अमीरन ने गांव वालों से भी कई बार खुशामद की कि उसे हिंदुस्तान भिजवाने का कुछ इंतज़ाम करवा दें. कुछ लोगों ने तो उस की बात पर कान ही नहीं दिए लेकिन गफूर के एक दूर के रिश्तेदार कादिर ने पास के एक गांव से 2 लोगों को ला कर उस के सामने खड़ा कर दिया और बोला, “परजाई, तेरे प्रा नू ले आया.” पहले तो अमीरन उनको देख कर खुश हो गई लेकिन जैसे ही उस ने उन दोनों के नाम पूछे तो कादिर का झूठ खुल गया क्योंकि उन नकली भाइयों ने अपने नाम जाकिर और हशमत बताए. बस, फिर क्या था, अमीरन ने झाड़ू से पीटपीट कर तीनों को घर से बाहर निकाल दिया और कादिर को दोबारा इस तरफ आने पर जान से मार देने की धमकी दे दी.
वक्त गुज़रता गया और धीरेधीरे चारों बेटों ने खेतीबारी पूरी तरह से संभाल ली. लक्ष्मी को पुराने बेकार सामान की तरह घर के एक कोने में पटक दिया. रहीसही कसर बहुओं ने अपनी सास की दुर्दशा कर के पूरी कर दी. धीरेधीरे चारों बेटे अलगअलग घर बसा कर रहने लगे और मां को बड़े बेटे के पास छोड़ गए. तब से लक्ष्मी अकरम के परिवार के साथ रह रही है और उन लोगों द्वारा किए जाने वाले अपमान को सह रही है. लेकिन दुख के इस अंधेरे में रज़िया उस के लिए उम्मीद की किरन बन कर हमेशा उस के साथ खड़ी रहती है.
सारी बात सुन कर अफशां ने रजिया से पूछा, “रज्जो, हुण त्वाडे दिमाग विच की चलदा प्या मैनू दस.” तब रजिया ने उस से पूछा कि क्या वे बेबे की मदद करने के लिए फेसबुक पर बेबे के परिवार वालों को ढूंढने की कोशिश करेंगी? अफशां ने जवाब दिया कि बगैर नामपता जाने फेसबुक पर किसी को ढूंढना मुश्किल है और बेबे को अपने भाइयों के पूरे नाम भी मालूम नहीं हैं. और यह भी ज़रूरी नहीं है कि बेबे के परिवार वाले लोग फेसबुक पर हों.
रजिया यह सुन कर निराश हो गई. तब अफशां ने कुछ सोच कर लक्ष्मी की पूरी कहानी और मोर गांव का ज़िक्र करते हुए एक लेख फेसबुक पर पोस्ट किया और साथ ही, लोगों से प्रार्थना की कि इस बारे में कोई भी जानकारी होने पर तुरंत सूचित करें.
पोस्ट डाले कई दिन बीत गए. लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं आया. अफशां निराश हो गई और रजिया से बोली कि शायद बेबे को उस के परिवार से मिलवाना संभव नहीं होगा. मगर रजिया ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अफशां को दोबारा लोगों से अपील करने को कहा जिस पर अफशां ने एक बार फिर लोगों से मदद की अपील की.
रजिया के गांव से 4-5 सौ किलोमीटर दूर बीकानेर के एक दफ्तर में बैठे मनीष राठौर ने जब अपने फेसबुक के पन्ने पर लक्ष्मी की कहानी पढ़ी तो उस का ध्यान सब से पहले मोर गांव ने खींचा और उस ने फ़ौरन अपने मित्र संजय मेघवाल को फोन मिलाया जो मूलरूप से मोर गांव का रहने वाला है. “संजय, तूने फेसबुक पर लक्ष्मी की कहानी देखी?” संजय ने शायद जवाब नहीं में दिया क्योंकि मनीष ने उसे बताया कि कहानी किसी लक्ष्मी नाम की महिला से संबंधित है जो मोर गांव से पार्टीशन के समय गायब हुई थी. “यार, जल्दी से पढ़ पूरा किस्सा, हो सकता है तेरे पापा या दादाजी इस औरत को जानते हों.”
मित्र के आग्रह पर संजय ने पूरा किस्सा फेसबुक पर पढ़ा तो उसे ख़याल आया कि बहुत पहले दादू ने एक बार ज़िक्र तो किया था अपनी किसी रिश्तेदार के गायब होने का.
दफ्तर से शाम को घर पंहुचने पर संजय ने अपने दादू को लक्ष्मी की कहानी के बारे में बताया. तो किशन चंद मेघवाल तुरंत पलंग पर सीधे बैठ गए और खुश हो कर चिल्लाए, “म्हारी बीरी मिली गई.” दादू से इस प्रतिक्रया की उम्मीद संजय को हरगिज़ न थी. उस ने दादू को तकिए से टिका कर बैठाते हुए पूछा कि क्या लक्ष्मी उन की बहन का नाम है?
किशनचंद ने आंसू पोंछते हुए हामी भरी और बताया कि वे उस समय करीब 5 वर्ष के रहे होंगे, इसलिए ज़्यादाकुछ याद नहीं है पर उस दिन घर में खूब रौनक थी. उन को लड्डू खाने को मिले थे और घर में गानाबजाना हो रहा था. लेकिन कुछ देर बाद ही शोर मचने लगा की लक्ष्मी गायब हो गई है और मासा रोने लगी थी. सब ने बहुत ढूंढा लेकिन बीरी कहीं नहीं मिली. मासा ने तो इसी दुख में बिस्तर पकड़ लिया और जल्दी ही दुनिया से चली गईं. परिवार वाले भी धीरे धीरे बीरी को भूल गए. “के संजय बेटा, म्हारी बात हो सके छे बीरी से?” किशनचंद ने पोते से पूछा.
“पता करता हूं दादू,” संजय ने जवाब दिया और फिर से फेसबुक पर लक्ष्मी की कहानी पर नज़र दौडाने लगा तो नीचे एक व्हाट्सऐप नंबर दिखाई दिया. संजय ने तुरंत उस नंबर पर मैसेज कर के अपना फोन नंबर भेजा और वीडियोकौल करने को कहा. इस के बाद उस ने यह खबर मनीष को दी और फिर अपने पापा व मम्मी को बताने गया. पापा तो खबर सुन कर खुश हो गए लेकिन मां ने एक सवाल खड़ा कर दिया- “तुम्हें क्या मालूम कि ये असली लक्ष्मी हैं या आतंकवादियों की नई चाल? तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि वह औरत बाबूजी की बहन ही हैं? जानते तो हो कि आजकल न जाने कितने धोखेबाज़ झूठी कहानियां बना कर लोगों को लूटते रहते हैं. तुम तो इन चक्करों से दूर ही रहो बेटा.”
मां की बात में दम तो था लेकिन संजय का मन कह रहा था कि एक बार इस कहानी की सचाई जाननी ज़रूरी है. उधर पाकिस्तान में अफशां ने जैसे ही संजय मेघवाल का संदेश और फोन नंबर देखा, वह रजिया के घर की तरफ दौड़ी. रजिया की भाभियां और अम्मी आंगन में बैठ कर गेंहू साफ़ कर रही थीं. अफशां को अपने घर आया देख कर वे सब चौंक गईं और अफशां उन लोगों को इतना हैरान देख कर अपने आने की वजह उन लोगों को बताने ही वाली थी कि तभी बेबे की कोठरी से निकलते हुए रजिया की नज़र अफशां पर पड़ी और वह अफशां बाजी चिल्लाती हुई दौड़ कर उस के पास आई व उस का हाथ पकड़ कर बहाने से उसे छत पर ले गई. अफशां ने उसे बताया कि वह बेबे की बात उन के भाई से करवाने के लिए यहां आई है, इसलिए अभी बेबे के पास चलना ज़रूरी है.
रजिया ने मारे ख़ुशी के अफशां के हाथ पकड़ कर उस को नचा डाला और फिर उसे ले कर बेबे के पास गई. फौजिया ने बेटी को अफशां के साथ बेबे के पास जाते हुए देखा तो वह लपक कर आई और रजिया से बोली कि बेबे की कोठरी में तो बहुत गरमी है, इसलिए अफशां को बैठक में ले जा कर बैठाए. उस पर अफशां ने कहा कि वह बेबे से ख़ास किस्म की शीरमाल बनाने के बारे में पूछने आई है. फौजिया ने झट से कहा कि शीरमाल बनाना तो उस को भी आता है वही सिखा देगी लेकिन रजिया ने अम्मी को परे करते हुए कहा कि अफशां शीरमाल के बारे में बेबे से पूछना चाहती है, इसलिए वह बीच में न पड़े और फिर दोनों सहेलियां दौड़ कर बेबे के पास पंहुच गईं.
अफशां ने रजिया से कोठे का दरवाज़ा बंद करने को कहा और फिर शुरू हुआ बरसों से बिछुड़े भाई और बहन का वार्त्तालाप जिस में बातें तो कम हुईं लेकिन दोनों तरफ से आंसू ज़्यादा बहे. बेबे फोन में दिखाई दे रहे सफ़ेद बालों वाले बूढ़े के चेहरे में अपने छोटे से किसना को ढूंढ रही थी और किशनचंद मेघवाल अपनी जर्जर बूढ़ी बहन की हालत देख कर दुखी हो रहे थे. फिर बेबे से फोन ले कर अफशां ने संजय से कहा कि अगर वे लोग बेबे को हिंदुस्तान बुलाना चाहते हैं तो उस के लिए उन लोगों को ही कोशिश करनी होगी क्योंकि यहां बेबे के बेटे इस मामले में उस की कोई मदद नहीं करेंगे. संजय ने उस से कहा कि वह बेबे को भारत लाने का सारा प्रबंध होते ही अफशां को सूचित कर देगा.