिछा कर उस पर बैठ गए.

‘‘रहमत, देखो, क्या बकरी के थनों में दूध है?’’ सरदार के कहने पर एक आतंकी उठा और बकरी के समीप गया. थन दूध से भारी थे. मुट्ठी में थन पकड़ उसे भींचा, दूध की पतली धार एक फुहार के समान बाहर निकल आई.  रहमत ने आसपास देखा तो कोई बरतन नहीं था. वह भाग कर रसोई मेें गया. वहां भी बरतन नहीं था. दालान में एक तरफ मिट्टी से बनी एक खाली सिगड़ी थी. इस में शायद आग जला कर भट्ठी का काम लिया जाता था. उस को उठा कर झाड़ा. मटके से पानी ले, उसे धो लाया.

दूध भरपूर था. सारी सिगड़ी भर गई. दूध ले कर वह बच्चे के समीप गया. दूध देखते ही बच्चा मचल पड़ा. रहमत ने सिगड़ी उस के मुंह से लगा दी. बच्चा दूध पी गया. आधी सिगड़ी खाली हो गई. थनों में अभी काफी दूध था. बकरी शायद पिछले कई दिन से दुही नहीं गई थी. सिगड़ी फिर भर गई.  सिगड़ी उठा कर रहमत दल के सरदार के समीप पहुंचा.

‘‘आप भी दूध पी लीजिए.’’

‘‘दूध तो बच्चे के लिए है.’’

‘‘बच्चे को मैं ने दूध पिला दिया है. बकरी के थनों में अभी काफी दूध है.’’  सरदार ने सिगड़ी को मुंह से लगाने में संकोच किया. फिर हाथों की केतली बना जैसे पानी पी रहा हो, थोड़ा सा दूध पी लिया और सिगड़ी एक साथी की तरफ बढ़ा दी. सभी ने थोड़ाथोड़ा दूध पी लिया.  बच्चा अब तक जमीन पर लेटा सो गया था. बकरी भी बैठ गई थी.  ‘‘बच्चे को खाट पर लिटा दो,’’ सरदार ने कहा. 2 साथी उठ कर जमीन पर बैठे. फिर रहमत ने बच्चे को उठा कर खाट पर लिटा दिया. सरदार ने अपना ओढ़ा कंबल उतार कर उस को ओढ़ा दिया. गरमाई मिलते ही बच्चा मीठी नींद सो गया.

बकरी का थोड़ाथोड़ा दूध पीते ही अंतडि़यां राहत पा गई थीं. जैसे चोट पर मरहम लग गया हो. सभी भूखे दीवार से लगेलगे सो गए. सुबह की चमकती धूप की किरणों ने उन के चेहरों पर गरमी की, तब सब की नींद खुली. बच्चा अभी भी सो रहा था. बकरी उठ कर खड़ी हो में…में करने लगी थी. उस के थन फिर से दूध से भारी हो गए थे.  सब उठ कर नित्यक्रिया को निकल गए थे. रहमत और परवेज समीप की पहाड़ी के झरने से मटके में पानी भर लाए थे. अरबाज खान और मुश्ताक अली खाली पड़े मकानों में खाली बरतन ढूंढ़ने निकल पड़े. किसी घर में 1-2 गिलास, किसी में थालीकटोरी किसी से गड़वा, परात मिल गई.  आटा गूंध कर टिक्कड़ सेंक सब ने पेट भरा. बच्चा भी रोटी देख कर चिल्लाया. रहमत ने उस को नमक डाल कर एक टिक्कड़ सेंक कर थमा दिया.

‘‘अब क्या करें?’’ सरदार ने कहा.

‘‘ठिकाने पर वापस चलते हैं. अगले गांव में तो सुरक्षा बलों का बड़ा नाका है. इस बार फौज की चौकसी काफी बढ़ गई है,’’ मुश्ताक अली ने कहा.  ‘‘यह सारा गांव खाली क्यों है?’’ रहमत अली ने कहा. हालांकि वह जानता था कि इस सवाल का जवाब सब को मालूम था. उन्हीं की दहशत की वजह से सब निवासी गांव छोड़ कर चले गए थे. हर समय दहशत के साए में कौन जीता? कब किस को बिना वजह गोली मार दें. कब किसी के घर में घुस कर बहूबेटी की इज्जत लूट लें.  अभी तक घाटी से हिंदू, सिख ही गए थे, मगर अब अपने मुसलमान भी पलायन कर रहे थे…वह भी सारे के सारे एकसाथ. अगर सारी घाटी खाली हो जाए तो?

‘‘अभी वापस चलते हैं… आगे जो होगा देखेंगे,’’ सब उठ खड़े हुए.

‘‘इस बच्चे का क्या करें?’’ अरबाज खान ने पूछा.

सब सोचने लगे. क्या इसे गोली मार दें? अभी तक कभी किसी ने किसी मासूम बच्चे को नहीं मारा. बड़ी उम्र के आदमी और औरतों पर ही गोली चलाई थी. किसी का हाथ स्टेनगन की तरफ नहीं गया.  ‘‘क्या बच्चे को यहीं छोड़ दें,’’ सब सोच रहे थे. मगर इस सुनसान खाली पड़े मकान में अकेला मासूम बच्चा कैसे रहेगा? जैसे हालात थे, उन में इस के परिवार या मांबाप का आना मुश्किल था. जाने की जल्दी में वह बच्चा छूट गया था.  बच्चे को वापस लेने आने वाला अकेला शायद ही आए. सुरक्षा बल या फौजी दस्ता साथ आ सकता है. इसलिए उन का यहां ज्यादा देर तक ठहरना भी खतरनाक था. सरदार ने कुछ देर सोचा.

‘‘बच्चे को और बकरी को भी साथ ले चलो,’’ सरदार का हुक्म सुन सब ने एकदूसरे की तरफ देखा.

‘‘सरदार, बच्चे का हम क्या करेंगे?’’ मुश्ताक अली ने कहा.

‘‘यहां अकेला भूखाप्यासा बच्चा मर जाएगा.’’

‘‘हमारे साथ भी इसे कुछ हो सकता है.’’

‘‘बाद में देखेंगे. अभी इसे साथ ले चलो.’’  आंखों पर शक्तिशाली दूरबीन चढ़ाए ऊंचे टावर पर बैठे फौजियों ने सामने की पहाड़ी पर बनी पगडंडी पर कुछ आतंकवादियों को चढ़ते देखा. सब सचेत हो गए. ऐसा कभीकभी ही होता था. अधिकतर दहशतगर्द रात के अंधेरे में ही निकलते थे. उस ने दूरबीन का फोकस और करीब किया. बुदबुदाया, ‘अरे, यह तो अरबाज खान है. इस ने अपनी बांहों में एक बच्चा उठा रखा है. इस के पीछे चल रहे व्यक्ति ने एक बकरी के गले में बंधी रस्सी थाम रखी है.’

‘वाकीटाकी’ औन कर फौजी ने अपने कमांडर को खबर दी.

‘‘इस बच्चे के बारे में हमारे पास कल शाम खबर आई थी. गांव छोड़ते समय अफरातफरी में इस के मांबाप बच्चा वहीं छोड़ आए थे,’’ कमांडर ने कहा.

‘‘सर, क्या करें? सब रेंज में हैं. गोली चलाऊं?’’

‘‘उन्हें जाने दो. बच्चा उन के हाथ में है, उसे गोली लग सकती है.’’  सभी पहाड़ी पार कर अपने ठिकाने पर सुरक्षित पहुंच गए. अरबाज खान जानता था कि दिन में घाटी के किसी इलाके में निकलना खतरे से खाली नहीं था. किसी भी वक्त सुरक्षा बलों की गोली लग सकती थी. इसलिए आड़ बनाने के लिए बच्चा अपने साथ लाया था.  ठिकाने पर सब नहानेधोने, खाना बनाने में लग गए. बच्चा भी जाग गया था.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ अरबाज खान ने पूछा.

‘‘उमर अली.’’

‘‘तुम्हारे अम्मीअब्बा का क्या नाम है?’’

‘‘अहमद अली व फरजाना खातून.’’

‘‘सब कहां गए हैं?’’

‘‘पता नहीं.’’

सब खाना खा कर सो गए. उमर अली भी एक चपाती और दूध पी कर सो गया.  रात हो गई. हर रात को किसी न किसी गांव में इन दहशतगर्दों का दल जाता था. कहीं कत्ल तो कहीं लूटमार का खेल खेला जाता था. मगर आज कोई कहीं नहीं गया था. कल रात जैसा वाकया पहले कभी नहीं हुआ था कि सारा गांव खाली हो जाए.  आज किसी दूसरे गांव में जाएं, वहां भी अगर वैसा ही हो गया तब? ऊपर से सुरक्षाबल के जवान घात लगाए बैठे हों. अचानक सब पर हमला हो जाए. इतनी सारी संभावनाएं कभी दिमाग में नहीं आई थीं. मगर कल के हालात ने उन को खुद के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया था.  लगभग 1 साल तक लुटेरों ने कश्मीर के विभिन्न इलाकों में स्थापित ट्रेनिंग कैंपों में इन सब को तरहतरह के हथियार चलाने व गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दे कर सीमा पार करा दी थी. एकमुश्त मोटी रकम हर एक को अपने परिवार को देने के लिए थमा दी गई थी. साथ ही, एक बंधीबंधाई रकम हर माह इन के परिवारों को देने का वादा भी किया था.  इस जंग को अल्लाह के नाम पर जेहाद का नाम दिया गया था. काफिरों के खत्म होने पर ही पाक हुकूमत कायम होगी, जिस में कुछ भी नापाक नहीं होगा. यह सब जेहादियों के दिमाग में भरा गया था.

सब इस सचाई से वाकिफ थे कि उन्हें मरने के बाद कफन भी नहीं मिलेगा. मगर जेहाद के नाम पर दिमाग बंद था. अब कल के हालात ने सब को सोचने पर मजबूर कर दिया था. क्या थे वे सब? क्या भविष्य था उन का?  घाटी में अब काफिर कहां थे? सारे हिंदू, जिन्हें काफिर कहा जाता था, चले गए थे. फिर अब किस बात पर जेहाद था? साथ में जो बच्चा आया था उस ने भी उन के दिमाग में हलचल मचा दी थी. सब को अपनाअपना परिवार, बच्चे याद आ रहे थे. यह जेहाद तो पता नहीं कब खत्म होगा? घर कब जाएंगे? किसी के बेटे का नाम फिरोज था, कोई अशरफ था, कोई सलीम था, कोई अशफाक था. कैसे होंगे वे?

दूसरा दिन भी हो गया. उमर अली सब के साथ हिलमिल गया. सब को उस में अपनेअपने बच्चों का अक्स दिख रहा था.

‘‘मैं भी बंदूक चलाऊंगा.’’

अरबाज खान ने उसे अपनी पिस्तौल खाली कर थमा दी. उस के खेल का सब आनंद ले रहे थे.  क्या उन का बेटा भी बड़ा हो कर इस तरह बंदूक थामेगा? एक दहशतगर्द बनेगा, गोली खा मरेगा और एक कुत्ते या जानवर के समान दफन हो जाएगा?  रात हो गई. आज भी कोई कहीं नहीं गया. हर वारदात या जीत के बाद आकाओं को रिपोर्ट भेजनी पड़ती थी. मगर यह दूसरी रात थी जब कुछ न किया. तीसरी रात भी गई, चौथी भी. 5वीं रात पीछे से लपकती आ पहुंची.

‘‘कमांडर पूछता है सब कहीं जाते क्यों नहीं? 4 दिन से कुछ नहीं हुआ?’’

‘‘अभी हालात खराब हैं. जब काबू में हो जाएंगे तब जाएंगे.’’  8 दिन बीत गए. दिमाग में भारी हलचल थी.

हरकारा फिर आया. इस बार चेतावनी दे गया. ‘ड्यूटी’ करो या नतीजा भुगतो. नतीजा यानी वापस लौटे तो खत्म कर सुपुर्देखाक. ड्यूटी पर जाते हैं तो कभी न कभी सुरक्षा बलों की गोली का शिकार बनना ही था. सुपुर्देखाक इधर भी था उधर भी था. क्या करें?  जेहाद का जनून उतर चुका था. एक मासूम बच्चे ने उन्हें अपने बच्चों, परिवार आदि की याद दिला कर उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया था.  10 दिन बाद सुबह एक सफेद झंडा, जो सफेद कमीज फाड़ कर बनाया गया था, लिए 8 दहशतगर्दों का दल एक मासूम बच्चे की अगुआई में साथ में एक बकरी लिए आत्मसमर्पण के लिए सुरक्षा बलों के सामने हाजिर हुआ. स्टेनगन, हथगोले व अन्य हथियार पटाखों के समान एक ढेर में एक तरफ पड़े थे.  उमर अली अपने अम्मीअब्बा की गोद में पहुंच गया. सभी दहशतगर्द इस नन्हे बच्चे को मोहब्बत से देख रहे थे जिस ने उन के दिमागों से जेहाद का जनून उतार दिया था.

Raksha Bandhan: कच्ची धूप- भाग 3- कैसे हुआ सुधा को गलती का एहसास

धीरेधीरे किशोर उस के दिल में जगह बनाता चला गया और प्यार की प्यासी सौम्या उस प्यार के सैलाब में बहती चली गई. अब अकसर ही सौम्या अपना कालेज बंक कर के किशोर से साथ लौंग ड्राइव पर निकल जाती थी. कई बार दोनों कईकई घंटे शहर से दूर निर्जन रिसोर्ट पर एकसाथ अकेले बिताने लगे थे. किशोर का जादू सौम्या के सिर चढ़ कर बोलने लगा था. मगर सुधा इस तरफ से बिलकुल लापरवाह थी. उस ने सौम्या के बहकने के अंदेशे के कारण ही उस से लगभग दोगुनी उम्र के किशोर को ड्राइवर रखा था, मगर यहीं वह गलत निकली. वह भूल गई थी कि स्त्रीपुरुष का रिश्ता हर जाति, धर्म और उम्र से परे होता है और फिर सौम्या जैसी लड़की के लिए तो फिसलना और भी आसान था क्योंकि उस ने तो पहली बार ही किसी पुरुष का संसर्ग पाया था.

किशोर अब सौम्या के लिए ‘किस्सू’ बन चुका था. एक दिन सौम्या ने किशोर के साथ अपने अंतरंग लमहों की कुछ सैल्फियां लीं. चलती गाड़ी में सौम्या वे सैल्फियां किशोर को व्हाट्सऐप पर भेज रही थी, मगर जल्दबाजी में कौन्टैक्ट नेम किस्सू की जगह केशव सिलैक्ट हो गया. जब तक सौम्या को अपनी इस ब्लंडर मिस्टेक का एहसास हुआ, एक फोटो केशव मामा को सैंड हो चुका था. उस ने हड़बड़ाहट में उसे कैंसिल करने की कोशिश की, मगर लेटैस्ट मोबाइल हैंडसैट और इंटरनैट पर 4जी की स्पीड, भला फोटो को अपलोड होते कोई देर लगती है.

और फिर वही हुआ जिस का डर था. सौम्या की फोटो देखते ही केशव का माथा ठनक गया. उस ने तुरंत सुधा को फोन कर के सौम्या की इस हरकत की जानकारी दी. मगर सुधा ने भाई को ही डांट दिया. वह मान ही नहीं सकती थी कि सौम्या जैसी हाई क्लास लड़की का एक ड्राइवर के साथ कोई संबंध हो सकता है. जब केशव ने उसे सौम्या की फोटो भेजी तब जा कर सुधा को मानना पड़ा कि पानी शायद सिर के ऊपर से गुजर चुका है. केशव ने उसे मामले की नजाकत और सौम्या की किशोरवय को देखते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतने की सलाह दी. मगर सुधा अपना आपा खो चुकी थी. उसे सौम्या का यह भटकाव अपनी परवरिश का अपमान लग रहा था. वह यह सोच कर तिलमिला उठी थी कि उस के रुतबे के सामने किशोर ने यह हिमाकत कर के उसे आईना दिखा दिया है.

तैश में आ कर सुधा ने किशोर को नौकरी से निकाल दिया. सुधा की इस हरकत ने सौम्या को और भी अधिक बागी बना दिया. उस ने घर में तांडव मचा दिया और खानापीना बंद कर दिया. राघव ने भी उसे किशोर के शादीशुदा और बालबच्चेदार होने का हवाला देते हुए समझाने की बहुत कोशिश की, मगर कहते हैं कि प्यार अंधा होता है. सौम्या ने किसी की एक न सुनी और एक दिन चुपचाप घर से कुछ रुपएगहने चुरा कर किशोर के साथ भाग गई.

सुधा को जब पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस ने आननफानन भाई लोकेश को फोन लगा कर सारी बात बताई. लोकेश ने सौम्या को तलाश करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी. उस ने कोलकाता के संबंधित थानाधिकारी से संपर्क कर के किशोर के फोटो हर थानाक्षेत्र में भिजवा दिए. साथ ही, दोनों को उन के मोबाइल नंबर की लोकेशन के आधार पर ढूंढ़ने की भी कोशिश की, मगर दोनों के मोबाइल स्विच औफ आ रहे थे. तब केशव की टीम ने किशोर के परिवार पर नजर रखनी शुरू की. किशोर की पत्नी से संपर्क करने पर पता चला कि वह स्वयं भी कभी इसी तरह उस के हनी ट्रैप का शिकार हुई थी.

पुलिस द्वारा किशोर की पत्नी और उस के मांबाप के फोन लगातार ट्रैस किए जा रहे थे. सौम्या के नाम को इस सारे घटनाक्रम में गुप्त ही रखा गया था. आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई और लगभग एक महीने की भागदौड़ के बाद सौम्या को किशोर के साथ भोपाल के रेलवेस्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया. सौम्या के साथ लाए पैसे जब खत्म हो गए तो किशोर ने उस के सारे गहने बेच दिए. सबकुछ खत्म होने के बाद अब वह सौम्या को ही बेचने की जुगाड़ में था कि पकड़ा गया. मामा को देखते ही घबराई हुई सौम्या दौड़ कर उस से लिपट गई. अब तक उस के सिर से भी किशोर के प्यार का बुखार उतर चुका था.

लोकेश सौम्या को ले कर कोलकाता पहुंचा और उसे सहीसलामत सुधा को सौंप दिया. बेटी को इतनी दयनीय हालत में देख कर सुधा को अपने मां होने पर शर्म आ रही थी. वह सौम्या की इस हालत की जिम्मेदार खुद को ही मान रही थी. बेटी तो सकुशल घर लौट आई मगर सुधा की मुसीबत खत्म नहीं हुई थी. उस ने अपना सिर पीट लिया जब उसे पता चला कि कुंआरी सौम्या किशोर के बच्चे की मां बनने वाली है.

सुधा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अगर यहां सोसाइटी में किसी को पता चल गया कि रूपचंदजी की पोती ने ये गुल खिलाए हैं तो बहुत बदनामी होगी. कहीं भी मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे. उस ने राघव से मशवरा कर के केशव से अपनी परेशानी साझा की. केशव ने उसे तुरंत सौम्या को बीकानेर लाने के लिए कहा. ज्यादा देर करना उचित न समझ कर सुधा दूसरे ही दिन सौम्या को ले कर बीकानेर रवाना हो गई.

केशव को आश्चर्य हुआ जब उस ने सुधा को स्लीपर क्लास के डब्बे से उतरते हुए देखा. सुधा ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा, ‘‘क्या करूं? मजबूरी थी. एसी में रिवर्जेशन मिला ही नहीं और आना कितना जरूरी था, यह तुम से बेहतर कौन समझ सकता है.’’

सौम्या मामा से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी. केशव ने सुधा से कहा, ‘‘आप दोनों के रहने का बंदोबस्त मैं ने होटल में कर दिया है. घर जाने पर बेकार में ही बात खुलेगी और बच्ची की बदनामी होगी.’’ भाई की बात सुन कर सुधा ग्लानि से भर उठी. वह सोचने लगी, यही केशव है जिसे मैं ने सदा ही अपने से कमतर समझ कर दुत्कारा और इस का अपमान किया. आज यही मेरी बेटी की इज्जत का रखवाला बना है. सौम्या भी नजरें नीची किए अपनी गलती पर पछतावा करती आंसू बहा रही थी.

केशव उन्हें होटल में छोड़ कर घर चला गया. दूसरे दिन उस ने सौम्या को एक लेडी डाक्टर से मिलवाया और उस के सभी आवश्यक टैस्ट करवाए. दोपहर बाद रिपोर्ट आने पर शाम तक लेडी डाक्टर ने सौम्या को अनचाहे गर्भ से छुटकारा दिला दिया. 2 दिनों तक डाक्टर की देखरेख में रहने के बाद केशव ने होटल से ही सुधा और सौम्या को कोलकाता के लिए रवाना कर दिया. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं हुई उन के बीकानेर आने और वापस जाने की.

सौम्या अभी तक इस सदमे से बाहर नहीं निकल सकी थी. केशव ने जब टूटी हुई सौम्या का हौसला बढ़ाने के लिए स्नेह से उसे अपने सीने से लगाया तो उस के भीतर जमी हुई सारी पीड़ा प्यार की गर्माहट पा कर पिघल गई. उस ने रोतेरोते केशव से कहा, ‘‘मैं भटक गई थी मामा. जिसे मैं प्यार की कच्ची धूप समझ रही थी वह जलता हुआ सूरज निकला. मैं उस में झुलस गई.’’

केशव ने सौम्या के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटा, हीरा अगर गलती से कीचड़ में गिर जाए तो भी उस की कीमत कम नहीं होती. जो कुछ हुआ उसे एक ऐक्सिडैंट या बुरा सपना समझ कर भूल जाना. यह बात सिर्फ हम तीनों तक ही सीमित रहेगी, मैं तुम्हें इस का भरोसा दिलाता हूं. तुम बेफिक्र हो कर अपने आगे की जिंदगी जियो.’’

ट्रेन जब प्लेटफौर्म छोड़ने लगी तो सुधा से रहा नहीं गया. वह केशव से लिपट कर रो पड़ी. कहना तो बहुत कुछ चाह रही थी मगर गला अवरुद्ध हो गया. शब्द आंसुओं के साथ बहने लगे. केशव ने भी बहन को गले से लगा लिया. कुछ भी न कह कर दोनों ने सबकुछ कहसुन लिया. सारे गिलेशिकवे धुल गए. बादलों के बरसने के बाद जैसे आसमान साफ और धुलाधुला सा हो जाता है वैसे ही आज सुधा का दिल एकदम साफ हो गया था. उसे समझ आ गया था कि दुनिया में पैसा ही नहीं, बल्कि सच्चे रिश्ते और अपनों का प्यार भी खरी कमाई हैं.

एक नारी ब्रह्मचारी- भाग 1 : पति वरुण की हरकतों पर क्या था स्नेहा का फैसला

पीछे से जब उस गाड़ी वाले ने हौर्न मारा तो वरुण ने हड़बड़ा कर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी, वरना उसे उस लड़की को घूरने के चक्कर में ध्यान ही नहीं गया कि सिगनल ग्रीन हो चुका है.

“अरे, मुझे तो पता ही नहीं चला कि ग्रीन सिगलन कब हो गया,” झेंपते हुए वरुण बोला, तो स्नेहा ने खा जाने वाली नजरों से उसे ऐसे घूर कर देखा कि वह सकपका गया.

वरुण की हथेली दबा कर उस ने कई बार इशारा भी किया, परंतु बगुले की तरह ध्यान टिकाए वह उस स्कूटी वाली लड़की को घूरे ही जा रहा था, लग रहा था जैसे आंखों से ही उसे चबा जाएगा. बेचारी वह लड़की, कितनी असहज हो रही थी. आप ही सोचिए, आप को कोई एकटक निहारता ही जाए तो कैसा लगेगा? बुरा ही लगेगा न…? तभी तो ग्रीन सिगनल होते ही वह लड़की एकदम से फुर्र हो गई.

“तुम में जरा भी शर्म नाम की चीज नहीं है? मेरी छोड़ो, लेकिन कम से कम लोगों के बारे में तो सोचते, क्या सोचते होंगे वे तुम्हारे बारे में…?

“कैसे सोचोगे, आदत से मजबूर जो हो. सुंदर लड़की देखी नहीं कि… छिः…” अपना पर्स सोफे पर पटकते हुए स्नेहा कमरे में चली गई.

आज उसे सच में बहुत ही बुरा फील हो रहा था. जाने क्या सोचती होगी वह लड़की वरुण के बारे में? जब लाल सिगनल पर गाड़ी रुकी, तो पास खड़ी उस स्कूटी वाली लड़की को वरुण घूरघूर कर देखने लगा… और वह लड़की बारबार कभी अपनी टीशर्ट नीचे खींच रही थी, तो कभी अपने अधखुले पैर को समेट रही थी. मगर ये बेशर्म आदमी… हद है… आखिर ये मर्द इतने छिछोरेटाइप क्यों होते हैं? कहते हैं, आजकल की लड़कियों में संस्कार नाम की चीज नहीं बची. कैसेकैसे कपड़े पहन कर निकल जाती हैं. लेकिन महिलाओं की फटी जींस पर भाषण देने वाले ये पुरुष जब लड़कियों के कपड़े के अंदर ताकझांक करते हैं, तब उन्हें अपने संस्कार याद नहीं आते?

तकिया बिछावन पर पटकते हुए स्नेहा बुदबुदाई, ‘किसी सुंदर लड़की पर नजर पड़ी नहीं कि गिद्ध की तरह उसे ललचाई दृष्टि से देखने लगता है. और तो और सुंदर लड़कियों को देखते ही कौम्पिलीमेंट देने का भी मन होने लगता है इसे. मुझे शर्म आ जाती है, पर इस निर्लज्ज इनसान को जरा भी शर्म नहीं आती. यह भी नहीं सोचता कि उस जगह पर उस की बेटी या बहन भी हो सकती है. वह लड़की भी तो किसी की बेटी या बहन होगी?’

कितना खुश हो कर वह वरुण के साथ घूमने निकली थी. सोचा था कि फिल्म देखने के बाद किसी अच्छे से होटल में खाना खाएगी, फिर ढेर सारी शौपिंग भी करेगी. लेकिन वरुण के व्यवहार से मन क्षुब्ध हो उठा उस का.

“सौरी,” स्नेहा का हाथ पकड़ कर वरुण बोला तो जोर से उस ने उस का हाथ झटक दिया और किचन में आ कर रात के खाने की तैयारी करने लगी.

“स्नेहा, अब माफ भी कर दो न,” अपने कान पकड़ते हुए वरुण बोला, “सच कहता हूं कि मैं उस लड़की को नहीं देख रहा था डार्लिंग, वो तो मैं… अच्छा छोड़ो… देखो, कान पकड़ कर मैं फिर से तुम्हें सौरी बोलता हूं. अब गुस्सा थूक भी दो न, प्लीज.”

लेकिन आज स्नेहा का पारा कुछ ज्यादा ही गरम था, इसलिए माफ करने का तो सवाल ही नहीं उठता.

“खाना रहने दो. चलो बाहर खा कर आते हैं,” वरुण की बात पर स्नेहा का पारा और सातवें आसमान पर चढ़ गया.

“अच्छा, ताकि तुम्हें फिर लड़कियों को घूरने का मौका मिल जाएगा, है न?” चाकू को सब्जी पर पटकती हुई स्नेहा बोली, “मुझे तो समझ नहीं आता कि तुम किस टाइप के इनसान हो? क्योंकि बातें तो तुम बड़ी शराफत की करते हो, लेकिन सुंदरसुंदर लड़कियों व औरतों को देखते ही तुम्हारी सारी शराफत हवा क्यों हो जाती है? और कोई लड़की जरा ‘हाय, हैलो, प्लीज’ क्या बोल देती है, तुम तो उस पर अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार हो जाते हो. लेकिन बीवी जरा एक बैग उठाने को बोल दे तो… नौकर समझ रखा है क्या…? आंखें दिखाते हो. आखिर क्या है उन औरतों में, जो मुझ में नहीं है?” व्यथित होते हुए स्नेहा बोली.

सुंदर स्नेहा बनसंवर कर चाहे कितनी भी सुंदर क्यों न हो जाए, पर रसिया वरुण बाहर की औरतों को ताड़ने से बाज नहीं आता था.

एक युवा बेटी के पिता होने के बाद भी सुंदर महिलाओं को देखना, उस से दोस्ती करना वरुण का पैशन था. उस का सोचना था कि बंदर कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाए, पर गुलाटी मारना कभी नहीं छोड़ता. और मर्द तो साठा में भी पाठा…

वैसे, वरुण को देख कर उस की उम्र का पता नहीं लगाया जा सकता था, क्योंकि उस ने अपनेआप को खूब अच्छी तरह से मेंटेन कर रखा था.

“बोलो न, क्या सोचने लग गए…? क्या है उन औरतों में, जो मुझ में नहीं है?” स्नेहा ने फिर वही बात दोहराई.

‘‘मेरी जान, कैसे समझाऊं तुम्हें? घर का खाना कितना भी स्वादिष्ठ क्यों न हो, बाहर के खाने की बात ही कुछ और होती है,‘‘ मुसकराते हुए वरुण बुदबुदाया, लेकिन जैसे ही उस की नजर स्नेहा से टकराई, एकदम से मुंह बना लिया.

“ज्यादा मुंह न बनाओ… बता रही हूं मैं. अपनी करनी से खुद तो एक दिन मुसीबत में फंसोगे ही, साथ में हमें भी ले डूबोगे,” बोल कर जिस तरह से उस ने गरम कड़ाही में सब्जी का छौंक लगाया, वरुण को समझते देर नहीं लगी कि अब यहां से खिसक जाने में ही उस की भलाई है. लेकिन यह भी पता है उसे, स्नेहा का गुस्सा एक उबाल के बाद शांत भी हो जाता है. लेकिन ज्यादा फूंक मारो तो और छिटकने लगती है. स्नेहा की यही कमजोरी है, पहले तो वह अपने पति को सिर पर बैठा लेती है, इतना प्यार और केयर करने लगती है कि पूछो मत. लेकिन जब गुस्सा चढ़ता है तो इज्जत भी उतार कर रख देती है. और वरुण उस की इस आदत का खूब अच्छी तरह से फायदा उठाता है.

किचन में झनपटक की आवाज सुन कर वरुण अपने मन में ही सोचने लगा, ‘अब भंवरे भी कभी फूलों से दूर रह सकते हैं भला? वह तो बने ही हैं फूलों के आगेपीछे मंडराने के लिए. मगर स्नेहा यह बात समझती ही नहीं है. सुंदर महिलाओं को देखना, उसे घूरना तो हम पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार है, तो कैसे कोई एक नारी ब्रह्मचारी बना रह सकता है? और यह बात एक सर्वे में भी सिद्ध हो चुकी है कि प्रतिदिन महिलाओं को 10 मिनट तक निहारना हम पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. इस से हमारा ब्लडप्रेशर तो नार्मल रहता ही है, दिल की बीमारियों का भी खतरा नहीं होता.

‘तो बताओ, क्यों न घूरें हम महिलाओं को?‘ लेकिन उधर स्नेहा गुस्से से लालपीली हुई यह सोच कर गरम तवे पर रोटी सेंके जा रही थी कि ये मर्दजात कुत्ते की दुम है, कभी सीधी हो ही नहीं सकती. एक युवा बेटी का बाप होते हुए भी ऐसी छिछोरी हरकत करते इसे जरा भी लाज नहीं आती?‘‘

‘हां, हूं मैं एक युवा बेटी का बाप… तो क्या हो गया…? तो क्या मैं अपने सारे अरमान मिट्टी में दफन कर दूं? बाबू मोशाय… जिंदगी तो जीने का नाम है रे… मुरदे क्या खाक जिया करते हैं,’ अपनी सोच पर इतराते हुए वरुण मुसकराया और एक महिला दोस्त से चैटिंग करने लगा. लेकिन जैसे ही स्नेहा के आने की आहट सुनाई पड़ी, फोन बंद कर मुंह बना कर बैठ गया. ऐसी बात नहीं है कि वरुण को अपने परिवार की फिक्र नहीं है. बहुत प्यार करता है वह अपनी बीवीबच्चे से. देशविदेश घुमाना, होटलों में खिलाना, शौपिंग करवाना, सब करता है अपने परिवार के लिए. कभीकभी स्नेहा ही उकता जाती है, कहती कि उस की अलमारी कपड़ों से अटी पड़ी है, क्या करेगी वह और कपड़े खरीद कर. लेकिन वरुण कहता है, इनसान को फैशन के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए. वरुण का फंडा है, बीवी की हर जरूरतें पूरी करते रहो, उस का मुंह अपनेआप बंद हो जाएगा. उस का मानना है कि बाहर वाली को पटाना है, तो पहले घरवाली को खुश रखो.

“चलो, खाना बन गया है,” बोल कर स्नेहा कमरे में पड़े सुबह के जूठे कप उठाते हुए भुनभुनाते हुए बोली, “यहां लोगों को जरा भी शर्म नहीं है कि चाय पी कर कम से कम जूठा कप तो बेसिन में ही रख आएं,’ स्नेहा का इशारा वरुण की तरफ था. लेकिन आज उसे चुप रहने में ही अपनी भलाई लगी, सो उठ कर वह सीधे जा कर टेबल पर बैठ गया.

‘कहा भी गया है कि एक चुप सौ सुख. इसलिए सुख पाना है तो चुप रहो बेटा,’ मन में बुदबुदाते हुए वरुण मुसकराया, जो स्नेहा ने देख लिया.

“आह… बड़ी चवन्नी मुसकान निकल रही है,” वरुण की प्लेट में गरम रोटियां डालते हुए स्नेहा भन्नाई, “सुधर जाओ, नहीं तो बता रही हूं, तुम्हारा यही हाल रहा तो मायके चली जाऊंगी,” स्नेहा सिर्फ बोलती है, पर वरुण जानता है कि वह ऐसा कुछ भी नहीं करेगी. और वह यह भी जानता है कि वह कभी नहीं सुधरने वाला क्योंकि सुंदरसुंदर महिलाओं को छोटेछोटे कपड़ों में देख कर… ‘उफ्फ’ जाने उसे कैसा होने लगता है. उन की मनमोहक खुशबू में डूब जाना चाहता है वह. उन के रेशमी बालों में उलझउलझ जाना चाहता है.

“खा क्यों नहीं रहे? फिर कोई सपना देखने लग गए क्या?” स्नेहा ने टोका, तो वरुण घबरा कर रोटियां तोड़ने लगा. चाहे कितनी भी लड़ाई हो जाए उन के बीच, पर स्नेहा वरुण का वैसे ही खयाल रखती है.
वरुण के लिए गरम खाना, धुले और प्रेस किए हुए कपड़े उस की हर जरूरत का सामान स्नेहा की पहली प्राथमिकता होती है और यह बात वरुण भी अच्छी तरह जानता है कि स्नेहा उस की पसंदनापसंद का कितना खयाल रखती है. स्नेहा भी समझती है कि वरुण इतनी मेहनत अपने परिवार के लिए ही तो करता है. उन की हर सुखसुविधाओं का कितना खयाल रखता है वह. कभी किसी चीज की कमी नहीं होने देता.. परंतु उस की एकदो आदतें स्नेहा को बिलकुल पसंद नहीं हैं. एक तो सुंदर औरतों के पीछे भागना और दूसरा शराब पीना. कितना समझाया है कि शराब सेहत के लिए हानिकारक है, बल्कि औरतों को घूरना भी सेहत के लिए कम हानिकारक नहीं है, क्योंकि अगर किसी महिला ने जा कर उस के खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज करा दिया तो पुलिस के डंडे तो पड़ेंगे ही, नाम भी बदनाम हो जाएगा. मगर वरुण समझता ही नहीं.

 

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