आज तक पढ़ी जासूसी कहानियां याद आने लगीं. एक दिन दफ्तर में देर से पहुंच जाएंगे, उस ने सोचा. फिर सोचने लगा कि यह देश बड़ा पिछड़ा हुआ है. विदेशों की तरह यहां पर भी यदि जासूसी एजेंसी होती तो कुछ रुपए खर्च कर के वह पत्नी की गतिविधियों की साप्ताहिक रिपोर्ट लेता रहता. तत्काल सारी बातें साफ हो जातीं. पहचाने जाने का भय भी न रहता.
पत्नी सीधी सामान्य चाल से चलती रही. प्रतिक्षण वह कल्पना करता रहा, अब वह किसी दूसरी राह या गली में मुड़ेगी या कोई आदमी उस से राह में बाइक या कार में मिलेगा. कितु सभी अनुमान गलत साबित करती हुई वह सीधे स्कूल पहुंची. दरबान ने द्वार खोला, वह भीतर चली गई.
वह भी स्कूल पहुंचा. गार्ड ने बड़े रूखे शब्दों में पूछा, ‘‘व्हाट कैन आई डू फौर यू?’’
‘‘जरा एक काम था, एक टीचर से.’’
‘‘किस से?’’ गार्ड की आंखों में सतर्कता का भाव आ गया.
उस ने लापरवाही दिखाते हुए अपनी अक्षरा का ही नाम बताया और कहा, ‘‘इन्हें तो जानते
ही होंगे, उन से मिलने तो रोज कोई न कोई आता ही होगा.’’
‘‘कोई नहीं आता साहब,’’ गार्ड ने बताया, ‘‘आप को धोखा हुआ है. दूसरी टीचर्स से
मिलने वाले तो आते रहते हैं, पर उन से मिलने तो आज तक कोई नहीं आया यहां. कहें तो
बुला दूं?’’
‘‘नहीं, जरूर नाम में कुछ धोखा हो रहा है. मैं बाद में ठीक पता कर के आऊंगा.’’
वह दफ्तर चला गया. राह में और दफ्तर में भी दिमागी उलझन बनी रही.
दोपहर में एक कौफी शौप में कौफी पीते वक्त उस के दिमाग में एक नई बात कौंधी. वह दफ्तर से 6 बजे तक घर लौटता है. पत्नी स्कूल से 3 बजे तक लौट आती है. बीच के 2 घंटे.
इस बीच कोई आता होगा? नौकरानी 3 बजे तक काम कर के चली जाती है. घर में वही अकेली रहती है.
इस शंका ने उसे इतना उद्विग्न कर दिया कि चाय पीते हुए वह एक निश्चिय पर पहुंचा. उस ने सड़क पर एक दवा की दुकान पर जा कर लैंड लाइन से यूनिवर्सल गैराज को फोन किया. सुरेश वहीं काम करता है. फोन रिसैप्शनिस्ट ने उठाया. उस ने अपना नाम बताए बिना अपनी पत्नी का नाम ले कर कहा कि
सुरेश को इन्होंने 3 बजे घर बुलाया है और फोन रख दिया. खुद वह सिरदर्द के बहाने छुट्टी ले कर ढाई बजे ही घर लौट आया. सावधानी से इधरउधर देख कर अपने पास की चाबी से ताला खोला और भीतर जा कर पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चक्कर लगा कर बाहरी द्वार पर पहुंचा. ताला बाहर से पूर्ववत लगा कर फिर पिछवाड़े से भीतर आ पहुंचा. दरवाजा भीतर से बंद कर सोचने लगा कहां छिप कर बैठे. पलंग के नीचे. यह ठीक न रहेगा. वहां लंबे समय तक छिपे रहना पड़ सकता है.
अंत में सोचविचार कर कपड़ों के बड़े से रैक के पीछे जा खड़ा हुआ. यहां सोने के कमरे की ?ांकी भी मिलती है और रैक पर पड़े कपड़ों, परदों के भारी ढेर में से उसे बाहर से कोई देख भी नहीं सकेगा.
खड़ेखड़े थकने के बाद भी वह वहीं खड़ा रहा. धीरेधीरे 3 बजे, फिर 3 बज गए.
3-25 पर बाहरी ताले के खटकने की आवाज आई. उस की तमाम नसें तन गईं. दम साधे वह खड़ा रहा. पद्चाप सुनाई दी और पत्नी अक्षरा सीधी बैठक में आई और दरवाजा भीतर से बंद कर लिया.
उसे आश्चर्य हुआ कि सुरेश अभी तक क्यों नहीं पहुंचा. अक्षरा ने साड़ी खोल कर रैक पर उछाल दी.
पीछे से वह उस के सिर पर भी पड़ी, पर बिना हिलेडुले वहीं खड़ा रहा. दरार में से देखता रहा. ब्लाउज उतरा, ब्रा हटी. उस की पत्नी का यौवन पूर्ववत बरकरार था. ऐसी आकर्षक लगती है और कैसे कहे कि वह… पेटीकोट खोल कर उस की पत्नी ने रैक पर डाल दिया और स्नानगृह में जा घुसी.
वह अपनी उखड़ी तेज सांसों को व्यवस्थित करने लगा. पत्नी को यों चोरी से सर्वथा नग्न देख कर उसे ऐसा लगा कि जैसे पहली बार देख रहा हो. वह उसे बहुत दूर की अप्राप्य वस्तु लगी. वह भूल गया कि वह उस की पत्नी ही है.
जब वह नहा कर निकली तो उस के शीशे की तरह चमकते शरीर पर पानी की मोती जैसी बूंदें बड़ी भली लग रही थीं. उस ने एक बड़ा तौलिया ले कर शरीर सुखाया, बाल यथावत जूड़े में बंधे थे, उस ने उन्हें भिगोया नहीं था. वह दूसरे कपड़े पहनने लगी. ब्रा एवं टीशर्ट और पैंट पहन कर बाहर निकली. उस ने मन में खैर मनाई कि वह हिंदी फिल्मों की तरह कपड़ों की अलमारी में नहीं छिपा.
थोड़ी देर बाद बाहर से घंटी बजने की आवाज आई तो उस की धड़कनें तेज होने लगीं. उसे पत्नी की पद्चाप बैठक की ओर जाती सुनाई दी और उस की आवाज भी, ‘‘कौन है?’’
‘‘भाभी, मैं हूं, सुरेश,’’ उस की आवाज आई.
उस का मन उछल पड़ा. आखिर प्रतीक्षा रंग लाई. अब देखेगा वह उन्हें.
उस ने दरवाजा खुलने की आहट सुनी और पत्नी की तेज आवाज भी, ‘‘सुरेश, आज इस वक्त कैसे आए?’’
‘‘तुम्हीं ने तो फोन किया था 3 बजे के बाद आने के लिए.’’
‘‘फोन किया था मैं ने? तुम्हें कोई गलतफहमी हो रही है. मैं क्यों तुम्हें इस वक्त बुलाऊंगी?’’
‘‘वाह भाभी, पहले तो बुला लिया, अब ऐसा कह रही हो. भीतर तो आने दो जरा…’’
‘‘देखो भई, इस वक्त तुम जाओ. शाम को महेश के रहने पर आना तो बातें होंगी. मैं ने सचमुच कोई फोन नहीं किया है. उन की अनुपस्थिति में तुम्हारा यहां आना ठीक नहीं.
अभी तो मुझे स्कूल का बहुत काम करना है. जाओ शाम को आना.’’
पत्नी की आखिरी बात में कड़ाई थी. सुरेश के अच्छा कह कर लौटने की आहट उस ने स्पष्ट सुनी. द्वार फिर बंद हो गया और पत्नी वापस शयनकक्ष में लौट आई.
उसे जरा निराशा सी हुई पर मन में एक अजीब सा सुकून भी आने लगा. दिलदिमाग में खोखलेपन की जगह कैसे कुछ ठोस सा भर उठा. उस ने जरा झंक कर देखा वह पलंग पर लेटी खिड़की से आती धूप में तकिए पर बाल फैलाए उसी की लाई पत्रिका पढ़ रही थी.
मन हुआ जा कर उसे अपने से लिपटा ले पर उस का खिंचा बेरुखा सा चेहरा. वह दबे पांव स्नानगृह में गया, वहां से पीछे के दरवाजे से बाहर निकला और मुख्यद्वार पर आ कर घंटी बजा दी.
पत्नी ने आ कर दरवाजा खोला. उस के सख्त चेहरे से आंखें चुराता वह सफाईर् देने लगा, ‘‘क्या करूं, जरा सिरदर्द करने लगा तो जल्दी चल आया.’’
वह द्वार बंद कर चुपचाप चली आई. उस ने खुद चाय बना कर पी और कपड़े बदलने लगा.
अगले दिन शाम को उस ने हलके मूड में सोचा, आज पत्नी के लिए जरूर कोई उपहार देगा. बहुत दिनों से कुछ नहीं लिया है उस के लिए. मन में क्या कह रही होगी.
उस ने बाजार से एक अच्छा महंगा विदेशी परफ्यूम कौस्मैटिक बौक्स खरीदा. महीनों से खरीदना चाहता था, आज स्वयं को रोक न पाया. इस से उस की जेब लगभग खाली हो गई, पर उस ने परवाह न की. दूसरे दिन वेतन मिलेगा ही.
पैकेट में लपेटे वह उसे छिपा कर घर लाया और पत्नी की नजर बचा कर उसे शृंगारमेज के पास की खिड़की पर यों रख दिया कि सीधे नजर न पड़े.
वह मन में परेशान था कि कैसे यह उपहार देगा. बैठा ही था कि अक्षरा भीतर आई. उस ने आश्चर्य से देखा, वह बहुत प्रसन्न है. आंखें जैसे मधु में डूबी हों. आते ही वह बोली, ‘‘जरा, इधर तो आना.’’
वह मंत्रमुग्ध सा उस के पीछे चला. सोने के कमरे में आ कर पत्नी ने मुसकराते हुए
एक पैकेट खोल कर गहरे नीले रंग का एक पुलोवर निकाला और कहा, ‘‘देखो तो इसे पहन कर.’’
वह हैरान रह गया. नेवी ब्लू रंग का पुलोवर खरीदने की उस की बहुत दिनों से इच्छा थी.
मगर वह अपने टालू स्वभाव के कारण टालता जा रहा था.
उस ने पूछा, ‘‘यह क्यों ले आई?’’
‘‘आज स्कूल से तनख्वाह मिली है न. इसे पहनो तो,’’ उस ने प्यार से आदेश दिया और फिर स्वयं पहनाने लगी. पहना कर उसे शृंगारमेज के सामने लाई, ‘‘कैसा जंच रहा है?’’
उस ने मुग्ध भाव से खुद को शीशे में देखा. वह बड़ा चुस्त लग रहा था. उस ने पत्नी को बाहुपाश में लपेट कर एक चुंबन लिया. तभी कुछ याद कर के बोला, ‘‘एक मिनट को तुम आंखें तो मूंदो.’’
हैरान सी अक्षरा ने आंखें मूंद लीं. होंठ जरा खुले से मुसकराते ही रहे. उस ने झट खिड़की पर से परफ्यूम बौक्स निकाल कर उस के आगे किया और उल्लास से बोला, ‘‘आंखें खोलो.’’
आंखें खुलीं, प्रसन्नता की एक लहर के साथ उस की पत्नी उस से लिपट गई. परफ्यूम और उसे दोनों को संभाले वह पलंग तक आया. पत्नी पलंग पर बैठ कर परफ्यूम की पैकिंग उतारने लगी. वह चुपके से अपने कमरे में आ गया और मेज की दराज से डायरी निकाल कर लाल स्याही से लिखी वह पंक्ति कलम से घिसघिस कर काटने लगा. बीचबीच में पीछे मुड़ कर देख लेता कि कहीं अक्षरा तो नहीं आ रही है.