खूंटियों पर लटके हुए: भाग -3

आज तक पढ़ी जासूसी कहानियां याद आने लगीं. एक दिन दफ्तर में देर से पहुंच जाएंगे, उस ने सोचा. फिर सोचने लगा कि यह देश बड़ा पिछड़ा हुआ है. विदेशों की तरह यहां पर भी यदि जासूसी एजेंसी होती तो कुछ रुपए खर्च कर के वह पत्नी की गतिविधियों की साप्ताहिक रिपोर्ट लेता रहता. तत्काल सारी बातें साफ हो जातीं. पहचाने जाने का भय भी न रहता.

पत्नी सीधी सामान्य चाल से चलती रही. प्रतिक्षण वह कल्पना करता रहा, अब वह किसी दूसरी राह या गली में मुड़ेगी या कोई आदमी उस से राह में बाइक या कार में मिलेगा. कितु सभी अनुमान गलत साबित करती हुई वह सीधे स्कूल पहुंची. दरबान ने द्वार खोला, वह भीतर चली गई.

वह भी स्कूल पहुंचा. गार्ड ने बड़े रूखे शब्दों में पूछा, ‘‘व्हाट कैन आई डू फौर यू?’’

‘‘जरा एक काम था, एक टीचर से.’’

‘‘किस से?’’ गार्ड की आंखों में सतर्कता का भाव आ गया.

उस ने लापरवाही दिखाते हुए अपनी अक्षरा का ही नाम बताया और कहा, ‘‘इन्हें तो जानते

ही होंगे, उन से मिलने तो रोज कोई न कोई आता ही होगा.’’

‘‘कोई नहीं आता साहब,’’ गार्ड ने बताया, ‘‘आप को धोखा हुआ है. दूसरी टीचर्स से

मिलने वाले तो आते रहते हैं, पर उन से मिलने तो आज तक कोई नहीं आया यहां. कहें तो

बुला दूं?’’

‘‘नहीं, जरूर नाम में कुछ धोखा हो रहा है. मैं बाद में ठीक पता कर के आऊंगा.’’

वह दफ्तर चला गया. राह में और दफ्तर में भी दिमागी उलझन बनी रही.

दोपहर में एक कौफी शौप में कौफी पीते वक्त उस के दिमाग में एक नई बात कौंधी. वह दफ्तर से 6 बजे तक घर लौटता है. पत्नी स्कूल से 3 बजे तक लौट आती है. बीच के 2 घंटे.

इस बीच कोई आता होगा? नौकरानी 3 बजे तक काम कर के चली जाती है. घर में वही अकेली रहती है.

इस शंका ने उसे इतना उद्विग्न कर दिया कि चाय पीते हुए वह एक निश्चिय पर पहुंचा. उस ने सड़क पर एक दवा की दुकान पर जा कर लैंड लाइन से यूनिवर्सल गैराज को फोन किया. सुरेश वहीं काम करता है. फोन रिसैप्शनिस्ट ने उठाया. उस ने अपना नाम बताए बिना अपनी पत्नी का नाम ले कर कहा कि

सुरेश को इन्होंने 3 बजे घर बुलाया है और फोन रख दिया. खुद वह सिरदर्द के बहाने छुट्टी ले कर ढाई बजे ही घर लौट आया. सावधानी से इधरउधर देख कर अपने पास की चाबी से ताला खोला और भीतर जा कर पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चक्कर लगा कर बाहरी द्वार पर पहुंचा. ताला बाहर से पूर्ववत लगा कर फिर पिछवाड़े से भीतर आ पहुंचा. दरवाजा भीतर से बंद कर सोचने लगा कहां छिप कर बैठे. पलंग के नीचे. यह ठीक न रहेगा. वहां लंबे समय तक छिपे रहना पड़ सकता है.

अंत में सोचविचार कर कपड़ों के बड़े से रैक के पीछे जा खड़ा हुआ. यहां सोने के कमरे की ?ांकी भी मिलती है और रैक पर पड़े कपड़ों, परदों के भारी ढेर में से उसे बाहर से कोई देख भी नहीं सकेगा.

खड़ेखड़े थकने के बाद भी वह वहीं खड़ा रहा. धीरेधीरे 3 बजे, फिर 3 बज गए.

3-25 पर बाहरी ताले के खटकने की आवाज आई. उस की तमाम नसें तन गईं. दम साधे वह खड़ा रहा. पद्चाप सुनाई दी और पत्नी अक्षरा सीधी बैठक में आई और दरवाजा भीतर से बंद कर लिया.

उसे आश्चर्य हुआ कि सुरेश अभी तक क्यों नहीं पहुंचा. अक्षरा ने साड़ी खोल कर रैक पर उछाल दी.

पीछे से वह उस के सिर पर भी पड़ी, पर बिना हिलेडुले वहीं खड़ा रहा. दरार में से देखता रहा. ब्लाउज उतरा, ब्रा हटी. उस की पत्नी का यौवन पूर्ववत बरकरार था. ऐसी आकर्षक लगती है और कैसे कहे कि वह… पेटीकोट खोल कर उस की पत्नी ने रैक पर डाल दिया और स्नानगृह में जा घुसी.

वह अपनी उखड़ी तेज सांसों को व्यवस्थित करने लगा. पत्नी को यों चोरी से सर्वथा नग्न देख कर उसे ऐसा लगा कि जैसे पहली बार देख रहा हो. वह उसे बहुत दूर की अप्राप्य वस्तु लगी. वह भूल गया कि वह उस की पत्नी ही है.

जब वह नहा कर निकली तो उस के शीशे की तरह चमकते शरीर पर पानी की मोती जैसी बूंदें बड़ी भली लग रही थीं. उस ने एक बड़ा तौलिया ले कर शरीर सुखाया, बाल यथावत जूड़े में बंधे थे, उस ने उन्हें भिगोया नहीं था. वह दूसरे कपड़े पहनने लगी. ब्रा एवं टीशर्ट और पैंट पहन कर बाहर निकली. उस ने मन में खैर मनाई कि वह हिंदी फिल्मों की तरह कपड़ों की अलमारी में नहीं छिपा.

थोड़ी देर बाद बाहर से घंटी बजने की आवाज आई तो उस की धड़कनें तेज होने लगीं. उसे पत्नी की पद्चाप बैठक की ओर जाती सुनाई दी और उस की आवाज भी, ‘‘कौन है?’’

‘‘भाभी, मैं हूं, सुरेश,’’ उस की आवाज आई.

उस का मन उछल पड़ा. आखिर प्रतीक्षा रंग लाई. अब देखेगा वह उन्हें.

उस ने दरवाजा खुलने की आहट सुनी और पत्नी की तेज आवाज भी, ‘‘सुरेश, आज इस वक्त कैसे आए?’’

‘‘तुम्हीं ने तो फोन किया था 3 बजे के बाद आने के लिए.’’

‘‘फोन किया था मैं ने? तुम्हें कोई गलतफहमी हो रही है. मैं क्यों तुम्हें इस वक्त बुलाऊंगी?’’

‘‘वाह भाभी, पहले तो बुला लिया, अब ऐसा कह रही हो. भीतर तो आने दो जरा…’’

‘‘देखो भई, इस वक्त तुम जाओ. शाम को महेश के रहने पर आना तो बातें होंगी. मैं ने सचमुच कोई फोन नहीं किया है. उन की अनुपस्थिति में तुम्हारा यहां आना ठीक नहीं.

अभी तो मुझे स्कूल का बहुत काम करना है. जाओ शाम को आना.’’

पत्नी की आखिरी बात में कड़ाई थी. सुरेश के अच्छा कह कर लौटने की आहट उस ने स्पष्ट सुनी. द्वार फिर बंद हो गया और पत्नी वापस शयनकक्ष में लौट आई.

उसे जरा निराशा सी हुई पर मन में एक अजीब सा सुकून भी आने लगा. दिलदिमाग में खोखलेपन की जगह कैसे कुछ ठोस सा भर उठा. उस ने जरा झंक कर देखा वह पलंग पर लेटी खिड़की से आती धूप में तकिए पर बाल फैलाए उसी की लाई पत्रिका पढ़ रही थी.

मन हुआ जा कर उसे अपने से लिपटा ले पर उस का खिंचा बेरुखा सा चेहरा. वह दबे पांव स्नानगृह में गया, वहां से पीछे के दरवाजे से बाहर निकला और मुख्यद्वार पर आ कर घंटी बजा दी.

पत्नी ने आ कर दरवाजा खोला. उस के सख्त चेहरे से आंखें चुराता वह सफाईर् देने लगा, ‘‘क्या करूं, जरा सिरदर्द करने लगा तो जल्दी चल आया.’’

वह द्वार बंद कर चुपचाप चली आई. उस ने खुद चाय बना कर पी और कपड़े बदलने लगा.

अगले दिन शाम को उस ने हलके मूड में सोचा, आज पत्नी के लिए जरूर कोई उपहार देगा. बहुत दिनों से कुछ नहीं लिया है उस के लिए. मन में क्या कह रही होगी.

उस ने बाजार से एक अच्छा महंगा विदेशी परफ्यूम कौस्मैटिक बौक्स खरीदा. महीनों से खरीदना चाहता था, आज स्वयं को रोक न पाया. इस से उस की जेब लगभग खाली हो गई, पर उस ने परवाह न की. दूसरे दिन वेतन मिलेगा ही.

पैकेट में लपेटे वह उसे छिपा कर घर लाया और पत्नी की नजर बचा कर उसे शृंगारमेज के पास की खिड़की पर यों रख दिया कि सीधे नजर न पड़े.

वह मन में परेशान था कि कैसे यह उपहार देगा. बैठा ही था कि अक्षरा भीतर आई. उस ने आश्चर्य से देखा, वह बहुत प्रसन्न है. आंखें जैसे मधु में डूबी हों. आते ही वह बोली, ‘‘जरा, इधर तो आना.’’

वह मंत्रमुग्ध सा उस के पीछे चला. सोने के कमरे में आ कर पत्नी ने मुसकराते हुए

एक पैकेट खोल कर गहरे नीले रंग का एक पुलोवर निकाला और कहा, ‘‘देखो तो इसे पहन कर.’’

वह हैरान रह गया. नेवी ब्लू रंग का पुलोवर खरीदने की उस की बहुत दिनों से इच्छा थी.

मगर वह अपने टालू स्वभाव के कारण टालता जा रहा था.

उस ने पूछा, ‘‘यह क्यों ले आई?’’

‘‘आज स्कूल से तनख्वाह मिली है न. इसे पहनो तो,’’ उस ने प्यार से आदेश दिया और फिर स्वयं पहनाने लगी. पहना कर उसे शृंगारमेज के सामने लाई, ‘‘कैसा जंच रहा है?’’

उस ने मुग्ध भाव से खुद को शीशे में देखा. वह बड़ा चुस्त लग रहा था. उस ने पत्नी को बाहुपाश में लपेट कर एक चुंबन लिया. तभी कुछ याद कर के बोला, ‘‘एक मिनट को तुम आंखें तो मूंदो.’’

हैरान सी अक्षरा ने आंखें मूंद लीं. होंठ जरा खुले से मुसकराते ही रहे. उस ने झट खिड़की पर से परफ्यूम बौक्स निकाल कर उस के आगे किया और उल्लास से बोला, ‘‘आंखें खोलो.’’

आंखें खुलीं, प्रसन्नता की एक लहर के साथ उस की पत्नी उस से लिपट गई. परफ्यूम और उसे दोनों को संभाले वह पलंग तक आया. पत्नी पलंग पर बैठ कर परफ्यूम की पैकिंग उतारने लगी. वह चुपके से अपने कमरे में आ गया और मेज की दराज से डायरी निकाल कर लाल स्याही से लिखी वह पंक्ति कलम से घिसघिस कर काटने लगा. बीचबीच में पीछे मुड़ कर देख लेता कि कहीं अक्षरा तो नहीं आ रही है.

सीख: भाग 3-आखिर वंदना ने कौन-सी योजना बनाई

अब सब का व्यवहार बदल गया. उस ने नौवल खोला नही कि मनोज कोई शिकायत भरी बातें सुना कर उस के लिए कोई न कोई काम निकाल लेता.

‘‘समझदार पत्नी न नौवल पढ़ती है, न देर तक सोती है. अब तुम नईनवेली नहीं रही हो, वंदना. घर के कामों की जिम्मेदारी संभालनी शुरू करो अब,’’ सासससुर की नई टोकाटाकी की शुरूआत से वंदना का दिल तो बहुत कुढ़ता, पर पति के आदेशा का पालन करने को वह मजबूर थी.

मनोज औफिस से लौटता तो रोज ही उसे खूब सुनाता कि किस की पत्नी क्याक्या खाना टिफिन में देती.

‘‘वंदना तुम्हें ढंग से सब्जी तक बनानी नहीं आती. धेले भर का काम नहीं सिखाया तुम्हारी मां ने. तुम्हें पूरा दिन सोने को मिले, तो भी कम है. तुम्हारा अमीर बाप की बेटी होना मेरे किस काम का.’’

ऐसी शिकायतों व रोजरोज होने वाले क्लेशों के कारण वंदना और मनोज के संबंध बिगड़ने लगे.

वंदना अपना पक्ष बयां करती, तो मनोज ध्यान से उस की बातें सुनने के बजाय फौरन चिड़ और गुस्से का शिकार हो जाता. गुस्से में आ कर उस ने एक शाम वंदना के कई नौवल फाड़ दिए.

‘‘तुम सुधर जाओ, नहीं तो किसी दिन मेरा हाथ तुम पर उठ जाएगा.’’

एक दिन मनोज के मुंह से यह धमकी सुनने के बाद वंदना घंटों रोई और पूरे 3 दिनों तक उस ने उस से सीधे मुंह बात नहीं करी.

वंदना का अपने पति व ससुराल वालों के बदले व्यवहार को देख कर खूब खून फुंकता तो दूसरी तरफ उस के मन में अपने मातापिता व भाई के प्रति भी गहरी शिकायत व नाराजगी बढ़ती गई.

‘सारी समस्या की जड़ में इस बार उन लोगों का मेरे साथ सामान व रुपए न भेजना है. सारी दुनिया अपनी विवाहित बेटियों के ससुराल वालों को खूब देती है. उन की न देने की मजबूरी होगी, पर मेरी जान तो मुसीबत में डाल दी उन्होंने,’ ऐसी बातें सोचसोच कर वह मारे तनाव के अपने सिर में भयंकर दर्द पैदा कर लेती.

पिता के घर से लौटने के करीब महीनेभर बाद वंदना का एक रविवार का दिन तो बहुत खराब बीता. उस दिन मनोज से डांटफटकार व अपमान के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. सब से पहले तो नाश्ते में बनाए पोहे में उस से बहुत तेज नमक पड़ गया.

नाराजगी दर्शाते हुए वह लंच के समय कमरे से बाहर नहीं आई, तो मनोज ने उस की चिंता नहीं करी. मनोज ने सिर्फ एक बार आ कर खाना खाने को पूछा. वह पास के किसी होटल से खाना लाया था. वंदना ने इनकार किया तो बाद में कोई उस का हाल पूछने नहीं आया. दोपहर बाद वंदना ने देखा कि 2 सूखी पूरियां थीं.

शाम को मनोज अपने दोस्तों से मिलने चला गया. वहीं से वह मातापिता के घर चला गया. उपेक्षित व अपमानित महसूस करती हुई वंदना कभी गुस्से से सब के खिलाफ बड़बड़ाने लगती, तो कभी दुखी हो कर आंसू बहाती रही.

तभी वंदना की मां कमला का फोन आया, तो वह ज्वालामुखी की तरह आग उगलने लगी, ‘‘तुम सब की कंजूसी और नासमझ की सजा आज मुझे भुगतनी पड़ रही है, मां. पहले तुम सब ने मेरे लालची ससुराल वालों की देदे कर आदतें खराब क्यों करीं? इस बार तुम लोगों ने हाथ खींच कर अच्छा नहीं किया, मां. यहां मनोज ने मेरा जीना दूभर कर दिया है. इस नर्क में जीने के बजाय मैं आत्महत्या करना बेहतर समझोंगी,’’ भावावेश के कारण वंदना की ऊंची आवाज बुरी तरह कांप रही थी.

वंदना देर तक अपने मन की भड़ास निकालती रही. कमला ने बड़े सब्र से उस की सारी बातें अधिकतर खामोश रह कर सुनीं.

अपनी शिकायतों से खाली हो चुकने के बाद वंदना दुखी हो कर रोने लगी, ‘‘मां, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं,’’

उस ने सुबकते हुए पूछा, ‘‘इन लोगों का लालची रूप देख कर मेरा मन कांप जाता है. कैसे गुजरेगी मेरी जिंदगी रातदिन के क्लेश व ताने झेल कर?’’

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनेगी बेटी,’’ कमला की गंभीर आवाज वंदना के कानों में पहुंची.

‘‘हां, मां,’’ वंदना ने आंसू पोंछते हुए वादा किया.

‘‘देख बेटी, समाज में हम सब का जीवन लेनदेन के सिद्धांत पर आधारित है. बिना दिए कुछ नहीं मिलता.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो, मां. इस बार मेरी ससुराल वालों को आप लोगों से कुछ नहीं मिला, तो उन्होंने मुझे प्यार, इज्जत व सुखसुविधाएं देना बंद कर दिया है.’’

कुछ पलों की खामोशी के बाद कमला ने कहा, ‘‘बेटी, बुरे वक्त से हमें सीख

लेनी चाहिए. अपनी समझ बढ़ानी चाहिए, तेरे पिता और भाई तुझे लाड के कारण कुछ ज्यादा देते रहे थे पर तूने उस का गलत मतलब निकाल लिया. मायके के साथ जीवन नहीं कटता. जीवन तो बेटी जाति के साथ कटता है और पति के मांबाप, भाईबहन का खयाल रखना तुम्हारी ड्यूटी है. हमारे पैसे के चक्कर में तुम पत्नी बनने से रह गई और सोचने लगी कि मनोज तुम्हारे पैसे का दीवाना है. यह बताओ तुम ने रात के अलावा मनोज को कब एहसास जताया कि तुम उस की पत्नी हो?’’

थोड़ी देर रुक कर उन्होंने आगे कहा, ‘‘मनोज और उस के मातापिता का फोन मेरे पास 4 दिन पहले आया था. उन की नाराजगी तुम्हारे पैसे न लाने से नहीं, तुम्हारे व्यवहार से है. तुम अपने व्यवहार से मनोज के साथ वही करो जो तुम चाहती हो कि मनोज तुम्हारे साथ करे. वे सब तुम्हारा और मनोज का भला चाहते हैं. सुनो घर ठीक कर लो, नहाधो लो. तुम्हारी सास ने कहा है कि वे सब घर का बना खाना ले कर तुम्हारे घर 2 घंटे में मनोज के साथ आ रहे हैं. उन्हें निराश न करना बेटी.’’

वंदना ये सब सुन कर खुद को मन ही मन धिक्कारने लगी कि उस की इतनी पढ़ाईलिखाई, इतनी समझ कहां गई? उस ने मां से कहा, ‘‘मां, अब तुम्हें कोई शिकायत न होगी पर अगले संडे तुम और पापा भाभीभाई के साथ डिनर पर आना. मैं बताऊंगी कि खाना बनाना किसे कहते हैं.’’

2 रविवारों के बाद मनोज और वंदना ऐसे हो गए जैसे वे 1 जान 2 बदन हों.

फूल सी दोस्ती : विराट की गर्लफ्रैंड क्यों उस रिश्ते का मजाक बनाने लगी?

आजकल मंजरी का मन घर में बिलकुल भी नहीं लग रहा था. उस के पति शिशिर बिजनैस के सिलसिले में ज्यादातर बाहर रहा करते थे और बेटा अतुल एमएस करने अमेरिका गया, तो वहीं का हो कर रह गया. साक्षी से ही वह अपने मन की बातें कर लिया करती थी. साक्षी भी मंजरी को मां नहीं सहेली समझती थी. तभी तो पिछले सप्ताह उसे एअरपोर्ट तक छोड़ते समय मन बहुत उदास हो गया था मंजरी का. हालांकि इस बात से वह बहुत खुश थी कि मिलान से फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने के लिए स्कौलरशिप मिली साक्षी को.

शिशिर ने उसे सोसाइटी की महिलाओं का क्लब जौइन करने का सुझाव दिया. पर मंजरी ने सोचा कि पहले की तरह फिर उसे क्लब छोड़ना पड़ गया तो वह सब की आंखों की किरकिरी बन जाएगी. उस की दिलचस्पी औरों की तरह लोगों की कमियां निकालने, गहनों की चर्चा करने और साडि़यों की सेल के बारे में जानने की नहीं थी. किट्टी पार्टी में महंगी क्रौकरी के प्रदर्शन और ड्राइंगरूम में नित नए शो पीसेज से अपना रुतबा बढ़ाचढ़ा कर दिखाने का स्वांग रचना भी नहीं जानती थी वह. उसे कुछ अच्छा लगता था तो बस देर तक प्रकृति की गोद में बैठे रहना या फिर बच्चों के साथ हंसतेखिलखिलाते हुए बचपन को फिर से महसूस करना. उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह 50 वर्ष पार चुकी है.

साक्षी के चले जाने के बाद मंजरी अकसर किसी पार्क में जा कर बैठ जाया करती थी. एक दिन पार्क में बैंच पर बैठी हुई वह व्हाट्सऐप पर मैसेज पढ़ने में तल्लीन थी कि ‘एक्सक्यूज मी’ सुन कर उस का ध्यान भंग हुआ. सामने एक 28-29 वर्षीय लंबा, हैंडसम युवक उसे बैंच पर रखा उस का पर्स हटाने को कह रहा था. मुसकराते हुए उस ने पर्स उठा लिया और वह युवक बैंच पर बैठ गया. लगभग 5 मिनट यों ही बीत गए. युवक बेचैन सा कभी पार्क के गेट की

ओर देखता तो कभी अपने मोबाइल को. ऐसा लग रहा था कि वह किसी की प्रतीक्षा कर रहा है. मंजरी ने पूछ लिया, ‘‘किसी का इंतजार कर रहे हो क्या?’’ लेकिन प्रश्न पूछते ही उसे लगा कि उस से गलती हो गई. एक अजनबी, वह भी नवयुवक….अब जरूर यह खीज उठेगा.

परंतु उस की आशा के विपरीत युवक ने मुसकरा कर उस की ओर देखा और कहा, ‘‘मैं… हां… इतंजार कर रहा हूं… आप… अकेली बैठीं हैं?’’

‘‘हां…जब बोर होती हूं तो यहां आ कर बैठ जाती हूं. मेरे अलावा घर के सब लोग बिजी हैं…लगता है यह बैंच उन लोगों के लिए ही बनी है जो अपनों का साथ पाने को बेचैन हैं,’’ वह निराश, पर थोड़े से मजाकिया लहजे में बोली.

‘‘हां… शायद… मेरी गर्लफ्रैंड… नहीं, हाफ गर्लफ्रैंड भी बिजी रहती है. वह ऐसे बच्चों के हौस्टल में औफिसर इन चार्ज है जो देख नहीं सकते. काफी काम रहता है उसे वहां. शायद इसीलिए टाइम पर नहीं पहुंच पाती मेरे पास.’’ निराशा छिपाते हुए एक सांस में ही नवयुवक ने सब कह डाला.

फिर अपना परिचय देते हुए उस ने मंजरी को अपना नाम बताया, ‘‘जी, मेरा नाम विराट है. और आप?’’

‘‘मैं मंजरी,’’ थोड़ा हिचकिचाते हुए मंजरी ने भी अपना परिचय दिया.

‘‘काम तो अच्छा कर रही हैं आप की साहिबा. नाम क्या है और हाफ गर्लफ्रैंड क्यों?’’

‘‘रिया नाम है मैडम का… हम दोनों मुंबई में 5वीं क्लास तक एकसाथ पढ़ते थे, फिर उस के पापा का ट्रांसफर हो गया और वे लोग दिल्ली आ गए. 3 महीने पहले एक दिन अचानक ही उस से मुलाकात हो गई. उस के बाद से ही हमारा मिलनाजुलना शुरू हो गया. हम दोनों एकदूसरे को पसंद भी बहुत करते हैं. बस…वो ‘3 वर्ड्स’ अभी तक नहीं कह पाए एकदूसरे को,’’ विराट ने शरमाते हुए कहा.

‘‘फिर तो तुम भी हाफ बौयफ्रैंड हुए न उस के,’’ मंजरी ने विराट की बातों में दिलचस्पी लेते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, रिया तो कब की मेरे मन की बात जान चुकी होगी, क्योंकि मेरे वाट्सऐप और फेसबुक के स्टेटस मेरे मन के राज खोल देते हैं. पर रिया…वह तो इस मामले में पूरी साइलैंट मूवी की हीरोइन है,’’ और विराट होंठों पर उंगली रख, चुप्पी का इशारा करते हुए मुसकराने लगा.

और फिर मंजरी के ‘‘ओह…नौटी गर्ल’’ कहते ही दोनों हंस पड़े.

‘‘आप से एक बात पूछूं?… पुरानी हिंदी फिल्मों में हीरो हमेशा हीरोइन के पीछे भागता दिखाई देता था. क्या सच में ऐसा तब भी होता था? आजकल की लड़कियां तो अपने पीछे भगाभगा कर थका ही देती हैं. अब मुझे ही देख लीजिए,’’ कह विराट ने अपना निचला होंठ बाहर निकालते हुए मंजरी की ओर इस तरह देखा कि उस की मासूमियत पर स्नेह बरस पड़ा मंजरी के मन में.

‘‘विराट, यह जमाने पर नहीं व्यक्ति पर निर्भर करता है. मैं ने तो किसी को अपने पीछे भागने का मौका ही नहीं दिया कभी. शिशिर के लिए प्यार महसूस करते ही बिना समय गंवाए उसे बता दिया था मैं ने तो. जब मिलती थी तब भी पटरपटर बोलती रहती थी. वैसे शिशिर क्या मैं तो किसी के सामने छिपा ही नहीं सकती अपनी फीलिंग्स. चाहे फिर वे मेरे बच्चे हों या दोस्त,’’ थोड़ा भावुक हो कर मंजरी बोली.

‘‘वही तो, मैं भी नहीं रह सका चुप. अपरोक्ष रूप से ही सही बता ही दिया रिया को कि कितना बेताब हूं उस के लिए मैं. अब मैं भी तो सुनना चाहता हूं कि मेरे लिए वह क्या महसूस करती है?’’ बेचैन सा होता हुआ वह बोला.

‘‘मैं ने बहुत कुछ सीखा है अपने बड़बोले स्वभाव से. मैं तुम्हें बता दूंगी कि रिया से कैसे उस के दिल की बात उगलवानी है तुम्हें… ठीक?’’

‘‘डील?’’

‘‘डील.’’

और दोनों ने हंसते हुए एकदूसरे से हाथ मिलाया. मोबाइल नंबरों के आदानप्रदान के बाद मंजरी घर की ओर चल पड़ी.

विराट दिल्ली में स्थित एक इंटरनैशनल कंपनी में वाइस प्रैसिडैंट था. उस के मातापिता मुंबई में रहते थे. यों तो विराट बहुत बातूनी था, पर कम ही लोग उस के दिल को छू पाते थे. मंजरी के अपनेपन और दोस्ताना व्यवहार ने विराट के दिल में जगह बना ली और दोनों के बीच फोन और व्हाट्सऐप के द्वारा बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. कुछ ही दिनों में वे इतना घुलमिल गए कि अपनी रोज की बातें शेयर करने लगे.

विराट जब भी मंजरी से मिलता, अपने मन में हलचल मचा रहे कई सवाल पूछ डालता. मंजरी भी आराम से उस के सवालों का जवाब देती. जब कभी वह मंजरी से अपने और रिया के संबंधों को ले कर कोई सवाल करता तो मंजरी की प्रेम के विषय में इतनी गहरी समझ देख कर हैरान रह जाता.

वह जान गया था कि 60 की उम्र के आसपास पहुंच कर भी प्यार जैसे शब्द बेमानी नहीं होते. यह अलग बात है कि उस सोच में एक परिपक्वता आ जाती है. मंजरी से मिला स्नेह और मार्गदर्शन जहां विराट को बेहद सुखद अनुभूति देता, वहीं मंजरी भी विराट के उत्साह से प्रभावित हो कर एक नई शक्ति महसूस करती. धीरेधीरे वे दोनों एक अनाम से रिश्ते में बंध गए थे.

लगभग एक महीने की बिजनैस टूअर से शिशिर जब घर लौटे तो मंजरी बदलीबदली सी लगी. पहले की तुलना में वह काफी खुश दिख रही थी. लाल कैप्री के साथ क्रीम कलर का लंबा सा कुरता पहन, अपनी फैवरिट परफ्यूम लगाए घर में फुदकती हुई वह 25 साल पुरानी मंजरी लग रही थी.

शिशिर सूटकेस रखने जब अपने कमरे में पहुंचा तो बैड पर अधलेटा विराट

मंजरी के लैपटौप पर कुछ करने में व्यस्त था. इस से पहले कि उन की कुछ बात होती, मंजरी सब के लिए कौफी ले कर आ गई और विराट का अपने दोस्त के रूप में शिशिर से परिचय करवा दिया.

‘‘मंजरीजी मेरी हमउम्र न सही, पर यह रिश्ता मुझे भी दोस्ती जैसा ही लगता है. आप को ऐतराज न हो तो मैं भी इन्हें अपनी दोस्त कह कर बुला सकता हूं?’’ विराट ने शिशिर से बड़ी आत्मीयता से पूछा.

‘‘सिर्फ दोस्त कह कर बुलाओगे? अरे भई, दोस्त समझो इन्हें. लगता है तुम में इन्हें एक ऐसा साथी मिल गया कि हमारी मैडम किट्टी और पड़ोस की सहेलियों से मिलने तक नहीं जा पातीं. अब बाहर जाया करूंगा तो मंजरी की चिंता नहीं होगी मुझे. वैलडन यंग मैन,’’ शिशिर ने विराट की पीठ थपथपा दी.

कौफी की चुसकियों के साथ तीनों की बातचीत का शोर घर में सुनाई देने लगा.

रिया को ले कर विराट का उतावलापन देख मंजरी कभीकभी खूब हंसती. विराट चाहता था कि रिया जल्द से जल्द उसे अपने मन की बात कह दे और यह रिश्ता किसी मंजिल तक पहुंच जाए. मंजरी ने विराट को रिया के सामने थोड़ा सीमित रहने का सुझाव दिया, ताकि रिया स्वयं को टटोलना शुरू करे. मंजरी की बात मान विराट ने अब बारबार रिया को फोन और मैसेज करना बंद कर दिया. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी वह सोचसमझ कर स्टेटस डालने लगा. अपने मन की बात मन ही में रखने से विराट को थोड़ी मुश्किल जरूर हुई, पर इस का परिणाम वैसा ही निकला जैसा वह चाहता था.

उस दिन कौफी शौप में विराट जानबूझ कर रिया को औफिस की बोझिल बातें सुनाने लगा. कुछ देर चुपचाप सुनने के बाद बोर होते हुए रिया बोली, ‘‘बस करो न अब… प्लीज, हमेशा की तरह अपने शौक, अपने बचपन और कालेज की शैतानियों की बात करो न.’’

‘‘क्यों?’’ अनजान बनते हुए विराट ने पूछा.

‘‘क्यों क्या? अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में जानना.’’

‘‘रियली… पर कुछ तो वजह होगी इस की?’’  विराट को मंजिल करीब लग रही थी.

‘‘विराट… बड़े खराब हो तुम…’’

‘‘अरे, मुझ पर गुस्सा? ‘लव यू’ तुम से नहीं बोला जा रहा और नाराजगी मुझ पर.’’

‘‘सब बातें कहने की नहीं होतीं. क्या मैं ने कभी तुम्हें प्यार कबूलने को कहा? तुम्हारे स्टेटस से आइडिया लगा लिया न? और तुम हो कि…’’

‘‘पर तुम तो स्टेटस भी हमेशा अपने मम्मीपप्पा की नन्ही सी गुडि़या बन कर डालती हो, एकदम बच्चों की तरह. कभी इशारा भी दिया कि मैं पसंद हूं तुम्हें?’’

‘‘ओके बाबा… लो…अभी व्हाट्सऐप पर तुम्हारे लिए स्टेटस डालती हूं.’’

और रिया ने तभी सुंदर सी रेशमी डोर की इमेज वाला स्टेटस डाला, जिस पर एक गीत की पंक्ति लिखी थी, ‘‘ये मोहमोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उलझे…’’

स्टेटस पढ़ते ही विराट की खुशी का ठिकाना न रहा और उस ने रिया का हाथ पकड़ कर चूम लिया. मन ही मन वह मंजरी का धन्यवाद करना भी नहीं भूला. अगला दिन उस ने लोधी गार्डेन में सैलिब्रेशन डे के रूप में मंजरी के साथ मनाने का निश्चय किया.

घर पहुंच कर विराट के कई बार काल करने पर भी जब मंजरी ने फोन नहीं उठाया तो एक छोटा सा मैसेज भेज कर वह सो गया. सुबह होते ही वह फिर मंजरी को फोन करने लगा, पर कोई उत्तर न मिला. व्हाट्सऐप पर भी उस का लास्ट सीन रात का ही था. शिशिर लंदन गए हुए थे, इसलिए मंजरी कहीं दूर भी नहीं गई होगी. विराट बेहद चिंतित था. इसी तरह काफी समय बीत गया. इधर रिया से मिलने का टाइम हो रहा था, उधर मंजरी को ले कर चिंता.

इसी बीच दोपहर के 2 बज गए. कुछ सोचते हुए वह अपनी कार की चाबी ले कर घर से निकला ही था कि मंजरी का फोन आ गया. उस ने बताया कि रात से उसे तेज बुखार है, सुबह से चक्कर भी आ रहे हैं. बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही उस की.

‘‘मैं अभी आता हूं,’’ कह विराट मंजरी के घर की ओर निकल पड़ा. रिया को फोन कर उस ने बता दिया कि आज वह नहीं आ पाएगा क्योंकि एक फ्रैंड की तबीयत ठीक नहीं है, वह उस के घर जा रहा है.

मंजरी के घर पहुंचते ही विराट उसे ले कर हौस्पिटल गया. वहां मंजरी को दवा दी गई. घर वापस आ कर भी विराट तब तक मंजरी के पास बैठा रहा जब तक उस का बुखार कम नहीं हो गया.

घर लौटते ही उस ने रिया को फोन कर मंजरी के बारे में बताना शुरू किया. सुन कर रिया बोली, ‘‘तुम ने तो कहा था कि एक फ्रैंड की तबीयत खराब है.’’

‘‘हां, मंजरीजी फ्रैंड हैं मेरी.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब तुम भी यही सोचती हो कि एक मेल और फीमेल कभी फ्रैंड नहीं हो सकते?’’

‘‘मैं क्या उस जमाने की लगती हूं तुम्हें? पर 50 की उम्र के पार की आंटी से फ्रैंडशिप? हाहाहा… आई कांट बिलीव इट.’’

‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ विराट गुस्से से बोला. जवाब में रिया ने फोन काट दिया.

रात होतेहोते मंजरी की तबीयत में काफी सुधार आ गया. विराट को थैंक्स बोलने के लिए जब उस ने फोन किया तो ‘हैलो’ के साथ ही विराट की निराशा और गुस्से में भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘आई हेट रिया.’’

‘‘क्यों क्या हुआ?’’ चिंतित सी मंजरी इतना ही बोल पाई. और विराट ने पूरी घटना उसे सुना दी.

‘‘विराट, इस में रिया की कोई गलती नहीं. हमें संस्कार ही ऐसे दिए जाते हैं कि हम भावनाओं को जीना जानते ही नहीं. अपनी संकीर्ण सोच से कुछ लोगों द्वारा बनाए गए

नियमों के इर्दगिर्द ही घूमती रहती है हमारी पूरी जिंदगी. रिया को बस थोड़ा समझाने की जरूरत है. तुम परेशान मत होना, प्लीज…मैं देखती हूं अब क्या करना है.’’ मंजरी के कहने से विराट आश्वस्त हुआ और दोनों की बात वहीं समाप्त हो गई.

अगले दिन मंजरी ने बहुत सी चौकलेट्स खरीदीं और नेत्रहीन बच्चों के छात्रावास की ओर चल दी. वहां जा कर उस ने वे चौकलेट्स बच्चों में बांटने की इच्छा व्यक्त की. जैसा कि वह उम्मीद कर रही थी, उसे वहां की इंचार्ज यानी रिया के पास भेज दिया गया.

गोरे रंग की लंबी, स्लिम बौडी की खूबसूरत रिया का फोटो भी विराट ने उसे अभी तक नहीं दिखाया था, क्योंकि वह दोनों को आमनेसामने मिलवाना चाहता था. मंजरी ने रिया को अपना नाम नहीं बताया. वह जानती थी कि चेहरे से रिया उसे नहीं पहचानती होगी.

रिया के साथ वह ग्राउंड में खेल रहे बच्चों के पास पहुंच गई. उन सब की उम्र लगभग 5-10 वर्ष के बीच थी. रिया ने बताया कि उसे इन बच्चों से बहुत लगाव है. यहां इन के पढ़ने, रहने, खानेपीने और कपड़ों आदि का प्रबंध एक एनजीओ की मदद से होता है.

‘‘इन बच्चों का साथ मुझे हिम्मत, हौसला और जीने की नई ताकत देता है,’’ कह कर रिया मुसकराने लगी.

बच्चों के प्रति रिया का समर्पण मंजरी को बहुत अच्छा लगा. दोनों की बातचीत

चल ही रही थी एक मासूम सा बच्चा मंजरी द्वारा दी गई चौकलेट रिया के पास ले कर आया और बोला, ‘‘आधी आप खाओ न मैम.’’ रिया ने थोड़ी सी चौकलेट तोड़ी और उस के गाल चूम कर उसे खेलने भेज दिया.

‘‘यह साहिल है. इस के मातापिता एक बम विस्फोट में मारे गए थे. साहिल भी उसी दुर्घटना के कारण अपनी आंखें गंवा बैठा. मुझे बहुत अच्छा लगता है साहिल. मैं इसे दुखी नहीं देख सकती और यह भी मुझे छू कर ही मेरा दुख समझ लेता है. जब कभी मैं उदास होती हूं तो मुझे खुश करने की कोशिश करता है.’’

‘‘ओहो… बहुत दुखभरी है साहिल की कहानी. पर अच्छा हुआ कि उसे तुम्हारे जैसी दोस्त मिल गई.’’ मंजरी ने कहा.

‘‘आप इन भावनाओं को कितना समझती हैं… साहिल और मैं सचमुच एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं. वह मेरा प्यारा सा दोस्त है और मैं उस की,’’ मंजरी से सहमति जताती हुई रिया चहक उठी.

‘‘तो क्या तुम नहीं चाहोगी कि ये दोस्ती आज से 20-25 साल बाद भी ऐसी ही रहे? क्या तब तुम इसे इसलिए दोस्त नहीं कहोगी कि तुम 50 के पार हो जाओगी? क्या एक उम्र के बाद भावनाओं को दबा देना चाहिए? अगर उस समय साहिल आज की तरह ही तुम से लगाव महसूस करे तो क्या तब उम्र के अंतर को ध्यान में रखते हुए उसे तुम्हारे प्रति अपने प्यार को कम कर लेना होगा? या फिर तब रिश्ते का नाम दोस्ती से बदल कर कुछ और रखोगी? क्या नाम होगा उस रिश्ते का? शायद कोई नाम नहीं. तब क्या होगा रिया, बता सकती हो तुम?’’ रिया की ओर देख कर मंजरी लगातार मुसकराने की कोशिश कर रही थी.

‘‘प्यार तो ऐसा ही होगा शायद दोनों में. और नाम… नाम तो दोस्ती ही होगा रिश्ते का. अब भी. और तब भी…’’ सोचती हुई सी रिया बोली.

‘‘अगर साहिल और तुम्हारे रिश्ते को दोस्ती का नाम दिया जा सकता है, तो विराट और मंजरी के रिश्ते को क्यों नहीं…?’’ मंजरी के सब्र का बांध टूट गया और आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

रिया जैसे सोते से जागी हो, ‘‘आप मंजरीजी हैं न?’’ कह कर वह मंजरी से लिपट गई. उस की आंखों से भी आंसू निकल पड़े.

कुछ देर तक दोनों चुपचाप बैठी रहीं. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मंजरी बोली, ‘‘अब मैं चलती हूं रिया. कल तुम मेरे घर आना. विराट को भी वहीं बुला लूंगी. खूब बातें करनी हैं मुझे तुम दोनों से.’’

रिया हामी में सिर हिला कर मुसकरा दी.

आज रिश्तों का नया पाठ पढ़ा था रिया ने. सच ही तो है कि लगाव, परवाह, त्याग और प्यार जैसे शब्द मन की कोमल भावनाओं के नाम हैं और जब ये एकसाथ मिल जाएं तो बन जाती है दोस्ती. तो फिर दोस्ती का रिश्ता पूरी तरह मन का हुआ. और मन तो सदा एक सा ही रहता है… तो फिर दोस्ती क्यों हो उम्र की मुहताज?

अपने मन की बात विराट तक पहुंचाने के लिए रिया ने उसे व्हाट्सऐप पर मैसेज किया ‘‘विराट… रिश्तों की गहराई को मैं समझ नहीं पाई थीं. अपनेपन की सुगंध से भरे किसी भी रिश्ते को उम्र के अंतिम पड़ाव तक भी मुरझाना नहीं चाहिए. मेरी ख्वाहिश है कि तुम्हारी और मंजरीजी की दोस्ती हमेशा महकती रहे. सचमुच बहुत सुंदर है ये फूल सी दोस्ती.’’

दोस्त ही भले: प्रतिभा ने शादी के लिए क्यूं मना किया

‘‘तुम गंभीरतापूर्वक हमारे रिलेशन के बारे में नहीं सोच रहे,’’ प्रतिभा ने सोहन से बड़े नाजोअंदाज से कहा.

‘‘तुम किसी बात को गंभीरतापूर्वक लेती हो क्या?’’ सोहन ने भी हंस कर जवाब दिया.

दोनों ने आज छुट्टी के दिन साथ बिताने का निर्णय लिया था और अभी कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. दोनों कई दिनों से दोस्त थे और बड़े अच्छे दोस्त थे.

‘‘लेती क्यों नहीं, जो बात गंभीरतापूर्वक लेने की हो. तुम मेरे सब से प्यारे दोस्त हो, मैं तुम से प्यार करती हूं, तुम्हारे साथ जीवन बिताना चाहती हूं. यह बात बिलकुल गंभीरतापूर्वक बोल रही हूं और चाहती हूं कि तुम भी गंभीर हो जाओ,’’ प्रतिभा ने आंखें नचाते हुए जवाब दिया. सोहन को उस की हर अदा बड़ी प्यारी लगती थी और इस अदा ने भी उस के दिल पर जादू कर दिया पर उस ने एक बात नोट की थी प्रतिभा के बारे में कि उस ने कई पुरुष मित्रों से मित्रता की थी पर किसी से उस की मित्रता ज्यादा दिनों तक टिकी

नहीं थी.

‘‘देखो प्रतिभा, जहां तक दोस्ती का सवाल है तो तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो. तुम्हारे साथ समय बिताना मुझे बहुत पसंद है. इसीलिए मैं तुम से समय बिताने के लिए अनुरोध करता हूं और जब कभी तुम साथ में समय बिताने का कार्यक्रम बनाती हो तो झट से तैयार हो जाता हूं. पर शादी अलग चीज है. दोस्त कोई जरूरी नहीं पतिपत्नी बनें ही. मेरी कई महिलाएं दोस्त हैं. तुम्हारे भी कई पुरुष दोस्त हैं. सभी से शादी तो नहीं हो सकती. हम दोस्त ही भले हैं,’’ सोहन ने समझया.

‘‘देखो, शादी तो किसी से करनी ही है, तो क्यों न उस से करें जिस से सब से ज्यादा विचार मिलते हों. मुझे लगता है कि इस मामले में हमारी सब से अच्छी जोड़ी है,’’ प्रतिभा ने उत्तर दिया.

‘‘प्रतिभा, मैं तुम्हें वर्षों से जानता हूं और यह भी जानता हूं कि कई पुरुषों से तुम्हारी दोस्ती हुई है पर किसी के साथ तुम्हारी बहुत दिनों तक नहीं निभी. फिर मु?ा से कैसे निभा पाओगी? शायद कुछ दिनों बाद तुम्हारा दिल किसी और पर आ जाए. फिर तुम्हारी गंभीरता धरी की धरी रह जाएगी,’’ सोहन ने हंसते हुए कहा.

‘‘ऐसा नहीं होगा. दूसरों की बात और है, तुम्हारी बात और है. मैं तुम्हें दिल से चाहती हूं. अन्य लोगों से बस परिचय है, दोस्ती है,’’ प्रतिभा ने गंभीरतापूर्वक कहा.

‘‘थोड़ा समय दो मुझे सोचने के लिए. और हां, तुम भी गंभीरतापूर्वक सोचो. शादी एक गंभीर मसला है और इसे गंभीरतापूर्वक ही सोचना चाहिए,’’ सोहन ने कौफी का अंतिम घूंट लिया और कप रखते हुए खड़ा हो गया. प्रतिभा पहले ही अपनी कौफी खत्म कर चुकी थी.

‘‘चलो, पार्क में टहलते हैं,’’ सोह

Raksha Bandhan: ज्योति- सुमित और उसके दोस्तों ने कैसे निभाया प्यारा रिश्ता

‘‘हां मां, खाना खा लिया था औफिस की कैंटीन में. तुम बेकार ही इतनी चिंता करती हो मेरी. मैं अपना खयाल रखता हूं,’’ एक हाथ से औफिस की मोटीमोटी फाइलें संभालते हुए और दूसरे हाथ में मोबाइल कान से लगाए सुमित मां को समझाने की कोशिश में जुटा हुआ था.

‘‘देख, झूठ मत बोल मुझ से. कितना दुबला गया है तू. तेरी फोटो दिखाती रहती है छुटकी फेसबुक पर. अरे, इतना भी क्या काम होता है कि खानेपीने की सुध नहीं रहती तुझे.’’ घर से दूर रह रहे बेटे के लिए मां का चिंतित होना स्वाभाविक ही था, ‘‘देख, मेरी बात मान, छुटकी को बुला ले अपने पास, बहन के आने से तेरे खानेपीने की सब चिंता मिट जाएगी. वैसे भी 12वीं पास कर लेगी इस साल, तो वहीं किसी कालेज में दाखिला मिल जाएगा,’’ मां उत्साहित होते हुए बोलीं.

जिस बात से सुमित को सब से ज्यादा कोफ्त होती थी वह यही बात थी. पता नहीं मां क्यों नहीं समझतीं कि छुटकी के आने से उस की चिंताएं मिटेंगी नहीं, उलटे, बहन के आने से सुमित के ऊपर जिम्मेदारी का एक और बोझ आ पड़ेगा.

अभी तो वह परिवार से दूर अपने दोस्तों के साथ आजाद पंछी की तरह बेफिक्र जिंदगी का आनंद ले रहा था. उस के औफिस में ही काम करने वाले रोहन और मनीष के साथ मिल कर उस ने एक किराए पर फ्लैट ले लिया था. महीने का सारा खर्च तीनों तयशुदा हिसाब से बांट लेते थे. अविवाहित लड़कों को घरगृहस्थी का कोई ज्ञान तो था नहीं, मनमौजी में दिन गुजर रहे थे. जो जी में आता करते, किसी तरह की बंदिश, कोई रोकटोक नहीं थी उन की जिंदगी में. कपड़े धुले तो धुले, वरना यों ही पहन लिए. हफ्ते में एक बार मन हुआ तो घर की सफाई हो जाती थी, वरना वह भी नहीं.

सुमित से जब भी उस की मां छोटी बहन को साथ रखने की बात कहती, वह घोड़े सा बिदक जाता. छुटकी रहने आएगी तो सुमित को दोस्तों से अलग कमरा ले कर रहना पड़ेगा और ऊपर से उस की आजादी में खलल भी पड़ेगा. यही वजह थी कि वह कोई न कोई बहाना बना कर मां की बात टाल जाता.

‘‘मां, अभी बहुत काम है औफिस में, मैं बाद में फोन करता हूं,’’ कह कर सुमित ने फोन रख दिया.

वह सोच रहा था, कहीं मां सचमुच छुटकी को न भेज दें.

तीनों दोस्तों को यों तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन खाना पकाने के मामले में तीनों ही अनाड़ी थे, ब्रैड, अंडा, दूध पर गुजारा करने वाले. रोजरोज एक ही तरह का खाना खा कर सुमित उकता गया था. बाहर का खाना अकसर उस का हाजमा खराब कर देता था. परिवार से दूर रहने का असर सचमुच उस की सेहत पर पड़ रहा था. मां का इस तरह चिंता करना वाजिब भी था. इस समस्या का कोई स्थायी हल निकालना पड़ेगा, वह मन ही मन सोचने लगा. फिलहाल तो 4 बजे उस की एक मीटिंग थी. खाने की चिंता से ध्यान हटा, वह एक बार फिर से फाइलों के ढेर में गुम हो गया.

सुमित के अलावा रोहन और मनीष की भी यही समस्या थी. उन के घर वाले भी अपने लाड़लों की सेहत की फिक्र में घुले जाते थे.

शाम को थकहार कर सुमित जब घर आया तो बड़ी देर तक घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला. एक तो दिनभर औफिस में माथापच्ची करने के बाद वह बुरी तरह थक गया था, उस पर घर की चाबी ले जाना आज वह भूल गया था. फ्लैट की एकएक चाबी तीनों दोस्तों के पास रहती थी, जिस से किसी को असुविधा न हो.

थकान से बुरी तरह झल्लाए सुमित ने एक बार फिर बड़ी जोर से घंटी पर हाथ दे मारा.

थोड़ी ही देर में इंचभर दरवाजे की आड़ से मनीष का चेहरा नजर आया. सुमित को देख कर उस ने हड़बड़ा कर दरवाजा पूरा खोल दिया.

‘‘क्यों? इतना टाइम लगता है क्या? बहरा हो गया था क्या जो घंटी सुनाई नहीं दी?’’ अंदर घुसते ही सुमित ने उसे आड़ेहाथों लिया.

गले में बंधी नैकटाई को ढीला कर सुमित बाथरूम की तरफ जा ही रहा था कि मनीष ने उसे टोक दिया, ‘‘यार, अभी रुक जा कुछ देर.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ सुमित ने पूछा, फिर मनीष को बगले झांकते देख कर वह सबकुछ समझ गया, ‘‘कोई है क्या, वहां?’’

‘‘हां यार, वह नेहा आई है. वही है बाथरूम में.’’

‘अरे, तो ऐसा बोल न,’’ सुमित ने फ्रिज खोल कर पानी की ठंडी बोतल निकाल ली.

मनीष की प्रेमिका नेहा नौकरी करती थी और एक वुमेन होस्टल में रह रही थी. जब भी सुमित और रोहन घर पर नहीं होते, मनीष नेहा को मिलने के लिए बुला लेता.

सुमित को इस बात से कोई एतराज नहीं था, मगर रोहन को यह बात पसंद नहीं आती थी. उस का मानना था कि मालिकमकान कभी भी इस बात को ले कर उन्हें घर खाली करने को कह सकता है.

जब कभी नेहा को ले कर मनीष और रोहन के बीच में तकरार होती, सुमित बीचबचाव से मामला शांत करवा लेता.

‘‘यार, बड़ी भूख लगी है, खाने को कुछ है क्या?’’ सुमित ने फ्रिज में झांका.

‘‘देख लो, सुबह की ब्रैड पड़ी होगी,’’ नेहा के जाने के बाद मनीष आराम से सोफे पर पसरा टीवी देख रहा था.

सुमित को जोरों की भूख लगी थी.

इस वक्त उसे मां के हाथ का

बना गरमागरम खाना याद आने लगा. वह जब भी कालेज से भूखाप्यासा घर आता था, मां उस की पसंद का खाना बना कर बड़े लाड़ से उसे खिलाती थीं. ‘काश, मां यहां होतीं,’ मन ही मन वह सोचने लगा.

‘‘बहुत हुआ, अब कुछ सोचना पड़ेगा. ऐसे काम नहीं चलने वाला,’’ सुमित ने कहा तो मनीष बोला, ‘‘मतलब?’’

‘‘यार, खानेपीने की दिक्कत हो रही है, मैं ने सोच लिया है किसी खाना बनाने वाले को रखते हैं,’’ सुमित बोला.

‘‘और उस को पगार भी तो देनी पड़ेगी?’’ मनीष ने कहा.

‘‘हां, तो दे देंगे न, आखिर कमा किसलिए रहे हैं.’’

‘‘लेकिन, हमें मिलेगा कहां कोई खाना बनाने वाला,’’ मनीष ने कहा.

‘‘मैं पता लगाता हूं,’’ सुमित ने जवाब दिया.

दूसरे दिन सुबह जब सुमित काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा, किसी ने दरवाजा खटखटाया. करीब 30-32 साल की मझोले कद की एक औरत दरवाजे पर खड़ी थी.

सुमित के कुछ पूछने से पहले ही वह औरत बोल पड़ी, ‘‘मुझे चौकीदार ने भेजा है, खाना बनाने का काम करती हूं.’’

‘‘ओ हां, मैं ने ही चौकीदार से बोला था.’’

‘‘अंदर आ जाइए,’’ सुमित उसे रास्ता देते हुए बोला और कमरे में रखी कुरसी की तरफ बैठने का इशारा किया.

कुछ झिझकते हुए वह औरत अंदर आई. गेहुंए रंग की गठीले बदन वाली वह औरत नजरें चारों तरफ घुमा कर उस अस्तव्यस्त कमरे का बारीकी से मुआयना करने लगी. बेतरतीब पड़ी बिस्तर की चादर, कुरसी की पीठ पर लटका गीला तौलिया, फर्श पर उलटीसीधी पड़ी चप्पलें.

‘‘हमें सुबह का नाश्ता और रात का खाना चाहिए. दिन में हम लोग औफिस में होते हैं, तो बाहर ही खा लेते हैं,’’ सुमित ने उस का ध्यान खींचा.

मनीष भी सुमित के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘कितने लोगों का खाना बनेगा?’’ औरत ने सुमित से पूछा.

‘‘कुल मिला कर 3 लोगों का, हमारा एक और दोस्त है, वह अभी घर पर नहीं है.’’

खूंटियों पर लटके हुए: भाग -2

अपनी पत्नी को उस ने समझया भी कि सुरेश जरा घटिया आदमी है. उस से अधिक हंसनाबोलना अच्छा नहीं. पर उस की अक्षरा उसी को बेवकूफ कहने लगी, ‘‘वह जो भी हो, मेरा क्या ले लेता है. तुम्हारा ही तो दोस्त है, हमारा परिवार तो वही है. घर में और कौन है, जिस से हंसूंबोलूं? देवर से जरा बात कर लेती हूं तो जलने लगे हो.’’

वह अक्षरा पर किसी बात के लिए दबाव या जोर डालना पसंद नहीं करता. केवल सलाह दे देता. यह सुन कर वह चुप ही रहा.

आज सुरेश 10 बजे ही आ टपका. आते ही फरमाइश की, ‘‘भाभी, आज केक खाने का मूड है.’’

भाभी ने झट ओवन चलाया और केक बनाना शुरू कर दिया. छोटी कड़ाही चढ़ाई और हलवे की तैयारी शुरू हो गई. वह अपने कमरे में बैठा देवरभाभी के संवाद सुन कर गुस्से से भुन रहा था कि यही देवीजी हैं, उस दिन कहा कि आज जरा कटलेट तो तलना तो तुरंत नाकभौं चढ़ा कर कहने लगीं कि अभी स्कूल की कौपियां जांचनी हैं. कल उन्हें वापस करना है. पर यह लफंगा सुरेश उस से अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया.

केक को ले कर अपनी नाराजगी प्रकट करने के लिए वह एक नई पत्रिका उठा कर रसोई की तरफ चला. एक बालटी को उलटा कर रसोई में ही जमे बैठे सुरेश को अनदेखा करता वह पत्नी से बोला, ‘‘लो, इस की पहली कहानी बहुत अच्छी है, जरा पढ़ कर देखना. अरे, यह क्या बना रही हो?’’

पत्नी ने केक पर ध्यान लगाए हुए कहा, ‘‘केक खाने का मूड है सुरेश देवरजी का.’’

‘‘केक भारी होता है बहुत फैट होता है इस में, वैसे भी आज मेरा पेट ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम मत खाना, भई. तुम्हें कौन कह रहा है. इस मैगजीन को मेरे पलंग पर रख देना. बाद में पढ़ लूंगी.’’

पत्रिका लिए वह तनतनाता लौट गया. अपने कमरे में आ कर डायरी खोली और उस में लाल स्याही से स्पष्ट अक्षरों में लिखा कि आज की तारीख से मेरा अक्षर के साथ कोई संबंध नहीं. उस के बाद वह पार्क  में चला आया.

सामने से एक गाय चरती हुई उधर ही आने लगी. उस ने घड़ी देखी, 3 बज रहे थे. अब चलना चाहिए, भूखी बैठी होगी.

घर आने पर महरी ने दरवाजा खोला. वह रसोई में बरतन साफ कर रही थी. उस ने अपना भोजन खाने की मेज पर ढका रखा देखा. कमरे में झंका, पत्नी पलंग पर लेटी पत्रिका पढ़ रही थी.

‘यह बात है,’ कड़वाहट के साथ उस ने सोचा, ‘खुद मजे से खा लिया, मेरा खाना ढका रखा है.’

उसे याद आया. विवाह के बाद शुरू के वर्षों में खुद उसी ने कई बार पत्नी को सम?ाया था कि उसे जब बहुत देर हो जाया करे तो वह भोजन कर लिया करे. बेकार की रस्मों का वह कायल नहीं है कि  पति को खिला कर ही पत्नी खाए. उस की पत्नी ने तो उस की आज्ञा का पालन ही किया है.

उसे थोड़ा संतोष हुआ. भोजन कर वह चुपके से बैठक में जा कर सोफे पर पड़ गया. एक बात खटकती रही कि कम से कम उठ कर खाना तो परोस देती, पानी दे देती.

सुरेश के रहने तक घर में अक्षरा की खिलखिलाहट गूंजती रही. अब कैसा सन्नाटा है. वह टीवी रिमोट से चैनल बदलते हुए सोचने लगा, ऐसी स्त्री के साथ अब वह जीवन बरबाद नहीं कर सकता. बीचबीच में इस पर न जाने क्या भूत चढ़ता है कि हफ्तों के लिए घर में ही अपरिचित सी हो जाती है. पर दूसरे के सामने कैसी चहकती है.

वह कितना चाहता है कि कभी फुरसत में उस की अक्षरा उस के साथ बैठे, प्यार की बातें करे. वह उस के बालों को सहलाता हुआ कहे कि तुम तो आज भी पहले दिन की तरह ही सुंदर एवं नईनवेली हो.

मगर लगता है कि अक्षरा को इन बातों को सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही है. क्या कारण हो सकता है? संसार में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता. उसे अकस्मात संदेह हुआ कि कोई ऐसीवैसी बात तो नहीं है. इन औरतों को समझ पाना वैसे ही टेढ़ी खीर है. उस पर नौकरीपेशा स्त्रियां तो खूब मौका पाती हैं. स्कूल में ही कितने मेल टीचर हैं. फिर शास्त्रों

में यो ही नहीं कहा गया है, ‘‘स्त्रियांश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं…’’

जरूर कोई ऐसी ही बात है, तभी आजकल उस की पत्नी को उस की जरूरत नहीं रही है. इस निश्चय पर पहुंच कर जैसे उस का मन हलका हुआ. आखिर कारण तो मिला. अब वह सावधानी से इस बात का पता लगाएगा.

अगर कोई बात पकड़ में आएगी तो वह तत्काल उसे तलाक दे देगा, किंतु हिंदू तलाक कानून तो बड़ा जटिल और झंझट वाला है. वह उठ कर किताबों की अलमारी से एक किताब निकाल लाया. ‘तलाक का कानूनी ज्ञान.’ इसे उस ने एक दिन एक बुक शौप में 400 रुपए में खरीदा था. तलाक पर लंबी व्याख्या है इस में.

वह बाहर बरामदे में बैठ कर पढ़ने लगा. इतनी बात समझ में आई कि तलाक से पहले प्राय: सालभर अलग रहने की व्यवस्था है. इस बीच में यदि दंपती का मूड बदले और मेल हो जाए तो कोई बात नहीं वरना तलाक मिल सकता है. अब डोमैस्टिक वायलैंस और संपत्ति में हिस्से की बात भी बहुत ज्यादा होने लगी है. जेल जाने की नौबत मिनटों में आ सकती है.

उस ने सोचा मान लो यह अक्षरा सुरेश या किसी ऐसे ही लोफर के साथ चल देती है तो ही छुटकारा मिलेगा. एक दिन उसे लौट कर यहीं आना पड़ेगा. तब वह क्या करेगा?

उसी वक्त लात मार कर निकाल देगा. फिर उस ने शहीदों के भाव से सोचा कि जब वह आ कर मेरे कदमों पर गिरेगी तो सारी भूल क्षमा कर मैं उसे उठा कर गले से लगा लूंगा.

तब वह समझेगी, मेरा दिल कितना बड़ा है. तब तो हर बात में मेरा मुंह देखेगी, जो कहूंगा तुरंत मानेगी. तब घर में वास्तविक सुखशांति छा जाएगी.

लोग क्या कहेंगे, उस ने फिर सोचा. वह लोगों के कहने पर ध्यान न देगा. वह समाज का गुलाम नहीं है. न अब हुक्कापानी, नाई, धोबी बंद करने का जमाना है. नई पीढ़ी उसे कितनी श्रद्धा से देखेगी. वह उस का आदर्श बन जाएगा. संभव है, अखबारों में भी चर्चा हो, देश के बड़े लोग उसे आशीर्वाद देंगे.

रसोई में खटपट की आवाज आ रही थी. उस ने घड़ी देखी, 4 बज रहे थे. तभी परदा हटा कर उस की पत्नी ने बैठक में प्रवेश किया. उस ने उस की तरफ स्नेह, ममता एवं क्षमाभाव से देखा. पर पत्नी का चेहरा तो वैसे ही खिंचा रहा. वह सामने की तिपाई कर चाय का कप रख कर लौट गई.

उस ने सोचा कि ये औरतें नाक के नीचे के हीरे को न पहचान कर दूर की कौड़ी के चक्कर में खुद तो तबाह होती ही हैं, दूसरों को भी तनाव में रखती हैं.

दूसरे दिन वह ठीक 10 बजे दफ्तर के लिए निकला तो चौराहे पर रेस्तरां के सामने बाइक रोकी. भीतर जा कर एक चाय मंगवा कर यों बैठा कि सामने की सड़क पर छिपी दृष्टि डालता रहे. उस की पत्नी स्कूल के लिए 10 बजे चलती है. पैदल ही जाती है, अधिक दूर नहीं है स्कूल. तभी वह सामने सड़क पर दिख पड़ी.

हाथ में कौपियों का एक बंडल और कंधे पर बैग संभाले. वह बिल चुका कर उठ खड़ा हुआ. काफी दूर से बाइक हाथ में संभाले पीछा करते हुए उसे जासूसी का मजा आ रहा था.

सीख: भाग 2- आखिर वंदना ने कौन-सी योजना बनाई

अगले दिन सुबह वंदना को यह देख कर सचमुच आश्चर्य हुआ कि कविता का भाई उसे मायके ले जाने के लिए आया हुआ है.

विकास के हावभाव से उस की नाराजगी साफ झलक रही थी. इस कारण घर में कोई ज्यादा बोल भी नहीं रहा था.

कविता ने जब विदा ली तब वंदना उसे यह सुनाने से चूकी नहीं, ‘‘भाभी, मुझे मालूम है कि आप मेरे यहां आ कर रहने से खुश नहीं हो. मेरे विदा होते ही आप का कमर दर्द भी ठीक हो जाएगा और यहां वापसी भी आ जाओगी.’’

कविता की आंखों में जो आंसू उभरे उन्हें नाटक बता कर वंदना ने खारिज कर दिया. कविता के न रहने पर वंदना ने घर के कामकाज में अपनी मां का हाथ बंटाना खुशीखुशी किया. विकास उस से नाराज बना रहा. कमला भी चुपचुप रहती. अपने पिता में भी उस ने बदलाव महसूस किया. वे भी गंभीर और सोच में डूबे नजर आते.

मायके आ कर वंदना इस बार न ज्यादा आराम कर सकी न मौजमस्ती. लौटने वाले दिन उसे एक और झटका लगा.

कमला ने उसे अपने पास बैठा कर चिंतित लहजे में जानकारी दी, ‘‘वंदना,

तुम्हारे भाई और पिता दोनों को बिजनैस में अचानक तगड़ा नुकसान हुआ है. कर्जा लेने की नौबत आ गई है.’’

‘‘उफ, यह तो बड़ी बुरी खबर है मां,’’ वंदना की आंखों में फौरन चिंता के भाव उभरे.

‘‘इस बार मनोज से तुम हमारी तरफ से हाथ जोड़ कर माफी मांग लेना.’’

‘‘माफी किस बात के लिए?’’

‘‘हम अपनी मजबूरी के चलते तुम्हारे साथ न कोई सामान भेज पाएंगे, न ही रुपए दे पाएंगे.’’

‘‘इस बात की तुम सब फिक्र न करो.

पहले क्या तुम लोगों ने उन्हें इतना सारा नहीं दे रखा है…’’ सब जल्दी ठीक हो जाएगा और उन सब की अगर कोई शिकायत हुई तो वह दूर हो जाएगी.’’

‘‘जब तक बिजनैस संभल नहीं जाता हम तुम से मिलने भी नहीं आ पाएंगे. तुम अपना

ध्यान रखना बेटी,’’ कमला की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘मेरी फिक्र मत करो मां. मुझे अपने घर में कोई दिक्कत न कभी हुई है न आगे होगी.’’

इसी तरह के आश्वासन अपने पिता व भाई को देते हुए वंदना ने उन दोनों की भी चिंता दूर करने की कोशिश दिल से करी.

वंदना उन के सामने खूब मुसकराती रही, पर वापस घर में कदम रखते हुए उस का मन भी अजीब सी बेचैनी से भर उठा.

यह पहला अवसर था जब वंदना के सामान में सासससुर, ननद व पति को देने के लिए कई सारे उपहार मौजूद नहीं थे. सब को उम्मीद रहती थी कि घर में एसी लगवाने को वह रुपए साथ लाई होगी, पर उस का पर्स खाली था. मनोज के पिता का फोन मनोज के पास आया कि उस के पास कुछ पैसे हों तो वह एक नया सोफा खरीद ले.

‘‘बिजनैस में ज्यादा नुकसान हो जाने के कारण इस बार मैं ने पापा और भैया को अपने ऊपर खर्चा करने से बिलकुल रोक दिया. आप यह बुरी खबर सब को बता देना,’’ मनोज को यह बताते हुए वंदना ने खुद को शर्मिंदा होते महसूस किया, तो उसे अपने ऊपर तेज गुस्सा आया. वह अकेले मनोज के साथ तो रहती थी पर मनोज के मातापिता, भाई और बहन वंदना के लाए सामान को बड़े हक से इस्तेमाल करते थे.

मनोज ने वंदना से कुछ कहा तो नहीं, पर वंदना ने उस की आंखों की चमक को साफ बुझते देखा.

उस रात जब दोनों ड्राइंगरूम में बैठे थे तो वंदना ने बताया कि खाली हाथ आने के प्रति बाकी लोगों की प्रतिक्रिया भी उस के प्रति बड़ी खराब रही.

‘‘आजकल सैंसैक्स उछाल मार कर आसमान छू रहा है और समधीजी का बिजनैस घाटे में चला गया. अपनी समझ में यह बात बिलकुल नहीं आई,’’ मनोज ने अपने पिता की बात दोहराई.

‘‘देखोजी, इस बात का जिक्र करना बंद करो कि खाली हाथ मायके से आई है. यों दोनों घरों की बाहर वालों के सामने बेइज्जती कराने से क्या फायदा है,’’ उस की सास की नाखुशी उन की आवाज की चुभन में साफ झलक रही थी.

‘‘बढ़ती गरमी में इस साल भी सड़ना पड़ेगा,’’ कह मनोज ने उसे यों गुस्से से घूरा जैसे एसी न लगवा कर वंदना ने कोई जुर्म किया हो.

किसी बाहर वाले के सामने वंदना के मायके से खालीहाथ आने का जिक्र नहीं करेंगे, इस बात को कई बार उस के सामने दोहराने के बावजूद किसी ने भी इस पर अमल नहीं किया.

हर रिश्तेदार, पड़ोसी व परिचित के सामने यह बात कह दी गई कि बहू के मायके से मिलने वाली चीजों का दुनिया को लालच हो, पर हमें बिलकुल नहीं है. हमारी वंदना इस बार मायके से खाली हाथ आई है, पर हम मैं से किसी के माथे पर न कोई शिकन है, न मुंह पर शिकायत का एक शब्द.

वंदना ने 2 दिन बाद रात को मनोज से शिकायत करी, ‘‘आप के घर वालों ने यह क्या तमाशा बना रखा है. मुंह से वे कुछ भी कहें,

पर मन लालची हैं सब के और यह बात मेरी समझ में अब अच्छी तरह से आ गई है. यह देख कर मेरे मन को गहरा सदमा लगा है कि उन सब का मेरे प्रति प्यार, उन के व्यवहार की मिठास मेरे मायके से आने वाले सामान और रुपए के कारण ही थी.’’

‘‘मेरे घर वाले लालची नहीं हैं. उन्हें अफसोस इस बात का है कि तुम्हारे मम्मीपापा ने रीतिरिवाज न निभाते हुए तुम्हें यों खाली हाथ भेज दिया. इस कारण हमारी भी बेइज्जती हुई है,’’ मनोज के इस कठोर जवाब को सुन कर वंदना रोंआसी सी हो गई.

कड़वी, चुभने वाली बातें उसे और भी कईर् मामलों में सुनने को मिलने लगीं. उसे नौवल पढ़ने का शौक था. इस बार से पहले मायके जाने से पहले उसे अपने इस शौक को पूरा करने का खूब मौका खुशीखुशी दे देते थे. घर का बहुत सा काम कर देते थे. मनोज की मां भी आए दिन खाना बना देती थी. एक वाई भी आती थी.

छोड़ो कल की बातें: कृति के अतीत के बारे में क्या जान गया था विशाल?

विशाल को सूरज के व्यवहार पर बड़ा क्रोध आया. माना कि वह उस का काफी करीबी मित्र है पर इस का यह मतलब तो नहीं कि वह जब चाहे जैसा चाहे व्यवहार करे. आज किसी बात पर बौस ने जब उसे झिड़का तो सामने तो वह चुप रहा पर बाद में मजाक उड़ाने लगा. वह उसे समझता रहा पर वह उसे चिढ़ाता ही रहा. अंत में उस ने उसे काफी खरीखोटी सुना दी. जवाब में उस ने जो कहा वह सुन उस का माथा चकरा गया. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी गर्लफ्रैंड कृति ने तुम से पहले मुझे प्रोपौज किया था. जिसे तुम अपनी गर्लफ्रैंड समझ रहे हो वह सैकंड हैंड गर्लफ्रैंड है.’’

पहले तो यह सुन कर सन्न रह गया था वह पर उसे लगा उस की डांट के जवाब में उस ने गुस्से में यह बात कह दी है. वह सिर्फ उसे दुखी करने के लिए ऐसा कह रहा है. विश्वास उसे नहीं हुआ था उस की बात पर परंतु संदेह तो हो ही गया था. लोगों ने बीचबचाव कर उन्हें अलग कर दिया.

विशाल के मन में संदेह का बीज उपज चुका था. उस ने पहले तो सोचा कि कौल कर कृति से पूछ लिया जाए. पर कुछ सोच कर वह व्यक्तिगत रूप से मिल कर ही उस से बात करना चाहता था. दिनरात उस के मन में यही विचार आ रहे थे कि कृति जिसे वह अपनी गर्लफ्रैंड, अपनी प्रेमिका समझता है वह किसी और को चाहती है.

दोनों प्राय: हर छुट्टी के दिन मिलते थे और घंटों साथ बिताते थे. अगली छुट्टी के दिन जब विशाल की मुलाकात कृति से हुई तो वह कुछ अनमना सा था. कृति को उस का व्यवहार कुछ अटपटा सा लगा.

‘‘क्या बात है विशाल, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ कृति ने पूछा.

‘‘तबीयत तो ठीक है पर एक प्रश्न है जो मुझे परेशान कर रहा है. मुझे तुम से उस का जवाब चाहिए,’’ विशाल ने कहा.

‘‘मुझ से? ऐसा कौन सा प्रश्न है जिस का जवाब मुझ से चाहिए? मैं कोई प्रोफैसर हूं क्या?’’ कृति ने बात को हलके में लिया और हंसती हुई बोली.

‘‘यह प्रश्न तुम से ही संबंधित है अत: जवाब भी तुम्हीं से चाहिए,’’ विशाल ने कहा.

कृति अब गंभीर हो गई. वह विशाल के लहजे से समझ गई कि जरूर कोई गंभीर मुद्दा है. बोली, ‘‘पूछो.’’

‘‘क्या यह सही है कि तुम सूरज से प्यार करती हो?’’ विशाल ने पूछा.

कृति सकपका गई. उसे तुरंत कोई जवाब नहीं सुझा. वह थोड़ी देर विशाल को देखती रही. फिर बोली, ‘‘ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘मुझ से सूरज ने कहा है कि तुम मुझ से पहले उस से प्यार करती थी,’’ विशाल ने कहा.

कृति तुरंत कुछ न कह सकी. पर बात झूठी भी नहीं थी और सूरज ने जब विशाल

से यह बात बता ही दी है तो वह लाख मना करे विशाल शायद न माने. पर उस ने कहा, ‘‘मैं अभी भी सूरज को पसंद करती हूं. पहले भी मैं उस के साथ ही बार बाहर कौफी पीने जा चुकी हूं. लेकिन मैं उस से ज्यादा तुम से प्यार करती हूं. यही कारण है कि मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ कृति ने कहा.

विशाल बस उसे देखता रहा. शायद वह कृति की बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा था. उसे संदेह था कि कृति आज भी सूरज को चाहती है और उसे धोखा दे रही है. वह अनमना सा कृति के साथ घूमता रहा. कृति हमेशा की तरह उस के हाथ को अपने हाथ में ले कर चलती तो वह अपना हाथ खींच लेता. कृति उस के कंधे पर सिर रखती तो वह कोई प्रतिक्रिया नहीं करता.

पहले दिन तो कृति ने कुछ नहीं कहा पर बाद में भी जब विधाता का व्यवहार ऐसा ही रहा तो उस ने उसे सम?ाया, ‘‘किसी को पसंद करना और किसी से प्यार करना अलगअलग बात है. मैं सूरज को और कई लोगों को पसंद करती हूं. उन के साथ कभीकभार कौफी पीने, मूवी देखने भी जाती हूं पर प्यार मैं तुम से करती हूं इसलिए हर छुट्टी का दिन तुम्हारे साथ ही बिताती हूं.’’

मगर उस की बातों का विशाल पर कोई असर नहीं पड़ता और कृति धीरेधीरे नाराज रहने लगी. विशाल भी उस से दूरी बना कर रहने लगा. इस बीच सूरज ने विशाल से माफी मांग ली और दोनों फिर से पहले की तरह ही रहने लगे. पर कृति के प्रति विशाल के मन में अभी भी वही नाराजगी की भावना थी. उस के मन में उस के साथ ब्रेकअप करने का विचार आने लगा. वैसे एक मन यह भी कहता था कि कृति की बात को वह मान ले और उस के साथ पहले की तरह जीवन बिताए. पर पता नहीं क्यों वह इस बात के लिए कुछ ही देर तक तैयार होता था.

कुछ ही देर में संदेहरूपी सांप अपना फन उठा लेता था. सूरज भी उन के बीच आई दरार के लिए खुद को दोषी मानता था पर कृति के प्रति विशाल के मन में आए विचार के लिए वह कर ही क्या सकता था. जो बात जबान से निकाल गई उसे वापस तो लिया नहीं जा सकता था.

घर में भी विशाल का व्यवहार बदलाबदला सा रहने लगा. उस की मां इस बदलाव को महसूस कर रही थीं. उन्होंने 2 बार उस से पूछ भी कि माजरा क्या है. पर विशाल उन की बातों को टाल जाता.

एक दिन उस की मां ने पूछ ही लिया, ‘‘पहले तो कृति से बातें किया करता था. मैं कई बार मना भी करती थी कि वक्तबेवक्त क्यों बातें करता रहता है फोन पर. किसी बात को ले कर तुम्हारे बीच झगड़ा हो गया है क्या? इसी कारण तुम असामान्य व्यक्ति की तरह हरकत करते हो?’’

‘‘कुछ नहीं मां. तुम तो बिना बात संदेह करती हो,’’ विशाल ने टालना चाहा. पर मां के बारबार जिद करने पर उसे बताना ही पड़ा कि माजरा क्या है.

इस पर उस की मां ने उसे समझया, ‘‘वह जो कह रही है तुम्हें मानना चाहिए. आखिर

क्या वजह है तुम्हारे पास उस की बात नहीं मानने की? वह तुम्हारे दोस्त के बारे में क्या विचार रखती है इस से क्या मतलब है. इस बात से मतलब रखो कि वह तुम्हारे बारे में क्या विचार रखती है और फिर एक बार और सोचो कि जब तुम अपने दोस्त को माफ कर के उस के साथ सामान्य संबंध रख सकते हो तो फिर अपनी प्रेमिका के साथ सामान्य संबंध क्यों नहीं रख सकते?

आखिर वह तुम्हारे साथ है तो किसी कारण से ही है और दूसरा कारण क्या हो सकता है इस के अलावा कि वह तुम से प्यार करती है. वह पढ़ीलिखी है, आत्मनिर्भर है तुम्हारे ऊपर आश्रित नहीं है, फिर भी तुम्हारे साथ क्यों है तुम्हारी उदासीनता को सहते हुए भी. तुम दोनों वयस्क हो. मिलबैठ कर बातें करो, एकदूसरे को समझ.’’

विशाल अपनी मां को देखे जा रहा था. कितनी सुलझी हुई बात कह रही थीं वे विशाल की मां ने कहना जारी रखा, ‘‘कैसे अपने संबंध को मजबूत बनाना है इस पर विचार करो.’’

विशाल के मन में कृति के प्रति जो कड़़वे विचार थे वे धीरेधीरे मधुर होते गए. उस ने फैसला किया कि वह इस बात पर ध्यान देगा कि अभी दोनों का एकदूसरे के प्रति क्या नजरिया है. भूतकाल की बातों को अपने बीच नहीं आने देगा.

धमकी: जब अकेला अंशु को छोड गया विशाल

‘‘विशाल आज औफिस के काम से दिल्ली आया हुआ था. काम निबटा कर शाम में वह टाइम पास के लिए एक मौल में आ गया और वहां फूड कोर्ट में बैठ कर चाइनीज खाने लगा. सामने एक कुरसी पर उसे एक 7-8 साल की लड़की नजर आई जिस के बालों के स्टाइल ने उसे अंशु की याद दिला दी. वह ध्यान से बच्ची को देखने लगा. बगल से उस की सूरत काफी कुछ अंशु जैसी ही थी. उसी की तरह बैठ कर ड्राइंग बना रही थी. उस की मम्मी शायद खाने का और्डर देने गई थी.

तभी बच्ची की बगल में एक युवक आ कर बैठा तो बच्ची ने जोर से कहा, ‘‘अंकल, यहां हम बैठे हुए हैं. आप दूसरी टेबल पर चले जाओ. मेरी मम्मी आने वाली है.’’

युवक बच्ची को इस तरह निर्भीकता से बोलता देख कर सकपका गया और तुरंत वहां से उठ कर दूर जा कर बैठ गया. बच्ची खुद में ही मुसकराई और फिर से अपने काम में लग गई.

बच्ची ने एक बार फिर उसे अंशु की याद दिला दी. अंशु भी तो ऐसी ही निर्भीक और साफसाफ बात कहने वाली लड़की थी.

अंशु के साथ उस का रिश्ता करीब 3 साल चला था. अंशु इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी और गर्ल्स होस्टल में रहती थी. विशाल भी उसी कालेज में था. दोनों को ही आदत थी कि दोनों शाम के समय लाइब्रेरी चले जाते थे. वहीं उन की मुलाकात हुई और फिर बातों का दौर ऐसा चला कि दोनों में अच्छीखासी दोस्ती हो गई.

अंशु हमेशा हर जगह अपने हक के लिए आवाज उठाती और पार्टटाइम काम कर के अपना खर्च खुद निकालती. वह खूबसूरत तो थी ही बुद्धिमान भी थी. विशाल उस के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित था. एक दिन उस ने अंशु से अपने दिल की बात की तो अंशु ने भी उस के प्यार को स्वीकार कर लिया.

इस के बाद दोनों एकदूसरे के बहुत क्लोज आ गए और 5-6 माह लिव इन में भी रहे. विशाल को वह रात आज भी याद है जब दोनों एकदूसरे की बांहों में थे. प्यार की तपिश उन के जिस्मों को भिगो रही थी.

उसी दौरान अंशु ने विशाल से सवाल किया, ‘‘विशु हमारी जाति अलग है. मैं ऊंची जाति की हूं जबकि तुम यादव हो. आज नहीं तो कल हमें अपने घर वालों से शादी की अनुमति लेनी होगी. सोचो अगर वे नहीं माने तो क्या होगा खासकर तुम्हारे घर वाले तो जैसाकि तुम बताते हो इस मामले में बहुत स्ट्रिक्ट हैं. यदि उन्होंने इनकार कर दिया तो क्या करोगे?’’

विशाल ने कहा, ‘‘डौंट वरी, मैं मना लूंगा. यह बात अलग है कि वे जान से मारने की धमकी भी दे सकते हैं.’’

अंशु हंस कर बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकती हूं. तुम बताओ तुम क्या करोगे?’’

‘‘मैं भी तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं,’’ कह कर उस ने अंशु पर अपने बांहों का घेरा और मजबूत कर दिया.

अंशु मुसकरा दी. उसे विशाल के प्यार पर विश्वास था और उसे लगता था कि विशाल उस का साथ कभी नहीं छोड़ेगा. वे दोनों हमेशा एक हैप्पी कपल्स बन कर रहेंगे.

इस बात के कुछ समय बाद ही जब छुट्टियों में विशाल घर गया तो घर वालों ने उसे शादी के लिए एक लड़की की तसवीर दिखाई. विशाल ने उन्हें अपने और अंशु के रिश्ते के बारे में सब सच बता दिया.

विशाल के पिता ने साफ लफ्जों में कहा, ‘‘कान खोल कर सुन ले, तेरी शादी हमारी जाति में ही होगी. हम यादव हैं और हमें इस का गुरूर है. हम लड़की यादव ही लाएंगे वरना तुम दोनों का सीना और मेरी बंदूक.’’

विशाल ने फिर एक शब्द भी नहीं कहा और पिता की मरजी के आगे तुरंत घुटने टेक दिए. पिता ने छुट्टियां खत्म होने से पहले ही उस की शादी करा दी ताकि लड़का कोई और ड्रामा न करे.

छुट्टियों के बाद जब विशाल वापस पहुंचा तो उस की अंशु का सामना करने की हिम्मत नहीं हुई और वह अंशु के आने से पहले ही अपना सामान ले कर दूसरी जगह शिफ्ट हो गया.

इधर अंशु छुट्टियों के बाद लौटी तो बहुत खुश थी. मगर जब घर पहुंची तो विशाल को सामान समेत गायब देख कर उसे सब समझ में आ गया. फिर भी वह एक बार विशाल से मिल कर बात करना चाहती थी. उस ने विशाल को फोन किया और उसे शाम को मिलने बुलाया.

विशाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अंशु का सामना कैसे करे और उसे सारी सचाई कैसे बताए. वह कई दिनों तक बहाने बनाता रहा और अंशु से मिलने से बचता रहा. मगर एक दिन अंशु खुद उस के नए बसेरे तक पहुंच गई.

अंशु को देखते ही विशाल की धड़कनें तेज हो गई. वह बस इतना ही कह सका, ‘‘सौरी अंशु, पर मैं ने शादी कर ली है. मेरे पिता ने जबरन मेरी शादी किसी और से करा दी और मैं कुछ नही कह सका.’’

अंशु चुपचाप उसे देखती रही और फिर बिना कुछ कहे वहां से चली गई. वह दिन था और आज का दिन. विशाल को न तो दोबारा अंशु नजर आई और न ही उसे जीवन में फिर कभी कहीं सुकून मिल पाया. अंशु के साथ उस के जीवन का सारा सुकून खो चुका था.

आज उस बच्ची को देख कर उसे लग रहा था जैसे सालों बाद वह अंशु को देख रहा हो. तभी उस ने देखा सचमुच अंशु हाथ में खाने की प्लेट लिए बेटी के पास आ रही है. वह वहीं चेयर पर बैठ गई और दोनों मांबेटी मिल कर खाने लगे.

विशाल चुपचाप उठा और उन के सामने की चेयर पर बैठ गया. विशाल को देखते ही अंशु की भौंहें तन गईं. विशाल हाथ जोड़ कर कहने लगा, ‘‘आई एम सौरी. माफ कर दो मुझे.’’

अंशु ने उस समय कुछ नहीं कहा. खाना खा कर उस ने बेटी को पास ही गेम सेक्शन में खेलने के लिए भेजा और फिर विशाल की तरफ मुखातिब हुई, ‘‘अब बोलो क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘यह मेरी बेटी है न अंशु. सच बताओ?’’

अंशु हौले से मुसकराई और बोली, ‘‘वह तुम्हारी यानी एक भगौड़े बाप की नहीं बल्कि मेरी यानी एक आत्मनिर्भर मां की बेटी है. तुम कहो अब क्या कहने के लिए आए हो?’’

‘‘तुम ने शादी नहीं की अंशु?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों? अब तक मेरे प्यार में हो न. मेरी वजह से ही तुम ने शादी नहीं की न?’’ विशाल ने पूछा.

‘‘हां तुम्हारी वजह से ही शादी नहीं की. मगर इस मुगालते में बिलकुल मत रहना कि अब भी तुम्हारे प्यार में हूं. दरअसल, मैं जिंदगी में कभी तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती. इतने डरपोक और गैरजिम्मेदार इंसान से मैं कोई रिश्ता रखने की सोच भी नहीं सकती. उस एक फैसले के साथ तुम ने सिर्फ मेरा दिल ही नहीं तोड़ा था विश्वास भी तोड़ दिया था. समझे तुम?’’

‘‘मुझे माफ कर दो अंशु. सच में मुझ में हिम्मत ही नहीं थी. पिताजी के गुस्से के आगे मैं कुछ बोल ही नहीं सका. मुझे लगा कि कहीं वे मेरे साथ तुम्हें भी नुकसान न पहुंचा दें इसलिए उन की बात मान गया.’’

‘‘मगर मैं ने कहा था न कि मैं मरने के लिए तैयार हूं. तुम एक बार मुझे सबकुछ बता कर मेरी मरजी तो पूछते,’’ अंशु ने कहा.

‘‘नहीं अंशु मेरे घर वाले यादव जाति के अलावा और किसी से मेरी शादी कराने को तैयार ही नहीं थे. उन्होंने मारने की धमकी दी तो मैं डर गया. मैं तुम्हारे जितना हिम्मती नहीं. हाल यह है कि अब सुकून के 2 पलों के लिए तरस गया हूं. हमेशा लगता है जैसे तुम्हारे साथ गलत करने का फल ही मु?ो इस तरह मिल रहा है. पिताजी के कहने पर मैं ने जिस लड़की से शादी की उस ने आज तक मु?ो पिता बनने का सुख नहीं दिया.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह सरपंच है और उस का मकसद राजनीति में जाना और बड़ा नेता बनना है. उस ने शादी के कुछ दिन बाद ही मुझे यह सब बता दिया था. जब वह पहली बार प्रैगनैंट हुई थी उस समय चुनाव आने वाले थे. इसलिए उस ने मुझे बताए बगैर ही अबौर्शन करा लिया. दूसरी बार फिर से उस ने अबौर्शन करवाया तो उसे ऐसी अंदरूनी चोट लगी कि अब वह कभी मां नहीं बन सकती. मेरी जिंदगी अधूरी रह गई,’’ कहते हुए वह रो पड़ा.

अंशु ने कहा, ‘‘इस तरह रोने से क्या होगा. तुम उसे छोड़ कर दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘वे लोग बहुत प्रभाव वाले हैं. उन की यादव समुदाय में बहुत चलती है. उन के साथ पंगा लेना महंगा पड़ जाएगा. वैसे भी वे लोग पिताजी के बहुत करीबी हैं और पिताजी उन्हें कभी नाराज नहीं करेंगे. मेरी पत्नी मुझे तलाक देगी नहीं और पिताजी उस के खिलाफ जाएंगे नहीं.’’

‘‘तो फिर भुगतो न. अपने घर वालों के हिसाब से चलो. मुझ से क्या चाहते हो?’’ अंशु ने सवाल किया.

‘‘तुम मुझे मेरी बेटी से कभीकभी मिलने दिया करो बस यही चाहता हूं. प्लीज अंशु.’’

‘‘नो वे. तुम मेरी बेटी से मिलने की बात तो सोचना भी नहीं. मेरी बेटी सिर्फ मेरी है. उसे मैं ने जन्म दिया है. मैं ने पालापोसा है और वह मेरे जैसी बनेगी तुम्हारे जैसी नहीं. तुम्हारे घर का जैसा माहौल है उस में तुम्हारे जैसा डरपोक इंसान ही बन सकता है. मैं अपनी बेटी को अपनी तरह हिम्मती बना रही हूं. मैं दिल्ली किसी काम से आई थी. आज ही चली जाऊंगी. मैं कहां किस शहर में रहती हूं इस की भनक भी तुम्हें नहीं लगने दूंगी.

‘‘मेरी बेटी से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं यह याद रखना. जिंदगी में कभी उस से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

मगर अंशु बस एक बार सोचो, वह मेरी संतान है. उस के सिवा मेरी कोई औलाद भी नहीं. उसे मेरा नाम मिल जाएगा तो मेरी पैतृक संपत्ति पर उस का हक हो जाएगा,’’ विशाल ने लालच का पासा फेंकने की कोशिश की.

अंशु भड़क उठी, ‘‘तुम यह अच्छी तरह समझ लो कि तुम्हारी संपत्ति की मुझे या मेरी बेटी को कोई जरूरत नहीं. उसे पता भी नहीं कि उस का बाप जिंदा है. मैं ने उसे यही बताया है कि एक ऐक्सीडैंट में उस के पिता की मौत हो चुकी है.’’

‘‘अगर मैं ने उसे बता दिया कि उस का बाप जिंदा है फिर क्या करोगी?’’ विशाल ने धमकी दी.

‘‘उसे कुछ बताने की सोचना भी मत. चलो आज एक धमकी मैं भी देती हूं. अगर तुम ने आइंदा मु?ा से या मेरी बेटी से मिलने या उसे हासिल करने की कोशिश भी की न तो मैं तुम पर बलात्कार का आरोप लगा दूंगी. अपनी बच्ची को बलात्कार का नतीजा कह दूंगी. इस के बाद तुम जेल में सड़ते रहना. तुम्हारी कोई नहीं सुनेगा. समझे तुम?’’ स्पष्ट शब्दों में कह कर अंशु बेटी को ले कर चली गई.

विशाल फिर कुछ नहीं कह सका. आंखों में पछतावे के आंसू लिए वहीं खड़ा रह गया.

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